राजपथ - जनपथ
सॉफ्ट विपक्ष और एग्रेसिव सत्तापक्ष
विधानसभा में आज की बैठक स्थगित है। चार दिनों के शीत सत्र के पहले दो दिन विधानसभा सदन काफी गर्माहट भरा रहा। इसमें विपक्ष से ज्यादा सत्ता पक्ष के विधायकों की भूमिका रही। इस दौरान जल जीवन मिशन, सरगुजा से बस्तर तक सड? निर्माण, शहरों के सौंदर्यीकरण के नाम पर फिजूल खर्च और अफसरों के भ्रष्टाचार पर अंकुश न लगा पाने पर विभागीय मंत्रियों को आड़े हाथों लिया।
दरअसल, भाजपा विधायक, बघेल शासन के भ्रष्टाचारी अफसर कर्मियों पर एक साल बाद भी कार्रवाई न करते हुए गोद में बिठाए जाने से अधिक नाराज हैं। मंत्रियों पर गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाने और झूठ बोलने तक के भी तोहमत भाजपा विधायकों ने लगाए। इस बार प्रश्नावधि का ट्रेंड भी कुछ नया रहा। वर्ष 2019 से नवंबर 24 की अवधि के कार्यों,गड़बडि?ों पर पूछे गए। यानी भाजपा सरकार का एक वर्ष भी निशाने पर रहा। दो दिनों में विधायकों के टारगेट में खाद्य, वन, राजस्व, लोनिवि, पीएचई, नगरीय प्रशासन जैसे बड़े बजट के विभाग रहे। इन विभागों में पिछले अप्रैल से क्या हो रहा, और हुआ किसी से छिपा नहीं। शायद इसीलिए मंत्री पर विपक्ष की नामजद नारेबाजी पर भी भाजपा विधायक चुप्पी साधे रहे। प्रबोध मिंज, सुशांत शुक्ला, अनुज शर्मा जैसे नए नवेलों के साथ अजय चंद्राकर, धरमलाल कौशिक, राजेश मूणत के तीखे आरोपों से मंत्री कुछ असहज से दिखे। मंत्री न बन पाने के इनके विधायकों के मनोभाव को समझ भूपेश बघेल ने इन्हें मार्गदर्शक मंडल का सदस्य घोषित करते हुए मंत्रियों को संबल अवश्य दिया। विपक्ष की भूमिका साफ्ट आपोजिशन की सी रही। शीत सत्र के अभी दो दिन और हैं। और अब विधेयक पर चर्चा के अलावा प्रश्नकाल, ध्यानाकर्षण सूचनाओं पर चर्चा के लिए पूरा समय रहेगा। और हमले और सुनने देखने को मिलेंगे।
संघ पदाधिकारी के दौरे से हलचल
भाजपा और संघ के बीच समन्वय का देख रहे अरूण कुमार के छत्तीसगढ़ दौरे की काफी चर्चा है। अरूण कुमार की पार्टी संगठन के प्रमुख पदाधिकारियों के साथ बैठक हुई है। साथ ही उनकी सरकार के मंत्रियों से भी चर्चा हुई है। बताते हैं कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत संभवत: 26 तारीख रायपुर आएंगे। संघ परिवार विशेषकर धर्मांतरण आदि विषयों को लेकर काफी गंभीर है। इन विषयों को लेकर कार्ययोजना बनाई जा रही है। भागवत इन तमाम विषयों पर छत्तीसगढ़ के संघ और भाजपा नेताओं से चर्चा करेंगे । इससे पहले अरूण कुमार, संघ प्रमुख के बैठक से चर्चा के बिन्दुओं को अंतिम रूप देने में लगे हैं।
भ्रष्टाचार और वाट्सएप पर सुझाव
भ्रष्टाचार और उसमें लिप्त अफसरों कर्मचारियों पर की गई कार्रवाई की पूरी जानकारी विधानसभा में क्या आई,लोग अपनी अपनी तरह से विचार रख रहे हैं। गिरफ्तारों की लिस्ट में अखिल भारतीय सेवा संवर्ग के अफसर न होने से आईएएस, आईपीएस आईएफएस की बांछे खिली हुई हैं। हालांकि इनमें कुछ दर्जन जांच का सामना कर रहे हैं, तो भले गिरफ्तारी कम हो लेकिन इस सूची में राज्य संवर्ग के अफसरों की बड़ी हिस्सेदारी है। इसे देखते हुए छत्तीसगढ़ अधिकारी कर्मचारी फेडरेशन के वाट्सएप ग्रुप में व्यक्तिगत और विभागीय भ्रष्टाचार और उससे निपटने के विचार शेयर किए गए। एक ने लिखा जिस विभाग में करप्शन ज्यादा है, उन विभाग के अधिकारी कर्मचारियों के लिए गाईड लाइन जारी होना चाहिए। जिसमें लोगों को अपने काम के लिए पैसे देना ना पड़े। दूसरे ने कहा अधिकारी कर्मचारी लोगों का काम समय सीमा में पूर्ण करके दे। यह अनिवार्य हो, नहीं तो उनके खिलाफ शासन को कार्यवाही करना चाहिए। अब भला इन्हें कौन बताए समय सीमा में काम के लिए सिटीजन चार्टर दशक डेढ़ दशक से लागू है। उसका ही पालन कर लें तो दिक्कत न हो। और फिर अब तो ई आफिस की भी आनलाइन व्यवस्था है। साहब लोग, टेबल में रूकी फाइल मंगा कर क्लियर कर दे तो? रोकने के पीछे का मकसद ही खत्म हो जाएगा। और भ्रष्टाचार ही न हो। लेकिन अब तो फोन पे, यूपीआई, गूगल पे के इस्तेमाल पर ही फाइल आगे बढ़े तो क्या किया जा सकता है।'
विदाई भोज तो नहीं है?
प्रदेश भाजपा के प्रभारी नितिन नबीन दो दिन पहले पत्रकारों को भोज पर आमंत्रित किया, तो हास-परिहास के बीच कुछ ने पूछ लिया कि यह विदाई भोज तो नहीं है?
दरअसल, बिहार सरकार के मंत्री नबीन को लेकर यह चर्चा है कि वो अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव की वजह से छत्तीसगढ़ के संगठन के दायित्व से मुक्त हो सकते हैं। मगर नबीन ने अनौपचारिक चर्चा में कहा कि वो बरसों से संगठन का काम संभालते रहे हैं। कई मौके ऐसे भी आए हैं जब चुनाव, और संगठन का दायित्व साथ-साथ निभाते रहे हैं।
संकेत साफ है कि नबीन पद पर बने रहेंगे।
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चुनाव क्यों रूका?
सरकार ने पंचायत चुनाव के लिए पदों के आरक्षण की प्रक्रिया अचानक स्थगित कर दी है। आरक्षण कब होगा, इसके लिए तिथि अभी तय नहीं है। पहले नगरीय निकाय के साथ ही पंचायत के चुनाव कराने की तैयारी चल रही थी। अब आरक्षण की कार्रवाई रोके जाने के बाद साथ-साथ चुनाव होने की संभावना नहीं है।
बताते हैं कि पंचायत चुनाव अब मार्च में हो सकते हैं। चुनाव टलने के पीछे जो वजह सामने आई है उसका प्रमुख कारण नियम नहीं बन पाना है। सरकार ने पंचायत चुनाव के नियमों में संशोधन के लिए अध्यादेश तो लाए हैं, लेकिन कुछ खामियां रह गई है। इससे परे पार्टी के रणनीतिकार अभी चुनाव कराने के पक्ष में नहीं है।
पार्टी के लोगों का सोचना है कि अभी प्रदेशभर में धान खरीदी चल रही है, और यह पूरे जनवरी भर चलेगी। इसी बीच में चुनाव कराने से कोई फायदा नहीं होगा। अलबत्ता, धान खरीदी में अव्यवस्था के चलते उल्टे नुकसान उठाना पड़ सकता है। हालांकि पंचायत चुनाव दलीय आधार पर नहीं होता है। मगर पार्टी समर्थित प्रत्याशी उतारती है। इसलिए चुनाव काफी प्रतिष्ठापूर्ण रहता है। वैसे भी पंचायतों का कार्यकाल फरवरी तक है। ऐसे में जल्द चुनाव कराने का कोई फायदा नहीं दिख रहा था। यही वजह है कि चुनाव की प्रक्रिया फिलहाल रोक दी गई है।
राईस मिल और अमित जोगी
आखिरकार सरकार के दबाव की वजह से राइस मिलर्स को झुकना पड़ा, और हड़ताल स्थगित करनी पड़ी। हालांकि एक गुट अभी भी हड़ताल पर है। जिसके नेता रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल के भाई योगेश अग्रवाल हैं। योगेश ने अपनी सरकार पर आरोप लगाए हैं, और साफ कह दिया कि हड़ताल जारी रहेगी। मगर बाद में उन्होंने भी हड़ताल खत्म करने पर सहमति दे दी। खास बात यह है कि मिलर्स को कांग्रेस और अन्य दलों से कोई सपोर्ट नहीं मिल पा रहा था।
जनता कांग्रेस के मुखिया अमित जोगी ने तो फेसबुक पर अपने पोस्ट में राइस मिलर्स के रवैये की आलोचना की है। उन्होंने लिखा कि मुझसे अनेक राइस मिलर्स एसोसिएशन के लोगों ने मुलाकात की, और सरकार पर राजनीतिक दबाव बनाने का अनुरोध किया है।
अमित जोगी ने आगे लिखा कि आज अगर राइस मिलर जिंदा हैं, तो केवल और केवल मेरे पिता स्व. अजीत जोगी जी की बदौलत, जिन्होंने अपने दम पर भारत के इतिहास में पहली बार धान खरीदी शुरू की। और बरसों से बंद पड़ी राइस मिलों को नया जीवनदान दिया। किन्तु राइस मिलरों ने वर्ष-2003-04, 2008-09, 2013-14 में उनके उपकार को भुलाकर भाजपा को वोट किया।
ऐसे में कृतघ्न राइस मिलरों को भाजपा सरकार द्वारा दिए गए प्रस्ताव का समर्थन करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। कांग्रेस को भी इनसे दूरी बनानी पड़ेगी, तभी उनको विपक्ष के विकल्प का एहसास होगा।
परसेप्शन बदलें
सोमवार को विधानसभा में दी गई सरकारी जानकारी के मुताबिक एक ट्रेंड देखने में आया है। इससे अभा सेवा के अफसर खासकर आईएएस, आईपीएस, आईएफएस ने आक्रोश मिश्रित संतुष्टि जताया है। उनका कहना है कि भ्रष्टाचार को लेकर दलीय नेता और जनसामान्य नाहक हमें बदनाम करते फिरते हैं। जबकि इसका बोलबाला राज्य कैडर में अधिक है। यह वह दौर था जब कांग्रेस सरकार में खुलेआम भ्रष्टाचार के मामले ईडी, सीबीआई से लेकर ईओडब्ल्यू-एसीबी मामले दर्ज करते रहे हैं। इनमें चाहे रंगे हाथों पकड़ाने के मामले हो या फिर पद का दुरुपयोग कर अनुपातहीन अर्जित करने के। भ्रष्टाचार को इन दोनों ही पैमाने में इनकी हिस्सेदारी अधिक है। इतना ही नहीं कम ही सही जेल भी गए हैं। इन साहब ने कहा परसेप्शन, सोच बदलें।
सदन में दी गई लिखित जानकारी में बताया गया कि बीते पांच वर्ष में रिश्वतखोरी के 87 दर्ज मामलों में दो अधिकारियों के ही सजा हुई। इस दौरान एक भी आईएएस,आईपीएस अफसर रिश्वत लेते रंगे हाथ नहीं पकड़ाया। वर्ष 2019 से 25 नवंबर 24 तक किसी भी अभा सेवा संवर्ग के किसी भी अफसर को रिश्वत लेते नहीं पकड़ा गया। वहीं राप्रसे के 2 और अन्य राज्य सेवाओं के 124 अधिकारियों को पकड़ा गया। इनमें से 87 प्रकरणों में चालान पेश किया गया है। इनमें से दो को सजा हुई। सीएम ने यह भी बताया कि इस दौरान अनुपातहीन संपत्ति के 35 और पद दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार करने के 42 मामले दर्ज किए गए हैं।
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बेमौसम का टकराव
प्रदेश में राइस मिलर्स की हड़ताल की वजह से धान खरीदी प्रभावित हो रही है। कई जिलों की समितियों में तो धान का उठाव नहीं होने के कारण खरीदी बंद हो गई है। मिलर्स की हड़ताल तुड़वाने की कोशिश भी हुई। रविवार को मिलर्स पदाधिकारियों के मिलों में छापे भी डाले गए। कई मिलों को सील भी कर दिया गया। प्रशासनिक दबाव का नतीजा यह रहा कि कई जगहों पर मिलर्स ने धान का उठाव शुरू कर दिया है।
मिलर्स की हड़ताल तुड़वाने के लिए डिप्टी सीएम अरुण साव, वित्त मंत्री ओपी चौधरी, और खाद्य मंत्री दयालदास बघेल प्रयासरत थे। वो लगातार पदाधिकारियों से चर्चा कर रहे थे। यही नहीं, संगठन ने प्रदेश महामंत्री सौरभ सिंह को भी मिलर्स से बातचीत की जिम्मेदारी दी थी। मगर मिलर्स अपनी मांग पर अड़े रहे, तो दोपहर बाद सरकार ने कार्रवाई शुरू कर दी। मिलर्स एसोसिएशन के दो प्रमुख पदाधिकारी प्रमोद जैन और गप्पू मेमन की राइस मिल को सील कर दिया। यही नहीं, सांसद बृजमोहन अग्रवाल के भतीजे टीनू के राइस मिल में भी खाद्य अफसरों ने भी जांच-पड़ताल की।
प्रशासनिक कार्रवाई का नतीजा यह रहा कि आधे राइस मिलर्स ने काम शुरू करने का मन बना लिया है। उन्होंने जिलों के अधिकारियों को इसकी जानकारी दे दी है। कई लोग इस गतिरोध के लिए एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश अग्रवाल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। योगेश, बृजमोहन अग्रवाल के छोटे भाई हैं। उन्होंने सीएम और मंत्रियों से चर्चा का ब्यौरा देते हुए सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा दिया था। कुछ टिप्पणियां ऐसी थी कि सरकार के लोग उबल पड़े।
सरकार ने कार्रवाई के साथ-साथ बातचीत का भी रास्ता अपनाया। सभी प्रमुख जिलों में प्रभारी मंत्रियों को मिलर्स से सीधे बातचीत करने के लिए कहा गया था। एक-दो दिनों में सारी स्थिति सामान्य होने की उम्मीद जताई जा रही है। पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर, तो नगरीय निकाय व पंचायत चुनाव में नुकसान होने की आशंका जता रहे हैं। उन्होंने मिलर्स के समर्थन में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र भी लिखा है। चाहे कुछ भी हो, जिलों में धान खरीदी की व्यवस्था गड़बड़ा गई है। इससे सरकार की किरकिरी हो रही है।
किसी दिन सूरज न कह दे...
गांव कस्बों को रोशन करने वाले एक अधिकरण की वित्तीय हालात की चर्चा वीआईपी रोड से अटल नगर विधान नगर के गलियारे तक होने लगी है। केंद्र प्रवर्तित योजनाओं के अनुदान से चलने वाले अधिकरण का बैंक बैलेंस कभी 300 करोड़ से अधिक के एफडी का रहा है। और अब हालात यह हैं कि पांच सौ अधिकारी कर्मचारियों को वेतन देने 50 करोड़ रुपए नहीं है। नतीजतन नवंबर की तनख्वाह 13 दिसंबर को क्रेडिट हुई है। ऐसे बैंक बैलेंस वाला यह प्रदेश का पहला उपक्रम हो। ऐसा इस अधिकरण के 23 वर्ष पहले गठन के शुरूआती दिनों में भी कभी नहीं हुआ। उन दिनों बजट की भी कमी रहा करती थी। और अब भरपूर बजट और भरपूर सबसिडी को साथ वेंडर्स से भरपूर कमीशन देने वाले इस अधिकरण की हालत को विधानसभा चुनाव के पहले से ही ग्रहण सा लग गया है।
अफसर चुटकी लेने लगे हैं कि - किसी दिन ऐसा न हो सूर्य भी बोले अधिकरण को अपनी उर्जा नहीं दूंगा। वे यह भी कहने लगे हैं कि अधिकरण कहीं मप्र ऊर्जा विकास निगम की तरह बंद न हो जाए। वैसे भी यहां के अधिकारी कर्मचारी अधिकरण के विद्युत कंपनी में संविलयन की मांग करते रहें हैं।
मनोनयन का इंतजार
भाजपा संगठन के एक अलिखित फार्मूले से पार्टी के भीतर हलचल मची हुई है। यह कहा जा रहा है कि जिन नेताओं को सरकार के दो कार्यकाल में निगम-मंडलों में जगह मिली थी, उन्हें पद नहीं दिया जाएगा। उनकी जगह नई नियुक्ति की जाएगी। खास बात यह है कि निगम-मंडल के कई पूर्व पदाधिकारी विधानसभा, और लोकसभा टिकट के दावेदार रहे हैं, लेकिन उन्हें मौका नहीं मिल पाया।
ये सभी नेता सरकार बनने पर निगम-मंडल में जगह पाने की उम्मीद से हैं, लेकिन नए फार्मूले की चर्चा से उनमें बेचैनी है। ये अलग बात है कि पार्टी ने निकाय चुनाव तक सारी नियुक्तियों को टाल दिया है। यह भी तय किया है कि कैबिनेट का विस्तार भी नए साल में होगा। इससे परे बड़ी संख्या में निगम-मंडल के दावेदार पार्टी दफ्तर में अपना बायोडाटा भेज रहे हैं। अगर वाकई फार्मूले पर अमल हुआ, तो कई नेताओं का गुस्सा खुलकर सामने आ सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
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डगर कठिन है घरवापिसी की
प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सचिन पायलट ने पार्टी से निलंबित, और निष्कासित नेताओं की वापसी के लिए पहल की है। पायलट ने बकायदा एक सात सदस्यीय समिति बनाई है जो इन नेताओं के आवेदनों पर विचार करेगी। मगर ज्यादातर निष्कासितों के वापसी की राह आसान नहीं है।
जो निष्कासित नेता कांग्रेस में वापसी की कोशिश कर रहे हैं उनमें रामानुजगंज के पूर्व विधायक बृहस्पति सिंह भी हैं। बृहस्पति सिंह ने विधानसभा चुनाव के पहले टीएस सिंहदेव के खिलाफ मोर्चा खोला था। इसके बाद उनकी टिकट कट गई, और जब पार्टी चुनाव में हार गई तो उन्होंने सिंहदेव के साथ-साथ तत्कालीन प्रभारी सैलजा पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी।
वो लोकसभा चुनाव के पहले खेद प्रकट कर पार्टी में आना चाहते थे। मगर सिंहदेव इसके लिए तैयार नहीं हुए। और अब भी सिंहदेव तैयार होंगे, इसकी संभावना कम दिख रही है। यद्यपि सिंहदेव कमेटी में नहीं है लेकिन उनके रूख से कमेटी के सदस्य भलीभांति परिचित हैं।
इसी तरह रायपुर की ही एक सीट से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लडऩे वाले एक नेता भी पार्टी में वापसी की कोशिश कर रहे हैं। रायपुर दक्षिण उपचुनाव में नेताजी ने एक जगह कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में सभा करवाई थी, और पंडाल व खाने का खर्चा भी वहन किया था।
ये अलग बात है कि जिस इलाके में निष्कासित नेता ने मेहनत की थी वहां पार्टी प्रत्याशी को कोई फायदा नहीं हुआ। इससे परे कुछ ऐसे नेता भी हैं जो भूपेश बघेल के खिलाफ बयानबाजी कर भाजपा में चले गए थे। भाजपा में उनकी पूछ परख नहीं हो रही है। ऐसे नेता पार्टी में ससम्मान वापस आना चाहते हैं। कमेटी इस पर क्या फैसला लेगी, इस पर नजरें हैं। देखना है आगे क्या होता है।
सरकार, मिल मालिक, और जांच
प्रदेश में राइस मिलर्स की हड़ताल से धान खरीदी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। मिलर्स की कुछ मांगों को तो सरकार ने मान लिया है, लेकिन एक मांग ऐसी है जिसे पूरा करना सरकार के लिए मुश्किल है। मिलर्स मिलिंग की वर्ष 2021-22 की बकाया भुगतान देने की मांग कर रहे हैं। जिसके लिए सरकार तैयार नहीं है। वजह यह है कि ईडी कस्टम मिलिंग घोटाले की जांच कर रही है। प्रारंभिक जांच में ईडी ने पिछली सरकार और मिलर्स के गठजोड़ से एक बड़े भ्रष्टाचार की गड़बड़ी का खुलासा भी किया है।
बावजूद इसके मिलर्स अपनी मांग से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। सरकार ने मिलर्स की हड़ताल को तुड़वाने की कोशिश भी की है, और चर्चा है कि इसमें कुछ हद तक सफलता भी मिली है। शनिवार की रात एक बैठक भी होने वाली थी जिसमें करीब 50 मिलर्स के साथ डिप्टी सीएम अरूण साव व खाद्य मंत्री दयाल दास बघेल चर्चा करने वाले थे। मगर बैठक ऐन वक्त में स्थगित हो गई। सरकार के लोग मिलर्स नेताओं को किनारे कर सीधे व्यक्तिगत तौर पर मिलरों से चर्चा कर रही है। देखना है सरकार मिलर्स को मनाने में किस हद तक कामयाब हो पाती है।
नाम का स्वागत
ऐसा कहा जा रहा है कि तकनीक लोगों की सुविधा बढ़ाने के लिए ऩ केवल ईजाद की जाती है बल्कि इस्तेमाल भी होती है । लेकिन सरकारी अमला पुराने ढर्रे पर ही चलना चाहे तो कुछ नहीं किया जा सकता। ऐसा ही कुछ मंत्रालय में इन दिनों हो रहा है । सरकारी कामकाज के लिए साहबों से मिलने के लिए एंट्री पास की मैन्यूअल सुविधा खत्म हो गई है। पेन, पर्ची की जगह स्वागतम एप ने ले ली है। अब मंत्रालय रवाना होने से पहले क्लिक कर आनलाइन पास हासिल किया जा सकता है। लेकिन साहबों की उपलब्धता वैसी ही है जैसे बीते 23 वर्षों के दौरान रहती रही। वे मिलते ही नहीं । और जब आफिस में रहते हैं तो बैठकों में व्यस्त या दौरे पर होते हैं। घंटों इंतजार के बाद मुलाकाती के पास घर वापसी ही विकल्प रह जाता है। एक दिन में बनने वाले सैकड़ों स्वागतम पासधारी कुछेक दर्जन भर की ही साहबों से मुलाकात या काम हो पाता है।
काश इस एप में यह भी बता दिया जाता है कि आप जिन साहब से मिलने जा रहे हैं वो आफिस में हैं या नहीं। न होने की स्थिति में नागरिकों का समय, खर्च दोनों ही बच जाते। स्वागतम की तकनीक में इसकी भी व्यस्था कर दी जाए। और अफसर प्रवास, बैठक में होने की एंट्री कर आम लोगों से मुक्त, बिंदास हो जाएंगे।
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चर्चा चुना की ही ?
