राजपथ - जनपथ
सीआईसी के लिए नया नाम उभरा
राज्य में राजनीतिक नियुक्तियों का सिलसिला भले ही रुकी रहे, लेकिन मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) और दो सूचना आयुक्तों (आईसी) की नियुक्ति अब किसी भी सूरत में टलने वाली नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह है सुप्रीम कोर्ट की सख्त निगरानी, जिसके तहत आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों को यह जवाब होगा कि उन्होंने पारदर्शी प्रक्रिया के साथ सूचना आयुक्तों नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर ली है।
इसके पहले ए.के. विजयवर्गीय (2005-2010), सरजियस मिंज (2011-2016) और एम.के. राऊत (2017-2022), सभी की नियुक्तियां आपस के राय-मशविरे से, बिना साक्षात्कार हुईं। लेकिन इस बार परिदृश्य बदल गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, चयन प्रक्रिया को पारदर्शिता के दायरे में लाया गया। विज्ञापन जारी किए गए, आवेदन सार्वजनिक पोर्टल पर डाले गए, और इंटरव्यू भी लिया गया।
मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति पर मुहर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय चयन समिति लगाएगी। समिति में एक मंत्री और नेता प्रतिपक्ष भी शामिल हैं। माना जा रहा है कि इस बार भी अखिल भारतीय सेवा के किसी वरिष्ठ अधिकारी को सीआईसी की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। चर्चा में सबसे ऊपर नाम अमिताभ जैन का था, जो जून में सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, उनके नाम की केवल औपचारिक घोषणा बाकी थी, लेकिन अब राजनीतिक प्रशासनिक हलकों में अब यह चर्चा गर्म है कि जैन को कम-से-कम छह महीने का सेवा विस्तार मिल रहा है।
ऐसी स्थिति में अब जिस नाम की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, वह है पूर्व डीजीपी अशोक जुनेजा। साक्षात्कार में कुछ अन्य आईएएस, आईपीएस भी शामिल थे, पर कहा जा रहा है कि उनका इंटरव्यू (जैन के बाद) सबसे अच्छा गया। पर यह बदलाव तभी हो सकता है जब जैन के सेवा विस्तार की खबरें सही निकले।
आईपीएस के नाम फर्जी फेसबुक पेज
आईपीएस शलभ कुमार सिन्हा के नाम और फोटो का दुरुपयोग कर अज्ञात व्यक्तियों द्वारा फेसबुक पर एक नहीं दो-दो फर्जी प्रोफाइल बनाए गए हैं। सिन्हा ने खुद ही सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी देते हुए लोगों से अपील की है कि वे इस फर्जी अकाउंट से आने वाली फ्रेंड रिक्वेस्ट को स्वीकार न करें और इसकी तुरंत रिपोर्ट करें। पूर्व में भी छत्तीसगढ़ के कई आईपीएस और हाई-प्रोफाइल अधिकारियों के नाम पर फर्जी सोशल मीडिया पेज बनाए गए हैं। इन फर्जी अकाउंट्स का मुख्य मकसद ठगी और उगाही करना होता है, जहां लोगों को झूठे बहाने बनाकर पैसे मांगे जाते हैं। अब पुलिस के ही साइबर सेल की ही जिम्मेदारी है कि वे अपने अफसर के नाम पर ठगी करने वालों को ढूंढ निकाले।
डीएमएफ यानी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट फण्ड
डीएमएफ घोटाला केस में पखवाड़े भर पहले ईओडब्ल्यू-एसीबी ने कोरबा के तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर भरोसाराम ठाकुर, और तीन जनपद सीईओ को गिरफ्तार किया था तब केस की गंभीरता का अंदाजा नहीं लग पा रहा था। क्योंकि ईडी भी डीएमएफ केस की जांच कर चुकी है। इस केस में कोरबा की तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू, और कारोबारी सूर्यकांत तिवारी सहित अन्य आरोपी हैं। रानू साहू को ईडी के केस में जमानत मिल चुकी है। मगर ईओडब्ल्यू-एसीबी के केस में उन्हें जमानत नहीं मिली है। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने मंगलवार को रायपुर की विशेष अदालत में डीएमएफ केस को लेकर चालान पेश किया। इसमें कई नए खुलासे हुए हैं।
ईओडब्ल्यू-एसीबी के छह हजार पेज के चालान में 75 करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने बताया कि कोरबा की तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू ने डिप्टी कलेक्टर बीआर ठाकुर को डीएमएफ का नोडल अफसर बनाया था। नोडल अफसर ठाकुर कलेक्टर के निर्देश पर सप्लाई ऑर्डर देते थे। यह भी कहा गया कि डीएमएफ के कार्यों में सूर्यकांत तिवारी का दखल रहा है।
ईओडब्ल्यू-एसीबी की गिरफ्त में आए तीन जनपद सीईओ वीरेन्द्र राठौर, राधेश्याम मिर्घा, और भुवनेश्वर सिंह राज ने अपने बयान में इसकी पुष्टि की है। प्रकरण की जांच से जुड़े एक अफसर ने इस संवाददाता से अनौपचारिक चर्चा में कहा कि जांच में कई नए तथ्य सामने आए हैं, और घोटाले से जुड़े कुछ पुख्ता दस्तावेज मिले हैं। ऐसे में आरोपियों के खिलाफ केस काफी मजबूत है। देखना है आगे क्या होता है।
जाने के पहले पदोन्नति
उच्च शिक्षा में सहायक प्राध्यापक से प्राध्यापक पद पर पदोन्नति के लिए कसरत चल रही है। पदोन्नति सूची में एक ऐसे सहायक प्राध्यापक का नाम है, जिसे पीएससी 2005 के पीएससी घोटाले में संलिप्त पाया गया था। सहायक प्राध्यापक उस वक्त पीएससी में परीक्षा नियंत्रक थे। सरकार ने उनकी तीन वेतनवृद्धि भी रोक दी थी।
सहायक प्राध्यापक के खिलाफ कुछ और शिकायतें भी रही हैं, लेकिन कोई भी जांच के स्तर तक नहीं पहुंच पाया। अब सहायक प्राध्यापक सभी आरोपों से मुक्त हैं इसलिए उन्हें पदोन्नति देने में कोई तकनीकी अड़चन नहीं है। वैसे वो भाजपा के एक ताकतवर नेता के करीबी रिश्तेदार हैं। नेताजी भले ही किसी पद में नहीं हैं, लेकिन उनकी सिफारिशों को अनदेखा नहीं किया जाता है। सहायक प्राध्यापक अगले कुछ दिनों में रिटायर होने वाले हैं। नेताजी ने भी जोर लगाया है कि रिटायरमेंट के पहले उनकी पदोन्नति हो जाए। देखना है आगे क्या होता है।
नए शिक्षकों की भर्ती अब और टलेगी?
छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग का कहना है कि युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया सिर्फ अतिशेष शिक्षकों के समुचित समायोजन के लिए की जा रही है। विभाग का दावा है कि न तो किसी शिक्षक का पद समाप्त किया जा रहा है और न ही कोई स्कूल बंद किया जा रहा है। लेकिन शिक्षक संगठनों, विपक्ष और अभिभावकों के बीच यह सवाल लगातार उठ रहा है कि क्या यह प्रक्रिया दरअसल सैकड़ों स्कूलों को धीरे-धीरे बंद करने और शिक्षकों की संख्या घटाने की तैयारी है?
शिक्षा विभाग के अनुसार राज्य में 5,370 शिक्षक (3,608 प्राथमिक और 1,762 पूर्व माध्यमिक शिक्षक) अतिशेष हैं। इन्हें उन स्कूलों में स्थानांतरित किया जा रहा है, जहां शिक्षकों की कमी है। विभाग यह भी कहता है कि किसी स्वीकृत पद को खत्म नहीं किया जा रहा है और भविष्य में छात्र संख्या बढऩे पर सभी पद फिर से सक्रिय रहेंगे। क्लस्टर स्कूल की अवधारणा को संसाधनों के बेहतर उपयोग से जोड़ा जा रहा है।
हालांकि, सवाल यह है कि अगर एक ही परिसर में कई स्कूलों को समायोजित किया जा रहा है और कुछ स्कूलों से शिक्षक हटाए जा रहे हैं, तो क्या यह वास्तव में स्कूलों को अप्रत्यक्ष रूप से बंद करने जैसा नहीं है? वर्तमान में राज्य की 212 प्राथमिक शालाएं पूरी तरह शिक्षकविहीन हैं और 6,872 शालाएं केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रही हैं। शिक्षकों की भर्ती को लेकर सबसे ज्यादा चिंता उन बेरोजगार युवाओं में है, जिन्हें दिसंबर 2023 में भाजपा सरकार ने आश्वासन दिया था कि एक साल के भीतर 54,000 शिक्षकों की भर्ती की जाएगी। लेकिन अब जब युक्तियुक्तकरण के जरिए अतिशेष शिक्षकों को दूसरी जगह समायोजित किया जा रहा है, तो यह आशंका बढ़ गई है कि सरकार नए पदों का सृजन शायद टाल सकती है।
अगर सरकार केवल समायोजन पर ही ध्यान देती रही और नई भर्ती की कोई स्पष्ट समयसीमा घोषित नहीं करती, तो हजारों प्रशिक्षित युवा, जिन्होंने बीएड और डीएड जैसी डिग्रियां इन्हीं वादों के भरोसे हासिल की हैं, खुद को ठगा हुआ महसूस कर सकते हैं।
दूसरी तरफ राज्य के दो दर्जन से अधिक शिक्षक संगठन एकजुट हो चुके हैं। उनका कहना है कि यह समायोजन शिक्षकों के साथ अन्याय है, खासकर तब, जब नई भर्ती और पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है। इन संगठनों ने 28 मई को मंत्रालय घेराव का ऐलान किया है। अब देखना यह होगा कि इस विरोध प्रदर्शन का राज्य सरकार और शिक्षा विभाग पर क्या असर होता है।
एक समाजवादी हस्तक्षेप
राजनीति के इस पूंजीवादी दौर में डॉ. राममनोहर लोहिया जैसे समाजवाद के प्रखर समर्थक अब हमारी स्मृतियों से ओझल होते जा रहे हैं। गोवा मुक्ति आंदोलन के इस निर्भीक नायक, जिन्होंने संसद में भी सत्ता की चूलें हिला दी थीं, उन्हें आज की पीढ़ी कितनी जानती है? लोहिया कहते थे कि अगर कोई झूठ को सच बना दे, तो वह राजनीति नहीं, धोखा है...। शायद इस दौर में उनकी कही बातें और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गई हैं।
धमतरी जिले के नगरी कस्बे से गुजरते वक्त अब एक चौक पर उनकी प्रतिमा दिखाई देती है। यह केवल धातु की आकृति नहीं, बल्कि एक विचार की मौजूदगी है। समाजवादी नेता रघु ठाकुर के प्रयासों से यह प्रतिमा हाल ही में स्थापित की गई है। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने इसका अनावरण किया।
चैम्बर और चुनौती
चैम्बर ऑफ कॉमर्स में सतीश थौरानी के निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाने के बाद व्यापारियों नेताओं में एका की उम्मीद जताई जा रही थी। वजह यह थी कि थौरानी का चैम्बर के बड़े नेता अमर पारवानी, और श्रीचंद सुंदरानी समेत अन्य से घनिष्ठता रही है, लेकिन सोमवार को उन्होंने कार्यकारिणी घोषित की, तो एकता को लेकर संदेह जताया जा रहा है।
पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी, पूरनलाल अग्रवाल जैसे दिग्गजों को संरक्षक बनाया गया है। मगर पारवानी का नाम सूची से गायब है। पारवानी व्यापारियों के बीच अपनी पकड़ साबित कर चुके हैं। उन्होंने पिछले चुनाव में अलग पैनल बनाकर पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी के एकता पैनल को मात दी थी। सतीश को निर्विरोध अध्यक्ष बनाने में पारवानी की भी भूमिका रही है। हालांकि पारवानी को संरक्षक भले ही नहीं बनाया गया, लेकिन उनके करीबी विक्रम सिंहदेव, विनय बजाज सहित कई नेताओं को अहम पद दिए गए हैं।
बताते हैं कि पूर्व अध्यक्ष पारवानी को चैम्बर की सूची में जगह नहीं मिलने के पीछे उनका कैट से जुड़ा होना बताया जा रहा है। पारवानी कैट के कर्ता-धर्ता हैं। चैम्बर में यह तय किया गया कि जो कैट का पदाधिकारी होगा, उन्हें चैम्बर का पदाधिकारी नहीं बनाया जाएगा। ऐसे में अब व्यापारी संगठन में एकता को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। हालांकि खूबचंद पारख, बलदेव सिंह भाटिया, छगनलाल मूंदड़ा, और लाभचंद बाफना सहित कई प्रभावशाली नेता थौरानी की कार्यकारिणी में हैं। बावजूद इसके सबको साथ लेकर चलना थौरानी के लिए चुनौती भी है। देखना है आगे क्या होता है।
बसवा राजू के शव को लेकर हिचक
छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ में हुई मुठभेड़ में मारे गए 27 नक्सलियों में से एक था बसवा राजू, जो माओवादी संगठन का शीर्ष सैन्य कमांडर था। उसकी मौत के बाद आंध्र प्रदेश में रहने वाले परिजनों ने छत्तीसगढ़ पुलिस से शव सौंपने का अनुरोध किया है, ताकि वे अपने गांव में अंतिम संस्कार कर सकें। लेकिन छत्तीसगढ़ पुलिस ने अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
उग्रवाद और आतंकवाद से जुड़े मामलों में शवों का प्रबंधन हमेशा बेहद संवेदनशील रहा है। 2001 के संसद हमले के दोषी अफजल गुरु और 2008 के मुंबई हमले के आतंकवादी अजमल कसाब को फांसी दिए जाने के बाद उनके शव परिजनों को नहीं सौंपे गए थे। दोनों का अंतिम संस्कार गोपनीय रूप से जेल परिसर में ही किया गया था, ताकि कोई उकसावे की स्थिति न बने। छत्तीसगढ़ में बहुत से शवों का कोई दावेदार नहीं होता, पुलिस ही उनका अंतिम संस्कार करा देती है।
बसवा राजू माओवादी संगठन के लिए इस समय का सबसे बड़ा चेहरा था। उसके समर्थक आज भी कई इलाकों में सक्रिय हैं। ऐसे में अगर उसका शव परिजनों को सौंपा गया, तो यह अंतिम संस्कार एक भावनात्मक प्रदर्शन में बदल सकता है। भीड़ जुटने और उकसावे की स्थिति बनने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता।
संभवत: छत्तीसगढ़ पुलिस और प्रशासन इस बात से भली-भांति परिचित हैं, इसलिए फिलहाल उन्होंने कोई फैसला नहीं लिया है। संकेत यही मिल रहे हैं कि शव परिजनों को सौंपा नहीं जाएगा। बस्तर के कई क्षेत्रों में पहले भी नक्सली नेताओं के स्मारक बनाए गए हैं, जिन्हें सुरक्षा बलों ने चिन्हित कर ध्वस्त किया है। बसवा राजू की मौत भले ही एक व्यक्ति के रूप में हुई हो, लेकिन अगर उसका शव सौंपा गया, तो उसकी विचारधारा, नेतृत्व और संगठन कौशल को नक्सली ‘गौरव का प्रतीक’ बनाकर पेश कर सकते हैं।
कुदाल उठाई तब पहुंचा सुशासन
दुर्गम आदिवासी इलाकों में सडक़ों की कमी जनजीवन के लिए कितनी बड़ी चुनौती है, इसका उदाहरण हाल ही में तब देखने को मिला, जब कुल्हाड़ी घाट के पास एक गांव में सांप के काटे व्यक्ति को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए कांवड़ में उठाकर ग्रामीणों को 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा।
अब सडक़ के लिए जूझते ग्रामीणों का एकऔर मामला बीजापुर जिले के भैरमगढ़ जनपद पंचायत के केशकुतुल ग्राम पंचायत से आया है। यहां के ग्रामीण सालों से भैरमगढ़ तक सडक़ निर्माण की मांग कर रहे थे। प्रशासन से कोई जवाब न मिलने पर गांववालों ने मशीन और निर्माण सामग्री के लिए चंदा इक_ा किया, और श्रमदान से खुद सडक़ बनाना शुरू कर दिया।
इन दिनों छत्तीसगढ़ में सुशासन तिहार मनाया जा रहा है। जब यह खबर प्रशासन तक पहुंची, तो शायद उन्हें भी सोच-विचार करना पड़ा। एसडीएम और जनपद पंचायत के सीईओ गांव पहुंचे। वहां पहुंचने में आई कठिनाइयों ने ही उन्हें यह अहसास करा दिया होगा कि यह सडक़ कितनी जरूरी है।
अधिकारियों ने ग्रामीणों से कहा कि अब यह सडक़ वे नहीं बनाएंगे, बल्कि प्रशासन इसे मनरेगा योजना के तहत तुरंत स्वीकृत करेगा। ग्रामीणों ने इस निर्माण के लिए लगभग 50 हजार रुपये चंदा इक_ा किया था। अधिकारियों ने भरोसा दिया कि यह राशि उन्हें लौटा दी जाएगी, जिसे अब तक हुए निर्माण कार्य के मूल्यांकन में जोड़ दिया जाएगा। अफसरों को अपने बीच पाकर ग्रामीणों ने भी मौका नहीं गंवाया और दो-तीन छोटी पुलियों की मांग रखी, यह भी मंजूर हो गई।
प्रतिनियुक्ति के दरवाजे बंद होने वाले हैं
लगता है कि अब राज्यों के आईपीएस अफसरों के लिए केंद्रीय सशस्त्र बलों में प्रतिनियुक्ति के दरवाजे बंद होने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देशों से यही लगता है। कोर्ट ने लोक कार्मिक प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) से कहा है कि वह, कैडर रिव्यू को लेकर गृह विभाग की सिफारिश पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेकर एक्शन टेकन रिपोर्ट पेश करें। इसमें डीओपीटी को इन केंद्रीय बलों के भर्ती नियम भी बदलने होंगे। ताकि आईपीएस अफसरों की प्रतिनियुक्ति खत्म भी हो। इसके अलावा राज्यों में बलों की तैनाती पर राज्यों से समन्वय के साथ राज्य पुलिस से तालमेल के सुझाव भी देने कहा है ।
आईटीबीपी, बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और एसएसबी समेत सभी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) का कैडर रिव्यू 2021 से टलता आ रहा है। इसके पीछे मुख्य कारण प्रतिनियुक्ति से, इन बलों में रिक्त पदों की पूर्ति को माना गया है। कोर्ट का यह निर्देश गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन, कैडर समीक्षा और आईपीएस प्रतिनियुक्ति को समाप्त करने के लिए भर्ती नियमों के पुनर्गठन और संशोधन की मांग करने वाली याचिकाओं पर आया।
कोर्ट ने कहा कि केंद्र का मानना है कि प्रत्येक सीएपीएफ में आईपीएस अधिकारियों की मौजूदगी उनमें से प्रत्येक के चरित्र को एक अद्वितीय केंद्रीय सशस्त्र बल के रूप में बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
भाजपा की हार के पीछे
हज कमेटी के चुनाव को लेकर चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। बताते हैं कि सरकार ने 11 सदस्यीय कमेटी में 6 सदस्य मनोनीत कर दिए थे। ताकि कमेटी अध्यक्ष पद पर भाजपा समर्थित सदस्य की जीत सुनिश्चित हो सके।
चर्चा है कि विभागीय मंत्रीजी ने पार्टी के एक अल्पसंख्यक नेता की पसंद पर सदस्य मनोनीत कर दिए। बाद में अध्यक्ष के चुनाव का समय आया, तो पार्टी नेताओं ने अल्पसंख्यक नेता की राय को महत्व नहीं दिया। फिर क्या था, मनोनीत सदस्य वोट देने के बजाए पिकनिक चले गए, और भाजपा समर्थित प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद अब मंत्रीजी को सफाई देना पड़ रहा है। अब आगे क्या होता है, यह देखना है।
इस बार कोरोना से निपटना आसान?
