राजपथ - जनपथ
राज्यपाल की बैठकों से बेचैनी
राज्यपाल रामेन डेका जिलों में जाकर बैठक कर रहे हैं। पहली बार कोई राज्यपाल जिलों में सरकारी योजनाओं की समीक्षा कर रहे हैं। राज्यपाल के बैठक करने का अंदाज कुछ हद तक प्रभारी सचिवों की तरह है। इससे प्रशासनिक हल्कों में खलबली मची हुई है।पिछले दिनों रायपुर जिले की बैठक हुई, तो राज्यपाल आंकड़े साथ लेकर पूरी तैयारी से आए थे। उन्होंने बैठक में कह दिया कि जिले में तीन बड़ी समस्या है पेयजल, प्रदूषण, और यातायात।यातायात समस्या पर उन्होंने कह दिया कि वो पुलिस के प्रयास से संतुष्ट नहीं हैं। राज्यपाल ने कहा बताते हैं कि सिर्फ चालान काटने से यातायात की समस्या नहीं सुधरने वाली है।
रायपुर डीएफओ ने वन विभाग के कार्यों का ब्यौरा दिया, और कहा कि पांच लाख पेड़ लगाए गए हैं। इस पर राज्यपाल ने पूछ लिया कि पेड़ कितने बचे हैं? जितने पेड़ लगाने की बात कही जा रही है,उतने दिखाई नहीं देते हैं।
उन्होंने कहा ‘एक पेड़ मां के नाम’ से अभियान चलाने की बात कही गई, लेकिन मां तरह पेड़ों की रक्षा करनी चाहिए। राज्यपाल ने जिले भू जल के गिरते स्तर पर चिंता जताई, और प्रशासन को इस दिशा तत्काल कदम उठाने की जरूरत पर जोर दिया।
संस्कृत में आमंत्रण

सरगुजा के सांसद चिंतामणि महाराज की पुत्री का विवाह पिछले दिनों जशपुर में हुआ। उन्होंने शादी के कार्ड संस्कृत में छपवाए थे जिसकी काफी चर्चा रही।
चिंतामणि महाराज रमन सरकार के पहले कार्यकाल में संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं। वे संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए काफी काम कर रहे हैं। उनके यहां विवाह समारोह कई विधायकों ने भी शिरकत की थी। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी चिंतामणि महाराज को निमंत्रण पत्र के जवाब में शुभकामना संदेश भिजवाया, जो कि संस्कृत में था।
तबादलों के पीछे
बिलासपुर कलेक्टर अवनीश शरण प्रमोट होकर सचिव हो चुके हैं इसलिए उनका तबादला तय था। सीजीएमएससी घोटाले में फंसे चंद्रकांत वर्मा को खैरागढ़ कलेक्टर पद से हटाया जाना तय था।
किरण कौशल को लाने का राज
मसलन, किरण कौशल को मार्कफेड में दोबारा लाया गया है। वो पहले भी इस पद पर रह चुकी हैं। इस बार मार्कफेड में वापसी की अलग वजह है। करीब 33 लाख टन धान की नीलामी होनी है। सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द है और बड़ा नुक़सान होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। किरण को लाने के पीछे वजह यह रही कि नुकसान कम से कम हो। इसके अलावा उन्हें नागरिक आपूर्ति निगम एमडी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। लोगों को याद होगा कि भूपेश सरकार के वक़्त कांग्रेस के कुबेर रामगोपाल अग्रवाल किरण कौशल के पी छे लगे थे कि वे राइस मिलरों का नाजायज भुगतान कर दें. किरण कौशल अड़ी रहीं, और कहा कि उन्हें हटा दिया जाए, वे बिलकुल भी ऐसा नहीं करेंगी। उन्हें हटा दिया गया, उनके बाद सजो आला अफसर वहां लाए गए, उन्होंने नाजायज भुगतान किया, आज जेल में हैं. उस वक़्त किरण कौशल के खिलाफ अभियान चलने वाला रौशन चंद्राकर भी अभी जेल में है..
नांदगांव से बिलासपुर
चर्चा है कि पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल की पसंद पर संजय अग्रवाल को बिलासपुर कलेक्टर बनाया गया है, जो कि राजनांदगांव में बेहतर काम कर रहे थे। कुछ लोग कह रहे हैं कि डॉ. रमन सिंह भी उनसे बहुत खुश थे, इसलिए उन्होंने संजय अग्रवाल को बड़े जिले में भेजने के लिए सिफारिश की।
27 साल में 22 कलेक्टर
आदर्श स्थिति तो यही मानी जाती है कि किसी जिले में कलेक्टर को कम से कम दो साल का वक्त मिलना चाहिए। ताकि अफसर जिले की नब्ज पकड़ सके, हालात समझे, और फिर अपनी सोच के मुताबिक कुछ ठोस काम करके दिखा सके। लेकिन जांजगीर-चांपा में तस्वीर थोड़ी अलग ही रही है।
अगर जिले के गठन के वर्ष 1998 से अब तक की बात करें, तो इस जिले में 21 कलेक्टर आ-जा चुके हैं। यानी औसतन हर कलेक्टर को लगभग 15 महीने काम करने को मिला। अब 22वें आ रहे हैं।
कुछ अफसरों को बढिय़ा समय भी मिला, जैसे मनोज कुमार पिंगुआ (28 महीने), बृजेश मिश्रा (29 महीने), एस. भारतीदासन (24 महीने) और डॉ. वी.एस. निरंजन, जिन्हें दो बार मिलाकर लगभग 31 महीने का मौका मिला।
लेकिन कुछ के कार्यकाल तो ऐसे रहे जैसे चाय ठंडी भी नहीं हुई और कप छोडक़र सामान बांधना पड़ा। एम.आर. सारथी सिर्फ 6 दिन, अनश्चलगन पी. 8 महीने, आलोक अवस्थी 9 महीने और तारण प्रकाश सिन्हा सिर्फ 7 महीने ही कलेक्टर रहे। ऋचा प्रकाश चौधरी भी एक साल पूरा करने से पहले ही रवाना कर दी गईं। अब आकाश छिकारा को भी 1 साल 4 महीने बाद हटा दिया गया है और जन्मेजय महोबे नए कलेक्टर बनाए गए हैं।
कई बार ये ट्रांसफर प्रशासनिक कारणों से होते हैं, और कई बार अन्य वजहों से। कुछ अफसरों को एक जिले से हटाकर दूसरे में कलेक्टर बना दिया जाता है,जैसे बोरा, सिन्हा और चौधरी। उन्हें व्यक्तिगत रूप से नुकसान नहीं होता। लेकिन जिले के काम पर फर्क जरूर पड़ता है।
वैसे किसी जिले के प्रमुख के पद में बार-बार बदलाव से विकास की गति थम जाती है। योजनाएं बीच में अटक जाती हैं, और आम लोग सोचते रह जाते हैं। अब अगला कलेक्टर कैसा होगा, और क्या बदलेगा? विभाग प्रमुखों को भी नए कलेक्टर के मिजाज को समझकर तालमेल बिठाने में समय लगता है। अफसरों का आना-जाना चलता रहता है, लेकिन जिले की उम्मीदें और रफ्तार थोड़ा सा पीछे छूट जाती है।
मार्शलों का क्या होगा?
सहायक शिक्षकों की तरह विधानसभा में करीब डेढ़ दर्जन मार्शल की नियुक्ति का मसला भी उलझा हुआ है। छत्तीसगढ़ विधानसभा के गठन के बाद मार्शल की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई थी, और फिर प्रेमप्रकाश पांडेय के विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद सभी को नियुक्ति दी गई।
बाद में नियुक्तियों में तकनीकी खामियों के खिलाफ कुछ लोग हाईकोर्ट गए, और फिर सभी को बर्खास्त करने के आदेश हुए। बर्खास्त सहायक शिक्षकों को कोर्ट से राहत भी मिली।
फिर सुप्रीम कोर्ट ने मार्शलों की बर्खास्तगी के फैसले को सही ठहराया है। इसके बाद से सहायक शिक्षकों की तरह मार्शलों पर बर्खास्तगी की तलवार अटकी पड़ी है। सुनते हैं कि स्पीकर की दो पूर्व स्पीकर व सचिवालय के आला अफसरों व विधि विशेषज्ञों के साथ बैठक भी की है। मार्शलों को पुनर्नियुक्ति देने के लिए कोई रास्ता निकालने पर विचार भी हो रहा है। जानकार लोग इस तरह की परिस्थिति पैदा करने के लिए एक पूर्व विधानसभा सचिव को लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं जिसकी वजह से तकनीकी त्रुटियां होती रही, और मामला उलझता गया। देखना अब आगे क्या होता है।
साय से मिल, शिक्षक हड़ताल खत्म
आखिरकार सीएम विष्णु देव साय के हस्तक्षेप के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बर्खास्त सहायक शिक्षकों की हड़ताल खत्म गई। सरकार पहले दिन से ही हड़ताली शिक्षकों की पुनर्नियुक्ति देने पर सहमत थी, और इसके लिए सीएस की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी।
पुनर्नियुक्ति की प्रक्रिया आसान नहीं था। इसमें कानूनी अड़चनें आ रही थी। कमेटी ने काफी माथापच्ची के बाद सहायक शिक्षक ( प्रयोगशाला सहायक) के रिक्त पदों पर नियुक्ति देने का प्रस्ताव तैयार किया था। पिछले छह माह से नवा रायपुर में धरना दे रहे बर्खास्त शिक्षकों को सरप्राइज देना चाहती थी, और नियुक्ति का प्रस्ताव कैबिनेट में लाने की तैयारी भी थी। इसी बीच रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने सीएम को चि_ी लिखकर बर्खास्त शिक्षकों की मांगों का समर्थन किया, और सहायक शिक्षक (प्रयोगशाला सहायक) के पद पर नियुक्ति देने की वकालत कर दी।
पत्र सार्वजनिक हुआ, तो सरप्राइज जैसा कुछ नहीं रह गया था। इसलिए प्रस्ताव रोक दिया गया। फिर शिक्षकों को समझा बुझाकर हड़ताल खत्म कराया गया। सीएम ने आश्वासन दिया है, तो खुशी खुशी हड़ताल खत्म करने पर शिक्षक तैयार हो गए।
सतनामी-सरकार!!

