दिग्गज बस्तर में
देश-प्रदेश में गली-मोहल्लों तक भारत-पाकिस्तान लड़ाई पर चर्चा हो रही है। इन सबके बीच प्रदेश भाजपा के दो बड़े नेता अजय जामवाल, और पवन साय संगठन को मजबूत करने निकले हैं। दोनों नेता पिछले तीन दिनों से बस्तर संभाग के दौरे पर हैं, और जिलों में प्रमुख नेताओं के साथ बैठक कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि दोनों ही नेता नए चेहरों की संगठन में भूमिका की तलाश कर रहे हैं, और पंचायत चुनाव के नतीजों की समीक्षा भी कर रहे हैं।
भाजपा को निकाय, और पंचायत चुनाव में भारी सफलता मिली है। पंचायत में सुकमा को छोडक़र बाकी जिला पंचायतों में पार्टी अपना परचम लहराने में कामयाब रही। मगर सुकमा में तमाम कोशिशों के बाद भी भाजपा प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। सुकमा में कांग्रेस, और सीपीआई का गठबंधन अंत तक कायम रहा, और इसमें दरार डालने की भाजपा की तमाम कोशिशें नाकाम रही।
हालांकि पार्टी के कुछ लोग मानते हैं कि निकाय चुनाव के दौरान ही स्थानीय स्तर पर पार्टी नेताओं के बीच मतभेद उभर कर सामने आ गए थे। आपसी झगड़े नहीं निपटा पाने के कारण भाजपा को यहां हार का सामना करना पड़ा। कुछ इसी तरह की स्थिति जगदलपुर जनपद अध्यक्ष के चुनाव में भी बनी। यहां बहुमत होने के बाद भी अधिकृत प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। जगदलपुर में पार्टी के बागी को जीत हासिल हुई। जामवाल और पवन साय, दोनों ही संगठन को मजबूत बनाने के साथ-साथ हार के कारणों पर भी बात कर रहे हैं। जिले, और मंडल की कार्यकारिणी का गठन होना है। सभी जिलों में कोर कमेटियों का भी गठन होगा। ऐसे में दोनों नेताओं के दौरे से विशेषकर बस्तर में हलचल मची है।
परीक्षा के नतीजे, और जय-वीरू
स्कूल शिक्षा विभाग ने बोर्ड परीक्षा के नतीजों की समीक्षा के बाद जिला शिक्षा अधिकारियों पर कार्रवाई शुरू कर दी है। अभी जिलाधिकारी के तबादले से शुरू हुई है। आने वाले दिनों में यह बीईओ, प्राचार्य और शिक्षकों तक जाएगा। हो सकता है निलंबन भी हो। इसमें कल जय-वीरू की एक जोड़ी टूट गई। कल एक डीईओ, हटाकर जगदलपुर भेजे गए। लोग बताते हैं कि इनका तीस वर्ष में पहली बार तबादला हुआ है। वर्ना ये और इनके एक और साथी रायपुर में ही शिक्षक, प्रोफेसर और प्राचार्य भी पदोन्नत औऱ पदस्थ होते रहे। और एक वर्ष पहले डीईओ भी यहीं से बने। जय-वीरू की इस जोड़ी के गॉडफादर एक पूर्व मंत्री रहे हैं ।
दरअसल, ये दोनों इन नेताजी के बच्चों के स्कूल पढ़ाई के वक्त गणित, साइंस के ट्यूटर रहे हैं सो ऐसी गुरू दक्षिणा तो बनती थी। नेताजी की दिल्ली रवानगी के बाद से ही पूरा विभाग, जय-वीरू के आदेश का इंतजार कर रहा था। बस अवसर की तलाश थी। बोर्ड में जिले के नतीजों में गिरावट का अध्ययन कर विभाग ने एक को रवाना कर दिया। राज्य गठन के बाद पहली बार नतीजों को लेकर किसी डीईओ को बदला गया, ऐसा याद आ रहा है। इन साहब पर जिले में सही मॉनिटरिंग न करने, मुख्यालय से बाहर रहने और ओपन स्कूल परीक्षा में नकल प्रकरणों के खात्मे और मीडिया पर्सन को रिश्वत देने जैसे गंभीर तथ्य मिले थे। कुछ ईमान न बेचने वाले पत्रकार साथियों ने लिफाफे लौटाए भी, और सचिव स्तर तक मैसेज भी भिजवाया।
ये पर्याप्त तथ्य थे, फिर क्या था रवाना कर दिए गए। जय के बाद अब विभाग ने वीरू पर भी नजरें गड़ा दी है। वैसे रायपुर भी उन दस जिलों में चौथा है जहां नतीजे कमजोर रहे। देखना होगा क्या और कब होगा।
निधि छिब्बर अभी नहीं बन पाएंगी सचिव

छत्तीसगढ़ कैडर 1994 बैच की आईएएस निधि छिब्बर अब स्वतंत्र रूप से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग सचिव नहीं बन पाएंगी। दिल्ली से खबर है कि केंद्र सरकार ने निधि को नीति आयोग में ही बनाए रखने का फैसला करते हुए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग सचिव का आदेश रद्द कर दिया है। साउथ ब्लाक की ब्यूरोक्रेसी पर नजर रखने वाले रायपुर के अफसरों का कहना है कि छोटे राज्य के आईएएस को इतना बड़ा पद देने के लिए बड़े राज्यों की लॉबी तैयार नहीं थी। सो, पखवाड़े भर बाद ही आदेश रद्द कर दिया गया। और उन्हें केंद्र में छत्तीसगढ़ की पहली महिला सचिव होने की उपलब्धि नहीं मिल पाई।