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा शुक्रवार को यहां आए, तो एयरपोर्ट के वीआईपी लाउंज में उन्होंने सीएम विष्णुदेव साय, प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन, और अजय जामवाल व पवन साय के साथ बैठक की, और फिर जाते-जाते कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में प्रमुख नेताओं के साथ मंत्रणा की।
बैठक का निचोड़ यह रहा कि नड्डा ने संगठन चुनाव पर ही बात की है। प्रदेश में संगठन के चुनाव चल रहे हैं। इसके बीच में नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव की भी घोषणा होने वाली है। संगठन चुनाव की वजह से निकाय और पंचायत चुनाव में किसी तरह का असर न पड़े, यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा है।
दरअसल, मंडल से लेकर जिला अध्यक्षों के चुनाव को लेकर खींचतान चल रही है। चुनाव अधिकारी को किसी एक नाम पर सहमति बनाने में दिक्कत आ रही है। पदाधिकारियों की नियुक्ति को लेकर किसी तरह का असंतोष न फैले, इसकी कोशिश हो रही है। जिलाध्यक्षों के चुनाव इस महीने के आखिरी तक होने के संकेत हैं। देखना है कि पार्टी अंदरूनी गुटबाजी पर किस हद तक लगाम लगाती है।
पहेली का हल क्या है?
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा 6 साल छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे हैं। वो यहां के छोटे-बड़े नेताओं से परिचित हैं। और जब वो यहां आए, तो कई छोटे-बड़े नेताओं ने उनसे मेल-मुलाकात की। एक नेता ने मौका पाकर उनसे कह दिया कि भाई साब, हमारा भी ध्यान रखिएगा।
नड्डा ने उन्हें आश्वस्त किया कि जो भी आएंगे, वो आप लोगों के ही हैं। यह कहकर नड्डा आगे बढ़ गए। लेकिन नेताजी, नड्डा के कथन को नहीं समझ पा रहे हैं। दरअसल, राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी चुनाव होना है, और नड्डा की जगह नए अध्यक्ष की नियुक्ति होगी। ऐसी चर्चा है कि छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान उनके उत्तराधिकारी हो सकते हैं।
कुछ लोग अंदाजा लगा रहे हैं कि नड्डा का इशारा धर्मेन्द्र प्रधान की तरफ था। मगर कई लोग नितिन नबीन की जगह होने वाली नियुक्ति से जोडक़र देख रहे हैं। सुनते हैं कि प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन पद मुक्त हो सकते हैं। वजह यह है कि अगले साल बिहार में विधानसभा के चुनाव हैं।
नितिन नबीन बिहार सरकार में मंत्री हैं। वो खुद भी चुनाव लड़ेंगे, ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि नबीन की जगह में नई नियुक्ति हो सकती है, जो कि छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं के करीबी हो सकते हैं। कुल मिलाकर नड्डा की टिप्पणी एक पहेली बन गई है जिसे बूझने में पार्टी नेताओं को मशक्कत करनी पड़ रही है।
पदोन्नति के लिए लाभ के तरीके
राज्य सरकार की पदोन्नति व्यवस्था और प्रक्रिया पर दो दिन पहले हाईकोर्ट ने एक याचिका पर फैसला सुनाया था कि कोई कर्मचारी, जिस पद पर नियुक्त हुआ है उसी पद पर रिटायर हो यह अनुचित है। और दूसरी ओर अफसरों के लिए शासन प्रशासन सभी नियमों को शिथिल कर देता है।
आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अफसरों के लिए तो राज्य में काम न करें तो भी प्रोफार्मा प्रमोशन की सुविधा है। और राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों के लिए तो पद सुरक्षित रख, निचले क्रम के अफसरों को पदोन्नति दी जाती रही है । यह ऐसे लोगों के लिए भी होती है जिनका सीआर दागी या कोर्ट में मामला लंबित हो। वहीं पदों को रोकने की भी परंपराएं अपनाई गईं हैं। वैसे यह पदोन्नति नियम में भी है, कि अजजा के अभ्यर्थी उपलब्ध न हों तो, उनकी उपलब्धता तक पद रिक्त रखे जाएं। बस ऐसा ही कुछ मंत्रालय संवर्ग के दो पदों के लिए भी किया जा सकता है।
कैबिनेट ने हाल में अपर सचिव के दो पद स्वीकृत किए हैं। इनमें दो संयुक्त सचिव पदोन्नत होने हैं। एक पद 8 साल से रिक्त है तो दूसरा पद इसी माह स्वीकृत किया गया है। लेकिन इनकी उपलब्धता में कुछ समय शेष है। सो अब मांग की जा रही है कि इनके उपलब्ध होने तक अपर सचिव के दोनों पदों को परिवर्तित कर संयुक्त सचिव किए जाएं ताकि बिना व्यय भार के दो संयुक्त सचिव मिल सके।
देखा परखा खरा
रायपुर के नए एसपी लाल उम्मेद सिंह ने काम संभाल लिया है। आईपीएस के 2011 बैच के अफसर लाल उम्मेद सिंह राज्य पुलिस सेवा से आए हैं। वो दो बार रायपुर के एडिशनल एसपी रह चुके हैं। लाल उम्मेद सिंह की रमन सरकार के विश्वास पात्र अफसरों में गिने जाते रहे हैं। कांग्रेस सरकार में भी उनकी हैसियत कम नहीं हुई। कवर्धा जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील जिले में बेहतर काम किए थे। लाल उम्मेद सिंह रायपुर में अपनी नई भूमिका में कैसा काम करते हैं यह देखना है।
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सार्वजनिक जगहें, और राजनीतिक फैसले
राजधानी रायपुर में सत्तारूढ़ नेता और अफसर बड़े-बड़े फैसले लेते हैं, और मनमर्जी की वजह से अगली सरकार में वे किनारे धर दिए जाते हैं। रमन सिंह सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री राजेश मूणत ने अपनी निजी प्रतिष्ठा की तरह जो स्काईवॉक बनवाया था, उसे भूपेश सरकार पांच बरस तक न तोड़ पाई, न उसका कोई और इस्तेमाल हुआ, और उसे पूरा तो करना ही नहीं था। अब भाजपा की सरकार आई है, तो उसे पूरा करने का काम शुरू होने को है।
इसी तरह साइंस कॉलेज के मैदान पर भूपेश सरकार के समय मैदान के एक हिस्से पर बिना किसी जरूरत एक बड़ी चौपाटी बना दी गई, और सडक़ की चौड़ाई से लेकर मैदान की चौड़ाई तक सबको खराब किया गया। इस अखबार ने उस समय भी भूपेश बघेल, और उनके मार्गदर्शक, विवेक ढांड को याद दिलाया था कि दोनों इसी साइंस कॉलेज में पढ़े हैं जिसके मैदान को काटकर चौपाटी बनाई जा रही है, और इन्हें इसे रोकना चाहिए। लेकिन जब सरकार सांड पर सवार रहती है, तो उसे दाएं-बाएं कम दिखता है, सही-गलत का फर्क भी नहीं रह जाता।
अब भाजपा सरकार साइंस कॉलेज में बनी हुई चौपाटी को हटाकर कुछ दूरी के एक ओवरब्रिज के नीचे ले जाने की तैयारी कर रही है, और वहां धंधा करने वाले लोग फिक्रमंद हैं कि वहां ग्राहक कहां से आएंगे। फैसले राजनीतिक न होकर तकनीकि विशेषज्ञों और योजनाशास्त्रियों के लिए हुए रहते, तो वे राजनीतिक फेरबदल को झेल भी पाते। एक शहर में इस तरह सैकड़ों करोड़ की बर्बादी महज आर्थिक बर्बादी नहीं है, वह सार्वजनिक जगहों का गैर जिम्मेदार इस्तेमाल भी है।
अफसरों को तेवर दिखाना भारी
सरकार के एक निगम में पेस्टीसाइड्स की सप्लाई को लेकर काफी कुछ चर्चा हो रही है। हुआ यूं कि निगम के लोगों ने हमेशा की तरह तीन-चार फर्मों को ऑर्डर दे दिया। इन फर्मों के लिए सिफारिश आई थी, इसलिए नियम कायदों को भी अनदेखा कर दिया।
फर्मों ने पेस्टीसाइड्स की सप्लाई कर भुगतान के लिए बिल भी लगा दिया। और जब भुगतान में देरी हुई, तो सप्लायरों ने सिफारिश करने वाले का जिक्र कर जल्द से जल्द भुगतान करने पर जोर दिया। फिर क्या था अफसरों ने भुगतान से पहले गुणवत्ता परीक्षण के निर्देश दे दिए।
सुनते हैं कि गुणवत्ता परीक्षण में करीब 100 से अधिक सेम्पल अमानक पाए गए। कुछ किसानों ने भी शिकायत की है। अब सप्लायरों को भुगतान तो दूर, उन पर एफआईआर पर विचार चल रहा है।
सप्लायर हाथ-पांव मार रहे हैं। मगर अब तक मामला सुलझा नहीं है। भुगतान के लिए अफसरों को तेवर दिखाना भारी पड़ गया है। जिन्होंने सिफारिश की थी, वो भी मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में यह मामला बढ़ सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
‘महादेव’ और शिव पुराण
महादेव ऑनलाइन सट्टा ऐप के दो डायरेक्टर सौरभ चंद्राकर, और रवि उप्पल दुबई में दो दिन पहले कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा का प्रवचन सुनते नजर आए। पंडित मिश्रा की कथा फेसबुक से लेकर आस्था चैनल पर देखी जा सकती है। दुबई में चल रही कथा का सीधा प्रसारण हो रहा था, तब कई लोगों की नजर सौरभ और रवि उप्पल पर पड़ी। कुछ दिन पहले तक पुलिस अफसर सट्टेबाज सौरभ चंद्राकर की गिरफ्तारी का दावा कर रहे थे। वो भी सौरभ, और रवि उप्पल को देखकर हक्का-बक्का रह गए। दुबई में प्रदीप मिश्रा का कार्यक्रम ली-मेरिडियन होटल एंड कॉन्फ्रेंस सेंटर गरहौद में हुआ था। चर्चा है कि इस कथा का आयोजन सौरभ चंद्राकर, और उनके परिवार ने किया था।
बताते हैं कि दोनों कुख्यात सट्टेबाज सौरभ, और रवि उप्पल को लाने में कुछ दिन पहले तक छत्तीसगढ़ पुलिस की दिलचस्पी दिख रही थी। दुर्ग पुलिस की एक टीम दिल्ली भी गई थी, और केन्द्रीय गृह मंत्रालय में सौरभ चंद्राकर व रवि उप्पल का डोजियर जमा कर आई थी। ताकि दोनों का जल्द से जल्द प्रत्यर्पण हो सके। मगर अब जब उनके खुले तौर पर सार्वजनिक कार्यक्रम में शरीक होने की बात सामने आई है, तो कई नए खुलासे भी हो रहे हैं। अब यह कहा जा रहा है सौरभ को कभी गिरफ्तार ही नहीं किया गया था। रवि उप्पल जरूर एक हफ्ते दुबई पुलिस की कस्टडी में रहा, लेकिन उसे भी बाद में छोड़ दिया गया। कुछ जानकार बताते हैं कि उनका प्रत्यर्पण आसान नहीं है। दुबई में वो एक कारोबारी के रूप में जाने जाते हैं। कारोबार भी वहां के नियमों के मुताबिक कर रहे हैं।
चर्चा तो यह भी है कि सट्टेबाजों को लाने में किसी की भी कोई दिलचस्पी नहीं है। भूपेश बघेल सरकार में महादेव सट्टा खूब फला फूला, और बढ़ा था। इसके हितग्राहियों में नेता, अफसर, और कारोबारी भी हैं। जिसकी पकड़ सभी दलों में हैं। इसकी वजह से भी दोनों सट्टेबाजों पर कार्रवाई में हील हवाला बरता जा रहा है। ये बात अलग है कि इससे बड़े कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा जरूर घिर सकते हैं। पंडित मिश्रा का रायपुर के सेजबहार में 25 तारीख से शिव महापुराण कथा वाचक करने वाले हैं। वो भले ही दोनों को न जानते हों, लेकिन उनके यहां कथा करने पर जवाब देना पड़ सकता है।
एक सवाल का जवाब न आ पाया
सरकार के एक साल पूरा होने के मौके पर सीएम विष्णुदेव साय अपने मंत्रियों के साथ मीडिया से रूबरू हुए। प्रेस कॉन्फ्रेंस काफी तामझाम से हुई। साय ने सरकार की उपलब्धियों को गिनाया भी, और मीडिया के सवालों के जवाब भी दिए।
तीन-चार सवाल ही हो पाए थे कि डिप्टी सीएम अरुण साव, और विजय शर्मा ने पत्रकारों से आग्रह किया कि सीएम साब को दौरे पर जाना है इसलिए बाकी सवाल बाद में भी कर सकते हैं। फिर भी एक सवाल जोरों से पूछा गया कि क्या इस माह मंत्रिमंडल के खाली पद भरे जाएंगे? तब तक सीएम साब उठ गए थे। अब जवाब नहीं आया, तो चर्चाओं का दौर जारी रहेगा। जब तक इसका स्पष्ट उत्तर नहीं आ जाता।
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संगठन चुनाव और वजनदार लोग
भाजपा में संगठन चुनाव चल रहे हैं। मंडल अध्यक्षों के लिए आम सहमति बनाने की कोशिश चल रही है। बावजूद इसके कई जगहों पर अपनी पसंद का अध्यक्ष बनाने के दिग्गजों में खींचतान चल रही है। इन्हीं में एक रायपुर के हाई प्रोफाइल शंकर नगर मंडल के अध्यक्ष के चुनाव में आम सहमति बनाने में चुनाव अधिकारी के पसीने छूट रहे हैं।
शंकर नगर मंडल में चार वार्ड आते हैं। यहां कई दिग्गज नेताओं के रहवास हैं, जो संगठन-सरकार में प्रभावशाली हैं। इनमें संजय श्रीवास्तव, छगनलाल मूंदड़ा, श्रीचंद सुंदरानी के अलावा स्थानीय विधायक पुरंदर मिश्रा भी हैं जिनकी अपनी पसंद है। इन सबके बीच समन्वय स्थापित कर किसी एक नाम पर सहमति बनाना आसान नहीं है। पार्टी नेतृत्व ने चुनाव अधिकारियों को मंडलों की बैठक में अध्यक्ष के नाम की घोषणा करने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में प्रदेश में अलग-अलग जगहों पर जिस तरह असहमति के सुर देखने को मिल रहा है, उससे अंतिम चयन जोखिम भरे हो सकते हैं।
पोस्टकार्ड की कीमत यहां 10.50 रूपए
फोन पर सोशल मीडिया के दर्जन भर प्लेटफॉर्म की उपलब्धता के बीच चि_ी लिखने की फुर्सत किसे है। इसके बाद भी डाक विभाग चिट्टी लिखने का आग्रह करता है। और लाखों रूपए खर्च कर पत्र लेखन स्पर्धा के इवेंट करवाता है। हालांकि इसमें केवल स्कूली बच्चों की हिस्सेदारी रहती है। यह भी महज सालाना औपचारिक आयोजन होकर रह गए हैं। विभाग यदि एआई के इस दौर में भी पोस्ट कार्ड, इनलैंड लेटर की वापसी चाहता है तो उसे इसकी सस्ती और आसान उपलब्धता सुनिश्चित करानी होगी। यह हम इसलिए कह रहे हैं कि रायपुर मुख्य डाकघर से एक पोस्ट कार्ड करीब 11 रूपया पड़ता है। इसकी विभाग की कीमत 50 पैसा है और इसकी छपाई में विभाग 37 पैसे खर्च करता है।
लेकिन चि_ी लिखने के शौकीन को पहले इसे खरीदने 10 रूपया मुख्य डाकघर में अपनी बाइक के लिए 10 रूपया पार्किंग देना होगा । इनलैंड लेटर के लिए यह कीमत 12.50 रुपए और लिफाफे के लिए 15 रुपए पड़ जाती है। जो मोबाइल डेटा से भी महंगा पड़ता है। दो दिन पहले ही केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया मे एक कार्यक्रम में बताया था कि देश में इस समय एक जीबी डेटा 8.21 रुपए में उपलब्ध है। वैसे डाक कर्मी ही बताते हैं कि केवल एक्नॉलेजमेंट की जरूरत वाले ही अब कार्ड खरीदने आते हैं। चि_ी लिखने के लिए इनलैंड लेटर खरीदने वाले नहीं के बराबर हैं। डाकघर में पोस्ट कार्ड बिके हफ्तों बीत जाते हैं।
यह साइकिल स्टैंड भी कई वर्षों से बिना किसी ठेके, टेंडर के अवैध रूप से चल रहा है। ऐसा कहा जा रहा है कि अंतिम बार हुए टेंडर का ठेकेदार ही चला रहा है। विभाग में रिनिवल के सिस्टम को ही खत्म कर दिया है। महज पीआरआई इंस्पेक्टर की एनओसी पर ही कथित ठेका चल रहा है।
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60 से ही मार्गदर्शक मण्डल में !!
