राजपथ - जनपथ
गोवंश से जुड़े कारोबार की दिक्कतें..
छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में गाय और गोवंश किसानों की अर्थव्यवस्था को अतिरिक्त सहारा देते हैं। दूध, खाद और खेती-बाड़ी में इनके उपयोग से किसानों की आय बढ़ती है। लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब ये पशु बूढ़े या बीमार होकर काम के नहीं रहते। आस्था और परंपरा से बंधे किसान अपनी हैसियत के अनुसार उनकी देखभाल तो करते हैं, मगर यह हमेशा संभव नहीं हो पाता।
कानून भी किसानों के सामने बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है। गाय और कृषि पशुओं का वध तो अपराध है ही, उनका बिना अनुमति परिवहन भी गैरकानूनी है। उदाहरण के तौर पर छत्तीसगढ़ कृषि पशु संरक्षण अधिनियम 2004 के तहत परिवहन और वध पर पाबंदी है। एक में तीन साल तो दूसरे में सात साल की सजा है। इधर गौरक्षक इस बात की परवाह किए बिना वाहनों का पीछा करते हैं कि परिवहन वैध है या अवैध। कई बार इनकी कार्रवाइयां हिंसक हो जाती हैं। बीते साल छत्तीसगढ़ के आरंग इलाके में यूपी के तीन युवक ऐसी ही जांच के दौरान नदी में कूद गए थे। दो की मौके पर मौत हो गई और तीसरे ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। रामानुजगंज में भी दो युवकों की हत्या दर्ज हो चुकी है। अन्य राज्यों में इनसे भी ज्यादा बड़े हादसे दर्ज हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 2016 में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में और 2017 में संसद के भीतर कह चुके हैं कि गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी हो रही है और राज्यों को इस पर सख्त निगरानी के लिए डोजियर बनाना चाहिए।
इस मुद्दे पर चर्चा इसलिए क्योंकि, हाल ही में महाराष्ट्र में यह मुद्दा गरमा गया है। वहां भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में एनसीपी (अजित पवार गुट) भी शामिल है। कुरैशी समुदाय, जो मांस और पशु व्यापार से जुड़ा है, पवार का बड़ा समर्थक माना जाता है। पवार ने पुलिस को निर्देश दिया है कि कोई भी अनधिकृत व्यक्ति वाहनों की जांच न करे और इस संबंध में सभी थानों को सर्कुलर जारी किया जाए। लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत का कहना है कि आदेश अधूरा है, क्योंकि इसमें यह साफ नहीं है कि यदि कोई जबरन गाडिय़ों को रोकता है तो पुलिस कार्रवाई क्या करेगी।
इस बहस में भाजपा के अपने नेता भी सरकार से सहमत नहीं हैं। पार्टी के एमएलसी और किसान नेता सदाभाऊ खोत ने 2015 में बने उस कानून पर ही सवाल खड़ा किया है, जिसमें गाय, बैल और सांड के वध पर रोक है। उनका तर्क है कि यह कानून किसानों के खिलाफ है। दूध न देने वाले अनुत्पादक पशुओं की देखभाल का खर्च किसानों पर अतिरिक्त बोझ बन गया है। साथ ही, गौरक्षकों के डर से अन्य राज्यों से अच्छी नस्ल की गायें लाने का रास्ता बंद हो गया है। खोत का कहना है कि इस कानून से न तो किसानों को लाभ हुआ और न ही देसी गायों का भला हुआ। उनका आशय यह है किगोरक्षा के नाम पर बने कानून और गौरक्षक समूह दोनों ही किसानों और पशु व्यापार से जुड़े समुदायों के लिए परेशानी का कारण बन रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की चेतावनी और दिशा-निर्देशों के बावजूद राज्यों ने अब तक कोई ठोस व्यवस्था नहीं बनाई है। छत्तीसगढ़ में गौधाम योजना से संकेत हैं कि अनुत्पादक गायों का पुनर्वास हो जाएगा, जो प्रचलित गौशालाओं से अच्छी होगी, पर क्या डेयरी व्यवसाय और खेती में काम लेने के लिए गोवंशों का परिवहन यहां आसान है, या स्थिति महाराष्ट्र की तरह ही गंभीर है?
किसी की लॉटरी भी निकलेगी?
विष्णुदेव साय कैबिनेट में पहली बार के तीन विधायकों को मंत्री के रूप में जगह मिल सकती है। राजभवन में शपथ ग्रहण की तैयारी भी चल रही है। चर्चा है कि दिल्ली से लेकर रायपुर तक भाजपा के सीनियर विधायकों को किसी तरह एडजस्ट करने पर मंथन चलता रहा।
बताते हैं कि पूर्व मंत्री, और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रह चुके विक्रम उसेंडी को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया गया था। मगर उसेंडी ने अनिच्छा जाहिर कर दी है। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, राजेश मूणत, और अमर अग्रवाल भी इसके लिए सहमत होंगे, इसकी संभावना कम जताई जा रही है। ये सभी अनौपचारिक चर्चा में अलग-अलग जगहों पर कह चुके हैं कि अगर उन्हें मंत्री नहीं बनाया जाता, तो अपनी विधायकी से ही संतुष्ट हैं। वे किसी संवैधानिक पद पर काम नहीं करना चाहते हैं।
पार्टी के अंदरखाने में चर्चा है कि पूर्व मंत्रियों के विधानसभा उपाध्यक्ष पद संभालने से इंकार करने के बाद पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष धर्मजीत सिंह की लॉटरी निकल सकती है। धर्मजीत, जोगी कांग्रेस से भाजपा में आए, और तखतपुर से विधायक बने। धर्मजीत सिंह कांग्रेस की जोगी सरकार में विधानसभा के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। हालांकि इसमें समय है, और विधानसभा के शीतकालीन सत्र में उपाध्यक्ष का चुनाव होने के आसार हैं। देखना है आगे क्या होता है।
नयों और पुरानों का समीकरण
चर्चा है कि पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल को कैबिनेट में जगह मिलने की प्रबल संभावना जताई जा रही थी। कहा जा रहा है कि खुद सीएम विष्णुदेव साय, अमर के नाम पर सहमत थे। मगर सोमवार को उन्हें सूचना दे दी गई कि उनकी जगह नए लोगों को मौका दिया जा रहा है।
अमर को मंत्री नहीं बनाने के पीछे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक को बड़ी वजह माना जा रहा है। अमर अग्रवाल, और कौशिक बिलासपुर से आते हैं। पार्टी के अंदरखाने में दोनों में प्रतिद्वंदिता रही है। ऐसे में अमर को मंत्री बनाने से दूसरे मजबूत दावेदार कौशिक की नाराजगी का खतरा था।
कौशिक, प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं। वो संगठन के पसंदीदा माने जाते हैं। चूंकि सामाजिक, और स्थानीय समीकरण को देखते हुए दोनों के लिए कैबिनेट में जगह नहीं बन पा रही थी इसलिए पार्टी के रणनीतिकारों ने दोनों को ही बाहर रखना उचित समझा। अब कहा जा रहा है कि कौशिक-अमर के समर्थकों में मायूसी जरूर है, लेकिन नाराजगी नहीं है। वाकई ऐसा है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
नई लिस्ट और पुरानों की उदासी
सत्ता, और संगठन में सीनियर नेताओं को दरकिनार किए जाने का असर देखने को मिल रहा है। भाजपा के सीनियर नेता पहले जैसी सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं। इससे पार्टी कार्यक्रमों पर भी फर्क पड़ा है। पिछले दिनों भाजपा ने तिरंगा यात्रा निकाली। सभी जिलों, और ब्लॉकों में यह यात्रा निकली।
राजधानी रायपुर में 13 तारीख को तिरंगा यात्रा में मौजूद भीड़ चर्चा का विषय रही। चूंकि संगठन पदाधिकारियों की सूची सुबह जारी हो गई थी। इसलिए पदाधिकारी बनने से रह गए सीनियर नेताओं ने तिरंगा यात्रा के आयोजन में वैसी भागीदारी नहीं निभाई जिसके लिए वो जाने जाते रहे हैं। कुल मिलाकर कई जगहों पर आयोजन फीका रहा। नए पदाधिकारी, सीनियर नेताओं की जगह ले पाएंगे, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
लोग उम्मीद से, हर हलचल पे नजर
कैबिनेट विस्तार की अटकलों के बीच स्पीकर डॉ. रमन सिंह मंगलवार को दिल्ली जा रहे हैं। वैसे तो डॉ. सिंह के दिल्ली विधानसभा के कार्यक्रम में शामिल होंगे, लेकिन उनकी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, और कई प्रमुख नेताओं से मुलाकात भी हो सकती है। ऐसे मौके पर जब कैबिनेट विस्तार के मसले पर पार्टी के अंदरखाने में खींचतान मची हुई है, रमन सिंह के दिल्ली दौरे पर भी पार्टी नेताओं की नजरें हैं।
कुछ लोग मानते हैं कि रमन सिंह पार्टी हाईकमान को कैबिनेट विस्तार के मसले पर सुझाव दे सकते हैं। पार्टी के क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल भी दिल्ली में थे, और उनकी भी राष्ट्रीय सह महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश के साथ बैठक हुई है। इसके बाद जामवाल असम चले गए। प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन के रायपुर आने का अभी कोई कार्यक्रम नहीं है।
अंदाजा लगाया जा रहा है कि कैबिनेट विस्तार पर फिलहाल कुछ नहीं हो रहा है। चूंकि सीएम विष्णुदेव साय कह चुके हैं कि कैबिनेट का विस्तार जल्द होगा। ऐसे में उनके विदेश दौरे से लौटने के बाद ही कुछ होने के आसार हैं। पार्टी के कई लोगों का अनुमान है कि पितृपक्ष के पहले कुछ हो सकता है। पितृपक्ष सात सितंबर से शुरू हो रहा है। इससे पहले सीएम 31 तारीख को विदेश से लौटेंगे। तब तक अटकलों का बाजार गरम रहेगा।
प्रवक्ताओं को टिप्स
प्रदेश भाजपा के मीडिया विभाग के नवनियुक्त पदाधिकारियों में एक को छोड़ सभी ने रविवार को पद संभाल लिया। पार्टी नेतृत्व ने गुरुवार को ही बस्तर से सरगुजा तक के एक दर्जन नेताओं को प्रवक्ता नियुक्त किया था। सभी ने काम संभालने के बाद संगठन महामंत्री और वरिष्ठ नेताओं से भी मार्गदर्शन लिया है। इसके बाद मुख्य प्रवक्ता सांसद संतोष पांडेय ने सभी प्रवक्ताओं की बैठक की। इसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि कोई भी प्रवक्ता बयान या चैनलों को बाइट देने में जल्दबाजी न करें।
किसी भी विषय पर बाइट या बयान के लिए विषय वस्तु को लेकर मीडिया प्रभारी और मुख्य प्रवक्ता से रायशुमारी करें। न्यूज चैनलों के डिबेट में जाने से पहले चर्चा के विषय पर भी अनुमति ली जाए। विषय वस्तु का फीडबैक मीडिया प्रभारी से लिया जाए। तत्काल बाइट मांगने वाले न्यूज चैनलों को बाइट देने में जल्दबाजी न करें। कोई भी बयान में वेग में न दिया जाए।
अब एफआईआर रद्द कराने की मांग

केरल के अंगमाली जिले के इलावूर की सिस्टर प्रीति मैरी और कन्नूर जिले के उदयगिरी की सिस्टर वंदना फ्रांसिस का मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। इन दोनों ननों को मानव तस्करी और धर्मांतरण के आरोप में 26 जुलाई को दुर्ग से गिरफ्तार किया गया था। उनके साथ नारायणपुर की तीन लड़कियां और उनमें से एक का रिश्तेदार भी मौजूद था। रिश्तेदार को भी गिरफ्तार किया गया, जबकि लड़कियों को बाद में घर भेज दिया गया।
सिस्टर्स की ओर से यह कहा गया कि वे इन लड़कियों को नर्सिंग ट्रेनिंग देकर किसी अस्पताल में रोजगार दिलाने वाली थीं। लेकिन गिरफ्तारी के बाद छत्तीसगढ़ सरकार दुविधा में पड़ गई। दरअसल, राज्य में धर्मांतरण का मुद्दा पहले से ही गरमाया हुआ है और इस मामले में हिंदुत्ववादी संगठनों को राजनीतिक संरक्षण भी मिला हुआ है।
दूसरी ओर, केरल भाजपा अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने इन ननों पर दर्ज मुकदमे को फर्जी करार दिया और उन्हें छुड़ाने के प्रयास में रायपुर भी पहुंचे। अंतत: ननों को जमानत तो मिल गई, लेकिन उनके खिलाफ दर्ज गंभीर अपराधों की सुनवाई आगे जारी रहेगी। ट्रायल शुरू होने के बाद उन्हें बार-बार छत्तीसगढ़ आना पड़ेगा, जो उनके लिए बड़ी परेशानी साबित होगी।
अब इन ननों की मांग है कि दर्ज एफआईआर को पूरी तरह रद्द किया जाए। बीते शनिवार को उन्होंने दिल्ली में एक बार फिर राजीव चंद्रशेखर से मुलाकात कर अपनी बात रखी। खबर है कि चंद्रशेखर ने आगे भी मदद का आश्वासन दिया है। चूंकि केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, भाजपा की राज्य इकाई हर हाल में ईसाई समुदाय को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है। जमानत दिलाने का श्रेय पहले ही भाजपा को मिल चुका है, अब मुकदमों से पूरी राहत की मांग उठ रही है।
यह भी मुमकिन है कि आने वाले दिनों में भाजपा की केरल इकाई छत्तीसगढ़ सरकार इस बारे में सिफारिश करे। मगर, एफआईआर को सीधे-सीधे और तुरंत वापस ले लिया गया तो इसके राजनीतिक और प्रशासनिक असर भी होंगे। विपक्ष इसे अल्पसंख्यकों के उत्पीडऩ का सबूत बताएगा और पुलिस पर यह आरोप लग सकता है कि उसने बजरंग दल कार्यकर्ताओं के दबाव में कार्रवाई की थी।
संभावना यही है कि कोई बीच का रास्ता तलाशा जाएगा। मामले को अभी ठंडा रखा जाए और चुनाव नजदीक आते-आते ननों को खामोशी से राहत मिल जाए।
तारीख पर तारीख
हाल फिलहाल में कैबिनेट विस्तार होगा या नहीं, यह साफ नहीं है। मगर इस मसले पर भाजपा में हलचल मची है। दरअसल, सीएम विष्णु देव साय ने शनिवार को मीडिया से चर्चा में कह दिया था कि कैबिनेट विस्तार जल्द होगा। वो 21 तारीख को दस दिन के विदेश दौरे पर जाने वाले हैं।
सीएम के बयान के बाद नए मंत्रियों के नामों को लेकर कयास लगाए जाने लगा। और जब सीएम शनिवार को राज्यपाल से मिलने पहुंचे, तो कैबिनेट विस्तार की संभावित तिथि को लेकर अटकलें लगाई जाने लगी। भाजपा के कुछ विधायकों के घर में मजमा लगना शुरू हो गया। कुछ उत्साही कार्यकर्ताओं ने तो सरगुजा के एक युवा विधायक को रायपुर बुलवा लिया। उन्हें संभावित मंत्री बताए जाने लगा।
रायपुर जिले के एक युवा विधायक पर तो समर्थक शपथ ग्रहण के लिए सूट सिलवाने के लिए दबाव बनाने लगे। इससेे पुराने विधायकों में भी बेचैनी देखने को मिली। जिन दो सीनियर विधायकों को काफी समय से मंत्री बनने की चर्चा रही है, उन्हें दौड़ से बाहर बताया जाने लगा। इसके बाद भाजपा के छोटे-बड़े नेता, कैबिनेट विस्तार के मसले पर सीएम हाउस और राजभवन के अपने संपर्कों को टटोलने लगे। हल्ला यह है कि प्रदेश के एक बड़े नेता ने हाईकमान से संपर्क कर नए नामों को लेकर आपत्ति जताई है। इसके बाद शनिवार देर रात खबर उड़ी कि कैबिनेट विस्तार टल सकता है। यह सब अब सीएम के विदेश से लौटने के बाद होगा।
इन चर्चाओं के बीच एक खबर यह है कि पार्टी संगठन के एक प्रमुख नेता दिल्ली में हैं। कहा जा रहा है कि कैबिनेट फेरबदल, और अन्य विषयों पर पार्टी हाईकमान से चर्चा चल रही है। इस बैठक के बाद ही सही तस्वीर सामने आने की अटकलें लगाई जा रही है। कुल मिलाकर कैबिनेट विस्तार के मसले पर कोई साफ-साफ कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। यानी तारीख पर तारीख।
सैरगाह में एक खुला आशियाना

राजधानी रायपुर का तेलीबांधा इलाका रोज़ाना बड़ी संख्या में सैर करने वालों से गुलजार रहता है। लेकिन जरा इस तस्वीर को देखिए। गेट के बिल्कुल पास ढेर सारा कचरा जमा है। यह कचरा यहां आने-जाने वालों का नहीं है, बल्कि यहां बसे एक परिवार का है, जिसने लंबे समय से यहीं डेरा डाल रखा है। यह परिवार पार्क में रोजाना फेंके जाने वाले कचरे इक_ा करता है। दिनभर शहर में भी घूम-घूमकर कचरा बीनता है और शाम को वापस यहीं लौट आता है। रात भी इन्हें इसी जगह गुजारनी पड़ती है।
दिलचस्प बात यह है कि यहां रक्तदान शिविर, गीत-संगीत की महफिल जैसे कार्यक्रम अक्सर होते रहते हैं। प्रशासनिक अधिकारी और स्थानीय नेता भी यहां आते हैं। पास में पुलिस सहायता केंद्र भी मौजूद है। बावजूद इसके, शायद ही किसी की निगाह अब तक इस परिवार पर पड़ी हो। शायद उन्हें लगता हो कि इस परिवार को यहीं पड़ा रहने दें, क्या फर्क पड़ता है, साफ-सफाई करके नगर-निगम का काम थोड़ा हल्का ही कर रहे हैं। मगर, दूसरा सवाल यह भी है कि गर्मी, बरसात, ठंड हर मौसम में यही फुटपाथ इनका ठिकाना होता है। क्या अफसरों, नेताओं को नहीं लगता कि इनके लिए छत की कोई व्यवस्था कर दी जाए? कचरा तो फैलता रहेगा, उसकी सफाई भी होती रहेगी।
शादी हुई, मोहब्बत गई
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हिन्दुस्तान में शादीशुदा जिंदगी में रोमांस बड़ी तेजी से बाहर हो जाता है। घर में बच्चे आते हैं, और उनके माँ-बाप के बीच मोहब्बत को मानो घरनिकाला मिल जाता है। अभी सोशल मीडिया, एक्स पर महिलाओं की एक किटी पार्टी का एक वीडियो खिलखिलाते हुए घूम रहा है जिसमें मौजूद तमाम महिलाओं से कहा जा रहा है कि वे अपने पति को फोन लगाएं, और आई लव यू कहें, और जिसे जवाब में आई लव यू नहीं मिलेगा, उसे खेल के बाहर कर दिया जाएगा। इसके बाद एक-एक महिला अपने पति को फोन लगाती है, और आई लव यू कहती है। जवाब में पतियों की जैसी हक्का-बक्का प्रतिक्रिया सुनने मिलती है, उससे लगता है कि पतियों को यह समझ ही नहीं पड़ता कि उनकी पत्नियों का दिमाग क्यों चल गया है! मोहब्बत शादी के बाद इस तरह छोडक़र चली जाती है, है कि नहीं?
ओपी-विरोधी गया, शर्मा-समर्थक को मौका
प्रदेश भाजपा पदाधिकारियों की लिस्ट में भाजयुमो अध्यक्ष रवि भगत का नाम नहीं है। उनकी जगह राहुल टिकरिया को युवा मोर्चा की कमान सौंपी गई है। डीएमएफ के मसले पर वित्त मंत्री ओपी चौधरी के खिलाफ मोर्चा खोलना भगत को भारी पड़ गया। उन पर निष्कासन की तलवार लटकी है।
हालांकि पार्टी के कुछ बता रहे हैं कि रवि भगत के जवाब के बाद उन्हें पार्टी से निष्कासित करने का मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। भगत वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़े रहे हैं, और बाद में वो भाजपा में आए। उन्हें रायगढ़ इलाके में हिंदुत्व का चेहरा माना जाता है। संघ परिवार उनके खिलाफ किसी तरह कार्रवाई के पक्ष में नहीं है। इससे परे नए भाजयुमो अध्यक्ष राहुल टिकरिया बेमेतरा जिला पंचायत के दूसरी बार सदस्य हैं।
टिकरिया विधानसभा चुनाव में भी टिकट के दावेदार थे, लेकिन आखिरी क्षणों में उनकी जगह गोपेश साहू को टिकट मिल गई। चर्चा है कि राहुल टिकरिया को भाजयुमो अध्यक्ष बनवाने में डिप्टी सीएम विजय शर्मा की अहम भूमिका रही है। टिकरिया, विजय शर्मा की टीम में काम कर चुके हैं। वो युवा मोर्चा अध्यक्ष का रोल किस तरह निभाते हैं, यह देखना है।
वन अधिकार पत्रों की ‘चोरी’
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ से जुड़े एक गंभीर मामले पर सोशल मीडिया एक्स पर टिप्पणी की है। उन्होंने लिखा है- कागज मिटाओ, अधिकार चुराओ- भाजपा का नया हथियार।
दरअसल, इस टिप्पणी के साथ उन्होंने एक अखबार ‘द हिंदू’ की कटिंग चस्पा की है। इस रिपोर्ट में आरटीआई के हवाले से कुछ खुलासे किए गए हैं। इसके मुताबिक छत्तीसगढ़ के कई जिलों में वन अधिकार पत्रों की संख्या कम हो चुकी है। कुछ उदाहरण भी दिए गए हैं, जैसे- बस्तर जिले में जनवरी 2024 में व्यक्तिगत वन अधिकार पत्रों की संख्या 37,958 थी, जो मई 2025 तक घटकर 35,180 रह गई। यानी 2,778 पत्र गायब हो गए। इसके अलावा, आईएफआर, यानि व्यक्तिगत दावों की संख्या भी 51,303 से घटकर लगभग 48,000 हो गई। राजनांदगांव जिले में सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (सीएफआरआर) पत्रों की संख्या पिछले साल एक महीने के भीतर 40 से घटकर 20 हो गई, यानी आधी संख्या गायब। ऐसे ही बीजापुर जिले में मार्च 2024 तक 299 सीएफआरआर पत्र वितरित किए गए थे, जो अप्रैल 2024 तक घटकर 297 रह गए। दावा किया गया है कि राज्य सरकार की मासिक प्रगति रिपोर्टों में ये आंकड़े दर्ज किए गए हैं। केंद्र सरकार के एफआरए प्रोग्रेस डेटा में केवल राज्य-स्तरीय जानकारी होती है, जो इस तरह की विसंगतियों को उजागर नहीं करती। मई 2025 तक, छत्तीसगढ़ में 30 जिलों में 4.82 लाख आईएफआर और 4,396 सीएफआरआर पत्र वितरित किए गए थे, जो देश के कुल एफआरए वन क्षेत्र का 43त्न से अधिक है। एफआरए प्रदेश के केवल रायपुर, दुर्ग और बेमेतरा जिलों में नहीं होता है। फॉरेस्ट राइट एक्ट के तहत मिलने वाले पट्टे हस्तांतरित नहीं हो सकते न ही बेचे जा सकते। केवल उत्तराधिकारी के नाम पर बाद में दर्ज किया जा सकता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अफसरों ने यह गड़बड़ी मानी तो है लेकिन कहा है कि इसे सुधार लिया गया है। ग्राम सभा, राजस्व अनुभाग और जिला स्तर के अफसरों के बीच गलत कम्युनिकेशन की वजह से यह गड़बड़ी हुई थी। मगर, यह सवाल बचा हुआ है एक बार दिया गया वन अधिकार पत्र वापस लेने का नियम सिर्फ तब है जब ग्राम सभा इसमें सहमति दे।
चूंकि जानकारी आरटीआई से निकाली गई है, इसलिए इसके गलत होने की गुंजाइश भी कम है। हैरानी इस बात पर हो सकती है कि कांग्रेस का जमीनी स्तर पर सूचना तंत्र कमजोर है। यह गड़बड़ी पिछले 17 महीनों के भीतर हुई है लेकिन कांग्रेस के किसी नेता ने यह मुद्दा नहीं उठाया। सीधे राहुल गांधी ने मुद्दा उठाया है, वह भी अखबार में रिपोर्ट आने के बाद।
यही तो है स्वतंत्रता...
कबीरधाम जिले के मुख्यालय कवर्धा में स्वतंत्रता दिवस के दिन आजादी का बेखौफ प्रदर्शन। सांसद संतोष पांडेय थोड़ी देर में ध्वज फहराने वाले ही थे कि एक लडक़े को अचानक तीन लडक़ों ने एक कुर्सी से उठाकर पीटना शुरू किया। लात-घूंसे बेल्ट चलने लगे। सामने की कतार में बैठी छात्राएं घबराकर इधर-उधर भागने लगीं। पुलिस बल तो वहां मौजूद था। मामला समझ में आते ही जवान दौड़े और उनको अलग कराया। पता यह चला है कि सभी लडक़े एक स्थानीय स्कूल में कक्षा नवमीं के छात्र हैं। सामने की कुर्सी पर कौन बैठे, इस बात पर विवाद हो गया था। इसके बाद जो जानकारी पुलिस ने दी है वह ज्यादा चिंताजनक है। पुलिस के मुताबिक ये सभी बच्चे सूखा नशा के आदी हैं। सूखा नशा यानि, नशीली दवा, इंजेक्शन, सिरप, गांजा- कुछ भी हो सकता है। घटना के वक्त भी उन्होंने नशा किया हुआ था। सभी बच्चे नाबालिग हैं। यानि अभी युवा भी नहीं हुए हैं और वे नशे की चपेट में आ चुके हैं।
पुलिस कमिश्नरी ने चौंका दिया