देश भर के अलग-अलग राज्यों में वहां की ताकतवर जातियों का राज होने का दावा किया जाता है। अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक ऑटोरिक्शा पर सतनामी समाज के राज की घोषणा की गई है। साथ ही इस पर लिखा गया है-जरा इतिहास के पन्ने खोलकर देख, यहां के राजा हम हैं। अब ‘सतनामी-सरकार’ की इस घोषणा के बाद हो सकता है कि दूसरी जातियां भी अपनी आबादी के आंकड़े लेकर अपनी सरकार का दावा करें। हालांकि अभी 2011 के बाद की जनगणना के आंकड़े नहीं हैं, इसलिए दावे कुछ कमजोर जमीन पर खड़े रहेंगे, लेकिन 2011 के आंकड़ों को तो नकारा नहीं जा सकता।
महिला सशक्तिकरण की राह में रोड़ा
घुटकेल ग्राम पंचायत की सरपंच कुसुमलता ने सचिवों की हड़ताल के चलते जब पंचायत के सभी कार्य ठप थे, तब गांव की मूलभूत समस्याओं पर चर्चा के लिए बैठक बुलाई और सूचना देने के लिए पंचायत के लेटरपैड का उपयोग किया। यह एक सामान्य और व्यावहारिक कदम था, जिसे जनपद पंचायत नगरी के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने शासकीय आदेश मान लिया और उसे बर्खास्तगी का नोटिस जारी कर दिया। यह तो अफसर का सीधे-सीधे शक्ति का दुरुपयोग प्रतीत होता है। यह समझना जरूरी है कि लेटरपैड का इस्तेमाल केवल सूचना के लिए किया गया, कोई सरकारी आदेश जारी नहीं किया गया। ऐसे में शासकीय प्रक्रिया के उल्लंघन का आरोप न केवल हास्यास्पद है, बल्कि यह महिला नेतृत्व को दबाने का एक प्रयास भी प्रतीत होता है। हो सकता है कि लेटर पैड के उपयोग का अधिकार केवल पंचायत सचिव को हो, सरपंच को न हो, पर महिला सरपंच की नीयत तो गांव की भलाई ही थी। नया निर्वाचन होने के कारण संभवत: प्रक्रिया की उनको जानकारी भी न रही हो। अब उन्होंने कहा है कि जब तक लिखित आदेश नहीं मिलेगा, लेटरपैड का इस्तेमाल नहीं करेंगीं।
चलती ट्रेन में एटीएम
ये है पंचवटी सुपरफास्ट एक्सप्रेस जो मुंबई को मनमाड से जोड़ती है। मुंबई और नासिक के बीच यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए परिवहन का एक दैनिक लोकल ट्रेन लेकिन एक्सप्रेस साधन है। यह मनमाड और नासिक के यात्रियों की जीवन रेखा है, इस ट्रेन से हजारों यात्री रोजाना नासिक और मुंबई के बीच यात्रा करते हैं। इस ट्रेन अपनी कुछ विशेषताएं है। इस वजह से हर साल 1 नवंबर 1975 से शुरू हुई इस ट्रेन का यात्री जन्मदिन मनाते हैं। और यह ट्रेन लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में एक आदर्श ट्रेन के रूप में दर्ज है।
यह मध्य रेलवे की प्रतिष्ठित ट्रेनों में से एक है। इसकी विशेषताओं में एक और सुविधा जुड़ गई है। और वह यह कि यह देश की पहली एटीएम युक्त ट्रेन हो गई। यानी अब आपको ट्रेन में किसी भी तरह के खर्च के लिए जेब वालेट और लेडीस पर्स में घर से कैश लेकर चलने की जरूरत नहीं है। बस जरूरत है ते अपना एटीएम कार्ड रख लें। मध्य रेलवे ने ट्रेन के प्रवेश गेट पर ही एटीएम मशीन लगाई है। जो आम एटीएम की तरह लाखों के कैश लोड के साथ रहती है। बस जी भर कर इस्तेमाल करते जाइए। यह तस्वीर हमें मुंबई में रहने वाले डीडी नगर रायपुर के एक निजी बैंक कर्मी रजत कुमार ने शेयर की है।
सरगुजा की बीमार स्वास्थ्य सेवा
आदिवासी बहुल सरगुजा जिले से एक बार फिर से मानवता को झकझोर देने वाली खबर है। एक नहीं, दो-दो नवजातों की मौत – और कारण वही पुराना, वही लापरवाही, वही गैर-जिम्मेदाराना व्यवस्था। लुंड्रा विकासखंड के बरगीडीह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सिर्फ एक नर्स के भरोसे छोड़ दिया गया। डॉक्टर ड्यूटी पर मौजूद नहीं था, फोन करने पर भी आने से इनकार कर देता है और प्रसव का जिम्मा अकेली नर्स के कंधे पर पड़ा। दर्द से तड़पती महिला। ऑपरेशन की ज़रूरत पडऩे पर नर्स ने लाचारी जाहिर कर दी। अंतत: एक मृत बच्चे का जन्म होता है। दूसरी घटना में आठ घंटे तक एंबुलेंस नहीं मिलने के कारण नवजात की जान चली जाती है। लगता है छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में तैनात अपनी ड्यूटी को बोझ समझते हैं। अभी हाल ही में वायरल हुआ लुंड्रा बीएमओ का कथित वीडियो कुछ ऐसा ही कहता है। उनका कहना है कि उसे मेडिकल लाइन से कोई लेना-देना नहीं है। मेरी मर्जी के खिलाफ मुझे बीएमओ बनाकर बिठा दिया गया है। बताया जा रहा है कि उस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तीन डॉक्टर और चार नर्स पदस्थ हैं, फिर भी उस रात सिर्फ एक नर्स ड्यूटी पर थी। सवाल यह है कि क्या इन मासूमों की मौतों की कोई जवाबदेही तय होगी? सरगुजा जैसी आदिवासी बहुल और दूरस्थ इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत और भी ज्यादा होती है। कई संरक्षित जनजातियां यहां हैं। यहां का एक-एक जीवन, एक-एक बच्चा, वहां के सामाजिक और सांस्कृतिक तानेबाने की बुनियाद है। और वहां से बार-बार ऐसी खबरें आती हैं जो बताती है कि यहां असंवेदनशील स्टाफ भरे पड़े हैं।
गोयल से अधिक निजी विवि खुश
आखिरकार छह महीने बाद राज्य निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग में चेयरमैन पद पर प्रोफेसर वीके गोयल की नियुक्ति हो गई। रविवि के प्रोफेसर डॉ. व्यास दुबे को आयोग का सदस्य बनाया गया है। नियुक्ति को लेकर काफी खींचतान की भी चर्चा है। वजह यह है कि निजी विश्वविद्यालयों में अनियमितताओं पर राज्यपाल रामेन डेका नाखुश रहे हैं। आयोग के सदस्य बृजेशचंद मिश्रा ने अपनी रिपोर्ट में सभी 17 विवि में गड़बडिय़ों का जिक्र किया था। उच्च शिक्षा सचिव आर प्रसन्ना भी निजी विवि पर अंकुश लगाने के लिए काफी प्रयासरत थे। अब मिश्रा, और प्रसन्ना हट चुके हैं।
प्रसन्ना केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए हैं। ऐसे में आयोग में सख्त चेयरमैन की दरकार थी। बताते हैं कि तीन नाम का पैनल तैयार किया गया था जिसमें सुंदरलाल विवि के पूर्व कुलपति बीजी सिंह, मप्र निजी विवि के पूर्व चेयरमैन अखिलेश पाण्डेय, और प्रोफेसर वीके गोयल का नाम था। गोयल ज्यादातर समय माध्यमिक शिक्षा मंडल के सचिव पद पर रहे हैं। वो एक तरह से उच्च शिक्षा से अलग हो गए थे। दो महीना पहले ही उन्होंने वीआरएस ले लिया था। इसके बाद उन्हें चेयरमैन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। देखना है कि गोयल निजी विवि की अनियमितताओं पर अंकुश लगा पाते हैं या नहीं। वैसे गोयल की नियुक्ति से निजी विवि प्रबंधक खुश नजर आ रहे हैं। गोयल से अधिक निजी विवि खुश !!
अगली नियुक्ति किसकी?
निजी विवि नियामक आयोग में सदस्य के रूप में डॉ. व्यास दुबे की नियुक्ति की गई है। चर्चा है कि आयोग के एक अन्य सदस्य के लिए तीन रिटायर्ड आईएएस अफसरों का नाम पैनल में है। इनमें रायपुर के पूर्व कमिश्नर डॉ. संजय अलंग, उमेश अग्रवाल, और पूर्व उच्चशिक्षा आयुक्त शारदा वर्मा का नाम हैं।
उमेश अग्रवाल, भूपेश सरकार में पुलिस प्राधिकार सदस्य रह चुके हैं। डॉ. अलंग रायपुर-बिलासपुर कमिश्नर रह चुके हैं। वो कुलपति के प्रभार पर ही रहे हैं। वैसे तो शारदा वर्मा वित्त सेवा की अफसर रही हैं। उन्हें रमन सरकार में आईएएस अवार्ड हुआ था। वो सबसे ज्यादा समय तक उच्च शिक्षा में काम कर चुकी हैं। देखना है कि सरकार किस पर मुहर लगाती है।
जीत के बाद भी जश्न मनाना हुआ मुश्किल
पंचायत चुनाव संपन्न हो चुके हैं। शहरों, कस्बों में नई सरकारें बन गईं, पर पंच और सरपंच जीतकर भी काम संभालने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। जैसे ही प्रशासनिक कार्यों की शुरुआत होनी थी, पंचायत सचिवों की राज्यव्यापी हड़ताल शुरू हो गई।
कई सरपंच ऐसे हैं जो दूसरी या तीसरी बार चुने गए हैं, उन्हें अनुभव है कि पंचायत की प्रक्रिया कैसे चलती है। फिर भी अधिकांश कामों में पंचायत सचिव की भूमिका अनिवार्य है। विशेषकर फंड से जुड़े दस्तावेजों में सचिव के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं। पंचायत में आने वाली निधि का उपयोग, बैंक से राशि की निकासी या विकास योजनाओं की मंजूरी जैसे काम सचिव के बिना संभव नहीं हैं।
नई पंचायतों में बड़ी संख्या में पहली बार निर्वाचित सरपंच भी शामिल हैं, जो अभी प्रशासनिक प्रक्रियाओं को समझने की शुरुआत ही कर रहे हैं। उन्हें कौन-से फंड कहां से मिलते हैं, अधिकार व दायित्व क्या हैं, इन सभी पहलुओं की जानकारी देने वाला ही कोई नहीं है।
हड़ताल को एक माह से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन इसके जल्द समाप्त होने के आसार नहीं दिख रहे। उल्टा अब आंदोलनरत पंचायत सचिव दिल्ली जाकर प्रदर्शन की तैयारी में हैं। इस स्थिति का असर ग्रामीण जनता पर भी पड़ रहा है। जन्म, मृत्यु और विवाह पंजीयन, पीएम आवास योजना के सर्वे, राशन कार्ड हेतु प्रमाण पत्र, पेंशन आवेदन स्वीकृति, पीने के पानी व निस्तारी के लिए राशि नहीं निकल रही है। 15वें वित्त आयोग की करोड़ों रुपये की राशि पंचायतों के खातों में पड़ी है, लेकिन उसका उपयोग नहीं हो पा रहा है।
प्रशासनिक स्तर पर वैकल्पिक प्रयासों के तहत शिक्षकों और रोजगार सहायकों को पंचायत सचिव का अतिरिक्त प्रभार देने के निर्देश जिला और अनुविभागीय के स्तर पर जारी हुए हैं, लेकिन अधिकांश कर्मचारी हाथ डालने से कतरा रहे हैं। न तो उन्हें पंचायत संचालन का अनुभव है और न ही वे जिम्मेदारी उठाने को तैयार हैं। वे आशंका जता रहे हैं कि कलम कहीं फंस न जाए।
जहां नगरीय निकायों में महापौर, अध्यक्ष और पार्षद नई जीत का जश्न मना रहे हैं, वहीं गांवों में चुने गए जनप्रतिनिधि असहाय बैठे हैं। एक ओर सरकार के रुख की ओर टकटकी लगाए, पंचायत सचिवों की वापसी की उम्मीद लगाए।
दो और दिल्ली की ओर
छत्तीसगढ़ कैडर के दो आईपीएस अफसर आंजनेय वाष्र्णेेय, और प्रभात कुमार केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जा सकते हैं। दोनों की पोस्टिंग आईबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) में होने की खबर है। वाष्र्णेेय धमतरी एसपी, तो प्रभात कुमार नारायणपुर एसपी हैं।
आईपीएस के 2018 बैच के अफसर आंजनेय वाष्र्णेेय नक्सल प्रभावित इलाकों में काम कर चुके हैं। वो सुकमा एसपी रह चुके हैं। इसी तरह वर्ष-2019 बैच के प्रभात कुमार नारायणपुर एसपी हैं। प्रभात कुमार ने नक्सल उन्मूलन अभियान में प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। यही वजह है कि दोनों ही अफसर आईबी के लिए सलेक्ट हुए हैं। इससे पहले प्रदेश के चार अफसर आईबी में सेवाएं दे चुके हैं।
रिटायर्ड डीजीपी विश्वरंजन आईबी में स्पेशल डायरेक्टर के पद पर रह चुके हैं। इसी पद पर स्वागत दास, और बीके सिंह भी रहे हैं। इससे परे मौजूदा रायपुर आईजी अमरेश मिश्रा भी आईबी में स्पेशल डायरेक्टर के पद पर काम कर चुके हैं। देखना है कि आंजनेय वाष्र्णेेय, और प्रभात कुमार को केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने की अनुमति मिलती है, या नहीं।
उल्लेखनीय है कि बस्तर आईजी सुंदरराज पी की भी हैदराबाद पुलिस अकादमी में पोस्टिंग हो गई थी, लेकिन राज्य सरकार ने प्रदेश में नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियान को देखते हुए उन्हें प्रतिनियुक्ति में जाने अनुमति नहीं दी। बाद में केन्द्र ने भी इस पर सहमति दे दी।
कर्मचारी राजनीति से 62+ बाहर हो
कुछ वर्ष पूर्व राजनीति में 70+के रिटायरमेंट की वकालत जोरों पर थी। और अब कर्मचारी संगठनों में 62 में रिटायर होते ही नेताओं को गैर जरूरी माना जाने लगा है । इसे लेकर वाट्सएप चर्चा होने लगी है। प्रदेश कर्मचारी अधिकारियों के 110 अलग अलग संघ संगठनों के फेडरेशन की नई कार्यकारिणी में किसे लिया जाए किसे नहीं इस पर दावे प्रतिदावे भी हो रहे।
फेडरेशन के संयोजक का चुनाव सर्वसम्मति और निर्विरोध हो गया । क्योंकि वे अभी सेवारत हैं। चहुंओर से उन्हें बधाई के साथ कार्यकारिणी बनाने सुझाव भी मिल रहे। इसमें अधिकांश का कहना है कि वही परंपरागत पुराने नेताओं के बजाए नए चेहरों को फेडरेशन की स्टेट बॉडी में लिया जाए। न कि जो रिटायर्ड हो चुके हैं।
कर्मचारी कांग्रेस में एक पंडित जी ऐसे ही हैैं। एक ने तो सीधे कह दिया कि विनम्रता पूर्वक आग्रह एवं सुझाव है कि फेडरेशन की प्रदेश की नई टीम में किसी भी रिटायर्ड कर्मचारी या अधिकारी को शामिल न करें। क्योंकि इनके लिए पेंशनर्स फोरम बना हुआ है। नए एवं ऊर्जावान कर्मचारियों को प्रदेश की नई टीम में स्थान मिलना चाहिए। इसका समर्थन करते हुए दूसरे ने कहा कि सेवानिवृत्त वरिष्ठ सम्माननीय साथियों को पेंशनर फोरम को मजबूत एवं सुदृढ़ करने पर फोकस करना चाहिए। फेडरेशन की कार्यकारिणी में वर्तमान में सेवारत विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों को स्थान दिया जाना उचित होगा।
ऐसे लोग भी बाहर किए जाएं
इसी चर्चा में नई मांग भी आई कि फेडरेशन से ऐसे लोगों को बाहर का रास्ता भी दिखाया जाना चाहिए जो पहले तो साथ होने का दंभ भरते है और जब आंदोलन का समय आता है तो अपनी अलग मांग का बहाना बनाकर पीछे हट जाते हैं। ऐसे लोग मोर्चा बनाकर आंदोलन को कमजोर करते है।
रिटायर्ड अफसरों-कर्मचारियों के प्रति ऐसे विचार पढक़र एक अन्य ने कहा साथियों छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन प्रदेश इकाई रायपुर के कार्यकारिणी के अंदर सेवानिवृत कर्मचारी नेताओं को स्थान नहीं देना उचित नहीं लगता है। कई ऐसे सेवानिवृत कर्मचारी नेता हैं जो सेवारत नेताओं से ज्यादा सहयोग और संघर्ष में साथ दे रहे है । इसीलिए संयोजक पर ही भरोसा बनता है। इस चर्चा के बाद कमल वर्मा को कार्यकारिणी गठन आसान नहीं होगा। उन्हें 60/40 के अनुपात में सेवारत, सेवानिवृत्त को लेकर संतुष्ट करना होगा।
अवैध शराब बेची तो घर टूटेगा
छत्तीसगढ़ आबकारी अधिनियम की धारा 34(2) अवैध शराब के निर्माण और बिक्री पर सख्त सजा का प्रावधान करती है। इसके तहत पहली बार अपराध करने पर एक से तीन वर्ष तक की सजा और 25,000 रुपये तक का जुर्माना तथा दूसरी बार अपराध सिद्ध होने पर पांच से दस वर्ष तक की सजा और 2 लाख तक का जुर्माना हो सकता है। यह प्रावधान तभी लागू होता है जब जब्त की गई शराब की मात्रा 50 लीटर से अधिक हो। इससे कम मात्रा की बरामदगी पर धारा 34(1)(एफ) के तहत कार्रवाई होती है, जिसमें तीन महीने की सजा निर्धारित है। इससे यह स्पष्ट है कि दो-चार लीटर शराब की बरामदगी को व्यावसायिक गतिविधि नहीं माना जाता, फिर भी सजा का प्रावधान है।
व्यावहारिक स्तर पर देखा जाए तो पुलिस और आबकारी विभाग की रुचि सजा दिलाने में कम और जब्ती तथा मुकदमों की संख्या बढ़ाने में अधिक होती है। कई बार यदि अधिक मात्रा में शराब बरामद होती है, तो आरोपियों की संख्या जानबूझकर बढ़ा दी जाती है ताकि प्रति व्यक्ति जब्त शराब की मात्रा 50 लीटर से कम दिखे और सख्त धाराएं लागू न हो सकें। दूसरी बार की गिरफ्तारी में सजा बढ़ जाती है, इसलिए आरोपी का नाम बदल दिया जाता है ताकि दोबारा अपराध का मामला न बने।
जनमानस में यह धारणा गहरी है कि पुलिस और आबकारी विभाग की मिलीभगत से ही यह धंधा फल-फूल रहा है। फरवरी 2025 में बिलासपुर जिले के लोफंदी गांव में अवैध महुआ शराब के सेवन से नौ लोगों की मृत्यु हो गई थी। घटना के बाद पुलिस ने अभियान तो चलाया, लेकिन जिन अधिकारियों की शह पर यह कारोबार चल रहा था, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इन दिनों राज्यभर में ‘सुशासन अभियान’ चल रहा है, और बिलासपुर में भी सैकड़ों शिकायतें अवैध शराब निर्माण और बिक्री को लेकर आई हैं। लोफंदी की घटना के बावजूद इतनी शिकायतों का आना यह दर्शाता है कि प्रशासन की छत्रछाया में यह कारोबार जारी है। शिकायतों की बड़ी संख्या से नाराज कलेक्टर ने तहसीलदारों को चेतावनी दी है। आबकारी या पुलिस की जगह तहसीलदारों को आदेश देने का मतलब अलग है।
अब सवाल यह है कि अवैध शराब बेचते पकड़े गए लोगों का घर गिरा देना समस्या का समाधान है? उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ऐसा करती रही है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताई है और कुछ मामलों में पीडि़तों को मुआवजा देने के निर्देश भी दिए हैं। इसके बावजूद बिलासपुर के कलेक्टर ने ऐसे ही आदेश दे दिए हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने किस कानून के तहत उनके घरों को तोडऩे आदेश दिया है। आबकारी अधिनियम में पहले से ही सजा के पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं। यदि प्रशासन इन्हें साफ नीयत और पारदर्शिता के साथ लागू करे, तो ऐसे बेतुके और असंवैधानिक आदेश की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
प्रदेश में वक्फ की संपत्तियों पर कब्जा छुड़ाने के लिए वक्फ बोर्ड ने बकायदा अभियान छेड़ रखा है। अभियान को केन्द्र सरकार का भी समर्थन है। इन सबके बीच रायपुर के महंगे बाजार इलाके मालवीय रोड, और हलवाई लाइन की 40 दुकानों को वक्फ बोर्ड ने नोटिस जारी किया, तो हडक़ंप मच गया। बोर्ड का दावा है कि ये दुकानदार पहले किराएदार थे, जो बाद में फर्जी रजिस्ट्री करा मालिक बन गए।
बोर्ड ने सभी दुकानदारों को 20 मार्च को नोटिस भेजा था। जिसमें यह कहा गया कि उक्त संपत्ति पर अनाधिकृत आधिपत्य है। इसके अलावा कलेक्टर को भी चि_ी लिखी गई है। इन सबके बीच कुछ दुकानदार सामने आए हैं, और उन्होंने दस्तावेज सार्वजनिक किए कि उक्त संपत्ति पहले वक्फ बोर्ड से छुड़ा ली गई थी, और फिर इसके बाद रजिस्ट्री हुई है। बावजूद इसके मामला उलझते जा रहा है। वजह यह है कि सरकारी रिकॉर्ड में जमीन अभी भी वक्फ बोर्ड के नाम दर्ज है। जहां तक रजिस्ट्री का सवाल है, तो वक्फ बोर्ड इसको गलत ठहरा रहा है, और रजिस्ट्री को शून्य करने के लिए प्रशासन पर दबाव बनाया है।
सुनते हैं कि कुछ दुकानदारों ने सीधे वक्फ बोर्ड से जुड़े लोगों से संपर्क कर मामले को सुलझाने के लिए पहल भी की है। वक्फ बोर्ड इसके लिए तैयार भी है। ऐसी चर्चा है कि वक्फ बोर्ड ने संपत्ति को फिर से सरेंडर करने की शर्त रखी है, और नए सिरे से उन्हीं दुकानदारों को फिर से किराए पर देने की बात भी कही है। इसको लेकर दुकानदार पशोपेश में हैं। कुल मिलाकर यह एक बड़ा विवाद बनता दिख रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
ननकी फिर कलेक्टर के खिलाफ
पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने कोरबा कलेक्टर अजीत बसंत के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है। कंवर ने कोरबा कलेक्टर की शिकायत केन्द्रीय कोयला राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी, और राज्यपाल रामेन डेका से भी की है। पूर्व गृहमंत्री का आरोप है कि कोरबा कलेक्टर ने उन्हें साफ तौर पर कह दिया है कि किसी भी तरह की जन समस्याओं को लेकर उनके पास न आए, वो मुलाकात नहीं करेंगे।
कंवर ने प्रदेश के सबसे सीनियर आदिवासी नेता के साथ कोरबा कलेक्टर के व्यवहार को अपमानजनक बताया है। दिलचस्प बात यह है कि कोरबा में जितने भी कलेक्टर रहे हैं, पूर्व गृहमंत्री कंवर की उनसे पटरी नहीं बैठी है। कंवर पहले रमन सरकार में कलेक्टर रहे पी दयानंद, और संजीव झा के खिलाफ भी शिकायत कर चुके हैं। कंवर कोरबा के किसी कलेक्टर से खुश थे, तो वो थीं रानू साहू जो कि अभी कोल-डीएमएफ घोटाले में जेल में है।
रानू साहू के खिलाफ तो भूपेश सरकार के मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने मोर्चा खोल रखा था। उन्होंने मंत्री रहते रानू साहू के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले को सार्वजनिक तौर पर उठाया था। तब पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर एक तरह से रानू साहू के बचाव में आ गए थे। अब जब कंवर, कोरबा कलेक्टर पर सीधे आरोप लगा रहे हैं, तो उनके आरोपों को शक की नजर से देखा जा रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
फर्जी ई-चालान की नई चाल

