राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : रॉ प्रमुख का छत्तीसगढ़ कनेक्शन
10-May-2025 7:38 PM
राजपथ-जनपथ : रॉ प्रमुख का छत्तीसगढ़ कनेक्शन

रॉ प्रमुख का छत्तीसगढ़ कनेक्शन

ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी के लिए आर्मी के सराहना हो रही है। इनमें विदेश के लिए बनी खुफिया एजेंसी रॉ(रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग) की भूमिका की काफी चर्चा है। पाकिस्तान टीवी चैनलों में रॉ की गतिविधियों पर खूब बात हो रही है। खास बात ये है कि इस समय रॉ की कमान छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस रवि सिन्हा संभाल रहे हैं।

आईपीएस के 88 बैच के अफसर रवि सिन्हा राज्य बनने से पहले रायपुर कोतवाली सीएसपी रह चुके हैं। वे दुर्ग में एडिशनल एसपी रह चुके हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद बतौर डीआईजी कुछ दिन पीएचक्यू में पोस्टेड रहे, और फिर केन्द्र सरकार में चले गए। बाद में उनकी पोस्टिंग रॉ में हो गई। एक समय पिछली सरकार में उन्हें डीजीपी बनाए जाने की चर्चा भी थी।

 रवि सिन्हा जब हांगकांग में पोस्टेड थे, तब डॉ. रमन सिंह से भी उनकी मुलाकात हुई थी। डॉ. रमन सिंह उस समय सीएम थे। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ के कांग्रेस-भाजपा के कई नेताओं से उनके अच्छे संबंध रहे हैं। अब जब ऑपरेशन सिंदूर कामयाब रहा है, तो स्वाभाविक रूप से विदेश के लिए बने रॉ के खुफिया प्रमुख के रूप में रवि सिन्हा की तारीफ हो रही है।

पाकिस्तान पर यहां युद्ध

भारत-पाकिस्तान लड़ाई के बीच सोशल मीडिया पर काफी कुछ लिखा जा रहा है, और लोग मजे ले रहे हैं। एक खबर आई कि पाकिस्तान को आईएमएफ से साढ़े 8 हजार करोड़ का कर्जा मिला है। इस पर भाजपा के युवा नेता वैभव बैस ने लिखा कि ज्यादा हैरान-परेशान होने की जरूरत नहीं है। इससे ज्यादा का तो सेंट्रल जेल में बंद आईएएस रानू साहू, अनवर ढेबर, और अनिल टुटेजा व सूर्यकांत तिवारी ने मिलकर घोटाला कर दिया था। एक मुल्क पर हमारे देश के एक जिले के जेल के 4 बंदी भारी हैं।

वैभव बैस यही नहीं रूके, उन्होंने लिखा कि सौम्या चौरसिया को जोड़ दें, तो 20 हजार करोड़ का फिगर हो जाता है। वाड्रा को जोड़ दीजिए, तो पूरा पाकिस्तान बिक जाएगा। वाड्रा के साथ कका को जोड़ देंगे, तो आसपास के दो-चार मुल्क भी आ जाएंगे। बात राजनीतिक हुई, तो जवाब भी तीखा मिला। तीरथ कुमार साहू ने लिखा अकेला जलकी सब पे भारी। 

नक्सलियों की शांति की चौथी पेशकश

बस्तर और तेलंगाना जैसे अशांत क्षेत्रों में वर्षों से हिंसा का पर्याय बने नक्सली अब चौथी बार शांतिवार्ता की पेशकश करते हुए छह महीने के युद्धविराम की घोषणा कर रहे हैं। यह घोषणा ऐसे समय में आई है जब सुरक्षा बलों ने करेंगुट्टा जैसे अति-संवेदनशील क्षेत्रों में सघन अभियान शुरू कर रखा है। 

तेलंगाना राज्य समिति के प्रवक्ता ‘जगन’ की ओर से जारी पर्चा, जिसमें आम लोगों, डेमोक्रेटिक कार्यकर्ताओं और तेलंगाना के मुख्यमंत्री तक का हवाला देकर शांति वार्ता की मांग का समर्थन बताया गया है, सतह पर वैसे एक सकारात्मक पहल लगती है। किंतु जिस तीव्रता और आवृत्ति से पिछले 18 दिनों में नक्सलियों ने चौथी बार वार्ता और युद्धविराम का प्रस्ताव रखा है, उससे सवालों का खड़ा होना स्वाभाविक है।

नक्सली आंदोलन के पूर्व कमांडर बदरन्ना, जो अब आत्मसमर्पण कर चुके हैं, इसे ‘साइकोलॉजिकल वॉरफेयर’ यानी मनोवैज्ञानिक युद्ध की चाल मानते हैं। उनका आकलन है कि नक्सली गुरिल्ला युद्ध के विशेषज्ञ होते हैं और मनोवैज्ञानिक भ्रम फैलाना उनकी उसी रणनीति का हिस्सा है। जब सामने वाला भ्रमित होता है, उसका ध्यान बंटता है, तब नक्सली अन्य मोर्चों पर वार करने का अवसर खोजते हैं। शांति वार्ता की बातें एक ओर स्वागत योग्य प्रतीत होती हैं, वहीं दूसरी ओर इन्हें पूरी तरह से नक्सलियों की ‘मंशा’ से अलग करके नहीं देखा जा सकता।

घोंसले के लिए है या भूख मिटाने के लिए?

इस तस्वीर में एक चिडिय़ा दूसरी चिडिय़ा को घास का तिनका देती नजर आ रही है। संभवत: यह दृश्य एक मां और उसके बच्चे के बीच के स्नेह और देखभाल को दर्शाता है। पक्षियों के लिए तिनका भोजन नहीं होता, बल्कि घोंसले के निर्माण के काम भी आता है। यह दृश्य प्रकृति की कोमलता, संबंधों की गहराई और पारिवारिक जिम्मेदारियों का अद्भुत चित्रण है। शाखा पर बैठी इन चिडिय़ों की मुद्रा दर्शाती है कि प्रेम और परवाह केवल इंसानों तक सीमित नहीं, प्रकृति के हर जीव में मौजूद है। यह तस्वीर करुणा, सौंदर्य और जीवन के मूल्यों के प्रति एक नई समझ पैदा करती है।

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