छत्तीसगढ़ के लिए यह थोड़ी चिंता की बात है कि लंबे समय बाद राज्य में फिर से कोरोना वायरस का मामला सामने आया है। रायपुर के एक 41 वर्षीय व्यक्ति में कोविड-19 की पुष्टि हुई है, जो सर्दी-खांसी की शिकायत के साथ अस्पताल पहुंचा था। अभी तक पूरे राज्य में यही एक सक्रिय मामला है, लेकिन इससे यह साफ हो गया है कि कोरोना पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है – वह अब भी आसपास मौजूद है।
बीते तीन वर्षों में छत्तीसगढ़ ने कोरोना की तीन बड़ी लहरों का सामना किया है, जिनमें लगभग 14,000 लोगों की जान गई। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने भी इसे हल्के में न लेते हुए तुरंत मेकाहारा में कोविड-19 के लिए एक विशेष ओपीडी शुरू कर दी है। कोविड के मामले नहीं आने के कारण इसके लिए तैयार किए गए अस्पतालों में अब स्वास्थ्य संबंधी दूसरे काम किए जा रहे हैं, पर अब हम पहले से कहीं ज्यादा सतर्क और सक्षम हैं।
इस समय 260 से ज्यादा मामले देश में आ चुके हैं। सबसे अधिक मरीज केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हैं। महाराष्ट्र के मुंबई में दो मौतें भी दर्ज की गई हैं, लेकिन इस बार लक्षण हल्के हैं और ज्यादातर मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ी है।
रायपुर में जो मामला सामने आया है, वह जेएन.1 वेरिएंट से जुड़ा हो सकता है – जो ओमिक्रॉन का ही एक नया रूप है। यह वेरिएंट तेजी से फैल सकता है और इम्यून सिस्टम को थोड़ा चकमा दे सकता है, लेकिन अब तक की जानकारी के अनुसार यह गंभीर बीमारी का कारण नहीं बन रहा है। इसके लक्षण सामान्य सर्दी-जुकाम जैसे हैं – जैसे गले में खराश, सिरदर्द, खांसी, और हल्का बुखार।
यह ठीक है कि घबराने की जरूरत नहीं, लेकिन लापरवाह होने का समय भी नहीं है। हमें वही सावधानियां फिर से याद करनी होंगी। जैसे खांसी-जुकाम होने पर मास्क लगाना, हाथों की सफाई का ध्यान रखना, और भीड़भाड़ वाली जगहों से बचना। हालांकि इस संबंध में अभी निर्देश प्रशासन की ओर से भी जारी होना है।
गबन का सदुपयोग!
हाल के वर्षों में डाक विभाग में गबन के मामले जहां बढ़े हैं वहीं इनके आरोपी अधिकारी कर्मचारियों को बचाने के भी यत्न कम नहीं हुए। आश्चर्य है कि बचने- बचाने के इस खेल में भी गबन की ही राशि का अफसरों ने सदुपयोग किया । विभाग में चर्चा है कि एक जगदलपुर के एक पोस्टमास्टर ने अपने पिछले पोस्टिंग वेन्यू में 25 लाख रुपए सरकारी खजाना से निकाल कर शेयर बाजार में लगाया दोष सिद्धी के समय वरिष्ठ अफसरों ने अपना जाल बिछाया। इसमें राजनांदगांव से लेकर रायपुर के अफसरों ने गबनकर्ता की सजा कम कराने के लिए लाखों रूपए झोंके। ताकि दोष सिद्ध होने पर बर्खास्तगी से बचाया जा सके। नतीजतन, सरकारी धन को शेयर बाजार में लगाने वाले इस पोस्ट मास्टर को एक साहब ने कम दण्ड देकर नौकरी बचा दी। और उसे मात्र ,हटा कर बस्तर भेज दिया गया।है न गबन के सदुपयोग का उदाहरण। इसी दौरान साहब के अचल संपत्ति में निवेश की भी चर्चा रही। भाठागांव में इस संपत्ति की पहली किश्त एक जूनियर साहब ने जमा किया तो दूसरा किस्त एक अन्य ने। इन दोनों ही जूनियर साहबों का काम पूरे परिमंडल में ट्रांसफर्स का काम देखते हैं। जो इस गिव एंड टेक की महात्मय है। अब देखना होगा कि आगे क्या होता है ।
अब बड़े निजी अस्पतालों का दौर
यह तस्वीर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मैनपुर ब्लॉक के भालुडिग्गी गांव की है, जो कुल्हाड़ीघाट के पास दुर्गम पहाड़ी इलाके में स्थित है। यहां एक ग्रामीण को सांप ने डस लिया, जिससे वह बेहोश हो गया।
इलाके में न सडक़ है, न एम्बुलेंस की सुविधा। ऐसे में गांव के लोगों ने लकड़ी और कपड़े की मदद से कांवडऩुमा स्ट्रेचर बनाया और मरीज को करीब 10 किलोमीटर लंबा, पथरीला पहाड़ी रास्ता पैदल तय करके कुल्हाड़ीघाट के स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाया। यह दर्शाता है कि अब आदिवासी समाज में बदलाव की बयार है। वे अब अवैज्ञानिक झाड़-फूंक की बजाय डॉक्टरों पर भरोसा कर रहे हैं। इस भरोसे ने सर्पदंश पीडि़त जान भी बचाई, क्योंकि अस्पताल पहुंचने पर समय पर एंटी वेनम इंजेक्शन लग गया।
लेकिन इस तस्वीर के पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपी है। देश को आजाद हुए 76 साल हो चुके हैं, अलग छत्तीसगढ़ राज्य बने 25 साल बीत चुके, फिर भी भालुडिग्गी जैसे गांव आज भी सडक़ के लिए तरस रहे हैं। सवाल है कि क्या आदिवासियों का यह जागरूकता भरा प्रयास अकेले काफी है? जब वे अस्पताल तक पहुंचने को तैयार हैं, तो सरकार उनके लिए सडक़ क्यों नहीं बना पा रही?
कान घुमाकर पकड़ो तो कानूनी...
सुप्रीम कोर्ट में कल एक याचिका पर सुनवाई हुई जिसमें ऑनलाइन सट्टेबाजी, खासतौर पर गेमिंग ऐप्स के खिलाफ कानून बनाने की मांग की गई है। छत्तीसगढ़ के लिए यह बहस इसलिए खास है क्योंकि यहीं से जन्मा महादेव सट्टा ऐप अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित और विवादित हो चुका है। छत्तीसगढ़ से शुरू हुए इस ऐप का संचालन अब दुबई से हो रहा है। इसके प्रमोटर रवि उप्पल और सौरभ चंद्राकर के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी हो चुका है, लेकिन वे अब तक गिरफ्त से बाहर हैं। छत्तीसगढ़ सहित देशभर में इससे जुड़े सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जिनमें राजनीतिक लोग और कारोबारी भी शामिल हैं।
पूरे परिदृश्य में सबसे दिलचस्प यह है कि एक ओर महादेव ऐप जैसे प्लेटफॉर्म को अवैध माना जाता है, वहीं दूसरी ओर ड्रीम 11, रमी सर्किल, गैम्सक्राफ्ट, एमपीएल, जूबी जैसे ऐप्स को कानूनी मान्यता है। बड़े सेलिब्रिटी इनका प्रचार कर रहे हैं, टीवी-अखबारों में इनके बड़े-बड़े विज्ञापन चल रहे हैं और सरकार इनसे 28 प्रतिशत जीएसटी भी वसूल रही है।
दोनों में फर्क की वजह है, कानून में बताया गया तकनीकी अंतर। गेम ऑफ चांस बनाम गेम ऑफ स्किल। महादेव जैसे प्लेटफॉर्म केवल दांव लगाने पर आधारित हैं—यानी ‘चांस’। पैसा लगाएं, किस्मत साथ रहेगी तो जीतेंगे। वहीं, ड्रीम 11 जैसे ऐप्स में कहा जाता है कि खिलाड़ी अपने कौशल से टीम बनाते हैं, इसलिए वे स्किल के जरिये हारते या जीत पाते हैं। इस फर्क ने एक को अपराध और दूसरे को व्यापार बना दिया है। सवाल यह है कि आउटडोर स्टेडियम में खेले जाने वाले क्रिकेट, फुटबॉल को और इनडोर में खेले जाने वाले कैरम को मोबाइल फोन पर उंगलियां फिरा कर कैसे खेला जा सकता है? कोई तुलना हो नहीं सकती है, मगर मान लिया गया है कि यह खेल है।
एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक ऑनलाइन गेमिंग का उद्योग भारत में 21,500 करोड़ रुपये सालाना का हो गया है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका के मुताबिक 30 करोड़ युवा इसकी गिरफ्त में हैं, जबकि कुछ आंकड़ों के अनुसार यह संख्या 58 करोड़ को पार कर चुकी है और इस साल के अंत तक 70 करोड़ तक पहुंचने की आशंका है।
अगर कोई व्यक्ति बिना खेल खेले सिर्फ पैसे लगाकर किस्मत आजमाता है, तो वह जुर्म करता है। लेकिन अगर वह मोबाइल ऐप पर खेल जीतने की कोशिश करता है, तो वह कौशल है। चाहे वह ‘चांस’ हो या ‘स्किल’, अंतत: जोखिम, व्यसन और आर्थिक हानि दोनों ही प्रकार के प्लेटफॉर्म में है। फर्क बस इतना है कि एक से सरकार को राजस्व मिलता है, दूसरे में गिरफ्तारियां और अफसरों-नेताओं को हिस्सा। जैसी कमाई महादेव की है, वैसी ही दूसरे कानूनी गेम्स प्लेटफॉर्म की।
दोनों ही तरह के गेम्स में होने वाली बर्बादी पर देशभर के मामले गिनें तो बहुत सूची बहुत लंबी हो जाएगी, छत्तीसगढ़ के ही कुछ मामलों को देखें। पिछले 15 मई को मनेंद्रगढ़ के आमखेरवा गांव में 12 साल से आकाश लकड़ा ने आत्महत्या कर ली। पुलिस जांच में पता चला कि वह ऑनलाइन गेम्स में घंटों बिताता था। चचेरे भाई ने उसका फोन छीन लिया था। वह अपने परिवार का इकलौता बेटा था। इधर, रायपुर में पिछले साल 15 साल के बच्चे ने मां के अकाउंट को गेम्स में दांव लगाकर खाली कर दिया। जब पता चला तो उसे डांट पड़ी। वह घर से भाग गया। पुलिस ने ढूंढा तो वह एक साइबर कैफे में गेम खेलते मिला था। दुर्ग मे पिता के बैंक खाते से 17 साल के एक छात्र ने 1.5 लाख खर्च कर दिए। पिता ने मोबाइल छीनने की कोशिश की तो उसने आत्महत्या का प्रयास किया, परिवार वालों ने समय रहते उसे बचा लिया। बिलासपुर में तो बीते साल 14 साल के एक किशोर ने अपने माता-पिता के क्रेडिट कार्ड से ही हजारों रुपये निकालकर गेम्स में डाल दिया। वह एक फर्जी गेमिंग ऐप्स के जाल में फंस गया था। बच्चे की काउंसलिंग कराई गई। फिलहाल, ‘गेम ऑफ चांस’ और ‘गेम ऑफ स्किल’ पर बहस जारी रखिये।
सरगुझिया की बात
दक्षिण-पूर्व रेलवे बिलासपुर मंडल के अधीन क्षेत्र के सांसदों की बैठक में शुक्रवार को रेल सुविधाओं पर काफी बातें हुईं। सरगुजा के सांसद चिंतामणि महाराज ने अपना उद्बोधन सरगुजिया बोली में दिया, जो कि ज्यादातर रेल अफसरों के पल्ले नहीं पड़ा।
हालांकि बाद में केन्द्रीय मंत्री तोखन साहू ने चिंतामणि महाराज के उद्बबोधन का हिन्दी में ट्रांसलेशन किया। ये अलग बात है कि चिंतामणि महाराज हिंदी और संस्कृत भाषा पर अच्छी पकड़ है, और वो संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। दरअसल, वो सरगुजिया बोली को बढ़ावा देने के लिए अभियान चला रहे हैं, और सरकारी बैठकों में भी सरगुजिया में ही अपना उद्बोधन देते हैं।
खैर, चर्चा के दौरान रेल अफसर ज्यादातर मांगों को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर होने की बात कहकर टालते रहे, इस पर चिंतामणि महाराज नाराज हो गए। उन्होंने रेलवे अफसरों से कहा बताते हैं कि आप लोग बता दीजिए कि आपके अधिकार क्षेत्र में क्या है? उन्हीं से जुड़ी बातें बैठक में रखी जाएगी। सांसद ज्योत्सना महंत सहित अन्य सांसदों ने चिंतामणि महाराज का समर्थन किया। दरअसल, रेलवे के अफसर सांसदों की ज्यादातर मांगों को रेलवे बोर्ड का विषय बताकर खारिज करते रहे हैं। इससे सांसद नाराज हो गए थे। बाद में केन्द्रीय मंत्री तोखन साहू ने स्थिति को संभाला, और बात आगे बढ़ी।
देशभक्ति की ऐसी लहर...
22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के बाद जयपुर की कुछ मिठाई दुकानों ने मैसूर पाक, मोती पाक, आम पाक जैसे लोकप्रिय व्यंजनों से ‘पाक’ शब्द हटाकर उन्हें ‘श्री’ नाम दे दिया। अब इनका नाम मैसूर श्री, मोती श्री आदि हो गया है। इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। इस पर लोगों की प्रतिक्रियाएं भी कम दिलचस्प नहीं।
एक भाषा शोधार्थी अभिषेक अवतांस ने सोशल मीडिया पर ही लिखा है कि 'पाक' शब्द का पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है। यह शब्द संस्कृत के 'पक्व' से आया है, जिसका अर्थ है- पका हुआ। कन्नड़ भाषा में पाका का मतलब होता है -मीठा मसाला। यानी यह शब्द पाक-कला से जुड़ा है, न कि किसी राष्ट्र या राजनीतिक विचारधारा से।
कुछ लोगों ने लिखा है कि हमें अपनी परंपरा, भाषा और व्यंजनों से शर्मिंदा क्यों होना चाहिए? पाक शब्द पर पाकिस्तान का कोई कॉपीराइट नहीं है। पाक शब्द हमारी समृद्ध और विशाल भारतीय भाषाओं से उपजा है।
गिद्धों से दोस्ती का असर दिख रहा..
गिद्धों को लेकर आम धारणा नकारात्मक है। उन्हें अशुभ या डरावना समझा जाता है। लेकिन सच्चाई ये है कि अगर हमें स्वस्थ पर्यावरण चाहिए, तो हमें गिद्धों से दोस्ती करनी होगी। ये पक्षी प्रकृति के ऐसे सफाईकर्मी हैं, जो बिना वेतन लिए दिन-रात हमारी सेवा में लगे रहते हैं। वे मरे हुए जानवरों को खाकर बीमारियों को फैलने से रोकते हैं। उनकी अनुपस्थिति में यही शव सड़ते हैं, बीमारी फैलती है, और आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ती है,जो रेबीज जैसे जानलेवा रोग फैला सकते हैं।
गिद्धों की घटती संख्या का सबसे बड़ा कारण है डाईक्लोफेनाक नामक दर्द निवारक दवा, जो पशुओं के इलाज में उपयोग होती है। जब गिद्ध उन मरे हुए जानवरों को खाते हैं, जिनमें डाईक्लोफेनाक का अंश होता है, तो उनकी किडनी फेल हो जाती है। इसी के चलते भारत में गिद्धों की आबादी में 99 फीसदी तक की गिरावट आ गई। हालांकि इस दवा पर अब बैन लग चुका है।
इधर, इंद्रावती टाइगर रिजर्व में वन विभाग और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी ने मिलकर दो गिद्धों पर जीपीएस ट्रैकर लगाए। इन ट्रैकर्स के जरिए यह पता लगाया जा रहा है कि वे कहां जा रहे हैं, क्या खा रहे हैं, कहां रह रहे हैं। टाइगर रिजर्व के आसपास गांवों में ‘गिद्ध मित्र’ बनाए गए हैं। ये स्थानीय लोग ही गिद्धों की गतिविधियों पर नजर रखते हैं और दूसरों को जागरूक करते हैं कि गिद्ध क्यों जरूरी हैं। इन गिद्धों के लिए कुछ खान-पान के ठिकाने बनाए हैं। इन्हें गिद्ध रेस्टोरेंट का नाम दिया है। यहां मरे हुए जानवरों को छोड़ दिया जाता है। पता यह चल रहा है कि ये गिद्ध 100 किलोमीटर के ही दायरे में ही घूम रहे हैं। उनके लिए राज्यों की सीमा कोई मायने नहीं रखती। कभी वे महाराष्ट्र, तो कभी तेलंगाना तक सैर करके लौट रहे हैं।
समाधान शिविर में अनोखी मांग
जन समस्याओं को सीधे सुनकर जितना संभव हो उतना तुरंत निपटाने के लिस् प्रदेश भर में इन दिनों सुशासन तिहार चल रहा है। सडक़, पानी, बिजली जैसे बुनियादी मसलों पर लोग शिविरों में आवेदन दे रहे हैं, लेकिन कहीं-कहीं कुछ अजब-गजब दरख्वास्त भी देखने को मिल रही हैं। ऐसी ही एक दिलचस्प अर्जी कांकेर जिले के चारामा समाधान शिविर में आई।
वार्ड क्रमांक 15 के एक नागरिक ने आवेदन देकर मांग की कि भाजपा मंडल अध्यक्ष ओमप्रकाश साहू को पद से बर्खास्त कर पार्टी से निकाला जाए, क्योंकि उन्होंने आदिवासी समाज से बदसलूकी की। दलील दी गई कि साहू हटेंगे तो सुशासन आएगा। चारामा नगरपालिका के सीएमओ ने पुष्टि की कि यह आवेदन औपचारिक रूप से रजिस्टर में दर्ज हो चुका है।
अब बड़ा सवाल यह है कि राजनीतिक शिकायत सरकारी अफसरों के पास क्यों? भाजपा नेताओं के यहां क्यों नहीं? सवाल बड़ा है, लेकिन जवाब शायद सरल है। जिलों के समाधान शिविरों में आवेदनों का अंबार है, फिर भी अधिकांश स्थानों पर 99 से 100 प्रतिशत हल होने की रफ्तार देखी जा रही है।
उम्मीद से भरे लोग जितनी बड़ी तादाद में अर्जियां लगा रहे हैं, मुस्तैद अफसर उतनी ही फुर्ती दिखा रहे हैं। इसी लिए संभव है कि आवेदक ने दल-पदाधिकारियों के बजाय अफसरशाही पर भरोसा करना ज्यादा मुनासिब समझा हो।
उद्घाटन में दो लोग नहीं थे, जेल में...
पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को छत्तीसगढ़ पांच अमृत स्टेशनों अंबिकापुर, उरकुरा, भिलाई, भानुप्रतापपुर, और डोंगरगढ़ का वर्चुअल उद्घाटन किया। इन रेलवे स्टेशनों में यात्रियों के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। अंबिकापुर में तो उद्घाटन मौके पर सीएम विष्णुदेव साय, और सरकार के मंत्री ओपी चौधरी, रामविचार नेताम, और लक्ष्मी राजवाड़े भी रही। मगर रेलवे स्टेशन के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले दो लोगों की गैरमौजूदगी की चर्चा भी रही।
बताते हैं कि अंबिकापुर रेलवे स्टेशन के निर्माण में बिलासपुर के चीफ इंजीनियर विशाल आनंद की अहम भूमिका रही है, लेकिन वो कुछ समय पहले रिश्वतखोरी के मामले में सीबीआई के हत्थे चढ़ गए। स्टेशन का पूरा निर्माण कार्य विशाल आनंद की निगरानी में हुआ था। इसी तरह रेलवे स्टेशन के निर्माण कार्य करने वाली कंपनी के ठेकेदार भी जेल की सलाखों के पीछे हैं। प्रमुख अफसर, और निर्माण कंपनी के ठेकेदार कार्यक्रम में नहीं रहेंगे, तो बात तो होगी ही।
बस्तर से कतराना भी अब बंद होगा...