साइबर ठगों की चाल और चालाकी चाचा चौधरी से भी तेज है। पुलिस लगातार लोगों को जागरूक कर रही है, सोशल मीडिया पर अभियान भी चल रहे हैं, लेकिन ऑनलाइन ठगी के नए-नए तरीके हर दिन सामने आ रहे हैं। हाल ही में परीक्षा में अधिक नंबर दिलाने के नाम पर ठगी की घटनाएं सामने आईं, अब एक नया ट्रेंड फर्जी ई-चालान का शुरू हो गया है।
ठग अब ट्रैफिक पुलिस की असली प्रक्रिया की नकल कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ पुलिस ने एक केस का उदाहरण देते हुए बताया कि एक व्यक्ति को मेसैज मिला-आपका 500 रुपये का चालान लंबित है, आज ही भरें, वरना कानूनी कार्रवाई होगी। साथ में एक लिंक दिया गया जो बिल्कुल असली वेबसाइट जैसा लग रहा था। घबराहट में व्यक्ति ने लिंक पर क्लिक किया, फोन हैंग हो गया, एक ओटीपी आया और कुछ ही देर में 40,000 रुपये उसके खाते से उड़ गए।
ये दिखाता है कि साइबर ठगों को आपकी निजी जानकारी तक पहुंच है। दुर्भाग्य से छत्तीसगढ़ में साइबर एक्सपर्ट्स की भारी कमी है, और ठगी के अधिकांश मामलों में पुलिस अपराधियों तक नहीं पहुंच पा रही। इस मुद्दे पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका पर भी सुनवाई जारी है। समझदारी यही है कि अनजान नंबरों से आए कॉल या मैसेज पर भरोसा न करें, किसी भी लिंक पर क्लिक करने से पहले जांचें और ई-चालान जैसे मैसेज मिलने पर यातायात विभाग की वेबसाइट पर खुद जाकर सत्यापन करें। थोड़ी सावधानी रखकर यकीनन आप बड़े नुकसान से बच जाएंगे।
शरबत की जंग

गर्मी तेज पड़ रही है और सोशल मीडिया पर शरबत को लेकर बहस छिड़ी है। बाबा रामदेव ने अपने प्रोडक्ट को बेचने के चक्कर में रूह आफज़ा पर निशाना साधा, लेकिन तीर उल्टा पड़ रहा है। एक यूजर ने लिखा कि रूह आफज़ा में 87.8 फीसदी शुगर है। डॉक्टर तो 30 प्रतिशत शुगर वाले कोका-कोला को भी सेहत के लिए खराब बताते हैं। जवाब में दूसरे ने पतंजलि की फोटो चेंप दी और लिखा सोचिए, इसमें तो 99 प्रतिशत से भी ज्यादा चीनी है। फिर किसका भरोसा करें? क्या गन्ने के रस को भी ब्लैकलिस्ट कर दें? आखिर वो तो पूरे 100 प्रतिशत शुगर है।
पंचायत सचिवों का काम संभालने से इंकार
छत्तीसगढ़ में पंचायत सचिवों की हड़ताल को लगभग एक माह हो चुका है, लेकिन सरकार की ओर से अब तक ऐसा कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला है जिससे यह लगे कि उनकी मांगों पर स विचार हो रहा है। दिसंबर 2023 में भाजपा ने मोदी की गारंटी के तहत जिन वादों की घोषणा की थी, उनमें पंचायत सचिवों को शासकीय कर्मचारी का दर्जा देने का वादा भी शामिल था।
पंचायत सचिव गावों में न केवल प्रशासनिक कार्यों की रीढ़ हैं, बल्कि वहां जनमत के निर्माण में भी उनकी भूमिका होती है। पिछली विधानसभा में कांग्रेस सरकार को सत्ता से हटाने में इन सचिवों की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
फिलहाल, पंचायत सचिव जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। उन्हें शासकीय सेवा की मान्यताओं और अधिकारों का लाभ नहीं मिलता, और वे वेतन के स्थान पर मानदेय पर कार्यरत हैं। यह मानदेय औसतन 25,000 से शुरू होकर वरिष्ठता के आधार पर 45,000 रुपये तक पहुंचता है। लेकिन उन्हें अपनी सेवा की अनिश्चितता और रिटायरमेंट के बाद की असुरक्षा परेशान करती है। सेवा निवृत्ति के बाद उन्हें न तो पेंशन मिलती है, न कोई अन्य सुविधा। अनेक पंचायत सचिव इस समय रिटायरमेंट की दहलीज पर हैं, शायद इसलिए उनका आंदोलन इस बार निर्णायक लड़ाई का रूप ले रहा है।
गत वर्ष जुलाई में पंचायत सचिवों ने अपने संगठन का स्थापना दिवस मनाया था। तब उन्हें आश्वासन मिला था कि एक समिति गठित कर तीन माह में सुझाव प्रस्तुत किए जाएंगे। उस अवसर पर महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े ने भावनात्मक संबोधन देते हुए कहा था कि उनके पति भी पंचायत सचिव रह चुके हैं, इसलिए वे सचिवों की पीड़ा भलीभांति समझती हैं।
यह विडंबना ही है कि जिन पंचायत सचिवों के हाथ में लाखों-करोड़ों रुपये के बजट का प्रबंधन होता है, उन्हें स्वयं भविष्य की सुरक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। पंचायतों में विकास कार्य हों या गड़बड़ी, सफलता और विफलता, दोनों का सीधा दायित्व पंचायत सचिवों पर ही आता है। कोविड काल में जहां कुछ जिलों में सचिवों ने अभूतपूर्व सेवा दी, वहीं कुछ स्थानों पर घोटाले भी सामने आए। हाल ही में जारी पंचायतों के सतत विकास लक्ष्य सूचकांक में छत्तीसगढ़ का निचला स्थान यह दिखाता है कि जमीनी स्तर पर व्यवस्था में और भी सुधार की आवश्यकता है।
स्थिति यह है कि हड़ताल के कारण प्रशासनिक कामकाज प्रभावित हो रहा है। कई जिलों में पंचायत सचिवों की अनुपस्थिति में शिक्षकों, कृषि विस्तार अधिकारियों और पटवारियों को अस्थायी रूप से सचिव का कार्यभार सौंपा गया है। परंतु ये अधिकारी-कर्मचारी इस जिम्मेदारी से बच हैं। उन्हें वित्तीय लेन-देन में फंसने की आशंका है।
वास्तव में, पंचायत सचिवों को यदि शासकीय सेवा में सम्मिलित कर लिया जाए तो इससे न केवल उनकी आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि पंचायत स्तर की शासन व्यवस्था भी अधिक उत्तरदायी और पारदर्शी बन सकेगी। हालांकि, यह निर्णय आसान नहीं है। राज्य की लगभग 11,693 पंचायतों में से 10,978 में पंचायत सचिव कार्यरत हैं। इतनी बड़ी संख्या में कर्मचारियों को शासकीय सेवा में लेना राज्य के बजट पर भारी पड़ सकता है।
जंगल में मंगल?

