राजपथ - जनपथ
हर कुर्सी पर बैठना नसीब
भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडेय के बाद सुनील सोनी प्रदेश के दूसरे ऐसे नेता बन गए हैं जिन्होंने महापौर, सांसद और विधायक तीनों पदों को सुशोभित किया है। सरोज की तरह सुनील सोनी भी दो बार महापौर रहे।
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद निगम की राजनीति करने वाले कई नेता विधायक बने हैं। इनमें लखनलाल देवांगन, प्रबोध मिंज, किरण देव, और देवेन्द्र यादव व स्व. विद्यारतन भसीन हैं। लखनलाल देवांगन कोरबा के महापौर रहे। बाद में वो पहली बार कटघोरा से विधायक बने और संसदीय सचिव भी रहे। अभी वो कोरबा से चुनाव जीतने के बाद सरकार में उद्योग मंत्री हैं। इसी तरह प्रबोध मिंज अंबिकापुर के दो बार महापौर रहे। वर्तमान में वो लुंड्रा विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
इसी तरह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरण देव भी जगदलपुर के महापौर रहे। वर्तमान में जगदलपुर विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इसके अलावा भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव भी महापौर रह चुके हैं। इसके अलावा भिलाई के महापौर रहे स्व. विद्यारतन भसीन वैशाली नगर से विधायक रहे हैं। सरोज पांडेय पहली बार वैशाली नगर से विधायक बनी थीं। इसके बाद दुर्ग से सांसद निर्वाचित हुई। इससे परे राजनांदगांव के महापौर रहे मधुसुदन यादव सांसद तो बने लेकिन वर्ष 2018 में विधानसभा का चुनाव हार गए।
दूसरी तरफ, सुनील सोनी नगर निगम के पार्षद बने, फिर सभापति चुने गए। दो बार महापौर रहे, फिर सांसद बने, और अब विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं। यानी सुनील सोनी के नाम एक अलग ही रिकार्ड बना है। उनसे जुड़े लोग जीत के बाद अभी से उनके मंत्री बनने की अटकलें लगा रहे हैं। देखना है आगे उन्हें आगे क्या कुछ मिलता है।
चर्चा दो राजनीतिक फिल्मों की
मार्च 2024 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘द नक्सली स्टोरी’ को लेकर समीक्षकों और दर्शकों में खासा विवाद रहा। अप्रैल 2010 में दंतेवाड़ा में हुए माओवादी हमले की पृष्ठभूमि पर आधारित इस फिल्म को -द टाइम्स ऑफ इंडिया ने 5 में से 3 स्टार दिए तो इंडियन एक्सप्रेस ने 0.5 और नेशनल हेराल्ड ने सीधे शून्य रेटिंग दी थी। हाल ही में यह फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म जी-5 पर रिलीज होने के बाद फिर चर्चा में है।
बड़े पर्दे पर जब आई तो फिल्म में सामाजिक कार्यकर्ताओं और अदालतों को नक्सल समर्थक के रूप में दिखाने पर तब कड़ी आलोचना हुई थी। लंबे समय तक बस्तर में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने अब ओटीटी पर आने के बाद प्रतिक्रिया दी है। हाल ही में उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि फिल्म में उनके जैसे पात्र को एक मुस्लिम व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है, जिसका नाम 'इरशाद' रखा गया है। उसे चरखा चलाने वाला, कई एनजीओ के संचालक और नक्सलियों के लिए हथियारों की व्यवस्था करने वाला बताया गया है। हिमांशु के अनुसार, यह फिल्म पूरी तरह से झूठे तथ्यों पर आधारित है।
इसके बावजूद कई भाजपा शासित राज्यों में इस फिल्म की एक वर्ग में बड़ी प्रशंसा हुई। इनमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है। सरकार ने इसे टैक्स फ्री कर दिया था। फिर भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप रही।
अब हाल ही में ‘द साबरमती एक्सप्रेस’ रिलीज़ हुई है, जिसे भी गोधरा कांड की सच्चाई के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। इस फिल्म को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सराहा है। इसके बाद मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़ सहित कई भाजपा शासित राज्यों में इसे टैक्स फ्री किया गया है। हालांकि, रिलीज के शुरुआती सप्ताह में इसका कलेक्शन कमजोर है।
छत्तीसगढ़ के दर्शकों के लिए यह मौका है कि वे टैक्स फ्री टिकट पर सिनेमाघरों में इस फिल्म का आनंद लें। अगर इतना भी महंगा लगे, तो ओटीटी पर इसके आने का इंतजार करें, लेकिन यह इंतजार लंबा हो सकता है।
ऐसी फिल्में टैक्स फ्री होने के बाद भी बॉक्स ऑफिस पर तहलका क्यों नहीं मचा पातीं? इन फिल्मों के एक प्रशंसक का कहना है कि दरअसल, लोगों को व्हाट्सएप पर दिन रात ऐसी जानकारी फ्री में मिलती रहती है। वे सिनेमा हॉल जाकर अपना समय और पैसा खर्च नहीं करना चाहते।
भोजन की बर्बादी का सीजन
शादियों का सीजन शुरू हो गया है। खाने के स्टाल पर भांति-भांति का व्यंजन देखकर कई मेहमान बेकाबू हो जाते हैं, जितना खा नहीं पाते- उससे ज्यादा टेबल पर छोडक़र चले जाते हैं। भोजन तो उतना ही लेना चाहिए जितना हजम हो सके। यह राजधानी रायपुर के एक समारोह के रिसेप्शन की तस्वीर है।
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पांच सौ किलो मिठाई बंटी
राज्य मंत्रालय में गुरुवार को कम से कम पांच सौ किलो मिठाई बटीं। हर मंजिल के हर कमरे से अधिकारी कर्मचारी मुंह मीठा कर निकल रहे थे। आप इसे अति,अतिश्योक्ति कह रहे होंगे। मगर बॉटम से टॉप फ्लोर तक 155 लोग बुधवार को पदोन्नत हुए थे। आकलन कर लीजिए। अब मिठाई का हिसाब हम हिसाब बताते हैं। इन 155 में से अब हरेक ने एक किलो भी लिया होगा तो 155 किलो का हिसाब सीधा बैठता है। लेकिन 900 से अधिक अमले वाले मंत्रालय में इन 155 ने बधाई के बदले शेष 745 का मुंह मीठा कराने कम से कम तीन-तीन किलो के डिब्बों का इंतजाम किया था। इस तरह से 465 किलो का सीधा हिसाब मिल गया।
पुराने शहर के हर कोने की मिष्ठान भंडार से मिठाई पहुंची थी। कम पड़ी तो कुछ ने पास के अभनपुर से मंगवाया। वहां से भी 25-30 किलो पेड़े आए ही होंगे। एक कर्मचारी ने तो अपनी वर्किंग टेबल पर कल फाइलें हटाकर मिठाई के डिब्बे रख दिए थे। बधाई देने वालों ने सामान्य से पेड़े से लेकर रसमलाई, मिल्क केक, रसगुल्ले, गुलाब जामुन जैसे हर वैरायटी की मिठाई खाई। हां बहुतायत में काजू कतली ही रही।
मिठाई इतनी अधिक रही कि मधुमेह के इस दौर में कई लोग, मना नहीं कर पाए और पीले रंग के सरकारी बड़े लिफाफे में घर के लिए रखने लगे। एक-एक पीस के हिसाब से इनके पास भी एक-एक किलो तक मिठाई इक_ा हो गई। हंसी ठ_ों के दौर में एक ने कहां इतना हो गया है कि मैं घर लौटने पर शाम को मोहल्ले की दुकान में तीन सौ रुपए किलो में बेच दूंगा। बताया गया है कि 24 वर्षों में पहली बार इतनी अधिक संख्या में पदोन्नतियां हुईं हैं। वर्ना सालाना 10-20 ही होते रहे हैं। खास बात यह है कि पदोन्नत सौ से अधिक तो राज्य गठन के बाद हुई भर्ती परीक्षाओं में चयनित अधिकारी कर्मचारी हैं। यानी यह पूरा मूल छत्तीसगढिय़ा बैच है। सो इतनी खुशी तो बनती ही है।
केवल इनकम टैक्स ही नहीं...
अब केवल जीएसटी, इनकम टैक्स या ईडी की दबिश से छापों की इतिश्री नहीं होगी। किसी भी पहली एजेंसी की रेड के बाद 22 विभाग एक के बाद उस अधिकारी-कर्मचारी, कारोबारी उद्योग समूह पर सिलसिले वार लगातार अपने समयानुकूल छापे जांच करेंगे। इसे कंसिक्वल रेड इंक्वायरी कहा जाता है। दरअसल केंद्रीय वित्त विभाग ने रेवेन्यू चोरी के हर लीकेज को बंद करने एक ग्रुप ऑफ डिपार्टमेंट बनाया है। यह राज्य से लेकर दिल्ली तक बनाया गया है। इसके प्रमुखों को हर माह दो माह कंप्लायंस रिपोर्ट मुख्यालय देनी होती है। कि फलां विभाग के पहली रेड के बाद अन्य विभागों ने अपने-अपने दायरे में क्या-क्या किया? इनकम टैक्स के एक अधिकारी ने बताया कि केंद्र व राज्य के करीब 22 विभागों को मिलाकर यह काम होता है । जैसे इनकम टैक्स ने रेड मारा तो वह अपनी रेड की रिपोर्ट सीबीआई, ईडी, डीआरआई, नारकोटिक्स ब्यूरो, फेमा जैसी एजेंसियों के साथ साथ सी-जीएसटी, से लेकर राज्य के एस-जीएसटी, एसीबी- ईओडब्ल्यू, लैंड रेवेन्यू डिपार्टमेंट से शेयर कर इन मामलों के उल्लंघन पर टैक्स चोरी की जांच करवाएगा। यानी पहली रेड चाहे किसी भी विभाग की हो उसके बाद आरोपित वर्ष-दो वर्ष के लिए डिजिटल न सही डिपार्टमेंटल अरेस्ट तो हो ही गया समझो। इधर इससे रेड करने वाला हर विभाग भी परेशान है। क्या इसे न खाउंगा न खाने दूंगा की गारंटी का हिस्सा माना जाए।
सब कुछ दक्षिण के बाद
मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का पुनर्गठन तो हो चुका है, लेकिन छत्तीसगढ़ में अब तक बदलाव की अनुमति नहीं मिली है। जबकि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने लोकसभा चुनाव के पहले ही हाईकमान से कम से कम जिला, और ब्लॉक अध्यक्षों को बदलने की अनुमति मांगी थी। चर्चा है कि बदलाव पर फैसला कुछ हद तक रायपुर दक्षिण के चुनाव नतीजे पर निर्भर करेगा।
कहा जा रहा है कि रायपुर दक्षिण उपचुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आते हैं, तो इसका काफी हद तक क्रेडिट प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को जाएगा। बैज ने ही युवा कांग्रेस अध्यक्ष आकाश शर्मा को प्रत्याशी बनाने की पुरजोर वकालत की थी। और बैज ताकतवर होकर उभरेंगे। उन्हें कांग्रेस संगठन में बदलाव की अनुमति मिल सकती है, लेकिन यदि नतीजे अनुकूल नहीं आते हैं, तो वो खुद मुश्किल में घिर सकते हैं। उन्हें हटाने की भी मांग हो सकती है। देखना है कि 23 तारीख को क्या कुछ होता है।
धान खरीद के लिए बस्तर में आंदोलन
भाजपा सरकार की नई सरकार की धान खरीदी का यह पहला साल है। प्रति क्विंटल 3100 रुपये भुगतान के आकर्षण ने किसानों में इसकी अधिक से अधिक पैदावार लेने की होड़ मची हुई है। पर उनकी जरूरत के मुताबिक खरीदी केंद्र नहीं खोले गए हैं। बस्तर में एक साथ कई स्थानों पर नए खरीदी केंद्र खोलने के लिए प्रदर्शन हो रहे हैं। भानुप्रतापपुर में संबलपुर इलाके से जुड़े कई गांवों में किसान नजदीक में खरीदी केंद्र नहीं खुलने से नाराज हैं। यहां की आदिम जाति सेवा सहकारी समिति ने बांसला में धान खरीदी केंद्र खोलने का प्रस्ताव सहकारी संस्था के पंजीयक के माध्यम से राज्य सरकार को भेजा था लेकिन नहीं खुला। इसका नतीजा यह है कि संबलपुर खरीदी केंद्र में ऐसे कई गांव शामिल किए गए हैं जिनकी दूरी 12 से 15 किलोमीटर है। इन्होंने प्रदर्शन किया है और चेतावनी दी है कि एक सप्ताह के भीतर नया केंद्र नहीं खोला गया तो मेन रोड पर चक्काजाम किया जाएगा।
सुकमा में कलेक्ट्रेट के सामने कल सैकड़ों किसानों ने प्रदर्शन किया। वे सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे। यहां पहुंचे किसान कह रहे थे कि पिछले कई सालों से वे नए खरीदी केंद्रों की मांग कर रहे हैं लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। हालत यह है कि उनको 30-35 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। उन्हें हर साल आश्वासन दिया जाता है, पर नहीं खोला जाता। पिछली सरकार तो छल कर रही थी, अभी भी सुनवाई नहीं हो रही है।
बस्तर संभाग के कई दूसरे स्थानों से भी इसी तरह की खबरें हैं। दूर-दूर गांवों की बसाहट होने के कारण हो सकता है पर्याप्त संख्या में नहीं खोले जा रहे हों पर यह 20 से 35 किलोमीटर दूरी तय करने की परिस्थिति तो गंभीर ही है। छोटे किसानों के लिए परिवहन की लागत बर्दाश्त करना भी मुश्किल है। ऐसे में फायदा बिचौलियों को मिलेगा और सरकार की 3100 रुपये की खरीदी की महती योजना से वंचित रह जाएंगे।
रेलवे ट्रैक का सी-फा
ट्रेनों में सफर के दौरान ट्रैक, स्टेशन और फाटक पर कई संक्षेप शब्द दिखते हैं लेकिन उनका मतलब पता नहीं होता। उनमें से ही एक है सी फा और उसी के नीचे लिखा डब्ल्यू एल। यह संकेत फाटक या लेवल क्रासिंग आने से पहले पायलट को सतर्क करने के लिए होता है। सी का मतलब सीटी, फा का फाटक। अंग्रेजी में भी यही- व्हिसिल और लेवल क्रासिंग है। इस जगह को क्रॉस करने पर लोको पायलट को ट्रेन की सीटी बजाने का निर्देश दिया गया है। (rajpathjanpath@gmail.com)
सुबह के नजारे
बाग-बगीचों में कई बड़ी दिलचस्प चीजें दिखती हैं। एक बगीचे के बाहर एक बहुत मोटा सा नौजवान आकर स्कूटर को स्टैंड पर चढ़ाकर उस पर बैठकर आधा-एक घंटा वीडियो गेम खेलता है, और फिर चले जाता है। हो सकता है उसे डॉक्टर ने सुबह घूमने जाने के लिए कहा हो। जाहिर है कि उसका मोटापा कम हो नहीं रहा है। अब दो दिन पहले वही नौजवान सुबह-सुबह स्कूटर बाहर खड़ा करके छोटे से बगीचे की बेंच पर आकर बैठा, और कोई एनर्जी ड्रिंक पीने लगा, साथ-साथ मोबाइल फोन तो था ही।
हिन्दुस्तान के छत्तीसगढ़ जैसे हिस्से में लोगों में सार्वजनिक जीवन की सभ्यता छू भी नहीं गई है। सुबह घूमने वालों के जत्थे देखें, तो दो-तीन लोग भी पूरी सडक़ घेरकर चल सकते हैं, और हॉर्न या साइकिल की घंटी बजाने वाले को घूर भी सकते हैं। गांवों की सडक़ों पर गोधूलि बेला में लौटने वाले जानवरों के रेवड़ जिस तरह सडक़ों को घेरकर चलते हैं, शहरों में सुबह घूमने वाले इंसानों का हाल इसी तरह रहता है। किसी रिहाइशी इलाके से निकलते हुए लोगों के जत्थे सुबह-सुबह से इतनी चीख-पुकार की हँसी-मजाक करते चलते हैं कि आसपास रहने वाले लोगों के मन में उनके लिए नफरत ही पैदा हो जाए।
नए विधायक की चर्चा
एक नए नवेले विधायक के क्रियाकलापों की खूब चर्चा हो रही है। चुनाव जीतने से पहले उन्हें सिद्धांतवादी सैनिक माना जाता था, लेकिन थोड़े ही दिनों में वास्तविकता सामने आ गई। चर्चा है कि पंचायतों से लेकर अलग-अलग योजनाओं में काम दिलाने के नाम पर उनसे जुड़े लोगों ने काफी उगाही की है। विधायक महोदय ने अलग-अलग मॉडल लेकिन एक रंग की तीन लग्जरी थार खरीदे हैं। उत्तर प्रदेश, और बिहार के बाहुबली विधायकों की तर्ज पर उनकी खूब चर्चा है।
विधायक महोदय ने अपने क्षेत्र के लोगों के लिए एक अलग से ऐप बनवा रहे हैं जिसमें लोग अपनी समस्याओं की जानकारी घर बैठे दे सकते हैं। विधायक का दावा है कि ऐप में आई समस्याओं की शिकायत का निराकरण तुरंत किया जाएगा। मगर पार्टी के लोग उनके तौर तरीकों से नाखुश हैं। एक-दो नेता ने तो उनके ऐप की खिल्ली उड़ाते हुए कह दिया है कि लोग शिकायत लेकर सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, वहां तो उनकी समस्याओं का निराकरण नहीं हो पा रहा है। ऐप से कौन सी समस्या का निराकरण हो जाएगा। विधायक के खिलाफ अब क्षेत्र में नाराजगी बढ़ रही है। कुछ लोगों का मानना है कि निकाय-पंचायत चुनाव में इसका असर देखने को मिल सकता है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
अब दोनों भवन बराबर
रिश्वत-घूस, भ्रष्टाचार के फोन-पे, योनो, यूपीआई,आरटीजीएस गूगल पे, व्हाट्सअप पे जैसे कई विकल्पों के बीच कैश लेना कहां की अकलमंदी है, वह भी ऑफिस परिसर में? लेकिन देव बाबू (देवनारायण सिन्हा) ने सोचा इंद्रावती भवन के टॉप फ्लोर पर देनदार को बुलाकर ले लिया जाए तो नीचे वालों को नजर नहीं आएगा। और ऊपरवाला (ईश्वर) देखे तो भी कोई दिक्कत नहीं है। मत्स्य पालन विभाग के संयुक्त संचालक ने देवनारायण ने कल यही किया। अगर पहली बार रिश्वत ले रहे थे, तो देव बाबू इंद्रावती के ही अपने दूसरे समकक्षों से तरीके पूछ लेते, जिनके हाथ वर्षों से उजले हैं। नहीं तो पड़ोस के भवन के महानदी में हाथ धो रहे लोगों से आइडिया ले लेते। जहां के लोग इन डिजिटल पेमेंट एप का मजे से इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन ऊपरवाला सब देख रहा था चौथे माले की छत से। उसके तार एसीबी से जुड़े रहते हैं। बस लेनदेन करने वाले माध्यम हर बार अलग-अलग लोग होते हैं। सीधे नीली छतरी वाले को हाजिर नाजिर बनाने के बजाए किसी कॉफी शॉप, अमृत तुल्य टी आउटलेट, या रेस्टोरेंट होटल के कमरे में देनदार को बुला लेते ।
बहरहाल कहा जा रहा है कि 24 वर्षों में पहली बार एसीबी ने राज्य के दूसरे प्रशासनिक मुख्यालय इंद्रावती भवन से संयुक्त संचालक जैसे वरिष्ठ अफसर को रंगे हाथों पकड़ा है। हालांकि इससे पहले पुराने मंत्रालय (डीकेएस) में भी एक अरेस्टिंग हो चुकी है। राज्य परिवहन प्राधिकार के निज सचिव को परमिट दिलाने के बदले पकड़ा गया था । यह अलग बात है कि वो साहब के लिए ले रहा था, या अपने, या दोनों के लिए। साहब आज एक आयोग में आयुक्त हैं। इस तरह से इंद्रावती, महानदी दोनों के ही रंगने का खुलासा हो गया है।
चांदी, और डिनर जीतने का मौका
सामान्य ज्ञान में रुचि रखने वाले जो लोग केबीसी में सलेक्ट नहीं हो पाए हैं और अमिताभ बच्चन के सामने हॉट सीट पर जाने से वंचित हैं। उनके लिए मुंबई के न सही रायपुर के अमिताभ दुबे चांदी का सिक्का जीतने का अवसर दे रहे हैं। अमिताभ, जेसीसी के पूर्व अध्यक्ष, मास्टर ट्रेनर और कई अहम पदों पर रहे हैं।
यह अवसर एग्जिट पोल के जरिए हारने और जीतने वाले का नाम तय करने वालों के लिए है। यह स्पर्धा, केबीसी टाइप तकनीकी रूप से पेचीदा भी नहीं। बस वाट्सएप पर जवाब भेज देना है। स्पर्धा का पहला ही चरण आसान कर दिया गया है। वह यह कि रायपुर दक्षिण से भाजपा प्रत्याशी की जीत तय बता दी गई है। बस जीत की लीड बताना है। नतीजे उतने ही अंतर से आए तो तीन विजेताओं को चांदी का सिक्का और दस बीस के अंतर के आसपास रहे तो इन तीन निकटवर्तियों को डिनर। इसके लिए रिजल्ट प्रिडिक्शन का समय कल 22 की रात 12 बजे तक रखा गया है। अब देखना है कौन भाजपा की और कौन कांग्रेस की लीड बताता है।
सैटेलाइट कॉलर वाला हाथी
छत्तीसगढ़ में बढ़ते हाथी-मानव द्वंद्व और दुर्घटनाओं में होने वाली के बीच यह खबर महत्वपूर्ण है। मध्य प्रदेश ने बाघ और चीतों की तर्ज पर अब हाथियों में भी सैटेलाइट कॉलर लगाने की योजना शुरू की है। इसका पहला प्रयोग बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में किया गया।
मार्च 2024 में शहडोल जिले के जयसिंहनगर से एक घायल हाथी को रेस्क्यू कर उसका इलाज किया गया। स्वस्थ होने के बाद उसे सैटेलाइट कॉलर लगाकर जंगल में छोड़ दिया गया। यह हाथी 10 सदस्यीय झुंड का हिस्सा था, जिससे वह वापस मिल गया।
इस योजना में झुंड की पहचान कर उनमें से एक हाथी को कॉलर पहनाना है। इसके बाद वह हाथी अपने झुंड में लौट जाएगा। सैटेलाइट कॉलर से उस हाथी के मूवमेंट के आधार पर पूरे झुंड की स्थिति का सटीक अनुमान लगाया जा सकेगा।
अब भी सैटेलाइट से हाथियों के झुंड की निगरानी होती है, लेकिन उनकी सही लोकेशन का पता नहीं चल पाता। इस नए प्रयोग का फायदा यह होगा कि हाथियों का झुंड यदि गांव के करीब पहुंच रहा हो, तो समय रहते ग्रामीणों को सतर्क किया जा सकेगा। हाथियों को खदेडऩे या ग्रामीणों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने का कार्य अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सकेगा। इसके अलावा बिजली तारों के संपर्क में आने के कारण हाथियों की मौत हो रही है। यह भी समय पर पता लग सकेगा कि वे किसी ऐसे रास्ते में तो नहीं बढ़ रहे हैं, जहां उन्हें खतरा हो सकता है। यह प्रयोग अपने राज्य के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है, जहां हाथियों और इंसानों के बीच टकराव एक गंभीर समस्या है।
तब और अब, कुछ दिनों के भीतर
छत्तीसगढ़ के एक सबसे वरिष्ठ न्यूज-फोटोग्राफर गोकुल सोनी ने राजधानी रायपुर के एक बड़े तालाब की यह दुर्गति दिखाई है। उन्होंने फेसबुक पर लिखा-यह तस्वीर हमारे रायपुर के पुरानी बस्ती स्थित प्राचीन बंधवा तालाब की है। इनसेट में जो तस्वीर देख रहे हैं वह कुछ दिन पहले की है जब यहां कमल फूल खिला हुआ था। पूरा तालाब इन कमल फूलों की पत्तियों से आच्छादित था। तब यहां की सुन्दरता देखते ही बनती थी। पता नहीं इसे किसकी नजर लगी पूरे तालाब में कमल फूल की पत्तियां मर गयी है। कमल फूल जो जीवन और सौंदर्य का प्रतीक है अब मर चुका है। यहां जीवन और सौंदर्य की जगह गंदगी और मृत्यु ने ले ली है। ऐसा मैं यहां इसलिये कह रहा हूं क्योंकि तब यहां बड़ी संख्या में पानी में रहने वाले पक्षियों ने भी अपना डेरा बनाया हुआ था। नगर निगम द्वारा इस तालाब की सफाई, वाटर टिटमेंट जैसे अनेक बातें कही गयी। अखबारों में भी अधिकारियों के इन झूठे वादों को बड़ा-चढ़ा कर छापा गया लेकिन स्थति आपके सामने है। (rajpathjanpath@gmail.com)
टेंडर और पसंद
आम लोगों की सेहत से जुड़े एक विभाग में सैकड़ों करोड़ के टेंडर को लेकर हलचल मची है। सुनते हैं कि ठेके के लिए कई नामी-गिरामी कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई है। इनमें से विभाग के मुखिया ने भी अपनी 'पसंद' छांट ली। लेकिन इसमें एक पेंच फंस गया है।
चर्चा है कि एक फोन मुखिया तक पहुंच गया। उन्हें कंपनी का नाम भी बता दिया गया, और उसे ही सपोर्ट करने कह दिया गया। मुखियाजी इससे निराश हैं, और वो मना भी नहीं कर सकते।
मुखिया ने टेंडर होने के पहले ही उस कंपनी का नाम प्रतिस्पर्धी कंपनियों को बता दिया, जिन्हें काम दिया जाना है। बाकी कंपनियां भी अलग-अलग रास्ते से पार्टी और सरकार के नेतृत्व तक पहुंच रही हैं। पार्टी के लोग मुखिया की नादानी से नाराज बताए जा रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
ब्यूरोक्रेसी और छत्तीसगढ़
24 वर्ष में दो बार कांग्रेस और भाजपा की चौथी सरकार बनी है। राजनीतिक रूप से स्थिर छत्तीसगढ़ को बीते 24 वर्षों में ब्यूरोक्रेसी ने एक नई पहचान दी है। यह कि ब्यूरोक्रेसी के तीनों ही अंग आईएएस, आईपीएस और आईएफएस के अफसर दलीय समर्थन के आधार पर पहचाने और नामजद गिनाए जा सकते हैं। तीनों ही कैडर के अफसरों ने स्वयं ही साथी अफसरों को बांटा। सरकारों की निकटता हासिल करने हर नई सरकार के कर्ताधर्ताओं के समक्ष एक दूसरे की विचारधारा, पारिवारिक पृष्ठभूमि को पेश किया। फलस्वरूप पिछली सरकार के फ्रंट रनर अफसर नई सरकार के बैक-बेंचर बने और बनाए गए।
राज्य सेवा के तो खुलकर ही भाजपा कांग्रेस के बताए और गिने ही जाते हैं। इन्हीं कारणों से कई अफसर सैंया भए कोतवाल की बेफ्रिकी में गड़बडिय़ां करते रहे । हर अफसर यह भूला कि हर पांच वर्ष बाद चुनाव होते हैं, नई सरकारें आती है। और हर सरकार की करप्शन पर नो टॉलरेंस की कथित गारंटी होती है। नतीजे सबके सामने है। भ्रष्टाचार के सैकड़ों मामले एसीबी-ईओडब्ल्यू, लोकायोग से लेकर आयकर, सीबीआई-ईडी में दर्ज हैं। इनमें अखिल भारतीय सेवा से लेकर राज्य सेवा के 180 से अधिक अफसर या तो गिरफ्तार हैं या जांच के चक्कर काट रहे हैं। इनमें सेवारत और सेवानिवृत्त दोनों ही हैं।
विधानसभा के प्रश्नोत्तरी में दी जाती रही इस जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ के साथ बने दो अन्य राज्यों के मुकाबले ऐसा अनुपात अपने यहां अधिक नजर आता है। राज्य के सेवारत में समीर विश्नोई, रानू साहू, सौम्या चौरसिया, एसएस नाग, एपी त्रिपाठी आईटीएस (निलंबित) सेवानिवृत्तों में अनिल टूटेजा, टीएस सोनवानी जेल में हैं, तो डॉ आलोक शुक्ला, निरंजन दास गवाही-पूछताछ-पेशियां झेल रहे हैं।
आईपीएस में जीपी सिंह देशद्रोह के मामले में जेल से वापसी कर निलंबन काट रहे हैं। राज्य पुलिस सेवा के अफसर तो प्रदेश के पहले राजनीतिक हत्याकांड में लिप्त रहे हैं। लेकिन आईएफएस के लिए सौभाग्य कहा जा सकता है कि अब तक किसी पर कानून के हाथ नहीं पहुंचे हैं लेकिन जंगल में मंगल कर रहे कई अफसर सफाई के दस्तावेज लेकर लोकायोग, एसीबी-ईओडब्ल्यू के चक्कर काटते देखे जा सकते हैं।
मालवाहक पर ‘विधायक प्रतिनिधि’ की सवारी!
