राजपथ - जनपथ
रेलवे का कीर्तिमान यात्रियों की जान की कीमत पर?
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे बिलासपुर ने हाल ही में माल लदान का नया रिकॉर्ड बनाया। यह खबर 4 नवंबर की सुबह अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित हुई। रेलवे अधिकारियों के अनुसार, 150 मिलियन टन माल लदान का लक्ष्य पूरा करने में जहां पिछले वर्षों में 265 से 244 दिन लगते थे, वहीं इस वित्तीय वर्ष 2025-26 में यह लक्ष्य केवल 216 दिनों में हासिल कर लिया गया।
रेलवे ने गर्व के साथ कहा कि यह उपलब्धि बिलासपुर, रायपुर और नागपुर मंडलों के संयुक्त प्रयासों से संभव हुई, जिनमें से दो मंडल छत्तीसगढ़ में स्थित हैं। इन मालगाडिय़ों में सबसे अधिक परिवहन कोयले का हुआ, जबकि इस्पात, सीमेंट, खाद्यान्न और अन्य खनिज पदार्थों का भी बड़ा हिस्सा शामिल था।
रेलवे ने अपनी पीठ थपथपाते हुए यह भी कहा था कि यह सफलता संरचनात्मक सुधार और परिचालन क्षमता में बढ़ोतरी का परिणाम है।
लेकिन इसी दिन शाम, 4 नवंबर को, रेलवे के इन दावों की सच्चाई एक भीषण हादसे में उजागर हो गई। गेवरा से बिलासपुर आ रही एक पैसेंजर ट्रेन की टक्कर मालगाड़ी से हो गई। इस दुर्घटना में 11 लोगों की मौत हुई और लगभग दो दर्जन यात्री घायल हुए। हादसे की वास्तविक वजह जांच के बाद सामने आएगी, लेकिन इसने कई परिवारों को उजाड़ दिया है और रेलवे के प्रति भरोसे में कमी आई है।
ज्यादातर हताहत स्थानीय यात्री हैं। वही लोग जिन्हें अब तक इस बात पर गर्व है कि उनका दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे देश का सबसे अधिक राजस्व अर्जित करने वाला जोन है। गौर करने लायक है कि बीते वित्तीय वर्ष 2024-25 में एसईसीआर का कुल राजस्व 31,325 करोड़ रुपये रहा, जो वर्ष 2023-24 के 29,640 करोड़ रुपये से लगभग 1,600 करोड़ रुपये अधिक था।
रेलवे ने फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनों का हवाला देकर यह दावा किया था कि वह यात्रियों की सुविधा का भी ध्यान रखता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि आए दिन ट्रेनों को यह कहते हुए रद्द किया जाता है कि रेल परिचालन के आधुनिकीकरण और विस्तार का कार्य चल रहा है।दूसरी ओर ऐसी दुर्घटनाएं यह साफ कर देती हैं कि यह आधुनिकीकरण और विस्तार मालगाडिय़ों के लिए हो रहा है। नई लोकल या इंटरसिटी ट्रेनों के लिए ट्रैक नहीं होने का हवाला दिया जाता है।
हाल ही में रेलवे ने सिग्नलिंग की नई तकनीक का जोरदार प्रचार किया था। कहा गया कि अब एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनें आगे-पीछे चल सकती हैं, और उनके बीच मात्र 300 मीटर की दूरी होने पर भी टक्कर की कोई संभावना नहीं रहेगी। अब सवाल उठता है, क्या बिलासपुर-गतौरा के बीच हुआ हादसा उसी तकनीक की विफलता का नतीजा है?
जांच के बाद कारण चाहे जो भी निकले, सामान्यत: ऐसे मामलों में कुछ फील्ड स्टाफ या तकनीशियनों को निलंबित या बर्खास्त कर दिया जाता है। लेकिन सवाल असली तो यह है कि क्या इस बार रेल प्रशासन माल परिवहन की बढ़ती रफ्तार के बीच यात्री सुरक्षा पर कोई सबक लेगा ?
पशु ट्रॉली में नेताओं के कट-आउट

छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना की 25वीं जयंती पर जहां प्रदेशभर में रजत जयंती महोत्सव का उल्लास है, वहीं नगर निगम कोरबा की एक झांकी से विवाद खड़ा हो गया। प्रदेश मंत्रिमंडल के सदस्यों और प्रमुख जनप्रतिनिधियों के बड़े-बड़े कटआउट राज्योत्सव के लिए बनवाए गए। लेकिन आयोजन स्थल तक उन्हें लाने के लिए इस्तेमाल किया गया पशुओं को ढोने वाली गाड़ी का। खुली ट्रॉली में पोस्टर इस तरह से रखे हुए थे, मानो कोई झांकी निकाली जा रही हो। लोगों ने तस्वीर और वीडियो खींचकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। कुछ ने बड़ी व्यंग्यात्मक टिप्पणी की है। इसे नगर निगम का क्रिएटिव सोच बताने लगे। इसे राज्योत्सव की असली झांकी कहने लगे। वहीं अनेक लोगों ने इसे जनप्रतिनिधियों की गरिमा के खिलाफ करार दिया। कुछ लोगों ने कहा कि यह परिवहन की सामान्य प्रक्रिया है, बस पोस्टरों को ढंक लिया जाना था।
मामले ने तूल पकड़ा तो नगर निगम की महापौर संजू देवी राजपूत ने सख्त नाराजगी जताई। उनके निर्देश पर अपर आयुक्त ने तीन कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है, जिन्हें ट्रॉली में पोस्टर ढोने के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। निगम प्रशासन ने इसे छत्तीसगढ़ सिविल सेवा आचरण नियम 1965 का उल्लंघन माना है। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब ऐसी लापरवाही हुई हो। बीते 11 सितम्बर को भी इसी तरह पशु ट्रॉली से नेताओं के कटआउट ढोए गए थे, तब चेतावनी देकर मामला शांत किया गया था। मगर, अब की बार ऐसा लग रहा है कि किसी न किसी कर्मचारी पर गाज गिरने वाली है।
तारीफ के मायने क्या?

पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों नए विधानसभा भवन के उद्घाटन, और फिर राज्योत्सव समारोह में स्पीकर डॉ. रमन सिंह की तारीफों के पुल बांधे, तब से राजनीतिक हलकों चर्चा हो रही है। अटकलें लगाई जा रही है कि डॉ रमन सिंह भूमिका बदल सकती है।
कई लोग तो रमन सिंह की तारीफ को उनकी भूमिका बदलने की संभावना से भी जोडक़र देख रहे हैं। कुछ लोग उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की भी संभावना जता रहे हैं। इन सबके बीच राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष, और पूर्व भाजपा नेता वीरेन्द्र पाण्डेय के एक फेसबुक पोस्ट की खूब चर्चा हो रही है। पाण्डेय ने डॉ. रमन सिंह को सतर्क रहने का सुझाव दे दिया।
उन्होंने बहुत कुछ लिखा है। पाण्डेय ने लिखा कि छत्तीसगढ़ में जो चर्चा चल रही है कि यहां दो शक्ति केन्द्र हैं, उसे एक करना है। अत: एक केन्द्र रमन सिंह को राज्यपाल बना छत्तीसगढ़ से बाहर करना है तथा अमर अग्रवाल को विधानसभा अध्यक्ष बनाना है, छत्तीसगढ़ को चौंकाना है। इन चर्चाओं के बीच पीएम के आध्यात्मिक गुरू, और मित्र माने जाने वाले जगदगुरू रामभद्राचार्य के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान पिछले दिनों पेंड्रा में एक भविष्यवाणी को लेकर काफी चर्चा हो रही है। उन्होंने सीएम विष्णुदेव साय की पत्नी कौशल्या को आशीर्वाद देते हुए कहा कि उनके पति 2028 में फिर सीएम बनेंगे। चाहे कुछ भी हो, रमन सिंह की तारीफों के मायने तलाशे जा रहे हैं।
कांग्रेस में खींचतान जारी
कांग्रेस में जिला अध्यक्षों की नियुक्ति का मामला अटका पड़ा है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल ने पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट पर पार्टी के प्रमुख नेता भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, और टीएस सिंहदेव व ताम्रध्वज साहू से अकेले में राय ले चुके हैं। मगर अब तक सूची जारी नहीं हो पाई है।
चर्चा है कि बिहार चुनाव निपटने के बाद फिर से प्रमुख नेताओं से बात होगी, और कुछ जिले, जहां ज्यादा विवाद है वहां सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी। सबसे ज्यादा विवाद दुर्ग शहर, बिलासपुर शहर आदि जिलाध्यक्षों के पैनल को लेकर है। कुछ पूर्व विधायकों ने भी अपनी दावेदारी ठोक दी है। इनमें अरुण वोरा, यूडी मिंज के नाम लिए जा रहे हैं।
पार्टी ने यह भी तय किया है कि जिलाध्यक्ष के लिए अधिकतम 55-60 आयु के नेताओं के नामों पर ही विचार किया जाएगा। इस बार जिलाध्यक्षों को लेकर खींचतान ज्यादा है। दावा किया जा रहा है कि नए जिलाध्यक्ष पहले से ज्यादा पॉवरफुल होंगे। प्रत्याशी चयन में उनकी अहम भूमिका होगी। सबकुछ ठीक रहा, तो 15 नवंबर के आसपास सभी 41 संगठन जिलाध्यक्षों की सूची जारी हो जाएगी।
बिहार में छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी नितिन नबीन की विधानसभा सीट बांकीपुर में प्रचार के लिए दोनों डिप्टी सीएम अरुण साव, और विजय शर्मा गए हैं। उनके अलावा प्रचार के अंतिम दिन प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष किरण देव भी नबीन के लिए घर-घर जाकर वोट मांग रहे हैं। करीब आधा दर्जन निगम-मंडल के चेयरमैन, और पूर्व पदाधिकारी वहां डेरा डाले हुए हैं।
नबीन रोज रात छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं से मेल मुलाकात कर फीडबैक भी ले रहे हैं। उनके प्रचार में जुटे पार्टी के नेताओं का दावा है कि नबीन रिकॉर्ड वोटों से चुनाव जीतेंगे। बताते हैं कि नबीन के चुनाव प्रबंधन से जुड़े लोगों ने छत्तीसगढ़ से आए कार्यकर्ताओं को हिदायत दे रखी है कि वो स्थानीय नेताओं के पीछे रहकर प्रचार करें। स्थानीय नेताओं को यह नहीं लगना चाहिए कि बाहर से आए कार्यकर्ता उन पर हावी हो रहे हैं। यदि ऐसा हुआ, तो नुकसान हो सकता है। दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में दूसरे राज्यों से प्रचार के लिए भाजपा नेता आते रहे हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के नेताओं को लेकर स्थानीय छत्तीसगढ़ के कार्यकर्ताओं की शिकायतें रहती थी कि ये सभी गैर जरूरी मांग करते हैं, और हावी होने की कोशिश करते हैं। जबकि आम मतदाताओं के बीच प्रचार करने से कोई फायदा नहीं होता है।
विशेषकर बस्तर संभाग में स्थानीय कार्यकर्ताओं, और दूसरे राज्यों से आए कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य नहीं रहा। बिहार पिछड़ा, और गरीब राज्य जरूर है, लेकिन राजनीतिक जागरूकता यहां के मतदाताओं में काफी है। ऐसे में बिहार चुनाव में प्रचार के अनुभव से यहां के नेताओं को काफी कुछ सीखने का अवसर भी मिल रहा है।
विधायक की कुर्सी बचा रहा प्रशासन ?

सरगुजा के एसटी रिजर्व सीट प्रतापपुर से विधायक शकुंतला पोर्ते के जाति प्रमाण पत्र को लेकर विवाद गहरा गया है। नामांकन जमा करने के बाद ही पोर्ते के जाति प्रमाण पत्र को लेकर आपत्ति जताई जा रही थी। यह कहा गया कि उन्होंने अनुसूचित जनजाति का होने का मूल दस्तावेज नहीं दिखाया। इसके बावजूद उनका नामांकन वैध घोषित कर दिया गया था। आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने इस मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। बीते जून माह में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जिला स्तरीय, जाति छानबीन समिति को उनके दस्तावेजों को सत्यापित करने का निर्देश दिया था। मगर, चार माह बीत जाने के बावजूद समिति ने कोई निर्णय नहीं लिया है। जिला प्रशासन का दावा है कि अगस्त और सितंबर महीने में तीन बार पोर्ते को नोटिस जारी कर उपस्थित होने के लिए कहा गया था लेकिन वे नहीं पहुंचीं। अब फिर नोटिस दी जाएगी। इधर आदिवासी संगठनों का आरोप है कि पोर्ते जांच से बच रही हैं। यदि उनके पास वास्तविक दस्तावेज हैं तो उसे सामने लाने में देर क्यों कर रही हैं। यदि दस्तावेज नहीं है तो माना जाएगा कि वह असली आदिवासियों का हक छीन रही हैं। अब, आदिवासी संगठनों ने सूरजपुर कलेक्टर को एक बार फिर ज्ञापन सौंपा है, जिसमें एक सप्ताह का अल्टीमेटम भी दिया गया है। भाजपा की शकुंतला पोर्ते ने कांग्रेस के डॉ. प्रेमसाय टेकाम को हराकर जीत हासिल की थी। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद जिला प्रशासन ने अब तक तो फैसला रोक रखा है। मगर, अब आदिवासी समाज का दबाव बढ़ा है। ऐसे में उसे जल्द कोई निर्णय लेना ही पड़ेगा।
अब बैंकों में बढ़ता वीआरएस
कभी बैंक की नौकरी मतलब 35- 40 वर्ष के जीवन के लिए बेफिक्री मानी जाती रही है। हालांकि अभी भी बैंक में नौकरी का बड़ा क्रेज बना हुआ है। लेकिन हालिया वर्षों में इसके प्रति बेरुखी बढ़ी है खासकर सेवारत अफसर- कर्मियों में। आरटीआई से मिली जानकारी अनुसार बीते ढाई साल में देश भर से 1600 से अधिक अफसरों ने वीआरएस लिया है। ये सभी अफसर असिस्टेंट मैनेजर से एजीएम स्तर के हैं। जो बैंकिंग सेक्टर के लिए चिंतनीय विषय है। इस पर बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी का कहना था कि यह केवल एक बैंक का हो सकता, सभी सार्वजनिक बैंकों के आंकड़े तो इससे कहीं अधिक है। इसके पीछे कारण पूछा तो कहने लगे बिजनेस का टारगेट पूरा करने के दबाव से स्ट्रेस लेवल काफी बढ़ गया है। वह भी अनरियलिस्टिक टारगेट। उसमें भी सरकार प्रवर्तित योजनाओं के। इस वजह छुट्टियां न मिलना, मौखिक सूचना पर कभी भी बैंक बुला लेना आदि आदि। उसकी तुलना में कम वेतनमान। वीआरएस लेकर अब सभी कंसल्टेंसी सर्विसेज या बड़े कॉरपोरेट ग्रुप में काम कर रहे हैं। कुछ ही दिनों पहले हमने बताया था कि बीते 10 वर्षों में आयकर विभाग में भी भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के 853 अफसरों ने वीआरएस लिया है।
सामाजिक टकराव कहां तक
छत्तीसगढ़ क्रांति सेना के प्रमुख अमित बघेल के खिलाफ देश-प्रदेश के अलग-अलग जिलों में प्रदर्शन हुआ है। अमित ने अग्रवाल समाज, और सिंधी समाज के विभूतियों के खिलाफ टिप्पणी की थी। इस पर महाराष्ट्र में अमित बघेल के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुका है। राजस्थान, और मध्यप्रदेश में भी अमित पर एफआईआर दर्ज कराने के लिए अभियान चल रहा है।
छत्तीसगढ़ में धमतरी में अमित बघेल के खिलाफ सिंधी समाज के लोगों ने रैली भी निकाली। आज रायगढ़ बंद भी रखा गया है। जहां तक अमित बघेल का सवाल है, तो वो माफी मांगने के लिए तैयार नहीं हैं। यही नहीं, सोशल मीडिया पर अमित समर्थकों के तेवर गरम हैं। इन सबके बीच राजधानी रायपुर में सिंधी समाज के बड़े नेताओं ने चुप्पी साध रखी है। पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी अपने 10-12 समर्थकों के साथ अमित बघेल के खिलाफ देवेन्द्र नगर थाने में जाकर रिपोर्ट लिखाई, लेकिन आगे वो खामोश हो गए। सिंधी काउंसिल से जुड़ी महिलाओं ने रायपुर के कटोरा तालाब इलाके में सोमवार को कुछ देर प्रदर्शन के नाम पर एकत्र जरूर हुए, लेकिन धीरे-धीरे वो निकल गए। सिंधी समाज के प्रमुख खामोश हैं। वजह यह है कि बड़े पैमाने पर मोवा और अन्य इलाकों में पाकिस्तान से आए सिंधी समाज के लोग बसे हैं। कई को तो नागरिकता भी मिल चुकी है। कुछ लोग अभी भी नागरिकता की कोशिश में हैं।
नहीं चाहिए ऐसा सम्मान
सेवा कार्यों के लिए सम्मानित होने वालों से अतिथि शिष्टाचारवश ही सही, उनकी उपलब्धियों की सराहना करते हैं, बधाई और शाबाशी देते हैं। अतिथि के मुंह से सम्मान में निकले दो शब्द, प्रशस्ति पत्र और पदक की तरह ही कीमती होते हैं। पर यदि अतिथि मजाक उड़ाए, तंज कस दे तब? स्थिति सम्मान पत्र लौटा देने तक पहुंच जाती है। अंबिकापुर के जिला स्तरीय राज्योत्सव में स्वैच्छिक रक्तदान के लिए शहर के युवा कारोबारी ऋषि अग्रवाल को मुख्य अतिथि रामविचार नेताम ने प्रशस्ति पत्र सौंपा। ऋषि का कहना है कि नेताम ने उनसे पूछा कि आपने क्या किया है? इस पर ऋषि ने जवाब दिया कि उन्होंने अब तक 49 बार रक्तदान किया है। इसके बाद नेताम ने जो कहा, वह अप्रत्याशित था। कथित रूप से उन्होंने कहा- अभी भी तुम्हारा खून बहुत फडफ़ड़ा रहा है। यह सुनकर ऋषि को बुरा लगा। उन्हें समझ नहीं आया कि मंत्री जी ने उनका सम्मान किया है या अपमान। युवक से रहा नहीं गया और उन्होंने अगले दिन कलेक्टर के पास जाकर सम्मान पत्र वापस कर दिया। सरगुजा कलेक्टर को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि मंत्री की टिप्पणी से उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची है इसलिए प्रशस्ति पत्र लौटा रहा हूं।
यदि नेताम से बोलने में कोई चूक हो गई तो शायद उन्हें सुधार लेना चाहिए था। युवक को बुलाकर अपनी टिप्पणी वापस लेने की बात कह सकते थे। पर हो सकता है कि उन्हें एहसास ही नहीं हुआ हो कि वे क्या बोल गए। कबीर ने शायद ऐसे मौके के लिए ही लिखा था- शब्द सम्हारि बोलिए, शब्द के हाथ न पांव। एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव।
जिलों में राज्योत्सव, रंग में भंग
राज्य स्थापना के रजत जयंती पर उत्सव चल रहा है। राजधानी रायपुर में पांच तारीख को राज्योत्सव का समापन होगा। बाकी जिलों में रविवार को कार्यक्रम हुए। इसमें सरकार के मंत्रियों-विधायक, और सांसदों के अलावा स्थानीय प्रमुख अतिथियों ने शिरकत की। राजधानी रायपुर में तो रंगारंग कार्यक्रम चल रहा है, लेकिन कुछ जिलों में कार्यक्रम फीका रहा। बेमेतरा में तो कलेक्टर पर अभद्रता का आरोप लगाकर भाजपा विधायक ने समर्थकों के साथ कार्यक्रम का ही बहिष्कार कर दिया।अंबिकापुर में कला केंद्र मैदान में राज्योत्सव के कार्यक्रम में भाजपा के बड़े नेता ही नदारद थे। कृषि मंत्री रामविचार नेताम मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे। उनके अलावा लूंड्रा विधायक प्रबोध मिंज ने ही कार्यक्रम में शिरकत की। कुर्सियां खाली रहीं, और नेताम ने खाली कुर्सियों के बीच अपना भाषण पूरा किया। बताते हैं कि स्थानीय लोग सडक़ की बदहाली से काफी परेशान हैं। बारिश के चलते सडक़ों पर जगह-जगह गड्ढे हो गए हैं। लगातार दुर्घटनाएं हो रही हैं। भाजपा नेताओं ने डिप्टी सीएम अरुण साव के अलावा महामंत्री (संगठन) पवन साय तक अपनी बात पहुंचाई है, सडक़ों की मरम्मत के लिए कुछ राशि भी स्वीकृत हुई है, लेकिन इसे ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर माना जा रहा है। यही वजह है कि लोग राज्योत्सव समारोह से दूर रहे।बेमेतरा में तो कुछ अलग ही नजारा देखने को मिला। बताते हैं कि कलेक्टर रणबीर शर्मा ने किसी बात पर कुछ स्थानीय भाजपा नेताओं को डपटकर वहां से चले जाने कहा। फिर क्या था, खुद विधायक दीपेश साहू कार्यकर्ताओं के समर्थन में आगे आ गए। कलेक्टर के खिलाफ नारेबाजी हुई, और वो अपने समर्थकों के साथ राज्योत्सव समारोह का बहिष्कार कर निकल गए। समारोह के मुख्य अतिथि सांसद विजय बघेल भी वहां मौजूद थे। कुल मिलाकर भाजपा नेताओं ने रंग में भंग डालने का काम किया। इसी तरह से जांजगीर में भी अतिथि सांसद कमलेश जांगड़े पांच घंटे देर से पहुंची, तो मुख्य अतिथि राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा गए ही नहीं। इस वजह से पूरा कार्यक्रम बिना जनता के शुरू करना पड़ा।
आईपीएस के लिए खबर अच्छी नहीं
डेपुटेशन पर जाने वाले आईपीएस के लिए खबर अच्छी नहीं है। हालांकि इसका छत्तीसगढ़ के अफसरों पर अधिक फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि यहां के अफसर केंद्रीय सुरक्षा बलों के बजाय जांच एजेंसियों में सेवा के पक्षधर रहे हैं। अब तक कुछ ही नाम याद आते हैं जो केंद्रीय बलों में रहे। एक राजेश मिश्रा बीएसएफ में रहे, और आरएनदास सीआरपीएफ में गए हैं।
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिका को खारिज कर दी है। इसमें कोर्ट ने निर्देश दिया था कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) में आईपीएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति कम की जाए और छह महीने के भीतर कैडर समीक्षा पूरी की जाए। यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने 23 मई, 25 के अपने फैसले की समीक्षा की मांग वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई की। इसी वर्ष मई में शीर्ष अदालत ने केंद्र को आईटीबीपी, बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और एसएसबी सहित सभी केंद्रीय बलों (सीएपीएफ) में होने वाली कैडर समीक्षा करने और इसे छह महीने के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया था।आईपीएस अफसरों की पोस्टिंग कम कर बल में सीधी भर्ती के अफसरों को उच्च पदों पर नियुक्ति का अवसर देने यह याचिका लगाई गई थी। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को कैडर समीक्षा और सेवा या भर्ती नियमों में संशोधन पर गृह मंत्रालय से कार्रवाई रिपोर्ट प्राप्त होने के तीन महीने के भीतर उचित निर्णय लेने का भी निर्देश दिया था। अब 28 अक्टूबर को दिए निर्देश अनुसार गृह मंत्रालय को आईपीएस के लिए प्रतिनियुक्ति के पद कम करने ही होंगे।बता दें कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के लगभग 20 हजार कैडर अधिकारी, जो पदोन्नति एवं वित्तीय फायदों के मामले में पिछड़ रहे हैं। सुनवाई में यह बात सामने आई कि केंद्र की समूह-ए सेवा में 19-20 वर्ष में सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (एसएजी) मिल रहा है तो वहीं केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में 36 वर्ष तक लग रहें हैं। बीएसएफ और सीआरपीएफ की बात करें तो 2016 से इन बलों में कैडर रिव्यू नहीं हुआ है। यूपीएससी से सेवा में आए ग्राउंड कमांडर यानी सहायक कमांडेंट को 15 साल में भी पहली पदोन्नति नहीं मिल रही। डीओपीटी का नियम है कि हर पांच वर्ष में कैडर रिव्यू होना चाहिए।
कौन थे वे, जिन्हें मोदी ने याद किया?
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छत्तीसगढ़ विधानसभा के नए भवन के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में संविधान सभा के उन कुछ विभूतियों को याद किया, जिनका देश और राज्य को योगदान रहा। कई नाम ऐसे थे जिन्हें नई पीढ़ी ने शायद पहली बार सुना हो।
मोदी ने पंडित रविशंकर शुक्ल को याद किया। शुक्ल (2 अगस्त 1877- 31 दिसंबर 1956) आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रहने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। वे सेंट्रल प्रोविंसेस एंड बरार के प्रीमियर (1946-1950) और बाद में 1956 में बने मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। वे छत्तीसगढ़ के उस विद्वान परिवार से थे जिसने प्रदेश के विकास में अहम योगदान दिया। उनके बेटे श्यामाचरण शुक्ल मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, जबकि विद्याचरण शुक्ल केंद्र में मंत्री थे।
अकलतरा (जिला जांजगीर-चांपा) में 1887 में जन्मे बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वकील, स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, पत्रकार और संगीतकार। उन्होंने लंदन के लिंकन इन से बैरिस्टर की डिग्री ली और ऑक्सफोर्ड से इतिहास में एम.ए. किया। वे 1946 से 1952 तक संविधान सभा के सदस्य रहे। गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल होकर उन्होंने जेल भी काटी। उनका घर आज भी बिलासपुर के गांधी चौक के पास है, जहां उनकी बेटी रत्ना सिंह (90 वर्ष) रहती हैं।
इसी तरह घनश्याम सिंह गुप्ता छत्तीसगढ़ क्षेत्र (तत्कालीन सेंट्रल प्रोविन्सेस) से संविधान सभा के महत्वपूर्ण सदस्य थे। उन्होंने क्षेत्र की सीमित सुविधाओं के बावजूद दिल्ली पहुंचकर डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में संविधान निर्माण में हिस्सा लिया। बाद में वे मध्यप्रांत से विधायक भी बने।
किशोरी मोहन त्रिपाठी (8 नवंबर 1912-1994) सारंगढ़ रियासत, रायगढ़ के निवासी थे। वे युवा स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और राजनेता रहे। 1947 से 1950 तक संविधान सभा में सेंट्रल प्रोविंस का प्रतिनिधित्व किया और 37 साल की उम्र में 1950-52 तक सांसद बने। उनके पोते कर्नल विप्लव त्रिपाठी ने उनके देशभक्ति के आदर्शों से प्रेरणा लेकर सेना में भर्ती ली, जो आतंकवादी हमले में शहीद हो गए थे। रायगढ़ में दोनों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। पिछले साल शहीद विप्लव की प्रतिमा का अनावरण मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने किया था।
रामप्रसाद पोटाई (1923- 6 अक्टूबर 1962) कांकेर से हैं। वे छत्तीसगढ़ के पहले आदिवासी वकील थे। वे बस्तर क्षेत्र से विधायी राजनीति में आए और संविधान सभा में आदिवासी हितों की आवाज उठाई। वे मालगुजार घनश्याम सिंह पोटाई के पुत्र थे, जो खुद भी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहे। रामप्रसाद पोटाई भानुप्रतापपुर के पहले विधायक बने। उन्हें बस्तर का गांधी भी कहा जाता है। उनकी स्मृतियों को संजोने के लिए छत्तीसगढ़ की पिछली कांग्रेस सरकार ने कुछ प्रयास किए थे और उनके परिवार के लोगों को सम्मानित किया था।
दीवान बहादुर रघुराज सिंह ने सरगुजा रियासत की ओर से संविधान सभा में प्रतिनिधित्व किया। आजादी के बाद उन्हें प्रशासनिक सेवा में भी शामिल किया गया। वे बिलासपुर के कमिश्नर बनाए गए। रायपुर के राजकुमार कॉलेज की स्थापना में उनका बड़ा योगदान रहा। बिलासपुर का एक विशाल स्टेडियम उनके नाम पर है।
बचकर रहें

