राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : मंत्री-सांसद आमने-सामने
18-May-2025 7:45 PM
राजपथ-जनपथ : मंत्री-सांसद आमने-सामने

मंत्री-सांसद आमने-सामने

सरकार के एक मंत्री, और सांसद के बीच पटरी नहीं बैठ रही है। वैसे तो दोनों ही स्वभाव से सरल है, लेकिन एक मामले पर दोनों आमने-सामने आ गए हैं।

सुनते हैं कि मंत्री ने अपने विधानसभा क्षेत्र के एक गांव में सामुदायिक भवन के स्थल चयन किया है। यह जमीन सांसद महोदय के नजदीकी रिश्तेदार के आधिपत्य में है। भवन के लिए स्थल चिन्हित किया गया, तो विवाद शुरू हो गया। सांसद के रिश्तेदार भी भाजपा के पदाधिकारी रहे हैं। 

बात सांसद तक पहुंची, तो उन्होंने सीधे मंत्रिजी को मोबाइल कर सामुदायिक भवन के लिए जगह बदलने का सुझाव दिया। मगर मंत्रिजी इसके लिए तैयार नहीं हैं। दरअसल, मंत्रिजी के सांसद के रिश्तेदार से अच्छे संबंध नहीं रहे हैं। इसलिए वो स्थल बदलने के लिए सहमत नहीं है। अभी बीच का रास्ता नहीं निकल पाया है। पार्टी के कुछ लोगों का अंदाजा है कि भूमिपूजन कार्यक्रम के पहले विवाद का निपटारा नहीं हुआ, तो यह मामला बढ़ सकता है। देखना है आगे क्या होता है।

दारू, और नेताओं का रुख

सरकार ने एक अप्रैल से 67 नई शराब दुकानें खोलने का फैसला लिया था, लेकिन डेढ़ माह बाद अब तक एक भी नई दुकानें खुल नहीं पाई है। दरअसल, जहां शराब दुकानें प्रस्तावित की गई थी, वहां काफी विरोध हो रहा है। कुछ जगहों पर प्रशासन ने पंचायत से सहमति भी ले ली थी। बावजूद इसके ग्रामीणों के आक्रोश की वजह से दुकानें नहीं खुल पाई हैं।

ऐसा नहीं है कि शराबबंदी जैसी कोई मांग है। ज्यादातर जगहों पर तो जनप्रतिनिधि ही विरोध कर रहे हैं। सुशासन तिहार चल रहा है, और जन समस्याओं के निराकरण के लिए सभी जिला, और ब्लॉक में समाधान शिविर लगाए गए हैं। इनमें से एक-दो जगहों पर शराब दुकान खोलने की मांग भी हुई है।

सीनियर विधायक धर्मजीत सिंह अपने विधानसभा क्षेत्र तखतपुर के गांव जरौदा पहुंचे, तो ग्रामीणों ने एक सुर में उनसे गांव में शराब दुकान खोलने की मांग रख दी। इसी तरह रायपुर के बोरियाकला इलाके में शिविर में ग्रामीणों ने शराब दुकान में शुगर फ्री शराब उपलब्ध कराने की मांग की है। गौर करने लायक बात यह है कि दो-तीन दिन पहले ही सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने समाधान शिविर में अवैध शराब की बिक्री की शिकायत पर आबकारी अफसरों को जमकर फटकार भी लगाई थी। मगर अब शुगर फ्री शराब की डिमांड से आबकारी अफसर चकित हैं।

दोराहे पर कांग्रेस नेतृत्व

एक सशक्त विपक्ष लोकतंत्र के लिए सदैव अच्छा होता है। प्रदेश में इस समय भाजपा की सरकार है, लेकिन अफसोस, विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस दिशाहीन और ऊर्जा विहीन दिखाई दे रही है। कांग्रेस हाईकमान ‘संविधान बचाओ’ रैली के जरिए कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश कर रहा है, लेकिन जमीनी तस्वीर इससे उलट है। एक हालिया बैठक की तस्वीर में अधिकांश नेताओं के चेहरे थके और तनावग्रस्त नजर आ रहे हैं। मंच पर बैठे लोगों में से केवल एक विधायक हैं-दिलीप लहरिया, बाकी सब चुनाव हारे हुए या संगठन के पदाधिकारी हैं, जिन्हें पार्टी चलाने का खर्च खुद ढोना है। यही हाल सामने बैठे कार्यकर्ताओं का है। अधिकतर के चेहरे झुके हुए हैं, पर ये लालची लालसी नहीं, विचारधारा से जुड़े लोग हैं। इनकी ही मदद से चुनाव जीते जाते हैं।

यह तीसरी बार है जब ‘संविधान बचाओ’  रैली की तैयारी हो रही है। पहले दुर्ग में तय हुई, जो स्थगित कर दी गई। फिर बिलासपुर में घोषित हुई, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के चलते उसे टालना पड़ा। अब जांजगीर तय हुआ है। उम्मीद करनी चाहिए कि इसे भी रद्द कर आगे रायगढ़, कोरबा, सरगुजा के कार्यकर्ताओं की परीक्षा नहीं ली जाए।

