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विशेष रिपोर्ट

पूर्वी विदर्भ की सीटों में कहीं बेटी और पिता में मुकाबला तो कहीं टिकट लौटाकर बेटे को उतारा मैदान पर

0 विदर्भ की 62 सीटों में घमासान, फडऩवीस, पटोले, बावनफूले जैसे दिग्गज की साख दांव पर
 

  राजनांदगांव की सीमा पर छत्तीसगढ़ी गीतों से प्रचार  

नागपुर-गोंदिया से लौटकर प्रदीप मेश्राम

राजनांदगांव, 17 नवंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। आगामी 20 नवंबर को नई सरकार चुनने जा रही महाराष्ट्र के विदर्भ की 62 सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों के बीच मुकाबला रोमांचक  हो चला है। खासतौर पर पूर्वी विदर्भ की कई सीटों में  राजनीतिक दलों ने सियासी सफलता के लिए रिश्तेदारों को भी एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में उतारने से परहेज नहीं किया है। वहीं राजनांदगांव जिले की सीमा से सटे गांवों में भाजपा-कांग्रेस समेत अन्य दलों के उम्मीदवार अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए छत्तीसगढ़ी गीतों का सहारा ले रहे हैं। छत्तीसगढ़ी आधारित चुनावी गीतों के जरिये राजनीतिक दलों को पासा पलटने का भरोसा है। 

पूर्वी विदर्भ के गढ़चिरौली के अहेरी सीट में पिता-पुत्री एक-दूसरे के खिलाफ सियासी तलवार ताने हुए खड़े हैं। भाजपा ने  इस सीट पर धरमराव बाबा आतराम को अधिकृत उम्मीदवार बनाया है तो शरद पवार की एनसीपी ने धरमराव की बेटी भाग्यश्री आतराम को खड़ा कर दिया है। इस सीट पर आतराम परिवार के दो और सदस्य अंबिश आतराम और दीपक आतराम भी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। इसी तरह उद्धव ठाकरे के सरकार में गृहमंत्री रहे नागपुर से सटे काटोल सीट से अनिल देशमुख ने अपने बेटे शलील देशमुख को शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से उम्मीदवार बनाया है।

पहले अनिल देशमुख के नाम का ऐलान किया गया था, बाद में उन्होंने बेटे को चुनाव लड़ाने के इरादे से अपना नाम वापस ले लिया। इस सीट की खासियत यह है कि अजीत पवार की पार्टी ने भाजपा से गठबंधन होने के बावजूद अनिल देशमुख नामक एक नया चेहरा सामने ला दिया है। जिससे यहां की लड़ाई रोमांचक हो चली है। अजीत पवार की पार्टी से लड़ रहे अनिल देशमुख खेतीहर मजदूर हैं। 

इस बीच नागपुर जिले के सावनेर सीट में भी काफी गहमा-गहमी के साथ राजनीतिक लड़ाई चल रही है। इस सीट पर पूर्व मंत्री सुनील केदार ने अपनी पत्नी अनुजा केदार को कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतारा है। बीजेपी से आशीष देशमुख चुनाव लड़ रहे हैं। वह कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रंजीत देशमुख के पुत्र हैं।  विदर्भ के कुछ और ऐसे जिले हैं, जहां कई बड़े राजनीतिक महारथी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। 

 

चंद्रपुर से सुधीर मुनगटीवार भाजपा से छठवीं बार किस्मत आजमा रहे हैं। मुनगटीवार वर्तमान महाराष्ट्र सरकार में बतौर वन मंत्री हैं। उनका पहली बार चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के संतोष रावत से मुकाबला है। 

इस बीच विदर्भ के दिग्गज नेता पूर्व सीएम देवेन्द्र फडऩवीस,  महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना भाऊ पटोले और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनफूले भी चुनाव मैदान में हैं। फडऩवीस नागपुर के दक्षिण-पश्चिम सीट से किस्मत आजमा रहे हैं। इसी तरह साकोली विधानसभा से पटोले भी जीत की उम्मीद लेकर लड़ रहे हैं। पटोले को मुख्यमंत्री का चेहरे के तौर पर देखा जा रहा है। उसी तरह कामठी विधानसभा से चंद्रशेखर बावनफूले भी चुनाव लडक़र विधानसभा में जाने जोर लगा रहे हैं। 

