4 मार्च को अगली सुनवाई, उसके पहले हलफनामा पेश करने का निर्देश
विशेष रिपोर्ट : राजेश अग्रवाल
रायपुर, 24 फरवरी (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। सुप्रीम कोर्ट में चल रही एक जनहित याचिका पर शपथ-पत्र देने से पहले छत्तीसगढ़ के सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रदेश में रिक्त मुख्य सूचना आयुक्त व एक सूचना आयुक्त के खाली पदों पर भर्ती की प्रक्रिया तेज कर दी गई है। फरवरी, 2024 में मुख्य सूचना आयुक्त की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला गया था, लेकिन सर्च तीन साल पहले सूचना आयुक्त के लिए मिले आवेदनों पर भी विचार करेगी।
सभी आवेदनों को सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के अनुरूप सामान्य प्रशासन विभाग की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है, जिससे मालूम होता है कि इन पदों के लिए प्रदेश के वरिष्ठ आईएएस और आईपीएस अधिकारियों ने भी आवेदन किया है। ऐसे प्रमुख नामों में मुख्य सचिव अमिताभ जैन, सेवानिवृत्त आईएएस डॉ. संजय अलंग, उमेश कुमार अग्रवाल, डॉ. आरपी मंडल, अमृत खलको सेवानिवृत्त आईपीएस दुर्गेश माधव अवस्थी, अशोक जुनेजा और संजय पिल्ले, भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी राघवेंद्र तिवारी, भानुप्रताप सिंह आदि शामिल हैं।
मालूम हो कि मुख्य सूचना आयुक्त का पद एम के राऊत का कार्यकाल खत्म होने के बाद नवंबर 2022 से रिक्त है। पद पर भर्ती के लिए 5 सितंबर 2022 को पहली बार विज्ञापन निकाला गया था। इसके अलावा सूचना आयुक्त का एक पद और रिक्त होने वाला था, जिसका विज्ञापन भी निकाला गया। तब दोनों पदों के लिए102 आवेदन मिले थे। इस आवेदन के बाद किसी की नियुक्ति नहीं हो सकी। इसके बाद इन्हीं दोनों पदों के लिए फिर से विज्ञापन 7 फरवरी 2024 को निकाला गया। इसमें मिले आवेदनों पर विचार विमर्श कर 16 मार्च 2024 को नरेंद्र कुमार शुक्ला और आलोक चंद्रवंशी का सूचना आयुक्त पर चयन किया गया। इसके बाद रिक्त मुख्य सूचना आयुक्त व एक सूचना आयुक्त पद के लिए विज्ञापन निकाला गया। अभी जो प्रक्रिया चल रही है, उसमें अब तक निकाले गए सभी विज्ञापनों से प्राप्त आवेदनों को शामिल करते हुए रिक्त सूचना आयुक्त के चयन का निर्णय लिया गया है। 29 नवंबर 2024 के विज्ञापन के आधार पर पहली बार अमिताभ जैन, आरपी मंडल, अशोक जुनेजा और डीएम अवस्थी ने आवेदन जमा किए हैं।
मालूम हो कि सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र और सभी राज्यों में मुख्य सूचना आयुक्त तथा सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी पर एक रिट पिटीशन अंजली भारद्वाज की ओर से सन् 2018 में दायर की गई थी, जिसे एके सीकरी और एस अब्दुल नजीर की डिवीजन बेंच ने पीआईएल के रूप में सुनवाई की और 15 फरवरी 2019 में केंद्र तथा राज्यों के लिए नियुक्ति के लिए गाइडलाइन जारी की थी। बेंच ने निर्देश दिया था कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए ऐसे व्यक्तियों को चुना जाना चाहिए जिनके पास विधि, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, समाज सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता, जनसंपर्क या प्रशासन में व्यापक ज्ञान और अनुभव हो। शीर्ष न्यायालय ने यह भी निर्देशित किया कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति ऐसे व्यक्तियों से की जानी चाहिए जो किसी राजनीतिक दल से संबद्ध न हों और न ही कोई अन्य लाभ का पद धारण कर रहे हों। चयन करते समय केवल वर्तमान या सेवानिवृत्त नौकरशाहों के आवेदनों को प्राथमिकता नहीं दिया जाना चाहिए।