सीएम विष्णुदेव साय ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में राजधानी रायपुर में कानून व्यवस्था को और बेहतर करने के लिए पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की घोषणा की, तो नौकरशाह भी चौंक गए। डीजीपी अरुण देव गौतम, एडीजी विवेकानंद की तरफ देखकर मुस्कुरा दिए। बताते हैं कि गृह विभाग के आला अफसरों को भी सीएम की इस घोषणा का अंदाजा नहीं था। हालांकि साय के सीएम बनने के बाद से पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की बात होती रही है। मगर इस दिशा में कोई कागजी कार्रवाई नहीं हुई। पिछली भूपेश सरकार में भी इसको लेकर काफी बातें हुई थी।
पुलिस कमिश्नर को मजिस्ट्रियल पॉवर होते हैं। एडीजी या आईजी रैंक के अफसर पुलिस कमिश्नर के पद पर बिठाए जाते हैं। ऐसे में एसपी की भूमिका सीमित होती है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के सीएम रहते पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की गई थी। मध्यप्रदेश में पुलिस कमिश्नर लागू करने के लिए एक से अधिक कमेटियों का गठन भी किया गया था। एक कमेटी रिटायर्ड डीजी संजय राणा की अध्यक्षता में बनी थी। संजय राणा, अविभाजित मध्यप्रदेश में रायपुर के एसपी रह चुके हैं। संजय राणा ने पुलिस कमिश्नर प्रणाली की रूपरेखा तैयार के लिए महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित कई राज्यों का दौरा किया था। उनकी रिपोर्ट के आधार पर ही मध्यप्रदेश में भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, और जबलपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू किए गए।
सीएम के घोषणा के बाद गृह विभाग की सक्रियता बढ़ी है, और मध्य प्रदेश से जानकारी बुलाई जा रही है। अंदाजा लगाया जा रहा है कि 1 नवंबर से रायपुर में पुलिस कमिश्नर की पोस्टिंग हो जाएगी। देखना है आगे क्या होता है।
ठुकराने का हौसला
सरकार के निगम-मंडलों के पदाधिकारियों की एक और सूची जारी होने वाली है। इसमें 50 से अधिक नाम हैं। भाजपा संगठन में जगह पाने से रह गए नेताओं को निगम-मंडलों में एडजस्ट किया जा रहा है।
इन नेताओं को निगम-मंडलों के उपाध्यक्ष और सदस्य के पद पर नियुक्त किया जाएगा। खास बात यह है कि ज्यादातर निगम-मंडलों की माली हालत खराब है। कुछ नेताओं ने निगम-मंडलों में नियुक्ति के संकेत के बाद संभावित पद के बारे में जानकारी जुटाई, तो वे मायूस हो गए। एक मंडल में उपाध्यक्ष का प्रावधान तो है। मगर सुविधाएं नहीं के बराबर है।
नामों पर गलतफहमी
आखिरकार भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों की बहुप्रतीक्षित सूची बुधवार को जारी हो गई। सूची को लेकर पार्टी के अंदरखाने में सकारात्मक प्रतिक्रिया है। हालांकि पार्टी के सीनियर नेता मायूस बताए जा रहे हैं। एक-दो नामों को लेकर कन्फ्यूजन भी पैदा हो गई है। मसलन, पूर्व विधायक चुन्नीलाल साहू को प्रदेश प्रकोष्ठ का सहसंयोजक बनाया गया है।
भाजपा में दो चुन्नीलाल साहू हैं, दोनों ही विधायक रह चुके हैं। एक चुन्नीलाल साहू खल्लारी सीट से विधायक रहे हैं। वो महासमुंद के सांसद भी रहे। मगर 2023 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी, और उनकी जगह रूपकुमारी चौधरी को प्रत्याशी बना दिया।
खल्लारी के चुन्नीलाल साहू ने टिकट कटने के बाद पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार किया, और रूपकुमारी चौधरी की जीत सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई। एक अन्य चुन्नीलाल साहू अकलतरा सीट से विधायक रहे हैं। वो कांग्रेस में थे, और लोकसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा में शामिल हो गए। अब दोनों पूर्व विधायकों में से किसे पदाधिकारी बनाया गया है, इसको लेकर असमंजस की स्थिति रही। बाद में पार्टी दफ्तर से साफ किया गया कि खल्लारी के चुन्नीलाल साहू को सहसंयोजक बनाया गया है।
जिले से अब प्रदेश कोषाध्यक्ष
भाजपा में राम गर्ग को प्रदेश कोषाध्यक्ष बनाया गया है। राम गर्ग की नियुक्ति को लेकर पार्टी के भीतर कानाफूसी हो रही है। वजह ये है कि ज्यादातर लोग उनसे परिचित नहीं हैं। गर्ग मुख्यमंत्री के गृह जिला जशपुर के कांसाबेल इलाके के रहने वाले हैं। वो पहले भी दो बार जिले के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। राम गर्ग को सीएम विष्णुदेव साय के साथ-साथ महामंत्री (संगठन) पवन साय का भी भरोसा हासिल है। इससे पहले तक पार्टी का कोष पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल संभालते रहे हैं। कुछ समय के लिए पाठ्य पुस्तक निगम के पूर्व अध्यक्ष भीमसेन अग्रवाल को कोषाध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया था।
बाद में फिर गौरीशंकर को जिम्मेदारी दे दी गई। अरुण साव के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद नंदन जैन को कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। नंदन को अब प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया गया है। उनकी जगह राम गर्ग पार्टी के कोष का लेखा-जोखा रखेंगे।
सूचना देने के लिए रिसर्च की जरूरत

सरकारी कामकाज में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए आम लोगों को एक बड़ा हथियार मिला है-सूचना का अधिकार अधिनियम। कुछ दिनों के बाद इसे देश में लागू हुए 20 साल हो जाएंगे। जिन 29 राज्यों में सूचना का अधिकार कानून लागू है, उनमें से 7 ऐसे राज्य हैं जहां अक्सर या तो मुख्य चुनाव आयुक्त या सूचना आयुक्तों के पद खाली रहे हैं। इनमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है। इसे लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के सामान्य प्रशासन विभाग से भी सवाल जवाब शुरू किया। जवाब देने से पहले साक्षात्कार की प्रक्रिया शुरू की गई, ऐसा लगा कि खाली पद अब भर ही जाएंगे, मगर कुछ आवेदकों ने हाईकोर्ट में याचिका लगा दी। इसके बाद से नियुक्ति की प्रक्रिया स्थगित हो गई है। प्रदेशभर में बैठे अफसरों को, खासकर जो जन सूचना अधिकारी या अपीलीय अधिकारी हैं, उनके लिए यह बड़ी सुविधाजनक स्थिति है। उन्हें पता है कि केवल एक सूचना आयुक्त को पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी संभालनी पड़ रही है। बस्तर से लेकर जशपुर तक। ऐसे में यदि वे आरटीआई के आवेदनों को रद्दी में भी डाल दें तो उस पर सुनवाई होने में लंबा वक्त लग जाएगा। राज्य सूचना आयोग के पास अपीलों की संख्या हजारों में पहुंच चुकी है। सारे पदों पर यदि आज नियुक्ति हो भी जाए तो उनके निपटारे में, बहुत तेजी से काम करने के बावजूद डेढ़ दो साल तो लग ही जाएंगे। ऐसे में उल्टे सीधे जवाब देने से क्या फर्क पडऩे वाला है?
ऐसा ही एक मामला देखने को मिला है बिलासपुर के राजेंद्र नगर में स्थित हायर सेकेंडरी स्कूल का। आवेदन लगाया गया कि कला संकाय में कितने रिक्त पद हैं, कितने कार्यरत हैं और कितने स्वीकृत हैं। सूचना अधिकारी ने जवाब दिया, आपने जो जानकारी चाही है, वह अनुसंधान की प्रकृति का है, इसलिए प्रदाय किया जाना संभव नहीं है। जानकारी नहीं देने का यह बहाना चौंकाने वाला और हास्यास्पद है। सूचना अधिकारी से पूछा जा सकता है कि एक स्कूल में खाली पद, भरे हुए पद की जानकारी देने में किस तरह के अनुसंधान की जरूरत है? इसके लिए विज्ञान की प्रयोगशाला में घुसना होगा या फिर किसी पीएचडी के गाइड से मदद लेनी होगी? यह एक्ट आम लोगों के प्रति तंत्र की जवाबदेही के लिए है लेकिन इस एक्ट से हर एक अफसर बचना चाहता है। जो बहाने दिए जाते हैं, उनमें अनुसंधान का उल्लेख अपने आप में नायाब है। ऐसा जवाब लिखने वाले सूचना अधिकारी को पता ही होगा कि भ्रामक जवाब देने, टालमटोल करने पर भी दंड का प्रावधान है। मगर, सूचना आयोग के पंशु होने की बात भी उनको मालूम होगी। इसीलिए बिना किसी खौफ के बेसिर-पैर का तर्क देकर सूचना देने से मना किया जा रहा है।
कुछ को कुछ मिलना बाकी

प्रदेश भाजपा की सूची में जगह नहीं मिलने से पार्टी के कई नेता निराश हैं। इन नेताओं ने देर रात तक प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन, पवन साय, और क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल से संपर्क कर अपनी मायूसी का इजहार करते रहे। पार्टी के रणनीतिकारों ने उन्हें आश्वस्त किया है कि निगम मंडलों, और कार्यकारिणी की सूची आने वाली है जिसका इंतजार करना चाहिए। कुछ को तो भरोसा है, मगर कई ऐसे हैं जिन्हें उम्मीद की किरण कम दिख रही है।
पूर्व विधायक रजनीश सिंह को महामंत्री बनाए जाने की चर्चा थी। अब कहा जा रहा है कि उन्हें बिलासपुर जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष या कोई निगम मंडल में अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। पूर्व सीएम डॉ.रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह अब तक प्रदेश उपाध्यक्ष पद पर थे, लेकिन उन्हें जगह नहीं मिली। हल्ला है कि उन्हें मार्कफेड चेयरमेन बनाया जा सकता है। भाजपा के रणनीतिकार अपने फैसलों को लेकर चौंकाते रहे हैं। सूची जारी होने के बाद ही पता चलेगा कि किसको क्या मिलता है।
राज्य से रिश्ता
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने के लिए लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है। इनमें से एक सदस्य मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एमएम श्रीवास्तव हैं। जस्टिस एमएम श्रीवास्तव का छत्तीसगढ़ से नाता रहा है। वे बिलासपुर हाईकोर्ट में वकील, और फिर जज भी बने।
जस्टिस एमएम श्रीवास्तव, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस रहे। फिर वो राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस रहे। वर्तमान में मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस हैं। जस्टिस श्रीवास्तव, छत्तीसगढ़ के पहले एडवोकेट जनरल रविन्द्र श्रीवास्तव के चचेरे भाई हैं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में वकील रहते जस्टिस एमएम श्रीवास्तव ने बस्तर में टाटा, और एस्सार स्टील प्लांट के खिलाफ दायर जनहित याचिका की भी पैरवी की थी।
जस्टिस श्रीवास्तव, सुप्रीम कोर्ट के जज अरविंद कुमार, और कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बीवी आचार्य के साथ जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की पड़ताल करेंगे। कमेटी की रिपोर्ट के बाद ही जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने के प्रस्ताव पर विचार होगा।
क्या करे डॉग बाइट से निपटने के लिए?
आवारा कुत्तों को पकडक़र डॉग शेल्टरों में शिफ्ट करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पशुप्रेमियों का एक बड़ा वर्ग बेहद कठोर मान रहा है। मगर, कुछ ने खुलकर स्वागत किया है। एक प्रतिक्रिया जगदलपुर के मेयर संजय पांडेय का आया है। उनका कहना है कि शहर के कई वार्डों से रोजाना डॉग बाइट के मामले आ रहे हैं। स्कूली बच्चे, बुजुर्ग, और राहगीर दहशत में हैं। समय-समय पर टीकाकरण और नसबंदी अभियान चलाने के बाद भी समस्या दूरनहीं हुई है। नगर निगम के पास संसाधन पर्याप्त है, पर कानूनी बाधाओं के चलते नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश केवल दिल्ली-एनसीआर में नहीं, बस्तर तक लागू होना चाहिए।
छत्तीसगढ़ मानवाधिकार आयोग के हवाले से पिछले साल अगस्त 2024 में जानकारी आई थी कि पिछले एक साल के भीतर छत्तीसगढ़ में 1 लाख 19 हजार 928 डॉग बाइट के मामले सामने आए। फरवरी 2025 में विधायक सुनील सोनी के सवाल पर मुख्यमंत्री ने विधानसभा में बताया था कि सन् 2022 से लेकर जनवरी 2025 तक 51 हजार 730 डॉग बाइट के केस आए।
इसी तरह के आंकड़े राज्य के दूसरे जिलों से हैं। कई घटनाएं बेहद खौफनाक भी रही हैं। हाल ही में बलौदाबाजार जिले की वह घटना तो हमारे सामने ही है, जब 78 बच्चों को रेबीज टीका इसलिये लगवाना पड़ा था, क्योंकि उन्होंने कुत्तों का जूठा किया हुआ मध्यान्ह भोजन कर लिया था। अभी 10 दिन पहले रायपुर में एक व्यक्ति की मौत हो गई। 7-8 माह पहले उसे कुत्ते ने काटा था, मगर उसने रेबीज के टीके नहीं लगवाए थे। पिछले साल दिसंबर में जशपुर में एक 12 साल के बच्चे की मौत हो गई। उसका भी टीकाकरण नहीं हो पाया था। कुछ राज्यों में छत्तीसगढ़ से ज्यादा खराब हालत है। जैसे कर्नाटक से रिपोर्ट है कि इस साल की पहली छमाही, यानि जून 2025 तक डॉग बाइट के करीब 2.80 लाख केस आए, इनमें से 25 की मौत हो गई। केरल में पिछले 5 सालों के भीतर डॉग बाइट के मामले दोगुने हो गए हैं। सन् 2024 में यहां 26 मौते हुईं। कुत्तों के काटने के 3 लाख से अधिक मामले आए।
यह गौर करने की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने सुओ मोटो आधार पर आदेश दिया है। जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश को छत्तीसगढ़ में भी लागू करने की बात हो रही हो तो जनप्रतिनिधियों, नागरिकों की डॉग बाइट के बढ़ते मामलों की चिंता जरूर दिखती है पर उसके पहले क्या वे उपाय किये जा चुके हैं, जो कुत्तों की दहशत और हमलों को कम करने में मददगार हो सकें?
रायपुर में इस समय एक स्टरलाइजेशन सेंटर बैरन बाजार में है, जहां 15-20 कुत्तों की हर दिन औसतन नसबंदी हो रही है, जबकि लक्ष्य हर दिन 30 कुत्तों का है। रायपुर के जोन 8 के तहत आने वाले सोनडोंगरी में एक शेल्टर युक्त स्टरलाइजेशन सेंटर का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है, पर अभी तक वह शुरू नहीं किया गया है। इसकी क्षमता 168 कुत्तों की प्रतिदिन नसबंदी करने की है। बाकी शहरों में इस तरह का कोई इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं किया गया है। कोविड-19 के दौरान बिलासपुर में 10 हजार कुत्तों की नसबंदी का कांट्रेक्ट एक संस्था को सौंपा गया, मगर उसका आंकड़ा 2000 से ऊपर नहीं पहुंचा।
जशपुर जैसी जगह पर बच्चे की मौत एंटी रैबीज टीके के नहीं होने के कारण हो गई तो रायपुर जैसी जगह पर जन-जागरूकता का अभाव है। यहां जिसकी मौत हुई, उसने टीके लगवाने की जरूरत ही नहीं समझी। डॉग बाइट से पीडि़त लोगों के लिए कोई हेल्पलाइन नहीं है कि उन्हें तत्काल सहायता मिल सके। रेबीज में देरी खतरनाक होती है। शायद ही बच्चों और आम लोगों को पता होगा कि कुत्तों के काटने के बाद उस जगह को तुरंत धोकर साफ करना चाहिए और टीके लगवाने के लिए अस्पताल पहुंचना चाहिए। छत्तीसगढ़ ने हाल ही में साफ सफाई को लेकर अवार्ड जरूर हासिल कर लिये हैं, पर कुत्तों को पनपने का वहीं मौका मिलता है जहां खुले में खाना फेंक दिया जाए, या जानबूझकर उनके लिए खाना डाला जाए। बलौदाबाजार के स्कूल की घटना को इससे जोड़ सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू कराने की मंशा भावनात्मक जरूर है, मगर कुत्तों के हमले से बचाव के लिए जो बाकी उपायों को आजमाने के लिए सरकार ने पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं।
प्रदीप गांधी कामयाब

आखिरकार राजनांदगांव के पूर्व सांसद प्रदीप गांधी दिल्ली के प्रतिष्ठित कांस्टीट्यूशन क्लब का चुनाव जीतने में कामयाब रहे। पूर्व केन्द्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी क्लब के अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं। संसद सत्र के बीच कांस्टीट्यूशन क्लब के चुनाव को लेकर मंगलवार को काफी गहमागहमी रही। चुनाव में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सहित अन्य प्रमुख नेताओं ने भी वोट डाले।
कांस्टीट्यूशन क्लब में सांसद, और पूर्व सांसदों के अलावा चुनिंदा नौकरशाह ही सदस्य हैं। मगर वोट डालने का अधिकार सांसदों, और पूर्व सांसदों को ही है। छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला पहले ही खेल सचिव के पद पर निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं। जबकि पूर्व सांसद प्रदीप गांधी क्लब की कार्यकारिणी के लिए चुनाव मैदान में थेे। उन्हें सबसे ज्यादा 507 वोट हासिल हुए। प्रदीप गांधी, और उद्योगपति सांसद नवीन जिंदल समेत कुल 11 कार्यकारिणी सदस्य बने हैं।
संसद में पैसे लेकर सवाल पूछने के आरोप में बर्खास्त सांसद प्रदीप गांधी को भाजपा ने भी पार्टी से निकाल दिया था। बाद में उनकी वापसी हो गई। वो भले ही अब तक पार्टी की मुख्य धारा में नहीं आए हैं, लेकिन सांसदों, और पूर्व सांसदों का उन्हें भरपूर समर्थन मिला है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि कांस्टीट्यूशन क्लब का चुनाव जीतने के बाद प्रदीप गांधी की पार्टी में भी हैसियत बढ़ सकती है। देखना है कि प्रदीप गांधी को क्या फायदा होता है।
रांची जेल में ही खुश हैं हम

