राजपथ - जनपथ
मुख्य सचिव का इतिहास और भविष्य
प्रदेश में नए सीएस की नियुक्ति को लेकर अटकलों का दौर जारी है। मौजूदा सीएस अमिताभ जैन 30 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। पहले यह चर्चा थी कि पूर्व डीजीपी अशोक जुनेजा की तर्ज पर उन्हें एक्सटेंशन दिया जा सकता है। मगर अब यह साफ हो गया है कि अमिताभ जैन के एक्सटेंशन को लेकर केन्द्र सरकार को कोई प्रस्ताव अब तक नहीं भेजा गया है। चर्चा यह भी है कि खुद अमिताभ जैन भी एक्सटेंशन नहीं चाहते हैं। वैसे भी उन्हें सीएस के पद पर काम करते 4 साल से अधिक हो चुके हैं। सबसे ज्यादा समय तक सीएस रहने का रिकॉर्ड उनके नाम पर हो गया है।
सुनते हैं कि नया सीएस के लिए जिन दो नामों पर सबसे ज्यादा चर्चा चल रही है उनमें 92 बैच के अफसर सहकारिता विभाग के एसीएस सुब्रत साहू, और 94 बैच के एसीएस मनोज पिंगुआ हैं। वैसे तो सीनियरटी में 91 बैच की अफसर माध्यमिक शिक्षा मंडल की चेयरमैन रेणु पिल्ले सबसे ऊपर है। मगर ईमानदार, और नियम पसंद रेणु पिल्ले किसी भी सरकार की पसंद नहीं रही हैं। इसी तरह 94 बैच की अफसर ऋचा शर्मा को भी सीएस दौड़ से बाहर माना जा रहा है। उनकी भी साख कुछ हद तक रेणु पिल्ले जैसी ही है। ऐसे में सुब्रत साहू, और मनोज पिंगुआ के बीच में ही फैसला होने की संभावना जताई जा रही है।
हालांकि कुछ लोग केन्द्र सरकार की दखल से भी इंकार नहीं कर रहे हैं। रमन सरकार में भी सीएस की नियुक्ति को लेकर एक-दो बार हाईकमान से मार्गदर्शन लिया गया था। ऐसी चर्चा है कि अगले हफ्ते-दस दिन के भीतर सीएम दिल्ली जा सकते हैं, और सीएस की नियुक्ति पर केंद्र, और पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं से मार्गदर्शन ले सकते हैं।
रमन सरकार में एसके मिश्रा, एके विजयवर्गीय, शिवराज सिंह, पी जॉय उम्मेन, सुनील कुमार, और फिर विवेक ढांड सीएस रहे। भूपेश सरकार के पांच साल में अजय सिंह, सुनील कुजूर, आरपी मंडल, और फिर अमिताभ जैन सीएस हुए। अमिताभ के उत्तराधिकारी कौन होंगे इसका खुलासा 29-30 तारीख को ही हो पाएगा।
बिजली गुल, सियासत की बत्ती जलने लगी..
छत्तीसगढ़ के ज्यादातर शहरों में बिजली संकट से लोग परेशान है, क्या कांग्रेसी और क्या भाजपाई। लेकिन दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता एक साथ मिलकर किसी मुद्दे पर बोलें, यह तो किसी को भी अटपटा लगेगा। ऐसा ही कुछ हुआ कटघोरा (कोरबा) में, जहां बिजली की समस्या को लेकर कांग्रेस ने बिजली विभाग को एक शिकायती पत्र दिया, मगर पत्र ने एक सस्पेंस पैदा कर दिया।
पत्र में वार्ड 15 के भाजपा पार्षद अजय गर्ग का नाम और सील भी दिखाई दे रहा था। भाजपा के कार्यकर्ता यह देख दंग रह गए। सोशल मीडिया पर जैसे ही यह पत्र वायरल हुआ, चर्चा होने लगी, क्या भाजपा पार्षद को अपनी बात मनवाने के लिए कांग्रेस का सहारा लेना पड़ गया?
जब पार्टी के नेताओं ने पार्षद गर्ग से बात की, तो उन्होंने साफ किया- मैंने कांग्रेस के लैटरपैड पर कोई दस्तखत नहीं किए। तब, मामला और गरमा गया। भाजपा के पदाधिकारी पार्षद को लेकर सीधे थाने पहुंच गए और कांग्रेस नेताओं पर फर्जीवाड़े का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई और कानूनी कार्रवाई की मांग उठाई। पुलिस कह रही है कि जांच होगी, फिर कार्रवाई होगी। उधर सवाल ये भी उठ रहा है कि कांग्रेस को भाजपा पार्षद के नाम और सील को अपने पत्र में लगाने की ज़रूरत ही क्यों पड़ी? क्या उन्हें लगा कि सत्ताधारी पार्टी के पार्षद का दस्तखत देखकर बिजली विभाग के अफसर डर जाएंगे या शिकायत को ज़्यादा गंभीरता से लेंगे? हकीकत ये है कि बिजली विभाग के अफसर इन दिनों किसी की नहीं सुन रहे। न नेता की, न अफसर की, यहां तक कि अपने एमडी की भी नहीं। कई जगहों पर एमडी साहब ने खुद बैठक लेकर मातहतों को फटकार लगाई, तबादले तक कर दिए, लेकिन बिजली की हालत जस की तस बनी रही।
कटघोरा में अब बिजली संकट का असली मुद्दा पीछे छूट गया है। अब चर्चा इस बात की हो रही है कि किसने किसके नाम से फर्जी हस्ताक्षर किए, सील कैसे लगी ? कुल मिलाकर, बिजली गुल है और सियासत की बत्ती जल रही है!
सब्जी बाजार की पहली बारिश
मौसम विभाग ने दावा किया था कि इस बार छत्तीसगढ़ में मानसून वक्त से पहले आ जाएगा, लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी अनुमान सही नहीं निकला। जून आधा बीत चुका है और कई शहर अब भी पहली अच्छी बारिश का इंतजार कर रहे हैं।
ऐसे मौसम में सबसे ज्यादा दिक्कत उन लोगों को होती है जो खुले आसमान के नीचे काम करते हैं। खासकर सब्जी बेचने वाले किसान और फुटपाथ के दुकानदार। गांव से सब्जी लेकर शहर आने वालों के पास न तो पक्का चबूतरा होता है और न कोई शेड। इसलिए बारिश के दिनों में वे पहले से ही पॉलिथीन, छतरियां और बैठने के इंतजाम साथ लेकर निकलते हैं।
कल बिलासपुर में आखिरकार ठीक-ठाक बारिश हुई, और जैसे ही बूंदें गिरीं, बृहस्पति बाजार के सब्जी विक्रेता तुरंत हरकत में आ गए। रंग बिरंगी किंग साइज छतरियां खुल गईं, सब्जियों को पॉलिथीन से ढंक लिया गया और लोग भी सब्जी खरीदने के बहाने बारिश का मजा लेने निकल गए।
सहानुभूति निचोडऩे का कारोबार
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर में मारवाड़ी समाज के कुछ व्यापारियों ने एक नई किस्म की ठगी का खुलासा किया है। यह ठगी न साइबर थी, न ही किसी बैंक फ्रॉड से जुड़ी, बल्कि बेहद साधारण और भावनात्मक तरीके से लोगों को फंसाने की तरकीब थी। कुछ लोग उनसे फोन कर अंतिम संस्कार’ के लिए मदद मांग रहे थे। कोई 1000, कोई 2000 रुपये, लोग मानवता के नाम पर दे रहे थे। बाद में व्यापारियों को आपसी बातचीत से पता चला कि ये सब एक ही पैटर्न पर हो रहा है और किसी संगठित ठगी की चाल है। अब उन्होंने इस गिरोह को पकडऩे के लिए पुलिस में शिकायत कर दी है।
इस तरह की ठगी दरअसल कोई नई बात नहीं है, पर अब यह कहीं ज्यादा चतुराई और प्लानिंग के साथ की जा रही है। अब भीख मांगने या सहानुभूति के सहारे पैसे वसूलने के ढेरों तरीकों निकल गए हैं। हाल ही में केदारनाथ धाम की यात्रा से लौटे एक यात्री ने बताया कि साफ-सुथरे कपड़ों में स्त्री पुरुष सडक़ किनारे खड़े रहते हैं और पैदल यात्रियों को पर्स और बैग खो जाने की दुहाई देते हुए, मदद मांगते हैं। धार्मिक माहौल में डूबा यात्री 200-500 रुपये की मदद कर देता है। धार्मिक स्थलों पर भगवा वस्त्र पहनकर पुण्य का लालच देने वाले, ट्रेन-बसों में चोटिल दिखने का नाटक करने वाले, और पेट दर्द से तड़पते बच्चे को गोद में लिए दवा के लिए मदद मांगने वाले, ये सब अलग-अलग तरीकों से हमारी भावनाओं को निशाना बनाते हैं। दिल्ली में हाल ही में एक फर्जी साधु गिरोह का भंडाफोड़ हुआ, जिसमें यह सामने आया कि कुछ लोग दिन में भगवा पहनकर मंदिरों में भविष्यवाणी और रात को क्लबों, पब में महंगी पार्टियां करते थे। मुंबई में एक महिला गैंग पकड़ी गई, जो पेट पर तकिया बांधकर गर्भवती होने का नाटक करती थीं और लोगों से मदद मांगती थी। ये गिरोह समाज की उस भावना को हथियार बनाते हैं, जो मदद करने की नेक सोच रखती है। दान देना हमारी संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन ये लोग भरोसे को मार डालने पर तुले हैं। बिलासपुर की घटना इसलिए भी खास है क्योंकि यहां ठगों ने व्यापारियों की ही मारवाड़ी बोली और व्यवहार को अपनाया। इनसे बचाव का तरीका वही पुराना है- सतर्क रहें, सवाल पूछें और जरूरत से ज्यादा भावुक न हों।
संजय जोशी से हलचल
भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) संजय जोशी के पिछले दिनों रायपुर दौरे को लेकर पार्टी में काफी हलचल रही। जोशी, पार्टी के किसी पद पर नहीं हैं। बावजूद इसके जोशी से मुलाकातियों का तांता लगा रहा। जोशी, सांसद बृजमोहन अग्रवाल के पिता के निधन पर श्रद्धांजलि देने उनके घर भी गए।
संजय जोशी, बलौदाबाजार में एक कार्यक्रम में शरीक हुए। यह कार्यक्रम पूर्व विधायक प्रमोद शर्मा ने आयोजित किया था। उसी दिन अहमदाबाद विमान हादसे की वजह से कार्यक्रम को छोटा कर दिया गया, और भाषणबाजी नहीं हुई। संजय जोशी ने बलौदाबाजार के छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं से मुलाकात की।
सरकार के मंत्री टंकराम वर्मा, और प्रदेश उपाध्यक्ष शिवरतन शर्मा ने भी संजय जोशी से भेंट की। इन सबके बीच एक जिले के प्रशासनिक मुखिया की संजय जोशी से मुलाकात की काफी चर्चा रही। रायपुर नगर निगम की एक महिला पार्षद के यहां दोपहर भोज रखा गया था। इसमें संजय जोशी, और कुछ अन्य नेता शामिल हुए।
भाजपा के कुछ नेता बताते हैं कि संजय जोशी भले ही किसी पद में नहीं हैं, लेकिन उनकी सिफारिशों को भाजपा, और केंद्र की सरकार में महत्व दिया जाता है। यही वजह है कि प्रदेश के कई नेता, जोशी के संपर्क में रहते हैं।
सरकार की बड़ी कामयाबी
प्रदेश में युक्तियुक्तकरण को लेकर काफी बातें हो रही है। शिक्षक संगठनों ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। बावजूद इसके स्कूल शिक्षा विभाग ने युक्तियुक्तकरण की अपनी योजना में सफल रहा है। यह पहला मौका है जब प्रदेश के 447 स्कूलों में शिक्षकों की पदस्थापना हो चुकी है। इन स्कूलों में बरसों से शिक्षक नहीं थे।
शिक्षक संगठनों ने युक्तियुक्तकरण को रोकने के लिए हर संभव कोशिशें की। हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया, लेकिन राहत नहीं मिली। पहले शिक्षक संगठनों को बाकी कर्मचारी संगठनों का भी समर्थन मिला था, लेकिन सरकार ने शिक्षक विहीन, और एकल शिक्षक वाले स्कूलों में अतिशेष शिक्षकों की पदस्थापना के लिए कदम उठाए, तो कर्मचारी संगठन भी सरकार से सहमत होते नजर आए। अब शिक्षक संगठनों ने स्कूल खुलने पर कक्षाओं का बहिष्कार का फैसला लेने जा रही है। यह युक्तियुक्तकरण के खिलाफ उनकी आखिरी लड़ाई मानी जा रही है। देखना है कि इसका क्या नतीजा निकलता है।
5 डे वर्किंग और अपने-अपने तर्क
चार वर्ष तक गवर्नमेंट वर्किंग 5 डे वीक के बाद एक बार फिर 6 डे वर्किंग करने की बात चल पड़ी है। इसकी वकालत करने वाले अफसरों के लिए कर्मचारियों का कहना है कि 6 डे वर्किंग, बंगलों और दफ्तरों में चार-चार, पांच- पांच भृत्यों वाले साहबों के लिए काम का हो सकता है लेकिन पूरे परिवार की निर्भरता वाले कर्मचारियों के लिए कठिनाई भरा होगा। बीते 5 वर्ष से 5 डे वर्किंग में बड़ी राहत महसूस कर रहे थे। सप्ताह में दो दिन के अवकाश के फायदे से सीएल, ईएल में भी कमी आई थी। और छत्तीसगढ़ शासन भी केंद्रीय सरकार और देश के अन्य राज्यों के साथ तालमेल बिठा चुका था। ऐसे समय में एक बार फिर वर्किंग पैटर्न में बदलाव तकलीफदेह होगा।
इसे लेकर कर्मचारी संगठन नेता अपने अपने तर्क भी रख रहे हैं। उनके वाट्सएप पोस्ट इन तर्कों से भरे पड़े हैं। इनका कहना है कि अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से चले आ रहे द्वितीय और तृतीय शनिवार अवकाश के साथ रविवार अवकाश का लाभ लंबे अरसे से कर्मचारियों को दिया जा रहा था और वो जायज भी था, फिर छत्तीसगढ़ की पूर्व कांग्रेस सरकार ने बिना मांग के कर्मचारियों को केंद्र के जैसे समान वेतनमान एवं सुविधा के तहत पांच दिन का कार्य एवं प्रत्येक शनिवार रविवार को अवकाश घोषित कर कार्यावधि भी प्रात: 10 से संध्या 5:30 बजे तक किया । शायद इसके प्रति उनकी मंशा यही होगी कि 5 दिन मंत्रालय, सचिवालय में कार्य करने के उपरांत सांसद, मंत्री, विधायक 2 शेष दिन अपने अपने क्षेत्र में जनता से रूबरू होकर उनकी जन समस्या का निवारण कर सके और दूरस्थ गांव की जनता को नवा रायपुर राजधानी ना आना पड़े तथा वे आर्थिक एवं शारीरिक कष्ट से बच सके।
छत्तीसगढ़ की आधी से ज्यादा जनसंख्या आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में निवासरत हैं, और शासकीय कार्यालय भी परियोजना क्षेत्र में लगती हैं और प्राय: शहर से लगे कई दूरस्थ जिलों/ एवं शहर से दूर गांवों में भी संपूर्ण सुविधा का अभाव हैं। जहां साप्ताहिक हाट लगने के कारण कर्मचारी जीविकोपार्जन का आवश्यक सामान सप्ताह भर की इक_ा सब्जी और राशन पानी ले आते हैं । वहीं कुछ महिला एवं पुरुष कर्मचारी अपने बूढ़े मां बाप, बच्चों का देखरेख कर आते हैं उनका चिकित्सा उपचार/ इलाज कर पाते हैं एवं शहर स्थित बच्चों की स्कूल-कॉलेज में बच्चों से भी मिलना हो जाता हैं। फलस्वरूप कर्मचारियों में एक रहता है एवं कार्यालय में भी उनके कार्य क्षमता में वृद्धि
होती हैं।
इसलिए मुख्यमंत्री महोदय से निवेदन हैं कि वे आदिवासी क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों एवं जनता की सुख सुविधा का ध्यान रखते हुए कार्यालयों में पांच दिवसीय कार्य पूर्वानुसार जारी रखे। अगर प्रदेश में कार्य की अधिकता लग रही हो या कार्य में गति लाना हैं तो समस्त विभागों में कार्यरत अनियमित कर्मचारियों का सांख्येतर पदों में नियमित कर एवं रोजगार के अवसर बढ़ाकर युवाओं में बेरोजगारी दूर कर प्रदेश को बेरोजगार मुक्त बनावे। इससे जनता एवं कर्मचारी आपकी कार्यशैली की प्रशंसा करेंगे और प्रसन्न रहेंगे।
स्मार्ट सिटी या टेरेफिक सिटी?
