राजपथ - जनपथ
कंवर और श्रीनिवास राव
पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर के पत्र के बाद केंद्र सरकार ने वन रक्षकों की भर्ती में गड़बड़ी के शिकायतों की पड़ताल के आदेश दिए हैं। केन्द्र के पत्र के बाद वन विभाग में हडक़ंप मचा हुआ है। पूर्व गृहमंत्री ने जिन बिंदुओं को रेखांकित किया है, उसका विभागीय अफसर जवाब नहीं ढूंढ पा रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि जिस हैदराबाद की कंपनी की सेवाएं वनरक्षकों की भर्ती प्रक्रिया के लिए ली गई थी, उसी कंपनी को राजनांदगांव में भी आरक्षक भर्ती का काम दिया गया था। जिसमें बड़ी गड़बड़ी सामने आई, और कंपनी के कर्मचारियों समेत 16 लोग जेल में हैं।
कंवर ने 15 सौ वनरक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी का खुलासा किया है। शिकायती पत्र में उन्होंने बताया कि भर्ती प्रक्रिया के बीच कई नियमों को बदल दिया गया। पूर्व गृहमंत्री ने डीएफओ रायगढ़ के पत्र का हवाला दिया, जिसमें रात में भी अभ्यार्थियों का फिजिकल टेस्ट कराया गया, जो कि नियमत: गलत था।
बताते हैं कि कुछ जगहों पर भर्ती प्रक्रिया में छूट के लिए विभागीय स्तर पर एक कमेटी बना दी गई, और कमेटी की अनुशंसा पर छूट दे दी गई। इस तरह भर्ती प्रक्रिया पूरी कराई गई। अंदर की खबर यह है कि विभागीय स्तर पर छूट का फैसला तो ले लिया गया, लेकिन अब तक विभागीय मंत्री से कार्योत्तर स्वीकृति नहीं मिल पाई है। एसीएस (वन) भी इससे सहमत नहीं है। ऐसे में पूरी प्रक्रिया दूषित बताई जा रही है।
वैसे तो पूर्व गृहमंत्री कंवर हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स वी श्रीनिवास राव को इस पूरी गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, और उन पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाए हुए हैं। मगर यह सब आसान नहीं है। राव अपने अपार संपर्कों के लिए जाने जाते हैं। पिछली सरकार में पांच सीनियर आईएफएस अफसरों को सुपरसीड कर उन्हें हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बनाया था। सरकार बदलने के बाद भी उनकी हैसियत में कमी नहीं आई है।
कंवर रमन सरकार में वन मंत्री रह चुके हैं, और उन्होंने आरा मिल घोटाला प्रकरण में संलिप्तता पर राव के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की थी, लेकिन कार्रवाई तो दूर वो प्रमोट हो गए। ये अलग बात है कि विधानसभा की लोक लेखा समिति इस मामले में अब तक सरकार से सवाल-जवाब कर रही है। अब ताजा मामले को राव कैसे हैंडल करते हैं, यह देखना है।
मध्यम वर्ग और स्क्रैप पॉलिसी
प्रदूषण रोकने 15 वर्ष पुरानी कार बाइक, बस ट्रकों को ऑफ रोड करने केंद्र सरकार ने व्हीकल स्क्रैप पॉलिसी जारी कर दी है। इसे लेकर छोटे वाहन मालिक सोशल मीडिया पर जागरूकता अभियान चलाए हुए हैं। इसमें वे, इन वाहनों को इस पॉलिसी से बाहर रखने केंद्र पर दबाव बनाने एकजुट कर रहे हैं। इसमें कहा गया कि-दुपहिया, चौपहिया वाहनों के लिए एन. जी. टी. ने जो 10 एवं 15 वर्ष के नियम लगाए जा रहे हैं वे आम जनता के खिलाफ हैं। अत: उनको वापस लेना जरूरी है। क्योंकि यह नियम केवल व्यावसायिक वाहनों के लिए तो ठीक है परन्तु निजी वाहनों के लिए बिल्कुल भी लागू नहीं होने चाहिये।
हम सभी जानते हैं कि निजी वाहन इतने समय में कुछ ज्यादा नहीं चल पाते हैं। अति आवश्यक होने पर ही ये सडक़ पर निकलते हैं। हम सभी परिवार की सुविधा के लिए ही वाहन खरीदते हैं ताकि बसों एवं ट्रेनों की भीड़ से बचा जा सके एवं इनके मैनटेन्स का भी हम सभी बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं। अपने शरीर से भी ज्यादा वाहन को मेंटेन रखते हैं। जिस तरह हमारे शरीर का यदि कोई अंग बीमार हो जाता है तो उसका इलाज कराकर उसको सही करा लिया जाता है लेकिन एक अंग के ऊपर पूरे शरीर को ही नहीं बदला जाता है, ठीक उसी प्रकार वाहन का भी वही पार्ट बदलकर उसे भी ठीक करा लिया जाता है। अत: वाहन को कन्डम घोषित करना अन्याय है।
बड़ी मुश्किल से एक-एक पैसा जोडक़र अपने परिवार के लिए यह सुविधा कर पाते हैं। लेकिन एन.जी.टी. के लोग कुछ घंटों की मीटिंग में ही फैमिली को इस सुविधा से वंचित कर रहे हैं यह सभी के लिए बहुत ही बड़ा अन्याय है एवं अन्याय के ऊपर लडऩा हमारा अधिकार है। लेकिन हम सब चुप रहकर इस अन्याय के विरुद्ध आवाज नहीं उठाते हैं। अब सभी को एकता के सूत्र में बंधकर इसके विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए ताकि सरकार की समझ में आ जाए कि हम लोग अब किसी भी ऐसे अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए एकता के सूत्र में बंधकर सरकार के अन्यायपूर्ण नियमों का विरोध करेंगे एवं सरकार को ऐसे नियम वापस लेने के लिए बाध्य कर देंगे। धन्यवाद।
सभी भाईयों से सविनय निवेदन है आम जनता की आवाज सरकार तक पहुंच जाए एवं सरकार को ऐसे नियम वापिस लेने के लिए बाध्य होना पड़े।
कुछ और तरीकों से बात बनी
हाल में हुए तीन चुनावों की चर्चा अब तक चल रही है। इसमें नगर निगम, पंचायत और चेंबर के जारी चुनाव हैं। इस दौरान दमदार प्रत्याशियों को बैठने-बिठाने यानी नामांकन वापसी का दौर जमकर चला। इसे न मानने वाले निकाय चुनाव में लड़े और जीते भी। जो नहीं माने उन्हें जीतने के बाद भी निलंबन, निष्कासन की तलवारें चलाई जा रहीं हैं। इसमें यह नहीं देखा जा रहा कि वो कितना बड़ा नेता रहा है। ऐसे ही एक दमदार वैश्य नेता जी जो जीत की हैट्रिक लगाने वाले थे, अचानक बैठ गए। सजातीय लोगों को समझ नहीं आया कि अचानक ऐसे कैसे हो गया। एक रात जब सब मिल बैठे तो हुआ खुलासा। नेताजी को पहले कहा गया विपक्ष के करीबी हैं अब विपक्ष के नेताओं का काम नहीं चलेगा। नेताजी नहीं माने। फिर कुछ और तरीके इस्तेमाल हुए।
शिक्षकों का फर्जीवाड़ा, बच्चों में खौफ
भर्ती परीक्षाओं में फर्जी परीक्षार्थियों की घटनाएं अक्सर सुनने को मिलती हैं, लेकिन अगर ऐसा प्राइमरी स्कूल में होने लगे, तो शिक्षा व्यवस्था की दयनीय स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। पहले आठवीं तक बच्चों को बिना किसी ठोस आकलन के पास कर दिया जाता था, और परीक्षा एक औपचारिकता होती थी। लेकिन जब यह नतीजा आने लगा कि शिक्षक बच्चों को बुनियादी अक्षर ज्ञान और गणितीय कौशल सिखाने में लापरवाही बरत रहे हैं, तो नई शिक्षा नीति की गाइडलाइन के तहत इस साल से पांचवीं और आठवीं की बोर्ड परीक्षाओं को अनिवार्य कर दिया गया।
हालांकि, प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की वास्तविकता इससे कहीं अधिक चिंताजनक है। शिक्षा की गुणवत्ता का आकलन करने वाली संस्था ‘असर’ की रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ की स्कूली शिक्षा की हालत बदतर बताई गई है। सरकार ने शिक्षकों को जवाबदेह बनाने के लिए बोर्ड परीक्षा को अनिवार्य किया, लेकिन कुछ शिक्षक और अधिकारी अब भी इसे गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हैं। सरगुजा जिले के लखनपुर ब्लॉक के सुगाआमा गांव में इसका एक चौंकाने वाला उदाहरण सामने आया, जहां कुल दो बच्चों की परीक्षा होनी थी। एक बच्ची परीक्षा में उपस्थित थी, लेकिन दूसरे परीक्षार्थी की जगह स्कूल में काम करने वाले स्वीपर मनीष मिंज को बैठा दिया गया।
यह एक मामला, सरकारी स्कूलों के प्रति लोगों में घटती अरूचि और इनमें ताला लगने के सिलसिले को उजागर करता है। क्या वास्तव में इस स्कूल में पांचवीं कक्षा के केवल दो ही छात्र हैं? अगर हां, तो दाखिले इतने कम क्यों हैं? क्या आसपास के बच्चे निजी स्कूलों में पढऩे जा रहे हैं? एक सवाल यह भी है कि दूसरा विद्यार्थी परीक्षा देने क्यों नहीं पहुंचा? क्या वह परीक्षा के नाम से डर गया और भरपाई स्वीपर से की जा रही थी? एक दूसरा मामला तखतपुर से आया है, जो इस आशंका को बल देता है। शुक्रवार को बोर्ड परीक्षा शुरू हुई तो देवतरी स्थित प्रायमरी स्कूल का छात्र अरमान कुर्रे परीक्षा नहीं पहुंचा। शिक्षक इंतजार करते रहे। जब वह काफी देर हो गई तो एक शिक्षक उसके घर पहुंचा। अरमान घर के एक कोने में दुबका बैठा था। उसने परीक्षा देने से मना कर दिया। माता-पिता पहले ही स्कूल तक छोडऩे की कोशिश कर चुके थे, शिक्षक के मनाने-समझाने पर भी अरमान परीक्षा देने के लिए राजी नहीं हुआ।
इधर लखनपुर के सुगाआमा स्कूल के क्लास रूम की हालत भी शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा को सामने लाती है। दीवारें सीलन से भरी हैं, और छोटा सा कमरा किसी हवालात जैसा नजर आता है। सवाल यह है कि मोटा वेतन पाने के बावजूद जिन शिक्षकों और अफसरों ने शिक्षा की नींव खोखली करने में कसर नहीं छोड़ी है, उन पर कोई कठोर कार्रवाई होगी या नहीं? या फिर केवल मामूली मानदेय पर काम करने वाले अंशकालिक स्वीपर को बलि का बकरा बनाकर इस मामला दबा दिया जाएगा?
प्रसंगवश, शिक्षा विभाग की मंशा, निजी पब्लिक स्कूलों की परीक्षा भी माध्यमिक शिक्षा मंडल से कराने की थी। हाईकोर्ट से निजी स्कूल प्रबंधकों को इस सत्र के लिए स्थगन मिल गया है। लखनपुर की घटना बताती है कि पहले सरकारी स्कूलों में ही परीक्षा लेने का इंतजाम सुधार लिया जाए फिर निजी स्कूलों को बाध्य किया जाए। तखतपुर की घटना बताती है कि शिक्षक और छात्र के बीच इतनी दूरी नहीं होनी चाहिए कि नादान सी उम्र में ही परीक्षा को लेकर डर बैठ जाए।
नौ वर्षों बाद दिखा दुर्लभ पक्षी
छत्तीसगढ़ में नौ वर्षों बाद एक दुर्लभ पक्षी को फिर देखा गया है। युवा फोटोग्राफर राहुल गुप्ता ने 23 मार्च को अचानकमार टाइगर रिजर्व के समीप शिवतराई क्षेत्र में इस पक्षी को कैमरे में कैद किया। यह पक्षी कबूतर जैसा दिखने वाला और दुर्लभ प्रजाति का है।इंडियन बर्ड्स समूह के मॉडरेटर एवं विशेषज्ञ रजुला करीम ने इस पक्षी की पहचान ऑरेंज-ब्रेस्टेड ग्रीन पिजन (मादा) के रूप में की है। इस पहचान की पुष्टि ई-बर्ड से जुड़े छत्तीसगढ़ के पक्षी विशेषज्ञ डॉ. हिमांशु गुप्ता ने भी की।
यह पक्षी येलो-लेग्ड ग्रीन पिजन (हरियल) का नजदीकी रिश्तेदार है, लेकिन इसके पैरों और वक्ष स्थल के पंखों के रंग में विशेष अंतर होता है।
गौरतलब है कि इससे पहले 20 फरवरी 2016 को बस्तर से पक्षी प्रेमी सुशील दत्ता ने इस दुर्लभ पक्षी की फोटो ‘बर्ड एंड वाइल्डलाइफ ऑफ छत्तीसगढ़’ फेसबुक ग्रुप में साझा की थी। यह खोज छत्तीसगढ़ की जैव विविधता और पक्षी संरक्षण के क्षेत्र में एक उपलब्धि मानी जा रही है। (rajpathjanpath@gmail.com)
निजी विवि और नियुक्ति
छत्तीसगढ़ राज्य निजी विश्वविद्यालय आयोग के चेयरमैन, और सदस्य का पद खाली है। चेयरमैन का पद तो 6 महीने से खाली है। एक सदस्य का कार्यकाल भी खत्म हो चुका है। वर्तमान में आयोग के एक सदस्य बृजेशचंद मिश्रा ही चेयरमैन का अतिरिक्त दायित्व संभाल रहे हैं। मिश्रा का कार्यकाल भी अगले पखवाड़े खत्म होने वाला है। इससे परे निजी विश्वविद्यालयों में फर्जीवाड़े की शिकायत रही है। खुद राज्यपाल रामेन डेका विश्वविद्यालयों की कार्यप्र्रणाली पर भरी बैठक में नाराजगी जता चुके हैं।
चूंकि मिश्रा रविवि में कुलसचिव रह चुके हैं। रायपुर कमिश्नर के साथ-साथ कई अहम पदों पर रहे हैं। उन्होंने निजी विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली को पटरी पर लाने के लिए काफी हद तक दबाव बनाया है। इन सबके बीच चेयरमैन, और सदस्यों के रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए देश-प्रदेश के शिक्षाविदों की लाइन लगी है, और वे जोड़तोड़ भी कर रहे हैं। कुछ पूर्व कुलपति भी आयोग के अध्यक्ष बनने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं।
हल्ला है कि कुछ निजी विश्वविद्यालय के प्रबंधक अपनी पसंद का अध्यक्ष और सदस्य बनवाने के लिए भी प्रयासरत हैं। कुछ विवादित शिक्षाविदों के नाम चर्चा में हैं। सरकार इस पर क्या कुछ फैसला लेती है यह अगले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा।
आईएएस में फेरबदल का वक्त
तबादलों का सीजन शुरू हो रहा है। इसकी शुरूआत मंत्रालय से होने जा रही है। चर्चा है कि आईएएस अफसरों की एक लंबी सूची निकल सकती है। उच्च शिक्षा सचिव आर प्रसन्ना केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं। वो इसी हफ्ते रिलीव हो जाएंगे।
इसी तरह बिलासपुर कलेक्टर अवनीशशरण की मंत्रालय में पोस्ंिटग हो सकती है। वो सचिव के पद पर प्रमोट हो चुके हैं। कुछ कलेक्टरों को बदले जाने की चर्चा है। कहा जा रहा है कि आधा दर्जन कलेक्टर प्रभावित हो सकते हैं। कुछ बेहतर काम करने वाले अफसरों को अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। मसलन, रजत कुमार, सोनमणि बोरा, और एक-दो महिला अफसरों के नाम चर्चा में हैं।
राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस में आए अफसर सचिव के पद पर नहीं है। पिछली सरकारों में कम से कम चार-पांच आईएएस अवार्ड वाले अफसर सचिव होते थे। यह बात भी अलग-अलग फोरम के जरिए सीएस तक पहुंचाई गई है। माना जा रहा है कि फील्ड में पोस्टेड अफसरों में से एक-दो को मंत्रालय में लाया जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
सुलझेगा महानदी जल विवाद?
