राजपथ - जनपथ
असरानी, और नया रायपुर
मशहूर हास्य अभिनेता असरानी के निधन के बाद उन्हें देशभर में श्रद्धांजलि दी जा रही है। रायपुर में भी सिंधी काउंसिल ऑफ इंडिया के पदाधिकारियों ने उन्हें याद किया। असरानी कुछ साल पहले रायपुर आए थे, और वो यहां नवा रायपुर के डेवलपमेंट देखकर काफी प्रभावित भी हुए। बहुत कम लोगों को मालूम है कि असरानी नवा रायपुर में एक बंगला भी बनाना चाहते थे।
फिल्म ‘शोले’ के जेलर के किरदार से मशहूर हुए असरानी का कई बार रायपुर आना हुआ। वो कुछ साल पहले सिंधी समाज के चेट्रीचंड पर्व के होजमालो कार्यक्रम में शिरकत करने आए थे। उन्होंने स्टेज शो में लोगों को काफी हंसाया भी। कार्यक्रम में पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, और सुनील सोनी भी थे। कार्यक्रम के बाद फुर्सत के क्षणों में सिंधी काउंसिल के प्रदेश अध्यक्ष ललित जैसिंघ के साथ वो नवा रायपुर भी गए। उन्हें नवा रायपुर का वातावरण काफी पसंद आया, और यहां एक बंगला बनाने की इच्छा भी जताई।
ललित याद करते हैं कि असरानी ने अपनी पत्नी मंजू असरानी से भी बात करवाई थी। वो भी नवा रायपुर में एक बंगला बनाने के लिए खुशी-खुशी तैयार हो गईं। असरानी का कहना था कि वीक एण्ड में समय गुजारने के लिए नवा रायपुर काफी बेहतर है। मुंबई जाने के बाद असरानी यहां सिंधी समाज के लोगों के संपर्क में भी रहे, लेकिन बंगला बनवाने का मामला टलता गया। अब उनके गुजरने के बाद खुश मिजाज असरानी को काफी याद किया जा रहा है।
13 वर्ष में छोटा पड़ गया मंत्रालय
दो दशक पहले नई राजधानी नवा रायपुर में जब मंत्रालय भवन का निर्माण शुरू किया गया था तब योजनाकारों ने 50 वर्ष की जरूरत पूरी होने का दावा किया था। पांच मंजिले इस भवन में नया मंत्रालय 2012 से काम करने लगा। सीएम और मंत्री ब्लाक 5 मंजिला, सेक्रेटरी ब्लॉक 4 मंजिला और एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक 3 मंजिला भवन में कार्यरत हैं। अब 50 में से 13 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस एक दशक में ही महानदी भवन में जगह कम पडऩे लगी है।
ऐसा नहीं है कि मंत्रालय का सेटअप बढ़ गया हो और उसके अनुरूप हर वर्ष सैकड़ों अधिकारी कर्मचारियों की भर्ती हो रही हो। भर्ती के बजाय विभाग अपने मैदानी दफ्तरों से अधिकारी कर्मचारी अटैच कर मंत्रालय का काम निपटा रहे हैं। इसके चलते हर ब्लाक में जगह की कमी पडऩे लगी है। इसे देखते हुए जीएडी ने पिछले दिनों दो अलग-अलग आदेश निकालने पड़े। पहला यह कि बिना जीएडी की अनुमति के अब किसी भी विभाग में अधिकारी कर्मचारी मंत्रालय अटैच न किए जाएं। दूसरा चूंकि मंत्रालय में कमरों की कमी है ऐसे में पोस्टिंग किए जाने पर आफिस रूम नहीं दिया जाएगा। सो ऐसे अफसर ई ऑफिस सॉफ्टवेयर में अपने पुराने आफिस से ही काम करेंगे।
यह रही एक बात, दूसरी बात यह है कि मंत्रालय संवर्ग के अवर सचिवों के लिए तो कमरे ही है जबकि इनके ही सील साइन से सरकारें चलती हैं। इनके लिए, कॉर्पोरेट सेक्टर की तरह छोटे-छोटे, केबिन-क्यूबिक बनाए गए हैं। इतना ही नहीं एक-एक अनुभाग में दो-तीन विभाग संचालित हो रहे हैं। मसलन पुरातत्व-पर्यटन-संस्कृति एक ही कक्ष में, बेमेल वाले खेल युवा कल्याण के साथ सहकारिता।
वहीं वन में विमानन, गृह में संपदा संचालनालय। जबकि पीएचक्यू, अरण्य के नाम से नए शहर में ही इनके अपने भवन हैं। केंद्रीय उपक्रम एनआईसी भी मंत्रालय में ही है। एक अनुभाग दबड़े की तरह होने लगे हैं। ऐसी हालत देखकर अब मांग होने लगी है मंत्रालय के लिए नए भवन की।
धुड़मारास का संकल्प, बिगडऩे नहीं देंगे

केंद्र सरकार के पंचायती राज मंत्रालय ने आज एक्स हैंडल पर एक पोस्ट छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के बीच बसे गांव धुड़मारास को लेकर डाली है।
दरअसल, धुड़मारास के ग्रामीणों ने हाल ही में हुई ग्राम सभा में एक बड़ा निर्णय लिया। गांव में पूरी तरह शराबबंदी, साउंड सिस्टम और प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। आम तौर पर पिकनिक की मस्ती करने वाले ये सामान दूसरे पर्यटन स्थलों पर जरूरी मान लिया जाता है। पर धुड़मारास तो यूनेस्को द्वारा दुनिया के 20 सर्वश्रेष्ठ पर्यटन ग्रामों में शामिल हो चुका गांव है। बाकी जगह जो हो रहे हैं, वही यहां भी होने लगा तो उसकी खास पहचान कैसे बनेगी रहेगी? पिछले कुछ समय से धुड़मारास के ग्रामीण इस समस्या को सामने आते देख रहे थे। इसलिये ग्राम सभा की खास बैठक बुलाई गई और कुछ बड़े फैसले लिए गए। ग्राम सभा ने तय किया है कि गांव की पवित्रता और अनुशासन में किसी प्रकार की अव्यवस्था नहीं आने दी जाएगी।
एक और जरूरी बात, धुड़मारास की पहचान बने बैंबू राफ्टिंग और कयाकिंग जैसे नवाचार कार्यों से बनी है। ग्राम सभा ने यह तय किया है कि इसकी नकल कोई संस्था या व्यक्ति उनकी अनुमति के बिना नहीं कर सकेगा। हालांकि, यह एक फैसला कैसे लागू होगा- स्पष्ट नहीं है। यदि किसी ने नकल की तो रोकने के लिए कानूनी उपायों पर ग्राम सभा को ध्यान देना होगा।
प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता से भरा पूरा धुड़मारास गांव सौर ऊर्जा से जगमगा रहा है। यहां के युवाओं ने अपने परंपरागत ज्ञान को आधुनिक सोच से जोड़ा और पर्यावरणीय पर्यटन को नई दिशा दी। इस बार पर्यटकों के लिए कयाकिंग और बैंबू राफ्टिंग के अलावा होमस्टे, देशी व्यंजन, ट्राइबल डांस, बर्ड वॉचिंग, नेचर वॉक और ट्रेकिंग जैसी सुविधाएं 22 अक्टूबर से शुरू कर दी गई है। जगदलपुर से यह गांव करीब 40 किलोमीटर दूर है। इस सत्र की शुरुआत बिलासपुर से गए कुछ सैलानियों के स्वागत से हुई।
छत्तीसगढ़ में धुड़मारास की तरह विकसित किए जाने लायक दर्जनों झरने, बांध, जलप्रपात हैं। पर वहां से जो खबर आती है, वह डूबने की, शराबखोरी की, मारपीट या खून-खराबे की। धुड़मारास से सीख लेकर इन स्थलों को भी दर्शनीय और सुरक्षित बनाया जा सकता है।
जांच से पहले ट्रायल की बाढ़
वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी रतनलाल डांगी पर यौन उत्पीडऩ का आरोप कल शाम से ही सोशल मीडिया ट्रायल का विषय बन गया है। पुलिस मुख्यालय ने जांच का आदेश जारी कर दिया है, पर इससे पहले ही एक्स (पूर्व ट्विटर) जैसे प्लेटफॉर्म पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है। लोग अपने-अपने नजरिए से इस पूरे घटनाक्रम की व्याख्या कर रहे हैं।
एक सब इंस्पेक्टर की पत्नी, योग प्रशिक्षिका ने आईपीएस रतनलाल डांगी पर मानसिक और शारीरिक उत्पीडऩ के आरोप लगाए हैं। शिकायत के साथ उन्होंने कई डिजिटल सबूत भी डीजीपी को सौंपे। दूसरी ओर, डांगी ने एक दिन पहले ही उसी महिला के खिलाफ ब्लैकमेलिंग की एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। सरकार ने रुख साफ किया है कि दोषी पाए जाने पर सख्त कार्रवाई होगी। लेकिन जांच से पहले ही ऐसे पोस्ट आ रहे हैं, जिनमें सवालों के बौछार हो रहे हैं।
इनमें रायपुर से लेकर दिल्ली से लेकर पत्रकार और वकील शामिल हैं। भाजपा से जुड़े एडवोकेट नरेश चंद्र गुप्ता ने एक्स पर जांच अधिकारी पर ही सवाल उठाया है। उन्होंने लिखा है क्या यह न्याय का उपहास नहीं है कि जिस अधिकारी (आनंद छाबड़ा) पर खुद सीबीआई जांच चल रही है, जो भाजपा को खैरागढ़ में हराने में लगे हुए थे- उन्हें इस मामले की जांच का जिम्मा दिया गया है? भगवान छत्तीसगढ़ पुलिस की रक्षा करे।
इधर, दिल्ली के पत्रकार कन्हैया शुक्ला ने अपनी पोस्ट में लिखा कि डांगी कई सालों से महिला का उत्पीडऩ कर रहे थे, और अब खुद को ब्लैकमेलिंग का शिकार बताकर जांच को भटकाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाया है कि जब पीडि़ता ने सबूतों के साथ शिकायत की है तो अभी तक एफआईआर क्यों नहीं हुई? क्या पुलिस महकमे के बड़े अधिकारियों का दबाव है कि यह मामला दबा दिया जाए? कन्हैया शुक्ला ने जानना चाहा है कि आखिर किस दबाव में डांगी महिला की बात मानते हुए चल रहे थे? उनकी लंबी पोस्ट कई बार शेयर हो चुकी है। कई यूज़र्स ने लिखा कि जब आरोपी खुद पुलिस का वरिष्ठ अधिकारी हो तो न्याय की उम्मीद किससे की जाए? दूसरी ओर डांगी के पक्ष में भी कई पोस्ट हैं। इनमें दावा किया गया है कि डांगी डीफफेक वीडियो के शिकार हुए हैं।
फिलहाल, पीडि़ता की शिकायत और डांगी की सफाई, दोनों पुलिस मुख्यालय में दर्ज हैं। विभाग ने जांच अधिकारियों की नियुक्ति कर दी है। डांगी से पहले भी कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ यौन उत्पीडऩ के आरोप लग चुके हैं। छत्तीसगढ़ पुलिस की साख पर एक बार फिर दांव पर है।
अपने-अपने इलाके के राजा?
कांग्रेस में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के चलते एक तरह से प्रदेश के प्रमुख नेता पूर्व सीएम भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, और प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज का लिटमस टेस्ट होने जा रहा है। पिछले कई दिनों से एआईसीसी के पर्यवेक्षकों ने ब्लॉकों में जाकर जिलाध्यक्ष के लिए नामों पर रायशुमारी की थी, और फिर छह नाम का पैनल तैयार कर हाईकमान को सौंप दिया।
प्रदेश के सभी प्रमुख नेता, जिलों में अपनी पसंद का अध्यक्ष बनवाने के लिए प्रयासरत हैं। गुरुवार को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल ने चारों नेता भूपेश बघेल, सिंहदेव, डॉ. महंत व बैज से बारी-बारी से चर्चा की, और पर्यवेक्षकों के पैनल पर राय ली। चारों ने हरेक जिले में अध्यक्ष के लिए अपनी पसंद बता दी है।
बताते हैं कि सबसे पहले वेणुगोपाल ने सिंहदेव को आमंत्रित किया, और फिर उनसे राय ली। इसके बाद भूपेश बघेल के सुझाव लिए गए। इसी बीच बैठक स्थगित हो गई। वेणुगोपाल को बिहार चुनाव से जुड़े एक अन्य बैठक में शामिल होने जाना था। बाद में करीब दो घंटे के ब्रेक के बाद डॉ. महंत, और दीपक बैज को बुलाया गया, और उनसे सुझाव लिए गए।
वेणुगोपाल ने पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को भी बुलवाया है। साहू शुक्रवार की रात दिल्ली पहुंचे। चर्चा है कि साहू की दिलचस्पी दुर्ग, और बेमेतरा जिले को लेकर ज्यादा है। वो महासमुंद, धमतरी, और गरियाबंद जिलाध्यक्ष को लेकर सुझाव दे सकते हैं। क्योंकि उन्होंने महासमुंद लोकसभा का चुनाव लड़ा था।
पार्टी के अंदरखाने में चर्चा है कि कुछ अध्यक्षों को लेकर दिग्गज नेता अड़ सकते हैं। मसलन, बेमेतरा, दुर्ग ग्रामीण, राजनांदगांव शहर-ग्रामीण, और कवर्धा जिलाध्यक्ष के लिए पूर्व सीएम भूपेश बघेल की अपनी पसंद जगजाहिर है। इसी तरह सरगुजा संभाग के जिलाध्यक्षों के लिए सिंहदेव ने उपयुक्त नाम सुझा दिए हैं। डॉ. महंत का बिलासपुर, कोरबा, और जांजगीर-चांपा की विशेष दिलचस्पी है। बैज की कोशिश है कि कम से कम बस्तर संभाग के जिलों में उनकी पसंद का अध्यक्ष बन जाए। मगर यहां के पर्यवेक्षक सप्तगिरि उलका उन्हें महत्व देते नहीं दिखे हैं।
सप्तगिरि उलका, ओडिशा के सांसद हैं, और छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी सचिव रह चुके हैं। वो बस्तर की बारीकियों से अवगत हैं। इससे बैज थोड़े असहज हैं। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के लिए परीक्षा की घड़ी है कि वो अपनी पसंद पर हाईकमान की मुहर लगवा पाते हैं या नहीं।
बिहार में अफसरान का तनाव
बिहार चुनाव में प्रदेश के 11 आईएएस, और 2 आईपीएस अफसरों को भारत निर्वाचन आयोग ने पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। चर्चा है कि ज्यादातर अफसर किसी तरह बिहार जाने से बचना चाह रहे थे, और उन्होंने इसके लिए अलग-अलग स्तरों से प्रयास भी किया। मगर सिर्फ दो ही अफसर पुष्पेंद्र मीणा, और डॉ. सारांश मित्तर को राहत मिल सकी है, और उन्हें चुनाव ड्यूटी से मुक्त कर दिया गया।
पुष्पेंद्र मीणा, और डॉ. सारांश मित्तर के लिए विभाग ने भी निर्वाचन आयोग को लिखा था। बाकी अफसरों की अलग-अलग जिलों में तैनाती हो गई है। चुनाव की वजह से ये सभी अफसर दिवाली पर भी घर नहीं आ पाए। अब सीधे 15 नवंबर को चुनाव निपटने के बाद ही वापसी हो पाएगी। एक अफसर ने इस संवाददाता से चर्चा में कहा कि हिमाचल या दक्षिण के राज्यों में ड्यूटी होती, तो चुनाव ड्यूटी किसी पिकनिक की तरह होता, लेकिन बिहार संवेदनशील राज्य है, और यहां हर तरह का जोखिम रहता है।
मासूमियत और संघर्ष की छवि
नदी किनारे की ढलान में बच्चे खेलते हुए ऊपर चढ़ रहे हैं, फिर नीचे फिसल रहे हैं। मिट्टी से सने नंगे बदन मगर चेहरे पर चमकती मुस्कान यह बताती हैं कि खुशी साधनों से नहीं, बल्कि सादगी से भी पैदा हो जाती हैं। बस्तर की यह छवि अंकुर तिवारी ने फेसबुक पर साझा किया है।
बाबा की महिमा
पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव भले ही मात्र 94 वोट से चुनाव जीतने से रह गए, लेकिन कांग्रेस हाईकमान की नजर में अहमियत कम नहीं हुई है। यह सब बिहार विधानसभा चुनाव के प्रत्याशी चयन के दौरान देखने को मिला। पार्टी ने टिकट को झगड़ा निपटाने के लिए तीन सदस्यीय हाईपावर कमेटी बनाई।
कमेटी में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल के अलावा पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव भी थे। कमेटी ने सारे विवादों का निपटारा किया, और फिर प्रत्याशियों के नामों की अनुशंसा की, जिसे अधिकृत तौर पर घोषित किया गया। बिहार से पहले हरियाणा में टिकट से जुड़े विवादों को सुलझाने के लिए कमेटी बनाई थी, जिसमें भी सिंहदेव को रखा गया था।
हालांकि सिंहदेव राष्ट्रीय, या प्रदेश में कोई अहम पद पर नहीं हैं। उन्हें पहले राष्ट्रीय महासचिव बनाने का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन उन्होंने प्रदेश में ही काम करने की इच्छा जताई थी। इसके बाद से उन्हें दीपक बैज की जगह अध्यक्ष बनाने की चर्चा रही है। मगर इस पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। ऐसे में देर सबेर उन्हें प्रदेश में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
आईआरएस और वीआरएस
हमने कुछ माह पहले इसी कालम में बताया था कि बीते एक दशक में 2014-24 तक देश भर के 800 से अधिक आयकर अफसरों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली है। इसके चलते आयकर सर्वे, छापे और अपील के मामलों में कार्रवाई पर बड़ा असर पड़ रहा है। हालांकि इसी दौरान विभाग ने उपलब्ध स्टाफ से फेसलेस, सर्वे और अपील की सुनवाई के लिए वर्चुअल सॉफ्टवेयर का उपयोग शुरू किया। इसका प्रतिसाद कैसा है यह अभी सामने नहीं आया है। लेकिन ऐसा लगता है कि भारत की सिविल सेवा पर अत्यधिक दबाव है। इससे परे अनुभवी व वरिष्ठ आईआरएस अधिकारियों के वीआरएस से स्थिति और भी गंभीर हो गई है। वे तो नौकरी ही छोडऩे में भी नहीं झिझक रहे।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के वर्षवार आंकड़ों का विश्लेषण करने पर, 20 आईआरएस (आयकर) ग्रुप ए अधिकारियों ने 2014 में वीआर लिया।, 2015 में 19, 2016 में 14, 2017 में 15, 2018 में 35, 2019 में 31, 2020 में 23, 2021 में 53, 2022 में 58, 2023 में 58 और 2024 में 57। इसके अलावा, 24 आईआरएस (सीमा शुल्क और अप्रत्यक्ष कर) ग्रुप ए अधिकारियों ने 2014 में वीआर लिया, 2015 में 30, 2016 में 40, 2017 में 30, 2018 में 45, 2019 में 32, 2020 में 30, 2021 में 30, 2022 में 49, 2023 में 56 और 2024 में 73। इनकी संख्या कुल 853 होती है। यदि वीआरएस इसी गति से जारी रहा तो शासन के राजस्व की मशीनरी को कौन चालू रखेगा?
बेटी की खुशी के लिए

जशपुर जिले के किसान बजरंग राम भगत ने यह साबित कर दिया कि अगर इरादा मजबूत हो तो कोई सपना अधूरा नहीं रहता। सीमित आमदनी के बावजूद उन्होंने अपनी बेटी चम्पा भगत को होंडा एक्टिवा स्कूटी तोहफे में देने का सपना पूरा किया। वह सिक्कों से भरा बोरा लेकर शोरूम पहुंच गया। ये सिक्के उसने छह महीनों तक जमा किए। 10 और 20 रुपये के सिक्के जमा करने वाले इस किसान की मेहनत देखकर शोरूम के सभी कर्मचारी भी भावुक हो उठे। शो रूम के संचालक ने अपने कई कर्मचारियों को सिक्के गिनने में लगा दिए, फिर स्कूटी की डिलिवरी की।
किसान ने कहा, यह मेरी हैसियत नहीं थी- मगर बेटी की खुशी के लिए खरीदना जरूरी था।
सुधार गृह ही नहीं सुविधा गृह भी...