छत्तीसगढ़ में हुए शराब घोटाले की नब्ज रांची में दबी हुई है। झारखंड शराब घोटाले के दो घोटालेबाज इन दिनों रांची जेल में बंद हैं। दोनों छत्तीसगढ़ के ही कारोबारी हैं। एक दुर्ग जिले का शराब उत्पादक और बॉटलिंग प्लांट का मालिक है तो दूसरा सप्लायर।
दोनों ने छत्तीसगढ़ में एफएल 10 ए का लाइसेंस लिया था। इसी श्रेणी में ही बड़ा घोटाला हुआ। इस श्रेणी में दो और लाइसेंसी हैं एक भोपाल के डिस्टिलर और दूसरे छत्तीसगढ़ के। मगर आरोपियों की सूची में इन चार में से दो ही हैं ।बहरहाल ईओडब्ल्यू अब इस घोटाले में एक बड़ी गिरफ्तारी का मास्टर स्ट्रोक मारना चाहती है। इसके लिए केंद्रीय कारागार रांची में बंद दोनों कारोबारियों की मदद आवश्यक है।
एजेंसी चाहती है कि दोनों जमानत ले ले और फिर गिरफ्तार कर यहां उनसे पूछताछ कर अपना लक्ष्य साध लिया जाए। पर दोनों ही इसके लिए तैयार नहीं हैं। यहां तक कि रांची कोर्ट ने दोनों की गिरफ्तारी का औचित्य पूछकर वहां की एजेंसी की कार्रवाई पर प्रश्न खड़ा कर रखा है। इसका आशय यह है कि दोनों जमानत याचिका दायर करते हैं तो रिहाई में देर नहीं लगेगी। पर दोनों जमानत लेने तैयार नहीं। जेल में ही खुश हैं। अब उनके रुख पर ही छत्तीसगढ़ में जांच एजेंसी की आगे की रणनीति बनेगी या काम करेगी।
अब आईटीआर रिफंड के नाम पर ठगी
ईडी, सीबीआई के नाम पर डिजिटल अरेस्ट करने ठगों ने इनकम टैक्स रिटर्न जमा करने के इन दिनों में आपके खाते खाली करने का एक नया पैंतरा निकाला है। इसलिए रिटर्न फाइल करने में जल्दबाजी न बरतें। ठगों और हैकर्स द्वारा आनलाइन भेजे ऐसे कथित नोटिस को गंभीरता से देखें पढ़े। वैसे आपको बता दें कि एक शब्द की स्पेलिंग मिस्टेक को पकड़ लेंगे तो ठगी से बचा जा सकता है। खासकर जिन लोगों ने आयकर रिटर्न दाखिल कर दिया है। उन्हें एक ई-मेल भेज कहा जा है कि आपके कर की गणना में त्रुटि हुई है और आपको रिफंड जारी किया जाना है, कृपया इसे अनदेखा न करें।
यह हैकर्स द्वारा फैलाया गया है। जैसे ही आप इस लिंक पर क्लिक करेंगे, यह आपको नेट बैंकिंग लॉगिन पेज पर ले जाएगा और जैसे ही आप इसमें लॉग इन करेंगे, आपका बैंक खाता हैक हो जाएगा।
सच्चाई यह है कि ऐसे ईमेल को अनदेखा करें। आयकर विभाग आपको रिफंड/देय राशि के बारे में एक उचित नोटिस के माध्यम से सूचना भेजेगा।
भाजपा की टीम
भाजपा में टीम किरण देव की सूची को लेकर ऊहापोह की स्थिति है। प्रदेश अध्यक्ष नियुक्ति के बाद से किरण देव जल्द से जल्द सूची जारी कराने के लिए प्रयासरत हैं। पिछले सप्ताह रायपुर से दूर दिल्ली में बैठक कर बड़े नेताओं ने सूची को अंतिम रूप दे दिया था। और फिर राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष, के जरिए राष्ट्रीय अध्यक्ष से अनुमोदन के लिए भेजी गई। उम्मीद और दावा जताया जा रहा था कि रविवार को घोषणा कर दी जाएगी। लेकिन खबर है कि सूची फिर वेटिंग में डाल दी गई है। इस बार तीन में से एक महामंत्री को लेकर अटक गई है।
राजनांदगांव कोटे के यह महामंत्री हाईकमान की भी पसंद बताए जा रहे हैं। प्रदेश नेतृत्व ने ‘ना’ कह दिया है। दरअसल, प्रदेश नेतृत्व नहीं चाहता है कि एक ही जाति के दो महामंत्री हो जाए। और तो और इसी वर्ग से अध्यक्ष स्वयं हैं हीं। बस इसी एडजस्टमेंट की वजह से पूरी सूची रूक गई है।
खबर तो यह भी है कि निगम मंडल में नियुक्त दो महामंत्री, दोहरे प्रभार में बने रहने भी जोर लगा रहे हैं। नई टीम में कार्यालय प्रभारी से लेकर मीडिया प्रकोष्ठ, प्रवक्ता भी बदले जा रहें। पार्टी के लिए कानूनी लड़ाई लडऩे वाले एक प्रभारी को प्रवक्ता बनाया जा रहा है। यानी वे अब खुलकर सब कुछ बोल- बता सकेंगे। अब सूची आने के बाद ही खुलासा हो पाएगा। ठाकरे परिसर के निकटवर्तियों का कहना है कि सूची 15 अगस्त की पूर्व संध्या पर आ सकती है।
मूलनिवासी, वनवासी, या आदिवासी?

प्रदेश की भाजपा सरकार ने विश्व आदिवासी दिवस (9-10 अगस्त) पर कोई सरकारी कार्यक्रम नहीं किया। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि आरएसएस के आदेश के चलते इस दिन की उपेक्षा की गई है। यह आरोप नया नहीं है। पिछले साल भी यही आरोप था। 2024 में मुख्यमंत्री को कुछ संगठनों ने कार्यक्रमों में आमंत्रित किया था, लेकिन उसमें वे शामिल नहीं हुए। उस दिन वे डिप्टी सीएम अरुण साव की बहन के यहां, उनके बेटे के आकस्मिक निधन पर संवेदना प्रकट करने गए थे। दरअसल, यहां विचारधारा और दृष्टिकोण का प्रश्न आ गया है, जिसके ऐतिहासिक संदर्भ वैश्विक स्तर पर जुड़े हैं।
9 अगस्त 1982 को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उप-समिति के अधीन यूएन वर्किंग ग्रुप ऑन इंडिजिनस पॉपुलेशंस की पहली बैठक हुई थी। इस बैठक की स्मृति में 1994 में, संयुक्त राष्ट्र ने 9 अगस्त को वर्ल्ड इंडिजेनस डे के रूप में मनाने की घोषणा की। उद्देश्य था-आदिवासियों के भूमि और सांस्कृतिक अधिकारों का संरक्षण, उनकी मौलिक स्वतंत्रता और पहचान बनाए रखना, भेदभाव समाप्त करना तथा शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार लाना। इसकी पृष्ठभूमि उन ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ी है, जब ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे देशों में औपनिवेशिक ताकतों ने मूल निवासियों पर हमले किए, नरसंहार किया, उनकी जमीन और संसाधनों पर कब्जा कर लिया और उनके अस्तित्व को संकट में डाल दिया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसका सहयोगी संगठन वनवासी कल्याण आश्रम इस दिन को भारत के लिए अप्रासंगिक मानता है। उनका तर्क है कि भारत के सभी लोग, जिनमें वनवासी भी शामिल हैं- मूल निवासी हैं और सभी हिंदू हैं। यह दिवस पश्चिमी देशों के औपनिवेशिक अपराध बोध से जुड़ा मामला है, जिसका भारत से कोई संबंध नहीं। उनके अनुसार भारत में आदिवासी (आरएसएस के शब्दों में वनवासी) हमेशा मुख्यधारा का हिस्सा रहे हैं, इसलिए किसी अलग विश्व आदिवासी दिवस की आवश्यकता नहीं।
आरएसएस की विचारधारा में आदिवासी शब्द को अलगाववादी मानकर नकारा गया है। 2020-21 में आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में प्रकाशित लेखों में कहा गया कि यह दिवस उनकी मूल मान्यता, आदिवासियों को वनवासी मानने और उन्हें हिंदू समाज का अभिन्न अंग मानना- के विपरीत है। 2024 में वनवासी कल्याण आश्रम के अध्यक्ष सतीश कुमार ने तो 9 अगस्त के आयोजनों को ईसाई मिशनरियों की साजिश करार दिया और कहा कि यह धर्मांतरण को बढ़ावा देता है।
विश्व आदिवासी दिवस के विकल्प के रूप में आरएसएस, भाजपा और सहयोगी संगठन बिरसा मुंडा की जयंती (15 नवंबर) पर जनजातीय गौरव दिवस मनाते हैं। मोदी सरकार ने इसे 2021 में आधिकारिक रूप से घोषित किया था।
इस प्रकार, कांग्रेस के आरोप अपनी जगह हैं, लेकिन 9 अगस्त की अनदेखी आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों की विचारधारा और हिंदुत्व के दृष्टिकोण से जुड़ा मामला है।
बहस इस पर जरूर हो सकती है कि क्या जनजातीय गौरव दिवस, 9 अगस्त का विकल्प है? गौरव दिवस भारतीय इतिहास व स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समुदाय के योगदान को याद करने के लिए है। विश्व आदिवासी दिवस, उनकी पहचान, अस्तित्व और संसाधनों को बचाए रखने के लिए है। दोनों ही दिन एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं। पर राजनीति ऐसा होने नहीं देगी।
डैमेज कंट्रोल की कोशिश में केरल भाजपा
केरल में इस साल के आखिर में स्थानीय निकाय चुनाव और अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। भाजपा लंबे समय से हिंदी बेल्ट से बाहर, खासकर दक्षिण और पूर्वोत्तर में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है। जहां धार्मिक ध्रुवीकरण और धर्मांतरण जैसे मुद्दे असर नहीं करते, वहां भाजपा बहुलवादी रणनीति अपनाती है। नॉर्थ-ईस्ट में सरकारें बनाना और पश्चिम बंगाल में दूसरे नंबर पर आना इसी रणनीति से संभव हुआ है।
केरल में ईसाई समुदाय करीब 18 प्रतिशत है और राजनीति में उनकी भूमिका काफी अहम मानी जाती है। यहां भाजपा का अब तक असर सीमित रहा, लेकिन पिछली लोकसभा में पार्टी ने त्रिसूर सीट जीतकर इतिहास रच दिया और वोट शेयर 16.68त्न तक पहुंच गया। पार्टी यहां मेहनत कर ही रही थी कि छत्तीसगढ़ में एक घटना ने मुश्किल खड़ी कर दी। केरल की दो नन, वंदना फ्रांसिस और प्रीति मेरी, को धर्मांतरण और मानव तस्करी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
गिरफ्तारी के बाद अजीबोगरीब स्थिति देखने को मिली। छत्तीसगढ़ के भाजपा सांसद इस मुद्दे को शून्यकाल में उठाकर धर्मांतरण और मानव तस्करी से जोड़ते दिखे तो केरल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि दोनों नन निर्दोष हैं। वे खुद दौड़े-दौड़े छत्तीसगढ़ पहुंच गए। चर्चा तो यह भी है कि इस मसले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सीधे दखल दिया। जमानत तो मिल गई, लेकिन 9 दिन जेल में रहने से केरल के ईसाई समुदाय में नाराजगी फैल गई।
केरल की मीडिया पर नजर डालें तो पता चलता है कि वहां इस मामले को बड़े पैमाने पर कवर किया गया। जैसे ही गिरफ्तारी हुई, मुस्लिम संगठनों जैसे एसडीपीआई और जमात-ए-इस्लामी ने भाजपा को अल्पसंख्यक विरोधी बताकर माहौल बनाने की कोशिश की। जवाब में भाजपा ने कहा कि ये संगठन ईसाई आंदोलन में घुसपैठ कर रहे हैं और राजनीतिक इस्लाम से चर्चों को खतरा है। भाजपा को डर है कि ईसाई-मुस्लिम गठजोड़ उसके किए कराये पर पानी न फेर दे।
केरल की राजनीति में चर्चों का बड़ा प्रभाव है। ननों की रिहाई के बाद कई बिशप और गैर-कैथोलिक संप्रदायों के पादरी भाजपा मुख्यालय पहुंचे और आभार जताया। पार्टी भी वहां पर ईसाई पादरियों से मिलकर राष्ट्रीय नेतृत्व की भूमिका को सकारात्मक बता रही है। भाजपा नेता चर्चों को बता रहे हैं कि केवल भाजपा ने ननों की जमानत के लिए ईमानदार कोशिश की। मतलब यह कि सीपीआई (एम) के नेता यहां आए जरूर पर ननों को छुड़ाना उनसे संभव नहीं हुआ। केरल में एक आर्कबिशप जोसेफ पंप्लानी ने भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व की सराहना की, जबकि एक दूसरे बिशप पॉली कन्नूक्कादन ने केंद्र और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकारों की आलोचना की। इस बीच, भाजपा ने अपनी कोर कमेटी में फेरबदल कर कई ईसाई नेताओं को जगह दी, जिनमें मध्यप्रदेश से भेजे गए राज्यसभा सदस्य और केंद्रीय मंत्री जॉर्ज कुरियन भी शामिल हैं। साथ ही, ईसाई समुदाय से जुडऩे के लिए चल रहे स्नेह यात्रा अभियान को तेज करने का फैसला किया गया।
कुल मिलाकर, यह एक दिलचस्प वाकया है कि एक राज्य की स्थानीय राजनीति ने राष्ट्रीय स्तर की रणनीति को कैसे हिला दिया। अगर भाजपा इस डैमेज कंट्रोल में सफल रही, तो केरल में उसकी संभावनाएं बढ़ेंगी, वरना आगामी चुनावों में नुकसान झेलना पड़ सकता है।
महादेव का प्रकोप जारी है...
सीबीआई महादेव ऑनलाइन सट्टा केस की पड़ताल कर रही है। चर्चा है कि करीब 50 से अधिक लोगों को सीबीआई ने नोटिस भी जारी किया है। सभी से एक-एक कर बयान लिए जा रहे हैं।
दुर्ग के एक ज्वेलर्स संचालक को भी पूछताछ के लिए तलब किया गया है। ऐसी चर्चा है कि सट्टेबाजी का पैसा ज्वेलर्स संचालक के माध्यम से राजनेताओं, कारोबारियों, और पुलिस अफसरों तक पहुंचा है। पांच आईपीएस अफसरों के नाम चर्चा में रहे हैं। सभी के यहां जांच-पड़ताल भी हुई थी। मगर ‘महादेव’ से कोई साक्ष्य मिलने की बात सामने नहीं आई है।
सीबीआई ने ईडी, और ईओडब्ल्यू-एसीबी की अब तक की कार्रवाई के आधार पर आगे बढ़ रही है। चर्चा है कि सीबीआई ने उन्हीं लोगों को पूछताछ के लिए बुलाया है, जिनके यहां पहले भी कार्रवाई हो चुकी है।
बताते हैं कि ‘महादेव’ का पैसा म्यूल अकाउंट के जरिए प्रभावशाली लोगों तक पहुंचा है। इस दौरान रायपुर, और दुर्ग में काफी प्रापर्टी के सौदे हुए हैं। सारे रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं। हल्ला है कि आने वाले दिनों में सीबीआई कुछ प्रभावशाली लोगों को दबोच सकती है। देखना है क्या कुछ होता है।
गौवंश की मौतें, दोषियों को फिक्र नहीं
हाईवे पर भारी वाहनों की टक्कर से गौवंश की लगातार हो रही मौतों ने सरकार से लेकर आम नागरिक तक, सभी को विचलित कर दिया है। शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता हो जब ये मूक पशु सडक़ों पर अपनी जान न गंवा रहे हों। कई बार तो यह मौतें समूह में हो रही हैं।
यदि बिलासपुर जिले की बात करें तो मात्र एक महीने में 100 से अधिक मवेशी अपनी जान गंवा चुके हैं। केवल 15 दिनों में हुई तीन-चार बड़ी दुर्घटनाओं में 80 से ज्यादा मवेशियों की मौत हुई। इन घटनाओं ने हाईकोर्ट का भी ध्यान खींचा, जिसके बाद अदालत ने राज्य सरकार और सभी जिलों के कलेक्टरों को कड़े कदम उठाने के निर्देश दिए।
लगभग सभी जिलों में कलेक्टरों ने इस विषय पर बैठक की और विभिन्न उपाय शुरू किए। इनमें सडक़ों से पशुओं को खदेडऩा, कांजी हाउस में बंद करना, उनके मालिकों की पहचान कर कार्रवाई करना भी शामिल है। कुछ पशुपालकों की पहचान गांववालों की मदद से हुई और उनकी गिरफ्तारी भी हुई। लेकिन, हुआ यह कि सभी आरोपी थाने से ही मुचलके पर रिहा कर दिए गए। क्यो?
दरअसल, कलेक्टरों ने तो बीएनएस की धारा 325 (पशु क्रूरता अधिनियम) के तहत कार्रवाई के निर्देश दिए हैं, लेकिन पुलिस कुछ तकनीकी कारणों से ऐसा नहीं कर पा रही है। इस धारा के तहत यह साबित करना आवश्यक है कि पशु के मालिक ने उसके साथ क्रूरता की है। शारीरिक चोट पहुंचाई है या हिंसक व्यवहार किया है। जबकि सडक़ पर छोड़े गए मवेशियों के मामले में मालिक की गलती मुख्यत: लापरवाही ही है। यदि सडक़ पर घूमते-फिरते मवेशी वाहनों की चपेट में आकर मारे जाते हैं, तो इसके लिए वाहन चालक ही जिम्मेदार है, जबकि मालिक पर केवल लापरवाही, बीएनएस की धारा 291 का मामला बनता है। इस धारा में अधिकतम छह महीने की कैद और 5,000 रुपये जुर्माने का प्रावधान है, और मुचलके पर थाने से ही रिहाई हो जाती है। इसलिए, मवेशी मालिकों की गिरफ्तारी की खबर सुनने पर भले ही लगे कि कोई ठोस कदम उठाया जा रहा है, लेकिन हकीकत में इसका उन पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा।
अब बात करते हैं, इन मवेशियों को कुचलकर भागने वाले चालकों की। ये दुर्घटनाएं अधिकतर रात में होती हैं, और भारी वाहनों का पता ही नहीं चलता। हाल ही में मनेंद्रगढ़ में एक ट्रेलर को जब्त किया गया और उसका चालक अनूपपुर से गिरफ्तार हुआ। चाहे मामला मवेशी को कुचलने का हो या इंसान को—कानून एक ही है। बीएनएस के तहत, यदि चालक दुर्घटना के बाद बिना सूचना दिए भाग जाए, तो धारा 106(2) के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। इसमें 10 साल की कठोर कैद और 7 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन इस धारा के खिलाफ देशभर के ट्रांसपोर्टरों ने हड़ताल की, जिसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री ने घोषणा की कि इसे फिलहाल लागू नहीं किया जाएगा। इस कारण, यह प्रावधान देशभर में स्थगित है। फिलहाल ऐसे मामलों में धारा 106(1) के तहत कार्रवाई की जा रही है, जो पहले की आईपीसी की तरह अपेक्षाकृत नरम है। पांच साल की कैद और कुछ हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान, साथ ही निचली अदालत से आसानी से जमानत मिल जाती है। भारी वाहन चालकों के लिए यह कोई नई बात नहीं है।
कहने का तात्पर्य यह है कि केवल कानूनी कार्रवाई की चेतावनी देकर न तो मवेशियों को सडक़ों से हटाया जा सकता है और न ही उनकी जान बचाई जा सकती है। इसके लिए लोगों में ही जागरूकता लाना जरूरी है। इसी क्रम में, छत्तीसगढ़ सरकार ने कल गौधाम योजना शुरू की है। यह योजना पिछली सरकार की योजना से अलग है और विशेष रूप से ऐसे ही घुमंतू मवेशियों पर केंद्रित है। उम्मीद है कि इसके बाद सडक़ पर गौवंश की संख्या कम होगी और उनकी जान बच सकेगी।
ऐसी शिक्षा मिल रही अंग्रेजी की
प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक शालाओं में बच्चों को अंग्रेजी की आरंभिक शिक्षा दी जाती है और उनको सामान्य ज्ञान भी पढ़ाया जाता है। मगर, जो शिक्षक इस काम के लिए पढ़ा रहे हैं उनकी योग्यता क्या है? बलरामपुर जिले के कुसमी ब्लॉक के घोड़ासोत स्कूल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब चल रहा है। एक ब्लैक बोर्ड दिख रहा है जिसमें शिक्षक बड़े आत्मविश्वास के साथ 11, 18 और 19 की अंग्रेजी में गलत स्पेलिंग लिख रहे हैं। यहां के हेडमास्टर को बलरामपुर जिले के कलेक्टर, एसपी यहां तक कि जिला शिक्षा अधिकारी का नाम नहीं मालूम है। मुख्यमंत्री का नाम भी उनको नहीं मालूम। ऐसी शिक्षा बच्चों की हो रही है, तब सवाल उठता है कि गलत पढ़ाना जरूरी है या कुछ भी नहीं पढ़ाना। ऐसे शिक्षकों ने पता नहीं कैसे इन्होंने सरकारी नौकरी की कठिन परीक्षा पास कर ली, जबकि उनका सामान्य ज्ञान ही औसत से कमजोर है। राष्ट्रीय सर्वेक्षणों में बार-बार छत्तीसगढ़ की प्रारंभिक शिक्षा की रैंकिंग ऐसे ही नीचे नहीं आती है। यहां कई बार परखा जा चुका है कि पहाड़ा, गिनती तक बच्चों को नहीं आता। बच्चों का मजाक, ऐसे शिक्षकों की वजह से बन रहा है। शालाओं में क्या हो रहा है यह जानने के लिए संकुल, ब्लॉक से लेकर हर स्तर पर मॉनिटर करने वाले अधिकारी नियुक्त हैं, पर इस वायरल वीडियो को देखने से साफ पता चलता है कि दूरदराज के आदिवासी इलाकों में जो स्कूल बने हैं, उनमें क्या हो रहा है, यह झांकने-देखने के लिए कोई नहीं पहुंचता। सोशल मीडिया पर इस वीडियो को लेकर प्रतिक्रिया आई है, जिनमें कुछ लोगों ने तो मांग की है कि ऐसे शिक्षकों की ढूंढ-ढूंढ कर परीक्षा ली जाए और अध्यापन में विफल पाए जाते हैं तो उनको सेवा से बाहर कर दिया जाए। इन्हें जो मोटी-मोटी तनख्वाह दी गई है, उसे भी वसूल किया जाए।
विधायकों के घर बढऩे लगी भीड़

भाजपा के कुछ नए-नवेले विधायकों के यहां एकाएक भीड़ बढ़ गई है। दरअसल, पार्टी के अंदरखाने में चर्चा है कि कैबिनेट की रिक्त दो सीटों पर नए चेहरों को जगह मिल सकती है। सोशल मीडिया में कुछ विधायकों के नाम संभावित मंत्री के रूप में चलाए भी गए हैं। इसके बाद से दावेदार विधायकों के निवास पर पार्टी कार्यकर्ताओं का मजमा लगना शुरू हो गया है।
दिलचस्प बात यह है कि एक विधायक को लेकर अभी से यह धारणा बन गई है कि उनकी टिकट काटकर पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में किसी नए को प्रत्याशी बनाएगी। इस विधायक के यहां क्षेत्र के लोगों ने भी आना-जाना कम कर दिया है। मगर, मंत्री पद के लिए जाति समीकरण में उक्त विधायक को फिट माना गया है, और पिछले दस दिनों से विधायक की पूछपरख काफी बढ़ गई है।
कैबिनेट का विस्तार कब होगा, यह अभी तय नहीं है। मगर, एक बात तय मानी जा रही है कि एक मंत्री बस्तर से बनाए जाएंगे। पार्टी के कुछ लोग 15 अगस्त के बाद कैबिनेट विस्तार का अंदाजा लगा रहे हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो कि ये दावा कर रहे हैं राज्योत्सव के आसपास ही कैबिनेट विस्तार होगा। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
राखी पर शराब, एक के साथ एक पैग फ्री