महानदी जल विवाद की जड़ें छत्तीसगढ़ के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में बनाए गए बैराज और चेक डैम से जुड़ी हैं, जिनका निर्माण मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ में जल संसाधन प्रबंधन के लिए किया गया था। ओडिशा का आरोप है कि इन परियोजनाओं ने महानदी के निचले हिस्से में जल प्रवाह को प्रभावित किया, जिससे वहां सिंचाई और पेयजल की समस्या पैदा हुई। यह विवाद तब और गहरा गया था जब छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी और ओडिशा में बीजू जनता दल की। ओडिशा के विधायकों की एक समिति उस समय छत्तीसगढ़ का दौरा किया था। उस समय छत्तीसगढ़ में बृजमोहन अग्रवाल जल संसाधन मंत्री थे। यह दौरा महानदी के जल उपयोग और बैराजों के प्रभाव को समझने के लिए किया गया था। ओडिशा का कहना था कि बिना एनजीटी की मंजूरी के ये बैराज बनाए रहे हैं। ओडिशा सरकार से भी सहमति नहीं ली गई।, लेकिन उस समय कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया। ओडिशा ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय हरित अधिकरण और जल विवाद न्यायाधिकरण तक ले जाया, लेकिन वहां भी मामला अनसुलझा रहा। कांग्रेस सरकार के 5 साल के कार्यकाल में भी समझौते की दिशा में कोई प्रयास नहीं दिखा। अब, जब दोनों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं और केंद्र भी समन्वय के लिए तैयार है, तो इस विवाद के हल होने की संभावना बढ़ गई है। शनिवार को भुवनेश्वर के लोक सेवा भवन में हुई बैठक में दोनों मुख्यमंत्रियों ने जिस तरह से सहमति जताई, वह इस बात का संकेत है कि राजनीतिक एकता और आपसी समझ इस लंबित समस्या को हल कर सकती है।
गिरा दो झोपड़ी, मैं महल बना लूंगी
उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर से आई एक तस्वीर ने हमारे समाज को झकझोर कर रख दिया है। बुलडोजर जब अजईपुर गांव की झोपडिय़ों को ढहा रहा था, तब छोटी सी बच्ची अनन्या दौड़ती हुई आई और अपने बिखरते आशियाने से अपनी कॉपी-किताबों को समेट ले गई। मानो वह कह रही है कि तुम झोपड़ी तोड़ सकते हो, मेरे सपने नहीं। किताबें बच गईं तो मैं खुद अपना महल खड़ा कर लूंगी। कक्षा-1 में पढऩे वाली इस नन्ही बच्ची की तस्वीर ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारों के खोखलेपन को भी उजागर किया है। (rajpathjanpath@gmail.com)
कांग्रेस में कौन कहाँ
आखिरकार कांग्रेस ने शनिवार को 11 जिला अध्यक्षों की सूची जारी कर दी। इन अध्यक्षों को बदला जाना था। खास बात ये है कि प्रदेश के बड़े नेताओं की पसंद पर जिला अध्यक्षों का चयन किया गया। साथ ही प्रभारी सचिवों की राय को भी तवज्जो दी गई।
मसलन, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत की पसंद पर कोरबा शहर और ग्रामीण अध्यक्ष की नियुक्ति की गई। पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस. सिंहदेव की सिफारिश पर सरगुजा और बलरामपुर जिला अध्यक्ष की नियुक्ति की गई। पूर्व सीएम भूपेश बघेल की अनुशंसा पर राकेश ठाकुर को दुर्ग और चंद्रेश हिरवानी को बालोद जिला अध्यक्ष बनाया गया।
र्व विधायक आशीष छाबड़ा को बेमेतरा जिले की कमान सौंपी गई। छाबड़ा, पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू के करीबी माने जाते हैं। इन सबके बीच में एक-दो नाम ऐसे भी हैं जिनकी नियुक्ति को लेकर पार्टी के भीतर काफी चर्चा हो रही है। बलौदाबाजार-भाटापारा जिले की कमान महिला नेत्री सुमित्रा धृतलहरे को सौंपी गई है। सुमित्रा जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लडऩा चाहती थी लेकिन पार्टी ने उन्हें अधिकृत नहीं किया। सुमित्रा की जगह एक पूर्व मंत्री के नजदीकी रिश्तेदार को जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ाया गया। मगर अब पार्टी ने सुमित्रा को सीधे जिले की कमान सौंप दी है।
इसी तरह नारायणपुर जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बीसेल नाग की नियुक्ति की गई है, जिसके नाम पर एक तरह से आम सहमति रही है। इसी तरह कोण्डागांव में बुधराम नेताम को जिला अध्यक्ष बनाया गया है, जो कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम के नजदीकी माने जाते हैं। यानी नियुक्तियों में हाईकमान ने सभी गुटों को साधने की कोशिश की है।
लालबत्तियां कब?
भाजपा संगठन में भी बड़े बदलाव की चर्चा है। प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव की नई कार्यकारिणी अगले महीने के आखिरी तक जारी हो सकती है। पार्टी के रणनीतिकार नए चेहरे को आगे लाने की तैयारी कर रहे हैं। यह चर्चा है कि वर्तमान में प्रदेश के महामंत्री, और उपाध्यक्ष जैसे पदों पर बैठे कई नेताओं को 'लालबत्ती' मिल सकती है।
पीएम नरेन्द्र मोदी का 30 तारीख को बिलासपुर प्रवास है। कहा जा रहा है कि मोदी के दौरे के बाद निगम मंडलों के पदाधिकारियों की एक सूची जारी हो सकती है। निगम मंडलों की नियुक्ति में क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखा जाएगा। इससे परे संगठन में मोर्चा-प्रकोष्ठ के अध्यक्षों के लिए उपयुक्त नाम तलाशे जा रहे हैं। आरएसएस से भी चर्चा चल रही है। कुछ नेताओं का अंदाजा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद किरण देव की नई टीम घोषित की जा सकती है।
बिना प्रसाधन कन्या दान
एमसीबी (मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर) जिले में कल सामूहिक कन्या विवाह सम्मेलन रखा गया। अफसरों ने नव दंपतियों को दिए जाने वाले चेक और उपहारों का वितरण मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल से कराया। आगे-पीछे अफसर होते हैं तो मंत्रियों को पता ही नहीं चलता कि अफसर क्या-क्या गुल खिलाते हैं। चिरमिरी के लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम में भी कुछ ऐसा ही हुआ। सामूहिक विवाह के लिए जो युवा पहुंचे थे उनके लिए महिला बाल विकास विभाग ने चेंजिंग रूम की व्यवस्था ही नहीं की थी। वर, वधू और उनके अभिभावक इसे लेकर खासे परेशान हुए। कोई किसी झाड़ी के पीछे तो कोई किसी दीवार के कोने में जगह बनाकर कपड़े बदल रहा था। पता चला है कि इस आयोजन के लिए 11 लाख रुपये का बजट मिला था। अस्थायी प्रसाधन कक्ष कुछ टेंट, शीट, कनात खींचकर थोड़े से बजट से बनाए जा सकते थे, मगर अधिकारियों ने यह पैसा बचा लिया। पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में नये जोड़ों को उपहार देने की परंपरा शुरू हुई थी। तब बलरामपुर जिले में तत्कालीन मंत्री डॉ. प्रेम साय सिंह ऐसे ही एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। वहां घटिया बर्तन वितरित करने की शिकायत वहां के जनप्रतिनिधियों ने उनसे की थी, मगर कोई कार्रवाई किसी पर नहीं हुई थी। करीब 3-4 साल पहले महासमुंद से खबर आई थी कि वहां के कलेक्टर ने घटिया गद्दे रजाई और बर्तन बांटने से ऐन वक्त पर रोक दिया था और विभाग के अधिकारियों को फटकारा था। मगर, वही घटिया दर्जे के उपहार कुछ बाद हुए दूसरे विवाह सम्मेलन में बांट दिया गया। तब तक कलेक्टर का तबादला हो चुका था। बाल विकास विभाग में बच्चों के पोषण आहार में कमीशनखोरी अक्सर चर्चा में रहती है। सामूहिक विवाह के लिए सामान खरीदने, समारोह की व्यवस्था करने पर निर्धारित बजट में भी इसी तरह की गड़बड़ी होती है।
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विधानसभा भवन पर कइयों की नजर
बजट सत्र के अवसान संबोधन में स्पीकर डॉ. रमन सिंह ने कह दिया है कि यह इस सदन (भवन) में अंतिम सत्र था। अगला सत्र जो मानसून सत्र होगा वह नवा रायपुर के नए विशाल भवन में होगा।
स्पीकर की इस घोषणा के बाद रिक्त होने वाले इस भवन पर कब्जे ,आबंटन को लेकर सरकारी विभागों की नजर गड़ गई है। वे कल से चर्चा, दावे भी करने लगे हैं। किसे मिलेगा यह सुसज्जित भवन । कोई कह रहा कि राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय भूजल अनुसंधान संस्थान वापस लेगा। जो 2000 में यह भवन हस्तांतरित करने के बाद 25 वर्षों से पचपेड़ी नाका में किराए के भवन मेें है। तो राज्य सरकार के किसी शैक्षणिक संस्थान को देने की भी चर्चा है। वन विभाग की भी नजर है। वह अपने राज्य वन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है। जो अभी इसके सामने ही भवन में चल रहा है।
लेकिन सच्चाई यह है कि फिलहाल तो एक डेढ़ वर्ष तक भवन विधानसभा सचिवालय के आधिपत्य में ही रहेगा। क्योकिं नए भवन के निर्माण की प्र-गति देखने वाले सचिवालय के अफसरों को नहीं लग रहा कि अगला सत्र वहां हो जाएगा ? भवन का स्ट्रक्चरल वर्क तो हो गया है लेकिन असली बारीकियाँ, नक्काशी तो फिनिशिंग में होती है, कराई जाती हैं। और उसी में डेढ़ दिन का काम तीन दिन की तर्ज पर होता है। देखना होगा स्पीकर की घोषणा का सम्मान, निर्माण एजेंसी पीडब्लूडी के अफसर कैसे करते हैं । तब तक ऐसी कई चर्चाएं अटकलें चलती रहेंगी ।
बृजमोहन की अनदेखी भारी पड़ी
रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल की सिफारिशों को हल्के में लेना रायपुर एम्स के डायरेक्टर डॉ. अशोक जिंदल को भारी पड़ गया। बृजमोहन ने शुक्रवार को जिंदल के खिलाफ लोकसभा में मामला उठा दिया। बृजमोहन के तेवर से एम्स में हडक़ंप मचा है।
बताते हैं कि रायपुर लोकसभा क्षेत्र के मरीजों के दाखिले के लिए बृजमोहन की तरफ से रायपुर एम्स में सिफारिशें भेजी जाती रही है। खुद बृजमोहन रायपुर एम्स की सलाहकार समिति के चेयरमैन भी हैं, और चर्चा है कि खुद उन्होंने मरीजों से जुड़ी समस्याओं को लेकर एम्स डायरेक्टर को फोन लगवाया तो उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला।
बृजमोहन के करीबियों का कहना है कि हमेशा एम्स प्रबंधन की तरफ से बेड नहीं होने की बात कहकर गंभीर मरीजों को वापिस भेज दिया जाता है। इससे बृजमोहन काफी खफा थे। उन्होंने सीधे-सीधे लोकसभा में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री प्रतापराव जाधव के संज्ञान में मामला लाया। जाधव ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लिया है। उन्होंने यह भी बताया कि एम्स में 150 बिस्तर वाले क्रिटिकल केयर अस्पताल ब्लॉक की स्थापना को मंजूरी दी गई है। ताकि गंभीर मरीजों का बेहतर इलाज हो सके।
खैर, बृजमोहन के सवाल के बाद एम्स की व्यवस्था बेहतर होगी, इसकी उम्मीद जताई जा रही है। कुछ लोग पूर्ववर्ती एम्स डायरेक्टर डॉ. नितिन नागरकर की कार्यशैली को याद कर रहे हैं। जिन्होंने उस समय सीमित संसाधन होने के बावजूद एम्स में इलाज की बेहतर व्यवस्था बनाई। कोरोना काल में एम्स में इलाज के बेहतर प्रबंधन की राष्ट्रीय स्तर पर तारीफ हुई थी।
अब तो बिहार में भी बदल दिए
कांग्रेस हाईकमान ने बिहार में भी प्रदेश अध्यक्ष को बदल दिया है। विधायक राजेश कुमार को अध्यक्ष बनाया गया है। छत्तीसगढ़ में भी कुछ इसी तरह की अटकलें लगती रही है, और जब प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट यहां आए, तो कुछ लोगों ने उनसे प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के भविष्य को लेकर पूछ दिया।
पायलट ने सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहा लेकिन एक-दो प्रमुख नेताओं ने बैज के पक्ष में बात कही है। इन सबके बीच अंदाजा लगाया जा रहा है कि बैज कुछ समय तक और पद पर बने रह सकते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि एक दर्जन से अधिक जिला अध्यक्षों की सूची जारी हो सकती है। बदलाव को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है। आगे क्या होता है यह कुछ दिन बात पता चलेगा।
स्मारकों का भी हो रहा सफाया
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में नक्सल प्रभावित इलाकों में हाल के महीनों में सुरक्षा बलों और पुलिस ने नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई तेज की है। बीजापुर जिले के उसूर इलाके में सीआरपीएफ की 81वीं और कोबरा 204वीं बटालियन की संयुक्त टीम ने कल 30 फीट ऊंचे नक्सली स्मारक को ध्वस्त किया। नक्सलियों ने बस्तर क्षेत्र में कई ऊंचे स्मारक बनाए हैं, जिनकी ऊंचाई आमतौर पर 20 से 40 फीट तक होती है। मगर बीजापुर के कोमटीपल्ली में करीब 64 फीट ऊंचा स्मारक बनाया गया था, जिसे दिसंबर में गिराया गया। इसकी तस्वीर को वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने अपनी सोशल मीडिया हैंडल पर पोस्ट भी किया था। इन स्मारकों की सटीक संख्या मौजूद नहीं है, पर यह तय है कि जब भी सुरक्षा बलों के मुठभेड़ों में नक्सली बड़ी संख्या में मारे जाते हैं तो उस जगह वे स्मारक खड़ा करने की कोशिश करते हैं। बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर, दंतेवाड़ा के दुर्गम इलाकों में अब भी कई स्मारक मौजूद हैं। बीजापुर के तमिलभट्टी गांव में भी इसी महीने, 7 मार्च को एक नक्सली स्मारक नष्ट किया गया था। दरअसल, ये स्मारक नक्सली इसलिये बनाते हैं ताकि स्थानीय आदिवासी समुदाय पर उनका प्रभाव बढ़े और सुरक्षा बलों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बने। इन स्मारकों के जरिए वे क्षेत्र में अपनी मौजूदगी को मजबूत करने की कोशिश करते हैं। सरकार और सुरक्षा बलों को यह मालूम है, इसलिये वे जब भी किसी मुठभेड़ में सफलता हासिल करते हैं, वहां यदि कोई स्मारक मिला तो उसे भी ध्वस्त कर देते हैं।
(rajpathjanpath@gmail.com)
जेल में रहते हुए भी...
नगरीय निकाय चुनाव की तरह पंचायत चुनाव में भी भाजपा को अभूतपूर्व सफलता मिली है। पार्टी 33 में से 32 जिला पंचायतों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही। मगर पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा के जेल में होने के बाद भी सुकमा जिला पंचायत में भाजपा का परचम नहीं लहरा पाया। भाजपा के रणनीतिकारों ने यहां अपना अध्यक्ष बनवाने के लिए भरसक कोशिशें की थी, लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाए।
सुकमा में कांग्रेस समर्थित पांच, भाजपा के तीन, और सीपीआई समर्थित तीन जिला पंचायत सदस्य चुनकर आए थे। भाजपा के रणनीतिकारों ने पहले सीपीआई, और फिर कांग्रेस समर्थित सदस्यों को तोडऩे की कोशिश की, लेकिन निराशा हाथ लगी। दो बार चुनाव की तिथि आगे बढ़ाई गई, लेकिन कांग्रेस, और सीपीआई के सदस्य आखिरी तक एकजुट रहे। किसी तरह दबाव, और प्रलोभन का उन पर कोई फर्क नहीं पड़ा। आखिरकार कांग्रेस समर्थित मंगम्मा सोयम जिला पंचायत अध्यक्ष, और सीपीआई के महेश कुंजाम उपाध्यक्ष निर्वाचित घोषित किए गए।
रायपुर जिला पंचायत में कांग्रेस, और भाजपा के बीच बराबरी का मुकाबला था। मगर जोगी पार्टी के जिला पंचायत सदस्य संदीप यदु, और एक अन्य सदस्य अन्नू तारक के भाजपा में शामिल होने से खेल बिगड़ गया। भाजपा समर्थित नवीन अग्रवाल जिला पंचायत अध्यक्ष, और उपाध्यक्ष पद पर संदीप यदु निर्वाचित हुए। नवीन पहले जिला पंचायत उपाध्यक्ष रह चुके हैं। चाहे जैसे भी हो, राज्य बनने के पहले, और बाद में जिला पंचायतों में भाजपा को इतनी बड़ी सफलता कभी नहीं मिली।
महज तीन वर्ष में ईडी की सूची में छत्तीसगढ़
केंद्र सरकार ने संसद को सूचित किया है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पिछले 10 वर्षों में सांसदों, विधायकों, एमएलसी और स्थानीय निकायों के नेताओं साथ-साथ उनके दलों के खिलाफ 193 मामले दर्ज किए हैं। लेकिन इनमें ईडी का कनविक्शन रेट एक प्रतिशत से भी कम है। संसद में दी गई जानकारी के अनुसार इनमें से केवल दो ही मामलों में आरोपी नेताओं पर दोष सिद्ध कर पाई है हालांकि संघीय जांच एजेंसी के लिए सुखद खबर यह भी है कि किसी भी मामले में गुण-दोष के आधार पर दोषमुक्ति नहीं हुई है। ईडी की इस लिस्ट में छत्तीसगढ़ ने भी जगह बनाई है। और वह भी महज ढाई तीन वर्ष में ।
ईडी यहां कोयला घोटाला, शराब घोटाला, कस्टम मिलिंग, और महादेव सट्टा घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग के मामले दर्ज किए हैं। और दो वर्तमान विधायक कवासी लखमा (पूर्व मंत्री) देवेंद्र यादव और पूर्व विधायक चंद्रदेव राय को आरोपी बनाया है। और इन्हीं मामलों में पूर्व सीएम के पुत्र से पूछताछ हो रही है। तो कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल की भी तलाश है ईडी को । ईडी के अतिरिक्त आयकर, सीबीआई के जाल में भी कई अफसर, नेता फंसे हुए हैं।
ईडी ने सिटिंग और पूर्व सांसदों, विधायकों, एमएलसी और राजनीतिक दलों से जुड़े व्यक्तियों का साल दर साल विवरण दिया है। इसके मुताबिक-
01.04.2015 से 31.03.2016 तक-10
01.04.2016 से 31.03.2017 तक- 14
01.04.2017 से 31.03.2018 तक- 07
01.04.2018 से 31.03.2019 तक- 11
01.04.2019 से 31.03.2020 तक- 26
01.04.2020 से 31.03.2021 तक- 27
01.04.2021 से 31.03.2022 तक- 26
01.04.2022 से 31.03.2023 तक- 32
01.04.2023 से 31.03.2024 तक- 27
01.04.2024 से 28.02.205 तक-13
पर केस दर्ज किए हैं।
संवेदनशीलता और विफलता
कोंडागांव, बस्तर का वह कोना जहां माओवादी हिंसा और अधूरे विकास की हकीकत आज भी ग्रामीणों का पीछा नहीं छोड़ती। एक तस्वीर सामने आई है—युवा कलेक्टर कुणाल दुदावत, एसपी के साथ बाइक पर सवार, पथरीली पगडंडियों को पार करते हुए गांववालों की समस्याएं सुनने निकले हैं।
यह उनकी संवेदनशीलता है, तारीफ होनी चाहिए। भीषण गर्मी में अफसर एसी गाडिय़ों से उतरकर ग्रामीणों तक पहुंच रहे हैं। लेकिन यही तस्वीर एक कड़वी सच्चाई भी बयान कर रही है। 77 साल बाद भी यहां सडक़ें और पुल नहीं बन पाए। बस्तर के कई गांव बारिश में राशन के लिए तो गर्मी में पानी के लिए। नाले उफान पर आए तो पुल बह जाते हैं, बच्चे बांस के सहारे नदी पार करने को मजबूर होते हैं। एंबुलेंस इन पगडंडियों तक नहीं पहुंचती, मरीजों को खाट-कांवड़ पर अस्पताल ले जाना पड़ता है।
इसलिए कलेक्टर का बाइक से गांव पहुंचना सराहनीय जरूर हो पर उतना ही शर्मनाक भी कहा जा सकता है। यह प्रशासन की इच्छाशक्ति और वर्षों से अधूरे पड़े विकास कार्यों की पोल खोलता है। यह तस्वीर कब बदलेगी?
