राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : ग्रामीण आवास से कांग्रेस बेघर?
13-May-2025 6:21 PM
राजपथ-जनपथ : ग्रामीण आवास से कांग्रेस बेघर?

ग्रामीण आवास से कांग्रेस बेघर?

पीएम आवास एक ऐसा विषय है, जिस पर भाजपा रह रहकर हमलावर हो जाती है, और कांग्रेस पर निशाना साधती है। पिछले पांच साल से पीएम आवास के मसले पर कांग्रेस बैकफुट पर है। यह विधानसभा, और लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए बड़ा मुद्दा रहा है। दरअसल, भूपेश सरकार ने पीएम आवास योजना के लिए अंशदान जारी नहीं किया। इस वजह से आवास योजना पिछड़ गई। कांग्रेस इसको खारिज नहीं कर पाती है, क्योंकि अंशदान नहीं देने की वजह से तत्कालीन पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, और पंचायत मंत्रालय छोड़ दिया था।

केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान रायपुर आए, तो इस मसले पर फिर हमलावर हो गए। उन्होंने कह दिया कि पिछली सरकार के मुखिया ने अपने पंचायत मंत्री के कहने पर भी अंशदान नहीं दिया था। भाजपा की पीएम आवास के जरिए एक बड़ा वोट बैंक तैयार करने की रणनीति है। सरकार बनते ही पहली कैबिनेट में 18 लाख ग्रामीण आवास मंजूर किए गए। खुद सीएम विष्णुदेव साय इस योजना पर अमल की मॉनिटरिंग कर रहे हैं।

 पंचायत विभाग के मुखिया, डिप्टी सीएम विजय शर्मा लगातार पीएम आवास निर्माण की समीक्षा कर रहे हैं। पिछले दिनों रिश्वतखोरी के मामले की शिकायत पर चार कर्मचारियों को बर्खास्त भी किया गया था। शिवराज सिंह चौहान आए, तो वर्ष-2012, और 18 की सर्वे सूची के छूटे हुए तीन लाख और हितग्राहियों के लिए आवास निर्माण के प्रस्ताव पर सहमति दी गई। कुल मिलाकर आवास निर्माण पर आने वाले समय में राजनीति गरम रहेगी। देखना है कि कांग्रेस इसका क्या तोड़ निकालती है।

राजधानी पैसेवाले के हवाले ?

कांग्रेस में रायपुर शहर जिलाध्यक्ष के लिए जोड़ तोड़ चल रही है। हालांकि जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की प्रक्रिया बदल दी गई है। ऐसे में किस नेता की चलेगी, यह कहना अभी कठिन है। पार्टी के लोगों का सोचना है कि राजधानी से ही माहौल बनता है। इसलिए आर्थिक रूप से सक्षम, और कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रिय व्यक्ति को बनाया जाना चाहिए।

चूंकि शहर जिलाध्यक्ष गिरीश दुबे का कार्यकाल पूरा हो चुका है। ऐसे में उनका बदलना तय है। जिन नामों पर चर्चा हो रही है उनमें युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय पदाधिकारी रहे दीपक मिश्रा, पूर्व सीएम भूपेश बघेल के खेमे से विनोद तिवारी, और श्रीकुमार मेनन सहित कुछ नाम चर्चा में हैं। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, सुबोध हरितवाल को शहर जिले की कमान सौंपने के पक्ष में बताए जाते हैं। मगर हाईकमान क्या सोचती है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।

सनावल में सिपाही की हत्या से उठते सवाल

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के थाना क्षेत्र सनावल में अवैध रेत खनन की सूचना पर गई पुलिस-वन विभाग की संयुक्त टीम पर हुए हमले में सिपाही शिवभजन सिंह की ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या कर दी गई। बाकी जवान जान बचाकर भागे।

कन्हर नदी झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा पर बहती है। यहां से निकाली गई रेत की तस्करी झारखंड में बड़े पैमाने पर होती है। यह पूरा खेल अफसरों और माफियाओं की अघोषित साझेदारी के बिना संभव नहीं। हैरानी की बात नहीं कि कुछ ही दिन पहले, इसी इलाके में जब कुछ गाडिय़ों को पुलिस ने पकडक़र खनिज विभाग को सौंपा, तो बिना किसी कार्रवाई के उन्हें छोड़ दिया गया।

सिपाही की हत्या के बाद त्वरित कार्रवाई में थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया गया। यह प्रशासनिक परंपरा बन चुकी है। क्या थानेदार एसपी या कलेक्टर को भरोसे में लिए बिना बार-बार छापेमारी कर रहे थे, जिसकी सजा दी गई? 

रेत माफिया, कबाड़ माफिया, राशन माफिया, ये सभी किसी न किसी रूप में राजस्व, पुलिस और प्रशासन के भीतर एक मजबूत पैठ बना चुके हैं। थानेदार, तहसीलदार, खनिज निरीक्षक, हर स्तर पर वसूली का एक हिस्सा बंधा हुआ है, जो ऊपर तक पहुंचता है। यही वजह है कि जब कार्रवाई होती भी है, तो केवल दिखावे भर की। असली गुनहगार, जो योजनाएं बनाते हैं, राजनीतिक संरक्षण देते हैं, वे पर्दे के पीछे रहते हैं।

दिसंबर 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजापुर से पराजित भाजपा प्रत्याशी पूर्व मंत्री महेश गागड़ा ने वहां के तत्कालीन कलेक्टर राजेंद्र कटारा पर गंभीर आरोप लगाए थे। प्रेस कांफ्रेंस कर और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर उन्हें कांग्रेसी कलेक्टर बताया और चुनाव हराने का आरोप लगाया। यह भी कहा था कि इनके घोटालों की हम सरकार बनते ही जांच कराएंगे। आज वही अफसर बलरामपुर कलेक्टर हैं। यह कृषि मंत्री रामविचार नेताम का इलाका है। जाहिर है, उनसे तालमेल ठीक ही होगा, वरना उनके ही एक वरिष्ठ नेता गागड़ा, जिस अफसर को जांच के घेरे में लाने की बात कर रहे थे, उन्हें दूसरे जिले का कलेक्टर बनाकर कैसे बिठाया जाता?


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