राजनांदगांव जिले की सीमा से सटे गोंदिया और आमगांव सीट में भी रोमांचक लड़ाई छिड़ी हुई है। गोंदिया सीट से भाजपा के विनोद अग्रवाल और कांग्रेस के गोपालदास अग्रवाल के बीच दिलचस्प लड़ाई नजर आ रही है। महाराष्ट्र के आखिरी छोर वाले आमगांव देवरी विधानसभा सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है। इस सीट पर भाजपा ने संजय पुराम को उम्मीदवार बनाया है। पुराम 2014 में भी विधायक रहे हैं। हालांकि विधानसभा 2019 के चुनाव में वह पराजित हुए थे। कांग्रेस के नए चेहरे के रूप में राजकुमार पुराम को उतारा है। चुनावी तैयारी और नतीजों को लेकर कई राजनीतिक पंडितों और पत्रकारों की नजर है।

नागपुर के एक प्रतिष्ठित अखबार के रिजनल एडिटर संजय देशमुख ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि  चुनावी रण में पार्टियां मतदाताओं को लुभाने के लिए कई अहम योजनाओं के जरिये अपना प्रभाव जमाने की कोशिश कर रही है। जिसमें लाड़ली बहना योजना और किसानों को कर्ज माफी जैसे मुख्य योजना शामिल है। इसी तरह चंद्रपुर के वरिष्ठ पत्रकार संजय तुमराम ने ‘छत्तीसगढ़’ से कहा कि इस बार का चुनाव काफी रोमांचकारी हो चला है। वजह यह है कि मौजूदा सरकार के कामकाज के आंकलन के आधार पर जनता वोट कर सकती है। कांग्रेस और एनसीपी भी सत्ता वापसी में जोर लगा रही है।

विचार/लेख

सुखबीर सिंह बादल और अकाली नेताओं को क्यों हुई धार्मिक सज़ा?

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल को सोमवार को अकाल तख़्त की ओर से धार्मिक सजा सुनाई गई थी।

अकाल तख़्त सिख धर्म से जुड़ी सबसे बड़ी धार्मिक संस्था है और उसे ये अधिकार है कि वो अपराधों के लिए किसी भी सिख को तलब करे और उसके खिलाफ धार्मिक सज़ा का एलान करे, जिसे ‘तन्खाह’ कहते हैं

सिख परम्पराओं के अनुसार, अगर कोई सिख, सिख धर्म के सिद्धांतों के खिलाफ काम करता है या सिख समुदाय की भावनाओं के विपरीत काम करता है तो उसे अकाल तख़्त की ओर से धार्मिक सजा सुनाई जा सकती है।

दो दिसम्बर को सिख प्रतिनिधियों और सिखों के पांच प्रमुख धर्म स्थलों के मुखिया की अकाल तख़्त में मीटिंग हुई थी। और इसी मीटिंग में सुखबीर बादल समेत 2007 से 2017 के बीच उनके कैबिनेट में मंत्री रहे अधिकांश लोगों को धार्मिक सज़ा दी गई।

अकाल तख्त की ओर से 2015 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की कार्यकारिणी के सदस्यों और तख़्तों के कुछ पूर्व जत्थेदारों को भी समन किया गया था।

अकाली नेतृत्व को क्यों सजा दी गई?

साल 2007 से 2017 के बीच पंजाब में शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी की गठबंधन सरकार थी।

दिवंगत अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल इस सरकार में मुख्यमंत्री थे जबकि सुखबीर बादल पार्टी के अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री थे।

अकाली दल के नेतृत्व पर सिख धर्म के सिद्धातों और सिख समुदाय की भावनाओं के विपरीत काम करने का आरोप है।

साल 2015 में पंजाब के बरगारी में गुरु ग्रंथ साहिब का अपमान हुआ था। गुरुग्रंथ साबिह के अपमान के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस फायरिंग में दो सिख युवकों की मौत हो गई थी।

कथित तौर पर डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम के अनुयायियों पर अपमान करने के आरोप लगाए गए थे।

अक्तूबर में राम रहीम के ख़िलाफ़ अपमान के मामले में सुप्रीम कोर्ट में कार्यवाही फिर से शुरू हुई।

साल 2007 में बठिंडा के सलबतपुरा में जुटे अपने अनुयायियों के बीच राम रहीम ने गुरु गोबिंद सिंह की नकल की थी। इस घटना के बाद डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों और सिखों के बीच झड़प हुई।

साल 2007 में अकाल तख़्त ने राम रहीम के बहिष्कार का आदेश जारी किया था।

यह सज़ा इस आरोप के तहत दी गई है कि 2007 में सिख समुदाय ने राम रहीम का बहिष्कार किया था इसके बावजूद अकाली नेतृत्व ने उनसे संबंध बनाए रखे। आरोप ये भी है कि कथित तौर पर बाद अकाली नेतृत्व ने अकाल तख्त की ओर से उन्हें माफ़ी दिलाने में मदद की।

सजा की घोषणा करते हुए जत्थेदार ने पार्टी की कार्यकारिणी को बादल का इस्तीफा स्वीकार करने और सदस्यता अभियान शुरू करने के लिए कमेटी के निर्माण की घोषणा करने को कहा।

दो दिसम्बर को अकाल तख़्त में क्या हुआ?