एआई ने खींचा अपराधी का स्केच
भिलाई में तीन दिन पहले लूट की एक घटना हुई थी। स्कूटी सवार महिला के गले में चाकू अड़ाकर सोने की चेन और अंगूठी लूट ली गई। मामले में पुलिस को अपराधी का स्केच बनाने के लिए स्केच आर्टिस्ट की जरूरत नहीं पड़ी। पीडि़ता के इंजीनियर पति ने खुद एआई तकनीक से संदिग्ध की तस्वीर तैयार कर पुलिस को दी। उसी तस्वीर के आधार पर अब पुलिस अपराधी की तलाश कर रही है। यह दिखाता है कि हमारे आपके जैसे आम नागरिक भी तकनीक के जरिए अपराधों की जांच में मददगार बन सकते हैं। दिल्ली पुलिस अपराधियों के पकडऩे के लिए एआई तकनीक का इस्तेमाल कर रही है। सीसीटीवी फुटेज में संदिग्ध की तस्वीर को पहचानने में मदद ली जा रही है। दिल्ली पुलिस पुराने आपराधिक डेटा की जांच करने के लिए भी एआई का इस्तेमाल कर रही है। यदि कोई संदिग्ध बातचीत रिकॉर्ड की गई तो भी एआई से पहचानने में मदद मिल सकती है। प्रसंगवश, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में इन दिनों सुनवाई चल रही है कि पुलिस महकमे में साइबर एक्सपर्ट की भारी कमी है। छत्तीसगढ़ पुलिस को अब साइबर एक्सपर्ट ही नहीं, एआई एक्सपर्ट की भी जरूरत पडऩे वाली है। भिलाई के मामले में तो पीडि़ता का पति इंजीनियर था, एआई का जानकार था तो स्केच बनाकर दे दिया, पर बाकी मामलों में तो अपराध की जांच करने वाली पुलिस को ही जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। (rajpathjanpath@gmail.com)
निरक्षरता बचाव का हथियार?
पूर्व आबकारी मंत्री और विधायक कवासी लखमा इस समय 2100 करोड़ रुपये के कथित शराब घोटाले में जेल में हैं। रायपुर सेंट्रल जेल में ईओडब्ल्यू उनसे लगातार पूछताछ कर रही है। लखमा का बचाव यही है कि वे पढ़े-लिखे नहीं हैं और अफसरों ने जहां दस्तखत करने के लिए कहा, उन्होंने वहां कर दिया।
हालांकि, अभी इस मामले की जांच जारी है। केस डायरी कोर्ट में पेश नहीं हुई है और सुनवाई के बाद ही फैसला आएगा। कैसा भी फैसला हो, उस फैसले के खिलाफ ऊपर की अदालतों में अपील की संभावनाएं भी रहेंगी। लेकिन कानूनी नजरिये से बड़ा सवाल यह है कि लखमा का यह बचाव कानून के धरातल पर कितना टिकेगा?
विधि के कुछ जानकारों का मानना है कि भारतीय कानून का एक सामान्य सिद्धांत यह है कि कानून की अज्ञानता कोई बहाना नहीं हो सकती। लेकिन यहां मामला सिर्फ कानूनी अज्ञानता का नहीं, बल्कि दस्तावेजों और तथ्यों की जानकारी न होने का है।
अदालत ऐसे मामले में जांच कर सकती है कि क्या वास्तव में आरोपी अशिक्षा के कारण घोटाले की जानकारी नहीं रखता था? क्या दस्तावेजों पर बिना समझे हस्ताक्षर किए गए, या फिर यह एक सोची-समझी भागीदारी थी? आरोपी को इस घोटाले से कोई आर्थिक या अन्य व्यक्तिगत लाभ हुआ या नहीं और क्या परिस्थितिजन्य साक्ष्य आरोपी के खिलाफ जाते हैं?
यदि अदालत को यह विश्वास हो जाता है कि लखमा अनजाने में किसी षड्यंत्र का हिस्सा बने और उन्हें कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं हुआ, तो सजा कम हो सकती है या वे पूरी तरह बरी भी हो सकते हैं। लेकिन यदि उनकी संलिप्तता साबित होती है, तो खुद को अनपढ़ बताना बचाव के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
1988 के भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(डी) के तहत, यह साबित करना जरूरी होता है कि आरोपी ने जानबूझकर अपने पद का दुरुपयोग किया। अदालतें कई मामलों में मान चुकी हैं कि अशिक्षा अपने आप में बचाव नहीं हो सकती। खासकर जब कोई व्यक्ति मंत्री जैसे उच्च पद पर हो, तो उसे अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों की बुनियादी समझ होती है।
न्यायिक फैसला साक्ष्यों, वकीलों की जिरह और अदालत के दृष्टिकोण पर निर्भर होगा। लेकिन यहां एक बात साफ हो रही है कि वैसे तो शिक्षा हमेशा ताकत होती है, मगर कुछ परिस्थितियों में निरक्षरता को भी बचाव के लिए हथियार बनाया जा सकता है।
लखमा ने पायलट से कहा
प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट रायपुर आए, तो पार्टी में काफी हलचल रही। यहां आने के बाद वो नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरणदास महंत, और प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के साथ सेंट्रल जेल में बंद पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा से मिलने पहुंचे।
बताते हैं कि पायलट से चर्चा के दौरान पूर्व आबकारी मंत्री लखमा मायूस थे। इसकी वजह यह भी थी कि पायलट से मुलाकात खत्म होने के बाद ईओडब्ल्यू-एसीबी की टीम उनसे पूछताछ के लिए पहुंचने वाली थी। कवासी ने पायलट को दुखड़ा सुनाया कि उनका प्रकरण से कोई लेना देना नहीं है। उन्हें फंसाया गया है। ईडी और ईओडब्ल्यू-एसीबी ने दोनों ने अलग-अलग प्रकरण दर्ज कर रखा है। एक प्रकरण में जमानत होती है, तो उसी प्रकरण में ईओडब्ल्यू-एसीबी गिरफ्तार कर लेती है।
लखमा ने कहा कि जमानत के लिए निचली अदालत से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक जाना होता है। ऐसे में तुरंत राहत मिलना मुश्किल है। पायलट ने उन्हें दिलासा दिया, और भरोसा दिया कि पूरी पार्टी उनके साथ है।
चैम्बर चुनाव का भविष्य
छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े व्यापारिक संगठन चैम्बर ऑफ कॉमर्स के चुनाव चल रहे हैं। दशकों बाद यह पहला मौका है जब अध्यक्ष, महासचिव और कोषाध्यक्ष पद पर निर्विरोध निर्वाचन के आसार दिख रहे हैं।
शुरूआती दौर में दिवंगत महावीर अग्रवाल जैसे बड़े व्यापारी नेता थे, जो निर्विरोध अध्यक्ष बन जाते थे। बाद में व्यापारियों की सदस्य संख्या बढ़ती गई, और अब 27 हजार से अधिक व्यापारी चैम्बर के सदस्य बन चुके हैं। चैम्बर चुनाव में कांग्रेस और भाजपा की भी दिलचस्पी रही है।
राज्य बनने के बाद चैम्बर में तत्कालीन सीएम अजीत जोगी ने भी दखल देने की कोशिश की, लेकिन वो सफल नहीं हो पाए। बिलासपुर में चैम्बर का एक नया संगठन खड़ा हो गया। मगर मौजूदा चैम्बर की ताकत में कमी नहीं आई। ये अलग बात है कि चैम्बर में अग्रवाल व्यापारियों की जगह सिंधी व्यापारी ताकतवर हो चुके हैं। हालांकि निवर्तमान अध्यक्ष अमर पारवानी ऐसे सिंधी व्यापारी नेता हैं जिन्होंने अग्रवाल समाज को भी साधकर रखा है।
पारवानी से पहले पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी का चैम्बर में दबदबा रहा है, लेकिन अब परिस्थिति काफी बदल गई है। और अब जब दोनों साथ आ गए हैं, तो निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति बनती दिख रही है। बड़े व्यापारी सतीश थौरानी का अध्यक्ष, महासचिव पद पर अजय भसीन व कोषाध्यक्ष पद पर निकेश बरडिय़ा का निर्विरोध निर्वाचन तय दिख रहा है।
अध्यक्ष पद के लिए ललित जैसिंघ ने दावेदारी ठोकी थी, लेकिन वो बाद में समझाइश देने पर पीछे हट गए। रायगढ़ जैसे कुछ जगहों पर विवाद की स्थिति बनी है, लेकिन वहां भी निर्विरोध निर्वाचन के लिए प्रयास हो रहे हैं। कुल मिलाकर महावीर अग्रवाल वाला दौर आता दिख रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
दुर्लभ कैराकल की चर्चा
इस समय सोशल मीडिया पर भारत की सबसे दुर्लभ जंगली बिल्लियों में से एक ‘कैराकल’ की चर्चा हो रही है। यह पहली बार राजस्थान के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में कैमरा ट्रैप में देखी गई है। राजस्थान के वन मंत्री संजय शर्मा ने इसकी एक तस्वीर सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट की है। कैराकल एक रहस्यमयी और नाइट विजन वाली छोटी जंगली बिल्ली है, जिसकी सबसे खास पहचान उसके काले गुच्छेदार लंबे कान होते हैं। ‘कैराकल’ नाम तुर्की के ‘करकुलक’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘काले कान’। यह इतनी तेज होती है कि उड़ते हुए पक्षियों को भी झपट कर पकड़ सकती है! इतिहास में इसे शाही शिकारी बिल्ली माना जाता था, जिसका जिक़्र ‘शाहनामा’ और ‘तूतीनामा’ जैसे ग्रंथों में भी है। भारत में अब 50 से भी कम कैराकल बचे हैं, और ये केवल राजस्थान और गुजरात के कुछ इलाकों में पाए जाते हैं।
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भाजपा एमएलए ने जगाया सरकार को
यह एक ऐसा मामला है जिसमें यौन उत्पीडऩ के दोषी प्राध्यापक को न सिर्फ पदोन्नति दी गई, और उन्हें प्रदेश के सबसे पुराने शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय का प्राचार्य बना दिया गया।
पीडि़त महिला प्राध्यापक सात साल तक लड़ाई लड़ती रही। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई, और जब मंगलवार को भाजपा सदस्य भावना बोहरा ने विधानसभा में मामला उठाया, तो सदस्य हैरान रह गए।
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने इस गलती को माना और तीन दिन के भीतर कार्रवाई का भरोसा दिलाया। विवादों से घिरे आयुर्वेदिक कॉलेज के प्राचार्य डॉ.जी.आर.चतुर्वेदी को पिछली सरकार के ताकतवर मंत्री का वरदहस्त रहा। यही वजह है कि उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इतना ही नहीं, उन्हें तमाम नियमों को दरकिनार पदोन्नत कर दिया गया, और सबसे पुराने आयुर्वेदिक कॉलेज का प्राचार्य भी बना दिया गया।
डॉ.चतुर्वेदी के खिलाफ कार्रवाई के लिए पीडि़त महिला प्राध्यापक ने राज्यपाल से लेकर तत्कालीन सीएम और स्वास्थ्य मंत्री तक गुहार लगाई। अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी प्रकरण को संज्ञान में लिया था। मगर प्राचार्य का बाल बांका नहीं हुआ। सदन में भावना बोहरा के तीखे सवाल पर स्वास्थ्य मंत्री ने भरोसा दिलाया कि किसी भी तरह की प्रताडऩा के मामले बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। अब स्वास्थ्य मंत्री के आश्वासन के बाद क्या कार्रवाई होती है, इस पर नजर है।
जांच समिति के सामने चुप्पी
नगर निगम सभापति चुनाव में भाजपा के बागी उम्मीदवार नूतन सिंह ठाकुर की जीत के बाद प्रदेश भाजपा ने जांच के लिए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की। समिति का काम यह पता लगाना है कि 44 पार्षदों के रहते अधिकृत उम्मीदवार हितानंद अग्रवाल को हार का सामना क्यों करना पड़ा और पार्षदों ने बगावत क्यों की। कोरबा पहुंची समिति ने बैठक की, तो पार्षदों का रुख तयशुदा लग रहा था। पार्षदों ने समिति के सामने चुप्पी साध ली और बंद कमरे में अलग-अलग बातचीत से भी मना कर दिया। इधर, संयोजक चाहते थे कि हर पार्षद से अलग-अलग बातचीत कर स्थिति की तह तक पहुंचा जाए।
चुनाव के बाद यह सुगबुगाहट जरूर थी कि अधिकांश पार्षद हितानंद अग्रवाल को उम्मीदवार बनाने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन जब समिति के सामने बात रखने की बारी आई, तो कोई खुलकर सामने नहीं आया। इस मामले में मंत्री लखनलाल देवांगन को भी नोटिस जारी हुआ है, लेकिन विधानसभा सत्र के कारण वे कोरबा नहीं पहुंच सके।
समिति की बैठक से पहले ही एक ऑडियो क्लिप वायरल हो गई, जिसमें कथित रूप से हितानंद अग्रवाल के समर्थन और मंत्री लखनलाल देवांगन के खिलाफ पार्षदों से बयान दिलवाने के लिए प्रलोभन दिए जाने की बात सामने आई। यह भी कहा जा रहा है कि इस ऑडियो में काट-छांट की गई है, और अभी तक समिति के हाथ ओरिजिनल रिकॉर्डिंग नहीं लगी है।
यह पूरा घटनाक्रम भाजपा संगठन के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। एक ओर अनुशासनहीनता का सवाल है, तो दूसरी ओर बागी पार्षदों की बड़ी संख्या जिन्हें कथित रूप से मंत्री का भी आशीर्वाद मिला है।
बैज, या जुनेजा?
प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट रायपुर आए, तो पूर्व विधायक कुलदीप जुनेजा ने उनका स्वागत किया। खास बात यह है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के खिलाफ बयानबाजी पर जुनेजा को नोटिस जारी किया गया है, और उनके खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा भी की गई है। मगर जुनेजा को जिस तरह पायलट ने महत्व दिया उससे जुनेजा पर कार्रवाई को लेकर संदेह है। पार्टी के कुछ लोगों का मानना है कि बैज पद पर रहेंगे या नहीं, यह तय नहीं है। ऐसे में जुनेजा पर कार्रवाई होगी, इसको लेकर संदेह है। देखना है आगे क्या होता है।
अनूठी ‘सुलूर’ बांसुरी, अब ऑनलाइन
बस्तर की समृद्ध लोक-संस्कृति में मोहरी, तुरही, बाजा जैसे कई पारंपरिक वाद्य यंत्र खास पहचान रखते हैं, लेकिन इनमें से ‘सुलूर’ यानी पवन बांसुरी बेहद खास है। यह वाद्य यंत्र काष्ठ कला का उत्कृष्ट नमूना है और इसे एक विशेष प्रकार के बांस से तैयार किया जाता है।
सामान्य बांसुरी के विपरीत, सुलूर से सुर निकालने के लिए मुंह से हवा फूंकने की जरूरत नहीं पड़ती। इसे हाथ में लेकर घुमाया जाता है और घुमाने की गति व समय का सही समन्वय होने पर मधुर धुन निकलती है। इसके निर्माण में बांस की नली पर सुराख किए जाते हैं, जो खुद एक अनूठा कौशल है। बांसुरी पर सुंदर और कलात्मक नक्काशी भी उकेरी जाती है, जिससे यह देखने में भी आकर्षक लगती है।पारंपरिक रूप से मवेशी चराते समय यह बांसुरी बजाई जाती है, लेकिन इसे त्योहारों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और अन्य समारोहों में भी उपयोग किया जाता है।
लोकप्रियता बढऩे के साथ अब यह अनोखी बांसुरी ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म्स पर भी उपलब्ध है, जहां इसे 6,000 से 7,000 रुपये में बेचा जा रहा है। जी-20 सम्मेलन के पंडाल में भी इसका प्रदर्शन किया गया था, जहां इसने लोगों का ध्यान आकर्षित किया।
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इतना बड़ा अफ़सर !!
भारतमाला परियोजना में भ्रष्टाचार की परतें खुल रही हैं। नेता, और अफसरों के गठजोड़ से करीब साढ़े 3 सौ करोड़ का मुआवजा घोटाला प्रकाश में आया है। इन सबके बीच कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जिले के प्रशासनिक मुखिया रहे एक आईएएस अफसर के प्रॉपर्टी डिटेल्स निकाले हैं।
कहा जा रहा है कि अफसर ने एक साल में करीब 50 करोड़ से अधिक की प्रॉपर्टी खरीदी है। यह प्रॉपर्टी अफसर ने अपने नाम पर नहीं बल्कि एक फर्म बनाकर खरीदे हैं, और फर्म के मुखिया खुद एक बिल्डर के यहां सेवारत है। यह प्रॉपर्टी मोवा, अमलीडीह, धरमपुरा आदि इलाके में खरीदी गई है।
सुनते हैं कि अफसर ने अपने कार्यकाल में कई विवादित जमीन प्रकरणों का निपटारा किया, और इसके एवज में काफी कुछ पूंजी बनाई है। अफसर को जेल में बंद एक ताकतवर नेता-कारोबारी का बेहद करीबी माना जाता रहा है। चर्चा है कि पिछली सरकार में भी अफसर के खिलाफ शिकायत हुई थी, तब सरकार के मुखिया ने अफसर को फटकार भी लगाई थी।
मगर कारोबारी के वरदहस्त होने की वजह से अफसर का बाल बांका नहीं हुआ। अब जब भारतमाला परियोजना के भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है, तो अफसर भी जांच के घेरे में आ सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
मुख्य सूचना आयुक्त कब?
