राजपथ - जनपथ
पुनर्वास के रास्ते
विधानसभा चुनाव के बाद से भाजपा में अलग-थलग हो चुके कई नेता अब रायपुर दक्षिण में काम कर मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं। ये नेता पार्टी प्रत्याशी का प्रचार करने के इच्छुक हैं। इन्हीं में से एक जगदलपुर के पूर्व विधायक संतोष बाफना को शैलेन्द्र नगर बूथ का प्रभारी बनाया गया है।
बाफना ने विधानसभा आम चुनाव में जगदलपुर से किरणदेव को टिकट देने की खिलाफत की थी, और क्षेत्र छोडक़र चले गए थे। किरण देव अब प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बन चुके हैं। इससे परे बाफना को किरणदेव के विरोध की कीमत चुकानी पड़ रही है। उनकी पार्टी में पूछ परख नहीं रह गई है, मगर बृजमोहन अग्रवाल से उनके अच्छे संबंध हैं।
बृजमोहन ने बाफना को बूथ का काम दे दिया है। इसी तरह बड़े व्यापारी नेता, और पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी भी विधानसभा टिकट नहीं मिलने से काफी खफा रहे हैं। उन्होंने भी आम चुनाव के बीच सुनील सोनी, और बृजमोहन अग्रवाल से मिलकर अपने गुस्से का इजहार भी कर दिया था। सुंदरानी की नाराजगी के बाद भी सभी सीटें रायपुर की चारों विधानसभा सीटेें भाजपा की झोली में चली गई।
सुंदरानी को भी सिविल लाइन इलाके में प्रचार का जिम्मा दिया गया है। इसी तरह महासमुंद के पूर्व विधायक डॉ. विमल चोपड़ा भी रायपुर दक्षिण में सक्रिय हो चुके हैं। रायपुर दक्षिण में इन नेताओं का काम बेहतर रहा, तो संभव है कि कुछ को निगम-मंडल में जगह मिल जाए। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
नेताजी की अगली तैयारी
कहा जाता है कि भाजपा, पिछला चुनाव जीतने या हारने के एक वर्ष बाद अगले चुनाव की तैयारी शुरू कर देती है। अपनी इसी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए संगठन ने काम शुरू कर दिया है। संगठन, हर विधायक, मंत्री सांसद के इलाके में टोह ले रही है कि अगला प्रत्याशी कौन होगा। इसी दौरान संगठन प्रमुखों को पता चला एक अजेय पूर्व मंत्री भी तैयारी में जुट गए है।
भाजपा की यह परंपरागत,पारिवारिक सीट रही है। कहा जा है 2028 के लिए नेताजी, अपनी बेटी को तैयार कर रहे हैं। कर्नाटक के प्रोफेशनल कॉलेज से पढक़र आई बेटी इन दिनों ट्रेनिंग ले रही हैं। इसमें भाषण कला, मांग लेकर आई भीड़ से चर्चा, पहनावे, एप्टीट्यूड आदि-आदि सीख रही हैं। इसकी सूचना पर संगठन प्रमुखों का कहना था कि नेताजी को आभास हो गया है कि अगली बार उनकी संभावना कम ही रहेगी। कहा जा रहा है कि नेताजी अपनी बेटी को लता उसेंडी, अंबिका सिंहदेव, भावना बोहरा, ओजस्वी मंडावी, संयोगिता जूदेव की कतार में लाना चाहते हैं । अब इसके लिए पूरे चार वर्ष इंतजार करना होगा। वैसे नेताजी के दो बेटे हैं लेकिन दोनों ही राजनीति से दूर सफल कारोबारी हैं, उनकी इच्छा भी नहीं हैं।
एक माकूल अवसर और खेमेबाजी
कांग्रेस के लिए इससे माकूल अवसर नहीं हो सकता था। पता नहीं क्यों इसका लाभ उठा नहीं पाई। वह यह कि देश की राष्ट्रपति दो दिनों तीस घंटे तक राजधानी में रहीं। लेकिन छोटे-छोटे मुद्दे पर राजभवन कूच करने वाले कांग्रेस नेतृत्व ने महामहिम से मिलकर प्रदेश की स्थिति पर ध्यानाकृष्ट क्यों नहीं कराया? जबकि पहले दिन तो महामहिम जनसंगठनों से मिली भी। महामहिम से मुलाकात को लेकर संगठन के नेता खेमे के अनुसार जवाब दे रहे। बैज समर्थक कह रहे हैं कि मिलने का समय मांगा था, नहीं मिला।
राजीव भवन में सक्रिय रहने वाले विरोधी इसे खारिज कर रहे। सच्चाई और मन की बात बैज ही जानते हैं। लेकिन एक अवसर चूक गए। प्रदेश की राजनीतिक, प्रशासनिक कानून व्यवस्था पर एक असरदार ज्ञापन देकर माइलेज तो लिया ही जा सकता था। खैर कांग्रेस की ओर से कल नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत ने प्रोटोकॉल पूरा किया। राष्ट्रपति के सम्मान में आयोजित दोपहर भोज में आमंत्रण पर वे गए। वहां प्रोटोकॉल की व्यवस्था न देख डॉ. महंत, सबसे पीछे भाजपा संगठन के नेताओं के साथ जा खड़े हुए। उन पर नजर पड़ते ही महामंत्री संगठन पवन साय ने पास गए। और महंत से पीछे के बजाए प्रथम पंक्ति में खड़े होने का आग्रह किया। महंत जी मान नहीं रहे थे। इस पर महामंत्री ने प्रोटोकॉल के तहत व्यवस्था कराई और महंत प्रथम पंक्ति में शामिल हुए।
हाथियों की मौत के लिए कौन जिम्मेदार?
छत्तीसगढ़ में खासकर रायगढ़ और सरगुजा जिले में हाथी हाईटेंशन तार की चपेट में आकर अकाल मौत के मुंह में समा रहे हैं। पराकाष्ठा तब हुई जब तमनार क्षेत्र में 25 अक्टूबर की रात एक शावक सहित तीन हाथियों को एक साथ जान गंवानी पड़ी। बीते 10 सालों में 70 हाथी इसी तरह बेमौत मारे जा चुके हैं। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार के ही दो विभाग एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं। बिजली विभाग चाहता है कि तार ऊंचा और सुरक्षित करने का खर्च उठाए। वन विभाग का कहना है कि बिजली तार को विद्युत विभाग ने बिछाया है, खर्च उसे ही करना चाहिए। इस आनाकानी को लेकर हाईकोर्ट में कुछ वन्यजीव प्रेमियों ने जनहित याचिका दायर की थी। जिसका निराकरण इसी अक्टूबर महीने के पहले सप्ताह में हाईकोर्ट ने किया। इसमें वन विभाग और बिजली विभाग दोनों ने ही शपथ-पत्र दिया है। बिजली विभाग तारों को कम से कम 20 फीट ऊंचा उठाएगा। तीन हाथियों की मौत जिस जगह पर हुई है, ग्रामीणों के मुताबिक वहां तार की ऊंचाई बहुत कम थी। 20 फीट ऊंचा होने से हाथी सूंड उठाकर भी तार को नहीं छू सकेंगे। बिजली पोल पर भी 3 से 4 फीट तक चौड़ी कांटेदार तार खींची जाएगी। तारों को कवर्ड कंडक्टर में बदला जाएगा या फिर अंडरग्राउंड केबल बिछाया जाएगा। यही सब करने की मांग वन्यजीव प्रेमी लगातार कर रहे थे। मगर, सरकारी विभागों ने हामी भरने में 7 साल लगा दिए। याचिका पर सात साल से सुनवाई हो रही थी। अभी भी इन तीन मौतों के बाद दोनों ही विभागों ने चुप्पी साधी हुई है कि हाईकोर्ट में उन्होंने जो शपथ दिया है उसके लिए क्या करेंगे। क्या कोई टाइम लाइन तैयार किया है? या फिर हाईकोर्ट में भरी गई हामी केवल रस्मी है? इस रवैये से तो लगता है कि अभी और हाथियों के जान गंवाने की प्रतीक्षा की जा रही है।
ऐसा होता है डिजिटल अरेस्ट
वीडियो कॉल कर रहा व्यक्ति कितना साफ-सुथरी वर्दी में सौम्य चेहरे वाला पुलिस ऑफिसर जैसा दिखाई दे रहा है। पीछे थाने का पूरा सेटअप भी है। टेबल पर ध्वज लगा है। जो व्यक्ति इस कॉल को अटेंड कर रहा है उसे 12 घंटे के भीतर थाना पहुंचने या फिर वीडियो कॉल पर ही बयान दर्ज कराने कहा जा रहा है। जुर्म यह बताया गया है कि उसके फोन का इस्तेमाल महिला उत्पीडऩ और वित्तीय धोखाधड़ी के लिए किया गया है। आप भयभीत हो जाएंगे और मामला रफा-दफा करने के लिए 5-10 लाख कॉलर के बताए गए अकाउंट में ट्रांसफर कर देंगे। यही डिजिटल अरेस्ट है। एक शख्स ने कॉल आते ही पहचान लिया था कि यह स्कैम चल रहा है। फिर भी भयभीत होने का नाटक करते हुए कॉलर से लंबी बातचीत की है। सोशल मीडिया पर उसने पूरा वृतांत लिख डाला है और बताया है कि किस तरह से डरा-धमकाकर ये जालसाज वसूली करते हैं।
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खराब दौर में 2010 बैच के डीआईजी
राज्य के आईपीएस बिरादरी में डीआईजी स्तर के अफसरों के लिए हाल ही के महीने काफी बुरे साबित हो रहे हैं। पिछले तीन महीनों के भीतर राज्य में हुई घटनाओं के लिए सीधे डीआईजी स्तर के अफसरों को निलंबित अथवा जिले से हटाया गया।
एक बड़ी घटना में बलौदाबाजार हिंसा के मामले में 2010 बैच के आईपीएस डीआईजी सदानंद कुमार पर निलंबन की गाज गिरी। उनके खिलाफ अभी भी विभागीय जांच चल रही है। पिछले दिनों आईजी-एसपी व कलेक्टर कान्फ्रेंस के फौरन बाद मुंगेली एसपी गिरजाशंकर जायसवाल को भी हटा दिया गया। उनकी भी कार्यशैली पर सवाल उठ रहे थे।
इसी बैच के अफसर अभिषेक मीणा पीएचक्यू में डीआईजी हैं। उनके पास भी कोई प्रभार नहीं है। जबकि पिछली सरकार में मीणा राजनांदगांव और रायगढ़ व कोरबा जैसे जिले के एसपी रहे हैं। सरकार बदलने के बाद से वो लूपलाईन में हैं। अब एक ताजा मामले में डीआईजी स्तर के अफसर सूरजपुर एसपी एमआर अहिरे को भी पुलिसकर्मी की पत्नी और बेटी की जघन्य हत्या के मामले में जिम्मेदार ठहराते हुए पीएचक्यू पदस्थ किया गया है। यह संयोग है कि अहिरे भी 2010 बैच के आईपीएस हैं। वह प्रमोटी आईपीएस हैं।
बताते हैं कि आईपीएस बिरादरी में डीआईजी स्तर के अफसरों पर हो रही सिलसिलेवार कार्रवाई से कई करीबी अफसर हँसी-मजाक में उन्हें पूजा-अर्चना और मंदिरों में माथा टेकने की नसीहत भी दे रहे हैं।
दक्षिण और मुस्लिम
रायपुर दक्षिण में मुस्लिम समाज से कुल 14 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। मुस्लिम समाज को कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है। यही वजह है कि इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों के चुनाव मैदान में उतरने से कांग्रेस में हडक़म्प मचा हुआ है।
वर्ष-2023 के विधानसभा आम चुनाव में भी बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे लेकिन ढेबर बंधु आखिरी दिन तीन-चार को छोडक़र बाकी सभी के नामांकन वापस करवाने में सफल रहे। कुछ इसी तरह की कोशिश इस बार भी हो रही है लेकिन ऐसा कर पाना कांग्रेस के रणनीतिकारों के लिए आसान नहीं है। कांग्रेस सत्ता में नहीं है, और चर्चा है कि ज्यादातर प्रत्याशी भाजपा के लोगों से जुड़े हुए हैं। ऐसे में वो आसानी से मान जाएंगे इसकी संभावना कम दिख रही है।
रायपुर दक्षिण में मुस्लिम वोटरों की संख्या सर्वाधिक है, और तकरीबन 25 हजार के आसपास मुस्लिम वोटर हैं। हालांकि पहले भी बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरते रहे हैं, लेकिन सारे मुस्लिम प्रत्याशी मिलाकर पांच हजार के आसपास ही वोट हासिल कर पाते रहे हैं। इस बार क्या तस्वीर बनती है यह तो नाम वापिसी के बाद पता चलेगा।
बड़े-बड़ों को छोटा-छोटा जिम्मा
रायपुर दक्षिण में कांग्रेस, और भाजपा के दिग्गज नेता वार्डों में प्रचार के लिए जा रहे हैं। भाजपा ने तो पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, अमर अग्रवाल, राजेश मूणत और मोतीलाल साहू को एक-एक मंडल की जिम्मेदारी सौंप दी है। हरेक मंडल में पांच-पांच वार्ड आते हैं। इन सबके अलावा जिन विधायकों को झारखंड और महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के लिए नहीं भेजा गया है वो सभी रायपुर दक्षिण में प्रचार के लिए जुट रहे हैं।
दूसरी तरफ, कांग्रेस में पूर्व सीएम भूपेश बघेल और प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज रोज चुनाव प्रचार की मानिटरिंग कर रहे हैं। इसके अलावा पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू भी प्रचार में जुटेंगे। धनेन्द्र साहू का निवास रायपुर दक्षिण में है, वो सक्रिय भी हैं। इन सबके बीच प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट भी जल्द प्रचार में यहां आएंगे और हरेक मोहल्ले में जनसंपर्क करेंगे। ये सब कार्यक्रम दीवाली के बाद होगा। कुल मिलाकर दीवाली के बाद दक्षिण का चुनावी माहौल गरमाने के आसार हैं।
स्टेशन चकाचक हो जाए तो भी क्या?
295 किलोमीटर लंबी कटघोरा-डोंगरगढ़ रेल लाइन के निर्माण की दिशा में एक बड़ा कदम उठा है। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में खनिज विकास निधि सलाहकार समिति की बैठक में भू अर्जन और प्रारंभिक कार्य के लिए 300 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई है। इस लाइन के लिए आजादी से पहले से मांग उठ रही है। अंग्रेजों ने इसका नक्शा बनाकर काम भी शुरू कर दिया था। यह रेल लाइन कवर्धा, मुंगेली, लोरमी, तखतपुर जैसे इलाकों से गुजरने वाली है, जहां से अभी भाजपा के कई कद्दावर मंत्री और विधायक प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि पूरी परियोजना करीब 5950 करोड़ रुपये की है पर एक शुरूआत हुई है, जिसका श्रेय जनप्रतिनिधि ले सकते हैं।
मगर, एक दूसरी परियोजना और है, जिसके लिए इंतजार लंबा होता जा रहा है। वह है बस्तरवासियों को रेल के जरिये राजधानी पहुंचना सुगम बनाना। बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई आर्थिक मामलों की समिति में कुछ रेल परियोजना के लिए राशि मंजूर की गई, लेकिन उसमें बहुप्रतीक्षित रावघाट-जगदलपुर शामिल नहीं है। मोदी की मौजूदगी में करीब 10 साल पहले 9 मई 2015 को दंतेवाड़ा में इस रेल लाइन के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके लिए बस्तर रेलवे प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी गठित की गई थी, जिसमें सेल, एनएमडीसी, इरकॉन और सीएसडीसी शामिल हैं। लंबे समय तक तो इसी बात पर विवाद होता रहा कि किस उपक्रम की कितनी हिस्सेदारी रहेगी। संभवत: यह अब तक हल भी नहीं हुआ है। अभी स्थिति यह है कि इस परियोजना पर सिर्फ दुर्ग से ताड़ोकी तक काम हुआ है। उसके बाद सब ठंडे बस्ते में है।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस साल केंद्रीय बजट के बाद एक वृहद प्रेस कांग्रेस वीडियो कांफ्रेंस के जरिये ली थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि छत्तीसगढ़ के लिए 6000 करोड़ से अधिक की मंजूरी दी गई है, जो अब तक कभी नहीं मिली थी। जब उनसे रावघाट परियोजना पर पूछा गया तो उनकी ओर से अधिकारियों ने यही बताया कि यह अकेले रेलवे का प्रोजेक्ट नहीं है, बाकी निगम, उपक्रमों से बात करनी पड़ेगी। तो स्थिति यह है कि बस्तर को राजधानी से रेल लाइन के जरिये जुडऩे में अभी भी शायद एक दशक या उससे ज्यादा लग जाए। मजे की बात यह है कि अमृत भारत योजना में जगदलपुर रेलवे स्टेशन को शामिल कर यहां 17 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। लोगों का कहना है कि जब रेल लाइन की सुविधा ही नहीं देनी है तो इस खर्च का क्या मतलब?
असली घी, नकली घी
गुजरात के गांधीनगर में एक फैक्ट्री में छापा मारकर नकली अमूल घी पकड़ा गया है। इसके बाद लोग सोशल मीडिया पर तस्वीरें डालकर बता रहे हैं कि बाजार में अमूल ही नहीं कई ब्रांड्स के नकली घी भरे पड़े हैं। इस तस्वीर में एक पैकेट असली है, एक नकली।
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बन पाएंगे सक्रिय सदस्य ?
भाजपा का संगठन महापर्व सदस्यता अभियान का पहला और अहम चरण पूरा हो गया है। इसमें 50 लाख से अधिक पुराने सदस्यों का नवीनीकरण और नए सदस्य बनाने का दावा है। दूसरा चरण भी शुरू हो गया है, इसमें एक लाख सक्रिय सदस्य बनाए जाने हैं। संगठन के 404 मंडलों में से हरेक में 200 सक्रिय सदस्य बनेंगे। उसके बाद बूथ समितियों, मंडल, जिला समिति और फिर प्रदेश समिति सदस्य और अंत में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होगा। सक्रिय सदस्य बड़े कांट-छांट के बनाए जाते हैं।
सबसे अहम यह कि सदस्य कितने वर्षों से भाजपा का प्राथमिक सदस्य है। उसकी सक्रियता कितनी रही है। चुनाव के दौरान का आया- राम, गया-राम तो नहीं। यदि है तो वह वेटिंग में रहेगा। विधानसभा चुनाव के पहले से अब तक प्रवेश करने वाले कांग्रेस से आए नेताओं को अभी इंतजार करना होगा। क्योंकि इनकी रेफरल आईडी से कितने नए सदस्य बने होंगे यह भी संदिग्ध हैं।
इनमें राज्यसभा,लोकसभा के पूर्व सांसद, नेता प्रतिपक्ष, एमपी- सीजी में प्रदेश अध्यक्ष, कोर ग्रुप के सदस्य के रूप में जनसंघ, और बाद में स्थापना काल से भाजपा में रहे नंदकुमार साय भी शामिल हैं। वर्ष 22 में भाजपा छोड़ भूपेश बघेल का हाथ थामने वाले साय ने विधानसभा बाद कांग्रेस छोड़ा और पिछले दिनो भाजपा की प्राथमिक सदस्यता का फार्म भरा। उसके बाद उन्हें सक्रिय सदस्य बनाने को लेकर जशपुर जिला संगठन सहमत नहीं है। इसमें सबसे बड़ा रोड़ा, उनके संगठन और सरकार विरोधी बयान बाजी को बताया जा रहा है। चाहे वह रमन सिंह हो या कांग्रेस छोडऩे से पहले बघेल सरकार, वे बयान देते रहे। और अब सक्रिय सदस्य बनने के बाद कुछ दिन महीने शांत रहने के बाद मुंह खोलने लग जाएंगे। जशपुर से लेकर राजधानी तक के संगठन नेता उन्हें नहीं चाहते। सीएम और महामंत्री संगठन दोनों ही जशपुर से ही आते हैं। वे दोनों नंदकुमार साय से ज्यादा जानते हैं। अब देखना है कि नंदकुमार साय सक्रिय सदस्य बनते हैं, या नहीं।
देवतुल्य कार्यकर्ता और बेरुखी
भाजपा ने देश भर में अपने कार्यकर्ताओं को देवतुल्य उपनाम दिया है। संगठन की बैठकों में उनके सुख दुख में सहभागी बनने विधायक, मंत्रियों को विशेष निर्देश दिए जाते हैं। इसके लिए सहयोग (सहायता) केंद्र की भी व्यवस्था की गई है। जहां सरकार के मंत्रियों को बैठकर कार्यकर्ताओं की मांग-समस्या सुनकर दूर करने की जिम्मेदारी दी गई। इसके गवाह के रूप में संगठन ने उपाध्यक्ष,मंत्री आदि भी बिठाए जाते हैं। इस केंद्र में कार्यकर्ता के दो ही मुद्दे बहुतायत में आते हैं। एक, मोहल्ले-वार्ड में सडक़ कांक्रीटीकरण और एक-दो तबादले के आवेदन। मगर कार्यकर्ताओं के ये दोनों काम नहीं हो रहे। कांक्रीटीकरण के प्रस्ताव संबंधित निगम आयुक्तों, सीएमओ महापौरों को भेज दिए जाते हैं।और ट्रांसफर एप्लीकेशन पर मंत्रियों का सीधा जवाब रहता है कि अभी रोक लगी हुई, हटने पर कर देंगे। यह कहकर पीए को आवेदन थमा देते हैं। और अगले ही दो-तीन दिनों में मंत्री के विभाग से तबादला आदेश निकलते हैं लेकिन देवतुल्य कार्यकर्ता का दिया नाम नहीं होता।
यही देवता जब बंगले या फिर साप्ताहिक केंद्र में मंत्री के सामने प्रकट होता है तो समन्वय समिति में होने के जवाब दे कन्नी काट लिया जाता है। यह पुराने ही नहीं नए नवेले मंत्रियों का भी हाल है। ऐसी बेरुखी से कार्यकर्ता भरे पड़े हैं, न जाने किस दिन फट पड़े। आने वाले दिनों में बड़े चुनाव भी है। जो इन मंत्रियों की जमीनी पकड़ का आईना होंगे। कार्यकर्ता आइना लेकर खड़े हैं।
इस बार बदली हुई तस्वीर
दीवाली के बीच रायपुर दक्षिण के चुनाव से भाजपा और कांग्रेस में कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल है। हालांकि भाजपा नेता थोड़े ज्यादा उत्साहित थे क्योंकि उन्हें बृजमोहन अग्रवाल के चुनाव प्रबंधन के तौर तरीके मालूम है। बृजमोहन अपने कार्यकर्ताओं की हर जरूरतों को पूरा करते रहे हैं। वो अपने विरोधी दल के नेताओं का भी ख्याल रखते आए हैं। लेकिन इस बार संशय की स्थिति बन गई है। वजह यह है कि पार्टी संगठन के एक प्रमुख नेता ने भरी बैठक में हिदायत दे रखी है कि इधर-उधर से पैसे नहीं आएंगे। जितना जरूरी होगा, उतना ही खर्च करें। दूसरी तरफ, कांग्रेस में प्रत्याशी ने बैठक में कह दिया कि कार्यकर्ताओं की किसी चीज की कमी नहीं रहेगी। इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में खुशी का माहौल है। त्यौहार नजदीक है, ऐसे में देखना है कि दोनों दलों के नेता अपने कार्यकर्ताओं की इच्छाओं को पूरा कर पाते हैं या नहीं।
उप चुनाव क्यों हो, कब हो?
यदि रायपुर दक्षिण सीट से भाजपा प्रत्याशी सुनील सोनी चुनाव जीतते हैं तो वे एक विधानसभा क्षेत्र के प्रतिनिधि बन जाएंगे। पिछले चुनाव में इस सीट पर बृजमोहन अग्रवाल ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की थी और केबिनेट मंत्री भी बने। लेकिन, उन्हें विधानसभा से हटाकर लोकसभा चुनाव में भेजा गया, जहां नियमों के अनुसार 15 दिन में इस्तीफा देना पड़ा, जिससे उपचुनाव की स्थिति बनी। यह निर्णय भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा लिया गया। क्या विधायक और मंत्री के रूप में बृजमोहन अग्रवाल का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था? मगर लोकसभा भेजकर उनकी काबिलियत पर तो पार्टी ने मुहर लगाई है? क्या उन्हें विधानसभा से हटाकर लोकसभा भेजना दक्षिण रायपुर के जनादेश का अनादर नहीं है? सुनील सोनी को उपचुनाव में उम्मीदवार बनाना यह दर्शाता है कि भाजपा ने उनकी जनप्रतिनिधि के रूप में क्षमता को स्वीकार किया है। फिर टिकट काटने की नौबत क्यों आई?
विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा ने अरुण साव, गोमती साय और रेणुका सिंह को सांसद रहते हुए विधानसभा टिकट दी, पर वहां उपचुनाव की जरूरत नहीं पड़ी। इसके विपरीत, 2019 में कांग्रेस ने दीपक बैज को विधानसभा टिकट दी, तो उनकी विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराना पड़ा था। यह प्रवृत्ति राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती जा रही है। उत्तर प्रदेश की 9 सीटों पर उपचुनावों का कारण भी यही है, जहां कई विधायकों को सांसद की टिकट दी गई। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव भी विधायकी छोडक़र संसद पहुंचे हैं। राहुल गांधी ने भी दो सीटों से चुनाव लड़ा। उन्होंने वाराणसी सीट बरकरार रखी, वायनाड में उप चुनाव हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2014 में वाराणसी और वडोदरा से चुनाव लड़ा और बाद में वडोदरा से इस्तीफा दिया, जिससे उपचुनाव कराना पड़ा।
दो सीटों पर चुनाव लडक़र एक सीट छोड़ देना या एक सदन से दूसरे सदन में जाने के लिए इस्तीफा देना, यह प्रवृत्ति राजनीतिक दलों के लिए फायदेमंद हो सकती है, लेकिन आम जनता के लिए यह समझ पाना कठिन है कि इसमें उनका क्या लाभ है। 1996 से पहले एक व्यक्ति कई सीटों से चुनाव लड़ सकता था, लेकिन अब अधिकतम दो सीटों पर ही चुनाव की अनुमति है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33(7) को सुप्रीम कोर्ट में भाजपा से ही जुड़े अश्विनी उपाध्याय ने चुनौती दी थी, जिसमें दो जगहों से चुनाव लडऩे का प्रावधान है। चुनाव आयोग ने भी ‘एक व्यक्ति, एक सीट’ की नीति का समर्थन किया, पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कानून में बदलाव संसद द्वारा होना चाहिए।
दूसरे सदन में जाने के लिए एक सदन से इस्तीफा देना और उपचुनाव की आवश्यकता उत्पन्न करना एक ऐसी स्थिति है जिस पर अभी तक कोई चुनौती नहीं आई है। क्या खर्च उन्हें उठाना चाहिए, जिनकी वजह से उपचुनाव की नौबत आ जाती है? चुनाव खर्च को नियंत्रित करने और वन नेशन वन इलेक्शन की बात करने वाले लोग इस तरह के उपचुनाव से होने वाले संसाधनों और सरकारी धन के अनावश्यक खर्च पर क्या कहेंगे? यह सवाल अभी नहीं तो कभी न कभी उठेगा ही।
हो कहीं भी आग, जलनी चाहिए..
रायपुर के एक शॉपिंग मॉल का यह रेस्टॉरेंट है। गौर से देखें यहां काम करने वाली यह युवती किताब पढ़ रही है। जब ग्राहकों को सर्विस देने के बीच समय मिलता है तो वह बुक पढ़ती रहती है। यह किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी कर रही हो, या फिर उसकी दिलचस्पी की कोई किताब हो सकती है। मगर यह उन्हें जरूर सीख दे रही हैं जो पढऩे के नाम कहते हैं, क्या करें समय नहीं मिलता।
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नाम भी सही नहीं
छत्तीसगढ़ राज्य गठन को 25 साल पूरे हो रहे हैं, लेकिन अभी भी कुछ संस्थानों में राज्य के नाम को लेकर मात्रात्मक त्रुटियां सामने आ जा रही है। इन्हीं में से एक रायपुर के सबसे पुराने कॉलेज शासकीय जे योगानन्दम् छत्तीसगढ़ महाविद्यालय में आंतरिक/प्रायोगिक परीक्षा की उत्तर पुस्तिका में छत्तीसगढ़ का नाम गलत छपा है।
छत्तीसगढ़ महाविद्यालय की जगह छत्तसीगढ़ महाविद्यालय छप गया है। हाल यह है कि हजारों उत्तर पुस्तिकाओं में नाम गलत छपे हैं, लेकिन इसको सुधारने के लिए कॉलेज प्रबंधन ने कोई कदम नहीं उठाया है। ऐसा नहीं है कि कॉलेज के प्राचार्य, और अन्य प्रोफेसरों को इस बड़ी चूक की जानकारी नहीं है। कुछ विद्यार्थियों ने भी कॉलेज प्रबंधन का ध्यान इस तरफ आकृष्ट कराया है, लेकिन किसी ने इसको गंभीरता से नहीं लिया।
कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अमिताभ बनर्जी भी रायपुर में पले-बढ़े हैं, और रायपुर विज्ञान महाविद्यालय से स्नातक हैं। वो पूर्व सीएम भूपेश बघेल के कॉलेज के सहपाठी रहे हैं। अब जब उत्तरपुस्तिकाओं में त्रुटि सामने आई है, तो कई ने अलग-अलग स्तरों पर इसकी शिकायत भी की है। देखना है कि त्रुटि सुधारने के लिए कोई पहल होती है, अथवा नहीं।
निगम मंडल की बैलेंस शीट
भाजपा के गलियारों में फिर चर्चा चल पड़ी है कि निगम मंडलों में नियुक्तियां फरवरी के बाद। निकाय-पंचायत चुनावों में नेताओं के परफार्मेंस देखकर सरकारी कुर्सियां भरी जाएंगी। यह तो हुई कार्यकर्ताओं और मीडिया सबको बताने वाली बात। जो न बताने वाली बात है वो यह है कि भार साधक मंत्री ही नहीं चाहते कि अपने विभाग के बड़े बजट के उपक्रमों पर दूसरा सक्षम प्राधिकार बैठे। सही है, उपक्रमों की गाडिय़ां, निजी घरेलू, काम के लिए स्टाफ खर्च के लिए बजट आदि-आदि। जो हाथ से निकल जाएगा। ऐसे बड़े उपक्रम हैं-भवन सन्निर्माण कर्मकार मंडल, श्रम कल्याण मंडल, आबकारी निगम, ब्रेवरेज निगम, पर्यटन मंडल, बीज निगम नान, मार्कफेड, सडक़ विकास निगम, क्रेडा, वन विकास निगम आदि। इसलिए जब जब प्रभारी जी के साथ नियुक्ति पर रायशुमारी होती मंत्री तपाक से औचित्य के प्रश्न उठा देते हैं। और भार साधक मंत्री होने के नाते काम करने से हो रहे स्थापना व्यय की बचत का लाभ हानि का बैलेंस शीट, पटल पर रख देते। वह भी कांग्रेस शासन काल का। ऐसी तीन बैठकें हो चुकी हैं और हर बार मंत्रियों की जीत होती रही।
तबादले और इमोशनल जस्टिफिकेशन
पिछले दशक में एक फिल्म आई थी देव-डी। इस फिल्म को हीरो अभय देयोल (सुपुत्र धर्मेन्द्र ) एक गाना गाते हैं तौबा तेरा जलवा तौबा तेरा प्यार, तेरा इमोशनल अत्याचार। यह पंक्ति इसलिए याद कर रहे कि आज सरकार के मंत्रियों की हालत, गिटार लेकर गाने वाले अभय देयोल जैसी ही है। बस वे गा नहीं पा रहे। सभी मंत्री, एक सचिव मैडम से कुछ ऐसे ही परेशान हैं। मंत्री तबादले की बात या हुए तबादले रद्द करने कॉल करते हैं तो मैडम के इमोशनल स्पीच, तर्क सुनकर स्विच आफ करने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं रहता। पड़ोस के जिले के पहली बार बने एक मंत्री के साथ ऐसा ही हुआ। मंत्रीजी ने डीईओ साहब का तबादला रद्द करने मैडम को कॉल किया। शुरूआती शिष्टाचार के बाद मंत्री ने कॉल करने का मुख्य सबब बताया। इस पर मैडम ने जो कहा, उसे यहां पढ़ें और महसूस करें--
सर मैं आपकी बहुत इज्जत करती हूं। आप कांग्रेस की लहर जैसे माहौल में जीतकर आए। जनता आप में विकास पुरुष देखती है। आपने चुनावों में वादे (निर्माण कार्य गिनाते हुए) भी किए हैं। इनमें से एक महिलाओं को सुरक्षा और राहत देने शराब की अवैध बिक्री, कोचियों को समाप्त करना भी है। सीएम साहब इसी पर प्लानिंग के साथ काम कर रहे हैं। ये तबादले पूरी जांच के बाद किए गए हैं। डीईओ पर बहुत सी शिकायतें रहीं, मैने स्वयं छापेमारी में पकड़ा है। ऐसे ही अवैध धंधे को खत्म कर खजाने में राजस्व लाना है। अप्रैल से सितंबर तक खजाने को 200-200 करोड़ की चपत लग चुकी है। ये पैसे आते तो आपके क्षेत्र में सडक़, पुल पुलिया, सीसी रोड़, व्यपवर्तन योजना,आगजनी के शिकार भवन बन जाते। आपके किए कुछ वादे अभी 6-8 महीने में ही पूरे हो जाते। लेकिन डीईओ की वजह से राजस्व हानि हुई, और वित्त विभाग ने आपके प्रस्ताव अगले बजट के लिए आगे बढ़ा दिया है। अब आप ही बताइए ऐसे विकास रोधी अफसर का तबादला रद्द करना ठीक रहेगा क्या?
इसके बाद तो मंत्री जी के पास कोई किंतु-परंतु का भी अवसर नहीं रह गया था। मैडम को अब तक अलग-अलग डीईओ के तबादले रुकवाने सरकार के आधे मंत्री ऐसे कॉल कर चुके हैं।
तकनीक से पीछे हटने का सवाल
डिजिटल क्रांति आने के बाद अनेक नए काम धंधे लोगों को मिले हैं तो कई का कामकाज चौपट भी हो गया है। ऐसा ही खतरा जमीन का पंजीयन कराने वाले दस्तावेज लेखकों और स्टाम्प वेंडर्स के सामने मंडरा रहा है। छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य होगा जहां जमीन, मकान, दुकान की रजिस्ट्री घर बैठे करने की सुविधा दी जा रही है। सारे दस्तावेज, शुल्क ऑनलाइन जमा हो जाएंगे, यहां तक कि गवाहों को भी रजिस्ट्री दफ्तर जाने की जरूरत नहीं। इसी महीने 10 अक्टूबर को मध्यप्रदेश में यह सुविधा वहां के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने एक समारोह में किया था। वहां इसे संपदा 2.0 नाम दिया गया है। छत्तीसगढ़ में सुगम ऐप लॉंच किया गया है। दस्तावेज लेखकों, स्टांप वेंडरों की चिंता जायज है लेकिन जब इंटरनेट और स्मार्ट फोन आने के बाद पेपरलेस काम सभी क्षेत्रों में बढ़ रहा है। बहुत सी सरकारी सेवाएं अब ऑनलाइन हो चुकी है। पटवारी रिकार्ड डिजिटली उपल्ध हैं। लोगों के खाते में सीधे पैसे ट्रांसफर हो रहे हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मितानिन अपनी रिपोर्ट ऑनलाइन जमा कर रहे हैं। कुछ जगहों पर शिक्षकों की उपस्थिति भी ऑनलाइन दर्ज की जा रही है। उनके विभागीय आवेदनों को तो पूरी तरह ऑनलाइन कर ही दिया गया है। पिछली सरकार के समय बताया गया था कि करीब 100 तरह की सेवाएं ऑनलाइन हो चुकी हैं। एक समय एसटीडी-पीसीओ बूथ में कतारें लगती थीं लेकिन सस्ती मोबाइल कॉलिंग सुविधा मिलने के बाद यह कारोबार बैठ गया। अब जब लोग टीवी चैनल सेटअप बॉक्स में देखने के आदी हो रहे हैं तो केबल तार का जाल सिमट रहा है। प्रदेश में करीब 25 हजार वेंडर और दस्तावेज लेखक हैं। कुछ लोग तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी यही काम करते आ रहे हैं। कुछ इतने बुजुर्ग हो चुके हैं कि नया काम शुरू नहीं कर सकते। हड़ताल के बावजूद इस बात के आसार कम दिख रहे हैं कि सरकार अपने कदम वापस लेगी। वेंडरों की एक मांग जरूर है कि ऑनलाइन रजिस्ट्री के लिए भी लाइसेंस सिस्टम हो और आईडी देकर उनके माध्यम से काम कराया जाए।
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असली वजह सीएम को पता
जशपुर कलेक्टर रवि मित्तल को साय सरकार की छवि बनाने की जिम्मेदारी दी गई है। मित्तल को आईजी रैंक के अफसर मयंक श्रीवास्तव की जगह जनसंपर्क आयुक्त बनाया गया है। मयंक को 9 महीने में ही बदल दिया गया। इससे परे रवि मित्तल ने जशपुर में कई बेहतर काम किए हैं। उनके प्रयासों से जशपुर का मयाली डैम एक बेहतरीन पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो चुका है।
सीएम विष्णुदेव साय ने सरगुजा प्राधिकरण की पहली बैठक कल मंगलवार को मयाली में ली थी। सीएम, और प्राधिकरण के सदस्य मयाली पहुंचे, और वहां बोटिंग भी की। थोड़े समय में प्रदेश के सबसे बेहतरीन पर्यटन स्थल के रूप में मयाली की पहचान बन गई है। इसमें रवि मित्तल की भूमिका अहम रही है। सीएम, और प्राधिकरण के सदस्यों ने मयाली के विकास कार्यों की काफी तारीफ भी की। और फिर रायपुर पहुंचते ही सीएम ने रवि मित्तल को जनसंपर्क आयुक्त का दायित्व सौंपकर सरकार की साख बनाने का अहम जिम्मा सौंप दिया।
मयंक श्रीवास्तव को कुल 9 महीने में हटाने की असली वजह सीएम को ही पता होगी, लेकिन लोगों का क्या है, लोगों का काम है कहना, समझदार का काम है किसी बात पे भरोसा न करना।
बाकी का हिसाब-किताब
प्रशासनिक फेरबदल के कुछ और अफसर प्रभावित हुए हैं। इनमें से वर्ष-2013 बैच के अफसर जगदीश सोनकर, और कुमार विश्वरंजन भी हैं। जगदीश सोनकर स्वास्थ्य मिशन में एमडी थे। जबकि कुमार विश्वरंजन जिला पंचायत सीईओ दंतेवाड़ा के पद पर रहे हैं। दोनों को हटाकर मंत्रालय में पोस्टिंग तो कर दी गई है, लेकिन कोई विभाग नहीं दिया गया है।
दूसरी तरफ, सचिव स्तर के अफसर नीलम नामदेव एक्का पिछले दो महीने से बिना विभाग के मंत्रालय में हैं। एक्का बिलासपुर कमिश्नर के पद पर थे, और फिर उन्हें हटाकर मंत्रालय में पदस्थ किया गया। इसके बाद से खाली बैठे हैं। हालांकि इससे पहले भी कई अफसरों को पोस्टिंग के लिए महीने भर इंतजार करना पड़ा है। मगर नीलम नामदेव एक्का का इंतजार थोड़ा लंबा हो गया है। देखना है कि एक्का, और बाकी दोनों अफसरों को कब तक पोस्टिंग मिलती है।
दक्षिण और कांग्रेस
आखिरकार प्रदेश युवक कांग्रेस अध्यक्ष आकाश शर्मा को रायपुर दक्षिण से कांग्रेस प्रत्याशी बना दिया गया है। पार्टी के भीतर एक सहमति बन गई थी कि किसी ब्राह्मण चेहरा को ही प्रत्याशी बनाया जाएगा। कई नामों पर चर्चा के बाद नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे और आकाश शर्मा ही रेस में बाकी रह गए थे।
प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने साफ तौर पर किसी नए चेहरे को टिकट देने की वकालत की थी, और उन्होंने आकाश शर्मा का नाम सुझाया था। प्रमोद दुबे के खिलाफ एक गई कि लोकसभा चुनाव में सुनील सोनी के मुकाबले हार का अंतर काफी बड़ा था। सुनील सोनी को 60.01 फीसदी वोट मिले थे, जबकि प्रमोद दुबे को 35.07 फीसदी वोट मिले।
लोकसभा चुनाव में मोदी लहर की तर्कों से हाईकमान सहमत नहीं दिखा। प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने भी आकाश के नाम की वकालत की, और फिर पार्टी ने इस पर मुहर लगा दी। आकाश कांग्रेस के उत्तरप्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिव राजेश तिवारी के दामाद हैं। गौर करने लायक बात यह है कि आकाश एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं, और इसी एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष और महासचिव सूरजपुर में दोहरे हत्याकांड के मुख्य आरोपी हैं। खास बात यह है कि कन्हैया अग्रवाल पिछले चुनावों में सबसे कम वोटों से हारने वाले प्रत्याशी थे, लेकिन पार्टी ने उनकी भी दावेदारी को नजरअंदाज कर दिया। अब टिकट से वंचित प्रत्याशियों का फेसबुक पर दर्द झलका है। कन्हैया ने लिखा कि द्वंद कहां तक पाला जाए, युद्ध कहां तक टाला जाए, तू भी है राणा का वंशज, फेंक जहाँ तक भाला जाए..। प्रमोद दुबे ने लिखा कि न पाने की चिंता न खोने का डर है, जिंदगी का सफर, अब सुहाना सफर है। दोनों का क्या रुख रहता है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
आसान होगा सट्टा किंग को भारत लाना ?
महादेव ऑनलाइन बेटिंग ऐप के जरिये 6000 करोड़ रुपये के मनी लॉंड्रिंग और फ्रॉड के आरोपी सौरभ चंद्राकर को दुबई में गिरफ्तार तो कर लिया गया है लेकिन भारत लाने का काम कम पेचीदा नहीं है। यह कहा जा रहा है कि उसे बहुत जल्द भारत लाया जाएगा लेकिन इसकी प्रक्रिया ढेर सारी है। चंद्राकर को प्रवर्तन निदेशालय की ओर से किए गए अनुरोध के बाद इंटरपोल की तरफ से जारी वारंट के तहत गिरफ्तारी की गई है पर इसे सीधे ईडी को सौंपा नहीं जाएगा। भारत सरकार को अपने राजनयिक के माध्यम से यूएई से प्रत्यर्पण का अनुरोध किया जाना है। ईडी सीधे यह अनुरोध नहीं कर सकती। फिर यह मामला वहां की अदालत को देखना है कि उसे प्रत्यर्पण की मांग उचित लगता है या नहीं। अदालत के संतुष्ट होने के बाद भी अंतिम फैसला सरकार लेगी। भारत और यूएई के बीच प्रत्यर्पण संधि है, जिसके तहत वे अपराधियों को उस देश में सौंप सकते हैं, जहां अपराध किया गया है। यहां तक कि 2011 में किए गए समझौते के तहत दोनों देश सजायाफ्ता कैदियों को सौंप सकते हैं, बशर्ते उसके खिलाफ अन्य कोई मामला लंबित न हो। अब तक जो खबर है कि उसके मुताबिक यूएई सरकार के समक्ष दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए सौरभ चंद्राकर व पूरे केस का अंग्रेजी और अरबी में अनुवाद किया जा रहा है। ये दस्तावेज भी गृह मंत्रालय के माध्यम से जमा किए जाएंगे। अभी तक यह खबर नहीं है कि क्या ये दस्तावेज गृह मंत्रालय को मिल गए और यूएई को सौंप दिए गए? लोग तो यह भी दावा कर रहे हैं कि यदि प्रक्रिया में देर हुई तो सौरभ चंद्राकर जमानत के लिए भी अर्जी लगा सकता है। भारत के दुनिया के 47 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है। इनमें से एक ब्रिटेन भी हैं। प्रत्यर्पण संधि होने के बावजूद नीरव मोदी, ललित मोदी, विजय माल्या, मेहुल चौकसी को वहां शरण मिली हुई है। कुछ के बारे में कहा जा चुका है कि वे ब्रिटेन भी छोड़ चुके हैं। भारत में भगौड़ा घोषित होने के बावजूद ब्रिटेन ने उन्हें जाने दिया। सौरभ चंद्राकर जितना बड़ा सट्टे का साम्राज्य खड़ा कर चुका है, कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि वह भी भारत आने से बचने के लिए ऐसे पैतरें आजमाए।
एसी का कंबल कितना साफ?