छत्तीसगढ़ के बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर, और सुकमा में चल रहे नक्सल ऑपरेशन की काफी चर्चा हो रही है। अबूझमाड़ नक्सल ऑपरेशन को अब तक का सबसे कामयाब माना जा रहा है। ऑपरेशन में शीर्ष नक्सल नेता बसव राजू की मौत हो गई। सीएम विष्णुदेव साय ने अभियान की सफलता पर खुशी जताते हुए कहा कि सेनापति के मारे जाने के बाद सेना का क्या हाल होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्हें भरोसा है कि प्रदेश में जल्द ही नक्सलियों का खात्मा हो जाएगा।
प्रदेश में 31 मार्च 2026 से पहले नक्सलियों का खात्मा होने की बात कही गई है। केंद्र, और राज्य के इस दावे में कोई शक की गुंजाइश नजर नहीं आ रही है, लेकिन लंबे समय तक नक्सल प्रभावित रहने के कारण छत्तीसगढ़ की पहचान एक समस्याग्रस्त राज्य के रूप में हो गई है। बाहर राज्य के कई लोग यहां आने से अब भी कतराते हैं। कुछ महीने पहले कॉलेजों की गुणवत्ता परखने के लिए नैक की टीम आई थी। टीम में एक महिला प्रोफेसर भी थीं।
बताते हैं कि महिला प्रोफेसर के परिजन उन्हें छत्तीसगढ़ नहीं जाने की सलाह दे रहे थे। परिजनों की धारणा थी कि छत्तीसगढ़ बुरी तरह नक्सल प्रभावित है, और रोज कुछ न कुछ घटनाएं होती हैं। मगर महिला प्रोफेसर के पति आर्मी ऑफिसर रहे हैं। उन्होंने अपनी पत्नी, और परिजनों की शंकाओं को दूर किया। बाद में महिला प्रोफेसर यहां आई, तो नवा रायपुर व आसपास के इलाकों को देखकर खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने कॉलेज के निरीक्षण के दौरान ये सारी बातें साझा की। कुछ लोगों का मानना है कि नक्सलियों का खात्मा तो हो जाएगा, लेकिन विचारधारा से उबरने में समय लग सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
राजधानी में भाजपा की हार
भाजपा ने भले ही निकाय, और पंचायत चुनाव में बड़ी जीत हासिल की है, लेकिन मुस्लिम समुदाय की हज कमेटी के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। दिलचस्प बात यह है कि कमेटी में भाजपा समर्थित सदस्य अधिक हैं। बावजूद इसके कांग्रेस समर्थित मोहम्मद इमरान अध्यक्ष चुन लिए गए। हज कमेटी के अध्यक्ष को राज्यमंत्री का दर्जा होता है।
बताते हैं कि हज कमेटी के कुल 11 सदस्यों में से 6 सदस्य भाजपा समर्थित हैं। कमेटी के अध्यक्ष पद के लिए भाजपा अल्पसंख्यक नेता मिर्जा एजाज बेग का नाम प्रमुखता से चर्चा में था। नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन पार्टी की तरफ से बेग को नामांकन भरने के लिए कोई संदेश नहीं पहुंचा।
दूसरी तरफ, कांग्रेस समर्थित सदस्यों ने मोहम्मद इमरान को अध्यक्ष प्रत्याशी घोषित कर दिया। भाजपा समर्थित सदस्यों में बेग के नाम पर सहमति नहीं बन रही थी। बेग निर्विरोध अध्यक्ष बनना चाह रहे थे। इसी बीच भाजपा समर्थित एक अन्य मकबूल खान ने नामांकन भर दिया। भाजपा के नेताओं ने चुनाव में दावेदारों के बीच सहमति बनाने की कोशिश नहीं की। इसका असर यह हुआ कि मकबूल के नामांकन भरने के बाद बेग समर्थित सदस्यों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
भाजपा नेताओं के बीच फूट का सीधा फायदा कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी इमरान को मिला, और वो चुनाव जीतने में कामयाब हो गए। भाजपा ने हज कमेटी के चुनाव में हार को गंभीरता से लिया है। पार्टी संगठन के नेता, इस पर अल्पसंख्यक मोर्चा के पदाधिकारियों से चर्चा कर रहे हैं। पार्टी के कुछ लोग चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर रहे हैं, और निर्वाचन शून्य घोषित कराने के लिए कानूनी सलाह भी ले रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
सीएम कल से दिल्ली में, काफी कुछ होगा
भाजपा संगठन में एक बड़े बदलाव को लेकर हलचल है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव पर काफी कुछ निर्भर है। ऑपरेशन सिंदूर की वजह से राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव टल गया था, और अब जल्द ही इसकी प्रक्रिया शुरू हो सकती है। राष्ट्रीयअध्यक्ष के चुनाव के बाद जिले, और प्रदेश की कार्यकारिणी का गठन होगा।
पार्टी के कुछ सूत्रों का कहना है कि जिले, और प्रदेश कार्यकारिणी का खाका तैयार कर लिया गया है। हाईकमान के निर्देशों का इंतजार हो रहा है। दूसरी तरफ, सीएम विष्णुदेव साय 23 से 25 तारीख तक दिल्ली में रहेंगे। इस दौरान प्रदेश भाजपा संगठन के प्रमुख नेता भी वहां रहेंगे।
चर्चा है कि सीएम, और अन्य नेताओं की पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के साथ बैठक हो सकती है। इसमें संगठन से लेकर कैबिनेट विस्तार पर भी बात हो सकती है। वैसे तो सीएम, नीति आयोग की बैठक में शिरकत करने जा रहे हैं। 25 तारीख को एनडीए शासित मुख्यमंत्रियों की बैठक में रहेंगे। कुल मिलाकर सीएम के दिल्ली दौरे पर काफी कुछ होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
स्टेशन सजे, पर डबल इंजन कहां है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘अमृत भारत स्टेशन योजना’ के तहत देशभर के 103 स्टेशनों का वर्चुअल लोकार्पण किया है। इनमें छत्तीसगढ़ के भी पांच स्टेशन शामिल है- अंबिकापुर, भिलाई, भानुप्रतापपुर, डोंगरगढ़ और उरकुरा। इन स्टेशनों की जो तस्वीरें सामने आई हैं, उनसे साफ है कि इनका कायाकल्प करने में अच्छा-खासा खर्च हुआ है। जब बजट बड़ा होता है तो अफसरों और ठेकेदारों की भी मौज हो जाती है। रेलवे के कई अफसर और ठेकेदार सीबीआई की जांच के घेरे में आ चुके हैं और पिछले महीने कुछ की गिरफ्तारी भी हुई।
बहरहाल, इन पांच स्टेशनों का रूप-सौंदर्य अब बिल्कुल नया नजर आ रहा है। लेकिन यह ध्यान देने वाली बात है कि छत्तीसगढ़ के लोगों की रेलवे से प्राथमिक मांग स्टेशनों का सौंदर्यीकरण नहीं, बल्कि वर्षों से लंबित रेल परियोजनाओं को पूरा करने की रही है। लोग स्टेशन पर बेहतर सुविधाएं तो चाहते हैं, लेकिन उनसे भी ज्यादा जरूरी राजधानी और महानगरों से कनेक्टिविटी है। उदाहरण के तौर पर, बस्तर की रावघाट रेल परियोजना अब तक अधूरी है, जबकि वहां के भानुप्रतापपुर स्टेशन को चमका दिया गया है।
इसी तरह डोंगरगढ़ स्टेशन, जो मुंबई-हावड़ा रूट का हिस्सा है, को भी नया रूप दे दिया गया है। इसे जोडऩे वाली प्रस्तावित नई रेल लाइन डोंगरगढ़ से कटघोरा तक जाएगी। इसकी मूल योजना ब्रिटिश काल में बनी थी, जिसमें बिलासपुर से राजनांदगांव तक रेल मार्ग प्रस्तावित था। उस समय अकाल पडऩे पर भूमि अधिग्रहण कर लिया गया था और रेलवे लाइन बिछाने के लिए मिट्टी भी डाल दी गई थी। आज भी बिलासपुर, मुंगेली, पंडरिया से होते हुए राजनांदगांव तक की जमीन तकनीकी रूप से उपलब्ध है, लेकिन अब उस ज़मीन पर निजी निर्माण, सडक़ें और सरकारी इमारतें बन चुकी हैं। ऐसे में पुराना ट्रैक खाली कराना लगभग असंभव है।
इधर, अब इस परियोजना का स्वरूप बदला जा चुका है। नई लाइन कटघोरा, मुंगेली होते हुए डोंगरगढ़ तक जाएगी। इस मार्ग में खैरागढ़, तखतपुर, रतनपुर, बेलतरा जैसे करीब 27 स्टेशन होंगे, जहां पहली बार रेल सेवा पहुंचेगी। यह मार्ग कई संसदीय क्षेत्रों से होकर गुजरेगा। बीते छह दशकों में कोरबा, बिलासपुर और राजनांदगांव के शायद ही कोई सांसद रहे हों जिन्होंने संसद में इस रेल लाइन को लेकर आवाज न उठाई हो।
हाल ही में सांसद संतोष पांडेय ने रेल मंत्री के समक्ष इस परियोजना की प्रगति का मुद्दा उठाया। पूर्व सांसद डॉ. चरण दास महंत, अरुण साव, लखन लाल साहू और अब केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू, ज्योत्सना महंत भी इस संबंध में संसद में सवाल पूछ चुके हैं और पत्राचार कर चुके हैं। रेल मंत्री से मुलाकात करके भी तोखन साहू ने यह मांग बजट से ठीक पहले रखी थी। पूर्व सांसद लखन लाल साहू ने तो अपने कार्यकाल में दावा किया था कि यह योजना तीन वर्षों में पूरी हो जाएगी। लेकिन हकीकत यह है कि परियोजना बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रही है।
करीब 10 वर्ष पहले, बिलासपुर के तत्कालीन रेल महाप्रबंधक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस योजना को केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने की घोषणा की थी। इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए छत्तीसगढ़ रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सीआरसीएल) नाम से एक कंपनी बनाई गई है, जिसमें ज्यादातर खर्च राज्य सरकार वहन कर रही है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की अध्यक्षता में गत वर्ष खनिज न्यास निधि की बैठक में इस परियोजना के लिए 300 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। यह राशि मुख्यत: मुआवजे में खर्च होगी। सरकार ने कहा है कि आगे आवश्यकता अनुसार और राशि जारी की जाएगी।
हालांकि ताजा स्थिति यह है कि सीआरसीएल में शामिल कुछ निजी कंपनियां, जिनके हित कोयला खदानों से जुड़े हैं।अब इस परियोजना में राशि लगाने से पीछे हट गई हैं। अब तो रेलवे भी कह रही है कि परियोजना में हमें कुछ भी खर्च नहीं करना है। एक नवीनतम जानकारी यह है कि मुआवजे की राशि को लेकर किसानों में असंतोष दिख रहा है। खैरागढ़ के किसान जमीन के कीमत का 4 गुना मुआवजा देने की मांग पर सरकारी दफ्तरों का घेराव कर चुके हैं।
इस बीच, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने अमृत भारत स्टेशनों के उद्घाटन कार्यक्रम के लिए छत्तीसगढ़ के सभी सांसदों को निमंत्रण पत्र भेजा। उन्होंने इस पत्र में जोर देकर बताया गया कि इस बार छत्तीसगढ़ को रेलवे के इतिहास में अब तक का सर्वाधिक फंड (करीब 5970 करोड़ रुपये) मिला है। मगर, उन्होंने पत्र में न तो लंबित रेल परियोजनाओं की स्थिति पर कुछ कहा, न ही केंद्रीय बजट के समय आयोजित प्रेस वार्ता में इनका जिक्र किया।
कान्स में छा गई दुर्ग की जूही
दुर्ग, छत्तीसगढ़ की रहने वाली जूही व्यास ने 2025 के कान्स फिल्म फेस्टिवल में अपनी खास मौजूदगी से न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे देश को गौरवान्वित किया। इस अंतरराष्ट्रीय मंच पर उन्होंने ग्लैमर की चकाचौंध से परे जाकर जलवायु न्याय और महासागर संरक्षण की आवाज उठाई। आइये उनके बारे में थोड़ा जानते हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर रह चुकीं दुर्ग की जूही व्यास ने 13 साल की उम्र में अपने पिता के निधन के बाद जीवन की चुनौतियों का सामना करना शुरू किया। उनकी मां ने कठिन परिस्थितियों में परिवार को संभाला, और जूही ने भी मेहनत की मिसाल पेश की। पहले मिसेज इंडिया इंक 2022 की फर्स्ट रनर-अप बनीं, फिर 2023 में कैलिफोर्निया में मिसेज ग्लोब पीपल्स चॉइस टाइटल जीता। 2024 में वे मिसेज ग्लोब, चाइना की पहली भारतीय जूरी सदस्य भी बनीं। जूही ने कान्स से पहले 2025 में पेरिस फैशन वीक में 6 अंतरराष्ट्रीय डिजाइनर्स के लिए वॉक किया था। लेकिन कान्स में उनकी उपस्थिति एक उद्देश्यपूर्ण मिशन के तहत रही। जूही ने कान्स रेड कार्पेट पर जो लाल रंग की ड्रेस पहनी, वह आग का प्रतीक थी। एक ऐसी आग जो जलवायु परिवर्तन, हीटवेव और बढ़ते तापमान के खतरों को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि वह एक मां हैं और भविष्य की पीढिय़ों के लिए एक सुरक्षित धरती की जिम्मेदारी महसूस करती हैं। उनके साथ थीं मोहिनी शर्मा, जो मिसेज इंडिया इंक की नेशनल डायरेक्टर हैं। दोनों ने ग्रीनपीस साउथ एशिया के साथ मिलकर इस आयोजन को पर्यावरण जागरूकता के संदेशवाहक में बदल दिया।
विधायकों की शिकायत, उनकी शिकायत भी !
सुशासन तिहार चल रहा है, और समाधान शिविरों में जन समस्याओं का निराकरण हो रहा है। सीएम विष्णुदेव साय खुद जिलों का दौरा कर रहे हैं, और सरकारी योजनाओं का फीडबैक भी ले रहे हैं। इन सबके बीच रायपुर जिले में तो दो-तीन विधायक भी खुले मंच से अपनी समस्या बता दे रहे हैं।
रायपुर के ग्रामीण इलाके में एक शिविर में विधायक ने अपनी व्यथा सुना दी, कि टीआई भी उनकी बात नहीं सुन रहा है। विधायक की शिकायत राजस्व कर्मचारियों को लेकर भी थी। उनका कहना था कि राजस्व कर्मचारियों से ग्रामीण परेशान हो रहे हैं। सीमांकन-बटांकन, जैसे काम आसानी से नहीं हो पा रहे हैं। एक अन्य विधायक ने मंच से ही अवैध शराब की बिक्री को लेकर शिकायत की।
जानकार लोग मानते हैं कि विधायकों की नाराजगी की अपनी वजह भी है। एक विधायक तो जमीन के कारोबार से जुड़े रहे हैं। लिहाजा, वो चाहते हैं कि अपने इलाके में राजस्व कर्मचारी उनके हिसाब से काम करें, जो कि संभव नहीं हो पा रहा है। एक अन्य विधायक को रेत के अवैध खनन से जोडक़र देखा जा रहा है। विधायकों के खिलाफ शिकायत पार्टी संगठन तक पहुंच चुकी है। इन वजहों से विधायकों की शिकायतों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।
संशोधन अधिक वजनदार
आखिरकार निगम-आयोगों में पूर्व में प्रस्तावित नियुक्तियों में कुछ संशोधन किया है। मसलन, शालिनी राजपूत को छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया है। शालिनी राजपूत की नियुक्ति पहले समाज कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद पर की गई थी। मगर केन्द्र सरकार ने वर्ष-2021-22 में बोर्ड को ही खत्म कर दिया था। चूंकि यहां बोर्ड भंग हो चुका है, इसलिए उनकी नियुक्ति आदेश जारी नहीं हो पा रही थी।
इसी तरह केदारनाथ गुप्ता को अपैक्स बैंक का चेयरमैन बनाया गया है। केदार को पहले दुग्ध महासंघ का अध्यक्ष बनाया गया था। महासंघ को एक तरह से एनडीडीबी के सुपुर्द कर दिया गया है। इसके लिए बकायदा केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में एमओयू भी हो चुका है। अब केदार को अपेक्स बैंक का दायित्व सौंपा गया है, जो कि महासंघ के मुकाबले ज्यादा प्रतिष्ठापूर्ण माना जाता है। इससे परे श्रीनिवास मद्दी को ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन का चेयरमैन बनाया गया है। मद्दी को कॉर्पोरेशन का चेयरमैन बनवाने में प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव की भी अहम भूमिका रही है। मद्दी को पहले वित्त आयोग का चेयरमैन बनाया गया था। कुल मिलाकर संशोधित आदेश को वजनदार माना जा रहा है।
जांच के पहले ही बचने-बचाने का खेल
छत्तीसगढ़ में जब कोई मंत्री किसी घोटाले की खबरों पर संज्ञान लेता है और जीरो टॉलरेंस की बात करते हुए जांच का आदेश देता है, तो लगता है अब तो कुछ अफसरों पर शामत आने ही वाली है। मंत्री के बयान की मीडिया में सुर्खियां बनती हैं। पर हकीकत कुछ और ही होती है।
प्रदेश के छह जिलों, जशपुर, सरगुजा, जांजगीर-चांपा, बिलासपुर, दुर्ग और रायपुर के आंगनबाड़ी केंद्रों में करीब 48 करोड़ की सामग्री भेजी गई। सामने आया कि बड़ी मात्रा में सामान घटिया किस्म का है। वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, अखबारों में खबरें आईं, तब जाकर महिला बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े ने 7 मई को जांच का आदेश दिया। उन्हें मालूम ही था कि उनके विभाग में पहले की तरह अब भी घटिया सामान खपाने का खेल जारी है। उन्होंने तो तत्परता दिखाई, मगर 7 मई को आदेश देने के बाद भी बीते 15 दिनों में कोई जांच शुरू नहीं हुई। अब मंत्री ने दोबारा स्मरण पत्र भेजा है और जांच समिति भी बना दी गई है। लेकिन जांच में हुई इस देरी का फायदा कैसे उठाया गया, इसके लिए दुर्ग जिले का उदाहरण सामने है। आंगनबाड़ी केंद्रों में जो घटिया सामान आए, उनमें शामिल हैं- जंग लगे नाखून कटर, चूहों के कुतरे साबुन, खराब वाशिंग पाउडर, वेइंग मशीन और टिन की अनाज कोठियां। पता चला है कि उन्हें चुपचाप हटाकर नए सामान रखवा दिए गए। कुछ केंद्रों की कार्यकर्ता और सहायिकाओं से यह लिखवा भी लिया गया कि जो सामान मिला, वह अच्छा था। दुर्ग की तरह बाकी जिलों में भी ऐसा ही हुआ हो, तो कोई हैरानी नहीं। जब मंत्री को खुद ही स्मरण पत्र भेजना पड़े, तो यह साफ है कि उनके जीरो टॉलरेंस की मंशा को विभागीय अफसर गंभीरता से नहीं लेते।
अब एक नई जांच समिति बनी है, जिसे 15 दिन में रिपोर्ट देनी है। मगर समिति में इतने अधिक लोग हैं कि वे 15 दिन में एक बार साथ दौरा पाएंगे या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। हो भी तो, वे किन-किन आंगनबाड़ी केंद्रों की जांच करेंगे, यह तय करना भी कम मुश्किल नहीं होगा। समिति में ज्यादातर वही अधिकारी हैं जो पहले से ही सप्लाई की गुणवत्ता देखने-परखने के लिए जिम्मेदार हैं।
छत्तीसगढ़ में महिला बाल विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और आईसीडीएस जैसे विभागों में सामग्री सप्लाई का हमेशा विवादों से भरा रहा है। सरकार चाहे किसी की भी रही हो, अफसरों और सप्लायरों की मजबूत सांठगांठ बनी रहती है, कभी नहीं टूटी।
याद करें, पिछली सरकार के वक्त बालोद जिले में डीएमएफ के तहत 64 करोड़ की खरीदी में भ्रष्टाचार का आरोप भाजपा नेता देवलाल ठाकुर ने दस्तावेजों के साथ लगाया था। वह क्षेत्र तत्कालीन मंत्री अनिला भेडिय़ा का था। वहीं बेमेतरा के कांग्रेस विधायक ने अपनी ही सरकार के इस विभाग पर विधानसभा में घटिया ट्राइसिकल बांटने का आरोप लगाया था। ऐसे मामलों में जांच के आदेश जरूर दिए जाते हैं, लेकिन कार्रवाई क्या हुई, यह कभी सामने नहीं आता। समय बीतता है, लोग पुराने घोटाले भूल जाते हैं, क्योंकि नए घोटालों की खबरें आ जाती हैं।
रेल टिकट पर ऑपरेशन सिंदूर
एक वक्त था जब सिनेमा हॉल में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान होता था और फिल्म्स डिवीजन के छोटे-छोटे वृत्तचित्र देशभक्ति की भावना जगाने का काम करते थे। इस बार यह जिम्मेदारी रेलवे ने अपने कंधों पर ले ली है। इस बार जब आप रेलवे टिकट प्रिंट कराएंगे, तो उसमें प्रधानमंत्री ऑपरेशन सिंदूर के लोगो के साथ सेल्यूट करते हुए नजर आएंगे। यह कुछ वैसा ही है जैसा कोविड वैक्सीनेशन के दौरान हर गली-चौराहे पर मोदी जी की तस्वीरों और ‘थैंक यू मोदी जी’ वाले होर्डिंग्स पोस्टरों में दिखता था।
ऐसा पहली बार हुआ है...