निजी वाहनों में विधायकों, मंत्रियों, सांसदों के प्रतिनिधि लिखकर खुद को व्हीआईपी बताने का चलन तो देखा गया है, पर किसी मालवाहक में भी अब दिखें तो चौकें नहीं। इसकी भी शुरूआत हो चुकी है। एमसीबी जिले के पूर्व विधायक गुलाब कमरो ने एक भाजपा नेता की गाड़ी की तस्वीर सोशल मीडिया पर डाली तो हलचल मच गई। यह एक मालवाहक गाड़ी है, जिसमें नंबर प्लेट के साथ विधायक प्रतिनिधि लिख रखा गया था। कमरो ने जैसे डिजिटल ट्रैफिक पुलिस का काम किया। उन्होंने साथ ही कमेंट भी लिखा कि क्या इस गाड़ी का काम अवैध ट्रांसपोर्टिंग के लिए किया जाता है? काल्पनिक सीएम दीदी ( विधायक रेणुका सिंह) के क्षेत्र में कुशासन दिख रहा है।
बहरहाल, फजीहत होने पर गाड़ी के मालिक ने पट्टी हटा दी। साथ ही सफाई दी कि पिता भाजपा व्यवसायी प्रकोष्ठ के सह-संयोजक हैं, इसलिए ऐसा किया। मगर, कमरो ने एक दूसरा खुलासा भी किया है। उनके मुताबिक मालवाहक के नंबर का कोई रिकॉर्ड कोरिया जिले के परिवहन विभाग में दर्ज नहीं है। हालांकि यह गाड़ी कहां से खरीदी गई, इसका पता चल गया है। ये सवाल उठता है कि बिना पंजीयन के कोई गाड़ी बाहर कैसे निकली? और पंजीयन नहीं है तो गाड़ी को कोई नंबर कैसे लिखा है?
नई गाइडलाइन से क्या बदलने वाला है?
सरकार की नई गाइडलाइन संपत्ति की खरीदी-बिक्री प्रक्रिया में कई बदलाव लाने वाली है। अब संपत्ति की रजिस्ट्री के लिए स्टाम्प ड्यूटी बाजार मूल्य के बजाय सरकारी मूल्य के आधार पर ही देना होगा। इससे खरीदार अब संपत्ति की वास्तविक कीमत लिखवा सकेंगे, क्योंकि ड्यूटी सरकारी मूल्य पर ही निर्भर करेगा।
सरकार ने कुछ समय पहले स्टाम्प ड्यूटी में 30 प्रतिशत की छूट समाप्त कर दी थी। अब उन लोगों को कुछ तो राहत मिल सकती है जो अधिक बाजार मूल्य वाली संपत्ति खरीदते हैं। साथ ही बैंक संपत्ति की वास्तविक कीमत के आधार पर अधिक लोन दे सकते हैं। सरकार को भी इस गाइडलाइन से लाभ होगा। पहला, संपत्ति की बिक्री से विक्रेता को प्राप्त रकम का स्पष्ट आकलन किया जा सकेगा, जिस पर इनकम टैक्स विभाग नजर रख पाएगा।
हालांकि, इस बदलाव के बावजूद कई लोग अपनी संपत्ति की वास्तविक कीमत लिखने में झिझक सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि संपत्ति की बिक्री और खरीदी के बीच की अवधि में हुई मूल्य वृद्धि के आधार पर 12.5 प्रतिशत तक आयकर देना पड़ता है। आने वाले समय में पता चलेगा कि संपत्ति के सौदों में कितनी पारदर्शिता आई।
सीबीआई के लंबे हाथ दिखने लगे
छत्तीसगढ़ में केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई की हालिया गतिविधियां सुर्खियों में हैं। राज्य लोक सेवा आयोग (सीजीपीएससी) के पूर्व अध्यक्ष टामन सिंह सोनवानी की गिरफ्तारी ने न केवल राजनीतिक बल्कि प्रशासनिक हलकों में भी हडक़ंप पैदा कर दिया है।
अप्रैल में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सीबीआई पर लगी पाबंदी हटाने के साथ-साथ पीएससी 2021 के घोटाले की जांच का जिम्मा उसको सौंपा गया। हालांकि, शुरुआती महीनों में जांच धीमी रही। जून में सीबीआई द्वारा दफ्तर में छापा मारने की आई खबरों को आयोग ने खारिज कर दिया था।
अब सीबीआई ने सोनवानी के साथ बजरंग इस्पात के डायरेक्टर श्रवण गोयल को गिरफ्तार किया है। सीबीआई का आरोप है कि गोयल के बेटे और बहू को डिप्टी कलेक्टर बनाने के लिए सोनवानी के खाते में एनजीओ के माध्यम से 45 लाख रुपये ट्रांसफर किए गए। हालांकि, दो डिप्टी कलेक्टर पदों के लिए यह रकम मामूली लग सकती है, लेकिन माना जा रहा है कि आगे की जांच में और बड़े खुलासे हो सकते हैं।
सीबीआई ने इस मामले में तत्कालीन सचिव जीवन किशोर ध्रुव, आईएएस अमृत खलको और अन्य लोग पर एफआईआर दर्ज की है। शुरूआती जांच में कम से कम 18 मामलों का खुलासा हुआ है, जिनमें पीएससी के चेयरमैन, आईएएस, उनके रिश्तेदारों और राजनेताओं के करीबियों को बड़े पदों पर नियुक्ति दिए जाने की शिकायतें हैं। यह माना जा सकता है कि सीबीआई ने सबूत जुटाने में वक्त लिया, जिसके बाद गिरफ्तारी शुरू हुई।
सोनवानी और गोयल की गिरफ्तारी के साथ ही सोमवार को सीबीआई ने कोरबा में दो कारोबारियों और एक श्रमिक नेता के ठिकानों पर छापा मारा। एसईसीएल खदान के भूमि अधिग्रहण मुआवजे में हेराफेरी की जांच के तहत यह कार्रवाई हुई।
वहीं, छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले में भारतीय दूरसंचार सेवा के अधिकारी रहे एपी त्रिपाठी के खिलाफ सीबीआई जांच का आदेश भी राज्य सरकार ने जारी किया है। वहीं, दिल्ली से आए एक बड़े घटनाक्रम में सीबीआई ने सेक्स सीडी कांड की अदालती कार्रवाई दिल्ली में कराने के आवेदन को सुप्रीम कोर्ट से वापस ले लिया। अब इस मामले की सुनवाई रायपुर में ही होगी। यह आवेदन सीबीआई ने तब लगाया था जब प्रदेश में उसे तत्कालीन सरकार ने बैन कर दिया था।
छत्तीसगढ़ में जांच एजेंसियों की सक्रियता को केंद्र सरकार की सख्ती के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। सीजीपीएससी घोटाले में कार्रवाई का इंतजार था, जो अब शुरू होती दिख रही है। हालांकि, छत्तीसगढ़ ने झीरम घाटी कांड और चावल घोटाले जैसे मामलों में धीमी न्याय प्रक्रिया देखी है। यह देखना बाकी है कि सीजीपीएससी, शराब, कोयला घोटाले के मामले कब अंजाम तक पहुंचेंगे। (rajpathjanpath@gmail.com)
अब खुल रही हैं प्याज की परतें
पीएससी के पूर्व चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी की गिरफ्तारी के बाद पीएससी भर्ती परीक्षा में भ्रष्टाचार की परतें खुल रही हैं। सोनवानी का प्रशासनिक अफसर के रूप में कैरियर दागदार रहा है। बावजूद इसके उन्हें राजनीतिक, और प्रशासनिक संरक्षण मिलता रहा। उनकी पीएससी चेयरमैन जैसे संवेदनशील पद पर नियुक्ति कर दी गई, जो कि सही नहीं था। इसको लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के वर्ष-2015 के एक फैसले का उदाहरण दिया जा रहा है, जिसमें कोर्ट ने यूपी के तत्कालीन पीएससी चेयरमैन अनिल यादव को बर्खास्त किया था।
अनिल यादव के खिलाफ भी अपराधिक प्रकरण था, जिसे छिपाकर यूपी की अखिलेश सरकार ने पीएससी चेयरमैन बना दिया। कोर्ट ने यादव की नियुक्ति को गलत ठहराया था। कुछ इसी तरह का प्रकरण टामन सिंह सोनवानी का भी है। टामन सिंह सोनवानी पर जांजगीर-चांपा जिला पंचायत के सीईओ रहते भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप थे। कुल मिलाकर एक दर्जन आरोपों में से पांच आरोप सही पाए गए। उनकी दो वेतन वृद्धि भी रोकी गई थी। भ्रष्टाचार के इस गंभीर मामले को ईओडब्ल्यू-एसीबी में देने के बजाए विभागीय कार्रवाई कर एक तरह से उन्हें प्रशासनिक संरक्षण दिया गया। बाद में प्रमोट हो गए, और फिर नारायणपुर व कांकेर कलेक्टर भी बना दिए गए।
भूपेश सरकार में तो सोनवानी का सिक्का चल पड़ा। वे भूपेश बघेल के मंत्री रहते विशेष सहायक थे। और जब भूपेश बघेल सीएम बने, तो सोनवानी उनके सचिवालय में सचिव हो गए। बाद में उन्हें पीएससी का चेयरमैन नियुक्त कर दिया गया। जानकारों का कहना है कि सरकार ने सोनवानी के कैरियर रिकॉर्ड से जुड़े सारे तथ्य राज्यपाल के सामने नहीं रखे गए, अन्यथा चेयरमैन पद पर नियुक्ति नहीं हो पाती। अब सोनवानी सीबीआई की हिरासत में हैं, तो सारे तथ्य सामने आ रहे हैं।
ओपी चौधरी के चार्ज में भी थे ये...
सीबीआई की गिरफ्त में आए पीएससी के तत्कालीन चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी के भ्रष्टाचार के कई किस्से छनकर निकल रहे हैं। यह भी संयोग है कि वित्त मंत्री ओपी चौधरी, जब जांजगीर-चांपा कलेक्टर थे, तब सोनवानी वहां जिला पंचायत के सीईओ थे। यह वह दौर था जब जांजगीर-चांपा जिले में मनरेगा के मजदूरी भुगतान में करोड़ों के भ्रष्टाचार का मामला सामने आया था।
बताते हैं कि जब मनरेगा में गड़बड़ी के मामले सामने आए, तो कलेक्टर ओपी चौधरी का विवाह था, और वो छुट्टी में थे। ऐसे में सीनियर अफसर होने के नाते टामन सिंह सोनवानी कलेक्टर के प्रभार पर भी थे। सुनते हंै कि कलेक्टर की गैर मौजूदगी में उन्होंने भ्रष्टाचार को अंजाम दिया। बाद में शिकायत होने पर जांच बिठाई गई, लेकिन उस समय भी कुछ प्रशासनिक अफसर सोनवानी को बचाने में जुटे रहे, और पुलिसिया कार्रवाई से बच गए, लेकिन अब सीबीआई के हत्थे चढ़ गए।
सवर्णा परिवार की होटल
केरल को पढ़े-लिखों का प्रदेश कहा जाता है, और यहां लिखने-पढऩे का अंदाज भी खासा अलग होता है। ऐसा ही एक रोचक किस्सा अलेप्पी के एक होटल में हुआ।
उत्तर भारत से आए कुछ पर्यटक होटल में खाना खाने पहुंचे। होटल साफ-सुथरा था, खाना भी लाजवाब था और सेहत का ध्यान रखते हुए गर्म पानी भी परोसा गया। लेकिन होटल के नाम ने उनके मन में सवाल खड़ा कर दिया। होटल के साइन बोर्ड पर लिखा था- सर्वनाश।
ग्राहकों ने हैरानी से स्टाफ से पूछा, आप लोगों ने होटल का नाम ‘सर्वनाश’ क्यों रखा है? सवाल सुनकर होटल के मालिक मुस्कुराए और समझाया, आप इसे गलत पढ़ रहे हैं। दरअसल, यह होटल ‘सवर्णा’ फैमिली द्वारा संचालित है, और इसलिए इसका नाम ‘सवर्णाज’ रखा गया है।
अचानक चमक गया धुड़मारास
बस्तर जिले का छोटा सा गांव धुड़मारास सैनालियों के लिए आकर्षण का नया स्थान हो गया है। अब पूरी दुनिया में गूगल सर्च करें तो इस गांव का नाम दिखाई देगा और इसका विवरण मिलेगा।
संयुक्त राष्ट्र के ग्रामीण पर्यटन कार्यक्रम के लिए 60 देशों से जिन 20 गांवों का चयन हुआ है, उनमें यह शामिल किया गया है। कल तक इस गांव की अधिक चर्चा नहीं थी, पर अब इसे प्राकृतिक सौंदर्य, समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और स्थानीय आदिवासी परंपराओं के लिए जाना जाएगा।
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गाडिय़ों के पीछे दर्शनशास्त्र
इन दिनों देश भर में सडक़ों पर जितने हादसे थोक में मौत लाते दिख रहे हैं, उससे लगता है कि चारों तरफ जागरूकता की जरूरत है। अब रायपुर का यह ट्रैक्टर कुल पांच शब्दों में मौत के खतरे को गिना रहा है, और साथ-साथ सडक़ों पर रिश्वत लेने वाले लोगों पर तंज भी कस रहा है। अब गाडिय़ों के पीछे लिखे जिंदगी के फलसफे पता नहीं लोगों पर कितना असर डालते हैं, लेकिन इनमें से बहुत से मजेदार और असरदार रहते तो हैं, यह अलग बात है कि लोग असर से परे हो गए हैं।
एक गाड़ी के पीछे लिखा हुआ पढऩे मिला- धीरे चलोगे तो बार-बार मिलेंगे, तेज चलोगे तो हरिद्वार मिलेंगे। एक और ने गाड़ी के पीछे लिखा हुआ है- वाहन चलाते समय सौंदर्य दर्शन न करें, वरना देव दर्शन हो सकते हैं।
एक गाड़ी शब्दों के मामले में बड़ी किफायती थी- सावधानी हटी, सब्जी-पूड़ी बंटी।
सावधानी से परे कुछ मजे की बातें भी गाडिय़ों पर लिखी रहती हैं। एक ने लिखा है- अगर मेहनत से लोग पैसेवाले बनते हैं, तो कोई धनवान गधा दिखाओ।
हनुमान के मुखौटे में विभीषण
आम आदमी पार्टी के बड़े नेता एक के बाद एक पार्टी छोड़ रहे हैं। इन्हीं में से एक दिल्ली सरकार के मंत्री कैलाश गहलोत ने अपना पद छोड़ा, तो दिल्ली से लेकर रायपुर तक पार्टी के अंदरखाने में प्रतिक्रिया हो रही है।
आप के बड़े नेता गहलोत ने पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को भेजे अपने इस्तीफे में यमुना की सफाई के मसले पर पार्टी की आलोचना की है। इस पूरे मामले में छत्तीसगढ़ आम आदमी पार्टी के मीडिया प्रभारी अन्यतम शुक्ला ने कैलाश गहलोत का मंत्री पद की शपथ लेने के बाद का पुराना पोस्ट फेसबुक पर साझा किया है। जिसमें गहलोत ने लिखा था जिस तरह भगवान राम के सेवक बनकर हनुमान काम कर रहे थे। उसी तरह मैं भी अरविंद केजरीवाल का हनुमान बनकर परिवहन एवं अन्य विभाग में उनके विजन और कामों को आगे बढ़ाऊंगा।
अब कैलाश गहलोत के पार्टी छोडऩे के बाद मीडिया प्रभारी ने फेसबुक पर कुछ इस तरह की प्रतिक्रिया दी है कि हम तुम में हनुमानजी के गुण ढूंढते रह गए, तुम राम भक्तों की सेना में विभीषण निकले!