प्रदेश के एक और सूचना आयुक्त नरेन्द्र शुक्ला का कार्यकाल 31 मई को खत्म हो रहा है। वर्तमान में शुक्ला के अलावा आलोक चन्द्रवंशी ही सूचना आयुक्त के पद पर हैं। इससे परे 26 तारीख को मुख्य सूचना आयुक्त पद के लिए इंटरव्यू होगा। यह भी चर्चा है कि पीएम नरेन्द्र मोदी के प्रस्तावित बिलासपुर प्रवास के चलते इंटरव्यू की तिथि आगे बढ़ सकती है।
मुख्य सूचना आयुक्त पद के लिए मुख्य सचिव अमिताभ जैन, के अलावा तीन पूर्व डीजी डी.एम.अवस्थी, अशोक जुनेजा, और संजय पिल्ले ने भी आवेदन किए हैं। कुल मिलाकर 33 लोगों को एक ही दिन में इंटरव्यू के लिए बुलाया गया है। हालांकि मुख्य सूचना आयुक्त पद पर किसी नौकरशाह को नियुक्त नहीं करने की मांग की गई है। इस सिलसिले में राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पांडेय ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को ज्ञापन भी सौंपा है। देखना है सीएम इस पर क्या निर्णय लेते हैं।
रेल मंत्री को यात्री नहीं भाते..
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे से रेलवे को सर्वाधिक आमदनी होती है। यह आय मालभाड़े से होती है। यात्री ट्रेनों को लेकर तो यह रेल मंत्री ने कल सदन में बता दिया कि ट्रेन यात्रा की लागत 1.38 रुपये प्रति किलोमीटर है, जबकि यात्रियों से केवल 73 पैसे लिए जाते हैं। यह बिलासपुर जोन के अंतर्गत आने वाली यात्री ट्रेनों पर भी लागू होता है। यह बात अलग है कि ऐसा बयान यात्रियों को यह महसूस कराता है कि वे सरकार पर बोझ हैं, जबकि वे नौकरी, व्यापार और रोजमर्रा की जरूरतों के लिए रेलवे का इस्तेमाल करते हैं, जिससे देश का आर्थिक पहिया चलता है।
अगर नफे-नुकसान के आधार पर ही रेल मंत्री को प्राथमिकताएं तय करनी है तो भाजपा के वरिष्ठ नेता सांसद बृजमोहन अग्रवाल की मांग पर घोषणा करनी चाहिए, जिसमें उन्होंने रीवा बिलासपुर ट्रेन को दुर्ग तक विस्तारित करने की मांग रखी। कोरबा में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी कोयला खान है, लेकिन यहां के यात्री कोविड के समय से बंद यात्री ट्रेनों को शुरू करने की मांग करते थक गए। सांसद ज्योत्सना महंत इसके लिए कई बार आवाज उठा चुकी हैं। रेल उपभोक्ता सलाहकार समिति की जोन और मंडल लेवल की होने वाली बैठकें औपचारिकता बनकर रह गई हैं। हाई टी और लंच कराने के बाद रेलवे अधिकारी सदस्यों को विदा कर देता है, यह कहते हुए कि आपकी बातों को मुख्यालय भेज दिया जाएगा, वहां से अनुमति मिलने पर मांगें पूरी होंगी। रेल मंत्री लगे हाथ यह भी बता देते कि यात्री ट्रेनों को रद्द करने का सिलसिला कब थमेगा, ट्रेनों की लेटलतीफी कब खत्म होगी। गुड्स ट्रेनों का परिवहन बिलासपुर जोन से सर्वाधिक है और इन ट्रेनों को आगे बढ़ाने के लिए बीच रास्ते में यात्री ट्रेनों को रोका जाता है। रेल मंत्री यह भी बता सकते थे कि बिलासपुर रेलवे ने इस जोन से मालभाड़े में कितना कमाया और यात्री सुविधाओं पर कितना खर्च किया।
गुमान टूटा टेसू का...
बसंत के आते ही टेसू के फूल शाखों पर आग की लौ बनकर खिल उठते हैं। हल्की सर्दी की ठिठुरन के बाद जब हवाओं में गुनगुनाहट घुलने लगती है, तब ये नारंगी फूल पेड़ों पर इठलाने लगते हैं, मानो धरती पर रंगों की होली शुरू हो गई हो। इनके खिलने का समय ही होली के रंगों का संदेश लाता है, फागुन की मस्ती, चटख रंगों की बहार।
परंतु जैसे ही बसंत विदा होने लगता है और गर्मी की दस्तक सुनाई देती है, पतझड़ की हल्की थपकियों से ही ये कोमल फूल डालियों से टूटकर नीचे बिखरने लगते हैं। जो फूल कल तक आसमान को छूने का सपना देख रहे थे, वे आज जमीन पर बिछ रहे हैं। टेसू के फूलों की यह यात्रा बसंत से ग्रीष्म की ओर समय के बदलाव की कहानी कहती है। (तस्वीर- प्राण चड्ढा)
(rajpathjanpath@gmail.com)
बाजू वाले की करनी, सामने वाला भुगत रहा
सोमवार को सत्ता पक्ष के विधायक ने सरकार ले आग्रह किया कि नेता प्रतिपक्ष पिछले 3-4 दिनों से पिछली सरकार के कार्यों की जांच की मांग कर रहे हैं, सरकार को मान लेनी चाहिए। इससे सदन की हाइप बढ़ेगी । दरअसल प्रश्नकाल में नेता प्रतिपक्ष चरण दास महंत ने जल जीवन मिशन के अधूरे लंबित कार्यों और ठेकेदार को भुगतान का प्रश्न उठाया था । उनका कहना था कि कुछ ठेकेदार ने काम अधूरा कर भुगतान ले लिया तो कुछ भुगतान न होने से काम नहीं कर रहे। और ऐसी ही प्रगति देखकर केंद्र पैसा नहीं दे रहा।
इस पर राजेश मूणत ने महंत से कहा कि नेताजी यह आपके पुराने कार्यकाल के करम हैं, इसलिए छत्तीसगढ़ की जनता भुगतान रही है। इस पर स्पीकर डॉ सिंह ने कहा करम नहीं कार्य कहिए। अजय चंद्राकर ने महंत और भूपेश बघेल की आसंदी (दोनों साथ बैठते हैं) की ओर देखकर चुटकी ली कि बाजू वाले की करनी का फल सामने वाला भुगत रहा है। महंत ने कहा कि कब तक पिछले 5 साल को लेकर चलेंगे। हमारी ही गलती रही जांच क्यों नहीं करा लेते? आपको मौका मिला है अब। कब तक बचना चाहेंगे। जांच करा लें।
मूणत ने कहा कि आप जब उपर (आसंदी)बैठते थे तब जांच करा लेते तो ऐसी स्थिति नहीं होती। जैसे हमारे अध्यक्ष (रमन)बीच-बीच में करते रहते हैं। अजय ने कहा- जहां-जहां संभावना थीं, नेताजी वहां वंचित रहे हैं। महंत ने कहा कि अब हम कह रहे हैं न, जांच करा लें, क्या दिक्कत है, तो जांच नहीं करा रहे। अजय ने स्पीकर से कहा कि बीते 3-4 दिनों से नेताजी जांच करा लें की मांग कर रहे हैं सरकार को मांग मान लेनी चाहिए। इससे सदन की भी ऊंचाई बढ़ेगी। क्योंकि नेता प्रतिपक्ष की मांग पर सरकार की घोषणा बड़ी बात होती है ।
नगर विकास में समरसता
हाल ही में हुए नगरीय निकाय व पंचायत चुनावों में भले ही भारतीय जनता पार्टी को शानदार जीत मिली हो, लेकिन कुछ नतीजे चौंकाने वाले भी रहे। मुंगेली, जहां से केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू और उपमुख्यमंत्री अरुण साव का ताल्लुक है, तथा जहां से दस बार के लोकसभा-विधानसभा विजेता पुन्नूलाल मोहले विधायक हैं, वहां नगरपालिका अध्यक्ष का पद कांग्रेस के हाथ में चला गया।
नगरपालिका अध्यक्ष को अपने विवेकाधिकार से प्रेसिडेंट ऑफ काउंसिल (पीआईसी) में विभिन्न विभागों के सभापति नियुक्त करने का अधिकार होता है। आमतौर पर यह उम्मीद की जा रही थी कि बहुमत में होने के नाते सभी सात सभापति कांग्रेस से होंगे, लेकिन अध्यक्ष रोहित शुक्ला ने एक अलग राह अपनाई। उन्होंने चार सभापति कांग्रेस से चुने और शेष तीन पर भाजपा के पार्षदों को नियुक्त कर दिया।
इस निर्णय से कांग्रेस के कुछ पार्षद नाराज भी हो गए हैं, लेकिन अध्यक्ष का मानना है कि उन्हें नगरवासियों ने विकास की उम्मीद के साथ चुना है और इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के साथ सामंजस्य बनाना आवश्यक है। उसके सहयोग के बिना विकास कार्यों को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। भाजपा को तीन पद देने के बावजूद कांग्रेस का बहुमत बरकरार रहेगा, लेकिन कुछ भाजपा पार्षदों को साथ लेकर चलने से विकास योजनाओं की मंजूरी और क्रियान्वयन में आसानी होगी। अब चुनाव निपट चुका है, इसलिए सभी को मिलकर शहर के हित में काम करना चाहिए।
संयोग से उपमुख्यमंत्री अरुण साव के पास नगरीय प्रशासन विभाग भी है, ऐसे में भाजपा को प्रतिनिधित्व देने से यह सुनिश्चित हो गया है कि मुंगेली को आवश्यक बजट और संसाधनों की कोई कमी नहीं होगी। स्थानीय राजनीति में समन्वय की भूमिका अहम होती है। यदि यह प्रयोग सफल होता है, तो अन्य नगरपालिकाओं और स्थानीय निकायों के लिए भी उदाहरण बन सकता है।
सत्ता गई गुटबाजी नहीं
सरगुजा में कांग्रेस का मतलब सिर्फ टीएस सिंहदेव नहीं हैं। वहां पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समर्थक भी बड़ी संख्या में हैं। रविवार की शाम गांधी चौक पर बघेल का स्वागत करने के लिए युवाओं के दो गुटों में होड़ लग गई। इतने उत्साहित हो गए कि जोश में होश खो बैठे और आपस में ही भिड़ गए। स्वागत कम, धक्कामुक्की और लात-घूंसे ज्यादा चले। कांग्रेस की अंदरूनी हालत का लाइव प्रदर्शन हो गया। सत्ता हाथ से गई, लेकिन गुटबाजी नहीं गई।
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सांप-बिच्छू और दस फीट की बाउंड्री
ये होली के बाद भांग में डूबा वाकया नहीं है। पूरी तरह से नान होली सीरियस है। जो बताता है कि मैडम साहब लोग तय कर लें तो सब संभव है। हम बात कर रहे हैं डाक विभाग की। करीब साल भर साहब मैडम विभाग की छत्तीसगढ़ मुखिया रही। उनके दिल्ली तबादले पर जाने से पहले बंगले में एक सांप निकला। घबराई मैडम साहब ने झट से सिविल विंग की बैठक ली और पांच हजार वर्ग फीट से अधिक के बंगले को सांप- बिच्छू से सुरक्षित करने की योजना बनाने कहा।
बस यही मौका था सिविल विंग के लिए । उसने भी तेजी दिखाई और बना दिया लाखों का प्राक्कलन(एस्टीमेट)। इसमें बंगले की चाहरदीवारी को 10 फीट ईंट- सीमेंट-रेती से ऊंचा कर और उसके उपर कांटेदार ग्रील से कर दी बंगले की किलेबंदी। अभी दीवार बन ही रही थी कि मैडम साहब का तबादला हो गया। लेकिन काम जारी है। इसमें कोई गलत भी नहीं है नए साहब आ रहे हैं तो उनकी सुरक्षा में काम आएगा। जमीन पर चलने बिल में रहने वाले सांप-बिच्छू के लिए उंची दीवार बनाने के हास्यास्पद, फिजूलखर्च पर विभाग में उंगली उठने लगी को सिविल विंग ने जस्टीफिकेशन निकाला। कहने लगे मैडम साहब के यहां एक दिन चोरों ने पांच फीट की पुरानी दीवार को फांदा था। भविष्य में ऐसा न हो इसलिए दीवार ऊंची और कांटेदार बनानी पड़ रही है। मगर क्या करें ये सिस्टम, तकलीफ में पड़े साहब को सुविधा देने कुछ भी कर सकता है।
वैसे इस बंगले के रेनोवेशन में पुराने साहब ने भी लाखों खर्च कराए थे ।और अब नए भी आ रहे। वो भी कुछ न कुछ करवाएंगे। और फंड तो है ही पोस्ट आफिस बिल्डिंग फंड। अब लोग कह रहे हैं इस दीवार की लागत इतनी है कि उससे कम से कम एक ग्रामीण शाखा डाकघर तो बन ही सकता था। सिविल विंग वाले साहब ही हमें बता रहे थे कि साल भर में पूरे छत्तीसगढ़ में दो ही डाकघर के भवन बना पाए हैं।
मंत्री को पहली नोटिस
सरकार के मंत्री लखनलाल देवांगन मुश्किलों से घिर गए हैं। भाजपा संगठन ने उन्हें कोरबा नगर निगम सभापति के चुनाव में बागी प्रत्याशी का समर्थन करने पर नोटिस थमा दिया। देवांगन ने पार्टी के बागी सभापति प्रत्याशी की जीत पर सार्वजनिक तौर पर उन्हें बधाई दे दी थी। देवांगन के बयान को अनुशासनहीनता करार दिया गया और फिर उनसे दो दिन के भीतर जवाब मांगा गया। जैसे ही नोटिस उद्योग मंत्री तक पहुंची, तो वो भागे-भागे प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव के घर पहुंचे, और अपनी तरफ से सफाई पेश की। यह पहला मौका है जब राज्य बनने के बाद किसी मंत्री को पार्टी ने अनुशासनहीनता पर सीधे नोटिस जारी किया गया।
सुनते हैं कि देवांगन को नोटिस सीधे पार्टी हाईकमान की दखल के बाद दिया गया है। दरअसल, सभापति के लिए पार्टी ने हितानंद अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया था। पार्टी ने रायपुर ग्रामीण के विधायक पुरंदर मिश्रा पर्यवेक्षक बनाकर भेजा था। चर्चा है कि स्थानीय विधायक और सरकार के मंत्री लखनलाल देवांगन, पार्टी के बागी नूतन ंिसंह राजपूत के समर्थन में थे। राजपूत चुनाव जीते, तो देवांगन ने उन्हें यह कह दिया कि वो भी भाजपा के ही हंै। फिर क्या था, देवांगन के विरोधियों ने न सिर्फ प्रदेश नेतृत्व बल्कि हाईकमान को शिकायत भेज दी।
प्रदेश संगठन पहले तो विधानसभा सत्र को देखते हुए कार्रवाई को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं था लेकिन हाईकमान से मैसेज के बाद देवांगन को नोटिस थमानी पड़ी। पार्र्टी ने सभापति चुनाव में हार के कारणों का पता लगाने के लिए जांच समिति बनाई है। कहा जा रहा है कि जांच रिपोर्ट पर ही कुछ हद देवांगन के भविष्य का निर्भर है। देखना है आगे क्या होता है।
कागजों में सुनहरा बस्तर...
नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में हर साल हजारों करोड़ रुपये के फंड जारी होते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश स्थानीय आदिवासियों की बुनियादी जरूरतों की ओर सरकार का ध्यान नहीं जाता। आजादी के 76 साल बाद भी यहां मरीजों को एंबुलेंस जैसी आवश्यक सेवा उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं।
ताजा मामला, अरनपुर ब्लॉक के कुआकोंडा के समीप स्थित बंडीपारा गांव का है। गांव की एक महिला की तबीयत अचानक बिगड़ी, तो उसके परिजनों ने एंबुलेंस के अभाव में उसे कांवड़ में बैठाकर चार किलोमीटर दूर अरनपुर अस्पताल तक पहुंचाया। लेकिन विडंबना देखिए—इतनी तकलीफदेह यात्रा के बाद जब वे अस्पताल पहुंचे, तो वहां डॉक्टर ही नदारद थे।
घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद स्वास्थ्य विभाग की नींद टूटी। सीएमएचओ के निर्देश पर मरीज को दंतेवाड़ा जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया और लापता डॉक्टरों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। लेकिन असली सवाल यह है कि आखिर कब तक बस्तर के मरीजों को इस तरह की अमानवीय परिस्थितियों से गुजरना पड़ेगा? ब्लॉक मुख्यालय में एक भी एंबुलेंस न होना प्रशासन की बड़ी विफलता को सामने लाता है।
साथी के लिए असीम प्रेम और शोक
जानवरों में भी इंसानों की तरह गहरी भावनाएं होती हैं। हाथियों में तो यह भावना हम अपने छत्तीसगढ़ के जंगलों में कई बार देखते हैं। रूस में 25 वर्षों से साथ रहे सर्कस के भारतीय नस्ल दो हाथियों में से एक, जेनी की मूत्राशय की बीमारी से 54 साल की उम्र में मृत्यु हो गई। उसकी साथी मग्दा ने उसे छोडऩे से इनकार कर दिया। जेनी के आखिरी क्षणों में मग्दा ने उसे बार-बार सहलाया, हल्के धक्के देकर उठाने की कोशिश की और जब समझ गई कि वह नहीं उठेगी, तो उसे अपने स्नेह से गले लगा लिया। मग्दा की यह वेदना घंटों तक जारी रही। वह अपने साथी के पास बैठी रही और किसी को भी उसके करीब आने नहीं दिया।
सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस वीडियो ने दुनिया भर में लोगों को झकझोर दिया। मग्दा का अपने साथी के प्रति इस प्रेम और शोक ने कई लोगों को रुला डाला। लेकिन क्या अक्सर हम जानवरों के भीतर मौजूद संवेदना को समझ पाते हैं?