प्रदेश में पहली बार ऐसा हो रहा है, जब बोर्ड परीक्षाओं में खराब रिजल्ट पर जिम्मेदारी तय की जा रही है। और जिला शिक्षा अधिकारियों पर गाज गिर रही है। पहले महासमुंद के जिला शिक्षा अधिकारी को हटाया गया था, और सोमवार को सीएम विष्णुदेव साय ने जीपीएम के जिला शिक्षा अधिकारी को हटाने के आदेश दिए। दसवीं बोर्ड परीक्षा में जीपीएम जिले का रिजल्ट प्रदेश में सबसे खराब रहा है।
स्कूल शिक्षा विभाग का प्रभार खुद सीएम के पास है। ऐसे में प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए विशेष प्रयास हो रहे हैं। जिलों में पदस्थ ऐसे अफसर, जिनकी कार्यप्रणाली अच्छी नहीं रही है उन्हें एक-एक कर बदला जा रहा है। चर्चा है कि आने वाले दिनों में रायपुर, राजनांदगांव, खैरागढ़-छुईखदान के जिला शिक्षा अधिकारियों पर भी गाज गिर सकती है। इन जिलों का रिजल्ट भी खराब रहा है। रायपुर जिला दसवीं बोर्ड परीक्षा में 32वें रैंक पर रहा है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
आवश्यकता और आविष्कार
घर के पार्किंग स्पेस पर कमरा, बरामदा या कुछ और बना लेने से कार गेट के सामने गली में ही खड़ी करनी पड़ती है। वैसे ऐसे दृश्य शहर के हर मोहल्ले सोसायटी में देखे जा सकते हैं। गली से आवाजाही में बाधक ऐसी कारें, मोहल्ले वालों की नाराजगी का भी शिकार होती है । नाराज लोग कभी कार में स्क्रैच कर जाते तो कभी कवर पर ब्लेड कैंची चला देते हैं। यह गुस्सा मनुष्य ही नहीं जानवर भी निकालते हैं।
ऐसे ही नाराज जानवर से परेशान इन शख्स ने नए तरकीब के कवर से अपनी कार के सुरक्षित रहने की उम्मीद जताई है। कुशालपुर के संतोषी चौक निवासी इन सज्जन का कहना है कि गली के कुत्ते यदा कदा कार पर चढक़र गंदगी करने के साथ अपने नाखूनों से स्क्रैच भी करते हैं। और हर माह डेंटिंग पेंटिंग पर हजारों खर्च करना पड़ता था। अब इस कवर ने समस्या से निजात दिलाई है।
सामान्य से दिखने वाले कवर में जगह जगह कील नुमा प्लास्टिक के कांटे लगे हुए हैं। जानवरों के चढ़ते ही ये कील गड़ते ही वापस कूद कर भाग जाते हैं। वैसे जब से यह कवर इस्तेमाल कर रहे हैं, कुत्ते कार तक फटक नहीं रहे।
जब मासूम जिंदगी चट्टानों के बीच फंसी
छत्तीसगढ़ के धरमजयगढ़ वन मंडल में अलग-अलग कारणों से अब तक चार हाथी शावकों की मौत हो चुकी है। ग्रामीणों और वन्यजीवों के बीच रस्साकशी लगातार जारी है। हाथियों के हमलों से ग्रामीणों के खेत-खलिहान और घर उजड़ रहे हैं। लेकिन जब बात मानवीय संवेदनाओं की हो, तो संयम और समझदारी से काम लेना जरूरी हो जाता है। हाथी जैसे विशालकाय वन्यजीव के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन चलाना आसान नहीं होता, यह कार्य विशेष दक्षता की मांग करता है।
इसी घने जंगल में एक शावक अचानक फिसलकर दो बड़ी चट्टानों के बीच फंस गया। वह बार-बार चट्टान पर चढऩे की कोशिश करता, लेकिन हर बार फिसलकर नीचे गिर जाता था। जब वन विभाग के मैदानी अमले को इसकी जानकारी मिली, तो बचाव के लिए एक टीम तुरंत रवाना की गई।
चट्टान को कुदाल से खोद-खोदकर नीचे तक एक खुरदुरा रास्ता तैयार किया गया। फिर वहां एक जाल बिछा दिया गया, ताकि शावक ऊपर आए तो फिसले नहीं। और यही हुआ। थके हुए कदमों से वह शावक धीरे-धीरे ऊपर चढ़ गया। ऊपर उसकी मां उसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी। शावक उसे देखते ही दौड़ पड़ा। बचाव दल के लिए उसकी आंखों में कृतज्ञता झलक रही थी।
इन कर्मचारियों के लिए यह बेहद सुखद क्षण था। उन्होंने एक मासूम जान को नया जीवन दिया। रेस्क्यू ऑपरेशन की पूरी प्रक्रिया वन विभाग ने ड्रोन कैमरे में कैद की और उसका वीडियो भी जारी किया है।
तीन माह का चावल पकड़ो
छत्तीसगढ़ में धान की बंपर खरीदी के चलते एक विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गई है। धान-चावल को खपाने की समस्या इतनी विकराल हो चुकी है कि पहली बार सरकार को पीडीएस दुकानों में एकमुश्त तीन माह का चावल भेजना पड़ रहा है। राशन दुकानदार भी हितग्राहियों से कह रहे हैं, पूरा 105 किलो चावल उठाओ।
वैसे, एक माह का भी चावल कई घरों से सीधे बाजार पहुंच जाता है। कई बार तो वह घरों तक नहीं पहुंचता। राशन दुकानदार अंगूठा लगवाकर मालवाहकों में भरकर चावल सीधे व्यापारियों के लिए रवाना कर देते हैं। अब तो मोटे धान को पतला करने की मशीन भी आ चुकी है। बड़ी सफाई से इसे पतले चावल के रूप में 30-35 रुपये किलो में बेच दिया जाता है।
प्रदेश की अधिकांश राशन दुकानों में भंडारण की समुचित व्यवस्था नहीं है। शायद ही किसी दुकान के पास तीन माह का चावल एक साथ रखने की क्षमता हो। खुले गोदामों में हजारों टन चावल पहले से ही रखे हुए हैं, जिन्हें भारी घाटे में खुले बाजार में बेचने के बावजूद सरकार के पास सुरक्षित गोदाम नहीं हैं। अब इस बोझ को पीडीएस दुकानों पर डाल दिया गया है।
पता नहीं यह निर्णय राशन दुकान संचालकों के लिए एक आपदा है या फिर ऊपरी कमाई का एक नया अवसर!
अब तक काम नहीं सम्हाल पाए
सरकार ने 36 निगम-मंडल, और आयोगों में अध्यक्ष की नियुक्ति तो कर दी है, लेकिन कुछ में कानूनी विवाद के चलते अध्यक्ष पदभार नहीं संभाल पा रहे हैं। नवनियुक्त अध्यक्ष खुद होकर विवादों के निपटारे में लगे हैं। ताकि वो जल्द से जल्द पदभार संभाल सके। इनमें सफलता भी मिल रही है। मसलन, राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष अमरजीत सिंह छाबड़ा की नियुक्ति का विवाद सुलझ गया है, और वो 22 तारीख को पदभार भी संभालने वाले हैं।
बताते हैं कि पिछली सरकार ने महेन्द्र छाबड़ा को अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाया था। सरकार बदलने के बाद भी वो पद पर बने हुए थे। हाईकोर्ट से उन्हें स्थगन मिला था। नए अध्यक्ष अमरजीत सिंह छाबड़ा ने पहल की, और फिर महेन्द्र छाबड़ा ने हाईकोर्ट से केस वापस ले लिया। इसके बाद महेन्द्र छाबड़ा ने विधिवत आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। महेन्द्र छाबड़ा के इस्तीफे के बाद अमरजीत सिंह छाबड़ा की नियुक्ति के आदेश जारी हुए हैं, और वो सीएम-डिप्टी सीएम की मौजूदगी में पदभार संभालेंगे।
इसी तरह संदीप शर्मा को खाद्य आयोग के अध्यक्ष बनाया गया है, लेकिन इस पद पर पहले से ही अंबिकापुर की गुरप्रीत सिंह बाबरा काबिज हैं। उन्हें पिछली सरकार ने नियुक्त किया था। उन्होंने पद नहीं छोड़ा है। उनका कार्यकाल जुलाई में खत्म होगा। तब तक संदीप शर्मा को इंतजार करना होगा।
दुग्ध महासंघ के नवनियुक्त अध्यक्ष केदार गुप्ता भी अब तक पदभार नहीं संभाल पाए हैं। दरअसल, महासंघ का एनडीडीबी के साथ एमओयू हुआ था, और एनडीडीबी का महासंघ के प्रशासनिक कार्यों में दखल है। अब केदार के लिए नियमों में संशोधन कर रास्ता निकाला जा रहा है। तब तक उन्हें इंतजार करना होगा। इसी तरह शालिनी राजपूत को समाज कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष तो बना दिया गया है, लेकिन वो भी कानूनी विवाद की वजह से पदभार नहीं संभाल पा रही हैं।
राज्यपाल के बस 3 जिले बचे
राज्यपाल रामेन डेका बस्तर के तीन जिले बीजापुर, सुकमा, और दंतेवाड़ा को छोडक़र पूरे प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। वो संभागीय मुख्यालयों में बैठक भी ले चुके हैं। राज्यपाल ने सरकार की कुछ योजनाओं पर विशेष रूप से फोकस किया है। रायपुर में उन्होंने यातायात, जल संरक्षण, और वृक्षारोपण अभियान की समीक्षा की थी। बाकी जिलों में भी इन तीनों पर विशेष जोर रहा। खास बात यह है कि वो पहले राज्यपाल हैं, जिन्होंने जिलेवार सरकार की योजनाओं की समीक्षा की है। चर्चा है कि उन्होंने सीएम को अपनी तरफ से फीडबैक दिया। गौर करने लायक बात ये है कि विपक्ष ने राज्यपाल की बैठकों को लेकर सवाल भी खड़े किए थे।
मंत्री-सांसद आमने-सामने
सरकार के एक मंत्री, और सांसद के बीच पटरी नहीं बैठ रही है। वैसे तो दोनों ही स्वभाव से सरल है, लेकिन एक मामले पर दोनों आमने-सामने आ गए हैं।
सुनते हैं कि मंत्री ने अपने विधानसभा क्षेत्र के एक गांव में सामुदायिक भवन के स्थल चयन किया है। यह जमीन सांसद महोदय के नजदीकी रिश्तेदार के आधिपत्य में है। भवन के लिए स्थल चिन्हित किया गया, तो विवाद शुरू हो गया। सांसद के रिश्तेदार भी भाजपा के पदाधिकारी रहे हैं।
बात सांसद तक पहुंची, तो उन्होंने सीधे मंत्रिजी को मोबाइल कर सामुदायिक भवन के लिए जगह बदलने का सुझाव दिया। मगर मंत्रिजी इसके लिए तैयार नहीं हैं। दरअसल, मंत्रिजी के सांसद के रिश्तेदार से अच्छे संबंध नहीं रहे हैं। इसलिए वो स्थल बदलने के लिए सहमत नहीं है। अभी बीच का रास्ता नहीं निकल पाया है। पार्टी के कुछ लोगों का अंदाजा है कि भूमिपूजन कार्यक्रम के पहले विवाद का निपटारा नहीं हुआ, तो यह मामला बढ़ सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
दारू, और नेताओं का रुख
सरकार ने एक अप्रैल से 67 नई शराब दुकानें खोलने का फैसला लिया था, लेकिन डेढ़ माह बाद अब तक एक भी नई दुकानें खुल नहीं पाई है। दरअसल, जहां शराब दुकानें प्रस्तावित की गई थी, वहां काफी विरोध हो रहा है। कुछ जगहों पर प्रशासन ने पंचायत से सहमति भी ले ली थी। बावजूद इसके ग्रामीणों के आक्रोश की वजह से दुकानें नहीं खुल पाई हैं।
ऐसा नहीं है कि शराबबंदी जैसी कोई मांग है। ज्यादातर जगहों पर तो जनप्रतिनिधि ही विरोध कर रहे हैं। सुशासन तिहार चल रहा है, और जन समस्याओं के निराकरण के लिए सभी जिला, और ब्लॉक में समाधान शिविर लगाए गए हैं। इनमें से एक-दो जगहों पर शराब दुकान खोलने की मांग भी हुई है।
सीनियर विधायक धर्मजीत सिंह अपने विधानसभा क्षेत्र तखतपुर के गांव जरौदा पहुंचे, तो ग्रामीणों ने एक सुर में उनसे गांव में शराब दुकान खोलने की मांग रख दी। इसी तरह रायपुर के बोरियाकला इलाके में शिविर में ग्रामीणों ने शराब दुकान में शुगर फ्री शराब उपलब्ध कराने की मांग की है। गौर करने लायक बात यह है कि दो-तीन दिन पहले ही सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने समाधान शिविर में अवैध शराब की बिक्री की शिकायत पर आबकारी अफसरों को जमकर फटकार भी लगाई थी। मगर अब शुगर फ्री शराब की डिमांड से आबकारी अफसर चकित हैं।
दोराहे पर कांग्रेस नेतृत्व
एक सशक्त विपक्ष लोकतंत्र के लिए सदैव अच्छा होता है। प्रदेश में इस समय भाजपा की सरकार है, लेकिन अफसोस, विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस दिशाहीन और ऊर्जा विहीन दिखाई दे रही है। कांग्रेस हाईकमान ‘संविधान बचाओ’ रैली के जरिए कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश कर रहा है, लेकिन जमीनी तस्वीर इससे उलट है। एक हालिया बैठक की तस्वीर में अधिकांश नेताओं के चेहरे थके और तनावग्रस्त नजर आ रहे हैं। मंच पर बैठे लोगों में से केवल एक विधायक हैं-दिलीप लहरिया, बाकी सब चुनाव हारे हुए या संगठन के पदाधिकारी हैं, जिन्हें पार्टी चलाने का खर्च खुद ढोना है। यही हाल सामने बैठे कार्यकर्ताओं का है। अधिकतर के चेहरे झुके हुए हैं, पर ये लालची लालसी नहीं, विचारधारा से जुड़े लोग हैं। इनकी ही मदद से चुनाव जीते जाते हैं।
यह तीसरी बार है जब ‘संविधान बचाओ’ रैली की तैयारी हो रही है। पहले दुर्ग में तय हुई, जो स्थगित कर दी गई। फिर बिलासपुर में घोषित हुई, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के चलते उसे टालना पड़ा। अब जांजगीर तय हुआ है। उम्मीद करनी चाहिए कि इसे भी रद्द कर आगे रायगढ़, कोरबा, सरगुजा के कार्यकर्ताओं की परीक्षा नहीं ली जाए।
बीते 25 वर्षों पर नजर डालें, तो कांग्रेस दो बार सत्ता में आई। पहली बार राज्य गठन के बाद, बिना चुनाव के, जब स्व. अजीत जोगी पहले मुख्यमंत्री बने। उन्होंने प्रशासनिक स्तर पर ठोस काम जरूर किए, लेकिन कार्यकर्ताओं को जोडऩे की बजाय पार्टी में गहरी खाई पैदा कर दी, जिसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा ने सत्ता हथिया ली और लगातार तीन बार सरकार बनाई। उन पंद्रह सालों के आखिरी वर्षों में भाजपा की अफसरशाही, भ्रष्टाचार और नेताओं के अहंकार से जनता त्रस्त हो गई। धान बोनस और चावल की योजना भी भाजपा को चौथी बार जिताने में सफल नहीं हो सकी। 2018 में कांग्रेस को जनता ने जबरदस्त जनादेश दिया। वह जनादेश परिवर्तन का था, उम्मीदों का था।
लेकिन दुर्भाग्यवश कांग्रेस ने उस जनादेश को आत्ममंथन का नहीं, बल्कि आपसी खींचतान का साधन बना लिया। सत्ता में आते ही मुख्यमंत्री और विधायकों-मंत्रियों के बीच टकराव होने लगा। ढाई-ढाई साल की लड़ाई ने सरकार की स्थिरता और संगठन की ताकत को संदेह के घेरे में ला दिया। बिलासपुर जैसे महत्वपूर्ण जिले के विधायक को न मंत्री पद मिला, न कभी आजादी के पर्वों में झंडा फहराने का अवसर। दूसरी ओर, शराब, रेत और कोयले की अवैध वसूली पर पार्टी के भीतर ही आवाजें उठीं, लेकिन नेतृत्व मौन रहा। भाजपा ने इन मुद्दों को हथियार बनाकर जनता के बीच ले जाना शुरू कर दिया और उसकी अपनी केंद्र सरकार ने अपनी एजेंसियों के जरिए कांग्रेस नेतृत्व की नैतिक स्थिति और कमजोर कर दी।
नतीजा, 2023 में कांग्रेस की करारी हार हुई। यह नेतृत्व, रणनीति और जमीनी पकड़ की विफलता थी। इसके बावजूद जिन नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्रों में पार्टी को डुबोया, वे आज भी संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर हैं। जिलों के स्तर पर भी और प्रदेश के भी। ऐतिहासिक हार के बावजूद प्रदेश नेतृत्व में कोई परिवर्तन नहीं करना, केंद्रीय नेतृत्व के ढुलमुल रवैये को दर्शाता है। नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी को लेकर रायपुर और बिलासपुर के नेताओं के बीच जो रस्साकशी चली, वह अब सार्वजनिक हो चुकी है, जगहंसाई हो रही है। यह जरूर है कि पूर्व मुख्यमंत्री को महासचिव बनाकर पंजाब भेज दिया गया, लेकिन छत्तीसगढ़ मे जिस तरह से वे समय दे रहे हैं, उससे अंदाजा लग सकता है कि उनको पंजाब में दोबारा पार्टी की पकड़ मजबूत करने में कोई रुचि नहीं है।
क्या पार्टी नेतृत्व यह समझने को तैयार है कि संगठन केवल हाईकमान से नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं के विश्वास और भागीदारी से चलती है? मौजूदा स्थिति में न तो उत्साह है, न एकता, न ऊर्जा और न ही दिशा। यदि यही स्थिति रही, तो कांग्रेस के लिए 2028 केवल एक और चुनाव नहीं, अस्तित्व की लड़ाई बन सकता है।
दखल दोगे तो छोड़ूंगा नहीं..