रायपुर सेंट्रल जेल एक बार फिर सुर्खियों में है। यहां कैद हिस्ट्रीशीटर राजा बैजड़ का एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें वह जेल के अंदर जिम झोंकते हुए दिखाई दे रहा है। उसका वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रही है। मामला सामने आने के बाद दो जेल कर्मियों को निलंबित कर दिया गया है। इससे पहले इसी जेल से हिस्ट्रीशीटर अमन साव का भी ऐसा ही वीडियो बाहर आया था।
जेल के भीतर रसूखदार बंदियों की अपनी टीम और पदक्रम होता है। जो जितना बड़ा हिस्ट्रीशीटर, उसका उतना ही रुतबा। फिटनेस का यह वीडियो यह साफ बताता है कि जेल के अंदर मोबाइल फोन की पहुंच कितनी आसान है, और यह सुविधा मुफ्त में नहीं मिलती। इसके पीछे मोटी रकम की अदायगी होती है।
अभी इसी महीने अंबिकापुर जेल से हत्या के एक मामले में सजायाफ्ता कैदी भागकर बिलासपुर पहुंच गया था। वहाँ उसने फिनाइल पीकर आत्महत्या की कोशिश की। उसकी पत्नी ने बिलासपुर कलेक्टर को ज्ञापन देकर बताया कि जेल में उसके पति से पैसे भेजने का दबाव बनाया जाता था और न देने पर मारपीट की जाती थी। उसने ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के सबूत भी पेश किए। अंबिकापुर पुलिस उसे पकडक़र वापस जेल ले गई।
सारंगढ़ उप जेल में भी वसूली को लेकर कैदियों से लगातार और बुरी तरह मारपीट के मामले सामने आए। फरवरी में परिजनों ने जेल अधिकारियों पर जबरन वसूली और अत्याचार के आरोप लगाए थे। अप्रैल में खबरें छपने के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया, और जांच के बाद जुलाई में एक सहायक जेल अधीक्षक और दो प्रहरियों को निलंबित किया गया। इन्होंने भी ऑनलाइन पैसे लिए थे।
अब जब रायपुर सेंट्रल जेल का यह फिटनेस वीडियो सामने आया है। जेल प्रबंधन इसे सुधार गृह की गतिविधि कहकर बचाव कर सकता है, लेकिन असली सवाल यही है कि मोबाइल फोन उस संवेदनशील बैरक तक पहुँचा कैसे? छत्तीसगढ़ की जेलों का हाल अब किसी से छिपा नहीं। कैश हो तो मोबाइल फोन से लेकर नशे का सामान तक सब उपलब्ध है। कैदी चाहें तो जेल से ही अपने नेटवर्क को निर्देश दे सकते हैं। फर्क बस इतना है कि जो भुगतान कर सकता है, उसके लिए जेल-जेल नहीं, सुविधा घर बन जाता है।
एफआरए पर हाईकोर्ट का नजरिया
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें ग्राम घाटबर्रा के निवासियों ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत सामुदायिक वन अधिकारों का दावा किया था। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ग्रामीणों का दावा सिद्ध नहीं हुआ, क्योंकि संबंधित भूमि पहले ही खनन के लिए हस्तांतरित हो चुकी थी और उस समय इसे चुनौती नहीं दी गई। इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने यह भी कहा कि एफआरए, वन भूमि के नीचे मौजूद खनिजों पर राज्य के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करता। इस फैसले ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं, खासकर एफआरए के मूल उद्देश्य और वनवासी समुदायों के अधिकारों को लेकर।
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति और जयनंदन सिंह पोर्ते द्वारा दायर याचिका में बताया गया था कि ग्राम घठबार्रा को 2006 के वन अधिकार अधिनियम के तहत सामुदायिक अधिकार प्राप्त थे, जिन्हें 2016 में जिला समिति ने रद्द कर दिया था। इस फैसले को लेकर पूर्व केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री और कांग्रेस के संचार विभाग प्रमुख जयराम रमेश ने गहरी चिंता जताई है। उन्होंने अपने एक्स हैंडल पर लिखा है कि वर्तमान केंद्र सरकार ( रमेश जयराम के अनुसार- मोदानी सरकार) के आने के बाद से हसदेव अरण्य में अभूतपूर्व और अस्वीकार्य घटनाएं बढ़ी हैं। हाईकोर्ट की एकल पीठ का यह फैसला, जिसमें वन अधिकारों को रद्द करने का आधार यह बताया गया कि भूमि पहले ही खनन के लिए हस्तांतरित हो चुकी थी, न केवल तर्कहीन है, बल्कि यह एफआरए के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
जयराम रमेश ने आगे कहा है- यह स्पष्ट है कि इस फैसले का लाभ कौन उठा रहा है। एफआरए का उद्देश्य वनवासी समुदायों को वन संसाधनों पर अधिकार देना है, जो तब तक संभव नहीं जब तक उनकी जमीन सुरक्षित न हो। कोर्ट का यह तर्क कि खनिजों पर राज्य का अधिकार सर्वोपरि है, वनवासियों के अधिकारों को कमजोर करता है और एफआरए की नींव को हिलाता है। यह फैसला न केवल पर्यावरणीय न्याय के लिए खतरा है, बल्कि यह आदिवासी समुदायों के हितों पर भी कुठाराघात करता है।
जयराम रमेश का आशय है कि यह फैसला न केवल हसदेव अरण्य की जैव-विविधता को खतरे में डालता है, बल्कि वन अधिकार अधिनियम की मूल भावना को भी कमजोर करता है। हाईकोर्ट के इस फैसले को माना जाए तो यदि किसी वन में खनिज उत्खनन कराना हो तो उसके लिए एफआरए के तहत कोई दावा मुमकिन ही नहीं होगा। सिंगल बेंच के आदेश को यदि चुनौती दी जाती हो, तभी इसमें कोई बदलाव संभव है।