एक तरफ प्रदेश भर की बहनें अपने भाइयों की स्वस्थ और लंबी उम्र के लिए शराबबंदी की मांग कर रही हैं। वहीं शराब की कंपनियां और बार रेस्टोरेंट वाले राखी पर भी बिजनेस करने से बाज नहीं आ रहे। हालांकि शराब भ_ी और बार वाले पहले भी ऐसे आफर देते रहे हैं लेकिन वह पर्वों पर नहीं, मार्च अंत में अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए । उसमें भी शराब के साथ चखना फ्री रहता था।
नवा रायपुर के एक बार संचालक के ऐसे ही बिजनेस आफर से बवाल मचा हुआ है। आईपी क्लब ने आस्था और संस्कार के पर्व राखी के मौके पर एक पैग खरीदने पर दूसरा फ्री (बाय वन गेट वन फ्री) का आफर दिया है। इस आफर पर बार संचालक ने कहा कि शराब पीकर,भाई बहन अपने प्यार के पावर को डबल कर सकते हैं। यह आफर शराब के साथ सभी तरह के पेय पर दिया है। यह आफर देकर बार संचालक ने नैतिकता खोने के साथ भीड़ के विरोध को भी मोल ले लिया है। इस आफर पर क्लब में आज रात कार्यक्रम भी आयोजित किया है।
इस कार्यक्रम के पोस्टर सोशल मीडिया पर वायरल होते ही विवाद खड़ा हो गया है। बजरंग दल ने बार संचालक और प्रशासन को आयोजन रद्द न करने पर बड़े विरोध के लिए तैयार रहने कहा है। वैसे यह क्लब पहले भी विवादों में रहा है। नवंबर 21 में यहां फायरिंग हो चुकी है। तो अभी अप्रैल में ही पुलिस ने आधी रात इस क्लब में लड़कियों को पकड़ा था।
बृजमोहन तो बृजमोहन है
भाजपा में सर्वाधिक 8 बार के विधायक रहे रायपुर के सांसद बृजमोहन अग्रवाल दिल्ली की राजनीति में रम गए हैं। उनकी लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला, और कई केन्द्रीय मंत्रियों से नजदीकियां हैं। यद्यपि वो पहली बार सांसद बने हैं, लेकिन उन्हें दिल्ली के लाजपत नगर में बड़ा बंगला आबंटित हुआ है। बृजमोहन भी दिल्ली में उसी तरह पहचान बनाने में लगे हैं, जो कभी दिवंगत विद्याचरण शुक्ल की रही है।
दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल जब पॉवर में थे, तो छत्तीसगढ़ वासियों के लिए दिल्ली में उनका बंगला हमेशा खुला रहता था। वो बिना किसी भेदभाव के यथासंभव मदद किया करते थे। बृजमोहन के यहां भी प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से लोग पहुंच रहे हैं, और दिल्ली में उनकी टीम यथासंभव मदद भी कर रही है। उनके बंगले में किचन 24 घंटे खुला रहता है। खुद बृजमोहन व्यक्तिगत तौर पर सत्कार करने में पीछे नहीं रहते हैं।
पिछले दिनों प्रदेश युवा मोर्चा के पदाधिकारी दिल्ली पहुंचे, तो वो प्रदेश के एक सीनियर सांसद के यहां भी गए। सांसद महोदय के यहां खाने के लिए थोड़ी खिचड़ी मिली, क्योंकि सांसद महोदय डाइटिंग पर हैं। मगर बाद में ये पदाधिकारी बृजमोहन के यहां गए, तो उनके लिए शानदार खाना तैयार था। पदाधिकारियों के लिए विशेष मिठाई मंगाई गई थी। खुद बृजमोहन खाने की टेबल पर उनसे बतियाते रहे। बृजमोहन के आतिथ्य सत्कार से युवा मोर्चा के पदाधिकारी काफी प्रभावित रहे, और वो पार्टी के भीतर बृजमोहन का गुणगान करने में थक नहीं रहे हैं।
बृजमोहन की केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से काफी बेहतर संबंध हैं। वैष्णव, बृजमोहन की अनुशंसाओं को खास तवज्जो देते हैं। उनकी अनुशंसा पर जबलपुर के लिए नई ट्रेन शुरू हुई है। चर्चा है कि आने वाले दिनों में रायपुर को विश्व स्तरीय रेलवे स्टेशन बनाने सहित कई और कार्यों को मंजूरी मिल सकती है। मगर रायपुर विशेषकर के लोग मंत्री नहीं रहने से मायूस हैं। इसकी वजह यह है कि सरकार के तमाम मंत्री नवा रायपुर शिफ्ट हो गए हैं। वो बृजमोहन जैसे सुलभ नहीं रह गए हैं। ऐसे में उनकी कमी तो महसूस हो ही रही है।
संगठन तक पहुंची पार्षदों की बात

रायपुर नगर निगम के नए नवेले कई भाजपा पार्षदों के खिलाफ शिकायतें पार्टी संगठन को पहुंची है। एक महिला पार्षद के खिलाफ शिकायत यह है कि उनके पति कॉलोनी में सब्जी बेचने वालों तक से उगाही कर रहे हैं।
दो-तीन पार्षदों के खिलाफ शिकायत आई है कि वो अपने वार्ड में हो रहे निजी निर्माण कार्यों पर हस्तक्षेप करते हैं, और मालिकों को निगम से नोटिस भिजवा देते हैं। फिर उनसे वसूली करते हैं। वार्डों में सफाई-बिजली का बुरा हाल है। पिछले दिनों रायपुर के विधायकों, और शहर जिले के पदाधिकारियों की एक बैठक में पार्षदों के कार्यप्रणाली की खूब आलोचना हुई।
विधायकों की मौजूदगी में शहर जिले के एक बड़े पदाधिकारी ने कहा बताते हैं कि पार्षदों ने सफाई ठेकेदारों पर दबाव बना लिया है, और अपने लिए राशि फिक्स कर रखी है। इसका नतीजा यह है कि ज्यादातर वार्डों में गिनती के ही सफाई कर्मी काम कर रहे हैं। एक-दो पार्षदों को बुलाकर चेताया भी गया है, लेकिन इसका कोई असर नहीं दिख रहा है।
तकनीकी सोसायटी में कुछ भी ठीक नहीं
सरकार के बजट से चलने वाले राज्य के एक तकनीकी प्रोद्योगिकी सोसायटी में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा। सब कुछ अधिकारियों की मनमर्जी पर चल रहा है। सरकार के दिशा निर्देश पर चलने के लिए 14 मंत्रियों की सहभागिता वाली भारी भरकर समिति का प्रावधान है। और नीतिगत निर्णयों के लिए 14 सदस्यों की गवर्निंग काउंसिल और दैनंदिन कार्यों के लिए कार्यपालिक मंडल बनाया गया है। बाईलाज अनुसार गवर्निंग काउंसिल की एक वर्ष में कम से कम तीन और कार्यपालिक मंडल 4 बैठक अनिवार्य है।
हकीकत यह है कि कांग्रेस सरकार आने और विदा होने के बाद गवर्निंग काउंसिल की बैठक 2018 और कार्यपालिक मंडल की बैठक 2020 के बाद से नहीं हुई है। इतना ही नहीं सोसायटी में कार्यपालक समिति भी 2020 से आज तक गठित नहीं की जा सकी है। इस दौरान सोसायटी ने सैकड़ों करोड़ के तकनीकी काम मंजूर किए। इनमें से कुछ हुए कुछ भविष्य के गर्भ में जा चुके हैं। कब पूरे होंगे पता नहीं। इसी तरह से भर्तियां भी साहबों के अपने बनाए नियमों से मनमाने तरीके से बदस्तूर जारी है।
समस्त भर्ती 2016 में बनाए गए सेटअप और भर्ती नियमों और तय किए गए अहर्ता के अनुसार होनी थी? पर पिछले 8 महीनों में जितनी भी भर्ती हुई है उनमें इस भर्ती नियम और अहर्ता को बदल दिया गया है। इन्हें बिना वित्त विभाग की स्वीकृति, गवर्निंग काउंसिल और कार्यपालिक मंडल के अनुमोदन के नहीं बदला जा सकता।
2018 में कांग्रेस सरकार आने के बाद अधिकारियों द्वारा जानबूझकर गवर्निंग काउंसिल की एक भी बैठक नहीं होने से सारा कार्य अधिकारियों की मनमर्जी चल रही है। मंत्रिस्तरीय संचालन समिति भी अफसरों की करतूतों से अवगत नहीं हो पा रही है और अधिकारियों के हिसाब से ही अनीतिगत निर्णय भी लिए जा रहे हैं। फलस्वरूप मानव संसाधन की भर्ती, वित्तीय व्यय की स्वीकृति, परियोजनाओं की प्रगति संबंधी कार्यवाही और अन्य सभी दैनंदिनी कार्य भी कार्यपालक समिति में रखे बगैर सीधे किए जा रहे हैं। इससे सोसायटी में अनेक अनियमितताओं की खबरें आ रही है।
विकास की राह में छलांग- स्टाप डेम बना पुल

कांकेर जिले के बांसकुंड और उसके आश्रित तीन गांव- ऊपर तोनका, नीचे तोनका और चलाचूर का यह मामला छत्तीसगढ़ के सैकड़ों गांवों की हकीकत सामने लाती है, जहां विकास अब भी छलांग लगाकर ही पहुंचता है।
मानसून आते ही जब चिनार नदी उफान पर होती है, तब इन गांवों के लोग, चाहे वे स्कूल जाते बच्चे हों या राशन लेने वाले बुजुर्ग, जान जोखिम में डालकर स्टापडेम के 16 पिलरों पर कूदते-फांदते नदी पार करते हैं। पुल है नहीं, तो स्टाप डेम के पिलरों पर ही छलांग लगाकर नदी पार की जा रही है। वैसे कई स्टाप डेम छत्तीसगढ़ में दिख जाएंगे, जिनके ऊपर ग्रामीणों की सुविधा के लिए कम भार वाले पुल बनाए गए हैं। मगर, पता नहीं यहां इसकी जरूरत क्यों नहीं समझी गई। यहां के ग्रामीणों के लिए ये पिलर जिंदगी की बाधाओं को दूर करने के काम आ रहे हैं। स्कूली बच्चे बस्ता पीठ पर टांगे पिलरों पर उचकते हुए स्कूल जाते हैं। दो गांवों में सिर्फ प्राथमिक स्कूल हैं। छोटे बच्चों को नदी के उस तरफ पढऩे का मौका मिल जाता है, जबकि मिडिल स्कूल और राशन दुकान तक पहुंचने के लिए नदी पार करना अनिवार्य है। जनप्रतिनिधियों ने ध्यान नहीं दिया, शायद अब दें क्योंकि इसका वीडियो पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर तैर रहा है।
शिक्षक नहीं दे पाने की सजा प्राचार्यों को
छत्तीसगढ़ में वर्षों से शिक्षकों की भारी कमी है। स्कूलों में गणित, विज्ञान, अंग्रेज़ी जैसे विषयों के शिक्षक नहीं हैं, पर सरकार अब तक इस मूल समस्या को हल नहीं कर पाई है। युक्तियुक्तकरण से इतना जरूर हुआ कि 56 हजार रिक्त पदों की संख्या को घटाकर 26 हजार तक लाने में सफलता मिल गई है। बेमेतरा जिले में हाल ही में शिक्षकों की मांग को लेकर छात्र-छात्राओं ने प्रदर्शन किया। सडक़ भी जाम किया और शिक्षा विभाग के जिला व ब्लॉक दफ्तरों को घेरा। अब इसका इलाज यही था कि यथासंभव शिक्षकों की नियुक्ति के प्रयास किए जाते। लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी ने आंदोलन को रोकने का नायाब तरीका निकाला है। उन्होंने ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों, प्राचार्यों को पत्र लिखकर चेतावनी दी है कि ऐसे आंदोलन हुए तो उनका वेतन कटेगा। छात्रों को आंदोलन से रोकें, शासन के स्तर पर खाली पदों पर नियुक्ति का प्रयास किया जा रहा है। क्या पता जिला शिक्षा अधिकारी पर भी ऊपर के अफसरों का दबाव होगा, क्योंकि शिक्षा विभाग से जुड़ा एक एक अधिकारी समझ रहा है कि बच्चों को अपने विषय के शिक्षक नहीं मिलने के कारण अपनी पढ़ाई की कितनी चिंता हो रही है। प्रायमरी और मिडिल स्कूल के स्तर पर तो एक शिक्षक को कई-कई विषयों की पढ़ाई कराने की जिम्मेदारी दे दी गई है पर उससे ऊपर की कक्षाओं में तो उस विषय के ही शिक्षक पढ़ा सकेंगे। छात्र-छात्राओं के सडक़ों पर आ जाने से, स्कूलों में ताला लगा देने से कोई संदेह नहीं व्यवस्था बिगड़ती है, पर समस्या का हल निकालने की जगह उस पर पर्दा डालने का यह नायाब तरीका है। यदि प्राचार्य के कहने के बावजूद यदि छात्र और अभिभावक सडक़ पर उतरते हैं तो? वेतन कटने के डर से क्या प्राचार्य इन बच्चों को स्कूल से निकाल देंगे, या फिर पुलिस को बुला लेंगे?
दिल्ली में प्रतिष्ठित चुनाव और छत्तीसगढ़
दिल्ली के प्रतिष्ठित कांस्टीट्यूशन क्लब के चुनाव को लेकर भाजपा के अंदर खाने में काफी हलचल है। क्लब के सचिव पद के लिए पार्टी के ही दो पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी, और संजीव बालियान आमने-सामने हैं। खास बात ये है कि छत्तीसगढ़ के पूर्व सांसद प्रदीप गांधी भी चुनाव मैदान में कूद गए हैं, और कार्यकारिणी सदस्य के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं।
कांस्टीट्यूशन क्लब के पदेन अध्यक्ष लोकसभा स्पीकर होते हैं। यह देश की सबसे पुरानी संस्थाओं में से एक है। पीएम, केन्द्रीय मंत्रियों व सांसद, और पूर्व सांसद के अलावा केन्द्र सरकार के सचिव स्तर के अफसर क्लब के सदस्य होते हैं। लिहाजा, यहां का सदस्य होना ही काफी प्रतिष्ठापूर्ण माना जाता है। क्लब के कुल सदस्यों की संख्या 12 सौ के आसपास है। मगर सिर्फ सांसदों, और सदस्य पूर्व सांसदों को ही वोट डालने का अधिकार है। पहले सचिव, और अन्य पदों पर पदाधिकारी निर्विरोध चुने जाते रहे हैं, लेकिन इस बार बकायदा चुनाव हो रहे हैं।
सचिव, और अन्य पदों के लिए 12 अगस्त को वोटिंग होगी। चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला खेल सचिव के पद पर निर्विरोध चुने जा चुके हैं। मगर सचिव, और कार्यकारिणी सदस्य के 11 पद के लिए खींचतान चल रही है। सचिव पद के लिए भाजपा के ही दो दिग्गज नेता रूडी, और संजीव बालियान के बीच मुकाबला है। चर्चा है कि राजीव प्रताप रूडी को कई भाजपा सांसदों के अलावा नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का भी समर्थन है। जबकि संजीव बालियान को केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के समर्थक के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।
प्रत्याशी, सांसदों के बीच समर्थन जुटाने के लिए काफी मेहनत भी कर रहे हैं। इन सबके बीच राजनांदगांव के पूर्व सांसद प्रदीप गांधी भी सांसदों से संपर्क कर अपने लिए समर्थन मांग रहे हैं। गांधी के लिए छत्तीसगढ़ के विशेषकर भाजपा सांसद प्रचार कर रहे हैं। वैसे तो गांधी वर्ष-2004 में सांसद बने थे, लेकिन वो दो साल के भीतर ही संसद में सवाल पूछने के नाम पर पैसे लेने के आरोप में बर्खास्त भी हो गए थे। उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था।
प्रदीप गांधी की किसी तरह भाजपा में वापसी तो हो गई, लेकिन पार्टी की मुख्य धारा में नहीं आ पाए। ये अलग बात यह है कि पूर्व सांसद होने के नाते संसद भवन के सेंट्रल हॉल तक आने-जाने में रोक नहीं है। वो हमेशा सत्र के दौरान संसद भवन में रहते हैं। काफी सांसदों से उनका परिचय है। इन सबके चलते उन्हें चुनाव जीतने का भरोसा है।
प्रदीप गांधी के अलावा पूर्व सांसद असलम शेरखान, और उद्योगपति नवीन जिंदल भी सदस्य का चुनाव लड़ रहे हैं, और वो प्रदीप गांधी के मुकाबले में हैं। चुनाव में क्या होगा, यह तो 12 तारीख को ही पता चलेगा। मगर क्लब के चुनाव को भाजपा के गुटीय नजरिए से भी देखा जा रहा है।
अपराधी वाहन चालक ही क्यों ?

यह व्हाट्सएप पोस्ट हमें हमारे एक परिचित ने रिसेंड किया है। उन्हें यह मैसेज किसी ग्रुप में पढऩे को मिला था। हमारे परिचित का कहना है कि वे निम्नांकित 8 जुर्माने में से छह यानी 1,2,3,6,7 और 8 के शिकार हो चुके थे। कभी अनजाने तो कभी भूलवश गलती कर बैठते। लेकिन अहम बात यह है कि ट्रैफिक पुलिस, नगर निगम, पशुपालन विभाग जैसे सरकारी तंत्र पर उसकी अपनी ढिलाई अनदेखी पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती। ऐसा लगता है जनता ही एकमात्र अपराधी है, और केवल उसी पर जुर्माना लगता है। उन पर कोई नियम लागू नहीं होते, ऐसी लापरवाही के लिए कभी जवाबदेह नहीं होते।
क्या उन्हें भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए? नागरिकों को कड़ी मेहनत करनी चाहिए, कष्ट सहने चाहिए, टैक्स चुकाने चाहिए, जुर्माना भरना चाहिए, सरकारी खजाना भरना चाहिए। अपनी पीड़ा को जाहिर करते हुए आम जनों से अनुरोध किया कि इस मैसेज को जितना संभव हो उतना व्यापक रूप से साझा करें, ताकि जिन्होंने ये नियम बनाए हैं, वे भी इस सच्चाई से अवगत हों।
ऐसी वसूली
हेलमेट नहीं... जुर्माना 1,000/-
नो-पार्किंग जोन में पार्किंग... जुर्माना 3,000/-
बीमा नहीं... जुर्माना 1,000/-
नशे में गाड़ी चलाना... जुर्माना 10,000/-
नो-एंट्री जोन में गाड़ी चलाना... जुर्माना 5,000/-
गाड़ी चलाते समय मोबाइल पर बात करना... जुर्माना 2,000/-
प्रदूषण प्रमाणपत्र नहीं... जुर्माना 1,100/-
तीन सवारी बैठाना (ट्रिपल सीट राइडिंग)... जुर्माना 2,000/-
परन्तु
खराब यातायात संकेत... कोई जिम्मेदार नहीं!
सडक़ों पर गड्ढे... कोई जिम्मेदार नहीं!
अतिक्रमित फुटपाथ... कोई जिम्मेदार नहीं!
स्ट्रीट लाइटिंग नहीं... कोई जिम्मेदार नहीं!
गलियों में कचरा बिखरा हुआ... कोई जिम्मेदार नहीं!
सडक़ों पर स्ट्रीट लाइट पोल नहीं... कोई जिम्मेदार नहीं!
सडक़ें खोदकर बिना मरम्मत के छोड़ दी गईं... कोई जिम्मेदार नहीं!
अगर आप गड्ढे में गिर जाए और चोट लग जाए... कोई जिम्मेदार नहीं!
अगर आवारा गाय या जानवर आपकी गाड़ी से टकरा जाएं या कुत्ता काट ले... कोई जिम्मेदार नहीं!
सडक़ पर सीवेज का पानी बह रहा है... कोई जिम्मेदार नहीं!
दोपहिया चालकों की सर्जरी, पर उड़ते ट्रक अछूते
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प्रदेश की यातायात पुलिस इन दिनों पूरे जोश से सडक़ों पर सक्रिय है। पर ध्यान बस एक ही दिशा में लगा है-दोपहिया चालकों की चेकिंग। कहीं हेलमेट की कमी है, कहीं बीमा की कॉपी नहीं है, कहीं नंबर प्लेट पर क्यूआर कोड नहीं दिखा, तो कहीं आरसी गायब। लगता है जैसे दुपहिया चालकों की सर्जरी के लिए ही विभाग ने कमर कस रखी है। शहर की सीमा पार करते ही दृश्य बदल जाता है। सडक़ किनारे आरटीओ की चमचमाती गाडिय़ां खड़ी दिखती हैं। यह जांच चौकी किसी अस्थायी दुकान की तरह सजी होती है, पर उनका ध्यान भी सिर्फ दुपहिया पर टिका होता है।
वहीं ट्रक जो तेज रफ्तार में दौड़ते हैं। जैसे सडक़ उनकी निजी रेसिंग ट्रैक हो। जिनके पास न आगे नंबर प्लेट है, न पीछे। पर ये पुलिस और आरटीओ के रेडार में आते ही नहीं। ये ट्रक आम आदमी के नहीं, बल्कि धनकुबेरों, रसूखदारों और सिस्टम से नजदीकी रखने वालों के हैं। जांच की लक्ष्मण रेखा यहां दुपहिया चालकों तक खींची हुई होती है।
कांकेर जाते समय पुराने धमतरी रोड पर दर्जनों ट्रकें बिना नंबर प्लेट के सरपट दौड़ते देख सकते हैं। ये पुराना रोड प्रेम समझदारी से भरा है। इस रास्ते से निकलने पर टोल टैक्स नहीं देना पड़ता। यानी, बिना नंबर, बिना ज़म्मेदारी और बिना जवाबदेही, ये ट्रकें खुलेआम कानून का मजाक बना रहे हैं। कानून शायद नींद की गोली खाकर सो गया है।
अब सवाल ये नहीं कि जांच हो रही है या नहीं। ये है कि क्या ये जांच सबके लिए बराबर हो रही है?
शहर की ट्रैफिक पुलिस के आला अफसरों को समझना होगा कि व्यवस्था तब सुधरेगी जब दोपहिया चालकों से आगे बढक़र उन रफ्तारबाज ट्रकों पर भी कार्रवाई की जाए, जो कानून को ताक पर रख सडक़ को अपनी जागीर समझ बैठे हैं।
( तस्वीर एवं विवरण- गोकुल सोनी)
छठे आयोग की तरह आठवें की देरी
आज की तारीख में 8 वें वेतन आयोग को लेकर दिल्ली में जो कुछ भी प्रक्रियागत उहापोह चल रही है, वह हूबहू छठे वेतन आयोग जैसी ही है। इस बार केवल गठन समय से पहले कर दिया गया। हालांकि अभी अध्यक्ष सदस्यों की नियुक्ति सात महीने से नहीं हो पाई है। इसे गठन को भी देरी में गिना जा सकता है। इसलिए सब कुछ वैसा ही है। 6वां वेतन आयोग 1 जनवरी, 2006 से लागू होना था। लेकिन गठन हुआ जुलाई 2006 में।
इसकी वजह से आयोग को रिपोर्ट तैयार करने में लगभग डेढ़ साल का समय लगा और इसे मार्च 2008 में सरकार को सौंपा। इसे लागू करने सरकार ने 14 अगस्त, 2008 को मंजूरी दी। हालांकि, इसे दो साल पहले की डेट 1 जनवरी 2006 से लागू किया गया। इसका फायदा कर्मचारियों को मिला। उनके हर कर्मचारी के हाथ में 32 महीने का एरियर आया। उस समय कहावत चलती थी हर कोई बोरा भर भरकर ले गया।
बहरहाल अब 8वां वेतन आयोग 1 जनवरी, 2026 से लागू होना है। सरकार ने इसके गठन को तो मंजूरी 16 जनवरी 2025 में ही दे दी, लेकिन अभी तक अध्यक्ष सदस्यों की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। चर्चा है कि साल के अंत तक इनकी नियुक्ति हो सकती है। अगर आयोग 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत में भी बनता है, तो उसे रिपोर्ट देने में डेढ़ साल लग सकते हैं, यानी मार्च 2027 तक तो सिर्फ सिफारिशें आएंगी। तब सरकार को 30-32 महीने का एरियर देना पड़ सकता है। और वह समय भी आम चुनाव का होगा।
शायद सरकार को उम्मीद हो कि अच्छा वेतन पैकेज वोट में तब्दील हो। वैसे वेतन आयोग की रिपोर्ट तैयार करना एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है, जिसमें स्वाभाविक रूप से 2-3 साल का समय लगता है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए, किसी भी ठोस घोषणा के लिए 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत तक इंतजार करना पड़ सकता है।
सरकारी छोड़ निजी नौकरी में
आईएफएस के वर्ष-2006 बैच के आईएफएस अफसर अरुण प्रसाद पी अपने पद से इस्तीफे के बाद मद्रास की एक मल्टीनेशनल कंपनी जॉइन करने वाले हैं। सीसीएफ स्तर के अफसर अरुण प्रसाद पर्यावरण संरक्षण मंडल के सदस्य सचिव थे। पिछले महीने ही केन्द्र सरकार ने प्रसाद का इस्तीफा मंजूर किया था।
प्रसाद आईएफएस के पहले अफसर हैं, जो कि ऑल इंडिया सर्विस से इस्तीफे के बाद निजी कंपनी में सेवाएं देने जा रहे हैं। हालांकि आईएएस के दो अफसर शैलेश पाठक, और राजकमल ने भी नौकरी छोडक़र निजी कंपनी जॉइन की थी। आईएएस के वर्ष-88 बैच के अफसर शैलेश पाठक ने भी राज्यपाल के सचिव रहते नौकरी छोड़ दी थी, और वो बहुराष्ट्रीय कंपनी में चले गए थे। इसी तरह 94 बैच के अफसर राजकमल भी कोरबा कलेक्टर थे, और फिर बाद में उन्होंने नौकरी छोड़ दी। वे वर्तमान में दुबई में मैकेंजी कंपनी में सेवाएं दे रहे हैं। उनकी पत्नी रिचा शर्मा एसीएस हैं। फिर भी प्रसाद के इस्तीफे की काफी चर्चा है। वजह यह है कि उनकी सेवा मात्र 19 साल की ही रही। ये अलग बात है कि वो हमेशा मलाईदार पदों पर रहे हैं। प्रसाद को लेकर यह कहा जा रहा है कि वो निजी कारणों से अपने गृह राज्य तमिलनाडु में रहना चाहते हैं।
परंपरा, आस्था हो तो पशु प्रेम..?

