राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : आरडीए उपाध्यक्ष कौन ?
07-May-2025 7:08 PM
राजपथ-जनपथ : आरडीए उपाध्यक्ष कौन ?

आरडीए उपाध्यक्ष कौन ?
प्रदेश भाजपा में निगम-मंडलों की नियुक्ति को लेकर कसरत जारी है। 36 निगम-मंडलों के अध्यक्षों की नियुक्ति तो हो चुकी है, और अगली सूची का इंतजार हो रहा है। चर्चा है कि कुछ सांसद, और विधायकों ने निगम-मंडलों के लिए अपना नाम भी दिए हैं।

रायपुर विकास प्राधिकरण की माली हालत खराब है। बावजूद यहां के पद के लिए शहर के नेताओं में होड़ मची है। पूर्व विधायक नंदकुमार साहू को अध्यक्ष नियुक्त किया जा चुका है। उपाध्यक्ष के दो पदों पर शहर के विधायक ने अपने करीबियों को बिठाने के लिए जोर लगा रहे हैं।

उपाध्यक्ष पद के लिए कुछ नाम चर्चा में हैं, इनमें गोवर्धन खंडेलवाल, खेमराज बैद, राजीव चक्रवर्ती, अमर बंसल, रामकृष्ण धीवर, और अन्य हैं। सांसद बृजमोहन अग्रवाल की भी अपनी पसंद है। इससे परे सिंधी अकादमी के लिए भी पार्टी के सिंधी समाज के नेताओं ने जोर लगाया है।

कुछ समाज प्रमुखों की भी सिफारिशें पार्टी संगठन के नेताओं तक पहुंची है। पार्टी संगठन ने संकेत दिए हैं कि पहले कैबिनेट का विस्तार होगा, इसके बाद ही निगम मंडलों की दूसरी सूची जारी की जाएगी। यानी सब कुछ सुशासन तिहार निपटने के बाद होगा। देखना है आगे क्या होता है।

पीएम आवास बड़ा मुद्दा 
साय सरकार पीएम आवास योजना पर विशेष ध्यान दे रही है। पहली कैबिनेट में 18 लाख ग्रामीण आवास मंजूर किए गए थे, अब केन्द्र ने तीन लाख और आवास मंजूर किए हैं। इसकी औपचारिक घोषणा केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान 13 तारीख को अंबिकापुर में कर सकते हैं। ये आवास पुरानी सर्वे सूची में छूट गए हितग्राहियों के लिए है।

ग्रामीण इलाकों में पक्के आवास के लिए राशि आवंटित होने से खुशी है, और इसकी झलक सुशासन तिहार में देखने को मिली। खुद सीएम विष्णुदेव साय एक-दो हितग्राहियों के घर भी गए। इससे परे मनरेगा का काम शुरू नहीं होने पर कांग्रेस, साय सरकार को घेरने की तैयारी कर रही है। इसकी शुरुआत दुर्ग से हो सकती है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल की दुर्ग जिला कांग्रेस के  पदाधिकारियों से चर्चा भी हुई है। मनरेगा को यूपीए सरकार की उपलब्धियों में गिना जाता है। ऐसे में कांग्रेस इस मसले पर आक्रामक रूख अपना सकती है। देखना है आगे क्या होता है।

सुशासन तिहार में अफसरशाही कसौटी पर
सुशासन यानी गुड गवर्नेंस। यह शासन की जवाबदेही और पारदर्शिता का वादा होता है। लेकिन क्या जमीनी सच्चाई भी उतनी ही साफ है? महासमुंद की सांसद रूपकुमारी चौधरी की हालिया टिप्पणी से तो ऐसा नहीं लगता।