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आखिर महंत के दबाव में
आखिरकार सरकार ने भारतमाला परियोजना के मुआवजे में भ्रष्टाचार मामले की जांच ईओडब्ल्यू-एसीबी के हवाले कर दिया है। बुधवार को विधानसभा में मुआवजे में भ्रष्टाचार के मसले पर काफी किचकिच हुई थी। सरकार ने तो मान लिया था कि मुआवजा वितरण में गड़बड़ी हुई है, और करीब 44 करोड़ रुपए अतिरिक्त मुआवजा बटा है। मगर वो इसकी सीबीआई जांच कराने के लिए तैयार नहीं थे। जबकि नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत परियोजना की सीबीआई जांच की मांग पर जोर दे
रहे थे।
राजस्व मंत्री सदन में रायपुर कमिश्नर से मुआवजा घोटाले की जांच कराने पर अड़े थे। मगर देर रात कैबिनेट में प्रकरण की ईओडब्ल्यू-एसीबी से जांच कराने का फैसला लिया गया। बताते हैं कि मुआवजा घोटाले की ईओडब्ल्यू-एसीबी से जांच कराने के फैसले के पीछे नेता प्रतिपक्ष का ही दबाव रहा है। महंत ने तो सदन में सीधे-सीधे कह दिया था कि प्रकरण की सीबीआई जांच कराने के लिए वो हाईकोर्ट जाएंगे।
चूंकि परियोजना और मुआवजे में केंद्र का पैसा लगा है, इसलिए कोर्ट में प्रकरण की सीबीआई जांच के लिए तर्क मजबूत दिख रहा था। ऐसे में सरकार ने आनन-फानन में प्रकरण ईओडब्ल्यू-एसीबी के हवाले कर दिया। सरकार के फैसले पर महंत की प्रतिक्रिया नहीं आई है, और संभव है कि वो सीबीआई जांच के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाए। कुल मिलाकर ईओडब्ल्यू-एसीबी की जांच के बावजूद मामला ठंडा होते नहीं दिख रहा है।
जांच और प्रमोशन
वैसे तो रायपुर-विशाखापटनम भारतमाला परियोजना के मुआवजे में भ्रष्टाचार का मामला पिछली सरकार के समय का है। मगर जिस तरह राजस्व विभाग घोटाले की जांच को लेकर हीला हवाला कर रही है, इसकी काफी चर्चा हो रही है। घोटाले के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार एसडीएम निर्भय कुमार साहू समेत 5 अफसरों को सस्पेंड किया गया। दिलचस्प बात यह है कि घोटालेबाजों पर कार्रवाई तब हुई जब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का सवाल लगा।
एसडीएम, और अन्य अफसरों के खिलाफ शिकायतें पहले भी हो चुकी थी। मगर सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। और तो और घोटालेबाज एसडीएम को जगदलपुर नगर निगम का कमिश्नर बना दिया गया था। चर्चा है कि इस पूरे मामले में कई नेता और कुछ आईएएस अफसरों की संलिप्तता रही है।
यही वजह है कि प्रकरण की जांच में देरी की गई है। अब ईओडब्ल्यू-एसीबी बड़े मछलियों तक पहुंच पाती है या नहीं, यह देखना है। हालांकि ईओडब्ल्यू-एसीबी सीजीएमएससी घोटाले की भी जांच कर रही है। दो आईएएस अफसरों की भूमिका स्पष्ट रूप से परिलक्षित हुई है। दोनों से पूछताछ भी हुई है, लेकिन जिस तरह दोनों अफसर के करीबी लोग निश्चित हैं, वो उसकी काफी चर्चा हो रही है। वैसे भी ईओडब्ल्यू-एसीबी में प्रकरण के दर्ज होने के बावजूद कई अफसर लगातार प्रमोट होते रहे, और रिटायर भी हो गए। प्रकरण अभी भी दर्ज है। देखना है ताजा मामलों का क्या होता है।
बच्चों से छिन गया मुखौटा
प्रदेश में कानून व्यवस्था को बनाए रखने को लेकर पुलिस अफसरों के विचार अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन होली जैसे उल्लासपूर्ण त्योहार में अचानक लिए गए कठोर निर्णय आम लोगों को मायूस कर सकते हैं। प्रदेश में ऐसा कोई स्पष्ट आदेश नहीं है कि होली पर मुखौटे बेचने या पहनने पर प्रतिबंध लगाया जाए, लेकिन कोरबा पुलिस ने यह मानते हुए कि इनका इस्तेमाल आपराधिक तत्व कर सकते हैं, सडक़ किनारे होली का सामान बेचने वाले ठेले और रेहडिय़ों पर छापा मारते हुए करीब 3,000 मुखौटे जब्त कर लिए। यह कार्रवाई नए कानून बीएनएसएस की धारा 106 के तहत की गई, जो पुलिस को उस संपत्ति को जब्त करने का अधिकार देती है, जिसका अपराध में इस्तेमाल होने की आशंका हो। पुलिस का कहना है कि यह कदम लूट, छीना-झपटी और छेड़छाड़ जैसी घटनाओं को रोकने के लिए उठाया गया है। इतना ही नहीं, पुलिस ने नागरिकों से अपील की है कि यदि कोई व्यक्ति मुखौटा पहनकर घूमता मिले, तो तुरंत सूचना दें।
होली के रंग-बिरंगे मुखौटे, जैसे जोकरों, पौराणिक पात्रों, जानवरों और फिल्मी किरदारों के मुखौटे-बच्चों और युवाओं के बीच सालों से लोकप्रिय रहे हैं। ये न सिर्फ रंग-गुलाल से बचाव का एक तरीका हैं, बल्कि मज़ाक और सरप्राइज़ का हिस्सा भी होते हैं। लेकिन इस बार कोरबा में होली बिना मुखौटों के होगी, जिससे बच्चों की खुशी जरूर फीकी पड़ सकती है। मुखौटे बेचने वाले छोटी पूंजी पर धंधा करने वाले लोग हैं, उनका भी नुकसान हो गया।
मुखौटों को जब्त करने का आधार यह है कि इनका इस्तेमाल अपराधी पहचान छिपाने के लिए कर सकते हैं। लेकिन यह तर्क अधूरा लगता है। अगर केवल चेहरे छिपाने की वजह से मुखौटे जब्त किए जा रहे हैं, तो फिर हेलमेट भी इसी श्रेणी में आ सकता है, क्योंकि उसे पहनने के बाद भी चेहरा ढका रहता है।
कोरबा पुलिस ने दो दिन पहले शराब के नशे में गाड़ी चलाने वालों पर 1.70 लाख रुपये का भारी-भरकम जुर्माना वसूला था। अगर होली के दिन सडक़ पर निकलने वाले शराबी चालकों और उनकी संदिग्ध गतिविधियों पर निगरानी रखी जाए, तो न सिर्फ कानून व्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि अपराध की आशंका भी कम की जा सकती है। सही तरीके से चेकिंग की जाए, तो पुलिस इससे दस गुना ज्यादा राजस्व वसूल सकती है।
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आयुष्मान पर सवाल-जवाब
राज्यसभा सदस्य रंजीत रंजन ने कल सदन में सवाल उठाया कि छत्तीसगढ़ में आयुष्मान योजना के तहत 5 से 6 हजार करोड़ रुपये का भुगतान बकाया है, जिससे निजी अस्पताल मरीजों का इलाज करने से इंकार कर रहे हैं। उन्होंने पूछा कि क्या यह सही है कि सरकार प्रति व्यक्ति 5 लाख रुपये तक का बीमा देती है, लेकिन अस्पतालों में इलाज का खर्च 1.5 से 2.5 लाख रुपये तक ही मिलता है, शेष राशि मरीजों को अपनी जेब से चुकानी पड़ती है? इस पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने जवाब दिया कि केंद्र सरकार की ओर से कोई भुगतान नहीं रुका है। अगर कोई देरी हुई है, तो राज्य सरकार उसे हल करे। उन्होंने यह भी कहा कि डिजिटलीकरण की प्रक्रिया के चलते कुछ मामलों में भुगतान अलर्ट मिलते हैं, जिन्हें जांच के बाद निपटाया जाता है।
छत्तीसगढ़ आईएमए ने हाल ही में सरकार को बताया था कि जून 2024 से करीब 1500 करोड़ रुपये का भुगतान लंबित है, सांसद को 5 से 6 हजार करोड़ का आंकड़ा कहां से मिला यह साफ नहीं है। मगर, केंद्रीय मंत्री नड्डा ने कहा कि केंद्र से भुगतान जारी कर दिया जाता है, अगर कहीं अड़चन है, तो राज्य सरकार को इसे सुलझाना होगा।
पांच लाख रुपये तक के मुफ्त इलाज की योजना है, मगर इसमें 40 प्रतिशत राशि राज्य सरकार को वहन करनी पड़ती है। पूर्ववर्ती राज्य सरकार ने इसी हिस्सेदारी को लेकर असहमति जताते हुए इस योजना से बाहर निकलकर यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम लागू करने का प्रस्ताव दिया था। देश के कुछ अन्य राज्य, जैसे पश्चिम बंगाल और दिल्ली ने भी इस योजना को लागू नहीं किया और मुफ्त इलाज की योजनाएं शुरू कीं।
छत्तीसगढ़ के मामले में यदि केंद्र सरकार कह रही है कि उसने भुगतान नहीं रोका, तो क्या राज्य सरकार का 40 प्रतिशत अंश न मिलने के कारण यह संकट खड़ा हुआ है? इसके अलावा, प्रदेश के कई निजी अस्पतालों द्वारा फर्जी क्लेम किए जाने की घटनाएं भी सामने आई हैं, जहां बिना विशेषज्ञ डॉक्टरों और आवश्यक उपकरणों के इलाज दिखाया गया। पिछले महीने ऐसे करीब तीन दर्जन अस्पतालों को प्रतिबंधित किया गया था। ये गड़बडिय़ां और भुगतान का रुकना- दोनों मसले आपस में जुड़े दिखते हैं। यदि स्वास्थ्य विभाग को लगता है कि अन्य अस्पतालों में भी ऐसी अनियमितताएं हुई हैं, तो उनकी जांच में देरी क्यों हो रही है? क्या निगरानी के लिए कोई सख्त व्यवस्था खड़ी करने की जरूरत नहीं है?
राज्यसभा में यदि सांसद इस विषय को और विस्तृत जानकारी के साथ गहराई से उठाते, तो छत्तीसगढ़ में गरीबों को मिलने वाली मुफ्त इलाज की सुविधा की स्थिति अधिक स्पष्ट हो पाती।
किसी के अपने किसी के पराए
प्रदेश के कांग्रेस विधायकों ने बड़े उद्योग समूह जिंदल स्टील के खिलाफ विधानसभा में मामला उठाया, तो सत्ता पक्ष के सदस्य चौंक गए। यह संभवत: पहला मौका है जब कांग्रेस विधायकों ने रायगढ़ के जिंदल स्टील एण्ड इंडस्ट्रीज के खिलाफ सदन के अंदर, और बाहर कोई बात उठाई है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि जिंदल समूह के मुखिया नवीन जिंदल कांग्रेस के सांसद रहे हैं, और उनकी विशेषकर कांग्रेस के नेताओं से घनिष्ठता रही है। मगर अब परिस्थितियां बदल गई हैं। नवीन जिंदल भाजपा के सांसद हैं। ऐसे में जिंदल घराने की गड़बडिय़ों पर पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी काफी मुखर दिखे।
पूर्व मंत्री उमेश पटेल ने केलो परियोजना के लिए अधिग्रहित जमीन जिंदल स्टील को देने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। और जब उमेश पटेल सवाल पूछ रहे थे, तो पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने कह दिया आप कब से जिंदल के खिलाफ हो गए हैं? चंद्राकर यही नहीं रूके, उन्होंने यह भी कह दिया जिंदल का प्लेन तो आपके लिए ही चलती थी। हालांकि इस पर उमेश पटेल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। चंद्राकर के कथन में सच्चाई भी है। रायगढ़ के कई नेता रायपुर आने-जाने के लिए जिंदल का प्लेन इस्तेमाल करते रहे हैं। ये अलग बात है अब राजनीतिक परिस्थितियां बदल गई हंै। चाहे कुछ भी हो, दशकों तक जिंदल उद्योग समूह की गड़बडिय़ों पर चुप्पी साधने के बाद मुखर होने पर सवाल तो उठेंगे ही।
रिकेश को स्पीकर की फटकार
नए नवेले विधायकों के साथ समस्या ये है कि वो कई बार संसदीय परम्परा को तोड़ देते हैं। ऐसे ही एक भारत माला सडक़ मुआवजा घोटाले में चर्चा के दौरान स्पीकर डॉ रमन सिंह ने वैशाली नगर विधायक रितेश सेन को फटकार लगाई। दरअसल, चर्चा के दौरान रितेश सेन, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत के साथ एक तरह से वाद विवाद करने लगे थे।
महंत इस घोटाले की सीबीआई से जांच कराने की मांग कर रहे थे। इस पर रिकेश, महंत से बार बार पूछते रहे कि आप पहले बताएं कि आपको केंद्रीय जांच एजेंसी पर कब से भरोसा हो गया। भरोसा है कि नहीं? नेता प्रतिपक्ष के वक्तव्य के समय बार-बार की टोकाटाकी देख स्पीकर डॉ. सिंह ने रिकेश से कहा बैठ जाइए, यह ठीक नहीं है सदन आपको नहीं चलाना है। इसके बाद रिकेश सेन शांत हुए।
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पंजाब से रिश्ता नहीं?
शराब घोटाला केस में ईडी ने सोमवार को पूर्व सीएम भूपेश बघेल के भिलाई-3 स्थित निवास पर दबिश दी, तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। भूपेश का नाम तो शराब घोटाला केस में उछलता ही रहा है। मगर इस बार ईडी की राडार में भूपेश बघेल नहीं बल्कि उनके बेटे चैतन्य थे। ईडी अफसरों ने घर में प्रवेश करते ही पूर्व सीएम को बता दिया कि वो चैतन्य की जांच के लिए आए हैं।
करीब 11 घंटे तक जांच चली, और फिर बाहर निकलते ही कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने ईडी अफसरों को घेर लिया। किसी तरह पुलिस सुरक्षा के बीच ईडी अफसर वहां से निकल पाए। और प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख नेता और विधायक-पूर्व विधायक बघेल निवास के बाहर थे, तो छापे को लेकर कई तरह की चर्चा भी हो रही थी।
पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव ने मीडिया से चर्चा में छापे की टाइमिंग पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि श्री बघेल पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हैं, और वहां राजनीतिक अस्थिरता है। पंजाब के आम आदमी पार्टी के 37 विधायक दुबई में हैं, और ऐसी चर्चा है कि पंजाब में कांग्रेस की सरकार बन सकती है। सिंहदेव ने आशंका जताई कि कांग्रेस को रोकने के लिए भूपेश भाई के यहां छापे डाले गए हैं।
पार्टी की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, और सचिन पायलट के भी बयान आए, जिसमें उन्होंने मोदी सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगाए। जांच पड़ताल पूरी होने के बाद पूर्व सीएम भूपेश बघेल के बयान को लेकर काफी उत्सुकता थी। उन्होंने मीडिया से चर्चा में कहा कि तीन दिन पहले पीएम आवास में गड़बड़ी को लेकर डिप्टी सीएम विजय शर्मा के खिलाफ विधानसभा में सवाल उठाए थे। इसके चलते ईडी उनके घर जांच के लिए पहुंच गई।
भूपेश ने याद दिलाया कि पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने भी डिप्टी सीएम अरुण साव के विभागों में भ्रष्टाचार के मामले उठाए थे। इसके बाद उनके यहां भी ईडी जांच के लिए पहुंच गई। भूपेश के बयान से एक बात तो साफ है कि पंजाब की कथित राजनीतिक अस्थिरता से छापे का कोई लेना देना नहीं है।
दारू का पैसा आखिर कितना?
पूर्व सीएम भूपेश बघेल के घर पर छापेमारी के बीच बाहर कांग्रेसजनों में आपस में काफी कुछ चर्चा होती रही। ईडी की टीम ने दुर्ग जिले के 12 नेताओं, बिल्डर, और कारोबारियों के यहां भी छापे डाले हैं। इनमें से दो बड़े जमीन के कारोबारी भी हैं। हल्ला है कि दोनों जमीन कारोबारियों ने दो साल में करीब 4 सौ करोड़ की जमीन खरीदी है। इसमें शराब घोटाले का पैसा भी लगा है।
एक हल्ला यह भी रहा कि मार्च के महीने में शराब कारोबार से जुड़े करीब 13 करोड़ रूपए इन्हीं सबके बीच में बंटने के लिए आने वाले थे। इसी को रोकने के लिए छापे डले हैं। इसमें सच्चाई कितनी है यह तो पता नहीं, लेकिन एक बात जरूर है कि ईडी ने 2161 करोड़ का शराब घोटाला होना बताया है। मगर चार साल बाद भी इतने सारे छापों के बाद घोटाले की रकम इसके आसपास भी नहीं पहुंच पाई है। यही वजह है कि मामला अब राजनीतिक रंग ले रहा है।
पत्नियों का होली मिलन
होली का रंग चढऩे लगा है। 14 मार्च को होली है, लेकिन इससे पहले कई जगहों पर होली मिलन कार्यक्रम चल रहे हैं। इन्हीं में से एक आईपीएस अफसरों की पत्नियों के होली मिलन समारोह की काफी चर्चा है। यह होली मिलन कार्यक्रम राजनांदगांव के बाहरी इलाके के एक होटल में हुआ।
होली मिलन में करीब दो दर्जन आईपीएस अफसरों की पत्नियां थीं। उन्होंने खूब रंग-गुलाल खेले। अच्छे खाने-पीने का इंतजाम था। कुछ अफसरों को अच्छी पोस्टिंग मिली है। उनकी पत्नियां काफी खुश थीं। कुछ को आने वाले फेरबदल में उम्मीद की किरण दिख रही है। कुल मिलाकर यह होली मिलन समारोह सौहार्दपूर्ण माहौल में निपटा।
लागा लेहे..