देश के जिन 100 शहरों में स्मार्ट सिटी परियोजना लागू की गई, उनमें छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर भी शामिल थी। दावा किया गया था कि ट्रैफिक सिग्नल सिस्टम से लेकर रियल टाइम मॉनिटरिंग, अर्बन मोबिलिटी और रोड इंफ्रास्ट्रक्चर को हाईटेक बनाया जाएगा। लेकिन हकीकत? घर या दफ्तर से निकलिये- पहली ही रेड लाइट पर सब ठप मिलेगा।
यह तस्वीर है पचपेड़ी नाका की, जहां ट्रैफिक अब ‘टेरेफिक’हो चुका है। जाम में फंसे लोग, बीच सडक़ पर अड़े वाहन- और सिग्नल का कोई मतलब नहीं बचा। अगर आप सोचते हैं कि सर्विस रोड या बाईपास से निकलकर आप बच निकलेंगे, तो सोचिए फिर से। तेलीबांधा, मरीन ड्राइव, शंकर नगर, गीतांजलि नगर, अवंति विहार-हर मोड़ पर जाम ही जाम। सडक़ किनारे के अवैध कब्जे, ट्रैफिक पुलिस की गैरमौजूदगी और जिम्मेदारी से दूर शासन-प्रशासन। कहने को तो रायपुर की गिनती देश के उभरते शहरों में होती है, लेकिन ट्रैफिक के हालात देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता।
15 जून : देश के इतिहास की सबसे दुखद घटना को मंजूरी
नयी दिल्ली, 15 जून। देश के बंटवारे को इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में शुमार किया जाता है। यह सिर्फ दो मुल्कों का नहीं बल्कि घरों का, परिवारों का, रिश्तों का और भावनाओं का बंटवारा था।
बंटवारे के उस दुखद इतिहास में 15 जून का दिन इसलिए महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस ने 1947 में 14-15 जून को नयी दिल्ली में हुए अपने अधिवेशन में बंटवारे के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। आजादी की आड़ में अंग्रेज भारत को कभी न भरने वाला यह जख्म दे गए।
देश दुनिया के इतिहास में 15 जून की तारीख पर दर्ज महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:-
- 1896 : जापान के इतिहास के सबसे विनाशकारी भूकंप और उसके बाद उठी सुनामी ने 22,000 लोगों की जान ले ली।
- 1908 : कलकत्ता शेयर बाज़ार की शुरुआत।
- 1947 : अखिल भारतीय कांग्रेस ने नयी दिल्ली में भारत के विभाजन के लिए ब्रिटिश योजना स्वीकार की।
- 1954 : यूरोप के फुटबॉल संगठन यूईएफए (यूनियन ऑफ यूरोपियन फुटबाल एसोसिएशन) का गठन।
- 1971 : ब्रिटेन की संसद में मतदान के बाद स्कूलों में बच्चों को मुफ्त दूध देने की योजना को समाप्त करने का प्रस्ताव। हालांकि भारी विरोध के कारण इसे सितंबर में ही लागू किया जा सका।
- 1982 : फाकलैंड में अर्जेन्टीना की सेना ने ब्रिटिश सेना के सामने घुटने टेके।
- 1988 : नासा ने स्पेस व्हीकल एस-213 का प्रक्षेपण किया।
- 1994 : इजराइल और वेटिकन सिटी में राजनयिक संबंध स्थापित।
- 1997 : आठ मुस्लिम देशों द्वारा इस्तांबुल में डी-8 नामक संगठन का गठन।
- 1999 : लाकरबी पैन एम. विमान दुर्घटना के लिए लीबिया पर मुकदमा चलाने की अमेरिकी अनुमति।
- 2001 : शंघाई पांच को शंघाई सहयोग संगठन का नाम दिया गया। भारत और पाकिस्तान दोनों को सदस्यता न देने का निर्णय।
- 2004 : ब्रिटेन के साथ परमाणु सहयोग को अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश की स्वीकृति मिली।
- 2006 : भारत और चीन ने पुराना रेशम मार्ग खोलने का निर्णय लिया।
- 2008 : आक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पहली बार पराबैंगनी प्रकाश का विस्फोट कर बड़े सितारों की स्थिति देखी।
- 2020: देश में कोरोना वायरस संक्रमण के 11502 नए मामले, 325 लोगों की मौत।
- 2022: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में 5जी दूरसंचार सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम नीलामी को मंजूरी दे दी।
- 2024: सिरिल रामफोसा फिर बने दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति। (भाषा)
इमरजेंसी लैंडिंग की याद
एयर इंडिया का ड्रीमलाइनर प्लेन दो दिन पहले लंदन के लिए उड़ान भरते ही कुछ देर बाद अहमदाबाद के रिहायशी इलाके में गिर गया। इस दुर्घटना में ढाई सौ से अधिक यात्रियों की मौत हो गई। दुर्घटना के बाद ड्रीमलाइनर प्लेन की तकनीक पर सवाल उठ रहे हैं। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ कैडर के रिटायर्ड आईएफएस एसएसडी बडग़ैया ने ड्रीमलाइनर प्लेन से जुड़े अपने अनुभव फेसबुक पर साझा किए हैं।
आईएफएस अफसरों की एक टीम को फिनलैंड ट्रेनिंग के लिए जाना था। इस टीम में बडग़ैया भी थे। बडग़ैया ने बताया कि ड्रीमलाइनर प्लेन ने व्हाया फ्रेंकफर्ट होकर फिनलैंड के लिए 31 मई 2014 को उड़ान भरी।
करीब डेढ़ घंटे बाद विमान के पायलट ए.कृष्णाराव ने यात्रियों को सूचित किया कि प्लेन की इमरजेंसी लैंडिंग करानी होगी। इससे यात्रियों में अफरा-तफरी मच गई। तब पायलट ने यात्रियों को बताया कि बाथरूम का सिस्टम चोक हो गया है। फ्रेंकफर्ट पहुंचने में सात घंटे लगेंगे, इतने लंबे समय तक बाथरूम का बंद रहना उचित नहीं है। आप लोगों को परेशानी होगी, इसलिए इमरजेंसी लैंडिंग कराई जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि प्लेन अभी अफगानिस्तान के ऊपर से उड़ान भर रहा है।
बाद में पायलट ने यह भी बताया कि प्लेन में एक लाख लीटर पेट्रोल है। इसको निकालना भी जरूरी है, ताकि लैंडिंग हो सके। इसके बाद पाईप के सहारे पेट्रोल निकाला गया। उतना ही पेट्रोल रखा गया जितने में इमरजेंसी लैंडिंग हो सके। करीब दो घंटे बाद प्लेन वापस दिल्ली पहुंचा, और सुरक्षित लैंडिंग हो पाई। बडग़ैया बताते हैं कि इस पूरी यात्रा के दौरान डरे-सहमे यात्री ईश्वर को याद करते रहे, और सन्नाटा पसरा रहा। जैसे ही लैंडिंग हुई, यात्रियों में खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इसके बाद अगले दिन दूसरे विमान से फ्रैंकफर्ट के लिए रवाना हुए।
झीरम का जवाब आने वाला है?
झीरम घाटी हत्याकांड को डेढ़ दशक होने जा रहा है। यह देश के सबसे बड़े राजनीतिक हत्याकांडों में से एक है, जिसमें प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व का लगभग पूरा शीर्ष स्तर एक ही हमले में खत्म हो गया था। बावजूद इसके, आज तक इसकी जांच किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी।
अब जब कल बस्तर में छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री विजय शर्मा ने एक बार फिर कहा है कि दोषियों के नाम जल्द सामने लाए जाएंगे, तो यह बयान एक पुरानी घोषणा की पुनरावृत्ति जैसी है। पिछले साल, 25 मई 2024 को भी उन्होंने यही बात कही थी, कि जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी। लेकिन 2025 की बरसी गुजर गई, और वह रिपोर्ट अब तक सामने नहीं आई है।
इस पूरे मामले में अब तक की जांच की दिशा और गति दोनों सवालों के घेरे में हैं। एनआईए की जांच को कांग्रेस ने अपूर्ण और पक्षपाती कहा। एसआईटी को दस्तावेज नहीं मिले। न्यायिक आयोग का कार्यकाल लगातार बढ़ता रहा, लेकिन रिपोर्ट जब राज्यपाल को सौंप दी गई, तो उसे भी गोपनीय रखा गया। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2023 में छत्तीसगढ़ पुलिस को जांच की इजाजत दी, लेकिन आगे कुछ नहीं बदला, कांग्रेस की इस जांच में रुचि थी- पर सरकार बदल गई। सरकार आने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जेब में रखे सबूतों को बाहर नहीं निकाल सके। उधर एनआईए लगातार छत्तीसगढ़ सरकार की जांच रोकने के लिए शीर्ष अदालतों में लड़ती रही।
प्रश्न यह नहीं है कि दोषियों का नाम कब उजागर होगा। असली सवाल यह है कि क्या अब तक जानबूझकर सच्चाई को रोका गया है? क्या यह मामला केवल जांच एजेंसियों की अक्षमता है, या राजनीतिक सुविधा के मुताबिक उसे लटकाए रखने की रणनीति?
झीरम के पीडि़तों को इतने सालों में न्याय नहीं मिला। सरकारें बदलती गईं। जवाबदेही पर सवाल है। देखें, गृह मंत्री दोषियों का खुलासा करने में और उन्हें कठघरे में खड़ा करने में कितना वक्त लगाते हैं।
कांग्रेस भवन और ईडी
ईडी ने सुकमा के कांग्रेस भवन को सील किया, तो राजनीतिक माहौल गरमा गया। प्रदेश कांग्रेस ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
दरअसल, जांच एजेंसी ने आबकारी घोटाले के पैसे से सुकमा के कांग्रेस भवन का निर्माण होना बताया है। इसको लेकर पूर्व मंत्री कवासी लखमा और उनके करीबियों के वॉट्सऐप चैट से इसका खुलासा हुआ है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने जांच एजेंसियों पर हमला बोलते हुए फेसबुक पर लिखा कि जब ये एजेंसियों ओवरटाइम करते-करते थक गई, कुछ न मिला, तो अब हमारे कार्यालयों को बंद करने की शुरूआत आज इन्होंने सुकमा से की है। ध्यान रहे, हमारे हर कार्यकर्ता का घर ही हमारा कार्यालय है।
बस्तर संभाग के अकेला सुकमा जिला ऐसा है जहां भाजपा पंचायत चुनाव में फतह हासिल नहीं कर पाई। यहां कांग्रेस ने सीपीआई के सहयोग से जिला पंचायत पर कब्जा जमा लिया। अब कांग्रेस दफ्तर सील हो गया है, तो पार्टी की बैठकें कहां होती है, यह देखना है।
बोनट पर रुतबा, नीली बत्ती में बर्थडे!
कहते हैं, कानून सबके लिए बराबर होता हैज् पर सरगुजा से वायरल वीडियो कुछ और ही कहानी सुना रही है। सरकारी कामकाज के लिए दी जाने वाली नीली बत्ती की खास सुविधा का इस्तेमाल अब बर्थडे सेलिब्रेशन और सोशल मीडिया स्टंट के लिए भी होने लगा है। बलरामपुर के डीएसपी की धर्मपत्नी जी ने अंबिकापुर में जिस अंदाज में बोनट पर बैठकर जन्मदिन मनाया, वो देखकर बत्ती तो नीली थी, लेकिन कानून का चेहरा लाल हो जाना चाहिए था।
वीडियो में नीली बत्ती लगी गाड़ी की बोनट पर केक, ऊपर मेमसाहब और आसपास लटकती सहेलियों का नजारा देखकर लग ही नहीं रहा कि ये किसी कानून से जुड़े परिवार की बात हो रही है। कानून पीछे छूट गया, कैमरा आगे निकल गया!
अब ये वही छत्तीसगढ़ है, जहां हाईकोर्ट ने गाडिय़ों पर स्टंट करने वालों के खिलाफ पुलिस को कई बार फटकार लगाई है। हाल ही में कई वीडियो वायरल होते ही युवाओं को हिरासत में लिया गया, चालान काटे गए, हिरासत में लिया गया। लेकिन इस मामले में पुलिस का रिएक्शन? वीडियो देखा और आगे बढ़ गए। अगर ये कार किसी आम लडक़े की होती, तो अब तक गाड़ी सीज, चालान ऑन स्पॉट और एफआईआर ऑन रिकॉर्ड हो जाती।
वैसे इस मामले में कोई हादसा नहीं हुआ है। यह तो दूर सरगुजा का मामला है। याद कीजिये राजधानी में जब एक अफसर की बीवी के हाथों एक युवती की मौत हो गई थी, तब क्या हुआ था?
वन-रेत माफियाओं के बढ़ते हौसले...
कभी पुलिस पर हमला, कभी पत्रकारों की पिटाई, और कभी वनकर्मियों को बंधक बना लेना..। छत्तीसगढ़ में इन दिनों रेत और जंगल माफिया कानून को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं।
पिछले महीने बलरामपुर में एक सिपाही को रेत माफियाओं ने ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाला। कुछ दिन पहले राजिम में रेत खनन की रिपोर्टिंग करने गए पत्रकारों पर जानलेवा हमला हुआ, जबकि राजनांदगांव में जब ग्रामीणों ने अवैध उत्खनन का विरोध किया, तो माफियाओं ने गोलियां चला दीं। इसी महीने रतनपुर में वनकर्मियों पर जानलेवा हमला हुआ और अब गरियाबंद में न सिर्फ हमला किया गया, बल्कि उन्हें बंधक भी बना लिया गया।
ये घटनाएं अचानक शुरू नहीं हुईं। कांग्रेस शासनकाल में भी रेत माफिया बेखौफ थे। तब भी वनकर्मियों को बंधक बनाने और जानलेवा हमलों की घटनाएं सामने आई थीं। आज भी परिस्थितियां नहीं बदली हैं।
हर बार आरोप के तार अफसरों और जनप्रतिनिधियों तक पहुंचते हैं। बस चेहरे बदल जाते हैं। बलरामपुर की घटना में चेहरा भी नहीं बदला। भाजपा के पूर्व मंत्री ने सीधे कलेक्टर पर आरोप लगाया कि माफियाओं को उनका संरक्षण पहले भी था, आज भी है। राजनांदगांव में एक पार्षद की गिरफ्तारी हुई है। वहीं राजिम में हो रहे अवैध खनन और हमलों पर सत्तारूढ़ दल के वे जनप्रतिनिधि चुप हैं, जो विपक्ष में रहते हुए इन्हीं मुद्दों पर मुखर थे।
जब किसी बड़े उद्योग या संयंत्र का नाम आता है, तब तो लोगों का ध्यान जाता है कि छत्तीसगढ़ की नदियों और जंगलों का विनाश हो रहा है। मगर माफियाओं, अफसरों और जनप्रतिनिधियों के गठजोड़ से जो टुकड़ों-टुकड़ों में तबाही मच रही है, वह कम गंभीर नहीं है।
17 साल बाद खुशी का दिन आया
करीब 17 साल बाद ढाई सौ से अधिक सहायक प्राध्यापकों को पदोन्नति दी गई। ये सभी प्राध्यापक बने हैं। हालांकि ये पदोन्नति हाईकोर्ट की दखल के बाद ही हो पाई है। बावजूद इसके करीब 40 से अधिक सहायक प्राध्यापक पदोन्नति से रह गए हैं।
बताते हैं कि कुछ के सीआर मिसिंग थे, तो कई ऐसे भी हैं जिनके सारे दस्तावेज होने के बावजूद पदोन्नति से रह गए हैं। पदोन्नति से वंचित सहायक प्राध्यापकों की एक शिकायत ये भी है कि कुछ सहायक प्राध्यापक, पदोन्नति के लिए पात्र नहीं थे उन्हें पदोन्नति मिल गई। जबकि पात्र सहायक प्राध्यापक पदोन्नति से रह गए।
पदोन्नति से वंचित सारे सहायक प्राध्यापक विभागीय सचिव को एक साथ अभ्यावेदन देने की तैयारी कर रहे हैं। विभागीय सचिव एस भारतीदासन 16 तारीख तक अवकाश में हैं। उनके लौटने के बाद सहायक प्राध्यापक अभ्यावेदन देंगे। इसके बाद भी पदोन्नति नहीं मिली, तो वो फिर अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
सींग गौर की शान और सुरक्षा का हथियार!
इस खूबसूरत तस्वीर में दो गौर (इंडियन बाइसन) घास चरते नजर आ रहे हैं और सबसे पहले नजऱ जाती है – उनके बड़े, मजबूत और मुड़े हुए सींगों पर।
गौर के यही सींग उसकी पहचान हैं। नुकीले और ताकतवर। यही उसकी सुरक्षा का हथियार भी हैं। खतरा सामने हो, तो यही सींग उसे बचाने के लिए सबसे आगे आते हैं। खासकर नर, इन सींगों से घातक हमला भी कर सकता है।
बस्तर के जनजातीय समाज में गौर को खास स्थान प्राप्त है। वहाँ की ‘बाइसन हॉर्न मारिया’ जनजाति अपने पारंपरिक मुकुट (हेडगियर) में गौर के सींगों जैसी आकृति सजाती है, जो गौरव और ताकत का प्रतीक मानी जाती है। गौर के नर और मादा – दोनों के सींग होते हैं, लेकिन झुंड के ‘अल्फा नर’ के सींग सबसे बड़े और मजबूत होते हैं। मादा गोरों के लिए यह एक आकर्षण भी होता है।
पहले जब शिकार प्रतिबंधित नहीं था, तब गौर और जंगली भैंसे के सींगों को दीवारों पर सजाने के लिए ट्रॉफी के रूप में लगाया जाता था। लेकिन अब यह पूरी तरह प्रतिबंधित है और इन अद्भुत जीवों को सिर्फ जंगलों में, उनके प्राकृतिक आवास में देखकर ही सराहा जा सकता है। वन्यजीव प्रेमी प्राण चड्ढा ने अचानकमार टाइगर रिजर्व में अपने कैमरे में इस विचरण को कैद किया है।
एक ही फ्रेम में दो मदारी भालू
अचानकमार टाइगर रिजर्व में मेकूं मठ के पास सडक़ पर कल शाम (11 जून को) दो भालू एक साथ नजर आए। आमतौर पर जंगल में इनका यूं एक साथ दिखना बहुत ही दुर्लभ होता है।
पहले ये दोनों भालू जंगल के भीतर मस्ती में एक-दूसरे के साथ खेलते दिखे। फिर कुछ देर बाद ये सडक़ पर आ गए। दोनों अपनी ही दुनिया में मस्त थे। कभी पंजों और दांतों से एक-दूसरे से खेलते, तो कभी दो पैरों पर खड़े हो जाते।छत्तीसगढ़ में महुआ के मौसम में भालू अक्सर जंगल से बाहर भी आ जाते हैं क्योंकि उन्हें महुआ बहुत पसंद है। अगर खतरा महसूस हो तो ये दो पैरों पर खड़े होकर हमला भी कर सकते हैं।
ये भालू ‘स्लॉथ बियर’ प्रजाति के हैं, जिसे आम भाषा में मदारी भालू भी कहा जाता है। भालुओं की दुनिया में कुल आठ प्रजातियां होती हैं और ये उन्हीं में से एक हैं। इनकी आंखों की रोशनी थोड़ी कम होती है, लेकिन शहद के बड़े शौकीन होते हैं और पेड़ों पर भी आसानी से चढ़ जाते हैं। भालू के पंजों में लंबे नाखून होते हैं, जिनसे ये दीमक की बांबी तक तोड़ डालते हैं और दीमकों को चूस जाते हैं। आमतौर पर ये शाकाहारी होते हैं, लेकिन जरूरत पडऩे पर मांसाहार भी कर लेते हैं। पहले शिकार और अब जंगल घटने की वजह से इनकी संख्या में काफी कमी आई है।
लाखों शिक्षक, कुछ सौ गलतियां
प्रदेश में स्कूलों में युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। ऐसे सैकड़ों स्कूल जहां शिक्षक नहीं थे वहां अतिशेष शिक्षकों की पोस्टिंग हुई। कुल मिलाकर सरकार को अपने प्रयासों में काफी हद तक सफलता मिली है। मगर युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया में अनियमितता भी खूब हुई है। अब तक चार बीईओ निलंबित हो चुके हैं।
बताते हैं कि सरगुजा संभाग में तो सांसद, और भाजपा के तीन विधायक व जिला अध्यक्ष ने युक्तियुक्तकरण में अनियमितता की सीएम, और प्रदेश संगठन से की है। शिकायत में एक यह भी था कि अंबिकापुर के उदयपुर माध्यमिक शाला सलका में रामचरण सिदार नाम का कोई शिक्षक पदस्थ नहीं है। मगर युक्तियुक्तकरण में उनका नाम सोनगेसरा बगीचा जशपुर जिले में किया गया है।
इसी तरह रामदास प्रधान नाम के अंबिकापुर के घासी वार्ड के शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला की युक्तियुक्तकरण के बाद पदस्थापना जशपुर जिले के बगीचा विकासखंड में की गई है। खास बात यह है कि उस स्कूल में रामदास प्रधान नाम के कोई शिक्षक ही नहीं है। यही नहीं, अंबिकापुर के ओडिग़ी विकासखंड के एकल शिक्षकीय कई विद्यालय, युक्तियुक्तकरण के बाद भी एक ही शिक्षक वाले रह गए हैं। खैर, कुछ तो लिपिकीय त्रुटि की वजह से गलतियां सामने आ रही है, तो कई जगह शिक्षा अफसरों ने मिलीभगत कर गड़बडिय़ां की हैं। संभाग के ताकतवर भाजपा नेताओं की शिकायत पर जांच चल रही है। देखना है आगे क्या होता है।लाखों शिक्षक हैं, कुछ सौ ग़लतियाँ तो होनी ही थीं।
बिजली-सफाई कुछ गड़बड़
छत्तीसगढ़ बिजली सरप्लस स्टेट माना जाता है। मगर थोड़ी बारिश-आंधी तूफान में राजधानी रायपुर के पॉश इलाकों में भी बिजली गुल हो जाती है। बिजली व्यवस्था की खराब हालत पर कांग्रेस ने सरकार पर उंगलियां उठाई, तो डिप्टी सीएम अरुण साव सामने आ गए। उन्होंने सफाई दी कि बिजली की व्यवस्था कांग्रेस के समय से चरमराई हुई है। जिसे ठीक करने का काम भाजपा की सरकार कर रही है। विशेषकर बिजली, सफाई व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति पर भाजपा के अंदरखाने में काफी चर्चा हो रही है। सेजबहार इलाके का हाल यह है कि थोड़ी तेज हवा में ही बिजली गुल हो जाती है। बिजली अफसरों का कहना है कि समय पर मेंटेनेंस नहीं होने के कारण बार-बार बिजली गुल की समस्या आ रही है। सफाई का हाल यह है कि निगम में सत्ता परिवर्तन के बाद ठेकेदार बदले गए हैं, और फिर नए पार्षदों के साथ ठेकेदारों का तोलमोल चल रहा है। इसका सीधा असर सफाई व्यवस्था पर पड़ रहा है। निगम से जुड़े लोग जल्द ही सब-कुछ ठीक होने का दावा कर रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
कुछ भीतर, कुछ बाहर
कोयला घोटाले में फंसे आरोपी फिर पेशी में हाजिर होने रायपुर आएंगे। घोटाले के आरोपी निलंबित आईएएस रानू साहू, समीर विश्नोई के अलावा सौम्या चौरसिया व कारोबारी रजनीकांत तिवारी को प्रदेश से बाहर रहने की शर्त पर सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी। ये सभी प्रदेश से बाहर निवासरत हैं, और 26 तारीख को रायपुर की विशेष अदालत में कोयला घोटाला प्रकरण पर सुनवाई है।
सुनवाई के बाद ये सभी आरोपी फिर प्रदेश से बाहर चले जाएंगे। हालांकि मुख्य आरोपी सूर्यकांत तिवारी अभी भी जेल में हैं। उनकी जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में 18 जुलाई को सुनवाई हो सकती है। दूसरी तरफ, शराब घोटाले के कुछ आरोपियों को भी सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है। घोटाले के आरोपी ए.पी.त्रिपाठी जमानत पर रिहा हो गए हैं।
शराब कारोबारी पप्पू ढिल्लन सहित कई अन्य को भी जमानत मिल गई है। ये अलग बात है कि पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा जेल में है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल के करीबी विजय भाटिया भी ईओडब्ल्यू-एसीबी की रिमांड पर हैं। एक और करीबी पप्पू बंसल से पूछताछ चल रही है, यानी घोटाले के पुराने आरोपियों को राहत मिली है, लेकिन कुछ नए लोग जेल जा रहे हैं।
रवि सिन्हा को एक्सटेंशन
छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस रवि सिन्हा को केन्द्र सरकार छह माह का एक्सटेंशन देने जा रही है। आईपीएस के 88 बैच के अफसर रवि सिन्हा देश की खुफिया एजेंसी रॉ के मुखिया हैं। वे पिछले दो साल से इस पद पर हैं।
ऑपरेशन सिंदूर में रॉ की भूमिका को सराहा गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की कार्रवाई की तारीफ हुई है। रॉ विदेशों में खुफिया जानकारी जुटाने का काम करती है। ऐसे में इसका काफी कुछ क्रेडिट रवि सिन्हा को मिल रहा है। इस महीने रवि सिन्हा रिटायर होने वाले थे, लेकिन अब खबर यह है कि केन्द्र सरकार उन्हें छह माह का एक्सटेंशन देने जा रही है।
रवि सिन्हा कोतवाली सीएसपी रह चुके हैं। दुर्ग में भी एडिशनल एसपी के पद पर काम कर चुके हैं। यही नहीं, राज्य बनने के बाद कुछ समय के लिए वो पीएचक्यू में भी बतौर डीआईजी के पद पर पदस्थ थे। रवि सिन्हा के बैचमेट संजय पिल्ले, मुकेश गुप्ता, और आर.के.विज रिटायर होकर निजी काम कर रहे हैं, लेकिन रवि सिन्हा की बैटिंग अब भी जारी है।
हृदय परिवर्तन का राज
राज्य में ट्रांसफर-पोस्टिंग पर से बैन हट गया है। यद्यपि स्कूल शिक्षा, परिवहन, वन और माइनिंग में तबादलों पर रोक जारी रहेगी। इन सबके बीच तबादले को लेकर भाजपा एक विधायक की पैंतरेबाजी की पार्टी के अंदरखाने में काफी चर्चा हो रही है।
बताते हैं कि विधायक महोदय आदिवासी इलाके से आते हैं। उन्होंने कांग्रेस सरकार के मंत्री को हराया था इसलिए उनकी पूछपरख थोड़ी ज्यादा होती है। सरकार में विधायक की सिफारिशों को यथावत महत्व भी दिया जाता है।
विधायक ने सबसे पहले अपने इलाके एक रेंजर को हटवाया, जो कि तत्कालीन मंत्री जी के काफी करीबी माने जाते थे। मगर हाल ही में उन्होंने उसी रेंजर की फिर अपने इलाके में पोस्टिंग करवा दी। विधायक के अचानक हृदय परिवर्तन कैसे हुआ, इसकी काफी चर्चा है।
नौकरी के लिए ट्रंप से गुहार!