रेलवे के वातानुकूलित डिब्बों में यात्रियों को ऊनी कंबल दिए जाते हैं। एक आरटीआई के जवाब में रेलवे ने बताया है कि ये कंबल महीने में केवल एक बार धुलवाये जाते हैं। हालांकि इस जवाब में यह भी दावा किया गया है कि चादर और तकिये का कव्हर हर बार इस्तेमाल के बाद धोया जाता है। जो एसी बर्थ साफ-सुथरा दिखाई देते हैं उनमें रेलवे ऐसे कंबल यात्रियों को दे रही है जो 15-20 या उसके अधिक बार किसी दूसरे यात्री के काम आ चुका है। यदि आपको अपनी सेहत और स्वच्छता की चिंता है तो या तो अपने साथ कंबल लेकर जाएं या फिर सिर्फ चादर ओढक़र ठंड बर्दाश्त करने की हिम्मत रखें।
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बिना भूतपूर्व काफी हैं
रायपुर पश्चिम के विधायक, और पूर्व मंत्री राजेश मूणत अब पूर्व मंत्री कहे जाने पर खिसियाने लगे। सोमवार को रायपुर दक्षिण विधानसभा चुनाव प्रचार की तैयारी बैठक में मूणत ने कह दिया, कि उन्हें पूर्व मंत्री नहीं बल्कि सिर्फ विधायक ही कहा जाए।
मूणत ने आगे साफ कर दिया कि उन्हें कोई समस्या नहीं है, बल्कि उनका सारा काम सांय-सांय हो रहा है। मूणत के भाषण पर कार्यकर्ताओं ने तालियां भी बजाई। भाजपा विधायक दल में मंत्री पद के दावेदार काफी हैं। ऐसे में ज्यादा उम्मीद पालना भी ठीक नहीं है। वैसे भी सीनियर विधायकों का अपना महत्व रहता ही हैै। मूणत की प्रतिष्ठा का मुद्दा, स्कायवॉक तो सरकार ने आगे बढ़ाने का टेंडर निकाल ही दिया है।
कांग्रेस की प्रयोगशाला
सांसद बृजमोहन अग्रवाल अब तक 8 बार विधानसभा चुनाव जीते हैं। बृजमोहन संभवत: अकेले ऐसे प्रत्याशी रहे हैं जिनके खिलाफ हर बार कांग्रेस ने नया प्रत्याशी दिया है। इस बार भी सुनील सोनी के मुकाबले कांग्रेस नया प्रत्याशी उतार रही है।
बृजमोहन ने सबसे पहला चुनाव स्वरूपचंद जैन के खिलाफ लड़ा था, और 3 हजार से भी कम वोटों से जीते थे। इसके बाद स्वरूपचंद जैन ने चुनाव लडऩे से मना कर दिया, और फिर राजकमल सिंघानिया उतरे। सिंघानिया के बाद पारस चोपड़ा को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया। दिलचस्प बात यह है कि ये सभी पराजित प्रत्याशी दोबारा टिकट की मांग नहीं की, और क्षेत्र से कट गए।
राज्य बनने के बाद पूर्व उप महापौर गजराज पगारिया चुनाव मैदान में उतरे। पगारिया के बाद योगेश तिवारी, और फिर डॉ. किरणमयी नायक को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया। इसके बाद वर्ष-2018 में कन्हैया अग्रवाल को पार्टी ने टिकट दी। कांग्रेस के पक्ष में हवा थी फिर भी कन्हैया चुनाव हार गए। कन्हैया तकरीबन 15 हजार वोटों से चुनाव हारे। इसके बाद 2023 में महंत रामसुंदर दास को टिकट मिली। उन्हें सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा।
दिलचस्प बात यह है कि कन्हैया को छोडक़र बृजमोहन को हराने वाला कोई भी उम्मीदवार क्षेत्र में सक्रिय नहीं रहा। यही वजह है कि बृजमोहन अग्रवाल के लिए एक तरह से खुला मैदान ही रहा। अब कन्हैया सक्रिय थे, लेकिन पार्टी ने उनका नाम आगे नहीं बढ़ाया। ये अलग बात है कि बृजमोहन अग्रवाल चुनाव मैदान में नहीं है। देखना है आगे क्या होता है।
ओहदा पहले पदोन्नति बाद में
राज्य पुलिस सेवा के वरिष्ठतम अफसरों को आईपीएस अवार्ड होने में अभी कुछ लंबा इंतजार करना होगा। कम से कम दो, तीन वर्ष । क्योंकि पूर्व में प्रमोटियों के रिटायरमेंट में इतना समय शेष है। ऐसे में इन वरिष्ठतम अफसरों ने यह युक्ति निकाली, और सरकार ने भी मंजूरी दे दी। कोयला घोटाले की वजह से वैसे बीते तीन चार वर्ष में आईएस अवार्ड के दावेदार राज्य प्रशासनिक सेवा वाले भी ऐसे ही पिछड़ गए हैं। अब राज्य सेवाओं के दोनों कैडर बराबर खड़े हो गए हैं।
रापुसे अफसरों की बात करें तो 1998-99 बैच के प्रफुल्ल ठाकुर और विजय पांडे 2022,23 के सलेक्शन लिस्ट में अब आए हैं। और इनके बाद देवव्रत सिरमौर,श्री हरीश, राजश्री मिश्रा,श्वेता सिन्हा की बारी है। उनके बाद विनय बैस से सुजीत कुमार के बैच की। इनके आईपीएस अवार्ड के लिए कम से कम तीन वर्ष लगेंगे। हालांकि ये सभी आईपीएस के समकक्ष कि वेतनमान पा ही रहे हैं। केवल एसपी के अंडर से निकलना चाह रहे थे। सो पूरी योजना बनाकर सरकार से चर्चा की गई और मिल गई हरी झंडी। ये सभी अब एसपी स्तर का पद सम्हालेंगे, और अवार्ड का इंतजार करेंगे। वैसे ऐसी अघोषित पदोन्नति की शुरुआत रमन सरकार ने की थी और फिर बघेल सरकार ने आगे बढ़ाया। इस आदेश के बहाने इनमें से कुछ राजधानी लौटने में सफल रहे। यह कहते हुए कि पिछली सरकार में प्रताडि़त रहे हैं।
बिना खर्च प्रमोशन
जब पदोन्नति की बात आई है तो अन्य विभागों पर भी बात कर लें। जहां सबसे बड़ा पेंच आरक्षण को बताया जाता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट ने 2019 में ही कह दिया था कि हमारे अगले अंतिम आदेश तक अंतरिम पदोन्नति दी जा सकती है। इसके बाद सभी विभागों में भृत्य से लेकर डिप्टी कलेक्टर स्तर के ग्रेड-1 के पदों पर पदोन्नति दी गई, और दी जा रही है। केवल दोनों शिक्षा विभागों को छोडक़र। स्कूल शिक्षा में 2011 के बाद से लेक्चरर से प्रिंसिपल, उप संचालक से संयुक्त संचालक की पदोन्नति लटकी पड़ी है। तो उच्च शिक्षा में सहायक प्राध्यापक से प्राध्यापक,और प्राध्यापक से प्राचार्य। स्कूलों में 3734 तो 300 से अधिक कॉलेज प्राचार्य विहीन।
फील्ड में इस संवर्ग के लोगों का कहना है कि पहले से इस ग्रेड में पदोन्नत और मंत्रालय, संचालनालय में कार्यरत उनके अपने ही लोग, निचले क्रम के लोगों की पदोन्नत होने देना नहीं चाहते। जबकि दोनों ही विभागों पर एक रूपए का व्यय भार नहीं आना है। सभी समकक्ष वेतन पा ही रहे हैं। इसलिए वे पहले आरक्षण का पेंच लाते रहे और अब क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट की फांस। बस, वरिष्ठता को प्राप्त ये शिक्षक, प्रोफेसर केवल प्राचार्य के रूप में आत्म संतुष्टि के लिए पदोन्नति चाहते हैं। सरकार चाहे तो तदर्थ पदोन्नति दे दे या वरिष्ठता के आधार पर उनके नाम के आगे प्राचार्य का पदांकन कर दे। इस विकल्प के साथ स्कूलों के व्याख्याता, जल्द सरकार से मिलने जाएंगे।
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सुनील सोनी से कहीं ख़ुशी कहीं गम
सुनील सोनी के प्रत्याशी घोषित होने के बाद से भाजपा के अंदरखाने में काफी हलचल है। टिकट के बाकी दावेदार नाखुश हैं। हालांकि सोनी, और अन्य पदाधिकारी उन्हें मनाने की कोशिश में लगे हैं। कुछ ने तो संगठन नेतृत्व से मिलकर खुद के लिए झारखंड, और महाराष्ट्र में चुनाव ड्यूटी मांग ली है।
दरअसल, टिकट से वंचित इन नेताओं को निगम-मंडलों में पद की आस है। इस वजह से ये नेता सार्वजनिक तौर पर प्रतिक्रिया से बच रहे हैं। सांसद बृजमोहन अग्रवाल को टिकट के दावेदारों की नाराजगी का अहसास भी है। यही वजह है कि बृजमोहन खुद नाराज नेताओं से बातचीत कर रहे हैं। इनमें से एक-दो को तो वो मनाने में कामयाब भी हो चुके हैं। कुछ तो सोनी के साथ फोटो खिंचवा चुके हैं।
टिकट के दावेदारों में एक रमेश ठाकुर ने सुनील सोनी को विजयी बनाने के लिए वाल राइटिंग भी कराना शुरू कर दिया। टिकट के लिए जो मजबूत दावेदार माने जा रहे थे उनमें मनोज शुक्ला हैं। मनोज ने भी फेसबुक पर लिखा है कि कार्यकर्ताओं के मसीहा सुनील सोनी रायपुर दक्षिण के उम्मीदवार, अब की बार एक लाख पार। सुनील सोनी के करीबियों का मानना है कि जल्द ही सभी नेता प्रचार में जुटेंगे। वाकई ऐसा होगा, यह देखना है।
रिकार्ड बनेगा या बदला
दक्षिण के दंगल में रिकॉर्ड बनेगा या बदला यानी (एवज)मिलेगा, यह ठीक एक माह बाद पता चलेगा। यह दोनों तभी संभव है जब कांग्रेस से प्रमोद दुबे को टिकट मिल जाएगी। डिटेल यह है कि 2019 के लोस चुनाव में सुनील सोनी ने प्रमोद दुबे को सवा तीन लाख वोटों से हराया था। और अब दोनों फिर से आमने-सामने होने वाले हैं। सोनी जीते तो एक ही प्रतिद्वंद्वी को दो बार हराने का रिकार्ड बनेगा। यदि प्रमोद जीते तो लोस में हार का विधानसभा में बदला लेंगे।
जैसा पूर्व विधायक, सांसद बृजमोहन अग्रवाल कह रहे हैं कि दक्षिण को दो विधायक मिलेंगे। नतीजे प्रमोद के फेवर में रहे तो वे दो पर जीत दर्ज करेंगे। क्योंकि प्रमोद, बृजमोहन से भी हार चुके हैं। वैसे सोनी एक रिकार्ड और बना सकते हैं, वो यह कि दक्षिण में जीत कर महापौर, सांसद और विधायक तीनों बनेंगे। लेकिन प्रदेश उपाध्यक्ष सोनी, पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडे का रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाएंगे। सरोज एक ही कार्यकाल में तीनों पद पर रहीं हैं।
श्रीनिवास की राह आसान नहीं
राष्ट्रीय वन खेल उत्सव का समापन हो गया। यह उत्सव अपने खर्चों के लिए ज्यादा चर्चा में रहा। विभाग के एक बड़े अफसर ने अपने बैचमेट के रुकने-ठहरने की व्यवस्था सबसे महंगे मेफेयर होटल में की थी। जबकि उनसे सीनियर कई अफसर अपेक्षाकृत छोटे होटल में रुकवाया गया था। खेल उत्सव के समापन के बीच हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स वी श्रीनिवास राव ने केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन किया है।
चर्चा है कि राज्य सरकार ने इसकी अनुशंसा भी की है। उनका नाम डीजी फॉरेस्ट के लिए चर्चा में है। हालांकि इस पद के लिए देशभर के कुल 25 आईएफएस अफसर दौड़ में हैं। राव के लिए थोड़ी दिक्कत यह हो सकती है कि आरा मशीन घोटाला प्रकरण में विधानसभा की लोक लेखा समिति उन्हें (राव) बरी करने के खिलाफ राज्य सरकार से कारण पूछ रही है।
यही नहीं, हाईकोर्ट ने कुछ दिन पहले राव की हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स की नियुक्ति के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान इस बात पर नाराजगी जताई थी कि सरकार कोई जवाब नहीं दे रही है। अगले महीने इस पर फैसला आ सकता है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
ग्रह नक्षत्र का चक्कर
प्रदेश में कानून व्यवस्था और प्रशासनिक अराजकता की चर्चाओं के बीच खबर है कि एक वरिष्ठ नेता ने ज्योतिषी और तांत्रिक की राय ली थी। यह खबर थोड़ी पुरानी है। दरअसल, लगातार ऐसी घटनाएं हो रही थीं कि पूरी पार्टी और सरकार पर उंगलियां उठ रही थी। विपक्ष ने भी बड़े जोर शोर से मुद्दा उठाया। ऐसा लग रहा था कि सरकार में बड़ा बदलाव होने वाला ही है। ऐसे में एक नेताजी की पत्नी ने सिद्ध तांत्रिक से बात की। तांत्रिक ने जो भी विधि बताई, उसका असर अब दिख रहा है। विपक्ष के विरोध के केंद्र में अब कोई और है। तंत्र क्रिया के बाद नेताजी सेफ हो गये हैं। अब जो नेता निशाने पर हैं, उन्हें भी अपना ग्रह नक्षत्र एक बार शांत करा लेना चाहिए। क्या पता चुनाव के बाद क्या बदलाव हो जाए।
उड़ान इतनी तेज भी नहीं..
उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) योजना की सातवीं वर्षगांठ पर कल अंबिकापुर के मां महामाया एयरपोर्ट से हवाई सेवा का उद्घाटन कर दिया गया। उद्घाटन पहले हो गया लेकिन नियमित उड़ानों का कोई शेड्यूल जारी नहीं किया गया है। ऐसे उद्घाटन का औचित्य ही लोगों को समझ नहीं आया। हरी झंडी तो तभी दिखाई देनी चाहिए, कोई सुविधा शुरू हो रही हो। मगर शायद वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए ऐसा कर दिया गया। इस मौके पर केंद्र के उड्डयन मंत्रालय ने सात वर्षों की उपलब्धियों का खाका जारी किया है। इसमें बहुत सी उपलब्धियों के साथ बताया गया है कि घरेलू उड़ानों को प्रोत्साहन देने के लिए कितनी तरह की रियायतें दी जा रही हैं। यह भी कहा गया है कि देश में एयरपोर्ट की संख्या दस वर्षों में 74 से बढक़र 157 हो गई है। इनमें बिलासपुर और अंबिकापुर जैसे एयरपोर्ट भी शामिल हैं। अंबिकापुर जहां से यात्री सेवाएं शुरू ही नहीं हुई हैं और उद्घाटन कर दिया गया है। कौन सी उड़ानें, कहां की उड़ानें कब शुरू होंगी पता नहीं है। बिलासपुर से यात्री विमान सेवा चालू है लेकिन यहां से उड़ानों की संख्या इतनी अनियमित है कि बिलासपुर व सरगुजा संभाग के लोग रायपुर से ही फ्लाइट लेना पसंद करते हैं। यहां पर एयरपोर्ट की जमीन का एक बड़ा हिस्सा रक्षा मंत्रालय के कब्जे में है। इसके लिए अदालत से लेकर सडक़ तक लड़ाई लड़ी जा रही है ताकि 3सी और 4सी विमानों को उतारा जा सके। नाइट लैंडिंग की सुविधा पर भी हाईकोर्ट के निर्देश पर काम हुआ है पर इसके उपकरण अब तक नहीं लगे हैं। न बड़े हवाई जहाज यहां से उड़ान भर सकते और न ही रात में ऑपरेशन किया जा सकता। उड्डयन मंत्रालय द्वारा उड़ान योजना का सातवीं वर्षगांठ पर जारी वक्तव्य बताता है कि हवाईअड्डों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई, यात्रियों की संख्या भी दोगुनी हो गई लेकिन कहां-कहां अधूरे काम हैं, जिनके चलते उड़ान की रफ्तार धीमी है, इसका पता नहीं चलता। वैसे, एक सरकारी आंकड़ा यह भी कहता है कि इन 157 हवाई अड्डों में से 131 में ही नियमित उड़ान सेवा इस समय एएआई संचालित कर रहा है। (rajpathjanpath@gmail.com)
बैस की संभावनाएं
पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने फिर से भाजपा की सदस्यता ले ली है। वो सक्रिय सदस्य बन गए हैं। बैस सक्रिय राजनीति में लौटना भी चाहते हैं। पार्टी के कुछ नेताओं ने उन्हें सलाह भी दी है कि वो कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में नियमित रूप से बैठें, और कार्यकर्ताओं की समस्याओं का निराकरण भी करें।
चर्चा थी कि बैस को कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में कमरा अलाट होने वाला है। मगर यह अभी तक नहीं हुआ है। उनके पुराने जान पहचान के लोग ही मिल रहे हैं। पदाधिकारी, और जन प्रतिनिधि तो उनसे दूरी बनाए हुए हैं। सुनते हैं कि बैस रायपुर के एक विधायक को तीन बार फोन कर चुके हैं, और मिलने के लिए बुला चुके हैं। मगर विधायक अभी तक बैसजी से मिलने के लिए टाइम नहीं निकाल पाए हैं। ऐसी स्थिति में बैस जी पहले जैसे सक्रिय रहेंगे, इसकी संभावना कम दिखती है।
चार सीटों का मेयर या विधायक
भाजपा से रायपुर दक्षिण के लिए दावेदारी करते रहे मृत्युंजय दुबे, केदार गुप्ता, मीनल चौबे, सुभाष तिवारी, अंजय शुक्ला, रमेश ठाकुर और अन्यान्य से यही कहा जा सकता है- हार्ड लक, बेटर ट्राय नेक्स्ट टाइम। वैसे यह सभी त्रिकोण में फंसकर, असमंजस में ही दावेदारी कर रहे थे, कि दक्षिण या मेयर, या फिर निगम-मण्डल। और अब पार्टी को भी आसान हो जाएगा, नाम छांटने में कि कौन मेयर, सभापति और कौन निगम मंडल।
अब दरअसल, बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद से ये सभी प्रबल दावेदार रहे हैं, लेकिन तय नहीं कर पा रहे थे किसकी दावेदारी करें। इसमें एक पेंच और है। महापौर का पद आरक्षण से तय होगा। वर्तमान में महापौर का पद अनारक्षित है। ऐसे में संभव है कि यह पद पिछड़ा वर्ग या फिर महिला के लिए आरक्षित हो सकता है। इन सबके चलते भी कई की दावेदारी स्वाभाविक तौर पर खत्म हो जाएगी।
दूसरी तरफ, महापौर या विधायक के पद, कार्यक्षेत्र ये नजरिए से देखें तो महापौर ही बड़ा पद। फिर इस बार पार्षदों से नहीं सीधे जनता से चुना जाना है। बहुमत का टेंशन नहीं। 70 वार्डों में कहीं का गड्ढा कहीं पट जाएगा। उसके बाद तो व्हाइट हाउस की छत से शहर देखकर कहा जा सकता है -अगले पांच साल ये शहर मेरा है। और बजट देखे तो दो करोड़ की विधायक निधि, सांसद-सरकार और निगम पर निर्भर रहना होगा । महापौर मतलब चारों विधानसभा क्षेत्र, 70 वार्ड, 2 हजार करोड़ का बजट, बड़े-बड़े बिल्डर डेवलपर से वास्ता। इन दोनों चुनाव में जेब खर्च होने के बाद भी जीत की गारंटी 50-50। हींग लगे न फिटकरी वालों के लिए निगम मंडल ही बेहतर।
वंदेभारत का भविष्य वहां है...
यह तस्वीर आज सफर करने वाले यात्री ने भेजी है...
रायपुर वाइजैग वंदेभारत को आज एक माह पूरे हो गए। रेलवे के पैसेंजर बिजनेस के हिसाब से यह ट्रेन अब तक नुकसान में ही चल रही है। 16 कोच की ट्रेन में कुल 1128 सीटें हैं और यह ट्रेन इनमें से 37-40 प्रतिशत बुकिंग पर ही चल रही है। यानी आपरेशन कॉस्ट भी नहीं निकल रही। इसे देखते हुए इस ट्रेन के ओनर रायपुर रेल मंडल ने एक माह और आब्जरवेशन आपरेशन करने का फैसला किया है। उसके बाद ट्रेन को बंद तो नहीं करेगा, लेकिन इसके 16 कोच कम किए जा सकते हैं। यानी 8-10 कोच से चलाई जा सकती है। बाकी कोच से रायपुर जबलपुर व्हाया गोंदिया चलाने की चर्चा टीटियों के बीच जमकर है। ऐसा होने से अमरकंटक एक्सप्रेस के सारे यात्री डायवर्ट होंगे और रायपुर रेल मंडल को नया बिजनेस रूट मिलेगा या फिर बिलासपुर- नागपुर वंदेभारत को ही 8 से बढ़ाकर 16 कोच किया जा सकता है। मेन लाइन पर डिमांड बहुत है। इन टीटीई की माने तो दुर्ग वाइजैग तक रेल खंड पर वंदेभारत बिजनेस का अलग अलग है। दुर्ग, रायपुर महासमुंद से वाइजैग तक औसत सीट बुकिंग 180-200 के साथ किसी दिन 300 भी रही। उसके बाद कांटाभांजी टिटलागढ़ केसिंगा, रायगढ़ से वाइजैग अप डाउन दोनों में 250-300। इसके पीछे कारण ओडिशा के इन शहरों-कस्बों के लिए सुबह जाकर शाम 8 बजे वापसी के लिए बेहतर कनेक्टिविटी मिल रही है। इसलिए कहा जा रहा है कि वाइजैग वंदेभारत का भविष्य पश्चिम ओडिशा पर निर्भर रहेगा।
राइट टाइम आवाजाही से ट्रेन पसंद तो की जा रही है। रायपुर से छूटते ही महासमुंद में ब्रेकफास्ट, पार्वतीपुरम के आसपास लंच में रोटी, दो सब्जी, दाल, चावल,दही आचार के साथ क्वालिटी लंच पैक परोसा जाता है। विजयनगरम में आइसमक्रीम की ठंडक का मजा लीजिए। सब कुछ ठीक है मगर भाड़ा महंगा है।
एंटोफगास्ता में लुटने वाले..
एंटोफगास्ता नाम कुछ अजीब है। ऑनलाइन फ्रॉड करने वाले ऐसे ही अजीबो-गरीब नाम का इस्तेमाल करते हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ के सरगुजा, बलरामपुर और रायगढ़ जिले से खबर आई है कि दर्जनों गांवों के 2-3 हजार लोग इसमें निवेश करके करोड़ों रुपये गंवा बैठे हैं। जिनके रुपये डूबे उनमें से कई लोगों पर लाखों रुपये का कर्ज डूब गया है कई की अचल संपत्ति बिक गई है। कुछ ने महंगे ब्याज पर पैसे लिए, अब चुकाने की सोचकर सिर चकरा रहा है। यह ऐप छोटा-छोटा निवेश करने और जल्दी रिटर्न का झांसा देता था। जैसे 500 रुपये लगाएं, 7 दिन में 50 प्रतिशत रिटर्न पाएं, 14 दिन मं 100 प्रतिशत और एक माह में 200 प्रतिशत रिटर्न। सन् 2021 से चल रहे ऐप में लोगों को पैसे लौटाए भी जा रहे थे। यह धोखाधड़ी का एक तरीका था, जिससे लोगों का विश्वास जम जाए। पर अचानक यह ऐप बंद हो गया। छत्तीसगढ़ ही नहीं, नेट को खंगालने पर पता चलता है कि तमिलनाडु सहित दक्षिण के कई राज्यों में ऐसे निवेश के चक्कर में लोग करोड़ों रुपये डुबा बैठे हैं।
एंटोफगास्ता चिली गणराज्य का एक हिस्सा है। इस नाम से कॉपर की एक माइनिंग कंपनी भी है। कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर लिख रहा है कि हमारे नाम पर कोई निवेश करने के लिए ऑफर देता है तो कानूनी रूप से वे इसके लिए बाध्य नहीं होंगे। यानि यह फ्रॉड अंतरराष्ट्रीय स्तर का भी हो सकता है। यह ऐप पहले कभी गूगल प्ले पर उपलब्ध रहा या नहीं, पर आज मौजूद नहीं है। कुछ साल पहले बिडक्वाइन के नाम से मिलते जुलते वर्चुअल मनी निवेश करने का ऑफर देने वाले दर्जनों ऐप गूगल पर दिखने लगे थे। गूगल ने सबको अपने प्ले स्टोर से हटाया। इसके बावजूद लोग वाट्सएप या टेलीग्राम से मिले लिंक पर जाकर ऐप डाउनलोड करते हैं। दिक्कत यह है कि इस निवेश में फंसने वाले लोग मजदूर, छोटे दुकानदार व सीमित वेतन की प्राइवेट जॉब करने वाले लोग हैं। ज्यादातर लोगों की शिकायत पुलिस तक पहुंची भी नहीं है। इन दिनों पूरे प्रदेश में पुलिस साइबर फ्रॉड से बचने के लिए लोगों के बीच जागरूकता अभियान चला रही है, मगर शातिर ठग अपना काम जारी रखे हुए हैं। लोगों को यह समझना नहीं है कि यदि कोई आपको आपकी शारीरिक दक्षता और तकनीकी दक्षता का उपयोग किये बिना बड़ा और अविश्वसनीय रिटर्न देने की बात करता है तो वह धोखाधड़ी के अलावा कुछ नहीं हो सकता।
करवा चौथ पर मंगल कामना
प्रेम की अभिव्यक्ति के भिन्न भिन्न तरीके हो सकते हैं। बॉलीवुड में हजारों गाने प्रेम दर्शाने पर तैयार हो चुके हैं। पर हर बार कहने का अंदाज नया होता है, इसलिए चल रहे हैं। ऐसे ही अलग अंदाज में मेंहदी रचाकर एक विवाहिता ने अपने पति के लिए जाहिर की है। वैसे ऐसा लगता है कि पति घर जमाई है।
भाई की शिकायत नड्डा से
रायपुर की पूर्व विधायक श्रीमती रजनी ताई उपासने के परिवार का झगड़ा पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं तक पहुंच गया है। रजनी ताई के पुत्र वरिष्ठ पत्रकार जगदीश उपासने ने टिकरापारा स्थित अपने पैतृक निवास की तस्वीर एक्स पर साझा की है, और वहां लूटपाट का आरोप लगाया है। यह आरोप किसी और पर नहीं, बल्कि अपने छोटे भाई सच्चिदानंद उपासने पर लगाया है।
उपासने ने लिखा कि छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार आने के बाद स्थानीय नेताओं की बढ़ती गुंडागर्दी पार्टी को डुबो देगी। प्रदेश भाजपा के स्थानीय दलाल नेताओं की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि वे बूढ़ी, बीमार माताओं के घरों में दिन दहाड़े डकैती डालने लगे! कोई बेटा अपनी के घर का ताला तोडक़र उसके घर में दिन दहाड़े डकैती डाल सकता है? हां, जरूर अगर बेटा भाजपा का नेता हो, और उस राज्य में भाजपा की सरकार हो! छत्तीसगढ़ भाजपा के ऐसे ही जमीनों के दलाल और दुर्भाग्य से मेरे छोटे भाई सच्चिदानंद उपासने और उनके साथी आलोक श्रीवास्तव ने अपने साथियों संग हमारी माता, रायपुर की पूर्व विधायक 92 वर्षीय श्रीमती रजनी ताई उपासने के घर-ऑफिस के ताले तोडक़र उसमें रखा सामान लूट लिया।
भाजपा का इस नेता को तीन साल से अपनी बीमार मां से मिलने उसके घर आने की फुर्सत नहीं मिली। लेकिन मां के घर का ताला तोडऩे की फुर्सत मिल गई। नरेन्द्र मोदी की उपलब्धियों पर भाजपा के लोकल नेता किस तरह पानी फेरते हैं यह उसकी एक मिशाल है। छत्तीसगढ़ में अपराधों का ग्राफ ऐसे ही ऊपर नहीं जा रहा! उन्होंने जेपी नड्डा और सीएम विष्णुदेव साय को टैग करते हुए लिखा कि मुझे उम्मीद नहीं कि रायपुर पुलिस इसकी रिपोर्ट दर्ज करेगी। (rajpathjanpath@gmail.com)
संघ वाले, और बिना संघ वाले
रायपुर दक्षिण के दावेदारों में आरएसएस के सबसे निकट कौन है, इस पर भाजपा के अंदरखाने में चर्चा चल रही है। कुछ लोग प्रदेश कोषाध्यक्ष नंदन जैन को आरएसएस के सबसे ज्यादा करीब बता रहे हैं। नंदन के पिता दिवंगत कुंदन जैन आरएसएस के रायपुर महानगर के प्रमुख रहे हैं। नंदन के लिए रायपुर के राममंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने भी सिफारिश की है। मगर सुनील सोनी का बैकग्राउंड भी आरएसएस का रहा है।
पूर्व सांसद सुनील सोनी के पिता आजादी के पहले आरएसएस से जुड़ गए थे। सुनील सोनी को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उनके पिता की वजह से ही जानते थे। सुनील सोनी ने एबीवीपी से जुडक़र राजनीति की शुरूआत की। फिर दुर्गा कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष बने। बाद में पार्षद, दो बार मेयर, आरडीए चेयरमैन और फिर सांसद बने।
विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें प्रदेश चुनाव प्रबंध समिति का मुखिया बनाया था। सोनी विधानसभा चुनाव में चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया के साथ मिलकर काम किया। लोकसभा टिकट कटने के बाद भी वे डटे रहे। और यही वजह है कि सांसद बृजमोहन अग्रवाल और कई प्रमुख नेता उन्हें विधानसभा प्रत्याशी बनाने के पक्ष में हैं।
बाकी दावेदारों में संजय श्रीवास्तव, केदार गुप्ता, मीनल चौबे और मृत्युंजय दुबे का आरएसएस से सीधा वास्ता नहीं रहा लेकिन भाजपा संगठन में काफी सक्रिय रहे हैं। संजय ने विधानसभा चुनाव में सरगुजा संभाग के प्रभारी के तौर पर काम किया था। केदार चुनाव के दौरान मीडिया में पार्टी का चेहरा बने रहे। मीनल और मृत्युंजय की सक्रियता भी कम नहीं रही है। ऐसे में पार्टी किस पर मुहर लगाती है, यह एक दो दिनों में साफ हो जाएगा।
थैले में मोबाइल और छापे
मैडम ने पिछले दिनों आबकारी विभाग के सारे जयचंदों को बदल डाला। हालांकि इसके पीछे उन्हें कड़ी मेहनत मशक्कत करनी पड़ी। कुल 637 दुकानों में से मैडम ने कम से कम 400 दुकानों का औचक निरीक्षण और आनलाइन वेब कास्टिंग भी किया। इसके लिए वो बस्तर कह कर सरगुजा जाती। इसके पीछे भी इन 10 महीनों में ही मैडम का दिलचस्प अनुभव रहा है। होता यह था कि जब भी मैडम जिलों के औचक निरीक्षण पर जाती,वहां सब कुछ नीट एंड क्लीन बिजनेस मिलता। और लौटना पड़ता था। मगर मैडम का मन संतुष्ट नहीं रहता, लगता कुछ गड़बड़ी चल रही है। मालूम चला कि दौरे पर मैडम के साथ तीन अन्य गाडिय़ों में जाने वाले विभाग के ही लोग उस जिले के जिला आबकारी अधिकारियों (डीईओ) और अमले को अलर्ट कर देते। यह बहुत दिनों तक चलता रहा।
फिर मैडम ने तरीका बदला। सरगुजा जाना बताकर बस्तर की ओर निकल पड़ती। कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाने की तर्ज पर। मैडम एक थैली लेकर दौरे पर रवाना होने लगी। बीच रास्ते वह अपने पीछे की तीन गाडिय़ों के एक-एक व्यक्ति का मोबाइल फोन थैली में जमा करवा लेतीं। इससे उस जिले के डीईओ और अमले को मैडम की दबिश का पता नहीं चलता। और मैडम, ओवर रेटिंग, शराब में पानी मिलावट, कोचिया कारोबार, पड़ोसी राज्यों की शराब ढुलाई जैसी गड़बड़ी आन द स्पॉट और वेबकास्टिंग से पकड़तीं रही। ऐसी गड़बडिय़ों को राजधानी जिले से लेकर चांपा जांजगीर,कोरबा,रायगढ़ बिलासपुर, मुंगेली के डीईओ के साथ उडऩदस्ते के अमले ने भी खूब प्रश्रय दिया।
जब मैडम हिसाब करने बैठीं तो अप्रैल से सितंबर तक दो सौ करोड़ की राजस्व हानि निकली। फिर मैडम ने इन सारे जयचंदों को बदल डाला। हालांकि इनमें से रायपुर,बिलासपुर के डीईओ को बचाने कई दिग्गजों ने जोर लगाया। मगर इसमें सीएम साहब ने मैडम को पूरा फ्री हैंड दिया था। और फिर सीएम साहब ने भी किसी की एक न सुनी।
तूफान के पहले की शांति
राष्ट्रीय वन खेल उत्सव के चलते विभाग में सब कुछ फिलहाल ठीक ठाक चल रहा है। हर अफसर एक दूसरे की और हर कर्मचारी अफसर की बात सुन और काम कर रहा है। क्योंकि इतने बड़े आयोजन से अपनी और प्रदेश की छवि मानकर सक्रिय हैं। लेकिन यह तूफान के पहले की शांति जैसा है। कल रविवार को खेलों का समापन समारोह हो जाएगा। उसके बाद नौ हजार कर्मचारियों का विभागीय संगठन हड़ताल जैसा कदम उठाने की रणनीति बना रहा है। इस संगठन के हाल में चुनाव भी हुए हैं। सभी जोश से भरे हैं जल्द ही बैठकर डेट तय करेंगे। हड़ताल का असर हाल में विभाग देख चुका है। जब 5000 वह भी दैवेभो तूता में 48 दिनों तक डटे रहे तो विभाग पटरी से उतर गया था। फिर ये तो नियमित 9 हजार लोग हैं।
इनका कहना है कि विभाग के पास 10 वर्ष से हमें इंक्रीमेंट देने 5 करोड़ नहीं है। और खेलों के लिए राज्य के बजट से 7.5 करोड़ खर्च किए गए । और यह आयोजन पहली बार नहीं तीसरी बार हो रहे। और हमारी मांग तब से चली आ रही है। वृक्षारोपण के लिए फंड नहीं।
वन विभाग के गार्डन बंद होने कगार पर हैं।
चौकीदारों के वेतन भुगतान में मुश्किल हो रही। खर्च के चलते कृष्ण कुंज, औषधीय उद्यान, आक्सीजोन की देख रेख से विभाग ने हाथ खींच लिया है। और खेल कूद के नाम पर किटी पार्टी की तरह वार्षिक आयोजन के लिए करोड़ों रूपये को पानी की तरह बहाए जा रहे। खेलों से पहले खेल कोटे से विभाग में भर्ती भी कर ली गई। केवल इसलिए कि पदक तालिका में छत्तीसगढ़ सबसे आगे दिखे। सच्चाई यह है कि पिछले वर्षों में हुई भर्तियों के एक भी खिलाड़ी का व्यक्तिगत या टीम स्तर पर भी भारतीय टीम में चयन नहीं हुआ। जो एशियाड, ओलंपिक या अन्य राष्ट्रीय खेलों में गया हो। यही अफसर कहते भी हैं कि खेल कूद तो ठीक है इसके बहाने आईएफएस बैचमेट्स का एन्यूअल गेट टू गेदर हो जाता है। ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि छत्तीसगढ़ में कुल 54 विभाग हैं उन्हें खेलों की जरूरत नहीं है केवल वन विभाग के। इसके पीछे कारण तलाशने होंगे।
बस्तर से एक और संभावना
बस्तर की विषम सामाजिक, राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थितियों के बीच प्रतिभाओं का सामने उभर कर आना और राष्ट्रीय स्तर पर लोहा मनवाने का सिलसिला रुद्र प्रताप देहारी ने आगे बढ़ाया है। अत्यंत पिछड़े और धुर नक्सल प्रभावित कटे कल्याण से रुद्र ने अपनी मेहनत से क्रिकेट में जगह बनाई। वीनू मांकड़ ट्रॉफी के मैच में उन्हें मैन ऑफ द मैच का खिताब मिला, साथ ही नगद पुरस्कार भी।
धान खरीदी में हड़ताल की बाधा
धान उपार्जन केंद्रों के डाटा एंट्री ऑपरेटरों ने अपने को शासकीय सेवा में लेने की मांग पर 18 सितंबर से हड़ताल शुरू की थी, जो आज दो माह पूरे हो गए। इधर सरकार ने धान खरीदी की तिथि तय कर दी है। 31 अक्टूबर तक किसानों का पंजीयन होना चाहिए। पंजीयन का कार्य डाटा एंट्री ऑपरेटरों क जरिये ही होना है। इसके अलावा खाद-बीज के लिए ऋण वितरण की ऑनलाइन एंट्री भी इन ऑपरेटरों के जरिये ही होती है। यह एंट्री भी बंद ही है।
प्रदेश में 2700 से अधिक ऑपरेटर हैं और किसानों की संख्या 25 लाख से अधिक। यदि पंजीयन की तारीख नहीं बढ़ाई गई तो आपाधापी मचना तय है। डाटा एंट्री ऑपरेटर करीब 15-17 साल से काम कर रहे हैं। शायद यदि इनकी मांग न मानकर नई भर्ती पर विचार करेगी तब भी उसमें काफी समय लग सकता है। एक विकल्प यह भी है कि शासकीयकरण की मांग पर बाद में विचार करने का आश्वासन दिया जाए और वर्तमान में मिल रहे मानदेय में वृद्धि कर दी जाए। वैसे इन्हें सोमवार तक काम में लौटने का अल्टीमेटम दिया गया है। उसके बाद ही सरकार का रुख सामने आएगा। (rajpathjanpath@gmail.com)
विधायक या छाया विधायक
उपचुनाव की घोषणा के दिन सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने मीडिया से कहा इस बार दक्षिण के लोगों को दो विधायक मिलेंगे। पत्रकार चौंक गए, कि एक सीट पर दो विधायक कैसे। उन्होंने कहा एक जो नया निर्वाचित होगा और दूसरी मैं। मैं आठ बार से विधायक रहा हूं मैं भी विधायक की ही तरह क्षेत्र के विकास के लिए काम करूंगा। अब इस बयान में राजनीति देखने वाले विपक्ष, और भाजपा के ही लोग कई तरह की बातें कर रहे। वो कह रहे नए विधायक और निगम, आरडीए, जिला या पुलिस प्रशासन को उनके कहे अनुसार ही काम करना होगा। नए विधायक को हर काम से पहले उनसे पूछना पड़ेगा।
नई योजनाओं के प्रस्ताव उनसे बनवाने और अनुमति लेनी होगी। यानी वो छाया विधायक (निर्वाचित) की तरह होगा। बस विधायक कहलाएगा। भाजपा में अब इस मनस्थिति के नामों पर चर्चा हुई तो सबसे ऊपर नाम सुनील सोनी, मनोज शुक्ला ही निर्विवादित नाम रहे। ये दोनों उनसे अलग जा ही नहीं सकते। बाकी संजय श्रीवास्तव, मृत्युंजय दुबे, मीनल चौबे, सुभाष तिवारी, केदार गुप्ता, नंदन जैन इनके अपने-अपने इश्यू, और खेमे हैं। जब कांग्रेस के नाम गिने गए तो सभी दावेदार एजाज ढेबर, प्रमोद दुबे, कन्हैया अग्रवाल, बृजमोहन के अनुकूल नाम रहे। अब देखना होगा कि लॉटरी किसकी लगती है।
पुलिस, परिवहन को नहीं दिख रहे ?