जालसाज और धोखेबाज औसत लोगों के मुकाबले बहुत अधिक होशियार रहते हैं। माइक्रोसॉफ्ट के लोगो के साथ एक फज़ऱ्ी वेबसाइट ऐसी बनाई है, जो दिखने में तो माइक्रोसॉफ्टडॉटकॉम है, लेकिन उसके हिज्जों में द्व की जगह ह्म्ठ्ठ है। पहली नजर में ही धोखे में फँस जाने के लिए यह काफ़ी है। बचकर रहें।
किसका नाम लिया, नहीं लिया मोदी ने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के रजत समारोह में अपने उद्बोधन के दौरान राज्यपाल, मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों का नाम लिया। जिनका नाम लिया, उन सभी ने अपनी जगह से हाथ जोडक़र कृतज्ञता जताई। कोई मुख्य अतिथि मंच पर बैठे किन अन्य अतिथियों का नाम ले रहे हैं, किनका नहीं- राजनीतिक कार्यक्रमों में तो इसका बड़ा महत्व होता है, क्यों नहीं लिया गया इसके कारणों की तलाश होती है। अब सोशल मीडिया पर यह सवाल उठाया जा रहा है कि रायपुर के कार्यक्रम में स्थानीय सांसद बृजमोहन अग्रवाल का नाम तो मोदी ले सकते थे, क्यों नहीं लिया?
इसके जवाब में तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं हुई हैं। मगर सबसे अधिक 25 साल पुरानी घटना को याद किया जा रहा है। तब छत्तीसगढ़ राज्य बन चुका था, अजीत जोगी कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे। विधानसभा सत्र के पूर्व भाजपा को नेता प्रतिपक्ष का चयन करना था। इसके लिए 13 दिसंबर 2000 को एकात्म परिसर में भाजपा विधायकों की बैठक बुलाई गई। मोदी तब पीएम-सीएम नहीं थे। वे पर्यवेक्षक के तौर पर छत्तीसगढ़ पहुंचे थे। बृजमोहन अग्रवाल के समर्थक विधायकों का इस पद पर दावा था। ज्यादातर विधायक उनके ही साथ दिखाई पड़ रहे थे। पर मोदी ने नंदकुमार साय का नाम आगे कर दिया। पार्टी के आदेश का पालन करते हुए यह प्रस्ताव बृजमोहन ने ही रखा। साय नेता प्रतिपक्ष चुन लिए गए। मगर, इसके बाद बृजमोहन समर्थकों का गुस्सा फूट पड़ा। एकात्म परिसर में पथराव व तोड़-फोड़ होने लगी। मोदी भीतर थे, कुछ प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि उन्हें अपनी हिफाजत के लिए टेबल के नीचे जाकर छिपना पड़ा। इस घटना के बाद बृजमोहन अग्रवाल को पार्टी ने निलंबित कर दिया था। लोगों का कहना है कि वह घटना अब तक मोदी के मन में गांठ की तरह पड़ी है, इसीलिए उन्होंने बृजमोहन अग्रवाल की उपेक्षा की।
मगर, इससे अलग प्रतिक्रियाएं भी हैं। जैसे, मोदी ने तो किसी भी सांसद का नाम नहीं लिया। केवल तोखन साहू का लिया- क्योंकि वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हैं। उन्होंने तो लोकसभा के स्पीकर और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष को भी छोड़ दिया। गांठ वाली बात सही नहीं है। मोदी के काल में भी बृजमोहन को बड़ी जिम्मेदारी मिलती रही है, अभी भी उन पर है। मगर किसी एक यूजर ने रायपुर एयरपोर्ट पर मोदी का स्वागत करते हुए बृजमोहन की हाथ जोड़े हुए तस्वीर को देखकर कहा कि- अभी इन्हें थोड़ा और झुकना पड़ेगा। इस कमेंट पर ढेर सारे लाइक्स हैं।
मिलने का मौका

आमतौर पर विशेष कर पीएम नरेंद्र मोदी के स्वागत के लिए पार्टी के पदाधिकारियों में होड़ लगी रहती है। सुरक्षा कारणों से चुनींदा नेताओं को ही स्वागत का मौका मिल पाता है। लेकिन इस बार के दौरे में पार्टी के तमाम प्रमुख पदाधिकारियों को स्वागत का मौका मिल गया। मोदी ने किसी को निराश नहीं किया, और सबसे गर्मजोशी से मुलाकात की।
नए विधानसभा भवन के उद्घाटन कार्यक्रम में विशिष्ट लोगों से मुलाकात के लिए ग्रीन रूम बनाया गया था, जहां पीएम ने पूर्व विधानसभा अध्यक्षों प्रेम प्रकाश पाण्डेय, गौरीशंकर अग्रवाल, धरमलाल कौशिक और मंत्रियों से मेल मुलाकात की।
वो प्रेम प्रकाश पाण्डेय को देखते ही बोले, कि प्रेम’ तो बरस रहा है न। बावजूद कुछ को निराशा भी हाथ लगी। मसलन, जैनम के पास व्यापारी संगठन पीएम का स्वागत करना चाहते थे, इसके लिए काफी कुछ रिहर्सल भी हुआ था। सतीश थौरानी के नेतृत्व में चैम्बर के बड़ी संख्या में पदाधिकारी पीएम का स्वागत के लिए पहुंचे थे, लेकिन पीएम का काफिला आगे बढ़ गया। इससे उनमें काफी निराशा भी देखी गई।
मोदी ख़ुश होकर लौटे
पीएम नरेंद्र मोदी का इस बार का हर कार्यक्रम बेहद सफल रहा है। पीएम खुद काफी खुश नजर आए। राज्योत्सव समारोह के उद्घाटन से पहले जांजगीर-चांपा रामनामी संप्रदाय के दो प्रतिनिधियों ने पीएम से मुलाकात भी की।
एक ने तो पीएम से शिकायती लहजे में कह दिया कि आपके लिए मुकुट बना कर लाए हैं..। पीएम ने पूछा कि कहां हैं? इस उन्होंने कहा कि सिक्योरिटी वालों ने रख लिया है। इस पर पीएम ने सिक्योरिटी में लगे अफसरों ने कहा कि ये मुकुट बना कर लाए हैं। कृपा कर इनकी मदद कीजिए। इसके बाद उन्हें मुकुट लाकर दिया गया, जिसे बाद में उन्होंने पीएम को मंच पर पहनाकर स्वागत किया।
मंच पर पीएम ने पीएम आवास के हितग्राहियों से भी चर्चा की। पीएम ने बलरामपुर जिले के पहाड़ी कोरवा समाज के नेत्रहीन कार्तिक, और गरियाबंद की कमार जनजाति की महिला हितग्राही से मंच पर बतियाते नजर आए। खास बात ये है कि देश में एक साथ सबसे ज्यादा 3 लाख 51 हजार पीएम आवास हितग्राहियों का गृहप्रवेश हुआ है। पीएम ने इसकी तारीफ भी की।
मंत्री शुमार हो गईं बड़े नेताओं में...
छत्तीसगढ़ की महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े अपने एक बयान से भाजपा के उन बड़े नेताओं में शामिल हो गई हैं, जिन्होंने अपने नेता में ईश्वर का रूप देखा है। मध्यप्रदेश के मंत्री कमल पटेल ने कोविड महामारी से निपटने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका की तारीफ करते हुए उन्हें भगवान बताया था। उत्तरप्रदेश के पंचायती राज मंत्री उपेंद्र तिवारी ने कहा था- मोदी कोई साधारण व्यक्ति नहीं, वे परमात्मा के अवतार हैं। महाराष्ट्र के भाजपा प्रवक्ता अवधूत वाघ ने एक ट्वीट (एक्स पर ) किया था कि मोदी कोई साधारण व्यक्ति नहीं, वे परमात्मा के अवतार हैं। इन सबसे आगे बढक़र पुरी में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान संबित पात्रा के जुबान से निकल गया था कि भगवान जगन्नाथ मोदीजी के भक्त हैं। विवाद होने पर उन्होंने माफी मांगी लेकिन यह बात मोदी को भगवान जैसा या उनके ऊपर रखने जैसा ही था।
सोशल मीडिया पर वायरल क्लिप में राजवाड़े कह रही हैं कि 25वें स्थापना दिवस पर मोदी का छत्तीसगढ़ आना ही बड़ी बात है। वे हमारे लिए ईश्वर के समान हैं..।
यह जरूर है कि मोदी के छत्तीसगढ़ प्रवास ने 25वें स्थापना दिवस को ऐतिहासिक और खास बना दिया है, न केवल सरकार और भाजपा बल्कि छत्तीसगढ़ के आम लोग भी उनके आगमन के महत्व को समझ रहे हैं, पर मोदी को ईश्वर जैसा बताकर मंत्री राजवाड़े सबसे आगे निकल गईं। वैसे, कई बार अपने नेता की छवि को दिव्य बनाकर कोशिश की जाती है राजनीतिक लाभ उठाया जाए, वफादारी बढ़ाएं, अपने विरुद्ध हो रही आलोचनाओं को दबाएं और जनता को भावुकता में बांधकर समर्थन बनाए रखें। जब राजवाड़े के इस बयान पर आप गौर करते हैं तो उनके और उनके विभाग के कामकाज पर हाल ही में आई आलोचनात्मक खबरों पर भी सरसरी नजर दौड़ा सकते हैं।
वैसे तरह का बयान कोई नई बात नहीं। ऐसा देश के आजाद होने के बाद से ही चल रहा है। देश में जब इमरजेंसी लगी तो स्व. इंदिरा गांधी को उनके करीबियों ने एहसास करा दिया था कि-इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा। संविधान सभा में 25 नवंबर 1949 के अपने आखिरी भाषण में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि धर्म में भक्ति आत्मा के उद्धार का रास्ता हो सकता है लेकिन राजनीति में भक्ति पतन का रास्ता है, जो अंतत: तानाशाही की ओर ले जाता है। उन्होंने जॉन स्टुअर्ट मिल का हवाला देते हुए कहा था कि कभी भी अपनी आजादी को किसी महान व्यक्ति के चरणों में न रख दें, वरना वह संस्थाओं को नष्ट कर देगा। महात्मा गांधी भी 'भगवान' बनने को लेकर सावधान रहते थे। उन्होंने कहा था कि सच्चा सेवक वही जो जनता का दास बने, न कि पूज्य। मगर, भक्ति की परंपरा वाले देश में न केवल नेता बल्कि दूसरे क्षेत्रों, जैसे-अध्यात्म, सिनेमा, खेल के सिलेब्रिटी भी भगवान के बराबर पूजे जाते हैं। इसलिए राजवाड़े की बात से भाजपा के भीतर शायद ही किसी को शिकायत हो।
रजत जयंती शुरू, आमंत्रण पत्र...
राज्य स्थापना दिवस के रजत जयंती समारोह का शनिवार को आगाज हुआ। सरकारी स्तर कार्यक्रम को सफल बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रही, लेकिन पहले दिन का कार्यक्रम का आमंत्रण पत्र ही नहीं बंट पाया।
सांसद-विधायकों के प्रतिनिधि रायपुर कलेक्टोरेट, और संस्कृति विभाग से संपर्क कर शुक्रवार को आमंत्रण पत्र को लेकर पूछताछ करने नजर आए।
यह कहा गया कि पहले दिन का कार्यक्रम सामान्य प्रशासन विभाग के जिम्मे है और आमंत्रण की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। बाकी दो से पांच नवंबर तक का कार्यक्रम संस्कृति विभाग करा रही है। लिहाजा, उनकी तरफ से आमंत्रण पत्र बंटना शुरू हो गया है।
सांसद-विधायकों और अन्य विशिष्ट लोगों के लिए तो पास जारी हुए, लेकिन इससे नीचे लोग आमंत्रण पत्र के लिए भटकते देखे गए।
पीएम के कार्यक्रमों के लिए अलग अलग आमंत्रण पत्र बंटा था। नए विधानसभा भवन के उद्घाटन समारोह में लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला भी शामिल हुए, लेकिन आमंत्रण पत्र में उनका नाम ही नहीं था। विधानसभा सचिवालय ने स्पीकर डॉ रमन सिंह के नाम से आमंत्रण पत्र पत्र जारी किया था इसमें सिर्फ पीएम नरेंद्र मोदी का ही नाम है। न सिर्फ लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला बल्कि राज्यपाल रामेन डेका,सीएम विष्णु देव साय का नाम भी आमंत्रण पत्र में नहीं है। खास बात ये है कि लोकसभा स्पीकर को तो महीने भर पहले कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था।
विधायकों की दिक्कत
चुनाव जीतने के दो साल के भीतर कई विधायकों के तेवर बदल गए हैं। अपने विधायकों ने नाखुश लोगों ने अपनी भड़ास भी निकालना शुरू कर दिया है।
सत्तारूढ़ दल के दो भाजपा विधायकों के खिलाफ असंतोष खुलकर सामने आ रहा है। इनमें एक रायपुर जिले के युवा विधायक जब भी फेसबुक पर कुछ पोस्ट करते हैं, उन्हें कमेंट में उलाहना देने वालों बाढ़ आ जाती है। इससे वो काफी परेशान हैं। इसी तरह एक महिला विधायक के खिलाफ पार्टी के कई लोग लामबंद होकर अभियान चला रहे हैं।
महिला विधायक ने अपने सहयोगियों को नजर अंदाज करना शुरू किया, तो उनके लोग ही परदे के पीछे अभियान चला रहे हैं। उनके खिलाफ जाति मामला भी हाईकोर्ट चला गया है, और इस पर कोर्ट ने जिला प्रशासन को जांच के आदेश दे दिए हैं। और जब अपने ही विरोधी हो जाते हैं, तो पार पाना आसान नहीं रहता है।
नितिन नबीन के पोस्टर की चर्चा
शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य के अवसरों से वंचित लोगों को चुनाव के दौरान क्षेत्रीय अस्मिता और पहचान के नाम पर प्रभावित करने की कोशिश होती रहती है। छत्तीसगढ़ में भाजपा के प्रभारी और बिहार सरकार में मंत्री नितिन नबीन वहां बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने अपना एक पोस्टर सोशल मीडिया पर शेयर किया है, जिसमें बताया गया है कि बिहार में डोमिसाइल लागू हो गया है। 10 लाख नौकरियों के साथ 50 लाख लोगों को रोजगार दिया गया है और अब एक करोड़ लोगों का लक्ष्य है। मगर, इससे भी बड़े अक्षरों में लिखा गया है कि बिहार में अब पहला हक़ सिर्फ बिहारियों का है।
कुछ डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर इस पोस्टर पर उनके एक बयान का वीडियो जारी कर तंज कसा जा रहा है। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में भी स्थानीयता एक मुद्दा था, उनसे सवाल किया गया था कि छत्तीसगढिय़ावाद के बारे में क्या कहेंगे? वीडियो में नितिन नबीन कहते हुए दिख रहे हैं कि छत्तीसगढिय़ावाद आपके शब्दों में है। हम तो भारतीय हैं और भारतीयवाद को लेकर चलते हैं। एक भारत, श्रेष्ठ भारत को मानते हैं।
जाहिर यही होता है कि चुनाव के दौरान जरूरत के अनुसार रुख बदला जा सकता है।
हुदहुद से मोंथा तक का संयोग
सभी दो दिन पहले बंगाल की खाड़ी में आए तूफान मोंथा के असर, और आंध्रप्रदेश में हुए नुकसान का आंकलन किया जा रहा है। हालांकि जान के कम नुकसान का संतोष था लेकिन संपत्ति का अधिक नुकसान हुआ है। इसी दौरान बात आई दोनों तूफान के समय राज्य में सत्तासीन दल के राजनीतिक संयोग और दुर्योग का। बताया गया कि 11 वर्ष पहले अक्टूबर 2014 में आंध्र में आए तूफान हुदहुद के समय भी चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी सरकार थी। और उसके बाद वह उड़ गई।
मोंथा के समय भी भाजपा के साथ त्रिकोणीय गठबंधन में नायडू ही हैं। हुदहुद से 8000 करोड़ का नुकसान हुआ था तो मोंथा से 5600 करोड़ का आंकलन है। उस वक्त बाबू ने हुदहुद को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की थी। इस चर्चा में मोंथा प्रभावित दूसरे पड़ोसी राज्य ओडिशा भी आया। छत्तीसगढ़ इससे अछूता रहा। जहां हुदहुद के समय नवीन पटनायक की सरकार थी जो पिछले वर्ष तक रही। और अब मोंथा के समय मांझी की भाजपा सरकार। और केंद्र में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री और गृह मंत्री राजनाथ सिंह रहे। इस बार अमित शाह गृह मंत्री। हुदहुद से निपटने राहत बचाव की कमान स्वयं मोदी ने संभाला था। इस बार बिहार चुनाव की वजह से राज्यों पर छोड़ दिया गया। शुक्र है बड़ा नुकसान नहीं पहुंचा।
कोयले के ट्रकों के सामने हाथी दल

