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विशेष रिपोर्ट

पीएससी : 2020 में भी हुआ था घोटाला

परीक्षा से पहले चेयरमैन को मिल गए थे पेपर, जांच में खुलासा

‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट

रायपुर, 20 सितंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। पीएससी घोटाले की परतें खुलने लगी है। अब तक की जांच में यह बात सामने आई है कि न सिर्फ 2021 बल्कि 2020 की राज्य सेवा भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी हुई थी,  और पेपर लीक किए गए। इसमें तत्कालीन चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी की दो बहू मीशा कोसले डिप्टी कलेक्टर और दीपा आडिल जिला आबकारी अधिकारी के पद पर चयन हुआ था। मीशा और दीपा की गिरफ्तारी के बाद निलंबन आदेश जारी हो सकता है। 

सीबीआई ने पीएससी 2020 से 2022 तक परीक्षा में प्रश्नपत्र लीक होने के पुख्ता साक्ष्य जुटाए हैं। इसमें तत्कालीन चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी, सचिव जीवन किशोर ध्रुव, और परीक्षा नियंत्रक आरती वासनिक की भूमिका प्रमाणित हुई है।

सीबीआई ने गुरुवार को पीएससी के तत्कालीन सचिव जीवन किशोर ध्रुव, और उनके पुत्र सुमित के साथ परीक्षा नियंत्रक आरती वासनिक के अलावा सुश्री मीशा कोसले, और दीपा आडिल को गिरफ्तार कर विशेष अदालत में पेश किया, और 22 सितंबर को सीबीआई की रिमांड में भेज दिया गया है। 

सीबीआई ने अब तक की जांच को लेकर कई खुलासे किए हैं। यह बताया गया कि वर्ष-2020 की प्रारंभिक, और मुख्य परीक्षा से पहले  पेपर पीएससी के तत्कालीन चेयरमैन को प्राप्त हुए थे। इसमें उनके रिश्तेदारों का चयन हुआ था।

इसके बाद पीएससी के वर्ष-2020-21 के माध्यम से विभिन्न श्रेणियों के 171 पदों को भरने के लिए  विज्ञापन जारी किए गए थे। ध्रुव के हस्ताक्षर से विज्ञापन जारी किए गए। जांच में यह पता चला कि पीएससी सचिव के पुत्र सुमित ध्रुव ने वर्ष-2021 की राज्य सेवा परीक्षा के लिए आन लाईन आवेदन किए थे। उन्होंने प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण की, और फिर डिप्टी कलेक्टर के लिए चयनित हुए। 

जांच में यह पाया गया कि पीएससी चेयरमैन सोनवानी, जीवन किशोर ध्रुव, सचिव, सीजीपीएससी और छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के अन्य व्यक्तियों ने सीजीपीएससी में विभिन्न पदों पर रहते हुए, वर्ष 2020 से 2022 के दौरान परीक्षा और साक्षात्कार आयोजित किए और अपने बेटे, बेटी और रिश्तेदारों का चयन करवाया। 

बताया गया कि चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी ने अपने बेटे नितेश सोनवानी को डिप्टी कलेक्टर, अपने बड़े भाई के बेटे साहिल सोनवानी को डीएसपी और अपनी बहन की बेटी सुनीता जोशी को श्रम अधिकारी के रूप में चयनित करवाना सुनिश्चित किया। वर्ष 2020 में टामन सिंह सोनवानी ने अपने बेटे नितेश सोनवानी की पत्नी मीशा कोसले को डिप्टी कलेक्टर, और अपने भाई की बहू श्रीमती दीपा आडिल को जिला आबकारी अफसर के रूप में चयनित करवाया।

 

विचार/लेख

नई विज्ञान महाशक्ति बना चीन, अब क्या करेगा यूरोप

अंतरराष्ट्रीय विज्ञान के क्षेत्र में अब चीन काफी आगे निकल चुका है। एक नए अध्ययन से पता चलता है कि कैसे चीन अनुसंधान के प्रमुख क्षेत्रों में अमेरिका से आगे निकल रहा है और अनुसंधान का एजेंडा तय कर रहा है।