बेरोजगारी क्या कुछ नहीं करवा सकती, इसका ताजा उदाहरण छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के एक युवा सूरज मानिकपुरी का यह पोस्टकार्ड है, जो उन्होंने किसी मंत्री, मुख्यमंत्री या राष्ट्रपति को नहीं, बल्कि सीधे संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भेजा है।
पत्र में उन्होंने बड़े ही सम्मानपूर्वक लिखा है कि आपकी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दोस्ती विश्व प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ के 57,000 युवा, जो शिक्षक भर्ती की राह देख रहे हैं, बात मोदी जी तक पहुंचा दी जाए और यह भर्ती जल्द शुरू करवाई जाए।
पोस्टकार्ड की भाषा हिंदी सहित अंग्रेजी में भी है, बात मगर पूरी दिल से लिखी गई प्रतीत होती है। उसे गंभीरता से कार्रवाई की उम्मीद है, मानो व्हाइट हाउस अब भारत सरकार की फाइलें फॉरवर्ड करता हो। भावना एकदम स्पष्ट है-सरकारी नौकरी चाहिए, चाहे ट्रंप की सिफारिश से ही क्यों न मिले!
वैसे कुल मिलाकर यह पत्र, निराशा, अपेक्षा, व्यंग्य, हास-परिहास और प्रचार पाने की मिली-जुली कसरत है। जिस पोस्टकार्ड पर लिखा गया है, वह केवल भारत में मान्य है। लिखने वाला अंग्रेजी का जानकार प्रतीत होता है। इन्हें ट्रंप की ई मेल आईडी का जुगाड़ कर लेना चाहिए।
भारतमाला की कडिय़ाँ बढ़ती जा रहीं
भारतमाला परियोजना के मुआवजा घोटाले की ईओडब्ल्यू-एसीबी पड़ताल कर रही है। अब तक अभनपुर इलाके के दो दर्जन ग्रामीणों का बयान भी हो चुका है। प्रारंभिक जांच में यह बात सामने आई, कि परियोजना का प्रस्तावित रूट चार्ट लीक हो गया था, और फिर कारोबारियों ने राजस्व अफसरों से मिलकर घोटाले को अंजाम दिया।
ईओडब्ल्यू-एसीबी कानूनी सलाह लेकर जांच आगे बढ़ा रही है। क्योंकि साक्ष्य जुटाना आसान नहीं है। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने फिलहाल तो चार लोगों को ही गिरफ्तार किया है। जांच एजेंसी को कमिश्नर की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। रिपोर्ट में गड़बड़ी की पुष्टि होने पर और एफआईआर दर्ज की जाएगी। कुल मिलाकर जांच लंबी खिंचने वाली है। इससे भी बड़ी बात यह है कि घोटाले में संलिप्त बड़े अफसर लपेटे में आएंगे, इसकी संभावना कम दिख रही है। वजह यह है कि जिला प्रशासन के शीर्ष अफसर ने सबकुछ जानकर गड़बड़ी होने दी, और छोटों को बलि का बकरा बनाया।
सरकारी भत्ते और अपनी-अपनी काबिलियत
निजी कंपनियों में बड़े बड़े वेतन पैकेज के बाद भी युवाओं में सरकारी नौकरियों का आकर्षण आज भी बरकरार है। कारण, सरकारी ढर्रे पर काम के साथ लंबी लंबी छुट्टियां, वेतन के साथ कई भत्तों की आमदनी। ऐसे लोगों के लिए एक और खुशखबरी है। केंद्र सरकार ने प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली जाने वाले अफसरों के प्रतिनियुक्ति भत्ते में बड़ी बढ़ोतरी कर दी है।इसे केंद्रीय सचिवालयों में अवर सचिव उप सचिव और डायरेक्टर स्तर के अफसरों को अब 9000 रूपए तक बढ़ा दिया गया है।
वैसे यह बढ़ोतरी अप्रैल 18 के बाद की गई है। ऐसा ही भत्ता राज्य प्रशासन में प्रतिनियुक्ति पर आने वाले अफसरों को दिया जाता है। इन्हें यहां संलग्न कहा जाता है। इन श्रेणी के विशेष/अतिरिक्त सचिव को 3890, संयुक्त/उप सचिव को 2400,राप्रसे, वित्त सेवा के कनिष्ठों को 1970,अवर सचिव/स्टाफ आफिसरों को 2020, सहायक ग्रेड वन,निज सचिव को 1530, ग्रेड-2,स्टेनो और ग्रेड तीन को 1020 रुपए का भत्ता दिया जाता है। इसे भी तीन साल पहले बढ़ाया गया था। शायद एक वजह यह भी है कि अधिकारी कर्मचारी मंत्रालय में अटैच होने या नियुक्ति के लिए जोड़-तोड़ करते हैं। वैसे यहां और कई तरह की इनकम के भी अक्सर रहते हैं वो अपनी अपनी काबिलियत पर निर्भर है।
एनएमडीसी को रायपुर लाने की मांग का तेज होना
बस्तर के बचेली और किरंदुल खनन परियोजनाओं के लिए एनएमडीसी द्वारा नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के साथ ही एक बार फिर इस सार्वजनिक उपक्रम का मुख्यालय हैदराबाद से हटाकर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर लाने की पुरानी मांग ने जोर पकड़ लिया है। रायपुर में नहीं, लेकिन बस्तर में युवा और प्रभावित इलाकों के जनप्रतिनिधि इस संबंध में स्थानीय स्तर पर अधिकारियों को ज्ञापन दे रहे हैं। यह मांग कोई नई नहीं है।साल 1998 में अविभाजित मध्यप्रदेश की विधानसभा ने इस विषय में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर मुख्यालय को छत्तीसगढ़ स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी। इस बात को आज 26 साल गुजर गए, किसी ने गंभीरता से प्रयास नहीं किया।
एनएमडीसी का 80 प्रतिशत से अधिक कारोबार बस्तर क्षेत्र के खनिज संसाधनों और उद्योगों पर निर्भर है। इसके बावजूद, कंपनी का मुख्यालय अब भी हैदराबाद में बना हुआ है। इसके पक्ष में दिया जाने वाला तर्क यह है कि हैदराबाद की दिल्ली सहित अन्य महानगरों से हवाई और सडक़ संपर्क बेहतर है। हालांकि, अब रायपुर से देश के अधिकांश बड़े शहरों के लिए हवाई सेवाएं उपलब्ध हैं और बस्तर से रायपुर तक की सडक़ भी सुगम है।
माना जाता है कि पहले माओवाद की समस्या को ध्यान में रखते हुए भी मुख्यालय रायपुर या जगदलपुर न लाने का निर्णय लिया गया था, लेकिन आज जगदलपुर जैसे शहर में भी कई कॉरपोरेट ऑफिस सफलतापूर्वक संचालित हो रहे हैं।
अब जब एनएमडीसी ने 995 पदों पर भर्ती की घोषणा की है, जिनमें से लगभग 745 पद बस्तर परियोजनाओं के लिए आरक्षित हैं, तो यह सवाल और महत्वपूर्ण हो जाता है कि भर्ती प्रक्रिया कहां संचालित की जाएगी। इनमें से कई पद प्रारंभिक श्रेणी के हैं और इन पर स्थानीय युवाओं को अवसर दिए जाने की आवश्यकता है। यदि पूरी प्रक्रिया हैदराबाद में आयोजित की गई तो बस्तर के युवाओं के लिए इसमें भाग लेना कठिन हो जाएगा। भर्ती परीक्षा केंद्र छत्तीसगढ़ या बस्तर में होंगे या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है। कांग्रेस शासन के दौरान भी छत्तीसगढ़ सरकार ने एनएमडीसी का मुख्यालय राज्य में स्थानांतरित करने की मांग केंद्र के सामने रखी थी। यह भी कहा जा रहा है कि मुख्यालय हैदराबाद में होने के कारण कंपनी से मिलने वाला कॉर्पोरेट टैक्स और जीएसटी भी तेलंगाना सरकार को मिलता है।
ऐसे में जब छत्तीसगढ़ और केंद्र, दोनों जगह भाजपा की सरकार है, यह उपयुक्त समय है कि एनएमडीसी का मुख्यालय रायपुर या जगदलपुर स्थानांतरित किया जाए। इससे न केवल स्थानीय युवाओं को अधिक अवसर मिलेंगे बल्कि भाजपा को राजनीतिक रूप से भी लाभ मिल सकता है, खासकर तब जब तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार है।
धर्मांतरण से मुक्त होगा बस्तर?
बीते सप्ताह के एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम नागपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम में पहुंचे। उन्होंने संघ से मदद मांगी कि वह बस्तर से धर्मांतरण खत्म करने के लिए मदद मांगी। उन्होंने कहा कि यह बस्तर की सबसे बड़ी समस्या है। कांग्रेस और भाजपा से उन्हें इस मामले में निराशा ही हाथ लगी है, अब संघ ही आदिवासियों की मदद कर सकता है। कांग्रेस ने नेताम के इस बयान को लेकर आलोचना की है और कहा है कि वे खुद और उनके परिवार के लोगों ने कांग्रेस की तरफ से 50 साल तक बस्तर का प्रतिनिधित्व किया है, तब उन्होंने जबरिया अथवा प्रलोभन वाला धर्मांतरण रोकने के लिए कोई प्रयास क्यों नहीं किया। कांग्रेस का यह भी आरोप है कि वह अब संघ की मदद से अपना वनवास खत्म करना चाहते हैं। हालांकि नेताम ने इसी मौके पर अपने उद्बोधन में बस्तर में नक्सलवाद खत्म होने के बाद औद्योगिकीकरण के खतरे तथा आदिवासियों की बेदखली तेज होने की आशंका भी जताई है। मगर, औद्योगिकीकरण को लेकर कांग्रेस और भाजपा में उतना फर्क नहीं है, जितना धर्मांतरण को लेकर है। कांग्रेस भाजपा दोनों ही अलग-अलग खेमों में अपना वोट बैंक देखते रहे हैं।
जैसा कि सरकार दावा कर रही है कि बस्तर से माओवादी हिंसा का सफाया तय समय से पहले हो जायेगा। धर्मांतरण के मुद्दे पर शुरू हुई नई बहस से यह तो साफ है कि नक्सल मुक्त बस्तर में बहुत कुछ बदलने की प्रक्रिया शुरू होगी। केवल आदिवासियों को स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने तक का मामला नहीं है। अवसरों के कई नए रास्ते, राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ताओं, व्यापारियों, उद्योगपतियों, ठेकेदारों, अफसरों के लिए खुलने जा रहे हैं।
बोधघाट के दिन फिरेंगे?
सीएम विष्णुदेव साय शुक्रवार को दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी, और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। सीएम ने पीएम से जिस खास विषय पर चर्चा की, वो थी बोधघाट परियोजना। सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि नक्सल खात्मे के बाद बस्तर में विकास की रफ्तार बढ़ाना जरूरी है, और बोधघाट से ही विकास के रास्ते खुलेंगे।
भूपेश सरकार ने भी ठंडे बस्ते में जा चुकी बोधघाट सिंचाई परियोजना की फाइलों पर से धूल हटाने के लिए पहल की थी। सिंचाई मंत्री रविन्द्र चौबे ने नए सिरे से सर्वे एजेंसी तय कराकर परियोजना पर गंभीरता दिखाई थी। सर्वे पूरा होने से पहले ही विरोध शुरू हो गया। पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने सबसे पहले बोधघाट परियोजना का विरोध किया। नेताम को तो पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। मगर चुनाव आते-आते बस्तर के कांग्रेस विधायकों ने ही परियोजना की खिलाफत शुरू कर दी।
बताते हैं कि बस्तर इलाके के तत्कालीन मंत्री कवासी लखमा की अगुवाई में विधायकों ने तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल से मुलाकात की थी, और चुनाव में नुकसान की आशंका जताई। इसके बाद परियोजना पर आगे का काम रुक गया। वर्तमान में सीएम साय ने पीएम से चर्चा कर परियोजना पर केंद्र से सहयोग मांगा है। चुनाव में साढ़े 3 साल बाकी है। ऐसे में सरकार राजनीतिक विरोध भी झेलने की स्थिति में है। यही नहीं, नक्सलियों का खात्मा होने के करीब है। ऐसे में बोधघाट के लिए उपयुक्त माहौल दिख रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
वीडियो और निष्कासन
प्रदेश कांग्रेस ने डोंगरगांव, और सहसपुर-लोहारा के ब्लॉक अध्यक्षों को पार्टी से निष्कासित कर दिया। दोनों के निष्कासन की अलग-अलग वजह है। कहा जा रहा है कि डोंगरगांव ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष चेतनदास साहू, पिछले कुछ समय से पीसीसी के निर्देशों की अवहेलना कर रहे थे।
साहू, डोंगरगांव विधायक दलेश्वर साहू के करीबी माने जाते हैं। यही वजह है कि उन पर कार्रवाई करने में पार्टी हिचक रही थी। मगर जैसे ही चेतनदास साहू ने डोंगरगांव नगर पालिका नेता प्रतिपक्ष पद पर अपने ही स्तर पर नियुक्ति आदेश जारी किए, तो पार्टी ने उन्हें नोटिस थमा दिया।
ब्लॉक अध्यक्ष यहां भी नहीं रूके, उन्होंने दलेश्वर के विरोधी दो जिला पंचायत सदस्यों को पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद पीसीसी ने सीधे उन्हें ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। कवर्धा जिले के सहसपुर-लोहारा के ब्लॉक अध्यक्ष रामचरण पटेल तो रंगरेलियां मनाते पकड़े गए, और लोगों ने उनकी पिटाई कर दी। इसके बाद पिटाई का वीडियो फैला, तो पार्टी के पास उन्हें निष्कासित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। सो, उन्हें बिना नोटिस दिए निष्कासित कर दिया गया।
डीजीपी, कैट से राहत नहीं
प्रशासनिक न्यायाधिकरण बैंच (कैट) ने डीजीपी की चयन प्रक्रिया में तत्काल हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। याचिका सीनियर आईपीएस पवन देव ने लगाई थी। दरअसल, रेगुलर डीजीपी के लिए 13 मई को दिल्ली में बैठक हुई थी।
पवन देव की तरफ से यह तर्क दिया गया कि डीजीपी के लिए चयन पैनल में उनका नाम शामिल नहीं किया गया है। जबकि चयन प्रक्रिया योग्यता, और अनुभव पर आधारित होनी चाहिए। इसमें वो पूरी तरह खरे उतरते हैं। सरकार की तरफ से यह कहा गया कि याचिकाकर्ता की आशंका महज मीडिया रिपोर्टों पर आधारित जिसे न्यायिक आधार नहीं माना जा सकता। कैट ने अंतरित राहत देने से मना कर दिया। प्रकरण पर अगली सुनवाई 15 जुलाई को होगी। तब तक डीजीपी चयन प्रक्रिया बिना किसी रूकावट के जारी रहेगी।
हरियाली में नजरें मिलाते चीतल
(फोटो- शिरीष दामरे)
बारिश की पहली आहट के साथ ही छत्तीसगढ़ के जंगलों में हरियाली लौटने लगी है। अचानकमार अभयारण्य की इस तस्वीर में दो चीतल अपने पूरे सौंदर्य के साथ कैमरे की ओर देख रहे हैं। हरे पत्तों से ढकी शाखाओं के बीच इनका सहज खड़ा रहना दर्शाता है कि अब जंगल में जीवन की गति तेज हो रही है। चीतल, जिन्हें उनकी सफेद बिंदियों वाली चमकदार खाल के लिए जाना जाता है, प्रकृति की सजगता और संतुलन के प्रतीक हैं। पास के नाले और घनी छांव में अब इन्हें नया उत्साह मिल रहा है। यह दीदार आप छत्तीसगढ़ के जंगलों में 15 जून तक ही कर पाएंगे, उसके बाद फिर मौका मिलेगा बारिश के बाद अक्टूबर में।
शुभ महूरत बहुत ज़रूरी था
ब्रेवरेज कार्पोरेशन चेयरमैनशिप के लिए भाजपा विधायक, और प्रभावशाली नेताओं में होड़ मची थी। मगर बस्तर के नेता श्रीनिवास मद्दी सबको पीछे छोडक़र पद पाने में कामयाब रहे।
यह कार्पोरेशन मलाईदार जरूर है, लेकिन कुख्यात भी है। ब्रेवरेजस कार्पोरेशन से जुड़े पूर्व मंत्री, और अफसर जेल में हैं। आबकारी कारोबार की जांच रही है। यही वजह है कि नवनियुक्त चेयरमैन मद्दी पदभार संभालने में हड़बड़ी नहीं दिखाई, और शुभ मुहूर्त का इंतजार किया।
मद्दी ने पंडितों से सलाह मशविरा कर मुहूर्त निकलवाया। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक स्वाति नक्षत्र को शुभ कार्य के लिए उपयुक्त माना जाता है। उस पर निर्जला एकादशी का संयोग अलग। स्वाति नक्षत्र शनिवार सुबह 9.40 से शुरू होकर रविवार को दोपहर साढ़े बारह बजे तक रहेगा। जबकि एकादशी आज खत्म हो रही है। मद्दी ने शुभ मुहूर्त में ठीक साढ़े 10 बजे पदभार ग्रहण किया। उन्होंने अपना परंपरागत वस्त्र पहने और दक्षिण भारतीय पंडितों को भी मंत्रोच्चार के लिए आयोजन में बुलाया था। अब देखना है कि ब्रेवरेजस कार्पोरेशन मद्दी के लिए कितना शुभ रहता है।
शिविर से ऐसे निकला समाधान
छत्तीसगढ़ में हाल ही में सुशासन तिहार मनाया गया। सरकार का दावा है कि हर जिले, हर गांव में समाधान शिविरों के जरिए लोगों की परेशानियों का हल निकाला गया है। कांग्रेस ने कहा- सब दिखावा है, किसी को कोई फायदा नहीं हुआ। लेकिन हकीकत दोनों दावों के बीच की है।
खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले की एक मिसाल से इसे समझ सकते हैं। एक समाधान शिविर में किसी ग्रामीण ने शिकायत कर दी कि राशन कार्ड बनवाने या उसमें सुधार करवाने के नाम पर पंचायत सचिव पैसे मांगते हैं। शिकायत तो एक ही थी, पर प्रशासन ने मान लिया कि शायद ऐसी दिक्कत और भी लोगों को हो रही होगी। फिर क्या था, प्रशासन ने पूरे जिले के पंचायत सचिवों के आईडी और पासवर्ड सील कर दिए। यानी अब वे राशन कार्ड में कोई भी बदलाव नहीं कर सकते। अब ग्रामीणों को हर सुधार या नया राशन कार्ड बनवाने के लिए सीधे जिला मुख्यालय जाना होगा। पंचायत सचिवों के पास अब कुछ करने का हक ही नहीं है, तो घूस मांगने का सवाल ही नहीं उठता! कौन वाकई पैसा मांगता था और कौन नहीं, ये छानबीन करना थोड़ा पेचीदा काम था। इसलिए सबकी पहुंच पर ही ताला जड़ देना प्रशासन को ज्यादा आसान और सही उपाय लगा होगा।
लेकिन अब हाल ये है कि गांव वाले तो पुराने ढर्रे पर सचिवों के पास पहुंच रहे हैं, जिला मुख्यालय तक पहुंच पाना सबके बस की बात भी नहीं है। सचिव उनसे हाथ जोडक़र कह रहे हैं, हमारे हाथ में अब कुछ नहीं। कई सचिवों ने कलेक्टर से गुहार लगाई है कि सबको सजा मत दो, जिसने गलती की है उसी को सज़ा दो। ग्रामीण हमारे पास आकर भटक रहे हैं। अब बताइये प्रशासन ने समाधान निकाला है या नहीं?