सघन और जैव विविधता से समृद्ध हसदेव अरण्य वन क्षेत्र हाथियों का प्राकृतिक रहवास और आवाजाही का रास्ता है । अब उनके क्षेत्र में हजारों हेक्टेयर क्षेत्र में अड़ानी कंपनी खनन कर रही है । हाथी लगातार खनन क्षेत्र के आसपास मौजूद रहते हैं। सोशल मीडिया में एक वीडियो क्लिप पोस्ट वायरल हुई है जिसमें बताया गया है कि इसी इलाके में बीती रात हाथियों ने कोयले से भरे ट्रकों को ही रोक दिया। हाथियों ने यह तो नहीं पहचाना होगा कि ये कोयला उनके रहवास को उजाडक़र निकाला गया है, लेकिन यह जरूर महसूस हो रहा होगा कि जिस जंगल में वे सुकून से वर्षों से रहते आए हैं अब वह खत्म हो रहा है। उन्हें सुरक्षित ठौर के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है।
गर्म कपड़े बेचने आया पहलगाम का हीरो
कश्मीर के नजाकत अली गर्म कपड़े बेचने के लिए पिछले कई वर्षों से चिरमिरी पहुंचते हैं, मगर इस बार उनका यहां गर्मजोश स्वागत हुआ। जब स्थानीय लोगों को पता चला कि वही नज़ाकत आए हैं जिन्होंने पहलगाम हमले में चिरमिरी के 11 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला था, तो चिरमिरी के लोग भावुक हो उठे। लोगों ने फूल मालाओं से उनका स्वागत किया, सडक़ किनारे एकजुट होकर तालियां बजाईं और बच्चों ने उन्हें हीरो अंकल कहा। स्थानीय संस्थाओं के एक समूह ने उन्हें हीरो ऑफ ह्यूमैनिटी (इंसानियत के नायक) की उपाधि से सम्मानित किया।
दरअसल, 22 अप्रैल 2025 जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ था। उस दिन चिरमिरी के चार परिवारों के 11 सदस्य भी वहीं मौजूद थे। नजाकत अली उनके साथ हो लिए। जब आतंकियों ने पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं तो चारों तरफ अफरा-तफरी मच गई। नजाकत अली ने अपनी जान जोखिम में डालते हुए चिरमिरी के पर्यटकों को सुरक्षित जगह पर पहुंचाया। उन्होंने बच्चों को गोद में उठाया, बड़ों को लेट जाने को कहा और मौका मिलते ही गोलियों की बौछार के बीच उन्हें सुरक्षित बाहर निकाल लिया। उनकी इस बहादुरी से सभी 11 लोग बच गए। बाद में जब यह खबर चिरमिरी पहुंची, तो लोगों ने राहत की सांस ली। अब जब नजाकत पहलगाम हमले के बाद पहली बार चिरमिरी आए तो उनका गर्मजोश स्वागत हुआ। नजाकत अली ने कहा- मैंने जो किया, वह सिर्फ इंसानियत के नाते किया। वहां हिंदू या मुस्लिम नहीं, सिर्फ इंसान थे। उस समय बस यही लगा कि जो मेरी आंखों के सामने है, उसे बचाना मेरा फर्ज है। अगर दोबारा ऐसी परिस्थिति आए, तो वे फिर वही करेंगे। किसी की जान बचाना सबसे बड़ा धर्म है। ऑपरेशन सिंदूर पर नजाकत अली ने कहा कि भारत शक्तिशाली देश है। जो भी इस पर हमला करेगा, उसे उसका जवाब मिलेगा।
बदनामी तो हो ही गई
दिवाली में जुआ खेलने का चलन है। इसके चलते पुलिस मुस्तैद रही, और प्रदेश में कई जगहों पर जुआरियों को धरा भी गया। कई ताकतवर लोग भी लपेटे में आ गए हैं। इसकी राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा हो रही है।
बिलासपुर में तो एक होटल में छापा डाला, तो भाजपा के स्थानीय बड़े नेता संतोष कौशिक, और तखतपुर भाजपा विधायक के भतीजे विकास सिंह पुलिस के हत्थे चढ़ गए। महासमुंद में भी कांग्रेस से जुड़े लोग जुआ खेलते पकड़ाए हैं। इस सबके बीच बुधवार को सुकमा पुलिस की कार्रवाई की काफी चर्चा हो रही है। यहां जुआं खेलते सुकमा भाजपा के जिला उपाध्यक्ष दिलीप पेद्दी पकड़ा गए। दिलीप पेद्दी से सिर्फ 15 सौ रुपए जब्त किया गया।
बताते हैं कि दिलीप को गृह मंत्री का करीबी माना जाता है। जब भी गृहमंत्री का बीजापुर-सुकमा जिले का प्रवास रहता है, दिलीप काफी सक्रिय रहते हैं। उन्हें सुरक्षा भी मिली हुई है। ऐसी चर्चा है कि वो पुलिस पर हर तरह के कामों के लिए दबाव भी बनाते रहे हैं। इससे पुलिस के कुछ लोग काफी खफा भी थे, और इसी खुन्नस की वजह से वो पुलिस के हत्थे चढ़ गए। हालांकि तुरंत थाने से ही मुचलके पर छोड़ दिए गए, लेकिन बदनामी तो हो ही गई।
साइबर ठगी का नया तरीका- डायल 21#
यदि साइबर ठगी से बचने के लिए आप अब मोबाइल कॉल, मैसेज फॉरवर्डिंग और ओटीपी शेयरिंग से बच रहे हैं तो अच्छी बात है मगर अब ये फ्रॉड नए तरीके से लोगों के बैंक अकाउंट और व्हाट्सएप तक पहुंच बना रहे हैं। ठग अपने शिकार को बैंक, मोबाइल कंपनी या सरकारी एजेंसी का अधिकारी बनकर कॉल करते हैं। बातचीत के दौरान वे किसी बहाने से पीडि़त से कहते हैं कि वह अपने फोन में 21प्त या इससे मिलता-जुलता कोई कोड डायल करें। जैसे ही व्यक्ति यह कोड डायल करता है, उसके फोन पर आने वाली सभी कॉल और एसएमएस अपने-आप ठग के नंबर पर फॉरवर्ड होने लगते हैं।
इसका नतीजा यह होता है कि ठग को पीडि़त के सभी ओटीपी, बैंक अलर्ट और वेरिफिकेशन कोड मिलने लगते हैं। इसके जरिए वे बैंक खाते, व्हाट्सएप और सोशल मीडिया अकाउंट तक पहुंच बना लेते हैं। कई मामलों में ठग पीडि़त की पहचान का इस्तेमाल कर उसके दोस्तों और रिश्तेदारों से भी पैसे ठगने लगे हैं, क्योंकि उनके पास आपके फोन पर सेव नंबरों का भी एक्सेस होता है। छत्तीसगढ़ में भले ही ऐसे मामले न आए हों, मगर दूसरे राज्यों में ऐसी शिकायतें पुलिस की साइबर सेल के पास पहुंच रही है। भोपाल साइबर क्राइम ब्रांच ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर यह जानकारी शेयर की है। साइबर ठगी का शिकार होने पर 1930 नंबर पर डायल करने की सुविधा तो पूरे देश में है ही।
भीड़ जुटाने का तनाव
पीएम नरेंद्र मोदी के राज्योत्सव कार्यक्रम में भीड़ जुटाने को लेकर भाजपा काफी टेंशन में हैं। रायपुर शहर जिला भाजपा की लगातार बैठकें हो रही हैं, और स्थानीय नेताओं को ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाने के लिए टारगेट दिया गया है। वैसे तो प्रदेशभर से कार्यकर्ता आएंगे, लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ लाने की जिम्मेदारी रायपुर शहर जिला भाजपा पर है।
बताते हैं कि प्रभारी मंत्री केदार कश्यप ने पहले ही कार्यकर्ताओं से माफी मांग ली है कि सुरक्षा कारणों से कहीं कोई ऊंच-नीच हो जाए, तो इसे ज्यादा ध्यान न दिया जाए। एक विधायक ने सुझाव दिया है कि निगम-मंडल के पदाधिकारियों को विशेष रूप से जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। मगर ज्यादातर निगम मंडल के पदाधिकारी बिहार चुनाव में प्रचार के लिए निकल गए हैं।
कई तो प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन के विधानसभा क्षेत्र में डेरा डाले हुए हैं। नबीन पटना के बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। पीएम की सभा में एक लाख लोगों के जुटने की उम्मीद है। इनमें से अकेले रायपुर शहर से 20 हजार लोगों के लाने का लक्ष्य है। इन सबके बीच मौसम को देखते हुए भी भाजपा के नेता टेंशन में हैं। देखना है आगे क्या होता है।
कांग्रेस की नई प्रतिभाएं
कुरूद की लिली श्रीवास को युवक कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव बनाया गया, तो प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता चौंक गए। लिली की किसी बड़े नेता ने सिफारिश नहीं की थी। वो अपनी योग्यता, और कार्यक्षमता के बूते पर राष्ट्रीय इकाई में जगह बनाने में कामयाब रही हैं।
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की टीम राज्यों में युवा प्रतिभाओं को टैलेंट हंट से आगे लाने की कोशिश कर रही है। लिली भी इसी टीम की खोज है। लिली श्रीवास, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी शामिल हुई थीं। उन्होंने चुनावी राजनीति में भी अपना दमखम दिखाया है। कुरूद जनपद से कांग्रेस समर्थित मात्र दो जनपद सदस्य चुने गए। इनमें एक लिली श्रीवास है।
लिली से पहले सरगुजा की शशि सिंह, जशपुर की आशिका कुजूर, और डोंगरगढ़ की कांति बंजारे भी राहुल गांधी की टीम की खोज है। दिलचस्प बात ये है कि लिली की तरह बाकी तीनों नेत्रियां भी जमीनी पकड़ भी रखती हैं। यही नहीं, इन सबको अपनी बात पहुंचाने के लिए प्रदेश के किसी बड़े नेता के माध्यम की जरूरत नहीं है। कुल मिलाकर युवा नेत्रियों की दिल्ली में पकड़ को देखकर स्थानीय बड़े नेता भी चकित हैं। दावा तो यह भी किया जा रहा है कि ये महिला नेत्रियां आने वाले समय में पार्टी के प्रत्याशी चयन में भी भूमिका निभाएंगी। देखना है आगे क्या होता है।
दिल्ली में जगह बनेगी?
केन्द्र सरकार के सचिव पद के लिए सूचीबद्ध होने वाले अफसरों की लिस्ट संभवत: अगले हफ्ते जारी होगी। इसमें वर्ष-92 से 94 बैच तक के अफसर सचिव पद के लिए सूचीबद्ध होंगे। इसके बाद जनवरी से केंद्रीय सचिव अथवा समकक्ष पद के लिए पोस्टिंग की प्रक्रिया शुरू होगी। इस सूची पर राज्य सरकार के आला अफसरों की नजरें टिकी हैं।
दरअसल, सीएस बनने की दौड़ में रहे 94 बैच के अफसर रिचा शर्मा, और मनोज पिंगुआ भी केन्द्रीय सचिव पद के लिए सूचीबद्ध हो सकते हैं। रिचा शर्मा पहले केन्द्र सरकार में अतिरिक्त सचिव के पद पर काम कर चुकी हैं। मनोज पिंगुआ भी संयुक्त सचिव रहे हैं। वैसे तो सीएस विकासशील, और उनकी पत्नी निधि छिब्बर का नाम होना तय है, लेकिन रिचा और मनोज पिंगुआ को लेकर उत्सुकता ज्यादा है।
चर्चा है कि सीएस बनने से रह गए दोनों अफसर सचिव पद पर सूचीबद्ध होने की दशा में केन्द्र सरकार की तरफ रुख कर सकते हैं। राज्य सरकार में सचिव पद पर पदस्थ एक अफसर भी केन्द्र सरकार में जाने के लिए प्रयासरत हैं। देखना है आगे क्या होता है।
बिहार चुनाव से पहले वेतन आयोग

फरवरी 2025 में, दिल्ली विधानसभा चुनाव के ठीक पहले केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग की घोषणा की थी। उसके बाद यह विषय लगभग ठंडे बस्ते में चला गया था। अब, जब बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, तो आयोग के गठन का अपडेट अचानक सामने आया है। मंत्रिमंडल ने 28 अक्टूबर को इसके गठन को औपचारिक मंजूरी दे दी।
दरअसल, यह गठन जनवरी 2024 में ही हो जाना चाहिए था ताकि तय समय-सीमा के अनुसार आयोग अपनी सिफारिशें जनवरी 2026 तक प्रस्तुत कर सके और उसी समय से वेतनवृद्धि लागू की जा सके। परंपरागत रूप से अब तक यही प्रक्रिया रही है। सातवां वेतन आयोग वर्ष 2014 में गठित किया गया था और उसकी सिफारिशें 2015 में लागू भी हो गई थीं। लेकिन इस बार गठन में उल्लेखनीय देरी हुई है।
केंद्रीय कर्मचारियों के बीच यह आशंका गहराने लगी थी कि कहीं कड़े फैसले लेने वाली सरकार वेतन आयोग गठित करने की परंपरा ही खत्म न कर दे। हालांकि, दिल्ली चुनाव से पहले हुई घोषणा से उन्हें राहत मिली। मगर इसके बाद से प्रक्रिया ठहरी रही, और अब जब बिहार में नवंबर में चुनाव हैं, तभी इसे आगे बढ़ाया गया है।
यह भी गौर करने योग्य है कि अभी आयोग के टर्म्स ऑफ रिफरेंस घोषित किए गए हैं। आगे की प्रक्रिया लंबी है। आयोग को रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए 18 माह का समय दिया गया है। इस हिसाब से सिफारिशें अप्रैल 2027 तक आएंगी। इसके बाद सरकार वित्तीय स्थिति और अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए समीक्षा करेगी, जिसमें लगभग छह माह लग सकते हैं। व्यवहारिक रूप से आयोग की सिफारिशों का क्रियान्वयन 2027 के अंतिम महीनों में या जनवरी 2028 तक संभव होगा।
सरकार ने यह भी घोषणा की है कि जनवरी 2026 से बढ़ा हुआ वेतन प्रभावी माना जाएगा। यानी सिफारिशें लागू होने के बाद जनवरी 2026 से एरियर की राशि दी जाएगी। यह एरियर 18 से 24 महीनों का हो सकता है। इससे केंद्र सरकार के प्रत्येक कर्मचारी और पेंशनभोगी के खाते में एक बड़ी रकम के रूप में पहुंचेगा।
कर्मचारी न केवल सरकारी तंत्र की रीढ़ हैं बल्कि एक बड़ा वोट बैंक भी। शायद यही कारण है कि दिल्ली चुनाव से पहले आठवें वेतन आयोग की घोषणा की गई और अब बिहार चुनाव से पहले उसका औपचारिक गठन कर दिया गया। आने वाले समय में आयोग की अंतरिम रिपोर्ट, अंतिम सिफारिशें, सरकार की समीक्षा और एरियर भुगतान की प्रक्रिया इन सभी चरणों के दौरान कई राज्यों में चुनाव होने हैं। 2029 में छत्तीसगढ़ में चुनाव होंगे। उसके पहले आठवें वेतन आयोग की सिफारिशें केंद्र में लागू हो चुका रहेगा राज्यों के कर्मचारी केंद्र के समान वेतन लागू करने की मांग उठाते हैं, प्राय: थोड़े संशोधनों के बाद वह लागू भी हो जाता है। इसलिये राज्य सरकारों को भी विधानसभा चुनाव के पहले पूरा या आंशिक संशोधन अपने कर्मचारियों के वेतनमान में करना जरूरी हो जाएगा।
अंबिकापुर की सडक़ें, तालाब बन गईं

यह तस्वीर प्रशासन की लापरवाही की कहानी कह रही है। अंबिकापुर में टूटी सडक़ों और गड्ढों से परेशान लोगों ने अलग-अलग तरह के प्रदर्शन कर सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश की है। वे खुद ही सडक़ के बीच बने कीचड़ भरे गड्ढे में बैठ गए। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दिखाई दे रहा है कि वे सरकार और अफसरों को नारे लगा-लगाकर कोस रहे हैं। महीनों से सडक़ों की यही हालत है। हर दिन गाडिय़ां फंसती हैं, पलट जाती हैं, दुर्घटनाएं हो रही हैं- कारोबार ठप हो गया है, पर प्रशासन मौन है। सरकार के दावे और जमीनी हालात के बीच की दूरी यहां साफ दिखाई देती है। गुस्से में भले लोग हों, पर उन्होंने विरोध का अहिंसक रास्ता ही चुना है।
खामोशी से रिटायर
अगले कुछ दिनों में आईएएस अफसरों की एक तबादला सूची जारी हो सकती है। प्रदेश में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) शुरू हो रहा है। छत्तीसगढ़ में चार नवम्बर से मतदाता सूची के पुनरीक्षण का अभियान शुरू होगा। चर्चा है कि विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान शुरू होने से पहले कुछ कलेक्टरों को इधर से उधर किया जा सकता है। कुछ इसी तरह के तबादले पश्चिम बंगाल में हुए हैं। बंगाल में भी विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान शुरू हो रहा है।
इससे परे प्रदेश में आईएएस के वर्ष-2007 बैच के आईएएस टोपेश्वर वर्मा 31 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। वर्मा राजस्व मंडल के चेयरमैन हैं, और रिटायर होते ही उनकी जगह एसीएस सुब्रत साहू लेंगे। सुब्रत वर्तमान में प्रशासन अकादमी के डीजी हैं।
टोपेश्वर वर्मा पिछली सरकार में काफी प्रभावशाली थे। वो दंतेवाड़ा के अलावा राजनांदगांव कलेक्टर रहे हैं। इसके बाद खाद्य, और परिवहन विभाग के सचिव भी रहे। उनके कार्यकाल में राशन दुकानों में गड़बड़ी का मामला भी उजागर हुआ। इसको लेकर विधानसभा में भाजपा ने सरकार को घेरा भी था।
वर्मा ने पारदर्शिता पूर्वक कार्रवाई सुनिश्चित की। सरकार बदलते ही उन्हें राजस्व मंडल में भेज दिया गया। अब वो खामोशी से रिटायर हो रहे हैं। सरकार ने महीनेभर पहले ही सुब्रत साहू को वर्मा के रिटायरमेंट की प्रत्याशा में पोस्टिंग कर दी थी। देखना है क्या कुछ होता है।
नाईजीरियाई छत्तीसगढ़ी