हमारे छत्तीसगढ़ में ऐसा माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी से उधार या ऋण लेता है और वह उसे नहीं चुकाता तो अगले जन्म में उधार देने वाला किसी भी तरह अपना दिया हुआ उधार वसूल लेता है। बचपन में हमें बताया जाता था कि एक पेड़ पर जो दूसरा पेड़ उग आता है, वह पिछले जन्म के अपने ऋण को इस तरह वसूल रहा है। छत्तीसगढ़ में इसे ‘लागा लेहे’ कहते हैं। ( लागा यानी उधार या ऋ ण लेहे यानी लिया है)
खैर, वनस्पति विज्ञान के जानकार कहते हैं कि इस तरह एक पेड़ के उपर दूसरा पेड़ का उग जाना बीज के प्रसार के कारण होता है। जो सही भी है। पक्षी फल खाते हैं और कहीं भी मल त्याग देते हैं। उनके मल में फलों का बीज होता है जो मल के साथ जहां गिरता है वहां मिट्टी पानी के संपर्क में आकर अंकुरित होकर पौधा और फिर पेड़ बन जाता है। हवा से भी बीजों का फैलाव होता है इसके अलावा फलों के चटखने से भी होता है। खैर, जो भी हो यदि हमारे बड़े बुजूर्ग उधान नहीं लेने और उसे समय पर चुकाने के लिये ऐसी कोई मन-गढंत बातें बताते भी हैं तो क्या बुराई है।
(तस्वीर- गोकुल सोनी)
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मामला पारवानी, थौरानी के बीच
व्यापारियों के सबसे बड़े संगठन चैम्बर ऑफ कामर्स के चुनाव को लेकर भाजपा के अंदरखाने में खींचतान मची हुई है। चर्चा है कि पार्टी में निवर्तमान अध्यक्ष अमर पारवानी, और एकता पैनल के अध्यक्ष प्रत्याशी सतीश थौरानी से परे सर्वमान्य प्रत्याशी उतारने पर भी विचार हो रहा है। इन सबके बीच पारवानी के महासचिव प्रत्याशी अजय भसीन को अध्यक्ष प्रत्याशी बनाने का भी फार्मूला सुझाया गया है।
पारवानी भाजपा संगठन के पसंदीदा हैं। कांग्रेस नेताओं को भी उनसे कोई परहेज नहीं रहा है। वो व्यापारियों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे हैं। इससे परे पारवानी के खिलाफ भाजपा के बड़े व्यापारी नेता श्रीचंद सुंदरानी के एकता पैनल ने सतीश थौरानी को अध्यक्ष का प्रत्याशी बना दिया है। वैसे तो थौरानी किसी दल से सीधे नहीं जुड़े हैं, लेकिन भाजपा नेताओं के वो काफी करीब हैं।
इन सबके बीच चैम्बर चुनाव में भाजपा संगठन के प्रमुख नेता दिलचस्पी दिखा रहे हैं, और इसको लेकर बैठकें हो रही हैं। पार्टी की तरफ से एक सुझाव आया है कि रायपुर शहर से बाहर के व्यापारी नेता को चैम्बर की कमान सौंपी जाए। बाहर के व्यापारी नेताओं की भी मांग कुछ इसी तरह की रही है। ऐसे में पारवानी के चुनाव मैदान से हटने, और उनके महासचिव प्रत्याशी अजय भसीन को अध्यक्ष का प्रत्याशी घोषित करने के लिए भी दबाव बनाया गया है। ऐसी स्थिति में सतीश थौरानी, अजय भसीन के समर्थन में मैदान से हटने का फार्मूला सुझाया गया है। चूंकि पारवानी व्यापारियों के मुद्दे को लेकर काफी सक्रिय रहे हैं। ऐसे में वो इसके लिए तैयार होते हैं या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
दुर्लभ लिथियम का नया भंडार
छत्तीसगढ़ सहित बिहार, गुजरात, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर में स्थित 20 क्रिटिकल एंड स्ट्रेटेजिक मिनरल ब्लॉक्स की ई-नीलामी के लिए एमएसटीसी पोर्टल पर नोटिस जारी किया जा चुका है। इन ब्लॉक्स में कटघोरा क्षेत्र का 250 हेक्टेयर इलाका भी शामिल है, जहां दुनियाभर में भारी मांग वाले लिथियम का बड़ा भंडार मिला है। अभी भारत स्वयं इसका आयात करता है। दावा किया जा रहा है कि यह छत्तीसगढ़ की पहली लिथियम खदान होगी। यह प्रक्रिया अभी चल ही रही है कि कोरबा जिले के ही रामपुर क्षेत्र के तीन गांवों में फिर से लिथियम मिलने की संभावना को देखते हुए भारतीय भू गर्भ विज्ञान सर्वेक्षण विभाग सक्रिय हो गया है। विभाग को 126 हेक्टेयर में लिथियम तथा दूसरे क्रिटिकल मिनरल्स की मौजूदगी का पता चला है लेकिन यह भंडार कितनी गहराई में है, कितना बड़ा है इसके लिए बोर खनन की जरूरत पड़ेगी जिसके लिए वन विभाग से मंजूरी लेने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। सर्वेक्षण में इस क्षेत्र में 10 पीपीएम से 2,000 पीपीएम तक लिथियम कंटेंट की मौजूदगी दर्ज की गई है। इसके अलावा, ब्लॉक में रेयर अर्थ एलिमेंट की भी उपस्थिति पाई गई है। भारत वर्तमान में इन खनिजों की आपूर्ति के लिए आयात पर निर्भर है। यदि छत्तीसगढ़ में सफलता के साथ खनन की प्रक्रिया शुरू होगी तो यह देश के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के राजस्व में भारी उछाल आएगा। मगर, खनिज संसाधनों से धनी इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों और खासकर जल स्त्रोतों और नदियों का क्या होगा? विस्थापन की क्या स्थिति रहेगी। रोजगार और व्यापार में कितना लाभ मिलेगा? जंगल को नष्ट कोयला खनन के विरोध में अभी लोग आंदोलन कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय समुदायों की भलाई सुनिश्चित कैसे की जाएगी? आने वाले दिनों में यह सवाल फिर खड़ा हो सकता है।
लंबा सफर तय करके पहुंचे स्टर्लिंग
हर साल की तरह, इस बार भी छत्तीसगढ़ की धरती पर एक खास मेहमान पहुंचा है – रोजी स्टर्लिग! छत्तीसगढ़ में इसे गुलाबी मैना के नाम से जाना जाता है। यह खूबसूरत प्रवासी पक्षी सर्दियों के अंत में हजारों किलोमीटर की यात्रा करके हमारे यहां आता है। गुलमोहर व सेमल के खिले फूलों के बीच इसकी मौजूदगी प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी तोहफे से कम नहीं। इसकी हल्की गुलाबी छाया, चमकदार काले पंख और पीला चोंच इसे बेहद आकर्षक बनाते हैं। हमारी जिम्मेदारी है कि अद्भुत प्रवासी पक्षी का स्वागत तो करें ही, पर इनकी सुरक्षा भी सुनिश्चित करें! (तस्वीर- प्राण चड्ढा) (rajpathjanpath@gmail.com)
कुख्यात विभाग का कारनामा
प्रदेश में वृक्षारोपण अभियान की पोल खुल रही है। पिछले साल साय सरकार ने एक पेड़ मां के नाम अभियान चलाया था। इस अभियान में करोड़ों रूपिये खर्च किए गए थे। नवा रायपुर में तो 5 रुपए के पेड़ 11 सौ से 19 सौ रुपए में खरीदे गए। यह जानकारी विधानसभा में आई, तो सदस्य हैरान रह गए। ऐसा नहीं है कि वृक्षारोपण के नाम पर गड़बड़झाला पहली बार हो रहा है।
विधानसभा में एक और जानकारी आई है जिससे इस अभियान में भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है। दुर्ग वनमंडल ने भिलाई के इंजीनियरिंग पार्क में वर्ष 2016-17 में पेड़ लगाने के नाम पर 71 लाख 30 हजार रुपए फूंके थे। यह दावा किया गया था कि 20 हजार पौधों का रोपण किया गया है। अब ताजा जानकारी आई है कि वहां सिर्फ 310 पेड़ ही बचे हैं। ये भी संयोग है कि वर्तमान हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स वी श्रीनिवास राव दुर्ग मंडल में ही उस अवधि में आगे-पीछे सीसीएफ रह चुके हैं। सरकार कोई भी हो, भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर वन विभाग कुख्यात रहा है।
छोटे चुनाव और बड़ी पार्टी
प्रदेश के जिला, और जनपदों में भाजपा को बड़ी जीत मिली है। पार्टी सभी 33 जिलों में अपना अध्यक्ष बनवाने में कामयाब होते दिख रही है। अब तक 27 जिलों पर तो भाजपा का परचम लहरा चुका है। इतनी बड़ी जीत के बावजूद भाजपा के अंदरखाने में एक अलग ही तरह का संघर्ष देखने को मिला है। सरगुजा संभाग में पार्टी के गोंड, और कंवर आदिवासी नेताओं के बीच रस्साकशी चल रही है।
वैसे तो लोकसभा चुनाव के समय ही इसकी शुरुआत हो गई थी। भाजपा ने कंवर समाज के चिंतामणि महाराज को प्रत्याशी बनाया, तो गोंड समाज का अपेक्षाकृत समर्थन नहीं मिला। इस वजह से चिंतामणि महाराज एक बड़ी जीत दर्ज करने से रह गए थे। जबकि विधानसभा चुनाव में सभी 8 सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा है। चिंतामणि महाराज करीब 64 हजार वोट से ही जीत पाए थे। पंचायत चुनाव में सरगुजा के छह जिलों में से 4 में जिला पंचायत अध्यक्ष कंवर समाज के हैं। इसको लेकर गोंड समाज के कई नेताओं ने अलग-अलग स्तरों पर नाराजगी जताई।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह भी नाखुश बताई जा रही हैं। वो अपनी पुत्री मोनिका सिंह को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाना चाहती थीं, जिसके लिए पार्टी तैयार नहीं हुई। और अब जब पार्टी ने गोंड नेताओं की नाराजगी सुनाई दी है, तो पार्टी ने सरगुजा जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर श्रीमती निरूपा सिंह को बिठाया, और एमसीबी जिले में भी गोंड समाज के जिला पंचायत सदस्यों में से अध्यक्ष बनाने की कोशिश चल रही है। कुल मिलाकर आदिवासी समाज के अलग-अलग तबकों के बीच संतुलन बनाए रखने की पार्टी के भीतर कोशिशें चल रही है। ऐसा नहीं हुआ, तो इसका आने वाले समय में नुकसान उठाना पड़ सकता है।
जीतने वाले बागी नहीं हुआ करते
कोरबा नगर निगम में सभापति चुनाव ने दिलचस्प मोड़ ले लिया, जिसने अनुशासित भाजपा की रणनीति और अनुशासन को सवालों के घेरे में खड़ा किया। भारी बहुमत के बावजूद पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार हितानंद अग्रवाल की हार हो गई। बागी प्रत्याशी नूतन सिंह ठाकुर की अप्रत्याशित जीत हुई है।
भाजपा के पास 61 में से 45 पार्षद थे। कांग्रेस और निर्दलीय पार्षदों की कुल संख्या 22 थी, जो अलग-अलग या एक साथ, किसी भी सूरत में चुनौती पेश करने की स्थिति में नहीं थे। मगर, भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी हितानंद को केवल 18 वोट मिले, जबकि नूतन सिंह ठाकुर को 33 । भाजपा के पार्षदों ने बड़ी संख्या में क्रॉस वोटिंग कर दी।
ऐन मौके पर एक निर्दलीय पार्षद अब्दुल रहमान ने भी चुनाव लडऩे का फैसला लिया और उन्हें 16 वोट मिले। भाजपा में अधिकृत प्रत्याशी के चयन को लेकर उपजे असंतोष के चलते उन्हें कोई संभावना दिखी होगी। उन्हें निर्दलियों की कुल संख्या से 5 अधिक वोट मिले।
जिला भाजपा अध्यक्ष मनोज शर्मा का रुख भाजपा पार्षदों के इस बगावत पर कड़ा रुख है। उन्होंने कठोर कार्रवाई की बात कही है। मगर स्थानीय मंत्री लखन लाल देवांगन का कहना है कि पार्षद जिसे चाहते थे, उसे चुन लिया गया। महापौर और सभापति दोनों हमारे (भाजपा के) हैं। सभापति ने भी चुनाव जीतने के बाद कहा है कि वे कहीं नहीं गए हैं, भाजपा मे ही हैं। देवांगन की बात ही ज्यादा व्यावहारिक लग रही है। जीपीएम जिले में ही देखिये वहां भाजपा विधायक प्रणव मरपच्ची की बहन को पार्टी ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार बनाया, मगर उसे भाजपा की ही नेत्री समीरा पैकरा ने बगावत करके हरा दिया। केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू ने पैकरा को जीत की बधाई दी और मरपच्ची ने पैकरा को कांग्रेसी घोषित कर दिया।
एआई तकनीक उठाएगा जंगल के रहस्यों से पर्दा
उदंती-सीतानदी टाइगर रिज़र्व के घने जंगलों में लगाए गए ट्रैप कैमरे अब एआई तकनीक की मदद से वन्यजीवों की स्पष्ट तस्वीरें सामने ला रहे हैं। पहले जहां ये कैमरे केवल धुंधली और अस्पष्ट छवियां कैद करते थे, अब एआई की सहायता से जानवरों की पहचान, गतिविधि और संख्या का सटीक विश्लेषण संभव हो पा रहा है। इस तकनीक के चलते बाघ, भालू, तेंदुआ, हिरण और अन्य वन्यजीवों की दिनचर्या को करीब से समझा जा रहा है, जिससे उनके संरक्षण की रणनीतियां और अधिक प्रभावी बन रही हैं। यह पहल जंगल के उन अनछुए रहस्यों को उजागर कर रही है, जो अब तक सिर्फ किवदंतियों का हिस्सा थे। ऐसी ही कुछ तस्वीरें टाइगर रिजर्व के अधिकारियों ने सोशल मीडिया पर डाली है। (rajpathjanpath@gmail.com)
सत्तापक्ष ही विपक्ष है
विधानसभा के बजट सत्र के दो सप्ताह पूरे हो गए। इस दौरान सदन की 9 बैठकें हुई । राज्यपाल का पहला अभिभाषण हुआ। बजट पेश हुआ, उस पर सामान्य चर्चा भी हो गई। अब मंत्रियों के विभागों के बजट पारित हो रहे हैं। इसके साथ ही विधानसभा के गलियारों में पक्ष विपक्ष के अब तक के परफार्मेंस पर भी चर्चा शुरू हो गई है। और इसमें सत्तापक्ष के विधायक ही भारी पड़े। सत्तापक्ष ने तो अभिभाषण पर ही आपत्ति उठा दी। जो बीते 24 वर्ष में नहीं हुआ। असल में वे ही विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं।
और विपक्ष, अपने शब्दानुसार केवल विपक्ष ही बना हुआ है। भाजपा के विधायक चाहते हैं कि कांग्रेस सरकार के जिन घोटालों भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर सत्ता में वापसी हुई है, उनके दोषी पूर्व मंत्री, अफसरों को सूली पर टांग दे। लेकिन एक साल बाद भी वैसा कुछ नहीं हो रहा। उल्टे बचाया जा रहा,बरी हो रहे। चाहे वह जल जीवन मिशन हो, रिजेंट हो, पीएम सडक़ हो, हाउसिंग बोर्ड के मामले हो, पीएम आवास हो। अपने ही मंत्रियों पर आरोप लगाने से नहीं चूक रहे।
भाजपा विधायकों का कहना है कि वो तो कोयला, डीएमएफ, पीएससी, शराब घोटाले की जांच सीबीआई, ईडी न कर रही होती तो इनका भी हश्र सीडी कांड की तरह ही हो जाता।
इस पहले पखवाड़े में कांग्रेस के विधायकों ने केवल तीन बार बहिर्गमन किया। वह भी अपने संगठन के राजनीतिक कारणों से। इसमें भी उंगलियां उठी कि,असल में नेता प्रतिपक्ष कौन है? 35 विधायकों का मजबूत विपक्ष बंटा हुआ ही नजर आया, दो बड़े नेताओं के बीच। प्रश्न काल में एकाधिक बार मंत्रियों की अनुपस्थिति पर भी विपक्ष ने नाम लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई।
इन बैठकों में कई मामलों में आसंदी ने भी प्रशासनिक कामकाज के तौर तरीकों को लेकर जांच के कई निर्देश दिए तो ढिलाई पर कड़़ाई भरी कई व्यवस्थाएं दी।
सबसे बड़ी तो निधन की सूचना देर से मिलने पर साप्रवि से लेकर कलेक्टर तक की अक्ष्म्यता साबित करने सेे भी नहीं चूका।
कुल मिलाकर यह पहला पखवाड़ा विपक्ष बने सत्ता पक्ष के नाम रहा।
चंद्राकर बने दुर्वासा
विधानसभा के बजट सत्र में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के तेवर से सरकार के मंत्री हिल गए। संसदीय मामलों के जानकार चंद्राकर ने पहले जिस तरह स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल को दवा-उपकरण खरीदी घोटाला मामले में घेरा, उसकी काफी चर्चा हो रही है। जायसवाल आखिरी तक चंद्राकर को संतुष्ट नहीं कर पाए।
कुछ इसी तरह जल संसाधन विभाग की अनुदान मांगों पर चर्चा के दौरान मंत्री केदार कश्यप की खिंचाई कर दी। पहले उन्होंने पिछली भूपेश सरकार की यह कहकर आलोचना की कि बोधघाट परियोजना को लेकर तत्कालीन मंत्री मिश्रीलाल (रविन्द्र चौबे) बढ़-चढक़र दावे कर रहे थे। मगर उसका क्या हुआ? चौबेजी मीठे बोल के लिए जाने जाते हैं, इसलिए चंद्राकर उन्हें मिश्रीलाल कहते रहे हैं। आगे चर्चा के दौरान अजय चंद्राकर ने केदार कश्यप को कुछ सुझाव दिए, तो कश्यप ने परीक्षण करने की बात कही। इस पर चंद्राकर बिफर पड़े।
बाद में केदार कश्यप ने उनसे अलग से कक्ष में चर्चा करने की बात कहकर ठंडा करने की कोशिश की, तो चंद्राकर ने कह दिया कि सरकार के मंत्री कक्ष में चर्चा करने की बात कहते हैं लेकिन आज तक किसी ने उन्हें चर्चा के लिए नहीं बुलाया है। इस पर केदार ने भरोसा दिया कि इसी सत्र के बीच में वो विभाग से जुड़े विषयों का उनसे अलग से बैठक करेंगे। तब कहीं जाकर चंद्राकर शांत हुए।
महिला पार्षद के तेवर
रायपुर नगर निगम में सभापति पद पर सूर्यकांत राठौर का निर्विरोध निर्वाचन हुआ, तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। राठौर रायपुर निगम के सबसे सीनियर पार्षद हैं, और भाजपा पार्षदों की कुल संख्या 60 है। ऐसे में विपक्ष विरोध की औपचारिकता निभाने की स्थिति में भी नहीं था। मगर अपील समिति के चार सदस्यों के निर्वाचन में भाजपा के रणनीतिकारों के पसीने छूट गए।
सभापति के साथ-साथ नगर निगम के अपील समिति के चार सदस्यों का भी निर्वाचन होना था। भाजपा पार्षद दल की बैठक में सबसे पहले सूर्यकांत राठौर को सभापति प्रत्याशी बनाने का ऐलान किया गया। इस पर सभी पार्षदों ने राठौर को बधाई दी। इसके बाद पार्टी की तरफ से नियुक्त पर्यवेक्षक धरमलाल कौशिक ने अपील समिति के चार सदस्य पद के लिए पार्षदों के नाम की घोषणा की, तो पार्षद दल में कानाफूसी शुरू हो गई।
बैठक में एक महिला पार्षद ने तो समिति के सदस्य के रूप में अपना नाम तय किए जाने पर आपत्ति की। उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि वो अपील समिति में नहीं रहना चाहती हैं। महिला पार्षद के तेवर देखकर पर्यवेक्षक कौशिक भी हैरान रह गए। बाद में उन्हें समझाईश दी कि पार्टी का आदेश है, और इसका पालन करना हर किसी की जिम्मेदारी है। काफी देर तक इधर-उधर की बातें होती रही। ले-देकर बुझे मन से महिला पार्षद अपील समिति का सदस्य बनने के लिए तैयार हुईं।
बताते हैं कि महिला पार्षद एमआईसी या जोन अध्यक्ष बनना चाहती हैं, और जब अपील समिति के लिए नाम आया तो वो खुद को एमआईसी या जोन अध्यक्ष के दौड़ से बाहर मान बैठीं। बाद में महिला पार्षद को समझाया गया कि अपील समिति में रहने के बाद भी एमआईसी और जोन अध्यक्ष बन सकती हैं। मगर जिस अंदाज में महिला पार्षद ने तेवर दिखाए, उसको लेकर भाजपा में काफी हलचल रही।
जब सीखना बने मस्ती भरा सफर!