जुलाई से छत्तीसगढ़ को अमृत भारत!
जब वंदे भारत एक्सप्रेस चली, तो लोगों ने उसकी रफ्तार की तारीफ की, लेकिन किराये को लेकर खूब आलोचना भी हुई। कहा गया कि इतना महंगा किराया तो सिर्फ अमीर ही चुका सकते हैं। आम आदमी के लिए ये ट्रेन नहीं है। सवाल उठा कि तेज और आरामदायक सफर का हक क्या आम यात्रियों को नहीं है?
इन्हीं आलोचनाओं के बीच रेलवे ने अमृत भारत ट्रेन योजना की घोषणा की। वंदे भारत की तुलना में ये ट्रेनें किफायती होंगी और लंबी दूरी के यात्रियों को बेहतर विकल्प देंगी। कुछ रूटों पर ये ट्रेनें शुरू भी हो चुकी हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ अभी तक इस सुविधा से वंचित है।
कहा जा रहा है कि जुलाई महीने में छत्तीसगढ़ को भी पहली अमृत भारत ट्रेन मिल रही है। इस ट्रेन का रूट होगा – हावड़ा, टाटानगर, बिलासपुर, रायपुर, नागपुर, भुसावल, और कल्याण, जिसके बाद यह छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई पहुंचेगी। ट्रेन हावड़ा से सुबह 8 बजे रवाना होकर अगले दिन सुबह 10 बजे मुंबई पहुंचेगी। यानी करीब 1960 किलोमीटर की दूरी महज 26 घंटे में तय होगी।
खास बात यह कि किराया वंदेभारत की तुलना में काफी सस्ता होगा। एक हजार रुपये से भी कम, फिलहाल ऐसी जानकारी सिर्फ सोशल मीडिया पर है।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या इस ट्रेन को समय पर चलाने के लिए मालगाडिय़ों को रोक दिया जाएगा, जैसा कि वंदे भारत के लिए होता है?
वायरल वीडियो ने दिलों को झकझोर दिया
पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस के दिन एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर लोगों ने इस क्लिप का वीडियो शेयर किया, जिसमें एक गुस्साए हाथी को जेसीबी मशीन पलटते हुए देखा जा सकता है।
लोगों को वीडियो देखकर यही लगा कि ये घटना शायद छत्तीसगढ़ की है, क्योंकि यहां भी हाथियों और इंसानों के बीच टकराव अब आम बात हो गई है। कई लोग तो वीडियो देखकर दुखी हो गए, और हाथी पर किए गए अत्याचार की आलोचना करने लगे।
दरअसल, यह वीडियो पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के मालबाजार इलाके का है और घटना 2 फरवरी 2025 की है। वहां पास के जंगल से एक जंगली हाथी मालबाजार इलाके में घुस आया था। उसी दौरान एक जेसीबी मशीन जमीन की खुदाई कर रही थी। हाथी को जेसीबी से भगाने की कोशिश की गई।
हाथी शुरू में शांत था, इसी बीच किसी ने उसकी पूंछ तक खींच दी, तो वो गुस्से में आ गया और फिर जेसीबी को पलट दिया, जेसीबी चालक व सवार जान बचाकर भागे। गुस्साये हाथी ने वॉच टावर पर भी हमला कर दिया।
घटना सामने आने के बाद हाथी को सुरक्षित जंगल में खदेड़ दिया गया है। जिस जेसीबी से उसे तंग किया गया, उसे जब्त कर लिया गया। जेसीबी चालक को गिरफ्तार भी किया गया। यह घटना बताती है कि वन्यजीवों की शांति में दखल देना, उन्हें उकसाना, छेडऩा आखिरकार नुकसानदायक है। छत्तीसगढ़ में इसके चलते कई मौतें हो चुकी हैं, कुछ घायल भी हो चुके हैं।
जान से खेलने की बेवकूफी!
कोरबा में जो हुआ, वो रोंगटे खड़े कर देने वाला था। एक 18 साल का युवक सिर्फ कुछ लाइक्स और व्यूज़ के लिए अपनी जि़ंदगी को दांव पर लगाकर चलती मालगाड़ी के सामने ट्रैक पर दौड़ गया। शुक्र है कि पायलट ने वक्त रहते इमरजेंसी ब्रेक लगा दी और उसकी जान बच गई। लेकिन सोचिए, अगर इमरजेंसी ब्रेक लगाने के चलते ट्रेन ही ट्रैक छोड़ जाती तो?
वीडियो में साफ दिख रहा है कि कैसे ये युवक हीरो बनने के चक्कर में जि़ंदगी से खेल गया। रेलवे ट्रैक कोई फि़ल्म का सेट नहीं है, जहां रीटेक का मौका मिले। ट्रैक से महज 50 मीटर की दूरी पर फाटक था, जहां खड़े लोगों ने वीडियो बना लिया। अब ये वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। आरपीएफ ने मामले को गंभीरता से लिया है और युवक की तलाश शुरू कर दी है।
कल और आज
कलेक्टर रह चुके आईएएस अफसरों को जेल से रिहा होते, और प्रदेश से निष्कासित होते देखकर ठंडे कलेजे वाले एक अफसर ने कहा- कल तक जो जिलाबदर करते थे, वो खुद आज प्रदेशबदर हो गए।
कुकर की सीटी के साथ अपील
बीबीसी पर अंग्रेजी के समाचार पॉडकास्ट के बीच भारत का हिन्दी का एक इश्तहार इतनी बार सुनाया जा रहा है कि उसका असर म्युनिसिपल की कचरा गाड़ी में बजने वाले संगीत जितना हो गया है, जो कि किसी को सुनाई नहीं देता। यह इश्तहार अंग्रेजी के पॉडकास्ट के बीच हिन्दी भाषा में अटपटा लगता है, लेकिन चूंकि यह म्युचुअल फंड में पूंजीनिवेश को बनाए रखने के लिए है, इसलिए बीबीसी पर भी सुनाया जा रहा है, और हिन्दीभाषी पूंजीनिवेशकों को समझाने के लिए भी। म्युचुअलफंडसहीहैडॉटकॉम नाम की एक वेबसाइट गिनाते हुए यह भारतीय बाजार के पूंजीनिवेशकों को सुझा रहा है कि वे हड़बड़ी में रकम न निकालें, वरना वह पहली सीटी पर कुकर बंद कर देने से कच्चे रह गए खाने सरीखा हो जाएगा। अब शेयर बाजार से अपना निवेश निकालने पर जब बड़े-बड़े फिरंगी-परदेसी लगे हुए हैं, तो देसी लोगों का भी हौसला कुछ तो पस्त होना ही था।
इस इश्तहार में कुकर की सीटी इतने बार सुनाई जा रही है, और एक ही इश्तहार को लगातार चार-चार बार सुनाया जा रहा है, उससे लगता है कि शेयर बाजार कुछ अधिक ही दहशत में है।
एक के बाद दूसरी एजेंसी
आबकारी घोटाला केस में पूर्व सीएम भूपेश बघेल के करीबी विजय भाटिया से पूछताछ चल रही है। शुक्रवार को रिमांड की अवधि खत्म होने के बाद भाटिया को जिला अदालत में पेश किया जाएगा, और ईओडब्ल्यू-एसीबी पूछताछ के लिए रिमांड की अवधि बढ़ाने की मांग कर सकती है। इससे परे भाटिया से ईडी भी पूछताछ करना चाहती है।
बताते हैं कि ईडी के अफसर, ईओडब्ल्यू-एसीबी के अफसरों के संपर्क में हैं। कहा जा रहा है कि ईओडब्ल्यू-एसीबी की रिमांड खत्म होने के बाद ईडी भाटिया को पूछताछ की अनुमति देने के लिए जिला अदालत में आवेदन कर सकती है। फिलहाल भाटिया से क्या कुछ निकला है, यह आने वाले दिनों में सामने आ सकता है।
ये तबादला भी कोई तबादला है !
सरकार ने तबादले पर से बैन हटा दिया है। भाजपा कार्यकर्ताओं को बैन हटने का इंतजार था, ताकि वो अपने करीबी-रिश्तेदार अधिकारी-कर्मचारियों के तबादला करा सके। मगर तबादला पॉलिसी ऐसी बनाई है कि पार्टी के कई विधायक, और पदाधिकारी संतुष्ट नहीं हैं। सरकार ने यह साफ कर दिया है कि शिक्षक, पुलिस, वन, खनिज, और परिवहन विभाग के तबादलों पर रोक जारी रहेगी। ऐसे में पार्टी के लोग ही तबादले पर से रोक हटाने के औचित्य पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।
पार्टी के नेता बताते हैं कि वर्ष-2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद चुन-चुनकर भाजपा पदाधिकारियों के करीबियों का तबादला किया गया था, और उन्हें दूर-दराज इलाकों में पदस्थ किया गया था। सरकार बदलने के बाद ये सभी वापसी के लिए प्रयासरत थे। विशेषकर शिक्षा विभाग के सैकड़ों की संख्या में तबादले के आवेदन आ चुके हैं। मगर स्कूलों के युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया चल रही है। यही वजह है कि शिक्षकों के तबादलों पर रोक लगा दी गई है।
इसी तरह परिवहन, खनिज, और वन विभाग के तबादलों को लेकर विधायक और पार्टी के पदाधिकारी उम्मीद से थे। मलाईदार पोस्टिंग के लिए अफसर भाजपा पदाधिकारियों के आगे-पीछे हो रहे थे, लेकिन रोक जारी रहने से पदाधिकारी-अफसर मायूस हैं। कुछ पदाधिकारियों ने पार्टी संगठन तक अपनी बात पहुंचाई है। देखना है आगे क्या होता है।
कोई भरोसा नहीं मिला
डीएड अभ्यर्थियों ने सहायक शिक्षकों के रिक्त पद के लिए काउंसलिंग फिर शुरू करने के लिए काफी दबाव बना रहे हैं। छठे दौर की काउंसलिंग रूकी है। अभ्यर्थियों के मेरिट लिस्ट की वैधता खत्म होने में कुछ ही दिन बाकी है। अभ्यर्थियों को पिछली कैबिनेट में इस पर फैसले की उम्मीद थी।
अभ्यर्थी कैबिनेट से पहले एक-एक कर मंत्रियों से मिले, और उन्हें श्रीफल(नारियल) भेंट कर अपनी मांगों पर चर्चा की। मंत्रियों ने गर्मजोशी से उन्हें आश्वस्त किया कि उनकी मांगों पर कैबिनेट में चर्चा जरूर की जाएगी। मगर कैबिनेट के बाद अभ्यर्थी मंत्रियों से मुलाकात की कोशिश की, तो ज्यादातर कन्नी काट गए। परेशान अभ्यार्थी कुशाभाऊ ठाकरे परिसर से लेकर आरएसएस दफ्तर तक चक्कर काट रहे हैं। मगर उनकी मांगों पर कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं मिला।
आप भी भाजपा में चले गए?