25 वें राज्योत्सव के मौके पर नवा रायपुर के व्यापार परिसर में छत्तीसगढ़ के अब तक के विकास की झलक को प्रदर्शित करने वाली प्रदर्शनी लगाई जा रही है। इसके लिए 25 से अधिक विभाग अपनी अपनी योजनाओं के मॉडल के साथ जीवंत दृश्य एवं श्रव्य माध्यमों का भी उपयोग करेंगे। इनमें से उच्च शिक्षा विभाग की प्रदर्शनी की, उत्सव शुरू होने से पहले ही चर्चा होने लगी है। और वह भी सात समंदर पार तक। अपनी प्रदर्शनी में विभाग छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा और संस्थानों के विकास और पहुंच को प्रदर्शित कर रहा है।
इस ढाई दशक में राज्य में देश-विदेश के 13 निजी विश्वविद्यालयों सफलता से संचालित हो रहे। जहां बांग्लादेश, अफगानिस्तान, नेपाल भूटान जैसे पड़ोसी के साथ अफ्रीका महाद्वीप के 52 में से 20 देश कीनिया , जिंबाब्वे,नाइजीरिया जैसे देशों के युवा साइंस, कॉमर्स के साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं। इस दौरान करीब एक दर्जन बैच पास आउट भी हो गए हैं। 5 वर्ष के लिए आने वाले ये विद्यार्थी छत्तीसगढ़ की भाषा बोली रहने सहन में भी रच बस गए हैं।
ये विद्यार्थी हिंदी भले अच्छे से बोल समझ पाते हो छत्तीसगढ़ी अच्छे से बोल समझते हैं। यहां तक की छत्तीसगढ़ी फिल्में देखते हैं छत्तीसगढ़ी गाने भी गाते हैं। इसीलिए तो कहा जाता है कि छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा। इसी थीम पर विभाग ने अपनी प्रदर्शनी में यही दर्शाने का प्रयास किया है। वह भी लाइव। मतलब विभाग के पंडाल में कलिंगा विश्वविद्यालय समेत तीन निजी विश्वविद्यालय में अध्ययनरत विदेशी बच्चे लाइव रहेंगे।
अकेले कलिंगा में ही 20 देशों के छात्र हैं। जो न केवल विश्व की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली हिंदी के साथ छत्तीसगढ़ी में भी दर्शकों से बातचीत (गोठियाना) करेंगे। इसके लिए इन तीन विश्वविद्यालयों के छत्तीसगढ़ी फ्लूएंट बच्चों को इस समय ट्रेंड किया जा रहा है। बस 1 तारीख से नवा रायपुर जाएं और नाईजीरियाई छत्तीसगढ़ी में चर्चा करने की देर है। ये अलग बात है कि छत्तीसगढ़ी को अब तक राजभाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है। वहीं विभाग के स्टाल के प्रवेश द्वार को भी भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ते हुए एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के मुख्य द्वार का रूप दिया जा रहा है। यह द्वार, खैरागढ़ राजपरिवार के पुराने रजवाड़े की प्रतिकृति होगा।
साहब को जींस से नफरत...
अफसर कई बार अपने मातहतों के साथ जाने-अनजाने में या जानबूझकर कुछ ऐसा कर जाते हैं, जिसका घातक असर होता है। आपको याद होगा बीते जुलाई महीने में कबीरधाम जिले के कलेक्टर सुबह-सुबह गेट पर खड़े हो गए। कलेक्टोरेट के 42 कर्मचारी देर से दफ्तर पहुंचे थे। उन सबसे कलेक्टर ने कान पकडक़र माफी मंगवाई। इसका वीडियो भी वायरल हुआ। कर्मचारियों को यह व्यवहार अपमानजनक लगा और वे आंदोलन की तैयारी करने लगे। मगर, कलेक्टर ने खेद जताकर मामले को संभाल लिया। अब नया मामला कलेक्टर से कम ओहदा रखने वाले लेकिन अपने विभाग के जिले में बॉस, शिक्षा विभाग के संयुक्त संचालक (जेडी) का आया है। यह मामला कोंडागांव जिले का है। केशकाल के एक शिक्षक प्रकाश नेताम को डेली डायरी ठीक तरह से मेंटेन नहीं करने की वजह से नोटिस मिली थी। जवाब देने के लिए वह जेडी राकेश पांडे के दफ्तर पहुंचे थे। शिक्षक को देखते ही जेडी नाराज हो गए। उन्हें दफ्तर से यह कहते हुए बाहर निकलने कह दिया कि वे अपने दफ्तर में जींस पहनकर आने वालों से मुलाकात नहीं करते। नेताम निकल आए। अपमानित महसूस किया। शिक्षक साझा मंच से उन्होंने घटना को साझा किया। अब शिक्षक पिछले दो सप्ताह से आंदोलन पर हैं। वे संयुक्त संचालक को हटाने की मांग कर रहे हैं। बीच में दीपावली की छुट्टी आ गई। तब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरण देव ने आश्वस्त किया था कि त्यौहार निपटने दीजिए, उन्हें हटवा देंगे। आश्वासन पूरा नहीं होने पर शिक्षक फिर प्रदर्शन कर रहे हैं। इधर जेडी की ओर से कोई अफसोसनामा नहीं आया है। शिक्षकों ने चार आरोप उन पर और लगा दिए हैं। जैसे- स्कूलों के निरीक्षण के नाम पर भयादोहन, निरीक्षण का वीडियो सोशल मीडिया पर डालना, अवैध उगाही के लिए दबाव बनाना वगैरह। फिलहाल तो इस तनातनी के चलते बच्चों की पढ़ाई का बड़ा नुकसान हो रहा है।
सोहराई परब में सरई के पात्र

आदिवासी संस्कृति में हर पर्व का प्रकृति से गहरा संबंध होता है। तस्वीर में दिख रही सरई पत्तों से बनी थालियां और दोने इसी पारंपरिक जुड़ाव का प्रतीक हैं। सोहराई परब एक ऐसा त्योहार जो छत्तीसगढ़ के उत्तरी हिस्से सरगुजा के साथ-साथ झारखंड, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम में भी समान श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है। उत्तर छत्तीसगढ़ में जनजातीय अंचलों में दिवाली के 11 दिन बाद, देवउठनी एकादशी के दिन सोहराई तिहार मनाया जाता है। इस दिन लोग गाय के खूर (पंजे) के निशान को गोठ से घर तक बनाते हैं, जिसे लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक माना जाता है। पर्व की रात जनजातीय समुदाय डार खेलता है। यह सामूहिक करमा नृत्य की तरह होता है, जिसमें पूरी रात उल्लास और गीतों का माहौल रहता है। सरगुजा में करमा डार, तीजा डार, दसई डार और सोहराई डार जैसी पारंपरिक नृत्य विधाएं पीढिय़ों से चली आ रही हैं। बहरहाल सरई पत्तों के ये खूबसूरत भोजन पात्र बता रहे हैं कि पर्यावरण बचाइये, समारोहों में प्लास्टिक के सामान इस्तेमाल न करें।
तीन में से दो माह तो बीत चुके!
छत्तीसगढ़ के 1,378 व्याख्याताओं को लंबे समय से अपने प्रमोशन की प्रतीक्षा है। उनकी याचिका छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में लंबित है, जिस पर जल्दी फैसला आ जाएगा। यह खबर छत्तीसगढ़ में इस उम्मीद के साथ चल रही है कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट्स को निर्देश दिया है कि कोई भी फैसला सुरक्षित रखने के बाद तीन महीने के भीतर सुनाया जाना अनिवार्य है।
मगर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश से संबंधित समाचार 26 अगस्त 2025 को एक न्यूज एजेंसी चला चुकी है। इस तरह से आदेश को दो महीने से अधिक बीत चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश अधिकतम तीन माह के लिए है। इस स्थिति में इस पर फैसला 26 नवंबर 2025 तक आ जाना चाहिए। इस आदेश के बाद शिक्षा विभाग में रुकी हुई प्रमोशन प्रक्रिया जल्द पूरी की जा सकेगी।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आपराधिक मामले को सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय कौल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने बेहद चौंकाने वाला बताया। इस मामले में दिसंबर 2021 में सुनवाई पूरी हो गई लेकिन फैसला सुरक्षित रख लिया गया और सालों तक निर्णय नहीं सुनाया गया। कोर्ट ने माना कि ऐसी देरी से लोगों का न्यायिक प्रक्रिया में भरोसा कम होता है।
छत्तीसगढ़ के व्याख्याताओं के मामले में जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस ए के प्रसाद ने जून माह में इस मामले की लगातार 5 दिनों तक सुनवाई की थी। सुनवाई पूरी होने के बाद से फैसला सुरक्षित है।
सुप्रीम कोर्ट निर्देश दिए हैं कि अगर तीन महीने में फैसला नहीं सुनाया जाता, तो हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को मामले को चीफ जस्टिस के सामने रखना होगा। चीफ जस्टिस संबंधित बेंच को दो सप्ताह में फैसला सुनाने का आदेश देंगे। अगर फैसला सुनाया गया, लेकिन लिखित आदेश अपलोड नहीं हुआ, तो उसे पांच दिनों के भीतर वेबसाइट पर डालना होगा। इसके अलावा, 31 जनवरी 2025 तक सुरक्षित सभी लंबित मामलों की विस्तृत रिपोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट ने मांगी है। यदि हाईकोर्ट्स को यह निर्देश भी दिया जाता कि वेबसाइट पर वह सूची भी डाली जाए, जिनमें सुनवाई पूरी हो चुकी है लेकिन ऑर्डर रिजर्व करके रखे गए हैं तो यह पता चल सकता है कि छत्तीसगढ़ में व्याख्याताओं की याचिका के अलावा और कितने मामले हैं, जिन पर फैसले का इंतजार है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश को न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास बढ़ाने वाला माना जा सकता है।
बूढ़े बांध और 8 माह का समय
हालिया मानसून में देश भर में बांध और उसकी नहरों के टूटने की घटनाओं को लेकर राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (एनडीएसए) ने गंभीरता से लेकर राज्यों को अलर्ट जारी कर सुधार का अल्टीमेटम दिया था। इस बीच प्राधिकरण ने बांध सुरक्षा अधिनियम, 2021 के अनुपालन की सुस्त गति पर चिंता जताई है, क्योंकि दिसंबर 2026 की महत्वपूर्ण समय-सीमा में डेढ़ साल से भी कम समय बचा है। इस साल का मानसून विदा हो गया है। अगले मानसून से पहले बांध मजबूत न किए गए तो कमजोर बांध संकट ला सकता है। हाल में दिल्ली में केंद्रीय जल आयोग ने एक बैठक में राज्यों को ताकीद किया था।
भारत भर में 6,500 से ज़्यादा निर्दिष्ट बांधों को अनिवार्य सुरक्षा प्रोटोकॉल पूरे करने होंगे, और यह धीमी प्रगति जन सुरक्षा और महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे, दोनों को खतरे में डाल रही है। इनमें छत्तीसगढ़ के भी 11 बांध शामिल हैं। राज्य के सिंचाई विभाग में इसे लेकर अब तक कोई अहम कदम नहीं उठाया गया है। छत्तीसगढ़ में 28 बांधों की उम्र 50 वर्ष से अधिक हैं, जबकि 7 बांध 100 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं। इनमें भी 11 बड़े बांध खतरनाक स्थिति में हैं,इनमें मिनीमाता बांगो बांध, रविशंकर सागर,(गंगरेल), पेंडरावन, आमाबेड़ा केदारनाला, सिकासार, अमाहगांव, बृजेश्वर साह (कोईनारी) कुर्रीडी, फरसपाल और गौरी बांध शामिल हैं।
बांध सुरक्षा अधिनियम के अनुसार, प्रत्येक बांध के तीन प्रमुख सुरक्षा गतिविधियाँ पूरी करनी होंगी: एक विस्तृत जोखिम मूल्यांकन अध्ययन, एक आपातकालीन कार्य योजना की तैयारी, और एक व्यापक बांध सुरक्षा मूल्यांकन। एनडीएसए, जिसके पास कानूनी अधिकार है।
स्पष्ट कानूनी अनिवार्यता के बावजूद, बांध मालिक जमीनी स्तर पर महत्वपूर्ण बाधाओं का हवाला देते हैं। चिन्हित की गई मुख्य बाधाएं अधिनियम द्वारा अनिवार्य बड़े पैमाने पर, विशिष्ट अध्ययनों को क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञता और वित्तीय संसाधनों का भारी अभाव हैं। कथित तौर पर, एनडीएसए इस उदासीन रवैये और संसाधनों की कमी को बांध सुरक्षा प्रोटोकॉल के आधुनिकीकरण के राष्ट्रीय प्रयास के लिए एक गंभीर खतरा मानता है। प्राधिकरण इस बात पर जोर देता है कि नौकरशाही की देरी सार्वजनिक सुरक्षा की सर्वोपरि अनिवार्यता और डीएसए की स्पष्ट कानूनी जरूरतों का अतिक्रमण नहीं कर सकती।
एक दिन के आईजी
अगले महीने के आखिरी में डीजीपी कॉन्फ्रेंस के बाद आईपीएस अफसरों के प्रमोशन होंगे। आईपीएस के वर्ष-2008 बैच के आधा दर्जन अफसर आईजी के पद पर पदोन्नत होंगे। इसके लिए प्रमोशन के प्रस्ताव तैयार किए जा रहे हैं।
वर्ष-2008 बैच के जो आईपीएस अफसर आईजी के पद पर प्रमोट होंगे, उनमें पारूल माथुर, प्रशांत कुमार अग्रवाल, सुश्री नीथू कमल, डी श्रवण, मिलना कुर्रे, कमलोचन कश्यप हैं। इनमें से नीथू कमल, और डी श्रवण केन्द्रीय एजेंसियों में प्रतिनियुक्ति पर हैं। कमलोचन कश्यप आईजी के पद पर प्रमोट होते ही रिटायर हो जाएंगे।
कुछ साल पहले 87 बैच के आईपीएस अफसर राजीव श्रीवास्तव डीजी के पद पर प्रमोट होते ही रिटायर हो गए थे। वो पहले स्टेट सर्विस के अफसर थे, जो आईपीएस होकर डीजी के पद तक पहुंचे थे। कुछ इसी तरह कमलोचन कश्यप 31 दिसंबर को रिटायर हो रहे हैं। अंदाजा लगाया जा रहा है कि एक दिन पहले उन्हें पदोन्नति मिल सकती है। यानी एक दिन के आईजी बन सकते हैं। देखना है क्या होता है।
धूप में नेवलों की कसरत
धान की पकी बालियों के बीच इन दिनों नेवले की फुर्ती और चहलकदमी किसानों का ध्यान खींच रही है। सांपों के जन्मजात दुश्मन कहे जाने वाले नेवले को देखकर कई लोग सहम जाते हैं, लेकिन कुछ लोग इसी वजह से उसे पालते भी हैं, क्योंकि यह विषैले सर्पों को भी कई टुकड़ों में काट डालता है।
धूप सेंकते इस नेवला जोड़ी की तस्वीर पर्यावरण प्रेमी पत्रकार प्राण चड्ढा ने बड़ी मेहनत से कैद की है। वे बताते हैं कि नेवला बेहद शर्मीला और चंचल जीव है, जरा सी आहट होते ही छिपने में माहिर। तस्वीर बिलासपुर नगर निगम सीमा के अंतर्गत ग्राम मंगला के खेतों में खींची गई है, जहां सुनहरी धूप में ये नेवले मानो अपनी सुबह की कसरत कर रहे हों।
रमन की फुर्सत में कान्हा की सैर
दिवाली के मौके पर परिजनों के साथ वक्त बिताने के लिए विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने मध्यप्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क का रूख किया। ठाठापुर में दिवाली पूजा के बाद परिवार के सदस्यों को लेकर डॉ. सिंह ने कान्हा के मुक्की गेट से बाघ देखने के लिए घंटों जंगल सफारी की। सुनते हैं कि डॉ. सिंह के परिवार के सभी नजदीकी रिश्तेदार भी सफारी करने उनके साथ थे। दो अलग-अलग टोलियों में परिवार के सदस्य सफारी करते हुए रोमांचित नजर आए। हालांकि डॉ. सिंह को बाघ का दर्शन नहीं हुआ, लेकिन उनके परिवार के दूसरे सदस्यों को बाघ देखना नसीब हुआ। दिवाली के अगले दिन सडक़ रास्ते से डॉ. सिंह मुक्की गेट पहुंचे। वहां उन्होंने परिवार के साथ रात्रि विश्राम भी किया। सफारी करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के यात्रा की तैयारी के मद्देनजर डॉ. सिंह को हेलीकाप्टर से रायपुर लौटना पड़ा।
एसपी बनाने के राज
दो दिन पहले आईपीएस अफसरों के तबादले की एक छोटी सूची जारी हुई। इसमें चार जिले सक्ती, राजनांदगांव, एमसीबी, और कोंडागांव के एसपी बदले गए। तबादले के पीछे कुछ वजह भी है। राजनांदगांव में अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ा था। यहां पुलिस भर्ती में गड़बड़ी का मामला भी सुर्खियों में रहा। कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस में डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने राजनांदगांव में पुलिस की कार्यप्रणाली पर नाराजगी भी जताई थी।
वैसे भी राजनांदगांव एसपी मोहित गर्ग को दो साल हो रहे थे, लिहाजा उनकी जगह अंकिता शर्मा की पोस्टिंग की गई है। आईपीएस की वर्ष-2018 बैच की अफसर अंकिता शर्मा पहले पड़ोस के जिले खैरागढ़ एसपी रह चुकी हैं। तेज तर्रार अंकिता मूलत: दुर्ग की रहवासी हैं। वो राजनांदगांव के मिजाज से पहले से वाकिफ हैं। उनसे काफी उम्मीदें हैं। खास बात यह है कि राजनांदगांव के इतिहास में पहली बार किसी महिला अफसर को एसपी बनाया गया है।
इससे परे धमतरी-महासमुंद सहित कई जिलों के एसपी रह चुके प्रफुल्ल ठाकुर को सक्ती एसपी बनाया गया है। प्रफुल्ल ठाकुर, भूपेश बघेल के सीएम रहते सुरक्षा अधिकारी भी थे। सरकार बदलने के बाद उनकी बटालियन में पोस्टिंग हो गई। प्रफुल्ल ठाकुर की पारिवारिक पृष्ठभूमि कांग्रेस की रही है। उनके भाई वीरेश ठाकुर कांकेर लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रहे, और दो हजार से कम वोटों से चुनाव जीतने से रह गए। हालांकि प्रफुल्ल बेदाग रहे हैं, और मिलनसार भी हैं। वो डॉ. रमन सिंह के सीएम रहते सुरक्षा में भी तैनात थे। कुछ हफ्ते पहले उन्हें एसपी बनाए जाने की खबर सोशल मीडिया में वायरल भी हो गई थी इसके चलते वो परेशान भी रहे। यह खबर अब जाकर सच हुई है।
फेरबदल के बीच महासमुंद एसपी आशुतोष सिंह केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं। उनकी सीबीआई में पोस्टिंग हो गई है। उन्हें अभी रिलीव नहीं किया गया है। आशुतोष की जगह जल्द ही नए एसपी की पदस्थापना की जाएगी।
अधूरे होटल पर खुलेगा ताज
नवा रायपुर, और पुराने रायपुर के बीच जमीन का कारोबार फल फूल रहा है। देश की नामी कंपनियों ने यहां जमीन खरीदी हैं। इनमें गोदरेज, और लोढ़ा समूह भी शामिल हैं। इस इलाके में होटल-रेस्टोरेंट, और महंगे पब की बाढ़ आ गई है। यहां वीआईपी रोड में ताज होटल समूह भी पांच सितारा होटल खोलने जा रहा है।
हालांकि कुछ साल पहले कांग्रेस के एक नेता ने ताज समूह का फ्रेंचाइजी लिया था, और गेटवे ताज के नाम से होटल शुरू किया। कुछ समय बाद उन्होंने फ्रेंचाइजी वापस कर दिया, और फिर इंदौर के सायाजी ग्रुप को होटल बेच दिया। अब ताज होटल समूह, फुंडहर के पास होटल स्थापित करने जा रहा है। इसके लिए ताज समूह ने कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री के बेटे की जमीन, और उस पर बना ढाँचा खरीदा है, जो कि खुद वहां होटल खोलने जा रहे थे, मगर निर्माण कार्य आधा अधूरा रह गया, और फिर कर्ज अदा नहीं करने पर बैंक ने आधे-अधूरे निर्माण के साथ जमीन की नीलामी कर दी। ताज समूह यहां होटल शुरू करेगा।
फिसली जुबान से सच निकला क्या?
बस्तर के नारायणपुर जिले में दूषित मांस खाने से पांच ग्रामीणों की मौत की घटना के बाद सांसद महेश कश्यप का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वे इसमें कहते सुनाई दे रहे हैं कि अबूझमाड़ में फैल रही बीमारियों के लिए पूरे सत्ताधारी और माओवादी जिम्मेदार हैं। कश्यप के इस बयान को लेकर बवाल मच गया। कुछ लोगों ने कहा कि माओवादियों का नाम लेना तो ठीक हो सकता है, पर वे पूरे सत्ताधारियों को क्यों जिम्मेदार ठहरा रहे हैं? प्रदेश में सरकार तो उनकी ही पार्टी की है। बात सच भी हो सकती है कि सत्ताधारी जिम्मेदार हों, मगर सांसद का इतना बेबाक हो जाना लोगों के गले नहीं उतरा। मगर कुछ घंटों के बाद ही कश्यप की सफाई भी सामने आ गई। यह साफ हो गया कि वे अपनी सरकार के लिए मुश्किल खड़ी नहीं करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि दरअसल वे पूर्व सत्ताधारी (कांग्रेस सरकार) कहना चाहते थे लेकिन मुंह से पूरे सत्ताधारी शब्द निकल गया। फूड प्वाइजनिंग से मौतें अब सामने आई हैं, मगर गांव में सामूहिक भोज करीब 10 दिन पहले हुआ था। ग्रामीण अपने स्तर पर बैगा-गुनिया और झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज करा रहे थे। स्वास्थ्य विभाग को जब खबर लगी तब तक दो माह की मासूम बेबी सहित पांच लोग जान गवां चुके थे।। अभी अस्पताल में करीब दो दर्जन पीडि़तों का इलाज चल रहा है। आकलन आप करिये कि सांसद का सफाई में दिया गया बयान क्या सच छिपाने में मदद कर रहा है?
असरानी, और नया रायपुर
मशहूर हास्य अभिनेता असरानी के निधन के बाद उन्हें देशभर में श्रद्धांजलि दी जा रही है। रायपुर में भी सिंधी काउंसिल ऑफ इंडिया के पदाधिकारियों ने उन्हें याद किया। असरानी कुछ साल पहले रायपुर आए थे, और वो यहां नवा रायपुर के डेवलपमेंट देखकर काफी प्रभावित भी हुए। बहुत कम लोगों को मालूम है कि असरानी नवा रायपुर में एक बंगला भी बनाना चाहते थे।
फिल्म ‘शोले’ के जेलर के किरदार से मशहूर हुए असरानी का कई बार रायपुर आना हुआ। वो कुछ साल पहले सिंधी समाज के चेट्रीचंड पर्व के होजमालो कार्यक्रम में शिरकत करने आए थे। उन्होंने स्टेज शो में लोगों को काफी हंसाया भी। कार्यक्रम में पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, और सुनील सोनी भी थे। कार्यक्रम के बाद फुर्सत के क्षणों में सिंधी काउंसिल के प्रदेश अध्यक्ष ललित जैसिंघ के साथ वो नवा रायपुर भी गए। उन्हें नवा रायपुर का वातावरण काफी पसंद आया, और यहां एक बंगला बनाने की इच्छा भी जताई।
ललित याद करते हैं कि असरानी ने अपनी पत्नी मंजू असरानी से भी बात करवाई थी। वो भी नवा रायपुर में एक बंगला बनाने के लिए खुशी-खुशी तैयार हो गईं। असरानी का कहना था कि वीक एण्ड में समय गुजारने के लिए नवा रायपुर काफी बेहतर है। मुंबई जाने के बाद असरानी यहां सिंधी समाज के लोगों के संपर्क में भी रहे, लेकिन बंगला बनवाने का मामला टलता गया। अब उनके गुजरने के बाद खुश मिजाज असरानी को काफी याद किया जा रहा है।
13 वर्ष में छोटा पड़ गया मंत्रालय
दो दशक पहले नई राजधानी नवा रायपुर में जब मंत्रालय भवन का निर्माण शुरू किया गया था तब योजनाकारों ने 50 वर्ष की जरूरत पूरी होने का दावा किया था। पांच मंजिले इस भवन में नया मंत्रालय 2012 से काम करने लगा। सीएम और मंत्री ब्लाक 5 मंजिला, सेक्रेटरी ब्लॉक 4 मंजिला और एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक 3 मंजिला भवन में कार्यरत हैं। अब 50 में से 13 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस एक दशक में ही महानदी भवन में जगह कम पडऩे लगी है।
ऐसा नहीं है कि मंत्रालय का सेटअप बढ़ गया हो और उसके अनुरूप हर वर्ष सैकड़ों अधिकारी कर्मचारियों की भर्ती हो रही हो। भर्ती के बजाय विभाग अपने मैदानी दफ्तरों से अधिकारी कर्मचारी अटैच कर मंत्रालय का काम निपटा रहे हैं। इसके चलते हर ब्लाक में जगह की कमी पडऩे लगी है। इसे देखते हुए जीएडी ने पिछले दिनों दो अलग-अलग आदेश निकालने पड़े। पहला यह कि बिना जीएडी की अनुमति के अब किसी भी विभाग में अधिकारी कर्मचारी मंत्रालय अटैच न किए जाएं। दूसरा चूंकि मंत्रालय में कमरों की कमी है ऐसे में पोस्टिंग किए जाने पर आफिस रूम नहीं दिया जाएगा। सो ऐसे अफसर ई ऑफिस सॉफ्टवेयर में अपने पुराने आफिस से ही काम करेंगे।
यह रही एक बात, दूसरी बात यह है कि मंत्रालय संवर्ग के अवर सचिवों के लिए तो कमरे ही है जबकि इनके ही सील साइन से सरकारें चलती हैं। इनके लिए, कॉर्पोरेट सेक्टर की तरह छोटे-छोटे, केबिन-क्यूबिक बनाए गए हैं। इतना ही नहीं एक-एक अनुभाग में दो-तीन विभाग संचालित हो रहे हैं। मसलन पुरातत्व-पर्यटन-संस्कृति एक ही कक्ष में, बेमेल वाले खेल युवा कल्याण के साथ सहकारिता।
वहीं वन में विमानन, गृह में संपदा संचालनालय। जबकि पीएचक्यू, अरण्य के नाम से नए शहर में ही इनके अपने भवन हैं। केंद्रीय उपक्रम एनआईसी भी मंत्रालय में ही है। एक अनुभाग दबड़े की तरह होने लगे हैं। ऐसी हालत देखकर अब मांग होने लगी है मंत्रालय के लिए नए भवन की।
धुड़मारास का संकल्प, बिगडऩे नहीं देंगे