जन्मदिन भारी पड़ा
कुछ महीने पहले कांग्रेस के एक दिग्गज नेता को तामझाम से जन्मदिन सेलिब्रेट करना भारी पड़ गया है। नेताजी का 78वां जन्मदिन था। जन्मदिन पार्टी में पहुंचे नेताओं ने अंदाज लगा लिया कि विधानसभा चुनाव के वक्त नेताजी की उम्र 81 साल हो जाएगी। ऐसे में पार्टी उनकी जगह किसी नए चेहरे को प्रत्याशी बना सकती है।
पार्टी ने दिग्गज नेता को विधानसभा चुनाव हारने के बाद लोकसभा प्रत्याशी बनाया था। वो लोकसभा चुनाव भी बुरी तरह हार गए। अब जन्मदिन पार्टी के बाद वो क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं, और स्थानीय कार्यकर्ताओं से एक बार और विधानसभा चुनाव लडऩे की इच्छा जता रहे हैं। मगर अब पार्टी के कई युवा स्थानीय नेताओं ने उनके क्षेत्र में चुनाव लडऩे के लिए अभी से जोर आजमाइश शुरू कर दी है। जिलाध्यक्ष से लेकर पंचायत के पदाधिकारी तक दिग्गज नेता को चुनौती देते दिख रहे हैं। इससे वो काफी परेशान हो गए हैं।
दिग्गज नेता ने जिलाध्यक्ष के चयन प्रक्रिया के दौरान अपनी तरफ से एक नाम आगे बढ़ाया था ताकि संगठन में उनका दबदबा बरकरार रहे। मगर उनकी यह इच्छा पूरी होते नहीं दिख रही है। जिन्हें अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है, वो दिग्गज नेता के विरोधी माने जाते हैं। कुल मिलाकर जो नेता अपनी पसंद से कई टिकटें तय करवाते रहे हैं, इस बार उन्हें खुद की टिकट हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ सकता है। चुनाव में भले ही वक्त है, लेकिन नेताजी की नींद अभी से उड़ी हुई है।
हथियार छोडऩे वाले विचारधारा भी त्याग देंगे?
पिछले कुछ दिनों में बस्तर में 210 से अधिक नक्सलियों ने हथियार डाल दिए। इनमें दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रमुख रुपेश और अन्य वरिष्ठ कमांडर शामिल हैं। इन सामूहिक आत्मसमर्पणों ने सुरक्षा बलों को तो उत्साहित किया ही है, केंद्र और राज्य सरकार के लिए भी यह एक राजनीतिक, रणनीतिक जीत का मौका है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा कर दी है कि अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर पूरी तरह नक्सल-मुक्त हो चुके हैं। यह भी कहा कि मार्च 2026 के लक्ष्य से पहले ही बस्तर में नक्सलवाद का सफाया हो जाएगा।
कहा जा रहा है कि यह आत्मसमर्पण सुरक्षाबलों या सरकार की पहल का नतीजा कम,नक्सली संगठन के आंतरिक कलह का परिणाम ज्यादा है। जानकारों के मुताबिक,सीपीआई (माओवादी) के नेतृत्व में फूट पड़ चुकी है। कई कमांडरों ने संगठन के केंद्रीय कमेटी के फैसलों पर सवाल उठाए हैं, खासकर यह कि, हिंसा के बावजूद विकास परियोजनाएं बस्तर तक पहुंच रही हैं। यह हैरानी की बात है कि इन नक्सलियों ने आत्मसमर्पण के लिए कठोर शर्त नहीं रखीं। न तो पुनर्वास पैकेज पर कोई विशेष मांग, न ही डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड में भर्ती का विरोध किया है। राज्य सरकार की नक्सली सरेंडर एंड रिहैबिलिटेशन पॉलिसी 2025 और नियाद नेल्ला नार योजना में इन्हें रोजगार, आवास और कौशल प्रशिक्षण का वादा किया गया है, लेकिन यह प्रोत्साहन तो सरेंडर करने वाले सभी के साथ होता है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इसे घर वापसी कहा। नक्सलियों ने हथियारों के बदले संविधान की प्रति के साथ फोटो खिंचवाई। एक आंकड़े के अनुसार पिछले 22 महीनों में 2,110 नक्सली सरेंडर कर चुके हैं,477 मारे गए और 1,785 गिरफ्तार किए गए है।
ये आंकड़े सरकार की दोहरी रणनीति- समर्पण को प्रोत्साहन और हिंसा के खिलाफ अभियान को दर्शाते हैं। मगर पूरा मामला कुछ बड़े सवालों से भी घिराहै। अमित शाह ने हाल ही में कहा था कि माओवादी यदि हिंसक न हों,तो संविधान के दायरे में आंदोलन करने में कोई ऐतराज क्यों होगा?यह बयान सरेंडर के संदर्भ में बहुत प्रासंगिक है। क्या ये पूर्व नक्सली अब हथियारों का त्याग कर एक अहिंसक दबाव समूह में तब्दील हो जाएंगे? बस्तर के संसाधन-जल, जंगल, जमीन पर कॉर्पोरेट की निगाहें गड़ी हैं। खनन, स्टील प्लांट और अन्य परियोजनाएं आदिवासी जीवन उजाड़े बिना पूरी नहीं हो रही हैं। कांग्रेस हो या भाजपा 2 ही दल यहां हैं। जंगल बचाने के मामले में दोनों के ऊपर आदिवासियों का बहुत भरोसा नहीं है- भले ही चुनावी राजनीति में इनके बीच ही जीत-हार होती है। सीपीआई जैसे वामपंथी संगठनों पर भी विरोध ठंडा पड़ गया है। ऐसे में, यदि ये समर्पित माओवादी आदिवासियों के साथ मिलकर एक नया अहिंसक संगठन खड़ा करें, जैसे मूलवासी बचाओ मंच का विस्तार, तो क्या होगा? मतलब- हथियार त्यागने के साथ समर्पित नक्सली क्या विचारधारा भी त्याग देंगे?आदिवासी अधिकार और पूंजीवादी शोषण के खिलाफ बोलना भी बंद कर देंगे? या बस्तर में आंदोलनकारियों का एक नया समूह उभरेगा? जो बस्तर की राजनीति पर गहराई तक असर डालेगी?
फेरबदल के बाद
सरकार ने छत्तीसगढ़ी कलाकार सुश्री मोना सेन को छह माह पहले ही छत्तीसगढ़ केश शिल्पी कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया था, और अब उन्हें वहां से हटाकर छत्तीसगढ़ी फिल्म विकास निगम का अध्यक्ष बनाया है। केश शिल्पी कल्याण बोर्ड में मोना सेन के साथ गौरीशंकर श्रीवास की उपाध्यक्ष पद पर नियुक्ति की गई थी। गौरीशंकर श्रीवास ने उपाध्यक्ष का पद संभालने के बजाए संगठन में काम करने की इच्छा जता दी थी। उन्होंने पदभार ही नहीं लिया।
केश शिल्पी कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष का पद रिक्त हो गया है, और चर्चा है कि गौरीशंकर श्रीवास की वरिष्ठता को ध्यान में रखकर अध्यक्ष पद पर नियुक्ति हो सकती है। सरकार ने पहले भी कुछ बदलाव किए थे। मसलन, वित्त आयोग के अध्यक्ष पद पर श्रीनिवास मद्दी की नियुक्ति की गई थी। बाद में उन्हें ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष बनाया गया। इसी तरह भाजपा प्रवक्ता केदार गुप्ता को पहले दुग्ध महासंघ के अध्यक्ष का पद दिया गया था। बाद में उन्हें अपेक्स बैंक का अध्यक्ष बनाया गया।
चर्चा है कि निगम-मंडल के उपाध्यक्ष और सदस्य पद पर नियुक्तियां होनी है। करीब 50 नेताओं को निगम-मंडल में एडजस्ट किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि ये सारी नियुक्तियां राज्योत्सव निपटने के बाद होंगी। देखना है कि पार्टी क्या कुछ बदलाव करती है।
हमनाम को तोहफा
दीपावली आते ही सरकारी मुलाजिम और पार्टी कार्यकर्ता अपने नेता मंत्रियों से सौजन्य भेंट गिफ्ट की उम्मीद लगाए रहते हैं। यह सिलसिला वर्षों से कायम है। जिन्हें मिल जाता है वे खुश होते हैं और जिन्हें नहीं मिलता स्वाभाविक रूप से नाराज होते हैं। इसका इंतजार करते वे यह भी पता करते रहते हैं कि किस किस कार्यकर्ता को मिला और किसे नहीं।
इसी इंतजार में इस बार पहली बार के एक मंत्री की सूची में से कार्यकर्ताओं के एक बड़े ग्रुप के कई लोगों के नाम छूट गए। और सभी ने पड़ताल शुरू कर दी। यह खुलासा कल ही हो गया। इस दौरान पता चला कि मंत्री जी ने सभी के नाम अपने डिलीवरी ब्वॉय को गिफ्ट पैक के साथ दिए थे, ऐसा बताया गया। अब भला डिलीवरी ब्वाय इनकार भी नहीं कर सकता क्योंकि बात मंत्री के बचाव का है। कह दिया आपका गिफ्ट, आपके हम-नाम को दे दिया आप ही समझ कर। जबकि उसने दिया किसी को नहीं। कुछ तो ऐसे भी डिलीवरी ब्वाय हैं जो बांटते ही नहीं। जिसे गिफ्ट घोटाला कहा जा सकता है। इन्हीं दिक्कतों और दीपावली गिफ्ट को कदाचरण मानते हुए ही केंद्र सरकार ने पहले ही रोक लगाने के आदेश दे दिए थे।
खुशियों में साझेदारी दिवाली का तोहफा
यह दृश्य उत्तर प्रदेशका हो या हमारे ही मोहल्ले का। ऐसी भावना हर जगह देखने को मिल सकती है। दीपावली पर जहां कुछ लोग अपने घरों के लिए आभूषण, सिक्के, कपड़े खरीदते हैं, आतिशबाजी करते हैं और मिठाइयां लाते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपनी खुशियों का विस्तार दूसरों की मुस्कान में ढूंढते हैं। दूसरे के घरों में उजाला लाने की छोटी-बड़ी पहल करते हैं। छत्तीसगढ़ के कई जिलोंमें प्रशासन ने दीये बेचने वाले कुम्हारों से टैक्स न लेने के निर्देश दिए हैं। साथही कई लोग सडक़ किनारे बैठे मेहनती विक्रेताओं से सीधे खरीदारी करके त्योहार की असली रौनक बढ़ा रहे हैं। त्योहार की खुशी तभी पूरी होती है, जब रोशनी वहां तक पहुंचे जहां इसकी कमी है।
असली बात, केंद्र की चेतावनी ने बढ़ाया बिजली बिल
छत्तीसगढ़ में इन दिनों बिजली बिल राजनीति का गर्म मुद्दा है। कांग्रेस सडक़ से लेकर विधानसभा तक इसे लेकर आक्रामक है। उनका आरोप है कि भाजपा सरकार महतारी वंदन योजना के नाम पर एक हाथ से हजार रुपये देकर दूसरे हाथ से बिजली बिलों के माध्यम से तीन से पांच गुना वसूली कर रही है। बिजली दफ्तरों के बाहर हर जिले में प्रदर्शन और नारेबाजी हो रही है। लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार क्या करे? केंद्र सरकार की ऊर्जा नीति और वित्तीय दबाव है।
लोग आश्वसत हो चुके थे कि कांग्रेस सरकार ने बिजली हाफ योजना लागू की थी, जिसमें 400 यूनिट तक घरेलू उपभोक्ताओं को बिल में आधी राहत मिलती थी, वह जारी रहेगी। जब कांग्रेस की सरकार थी तो विधानसभा में भाजपा के सदस्य धरमलाल कौशिक गरजे थे कि पूरा बिल हाफ क्यों नहीं करते, सिर्फ 400 यूनिट तक क्यों?
मगर, सरकार पलटने के बाद भाजपा ने इस सीमा को घटाकर केवल 100 यूनिट कर दिया। यह भी टोटा है कि अगर खपत 100 यूनिट से अधिक हुई, तो सब्सिडी पूरी तरह खत्म। इस फैसले से 65 लाख से अधिक परिवारों को करीब 3,240 करोड़ रुपये सालाना अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। यह जरूर है कि सब्सिडी खत्म करने से पहले बिजली दर कई बार बढ़े, हालांकि वह 13 प्रतिशत या 80 पैसे प्रति यूनिट रही। मगर, सब्सिडी चालू रहने के कारण लोगों को ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।
सब्सिडी लगभग खत्म करने के बाद कांकेर, जांजगीर, धमतरी, बिलासपुर और रायपुर जैसे शहरों में कांग्रेस ने बिजली दफ्तरों का घेराव किया है। तालाबंदी की है और बिल जलाए हैं। बहुत जगहों पर तो यह भी नारा गूंजा कि महतारी वंदन का पैसा बंद करो, मगर बिजली बिल हाफ बिल दो।
नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ने विधानसभा में सवाल उठाया था। कोयला हमारा, जमीन हमारी, फिर बिजली महंगी क्यों? वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज कह रहे हैं कि महिलाओं को दिए जा रहे एक हजार रुपये के बदले तीन गुना वसूली हो रही है।
सरकार इतना विरोध झेल कर भी खामोश क्यों है? दरअसल, केंद्र सरकार की रिवैमप्ट डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम यानि आरडीएसएस के तहत छत्तीसगढ़ को 40 प्रतिशत अंशदान देना पड़ रहा है। इस स्कीम का उद्देश्य ट्रांसफार्मर, बिजली तार जैसे सभी उपकरण ऐसे उन्नत होंगे जो लाइन लॉस को कम कर दे। इस योजना में भारी खर्च है। केंद्र की योजना है, राज्य को फंड देना है। हिस्सेदारी की पूर्ति के लिए ही राज्य को बिजली दरों में वृद्धि करनी पड़ी है। यह वह पहलू है जिसे सरकार खुलकर नहीं बता रही। सरकार सूर्य घर योजना को बढ़े दर का विकल्प बता रही है। उसकी जमीनी हालत क्या है, चर्चा का अलग विषय है।
आपको पता होना चाहिए कि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी का राजस्व घाटा वित्तीय वर्ष 2025-26 में लगभग 4,947 करोड़ रुपये आंका गया है, जबकि लाइन लॉस अभी भी 20 प्रतिशत है। यह देश के औसत लाइन लॉस 14 प्रतिशत से बहुत ऊपर है।
यह बात जरूर है कि कंपनी को बिजली दर बढ़ाने से बहुत लाभ हो रहा है, पर महतारी वंदन से इसका कोई संबंध नहीं। संबंध बिजली आपूर्ति व्यवस्था को आधुनिक करने से है। मगर, इस योजना में भी कंपनी के अफसर भ्रष्टाचार से बाज नहीं आ रहे हैं। ठेकेदारों से मिलीभगत कर घटिया सामानों की आपूर्ति करने वाले कई अफसर सस्पेंड हो चुके हैं, कई के खिलाफ विभागीय जांच हो रही है।
भर्ती कैलेंडर से शिक्षक गायब!
छत्तीसगढ़ व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) ने वर्ष 2026 के लिए भर्ती कैलेंडर जारी किया है। इसमें अप्रैल से दिसंबर 2026 के बीच लगभग 31 प्रकार की भर्तियों का विवरण है। लेकिन हैरानी हो सकती है कि शिक्षक भर्ती का इसमें कहीं जिक्र नहीं है।
कैलेंडर में प्री डीएलएड और प्री बीएड परीक्षाओं का भी उल्लेख है। यानी ऐसी परीक्षाएं, जिनके बाद ही शिक्षक बनने का रास्ता खुलता है। परंतु जो हजारों युवा पहले से ही डीएलएड और बीएड की डिग्री हासिल कर चुके हैं, उनके लिए इसमें कोई अवसर नहीं दिख रहा। यह उनके लिए बड़ा झटका है, जो भाजपा सरकार बनने के बाद से ही शिक्षक भर्ती की आस लगाए बैठे हैं।
विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने युवाओं और शिक्षा से जुड़ी दो बड़ी घोषणाएं की थीं।पहली, 57 हजार शिक्षकों की भर्ती और दूसरी, सीजीपीएससी में यूपीएससी जैसी पारदर्शिता। लेकिन चुनाव बीत जाते ही शिक्षकों की भर्ती का मुद्दा हाशिए पर चला गया।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने 33 हजार शिक्षकों की भर्ती का विज्ञापन शीघ्र जारी करने की घोषणा की थी। पर अब तक वह वादा अधूरा है। इधर युक्तियुक्तकरण के बाद हजारों पद घटा दिए गए हैं, फिर भी 30 हजार से अधिक पद खाली हैं।
अग्रवाल के सांसद बनने के बाद शिक्षा मंत्रालय महीनों तक खाली रहा। हाल ही में गजेंद्र यादव को यह जिम्मेदारी मिली। उन्होंने कहा कि 5500 शिक्षकों की भर्ती को वित्त विभाग से मंजूरी मिल चुकी है और विज्ञापन जल्द जारी किया जाएगा। इसके बावजूद व्यापम के इस कैलेंडर में इसका उल्लेख नहीं है।
यही हाल सहायक प्राध्यापक भर्ती का भी है। सीजीपीएससी ने अक्टूबर 2026 में एसईटी परीक्षा कराने की घोषणा की है, हजारों अभ्यर्थी पहले से एसईटी पास करके बैठे हैं। कई युवा तो दो तीन बार यह परीक्षा दे चुके हैं क्योंकि इसकी मान्यता कुछ वर्षों तक के लिए होती है। माना जा सकता है कि शिक्षक बनने का सपना देख रहे युवाओं के लिए यह कैलेंडर उम्मीद नहीं, बल्कि एक निराशा का ही नोटिफिकेशन है।
गुजरात से उठी सुगबुगाहट
गुजरात में पिछले 24 घंटे में जो राजनीतिक बदलाव हुए हैं, उसकी गूंज छत्तीसगढ़ में भी सुनाई दे रही है। गुजरात सरकार के सभी मंत्रियों ने अपने इस्तीफे सीएम भूपेन्द्र पटेल को सौंप दिए, और तीन साल के भीतर ही कैबिनेट का पुनर्गठन हो रहा है। गुजरात के घटनाक्रम से छत्तीसगढ़ भाजपा में भी हलचल है, और देर-सबेर साय कैबिनेट में फेरबदल की हवा उडऩे लगी है। भाजपा के वाट्सएप ग्रुप में इस पर बहस भी होने लगी है।
दिसंबर में सीएम विष्णुदेव साय के दो साल का कार्यकाल पूरा होगा। साय कैबिनेट में रामविचार नेताम, केदार कश्यप, और दयालदास बघेल ही पुराने चेहरे हैं। कई वरिष्ठ विधायक कैबिनेट में जगह पाने से रह गए। दो माह पहले तीन नए मंत्री शामिल किए गए। ये तीनों पहली बार के विधायक हैं। छह माह बाद यानी जून 2026 में सरकार का आधा कार्यकाल पूरा हो जाएगा। पार्टी के कुछ लोगों का कहना है कि ढाई साल पूरा होने के बाद मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा हो सकती है।
हालांकि कुछ माह पहले अंबिकापुर में पार्टी के चिंतन शिविर में सरकार के कामकाज की समीक्षा हुई थी। मगर मंत्रियों के अब तक के परफार्मेंस पर पार्टी हाईकमान की नजर रहेगी। यह भी कहा जा रहा है कि सीएम ने सभी मंत्रियों को एक तरह से फ्री हैंड दिया हुआ है।
सीएम नए मंत्रियों के कामकाज में भी हस्तक्षेप नहीं करते हैं। इन सबके बावजूद तीन मंत्रियों के खिलाफ शिकायत प्रदेश संगठन तक पहुंच चुकी है। कुछ शिकायतों की तो पार्टी संगठन ने अपने स्तर पर पड़ताल भी कराई है। ऐसे में पार्टी के अंदरखाने में चर्चा है कि छत्तीसगढ़ में भी गुजरात फार्मूला अपना जा सकता है।
पार्टी ने वर्ष-2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने प्रदेश के सभी सांसदों की टिकट काटकर नए चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा था। यह प्रयोग सफल भी रहा। अब जिस तरह गुजरात में कैबिनेट का पुनर्गठन हो रहा है, इस तरह का प्रयोग छत्तीसगढ़ में हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे भी भाजपा हाईकमान अपने फैसलों से स्थानीय नेताओं को चौंकाते रहा है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
जब अंगद ने रावण को सही में दौड़ाया ...
रायपुर से लगे एक गांव में स्थित एक निजी शिक्षण संस्था में बुधवार को आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान एक अलग ही दृष्य देखने को मिला। नन्हे बच्चों ने रामलीला का मंचन किया था रामलीला के अनुरूप इसमें कई छात्र व छात्राओं ने अपनी अलग-अलग भूमिका निभाई। रावण बने छात्र पर अंगद बना छात्र बिफर पड़ा। उसने मंच पर तो अपनी नाटकीय भूमिका सही निभाई । लेकिन मंचन के बाद सीता का अपहरण क्यों किया कह कर सही में मारने लगा । इस असली लड़ाई को देख वहां उपस्थित शिक्षकों ने दोनों को अलग किया और समझाया।
वर्दी ने सिखाया आस्था का सलीका
सोशल मीडिया पर एक ऐसा वीडियो वायरल है, जिसमें धर्म की आड़ में कानून को ललकारने की कोशिश को एक महिला पुलिस अधिकारी ने समझदारी और जवाबदेही से थाम लिया।
ग्वालियर में वकीलों का एक समूह सडक़ पर भंडारा करने के लिए तुले थे। डीएसपी हिना खान उन्हें रोकने के लिए पहुंचीं। कहा कि सडक़ पर आप ऐसा नहीं कर सकते। कानून के जानकार दोनों थे, वकील भी पुलिस भी। मगर यहां वकील समुदाय का एक समूह धार्मिक आयोजन के बहाने प्रशासनिक आदेश को चुनौती देने पर उतारू था। जैसे ही पुलिस ने उन्हें हटने कहा वे जय श्री राम के नारे लगाने लगे और डीएसपी को सनातन विरोधी बताने लगे। वीडियो में दिखाई पड़ता है कि डीएसपी बौखलाई तो है पर उसने टकराव नहीं चुना, संयम दिखाया। उन्हीं के भाषा में संवाद का रास्ता निकाला। उन्होंने हाथ ऊंचा कर करके उनसे भी तेज आवाज में जय श्री राम का उद्घोष करना शुरू कर दिया। फिर कहा- अब बोलो, क्या अब आप कानून व्यवस्था तोड़ेंगे? हिना खान इस विपरीत हालात में बताने की कोशिश कर रही थीं कानून का पालन करने वाला किसी भी धर्म का विरोधी नहीं होता, लेकिन धर्म के नाम पर अराजकता मंजूर नहीं है। आखिरकार वकील मान गए और चले गए। अगर हर जिले में ऐसे दो चार अफसर हों, तो धर्म बनाम कानून का यह झूठा द्वंद्व मिटाने में बड़ी मदद मिलेगी।
तबादले दिवाली बाद?
कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस के बाद प्रशासनिक फेरबदल की अटकलें लगाई जा रही है। लेकिन ताजा खबर यह है कि अब इसमें विलंब हो सकता है। फेरबदल अब दीवाली के बाद होने के आसार हैं।
प्रस्तावित फेरबदल को लेकर छनकर आई खबरों के मुताबिक आधा दर्जन कलेक्टरों को इधर-उधर किया जा सकता है। चार कलेक्टरों के खिलाफ तो सीधे तौर पर शिकायत है। इनमें से एक कोरबा कलेक्टर के खिलाफ पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर की शिकायत पर सरकार ने बिलासपुर कमिश्नर से रिपोर्ट मांगी है।
बिलासपुर कमिश्नर शिकायतों की बिंदुवार जांच करा रहे हैं। फिलहाल रिपोर्ट का इंतजार हो रहा है। इसी तरह पुलिस में भी बड़े फेरबदल के आसार है। इसकी बड़ी वजह यह है कि रायपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की जा रही है। यहां संभवत: एक नवंबर से पुलिस कमिश्नर की पोस्टिंग हो जाएगी।
सरकार रायपुर में ज्वाइंट और डिप्टी पुलिस कमिश्नर के पद पर एसपी या उससे ऊपर रैंक के अफसरों की पोस्टिंग करेगी। कुल मिलाकर चार अफसरों की पोस्टिंग होगी। ऐसे में कई आईपीएस अफसरों को इधर से उधर किया जाएगा। कॉन्फ्रेंस में सीएम ने चार जिलों में पुलिस की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जताई थी। गृहमंत्री ने भी अपनी बातें रखी थी। इन सबको देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि आईपीएस अफसरों के फेरबदल की सूची लंबी हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
200 रु में जिलाध्यक्ष के लिए जिंदाबाद

अब तक चुनावी सभाओं रैलियों के लिए भीड़ का जुगाड़ होता रहा है। दिहाड़ी मजदूरी देकर हजारों की भीड़ जुटाई जाने के न केवल आरोप प्रत्यारोप लगते रहे हैं बल्कि बातचीत में भीड़ भी स्वीकारती रही है। अब ऐसी ही भीड़ का संगठन चुनाव में भी इस्तेमाल होने लगा है। अब भीड़ को कारण से क्या मतलब उसे तो पैसे मिले बस। हां अभी चुनाव न होने से रेट अवश्य कम है।नारे तो जिंदाबाद के ही लगाने है। संगठन सृजन के ताजा अभियान में ऐसा ही एक वाकया सुनने में आया है। रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनने एक व्यवसायी वर्ग के दावेदार ने अपनी दावेदारी के लिए तिल्दा में आब्जर्वर के सामने भीड़ भेजी।आब्जर्वर भी खाटी कांग्रेसी हैं,एक एक के बात करने की बात करके इन लोगों से पूछा ,क्यों आए हो? लोगों ने बताया कि नहीं मालूम ,हमको तो 200रु देकर लाया गया।अब दावेदार मुंह छुपाए घूम रहे हे।धन तो गया ही अब दावेदारी भी गई।
इंतजार की घडिय़ाँ
सीएस अमिताभ जैन के रिटायर होने के बाद उनका पुनर्वास नहीं हुआ है। आईएएस के 89 बैच के अफसर अमिताभ जैन प्रदेश में सबसे ज्यादा समय तक सीएस के पद पर रहे हैं। अमिताभ जैन के पास राज्य योजना आयोग के वाइस चेयरमैन का भी प्रभार था। जैन ने सीआईसी के लिए भी इंटरव्यू दिया था। मगर रिटायरमेंट के बाद उन्हें कोई दायित्व नहीं सौंपा गया है। पहले यह चर्चा थी कि सीएस पद से हटने के बाद योजना आयोग के पद पर बने रहेंगे। लेकिन इसको लेकर कोई आदेश नहीं निकला। सीआईसी की नियुक्ति का मामला भी अभी रूका हुआ है। इन सबके बीच राज्य विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन पद को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही है। इसके लिए विज्ञापन जारी होना है। और इसके लिए भी अमिताभ जैन का नाम चर्चा में है। अमिताभ जैन से पहले जितने भी मुख्य सचिव हुए हैं, उनमें से आर.पी.बगई को छोडक़र बाकी का पुनर्वास हो ही गया था। ऐसे में अमिताभ जैन का भी पुनर्वास हो जाएगा, इसको लेकर संदेह नहीं है। मगर जैन को थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है।
शिफ्टिंग वास्तु पूजा के बाद
पीएम नरेंद्र मोदी राज्य स्थापना दिवस के मौके पर नए विधानसभा भवन का लोकार्पण करेंगे। नवा रायपुर के सेक्टर-14 में करीब 52 एकड़ क्षेत्र में फैले नए विधानसभा भवन के निर्माण पर सवा तीन सौ करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। उद्घाटन समारोह तो भव्य रूप देने की तैयारी चल रही है। बावजूद इसके अभी शिफ्टिंग नहीं होगी। इसकी प्रमुख वजह वास्तु पूजा बताई जा रही है।
विधानसभा सचिवालय ने तो उद्घाटन समारोह से पहले शिफ्टिंग की तैयारी शुरू कर दी थी, लेकिन फिलहाल इसमें ब्रेक लग गया है। सरकार, और भाजपा के रणनीतिकार चाहते हैं कि नए विधानसभा का पूरे विधि विधान से वास्तु पूजा हो जाए, इसके बाद ही शिफ्टिंग हो। चर्चा है कि स्पीकर डॉ. रमन सिंह भी इसके लिए सहमत हो गए हैं। राज्योत्सव निपटने के बाद उपयुक्त मुहूर्त में वास्तु पूजा होगी, और फिर शिफ्टिंग की प्रक्रिया शुरू होगी। वैसे भी विधानसभा का शीतकालीन सत्र दिसंबर के तीसरे सप्ताह में है।
गौरतलब है कि नए भाजपा कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में वास्तु दोष की वजह से कई बार कुछ निर्माण कार्यों को हटाया गया था। मुख्य द्वार को बदला गया। सब कुछ ठीक होने के बाद ही यहां पार्टी की बैठकें होने लगी। इस पूरी प्रक्रिया में लंबा वक्त लगा था। नए विधानसभा भवन में ऐसी स्थिति निर्मित न हो, इसके लिए पंडितों से सलाह मशविरा चल रहा है।
हाईब्रिड के दौर में देसी फल गायब