भाजपा में संगठन चुनाव चल रहे हैं। यह पहला मौका है जब संगठन में अलग-अलग पदों के लिए आयु सीमा निर्धारित कर दी गई है। मंडल अध्यक्ष के लिए अधिकतम आयु सीमा 45 वर्ष है, तो 60 से कम आयु वाले ही जिलाध्यक्ष बन सकते हैं। आयु सीमा में किसी तरह की छूट नहीं दी जा रही है, और पदाधिकारी की नियुक्ति से पहले आयु को लेकर प्रमाण पत्र भी दिखाना होगा।
यह भी तय किया गया है कि किसी भी मंडल अध्यक्ष को रिपीट नहीं किया जाएगा। सभी मंडल से तीन-तीन नाम का पैनल बनाए जा रहे हैं, और जिले की कोर कमेटी एक नाम पर मुहर लगाएगी। सारी प्रक्रिया 20 तारीख तक पूरी कर ली जाएगी। खास बात यह है कि पार्टी ने महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए पहल की है। मगर दिक्कत यह है कि मंडल अध्यक्ष के लिए सक्रिय नेत्रियों की कमी नजर आ रही है। शहर के हरेक मंडल में 4 से 5 वार्ड आते हैं। ऐसे में अध्यक्ष का पद काफी अहम है। इस बार के चुनाव की खास बात यह है कि पार्टी में 60 पार हो चुके नेताओं की पूछपरख कम हो रही है, और एक तरह से वो हाशिए पर धकेल दिए जा रहे हैं। स्वाभाविक है कि ऐसे नेताओं ने बेचैनी दिख रही है।
कांग्रेस में फेरबदल की फुरसत नहीं
नगरीय निकाय-पंचायत चुनाव के बीच प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारिणी के पुनर्गठन को लेकर हलचल है। कई पदाधिकारियों ने विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी छोड़ दी थी। ऐसे उपाध्यक्ष, और महासचिव के रिक्त पदों पर नियुक्ति जल्द हो सकती है।
चुनाव की घोषणा जल्द होने वाली है। इसके लिए अलग-अलग समितियों का गठन होना है। चर्चा है कि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट से चर्चा कर एक सूची तैयार की है। वो गुरुवार को दिल्ली में पार्टी के सीनियर नेताओं के साथ बैठक कर अपनी बात रखेंगे। वो सूची को जल्द से जल्द मंजूरी देने का आग्रह करेंगे। बैज के दिल्ली प्रवास पर पार्टी नेताओं की निगाह लगी हुई है। देखना है चुनाव को लेकर पार्टी क्या कुछ करती है।
रकम ले गए चोर, भरें कर्मचारी
हाल के वर्षों में कई हितग्राही मूलक योजनाओं के पेमेंट के लिए डाकघरों में एक मुश्त कम से कम एक लाख रुपए तो रहते ही हैं। और डाकघरों में सेंधमारी की घटनाएं बढ़ी हैं। पहले सरगुजा बलरामपुर की ओर हुई और अब महासमुन्द धमतरी में। जहां सेंधमारों को लाखों हाथ लगे। धमतरी में सर्वाधिक 6 लाख एक ही बार में मिले। यह डाकघर थाने के पीछे ही है। और डाकघर में सीसीटीवी कैमरे हैं ये अलग बात है कि ये महीनों से खराब बंद हैं। इन्हें सुधारने पोस्ट मास्टर कई बार अफसरों से गुहार लगा चुका था। वो तो नहीं हुआ लेकिन अब अफसर, लकीर पीट रहे हैं। पुलिस तफ्तीश करे तो भी कैसे। डाकघर समेत रास्ते के अन्य कैमरे भी खराब है। उसे बस मुखबिरों का सहारा है।
मगर डाक अमला चोर के पकड़े जाने और रकम रिकवरी कि वेट नहीं करता। इसे शासकीय धन मानकर तत्काल अकाउंट में क्रेडिट चाहता है। इसके लिए पोस्ट मास्टर और कैश क्लर्क पर पूरी रकम जमा करने दबाव बनाया जा रहा। इनका कहना है कि उस दिन काम खत्म होने पर हमने पूरी सुरक्षा तालाबंदी की थी। हम कहां दोषी। लेकिन मुख्यालय के अफसरों को किंतु परंतु से मतलब नहीं। पहले वे सुरक्षा खामियों को पूरा करने में अनदेखी करते हैं और फिर वारदात कम बाद छोटे कर्मचारी पर ठीकरा फोडऩा ही तो अफसरों का काम है। डाकघरों की सुरक्षा को लेकर यह अनदेखी दूर के डाकघर ही नहीं राजधानी के मुख्य डाकघर में भी है। कैमरे चालू या नहीं यह हमने टेस्ट नहीं किया। लेकिन देर रात तक परिसर में कई असामाजिक तत्वों की आवाजाही बनी रहती है। सभी का सायकल स्टैंड में जमावड़ा रहता है। और सभी यहां के एंट्री, एग्जिट के साथ पूरी टोपोग्राफी जानते हैं। यहां भी सचेत होने की जरूरत है,वर्ना अनहोनी कभी भी घट सकती है।
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रामलाल के आने से हलचल
भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) रामलाल दो दिन रायपुर में थे। रामलाल करीब 13 साल भाजपा संगठन की धुरी रहे हैं। लिहाजा, उनके आगमन पर कुशाभाऊ ठाकरे परिसर से लेकर संघ मुख्यालय जागृति मंडल तक हलचल रही। इस दौरान कई प्रमुख नेताओं से उनकी बैठक हुई।
रामलाल वर्तमान में आरएसएस के संपर्क प्रमुख का काम देख रहे हैं। वो कृषि मंत्री रामविचार नेताम से भी मिले। नेताम पिछले दिनों सडक़ दुर्घटना में घायल हो गए थे। उन्होंने नेताम का हालचाल जाना। उनकी क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल, और महामंत्री (संगठन) पवन साय के साथ लंबी बैठक हुई। कहा जा रहा है कि संघ परिवार धर्मांतरण के मामलों को लेकर काफी चिंतित है। इस पर अंकुश लगाने के लिए सामाजिक, राजनीतिक, और प्रशासनिक स्तर पर कदम उठाने के लिए योजना बनाई गई है। रामलाल के दौरे को इसी नजरिए से देखा जा रहा है।
रामलाल से मिलने वालों में सतनामी समाज के गुरु पूर्व मंत्री विजय गुरु भी थे। मंगलवार को सुबह दिल्ली रवाना हुए तो उनकी मध्य प्रदेश के खाद्य मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के साथ एयरपोर्ट के वीआईपी लाउंज पर काफी देर चर्चा हुई। इस दौरान संघ के कई पदाधिकारी मौजूद थे।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस नेताओं का क्या?
कर्नाटक के बेलगाम में कांग्रेस के सीडब्ल्यूसी की बैठक हुई। बैठक से परे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, और अन्य नेताओं ने महाराष्ट्र, और हरियाणा से परे छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में हार और लोकसभा चुनाव में खराब परफार्मेंस की पड़ताल के लिए बनी वीरप्पा मोइली कमेटी की रिपोर्ट पर भी चर्चा की। चर्चा के बाद छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमेटी में बड़े बदलाव के संकेत भी मिले हैं। बदलाव अभी होगा या फिर निकाय-पंचायत चुनाव के बाद, इसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने जिला और ब्लॉक अध्यक्षों को बदलने के लिए अनुमति मांगी थी जो कि नहीं मिल पाई है। संकेत यह भी है कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल, पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, और नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत व पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को कोई अहम जिम्मेदारी मिल सकती है।
कहा जा रहा है कि भूपेश को राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा सकता है। इससे परे पार्टी ईवीएम के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन की शुरुआत करने जा रही है। छत्तीसगढ़ में भी नगरीय निकाय के चुनाव हैं। नगरीय निकाय चुनाव ईवीएम से होंगे। जबकि कांग्रेस सरकार में बैलेट पेपर से चुनाव कराए गए थे। ईवीएम के खिलाफ आंदोलन के बीच पार्टी निकाय चुनाव को लेकर क्या कुछ फैसला करती है इस पर भी निगाहें टिकी हुई है।
नए प्रिंसिपल, नई साज-सज्जा
प्रदेश के सरकारी कॉलेजों की गुणवत्ता जांचने के लिए नैक की टीम रायपुर पहुंच गई है। नैक के मापदंडों में खरा उतरने के लिए सरकारी कॉलेजों के लोग जुट गए हैं। रायपुर में कई कॉलेजों नए प्राचार्य आ गए हैं। ये सभी अपनी कार्य क्षमता दिखाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। ऐसे ही रायपुर के सबसे पुराने कॉलेजों में से एक छत्तीसगढ़ कॉलेज को खूब सजाया गया है। यहां कुछ दिन पहले डॉ. तपेश चंद्र गुप्ता की प्राचार्य के पद पर पोस्टिंग हुई है। डॉ. गुप्ता ने अपने स्तर पर कॉलेज में किसी तरह कोई कमी न दिखे, इसके लिए कोशिश की है। अब नैक की टीम पर निगाहें हैं कि वो क्या कुछ खामियां निकालती है।
फोन-पे, पेटीएम वाले खेते गए
मंत्रालय कैडर में पिछले दिनों उप सचिव से लेकर कनिष्ठ सचिवालय सहायक यानी लिपिक ग्रेड 3 तक 150 से अधिक पदोन्नतियां हुईं। और फिर पखवाड़े भर बाद सबकी नई पोस्टिंग। इन 15 दिनों के दौरान इनकी पोस्टिंग को लेकर विभाग के आईएएस सचिव ने खूब मंथन किया। सबका गुणा भाग पता किया। यानी कौन कितने वर्ष से एक ही विभाग में जमा हुआ है। उसका आदत आचरण संनिष्ठा कैसी है। इस जांच में सचिव महोदय को बाबू से लेकर अवर सचिव की कई रोचक फीडबैक मिला।
कुछ तो राज्य बनने के 24 वर्षों में से 21 वर्ष से एक ही विभाग में पदस्थ रहे। जबकि इतने वर्षों में पांच सरकारें बदलीं। इस दौरान मिले 2-3 पदोन्नति के बाद भी टस से मस नहीं हुए थे। 10 वर्ष वाले तो ढेरों मिले। इसी तरह से वेतन के अलावा फाइल मूवमेंट पर नजर रख फोन-पे, यूपीआई, गूगल-पे, पेटीएम का इस्तेमाल करने वाले भी बड़ी संख्या में मिले। इनमें तो महिला कर्मचारी भी शामिल हैं।
इस तरह की बारीक छंटनी के बाद जीएडी ने पोस्टिंग आर्डर निकाला। तो फोन-पे, पेटीएम वाले थे। ये आदत इनमें से अधिकांश वल्लभ भवन से विरासत में लेकर आए हुए थे। यह आदत इतनी ठोस रही कि एक उप सचिव साहब ने अपने बेटे के लिए अस्पताल भवन तक बनवाकर दिया। हालांकि यह आदत कोरोना की तरह बाकी में भी वायरल है। लेकिन धीरे धीरे इसका इलाज जारी है।
इनमें से कई अब लूप लाइन कहे जाने वाले विभागों में खेत दिए गए। ऐसे तबादले इसलिए संभव हो सके कि स्वयं मंत्रालय कर्मचारी संघ ने ही मुख्य सचिव और जीएडी सचिव से लिखित में मांग कर रखी थी। अब तक ऐसा कभी नहीं हो पाया था।संघ के नेताओं ने गृह, लोनिवि,पीएचई,जल संसाधन, नगरीय प्रशासन जैसे बड़े बजट और लाइमलाइट वाले विभागों में कुछ लोगों की पोस्टिंग प्रमोशन की मोनोपोली खत्म करने का बीड़ा उठाया था, और सफल रहे।
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हिसाब-किताब चुकता करने का मौका
हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार के कारणों का पता लगाने के लिए कांग्रेस ने फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाई है, जिसके मुखिया पूर्व सीएम भूपेश बघेल हैं। इस कमेटी में राजस्थान के पूर्व मंत्री हरीश चौधरी भी हैं, जो कि छत्तीसगढ़ में हार के कारणों का पता लगाने के लिए बनी वीरप्पा मोइली कमेटी के भी सदस्य थे।
हार के कारणों का पता लगाने भूपेश बघेल दिल्ली गए हैं, और वहां से हरियाणा जाएंगे। खास बात यह है कि हरियाणा में हार के कारणों के लिए कई कारण गिनाए जा रहे हैं। उनमें से एक कारण पूर्व केंद्रीय मंत्री सैलजा की नाराजगी भी रही है। उनकी नाराजगी के चलते दलित वोटर कांग्रेस से छिटक गए, जिससे पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। सैलजा चुनाव प्रचार के दौरान अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर कर दी थी, और उनके पार्टी छोडऩे की चर्चा भी रही। मगर प्रचार खत्म होने के दो-तीन दिन पहले ही पार्टी नेतृत्व की समझाइश पर सक्रिय हुईं। दिलचस्प बात यह है कि सैलजा छत्तीसगढ़ कांग्रेस की प्रभारी रही हैं, और यहां प्रभारी रहते उनके भूपेश बघेल से संबंध अच्छे नहीं रहे हैं।
कुछ सूत्र बताते हैं कि सैलजा ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हार के लिए पूर्व सीएम भूपेश बघेल को जिम्मेदार ठहराया था। सैलजा ने एक रिपोर्ट हाईकमान को दी थी। अब पार्टी ने भूपेश बघेल को हरियाणा में हार के कारणों को पता लगाकर रिपोर्ट देने के लिए कहा है। ऐसे में भूपेश की रिपोर्ट में क्या कुछ आता है, इस पर पार्टी नेताओं की उत्सुकता है।
लॉ इंटर्न और विभागीय घाघ
नवंबर दिसंबर आते ही प्रोफेशनल कॉलेजों के छात्रों के इंटर्नशिप कोर्स का दौर शुरू हो जाता है। विधि के छात्र इन दिनों राज्य मंत्रालय के विभागों में इंटर्न के लिए संलग्न किए गए हैं। नए शहर के ही राष्ट्रीय विधि विवि के करीब 18 छात्र छात्राएं इंटर्नशिप कर रही हैं। एक पूर्व मुख्य सचिव की बनाई व्यवस्थानुसार इनके इंटर्नशिप का यह सिलसिला बीते 10 वर्ष से चल रहा है। वह भी केवल इसी विवि के विद्यार्थियों के लिए। रविवि, कुसुम ताई दाबके, छत्तीसगढ़ कॉलेज के विधि छात्रों के लिए ऐसे अवसर नहीं हैं। पहले इनकी संख्या 40-40 तक होती थी? जो कालांतर में कम होती गई।
साप्रवि की मदद से विधि विभाग इन छात्रों की अलग अलग विभागों में नियुक्त करता है। जो छह से आठ माह तक होती है। इनका काम है, कोर्ट में लंबित विभागीय केस में विभाग की जीत हो,ऐसी विधि-कानूनी सलाह देना। इसके बदले में प्रत्येक इंटर्न को इस बार 1-1 लाख रुपए स्टाइपेंड दिया जाएगा। शुरुआती वर्ष में यह 40 हजार तक दिया गया उसके बाद 75 हजार और अब सीधे एक लाख।
इस वर्ष 18 इंटर्न पर सीधे 18 लाख का पेमेंट होगा। इन दस वर्ष में इनकी बनाई केस डायरी से विभागों की कितनी याचिकाओं में जीत हुई, इनकी संख्या को लेकर दावे प्रतिदावे हो सकते हैं। यह भी है कि विधि विभाग, साप्रवि के घाघ लोगों के बीच इन इंटर्न के कानूनी किंतु, परंतुक कितनी चलती होगी। यही सच भी है, सुबह आकर अपने अपने विभाग में अटेंडेंस साइन कर ये महानदी भवन के गलियारे में घूमने मजबूर हैं। यदि ऐसा है तो सरकार हर वर्ष लाखों रूपए यूं ही स्टाईपेंड में गवां रहीं हैं।
संपन्नता और कुत्ते
रायपुर शहर के बाहरी इलाके में स्थित एक महंगी कॉलोनी के रहवासी कुत्तों से परेशान हैं। उन्हें इवनिंग वॉक में दिक्कत आ रही है। खास बात यह है कि इस कॉलोनी में प्रभावशाली नेता, अफसर, और बड़े कारोबारी रहते हैं। सर्व सुविधायुक्त इस कॉलोनी की सुरक्षा व्यवस्था हाईटेक है। बावजूद इसके यहां आवारा कुत्ते लोगों की परेशानी का सबब बन गए हैं।
दरअसल, यह समस्या यहां के कुछ लोगों द्वारा पैदा की गई है। यहां के रहवासी कारोबारी परिवार के लोग कुत्तों को रोटी खिलाना पसंद करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि भोजन की आखिरी रोटी कुत्तों को देने से धन-धान्य बढ़ता है। इस मान्यता के चलते कुत्तों को रोटी देने के लिए रात में कई परिवार निकल जाते हैं। इसका नतीजा यह हो गया है कि कुत्तों की भरमार हो गई है, और इवनिंग वॉक करने वाले लोग परेशान हो गए हैं। फिलहाल तो इस समस्या का कोई निदान निकलता नहीं दिख रहा है।
पानी है, गिलास नहीं
रायपुर एयरपोर्ट को यात्री सुविधाओं के लिए पहले, कभी देश, कभी एशिया तो कभी राष्ट्रकुल देशों में टॉप थ्री, टॉप टेन जैसे तमगे मिलते रहे हैं। इतना ही नहीं यह फुटफॉल यात्री आवाजाही के मामले में भी रिकॉर्ड बनाते रहा है। एयरपोर्ट प्रबंधन अभी भी यात्रियों की रिकार्ड आवाजाही को हर सप्ताह शेयर करता है। और एयरपोर्ट में यात्री सुविधाओं को रेखांकित करता है। लेकिन यहां तो यात्रियों के लिए मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है। यानी यात्री को घर से पानी पीकर निकलना होगा। क्योंकि एयरपोर्ट में नल तो है लेकिन पीने के लिए गिलास नहीं है। इस बेहतरीन एयरपोर्ट पर पूर्व महाधिवक्ता कनक तिवारी का फेसबुक पोस्ट रिलेवेंट है।
उन्होंने लिखा कि यह रायपुर एयरपोर्ट है। हम मुसाफिर हैं। गाय बैल की तरह पानी पी रहे हैं। हजारों लाखों सरकार हमसे लेती है। बेइज्जती करने में देरी नहीं करती। ग्लास तक नहीं रखे हैं। कहां हैं नागरिक उड्डयन मंत्री? बहुत बड़े तीस मार खां तो बनते हैं केंद्रीय निजाम के सरगना। हो सकता है विदेश की नकल हो लेकिन इस तरह भारत में पानी पीना तो अनहाइजीनिक है।
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पशुओं का भाईचारा...
शहरी कॉलोनियों में जहां-जहां लोग गाय या सांड को खाना देते हैं, वे वहीं पर बस जाते हैं, और बुढ़ापा आने के साथ-साथ उनका चलना-फिरना घट जाता है, और वे एक ही कॉलोनी के होकर रह जाते हैं। ऐसी ही एक कॉलोनी इतने सांडों से भर गई है कि वहां बच्चों को अकेले सडक़ पर निकलते डर लगता है, और अंधेरे में कई बार लोग टकराकर गिरते भी हैं। लेकिन गोवंश की आलोचना अब इस देश में जानलेवा हो सकती है, इसलिए उस बारे में अधिक बात नहीं करनी चाहिए।
राजधानी रायपुर की एक महंगी कॉलोनी के बाशिंदे हो चुके एक सांड और वहां की सडक़ों के कई कुत्तों के बीच संबंध इतने मधुर हो गए हैं कि सडक़ घेरकर खड़े सांड को घेरकर खड़े कुत्ते बारी-बारी से उसे चाटकर सुख दे रहे थे!
शिकायत का तो हक ही नहीं...
ईडी ने डीएमएफ घोटाले में कोरबा जिले में काम करने वाले एक एनजीओ के ‘मालिक’ मनोज कुमार द्विवेदी को गिरफ्तार किया है, जो कि कलेक्टर को 40-45 फीसदी रिश्वत देता था। यह भारत सरकार की जांच एजेंसी ईडी अखिल भारतीय सेवा का एक अफसर के खिलाफ अदालत में कह रही है, तो इसमें हम क्या कह सकते हैं? लेकिन अगर 45 फीसदी रिश्वत एक कलेक्टर को मिल रही थी, और बाकी अमला तो है ही, कई जगहों पर मंत्री, सांसद, विधायक भी अपना हिस्सा रखते हैं, तो फिर लोगों को डीएमएफ जैसे फंड से होने वाले काम में किसी भी क्वालिटी की उम्मीद क्यों करनी चाहिए? ऐसे कलेक्टरों की निजी सम्पत्ति में हिरण जैसी उछाल अगर न आए, तो लोगों को हैरानी जरूर होनी चाहिए।
आनंद और विजय-भाव देने वाला गांजा!