आरटीआई ने बदला घर का पता
अब बात इससे थोड़ा हटकर-आरटीआई को हथियार बना अपना आशियाना बनवाने की। राजधानी की एक रिटायर्ड महिला ने अपना आशियाना बनाने हर काम के लिए आरटीआई का इस्तेमाल किया । जो काम ससुर जी के जमाने से वर्षों से तहसील, भू-रजिस्ट्री, नगर निवेश, निगम के जोन और व्हाइट हाउस में अटके, अटकाए जाते रहे। वह कहीं पर पहले ही आवेदन में तो कही दूसरी अपील में ही निपटते गए। महिला को बकायदा सील लगी एनओसी मिलती गई।
वीआईपी रोड स्थित माइनिंग कॉलोनी में कई वर्षों पहले महिला के ससुर ने जमीन ली थी। जब ससुर एनएमडीसी बैलाडीला में पदस्थ थे। ससुर का निधन हुआ तो पुत्र अपने नाम नहीं चढ़वा पाए। पुत्र (पति) भी नहीं रहे। अनुकंपा नियुक्त खत्म हो रही थी तो महिला ने मकान बनाने का बीड़ा उठाया। मैदान में उतरीं तो हर दफ्तर में अफसरशाही,लालफीताशाही के अड़ंगे थे। जमीन इतने प्राइम लोकेशन पर है कि सोसाइटी वालों की भी नजरें लगीं थी। वे भी रोड़ा बनकर सरकारी अमले को मदद करते रहे,इस कोशिश में कि जमीन हस्तांतरित न हो। चूंकि महिला, स्वयं भी लिपिक वर्गीय कर्मचारी रही हैं तो आरटीआई को हथियार बनाया। पहले तो दिवंगत ससुर की जमीन पर हक हासिल किया और फिर नक्शा, निर्माण अनुज्ञा जैसी कागजी अनुमति के लिए आवेदन लगाती रही। वह भी आरटीआई के ऑनलाइन पोर्टल पर। और ठीक एक माह बाद दूसरी अपील। इस पर निगम, तहसील और जिला प्रशासन का अमला अपील की नोटिस मिलते ही एनओसी देता रहा। महिला को बस एक ही जगह वह भी जोन दफ्तर में 25 हजार रुपए घूस के लिए खर्च करने पड़े। खैर,बहुत जल्द महिला व बच्चे पॉश कॉलोनी के निवासी होने जा रहे हैं।
आरटीआई नेगोशिएशन फंड
हाल के महीनों में आरटीआई आवेदनों में कमी आई है। कुछ गंभीर एक्टिविस्ट भी अपने में से कुछ ऐसे ही नेगोशिएशन एक्टिविस्ट की वजह से आवेदन लगाने से पीछे हट गए हैं। इस पर कुछ एक्टिविस्ट से चर्चा की तो एक नई जानकारी मिली।
इनका कहना था कि एक आम धारणा बन गई है कि सूचना का अधिकार केवल किसी निर्माण में गड़बड़ घोटाले को पकडऩा या उजागर करने का माध्यम हो गया है । इसके आवेदन लगाने वाले स्वयं को इसकी आड़ में ईमानदार राष्ट्र और राज्य हितैषी बताने से नहीं चूकते। जबकि ऐसे एक्टिविस्ट 40-40 लाख की महंगी कार, एसयूवी मेंटेन कर रहे हैं। ऐसे में उनके रहन सहन का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे ही ईमानदार देशहित की सोच रखने कथित एक्टिविस्टों को जानकर ही अफसर भी अपने हाथ में चल रही योजनाओं में से आरटीआई फंड का इंतजाम रखने लगे हैं। मतलब आरटीआई का आवेदन लगते ही एक्टिविस्ट से नेगोशिएशन शुरू हो जाता है। यह फंड ठीक वैसा ही है जैसे योजना के भूमि पूजन, लोकार्पण समारोह के आयोजन का व्यय।
आरटीआई का सौदा पट गया तो अफसर के पहले जवाब से ही प्रदेश और देश हित गड्ढे में गया। नहीं पटा तो दूसरी-तीसरी अपील तक तो पट ही जाएगा। वहां नहीं पटा तो अफसर का कोई बड़ा नुकसान नहीं होना। मुख्य सूचना आयोग केवल 25 हजार का अर्थदंड ही लगाएगा। वैसे तो कई अपील में आयोग ही बचाव मुद्रा में आ जाता है। क्योकिं वहां भी तो रिटायर्ड ही बैठे हैं। अपील अर्थदंड तक पहुंचने पर यह पेमेंट भी अफसर को थोड़ी करना है, सैलरी पेमेंट से कटेगा। और रि-पेमेंट ठेकेदार कर देगा। बस एक ही भय से अफसर नेगोशिएशन को सेफ साइड मानते हैं कि साबित होने पर आयोग मामले को सार्वजनिक कर घोटाले में संलिप्तता बता नाम जारी कर देता है । इससे घर परिवार कॉलोनी में नजरें घूरने लगती हैं। इससे बचने ही अफसर अब आरटीआई एक्टिविस्ट नेगोशिएशन फंड रखने लगे हैं।
अब कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि कारख़ाने और खदान की जनसुनवाई में मीडिया-मैनेजमेंट के लिए भी फण्ड रखा जाता है, अकेले आरटीआई एक्टिविस्ट को क्यों कोसें।
बद्दुआ की चर्चा
रायपुर दक्षिण विधानसभा का चुनाव निपट गया। अब नतीजे की प्रतीक्षा हो रही है। इन सबके बीच कांग्रेस टिकट के एक मजबूत दावेदार नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे के फेसबुक पोस्ट की खूब चर्चा हो रही है।
प्रमोद दुबे ने लिखा कि बद्दुआ ऐसी गोली है जो जीवन को छिन्न-भिन्न कर देती है। थोड़ा संभलकर जिएँ...।
उन्होंने यह पोस्ट किसके लिए लिखा है, यह साफ नहीं है। मगर पार्टी के कई लोग रायपुर दक्षिण से उनकी दावेदारी को नजरअंदाज करने से जोडक़र देख रहे हैं। प्रमोद दुबे रायपुर दक्षिण से टिकट के मजबूत दावेदार थे। कई प्रमुख नेताओं ने उन्हें प्रत्याशी बनाए जाने की सिफारिश की थी, लेकिन अंतत: युवक कांग्रेस अध्यक्ष आकाश शर्मा को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया। इससे प्रमोद दुबे, और उनके समर्थक नाराज रहे। ये अलग बात है कि चुनाव के दौरान उन्होंने अपनी नाराजगी का इजहार नहीं किया, और यथासंभव आकाश शर्मा के लिए मेहनत करते नजर आए। चर्चा है कि प्रमोद एक-दो प्रमुख नेता से नाराज बताए जा रहे हैं, और फेसबुक के जरिए अपनी नाराजगी का इजहार किया है। चाहे कुछ भी हो, प्रमोद दुबे के पोस्ट की राजनीतिक हलकों में जमकर चर्चा है।
आदिवासी विकास बैठक या पिकनिक?
बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण की बैठक आज चित्रकोट जलप्रपात के पास हो रही है। इसके लिए दो विशाल वाटरप्रूफ डोम तैयार किए गए हैं। एक डोम मंत्रियों और सदस्यों के चिंतन-मनन के लिए, दूसरे में भोजन-पानी। करीब 20 एसी की अस्थायी व्यवस्था और सैकड़ों जवानों की तैनाती ने इस कार्यक्रम को अलग भव्यता प्रदान कर दी है। जलप्रपात को आम जनता के लिए बंद कर दिया गया है ताकि माननीय निर्विघ्न इसका आनंद उठा सकें।
लेकिन अगर हम आदिवासियों और बस्तर के दूसरे पहलू पर बात करें, तो तस्वीर कुछ और ही है। वामपंथी उग्रवाद और पुलिस कार्रवाई के कारण हजारों आदिवासी ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र पलायन कर चुके हैं। फर्जी मुठभेड़ों में मारे गए निर्दोष आदिवासियों को न्याय दिलाने के लिए कई आंदोलन जारी हैं।
आदिवासी बाहुल्य गांवों में स्वास्थ्य, शिक्षा और सडक़ जैसी बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। कई रिपोर्टें बताती हैं कि आदिवासियों की गिरफ्तारी और जेल उनकी जनसंख्या के अनुपात में अधिक है। दंतेवाड़ा जेल इसका गवाह है, जहां प्रदेश के सबसे ज्यादा कैदी निरुद्ध हैं। बेरोजगारी और आर्थिक तंगी आदिवासी समाज की प्रमुख समस्याओं में शामिल हैं।
विडंबना के बीच भी कुछ अच्छा सोच लेने में हर्ज क्या है? मान लें कि इस भव्य आयोजन में भी आदिवासियों की वास्तविक समस्याओं पर गहरी चर्चा होगी।
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मोबाइल ले डूबा
बिलासपुर संभाग में पदस्थ राज्य पुलिस सेवा के एक अफसर जांच के घेरे में हैं। पुलिस अफसर की एक प्रभावशाली भाजपा नेता से रिश्तेदारी भी है। बावजूद इसके पुलिस अफसर की गलती इतनी बड़ी है कि नेताजी भी उन्हें संरक्षण नहीं दे पा रहे हैं।
हुआ यूं कि पुलिस अफसर ने अपने करीबी को किसी दूसरे शख्स का कॉल डिटेल्स निकाल कर उपलब्ध करा दिया। इसकी शिकायत हुई, तो सीनियर पुलिस अफसर ने इसकी पड़ताल की। जांच रिपोर्ट में शिकायत सही पाई गई। अब अफसर के खिलाफ कार्रवाई हो रही है, और विभागीय जांच के संकेत हैं।
पिछली सरकार में भी मोबाइल टैपिंग को लेकर काफी हल्ला मचा था। एक अफसर को निजी तौर पर टैपिंग से जुड़े दस्तावेज उपलब्ध करा दिए गए थे। इसको लेकर भी काफी किरकिरी हुई थी। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। इन सबको देखते हुए निजी तौर पर किसी को कॉल डिटेल्स उपलब्ध कराने का मामला गंभीर है ही।
बस्तर से एयर टैक्सी...!
बस्तर इलाके के नेता, खासकर विधायक और उनके निकटवर्ती जमीन पर नहीं चल रहे, वे उड़ रहे हैं। मतलब राजधानी आना है, तो बहुत मजबूरी में कार की सवारी कर रहे। जबकि केशकाल घाटी को छोड़ दें तो फोरलेन एक्सप्रेस-वे जैसी एनएच की सुविधा है। मगर बस्तर के नेता हवा में सफर करने को प्रेफर कर रहे हैं। और करें क्यों न, सरकारी सुविधा आपकी अपनी ही तो होती है। बस दुरुपयोग नहीं करना होता। रायपुर जगदलपुर नियमित विमान सेवा के साथ नक्सल ऑपरेशन के किराए में लिए चॉपर भी तो हैं अपने। एक दो चॉपर वीआईपी उड़ान के लिए भी हायर्ड हैं। सभी प्लेन- चॉपर सुकमा से रायपुर तक हर एक दिन की आड़ में रसद,एमुनेशन और अन्य आधिकारिक काम से उड़ान भरते ही हैं। बस विधायक नेताओं को अफसरों से सेटिंग और उनकी टेक आफ टाइमिंग के मुताबिक टाइम मैनेजमेंट करना रहता है।
रायपुर के लिए टेक आफ में कोंडागांव, केशकाल, कांकेर के विधायक नेताओं को पिकप लैंडिंग की भी सुविधा मिल जाती है। बस कागजी कारण थ्रेट की एंट्री कराना होता हैं। वैसे इस परंपरा की नींव पिछली सरकार के नेताओं ने रखा था और अब आगे बढ़ रही है। सो कहा जा सकता है बस्तर से रायपुर तक एयर टैक्सी उपलब्ध हो गई है।
एआई की इतनी चर्चा क्यों है?
एआई की इन दिनों बड़ी चर्चा है। चलो आपको बता देते हैं कि ये काम क्या-क्या करता है। निश्चित रूप से इनमें से कोई न कोई काम धंधा आपसे जुड़ा होगा:
एआई तकनीक के केंद्र में डेटा होता है। डेटा साइंटिस्ट, डेटा इंजीनियर, और बिजनेस एनालिस्ट जैसे प्रोफेशनल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि एआई को सटीक, समृद्ध और विविध डेटा पर निर्भर रहने की आवश्यकता होती है।
एआई और मशीन लर्निंग का विकास करने और उसे प्रशिक्षित करने के लिए विशेषज्ञों की मांग बढ़ रही है। मशीन लर्निंग इंजीनियर एआई सिस्टम के मॉडल तैयार करते हैं, उन्हें सुधारते हैं और उनके व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए काम करते हैं।
एआई का उपयोग रोबोटिक्स के क्षेत्र में तेजी से हो रहा है। रोबोटिक्स इंजीनियरों की आवश्यकता उत्पादन, चिकित्सा, एग्रीकल्चर, लॉजिस्टिक्स और अन्य क्षेत्रों में रोबोट्स को डिजाइन और संचालन के लिए होती है।
जैसे-जैसे एआई का प्रसार बढ़ रहा है, यह जरूरी है कि इसकी नैतिकता और जिम्मेदार उपयोग सुनिश्चित किया जाए। इसलिए एआई नैतिकता विशेषज्ञों की मांग बढ़ रही है, जो एआई के विकास और उसके प्रभाव की निगरानी और मार्गदर्शन करते हैं।
एआई का इस्तेमाल साइबर सुरक्षा में भी तेजी से हो रहा है, जिससे साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों की मांग बढ़ रही है। एआई द्वारा
एआई का शिक्षा में व्यापक रूप से उपयोग हो रहा है। शिक्षा में कंटेंट डेवलपमेंट, पर्सनलाइज्ड लर्निंग सिस्टम और एडुकेशनल ऐप्स का विकास करने वाले प्रोफेशनल्स की मांग बढ़ रही है।
एआई का इस्तेमाल कला, डिज़ाइन, कंटेंट क्रिएशन, फिल्म और मीडिया में भी तेजी से हो रहा है। एआई का सहयोगी उपयोग करने वाले क्रिएटिव प्रोफेशनल्स जैसे कंटेंट क्रिएटर, ग्राफिक डिज़ाइनर, और एनिमेटर की मांग बनी रहेगी।
एआई का उपयोग हेल्थकेयर में बीमारी के निदान, उपचार, मेडिकल डेटा विश्लेषण और प्रेडिक्टिव हेल्थकेयर में बढ़ता जा रहा है। इसके लिए एआई आधारित समाधानों का विकास करने वाले विशेषज्ञों की आवश्यकता होगी।
वर्चुअल असिस्टेंट्स और चैटबॉट्स का उपयोग विभिन्न सेवाओं में बढ़ता जा रहा है। इन सिस्टम को बनाने, प्रशिक्षित करने और बेहतर करने के लिए डेवलपर्स और भाषा विशेषज्ञों की आवश्यकता होगी।
मैन्युफैक्चरिंग और अन्य उद्योगों में ऑटोमेशन तेजी से बढ़ रहा है। ऑटोमेशन विशेषज्ञ उत्पादन प्रक्रिया को एआई और रोबोटिक्स के साथ ऑटोमेट करते हैं।
एआई की नई तकनीकों और तरीकों को खोजने और उन्हें बेहतर बनाने के लिए शोधकर्ता और डेवलपर्स की आवश्यकता होगी। इसमें एआई आर्किटेक्चर, कंप्यूटर विजऩ, नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता की मांग है। (rajpathjanpath@gmail.com)
मैट्रिकुलेट बाबू और आईएएस
मंत्रालय संवर्ग के 150 अधिकारी कर्मचारी पदोन्नत होने हैं। पिछले माह के अंतिम दिनों में पदोन्नति समिति की बैठक भी हो गई। लेकिन इस बीच आदेश से पहले एक पेंच आ गया है। वह यह कि कुछ कर्मचारी जो अधिकारी बनने वाले हैं उनकी शैक्षणिक योग्यता साबित करने का पेंच है। पिछली सरकार ने तय किया था कि अब कर्मचारी को तभी पदोन्नति मिलेगी जब वह स्नातक हो। वह इसलिए कि मप्र से विभाजन में आए अधिकांश कर्मचारी उस समय मैट्रिकुलेट ही रहे हैं। हर तीन पांच वर्ष बाद पदोन्नत होकर उप सचिव तक बनते गए। कुछ तो बीते 20-23 वर्ष में रिटायर भी हो गए। यह भी प्रचारित होता रहा कि एमबीबीएस जैसे उपाधिधारी आईएएस अफसरों को 11 वीं पास बाबू चला रहे हैं ।
इसे देखते हुए बघेल सरकार ने पदोन्नति के लिए कम से कम स्नातक उपाधि की योग्यता फिक्स की। और पुराने 11 वीं पास को डिग्री करने की अनुमति दी। जीएडी ने डिग्री करने समय भी दिया था पढ़ाई का। लेकिन कुछ लोगों ने शार्ट कट अपनाया और नगद देकर प्रदेश के कुछ निजी विवि से एक वर्ष में तीन वर्षीय डिग्री लेकर जीएडी में जमा कर दिया। अब ऐसे ही लोगों की पदोन्नति अटक गई है। जीएडी ने जांच का फैसला किया है। जीएडी में पहले की तरह पुराने आईएएस तो हैं नहीं, अब तो एमफिल, एमबीए (इन इंटरनेशनल बिजनेस)उत्तीर्ण सचिव हैं।
जीएडी को राजधानी और न्यायधानी के दो विवि की डिग्री पर संदेह है। अब देखना है कि कितने रूकते हैं। वैसे बता दें कि पृथक छत्तीसगढ़ में वर्ष 2007 बैच की पहली भर्ती के साथ ही अब तक की चार भर्तियों में स्नातक, स्नातकोत्तर बाबू मिले हैं।
एक का इंतज़ार लंबा हो गया
विधानसभा चुनाव के बीच चुनाव आयोग ने जिन कलेक्टर्स, और एसपी को हटाया था उनमें से तत्कालीन राजनांदगांव एसपी अभिषेक मीणा को छोडक़र बाकी सभी मुख्यधारा में आ गए हैं। यानी सभी की कहीं न कहीं पोस्टिंग हो चुकी है। अकेले मीणा ही रह गए हैं जिन्हें पीएचक्यू में अटैच तो कर दिया गया लेकिन उन्हें अब तक कोई प्रभार नहीं मिला है।
मीणा को कांग्रेस सरकार में अच्छी पोस्टिंग मिलती रही है। वो रायगढ़, कोरबा, बिलासपुर, और राजनांदगांव एसपी रहे हैं। मगर सरकार बदलने के बाद से खाली हैं। मीणा के साथ ही दुर्ग के तत्कालीन एसपी शलभ सिन्हा और कोरबा एसपी उदय किरण को भी हटाया गया था, लेकिन शलभ जल्द ही जगदलपुर एसपी बना दिए गए। उदय किरण की भी बटालियन में पोस्टिंग हो चुकी है।
यही नहीं, भूपेश सरकार में ताकतवर रहे एडीजी दीपांशु काबरा, आनंद छाबड़ा को भी दस महीने बाद पीएचक्यू में प्रभार मिल गया है लेकिन मीणा का इंतजार थोड़ा लम्बा हो गया है।
कर्मचारियों के वोट कम?