आधुनिक कृषि विज्ञान ने उत्पादन बढ़ाने के नाम पर फलों की आत्मा छीन ली है। स्वाद, खुशबू और विविधता की जगह एकरूपता ने ले ली है। अब हर अमरूद एक जैसा दिखता है, हर सेब चमकदार है, हर पपीता मानो मशीन से सांचे में ढलकर निकला हो। किसान को भी मजबूरी है। पारंपरिक खेती में श्रम अधिक और मुनाफा कम, जबकि हाईब्रिड किस्मों में उत्पादन ज्यादा और बाजार तत्काल मिल जाता है। पर छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए यह आसान नहीं होता कि वह पारंपरिक खेती से उत्पादन घटने के बाद आधुनिक खेती को अपना ले। बिही को ही लीजिए। छत्तीसगढ़ में तखतपुर ऐसा कस्बा है, जहां की बिही छत्तीसगढ़ में ही दूसरे राज्यों में भेजी जाती थी। यूपी, मध्यप्रदेश के व्यापारी फल तैयार होने के पहले ही सारे पेड़ों का सौदा कर लेते थे। बिही के बगीचे मनियारी नदी के किनारे होते थे। अब बहुत कम बचे हैं। अब तखतपुर में ही हाईब्रिड किस्म के बिही बिकने लगे हैं। यहां का बिही रायपुर के बाजार में भी एक समय बिकता था। कोचिया आवाज लगाता था- तखतपुर के बिही ले लो...। अब बिही नहीं हाईब्रिड अमरूद आपको मिलेंगे। पर वह शास्त्री मार्केट, टूरी हटरी में नहीं, सुपर मार्केट या मॉल में अच्छी पैकिंग के साथ। अब तो विदेशों से आयातित बिही ऑनलाइन मिल रहे हैं। ताईवान की बिही आप अमेजॉन से मंगा सकते हैं।
छत्तीसगढ़ का बिहार कनेक्शन
बिहार विधानसभा चुनाव के नामांकन दाखिले की प्रक्रिया शुरू हो गई है। यहां प्रदेश के भाजपा, और कांग्रेस के नेता प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभा रहे हैं। भाजपा के क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल को 35 विधानसभा के चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई है। जामवाल ने बिहार में डेरा डाल दिया है, और वो चुनाव निपटने के बाद ही रायपुर आएंगे। जामवाल के साथ-साथ सांसद बृजमोहन अग्रवाल, और सरकार के आधा दर्जन मंत्री व संगठन के पदाधिकारियों को भी पार्टी प्रत्याशियों के प्रचार में आज से जा रहे हैं।
प्रदेश भाजपा के प्रभारी, और बिहार सरकार के मंत्री नितिन नबीन भी पटना जिले के बांकीपुर विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे हैं। नबीन के प्रचार के लिए नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव, और हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन अनुराग सिंहदेव सहित कई नेता भी प्रचार के लिए जाने वाले हैं। सरगुजा के विधायकों को भी प्रचार के लिए बिहार भेजा जा रहा है।
दूसरी तरफ, कांग्रेस से पूर्व सीएम भूपेश बघेल को तो हाईकमान ने पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। उनका प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव प्रबंधन तक अहम रोल है। इसके अलावा भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव को भी चुनाव में अहम जिम्मेदारी दी गई है। देवेन्द्र पिछले कई महीनों से एआईसीसी के प्रतिनिधि के रूप में बिहार में काम कर रहे हैं। कांग्रेस-भाजपा नेता वहां अपने दल के लिए कितने उपयोगी साबित हो पाते हैं, यह देखना है।
कलेक्टर के कंधे पर झाड़ू का बोझ
जिले के प्रशासनिक प्रमुख होने के नाते कलेक्टर राजस्व प्रशासन के सर्वोच्च अधिकारी होते हैं, सामान्य प्रशासन के भी प्रमुख होते हैं, न्यायिक अधिकारी के रूप में भी काम करते हैं। जिले में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं। विकास कार्यों का ठीक तरह से संचालन हो, केंद्र और राज्य सरकार की परियोजनाओं, महत्वाकांक्षी योजनाओं का संचालन सही तरीके से हो, इसकी भी जिम्मेदारी कलेक्टर की होती है। भूमि, खनिज, वाणिज्य कर और दूसरी तरह की राजस्व वसूली सुनिश्चित करना भी उनका काम है। राजस्व के विवादों को निपटाना उनका काम होता है। बाढ़, भूकंप, सूखे के हालात पैदा हो तो आपदा प्रबंधन भी करना होता है। आम तौर पर कलेक्टर करीब 54 विभागों के प्रभारी या फिर अध्यक्ष होते हैं। जिन विभागों के अलग-अलग प्रमुख जैसे एसपी, जिला पंचायत सीईओ, नगर निगम कमिश्नर आदि होते हैं, उन पर भी नियंत्रण कलेक्टर का ही होता है।
बस, इसी बात की व्याख्या वीरेंद्र पांडेय ने सोशल मीडिया पर कुछ अलग तरह से की है। लिखा है- इस धरती में एक प्राणी कलेक्टर है। उस पर बोझ लादते जाओ वह उफ्फ तक नहीं करता। भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में हर काम की गठरी कलेक्टर पर लाद दी जाती है। कलेक्टर की पीठ पर वैसे ही सैकड़ों काम का बोझ है। अब छत्तीसगढ़ सरकार ने उसके कांधे पर सफाई की झाड़ू भी रख दी। कहा-अब कलेक्टर का दिन सात बजे सुबह शुरू होगा, वार्ड भ्रमण से। देखना होगा सडक़ की धूल झाड़ ली गई। नालियां बजबजा तो नहीं रही। सारे सफाई कर्मी काम पर मुस्तैद हैं कि नहीं। सरकार ने यह तो बता दिया कि दिन सात बजे शुरू होगा, नहीं बताया काम खत्म कब करना है। जिस जिले में कई नगरीय संस्थान हैं वहां क्या कलेक्टर की तादाद बढ़ाई जाएगी? महापौर और पार्षद क्यों चुने जाते हैं? आईएएस आयुक्त और जोन कमिश्नर को करोड़ों रुपए की तनख्वाह क्यों दी जाती है? तुगलकी फरमान है। ये नौकर वैसे ही एक दिन का काम तीन दिन में करते हैं।अब नए बोझ के बाद भगवान ही मालिक है, जनता का।
क्या आप पांडेय जी की बात से सहमत हैं?
स्टडी मटेरियल बना ट्रिपल आईटी छात्र

कहा जाता है कि घर मोहल्ले समाज में घटने वाली घटनाएं फिल्मों और शैक्षणिक सत्र में उदाहरण, प्रदर्शन का माध्यम बन जाती है। वर्तमान तकनीक के दौर में इन घटनाओं का उपयोग बढ़ रहा है। चैट जीपीटी, एआई टूल जैसी तकनीक का उपयोग जहां सुविधाजनक हो गया है वहीं इसका दुरूपयोग को भी उतनी ही रफ्तार मिली हुई है। इसी दुरूपयोग की वजह से नवा रायपुर का एक छात्र जेल की सीखचों के पीछे जा पहुंचा है वहीं अब वह अपने ही संस्थान में स्टडी मटेरियल हो गया है। तकनीक के नेगेटिव और पॉजिटिव पक्ष को प्रस्तुत करते हुए उसके अपने ही प्रोफेसर उसका उदाहरण देकर बता रहे हैं। हाल के दिनों में ट्रिपल आईटी में मंत्रालय के 900 से अधिक अधिकारी कर्मचारियों को एआई टूल के इस्तेमाल पर ट्रेनिंग दी जा रही है। यह ट्रेनिंग सुशासन अभिसरण विभाग के द्वारा कराई जा रही है। सोमवार को एक सत्र में आईटी विशेषज्ञ ने एआई टूल के प्रशासनिक कामकाज में इस्तेमाल कितना लाभकारी और उसका दायरा विषय पर लेक्चर दिया। इसके बाद प्रशिक्षणार्थियों को संस्थान के कंप्यूटर लैब में प्रैक्टिकल भी देना था। लेक्चर में प्रोफेसर साहब ने अपने छात्र के एआई के दुरूपयोग से सहपाठी 36 छात्राओं की न्यूड तस्वीरें बनाने के घटनाक्रम को बताया। ऐसे दुरूपयोग को सौभाग्य से खोजे गए एआई को दुर्भाग्य भी बताया।
कड़ी मेहनत के लिए कमर कस लें

दो दिन के कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस का समापन सीएम विष्णुदेव साय ने सुशासन संवाद से किया। इस दौरान उन्होंने सरकारी कामकाज में लेटलतीफी, लालफीताशाही खत्म करने पर जोर दिया। उन्होंने इस साल के पहले दिन से 10 बजे मंत्रालय, जिला कार्यालय में कामकाज शुरू करने को लेकर दिए निर्देशों की सफलता को भी रखा। एक अप्रैल से ई आफिस सिस्टम से बढ़ी पब्लिक डिलीवरी सिस्टम पर भी पीठ थपथपाई। इस सुशासन संवाद में नए मुख्य सचिव विकासशील ने अपने दिल्ली और मनीला (फिलीपींस) में कामकाज के अनुभव रखे। वैसे विकासशील, छत्तीसगढ़ में अपने पिछले कार्यकाल में भी उन अफसरों में गिने जाते रहे हैं जो समय पर दफ्तर पहुंचते रहे।
उन्होंने कहा कि ब्यूरोक्रेसी को ट्रांसफॉर्म करने का समय आ गया है। नई कार्य संस्कृति और तकनीक को अपनाए बिना सुशासन संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि जनता में विश्वास बढ़ाना है, तो उच्चाधिकारियों को खुद उदाहरण प्रस्तुत करना होगा। उन्होंने कहा कि जब हम स्वयं समय पर दफ्तर पहुंचेंगे, तभी नीचे तक अनुशासन की संस्कृति बनेगी। कर्मचारी बता रहे कि विकासशील सुबह 9 बजे दफ्तर पहुंचकर रात 9 बजे ही बंगले लौट रहे हैं। उनकी टाइमिंग, उन अफसरों के लिए चुनौती होगी जो अपने मंत्रियों की आवाजाही के आधार पर अपनी घड़ी का कांटा सेट करते रहे हैं। ऐसे में किसी दिन सीएस की चेकिंग असहज स्थिति न खड़ी कर दे।
बारहसिंघा के कितने सींग?

कान्हा नेशनल पार्क में खींची गई इस तस्वीर के बारे में सोशल मीडिया पर एक पाठक ने प्रतिक्रिया दी कि जब भी उसने सींगों को गिनने की कोशिश की, 12 नहीं मिले। पोस्ट वन्यजीव प्रेमी पत्रकार प्राण चड्ढा की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सींग 12 ही होते हैं, आप उनकी शाखाओं को गिनिए। सिर से कितने निकले हैं, उनको नहीं। वैसे मुद्दे की बात यह है कि कान्हा का बारहसिंघा विशेष है। इसने परिस्थितियों के अनुकूल इसने अपने खुरों को विकसित किया है। इसके चलते यह सख्त भूमि पर दौड़ सकता है। वरना यह दलदली भूमि का जीव है। कान्हा में इनकी संख्या कम होने लगी थी लेकिन पार्क प्रबंधन ने प्रयास किया तो अब यह लुप्त होने के खतरे से बाहर है।
रसूख का नशा और सडक़ पर तमाशा
नेता हों या अफसर, उनके निजी सहायकों या रिश्तेदारों की ताकत हर किसी को पता होती है। आम लोग जब ऊपर तक नहीं पहुंच पाते, तो वे उनके राजदार सहायकों के ही जरिये काम निकलवाते हैं। बहुत से लोग अपनी हैसियत छुपाकर रखते हैं, लेकिन ताकत की एक दिक्कत है, छिपती नहीं। कभी-कभी खुद-ब-खुद सार्वजनिक हो जाती है और नियम-कानून सडक़ पर रौंद दिए जाते हैं।
पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई नजारे देखने मिले हैं। बीते जून में बलरामपुर के एक डीएसपी की पत्नी ने नीली बत्ती वाली कार की बोनट पर बैठकर रील्स बनाई और जन्मदिन मनाया। इससे पहले मार्च में रायपुर की मेयर के बेटे ने दोस्तों संग सडक़ रोककर केक काटा। अब चिरमिरी में स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के विशेष सहायक और भाजपा नेता राजेंद्र दास ने अपनी पत्नी के साथ सडक़ पर आतिशबाज़ी कर बर्थडे मनाया और खुद ही उसका वीडियो इंस्टाग्राम पर डाल दिया।
शायद उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि वीडियो वायरल होते ही बवाल खड़ा हो जाएगा। कांग्रेस ने थाने में शिकायत कर दी और पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी पड़ी। दरअसल हाईकोर्ट पहले ही ऐसी हरकतों पर नाराजगी जता चुका है, इसीलिए पुलिस भी मजबूर हो जाती है कार्रवाई करने को।
मगर सच्चाई यह है कि ये कार्रवाई सिर्फ दिखावे की होती हैं। बलरामपुर की तरह चिरमिरी में भी जश्न मनाने वाले पर नहीं, बल्कि कार के ड्राइवर के ऊपर ही एफआईआर दर्ज हुआ। पुलिस की पड़ताल इतनी कमजोर है कि उसे उस ड्राइवर का नाम भी नहीं मालूम, एफआईआर से गायब है। इन मामलों में धाराएं इतनी हल्की लगाई जाती हैं कि 2500 रुपये जुर्माना देकर छूट मिल जाती है।
रायपुर में मेयर के बेटे के मामले में अवश्य पुलिस ने पांच लोगों को हिरासत में लिया था क्योंकि मामला राजधानी का था और हाईकोर्ट की नजर में भी आ चुका था। लेकिन इससे पहले जब कांग्रेस से जुड़े 10-12 लोगों को ऐसी ही हरकत पर पकड़ा गया था तो उन्हें एक रात हवालात में रहना पड़ा था। निचोड़ यह है कि रसूख जब सिर चढ़ता है तो सडक़ में जश्न मनाने पर कानून टूटने के भय की कोई जगह नहीं होती है।
महिला पर्यवेक्षक की दो टूक
कांग्रेस में जिला अध्यक्षों के चयन के लिए रायशुमारी की प्रक्रिया अंतिम चरण में हैं। ज्यादातर जिलों में तो एआईसीसी की गाइडलाइन धरी की धरी रह गई, और कई जगहों पर दावेदारों ने केन्द्रीय पर्यवेक्षकों के आगे शक्ति प्रदर्शन किया है। अलबत्ता, कुछ पर्यवेक्षक जरूर ऐसे हैं, जो गाइडलाइन का सख्ती से पालन कर रहे हैं। इन पर्यवेक्षकों के तेवर देखकर दावेदार भी सकते में आ गए हैं।
एआईसीसी ने राजस्थान की एक महिला नेत्री को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा है। महिला नेत्री को तीन जिलों की जिम्मेदारी दी गई है। महिला नेत्री तो सहयोगी पर्यवेक्षक प्रदेश के पूर्व मंत्री की गाड़ी में बैठने से मना कर दिया। वो खुद ऑटो में अलग-अलग ब्लॉकों में जाकर रायशुमारी कर रही हैं। इतना ही नहीं, महिला पर्यवेक्षक ने एक पूर्व विधायक का आवेदन लेने से मना कर दिया। आर्थिक रूप से बेहद सक्षम पूर्व विधायक जिलाध्यक्ष के लिए दावेदारी कर रहे हैं। मगर महिला पर्यवेक्षक के आगे उनकी एक नहीं चल पा रही है। महिला पर्यवेक्षक ने पूर्व विधायक से साफ तौर पर कह दिया कि उनकी उम्र ज्यादा हो चुकी है, और वो जिलाध्यक्ष के लिए फिट नहीं बैठते हैं।
बताते हैं कि पूर्व विधायक ने प्रदेश के शीर्ष नेताओं से संपर्क किया, और फिर बात प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट तक पहुंची। प्रदेश प्रभारी ने महिला पर्यवेक्षक से पूर्व विधायक का आवेदन लेने के लिए कह दिया। महिला पर्यवेक्षक ने प्रदेश प्रभारी की बात नहीं टाल सकीं, लेकिन उनसे साफ तौर पर कह दिया कि वो आवेदन तो ले रही हैं, लेकिन एआईसीसी में जमा नहीं करेंगी। एक-दो और पर्यवेक्षक भी महिला पर्यवेक्षक की तरह पारदर्शी तरीके से काम कर रहे हैं। इन सबके चलते दिग्गज नेता भी सशंकित हैं। अब पर्यवेक्षकों की राय को कितना महत्व मिलता है, यह देखना है। मगर महिला पर्यवेक्षक के तेवर की पार्टी के अंदरखाने में काफी चर्चा हो रही है।
पेड़ के लिए मां का विलाप
देओला बाई ने बीस साल पहले अपने हाथों से पीपल का एक पौधा लगाया था। अब यह एक विशाल पेड़ हो चुका था किसी कारोबारी ने कटवा दिया। पेड़ के कट जाने पर देओला ऐसे बिलखने लगी, जैसे कोई अपना सगा छिन गया हो। यह चीख सिर्फ एक पेड़ की वजह से नहीं निकल रही है, बल्कि हमारी उस संवेदना के लिए है जिसे विकास के लिए धीरे-धीरे कुंद किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ की विडंबना है कि आदिवासियों और ग्रामीणों ने सदियों से जंगलों को मां समझकर बचाया, आज वही लोग पेड़ों के लिए न्याय मांगते भटक रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ के सर्रागोंदी गांव में पीपल पर हुए अत्याचार का यह बुजुर्ग महिला महसूस कर रही है। शायद हमें आपको भी इस तस्वीर को देखने से थोड़ी तकलीफ महूसस हो। देओला बाई का यह विलाप बताता है कि गांवों में पेड़ केवल ऑक्सीजन देने वाली मशीन नहीं, बल्कि उनके परिवार के सदस्य की तरह होते हैं।
पर्चियों का दौर
बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पं धीरेन्द्र शास्त्री चार दिनों के प्रवास के बाद रायपुर से विदा हो चुके हैं। मगर उनके दरबार में हुए शंका-समाधानों पर अब भी बात हो रही है। पं शास्त्री दरबार में पर्ची लिखकर भूत, भविष्य, और वर्तमान बता कर लोगों चौंकाते रहे हैं। इस पूरे आयोजन में जमीन कारोबारी बसंत अग्रवाल की भूमिका अहम रही है।
बसंत अग्रवाल अवैध प्लाटिंग, और कई अन्य आरोप घिरे हैं। बसंत के खिलाफ आरोपों को फेसबुक पर साझा कर कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह ने चुटकी ली कि बागेश्वर बाबा इसकी पर्ची कब निकालेंगे?
पं शास्त्री ने बसंत अग्रवाल की पर्ची निकाली है या नहीं, यह तो पता नहीं। लेकिन ईओडब्ल्यू-एसीबी ने आरपी सिंह की पर्ची जरूर निकाल दी है। कोल स्कैम केस में आरपी सिंह का नाम भी सामने आया है। करीब दो साल पहले ईडी ने उनके यहां रेड की थी। कोल स्कैम के 1 करोड़ 13 लाख की राशि आरपी सिंह से जोड़ा गया है।
हालांकि आरपी सिंह कोल कारोबार से किसी तरह से जुड़े नहीं थे, लेकिन कई ऐसे लोगों के नाम हैं, जो कोल स्कैम के हितग्राहियों में रहे हैं। जांच एजेंसी ने लेनदेन के वाट्सएप चैट साक्ष्य के रूप में अपने पूरक चालान में पेश किए हैं। इसमें कितना दम है, ये तो अदालत के फैसले के बाद ही साबित हो पाएगा, लेेकिन आरपी सिंह के ‘पर्ची’ की काफी चर्चा हो रही है।
भारतमाला और भ्रष्टाचारमाला
रायपुर-विशाखापटनम भारतमाला परियोजना का निर्माण अंतिम चरण में है। इस परियोजना के पूरा होने पर रायपुर से विशाखापटनम के बीच की दूरी करीब 126 किमी कम हो जाएगी, और यात्रा का समय भी कम होकर 6 से 7 घंटे रह जाएगा। खास बात ये है कि यहां एक सिक्स लेन टनल बनाया जा रहा है, जो कि पूर्ण हो चुका है। यह छत्तीसगढ़ की पहली टनल है, और करीब पौने तीन किमी की यह टनल कांकेर के आखिरी गांव से शुरू होकर कोंडागांव जिले में निकलती है। इतनी बेहतर परियोजना होते हुए भी जमीन मुआवजा घोटाले को लेकर ज्यादा चर्चा हो रही है, और इससे केन्द्र सरकार काफी खफा हैं।
बताते हैं कि इस परियोजना में घोटाले की कई शिकायत हुई है, और इससे केन्द्रीय सडक़-परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को भी प्रदेश के कई नेताओं ने अवगत कराया है। ईओडब्ल्यू-एसीबी प्रकरण की जांच कर रही है, और चर्चा है कि जांच से एनएचएआई (राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण) संतुष्ट नहीं है। वजह यह है कि एनएचएआई के तीन अधिकारियों की घोटाले में संलिप्तता बताई गई है। जांच एजेंसी ने कार्रवाई की अनुमति के लिए केंद्र को पत्र भी लिखा है। जिन जमीन कारोबारियों पर घोटाले के आरोप थे, वो सभी जमानत पर रिहा चुके हैं। राज्य सरकार प्रशासनिक जांच भी करा रही है, जिसमें ज्यादा दम नहीं दिख रहा है।
ईओडब्ल्यू-एसीबी सोमवार को प्रकरण 10 हजार पन्ने का चालान पेश करने जा रही है। इन सबके बावजूद जांच में अब केंद्र की एजेंसी की एंट्री हो सकती है। शिकायतकर्ताओं का मानना है कि प्रदेश के कई ताकतवर लोग इसमें संलिप्त हैं। ऐसे में निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई को सौंपा जाना चाहिए। देखना है केन्द्र सरकार इस मसले पर आगे क्या कुछ करती है।
डिजिटल संकट में सेफ्टी का संकट
कुछ दुस्साहसी पुलिस जवान रिश्वत की नकद नहीं होने का बहाना किए जाने पर ऑनलाइन पेमेंट करने का दबाव बनाते हैं। इस डिजिटल रिश्वत में जोखिम ज्यादा है, क्योंकि ट्रांजैक्शन का सबूत सीधे मोबाइल में दर्ज हो जाता है। कुछ जवान ये रकम अपने किसी नजदीकी के खाते में ट्रांसफर करवाते हैं ताकि नाम सामने न आए।
ज्यादातर पीडि़त लोग शिकायत नहीं करते, और यह कारोबार चुपचाप चलता रहता है। लेकिन जब कोई पीडि़त हद से ज्यादा त्रस्त हो जाए या बदला लेने का मन बना ले, तभी मामला खुलता है। भिलाई के एक ट्रैफिक जवान को दुर्ग एसपी ने सेवा से बर्खास्त कर दिया। आरोप था कि वह खुलेआम वाहन चालकों से ऑनलाइन वसूली करता था। डिजिटल सबूत मिले और नौकरी गई।
इसी तरह बिलासपुर के सीपत थाने में एक एएसआई और सिपाही को निलंबित किया गया है। आरोप है कि एएसआई ने एनटीपीसी के एक कर्मचारी से 50 हजार रुपये वसूले। कर्मचारी ने दबाव और धमकी से त्रस्त होकर जहर खा लिया, तब मामला खुला। जांच में पता चला कि थाने में यह खेल औरों तक फैला हुआ है। एक अन्य व्यक्ति ने 22 हजार रुपये की ऑनलाइन पावती के साथ एसएसपी से शिकायत की। नतीजा, एएसआई और आरक्षक दोनों सस्पेंड हुए।
विडंबना यह है कि जहां भिलाई में एसपी ने भ्रष्ट ट्रैफिक जवान को बर्खास्त किया, वहीं बिलासपुर में केवल निलंबन की खानापूर्ति की गई। जब रिश्वत लेने के पक्के सबूत हैं, तो भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत कार्रवाई क्यों नहीं? निलंबित कर्मचारी अक्सर कुछ महीनों बाद बहाल हो जाते हैं, और उनका खेल फिर शुरू हो जाता है। सेवा से बर्खास्तगी के बाद लड़ाई कई बार लंबी हो जाती है, पर देर सबेर फिर आमद मिलने में सफलता मिल जाती है। असलियत यह है कि नीचे से ऊपर तक वसूली का हिस्सा बंटता है। ऊपर के स्तर तक ईमानदारी से हिस्सा पहुंचाने की परंपरा ने इस तंत्र को सुरक्षित कवच दे रखा है। जब कभी शोर उठता है या मीडिया में खबर फैलती है, तो छवि बचाने के लिए कुछ बलि के बकरे बना दिए जाते हैं। यकीन है, देर सबेरे पुलिस जवान इस डिजिटल पेमेंट का तोड़ निकाल ही लेंगे और इसका रास्ता भी उन्हें अनुभवी साहब लोग ही बताएंगे।
कांग्रेस में चुनावी जिंदादिली