भारत में सबसे लोकप्रिय एक नशे, गांजे के बारे में हम कई बार लिखते हैं कि इस देश में विदेशी शराब बेचने में तो तमाम सरकारें लगी हैं, लेकिन हजारों बरस से चले आ रहे इस देसी नशे, गांजे के खिलाफ बड़ा कड़ा कानून बना दिया गया है, इसलिए कि इससे दारू कारखानों के पेट पर लात पड़ती है। आज अमरीका और जर्मनी जैसे बहुत से देश गांजे को कानूनी बनाते चल रहे हैं, और हिन्दुस्तान विदेशी शराब बेचकर खुश है।
अभी करण मधोक की लिखी हुई एक किताब आई है जो पूरी की पूरी भारत में गांजे पर ही है। इस किताब में हमारी कई बार की लिखी गई, और यूट्यूब पर कही गई बात को स्थापित किया है कि भारत में गांजा भारतीय सभ्यता जितना ही पुराना है, और इस देश में लिखी गई कुछ सबसे पुरानी बातों में भी गांजे का जिक्र मिलता है। किताब में गांजे के वैज्ञानिक, आध्यात्मिक, चिकित्सकीय, और मनोरंजन के पहलुओं की चर्चा की गई है, और गांजे को आनंद और विजय-भाव देने वाला बताया गया है। इस किताब में यह भी बताया गया है कि आन्ध्र-ओडिशा, इलाके में गांजे की शीलावंती किस्म मिलती है, जो कि आज देश में सबसे अधिक तस्करी वाली किस्म है। यह किताब अस्पतालों और दवाओं में गांजे के इस्तेमाल से लेकर शिवभक्तों के बीच चलने वाली चिलम तक हर पहलू कवर करती है। आनंद नाम की यह किताब गांजा न पीने वालों को भी आनंद दे सकती है।
पुराने किस्से जिंदा रहते हैं
एक आदिवासी जिले के एक कलेक्टर, और एडिशनल कलेक्टर की जुगलबंदी की खूब चर्चा हो रही है। दोनों ही पहले महासमुंद और बालोद जिले में साथ काम कर चुके हैं। उस वक्त दोनों अलग-अलग पदों पर थे। कलेक्टर सीधे साधे हैं, और ज्यादा लफड़े में नहीं पड़ते। एक तरह से प्रशासन की बागडोर एडिशनल कलेक्टर ही संभालते हैं।
एडिशनल कलेक्टर जमीन संबंधी प्रकरणों को निपटाने के मामले में चर्चा में रहे। उन्होंने तहसीलदार पर दबाव बनाकर एक प्रकरण को निपटाने की कोशिश की, लेकिन तहसीलदार के अड़ जाने की वजह से आगे की कार्रवाई नहीं हो पाई। एडिशनल कलेक्टर पहले जिस जिले में पदस्थ थे वहां भी एक बड़े बिल्डर को फायदा पहुंचाने के लिए फाइल चलाई थी। फाइल के मुताबिक आगे फैसला भी हो गया। नया प्रकरण पर तो कार्रवाई नहीं हुई है, लेकिन पुराना प्रकरण उन्हें भारी पड़ सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
तबादलों का इंतजार
नगरीय निकाय, और पंचायत के चुनाव साथ-साथ होने जा रहे हैं। चुनाव तारीखों की घोषणा विधानसभा सत्र निपटने के बाद होगी। चर्चा है कि चुनाव से पहले पुलिस और प्रशासन में भी फेरबदल हो सकता है।
तीन-चार जिलों के कलेक्टर बदले जा सकते हैं। कुछ इसी तरह का बदलाव पुलिस में भी हो सकता है। पुलिस में एसपी, और आईजी स्तर के अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है।
प्रशासनिक फेरबदल को लेकर यह कहा जा रहा है कि विशेषकर पंचायत के चुनाव थोड़ा लंबा चल सकता है। इन सबको देखते हुए कुछ जिलों में जहां शिकायतें ज्यादा आ रही हैं, वहां के कलेक्टरों को बदला जा सकता है। इसके लिए स्थानीय नेताओं का भी दबाव है। फिलहाल तो सूची का इंतजार चल रहा है।
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10 वर्ष में ही छोटे, महानदी-इंद्रावती
दस वर्ष पहले जब नवा रायपुर में महानदी और इंद्रावती भवन का कांसेप्ट प्लान बनाया गया था तब राज्य के इन प्रशासनिक मुख्यालयों को अगले 30 वर्ष के स्टाफ स्ट्रेंथ और जरूरत के अनुसार निर्मित करने की बात कही गई थी। लेकिन मप्र से विभाजित पुराने ही सेटअप के अनुसार सेक्शन डिजाइन किए गए। और यह तीन से पांच मंजिले भवन दस वर्ष बाद ही स्थानाभाव से गुजर रहा है। इस दौरान सैकड़ों भर्तियां होने से एक कमरे और एक एक कुर्सी की मारामारी मची हुई है । हाल यह है कि वाणिज्य उद्योग का अनुभाग स्टाफ ग्रामोद्योग में,श्रम का धार्मिक न्यास,खेल का अमला सहकारिता में , पशुपालन मछलीपालन एक कक्ष,जनसंपर्क और खाद्य एक साथ, राजस्व-धर्मस्व को एक कमरे में व्यवस्थित किए गए हैं। खाली में केवल समाज कल्याण विभाग है।
तीसरी मंजिल पर 13 अनुभाग वाले जीएडी का, और दूसरी मंजिल में वित्त और गृह का कब्जा है?। जल संसाधन विभाग में तो स्टाफ के मुकाबले आलमारियां अधिक हैं। मानो आलमारी फैक्ट्री हो। स्वास्थ्य विभाग का अनुभाग आफिस कम, किसी अस्पताल का पूरा वार्ड लगता है। अफसरों की बैठक व्यवस्था अस्त व्यस्त है।इन सबके सचिव, उप-अवर सचिव और एसओ सभी अलग अलग फ्लोर में बैठते हैं। कई प्रमुख सचिव, संसदीय सचिवों के कक्ष में बिठाए गए हैं। ऐसा मंत्रालय में आवश्यकता से अधिक डिप्टी कलेक्टरों और अन्य विभागीय अफसरों के ओएसडी के रूप में नियुक्त किए जाने से हुआ है । जब कमरे खाली थे तो इन्होंने अलॉट करा लिए। अब आईएएस सचिवों के लिए कमरे नहीं है । आने वाले महीने में पदोन्नत होने वाले 40 सचिव, विशेष सचिव कहां बिठाए जाएंगे। यह बड़ी समस्या हो गई। शायद इसी समस्या का पूर्वाभास करते हुए ही अधीक्षण शाखा के अफसर ने अपना ही तबादला करवा लिया। कुछ ऐसा ही हाल इंद्रावती भवन में भी है। जबकि पर्यावास भवन, अरण्य भवन, पीएचक्यू,पीएचई का नीर भवन, पंचायत, जीएसटी संचालनालय ,एनआरडीए, विकास भवन,संवाद, शिवनाथ भवन, लोनिवि, योजना भवन सब अलग-अलग हैं।
आईएएस पदोन्नति के लिए नोट शीट चली
साप्रवि ने मुख्यमंत्री को नोट शीट भेजकर अतिरिक्त मुख्य सचिव,प्रमुख सचिव और सचिव,विशेष सचिवों की पदोन्नति के लिए अनुमति मांगी है। सीएम की अनुमति मिलने के बाद डीओपीटी के पत्र भेजकर पदोन्नति समिति गठित कर पदोन्नति की सिफारिश की जाएगी। यह प्रोसेस, के साथ ही अगला मुख्य सचिव कौन होगा? इसकी भी हलचल बढ़ा रहा है। हालांकि अमिताभ जैन 30 जून को रिटायर होने वाले हैं। इस पद के लिए सबसे वरिष्ठ एसीएस होने के नाते रेणु पिल्ले स्वाभाविक दावेदार है। साफ सुथरी, रिजल्ट ओरिएंटेड अफसर रेणु पिल्ले भाजपा की मातृशक्ति के नारे को भी पूरा करती हैं। उनकी नियुक्ति,24 वर्ष में पहली बार महिला मुख्य सचिव की कमी भी पूरी करेगी। वैसे इनसे पहले इंदिरा मिश्रा एसीएस के नाते सीएस के रैंक तक पहुंची थीं। लेकिन उनके पति एसके मिश्र बनाए गए। रेणु यदि राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ती हैं तो मनोज पिंगुवा पर विचार हो सकता है ।। बहरहाल एसीएस के दो पदों के लिए केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए मनिंदर कौर द्विवेदी और गौरव द्विवेदी दो ही नाम हैं। दोनों को प्रोफार्मा प्रमोशन देना होगा। इनसे रिक्त होने वाले प्रमुख सचिव के पदों पर सुबोध सिंह, निहारिका, शहला निगार पदोन्नत होंगी। उनके बाद सचिव,विशेष और संयुक्त सचिव के लिए लंबी लिस्ट है। आईएएस लॉबी का जोर है कि यह डीपीसी इसी माह हो जाए। वैसे भी 1 जनवरी से देय पदोन्नति के लिए दिसंबर में ही आर्डर की परंपरा भी रही है।
केवी मिला पर नवोदय नजरअंदाज
जवाहर नवोदय विद्यालयों में प्रवेश प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा के माध्यम से होता है। यहां 6वीं से 12वीं तक की नि:शुल्क गुणवत्तापूर्ण शिक्षा केंद्र सरकार की फंडिंग से दी जाती है। यही कारण है कि राज्यों में नवोदय विद्यालयों की स्वीकृति के लिए होड़ मची रहती है। वर्तमान में देशभर में 661 नवोदय विद्यालय हैं। हाल ही में मोदी कैबिनेट ने 28 नए नवोदय विद्यालयों को मंजूरी दी है, लेकिन इनमें से एक भी छत्तीसगढ़ के हिस्से में नहीं आया।
स्वीकृत नवोदय विद्यालयों में अरुणाचल प्रदेश को 8, तेलंगाना को 7, असम को 6, मणिपुर को 3, पश्चिम बंगाल को 2, और महाराष्ट्र व कर्नाटक को 1-1 विद्यालय मिले हैं। हालांकि, छत्तीसगढ़ को नए 85 केंद्रीय विद्यालयों में से 4 विद्यालय (मुंगेली, बेमेतरा, सूरजपुर और जांजगीर-चांपा) जरूर आवंटित हुए हैं।
अगर देशभर के नवोदय विद्यालयों की सूची देखें, तो अतीत में भी छत्तीसगढ़ को आवंटन कम ही रहा है। प्रदेश में केवल 16 नवोदय विद्यालय हैं, जबकि हरियाणा जैसे समान आकार वाले राज्य में 21, गुजरात में 28, कर्नाटक में 27 और झारखंड में 24 विद्यालय हैं। यह स्थिति तब है जब छत्तीसगढ़ के तत्कालीन शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने फरवरी में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात कर प्रदेश के सभी 33 जिलों में केंद्रीय विद्यालय या नवोदय विद्यालय स्वीकृत करने की मांग की थी।
जवाहर नवोदय विद्यालयों में आवासीय सुविधा होती है, जहां गरीब परिवारों के मेधावी बच्चों को मुफ्त भोजन, आवास और शिक्षा मिलती है। अगर छत्तीसगढ़ को कुछ नए नवोदय विद्यालय मिलते, तो प्रदेश के ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के बच्चों को बेहतर अवसर मिलते। चार नए केंद्रीय विद्यालयों की स्वीकृति तो ठीक है, पर नवोदय विद्यालयों की मंजूरी में उदारता बरती जाती तो गरीब प्रतिभावान बच्चों को अधिक मौके मिलते।
बंदरों की पसंदीदा काली मिट्टी
भरतपुर-सोनहत के जंगलों में घूमते हुए मिट्टी की दिलचस्प संरचना दिख सकती है। यहां की काली मिट्टी में बड़े-बड़े गोल गड्ढे नजर आते हैं, जो जंगली जानवरों की खास रुचि का संकेत देते हैं। स्थानीय लोगों और जंगल से गुजरने वालों के अनुसार, इस मिट्टी को जानवर बड़े चाव से खाते हैं, खासकर बंदर। वे इसे कुरेद-कुरेदकर खाते हैं, जिससे ये गड्ढे बन जाते हैं। यह मिट्टी जंगल के कुछ ही हिस्सों में पाई जाती है और इसका स्वाद हल्का नमकीन होता है, जो जानवरों को आकर्षित करता है। मिट्टी का यह स्वाद उनकी आदत में शामिल हो चुका है। इससे उनके शरीर में नमक की जरूरत पूरी हो जाती है।
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सावधानी में ही समझदारी
वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी जहां-जहां पदस्थ रहे, उन्होंने हर जगह अपने दफ्तर के भीतर कैमरा लगवाया था, और बाहर वेटिंग हॉल में स्क्रीन लगवा दिया था ताकि सबको दिखता रहे कि उनसे कौन कितनी देर मिल रहे हैं, ऑफिस के चेंबर में क्या हो रहा है। अब एक आईएएस ने अपने चेंबर में न सिर्फ कैमरा लगवा दिया है, बल्कि महीनेभर की रिकॉर्डिंग रखने वाला स्टोरेज भी लगवाया है।
ऐसी सावधानी से कई किस्म की अप्रिय चर्चाएं शुरू होने का भी मौका नहीं आता।
पहल कितनी अनुकरणीय..?
सरकार कहती है कि किसी विभाग या किसी जिला कलेक्टर के अच्छे काम दूसरे विभाग और अन्य जिलों के कलेक्टरों को अपने यहां अनुकरण-लागू करना चाहिए। प्रदेश के एक जिला कलेक्टर की ऐसी पहल दूसरे जिले के कलेक्टरों के लिए समस्या बनती जा रही है । हर जिले से इसे लागू करने की मांग होने लगी है। और अब यह मांग नवा रायपुर के महानदी और इंद्रावती भवन तक आ पहुंची है। दबाव बढऩे पर लागू करना पड़ सकता है।
दरअसल, कलेक्टर साहब ने अपने सभी मातहत जिलाधिकारियों के लिए व्यवस्था बना दी है कि वे हर मंगलवार को शाम 4 बजे जनदर्शन करेंगे। इसमें केवल अधिकारी कर्मचारियों की शासकीय व्यक्तिगत समस्याओं की सुनवाई करेंगे। इसमें रिटायर्ड लोगों की समस्याएं सुनी जाएंगी।
कलेक्टर साहब की इस व्यवस्था की पहली सुनवाई 3 से शुरू हुई। लेकिन पहला दिन था कम लोग आए होंगे। 10 तारीख को इसका रिस्पांस देखना होगा। हो सकता है उसके बाद निकाय चुनाव घोषित होने पर यह सुनवाई चुनाव बाद तक स्थगित हो जाए। जैसे ठाकरे परिसर में मंत्रियों की सहयोग केंद्र में बैठक स्थगित कर दी गई है।
लेकिन इन कलेक्टर साहब की इस व्यवस्था की मांग अब दूसरे जि़लों में होने लगी है। कर्मचारी अधिकारी अपने अपने जिला नेताओं से इस पर कलेक्टरों से मांग करने कह रहे हैं। और तो और मंत्रालय, संचालनालय को कर्मचारी भी अपने यहां मांग करने लगे हैं। फेडरेशन ने तो हर सप्ताह न सही माह में दो बार आयोजित करने की मांग की है।
दोनों ही भवनों में एक-एक आईएएस नोडल अधिकारी पहले से ही नियुक्त हैं ही वे सुनवाई कर सकते हैं। सरकार पहले ही व्यवस्था कर चुकी है कि जिला स्तर की समस्याएं सीएम जनदर्शन तक नहीं पहुंचनी चाहिए। अन्यथा यह माना जाएगा कि कलेक्टर, जिलाधिकारी सुनवाई नहीं कर रहे। अब देखना होगा कि कितने जिले लागू करते हैं।
दोनों चुनाव साथ-साथ?
खबर है कि सरकार नगरीय निकाय, और पंचायत चुनाव साथ-साथ कराने जा रही है। नगरीय निकाय चुनाव तो दलीय आधार पर होंगे, लेकिन पंचायत के चुनाव दलीय आधार पर नहीं होंगे। पंचायत चुनाव लंबा चलेगा, और फरवरी के आखिरी तक चरणबद्ध तरीके से चुनाव होंगे।
पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने विधानसभा में दोनों चुनाव साथ कराने की मांग की थी। इस पर अशासकीय संकल्प भी पारित हुआ था। नगरीय निकाय चुनाव में वोटिंग ईवीएम से होगी। लेकिन पंचायत के चुनाव परम्परागत बैलेट पेपर से ही कराए जाएंगे। विधानसभा सत्र निपटने के बाद सीएम विष्णुदेव साय प्रदेशभर के दौरे पर निकल रहे हैं। इसकी रूपरेखा तैयार हो रही है। रमन सरकार में दो बार ऐसा हुआ है जब नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। प्रदेश में सरकार के रहते ऐसी स्थिति न बने, इसके लिए संगठन और सरकार व्यूह रचना बना रही है। देखना है आगे क्या होता है।
अरबों का जमीन घोटाला, जांच कैसे हो?
सरगुजा जिले में बीते एक साल के भीतर जमीन घोटाले के इतने मामले सामने आ गए हैं की जांच के नाम पर जिला प्रशासन को अपनी टीम छोटी लगने लगी है। न केवल दूरदराज के हिस्सों में बल्कि बीच शहर में भी दर्जनों एकड़ जमीन का फर्जी पट्टा तैयार कर नामांतरण करा लिया गया है। प्रशासन को जो जानकारी है उसके मुताबिक यह सारा फर्जीवाड़ा कुछ रसूखदार राजनीतिक व्यक्तियों और कारोबारी के संरक्षण में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हुआ है। इन लोगों ने आदिवासी जमीन, लीज की जमीन, चारागाह, पुनर्वास और भूमि खाली पड़ी सरकारी जमीन किसी को भी नहीं छोड़ा। बीते 11 महीने के भीतर जमीन के फर्जीवाड़े के 1178 मामले दर्ज किए गए हैं। बीच शहर से 4 एकड़ से अधिक जमीन का कब्जा छुड़ाया गया है जिसकी अनुमानित कीमत एक अरब रुपए से अधिक है। मैनपाट में भी करीब 500 एकड़ जमीन पर 173 टुकड़ों में कब्जा कर लिया गया है। इनकम टैक्स और इडी की रेड के दौरान भी जमीनों की खरीदी बिक्री के कई दस्तावेज बरामद किए गए थे। केंद्रीय एजेंसियों ने इन सब की जांच का भी जिम्मा कलेक्टर को सौंप दिया गया है। जमीनों पर अवैध कब्जे का यह आलम हो गया है कि स्कूल, आंगनबाड़ी और दूसरी सरकारी योजनाओं के लिए खाली जमीन ढूंढने पर नहीं मिल रहे हैं।
हालत यह हो गई है कि कलेक्टर के पास इतनी बड़ी टीम नहीं है कि इन सारे घोटालों की जांच जिले में मौजूद राजस्व अमले से करवा सकें और जमीन वापस सरकार के नाम चढ़ा सकें। उन्होंने राज्य सरकार को चि_ी लिखकर वृहद स्तर पर जांच के लिए एक बड़ी टीम बनाकर भेजने की मांग की है।
हो सकता है कि सरगुजा में हुआ घोटाला प्रदेश में सबसे बड़ा हो लेकिन बाकी जिले भी इससे अछूते नहीं है। बाकी जिलों में कलेक्टरों की दिलचस्पी कम ही दिखाई दे रही है।
जब इशारों में बात न बने..