 डॉयचे वैले पर अलेक्जांडर फ्रॉयंड का लिखा-

‘साइन्टिया पोटेस्टास एस्ट, यानी ज्ञान ही शक्ति है!’ यह मुहावरा 16वीं शताब्दी के अंत में इंग्लैंड के दार्शनिक सर फ्रांसिस बेकन ने गढ़ा था। बेकन ने ऐसा उस समय किया जब उनका देश इंग्लैंड विज्ञान और साम्राज्य की शक्ति, दोनों में दुनिया का नेतृत्व कर रहा था। बेकन का उद्देश्य अपने समय के लोगों को यह बताना था कि ज्ञान का उपयोग रणनीतिक रूप से किया जा सकता है। और यह सिद्धांत आज भी पूरी तरह सही बैठता है।

वैश्विक शोध का क्षेत्र अब एक अहम मोड़ पर पहुंच चुका है। ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ (पीएनएएस) नामक पत्रिका में प्रकाशित एक नए सर्वेक्षण के मुताबिक, 2023 तक, चीनी वैज्ञानिक अमेरिकी सहयोगियों के साथ किए गए लगभग आधे शोध कार्यों का नेतृत्व कर रहे थे। यह एक ऐतिहासिक आंकड़ा है, जो बीजिंग के तेजी से बढ़ते प्रभाव को दिखाता है। अब जब भी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की बात आती है, तो चीन अनुसंधान का एजेंडा तय करता है।

चीन की अग्रणी भूमिका : नए मानदंडों के आधार पर सत्ता परिवर्तन

वास्तविक वैज्ञानिक शक्ति को दिखाने के लिए अब सिर्फ नोबेल पुरस्कारों जैसे पुराने, लेकिन प्रतिष्ठित पैमानों या केवल शोध प्रकाशनों की संख्या जैसे पारंपरिक संकेतक काफी नहीं हैं। चीन की वैज्ञानिक तरक्की और प्रभाव को मापने के लिए अब अन्य नए मानदंडों का उपयोग किया जा रहा है।

लगभग साठ लाख शोध पत्रों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2023 में अमेरिका-चीन के संयुक्त अध्ययनों में 45 फीसदी में चीनी वैज्ञानिकों ने नेतृत्व किया। जबकि, 2010 में यह आंकड़ा 30 फीसदी था। अगर यह रुझान जारी रहता है, तो 2027-28 तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर से जुड़े रिसर्च, और मटीरियल साइंस जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में प्रमुख भूमिकाओं में चीन अमेरिका की बराबरी कर लेगा।

वैज्ञानिक प्रकाशनों के मामलों में भी चीन आगे है। नई जी20 रिसर्च और इनोवेशन रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 9 लाख वैज्ञानिक प्रकाशन चीन से प्रकाशित हो रहे हैं। यह आंकड़ा 2015 की तुलना में तीन गुनी बढ़ोतरी को दिखाता है।

नेचर इंडेक्स, मेडिकल और नेचुरल साइंस की 150 महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का मूल्यांकन करता है। इसमें चीन ने अमेरिका को काफी पहले ही पीछे छोड़ दिया है। नेचर इंडेक्स द्वारा जिन दस प्रमुख संस्थानों की पत्रिकाओं में प्रकाशनों का मूल्यांकन किया जाता है, उनमें से सात चीनी संस्थान हैं।

लगभग 20,000 वैज्ञानिक संस्थान होने के बावजूद, पश्चिमी देशों के लिए यह स्थिति कमजोर नजर आती है। हालांकि, अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी अभी भी नेचर रैंकिंग में पहले स्थान पर है, लेकिन दूसरे से लेकर नौवें स्थान तक सिर्फ चीनी विश्वविद्यालय ही काबिज हैं। अमेरिका का मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) दसवें स्थान पर है।