अचानकमार टाइगर रिजर्व के सरईपानी क्षेत्र में स्थित वॉच टावर के पास लगे सौर पैनल को जंगली हाथियों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। हाथी जैसे समझदार और भावनात्मक जीव अपने प्राकृतिक इलाके में किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप को सहजता से नहीं स्वीकारते। अपने इलाके में किसी भी मानव निर्मित ढांचे को बेजा दखल मानते हैं और अकसर उसे नुकसान पहुंचाते हैं।
यह क्षेत्र चार जंगली हाथियों के नियमित विचरण का इलाका है। यदि सौर पैनल लगाने से पहले उसकी सुरक्षा के लिए कोई उचित परिधि बनाई जाती, जैसे कि गहरी खाई या अन्य प्रकृति-संगत अवरोध, तो शायद यह नुकसान टाला जा सकता था। हाथी भारी शरीर के कारण कूदते नहीं। वे ऐसे खतरों से आमतौर पर दूरी बनाकर चलते हैं। यह तोड़ो-फोड़ो वन विभाग के लिए सबक है। संरचनाएं बनाते समय स्थानीय वन्यजीवों की आदतों, व्यवहार और रहवास की सीमाओं का वे ध्यान नहीं रखते।
मंत्रीजी को घर में दिखा संकट!
प्रदेश के 26 ब्लॉक में भूजल का स्तर क्रिटिकल है। इस मसले पर सीएम विष्णुदेव साय भी चिंता जता चुके हैं, और पिछले दिनों उन्होंने जल संसाधन विभाग की बैठक में दीर्घकालीन कार्ययोजना बनाने के लिए भी कहा। इससे परे सरकार के एक मंत्री भी भूजल स्तर में गिरावट से चिंतित हैं। उनकी यह चिंता व्यक्तिगत भी है।
बताते हैं कि मंत्रीजी का राजधानी रायपुर के बाहरी इलाके में एक बंगला बन रहा है। यह इलाका ग्रामीण है, लेकिन बोरवेल के लिए खुदाई हुई, तो छह सौ फीट पर पानी निकला। मंत्रीजी चकित रह गए, और ग्रामीण इलाके में भूजल स्तर में गिरावट का अंदाजा उन्हें पहली बार हुआ। इससे परे उसी इलाके में कांग्रेस की एक राज्यसभा सदस्य का भी बंगला बनने जा रहा है।
राज्यसभा सदस्य का प्लॉट, मंत्रीजी के बंगले से थोड़ी दूर पर ही है। राज्यसभा सदस्य ने पूजा-पाठ, और टेस्टिंग आदि कराकर बोरवेल खुदाई कराई, तो 50 फीट पर ही पानी मिल गया। इस इलाके में कई और दिग्गज नेताओं के बंगले बन रहे हैं। इन सबके बीच अब भूजल स्तर में आ रही गिरावट पर बात हो रही है।
राहुल की चि_ी का मतलब?
कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के हटने-हटाने की चर्चाओं के बीच राहुल गांधी के एक पत्र की काफी प्रतिक्रिया हो रही है। राहुल ने प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने प्रदेश कांग्रेस की गतिविधियों की सराहना की है।
यह पत्र प्रदेश कांग्रेस दफ्तर पहुंचा, तो दीपक बैज के समर्थक खिल उठे। पूर्व सीएम भूपेश बघेल का भी बयान आ गया। उन्होंने कहा कि राहुलजी ने सिर्फ बैज की ही नहीं, सभी कार्यकर्ताओं की तारीफ की है। राहुल के पत्र के बाद बैज समर्थक आत्मविश्वास से भर गए हैं, और वो मानकर चल रहे हैं कि बैज पद पर बने रहेंगे।
दूसरी तरफ, प्रदेश कांग्रेस के एक प्रमुख पदाधिकारी ने अनौपचारिक चर्चा में राहुल के पत्र की व्याख्या अलग ढंग से की है। पदाधिकारी का मानना है कि प्रदेश कांग्रेस की गतिविधियों को लेकर रिपोर्ट हाईकमान को भेजी जाती है। इस पर बधाई की प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक है। जैसे कि किसी विशिष्ट व्यक्ति को शादी के लिए आमंत्रण भेजा जाता है, यदि वो किसी वजह से कार्यक्रम में नहीं आ पाते तो शिष्टाचार के नाते शुभकामनाएं संदेश भेज देते हैं। राहुल का पत्र भी शुभकामना संदेश से ज्यादा कुछ नहीं है। चाहे कुछ भी हो, दीपक बैज राहुल के पत्र से टॉनिक मिल गई है। अब हटेंगे या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
छात्रा बनी टीचर
सुकमा के दंतेशपुरम की यह शाला छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था की एक तस्वीर दिखा रही है। अनुशासित बच्चे जमीन पर कतारबद्ध बैठे हैं। बच्चे सब पहुंच गए हैं, पर टीचर गायब है, इसलिए एक छात्रा ने ही पढ़ाने की जिम्मेदारी उठा ली है। एक जवान ने ये वीडियो रिकॉर्ड किया जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
छत्तीसगढ़ 11 वां राज्य ना हो जाए?
छत्तीसगढ़ में पूर्णकालिक डीजीपी की नियुक्ति की कवायद चल रही है। तीन माह पहले सरकार ने 92 बैच के अरुण देव गौतम को प्रभारी डीजीपी नियुक्त किया था। बीते तीन महीनों में उनका परफॉर्मेंस बेहतर, और विवादहीन रहा है। वे काम से काम रखने वाले वर्क ओरिएंटेड अफसरों में गिने जाते हैं। इस दौरान एसपी आईजी के तबादले भी हो गए। तीन दिन पहले छत्तीसगढ़ के लिए पूर्णकालिक डीजीपी, या यूं कहें कि गौतम को रेगूलर करने दिल्ली में यूपीएससी ने सलेक्शन कमेटी की बैठक कर ली।
मुख्य सचिव अमिताभ जैन भी शामिल हुए। कमेटी ने डीजीपी के लिए चार आईपीएस अधिकारियों का नाम यूपीएससी को भेजा गया है, इनमें पवनदेव, अरुणदेव गौतम, जीपी सिंह और हिमांशु गुप्ता का नाम शामिल है। गौतम के दूसरे क्रम में होने की वजह से यह बैठक, पैनल की औपचारिकता पूरी करनी पड़ रही है। पीएचक्यू से महानदी भवन के गलियारों में यह भी चर्चा है कि गौतम के रेगुलर होने में कोई अड़चन नहीं है।
डीजीपी चयन का मामला पिछले छह महीने से यूपीएससी में लटका हुआ था। इससे पहले एक बार डीपीसी हुई भी मगर जीपी सिंह की इंट्री के बाद यूपीएससी राज्य सरकार से कई क्वेरियां कर रहता है। इसके बाद ही अंतिम डीपीसी हुई। इसके बाद भी पीएचक्यू के ही अफसर कह रहे हैं कि देश के 10 अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ में भी प्रभारी डीजीपी ही बनाए रखा जा सकता है। इन राज्यों में भाजपा शासित उत्तर प्रदेश भी शामिल हैं। वहां भी डीजीपी प्रशांत कुमार, प्रभारी ही हैं। तो उधर एक मात्र वामपंथ शासित केरल में भी पूर्णकालिक की तलाश जारी है। और विजयन सरकार केंद्र से यूपीएससी के चुने गए पैनल के तीन नामों से असंतुष्ट है ।
संभव है वह इनमें से किसी की नियुक्ति ही न करें। अपनी पसंद के डीजीपी नियुक्त करने पहले तीन अफसरों के रिटायर होने का इंतजार कर रही है । तब तक प्रभारी से काम चलाने तैयार है। छत्तीसगढ़ पुलिस के अफसर बताते हैं कि राज्यों में डीजीपी या मुख्य सचिवों को लेकर यह कवायद, मोदी 2.0 के अंतिम दो तीन वर्षों से देखने में आई है। इसमें दिल्ली की सीधी दखल होने लगी है। ऐसे में भाजपा शासित सरकारों के लिए शीर्षासन आवश्यक है। देखें आगे क्या होता है?
मजबूरी नहीं, शौक है चेतक!
इस तस्वीर में जो ‘चेतक’ खड़ा है, वो एक जमाने की शान होती थी। 80 और 90 के दशक में जब किसी घर के बाहर चेतक खड़ा होता था, तो उस परिवार की हैसियत ऊंची मानी जाती थी।
आज बाजार में सुपरबाइक्स और इलेक्ट्रिक स्कूटर्स की भरमार है, लेकिन कई लोगों का पुरानी गाडिय़ों से मोह नहीं छूटता। सहारा इंडिया के सुब्रत रॉय लोगों का धन लूटने के लिए बदनाम हुए, पर वे पुरानी बजाज स्कूटर को अपने घर कोने पर सजा कर रखते थे। इसी स्कूटर पर पत्नी के साथ घूम-घूम कर उन्होंने बिजनेस बढ़ाया था।
मजबूरी नहीं, शौक है- पीछे लिखा गया है। शायद मालिक सफाई दे रहा है कि पुरानी स्कूटर को देखकर उनकी हैसियत कम करके न आंकी जाए।
सैनिक, या अर्धसैनिक?
नए नवेले कई विधायकों के खिलाफ धीरे-धीरे मोर्चा खुल रहा है। विधायकों पर आरोप लग रहा है कि वो जनसमस्याओं के निराकरण में रूचि नहीं लेते हैं। लेन -देन की भी शिकायतें हैं। एक ने तो बकायदा आरटीआई लगाकर विधायक से जुड़ी जानकारी भी निकलवा ली है, जो कि देर-सवेर विधायक के खिलाफ मुद्दा बन सकता है।
बताते हैं कि विधायक को क्षेत्र के लोग पूर्व सैनिक के रूप में जानते हैं। एक वकील ने सैनिक कल्याण बोर्ड से पूर्व सैनिक विधायक के बारे में जानकारी चाही, तो लिखित में जवाब मिला कि उनका (विधायक) पूर्व सैनिक का कोई रिकॉर्ड नहीं है। बात विधायक के करीबियों तक पहुंची, तो उन्होंने कह दिया कि वो (विधायक) सैनिक नहीं, बल्कि सीआरपीएफ में थे। अब सवाल उठ रहा है कि अर्धसैनिक बल में थे, तो सैनिक लिखना कहां तक उचित है? विधायक के खिलाफ धीरे-धीरे नाराजगी बढ़ रही है। ऐसे में उन्हें देर सवेर अपने विषय में स्थिति स्पष्ट करनी पड़ सकती है।
पकौड़े बेचना बहुत बुरा भी नहीं
महादेव ऑनलाइन सट्टा ऐप के बाद पिछले कुछ समय से गजानन एप सुर्खियों में रहा है। महादेव ऑनलाइन सट्टा ऐप के संचालक तो पुलिस की पहुंच से बाहर हैं, लेकिन गजानन के संचालक तिल्दा रहवासी नंदलाल लालवानी, और उनके पुत्र निर्दलीय पार्षद बबला लालवानी पुलिस के मंगलवार की रात हत्थे चढ़ गए। पकोड़े बेचकर जीवन यापन करने, और फिर ऑनलाइन सट्टा कारोबार चलाकर करोड़पति बनने की कहानी दिलचस्प है।
बताते हैं कि लालवानी पिता-पुत्र दो-तीन साल पहले तक तिल्दा में पकोड़े बेचते थे। धीरे-धीरे वो महादेव ऑनलाइन सट्टा खिलाने वालों से जुड़े, और फिर महादेव एप पर पुलिसिया की कार्रवाई के बाद खुद गजानन एप बनाकर ऑनलाइन सट्टा खिलाने लगे। देखते ही देखते लालवानी पिता-पुत्र करोड़पति बन गए। तिल्दा के निकट उनका शानदार फार्म हाउस चर्चा में रहा है।
सट्टेबाज बबला लालवानी ने राजनीति में भी कदम रखा। भाजपा नेताओं को साधकर पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली, और बबला लालवानी के भाजपा प्रवेश के कार्यक्रम में पार्टी के कई बड़े नेता मौजूद थे। इसके बाद नगर पालिका चुनाव में बबला लालवानी ने पार्षद टिकट के लिए दावेदारी की, लेकिन तब तक पार्टी के शीर्ष नेताओं तक उनके ऑनलाइन सट्टा खिलाने की शिकायत पहुंच चुकी थी।
टिकट नहीं मिलने पर बबला लालवानी ने निर्दलीय पार्षद चुनाव लड़ा, और अच्छे वोटों से जीत हासिल की। इसके बाद नगर पालिका उपाध्यक्ष का भी चुनाव लड़ा। कांग्रेस, और भाजपा के कुछ पार्षदों को भी अपने पाले में करने की कोशिश की। मगर एक वोट से चुनाव हार गए। इसके बाद से लालवानी पिता-पुत्र के खिलाफ कार्रवाई के लिए मुहिम चल रही थी। और अब जाकर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया है। पुलिस से जुड़े सूत्र बताते हैं कि आरोपियों के तार दुबई तक जुड़े हैं। फिलहाल तो पूछताछ चल रही है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
बीबीसी तक गूंजी थी मुनगा गांव की गाथा
15 मई 1975। यह तारीख छत्तीसगढ़ के इतिहास में दर्ज है। महासमुंद जिले (तत्कालीन मध्यप्रदेश) के बागबाहरा विकासखंड के छोटे से गांव मुनगा ने देश को एक नई सामाजिक पहल दिखाई।
यहां 27 जोड़ों की शादी एक साथ कराई गई। दावा है कि यह भारत का पहला सामूहिक आदर्श विवाह था।
इस आयोजन की खासियत यह थी कि इसका प्रसारण ऑल इंडिया रेडियो और बीबीसी लंदन तक हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस अद्वितीय पहल पर बधाई दी थी। विवाह में शामिल हुए सभी जोड़े आज भी वैवाहिक जीवन में साथ हैं—एक भी तलाक नहीं हुआ। दो दिन तक गांव में हजारों लोग रुके, आसपास के गांवों और अन्य राज्यों से भी लोग विवाह देखने पहुंचे। गांववालों ने खुद अपने हाथों से मिट्टी के गिलास और बर्तन बनाए, जिनमें खाना परोसा गया। अब 50 साल बाद, आज इस गौरवपूर्ण सामाजिक परंपरा की स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है। 15 मई 2025 को गांव मुनगा में गोल्डन जुबली समारोह का आयोजन हो रहा है, जिसमें उस ऐतिहासिक विवाह के 20 से अधिक जोड़े अब भी जीवित हैं और फिर से शामिल हो रहे हैं।
निमंत्रण में कहा गया है कि- मां की गोद में मौसी की शादी देखी थी, आज उसी विवाह का हो रहा है स्वर्ण जयंती उत्सव!
बदलाव नीचे होगा, या ऊपर?
रायपुर नगर निगम के पांच बागी कांग्रेस पार्षदों की पार्टी में वापसी तो हो गई है, लेकिन नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति का विवाद नहीं सुलझ पाया है। पीसीसी ने निर्दलीय चुनाव जीतकर कांग्रेस में आए पार्षद आकाश तिवारी को नेता प्रतिपक्ष नियुक्त कर दिया। इसके विरोध में पांच पार्षदों को पार्टी में छोड़ दी थी। पार्टी में वापसी के बाद भी बागी कांग्रेस पार्षद, आकाश तिवारी को नेता मानने के लिए तैयार नहीं हैं।
हालांकि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने साफ कर दिया है कि नियुक्ति में किसी तरह का बदलाव नहीं होगा। आकाश तिवारी नेता प्रतिपक्ष बने रहेंगे, लेकिन कांग्रेस के तिवारी समेत 8 में से 5 पार्षद तो उन्हें पार्षद दल का नेता नहीं मान रहे हैं। इससे परे निगम सभापति सूर्यकांत राठौर ने पहले संदीप साहू को कांग्रेस के पत्र के आधार पर नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्य कर चुके हैं। दोबारा आकाश तिवारी के नाम से जारी संशोधित पत्र पर कोई फैसला लेने से बचते दिख रहे हैं। यानी संदीप साहू नेता प्रतिपक्ष बने हुए हैं।
बताते हैं कि नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति को लेकर हो रही किरकिरी के चलते पार्टी के कुछ सीनियर नेताओं की समझाइश पर संदीप साहू और बाकी कांग्रेस पार्षद पार्टी में वापस आ गए, लेकिन पीसीसी के रवैये में बदलाव नहीं होने से वो खिन्न हैं। हालांकि पार्टी के कई नेताओं ने उन्हें आश्वस्त किया है कि देर सवेर पीसीसी में ही बदलाव होगा, ऐसे में धैर्य बनाए रखें। पार्षदों खामोश हैं, और बदलाव का इंतजार कर रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
अब अवैध कोयला खनन का भंडाफोड़
बलरामपुर जिले के सनावल में रेत माफियाओं पर छापामारी के दौरान एक आरक्षक को ट्रैक्टर से कुचलकर मार डालने की घटना के बीच, सरगुजा संभाग के ही दूसरे छोर कोरिया जिले से भी अवैध खनन से जुड़ी एक और खबर सामने आई है। यह एक वीडियो के रूप में है, जिसे भाजपा के ही जिला अध्यक्ष ने जारी किया है।
वीडियो में उन्होंने दावा किया है कि उन्होंने रात के अंधेरे में उन स्थानों का दौरा किया, जहां बड़े पैमाने पर अवैध कोयला खनन हो रहा है। उन्होंने तस्करों को चुनौती दी और इस गोरखधंधे का खुलासा किया। माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने भी तत्काल एक ऑडियो जारी कर पलटवार किया। इस ऑडियो में कहा गया कि कोयले की अवैध खुदाई और तस्करी भाजपा के नेताओं के संरक्षण में हो रही है। साथ ही यह भी कहा गया कि वीआईपी दौरा निपट जाने दीजिए, उसके बाद फिर से काम शुरू कर देंगे।
याद कीजिए, तीन साल पहले अप्रैल महीने में कोरिया जिले में एक अवैध कोयला खदान धसक गई थी, जिसमें दो मजदूरों की मौत हो गई। अवैध खनन होने के कारण उन्हें मुआवजा तक नहीं मिला। एक सप्ताह तक तो प्रशासन यह मानने को भी तैयार नहीं था कि कोई मौत हुई है। तब कांग्रेस की सरकार थी, आज भाजपा की है। पर हालात जस के तस हैं। काले कारोबार में सत्ता बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।
कोरिया जिले के सोनहत और पटना थाना क्षेत्र में दर्जनों अवैध कोयला खदानें हैं। यह कारोबार खदानों, रेलवे साइडिंग, चलती मालगाडिय़ों और जंगलों में बनाई गई अवैध सुरंगों तक फैला हुआ है। एसईसीएल और पुलिस की ओर से कार्रवाई के दावे तो होते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि कभी कोई निर्णायक अंकुश नहीं लग सका। दुखद पहलू यह है कि इस खतरनाक खेल में लगे माफिया कभी जान नहीं गंवाते। जान जाती है तो उन गरीब ग्रामीणों की, जो महज दो-ढाई सौ रुपये की मजदूरी के लिए अवैध सुरंगों में घुसकर खुद को जोखिम में डालते हैं। मुरमा, देव खोल और कटोरा जैसे स्थानों पर बीते कुछ वर्षों में ऐसे ही हादसों में कम से कम छह लोगों की जान जा चुकी है। चूंकि वे अवैध मजदूर थे, किसी को मुआवजा नहीं मिला।
सरकार कोई भी हो, जब अपराधियों को सत्ता में बैठे लोगों का संरक्षण मिलने लगता है, तब वे इतने साहसी और आक्रामक हो जाते हैं कि मजदूरों या ड्यूटी पर तैनात एक मामूली सिपाही की जान उनके लिए कोई मायने नहीं रखती।
आवास कार्यक्रम से सब गदगद
अंबिकापुर में ‘मोर आवास मोर अधिकार’ कार्यक्रम काफी सफल रहा। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कार्यक्रम में आवास योजना के हितग्राहियों को आवास की चाबी सौंपी। वैसे तो यह कार्यक्रम सरकारी था, और इसमें 50 हजार से अधिक लोग जुटे। भारी भीड़ देखकर केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री, और उनके साथ आई केन्द्रीय टीम काफी खुश थी।
हालांकि स्वागत सत्कार के दौरान थोड़ा विवाद हुआ था। सरगुजा सांसद चिंतामणि महाराज को केन्द्रीय मंत्री का स्वागत के लिए पहले पुकार लिया गया, जबकि राज्य सरकार के मंत्री भी मंचस्थ थे, जो कि प्रशासन से कुछ देर के लिए नाखुश रहे। मगर कार्यक्रम बढिय़ा हुआ, तो सीएम और सरकार के मंत्री, और भाजपा के पदाधिकारी काफी गदगद रहे। जिन्हें आवास की चाबी मिली थी। उनका उत्साह तो देखते ही बन रहा था।
केन्द्रीय मंत्री ने ऐलान किया कि कोई भी गरीब कच्चे मकान में नहीं रहेगा। सबके पक्के मकान बनेंगे। इस घोषणा का सरगुजा संभाग में काफी फायदा होगा क्योंकि सबसे ज्यादा कच्चे मकान बस्तर, और सरगुजा इलाके में हैं।
शांत और चिंतनशील झुंड
मई महीने की 40 डिग्री सेल्सियस की झुलसा देने वाली गर्मी में हाथियों का एक बड़ा झुंड कीचड़ भरे दलदल और ठंडे पानी में सुकून की सांस लेता दिख रहा है। झुंड में वयस्क- मादा हाथी, युवा हाथी और नन्हे शावक भी दिखाई दे रहे हैं। कीचड़ न केवल उन्हें ठंडक पहुंचा रहा है, बल्कि उनकी त्वचा को परजीवियों और धूप से भी बचा रहा है। विश्राम का यह दृश्य इंगित करता है कि वनों के भीतर यदि कुछ ऐसे सुरक्षित प्राकृतिक स्थल शेष हों तो ये जीव चैन की सांस ले सकते हैं। हाथियों के लिए ऐसे ठिकानों का संरक्षण बहुत जरूरी है। छत्तीसगढ़ में जैसे-जैसे जंगलों का दायरा घट रहा है, जल के स्त्रोत सूख रहे हैं और तापमान हर वर्ष बढ़ रहा है, वैसे-वैसे हाथियों और अन्य वन्यजीवों के लिए जीवन कठिन होता जा रहा है। यह शांत दृश्य धरमजयगढ़ वनमंडल का है।
ग्रामीण आवास से कांग्रेस बेघर?
