राजपथ - जनपथ

साय ने बताया कौन है यमराज
सीएम विष्णु देव ने शनिवार को रजिस्ट्री विभाग की दस नई सुविधाओं का शुभारंभ किया, तो उनके दिल की बात जुबां पर आ ही गई। उन्होंने कहा राजस्व, और रजिस्ट्री विभाग आम लोगों से सीधे जुड़ा है और इसमें बहुत भ्रष्टाचार भी होता रहा है।
साय ने एक किस्सा भी सुनाया, और कहा कि वो ग्रामीण इलाके से आते हैं। और जब 26 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने, तो उनके पास एक बुजुर्ग आया, जो 35 साल से जमीन के दस्तावेज दुरूस्त करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा था। वह कब-कब सरकारी दफ्तर गया था, इसका उसके पास पूरा रिकॉर्ड था। तब मैंने बुजुर्ग को मोटरसाइकिल में साथ लेकर काम करवाया।
साय ने राजस्व विभाग में गड़बडिय़ों का भी जिक्र किया और कह गए, कि पटवारी तो यमराज से भी बड़े हो जाते थे। दस्तावेज में जीवित को मृत लिख दिया, तो उसे जीवित साबित करने के लिए लंबी लड़ाई लडऩी पड़ती रही है। साय जी ने कुछ ग़लत नहीं कहा। भ्रष्टाचार की सबसे ज्यादा शिकायत राजस्व विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों की मिलती है। ईओडब्ल्यू-एसीबी में सबसे ज्यादा प्रकरण पटवारियों के खिलाफ ही दर्ज हैं । देखना है कि नई व्यवस्था से राजस्व-पंजीयन में भ्रष्टाचार पर अंकुश लग पाता है या नहीं। फिलहाल तो नई व्यवस्था की सराहना हो रही है।
पहाड़ ऊँट के नीचे
छत्तीसगढ़ निजी विवि नियामक आयोग में अध्यक्ष, और सदस्य की नियुक्ति तो हो गई है। सदस्य के एक अन्य पद के लिए दावेदारों के बायोडाटा खंगाले जा रहे हैं। इनमें से एक रिटायर्ड आईएएस अफसर की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है।
बताते हैं कि आयोग के नवनियुक्त अध्यक्ष, रिटायर्ड अफसर के मातहत काम कर चुके हैं। दोनों एक ही इलाके के रहने वाले हैं। दोनों के बीच तालमेल बहुत अच्छा है। रिटायर्ड अफसर को भी अपने मातहत के नीचे काम करने में कोई दिक्कत नहीं है। मगर सरकार क्या सोचती है, यह देखना है।
ओहदा मिला, दर्जा नहीं
सरकार ने 36 निगम-मंडलों में चेयरमैन की नियुक्ति कर दी है, लेकिन अभी किसी को मंत्री का दर्जा नहीं मिला है। सरकार के अंदरखाने में निगम-मंडल अध्यक्षों को मंत्री का दर्जा दिया जाए अथवा नहीं, इस पर एक राय नहीं बन पाई है।
नागरिक आपूर्ति निगम, सीएसआईडीसी, पर्यटन बोर्ड और गृह निर्माण मंडल जैसी कुछ संस्था ऐसी हैं जहां सुसज्जित दफ्तर और भरा -पूरा स्टाफ पहले से ही है। लेकिन कई नए बोर्ड में खुद का दफ्तर और अमला तक नहीं है। यहां का सेट अप भी अब तक नहीं बन पाया है। इन अध्यक्षों में मंत्री का दर्जा मिलने की दरकार है। मंत्रीजी का दर्जा मिलने से सुरक्षा आदि अन्य सुविधाएं उपलब्ध हो जाती। मगर इस पर सरकार क्या फैसला लेती है, यह देखना है।
आंधी के बाद शाख पर ठहरा सुकून