केंद्र सरकार के पंचायती राज मंत्रालय ने आज एक्स हैंडल पर एक पोस्ट छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के बीच बसे गांव धुड़मारास को लेकर डाली है।
दरअसल, धुड़मारास के ग्रामीणों ने हाल ही में हुई ग्राम सभा में एक बड़ा निर्णय लिया। गांव में पूरी तरह शराबबंदी, साउंड सिस्टम और प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। आम तौर पर पिकनिक की मस्ती करने वाले ये सामान दूसरे पर्यटन स्थलों पर जरूरी मान लिया जाता है। पर धुड़मारास तो यूनेस्को द्वारा दुनिया के 20 सर्वश्रेष्ठ पर्यटन ग्रामों में शामिल हो चुका गांव है। बाकी जगह जो हो रहे हैं, वही यहां भी होने लगा तो उसकी खास पहचान कैसे बनेगी रहेगी? पिछले कुछ समय से धुड़मारास के ग्रामीण इस समस्या को सामने आते देख रहे थे। इसलिये ग्राम सभा की खास बैठक बुलाई गई और कुछ बड़े फैसले लिए गए। ग्राम सभा ने तय किया है कि गांव की पवित्रता और अनुशासन में किसी प्रकार की अव्यवस्था नहीं आने दी जाएगी।
एक और जरूरी बात, धुड़मारास की पहचान बने बैंबू राफ्टिंग और कयाकिंग जैसे नवाचार कार्यों से बनी है। ग्राम सभा ने यह तय किया है कि इसकी नकल कोई संस्था या व्यक्ति उनकी अनुमति के बिना नहीं कर सकेगा। हालांकि, यह एक फैसला कैसे लागू होगा- स्पष्ट नहीं है। यदि किसी ने नकल की तो रोकने के लिए कानूनी उपायों पर ग्राम सभा को ध्यान देना होगा।
प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता से भरा पूरा धुड़मारास गांव सौर ऊर्जा से जगमगा रहा है। यहां के युवाओं ने अपने परंपरागत ज्ञान को आधुनिक सोच से जोड़ा और पर्यावरणीय पर्यटन को नई दिशा दी। इस बार पर्यटकों के लिए कयाकिंग और बैंबू राफ्टिंग के अलावा होमस्टे, देशी व्यंजन, ट्राइबल डांस, बर्ड वॉचिंग, नेचर वॉक और ट्रेकिंग जैसी सुविधाएं 22 अक्टूबर से शुरू कर दी गई है। जगदलपुर से यह गांव करीब 40 किलोमीटर दूर है। इस सत्र की शुरुआत बिलासपुर से गए कुछ सैलानियों के स्वागत से हुई।
छत्तीसगढ़ में धुड़मारास की तरह विकसित किए जाने लायक दर्जनों झरने, बांध, जलप्रपात हैं। पर वहां से जो खबर आती है, वह डूबने की, शराबखोरी की, मारपीट या खून-खराबे की। धुड़मारास से सीख लेकर इन स्थलों को भी दर्शनीय और सुरक्षित बनाया जा सकता है।
जांच से पहले ट्रायल की बाढ़
वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी रतनलाल डांगी पर यौन उत्पीडऩ का आरोप कल शाम से ही सोशल मीडिया ट्रायल का विषय बन गया है। पुलिस मुख्यालय ने जांच का आदेश जारी कर दिया है, पर इससे पहले ही एक्स (पूर्व ट्विटर) जैसे प्लेटफॉर्म पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है। लोग अपने-अपने नजरिए से इस पूरे घटनाक्रम की व्याख्या कर रहे हैं।
एक सब इंस्पेक्टर की पत्नी, योग प्रशिक्षिका ने आईपीएस रतनलाल डांगी पर मानसिक और शारीरिक उत्पीडऩ के आरोप लगाए हैं। शिकायत के साथ उन्होंने कई डिजिटल सबूत भी डीजीपी को सौंपे। दूसरी ओर, डांगी ने एक दिन पहले ही उसी महिला के खिलाफ ब्लैकमेलिंग की एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। सरकार ने रुख साफ किया है कि दोषी पाए जाने पर सख्त कार्रवाई होगी। लेकिन जांच से पहले ही ऐसे पोस्ट आ रहे हैं, जिनमें सवालों के बौछार हो रहे हैं।
इनमें रायपुर से लेकर दिल्ली से लेकर पत्रकार और वकील शामिल हैं। भाजपा से जुड़े एडवोकेट नरेश चंद्र गुप्ता ने एक्स पर जांच अधिकारी पर ही सवाल उठाया है। उन्होंने लिखा है क्या यह न्याय का उपहास नहीं है कि जिस अधिकारी (आनंद छाबड़ा) पर खुद सीबीआई जांच चल रही है, जो भाजपा को खैरागढ़ में हराने में लगे हुए थे- उन्हें इस मामले की जांच का जिम्मा दिया गया है? भगवान छत्तीसगढ़ पुलिस की रक्षा करे।
इधर, दिल्ली के पत्रकार कन्हैया शुक्ला ने अपनी पोस्ट में लिखा कि डांगी कई सालों से महिला का उत्पीडऩ कर रहे थे, और अब खुद को ब्लैकमेलिंग का शिकार बताकर जांच को भटकाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाया है कि जब पीडि़ता ने सबूतों के साथ शिकायत की है तो अभी तक एफआईआर क्यों नहीं हुई? क्या पुलिस महकमे के बड़े अधिकारियों का दबाव है कि यह मामला दबा दिया जाए? कन्हैया शुक्ला ने जानना चाहा है कि आखिर किस दबाव में डांगी महिला की बात मानते हुए चल रहे थे? उनकी लंबी पोस्ट कई बार शेयर हो चुकी है। कई यूज़र्स ने लिखा कि जब आरोपी खुद पुलिस का वरिष्ठ अधिकारी हो तो न्याय की उम्मीद किससे की जाए? दूसरी ओर डांगी के पक्ष में भी कई पोस्ट हैं। इनमें दावा किया गया है कि डांगी डीफफेक वीडियो के शिकार हुए हैं।
फिलहाल, पीडि़ता की शिकायत और डांगी की सफाई, दोनों पुलिस मुख्यालय में दर्ज हैं। विभाग ने जांच अधिकारियों की नियुक्ति कर दी है। डांगी से पहले भी कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ यौन उत्पीडऩ के आरोप लग चुके हैं। छत्तीसगढ़ पुलिस की साख पर एक बार फिर दांव पर है।
अपने-अपने इलाके के राजा?
कांग्रेस में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के चलते एक तरह से प्रदेश के प्रमुख नेता पूर्व सीएम भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, और प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज का लिटमस टेस्ट होने जा रहा है। पिछले कई दिनों से एआईसीसी के पर्यवेक्षकों ने ब्लॉकों में जाकर जिलाध्यक्ष के लिए नामों पर रायशुमारी की थी, और फिर छह नाम का पैनल तैयार कर हाईकमान को सौंप दिया।
प्रदेश के सभी प्रमुख नेता, जिलों में अपनी पसंद का अध्यक्ष बनवाने के लिए प्रयासरत हैं। गुरुवार को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल ने चारों नेता भूपेश बघेल, सिंहदेव, डॉ. महंत व बैज से बारी-बारी से चर्चा की, और पर्यवेक्षकों के पैनल पर राय ली। चारों ने हरेक जिले में अध्यक्ष के लिए अपनी पसंद बता दी है।
बताते हैं कि सबसे पहले वेणुगोपाल ने सिंहदेव को आमंत्रित किया, और फिर उनसे राय ली। इसके बाद भूपेश बघेल के सुझाव लिए गए। इसी बीच बैठक स्थगित हो गई। वेणुगोपाल को बिहार चुनाव से जुड़े एक अन्य बैठक में शामिल होने जाना था। बाद में करीब दो घंटे के ब्रेक के बाद डॉ. महंत, और दीपक बैज को बुलाया गया, और उनसे सुझाव लिए गए।
वेणुगोपाल ने पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को भी बुलवाया है। साहू शुक्रवार की रात दिल्ली पहुंचे। चर्चा है कि साहू की दिलचस्पी दुर्ग, और बेमेतरा जिले को लेकर ज्यादा है। वो महासमुंद, धमतरी, और गरियाबंद जिलाध्यक्ष को लेकर सुझाव दे सकते हैं। क्योंकि उन्होंने महासमुंद लोकसभा का चुनाव लड़ा था।
पार्टी के अंदरखाने में चर्चा है कि कुछ अध्यक्षों को लेकर दिग्गज नेता अड़ सकते हैं। मसलन, बेमेतरा, दुर्ग ग्रामीण, राजनांदगांव शहर-ग्रामीण, और कवर्धा जिलाध्यक्ष के लिए पूर्व सीएम भूपेश बघेल की अपनी पसंद जगजाहिर है। इसी तरह सरगुजा संभाग के जिलाध्यक्षों के लिए सिंहदेव ने उपयुक्त नाम सुझा दिए हैं। डॉ. महंत का बिलासपुर, कोरबा, और जांजगीर-चांपा की विशेष दिलचस्पी है। बैज की कोशिश है कि कम से कम बस्तर संभाग के जिलों में उनकी पसंद का अध्यक्ष बन जाए। मगर यहां के पर्यवेक्षक सप्तगिरि उलका उन्हें महत्व देते नहीं दिखे हैं।
सप्तगिरि उलका, ओडिशा के सांसद हैं, और छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी सचिव रह चुके हैं। वो बस्तर की बारीकियों से अवगत हैं। इससे बैज थोड़े असहज हैं। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के लिए परीक्षा की घड़ी है कि वो अपनी पसंद पर हाईकमान की मुहर लगवा पाते हैं या नहीं।
बिहार में अफसरान का तनाव
बिहार चुनाव में प्रदेश के 11 आईएएस, और 2 आईपीएस अफसरों को भारत निर्वाचन आयोग ने पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। चर्चा है कि ज्यादातर अफसर किसी तरह बिहार जाने से बचना चाह रहे थे, और उन्होंने इसके लिए अलग-अलग स्तरों से प्रयास भी किया। मगर सिर्फ दो ही अफसर पुष्पेंद्र मीणा, और डॉ. सारांश मित्तर को राहत मिल सकी है, और उन्हें चुनाव ड्यूटी से मुक्त कर दिया गया।
पुष्पेंद्र मीणा, और डॉ. सारांश मित्तर के लिए विभाग ने भी निर्वाचन आयोग को लिखा था। बाकी अफसरों की अलग-अलग जिलों में तैनाती हो गई है। चुनाव की वजह से ये सभी अफसर दिवाली पर भी घर नहीं आ पाए। अब सीधे 15 नवंबर को चुनाव निपटने के बाद ही वापसी हो पाएगी। एक अफसर ने इस संवाददाता से चर्चा में कहा कि हिमाचल या दक्षिण के राज्यों में ड्यूटी होती, तो चुनाव ड्यूटी किसी पिकनिक की तरह होता, लेकिन बिहार संवेदनशील राज्य है, और यहां हर तरह का जोखिम रहता है।
मासूमियत और संघर्ष की छवि
नदी किनारे की ढलान में बच्चे खेलते हुए ऊपर चढ़ रहे हैं, फिर नीचे फिसल रहे हैं। मिट्टी से सने नंगे बदन मगर चेहरे पर चमकती मुस्कान यह बताती हैं कि खुशी साधनों से नहीं, बल्कि सादगी से भी पैदा हो जाती हैं। बस्तर की यह छवि अंकुर तिवारी ने फेसबुक पर साझा किया है।
बाबा की महिमा
पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव भले ही मात्र 94 वोट से चुनाव जीतने से रह गए, लेकिन कांग्रेस हाईकमान की नजर में अहमियत कम नहीं हुई है। यह सब बिहार विधानसभा चुनाव के प्रत्याशी चयन के दौरान देखने को मिला। पार्टी ने टिकट को झगड़ा निपटाने के लिए तीन सदस्यीय हाईपावर कमेटी बनाई।
कमेटी में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल के अलावा पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव भी थे। कमेटी ने सारे विवादों का निपटारा किया, और फिर प्रत्याशियों के नामों की अनुशंसा की, जिसे अधिकृत तौर पर घोषित किया गया। बिहार से पहले हरियाणा में टिकट से जुड़े विवादों को सुलझाने के लिए कमेटी बनाई थी, जिसमें भी सिंहदेव को रखा गया था।
हालांकि सिंहदेव राष्ट्रीय, या प्रदेश में कोई अहम पद पर नहीं हैं। उन्हें पहले राष्ट्रीय महासचिव बनाने का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन उन्होंने प्रदेश में ही काम करने की इच्छा जताई थी। इसके बाद से उन्हें दीपक बैज की जगह अध्यक्ष बनाने की चर्चा रही है। मगर इस पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। ऐसे में देर सबेर उन्हें प्रदेश में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
आईआरएस और वीआरएस
हमने कुछ माह पहले इसी कालम में बताया था कि बीते एक दशक में 2014-24 तक देश भर के 800 से अधिक आयकर अफसरों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली है। इसके चलते आयकर सर्वे, छापे और अपील के मामलों में कार्रवाई पर बड़ा असर पड़ रहा है। हालांकि इसी दौरान विभाग ने उपलब्ध स्टाफ से फेसलेस, सर्वे और अपील की सुनवाई के लिए वर्चुअल सॉफ्टवेयर का उपयोग शुरू किया। इसका प्रतिसाद कैसा है यह अभी सामने नहीं आया है। लेकिन ऐसा लगता है कि भारत की सिविल सेवा पर अत्यधिक दबाव है। इससे परे अनुभवी व वरिष्ठ आईआरएस अधिकारियों के वीआरएस से स्थिति और भी गंभीर हो गई है। वे तो नौकरी ही छोडऩे में भी नहीं झिझक रहे।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के वर्षवार आंकड़ों का विश्लेषण करने पर, 20 आईआरएस (आयकर) ग्रुप ए अधिकारियों ने 2014 में वीआर लिया।, 2015 में 19, 2016 में 14, 2017 में 15, 2018 में 35, 2019 में 31, 2020 में 23, 2021 में 53, 2022 में 58, 2023 में 58 और 2024 में 57। इसके अलावा, 24 आईआरएस (सीमा शुल्क और अप्रत्यक्ष कर) ग्रुप ए अधिकारियों ने 2014 में वीआर लिया, 2015 में 30, 2016 में 40, 2017 में 30, 2018 में 45, 2019 में 32, 2020 में 30, 2021 में 30, 2022 में 49, 2023 में 56 और 2024 में 73। इनकी संख्या कुल 853 होती है। यदि वीआरएस इसी गति से जारी रहा तो शासन के राजस्व की मशीनरी को कौन चालू रखेगा?
बेटी की खुशी के लिए

जशपुर जिले के किसान बजरंग राम भगत ने यह साबित कर दिया कि अगर इरादा मजबूत हो तो कोई सपना अधूरा नहीं रहता। सीमित आमदनी के बावजूद उन्होंने अपनी बेटी चम्पा भगत को होंडा एक्टिवा स्कूटी तोहफे में देने का सपना पूरा किया। वह सिक्कों से भरा बोरा लेकर शोरूम पहुंच गया। ये सिक्के उसने छह महीनों तक जमा किए। 10 और 20 रुपये के सिक्के जमा करने वाले इस किसान की मेहनत देखकर शोरूम के सभी कर्मचारी भी भावुक हो उठे। शो रूम के संचालक ने अपने कई कर्मचारियों को सिक्के गिनने में लगा दिए, फिर स्कूटी की डिलिवरी की।
किसान ने कहा, यह मेरी हैसियत नहीं थी- मगर बेटी की खुशी के लिए खरीदना जरूरी था।
सुधार गृह ही नहीं सुविधा गृह भी...