कोरबा की सडक़ पर पुलिस की ओर से लगाया गया साइन बोर्ड सोशल मीडिया पर वायरल है। इसमें सीधे लिखा गया है कि सावधान रहें, खतरनाक मोड़ है, मृत्यु संभावित स्थल है। बहुत से लोगों को यह संदेश नकारात्मक लग सकता है। केवल दुर्घटनाजन्य क्षेत्र लिखा जा सकता है। पर, पुलिस को लगा होगा कि साधारण शब्दों में लिखा बोर्ड दुर्घटनाओं को कम करने में मदद कर नहीं रहा है तो बात सीधे-सीधे समझा दिया जाए।
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मुख्य सूचना आयुक्त के लिए दौड़ शुरू
राज्य सरकार ने सूचना आयोग में रिक्त मुख्य आयुक्त की नियुक्ति के लिए राज्य प्रशासन में हलचल शुरू हो गई है। जीएडी ने आवेदन बुलाए हैं।
दूसरी तरफ, यह भी साफ दिख रहा है कि सरकार वर्तमान दोनों आयुक्त में से किसी को भी पदोन्नत नहीं करना चाह रही हालांकि इसके खूब प्रयास जोड़ तोड़ किए जाते रहे हैं। योग्य अर्हताधारी 16 दिसंबर तक जीएडी में आवेदन, आफलाइन रजिस्टर्ड या स्पीड पोस्ट से ही जमा कर सकेंगे। आश्चर्य है कि ऑनलाइन के इस युग में लेटलतीफी के पर्याय कहे जाने वाले डाक विभाग पर इतना भरोसा। जब नौकरियों के लिए आवेदन लेने वाले जीएडी यह निर्णय समझ नहीं आ रहा।
बहरहाल मुख्य सूचना आयुक्त के लिए किसी भी राज्य की विस, विधान परिषद, लोकसभा, राज्यसभा के साथ किसी भी दल का सदस्य नहीं होना चाहिए। न कोई कारोबार, वृत्ति न करता हो। लाभ के पद पर न हो, और हो तो छोडऩा होगा। लॉ, आईटी, समाजसेवा, पत्रकारिता, प्रबंधन, जनसंपर्क या प्रशासन में व्यापक ज्ञान, अनुभव रखता हो। साप्रवि ने यह सब शर्ते रखी हैं लेकिन शैक्षणिक योग्यता नहीं। खैर, यह अनुभव, इन क्षेत्रों की शैक्षणिक योग्यता रखने के बाद ही आता है।
इन आवेदनों की छंटनी और सीएम, नेता प्रतिपक्ष वाली समिति के चयन के बाद नियुक्ति तीन वर्ष के लिए और वेतन 2.25 लाख होगा। बीती फरवरी में दो आयुक्त नियुक्त किए जा चुके हैं। उस वक्त आवेदन 160 से अधिक आए थे। अब देखना होगा कितने आएंगे। या आउट ऑफ द एप्लिकेंट कोई नाम आ जाए।
कुछ माह पहले राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पाण्डेय ने सीएम विष्णुदेव साय से मिलकर जल्द से जल्द मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति की मांग की थी। उन्होंने सुझाव दिया था कि मुख्य सूचना आयुक्त, किसी रिटायर्ड अफसर के बजाए न्यायिक सेवा अथवा सीनियर वकील को बनाया जाना चाहिए। सूचना आयोग के गठन के बाद से जितने भी मुख्य सूचना आयुक्त बने हैं, वो सभी रिटायर्ड आईएएस ही थे।
पैकरा को कुछ मिलने की चर्चा
पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा को मुख्यधारा में लाया जा सकता है। पैकरा को विधानसभा टिकट नहीं दी गई थी। वो सरगुजा से लोकसभा चुनाव लडऩा चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उनकी जगह चिंतामणि महाराज को प्रत्याशी बना दिया। बावजूद इसके पैकरा शांत रहे, और पार्टी के लिए काम करते रहे।
पैकरा, प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। हल्ला है कि उन्हें पाठ्य पुस्तक निगम का अध्यक्ष बनाया जाएगा। बुधवार को पार्टी दफ्तर में इसकी काफी चर्चा रही। कुछ लोग वस्तु स्थिति की जानकारी लेने के लिए मंत्रालय भी फोन लगाते रहे, लेकिन सूचना गलत निकली। अलबत्ता, कुछ प्रमुख नेताओं ने उन्हें अहम जिम्मेदारी देने के लिए अलग-अलग स्तरों पर बात की है। देखना है कि पैकरा को क्या कुछ मिलता है।
मंत्रियों के तेवर
नारायणपुर के एकलव्य आदर्श विद्यालय छोटेडोंगर का एक वीडियो आम आदमी पार्टी ने सोशल मीडिया पर साझा किया। वीडियो में दिखाया गया कि टॉयलेट कक्ष को तोप-ढांक क्लासरूम में बदल दिया गया है। इसे लेकर मंत्री केदार कश्यप ने संबंधित अफसरों पर कार्रवाई की बात तो कही, लेकिन उनका मुख्य जोर इस बात पर रहा कि बालिका विद्यालय में प्रशासन की अनुमति के बिना प्रवेश करने और वीडियो बनाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
यह बात सही है कि बालिका छात्रावास एक संवेदनशील स्थान है, जहां बाहरी व्यक्तियों को प्रवेश की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन इस घटना ने वास्तव में बालिका आवासीय विद्यालयों में मौजूद खामियों को भी उजागर कर दिया। सवाल उठता है कि ऐसी ढीली सुरक्षा व्यवस्था क्यों है, जहां कोई भी बिना रोक-टोक के पहुंचकर वीडियो बना लेता है? बालिकाओं की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं हैं?
पिछले महीने स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल बलौदाबाजार के दौरे पर थे। मीडियाकर्मियों ने झोलाछाप डॉक्टरों पर कार्रवाई न होने को लेकर मंत्री से पूछा कि क्या अधिकारी इन डॉक्टरों को बचा रहे हैं? मंत्री का गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा है तो सबूत लाएं, अन्यथा आप पर मानहानि का केस होगा। सबूत मिलने पर संबंधित अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जाएगी।
क्या सरकार की आलोचना को दबाने का यह तरीका सही है? मंत्रियों के इस तरह के तेवर अफसरों को तो राहत देते हैं, लेकिन प्रशासन की कमियों को उजागर करने वालों में डर पैदा होता है।
भावी अग्निवीरों से ऐसा व्यवहार?
कल से रायगढ़ में सेना भर्ती रैली शुरू हुई है। फिजिकल टेस्ट के लिए पहुंचे युवाओं को रेलवे स्टेशन से स्टेडियम तक ले जाने के लिए प्रशासन ने फ्री बस सेवा देने का वादा किया था। लेकिन युवाओं की भारी संख्या के मुकाबले बसों की व्यवस्था नहीं की गई। ऐसी स्थिति में नगर निगम की कचरा गाड़ी को युवाओं को ढोने के लिए लगा दिया गया। कई युवाओं ने इस गाड़ी में चढऩे से इनकार कर दिया और निजी साधनों से स्टेडियम पहुंचे। हालांकि, मजबूरी में बाकी युवा कचरा गाड़ी में बैठने को तैयार हो गए। कैमरे के सामने बोलने से बचते हुए उन्होंने ऑफ द रिकॉर्ड बताया कि पैसे बचाने के लिए ऐसा करना पड़ा। यह भर्ती रैली 12 दिसंबर तक चलेगी। लेकिन पहले ही दिन कचरा गाड़ी में युवाओं को ढोने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं, जिससे प्रशासन की बड़ी फजीहत हो रही है। देखना होगा कि प्रशासन आने वाले दिनों में अग्निवीरों के लिए बेहतर परिवहन व्यवस्था करता है या नहीं।
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अब वो रूतबा नहीं आयकर में ?
एक दौर था कि आयकर विभाग की नौकरी दबदबे और रुतबे वाली होती थी। लेकिन अब तो यहां के भी अफसर कर्मी भी नौकरी छोडऩे लगे हैं।
केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने जारी संसद सत्र में पिछले सप्ताह एक लिखित उत्तर में जानकारी दी कि बीते 10 वर्षो में भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) देश भर के 850 अधिकारियों ने नौकरी न करने के इरादे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले ली है। इनमें 383 आयकर, 470 कस्टम और अन्य राजस्व विभाग के अफसर हैं। यह तो हुई आधिकारिक जानकारी। अब गैर आधिकारिक और इनके पीछे छिपे कारणों की। जो रायपुर में पदस्थ और वीआरएस लेने वाले कुछ अधिकारियों से चर्चा के आधार पर- इनमें से बहुसंख्य दिल्ली मुंबई और अन्य मेट्रो शहरों के हैं।
आप और हम सभी जानते हैं कि यह दौर मोदी 1.0 और 2.0 का रहा है। इस दौरान टारगेट ओरिएंटेड वर्क प्रेशर बहुत बढ़ा। इसके अलावा रेड, सर्वे और कर आकलन (असेसमेंट) के नियमों निर्देशों में हुए बदलाव भी कारण कहे जा रहे हैं। फेसलेस असेसमेंट, और रेड में दिगर सर्किल के अफसरों को दी गई छूट भी आ
वीआरएस लेने वाले अफसरों का कहना है कि हमसे अधिक मेनेजेरियल (लिपिक वर्गीय)स्टाफ ने या तो नौकरी छोड़ी है या केंद्र, राज्य के अन्य किसी विभागों को ज्वाइन किया है। ताकि गृह राज्य या शहर में नौकरी की जा सके। स्टाफ की कमी की ही वजह से आयकर विभाग आईटीआर जमा करने से लेकर कर वसूली तक सब कुछ ऑनलाइन कर चुका है। कहीं भविष्य में डिजिटल अरेस्ट की तरह रेड भी ऑनलाइन न हो जाए।
कुछ नामों पर अभी भी पेंच
राज्य प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नति के लिए मंगलवार को दिल्ली में बैठक हुई। बैठक में 14 रिक्त पदों के लिए डीपीसी हुई। यह पहला मौका है जब एक साथ इतनी संख्या में पद रिक्त हुए हैं, और इसके लिए डीपीसी हुई है। सोशल मीडिया पर अफसरों की एक सूची भी जारी हुई, जिनको लेकर यह दावा किया गया कि ये सभी पदोन्नत हुए हैं। डीपीसी के बाद डीपीसी की अनुशंसा के लिए फाइल सीएम तक आती है। सीएम के हस्ताक्षर के बाद फिर फाइल डीओपीटी को भेजी जाती है, और सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद विधिवत अधिसूचना जारी होती है।
इन प्रक्रियाओं में पखवाड़े भर का समय लग सकता है। डीपीसी तो 14 पदों के लिए हुई थी। इसके लिए 57 नाम विचरण जोन में थे। वरिष्ठताक्रम में सबसे ऊपर संतोष देवांगन का नाम था, जो पहले जांच के घेरे में थे। उन्हें क्लीनचिट मिलने के बाद भी पदोन्नति नहीं मिल पाई। अलबत्ता, उनसे जूनियर कई अफसरों को आईएएस अवार्ड हो चुका है। संतोष देवांगन ने कैट का दरवाजा खटखटाया था। चर्चा है कि इस बार उनके नाम पर मुहर लग गई है।
कुछ इसी तरह का मामला हिना अनिमेश नेताम का भी रहा है। सबसे उत्सुकता सौम्या चौरसिया की पदोन्नति को लेकर थी। स्वाभाविक है कि वो जेल में बंद हैं, और उनके खिलाफ कई तरह की जांच चल रही है। ऐसे में उनकी पदोन्नति असंभव थी। मगर चर्चा यह भी रही कि उन्हें अपात्र घोषित किया गया है। अपात्रता की स्थिति में उनके लिए पद नहीं रोका जाता, और जूनियर को पदोन्नति का मौका मिल जाता है। मगर सिर्फ जांच लंबित बताए जाने पर संबंधित के लिए पद रोका जाता है, और जांच खत्म होने पर पदोन्नति मिल जाती है। कुछ और अफसरों के खिलाफ गंभीर जांच चल रही है।
चर्चा तो यह भी है कि एक-दो ने अपने खिलाफ जांच को खत्म करवाने में सफलता प्राप्त कर ली है। वरिष्ठता क्रम में जिन नामों पर विचार हुआ है उनमें संतोष देवांगन, हिना नेताम, अश्वनी देवांगन, डॉ. रेणुका श्रीवास्तव, आशुतोष पाण्डेय, रीता यादव, लोकेश कुमार, आरती वासनिक, प्रकाश कुमार सर्वे, गजेन्द्र सिंह ठाकुर, तनूजा सलाम, लीना कोर्राम, तीर्थराज अग्रवाल, अजय कुमार अग्रवाल, सौमिल रंजन चौबे आदि के नाम की चर्चा है। अब किनके नाम पर मुहर लगी है यह तो अधिसूचना जारी होने के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल तो कयास ही लग रहे हैं।
ऐसा होगा स्वागत द्वार
छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य में सांस्कृतिक गतिविधियों और फिल्म उद्योग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से चित्रोत्पला फिल्म सिटी की स्थापना की घोषणा की है। इस परियोजना के तहत केंद्र सरकार ने भी 95 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने प्रस्तावित फिल्म सिटी के स्वागत द्वार का एक डिजाइन भी जारी कर दिया है।
चित्रोत्पला’ नाम ऐतिहासिक महत्व रखता है। यह महानदी का ही प्राचीन नाम है, जिसे महानंदा और नीलोत्पला नाम से भी जाना जाता था। महानदी का उद्गम स्थल छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के सिहावा क्षेत्र के श्रृंगी पर्वत में है। राज्य बनने के दो दशक बाद फिल्मसिटी के लिए एक गंभीर कोशिश हुई है। उम्मीद की जानी चाहिए इससे पर्यटन और रोजगार के नए रास्ते खुलेंगे।
2897 शिक्षकों का भविष्य अधर में
राज्य में बीएड डिग्रीधारी 2897 शिक्षकों का भविष्य हाईकोर्ट के आदेश से प्रभावित हो सकता है। यदि सरकार कोर्ट के निर्णय पर अमल करती है, तो इन शिक्षकों को हटाकर डीएलएड डिग्रीधारकों को मेरिट के आधार पर नियुक्त किया जाएगा। यह स्थिति उन शिक्षकों के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है, जो 14 माह से सेवा में हैं।
याद होगा, 2003 की पीएससी परीक्षा में भी गड़बड़ी हुई थी, जिसे हाईकोर्ट ने प्रमाणित करते हुए नई सूची बनाने का निर्देश दिया था। मगर, प्रभावित अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट से स्थगन आदेश ले लिया, जिससे मामला लटका हुआ है। इस बीच, कई प्रभावित अफसर प्रमोशन पाकर आईएएस बन चुके हैं और कुछ कलेक्टर पद पर कार्यरत हैं।
बीएड शिक्षक अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि उनका चयन भी मेरिट के आधार पर कड़ी प्रतियोगिता के बाद हुआ था। पिछली सरकार की तकनीकी त्रुटि के कारण अब उनकी नौकरी पर संकट आ खड़ा हुआ है।
गौरतलब है कि प्रदेश में 33,000 शिक्षकों की भर्ती के लिए जून में एक परिपत्र जारी हुआ था, लेकिन संभवत: वित्त विभाग की मंजूरी न मिलने से प्रक्रिया रुकी हुई है। बीएड शिक्षक इन रिक्त पदों पर नियुक्ति की उम्मीद लगाए बैठे हैं। फिलहाल, वे आंदोलन कर रहे हैं। कांकेर में प्रदर्शन कर उन्होंने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा और अपनी नौकरी बचाने की गुहार लगाई।
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भूपेश किस तरफ़ जा रहे हैं?
शहर के बाहरी इलाके के एक विवाह भवन में राजीव युवा मितान क्लब के पूर्व सदस्य एकजुट हुए, तो राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। भूपेश सरकार ने सभी जिलों में राजीव मितान क्लब का गठन किया था। क्लब से जुड़े लोगों को एक हजार रुपए महीना मानदेय मिलता था। सरकार बदलते ही मितान क्लब भंग कर दिया गया। और अब जब क्लब से जुड़े युवाओं को एक मंच पर लाने की कोशिश हुई, तो इसकी काफी प्रतिक्रिया भी हुई।
सुनते हैं कि राजीव मितान क्लब से जुड़़े युवाओं को एक मंच पर लाकर फिर से क्लब की गतिविधियां शुरू करने की योजना बनाई गई है। यह काम पूर्व सीएम के करीबी गिरीश देवांगन, और प्रदीप शर्मा सम्हाल रहे हैं। देवांगन, भूपेश सरकार में क्लब के गठन से सीधे तौर पर जुड़े रहे हैं। कोरबा, राजनांदगांव और अन्य जगहों से युवाओं को आमंत्रित किया गया था। इन्हें विवाह भवन में ठहराया गया। यह विवाह भवन कांग्रेस के ही एक बड़़े नेता के पुत्र का है। इसमें सिर्फ भूपेश बघेल के करीबी नेता ही थे।
युवा संवाद के नाम से दो दिन चली युवाओं की बैठक को पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने संबोधित किया। बघेल ने उन्हें अगले 4 साल तक संघर्ष के लिए तैयार रहने का आव्हान किया। हालांकि इस कार्यक्रम में कोई राजनीतिक बातें नहीं हुई लेकिन क्लब के पुनर्गठन को लेकर हलचल मच गई। और जब सीएम के मीडिया सलाहकार पंकज झा और राजनांदगांव के सांसद संतोष पांडे ने क्लब के बहाने नया राजनीतिक दल गठन करने की आशंका जताई, तो भूपेश बुरी तरह बिफर पड़े। पंकज झा को काफी भला-बुरा कहा।
भूपेश की सफाई देने के बाद भी विवाद थमता नहीं दिख रहा है। कई लोगों ने प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट तक को बैठक की जानकारी भेजी है। दूसरी तरफ, कुछ लोगों ने याद दिलाया कि राज्य बनने के पहले दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने छत्तीसगढ़ संघर्ष परिषद का गठन किया था तब भी भारी विवाद हुआ था। उस समय भी इसकी शिकायत हाईकमान को भेजी गई थी। कांग्रेस के भीतर एक समानान्तर संगठन खड़ा करने के मसले पर शुक्ल को कई बार सफाई देनी पड़ी। बाद में शुक्ल कांग्रेस में अप्रासंगिक होते चले गए, और पार्टी भी छोडऩी पड़ी। भूपेश ने नया राजनीतिक दल बनाने की संभावना पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि कांग्रेस ने उन्हें सब कुछ दिया है। जो लोग ऐसा भ्रम फैला रहे हैं वो भूपेश बघेल को जानते नहीं हैं। चाहे कुछ भी हो, राजीव युवा मितान क्लब आगे किस तरह काम करेगा, इस पर पार्टी के लोगों की नजरें रहेगी।
मीटिंग से पहले मंदिर
प्रदेश के एक जिले में अफसर साप्ताहिक समीक्षा बैठक से डरे सहमे रहते हैं। बैठक हर मंगलवार को होती है। इसमें महिला कलेक्टर जिले में चल रही योजनाओं-कार्यक्रमों की बारीक समीक्षा करती हैं।
पहले तो कई अफसर साप्ताहिक समीक्षा बैठक में ज्यादा कुछ तैयारी कर नहीं आते थे लेकिन कलेक्टर ने लापरवाही पर बुरी तरह हडक़ाया, तो अफसर सचेत हो गए। कलेक्टर मैडम कई विभागों में काम कर चुकी हैं लिहाजा वो योजनाओं की बारीकियों से अवगत रहती हैं। और जब अफसर बात बनाने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें सबके सामने फटकार सहनी पड़ती है।
अब हाल कई अफसर मंगलवार बैठक से पहले हनुमान मंदिर में दर्शन कर पहुंचने लगे हैं। कलेक्टर की सख्ती का नतीजा यह है कि जिले में लोगों की प्रशासनिक कार्यों में अड़चनें कम हो गई है।
अदालती आदेशों की अनदेखी
राज्य में सरकारी भर्तियों को लेकर बार-बार अदालतों का सहारा लेना पड़ रहा है। चाहे वह सब-इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा हो या प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति, हर मामले में सरकार आदेशों की अनदेखी करती आ रही है।
हाल ही में प्राथमिक शाला सहायक शिक्षकों की भर्ती में डीएलएड अभ्यर्थियों की याचिका पर हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि बीएड अभ्यर्थियों को बाहर कर डीएलएड पात्रता वाले अभ्यर्थियों को मौका दिया जाए। हाई कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर इस प्रक्रिया को पूरा करने और सूची पेश करने का आदेश दिया है। सरकार के पास अब केवल तीन दिन शेष हैं।
इसी तरह, आरक्षकों के 2259 पदों पर भर्ती प्रक्रिया भी आधी-अधूरी है। 2018 में शुरू हुई इस प्रक्रिया में 464 अभ्यर्थी चयनित होने के बावजूद नियुक्ति से वंचित हैं। इन अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ी और फैसला भी अपने पक्ष में पाया। बावजूद इसके, सरकार ने आदेश का पालन नहीं किया, जिससे इन अभ्यर्थियों को अवमानना याचिका दायर करनी पड़ी।
न्याय पाने के लिए बेरोजगार युवाओं को बार-बार अदालतों का रुख करना पड़ रहा है। ऊंची अदालतों में मुकदमा लडऩे का खर्च उठाना बेरोजगारों के लिए आसान नहीं है। सवाल उठता है कि सरकार ऐसी नौबत क्यों लाती है कि युवाओं को अदालती चप्पल घिसनी पड़े। उसके बाद, आखिर क्यों सरकार समय पर अदालत के आदेशों का पालन नहीं करती? क्यों इन युवाओं को अपने अधिकारों के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता है?