राजधानी में 14 अक्टूबर से बिना रेजिस्ट्रेशन के 65 से अधिक यह गाडिय़ां दौड़ रहीं हैं। बिना नंबर की स्कूटी पर चालान काटने में न चूकने वाली ट्रैफिक पुलिस के एक हजार जवान और अधिकारी को चिढ़ाते हुए फर्राटे भर रही हैैं। ये सभी गाडिय़ां वन विभाग ने पिछले सप्ताह ही खरीदे और राष्ट्रीय खेल में आए खिलाडिय़ों-कोच मैनेजर को अलॉट किया है। इन गाडिय़ों को बिना रजिस्ट्रेशन नंबर के शो रूम से बाहर कैसे निकलने दिया परिवहन विभाग ने?
विभाग ने तो परचेस होते ही नंबर प्लेट लगाकर डिलीवरी की अधिसूचित किया हुआ है। इस नियम पर किसी निजी गाड़ी को शो रूम के बाहर ही पकडऩे को मुस्तैद पुलिस के हाथ क्यों बंधे हैं? हम भी कहां आदर्श परिस्थिति की बात कर रहे। नियम होते ही हैं तोडऩे के लिए। फिर इन्हें बनाने वालों का काम ही है तोडऩा। बहरहाल इन खेलों में कुल 25 सौ फोर व्हीलर का उपयोग हो रहा है। इनमें पांच सौ से अधिक टैक्सियां हैं। इन्हें एक दिन में 40-40 लीटर डीजल दिया जा रहा है। और विभागीय नई गाडिय़ों को सीसीएफ ऑफिस से 50-50 लीटर पर्ची जारी हो रही। वह भी मोवा के एक ही पंप से भरवाना होगा। इसका ड्रायवर कोई हिसाब नहीं दे रहे हैं। हालांकि उन्हें कोटा से लेकर डूंडा, नवा रायपुर तक के 23 खेल परिसरों का चक्कर लगाना है। जलता ही होगा इतना डीजल।
कुलपति की दौड़ में
प्रदेश के चार राजकीय विश्वविद्यालयों में नए कुलपतियों की नियुक्ति होनी है। इच्छुक दावेदार शिक्षाविदों से आवेदन लेने की प्रक्रिया पूरी कर ली गई। कुलाधिपति कार्यालय ने अपनी वेबसाइट को क्लोज कर दिया है। चारों विश्वविद्यालयों के लिए 127 से अधिक आवेदन प्राप्त होने की खबर हैं। कुलाधिपति के गुवाहाटी से लौटने के बाद राजभवन जल्द ही चयन समिति का गठन करने जा रहा है। यह समिति इन सभी का इंटरव्यू कर अंतिम तीन तीन नामों का पैनल कुलाधिपति को देगा। वैसे यह प्रक्रिया दीपावली बाद ही गति पकड़ेगी।
आवेदकों में रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस अफसर भी शामिल हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ में प्रभारी कुलपति को छोड़ किसी भी एक्स ऑफिशियो की नियुक्ति नहीं हुई है। वैसे इन विश्वविद्यालयों की प्रशासनिक गतिविधियों पर नजर डाले तो एक बार यह प्रयोग किया जा सकता है। वैसे पिछली सरकार में उशिवि ने कुलसचिव पद पर आईएएस अफसरों की नियुक्ति का प्रस्ताव सरकार को भेजा था। जो अब तक अनिर्णीत है।
बहरहाल कुलपति के आवेदकों में एक विधायक की पत्नी के साथ साथ एक कॉलेज की महिला प्राचार्या भी दौड़ धूप कर रहीं हैं। जो पूर्व में उशिवि में संयुक्त संचालक रहीं हैं। और रिटायरमेंट के करीब यह मैडम अगले पांच वर्ष काम करना चाहती है। मैडम की दौड़ धूप की चर्चा कॉलेज में आम हैं। और मातहत प्रोफेसर ही मैडम की शैक्षणिक, प्रशासनिक दक्षता पर प्रश्न चिन्ह उठा रहे है? ये दिन के छह से आठ घंटे कॉलेज में गुजारते हैं। ओबीसी वर्ग से आने वाली मैडम की नजर दुर्ग विश्वविद्यालय पर है। जहां पहले भी एक महिला प्रोफेसर कुलपति रह चुकीं हैं। अब देखना यह है कि विधायक पत्नी सफल होती है या मैडम।
दक्षिणामुखी ब्राह्मण
राजधानी के ब्राह्मण इन दिनों दक्षिणामुखी हो गए हैं। पहली बार भाजपा-कांग्रेस के ब्राह्मण नेता एकजुट हो गए हैं। इन्होंने पहले सर्व ब्राह्मण समाज की बैठक की और फिर राजीव भवन, ठाकरे परिसर जाकर अपनी बात रख आए। अबकी बार टिकट नहीं तो समर्थन नहीं। उनकी बात कांग्रेस में पूरी होती दिख रही है। क्योंकि वहां कोई दूसरे नेता लडऩे आगे नहीं आए हैं। भाजपा में तो तय है या तो भैया की पसंद या संघ-संगठन की। और इसमें समाज करती दिख नहीं रहा। फिर भी राजीव भवन के खुले सत्र के बाद सैकड़ों ब्राह्मण नेता ठाकरे परिसर पहुंचे। इनमें दावेदार कहला रहे मृत्युंजय दुबे, मीनल चौबे,, सुभाष तिवारी, अंजय शुक्ला, विजय शंकर मिश्रा समेत बंगाली तेलुगू, मैथिल, राजस्थानी ब्राह्मण समाज के 500 लोग शामिल रहे। लेकिन कांग्रेस के एक भी दावेदार नहीं थे।
जय-जय परशुराम के जयघोष के साथ गए थे। और लौटती बारात की तरह बिना जय-जयकार के निकले। संगठन महामंत्री ने सारे ब्राह्मणो को प्रणाम किया और आने का सबब तो वो जानते ही थे। फिर भी कुछ नेताओं ने आने की भूमिका बांधी। उन्होंने कहा कि दक्षिण में 34 हजार ब्राह्मण वोटर हैं। टिकिट तो देना होगा। भीड़ में किसी ने कह दिया पहली बार ठाकरे परिसर आए हैं क्योंकि हम अधिकांश कांग्रेसी हैं। उनकी मन स्थिति को जान महामंत्री ने पूरी बात सुनी। मौका भी था दस्तूर भी। चाय बिस्किट का दौर भी।
महामंत्री ने भगवान परशुराम और ब्राह्मणों की महत्ता बताते हुए कहा पद-गद्दी सब कुछ ब्राह्मणों के लिए बेमानी है। इस पर उन्होंने एक कहानी सुनाई- भगवान विष्णु ने जब श्री परशुराम को इंद्र की गद्दी दे दी थी तो ब्राह्मण देवता ने हमें नहीं चाहिए कहकर ठुकरा दिया। उनमें कुर्सी की लालसा कभी नहीं रही। और आप लोग तो उनके वंशज हैं। हमारे जैसे लोग तो आपके चरणों में प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हैं। आप पूजनीय हैं, प्रणाम करता हूं। आपका मार्गदर्शन ही काफी है। आप लोग कहां गद्दी के चक्कर में पड़ गए। उन्होंने यह भी बताया कि फरसा उठाने के कारण परशुराम जी से तत्समय के ब्राह्मण उनसे दूर रहने लगे थे। इसके बाद तो सभी समझ गए कि महामंत्री क्या कहना चाह रहे हैं। और विदाई ले ली। लौटते समय नारे लगाना भी जरूरी नहीं समझा।
विधायक पुत्र की काउंटर रिपोर्ट
साजा विधायक ईश्वर साहू के बेटे कृष्णा साहू के खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट के तहत पुलिस ने अपराध दर्ज कर लिया था। इसके बाद अब शिकायतकर्ता मनीष मंडावी के खिलाफ भी कृष्णा साहू की शिकायत पर एक एफआईआर दर्ज कर ली गई है। मनीष मंडावी ने जो एफआईआर लिखाई है उसमें विधायक पुत्र पर जातिसूचक गालियां देने का आरोप है, वहीं कृष्णा साहू की एफआईआर में कहा गया है कि मंडावी और उसके साथियों ने मारपीट की और उसके 10 हजार रुपये लूट लिए। दोनों की शिकायतों की जांच अभी बाकी है, पर आम लोगों के मामले में पुलिस इस तरह की काउंटर रिपोर्ट दर्ज नहीं करती। मगर, मामला सत्तारूढ़ दल के विधायक का है। सुनने में यह भी आया है कि मंडावी की एफआईआर के बाद सुलह-समझौते की कोशिश की गई थी लेकिन बात नहीं बनी। उसके बाद दूसरी एफआईआर दर्ज कराई गई है। यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि क्या लूट जैसी वारदात होने के बावजूद पुलिस तक पहुंचने में विधायक पुत्र को 48 घंटे लग गए? आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने पुलिस पर दबाव बनाया था तब मंडावी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, अब कार्रवाई नहीं होने पर वे आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं। फिलहाल मुद्दा जल्द शांत होते नहीं दिख रहा है।
प्रतिमा की पड़ताल
एक बिल्डिंग के मंडप पर कुछ लंगूरों की प्रतिमाएं बना दी गई हैं। कुछ असली लंगूर उछलते कूदते हुए वहां पहुंचे। शांत और स्थिर अवस्था में लंगूरों को देखकर वे काफी देर तक निहारते हैं। चारों तरफ चक्कर लगाते हैं। छूकर देखते हैं फिर गले लगाते हैं। फिर भी जब वे नहीं हिलते तो उठाकर अपने साथ ले जाने की कोशिश करते हैं। प्रतिमा को हिला तो देते हैं, मगर उखाड़ नहीं पाते। बंदर हमेशा झुंड में रहते हैं और वे अपनी बिरादरी में एक दूसरे का खूब ख्याल भी रखते हैं। कोई दुर्घटनाग्रस्त हो जाए या बीमार पड़ जाए तो उसकी देखभाल भी करते हैं। शायद असली लंगूर को प्रतिमा के नहीं हिलने-डुलने की चिंता हो रही है। सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल हो रहा है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
हत्यारे सिंहदेव-विरोधी
सूरजपुर में दोहरे हत्याकांड में एनएसयूआई पदाधिकारियों की संलिप्तता के खुलासे के बाद कांग्रेस के अंदरखाने में हलचल मची है। यह बात सामने आई है कि सरगुजा संभाग में अपराधियों का एनएसयूआई में बोलबाला रहा है। अपराधी प्रवृत्ति के युवाओं को एनएसयूआई ने पद दिए गए। खास बात यह है कि स्थानीय कांग्रेस संगठन के पदाधिकारी पिछले वर्षों में इस पर आपत्ति कर प्रदेश नेतृत्व को अवगत कराते रहे हैं। मगर प्रदेश संगठन ने कुछ नहीं किया।
एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष नीरज पाण्डेय, सरगुजा के ही रहने वाले हैं, और वे पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के विरोधी खेमे के माने जाते हैं। सूरजपुर में प्रधान आरक्षक की पत्नी और पुत्री की हत्या के मामले में जिन पांच युवकों को गिरफ्तार किया है, उनमें दो एनएसयूआई के पदाधिकारी जिलाध्यक्ष चंद्रकांत चौधरी, और कुलदीप साहू हैं। कुलदीप दोहरे हत्याकांड के मुख्य आरोपी हैं।
कुलदीप के हत्याकांड में शामिल होने की बात सामने आई, तो एनएसयूआई के पदाधिकारियों ने उनसे पल्ला झाड़ लिया था। और तो और जिलाध्यक्ष चंद्रकांत चौधरी ने बकायदा वीडियो जारी कर कुलदीप साहू का एनएसयूआई से कोई संबंध होने से इंकार किया। पुलिस जांच में यह बात साफ हुई कि हत्याकांड में कुलदीप के साथ-साथ चंद्रकांत चौधरी भी था। इसके बाद आरोपियों के कांग्रेस नेताओं के साथ तस्वीरें भी वायरल हुई।
भिलाई विधायक देवेंद्र यादव, एनएसयूआई के अध्यक्ष नीरज पाण्डेय के साथ कई तस्वीर वायरल हुई है, जो यह बताने के लिए काफी है कि आरोपियों के रिश्ते कांग्रेस के नेताओं से कैसे हैं। सूरजपुर जिला कांग्रेस की अध्यक्ष भगवती राजवाड़े ने दो साल पहले पत्र लिखकर चंद्रकांत चौधरी के आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने की जानकारी दी थी। उन्हें पद से हटाने की मांग की थी। यह पत्र सोनिया गांधी, और राहुल गांधी व प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन प्रभारी पीएल पुनिया को भेजा था। उन्होंने बताया था कि चंद्रकांत चौधरी कोयला चोरी से लेकर मारपीट, और नशाखोरी जैसी गतिविधियों में लिप्त है, और उसकी नियुक्ति से कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ता अपमानित महसूस कर रहे हैं। मगर किसी ने ध्यान नहीं दिया। अब पार्टी के नेताओं को जवाब देते नहीं बन रहा है।
उद्घाटन का पहला दिन फीका रहा
राष्ट्रीय वन खेल उत्सव का बुधवार शाम श्रीगणेश हो गया। कल केवल उद्घाटन , मार्च पास्ट सलामी, मशाल प्रज्जवलन, कबूतर उड़ाए गए। आज से मैदान में उतरने से पहले खिलाडिय़ों की मेल-मुलाकात देर रात डिनर तक चलती रहीं। जहां डिनर प्लेट के स्वाद को लेकर नाक भौं सिकुड़ते भी रहे। डिनर जमीन पर बिठाकर कराया गया।
केंद्रीय मंत्री देवेंद्र यादव आए ही नहीं। उद्घाटन समारोह के दौरान कुछ अतिथियों में नाराजगी सुनने को मिली। तीनों ही विधायक राजेश मूणत को उद्घाटन से कुछ देर पहले निमंत्रण, सांसद बृजमोहन अग्रवाल को देर रात अचानक निमंत्रित किए जाने की जानकारी मिली है। बताया तो यह भी गया है कि प्रिंटेड कार्ड में कोटा इलाके के विधायक का नाम ही नहीं था। आनन फानन में छपवा कर दिया गया। हालांकि इन सभी के नाम ई-कार्ड में प्रकाशित थे। ठाकरे परिसर में तो थोक के भाव में पांच सौ कार्ड बिना नाम लिखे छोड़ आए। यह कार्ड बांटने के लिए अधिकृत किए गए अधिकारियों ने ही बताया । और पीसीसीएफ स्वयं संबंधितों को आड़े हाथ ले चुके हैं। रायपुर वन मंडल को मैनेजमेंट से दूर रखा गया। डीएफओ, एसडीओ रेंजर फूफा बनकर तालियां बजाते रहे। ऐसे ही नाराज लोगों ने बताया कि छत्तीसगढ़ वन बल के 9000 वर्दीधारी कर्मी भी उपेक्षित ही। स्वाभाविक भी है कि ये कार्यक्रम को फीका ही बताएंगे। और इसे खारिज भी नहीं किया जा सकता है। भीड़ के हिसाब के 50 फीसदी ही थी। सूर्यकुमार यादव का भी आकर्षण भीड़ जुटा नहीं पाई। क्योंकि वह पुलिस सुरक्षा और बड़े बड़े वन अफसरों से घिरे रहे। देश के 50 आईएफएस को वीआईपी का दर्जा देकर वन कर्मियों को वालंटियर की भूमिका में इन अधिकारी की सेवा में कॉल बॉय की तरह रखा गया। इतना ही नहीं देश के कई दिग्गज आईएफएस नहीं आए। जो आए हैं उन्हें नॉर्मल ट्रैक-सूट के बजाए रेमेंड के सूट दिए गए। जो अगले चार दिन तीन हजार लोगों की भीड़ में उन्हें नौकरशाह साबित करता ड्रेस कोड होगा।
नई जनरेशन के अपराध
छत्तीसगढ़ में दो बड़े अपराध, रंगदारी वसूली और महादेव सट्टा ऐप, चर्चा व चिंता का विषय बने हुए हैं। शूटर गैंग के अमन साहू को हाल ही में रायपुर पुलिस द्वारा भारी सुरक्षा इंतजामों के साथ झारखंड से गिरफ्तार कर लाया गया है। उनके गुर्गों ने बीते दिनों एक बड़े बिल्डर पर गोलीबारी की और दूसरे बिल्डर को धमकी दी थी। करीब एक दर्जन अन्य कारोबारी उनकी हिट लिस्ट में बताये जा रहे हैं। यह गैंग सिर्फ छत्तीसगढ़ या देश तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका नेटवर्क मलेशिया, कनाडा, और पुर्तगाल जैसे देशों में भी फैला हुआ है। यहां तक कि जेल में बंद अपराधी भी उनके लिए काम कर रहे हैं।
दूसरी ओर, महादेव सट्टा ऐप का मामला है। दुर्ग से निकले सरगना सौरभ चंद्राकर ने दुबई में बैठकर दुनिया भर में साम्राज्य फैला लिया। गिरफ्तारी के बाद भारत प्रत्यर्पण की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन उसका नेटवर्क एक तरफ कई देशों में है तो छत्तीसगढ़ के दूरदराज के गांवों तक भी फैला हुआ है। जहां तक सडक़ भी ठीक से नहीं पहुंची, वहां से ऑनलाइन सट्टेबाजी ऑपरेट की जा रही है। इसमें स्थानीय मजदूरों, बेरोजगारों के बैंक खातों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे आसानी से पैसों का लेन-देन हो रहा है। रंगदारी की रकम भी कुछ ही सेकंड में प्लास्टिक-वर्चुअल मनी या हवाला के ज़रिए देश से बाहर भेजी जा रही है।
40-50 साल पहले सट्टेबाजी के तरीके अलग थे, जैसे रतन खत्री और कल्याण जी भाई के समय में नगद पैसे और पर्चियों का लेन-देन होता था। रंगदारी की रकम किसी अटैची में भरकर बताए गए ठिकाने पर छोडऩा होता था। आज तकनीक ने अपराधियों के काम को और आसान बना दिया है। 4जी और 5जी डेटा और ऑनलाइन ट्रांजेक्शन ने न सिर्फ आम जनता की जिंदगी को सरल बनाया है, बल्कि अपराधियों को भी अपने अवैध धंधे को बढ़ाने का भरपूर मौका दिया है।
हाल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऑनलाइन ठगी का वार्षिक कारोबार 15 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह सवाल उठता है कि अगर इंटरनेट की इतनी आसान पहुंच नहीं होती, तो क्या ये सब मुमकिन होता? अपराधी अब पहले से कहीं ज्यादा स्मार्ट और संगठित हो गए हैं, पर क्या जांच एजेंसियां, खासकर अपनी पुलिस उतनी ही तेजी से अपडेट हो रही है?