वैसे तो कांग्रेस हाईकमान जिलाध्यक्ष के चयन के लिए पर्यवेक्षक भेजकर रायशुमारी करा रही है ताकि निचले स्तर के कार्यकर्ताओं की बात शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचे, और सक्रिय जमीनी कार्यकर्ता को अध्यक्ष नियुक्त किया जा सके। यह भी दावा किया गया कि बड़े नेताओं की सिफारिशों को महत्व नहीं दिया जाएगा। मगर जैसे-जैसे चयन प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, पार्टी के ही कई नेताओं को हाईकमान के दावे पर शंका होने लगी है।
मसलन, रायपुर शहर और ग्रामीण जिलाध्यक्ष के चयन के लिए हाईकमान ने नागपुर के नेता प्रफुल्ल गुदाधे को पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। गुदाधे पिछले दो दिनों से जिले के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं से रूबरू हो रहे हैं। शुक्रवार को एक बैठक में जिलाध्यक्ष के नाम पर रायशुमारी कर रहे थे, तभी एक कार्यकर्ता ने उन्हें टोक दिया, और पूछ लिया कि आप हमारे सुझाव को नोट नहीं कर रहे हैं, ऐसे में पैनल कैसे बना पाएंगे। इस पर गुदाधे ने उन्हें जवाब दिया कि वो हर किसी की बात सुन रहे हैं, और उनके दिमाग में हर बात नोट हो रही है। हालांकि बाद की बैठकों में गुदाधे डायरी लेकर हाजिर हुए, और सुझावों को नोट करते नजर आए।
इन सबके बीच पार्टी के एक सीनियर कार्यकर्ता ने जिलाध्यक्ष के चयन पर सवाल खड़े किए। उन्होंने केन्द्रीय पर्यवेक्षक से कहा कि आप लोग जिलाध्यक्ष का चयन कर रहे हैं उससे पहले ब्लॉक अध्यक्ष की नियुक्ति कर दी गई है। ऐसे में नए जिलाध्यक्ष को ताकत कैसे मिलेगी, ब्लॉक के पदाधिकारी जिलाध्यक्ष की क्यों सुनेंगे? गुदाधे ने उनकी बात पर सहमति जताई, और कहा कि वो इस बात को पार्टी हाईकमान के समक्ष रखेंगे।
दूसरी तरफ, प्रदेश के बड़े नेता अपनी पसंद का जिलाध्यक्ष बनवाने के लिए अपने करीबियों के माध्यम से लॉबिंग कर रहे हैं। ये लोग कार्यकर्ताओं से अपनी पसंद का नाम अध्यक्ष के लिए दे रहे हैं। ऐसे में दावा किया जा रहा है कि ज्यादातर जिलों में बड़े नेताओं की पसंद से ही अध्यक्ष की नियुक्ति की जाएगी। इन दावों में कितना दम है, यह तो जिलाध्यक्षों की सूची जारी होने के बाद ही पता चलेगा।
जूता प्रकरण पर पोस्ट का दूसरा सिरा...
सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने की घटना की जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कड़ी भर्त्सना की, तभी भाजपा कार्यकर्ताओं को यह स्पष्ट हो गया था कि उन्हें इस मामले क्या स्टैंड लेना है। यह अलग बात है कि सोशल मीडिया पर भाजपा, सनातन और हिंदुत्ववादी विचारधारा से जुड़े अनेक लोगों ने उस जूता फेंकने वाले वकील की सराहना करते हुए पोस्ट डाले हैं और सीजेआई को हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करने वाला व्यक्ति बताया है।
ऐसे माहौल में जब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के सरकारी वकील सतीश गुप्ता की एक पोस्ट को साझा करते हुए एक्स हैंडल पर प्रतिक्रिया दी, तो वह तुरंत सुर्खियों में आ गई। दरअसल, बघेल की पोस्ट के बाद ही अधिकांश लोगों को यह पता चला कि हाईकोर्ट के किसी वकील ने इस प्रकरण पर कुछ लिखा है। बघेल की वही पोस्ट अब सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा की जा रही है।
हालांकि, बघेल की पोस्ट से यह स्पष्ट नहीं होता कि गुप्ता ने यह टिप्पणी किस प्लेटफॉर्म पर की। एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम या किसी अन्य मंच पर। वास्तव में यह पोस्ट अधिवक्ताओं के एक निजी व्हाट्सऐप ग्रुप में डाली गई थी। बघेल उस ग्रुप में तो हैं नहीं, इसलिये अनुमान है कि बघेल के किसी समर्थक या शुभचिंतक ने यह पोस्ट उन्हें भेजी, जिसके बाद बघेल ने उसे साझा कर दिया और मामला चर्चा में आ गया।
पोस्ट के बाद जब विवाद बढ़ा, तो सतीश गुप्ता ने भी एक वीडियो जारी कर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि बघेल उनके परिवार का विरोध करते रहे हैं। बघेल की वजह से ही उनके पिता (राधा कृष्ण गुप्ता) को मार्कफेड अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था और उस सदमे में उनकी मृत्यु हो गई। जिस पोस्ट की बात की जा रही है, वह वास्तव में एक फॉरवर्डेड मैसेज था, जिसे उन्होंने वकीलों के ग्रुप में इस टिप्पणी के साथ साझा किया था कि हमारे संगठन को इस घटना की निंदा करनी चाहिए। गुप्ता का कहना है कि बघेल ने पोस्ट को क्रॉप कर उस हिस्से को हटा दिया, जिसमें निंदा का उल्लेख था।
सवाल उठ सकता है कि जब यह एक निजी समूह की पोस्ट थी, तो उसे उस ग्रुप से बाहर के व्यक्ति को सार्वजनिक करना चाहिए या नहीं। ग्रुप से जुड़े कुछ सदस्यों का कहना जरूर है कि विवाद बढऩे के बाद वह पोस्ट हटा दी गई है, जबकि कुछ का यह भी कहना है कि गुप्ता ने पोस्ट तो डाली थी, पर निंदा की थी या नहीं, यह मालूम नहीं।
अब उस पुराने प्रकरण पर नजर डालें, जिसका जिक्र करते हुए बघेल पर आरोप लगाया गया है। गुप्ता के पिता स्व. राधा कृष्ण गुप्ता को छह साल पहले मार्कफेड अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था। उनकी नियुक्ति डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में हुई थी। जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, तो कई निगम-मंडलों के अध्यक्षों ने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया, कुछ को पद छोडऩे के लिए विवश किया गया।
इसी दौरान प्रेमनगर (सरगुजा) की अटेम विपणन समिति पर अनियमितताओं का आरोप लगा और उसे लिक्विडेशन में भेज दिया गया। उप पंजीयक ने जांच में पाया था कि समिति ने आठ लाख रुपये की लागत से गोदाम नियमों के विरुद्ध बनवाया था। चूंकि राधा कृष्ण गुप्ता इसी समिति से प्रतिनिधि चुने गए थे, समिति के भंग होते ही उनकी सदस्यता समाप्त हो गई और परिणामस्वरूप मार्कफेड अध्यक्ष का पद भी छिन गया।
डॉ. रमन सिंह के लंबे समय तक निजी सहायक रहे ओमप्रकाश गुप्ता, सतीश गुप्ता के निकट संबंधी बताए जाते हैं। ओमप्रकाश गुप्ता कुछ अलग कारणों से भी चर्चा में रहे हैं।
सतीश गुप्ता पहली बार सरकारी वकील नहीं बने हैं। वे कांग्रेस शासन को छोडक़र लगभग लगातार इस पद पर हैं। इस आधार पर माना जा सकता है कि उन्होंने जो भी टिप्पणी अपने ग्रुप में की, वह सचेत रूप से और सोच-समझकर की होगी, और जो प्रतिक्रिया वीडियो में दी है- वह भी खरी होगी।
हाथी गुरूमुख का साथी...

धमतरी से एक बड़ा दिलचस्प वीडियो आया है। वहां एक जंगली हाथी शहर पहुंच गया तो लोगों को तोडफ़ोड़ की आशंका हुई। जिस जगह वह पहुंचा वहां भूतपूर्व विधायक गुरुमुख सिंह होरा का एक बड़ा सा होर्डिंग लगा हुआ था। हाथी गुरमुख सिंह की फोटो की तरफ गया, अपनी सूंड उठाकर उनके माथे को छुआ, और आगे बढ़ गया। अब होरा की फोटो के ऐसे असर को देखते हुए कुछ लोग सोच रहे हैं कि वन विभाग को उन्हीं के दो-चार हजार होर्डिंग बनवाकर हाथीग्रस्त गाँवों में लगा देना चाहिए।
10 अक्टूबर : इंजीनियरिंग का कमाल, हुगली नदी पर केबल से बना देश का सबसे बड़ा सेतु
नयी दिल्ली, 10 अक्टूबर। इतिहास में आज की तारीख इंजीनियरिंग के क्षेत्र में देश के विशेषज्ञों की एक बड़ी उपलब्धि से जुड़ी है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कलकत्ता (अब कोलकाता) को औद्योगिक शहर हावड़ा से जोड़ने के लिए बनाए गए विद्यासागर सेतु को 1992 में आज ही के दिन यातायात के लिए खोला गया था। मानवीय कौशल का अनुपम उदाहरण माना गया यह पुल उस समय केबल से बना देश का सबसे बड़ा पुल था।
देश-दुनिया के इतिहास में 10 अक्टूबर की तारीख पर दर्ज अन्य प्रमुख घटनाएं इस प्रकार है:-
- 1845 : अमेरिका की नौसेना को बेहतर प्रशिक्षण देने के लिए जार्ज बेनक्रोफ्ट ने एनापोलिस, मैरीलैंड में नौसैन्य अकादमी की स्थापना की।
- 1846 : ब्रिटेन के खगोलविद् विलियम लासेल ने नेपच्यून ग्रह के सबसे बड़े उपग्रह ट्राइटन की खोज की।
- 1911 : क्रांतिकारियों के एक समूह ने चीन के वूचांग में बगावत का बिगुल फूंक दिया, जिसे चीन की क्रांति की औपचारिक शुरूआत माना जाता है। यह एक ऐसी लोकतांत्रिक बगावत थी, जिसने चिंग साम्राज्य का तख्ता पलट दिया।
- 1911 : पंडित मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में वाराणसी में पहले अखिल भारतीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया गया।
- 1954: भारतीय सिने जगत की सदाबहार अभिनेत्री रेखा का जन्म। रेखा ने दक्षिण भारतीय फिल्मों से शुरुआत करने के बाद हिंदी सिनेमा में अपनी अदाकारी से मील के कई पत्थर स्थापित किए।
- 1970 : फिजी ने ग्रेट ब्रिटेन से आजादी हासिल की।
- 1978 : रोहिणी खडिलकर राष्ट्रीय शतरंज चैंपियनशिप जीतने वाली पहली महिला बनीं।
- 1980 : उत्तरी अल्जीरिया के शहर अल अस्नाम में भूकंप के तगड़े झटके महसूस किए गए। बीस हजार से ज्यादा लोगों के मारे जाने की आशंका।
- 1991 : भारत ने विश्व कैरम चैंपियनशिप में टीम खिताब जीता।
- 1992 : कलकत्ता (अब कोलकाता) को हावड़ा से जोड़ने के लिए हुगली नदी पर बने विद्यासागर सेतु को खोला गया। केबल से बने देश के इस सबसे बड़े सेतु के निर्माण में करीब 13 साल लगे।
- 2011: प्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंह का निधन।
- 2014: भारत के कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार की घोषणा।
- 2015: तुर्किये के अंकारा में एक शांति रैली में बम विस्फोट से कम से कम 95 लोगों की मौत और 200 लोग घायल हुए।
- 2024: गाजा में आश्रयस्थल पर इजराइली हमले में 27 लोग मारे गये।(भाषा)
फिलहाल आश्वासन ही सहारा
राज्य महिला आयोग इस समय सुर्खियों में हैं। आयोग की तीन सदस्यों ने बुधवार को रायपुर में हुई सुनवाई का बहिष्कार किया। उनका विरोध आयोग की अध्यक्ष किरणमयी नायक के कार्यशैली को लेकर है। सदस्यों का कहना है कि उन्हें सुनवाई की जानकारी नहीं दी जाती। अध्यक्ष के पति व निजी सचिव आयोग के कामकाज में हस्तक्षेप करते हैं। इस संबंध में उन्होंने राज्यपाल से लिखित शिकायत भी की है। नई सरकार बनने के बाद अध्यक्ष को हटाने की कोशिश हुई थी, लेकिन हाईकोर्ट से उन्हें स्थगन आदेश मिल गया। उनका कार्यकाल अब भी करीब छह महीने बाकी है। इधर आयोग के पास नारायणपुर (बस्तर) की तीन युवतियों की शिकायत दर्ज है। ये वही युवतियां हैं जिन्हें भिलाई रेलवे स्टेशन पर बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने मानव तस्करी और धर्मांतरण के आरोप लगाकर रोका था।
आरोप है कि उस दौरान उनके साथ दुर्व्यवहार और अभद्रता की गई। यह उनकी तीसरी सुनवाई थी। पिछली दो सुनवाइयों में आयोग की बाकी सदस्याएं भी मौजूद थीं, पर युवतियां निराश लौटी थीं। उनका कहना था कि उनसे अप्रासंगिक और अपमानजनक सवाल पूछे गए, जबकि दोषियों से कोई जवाब नहीं मांगा गया।
सदस्यों के बहिष्कार के कारण इस बार सुनवाई अध्यक्ष किरणमयी नायक ने अकेले की। सुनवाई के बाद जब पीडि़त युवतियां बाहर निकलीं तो उनके चेहरों पर हल्की संतुष्टि की झलक थी। उन्होंने कहा कि इस बार अजीब सवाल नहीं पूछे गए, और हमारी बात ध्यान से सुनी गई। आयोग ने इस दौरान पुलिस से दस्तावेज और वीडियो फुटेज मांगे हैं, लेकिन अब तक सहयोग नहीं मिला है। अध्यक्ष ने युवतियों को आश्वासन दिया कि वह इस संबंध में डीजीपी को पत्र लिखने जा रही हैं।
पीडि़तों की मानें तो रेलवे ने सिर्फ एक सीसीटीवी कैमरे की फुटेज दी है, जिसमें मुख्य घटनाक्रम रिकॉर्ड ही नहीं है। आयोग की नोटिस के बावजूद बजरंग दल के जिन कार्यकर्ताओं के खिलाफ शिकायत है, उनमें से कोई भी पेश नहीं हुआ। नारायणपुर की युवतियों को इस बार यह संतोष तो मिला कि उनकी बात ध्यान से सुनी गई, परन्तु एफआईआर दर्ज कराने और मुआवजा दिलाने के मामले में आयोग की शक्तियां सीमित हैं। युवतियों को राहत मिले न मिले, आश्वासन जरूर मिला है। शायद अध्यक्ष और पीडि़त दोनों ही पक्ष आयोग की सदस्यों की गैरहाजिरी के कारण सुविधाजनक स्थिति में थे।
साल बोरर का प्रकोप..