तस्वीर नहीं दस्तावेज
यह तस्वीर भोपाल गैस त्रासदी (2-3 दिसंबर, 1984) की भयावहता का प्रतीक है। यह एक मासूम बच्चे का शव है, जिसे मिट्टी में दफन किया गया था। यह दृश्य उस औद्योगिक त्रासदी का प्रतीक बन गया, जिसने करीब 16 हजार लोगों की जान ली और हजारों को स्थायी शारीरिक व मानसिक विकलांगता दी। इस दिल दहला देने वाली तस्वीर को खींचा था पाब्लो बार्थोलोमेव ने। नाम से लगता है कि वे कोई बाहरी हैं, मगर वे पूरी तरह भारतीय हैं। दिल्ली में उनका जन्म हुआ। फोटोग्रॉफी के लिए उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी।
इस तस्वीर को भोपाल गैस त्रासदी के सबसे प्रतीकात्मक दस्तावेज़ों में से एक के रूप में देखा जाता है। यह तस्वीर त्रासदी की अमानवीयता और उसके बाद के प्रभाव को दुनिया के सामने लाने का एक शक्तिशाली माध्यम बनी। पाब्लो बार्थोलोमेव की यह तस्वीर 1984 में वर्ल्ड प्रेस फोटो पुरस्कार भी जीत चुकी है। यह तस्वीर मानवता के प्रति हमारी जिम्मेदारी की याद भी दिलाती है। इंटरनेट में भोपाल गैस त्रासदी पर रघु राय की भी इसी तरह की मार्मिक तस्वीरें आपको सर्च करने पर मिल जाएगी।
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नाम बड़े दर्शन छोटे
राजधानी रायपुर की एक बड़ी पुरानी रिहायशी कॉलोनी में रिलायंस कंपनी का घरेलू कामकाज की चीजों का बड़ा सा स्टोर खुला। एकदम सुबह से काम शुरू करने वाले इस स्टोर से सुबह जल्दी सामान चाहने वाले लोगों को सहूलियत होने लगी थी। इसके फ्लॉप होकर बंद होने की कोई वजह नहीं दिखती थी। लेकिन कुछ हफ्ते पहले इसे बंद कर दिया गया।
यह पत्रकार वहां कई बार सामान लेने गया। और ऐसे दर्जन भर मौकों में से एक भी ऐसा नहीं था जब काउंटर पर खड़े लोगों ने बदतमीजी से बात न की हो। ब्रांड और कंपनी चाहे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हो जाएं, उन दुकानों पर काम करने वाले लोग अगर बदसलूकी पर उतारू हों, और काउंटर पर लगे कैमरे भी कर्मचारियों का बर्ताव न सुधारें, तो धंधे का मंदा, और फिर बंद होना बहुत लंबा काम नहीं होता। हर किसी को यह याद रखना चाहिए कि जब तक वे किसी एकाधिकार वाले धंधे में न हों, तब तक उनकी बदतमीजी नहीं चल सकती। अब आज रेलगाड़ी में कोई कर्मचारी तमीज से बात करे, या बदतमीजी से, जनता के पास उसका कोई विकल्प नहीं है। लेकिन रसोई और घर के बाकी छोटे-छोटे सामानों के धंधे में कोई मोनोपोली तो है नहीं, शहरों में हर चौथाई किलोमीटर पर दुकानें रहती हैं, इसलिए बड़े ब्रांड को अपनी साख का भी ख्याल रखना चाहिए, वरना स्टोर में लगे कैमरे किस काम के?
बड़े आसामी का नाम नहीं
रायपुर के वीआईपी रोड स्थित शगुन फॉर्म में रविवार को आबकारी अमले ने छापेमारी कर विदेशी शराब बरामद की। फॉर्म में कॉकटेल पार्टी चल रही थी, जिसके लिए मेजबान ने आबकारी लाइसेंस नहीं लिया था, और जब आबकारी अमला पहुंचा, तो वहां अफरा-तफरी मच गई।
बताते हैं कि पार्टी के लिए हरियाणा से शराब आई थी। आबकारी अमले ने कार्रवाई शुरू की, तो प्रभावशाली मेजबान ने एक पूर्व मंत्री से संपर्क कर प्रकरण को रफा-दफा करने की भरसक कोशिश भी की। पूर्व मंत्री ने विभाग के आला अफसरों को फोन भी लगाया, लेकिन आबकारी अमला हड़बड़ी में था। तुरंत प्रकरण दर्ज कर लिया, और सरकारी प्रेस नोट जारी कर दिया।
आबकारी अमले ने मेजबान के भाग दौड़ पर इतनी उदारता दिखाई कि उनका नाम प्रेस नोट में जारी नहीं किया। मगर बरामद किए गए शराब के ब्रांड के नाम सार्वजनिक कर दिए जिससे यह अंदाज जरूर लग गया कि मेजबान बड़ा आसामी है।
शासकीय कार्य बाधा का जुर्म
शासकीय कार्यालय में कार्यावधि यानी सुबह 10 से शाम 5.30 के दौरान अधिकारी कर्मचारियों से मारपीट या विवाद करना अपराध होता है। ऐसा करने पर गिरफ्तारी से लेकर सजा तक का प्रावधान है।
हालांकि व्यक्तिगत रूप से ऐसे मामले कम ही होते हैं और दलीय झुंड ऐसे मामले अधिक करते हैं। लेकिन सजा होने के कम ही मामले हुए हैं। और फिर इन मामलों को सरकार राजनीतिक मामले कहकर रद्द भी करती रही हैं। आजकल हर कोई व्यक्ति जैसे ठेकेदार, तथाकथित नेता, एवं आरटीई कार्यकर्ता सूचना के नाम पर दबाव बनाते हैं। इनमें भी अधिकारी कर्मचारियों की व्यक्तिगत एवं उनके परिवार की जानकारी ले निहितार्थ में ब्लैकमेलिंग करना होता है।
इन मामलों के प्रकाश में एक जागरूक कर्मचारी नेता ने ऐसे मामलों पर दर्ज होने वाले अपराधों पर धाराओं के प्रावधानों की एग्जाई जानकारी शेयर की है। बस कर्मचारियों को अपने-अपने दफ्तर से बाहर इन्हें सूचना बोर्ड या फ्लैक्स लगाकर सार्वजनिक करना होगा। इन्हीं नेता ने कुछ वर्ष पहले अभनपुर तहसील के एक बर्खास्त कर्मचारी को ऐसी ही जानकारी देकर बहाल करने में अहम भूमिका निभाई थी। बताया गया है कि इस कर्मचारी ने एक आरटीई कार्यकर्ता के दबाव में अपने साहब की जानकारी दी थी।
राजधानी का फासला कम नहीं हुआ
सरगुजा और बस्तर दो ऐसे इलाके हैं, जिनके लिए राजधानी का फासला लगातार हवाई सेवाओं के विस्तार के बाद भी कम नहीं हो पाया है। अंबिकापुर से रातभर ट्रेन का सफर कर राजधानी रायपुर पहुंचा जा सकता है लेकिन बस्तर के लोगों को केवल बस पर निर्भर रहना होता है। रायपुर और जगदलपुर के बीच हवाई सेवा शुरू होने के बाद बंद की जा चुकी है। इसी तरह यहां के लोगों की मांग विशाखापट्टनम और भुवनेश्वर के लिए भी हवाई सेवाओं की है। अभी हैदराबाद, दिल्ली, कोलकाता के लिए बिलासपुर के रास्ते से हवाई सेवा चल रही है। पर स्थानीय मांग के अनुरूप सेवाओं में विस्तार नहीं हो रहा है।
टॉपर खुलकर इंटरव्यू दे रहे
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के परीक्षा परिणामों पर इस बार कोई सवाल नहीं उठा रहा है। सरकार ने इस प्रतिष्ठित परीक्षा में धांधली को रोकने को चुनावी वादे में मोदी की गारंटी के रूप में शामिल किया था। जब 2021 के नतीजे आए तो तुरंत बाद उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठने लगे। सवाल तो अपनी जगह थे, जो टॉपर थे वे भी कहीं छिप गए। वे मीडिया के सामने आ नहीं रहे थे। किस तरह उन्होंने तैयारी की, सफलता कैसे मिली यह बाकी प्रतियोगियों के लिए उदाहरण बन सकता था, पर वे अपने संघर्ष के बारे में बताने के लिए आगे आए ही नहीं। इस बार जिन्होंने अपनी मेहनत से कामयाबी हासिल की है वे खुलकर मीडिया से बात कर रहे हैं। जो रैंकिंग में पिछड़ गए, उनको भी शिकायत नहीं है। वे अगली बार ज्यादा मेहनत करने की बात कर रहे हैं।
सोनकंठी गौरेया
गौरेया तो छत्तीसगढ़ में बहुतायत से मिलते हैं। पर इस गौरेये में एक खास बात है। इसके कंठ का एक हिस्सा पीला है। यह गौरैया है तो भारत की ही, लेकिन इस ठंड के मौसम में छत्तीसगढ़ में बहुतायत में दिखाई देते हैं। प्रख्यात पक्षी विज्ञानी सलीम अली ने अपनी किताब फाल ऑफ ए स्पेरो में जिक्र किया है कि वे शिकारी बनना चाहते थे लेकिन इस पक्षी को देखने के बाद उन्होंने पक्षियों पर ही शोध करना अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
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पीएससी में किस जात के कितने?
छत्तीसगढ़ पीएससी के इस बरस के नतीजों में जिन 703 लोगों का चयन किया गया है उनमें जातियों का एक विश्लेषण छत्तीसगढ़ के जानकार ने किया है। उन्होंने यह बताया है कि इस मेरिट लिस्ट में 43 साहू समाज के हैं, इनमें से नियुक्ति पाने वाले 17 लोगों के नाम भी उन्होंने लिखे हैं। उन्होंने कहा है कि पिछले 5 वर्ष से हर बार 20-22 साहू नियुक्ति पाते हैं, इस बार यह संख्या 17 ही है। कुल पदों के 7 फीसदी पर साहू उपनाम लिखने वाले लोगों का चयन हुआ है जबकि कुल ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी है।
इसके अलावा उन्होंने कुर्मी समाज के लोगों का आंकड़ा भी निकाला है इनमें नियुक्ति पाने वाले 18 लोग हैं। उनका कहना है कि 17 साहू और 18 कुर्मी नियुक्ति पा रहे हैं जो कि ओबीसी आरक्षण का 90 फीसदी है। ओबीसी आरक्षण का 90 फीसदी हिस्सा यही दो जातियां ले ले रही हैं। जबकि ओबीसी आबादी के भीतर इन दोनों की आबादी का जोड़ 15-16 फीसदी ही है। इसी तरह अनुसूचित जाति और जनजाति में भी शासक जातियों के लोगों को ही अधिक लाभ मिल रहा है, ऐसा उनका विश्लेषण है। इन तीनों आरक्षित वर्गों में गिनी-चुनी जातियों का ही कब्जा है।
लेकिन जो सबसे दिलचस्प और सनसनीखेज बात है, वह यह कि कुल 252 नियुक्तियों में से 45 ऐसे ओबीसी हैं, जो कि अनारक्षित वर्ग में चुने गए हैं। इनमें 4 यादव, 5 देवांगन, 1 कोलता, 1 कुम्हार, और 1 नाई हैं। बाकी सारे के सारे साहू और कुर्मी हैं!
घोटाले का रेट कैसे जारी रखें?
प्रदेश में समर्थन मूल्य पर धान खरीदी चल रही है, लेकिन राइस मिलर्स मुंह फुलाए बैठे हैं। वे मिलिंग के लिए एग्रीमेंट नहीं कर रहे हैं। मिलर्स मिलिंग की राशि 120 रूपए से घटाकर 60 रुपए प्रति क्विंटल करने से खफा हैं। वो चाहते हैं कि मिलिंग की राशि यथावत रखी जाए। सरकार मिलर्स के दबाव में तो है, लेकिन राशि यथावत रखने के पक्ष में नहीं है।
दरअसल, पिछली सरकार में कस्टम मिलिंग घोटाले का पर्दाफाश हुआ था। इसमें सरकार ने मिलिंग की राशि प्रति क्विंटल 40 रुपए से बढ़ाकर सीधे 120 रूपए कर दी थी। इसके एवज में मिलर्स से प्रति क्विंटल 40 रुपए की उगाही हुई थी। ये सारी बातें ईडी की जांच में आई है, और इसमें अहम भूमिका निभाने वाले एक बड़े फूड अफसर मनोज सोनी, और राइस मिलर रोशन चंद्राकर जेल में हैं। इन सबको देखते हुए सरकार फूंक फूंककर कदम रख रही है।
कस्टम मिलिंग घोटाला उजागर होने के बाद साय सरकार ने पहले तो कस्टम पॉलिसी बदल दी, और जब नई पॉलिसी के विरोध में मिलर्स ने काम बंद कर दिया, तो बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की जा रही है। सीएम विष्णुदेव साय, और सरकार के मंत्रियों से चर्चा के बाद मिलिंग पॉलिसी में संशोधन पर सहमति बनी है।
सरकार मिलिंग की राशि 60 से बढ़ाकर 80 रूपए करने के लिए तैयार हो गई है। फिर भी, सरकार को 40 रुपए प्रति क्विंटल की बचत होगी। राइस मिलर्स भी संतुष्ट है कि उनकी बात कुछ हद तक मान लिया गया है। ये अलग बात है कि पिछली सरकार में जितनी कमाई की थी उतना इस बार नहीं होगा। इस बात का डर भी है कि ज्यादा दबाव बनाने से ईडी अपनी जांच तेज कर सकती है। संकेत हैं कि सोमवार से मिलर्स एग्रीमेंट करना शुरू कर देंगे। देखना है आगे क्या होता है।
आयकर बीट में सन्नाटा
कल एक आयकर अन्वेषण विंग के अफसर से चर्चा के दौरान किसी ने यूं ही पूछ लिया क्या सर लंबा अर्सा हो गया है। कोई सर्वे, रेड नहीं हो रही। आयकर बीट में सन्नाटा क्यों है? उन्होंने कहा हां करीब मई के बाद से कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। इसकी वजह लोकसभा चुनाव, उसके बाद विभाग में महानिदेशालय से लेकर सर्कल स्तर पर बड़े अफसर से लेकर कर्मचारियों के तबादले।
हर सर्किल में नया अमला पदस्थ है जो स्थानीय बाजार को समझ रहा है। इसके अलावा सबसे बड़ा कारण यह है कि पिछले वर्षों में इतने रेड सर्वे हो चुके थे कि सबके डाक्यूमेंटेशन और अपील प्रकरणों के जवाब दावे के पेपर वर्क में सभी व्यस्त हैं। 20-22 विभागों को कोआर्डिनेट कर फाइल तैयार करनी पड़ रही है।
इस पर पूछा कि इससे तो कर राजस्व में असर पड़ रहा होगा? उन्होंने कहा कि रेड का रेवेन्यू लॉस या टारगेट से सीधा संबंध नहीं है। टैक्स रेवेन्यू की आवक तो बनी रहती है। और टारगेट भी पूरा हो जाता है। इस पर जब हमने कारोबारियों से चर्चा की तो उनका कहना था कि डबल इंजन की सरकार होने से भी रेड केस छंटनी करने में दिक्कत होती है।
हवाई सेवा के नाम पर खानापूर्ति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंबिकापुर के मां महामाया एयरपोर्ट से हवाई सेवाओं का 20 अक्टूबर को उद्घाटन कर दिया था। इसके ठीक दो माह बाद 19 दिसंबर से अंबिकापुर से बिलासपुर के बीच उड़ान शुरू करने की घोषणा की गई है। फ्लाई बिग की ओर से यह सुविधा दी जा रही है। यह जरूर है कि बिलासपुर से अंबिकापुर के लिए दिन भर बसें चलती हैं लेकिन वे हवाई मुसाफिऱों के दर्जे की नहीं हैं। अंबिकापुर-बिलासपुर के बीच की दूरी निजी वाहन में चार से पांच घंटे में तय की जा सकती है। जिन्हें फ्लाइट से बिलासपुर या अंबिकापुर जाना है उन्हें एक डेढ़ घंटे चेक इन करने में लगेगा और इतना ही समय दरिमा या चकरभाठा से शहर आने-जाने में। इसके लिए उन्हें टैक्सी या निजी वाहन का सहारा लेना होगा। यह जरूर है कि हाईकोर्ट में जिन यात्रियों को काम है उन्हें चकरभाठा हवाई अड्डा नजदीक पड़ेगा। देखना होगा कि इस हवाई सेवा को कितना प्रतिसाद मिलता है। अंबिकापुर से रांची और वाराणसी के लिए हवाई सेवाओं की मांग जनप्रतिनिधियों और कारोबारियों की थी, जो अभी अधूरी है। अभी तो अंबिकापुर से आने वाली फ्लाइट को दिल्ली, कोलकाता, रायपुर या जगदलपुर से कनेक्ट करने की भी योजना नहीं है। हवाई सेवा वाले शहर के रूप में अंबिकापुर का नाम जरूर दर्ज हो जाएगा लेकिन यह लोगों की मांग और जरूरतों के हिसाब से शुरू की गई उड़ान तो फिलहाल नहीं लगती।
सभी यात्रियों का स्वागत...
सरकारी प्रतिवेदन कुछ इसी तरह से बनते हैं और उसे पढक़र भड़ास भी पलटकर निकाली जाती है। दरभंगा एयरपोर्ट ने ट्विटर (एक्स) पर लिखा- विमानों की कुल आवागमन संख्या- जीरो, यात्री आवागमन की संख्या-जीरो..। आगे लिखा हम दरभंगा हवाई अड्डे पर सभी यात्रियों का स्वागत करते हैं। आपकी सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है। जब यात्रियों की संख्या जीरो है तो उनका स्वागत और सुरक्षा किस तरह की गई? यही सवाल एक व्यक्ति ने अपने अंदाज में पूछ लिया है।
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...और रिटायर हो गए दास
वर्ष 2000 में गठित राज्य के लिए आबंटित आईपीएस कैडर के एक अफसर बिना छत्तीसगढ़ आए आज रिटायर्ड हो गए। 1987 बैच के आईपीएस स्वागत दास विभाजन के समय से ही केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली में ही कार्यरत रहे और वो आईबी में स्पेशल डायरेक्टर के पद पर रहे। इन 24 वर्षों में निर्धारित हर पदोन्नति प्रोफार्मा आधार पर मिलती रही। और डीजीपी अशोक जुनेजा के रिटायरमेंट के बाद उन्हें डीजीपी बनाने का हल्ला उड़ा। उस दौरान स्वागत दास रायपुर भी आए थे, लेकिन जुनेजा को एक्सटेंशन मिल गया। और अब स्वागत दास भी रिटायर हो गए। चर्चा यह भी है कि केन्द्र सरकार उन्हें कोई जिम्मेदारी सौंप सकती है।
स्वागत दास से एक साल जूनियर रवि सिन्हा खुफिया एजेंसी रॉ के चीफ हैं। रवि सिन्हा छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद कुछ दिन पीएचक्यू में पदस्थ रहे। बाद में वो केन्द्र सरकार में चले गए। फिर उनकी पोस्टिंग रॉ में हो गर्ई। अभी वो रॉ के चीफ की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। रवि सिन्हा का नाम भी डीजीपी पद के लिए चर्चा में रहा है। दोनों अफसरों का नाम भी हर दो तीन वर्ष बाद वापसी के लिए, लिया जाता रहा।
दूसरी ओर 1 नवंबर 2000 की डेट में अलॉटेड कैडर का हर आईएएस अफसर देर सबेर यहां आकर ही रिटायर हुआ। बीवीआर सुब्रमण्यम, स्व.श्रीमती एम गीता प्रमुख हैं। सुब्रमण्यम तो करीब 15 साल बाद आए। और फिर यहां उनकी वर्किंग को देख पीएम नरेन्द्र मोदी- अमित शाह साथ बुला ले गए। धारा 370 हटाए जाने और केंद्र शासित राज्य गठन की पूरी प्रक्रिया के दौरान जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव भी रहे।
ब्रह्म समस्या का हल निकल गया
प्रदेश के मठ मंदिर भी अपने खेतों में पैदा हुए धान को बेच सकेंगे। इन सभी के महंत,ट्रस्ट प्रमुख और मुख्य पुजारी 14 नवंबर से नाराज चल रहे थे। ये मठ मंदिरों के आधिपत्य में सैकड़ों एकड़ खेतों में हजारों क्विंटल धान पैदा करते हैं। खरीफ रबी दोनों सीजन में। रमन सिंह सरकार ने पहली बार इनसे खरीदी की व्यवस्था की। जो अब तक जारी रही। इस वर्ष पहले दिन से वे खरीदी केंद्र जाकर बिना टोकन लिए लौटते रहे। यह बात धीरे धीरे पूरे प्रदेश के मठ मंदिर में गूंज ने लगी। और यह भ्रम फैलने लगा कि सरकार इनसे धान खरीदना नहीं चाह रही।
मठ प्रमुख ब्राह्मणों की नाराजगी ठाकरे परिसर तक पहुंची। और फिर शुक्रवार को खाद्य, सहकारिता, कृषि अफसरों को तलब कर समस्या का हल निकाला गया। समस्या खरीदी सॉफ्टवेयर में आ रही थी। वह मठ प्रमुख पुजारियों को कृषक के रूप में एंट्री नहीं ले रहा था। क्योंकि सॉफ्टवेयर में मठ मंदिरों का नाम दर्ज है न कि वर्तमान प्रमुख या पुजारी का। इस ब्रह्म समस्या को साफ्टवेयर में सुधार लिया गया। और अब 800 मठ मंदिरों का भी धान खरीदा जा सकेगा।
Teacher
यह बिहार में हो रही एक शादी का स्वागत द्वार है। लोगों को पता होना चाहिए कि जिसकी हो रही है वह सरकारी टीचर है। इसीलिए गेट पर अपनी योग्यता लिखकर टांग दिया गया है- बीपीएससी टीचर। लोगों को पता होना चाहिए कि किस हैसियत वाले का कार्यक्रम नहीं हो रहा है।
चेकिंग अभियान चलेगा सडक़ों पर?