बीते कुछ सालों के भीतर छत्तीसगढ़ के कई भूतपूर्व विधायक कांग्रेस छोडक़र भाजपा में चले गए। इनमें से कुछ लोगों के बारे में आम धारणा थी कि वे उसूलों के पक्के हैं और अवसर के लिए निष्ठा नहीं बदलेंगे। मगर, यह होता गया। बिलासपुर के पूर्व विधायक शैलेष पांडेय ने 2018 के विधानसभा चुनाव में अमर अग्रवाल का गढ़ हिला दिया। लेकिन 2023 के चुनाव में उन्हीं से बुरी तरह परास्त भी हो गए। इसके बावजूद उनकी कांग्रेस में सक्रियता पूरी ईमानदारी के साथ दिख रही है। एक ठीक-ठाक ओहदे की जरूरत उन्हें जरूर है। जिला कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नाम चल रहा था, पर बात नहीं बन पाई है। जिस तरह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को बदलने की गाहे-ब-गाहे चर्चा निकल पड़ती है, सालों से जमे जिला कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर भी बात उठती है। पर कांग्रेस में ऐसे फैसले आसानी से नहीं होते। कहा जा रहा है कि पांडेय अपना नाम आगे करने से बच भी रहे हैं क्योंकि उनको कुछ स्थानीय नेताओं ने पूरे पांच साल के विधायकी कार्यकाल में चैन से नहीं रहने दिया। राजकीय समारोह में झंडा नहीं फहराने दिया, एफआईआर करा दी। शायद, उनका विरोध अब भी उभर आए।
बहरहाल, पांडेय इस समय एक दूसरी वजह से चर्चा में हैं। कुछ दिन पहले उनके नाम और फोटो के साथ फेसबुक पर एक पेज डिस्पले हुआ। लोग चौंक गए। पांडेय इसमें खुद को भाजपा नेता बता रहे हैं। कुछ ही दिनों में यह पेज इतना पॉपुलर हो गया कि इसके 4.7 हजार फॉलोअर्स हो गए। इस पेज के क्रियेटर ने खुद 460 लोगों को फॉलो किया है। पांडेय ने अपने असली पेज पर इसका स्क्रीन शॉट शेयर किया है। लोगों को सावधान किया है और बताया है कि यह फर्जी है। लेकिन लोग इस पेज को देखकर क्या-क्या सोचने लगे थे, पांडेय की पोस्ट पर मिली प्रतिक्रियाओं से पता चलता है। जैसे एक ने लिखा- भैया, हमने तो सोच लिया था कि आपने बीजेपी ज्वाइन कर ली है। आपको फोन भी किया था, जब स्विच ऑफ मिला तब तो पक्का यकीन कर भी लिया कि आप भी चले गए। एक दूसरी प्रतिक्रिया है- भले ही आपका यह पेज फर्जी है, लेकिन आप बीजेपी के लिए ही बेहतर हैं। कुछ प्रतिक्रियाएं ऐसी हैं, जिनमें दावा किया गया है कि यह शरारत बीजेपी के लोगों ने की होगी। फेसबुक पर फर्जी पेज तैयार करना बड़ा आसान है। सारी निजी जानकारी, तस्वीरें कॉपी पेस्ट की जा सकती हैं। पांडेय के मामले में पैसे वसूली की शिकायत नहीं है, जबकि प्राय: दूसरे फर्जी पेज इसी मकसद से बनाए जाते हैं।
राज्य सेवा से आए, बेहतर काम
प्रदेश में अरसे बाद ऐसा मौका आया है जब बड़े शहरों में पुलिस की कमान राज्य पुलिस सेवा से भारतीय पुलिस सेवा में आए अफसर संभाल रहे हैं। इनमें रायपुर एसएसपी लाल उम्मेद सिंह भी हैं, जो कि रायपुर में एडिशनल एसपी रह चुके हैं।
कुछ इसी तरह का संयोग बिलासपुर, दुर्ग, कोरिया, और अंबिकापुर जैसे बड़े जिले में भी बना है। बिलासपुर एसएसपी रजनेश सिंह भी राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट हुए हैं। इसके अलावा दुर्ग एसपी विजय अग्रवाल भी राज्य पुलिस सेवा के अफसर रहे हैं। खास बात यह है कि रजनेश और विजय अग्रवाल, दोनों ही रायपुर साइंस कॉलेज से पढ़े हैं।
कोरिया एसपी रवि कुर्रे, और राजेश अग्रवाल भी प्रमोट होकर भारतीय पुलिस सेवा में आए हैं। राजेश अग्रवाल कुछ समय के लिए कवर्धा एसपी रह चुके हैं। इसी तरह सूरजपुर एसपी प्रशांत सिंह ठाकुर भी प्रमोट होकर भारतीय पुलिस सेवा में आए हैं। इससे परे सीधी भर्ती के भारतीय पुलिस सेवा के ज्यादातर अफसरों की पोस्टिंग आदिवासी इलाकों में की गई है। बस्तर के सभी सात जिलों में सीधी भर्ती के भापुसे के अफसर पदस्थ हैं, और नक्सलवाद के खात्मे में अहम रोल अदा कर रहे हैं।
सफाई का लीकेज
इस बार शहर में बारिश पूर्व इस विशेष सफाई अभियान के लिए हर जोन को 3-3 लाख अलग से दिए थे। उसके बाद कल निगम मुख्यालय से एक खबर निकली कि शहर के सवा दो सौ (224) नाले नालियों की सफाई को लेकर मेयर मैडम नाराज हैं। उसके बाद निगम से जुड़े पूर्व वर्तमान नेताओं के वाट्सएप ग्रुप में सभी एक दूसरे के कार्यकाल का हिसाब किताब लेकर बैठ गए।
एक ने कहा महापौर मैडम का नाराज होना जायज है लेकिन नाराज होने से किसी के कान में जूं नहीं रेंगने वाली क्योंकि इसमें सभी की सहभागिता है । विपक्ष में रहते मेयर मैडम को भी 3 बार का अनुभव है। और आजकल जब तक पार्षद 50-75 हजार से ले कर 1 लाख महीना सफाई ठेकेदार से वसूलेंगे तो वार्ड हो या नाले की सफाई नहीं हो सकती। इस पूर्व पार्षद ओर एमआईसी सदस्य ने कहा मैंने 10 साल पहले भरे सदन में रिकॉर्ड में ला कर कहा था कि सफाई में 50 लाख का लीकेज है । लेकिन हुआ क्या आज वो सभी 70 वार्डों में 1.5 करोड़ महीने का लीकेज हो गया है।
अगर सही में सही तरीके से इन 4000 सफाई कर्मचारियों का उपयोग करना है तो इंदौर और चंडीगढ़ पैटर्न पर सीधे खाते में उनकी दिहाड़ी का पैसा डलवाएं। तब ये 8 घंटे पूरा काम भी करेंगे और इनको 12 हजार रुपए महीने भी मिलेंगे। जो अभी 6-8 हजार सिर्फ मिलते हैं । इन पर कितना भी नाराज हो सब की मिलीभगत है तभी यह चल पाता है। 75 हजार 1 लाख जब पार्षद लेगा तो ठेकेदार और अधिकारी डेढ़ लाख तक नेगोशिएट करेंगे। उसके बाद भी सफाई ऐसी ही बदहाल रहेगी ।
अमिताभ के बाद कौन
आखिरकार सीएस अमिताभ जैन इस महीने की 30 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। जैन सीएस के पद पर सर्वाधिक समय तक रहने वाले अफसर हैं। प्रशासनिक हलकों में उनके उत्तराधिकारी को लेकर कयास लगाए जा हैं। वैसे तो वरिष्ठता क्रम में 91 बैच की अफसर रेणु पिल्ले अव्वल नंबर पर हैं। एसीएस रेणु माध्यमिक शिक्षा मंडल की चेयरमैन हैं। इसके बाद 92 बैच के अफसर एसीएस सुब्रत साहू का नंबर हैं, और वो सहकारिता विभाग का प्रभार संभाल रहे हैं।
चूंकि 93 बैच के अफसर अमित अग्रवाल केन्द्र सरकार में हैं, तो 94 बैच के अफसर एसीएस ऋचा शर्मा और गृह विभाग के एसीएस मनोज पिंगुआ भी मजबूती से सीएस की दौड़ में शामिल बताए जा रहे हैं। अब सीएम विष्णुदेव साय क्या फैसला लेते हैं, इसको लेकर भी अटकलें लगाई जा रही है। वैसे तो साय ने ट्रांसफर-पोस्टिंग के मसले पर यथा संभव उन्होंने मेरिट को ही तवज्जो दिया है। ऐसे में नया सीएस कौन होगा, इसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं।
सबसे वरिष्ठ अफसर रेणु पिल्ले की साख बहुत अच्छी है, लेकिन वर्क-टू-रूल की अपनी विशिष्ट कार्यशैली के चलते विभागों के मुखिया उनसे सहज नहीं रहे हैं। यही वजह है कि ज्यादातर मौकों पर उनकी पोस्टिंग मंत्रालय के बाहर माध्यमिक शिक्षा मंडल, प्रशासन अकादमी जैसे संस्थानों में होती रही है, जहां राजनीतिक हस्तक्षेप की गुंजाइश नहीं के बराबर रहती है। इससे परे सुब्रत साहू, तो पिछली सरकार में सीएम के एसीएस रहे हैं। साय के सीएम बनने के बाद भी वो कुछ समय तक वो सीएम सचिवालय का काम देखते रहे हैं। इसके बाद उन्हें प्रशासन अकादमी भेज दिया गया था, और कुछ समय पहले ही उन्हें सहकारिता जैसा अहम दायित्व मिला है।
सुब्रत के बाद 93 बैच के अमित अग्रवाल का नंबर आता है, जो कि केन्द्र सरकार में सचिव हैं। अमित के बाद 94 बैच के ऋचा शर्मा, और मनोज पिंगुआ के नाम पर भी काफी चर्चा हो रही है। ऋचा ने वन विभाग के मुखिया के रूप में अच्छा काम किया है। मगर उन्हीं के बैच के 94 बैच के ही अफसर मनोज पिंगुआ का नाम मजबूती से उभरा है। पिंगुआ, पिछली और वर्तमान दोनों सरकार की ही पसंद रहे हैं। पिंगुआ केन्द्र सरकार में भी काम कर चुके हैं। ऐसे में नया सीएस कौन होगा, इसको लेकर चर्चा चल रही है।
एक्सटेंशन का भी हल्ला
हालांकि अमिताभ जैन को सीएस के पद पर चार साल हो चुके हैं। बावजूद इसके उन्हें एक्सटेंशन दिए जाने की संभावना जताई जा रही है। ये अलग बात है कि अभी राज्य सरकार की तरफ से एक्सटेंशन को लेकर कोई प्रस्ताव नहीं भेजा गया है।
अगर राज्य सरकार प्रस्ताव भेजती है, तो कम से कम तीन या छह महीने का एक्सटेंशन मिल सकता है। केन्द्र सरकार ने मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, और झारखंड के सीएस को तीन से छह माह तक का एक्सटेंशन दिया है। यही नहीं, केन्द्र सरकार ने भाजपा शासित राज्य में केंद्र से अपनी पसंद का सीएस भेजकर पदस्थापना करवाई है। उत्तर प्रदेश में डीएस मिश्रा के सीएस पद पर नियुक्ति इसका उदाहरण है। वो केंद्र में सचिव थे, बाद में उन्हें उत्तर प्रदेश भेजा गया, और सीएस बनाया गया। बाद में एक्सटेंशन भी मिला। अगर ऐसा कुछ हुआ, तो अमित अग्रवाल के लिए भी संभावनाएं बन सकती है।
एक चर्चा यह भी
प्रशासनिक हलकों में एसीएस स्तर के अफसर के लिए केंद्र से सिफारिश की चर्चा है। इस पर राज्य सरकार क्या सोचती है, यह साफ नहीं है। फिलहाल जितनी मुंह, उतनी बातें। 30 तारीख तक अटकलों का बाजार गरम रहेगा।
शरण देने वालों पर पुलिस की चुप्पी
छत्तीसगढ़ में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई हाल के महीनों में सुर्खियों में रही है। कल दुर्ग से दो विदेशी नागरिकों को फिर से पकड़ा गया है। राज्य के गृह मंत्री विजय शर्मा के अनुसार, बस्तर से 500 और कवर्धा से 350 घुसपैठियों को देश से बाहर भेजा गया है, जबकि 46 लोगों को जेल की सलाखों के पीछे डाला गया है। ‘ऑपरेशन समाधान’ के तहत 2000 से अधिक कामगारों की जांच की गई, जिसमें 150 लोग वैध दस्तावेज दिखाने में नाकाम रहे।
अवैध प्रवासी देश की सुरक्षा, स्थानीय अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरा जरूर है, लेकिन इस पूरे परिदृश्य में एक जरूरी सवाल पर पुलिस चुप है। वह ये कि, इन घुसपैठियों को शरण देने वालों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
यह घुसपैठिए अचानक आसमान से नहीं टपके। उन्होंने जाली आधार कार्ड, वोटर आईडी और अन्य भारतीय पहचान-पत्र बनवाए जो जाहिर है, स्थानीय स्तर पर किसी की मदद से ही संभव हो रहा है। फिर वे सामान्य मजदूरों की तरह काम करने लगे, महिलाएं घरेलू काम या छोटे-मोटे अनौपचारिक क्षेत्र में घुलमिल गईं। जो लालच में या अनजाने में, इन्हें रहने की जगह, नकली दस्तावेज, और रोजगार मुहैया कराते हैं उन पर अब तक शायद ही कोई कार्रवाई हुई हो।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 111(5) और पुराने भारतीय दंड संहिता की धारा 212 के अनुसार, किसी अपराधी को शरण देना एक बड़ा अपराध है, जिसकी सजा 5 साल की जेल और जुर्माने तक हो सकती है। यदि मामला आतंकवाद से जुड़ा हो, तो सजा आजीवन कारावास तक बढ़ सकती है। अवैध घुसपैठियों को पकडऩा आधा समाधान है।
वैसे बात केवल बांग्लादेशी या विदेशी घुसपैठियों की ही नहीं है। देश के अन्य राज्यों से आकर छत्तीसगढ़ में किराये पर रहने वाले अनेक लोग अपराध में लिप्त हैं। पुलिस अक्सर एक औपचारिक घोषणा कर देती है कि मकान मालिक अपने किरायेदारों की जानकारी नजदीकी थाने में दें, लेकिन हकीकत यह है कि अधिकांश लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं। अनजाने में हो या जानबूझकर।
दो एसपी दिल्ली की ओर ?
मंत्रालय में प्रशासनिक के साथ-साथ पुलिस में भी फेरबदल की अटकलें लगाई जा रही है। चर्चा है कि दो एसपी व्यक्तिगत कारणों से केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते हैं। उन्होंने विभाग के शीर्ष अफसरों तक अपनी बात पहुंचा दी है। ऐसी स्थिति में आईपीएस अफसरों के तबादले की एक सूची जारी हो सकती है।
पहली बारिश में वन का श्रृंगार
प्रकृति जितनी सरल दिखती है, उतनी ही रहस्यमयी भी है। हर रंग, हर गंध, हर जीवन अपनी दास्तान कहता है। बस ठहरकर महसूस करने की जरूरत है। इन दिनों पहली फुहारें क्या गिरीं, जंगल जैसे जाग उठा। पत्तों पर बूंदें थिरकने लगी। मिट्टी से सौंधी खुशबू आने लगी। पेड़ों ने हरी चुनर सजा ली। हर शाख स्वर्णिम हो गया। शीतल हवा चलने लगी। जमीन को चीरते हुए कंद फूटने लगे और फूल मुस्कुराने लगे हैं। उस पर बैठी तितली जीवन रस ले रही है। पहली बारिश के बाद खींची गई यह तस्वीर प्रकृति प्रेमी प्राण चड्ढा ने अचानकमार अभयारण्य के समीप ली है।
चैम्बर में वोकल फॉर लोकल
भाजपा के रणनीतिकार व्यापारी संगठनों की राजनीति को लेकर चिंतित हैं। चैम्बर ऑफ कॉमर्स में तो पार्टी के करीबी सतीश थौरानी, और उनकी टीम निर्विरोध आ चुकी है, लेकिन पूर्व चैम्बर अध्यक्ष अमर पारवानी को संरक्षक मंडल में शामिल नहीं करने पर उनके करीबी व्यापारी नेता नाराज हैं।
पारवानी ने कैट के बैनर तले व्यापारियों के बीच अपनी ताकत दिखाने के लिए एक सम्मेलन करने जा रहे हैं। कार्यक्रम का नाम है संकल्प-वोकल फॉर लोकल। यानी देशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए अभियान शुरू किया जा रहा है। यह कार्यक्रम 6 तारीख को समता कॉलोनी में होगा। इसमें स्पीकर डॉ. रमन सिंह मुख्य अतिथि, और कार्यक्रम की अध्यक्षता विधायक सुनील सोनी करेंगे। पूर्व मंत्री राजेश मूणत व अमर पारवानी विशेष अतिथि के रूप में मौजूद रहेंगे।
राष्ट्रवाद से परिपूर्ण इस कार्यक्रम में प्रदेशभर के व्यापारियों को आमंत्रित किया जा रहा है। चूंकि वोकल फॉर लोकल, भाजपा का एजेंडा रहा है। ऐसे में भाजपा के लोग कार्यक्रम से जुड़ रहे हैं। कुछ लोग मान रहे हैं कि कैट की सक्रियता से व्यापारी संगठन बंट सकते हैं। इन सबको लेकर भाजपा के नेता परेशान हैं। देखना है कि दोनों संगठनों के बीच पार्टी किस तरह तालमेल बिठाती है।
मस्ती, शरारत और सेहत का साथी अब उपेक्षित
भारत दुनिया का वह देश है जहां सबसे ज़्यादा लोग साइकिल चलाते हैं। लेकिन हैरानी की बात ये है कि यहां साइकिल चालकों के लिए सुरक्षित ट्रैक या लेन कहीं नहीं मिलती। चाहे राजधानी रायपुर हो या कोई छोटा शहर, भारी ट्रैफिक के बीच साइकिल सवार अपनी जान जोखिम में डालकर सडक़ों पर उतरते हैं।
बीते कुछ सालों की तरह इस साल भी पुलिस और प्रशासन का साइकिल चलाओ, स्वस्थ रहो जैसा आयोजन हो रहा है। छत्तीसगढ़ में भी कई जगहों पर बच्चों की साइकिल रैलियां हो रही हैं, मंत्री झंडी दिखा रहे हैं, तस्वीरें छप रही हैं, मगर कोई ये नहीं पूछता कि रैली के बाद ये बच्चे या आम लोग रोज साइकिल चलाएं तो चलाएं कहां? रैली के लिए सडक़ें खाली करा दी जाती है, यातायात पुलिस तैनात रहती है- मगर आम दिनों में?
गौरव पथ जैसा चमचमाता रास्ता हो या भीड़-भाड़ वाला बाजार-साइकिल के लिए एक कोना भी सुरक्षित नहीं है। सरकारों से भी सवाल है। पर्यावरण संरक्षण के नाम पर जब ई-वाहनों और हाईवे के लिए करोड़ों की योजनाएं बन रही हैं, तो साइकिल चालकों के लिए भी कोई नीति क्यों नहीं बनती? क्यों नहीं तय किया जाता कि हर नई शहरी योजना में साइकिल ट्रैक अनिवार्य हों?
कभी वक्त था जब स्कूल, कॉलेज जाने का सबसे बड़ा साथी साइकिल होती थी। उसके साथ मस्ती होती थी, शरारतें होती थीं, दोस्त बनते थे। मोहल्लों में साइकिल की घंटी बजती थी तो कई कहानियां चल पड़ती थीं। आज भी स्कूल-कॉलेज दूर हैं, लेकिन अगर मां-बाप से कह दो कि बच्चे को साइकिल से भेजिए, तो डर के मारे उनकी जान सूख जाए। क्योंकि सडक़ पर सबसे असुरक्षित कोई है तो वो पैदल चलने वाला या साइकिल सवार।
याद कीजिए कांशीराम को। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छत्तीसगढ़ की जांजगीर लोकसभा सीट से की थी। तब उनके पास कोई साधन नहीं था। बस एक साइकिल, एक बैग और एक अटूट संकल्प। 70-80 के दशक में वे बामसेफ संगठन को खड़ा करने के लिए साइकिल पर देशभर में घूमते रहे। उनकी यही यात्रा आगे चलकर बहुजन समाज पार्टी की नींव बनी। मेजर ध्यानचंद और मिल्खा सिंह जैसे दिग्गज खिलाड़ी भी अपनी सेहत का राज साइकिल को मानते थे। और कौन भूल सकता है उस डाकिए को जो चि_ियों का बैग लटकाए मोहल्लों में घूमता था? अब ये डाकिये भी बाइक पर आते हैं। शहर से बाहर निकल जाएं तो आपको साइकिलों की कतार मिल जाएगी। वे लोग जो रोज गांव से जान की बाजी लगाकर साइकिल पर शहर आते हैं, अमीरों के घर, दुकानों और फैक्ट्रियों में काम करने।
साइकिल खत्म नहीं हुई है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में तो ये आज भी जीवन का जरूरी हिस्सा है। दंतेवाड़ा, बस्तर, बलरामपुर और सरगुजा जैसे जिलों में स्कूल जाते बच्चे, किसान और वनकर्मी साइकिल पर ही चलते हैं। लेकिन सरकार का ध्यान बुलेट ट्रेन, इलेक्ट्रिक वाहनों और एक्सप्रेसवे पर है। पर्यावरण और सेहत बचाने वाली साइकिल पर नहीं। अब समय है कि साइकिल को फिर से उसका हक और सम्मान मिले। नीति में भी और सडक़ों पर भी। क्योंकि साइकिल सिर्फ पहिए नहीं घुमाती, विचार भी बदल सकती है। संलग्न तस्वीर बस्तर की है।
भाटिया से कांग्रेस में हलचल
आबकारी घोटाला केस में पूर्व सीएम भूपेश बघेल के करीबी विजय भाटिया को ईओडब्ल्यू-एसीबी ने दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया। भाटिया ईओडब्ल्यू-एसीबी की रिमांड पर हैं। सुनते हैं कि भाटिया को ईओडब्ल्यू-एसीबी ने 30 तारीख की शाम को ही अपनी हिरासत में ले लिया था।
दिल्ली में ही भाटिया से पूछताछ चल रही थी , और फिर उन्हें एक तारीख को फ्लाइट से नागपुर लाया गया। वहां से सडक़ मार्ग से रायपुर लाया, और फिर विधिवत गिरफ्तारी कर विशेष अदालत में पेश किया गया। भाटिया अभी ईओडब्ल्यू-एसीबी की रिमांड पर हैं। भाटिया, पूर्व सीएम के राजनीति के शुरुआती दिनों से जुड़े रहे हैं। लो-प्रोफाइल में रहने वाले विजय भाटिया, भूपेश बघेल के दिल्ली दौरे में साथ होते थे। और अब उनकी गिरफ्तारी हुई है, तो कांग्रेस में हलचल है। भाटिया का परिवार तो फर्नीचर के कारोबार से जुड़ा रहा है। उनका भिलाई-3 में फर्नीचर का शो-रूम है।
भाटिया से ईडी ने पहले भी पूछताछ की थी, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। यह कहा जा रहा है कि ईओडब्ल्यू-एसीबी आबकारी घोटाले में भाटिया की संलिप्तता के पुख्ता साक्ष्य मिले हैं। एक शराब फर्म में उनकी हिस्सेदारी का दावा भी हो रहा है। यह भी चर्चा है कि शराब घोटाले के तार दूर तक जुड़े हैं। अब इन दावों में कितना दम है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
छापेमारी के विरोध में बाजार बंद!