जत्थेदार अकाल तख़्त रघबीर सिंह और अन्य जत्थेदारों ने अकाल तख्त परिसर हाथ बांधे खड़े अकाली नेतृत्व से कई सवाल पूछे।

अकाल तख्त के मंच से खड़े होकर जत्थेदार रघबीर सिंह ने सुखबीर सिंह बादल से सात सवाल पूछे, जिसका उन्होंने सकारात्मक जवाब दिया।

जत्थेदार ने पूछा, ‘सरकार में रहते हुए, क्या आपने सिखों की हत्या के लिए जि़म्मेदार अधिकारियों को पदोन्नति करने और उनके परिवारों को टिकट देने का पाप किया है? क्या आपने गुरमीत राम रहीम के मुकदमे को रद्द कराने का पाप किया है? क्या आपने अपने चंडीगढ़ के आवास पर जत्थेदारों को बुलाया और राम रहीम को माफी दिलाने का पाप किया है?’

उन्होंने आगे पूछा, ‘क्या आपने राम रहीम को माफी देने को सही ठहराने के लिए अखबारों में विज्ञापन देने के लिए एसजीपीसी फंड का दुरुपयोग करके पाप किया है?’

अकाली नेतृत्व से पूछा गया था कि क्या वे इन घटनाओं से वाकिफ़़ थे और इसके खिलाफ आवाज उठाई थी?

अकाली नेता किस तरह की सजा भुगत रहे हैं?

शिरोमणि अकाली दल के नेताओं की बात सुनने के बाद, अकाल तख़्त के जत्थेदारों और अन्य सिख प्रतिनिधियों ने फ़ैसले के लिए एक और बैठक की।

अकाल तख़्त मंच से खड़े होकर जत्थेदार रघबीर सिंह ने कहा, ‘अकाली नेताओं ने अपनी ग़लतियां स्वीकार कर ली हैं, इसलिए वे तीन दिसंबर से सेवा (तन्खा) करेंगे। वो दोपहर 12 से एक बजे तक स्वर्ण मंदिर परिसर के शौचालयों की सफाई करेंगे और दरबार साहिब प्रबंधक उनकी हाजिऱी लेंगे। इसके बाद स्नान कर बर्तन धोएंगे, गुरबाणी सुनेंगे और उसका पाठ करेंगे। इस दौरान वो गले में एक तख्ती भी लटकाएंगे।’

पैर में चोट के कारण सुखबीर और एक अन्य वरिष्ठ नेता सुखदेव सिंह ढींडसा के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए, उन्हें दो दिनों तक दो-दो घंटे व्हीलचेयर पर दरबार साहिब के द्वार पर बैठने, एसजीपीसी कर्मचारी की वर्दी पहनने और हाथों में भाला रखने की सज़ा सुनाई गई है।

ये दोनों नेता, पंजाब के दो अन्य तख़्तों और फतेहगढ़ साहिब के गुरुद्वारे में भी दो-दो दिन सेवा देंगे।

इसके अलावा, जत्थेदार ने एलान किया, ‘पूर्व जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह को दी गई सभी सुविधाएं वापस ले ली जाएंगी, जिन्होंने कथित तौर पर बादल परिवार के प्रभाव में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को माफ कर दिया था। उन्हें सार्वजनिक कार्यक्रमों में बोलने की मनाही होगी।?

साथ ही उन्होंने सुखबीर बादल, सुच्चा सिंह लंगाह, गुलजार सिंह, दलजीत सिंह चीमा, बलविंदर सिंह भूंदड़ और हीरा सिंह गाबरिया से डेरा सच्चा सौदा से संबंधित विज्ञापनों पर खर्च किए गए धन की ब्याज सहित वसूली का भी निर्देश दिया।

दो दिसंबर को दिए गए फैसले में अकाल तख़्त ने 2011 में दिवंगत प्रकाश सिंह बादल को अकाल तख्त द्वारा दी गई पंथ रतन फख्र-ए-कौम की उपाधि भी वापस ले ली गई है। प्रकाश सिंह बादल पहले राजनेता थे जिन्हें यह उपाधि दी गई थी।

अकाल तख़्त क्या है और इसका सिख समुदाय के लिए क्या महत्व है?

