राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : कान घुमाकर पकड़ो तो कानूनी...
24-May-2025 6:58 PM
राजपथ-जनपथ : कान घुमाकर पकड़ो तो कानूनी...

कान घुमाकर पकड़ो तो कानूनी...

सुप्रीम कोर्ट में कल एक याचिका पर सुनवाई हुई जिसमें ऑनलाइन सट्टेबाजी, खासतौर पर गेमिंग ऐप्स के खिलाफ कानून बनाने की मांग की गई है। छत्तीसगढ़ के लिए यह बहस इसलिए खास है क्योंकि यहीं से जन्मा महादेव सट्टा ऐप अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित और विवादित हो चुका है। छत्तीसगढ़ से शुरू हुए इस ऐप का संचालन अब दुबई से हो रहा है। इसके प्रमोटर रवि उप्पल और सौरभ चंद्राकर के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी हो चुका है, लेकिन वे अब तक गिरफ्त से बाहर हैं। छत्तीसगढ़ सहित देशभर में इससे जुड़े सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जिनमें राजनीतिक लोग और कारोबारी भी शामिल हैं।

पूरे परिदृश्य में सबसे दिलचस्प यह है कि एक ओर महादेव ऐप जैसे प्लेटफॉर्म को अवैध माना जाता है, वहीं दूसरी ओर ड्रीम 11, रमी सर्किल, गैम्सक्राफ्ट, एमपीएल, जूबी जैसे ऐप्स को कानूनी मान्यता है। बड़े सेलिब्रिटी इनका प्रचार कर रहे हैं, टीवी-अखबारों में इनके बड़े-बड़े विज्ञापन चल रहे हैं और सरकार इनसे 28 प्रतिशत जीएसटी भी वसूल रही है।

दोनों में फर्क की वजह है, कानून में बताया गया तकनीकी अंतर। गेम ऑफ चांस बनाम गेम ऑफ स्किल। महादेव जैसे प्लेटफॉर्म केवल दांव लगाने पर आधारित हैं—यानी ‘चांस’। पैसा लगाएं, किस्मत साथ रहेगी तो जीतेंगे। वहीं, ड्रीम 11 जैसे ऐप्स में कहा जाता है कि खिलाड़ी अपने कौशल से टीम बनाते हैं, इसलिए वे स्किल के जरिये हारते या जीत पाते हैं। इस फर्क ने एक को अपराध और दूसरे को व्यापार बना दिया है। सवाल यह है कि आउटडोर स्टेडियम में खेले जाने वाले क्रिकेट, फुटबॉल को और इनडोर में खेले जाने वाले कैरम को मोबाइल फोन पर उंगलियां फिरा कर कैसे खेला जा सकता है? कोई तुलना हो नहीं सकती है, मगर मान लिया गया है कि यह खेल है।

एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक ऑनलाइन गेमिंग का उद्योग भारत में 21,500 करोड़ रुपये सालाना का हो गया है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका के मुताबिक 30 करोड़ युवा इसकी गिरफ्त में हैं, जबकि कुछ आंकड़ों के अनुसार यह संख्या 58 करोड़ को पार कर चुकी है और इस साल के अंत तक 70 करोड़ तक पहुंचने की आशंका है।

अगर कोई व्यक्ति बिना खेल खेले सिर्फ पैसे लगाकर किस्मत आजमाता है, तो वह जुर्म करता है। लेकिन अगर वह मोबाइल ऐप पर खेल जीतने की कोशिश करता है, तो वह कौशल है।  चाहे वह ‘चांस’ हो या ‘स्किल’, अंतत: जोखिम, व्यसन और आर्थिक हानि दोनों ही प्रकार के प्लेटफॉर्म में है। फर्क बस इतना है कि एक से सरकार को राजस्व मिलता है, दूसरे में गिरफ्तारियां और अफसरों-नेताओं को हिस्सा। जैसी कमाई महादेव की है, वैसी ही दूसरे कानूनी गेम्स प्लेटफॉर्म की।

