राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : बसवा राजू के शव को लेकर हिचक
26-May-2025 7:06 PM
राजपथ-जनपथ : बसवा राजू के शव को लेकर हिचक

बसवा राजू के शव को लेकर हिचक

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ में हुई मुठभेड़ में मारे गए 27 नक्सलियों में से एक था बसवा राजू, जो माओवादी संगठन का शीर्ष सैन्य कमांडर था। उसकी मौत के बाद आंध्र प्रदेश में रहने वाले परिजनों ने छत्तीसगढ़ पुलिस से शव सौंपने का अनुरोध किया है, ताकि वे अपने गांव में अंतिम संस्कार कर सकें। लेकिन छत्तीसगढ़ पुलिस ने अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

उग्रवाद और आतंकवाद से जुड़े मामलों में शवों का प्रबंधन हमेशा बेहद संवेदनशील रहा है। 2001 के संसद हमले के दोषी अफजल गुरु और 2008 के मुंबई हमले के आतंकवादी अजमल कसाब को फांसी दिए जाने के बाद उनके शव परिजनों को नहीं सौंपे गए थे। दोनों का अंतिम संस्कार गोपनीय रूप से जेल परिसर में ही किया गया था, ताकि कोई उकसावे की स्थिति न बने। छत्तीसगढ़ में बहुत से शवों का कोई दावेदार नहीं होता, पुलिस ही उनका अंतिम संस्कार करा देती है।

बसवा राजू माओवादी संगठन के लिए इस समय का सबसे बड़ा चेहरा था। उसके समर्थक आज भी कई इलाकों में सक्रिय हैं। ऐसे में अगर उसका शव परिजनों को सौंपा गया, तो यह अंतिम संस्कार एक भावनात्मक प्रदर्शन में बदल सकता है। भीड़ जुटने और उकसावे की स्थिति बनने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता।

संभवत: छत्तीसगढ़ पुलिस और प्रशासन इस बात से भली-भांति परिचित हैं, इसलिए फिलहाल उन्होंने कोई फैसला नहीं लिया है। संकेत यही मिल रहे हैं कि शव परिजनों को सौंपा नहीं जाएगा। बस्तर के कई क्षेत्रों में पहले भी नक्सली नेताओं के स्मारक बनाए गए हैं, जिन्हें सुरक्षा बलों ने चिन्हित कर ध्वस्त किया है। बसवा राजू की मौत भले ही एक व्यक्ति के रूप में हुई हो, लेकिन अगर उसका शव सौंपा गया, तो उसकी विचारधारा, नेतृत्व और संगठन कौशल को नक्सली ‘गौरव का प्रतीक’ बनाकर पेश कर सकते हैं। 

कुदाल उठाई तब पहुंचा सुशासन

दुर्गम आदिवासी इलाकों में सडक़ों की कमी जनजीवन के लिए कितनी बड़ी चुनौती है, इसका उदाहरण हाल ही में तब देखने को मिला, जब कुल्हाड़ी घाट के पास एक गांव में सांप के काटे व्यक्ति को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए कांवड़ में उठाकर ग्रामीणों को 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा।

अब सडक़ के लिए जूझते ग्रामीणों का एकऔर मामला बीजापुर जिले के भैरमगढ़ जनपद पंचायत के केशकुतुल ग्राम पंचायत से आया है। यहां के ग्रामीण सालों से भैरमगढ़ तक सडक़ निर्माण की मांग कर रहे थे। प्रशासन से कोई जवाब न मिलने पर गांववालों ने मशीन और निर्माण सामग्री के लिए चंदा इक_ा किया, और श्रमदान से खुद सडक़ बनाना शुरू कर दिया।

इन दिनों छत्तीसगढ़ में सुशासन तिहार मनाया जा रहा है। जब यह खबर प्रशासन तक पहुंची, तो शायद उन्हें भी सोच-विचार करना पड़ा। एसडीएम और जनपद पंचायत के सीईओ गांव पहुंचे। वहां पहुंचने में आई कठिनाइयों ने ही उन्हें यह अहसास करा दिया होगा कि यह सडक़ कितनी जरूरी है।

अधिकारियों ने ग्रामीणों से कहा कि अब यह सडक़ वे नहीं बनाएंगे, बल्कि प्रशासन इसे मनरेगा योजना के तहत तुरंत स्वीकृत करेगा। ग्रामीणों ने इस निर्माण के लिए लगभग 50 हजार रुपये चंदा इक_ा किया था। अधिकारियों ने भरोसा दिया कि यह राशि उन्हें लौटा दी जाएगी, जिसे अब तक हुए निर्माण कार्य के मूल्यांकन में जोड़ दिया जाएगा। अफसरों को अपने बीच पाकर ग्रामीणों ने भी मौका नहीं गंवाया और दो-तीन छोटी पुलियों की मांग रखी, यह भी मंजूर हो गई।

प्रतिनियुक्ति के दरवाजे बंद होने वाले हैं

लगता है कि अब राज्यों के आईपीएस अफसरों के लिए केंद्रीय सशस्त्र बलों में प्रतिनियुक्ति के दरवाजे बंद होने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देशों से यही लगता है। कोर्ट ने लोक कार्मिक प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) से कहा है कि वह, कैडर रिव्यू को लेकर गृह विभाग की सिफारिश पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेकर एक्शन टेकन रिपोर्ट पेश करें। इसमें डीओपीटी को इन केंद्रीय बलों के भर्ती नियम भी बदलने होंगे। ताकि आईपीएस अफसरों की प्रतिनियुक्ति खत्म भी हो। इसके अलावा राज्यों में बलों की तैनाती पर राज्यों से समन्वय के साथ राज्य पुलिस से तालमेल के सुझाव भी देने कहा है ।

आईटीबीपी, बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और एसएसबी समेत सभी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) का कैडर रिव्यू 2021 से टलता आ रहा है। इसके पीछे मुख्य कारण प्रतिनियुक्ति से, इन बलों में रिक्त पदों की पूर्ति को माना गया है। कोर्ट का यह निर्देश  गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन, कैडर समीक्षा और आईपीएस प्रतिनियुक्ति को समाप्त करने के लिए भर्ती नियमों के पुनर्गठन और संशोधन की मांग करने वाली याचिकाओं  पर आया। 

कोर्ट ने कहा कि केंद्र का मानना है कि प्रत्येक सीएपीएफ में आईपीएस अधिकारियों की मौजूदगी उनमें से प्रत्येक के चरित्र को एक अद्वितीय केंद्रीय सशस्त्र बल के रूप में बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

भाजपा की हार के पीछे

हज कमेटी के चुनाव को लेकर चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। बताते हैं कि सरकार ने 11 सदस्यीय कमेटी में 6 सदस्य मनोनीत कर दिए थे। ताकि कमेटी अध्यक्ष पद पर भाजपा समर्थित सदस्य की जीत सुनिश्चित हो सके।

चर्चा है कि विभागीय मंत्रीजी ने पार्टी के एक अल्पसंख्यक नेता की पसंद पर सदस्य मनोनीत कर दिए। बाद में अध्यक्ष के चुनाव का समय आया, तो पार्टी नेताओं ने अल्पसंख्यक नेता की राय को महत्व नहीं दिया। फिर क्या था, मनोनीत सदस्य वोट देने के बजाए पिकनिक चले गए, और भाजपा समर्थित प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद अब मंत्रीजी को सफाई देना पड़ रहा है। अब आगे क्या होता है, यह देखना है।


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