कल बसना में बाइक सवार तीन युवकों की मौत हो गई। उनको एक पिकअप वाहन ने रॉंग साइड से आकर टक्कर मार दी । दो बाइक के बीच टक्कर में जांजगीर-चांपा में भी तीन युवकों की मौत दो दिन पहले ही हो गई। बिलासपुर के सडक़ पर अंधेरे में खड़े ट्रक से टकराकर दो युवक जान गंवा बैठे। यह रोज हो रहे सडक़ हादसों के कुछ उदाहरण है। इन सभी मामलों में सभी की, या कुछ लोगों की मौत रोकी जा सकती थी यदि वे हेलमेट पहने होते या तीन सवारी सफर कर बेकाबू न होते। राज्य सडक़ सुरक्षा परिषद् की कल राजधानी रायपुर में सीएम निवास पर बैठक हुई। इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट को प्रस्तुत करते हुए बताया गया कि यदि चारपहिया वाहन चालक सीट बेल्ट बांधें और दुपहिया सवार हेलमेट पहनें तो सडक़ दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों को 40 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। प्रदेश में हाईवे का जाल बिछ रहा है। तेज रफ्तार के शौकीन बढ़ रहे हैं। सडक़ पर चलना दिनों-दिन जोखिम भरा होता जा रहा है। ऐसे में पूरे प्रदेश में हेलमेट और सीट बेल्ट को लेकर यातायात पुलिस का अभियान ठंडा पड़ा है। हाईवे पर कहीं-कहीं सीट बेल्ट नहीं लगाने वालों का चालान शुरू किया गया है लेकिन हेलमेट बिना सफर करने वाले, तीन सवारी चलने वालों पर कार्रवाई तो पुलिस लगभग भूल ही चुकी है। कुछ जिलों में पुलिस खुद से ऐसा अभियान चला रही है। गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में एक हेलमेट जोन बनाया गया है। इस रास्ते पर बिना हेलमेट पहने कोई गुजरा तो उस पर कार्रवाई होगी। कल की बैठक में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इन दोनों मामलों, सीट बेल्ट और हेलमेट पर कोई रियायत नहीं बरतने का निर्देश अफसरों को दिया है। देखना है कि क्या अब यातायात पुलिस कोई सक्रियता दिखाएगी?
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डेट देखकर ईश्वर अपने श्री चरणों में स्थान दें
पहले कोरोना काल और फिर उसके बाद से ट्रेनें वह भी यात्री ट्रेनें लगातार रद्द कर रहा है। कभी ट्रैक फिटनेस, मेंटेनेंस नान इंटरलॉकिंग, पुल पर गर्डर बिठाने, दूसरी तीसरी और चौथी लाइन को बिछाने जोडऩे आदि आदि कारण बताते रहा है। लेकिन अब बढ़ते कोहरे के मौसम को देखते हुए कुछ ट्रेनों को अस्थायी रूप से रद्द करने का फैसला लिया है। इनमें छत्तीसगढ़ को बनारस वाराणसी से जोडऩे वाली सारनाथ एक्सप्रेस भी शामिल हैं। ऐसे में दिसंबर से मार्च अंत तक अस्थि विसर्जन,श्राद्ध कर्म के लिए वाराणसी जाने वालों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि सभी लंबी न सही अप्रैल तक की आयु से परिपूर्ण करें। दुर्ग-छपरा-दुर्ग एक्सप्रेस (नंबर 15160/15159) को दिसंबर से मार्च तक ऐसे कैंसिल किया गया है मानो यमराज, इस ट्रेन की जर्नी डेट देखकर लोगों की आत्मा ले जाएंगे। यह ट्रेन एक दिन चलेगी तो दूसरे दिन रद्द रहेगी। ऐसे में किसी परिजन को खोने से अधिक दुखदायी, पीड़ा से अधिक उनका अस्थि विसर्जन करना होगा। एक महराज नेे ही इस ओर हमारा ध्यानाकृष्ट कराया है।
उनका कहना था कि ऐसे अंतराल के बजाए रेल प्रशासन मार्च तक पूरा ही रद्द कर दे। हम यहां वो डेट दे रहे हैं जिन दिनों ट्रेन रद्द रहेगी इस पीड़ा की शुरुआत 3 दिसंबर से होगी। ट्रेन 3, 5, 8, 10, 12, 15, 17, 19, 22, 24, 26, 29, 31 तारीख , फिर जनवरी में 2, 5, 7, 9, 12, 14, 16, 19, 21, 23, 25, 28, 30 और 02, 04, 06, 11, 13, 16, 18, 20, 23, 25 फरवरी एवं 27 मार्च 25 को रद्द रहेगी। इसी तरह से छपरा से वापसी में 15159 छपरा-दुर्ग एक्सप्रेस 2, 4, 7, 9, 11, 14, 16, 18, 21, 23, 25, 28, 30 दिसंबर, 2024, 01, 04, 6, 8, 11, 13, 15, 18, 20, 22, 25, 27, 29 जनवरी, 1, 3, 5, 8, 10, 12, 15, 17, 19, 22, 24 एवं 26 मार्च- 25 को निरस्त रहेगी। शेष तिथियों में पूर्ववत चलाई जाएगी।
जीत से बड़ी शपथ
प्रदेश में पहले भी उपचुनावों में विधायक चुनकर आए हैं, लेकिन जो तामझाम सुनील सोनी के शपथ ग्रहण में दिखा, वो पहले किसी नवनिर्वाचित विधायकों के शपथ में नहीं था। राज्य बनने के बाद सबसे पहले मरवाही विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए। उस समय भाजपा विधायक रामदयाल उइके ने तत्कालीन सीएम अजीत जोगी के लिए नाटकीय अंदाज में विधानसभा से इस्तीफा दिया था, और वो कांग्रेस में शामिल हुए। मरवाही सीट पर पहले उपचुनाव में अजीत जोगी रिकॉर्ड वोटों से चुनाव जीते। जीत के बाद सीएम रहते उन्होंने तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल के कक्ष में विधिवत विधानसभा की सदस्यता ग्रहण की।
अजीत जोगी से लेकर सुनील सोनी तक उपचुनावों में दर्जनभर से अधिक विधायक चुने गए। ज्यादातर नवनिर्वाचित विधायकों ने अध्यक्ष के कक्ष में ही शपथ ली। मगर सुनील सोनी के शपथ के सैकड़ों पार्टी नेता साक्षी बने। एक हॉल में सुनील सोनी को गुरुवार को शपथ दिलाई गई। डायस में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, सीएम विष्णुदेव साय, संसदीय कार्यमंत्री केदार कश्यप, विधानसभा सचिव दिनेश शर्मा के साथ ही सुनील सोनी व सांसद बृजमोहन अग्रवाल भी विजयी मुस्कान बिखेरते विराजमान थे।
डायस के नीचे कुर्सियों में प्रथम पंक्ति में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, गौरीशंकर अग्रवाल, स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल, और टंकराम वर्मा बैठे थे। इसके अलावा कई विधायक भी थे। सुनील सोनी के शपथ के लिए सांसद बृजमोहन अग्रवाल, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला से अनुमति लेकर एक दिन पहले ही आ गए थे।
शपथ के बाद सुनील सोनी ने कार्यकर्ताओं के बीच बैठकर लॉबी में फोटो भी खिंचवाई। स्वागत सत्कार के बीच थोड़ी चूक भी हो गई। कार्यकर्ताओं के लिए नाश्ते का इंतजाम किया गया था, लेकिन नाश्ता विलंब से पहुंचा। तब तक ज्यादातर कार्यकर्ता निकल चुके थे। बाद में वहां कर्मचारियों को वितरित किया गया। कुल मिलाकर सुनील सोनी की जितनी बड़ी जीत थी उतना ही बड़ा शपथ ग्रहण समारोह रहा।
नगरीय चुनाव टलेंगे तो नहीं?
प्रदेश में नगरीय निकायों का कार्यकाल दिसंबर में समाप्त होने जा रहा है। राज्य निर्वाचन आयुक्त की ओर से पंचायतों और नगरीय चुनावों के लिए बैठक तो ली जा रही है लेकिन सरकार की ओर से ऐसा कोई संकेत नहीं मिल रहा है कि कार्यकाल खत्म होने के साथ चुनाव हो जाएंगे। पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए आयोग की रिपोर्ट सरकार को सौंपी जा चुकी है, मगर इसकी भी कोई सुगबुगाहट दिखाई नहीं दे रही है। पिछले दिनों हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस विषय पर चर्चा के कयास लगाए जा रहे थे, पर कोई निर्णय नहीं हुआ। एक बात जरूर हुई है कि नगर-निगम, नगर पालिका व नगर पंचायतों के अध्यक्षों और जनप्रतिनिधियों को जारी किया जाने वाला फंड अधिकांश नगरीय निकायों में रोक दिया गया है। सरकार के पास अधिकार है कि वह अध्यादेश लाकर चुनाव को 4-6 माह आगे सरका सकती है। सभी राजनीतिक दलों को फैसले, खासकर आरक्षण प्रक्रिया शुरू होने की प्रतीक्षा है।
एक रेट में नारियल पानी
भारत के तकरीबन सभी राज्यों को घूम चुके इस सैलानी ने सोशल मीडिया पर एक दिलचस्प पोस्ट डाली है। उनका कहना है कि नारियल पानी का रेट पूरे देश में एक जैसा है। चाहे दिल्ली, लखनऊ में पी लो या नारियल उत्पादक गोवा, आंध्रप्रदेश, केरल में। हर जगह यह करीब 60 रुपये में ही मिलेगा। यदि दक्षिण भारत से उत्तर भारत नारियल लाया जा रहा हो तो उसका भाड़ा भी तो लगता होगा। सवाल तार्किक है। आप भी इसका जवाब ढूंढ पाएं तो पता करिये..।
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जलता मुद्दा और चुप्पी
भरतपुर-सोनहत इलाके में नाबालिग छात्रा से रेप का मामला सुर्खियों में हैं। इस पूरे मामले के आरोपी तीन शिक्षकों, और वन कर्मियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। बावजूद इसके लोगों में पुलिस-प्रशासन के खिलाफ काफी गुस्सा है। पूर्व विधायक गुलाब कमरो ने इस मामले में चुप्पी पर स्थानीय विधायक रेणुका सिंह को निशाने पर लिया है। कमरो ने फेसबुक पर अपने पोस्ट में लिखा कि बेटियों की लूट रही अस्मत। लापता विधायक मंत्री बनने कर रही कसरत।
उन्होंने आगे लिखा कि न सदन में न सडक़ में। आखिर कहां है लापता विधायक रेणुका सिंह। गुलाब कमरो ने रेणुका सिंह की विधानसभा में कम उपस्थिति को लेकर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि रेणुका सिंह अब तक केवल 9 दिन विधानसभा पहुंची है। यानी प्रदेश के 90 विधायकों में सबसे कम। गुलाब कमरो ने लिखा कि काल्पनिक सीएम दीदीजी (रेणुका सिंह) मिले, तो भरतपुर-सोनहत विधानसभा के हवाले कर देवें। अब ऐसे गंभीर विषयों पर जनप्रतिनिधि खामोश रहेंगे, तो विरोधी उनकी सक्रियता पर सवाल उठाएंगे ही।
मुख्य सचिवों से मोदी की वन टू वन
पीएम नरेंद्र मोदी ने 13 दिसंबर को देशभर के मुख्य सचिवों को चर्चा के लिए बुलाया है। आमंत्रण सामूहिक बैठक जैसा होगा या अलग-अलग वन टू वन यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। हालांकि यह तय है कि यह सालाना होने वाला सीएस कानक्लेव नहीं है । और सीएस दफ्तर के सूत्र बता रहे कि वन टू वन मीटिंग है। ऐसे समय जब देश के 29 राज्यों में से अधिकांश में भाजपा और गठबंधन की डबल इंजन सरकारें हैं। करीब 10 राज्यों में विपक्षी दल सत्तारूढ़ हैं। पीएमओ के पास इनपुट है कि विपक्षी राज्यों में सरकारें केंद्रीय फंड का दुरुपयोग कर रही हैं तो भाजपा गठबंधन सरकारों में कमोबेश ऐसी ही स्थिति है?।
ऐसी ही कवायद कैबिनेट सक्रेटरी शुरू कर चुके हैं। वे हर सप्ताह एक ओपन हाउस कर रहे हैं। जिसमें राज्यों से दिल्ली आने वाले मुख्य सचिव, एसीएस, पीएस और सचिवों और अन्य अभा संवर्ग के अफसरों के व्यक्तिगत और राज्यों के मुद्दों पर चर्चा कर रहे। इन बैठकों का निचोड़ नीति आयोग की बैठक और आम बजट में देखने को मिल सकता है।
बाघों की टहलकदमी
अचानकमार अभयारण्य में मध्यप्रदेश के करंजिया से चहलकदमी करते हुए एक बाघ पहुंच गया है। वन विभाग इसकी निगरानी कर रहा है लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से उसका लोकेशन नहीं बताया गया है। दावा किया जाता है कि अचानकमार में 10 बाघ हैं। यदि इस बाघ ने अपना बसेरा बना लिया तो संख्या बढक़र 11 हो जाएगी। कान्हा नेशनल पार्क से एक घायल बाघिन पहले ही यहां आ चुकी है। वहीं, कसडोल में एक बाघ कस्बे के आसपास मंडराता दिखा। वन विभाग ने उसे रेस्क्यू कर लिया है। सीएम विष्णुदेव साय ने वन कर्मचारियों की उनकी कामयाबी के लिए तारीफ की है। सवाल बना हुआ है कि ये मांसाहारी जीव क्या दाना-पानी के लिए भटक रहे हैं?
जनता को फायदा, श्रेय पर तकरार
चिरमिरी से साजा पहाड़ होते हुए मनेंद्रगढ़ तक की सडक़ परियोजना को राज्य सरकार ने मंजूरी दी है। स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने इस फैसले का ऐलान किया। यह सडक़ परियोजना चिरमिरी और मनेंद्रगढ़ के बीच दूरी कम करेगी, जिससे अस्पताल और रेलवे स्टेशन जाने वालों को खासा फायदा होगा।
लेकिन सवाल यह है कि इस परियोजना का श्रेय किसे दिया जाए—भाजपा सरकार को या कांग्रेस को? इस पर सियासत शुरू हो गई है। पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल का कहना है कि मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल नाहक ही श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं। उनके मुताबिक, इस सडक़ की स्वीकृति कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ही मिल गई थी। अब जब निर्माण कार्य शुरू होने वाला है, तो इसे नया काम बताया जा रहा है। ऐसे हालात अक्सर देखने को मिलते हैं। एक सरकार कोई काम स्वीकृत करती है, तो दूसरी सरकार उसका उद्घाटन करती है। यही सिलसिला कांग्रेस और भाजपा के बीच भी चला आ रहा है। जब कांग्रेस सत्ता में आई, तो उसने भाजपा कार्यकाल में स्वीकृत कई परियोजनाओं का उद्घाटन किया।
मगर, रायपुर के बहुचर्चित स्काई वॉक का उदाहरण लें। भाजपा सरकार ने इसे शुरू किया, फिर कांग्रेस ने सत्ता में आकर इसे अधूरा छोड़ा। अब भाजपा सरकार के लौटने के बावजूद यह परियोजना खंडहर बनी हुई है।
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तो हैरान मत होना...
आईपीएस के 89 बैच के अफसर, और डीजीपी अशोक जुनेजा फरवरी के पहले हफ्ते में रिटायर हो रहे हैं। उन्हें छह माह का एक्सटेंशन दिया गया था। जुनेजा के रिटायरमेंट के पहले ही उनके उत्तराधिकारी के नामों पर चर्चा चल रही है। सीएम विष्णुदेव साय ने दो दिन पहले मीडिया से चर्चा में कहा कि समय आने पर डीजीपी की नियुक्ति कर दी जाएगी।
चर्चा यह भी है कि अशोक जुनेजा को छह माह का एक्सटेंशन और दिया जा सकता है। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने बस्तर को नक्सल मुक्त बनाने के लिए अभियान छेड़ा हुआ है, और इसके लिए मार्च-2027 तक नक्सलियों के खात्मे के लिए समय-सीमा निर्धारित की है। इसकी वजह से पहले केन्द्र सरकार में बस्तर आईजी सुंदरराज पी के एनआईए में पोस्टिंग को निरस्त कर दिया गया। उन्हें बस्तर में यथावत रखने के लिए कहा गया है। जबकि सुंदरराज को राज्य सरकार ने पहले प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए हरी झंडी दी थी। इन सबकी वजह से जुनेजा को एक्सटेंशन मिल जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। देखना है आगे क्या होता है।
बिल्डर की ताकत
रायपुर नगर निगम सीमा क्षेत्र के गांव अमलीडीह में कॉलेज के लिए आरक्षित 9 एकड़ सरकारी जमीन को नामी बिल्डर रामा बिल्डकॉन को आबंटित करने का मामला गरमा गया है। पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा ने विधायक रहते ग्रामवासियों की सहमति से कॉलेज के लिए उक्त जमीन को आरक्षित करने के लिए पहल की थी। मगर गुपचुप तरीके से जमीन रामा बिल्डकॉन को आबंटित कर दी गई।
बताते हैं कि कांग्रेस सरकार की सरकारी जमीन के आबंटन की नीति रही है। बाजार दर पर सरकारी जमीन को आबंटित किया जा सकता था। रामा बिल्डकॉन के डायरेक्टर राजेश अग्रवाल ने विधानसभा आम चुनाव की मतगणना के तीन दिन पहले उक्त जमीन को आबंटित करने के लिए आवेदन लगाया था, और तत्कालीन कलेक्टर ने आनन-फानन में आबंटन से जुड़ी सारी प्रक्रिया पूरी कर मंत्रालय भिजवा दिया।
सरकार बदल गई, लेकिन रामा बिल्डकॉन के आवेदन पर कार्रवाई गुपचुप चलती रही। इसी बीच साय सरकार ने कांग्रेस सरकार की जमीन आबंटन की नीति को ही निरस्त कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि निरस्तीकरण के आदेश से पहले ही रामा बिल्डकॉन को जमीन आबंटित करने का फैसला हो गया। यह फैसला जून में ही हो गया था, और अब जब बात छनकर बाहर निकली, तो ग्रामीण गुस्से में हैं।
रायपुर ग्रामीण के विधायक मोतीलाल साहू ने राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने सीएम के संज्ञान में मामला लाया है। साहू ने तत्कालीन कलेक्टर को घेरे में लिया है। वे सीएम से इस मामले पर हस्तक्षेप करने के लिए दबाव बनाए हुए हैं। चाहे कुछ भी हो, राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली जग जाहिर हुई है।
आवास के लिए हडक़ंप
प्रदेश में भाजपा की सरकार लौटी तो उसमें प्रधानमंत्री आवास योजना पर किया गया वादा भी एक कारण था। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अध्यक्षता में कैबिनेट की पहली ही बैठक में 18 लाख अधूरे आवासों को पूरा करने की मंजूरी दे दी गई थी। इनमें नगरीय क्षेत्रों के भी आवास शामिल थे। शहरी क्षेत्रों में हितग्राहियों को सीधे राशि न देकर इन निकायों के माध्यम से काम कराया जाता है। हाल ही में जो रिपोर्ट्स मंगाई गई है, उसके अनुसार शहरों में 40 फीसदी से भी कम आवास तैयार हो पाए हैं। अब अल्टीमेटम दिया गया है कि 31 दिसंबर से पहले सभी आवासों का निर्माण पूरा कर लिया जाए। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनको अधूरे आवासों के लिए कोई अनुदान नहीं मिलेगा। निकायों को अपने मद से खर्च कर आवासों को पूरा कराना होगा। इस आदेश के बाद निकायों के अफसरों में हडक़ंप मचा हुआ है। इंजीनियर्स मजदूरों और मिस्त्रियों की तलाश में जुटे हैं। अधिकांश नगरीय निकायों में बिजली बिल पटाने और वेतन देने के लिए पैसेनहीं होते, पर प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए फंड पड़ा होने के बावजूद समय पर काम नहीं कराया जा रहा है। कुछ अभियंता बता रहे हैं कि 31 दिसंबर तक बचा काम पूरा होने की उम्मीद नहीं है, पर वे सर्टिफिकेट बना लेंगे। दूसरी उम्मीद यह भी है कि यह डेटलाइन आगे बढ़ जाएगी।
इतनी साफ-सफाई?
रेलवे जोन बिलासपुर की ओर से सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया गया है। रेल यात्रियों से की गई बातचीत भी इसमें दर्ज है। इसमें बताया गया है कि स्लीपर और जनरल क्लास की बोगियों में अब कितनी स्वच्छता बरती जा रही है। तस्वीर में दिखाई गई साफ-सुथरी बास-बेसिन आपको कभी दिखे तो आप भी रेलवे को टैग करके बताएं।
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सबसे बड़ा सौदा?