आईएफएस अफसरों की ट्रांसफर सूची अटक गई है। करीब चार महीने पहले डीएफओ, सीएफ, और सीसीएफ स्तर के अफसरों की सूची तैयार की गई थी। इनमें परिवीक्षा अवधि पूरी कर चुके आईएफएस अफसरों के नाम भी थे। बताते हैं कि सूची के नामों को लेकर असहमति रही है। सूची में मंत्रालय स्तर पर कुछ बदलाव किया गया। इसके बाद समन्वय को भेजा है। तब से अब तक सूची पड़ी हुई है। अब सुशासन तिहार शुरू हो गया है। फील्ड से शिकायतें आ रही हैं। ऐसे में जल्द से जल्द सूची जारी करने के लिए दबाव भी है। विभागीय मंत्री भी इस कोशिश में लगे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
ईडी वाला जिलाध्यक्ष
एआईसीसी के नए भवन में जिलाध्यक्षों की बैठक के बाद से विशेषकर छत्तीसगढ़ कांग्रेस में थोड़ा उत्साह का संचार हुआ है। बैठक की बात छन-छन बाहर निकल रही है। वैसे तो सभी जिलाध्यक्षों ने बैठक में अपनी बात रखने के लिए तैयारी कर रखी थी, लेकिन सिर्फ दो जिलाध्यक्षों को बोलने का मौका मिल पाया।
छत्तीसगढ़ के एक जिलाध्यक्ष ने तो बैठक में बोलने के लिए हाथ उठाया भी था, और जोर से कहा कि मैं ईडी वाला जिलाध्यक्ष....। ये आवाज राहुल गांधी तक पहुंची, फिर भी उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया। दरअसल, जिलाध्यक्ष के यहां महादेव प्रकरण को लेकर ईडी ने छापेमारी की थी।
जिलाध्यक्ष ने जांच एजेंसियों के खिलाफ बोलने के लिए काफी तैयारी भी कर रखी थी, लेकिन उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं मिला। पार्टी के रणनीतिकार नहीं चाहते थे कि संगठन से परे किसी और विषय पर चर्चा हो। शायद यही वजह है कि ईडी वाले जिलाध्यक्ष को अनदेखा कर दिया गया।
शाम की पदयात्रा!
दुर्ग शहर में मासूम से रेप, और फिर जघन्य हत्या के मामले पर कांग्रेस हमलावर है। पार्टी ने दुर्ग से रायपुर तक न्याय यात्रा निकालने का फैसला लिया है। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज की अगुवाई में 18 तारीख से यात्रा निकलेगी, और 21 अप्रैल को समापन होगा।
बताते हैं कि न्याय यात्रा की तैयारियों पर दीपक बैज ने प्रदेश और स्थानीय नेताओं के साथ लंबी चर्चा की है। यह तय हुआ है कि यात्रा सुबह के बजाय शाम को निकलेगी, और रात तक चलेगी। रोज रात्रि 8-9 बजे यात्रा का समापन होगा। चूंकि दिन में तेज गर्मी पड़ रही है, इसलिए यात्रा शाम को निकालने का फैसला लिया गया है।
यह संभवत: पहली पदयात्रा है जो शाम को निकल रही है। आमतौर पर आजादी से पहले महात्मा गांधी की दांडी यात्रा से लेकर अब तक जितनी भी यात्रा निकली है, वो सुबह निकलती रही है, और शाम-रात को समापन होता रहा है। मगर यात्रा में कार्यकर्ताओं की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए भी समय बदला गया है। देखना है यात्रा किस तरह निकलती है।
कांग्रेस के कुछ लोगों का कहना है कि शाम का वक्त वैसे पदयात्रा का रहता नहीं है।
एकला चलता विधायक
दुर्ग शहर में मासूम से बलात्कार-हत्या प्रकरण को लेकर प्रदेश की राजनीति गरमाई हुई है। कांग्रेस इसके खिलाफ न्याय यात्रा तो निकालने जा रही है, लेकिन पार्टी के अंदरखाने में खींचतान भी दिख रही है। मसलन, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज पीडि़त परिवार के लोगों से मिलने दुर्ग गए, तो स्थानीय नेता साथ थे। लेकिन पड़ोस के कांग्रेस विधायक देवेन्द्र यादव नजर नहीं आए।
देवेन्द्र यादव प्रदेश अध्यक्ष बैज के बजाय अपने साथियों के साथ अलग से पीडि़त परिवार के लोगों से मिलने पहुंचे। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के हटने की चर्चा भी चल रही है। ऐसे में देवेन्द्र यादव के एकला चलो की पॉलिसी की काफी चर्चा हो रही है। बलौदाबाजार कांड में छह महीने जेल में रहने के बाद पार्टी के भीतर देवेन्द्र यादव का कद काफी बढ़ा है। उन्हें बिहार का प्रभारी सचिव बनाया गया है।
देवेन्द्र पिछले दिनों बिहार में कन्हैया कुमार के साथ बेगुसराय में नजर आए। जेल से छूटने के बाद अगले दिन उन्हें राहुल गांधी से मुलाकात का समय मिल गया। वे सपरिवार राहुल से मिले। पार्टी के कई उत्साही कांग्रेसी उन्हें दीपक बैज का उत्तराधिकारी बता रहे हैं। देखना है कांग्रेस में क्या कुछ बदलाव होता है।
कांग्रेस और प्रोफेशनलिज्म
विश्व के ख्यातिलब्ध अर्थशास्त्री पूर्व प्रधानमंत्री स्व.डॉ मनमोहन सिंह के नाम पर कांग्रेस एक फेलोशिप कार्यक्रम, शुरू करने जा रही है- डॉ. मनमोहन सिंह फेलोशिप। इसके जरिए पार्टी 50 ऐसे पेशेवर युवाओं का चयन करेगी जो एक आधुनिक, प्रगतिशील समृद्ध भारत की योजना पर काम करना चाहते हैं। पार्टी एक एलिट पैनल के जरिए हर साल देश भर से ऐसे पेशेवर युवाओं का चयन करेगी। इसके लिए बहुत गहन चयन प्रक्रिया तैयार की गई है।
एआईसीसी के मुताबिक यह युवा कांग्रेस जैसा संगठन नहीं होगा। न ही यह कोई तीन चार महीने का इंटर्नशिप कार्यक्रम होगा। कि अंत में सफल युवाओं को प्रमाण पत्र वितरित कर समापन कर दिया जाए। बल्कि यह पार्टी का, पूर्णकालिक पाठ्यक्रम जैसा होगा जिसमें युवा धर्मनिरपेक्षता के प्रति पूर्ण विश्वास, प्रगतिशील राजनीति के साथ आगे बढ़ेंगे।
वैसे बता दें कि वर्ष 2019-20 में भी पार्टी ने संयुक्त राष्ट्र सचिवालय में रहे पूर्व राजनयिक सांसद शशि थरूर की अगुवाई में ऐसे ही नीति नीयत उद्देश्य से प्रोफेशनल कांग्रेस का गठन किया है। छत्तीसगढ़ में भी इकाई बनी। और अब इसके पेशेवर युवा कहां है पता नहीं। कुछ के नाम तो घोटालों में भी लिए जाते रहे हैं ।
अब राज्य के भीतर सुनवाई मुमकिन !
नागरिक आपूर्ति निगम घोटाला प्रकरण की सुनवाई नई दिल्ली में विशेष न्यायालय (पीएमएलए) में स्थानांतरित करने, और एक स्वतंत्र मंच के समक्ष नए सिरे से सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर रिट याचिका को ईडी ने वापस ले लिया है। इसके बाद प्रकरण पर अब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में सुनवाई जारी रह सकती है।
ईडी ने आरोप लगाया था कि अभियोजन पक्ष के विवेक का दुरूपयोग, गवाहों को डराने-धमकाने, और राजनीतिक दबाव के माध्यम से छत्तीसगढ़ में न्याय प्रणाली में हेर फेर किया गया। यह तर्क दिया गया कि वर्ष-2018 में राज्य सरकार ने बदलाव के बाद अभियोजन पक्ष का दृष्टिकोण नाटकीय रूप से बदल गया, और आरोपी अनिल टूटेजा-आलोक शुक्ला सहित कई आरोपियों, जिन्हें याचिका में तत्कालीन सीएम के बहुत करीबी बताया गया था, को अग्रिम जमानत दे दी गई। एजेंसी ने वाट्सएप चैट, और कॉल डेटा रिकॉर्ड का हवाला दिया था, जिसमें कथित तौर पर आरोपियों-एसआईटी व अभियोजन सदस्यों के बीच संवाद दिखाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण की सुनवाई के दौरान कहा कि रिट याचिका केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर की जाती है, और यह सरकार के साधनों के खिलाफ दायर की जाती है न कि सरकार या उसकी एजेंसियों द्वारा। इसके बाद ईडी ने याचिका वापस ले लिया।
नान घोटाला प्रकरण पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में दायर चार अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। ये याचिका हमर संगवारी, अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव, राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पाण्डेय, और धरमलाल कौशिक द्वारा दायर की गई है। प्रकरण की सुनवाई जस्टिस पी सैमकोसी, और जस्टिस पीपी साहू की पीठ कर रही थी। जस्टिस सैमकोसी का ट्रांसफर हो चुका है। अब नए सिरे से बेंच गठित हो सकती है। दो याचिकाकर्ता सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
नाम बड़े दर्शन छोटे
सरकार ने 36 निगम-मंडलों में अध्यक्षों की नियुक्ति की है। अध्यक्षों के एक-एक कर संबंधित विभाग से आदेश निकल रहे हैं, और एक-एक कर नवनियुक्त अध्यक्ष पदभार भी संभाल रहे हैं। ज्यादातर निगम-मंडलों की माली हालत खराब है। कई तो पूरी तरह सरकार पर निर्भर हैं।
शंकर नगर स्थित पुराने पीएससी भवन में करीब आधा दर्जन निगमों के लिए जगह दी गई है। ये बोर्ड पिछली सरकार में गठित हुए थे। इनमें लौह शिल्पकार विकास बोर्ड, रजककार विकास बोर्ड, चर्म शिल्पकार बोर्ड, माटी कला बोर्ड, केश शिल्पी कल्याण बोर्ड सहित अन्य हैं। नए निगमों का कोई सेटअप नहीं है।
पिछली सरकार में भी उस समय के नवनियुक्त अध्यक्ष अपनी सुविधाओं के लिए इधर-उधर भटकते रहे, और फिर सरकार ही चली गई। नए अध्यक्ष की भी स्थिति अभी कुछ वैसी ही हैै। पुराने निगमों में सीएसआईडीसी, और वन विकास निगम सहित एक-दो निगमों को छोड़ दें, तो ज्यादातर दिवालिया होने की स्थिति में है। आरडीए जैसी पुरानी संस्था तो जमीन बेचकर कर्मचारियों को वेतन दे पा रही है। अब सरकार इन निगमों का उद्धार करने के लिए क्या कुछ करती है यह देखना है।
महंत के बाद भूपेश भी सीबीआई...
वैसे तो भारतमाला परियोजना में गड़बड़ी पिछली सरकार में हुई थी लेकिन इस पर साय सरकार उलझती दिख रही है। नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरणदास महंत ने अपनी सरकार के समय इस गड़बड़ी की सीबीआई जांच मांगी है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने भी महंत की सुर में सुर मिलाया है, और कहा कि पैसा केन्द्र सरकार का है और ऐसे में राज्य की एजेंसी सही जांच नहीं कर सकती है।
खास बात यह है कि इस गड़बड़ी पर कांग्रेस नेता हमलावर दिख रहे हैं, और सरकार ने प्रकरण को ईओडब्ल्यू-एसीबी के हवाले कर प्रकरण को अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है। मगर घोटाले में संलिप्त लोगों के नाम छन छन कर सामने आ रहे हैं। किसी ‘गोयल’ का नाम प्रमुखता से उभरा है जिन्हें भारी-भरकम मुआवजा राशि मिली है। चूंकि प्रकरण में ताकतवर लोग संलिप्त हैं इसलिए जल्द कोई ठोस कार्रवाई हो पाएगी, इसकी उम्मीद कम है। भाजपा के कई लोगों ने केन्द्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तक मामला पहुंचा चुके हैं। गडकरी भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर काफी सख्त हैं। देखना आगे क्या होता है।
राज्यपाल के तल्ख़ तेवर
राज्यपाल रामेन डेका ने मंगलवार को राजधानी की कार्यों की समीक्षा की। पहली बार कोई राज्यपाल जिले की बैठक ले रहे हैं। बैठक में राज्यपाल पूरी तैयारी से आए थे, और तमाम आंकड़े उनके पास थे। उन्होंने वृक्षारोपण के आंकड़े देखकर वन अफसरों से पूछ लिया कि पांच लाख पेड़ कहां लगे है? राज्यपाल के तेवर देखकर जिले के अफसर हक्का-बक्का रह गए।
अफसरों की फ्यूचर प्लानिंग
पढ़ लिखने के बाद युवा नौकरी शुदा होते ही अपने भावी जीवन की प्लानिंग में लग जाते हैं। इसलिए बीमा कंपनी का नारा है जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी। चाहे वह निजी कंपनी का मुलाजिम हो या फिर सरकारी। सरकारी मुलाजिम अफसर कर्मचारी को फ्यूचर प्लानिंग में उतनी उधेड़बुन नहीं करना पड़ता है, जितना निजी संस्थान के कर्मचारी को। सरकार से पकी-पकाई मासिक तनख्वाह और चालाकी से हर माह निकाला जाने वाला डिविडेंड।
कुछ इसके लिए नौकरी की परीवीक्षावधि खत्म होते ही जुट जाते हैं तो कुछ इसके लिए भी प्लानिंग करते हैं, कि कबसे उपरी कमाई सकेलना है। मंत्रालय के एक कमरे में बैठे दो युवा अफसर ऐसी ही चर्चा कर रहे थे। दोनों एक ही बैच के अफसर। एक ने कहा मैंने शुरू कर दिया है, लेकिन मिल जाए तो ठीक न मिले तो जबरदस्ती नहीं की नीति से। तो दूसरे ने कहा कि इसमें मैं प्लानिंग से चल रहा हूं। अभी से नहीं। नौकरशाहों के संपन्न परिवार से आए इन साहब ने कहा घर में जो है वो ही मैनेज कर लूं अभी। तब तक प्रमुख सचिव बन जाऊंगा तब फ्यूचर प्लानिंग के लिए इनकम एक्सपेंडिचर का जुगाड़ करूंगा। सही है, अभी इमेज बिल्डिंग का काम कर लिया जाए।
दोनों की बातें सुनकर पुराने एक रिटायर्ड एसीएस की अपने वक़्त के मातहत को कही बात याद आ गई। उस मातहत ने भी मना किया था। उनके कर्मचारी ने एसीएस से कहा- साहब वैसे नहीं है। तो एसीएस साहब ने कहा था कि अभी शादी नहीं हुई है न। हो जाएगी तो ये भी शुरू हो जाएगा। इनसे इतर और इसी मंत्रालय में एक ऐसे भी अफसर हैं जिनकी पारिवारिक संपन्नता के चलते सरकार से मात्र एक रुपए वेतन लेने की चर्चाएं खूब रही हैं।
आईपीएस हवा के रुख के जानकार?
भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) संजय जोशी को उनके जन्मदिन की बधाई देने छत्तीसगढ़ से कई नेता, और कार्यकर्ता दिल्ली गए थे। जोशी का 6 अप्रैल को जन्मदिन था। जोशी से मिलकर बधाई देने वालों में यहां के एक आईपीएस अफसर भी थे, जो केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं।
संजय जोशी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की अटकलें लगाई जा रही है। इन दिनों जोशी के दिल्ली के गोल मार्केट स्थित दफ्तर में अलग-अलग राज्यों से कई नेता और कार्यकर्ता उनसे मिलने पहुंच रहे हैं।
केन्द्र और भाजपा शासित राज्यों में किसी पद पर न होने के बावजूद संजय जोशी की सिफारिशों को तवज्जो दी जा रही है। जन्मदिन के मौके पर संजय जोशी को बधाई देने केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी पहुंचे थे। अब आईपीएस अफसर का क्या मकसद था, यह तो पता नहीं, लेकिन संजय जोशी से उनकी मुलाकात काफी चर्चा हो रही है।
वक्त से पहले, किस्मत से ज्यादा
सरकार के निगम-मंडलों की सूची जारी होने के बाद से भाजपा के अंदरखाने में हलचल मची है। भाजयुमो के एक नेता को बड़ा संवैधानिक पद मिलने से कई नेता चौंक गए हंै। ऐसा नहीं है कि युवा नेता की सक्रियता में कोई कमी है। बल्कि पार्टी के कई सीनियर नेता उक्त पद के लिए जोर आजमाइश कर रहे थे।
चर्चा है कि भाजयुमो नेता के लिए दिल्ली सरकार के एक मंत्री ने सिफारिश की थी। सिख समाज के इस मंत्री की भाजपा के भीतर काफी पैठ है। पार्टी के राष्ट्रीय नेता, उनकी बात को महत्व देते हैं। ऐसे में दिल्ली से मंत्रीजी की सिफारिश आई, तो भाजयुमो नेता का नाम भी सूची में जुड़ गया, और उन्हें बड़ा पद मिल गया।
दूसरी तरफ, पद से वंचित कई नेता अपनी बात पार्टी नेतृत्व के आगे रख रहे हैं। पिछले दिनों अमित शाह के स्वागत के लिए सीएम विष्णुदेव साय एयरपोर्ट पहुंचे, तो एक नेता ने मौका पाकर उनके सामने अपनी व्यथा रख दी। नेताजी ने सीएम से कहा-भाई साब, सबको कुछ न कुछ मिल गया है। मेरा नाम छूट गया है। सीएम मुस्कुराकर रह गए। सही भी है भाग्य में लिखा होगा तो पद मिल ही जाएगा।
सट्टा और वर्दीधारी
देश प्रदेश की तरह राजधानी में ऑनलाइन, ऑफलाइन सट्टा बाजार सर चढ़ कर बोल रहा है। और इसमें वर्दीधारियों के वरदहस्त से खूब दांव लग रहे हैं। जो चढ़ावा नहीं दे रहे वो पकड़ा रहे जो दे रहे वारे न्यारे कर रहे। इन पर नजर रखने वाले राजधानी की एक विशेष ब्रांच में मां हसमती बने अफसर के सिंहासन के कटप्पा बनने की होड बनी हुई है।
दरअसल, वर्तमान के दो बिना लिखित आदेश के कटप्पा बने हुए हैं जो इन दिनों आईपीएल के बंगलौर, गोवा, पूना में बैठे असली खिलाडिय़ों से मैच के हर बॉल के हिसाब से सिंहासन के लिए चढ़ावा ले रहे हैं। और इनका तरीका भी बहुत ही अनोखा है। कपड़े के बड़े बाजार स्थित छत्तीसगढ़ी अमृत सेंटर में आईपीएल कंट्रोल रूम बना रखा है। जहां असली खिलाडिय़ों के स्टैंडबाय के साथ बैठकर अमृत की हर घूंट के साथ हर बॉल पर सिंहासन के लिए रेट लगवा रहे हैं ।
प्रदेश में कई जांच एजेंसियों के सक्रिय होने के कारण तकनीकी बचाव का पूरा ख्याल रखा जा रहा है। उसके लिए अपने असली नंबर और असली मोबाइल चालू हालत में एयर टाइट डिब्बे के अंदर बंद कर रख दिए गए हैं। और चढ़ावा की वसूली के लिए नया मोबाइल नए नंबर के साथ वापर रहे हैं। इस बात की जानकारी मां हसमती को भी है कि उसके सिंहासन के नीचे के कटप्पा क्या कर रहे है? लेकिन सवाल चढ़ावे का जो है उसके लिए धृतराष्ट्र्र नने में ही फायदा है..! वैसे भी पुलिस में अल्फा बीटा गामा की यह लड़ाई दशकों से चल ही रही है। समय के साथ किरदारों के नाम बदलते रहे हैं। इस बार कटप्पा, हसमती बाहुबली के रूप में पहचाने जा रहे हैं।
चूक होती रहती है
निगम-मंडलों के नवनियुक्त पदाधिकारियों की सूची में थोड़ा बदलाव हुआ है। सूची में छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के अध्यक्ष के रूप में शशांक शर्मा की नियुक्ति का जिक्र था। चूंकि परिषद के अध्यक्ष सीएम होते हैं, और संस्कृति मंत्री उपाध्यक्ष होते हैं। ऐसे में आदेश निकलने से पहले सूची संशोधित की गई, और शशांक शर्मा को साहित्य अकादमी का अध्यक्ष बनाया गया। पूर्व सीएम भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा ने शशांक शर्मा के परिषद अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को लेकर सवाल उठाए थे। वर्मा खुद परिषद के सदस्य रह चुके हैं।
हालांकि भूपेश सरकार में बड़ी चूक हुई थी। सरकार ने स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह को मंत्री पद से हटाने के बाद राज्य योजना आयोग का अध्यक्ष बनाया था। इस आशय का प्रेेस नोट भी सरकार ने जारी किया था। आयोग के पदेन अध्यक्ष सीएम होते हैं, और उपाध्यक्ष पद पर उस वक्त रिटायर्ड आईएएस अजय सिंह थे। इसके लिए नियमों में संशोधन किया गया तब कहीं जाकर महीने भर बाद डॉ. प्रेमसाय सिंह का आदेश निकल पाया। ये अलग बात है कि डॉ. प्रेमसाय सिंह के पास कैबिनेट मंत्री की सुविधाएं यथावत रही। इस मामले में शशांक शर्मा काफी पीछे रह गए हैं। उनका आदेश नहीं निकला था, और विवाद खड़ा हो गया। नए पद में कैबिनेट मंत्री की सुविधाएं मिलती है या नहीं यह देखना है।
जोर लगाते हैं मगर, कभी-कभी मौसम की मार तो कभी सरकार की अनदेखी उनकी मेहनत पर पानी फेर देते हैं।
चुनावी मदद का चुकारा
अंबिकापुर जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के घोटाले की जांच शुरू होते ही शाखा प्रबंधकों, और कर्मचारियों में हडक़ंप मचा है। यह घोटाला करीब सौ करोड़ तक पहुंच सकता है। इतना बड़ा घोटाला हो और नेताओं का संरक्षण न हो, यह कैसे हो सकता है। चर्चा है कि सरगुजा की एक महिला विधायक ने अपने करीबी शाखा प्रबंधक पर कार्रवाई न हो, इसके लिए दबाव बनाया है।
बताते हैं कि शाखा प्रबंधकों ने स्थानीय कई नेताओं को चुनाव में सहयोग भी किया था, इस वजह से कई नेता बैंक कर्मियों की पैरवी करते दिख रहे हैं। अब तक आधा दर्जन से अधिक बैंक कर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया जा चुका है। शासन स्तर पर उच्च स्तरीय जांच चल रही है। ऐसे में जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारियों को बचा पाना मुश्किल दिख रहा है। जांच पूरी होते ही प्रकरण ईओडब्ल्यू-एसीबी को सौंपा जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
संविदा नियुक्ति क्यों, रिटायरमेंट 70 हो
पिछले दिनों मंत्रालय कैडर के एक रिटायर्ड अधिकारी को तीन महीने बाद संविदा नियुक्ति दे दी गई । और अब कुछ और लाइन में है। मंत्रियों की उंगली पकड़ कर तीन-चार वर्ष और वारे-न्यारे करना चाहते हैं। भाजपा पिछली सरकार में इन नियुक्तियों का विरोध करती रही है, इतना ही नहीं सरकारी घोटालों के लिए इन संविदा पदधारियों को ही जिम्मेदार बताती रही। और अब इनके लिए ही कवायद में जुटी है।
इसकी भनक लगते ही कर्मचारी संगठनों के नेता सोशल मीडिया में सक्रिय हो गए हैं। सबसे बड़े संगठन फेडरेशन के ग्रुप में ऐसे ही कुछ पोस्ट देखें-
राज्य के कुछ अधिकारी कर्मचारी, जो अपने संरक्षकों को खुश रखते है,वे लगातार 70 सालों तक संविदा नियुक्ति पाने में कामयाब रहते है। पदोन्नति के पदों में संविदा नियुक्ति का नियम नहीं है,लेकिन ऐसे लोग बहुतायत में पदोन्नति के पदों पर नियुक्त हो रहे है। ऐसा माहौल बनाया जाता है, मानो ये लोग न रहे तो विभाग में ताला लग जाएगा। बाद में ये नियमित पदोन्नति में बाधा खड़ा करने लग जाते हैं, ताकि येन केन प्रकारेण इनकी संविदा अवधि बढ़ती रहे।
कुछ लोगों का कहना है कि यह उन लोगों के साथ घोर अन्याय है,जो ईमानदारी और स्वाभिमान से सेवा करते हुए 62 साल में सेवा से मुक्त हो जाते हैं। अब समय आ गया है, कि इस घोर असमानता के खिलाफ आवाज उठाया जाना चाहिए। या तो सभी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति 70 साल कर दे। या फिर संविदा नियुक्ति के लिए खुले विज्ञापन से सभी सेवानिवृत्तों को समान अवसर देकर किया जाना चाहिए।
दूसरा कथन - संविदा नियुक्ति की कुप्रथा स्वस्थ कार्य परिवेश के लिए एक अभिशाप बनती जा रही है। फेडरेशन को इसके उन्मूलन के लिए एक निर्णायक लड़ाई की शुरुआत करनी चाहिए।
तीसरा कथन - प्रदेश में 200 से अधिक अधिकारी कर्मचारी संगठन हैं,सभी को अपने अपने संगठन से भी इस व्यवस्था का विरोध में शासन को पत्र भेजना चाहिए।
उल्लू बुद्धिमान पक्षी