ऐसा बिहार में ही होता है..
बिहार के भागलपुर में एक शख्स को सांप ने काटा तो उसने बिना वक्त गंवाए उसके गर्दन को दबोच लिया और उसे लेकर अस्पताल पहुंच गया। एक तरफ वह दर्द से कराह रहा था, दूसरी तरफ उसने सांप को जकड़ रखा था। अस्पताल के स्टाफ और डॉक्टर मरीज का इलाज कैसे करें, इस चिंता में डूब गए। वह सांप से बदला लेना चाहता था। बाद में लोगों ने समझाया कि पहले अपना इलाज कराओ। फिर उस सांप को ग्रामीण की चंगुल से छुड़ाकर जंगल में सुरक्षित छोड़ दिया गया। लोगों ने कहा कि इसमें सांप का क्या कसूर जो उससे बदला लोगे, उसने तो अपने स्वभाव के अनुसार ही काम किया है। तुम ही थोड़ी इंसानियत दिखाओ। अच्छी बात यह रही की सांप काटने के बाद यह व्यक्ति किसी झाड़ फूंक के चक्कर में नहीं पड़ा।
न स्कूल भवन बना न शिक्षक मिले
हाईकोर्ट में इन दिनों स्कूली बच्चों के आंदोलन पर सुनवाई चल रही है। रायपुर के प्रयास विद्यालय के छात्रों ने सडक़ पर उतरकर प्रदर्शन किया, राजनांदगांव के डीईओ ने टीचर्स की मांग करने वाली छात्राओं को फटकारा तो न्यायालय ने इसे स्वत: संज्ञान याचिका के रूप में दर्ज किया। हाईकोर्ट ने तल्ख लहजे में सरकार से पूछा कि बच्चों से पढ़ाई कराना चाहते हैं या नेतागिरी। अपने जवाब में शिक्षा विभाग ने स्वीकार किया कि शिक्षक के हजारों पद खाली है। अब अगली सुनवाई में हाईकोर्ट ने जवाब दाखिल करने के लिए कहा है कि सरकार किस तरह से इस कमी को दूर करने जा रही है, बताए। हाईकोर्ट में सरकार क्या जवाब देगी यह तो नहीं मालूम लेकिन शैक्षणिक सत्र के तीन माह से अधिक बीत चुके हैं, जगह-जगह सडक़ों पर छात्र-छात्राओं का उतरना जारी है। बालोद जिले के पीपरछेड़ी हायर सेकेंडरी स्कूल के छात्र-छात्राओं ने गेट पर ताला जड़ दिया। कलेक्टर को बुलाने की मांग कर रहे थे। एसडीएम पहुंची और उन्होंने किसी तरह से दो शिक्षकों की व्यवस्था करने की बात कही, लेकिन यहां 13 शिक्षकों की जरूरत है। मार्च 2023 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बालोद जिले के दौरे पर थे तो पीपरछेड़ी के छात्र-छात्राओं ने उनके काफिले को रोका था। मुख्यमंत्री के साथ उन्होंने सेल्फी खिंचवाई थी। उसे सोशल मीडिया पर खुद बघेल ने शेयर किया था और बताया था कि बच्चों की मांग पर उन्होंने नए हायर सेकेंडरी भवन के लिए 1.21 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी है। पर कांग्रेस सरकार के रहते उसका टेंडर जारी ही नहीं हुआ। नई सरकार बनने के बाद भी उसका कुछ पता नहीं है।
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मिल गया खर्च का हिसाब
बीते एक माह से चल रहा उहापोह खत्म हुआ। राष्ट्रीय वन खेल उत्सव के आयोजन के खर्च का हिसाब मिल गया। यह और किसी ने नहीं स्वयं मुख्य आयोजक पीसीसीएफ ने ही बताया है। उद्घाटन से पहले बुधवार को औपचारिक पत्रकार वार्ता हुई। इस पर पत्रकारों के ताबड़तोड़ प्रश्न हुए। यह पूछा गया कि चार दिन के इस आयोजन में कितने खर्च होंगे? पीसीसीएफ ने कहा- इसके लिए राज्य सरकार के पास 7.5 करोड़ का बजट है जबकि केंद्र सरकार हमें 1.5 करोड़ रुपए देगी।
खिलाडिय़ों को कितने रुपये दिये जाएँगे? खिलाडिय़ों पर, हर दिन 16 हजार 500 रुपये खर्च होंगे, ये अलग से देय होगा। फिर प्रश्न हुआ- सूर्यकुमार और मनु भाकर कितने रुपए ले रहे हैं? पीसीसीएफ ने कहा उन्हें हम नहीं स्पॉन्सर पैसे देंगे। कितना देे रहे ये हमें नहीं पता। अब विभाग के असंतुष्ट या आयोजन की मुख्य धारा या टीम से बाहर अधिकारी कर्मचारी यह खर्च मानने को तैयार नहीं। उनका भी तर्क सही है। महंगे रिजॉर्ट, थ्री से फाइव स्टार होटल में डाइन-वाइन की आवासीय व्यवस्था, प्लेन से आना जाना, होटल से मैदान तक एसी कारें, महंगे किट नए खेल उपकरण इतने कम बजट में कैसे हो जाएगा। वह भी महंगाई के इस दौर में। अफसरों का कहना है कि इसी बजट में पूरा करेंगे। नहीं तो कैम्पा फंड है ही।
खर्च दूसरों से करवाने के तरीके
वैसे कोई भी सरकारी आयोजन सभी विभागों के अधिकारी-कर्मचारियों और उनके संसाधनों की संयुक्त हिस्सेदारी से होते हैं। मुख्य आयोजक विभाग प्रमुख अन्य विभागों से मदद मांगते भी हैं। फिर न जाने क्यों मुख्य आयोजक विभाग के आयोजन में 50-100 करोड़ तक खर्च हो जाया करते हैं। जबकि होना उल्टा चाहिए,बड़ी रकम बचनी चाहिए । ऐसी कभी नहीं होता।
उल्टा तय बजट आबंटन से ड्योढ़ा ही खर्च हो जाते हैं । राष्ट्रीय वन खेल उत्सव के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है। स्टेडियम खेल विभाग से मिल गया। और यूटीडी, रेलवे का डब्लूआरएस मैदान, इंटरनेशनल स्टेडियम, छत्तीसगढ़ क्लब, वीआईपी क्लब, सप्रे शाला के साथ आरकेसी, केपीएस, कांगेर वैली जैसे बड़े निजी स्कूलों ने तो साहबों के कॉल करने पर ही अपने टेनिस, बैडमिंटन कोर्ट, मैदान स्वीमिंग पूल दे दिए हैं।
सरकारी आयोजन हैं किस स्कूल की हिम्मत होगी किराया मांगने की। और अब रायपुर डीएफओ ने निगम आयुक्त से पांच दिनों के लिए साइंस कॉलेज मैदान में पानी टैंकर, वेस्ट निकासी वाहन, सेंट्रल किचन क्षेत्र में रोजाना ब्लीचिंग और डी-फागिंग, मोबाइल टॉयलेट वैन की व्यवस्था करने कहा है। सीएमएचओ से एंबुलेंस, दवाइयों के साथ डॉक्टरों की टीम तैनात करने पत्र भेजा है। एक और पत्र जिला अग्निशमन अधिकारी से फायर ब्रिगेड की व्यवस्था करने लिखा है। इसमें आग्रह मिश्रित चेतावनी दी गई कि इन कार्यक्रमों में केंद्रीय मंत्री,सीएम और राज्य के सभी मंत्री रहेंगे इसलिए व्यवस्था अनिवार्य होगी। ताकि ढिलाई न बरती जाए। अब इन महकमे का अमला तो अपने दैनिक वेतन पर ही ड्यूटी समझ कर वहां तैनात होगा ही। ऐसे में इनकी कास्टिंग तो बच ही गई न। इसका अंतर विभागीय पेमेंट होने से रहा। और यह रकम फिर कहां जाएगी। और जब सेंट्रल किचन से खानपान परिवहन का पूरा कांट्रेक्ट एक्सिस कम्युनिकेशन नाम की दिल्ली की फर्म को दिया गया है तो वेस्ट निष्पादन, सफाई की व्यवस्था निगम से क्यों? इसी फर्म को फ्लेक्स, बैनर, आमंत्रण कॉर्ड प्रवेश पत्र, आई कार्ड बनाने का भी टेंडर दिया गया है।
विभाग के पास 200 से अधिक कारें होने, 65 नई खरीदने के बाद भी खिलाडिय़ों के लिए 4 सौ से अधिक वाहन किराए पर लिए गए हैं। इतना ही नहीं पांच दिनों की पूरी रसोई एनएमडीसी द्वारा प्रायोजित है। तो वन विभाग के खर्च में नहीं जुडऩा चाहिए, लेकिन बिल बनेगा और वह करोड़ों रुपए कहां जाएंगे हमें नहीं अफसरों को पता होगा।
आखिरी दिनों में मंत्रियों के चक्कर
झारखंड चुनाव में छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। दोनों डिप्टी सीएम अरूण साव, विजय शर्मा, और वित्त मंत्री ओपी चौधरी के साथ-साथ करीब 60 नेताओं को प्रचार की कमान सौंपी गई है। इनमें केन्द्रीय राज्यमंत्री तोखन साहू भी हैं। पिछले दिनों भाजपा के चुनाव प्रभारी केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रांची में बैठक बुलाई, तो छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री पिछले दिनों एक साथ फ्लाइट से वहां पहुंचे थे।
छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी नितिन नबीन चुनाव निपटने तक झारखंड में रहेंगे, और यहां के नेताओं से फीडबैक भी लेंगे। शिवराज सिंह चौहान ने अपनी बैठक में विधानसभावार क्षेत्र की स्थिति की समीक्षा की, और टिकट के लिए मजबूत दावेदारों के नाम भी लिए हैं। कुछ लोग बताते हैं कि झारखंड में इस बार भाजपा जितनी मेहनत कर रही है, उतनी पहले कभी नहीं हुई है। झारखंड से सटे सरगुजा के छोटे-बड़े नेताओं को स्थानीय कार्यकर्ताओं के सहयोग के लिए भेजा गया है। छत्तीसगढ़ में भी रायपुर दक्षिण सीट पर चुनाव हो रहे हैं, लेकिन यहां बृजमोहन अग्रवाल ही सबकुछ देखेंगे। आखिरी के दिनों में मंत्री जरूर वार्डों का चक्कर लगा सकते हैैं।
पकने को तैयार फसल
मॉनसून विदा ले चुका है। धान की बालियां बस पकने लगी हैं। कुछ दिन बाद फसल तैयार हो जाएगी। मवेशियों और बंदरों से बचाने के लिए इसकी हिफाजत करना जरूरी है, वरना मेहनत पर पानी फिर जाएगा। खेत पर तैयार झोपड़ी के साथ महिला और उनके बच्चों के साथ यह तस्वीर प्राण चड्डा के सोशल मीडिया पेज से है।
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यह बैग 20 हजार का
राष्ट्रीय वन खेल महोत्सव बुधवार से शुरू हो रहे हैं। इसके उद्घाटन की तैयारियां आज शाम लॉक कर दी जाएंगी। मंगलवार शाम वन मंत्री ने खेलों में आ रहे देशभर के खिलाडिय़ों, रेफरी अंपायर, कोच मैनेजर व अन्य हिस्सेदारों के लिए सेंट्रल किचन का फीता काटा। जो एनएमडीसी द्वारा प्रायोजित है।
इस मौके पर मंत्रीजी ने छत्तीसगढ़ की टीम के खिलाडिय़ों को किट वितरित किया। इनमें अकेले 213 आईएफएस खिलाड़ी हैं। जो कुल कैडर स्ट्रेंथ से अधिक हैं। और राज्य वन सेवा के साथ लिपिक वर्गीय खिलाड़ी अलग। इनके अलावा ऐसे भी सौ से अधिक लोगों को किट बैग दिए गए जिनका खेलों से दूर-दूर तक वास्ता नहीं। यह गिफ्ट स्वरूप दिए गए। एक एक किट बैग की कीमत 20-20 हजार है। जिसमे एक स्पोर्ट बेग, एडिडास के स्पोर्ट्स शूज-मोजे, नैपकिन, वॉटर बॉटल, ट्रेक सूट (लोअर टी शर्ट) आदि शामिल है। इनमें अधिकांश बड़े साहब के सुरक्षा जवान हैं।
विभागीय मंत्री को भी 15 बैग सौजन्य भेंट किए गए। सुनने में आया है कि रिटायर्ड चुनिंदा आईएफएस अधिकारियों को भी दिए जाएंगे। वहीं देश भर से आमंत्रित पीसीसीएफ, केंद्रीय वन मंत्रालय के 70 अधिकारियों के लिए नवा रायपुर सेक्टर 16 के 5 स्टार रिजॉर्ट में सात दिन की लॉजिंग बोर्डिंग 70 सुइट्स बुक हैं। जहां रूम के भीतर ही स्मॉल स्विमिंग पुल, गोल्फ और घुड़सवारी की भी सुविधा रहेगी। इसका एक दिन का किराया 40 हजार रुपए चेक आउट बिल में होगा।
पूरा जिला केवल आयोग का ही काम करेगा
आज दोपहर रायपुर दक्षिण उप चुनाव की घोषणा के साथ जिले का पूरा अमला केवल चुनाव कार्य करेगा। यानी आम जन एक बार फिर कम से कम महीने भर के लिए दफ्तर जाकर वापस लौट आएंगे। उनका कोई काम नहीं होगा। भूलवश दफ्तर गए तो चपरासी उल्टे पांव लौटा देगा कि साहब बाबू चुनाव में व्यस्त हैं। आदेश निकालना तो दूर की बात है। क्योंकि पूरे रायपुर जिले में आचार संहिता लागू हो जाएगी। और पूरा प्रशासन, निर्वाचन आयोग के अधीन हो जाएगा।
साहब लोग एक अदद प्रमाण पत्र, मेडिकल बिल, मंत्री विधायकों के स्वेच्छानुदान स्वास्थ्य अनुदान के चेक पर भी साइन भी नहीं करेंगे। मरीजों (परिजनों)को कह दिया जाएगा, चुनाव बाद आना। हालत ठीक रही तो ठीक वर्ना राम नाम सत्य है ही।
नए विकास कार्यों की घोषणा भूमिपूजन, लोकार्पण नहीं होंगे। इसके अलावा राजधानी में होने वाले राज्योत्सव पर भी संशय खड़ा हो गया है। हालांकि आयोजन स्थल रायपुर दक्षिण के दायरे से बाहर है, लेकिन रायपुर जिले में शामिल होने से इसके मंच से नई घोषणाएं नहीं की जा सकेंगी। राज्योत्सव नवा रायपुर के मेला ग्राउंड में होने पर भी यह पाबंदी लागू रहेगी।
वन स्टेट वन इलेक्शन
जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा था आईएएस ऋचा शर्मा की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ कराने की अनुशंसा सरकार से कर दी है। कमेटी की सिफारिश एक औपचारिकता ही थी क्योंकि राज्य सरकार ने अगस्त में ही घोषणा कर दी थी कि वह दोनों चुनाव एक साथ कराना चाहती है। बताया जा रहा है कि सिफारिश में यह कहा गया है कि मतदान की तिथियां तो अलग-अलग होंगी लेकिन मतगणना एक साथ होगी। पिछली बार नगरीय निकायों के चुनाव की अधिसूचना 25 नवंबर 2019 को जारी की गई थी और 24 दिसंबर को परिणाम आ गए थे। इसके कुछ दिन बाद 30 दिसंबर को त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की अधिसूचना जारी की गई। निर्वाचन की प्रक्रिया फरवरी में समाप्त हुई। इस तरह से पिछली बार भी आगे-पीछे ही चुनाव हुए थे, इस बार साथ-साथ होंगे। एक साथ चुनाव कराने का लाभ यह होगा कि चुनाव आचार संहिता की अवधि कुछ कम हो जाएगी। छत्तीसगढ़ में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव भी अलग-अलग होते हैं। लोकसभा का कार्यकाल मई में, जबकि विधानसभा का दिसंबर में समाप्त होता है। दोनों ही चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा के साथ-साथ आचार संहिता लग जाती है। यदि विधानसभा का कार्यकाल कुछ माह आगे बढ़ा देने का प्रावधान होता तो शायद दोनों चुनाव एक साथ होते और आचार संहिता की अवधि कुछ कम हो जाती। जानकारों का कहना है कि रामनाथ कोविंद कमेटी द्वारा वन नेशन, वन इलेक्शन के पक्ष में केंद्र सरकार की सिफारिश व्यवहारिक रूप से लागू करने में अभी भी कई तरह की अड़चन है। वह कब लागू होगी, कैसे होगी यह मसला केंद्र को सुलझाना है, लेकिन राज्य में पंचायत और नगरीय चुनावों को एक साथ कराने से समय और संसाधनों की बचत होने की उम्मीद की जा सकती है। सियासी फायदा किसे मिलेगा, यह दूसरा मसला है।
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वो दोनों महात्मा तो हैं नहीं
जब तक राष्ट्रीय वन खेल उत्सव चलेंगे तब तक हम खेलों के साथ उसमें हो रहे खेल को लेकर नई नई जानकारियां देंगे। खेलों का उद्घाटन बुधवार को राजधानी के कोटा स्टेडियम में होने जा रहा है। जहां तैयारियां राष्ट्रीय खेलों के स्तर की अंतिम चरण में है। इसमें भाग ले रहे राज्यों के खिलाडिय़ों का मार्च पास्ट होगा। इसमें छत्तीसगढ़ की टीम के खिलाडिय़ों का दल सबसे बड़ा होने की जानकारी मिली है। इन खिलाडिय़ों को आज शाम वन मंत्री किट और ट्रेक सूट वितरित करेंगे। और साइंस कॉलेज मैदान में सेंट्रल किचन का उद्घाटन भी करेंगे। इस किचन के चूल्हे नवरत्न कंपनी एनएमडीसी के सौजन्य और व्यय से 20 अक्टूबर तक जलेंगे। जहां करीब 4 हजार खिलाडिय़ों, आयोजन में जुटे स्टाफ के लिए नाश्ता, हाई टी, लंच- डिनर और वो सब कुछ मिलेगा। पूरे आयोजन में प्रवेश हाईटेक सिस्टम से मिलेगा। इसकी जिम्मेदारी भी इंट्री के बाहर की ही कम्पनी को दी गई हैं ।
बिना स्कैन के भीतर नहीं जा सकेंगे। यह स्कैनिंग और कोई नहीं बाउन्सर करेंगे। अब बात उद्घाटन समारोह में आमंत्रित विशिष्ट अतिथि सेलिब्रिटी को लेकर। विभाग के अफसर से लेकर बीट गार्ड तक पूछ रहे हैं कि- दो सेलेब्रेटी को उद्घाटन में आने के लिए कितना पेमेंट तय किया गया है। क्योंकि वो दोनों कोई महात्मा तो नहीं जो नि:शुल्क आ जाए। अब इसका जवाब अभी नहीं मिलेगा। विधानसभा के शीत सत्र में किसी विधायक के प्रश्न पर मिलेगा। कुछ लोगों का कहना है कि उसमें जो उत्तर मिलेगा उस पर भी विधायक कहेंगे विभाग के अफसर सदन को गुमराह कर गलत जानकारी दे रहे। और बात आई गई हो जाएगी।
कश्मीर का सीजी कनेक्शन
देश, और प्रदेश में कई नेता ऐसे हैं, जो कि राजनीतिक परिस्थितियों को पहले ही भांप जाते हैं। इन्हीं में से एक फारूख अब्दुल्ला भी हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता रवि ग्वालानी पिछले दिनों श्रीनगर में थे, और अपने पिता शिव ग्वालानी की किताब मास्टर ऑफ नथिंग के विमोचन के लिए पूर्व सीएम फारूख अब्दुल्ला से मिलने गए। उस वक्त वहां विधानसभा चुनाव को लेकर काफी हलचल थी। जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारूख अब्दुल्ला का ग्वालानी परिवार से पुराना परिचय है, और वो दो साल पहले फारूख ग्वालानी परिवार के विवाह समारोह में शिरकत करने रायपुर भी आए थे।
जम्मू कश्मीर के बुजुर्ग नेता फारूख अब्दुल्ला, ग्वालानी पिता-पुत्र से आत्मीयता से मिले। विधानसभा चुनाव की मतगणना से एक दिन पहले फारूख उनसे संभावित चुनाव नतीजों पर भी खुली चर्चा की। फ़ारूख़ अब्दुल्ला ने कह दिया था कि जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस, और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनेगी। यही नहीं, गठबंधन को 48 सीट मिलने का दावा भी किया था। चुनाव नतीजे ठीक वैसे ही आए, जैसा कि फारूख का अनुमान था। गठबंधन को 48 सीटें मिली। इसमें से 42 नेशनल कॉन्फ्रेंस, और 6 सीटें कांग्रेस को मिली है। यह आंकड़ा ग्वालानी पिता-पुत्र के लिए काफी चौंकाने वाला भी था।
कांग्रेस प्रवक्ता रवि ग्वालानी, उमर अब्दुल्ला के बेटे जफर से मिलकर काफी प्रभावित रहे। जफर भी धीरे-धीरे राजनीति में सक्रिय हो रहे हैं। उनके पिता उमर अब्दुल्ला जल्द ही मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं। रवि का मानना है कि नेहरू परिवार की तरह देश के कुछ परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी काबिल नेता निकल रहे हैं। उनमें से एक अब्दुल्ला परिवार भी है। कुल मिलाकर जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक स्थिति को नजदीक से जानने का मौका भी मिला।
ये एक क्यों छूटा?
बलौदाबाजार आगजनी की घटना के बाद भी पुलिस प्रशासन में वैसी चुस्ती नहीं दिख रही है, जिसकी उम्मीद लगाई जा रही थी। घटना के बाद कलेक्टर-एसपी से लेकर टीआई तक बदले गए हैं। मगर एक टीआई को छोड़ दिया गया है। हैरानी की बात यह है कि जिस टीआई के खिलाफ सबसे ज्यादा शिकायतें रही हैं, उसे नहीं बदला गया। खास बात यह है कि इस टीआई की पोस्टिंग ज्यादातर समय बलौदाबाजार जिले के अलग-अलग थानों में होती रही है। शिकायतों की वजह से इस टीआई को बदलने पर जोर दिया गया था। आदेश भी होने वाला था, लेकिन स्थानीय प्रभावशाली नेता के दबाव में तबादला रुक गया। अब विवादित लोगों को अहम जगहों पर बिठाया जाएगा, तो कानून व्यवस्था की स्थिति बिगडऩे से रोक पाना मुश्किल है। देखना है आगे क्या होता है।
हर कोई चमत्कार की तलाश में...