रायपुर की चारों विधानसभा में सबसे ज्यादा कर्मचारी दक्षिण में रहते हैं लेकिन उपचुनाव में पोलिंग कम हुई है। आम चुनाव की तुलना में 11 फीसदी कम यानी 50.50 फीसदी ही वोटिंग हुई है। राजनीतिक दल, कम मतदान के पीछे कर्मचारियों द्वारा वोटिंग नहीं करने को एक कारण मान रहे हैं।
रायपुर दक्षिण में सबसे ज्यादा कर्मचारी पेंशनबाड़ा, विजेता कॉम्पलेक्स, कांशीराम नगर, पुरानी बस्ती आदि इलाकों में रहते हैं। मगर इन इलाकों में कई बूथों पर 30 फीसदी के आसपास ही मतदान हो पाया। यद्यपि राज्य सरकार ने रायपुर दक्षिण के मतदाता कर्मचारियों के लिए संवैतनिक अवकाश घोषित किया था, बावजूद इसके ज्यादातर कर्मचारी-परिवार वोट डालने नहीं गए।
कई लोग मान रहे थे कि कर्मचारी नेता प्रदीप उपाध्याय आत्महत्या प्रकरण को लेकर जिस तरह कर्मचारी आंदोलित थे उससे ज्यादा वोटिंग होने की उम्मीद लगा रहे थे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। भाजपा के लोग कर्मचारियों की कम वोटिंग को अपने फायदे के रूप में देख रहे हैं। अब किसको कितना फायदा होता है यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
सच का सामना करें
छत्तीसगढ़ में शराब की खपत को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। हाल ही में मनपसंद शराब उपलब्ध कराने के लिए लाई गई ऐप ने सोशल मीडिया पर कांग्रेस और भाजपा के बीच जंग छेड़ दी है। राजनीतिक खींचतान आम लोगों को भरमाने के लिए है। शराब से राजस्व आय पिछले 20 सालों में दो गुनी से अधिक हो चुकी है। इसे कोई सरकार नहीं छोडऩा चाहती। शराब को बुरा भी मानेगी और इसकी खपत बढ़े इसकी कोशिश भी करेगी।
जून में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में देश में सबसे ज्यादा शराब पी जाती है। यहां कुल आबादी का 35.6 प्रतिशत हिस्सा शराब का सेवन करता है। यह आंकड़ा देश के किसी भी अन्य राज्य से ज्यादा है। खास बात यह है कि इस संख्या में महिलाओं को भी शामिल किया गया है, हालांकि पीने वालों में अधिकांश पुरुष ही हैं। महिलाओं को अलग करके गिनें और पीने वालों का असली प्रतिशत निकाल लें।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि जून तक छत्तीसगढ़ की सरकारी दुकानों में अच्छे ब्रांड की शराब की कमी थी। इसके बावजूद, यहां की जनता घटिया शराब पीकर भी पहले स्थान का दर्जा नहीं छीनने दिया। इसके मुकाबले त्रिपुरा 34.7 प्रतिशत के साथ दूसरे और आंध्र प्रदेश 34.5 प्रतिशत के साथ तीसरे नंबर पर हैं।
पंजाब, जिसे अक्सर नशे के लिए बदनाम किया जाता है, इस सूची में चौथे स्थान पर है। वहां कुल आबादी का सिर्फ 28.5 प्रतिशत शराब पीता है। वहीं, मौज-मस्ती और पार्टीबाजी के लिए मशहूर गोवा छठवें नंबर पर है, जहां केवल 26.4 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं।
अरुणाचल प्रदेश 28 प्रतिशत के साथ पांचवें स्थान पर है, जबकि तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत से भी कम है।
इस पर विचार मत करें कि अधिकांश अपराध नशे की वजह से होते हैं। हत्या, लूट, बलात्कार, चाकूबाजी सब। हमारी पुलिस इन नशेडिय़ों के क्राइम को ही निपटाने में ज्यादा वक्त गुजारती है। कभी-कभी हिसाब किया जाना चाहिए कि शराब के कारण होने वाले अपराध के एवज में बांटी जाने वाली तनख्वाह ज्यादा है या शराब बेचने से होने वाली आमदनी।
गुरु पूर्णिमा के मौके पर
अचानकमार अभयारण्य में दिल्ली वाले प्रोफेसर साहब प्रभुदत्त खेड़ा ने अपना जीवन आदिवासियों की बेहतरी के लिए गुजार दिया। वे अपने पीछे अनेक शुभचिंतक छोड़ गए। उनका खोला गया एक स्कूल अचानकमार में स्थापित है। गुरु पूर्णिमा के दिन उनके शिष्य ये सारा सामान बच्चों के लिए छोड़ आए।
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कांग्रेस का घरेलू हिसाब-किताब
रायपुर दक्षिण के चुनाव नतीजे को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने चुनाव संचालन से जुड़े नेताओं के साथ गुरुवार को बैठक की, और संभावनाओं पर चर्चा की। बताते हैं कि निगम के एक प्रमुख पदाधिकारी ने कह दिया कि उनके वार्ड से कांग्रेस प्रत्याशी को बढ़त मिलने की संभावना कम है। उन्होंने तर्क दिया कि उनके वार्ड में लोग वोट डालने नहीं निकले, इससे नुकसान हुआ है।
दिलचस्प बात यह है कि ये निगम पदाधिकारी प्रदेश में सबसे ज्यादा मतों से वार्ड मेंबर का चुनाव जीते थे। अब जब वो खुद ही बढ़त दिला पाने में असमर्थता जता रहे हैं, तो चुनाव नतीजे का अंदाज लगा पाना मुश्किल नहीं है। निजी चर्चा में पार्टी के कई लोग कह रहे हैं कि आकाश शर्मा के प्रत्याशी बनने से युवाओं का कांग्रेस के प्रति रूझान दिखा है।
युवा कांग्रेस, और एनएसयूआई के कार्यकर्ता पूरी ताकत से मैदान में डटे रहे। इसके कारण मुकाबला बराबरी का दिख रहा था, लेकिन आखिरी क्षणों में यह बात उभरकर सामने आई है कि कुछ प्रमुख नेताओं ने अपनी जिम्मेदारी सही ढंग से नहीं निभाई, इस वजह से उनके अपने इलाकों में वोटिंग कम हुई है। इससे कांग्रेस प्रत्याशी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। एक बात साफ है कि चुनाव नतीजे अनुकूल नहीं आए, तो पार्टी में गदर मचना तय है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
36गढ़ और महाराष्ट्र दोनों जगह
रायपुर दक्षिण का चुनाव निपटने के बाद प्रदेश भाजपा, और कांग्रेस के नेता महाराष्ट्र में सक्रिय हो गए हैं। पूर्व सीएम भूपेश बघेल नागपुर में प्रचार कर रहे हैं, तो पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव को मराठवाड़ा इलाके की जिम्मेदारी दी गई है। सिंहदेव ने महाराष्ट्र के चुनाव घोषणा पत्र तैयार करने में भी भूमिका निभाई है।
दूसरी तरफ, भाजपा के क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल पुणे के 18 विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी प्रत्याशियों को बढ़त दिलाने के लिए रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं। जामवाल पखवाड़े भर से महाराष्ट्र में हैं। प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता नलिनेश ठोकने को भी तुलजापुर विधानसभा में प्रचार की जिम्मेदारी दी गई है।
सांसद बृजमोहन अग्रवाल भी विदर्भ में चुनाव प्रचार के लिए जाने वाले हैं। यही नहीं, उल्हासनगर के भाजपा नेताओं ने छत्तीसगढ़ के सिंधी नेताओं को प्रचार के लिए बुलाया भी है। उल्हासनगर सिंधी बाहुल्य विधानसभा है। छत्तीसगढ़ भाजपा संगठन ने जिला उपाध्यक्ष ललित जैसिंघ को वहां प्रचार के लिए भेजा है। इससे परे सरकार के आधा दर्जन मंत्री झारखंड चुनाव में पहले से ही सक्रिय हैं। कुल मिलाकर झारखंड, और महाराष्ट्र चुनाव में दोनों ही प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा छत्तीसगढ़ के नेताओं का पूरा उपयोग कर रही है।
रेलवे का गैर-जिम्मेदाराना रवैया
रेलवे की ओर से यात्रियों को 120 दिन पहले टिकट बुकिंग की सुविधा दी जाती है, जिससे लोग अपने यात्रा कार्यक्रम को अच्छी तरह से व्यवस्थित कर सकें। विशेषकर दूर की यात्राओं और त्योहारों के दौरान, पहले से टिकट बुक करना यात्रियों के लिए एक जरूरी बात है। मगर, विडंबना यह है कि रेलवे प्रशासन ट्रेनों को को अचानक रद्द कर यात्रियों के सपनों और ज़रूरतों पर अनदेखी की मुहर लगा देता है।
नौरोजाबाद स्टेशन में तैयार की गई तीसरी लाइन को जोडऩे के लिए एक साथ 24 ट्रेनों को रद्द करने की सूचना 14 नवंबर को दी गई। रेलवे ने इस कार्यक्रम को दो चार दिन में तो बनाया नहीं होगा? काफी पहले से तय होगा कि कब कौन सा काम करना है। मगर यात्रियों को महज एक हफ्ते या कभी-कभी दो चार दिनों की नोटिस पर सूचित किया जाता है कि उनकी ट्रेन रद्द कर दी गई है। टिकट बुक करा चुके यात्रियों का पैसा तो रेलवे 60 रुपये (एसी में ज्यादा) प्रोसेसिंग फीस काटकर लौटा देती है पर बूढ़े, बुजुर्ग, महिलाओं को मानसिक रूप से भयंकर कठिनाई का सामना करना पड़ता है। कई बार यात्रियों को किसी आवश्यक कार्य, जैसे कि स्वास्थ्य संबंधित आवश्यकताएं, नौकरी के साक्षात्कार, या पारिवारिक कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए यात्रा करनी होती है। ऐसे में, अचानक ट्रेन रद्द होने से उनके सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है।
रेलवे की इस मनमानी से यात्रियों में नाराजगी बढ़ रही है। हर बार इसे अधोसंरचना विकास का नाम दिया जाता है। रेलवे को चाहिए कि वह अपने निर्णयों में पारदर्शिता लाए और अचानक रद्द करने की बजाय यात्रियों को टिकट बुक कराने के दौरान ही आगाह कर दे। कोई सांसद इस बात को संसद में उठाएगा?
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दक्षिण किस दिशा जाएगा?
रायपुर दक्षिण विधानसभा में आम चुनाव की तुलना में 10 फीसदी कम मतदान से भाजपा, और कांग्रेस के रणनीतिकार भी हैरान हैं। यद्यपि दोनों ही दलों के नेता, अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। इससे परे खुफिया सूत्रों का अंदाजा है कि दक्षिण के चुनाव नतीजे चौंकाने वाले आ सकते हैं।
रायपुर दक्षिण में वर्ष-2023 के विधानसभा आम चुनाव में 61.78 फीसदी मतदान हुआ था। जबकि लोकसभा चुनाव में रायपुर दक्षिण में 61.42 फीसदी मत पड़े थे। मगर उपचुनाव में 50.50 फीसदी मतदान हुआ। वह भी तब, जब दोनों ही दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। भाजपा सरकार के तमाम मंत्री, गली-मोहल्लों में प्रचार के लिए उतरे थे। कांग्रेस के सभी प्रमुख नेता और विधायक भी अंतिम दिनों तक प्रचार में डटे रहे। बावजूद इसके मतदान में 10 फीसदी की कमी आई है।
भाजपा प्रत्याशी, पूर्व सांसद सुनील सोनी के निवास स्थान शैलेन्द्र नगर के मतदान केन्द्र में 40 फीसदी के आसपास मतदान हुआ। यही हाल, कांग्रेस प्रत्याशी आकाश शर्मा के मतदान केन्द्र में भी रहा। आकाश के निवास सुंदरनगर के मतदान केन्द्र में करीब 52 फीसदी मतदान हुआ है। यानी दोनों ही प्रत्याशी अपने क्षेत्र से अच्छा मतदान करा पाने में विफल रहे हैं। आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल ने करीब 67 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। मगर इस बार हार-जीत का अंतर कम रहने का अनुमान लगाया जा रहा है।
जमीनी अफसरों का हाल-बेहाल
खबर है कि बलौदाबाजार, कवर्धा और सूरजपुर की घटना के बाद शीर्ष स्तर पर मैदानी इलाकों में पुलिस अफसरों की कार्यप्रणाली पर नजर रखी जा रही है। कुछ आईजी को उनके अपने क्षेत्र के जिलों में पदस्थ अफसरों का नाम भेजकर उनके खिलाफ शिकायतों की जानकारी ली जा रही है।
बलौदाबाजार में तत्कालीन एसपी के खिलाफ काफी शिकायतें थी। मगर उनके खिलाफ शिकायतों पर गौर नहीं किया गया। इसके फलस्वरूप वहां बड़ी घटना हो गई। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब एसपी-कलेक्टर दफ्तर को उपद्रवियों ने फूंक दिया। यह घटना विशुद्ध रूप से पुलिस और प्रशासन की विफलता मानी गई है। कलेक्टर और एसपी को सस्पेंड भी किया गया।
सूरजपुर में भी पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर काफी शिकायतें थी। वहां प्रधान आरक्षक की पत्नी, और पुत्री की नृशंस हत्या के बाद एसपी को हटाया गया। इस मामले में भी एसपी को हटाया गया है। कवर्धा के लोहारीडीह, और अन्य घटनाओं में भी पुलिस की चूक सामने आई है। कुछ अफसरों के खिलाफ लेनदेन की शिकायतें रही हैं। इन सबके चलते शीर्ष स्तर पर पुलिस अफसरों की कार्यप्रणाली पर निगाहें हैं। चर्चा है कि कुछ अफसरों को बदला भी जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
आईएएस के लिए जनदर्शन
अब तक हम सबने कुछ प्रधानमंत्री और लगभग हर मुख्यमंत्री के जनदर्शन और मुख्य सचिव, सचिवों से एक फिक्स टाइम में मुलाकात की व्यवस्था देखी और सुनते भी रहे हैं, लेकिन देश में पहली बार केंद्रीय कैबिनेट सेक्रेटरी टीवी सोमनाथन (टीवीएस) ने ओपन हाउस तय किया है। यह विशुद्ध रूप से अभा सेवा अफसरों के लिए होगा। यह ओपन हाउस हर सप्ताह मंगल, गुरु और शुक्रवार को (छुट्टी न होने पर)सुबह रहेगा। इस दौरान केंद्रीय विभागों के साथ दिल्ली दौरे पर आने वाले राज्यों के आईएएस भी देश के अपने सबसे बड़े बॉस से मिल सकेंगे। और अपनी बात रख सकेंगे । इसमें गवर्नमेंट बिजनेस रूल, आईएएस अफसरों के सर्विस कंडीशन्स के साथ साथ कैडर में चल रही खुसुर-फुसुर और हलचल की भी चर्चा कर सकेंगे। बस एक दिक्कत है? समय की। मुलाकात के लिए मात्र 20 मिनट रखे गए हैं, और उसमें भी फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व के आधार पर। अब इसमें कितने जगह पाते हैं, पता नहीं लेकिन नॉर्थ ब्लॉक दिल्ली में लंबी लाइन लगना तय है। यह देश के किसी पहले कैबिनेट सेक्रेटरी ने की है। इसे लेकर उन्होंने बाकायदा पत्र भेजकर सूचित भी किया है। देखना यह है कि कितने लाभ उठाएंगे।
स्टारलिंक का इंतजार और चिंता
भारत में इस समय सबसे सैटेलाइट आधारित इंटरनेट सेवा स्टारलिंक की जबरदस्त चर्चा हो रही है। यह एलन मस्क की कंपनी है, विशेष रूप से ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्रों में, जहां टावरों और तारों के बिना इंटरनेट सेवा मिल सकेगी। लोग जहां जियो, एयरटेल और आइडिया-वोडाफोन की सेवाओं से अलग-अलग वजहों से नाखुश हैं वहीं पहाड़, नदी, घाटी, जंगल तक में इंटरनेट सेवा देने वाले स्टारलिंक की प्रतीक्षा हो रही है।
मगर दूसरा पहलू भी है। एक संस्था कूटनीति फाउंडेशन की रिपोर्ट में सुरक्षा पहलुओं पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है। उनके अनुसार, बिना तार-टॉवर के सैटेलाइट इंटरनेट सेवाएं विदेशी नियंत्रण में होने के कारण सुरक्षा के दृष्टिकोण से भारत के लिए संभावित खतरा बन सकती हैं। यह तर्क दिया जा रहा है कि यदि स्टारलिंक जैसे विदेशी सैटेलाइट नेटवर्क को भारत में स्वतंत्र रूप से संचालित करने की अनुमति दी जाती है, तो यह देश की डिजिटल संरचना और संप्रभुता पर प्रभाव डाल सकता है। फाउंडेशन ने तो इसे ‘भेड़ की खाल में भेडिय़ा’ करार दिया है। कहा है कि विदेशी कंपनियों द्वारा भारतीय डेटा को नियंत्रण में लेना सुरक्षा जोखिम उत्पन्न कर सकता है।
यकीन करना चाहिए कि हमारी सरकार सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं पर गौर कर कर रही होगी। ग्राहकों को तो इंतजार है कि कब ये सेवा शुरू होगी। हो सकता है जियो, वोडाफोन और एयरटेल भी प्रतिस्पर्धा में अपनी टैरिफ कम करें।
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इतनी सद्भावना कि क्या कहें, शब्द नहीं हैं...
आज के माहौल में इतनी सद्भावना देखकर दिल भर आया। रायपुर की चौबे कॉलोनी में कृष्ण भक्तों की तरफ से हुए भंडारे में ‘अब्बा हुज़ूर’ ब्रांड के चावल की बोरियों रखी हैं। मिलकर चलेंगे, तो आगे बढ़ेंगे।
रायपुर दक्षिण का हाल
रायपुर दक्षिण में मतदान के पहले तक कांग्रेस, और भाजपा के दिग्गज नेता अपने-अपने दलों के नेताओं से चर्चा कर बूथ प्रबंधन पर जोर देते रहे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज कांग्रेस भवन में डटे रहे, तो प्रभारी सचिन पायलट फोन पर कुछ पार्षदों के सीधे संपर्क में रहे। भाजपा के चुनाव प्रचार की कमान सांसद बृजमोहन अग्रवाल संभाल रहे थे।
बृजमोहन ने प्रभारी शिवरतन शर्मा के साथ मिलकर बूथ स्तर तक प्रचार से लेकर वोटिंग तक की रणनीति बनाई। उनके साथ चुनाव प्रभारी स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल डटे रहे। जायसवाल चुनाव प्रचार को लेकर फीडबैक से पार्टी संगठन को अवगत कराते रहे।
वित्त मंत्री ओपी चौधरी को छोडक़र सरकार के बाकी सभी मंत्रियों ने प्रचार किया है। चौधरी को लेकर यह बताया गया कि वो दीवाली के बाद से झारखंड में डटे हुए हैं। ओपी चौधरी झारखंड के हजारीबाग लोकसभा की विधानसभा सीटों में चुनाव की कमान संभाल रहे हैं। यही वजह है कि वो यहां प्रचार करने नहीं आए। वैसे तो 28 और प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। मगर इनमें से कोई भी प्रचार करते नहीं दिखे।
न आने की चर्चा
रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव में प्रदेश भाजपा प्रभारी नितिन नबीन की गैरमौजूदगी की काफी चर्चा रही। नितिन नबीन प्रदेश भाजपा की चुनाव समिति की बैठक लेने आए थे, लेकिन प्रत्याशी घोषित होने के बाद से रायपुर नहीं आए। जबकि कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने दो सभाएं ली थी।
हल्ला तो यह भी है कि नितिन नबीन, प्रत्याशी चयन से नाखुश रहे हैं। उन्होंने नए चेहरे को प्रत्याशी बनाने का सुझाव दिया था। मगर पार्टी ने उनकी बात नहीं मानी। हालांकि पार्टी नेताओं का कहना है कि नितिन नबीन को हाईकमान ने झारखंड चुनाव में अहम जिम्मेदारी दी है। वो वहां सक्रिय हैं। और झारखंड चुनाव में व्यस्तता की वजह से सुनील सोनी के प्रचार के लिए नहीं आ सके। चाहे कुछ भी हो, नितिन नबीन की गैरमौजूदगी की चुनावी परिदृश्य से गायब रहने की काफी चर्चा हो रही है।
बटालियन और कंस्ट्रक्शन
राज्य पुलिस के एक बटालियन में दो पुलिस अफसरों के बीच विवाद की खूब चर्चा हो रही है। सुनते हैं कि बटालियन में कंस्ट्रक्शन का काम होना है। इसके टेंडर आदि में कमांडेंट विशेष रुचि ले रहे हैं। बड़ा काम है, इसलिए कमांडेंट का रूचि लेना गलत नहीं है। मगर इस प्रक्रिया से राज्य पुलिस सेवा की महिला अफसर जुड़ी हुई हैं, जिन्होंने बारीक नुक्स निकाल दिया है। इसके बाद से कमांडेंट नाराज चल रहे हैं।
चर्चा तो यह भी है कि कमांडेंट और महिला अफसर के बीच एक सीनियर अफसर के कमरे में विवाद भी हुआ। सीनियर अफसर को हस्तक्षेप कर मामला शांत करना पड़ा। हल्ला है कि कमांडेट ने महिला अफसर का सीआर भी खराब कर दिया है। जिसको लेकर महिला अफसर, कानूनी कार्रवाई करने जा रही हैं। यानी पुलिस महकमे का यह विवाद आने वाले दिनों में और बढ़ सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
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जमकर हुआ प्रचार
रायपुर दक्षिण में चुनाव प्रचार शांतिपूर्वक हुआ। दोनों ही दल कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेता प्रचार में उतरे थे। प्रचार के आखिरी क्षणों में भाजपा नेताओं ने पूरी ताकत झोंकी है। अलग-अलग इलाकों में छोटी-छोटी सभाएं हुई, और इसमें दिग्गज भाजपा नेताओं के तेवर देखने लायक थे। शहर की एक पॉश कॉलोनी में सोमवार की रात एक छोटा सा कार्यक्रम रखा गया था। इसमें भाजपा के चुनाव के रणनीतिकारों ने शिरकत की।
कार्यक्रम शुरू होने से पहले भाजपा नेता, कॉलोनी वासियों से कहते सुने गए कि जाली टोपी वालों से बचना जरूरी है। इसलिए भाजपा को जिताना चाहिए। सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने खुले तौर पर कहा कि शहर में शांति बनाए रखना जरूरी है, नहीं तो गुंडे मवालियों का राज आ जाएगा। एक उत्साही भाजपा नेता ने तो एक कदम आगे जाकर कार्यक्रम में मौजूद भाजपा प्रत्याशी सुनील सोनी को जीत की अग्रिम बधाई दे दी। उन्होंने कहा कि लड़ाई अब लीड की है।
दूसरी तरफ, प्रदेशभर के युवक कांग्रेस और एनएसयूआई के पदाधिकारी आकाश शर्मा के लिए प्रचार में जुटे थे लेकिन कहीं भी उन्होंने अपनी आक्रामकता नहीं दिखाई। हाथ जोडक़र वोट मांगते नजर आए। जबकि सूरजपुर की घटना के बाद कांग्रेस के युवा नेता निशाने पर रहे हैं। यही वजह है कि युवक कांग्रेस और एनएसयूआई के कार्यकर्ताओं ने किसी भी तरह के विवाद से बचने की कोशिश की। अब देखना है कि चुनाव में क्या कुछ होता है।
छत्तीसगढ़ के आईएएस दिल्ली में अहम बने
मोदी सरकार में छत्तीसगढ़ के आईएएस अफसरों को अहम दायित्व मिला है। आईएएस के 95 बैच की अफसर श्रीमती मनिंदर कौर द्विवेदी केंद्रीय कृषि मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव बन गई हैं। मनिन्दर छत्तीसगढ़ में भी कृषि विभाग की प्रमुख सचिव रही हैं। इसी तरह आईएएस के 97 बैच के अफसर सुबोध सिंह भी केन्द्रीय इस्पात मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव हो चुके हैं।
सुबोध सिंह के छत्तीसगढ़ आने की चर्चा रही है। सुबोध रायगढ़ में कलेक्टर रहे हैं, और तत्कालीन सीएम डॉ. रमन सिंह के सचिव रहते स्थानीय प्रमुख नेताओं से अच्छे संबंध रहे हैं। मौजूदा सीएम विष्णुदेव साय से भी उनके अच्छे संबंध है। अब केन्द्र सरकार में अच्छी पोस्टिंग के बाद वे यहां आएंगे, इसको लेकर संशय है। इसी तरह केन्द्र सरकार में संयुक्त सचिव रहे अमित कटारिया ने प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद यहां जॉइनिंग दे दी है। मगर छुट्टी पर जाने की वजह से उनकी पोस्टिंग नहीं हुई है। चर्चा है कि कटारिया छुट्टी बढ़ा भी सकते हैं। देखना है आगे प्रशासन में क्या कुछ बदलाव होता है।
राजधानी में डिजिटल अरेस्टिंग
राजधानी रायपुर में एक महिला को डिजिटल अरेस्ट का शिकार होना पड़ा है। उसे कॉल कर इतना भयभीत किया गया कि वह खुद ही पांच दिनों तक बैंक जाकर ठगों के बताये गए खाते में रकम जमा करती रही। इस तरह से उसने करीब 58 लाख रुपये गवां दिए। रायपुर में इस तरह का पहला मामला है। भिलाई और बिलासपुर में एक-एक मामला पहले सामने आ चुका है। इसके अलावा राजिम में भी एक बच्चे के पिस्तौल के साथ पकड़े जाने की बात कहकर पिता से करीब डेढ़ लाख रुपये ठगों ने अपने एकाउंट में जमा कराये थे। डिजिटल अरेस्टिंग और साइबर ठगी ज्यादातर ऐसे बुजुर्गों के साथ हो रही है, जो अपने जीवन के अंतिम क्षणों में आड़े वक्त पर काम आ सके, इसलिए रकम बैंकों में जमा करके रखते हैं। साइबर ठगों का रिसर्च बड़ा तगड़ा होता है। वे अपना शिकार ढूंढ लेते हैं।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में देशभर में हो रही ऐसी ठगी को लेकर चिंता जाहिर की थी। मन की बात को पुलिस और प्रशासन के अफसरों और नेताओं ने शायद मन लगाकर नहीं सुना। हाल ही में पुलिस मुख्यालय के निर्देश पर प्रत्येक जिले में साइबर ठगी के खिलाफ जन जागरूकता अभियान चलाया गया था। लेकिन अधिकांश स्थानों पर यह जलसा की तरह निपट गया। लगातार हो रही ठगी बताती है कि पुलिस-प्रशासन का संदेश पीडि़तों तक नहीं पहुंच पाया। अब शायद घर-घर दस्तक देकर लोगों को ऐसी ठगी से बचाने के लिए मुहिम छेडऩे की जरूरत है।
खजाने वाली गुफा
यह जगह दो राज्यों को जोड़ती है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़। इसे कबीर चबूतरा कहा जाता है। सडक़ से नीचे उतरते ही झरने से घिरी वह जगह मिलती है, जिसके बारे में कहा जाता है कि कबीर ने कुछ समय यहां बिताया था। मगर, जो तस्वीर दिख रही है वह सिद्ध बाबा का आश्रय रहा है। घुमावदार पहाडिय़ों के खत्म होने के बाद और शुरू होने पर अक्सर इस तरह के आस्था के केंद्र दिखाई देते हैं। इस गुफा नुमा आस्था स्थल पर एक सुराख है। दशकों से यहां से गुजरने वाले लोग उस सुराख में सिक्के डालते हैं और आगे बढ़ते हैं। अब तक हजारों सिक्के इस गुफा के भीतर समा चुके हैं। किसी काल में खुदाई होगी तब पता चलेगा कि ये सिक्के काम के भी हैं या नहीं।
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वोटिंग और डिस्काउंट
रायपुर दक्षिण में चुनाव आयोग ने मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए यथासंभव कोशिश की है। आम तौर पर रायपुर की चारों सीटों पर आम चुनाव में 60 फीसदी के आसपास मतदान हुआ था। जबकि इससे सटे अभनपुर, और धरसींवा में भारी मतदान हुआ था। आयोग की पहल पर मतदाताओं को प्रोत्साहित करने के लिए कई होटल-रेस्टॉरेंट ने विशेष छूट का ऐलान किया है। इसमें मतदाताओं को बिल में पांच से 30 फीसदी तक डिस्काउंट देने का ऐलान किया है। इस डिस्काउंट ऑफर का लाभ लेने के लिए मतदाताओं को अपनी उंगली पर लगी स्याही दिखानी होगी। यह ऑफर 19 नवंबर तक रहेगा।
दिलचस्प बात यह है कि इस तरह का ऑफर विधानसभा आम चुनाव में भी दिया गया था, तब रायपुर दक्षिण में 61 फीसदी के आसपास ही मतदान हो पाया। इस बार दोनों ही प्रमुख पार्टी कांग्रेस, और भाजपा हर मतदाता तक अपनी पहुंच बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। अकेले उपचुनाव की वजह से दोनों ही पार्टी की पूरी ताकत यहां लगी हुई है। ऐसी स्थिति में मतदान का प्रतिशत बढ़ता है या नहीं, यह तो 13 तारीख को पता चलेगा।
साहू वोट, बड़ा मुद्दा
रायपुर दक्षिण में साहू समाज के वोटरों को कांग्रेस के पक्ष में करने के लिए पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू, और कसडोल विधायक संदीप साहू लगे हुए हैं। इन सबके बीच भाजपा ने साजा विधायक ईश्वर साहू को प्रचार में उतारा है।
भुवनेश्वर साहू हत्याकांड के बाद विधानसभा आम चुनाव में साहू वोटर भाजपा की तरफ शिफ्ट हुए थे। भाजपा ने भुवनेश्वर के पिता ईश्वर को प्रत्याशी बनाया था, जिन्होंने दिग्गज नेता रविन्द्र चौबे को हराया। ईश्वर लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के लिए स्टार प्रचारक साबित हुए।
इस बार उपचुनाव में भी पार्टी ने उन्हें चुनाव मैदान में उतारा है। मगर कांग्रेस ने कवर्धा के लोहारीडीह में सरपंच कचरू साहू की हत्या, और साहू समाज के लोगों को प्रताडि़त करने का मुद्दा बनाया है। ऐसे में ईश्वर उपचुनाव में कितना कारगर साबित होते हैं, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
निजी प्रैक्टिस पर बढ़ती रार
प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक के विरोध में डॉक्टरों का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है। स्वास्थ्य मंत्री ने इस दिशा में कुछ राहत देने के लिए सीमित छूट की घोषणा की है, लेकिन मामला अभी भी गरमाया हुआ है। इसका प्रभाव अब उन निजी अस्पतालों तक भी पहुंच गया है, जहां आयुष्मान कार्ड और अन्य सरकारी योजनाओं के तहत मरीजों का इलाज होता है। स्वास्थ्य विभाग ने इन अस्पतालों से शपथ-पत्र लेने का आदेश दिया है, जिसमें यह प्रमाणित करना होगा कि उनके यहाँ कोई भी सरकारी डॉक्टर, चाहे अंशकालिक हो या ऑन-काल, सेवाएं नहीं देता है।
इस कदम ने अस्पताल संचालकों और सरकारी डॉक्टरों दोनों को नाराज कर दिया है। सवाल यह उठता है कि सरकारी डॉक्टरों से लिखित घोषणा करवाने के बावजूद निजी अस्पतालों से भी शपथ-पत्र क्यों लिया जा रहा है? संचालकों में तो असंतोष है ही, साथ ही डॉक्टर भी नाखुश हैं। खासतौर से विशेषज्ञ डॉक्टरों की नाराजगी अधिक है। उन्हें भी सिर्फ घर से ही प्रैक्टिस करने को कहा जा रहा है। उनका सवाल है कि अगर कोई गंभीर मरीज आता है तो घर में अस्पताल जैसी सुविधाओं के अभाव में उसका इलाज कैसे हो सकेगा?