कोल्हापुर के नंदनी गांव में जैन मठ की वर्षों पुरानी परंपरा का हिस्सा रही 36 वर्षीय हथिनी महादेवी वहां के लोगों के लिए केवल एक पशु नहीं थी। वह पूजनीय थी, परिवार जैसी थी। गांववासियों ने उसे अपने पर्वों, अनुष्ठानों और जीवन के हर महत्वपूर्ण क्षण में शामिल किया था। ऐसे में जब बॉम्बे हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने उसके स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए उसे जामनगर के वंतारा पुनर्वास केंद्र भेजने का आदेश दिया, तो यह फैसला गांव के लोगों के लिए गहरा भावनात्मक आघात बन गया।
महादेवी गठिया, नाखूनों की बीमारी, पैरों में संक्रमण और मानसिक तनाव से पीडि़त थी। ‘पेटा’ संस्था ने लगातार यह बात उठाई कि वह बीमार और दुखी है। संस्था का कहना था कि महादेवी को बेहतर इलाज, खुला वातावरण और अन्य हाथियों का साथ मिलना चाहिए ,जो वंतारा जैसे आधुनिक पुनर्वास केंद्र में संभव है।
स्पेशल एंबुलेंस से उसे जामनगर के वंतारा केंद्र पहुंचा दिया गया। इस फैसले के विरोध में हजारों लोगों ने मौन पदयात्रा निकाली। वंतारा अभयारण्य अंबानी समूह द्वारा संचालित है। स्थानीय लोगों को यह महसूस हुआ कि जिस देवी हथिनी से उनकी आस्था जुड़ी है, उस पर अब एक कॉरपोरेट का हस्तक्षेप हो रहा है। नाराजगी के चलते लोगों ने जियो सिम का बहिष्कार शुरू कर दिया। सोशल मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक करीब 1.5 लाख लोगों ने जियो सिम पोर्ट कराने के लिए आवेदन कर दिया है।
विवाद बढ़ता देख वंतारा प्रबंधन ने महादेवी की देखभाल का वीडियो जारी किया और सफाई दी कि उन्होंने महादेवी को नहीं मांगा था, बल्कि वे केवल अदालत के आदेश का पालन कर रहे हैं। जनभावनाओं के दबाव में महाराष्ट्र सरकार भी हरकत में आ गई। मंत्रिपरिषद की आपात बैठक हुई, जिसमें निर्णय लिया गया कि सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जाएगी। साथ ही यह भी आश्वासन दिया गया कि यदि महादेवी को नंदनी मठ में वापस लाया गया, तो वहां वंतारा जैसी चिकित्सा और देखभाल की व्यवस्था की जाएगी।
फिलहाल महादेवी जामनगर में है और इलाज जारी है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने कुछ जरूरी सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या हम किसी पशु को तभी प्रेम करते हैं जब वह हमारी धार्मिक परंपराओं का हिस्सा हो? और जब उसकी स्वतंत्रता, स्वास्थ्य और सुरक्षा की बात आती है, तो क्या करते हैं? छत्तीसगढ़ की तरफ भी एक नजर डालिए। यहां हाईवे पर दम तोड़ते बेसहारा गायों और जंगलों में सुकून के लिए जख्मी हालत में भटकते, करंट से मारे जाते, हाथियों की दशा देखकर हम कितने भावुक होते हैं? क्या हमारा पशु प्रेम और हमारी आस्था, वास्तव में पशुओं के हित के लिए कुछ कर पाने लायक है?
लमसेना और देवता बनने की कहानी

क्या आप जानते हैं कि छत्तीसगढ़ की धरती पर एक अनोखी परंपरा है-लमसेना।
आमतौर पर इसका अर्थ होता है-घरजमाई। लेकिन कांकेर और नगरी जैसे अंचलों में यह शब्द सिर्फ एक सामाजिक भूमिका नहीं, बल्कि सम्मान और आस्था की मिसाल है। परंपरा ये है कि जिनके पास बेटा नहीं होता, वे किसी मेहनती और ईमानदार युवक को अपने घर में रहने की जगह देते हैं। वह युवक परिवार के साथ रहकर खेत-खलिहान संभालता है, घर की जि़म्मेदारियां निभाता है। यह एक तरह की परीक्षा होती है, जिसे वहां खटना कहा जाता है। सालों की परीक्षा के बाद जब परिवार को लगता है कि यह युवक सच्चा, कर्मठ और भरोसेमंद है, तब उसे बेटी से विवाह की अनुमति दी जाती है। तब वह युवक लमसेना कहलाता है। उसे जो संपत्ति दी जाती है, वह सिर्फ उसी की होती है। न उसमें किसी बहन-भाई का हिस्सा होता है, न कोई झगड़े का सवाल उठता है।
लमसेना को खुद पर गर्व होता है। वह कहता है-मैं यहां खटा हूं, पसीना बहाया है, भरोसा कमाया है। तभी इस परिवार का हिस्सा बना हूं।
अब सोचिए, इस सामाजिक परंपरा को देवत्व मिल जाए तो? कांकेर जिले में, दुधावा बांध से विश्रामपुरी की ओर जाने वाले रास्ते में एक तिराहा है। वहां लमसेना डोकरा देवता खुले आकाश के नीचे विराजमान हैं। न मंदिर, न छत। फिर भी ऐसी गहराई से बसी हुई आस्था कि हर गुजरता मुसाफिर सिर झुकाता है। लोग नारियल चढ़ाते हैं, मन्नत मांगते हैं, और पूरी होने पर आकर कृतज्ञता जताते हैं। यह रास्ता अब भारतमाला परियोजना के तहत चौड़ी सडक़ में बदल रहा है। आगे केशकाल का पहाड़ी इलाका है, जहां सुरंग निर्माण जारी है। सुरक्षा कारणों से अभी प्रवेश सीमित है, लेकिन जल्द ही यह पूरा क्षेत्र पर्यटन और विकास का बड़ा केंद्र बनने वाला है। सोचिए, क्या आपने कभी ऐसा देवता देखा है, जो मेहनत, ईमानदारी और अपनेपन का प्रतीक हो? ( फोटो व टिप्पणी- गोकुल सोनी)
मदद से ज्यादा, प्रचार की तस्वीर
छत्तीसगढ़ की महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े एक बार फिर चर्चा में हैं। वजह वही, तस्वीर और सोशल मीडिया। कुछ वक्त पहले उनकी एक फोटो वायरल हुई थी, जिसमें वे कुर्सी पर बैठकर कीचड़ भरे खेत में धान की रोपाई करती दिखी थीं। लोगों ने खूब कहा, भाई, कुर्सी पर बैठकर खेत में काम कौन करता है? तब कई लोगों ने इसे किसान वाली छवि का दिखावा बताया।
अब जो तस्वीर वायरल हो रही है, उसमें वे घायलों की मदद करती दिख रही हैं। मामला कटघोरा के पास सुतर्रा मोड़ का है, जहां बाइक सवार कुछ युवक सडक़ हादसे में घायल हो गए। मंत्री राजवाड़े का काफिला वहीं से गुजर रहा था। उन्होंने गाड़ी रुकवाई, घायलों को अपनी एसयूवी में बिठाया और कटघोरा अस्पताल भिजवाया। डॉक्टरों को इलाज में कोताही न बरतने की हिदायत दी और सोशल मीडिया पर खुद इसकी जानकारी दी।
इस बार सोशल मीडिया पर लोग बंटे हुए हैं। कुछ कह रहे हैं- इंसानियत जिंदा है, मंत्रीजी ने मिसाल पेश की है। खासकर तब, जब आम लोग घायलों की मदद करने से डरते हैं, और सरकार को इसके लिए इनाम योजना तक शुरू करनी पड़ी है। मंत्री की पहल से प्रेरणा मिलनी चाहिए—ऐसी उम्मीद की जा रही है।

लेकिन कुछ लोग सवाल भी उठा रहे है कि अगर वाकई मदद करनी थी तो चुपचाप करतीं। आपके पास गाड़ी है, प्रशासन है, गन मैन हैं। इतना कर दिया तो कौन सी बड़ी बात हो गई? वीडियो, फोटो और सोशल मीडिया पोस्ट क्यों? ये तो पब्लिसिटी है... ढिंढोरा पीटने जैसा। कुछ ने तंज कसते हुए कहा—सिर्फ घायलों को अस्पताल भेजने से काम नहीं चलेगा। रोड टैक्स तो हम हर साल देते हैं, पर सडक़ें कब बनेंगी? हादसे कम तभी होंगे। मंत्री हैं, सडक़ बनवाएं-सरकार से कहकर।
सच तो यह है कि कोरबा-कटघोरा-अंबिकापुर हाईवे पर दुर्घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। कुछ ही दिन पहले एक स्कूल बस हादसे में दो शिक्षिकाओं की मौत हो गई थी। ताजा मामले में बाइक सवार युवकों की जान तो बच गई, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि उन्होंने हेलमेट नहीं पहना था।
अगर मंत्री सडक़ पर घायलों की मदद करती हैं तो यह सराहनीय है। लेकिन, सडक़ें सुधारने, हेलमेट जागरूकता फैलाने और ट्रैफिक नियम सख्ती से लागू करवाने की जिम्मेदारी भी उसी गंभीरता से निभानी चाहिए। वरना तस्वीरें तो आती-जाती रहेंगी... हादसे होते रहेंगे... और सवाल उठते रहेंगे।
रायपुर जेल इतनी VIP कब थी?
रायपुर सेंट्रल जेल में इन दिनों वीवीआईपी मुलाकातियों की आवाजाही बढ़ गई है। पूर्व मंत्री कवासी लखमा तो जेल में हैं ही। अब पूर्व सीएम भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य भी पहुंच गए हैं। शराब घोटाला केस में चैतन्य 18 अगस्त तक न्यायिक रिमांड पर हैं।
चैतन्य से मिलने पिछले दिनों प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट रायपुर आए थे। उन्होंने सेंट्रल जेल में चैतन्य, और कवासी लखमा से अलग-अलग मुलाकात की। रोज वकीलों के साथ-साथ परिवार के लोग भी चैतन्य, और कवासी लखमा से मिलने पहुंच रहे हैं। सभी की जमानत याचिका हाईकोर्ट, या सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
घोटाले में फंसे अनवर ढेबर, और पूर्व आईएएस अनिल टूटेजा सहित अन्य सभी को चैतन्य, और कवासी लखमा व सूर्यकांत तिवारी के साथ एक ही बैरक में रखा गया है। सभी हाई प्रोफाइल राजनीतिक, और पूर्व अफसरों पर जेल प्रशासन की पैनी नजर है। पिछले दिनों एक टीम ने बैरक में जाकर सूर्यकांत तिवारी की जांच पड़ताल भी की थी।
बताते हैं कि बाकियों की तुलना में कवासी लखमा ज्यादा परेशान हैं। वो मेल मुलाकात के दौरान भावुक हो जाते हैं। सचिन पायलट भी कवासी से मिलकर असहज हो गए थे। उन्होंने जेल प्रशासन पर आरोप लगाए थे कि कवासी को समय पर दवाईयां नहीं मिल पा रही है। हालांकि इसका ज्यादा कोई असर नहीं पड़ा। ये सभी कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। रिहाई कब तक होगी, यह किसी को नहीं पता।
पाकिस्तान और भाजपा-कांग्रेस

पिछले दिनों लंदन में पूर्व केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफरीदी के साथ स्टेडियम में क्रिकेट मैच देखते तस्वीर वायरल हुई।
इस तस्वीर को पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने एक्स पर शेयर कर कटाक्ष भी किया। सोमवार को संसद भवन में पूर्व सांसद, और विधायक सुनील सोनी की ठाकुर से मुलाकात हुई, तो उन्होंने तस्वीर के बारे में पूछ लिया।
ठाकुर बीसीसीआई के अध्यक्ष रह चुके हैं। वो मैच देख रहे थे, तो अफरीदी वहां पहुंचे, और उनके बगल में बैठ गए। बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष ठाकुर को तो विदेशी क्रिकेटर भी जानते पहचानते हैं। चूंकि अफरीदी ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीयों, और सेना के खिलाफ काफी कुछ कहा था। इसलिए वो भारतीयों की नजर में खलनायक बने हुए हैं, और अनुराग ठाकुर से चर्चा करते तस्वीर वायरल हुई, तो ठाकुर को मैदान के बाहर स्थिति स्पष्ट करनी पड़ गई।
ये अलग बात है कि बीसीसीआई के मौजूदा चेयरमैन राजीव शुक्ला छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य हैं, और सितंबर में एशिया कप में भारत-पाकिस्तान का मुकाबला होने जा रहा है। इस पर भी काफी कुछ कहा जा रहा है।
ओडिशा में बेचैनी
दिल्ली से खबर आई है कि पड़ोसी राज्य ओडिशा के डेढ़ दर्जन भाजपा विधायकों ने पार्टी हाईकमान से मुलाकात की है। ये विधायक सीएम मोहन मांझी की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं है, और वो उन्हें बदलना चाहते हैं।
ओडिशा में पहली बार भाजपा की सरकार बनी है। कोण्डागांव की विधायक सुश्री लता उसेंडी ओडिशा भाजपा की सह प्रभारी हैं। भाजपा विधायकों की नाराजगी सीएम के खिलाफ किसी भ्रष्टाचार या अन्य मामले को लेकर नहीं है। बल्कि विधायक इस बात से नाराज हैं कि प्रदेश में नौकरशाही हावी हो गई है। वो सीएम की अनुभवहीनता का फायदा उठा रहे हैं। इससे पार्टी को नुकसान उठाना पड़ रहा है। असंतुष्ट विधायकों ने पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष से मुलाकात की।
असंतुष्ट विधायकों ने पार्टी हाईकमान को याद दिलाया कि नौकरशाही हावी होने की वजह से बीजू जनता दल सरकार चली गई थी। उस समय नवीन पटनायक के बजाय उनके करीबी आईएएस अफसर वी.के.पांडियन का सरकार में दबदबा था। कुछ ऐसी ही परिस्थिति भाजपा सरकार में भी बन रही है। हालांकि पार्टी हाईकमान ने विधायकों को तो समझा-बुझाकर भेज दिया। लेकिन प्रदेश संगठन के प्रभारियों को इस तरह की शिकायतों पर बारीक नजर रखने की हिदायत दी गई है। इन सब वजहों से प्रभारियों का काम थोड़ा बढ़ गया है।
बृजमोहन और कांग्रेस

रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने दो दिन पहले केन्द्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात की, और कुम्हारी टोल प्लाजा को बंद करने की मांग की।
बृजमोहन ने ट्वीट कर कहा कि कुम्हारी टोल प्लाजा की मियाद खत्म होने के बावजूद इसका अवैध संचालन बरसों से हो रहा है, और इससे जनता परेशान है। टोल प्लाजा पर वसूली तत्काल बंद करने की मांग रखी गई है।
यह साफ हो चुका है कि दो साल पहले ही टोल प्लाजा की मियाद खत्म हो चुकी है। बावजूद इसके अवैध रूप से टोल टैक्स लिया जा रहा है। बृजमोहन के ट्वीट पर कांग्रेस को हमला करने का मौका मिल गया है। प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता धनंजय ठाकुर ने सवाल उठाया है कि खुद कुम्हारी टोल प्लाजा को बृजमोहन अग्रवाल जी ने अवैध बताया है, और गडकरी से बंद करने की मांग की है।
कांग्रेस प्रवक्ता ने पूछ लिया कि बरसों से टैक्स वसूली किसके संरक्षण में हो रहा है। उन्होंने इसे बड़ा टैक्स घोटाला करार दिया है। कांग्रेस ने इस घोटाले की जांच होनी चाहिए। सत्ताधारी दल के लोग ही मान रहे हैं कि अवैध वसूली हो रही है, तो जांच की मांग गैरवाजिब नहीं है। देखना है इस मामले पर गडकरी क्या कुछ करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट पर नजरें
आखिरकार सीनियर आईएफएस अफसर सुधीर अग्रवाल इस महीने के आखिरी में रिटायर हो रहे हैं। आईएफएस के 88 बैच के अफसर अग्रवाल ऑल इंडिया सर्विस के प्रदेश के सबसे सीनियर अफसर हैं।
अग्रवाल के बाद सीएस अमिताभ जैन का नंबर आता है, जो कि 89 बैच के अफसर हैं। आईएफएस में सबसे सीनियर होने के बावजूद सुधीर अग्रवाल हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बनने से रह गए। अग्रवाल और चार अन्य अफसरों की वरिष्ठता को नजरअंदाज कर वी.श्रीनिवास राव को पिछली भूपेश सरकार ने हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बना दिया था। तब से अब तक वो पद पर जमे हुए हैं।
अग्रवाल ने इसके खिलाफ अदालती लड़ाई लड़ी। मगर, कैट और फिर हाईकोर्ट में उन्हें राहत नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब भी मांगा है। प्रकरण पर सुनवाई होना बाकी है। मगर कोई राहत मिलती इससे पहले ही सुधीर अग्रवाल रिटायर हो रहे हैं। फिर भी आईएफएस लॉबी की नजर सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हुई है, जिन्हें लगता है कि कोर्ट का फैसला भविष्य के लिए नजीर बन सकता है। वाकई ऐसा होगा, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
बयानों की जंग बंदरों के मुंह से!
एआई की मेहरबानी से अब किसी भी असली या नकली इंसान को किरदार बनाकर उसके प्रवचन और भाषण करवाए जा सकते हैं, और उसके वीडियो भी किसी-किसी आवाज में सुनाए जा सकते हैं। इन दिनों ऐसे ही एक बंदर का किरदार बड़ा चल रहा है जो भारत के राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक मुद्दों को लेकर बड़ी तल्ख जुबान में भाषण देता है। किसी-किसी वीडियो में वह किसी प्रवचनकर्ता की तरह भगवा कपड़ों में धर्म और आध्यात्म की भाषा में भी लोगों को जगाते दिखता है।
इंसानों की कही हुई बातों में लोगों की दिलचस्पी कुछ कम होती चल रही है, और दुनिया की कार्टून फिल्मों का इतिहास बताता है कि जानवरों के किरदार लोगों को बांध लेते हैं। हो सकता है कि अब इस बंदर की सोच के खिलाफ इसकी विपरीत सोच वाले कई बंदर भी गढ़ लिए जाएं, और सोशल मीडिया पर बयानों की जंग बंदरों को सामने रखकर लड़ी जाए!
वकील साहब का हमला जारी

छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा के ऑफिस प्रभारी और उसके जाने-पहचाने वकील चेहरे एडवोकेट नरेशचन्द्र गुप्ता की बेचैनी सोशल मीडिया पर तरह-तरह के तंज कसकर निकल रही है। हर कुछ घंटों में वे पार्टी, या पार्टी की सरकार पर कोई न कोई तीर चलाते रहते हैं। कुछ हफ्ते पहले उन्होंने शराब घोटाले की जांच को लेकर बड़ा साफ-साफ आरोप लगाया था कि राज्य की जांच एजेंसियां आरोपियों पर पर्याप्त कार्रवाई नहीं कर रही हैं, और वे इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे। अब वे एक्स पर लिख रहे हैं-
- चाकू, खंजर, तीर, और तलवार लड़ रहे थे कि कौन ज्यादा गहरा घाव देता है, शब्द पीछे बैठे मुस्कुरा रहे थे।
- गलत को गलत कहने की क्षमता नहीं है, तो प्रतिभा व्यर्थ है।
- यह कभी मत मानो कि जिसके पक्ष में बहुत से लोग हैं, वही सच्चा मनुष्य है, क्येंकि दुर्योधन के पक्ष में 90 फीसदी लोग थे।
- मैं जैसा भी हूं, पर झूठा नहीं हूं, फिक्र तो वो करे जो बोलते कुछ हैं, करते कुछ हैं, और होते कुछ हैं।
- धूर्तता तो निर्बलों का अधिकार है, बलवान कभी नीच नहीं होता।
- जिनका नजरिया ही गलत हो, उनके सामने सफाई देना समय बर्बाद करने जैसा है।
- बदनाम तो बहुत हूं इस जमाने में, तू बता तेरे सुनने में कौन सा किस्सा आया है?
- अगर अंधे को दिखने लग जाए, तो सबसे पहले वह उस छड़ी को फेंकता है जिसने उसका हमेशा साथ दिया।
- खुद के आंसू पोंछने वाला इंसान जीवन के हर तूफान का सामना करने में सक्षम होता है।
- फन कुचलने का हुनर सीखिए जनाब, सांपों के डर से जंगल नहीं छोड़े जाते।
सोशल मीडिया पर उनके हमले की शुरूआत के बाद उसी सिलसिले की कड़ी के रूप में लिखी हुई इस तरह की और भी बहुत सी बातें उन्होंने पोस्ट की हैं, देखना होगा कि भाजपा में अभी सरकार की बची हुई कुर्सियां तय करने वाले लोग इन बातों को पढ़ पाते हैं या नहीं।
अब बैंक निशाने पर
प्रदेश के जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक में अध्यक्षों की नियुक्ति जल्द हो सकती है। सरकार बदलने के बाद ज्यादातर जगहों पर कलेक्टर ही अध्यक्ष के प्रभार पर हैं। चर्चा है कि भाजपा के सहकारिता नेताओं ने सरकारी बैंकों में नियुक्ति के लिए दबाव बनाया है। कुछ सांसदों ने भी सीएम, और पार्टी संगठन प्रमुख नेताओं से चर्चा कर बैंकों में नियुक्ति के लिए अनुशंसा की है।
बताते हैं कि रायपुर जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के लिए वरिष्ठ नेता अशोक बजाज का नाम उभरा है। चर्चा है कि सांसद बृजमोहन अग्रवाल भी बजाज के नाम पर जोर दे रहे हैं। बजाज पहले भी बैंक के डायरेक्टर रहे हैं। इससे परे राजनांदगांव में सचिन बघेल कोर्ट के आदेश पर अध्यक्ष पद पर काबिज हैं। उनका भी कार्यकाल खत्म हो रहा है। यहां से सहकारिता नेता शशिकांत द्विवेदी के नाम की भी चर्चा है। दुर्ग, बिलासपुर, और अंबिकापुर में भी सहकारिता नेता बैंक अध्यक्ष पद के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं।
हालांकि नियुक्तियों के मसले पर पार्टी के भीतर विचार मंथन चल रहा है। कुछ नेता जल्द से जल्द सहकारिता चुनाव कराने पर जोर दे रहे हैं। भूपेश सरकार में सहकारिता चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई थी, लेकिन बाद में अटक गई। भूपेश सरकार ने बैंक अध्यक्ष पद पर पार्टी नेताओं की नियुक्ति कर दी गई थी।
सरकार बदलने के बाद अब चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने के लिए दबाव है। हालांकि प्राथमिक सहकारी समितियों से बैंकों के अध्यक्ष पद के चुनाव तक की प्रक्रिया में छह महीने का समय लगता है। ऐसे में चुनाव की लंबी प्रक्रिया में जाने के बजाय सीधे पार्टी नेताओं को बैंक की कमान सौंपने पर विचार हो रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
खेल के लिए कोशिशें
सीएम विष्णुदेव साय के ओलंपिक संघ अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश में खेल गतिविधियों बढ़ावा देने के लिए कोशिशें हो रही है। संघ के महासचिव विक्रम सिसोदिया ने पिछले दिनों कार्यकारिणी की बैठक में आधा दर्जन सुझाव दिए थे, जिस पर सीएम ने सहमति दे दी है।
ओलंपिक संघ में सांसद बृजमोहन अग्रवाल, और वन मंत्री केदार कश्यप समेत दस उपाध्यक्ष हंै। बृजमोहन अग्रवाल को छह महीने पहले कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव भी पारित किया गया था। मगर आदेश अब तक नहीं निकल पाया है। बृजमोहन की गैरमौजूदगी में पिछले दिनों खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए संघ की बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया था। उस पर अमल भी हो रहा है।
छत्तीसगढ़ में साई का रीजनल सेंटर स्थापित करने का प्रस्ताव है। संघ के महासचिव विक्रम सिसोदिया ने इस सिलसिले में केन्द्रीय खेल मंत्री डॉ. मनसुख भाई मांडविया से चर्चा की है। उन्होंने संघ के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है। साई का रिजनल सेंटर, जो अभी भोपाल में है, वह रायपुर में खुल सकता है। यही नहीं, उत्कृष्ट खिलाडिय़ों की घोषणा भी जल्द हो सकती है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
मवेशियों के मालिक आखिर हैं कहां?

राजमार्गों पर मवेशियों की मौतें थम नहीं रहीं है। प्रशासन की पकड़ कमजोर है, समाधान अधूरा। बिलासपुर में बीते पंद्रह दिनों में ही करीब 70 मवेशियों की हाईवे पर दुर्घटनाओं में मौत हो चुकी है। बड़ी गाडिय़ों की चपेट में आकर मवेशियों की ऐसी दर्दनाक मौतों को लेकर हाईकोर्ट की फटकार ने अब प्रशासन को कुछ सख्ती बरतने के लिए मजबूर किया है।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट इस मुद्दे को लेकर पहले ही कई बार चिंता जता चुका है। पिछले साल कोर्ट ने निर्देश दिया था कि राज्य स्तर से लेकर पंचायतों तक मवेशियों के प्रबंधन के लिए समितियों का गठन किया जाए, ताकि सडक़ों पर मवेशियों की आवाजाही और इससे होने वाली दुर्घटनाओं को रोका जा सके। अब जब कोर्ट ने प्रगति पर सवाल उठाया, तो प्रदेशभर में ताबड़तोड़ कार्रवाइयां शुरू हो गईं।
बिलासपुर में दो पशुपालकों को गिरफ्तार किया गया, दुर्ग जिले में 36 के खिलाफ कार्रवाई हुई, और कुछ अन्य जिलों में भी इसी तरह के सीमित उदाहरण हैं। लेकिन हकीकत यह है कि किसी भी हाईवे से गुजर जाइए, हजार से ज्यादा मवेशी यूं ही सडक़ किनारे बैठे मिल जाएंगे। तो बाकी मवेशियों के मालिक कहां हैं। मौत के बाद भी कहां पता चलता है कि इनके मालिक कौन हैं?
बिलासपुर नगर निगम ने अभियान चलाकर कुछ ही दिनों में 1500 से ज्यादा मवेशियों को पकड़ा। मवेशी के मालिकों का पता नहीं चला तो उनको अलग-अलग बाड़ों में ले जाकर बंद कर दिया। मगर बाड़े भी अब कम पड़ रहे हैं।
गांवों में कोटवार, पंच-सरपंच और राजस्व अमला मवेशियों के मालिकों की पहचान कर सकते हैं। मगर सवाल यह है कि क्या वे सचमुच ऐसा करना चाहते हैं? कई के मालिक तो उनमें से भी निकलेंगे।
समस्या की जड़ कहीं गहरी है। इन मवेशियों में अधिकतर गायें और बछड़े हैं, जिन्हें किसान या पशुपालक अब उपयोगी नहीं मानते। उनकी हालत ज्यादा खराब है जो बूढ़े हो चुके हैं, बीमार हैं या दूध देना बंद कर चुके हैं। जब तक ये आय का जरिया थे, तब तक इनसे श्रद्धा और ममता थी। मगर अनुपयोगी होते ही ये बोझ बन गए। पशुपालक इन्हें खुला छोड़ देते हैं और जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेते हैं।
एक बड़ी सामाजिक-राजनीतिक जटिलता भी है। गौरक्षा के नाम पर बने डर के चलते कोई पशुपालक इन पशुओं को बेच भी नहीं पाता। जो गौठान योजना मवेशियों की देखरेख के लिए बनी थी, वह बीते शासन में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। नई सरकार ने सत्ता में आते ही गौठानों को दी जा रही सहायता बंद कर दी। नतीजा यह हुआ कि अधिकांश गौठान बंद हो गए। नई सरकार ने वन अभयारण्य बनाने की घोषणा जरूर की थी, पर योजना अब तक धरातल पर नहीं उतर पाई है। राज्य की गौशालाएं भी सीमित क्षमता, दाना-पानी और इलाज की कमी से जूझ रही हैं। कई बार गौशालाओं में सामूहिक पशु मृत्यु के मामले भी सामने आ चुके हैं, जिनमें पशुपालकों द्वारा सरकारी अनुदान के दुरुपयोग की बात उजागर हुई। स्थायी समाधान फिलहाल नजर नहीं आता। हाईकोर्ट सख्त है, प्रशासन कार्रवाई कर रहा है, पर जब तक पशुपालकों की इच्छाशक्ति, सामाजिक भागीदारी और आर्थिक व्यवहार के पहिए नहीं जुड़ते, ये मवेशी ऐसे ही सडक़ों पर मरते रहेंगे।
रिश्तेदार क्या जरूरतमंद नहीं होते?
कांग्रेस ने साजा के विधायक ईश्वर साहू द्वारा बांटी गई स्वेच्छानुदान की राशि की एक सूची जारी की है। इसमें ऐसे नाम ढूंढ कर निकाले गए हैं जो उनके पीएसओ ओम साहू के रिश्तेदार हैं और कई लोग एक ही परिवार के हैं। इस सूची में सबसे ज्यादा लाभान्वित लोग पतोरा ग्राम के रहने वाले हैं। कांग्रेस का दावा है कि या तो भांजा है, कोई चाचा का लडक़ा है कोई काका परिवार का सदस्य है, पिताजी भी हैं। सलधा और खुरूस बोड़ के नाम भी हैं, जिन्हें इस सूची के अनुसार ननिहाल माना जा सकता है, क्योंकि यहां जिन्हें रकम मिली है उनका परिचय कांग्रेस मामा परिवार, ससुराल, ससुराली रिश्तेदार आदि के रूप में दिया गया है। कुछ कम्प्यूटर ऑपरेटरों का नाम है, जिन्हें भी मित्र और रिश्तेदार बताया गया है। अनुदान के रूप में एक व्यक्ति को 50 हजार रुपये तक दिए गए हैं।
इस सूची को लेकर खास बात यह है कि न तो भाजपा ने या विधायक ने ही इसके फर्जी होने का आरोप लगाया। न ही रिश्तेदारी या करीबी होने की बात का खंडन किया गया है। विधायक ने लेकिन इस सूची को लेकर बखेड़ा खड़ा करने पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि जो-जो उनके पास मदद मांगने के लिए आया, उनके आवेदन को उन्होंने कलेक्टर के पास भेज दिया। 2000 लोगों को स्वेच्छानुदान बांटना है, पांच-सात सौ की मंजूरी अब तक मिली है। यानि विधायक ने उदारता बरती है। यह नहीं देखा कि पीएसओ के रिश्तेदार होने के चलते किसी आवेदन को ठुकरा दिया जाए। हो सकता है कि वे लोग बहुत जरूरतमंद होंगे। किसी को बीमारी के इलाज के लिए, किसी को घर के टूटा हिस्से की मरम्मत के लिए, बच्चों की फीस के लिए, किसी के घर दुर्घटना हो गई तो उसकी सहायता के लिए राशि की जरूरत हो तो वे स्वेच्छानुदान के लिए विधायक को आवेदन कर सकते हैं। हो सकता है, बाकी लोगों को पता ही नहीं हो कि वे ऐसा कर सकते हैं। पीएसओ के जरूरतमंद रिश्तेदारों, मित्रों को यह मालूम होगा- इसलिए उन्होंने लाभ उठा लिया।
किस्मत के धनी का भविष्य?

उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए अधिसूचना जारी हो गई है। नौ अगस्त से नामांकन दाखिल किए जा सकेंगे। भाजपा में उपराष्ट्रपति पद के लिए जिन नामों की चर्चा है, उनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश बैस भी हैं। बैस तीन प्रदेशों के राज्यपाल रह चुके हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने पिछले दिनों पीएम नरेंद्र मोदी को खत लिखकर बैस को राज्यपाल बनाए जाने की वकालत की थी। इसको लेकर कांग्रेस में काफी प्रतिक्रिया हुई थी। हालांकि बैस की अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। उनके करीबी लोग उपराष्ट्रपति प्रत्याशी बनाए जाने की संभावना को सिरे से खारिज कर रहे हैं। उनका तर्क है कि पार्टी चाहती, तो उन्हें कार्यकाल खत्म होने के बाद एक टर्म दे सकती थी।
अब आईएएस भी ईडी की नजर में
ईडी ने स्वास्थ्य विभाग में दवा खरीद घोटाले की पड़ताल शुरू कर दी है। जांच एजेंसी ने रायपुर, बिलासपुर, और दुर्ग में 18 जगहों पर छापेमारी की है। वैसे तो ईओडब्ल्यू-एसीबी भी मामले की जांच कर रही है। दवा घोटाले के मुख्य सूत्रधार शशांक चोपड़ा, और दवा निगम अफसरों समेत कुल 7 लोग जेल में हैं। ईओडब्ल्यू-एसीबी प्रकरण पर चालान भी पेश कर चुकी है। मगर प्रकरण पर कुछ और खुलासा होना बाकी है।
बताते हैं कि ईओडब्ल्यू-एसीबी ने चार सौ करोड़ से अधिक के दवा घोटाले में कार्रवाई तो की है, लेकिन घोटाले के लिए जिम्मेदार विभाग के आला अफसरों तक नहीं पहुंच पाई। स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने विधानसभा में संकेत दिए थे कि घोटाले में दो बड़े अफसरों की भी भूमिका रही है। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने तीन आईएएस अफसरों से पूछताछ तो की थी, लेकिन उन पर प्रकरण नहीं दर्ज किया गया। अब ईडी ने मामले को हाथ में लिया है, तो उन लोगों पर कार्रवाई होना तय है, जो अब तक बचे रहे हैं।
ईडी जेल में बंद दवा व्यापारी, और अफसरों से भी पूछताछ करने वाली है। यही नहीं, उन तीन आईएएस अफसरों को भी पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है। चर्चा है कि ईडी जल्द ही कुछ और लोगों को गिरफ्तार कर सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
कलेक्टर, और नाखुश भाजपा नेता
बस्तर के नारायणपुर जिला प्रशासन, और स्थानीय भाजपा नेताओं में ठन गई है। सरकार ने यहां कलेक्टर पद पर प्रतिष्ठा ममगाई की पोस्टिंग की है, जिन्हें तीन माह ही हुए हैं। आईएएस की वर्ष-2018 बैच की अफसर प्रतिष्ठा नारायणपुर की पहली महिला कलेक्टर है।
हाल ही में प्रतिष्ठा ने सरकारी जमीनों में अतिक्रमण पर प्रभावी कार्रवाई की है। कुछ नेता भी इससे प्रभावित हुए हैं। इनमें एक भाजपा के पदाधिकारी भी हैं। इसके बाद से स्थानीय भाजपा नेता उनके खिलाफ चल रहे हैं। पिछले हफ्ते केन्द्रीय राज्य मंत्री डॉ. चद्रशेखर बस्तर दौरे पर थे, उस समय भी पदाधिकारियों की एक पुलिस अफसर से बहस हो गई। इसके बाद जिला पंचायत अध्यक्ष, जनपद अध्यक्ष, और नगरीय निकाय के तमाम पदाधिकारियों ने हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन सीएम विष्णुदेव साय को भेजा है जिसमें उन्होंने जिला प्रशासन पर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का आरोप लगाया है।
नारायणपुर सरकार के ताकतवर मंत्री केदार कश्यप का विधानसभा क्षेत्र भी है। चर्चा है कि वो अपने पदाधिकारियों के साथ हैं। इस पूरे प्रकरण को सीएम सचिवालय ने संज्ञान में लिया है। कलेक्टर, और जनप्रतिनिधियों से चर्चा हो रही है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
आत्मसम्मान और संघर्ष की एक इमारत...

रायपुर के श्याम टॉकीज के पास खड़ा भव्य इनडोर और आउटडोर स्टेडियम किसी आम खेल परिसर जैसा नहीं है। ये उस संघर्ष, उम्मीद और आत्मसम्मान की कहानी है जो आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है।
कई सालों तक यह स्टेडियम अधूरा और सूनसान पड़ा रहा। तब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह रायपुर आए। उनके साथ रायपुर के महापौर बलबीर सिंह जुनेजा भी थे। जब दोनों स्टेडियम पहुंचे, तो जुनेजा जी ने अपनी पगड़ी उतारकर मुख्यमंत्री के पैरों में रख दी और भावुक होकर बोले- मुख्यमंत्री जी, यह हमारी आखिरी उम्मीद है। इस स्टेडियम के लिए मदद दीजिए...।
ये सिर्फ पगड़ी नहीं थी। रायपुर की अस्मिता, खिलाडिय़ों का सपना और एक नेता की झुक कर की गई विनती थी।
हालांकि उस वक्त सरकारी मदद नहीं मिली, लेकिन संघर्ष रुका नहीं।
बाद में जब स्टेडियम बनकर तैयार हुआ और रमन सिंह मुख्यमंत्री बने, तब बलबीर जी के छोटे भाई और कांग्रेस विधायक कुलदीप जुनेजा ने एक विनती की- इस स्टेडियम का नाम बलबीर सिंह जुनेजा जी के नाम पर रखा जाए।
यह मांग विपक्ष से थी, लेकिन रमन सिंह ने इसे राजनीति नहीं, खेल और सम्मान के नजरिए से देखा।
और स्टेडियम का नाम रखा गया- सरदार बलबीर सिंह जुनेजा स्टेडियम
एक और बात, तब कुछ लोगों ने स्व. पं. रविशंकर शुक्ल के नाम की भी चर्चा की थी।
लेकिन विद्या चरण शुक्ल ने कहा- कक्का जी के नाम पर पहले ही बहुत संस्थान हैं, हमें हर चीज उन्हीं के नाम पर नहीं करनी चाहिए। इसमें एक परिपक्व सोच और संतुलन था।
आज जब आप इस स्टेडियम की तस्वीर देखें, तो सिर्फ ईंट-पत्थर मत देखिए। उसके पीछे छिपे संघर्ष, सम्मान और समर्पण को महसूस कीजिए।
ये सिर्फ इमारत नहीं है, ये यादों का स्मारक है। (फोटो और विवरण- गोकुल सोनी)
समोसे का सवाल बड़ा गहरा है..
लोकसभा में सांसद रवि किशन ने एक दिलचस्प मुद्दा उठाया। वैसे हंसी आ सकती है कि समोसे के दाम व साइज पर सांसद क्या बात कर रहे हैं, लेकिन इसमें गंभीरता भी छिपी है। कुछ सरकारी संस्थानों, रेलवे पेंट्री कार, स्टेशन के स्टॉल- पार्लियामेंट कैंटीन, कुछ सरकारी केंद्रीय उपक्रमों के कैंटीन के अलावा किसी भी जगह खाद्य पदार्थों का वजन नहीं बताया जाता। होटलों में तो अलग समस्या है जो रवि किशन ने दर्शाया- कहीं पर एक प्लेट दाल या सब्जी बहुत हो जाती है, कई बार कम। किसी भी होटल,रेस्तरां में मेनू के साथ व्यंजन की मात्रा नहीं लिखी होती है। ऐसे में कई बार ऑर्डर करने के बाद खाना बर्बाद होता है। दुनिया भर में खाने की बर्बादी एक बड़ा संकट है, और दूसरी तरफ लाखों लोग भूखे पेट सोते हैं।
कुछ अस्पतालों में जैसे अपोलो के मेस में जहां बुफे सिस्टम है लिखा होता है कि थाली में उतना ही लें जितना खा सकें, फेंकने के लिए नहीं लें। जबकि शादी ब्याह के समारोहों में दिखावे का चलन बढ़ रहा है। अधिक से अधिक मिष्ठान, अलग-अलग राज्यों के व्यंजन रखे जाते हैं। कहीं पर सरकार ने बाध्य नहीं किया, न समाज जागरूक है कि इस तरह खाने को बर्बाद मत किया जाए। जब ऐसे समारोह खत्म होते हैं तो बड़ी मात्रा में खाद्यान्न कूड़े में फेंके गए मिलते हैं। ग्राहकों को अधिकार तो मिलना ही चाहिए कि उसे किस तेल और आटे का डिश दिया जा रहा है और उसकी मात्रा कितनी होगी, कितने लोगों के लिए काफी होगा?
एक अगस्त : असहयोग आंदोलन की शुरूआत, अंग्रेजी शासन की नींव हिली
नयी दिल्ली, 1 अगस्त। अंग्रेज हुक्मरान की बढ़ती ज्यादतियों का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी ने 1920 में एक अगस्त को असहयोग आंदोलन की शुरूआत की। आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार कर दिया। कई कस्बों और नगरों में श्रमिक हड़ताल पर चले गए। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़ताल हुईं जिनमें छह लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख कार्य दिवसों का नुकसान हुआ।
शहरों से लेकर गांव देहात में इस आंदोलन का असर दिखाई देने लगा और वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद असहयोग आंदोलन से पहली बार अंग्रेजी राज की नींव हिल गई।
फरवरी, 1922 में किसानों के एक समूह ने संयुक्त प्रांत के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा पुरवा में एक थाने पर आक्रमण कर उसमें आग लगा दी। हिंसा की इस घटना के बाद गांधी जी ने यह आंदोलन तत्काल वापस ले लिया।
देश-दुनिया के इतिहास में एक अगस्त की तारीख में दर्ज अन्य प्रमुख घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-
- 1831 : नये लंदन ब्रिज को यातायात के लिए खोल दिया गया।
- 1883 : ग्रेट ब्रिटेन में अंतर्देशीय डाक सेवा शुरू।
- 1916 : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष एनी बेसेंट ने होम रूल लीग की शुरुआत की।
- 1920 : महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की।
- 1932 : जानी मानी हिंदी फ़िल्म अभिनेत्री मीना कुमारी का जन्म।
- 1953 : क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो को गिरफ्तार किया गया।
- 1953 : देश में सभी एयरलाइंस का हवाई निगम अधिनियम के तहत राष्ट्रीयकरण किया गया।
- 1957 : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की स्थापना।
- 1960 : पाकिस्तान की राजधानी कराची से बदलकर इस्लामाबाद की गई।
- 1975 : दुर्बा बनर्जी वाणिज्यिक यात्री विमान का संचालन करने वाली विश्व की पहली पेशेवर महिला पायलट बनीं।
- 1995 : हब्बल दूरबीन ने शनि के एक और चन्द्रमा की खोज की।
- 2004 : श्रीलंका ने भारत को हराकर क्रिकेट का एशिया कप जीता।
- 2006 : जापान ने दुनिया की पहली भूकम्प पूर्व चेतावनी सेवा शुरू की।
- 2007 : वियतनाम के हनोई शहर में आयोजित अंतरराष्ट्रीय गणित ओलम्पियाड में भारतीय दल के छह सदस्यों ने तीन रजत पदक जीते।
- 2021: बैडमिंटन खिलाड़ी वीपी संधू ने चीन की जियाओ को हराकर तोक्यो ओलंपिक खेलों की महिला एकल स्पर्धा का कांस्य पदक जीता। ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं।
- 2021: भारत की पुरुष हॉकी टीम ने तोक्यो में ग्रेट ब्रिटेन को हरा कर 49 साल बाद ओलंपिक के सेमीफाइनल में जगह पाई।
- 2021: भारत ने अगस्त के महीने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली।
- 2024: बांग्लादेश ने देशव्यापी अशांति के चलते जन सुरक्षा के लिए उत्पन्न खतरे का हवाला देते हुए आतंकवाद रोधी कानून के तहत जमात-ए-इस्लामी और इसकी छात्र शाखा इस्लामी छात्र शिबिर पर प्रतिबंध लगाया। (भाषा)
ये कब तक जान बचा पाएंगीं?
रायपुर की एक सडक़ की तस्वीर है। राजधानी के लिए नया नाम भी उन्होंने सुझाया है- गायपुर। वैसे तो छत्तीसगढ़ की सडक़ों पर बारहों महीने ऐसी हालत दिख जाती है, मगर बारिश में गीली मिट्टी से बचने के लिए इन दिनों सडक़ पर अधिक संख्या में दिखाई दे रहे हैं। बिलासपुर में हाईकोर्ट है। इस मामले को लेकर अदालत ने कई बार चिंता जताई है। पंचायत से लेकर प्रमुख सचिव स्तर तक समिति बनाकर मॉनिटरिंग करने कहा है लेकिन सब उपाय फेल हैं। हाल ही में दो दर्जन से अधिक गायों की दो दुर्घटनाओं में मौत हो गई है। रात के वक्त अज्ञात भारी गाडिय़ां इन्हें कुचलकर भाग गईं। चूंकि अब बिलासपुर हाईकोर्ट में जिला प्रशासन को जवाब देना है इसलिये अब पशु मालिकों के खिलाफ भी कार्रवाई करने आदेश जारी कर दिया गया है। जो लोग खुले में गाय बैलों को छोड़ रहे हैं, उनके खिलाफ न केवल जुर्माना लगाने का बल्कि दोबारा ऐसा करते पाए जाने पर जेल भेजने का अधिकार सभी एसडीएम को दिए गए हैं। हालांकि इस एक्ट के लागू होने के बाद कोई कार्रवाई अब तक नहीं हुई है। मूक जानवरों की मौत तो हो ही रही है, सडक़ दुर्घटनाओं में लोग भी हताहत हो रहे हैं। राजधानी रायपुर हो या बिलासपुर एक ही हाल है। आश्चर्च यह है कि स्वच्छ शहरों की अपनी-अपनी श्रेणी में इन दोनों ही शहरों को अवार्ड हासिल हुए हैं।
जेल भी अखाड़ा