नजर पैनी हो तभी दिखाई दे। पेड़ों की छाल से मिलती-जुलती बनावट, वही भूरा-सलेटी रंग और वैसे ही पंख। इस चित्र में छिपा है एक विलक्षण उल्लू। प्रकृति ने जैसे इस पक्षी को छुपने की कला में पारंगत बनाया हो। आम दृष्टि इसे शायद एक टहनी ही समझे, लेकिन एक अनुभवी दृष्टि ने इस क्षण को कैमरे में बांध दिया। पक्षियों में छुपने की कला केवल जान बचाने के लिए नहीं, बल्कि खुद को प्रकृति का हिस्सा दिखाने का तरीका भी है। अनेक शोध बता चुके हैं कि उल्लू एक बुद्धिमान पक्षी है, बात अलग है कि इंसानों को उसके नाम से पुकारने का मतलब मूर्ख बताना होता है। उसकी आंखें, जो सीधे कैमरे में झांक रही हैं, मानो कह रही हों कि तुमने मुझे देख लिया? तो तुम भी मेरी तरह साधक हो। यह फोटो शिरीष दामरे ने कोटा (करगीरोड) के रास्ते पर खींची है।
पीएम, सीएम, और डीएम की तर्ज पर !
कांग्रेस के देशभर के जिलाध्यक्षों की राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, और राहुल गांधी के साथ बैठक की खूब चर्चा हो रही है। छत्तीसगढ़ से रायपुर शहर के जिलाध्यक्ष गिरीश दुबे को छोडक़र बाकी सभी बैठक में शामिल हुए। देश के 320 जिलाध्यक्षों को आमंत्रित किया गया था। जिसमें से 315 उपस्थित हुए। पांच जिलाध्यक्ष नहीं आए, उनमें गिरीश दुबे भी थे।
छत्तीसगढ़ से रायगढ़, और बस्तर के जिलाध्यक्ष को बोलने का मौका मिला। बताते हैं कि बैठक व्यवस्था इतनी बढिय़ा थी कि पहले कांग्रेसजनों ने ऐसी नहीं देखी थी। एआईसीसी के नए भवन के हॉल में कुर्सी में जिलाध्यक्षों के नाम चिपके हुए थे। पहले किसे बोलने का मौका मिलेगा यह तय नहीं था। बैठक में खुद राहुल गांधी इशारा कर बुला रहे थे, और फिर जिलाध्यक्ष एक-एक कर अपनी बात रख रहे थे। करीब 3 घंटे चली बैठक में जिलाध्यक्षों ने ऐसी-ऐसी बात कही कि राहुल गांधी भी लोटपोट हो गए।
राजस्थान के एक जिला अध्यक्ष ने कह दिया कि उनके यहां प्रदेश में सिर्फ दो नेताओं की चलती है। बाकी किसी की पूछ परख नहीं है। राहुल गांधी ने पूछ लिया कि किन दो नेताओं की चलती है? मगर जिलाध्यक्ष कुछ बोलने से हिचकिचा रहे थे। वजह थी कि राजस्थान के बड़े नेता सचिन पायलट खुद मंच पर थे। जाहिर है जिलाध्यक्ष का इशारा अशोक गहलोत, और सचिन पायलट की तरफ था। मगर राहुल के बार-बार पूछने पर भी उन्होंने दोनों नेता का नाम नहीं लिया।
रायगढ़ के जिलाध्यक्ष अनिल शुक्ला की तरफ राहुल ने इशारा किया, और दो मिनट में ही पार्टी के भीतर गुटबाजी को अनिल शुक्ला ने जिस अंदाज में रखा, उसकी काफी तारीफ हुई।
मंच पर पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और प्रभारी पायलट भी थे। भूपेश थोड़े असहज दिखे। इन सबके बीच राजधानी के जिलाध्यक्ष गिरीश दुबे क्यों नहीं आए, इसकी चर्चा हुई। कहा जा रहा है कि पार्टी उनसे पूछताछ कर सकती है।
बैठक का लब्बोलुआब यह रहा कि पार्टी हाईकमान जिलाध्यक्षों को ताकत देने के मूड में हैं, और उनके कामकाज की हाईकमान सीधे मॉनिटरिंग करेगा, और प्रत्याशी चयन में भी उनकी भागीदारी होगी। राहुल गांधी ने संकेत दिए कि अहमदाबाद अधिवेशन में सारी बातों पर चर्चा होगी। चाहे जो कुछ भी हो, इस बैठक ने जिलाध्यक्षों को ताकत मिली है। छत्तीसगढ़ के वो जिलाध्यक्ष भी खुश नजर आए, जिनके हटने की चर्चा चल रही है। देश में भी ऐसी ही व्यवस्था है। तीन ही स्तर ताकतवर माने जाते हैं, पीएम, सीएम, और डीएम(जि़ला कलेक्टर) !

तमाम कोशिशों के बावजूद ऐसे बोर्ड जि़ंदा हैं। यही हिंदुस्तानी संस्कृति है। तस्वीर सुपरिचित लेखकसतीश जायसवाल ने फ़ेसबुक पर पोस्ट की है।
फेसबुक-वाट्सएप पर क्रांति
निगम मंडलों में नियुक्तियों को लेकर सफल लोगों के समर्थक होर्डिंग, फ्लेक्स और विज्ञापन, बुके, गजमाला, हार, मिठाई से खुशी मना रहे हैं इनमें भी ठेकेदार, सप्लायर अधिक हैं। और जो असफल हुए हैं उनके समर्थक फेसबुक, इंस्टाग्राम, वाट्सएप पर लोगों को आकर्षित कर रहे हैं-
सैक्स सीडी कांड में भूपेश बघेल से पंगा लेने वाले एक कार्यकर्ता ने लिखा ज़ेहन पर बोझ रहा, दिल भी परेशान हुआ, इन बड़े लोगों से मिलकर बड़ा नुकसान हुआ।
एक अन्य ने असफल कार्यकर्ताओं को सांत्वना में समझाइश दी -
मुद्दतों इंतजार के बाद सरकार बहादुर ने निगम मंडल नाम की सूची जारी कर दी। कार्यकर्ता नाम के कुछ बेचारे सूक्ष्मदर्शी से दिखाई देने वाले प्राणी अपनी याददाश्त पर खूब जोर देकर पता कर रहे हैं कि इस सूची में जो एक सुंदर सा नाम है उसको उन्होंने कब पार्टी दफ्तर में देखा था। कब पार्टी के जंगी प्रदर्शनों में देखा था या फिर कब पार्टी की अंदरूनी रणनीतिक टीम में काम करते देखा था। या फिर कांग्रेस शासनकाल में इस हस्ती ने कौन सा प्रचंड प्रतिरोध खड़ा कर दिया था।
ज्यादातर को ये भी पता नहीं कि ये महान हस्ती है कौन? पता नहीं किस महान नेता की दिव्य दृष्टि पडऩे की वजह से उसका ये राजयोग प्रबल हुआ है? और तुम जैसे दिन-रात पार्टी के लिए मरने खपने वाले तुच्छ कार्यकर्ताओं का उत्थान किस महान नेता के चरण पकडऩे से होगा?
अरे-अरे, लेकिन तुम तो कार्यकर्ता हो यार! तुम इस फैसले को लेकर सोच-विचार भी कर पा रहे हो इतने भर से अनुशासन नाम की इमारत हिलने लगी है। और ये तो किसी से छिपा नहीं है कि तुम कितने निष्ठावान कार्यकर्ता हो। हिंदू राष्ट्र के लिए, राष्ट्रवाद के लिए, स्वधर्म के लिए कोई भी कीमत दे सकते हो। है न? इसलिए दुखी मत हो, सवाल मत उठाओ, तुम सरकार के लिए हो, सरकार तुम्हारे लिए नहीं है। अब तुम्हारे पास ज्यादा ऑप्शन नहीं हैं।
पार्टी- सरकार की कुंडली के दशम भाव में बैठे राहु को खूब रिझाओ, मक्खन लगा लगा के बम बम कर दो। अगर कभी आपके लाभ के भाव पर इस राहु का गोचर होगा तो तुम्हारी भी निकल पड़ेगी। और हाँ, जिनको अपेक्षा से कम मिला है, वो इसे अपमान नहीं, इज़्ज़त-अफजाई समझें। जिनको कुछ नहीं मिला वो तो खाम-खयाली पालें ही नहीं। असल में वो किसी लायक है ही नहीं।
समझे कार्यकर्ता कहीं के।
पार्टीबाजी से इतर एक अन्य ने पोस्ट किया - मेरा अनुभव कहता है कि राजनीति में वक्त पल पल बदलते रहता है। कभी परिक्रमा करने वालों के पाले में गेंद रहती है। तो कभी पराक्रम करने वालों के। अगर परिस्थितियां आपके अनुकूल नहीं है तो कुछ वक्त के लिए आप तटस्थ हे जाइए। पर अपनी राजनीति को जिंदा रखिए। आपका राजनीति में जिंदा रहना ही आपके साथियों के लिए हौसला बनेगा। और आपकी सफलता का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। शुभ रात्रि।
इन सबके बीच गौरीशंकर श्रीवास की सनसनीख़ेज़ फेसबुक पोस्ट ग़ायब हो गई है।
नए जुर्माने के लिए तैयार रहिये
हर साल 1 अप्रैल से सरकारी नियमों में बदलाव किए जाते हैं, जिनमें कुछ नए प्रावधान लागू होते हैं। इसी कड़ी में हाई-सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट लगाने की अनिवार्यता भी शामिल है। इस नियम की डेडलाइन 31 मार्च को समाप्त हो चुकी है, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में लागू किया गया है। एक अप्रैल 2019 से पहले खरीदी गई गाडिय़ों में हाई-सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाना अनिवार्य किया गया है। इसके लिए परिवहन विभाग ने दो एजेंसियों को जिम्मेदारी सौंपी है, जिन्होंने प्रदेशभर में 350 से अधिक सेंटर स्थापित किए हैं। नए नंबर प्लेट के लिए वाहन मालिकों को परिवहन विभाग की वेबसाइट पर जाकर मोबाइल नंबर और गाड़ी का चेसिस नंबर दर्ज करना होगा। इसके बाद 365 से 705 रुपये तक का शुल्क ऑनलाइन जमा करना होगा। जब नंबर प्लेट तैयार हो जाएगी, तो वाहन मालिक को एसएमएस के जरिए सूचना मिलेगी। इसके बाद निर्धारित सेंटर पर जाकर इसे लगवाया जा सकता है। यदि गाड़ी के घर पर बुलाकर नंबर प्लेट लगवानी हो, तो 100 अतिरिक्त शुल्क देना होगा।
प्रदेश में 1 अप्रैल 2019 से पहले खरीदी गई करीब 40 लाख गाडिय़ां अब भी सडक़ों पर दौड़ रही हैं। लेकिन डेडलाइन खत्म होने तक केवल 50,000 गाडिय़ों में ही नए नंबर प्लेट लगाए जा सके, जो कि सिर्फ 1.25 प्रतिशत है। बाकी सभी लोग जिन्होंने नए नंबर प्लेट के लिए आवेदन नहीं किया है, क्या यह माना जाए कि वे बेफिक्र हैं, नजरअंदाज कर रहे हैं? कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं पर जो एचएसआरपी लगाने के इच्छुक होने के बाद भी पीछे रह गए उनकी भी परेशानी है। कई वाहन मालिकों के पुराने मोबाइल नंबर बदल चुके हैं, जिससे उनका पंजीयन ही नहीं हो पा रहा है। इसे अपडेट कराने की प्रक्रिया थोड़ी मुश्किल है। दूसरा सभी लोगों को डिजिटल पेमेंट की प्रक्रिया समझ नहीं आती। कई के बैंक खाते ऑनलाइन भुगतान के लिए अपडेट नहीं हैं। परिवहन विभाग ने कोई ऑफलाइन विकल्प उपलब्ध नहीं कराया, जिससे लोगों को और कठिनाई हो रही है। परिवहन विभाग ने कहा है कि अगले 15 दिनों तक लोगों को जागरूक किया जाएगा। इसके बाद भी यदि नंबर प्लेट नहीं बदली गई, तो 1,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। यह वसूल करना आसान है, ज्यादातर शहरों में चौक चौराहों पर सिग्नल के साथ कैमरे लगे हुए हैं।
दूसरी ओर, महाराष्ट्र में वहां की सरकार ने नया नंबर प्लेट लगाने की डेडलाइन 30 जून तक बढ़ा दी है। वहां के परिवहन मंत्री ने कहा है कि लोगों को अनावश्यक जुर्माने से बचाने के लिए यह फैसला लिया गया। हालांकि, छत्तीसगढ़ सरकार ने अभी इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है। क्या छत्तीसगढ़ सरकार को भी महाराष्ट्र की तरह डेडलाइन बढ़ाने पर विचार करना चाहिए? यह सवाल वाहन मालिकों के मन में बना हुआ है।
आवारा कुत्तों से कैसे निपटेंगे?

यदि इंडियन एक्सप्रेस जैसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय अखबार में आवारा कुत्तों की समस्या पर सार्वजनिक अपील प्रकाशित हो रही है, तो यह संकेत है कि मामला अब केवल स्थानीय प्रशासन की चिंता का विषय नहीं रहा—बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक संकट का रूप ले चुका है।
दिल्ली में पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल हैरिटेज इंडिया फाउंडेशन के माध्यम से एक लोक अभियान चला रहे हैं, जिसमें आमजन से अपील की जा रही है कि वे आवारा कुत्तों से उत्पन्न हो रही समस्याओं के समाधान के लिए आगे आएं।
रायपुर की एक दर्दनाक घटना अभी भी ताजा है, जब इसी वर्ष फरवरी में दलदल सिवनी के आर्मी चौक पर एक छह वर्षीय मासूम बालक साइकिल से गिरने के बाद कुत्तों के झुंड का शिकार बन गया। उसके शरीर पर सौ से अधिक जख्म पाए गए। वर्ष 2024 के भीतर ही राजधानी के अस्पतालों में 2800 से अधिक डॉग बाइट के मामले दर्ज हो चुके हैं।
विधायक सुनील सोनी के सवाल पर कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ विधानसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में प्रदेशभर में 51,730 लोगों को कुत्तों ने काटा है। इस जानकारी में यह भी बताया गया कि कुत्तों द्वारा 2800 अन्य जानवरों को काटे जाने के मामले भी दर्ज हैं। यह आंकड़े स्वयं में एक चेतावनी हैं। यह न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य का मुद्दा है, बल्कि मानवीय सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच एक संतुलन की मांग भी करता है।
हालांकि नगर निगम द्वारा कुत्तों के लिए आश्रय गृह निर्माण और नियमित नसबंदी-टीकाकरण जैसे प्रयासों की बात कही गई है, लेकिन ये प्रयास अभी भी आधे-अधूरे और कई बार कागज़ों तक सीमित हैं। उदाहरण के लिए, बिलासपुर में 12,000 आवारा कुत्तों की नसबंदी का लक्ष्य निर्धारित किया गया, परंतु दो वर्षों में केवल 2,000 कुत्तों की ही नसबंदी हो सकी।
बिलासपुर की एक पॉश कॉलोनी रामा वैली में कुत्तों को लाठियों से पीटकर गाडिय़ों में लाद कर दूर छोड़ दिया गया। इस घटना से मर्माहत कॉलोनी निवासी एक आईपीएस अफसर के किशोरवय बेटे ने पुलिस में गवाही दी, मगर निर्मम बर्ताव करने वाले भी रसूखदार थे, उनका कुछ नहीं हुआ । सितंबर 2024 में भिलाई के आईआईटी परिसर में नसबंदी के बाद 4 कुत्तों की मृत्यु हुई, जिसकी शिकायत पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी तक पहुंची। इसके बाद वहां अभियान धीमा पड़ गया।
जटिलता यह है कि आवारा कुत्ते केवल पशु नहीं हैं। वे शहरी जीवन के एक हिस्से बन चुके हैं। कुछ के लिए बेहद हेय हैं पर कई लोग इन्हें भोजन कराते हैं, गर्मियों में पानी और सर्दियों में गर्म कपड़े या कंबल भी देते हैं। आवारा कुत्तों के जबरन विस्थापन के खिलाफ एनिमल लवर्स द्वारा अदालतों का दरवाजा खटखटाया गया और सफलता भी मिली। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि कुत्तों को जबरन हटाया नहीं जा सकता, केवल नसबंदी की जा सकती है।
मानवीय व्यवहार और सार्वजनिक सुरक्षा के बीच एक संवेदनशील संतुलन बनाए रखना अब सबसे बड़ी चुनौती बन गया है, जिससे छत्तीसगढ़ के कई शहर-गांव जूझ रहे हैं।
कहीं खुशी-कहीं गम
आखिरकार सरकार के निगम-मंडलों के पदाधिकारियों की बहुप्रतीक्षित सूची बुधवार की रात जारी कर दी गई। सूची को लेकर भाजपा के अंदरखाने में कहीं खुशी, तो कहीं गम का माहौल है। इन सबके बीच कुछ नामों को लेकर काफी चर्चा हो रही है। ऐसे में राजनांदगांव के ब्राह्मणपारा इलाके के अगल-बगल में रहने वाले दो युवा नेताओं को ‘लाल बत्ती’ से नवाजा गया है।
युवा मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे नीलू शर्मा को राज्य पर्यटन बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया है। नीलू के पड़ोसी योगेशदत्त मिश्रा को श्रम कल्याण मंडल का अध्यक्ष बनाया गया है। नीलू का नाम पहले से ही तय माना जा रहा था। वो राजनांदगांव से मेयर टिकट के दावेदार थे। यही नहीं, विधानसभा, और लोकसभा चुनाव संचालन में अहम भूमिका निभाई थी।
गौर करने लायक बात यह है कि रमन सरकार में नीलू शर्मा राज्य भंडार गृह निगम के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनके पिता पूर्व सांसद अशोक शर्मा नागरिक आपूर्ति निगम, और पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष रहे हैं। इससे परे योगेशदत्त भारतीय मजदूर संघ का काम देखते रहे हैं। यही वजह है कि संघ पृष्ठभूमि के योगेशदत्त को भी ‘लाल बत्ती’ से नवाजा गया है। खास बात यह है कि इसी ब्राम्हणपारा के रहवासी निखिल द्विवेदी, भूपेश सरकार में राज्य पर्यटन बोर्ड के डायरेक्टर रहे हैं। उन्हें कांग्रेस ने मेयर प्रत्याशी बनाया था, लेकिन वो हार गए।
सबसे चौड़े कमजोर कंधे !!
निगम-मंडल के पदाधिकारियों की सूची जारी होने के बाद से भाजपा में नाराजगी खुलकर सामने आ रही है। प्रदेश भाजपा प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास ने तो एक कदम आगे जाकर राज्य केश शिल्प विकास बोर्ड का उपाध्यक्ष पद स्वीकारने से मना कर दिया। ऐसा करने का साहस जुटाने वाले संभवत: वो पहले नेता हैं।
श्रीवास ने फेसबुक पर लिखा कि पार्टी ने इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी है कि जिसे उठाने में मेरे कंधे असमर्थ हैं। इसलिए पद स्वीकार नहीं है। संगठन के कार्यकर्ता के रूप में मैं ठीक हूं। श्रीवास से जुड़े लोग मानकर चल रहे थे कि पिछले पांच साल में भूपेश सरकार के खिलाफ जिस तरह उन्होंने सडक़ से लेकर अदालत तक विभिन्न मुद्दों को लेकर लड़ाई लड़ी है उससे उनकी प्रतिष्ठा अनुरूप कोई अहम दायित्व मिलेगा। मगर ऐसा नहीं हुआ।
सच तो यह है कि छत्तीसगढ़ की राजनीति के गौरीशंकर श्रीवास से अधिक मज़बूत और चौड़े कंधे किसी के हैं नहीं, और सीना भी छप्पन इंच से कुछ अधिक ही है। वे कई बरस पहले एक मुक़ाबले में मिस्टर छत्तीसगढ़ भी बने थे।
दारू की जगह दूध !!
चर्चा है कि श्रीवास की तरह केदार गुप्ता भी अपने नए दायित्व से खुश नहीं हैं। केदार को दुग्ध महासंघ का चेयरमैन बनाया गया है, जो कि पहले ही काफी घाटे में चल रहा है। केदार को ब्रेवरेज निगम जैसा कोई अहम दायित्व मिलने की उम्मीद थी। खास बात यह है कि प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रहे, और गृह मंत्री रह चुके रामसेवक पैकरा को वन विकास निगम का अध्यक्ष बनाया गया है। पैकरा को विधानसभा टिकट नहीं मिली थी। इसलिए वो निगम-मंडल में जगह चाह रहे थे।
इसी तरह प्रदेश भाजपा के महामंत्री (संगठन) रामप्रताप सिंह को छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया है। पहले रामप्रताप सिंह को राज्यसभा में भेजे जाने की चर्चा चल रही थी। मगर उनकी जगह पार्टी ने देवेन्द्र प्रताप सिंह को राज्यसभा प्रत्याशी बना दिया। ऐसे में रामप्रताप सिंह के पद के लिए खुद सीएम विष्णुदेव साय रुचि दिखा रहे थे। रामप्रताप सिंह, जशपुर जिले के रहने वाले हैं। लिहाजा, उन्हें पद देने में पार्टी को कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई।
सौरभ सिंह को खास छूट
प्रदेश भाजपा के रणनीतिकारों ने विधायक अथवा पराजित प्रत्याशी को पद नहीं देने का सैद्धांतिक फैसला लिया था। विधायकों को तो निगम-मंडल में पदाधिकारी नहीं बनाया गया, लेकिन विधानसभा चुनाव हारे सौरभ सिंह के मामले में पार्टी ने छूट दे दी, और उन्हें राज्य खनिज विकास निगम का अध्यक्ष बना दिया गया।
खनिज निगम ‘वजनदार’ माना जाता है। जबकि ज्यादातर निगम-मंडल तो आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं। कुछ में तो संपत्ति बेचकर कर्मचारियों का वेतन देने की नौबत आ गई है। सौरभ सिंह ने पंचायत चुनाव में काफी अहम भूमिका निभाई थी। प्रदेश में 33 में से 32 जिला पंचायतों में भाजपा का कब्जा हुआ है।
सौरभ सिंह एक प्रमुख रणनीतिकार के रूप में उभरे हैं, और यही वजह है कि उन्हें महत्वपूर्ण निगम का दायित्व सौंपा गया है। पूर्व सांसद चंदूलाल साहू को राज्य भण्डार गृह निगम का अध्यक्ष बनाया गया है। इसी तरह पूर्व सांसद सरोज पाण्डेय के भाई राकेश पाण्डेय को खादी ग्रामोद्योग बोर्ड का अध्यक्ष पद दिया गया है।
पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर चाहते थे कि निगम मंडल में नए लोगों को मौका दिया जाना चाहिए। उन्होंने इसके लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को चि_ी भी लिखी थी। मगर 36 निगम-मंडल अध्यक्षों में से 10 ऐसे हैं, जो रमन सरकार में अलग-अलग निगम-मंडलों में अध्यक्ष या अन्य पदों पर रहे हैं।
मीडिया वाले कोई नहीं
सरकार के निगम-मंडलों में एक पद कम से कम भाजपा के मीडिया विभाग के मुखिया को मिलता रहा है। रमन सरकार में मीडिया प्रभारी रहे सुभाष राव को राज्य गृह निर्माण मंडल का अध्यक्ष बनाया गया था। वो करीब 10 साल मंडल अध्यक्ष रहे। राव के बाद मीडिया प्रभारी रहे रसिक परमार को दुग्ध महासंघ का अध्यक्ष बनाया गया। मगर इस बार किसी को पद नहीं दिया गया।
मीडिया विभाग के अध्यक्ष अमित चिमनानी को अहम पद मिलने की उम्मीद थी। हालांकि उनके लिए संभावना अभी खत्म नहीं हुई है। सिंधी अकादमी के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति होना बाकी है। इसके अलावा बेवरेज कॉर्पोरेशन के लिए चिमनानी, और अनुराग अग्रवाल सहित कई नाम चर्चा में है। चिमनानी की तरह अनुराग अग्रवाल को पद के लिए काफी सिफारिशें थी। मगर उन्हें भी कोई दायित्व नहीं मिला। चर्चा है कि देर सबेर दोनों को ही किसी निगम मंडल में एडजस्ट किया जा सकता है।
छवि कृत्रिम, मुद्दा वास्तविक

