राजपथ - जनपथ

जांच के पहले ही बचने-बचाने का खेल
छत्तीसगढ़ में जब कोई मंत्री किसी घोटाले की खबरों पर संज्ञान लेता है और जीरो टॉलरेंस की बात करते हुए जांच का आदेश देता है, तो लगता है अब तो कुछ अफसरों पर शामत आने ही वाली है। मंत्री के बयान की मीडिया में सुर्खियां बनती हैं। पर हकीकत कुछ और ही होती है।
प्रदेश के छह जिलों, जशपुर, सरगुजा, जांजगीर-चांपा, बिलासपुर, दुर्ग और रायपुर के आंगनबाड़ी केंद्रों में करीब 48 करोड़ की सामग्री भेजी गई। सामने आया कि बड़ी मात्रा में सामान घटिया किस्म का है। वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, अखबारों में खबरें आईं, तब जाकर महिला बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े ने 7 मई को जांच का आदेश दिया। उन्हें मालूम ही था कि उनके विभाग में पहले की तरह अब भी घटिया सामान खपाने का खेल जारी है। उन्होंने तो तत्परता दिखाई, मगर 7 मई को आदेश देने के बाद भी बीते 15 दिनों में कोई जांच शुरू नहीं हुई। अब मंत्री ने दोबारा स्मरण पत्र भेजा है और जांच समिति भी बना दी गई है। लेकिन जांच में हुई इस देरी का फायदा कैसे उठाया गया, इसके लिए दुर्ग जिले का उदाहरण सामने है। आंगनबाड़ी केंद्रों में जो घटिया सामान आए, उनमें शामिल हैं- जंग लगे नाखून कटर, चूहों के कुतरे साबुन, खराब वाशिंग पाउडर, वेइंग मशीन और टिन की अनाज कोठियां। पता चला है कि उन्हें चुपचाप हटाकर नए सामान रखवा दिए गए। कुछ केंद्रों की कार्यकर्ता और सहायिकाओं से यह लिखवा भी लिया गया कि जो सामान मिला, वह अच्छा था। दुर्ग की तरह बाकी जिलों में भी ऐसा ही हुआ हो, तो कोई हैरानी नहीं। जब मंत्री को खुद ही स्मरण पत्र भेजना पड़े, तो यह साफ है कि उनके जीरो टॉलरेंस की मंशा को विभागीय अफसर गंभीरता से नहीं लेते।
अब एक नई जांच समिति बनी है, जिसे 15 दिन में रिपोर्ट देनी है। मगर समिति में इतने अधिक लोग हैं कि वे 15 दिन में एक बार साथ दौरा पाएंगे या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। हो भी तो, वे किन-किन आंगनबाड़ी केंद्रों की जांच करेंगे, यह तय करना भी कम मुश्किल नहीं होगा। समिति में ज्यादातर वही अधिकारी हैं जो पहले से ही सप्लाई की गुणवत्ता देखने-परखने के लिए जिम्मेदार हैं।
छत्तीसगढ़ में महिला बाल विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और आईसीडीएस जैसे विभागों में सामग्री सप्लाई का हमेशा विवादों से भरा रहा है। सरकार चाहे किसी की भी रही हो, अफसरों और सप्लायरों की मजबूत सांठगांठ बनी रहती है, कभी नहीं टूटी।
याद करें, पिछली सरकार के वक्त बालोद जिले में डीएमएफ के तहत 64 करोड़ की खरीदी में भ्रष्टाचार का आरोप भाजपा नेता देवलाल ठाकुर ने दस्तावेजों के साथ लगाया था। वह क्षेत्र तत्कालीन मंत्री अनिला भेडिय़ा का था। वहीं बेमेतरा के कांग्रेस विधायक ने अपनी ही सरकार के इस विभाग पर विधानसभा में घटिया ट्राइसिकल बांटने का आरोप लगाया था। ऐसे मामलों में जांच के आदेश जरूर दिए जाते हैं, लेकिन कार्रवाई क्या हुई, यह कभी सामने नहीं आता। समय बीतता है, लोग पुराने घोटाले भूल जाते हैं, क्योंकि नए घोटालों की खबरें आ जाती हैं।
रेल टिकट पर ऑपरेशन सिंदूर
एक वक्त था जब सिनेमा हॉल में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान होता था और फिल्म्स डिवीजन के छोटे-छोटे वृत्तचित्र देशभक्ति की भावना जगाने का काम करते थे। इस बार यह जिम्मेदारी रेलवे ने अपने कंधों पर ले ली है। इस बार जब आप रेलवे टिकट प्रिंट कराएंगे, तो उसमें प्रधानमंत्री ऑपरेशन सिंदूर के लोगो के साथ सेल्यूट करते हुए नजर आएंगे। यह कुछ वैसा ही है जैसा कोविड वैक्सीनेशन के दौरान हर गली-चौराहे पर मोदी जी की तस्वीरों और ‘थैंक यू मोदी जी’ वाले होर्डिंग्स पोस्टरों में दिखता था।
ऐसा पहली बार हुआ है...