यह भी बताया गया है कि नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम की पहल पर निधि को आयोग के उपाध्यक्ष ने, मंत्रालय के लिए न छोडऩे का फैसला किया है। निधि करीब दो वर्ष से पहले डायरेक्टर फिर अतिरिक्त सचिव के पद पर आयोग में काम कर रही हैं। उनके तजुर्बे को देखते हुए बीवीआर ने उन्हें वहीं रोकने की कवायद की। और फिर आने वाले दिनों में जनगणना भी होनी और उस पर मूल्यांकन नीति निर्धारण भी। सो उन्हें लगा होगा कि निधि बेहतर होंगी।
निधि अब आयोग में ही भारत सरकार के सचिव के समकक्ष पद और वेतन पर विकास निगरानी और मूल्यांकन कार्यालय (डीएमईओ), का महानिदेशक नियुक्त की गयी हैं। डीएमईओ का गठन भूतपूर्व कार्यक्रम मूल्यांकन कार्यालय (पीईओ) और स्वतंत्र मूल्यांकन कार्यालय (आईईओ) का विलय करके सितंबर 2015 में किया गया। यह नीति आयोग के अधीन एक संबद्ध कार्यालय है। इसके साथ ही अब किसी और अधिकारी के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय में सचिव बनने का रास्ता साफ हो गया है।
सरकारी स्कूलों पर भरोसे का संकट
प्रदेश में स्कूलों के युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया एक बार फिर शुरू हो गई है। जिन ग्रामीण स्कूलों में छात्र संख्या राष्ट्रीय मानकों से कम है, उन्हें दूसरे विद्यालयों में मर्ज किया जा रहा है। यह कवायद शिक्षा के गुणवत्ता सुधार के नाम पर हो रही है। मगर जमीनी सच्चाई यह है कि इस प्रक्रिया के पीछे प्रशासनिक विवशताओं से ज़्यादा शिक्षा व्यवस्था में छिपी खामियां जिम्मेदार हैं।
7 मई से मर्जर, 15 मई से नई पोस्टिंग और 31 मई तक पूरी प्रक्रिया होने जा रही है। बीते साल शिक्षक संगठनों के विरोध के कारण योजना लागू नहीं की गई थी। इस बार अनुमान है कि करीब 4 से 5 हजार प्राथमिक स्कूल या तो बंद हो जाएंगे या पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में समाहित कर दिए जाएंगे।सवाल यह है कि सरकारी स्कूलों को बंद करने की जरूरत क्यों पड़ रही है? गांवों में निजी स्कूलों की भरमार और उनमें डोनेशन आधारित प्रवेश यह संकेत देता है कि सरकारी शिक्षा तंत्र को लेकर जनता का भरोसा कमजोर हो रहा है। सरकार प्रवेशोत्सव मनाती है, बच्चों का तिलक कर स्वागत करती है, लेकिन वही बच्चे जब बिना शिक्षक या बुनियादी सुविधा वाले स्कूलों में पढ़ते हैं, तो यह उत्सव एक रस्म बनकर रह जाता है।
विभाग में शिक्षकों की असमान तैनाती एक पुरानी बीमारी है। प्रदेश में करीब 300 स्कूल ऐसे हैं, जहां एक भी शिक्षक नहीं है, वहीं 13 हजार शिक्षक शहरी स्कूलों में सरप्लस हैं। यानी शिक्षक हैं, लेकिन जरूरत की जगह पर नहीं। इसके बावजूद प्रदेश में 57 हजार शिक्षक पद खाली हैं और कोई भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। युक्तियुक्तकरण के बाद स्कूलों की दूरी बढ़ेगी। इसका अधिक असर लड़कियों की शिक्षा पर पड़ेगा। कई परिवार बेटियों को स्कूल भेजना बंद कर सकते हैं। जब शिक्षक समय पर स्कूल न जाएं, जनप्रतिनिधि केवल औपचारिकता निभाएं, और सरकार केवल आकड़ों को सुधारने के लिए योजनाएं बनाए तो यही हाल होना है। यदि सरकार वाकई शिक्षा के स्तर को सुधारना चाहती है तो उसे इस कारण का पता लगाना चाहिए कि सरकारी स्कूलों से बच्चों का मोह भंग क्यों हो रहा है?
अमरूद के फूल की सरल सुंदरता

इस तस्वीर में दिखाई दे रहा सफेद फूल अमरूद का है, जो अपनी नाजुक पंखुडिय़ों और सैकड़ों केसरों के साथ प्रकृति की अनोखी कारीगरी को दर्शाता है। इसके बगल में दिखाई दे रही हरी कली भविष्य का वह फल है, जो स्वाद और पोषण दोनों में समृद्ध होता है। अमरूद का यह फूल आमतौर पर गर्मियों और बारिश के मौसम में खिलता है, और इसके परागकण मधुमक्खियों व अन्य कीटों को आकर्षित करते हैं, जिससे परागण की प्रक्रिया होती है। यह फूल जितना सुंदर है, उतना ही उपयोगी भी। यही वह प्रारंभिक चरण है, जिससे विटामिन ‘सी’ से भरपूर अमरूद फल का जन्म होता है। ग्रामीण बागानों से लेकर शहरी बगीचों तक, यह फूल आमतौर पर नजर आ जाता है, मगर इसकी महीन बनावट और जैविक महत्त्व अक्सर अनदेखा रह जाता है। (फोटो-प्राण चड्ढा)