राष्ट्रीय स्तर पर कल जब यह खबर चल रही थी कि जीएसटी संग्रह लगातार दूसरे महीने 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक पहुंच गया है, लगभग उसी समय अंबिकापुर में बाजार बंद था और व्यापारी जीएसटी अफसरों के तौर-तरीकों के खिलाफ सडक़ पर उतरे थे। वहां दो प्रतिष्ठानों पर छापेमारी के बाद माहौल गरमा गया। रविवार के दिन अंबिकापुर में साप्ताहिक बाजार की बड़ी चहल-पहल होती है, लेकिन ऐसे छोटे कारोबारी भी दुकानें बंद कर प्रदर्शन में उतर गए, जो जीएसटी के दायरे में नहीं आते। व्यापारियों का कहना था कि जीएसटी अफसर बार-बार छापा मारते हैं। वह व्यापारियों को चोर समझते हैं। लक्ष्मी ट्रेडर्स पर तो छह माह के भीतर तीसरी बार छापेमारी की गई। हालांकि जीएसटी विभाग ने उन दोनों संस्थानों के बारे में शाम को दावा किया कि इन पर पहले कोई कार्रवाई नहीं की गई है। करोड़ों के टर्नओवर में जीएसटी भुगतान शून्य दिखाया गया। उन पर लगाई गई पेनाल्टी का भी ब्योरा अफसरों ने दिया।
जीएसटी की कार्रवाई के खिलाफ व्यवसायियों का सडक़ पर उतरना छत्तीसगढ़ में पहली बार हुआ है, पर दूसरे राज्यों में पहले भी ऐसा हो चुका है। यूपी, एमपी और उत्तराखंड में प्रदर्शन हो चुके हैं। सन् 2022 में तो यूपी स्टेट जीएसटी को 72 घंटे तक सर्वे और छापेमारी का काम रोकना पड़ा था। जीएसटी प्रणाली जब से लागू हुई है, इसकी जटिलताओं को लेकर सवाल उठते रहे हैं। छोटे शहरों के कई व्यापारी डिजिटल नियमों, आईटीसी क्रेडिट और टैक्स स्लैब की पेचीदगियों को अब तक ठीक से समझ नहीं पाए हैं। अंबिकापुर के मामले में भी व्यापारियों का कहना है कि अफसर किस तरह से पेनाल्टी और टैक्स का निर्धारण कर रहे हैं, वे यह उन्हें समझा नहीं पा रहे हैं।
कुछ दशक पहले सेल्स टैक्स इंस्पेक्टरों को छापेमारी के जो अधिकार मिले थे, उसे ‘इंस्पेक्टर राज’ के नाम से जाना जाता था। व्यापारियों का अंबिकापुर में हुआ प्रदर्शन बताता है कि वे उसी दौर की दहशत को फिर से महसूस कर रहे हैं।
दूसरी ओर, जीएसटी अफसरों की भी अपनी चिंता होगी। अप्रैल के आंकड़ों के मुताबिक, छत्तीसगढ़ देश के कर संग्रह वाले राज्यों में 15वें नंबर पर रहा। हालांकि सरकार ने इसे उपलब्धि के तौर पर माना है, लेकिन राज्यों के आकार और आबादी के अनुसार यह औसत से कम संग्रह है। जीएसटी अफसरों पर दबाव होगा कि वे जीएसटी चोरी के मामलों को रोकें और कलेक्शन बढ़ाएं। दूसरी ओर, इसी का फायदा यह है कि छापेमारी, सर्वे के दौरान व्यापारियों को बताया जाए कि जुर्माना 50 लाख रुपये की जगह 20 लाख रुपये कर देंगे, यदि 10 लाख रुपये अलग से उनकी जेब में डाल दें — यह आरोप अंबिकापुर के व्यापारियों ने प्रदर्शन के दौरान ही लगाया है।
आम आदमी का पक्ष इसमें भूल ही जाइए। रिजर्व बैंक से लेकर नीति आयोग तक चिंता जता रहे हैं कि आम लोगों की खर्च करने की क्षमता घटती जा रही है। जीएसटी संग्रह पर सरकारों को अपनी पीठ थपथपाने में आनंद आ रहा है, लेकिन आम लोग घर से बाहर निकलते ही हर सामान और प्रत्येक सेवा पर जीएसटी के बोझ को ढो रहे हैं।
हाईटेक ट्राइबल संग्रहालय
नवा रायपुर के पुरखौती मुक्तांगन के पास बना एक नयाआदिवासी संग्रहालय एवं अनुसंधान केंद्र खुला है। यहां छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति, जीवनशैली, परंपराएं, शिक्षा, भोजन, पहनावा, शिकार व्यवस्था और रोजगार तक को एक ही छत के नीचे शानदार ढंग से प्रदर्शित किया गया है। इस हाई-टेक संग्रहालय की खास बात यह है कि हर गैलरी में स्क्रीन लगे हैं, जिन पर आप मोबाइल की तरह स्क्रॉल करके जानकारी पढ़ सकते हैं। साथ ही, हर गैलरी में एक क्यूआर कोड भी दिया गया है, जिसे स्कैन करके विस्तृत जानकारी मोबाइल में पाई जा सकती है।
निकले और प्रदेश छोड़ चले गए
कोयला घोटाले के आरोपी आईएएस रानू साहू, समीर विश्नोई, और सौम्या चौरसिया, खनिज अफसर संदीप नायक, और ट्रांसपोर्टर वीरेंद्र जायसवाल व रजनीकांत तिवारी रिहाई के बाद प्रदेश छोडक़र चले गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को सशर्त जमानत दी है। उन्हें जमानत की अवधि में प्रदेश से बाहर रहना होगा। और एक हफ्ते में नए पते की सूचना जिला अदालत को देनी होगी।
बताते हैं कि सभी आरोपी शनिवार को कुछ घंटे अपने परिवार के साथ गुजारने के बाद अलग-अलग प्रदेशों में चले गए हैं। आरोपियों के वकील सोमवार को नए पते की सूचना कोर्ट को देंगे। समीर विश्नोई राजस्थान, और सौम्या कर्नाटक शिफ्ट होने की चर्चा है। कर्नाटक के बेंगलुरु में सौम्या के परिवार के सदस्य निवासरत हैं। बाकी आरोपियों का ठिकाना पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश होगा। इस प्रकरण में सूर्यकांत तिवारी भी आरोपी हैं, और वो जेल में बंद हैं। सूर्यकांत को पहली बार जांच एजेंसी ने बेंगलुरु से ही पकड़ा था।
कहा जा रहा है कि उनकी तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जमानत आवेदन विलंब से पेश किया गया है। इसलिए बाकी आरोपियों की याचिका के साथ सुनवाई नहीं हो पाई। प्रकरण पर सुनवाई संभवत: अगले महीने हो सकती है। तब तक उन्हें जेल में ही रहना होगा।
वेतन आयोग फिलहाल प्राथमिकता नहीं
केंद्र सरकार द्वारा जनवरी 2025 में आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी थी। उसके बाद से पांच माह बीत गए हैं और अध्यक्ष सदस्यों की नियुक्ति को लेकर सरकार की चुप्पी ने लाखों सरकारी कर्मचारियों के बीच चिंता बढ़ा दी है। सरकार की प्राथमिकता अभी आयोग नहीं ऑपरेशन सिंदूर और पीओके हो गई है।
16 जनवरी के बाद से कर्मचारी हल्कों में लगातार अटकलें लगाई जा रही हैं लेकिन कोई ठोस जानकारी सामने नहीं आई है। यह स्थिति कर्मचारियों की बेचैनी बढ़ाने का काम कर रही है। हालांकि आयोग के लिए प्रतिनियुक्ति के आधार पर लगभग 35 पदों को भरने सर्कुलर जारी किया था ताकि आयोग का कार्यकारी ढांचा तैयार किया जा सके। मार्च 2025 तक आयोग के टर्म्स ऑफ रेफरेंस की समीक्षा के लिए रक्षा, गृह और कार्मिक जैसे प्रमुख मंत्रालयों को संदर्भ भेजे गए थे।
इन सभी तैयारियों से यह स्पष्ट था कि सरकार आयोग के गठन को लेकर गंभीर है। लेकिन इन प्रारंभिक कदमों के बाद भी मुख्य नियुक्तियों में देरी हो रही है जो चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस देरी के पीछे कई जटिल प्रशासनिक और नीतिगत कारण हो सकते हैं। मई के अंत तक की स्थिति को देखते हुए 1 जनवरी 2026 की निर्धारित समयसीमा पूरी करना एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। वर्तमान में सातवें वेतन आयोग का कार्यकाल 31 दिसंबर 2025 को समाप्त हो रहा है और केवल सात महीने का समय बचा है।
पिछले वेतन आयोगों के अनुभव को देखते हुए आम तौर पर सिफारिशों को तैयार करने और लागू करने में 12 से 18 महीने का समय लगता है। यदि आयोग का गठन भी जून या जुलाई में हो जाता है तो भी समय सीमा पूरी करना कठिन लगता है। इस स्थिति में कर्मचारियों को धैर्य रखना होगा और वास्तविक अपेक्षाएं करनी होंगी। सरकार की प्राथमिकताओं और उपलब्ध संसाधनों को देखते हुए यह देरी अपरिहार्य लग रही है। वैसे भी अभी देश में कहीं कोई चुनाव नहीं है। बिहार के चुनाव आते आयोग भी काम शुरू कर देगा।
क्या अब गांव-गांव में कैमरे लगाएं?
रायपुर-बलौदाबाजार मार्ग पर 11 मई की रात हुए भीषण सडक़ हादसे में 13 लोगों की जान गई, 12 घायल हुए। अब कल छुईखदान में फिर एक हादसा हो गया। तेंदूपत्ता तोडऩे जा रहे मजदूरों से भरी माजदा पलट गई, तीन की मौत हो गई, आठ गंभीर रूप से घायल हैं। ठीक पिछले साल मई में भी कवर्धा जिले में पिकअप पलटने से 19 तेंदूपत्ता मजदूरों की मौत हो गई थी, जिनमें अधिकतर महिलाएं थीं। तब सरकार और पुलिस ने खूब सख्ती दिखाई थी। सवारी वाले मालवाहकों की जगह-जगह जांच, चालान, रोक-टोक। लेकिन जोश कुछ ही हफ्तों में ठंडा पड़ गया। इस बार भी- बलौदाबाजार हादसे के बाद कुछ दिनों की सतर्कता और फिर सब कुछ सामान्य हो गया। हल्के और मध्यम श्रेणी के मालवाहक वाहनों में मजदूरों को ढोना एक आम बात बन चुकी है। सरकार भी जानती है, पुलिस भी। प्राय: ऐसे वाहनों के ड्राइवर नशे में होते हैं, सवारियों की संख्या ओवरलोड होती हैं, और कई बार ड्राइविंग लाइसेंस तक नहीं होता।
इधर शहरों में और चुनिंदा हाईवे पर ट्रैफिक कैमरे हैं, छोटी गलती पर चालान कट जाता है। दुपहिया पर तीन सवारी हो, सीट बेल्ट न पहनी हो, रफ्तार तेज हो तो नोटिस घर आ जाता है। पर ग्रामीण इलाकों में जहां बड़े हादसे हो रहे हैं, वहां पुलिस की आंखें या तो बंद हैं, या मौजूद ही नहीं। कैमरा नहीं तो चालान नहीं, और चालान नहीं तो जिम्मेदारी भी नहीं। चलिये मजदूरों को इन वाहनों में ढोने से आप पूरी तरह नहीं रोक पा रहे हैं पर क्या हादसे होने से पहले कुछ और नहीं किया जा सकता? ट्रैफिक पुलिस यदि शहर के बाहर, कस्बों में दिख जाएं तो मान कर चलिये कि वे हादसे रोकने के लिए नहीं बल्कि वीआईपी मूवमेंट के कारण वहां खड़े होते हैं। आम दिनों में क्या ड्राइवरों की जांच हो रही है? क्या गाडिय़ों की फिटनेस देखी जा रही है? सवाल यह है कि क्या अब दुर्घटनाओं के रुकने की उम्मीद तभी की जाएगी, जब गांव-गांव की सडक़ों पर कैमरे निगरानी करने लगें? क्योंकि पुलिस की मौजूदा निगरानी व्यवस्था तो पूरी तरह फेल दिखाई देती है। इस तस्वीर को ही देख लीजिए, जो बिलासपुर-रायपुर हाईवे में सरगांव के पास की है।
शिक्षकों का बाहुबल
सरकारी कर्मचारियों में शिक्षक संगठन को पावरफुल माना जाता है। भले ही शिक्षकों के दर्जन भर से अधिक संगठन हैं लेकिन अहम मसले पर एकजुट हो जाते हैं। शिक्षकों की मांगों पर सरकार को कई बार झुकना भी पड़ा है।कुछ ऐसा ही युक्तियुक्तकरण मामले पर भी होता दिख रहा था।
सर्व शिक्षक संगठन के बैनर तले शिक्षक संगठनों ने युक्तियुक्तकरण का विरोध किया, तो कहा जा रहा था कि सरकार युक्तियुक्तकरण शायद ही कर पाएगी। मगर सरकार ने साफ कर दिया है कि ग्रामीण इलाके शिक्षक विहीन, और एकल शिक्षकीय स्कूलों युक्तियुक्तकरण कर अतिशेष शिक्षकों की पदस्थापना कर दी जाएगी। अभी तक शिक्षक संगठनों का विरोध कारगर नहीं दिख रहा है। काउंसलिंग के लिए जिस तरह शिक्षकों की भीड़ उमड़ी है, उससे शिक्षक संगठनों का विरोध बेअसर दिखाई दे रहा है। आगे क्या होता है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
नक्सल मुक्ति के बाद पुलिस का चेहरा ऐसा होगा?
बीजापुर जैसे नक्सल प्रभावित इलाके में पुलिस से उम्मीद यह होनी चाहिए कि वह आम जनता का विश्वास जीते, ताकि लोग शासन-प्रशासन के प्रति भरोसा मजबूत करें। सोशल मीडिया पर अक्सर पुलिस अफसरों की ऐसी तस्वीरें या वीडियो सामने आते हैं, जिनमें वे यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे आम लोगों के साथ संवेदनशील और आत्मीय व्यवहार करते हैं।
अब जब सरकार और सुरक्षा बल यह दावा कर रहे हैं कि बस्तर बहुत जल्द नक्सल मुक्त हो जाएगा, तो यह एक बड़ा सवाल है कि उसके बाद पुलिस का आम लोगों से व्यवहार कैसा होगा? यह उम्मीद की जानी चाहिए कि माहौल बदलने के साथ पुलिस का रुख और अधिक मानवीय होगा।
मगर, एक बीजापुर जिले के कुटरू इलाके की यह घटना चिंता बढ़ाने वाली है। आरोप है कि एसडीओपी बृजकिशोर यादव ने एक पंचायत सचिव और उसके सहायक के साथ सडक़ पर खुलेआम मारपीट की। कथित रूप से उन्होंने दोनों को कॉलर पकडक़र गाड़ी से बाहर निकाला, बंदूक की नोक पर जमीन पर गिराया, छाती पर जूतों से मारा और बेल्ट निकालकर पीटा। फिर अपशब्द कहकर धमकी देते हुए छोड़ दिया। पंचायत सचिव की गलती सिर्फ इतनी थी कि वह अपनी कार से आगे चल रहा था और पीछे से आ रही एसडीओपी की गाड़ी को संकरी पुलिया आने की वजह से जल्दी साइड नहीं दे सका।
यह कोई साधारण पुलिसिया फटकार नहीं, बल्कि सत्ता के दंभ में डूबे हुए एक अफसर की असंवेदनशील और अपमानजनक हरकत है। आम लोगों के प्रति पुलिस का नजरिया क्या है, उसका एक प्रतिबिंब है। घटना से पंचायत विभाग के कर्मचारियों में भारी आक्रोश है। आम नागरिकों में भी रोष है। उन्होंने भैरमगढ़ थाने पहुंचकर विरोध जताया। भाजपा के लोग भी इस विरोध में शामिल हुए। लोगों की मांग थी कि एसडीओपी पर एफआईआर दर्ज की जाए, लेकिन थाने में कोई स्टाफ इतना साहस नहीं जुटा पाया कि वह अपने ही अफसर के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सके।
फिलहाल मामला शांत नहीं हुआ है। पंचायत कर्मियों ने चेतावनी दी है कि यदि एफआईआर दर्ज नहीं की गई, तो वे काम का बहिष्कार करेंगे।
यह घटना एक गंभीर सवाल उठाती है। यदि वाकई बस्तर नक्सल मुक्त हो गया और पुलिस को उन गांवों तक निर्बाध पहुंच मिल गई, जहां पहले उसे फोर्स के साथ जाना पड़ता था, तब वहां आम जनता के साथ उसका व्यवहार कैसा होगा? पुलिस अपने अधिकारों का उपयोग जनहित में करेगी या फिर पद के गुरूर में दमन का नया सिलसिला शुरू हो जाएगा? क्या नक्सल मुक्त बस्तर में एक जवाबदेह पुलिस व्यवस्था बनाई जाएगी?
रिहाई पर छाई धुँध
चर्चित कोयला घोटाला प्रकरण में निलंबित आईएएस रानू साहू, समीर विश्नोई के साथ ही सौम्या चौरसिया, और कारोबारी सूर्यकांत तिवारी को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी है। मगर उनकी रिहाई को लेकर संशय कायम है। जमानत में यह भी शर्त है कि आरोपियों को छत्तीसगढ़ से बाहर रहना होगा। ये सभी आरोपी पिछले दो साल से अधिक समय से जेल में हैं।
प्रकरण की जांच से जुड़े एक अफसर ने इस संवाददाता से अनौपचारिक चर्चा में बताया कि कोर्ट ने कोयला घोटाले से जुड़े सभी प्रकरणों पर जमानत दी है। कोर्ट के आदेश का परीक्षण किया जा रहा है, और इसको लेकर कानूनी सलाह ली जा रही है।
एक सरकारी वकील ने आरोपियों की अंतरिम जमानत पर कहा कि आरोपियों ने जिला अदालत में अभी जमानत के लिए आवेदन नहीं लगाया है। अभी आरोपियों के खिलाफ ईओडब्ल्यू-एसीबी में नए कोई मामले दर्ज हैं या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है। यदि नए मामले दर्ज होते हैं, तो रिहाई मुश्किल है। कुल मिलाकर रिहाई के मसले पर एक-दो दिनों में स्थिति साफ होने की उम्मीद है।
नेताम के संघ में जाने के मतलब !!
हमर राज पार्टी के मुखिया, और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम की अचानक पूछ परख बढ़ गई है। नेताम को आरएसएस ने नागपुर के एक कार्यक्रम में प्रमुख अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का उद्बोधन होगा। नेताम के कार्यक्रम में आमंत्रण के मायने तलाशे जा रहे हैं।
दरअसल, बस्तर में आरएसएस काफी सक्रिय है, और मतांतरण आदि के मसले पर काफी मुखर भी है। नेताम पांच बार कांग्रेस के सांसद रहे। राज्य बनने से पहले उनकी गिनती कांग्रेस के ताकतवर नेताओं में होती रही है। मगर उनके नाम सबसे ज्यादा दल बदल का रिकॉर्ड भी है। नेताम कांग्रेस छोडक़र कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी में चले गए थे। उन्होंने कांकेर, और जांजगीर-चांपा सीट से चुनाव लड़ा था, और दोनों जगह उनकी जमानत जब्त हो गई। इसके बाद वो कांग्रेस में आ गए, और फिर पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में चले गए।
बाद में नेताम भाजपा में शामिल हो गए। डॉ. चरणदास महंत के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद नेताम फिर कांग्रेस में आ गए। वो दिवंगत पूर्व सांसद सोहन पोटाई के साथ मिलकर सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले काम करने लगे।
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद बोधघाट परियोजना के मसले पर सीएम भूपेश बघेल से अनबन हुई, और नेताम ने फिर कांग्रेस छोड़ दी। उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले हमर राज पार्टी का गठन किया, और ज्यादातर सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए। ऐसी चर्चा है कि नेताम को नई पार्टी गठन के लिए भाजपा के रणनीतिकारों ने प्रेरित किया था। हालांकि नेताम की पार्टी का कोई भी उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा पाया, लेकिन कुछ जगहों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की हार सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई।
नेताम की भले ही जमीनी पकड़ पहले जैसी नहीं है, लेकिन उनकी पहचान बुद्धिजीवी आदिवासी नेताओं में होती है। ऐसे में जब कांग्रेस, जल-जंगल और जमीन के मसले पर भाजपा से टकरा रही है, तो मतांतरण आदि के मसले पर आरएसएस के लिए नेताम उपयोगी हो सकते हैं। फिलहाल नेताम के अगले कदम पर राजनीतिक लोगों की निगाहें टिकी हुई है।
दिग्गज ट्रेनिंग पर
रायपुर आईजी अमरेश मिश्रा एक हफ्ते की ट्रेनिंग में मसूरी गए हैं। उनकी जगह दुर्ग आईजी रामगोपाल गर्ग, रायपुर आईजी के प्रभार पर हैं। मिश्रा के साथ खैरागढ़ एसपी त्रिलोक बंसल भी मसूरी ट्रेनिंग में गए हैं। दोनों अफसर ट्रेनिंग पूरी कर अगले हफ्ते लौटेंगे।
हालांकि बंसल खैरागढ़ से तबादला हो चुका है। उनकी जगह आईपीएस के वर्ष-2016 बैच के अफसर लक्ष्य शर्मा को खैरागढ़ एसपी बनाया गया है। लक्ष्य शर्मा की पोस्टिंग महीने भर पहले हो चुकी थी, जब वो ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद पहुंच चुके थे, तब उन्हें पोस्टिंग ऑर्डर मिला। उन्हें डीजीपी ने ट्रेनिंग पूरी कर जाइनिंग की सलाह दी। लक्ष्य शर्मा ट्रेनिंग पूरी कर चुके हैं, और वो एक-दो दिन में खैरागढ़ एसपी के रूप में जॉइनिंग दे देंगे।
लक्ष्य शर्मा त्रिपुरा में पोस्टिंग थी। उनकी पत्नी आईएएस सुरूचि सिंह राजनांदगांव जिला पंचायत सीईओ हैं। लक्ष्य कैडर परिवर्तन के बाद छत्तीसगढ़ आए हैं, और खैरागढ़ एसपी के रूप में जिले में पहली पोस्टिंग हैं। इससे परे धमतरी एसपी सूरज सिंह परिहार को भी एक महीने के ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना था। मगर उन्हें बाद में ट्रेनिंग करने की सलाह दी गई है। आईएएस-आईपीएस अफसरों को यह सुविधा होती है कि वो ट्रेनिंग आगे-पीछे कर सकते हैं।
दिल्ली में पोस्टिंग
सुशासन तिहार निपटने के बाद मंत्रालय में छोटा सा फेरबदल हो सकता है। आईएएस के वर्ष-04 बैच के अफसर अलबंगन पी, और उनकी पत्नी श्रम सचिव अलरमेल मंगई डी केन्द्र सरकार में पोस्टिंग हो गई है। दोनों ही संयुक्त सचिव बने हैं।
अलबंगन के पास पर्यटन, और संस्कृति का प्रभार है। वो पिछले चार साल से यह दायित्व संभाल रहे थे। उनकी केन्द्रीय कृषि मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर पोस्टिंग हुई है। दोनों वर्तमान में अवकाश पर हैं। उनके दो जून को लौटने की संभावना है। इसके बाद उन्हें रिलीव किया जा सकता है। इसके बाद स्वाभाविक तौर पर प्रशासनिक फेरबदल होगा।
सुशासन तिहार में आए फीडबैक के आधार पर कुछ बदलाव होने के संकेत हैं। एक बात और चर्चा में आई है कि राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस में आए सचिव स्तर के एक भी अफसर को स्वतंत्र विभाग नहीं मिला है। सचिव स्तर के अफसर कमिश्नर बने हुए हैं। जबकि जोगी, और रमन सिंह व भूपेश बघेल सरकार में उन्हें अहम दायित्व मिला हुआ था। चर्चा है कि एक-दो सचिव स्तर के अफसर को मंत्रालय लाया जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
जोगी की प्रतिमा लग पाएगी भी ?