पीएम आवास एक ऐसा विषय है, जिस पर भाजपा रह रहकर हमलावर हो जाती है, और कांग्रेस पर निशाना साधती है। पिछले पांच साल से पीएम आवास के मसले पर कांग्रेस बैकफुट पर है। यह विधानसभा, और लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए बड़ा मुद्दा रहा है। दरअसल, भूपेश सरकार ने पीएम आवास योजना के लिए अंशदान जारी नहीं किया। इस वजह से आवास योजना पिछड़ गई। कांग्रेस इसको खारिज नहीं कर पाती है, क्योंकि अंशदान नहीं देने की वजह से तत्कालीन पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, और पंचायत मंत्रालय छोड़ दिया था।
केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान रायपुर आए, तो इस मसले पर फिर हमलावर हो गए। उन्होंने कह दिया कि पिछली सरकार के मुखिया ने अपने पंचायत मंत्री के कहने पर भी अंशदान नहीं दिया था। भाजपा की पीएम आवास के जरिए एक बड़ा वोट बैंक तैयार करने की रणनीति है। सरकार बनते ही पहली कैबिनेट में 18 लाख ग्रामीण आवास मंजूर किए गए। खुद सीएम विष्णुदेव साय इस योजना पर अमल की मॉनिटरिंग कर रहे हैं।
पंचायत विभाग के मुखिया, डिप्टी सीएम विजय शर्मा लगातार पीएम आवास निर्माण की समीक्षा कर रहे हैं। पिछले दिनों रिश्वतखोरी के मामले की शिकायत पर चार कर्मचारियों को बर्खास्त भी किया गया था। शिवराज सिंह चौहान आए, तो वर्ष-2012, और 18 की सर्वे सूची के छूटे हुए तीन लाख और हितग्राहियों के लिए आवास निर्माण के प्रस्ताव पर सहमति दी गई। कुल मिलाकर आवास निर्माण पर आने वाले समय में राजनीति गरम रहेगी। देखना है कि कांग्रेस इसका क्या तोड़ निकालती है।
राजधानी पैसेवाले के हवाले ?
कांग्रेस में रायपुर शहर जिलाध्यक्ष के लिए जोड़ तोड़ चल रही है। हालांकि जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की प्रक्रिया बदल दी गई है। ऐसे में किस नेता की चलेगी, यह कहना अभी कठिन है। पार्टी के लोगों का सोचना है कि राजधानी से ही माहौल बनता है। इसलिए आर्थिक रूप से सक्षम, और कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रिय व्यक्ति को बनाया जाना चाहिए।
चूंकि शहर जिलाध्यक्ष गिरीश दुबे का कार्यकाल पूरा हो चुका है। ऐसे में उनका बदलना तय है। जिन नामों पर चर्चा हो रही है उनमें युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय पदाधिकारी रहे दीपक मिश्रा, पूर्व सीएम भूपेश बघेल के खेमे से विनोद तिवारी, और श्रीकुमार मेनन सहित कुछ नाम चर्चा में हैं। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, सुबोध हरितवाल को शहर जिले की कमान सौंपने के पक्ष में बताए जाते हैं। मगर हाईकमान क्या सोचती है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
सनावल में सिपाही की हत्या से उठते सवाल
छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के थाना क्षेत्र सनावल में अवैध रेत खनन की सूचना पर गई पुलिस-वन विभाग की संयुक्त टीम पर हुए हमले में सिपाही शिवभजन सिंह की ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या कर दी गई। बाकी जवान जान बचाकर भागे।
कन्हर नदी झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा पर बहती है। यहां से निकाली गई रेत की तस्करी झारखंड में बड़े पैमाने पर होती है। यह पूरा खेल अफसरों और माफियाओं की अघोषित साझेदारी के बिना संभव नहीं। हैरानी की बात नहीं कि कुछ ही दिन पहले, इसी इलाके में जब कुछ गाडिय़ों को पुलिस ने पकडक़र खनिज विभाग को सौंपा, तो बिना किसी कार्रवाई के उन्हें छोड़ दिया गया।
सिपाही की हत्या के बाद त्वरित कार्रवाई में थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया गया। यह प्रशासनिक परंपरा बन चुकी है। क्या थानेदार एसपी या कलेक्टर को भरोसे में लिए बिना बार-बार छापेमारी कर रहे थे, जिसकी सजा दी गई?
रेत माफिया, कबाड़ माफिया, राशन माफिया, ये सभी किसी न किसी रूप में राजस्व, पुलिस और प्रशासन के भीतर एक मजबूत पैठ बना चुके हैं। थानेदार, तहसीलदार, खनिज निरीक्षक, हर स्तर पर वसूली का एक हिस्सा बंधा हुआ है, जो ऊपर तक पहुंचता है। यही वजह है कि जब कार्रवाई होती भी है, तो केवल दिखावे भर की। असली गुनहगार, जो योजनाएं बनाते हैं, राजनीतिक संरक्षण देते हैं, वे पर्दे के पीछे रहते हैं।
दिसंबर 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजापुर से पराजित भाजपा प्रत्याशी पूर्व मंत्री महेश गागड़ा ने वहां के तत्कालीन कलेक्टर राजेंद्र कटारा पर गंभीर आरोप लगाए थे। प्रेस कांफ्रेंस कर और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर उन्हें कांग्रेसी कलेक्टर बताया और चुनाव हराने का आरोप लगाया। यह भी कहा था कि इनके घोटालों की हम सरकार बनते ही जांच कराएंगे। आज वही अफसर बलरामपुर कलेक्टर हैं। यह कृषि मंत्री रामविचार नेताम का इलाका है। जाहिर है, उनसे तालमेल ठीक ही होगा, वरना उनके ही एक वरिष्ठ नेता गागड़ा, जिस अफसर को जांच के घेरे में लाने की बात कर रहे थे, उन्हें दूसरे जिले का कलेक्टर बनाकर कैसे बिठाया जाता?
इंपैनलमेंट और काबिलियत
छत्तीसगढ़ कैडर के चार आईपीएस अफसर रामगोपाल गर्ग, दीपक झा, अभिषेक शांडिल्य, और जितेन्द्र सिंह मीणा केन्द्र सरकार में आईजी, अथवा समकक्ष पद के लिए सूचीबद्ध हुए हैं। चारों आईपीएस के 2007 बैच के अफसर हैं। यह पहला मौका है जब एक साथ एक ही बैच के सभी पुलिस अफसर केन्द्र सरकार के पदों के लिए सूचीबद्ध हुए हैं।
आईजी रामगोपाल गर्ग और अभिषेक शांडिल्य पहले भी केन्द्र सरकार की एजेंसी में काम कर चुके हैं। दोनों ही सीबीआई में पोस्टेड रहे हैं। जितेन्द्र सिंह मीणा वर्तमान में आईबी में पोस्टेड हैं। खास बात यह है कि चारों अफसरों की साख अच्छी है, और उन्होंने अलग-अलग जिलों में अपनी पदस्थापना के दौरान साबित भी किया है। अभी वर्तमान में रामगोपाल गर्ग, अभिषेक शांडिल्य, और दीपक झा क्रमश: दुर्ग, राजनांदगांव, और सरगुजा आईजी रेंज में पोस्टेड है। दीपक झा भी केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाने के इच्छुक थे, लेकिन राज्य सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी।
दीपक झा ने जिस तरह पुलिस भर्ती गड़बड़ी के मामले में सख्त कार्रवाई की है। उससे भर्ती प्रक्रिया पर विश्वास बरकरार रहा है। रामगोपाल गर्ग ने महादेव ऐप से लेकर दुर्ग में मासूम की रेप-हत्या मामले को बेहतर तरीके से हैंडल किया है। यही नहीं, उन्होंने लेन-देन की शिकायत पर एक डीएसपी को भी अटैच कर दिया। कुल मिलाकर उनकी कार्रवाई से पुलिस महकमे में अच्छा संदेश गया है। यही वजह है कि चारों अफसर अपनी काबिलियत के बूते पर केन्द्रीय एजेंसियों के लिए सूचीबद्ध हुए हैं।
आईएमडी,स्काईमेट में टक्कर
भारत सरकार के मौसम विभाग (आईएएमडी) और निजी वेदर सर्विसेज कंपनी स्काईमेट प्रालि के बीच मौसमी पूर्वानुमान की ब्रेकिंग को लेकर टसल शुरू हो गई है । इसका असर पूर्वानुमान की एक्यूरेसी पर भी देखा जा रहा है । इस वजह से 150 वर्ष पुराने आईएमडी, ब्रेकिंग के चक्कर में 22 वर्ष पहले बने स्काईमेट को पछाडऩे समय से पहले ही पूर्वानुमान जारी करने लगा है । हालांकि मौसम वैज्ञानिक अपने अफसरों को इससे बचने की सलाह दे रहे है। वे इसे संसाधनों का गलत उपयोग कहने से भी नहीं चूक रहे। मसलन, तीन दिन पहले आईएमडी ने मानसून का पूर्वानुमान जारी कर दिया। इसके मुताबिक इस बार देश में मानसून, बीते वर्ष के समय से तीन दिन पहले 27 मई को पहुंचने की संभावना जताई गई।
विभाग के भोपाल मुख्यालय के पुराने वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी पूर्वानुमान के लायक भी मानसूनी हवाओं में हलचल नहीं है। ऐसे में धैर्य रखा जाना चाहिए। वातावरण में कई फैक्टर हैं जो कम,ज्यादा होते रहते हैं। जो मानसून पर असर करते हैं। पिछले वर्ष भी ऐसे ही पूर्वानुमान की संभावना जताई गई थी। और मानसून देर से बरसा था। और घोषणा में जल्दबाजी बरती गई। इस बार भी 13 मई को अंडमान पहुंचने की संभावना है और वातावरण में हलचल नहीं दिख रही। ऐसे में देरी से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसा होने पर विभाग की छवि पर असर पड़ता है।
लोग यूं ही नहीं कहते - मौसम विभाग तो कुछ भी भविष्यवाणी करता है, जिस दिन बारिश होगी बताते हैं उस दिन धूप रहती है... आदि आदि। जहां तक स्काईमेट की बात है तो यह कंपनी मौसम संबंधी डेटा, समाचार पत्रों, टेलीविजन, रेडियो और इंटरनेट को ग्राफिक्स पैकेजिंग, लाइव ऑन द स्पॉट और मौसम पूर्वानुमान समाधान, सेवाएं प्रदान करती है। स्काईमेट वेदर सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, 25 मई, 2004 को निगमित एक गैर-सूचीबद्ध निजी लिमिटेड कंपनी है। यह नई दिल्ली, दिल्ली में स्थित है।
सिंदूर से सीएस को इमरजेंसी पॉवर
भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे संघर्ष के बीच आने वाले दिनों की स्थिति पर केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने रसद भंडारण को लेकर भी कवायद शुरू कर दी है । सभी राज्यों केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों, प्रशासकों को नागरिक सुरक्षा नियमों के तहत उन्हें प्रदान की गई आपातकालीन शक्तियों का उपयोग करने का निर्देश दिया है। इस नियम के तहत, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश नागरिक सुरक्षा नियम, 1968 की धारा 11 का उपयोग कर सकते हैं, जो एहतियाती उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए नागरिक सुरक्षा के अपने संबंधित निदेशकों को इमरजेंसी परचेस पॉवर, स्टॉक लिमिट पावर प्रदान करता है।
यह आदेश आवश्यक एहतियाती उपायों को कुशलतापूर्वक लागू करने के सरकार के प्रयासों के अनुरूप है। इससे तहत राज्य में खाद्यान्न, पेट्रोल डीजल भंडारण के लिए स्टॉक लिमिट भी अधिसूचित किया जा सकता है। इससे पहले यह ऐसी स्थिति रूस यूक्रेन युद्ध के समय और उसके बाद कोरोना काल में भी भंडारण लिमिट तय किया गया था। ताकि बड़े कारोबारी, कोल्ड स्टोरेज वाले कालाबाजारी न कर सकें।
बस्तर में नलकालीन बौद्ध प्रतिमा
आज बुद्ध पूर्णिमा है। इस अवसर पर बस्तर के कोंडागांव जिले के एक ऐतिहासिक स्थल भोंगापाल की इस तस्वीर के बारे में भी जान लिया जाए। यहां नल वंश के स्वर्णिम काल की बौद्ध विरासत अपनी मौन उपस्थिति से इतिहास के गहरे अध्यायों को जीवंत करती है। घने जंगलों के बीच स्थित भोंगापाल न केवल पुरातात्विक दृष्टि से खास रहा है, बल्कि आध्यात्मिक चेतना का भी केंद्र था।
भोंगापाल को ‘भोगपुर’ का अपभ्रंश माना जाता है। यह पांचवीं-छठवीं सदी में नल वंश के अधीन एक समृद्ध नगर था। नल शासकों ने चौथी से आठवीं सदी तक दंडकारण्य क्षेत्र में शासन किया। उनका साम्राज्य आज के ओडिशा के कोरापुट-नवरंगपुर से लेकर छत्तीसगढ़ के बस्तर, राजिम-दुर्ग और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली-नागपुर तक फैला था। राजा विलासतुंग, भवदत्तवर्मन, व्याघ्रराज जैसे शासकों के काल में कला, धर्म और स्थापत्य का अद्वितीय विकास हुआ।
भोंगापाल में नलकालीन ईंटों से बने चैत्य की खुदाई ने इसे बौद्ध धरोहरों की श्रेणी में स्थापित किया है। यहां से प्राप्त खंडित बुद्ध प्रतिमा, जो अब भी ध्यान मुद्रा में अपनी सौम्यता के साथ विद्यमान है। यह क्षेत्र शैव, वैष्णव, शाक्त और बौद्ध धर्मों का संगम रहा है, जहां सप्त मातृका मंदिर, शिव मंदिर और चैत्य एक साथ हैं।
दुर्भाग्यवश, आज यह प्रतिमा तांत्रिक कृत्यों के कारण क्षतिग्रस्त हो चुकी है। स्थानीय लोग वर्षों से इसके संरक्षण की मांग कर रहे हैं। यह बौद्ध प्रतिमा और पूरा स्थल सिर्फ छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में महत्वपूर्ण है।
दिग्गज बस्तर में
देश-प्रदेश में गली-मोहल्लों तक भारत-पाकिस्तान लड़ाई पर चर्चा हो रही है। इन सबके बीच प्रदेश भाजपा के दो बड़े नेता अजय जामवाल, और पवन साय संगठन को मजबूत करने निकले हैं। दोनों नेता पिछले तीन दिनों से बस्तर संभाग के दौरे पर हैं, और जिलों में प्रमुख नेताओं के साथ बैठक कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि दोनों ही नेता नए चेहरों की संगठन में भूमिका की तलाश कर रहे हैं, और पंचायत चुनाव के नतीजों की समीक्षा भी कर रहे हैं।
भाजपा को निकाय, और पंचायत चुनाव में भारी सफलता मिली है। पंचायत में सुकमा को छोडक़र बाकी जिला पंचायतों में पार्टी अपना परचम लहराने में कामयाब रही। मगर सुकमा में तमाम कोशिशों के बाद भी भाजपा प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। सुकमा में कांग्रेस, और सीपीआई का गठबंधन अंत तक कायम रहा, और इसमें दरार डालने की भाजपा की तमाम कोशिशें नाकाम रही।
हालांकि पार्टी के कुछ लोग मानते हैं कि निकाय चुनाव के दौरान ही स्थानीय स्तर पर पार्टी नेताओं के बीच मतभेद उभर कर सामने आ गए थे। आपसी झगड़े नहीं निपटा पाने के कारण भाजपा को यहां हार का सामना करना पड़ा। कुछ इसी तरह की स्थिति जगदलपुर जनपद अध्यक्ष के चुनाव में भी बनी। यहां बहुमत होने के बाद भी अधिकृत प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। जगदलपुर में पार्टी के बागी को जीत हासिल हुई। जामवाल और पवन साय, दोनों ही संगठन को मजबूत बनाने के साथ-साथ हार के कारणों पर भी बात कर रहे हैं। जिले, और मंडल की कार्यकारिणी का गठन होना है। सभी जिलों में कोर कमेटियों का भी गठन होगा। ऐसे में दोनों नेताओं के दौरे से विशेषकर बस्तर में हलचल मची है।
परीक्षा के नतीजे, और जय-वीरू
स्कूल शिक्षा विभाग ने बोर्ड परीक्षा के नतीजों की समीक्षा के बाद जिला शिक्षा अधिकारियों पर कार्रवाई शुरू कर दी है। अभी जिलाधिकारी के तबादले से शुरू हुई है। आने वाले दिनों में यह बीईओ, प्राचार्य और शिक्षकों तक जाएगा। हो सकता है निलंबन भी हो। इसमें कल जय-वीरू की एक जोड़ी टूट गई। कल एक डीईओ, हटाकर जगदलपुर भेजे गए। लोग बताते हैं कि इनका तीस वर्ष में पहली बार तबादला हुआ है। वर्ना ये और इनके एक और साथी रायपुर में ही शिक्षक, प्रोफेसर और प्राचार्य भी पदोन्नत औऱ पदस्थ होते रहे। और एक वर्ष पहले डीईओ भी यहीं से बने। जय-वीरू की इस जोड़ी के गॉडफादर एक पूर्व मंत्री रहे हैं ।
दरअसल, ये दोनों इन नेताजी के बच्चों के स्कूल पढ़ाई के वक्त गणित, साइंस के ट्यूटर रहे हैं सो ऐसी गुरू दक्षिणा तो बनती थी। नेताजी की दिल्ली रवानगी के बाद से ही पूरा विभाग, जय-वीरू के आदेश का इंतजार कर रहा था। बस अवसर की तलाश थी। बोर्ड में जिले के नतीजों में गिरावट का अध्ययन कर विभाग ने एक को रवाना कर दिया। राज्य गठन के बाद पहली बार नतीजों को लेकर किसी डीईओ को बदला गया, ऐसा याद आ रहा है। इन साहब पर जिले में सही मॉनिटरिंग न करने, मुख्यालय से बाहर रहने और ओपन स्कूल परीक्षा में नकल प्रकरणों के खात्मे और मीडिया पर्सन को रिश्वत देने जैसे गंभीर तथ्य मिले थे। कुछ ईमान न बेचने वाले पत्रकार साथियों ने लिफाफे लौटाए भी, और सचिव स्तर तक मैसेज भी भिजवाया।
ये पर्याप्त तथ्य थे, फिर क्या था रवाना कर दिए गए। जय के बाद अब विभाग ने वीरू पर भी नजरें गड़ा दी है। वैसे रायपुर भी उन दस जिलों में चौथा है जहां नतीजे कमजोर रहे। देखना होगा क्या और कब होगा।
निधि छिब्बर अभी नहीं बन पाएंगी सचिव
छत्तीसगढ़ कैडर 1994 बैच की आईएएस निधि छिब्बर अब स्वतंत्र रूप से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग सचिव नहीं बन पाएंगी। दिल्ली से खबर है कि केंद्र सरकार ने निधि को नीति आयोग में ही बनाए रखने का फैसला करते हुए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग सचिव का आदेश रद्द कर दिया है। साउथ ब्लाक की ब्यूरोक्रेसी पर नजर रखने वाले रायपुर के अफसरों का कहना है कि छोटे राज्य के आईएएस को इतना बड़ा पद देने के लिए बड़े राज्यों की लॉबी तैयार नहीं थी। सो, पखवाड़े भर बाद ही आदेश रद्द कर दिया गया। और उन्हें केंद्र में छत्तीसगढ़ की पहली महिला सचिव होने की उपलब्धि नहीं मिल पाई।
यह भी बताया गया है कि नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम की पहल पर निधि को आयोग के उपाध्यक्ष ने, मंत्रालय के लिए न छोडऩे का फैसला किया है। निधि करीब दो वर्ष से पहले डायरेक्टर फिर अतिरिक्त सचिव के पद पर आयोग में काम कर रही हैं। उनके तजुर्बे को देखते हुए बीवीआर ने उन्हें वहीं रोकने की कवायद की। और फिर आने वाले दिनों में जनगणना भी होनी और उस पर मूल्यांकन नीति निर्धारण भी। सो उन्हें लगा होगा कि निधि बेहतर होंगी।