कोल स्कैम में फंसे पूर्व सीएम भूपेश बघेल के करीबी सूर्यकांत तिवारी की जमानत अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में 4 अगस्त को सुनवाई होगी। सूर्यकांत करीब तीन साल से रायपुर सेंट्रल जेल में हैं। जमानत अर्जी पर सुनवाई से पहले एक अन्य आरोपी निखिल चंद्राकर के आरोपों से सूर्यकांत की मुश्किलें बढ़ गई है।
निखिल चंद्राकर ने आरोप लगाया है कि अप्रैल में सूर्यकांत उनके साथ दुर्व्यवहार किया था। इसके बाद निखिल को धमतरी जेल में शिफ्ट कर दिया गया। जेल प्रशासन ने पुरानी शिकायतों के आधार पर सूर्यकांत को अंबिकापुर जेल शिफ्ट करने की वकालत भी की है। जो खारिज हो गई।
जेल प्रशासन का आरोप है कि गत 20 जुलाई को जेल में निरीक्षण के दौरान बैरक में सूर्यकांत का बर्ताव खराब रहा है। सूर्यकांत के वकील जेल प्रशासन और निखिल के आरोपों को निराधार बता रहे हैं। यह तर्क दिया जा रहा है कि सूर्यकांत की जमानत को रोकने के लिए नए आरोप गढ़े जा रहे हैं। यह भी बताया गया कि नए आरोपों की वजह से सुप्रीम कोर्ट में दो बार सुनवाई की तिथि आगे बढ़ चुकी है। इस केस में ज्यादातर आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल चुकी है। ईओडब्ल्यू-एसीबी सूर्यकांत की जमानत याचिका का विरोध किया है।
पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने अपने फेसबुक पर लिखा है कि आजकल प्रदेश में देखा जा रहा है कि जेलों को भी राजनीति का अखाड़ा बना दिया गया है। वहां भी दल देखकर प्रतिशोध का भाव देखा जा रहा है।
उन्होंने आगे लिखा कि कल जिस प्रकार से दुर्ग में चुने गए सांसदों को समय देने के बाद भी बंदियों से रोका गया, फिर भारी विरोध के बाद मिलने दिया गया। इसके अलावा रायपुर जेल से भी राजनीतिक प्रतिशोध की खबरें आ रही हैं। पूर्व सीएम के बेटे चैतन्य भी शराब घोटाला केस में रायपुर सेंट्रल जेल में हैं। स्वाभाविक है कि पूर्व सीएम की भी जेल की तमाम घटनाक्रमों की जानकारी के साथ बारीक नजर है। ऐसे में सूर्यकांत की जमानत अर्जी पर क्या होता है, यह तो चार तारीख को ही पता चलेगा।
तुम्हीं ने दर्द दिया है, तुम्हीं दवा देना
महासमुंद के पूर्व विधायक विनोद चंद्राकर को शहर जिला कांग्रेस कमेटी ने पार्टी के बड़े नेताओं के खिलाफ बयानबाजी पर नोटिस जारी किया है। चंद्राकर को पार्टी ने विधानसभा टिकट नहीं दी थी। उनकी जगह श्रीमती रश्मि चंद्राकर को टिकट दी थी। मगर वो चुनाव हार गईं। इसके बाद से समय-समय पर विनोद चंद्राकर अपनी नाराजगी का इजहार करते रहते हैं। पिछले दिनों विनोद ने पार्टी नेताओं के खिलाफ बयान दिया, तो उनसे लिखित में जवाब मांगा गया है।
नोटिस मिलने के बाद शारीरिक तकलीफों की वजह से पूर्व विधायक रायपुर के एक अस्पताल में भर्ती हैं। उन्हें देखने के लिए पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और प्रदेश के प्रभारी सचिव विजय जांगिड़ सहित अन्य नेता पहुंच चुके हैं। वो नेता भी विनोद चंद्राकर का कुशलक्षेम पूछने अस्पताल पहुंच रहे हैं, जिन्होंने चंद्राकर को नोटिस देने के लिए कहा था। यानी साफ है कि जिन्होंने दर्द दिया, वही अब दवा भी दे रहे हैं। इससे खुद विनोद चंद्राकर संतुष्ट नजर आ रहे हैं।
सवन्नी के खिलाफ मोर्चा
प्रदेश भाजपा संगठन के बड़े नेता, और क्रेडा के चेयरमैन भूपेंद्र सिंह सवन्नी पर कमीशनखोरी के आरोपों की पड़ताल चल रही है। सीएम विष्णुदेव साय ने शिकायतों पर ऊर्जा सचिव से रिपोर्ट तलब किया है। आम तौर पर किसी न किसी नेता या अफसर के खिलाफ शिकायतें होती रहती हैं। सालों बाद ऐसा हुआ है जब सीएम ने सीधे जांच करने के लिए कह दिया। डॉ. रमन सिंह के सीएम रहते बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ ऐसी ही एक शिकायत आई थी। तब बृजमोहन अग्रवाल पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर थे। एक कंपनी ने अग्रवाल पर डॉलर में रिश्वत मांगने की शिकायत की थी।
शिकायत को डॉ. रमन सिंह ने संज्ञान में लिया, और जांच एजेंसी से रिपोर्ट मांगी। बाद में शिकायत ही फर्जी पाई गई। मगर सवन्नी का मामला थोड़ा अलग है। क्रेडा सीएम के ऊर्जा विभाग के अधीन हैं। यहां पहले भी काफी शिकायतें होती रही हैं। मगर इस बार शिकायती पत्र को सीएम ने गंभीरता से लिया है।
सवन्नी पार्टी संगठन के पसंदीदा माने जाते हैं। उनके खिलाफ शिकायती पत्र सामने आते ही संगठन के प्रमुख नेता टूट पड़े। पार्टी ने हड़बड़ी में क्रेडा ठेकेदार-सप्लायरों का एक पत्र सार्वजनिक किया जिसमें सवन्नी के खिलाफ शिकायतों को फर्जी बताया। ठेकेदारों ने सीएम को पत्र लिखकर सवन्नी के खिलाफ को नस्तीबद्ध करने का आग्रह किया है। इस बात की संभावना है कि शिकायत नस्तीबद्ध हो जाएगी। इसकी वजह यह है कि कमीशनखोरी की शिकायत का कोई ठोस सुबूत सामने नहीं आया है। बावजूद इसके सवन्नी के खिलाफ मुद्दा, तो बन ही गया है।
हालांकि सवन्नी बंधु अपने मृदु व्यवहार के लिए जाने जाते हैं। भूपेन्द्र सवन्नी को काफी मेहनती पदाधिकारी माना जाता है। वो नगरीय निकाय चुनाव के संगठन प्रभारी भी थे। पार्टी को निकाय चुनाव में अभूतपूर्व सफलता मिली है। इसका कुछ श्रेय सवन्नी को भी दिया जाता है।
बावजूद इसके सवन्नी की कार्यशैली के खिलाफ पार्टी के कई नेता मुखर रहे हैं। वो रायपुर संगठन के प्रभारी थे तब केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी के सामने पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के साथ नोकझोंक हुई थी। उनके भाई महेन्द्र सिंह सवन्नी मंडी बोर्ड के एमडी हैं, जिन्हें रिटायरमेंट के बाद दो बार एक्सटेंशन दिया जा चुका है। ऐसी चर्चा है कि विभागीय मंत्री रामविचार नेताम इससे सहमत नहीं रहे हैं। कुल मिलाकर भाजपा में ताकतवर सवन्नी बंधुओं के खिलाफ मोर्चा भी खुला है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
सीधा राहुल-कनेक्शन
युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मंगलवार की देर रात घोषणा की गई। पहली बार छत्तीसगढ़ से पांच पदाधिकारी बनाए गए हैं। खास बात ये है कि नवनियुक्त पदाधिकारी में से चार तो किसी भी खेमे से नहीं जुड़े नहीं हैं, ये सीधे राहुल गांधी की टीम का हिस्सा रहे हैं।
नव नियुक्त पदाधिकारियों में से तीन तो पहले से ही युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं। इनमें दुर्ग के मोहम्मद शाहिद, राजनांदगांव के निखिल द्विवेदी, और सरगुजा की शशि सिंह हैं। शाहिद को युवक कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है। वो पहले राष्ट्रीय सचिव थे। इसी तरह निखिल, और शशि सिंह भी राष्ट्रीय सचिव थे। दोनों को फिर सचिव बनाया गया है। खास बात ये है कि मोहम्मद शाहिद, और शशि सिंह युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की दौड़ में भी थे। दोनों का इंटरव्यू भी हुआ था।
दिवंगत पूर्व मंत्री तुलेश्वर सिंह की पुत्री शशि सिंह को तो पार्टी ने सरगुजा लोकसभा सीट से प्रत्याशी भी बनाया था। प्रदेश से दो नए चेहरे अवंतिका तिवारी, और प्रीति मांझी को भी युवक कांग्रेस की नई टीम में जगह मिली है। अवंतिका तिवारी राष्ट्रीय सचिव, तो जीपीएम जिले की रहवासी प्रीति मांझी को संयुक्त सचिव का दायित्व सौंपा गया है। निखिल द्विवेदी को तो पूर्व सीएम भूपेश बघेल कैंप का माना जाता है, लेकिन बाकी चारों किसी खेमे से नहीं हैं। कुछ लोग मानते हैं कि युवक कांग्रेस के नवनियुक्त पदाधिकारियों के मार्फत पार्टी हाईकमान की प्रदेश में पार्टी की गतिविधियों पर सीधी नजर रहेगी। देखना है कि नए पदाधिकारी क्या कुछ करते हैं।
चर्च संपत्ति पर मंडराते गिद्ध
राजधानी रायपुर के मसीही समाज की बाबर बंगले, और ग्रास मेमोरियल ग्राउंड के लीज की अवधि खत्म होने के बाद जिला प्रशासन ने अपने आधिपत्य में ले लिया है। इससे मसीही समाज में हडक़ंप मचा हुआ है, और लीज की अवधि नहीं बढ़ाए जाने पर हाईकोर्ट में याचिका दायर भी की गई है।
दोनों संपत्तियों की कीमत करीब 4 सौ करोड़ की बताई जा रही है। लीज निरस्त करने के लिए हिन्दू संगठन लगातार दबाव भी बना रहे थे। हालांकि इन संपत्तियों पर मसीही समाज के भीतर पहले भी काफी विवाद होता रहा है। दोनों संपत्ति मसीही समाज के प्रोटेस्टेंट चर्च के आधिपत्य में रही है।
बताते हैं कि बाबर बंगले, और ग्रास मेमोरियल ग्राउंड के सौदे की खबर पहले सुर्खियों में रही है। मसीही समाज के एक पदाधिकारी के मुताबिक 80 के दशक में जबलपुर डायसिस के पदाधिकारियों ने बाबर बंगले का सौदा भी कर दिया था। तब मसीही समाज के युवकों ने कानूनी लड़ाई लड़ी, और प्रदर्शन किया। इसके बाद सरकार के हस्तक्षेप के बाद बंगला बिकने से रह गया।
बाद में 1995-96 में ग्रास मेमोरियल ग्राऊंड को भी रायपुर के एक सीए परिवार को बेच दिया गया था। तब मसीही समाज की यूथ विंग के जॉन राजेश पॉल की अगुवाई में धरना हुआ, और उस समय खेल संगठन भी समाज के पक्ष में खुलकर सामने आ गए। इसके प्रतिफल यह रहा कि सौदा निरस्त हो गया। समाज से जुड़े कुछ लोग मानते हैं कि चर्च की एक कमेटी है जो कि संपत्तियों की देखरेख करती है। लीज की अवधि खत्म होने के बाद कमेटी ने लीज की अवधि बढ़ाने की दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की।
बड़े कारोबारियों-बिल्डरों की नजर पॉश इलाके की प्रापर्टी पर पहले से रही है। अब जब लीज निरस्त हो गया है, और प्रॉपर्टी को प्रशासन ने अधिग्रहित कर दिया है, तो इसको लेकर मसीही समाज के प्रोटेस्टेंट बिरादरी में हडक़ंप मचा हुआ है। समाज के लोग लगातार बैठकें कर रहे हैं, और प्रापर्टी पर हक छोडऩे के लिए तैयार नहीं हैं। विवाद आने वाले दिनों में बढ़ सकता है। मसीही समाज नन की गिरफ्तारी को लेकर भी आंदोलित है। देखना है आगे क्या होता है।
केंद्र में डीजी के लिए यहां से कोई नहीं

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 1993-94 बैच के देश भर से 35 आईपीएस अफसरों को डीजी पद के लिए केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए अपनी सूची में शामिल किया है। इसे इंपैनलमेंट कहा जाता है। और भविष्य में पद रिक्त होने पर इन्हीं अफसरों में से नियुक्ति की जाती है।
ये नियुक्तियां केंद्रीय सुरक्षा बलों, सुरक्षा एजेंसियों और गृह विभाग के अन्य विभागों में होती हैं। नियुक्ति चाहे हो न हो कई अफसर अपने इंपैनलमेंट को ही तवज्जो देने से नहीं से चूकते। क्योंकि मोदी 1.0 से अब तक कोई आसानी से इंपैनल नहीं किया जा रहा। हर अफसर के पूरे सर्विस रिकार्ड की पुख्ता जांच मेरिट बेस पर ही किया जा रहा है।
वर्षों बाद इस बार छत्तीसगढ़ से एक भी अफसर को इंपैनल नहीं किया गया है। जबकि इन दोनों बैच से छत्तीसगढ़ में तीन आईपीएस अफसर उपलब्ध हैं। तीनों ही यहां डीजीपी के भी दावेदार हैं। सबसे उल्लेखनीय है कि तीनों अफसरों को इससे पहले एसपी, डीआईजी आईजी के रूप में भी प्रतिनियुक्ति पर जाने का अवसर नहीं मिला।
एक को बुलाया गया था लेकिन वे नहीं गए। एक नियम यह भी कहता है कि उपरोक्त जूनियर पद पर एक बार नियुक्त होने पर डीजी जैसे शीर्ष पद पर नियुक्ति आसान होती है। बहरहाल अब ये तीनों अफसर छत्तीसगढ़ में ही रहकर सेवानिवृत्त होंगे।
संवेदनशील मुद्दे पर टकराव
पहले उत्तर छत्तीसगढ़ के जशपुर, पत्थलगांव और सरगुजा से आदिवासी लड़कियों को रोजगार के नाम पर रांची के रास्ते देश के कोने-कोने में भेज दिया जाता था। मगर, पिछले कुछ वर्षों से बस्तर से युवाओं को, खासकर लड़कियों को ले जाया जा रहा है। दुर्ग में दो ननों को नारायणपुर की तीन आदिवासी लड़कियों को ले जाते पकड़े जाने की घटना ने राष्ट्रीय बहस छेड़ दी है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, सांसद प्रियंका गांधी, माकपा की वृंदा करात सहित कई नेताओं ने ननों को बिना सबूत गिरफ्तार करने पर आपत्ति जताई है। मोटे तौर पर इनका कहना है कि अपने वोट बैंक को ठोस करने के लिए जबरन धर्मांतरण, मतांतरण का आरोप लगाया गया और अल्पसंख्यकों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि ये लड़कियां अपने माता-पिता से मंजूरी लेकर नर्सिंग जैसे काम के लिए बाहर जा रही थीं।
मसला केवल कानूनी या धार्मिक बहस का नहीं है, बल्कि अपने सामने यह सवाल भी खड़ा करती है कि आखिर क्यों आदिवासी इलाकों की लड़कियां परदेस में काम की तलाश में जाती हैं? क्या यह सच नहीं है कि इनके पास रोजगार, शिक्षा और बेहतर जिंदगी के अवसर बेहद सीमित हैं। इन्हें कौशल प्रशिक्षण देने का काम भी कम है। प्रशिक्षण मिल भी जाए तो प्लेसमेंट नहीं है। फिर ये बाहर जाकर कौन सा काम आखिर करेंगीं? नर्सिंग या घरेलू साफ-सफाई की नौकरी। मगर, लोभ यह है कि इसमें पैसे इतने तो मिलेंगे कि तंग हाल मां-बाप को कुछ रुपये भेज पाएंगे। बहुत पढ़े लिखे लोगों में ही नहीं, कम पढे युवाओं में भी रोजगार की स्थिति विस्फोटक होती जा रही है।
स्थिति से निपटने के लिए जरूरी है कि आदिवासी इलाकों में स्थानीय स्तर पर रोजगार के मौके बढ़ाए जाएं। कुछ संगठन तब सामने आते हैं जब कथित रूप से तस्करी होने की बात सामने आती है। तब नहीं आते जब पीडि़त लडक़े-लड़कियों को रोजगार की जरूरत होती है। पुलिस पर दबाव बनाकर एफआईआर तो करा दी जाती है, जेल में डाल दिया जाता है, पर सरकार को इस बात के लिए बाध्य नहीं किया जाता कि उन्हें काम का मौका उनके अपने घर-गांव में मिल जाए।
रायपुर के दिल में बसा एक चौराहा

रायपुर की गलियों में घूमते हुए अगर आपने शास्त्री चौक पार किया हो, तो शायद ये सवाल कभी न कभी जरूर मन में उठा होगा कि ये जगह पहले कैसी रही होगी? क्या हमेशा से इसका यही नाम था? नहीं। शहर के बुज़ुर्गों से बात करने पर पता चलता है कि आज के शास्त्री चौक को कभी सिल्वर जुबली चौक कहा जाता था। ये बात 1940 के आस-पास की है, जब यहां पास ही सिल्वर जुबली अस्पताल हुआ करता था। इस अस्पताल के अंग्रेज डॉक्टर डॉ. कैली अपने सेवा-भाव के लिए जाने जाते थे। जैसे-जैसे समय बदला, अस्पताल की जगह डी.के. अस्पताल ने ली—जो दाऊ कल्याण सिंह जी द्वारा दान में दी गई जमीन पर बना। उसी के साथ चौक का नाम भी बदलकर डीके चौक पड़ गया।फिर 11 जनवरी 1966 को देश को एक गहरा झटका लगा। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का निधन हुआ। उनकी याद में चौक के बीचों-बीच एक आदमकद प्रतिमा लगाई गई और तब से इस जगह को मिला नाम शास्त्री चौक। इस प्रतिमा के पास एक सुंदर फव्वारा भी बनाया गया, जो शाम के समय रंग-बिरंगी रोशनी में चमकता था। मजे की बात ये कि गर्मियों में सिर्फ लोग ही नहीं, पास की भैंसें भी इस फव्वारे में डुबकी लगाने आ जाती थीं। फिर नगर निगम वालों की भैंस निकालने की मशक्कत देखने लायक होती थी।शास्त्री चौक सिर्फ इतिहास नहीं, संघर्षों का भी गवाह रहा है। यहां धरने हुए, आंदोलन हुए। कभी अंबेडकर अस्पताल को शुरू करवाने की मांग पर जूनियर डॉक्टर्स ने मोर्चा संभाला, तो कभी सिंधी महिला कॉलेज के शिक्षक-शिक्षिकाओं ने 40 दिन की भूख हड़ताल की, दीवाली के दिन भी।समय के साथ शास्त्री जी की प्रतिमा तीन बार हटी और बदली जगहों पर लगाई गई। मगर, वजह आज तक किसी को नहीं मालूम। शास्त्री चौक, आज भी हर गुजरने वाले से एक बात कहता है- मैं सिर्फ चौराहा नहीं, रायपुर की यादों का मुकाम हूं। ( तस्वीर और विवरण-गोकुल सोनी)
जंगल महकमे में बदलाव
सीनियर आईएफएस अफसरों के प्रभार में छोटा सा बदलाव हो सकता है। पीसीसीएफ (वर्किंग प्लान) आलोक कटियार दो दिन बाद यानी 31 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। कटियार के रिटायरमेंट के साथ ही पीसीसीएफ स्तर के अफसरों के प्रभार में बदलाव होगा। यही नहीं, केन्द्र ने आईएफएस अफसरों के कैडर रिवीजन के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी है।
इस साल पीसीसीएफ स्तर के कई अफसर रिटायर हो रहे हैं। इनमें से आईएफएस के 93 बैच के अफसर रहे आलोक कटियार राज्य बनने के बाद से फारेस्ट के ताकतवर अफसरों में गिने जाते रहे हैं। ज्यादातर समय वो अलग-अलग विभागों में पोस्टेड रहे हैं।
आईएफएस का कैडर 153 से बढक़र 160 हो गया है। इससे राज्य वन सेवा के आईएफएस अवार्ड के लिए पदों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी होगी। इस साल राज्य वन सेवा की अफसर निर्मला खेस्स को आईएफएस अवार्ड के लिए प्रस्ताव भेजा गया था। डीपीसी हो चुकी है लेकिन केन्द्र से आदेश जारी नहीं हो पाए हैं।
कभी इसे कहते थे सराय चौक...