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पांचवीं पुण्यतिथि से पहले उनकी प्रतिमा को लेकर जो घटनाक्रम सामने आया, वह उनके करिश्माई लेकिन विवादित व्यक्तित्व की एक परछाई जैसा है। राज्य में उनके योगदान को स्मरण करने के लिए आज तक एक भी राजकीय स्तर पर उनकी प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है। जब उनके पुत्र अमित जोगी ने उनकी जन्मस्थली गौरेला में प्रतिमा लगाने की कोशिश की, तो पूरा मामला एक अप्रिय और अभूतपूर्व विवाद में उलझ गया।
नगरपालिका के सीएमओ ने प्रतिमा हटाने के लिए ठेकेदार को नोटिस जारी किया, परंतु ठेकेदार ने खुद प्रतिमा हटाने का साहस नहीं दिखाया। इसके बाद रात के अंधेरे में प्रतिमा को उखाडक़र क्रेन से उठाया गया और गौरेला बस स्टैंड के पास लावारिस हाल में फेंक दिया गया। जैसे ही यह खबर फैली, राजनीतिक हलकों में हडक़ंप मचा। सभी प्रमुख दलों ने इस बर्ताव की निंदा की। पुलिस ने एफआईआर दर्ज की, लेकिन नगरपालिका सीएमओ की वह मंशा पूरी हो चुकी थी, जिसमें उन्होंने प्रतिमा को हटाने का निर्देश दिया था।
मूर्ति हटाए जाने की घटना सीसीटीवी में कैद हुई, कुछ लोगों के चेहरे भी दिखे, लेकिन अब तक किसी का नाम पुलिस में नहीं आया है। इस घटना के विरोध में अमित जोगी ने अनशन किया। दबाव के चलते प्रतिमा को पुन: वहीं लाकर रखा गया, लेकिन प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया कि आगे की कार्रवाई राज्य सरकार द्वारा तय किए गए महापुरुषों की प्रतिमा स्थापना संबंधी प्रावधानों के तहत ही होगी। यह आगे की कार्रवाई फिलहाल अस्पष्ट बनी हुई है।
उधर, जैसे ही विवाद थोड़ा थमा, स्थानीय भाजपा नेताओं ने फिर यह मांग उठा दी कि उसी स्थान पर पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा लगाई जानी चाहिए, क्योंकि इस संबंध में नगरपालिका परिषद पहले ही प्रस्ताव पारित कर चुकी है। सीएमओ द्वारा प्रतिमा हटाने का आदेश भी इसी प्रस्ताव के आधार पर दिया गया था।
अजीत जोगी के जीवन में विवादों की कभी कमी नहीं रही, लेकिन यह भी ऐतिहासिक सत्य है कि वे छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री थे। यह एक बड़ी विडंबना है कि न केवल राज्य की राजधानी रायपुर में, बल्कि उनकी जन्मस्थली गौरेला में भी अब तक उनकी राजकीय स्तर पर कोई प्रतिमा नहीं लग पाई है। जिस जगह से प्रतिमा उखाड़ी गई है, वहीं पर दोबारा लगेगी या नहीं यह भी संदेह के दायरे में है।
सीआईसी के लिए नया नाम उभरा
राज्य में राजनीतिक नियुक्तियों का सिलसिला भले ही रुकी रहे, लेकिन मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) और दो सूचना आयुक्तों (आईसी) की नियुक्ति अब किसी भी सूरत में टलने वाली नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह है सुप्रीम कोर्ट की सख्त निगरानी, जिसके तहत आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों को यह जवाब होगा कि उन्होंने पारदर्शी प्रक्रिया के साथ सूचना आयुक्तों नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर ली है।
इसके पहले ए.के. विजयवर्गीय (2005-2010), सरजियस मिंज (2011-2016) और एम.के. राऊत (2017-2022), सभी की नियुक्तियां आपस के राय-मशविरे से, बिना साक्षात्कार हुईं। लेकिन इस बार परिदृश्य बदल गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, चयन प्रक्रिया को पारदर्शिता के दायरे में लाया गया। विज्ञापन जारी किए गए, आवेदन सार्वजनिक पोर्टल पर डाले गए, और इंटरव्यू भी लिया गया।
मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति पर मुहर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय चयन समिति लगाएगी। समिति में एक मंत्री और नेता प्रतिपक्ष भी शामिल हैं। माना जा रहा है कि इस बार भी अखिल भारतीय सेवा के किसी वरिष्ठ अधिकारी को सीआईसी की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। चर्चा में सबसे ऊपर नाम अमिताभ जैन का था, जो जून में सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, उनके नाम की केवल औपचारिक घोषणा बाकी थी, लेकिन अब राजनीतिक प्रशासनिक हलकों में अब यह चर्चा गर्म है कि जैन को कम-से-कम छह महीने का सेवा विस्तार मिल रहा है।
ऐसी स्थिति में अब जिस नाम की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, वह है पूर्व डीजीपी अशोक जुनेजा। साक्षात्कार में कुछ अन्य आईएएस, आईपीएस भी शामिल थे, पर कहा जा रहा है कि उनका इंटरव्यू (जैन के बाद) सबसे अच्छा गया। पर यह बदलाव तभी हो सकता है जब जैन के सेवा विस्तार की खबरें सही निकले।
आईपीएस के नाम फर्जी फेसबुक पेज
आईपीएस शलभ कुमार सिन्हा के नाम और फोटो का दुरुपयोग कर अज्ञात व्यक्तियों द्वारा फेसबुक पर एक नहीं दो-दो फर्जी प्रोफाइल बनाए गए हैं। सिन्हा ने खुद ही सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी देते हुए लोगों से अपील की है कि वे इस फर्जी अकाउंट से आने वाली फ्रेंड रिक्वेस्ट को स्वीकार न करें और इसकी तुरंत रिपोर्ट करें। पूर्व में भी छत्तीसगढ़ के कई आईपीएस और हाई-प्रोफाइल अधिकारियों के नाम पर फर्जी सोशल मीडिया पेज बनाए गए हैं। इन फर्जी अकाउंट्स का मुख्य मकसद ठगी और उगाही करना होता है, जहां लोगों को झूठे बहाने बनाकर पैसे मांगे जाते हैं। अब पुलिस के ही साइबर सेल की ही जिम्मेदारी है कि वे अपने अफसर के नाम पर ठगी करने वालों को ढूंढ निकाले।
डीएमएफ यानी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट फण्ड
डीएमएफ घोटाला केस में पखवाड़े भर पहले ईओडब्ल्यू-एसीबी ने कोरबा के तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर भरोसाराम ठाकुर, और तीन जनपद सीईओ को गिरफ्तार किया था तब केस की गंभीरता का अंदाजा नहीं लग पा रहा था। क्योंकि ईडी भी डीएमएफ केस की जांच कर चुकी है। इस केस में कोरबा की तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू, और कारोबारी सूर्यकांत तिवारी सहित अन्य आरोपी हैं। रानू साहू को ईडी के केस में जमानत मिल चुकी है। मगर ईओडब्ल्यू-एसीबी के केस में उन्हें जमानत नहीं मिली है। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने मंगलवार को रायपुर की विशेष अदालत में डीएमएफ केस को लेकर चालान पेश किया। इसमें कई नए खुलासे हुए हैं।
ईओडब्ल्यू-एसीबी के छह हजार पेज के चालान में 75 करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने बताया कि कोरबा की तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू ने डिप्टी कलेक्टर बीआर ठाकुर को डीएमएफ का नोडल अफसर बनाया था। नोडल अफसर ठाकुर कलेक्टर के निर्देश पर सप्लाई ऑर्डर देते थे। यह भी कहा गया कि डीएमएफ के कार्यों में सूर्यकांत तिवारी का दखल रहा है।
ईओडब्ल्यू-एसीबी की गिरफ्त में आए तीन जनपद सीईओ वीरेन्द्र राठौर, राधेश्याम मिर्घा, और भुवनेश्वर सिंह राज ने अपने बयान में इसकी पुष्टि की है। प्रकरण की जांच से जुड़े एक अफसर ने इस संवाददाता से अनौपचारिक चर्चा में कहा कि जांच में कई नए तथ्य सामने आए हैं, और घोटाले से जुड़े कुछ पुख्ता दस्तावेज मिले हैं। ऐसे में आरोपियों के खिलाफ केस काफी मजबूत है। देखना है आगे क्या होता है।
जाने के पहले पदोन्नति
उच्च शिक्षा में सहायक प्राध्यापक से प्राध्यापक पद पर पदोन्नति के लिए कसरत चल रही है। पदोन्नति सूची में एक ऐसे सहायक प्राध्यापक का नाम है, जिसे पीएससी 2005 के पीएससी घोटाले में संलिप्त पाया गया था। सहायक प्राध्यापक उस वक्त पीएससी में परीक्षा नियंत्रक थे। सरकार ने उनकी तीन वेतनवृद्धि भी रोक दी थी।
सहायक प्राध्यापक के खिलाफ कुछ और शिकायतें भी रही हैं, लेकिन कोई भी जांच के स्तर तक नहीं पहुंच पाया। अब सहायक प्राध्यापक सभी आरोपों से मुक्त हैं इसलिए उन्हें पदोन्नति देने में कोई तकनीकी अड़चन नहीं है। वैसे वो भाजपा के एक ताकतवर नेता के करीबी रिश्तेदार हैं। नेताजी भले ही किसी पद में नहीं हैं, लेकिन उनकी सिफारिशों को अनदेखा नहीं किया जाता है। सहायक प्राध्यापक अगले कुछ दिनों में रिटायर होने वाले हैं। नेताजी ने भी जोर लगाया है कि रिटायरमेंट के पहले उनकी पदोन्नति हो जाए। देखना है आगे क्या होता है।
नए शिक्षकों की भर्ती अब और टलेगी?
छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग का कहना है कि युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया सिर्फ अतिशेष शिक्षकों के समुचित समायोजन के लिए की जा रही है। विभाग का दावा है कि न तो किसी शिक्षक का पद समाप्त किया जा रहा है और न ही कोई स्कूल बंद किया जा रहा है। लेकिन शिक्षक संगठनों, विपक्ष और अभिभावकों के बीच यह सवाल लगातार उठ रहा है कि क्या यह प्रक्रिया दरअसल सैकड़ों स्कूलों को धीरे-धीरे बंद करने और शिक्षकों की संख्या घटाने की तैयारी है?
शिक्षा विभाग के अनुसार राज्य में 5,370 शिक्षक (3,608 प्राथमिक और 1,762 पूर्व माध्यमिक शिक्षक) अतिशेष हैं। इन्हें उन स्कूलों में स्थानांतरित किया जा रहा है, जहां शिक्षकों की कमी है। विभाग यह भी कहता है कि किसी स्वीकृत पद को खत्म नहीं किया जा रहा है और भविष्य में छात्र संख्या बढऩे पर सभी पद फिर से सक्रिय रहेंगे। क्लस्टर स्कूल की अवधारणा को संसाधनों के बेहतर उपयोग से जोड़ा जा रहा है।
हालांकि, सवाल यह है कि अगर एक ही परिसर में कई स्कूलों को समायोजित किया जा रहा है और कुछ स्कूलों से शिक्षक हटाए जा रहे हैं, तो क्या यह वास्तव में स्कूलों को अप्रत्यक्ष रूप से बंद करने जैसा नहीं है? वर्तमान में राज्य की 212 प्राथमिक शालाएं पूरी तरह शिक्षकविहीन हैं और 6,872 शालाएं केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रही हैं। शिक्षकों की भर्ती को लेकर सबसे ज्यादा चिंता उन बेरोजगार युवाओं में है, जिन्हें दिसंबर 2023 में भाजपा सरकार ने आश्वासन दिया था कि एक साल के भीतर 54,000 शिक्षकों की भर्ती की जाएगी। लेकिन अब जब युक्तियुक्तकरण के जरिए अतिशेष शिक्षकों को दूसरी जगह समायोजित किया जा रहा है, तो यह आशंका बढ़ गई है कि सरकार नए पदों का सृजन शायद टाल सकती है।
अगर सरकार केवल समायोजन पर ही ध्यान देती रही और नई भर्ती की कोई स्पष्ट समयसीमा घोषित नहीं करती, तो हजारों प्रशिक्षित युवा, जिन्होंने बीएड और डीएड जैसी डिग्रियां इन्हीं वादों के भरोसे हासिल की हैं, खुद को ठगा हुआ महसूस कर सकते हैं।
दूसरी तरफ राज्य के दो दर्जन से अधिक शिक्षक संगठन एकजुट हो चुके हैं। उनका कहना है कि यह समायोजन शिक्षकों के साथ अन्याय है, खासकर तब, जब नई भर्ती और पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है। इन संगठनों ने 28 मई को मंत्रालय घेराव का ऐलान किया है। अब देखना यह होगा कि इस विरोध प्रदर्शन का राज्य सरकार और शिक्षा विभाग पर क्या असर होता है।
एक समाजवादी हस्तक्षेप
राजनीति के इस पूंजीवादी दौर में डॉ. राममनोहर लोहिया जैसे समाजवाद के प्रखर समर्थक अब हमारी स्मृतियों से ओझल होते जा रहे हैं। गोवा मुक्ति आंदोलन के इस निर्भीक नायक, जिन्होंने संसद में भी सत्ता की चूलें हिला दी थीं, उन्हें आज की पीढ़ी कितनी जानती है? लोहिया कहते थे कि अगर कोई झूठ को सच बना दे, तो वह राजनीति नहीं, धोखा है...। शायद इस दौर में उनकी कही बातें और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गई हैं।
धमतरी जिले के नगरी कस्बे से गुजरते वक्त अब एक चौक पर उनकी प्रतिमा दिखाई देती है। यह केवल धातु की आकृति नहीं, बल्कि एक विचार की मौजूदगी है। समाजवादी नेता रघु ठाकुर के प्रयासों से यह प्रतिमा हाल ही में स्थापित की गई है। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने इसका अनावरण किया।
चैम्बर और चुनौती
चैम्बर ऑफ कॉमर्स में सतीश थौरानी के निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाने के बाद व्यापारियों नेताओं में एका की उम्मीद जताई जा रही थी। वजह यह थी कि थौरानी का चैम्बर के बड़े नेता अमर पारवानी, और श्रीचंद सुंदरानी समेत अन्य से घनिष्ठता रही है, लेकिन सोमवार को उन्होंने कार्यकारिणी घोषित की, तो एकता को लेकर संदेह जताया जा रहा है।
पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी, पूरनलाल अग्रवाल जैसे दिग्गजों को संरक्षक बनाया गया है। मगर पारवानी का नाम सूची से गायब है। पारवानी व्यापारियों के बीच अपनी पकड़ साबित कर चुके हैं। उन्होंने पिछले चुनाव में अलग पैनल बनाकर पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी के एकता पैनल को मात दी थी। सतीश को निर्विरोध अध्यक्ष बनाने में पारवानी की भी भूमिका रही है। हालांकि पारवानी को संरक्षक भले ही नहीं बनाया गया, लेकिन उनके करीबी विक्रम सिंहदेव, विनय बजाज सहित कई नेताओं को अहम पद दिए गए हैं।
बताते हैं कि पूर्व अध्यक्ष पारवानी को चैम्बर की सूची में जगह नहीं मिलने के पीछे उनका कैट से जुड़ा होना बताया जा रहा है। पारवानी कैट के कर्ता-धर्ता हैं। चैम्बर में यह तय किया गया कि जो कैट का पदाधिकारी होगा, उन्हें चैम्बर का पदाधिकारी नहीं बनाया जाएगा। ऐसे में अब व्यापारी संगठन में एकता को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। हालांकि खूबचंद पारख, बलदेव सिंह भाटिया, छगनलाल मूंदड़ा, और लाभचंद बाफना सहित कई प्रभावशाली नेता थौरानी की कार्यकारिणी में हैं। बावजूद इसके सबको साथ लेकर चलना थौरानी के लिए चुनौती भी है। देखना है आगे क्या होता है।
बसवा राजू के शव को लेकर हिचक
छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ में हुई मुठभेड़ में मारे गए 27 नक्सलियों में से एक था बसवा राजू, जो माओवादी संगठन का शीर्ष सैन्य कमांडर था। उसकी मौत के बाद आंध्र प्रदेश में रहने वाले परिजनों ने छत्तीसगढ़ पुलिस से शव सौंपने का अनुरोध किया है, ताकि वे अपने गांव में अंतिम संस्कार कर सकें। लेकिन छत्तीसगढ़ पुलिस ने अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
उग्रवाद और आतंकवाद से जुड़े मामलों में शवों का प्रबंधन हमेशा बेहद संवेदनशील रहा है। 2001 के संसद हमले के दोषी अफजल गुरु और 2008 के मुंबई हमले के आतंकवादी अजमल कसाब को फांसी दिए जाने के बाद उनके शव परिजनों को नहीं सौंपे गए थे। दोनों का अंतिम संस्कार गोपनीय रूप से जेल परिसर में ही किया गया था, ताकि कोई उकसावे की स्थिति न बने। छत्तीसगढ़ में बहुत से शवों का कोई दावेदार नहीं होता, पुलिस ही उनका अंतिम संस्कार करा देती है।
बसवा राजू माओवादी संगठन के लिए इस समय का सबसे बड़ा चेहरा था। उसके समर्थक आज भी कई इलाकों में सक्रिय हैं। ऐसे में अगर उसका शव परिजनों को सौंपा गया, तो यह अंतिम संस्कार एक भावनात्मक प्रदर्शन में बदल सकता है। भीड़ जुटने और उकसावे की स्थिति बनने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता।
संभवत: छत्तीसगढ़ पुलिस और प्रशासन इस बात से भली-भांति परिचित हैं, इसलिए फिलहाल उन्होंने कोई फैसला नहीं लिया है। संकेत यही मिल रहे हैं कि शव परिजनों को सौंपा नहीं जाएगा। बस्तर के कई क्षेत्रों में पहले भी नक्सली नेताओं के स्मारक बनाए गए हैं, जिन्हें सुरक्षा बलों ने चिन्हित कर ध्वस्त किया है। बसवा राजू की मौत भले ही एक व्यक्ति के रूप में हुई हो, लेकिन अगर उसका शव सौंपा गया, तो उसकी विचारधारा, नेतृत्व और संगठन कौशल को नक्सली ‘गौरव का प्रतीक’ बनाकर पेश कर सकते हैं।
कुदाल उठाई तब पहुंचा सुशासन
दुर्गम आदिवासी इलाकों में सडक़ों की कमी जनजीवन के लिए कितनी बड़ी चुनौती है, इसका उदाहरण हाल ही में तब देखने को मिला, जब कुल्हाड़ी घाट के पास एक गांव में सांप के काटे व्यक्ति को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए कांवड़ में उठाकर ग्रामीणों को 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा।
अब सडक़ के लिए जूझते ग्रामीणों का एकऔर मामला बीजापुर जिले के भैरमगढ़ जनपद पंचायत के केशकुतुल ग्राम पंचायत से आया है। यहां के ग्रामीण सालों से भैरमगढ़ तक सडक़ निर्माण की मांग कर रहे थे। प्रशासन से कोई जवाब न मिलने पर गांववालों ने मशीन और निर्माण सामग्री के लिए चंदा इक_ा किया, और श्रमदान से खुद सडक़ बनाना शुरू कर दिया।
इन दिनों छत्तीसगढ़ में सुशासन तिहार मनाया जा रहा है। जब यह खबर प्रशासन तक पहुंची, तो शायद उन्हें भी सोच-विचार करना पड़ा। एसडीएम और जनपद पंचायत के सीईओ गांव पहुंचे। वहां पहुंचने में आई कठिनाइयों ने ही उन्हें यह अहसास करा दिया होगा कि यह सडक़ कितनी जरूरी है।
अधिकारियों ने ग्रामीणों से कहा कि अब यह सडक़ वे नहीं बनाएंगे, बल्कि प्रशासन इसे मनरेगा योजना के तहत तुरंत स्वीकृत करेगा। ग्रामीणों ने इस निर्माण के लिए लगभग 50 हजार रुपये चंदा इक_ा किया था। अधिकारियों ने भरोसा दिया कि यह राशि उन्हें लौटा दी जाएगी, जिसे अब तक हुए निर्माण कार्य के मूल्यांकन में जोड़ दिया जाएगा। अफसरों को अपने बीच पाकर ग्रामीणों ने भी मौका नहीं गंवाया और दो-तीन छोटी पुलियों की मांग रखी, यह भी मंजूर हो गई।
प्रतिनियुक्ति के दरवाजे बंद होने वाले हैं
लगता है कि अब राज्यों के आईपीएस अफसरों के लिए केंद्रीय सशस्त्र बलों में प्रतिनियुक्ति के दरवाजे बंद होने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देशों से यही लगता है। कोर्ट ने लोक कार्मिक प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) से कहा है कि वह, कैडर रिव्यू को लेकर गृह विभाग की सिफारिश पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेकर एक्शन टेकन रिपोर्ट पेश करें। इसमें डीओपीटी को इन केंद्रीय बलों के भर्ती नियम भी बदलने होंगे। ताकि आईपीएस अफसरों की प्रतिनियुक्ति खत्म भी हो। इसके अलावा राज्यों में बलों की तैनाती पर राज्यों से समन्वय के साथ राज्य पुलिस से तालमेल के सुझाव भी देने कहा है ।
आईटीबीपी, बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और एसएसबी समेत सभी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) का कैडर रिव्यू 2021 से टलता आ रहा है। इसके पीछे मुख्य कारण प्रतिनियुक्ति से, इन बलों में रिक्त पदों की पूर्ति को माना गया है। कोर्ट का यह निर्देश गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन, कैडर समीक्षा और आईपीएस प्रतिनियुक्ति को समाप्त करने के लिए भर्ती नियमों के पुनर्गठन और संशोधन की मांग करने वाली याचिकाओं पर आया।
कोर्ट ने कहा कि केंद्र का मानना है कि प्रत्येक सीएपीएफ में आईपीएस अधिकारियों की मौजूदगी उनमें से प्रत्येक के चरित्र को एक अद्वितीय केंद्रीय सशस्त्र बल के रूप में बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
भाजपा की हार के पीछे
हज कमेटी के चुनाव को लेकर चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। बताते हैं कि सरकार ने 11 सदस्यीय कमेटी में 6 सदस्य मनोनीत कर दिए थे। ताकि कमेटी अध्यक्ष पद पर भाजपा समर्थित सदस्य की जीत सुनिश्चित हो सके।
चर्चा है कि विभागीय मंत्रीजी ने पार्टी के एक अल्पसंख्यक नेता की पसंद पर सदस्य मनोनीत कर दिए। बाद में अध्यक्ष के चुनाव का समय आया, तो पार्टी नेताओं ने अल्पसंख्यक नेता की राय को महत्व नहीं दिया। फिर क्या था, मनोनीत सदस्य वोट देने के बजाए पिकनिक चले गए, और भाजपा समर्थित प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद अब मंत्रीजी को सफाई देना पड़ रहा है। अब आगे क्या होता है, यह देखना है।
इस बार कोरोना से निपटना आसान?