प्रदेश में पहली बार ऐसा हो रहा है, जब बोर्ड परीक्षाओं में खराब रिजल्ट पर जिम्मेदारी तय की जा रही है। और जिला शिक्षा अधिकारियों पर गाज गिर रही है। पहले महासमुंद के जिला शिक्षा अधिकारी को हटाया गया था, और सोमवार को सीएम विष्णुदेव साय ने जीपीएम के जिला शिक्षा अधिकारी को हटाने के आदेश दिए। दसवीं बोर्ड परीक्षा में जीपीएम जिले का रिजल्ट प्रदेश में सबसे खराब रहा है।
स्कूल शिक्षा विभाग का प्रभार खुद सीएम के पास है। ऐसे में प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए विशेष प्रयास हो रहे हैं। जिलों में पदस्थ ऐसे अफसर, जिनकी कार्यप्रणाली अच्छी नहीं रही है उन्हें एक-एक कर बदला जा रहा है। चर्चा है कि आने वाले दिनों में रायपुर, राजनांदगांव, खैरागढ़-छुईखदान के जिला शिक्षा अधिकारियों पर भी गाज गिर सकती है। इन जिलों का रिजल्ट भी खराब रहा है। रायपुर जिला दसवीं बोर्ड परीक्षा में 32वें रैंक पर रहा है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
आवश्यकता और आविष्कार
घर के पार्किंग स्पेस पर कमरा, बरामदा या कुछ और बना लेने से कार गेट के सामने गली में ही खड़ी करनी पड़ती है। वैसे ऐसे दृश्य शहर के हर मोहल्ले सोसायटी में देखे जा सकते हैं। गली से आवाजाही में बाधक ऐसी कारें, मोहल्ले वालों की नाराजगी का भी शिकार होती है । नाराज लोग कभी कार में स्क्रैच कर जाते तो कभी कवर पर ब्लेड कैंची चला देते हैं। यह गुस्सा मनुष्य ही नहीं जानवर भी निकालते हैं।
ऐसे ही नाराज जानवर से परेशान इन शख्स ने नए तरकीब के कवर से अपनी कार के सुरक्षित रहने की उम्मीद जताई है। कुशालपुर के संतोषी चौक निवासी इन सज्जन का कहना है कि गली के कुत्ते यदा कदा कार पर चढक़र गंदगी करने के साथ अपने नाखूनों से स्क्रैच भी करते हैं। और हर माह डेंटिंग पेंटिंग पर हजारों खर्च करना पड़ता था। अब इस कवर ने समस्या से निजात दिलाई है।
सामान्य से दिखने वाले कवर में जगह जगह कील नुमा प्लास्टिक के कांटे लगे हुए हैं। जानवरों के चढ़ते ही ये कील गड़ते ही वापस कूद कर भाग जाते हैं। वैसे जब से यह कवर इस्तेमाल कर रहे हैं, कुत्ते कार तक फटक नहीं रहे।