छत्तीसगढ़ के जंगलों में साल बोरर एक कीट है जो साल के पेड़ों को अंदर से खाकर खोखला कर देता है, जिससे पेड़ सूख जाते हैं और मर जाते हैं। यह कीट साल के पेड़ों के लिए एक गंभीर समस्या है। छत्तीसगढ़ में साल राज्य वृक्ष है। बाकी पेड़ों तक पहुंचने से रोकने के लिए एकमात्र प्रभावी उपाय संक्रमित पेड़ों को काटना ही है। यह चिल्फी घाटी की ताजा तस्वीर है जहां साल वृक्षों पर बोरर कीड़ों का प्रकोप दिखाई दे रहा है।
चाय पे जाना मना है
कांग्रेस में जिलाध्यक्षों के चयन प्रक्रिया के बीच भाजपा प्रवक्ता के उस दावे से हलचल मची रही, जिसमें यह कहा गया कि दुर्ग के केन्द्रीय पर्यवेक्षक अजय कुमार लल्लू को कांग्रेस हाईकमान ने बदल दिया है। भाजपा प्रवक्ता अमित चिमनानी ने यह भी दावा किया कि केन्द्रीय पर्यवेक्षक, पूर्व सीएम के घर चाय पर गए थे, इसलिए उन्हें हटाया गया। थोड़ी देर बाद कांग्रेस ने स्थिति स्पष्ट की, और भाजपा प्रवक्ता के दावे को सिरे से खारिज किया।
जिस वक्त अजय कुमार लल्लू को हटाए जाने की बात कही जा रही थी, उस दौरान वो दुर्ग में जिलाध्यक्ष के नामों को लेकर पदाधिकारियों से रायशुमारी कर रहे थे। यह भी बताया गया कि अजय कुमार लल्लू को कांग्रेस ने बिहार चुनाव में पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। यहां वो दुर्ग शहर, ग्रामीण, और भिलाई शहर अध्यक्ष के लिए कार्यकर्ताओं से चर्चा कर पैनल तैयार कर हाईकमान सौंपेंगे, और फिर वो बिहार निकल जाएंगे। ऐसे में केन्द्रीय पर्यवेक्षक को हटाए जाने के भाजपा के दावे पर भी सवाल उठ रहे हैं।
बताते हैं कि कुछ केन्द्रीय पर्यवेक्षक पार्टी के बड़े नेताओं के संपर्क में रहे हैं, और वो उनके यहां चाय पर भी गए थे। जबकि पर्यवेक्षकों को साफ तौर पर हिदायत दी गई है कि बड़े नेताओं से दूर रहें, और उनकी सिफारिशों को तवज्जो न दें। कोई बड़े नेता दबाव बनाए, तो इसकी सूचना एआईसीसी को दें। अब तक तो ज्यादातर जिलों में चयन की प्रक्रिया बिना किसी विवाद के चल रही है। हालांकि बड़े नेताओं के यहां चाय पर जाने की शिकायत विरोधियों ने हाईकमान तक पहुंचाई है। इस तरह की खबर सोशल मीडिया पर प्रचारित भी हुई है। मगर किसी को हटाए जाने की खबर गलत निकली। ये अलग बात है कि भाजपा के दावे के बाद पर्यवेक्षक सतर्क जरूर हो गए हैं।
सृजन संगठन और महंगे गिफ्ट
कांग्रेस में जिलाध्यक्ष बनने के लिए दावेदारों में होड़ मची हुई है। पर्यवेक्षक जिन पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं से रायशुमारी करेंगे, उनकी पूछ परख बढ़ गई है। एक-दो दावेदारों ने तो पदाधिकारियों को अपने पाले में करने के लिए महंगे गिफ्ट बांटना भी शुरू कर दिया है।
चर्चा है कि रायपुर के एक दावेदार ने तो करीब 60 ट्रैवल बैग बांटे हैं। रायपुर के एक बड़े जमीन कारोबारी के दावेदार भतीजे ने भी थैली खोल दी है। वो पदाधिकारियों, और कार्यकर्ताओं को मैनेज करने में जुट गए हैं।
रायपुर नगर निगम के एक पूर्व पदाधिकारी ने तो बकायदा बैठक लेकर कार्यकर्ताओं को अपनी तरफ से इशारा किया है। इन सबके बीच पूर्व सीएम भूपेश बघेल के करीबी लोग, और रायपुर के प्रमुख नेता अलग-अलग नेताओं के के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। इन सबके चलते कार्यकर्ताओं की दीवाली बेहतर होने की उम्मीद दिख रही है।
जिला अध्यक्ष, और पोलखोल
कांग्रेस में जिला अध्यक्षों के चयन के लिए जिलों में रायशुमारी चल रही है। एक-दो जगहों पर दावेदारों ने एक- दूसरे की पोल खोलना शुरू कर दिया है।
एक जिले में तो मजबूत दावेदार की दावेदारी को कमजोर करने के लिए उनके विरोधियों ने केन्द्रीय पर्यवेक्षक को ऑडियो सीडी भी सौंप दी। दरअसल, दावेदार को कांग्रेस सरकार में अहम पद मिला था,उस वक्त कुछ उल्टे-सीधे काम भी हुए। उस समय के ऑडियो भी बना था, जो अब जाकर निकला है। पर्यवेक्षक भी दावेदारों के बीच चल रहे शीत युद्ध से परेशान नजर आ रहे हैं।
केन्द्रीय और प्रदेश के पर्यवेक्षकों को जिलों में स्थानीय नेताओं की मेहमान नवाजी से परहेज़ करने की सलाह दी थी। मगर प्रदेश के एक पर्यवेक्षक प्रवास के दौरान रात्रि विश्राम के लिए एक विधायक के फार्म हाउस में चले गए। विधायक के फार्म हाउस की इलाके में खूबसूरती की काफी चर्चा है। वहां चायनीज फर्नीचर और जिम आदि अत्याधुनिक सुविधा है। युवा पर्यवेक्षक को विधायक ने अपने फार्म हाऊस में आमंत्रित किया, तो वो इंकार नहीं कर सके। ये अलग बात है कि इसकी शिकायत पार्टी हाईकमान को भी भेजी गई है।
हालांकि शिकायतों पर कोई कार्रवाई होगी, इसकी संभावना कम दिख रही है। इसकी वजह यह है कि पीसीसी के पर्यवेक्षकों को वैसे भी रायशुमारी के दौरान बाहर भेज दिया जाता है। इससे परे जमीनी स्तर पर सक्रिय रहे कार्यकर्ताओं को जिला अध्यक्ष के चयन की नई प्रक्रिया से काफी उम्मीदें हैं। जिलाध्यक्ष का चयन मेरिट के आधार पर होता है, या फिर बड़े नेताओं की सिफारिशों को महत्व मिलता है। यह तो सूची जारी होने के बाद ही पता चलेगा।
भाजपा में किसकी चली?

आखिरकार काफी खींचतान के बाद भाजपा शहर जिला पदाधिकारियों की घोषणा कर दी गई। खास बात ये है कि सूची में सांसद बृजमोहन अग्रवाल के अलावा पूर्व मंत्री राजेश मूणत की राय को काफी महत्व दिया गया है।
जिलाध्यक्ष रमेश ठाकुर को सांसद बृजमोहन अग्रवाल का करीबी माना जाता है। बाकी दोनों महामंत्री अमित मैशरी और गुंजन प्रजापति, पूर्व मंत्री राजेश मूणत के करीबी माने जाते हैं। हालांकि गुंजन के लिए सीएसआईडीसी चेयरमैन राजीव अग्रवाल, और छगनलाल मूंदड़ा ने भी सिफारिश की थी।आधा दर्जन में सत्यम दुआ, और नवीन शर्मा भी मूणत के करीबी हैं। जबकि ललित जैसिंघ, और सुभाष अग्रवाल बृजमोहन अग्रवाल खेमे के माने जाते हैं।
खास बात ये है कि दो विधायक पुरंदर मिश्रा, मोतीलाल साहू, और मेयर मीनल चौबे ने भी अपनी तरफ से कई नाम दिए थे। मगर उन्हें महत्व नहीं मिला। हालांकि बृजमोहन अग्रवाल भी अपने एक करीबी युवा नेता को महामंत्री बनवाने के लिए काफी जोर लगाते रहे, लेकिन उन्हें मंत्री पद पर संतोष करना पड़ा।
पत्रकार मरीज हो, तो भी एम्स में घुसना मना
बस्तर के पत्रकार कमल शुक्ला ने आज सुबह रायपुर के एम्स का यह हाल एक वीडियो के साथ फेसबुक पर पोस्ट किया है।
‘मैं और विद्यानंद इलाज हेतु एम्स पहुंचे, मगर गाड़ी में प्रेस लिखा होने के कारण यहां के सुरक्षा गार्ड्स ने हमें अंदर प्रवेश करने से ही रोक दिया। उनके अनुसार उन्हें अस्पताल के अधीक्षक से निर्देश मिला है कि किसी भी हालत में कोई पत्रकार यहां न घुस पाए। सुरक्षा गार्ड्स के सुपरवाइजर को बहुत समझाने की कोशिश की कि हम बीमार आदमी हैं, इलाज कराने आए हैं, धोखे से पत्रकार भी हैं, हम यहां पत्रकारिता करने नहीं आए हैं। मगर गार्ड ने साफ-साफ कहा कि प्रेस लिखी हुई गाड़ी और प्रेस वालों का यहां घुसना सख्त मना है, नहीं तो हमारे ऊपर कारवाई हो जाएगी । इसका मतलब एम्स के अधीक्षक / व्यवस्थापक के अनुसार पत्रकार बीमार पड़ ही नहीं सकते, और उन्हें इलाज की जरूरत ही नहीं है, या पत्रकारों को मर जाने दो ।
हालांकि बाद में हम प्रेस लिखा हुआ वाहन अस्पताल से बहुत दूर खड़ा करके, पैदल चोरी-छिपे रजिस्ट्रेशन काउंटर तक पहुंच पाए। निश्चित रूप से अस्पताल में काफी अव्यवस्थाएं हैं, जिसे छिपाने के लिए ही यह सब किया जा रहा है। इन समस्याओं की चर्चा बाद में किसी दिन जब पत्रकार बनके आऊंगा, यहां तक देखूंगा और करूंगा, आज तो सच में केवल अपना इलाज के लिए पहुंचा हूं। फिर यहां फोटो भी खींचना सख्त मना है, मगर फिर भी आंखों से एक चीज देखी है, जिसे आपके साथ शेयर कर रहा हूं। किसी अस्पताल की अव्यवस्थाओं को उजागर करना जनहित में है और उन व्यवस्थाओं को सुधारना शासन की जवाबदारी है। अत: सरकार को चाहिए कि इस तरह का नियम बनाने से किसी भी अस्पताल को रोका जाए। सबसे खतरनाक बीमारी कैंसर विभाग के बाहर शंकरजी की मूर्ति लगी है, जबकि यह केंद्र सरकार का पूरी तरह शासकीय अस्पताल है जो जनता के टैक्स के पैसे से चलता है। मेरे ख्याल से यहां मंदिर-मस्जिद नहीं बनाया जा सकता। धर्म की आस्था को चोट पहुंचाने के नीयत से मैं यह नहीं लिख रहा हूं, मेरा मानना है कि अस्पताल तो अपने-आप में एक मंदिर है, एक मस्जिद है, एक गुरुद्वारा है, जहां डॉक्टरों पर और वहां के समस्त स्टाफ पर लोग भगवान जैसा भरोसा करते हैं। मगर इस मूर्ति को देखकर आप जान सकते हैं कि यहां के अस्पताल अधीक्षक अपने डॉक्टर पर विश्वास नहीं करते हैं, बल्कि मरीजों का इलाज पूरी तरह से भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है।अभी सुबह के 10:00 बजे हैं। फिलहाल रजिस्ट्रेशन के आठ काउंटर हैं, जिसमें से केवल तीन चालू हैं, 5 में स्टाफ नहीं पहुंचा है, और हाल के भीतर रजिस्ट्रेशन के लिए 1000 से ज्यादा की संख्या में भीड़ इक_ा है। सारे के सारे परेशान हैं, इसमें कई गंभीर मरीज भी हैं। मैं हॉल की तरफ कैमरा नहीं घुमा पा रहा हूं क्योंकि कई गार्ड इस बात पर नजर रखे हैं कि कोई कैमरा तो नहीं चल रहा है, जबकि उनकी जवाबदारी भीड़ को नियंत्रित करने की है, और सहयोग करने की है। मैं सभी पत्रकार साथियों से अपील करता हूं कि पत्रकारों को एम्स में न घुसने के आदेश के खिलाफ कुछ तो एकजुट होकर करें। इस कानून विरुद्ध नियम का विरोध करना बहुत जरूरी है। फोटो केवल रजिस्ट्रेशन काउंटर का है।
राज्यमाता का दर्जा मिलने से...
बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पं धीरेन्द्र शास्त्री अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। उनका रायपुर के गुढिय़ारी में प्रवचन चल रहा है। उन्होंने सोमवार को अपनी कथा के बीच गाय को राज्य माता घोषित करने की मांग कर दी। पं शास्त्री की मांग पर श्रद्धालुओं ने खूब तालियां बजाईं। उनकी कथा में श्रोता के रूप में सरकार के दो मंत्री केदार कश्यप, टंकराम वर्मा, महामंत्री (संगठन ) पवन साय के भाजपा के आधा दर्जन विधायक मौजूद थे। इन सभी ने ताली बजाकर पं शास्त्री की मांग का समर्थन किया। दरअसल, पिछले डेढ़ साल में गौ शाला में भूख- बीमारी, और गाडिय़ों में कुचलकर एक हजार से अधिक गौवंश की मौत हो चुकी है। इस तरह की मौत पहले भी होती रही है। भूपेश सरकार ने तो गौवंश के संवर्धन के लिए गौठान योजना शुरू की थी। साय सरकार ने गौधाम बनाने का निर्णय लिया है ताकि गौवंश की बेहतर देखभाल हो सके। मगर पंडित धीरेन्द्र शास्त्री की मांग से नई बहस छिड़ गई है।कुछ वर्ष पहले महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे सरकार ने गाय को राज्य माता का दर्जा दिया था। इसके बाद गौशालाओं को सब्सिडी दी जाने लगी है। मध्यप्रदेश में भी गाय को राज्य माता का दर्जा देने की मांग उठ रही है। ऐसे में छत्तीसगढ़ में भी गाय को राज्य माता का दर्जा मिल जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। मगर इससे गायों की स्थिति में सुधार हो पाता है या नहीं, यह देखना है।
कांग्रेस संगठन की चर्चा
कांग्रेस में जिला अध्यक्षों के चयन के लिए रायशुमारी का दौर शुरू हो गया है। दुर्ग, राजनांदगांव, बस्तर, और अन्य जिलों में पर्यवेक्षक ब्लॉकों में जाकर कार्यकर्ताओं से वन-टू-वन चर्चा कर रहे हैं, और जिलाध्यक्ष के लिए उपयुक्त नाम को लेकर सुझाव मांग रहे हैं। यह खबर छनकर आई है कि केन्द्रीय पर्यवेक्षकों के क्रियाकलापों पर भी नजर रखी जा रही है। बताते हैं कि राहुल गांधी की एक टीम जिलों में अध्यक्षों की रायशुमारी प्रक्रिया पर नजर रखे हुए हैं। एक केन्द्रीय पर्यवेक्षक के खिलाफ तो हाईकमान से शिकायत भी हो चुकी है। पर्यवेक्षकों के लिए गाइडलाइन है कि वो किसी बड़े नेता के प्रभाव में नहीं आएंगे, और स्वतंत्र रूप से काम करेंगे। स्थानीय नेताओं की मेहमान नवाजी से दूर रहने की हिदायत दी गई थी, लेकिन केन्द्रीय पर्यवेक्षक ने इसका ध्यान नहीं रखा। और वो एक बड़े नेता के घर चाय पीने चले गए। फिर क्या था, नेताजी के विरोधियों ने पर्यवेक्षक की गतिविधियों से हाईकमान को अवगत करा दिया है।रायशुमारी की प्रक्रिया के दौरान पीसीसी द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षकों को दूर रहने के लिए कहा गया है। एक जगह तो एआईसीसी के पर्यवेक्षक ने रायशुमारी से पहले पीसीसी के पर्यवेक्षकों को बाहर जाने तक के लिए कह दिया। केन्द्रीय पर्यवेक्षक एक-एक कर पदाधिकारियों-प्रमुख कार्यकर्ताओं, और बुद्धिजीवियों तक से जिला अध्यक्ष के लिए नाम ले रहे हैं। दावेदारों को बकायदा एक फॉर्मेट उपलब्ध कराया गया है जिसमें उन्हें अपना पूरा ब्यौरा देना होगा। और यह भी बताना होगा कि उन्हें जिलाध्यक्ष क्यों बनाया जाए। कुल मिलाकर जिलाध्यक्ष चयन को लेकर चल रही कसरत की काफी चर्चा है।
कमल का गुजरात कनेक्शन
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह जगदलपुर प्रवास के दौरान बस्तर राज परिवार के सदस्यों से मुलाकात की, तो भाजपा के अंदरखाने में कानाफूसी शुरू हो गई। राज परिवार के मुखिया कमलचंद भंजदेव रमन सिंह सरकार में युवा आयोग के अध्यक्ष रहे हैं। वो विधानसभा टिकट के दावेदार भी रहे हैं। अब केन्द्रीय गृहमंत्री उनके घर गए, तो पार्टी के लोग उन्हें कोई पद मिलने की अटकलें लगा रहे हैं।
कुछ लोगों का अंदाजा है कि कमलचंद भंजदेव को राज्यसभा में भेजा जा सकता है। राज्यसभा की एक सीट अगले साल मार्च में खाली होने वाली है। कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य श्रीमती फूलो देवी नेताम का कार्यकाल खत्म हो रहा है। विधानसभा सदस्यों की संख्या बल के हिसाब से राज्यसभा की सीट भाजपा की झोली में जाना तय है। मगर कमलचंद भंजदेव राज्यसभा में जाएंगे, इसकी गुंजाइश कम दिख रही है। इसकी वजह यह है कि भाजपा, पहले ही रायगढ़ राजपरिवार के सदस्य देवेन्द्र प्रताप सिंह को राज्यसभा भेज चुकी है। ऐसे में एक और राजपरिवार को राज्यसभा में भेजे जाने की संभावना नहीं के बराबर है।
फिर भी कमलचंद भंजदेव को भाजपा के भीतर महत्व मिल सकता है। इसकी एक वजह यह भी है कि उनका ननिहाल गुजरात की एक रियासत है। यही वजह है कि पीएम नरेंद्र मोदी, और अमित शाह उनसे व्यक्तिगत तौर पर परिचित हैं। ऐसे में कमलचंद भंजदेव को क्या कुछ मिलता है, इस पर पार्टी के लोगों की नजरें हैं।
कांग्रेस में दुर्ग बड़ा मुद्दा