आरंग तहसील में एक बाबा ने दावा किया कि वे पानी में पैदल चल सकते हैं। बाबा पिछले कुछ महीनों से संयमित जीवन व्यतीत कर रहे थे, और जब उन्होंने चमत्कार दिखाने की बात कही तो गांववाले उत्साहित हो गए। उस दिन गांव ने कामकाज बंद रखा। मंदिर हसौद थाने के प्रभारी और तहसीलदार भी मौके पर पहुंच गए।
हालांकि, जैसे ही बाबा गांव के तालाब में उतरे, विज्ञान के नियमों ने अपना काम किया। पैदल चलना तो दूर, थोड़ी देर बाद बाबा ने तैरने की कोशिश की, परंतु डूबने लगे। पहले से मौजूद प्रशिक्षित तैराकों ने तुरंत छलांग लगाई और बाबा को सुरक्षित बाहर निकाला। यह घटना अस्सी के दशक की मशहूर फिल्म ‘शान’ के उस दृश्य की याद दिलाती है, जिसमें अमिताभ बच्चन ने पानी पर चलने का दावा कर भीड़ जुटाई थी। हालांकि आरंग के इस मामले में ठगी की कोई कोशिश नहीं की गई, फिर भी यह घटना बताती है कि अविश्वसनीय दावों से भीड़ आज भी आकर्षित हो जाती है। आश्चर्यजनक यह है कि सरकारी अधिकारी, जिनकी जिम्मेदारी ऐसे अंधविश्वास पर रोक लगानी है, वे भी इसका हिस्सा बन गए।
हाईवे पर द बर्निंग कार
सोशल मीडिया पर एक जलती हुई कार का खौफनाक वीडियो इस समय वायरल हो रहा है। चलती कार में अचानक आग लगी। ड्राइवर ने हैंडब्रेक लगाकर रोकने की कोशिश। नहीं रुकी तो कूद गया। अब खाली कार धूं-धूं जलती हुई सामने सीधी ढलान होने के चलते अपने आप लुढक़ने लगी। कई राहगीर, पूरा रास्ता घेर कार और बाइक खड़ी कर इस नजारे को देखने लगे। लोगों को मोबाइल पर वीडियो रिकॉर्ड करने का मौका मिल गया। मगर, कार के नहीं रुकने पर भीड़ में अफरा-तफरी मच गई। कुछ दर्शकों को अपनी बाइक, कार को छोडक़र भागना पड़ा। उन्हें चपेट में लेते हुए आखिरकार कार जाकर एक डिवाइडर से टकराती है। कोई जनहानि नहीं हुई, लेकिन एक सबक यहां लिया जा सकता है कि तमाशबीन बनने से बचें, खतरे की अवहलेना कर मोबाइल निकालकर रील्स वीडियो बनाने में तल्लीन न हो जाएं। वीडियो जयपुर का बताया गया है।
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बाबा सिद्दीकी और छत्तीसगढ़
एनसीपी नेता पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी की हत्या से न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं को झकझोर कर रख दिया है। बाबा सिद्दीकी को कांग्रेस ने रायपुर लोकसभा चुनाव का पर्यवेक्षक बनाया था। दरअसल, विधानसभा चुनाव से पहले ही छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के लिए संगठन की तैयारी शुरू हो गई थी, और बाबा सिद्दीकी उसमें अहम रोल निभा रहे थे।
बाबा सिद्दीकी इस बात से हैरान थे कि रायपुर लोकसभा की सीट कांग्रेस वर्ष-91 के बाद से जीत नहीं पाई है। जबकि विधानसभा चुनावों में रायपुर लोकसभा की विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर रहता है। बाबा सिद्दीकी विधानसभा चुनावों में प्रचार के लिए आए थे, और फूल चौक में एक कार्यक्रम में भी शिरकत की थी। इसके अलावा आरंग, और बलौदाबाजार सहित अन्य क्षेत्रों का दौरा किया था। और कार्यकर्ताओं की बैठक भी ली थी।
बाबा सिद्दीकी एक कदम आगे जाकर कार्यकर्ताओं को लोकसभा चुनाव के लिए तैयार कर रहे थे। ये अलग बात है कि उन्हें अपेक्षाकृत सहयोग नहीं मिल पा रहा था। वो आर्थिक रूप से काफी सक्षम नेता रहे हैं। इसलिए उन्हें यहां ज्यादा किसी की परवाह भी नहीं थी। बाद में महाराष्ट्र से जुड़े कुछ विषयों को लेकर अपनी असहमति के बाद कांग्रेस से अलग हो गए, और अजीत पवार की एनसीपी में शामिल हो गए। उनके निधन से छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेता भी सदमे में हैं।
खेलों में खेला
राष्ट्रीय वन खेल उत्सव इन दिनों राज्य के प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में हॉट टॉपिक बना हुआ है। खासकर इस हो खर्च को लेकर। अपुष्ट आंकड़े तो अविश्वसनीय हैं। लेकिन इस विभाग के नेता और अफसर तो अपने को सबसे गरीब विभाग बताने से नहीं चूकते। और खेल के लिए इतने खर्च पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
बताते हैं कि इसके खर्च को लेकर ही देश के कई अन्य राज्यों के वन विभागों ने हाथ खड़े कर दिए थे। उसके बाद छत्तीसगढ़ ने मेजबानी ली और तैयारी अंतिम चरण में है। दो अफसरों को जिम्मेदारी दी गई। इनमें एक आईपीएस अफसर के रिश्तेदार हैं। इन्हें इसलिए रखा गया है कि कहीं आरटीआई का मामला आए तो आईपीएस का भय काम आ सके। तो दूसरे विभाग में अच्छे चार्टर्ड एकाउंटेंट माने जाते हैं।
पिछली बार भी इन साहब ने हिसाब किताब कर बड़ी बचत की थी। इस बार भी करोड़ों का सारा खर्च इन्हीं की डायरी के जरिए सेंट्रलाइज्ड हो रहा है। इसमें जेम पोर्टल, क्रय भंडार नियम आदि आदि की कोई भूमिका नहीं है। सीधे दिल्ली के सप्लायर से रेट कांट्रेक्ट पर खरीदी हो रही है।
सप्लायर भी पार्टी के ही, इसलिए उधर से भी एनओसी क्लीयर है। खरीदी प्रिंट रेट पर हो रही है। इसमें डिस्काउंट, कमीशन जो कह लें सब कुछ प्री नेगोशिएटेड है। जो 30 फीसदी या अधिक पर। इसके बाद भी विभाग कह रहा। हमारा राज्य आर्थिक तंगी से गुजर रहा। यह पूरी जानकारी देने वाले कर्मचारियों का कहना है कि उनका वेतनमान बढ़ाने का प्रस्ताव 10 साल से लंबित है जिसका वित्तीय भार खेलों के कुल खर्च से कई गुना कम केवल सालाना 5 करोड़ आंकलित है।
आप ही ने बनाया है, आप ही संवारें
पिछले 5 वर्ष तक भाजपा लगातार आरोप लगाती थी कि उसके ड्रीम प्रोजेक्ट कमल विहार बिहार की ओर कांग्रेस सरकार ध्यान नहीं दे रही है। केवल कौशल्या विहार नाम बदलने के। अब तो वो सरकार चली गई भाजपा फिर सरकार में है। कह रही हमने बनाया हम ही संवारेंगे।
लेकिन यहां के निवासी त्राहि त्राहि हो रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि यह स्मार्ट सेटेलाइट सिटी नहीं रायपुर विकास प्राधिकरण ने दुनिया में अलग पहचान बनाने वाली नरक सिटी बना दी है।
त्योहार प्रारंभ हो चुके हैं यहां रात्रि में जाकर देखें पूरा कमल (कौशल्या) बिहार अंधेरे में डूबा रहता है यहां चोर-लुटेरे दिन रात सक्रिय हैं। तो यहां का सन्नाटा, वीरान तलाशने वाले प्रेमियों के माकूल जगह बनता जा रहा है। यहां के निवासियों का रहना मुश्किल हो गया है। क्या रायपुर विकास प्राधिकरण ने यहां के निवासियों को अपराधियों के भरोसे छोड़ दिया है कि वह खुलेआम रात्रि अंधेरे में कुछ भी अपराध करें?
यहां के निवासियों का कहना है कि आक्रोशित लोगों की धैर्य की परीक्षा लेना बंद करें। उससे पहले निर्वाचित पार्षद विधायक सांसद मंत्री इसे संज्ञान में ले। क्योंकि जिला प्रशासन और प्राधिकरण का प्रशासन लगभग निरंकुश हो चुका हैं।
जनरल पैसेंजर को चिढ़ाती वंदेभारत
बीते 20 सितंबर को छत्तीसगढ़ को दूसरी वंदेभारत ट्रेन मिली। दुर्ग से विशाखापट्टनम की यह तेज गति ट्रेन गिनती के स्टेशनों में रुकती है और अन्य ट्रेनों के मुकाबले तीन घंटे कम समय में अपने गंतव्य तक पहुंच जाती है। जबसे यह ट्रेन शुरू हुई है कि इस रूट पर चलने वाली दूसरी ट्रेनों को उसी तरह बीच रास्ते में रोक दिया जाता है, जैसे नागपुर-बिलासपुर के बीच चलने वाली ट्रेन के लिए किया जाता है। रायपुर से विशाखापट्टनम के लिए सुबह छूटने वाली स्पेशल पैंसेजर ट्रेन यहां से समय पर तो छूटती है पर आगे चलकर किसी भी छोटे स्टेशन पर 40 से 50 मिनट के लिए रोक दिया जाता है, क्योंकि पीछे से वंदेभारत एक्सप्रेस आती है। प्राय: स्पेशल पैंसेजर ट्रेन को बालासोंड स्टेशन पर रोका जा रहा है जहां न तो शेड है और न ही पीने के लिए पानी का इंतजाम। दूसरी ओर पता नहीं रेलवे ने वंदेभारत ट्रेन की जरूरत महसूस की तो उसने इस रूट पर कितने यात्री मिलेंगे, यह सर्वे कराया या नहीं। अब जबकि ट्रेन को चलते तीन सप्ताह चुके हैं, इसे सवारियों का टोटा बना हुआ है। 1128 सीटों वाली इस ट्रेन में हर दिन औसत 160 से 200 के बीच ही सवारी चढ़ रहे हैं। यही हाल कई महीनों तक बिलासपुर-नागपुर ट्रेन का था। तब इसके कोच की संख्या घटाकर 14 से सीधे 7 कर दी गई। यदि यही हाल रहा तो दुर्ग-विशाखापट्टनम से भी कई कोच हटाने पड़ेंगे। कई लोगों का सुझाव है कि इन ट्रेनों में प्रीमियम शुल्क लेकर नॉन एसी कोच भी लगा दिए जाएं। मगर, शायद रेलवे को लगता है कि जो ज्यादा खर्च कर सकें, वे ही तेज रफ्तार वाली ट्रेनों के हकदार हैं।
उत्पातियों से सुरक्षित दूरी
डेली नीड्स की यह दुकान कोटा विकासखंड के एक ग्राम की है, जिसमें सामने जाली लगा दी गई है। यदि किसी ग्राहक को कोई सामान चाहिए तो वह उस पर हाथ नहीं लगा सकता। एक छोटी सी खिडक़ी बनाई गई है, उसी से लेन-देन होता है। इसे महिलाएं चलाती हैं। शाम होने के बाद कुछ बेवड़े भी दुकान में टपक पड़ते हैं। इसलिए यह घेराबंदी बहुत काम आती है। दिन में बंदर भी धमक पड़ते हैं। वे झपटकर कोई भी सामान उठा लेते थे। उनसे भी बचाव हो जाता है। (rajpathjanpath@gmail.com)
रायपुर दक्षिण, एक अनार-सौ बीमार
रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव की घोषणा किसी भी दिन हो सकती है। दोनों ही मुख्य दल भाजपा, और कांग्रेस के अंदरखाने में प्रत्याशी चयन पर मंत्रणा चल रही है। कांग्रेस में कुछ बड़े नेता किसी नए चेहरे को आगे लाने की वकालत कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ भाजपा में नए समीकरण बनते दिख रहे हैं।
सांसद बृजमोहन अग्रवाल रायपुर दक्षिण का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। ऐसे में मोटे तौर पर माना जा रहा है कि बृजमोहन अग्रवाल की पसंद को ही महत्व दिया जाएगा। मगर हरियाणा चुनाव नतीजे के बाद भाजपा के भीतर अलग तरह की चर्चा चल रही है। कहा जा रहा है कि हाईकमान महिला, अथवा किसी नए चेहरे पर विचार कर सकती है। इसमें प्रदेश भाजपा प्रभारी नितिन नबीन की राय अहम होगी।
खुद महामंत्री (संगठन) पवन साय गैर राजनीतिक लोगों से भी सलाह मशविरा कर रहे हैं। कुछ लोगों का अंदाजा है कि पार्टी उप चुनाव के प्रत्याशी को लेकर चौंका सकती है। देखना है आगे क्या हो सकता है।
वन विभाग के फण्ड के किस्से
मंगलवार से राजधानी में वन विभाग के राष्ट्रीय खेल होने वाले हैं। चार दिनों की इस स्पर्धा में देश भर के वन विभाग के बड़े-बड़े खिलाड़ी भाग लेने आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में यह खेल 2004, 2018, के बाद इस बार तीसरी बार हो रहे हैं। आयोजन की तैयारियां चरम पर हैं। एक बीट गार्ड से पीसीसीएफ तक काम पर लगाए हैं। आने वाले खिलाडिय़ों को रत्ती भर की तकलीफ न हो इसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है । शहर के सभी होटल, टैक्सी बुक हैं। कम न पड़े इसलिए 65 नए महिंद्रा वाहन खरीदे गए हैं। 35 और आने हैं। आयोजन के चारों दिन खिलाडिय़ों को रिलेक्स महसूस कराने रात सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे। कई निजी गायक, डांस ग्रुप बुक किए गए हैं। इनमें वो वाले हैं या नहीं अभी पुष्टि नहीं हुई है। हर पदक विजेता को पदकों के साथ महंगे गिफ्ट भी दिए जाएंगे। उद्घाटन के लिए पेरिस ओलंपिक की रजत पदक विजेता मनु भाकर आमंत्रित हैं। और सेलिब्रिटी आने की हामी कैसे भरते हैं सभी जानते हैं।
ये बात हुई आयोजन की। अब बात छत्तीसगढ़ की इन खेलों में प्रदर्शन की। वैसे छत्तीसगढ़ की टीम पूर्व में अन्य राज्यों में हुए इन खेलों में ओवरऑल चैंपियन रही है। चूंकि इस बार मेजबान भी हैं तो परफार्मेंस में कमी न रहे, इसलिए टीम मजबूत बनाने के नाम पर आनन फानन में खेल कोटे से पिछले हफ्ते 50 पदों पर वन रक्षकों की भर्ती की गई। और दशकों से काम कर रहे दैवेभो नाराज किए गए हैं । कहीं 16-20 तक ये लोग कोई खेल न कर दे। आयोजन खर्च को लेकर भी चर्चा हो रही है। इस पर करीब 50 करोड़ व्यय होने की जानकारी दी गई है। इसमें वनीकरण के कैम्पा फंड, और अन्य विभागीय मद अंतरित किया जा रहा है । बाकी टिंबर, तेंदूपत्ता के ठेकेदार, वनोपज के सप्लायर, और विभाग के भवन, सडक़ ठेकेदारों की हिस्सेदारी रहेगी। वह भी भविष्य के टेंडर की बिनाह पर। कुल मिलाकर इस आयोजन को लेकर काफी चर्चा हो रही है।
वन विभाग का किस्सा नंबर दो
कल शाम वन विभाग ने बैक टू बैक दो फैसले लिए। पहला दैवेभो कर्मियों को श्रम सम्मान राशि जारी करने और दूसरा राजीव स्मृति वन में मार्निंग वॉक पर हर रोज 20 रूपए शुल्क वसूली स्थगित करने का फैसला लिया। ये फैसले यूं ही नहीं लिए गए। क्योंकि अफसरों के हर फैसले स्वार्थ परक होते हैं यह कहना है विभाग के ही कर्मचारियों का। वर्ना जो आदेश आठ महीने में नहीं हो रहे थे वो आधे घंटे में धड़ाधड़ हो गए।
श्रम सम्मान राशि लेने दैवेभो कर्मचारियों ने छ माह से मंत्री-नेताओं से गुहार, धरना प्रदर्शन घेराव और अंत में 48 दिनों की बे मुद्दत हड़ताल भी किया। वह भी मोदी की गारंटी में से एक था। लेकिन कल 12 करोड़ एक झटके में जारी हो गए। वह इसलिए कि 16 अक्टूबर से राष्ट्रीय वन खेल होने जा रहे हैं। और इस पूरे आयोजन को सफल करने इन्हीं कर्मियों से काम जो लेना है। क्योंकि वन बल प्रमुख, बेमुद्दत हड़ताल का असर देख चुके थे। और यह भी डर था कि कहीं ये कर्मी इन्ही खेलों के समय कोई अनहोनी न कर दे।
राजीव स्मृति वन की एंट्री फीस की वसूली स्थगित करना भी उसी भय का नतीजा बताया जा रहा है। बुधवार रात वसूली आदेश वायरल होते ही राजधानी के हर वर्ग में बवाल मच गया। और आज सुबह तो कांग्रेस नेताओं ने इस मुद्दे को हथिया लिया। पूर्व विधायक विकास उपाध्याय ने तो आंदोलन करने की चेतावनी दे दी। कहीं ये विरोध खेलों के उद्घाटन दिवस पर न हो यह जान, समझकर साहब ने वसूली स्थगित करने का आदेश दिया। वैसे बता दें कि वसूली स्थगित हुई है रद्द नहीं। यानी खेलों के बाद किसी भी दिन लागू होने के आसार बने हुए हैं।
डीएमएफ रुकने की फिक्र नहीं
छत्तीसगढ़ जैसे खनिज संपदा से संपन्न राज्य में जिला खनिज न्यास निधि (डीएमएफ) का महत्वपूर्ण स्थान है। कोयला, बॉक्साइट और अन्य खनिजों से प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और विकास के लिए इस निधि का उपयोग किया जाता है। हर साल 2300-2400 करोड़ रुपये की बड़ी राशि के सही इस्तेमाल से इन क्षेत्रों में बड़ा बदलाव लाया जा सकता था, लेकिन यह फंड भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा जरिया बन गया है।
पहले डीएमएफ ट्रस्ट के अध्यक्ष जिले के प्रभारी मंत्री होते थे। प्रदेश के कांग्रेस शासन के दौरान केंद्र सरकार ने यह अधिकार छीनकर कलेक्टरों को सौंप दिया। अब मंत्री और विधायक केवल सिफारिश करने तक सीमित रह गए हैं। फंड का नियंत्रण आईएएस अधिकारियों के हाथ में आने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ, बल्कि कमीशनखोरी एक स्थान से दूसरे स्थान पर शिफ्ट हो गई। ठेकेदार और सप्लायर पहले की तरह अपने काम में लगे रहे।
कोरबा में तत्कालीन मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने डीएमएफ फंड में करोड़ों की गड़बड़ी का आरोप लगाया था, जिसके सबूत भी प्रस्तुत किए। अब वहां की तत्कालीन कलेक्टर दूसरे आरोपों में जेल में हैं। हाल ही में दंतेवाड़ा में भी इसी तरह के घोटाले की परतें खुल रही हैं। सबसे बड़ा फंड इसी जिले का होता है। एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने जिले के सभी विभागों से पिछले पांच सालों में डीएमएफ फंड से किए गए कार्यों की जानकारी मांगी है। साथ ही, यह भी पूछा है कि किस अधिकारी या मंत्री ने फंड की स्वीकृति दी। एसीबी अब इन कार्यों का भौतिक सत्यापन भी करेगी।
कुछ महीने पहले केंद्र ने डीएमएफ के नियमों में फिर बदलाव किया। अब डीएमएफ की राशि दूसरे जिलों में ट्रांसफर नहीं की जा सकेगी। फंड ट्रांसफर के जरिये सबको बराबरी से उपकृत किया जाता था। हालांकि नाम यह दिया गया कि प्रदेश का इससे संतुलित विकास होगा। अब इस पर भी रोक लगा दी गई है।
चिंताजनक बात यह है कि इस वित्तीय वर्ष में अधिकांश जिलों में डीएमएफ फंड की राशि अभी तक नहीं आई है। जनप्रतिनिधि इस पर कोई आवाज नहीं उठा रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि फंड के उपयोग का अधिकार उनके पास नहीं है। दूसरी ओर, कलेक्टर भी फंड रिलीज की मांग करने में संकोच कर रहे हैं। शायद उन्हें लगता है कि फंड मांगने भर से उन्हें संदेह की नजर से देखा जाएगा।
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चार घंटे की सांस के 20 रुपए
राजीव स्मृति वन जिसे विभाग ने हाल ही में वन शहीद पार्क का नाम दिया है वहां अब मॉर्निंग वॉक के लिए भी शुल्क लगा दिया है। नौ सौ करोड़ से अधिक के बजट वाले विभाग को क्या इन दिनों आय की कमी हो गई है। कि 10-20 मॉर्निंग वॉकर से महीना 500 रूपए लेकर बजट की पूर्ति करनी पड़ेगी। शुल्क वसूली का यह आदेश कल से लागू हो गया है। और अब इस पार्क में सुबह के चार घंटे सांस लेने से पहले 20 रुपए रोज के देने होंगे। अरण्य भवन में चर्चा है कि यह शुल्क, विभाग के मामलों में कोर्ट कचहरी से परेशान अफसरों की सोच है। उन्हे परेशान करने वाले एक वन्य प्राणी पर्यावरण संरक्षक को रोकने के लिए लगाया है। लेकिन इससे, पार्क जाने वाले और दर्जन भर लोग परेशान किए जा रहे हैं। वैसे भी वन अफसर समय-समय पर अधिकारी विचित्र विचित्र नियम आम लोगों के लिये लागू करते रहे हैं।
आम जन को पर्यावरण की दुहाई देने वाले अधिकारी पूरे पार्क का वातावरण खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ते सरकारी अधिकारियों और उनके परिचित समय समय पर यहां पार्क के अंदर रात्रिकालीन पार्टियां करते हैं लेकिन रायपुर के डीएफओ, सीसीएफ को मॉर्निंग वॉकर्स से पार्क खराब होने की चिंता हैं। उन्हें शायद याद नहीं हो कि कुछ महीने पहले एक होली मिलन की विभागीय पार्टी में नाच गाने के साथ साथ रातभर जमकर शराबखोरी हुई थी।
आम लोगों के लिए जगह जगह बोर्ड लगाकर लिख गया है कि, मोबाइल की आवाज कम रखे क्योंकि पार्क में चहचहाने वाले पक्षियों को तकलीफ़ होती है। एक तरफ सरकार के ही दूसरे विभाग शहर के पार्को में बुजुर्गों के बापू की कुटिया बनवाकर उनके लिए गीत संगीत, योग क्लास, इंडोर खेल की व्यवस्था कर रहा है। नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए व्यायाम के उपकरण लगवा रहा है वही नया पदस्थ अधिकारी पार्क में आता है दो चार नये मनमाने नियम आम जनता के लिये मौखिक रूप से बना कर अधीनस्थ कर्मचारियों को अमल करने के निर्देश देकर चले जाते। और छोटे कर्मचारी इसे लागू करने की मजबूरी में जनता उलझते रहते हैं। मॉर्निंग वाकर्स का कहना है कि अफसरशाही नहीं चाहती कि आम नागरिक बच्चे स्वस्थ और प्रसन्न रहे ।
भर्तियों का मुद्दा जारी है
हरियाणा विधानसभा चुनाव नतीजों की खूब चर्चा हो रही है। छत्तीसगढ़ के भी कई नेता हरियाणा चुनाव प्रचार में गए थे। वहां भाजपा की जीत के जो कारण गिनाए जा रहे हैं, उनमें भर्ती परीक्षाओं में पारदर्शिता ने युवाओं को काफी प्रभावित किया है।
शिक्षक भर्ती घोटाले में हरियाणा के तत्कालीन सीएम ओमप्रकाश चौटाला को कैद भी हुई थी। कांग्रेस सरकार में भी भर्तियों में लेनदेन की बात सामने आते रही है। हरियाणा में बेरोजगारी दर देश के बाकी राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है। ऐसे में बेरोजगारों को रोजगार देने का मुद्दा हावी रहा।
छत्तीसगढ़ में भी पीएससी भर्ती घोटाले की वजह से भूपेश सरकार की साख खराब हुई थी, और सरकार की वापसी नहीं हो पाई। इससे परे हरियाणा भाजपा ने पिछले 10 साल में बिना पर्ची, और बिना खर्ची के नौकरी देने को अपनी उपलब्धि के रूप में जोर-शोर से प्रचारित किया था। और युवाओं ने इस पर मुहर भी लगाई।
दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय सरकार के बनने के बाद अलग-अलग विभागों में भर्ती घोटाले की जांच चल रही है, लेकिन गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार लोगों पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। संस्कृति विभाग में भर्ती में लेनदेन से जुड़े ऑडियो सोशल मीडिया में चल रहे हैं, लेकिन जांच एजेंसियों ने अब तक सुध नहीं ली है। और तो और जिन अफसरों पर गड़बड़ी का आरोप है, वो पहले से ज्यादा ताकतवर हो गए हैं।
राज्य की भूपेश सरकार ने दो बड़ी गलती की थी। पहला मनरेगा घोटाला के बड़े आरोपी दागी टामन सिंह सोनवानी को पीएससी चेयरमैन बना दिया था। यही नहीं, नान घोटाले के आरोपी डॉ. आलोक शुक्ला, जो अब भी जमानत पर हैं, उन्हें व्यापमं का चेयरमैन बनाकर भर्ती कराने का दायित्व सौंप दिया था। इसके चलते भर्तियों में गड़बड़ी उजागर हुई, तो भूपेश सरकार बचाव नहीं कर पाई। साय सरकार, भूपेश सरकार की गलतियों से सबक लेती है या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
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छत्तीसगढ़ के सुझाव की तारीफ
सीएम विष्णुदेव साय की केन्द्रीय उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के साथ बैठक के कई सकारात्मक नतीजे निकले हैं। पीयूष काफी सख्त माने जाते हैं, और वे राज्यों में विभाग की गतिविधियों पर बारीक नजर रखते हैं। यही नहीं, कई बार अफसरों को डपट भी देते हैं। मगर इस बार गोयल के सामने उद्योग सचिव रजत कुमार ने राज्य के उद्योग से जुड़े विषयों को लेकर प्रेजेंटेशन दिया, तो उनके तेवर काफी बदले दिखे। पीयूष काफी खुश नजर आए, और बैठक में ही रजत की तारीफ कर दी।