आसमान में उमड़े बादल, धूल भरी आंधी और अचानक बरस आई बूंदों ने मई की झुलसती दोपहर को कुछ देर के लिए राहत दे दी। तपती दोपहर का ताप जैसे ठंडी हवा में घुल गया। इसी बदले मौसम का आनंद लेता यह चातक, जिसे आम बोलचाल में पपीहा भी कहा जाता है, शाख पर बैठा दिखा। दृष्टि आकाश को निहारते हुए, मानो अगली बूंद की प्रतीक्षा हो। पौराणिक विश्वासों में यह पक्षी वर्षा का प्रतीक है, जो केवल स्वाति नक्षत्र की जलधार ही पीता है। भीगे पंख, शांत चेहरा और कोमल ध्वनि के साथ वह मौसम के संगीत का हिस्सा बन रहा है। प्रकृति का यह दृश्य केवल आंखों को नहीं, मन को भी भिगो रहा है। तस्वीर बिलासपुर की है।
स्कूल शिक्षा में बदलाव की दस्तक
छत्तीसगढ़ में करीब 15 साल बाद नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत पहली बार 5वीं और 8वीं कक्षा की परीक्षाएं पूरे प्रदेश में एक समान, केंद्रीयकृत पद्धति से आयोजित की गईं। इस बदलाव का संदेश है कि अब बच्चों की पढ़ाई का मूल्यांकन गंभीरता से किया जाएगा, ताकि वे अगली कक्षाओं के लिए तैयार हो सकें।
प्रदेश के अधिकतर जिलों में परीक्षा परिणाम उत्साहजनक रहे। कहीं 95 प्रतिशत विद्यार्थी पास हुए, तो कहीं यह दर 80 प्रतिशत तक रही। पहले, जब परीक्षा लेना सिर्फ औपचारिकता थी, तब कोई भी असली तस्वीर सामने नहीं आती थी; लेकिन इस बार आंकड़ों ने सच्चाई बताई। कई जगह मजबूत तैयारी हुई और कई जगह अभी बहुत सुधार की ज़रूरत है।
शिक्षाविदों का मानना है कि यह कदम बहुत पहले उठाया जाना चाहिए था। बच्चों को लगातार अगली कक्षा में प्रमोट करने की नीति ने शिक्षकों में आलस्य और विद्यार्थियों में पढ़ाई के प्रति लापरवाही भर दी थी। विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि बच्चों को फेल करने का मकसद उन्हें दंडित करना नहीं, बल्कि उनकी कमज़ोरियों को पहचानना और सुधार के मौके देना होना। इसीलिए फेल विद्यार्थियों का साल खराब नहीं किया जाएगा और उन्हें दोबारा परीक्षा देने का मौका मिलेगा। नई पद्धति के बाद शिक्षकों की सक्रियता केवल परीक्षा वर्ष तक सीमित नहीं रह पाएगी। पूरे साल बच्चों को गाइड करना और उनकी कमजोरियों पर काम करना ज़रूरी होगा। यह जरूरी है कि जो बच्चे इस बार अनुत्तीर्ण हुए हैं, उनके लिए ‘दोबारा परीक्षा’ महज खानापूर्ति न बने बल्कि उनके लिए एक्स्ट्रा क्लास लेनी चाहिए। राज्य के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में शैक्षणिक संसाधनों की बेहद कमी है। युक्तियुक्तकरण बहुत समय से लटका हुआ है। ज्यादा बच्चों वाले स्कूलों में एक दो शिक्षक हैं, कम बच्चों वाले स्कूल में 5-6 शिक्षक बिठा दिए गए हैं। इसे संतुलित करना होगा। अभी नेशनल रैंकिंग में छत्तीसगढ़ की स्कूली शिक्षा बहुत निचले पायदान पर है। परीक्षाओं का लिया जाना उसे सुधारने की ओर एक कदम के रूप में देखा जा सकता है। (rajpathjanpath@gmail.com)