इसके अलावा, डॉक्टरों को मिलने वाला 'नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस' भी 25 से 30 हजार रुपये के बीच है। चिकित्सकों का एक वर्ग चाहता है कि उन्हें यह भत्ता तो मिलता रहे, पर सरकार उनकी प्राइवेट प्रैक्टिस में हस्तक्षेप न करे। इस मुद्दे पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन भी सरकार के खिलाफ खड़ा है।
प्राइवेट प्रैक्टिस और अस्पतालों में सेवाएं देने पर रोक का मुद्दा अब राजनीतिक रंग भी लेता जा रहा है। चर्चा है कि भाजपा के भीतर ही कुछ लोग, जो वर्तमान सरकार और मंत्रियों से नाखुश हैं, डॉक्टरों को इस मामले में भडक़ाने का प्रयास कर रहे हैं। कुल मिलाकर, इस पेचीदा मसले का हल ढूंढना स्वास्थ्य मंत्री और सरकार के लिए आसान नहीं दिख रहा है।
स्मार्ट सिटी का कबाड़ होता सिग्नल
चौक-चौराहों पर लगे सीसीटीवी कैमरे सिग्नल तोडऩे, रॉन्ग साइड चलने और ओवरस्पीड वाहनों का रिकॉर्ड दर्ज करते हैं। नियम उल्लंघन करने पर आपके मोबाइल पर चालान आ जाता है। बीते कुछ वर्षों में जुर्माने की रकम भी बढ़ा दी गई है। पहली बार सिग्नल तोडऩे या ओवरस्पीड गाड़ी चलाने पर 1000 रुपये, रॉन्ग साइड जाने पर 2000 रुपये का जुर्माना। हर बार यह जुर्माना बढ़ता जाएगा। इसके बाद वाहन का रजिस्ट्रेशन और ड्राइविंग लाइसेंस भी रद्द हो सकता है। इस ऑटोमैटिक प्रणाली को तैयार करने में 100 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आया है।
लेकिन यह सब क्यों? अगर इसका उद्देश्य लोगों को यातायात नियमों का पालन करवाकर सडक़ दुर्घटनाएं रोकना है तो राजधानी रायपुर के कई चौक-चौराहों पर सिग्नल बंद क्यों हैं? यहां नियम तोडऩे पर भले ही चालान न हो, लेकिन अगर दुर्घटनाएं होती हैं तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? यह तस्वीर सरोना के एक चौक की है। (rajpathjanpath@gmail.com)
दीपावली के बाद अब मिलन
साय सरकार के मंत्रियों ने भले ही मीडिया से दूरी बना रखी है, लेकिन डिप्टी सीएम अरुण साव का मिजाज थोड़ा अलग है। उन्होंने रोड कांग्रेस का कार्यक्रम निपटने के बाद अपने निवास पर मीडिया कर्मियों को हाई-टी पर आमंत्रित किया, और उनसे विभागीय कामकाज से परे अनौपचारिक चर्चा की।
दस महीने में पहली बार किसी मंत्री के बुलावे पर मीडिया कर्मी काफी खुश थे। मीडिया, और बाकी लोगों को बुलाने का सिलसिला चल रहा है।
अभी बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री आए, तो उनका सीएम के घर जाना कई दिन पहले से तय था। लेकिन उनके रायपुर पहुँचते ही उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने उन्हें अपने घर न्यौता दिया, और रात दस बजे से सुबह दो-तीन बजे तक मुलाकाती उनसे मिलते हुए बने रहे। दो दिन बाद धीरेंद्र शास्त्री का मुख्यमंत्री के घर जाना, हफ्ते भर पहले से तय था, लेकिन भाजपा के अधिकतर नेता, कुछ ख़ास पत्रकार, चुनिंदा अफसर विजय शर्मा के बंगले पर दो तारीख की रात ही अचानक हुए कार्यक्रम में उनसे मिल लिए थे।
उम्मीदवारों की उम्मीदें
रायपुर दक्षिण में कांग्रेस संसाधनों की कमी से जूझ रही है। बावजूद इसके पहली बार चुनाव लड़ रहे युवक कांग्रेस अध्यक्ष आकाश शर्मा अपने युवा साथियों के बूते पर कड़ी टक्कर दिख रहे हैं। इन सबके बीच पार्टी नेता संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए कारोबारियों से मेल मुलाकात कर रहे हैं, जिसकी खूब चर्चा भी हो रही है।
प्रदेश में पार्टी की सरकार नहीं है, स्वाभाविक है कांग्रेस को फंड की कमी तो होगी ही। सुनते हैं कि दो प्रमुख नेता, फंड जुटाने के लिए कुछ कारोबारियों से मिले। इनमें एक निगम के पदाधिकारी भी थे। बातचीत शुरू हुई, और चुनाव खर्च के लिए सहयोग की बात आई।
कारोबारी ने उदारता दिखाते हुए प्रत्याशी तक मदद पहुंचाने का वादा किया। मगर पदाधिकारी ने उन्हें प्रत्याशी के बजाए सीधे पार्टी दफ्तर में ‘मदद’ पहुंचाने के लिए कहा। मदद पार्टी दफ्तर तक पहुंच गई, लेकिन बाद में उसे यह कहकर लौटा दिया गया कि मदद उम्मीद से काफी कम है। अब कारोबारी ने आगे मदद की है या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन इसकी कारोबारियों के बीच काफी चर्चा हो
रही है।
दूसरी तरफ, भाजपा का भी हाल इससे अलग नहीं है। दिग्गजों के फोन कारोबारी संस्था के प्रमुखों तक पहुंच रहे हैं। यहां तक कहा गया कि चुनाव जीतने के बाद प्रत्याशी मंत्री बन सकते हैं। ऐसे में संस्था के हितों का ध्यान रखा जाएगा। अब इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो पता नहीं लेकिन कई कारोबारी चुनाव के चलते काफी परेशान हैं। और कुछ ने तो सीधे तौर पर हाथ खड़े कर दिए हैं।
नक्सली पीछे हटे पर खौफ नहीं गया
बस्तर में आमतौर पर नए कैंप खोलने पर सुरक्षाबलों का ग्रामीण विरोध करते हैं, लेकिन इस बार उलटा हो रहा है। कांकेर जिले के लोहत्तर थाना क्षेत्र के जाड़ेकूड़से गांव में छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल का कैंप पिछले एक दशक से है। नक्सल गतिविधियों के सिमट जाने के कारण अब पुलिस इस कैंप को किसी दूसरी जगह ले जाना चाहती है। मगर, ग्रामीणों का कहना है कि कैंप की वजह से आसपास के 10-12 गांवों में सुरक्षा का माहौल बना है। स्कूलों में शिक्षक, अस्पतालों में डॉक्टरों की उपस्थिति दिख रही है, विकास कार्यों को बल मिला है। कैंप हटने से नक्सली फिर से सक्रिय होंगे और युवाओं पर जबरन भर्ती का दबाव बनाएंगे, फिर शांति भंग हो सकती है। कैंप के बने रहने की ग्रामीणों की मांग नक्सली खतरे के प्रति उनकी गहरी चिंता को दर्शा रही है। कैंप खुलने से सडक़, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना आसान होता है। आदिवासी भी इसकी जरूरत महसूस करते हैं।
भाजपा सरकार के हालिया कार्यकाल में बस्तर में नक्सलियों पर दबाव बढ़ा है। मुठभेड़ों के दौरान बड़ी संख्या में नक्सलियों की मौत हुई है। लोहत्तर के ग्रामीणों की मांग बताती है कि नक्सलियों के खदेड़े जाने के बावजूद उनका खौफ अब भी बरकरार है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सुरक्षा कैंप हटाना एक सही कदम होगा या फिर ग्रामीणों का डर दूर होते तक इसे बनाकर रखा जाना।
बैगा चलेंगे, बच्चा होगा...
इस मान्यता पर कितने लोग भरोसा करते हैं? यहां तो दर्जनों महिलाएं लेटी हुई हैं और हजारों की भीड़ है। बच्चा नहीं हुआ तो महिलाओं को ज़मीन में पीठ के बल दण्डवत होना है फिर बैगा आएंगे महिलाओं के पीठ के ऊपर चलते हुए जाएंगे। फिर बच्चा हो जाएगा ! इसके लिए बस एक नारियल और अगरबत्ती चाहिए। अंधश्रद्धा का यह खेल धमतरी के पास गंगरेल में अंगारमोती माता मंदिर में देखा जा सकता है।
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ब्राह्मण अचानक केंद्र में
रायपुर दक्षिण में भाजपा को ब्राम्हण वोटरों की नाराजगी का खतरा है। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल खुद चुनाव लड़ते थे, तो ब्राह्मण समाज के 80 फीसदी वोट उन्हें मिल जाते थे। बृजमोहन के विरोधी ब्राह्मण प्रत्याशियों को अपने समाज का समर्थन नहीं मिल पाता था। मगर इस बार का माहौल बदला-बदला सा है।
इसकी बड़ी वजह यह है कि बृजमोहन अग्रवाल खुद चुनाव मैदान में नहीं है। और आम चुनाव में भारी वोटों से चुनाव जीतने के मंत्री बने, तो बृजमोहन कोई ठोस काम नहीं कर पाए। उनके तीन हजार शिक्षकों के तबादला प्रस्ताव पर कोई फैसला नहीं हुआ। इसके बाद प्रदीप उपाध्याय आत्महत्या प्रकरण पर उनकी चुप्पी से न सिर्फ ब्राम्हण बल्कि अन्य कर्मचारियों में नाराजगी देखी जा रही है।
बताते हैं कि पार्टी संगठन को इसका अंदाजा भी है और इसके बाद डैमेज कंट्रोल के लिए व्यूह रचना तैयार की गई है। महामंत्री (संगठन) पवन साय ने रायपुर दक्षिण, और अन्य इलाकों के ब्राह्मण नेताओं के साथ बैठक की।
बैठक का प्रतिफल यह रहा है कि सरकार ने प्रदीप उपाध्याय आत्महत्या प्रकरण की कमिश्नर से जांच की घोषणा हो गई। यही नहीं, परिवार के एक सदस्य को तुरंत अनुकंपा नियुक्ति सहित कई और कदम उठाए जा रहे हैं।
रायपुर के ब्राह्मण युवाओं के बीच अच्छी पकड़ रखने वाले योगेश तिवारी, नीलू शर्मा, अंजय शुक्ला, मृत्युजंय दुबे सहित अन्य नेताओं को प्रचार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। देखना है कि आगे क्या नतीजा निकलता है।
एक समाज की अहमियत
दक्षिण के दंगल में एक कारोबारी समुदाय की इन दिनों खूब पूछ परख हो रही है। वैसे यह समाज हमेशा से भाजपा का वोट बैंक रहा है। फिर भी इस बार भाजपा को बहुत मेहनत करनी पड़ रही है। क्षेत्र में दूसरा बड़ा वोट बैंक कहे जाने वाले समाज के लिए हर रोज किसी न किसी होटल में दीपावली मिलन का आयोजन हो रहा है। और इसमें यह कहा जा रहा है कि वोट देने जरूर जाए। क्योकिं भाजपा का पुराना अनुभव है कि इनके वोटर पहले दुकान जाते हैं और फिर दोपहर तक बूथ। और वहां लिस्ट में नाम न होने या बूथ बदलने से नाराज होकर लौट जाते हैं।
इस बार ऐसे वोटर की जिम्मेदारी पार्टी के ही सामाजिक नेताओं को दी गई है। इस समाज का कांग्रेस में अनुभव खट्टा ही रहा है । पार्टी ने कभी भी समाज के किसी नेता को बी फार्म नहीं दिया। खेमे में एक पूर्व मुख्यमंत्री कहते रहे हैं कि जितने लोग मुझसे मिलने आए हैं, उतने भी कांग्रेस को वोट नहीं देते । कांग्रेस ने मनभेद-मतभेद भुलाकर एक वर्ष पहले बागी होकर लड़े प्रत्याशी को भी प्रचार में उतार दिया है ।हालांकि बागी बेटे की वजह से पिता पार्टी में लौट नहीं पाए हैं। अब देखना है कि इस बार समाज का वोट स्विंग कैसे रहता है। वैसे समाज दरबार की बात बहुत मानता है।
अब हादसे हुए तो मंत्रीजी को पकड़ें?
इंडियन रोड कांग्रेस के 87वें अधिवेशन में शामिल होने राजधानी रायपुर पहुंचे केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने ऐसी बड़ी घोषणाएं की है, जो पूरी हुईं तो छत्तीसगढ़ की सूरत सचमुच बदली हुई नजर आएगी। उन्होंने 20 हजार करोड़ रुपये की घोषणाएं की हैं और कहा है कि दो साल के भीतर छत्तीसगढ़ की सडक़ें अमेरिका की तरह हो जाएंगी। अपने भाषण में गडकरी ने माना है कि दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं। हर साल 1.50 लाख से ज्यादा सडक़ दुर्घटनाएं होती हैं। वह पिछले साल बढक़र 1.68 लाख पहुंच गई। उन्होंने यह भी कहा कि यदि भविष्य में रोड इंजीनियरिंग के कारण कोई दुर्घटना होती है तो उसे लिए वे खुद को दोषी मानेंगे। मगर, दोषी मान लेने भर से क्या होगा? किसी को सजा मिले तब तो बात बने। गडकरी के बयान से यह बात ध्यान में आती है कि बिलासपुर से पथर्रापाली जाने वाली नेशनल हाईवे पर, सडक़ बन जाने के बाद रतनपुर से पहले सेंदरी गांव के पास तुरकाडीह बाइपास पर रोजाना दुर्घटनाएं होने लगी थी। एक बार तो एक माह के भीतर रिकार्ड 7 मौतें अलग-अलग दुर्घटनाओं में दर्ज की गई। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रदेशभर की सडक़ों की जर्जर हालत पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान इस सडक़ पर भी संज्ञान लिया। न्याय मित्रों ने सडक़ का निरीक्षण तकनीकी जानकारों के साथ किया। यह पाया कि सडक़ के निर्माण में तकनीकी खामी है। डिजाइनिंग में गड़बड़ी होने के कारण बाइक व हल्के वाहन वाले तेज रफ्तार भारी वाहनों की चपेट में आ रहे हैं। बाद में नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भी इंजीनियरिंग की गड़बड़ी को मान लिया। अब इस रास्ते पर कई बेरिकेट्स और डिवाइडर लगाकर गति को संतुलित किया जा रहा है। अंडरब्रिज बनाने की तैयारी भी है। जब यह हाईवे तैयार हुआ तब भी गडकरी मंत्री थे और ये ही इंजीनियर काम कर रहे थे। इस ब्लैक स्पॉट पर हुई मौतों के लिए कौन जिम्मेदार था। गडकरी की ओर से जिम्मेदारी उठाने के पहले किसकी जिम्मेदारी थी? यह पता नहीं क्योंकि अब तक किसी पर कोई कार्रवाई हुई नहीं है। गडकरी के बयान का सडक़ दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की गंभीरता से शायद ही मतलब निकले।
अशोक स्तंभ के साथ सात फेरे
समय के साथ-साथ सामाजिक परंपराओं में बदलाव आ रहे हैं। पिछले दो तीन वर्षों में छत्तीसगढ़ में हमने देखा कि वैवाहिक समारोह के कार्ड के साथ कई लोगों ने हसदेव अरण्य को बचाने का संदेश दिया था। कुछ ने संविधान की शपथ लेकर शादी की। ऐसा ही पिछले दिनों सूरत में हुआ। एक व्यवसायी परिवार में धूमधाम से एक शादी हुई। मौर्य कुशवाहा समाज के लक्ष्मी और परमानंद मौर्य ने अशोक स्तंभ के फेरे लगाकर विवाह की रस्म पूरी की। वहां मौजूद लोग सम्राट अशोक, भगवान बुद्ध व संविधान का जय-जयकार कर रहे थे। अतिथियों को संविधान की प्रतियां भेंट की गई।
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पहले हो चुका है उपचुनाव
रायपुर दक्षिण विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, और भाजपा ने अपनी ताकत झोंक दी है। यहां 13 तारीख को मतदान होगा। बहुत कम लोगों को मालूम है कि रायपुर की सीट पर पहले भी एक बार उपचुनाव हो चुका है। तब रायपुर शहर और ग्रामीण मिलाकर एक सीट ही हुआ करती थी।
आजादी के बाद 1952 में सीपी एंड बरार विधानसभा के पहले चुनाव हुए थे। रायपुर विधानसभा क्षेत्र से प्रजा समाजवादी पार्टी की तरफ से ठाकुर प्यारेलाल विजयी हुए थे। उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी हरि सिंह दरबार को पराजित किया था। बाद में भूदान पदयात्रा के दौरान वर्ष-1954 में जबलपुर के निकट ठाकुर प्यारेलाल सिंह का निधन हो गया। परिणाम स्वरूप यह सीट खाली हो गई।
प्रजा समाजवादी पार्टी ने दिवंगत ठाकुर प्यारेलाल सिंह के पुत्र ठाकुर रामकृष्ण सिंह को प्रत्याशी बनाया। जनवरी 1955 में चुनाव हुए। कांग्रेस की तरफ से पंडित शारदा चरण तिवारी उम्मीदवार बनाए गए। ठाकुर रामकृष्ण सिंह को करीब ढाई हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल हुई थी। उस वक्त सवा 28 हजार वोट पड़े थे।
तब गुढिय़ारी, राजातालाब, रामसागरपारा, ब्राम्हण पारा, बैजनाथ पारा, छोटा पारा, बैरन बाजार, सदर बाजार, तात्यापारा, अमिन पारा, पुरानी बस्ती, गोल बाजार, रेलवे कॉलोनी, टिकरापारा, मौदहापारा रायपुर विधानसभा क्षेत्र का आता था। अब रायपुर चार विधानसभा, उत्तर, दक्षिण, पश्चिम, और ग्रामीण में तब्दील हो चुका है। वर्तमान में अकेले रायपुर दक्षिण में मतदाताओं की संख्या दो लाख 70 हजार पहुंच चुकी है। अब इस उपचुनाव का क्या नतीजा निकलता है, यह तो 20 तारीख को पता चलेगा।
9.15 के बाद पहुंचे तो हाफ-डे
देश भर के अधिकारी कर्मचारियों के लिए ऑफिस पहुंचने की टाइमिंग को लेकर एक नया फरमान जारी हुआ है। अब इन्हें 15 मिनट लेट आने की ही परमिशन होगी। अब असल बात यह है कि यह आदेश मानता कौन है। जो आधे से पौन घंटे देर से आने वालों के लिए तो एडवांटेज मिल जाएगा। सरकार के दिए ये 15 मिनट उस पर अपना टाइम। यानी राष्ट्रपति सचिवालय से लेकर दूर गांव के डाकघरों के केंद्रीय कर्मचारियों को हर हाल में दफ्तर में सुबह 9.15 बजे तक पहुंचकर अपनी उपस्थिति बायोमेट्रिक सिस्टम में पंच करना अनिवार्य होगी।
कोरोना काल के बाद से अधिकांश सरकारी कर्मचारी बायोमेट्रिक पंच नहीं कर रहे थे, जिससे उपस्थिति की समस्या उत्पन्न हुई? इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने आदेश जारी किया है कि सभी कर्मचारी अब नियमित रूप से बायोमेट्रिक उपस्थिति सुनिश्चित करें। डीओपीटी के आदेश में यह भी कहा गया है कि अगर कर्मचारी सुबह 9.15 बजे तक दफ्तर नहीं आए, तो उनका हाफ-डे लगा दिया जाएगा। सभी विभाग प्रमुख अपने स्टाफ के दफ्तर में मौजूदगी और समय पर आने-जाने की निगरानी भी करेंगे।
समय की इसी पाबंदी को लेकर छत्तीसगढ़ कैडर की एक अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटना चाहती थीं। प्रतिष्ठित रक्षा मंत्रालय में पदस्थ थीं। फिर तोड़ निकालकर साउथ ब्लॉक से बाहर के विभाग में पोस्टिंग करा लिया। अब बात महानदी और इंद्रावती भवन से तहसील तक के लेट कमर्स की करें। वो तो नवा रायपुर के लिए मुफ्त की स्टाफ बस की सुविधा न मिली होती तो कोई भी 11 बजे के पहले नहीं पहुंचते। वैसे जीएडी चाहे तो पुराना मंत्रालय से 11 बजे निकलने वाली बीआरटीएस बस को चेक कर लें तो 72 सीटर बस ओवरलोड में 150 लेट कमर्स हर रोज मिलेंगे। ऐसे ही लोग बायोमेट्रिक का विरोध करते हैं ।
वहां हंगामा, यहां सब चंगा जी
अस्पताल में फर्श पर तड़पते मरीज की जिस तस्वीर से हमारी सरकार, डॉक्टर और नर्स ने नजर चुरा ली, कोई भी विचलित नहीं हुआ, उसी को गुजरात ने नाक का सवाल बना लिया। हाल ही में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने बिलासपुर के जिला अस्पताल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया था। इसमें अस्पताल के बरामदे पर एक घायल मरीज तड़प रहा था, जिसे डॉक्टर, नर्स और दूसरे स्टाफ नजरअंदाज कर आगे बढ़ जा रहे थे। इसी वीडियो पर गुजरात साइबर सेल ने बैज के खिलाफ भ्रामक खबर फैलाने के आरोप में मामला दर्ज किया है ऐसी खबर उड़ गई। यह कहते हुए कि इस वीडियो को गुजरात के अस्पतालों की स्थिति बताकर जनता को भ्रमित किया गया। हालांकि, यह बाद में साफ हुआ कि इस वीडियो क्लिप का गुजरात की तस्वीर बताते हुए किसी अन्य महिला ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर पोस्ट कर दी है। पुलिस ने उस महिला के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।
छत्तीसगढ़ में साइबर सेल या सरकार के किसी दूसरे महकमे को इस वीडियो ने विचलित नहीं किया। शायद यह मानकर कि, छत्तीसगढ़ है- यहां तो सब ऐसा ही है। मगर, गुजरात में इसी वीडियो क्लिप ने इतनी सनसनी फैला दी कि वहां एक जांच एजेंसी को सक्रिय होना पड़ गया। इसका मतलब क्या है? मतलब यह है कि गुजरात के अस्पतालों की दशा, छत्तीसगढ़ जैसी नहीं है। ऐसी तुलना भी की गई तो यह प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया जाएगा। भले ही दोनों जगह मोदी की गारंटी वाली सरकार क्यों न हो।
(rajpathjanpath@gmail.com)
इस बार सचमुच उम्मीद से?
