हिन्दुस्तान आज मुस्लिम समाज के भीतर की दान की सम्पत्ति को लेकर पुराने वक्फ कानून की जगह बनाए गए नए वक्फ कानून को लेकर बहस में घिरा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई चल रही है, और नए कानून में जो सबसे अधिक विवादास्पद दखल मानी जा रही है, ऐसी एक-दो बातों पर अदालत ने फिलहाल रोक भी लगा दी है, जिसमें वक्फ बोर्ड में गैरमुस्लिमों को भी मनोनीत करने का नया कानून है। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार के वकील से यह दिलचस्प सवाल किया कि क्या हिन्दू ट्रस्टों में किसी मुस्लिम को रखा जा सकता है? यह विवाद अभी चलते रहेगा, क्योंकि मुस्लिम समाज इस बात से भी हैरान है कि केन्द्र सरकार हर किस्म का सुधार मुस्लिम समाज में ही कर रही है, और तीन तलाक, हिजाब, के बाद अब यह वक्फ संशोधन मुस्लिमों के लिए ही कानूनी फेरबदल है। ऐसा लगता है कि मुस्लिम समाज ही सबसे अधिक सुधर जाएगा, और इस बीच हिन्दुओं पर यह बहुत बड़ा खतरा मंडरा रहा है कि उनका एक तबका सडक़ों पर अराजकता को हिन्दुत्व मान बैठा है, और हिंसा को अपना मौलिक अधिकार।
खैर, इससे जुड़ी हुई एक दूसरी खबर है कि तमिलनाडु के 21 मंदिरों में श्रद्धालुओं ने जो सोना चढ़ाया था, उसमें प्रतिमा पर सजाए जाने वाले सोने से परे जो सोना इस्तेमाल नहीं होता था, उसे सरकार ने सरकारी टकसाल में पिघलाकर 24 कैरेट सोने की छड़ें बना दीं, और उसे बैंकों में जमा कर दिया, जिससे कि सालाना करीब पौने 18 करोड़ का ब्याज मिल रहा है। इसमें एक मंदिर तो ऐसा भी है जिसने 21 मंदिरों के हजार किलो से अधिक सोने में से 424 किलो सोना अकेले ही दिया है। जो सोना मंदिरों में पड़े रह जाता, चोरी हो जाता, नकली गहनों से बदल दिया जाता, उन सबको सरकार ने शुद्ध सोना बनाकर बैंकों में जमा करवा दिया है। अब इन 21 मंदिरों के हिस्से अगर अपने-अपने सोने का ब्याज भी आएगा, तो भी हर महीने एक-एक को लाखों रूपए मिलेंगे। ऐसी कमाई से इन मंदिरों का खर्च भी चल सकता है, और ऐसे मंदिरों के ट्रस्ट समाजसेवा के काम भी कर सकते हैं। जब कभी कोई ट्रस्ट या मंदिर समाजसेवा का कोई विश्वसनीय काम करते हैं, तो उन्हें दान भी बहुत मिलने लगता है। लोगों में धार्मिक आस्था इतनी है कि कोई समाजसेवा न करने वाले धर्मस्थानों को भी लोग खूब सारा दान दे देते हैं।
अभी वक्फ बोर्ड की बहस को लेकर यह बात भी चल रही है कि इसी तर्ज पर देश में एक सनातन मंडल बनाया जाए जो कि देशभर की हिन्दू धार्मिक सम्पत्ति की देखभाल करने वाला हो। पता नहीं आज अलग-अलग राज्यों में हिन्दू देवस्थानों को लेकर वहां की राज्य सरकारों के बनाए हुए जो ट्रस्ट काम कर रहे हैं, उनकी क्या भूमिका ऐसे नए सनातन मंडल में रह सकेगी, क्योंकि राज्य के भीतर के मामले आज राज्य सरकारों के अधीन हैं। यह भी पता नहीं है कि हिन्दू देवस्थानों और ट्रस्टों के लिए केन्द्र सरकार ऐसा कोई कानून बनाना चाहेगी, या नहीं, ऐसा बनाना उसके हाथ में है या नहीं, और अभी तो हम यह भी अटकल लगाना नहीं चाहते कि ऐसा मंडल या ट्रस्ट हिन्दू धार्मिक सम्पत्तियों के हित में रहेगा या नहीं।
हमें तो देशभर में अलग-अलग धार्मिक सम्पत्तियों का जो हाल दिखता है, उसके मुताबिक किसी भी धर्म के वक्फ, ट्रस्ट, या किसी और धार्मिक संस्था के बजाय सरकार ही अधिक विश्वसनीय लगती है, फिर चाहे सरकारें अपने भ्रष्टाचार से लदी हुई क्यों न हों। कुछ लोगों को लग सकता है कि इससे अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकार खत्म होंगे, कुछ लोगों को लग सकता है कि धर्म के मामले में दखल देने वाली सरकार कौन हो सकती है, लेकिन कुल मिलाकर यह देखने में आया है कि तिरुपति जैसे विख्यात हिन्दू मंदिर में एक-दो बड़े घोटालों को छोड़ दें, तो सरकारी दखल से, सरकारी नियंत्रण से मंदिर को हर बरस होने वाली अरबों की कमाई का एक बेहतर इस्तेमाल तो हो रहा है। हम यह भी नहीं कहते कि यही सबसे अच्छा, और सौ फीसदी आदर्श उपयोग है, लेकिन यह कम से कम महंतों, और पुजारियों, और घाघ ट्रस्टियों के कब्जों की बदहाली से तो बेहतर इंतजाम लगता है। हालांकि किसी भी तरह की सरकारी दखल ऐसे संस्थानों पर काबिज तथाकथित समाजसेवकों, और धर्मपुरूषों को अपने एकाधिकार का छिनना लगता है, लेकिन लोकतंत्र में सरकार को कई बार धर्म को लेकर अपनी अप्रिय जिम्मेदारी पूरी करनी होती है। एक वक्त सतीप्रथा को भी धार्मिक मान्यता प्राप्त थी, छुआछूत तो धर्म के आधार पर चलता ही था, लेकिन कानून बनाकर इन सबको भी खत्म किया गया था। इसलिए लोकतंत्र में ऐसा कहीं नहीं है कि धर्म के मामलों में सरकार की दखल न हो। सरकार हजारों बरस पहले की धार्मिक किताबों को न बदले, लेकिन आज जब दानदाताओं से किसी मंदिर, मस्जिद, चर्च, या मठ की सम्पत्ति बनती है, तो उस पर समाज के व्यापक हित में सरकार का नियंत्रण रहना चाहिए, उसमें उसका दखल रहना चाहिए।