निधि अब आयोग में ही भारत सरकार के सचिव के समकक्ष पद और वेतन पर विकास निगरानी और मूल्यांकन कार्यालय (डीएमईओ), का महानिदेशक नियुक्त की गयी हैं। डीएमईओ का गठन भूतपूर्व कार्यक्रम मूल्यांकन कार्यालय (पीईओ) और स्वतंत्र मूल्यांकन कार्यालय (आईईओ) का विलय करके सितंबर 2015 में किया गया। यह नीति आयोग के अधीन एक संबद्ध कार्यालय है। इसके साथ ही अब किसी और अधिकारी के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय में सचिव बनने का रास्ता साफ हो गया है।
सरकारी स्कूलों पर भरोसे का संकट
प्रदेश में स्कूलों के युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया एक बार फिर शुरू हो गई है। जिन ग्रामीण स्कूलों में छात्र संख्या राष्ट्रीय मानकों से कम है, उन्हें दूसरे विद्यालयों में मर्ज किया जा रहा है। यह कवायद शिक्षा के गुणवत्ता सुधार के नाम पर हो रही है। मगर जमीनी सच्चाई यह है कि इस प्रक्रिया के पीछे प्रशासनिक विवशताओं से ज़्यादा शिक्षा व्यवस्था में छिपी खामियां जिम्मेदार हैं।
7 मई से मर्जर, 15 मई से नई पोस्टिंग और 31 मई तक पूरी प्रक्रिया होने जा रही है। बीते साल शिक्षक संगठनों के विरोध के कारण योजना लागू नहीं की गई थी। इस बार अनुमान है कि करीब 4 से 5 हजार प्राथमिक स्कूल या तो बंद हो जाएंगे या पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में समाहित कर दिए जाएंगे।सवाल यह है कि सरकारी स्कूलों को बंद करने की जरूरत क्यों पड़ रही है? गांवों में निजी स्कूलों की भरमार और उनमें डोनेशन आधारित प्रवेश यह संकेत देता है कि सरकारी शिक्षा तंत्र को लेकर जनता का भरोसा कमजोर हो रहा है। सरकार प्रवेशोत्सव मनाती है, बच्चों का तिलक कर स्वागत करती है, लेकिन वही बच्चे जब बिना शिक्षक या बुनियादी सुविधा वाले स्कूलों में पढ़ते हैं, तो यह उत्सव एक रस्म बनकर रह जाता है।
विभाग में शिक्षकों की असमान तैनाती एक पुरानी बीमारी है। प्रदेश में करीब 300 स्कूल ऐसे हैं, जहां एक भी शिक्षक नहीं है, वहीं 13 हजार शिक्षक शहरी स्कूलों में सरप्लस हैं। यानी शिक्षक हैं, लेकिन जरूरत की जगह पर नहीं। इसके बावजूद प्रदेश में 57 हजार शिक्षक पद खाली हैं और कोई भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। युक्तियुक्तकरण के बाद स्कूलों की दूरी बढ़ेगी। इसका अधिक असर लड़कियों की शिक्षा पर पड़ेगा। कई परिवार बेटियों को स्कूल भेजना बंद कर सकते हैं। जब शिक्षक समय पर स्कूल न जाएं, जनप्रतिनिधि केवल औपचारिकता निभाएं, और सरकार केवल आकड़ों को सुधारने के लिए योजनाएं बनाए तो यही हाल होना है। यदि सरकार वाकई शिक्षा के स्तर को सुधारना चाहती है तो उसे इस कारण का पता लगाना चाहिए कि सरकारी स्कूलों से बच्चों का मोह भंग क्यों हो रहा है?
अमरूद के फूल की सरल सुंदरता
इस तस्वीर में दिखाई दे रहा सफेद फूल अमरूद का है, जो अपनी नाजुक पंखुडिय़ों और सैकड़ों केसरों के साथ प्रकृति की अनोखी कारीगरी को दर्शाता है। इसके बगल में दिखाई दे रही हरी कली भविष्य का वह फल है, जो स्वाद और पोषण दोनों में समृद्ध होता है। अमरूद का यह फूल आमतौर पर गर्मियों और बारिश के मौसम में खिलता है, और इसके परागकण मधुमक्खियों व अन्य कीटों को आकर्षित करते हैं, जिससे परागण की प्रक्रिया होती है। यह फूल जितना सुंदर है, उतना ही उपयोगी भी। यही वह प्रारंभिक चरण है, जिससे विटामिन ‘सी’ से भरपूर अमरूद फल का जन्म होता है। ग्रामीण बागानों से लेकर शहरी बगीचों तक, यह फूल आमतौर पर नजर आ जाता है, मगर इसकी महीन बनावट और जैविक महत्त्व अक्सर अनदेखा रह जाता है। (फोटो-प्राण चड्ढा)
रॉ प्रमुख का छत्तीसगढ़ कनेक्शन
ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी के लिए आर्मी के सराहना हो रही है। इनमें विदेश के लिए बनी खुफिया एजेंसी रॉ(रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग) की भूमिका की काफी चर्चा है। पाकिस्तान टीवी चैनलों में रॉ की गतिविधियों पर खूब बात हो रही है। खास बात ये है कि इस समय रॉ की कमान छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस रवि सिन्हा संभाल रहे हैं।
आईपीएस के 88 बैच के अफसर रवि सिन्हा राज्य बनने से पहले रायपुर कोतवाली सीएसपी रह चुके हैं। वे दुर्ग में एडिशनल एसपी रह चुके हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद बतौर डीआईजी कुछ दिन पीएचक्यू में पोस्टेड रहे, और फिर केन्द्र सरकार में चले गए। बाद में उनकी पोस्टिंग रॉ में हो गई। एक समय पिछली सरकार में उन्हें डीजीपी बनाए जाने की चर्चा भी थी।
रवि सिन्हा जब हांगकांग में पोस्टेड थे, तब डॉ. रमन सिंह से भी उनकी मुलाकात हुई थी। डॉ. रमन सिंह उस समय सीएम थे। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ के कांग्रेस-भाजपा के कई नेताओं से उनके अच्छे संबंध रहे हैं। अब जब ऑपरेशन सिंदूर कामयाब रहा है, तो स्वाभाविक रूप से विदेश के लिए बने रॉ के खुफिया प्रमुख के रूप में रवि सिन्हा की तारीफ हो रही है।
पाकिस्तान पर यहां युद्ध
भारत-पाकिस्तान लड़ाई के बीच सोशल मीडिया पर काफी कुछ लिखा जा रहा है, और लोग मजे ले रहे हैं। एक खबर आई कि पाकिस्तान को आईएमएफ से साढ़े 8 हजार करोड़ का कर्जा मिला है। इस पर भाजपा के युवा नेता वैभव बैस ने लिखा कि ज्यादा हैरान-परेशान होने की जरूरत नहीं है। इससे ज्यादा का तो सेंट्रल जेल में बंद आईएएस रानू साहू, अनवर ढेबर, और अनिल टुटेजा व सूर्यकांत तिवारी ने मिलकर घोटाला कर दिया था। एक मुल्क पर हमारे देश के एक जिले के जेल के 4 बंदी भारी हैं।
वैभव बैस यही नहीं रूके, उन्होंने लिखा कि सौम्या चौरसिया को जोड़ दें, तो 20 हजार करोड़ का फिगर हो जाता है। वाड्रा को जोड़ दीजिए, तो पूरा पाकिस्तान बिक जाएगा। वाड्रा के साथ कका को जोड़ देंगे, तो आसपास के दो-चार मुल्क भी आ जाएंगे। बात राजनीतिक हुई, तो जवाब भी तीखा मिला। तीरथ कुमार साहू ने लिखा अकेला जलकी सब पे भारी।
नक्सलियों की शांति की चौथी पेशकश
बस्तर और तेलंगाना जैसे अशांत क्षेत्रों में वर्षों से हिंसा का पर्याय बने नक्सली अब चौथी बार शांतिवार्ता की पेशकश करते हुए छह महीने के युद्धविराम की घोषणा कर रहे हैं। यह घोषणा ऐसे समय में आई है जब सुरक्षा बलों ने करेंगुट्टा जैसे अति-संवेदनशील क्षेत्रों में सघन अभियान शुरू कर रखा है।
तेलंगाना राज्य समिति के प्रवक्ता ‘जगन’ की ओर से जारी पर्चा, जिसमें आम लोगों, डेमोक्रेटिक कार्यकर्ताओं और तेलंगाना के मुख्यमंत्री तक का हवाला देकर शांति वार्ता की मांग का समर्थन बताया गया है, सतह पर वैसे एक सकारात्मक पहल लगती है। किंतु जिस तीव्रता और आवृत्ति से पिछले 18 दिनों में नक्सलियों ने चौथी बार वार्ता और युद्धविराम का प्रस्ताव रखा है, उससे सवालों का खड़ा होना स्वाभाविक है।
नक्सली आंदोलन के पूर्व कमांडर बदरन्ना, जो अब आत्मसमर्पण कर चुके हैं, इसे ‘साइकोलॉजिकल वॉरफेयर’ यानी मनोवैज्ञानिक युद्ध की चाल मानते हैं। उनका आकलन है कि नक्सली गुरिल्ला युद्ध के विशेषज्ञ होते हैं और मनोवैज्ञानिक भ्रम फैलाना उनकी उसी रणनीति का हिस्सा है। जब सामने वाला भ्रमित होता है, उसका ध्यान बंटता है, तब नक्सली अन्य मोर्चों पर वार करने का अवसर खोजते हैं। शांति वार्ता की बातें एक ओर स्वागत योग्य प्रतीत होती हैं, वहीं दूसरी ओर इन्हें पूरी तरह से नक्सलियों की ‘मंशा’ से अलग करके नहीं देखा जा सकता।
घोंसले के लिए है या भूख मिटाने के लिए?
इस तस्वीर में एक चिडिय़ा दूसरी चिडिय़ा को घास का तिनका देती नजर आ रही है। संभवत: यह दृश्य एक मां और उसके बच्चे के बीच के स्नेह और देखभाल को दर्शाता है। पक्षियों के लिए तिनका भोजन नहीं होता, बल्कि घोंसले के निर्माण के काम भी आता है। यह दृश्य प्रकृति की कोमलता, संबंधों की गहराई और पारिवारिक जिम्मेदारियों का अद्भुत चित्रण है। शाखा पर बैठी इन चिडिय़ों की मुद्रा दर्शाती है कि प्रेम और परवाह केवल इंसानों तक सीमित नहीं, प्रकृति के हर जीव में मौजूद है। यह तस्वीर करुणा, सौंदर्य और जीवन के मूल्यों के प्रति एक नई समझ पैदा करती है।
कांग्रेस के 1 के साथ 3 फ्री ?
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस में बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। पार्टी हाईकमान ने गुरुवार को केरल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर सन्नी जोसेफ, और तीन कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति की है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में भी केरल फार्मूला अपनाया जा सकता है।
केरल में पार्टी ने कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति में जाति समीकरण को ध्यान में रखा है। अनुसूचित जाति वर्ग से एक कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है। इससे परे विधानसभा चुनाव में हार के बाद से ही छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष दीपक बैज को बदलने की चर्चा चल रही है। हल्ला है कि पखवाड़े भर के भीतर पार्टी इस दिशा में कोई फैसला कर सकती है। ऐसे में पार्टी हाईकमान केरल की तरह नियुक्तियां छत्तीसगढ़ में भी कर सकती है।
वैसे भी कांग्रेस वर्ष-2014 में कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति कर चुकी है। तब भूपेश बघेल को प्रदेश अध्यक्ष, और रामदयाल उईके व डॉ. शिव कुमार डहरिया को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था। उस वक्त टीएस सिंहदेव नेता प्रतिपक्ष के पद थे।
पार्टी ने चुनाव को देखते हुए अहम पदों पर नियुक्तियों में पिछड़ा, दलित, आदिवासी, और सामान्य वर्ग का समीकरण बनाया था। हालांकि बाद में रामदयाल उइके कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हो गए थे। बावजूद इसके वर्ष-2018 के विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व सफलता मिली थी। अब छत्तीसगढ़ कांग्रेस संगठन में क्या कुछ बदलाव होता है, इस पर निगाहें टिकी हैं।
मोर्चे पर छत्तीसगढ़ से
ऑपरेशन सिंदूर के बाद से जम्मू कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, और गुजरात के सीमावर्ती जिलों में तनाव की स्थिति है। इनमें से जम्मू-कश्मीर का सबसे संवेदनशील जिलों में से एक सांभा जिला भी है, जहां पाकिस्तान के साथ गोलीबारी चल रही है। खास बात यह है कि सांभा डीएम के पद पर अभिषेक शर्मा हैं, जो कि छत्तीसगढ़ कैडर के वर्ष-2018 बैच के आईएएस अफसर हैं।
अभिषेक मूलत: जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के रहने वाले हैं, और वो प्रतिनियुक्ति पर हैं। केन्द्र सरकार ने वर्ष-2024 सितंबर में अभिषेक शर्मा की प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद एक साल का एक्सटेंशन दिया था। अभिषेक शर्मा के अलावा छत्तीसगढ़ कैडर के एक और अफसर शिव अनंत तायल भी जम्मू-कश्मीर सरकार में सेवाएं दे रहे हैं। ये अफसर छत्तीसगढ़ सरकार के यहां पदस्थ अफसरों के संपर्क में भी रहते हैं, और वहां की स्थितियों से समय-समय पर अवगत भी कराते हैं। स्वाभाविक है कि देश का ध्यान इन दिनों सीमा पर है।
ब्रांड निरीक्षक मंत्री जी
जब पूरा स्वास्थ्य तंत्र हांफ रहा हो, तब मंत्री जी शराब दुकान में ब्रांड की जांच करने पहुंच गए। इसे कोई असंवेदनशीलता का नाम न दे। गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, मध्यप्रदेश की सीमा से सटा जिला है। यहां शराब दुकानों में तस्करी की दारू नहीं बिकनी चाहिए, यह वहां के प्रभारी मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल की चिंता होनी ही चाहिए। सोशल मीडिया पर कुछ नासमझ लोग उनके इस कदम पर ऐतराज जता रहे हैं, यह कहकर कि उन्हें पूरा ध्यान स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ सीधी करने पर देना चाहिए।
मंत्री जी जानते ही होंगे कि छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत दयनीय है। करोड़ों की दवाएं खराब हो रही हैं, महंगे चिकित्सा उपकरण धूल फांक रहे हैं, अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं, और गांवों में मरीज एंबुलेंस के इंतजार में दम तोड़ रहे हैं। राज्य की जनता बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की उम्मीद करती है। किसी न किसी दिन मंत्री जनता की इन उम्मीदों पर खरा उतरेंगे। इसका सबूत यह है कि विधानसभा में खुद मंत्री ने स्वीकार किया कि 28 करोड़ रुपये के रिएजेंट खराब हो चुके हैं और 300 करोड़ के खराब होने की आशंका है। कैग रिपोर्ट पर भी कोई ऐतराज नहीं है, जिसमें बताया गया कि दवाएं ब्लैकलिस्टेड कंपनियों से खरीदी गईं, करोड़ों के उपकरण बिना तकनीकी स्टाफ और फ्रिज के गांवों-कस्बों के अस्पतालों में भेज दिए गए। मंत्री जी को पता है कि बड़ी संख्या में सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के पास न तो भवन हैं और न ही बुनियादी सुविधाएं। यह भी मालूम है कि एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंचने के चलते मरीजों को खाट पर लादकर अस्पताल पहुंचाना पड़ता है। उन घटनाओं का भी संज्ञान होगा, जब कोई गर्भवती महिला अस्पताल पहुंची, तो वहां न तो डॉक्टर मिले, न नर्स मिलीं।
मंत्री जी के जीपीएम जिले की शराब दुकानों के निरीक्षण को अन्यथा नहीं लेना चाहिए। शराब पीने वालों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न हो, इसे देखना उनकी जिम्मेदारी है। अस्पताल में भी मरीजों के पहुंचने पर उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न हो, यह भी वे देखेंगे। धैर्य रखिए।
रामगोपाल का राजदार
कोल स्कैम केस में ईडी ने रामगोपाल के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने के लिए पहले भी आवेदन लगाया था। तब अदालत ने साफ कर दिया था कि रामगोपाल की गिरफ्तारी पर रोक नहीं है। ऐसे में अलग से वारंट जारी करने की जरूरत नहीं है। ईडी उनके धमतरी, और रायपुर स्थित निवास पर छापेमार चुकी है। मगर वो अब तक ईडी के सामने हाजिर नहीं हुए। इसके बाद ईडी के आवेदन पर अब अदालत ने रामगोपाल और देवेन्द्र डडसेना व अन्य के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया है।
देवेन्द्र भी पिछले दो साल से फरार बताए जा रहे हैं। ईडी शराब घोटाला केस की भी जांच कर रही है। शराब घोटाले के पैसे से सुकमा-कोंटा में कांग्रेस भवन के निर्माण का भी आरोप है। इस पूरे मामले में ईडी प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारियों से पूछताछ भी कर चुकी है। चर्चा है कि ईडी कांग्रेस भवन निर्माण के खर्चों से जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए भी देवेन्द्र की तलाश कर रही है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि जहां रामगोपाल हैं, वहां देवेन्द्र भी होंगे। कुल मिलाकर रामगोपाल, और देवेन्द्र पर शिकंजा कसा है। देखना है आगे क्या होता है।
जाति जनगणना और जातियों की तैयारी
देश में जाति जनगणना की तैयारी चल रही है। अगले छह महीने के भीतर जनगणना शुरू होने की संभावना जताई जा रही है। इन सबको लेकर कई सामाजिक संगठन सक्रिय हो गए हैं, और वो समाज के लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए अभियान भी चला रहे हैं।
मसलन, सिंधी समाज के प्रमुख लोगों ने सोशल मीडिया के माध्यम से अभियान चलाया कि जाति जनगणना में क्या लिखवाना है। जाति का नाम-सिंधी, धर्म-हिन्दू, मातृभाषा-सिंधी, राष्ट्रभाषा-हिन्दी, यह कॉलम में दर्ज कराने के लिए जागरूक किया जा रहा है। सिंधी समाज के लोग पाकिस्तान के सिंध प्रांत के रहने वाले हैं, और ज्यादातर बंटवारे के बाद भारत आए। यहां अलग-अलग प्रांतों में निवासरत हैं। जबकि पाकिस्तान के सिंध के अलग-अलग इलाकों के नाम से उनकी जातियां रही है जैसे-लारकाना, कंधकोटी, शिकारपुरी, सखर, साहित्य, पन्ने, और हैदराबादी आदि हैं। मगर यहां आने के बाद उनमें जाति भेद नहीं रहा, और वो सिंधी कहलाते हैं, और यही उनकी पहचान भी है।
इसी को जाति जनगणना में लिखवाना चाहते हैं। इसी तरह ब्राम्हण समाज के सोशल मीडिया ग्रुप में 126 नंबर में ब्राम्हण जाति का जिक्र है, और उसे अंकित करने के लिए अभियान चला रहे हैं। बाकी संगठन भी धीरे-धीरे सक्रिय हो रहा है। जाति जनगणना का क्या स्वरूप होगा, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
आरडीए उपाध्यक्ष कौन ?