यह एक वीडियो का स्क्रीन शॉट है, जिसमें एक टीचर बच्चों के साथ नाच रही हैं, गा रही हैं-आज मंगलवार है, चूहे को बुखार है... और बच्चे भी पूरे जोश में ताल मिलाकर झूम रहे हैं!
बिहार के शेखपुरा जिले के एक स्कूल की यह तस्वीर उस पारंपरिक शिक्षण पद्धति को चुनौती देती है, जहां अब भी बच्चों से सख्ती बरती जाती है। उनको डराकर, डांटकर या मारपीट कर रटाने की कोशिश की जाती है। शोध बताते हैं कि ऐसे माहौल में कई बच्चे स्कूल जाने से घबराते हैं, और पढ़ाई बोझ लगने लगती है। यह दिखाता है कि सीखना अगर खेल-खेल में हो, तो बच्चे न केवल पढ़ाई में रुचि लेते हैं, बल्कि टीचर के प्रति सम्मान भी बढ़ता है। (rajpathjanpath@gmail.com)
अनुशासित कार्यकर्ता
सेक्स सीडी कांड में 7 साल बाद पूर्व सीएम भूपेश बघेल को सीबीआई की विशेष अदालत से राहत मिली है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी किसी भी प्रकार से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी अश्लील कूटरचित वीडियो को बनाने में संलिप्त नहीं रहा है, और न ही उसका उपयोग किया गया। दिलचस्प बात यह है कि इस पूरे मामले कांग्रेस प्रवक्ता विकास तिवारी का बयान भूपेश बघेल के रक्षा कवच बना।
जिस दिन भूपेश बघेल के सरकारी निवास पर कथित तौर पर प्रेस कांफ्रेंस में सीडी बंटी थी उस वक्त विकास तिवारी वहां मौजूद थे, और वो सेक्स सीडी कांड के प्रमुख गवाह रहे हैं।
कोर्ट ने प्रमुख गवाह कांग्रेस प्रवक्ता विकास तिवारी के 161 के बयान को प्रमुख रूप से आधार बनाया है। जिसमें यह कहा गया कि राजेश मूणत के कूटरचित अश्लील वीडियो की सीडी बांटने के लिए पूर्व सीएम भूपेश बघेल के आवास में प्रेस कांफ्रेस नहीं रखी गई थी, बल्कि विनोद वर्मा की गिरफ्तारी के विरोध में थी। यह भी कहा कि भूपेश बघेल के सरकारी आवास में जिनके हाथों में सीडी थी उनके द्वारा सांकेतिक विरोध किया जा रहा था कि हमारे पास भी सीडी है हमें भी गिरफ्तार करो।
भूपेश बघेल को कोर्ट से राहत मिली तो उनका खुश होना लाजमी था। उन्होंने फेसबुक पर लिखा कि सत्यमेव जयते। हालांकि भूपेश बघेल कैम्प से अब अलग हो चुके प्रवक्ता विकास तिवारी ने किसी का नाम लिखे बिना फेसबुक पर लिखा कि अनुशासित कार्यकर्ता ने नेता के लिए क्या किया ये धारा 161 के बयान में लिखा है, वही बयान ढाल बना और रक्षा किया।
जाहिर है ये बातें उन्होंने भूपेश बघेल के लिए लिखी होगी। सीबीआई आगे क्या कदम उठाती है, इस पर निगाहें टिकी हुई है।
स्कूल में नवाचार
कोरबा जिले के गढक़टरा गांव का स्कूल अपने अनोखे और रचनात्मक प्रयोगों के कारण चर्चा में है। यहां जनसहयोग से करीब 60 हजार रुपये की लागत से एक सुंदर उद्यान बच्चों के सामान्य ज्ञान को बढ़ाने के उद्देश्य से तैयार किया गया है।
यहां कबाड़ को नए स्वरूप में ढालकर उपयोग किया गया है। पुरानी गाडिय़ों के टायरों को रंग कर आकर्षक तरीके से सजाया गया है। इन टायरों पर सप्ताह के दिनों, रंगों की पहचान, अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों के अर्थ और महीनों के दिनों की जानकारी रोचक अंदाज में दी गई है।
इस पहल को यहां के शिक्षकों ने पूरी तरह अपने प्रयासों से साकार किया है, जिसमें शिक्षा विभाग से कोई आर्थिक सहयोग नहीं लिया गया। इतना ही नहीं, समय-समय पर ये शिक्षक स्वयं धनराशि एकत्र कर बच्चों के लिए जूते, चप्पल और गर्म कपड़े भी ले आते हैं।
इन सब के चलते ग्रामीणों और शिक्षकों के बीच गहरा आत्मीय संबंध विकसित हो गया है, जिससे बच्चों में स्कूल आने की ललक और रुचि लगातार बढ़ रही है। कहें तो, यह स्कूल शिक्षा और समाज के बीच मजबूत सेतु का उदाहरण है।
पंचायत और राजनीति
प्रदेश के जिला पंचायत के चुनाव में भाजपा का दबदबा कायम है। अब तक 16 जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव हुए हैं। सभी जगहों पर भाजपा समर्थित जिला पंचायत सदस्य ही अध्यक्ष बनने में कामयाब रहे। यद्यपि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने प्रदेश के 18 जिला पंचायतों में कांग्रेस को बहुमत मिलने का दावा किया था, लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि 16 जिला पंचायतों में चुनाव के लिए प्रदेश कांग्रेस ने पर्यवेक्षक तक नियुक्त नहीं कर पाई। एक तरह से पार्टी ने पहले ही मैदान छोड़ दिया।
कांग्रेस ने जिला संगठन के भरोसे में ही जिला पंचायत अध्यक्ष-उपाध्यक्ष का चुनाव लड़ा था। हाल यह रहा है कि दुर्ग में तो कांग्रेस प्रत्याशी ने नामांकन तक नहीं भरा। भाजपा समर्थित प्रत्याशी यहां से निर्विरोध निर्वाचित हुई। खास बात यह है कि भाजपा ने अध्यक्ष-उपाध्यक्ष की रेस में रहे अपने कई दिग्गज नेताओं को ठिकाने भी लगाया है।
पूर्व संसदीय सचिव सिद्धनाथ पैकरा ने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव सिर्फ इसलिए लड़ा था कि वो जिला पंचायत अध्यक्ष बन जाए। मगर पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया। सिद्धनाथ बागी होकर चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन भाजपा समर्थित अधिकृत प्रत्याशी के मुकाबले टिक नहीं पाए।
इसी तरह कोरिया में पूर्व मंत्री भैयालाल राजवाड़े अपनी पसंद का अध्यक्ष बनवाना चाह रहे थे। मगर वो पार्टी की अधिकृत प्रत्याशी को राजवाड़े हरवा नहीं पाए। इससे परे बेमेतरा में खाद्य मंत्री दयालदास बघेल अपने पुत्र अंजु बघेल को जिला पंचायत उपाध्यक्ष बनवाना चाह रहे थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें महत्व नहीं दिया। मन मसोसकर बघेल को पीछे हटना पड़ा, और यहां भाजपा की राह आसान हो गई। भाजपा अपने संगठन, और प्रबंधन के बूते पर जिला पंचायतों में दबदबा बनाए रखने में कामयाब रही है।
भूपेश-ताम्रध्वज को झटका
दुर्ग के जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव में पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को तगड़ा झटका लगा है। यहां कांग्रेस ने मैदान ही छोड़ दिया, और भाजपा प्रत्याशी सरस्वती बंजारे निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष बनने में कामयाब रहीं।
अनुसूचित जाति महिला के लिए आरक्षित दुर्ग जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए अनुसूचित जाति महिला के लिये आरक्षित था। पूर्व सीएम बघेल, और ताम्रध्वज साहू के प्रभाव वाले दुर्ग में अध्यक्ष पद के लिए कांटे की टक्कर के आसार थे। यहां भाजपा के जिला पंचायत सदस्यों की संख्या 6 और कांग्रेस की 5 थीं। एक निर्दलीय सदस्य प्रिया साहू के भाजपा का साथ देने से जिला पंचायत में भाजपा की स्थिति मजबूत दिख रही थी। भाजपा ने जिला पंचायत सदस्य सरस्वती बंजारे को चुनाव मैदान में उतारा। और फिर परन्तु यहां चुनाव में ट्विस्ट तब आ गया, जब कांग्रेस ने मैदान ही छोड़ दिया, और भाजपा प्रत्याशी सरस्वती बंजारे निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित हुई है।
जिला पंचायत सदस्य और कांग्रेस की ओर से अध्यक्ष की एकमात्र उम्मीद उषा सोनवानी के अचानक लापता हो गई। उनके बेटे ने मोहन नगर थाने में शिकायत भी की, कांग्रेस की किरकिरी और तब हो गई जब उनकी एकमात्र दावेदार ने अध्यक्ष पद के लिये न तो फार्म भरा और न वोट देने पहुंची। चर्चा है कि कांग्रेस के पदाधिकारियों ने चुनाव निर्विरोध कराने में अहम भूमिका निभाई है। बहरहाल, आरोप-प्रत्यारोप का विवाद जारी है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
विधायक का करिश्मा
रायपुर जिला पंचायत अध्यक्ष पद को लेकर भाजपा के अंदरखाने में घमासान मचा हुआ है। यहां भाजपा के एक विधायक अपनी पसंद का अध्यक्ष बनवाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। चर्चा है कि विधायक ने अपने करीबी तीन जिला पंचायत सदस्यों को फुर्र करा दिया है। विधायक महोदय के तेवर देखकर भाजपा के रणनीतिकार हैरान हैं। कांग्रेस के लोग भाजपा विधायक की पैंतरेबाजी पर नजर रखे हुए हैं, और अपनी संभावनाएं टटोल रहे हैं। सुनते हैं कि भाजपा के रणनीतिकार किसी भी दशा में विधायक के पसंदीदा सदस्य को अध्यक्ष प्रत्याशी बनाने के पक्ष में नहीं है। पार्टी के रणनीतिकार पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष को अध्यक्ष का प्रत्याशी बनाना चाहते हैं। अगर विधायक नहीं माने, तो रायपुर जिला पंचायत में भाजपा की राह कठिन हो जाएगी। हालांकि रायपुर में जिला पंचायत अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के चुनाव की तिथि आगे बढ़ा दी गई है। यह चुनाव अब 12 तारीख को होगा। फिलहाल तो पार्टी के लोग विधायक को समझाने में लगे हैं। देखना है आगे क्या होता है।'
सूत न कपास, जुलाहों ....'
चर्चा है कि करीब 14 महीने की देरी से जारी होने जा रही निगम मंडलों में नियुक्ति की सूची एक बार फिर अटक गई है। ऐसा कहा जा रहा है कि कई दिग्गजों को ओवरटेक कर जो 8-10 नाम तय किए थे उसको लेकर विवाद खड़ा हो गया था। कुछ नाम मीडिया में लीक भी हो गए थे।
सुनते हैं कि निगम मंडलों के लिए जिन नामों की चर्चा रही है उनमें से कुछ ने विधानसभा चुनाव में जीतने की उम्मीद छोड़ दी थी। और इन नेताओं ने नवम्बर-दिसंबर 23 में अपने को चुनावी काम से दूर रखा। बाद में इनमें से एक को सदस्यता अभियान की जिम्मेदारी, दो महामंत्री बन गए, दो निकाय पंचायत चुनाव प्रभारी, एक को दक्षिण उपचुनाव और वार्ड चुनाव का बीड़ा दिया गया।
जैसे ही सूची लीक हुई ,हाईकमान को ई मेल, फेसबुक पोस्ट की कतारें लग गई। जाहिर इसमें किसी ने भी खुशी तो जताई नहीं होगी, मीन-मेख,शिकायत,नाराजगी का पुलिंदा ही भेजा गया। शिकायतों का असर यह हुआ कि सूची फिलहाल रोक दी गई है।
पूजा-पाठ, या जादू-टोना?
हिन्दुस्तान में दूसरे लोगों के घरों के सामने जादू-टोना करके कुछ सामान रख देने का बड़ा चलन है। अभी इस अखबारनवीस के घर के सामने रात में ऐसा एक टोकरा छोड़ दिया गया जिसमें किनारे-किनारे रोटी या पापड़ सजाए गए थे, भीतर केले और फूल सजे थे। कुल मिलाकर एक कैमरे के लिए खूबसूरत नजारा था। अब ऐसा सुन्दर टोकरा अपने घर के आंगन में रखने के बजाय इस पत्रकार के घर के सामने रखकर जाने का क्या मतलब था? अब तक तो इससे कुछ बुरा भी नहीं हो पाया है, और सच तो यह है कि रखने वालों का कोई भला भी नहीं हुआ होगा। अगर जादू-टोने या पूजापाठ से किसी का भला-बुरा होना रहता, तो लोगों को मेहनत का काम ही क्यों करना पड़ता, महज हरामखोरी से जिंदगी चल जाती।
बिजली बचाने की नई तरकीब !
साल 2014 में छत्तीसगढ़ विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल का बंगला सुर्खियों में आ गया था, जब लोगों ने देखा कि वहां कुल 48 एसी लगे हुए थे। यहां तक कि बाथरूम और टॉयलेट में भी! अभी नया रायपुर में मंत्रियों के भव्य बंगले और सरकारी दफ्तरों की चमचमाती वातानुकूलित व्यवस्था देख लें, तो भी आंखें चौंधिया जाएं।
हालत यह है कि आए दिन खबरें आती हैं कि किसी विभाग का करोड़ों रुपये का बिजली बिल बकाया है और वसूली के लिए नोटिस भेजी जा रही है। उधर, नया रायपुर से लेकर जिलों के कई सरकारी दफ्तरों में अफसरों के चेंबर में वे मौजूद हों या न हों, एसी पूरे दिन चलता रहता है, ताकि साहब जब भी आएं, कमरा ठंडा मिले। सरकारी गाडिय़ां भी एसी के साथ स्टार्ट मोड पर खड़ी रहती हैं।
ऐसी हालत में, मध्य प्रदेश में वहां के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने ऐलान किया है कि वे अगले एक साल तक बिना प्रेस किए कपड़े पहनेंगे, क्योंकि एक कपड़े को प्रेस करने में आधी यूनिट बिजली खर्च होती है और इससे प्रदूषण भी बढ़ता है। सवाल यह है कि क्या सिर्फ इस्त्री न करने से बिजली बच जाएगी?