छत्तीसगढ़ के लिए यह थोड़ी चिंता की बात है कि लंबे समय बाद राज्य में फिर से कोरोना वायरस का मामला सामने आया है। रायपुर के एक 41 वर्षीय व्यक्ति में कोविड-19 की पुष्टि हुई है, जो सर्दी-खांसी की शिकायत के साथ अस्पताल पहुंचा था। अभी तक पूरे राज्य में यही एक सक्रिय मामला है, लेकिन इससे यह साफ हो गया है कि कोरोना पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है – वह अब भी आसपास मौजूद है।
बीते तीन वर्षों में छत्तीसगढ़ ने कोरोना की तीन बड़ी लहरों का सामना किया है, जिनमें लगभग 14,000 लोगों की जान गई। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने भी इसे हल्के में न लेते हुए तुरंत मेकाहारा में कोविड-19 के लिए एक विशेष ओपीडी शुरू कर दी है। कोविड के मामले नहीं आने के कारण इसके लिए तैयार किए गए अस्पतालों में अब स्वास्थ्य संबंधी दूसरे काम किए जा रहे हैं, पर अब हम पहले से कहीं ज्यादा सतर्क और सक्षम हैं।
इस समय 260 से ज्यादा मामले देश में आ चुके हैं। सबसे अधिक मरीज केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हैं। महाराष्ट्र के मुंबई में दो मौतें भी दर्ज की गई हैं, लेकिन इस बार लक्षण हल्के हैं और ज्यादातर मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ी है।
रायपुर में जो मामला सामने आया है, वह जेएन.1 वेरिएंट से जुड़ा हो सकता है – जो ओमिक्रॉन का ही एक नया रूप है। यह वेरिएंट तेजी से फैल सकता है और इम्यून सिस्टम को थोड़ा चकमा दे सकता है, लेकिन अब तक की जानकारी के अनुसार यह गंभीर बीमारी का कारण नहीं बन रहा है। इसके लक्षण सामान्य सर्दी-जुकाम जैसे हैं – जैसे गले में खराश, सिरदर्द, खांसी, और हल्का बुखार।
यह ठीक है कि घबराने की जरूरत नहीं, लेकिन लापरवाह होने का समय भी नहीं है। हमें वही सावधानियां फिर से याद करनी होंगी। जैसे खांसी-जुकाम होने पर मास्क लगाना, हाथों की सफाई का ध्यान रखना, और भीड़भाड़ वाली जगहों से बचना। हालांकि इस संबंध में अभी निर्देश प्रशासन की ओर से भी जारी होना है।
गबन का सदुपयोग!
हाल के वर्षों में डाक विभाग में गबन के मामले जहां बढ़े हैं वहीं इनके आरोपी अधिकारी कर्मचारियों को बचाने के भी यत्न कम नहीं हुए। आश्चर्य है कि बचने- बचाने के इस खेल में भी गबन की ही राशि का अफसरों ने सदुपयोग किया । विभाग में चर्चा है कि एक जगदलपुर के एक पोस्टमास्टर ने अपने पिछले पोस्टिंग वेन्यू में 25 लाख रुपए सरकारी खजाना से निकाल कर शेयर बाजार में लगाया दोष सिद्धी के समय वरिष्ठ अफसरों ने अपना जाल बिछाया। इसमें राजनांदगांव से लेकर रायपुर के अफसरों ने गबनकर्ता की सजा कम कराने के लिए लाखों रूपए झोंके। ताकि दोष सिद्ध होने पर बर्खास्तगी से बचाया जा सके। नतीजतन, सरकारी धन को शेयर बाजार में लगाने वाले इस पोस्ट मास्टर को एक साहब ने कम दण्ड देकर नौकरी बचा दी। और उसे मात्र ,हटा कर बस्तर भेज दिया गया।है न गबन के सदुपयोग का उदाहरण। इसी दौरान साहब के अचल संपत्ति में निवेश की भी चर्चा रही। भाठागांव में इस संपत्ति की पहली किश्त एक जूनियर साहब ने जमा किया तो दूसरा किस्त एक अन्य ने। इन दोनों ही जूनियर साहबों का काम पूरे परिमंडल में ट्रांसफर्स का काम देखते हैं। जो इस गिव एंड टेक की महात्मय है। अब देखना होगा कि आगे क्या होता है ।
अब बड़े निजी अस्पतालों का दौर
यह तस्वीर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मैनपुर ब्लॉक के भालुडिग्गी गांव की है, जो कुल्हाड़ीघाट के पास दुर्गम पहाड़ी इलाके में स्थित है। यहां एक ग्रामीण को सांप ने डस लिया, जिससे वह बेहोश हो गया।
इलाके में न सडक़ है, न एम्बुलेंस की सुविधा। ऐसे में गांव के लोगों ने लकड़ी और कपड़े की मदद से कांवडऩुमा स्ट्रेचर बनाया और मरीज को करीब 10 किलोमीटर लंबा, पथरीला पहाड़ी रास्ता पैदल तय करके कुल्हाड़ीघाट के स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाया। यह दर्शाता है कि अब आदिवासी समाज में बदलाव की बयार है। वे अब अवैज्ञानिक झाड़-फूंक की बजाय डॉक्टरों पर भरोसा कर रहे हैं। इस भरोसे ने सर्पदंश पीडि़त जान भी बचाई, क्योंकि अस्पताल पहुंचने पर समय पर एंटी वेनम इंजेक्शन लग गया।
लेकिन इस तस्वीर के पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपी है। देश को आजाद हुए 76 साल हो चुके हैं, अलग छत्तीसगढ़ राज्य बने 25 साल बीत चुके, फिर भी भालुडिग्गी जैसे गांव आज भी सडक़ के लिए तरस रहे हैं। सवाल है कि क्या आदिवासियों का यह जागरूकता भरा प्रयास अकेले काफी है? जब वे अस्पताल तक पहुंचने को तैयार हैं, तो सरकार उनके लिए सडक़ क्यों नहीं बना पा रही?
कान घुमाकर पकड़ो तो कानूनी...
सुप्रीम कोर्ट में कल एक याचिका पर सुनवाई हुई जिसमें ऑनलाइन सट्टेबाजी, खासतौर पर गेमिंग ऐप्स के खिलाफ कानून बनाने की मांग की गई है। छत्तीसगढ़ के लिए यह बहस इसलिए खास है क्योंकि यहीं से जन्मा महादेव सट्टा ऐप अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित और विवादित हो चुका है। छत्तीसगढ़ से शुरू हुए इस ऐप का संचालन अब दुबई से हो रहा है। इसके प्रमोटर रवि उप्पल और सौरभ चंद्राकर के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी हो चुका है, लेकिन वे अब तक गिरफ्त से बाहर हैं। छत्तीसगढ़ सहित देशभर में इससे जुड़े सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जिनमें राजनीतिक लोग और कारोबारी भी शामिल हैं।
पूरे परिदृश्य में सबसे दिलचस्प यह है कि एक ओर महादेव ऐप जैसे प्लेटफॉर्म को अवैध माना जाता है, वहीं दूसरी ओर ड्रीम 11, रमी सर्किल, गैम्सक्राफ्ट, एमपीएल, जूबी जैसे ऐप्स को कानूनी मान्यता है। बड़े सेलिब्रिटी इनका प्रचार कर रहे हैं, टीवी-अखबारों में इनके बड़े-बड़े विज्ञापन चल रहे हैं और सरकार इनसे 28 प्रतिशत जीएसटी भी वसूल रही है।
दोनों में फर्क की वजह है, कानून में बताया गया तकनीकी अंतर। गेम ऑफ चांस बनाम गेम ऑफ स्किल। महादेव जैसे प्लेटफॉर्म केवल दांव लगाने पर आधारित हैं—यानी ‘चांस’। पैसा लगाएं, किस्मत साथ रहेगी तो जीतेंगे। वहीं, ड्रीम 11 जैसे ऐप्स में कहा जाता है कि खिलाड़ी अपने कौशल से टीम बनाते हैं, इसलिए वे स्किल के जरिये हारते या जीत पाते हैं। इस फर्क ने एक को अपराध और दूसरे को व्यापार बना दिया है। सवाल यह है कि आउटडोर स्टेडियम में खेले जाने वाले क्रिकेट, फुटबॉल को और इनडोर में खेले जाने वाले कैरम को मोबाइल फोन पर उंगलियां फिरा कर कैसे खेला जा सकता है? कोई तुलना हो नहीं सकती है, मगर मान लिया गया है कि यह खेल है।
एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक ऑनलाइन गेमिंग का उद्योग भारत में 21,500 करोड़ रुपये सालाना का हो गया है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका के मुताबिक 30 करोड़ युवा इसकी गिरफ्त में हैं, जबकि कुछ आंकड़ों के अनुसार यह संख्या 58 करोड़ को पार कर चुकी है और इस साल के अंत तक 70 करोड़ तक पहुंचने की आशंका है।
अगर कोई व्यक्ति बिना खेल खेले सिर्फ पैसे लगाकर किस्मत आजमाता है, तो वह जुर्म करता है। लेकिन अगर वह मोबाइल ऐप पर खेल जीतने की कोशिश करता है, तो वह कौशल है। चाहे वह ‘चांस’ हो या ‘स्किल’, अंतत: जोखिम, व्यसन और आर्थिक हानि दोनों ही प्रकार के प्लेटफॉर्म में है। फर्क बस इतना है कि एक से सरकार को राजस्व मिलता है, दूसरे में गिरफ्तारियां और अफसरों-नेताओं को हिस्सा। जैसी कमाई महादेव की है, वैसी ही दूसरे कानूनी गेम्स प्लेटफॉर्म की।
दोनों ही तरह के गेम्स में होने वाली बर्बादी पर देशभर के मामले गिनें तो बहुत सूची बहुत लंबी हो जाएगी, छत्तीसगढ़ के ही कुछ मामलों को देखें। पिछले 15 मई को मनेंद्रगढ़ के आमखेरवा गांव में 12 साल से आकाश लकड़ा ने आत्महत्या कर ली। पुलिस जांच में पता चला कि वह ऑनलाइन गेम्स में घंटों बिताता था। चचेरे भाई ने उसका फोन छीन लिया था। वह अपने परिवार का इकलौता बेटा था। इधर, रायपुर में पिछले साल 15 साल के बच्चे ने मां के अकाउंट को गेम्स में दांव लगाकर खाली कर दिया। जब पता चला तो उसे डांट पड़ी। वह घर से भाग गया। पुलिस ने ढूंढा तो वह एक साइबर कैफे में गेम खेलते मिला था। दुर्ग मे पिता के बैंक खाते से 17 साल के एक छात्र ने 1.5 लाख खर्च कर दिए। पिता ने मोबाइल छीनने की कोशिश की तो उसने आत्महत्या का प्रयास किया, परिवार वालों ने समय रहते उसे बचा लिया। बिलासपुर में तो बीते साल 14 साल के एक किशोर ने अपने माता-पिता के क्रेडिट कार्ड से ही हजारों रुपये निकालकर गेम्स में डाल दिया। वह एक फर्जी गेमिंग ऐप्स के जाल में फंस गया था। बच्चे की काउंसलिंग कराई गई। फिलहाल, ‘गेम ऑफ चांस’ और ‘गेम ऑफ स्किल’ पर बहस जारी रखिये।
सरगुझिया की बात
दक्षिण-पूर्व रेलवे बिलासपुर मंडल के अधीन क्षेत्र के सांसदों की बैठक में शुक्रवार को रेल सुविधाओं पर काफी बातें हुईं। सरगुजा के सांसद चिंतामणि महाराज ने अपना उद्बोधन सरगुजिया बोली में दिया, जो कि ज्यादातर रेल अफसरों के पल्ले नहीं पड़ा।
हालांकि बाद में केन्द्रीय मंत्री तोखन साहू ने चिंतामणि महाराज के उद्बबोधन का हिन्दी में ट्रांसलेशन किया। ये अलग बात है कि चिंतामणि महाराज हिंदी और संस्कृत भाषा पर अच्छी पकड़ है, और वो संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। दरअसल, वो सरगुजिया बोली को बढ़ावा देने के लिए अभियान चला रहे हैं, और सरकारी बैठकों में भी सरगुजिया में ही अपना उद्बोधन देते हैं।
खैर, चर्चा के दौरान रेल अफसर ज्यादातर मांगों को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर होने की बात कहकर टालते रहे, इस पर चिंतामणि महाराज नाराज हो गए। उन्होंने रेलवे अफसरों से कहा बताते हैं कि आप लोग बता दीजिए कि आपके अधिकार क्षेत्र में क्या है? उन्हीं से जुड़ी बातें बैठक में रखी जाएगी। सांसद ज्योत्सना महंत सहित अन्य सांसदों ने चिंतामणि महाराज का समर्थन किया। दरअसल, रेलवे के अफसर सांसदों की ज्यादातर मांगों को रेलवे बोर्ड का विषय बताकर खारिज करते रहे हैं। इससे सांसद नाराज हो गए थे। बाद में केन्द्रीय मंत्री तोखन साहू ने स्थिति को संभाला, और बात आगे बढ़ी।
देशभक्ति की ऐसी लहर...
22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के बाद जयपुर की कुछ मिठाई दुकानों ने मैसूर पाक, मोती पाक, आम पाक जैसे लोकप्रिय व्यंजनों से ‘पाक’ शब्द हटाकर उन्हें ‘श्री’ नाम दे दिया। अब इनका नाम मैसूर श्री, मोती श्री आदि हो गया है। इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। इस पर लोगों की प्रतिक्रियाएं भी कम दिलचस्प नहीं।
एक भाषा शोधार्थी अभिषेक अवतांस ने सोशल मीडिया पर ही लिखा है कि 'पाक' शब्द का पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है। यह शब्द संस्कृत के 'पक्व' से आया है, जिसका अर्थ है- पका हुआ। कन्नड़ भाषा में पाका का मतलब होता है -मीठा मसाला। यानी यह शब्द पाक-कला से जुड़ा है, न कि किसी राष्ट्र या राजनीतिक विचारधारा से।
कुछ लोगों ने लिखा है कि हमें अपनी परंपरा, भाषा और व्यंजनों से शर्मिंदा क्यों होना चाहिए? पाक शब्द पर पाकिस्तान का कोई कॉपीराइट नहीं है। पाक शब्द हमारी समृद्ध और विशाल भारतीय भाषाओं से उपजा है।