चीन अनुसंधान में आगे क्यों बढ़ रहा है

चीन ने विज्ञान के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। इसे अपनी विकास रणनीति का मुख्य आधार बना दिया है। देश अब अपने शोध कार्य को अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए ज्यादा खोल रहा है और इस साझेदारी को सक्रिय रूप से व्यवस्थित कर रहा है। चीनी छात्रों और वैज्ञानिकों को दुनिया भर में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसी रणनीति के दम पर, वैश्विक सहयोग का एक मजबूत नेटवर्क तैयार हुआ है।

चीन खासकर तकनीकी उद्योगों में भारी निवेश कर रहा है। वह अपनी बुनियादी ढांचा परियोजना, ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) का इस्तेमाल शिक्षा के निर्यात के लिए भी कर रहा है। इस रणनीति के तहत, अरबों डॉलर खर्च करके वैश्विक प्रतिभाओं को चीन की ओर आकर्षित किया जा रहा है और दुनिया भर में कनेक्शन बनाए जा रहे हैं। पीएनएएस अध्ययन के मुताबिक, विज्ञान कूटनीति का जानबूझकर एक हथियार की तरह उपयोग किया जा रहा है।

चीनी सिस्टम की ताकत और कमजोरियां

तेजी, रणनीतिक निवेश और केंद्रीय रूप से नियंत्रित नेटवर्क चीन की ताकत हैं। यही कारण है कि इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स, मटीरियल साइंस, भौतिकी और रसायन विज्ञान जैसे क्षेत्रों में चीन के शोध नतीजे ना सिर्फ बेहतरीन हैं, बल्कि उन्हें वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा मान्यता (हाई साइटेशन रेट) भी मिलती है।

हालांकि, संस्थानों द्वारा सख्त केंद्रीय नियंत्रण के सिर्फ फायदे ही नहीं हैं। शोध के कई क्षेत्रों में चीन के पास मौलिक और असाधारण खोजों की कमी है। साथ ही, वहां विज्ञान में पूरी तरह से आजादी का भी अभाव है।

सफलता को तो नियंत्रित तरीके से आगे बढ़ाया जा सकता है, लेकिन रचनात्मकता को नहीं। इस संबंध में, अमेरिका अभी भी चीन और यूरोप की तुलना में काफी आगे है, क्योंकि वहां की नई खोज और इनोवेशन की संस्कृति विकेंद्रीकृत है और कंपनियों द्वारा संचालित होती है।

इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय शोध सहयोग के लिए समय मुश्किल होता जा रहा है। अमेरिका और यूरोप, चीन को एक रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखते हैं। हाल ही में हुए भू-राजनीतिक और आर्थिक बदलावों ने आपसी संबंधों को बेहतर बनाने में कोई सहायता नहीं की है, जिससे यह सहयोग और भी मुश्किल हो गया है।

एआई के क्षेत्र में वर्चस्व के लिए चीन और अमेरिका के बीच होड़

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के मामले में अमेरिका अब भी सबसे आगे है, लेकिन चीन भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। डीपसीक लैंग्वेज मॉडल इस बात का प्रमाण है कि चीनी कंपनियां कितनी तेजी से और कम लागत पर तकनीक को बाजार में उतार सकती हैं। हालांकि, इस क्षेत्र में भी हार्वर्ड अभी इनोवेशन का नेतृत्व कर रहा है, लेकिन चीन के शैक्षणिक संस्थान तेज रफ्तार से उसके करीब पहुंच रहे हैं।

आज, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के पेटेंट आवेदनों में मुख्य भूमिका चीन निभा रहा है। अमेरिका अभी भी अच्छी गति बनाए हुए है, लेकिन जब वैश्विक स्तर पर तुलना की जाती है, तो यूरोप के सर्वश्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थान भी अक्सर काफी पीछे छूट जाते हैं।