प्रदेश भाजपा में निगम-मंडलों की नियुक्ति को लेकर कसरत जारी है। 36 निगम-मंडलों के अध्यक्षों की नियुक्ति तो हो चुकी है, और अगली सूची का इंतजार हो रहा है। चर्चा है कि कुछ सांसद, और विधायकों ने निगम-मंडलों के लिए अपना नाम भी दिए हैं।
रायपुर विकास प्राधिकरण की माली हालत खराब है। बावजूद यहां के पद के लिए शहर के नेताओं में होड़ मची है। पूर्व विधायक नंदकुमार साहू को अध्यक्ष नियुक्त किया जा चुका है। उपाध्यक्ष के दो पदों पर शहर के विधायक ने अपने करीबियों को बिठाने के लिए जोर लगा रहे हैं।
उपाध्यक्ष पद के लिए कुछ नाम चर्चा में हैं, इनमें गोवर्धन खंडेलवाल, खेमराज बैद, राजीव चक्रवर्ती, अमर बंसल, रामकृष्ण धीवर, और अन्य हैं। सांसद बृजमोहन अग्रवाल की भी अपनी पसंद है। इससे परे सिंधी अकादमी के लिए भी पार्टी के सिंधी समाज के नेताओं ने जोर लगाया है।
कुछ समाज प्रमुखों की भी सिफारिशें पार्टी संगठन के नेताओं तक पहुंची है। पार्टी संगठन ने संकेत दिए हैं कि पहले कैबिनेट का विस्तार होगा, इसके बाद ही निगम मंडलों की दूसरी सूची जारी की जाएगी। यानी सब कुछ सुशासन तिहार निपटने के बाद होगा। देखना है आगे क्या होता है।
पीएम आवास बड़ा मुद्दा
साय सरकार पीएम आवास योजना पर विशेष ध्यान दे रही है। पहली कैबिनेट में 18 लाख ग्रामीण आवास मंजूर किए गए थे, अब केन्द्र ने तीन लाख और आवास मंजूर किए हैं। इसकी औपचारिक घोषणा केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान 13 तारीख को अंबिकापुर में कर सकते हैं। ये आवास पुरानी सर्वे सूची में छूट गए हितग्राहियों के लिए है।
ग्रामीण इलाकों में पक्के आवास के लिए राशि आवंटित होने से खुशी है, और इसकी झलक सुशासन तिहार में देखने को मिली। खुद सीएम विष्णुदेव साय एक-दो हितग्राहियों के घर भी गए। इससे परे मनरेगा का काम शुरू नहीं होने पर कांग्रेस, साय सरकार को घेरने की तैयारी कर रही है। इसकी शुरुआत दुर्ग से हो सकती है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल की दुर्ग जिला कांग्रेस के पदाधिकारियों से चर्चा भी हुई है। मनरेगा को यूपीए सरकार की उपलब्धियों में गिना जाता है। ऐसे में कांग्रेस इस मसले पर आक्रामक रूख अपना सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
सुशासन तिहार में अफसरशाही कसौटी पर
सुशासन यानी गुड गवर्नेंस। यह शासन की जवाबदेही और पारदर्शिता का वादा होता है। लेकिन क्या जमीनी सच्चाई भी उतनी ही साफ है? महासमुंद की सांसद रूपकुमारी चौधरी की हालिया टिप्पणी से तो ऐसा नहीं लगता।
‘सुशासन तिहार’ के अंतर्गत आयोजित एक समाधान शिविर में, चौधरी ने कलेक्टर और कमिश्नर की मौजूदगी में खुले मंच से कह दिया कि किसी भी दफ्तर में बिना पैसे के कोई काम नहीं हो रहा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर घर जल, हर घर नल योजना के खराब क्रियान्वयन पर भी सवाल उठाए। उनके अनुसार, यह योजना जमीन पर दम तोड़ रही है। गांवों में हैंडपंप खराब पड़े हैं और 80 प्रतिशत जल टंकियों में पानी नहीं पहुंच रहा।
इतना ही नहीं, सांसद चौधरी ने समाधान शिविरों में आवेदनों के 100 प्रतिशत निराकरण के दावे को झूठा और आंकड़ों का खेल’बताया। उनका कहना था कि अगर 50 प्रतिशत भी आवेदन वास्तव में हल हुए हों, तो वह बड़ी बात होगी। उन्होंने आरोप लगाया कि काम के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है, लेकिन निचले स्तर का अमला और अधिकारी सबसे बड़ी बाधा बने हुए हैं। बिना लेन-देन कोई काम नहीं हो रहा। रायपुर के सांसद बृजमोहन अग्रवाल भी पहले ही एक के बाद एक चि_ियों के माध्यम से ऐसी ही चिंता जता चुके हैं। दोनों सांसदों की चिंता को यूं ही खारिज नहीं किया जा सकता। सुशासन तिहार के तहत प्रदेशभर में लाखों आवेदन आए, और अधिकांश जिलों में 90 से 95 प्रतिशत आवेदन निराकृत घोषित कर दिए गए। जबकि सरकार पहले ही निर्देश दे चुकी है कि समाधान वास्तविक और ठोस होना चाहिए, केवल आंकड़ों की खानापूर्ति नहीं।
इस व्यवस्था की सबसे कमजोर कड़ी है मैदानी अमला। पटवारी, लिपिक, पंचायत सचिव, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कर्मचारी आदि। खुद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा था कि पटवारी, यमराज से भी बड़ा होता है। सांसद चौधरी ने भी यह बात दोहराई है और कहा कि जिंदा व्यक्ति को मृत और मृत को जिंदा घोषित कर दिया जाता है, जमीन का रकबा घटा-बढ़ा दिया जाता है।
सुशासन तिहार जनता के लिए कितनी राहत लेकर आएगा मालूम नहीं पर, भ्रष्टाचार की परतें जनप्रतिनिधि के हाथों ही खुल रही है। अफसरशाही की जवाबदेही की परीक्षा भी हो रही है।
गुमशुदा पत्नी की सोशल मीडिया पर लताश
बिलासपुर जिले के सीपत थाने के अंतर्गत मुड़पार ग्राम के गौतम मन्नेवार की कहानी इस डिजिटल दौर में मोहब्बत की जिद की मिसाल बनकर सामने आई है। जब रिश्ते बिखरते हैं तो अक्सर लोग हार मान लेते हैं, लेकिन गौतम ने हार की जगह उम्मीद को चुना। पत्नी के चले जाने के बाद उन्होंने सोशल मीडिया को अपना सहारा बनाया—हर दिन एक वीडियो, एक संदेश पोस्ट कर वह अपनी पत्नी की तलाश में लगा हुआ है।
उनका ‘कुसुम, तुम लौट आओ, खाना बनाने में बहुत दिक्कत होती है। दोनों बच्चों को भी तुम्हारा इंतजार है।’ इस अपील पर हजारों लोग प्रतिक्रिया दे रहे हैं। कोई-कोई फोन करके सांत्वना दे रहा है तो कुछ लोग मजाक भी उड़ा रहे हैं। गौतम का कहना है कि तीन माह से गायब पत्नी की तलाश के लिए उन्होंने थाने में शिकायत दर्ज कराई लेकिन पुलिस को उसे ढूंढने में दिलचस्पी ही नहीं है। इसलिये उसने सोशल मीडिया का सहारा लिया। गौतम को उम्मीद है कि किसी न किसी दिन उसकी पत्नी उसकी पोस्ट देखेगी और कम से कम बच्चों की खातिर वापस लौट आएगी।
बृजमोहन के दोस्त भूपेश
रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल जन समस्याओं को लेकर एक के बाद एक सीएम विष्णुदेव साय को पत्र लिख रहे हैं। उनके पत्र सुर्खियां बटोर रही हैं। मगर कांग्रेस को इस मसले पर सरकार को घेरने का मौका मिल ही गया।
पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने सोमवार को मीडिया से चर्चा में कहा कि सत्ता पक्ष के सांसद बृजमोहन अग्रवाल एक के बाद एक लेटर बम फोड़ रहे हैं, और जिस तरह वो पत्रों को सार्वजनिक कर रहे हैं, उससे यह साफ है कि सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। ऐसे में सरकार को सुशासन तिहार मनाने का कोई अधिकार नहीं है।
पूर्व सीएम चाहे जो भी कह रहे हों, लेकिन पत्र को सरकार संज्ञान में ले रही है, और उस पर कार्रवाई भी हो रही है। भूपेश बघेल की जि़म्मेदारी भी बनती है कि भाजपा में अपने सबसे करीबी दोस्त बृजमोहन का साथ दें।
पिछले दिनों बृजमोहन ने रायपुर एम्स में अव्यवस्था के मसले को लोकसभा में उठाया था। उन्होंने रायपुर एम्स के डायरेक्टर पर निशाना साधा था। रायपुर एम्स के डायरेक्टर अशोक जिंदल फौजी अफसर रहे हैं, और वो राजनीतिक सिफारिशों को तवज्जो नहीं देते थे। मगर बृजमोहन की नाराजगी के बाद उनसे चर्चा की, और एम्स की व्यवस्था की बारीकियों से अवगत कराया।
बृजमोहन भी इससे संतुष्ट नजर आए, और यथासंभव बृजमोहन की सिफारिशों को महत्व दिया जाने लगा है। ऐसे में उनसे जुड़े लोग मानते हैं कि जनसमस्याओं के निराकरण के लिए पत्र को सार्वजनिक करना जरूरी भी होता है।
बेजान होती जीवनदायिनी
यह ड्रोन से ली गई तस्वीर बस्तर अंचल की जीवनरेखा कही जाने वाली इंद्रावती नदी की है। दूर तक फैली इस तस्वीर में कहीं पानी की एक पतली धार तक नहीं दिखाई देती। बस रेत, सूखे तट और हाशिए पर सिमटी हरियाली।
इंद्रावती इस अंचल के खेतों, गांवों और जंगलों को सींचती है। मगर अब तस्वीर में साफ दिख रहा है कि वह अपनी पहचान ही खो रही है। नदी के दोनों ओर फैले खेत आज भी हरे हैं, मगर यह हरियाली नदी की कृपा नहीं, बल्कि बोरवेल और अनियमित जल स्रोतों पर निर्भरता का परिणाम है।
यह संकट सिर्फ पर्यावरण का नहीं, बल्कि नीति और राजनीति का भी है। इंद्रावती के सूखने का मुद्दा अब सियासी आरोप-प्रत्यारोप का मैदान बन चुका है। छत्तीसगढ़ की अनेक नदियों का यही हाल है।
कांग्रेस में बदलाव का इंतज़ार
अहमदाबाद अधिवेशन के बाद से प्रदेश कांग्रेस में बदलाव की चर्चा है। अंदर की खबर यह है कि बदलाव की शुरुआत एआईसीसी से होगी। जिसे फिलहाल पहलगाम आतंकी हमले के बाद देश की राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए रोक दिया गया है।
चर्चा है कि बदलाव से छत्तीसगढ़ अछूता नहीं रहेगा। इस बात की प्रबल संभावना है कि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज से पहले प्रभारी सचिन पायलट को बदला जा सकता है। पायलट खुद भी छत्तीसगढ़ में काम करने के इच्छुक नहीं हैं, और वो पूरा ध्यान राजस्थान में लगाना चाहते हैं। पार्टी भी इससे सहमत है।
दूसरी तरफ, प्रभारी सचिव द्वय जारिता लैतफलांग, और के सुरेश कुमार यथावत यहां काम करते रहेंगे। वैसे भी उनकी नियुक्ति को सालभर नहीं हुए हैं। अब शीर्ष स्तर पर बदलाव होना बाकी है इसलिए जिला अध्यक्षों की नियुक्ति का मामला अटका पड़ा है। देखना है कि पार्टी इस पर कब फैसला लेती है।
महंत की चिट्ठी के बाद हरकत
तेंदूपत्ता बोनस घोटाला मामले पर नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत की राज्यपाल को लिखी चि_ी के बाद सरकार हरकत में आई है। सरकार ने प्रेस नोट जारी कर बताया कि घोटाला मामले पर अब तक क्या कार्रवाई हुई है।
दरअसल, तेंदूपत्ता बोनस घोटाला भूपेश सरकार के समय का है। इस प्रकरण पर ईओडब्ल्यू-एसीबी ने कार्रवाई कर डीएफओ अशोक पटेल को गिरफ्तार किया है। घोटाले में संलिप्त आधा दर्जन और गिरफ्तारियां हुई है। जांच एजेंसी ने पूर्व विधायक मनीष कुंजाम के यहां भी छापेमारी की थी। यह चर्चा रही कि घोटाले का पैसा कुंजाम तक पहुंचा है। मगर जिस तरह कुंजाम के पक्ष में पूरे विपक्ष ने एकजुटता दिखाई, उसके बाद जांच एजेंसी ठिठक गई, ऐसी चर्चा है। ये अलग बात है कि कुंजाम ने घोटाले की सबसे पहले शिकायत की थी।
ईओडब्ल्यू-एसीबी भारत माला और स्वास्थ्य घोटाले की भी जांच कर रही है। कई गिरफ्तारियां भी हुई है, लेकिन बड़े अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यही वजह है कि अपने कार्यकाल के घोटाले पर भी कांग्रेस हमलावर है, और सत्ता पक्ष को सफाई देनी पड़ रही है। हालांकि सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि जिम्मेदार लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। देखना है आगे क्या होता है।
साय ने बताया कौन है यमराज
सीएम विष्णु देव ने शनिवार को रजिस्ट्री विभाग की दस नई सुविधाओं का शुभारंभ किया, तो उनके दिल की बात जुबां पर आ ही गई। उन्होंने कहा राजस्व, और रजिस्ट्री विभाग आम लोगों से सीधे जुड़ा है और इसमें बहुत भ्रष्टाचार भी होता रहा है।
साय ने एक किस्सा भी सुनाया, और कहा कि वो ग्रामीण इलाके से आते हैं। और जब 26 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने, तो उनके पास एक बुजुर्ग आया, जो 35 साल से जमीन के दस्तावेज दुरूस्त करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा था। वह कब-कब सरकारी दफ्तर गया था, इसका उसके पास पूरा रिकॉर्ड था। तब मैंने बुजुर्ग को मोटरसाइकिल में साथ लेकर काम करवाया।
साय ने राजस्व विभाग में गड़बडिय़ों का भी जिक्र किया और कह गए, कि पटवारी तो यमराज से भी बड़े हो जाते थे। दस्तावेज में जीवित को मृत लिख दिया, तो उसे जीवित साबित करने के लिए लंबी लड़ाई लडऩी पड़ती रही है। साय जी ने कुछ ग़लत नहीं कहा। भ्रष्टाचार की सबसे ज्यादा शिकायत राजस्व विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों की मिलती है। ईओडब्ल्यू-एसीबी में सबसे ज्यादा प्रकरण पटवारियों के खिलाफ ही दर्ज हैं । देखना है कि नई व्यवस्था से राजस्व-पंजीयन में भ्रष्टाचार पर अंकुश लग पाता है या नहीं। फिलहाल तो नई व्यवस्था की सराहना हो रही है।
पहाड़ ऊँट के नीचे
छत्तीसगढ़ निजी विवि नियामक आयोग में अध्यक्ष, और सदस्य की नियुक्ति तो हो गई है। सदस्य के एक अन्य पद के लिए दावेदारों के बायोडाटा खंगाले जा रहे हैं। इनमें से एक रिटायर्ड आईएएस अफसर की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है।
बताते हैं कि आयोग के नवनियुक्त अध्यक्ष, रिटायर्ड अफसर के मातहत काम कर चुके हैं। दोनों एक ही इलाके के रहने वाले हैं। दोनों के बीच तालमेल बहुत अच्छा है। रिटायर्ड अफसर को भी अपने मातहत के नीचे काम करने में कोई दिक्कत नहीं है। मगर सरकार क्या सोचती है, यह देखना है।
ओहदा मिला, दर्जा नहीं
सरकार ने 36 निगम-मंडलों में चेयरमैन की नियुक्ति कर दी है, लेकिन अभी किसी को मंत्री का दर्जा नहीं मिला है। सरकार के अंदरखाने में निगम-मंडल अध्यक्षों को मंत्री का दर्जा दिया जाए अथवा नहीं, इस पर एक राय नहीं बन पाई है।
नागरिक आपूर्ति निगम, सीएसआईडीसी, पर्यटन बोर्ड और गृह निर्माण मंडल जैसी कुछ संस्था ऐसी हैं जहां सुसज्जित दफ्तर और भरा -पूरा स्टाफ पहले से ही है। लेकिन कई नए बोर्ड में खुद का दफ्तर और अमला तक नहीं है। यहां का सेट अप भी अब तक नहीं बन पाया है। इन अध्यक्षों में मंत्री का दर्जा मिलने की दरकार है। मंत्रीजी का दर्जा मिलने से सुरक्षा आदि अन्य सुविधाएं उपलब्ध हो जाती। मगर इस पर सरकार क्या फैसला लेती है, यह देखना है।
आंधी के बाद शाख पर ठहरा सुकून
आसमान में उमड़े बादल, धूल भरी आंधी और अचानक बरस आई बूंदों ने मई की झुलसती दोपहर को कुछ देर के लिए राहत दे दी। तपती दोपहर का ताप जैसे ठंडी हवा में घुल गया। इसी बदले मौसम का आनंद लेता यह चातक, जिसे आम बोलचाल में पपीहा भी कहा जाता है, शाख पर बैठा दिखा। दृष्टि आकाश को निहारते हुए, मानो अगली बूंद की प्रतीक्षा हो। पौराणिक विश्वासों में यह पक्षी वर्षा का प्रतीक है, जो केवल स्वाति नक्षत्र की जलधार ही पीता है। भीगे पंख, शांत चेहरा और कोमल ध्वनि के साथ वह मौसम के संगीत का हिस्सा बन रहा है। प्रकृति का यह दृश्य केवल आंखों को नहीं, मन को भी भिगो रहा है। तस्वीर बिलासपुर की है।