तेलंगाना में कांचा गचीबोवली के 400 एकड़ क्षेत्र में सरकार द्वारा आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर और शहरी विकास के लिए भूमि साफ करने की प्रक्रिया शुरू होते ही छात्रों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों का विरोध शुरू हो गया। यह क्षेत्र 455 से अधिक प्रजातियों के वन्यजीवों का निवास स्थान रहा है, जिनमें मोर, हिरण और विभिन्न पक्षी शामिल हैं। इस बीच सोशल मीडिया में आई एक तस्वीर ने लोगों की भावनाओं को झकझोर दिया और जनाक्रोश और बढ़ गया। इसमें जेसीबी मशीनों के चलते घबराए हुए वन्यजीवों को भागते हुए दिखाया गया। बाद में, एआई-डिटेक्शन टूल्स से यह पुष्टि हुई कि यह छवि कृत्रिम रूप से बनाई गई थी। लेकिन इसने वास्तविक मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित किया। छवि बनावटी है पर पेड़ों की कटाई और वन्यजीवों का विस्थापन वास्तव में हो रहा है। लोगों को पता चल गया कि छवि काल्पनिक है, मगर लोगों ने इसे शेयर करना नहीं छोड़ा और सरकार के फैसले का विरोध इसके जरिये किया। पारंपरिक मीडिया पर सरकारों और कॉरपोरेट संस्थानों का नियंत्रण बढऩे के कारण विरोध के पारंपरिक माध्यमों का असर कम होता जा रहा है। ऐसे में एआई-निर्मित फोटो और वीडियो, जनता से जुड़े मुद्दों को उजागर करने का भविष्य में प्रभावी तरीका बन सकते हैं।
पुलिस भर्ती, गिरफ्तारियों के बाद सावधानी
राजनांदगांव में पुलिस भर्ती गड़बड़ी का मामला तूल नहीं पकड़ पाया। इसकी बड़ी वजह यह थी कि भर्ती में गड़बड़ी की भनक लगते ही आईजी ने आनन-फानन में जांच बिठा दी, और फिर पूरी प्रक्रिया स्थगित कर दी। गड़बड़ी की पुष्टि होने पर पुलिस कर्मियों समेत 16 लोग जेल में हैं। भर्ती प्रक्रिया दोबारा शुरू हुई, तो स्थान बदलकर राजनांदगांव की जगह खैरागढ़ किया गया।
करीब चार सौ आरक्षकों की भर्ती होनी है, और पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता दिख रही है। खुद एसपी त्रिलोक बंसल सुबह 6 बजे से शारीरिक नाप जोख स्थल पहुंच जा रहे हैं, और आधा दर्जन से अधिक राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर डटे हुए हैं। पूरी प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग चल रही है। शासन-प्रशासन ने भर्ती में गड़बड़ी के मामले में थोड़ी-बहुत भी लापरवाही बरती होती, तो पीएससी-2023 जैसा हाल हो जाता।
पीएससी-2023 भर्ती परीक्षा में रिजल्ट जारी होनेे के बाद गड़बड़ी सामने आने लगी। मगर भूपेश सरकार ने ध्यान नहीं दिया, और पीएससी के तत्कालीन चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी के पक्ष में खुलकर सामने आ गई। यही नहीं, एक परीक्षा होने के बाद जांच कराना तो दूर, दूसरी परीक्षा भी आयोजित करने दिया। बाद में सरकार बदली, और सीबीआई की एंट्री हुई। सोनवानी सहित कई जेल में हैं, और काफी हद तक गड़बडिय़ों का खुलासा हो चुका है।
समय से पहले विदा करने कई सक्रिय

राज्य विद्युत नियामक आयोग में जल्द ही सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। नियुक्ति के लिए आवेदन बुलाए जा रहे हैं। आयोग में चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्ति पिछली सरकार ने की थी। हालांकि आयोग के चेयरमैन हेमंत वर्मा का कार्यकाल साल भर बाकी है, लेकिन इस पद पर भी अभी से नौकरशाहों की नजर है।
राज्य गठन के बाद रिटायर्ड सीएस एस.के.मिश्रा आयोग के चेयरमैन बने। इसके बाद विद्युत क्षेत्र के विशेषज्ञ मनोज डे को आयोग का चेयरमैन बनाया गया। मनोज डे के बाद पूर्व एसीएस डी.एस. मिश्रा चेयरमैन बने। मिश्रा के बाद निजी कंपनी में कार्यरत हेमंत वर्मा को चेयरमैन नियुक्त किया गया। आयोग के सदस्य तो तकनीकी विशेषज्ञ होंगे, लेकिन चेयरमैन पद पर रिटायर्ड नौकरशाह को बिठाया जा सकता है। यह पद काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। बिजली की दरें तय करने का जिम्मा आयोग पर होता है। इस वजह से यहां के पदों के लिए तकनीकी विशेषज्ञ और नौकरशाह जुट गए हैं। पार्टी के लोग गणेश शंकर मिश्रा का नाम ले रहे हैं।
खबर है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव 10 तारीख को हो सकता है। इसमें शिरकत करने प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेता दिल्ली जाएंगे। इससे परे पार्टी के अंदरखाने में अलग ही चर्चा चल रही है। पार्टी के कई नेता प्रदेश भाजपा के पूर्व प्रभारी संजय जोशी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की संभावना जता रहे हैं, और जोशी के 6 अप्रैल जन्मदिन की जोर-शोर से मनाने की तैयारी चल रही है।
संजय जोशी को जन्मदिन की बधाई वाले कई होर्डिंग, और पोस्टर राजधानी के कई इलाकों में लग रहे हैं। संजय जोशी करीब 3 साल छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे हैं। यहां प्रदेश के छोटे-बड़े नेताओं से सीधे संपर्क रहे हैं। यही वजह है कि उनके नाम को लेकर यहां पार्टी के कार्यकर्ता उत्साहित हैं।
संजय जोशी से परे केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान का नाम भी संभावित राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए लिया जा रहा है। प्रधान सबसे ज्यादा समय तक छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे हैं। और उनका भी यहां के कार्यकर्ताओं से व्यक्तिगत संबंध है। पिछले दिनों धर्मेन्द्र प्रधान के पिता का निधन हुआ, तो सीएम और सरकार के मंत्रियों के साथ-साथ पार्टी के बड़ी संख्या में छोटे-बड़े नेता संवेदना प्रकट करने वहां गए थे। इससे पहले भी छत्तीसगढ़ के प्रभारी रहे वेंकैया नायडू, राजनाथ सिंह, जगत प्रकाश नड्डा, राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके हैं। देखना है कि जोशी अथवा प्रधान को मौका मिलता है या नहीं।
गलियारों की चर्चा
नया वित्त वर्ष शुरू होते ही प्रशासनिक गलियारों में केंद्र सरकार के डीओपीटी के हवाले एक खबर आई है कि सरकार अपने अधिकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट एज को 60 से बढ़ाकर 62 करने जा रही है। महानदी भवन के आईएएस अफसरों की माने तो 7-8 दिन में इसके आदेश भी जारी किए जा सकते हैं। कहा जा रहा है कि नॉर्थ ब्लॉक में हलचल तेज है।

यह पूछने पर कि सरकार की वित्तीय स्थिति इतनी कमजोर भी नहीं है कि रिटायरमेंट लाभ भुगतान के लिए खजाने में पैसे नहीं हों। और स्टाफ की कमी हो ऐसी भी स्थित नहीं हैं। हां रिटायर होने पर अनुभवी, भरोसे के अफसर छूट जाते हैं । उनके लिए तो एक्सटेंशन या संविदा नियुक्ति का विकल्प तो है ही। और कई केंद्रीय विभागों के सचिव एक्सटेंशन पर हैं ही। और फिर आठवें वेतन आयोग के गठन की भी घोषणा कर दी गई है। ऐसे में एज लिमिट में बढ़ोतरी समझ से परे हैं।
आईएएस अफसरों का कहना है कि आपके सारे किंतु-परंतुक सही है। सरकार एक्सटेंशन वाले अफसरों को अगले दो वर्ष के लिए नियमित कर बार-बार के एक्सटेंशन को आदेश से मुक्त होना चाहती है । और ऐसे अफसर मोदी,शाह, वैष्णव, निर्मला,गडकरी जैसे दिग्गजों के विभागों के हैं। इसके अलावा यूपी, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मप्र, राजस्थान जैसे राज्यों में मुख्य सचिव या अन्य अहम विभागों में भी है। इनके रिटायरमेंट से तालमेल गड़बड़ाने के आसार को देखते हुए यह हलचल सुनी जा रही है।
फेरबदल कब?
रमन राज में 15 साल तक ग्राम सुराज अभियान सफलतापूर्वक चलता रहा। इसमें सीएम, और सरकार के मंत्री गांवों में जाकर सरकार की योजनाओं का हाल जानने की कोशिश करते थे। सरकार बदलने के बाद ग्राम सुराज अभियान बंद हो गया था। अब इस अभियान को फिर शुरू करने की तैयारी चल रही है।
ग्राम सुराज अभियान की तिथि जल्द घोषित हो सकती है, और इसके महीनेभर तक चलने की उम्मीद है। चर्चा है कि ग्राम सुराज अभियान शुरू होने से पहले प्रशासनिक फेरबदल भी हो सकता है। हालांकि सरकार में इस बात पर मंथन हो रहा है कि सुराज के पहले फेरबदल किया जाए या फिर इसके बाद। कहा जा रहा है कि आईएएस के साथ आईपीएस अफसरों के तबादले की सूची भी निकल सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
पेट्रोल सस्ता, टोल महंगा-हिसाब बराबर!
छत्तीसगढ़ में आज से पेट्रोल का दाम एक रुपये कम हो गया, मगर यह अब भी 100 के पार है। शराब पर टैक्स घटाया गया है, मगर कुछ साल पहले से तुलना करें तो महंगी अब भी है। फिर भी रायपुर से नागपुर तक का सफर अब जेब पर थोड़ा कम भारी पड़ेगा। टैक्सी, बस वाले किराया घटाएं, तो आम लोगों को पता चलेगा। शराब की एमपी से तस्करी रुकेगी, तब मालूम होगा।
ईंधन का मामला ऐसा है कि हाईवे पर आज से टोल शुल्क बढ़ गया है। जेब में एक हाथ से रकम डालकर दूसरे हाथ से निकाल ली जाएगी। और भी कई चीजें महंगी हो रही हैं, और इनका असर हम पर सीधे पड़ेगा। जरूरी दवाओं जैसे पैरासिटामोल, एंटीबायोटिक्स और विटामिन्स की कीमतों में बढ़ोतरी का ऐलान हो चुका है। अगर आप दिल के मरीज हैं या स्टेंट जैसे उपकरणों पर निर्भर हैं, तो इलाज का खर्च भी बढ़ सकता है। बुने हुए कपड़ों पर कस्टम ड्यूटी बढऩे से आपकी नई शर्ट या साड़ी भी महंगी होने वाली है। आपके अकाउंट को चलाने के लिए भी बैंक कई सेवाओं पर शुल्क बढ़ा रहे हैं।
खाने-पीने की बात करें तो हालात मिले-जुले हैं। मछली उत्पाद सस्ते हो सकते हैं। लेकिन आयातित तेल की कीमतों में उछाल से पहले से ही महंगा खाद्य तेल और रोजमर्रा का खाद्यान्न फिर महंगा होने जा रहा है। तंबाकू और सिगरेट पर टैक्स बढ़ा है। यह वृद्धि मामूली है पर कुछ न कुछ असर तो इसकी कीमत पर पडऩा ही है।
कुछ अच्छी खबरें भी हैं। कैंसर और दुर्लभ बीमारियों की दवाएं सस्ती होने की बात कही गई है। मोबाइल फोन और मोटरसाइकिल भी थोड़े सस्ते हो सकते हैं। लेकिन कुल मिलाकर देखें तो महंगाई का पैमाना ज्यादा भारी है। तो, पेट्रोल और शराब की छोटी खुशी को आनंद उठाएं, मगर कहां-कहां चोट पहुंच रही है, उसका भी हिसाब रखिए।
प्यासा मेहमान