रायपुर दक्षिण चुनाव के नतीजे चाहे जो भी हो, लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज मेहनत में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। खुद प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने बुधवार को अनौपचारिक बैठक में बैज की सराहना भी की।
चर्चा के बीच एक-दो नेताओं ने संसाधनों की कमी का रोना रोया, और कहा कि आगामी दिनों में कार्यकर्ताओं को संसाधन उपलब्ध कराने की जरूरत है। इस पर पायलट ने साफ शब्दों में कहा बताते हैं कि संसाधनों से चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा के पास असीमित संसाधन हैं, और संसाधनों में उनसे कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता है। पायलट ने आगे कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं के हौसले पर चुनाव लड़ रही है, और भरोसा जताया कि अंतत: जीत कांग्रेस को ही मिलेगी। कुल मिलाकर पायलट इस बार उम्मीद से हैं। देखना है आगे क्या होता है।
जंगल में मंगल !!
सरकार के विभागों की तरफ से अलग-अलग प्रकरणों पर हाईकोर्ट में जवाब समय पर दाखिल नहीं हो पाता है। इसकी वजह से कई प्रकरणों पर सुनवाई लंबी खिंच जा रही है। एजी ऑफिस ने सिंचाई विभाग के एक प्रकरण पर तो ईई के खिलाफ कार्रवाई की भी सिफारिश कर दी थी।
ताजा मामला वन विभाग से जुड़ा हुआ है। हाईकोर्ट में हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स पद पर पदोन्नति से जुड़े विवाद पर सुनवाई चल रही है। इस पूरे मामले में एसीएस की हिदायत के बावजूद जवाब दाखिल नहीं हुआ था। इसके बाद अब एसीएस (वन) ने कड़ा रुख दिखाते हुए सीधे तौर पर ओआईसी को दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी दे दी है। इसके बाद से विभाग में हडक़ंप मचा हुआ है। प्रकरण पर अगले हफ्ते सुनवाई है। देखना है आगे क्या होता है।
समिति बनेगी या आमसभा होगी?
सामान्य प्रशासन विभाग ने एक लंबे अर्से बाद संयुक्त परामर्शदात्री समितियों (जेसीसी) की सुध ली है। अवर सचिव ने सभी विभागों और कलेक्टरों को निर्देश जारी किया है। इसमें कहा है कि अपने अपने जिलों, विभागों में मान्यता प्राप्त कर्मचारी संघों के एक एक सदस्य को शामिल कर संयुक्त परामर्शदात्री समितियों का गठन किया जाए। यह तो हुई व्यवस्थागत आदेश की बात। और यहां से शुरू होगा कर्मचारी संगठनों में राजनीतिक द्वंद्व।
प्रदेश में तीन सौ से अधिक मान्यता प्राप्त अधिकारी कर्मचारी संगठन। इनमें 110 से अधिक फेडरेशन से सम्बद्ध है। इनके अलावा महासंघ, बीएमएस संबंद्ध, पेंशनर्स ये संघ भी हैं। जीएडी ने कहा है इनमें से हर जिले की जेसीसी में एक एक संघ के एक एक प्रतिनिधि को शामिल किया जाए। ऐसा होने पर हर जिले की जेसीसी भी तीन सौ सदस्यीय हो जाएगी। लेकिन जीएडी और कलेक्टर विभाग प्रमुख ऐसा नहीं करते। वे मात्र दर्जन डेढ़ दर्जन सदस्य ही लेते हैं।
ऐसे में कर्मचारी नेताओं में सदस्य बनने होड़ मचेगी। और जो नहीं बन पाएगा उसकी भूमिका 'फूफा’ जैसी होनी निश्चित है। इतना ही नहीं ऐसे नाराज लोगों का पाला बदलना या विभीषण बनना भी तय है। निहारिका बारिक सिंह कमेटी की बैठक में जेसीसी गठन की मांग उठाकर कर्मचारी राजनीति के शांत समुद्र में कंकड़ मारकर, नेताओं में अपने ही लिए समस्या खड़ी कर ली है। जीएडी ने भी मांग और मौके का फायदा उठाकर गठन के आदेश जारी कर दिए। अब कर्मचारी राजनीति की धार देखना है।
क्या चल रहा है स्वास्थ्य विभाग में ?
राज्य के प्रमुख मंत्रालय जैसे स्वास्थ्य, और गृह न केवल आकार में बड़े हैं बल्कि राज्य में सुशासन सुनिश्चित करने के लिए इनका चुस्त-दुरुस्त रहना बेहद आवश्यक है। प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बिगड़ रही है। हत्या, चाकूबाजी के अलावा सीधे पुलिस और प्रशासन के खिलाफ उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन इस पूरी स्थिति को गृह मंत्री और डिप्टी सीएम विजय शर्मा की चूक कहना सही नहीं होगा; हालात काबू में करने में जरूर कुछ कमियां दिखाई दे रही हैं।
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल का मामला अलग है। कुछ दिन पहले उन्होंने सिम्स मेडिकल कॉलेज, बिलासपुर में समीक्षा बैठक बुलाई, जिसमें डीन अनुपस्थित थे। इस पर बिना देरी किए, मंत्री ने निलंबन का आदेश जारी कर दिया। परंतु, यह आदेश जल्द ही हाईकोर्ट में ध्वस्त हो गया, क्योंकि डीन डॉ. सहारे परिवारिक शोक के चलते विधिवत अवकाश पर थे। इसके बाद स्थिति विकट हो गई। अब कॉलेज में हाईकोर्ट के आदेश से लौटे डॉ. सहारे और स्वास्थ्य विभाग द्वारा नियुक्त डॉ. रणमेश मूर्ति के बीच पदभार को लेकर लड़ाई चल रही है। स्टाफ में भ्रम फैला हुआ है और व्यवस्थाएं डगमगा रही हैं।
इधर, स्वास्थ्य विभाग में निजी प्रैक्टिस पर रोक लगाने के निर्णय ने डॉक्टरों में असंतोष भडक़ा दिया है। राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज के 22 डॉक्टर इस्तीफा दे चुके हैं, और पूरे प्रदेश में यह संख्या 30 तक पहुँच गई है। सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर रोक हमेशा एक पेचीदा मुद्दा रहा है। ऐसी स्थिति में, जब राज्य के सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सकों की भारी कमी है, हर इस्तीफा एक नई चुनौती खड़ी कर रहा है।
मंत्री जायसवाल द्वारा झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आदेश भी शुरुआती दिखावे तक सीमित रह गया। बलौदाबाजार में जब पत्रकारों ने झोलाछाप डॉक्टरों को कुछ स्वास्थ्य अधिकारियों का संरक्षण मिलने का आरोप लगाया, तो मंत्री भडक़ उठे और सबूत की मांग करने लगे। मंत्री का यह रवैया, मानो वे आलोचना सुनना ही नहीं चाहते, उनके कामकाज के तरीकों पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है। पहली बार विधायक बनने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय जैसा बड़ा दायित्व संभालने वाले जायसवाल के स्वास्थ्य क्षेत्र में कई चुनौतियाँ हैं। उनके सामने मोतियाबिंद ऑपरेशन के दौरान आंख गंवाने वाले मरीजों को न्याय दिलाने जैसे संवेदनशील मुद्दों का समाधान करने की चुनौती भी तो है। (rajpathjanpath@gmail.com)
वोट के बदले मिठाई-लिफाफा
रायपुर दक्षिण में कांग्रेस, और भाजपा के दिग्गज नेताओं ने डेरा डाल दिया है। दोनों ही दलों के विधायक, पूर्व विधायक गलियों की खाक छान रहे हैं। चुनाव प्रेक्षक भी खर्च पर नजर गड़ाए हुए हैं। इन सबसे नजरें चुराकर एक प्रत्याशी की तरफ से 25 हजार पैकेट पूजन-मिठाई, और उपहार स्वरूप एक-एक हजार के लिफाफे धनतेरस के दिन मतदाताओं तक पहुंचाए भी गए। मतदान के पहले भी इसी तरह मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए लिफाफे और अन्य उपहार भेजने की तैयारी चल रही है। मतदान पर इसका कितना असर होता है, यह कहना अभी कठिन है।
सांसद-पुत्री अब कलेक्टर
आईएएस की वर्ष-2021 बैच की अफसर तुलिका प्रजापति को पहली बार कलेक्टरी का मौका मिला है। तुलिका राज्य प्रशासनिक सेवा की अफसर थीं, और फिर उन्हें आईएएस अवार्ड हुआ है। तुलिका को आदिवासी बाहुल्य मानपुर मोहला जिले में काम करने का अवसर मिला है।
अंबिकापुर की रहवासी तुलिका राजनीतिक परिवार से आती हैं। उनके पिता स्व. प्रवीण प्रजापति कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य रहे हैं। उनकी माता हेमंती प्रजापति परियोजना अधिकारी रही हैं, और वो रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस में सक्रिय हंै। वो लूंड्रा से टिकट की दावेदार भी थीं। इससे परे तुलिका का अब तक प्रशासनिक कैरियर बेहतर रहा है। कलेक्टर के रूप में क्या कुछ करती हैं, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
चूक या राजनीति
इसे चूक कहें या राजनीति, संस्कृति विभाग ने एक अलंकरण की घोषणा ही नहीं की। और वह भी चयन प्रक्रिया पूरी करने के बाद भी बकायदा विज्ञापन जारी कर आवेदन मंगाए गए। आवेदन भी दर्जनभर से अधिक आए। चयन समिति भी बनी, उसकी बैठक हुई, सबके कृतित्व का आंकलन भी किया। लेकिन उपराष्ट्रपति के हाथों आज कोई सम्मानित नहीं हो पाएगा। यह सम्मान, छत्तीसगढ़ के रंगमंच को विश्व थिएटर तक पहुंचाने वाले पद्मश्री स्व हबीब तनवीर की स्मृति में दिया जाना था। हबीब भाई राजधानी के बैजनाथ पारा में रहा करते थे। यह सम्मान पिछली सरकार ने दो अन्य अलंकरणों लक्ष्मण मस्तुरिया स्मृति और खुमान साव स्मृति के साथ शुरू करने की घोषणा की थी। संस्कृति विभाग ने इन दो के नाम तो घोषित किए लेकिन तनवीर की स्मृति को भूल गया। सूची में इस अलंकरण के शामिल न होने से रंगमंच के नामचीन कलाकारों ने ही यह जानकारी देते हुए अफसोस जाहिर किया है।
हाथियों की सह-अस्तित्व परेड
शांतिपूर्ण, कतारबद्ध सडक़ पार करता हाथियों का यह दल दिखाता है कि ये विशालकाय प्राणी केवल सम्मान और दूरी चाहते हैं। हसदेव अरण्य इलाके के इस वीडियो में कोरबा-अंबिकापुर हाईवे पर ग्राम मड़ई के पास गजराज परिवार का नजारा सुकून देने वाला है। हाल में छत्तीसगढ़ में करंट से चार हाथियों की दर्दनाक मौतों के बीच इस तरह का दृश्य अनमोल है, खासकर जब इस गज दल में नन्हे शावक भी शामिल हैं।
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो को देखने से यह धारणा मजबूत होती है कि गजराज किसी पर बेवजह हमला नहीं करते। वे स्वभाव में मूल रूप से संकोची हैं। वे भी शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की जरूरत महसूस करते हैं पर उन्हें पानी और भोजन की जरूरत पूरी करने के लिए भटकना पड़ता है। जैसे ही वे सडक़ पार कर रहे थे, लोगों में उत्सुकता दिखी। दोनों ओर गाडिय़ों की कतार लग गई, जिनमें एंबुलेंस भी थीं। लोग हाथी से सुरक्षित दूरी बनाकर बिना शोरगुल किए खड़े थे। पर अफसोस कुछ लोगों ने जोर से हॉर्न बजाकर उन्हें डराने की कोशिश की। बाकी लोगों ने उन्हें फटकार लगाते हुए मना किया।
छत्तीसगढ़ के अलग-अलग भागों में हाथियों के कई दल विचरण कर रहे हैं। हाथियों की असामयिक मृत्यु और मानव के साथ उनका संघर्ष भी इसी अनुपात में बढ़ता जा रहा है। वन्यजीव प्रेमी कहते हैं कि जागरूकता और सहिष्णुता हो तो हाथी भी हमारे जंगलों में सुरक्षित और निश्चिंत रह रहेंगे। आम लोगों की जिम्मेदारी तो बनती है कि वे इसका ध्यान रखें, लेकिन हाल की घटनाएं बताती है कि वन विभाग और प्रशासन में संवेदना का अभाव है।
पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या ऐसे होगी कम
प्रदेश के कॉलेजों में इस बार स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री के लिए आवेदन की संख्या में चौंकाने वाली गिरावट आई है। पूरे प्रदेश के आंकड़े अभी नहीं मिले हैं। एक जानकारी सामने आ रही है, उसके मुताबिक इस साल बस्तर विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले 53 कॉलेजों में स्नातक स्तर पर पिछले साल की तुलना में आधे से भी कम आवेदन हुए हैं। जहां पिछले वर्ष 15,000 से अधिक प्राइवेट परीक्षार्थियों ने आवेदन किया था, वहीं इस बार अंतिम तारीख तक केवल 6,000 आवेदन ही आए हैं। स्नातकोत्तर में भी यह गिरावट दिखाई दे सकती है, जैसे ही उसकी आवेदन तिथि समाप्त होगी।
इस बदलाव का बड़ा कारण नई शिक्षा नीति 2020 है, जिसके तहत स्नातक और स्नातकोत्तर में निजी छात्रों की परीक्षा प्रक्रिया में बदलाव किए गए हैं। अब स्नातक और स्नातकोत्तर के प्रथम वर्ष में छात्रों को साल में दो सेमेस्टर की दो परीक्षाएं देनी होंगी। साथ ही असाइनमेंट के लिए 10-12 दिनों का अतिरिक्त समय भी देना होगा। पहले द्वितीय और अंतिम वर्ष में प्राइवेट परीक्षार्थियों को एक बार आवेदन और एक बार परीक्षा देने की सुविधा थी, परंतु अब केवल प्रथम वर्ष के छात्रों को नई परीक्षा प्रणाली का पालन करना होगा।
नई नीति से प्राइवेट परीक्षार्थियों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। जो छात्र समय या व्यावसायिक जिम्मेदारियों के चलते नियमित कक्षाओं में शामिल नहीं हो सकते थे, उन्हें अब बार-बार कॉलेज जाना होगा। इससे वे महिलाएं भी प्रभावित होंगी, जिन्हें पहले केवल एक बार परीक्षा देने आना पड़ता था।
प्राइवेट इनरोलमेंट घटने से कॉलेजों की आमदनी पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि कॉलेज प्राइवेट परीक्षार्थियों से कई तरह की अतिरिक्त फीस वसूलते थे, जो अब कम हो जाएगी। दूसरी ओर, अधिकतर शिक्षाविद इस बदलाव को सकारात्मक मानते हैं। उनका कहना है कि अब प्राइवेट परीक्षा से मिली डिग्री का वास्तविक मूल्यांकन हो सकेगा, और इसे हल्के में नहीं लिया जाएगा। मगर, इसी के परिणामस्वरूप भविष्य में स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री धारक बेरोजगारों की संख्या में भी कमी देखने को मिल सकती है।
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धान खरीदी में देरी के नुकसान
छत्तीसगढ़ में धान की खरीदी हर साल एक नवंबर से शुरू हो जाती थी, लेकिन इस बार 16 नवंबर से शुरू होगी। सरकार का कहना है कि इस समय तक फसल पूरी तरह तैयार नहीं होती, पर अनेक किसानों के लिए यह देरी उनके लिए एक समस्या बन गई है। जल्दी पकने वाली धान की फसल तैयार हो चुकी है, और किसानों के पास उसे रखने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
छोटे किसानों के पास खलिहान नहीं होते और वे धान काटते ही उसे बेचने के लिए सोसाइटी में पहुंचाना पसंद करते हैं। बड़े किसानों के ही खलिहान का साझा उपयोग करते हैं, ताकि समय पर अपनी फसल को सुरक्षित कर सकें। इस बार धान खरीदी में देरी होने के कारण इन किसानों को अपनी फसल 10-12 दिन तक अपने पास डंप करके रखने की मजबूरी आ पड़ी है।
हाथी प्रभावित इलाकों के किसानों के लिए यह स्थिति और भी जोखिम भरी है। यदि वे धान को खलिहान में रखेंगे, तो हाथियों के हमले का खतरा बना रहता है, जो उनकी मेहनत को बर्बाद कर सकते हैं। इससे बचने के लिए कई किसान अब अपनी फसल खुले बाजार में बेचने पर मजबूर हैं, जिससे उन्हें समर्थन मूल्य से कम कीमत मिल रही है।
दूसरी ओर, उपार्जन केंद्रों के ऑपरेटरों की हाल ही में समाप्त हुई हड़ताल के कारण किसानों का पंजीयन कार्य पिछड़ गया है। इसके अलावा, अब समितियों के प्रबंधक हड़ताल पर चले गए हैं और राजधानी रायपुर में डेरा जमाए हुए हैं।
कन्फर्म बर्थ का जुगाड़
छठ पूजा आते ही दिल्ली से यूपी-बिहार जाने वाली ट्रेनों का हाल देखिए। रेलवे दावा कर रहा है कि इस बार पिछली बार से दोगुनी स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं, पर भीड़ ऐसी है कि प्लेटफॉर्म और ट्रेन में पैर रखने की जगह भी नहीं। लोग 12-15 घंटे खड़े-खड़े यात्रा कर रहे हैं, मानो रेलवे ने यात्रियों के धैर्य की परीक्षा लेने की ठान ली हो।
मगर कुछ यात्री ऐसे विपरीत हालात में भी धीरज नहीं खोते। इस तस्वीर में दिखाई दे रहा है कि ऊपरी बर्थ के बीच रस्सी बांधकर जुगाड़ से एक और बर्थ बना ली गई है। सीट कन्फर्म नहीं मिली तो क्या, खुद अपनी व्यवस्था कर ली! वैसे भी हमारे देश के लोग किसी भी स्थिति में खुद को एडजस्ट करने की कला में निपुण हैं।
कुछ लोग कह रहे हैं कि रेलवे को इस पर जुर्माना लगाना चाहिए, आखिर बिना अनुमति बर्थ तैयार कर ली गई है। लेकिन जो घर से रस्सी लेकर आए, मेहनत से सीट तैयार की, उनसे उगाही के बारे में सोचना अन्याय होगा। बल्कि, यह क्रिएटिविटी भविष्य की ट्रेनों में काम आ सकती है। हो सकता है, अगली बार शायद रेलवे जुगाड़ बर्थ खुद बनाए और उसके लिए टिकट भी बेचना शुरू कर दे।
आरक्षण और अटकलें
सरकार ने स्थानीय निकाय चुनाव के लिए पिछड़ा वर्ग आरक्षण की नई नीति को मंजूर कर लिया है, और इस सिलसिले में जल्द अधिसूचना जारी होने के संकेत हैं। चुनाव में आरक्षण के मसले पर एक बार फिर प्रदेश की राजनीति गरमा सकती है।
विधानसभा उपचुनाव निपटने के बाद नगरीय निकाय, और पंचायत के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी। राज्य निर्वाचन आयोग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। ताजा विवाद आरक्षण के मसले पर छिड़ सकता है। विश्वकर्मा आयोग ने एससी-एसटी, और ओबीसी मिलाकर कुल आरक्षण 50 फीसदी तक रखने की सिफारिश की है। पिछड़ा वर्ग का स्थानीय निकायों में पिछले चुनाव में 25 फीसदी आरक्षण रहा है लेकिन नई नीति से नगर-निगमों में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण बढ़ सकता है। ऐसे में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में बढ़ोतरी हो सकती है।
यह भी साफ है कि पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित वार्डों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। यही नहीं, अनारक्षित वार्डों की संख्या में कमी आ सकती है। सिर्फ अंबिकापुर ही अकेला ऐसा निगम है जहां वार्डों का आरक्षण यथावत रहेगा।
इधर, निगम चुनाव लडऩे के कई इच्छुक नेता पहले परिसीमन को लेकर नाखुश थे और हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। करीब 50 याचिकाएं दायर की गई थी। ये अलग बात है कि कोर्ट ने याचिकाएं खारिज कर दी। अब आरक्षण से प्रभावित कई नेता कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। फिलहाल अधिसूचना का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है।
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बंदे में आखिर क्या बात है?