चर्चा है कि रायपुर के बाहरी इलाके की जमीन का एक बड़ा सौदा फाइनल हुआ है। जमीन के खरीददार भी एक बड़े बिल्डर हैं। जिनके प्रोजेक्ट न सिर्फ रायपुर, बल्कि बिलासपुर में भी चल रहे हैं। डेढ़ सौ एकड़ जमीन का सौदा करीब 12 सौ सीआर में फाइनल हुआ है जिसे अब तक का सबसे बड़ा सौदा करार दिया जा रहा है।
सौदे से जुड़े सभी पक्षकार रायपुर के ही हैं। जिनमें एक उद्योगपति भी हैं। कई दौर की बैठक के बाद जमीन के सौदे पर मुहर लगी है। खरीददार बिल्डर अब यहां हाऊसिंग प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू भी कर दिया है। माना एयरपोर्ट के नजदीक होने की वजह से इसे सबसे महंगा प्रोजेक्ट बताया जा रहा है। फिलहाल तो इस जमीन के सौदे की कारोबारी जगत में जमकर चर्चा है।
पीएससी दागदार, तो निजी एजेंसी कितनी निष्पक्ष?
वन विभाग में 15 सौ से अधिक बीट फारेस्ट आफिसर जो वन रक्षक कहलाते हैं कि भर्ती मंगलवार तडक़े शारीरिक मापदंड परीक्षा (फिजिकल टेस्ट)के साथ से पूरे प्रदेश में शुरू हो गई है। जो 7 दिसंबर तक चलेगी। रायपुर के कोटा स्टेडियम में भी हो रही है। यह भी जानकारी दी गई है कि
यह थर्ड पार्टी भर्ती हो रही है। यानी पीसीसीएफ कार्यालय ने हैदराबाद और दिल्ली की एक निजी एजेंसी से सेलेक्शन के लिए कांट्रेक्ट किया है जो अंतिम सलेक्टेड लिस्ट देगी। जब एनटीए, पीएससी के चयन में भरोसा उठ गया है तो निजी एजेंसी का चयन कितना भरोसेमंद, निष्पक्ष होगा समझा जा सकता है। ये तो उन्हीं नामों पर ब्लू टिक लगाएगा जो नाम वन मंत्रालय, पीसीसीएफ दफ्तर आदि से आएंगे।
अब बात आती है कि जब इस प्रदेश में भृत्य तक की नियुक्त पीएससी, इंजीनियरों, शिक्षकों, लिपिकों की भर्ती व्यापमं करता रहा है तब उसी के समकक्ष पदों पर भर्ती निजी एजेंसी से क्यों की जा रही है? और फिर बीट गार्ड को बीएफओ पद नाम दिया ही जा चुका है। तो अफसर के नाते पीएससी तो कर ही सकता है। खैर, पीएससी भी बदनाम हो चुका है तो निजी एजेंसी पर भरोसे वाले वन विभाग की क्या बिसात,भर्ती संदेह से परे नहीं होगी। और फिर अभ्यर्थियों की वजह से भर्ती प्रक्रिया रात के अंधेरे में भी चल रही है। अंधेरे का काम कब साफ सुथरा होता है।
इसका मतलब समझा जा सकता है। वैसे इस भर्ती को लेकर पिछले पखवाड़े भर से पूरे प्रदेश के वन मंडलों से शंका संदेह उभरे हुए हैं। इसकी शिकायतें जब मीडिया तक पहुंची पड़ताल करने लगे तो डीएफओ, भर्ती स्थलों में प्रवेश के लिए पीसीसीएफ से अनुमति अनिवार्य कर चुके हैं। भर्ती इतनी निष्पक्ष है तो विभाग को क्या उजागर होने का खतरा नजर आ रहा। खैर जो भी हो चयन सूची जारी होने के बाद आरटीआई है, कोर्ट है। सच्चाई तो बाहर आ ही जाएगी।
भर्ती वन विभाग की, ड्यूटी शिक्षकों की
वन रक्षक भर्ती के लिए वन विभाग ने अपने एपीसीसीएफ से लेकर निचले से निचले क्रम के हजारों कर्मचारी तैनात किए हैं। बताया जा रहा है कि ये भी कम पड़ गए हैं। तो स्कूलों के व्यायाम शिक्षकों की भी ड्यूटी लगा दी गई है। ऐसा राज्य के इतिहास में पहली बार हुआ है। रायपुर की भर्ती के लिए शहर के नहीं अभनपुर, आरंग, तिल्दा और अन्य दूरदराज के विकासखंड, संकुल के शिक्षकों की। इनकी ड्यूटी मैदानी तैयारियों और व्यवस्था में सहयोग के लिए लगाई गई है ।
इस भर्ती से इनका क्या लेना-देना, जबरिया ड्यूटी लगाई गई है। रायपुर डीईओ ने इन शिक्षकों की ड्यूटी लगाते हुए भर्ती स्थल में उपस्थिति न होने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी भी जारी कर दी है। 10 दिसंबर तक ये शिक्षक अपने स्कूल से बाहर रहेंगे। तब तक स्कूलों में पीटी-खेल नहीं होंगे। इसे ही कहते हैं शिक्षकों से गैरशिक्षकीय कार्य लेना। और शिक्षक संगठनों के नेता चुनाव, वोटर लिस्ट पुनरीक्षण जैसे राष्ट्रीय कार्यों की ड्यूटी को गैरशिक्षकीय बताकर विरोध बुलंद करते हैं लेकिन राजधानी के ही इनके नेताओं के मुंह से सप्ताह भर बाद भी एक शब्द नहीं निकला है। बढ़ती कडक़ड़ती ठंड में दूरदराज के शिक्षकों के साथ अनहोनी होने पर ये दिखावा करने डीईओ के विरोध में वह भी केवल एक दो दिन के लिए झंडा बुलंद कर अपने नेता होने के कर्तव्य की इतिश्री कर लेंगे । ये व्यथा हमारी नहीं है,ड्यूटी लगे शिक्षकों की है।
अफसरशाही का तमाशा
बिलासपुर में नायब तहसीलदार और थानेदार, दोनों ने अपनी-अपनी ताकत और रुतबे का प्रदर्शन किया। नायब तहसीलदार ने अपने पद का रौब झाड़ा तो थानेदार ने वर्दी की गर्मी दिखाई। बात इतनी बढ़ गई कि दोनों पक्षों के समर्थकों ने एक-दूसरे के खिलाफ तलवारें खींच लीं।
राजस्व विभाग के जूनियर अफसरों ने एक दिन की हड़ताल कर दी, वहीं थानेदार के समर्थन में कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन हुआ। दो लोगों के विवाद में दोनों तरफ के ताकतवर संगठन सामने आ गए। एक के पक्ष में कार्रवाई करते तो दूसरा नाराज हो जाता। दोनों विभागों के मंत्रियों के सामने भी संकट था। उन तक बात चली गई थी। वे अपने-अपने अमले को नाराज नहीं करना चाहते थे। उन्होंने इस तमाशे पर नाराजगी जताते हुए आदेश दिया- तुरंत मामला सुलझाओ।
कलेक्टर और एसपी ने दोनों को बुलाया और समझाया। बंद कमरे में दोनों ने अपने-अपने बर्ताव को लेकर एक-दूसरे से माफी मांगी, मामला सुलझ गया। प्रदर्शन और ज्ञापन का दौर थम गया। अब इससे पहले थानेदार ने गुस्से में जो नायब तहसीलदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, उसके खत्म होने में देर नहीं लगेगी। लाइन अटैच थानेदार को भी नई पोस्टिंग मिल ही जाएगी।
मगर, पूरे घटनाक्रम ने दोनों विभागों की पोल खोलकर रख दी है। जब नायब तहसीलदार थानेदार को उसकी औकात दिखाने की कोशिश करता हो और थानेदार गुस्से में धक्का- मुक्की कर एफआईआर दर्ज कर लेता हो, तो अंदाजा लगाइए कि ऐसे अफसर आम जनता के साथ कैसा सलूक करते होंगे।
सोचिए, आप किसी थानेदार या तहसीलदार से त्रस्त हैं और आपका मामला सुलझाने कलेक्टर या एसपी आपको बंद कमरे में बुलाएं। तहसीलदार या थानेदार आपसे अपने बर्ताव के लिए माफी मांगे। इस घटना को देख-सुनकर, आप उस सुशासन का इंतजार तो नहीं कर रहे हैं?
अद्भुत रंगोली
इंदौर की हुनरमंद शिखा ने नीमच में देश की 100 महान विभूतियों को 84 हजार वर्गफीट की रंगोली में उकेरा। तस्वीर के मध्य में शिखा अपने हाथ फैलाए खड़ी हैं। कृति में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को भी जगह दी गई है। यह कलाकारी एशिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड और इंडिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज की गई है।
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आठवां वेतन आयोग फरवरी में
केंद्र के साथ साथ देश भर के राज्य कर्मियों के लिए फिलहाल अच्छी खबर कही जा सकती है। केंद्रीय कैबिनेट सेक्रेटरी ने नया आठवां वेतन आयोग गठित करने के संकेत दिए हैं। यह भी संभावना है कि एक फरवरी को बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इसकी घोषणा कर सकती हैं। फरवरी 2014 को गठित सातवें वेतन आयोग का दस वर्ष का दायरा खत्म होने में अभी एक वर्ष (जनवरी-26) शेष है। केंद्रीय कर्मचारी संगठन नए आयोग के समय पर गठन और समय पर लागू करवाने को लेकर दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
इसी सिलसिले में इनके नेता पिछले दिनों केंद्रीय कैबिनेट सेक्रेटरी टीवीएस (टीवी सोमनाथन) से मुलाकात की थी। इस चर्चा के दौरान कार्मिक नेताओं की मांग पर कैबिनेट सेक्रेटरी के संकेत से सबकी बाँछें खिल गई हैं। उन्होंने कहा कि 2026 बहुत दूर (टू-फार) है,उससे पहले अगले वर्ष क्यों नहीं? इसके बाद से केंद्रीय संगठनों में हलचल बढ़ गई है कि आठवां वेतन आयोग आम बजट के आसपास गठित कर दिया जाएगा। राज्यों में पृथक से वेतन आयोग गठन की व्यवस्था दशकों पहले ही खत्म हो गई थी। इसलिए राज्य सरकारें भी थोड़ी कमी बेसी के साथ केंद्रीय आयोग की सिफारिशों को लागू करती है । सो राज्य के कर्मचारी अधिकारी भी इसके इंतजार में रहते हैं। उन्हें भी उम्मीद है कि पिछले दो वेतन आयोग की वेतन विसंगतियां, अब आठवें आयोग में दूर की जाएंगी।
कहा जाता है कि जब महंगाई भत्ता 50 फीसदी से पार हो जाए तो नए वेतन आयोग के गठन कर दिया जाना चाहिए। लेकिन सरकार को बिना मांग, आंदोलन के कोई काम नहीं करती। वैसे मोदी 2.0 के अपने अंतिम बजट में नए वेतन आयोग से तौबा करने के संकेत दिए थे। अब कैबिनेट सेक्रेटरी का यह कहना, उम्मीद की जानी चाहिए कि फरवरी में नया वेतन आयोग गठित कर दिया जाएगा।
डिनर और वोट का रिश्ता नहीं
रायपुर दक्षिण के चुनाव परिणाम की कांग्रेस, और भाजपा के नेता समीक्षा कर रहे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी आकाश शर्मा की बुरी हार चौंका भी रही है। कांग्रेस से जुड़े लोग मानते हैं कि जहां अच्छी लीड मिलने का भरोसा था वहां बुरी तरह पिछड़ गए। मसलन, कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने लाखे नगर इलाके में समाज विशेष के लोगों के लिए मतदान से दो दिन पहले रात्रि भोज रखा था।
बताते हैं कि रात्रि भोज में करीब 5 सौ लोग थे। सभी कारोबार जगत के लोग थे। सबने कांग्रेस को समर्थन देने का वादा किया था, मगर नतीजे आए, तो ठीक इसका उल्टा हुआ। वहां कांग्रेस प्रत्याशी को 122 वोट ही मिले। यानी साफ था कि जितने लोग रात्रि भोज में थे उसका आधा वोट भी कांग्रेस प्रत्याशी को नहीं मिला। मतदान के बाद भाजपा के रणनीतिकारों ने करीब 15 हजार वोटों से जीत का आकलन किया था। लेकिन सुनील सोनी की जीत रायपुर शहर की बाकी तीनों सीटों के भाजपा विधायकों की जीत से बड़ी हो गई। ऐसे में उनके मंत्री बनने को लेकर अटकलें लगाई जा रही है। देखना है आगे क्या होता है।
इन दुर्घटनाओं से कोई सबक?
छत्तीसगढ़ में सडक़ सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। हाल ही में कृषि मंत्री रामविचार नेताम और महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े सडक़ दुर्घटनाओं में गंभीर रूप से घायल हो गए। यह राहत की बात है कि दोनों की जान बच गई, परंतु इन घटनाओं ने प्रदेश में यातायात सुरक्षा की बदतर हालत को फिर उजागर कर दिया।
मंत्रियों के काफिले में पायलट गाडिय़ां रहती हैं और वे अपेक्षाकृत सुरक्षित यात्रा करते हैं। इसके बावजूद वे हादसे का शिकार हुए। ऐसे में सामान्य नागरिकों की सुरक्षा कैसी है, सोचा जा सकता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष सितंबर तक प्रदेश में 11,000 से अधिक सडक़ दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 4,900 से अधिक लोगों की मौत हुई। रायपुर जैसे प्रमुख जिले में प्रतिदिन औसतन 40 दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें 17 लोग अपनी जान गंवाते हैं।
इन हादसों में 70 फीसदी से अधिक मौतें दोपहिया वाहन चालकों की हुई हैं। लेकिन यह कहना गलत होगा कि हर बार गलती दोपहिया चालकों की ही होती है। तेज रफ्तार, भारी वाहनों की ओवरलोडिंग और लापरवाही भी इन मौतों के प्रमुख कारण हैं। हाईवे पर हेलमेट पहनने को सख्ती से लागू करने के लिए पुलिस अभियान चला सकती है, परंतु यह अभियान अक्सर सरकारी निर्देशों पर चलता है, जो कुछ दिन के उत्सव की तरह चलकर बंद हो जाता है।
तीन दिनों में दो मंत्रियों के हादसों के बावजूद सडक़ सुरक्षा को लेकर जिम्मेदार अधिकारियों और सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। यह उदासीनता बताती है कि आम नागरिकों की सुरक्षा की सुध लेना संबंधित अफसरों की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं है।
सैर-सपाटे का एक नया ठिकाना
प्रदेश में एक नया पर्यटन स्थल विकसित हुआ है। यह है जांजगीर-चांपा जिले का कुदरी बैराज। इसी महीने यहां नौका विहार और बोटिंग की सुविधा शुरू की गई है। यहां कैफेटेरिया और स्पोर्ट्स जोन भी तैयार किया गया है। जिला मुख्यालय से इसकी दूरी करीब 10 किलोमीटर है। हॉली डे के अलावा बाकी दिनों में लोग क्वालिटी टाइम बिताने के लिए यहां पहुंच रहे हैं। गांव के ही युवकों ने इसकी व्यवस्था संभाल रखी है। (rajpathjanpath@gmail.com)
जीत और हार का सेहरा
छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं ने झारखंड चुनाव में दम लगाया था, लेकिन पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा। झारखंड की एक दर्जन विधानसभा सीटें, छत्तीसगढ़ की सीमा से सटी है। इसलिए छत्तीसगढ़ के नेताओं को विशेष रूप से प्रचार में लगाया गया था।
प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन, केंद्रीय राज्यमंत्री तोखन साहू, डिप्टी सीएम अरुण साव, और विजय शर्मा व ओपी चौधरी, लोकसभावार विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। इसमें से ओपी चौधरी को हजारीबाग की जिम्मेदारी दी गई थी। भाजपा भले ही बहुमत के आसपास नहीं पहुंच पाई, लेकिन हजारीबाग की सात में से छह सीट जीतने में कामयाब रही। ऐसे में हार के बावजूद चौधरी की वाहवाही हो रही है।
झारखंड में भाजपा को बड़ा नुकसान यह हुआ कि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 27 में से सिर्फ एक ही सीट जीत पाई। सरगुजा इलाके के तमाम प्रमुख आदिवासी नेताओं को वहां प्रचार के लिए भेजा गया था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अलबत्ता, महाराष्ट्र में जरूर छत्तीसगढ़ के नेताओं ने बेहतर काम किया है। महाराष्ट्र में चुनाव से पहले ही छत्तीसगढ़ भाजपा के क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल ने पुणे के आसपास के 18 सीटों के संगठन को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी संभाली थी, और उसमें वो कामयाब भी रहे।
त्रिपुरा के सीएम माणिक साहा निजी चर्चा में जामवाल की तारीफ करते नहीं थकते हैं। जामवाल लंबे समय तक पूर्वोत्तर राज्यों में पार्टी के संगठन का काम संभालते रहे हैं, और त्रिपुरा जैसे कठिन राज्य में भाजपा की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में महाराष्ट्र में बड़ी जीत में जामवाल के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है।
बस्तर और महिला कलेक्टर
बस्तर के सुकमा, बीजापुर, और नारायणपुर जिले ऐसे हैं जहां अब तक कोई महिला कलेक्टर नहीं रही हैं। जबकि यहां आश्रम-छात्रावासों में छात्राओं की सुरक्षा से जुड़े विषयों, और महिला स्व सहायता समूहों के कार्यों को देखते हुए जिले में महिला अफसरों की जरूरत महसूस की जाती रही हैं। इससे परे बस्तर के बाकी जिले दंतेवाड़ा, बस्तर, कांकेर, और कोंडागांव में महिला कलेक्टर रही हैं, और उन्होंने अपनी अलग ही छाप छोड़ी है।
दंतेवाड़ा में रीना बाबा साहेब कंगाले का काम बड़ा उम्दा रहा है। इसी तरह बस्तर में भी रिचा शर्मा, रितु सेन ने भी थोड़े समय में अपने काम से अलग ही पहचान बनाई है। कांकेर में पहले अलरमेल मंगाई डी और फिर डॉ. प्रियंका शुक्ला ने स्वास्थ्य और शिक्षा व महिला सुरक्षा की क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है।
डॉ. प्रियंका शुक्ला के कामकाज की सार्वजनिक तौर पर तारीफ होती रही है। कोंडागांव में शिखा राजपूत तिवारी कलेक्टर रह चुकी हैं। मगर नक्सल प्रभावित तीनों जिले सुकमा, बीजापुर, और नारायणपुर में अब तक महिला कलेक्टरों की पोस्टिंग नहीं होना कई मायनों में चौंकाता भी है।
साहू के हिस्से में फिफ्टी-फिफ्टी
केंद्रीय राज्य मंत्री और बिलासपुर के सांसद तोखन साहू को झारखंड विधानसभा चुनाव में चार सीटों का प्रभारी बनाया गया था। इनमें से दो पर भाजपा को कामयाबी हासिल हुई है। लातेहार सीट पर बीजेपी के प्रकाश राम जीते। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के बैद्यनाथ राम को 98000 से अधिक वोटों से हराया। सिमरिया सीट पर भाजपा के उज्ज्वल दास ने एक लाख 11 हजार वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की। इस सीट पर पिछली बार बीजेपी चौथे स्थान पर थी। चतरा और मनिका सीट पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। मनिका सीट पर कांग्रेस से बीजेपी का मुकाबला था। बाकी सीटों पर जेएमएम से टक्कर थी। दोनों सीटों पर हार का मार्जिन कम रहा।
प्रभार मिलने के बाद तोखन साहू ने धुंआधार प्रचार अभियान चलाया था। अंतिम दिन तक उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। भाजपा झारखंड में बहुमत जरूर नहीं ला पाई पर साहू का अपना प्रदर्शन बुरा भी नहीं रहा।
किसान हर जगह सडक़ पर
विकासशील और कृषि प्रधान भारत में ही किसान समस्याओं का सामना नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन्नत देशों में भी यह देखने को मिल जाता है। लंदन के व्हाइट हॉल के सामने हजारों किसानों ने प्रदर्शन किया। वे वहां की संसद द्वारा पारित उस कानून का विरोध कर रहे थे, जिसमें प्रावधान किया गया है कि एक मिलियन पाउंड से अधिक की उत्तराधिकार से प्राप्त संपत्ति पर 20 प्रतिशत विरासत टैक्स लगाया जाएगा। किसानों का कहना था कि ऐसा होगा तो वे खेती से दूर होते जाएंगे, जिससे खाद्यान्न संकट पैदा होगा।
याद होगा, बीते लोकसभा चुनाव में विरासत टैक्स का मुद्दा हमारे यहां भी उछला था। चुनाव अभियान के बीच में ही कांग्रेस को अपने ओवरसीज अध्यक्ष सैम पित्रोदा से इस्तीफा लेना पड़ा था।
लंदन में किसानों के प्रदर्शन पर वहां के प्रधानमंत्री चुप नहीं रहे। पहले दिन ही प्रतिक्रिया आ गई। उन्होंने कहा कि वे किसानों की चिंताओं को समझते हैं और उनका समर्थन करना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अधिकांश किसानों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा..। हर एक देश में सत्ता के पास आंदोलनकारियों के लिए ऐसा ही घुमावदार जवाब होता है। मगर यह चुप्पी से बेहतर होता है।
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