अचानकमार अभयारण्य में एक सुंदर चीतल हैंडपंप के पास खड़ा है, शायद पानी की तलाश में। कच्ची सडक़, आसपास सूखी धरती, बिखरे हुए पत्ते, बच्चे खेलते हुए, फिर एक झोपड़ी। यकीनन इस बस्ती में रहने वाले लोग चीतल को नुकसान नहीं पहुंचाते होंगे, तभी वह निश्चिंत होकर यहां चहलकदमी करते आ गया है। शायद उसे इंतजार है कि कोई आए और उसे पानी पीने में मदद करे। (फोटो- शिरीष दामरे)
मोदी के बढिय़ा मूड से राहत और खुशी
पीएम नरेंद्र मोदी रविवार को प्रदेश दौरे पर आए, तो यहां वो काफी खुश दिखे। माना एयरपोर्ट पर स्वागत के लिए संसदीय कार्यमंत्री केदार कश्यप के साथ दो दर्जन विधायक-पार्टी पदाधिकारी थे। मोदी ने अजय चंद्राकर, राजेश मूणत का नाम लेकर हाल चाल पूछा, तो कतारबद्ध नेताओं ने पीएम को अपना परिचय दिया, और फिर मोदी हाथ जोडक़र आगे बढ़ते गए।
पीएम, सांसद बृजमोहन अग्रवाल, और प्रेमप्रकाश पाण्डेय के पास रूके। प्रेमप्रकाश पाण्डेय की तरफ मुखातिब होते हुए पीएम ने कहा, प्रकाश हम पर कब प्रेम बरसाओगे...। इस पर वहां जमकर ठहाका लगा, और फिर पीएम आगे बढ़ गए। पीएम जिस अंदाज में स्वागतकर्ताओं से मिले, सब काफी खुश थे।
वापसी में भी मोदी का मूड काफी बढिय़ा था। इसकी वजह थी कि बिलासपुर के कार्यक्रम में भारी भीड़ उमड़ी थी, और लोकार्पण व अन्य कार्यक्रम व्यवस्थित तरीके से संपन्न हुआ।
अनूठा रैंप वॉक

अंबिकापुर में एक अनूठा फैशन शो आयोजित किया गया। इसमें रैंप चलने वाली युवतियों, महिलाओं में न केवल महिला डॉक्टर, वकील, शिक्षिका, खिलाड़ी, गृहणी, ब्यूटिशियन आदि थीं, बल्कि ग्रामीण महिलाएं भी शामिल हुईं। उद्देश्य था महिला सशक्तिकरण और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाना। संदेश यह दिया गया कि किसी भी क्षेत्र में महिलाएं पीछे नहीं है। महिला बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े भी मंच पर उतरी थीं।
क्योंकि मौसम चुनावी नहीं है...
बिलासपुर की सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ की परंपरा के अनुरूप लोगों का जय जोहार से अभिवादन करते हुए अपने भाषण की शुरुआत की। उन्होंने गुरु घासीदास, माता कर्मा और श्रीराम के ननिहाल के रूप में छत्तीसगढ़ के महत्व को व्यक्त किया, साथ ही रामनामी संप्रदाय का भी विशेष उल्लेख किया।
संबोधन में उन्होंने सबसे अधिक जोर प्रधानमंत्री आवास योजना पर दिया और याद दिलाया कि छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार बनने के बाद मंत्रिमंडल का पहला निर्णय रुके हुए 18 लाख आवासों को पूरा करने का था। इस संदर्भ में उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि उनकी सरकार में खजाना खाली रहता है और विकास ठप पड़ जाता है। नक्सलवाद पर भी उन्होंने कांग्रेस की आलोचना की, लेकिन किसी भी नेता का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया। इन दिनों ईडी और सीबीआई के छापों को लेकर देशभर में चर्चा है, मगर मोदी ने इस विषय पर कोई टिप्पणी नहीं की।
दूसरी ओर, उन्होंने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को मंच और हेलिपैड पर सफल आयोजन के लिए दो बार बधाई दी। डॉ. रमन सिंह भी तब प्रसन्न दिखे जब प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में उनका नाम दो बार लिया। मोदी के भाषणों में आमतौर पर विपक्ष पर तीखे कटाक्ष और व्यंग्यात्मक टिप्पणियां होती हैं, लेकिन इस बार उनका रुख अपेक्षाकृत संयमित रहा। फिलहाल कोई चुनाव नहीं है, इसलिए उनका तेवर कम आक्रामक नजर आया। बल्कि, वे भाजपा की लगातार हो रही जीत और सभा में उमड़े जनसैलाब को देखकर संतुष्ट दिखे।
राज्यसभा सदस्य लापता

संसद का सत्र चल रहा है। मगर छत्तीसगढ़ के कांग्रेस के दो राज्यसभा सदस्य केटीएस तुलसी, और राजीव शुक्ला की सक्रियता नहीं दिख रही है। अकेली रंजीत रंजन ही ऐसी है, जो छत्तीसगढ़ के जुड़े विषयों को उठा रही हैं। राजीव शुक्ला तो आईपीएल में व्यस्त हैं। सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील केटीएस तुलसी का हाल यह है कि राज्यसभा सदस्य बनने के बाद से वो छत्तीसगढ़ नहीं आए हैं।
राजीव शुक्ला लोकसभा चुनाव के समय आए थे, लेकिन इसके बाद से वो भी नदारद हैं। पहले उम्मीद जताई जा रही थी कि राजीव शुक्ला के राज्यसभा सदस्य बनने के बाद रायपुर को आईपीएल की मेजबानी मिलेगी, कुछ मैच यहां हो सकते हैं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। और तो और केटीएस तुलसी, राजीव शुक्ला के सांसद निधि को लेकर भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है कि वो कहां खर्च कर रहे हैं। कुल मिलाकर दोनों ही सांसद जनता की अपेक्षाओं में अब तक खरा नहीं उतर पाए हैं। ([email protected])
वह सफर भी अनमोल था...
यह तस्वीर छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक रायपुर-धमतरी नैरो गेज रेलवे मार्ग की एक अनमोल स्मृति को संजोए हुए है। कभी इस मार्ग की जीवनरेखा रही नैरो गेज ट्रेन अब इतिहास बन चुकी है। आज, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रायपुर से नवा रायपुर होते हुए अभनपुर के लिए अत्याधुनिक ट्रेन का उद्घाटन कर रहे हैं, यह दृश्य बीते दौर की याद दिलाता है।
रायपुर-धमतरी रेलवे का सफर 1900 में शुरू हुआ था और इसने क्षेत्र की सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नैरो गेज रेलवे, जिसे छोटी लाइन भी कहा जाता था, अपनी संकरी पटरियों और विशिष्ट ट्रेनों के लिए जानी जाती थी। अब यह ऐतिहासिक मार्ग स्मृतियों में सिमट रहा है, लेकिन इसकी गूंज छत्तीसगढ़ के रेल इतिहास में हमेशा बनी रहेगी।
एक समय था जब रायपुर-धमतरी नैरो गेज रेलवे क्षेत्र की परिवहन व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी थी। समय के साथ जब ब्रॉड गेज और आधुनिक रेलवे नेटवर्क का विस्तार हुआ, तो नैरो गेज ट्रेनों का संचालन धीरे-धीरे बंद कर दिया गया। आज इस ऐतिहासिक रेल मार्ग का अस्तित्व भले ही समाप्त हो गया हो, लेकिन यह ट्रेन और इससे जुड़ी यादें उन सभी यात्रियों और रेल प्रेमियों के मन में हमेशा जीवित रहेंगी।
दरुआ लोगों की ख़ुशखबरी

एक अप्रैल आने से पहले 25 मार्च से शराब से जुड़े नए साल के बिजनेस प्लान पर चर्चाएं छिड़ जाती हैं, कि कितनी नई दुकानें खुलेंगी, कितनी बंद होंगी। कौन -कौन से नए अंग्रेजी ब्रांड मिलेंगे। कीमत कम होंगी या बढ़ेंगी। दुकान के पास चखना मिलेगा या नहीं आदि आदि। इन तमाम मामलों में छत्तीसगढ़ के पियक्कड़ों के लिए नया साल खुश किस्मत लेकर आ रहा है। अब तक की खबरों के अनुसार 67 नई दुकानें खुल रही हैं, पुरानी 647 में से एक भी बंद नहीं हो रही। 16 नए ब्रांड आ रहे । कीमत भी 20-100-300 रुपए तक कम हो रही है। चखने के नए अहाते खुल रहे हैं। किसी समय माता-बहनों के हित में राज्य में शराबबंदी की मांग हो रही थी। और अब इसे उन्हीं को फायदे का कारोबार बताने से नहीं चूक रहे।
ऐसा सरकारी लोगों का कहना है कि इससे महतारी वंदन योजना के खर्च की भरपाई हो रही है। इसलिए शराबी भी कहते है कि वे राज्य देश के विकास के अहं हिस्सेदार हैं। हमने आबकारी अफसरों से जाना तो कहा गया आबकारी राजस्व 11 हजार करोड़ का। महिला बाल विकास विभाग महतारी वंदन योजना में साल भर में खर्च 8450 करोड़ दिया है। बीते 13 महीनों में 70 लाख महिलाओं को 650 करोड़ हर माह दिए गए हैं।
और अब एक अप्रैल से वंदन पोर्टल फिर खुलने वाला है तो कुछ और हजार महिलाएं जुड़ेंगी। तो इनकम एक्सपेंडिचर बराबर हो जाएगा। सही है आंकलन- इतने बड़े खर्च की भरपाई बजट के बजाए शराबी कर रहे हैं।
नवा रायपुर पूरा आध्यात्मिक

नवा रायपुर में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिशें चल रही है। यहां सेक्टर-37 में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर के संस्थान आर्ट ऑफ लिविंग को करीब 40 एकड़ जमीन आबंटित की गई है। यहां गुरुकुल, ट्रेनिंग, ध्यान आदि का केन्द्र स्थापित होगा। श्रीश्री रविशंकर ने पिछले दिनों इसका भूमिपूजन भी किया।
यही नहीं, इस्कॉन को भी यहां जमीन आबंटित करने की प्रक्रिया चल रही है। कई रिटायर्ड अफसर धार्मिक, और योग संस्थान से जुड़े हुए हैं। पूर्व हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स राकेश चतुर्वेदी तो ऑर्ट ऑफ लिविंग की नेशनल एडवाइजरी बोर्ड के सदस्य हैं।
रिटायर्ड पीसीसीएफ जेके उपाध्याय, रेरा के चेयरमैन संजय शुक्ला, और एनआरडीए के पूर्व चेयरमैन एसएस बजाज भी आध्यात्मिक गुरु रावतपुरा महाराज की संस्थान से जुड़ गए हैं। यही नहीं, अविभाजित मध्यप्रदेश में बिलासपुर कमिश्नर रहे सत्यानंद मिश्रा आध्यात्मिक गुरु माता अमृतानंदमयी की संस्थान से जुड़े हुए हैं। यह संस्थान का फरीदाबाद में देश के सबसे बड़े अस्पतालों में एक का संचालन कर रही है, और सत्यानंद मिश्रा अस्पताल का प्रबंधन देख रहे हैं। पोस्ट रिटायरमेंट में इससे बेहतर काम हो ही नहीं सकता है।
क्या बिक जाएंगे शक्कर कारखाने?
छत्तीसगढ़ के बालोद और सरगुजा जिलों में स्थित सहकारी शक्कर कारखानों—दंतेश्वरी मैया और मां महामाया—के निजीकरण की चर्चा ने किसानों और कर्मचारियों के बीच आक्रोश पैदा कर दिया है। इन कारखानों पर न केवल हजारों परिवारों की आजीविका निर्भर है। निजीकरण का प्रस्ताव जहां सरकार के लिए आर्थिक बोझ कम करने का रास्ता हो सकता है, वहीं इसके संभावित नुकसान किसानों, कर्मचारियों और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकते हैं।
बालोद जिले के दंतेश्वरी मैया सहकारी शक्कर कारखाने में 500 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, जबकि 1200 गन्ना किसान, उनके परिवार और गन्ना परिवहन से जुड़े मजदूर इसकी जीवनरेखा हैं। कर्मचारी संघ ने वहां आंदोलन शुरू कर दिया है। वे कह रहे हैं कि निजीकरण से उनकी रोजी-रोटी खतरे में पड़ जाएगी। बालोद के कारखाने को एक बार पहले भी नरसिंहपुर ( मध्यप्रदेश) के एक उद्योगपति को बेचने की कोशिश हो चुकी है, तब किसानों और कर्मचारियों के विरोध के बाद इसे रोक दिया गया।
इधर सरगुजा के केरता में मां महामाया सहकारी शक्कर कारखाने के निजीकरण के खिलाफ कांग्रेस ने पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस. सिंहदेव के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन किया है। सिंहदेव का कहना है कि पीडीएस में बांटने के लिए करोड़ों रुपये का शक्कर सरकार उठा लेती है लेकिन कारखानों को भुगतान नहीं करती, इसलिए घाटे में हैं।
बताते चलें कि महाराष्ट्र के सांगली जिले का राजारामबापू सहकारी शक्कर कारखाना है। घाटे को वजह बताते हुए इसे निजी हाथों में दे दिया गया। अब गन्ने का भुगतान समय पर नहीं हो रहा और कारखाने का संचालन पूरी तरह लाभ-केंद्रित हो गया है। उत्पादन बढ़ाने के बजाय, निजी प्रबंधन ने लागत कटौती पर ध्यान दिया, जिससे कर्मचारियों और किसानों दोनों का नुकसान हो रहा है। छत्तीसगढ़ में भी ऐसा हो सकता है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के कुछ ही समय बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भोरमदेव में पहला सहकारी शक्कर कारखाना शुरू कराया था। अभी भोरमदेव व पंडरिया के कारखानों को बेचने की बात नहीं हो रही है। यह ध्यान देने की बात है कि शक्कर कारखानों की सहकारी समितियों में उस प्रकार की राजनीति नहीं घुसी है, जितनी सहकारी बैंकों में है। यदि संचालन में कोई कमी है तो उसमें सुधार लाया जा सकता है। नियम से तो बिना शेयरधारकों की इच्छा के खिलाफ बेचना भी मुमकिन नहीं है।
कुबेर ने भूखा मार डाला
वन विभाग में शीर्ष स्तर पर बड़ा फेरबदल होने जा रहा है। पीसीसीएफ स्तर के अफसर संजय ओझा 31 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। सरकार ने 30 साल की सेवा पूरी कर चुके एपीसीसीएफ स्तर के अफसरों को पीसीसीएफ का स्केल देने का फैसला लिया है। इन सबके चलते पीसीसीएफ स्तर के अफसरों के प्रभार बदले जा सकते हैं।
यही नहीं, डीएफओ और एपीसीसीएफ स्तर के अफसरों के प्रभार भी बदले जा सकते हैं। सुनते हैं कि आईएफएस अफसरों के फेरबदल की सूची तैयार होने की खबर उड़ी है, लेकिन अफसर बेपरवाह हैं। वजह यह है कि एसीएस (वन) रिचा शर्मा के दबाव की वजह से विभाग में निर्माण कार्यों और अन्य तरह के भुगतान के लिए ई कुबेर सिस्टम लागू किया गया है। जिसके चलते फर्जी मस्टर रोल बनाकर फील्ड में मजदूरी भुगतान को लेकर हो रही अनियमितताओं पर अंकुश लगा है। भुगतान सीधे मजदूरों के खाते में जमा हो रहे हैं। इन सबके चलते फील्ड पोस्टिंग को लेकर हमेशा से होने वाली मारा मारी भी नहीं है।
हालांकि विभाग के एक-दो शीर्ष अफसर इससे परेशान भी हैं। एक शीर्ष अफसर ने अपना दर्द कुछ इस अंदाज में बखान किया कि दिवाली-होली में मिलने के लिए कोई भी फील्ड के अफसर नहीं आए। इससे पहले तक तो दिवाली मिलने आते थे, तो स्वाभाविक तौर पर खाली हाथ नहीं आते थे। ई कुबेर की वजह से स्वागत सत्कार के लिए गुंजाइश सीमित रह गई है। ऐसे में अब अफसर भी बेपरवाह हो गए हैं।
इंटरव्यू देने से क्या फायदा?
मुख्य सूचना आयुक्त(सीआईसी) पद के लिए पिछले दिनों इंटरव्यू हुआ, तो कई अफसर इंटरव्यू देने नहीं आए। इसकी वजह भी थी कि सीएस खुद इंटरव्यू देने पहुंचे थे, तो रिटायर्ड अफसरों के लिए गुंजाइश नहीं के बराबर थी। इन्हीं सबको ध्यान में रखकर डॉ. संजय अलंग, नरेन्द्र शुक्ला, अमृत खलको सहित कई अफसर नहीं पहुंचे। सचिव स्तर के ये सभी अफसर सालभर के भीतर रिटायर हुए हैं।
बताते हैं कि डॉ. अलंग, अमृत खलको सहित कई अफसरों ने आईसी (सूचना आयुक्त ) के लिए भी आवेदन किया है। सूचना आयुक्त के दो पद खाली हैं, और ये सभी रिटायर्ड अफसर अपनी संभावना देख रहे हैं। वैसे भी सीआईसी के पद पर अब तक सीएस रैंक के अफसर रहे हैं, ऐसे में उनसे नीचे रैंक के अफसर के लिए संभावना नहीं के बराबर रही है। इससे जुड़ी एक खबर और है कि दो पूर्व डीजीपी अशोक जुनेजा, और डीएम अवस्थी ने भी सीआईसी के लिए आवेदन किया था, लेकिन जुनेजा का तो इंटरव्यू हुआ, लेकिन अवस्थी नहीं पहुंचे। सरकार बदलने के बाद अवस्थी को ईओडब्ल्यू-एसीबी से हटाया गया था। ऐसे में कुछ लोगों का अंदाजा है कि उन्हें खुद के लिए संभावना कम नजर आई इसलिए वो इंटरव्यू देने नहीं पहुंचे। वहीं एक दावेदार ने इंटरव्यू के लिए न बुलाए जाने पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई। उनका कहना था कि मेरी पात्रता में क्या कमी है चयन होना न होना अलग बात है, लेकिन न बुलाया जाना अपमानजनक है। इसके बाद समिति ने उन्हें भी आमंत्रित किया।
एक और बार जोगी परिवार की कोशिश
दिवंगत पूर्व सीएम अजीत जोगी के परिवार ने एक बार फिर कांग्रेस में प्रवेश के लिए जोर लगाया है। जोगी पार्टी की मुखिया श्रीमती डॉ. रेणु जोगी, और उनके बेटे अमित जोगी दिल्ली में हैं। वैसे तो वे एक विवाह समारोह में शामिल होने गए हैं, लेकिन कांग्रेस हाईकमान से संपर्क कर वापसी की कोशिश में लगे हैं। कहा जा रहा है कि डॉ. रेणु जोगी, और अमित जोगी की राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह, और कुछ अन्य प्रमुख नेताओं से चर्चा भी हुई है।
बताते हैं कि रेणु जोगी, और अमित, कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से मुलाकात के लिए प्रयासरत हैं। इससे परे जोगी पार्टी ने कांग्रेस में विलय का प्रस्ताव दे दिया था, लेकिन कांग्रेस ने इसे अब तक स्वीकार नहीं किया है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल, जोगी परिवार को कांग्रेस में शामिल करने के पक्ष में नहीं है। प्रदेश कांग्रेस के कुछ और प्रमुख नेताओं की राय भी भूपेश बघेल से मिलती जुलती है। ऐसे में जोगी परिवार का कांग्रेस प्रवेश का मामला अधर में लटका हुआ है।
नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में जोगी पार्टी ने कांग्रेस का समर्थन किया था। फिर भी बात आगे नहीं बढ़ पाई है। कांग्रेस के कुछ प्रमुख नेताओं का मानना है कि जोगी पार्टी के ज्यादातर नेता कांग्रेस में पहले ही आ चुके हैं। अमित जोगी के आने से पार्टी में गुटबाजी बढ़ सकती है। ऐसे में उनके कांग्रेस प्रवेश का विरोध किया जा रहा है। फिर भी कुछ नेताओं का मानना है कि अहमदाबाद में कांग्रेस अधिवेशन के बाद दूसरे दलों से आने वाले नेताओं को लेकर कोई फैसला हो सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
वन मैन लैटर बॉम्ब आर्मी
पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर के ‘लेटर बम’ से सरकार में हलचल है। कंवर एक के बाद एक सरकार के अलग-अलग विभागों के भ्रष्टाचार के मामले को सामने ला रहे हैं, और केन्द्र सरकार को पत्र भी लिख रहे हैं। कंवर के पत्र पर कार्रवाई भी हुई है। एक-दो पत्रों पर तो राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने सरकार को जवाब तलब भी किया है।
कंवर के पत्रों को लेकर सरकार असहज है, लेकिन वो ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि कंवर पार्टी के सबसे पुराने नेता हैं। वो अविभाजित मध्यप्रदेश की जनता पार्टी सरकार में उपमंत्री रहे हैं तब यहां प्रदेश भाजपा के बड़े नेताओं की राजनीति भी शुरू नहीं की थी। कंवर, पटवा सरकार के अलावा छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद रमन सरकार में करीब 8 साल मंत्री रहे हैं। 80 बरस पार कर चुके कंवर को पार्टी ने वर्ष-2023 के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया था, लेकिन वो चुनाव हार गए।
हारने के बाद भी कंवर खामोश नहीं हैं, और वो पत्र लिख कर अपनी सक्रियता दिखा रहे हैं। पूर्व गृहमंत्री के पत्रों का ‘न्यूज वैल्यू’ भी है। इसलिए अलग-अलग विभागों के पीडि़त-प्रभावित लोग उनसे मिलते जुलते रहते हैं, और उन्हें तमाम गतिविधियों से अवगत कराते रहते हैं। जिस पर कंवर पत्र भी लिख देते हैं। एक पुराने राजनीतिक विश्लेषक का मानना है कि कंवर राजनीति के वानप्रस्थ से संन्यास की ओर जा रहे हैं। उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है। और उम्र के इस पड़ाव में पाने की संभावना भी कुछ भी नहीं है।
लालबत्ती गई, लालसा नहीं गई

