राजपथ - जनपथ

सीआईसी के लिए नया नाम उभरा
राज्य में राजनीतिक नियुक्तियों का सिलसिला भले ही रुकी रहे, लेकिन मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) और दो सूचना आयुक्तों (आईसी) की नियुक्ति अब किसी भी सूरत में टलने वाली नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह है सुप्रीम कोर्ट की सख्त निगरानी, जिसके तहत आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों को यह जवाब होगा कि उन्होंने पारदर्शी प्रक्रिया के साथ सूचना आयुक्तों नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर ली है।
इसके पहले ए.के. विजयवर्गीय (2005-2010), सरजियस मिंज (2011-2016) और एम.के. राऊत (2017-2022), सभी की नियुक्तियां आपस के राय-मशविरे से, बिना साक्षात्कार हुईं। लेकिन इस बार परिदृश्य बदल गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, चयन प्रक्रिया को पारदर्शिता के दायरे में लाया गया। विज्ञापन जारी किए गए, आवेदन सार्वजनिक पोर्टल पर डाले गए, और इंटरव्यू भी लिया गया।
मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति पर मुहर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय चयन समिति लगाएगी। समिति में एक मंत्री और नेता प्रतिपक्ष भी शामिल हैं। माना जा रहा है कि इस बार भी अखिल भारतीय सेवा के किसी वरिष्ठ अधिकारी को सीआईसी की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। चर्चा में सबसे ऊपर नाम अमिताभ जैन का था, जो जून में सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, उनके नाम की केवल औपचारिक घोषणा बाकी थी, लेकिन अब राजनीतिक प्रशासनिक हलकों में अब यह चर्चा गर्म है कि जैन को कम-से-कम छह महीने का सेवा विस्तार मिल रहा है।
ऐसी स्थिति में अब जिस नाम की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, वह है पूर्व डीजीपी अशोक जुनेजा। साक्षात्कार में कुछ अन्य आईएएस, आईपीएस भी शामिल थे, पर कहा जा रहा है कि उनका इंटरव्यू (जैन के बाद) सबसे अच्छा गया। पर यह बदलाव तभी हो सकता है जब जैन के सेवा विस्तार की खबरें सही निकले।
आईपीएस के नाम फर्जी फेसबुक पेज
आईपीएस शलभ कुमार सिन्हा के नाम और फोटो का दुरुपयोग कर अज्ञात व्यक्तियों द्वारा फेसबुक पर एक नहीं दो-दो फर्जी प्रोफाइल बनाए गए हैं। सिन्हा ने खुद ही सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी देते हुए लोगों से अपील की है कि वे इस फर्जी अकाउंट से आने वाली फ्रेंड रिक्वेस्ट को स्वीकार न करें और इसकी तुरंत रिपोर्ट करें। पूर्व में भी छत्तीसगढ़ के कई आईपीएस और हाई-प्रोफाइल अधिकारियों के नाम पर फर्जी सोशल मीडिया पेज बनाए गए हैं। इन फर्जी अकाउंट्स का मुख्य मकसद ठगी और उगाही करना होता है, जहां लोगों को झूठे बहाने बनाकर पैसे मांगे जाते हैं। अब पुलिस के ही साइबर सेल की ही जिम्मेदारी है कि वे अपने अफसर के नाम पर ठगी करने वालों को ढूंढ निकाले।
डीएमएफ यानी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट फण्ड
डीएमएफ घोटाला केस में पखवाड़े भर पहले ईओडब्ल्यू-एसीबी ने कोरबा के तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर भरोसाराम ठाकुर, और तीन जनपद सीईओ को गिरफ्तार किया था तब केस की गंभीरता का अंदाजा नहीं लग पा रहा था। क्योंकि ईडी भी डीएमएफ केस की जांच कर चुकी है। इस केस में कोरबा की तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू, और कारोबारी सूर्यकांत तिवारी सहित अन्य आरोपी हैं। रानू साहू को ईडी के केस में जमानत मिल चुकी है। मगर ईओडब्ल्यू-एसीबी के केस में उन्हें जमानत नहीं मिली है। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने मंगलवार को रायपुर की विशेष अदालत में डीएमएफ केस को लेकर चालान पेश किया। इसमें कई नए खुलासे हुए हैं।
ईओडब्ल्यू-एसीबी के छह हजार पेज के चालान में 75 करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने बताया कि कोरबा की तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू ने डिप्टी कलेक्टर बीआर ठाकुर को डीएमएफ का नोडल अफसर बनाया था। नोडल अफसर ठाकुर कलेक्टर के निर्देश पर सप्लाई ऑर्डर देते थे। यह भी कहा गया कि डीएमएफ के कार्यों में सूर्यकांत तिवारी का दखल रहा है।
ईओडब्ल्यू-एसीबी की गिरफ्त में आए तीन जनपद सीईओ वीरेन्द्र राठौर, राधेश्याम मिर्घा, और भुवनेश्वर सिंह राज ने अपने बयान में इसकी पुष्टि की है। प्रकरण की जांच से जुड़े एक अफसर ने इस संवाददाता से अनौपचारिक चर्चा में कहा कि जांच में कई नए तथ्य सामने आए हैं, और घोटाले से जुड़े कुछ पुख्ता दस्तावेज मिले हैं। ऐसे में आरोपियों के खिलाफ केस काफी मजबूत है। देखना है आगे क्या होता है।
जाने के पहले पदोन्नति
उच्च शिक्षा में सहायक प्राध्यापक से प्राध्यापक पद पर पदोन्नति के लिए कसरत चल रही है। पदोन्नति सूची में एक ऐसे सहायक प्राध्यापक का नाम है, जिसे पीएससी 2005 के पीएससी घोटाले में संलिप्त पाया गया था। सहायक प्राध्यापक उस वक्त पीएससी में परीक्षा नियंत्रक थे। सरकार ने उनकी तीन वेतनवृद्धि भी रोक दी थी।
सहायक प्राध्यापक के खिलाफ कुछ और शिकायतें भी रही हैं, लेकिन कोई भी जांच के स्तर तक नहीं पहुंच पाया। अब सहायक प्राध्यापक सभी आरोपों से मुक्त हैं इसलिए उन्हें पदोन्नति देने में कोई तकनीकी अड़चन नहीं है। वैसे वो भाजपा के एक ताकतवर नेता के करीबी रिश्तेदार हैं। नेताजी भले ही किसी पद में नहीं हैं, लेकिन उनकी सिफारिशों को अनदेखा नहीं किया जाता है। सहायक प्राध्यापक अगले कुछ दिनों में रिटायर होने वाले हैं। नेताजी ने भी जोर लगाया है कि रिटायरमेंट के पहले उनकी पदोन्नति हो जाए। देखना है आगे क्या होता है।