‘सुशासन तिहार’ के अंतर्गत आयोजित एक समाधान शिविर में, चौधरी ने कलेक्टर और कमिश्नर की मौजूदगी में खुले मंच से कह दिया कि किसी भी दफ्तर में बिना पैसे के कोई काम नहीं हो रहा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर घर जल, हर घर नल योजना के खराब क्रियान्वयन पर भी सवाल उठाए। उनके अनुसार, यह योजना जमीन पर दम तोड़ रही है। गांवों में हैंडपंप खराब पड़े हैं और 80 प्रतिशत जल टंकियों में पानी नहीं पहुंच रहा।

इतना ही नहीं, सांसद चौधरी ने समाधान शिविरों में आवेदनों के 100 प्रतिशत निराकरण के दावे को झूठा और आंकड़ों का खेल’बताया। उनका कहना था कि अगर 50 प्रतिशत भी आवेदन वास्तव में हल हुए हों, तो वह बड़ी बात होगी। उन्होंने आरोप लगाया कि काम के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है, लेकिन निचले स्तर का अमला और अधिकारी सबसे बड़ी बाधा बने हुए हैं। बिना लेन-देन कोई काम नहीं हो रहा। रायपुर के सांसद बृजमोहन अग्रवाल भी पहले ही एक के बाद एक चि_ियों के माध्यम से ऐसी ही चिंता जता चुके हैं। दोनों सांसदों की चिंता को यूं ही खारिज नहीं किया जा सकता। सुशासन तिहार के तहत प्रदेशभर में लाखों आवेदन आए, और अधिकांश जिलों में 90 से 95 प्रतिशत आवेदन निराकृत घोषित कर दिए गए। जबकि सरकार पहले ही निर्देश दे चुकी है कि समाधान वास्तविक और ठोस होना चाहिए, केवल आंकड़ों की खानापूर्ति नहीं।

इस व्यवस्था की सबसे कमजोर कड़ी है मैदानी अमला। पटवारी, लिपिक, पंचायत सचिव, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कर्मचारी आदि। खुद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा था कि पटवारी, यमराज से भी बड़ा होता है। सांसद चौधरी ने भी यह बात दोहराई है और कहा कि जिंदा व्यक्ति को मृत और मृत को जिंदा घोषित कर दिया जाता है, जमीन का रकबा घटा-बढ़ा दिया जाता है।  

सुशासन तिहार जनता के लिए कितनी राहत लेकर आएगा मालूम नहीं पर, भ्रष्टाचार की परतें जनप्रतिनिधि के हाथों ही खुल रही है। अफसरशाही की जवाबदेही की परीक्षा भी हो रही है।

शादी के कार्ड में लिखा भविष्य
जब शादी-ब्याह की बात चलती है, तो एक सवाल अकसर बड़े सहज भाव से पूछ लिया जाता है-लडक़ा क्या करता है? और अब जमाना बराबरी का है, तो कई बार यह भी पूछ लिया जाता है-लडक़ी क्या करती है? अमीर परिवारों के निमंत्रण पत्रों में इस सवाल का जवाब कार्ड के वजन, सजावट और फर्मों की लंबी फेहरिस्त से पहले ही मिल जाता है।  मगर, जब बात मध्यमवर्गीय परिवारों की आती है, तो यह सवाल सिर्फ उत्सुकता नहीं, उसकी निजी पहचान और प्रतिष्ठा से भी जुड़ जाता है। इसलिए जब कोई आयुष्मान लिखता है कि वह एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में अकाउंटेंट है और आयुष्मति के बारे में लिखा होता है कि वह शिक्षिका पद की अभ्यर्थी है, तो यह उनका आत्मविश्वास दिखाता है।

नई जिंदगी शुरू हो रही है। आज भले ही आयुष्मान किसी कंपनी में साधारण नौकरी कर रहा हो, कल वह अपनी खुद की कंपनी का मालिक बन सकता है। और आयुष्मति जो आज एक अभ्यर्थी है, वह आने वाले समय में बच्चों को पढ़ाने वाली एक आदर्श शिक्षिका भी बन सकती है। (rajpathjanpath@gmail.com)

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