बीते 25 वर्षों पर नजर डालें, तो कांग्रेस दो बार सत्ता में आई। पहली बार राज्य गठन के बाद, बिना चुनाव के, जब स्व. अजीत जोगी पहले मुख्यमंत्री बने। उन्होंने प्रशासनिक स्तर पर ठोस काम जरूर किए, लेकिन कार्यकर्ताओं को जोडऩे की बजाय पार्टी में गहरी खाई पैदा कर दी, जिसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा ने सत्ता हथिया ली और लगातार तीन बार सरकार बनाई। उन पंद्रह सालों के आखिरी वर्षों में भाजपा की अफसरशाही, भ्रष्टाचार और नेताओं के अहंकार से जनता त्रस्त हो गई। धान बोनस और चावल की योजना भी भाजपा को चौथी बार जिताने में सफल नहीं हो सकी। 2018 में कांग्रेस को जनता ने जबरदस्त जनादेश दिया। वह जनादेश परिवर्तन का था, उम्मीदों का था।

लेकिन दुर्भाग्यवश कांग्रेस ने उस जनादेश को आत्ममंथन का नहीं, बल्कि आपसी खींचतान का साधन बना लिया। सत्ता में आते ही मुख्यमंत्री और विधायकों-मंत्रियों के बीच टकराव होने लगा। ढाई-ढाई साल की लड़ाई ने सरकार की स्थिरता और संगठन की ताकत को संदेह के घेरे में ला दिया। बिलासपुर जैसे महत्वपूर्ण जिले के विधायक को न मंत्री पद मिला, न कभी आजादी के पर्वों में झंडा फहराने का अवसर। दूसरी ओर, शराब, रेत और कोयले की अवैध वसूली पर पार्टी के भीतर ही आवाजें उठीं, लेकिन नेतृत्व मौन रहा। भाजपा ने इन मुद्दों को हथियार बनाकर जनता के बीच ले जाना शुरू कर दिया और उसकी अपनी केंद्र सरकार ने अपनी एजेंसियों के जरिए कांग्रेस नेतृत्व की नैतिक स्थिति और कमजोर कर दी।

नतीजा, 2023 में कांग्रेस की करारी हार हुई। यह नेतृत्व, रणनीति और जमीनी पकड़ की विफलता थी। इसके बावजूद जिन नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्रों में पार्टी को डुबोया, वे आज भी संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर हैं। जिलों के स्तर पर भी और प्रदेश के भी। ऐतिहासिक हार के बावजूद प्रदेश नेतृत्व में कोई परिवर्तन नहीं करना, केंद्रीय नेतृत्व के ढुलमुल रवैये को दर्शाता है। नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी को लेकर रायपुर और बिलासपुर के नेताओं के बीच जो रस्साकशी चली, वह अब सार्वजनिक हो चुकी है, जगहंसाई हो रही है। यह जरूर है कि पूर्व मुख्यमंत्री को महासचिव बनाकर पंजाब भेज दिया गया, लेकिन छत्तीसगढ़ मे जिस तरह से वे समय दे रहे हैं, उससे अंदाजा लग सकता है कि उनको पंजाब में दोबारा पार्टी की पकड़ मजबूत करने में कोई रुचि नहीं है।

क्या पार्टी नेतृत्व यह समझने को तैयार है कि संगठन केवल हाईकमान से नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं के विश्वास और भागीदारी से चलती है? मौजूदा स्थिति में न तो उत्साह है, न एकता, न ऊर्जा और न ही दिशा। यदि यही स्थिति रही, तो कांग्रेस के लिए 2028 केवल एक और चुनाव नहीं, अस्तित्व की लड़ाई बन सकता है।

दखल दोगे तो छोड़ूंगा नहीं..

अचानकमार टाइगर रिजर्व के सरईपानी क्षेत्र में स्थित वॉच टावर के पास लगे सौर पैनल को जंगली हाथियों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। हाथी जैसे समझदार और भावनात्मक जीव अपने प्राकृतिक इलाके में किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप को सहजता से नहीं स्वीकारते। अपने इलाके में किसी भी मानव निर्मित ढांचे को बेजा दखल मानते हैं और अकसर उसे नुकसान पहुंचाते हैं।

यह क्षेत्र चार जंगली हाथियों के नियमित विचरण का इलाका है। यदि सौर पैनल लगाने से पहले उसकी सुरक्षा के लिए कोई उचित परिधि बनाई जाती, जैसे कि गहरी खाई या अन्य प्रकृति-संगत अवरोध, तो शायद यह नुकसान टाला जा सकता था। हाथी भारी शरीर के कारण कूदते नहीं। वे ऐसे खतरों से आमतौर पर दूरी बनाकर चलते हैं। यह तोड़ो-फोड़ो वन विभाग के लिए सबक है। संरचनाएं बनाते समय स्थानीय वन्यजीवों की आदतों, व्यवहार और रहवास की सीमाओं का वे ध्यान नहीं रखते। 


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