अप्रैल 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट ने फैसला लिया कि 1 मई 2017 से आपात सेवाओं को छोडक़र सभी सरकारी वाहनों से लालबत्ती हटा दी जाएगी। इसका उद्देश्य वीवीआईपी कल्चर को समाप्त करना था। छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री, मंत्रियों और अफसरों की गाडिय़ों से लालबत्ती हटा दी गई। इस फैसले का स्वागत हुआ, लेकिन तब भी सवाल उठा कि क्या केवल लालबत्ती हटाने से वीआईपी कल्चर खत्म हो जाएगा? यदि राजनीति को स्वच्छ बनाना है, तो सुरक्षा दस्ते, एस्कॉर्ट गाडिय़ां, सरकारी बंगलों में विशेष सुविधाएं क्यों नहीं समाप्त की जातीं?
लालबत्ती हटाने के कुछ ही दिन बाद, मई 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ में 11 संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर दी। यह पद उन विधायकों को दिया गया, जिन्हें मंत्रिपरिषद् में जगह नहीं मिली थी, लेकिन राजनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए मंत्री जैसी कुछ सुविधाएं देना जरूरी समझा गया। इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने असम में संसदीय सचिवों की नियुक्ति को असंवैधानिक करार दिया और पश्चिम बंगाल में इस संबंध में पारित विधेयक को अवैध घोषित किया। इस आदेश के आधार पर तत्कालीन विधायक मो. अकबर ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन सरकार ने तर्क दिया कि ये मंत्री नहीं हैं, कैबिनेट बैठकों में शामिल नहीं होते और इन्हें राज्यपाल की शपथ नहीं दिलाई गई है। हाईकोर्ट ने यह तर्क स्वीकार कर याचिका खारिज कर दी।
विडंबना यह रही कि कांग्रेस ने विपक्ष में रहते संसदीय सचिवों की नियुक्ति का विरोध किया, लेकिन सत्ता में आते ही खुद 15 संसदीय सचिव नियुक्त कर दिए। संवैधानिक दर्जा न होते हुए भी इन्हें अन्य विधायकों से ऊंचा स्थान मिल गया।
लालबत्ती खत्म हुई, लेकिन नेताओं और अफसरों के लिए हूटर नया प्रतीक बन गया। मोटर वाहन अधिनियम के अनुसार, हूटर की अनुमति केवल आपात सेवाओं, जैसे एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड और पुलिस को मिलती है। लेकिन मंत्रियों के काफिलों में यह धड़ल्ले से बजते हैं। पुलिस की पायलटिंग गाड़ी पर हूटर समझ में आता है, लेकिन काफिले की अधिकतर गाडिय़ां कानफोड़ू आवाज में सडक़ों पर रफ्तार से दौड़ती हैं, जिससे आम जनता सहमकर किनारे हो जाती है।
सिर्फ निर्वाचित प्रतिनिधि ही नहीं, बल्कि देखा-देखी उनके कार्यकर्ता, अफसर और उनके परिवार भी वीआईपी संस्कृति का लाभ उठाने में पीछे नहीं रहते। सभा-समारोहों में वीआईपी पास के लिए होड़ मचती है। आयोजक इतने पास बांट देते हैं कि व्यवस्था चरमरा जाती है।
कबीरधाम जिले के भोरमदेव महोत्सव में यही देखने को मिला। भाजपा के पूर्व सांसद और प्रख्यात गायक हंसराज हंस का कार्यक्रम था। डिप्टी सीएम और गृह मंत्री की मौजूदगी में वहां वीआईपी सीटें इतनी अधिक हो गईं कि आम दर्शकों के लिए जगह ही नहीं बची। खबरों के मुताबिक, नाराज भीड़ ने दो हजार से अधिक कुर्सियां तोड़ दीं और कार्यक्रम बाधित हो गया। वीआईपी कल्चर केवल लालबत्ती हटाने से खत्म नहीं होगा, जब तक कि नेता और अफसर खुद इसे जड़ से खत्म करने की इच्छाशक्ति न रखें। जब तक विशिष्टता दिखाने के नए-नए तरीके अपनाए जाते रहेंगे, जनता की नाराजगी फूटती रहेगी।
महादेव की अंतहीन कहानियाँ
महादेव सट्टेबाजी केस में सीबीआई की पहली बार एंट्री हुई है। सुबह से लेकर रात तक सीबीआई ने छत्तीसगढ़ समेत चार राज्यों के 60 ठिकानों पर छापेमारी की। छापे में क्या कुछ मिला यह स्पष्ट नहीं है। सीबीआई ने सिर्फ इतना ही कहा है कि तलाशी के दौरान डिजिटल, और दस्तावेजी साक्ष्य पाए गए, उन्हें जब्त किया गया है। चूंकि पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और कांग्रेस विधायक देवेन्द्र यादव के साथ ही चार आईपीएस अफसरों के यहां छापे डले, तो माहौल गरमा गया।
पूर्व सीएम, और ताकतवर पुलिस अफसरों के यहां छापेमारी हुई, तो राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा होती रही। वैसे तो ईडी इसी प्रकरण में पूर्व सीएम के करीबी विनोद वर्मा के यहां पहले भी छापा मार चुकी है। चर्चा है कि हाईकोर्ट में ऑनलाइन सट्टेबाजी पर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। कोर्ट ने इस प्रकरण पर राज्य के गृह सचिव से हलफनामा मांगा है। प्रकरण पर अगली सुनवाई 4 अप्रैल को होगी। इससे पहले राज्य वित्त आयोग के पूर्व सदस्य नरेश चंद्र गुप्ता ने भी पिछले साल सीबीआई दफ्तर जाकर ज्ञापन भी दिया था, जिसमें पुलिस अफसरों की संलिप्तता का जिक्र था।
गुप्ता ने महादेव ऑनलाइन सट्टेबाजी प्रकरण के आरोपी एएसआई चंद्रभूषण वर्मा, दुबई निवासी महादेव ऐप के प्रोपराइटर शुभम सोनी, भिलाई निवासी सतीश चंद्राकर, और असीम दास के ईडी में पीएमएलए अधिनियम की धारा 50 के तहत दर्ज किए गए बयान का हवाला दिया था। छापेमारी को याचिका-शिकायत से जोडक़र देखा जा रहा है। जिनके यहां भी छापे डले हैं उनके नाम सट्टेबाजी केस में पहले ही पब्लिक डोमेन रहे हैं। ऐसे में छापे डले, तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ।
सीबीआई की एक बड़ी टीम मंगलवार की रात रायपुर पहुंच गई थी। इसलिए यहां बड़ी कार्रवाई होने की भनक पहले ही लग गई थी। ऐसे में जिनके यहां छापे डले, उनमें से ज्यादातर लोग घर पर नहीं थे। कुछ भी हो, सीबीआई के लिए महादेव ऑनलाइन सट्टा प्रकरण सुलझाना आसान नहीं है। वजह यह है कि संचालक देश से बाहर हैं, और उन्हें यहां लाकर मुकदमा चलना कठिन है। ऐसे में जिनके यहां छापे डले हैं वो ज्यादा परेशान नहीं दिख रहे हैं। अफसरों को बुरा जरूर लग रहा है क्योंकि इससे साख पर असर पड़ा है। फिर भी पुलिस प्रशासन में सत्ता के साथ मिलकर अपराधीकरण चिंता का विषय है। इस मसले पर अब सीबीआई आगे क्या कुछ करती है यह देखना है।
अब रानू साहू ट्रेनिंग के लिए नामजद!
राज्य के साप्रवि का प्रकोष्ठ जीएडी-2 सीजी में पदस्थ आईएएस अफसरों के लिए डीओपीटी की तरह कैडर कंट्रोलिंग विभाग की तरह काम करता है। लेकिन यहां बरते जाने वाली अनदेखी से गंभीर मामलों में दोषी ,जेल याफ्ता अफसर भी सम्मानीय बने हुए हैं। और केंद्र के सभी प्रमुख कैरियर गाइडेंस ट्रेनिंग और अन्य कार्मिक योजनाओं के लिए नामजद भी हो रहे हैं। हाल में आईएएस अवार्ड न होने के बावजूद कोल घोटाले की आरोपी सौम्या चौरसिया, जमीन घोटाले में जांच का सामना कर रहे तीर्थराज अग्रवाल, आरती वासनिक को मसूरी अकादमी ने पहली ट्रेनिंग के लिए ऑफर लेटर भेज दिया । और अब डेढ़ वर्ष से जेल में बंद रानू साहू को भी अकादमी से फेज -3 ट्रेनिंग का कॉल आया है।
रानू डेढ़ वर्ष से कोल लेवी घोटाले के बाद अब डीएमएफ घोटाले में भी बंदी हो गई है। है न तालमेल का अभाव। डेढ़ वर्ष में जीएडी और डीओपीटी को एक दिन भी समय न मिला कि अकादमी को इसकी सूचना दे दे कि फलां अफसर जेल में है, निलंबित है। ताकि उन्हें ट्रेनिंग के लिए नामजद न किया जा सके।
क्या राज्य के साप्रवि और डीओपीटी के बीच तालमेल नहीं है या कोई चीज छुपाई जाती है। शायद ऐसे ही अन्याय कारणों से किसी मामले में आरोपित संदिग्ध और जांच का सामना करने वाले आईएएस अफसरों को चार्जशीट निर्धारित अवधि में नहीं मिल पाती और वे जांच ही नहीं पूरे मामले से बरी हो जाते हैं। यह केवल आईएएस नहीं ,आईपीएस आईएफएस के मामले में भी ऐसा ही होता हो।
तस्वीर पर सियासी घमासान

बिल्हा विधायक व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में 25 हजार वोटों के विशाल अंतर से जीते थे। उस समय कांग्रेस ने राजेंद्र शुक्ला को टिकट दी थी। शुक्ला को चुनाव लडऩे के पहले जिला कांग्रेस अध्यक्ष बिलासपुर का पद छोडऩा पड़ा था। हार-जीत में वोटों के फासले पर उस समय सवाल खड़े हुए थे। कहा गया कि भाजपा के पक्ष में ऐसा एकतरफा माहौल कैसे बना, जबकि कांग्रेस हर बार वहां टक्कर में रही है। करारी हार के बाद भी कांग्रेस में उनकी पकड़ ढीली नहीं हुई और जिला कृषि उपज मंडी बोर्ड के अध्यक्ष बना दिए गए। पीएससी की जिस चयन सूची पर सीबीआई जांच हो रही है, उनमें एक नाम उनके बेटे का भी है। अभी त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव में उनकी पत्नी अनीता शुक्ला जिला पंचायत सदस्य बन गई हैं। उन्होंने भाजपा की पुनीता डहरिया को हराया। जीत हार तो स्वाभाविक है लेकिन कांग्रेस नेताओं को हैरानी इस बात पर हुई कि उसी वोटिंग के दौरान इस जिला पंचायत क्षेत्र के सभी 6 जनपद के कांग्रेस प्रत्याशी हार गए। एक को भी जीत नहीं मिली। अब शुक्ला के खिलाफ जिला कांग्रेस अध्यक्ष विजय केशरवानी और बिल्हा के पूर्व विधायक सियाराम कौशिक ने शुक्ला को पार्टी से निष्कासित करने की मांग कर दी है। उनका कहना है कि उनका भाजपा नेताओं से साठगांठ है। जनपद सदस्यों की सीट भाजपा को देने के एवज में उन्होंने अपनी जीत पक्की करा ली। सबूत के तौर पर यह तस्वीर भी पेश की गई है, जिसमें अनीता शुक्ला और राजेंद्र शुक्ला, विधायक धरमलाल कौशिक का झुक कर अभिवादन कर रहे हैं। पता चला है कि पर्यवेक्षक प्रमोद दुबे ने कौशिक और केशरवानी से अब मामले को तूल नहीं देने के लिए मना लिया है। वैसे करीब एक दर्जन नेताओं के खिलाफ जिला पंचायत और नगर निगम चुनाव के बाद कांग्रेस से भितरघात करने की शिकायत बिलासपुर जिले से हुई है। इनमें से प्रदेश प्रवक्ता अभय नारायण राय जैसे नाम भी शामिल हैं। ([email protected])