कांग्रेस में जिलाध्यक्ष के चयन की कवायद चल रही है। दावेदारों से नाम लिए जा रहे हैं, और कई जगहों में एआईसीसी के पर्यवेक्षकों ने रायशुमारी शुरू कर दी है। इन सबके बीच दुर्ग ग्रामीण जिलाध्यक्ष को लेकर पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू आमने-सामने हो सकते हैं।
वैसे तो दुर्ग ग्रामीण जिलाध्यक्ष पद के लिए 7 दावेदार सामने आए हैं। पार्टी ने कुछ माह पहले राकेश ठाकुर को जिलाध्यक्ष बनाया था। ठाकुर पूर्व सीएम भूपेश बघेल के करीबी माने जाते हैं। भूपेश अब भी उनके पक्ष में हैं। मगर ताम्रध्वज साहू ने पूर्व जिला पंचायत सदस्य बंटी हरमुख का नाम आगे बढ़ा दिया है। हरमुख ने बकायदा आवेदन दे दिया है। बंटी के अलावा ताम्रध्वज के एक और करीबी रूपेश देशमुख भी दावेदारी कर रहे हैं। पार्टी के अंदरखाने में चर्चा है कि ताम्रध्वज, राकेश को छोडक़र किसी और नाम पर सहमति बनाने के लिए जोर दे सकते हैं।
हालांकि ब्लॉक के ज्यादातर पदाधिकारी, राकेश के ही पक्ष में बताए जाते हैं। एआईसीसी के पर्यवेक्षक अजय कुमार लल्लू ने ब्लॉक का दौरा शुरू कर जिलाध्यक्ष पद के लिए कार्यकर्ताओं से वन-टू-वन चर्चा कर रहे हैं। वो एक से अधिक नामों पर पैनल हाईकमान को भेजेंगे। ऐसे में स्वाभाविक है कि दिल्ली में भूपेश, और ताम्रध्वज अपने-अपने समर्थकों को अध्यक्ष बनाने के लिए अड़ सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
अपने पराए मिल गए नेताजी के विरोध में

राजधानी निगम के एक एमआईसी मेंबर की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उनके खिलाफ पार्टी के अपने और विरोधियों ने हाथ मिला लिया है। डेढ़ वर्ष पहले नेताजी का चुनाव के दौरान पेश किया गया जाति प्रमाण पत्र का लोचा सामने आया है। अपने पराए सब मिलकर आरटीआई लगा रहे हैं कि आखिर नेताजी किस जाति हैं और किस जाति का प्रमाण पत्र लगाकर चुनाव लड़ा था। वैसे विरोधियों को कुछ सबूत तो हाथ लगे हैं। वह यह कि उनके प्रमाण पत्र का क्यू आर कोड स्कैन करने पर किसी दूसरे का नाम और जाति डिस्प्ले होती है।
इस आधार पर आरोप है कि नेताजी ने,दूसरे की जाति प्रमाण पत्र में अपना नाम एडिट करवाकर आरक्षण का लाभ ले लिया। और राजधानी के 24 से 28 के बीच के एक वार्ड से चुनाव जीत गए। बस इसी आधार पर विरोधी आरटीआई लगा दस्तावेज हासिल करने में जुट गए हैं। वैसे प्रदेश में ये अकेले नहीं हैं। जिला हाईकोर्ट में ऐसे ही पार्षदों के 4 मामले चल रहे हैं। एक मामले में मई 24 में भिलाई में कांग्रेस के एक पार्षद को हाईकोर्ट बर्खास्त कर दिया था।
बुजुर्ग तन के बागी तेवर
आखिरकार नाटकीय घटनाक्रम के बाद पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन करने का इरादा बदल दिया। कंवर, कोरबा कलेक्टर अजीत बसंत को हटाने की मांग पर अड़े हुए थे। बाद में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरणदेव ने उन्हें किसी तरह समझा बुझाकर धरना न देने के लिए राजी किया, और फिर किरणदेव से चर्चा के बाद कंवर शनिवार की रात में ही कोरबा निकल गए।
कंवर प्रकरण के चलते पार्टी की काफी किरकिरी हुई है। प्रदेश भाजपा के सबसे पुराने नेता कंवर ने जिस तरह अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था उससे एक बुजुर्ग नेता, और सरकार के बीच अंतरविरोध खुलकर सामने आ गया। पार्टी के कई नेता, इस प्रकरण को लेकर सरकार और संगठन को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। कंवर ने नवरात्रि से पहले कोरबा कलेक्टर को हटाने के लिए अल्टीमेटम दिया था। मगर उनसे कोई चर्चा नहीं की गई। उन्होंने कोरबा कलेक्टर के खिलाफ 14 बिंदुओं पर शिकायत की थी। और जब कंवर ने राजधानी में आकर धरना-प्रदर्शन की चेतावनी दी, तब कहीं जाकर बिलासपुर कमिश्नर से जांच प्रतिवेदन मांगा गया।
खास बात ये है कि डिप्टी सीएम अरुण साव, और उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन तक कंवर के शिकायती पत्र पर चर्चा की बात करते रहे। मगर उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। और जब कंवर कोरबा से धरना देने के लिए रायपुर पहुंच गए, तब कहीं जाकर पार्टी और सरकार के लोगों ने उनसे संपर्क किया।
इसी बीच केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह प्रदेश दौरे पर थे। इसलिए पार्टी, और सरकार के लोग फिर व्यस्त हो गए। और जब कंवर ने रौद्र रूप दिखाया, तो पार्टी बैकफुट पर आ गई। प्रदेश अध्यक्ष किरण देव ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वो सीएम से चर्चा कर कलेक्टर का तबादला करने के लिए तैयार करेंगे। कंवर ने कोरबा जाते-जाते कह दिया है कि कलेक्टर को नहीं बदला गया, तो वो फिर खुरापात करेंगे। इससे परे चर्चा यह भी है कि कंवर प्रकरण की जानकारी केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक पहुंची है।
जगदलपुर रवाना होने से पहले शाह की वीआईपी लाउंज में सीएम विष्णुदेव साय, और डिप्टी सीएम विजय शर्मा के साथ अलग से 20 मिनट चर्चा हुई थी। चर्चा है कि इसमें कंवर सहित प्रदेश के अन्य विषयों पर भी बात हुई है। कहा जा रहा है कि असंतुष्ट नेताओं को मनाने के लिए कोई ठोस पहल की जा सकती है। आने वाले दिनों में क्या कुछ होता है यह देखना है।
गए थे न्याय दिलाने, मांगनी पड़ी माफी

तीन दिन पहले अन्याय का विरोध करने पहुंचे कांग्रेस नेताओं को उल्टे पैर लौटना पड़ा। इतना ही नहीं माफी भी मांगनी पड़ी। ताकि एफआईआर न हो जाए। दरअसल हुआ यह कि तिल्दा रोड पर एक फैक्ट्री अर्थमेट में तीन दिन पहले लेबर क्वार्टर में रहने वाली मासूम के साथ फैक्ट्री के ही युवक ने रेप किया था। फैक्ट्री स्टाफ माता पिता की रिपोर्ट पर पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। जेल भेजने लिखा पढ़ी चल रही थी। इसकी भनक लगते ही कांग्रेस के स्थानीय नेता फैक्ट्री घेराव, मालिक पर भी कार्रवाई की मांग करते हुए प्रदर्शन करने जा पहुंचे। इनमें एक पूर्व सांसद, पूर्व विधायक जैसे दिग्गज के साथ ब्लॉक अध्यक्ष, ओबीसी प्रकोष्ठ अध्यक्ष आदि आदि। वैसे पूरे आयोजन का अगुवा ओबीसी प्रकोष्ठ ही था। फैक्ट्री मालिक से अभी चर्चा चल ही रही थी कि एक नेता ने जला हुआ आयल उन पर उड़ेल दिया। फिर क्या था फैक्ट्री संचालक ने इसे अपना ढाल बनाया।
फैक्ट्री मालिक के तेवर देख सभी नेता सकते में आए और उन्हें माफी मांगकर लौटना पड़ा। आयल से तरबतर फैक्ट्री मालिक भाग कर चेंबर से निकले और थाने जाकर एक एक पर जलाकर मारने की एफआईआर दर्ज कराने की चेतावनी दी। इससे बदनामी, थाने के चक्कर, उस पर विरोधी दल की सरकार का रिएक्शन सब कुछ नेताओं के ज़हन में उतर गया। फिर क्या था एक मैडम ने माफी मांगना शुरू की तो बाकी भी मानो अपराधबोध में खड़े थे। वैसे इलाके की फैक्ट्रियों में ऐसे विरोध प्रदर्शनों को लेकर प्रकोष्ठ छवि अच्छी नहीं है। बस खर्च निकालने का तरीका बताया जा रहा है। प्रकोष्ठ के नेता स्वयं को एक बड़े नेता का भांजा भतीजा कहकर राजनीति चमका रहे हैं।
साहब का कॉल नहीं काम आया
दो दिन पहले लग्जरी कारों में बूढ़ा तालाब से आरंग तक दर्जनभर हुड़दंगी रईसजादों को राजधानी पुलिस ने गिरफ्तार किया था। दो तीन अभी भी फरार हैं। पकड़े गए युवकों को प्रतिबंधात्मक धाराओं के तहत रात भर के लिए जेल भेज दिया गया था। सोमवार से मंगलवार तक 48 घंटे तक इन लडक़ों के परिजन परेशान हाल रहे।
इसमें कुछ रईसजादों की संगत में मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे भी फंस गए। इन परिवारों ने कभी थाने, कोर्ट, जेल की ओर रुख भी नहीं किया था। ऐसे परिजनों को अपने बच्चों को छुड़ाने तन, मन के साथ कुछ और का भी इस्तेमाल करना पड़ा। यहां तक कि पुलिस विभाग की निगरानी करने वाले गृह विभाग के आला अफसरों से भी कॉल कराए गए। लेकिन वहां ऐसे काल, कालर या संपर्क ने काम नहीं किया।
कोई छूट तो नहीं गया ?

इस निमंत्रण पत्र में उन सबका नाम है, जिनकी ओर मेजबान राज्य युवा आयोग अपना ध्यान खींचना चाहता है। पूरी जगह विशिष्ट अतिथियों की लंबी सूची ने घेर ली है। वे युवा कवि जिनकी कविताएं सुनाने बुलाया गया है, उनके लिए जरा भी जगह नहीं बची।
कार्यक्रम आज राजधानी रायपुर के पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में शाम 7 बजे से है। यहां का मंच काफी बड़ा है, इसलिये उम्मीद कर सकते हैं कि वहां पर तो कवियों को जगह मिल जाएगी।
कांग्रेस संगठन चुनाव और...
कांग्रेस में जिलाध्यक्ष के चयन के लिए पर्यवेक्षक आ रहे हैं। ये पर्यवेक्षक झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा, और उत्तरप्रदेश के हैं। खास बात ये है कि प्रदेश के सीनियर नेताओं को इन पर्यवेक्षकों का सहयोगी बनाया गया है।
मसलन, महाराष्ट्र के नेता प्रफुल्ल गुदाधे को रायपुर शहर और ग्रामीण जिले के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है। गुदाधे 8 तारीख को यहां आ रहे हैं, और सभी ब्लॉकों का दौरा करेंगे। प्रफुल्ल जिला स्तरीय नेता हैं, लेकिन यहां पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, और शैलेष पांडे एक तरह से उनके सहायक रहेंगे। ताम्रध्वज पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। ये अलग बात है कि वो विधानसभा और लोकसभा का चुनाव हार गए हैं।
इसी तरह पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस.सिंहदेव को बिलासपुर शहर, और ग्रामीण के साथ-साथ पीसीसी ने केन्द्रीय पर्यवेक्षक उमंग सिंघार के साथ पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू, और पूर्व मंत्री रविन्द्र चौबे, फूलोदेवी नेताम, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम सहित तमाम प्रमुख नेताओं को केन्द्रीय पर्यवेक्षकों का एक तरह से सहयोगी बनाया गया है। प्रदेश के दिग्गज नेताओं की राय को एआईसीसी पर्यवेक्षक कितना महत्व देते हैं, यह देखना है।
साइबर क्राइम में तेजी की रिपोर्ट
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि छत्तीसगढ़ में साइबर अपराधों की रफ्तार बेहद तेज हुई है। इस डरावने ट्रेंड पर उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने पिछली जुलाई में ही आंकड़ा विधानसभा में रखा गया था। विधायक सुनील सोनी के सवाल और गजेंद्र यादव के पूरक प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया था कि जनवरी 2023 से जून 2025 के बीच राज्य में 67,000 से ज्यादा शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें पीडि़तों को कुल 791 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा।
इसी विवरण के मुताबिक औसतन हर 20 मिनट में एक नया मामला सामने आ रहा है। अकेले 2024 में ही 31,000 से अधिक शिकायतें दर्ज हुईं और नुकसान 200 करोड़ रुपये से ऊपर रहा। जुलाई 2025 तक के 18 महीनों में ही 1,301 मामलों में 107 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान दर्ज किया गया।
एनसीआरबी के आंकड़ों में यह बताया गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर मुंबई के लोग सबसे अधिक साइबर अपराधों के शिकार हैं। वहीं छत्तीसगढ़ में राजधानी रायपुर। इसका मतलब यह है कि जिन शहरों में आर्थिक गतिविधियां अधिक तेज हैं, वहां पर साइबर अपराधी घात लगाए बैठे रहते हैं। 2024 में रायपुर में ही 17,000 से अधिक शिकायतें आईं और 48 करोड़ रुपये का नुकसान दर्ज हुआ। इसके बाद दुर्ग और बिलासपुर सबसे प्रभावित जिले रहे। लेकिन चिंताजनक तथ्य यह है कि इतनी बड़ी संख्या में शिकायतों और नुकसान के बावजूद, केवल 107 पीडि़तों को ही पैसा वापस मिल पाया। बैंक से जुड़ी धोखाधड़ी में तो अब तक सिर्फ तीन गिरफ्तारी और सात सजाएं हुई हैं। शिकायतों की बड़ी संख्या का मतलब धोखाधड़ी के उद्देश्य से किया गया कॉल है, चाहे उसमें ठगी हो पाई हो या नहीं। छत्तीसगढ़ पुलिस की सन् 2024 की जांच में पाया गया कि बिहार, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली जैसे राज्यों के ठग गिरोह बीमा, नौकरी और लोन के नाम पर लोगों को फंसाते हैं। वहीं राजस्थान के ठग सेक्सटॉर्शन जैसे मामलों से छत्तीसगढ़ के लोगों को जाल में फंसा रहे हैं। मतलब है कि छत्तीसगढ़ देशभर के साइबर अपराधियों के लिए एक सॉफ्ट टारगेट बन चुका है। ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता की कमी और स्मार्टफोन-इंटरनेट के तेजी से फैलते इस्तेमाल ने अपराधियों के लिए रास्ता और आसान कर दिया है। हालांकि, शिकार लोगों में बैंक मैनेजर, उपक्रमों के महाप्रबंधक, यहां तक कि पुलिस और विजिलेंस के अधिकारी भी शामिल हैं।
उप-मुख्यमंत्री, गृह मंत्री विजय शर्मा ने विधानसभा में यह भी बताया था कि छत्तीसगढ़ ने सभी पांच संभागीय मुख्यालयों में साइबर पुलिस स्टेशन स्थापित किए हैं, और बजट में नौ और स्वीकृत किए गए हैं। हर थाने में एक साइबर सेल मौजूद है, और रायपुर में एक डेडिकेटेड साइबर बिल्डिंग स्थापित किया गया है। पुलिस मुख्यालय में 129 कर्मियों की नई नियुक्ति की गई है, और एक विशेषज्ञ, तकनीकी जानकारी से लैस पुलिस बल तैयार करने के लिए एक साइबर कमांडो योजना पर काम चल रहा है। अधिकारियों को सरदार वल्लभभाई पटेल पुलिस अकादमी और सी-डैक ढ्ढ4 जैसे संस्थानों में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन तथ्यों के बावजूद साइबर अपराधों में कोई कमी नहीं आ रही है। छत्तीसगढ़ में साइबर सुरक्षा को धरातल पर प्रभावी बनाने की जरूरत है। वरना आम नागरिकों की जेब खाली होती रहेगी। एनसीआरबी की रिपोर्ट इस पर गौर करने के लिए कहती है।
जलकर भी, डूबकर भी
राजधानी में बूंदाबांदी के बीच गुरुवार को दशहरे पर रावण दहन हुआ। शहर के प्रमुख दशहरा उत्सव कार्यक्रम में सीएम विष्णु देव साय, और सांसद-विधायक मौजूद रहे। बारिश की संभावनाओं के चलते कार्यक्रम में काफी हड़बड़ी में निपटा।
रायपुर के सबसे पुराने रावणभाठा के दशहरा उत्सव कार्यक्रम में उस वक्त अजीबोगरीब गरीब स्थिति पैदा हो गई, जब सीएम का भाषण हुआ, और पूजा अर्चना हुआ था कि किसी ने रावण में आग लगा दी। यह सब हड़बड़ी में हुआ क्योंकि हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई थी। फिर भी इसको लेकर आयोजकों में काफी नाराजगी देखी गई। कुछ इसी तरह की स्थिति सुंदरनगर दशहरा उत्सव कार्यक्रम में भी देखने को मिला। स्वागत सत्कार का कार्यक्रम लंबा खिंचते देख मुख्य अतिथि सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने माइक संभाला, और मंच पर मौजूद अतिथियों विधायक सुनील सोनी, मेयर मीनल चौबे, शहर जिला भाजपा अध्यक्ष रमेश सिंह ठाकुर, और अन्य अतिथियों से क्षमा मांगते हुए कह दिया कि किसी का भाषण नहीं होगा। उन्होंने सीधे रावण दहन करने की अपील की।
बृजमोहन ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में जीएसटी कमी के फायदे गिनाए, और कहा कि इस बार रावण न सिर्फ जलेगा, बल्कि डूबकर भी मरेगा। डब्ल्यूआरएस सहित अन्य जगहों में भी बारिश की संभावना को देखते हुए रावण दहन का कार्यक्रम को संक्षिप्त कर दिया गया। इन सबके बावजूद रावण दहन का कार्यक्रम बिना किसी बाधा के हो पाया, और रावण के डूबकर मरने की नौबत नहीं आई।
डीए की घोषणा और वेतन आयोग
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को दशहरा दिवाली का तोहफा दिया। केंद्रीय अधिकारी कर्मचारियों के लिए महंगाई भत्ते में 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी है जो नवंबर के वेतन से मिलेगा। कर्मचारियों का कहना है कि अभी अभी तो जुलाई में डीए मिला है और अगला जनवरी में ड्यू है। ऐसे में अचानक एक और किस्त की घोषणा, दाल में कुछ काला जैसा है।
यह घोषणा परंपरा नियमों से हटकर की गई है। केंद्रीय कार्मिक बताते हैं कि एक बारगी जब वेतन आयोग के गठन की घोषणा कर दी जाती है तो डीए नहीं दिया जाता सीधे नया वेतनमान ही लागू किया जाता है। इस बार ऐसा होता न दिखने से केंद्र ने बिहार चुनाव से पहले नाराजगी, हड़ताल धरना प्रदर्शन रोकने यह निर्णय लिया है। इन्हीं चुनाव को लेकर ही मोदी 2.0 में नया वेतन आयोग ने बनाने का निर्णय लेने वाली सरकार ने इस वर्ष 16 जनवरी को गठन का फैसला किया। यह अलग बात है कि 10 महीने में अध्यक्ष, सचिव सदस्यों की नियुक्ति नहीं की जा सकी है।
समझा जा रहा है कि तीन फीसदी डीए देकर आयोग के गठन को और टाला जाए। वेतन आयोग पारंपरिक रूप से दस साल के चक्र पर आते हैं, और 7वें वेतन आयोग के 2016 में लागू होने के साथ, 8वें वेतन आयोग के भी करीब आने की उम्मीद है, जो 2026 के आसपास लागू होने की उम्मीद है। कर्मचारियों के लिए, महंगाई भत्ते में यह बढ़ोतरी मौजूदा मुद्रास्फीति के दबावों की याद दिलाती है, जिन्हें आयोग को और व्यापक रूप से संबोधित करना है।
राजनीतिक पर्यवेक्षक का मानना है कि हालांकि आम चुनावों से पहले कोई आधिकारिक घोषणा होने की संभावना नहीं है,लेकिन केंद्रीय विभागों के भीतर जमीनी स्तर पर विचार-विमर्श आने वाले वर्ष के लिए चुपचाप मंच तैयार कर सकता है। इस अर्थ में 8 वें वेतन आयोग के गठन अभी भी कुछ समय है। ऐसे में जनवरी में भी एक और किस्त मिलने की उम्मीद लगाए रखें। लेकिन आयोग के गठन की अनिवार्यता को नजरअंदाज करना सरकार के लिए मुश्किल होगा है।
आत्मविश्वास का अंदाज