दोनों ही तरह के गेम्स में होने वाली बर्बादी पर देशभर के मामले गिनें तो बहुत सूची बहुत लंबी हो जाएगी, छत्तीसगढ़ के ही कुछ मामलों को देखें। पिछले 15 मई को मनेंद्रगढ़ के आमखेरवा गांव में 12 साल से आकाश लकड़ा ने आत्महत्या कर ली। पुलिस जांच में पता चला कि वह ऑनलाइन गेम्स में घंटों बिताता था। चचेरे भाई ने उसका फोन छीन लिया था। वह अपने परिवार का इकलौता बेटा था। इधर, रायपुर में पिछले साल 15 साल के बच्चे ने मां के अकाउंट को गेम्स में दांव लगाकर खाली कर दिया। जब पता चला तो उसे डांट पड़ी। वह घर से भाग गया। पुलिस ने ढूंढा तो वह एक साइबर कैफे में गेम खेलते मिला था। दुर्ग मे पिता के बैंक खाते से 17 साल के एक छात्र ने 1.5 लाख खर्च कर दिए। पिता ने मोबाइल छीनने की कोशिश की तो उसने आत्महत्या का प्रयास किया, परिवार वालों ने समय रहते उसे बचा लिया।  बिलासपुर में तो बीते साल 14 साल के एक किशोर ने अपने माता-पिता के क्रेडिट कार्ड से ही हजारों रुपये निकालकर गेम्स में डाल दिया। वह एक फर्जी गेमिंग ऐप्स के जाल में फंस गया था। बच्चे की काउंसलिंग कराई गई। फिलहाल, ‘गेम ऑफ चांस’ और ‘गेम ऑफ स्किल’ पर बहस जारी रखिये।

सरगुझिया की बात

दक्षिण-पूर्व रेलवे बिलासपुर मंडल के अधीन क्षेत्र के सांसदों की बैठक में शुक्रवार को रेल सुविधाओं पर काफी बातें हुईं। सरगुजा के सांसद चिंतामणि महाराज ने अपना उद्बोधन सरगुजिया बोली में दिया, जो कि ज्यादातर रेल अफसरों के पल्ले नहीं पड़ा।

हालांकि बाद में केन्द्रीय मंत्री तोखन साहू ने चिंतामणि महाराज के उद्बबोधन का हिन्दी में ट्रांसलेशन किया। ये अलग बात है कि चिंतामणि महाराज हिंदी और संस्कृत भाषा पर अच्छी पकड़ है, और वो संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। दरअसल, वो सरगुजिया बोली को बढ़ावा देने के लिए अभियान चला रहे हैं, और सरकारी बैठकों में भी सरगुजिया में ही अपना उद्बोधन देते हैं।

खैर, चर्चा के दौरान रेल अफसर ज्यादातर मांगों को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर होने की बात कहकर टालते रहे, इस पर चिंतामणि महाराज नाराज हो गए। उन्होंने रेलवे अफसरों से कहा बताते हैं कि आप लोग बता दीजिए कि आपके अधिकार क्षेत्र में क्या है? उन्हीं से जुड़ी बातें बैठक में रखी जाएगी। सांसद ज्योत्सना महंत सहित अन्य सांसदों ने चिंतामणि महाराज का समर्थन किया। दरअसल, रेलवे के अफसर सांसदों की ज्यादातर मांगों को रेलवे बोर्ड का विषय बताकर खारिज करते रहे हैं। इससे सांसद नाराज हो गए थे। बाद में केन्द्रीय मंत्री तोखन साहू ने स्थिति को संभाला, और बात आगे बढ़ी।

देशभक्ति की ऐसी लहर...

22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के बाद जयपुर की कुछ मिठाई दुकानों ने मैसूर पाक, मोती पाक, आम पाक जैसे लोकप्रिय व्यंजनों से ‘पाक’ शब्द हटाकर उन्हें ‘श्री’ नाम दे दिया। अब इनका नाम मैसूर श्री, मोती श्री आदि हो गया है। इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। इस पर लोगों की प्रतिक्रियाएं भी कम दिलचस्प नहीं।

एक भाषा शोधार्थी अभिषेक अवतांस ने सोशल मीडिया पर ही लिखा है कि 'पाक' शब्द का पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है। यह शब्द संस्कृत के 'पक्व' से आया है, जिसका अर्थ है- पका हुआ। कन्नड़ भाषा में पाका का मतलब होता है -मीठा मसाला। यानी यह शब्द पाक-कला से जुड़ा है, न कि किसी राष्ट्र या राजनीतिक विचारधारा से।

कुछ लोगों ने लिखा है कि हमें अपनी परंपरा, भाषा और व्यंजनों से शर्मिंदा क्यों होना चाहिए? पाक शब्द पर पाकिस्तान का कोई कॉपीराइट नहीं है। पाक शब्द हमारी समृद्ध और विशाल भारतीय भाषाओं से उपजा है।

 

 

 


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