रजत ने मौका पाकर केन्द्रीय मंत्री को सुझाव दिया कि अंतरराष्ट्रीय निवेशक सम्मेलन आम तौर पर दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में होते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य, जहां अपार संभावना है वहां इस तरह के सम्मेलन से न सिर्फ निवेशक को नए क्षेत्र में निवेश के अवसर मिलेंगे। इससे राज्य की भी पहचान बनेगी।
पीयूष ने रजत के सुझाव की सराहना की, और भरोसा दिलाया कि भविष्य में छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए यथा संभव पहल की जाएगी। ऐसा नहीं है कि डबल इंजन की सरकार होने की वजह से कोई फायदा मिल रहा है। रमन सिंह सरकार में पीयूष गोयल ने बैठक में राज्य के कई प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। मगर इस बार जिस तरह विभाग ने बैठक को लेकर बेहतर तैयारी कर रखी थी, उसका फायदा मिलता दिख रहा है।
इसकी जरूरत नहीं
एंग्लो इंडियन समुदाय से विधायक मनोनयन को लेकर संगठन सरकार स्तर पर कोई हलचल नहीं है। हालांकि अभी 9 माह ही हुए हैं। वोट बैंक की चिंता करने वाली कांग्रेस ने भी पिछले पांच वर्ष में मनोनयन नहीं किया था। हालांकि दो तीन बार हलचल हुई थी। लेकिन 69 के स्पष्ट बहुमत के चलते जरूरी नहीं समझा गया। इस बार भी स्थिति कुछ वैसी ही है। भाजपा के 54 विधायक हैं, तो कांग्रेस के 35। यह अंतर मत विभाजन की स्थिति में खतरे से कोसो दूर। इन मनोनीत विधायक को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव छोड़ कर सदन के भीतर बाहर,हर तरह के मतदान में भाग लेने का अधिकार है।
भाजपा नेताओं का कहना है कि प्रदेश में सरकार हर वर्ग के साथ एंग्लो इंडियन समुदाय के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ रही। और इस समुदाय की आबादी (करीब 900- 1 हजार) भी मेनेजेबल है। इन सभी के परिवार सक्षम भी हैं। इसलिए एक सदस्य की नियुक्ति से विधायक निधि, वेतन भत्ते सुविधाओं पर बड़े स्थापना व्यय से बचा जा सकता है। यही वजह है कि मनोनीत विधायक को लेकर कोई हलचल नहीं। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद से अब तक तीन ही विधायक मनोनीत किए गए हैं इनग्रिड मैक्लॉड, रोजलीन बैकमेन एक-एक, बर्नार्ड जोसेफ दो कार्यकाल। पूर्व सीएम स्व.अजीत जोगी ने,अपने बहुमत के संकट से निपटने (मैक्लॉड)मनोनयन किया था।
हालांकि बाद की राजनीति के दौर में में इन दंपत्ति ने जोगी पर कई आरोप लगाए। उसके बाद रमन सिंह ने अपने दो कार्यकाल में दो सदस्य नियुक्त किए थे। पांचवीं विधानसभा में सीट खाली रही। वैसे संसद से 3-1-20 को पारित संविधान के 126 संशोधन के मुताबिक एंग्लो इंडियन विधायक का मनोनयन पर चुप्पी है। इस संशोधन में एससी/एसटी सीट आरक्षण को 10 वर्ष बढ़ाया गया लेकिन एंग्लो इंडियन पर कोई जिक्र नहीं। यही तात्पर्य निकाला जा रहा कि अब मनोनयन नहीं किया जाएगा। समझा जा रहा है कि बघेल सरकार ने भी इसी वजह से नहीं किया।
कांग्रेस की छत्तीसगढ़ जैसी विफलता
हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणामों से कुछ मिलते-जुलते रहे। छत्तीसगढ़ में चुनाव अभियान के दौरान से लेकर मतदान के बाद तक एग्जिट पोल में यह दावा किया गया कि कांग्रेस फिर से सरकार बनाएगी। हालांकि, 2018 के मुकाबले कांग्रेस की सीटें घटने का अनुमान था और भाजपा को कुछ मजबूत बताया गया था, लेकिन किसी भी सर्वे एजेंसी ने यह नहीं कहा कि भाजपा की वापसी होगी।
परिणामों के बाद जब ईवीएम खुली, तो सबके अनुमान ध्वस्त हो गए। भाजपा ने राज्य के चुनावी इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे कमजोर रहा। हरियाणा के चुनाव को लेकर भी कुछ ऐसा ही हुआ। कोई भी एग्जिट पोल भाजपा की जीत का दावा नहीं कर रहा था, कुछ तो भाजपा को केवल 25-27 सीटों पर सीमित बता रहे थे। वहीं, कई सर्वेक्षण कांग्रेस को 60 से अधिक सीटें दे रहे थे।
सोशल मीडिया और चुनाव विश्लेषकों ने भी बड़े दावे किए थे। विश्लेषक देवेंद्र यादव का कहना था कि कांग्रेस की 'सुनामी' चल रही है। भाजपा ने इन अनुमानों को नकारते हुए अपनी रणनीति जारी रखी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस मध्य प्रदेश की तरह मुगालते में है। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने छत्तीसगढ़ की तरह बाजी पलटने की बात कही।
परिणाम आने के बाद, जो लोग भाजपा की हार की भविष्यवाणी कर रहे थे, वे कांग्रेस की गलतियों पर चर्चा करने लगे। भले ही हरियाणा और छत्तीसगढ़ के चुनाव अलग समय पर हुए और मुद्दे भी अलग थे, लेकिन कांग्रेस की एक रणनीति ने उन्हें नुकसान पहुंचाया। यह रणनीति थी कि किसी एक नेता के प्रभाव में टिकटों का बंटवारा किया गया, उनके विरोधी माहौल को नजरअंदाज कर दिया गया।
एग्जिट पोल के गलत साबित होने का मतलब यह भी है कि कई सर्वेक्षण केवल कागजों पर ही तैयार हो जाते हैं। इसके बावजूद, एग्जिट पोल का बाजार कभी बंद नहीं होगा, क्योंकि जब तक ईवीएम नहीं खुलती, दर्शकों को जो भी दिखाया जाता है, वह देखा जाता है।
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सूरजमुखी आयोजन समिति
डब्ल्यू आर एस के रावण भी बड़े अजीब हैं हर पांच वर्ष में नाम बदलते रहता है और अगले पांच वर्ष चलता है। इस रावण को आयोजन समिति के प्रमुखों के नाम से जाना जाता है। पहले स्व तरुण चटर्जी, फिर राजेश मूणत, और इसका बाद कांग्रेस सरकार में मेयर-विधायकों की टीम आयोजन समिति के कर्ताधर्ता रहे हैं, लेकिन इस बार पुरंदर मिश्रा को आयोजन समिति का मुखिया बनाया गया है।
यह सिलसिला चार दशक से चल रहा है। रेलवे का यह इलाका रायपुर ग्रामीण का हिस्सा रहा है। प्रदेश में सबसे ज्यादा भीड़ भी डब्ल्यूआरएस के दशहरा उत्सव में उमड़ती रही है। हर बार का दशहरा उत्सव पिछली के मुकाबले ज्यादा भव्य होता आया है। विधानसभा के परिसीमन के बाद स्थिति बदल गई, और डब्ल्यूआरएस का इलाका रायपुर उत्तर का हिस्सा बन गया। मगर राजेश मूणत पश्चिम के विधायक होने के बावजूद डब्ल्यूआरएस दशहरा उत्सव समिति के मुखिया बने रहे।
कांग्रेस की सरकार आई, तो मूणत को हराने वाले विकास उपाध्याय दशहरा उत्सव समिति का प्रमुख बनना चाह रहे थे। लेकिन रायपुर उत्तर के विधायक कुलदीप जुनेजा ने दावेदारी ठोक दी, और फिर मेयर एजाज ढेबर भी कूद पड़े। इसके बाद सामूहिक नेतृत्व में आयोजन होता रहा। मगर भाजपा की सरकार बनी, तो आयोजन समिति ने मूणत से संपर्क किया था लेकिन उन्होंने पारिवारिक कारणों से मना कर दिया।
उन्होंने समिति के लोगों से कहा बताते हैं कि पांच साल उन्हें दूर रखा गया अब मन नहीं है। फिर समिति के प्रमुखों ने पुरंदर को मना लिया, और वो तैयारी में जुट भी गए हैं। दरअसल, बड़ा खर्च देखकर आयोजन समिति विधायक और उनके जरिए सरकार निगम के संसाधनों की मदद ले लेते है। दपूमरे रेल प्रशासन मैदान दे देता, बाकी संसाधन समिति को खर्च कर जुटाने पड़ते, सो वे विधायकों को ही अध्यक्ष बनाकर आयोजन करने लगे। पुरंदर हर साल भव्य रथयात्रा तो निकालते ही हैं, और इस बार उन पर दशहरा उत्सव की जिम्मेदारी है। डब्ल्यूआरएस के दशहरा उत्सव पर इस बार लोगों की नजरें टिकी हुई है। सूरजमुखी का फूल, जिधर सूरज रहता है, उसी तरफ़ घूम जाता है।
सदस्यता की चुनौती
भाजपा के सदस्यता अभियान के चलते दिग्गजों की नींद उड़ गई है। हाल यह है कि रायपुर के चारों विधानसभा मिलाकर लक्ष्य से आधे सदस्य नहीं बन पाए हैं। रायपुर की सीमा से सटे विधानसभा के युवा विधायक का तो हाल काफी बुरा है। विधायक के खराब बर्ताव की वजह से कार्यकर्ता छिटक गए हैं। युवा विधायक टारगेट का आधा भी पूरा नहीं कर पाए हैं।
रायपुर के एक विधानसभा क्षेत्र में एक जमीन कारोबारी तो सदस्य बनाने में स्थानीय विधायक को पीछे छोडऩे का दावा कर रहे हैं। लेकिन वस्तु स्थिति तो सदस्यता अभियान खत्म होने के बाद ही सामने आ पाएगी। इन सबके बीच पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, और वैशाली नगर विधायक रिकेश सेन की काफी चर्चा हो रही है। अजय चंद्राकर ने सबसे ज्यादा 70 हजार सदस्य बनाए हैं। जबकि दूसरे नंबर पर रिकेश सेन हैं, जो कि 25 हजार से अधिक सदस्य बना चुके हैं। चर्चा है कि आधा दर्जन विधायक ही सदस्यता के लक्ष्य को पूरा कर पाए हैं। देखना है कि भाजपा की सदस्यता अभियान के आंकड़े कहां तक पहुंचते हैं।
फिर वही पीएससी इंटरव्यू
छत्तीसगढ़ पीएससी 2022 में हुई गड़बड़ी की जांच की जिम्मेदरी मिलने के बाद सीबीआई ने शुरूआती जांच की, कुछ जगहों पर छापामारी की लेकिन अब तक आरोपियों पर शिकंजा नहीं कसा है। इधर धीरे-धीरे पीएससी 2023 की मुख्य परीक्षा हो गई और उसकी मेरिट लिस्ट भी जारी हो गई। अब 15 अक्टूबर से इसमें साक्षात्कार की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। लोकसेवा आयोग में अध्यक्ष व चार सदस्यों का पद होता है। पर इनमें अभी दो पद रिक्त हैं। टोमन सिंह सोनवानी के बाद कार्यकारी अध्यक्ष का जिम्मा प्रवीण वर्मा संभाल रहे हैं। वहीं डॉ. सरिता उइके और संतकुमार नेताम सदस्य हैं। सभी पद संवैधानिक हैं इसलिये नियुक्ति कांग्रेस के समय की होने के बावजूद वे अपना कार्यकाल खत्म होने तक पद पर बने रहेंगे। उम्मीदवारों का साक्षात्कार ये ही लोग होंगे।
यह बात अलग है कि सन् 2023 की प्रारंभिक परीक्षाओं के खिलाफ दायर 40 याचिकाओं को हाल ही में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था लेकिन इसके पहले की कोई भी परीक्षा विवाद के बिना नहीं गुजरा। 2003 में हुई पहली परीक्षा में गलत टेबुलेशन से चयन में गड़बड़ी की बात हाईकोर्ट में खुद पीएससी ने मान ली थी, पर इस आधार पर चयन किए गए लोग सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत मिल जाने के कारण सेवा में हैं। इनमें से अनेक लोग आईएएस अवार्ड प्राप्त कर चुके हैं और कुछ साल में रिटायर्ड भी हो जाएंगे।
भाजपा ने वादा किया था कि सरकार बनने के बाद पीएससी के पैटर्न में बदलाव किया जाएगा। संघ लोक सेवा आयोग की तरह परीक्षा से लेकर चयन तक की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। मगर, स्थिति यह है कि सरकार के गठन के 10 माह बाद भी रिक्त दो पदों पर नियुक्ति नहीं हो पाई है। भाजपा से जुड़े कई दावेदार भी इसका इंतजार कर रहे थे। सोशल मीडिया पर इशारों में दावेदारी भी कर रहे हैं और अपनी सरकार का ध्यान खींच रहे हैं। मगर, इंटरव्यू की तारीख इतने करीब आ चुकी है कि अब रिक्त सदस्यों की नियुक्ति की जल्दी हो इसकी उम्मीद कम है। बस, इंटरव्यू दिलाने वाले परीक्षार्थियों की चिंता यह है कि चयन योग्यता के अनुसार हो, पिछली बार की तरह विवादित न हों।
टूथ पिक भी चाइनिज
चीन से आयातित दंतखुदनी (टूथपिक) का पैकेट 25 रुपये में मिल रहा है, जिसमें 300 स्टिक्स हैं। भारत में बने टूथ पिक की कीमत 140 रुपये है। इसमें 500 स्टिक्स हैं, फिर भी हिसाब में चीन का बना टूथपिक काफी सस्ता है। ऐसी वजह के चलते ही तमाम देशप्रेमियों के विरोध के बावजूद दीपावली पर चाइनिज झालर, पटाखे बाजार पर कब्जा कर ही लेते हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)
कौन बनेगा .... ?
पीडब्ल्यूडी में नए ईएनसी की खोज चल रही है। मौजूदा ईएनसी केके पिपरी जनवरी में रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में अभी से उनकी जगह नई नियुक्ति करने पर चर्चा चल रही है। कहा तो यह भी जा रहा है कि अभी नई नियुक्ति के मसले पर सरकार में एकमत नहीं है।
नए ईएनसी की नियुक्ति की चर्चा की वजह भी है। हाईकोर्ट ने हाल ही में सडक़ों की दुर्दशा पर सरकार को फटकार भी लगाई है। डिप्टी सीएम अरुण साव ने अफसरों को चेताया है कि यदि सडक़ों की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ, तो वो जिम्मेदार लोगों को वीआरएस थमा देंगे। साव ने नवम्बर तक सडक़ों को चकाचक करने की डेडलाइन तय कर दी है।
दूसरी तरफ, नए ईएनसी की नियुक्ति के मसले पर दो-तीन दौर की बातचीत हो चुकी है। नए ईएनसी के लिए जिन दो नामों की चर्चा चल रही है उनमें चीफ इंजीनियर ज्ञानेश्वर कश्यप, और एसएस कोरी हैं। कोरी, कश्यप से सीनियर हैं। एक चर्चा के मुताबिक कोरी ईएनसी बनने के इच्छुक नहीं है। ऐसे में ज्ञानेश्वर कश्यप का नाम मजबूती से उभरा है। भाजपा के कई प्रमुख नेता कश्यप को ईएनसी बनाने के पक्ष में हैं। जल्द ही नई नियुक्ति के मसले पर फैसला हो सकता है।
सेक्रेटेरिएट बिजनेस रूल के इतर
मंत्रालय में उप सचिव,अवर सचिव पद पर पदस्थ राप्रसे अफसर सचिवालयीन कार्यप्रणाली (सेक्रेटेरिएट बिजनेस रूल) का पालन नहीं कर रहे- यह आरोप लगाया है मंत्रालय कर्मचारी अधिकारी संघ ने।
इस आरोप पर संघ के एक-एक पदाधिकारी और विभागों में कार्य कर रहे कर्मचारियों के पास सबूत भी है। इन अफसरों की फाइलों में नोटिंग हैं। मैं कह रहा हूं न, फाइल में यह लिखो जैसी चेतावनियों से लिखवाए गए आदेश। और फिर उसके बाद हाईकोर्ट के चक्कर। और सरकार की कोर्ट में किरकिरी, फटकार के साथ अवमानना के मामले अलग। यदि कोई कर्मचारी न करें, तो उस पर काम न आने का आरोप लगा कर हटा देने की भी शिकायत है। इसके बाद ये राप्रसे अफसर अपने किसी जिला कार्यालय से कर्मचारी वह भी दैवेभो को पदस्थ कर मनमाने आदेश करवा रहे।
गृह, वित्त, राजस्व जैसे कई अहम विभागों में दैवेभो कई गंभीर फाइलें डील कर रहे। इनमें विभागीय जांच के मामले भी हैं। ये लोग, साहब की हर बात, नियमित होने की उम्मीद के साथ चल रही नौकरी भी चली न जाए के डर से करते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए। इसकी आड़ में पेटीएम, फोन-पे भीम एप से कमाई अलग। ऐसे दर्जनों मामलों के मंत्रालय कर्मचारी संघ ने सबूत जुटाए हैं।
दरअसल इनमें से कुछ अफसर कमाई वाले फील्ड से हटाए जाने के फ्रस्ट्रेशन में करते हैं तो कुछ मंत्री विधायकों से राजनीतिक पहुंच वाले स्वयं को किसी आईएएस से कम नहीं मानते। ऐसे ही अफसरों की वजह से उनके आका मंत्री विधायक भी फंस जाते हैं।
संघ का कहना है कि राप्रसे के अफसरों ने अपनी कार्यप्रणाली न सुधारी तो ऐसी नस्तियां मुख्य सचिव को सौंप देंगे।
मालवाहक में फिर गई मजदूर की जान
इसी साल मई महीने में एक बड़ी दुर्घटना हुई थी, जिसमें तेंदूपत्ता मजदूरों से भरी पिकअप 20 फीट गहरी खाई में गिर गई थी। हादसे में 19 लोगों की मौत हो गई थी। घटना के बाद पीएचक्यू से आदेश निकला, जिसके बाद सभी पुलिस थानों में चेकिंग अभियान चलाया गया। जो मालवाहक सवारी ले जाते दिख रहे थे उनकी धरपकड़ हो रही थी और चालकों पर जुर्माना किया गया। पर जैसे ही लोगों का ध्यान उस घटना से हटा, पुलिस ने भी चेकिंग बंद कर दी। उसके बाद दुर्घटनाओं का भी सिलसिला फिर से शुरू हो गया है। हताहतों की संख्या कम होने के कारण पूरे प्रदेश को ऐसी घटनाएं नहीं झकझोरती। कल ही अभनपुर के पास धनौद में फिर एक पिकअप पलट गई जिसमें एक मजदूर को जान गंवानी पड़ी और करीब एक दर्जन लोग घायल हो गए। घटना राजधानी के पास की ही है। इन मजदूरों को काम कराने के लिए नवा रायपुर लाया जा रहा था।
बारिश थमने के बाद निर्माण कार्यो में तेजी आने के चलते मजदूरों को गांव से शहर, कस्बों में लाने के लिए प्राय: मालवाहकों का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। इस समय नवरात्रि का पर्व भी चल रहा है। देवी दर्शन के लिए गांव के ज्यादा लोग एक साथ निकलते हैं तो किफायती किराये वाली पिकअप या मिनीट्रक का ही बंदोबस्त कर रहे हैं। प्राय: दुर्घटनाओं का कारण क्षमता से ज्यादा सवारी भरना, बिना ड्राइविंग सीखे ही स्टेयरिंग थाम लेना और नशे की हालत में गाड़ी चलाना होता है। थानों के सामने से गाडिय़ां निकल रही हैं, पर पुलिस इतना भी नहीं कर पा रही है कि इन दो चार चीजों की चेकिंग कर ले।
स्कूल में बाल मजदूर
पढऩे के लिए स्कूल गए बच्चों से झाड़ू लगवाने, ईंट उठाने, बर्तन धुलवाने के बाद अब भारी-भरकम बोझ उठाने का काम भी लिया जा रहा है। ये महज 8-9 साल के प्रायमरी स्कूल के बच्चे हैं, जिन्हें स्कूल की प्रधान पाठिका ने राशन दुकान से मध्यान्ह भोजन के लिए चावल ढोकर लाने का काम दिया है। दो बच्चे पूरी ताकत लगाकर आदेश का पालन करते हुए वायरल वीडियो में दिख रहे हैं। प्रधान पाठिका ने इनकार नहीं किया है कि यह घटना हुई है। बस, बचाव में यह कह रही हैं कि वीडियो पुराना है और बच्चों ने अपनी मर्जी से यह काम किया। यह दृश्य बिलासपुर जिले के मस्तूरी ब्लॉक के प्राथमिक शाला सोन का है।
एक आदेश से मचा बवाल
राज्य प्रशासन को अचानक एक और आईएएस सचिव मिल गए। ये सीधी भर्ती के नहीं, राप्रसे से प्रमोशन से बने हैं। राप्रसे के ये अफसर, आईएएस प्रमोट तो होंगे लेकिन अभी कुछ वर्ष शेष हैं। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि चार वर्ष से अटकी डीपीसी, इनके प्रमोशन के लिए, इतनी गोपनीय कब हो गई। बैठक में कौन कौन रहे । केंद्र ने कब मंजूरी दी, जैसे कई प्रश्न पूरे महानदी भवन में तैर रहे हैं। ये हैं राप्रसे के अफसर अन्वेष घृतलहरे। उनके सचिव बनने का खुलासा, दो दिन पहले 3 अक्टूबर को उनके ही द्वारा जारी एक आदेश में हुआ। इस आदेश में 2002 बैच के आईएएस रोहित यादव को सचिव ऊर्जा, और अध्यक्ष सीएसईबी नियुक्त किया गया है। आदेश के अधोहस्ताक्षरकर्ता वाले स्थान पर साहब का नाम, पदनाम और हस्ताक्षर सब कुछ है। और यह उपयुक्त सक्षम अधिकारी की अनुमति से नॉर्थ ब्लाक, राजभवन, महालेखाकार तक वायरल हो गया। तब तक किसी ने भी नहीं देखा। जीएडी के दो सचिवों मुकेश कुमार बंसल को और पी अंबलगन हैं।
इसका खुलासा आदेश जारी होने के दो दिन बाद शनिवार को पूरे महकमे में चर्चा में आया। मालूम हुआ कि आदेश के बाद ऊपर से नीचे तक बवाल मचाा। और नि: संदेह आदेश में करेक्शन होना ही था। सो दूसरे दिन इस आशय का शुद्धि पत्र पत्र जारी किया गया। तब ज्ञात हुआ, यह कंप्यूटर में फाइल कॉपी कट पेस्ट का मामला है। इन साहब ने मुकेश बंसल का नाम हटाकर अपना लिखा और पदनाम का ही रखा। वैसे मंत्रालय संघ आरोप लगा ही रहा है कि कुछ राप्रसे अफसर सचिवालयीन कार्यप्रणाली (सेक्रेटेरिएट बिजनेस रूल) का पालन नहीं कर रहे।
बहरहाल उसके बाद से जीएडी आईएएस सेक्शन परेशान है, इतनी बड़ी चूक की गाज किस पर गिरेगी। कहीं चार वर्ष से बैठे इन साहब को ही नई पोस्टिंग न मिल जाए। जो होगा,अगले एक दो दिन में पता चल जाएगा। इस एक आदेश से यह भी स्पष्ट हो गया कि यह सरसरी नजर की चूक है या कमाल है ।
छात्रसंघ से आजादी ही भली
छात्र संघ को राजनीति की सीढ़ी का पहला पायदान कहा गया है। सही भी है, कुछेक को छोड़ दें तो आज के सारे दिग्गज नेता इसी पायदान से चढ़े हैं। लेकिन पिछले आठ वर्षों से प्रदेश में ये चुनाव लगभग बंद से हैं। नए नेता धरना प्रदर्शन घेराव से ही निकल रहे हैं। और सरकार, इन चुनावों को युवाओं में अपनी छवि,और पकड़ से जोडक़र देखने लगी है। इसमें भाजपा की छात्र इकाई एबीवीपी के मुकाबले कांग्रेस के एनएसयूआई के फॉलोअर्स कहीं अधिक हैं। और यही कारण है कि रमन को 3.0 के अंतिम वर्षों के बाद से चुनाव नहीं मनोनयन होने लगे। दरअसल कुलपतियों ने अपना यह अधिकार भी सरकार पर छोड़ दिया है। और उसके बाद यूपीए सरकार ने लिंगदोह (पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त) कमेटी बनाकर चुनाव के बजाए मनोनयन की सिफारिश को लागू कर दिया । तब से कुलपति निश्चिंत हो गए हैं। और अब मोदी 2.0 की एनईपी यही कहती है।
और इस बार भी सरकार के आगे के कार्यक्रम और कार्यों को देखते हुए इस वर्ष भी ये चुनाव होते नहीं दिख रहे। इसके पीछे सरकारी कारण भी है।अभी अभी तो प्रवेश खत्म हुआ है। फिर एनईपी के तहत कैरिकुलम लागू करना है, इसका पहला वर्ष भी है । कुलपति, प्राचार्यों पर नैक ग्रेडेशन का दबाव आदि आदि। वैसे एनएसयूआई ने मतदान प्रणाली से चुनाव कराने दबाव बनाना शुरू कर दिया है ,उसके कई जिलों से ग्यापन उच्च शिक्षा सचिव को मिलने लगे हैं। लेकिन एबीवीपी मौन है। वह जानती है मनोनयन में ही अपना भला हैं। सरकार में फिलहाल पृथक शिक्षा मंत्री नहीं है इसलिए सचिव भी चुप हैं। सरकार अभी ऑपरेशन माओवाद, धान खरीदी, निकाय चुनाव के कार्यक्रम लेकर बैठी है। इसलिए यह तय माना जा रहा है कि चुनाव नहीं मनोनयन होंगे।
याद आता है कि मतदान से पिछले चुनाव रमन सरकार के दूसरे कार्यकाल में हुए थे जब प्रेम प्रकाश पांडे को निगरानी की जिम्मेदारी दी गई थी। जिसमें एनएसयूआई ने एबीवीपी को पटखनी दी थी ।
मुकदमा जीतने के बावजूद निराश