रायपुर सेंट्रल जेल एक बार फिर सुर्खियों में है। यहां कैद हिस्ट्रीशीटर राजा बैजड़ का एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें वह जेल के अंदर जिम झोंकते हुए दिखाई दे रहा है। उसका वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रही है। मामला सामने आने के बाद दो जेल कर्मियों को निलंबित कर दिया गया है। इससे पहले इसी जेल से हिस्ट्रीशीटर अमन साव का भी ऐसा ही वीडियो बाहर आया था।
जेल के भीतर रसूखदार बंदियों की अपनी टीम और पदक्रम होता है। जो जितना बड़ा हिस्ट्रीशीटर, उसका उतना ही रुतबा। फिटनेस का यह वीडियो यह साफ बताता है कि जेल के अंदर मोबाइल फोन की पहुंच कितनी आसान है, और यह सुविधा मुफ्त में नहीं मिलती। इसके पीछे मोटी रकम की अदायगी होती है।
अभी इसी महीने अंबिकापुर जेल से हत्या के एक मामले में सजायाफ्ता कैदी भागकर बिलासपुर पहुंच गया था। वहाँ उसने फिनाइल पीकर आत्महत्या की कोशिश की। उसकी पत्नी ने बिलासपुर कलेक्टर को ज्ञापन देकर बताया कि जेल में उसके पति से पैसे भेजने का दबाव बनाया जाता था और न देने पर मारपीट की जाती थी। उसने ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के सबूत भी पेश किए। अंबिकापुर पुलिस उसे पकडक़र वापस जेल ले गई।
सारंगढ़ उप जेल में भी वसूली को लेकर कैदियों से लगातार और बुरी तरह मारपीट के मामले सामने आए। फरवरी में परिजनों ने जेल अधिकारियों पर जबरन वसूली और अत्याचार के आरोप लगाए थे। अप्रैल में खबरें छपने के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया, और जांच के बाद जुलाई में एक सहायक जेल अधीक्षक और दो प्रहरियों को निलंबित किया गया। इन्होंने भी ऑनलाइन पैसे लिए थे।
अब जब रायपुर सेंट्रल जेल का यह फिटनेस वीडियो सामने आया है। जेल प्रबंधन इसे सुधार गृह की गतिविधि कहकर बचाव कर सकता है, लेकिन असली सवाल यही है कि मोबाइल फोन उस संवेदनशील बैरक तक पहुँचा कैसे? छत्तीसगढ़ की जेलों का हाल अब किसी से छिपा नहीं। कैश हो तो मोबाइल फोन से लेकर नशे का सामान तक सब उपलब्ध है। कैदी चाहें तो जेल से ही अपने नेटवर्क को निर्देश दे सकते हैं। फर्क बस इतना है कि जो भुगतान कर सकता है, उसके लिए जेल-जेल नहीं, सुविधा घर बन जाता है।
एफआरए पर हाईकोर्ट का नजरिया
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें ग्राम घाटबर्रा के निवासियों ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत सामुदायिक वन अधिकारों का दावा किया था। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ग्रामीणों का दावा सिद्ध नहीं हुआ, क्योंकि संबंधित भूमि पहले ही खनन के लिए हस्तांतरित हो चुकी थी और उस समय इसे चुनौती नहीं दी गई। इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने यह भी कहा कि एफआरए, वन भूमि के नीचे मौजूद खनिजों पर राज्य के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करता। इस फैसले ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं, खासकर एफआरए के मूल उद्देश्य और वनवासी समुदायों के अधिकारों को लेकर।
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति और जयनंदन सिंह पोर्ते द्वारा दायर याचिका में बताया गया था कि ग्राम घठबार्रा को 2006 के वन अधिकार अधिनियम के तहत सामुदायिक अधिकार प्राप्त थे, जिन्हें 2016 में जिला समिति ने रद्द कर दिया था। इस फैसले को लेकर पूर्व केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री और कांग्रेस के संचार विभाग प्रमुख जयराम रमेश ने गहरी चिंता जताई है। उन्होंने अपने एक्स हैंडल पर लिखा है कि वर्तमान केंद्र सरकार ( रमेश जयराम के अनुसार- मोदानी सरकार) के आने के बाद से हसदेव अरण्य में अभूतपूर्व और अस्वीकार्य घटनाएं बढ़ी हैं। हाईकोर्ट की एकल पीठ का यह फैसला, जिसमें वन अधिकारों को रद्द करने का आधार यह बताया गया कि भूमि पहले ही खनन के लिए हस्तांतरित हो चुकी थी, न केवल तर्कहीन है, बल्कि यह एफआरए के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
जयराम रमेश ने आगे कहा है- यह स्पष्ट है कि इस फैसले का लाभ कौन उठा रहा है। एफआरए का उद्देश्य वनवासी समुदायों को वन संसाधनों पर अधिकार देना है, जो तब तक संभव नहीं जब तक उनकी जमीन सुरक्षित न हो। कोर्ट का यह तर्क कि खनिजों पर राज्य का अधिकार सर्वोपरि है, वनवासियों के अधिकारों को कमजोर करता है और एफआरए की नींव को हिलाता है। यह फैसला न केवल पर्यावरणीय न्याय के लिए खतरा है, बल्कि यह आदिवासी समुदायों के हितों पर भी कुठाराघात करता है।
जयराम रमेश का आशय है कि यह फैसला न केवल हसदेव अरण्य की जैव-विविधता को खतरे में डालता है, बल्कि वन अधिकार अधिनियम की मूल भावना को भी कमजोर करता है। हाईकोर्ट के इस फैसले को माना जाए तो यदि किसी वन में खनिज उत्खनन कराना हो तो उसके लिए एफआरए के तहत कोई दावा मुमकिन ही नहीं होगा। सिंगल बेंच के आदेश को यदि चुनौती दी जाती हो, तभी इसमें कोई बदलाव संभव है।

जन्मदिन भारी पड़ा
कुछ महीने पहले कांग्रेस के एक दिग्गज नेता को तामझाम से जन्मदिन सेलिब्रेट करना भारी पड़ गया है। नेताजी का 78वां जन्मदिन था। जन्मदिन पार्टी में पहुंचे नेताओं ने अंदाज लगा लिया कि विधानसभा चुनाव के वक्त नेताजी की उम्र 81 साल हो जाएगी। ऐसे में पार्टी उनकी जगह किसी नए चेहरे को प्रत्याशी बना सकती है।
पार्टी ने दिग्गज नेता को विधानसभा चुनाव हारने के बाद लोकसभा प्रत्याशी बनाया था। वो लोकसभा चुनाव भी बुरी तरह हार गए। अब जन्मदिन पार्टी के बाद वो क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं, और स्थानीय कार्यकर्ताओं से एक बार और विधानसभा चुनाव लडऩे की इच्छा जता रहे हैं। मगर अब पार्टी के कई युवा स्थानीय नेताओं ने उनके क्षेत्र में चुनाव लडऩे के लिए अभी से जोर आजमाइश शुरू कर दी है। जिलाध्यक्ष से लेकर पंचायत के पदाधिकारी तक दिग्गज नेता को चुनौती देते दिख रहे हैं। इससे वो काफी परेशान हो गए हैं।
दिग्गज नेता ने जिलाध्यक्ष के चयन प्रक्रिया के दौरान अपनी तरफ से एक नाम आगे बढ़ाया था ताकि संगठन में उनका दबदबा बरकरार रहे। मगर उनकी यह इच्छा पूरी होते नहीं दिख रही है। जिन्हें अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है, वो दिग्गज नेता के विरोधी माने जाते हैं। कुल मिलाकर जो नेता अपनी पसंद से कई टिकटें तय करवाते रहे हैं, इस बार उन्हें खुद की टिकट हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ सकता है। चुनाव में भले ही वक्त है, लेकिन नेताजी की नींद अभी से उड़ी हुई है।
हथियार छोडऩे वाले विचारधारा भी त्याग देंगे?
पिछले कुछ दिनों में बस्तर में 210 से अधिक नक्सलियों ने हथियार डाल दिए। इनमें दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रमुख रुपेश और अन्य वरिष्ठ कमांडर शामिल हैं। इन सामूहिक आत्मसमर्पणों ने सुरक्षा बलों को तो उत्साहित किया ही है, केंद्र और राज्य सरकार के लिए भी यह एक राजनीतिक, रणनीतिक जीत का मौका है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा कर दी है कि अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर पूरी तरह नक्सल-मुक्त हो चुके हैं। यह भी कहा कि मार्च 2026 के लक्ष्य से पहले ही बस्तर में नक्सलवाद का सफाया हो जाएगा।
कहा जा रहा है कि यह आत्मसमर्पण सुरक्षाबलों या सरकार की पहल का नतीजा कम,नक्सली संगठन के आंतरिक कलह का परिणाम ज्यादा है। जानकारों के मुताबिक,सीपीआई (माओवादी) के नेतृत्व में फूट पड़ चुकी है। कई कमांडरों ने संगठन के केंद्रीय कमेटी के फैसलों पर सवाल उठाए हैं, खासकर यह कि, हिंसा के बावजूद विकास परियोजनाएं बस्तर तक पहुंच रही हैं। यह हैरानी की बात है कि इन नक्सलियों ने आत्मसमर्पण के लिए कठोर शर्त नहीं रखीं। न तो पुनर्वास पैकेज पर कोई विशेष मांग, न ही डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड में भर्ती का विरोध किया है। राज्य सरकार की नक्सली सरेंडर एंड रिहैबिलिटेशन पॉलिसी 2025 और नियाद नेल्ला नार योजना में इन्हें रोजगार, आवास और कौशल प्रशिक्षण का वादा किया गया है, लेकिन यह प्रोत्साहन तो सरेंडर करने वाले सभी के साथ होता है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इसे घर वापसी कहा। नक्सलियों ने हथियारों के बदले संविधान की प्रति के साथ फोटो खिंचवाई। एक आंकड़े के अनुसार पिछले 22 महीनों में 2,110 नक्सली सरेंडर कर चुके हैं,477 मारे गए और 1,785 गिरफ्तार किए गए है।
ये आंकड़े सरकार की दोहरी रणनीति- समर्पण को प्रोत्साहन और हिंसा के खिलाफ अभियान को दर्शाते हैं। मगर पूरा मामला कुछ बड़े सवालों से भी घिराहै। अमित शाह ने हाल ही में कहा था कि माओवादी यदि हिंसक न हों,तो संविधान के दायरे में आंदोलन करने में कोई ऐतराज क्यों होगा?यह बयान सरेंडर के संदर्भ में बहुत प्रासंगिक है। क्या ये पूर्व नक्सली अब हथियारों का त्याग कर एक अहिंसक दबाव समूह में तब्दील हो जाएंगे? बस्तर के संसाधन-जल, जंगल, जमीन पर कॉर्पोरेट की निगाहें गड़ी हैं। खनन, स्टील प्लांट और अन्य परियोजनाएं आदिवासी जीवन उजाड़े बिना पूरी नहीं हो रही हैं। कांग्रेस हो या भाजपा 2 ही दल यहां हैं। जंगल बचाने के मामले में दोनों के ऊपर आदिवासियों का बहुत भरोसा नहीं है- भले ही चुनावी राजनीति में इनके बीच ही जीत-हार होती है। सीपीआई जैसे वामपंथी संगठनों पर भी विरोध ठंडा पड़ गया है। ऐसे में, यदि ये समर्पित माओवादी आदिवासियों के साथ मिलकर एक नया अहिंसक संगठन खड़ा करें, जैसे मूलवासी बचाओ मंच का विस्तार, तो क्या होगा? मतलब- हथियार त्यागने के साथ समर्पित नक्सली क्या विचारधारा भी त्याग देंगे?आदिवासी अधिकार और पूंजीवादी शोषण के खिलाफ बोलना भी बंद कर देंगे? या बस्तर में आंदोलनकारियों का एक नया समूह उभरेगा? जो बस्तर की राजनीति पर गहराई तक असर डालेगी?
फेरबदल के बाद
सरकार ने छत्तीसगढ़ी कलाकार सुश्री मोना सेन को छह माह पहले ही छत्तीसगढ़ केश शिल्पी कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया था, और अब उन्हें वहां से हटाकर छत्तीसगढ़ी फिल्म विकास निगम का अध्यक्ष बनाया है। केश शिल्पी कल्याण बोर्ड में मोना सेन के साथ गौरीशंकर श्रीवास की उपाध्यक्ष पद पर नियुक्ति की गई थी। गौरीशंकर श्रीवास ने उपाध्यक्ष का पद संभालने के बजाए संगठन में काम करने की इच्छा जता दी थी। उन्होंने पदभार ही नहीं लिया।
केश शिल्पी कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष का पद रिक्त हो गया है, और चर्चा है कि गौरीशंकर श्रीवास की वरिष्ठता को ध्यान में रखकर अध्यक्ष पद पर नियुक्ति हो सकती है। सरकार ने पहले भी कुछ बदलाव किए थे। मसलन, वित्त आयोग के अध्यक्ष पद पर श्रीनिवास मद्दी की नियुक्ति की गई थी। बाद में उन्हें ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष बनाया गया। इसी तरह भाजपा प्रवक्ता केदार गुप्ता को पहले दुग्ध महासंघ के अध्यक्ष का पद दिया गया था। बाद में उन्हें अपेक्स बैंक का अध्यक्ष बनाया गया।
चर्चा है कि निगम-मंडल के उपाध्यक्ष और सदस्य पद पर नियुक्तियां होनी है। करीब 50 नेताओं को निगम-मंडल में एडजस्ट किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि ये सारी नियुक्तियां राज्योत्सव निपटने के बाद होंगी। देखना है कि पार्टी क्या कुछ बदलाव करती है।
हमनाम को तोहफा
दीपावली आते ही सरकारी मुलाजिम और पार्टी कार्यकर्ता अपने नेता मंत्रियों से सौजन्य भेंट गिफ्ट की उम्मीद लगाए रहते हैं। यह सिलसिला वर्षों से कायम है। जिन्हें मिल जाता है वे खुश होते हैं और जिन्हें नहीं मिलता स्वाभाविक रूप से नाराज होते हैं। इसका इंतजार करते वे यह भी पता करते रहते हैं कि किस किस कार्यकर्ता को मिला और किसे नहीं।
इसी इंतजार में इस बार पहली बार के एक मंत्री की सूची में से कार्यकर्ताओं के एक बड़े ग्रुप के कई लोगों के नाम छूट गए। और सभी ने पड़ताल शुरू कर दी। यह खुलासा कल ही हो गया। इस दौरान पता चला कि मंत्री जी ने सभी के नाम अपने डिलीवरी ब्वॉय को गिफ्ट पैक के साथ दिए थे, ऐसा बताया गया। अब भला डिलीवरी ब्वाय इनकार भी नहीं कर सकता क्योंकि बात मंत्री के बचाव का है। कह दिया आपका गिफ्ट, आपके हम-नाम को दे दिया आप ही समझ कर। जबकि उसने दिया किसी को नहीं। कुछ तो ऐसे भी डिलीवरी ब्वाय हैं जो बांटते ही नहीं। जिसे गिफ्ट घोटाला कहा जा सकता है। इन्हीं दिक्कतों और दीपावली गिफ्ट को कदाचरण मानते हुए ही केंद्र सरकार ने पहले ही रोक लगाने के आदेश दे दिए थे।
खुशियों में साझेदारी दिवाली का तोहफा
यह दृश्य उत्तर प्रदेशका हो या हमारे ही मोहल्ले का। ऐसी भावना हर जगह देखने को मिल सकती है। दीपावली पर जहां कुछ लोग अपने घरों के लिए आभूषण, सिक्के, कपड़े खरीदते हैं, आतिशबाजी करते हैं और मिठाइयां लाते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपनी खुशियों का विस्तार दूसरों की मुस्कान में ढूंढते हैं। दूसरे के घरों में उजाला लाने की छोटी-बड़ी पहल करते हैं। छत्तीसगढ़ के कई जिलोंमें प्रशासन ने दीये बेचने वाले कुम्हारों से टैक्स न लेने के निर्देश दिए हैं। साथही कई लोग सडक़ किनारे बैठे मेहनती विक्रेताओं से सीधे खरीदारी करके त्योहार की असली रौनक बढ़ा रहे हैं। त्योहार की खुशी तभी पूरी होती है, जब रोशनी वहां तक पहुंचे जहां इसकी कमी है।
असली बात, केंद्र की चेतावनी ने बढ़ाया बिजली बिल
छत्तीसगढ़ में इन दिनों बिजली बिल राजनीति का गर्म मुद्दा है। कांग्रेस सडक़ से लेकर विधानसभा तक इसे लेकर आक्रामक है। उनका आरोप है कि भाजपा सरकार महतारी वंदन योजना के नाम पर एक हाथ से हजार रुपये देकर दूसरे हाथ से बिजली बिलों के माध्यम से तीन से पांच गुना वसूली कर रही है। बिजली दफ्तरों के बाहर हर जिले में प्रदर्शन और नारेबाजी हो रही है। लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार क्या करे? केंद्र सरकार की ऊर्जा नीति और वित्तीय दबाव है।
लोग आश्वसत हो चुके थे कि कांग्रेस सरकार ने बिजली हाफ योजना लागू की थी, जिसमें 400 यूनिट तक घरेलू उपभोक्ताओं को बिल में आधी राहत मिलती थी, वह जारी रहेगी। जब कांग्रेस की सरकार थी तो विधानसभा में भाजपा के सदस्य धरमलाल कौशिक गरजे थे कि पूरा बिल हाफ क्यों नहीं करते, सिर्फ 400 यूनिट तक क्यों?
मगर, सरकार पलटने के बाद भाजपा ने इस सीमा को घटाकर केवल 100 यूनिट कर दिया। यह भी टोटा है कि अगर खपत 100 यूनिट से अधिक हुई, तो सब्सिडी पूरी तरह खत्म। इस फैसले से 65 लाख से अधिक परिवारों को करीब 3,240 करोड़ रुपये सालाना अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। यह जरूर है कि सब्सिडी खत्म करने से पहले बिजली दर कई बार बढ़े, हालांकि वह 13 प्रतिशत या 80 पैसे प्रति यूनिट रही। मगर, सब्सिडी चालू रहने के कारण लोगों को ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।
सब्सिडी लगभग खत्म करने के बाद कांकेर, जांजगीर, धमतरी, बिलासपुर और रायपुर जैसे शहरों में कांग्रेस ने बिजली दफ्तरों का घेराव किया है। तालाबंदी की है और बिल जलाए हैं। बहुत जगहों पर तो यह भी नारा गूंजा कि महतारी वंदन का पैसा बंद करो, मगर बिजली बिल हाफ बिल दो।
नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ने विधानसभा में सवाल उठाया था। कोयला हमारा, जमीन हमारी, फिर बिजली महंगी क्यों? वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज कह रहे हैं कि महिलाओं को दिए जा रहे एक हजार रुपये के बदले तीन गुना वसूली हो रही है।
सरकार इतना विरोध झेल कर भी खामोश क्यों है? दरअसल, केंद्र सरकार की रिवैमप्ट डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम यानि आरडीएसएस के तहत छत्तीसगढ़ को 40 प्रतिशत अंशदान देना पड़ रहा है। इस स्कीम का उद्देश्य ट्रांसफार्मर, बिजली तार जैसे सभी उपकरण ऐसे उन्नत होंगे जो लाइन लॉस को कम कर दे। इस योजना में भारी खर्च है। केंद्र की योजना है, राज्य को फंड देना है। हिस्सेदारी की पूर्ति के लिए ही राज्य को बिजली दरों में वृद्धि करनी पड़ी है। यह वह पहलू है जिसे सरकार खुलकर नहीं बता रही। सरकार सूर्य घर योजना को बढ़े दर का विकल्प बता रही है। उसकी जमीनी हालत क्या है, चर्चा का अलग विषय है।
आपको पता होना चाहिए कि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी का राजस्व घाटा वित्तीय वर्ष 2025-26 में लगभग 4,947 करोड़ रुपये आंका गया है, जबकि लाइन लॉस अभी भी 20 प्रतिशत है। यह देश के औसत लाइन लॉस 14 प्रतिशत से बहुत ऊपर है।
यह बात जरूर है कि कंपनी को बिजली दर बढ़ाने से बहुत लाभ हो रहा है, पर महतारी वंदन से इसका कोई संबंध नहीं। संबंध बिजली आपूर्ति व्यवस्था को आधुनिक करने से है। मगर, इस योजना में भी कंपनी के अफसर भ्रष्टाचार से बाज नहीं आ रहे हैं। ठेकेदारों से मिलीभगत कर घटिया सामानों की आपूर्ति करने वाले कई अफसर सस्पेंड हो चुके हैं, कई के खिलाफ विभागीय जांच हो रही है।
भर्ती कैलेंडर से शिक्षक गायब!
छत्तीसगढ़ व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) ने वर्ष 2026 के लिए भर्ती कैलेंडर जारी किया है। इसमें अप्रैल से दिसंबर 2026 के बीच लगभग 31 प्रकार की भर्तियों का विवरण है। लेकिन हैरानी हो सकती है कि शिक्षक भर्ती का इसमें कहीं जिक्र नहीं है।
कैलेंडर में प्री डीएलएड और प्री बीएड परीक्षाओं का भी उल्लेख है। यानी ऐसी परीक्षाएं, जिनके बाद ही शिक्षक बनने का रास्ता खुलता है। परंतु जो हजारों युवा पहले से ही डीएलएड और बीएड की डिग्री हासिल कर चुके हैं, उनके लिए इसमें कोई अवसर नहीं दिख रहा। यह उनके लिए बड़ा झटका है, जो भाजपा सरकार बनने के बाद से ही शिक्षक भर्ती की आस लगाए बैठे हैं।
विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने युवाओं और शिक्षा से जुड़ी दो बड़ी घोषणाएं की थीं।पहली, 57 हजार शिक्षकों की भर्ती और दूसरी, सीजीपीएससी में यूपीएससी जैसी पारदर्शिता। लेकिन चुनाव बीत जाते ही शिक्षकों की भर्ती का मुद्दा हाशिए पर चला गया।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने 33 हजार शिक्षकों की भर्ती का विज्ञापन शीघ्र जारी करने की घोषणा की थी। पर अब तक वह वादा अधूरा है। इधर युक्तियुक्तकरण के बाद हजारों पद घटा दिए गए हैं, फिर भी 30 हजार से अधिक पद खाली हैं।
अग्रवाल के सांसद बनने के बाद शिक्षा मंत्रालय महीनों तक खाली रहा। हाल ही में गजेंद्र यादव को यह जिम्मेदारी मिली। उन्होंने कहा कि 5500 शिक्षकों की भर्ती को वित्त विभाग से मंजूरी मिल चुकी है और विज्ञापन जल्द जारी किया जाएगा। इसके बावजूद व्यापम के इस कैलेंडर में इसका उल्लेख नहीं है।
यही हाल सहायक प्राध्यापक भर्ती का भी है। सीजीपीएससी ने अक्टूबर 2026 में एसईटी परीक्षा कराने की घोषणा की है, हजारों अभ्यर्थी पहले से एसईटी पास करके बैठे हैं। कई युवा तो दो तीन बार यह परीक्षा दे चुके हैं क्योंकि इसकी मान्यता कुछ वर्षों तक के लिए होती है। माना जा सकता है कि शिक्षक बनने का सपना देख रहे युवाओं के लिए यह कैलेंडर उम्मीद नहीं, बल्कि एक निराशा का ही नोटिफिकेशन है।
गुजरात से उठी सुगबुगाहट
गुजरात में पिछले 24 घंटे में जो राजनीतिक बदलाव हुए हैं, उसकी गूंज छत्तीसगढ़ में भी सुनाई दे रही है। गुजरात सरकार के सभी मंत्रियों ने अपने इस्तीफे सीएम भूपेन्द्र पटेल को सौंप दिए, और तीन साल के भीतर ही कैबिनेट का पुनर्गठन हो रहा है। गुजरात के घटनाक्रम से छत्तीसगढ़ भाजपा में भी हलचल है, और देर-सबेर साय कैबिनेट में फेरबदल की हवा उडऩे लगी है। भाजपा के वाट्सएप ग्रुप में इस पर बहस भी होने लगी है।
दिसंबर में सीएम विष्णुदेव साय के दो साल का कार्यकाल पूरा होगा। साय कैबिनेट में रामविचार नेताम, केदार कश्यप, और दयालदास बघेल ही पुराने चेहरे हैं। कई वरिष्ठ विधायक कैबिनेट में जगह पाने से रह गए। दो माह पहले तीन नए मंत्री शामिल किए गए। ये तीनों पहली बार के विधायक हैं। छह माह बाद यानी जून 2026 में सरकार का आधा कार्यकाल पूरा हो जाएगा। पार्टी के कुछ लोगों का कहना है कि ढाई साल पूरा होने के बाद मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा हो सकती है।
हालांकि कुछ माह पहले अंबिकापुर में पार्टी के चिंतन शिविर में सरकार के कामकाज की समीक्षा हुई थी। मगर मंत्रियों के अब तक के परफार्मेंस पर पार्टी हाईकमान की नजर रहेगी। यह भी कहा जा रहा है कि सीएम ने सभी मंत्रियों को एक तरह से फ्री हैंड दिया हुआ है।
सीएम नए मंत्रियों के कामकाज में भी हस्तक्षेप नहीं करते हैं। इन सबके बावजूद तीन मंत्रियों के खिलाफ शिकायत प्रदेश संगठन तक पहुंच चुकी है। कुछ शिकायतों की तो पार्टी संगठन ने अपने स्तर पर पड़ताल भी कराई है। ऐसे में पार्टी के अंदरखाने में चर्चा है कि छत्तीसगढ़ में भी गुजरात फार्मूला अपना जा सकता है।
पार्टी ने वर्ष-2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने प्रदेश के सभी सांसदों की टिकट काटकर नए चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा था। यह प्रयोग सफल भी रहा। अब जिस तरह गुजरात में कैबिनेट का पुनर्गठन हो रहा है, इस तरह का प्रयोग छत्तीसगढ़ में हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे भी भाजपा हाईकमान अपने फैसलों से स्थानीय नेताओं को चौंकाते रहा है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
जब अंगद ने रावण को सही में दौड़ाया ...
रायपुर से लगे एक गांव में स्थित एक निजी शिक्षण संस्था में बुधवार को आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान एक अलग ही दृष्य देखने को मिला। नन्हे बच्चों ने रामलीला का मंचन किया था रामलीला के अनुरूप इसमें कई छात्र व छात्राओं ने अपनी अलग-अलग भूमिका निभाई। रावण बने छात्र पर अंगद बना छात्र बिफर पड़ा। उसने मंच पर तो अपनी नाटकीय भूमिका सही निभाई । लेकिन मंचन के बाद सीता का अपहरण क्यों किया कह कर सही में मारने लगा । इस असली लड़ाई को देख वहां उपस्थित शिक्षकों ने दोनों को अलग किया और समझाया।
वर्दी ने सिखाया आस्था का सलीका
सोशल मीडिया पर एक ऐसा वीडियो वायरल है, जिसमें धर्म की आड़ में कानून को ललकारने की कोशिश को एक महिला पुलिस अधिकारी ने समझदारी और जवाबदेही से थाम लिया।
ग्वालियर में वकीलों का एक समूह सडक़ पर भंडारा करने के लिए तुले थे। डीएसपी हिना खान उन्हें रोकने के लिए पहुंचीं। कहा कि सडक़ पर आप ऐसा नहीं कर सकते। कानून के जानकार दोनों थे, वकील भी पुलिस भी। मगर यहां वकील समुदाय का एक समूह धार्मिक आयोजन के बहाने प्रशासनिक आदेश को चुनौती देने पर उतारू था। जैसे ही पुलिस ने उन्हें हटने कहा वे जय श्री राम के नारे लगाने लगे और डीएसपी को सनातन विरोधी बताने लगे। वीडियो में दिखाई पड़ता है कि डीएसपी बौखलाई तो है पर उसने टकराव नहीं चुना, संयम दिखाया। उन्हीं के भाषा में संवाद का रास्ता निकाला। उन्होंने हाथ ऊंचा कर करके उनसे भी तेज आवाज में जय श्री राम का उद्घोष करना शुरू कर दिया। फिर कहा- अब बोलो, क्या अब आप कानून व्यवस्था तोड़ेंगे? हिना खान इस विपरीत हालात में बताने की कोशिश कर रही थीं कानून का पालन करने वाला किसी भी धर्म का विरोधी नहीं होता, लेकिन धर्म के नाम पर अराजकता मंजूर नहीं है। आखिरकार वकील मान गए और चले गए। अगर हर जिले में ऐसे दो चार अफसर हों, तो धर्म बनाम कानून का यह झूठा द्वंद्व मिटाने में बड़ी मदद मिलेगी।
तबादले दिवाली बाद?
कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस के बाद प्रशासनिक फेरबदल की अटकलें लगाई जा रही है। लेकिन ताजा खबर यह है कि अब इसमें विलंब हो सकता है। फेरबदल अब दीवाली के बाद होने के आसार हैं।
प्रस्तावित फेरबदल को लेकर छनकर आई खबरों के मुताबिक आधा दर्जन कलेक्टरों को इधर-उधर किया जा सकता है। चार कलेक्टरों के खिलाफ तो सीधे तौर पर शिकायत है। इनमें से एक कोरबा कलेक्टर के खिलाफ पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर की शिकायत पर सरकार ने बिलासपुर कमिश्नर से रिपोर्ट मांगी है।
बिलासपुर कमिश्नर शिकायतों की बिंदुवार जांच करा रहे हैं। फिलहाल रिपोर्ट का इंतजार हो रहा है। इसी तरह पुलिस में भी बड़े फेरबदल के आसार है। इसकी बड़ी वजह यह है कि रायपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की जा रही है। यहां संभवत: एक नवंबर से पुलिस कमिश्नर की पोस्टिंग हो जाएगी।
सरकार रायपुर में ज्वाइंट और डिप्टी पुलिस कमिश्नर के पद पर एसपी या उससे ऊपर रैंक के अफसरों की पोस्टिंग करेगी। कुल मिलाकर चार अफसरों की पोस्टिंग होगी। ऐसे में कई आईपीएस अफसरों को इधर से उधर किया जाएगा। कॉन्फ्रेंस में सीएम ने चार जिलों में पुलिस की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जताई थी। गृहमंत्री ने भी अपनी बातें रखी थी। इन सबको देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि आईपीएस अफसरों के फेरबदल की सूची लंबी हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
200 रु में जिलाध्यक्ष के लिए जिंदाबाद