चुनाव आयोग ने झारखंड, और महाराष्ट्र के डीजीपी को हटा दिया है। इन दोनों राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। राजनीतिक दलों की शिकायत पर दोनों राज्यों के डीजीपी को हटाया गया है। इस मामले में छत्तीसगढ़ के डीजीपी अशोक जुनेजा भाग्यशाली रहे हैं। गौर करने लायक बात यह है कि विधानसभा चुनाव के बीच डीजीपी अशोक जुनेजा को हटाने की मांग की गई थी।
भाजपा के एक प्रतिनिधि मंडल ने जुनेजा के खिलाफ शिकायतों का पुलिंदा चुनाव आयोग को सौंपा था। आयोग ने इस पूरे मामले में मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी से रिपोर्ट मांगी थी, लेकिन आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई। और जब भाजपा सरकार में आई, तो जुनेजा के हटने की अटकलें भी लगाई जा रही थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
यही नहीं, रिटायरमेंट के बाद छह महीने का एक्सटेंशन भी दे दिया गया। जिन दिग्गजों ने जुनेजा के खिलाफ शिकायत की थी वो अब भी समझ पा रहे हैं कि उन्हें एक्सटेंशन क्यों दिया गया। दबे स्वर में प्रदेश में खराब पुलिसिंग के लिए जुनेजा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। चाहे कुछ भी हो, जुनेजा को दाद देनी ही पड़ेगी।
भाजपा के जिन नेताओं ने विधानसभा चुनाव के पहले जुनेजा को हटाने की माँग की थी, वे अब सामने पडऩे पर नजऱें छुड़ाने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
कुछ ऐसा ही भूपेश सरकार के आने के वक्त हुआ था। चुनाव के पहले कांग्रेस पार्टी अनिल टुटेजा के खून की प्यासी थी। और चुनाव हो गया फिर? फिर कांग्रेसी नए राजा से मुँह चुरा रहे थे।
छत्तीसगढ़ में रहने वाले...
भाजपा में संगठन चुनाव चल रहे हैं। दिसंबर के पहले पखवाड़े में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होगा, और दिसंबर के आखिरी हफ्ते में ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए जो नाम अभी से चर्चा में है, उनमें केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान प्रमुख है। प्रधान छत्तीसगढ़ भाजपा के लंबे समय तक प्रभारी रहे हैं। वे उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी रहे हैं, और हाल में ही हरियाणा चुनाव में जीत के लिए रणनीति उन्होंने ही तैयार की थी।
धर्मेन्द्र प्रधान, पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। इन सबको देखते हुए छत्तीसगढ़ के कई भाजपा नेता अभी से धर्मेन्द्र प्रधान के अध्यक्ष बनने की संभावना जता रहे हैं। कई नेता उनके संपर्क में भी हैं।
खास बात यह है कि छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं। मोदी के बाद वेंकैया नायडू प्रभारी थे, जो बाद में राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। इसके बाद राजनाथ सिंह प्रभारी बने वो भी राष्ट्रीय अध्यक्ष हुए। मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा भी छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे हैं।
ऐसे में धर्मेन्द्र प्रधान के प्रोफाइल, और छत्तीसगढ़ से जुड़े संयोग को देखकर उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की अटकलें लगाई जा रही है, तो वह बेवजह नहीं है।
टारगेट रेलवे का, या साहब का
रायपुर रेल ‘मंडल’ के रायपुर- दुर्ग के ट्रेन में चलने वाले टीटीई और प्लेटफॉर्म ड्यूटी करने वाले टीसी, इन दिनों अपने साहब से परेशान हैं। परेशानी की बात यह है कि बेटिकिट, बिना बुकिंग लगेज, बिना रिजर्वेशन के स्लीपर में सफर करने पर कार्रवाई का ‘मंडल’ का टारगेट पूरा करें या साहब का टारगेट पूरा करें। साहब ने इन सभी को अपने लिए मासिक टारगेट बांध दिया है कि मुझे इतना तो चाहिए ही। नहीं तो ट्रेन से उतार कर आफिस में बाबू गिरी या प्लेटफॉर्म में लूप लाइन में डाल दिए जाओगे।
रायपुर के टीटीई, नागपुर तक और दुर्ग के कटनी और विशाखापट्टनम तक ड्यूटी पर जाते हैं। इन सबकी कमाई साहब जानते जो हैं। क्योंकि वो स्वयं भी नीचे से ही ऊपर आए हैं। नागपुर से तीन माह पहले यहां आने के बाद अब साहब सक्रिय हुए हैं। वैसे साहब के यहां आने की वजह भी ऐसी ही कुछ प्रताडऩाएं रहीं है। इसे लेकर वहां की दो महिला टीसियों की शिकायत पर साहब महिला आयोग में पेशियों का सामना कर रहे हैं। अब देखना यह है कि टारगेट पूरा होता है या साहब पीछे हटते हैं।
झारखंड चुनाव में हसदेव
झारखंड में एक ओर विधानसभा में वापसी के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए जूझ रहे हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़ का पड़ोसी राज्य होने के साथ-साथ दोनों आदिवासी बाहुल्य प्रदेश हैं। दोनों राज्य खनिज संसाधनों से संपन्न हैं। इन संसाधनों के दोहन के लिए जल-जंगल-जमीन को उजाडऩा और आदिवासियों को बेदखल करना, हर राजनीतिक दल के लिए मुद्दा रहा है। मगर, तब जब वह सत्ता में नहीं हो।
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते थे कि भाजपा को वोट देना मतलब अडानी को हसदेव का जंगल सौंप देना। विधानसभा में जब हसदेव के जंगल को बचाने की संकल्प पारित किया गया तो सभी राजनीतिक दल साथ थे। विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने तब कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाया था कि वह जंगल काटने के लिए आदिवासियों पर बल प्रयोग कर रही है। हालांकि, अब भाजपा की सरकार बनने के बाद उतना ही बल या उससे अधिक लगाकर प्रस्तावित खदान के लिए कटाई का सिलसिला शुरू हो गया। कांग्रेस ने इसका विरोध किया, पर यहां कोई चुनाव सामने नहीं है, इसलिए विरोध औपचारिक ही रहा। इस ताजा पेड़ कटाई के दौरान लोग राहुल गांधी की प्रतिक्रिया भी ढूंढ रहे थे, नहीं मिली।
मगर, झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगभग हर चुनावी सभा में यह कह रहे हैं कि भाजपा झारखंड की सत्ता में इसलिये आना चाहती है ताकि यहां के जंगल और जमीन को वह अपने उद्योगपति मित्रों के हवाले कर सके। और इस बयान के दौरान वे छत्तीसगढ़ में हसदेव के जंगलों की हो रही कटाई का उदाहरण दे रहे हैं। भाजपा का यह रुख है कि वह इस मुद्दे पर कोई जवाब ही न दे। उसने यूसीसी, एनआरसी और बांगलादेशी घुसपैठ व सोरेन सरकार के भ्रष्टाचार पर चुनाव पर प्रचार अभियान फोकस किया है।
हम भी लटककर चलते हैं...
चीन जैसे देशों में ट्रेनें लटककर चलती है, जो तकनीकी और इंजीनियरिंग का एक उदाहरण है। वहीं, हमारे भारत में लोग अक्सर भीड़-भाड़ वाली ट्रेनों में लटककर यात्रा करते हैं। यह स्थिति हमारे देश के यात्रियों की सहनशीलता और विवशता का उदाहरण है।
चुनाव और जाति की राजनीति
रायपुर दक्षिण में सामाजिक समीकरण को अपने पक्ष में करने के लिए कांग्रेस, और भाजपा के रणनीतिकार प्रयासरत हैं। इन सबके बीच एक दीवाली मिलन कार्यक्रम भी हो गया। यह कार्यक्रम ब्राह्मणों के लिए रखा गया था।
कार्यक्रम में सरकार के एक मंत्री भी पहुंचे थे। कार्यक्रम के लिए दिल खोलकर खर्च भी किया गया। इस आयोजन के बाद दूसरे समाज के लोग भी इस तरह उम्मीद पाले हुए हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो गैर ब्राह्मणों में नाराजगी फैलने का अंदाजा भी लगाया जा रहा है। इसको भांपते हुए दूसरे दल ने सभी मोहल्ले में दिवाली मिलन कार्यक्रम के आयोजन की तैयारी शुरू कर दी है। यह जाति विशेष के लिए न होकर सर्व समाज के लिए होगा। दीवाली मिलन से किसको फायदा होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
सरकार और हैरानी!
लोकतंत्र में किसी सरकार के भीतर निर्वाचित और सत्तारूढ़ नेता, और पेशेवर अफसरों के बीच लगातार संपर्क और संवाद से ही काम हो पाते हैं। ऐसे में अगर किसी अफसर को महीनों अपने विभागीय मंत्री से मिलने न मिले, तो उसे क्या कहा जाए? यह सवाल प्रदेश की राजधानी से देश की राजधानी तक लोगों को कुछ हैरान कर रहा है!
पसंदीदा मुजरिम, और बेचैनी...
जब किसी ताकतवर या बड़े पर पुलिस हाथ डाले, तो ऊपर के बड़े-बड़े अफसरों के या तो हाथ-पांव ठंडे पड़ जाते हैं, या फिर उनका खून खौलने लगता है। ये दो अलग-अलग बातें इस तरह लागू होती हैं कि मुजरिमों से ऊपर के अफसरों के संबंध कैसे हैं। ऐसे में धर्म, जाति, गुरूभाई होना, या किसी एक प्रदेश या भाषा का होना बड़ा काम आता है। इनमें से किसी भी एक बात की वजह से बड़े-बड़े अफसर छोटे-छोटे अफसरों से खफा हो जाते हैं कि उनके तबके के, या उनके पसंदीदा मुजरिम को क्यों छुआ गया? अब सवाल यह उठता है कि अगर ऐसे बड़े मुजरिमों को किसी भी जुर्म के लिए पौराणिक कहानियों की जुबान में, अभयदान देना था, तो उसे पहले से बता देना था। कुछ तेज अफसर अपने पसंदीदा मुजरिमों के इलाकों के छोटे मातहत अफसरों को गब्बर की असली पसंद पहले से उजागर कर देते हैं, और फिर पुलिस महकमे के हर दर्जे में इतनी समझदारी तो रहती ही है कि जिन कंधों पर अधिक पीतल लगा हो, उन पर खड़े सिर और मुंह से निकले इशारों को तुरंत समझ लें। फिलहाल कुछ बड़े लोगों के घिरने से पुलिस के कुछ बड़े लोगों में बेचैनी भर गई है।
गांजा गांव में सस्ता !!
नशेड़ी और नशे की वस्तुओं की धरपकड़ को लेकर एसएसपी एक अभियान चलाए हुए है। कार्रवाई हो भी रही है। इसमें गांजा ही बड़ी मात्रा में पकड़ा रहा है। मगर दिक्कत इस बात की है कि हर थाने का रेट अलग अलग है। यानी प्रति किलो गांजे की कीमत शहर के थाने अलग लगा रहे और ग्रामीण के थाने अलग। हमने अक्टूबर में अलग अलग थाना पुलिस की जब्ती (बड़ी खेप) और आंकी गई कीमत की जांच की। यह जानकारी पुलिस ने ही दी है। जैसे 4 अक्टूबर को टिकरापारा पुलिस ने 14.362 किग्रा गांजा जब्त कर कीमत 2.80. लाख आंका। पांच दिन बाद 9 अक्टूबर को गुढिय़ारी पुलिस ने 12.383 किग्रा गांजे की कीमत 2.45 लाख बताई। यानी रेट कऱीब साढ़े उन्नीस हज़ार रूपिये किलो।
लेकिन गोबरा नवापारा पुलिस ने इनसे कहीं अधिक गांजा जब्त किया और औसत रेट कम लगाया। वहाँ 30 अक्टूबर को पुलिस ने 20 किलो गांजा जब्त किया और कीमत मात्र 60 हजार रुपए लगाया। ऐसे कैसे संभव है- क्वांटिटी अधिक और प्राइज कम।
हो भी सकता है शहर से बाहर जाते ही कीमत कम हो जाएगा। यह वैसे ही है जैसे चोरी होने पर पुलिस रिपोर्ट में कम कीमत लिखती है और चोरों से जब्ती या बरामद सामान की कीमत अधिक बताती है। पुलिस का बैलेंस शीट वही जानती है।
आदिवासी संस्कृति की झलक दीवारों पर
स्टील सिटी जमशेदपुर के सुंदरनगर पोस्टऑफिस के अंतर्गत आने वाले तालसा गांव में आदिवासी कला की अनूठी छटा देखने को मिलती है। संथाल क्षेत्र के इस गांव में घरों की दीवारों पर मनमोहक चित्रकला उकेरी गई है।
एक घर में तो रेलवे की बोगी का सुंदर चित्र उकेरा गया है, जबकि अन्य घरों में पेड़, फूल, पक्षी,और जानवरों के चित्र बखूबी सजाए गए हैं। गांव के प्रवेश द्वार पर स्पष्ट अक्षरों में गांव का परिचय और संविधान के अनुच्छेद 13(3) व 244(1) के तहत गांव के विशेषाधिकार का उल्लेख है। इस कलात्मक पहल को सोशल मीडिया पर झारखंड चुनाव कवर कर रहे रिपोर्टर्स ने सराहा है। इन भित्ति चित्रों को ‘सोहराई कला’ के नाम से जाना जाता है, जो आदिवासी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण
हिस्सा है।
शिक्षकों का ‘साइड बिजनेस’
कुछ शिक्षकों का ध्यान शिक्षा से हटकर अन्य कामों में अधिक लगने लगा है। शालाओं से गायब रहना, बच्चों से मजदूरी कराना और नशे में हंगामा करना, बच्चियों से शर्मनाक बर्ताव करना जैसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। अब इनमें एक नई प्रवृत्ति देखने को मिल रही है- नेटवर्क मार्केटिंग। कोरबा जिले में कुछ शिक्षक पढ़ाई के समय मोबाइल पर ग्राहकों की तलाश में रहते हैं और अपने प्रभाव का इस्तेमाल बच्चों के अभिभावकों पर सामान खरीदने के लिए दबाव डालते हैं। इस पर जिला शिक्षा अधिकारी ने सख्त कदम उठाते हुए चेतावनी दी है। हालांकि, चालाकी से शिक्षकों ने नेटवर्क मार्केटिंग खातों में अपनी जगह परिवार के सदस्यों का नाम जोड़ रखा है, जिससे सबूत जुटाना कठिन हो रहा है। प्रारंभिक शिक्षा बर्बाद करने में शायद कुछ शिक्षक कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहते।
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कौन परदेसिया, कौन इम्पोर्टेड?
महाराष्ट्र के चुनाव में शिवसेना के शिंदे गुट की उम्मीदवार शाइना चुडासमा की एक शिकायत पर मुम्बई पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। उनकी शिकायत शिवसेना के उद्धव गुट के उम्मीदवार अरविंद सावंत के खिलाफ है जिन्होंने अपने एक बयान में शाइना का नाम लिए बिना कहा था- उनकी हालत देखिए आप, जिंदगी भर वो भाजपा में रही, फिर वो दूसरी पार्टी में गईं। हमारे यहां इम्पोर्टेड माल नहीं चलता, हमारे यहां ओरिजनल माल चलता है। इस बयान को शाइना ने अपना अपमान माना है।
इस ताजा एफआईआर से यह याद पड़ता है कि कुछ दिन पहले ही छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की दक्षिण विधानसभा सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार आकाश शर्मा को भाजपा के लोगों ने बाहरी बताया था क्योंकि वे पड़ोस के जिले में रहे थे, और अब बरसों से रायपुर में ही रह रहे हैं। चुनाव में ऐसे नारे उछालने वाले कुछ भी याद नहीं रखते। भाजपा के ही दिलीप सिंह जूदेव खरसिया जाकर अर्जुन सिंह के खिलाफ लड़े थे जो कि मध्यप्रदेश से आकर खरसिया में लड़ रहे थे। बाद में दिलीप सिंह जूदेव बिलासपुर आकर रेणु जोगी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव भी लड़े थे।
राजधानी रायपुर से गौरीशंकर अग्रवाल अपने पैतृक इलाके कसडोल जाकर चुनाव लड़ते थे, जबकि वे पूरी जिंदगी से रहे रायपुर में थे। और दूसरी तरफ उनके मुकाबले कांग्रेस से रायपुर से जाकर कसडोल से चुनाव लडऩे वाले राजकमल सिंघानिया आज के विवाद के पैमाने पर तो पूरी तरह परदेसिया थे। कसडोल से ही द्वारिका प्रसाद मिश्र आकर 1963 में चुनाव लड़े थे, और बाद में उनके प्रतिद्वंद्वी कमल नारायण शर्मा ने चुनाव याचिका दाखिल की थी। यहां पर विद्याचरण पूरी जिंदगी महासमुंद से लड़ते रहे, जबकि वे वहां रहे कभी नहीं। जोगी महासमुंद से लड़ते रहे, जिनका वहां से कोई रिश्ता नहीं था। भूपेश बघेल तो कभी रायपुर संसदीय से लड़े, तो कभी राजनांदगांव संसदीय सीट से।
राष्ट्रीय स्तर पर परदेसिया बहू की सोच भी बड़ा फ्लॉप तर्क रही। सोनिया गांधी को विदेशी मूल का बताते हुए जो एनसीपी बनी थी, वह तो आज कांग्रेस की सबसे करीबी मददगार पार्टी बन चुकी है। यह तर्क फ्लॉप इसलिए रहा कि भाजपा की एक सबसे पूजनीय नेता विजयाराजे सिंधिया नेपाल से शादी होकर भारत आई थीं, इसलिए विदेशी बहू का पूरा तर्क बोगस रहा। अब देश के भीतर किसी को भी बाहरी, परदेसिया या इम्पोर्टेड माल कहना बेकार बात है।
रायपुर के विवाद में कांग्रेसी नेताओं ने बृजमोहन अग्रवाल और सुनील सोनी के छत्तीसगढ़ के बाहर के मूल की बात उठाई है। जिस दिन वे ऐसा बयान दे रहे थे, उस दिन प्रियंका गांधी केरल जाकर मलयाली लोगों के बीच मंच से अंग्रेजी में भाषण दे रही थीं, जिसका मलयाली अनुवाद बगल के दूसरे माईक पर सुनाया जा रहा था। देश के भीतर अब कुछ आहरी-बाहरी नहीं है। जो लोग सोनिया का नाम लेकर राजनीति चलाते रहे, संसद में सिर मुंडाने को तैयार रहे, वे लोग आज उस कमला हैरिस को लेकर खुशी में नाच रहे हैं जो कि भारत से गई हुई एक तमिल महिला से अमरीका में ही पैदा हुई थी। जो बाहर जाकर कामयाब हो जाए वे अमरीकी, और ब्रिटिश भी भारतवंशी, और जो भारत में नहीं सुहाए, वे शादी की आधी सदी बाद भी परदेसी! हालांकि लोगों को इस सिलसिले में जर्सी नस्ल की गाय जैसी भाषा को भी याद रखना चाहिए, उसे भूलना नहीं चाहिए।
अलंकरण और विवाद
छत्तीसगढ़ में इस बार एक वर्ष बाद राज्य अलंकरण दिए जाएंगे। पिछले वर्ष चुनाव होने की वजह से नहीं दिए जा सके थे। वैसे हर पांचवे वर्ष नहीं दिए जा रहे। और जब भी दिए जाते रहे तब तब विवादों में रहे। जिन्हें अलंकरण मिलता वो उनके आसपास के लोग प्रसन्न रहते हैं और सरकार को साधुवाद देते हैं। जिन्हें नहीं मिलता वो पूरी चयन प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े करते हैं। उनका पहला और सीधा लक्ष्य चयन समिति के सदस्य और उनकी सिफारिश होता है। फिर प्रशासकीय विभाग के मंत्री। यह कहते हुए कि मंत्री का समर्थक, करीबी आदि आदि।
बीते 20 वर्षों में सम्मानित लोगों में ऐसे हो भी सकते हैं। खैर, इस वर्ष भी दो पुरस्कार को लेकर ऐसे ही विवाद सुनने में आ रहे हैं। चयन समिति के गठन से लेकर चयनित ग्रहिता को लेकर तरह-तरह की बात सुनने को मिल रही है। पिछले दिनों देर से शुरू हुई चयन समिति की बैठक पहले से लेकर आए नाम पर पल भर में मुहर लगाकर खत्म हो गई। अब नाम को लेकर इतना विवाद हो रहा है कि तरह-तरह के लांछन लग रहे हैं। चर्चा तो यह भी है कि इन पुरस्कारों को इस बार न देने का फैसला लिया गया है। यह सोच कर कि एक साधे सब सधे। न कि एक सधे सब नाराज।
संविदा बंद हो या रिटायरमेंट एज 70 हो
राज्य प्रशासन में संविदा नियुक्तियों को लेकर अधिकारी कर्मचारी विरोध पर उतर रहे हैं। फिलहाल यह विरोध उनके वाट्सएप ग्रुप में चर्चाएं तेज हो रही हैं। इसके मुताबिक राज्य के कुछ अधिकारी कर्मचारी जो अपने संरक्षकों को खुश रखते हैं, वे लगातार 70 सालों तक संविदा नियुक्ति पाने में कामयाब रहते हैं। पदोन्नति के पदों में संविदा नियुक्ति का नियम नहीं है,लेकिन ऐसे लोग बहुतायत में पदोन्नति के पदों पर नियुक्त हो रहे हैं। ऐसा माहौल बनाया जाता है, मानो ये लोग न रहे तो विभाग में ताला लग जाएगा।
चर्चा में लिखा जा रहा है-बाद में यही लोग नियमित पदोन्नति में बाधा खड़ा करने लग जाते हैं, ताकि येन केन प्रकरण इनकी संविदा नियुक्ति बढ़ती रहे।यह उन लोगों के साथ घोर अन्याय है,जो ईमानदारी और स्वाभिमान से सेवा करते हुए 62 साल में सेवा से मुक्त हो जाते हैं। अब समय आ गया है, कि इस घोर असमानता के खिलाफ आवाज उठाया जाना चाहिए। या तो सभी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति 70 साल करना चाहिए। या फिर सभी सेवानिवृत्त लोगों को नियुक्ति के समान अवसर देने संविदा नियुक्ति खुले विज्ञापन के द्वारा की जानी चाहिए।
इसके समर्थन में फेडरेशन के संयोजक भी सहमत हैं कि संविदा नियुक्ति हर स्तर पर बंद होना चाहिए। लिखा जा रहा है- हम इस व्यवस्था का विरोध करते है। लेकिन मैनेजमेंट वाले लोग संविदा नियुक्ति पाने में अभी भी कामयाब हो रहे है। जोरदार विरोध प्रदर्शन करने की आवश्यकता है।
संविदा नियुक्ति की प्रथा जो अभी भी अलग अलग विभागों में चल रही है उसे बंद करने हम सभी को मिलकर रोक लगवाना होगा यदि इसे रोका नहीं गया तो विभागों मे पदोन्नति और सीधी भर्ती की कार्यवाही संपूर्ण रूप से बाधित हो रही है। प्रमोशन के विभागीय पदों पर संविदा/प्रतिनियुक्ति रूप से नियुक्त प्रशासनिक अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से हटाने की मांग की जानी चाहिए।
ऐसे जुगाड़ू लोग विभाग में संविदा में आ कर पूरा विभाग को उलझाए रखते है। साथ ही ये वही लोग है जिससे शासन निर्भर होती है और हमारे डीए जैसे प्रमुख अधिकारो से वंचित कराने में उत्तरदायी होते है।इसलिए सेवानिवृत्त अधिकारियों का पदोन्नति के पद पर संविदा नियुक्ति की परंपरा का विरोध होना चाहिए।
भीतरघात से बचने
रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव कांग्रेस गंभीरता से लड़ती दिख रही है। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, और नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत रोजाना दक्षिण के नेताओं से रूबरू हो रहे हैं। लगातार बैठकें कर रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज तो दीवाली के एक दिन पहले दक्षिण के प्रमुख नेता कन्हैया अग्रवाल, प्रमोद दुबे, ज्ञानेश शर्मा सहित कई अन्य प्रमुख नेताओं के घर भी गए।
चर्चा के बीच एक जगह दीपक बैज ने कहा भी बताते हैं कि इस बार पार्टी के खिलाफ काम करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। इस पर एक नेता ने कह भी दिया,हर बार ऐसा होता है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती है। देखना है कि पार्टी भीतरघात की शिकायत आने पर क्या करती है। फिलहाल तो सभी पार्टी के लिए काम करते दिख रहे हैं।
क्या होली और क्या दिवाली...!