सरकार के लिए आसान है मुकदमे लडऩा। उनकी वकालत करने ने महंगे से महंगा वकील खड़ा किया जा सकता है, क्योंकि फीस सरकारी खजाने से भरी जाती है। मगर, बेरोजगारों के लिए एक अदालत से दूसरी अदालत तक हक की लड़ाई लडऩा मुश्किल होता है। मगर, यदि अदालत उनके पक्ष में फैसला दे भी दे सरकार चाहे उस पर अमल करने में हीला-हवाला कर सकती है। छत्तीसगढ़ में इसके दो उदाहरण हमारे सामने हैं। कांग्रेस शासनकाल में शिक्षक भर्ती के नियम को बदल दिया गया था। इसके अंतर्गत बीएड डिग्रीधारकों को भी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाने का पात्र माना गया था। इसे डीएड और डीएलएड डिग्रीधारकों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। इस आधार पर, कि प्रायमरी स्कूल में पाठ्यक्रम और अध्यापन के विशिष्ट तरीकों का प्रशिक्षण बीएड में नहीं मिलता। इसके लिए डीएड और डीएलएड धारक ही पात्र हैं। उनके तर्कों को मानते हुए हाईकोर्ट ने करीब 6 माह पहले उनके पक्ष में फैसला दिया। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। वहां पर भी हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा गया। इस तरह से जिन बीएड धारकों को चुन लिया गया है, उनकी जगह पर डीएड-डीएलएड डिग्रीधारकों को अवसर मिलना चाहिए। मगर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है। शिक्षा संचालनालय से बात की जाती है तो बताया जाता है कि सरकार के पास आदेश की प्रति भेज दी गई है, निर्णय वहीं से होना है। शायद सरकार के समक्ष बीएड धारकों को नौकरी से निकालने को लेकर असमंजस हो। मगर, मिडिल और हाईस्कूलों में शिक्षक के हजारों पद खाली हैं। इनमें वेकेंसी निकालने की गारंटी भी चुनाव के समय दी गई थी। हाईकोर्ट में भी हाल की सुनवाई के दौरान सरकार को स्वीकार करना पड़ा कि स्कूलों में शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं। यही हाल पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर की भर्ती का है। इंटरव्यू का रिजल्ट जारी नहीं हो रहा है। इसमें भी हाईकोर्ट का अभ्यर्थियों के पक्ष में आदेश है। अदालती लड़ाई 6 साल लंबी चली थी। दोनों ही मामलों में सरकारी नौकरी पाने के काफी करीब पहुंचने के बाद युवाओं को आगे का रास्ता कठिन दिखाई दे रहा है। (rajpathjanpath@gmail.com)
राजधानी में कॉफी हाउस
रायपुर से राजधानी में बदले अपने शहर में आज से कुल दस कॉफी हाउस हो जाएंगे। इनमें से नौ तो राज्य बनने के बाद खुले हैं। रायपुर में पहला कब खुला इसकी डेट याद नहीं है। लेकिन त्रिशूर (केरल)में 8 मार्च 1958 में पहले आउटलेट से अब 66 वर्ष में 500 ब्रांच देशभर में खुल चुके हैं। अपने रायपुर में दस हैं। इससे शहर के विस्तार का भी अंदाजा लगाया जा सकता है।
पुराने नौ में जीई रोड का पहला जो अभी न्यू सर्किट हाउस में संचालित, मंत्रालय, विधानसभा, एनआईटी, भाठागांव, सीएसईबी डगनियां, अटल नगर के सर्किट हाउस, और एनटीपीसी, शास्त्री चौक, (जल्द ही मेकाहारा चौक ) पंडरी श्याम मार्केट और अब दसवां मोवा थाने के पास है। अमूल के बाद सहकारिता का दूसरा सफल संगठन माना जाता है। यहां का स्टाफ कभी मौर लगी सफेद टोपी पहनकर बैरा बन जाता है तो कभी मैनेजर बन कैश दराज भी सम्हालता। सीईओ, सीजीएम, जीएम, क्लर्क जैसे औहदों को लेकर कोई ऊंच नीच नहीं । यहां तक कि हर बैरा, वेटर- ब्वाय नहीं अन्ना कहलाता है। प्लेट में बिल में छोड़े गए टिप पर सबकी हिस्सेदारी। अपने व्यंजनों के स्वाद की मोनोपली और रेट देशभर में एक ही हालांकि मीनू समय काल के अनुसार बदलता रहा है। लेकिन नहीं बदला वही भिंडी, मुनगे-लौकी-गाजर के टुकड़ों से लैस खट्टा सांबर और नारियल की चटनी। अब लंच की थाली में रसम के साथ सूप, बझिए के साथ पनीर, बिरयानी भी मिलती है। आने वाले दिनों में मोमोज़ भी मिलने लगेंगे।
त्रिशूर से दिल्ली तक यह पीढिय़ों से साम्यवादी और समाजवादी आंदोलनों का केंद्र रहा हो, रायपुर नीलम होटल का कॉफी हाउस कांग्रेस की राजनीति का गढ़ रहा है। पास ही तहसील आफिस होने से यहां कई बड़े जमीनों के सौदे हुए तो आरडीए, नगर निगम के टेंडर भरे जाते रहे। फिल्मों की समीक्षा के साथ, गोष्ठियां, पांच से छह अखबार वाले पुराने शहर के पत्रकारों के साथ पीसी भी हो जाया करतीं।
एक कप कॉफी उसमें भी वन बाय टू, के साथ घंटों गुजारने के लिए कोने के कुछ टेबल कांग्रेस नेताओं के लिए रिजर्व रहते थे। यहां से निकले मैसेज हमारे अखबार के कॉलम- (कॉफी हाउस की दीवार से) पर भी प्रकाशित होते रहे।
2010 में जब नवा रायपुर के मंत्रालय में कैंटीन खोलने की बात हो रही थी तब कई बड़े होटेलियर सूटकेस लेकर अफसरों के पीछे दौड़ रहे थे। ऐसे में तत्कालीन सीएस सुनील कुमार ने, नो प्राफिट नो लॉस वाले कॉफी हाउस को रियायतों को साथ एक फ्लोर का बड़ा हिस्सा दिया था जो सफलता के साथ चल रहा है । वहीं विधानसभा में भी कई होटलों की कैंटीन खुलने के बाद वहां भी कॉफी हाउस ही पसंद किया गया।
नए लोगों की दिक्कत
कांग्रेस के दर्जनों नेता लोकसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा में शामिल हुए थे। इनमें से ज्यादातर ने भूपेश बघेल से नाराजगी जताकर कांग्रेस छोड़ी थी। कुछ तो विधायक भी रह चुके हैं, लेकिन भाजपा में आने के बाद वैसा सम्मान नहीं मिल पा रहा है जिसकी उन्हें चाहत रही है। कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं का हाल यह है कि उन्हें लालबत्ती मिलना तो दूर, सक्रिय सदस्य बनने के लिए मेहनत करनी पड़ रही है। भाजपा में सदस्यता अभियान चल रहा है। पार्टी का सक्रिय सदस्य बनने के लिए जरूरी है कि वो खुद अपने आईडी से 50 सदस्य बनाए। सक्रिय सदस्य बनने की स्थिति में ही पार्टी संगठन अथवा सरकार में कोई जिम्मेदारी मिल सकती है। अब हाल यह है कि इन सभी नवप्रवेशी भाजपाईयों को सदस्य बनाने के लिए मेहनत करनी पड़ रही है।
सीधी-सादी गाय के सींग
जब सीधी उंगली से घी नहीं निकलता तो टेढ़ी करनी होती है। पर कुछ सींगधारी ऐसे होते हैं, जिनको यह सब नहीं करना पड़ता। कुदरत उनको ऐसे खतरनाक सींग देती हैं कि देखने वाले को समझ आ जाता है और इससे भिड़े तो अंजाम बुरा होगा। गाय अमूमन सीधी होती हैं, लेकिन ऐसे टेढ़े सींग वाली गाय बिलासपुर के मोहनभाठा में दिखी, जिसे प्राण चड्ढा ने अपने कैमरे में कैद कर लिया।
(rajpathjanpath@gmail.com)
कहां बिठाए और कोई आए तो
बीत रहे मानसून में भले ही महानदी में बाढ़ न आई हो, लेकिन महानदी भवन में अफसरों की बाढ़ जैसी स्थिति है। अधीक्षण शाखा और रजिस्ट्रार के पास कमरों की समस्या आन पड़ी है। 24 वर्षों में पहली बार बेंच, फुल जैसी स्थिति है। रजिस्ट्रार परेशान हैं कि अब एक और अफसर आए तो उन्हें कहां बिठाए। सेक्रेटरी ब्लॉक, जैम पैक हो गया है। पिछली सरकार में तो कुछ अफसरों ने सीएम की निकटता के लिए मंत्री, और संसदीय सचिव ब्लॉक तक में कमरे ले रखे थे। और अब भी यह परंपरा बनी हुई है।
दरअसल, राज्य मंत्रालय में सचिवों की तादाद बढ़ गई है। इस समय 2002 से 2008 बैच के कुल 24-25 सचिव हो गए हैं। इनमें से कुछ स्वतंत्र प्रभार में हैं तो कुछ एसीएस, पीएस के मातहत पदस्थ हैं। मंत्रालय का सेटअप इसकी अनुमति देता है। लेकिन आईएएस लॉबी इससे संतुष्ट नहीं है। वह इसे प्रोटोकॉल के तहत नहीं मानती। उसका कहना है कि आईपीएस, आईएफएस को मंडी बोर्ड,पर्यटन मंडल, सीएसआईडीसी के एमडी जैसे 10 आईएएस के कैडर पदों पर बिठाए जाने से यह स्थिति बनी है।
हालांकि यह अभी नहीं 23-24 वर्षो से चली आ रही परंपरा बनी हुई है। अगले फेरबदल में सरकार को इस पर गौर कर कैडर पोस्ट आईएएस को लौटाने होंगे। इसे लेकर जल्द ही आईएएस एसोसिएशन सीएम से मिलने जा रहा है। ऐसी स्थिति डॉ. रमन सिंह के दूसरे कार्यकाल में भी आई थी, तब एसोसिएशन के सचिव रहे केडीपी राव सरकार के समक्ष अपनी बात रख आए थे।
मनोनयन के आगे-पीछे
दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव की पुत्र वधु प्रियम्वदा सिंह जूदेव को सरकार ने राज्य महिला आयोग का सदस्य बनाया है। प्रियम्वदा, दिलीप सिंह जूदेव के बड़े बेटे दिवंगत शत्रुंजय सिंह जूदेव की पत्नी हैं। प्रियम्वदा के साथ ही ओजस्वी मंडावी, और सरला कोसरिया, लक्ष्मी वर्मा, और दीपिका सोरी को भी सदस्य बनाया है।
ओजस्वी दंतेवाड़ा के दिवंगत विधायक भीमा मंडावी की पत्नी हैं। जूूदेव परिवार की बात करें, तो प्रियम्वदा जशपुर इलाके में पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करती रही हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जूदेव के परिवार के दो सदस्यों को चुनाव मैदान में उतारा था। उनके छोटे पुत्र दिवंगत पूर्व संसदीय सचिव युद्धवीर सिंह की पत्नी संयोगिता सिंह जूदेव, और मंझले पुत्र प्रबल प्रताप सिंह को प्रत्याशी बनाया था। मगर दोनों ही चुनाव नहीं जीत पाए।
यही नहीं, सरगुजा राज परिवार के एक और सदस्य पूर्व राज्यसभा सदस्य रणविजय सिंह जूदेव भी लालबत्ती की दौड़ में बताए जा रहे हैं। रणविजय सिंह ने रायपुर पश्चिम विधानसभा सीट से दावेदारी की थी। वे कुछ समय पहले केन्द्रीय मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात कर चुके हैं। देखना है कि जूदेव परिवार के सदस्यों को और क्या कुछ मिलता है।
जुर्माना क्या पालकों की जेब से कटेगा?
राज्य की बोर्ड परीक्षाओं के लिए छात्रों के आवेदन समय पर जमा नहीं करने वालों पर छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल ने 25-25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया है। यह पोर्टल 4 दिन के लिए खोला जाएगा, पर एक्सेस तभी मिलेगा, जब जुर्माने की रकम जमा कर दी जाएगी। बोर्ड परीक्षा के लिए आवेदन पत्रों को ऑनलाइन जमा करने के लिए स्कूलों को 30 अगस्त तक का समय दिया गया था, उसके बाद बोर्ड ने पोर्टल बंद कर दिया। हर साल यही होता था कि बाद में शालाओं के अनुरोध पर पोर्टल दोबारा खोला जाता था। पर उसके लिए कोई अर्थदंड नहीं लगाया जाता था। इस बार 1247 स्कूलों ने फिर से पोर्टल खोलने के लिए आवेदन दिए हैं। इस तरह से यह राशि करीब 3 करोड़ 11 लाख पहुंचती है। यह जरूर है कि कई स्कूल समय पर आवेदन जमा करने में रूचि नहीं लेते, जिसके कारण पोर्टल दोबारा खोलना पड़ता है, लेकिन कई बार छात्रों के दस्तावेज भी अधूरे होते हैं, जिससे देर हो जाती है। अब सवाल यह उठ रहा है कि इस रकम की भरपाई कौन करेगा। निजी स्कूल जुर्माने की रकम की भरपाई छात्रों से ही ऐन-केन प्रकारेण वसूल करके कर लेंगे, लेकिन सरकारी स्कूल के पास तो इस तरह का कोई फंड ही नहीं होता। वहां उन तबकों के बच्चे भी बड़ी संख्या में पढ़ते हैं, जो फीस भी जमा नहीं कर पाते। क्या ये स्कूल भी छात्र-छात्राओं पर बोझ डालेंगे? सरकार एक तरफ नि:शुल्क शिक्षा को बढ़ावा देती है, दूसरी ओर माशिमं ने नई समस्या खड़ी कर दी है। इतना तो निश्चित है कि अगले सत्र में जब परीक्षा फॉर्म का समय आएगा, स्कूलों को माशिमं का यह तेवर याद रहेगा और शायद अगली बार समय पर सब आवेदन जमा हो जाएंगे।
पानी की बर्बादी का तरीका
इस बंदे ने कपड़े धोने के लिए अपने सिर पर पानी का पाइप बांध लिया है। वायरल वीडियो में दिखाया गया है कि इसी तरह से उसने बर्तन भी धोये। कुछ लोगों को यह जुगाड़ अच्छा लग सकता है लेकिन सवाल पानी बर्बाद करने का भी है।
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कुर्सी और सिफारिश
पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की सीएम विष्णु देव साय को लिखी कथित चि_ी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इसमें पूर्व सीएम ने भिलाई के होटल कारोबारी डॉ. रमेश चंद्र श्रीवास्तव को पाठ्य-पुस्तक निगम का चेयरमैन बनाने की अनुशंसा की है। एक अन्य चि_ी में जनपद सदस्य संगीता शर्मा को किसी निगम, अथवा भाजपा महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाने की अनुशंसा की है।
चि_ी की सच्चाई का तो पता नहीं, लेकिन वायरल होने के बाद विशेष कर भाजपा के नेताओं में प्रतिक्रिया हो रही है। पार्टी के कई नेता चि_ी को असली मानकर सोशल मीडिया में अपनी भावनाओं का इजहार भी कर रहे हैं। रायपुर शहर जिला भाजपा के नेता, और पार्षद सुभाष तिवारी ने फेसबुक पर अपना दर्द जाहिर किया कि किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंजिल, कोई हमारी तरह उम्र भर सफर में रहा।
कुछ ने रमन सिंह के खिलाफ भी लिखा भी है। इससे रमन सिंह से जुड़े लोग परेशान हैं। एक-दो नेता तो अपने लिए सिफारिशी चि_ी लिखवाने गए, तो उन्हें रमन सिंह के निजी स्टाफ ने यह कहकर लौटा दिया कि यहां फर्जी काम नहीं होता है। कुल मिलाकर निगम-मंडलों की नियुक्ति को लेकर हलचल तेज है।
संजय जोशी को लेकर खलबली
प्रदेश भाजपा में पिछले दो-तीन दिनों से काफी हलचल है। यह कहा जा रहा है कि संजय जोशी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकते हैं। यह भी खबर उड़ी कि जोशी की सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं की दिलचस्पी की एक बड़ी वजह यह है कि संजय जोशी यहां के प्रभारी रह चुके हैं। प्रदेश में पहली बार भाजपा की सरकार लाने में उनकी अहम भूमिका रही है। यहां के तमाम छोटे-बड़े बड़े नेताओं से उनके संबंध है, और भाजपा की राजनीति में सालों से अलग थलग रहने के बावजूद पार्टी के नेताओं के सुख-दुख में शरीक होते रहे हैं।
पिछले दिनों पार्टी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडेय के पिता के निधन पर शोक प्रकट करने संजय जोशी यहां आए भी थे, और कई नेताओं ने उनसे मुलाकात भी की थी। भाजपा की राजनीति में संजय जोशी को पीएम नरेन्द्र मोदी, और अमित शाह का विरोधी माना जाता है। ऐसे में कई लोग मानते हैं कि संजय जोशी को पार्टी में कोई जिम्मेदारी मिलना मुश्किल है। नवम्बर माह में राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति होगी, तब तक हलचल बनी रहेगी।
कई घर जद में आएंगे
राहत इंदौरी का एक मशहूर शेर है- लगेगी आग तो आएंगे कई घर जद में, मोहल्ले में सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है...। पता नहीं यह अतिक्रमण की कार्रवाई योगी सरकार से प्रेरित वाली है या नगर-निगम की ओर से सडक़ों से अतिक्रमण हटाने वाली नियमित कार्रवाई। मध्यप्रेश कांग्रेस की सोशल मीडिया प्रभाग की स्टेट कोआर्डिनेटर हिमानी सिंह ने इसे अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर यह दर्शाने की कोशिश की है कि बेकसूरों पर बुलडोजर चलाई जा रही है।
सोशल मीडिया पर निगरानी
बलौदाबाजार जिला प्रशासन और पुलिस की इस बात के लिए पीठ थपथपाई जा सकती है कि वहां सोशल मीडिया निगरानी समिति लगातार संवेदनशील और आपत्तिजनक पोस्ट और प्रोफाइल को चेक कर रही है। साइबर सेल ने इंस्टाग्राम, गूगल, फेसबुक और व्हाट्सएप से संपर्क करके अब तक इंस्टाग्राम के 19 पेज बंद कराए हैं। इसके अलावा कई वीडियो विभिन्न प्लेटफॉर्म से डिलीट कराए गए हैं। इन गतिविधियों में लिप्त कई लोगों पर बीएनएस और आईटी एक्ट के तहत कार्रवाई की गई है तो कुछ को माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया है। कलेक्ट्रेट में पिछले दिनों हुई आगजनी के बाद यह जिला लगातार संवेदनशील बना हुआ है, ऐसे में यहां प्रशासन को अधिक सतर्क रहना जरूरी भी है। पर, अब भी साइबर सेल और निगरानी समिति को, तथा पुलिस महकमे को भी इसमें सही गलत की पहचान करने के लिए अधिक प्रशिक्षित होना तथा विशेषज्ञता हासिल करना जरूरी है। इसकी बानगी पिछले दिनों बिलासपुर में देखी गई थी, जिसमें पुलिस ने एक दूसरे देश के झंडे की तरह बनाए गए तोरण के मामले में कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया, मगर दूसरे पक्ष की ओर से इस घटना की प्रतिक्रिया में वायरल वीडियो पर चुप्पी साध ली थी।
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किसका नंबर आएगा
केंद्रीय गृह मंत्रालय इसी माह 2004 बैच के आईपीएस अफसरों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए इंपैनल करने जा रहा है। इस बैच के अफसर आईजी हो चुके हैं।
इस बैच में छत्तीसगढ़ से छह अफसर हैं, देखना यह है कि इंपैनलमेंट के साथ नियुक्ति को लेकर किसकी लॉटरी लगती है। इनमें अंकित गर्ग, अजय यादव, बीएन मीणा, नेहा चंपावत, अभिषेक पाठक, संजीव शुक्ला शामिल हैं। पाठक इस समय बीएसएफ में तैनात हैं तो गर्ग सरगुजा और शुक्ला बिलासपुर रेंज आईजी हैं। सरकार से तालमेल भी ठीक है। नेहा चंपावत सालभर के भीतर ही केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटी है। मीणा, छह सात वर्ष पूर्व केंद्र में रह चुके हैं। दोबारा नियुक्त न करने का कोई प्रावधान नहीं हैं।
अजय यादव एक बार भी नहीं गए। राजनीति और सरकार के समय काल की परिस्थिति को देखते हुए इनमें से कौन-कौन प्रयास करते हैं। यह देखने वाली बात होगी। और फिर केंद्रीय एजेंसियों में उतने पद खाली भी होने चाहिए, क्योंकि इंपैनलमेंट तो देशभर के अफसरों का होना है। चाहे आईएएस हो या आईपीएस, अपना सर्विस प्रोफाइल बढ़ाने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहता हैं। एक बार केंद्र में काम करने के अनुभव मात्र से, भविष्य में एडिशनल सेक्रेटरी या एडीजी,डीजी जैसे पदों पर नियुक्त के लिए सीआर मजबूत हो जाता है। इंपैनलमेंट और नियुक्ति के बीच कई कारण काम करते हैं। वैसे बस्तर रेंज के आईजी पी.सुंदरराज, एसपी डी. श्रवण बीते छ: माह से अपने आवेदन पर डेपुटेशन का इंतजार कर रहे हैं। केंद्र के नक्सल उन्मूलन योजना को देखते हुए उनके दिल्ली जाने का संभावना कम ही है।
न्याय यात्रा से बढ़ा उत्साह
कांग्रेस की न्याय यात्रा के समापन मौके पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आने की चर्चा थी, लेकिन वो स्वास्थ्यगत समस्या और फिर हरियाणा व जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव की व्यस्तता की वजह से नहीं आए। अलबत्ता, प्रभारी सचिन पायलट भी चुनाव प्रचार में व्यस्तता के बाद किसी तरह चार्टर प्लेन लेकर दोनों प्रभारी सचिवों सुरेश कुमार, और जरिता लेटफलांग व संयुक्त सचिव विजय जांगिड़ के साथ यहां पहुंचे। और फिर न्याय यात्रा में शिरकत की।
प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज की अगुवाई में न्याय यात्रा भीड़ भाड़ के मामले में काफी हद तक सफल रही है। पार्टी नेताओं ने एकजुटता भी दिखाई है। प्रदेश के प्रमुख नेता डॉ. चरणदास महंत, पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के अलावा पूर्व नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, और तकरीबन सभी विधायक यात्रा में शामिल हुए। निकाय चुनाव, और रायपुर दक्षिण के टिकट दावेदार भी सक्रिय थे। ऐसे में यात्रा की सफलता से दीपक बैज की टीम काफी उत्साहित रही।
प्रदेश के वरिष्ठ न्यूज-फोटोग्राफर गोकुल सोनी ने फेसबुक पर अपना एक तजा तजुर्बा पोस्ट किया है। उन्होंने लिखा-कल हम कुछ मित्र नगरी जाते-जाते मुरमसिल्ली बांध पहुंच कर तेंदुआ के डर से उल्टे पैर लौट आये थे। जब हम लोग वहां से लौट रहे थे तभी हमें पास के एक गांव में हारमोनियम तबला और ढोलक के साथ भक्तिमय संगीत सुनाई दिया। हम गांव पहुंचे तो वहां रामधुनी कार्यक्रम चल रहा था।
गांव के लोगों ने बताया कि पितृपक्ष में अपने पितरों के लिए हर साल गांव में रामधुनी सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। यह रामधुनी सम्मेलन अन्य रामधुनी कार्यक्रमों से अलग था। दरअसल विभिन्न मंडलियों के द्वारा यहां धार्मिक नृत्यनाटिका का मंचन किया जा रहा था। जिस समय हम लोग वहां पहुंचे तब जय बजरंग रामधुनी मंडली हाटकोगेरा कांकेर के द्वारा महिषासुर वध का मंचन किया जा रहा था। प्रस्तुति इतनी शानदार थी गांव के लोग इसे मंत्रमुग्ध होकर देख रहे थे। नृत्यनाटिका में जो महिषासुर राक्षस बना था वह लगातार अपने मुंह से आग का गुबार उगल रहा था। यह प्रस्तुति हमारे दो मित्रों को भी खूब पसंद आया। इन मित्रों ने बिना मांगे एक बड़ी रकम उस मंडली को दान में दे दी। आपको बता दूं , इन दो मित्रों में एक मित्र गैरहिन्दू है।
फेसबुक में इस पोस्ट को डालने का उद्श्य मेरा यह है कि आज टेलीविजन में मनोरंजन के अनगिनत चैनल, मोबाइल के यू-टूयूब में हजारों-हजार मनोरंजन के साधन होने के बाद भी कुछ गांव के लोग आज भी अपनी संस्कृति और परंपरा से जुड़े हुए हैं। और हां, मैं गांव का नाम बताना तो आपको भूल ही गया। छत्तीसगढ़ के उस गांव का नाम है ‘सायफनपारा’। शायद किसी गांव का ऐसा नाम आप पहली बार सुन रहे होंगे।
वेतन अटक जाने की चिंता
बिहार जैसे कुछ राज्यों से यह खबर कभी-कभी निकल आती है कि वहां सराकारी कर्मचारियों को किसी-किसी महीने समय पर वेतन नहीं मिल पाया। पर, छत्तीसगढ़ में इस तरह की नौबत नहीं आई है। कोविड काल में भी जब कुछ राज्यों ने सरकारी कर्मचारियों के वेतन में कुछ प्रतिशत कटौती कर दी थी, छत्तीसगढ़ में पूरा वेतन दिया गया। मगर, इस महीने कुछ गड़बड़ हो गई है। सरकार की ओर से अधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है, मगर सरकारी कर्मचारियों की मानें तो इस बार उनका वेतन अब तक जमा नहीं हुआ है। प्राय: वेतन उनके खातों में 29 या 30 तारीख तक आ जाता है, पर इस बार 2 अक्टूबर हो चुका है। अभी कर्मचारी शांत हैं, क्योंकि उन्हें लग रहा है शायद शनिवार, रविवार और उसके बाद आए 2 अक्टूबर के अवकाश के कारण कुछ बाधा आ गई हो। कई कर्मचारी- अधिकारी संगठनों के वाट्सएप ग्रुप में यह चर्चा का विषय बना हुआ है। वे आगामी त्यौहारों, बिल भुगतान और लोन के किश्त को लेकर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। वित्त मंत्री ओपी चौधरी का विपक्ष में रहते हुए बनाया गया पुराना वीडियो भी वायरल हो रहा है जिसमें वे केंद्र के बराबर वेतन, भत्तों को राज्य के कर्मचारियों का बेसिक राइट बता रहे हैं। कमेंट किया जा रहा है कि भत्तों की लड़ाई तो बाद में शुरू होगी, अभी उन्हें अपने वेतन की ही चिंता सता रही है।
बैटरी वाली साइकिल
बालोद जिले के अर्जुन्दा के स्वामी आत्मानंद स्कूल में पढऩे वाले इस बच्चे ने अपने स्कूल आने-जाने के लिए बैटरी वाली साइकिल बना ली है। बैटरी सीट और हैडिंल के बीच एक पेटी में रखी गई है। इस जुगाड़ को तैयार करने में उसके पिता ने मदद की, जो एक वेल्डिंग करने वाला श्रमिक है। अब यह बालक फर्राटे स्कूल और घर के बीच की दूरी तय कर लेता है। लोग इसके इनोनेशन की तारीफ कर रहे हैं।
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