छत्तीसगढ़ में नवंबर 2022 को आवेदन मंगाये जाने के बावजूद मुख्य सूचना आयुक्त और एक आयुक्त की भर्ती नहीं की जा सकी, जबकि इसके लिए 102 आवेदन आए थे। इसके बाद 7 फरवरी 2024 को फिर से आवेदन मंगाए गए। इस बार 267 आवेदन आए। इस सूची में 14 आईएएस और आईपीएस एवं अन्य नौकरशाहों के आवेदन भी शामिल थे। इस बार दो सूचना आयुक्तों का चयन कर लिया गया- जिनमें नरेंद्र कुमार शुक्ला और आलोक चंद्रवंशी शामिल हैं। फिर भी मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का एक पद खाली ही रहा।
मालूम हो कि शुक्ला ने अपने आवेदन में सात मापदंड तय किए गए हैं उनमें विधि, विज्ञान, प्रशासनिक एवं प्रबंधन में अनुभव का उल्लेख किया था। दूसरे सूचना आयुक्त चंद्रवंशी ने विधि, विज्ञान, प्रशासकीय, प्रबंधन तथा समाजसेवा का किया था। वेबसाइट में उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार सेवानिवृत्त डॉ. संजय अलंग, उमेश अग्रवाल, सेवानिवृत्त आईएफएस आशीष भट्ट, सेवानिवृत्त आईपीएस संजय पिल्ले का आवेदन भी चयन समिति के पास था। इन अधिकारियों ने अपने आवेदन में सिर्फ प्रशासनिक अनुभव का उल्लेख किया था।
सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए ताजा कवायद इसलिये दिखाई दे रही है कि 4 मार्च 2025 को इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में फिर से सुनवाई है। उसके पहले छत्तीसगढ़ सहित सभी राज्यों के मुख्य सचिव और केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव को जवाब दाखिल करके बताना है कि उन्होंने क्या कदम उठाएं। उन्हें हलफनामा देकर बताना है कि मुख्य सूचना आयुक्त और आयुक्तों के रिक्त पदों पर चयन की प्रक्रिया कब तक पूरी कर ली जाएगी। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की डिवीजन बेंच ने 7 जनवरी को निर्देश दिया था जितने आवेदन हैं, उन्हें वेबसाइटपर अपलोड करें, सर्च कमेटी का गठन करें एवं चयन के मापदंड को भी वेबसाइट पर अपलोड करें। इसके लिए एक सप्ताह का समय दिया गया था। छत्तीसगढ़ के सामान्य प्रशासन विभाग ने आवेदन अपलोड कर दिया है और सर्च कमेटी भी गठित कर दी गई है। हालांकि कोर्ट के निर्देश के मुबातिक चयन के मापदंड वेबसाइट पर दिखाई नहीं दे रहे हैं।
मालूम हो कि गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज पिंगुआ की अध्यक्षता में एक सर्च कमेटी गठित कर ली गई है, जिसमें पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की प्रमुख सचिव निहारिका बारिक, आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग के प्रमुख सचिव सोनमणि बोरा तथा सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव अविनाश चंपावत सदस्य के रूप में लिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के अनुसार 6 सप्ताह के भीतर रिक्त पदों पर चयन कर लिया जाना है। इसके बाद दो सप्ताह के भीतर नियुक्त पत्र भी जारी किया जाना है।
-डॉ. आर.के. पालीवाल