दीपावली भले ही रोशनी और धन-धान्य की पूजा का पर्व हो, लेकिन इस बार जो हुड़दंग और आपराधिक घटनाएं प्रदेश में हुईं, उसने इसे होली की तरह बेकाबू बना दिया। 24 घंटों में हत्या की चार घटनाओं ने रायपुर शहर को दहशत में डाल दिया। इसके अलावा अन्य जिलों में भी हत्या, हत्या की कोशिश, आगजनी जैसी घटनाओं की भरमार रही। रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ और कोरबा के पुलिस थानों का रोजनामचा देख लें—कई थानों में तो एक दिन में तीन-चार मामले दर्ज हुए हैं।
इस बार दिवाली की रातें होली से कम नहीं थीं—चाकू, तलवार, नशीले टेबलेट और इंजेक्शन के साथ गिरफ्तारियां होली की याद दिलाती रही। होली में जिस तरह बाइकों पर तीन-चार लोग नशे में रेस लगाते हैं, वही नजारा दिवाली पर भी देखने को मिला। फर्क सिर्फ इतना था कि होली का हुड़दंग दिन में होता है, जबकि इस बार दिवाली की धमाचौकड़ी पूरी रात चलती रही। मोहल्ले-मोहल्ले में देर रात तक पटाखों का शोर जारी रहा, जिससे विवाद भी हुए। पुलिस का रात्रि 10:30 बजे के बाद पटाखे न फोडऩे का नियम हवा में उड़ गया।
जुआ खेलने वालों पर पुलिस ने तो खूब हाथ डाला, पर बरामद रकम का हिसाब कुछ कम ही दिखाई दिया। ऐसा लग रहा है, पुलिस ने अपने अफसरों से तो शाबाशी पा ली होगी, लेकिन जनता का भरोसा जीतने में असफल रही। कानून व्यवस्था को लेकर जनता होली के दिनों जितनी ही चिंतित दिखी। दीपावली की रौनक के बीच कहीं न कहीं डर और अनिश्चितता भी दिखती रही।
दीपावली के दिन हेलोवीन
31 अक्टूबर को दीपावली का पर्व देश भर में ही नहीं, दुनिया के कई देशों में मनाया गया। पर इस बार दीपावली के ही दिन एक दूसरा पर्व भी आया जिसे हेलोवीन कहा जाता है। हेलोवीन हर साल 31 अक्टूबर को मनाया जाता है। इसमें लोग एक जगह उत्सव मनाने के लिए इक_े होते हैं। अजीबोगरीब वेशभूषा कुछ उसी तरह से पहना जाता है जैसा भारत में होली के दिन लोग पहनते हैं। ऐसी ही अमेरिका की एक मीडिया सेलिब्रिटी मेगी केलिन ने कचरा उठाने वाले बैग के साथ फोटो खिंचवाई है। भारत, विशेषकर दक्षिण भारत के बड़े शहरों में भी इस नए त्यौहार को मनाने का चलन शुरू हो चुका है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
श्रद्धा धरी रही
कुछ लोगों को इस बात का बड़ा मलाल है कि चुनाव की घोषणा दीवाली के पहले हो गई। अब जिस सीट पर चुनाव है, वहां के दो बड़े उम्मीदवारों पर ही दीवाली का सालाना शिष्टाचार निभाने की जिम्मेदारी आकर टिक गई है। अगर उम्मीदवारों के नाम दीवाली के बाद घोषित होते, तो इन दो के मुकाबले दर्जन भर उम्मीद लगाए संभावित उम्मीदवारों को शिष्टाचार निभाना पड़ता। लेकिन अब दीवाली में असरदार लोगों तक पहुंचने वाले तोहफों की गिनती गिर गई है।
एक बड़े अखबारनवीस इस मलाल में जी रहे हैं कि एक पार्टी के उम्मीद लगाए एक नेता उनसे अपने बड़े नेताओं तक यह सिफारिश करवाना चाहते थे कि वे सबसे काबिल उम्मीदवार रहेंगे। लेकिन जब उम्मीदवार किसी और को बना दिया गया, तो उन्होंने मिठाई का एक छोटा सा डिब्बा पहुंचाने का शिष्टाचार भी नहीं निभाया। वक्त निकल जाए तो कौन किसे गिनते हैं? और समय रहे तो लोग किसी का हाथ अपने सिर पर रखकर श्रद्धा जताते हैं।
इस बार तस्वीर अलग
रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव पिछले कई चुनावों से अलग है। सांसद बृजमोहन अग्रवाल यहां का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं, और अब पहली बार उनकी गैरमौजूदगी में चुनाव हो रहा है। वैसे तो बृजमोहन अग्रवाल, भाजपा प्रत्याशी सुनील सोनी को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। लेकिन कांग्रेस से अब तक वैसा सहयोग नहीं मिल पा रहा है, जो उन्हें खुद के चुनाव में मिलता रहा है।
बृजमोहन के चुनाव में कई कांग्रेस पार्षद औपचारिकता निभाते रहे हैं, लेकिन इस बार वो वार्ड में ही मेहनत करते दिख रहे हैं। इसकी वजह यह है कि एक महीने के भीतर उन्हें खुद चुनाव लडऩा है। यदि उनके अपने वार्ड में प्रदर्शन खराब रहता है, तो कांग्रेस उन्हें प्रत्याशी बनाने पर पुनर्विचार कर सकती है। ऐसे में पार्षदों के लिए खुद की परीक्षा की घड़ी भी है। खास बात यह है कि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज लगातार बूथ कमेटियों की बैठक में खुद जा रहे हैं। इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह दिख रहा है। यह पहला मौका है जब पहली बार बृजमोहन की गैर मौजूदगी में भाजपा को कड़ी टक्कर देते दिख रही है।
मगर मुश्किलें बरकरार
एस आई भर्ती के 975 अभ्यर्थी बाल-बाल बचे। 28 की सुबह दो घंटे की देरी होती तो सुप्रीम कोर्ट में याचिका लग चुकी होती कि यह कहकर आगामी आदेश तक प्रक्रिया रोकी जाए। रायपुर से चार अभ्यर्थी अपनी याचिका लेकर दिल्ली जा/भेजे जा चुके थे। इस बात कि सरकार को पिछले शुक्रवार को भनक लग चुकी थी। सो मंत्रालय से पीएचक्यू तक आसमान-जमीन एक कर आदेश की नस्तियां लाल- पीली बत्तियां इतनी तेजी से दौड़ाई गई। और सुबह 10.30 बजे चयन सूची जारी करने की खबर वायरल कर दी गई। सारी चयन प्रक्रिया पूरी होने के बाद जो काम छह वर्ष से रुका पड़ा था।
हाईकोर्ट ने आदेश जारी करने दिए अल्टीमेटम के बाद भी सरकार ने दीपावली बाद का समय देने की अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट की याचिका में चयनित नामों पर उंगली उठाते हुए याचिका तैयार कर ली गई थी। यह सूची भी बघेल सरकार की पीएससी सूची की ही तरह होने के आरोपों और तथ्य लिए हुए है। कोई किसी, कार्यरत और रिटायर्ड पुलिस अफसर का बेटा बेटी, भांजा भतीजा आदि आदि बताए गए हैं। इन्हें चुनौती देने के लिए पांच लाख की एडवांस फीस देकर कुछ अभ्यार्थी भेजे गए। वकालतनामा भी तैयार था। इससे पहले कि याचिका लिस्ट होती यहां सूची जारी कर दी गई। इस तरह से मोदी की एक और चुनावी गारंटी पूरी हो गई। खतरा अभी टला नहीं है।
अभी इनमें से कई के कैरेक्टर पुलिस वेरिफिकेशन शेष हैं। इसमें यह आवश्यक है कि किसी पर व्यक्तिगत या सामूहिक अपराध, आंदोलन करने, लॉ एंड आर्डर के मामले दर्ज न हो। और ये सभी तो अपने चयन के लिए सीएम हाउस वाले वीआईपी सुरक्षा वाले क्षेत्र में धारा 144 लागू होने के बाद भी धरना प्रदर्शन, गिरफ्तार भी हो चुके हैं। ऐसे में क्लीन कैरेक्टर देने पर भी प्रश्न चिन्ह उठाए जाएंगे। इनमें से जिसके कैरेक्टर पर दाग होगा वो मुश्किल में पड़ जाएंगे।
सत्ता बदली और बोर्ड जख्मी
सत्ता बदलते ही नेताओं की तस्वीरों का गायब होना कोई नई बात नहीं, पर छत्तीसगढ़ के धनवंतरी मेडिकल स्टोर्स पर लगे कुछ होर्डिंग्स में यह परिवर्तन अनूठे ढंग से देखा जा सकता है। ये मेडिकल स्टोर्स पूर्व सरकार द्वारा आम जनता को सस्ते दामों पर दवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से खोले गए थे, जिन पर तत्कालीन मुख्यमंत्री और नगरीय प्रशासन मंत्री की तस्वीरें लगी थीं। लेकिन अब, सरकार बदलने के बाद भी इन होर्डिंग्स को हटाया नहीं गया, बल्कि तस्वीरों को खुरच कर मिटाने की अधूरी कोशिश जरूर हुई है।
बिलासपुर के एक धनवंतरी मेडिकल स्टोर के बाहर लगे इस बोर्ड पर नाम और उद्देश्य का हिस्सा जस का तस बना हुआ है, जबकि तस्वीरों को मिटाने के प्रयास में उसे खुरच दिया गया है। सरकारों के बदलने के साथ ही कई बार योजनाओं और चेहरे भी बदल जाते हैं, पर यहां तस्वीरों के साथ जो सलूक किया गया है उस पर विवाद हो सकता है।
लक्ष्य की होड़ में अनदेखी
मोतियाबिंद का पता चलने पर जल्द ऑपरेशन आवश्यक है, मगर सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों पर दबाव बनाकर लक्ष्य थोपना एक गंभीर जोखिम है। दंतेवाड़ा जिला अस्पताल में 10 अक्टूबर के बाद ऑपरेशन कराने वाले 39 मरीजों में से 17 में संक्रमण फैल गया, जिसमें से दो मरीजों की आंखों की रोशनी जा चुकी है। अब पता चल रहा है कि यहां के स्टाफ को हर सप्ताह 20 ऑपरेशन करने का लक्ष्य दिया गया था।
कुछ साल पहले तखतपुर में भी इसी तरह के लक्ष्य-निर्धारण ने नसबंदी कांड का रूप लिया था, जिसमें 16 महिलाओं की जान चली गई थी। उस समय शिविर में 200 से अधिक महिलाओं को लाकर जल्दी-जल्दी ऑपरेशन कर घर भेज दिया गया। जांच में पाया गया कि एक ऑपरेशन में मुश्किल से तीन मिनट ही लगे थे। नसबंदी कांड के बाद सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रमों ऐसे लक्ष्यों को जोडऩे पर रोक लगाई गई थी, मगर अब मोतियाबिंद ऑपरेशनों में वही गलती दोहराई गई।
दंतेवाड़ा अस्पताल में चार ऑपरेशन थिएटर तो हैं, मगर आई वार्ड एक भी नहीं है। अगर ऑपरेशन के बाद मरीजों को डॉक्टरों की निगरानी में कुछ दिन रुकने की सुविधा दी जाती, तो शायद संक्रमण को टाला जा सकता था। जैसे-जैसे इस मामले की जांच आगे बढ़ेगी, इसके पीछे की कई परतें खुलेंगी। फिलहाल दोषी ठहराकर सिर्फ ऑपरेशन करने वाली डॉक्टर और उनकी टीम को निलंबित कर दिया गया है। यह प्रश्न अभी भी बना हुआ है कि आखिर बिना पर्याप्त सुविधाओं के दबाव में इतनी जल्दी-जल्दी ऑपरेशन कराने का आदेश किसके द्वारा और क्यों दिया जा रहा था।
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यह जीत मामूली नहीं
सब इंस्पेक्टर पद पर 959 चयनित उम्मीदवारों की सूची आखिरकार जारी कर दी गई है। मगर यह अब तक रहस्य बना हुआ है कि सफल अभ्यर्थियों को इंतजार क्यों कराया जा रहा था। रिजल्ट जारी नहीं करने पर मई महीने में हाईकोर्ट ने 90 दिन के भीतर चयन प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया था। मगर, इस आदेश को सरकार टाल रही थी। 90 दिन बीतने के बाद अभ्यर्थियों ने दबाव बनाना शुरू किया। दो बार उप-मुख्यमंत्री और गृह मंत्री विजय शर्मा ने आश्वासन दिया कि सूची जल्दी निकाल दी जाएगी। पहली बार उन्होंने 15 दिन की मोहलत मांगी, दूसरी बार उन्होंने समय बताने से मना कर दिया। सरकार के सामने एक विकल्प यह भी था कि वह हाईकोर्ट के आदेश पर रिव्यू पिटिशन ले आती या फिर सुप्रीम कोर्ट चली जाती। मगर, इन दोनों ही स्थितियों में युवाओं के बीच सरकार के खिलाफ संदेश जाता। चयन 959 का हुआ है लेकिन इन चयनित लोगों को उन सैकड़ों दूसरे अभ्यर्थियों का भी कृतज्ञ होना चाहिए, जो आंदोलन में इसलिये शामिल थे कि उन्हें भी अवसर मिल सकता है। अब चयनित युवाओं की मांग मान लेने के बाद सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि फैसला लेने में इतनी देर क्यों हुई?
उल्लू का दिवाली पर दिख जाना
उल्लू को रहस्यमयी और बुद्धिमान पक्षी भी माना गया है, जो अंधकार में देखने की अद्वितीय क्षमता रखता है। यही विशेषता उसे अन्य पक्षियों से अलग बनाती है, और इसके चलते उसे ज्ञान और विवेक का प्रतीक भी माना जाता है। दीपावली की रात, जब सभी लोग रोशनी से अपने घरों को सजाते हैं और लक्ष्मी पूजा करते हैं, यदि उल्लू दिख जाए तो उनका यह विश्वास मजबूत करता है कि मां लक्ष्मी की कृपा बरसने वाली है। कुछ वाइल्डलाइफ फोटोग्रॉफरों पर यह कृपा बरसी है। हाल ही में यह तस्वीर बिलासपुर में नरेंद्र वर्मा ने खीचीं है।
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कौन आईपीएस कहां?
छत्तीसगढ़ कैडर के एक और आईपीएस अफसर अभिषेक शांडिल्य केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौट रहे हैं। आईपीएस के वर्ष-07 बैच के अफसर अभिषेक शांडिल्य सीबीआई में रहे हैं, और प्रतिनियुक्ति की अवधि खत्म होने के बाद उन्हें रिलीव भी कर दिया गया है।
शांडिल्य संभवत: नवम्बर में जाइनिंग दे देंगे। इस बैच के अफसर अभी डीआईजी हैं, जो कि जनवरी में आईजी के पद पर प्रमोट हो जाएंगे। इसी बैच के अफसर रामगोपाल गर्ग भी सीबीआई में रहे हैं। वे करीब 7 साल सीबीआई में थे। वर्ष-2007 बैच के अफसरों में दीपक झा, और बालाजी राव भी हैं। गर्ग, और दीपक झा अभी आईजी के प्रभार में हैं। दूसरी तरफ, बस्तर आईजी सुंदरराज पी का केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना टलता दिख रहा है। सुंदरराज एनआईए में जाने वाले थे। मगर केन्द्र सरकार उन्हें बस्तर से फिलहाल हटाने के इच्छुक नहीं दिख रहा है। केन्द्र सरकार ने वर्ष-2027 तक नक्सलियों के खात्मे के लिए टारगेट फिक्स किया हुआ है। इसमें बस्तर आईजी के रूप में सुंदरराज प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।
सुंदरराज की बस्तर में पोस्टिंग के बाद से राज्य पुलिस का केन्द्रीय बलों से तालमेल बेहतर हुआ है। केंद्र और राज्य के बेहतर तालमेल से नक्सल मोर्चे पर बड़ी सफलता मिली है। इन सबको देखते हुए सुंदरराज को फिलहाल बस्तर में ही रखने पर सहमति बन रही है। फिर भी आईजी स्तर के अफसरों के प्रभार बदले जा सकते हैं।
बकाया लेन-देन
जैसे जैसे निकाय पंचायत चुनाव का समय नजदीक आ रहा है, एक नेताजी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। कारण और कुछ नहीं पार्टी फंड की एक बड़ी रकम जो लौटाना है। बड़े ओहदेदार नेताजी से पार्टी नेतृत्व तगादा भी करने लगा है। एक नहीं कई बार-नेताजी जब, जहां मिल जाए। हर बार नेताजी यह कहते बच निकलते हैं, दे दूंगा भाई साहब। फंड सुरक्षित रखा हूं। कुछ हजार, लाख दो लाख होते तो पार्टी नेतृत्व भूल जाता माफ कर देता। लेकिन रकम इससे कहीं अधिक है। एक बड़े निगम से अनुबंधित कंपनियों से मिली इतनी बड़ी रकम से संगठन ने निकाय पंचायत चुनाव की नैया पार लगाने की तैयारी कर रखी है। अब देखना है कि नेताजी से पार्टी फंड वापस लेने में संगठन सफल होता है या नहीं। वैसे नेताजी पर नाइन फिगर में ही एक और लेनदारी की चर्चा आम है। हालांकि वो पुराने बिल पास कराने के लिए व्यक्तिगत रूप से दिए गए थे।
मिठास के इंतजार में गन्ना किसान
छत्तीसगढ़ के शक्कर कारखानों में गन्ना बेचने वाले किसानों का भुगतान कारखाना प्रबंधन द्वारा किया जाता है, जबकि बोनस का भुगतान सरकार की ओर से होता है। हाल ही में हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में किसानों को 62 रुपये प्रति क्विंटल बोनस देने का निर्णय लिया गया, जिसके लिए 60 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है।
इधर, कुछ शक्कर कारखानों से खबरें हैं कि कई किसानों के खातों में अभी तक यह राशि नहीं पहुंच पाई है। बैठक में यह भी कहा गया था कि गन्ना किसानों को उनके उत्पाद का 100 प्रतिशत भुगतान पहले ही किया जा चुका है। किसानों को आशा थी कि दीपावली से पहले बोनस भी मिल जाएगा, जिससे वे दोहरी खुशी के साथ त्योहार मना सकें। लेकिन मंत्रिमंडल का बोनस देने का फैसला भी देरी से आया है। अगस्त में हुई बैठक में कृषि पर चर्चा के दौरान निर्णय हुआ था कि गन्ना उत्पादक किसानों को 50-50 किलो शक्कर रियायती दर पर उपलब्ध कराई जाएगी, लेकिन बोनस पर उस समय कोई चर्चा नहीं की गई थी।
यह बोनस वितरण कृषि विभाग के माध्यम से किया जाना है, और हो सकता है कि प्रक्रियाओं में समय लग रहा हो। सरकार की मंशा है कि किसान धान की खेती का रकबा घटाकर अन्य फसलों की ओर बढ़ें। परंतु जिस तरह गन्ना बोनस में देरी हो रही है, उससे लगता है कि कृषि विभाग इस समय 14 नवंबर से शुरू हो रही धान खरीदी की तैयारियों में अधिक रुचि ले रहा है।
कितना लूटोगे सरकार को?
एक समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर देशभर में सक्षम लोगों ने घरेलू गैस सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी का त्याग कर दिया था। इस मुहिम में कई राजनेताओं और समाज के प्रतिष्ठित लोगों ने भागीदारी की, जिससे उनकी समाज में इज्जत और बढ़ी। उस समय आम जनता के लिए त्याग करना मुश्किल था, क्योंकि उस वक्त सब्सिडी का लाभ लगभग 200 रुपये तक होता था।
इधर, वक्त के साथ गैस सिलेंडर की कीमतें लगभग तीन गुना बढ़ गईं और सब्सिडी का लाभ घटते हुए केवल दहाई तक आ पहुंचा। सोशल मीडिया पर साझा की गई जानकारी से यह सामने आया कि कुछ लोगों को सब्सिडी में अब मात्र 4-5 रुपये ही मिल रहे हैं। अगर आप आशावादी हैं, तो मान सकते हैं कि एक दिन सब्सिडी की राशि पुराने स्तर पर वापस आ सकती है। अन्यथा, आप चाहें तो गैस कंपनी के पोर्टल या कस्टमर केयर पर एक फोन करके अपनी भी सब्सिडी का त्याग भी कर सकते हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)