अब तक चुनावी सभाओं रैलियों के लिए भीड़ का जुगाड़ होता रहा है। दिहाड़ी मजदूरी देकर हजारों की भीड़ जुटाई जाने के न केवल आरोप प्रत्यारोप लगते रहे हैं बल्कि बातचीत में भीड़ भी स्वीकारती रही है। अब ऐसी ही भीड़ का संगठन चुनाव में भी इस्तेमाल होने लगा है। अब भीड़ को कारण से क्या मतलब उसे तो पैसे मिले बस। हां अभी चुनाव न होने से रेट अवश्य कम है।नारे तो जिंदाबाद के ही लगाने है। संगठन सृजन के ताजा अभियान में ऐसा ही एक वाकया सुनने में आया है। रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनने एक व्यवसायी वर्ग के दावेदार ने अपनी दावेदारी के लिए तिल्दा में आब्जर्वर के सामने भीड़ भेजी।आब्जर्वर भी खाटी कांग्रेसी हैं,एक एक के बात करने की बात करके इन लोगों से पूछा ,क्यों आए हो? लोगों ने बताया कि नहीं मालूम ,हमको तो 200रु देकर लाया गया।अब दावेदार मुंह छुपाए घूम रहे हे।धन तो गया ही अब दावेदारी भी गई।
इंतजार की घडिय़ाँ
सीएस अमिताभ जैन के रिटायर होने के बाद उनका पुनर्वास नहीं हुआ है। आईएएस के 89 बैच के अफसर अमिताभ जैन प्रदेश में सबसे ज्यादा समय तक सीएस के पद पर रहे हैं। अमिताभ जैन के पास राज्य योजना आयोग के वाइस चेयरमैन का भी प्रभार था। जैन ने सीआईसी के लिए भी इंटरव्यू दिया था। मगर रिटायरमेंट के बाद उन्हें कोई दायित्व नहीं सौंपा गया है। पहले यह चर्चा थी कि सीएस पद से हटने के बाद योजना आयोग के पद पर बने रहेंगे। लेकिन इसको लेकर कोई आदेश नहीं निकला। सीआईसी की नियुक्ति का मामला भी अभी रूका हुआ है। इन सबके बीच राज्य विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन पद को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही है। इसके लिए विज्ञापन जारी होना है। और इसके लिए भी अमिताभ जैन का नाम चर्चा में है। अमिताभ जैन से पहले जितने भी मुख्य सचिव हुए हैं, उनमें से आर.पी.बगई को छोडक़र बाकी का पुनर्वास हो ही गया था। ऐसे में अमिताभ जैन का भी पुनर्वास हो जाएगा, इसको लेकर संदेह नहीं है। मगर जैन को थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है।
शिफ्टिंग वास्तु पूजा के बाद
पीएम नरेंद्र मोदी राज्य स्थापना दिवस के मौके पर नए विधानसभा भवन का लोकार्पण करेंगे। नवा रायपुर के सेक्टर-14 में करीब 52 एकड़ क्षेत्र में फैले नए विधानसभा भवन के निर्माण पर सवा तीन सौ करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। उद्घाटन समारोह तो भव्य रूप देने की तैयारी चल रही है। बावजूद इसके अभी शिफ्टिंग नहीं होगी। इसकी प्रमुख वजह वास्तु पूजा बताई जा रही है।
विधानसभा सचिवालय ने तो उद्घाटन समारोह से पहले शिफ्टिंग की तैयारी शुरू कर दी थी, लेकिन फिलहाल इसमें ब्रेक लग गया है। सरकार, और भाजपा के रणनीतिकार चाहते हैं कि नए विधानसभा का पूरे विधि विधान से वास्तु पूजा हो जाए, इसके बाद ही शिफ्टिंग हो। चर्चा है कि स्पीकर डॉ. रमन सिंह भी इसके लिए सहमत हो गए हैं। राज्योत्सव निपटने के बाद उपयुक्त मुहूर्त में वास्तु पूजा होगी, और फिर शिफ्टिंग की प्रक्रिया शुरू होगी। वैसे भी विधानसभा का शीतकालीन सत्र दिसंबर के तीसरे सप्ताह में है।
गौरतलब है कि नए भाजपा कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में वास्तु दोष की वजह से कई बार कुछ निर्माण कार्यों को हटाया गया था। मुख्य द्वार को बदला गया। सब कुछ ठीक होने के बाद ही यहां पार्टी की बैठकें होने लगी। इस पूरी प्रक्रिया में लंबा वक्त लगा था। नए विधानसभा भवन में ऐसी स्थिति निर्मित न हो, इसके लिए पंडितों से सलाह मशविरा चल रहा है।
हाईब्रिड के दौर में देसी फल गायब

आधुनिक कृषि विज्ञान ने उत्पादन बढ़ाने के नाम पर फलों की आत्मा छीन ली है। स्वाद, खुशबू और विविधता की जगह एकरूपता ने ले ली है। अब हर अमरूद एक जैसा दिखता है, हर सेब चमकदार है, हर पपीता मानो मशीन से सांचे में ढलकर निकला हो। किसान को भी मजबूरी है। पारंपरिक खेती में श्रम अधिक और मुनाफा कम, जबकि हाईब्रिड किस्मों में उत्पादन ज्यादा और बाजार तत्काल मिल जाता है। पर छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए यह आसान नहीं होता कि वह पारंपरिक खेती से उत्पादन घटने के बाद आधुनिक खेती को अपना ले। बिही को ही लीजिए। छत्तीसगढ़ में तखतपुर ऐसा कस्बा है, जहां की बिही छत्तीसगढ़ में ही दूसरे राज्यों में भेजी जाती थी। यूपी, मध्यप्रदेश के व्यापारी फल तैयार होने के पहले ही सारे पेड़ों का सौदा कर लेते थे। बिही के बगीचे मनियारी नदी के किनारे होते थे। अब बहुत कम बचे हैं। अब तखतपुर में ही हाईब्रिड किस्म के बिही बिकने लगे हैं। यहां का बिही रायपुर के बाजार में भी एक समय बिकता था। कोचिया आवाज लगाता था- तखतपुर के बिही ले लो...। अब बिही नहीं हाईब्रिड अमरूद आपको मिलेंगे। पर वह शास्त्री मार्केट, टूरी हटरी में नहीं, सुपर मार्केट या मॉल में अच्छी पैकिंग के साथ। अब तो विदेशों से आयातित बिही ऑनलाइन मिल रहे हैं। ताईवान की बिही आप अमेजॉन से मंगा सकते हैं।
छत्तीसगढ़ का बिहार कनेक्शन
बिहार विधानसभा चुनाव के नामांकन दाखिले की प्रक्रिया शुरू हो गई है। यहां प्रदेश के भाजपा, और कांग्रेस के नेता प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभा रहे हैं। भाजपा के क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल को 35 विधानसभा के चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई है। जामवाल ने बिहार में डेरा डाल दिया है, और वो चुनाव निपटने के बाद ही रायपुर आएंगे। जामवाल के साथ-साथ सांसद बृजमोहन अग्रवाल, और सरकार के आधा दर्जन मंत्री व संगठन के पदाधिकारियों को भी पार्टी प्रत्याशियों के प्रचार में आज से जा रहे हैं।
प्रदेश भाजपा के प्रभारी, और बिहार सरकार के मंत्री नितिन नबीन भी पटना जिले के बांकीपुर विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे हैं। नबीन के प्रचार के लिए नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव, और हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन अनुराग सिंहदेव सहित कई नेता भी प्रचार के लिए जाने वाले हैं। सरगुजा के विधायकों को भी प्रचार के लिए बिहार भेजा जा रहा है।
दूसरी तरफ, कांग्रेस से पूर्व सीएम भूपेश बघेल को तो हाईकमान ने पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। उनका प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव प्रबंधन तक अहम रोल है। इसके अलावा भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव को भी चुनाव में अहम जिम्मेदारी दी गई है। देवेन्द्र पिछले कई महीनों से एआईसीसी के प्रतिनिधि के रूप में बिहार में काम कर रहे हैं। कांग्रेस-भाजपा नेता वहां अपने दल के लिए कितने उपयोगी साबित हो पाते हैं, यह देखना है।
कलेक्टर के कंधे पर झाड़ू का बोझ
जिले के प्रशासनिक प्रमुख होने के नाते कलेक्टर राजस्व प्रशासन के सर्वोच्च अधिकारी होते हैं, सामान्य प्रशासन के भी प्रमुख होते हैं, न्यायिक अधिकारी के रूप में भी काम करते हैं। जिले में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं। विकास कार्यों का ठीक तरह से संचालन हो, केंद्र और राज्य सरकार की परियोजनाओं, महत्वाकांक्षी योजनाओं का संचालन सही तरीके से हो, इसकी भी जिम्मेदारी कलेक्टर की होती है। भूमि, खनिज, वाणिज्य कर और दूसरी तरह की राजस्व वसूली सुनिश्चित करना भी उनका काम है। राजस्व के विवादों को निपटाना उनका काम होता है। बाढ़, भूकंप, सूखे के हालात पैदा हो तो आपदा प्रबंधन भी करना होता है। आम तौर पर कलेक्टर करीब 54 विभागों के प्रभारी या फिर अध्यक्ष होते हैं। जिन विभागों के अलग-अलग प्रमुख जैसे एसपी, जिला पंचायत सीईओ, नगर निगम कमिश्नर आदि होते हैं, उन पर भी नियंत्रण कलेक्टर का ही होता है।
बस, इसी बात की व्याख्या वीरेंद्र पांडेय ने सोशल मीडिया पर कुछ अलग तरह से की है। लिखा है- इस धरती में एक प्राणी कलेक्टर है। उस पर बोझ लादते जाओ वह उफ्फ तक नहीं करता। भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में हर काम की गठरी कलेक्टर पर लाद दी जाती है। कलेक्टर की पीठ पर वैसे ही सैकड़ों काम का बोझ है। अब छत्तीसगढ़ सरकार ने उसके कांधे पर सफाई की झाड़ू भी रख दी। कहा-अब कलेक्टर का दिन सात बजे सुबह शुरू होगा, वार्ड भ्रमण से। देखना होगा सडक़ की धूल झाड़ ली गई। नालियां बजबजा तो नहीं रही। सारे सफाई कर्मी काम पर मुस्तैद हैं कि नहीं। सरकार ने यह तो बता दिया कि दिन सात बजे शुरू होगा, नहीं बताया काम खत्म कब करना है। जिस जिले में कई नगरीय संस्थान हैं वहां क्या कलेक्टर की तादाद बढ़ाई जाएगी? महापौर और पार्षद क्यों चुने जाते हैं? आईएएस आयुक्त और जोन कमिश्नर को करोड़ों रुपए की तनख्वाह क्यों दी जाती है? तुगलकी फरमान है। ये नौकर वैसे ही एक दिन का काम तीन दिन में करते हैं।अब नए बोझ के बाद भगवान ही मालिक है, जनता का।
क्या आप पांडेय जी की बात से सहमत हैं?
स्टडी मटेरियल बना ट्रिपल आईटी छात्र

कहा जाता है कि घर मोहल्ले समाज में घटने वाली घटनाएं फिल्मों और शैक्षणिक सत्र में उदाहरण, प्रदर्शन का माध्यम बन जाती है। वर्तमान तकनीक के दौर में इन घटनाओं का उपयोग बढ़ रहा है। चैट जीपीटी, एआई टूल जैसी तकनीक का उपयोग जहां सुविधाजनक हो गया है वहीं इसका दुरूपयोग को भी उतनी ही रफ्तार मिली हुई है। इसी दुरूपयोग की वजह से नवा रायपुर का एक छात्र जेल की सीखचों के पीछे जा पहुंचा है वहीं अब वह अपने ही संस्थान में स्टडी मटेरियल हो गया है। तकनीक के नेगेटिव और पॉजिटिव पक्ष को प्रस्तुत करते हुए उसके अपने ही प्रोफेसर उसका उदाहरण देकर बता रहे हैं। हाल के दिनों में ट्रिपल आईटी में मंत्रालय के 900 से अधिक अधिकारी कर्मचारियों को एआई टूल के इस्तेमाल पर ट्रेनिंग दी जा रही है। यह ट्रेनिंग सुशासन अभिसरण विभाग के द्वारा कराई जा रही है। सोमवार को एक सत्र में आईटी विशेषज्ञ ने एआई टूल के प्रशासनिक कामकाज में इस्तेमाल कितना लाभकारी और उसका दायरा विषय पर लेक्चर दिया। इसके बाद प्रशिक्षणार्थियों को संस्थान के कंप्यूटर लैब में प्रैक्टिकल भी देना था। लेक्चर में प्रोफेसर साहब ने अपने छात्र के एआई के दुरूपयोग से सहपाठी 36 छात्राओं की न्यूड तस्वीरें बनाने के घटनाक्रम को बताया। ऐसे दुरूपयोग को सौभाग्य से खोजे गए एआई को दुर्भाग्य भी बताया।
कड़ी मेहनत के लिए कमर कस लें

दो दिन के कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस का समापन सीएम विष्णुदेव साय ने सुशासन संवाद से किया। इस दौरान उन्होंने सरकारी कामकाज में लेटलतीफी, लालफीताशाही खत्म करने पर जोर दिया। उन्होंने इस साल के पहले दिन से 10 बजे मंत्रालय, जिला कार्यालय में कामकाज शुरू करने को लेकर दिए निर्देशों की सफलता को भी रखा। एक अप्रैल से ई आफिस सिस्टम से बढ़ी पब्लिक डिलीवरी सिस्टम पर भी पीठ थपथपाई। इस सुशासन संवाद में नए मुख्य सचिव विकासशील ने अपने दिल्ली और मनीला (फिलीपींस) में कामकाज के अनुभव रखे। वैसे विकासशील, छत्तीसगढ़ में अपने पिछले कार्यकाल में भी उन अफसरों में गिने जाते रहे हैं जो समय पर दफ्तर पहुंचते रहे।
उन्होंने कहा कि ब्यूरोक्रेसी को ट्रांसफॉर्म करने का समय आ गया है। नई कार्य संस्कृति और तकनीक को अपनाए बिना सुशासन संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि जनता में विश्वास बढ़ाना है, तो उच्चाधिकारियों को खुद उदाहरण प्रस्तुत करना होगा। उन्होंने कहा कि जब हम स्वयं समय पर दफ्तर पहुंचेंगे, तभी नीचे तक अनुशासन की संस्कृति बनेगी। कर्मचारी बता रहे कि विकासशील सुबह 9 बजे दफ्तर पहुंचकर रात 9 बजे ही बंगले लौट रहे हैं। उनकी टाइमिंग, उन अफसरों के लिए चुनौती होगी जो अपने मंत्रियों की आवाजाही के आधार पर अपनी घड़ी का कांटा सेट करते रहे हैं। ऐसे में किसी दिन सीएस की चेकिंग असहज स्थिति न खड़ी कर दे।
बारहसिंघा के कितने सींग?