सिविल ड्रेस में हाथों में बंदूक थामे ये महिलाएं किसी फिल्म या रील्स की शूटिंग हिस्सा नहीं हैं। ये सचमुच शूट कर सकती हैं। दरअसल, ये सब बिलासपुर की राज्य पुलिस सेवा की अधिकारी हैं, जिन्होंने दशहरा पर्व पर आयोजित शस्त्र पूजन कार्यक्रम में परंपरा के अनुसार हथियारों की पूजा की और उसके बाद तस्वीरें खिंचाईं।
अमेरिका से आई है यह ख़ुशी
मंगलवार राज्य संवर्ग के पांच लाख अधिकारी कर्मचारियों के लिए मंगलमय रहा। अब ये कर्मचारी अब अपने मासिक वेतन को एडवांस (वेतन के विरूद्ध अल्पावधि ऋण) के रूप में भी अग्रिम ले सकेंगे। इसके लिए कैबिनेट ने कल वित्त विभाग के एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
इसके लिए वित्त विभाग जल्द ही वित्तीय संस्थान संभवत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से एमओयू करेगा। उसके बाद इसके एडवांस मंजूरी और रिकवरी के नियम, अधिकतम सीमा, ब्याज दर आदि तय होंगी। वित्त विभाग की योजना है इसे इसी वित्त वर्ष से लागू कर दिया जाए। अब तक के ब्लू प्रिंट के अनुसार इस एडवांस के बदले 8-9 त्न ब्याज पर अधिकतम छह माह के वेतन की निकासी कर सकेंगे। यह भी जानकारी दी गई है कि इसमें कैशलेस ट्रीटमेंट को भी जोड़ा जा सकता है। इसके साथ ही राज्य कर्मचारी स्वयं, परिजनों के स्वास्थ्य, बच्चों की शिक्षा और अन्य आकस्मिक जरूरत के खर्च के लिए यह एडवांस ले सकेंगे। इतना ही नहीं घर बनाने, रंग रोगन जैसे लाख दो लाख तक का लोन भी ले सकेंगे। अब तक ये लोग अन्य परिजनों से मदद, न मिलने पर सूदखोरों के चंगुल में फंसते रहे हैं। अब ऐसा नहीं होगा।
इस योजना की परिकल्पना और मंजूरी तक का घटनाक्रम चर्चित है। या यूं कहें कि यह योजना अमेरिका से आई है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। दरअसल दो माह पहले वित्त मंत्री ओपी चौधरी 30 जुलाई को अमेरिका की सप्ताह भर के प्रवास पर गए थे। वहां न जाने किस भारतीय, किस अमेरिकी व्यक्ति से स्टाफ वेलफेयर पर चर्चा हुई। उन्होंने तत्काल वित्त सचिव, ओएसडी को काल कर कहा कि मेरे आने तक इसका प्रस्ताव बना लें कैबिनेट में ले जाना है। वित्त अफसरों ने चर्चाएं, राजस्थान, गोवा, गुजऱात राज्यों में लागू स्कीम का अध्ययन और यहां के कर्मचारी अधिकारी संघों के नेताओं के साथ ब्लू प्रिंट तैयार किया। दो माह तक एक-एक बिंदु को परिष्कृत करने के बाद चौधरी ने कल कैबिनेट में रखा और मंजूर कराया। अब कर्मचारी संघ कह रहे पूर्व आईएएस के मंत्री बनने से ऐसे फायदे होते हैं।
दिव्यांगों का सफर सुप्रीम कोर्ट तक
फर्जी दिव्यांग अफसर-कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए दिव्यांग सेवा संघ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। संघ ने कोर्ट में 19 अफसर-कर्मियों की सूची दी है। इनमें डिप्टी कलेक्टर से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं। इनमें दो डिप्टी कलेक्टर हैं। इससे परे कुछ दिव्यांग सर्टिफिकेटधारी अधिकारी-कर्मचारियों ने भी सुप्रीम कोर्ट की तरफ रुख किया है। ये अफसर-कर्मी अपने खिलाफ जांच करने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है।
दिव्यांग सेवा संघ ने हाईकोर्ट में 70 अफसर-कर्मचारियों की सूची सौंपी थी, और यह कहा था कि सभी ने फर्जी सर्टिफिकेट के सहारे नौकरी पाई है। कोर्ट ने सभी को राज्य मेडिकल बोर्ड के सामने हाजिर होकर जांच करा रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा था। मगर इसमें से 4 ने ही जांच कराई है। बाकी जांच कराने के लिए तैयार नहीं हैं, और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। कुल मिलाकर फर्जी सर्टिफिकेट के सहारे नौकरी हासिल करने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। कोर्ट के रूख पर दिव्यांगजनों की नजरें टिकी हुई हैं। देखना है आगे क्या होता है।
चार लोगों ने कांधे पर उठा लिया...

यह तस्वीर सडक़ पर यातायात नियमों की खुली अवहेलना और लापरवाही की गवाही दे रही है। बीजापुर के नेशनल हाइवे पर पांच युवक एक ही स्कूटी पर सवार दिखाई दे रहे हैं। हालात यह रहे कि सीट की जगह न मिलने पर युवकों ने पांचवे को कंधे पर उठाकर यात्रा जारी रखी। यह खतरनाक करतूत न सिर्फ उनकी जान के लिए जोखिम भरी है, बल्कि अन्य राहगीरों को भी खतरे में डाल सकती है। वीडियो वायरल होने के बाद छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने इसे साझा कर राज्य सरकार से सवाल उठाए हैं कि सडक़ सुरक्षा पर ऐसी लापरवाहियों को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
सिफारिश नहीं चलेगी
कांग्रेस में जिला अध्यक्षों के चयन की नई प्रक्रिया से पार्टी के दिग्गज नेता परेशान हैं। हाईकमान ने पहले ही संदेश दे दिया है कि जिला अध्यक्षों के चयन में सिफारिशें नहीं चलेंगी। ऐसा मध्यप्रदेश कांग्रेस के जिला अध्यक्षों के चयन में हो चुका है, और बड़े नेताओं को झटका भी लगा है।
बताते हैं कि मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने अपने गृह जिले राजगढ़, और आसपास के 11 जिलों के लिए पर्यवेक्षकों के माध्यम से अपने करीबियों के नाम भेजे थे। दिग्विजय सिंह के पुत्र पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह खुद दिल्ली में डटे हुए थे। मगर पार्टी ने जयवर्धन सिंह को ही गुना जिले का अध्यक्ष बना दिया। गुना, केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का संसदीय क्षेत्र है, और वो कांग्रेस में रहते दिग्विजय सिंह के धुर विरोधी रहे हैं। कहा जाता है कि सिंधिया ने दिग्विजय सिंह की वजह से कांग्रेस छोड़ी थी। अब दिग्विजय सिंह पिता-पुत्र को गुना इलाके में पार्टी को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी दे दी गई।
छत्तीसगढ़ में भी कुछ इसी तरह का डर कांग्रेस के बड़े नेताओं को सता रहा है। अब तक जिलाध्यक्षों के चयन में स्थानीय बड़े नेताओं की पसंद को तवज्जो मिलती रही है। मगर इस बार ऐसा हो पाएगा, इसकी संभावना कम दिख रही है। इसका अंदाजा उस वक्त लगा, जब एआईसीसी पर्यवेक्षकों की नियुक्ति के बाद जिले का आबंटन होना था। चर्चा है कि पीसीसी ने पर्यवेक्षकों के लिए अपनी तरफ से जो जिला प्रस्तावित किया था, पार्टी हाईकमान ने बदल दिया। ऐसे में जिला अध्यक्षों के चयन में बड़े नेताओं की पसंद को दरकिनार कर दिया जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
संगठन या चुनाव

कांग्रेस ने जिला अध्यक्षों के लिए कुछ मापदंड भी तैयार किए हैं। इसमें यह है कि जिला अध्यक्षों को विधानसभा या लोकसभा टिकट नहीं दी जाएगी। हालांकि पहले भी इस तरह की बातें पार्टी के अंदरखाने में चलती रही हैं। मगर इसका पालन नहीं हो पाता था। मोहन मरकाम को प्रदेश अध्यक्ष पद से सिर्फ इसलिए हटाया गया था कि वो विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। मगर मरकाम की जगह प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद दीपक बैज ने सांसद रहते हुए अडक़र विधानसभा की टिकट हासिल कर ली थी, लेकिन चुनाव नहीं जीत पाए।
विधानसभा चुनाव में दुर्ग ग्रामीण, महासमुंद, और एक-दो अन्य जिलों के अध्यक्षों ने भी चुनाव लड़ा था। और ज्यादातर चुनाव हार गए। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि विशेषकर जिलाध्यक्ष के चुनाव लडऩे से संगठन का काम प्रभावित हो जाता है। इससे चुनाव में नुकसान उठाना पड़ता रहा है। अब नए नियम को कड़ाई से पालन किया जाएगा। देखना है कि इसका कितना पालन हो पाता है।
साहित्य युवाओं का शौक बन रहा...

ये कोई क्रिकेटर नहीं, फिल्म स्टार नहीं। देश बदल रहा है। रायपुर में आयोजित हिंद युग्म उत्सव 2025 के साहित्य समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल के पास ऑटोग्राफ के लिए युवाओं की लंबी कतार लगी रही। मार्च 2025 में उन्हें ज्ञानपीठ सम्मान मिला, जो हिंदी साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार है। छत्तीसगढ़ के पहले लेखक हैं, जिन्हें यह सम्मान मिला। फोटो में वृद्ध लेखक टेबल पर बैठे किताबें साइन कर रहे हैं। उनके सामने युवा लडक़े-लड़कियां किताबें थामे उत्साहित खड़े हैं। चेहरे पर मुस्कान, आंखों में श्रद्धा। क्या यह दृश्य साहित्य के प्रति नई पीढ़ी के लगाव को नहीं दिखाता?
उनके उपन्यास दीवार में एक खिडक़ी रहती थी की हाल ही में हजारों प्रतियां बिकीं। प्रकाशकों से छह महीने की रॉयल्टी के रूप में बड़ी धनराशि मिली, जो 60-70 लाख तक पहुंच सकती है
ईडी की बात सुनेगी सरकार?
ईडी ने प्रदेश के दस आईएएस, आईपीएस, और राज्य सेवा के अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण के अधिनियम के तहत कार्रवाई के लिए सरकार को चि_ी लिख दिया है। इसकी पुलिस, और प्रशासनिक हलकों में काफी चर्चा है।
जिन आईएएस अफसरों के खिलाफ ईडी ने कार्रवाई के लिए लिखा है उनमें तो रानू साहू, और समीर विश्नोई के खिलाफ पहले से ही जांच चल रही है, और वो जमानत पर हैं। मगर आईपीएस अफसरों पर जांच एजेंसी ने कोई कार्रवाई नहीं की है। ये अलग बात है कि ईडी ने उनसे पूछताछ जरूर की थी। ये सारे आईपीएस पिछली सरकार में काफी ताकतवर रहे हैं। अब ईडी की ताजा चि_ी को अफसरों को एक तरह से राहत के रूप में देखा जा रहा है। यानी ईडी अब इन अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगी, और अफसरों के प्रकरण राज्य सरकार के हवाले कर दिया है। राज्य सरकार अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के लिए ईओडब्ल्यू-एसीबी को लिख सकती है।
पहले ही शराब, कोयला, और डीएमएफ के प्रकरणों के चलते काफी ईओडब्ल्यू-एसीबी ओवरटाइम कर रहा है। ऐसे में ईडी की चि_ी में उल्लेखित अफसरों के खिलाफ जांच-कार्रवाई में देरी हो सकती है। कुल मिलाकर एक तरह से पुलिस अफसरों को राहत मिलती दिख रही है। देखना है आगे क्या होता है।
ईडी वाले रावण

नवरात्रि की सप्तमी पूरी हो रही है और चहूंओर विजयदशमी पर रावण दहन की चर्चा, तैयारियां हो रही। राजधानी में एक दर्जन से अधिक इलाकों में दहन होने वाले रावण पुतले को इलाके या अगुवाकर्ता नेता गणमान्य के नाम से पुकारा जाता है। मसलन समता कॉलोनी रावण दहन, रावणभाठा, डब्ल्यू आर एस कालोनी, अमलीडीह ,माना बस्ती आदि। इसी नाम से लोग पास भी मांगते हैं। इसमें इस बार एक नया नाम जुड़ गया वो यह कि ईडी के आरोपी वाले रावण।
आयोजन पुराने ऐतिहासिक इलाके में ही हो रहा है लेकिन आयोजन समिति में शराब घोटाले के एक आरोपी शामिल होने से यह नाम रख दिया गया है। इनके यहां ईडी की दबिश हो चुकी है। बहरहाल इस आयोजन के तैयारी की कल शुरुआत भी हो गई। 2 अक्टूबर को सरकार के प्रमुखों से लेकर दलीय नेताओं को भी आमंत्रित किया गया है।अब देखना है कि कौन कौन आरोपी के साथ मंच साझा करते हैं। वैसे कल के भूमिपूजन पत्रकार वार्ता में आरोपी नजर नहीं आए थे।
सर्दियों की आहट के साथ आए विदेशी मेहमान

साइबेरियन स्टोन चैट पक्षी इस साल भी ठीक समय पर मोहनभाठा (बिलासपुर) पहुंच गए हैं, ताकि यहां शीतकालीन प्रवास कर सकें। हालांकि अभी इनकी संख्या दो-चार के आसपास है। यह छोटे आकार के पक्षी मात्र 12–13 सेंटीमीटर लंबे और 15–18 ग्राम वजन वाले होते हैं। सर्दियों के दौरान इन्हें मोहनभाठा में चरौटा की झाडिय़ों या फेंसिंग वायर पर देखा जा सकता है।
साइबेरिया के लेक बैकाल क्षेत्र, मंगोलिया, कजाकिस्तान और रूस के उत्तरी खुले घास के मैदानों में सर्दियों में तापमान अत्यधिक कम हो जाता है और आहार की कमी हो जाती है। इस कारण ये पक्षी हर साल प्रवास करते हैं। साइबेरियन स्टोन चैट पक्षी सितंबर–अक्टूबर में दक्षिण की ओर उड़ान भरना शुरू करते हैं। उनका मार्ग चीन और मध्य एशिया (किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, कज़ाखस्तान) से गुजरता है। इसके बाद वे पाकिस्तान और अफगानिस्तान होते हुए भारत के मध्य क्षेत्र मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र तक पहुंचते हैं। यह लंबी उड़ान पक्षियों की अद्भुत सहनशक्ति और प्राकृतिक प्रवास की सुंदरता का उदाहरण है।