दरबार साहिब सिखों की आध्यात्मिक शक्ति संस्था है, जबकि इस परिसर में बना अकाल तख़्त सिख समुदाय की स्वतंत्र पहचान का प्रतीक है।

सिखों के पांच तख़्त हैं- अकाल तख्त (अमृतसर), तख़््त केशगढ़ साहिब (आनंदपुर साहिब), तख्त दमदमा साहिब (तलवंडी साबो), तख्त श्री पटना साहिब (बिहार) और तख्त श्री नांदेड़ साहिब (महाराष्ट्र)।

सिखों के पांच तख़्तों में, अकाल तख़्त सबसे प्रमुख है और यह एकमात्र तख़्त है जिसे सिख गुरु ने स्थापित किया है।

अकाल तख्त को छठे गुरु, गुरु हरगोविंद साहिब ने खुद 15 जून 1606 में स्थापित किया था। इसका असली नाम अकाल बंगा था।

सिख धर्म की परम्पराओं के अनुसार, अकाल तख़्त का दजऱ्ा सबसे ऊपर है।

अकाल तख़्त की ओर से सिख़ों के लिए जारी किए जाने वाले आदेश को हुक्मनामा कहा जाता है, जिसका पालन करना हर सिख के लिए अनिवार्य है।

सजा सुनाने की क्या प्रक्रिया है?

चाहे कोई सिख कितना भी गणमान्य और शक्तिशाली क्यों न हो, अगर वह सिख धर्म के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ जाता है, तो कोई भी सिख या संगठन उसकी शिकायत अकाल तख़्त से कर सकता है।

कोई मुद्दा आने पर अमृतसर के अकाल तख़्त सचिवालय में, अकाल तख़्त के जत्थेदार के नेतृत्व में पांच तख्तों के प्रतिनिधियों की बैठक होती है।

अगर किसी तख़्त का जत्थेदार इस बैठक में शामिल नहीं हो सकता है, तो उसके प्रतिनिधि के शामिल होने की उम्मीद की जाती है, या फिर दरबार साहिब (स्वर्ण मंदिर) के मुख्य ग्रंथी को बैठक में शामिल किया जा सकता है।

जत्थेदार बैठक में शिकायत पर विचार करते हैं और संबंधित व्यक्ति से सफाई मांगते हैं। अगर जत्थेदार उत्तर से संतुष्ट नहीं होता है, तो उस व्यक्ति को दोषी घोषित कर दिया जाता है।

इसके बाद उस व्यक्ति को अकाल तख़्त के सामने पेश होने के लिए बुलाया जाता है। जत्थेदार अकाल तख़्त के मंच पर और आरोपी को संगत के सामने खड़ा किया जाता है।

अकाल तख़्त जत्थेदार संबंधित व्यक्ति के खिलाफ आरोपों को पढ़ता है और उससे जवाब देने के लिए कहता है। अगर वह अपना गुनाह कबूल कर लेता है या जत्थेदारों के अनुसार उस पर लगे आरोप सही साबित हो जाते हैं तो उसे धार्मिक सज़ा सुनाई जाती है।

अगर कोई व्यक्ति सज़ा स्वीकार नहीं करता या अकाल तख़्त के सामने हाजिर नहीं होता है तो उसे समुदाय से बहिष्कृत कर दिया जाता है।

लेकिन अगर व्यक्ति अपनी ग़लती स्वीकार कर लेता है और अकाल तख़्त के सामने हाजिऱ होता है, तो उसे धार्मिक दंड भी दिया जा सकता है और सिख समुदाय में बहाल भी किया जा सकता है।

अन्य सिख नेता जिन्हें धार्मिक सजा मिल चुकी है

1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद अकाल तख़्त की इमारत क्षतिग्रस्त हो गई थी। बाद में भारत सरकार ने इसकी मरम्मत करवाई।

तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह और बुड्ढा दल के संता सिंह ने भारत सरकार की ओर से इसकी मरम्मत की जिम्मेदारी ली थी।

सरकारी सहायता से बनी इस इमारत को सिखों ने मंजूरी नहीं दी और 1986 में सरबत खालसा (सिखों की बैठक) बुलाकर इसे गिराने का फैसला किया गया।

संता सिंह को सिख समुदाय से बहिष्कृत कर दिया गया और ‘तंखाहिया’ घोषित कर दिया गया। उन्होंने अपनी गलती स्वीकार की थी और अकाल तख्त के सामने हाजिर हुए और उन्हें धार्मिक सज़ा कबूल की।

अकाल तख्त साहिब पर हमले के समय बूटा सिंह केंद्रीय गृह मंत्री थे और ज्ञानी जैल सिंह राष्ट्रपति थे। दोनों माफी के लिए अकाल तख्त साहिब के सामने पेश हुए थे।

2017 में पंजाब का विधानसभा चुनाव हारने के बाद 2018 में प्रकाश सिंह बादल खुद पूरे शिरोमणि अकाली दल नेतृत्व के साथ अकाल तख़्त के सामने हाजिर हुए और स्वर्ण मंदिर में जूते और बर्तन साफ करने की सेवा की। (bbc.com/hindi)

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