यह तस्वीर रायपुर के हृदयस्थल जयस्तंभ चौक की है। एक ऐसा स्थान जो केवल एक चौक नहीं, बल्कि इतिहास, बलिदान और गौरव का प्रतीक है।
10 दिसंबर 1857 को इसी जगह पर छत्तीसगढ़ के पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह को अंग्रेजों ने फांसी पर लटकाया था। देशभक्ति की इस पवित्र धरती को नमन करते हुए बाद में यहां एक जयस्तंभ का निर्माण किया गया, जिस पर आज भी गर्व से लिखा है-15 अगस्त 1947। तभी से इस चौक का नाम पड़ा जयस्तंभ चौक।
पिछली सरकार के कार्यकाल में शहीद वीर नारायण सिंह की स्मृति में उनकी प्रतिमा भी इसी चौक पर स्थापित की गई। साथ ही एक सुंदर चबूतरे का निर्माण हुआ, जो आज लोगों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। वैसे रायपुर में ऐसे दो और जयस्तंभ हैं, जिनकी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है... पर वो किस्से फिर कभी।
आज़ादी से पहले के समय में बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस चौक का मूल नाम सराय चौक था। बुजुर्ग स्वतंत्रता संग्राम सेनानी केयूर भूषण और कई अन्य पुराने रायपुरवासियों के अनुसार, उस समय जहां आज रविभवन है, वहां कभी एक सराय यानि मुसाफिरखाना (धर्मशाला) हुआ करता था। दूर-दूर से आने वाले व्यापारी, मुसाफिर और राहगीर वहीं ठहरते थे। फिर जब जयस्तंभ का निर्माण हुआ, तो यह स्थान जयस्तंभ चौक के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
यह 1960 से पहले की तस्वीर है। जहां आज गिरनार होटल है, वहां कभी रामजी बिल्डिंग हुआ करती थी। इसी बिल्डिंग के नीचे कलामंदिर और बॉम्बे डाइंग की कपड़ों की दुकान थी , जो उस समय स्टाइल और फैशन के प्रतीक माने जाते थे। ( तस्वीर और विवरण- गोकुल सोनी)
स्वच्छता सर्वेक्षण-ब्यूटी कांटेस्ट?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में छत्तीसगढ़ के बिल्हा की तारीफ की। अपनी श्रेणी में यह देश का सबसे स्वच्छ शहर बन गया! बिलासपुर और रायपुर भी अपनी-अपनी श्रेणियों में दूसरे और चौथे नंबर पर। दिल्ली जाकर जनप्रतिनिधि और अफसर अवार्ड ले आए लेकिन बारिश ने इन शहरों को ऐसा धोया कि सारी हकीकत सामने आ गई। जब जगह-जगह जल जमाव हुआ, नालियां सच उगलने लगीं और गलियों से होते घरों में बदबूदार पानी घुसा तो सब कीचड़-कीचड़ हो गया।
स्वच्छता सर्वेक्षण अब एक दिखावे का तमाशा बनकर रह गया है। सर्वे टीम आती है, चुनिंदा गलियों का टूर करती है, फोटो खींची जाती हैं, प्रेजेंटेशन बनते हैं, और फिर तमगे टांग दिए जाते हैं। कचरा प्रबंधन की हकीकत जाम नालियों के नीचे दबी रह जाती हैं।
बारिश के दौरान और उसके बाद आई तस्वीरों ने बता दिया कि स्वच्छता के गाड़े गए झंडे दरअसल खोखले हैं। अफसरों और नेताओं के अलावा कौन सीना ठोंक रहा है कि अपने छत्तीसगढ़ के तीन शहर सफाई में पहले, दूसरे और चौथे नंबर पर आए? सोचिए, जिन शहरों को इनसे नीचे रैंक दी गई, वहां क्या हाल होगा? उन कस्बों में शायद नालियां सालों से साफ ही नहीं हुई होंगी, कचरा डंपिंग और बारिश वहां हर साल आपदा बनकर आती होगी।
स्वच्छता सर्वेक्षण क्या कोई ब्यूटी कांटेस्ट था? जिस दिन सर्वे वाले आएं उस दिन चकाचक कर दो और अवार्ड हासिल कर लो?
दो पर कब्जा, एक पर सौदा बाकी
लगता था कि दिल्ली, नोएडा और मुंबई तक ही मीडिया का कॉरपोरेटाइजेशन सीमित है, लेकिन अब छत्तीसगढ़ में भी इसकी दस्तक हो चुकी है। चर्चा है कि छत्तीसगढ़ में लोकप्रिय स्थानीय चैनल सीसीएन और बीसीसी को अब एक बड़े कारोबारी समूह जीटीपीएल ने खरीद लिया है। जीटीपीएल यानि गुजरात टेली लिंक प्राइवेट लिमिटेड। एक और बड़े प्रसार वाले ग्रैंड न्यूज चैनल के साथ इनका सौदा नहीं हो पाया है। जब एनडीटीवी की फंडिंग कंपनी को खरीदकर अडानी ने अपने कब्जे में लिया था तो मीडिया जगत में हाहाकार मचा था। मगर, स्थानीय चैनलों के साथ हुई यह सौदेबाजी चर्चा में ज्यादा नहीं है। जीटीपीएल ने हैथवे को भी एक सहायक कंपनी बताया है। हैथवे का नेटवर्क पूरे देश में फैला है। ग्रैंड के गुरुचरण सिंह होरा और सीसीएन के अशोक अग्रवाल दोनों ही हैथवे के जरिये ग्राहकों को चैनलों की सेवा पहुंचाते थे। दोनों के बीच लेन-देन को लेकर बड़ा विवाद भी हुआ, मामला थाना-कचहरी तक पहुंचा।
जीटीपीएल को रिलायंस इंडस्ट्रीज की सहायक कंपनी बताया गया है, जिसका स्वामित्व अंबानी के हाथ में है। ऐसी चर्चा कुछ हलकों में है कि इस नए नेटवर्क फैलाव में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रुचि रही।
ये स्थानीय केबल नेटवर्क चार पांच चैनल चलाते हैं, जिनमें कम से कम एक समाचारों का जरूर होता है। इन स्थानीय चैनलों के साथ कम से कम यह बात तो रही है कि वे यदि सीधे कलेक्टर या स्थानीय मंत्री पर हमला न करें तो उनके काम पर हस्तक्षेप नहीं होता है। सडक़ों, स्कूलों, अस्पतालों की दुर्दशा और नीचे के स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर करने में इन चैनलों की भूमिका रही है, जो सरकारों के खिलाफ जाती है। पर, अब जब गुजरात की कंपनी ने इसे खरीद लिया है तो ऐसी खबरों को कितनी जगह मिलेगी, यह देखना होगा।
अब जब जीटीपीएल ने सौदा कर लिया है तो इनमें काम करने वाले कर्मचारियों का क्या होगा? बात यह निकल रही है कि तकनीकी फील्ड में काम करने वाले लगभग सभी कर्मचारियों को तो पुरानी सेवा शर्तों पर ले लिया गया है, लेकिन रिपोर्टर्स और एडिटर्स को खुद रेवन्यू जनरेट करने कहा गया है। इसके लिए विज्ञापनों का एक हिस्सा उनके हाथ आएगा। न केवल न्यूज चैनल के विज्ञापन बल्कि अन्य चैनल जो गाने और फिल्मों के हैं, उनमें भी मिलने वाले विज्ञापन। इसका अभी प्रबंधन बाकी है। रायपुर, बिलासपुर, भिलाई जैसे शहरों से मिलने वाले रेवन्यू का आकलन किया जा रहा है। इसे देखने के लिए एक प्रबंधक भी होगा। जीटीपीएल की असल दिलचस्पी न्यूज नेटवर्क पर बताई जा रही है, जिसका उसी तरह इस्तेमाल होगा, जैसा सेटेलाइट और केबल के जरिये चलने वाले न्यूज चैनलों का होता है।
संगठन में नए चेहरे
भाजपा में हफ्ते-दस दिन के भीतर संगठन, और सरकार में पद बंट सकते हैं। प्रदेश भाजपा संगठन के पदाधिकारियों की सूची लगभग तैयार हो गई है। इससे परे निगम-मंडलों में उपाध्यक्ष, और सदस्य मिलाकर 50 से अधिक नियुक्तियां होंगी।
चर्चा है कि पार्टी ने संगठन में नए चेहरों को अहम जिम्मेदारी देने का मन बनाया है। पार्टी पदाधिकारियों के चयन में सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखा है। कांग्रेस में तो जिला अध्यक्ष, और अन्य पदों पर अजा-अजजा, और पिछड़ा वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक तरह से आरक्षण लागू कर रही है। मगर भाजपा में ये काम नियम बनाए बिना चुपचाप हो रहा है।
चर्चा है कि भाजपा ने पदाधिकारियों की नियुक्ति में क्षेत्रीय संतुलन को भी ध्यान में रखा है। महामंत्री पद के लिए जिन नामों पर मुहर लगने की चर्चा है, उनमें पूर्व विधायक रजनेश ंिसंह, पूर्व विधायक नवीन मारकंडेय, भरतलाल वर्मा और अंबिकापुर के अखिलेश सोनी का नाम हैं।
कुछ सीनियर नेताओं को उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती है। ये वो नेता हैं जो कि पहले जिलाध्यक्ष या अहम पदों पर रहे हैं। स्पीकर डॉ. रमन सिंह के पुत्र पूर्व सांसद अभिषेक सिंह को भी अहम जिम्मेदारी मिलने के संकेत हैं। हालांकि इस पर फैसला होना बाकी है। कई मौजूदा पदाधिकारियों को निगम-मंडलों में एडजस्ट किया जा सकता है। कुल मिलाकर पार्टी की दूसरी पीढ़ी के नेताओं को आगे लाने की मंशा है। ज्यादातर पदाधिकारी 55 वर्ष से कम आयु के होंगे। देखना है किसको क्या कुछ मिलता है।
रवि भगत की राजनीति
डीएमएफ के मसले पर अपनी ही पार्टी के नेता, और सरकार के मंत्री ओपी चौधरी के खिलाफ मोर्चा खोलना प्रदेश भाजयुमो अध्यक्ष रवि भगत को भारी पड़ गया। उन पर पार्टी से निष्कासन की तलवार लटकी है। पार्टी ने उन्हें सात दिन के भीतर नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। चर्चा है कि रवि भगत पिछले कुछ समय से नाराज चल रहे हैं। नाराजगी की एक प्रमुख वजह ये बताई जा रही है कि वो अपनी पत्नी को जिला पंचायत उपाध्यक्ष बनवा चाह रहे थे। मगर पार्टी इसके लिए तैयार नहीं हुई। रायगढ़ जिला पंचायत उपाध्यक्ष पद पर पार्टी ने दीपक सिदार का नाम तय किया, जो कि भगत के ही इलाके लैलूंगा से ही आते हैं। कहा जा रहा है कि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, दोनों ही वित्त मंत्री ओपी चौधरी की पसंद पर तय किए गए थे। इसके बाद से भगत नाराज चल रहे थे। और जब डीएमएफ के खर्चों को लेकर सार्वजनिक बयानबाजी की, तो पार्टी ने सख्ती दिखाई है।
इधर, रवि भगत की नाराजगी को कांग्रेस अवसर के रूप में देख रही है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने उनकी नाराजगी को वाजिब ठहराया है, और समर्थन किया है। कांग्रेस के कुछ पदाधिकारी, रवि भगत से मिलने उनके लैलूंगा स्थित घर भी गए थे। हल्ला है कि रवि भगत किसी तरह की कार्रवाई होने की दशा में कांग्रेस की तरफ रुख कर सकते हैं। मगर कुछ लोग उनकी पृष्ठभूमि को देखकर कांग्रेस में जाएंगे, इसकी संभावना कम देखते हैं।
रवि भगत संघ परिवार से जुड़े हैं। वो अखिल भारतीय परिषद के राष्ट्रीय पदाधिकारी रह चुके हैं। धर्मांतरण आदि के मसले पर काफी मुखर रहे हैं। उनकी सोच कांग्रेस से मेल खाती नहीं दिखती है। फिर भी कभी प्रदेश भाजपा के आधार स्तंभ में रहे नंदकुमार साय पार्टी छोड़ सकते हैं, तो रवि भगत भी ऐसा कर सकते हैं। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
सेंट्रल आईएएस एसो. में 36गढ़

केंद्रीय विभागों में कार्यरत आईएएस अफसरों के संगठन सेंट्रल आईएएस एसोसिएशन के दो दिन पहले चुनाव हुए। गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर भारत के अफसरों के दबदबे वाले इस संगठन के अध्यक्ष तमिलनाडु कैडर के वरिष्ठतम अफसर एस कृष्णन अध्यक्ष चुने गए। दिग्गज अफसरों के बीच से एक नाम पर सहमति बड़ा कठिन था। और नए अध्यक्ष ने अपनी कार्यकारिणी के 18 सदस्यों का चयन भी किया। इस बार इसमें छत्तीसगढ़ को भी स्थान मिला है। नौ कार्यकारिणी सदस्यों में 04 बैच के आईएएस प्रसन्ना आर भी शामिल किए गए हैं। प्रसन्ना कुछ महीने पहले ही गृह मंत्रालय में प्रतिनियुक्ति पर गए हैं ।
वे दिल्ली जाने से पहले छत्तीसगढ़ आईएएस एसोसिएशन के भी सचिव रहे हैं। इस चुनाव से जुड़े अफसरों का कहना है कि करीब एक दशक बाद सेंट्रल एसोसिएशन में छत्तीसगढ़ को यह अवसर मिला है। यह संगठन राज्यों के संगठनों की तरह प्रो गवर्नमेंट नहीं माना जाता। इसका अपना एक दबदबा रूतबा है। इसलिए इन वरिष्ठ अधिकारियों का चुनाव भारतीय नौकरशाही को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने का संकेत देता है।
एसोसिएशन की विभिन्न बैचों और राज्य संवर्गों के अधिकारियों की चिंताओं, कल्याण और व्यावसायिक विकास को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। नवनिर्वाचित नेतृत्व संवर्ग से संबंधित विभिन्न मुद्दों को उठाएगा, नीतिगत चर्चाओं में शामिल होगा और अपने सदस्यों के बीच सामुदायिक भावना को बढ़ावा देगा।
राजधानी रायपुर: बुलेट के हॉर्सपावर के साथ बददिमाग़ी भी आ जाती है। मोटरसाइकिल पर ब्लैकलिस्टेड लिखवाने की फ़ुरसत है, लाडो लिखवाने की फुरसत है, लेकिन नंबरप्लेट की जगह सिर्फ 46 लिखवाकर ताकत दिखाई जा रही है।

तस्वीर/ छत्तीसगढ़/ जय गोस्वामी
भूपेश सरकार ने खुदकुशी की थी?
पूर्व सीएम भूपेश बघेल का जोगी परिवार से छत्तीस का आंकड़ा रहा है। और अंतागढ़ प्रकरण के बाद भूपेश की वजह से ही पूर्व सीएम अजीत जोगी, और उनके बेटे अमित को कांग्रेस से बाहर निकलना पड़ा। और अब जब अमित तो किसी तरह कांग्रेस में वापसी की कोशिश कर रहे हैं, तो पूर्व सीएम भूपेश बघेल रोड़ा बनते दिख रहे हैं। अमित ने तो चैतन्य की गिरफ्तारी के खिलाफ बयान जारी कर भूपेश के साथ एक तरह से पुराने विवाद को खत्म करने के लिए पहल की, लेकिन भूपेश का रुख सकारात्मक नहीं दिख रहा है। भूपेश बघेल की हाल की एक टिप्पणी पर तो अमित जोगी खासे नाराज हैं।
हुआ यूं कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने हरेली के मौके पर अपने निवास में कार्यकर्ताओं को संबोधित कर कहा था कि जिसने भी उनके परिवार को गिरफ्तार किया है, उसकी सरकार गिर गई। भूपेश ने जोगी सरकार का उदाहरण दिया, और कहा कि उनके पिता को तत्कालीन सीएम अजीत जोगी ने गिरफ्तार कराया था। जोगी सरकार चली गई। उन्होंने रमन सरकार का भी उदाहरण दिया। उस समय भी परिवार के लोगों को गिरफ्तार किया गया था, इसके बाद रमन सिंह की सरकार चली गई। पूर्व सीएम ने आगे कहा कि चैतन्य को गिरफ्तार करने वाली साय सरकार का भी यही हाल होगा।
भूपेश बघेल के बयान पर अमित जोगी बिफर पड़े हैं। उन्होंने पूर्व सीएम को नसीहत दी कि स्व. अजीत जोगी, और स्व. नंदकुमार बघेल, दोनों हमारे बीच में नहीं हैं। उनके नाम को राजनीतिक हथियार बनाना अनुचित है। उन्होंने याद दिलाया कि नंदकुमार बघेल जी, खुद भूपेश बघेल के सीएम रहते गिरफ्तार हुए थे। अमित ने पूछा कि पूर्व सीएम ने इस पर कभी कोई सवाल नहीं उठाया।
उल्लेखनीय है कि नंदकुमार बघेल को ब्राम्हण समाज के खिलाफ विवादित बयान देने के आरोप में सितंबर-2021 को रायपुर पुलिस ने गिरफ्तार किया था। तीन दिन जेल में रहने के बाद तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल के पिता जमानत पर रिहा हुए थे। यह भी संयोग है कि खुद भूपेश सरकार की भी वापसी नहीं हो पाई।
आ बैल मुझे मार
पूर्व राज्यपाल रमेश बैस को उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाने की मांग करना प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज को भारी पड़ गया। बैज ने इस सिलसिले में पीएम को बकायदा चि_ी भी लिखी थी। प्रदेश के कई नेताओं ने बैज की शिकायत पार्टी हाईकमान से की थी, और फिर प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने फोन पर बैज को फटकार लगाई। इसके बाद बैज को सफाई देनी पड़ी है।
बैज ने जिस अंदाज में अपनी मांग को लेकर सफाई दी है, उससे भाजपा के कुछ नेताओं का पारा चढ़ गया है। बैज ने कहा कि पूर्व राज्यपाल रमेश बैस, ननकीराम कंवर, और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को भाजपा ने मार्गदर्शक मंडल में ढकेल दिया गया है। इसलिए उन्हें दिल्ली भेजना उचित रहेगा। चंद्राकर पार्टी के मुख्य प्रवक्ता हैं, और सीनियर विधायक हैं। खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने बस्तर लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उनकी पीठ थपथपाई थी। अब जब बैज ने चंद्राकर को दिल्ली भेजने की वकालत कर दी है, तो विवाद बढऩा स्वाभाविक है। यह कहना गलत नहीं होगा कि बैज ने उड़ता तीर अपने पर ले लिया है।
इसे कहते हैं ग्राउंड रिपोर्टिंग

कुछ दिन पहले दिल्ली के एक न्यूज चैनल रिपोर्टर ने गले तक पानी में डूबकर न्यूज कवर किया था और बताया था कि बारिश के बाद सडक़ों का क्या हाल हो गया है। मगर, छत्तीसगढ़ में भी कम साहसी पत्रकार नहीं है। यह दृश्य धमतरी मुख्य मार्ग का है जिसके गड्ढे की गहराई और कीचड़ की परवाह नहीं करते हुए एक रिपोर्टर पालथी मारे बैठे हैं, अपनी जिम्मेदारी निभा रहे है। इंस्टाग्राम पर उनका वीडियो वायरल है। वैसे हाल ही में नगरीय प्रशासन मंत्री ने सडक़ों के गड्ढों को लेकर अफसरों को फटकार लगाई है। उन्हें चेतावनी दी है कि दो माह के बाद सडक़ में में कोई गड्ढा दिखा तो उनकी खैर नहीं। मगर, तब तक तो मॉनसून जा चुका होगा। यानि, इस बारिश में गड्ढे भरने से तो रहे। अफसरों के लिए यही चैन की बात है। वैसे भी बारिश में सडक़ का काम तो हो नहीं पाता। मटेरियल मिलता नहीं, मिलता है तो डालते ही बह जाता है। इसलिए बिना यह सवाल किए, कि बारिश से पहले इन सडक़ों की देखभाल क्यों नहीं की गई, मरम्मत क्यों नहीं हो पाई, पिछले साल का बजट कहां चला गया- अक्टूबर महीने का इंतजार करना चाहिए। शायद तब वह सडक़ सन् 2026 की बारिश तक टिकी रहे।
27 जुलाई : विश्व निशानेबाजी के नक्शे पर जसपाल राणा का पहला स्वर्णिम हस्ताक्षर
नयी दिल्ली, 27 जुलाई। देश के निशानेबाजी के इतिहास में 27 जुलाई का दिन एक मील का पत्थर साबित हुआ, जब जसपाल राणा ने इटली के मिलान शहर में 1994 में 46वीं विश्व निशानेबाजी चैंपियनशिप के जूनियर वर्ग में स्वर्ण पदक हासिल किया। उन्होंने रिकॉर्ड स्कोर (569/600) बनाकर तहलका मचा दिया।
विश्व निशानेबाजी के नक्शे पर जसपाल राणा का यह पहला स्वर्णिम हस्ताक्षर था। उन्होंने इसके बाद बहुत-सी सफलताएं हासिल कर देश का नाम रोशन किया, लेकिन उनका यह पहला सुनहरा कदम हमेशा यादगार रहेगा।
देश-दुनिया के इतिहास में 27 जुलाई की तारीख पर दर्ज अन्य महतवपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है।
- 1789 : पहली संघीय एजेंसी ‘द डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेन अफेयर्स’ की स्थापना।
- 1862 : अमेरिकी शहर कैंटन में तूफान का कहर, 40 हजार लोगों की मौत।
- 1888 : फिलिप प्राट ने पहले इलेक्ट्रिक ऑटोमोबाइल का प्रदर्शन किया।
- 1897 : बाल गंगाधर तिलक को पहली बार गिरफ्तार किया गया।
- 1935 : चीन की यांग जी और होआंग नदी में बाढ़ से दो लाख लोगों की मौत।
- 1982 : तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की लगभग 11 साल में पहली अमेरिकी यात्रा।
- 1987 : खोजकर्ताओं ने टाइटैनिक का मलबा खोजा।
- 1994 : निशानेबाज जसपाल राणा ने विश्व शूटिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता।
- 1996 : अमेरिका के जॉर्जिया प्रांत के अटलांटा शहर में आयोजित ओलंपिक खेलों के रंगारंग कार्यक्रम के दौरान बम धमाका।
- 2003 : प्रसिद्ध हास्य कलाकार बॉब होप का निधन।
- 2006 : रूसी प्रक्षेपण यान नेपर धरती पर गिरा।
- 2024: इजराइल ने गाजा के स्कूल पर हवाई हमले किये, बच्चों समेत 30 लोगों की मौत।
- 2024: कमला हैरिस ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए आधिकारिक तौर पर उम्मीदवारी की घोषणा की। (भाषा)