कान्हा नेशनल पार्क में खींची गई इस तस्वीर के बारे में सोशल मीडिया पर एक पाठक ने प्रतिक्रिया दी कि जब भी उसने सींगों को गिनने की कोशिश की, 12 नहीं मिले। पोस्ट वन्यजीव प्रेमी पत्रकार प्राण चड्ढा की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सींग 12 ही होते हैं, आप उनकी शाखाओं को गिनिए। सिर से कितने निकले हैं, उनको नहीं। वैसे मुद्दे की बात यह है कि कान्हा का बारहसिंघा विशेष है। इसने परिस्थितियों के अनुकूल इसने अपने खुरों को विकसित किया है। इसके चलते यह सख्त भूमि पर दौड़ सकता है। वरना यह दलदली भूमि का जीव है। कान्हा में इनकी संख्या कम होने लगी थी लेकिन पार्क प्रबंधन ने प्रयास किया तो अब यह लुप्त होने के खतरे से बाहर है।
रसूख का नशा और सडक़ पर तमाशा
नेता हों या अफसर, उनके निजी सहायकों या रिश्तेदारों की ताकत हर किसी को पता होती है। आम लोग जब ऊपर तक नहीं पहुंच पाते, तो वे उनके राजदार सहायकों के ही जरिये काम निकलवाते हैं। बहुत से लोग अपनी हैसियत छुपाकर रखते हैं, लेकिन ताकत की एक दिक्कत है, छिपती नहीं। कभी-कभी खुद-ब-खुद सार्वजनिक हो जाती है और नियम-कानून सडक़ पर रौंद दिए जाते हैं।
पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई नजारे देखने मिले हैं। बीते जून में बलरामपुर के एक डीएसपी की पत्नी ने नीली बत्ती वाली कार की बोनट पर बैठकर रील्स बनाई और जन्मदिन मनाया। इससे पहले मार्च में रायपुर की मेयर के बेटे ने दोस्तों संग सडक़ रोककर केक काटा। अब चिरमिरी में स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के विशेष सहायक और भाजपा नेता राजेंद्र दास ने अपनी पत्नी के साथ सडक़ पर आतिशबाज़ी कर बर्थडे मनाया और खुद ही उसका वीडियो इंस्टाग्राम पर डाल दिया।
शायद उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि वीडियो वायरल होते ही बवाल खड़ा हो जाएगा। कांग्रेस ने थाने में शिकायत कर दी और पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी पड़ी। दरअसल हाईकोर्ट पहले ही ऐसी हरकतों पर नाराजगी जता चुका है, इसीलिए पुलिस भी मजबूर हो जाती है कार्रवाई करने को।
मगर सच्चाई यह है कि ये कार्रवाई सिर्फ दिखावे की होती हैं। बलरामपुर की तरह चिरमिरी में भी जश्न मनाने वाले पर नहीं, बल्कि कार के ड्राइवर के ऊपर ही एफआईआर दर्ज हुआ। पुलिस की पड़ताल इतनी कमजोर है कि उसे उस ड्राइवर का नाम भी नहीं मालूम, एफआईआर से गायब है। इन मामलों में धाराएं इतनी हल्की लगाई जाती हैं कि 2500 रुपये जुर्माना देकर छूट मिल जाती है।
रायपुर में मेयर के बेटे के मामले में अवश्य पुलिस ने पांच लोगों को हिरासत में लिया था क्योंकि मामला राजधानी का था और हाईकोर्ट की नजर में भी आ चुका था। लेकिन इससे पहले जब कांग्रेस से जुड़े 10-12 लोगों को ऐसी ही हरकत पर पकड़ा गया था तो उन्हें एक रात हवालात में रहना पड़ा था। निचोड़ यह है कि रसूख जब सिर चढ़ता है तो सडक़ में जश्न मनाने पर कानून टूटने के भय की कोई जगह नहीं होती है।
महिला पर्यवेक्षक की दो टूक
कांग्रेस में जिला अध्यक्षों के चयन के लिए रायशुमारी की प्रक्रिया अंतिम चरण में हैं। ज्यादातर जिलों में तो एआईसीसी की गाइडलाइन धरी की धरी रह गई, और कई जगहों पर दावेदारों ने केन्द्रीय पर्यवेक्षकों के आगे शक्ति प्रदर्शन किया है। अलबत्ता, कुछ पर्यवेक्षक जरूर ऐसे हैं, जो गाइडलाइन का सख्ती से पालन कर रहे हैं। इन पर्यवेक्षकों के तेवर देखकर दावेदार भी सकते में आ गए हैं।
एआईसीसी ने राजस्थान की एक महिला नेत्री को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा है। महिला नेत्री को तीन जिलों की जिम्मेदारी दी गई है। महिला नेत्री तो सहयोगी पर्यवेक्षक प्रदेश के पूर्व मंत्री की गाड़ी में बैठने से मना कर दिया। वो खुद ऑटो में अलग-अलग ब्लॉकों में जाकर रायशुमारी कर रही हैं। इतना ही नहीं, महिला पर्यवेक्षक ने एक पूर्व विधायक का आवेदन लेने से मना कर दिया। आर्थिक रूप से बेहद सक्षम पूर्व विधायक जिलाध्यक्ष के लिए दावेदारी कर रहे हैं। मगर महिला पर्यवेक्षक के आगे उनकी एक नहीं चल पा रही है। महिला पर्यवेक्षक ने पूर्व विधायक से साफ तौर पर कह दिया कि उनकी उम्र ज्यादा हो चुकी है, और वो जिलाध्यक्ष के लिए फिट नहीं बैठते हैं।
बताते हैं कि पूर्व विधायक ने प्रदेश के शीर्ष नेताओं से संपर्क किया, और फिर बात प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट तक पहुंची। प्रदेश प्रभारी ने महिला पर्यवेक्षक से पूर्व विधायक का आवेदन लेने के लिए कह दिया। महिला पर्यवेक्षक ने प्रदेश प्रभारी की बात नहीं टाल सकीं, लेकिन उनसे साफ तौर पर कह दिया कि वो आवेदन तो ले रही हैं, लेकिन एआईसीसी में जमा नहीं करेंगी। एक-दो और पर्यवेक्षक भी महिला पर्यवेक्षक की तरह पारदर्शी तरीके से काम कर रहे हैं। इन सबके चलते दिग्गज नेता भी सशंकित हैं। अब पर्यवेक्षकों की राय को कितना महत्व मिलता है, यह देखना है। मगर महिला पर्यवेक्षक के तेवर की पार्टी के अंदरखाने में काफी चर्चा हो रही है।
पेड़ के लिए मां का विलाप
देओला बाई ने बीस साल पहले अपने हाथों से पीपल का एक पौधा लगाया था। अब यह एक विशाल पेड़ हो चुका था किसी कारोबारी ने कटवा दिया। पेड़ के कट जाने पर देओला ऐसे बिलखने लगी, जैसे कोई अपना सगा छिन गया हो। यह चीख सिर्फ एक पेड़ की वजह से नहीं निकल रही है, बल्कि हमारी उस संवेदना के लिए है जिसे विकास के लिए धीरे-धीरे कुंद किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ की विडंबना है कि आदिवासियों और ग्रामीणों ने सदियों से जंगलों को मां समझकर बचाया, आज वही लोग पेड़ों के लिए न्याय मांगते भटक रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ के सर्रागोंदी गांव में पीपल पर हुए अत्याचार का यह बुजुर्ग महिला महसूस कर रही है। शायद हमें आपको भी इस तस्वीर को देखने से थोड़ी तकलीफ महूसस हो। देओला बाई का यह विलाप बताता है कि गांवों में पेड़ केवल ऑक्सीजन देने वाली मशीन नहीं, बल्कि उनके परिवार के सदस्य की तरह होते हैं।
पर्चियों का दौर
बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पं धीरेन्द्र शास्त्री चार दिनों के प्रवास के बाद रायपुर से विदा हो चुके हैं। मगर उनके दरबार में हुए शंका-समाधानों पर अब भी बात हो रही है। पं शास्त्री दरबार में पर्ची लिखकर भूत, भविष्य, और वर्तमान बता कर लोगों चौंकाते रहे हैं। इस पूरे आयोजन में जमीन कारोबारी बसंत अग्रवाल की भूमिका अहम रही है।
बसंत अग्रवाल अवैध प्लाटिंग, और कई अन्य आरोप घिरे हैं। बसंत के खिलाफ आरोपों को फेसबुक पर साझा कर कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह ने चुटकी ली कि बागेश्वर बाबा इसकी पर्ची कब निकालेंगे?
पं शास्त्री ने बसंत अग्रवाल की पर्ची निकाली है या नहीं, यह तो पता नहीं। लेकिन ईओडब्ल्यू-एसीबी ने आरपी सिंह की पर्ची जरूर निकाल दी है। कोल स्कैम केस में आरपी सिंह का नाम भी सामने आया है। करीब दो साल पहले ईडी ने उनके यहां रेड की थी। कोल स्कैम के 1 करोड़ 13 लाख की राशि आरपी सिंह से जोड़ा गया है।
हालांकि आरपी सिंह कोल कारोबार से किसी तरह से जुड़े नहीं थे, लेकिन कई ऐसे लोगों के नाम हैं, जो कोल स्कैम के हितग्राहियों में रहे हैं। जांच एजेंसी ने लेनदेन के वाट्सएप चैट साक्ष्य के रूप में अपने पूरक चालान में पेश किए हैं। इसमें कितना दम है, ये तो अदालत के फैसले के बाद ही साबित हो पाएगा, लेेकिन आरपी सिंह के ‘पर्ची’ की काफी चर्चा हो रही है।
भारतमाला और भ्रष्टाचारमाला
रायपुर-विशाखापटनम भारतमाला परियोजना का निर्माण अंतिम चरण में है। इस परियोजना के पूरा होने पर रायपुर से विशाखापटनम के बीच की दूरी करीब 126 किमी कम हो जाएगी, और यात्रा का समय भी कम होकर 6 से 7 घंटे रह जाएगा। खास बात ये है कि यहां एक सिक्स लेन टनल बनाया जा रहा है, जो कि पूर्ण हो चुका है। यह छत्तीसगढ़ की पहली टनल है, और करीब पौने तीन किमी की यह टनल कांकेर के आखिरी गांव से शुरू होकर कोंडागांव जिले में निकलती है। इतनी बेहतर परियोजना होते हुए भी जमीन मुआवजा घोटाले को लेकर ज्यादा चर्चा हो रही है, और इससे केन्द्र सरकार काफी खफा हैं।
बताते हैं कि इस परियोजना में घोटाले की कई शिकायत हुई है, और इससे केन्द्रीय सडक़-परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को भी प्रदेश के कई नेताओं ने अवगत कराया है। ईओडब्ल्यू-एसीबी प्रकरण की जांच कर रही है, और चर्चा है कि जांच से एनएचएआई (राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण) संतुष्ट नहीं है। वजह यह है कि एनएचएआई के तीन अधिकारियों की घोटाले में संलिप्तता बताई गई है। जांच एजेंसी ने कार्रवाई की अनुमति के लिए केंद्र को पत्र भी लिखा है। जिन जमीन कारोबारियों पर घोटाले के आरोप थे, वो सभी जमानत पर रिहा चुके हैं। राज्य सरकार प्रशासनिक जांच भी करा रही है, जिसमें ज्यादा दम नहीं दिख रहा है।
ईओडब्ल्यू-एसीबी सोमवार को प्रकरण 10 हजार पन्ने का चालान पेश करने जा रही है। इन सबके बावजूद जांच में अब केंद्र की एजेंसी की एंट्री हो सकती है। शिकायतकर्ताओं का मानना है कि प्रदेश के कई ताकतवर लोग इसमें संलिप्त हैं। ऐसे में निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई को सौंपा जाना चाहिए। देखना है केन्द्र सरकार इस मसले पर आगे क्या कुछ करती है।
डिजिटल संकट में सेफ्टी का संकट
कुछ दुस्साहसी पुलिस जवान रिश्वत की नकद नहीं होने का बहाना किए जाने पर ऑनलाइन पेमेंट करने का दबाव बनाते हैं। इस डिजिटल रिश्वत में जोखिम ज्यादा है, क्योंकि ट्रांजैक्शन का सबूत सीधे मोबाइल में दर्ज हो जाता है। कुछ जवान ये रकम अपने किसी नजदीकी के खाते में ट्रांसफर करवाते हैं ताकि नाम सामने न आए।
ज्यादातर पीडि़त लोग शिकायत नहीं करते, और यह कारोबार चुपचाप चलता रहता है। लेकिन जब कोई पीडि़त हद से ज्यादा त्रस्त हो जाए या बदला लेने का मन बना ले, तभी मामला खुलता है। भिलाई के एक ट्रैफिक जवान को दुर्ग एसपी ने सेवा से बर्खास्त कर दिया। आरोप था कि वह खुलेआम वाहन चालकों से ऑनलाइन वसूली करता था। डिजिटल सबूत मिले और नौकरी गई।
इसी तरह बिलासपुर के सीपत थाने में एक एएसआई और सिपाही को निलंबित किया गया है। आरोप है कि एएसआई ने एनटीपीसी के एक कर्मचारी से 50 हजार रुपये वसूले। कर्मचारी ने दबाव और धमकी से त्रस्त होकर जहर खा लिया, तब मामला खुला। जांच में पता चला कि थाने में यह खेल औरों तक फैला हुआ है। एक अन्य व्यक्ति ने 22 हजार रुपये की ऑनलाइन पावती के साथ एसएसपी से शिकायत की। नतीजा, एएसआई और आरक्षक दोनों सस्पेंड हुए।
विडंबना यह है कि जहां भिलाई में एसपी ने भ्रष्ट ट्रैफिक जवान को बर्खास्त किया, वहीं बिलासपुर में केवल निलंबन की खानापूर्ति की गई। जब रिश्वत लेने के पक्के सबूत हैं, तो भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत कार्रवाई क्यों नहीं? निलंबित कर्मचारी अक्सर कुछ महीनों बाद बहाल हो जाते हैं, और उनका खेल फिर शुरू हो जाता है। सेवा से बर्खास्तगी के बाद लड़ाई कई बार लंबी हो जाती है, पर देर सबेर फिर आमद मिलने में सफलता मिल जाती है। असलियत यह है कि नीचे से ऊपर तक वसूली का हिस्सा बंटता है। ऊपर के स्तर तक ईमानदारी से हिस्सा पहुंचाने की परंपरा ने इस तंत्र को सुरक्षित कवच दे रखा है। जब कभी शोर उठता है या मीडिया में खबर फैलती है, तो छवि बचाने के लिए कुछ बलि के बकरे बना दिए जाते हैं। यकीन है, देर सबेरे पुलिस जवान इस डिजिटल पेमेंट का तोड़ निकाल ही लेंगे और इसका रास्ता भी उन्हें अनुभवी साहब लोग ही बताएंगे।
कांग्रेस में चुनावी जिंदादिली

वैसे तो कांग्रेस हाईकमान जिलाध्यक्ष के चयन के लिए पर्यवेक्षक भेजकर रायशुमारी करा रही है ताकि निचले स्तर के कार्यकर्ताओं की बात शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचे, और सक्रिय जमीनी कार्यकर्ता को अध्यक्ष नियुक्त किया जा सके। यह भी दावा किया गया कि बड़े नेताओं की सिफारिशों को महत्व नहीं दिया जाएगा। मगर जैसे-जैसे चयन प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, पार्टी के ही कई नेताओं को हाईकमान के दावे पर शंका होने लगी है।
मसलन, रायपुर शहर और ग्रामीण जिलाध्यक्ष के चयन के लिए हाईकमान ने नागपुर के नेता प्रफुल्ल गुदाधे को पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। गुदाधे पिछले दो दिनों से जिले के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं से रूबरू हो रहे हैं। शुक्रवार को एक बैठक में जिलाध्यक्ष के नाम पर रायशुमारी कर रहे थे, तभी एक कार्यकर्ता ने उन्हें टोक दिया, और पूछ लिया कि आप हमारे सुझाव को नोट नहीं कर रहे हैं, ऐसे में पैनल कैसे बना पाएंगे। इस पर गुदाधे ने उन्हें जवाब दिया कि वो हर किसी की बात सुन रहे हैं, और उनके दिमाग में हर बात नोट हो रही है। हालांकि बाद की बैठकों में गुदाधे डायरी लेकर हाजिर हुए, और सुझावों को नोट करते नजर आए।
इन सबके बीच पार्टी के एक सीनियर कार्यकर्ता ने जिलाध्यक्ष के चयन पर सवाल खड़े किए। उन्होंने केन्द्रीय पर्यवेक्षक से कहा कि आप लोग जिलाध्यक्ष का चयन कर रहे हैं उससे पहले ब्लॉक अध्यक्ष की नियुक्ति कर दी गई है। ऐसे में नए जिलाध्यक्ष को ताकत कैसे मिलेगी, ब्लॉक के पदाधिकारी जिलाध्यक्ष की क्यों सुनेंगे? गुदाधे ने उनकी बात पर सहमति जताई, और कहा कि वो इस बात को पार्टी हाईकमान के समक्ष रखेंगे।
दूसरी तरफ, प्रदेश के बड़े नेता अपनी पसंद का जिलाध्यक्ष बनवाने के लिए अपने करीबियों के माध्यम से लॉबिंग कर रहे हैं। ये लोग कार्यकर्ताओं से अपनी पसंद का नाम अध्यक्ष के लिए दे रहे हैं। ऐसे में दावा किया जा रहा है कि ज्यादातर जिलों में बड़े नेताओं की पसंद से ही अध्यक्ष की नियुक्ति की जाएगी। इन दावों में कितना दम है, यह तो जिलाध्यक्षों की सूची जारी होने के बाद ही पता चलेगा।
जूता प्रकरण पर पोस्ट का दूसरा सिरा...
सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने की घटना की जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कड़ी भर्त्सना की, तभी भाजपा कार्यकर्ताओं को यह स्पष्ट हो गया था कि उन्हें इस मामले क्या स्टैंड लेना है। यह अलग बात है कि सोशल मीडिया पर भाजपा, सनातन और हिंदुत्ववादी विचारधारा से जुड़े अनेक लोगों ने उस जूता फेंकने वाले वकील की सराहना करते हुए पोस्ट डाले हैं और सीजेआई को हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करने वाला व्यक्ति बताया है।
ऐसे माहौल में जब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के सरकारी वकील सतीश गुप्ता की एक पोस्ट को साझा करते हुए एक्स हैंडल पर प्रतिक्रिया दी, तो वह तुरंत सुर्खियों में आ गई। दरअसल, बघेल की पोस्ट के बाद ही अधिकांश लोगों को यह पता चला कि हाईकोर्ट के किसी वकील ने इस प्रकरण पर कुछ लिखा है। बघेल की वही पोस्ट अब सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा की जा रही है।
हालांकि, बघेल की पोस्ट से यह स्पष्ट नहीं होता कि गुप्ता ने यह टिप्पणी किस प्लेटफॉर्म पर की। एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम या किसी अन्य मंच पर। वास्तव में यह पोस्ट अधिवक्ताओं के एक निजी व्हाट्सऐप ग्रुप में डाली गई थी। बघेल उस ग्रुप में तो हैं नहीं, इसलिये अनुमान है कि बघेल के किसी समर्थक या शुभचिंतक ने यह पोस्ट उन्हें भेजी, जिसके बाद बघेल ने उसे साझा कर दिया और मामला चर्चा में आ गया।
पोस्ट के बाद जब विवाद बढ़ा, तो सतीश गुप्ता ने भी एक वीडियो जारी कर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि बघेल उनके परिवार का विरोध करते रहे हैं। बघेल की वजह से ही उनके पिता (राधा कृष्ण गुप्ता) को मार्कफेड अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था और उस सदमे में उनकी मृत्यु हो गई। जिस पोस्ट की बात की जा रही है, वह वास्तव में एक फॉरवर्डेड मैसेज था, जिसे उन्होंने वकीलों के ग्रुप में इस टिप्पणी के साथ साझा किया था कि हमारे संगठन को इस घटना की निंदा करनी चाहिए। गुप्ता का कहना है कि बघेल ने पोस्ट को क्रॉप कर उस हिस्से को हटा दिया, जिसमें निंदा का उल्लेख था।
सवाल उठ सकता है कि जब यह एक निजी समूह की पोस्ट थी, तो उसे उस ग्रुप से बाहर के व्यक्ति को सार्वजनिक करना चाहिए या नहीं। ग्रुप से जुड़े कुछ सदस्यों का कहना जरूर है कि विवाद बढऩे के बाद वह पोस्ट हटा दी गई है, जबकि कुछ का यह भी कहना है कि गुप्ता ने पोस्ट तो डाली थी, पर निंदा की थी या नहीं, यह मालूम नहीं।
अब उस पुराने प्रकरण पर नजर डालें, जिसका जिक्र करते हुए बघेल पर आरोप लगाया गया है। गुप्ता के पिता स्व. राधा कृष्ण गुप्ता को छह साल पहले मार्कफेड अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था। उनकी नियुक्ति डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में हुई थी। जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, तो कई निगम-मंडलों के अध्यक्षों ने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया, कुछ को पद छोडऩे के लिए विवश किया गया।
इसी दौरान प्रेमनगर (सरगुजा) की अटेम विपणन समिति पर अनियमितताओं का आरोप लगा और उसे लिक्विडेशन में भेज दिया गया। उप पंजीयक ने जांच में पाया था कि समिति ने आठ लाख रुपये की लागत से गोदाम नियमों के विरुद्ध बनवाया था। चूंकि राधा कृष्ण गुप्ता इसी समिति से प्रतिनिधि चुने गए थे, समिति के भंग होते ही उनकी सदस्यता समाप्त हो गई और परिणामस्वरूप मार्कफेड अध्यक्ष का पद भी छिन गया।
डॉ. रमन सिंह के लंबे समय तक निजी सहायक रहे ओमप्रकाश गुप्ता, सतीश गुप्ता के निकट संबंधी बताए जाते हैं। ओमप्रकाश गुप्ता कुछ अलग कारणों से भी चर्चा में रहे हैं।
सतीश गुप्ता पहली बार सरकारी वकील नहीं बने हैं। वे कांग्रेस शासन को छोडक़र लगभग लगातार इस पद पर हैं। इस आधार पर माना जा सकता है कि उन्होंने जो भी टिप्पणी अपने ग्रुप में की, वह सचेत रूप से और सोच-समझकर की होगी, और जो प्रतिक्रिया वीडियो में दी है- वह भी खरी होगी।
हाथी गुरूमुख का साथी...

धमतरी से एक बड़ा दिलचस्प वीडियो आया है। वहां एक जंगली हाथी शहर पहुंच गया तो लोगों को तोडफ़ोड़ की आशंका हुई। जिस जगह वह पहुंचा वहां भूतपूर्व विधायक गुरुमुख सिंह होरा का एक बड़ा सा होर्डिंग लगा हुआ था। हाथी गुरमुख सिंह की फोटो की तरफ गया, अपनी सूंड उठाकर उनके माथे को छुआ, और आगे बढ़ गया। अब होरा की फोटो के ऐसे असर को देखते हुए कुछ लोग सोच रहे हैं कि वन विभाग को उन्हीं के दो-चार हजार होर्डिंग बनवाकर हाथीग्रस्त गाँवों में लगा देना चाहिए।