डोनाल्ड ट्रंप ने जब से अमेरिका के राष्ट्रपति का पद संभाला है तब से लगभग हर दिन वह अपने बयानों से कोई नया विवाद खड़ा कर रहे हैं। विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र और विश्व के सुपर पावर नंबर वन देश के लिए यह कतई अच्छा संकेत नहीं है कि उसका राष्ट्रपति विश्व बंधुत्व बढ़ाने और बड़ा दिल दिखाने के बजाय अपने से कमजोर राष्ट्रों को तरह तरह की धमकी दे। शुरू शुरू में अधिकांश देश इसे ट्रंप की जीत का प्रारंभिक खुमार समझकर रफा दफा कर रहे थे लेकिन जब ट्रंप ने लगातार एक के बाद एक आदेश जारी करने शुरू किए और किसी न किसी देश को आए दिन धमकी देने के अंदाज में बयानबाजी जारी रखी तो प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ छोटे देश भी अपनी अपनी तरह से अपनी अपनी क्षमतानुसार विरोध दर्ज कर रहे हैं। चाहे ट्रंप का कनाडा को संयुक्त राज्य अमेरिका के एक राज्य के रूप में मिलाने वाला निहायत गैर जिम्मेदार बयान हो जो किसी देश की संप्रभुता के खिलाफ जाता है, या यूक्रेन के राष्ट्रपति के साथ व्हाइट हाउस में हुई बेहूदा बहस इससे अमेरिका की छवि दागदार हो रही है।
जहां तक भारत का प्रश्न है, हम कहां खड़े हैं, यह हमारी सरकार की तरफ से साफ नहीं हो पा रहा। हमारे प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के बाद भी कोई उस तरह का बड़ा बयान नहीं आया जैसा अक्सर प्रधानमंत्री की यात्राओं के बाद अमूमन आता है। ऐसा संभवत: इसलिए भी है कि ट्रंप की बयानबाजी को देखते हुए कोई भी आश्वस्त नहीं है कि उनके फैसलों का ऊंट कब किस करवट बैठेगा। पारदर्शिता के अभाव में विविध कयास लगाए जा रहे हैं। पारदर्शिता अफवाहों का स्रोत बंद कर सकती है और पारदर्शिता का अभाव अफवाहों का चारागाह बन जाता है।अमेरिका में इस समय कुछ ऐसा ही माहौल है जिसमें कुछ भी ठीक ठीक कह पाना मुश्किल है। जिस तरह से ट्रंप ने अमेरिका में अवैध रूप से घुसे भारत के नागरिकों को हथकड़ी और बेडिय़ों में जकड़ कर सेना के विमान मे भेड़ बकरियों की तरह ठूंसकर भेजा है वह दर्शाता है कि ट्रंप प्रशासन भारत को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहा क्योंकि रूस और चीन के नागरिकों के साथ वह ऐसा अमानवीय व्यवहार नहीं कर रहा। अवैध रूप से रहने वाले भारतीय नागरिकों को बाइडेन प्रशासन ने भी वापिस भेजा था लेकिन उसमें शालीनता थी। उन्होंने चार्टर्ड प्लेन से लोगों को भेजा था और प्रचार के लिए कैदियों का फोटो शूट नहीं कराया था जिस तरह ट्रंप प्रशासन करा रहा है। ऐसी पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा से यह उम्मीद जगी थी कि इस मामले को प्रधानमंत्री द्विपक्षीय वार्ता में जोर शोर से उठाएंगे क्योंकि इस मुद्दे पर विपक्षी दल भी सरकार पर धारदार हमले कर रहे हैं कि हम कैसे विश्व गुरु हैं जिनके नागरिकों को अमेरिका इस तरह ट्रीट कर रहा है। किसी सरकार के लिए शर्मनाक तो यह भी है कि उसके नागरिकों को विकसित देशों में अवैध रूप से घुसपैठ करनी पड़ रही है और उन्हें वहां चूहों की तरह छिपकर रहना पड़ता है। इसका सीधा अर्थ है कि हमने अपने यहां नागरिकों के लिए न ठीक से रोजगार जुटाए और न अच्छा माहौल पैदा किया।यदि हमने फ्री राशन की जगह रोजगार सृजन को महत्व दिया होता तो इतनी बड़ी संख्या में लोग अमेरिका और यूरोप, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में नहीं जाते।
संभव है कि अवैध रूप से रहने वाले भारतीयों की बड़ी संख्या कनाडा और मैक्सिको में भी हो जो अमेरिका जाने की फिराक में सीमा पार कराने वाले गिरोहों के चंगुल में फंसे हैं। इसी तरह यूरोपीय देशों में भी कुछ भारतीय हो सकते हैं।सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने सभी नागरिकों की सम्मान के साथ वापसी करे और देश में ऐसा माहौल बनाए कि भविष्य में हमारे नागरिकों को इस तरह छिप-छिपकर विदेश में घुसपैठ न करनी पड़े। जिस तरह कई देश अमेरिका को उसकी भाषा में जवाब दे रहे हैं हमें भी ट्रंप के गलत फैसलों का पुरजोर विरोध करना चाहिए।