मंत्रियों के ऑफिस और बंगलों में लगे एसी, सरकारी गाडिय़ों के लंबे काफिले, बड़े सरकारी आयोजनों में जलती हाई-वोल्टेज लाइटें और गरजते लाउडस्पीकर क्या बिजली- ईंधन खर्च नहीं करते? मगर मंत्री ने एक आसान समाधान रख दिया। अच्छा है कि छत्तीसगढ़ में प्रचार पाने के मकसद से किसी ने इस तरह का फालतू ऐलान नहीं किया। अपने यहां के जंगलों में खूब कोयला है, नदियों में पानी है, सरप्लस बिजली है। और, जब तक ये सब खत्म नहीं हो जाते, शायद नहीं सोचा जाएगा।
सिलेंडर खुली गाड़ी में
रायपुर-दुर्ग के बीच व्यस्ततम हाईवे में यातायात पुलिस मुस्तैद रहती है। मगर कई बार ऐसा लगता है कि वह सिर्फ जुर्माना वसूलने के लिए खड़ी रहती है, सुरक्षित परिवहन पर नजर रखने के लिए नहीं। अब इसी दृश्य को देखें। कमर्शियल गैस सिलेंडर को एक खुले ट्रक में ढोया जा रहा है। यदि सिलेंडर गिर जाए या ट्रक दुर्घटनाग्रस्त हो जाए, तो बड़ा हादसा हो सकता है। (rajpathjanpath@gmail.com)
सांप-पाप के किस्से
नगरीय निकायों, और पंचायतों के नवनिर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के पति सक्रिय हो गए हैं। कई जगहों पर वे पत्नी की जगह बैठकों में हिस्सा लेना भी शुरू कर दिया है। ऐसे ही एक-दो जगहों पर तो बैठकों में पार्षद पतियों की फजीहत भी हुई है।
बताते हैं कि रायपुर नगर निगम के सभापति प्रत्याशी का नाम तय करने के लिए पिछले दिनों भाजपा पार्षद दल की बैठक हुई थी। बैठक में चार महिला पार्षद के पति भी थे। इस पर पर्यवेक्षक धरमलाल कौशिक ने नाराजगी जताई, और चारों पार्षद पतियों से बैठक स्थल से बाहर जाने के लिए कहा। पार्षद पतियों के जाने के बाद बैठक शुरू हुई।
कुछ इसी तरह का मामला महासमुंद जिले के बागबाहरा में भी आया है। बागबाहरा नगर पालिका के सभापति के चयन के लिए भाजपा पार्षद दल की बैठक में दो महिला पार्षदों की जगह उनके पति बैठक में पहुंच गए थे। इस पर पर्यवेक्षक ने नाराजगी जताई, और पार्षद पतियों को फटकार लगाई। इसके बाद दोनों महिला पार्षद बैठक में आई, और रायशुमारी की औपचारिकता पूरी की गई।-
भूपेश की महिमा
ईडी के खिलाफ सोमवार को कांग्रेस का प्रदर्शन भीड़ के लिहाज से काफी सफल रहा। प्रदर्शन में नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और पार्टी के तमाम प्रमुख विधायकों ने उपस्थिति दर्ज कराई। इस मौके पर प्रमुख नेताओं ने ईडी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए, और तीखे वार किए।
पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने तो अपने उद्बोधन के बीच मौका पाकर अपने नए दायित्व का भी बखान किया। भूपेश को पार्टी का राष्ट्रीय महामंत्री बनाया गया है, उन्हें पंजाब का प्रभारी बनाया गया है। भूपेश ने कहा कि वो छत्तीसगढ़ के तीसरे कांग्रेस नेता हैं जिसे पार्टी ने राष्ट्रीय महामंत्री बनाया है। उनसे पहले दिवंगत चंदूलाल चंद्राकर, और मोतीलाल वोरा ही इस पद पर रहे हैं। तीनों ही दुर्ग जिले से ताल्लुक रखते हैं।
भूपेश बघेल यह अहसास कराने में लगे रहे कि पार्टी ने भले ही उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर दायित्व दिया है, लेकिन छत्तीसगढ़ में उनकी सक्रियता कम नहीं होगी। वो यहां अहम रोल अदा करते रहेंगे। मगर वो प्रदेश कांग्रेस का चेहरा रहेंगे या नहीं, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
मां के साथ पुलिस का भी आशीर्वाद
राजधानी रायपुर में मलबा, रेत, मुरम, या दूसरी भवन निर्माण सामग्री लेकर चलने वाले ऐसे दानवाकार डम्पर पर माँ के आशीर्वाद के साथ-साथ पुलिस का आशीर्वाद भी दिखता है क्योंकि दिनदहाड़े शहर की सडक़ों पर बिना नंबर प्लेट दौड़ते हुए भी रोका-टोका नहीं जाता। यह तस्वीर एनआईटी के सामने जीई रोड पर ली हुई है, यहां पर यह डम्पर एक दिन खराब खड़ा हुआ था, और उस दौरान दर्जनों पुलिस गाडिय़ां सैकड़ों बार इसके बगल से निकली होंंगी। (rajpathjanpath@gmail.com)
श्रमिकों का नुकसान कर रहा श्रम विभाग
छत्तीसगढ़ में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की बड़ी तादाद है, जिनके लिए सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं बनाई गई हैं। मगर इन योजनाओं का लाभ तभी मिलेगा, जब श्रमिकों का पंजीकरण हो। समस्या यह है कि पंजीकरण की प्रक्रिया अब भी इतनी जटिल है कि लाखों मजदूर इससे वंचित रह रहे हैं।
पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) के मुताबिक, 22 फरवरी 2025 तक राज्य में केवल 63.68त्न असंगठित श्रमिक ही ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण करा पाए हैं। यह राष्ट्रीय औसत (63.25त्न) से थोड़ा बेहतर जरूर है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि स्थिति संतोषजनक है। 36-37त्न मजदूर अब भी पंजीकरण से बाहर हैं, यानी उन्हें कानूनी सुरक्षा और योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही ई श्रम पोर्टल बनाया गया है। शीर्ष अदालत ने इस विषय पर कई बार सुनवाई की और सरकार को निर्देश भी दिए। फिर भी अगर एक बड़ी आबादी इससे छूट रही है, तो इसका सीधा मतलब है कि उन तक पंजीकरण के फायदों की जानकारी नहीं पहुंच रही। वे खुद पंजीकृत कराने में असमर्थ हैं। मजदूरों के पास न तो डिजिटल संसाधन हैं, न ही तकनीकी दक्षता। दूसरी ओर, नियोक्ताओं की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं क्योंकि पंजीकरण होते ही उनकी जवाबदेही बढ़ जाएगी।
ऐसे में सवाल उठता है कि श्रम विभाग क्या कर रहा है? उसकी जिम्मेदारी थी कि वह अभियान चलाकर हर मजदूर तक पहुंचे, मगर ऐसा लगता है कि यह उसकी प्राथमिकता में ही नहीं है। नतीजा यह कि गरीब मजदूर सरकारी लाभ से वंचित हैं और विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा है।
एयरलाईंस की कल्पनाशीलता
देश की एक प्रमुख एयरलाईंस अपने छोटे-छोटे कागज पर भी बड़े शानदार नारे लिखती है। अब खाने के साथ मिले पेपर-नेपकिन पर लिखा था- दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम।
साथ में जो पानी मिला उस ग्लास पर अलग-अलग तरफ अलग-अलग तथ्य छपे हुए थे, जिन्हें लोग इंटरनेट पर ढूंढकर अधिक जानकारी भी पा सकते हैं। एक ग्लास पर एक तरफ लिखा था- कि एक वक्त डेंटिस्ट मूंगफली को नकली दांत की तरह इस्तेमाल करते थे। उसी ग्लास पर दूसरी तरफ लिखा था-डायनामाईट बनाने में मूंगफली का इस्तेमाल होता है। ग्लास पर तीसरी तरफ लिखा था-विख्यात लेखक हेमिंग्वे का लिखते समय सबसे पसंदीदा खाना था, पीनट बटर सैंडविच।
अब बोरियत भरे और थका देने वाले हवाई सफर में ऐसी छोटी-छोटी बातें वक्त काटने में मददगार हो जाती हैं।
शिक्षित हैं, समझदार भी बनें
भोपाल की एक सडक़ पर लगे इस बोर्ड में एक कड़वा लेकिन सच्चा आईना दिखाया गया है। शिक्षा का असली उद्देश्य सिर्फ डिग्री हासिल करना नहीं, बल्कि संस्कारित होकर जिम्मेदारी निभाना भी है। अगर पढ़े-लिखे लोग भी सार्वजनिक स्थानों पर कचरा फेंकते हैं, तो उनकी पढ़ाई का क्या मतलब? जब कम पढ़ा लिखा व्यक्ति आपकी लापरवाही से फैली गंदगी साफ करने को मजबूर हो, तो यह हमारे समाज की विडंबना ही है।
सब कुछ ऊपरवाला तय करेगा
नगरीय निकायों में सभापति के चुनाव को लेकर हलचल शुरू हो गई है। सभी नगर निगमों, और ज्यादातर पालिकाओं में पार्षदों की संख्या के आधार पर भाजपा का सभापति बनना तय है। सभी नगर निगमों में 50 फीसदी से अधिक पार्षद भाजपा के ही जीतकर आए हैं। ऐसे में सभापति कौन होगा, यह प्रदेश भाजपा संगठन तय करेगा। ज्यादातर निकायों में तो भाजपा पार्षदों ने बकायदा प्रस्ताव पारित कर सभापति प्रत्याशी तय करने का जिम्मा प्रदेश संगठन पर छोड़ दिया है।
रायपुर नगर निगम के तो सभापति का नाम तय करने के लिए शनिवार को बैठक हुई। बैठक में पार्षदों ने पर्यवेक्षक धरमलाल कौशिक की मौजूदगी में एक लाइन का प्रस्ताव पारित कर सभापति प्रत्याशी तय करने का जिम्मा पार्टी पर छोड़ दिया। पहले पार्षदों को उम्मीद थी कि पर्यवेक्षक एक-एक कर पार्षदों से राय लेंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ। हालांकि कौशिक ने कहा कि यदि पार्षद अपनी तरफ से कोई सुझाव देना चाहे, तो वो अकेले में दे सकते हैं। लेकिन किसी भी पार्षद ने सुझाव नहीं दिया। वैसे भी प्रदेश संगठन से नाम आएंगे, तो सुझाव देने का मतलब नहीं था। न सिर्फ नगरीय निकायों बल्कि जिला पंचायतों के लिए भी नाम प्रदेश से संगठन से आएंगे। यही वजह है कि कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधियों की भीड़ लगी है।
मॉडल सरीखा ऑटो-ड्राइवर
राजधानी रायपुर की सडक़ पर अभी कुछ दिन पहले एक ऐसा ऑटोरिक्शा ड्राइवर दिखा जो कि किसी फैशन मॉडल की तरह था। एकदम साफ धुली हुई, प्रेस की हुई जींस, उस पर अच्छा काला टी-शर्ट, और ऑटोरिक्शा ड्राइवर की पोशाक का खाकी शर्ट भी एकदम चमचमाता। चश्मे की बड़ी अच्छी फ्रेम, किसी मॉडल की तरह के बाल और दाढ़ी-मूंछ, एक हाथ में सुनहरा कड़ा, और एक हाथ में फिटनेस बैंड। सिर से पैर तक बेदाग! देखकर लगा मानो किसी फिल्म की शूटिंग चल रही हो, लेकिन आसपास दूर-दूर तक कोई कैमरे नहीं थे। लोग किसी भी काम में रहें, चुस्त-दुरूस्त और शानदार तरीके से भी रह सकते हैं।
मन के हारे हार, मन के जीते जीत
पंचायत चुनावों में इस बार अधिकारियों ने लोकतंत्र को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। जीतने-हारने का साधारण नियम है। जिसे ज्यादा वोट मिले वह जीता, जिसे कम मिला वह हारा। पर अधिकारियों ने जीत और हार की परिभाषा को ही बदल डाला और जीतने हारने वाले दोनों प्रत्याशियों को जीत का प्रमाण पत्र दे दिया।
एक तो कोंटा, बस्तर के कांग्रेस नेता हरीश कवासी का आरोप है। उनका कहना है कि एर्राबोर पंचायत में जीते हुए प्रत्याशी को छुट्टी का बहाना बनाकर प्रमाण पत्र देने से इनकार किया गया, और हारे हुए प्रत्याशी को चुपचाप रात के अंधेरे में विजयी घोषित कर दिया गया। मगर बात यहीं खत्म नहीं हुई।
सुकमा के ग्राम पंचायत गुमोड़ी में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी हेमला कोसा और भाजपा समर्थित प्रत्याशी अनिल मोडियम सरपंच पद के उम्मीदवार थे। शाम को मतगणना पश्चात अनिल मोडियम 23 मतों से सरपंच का चुनाव जीत गए। लेकिन कोंटा के रिटर्निंग ऑफिसर ने अनिल की जगह हेमला कोसा को प्रमाण बना दिया। इतना ही नहीं कार्यालय से हेमला कोसा को प्रमाण पत्र लेने के लिए फोन के माध्यम से बुलाया गया। जब कोसा कांग्रेस पार्टी के नेताओं के साथ प्रमाण पत्र लेने पहुंचा तो मामला उजागर हुआ। जब भाजपा प्रत्याशी अनिल को इसका पता चला तो अधिकारी हड़बड़ा गए और हेमला के हाथ से जीत का सर्टिफिकेट लेकर फाड़ दिया। ऐसी ही शिकायत एमसीबी जिले के भरतपुर तहसील से आई है। यहां के ओहनिया पंचायत के सरपंच उम्मीदवार जगत बहादुर सिंह ने एसडीएम से शिकायत की है कि उन्हें ज्यादा वोट मिले लेकिन जीत का प्रमाण पत्र हारे हुए उम्मीदवार जयकरण सिंह को दे दिया गया है। कोरबा जिले के डोकरमना पंचायत में प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह कुछ और आवंटित किए गए लेकिन जब मतपत्र प्रकाशित होकर आए तो उनके चिन्ह बदल गए थे। बालोद के कोरगुड़ा में एक प्रत्याशी को पहले दो वोट से जीता हुआ बताया गया फिर उसे 8 वोट से हारा हुआ घोषित कर दिया गया। हर जिले से ऐसी खबरें आई हैं। कुछ स्थानों से यह भी शिकायत रही कि मुहर ठीक से दिखाई देने के कारण मतपत्र निरस्त कर दिए गए। पंचायत चुनाव के पहले चुनाव अमले को जो प्रशिक्षण दिया गया था, लगता है उसमें खामियां रह गई थीं।
देसी स्टाइल का ओपन चैलेंज
कोरबा जिले के उरगा थाना क्षेत्र के नवापारा गांव में हुए मर्डर ने अनोखा मोड़ ले लिया है। यहां रात में घर के बाहर सो रहे एक वृद्ध की हत्या से पूरा गांव सहमा हुआ था ही, लेकिन बात आगे बढ़ गई। हत्यारे ने गांव की दीवारों पर पांच और लोगों को मारने की धमकी लिखकर जबरदस्त खौफ पैदा कर दिया है।
आजकल हम देखते आए हैं कि अपराधी फोन कॉल, सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए धमकियां देते हैं। पुलिस आईपी एड्रेस ट्रेस, कॉल डिटेल एनालिसिस और डिजिटल फोरेंसिक से तुरंत अपराधी तक पहुंच जाती है। मगर, यहां पर अपराधी जरा अलग है। उसने तकनीक को पीछे छोडक़र पुराना हाथ से लिखने वाला तरीका अपनाया है। उसने पुलिस को 90 के दशक वाली जांच करने पर मजबूर कर दिया है।
पुलिस अब संदेहियों की हैंडराइटिंग के सैंपल इक_ा कर रही है और इसे जांच के लिए रायपुर भेजा जा रहा है। यानी, जहां देश के कोने-कोने में बैठे साइबर ठगों को पकडक़र लाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल हो रहा है, वहीं इस गांव में, या आसपास के गांव में बैठे अपराधी की उसकी लिखावट से ढूंढने की कोशिश हो रही है। छह दिन बीत गए सुराग मिला नहीं है।
गांव के लोग खौफ में जी रहे हैं। कोई नहीं जानता कि अगला निशाना कौन होगा। पुलिस के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गया है। देखना दिलचस्प होगा कि अपराधी की हाथ की लिखाई उसे जेल की सलाखों तक ले जाती है या फिर पुलिस को अभी और पसीना बहाना पड़ेगा। आपको यह घटना हॉरर कॉमेडी मूवी स्त्री और स्त्री-2 की याद दिला सकती है, जिसमें चुड़ैल से बचने के लिए लोगों ने अपने घर के बाहर दीवार पर लिखा था- ओ स्त्री कल आना।
हर आफिस से एक ही जवाब साहब विधानसभा गए हैं
नए वर्ष के संकल्प (रेजुलुशन) के तहत पंचायत से सचिवालय तक राइट टाइम वर्किंग को लेकर बीते दो माह तक भाग दौड़ मची हुई थी। सचिव, कलेक्टर-कमिश्नर, एसपी सभी अपने अपने महकमे के लेट कमर्स की धरपकड़ में लगे हुए थे। कुछेक पकड़े भी गए। इनमें दूर जिलों के एक-दो कलेक्टर भी शामिल रहे । उसके बाद 36 दिन चुनाव में निकल गए। आचार संहिता हटी तो एक बार फिर से पूरा अमला खासकर राजधानी के साहब-बाबू उसी पुराने ढर्रे पर आ गए हैं। वह भी फाइनेंशियल ईयर के अंतिम महीने फरवरी मार्च में। और इसी महीने हर आफिस में आम व्यक्ति को वर्षांत वाले काम निपटाने होते हैं और जब वह आफिस पहुंच रहा है तो बड़े बाबू गायब। 10बजे पहुंचों तो तीन बजे आएंगे और तीन बजे पहुंचों तो आज नहीं आए, का जवाब बाजू में बैठे लोग देते हैं। और बहुतायत के पास तो एक सबसे बड़ा और अहम अनएवायडेबल कारण होता है- विधानसभा गए हैं। चाहे मंत्रालय हो, संचालनालय हो या फिर तहसील और निगम का जोन आफिस। पहले दो तो समझ आता है बाद के दो आफिस के स्टाफ का विधानसभा से क्या काम? लेकिन सुबह आओ हाजिरी रजिस्टर में साइन करो और विधानसभा का बहाना लेकर निकल जाओ। यह सिलसिला अभी अगले पूरे 24 मार्च तक चलेगा। आफिसों में एक बार फिर कुर्सियां बैठने वालों का इंतजार करती रहेंगी। और लोग चक्कर पे चक्कर लगाते रहेंगे। ऐसे में इस वर्ष के काम 1अप्रैल के नए वर्ष में ही हो पाएंगे।
(rajpathjanpath@gmail.com)
गैदू का जवाब, और जांच का बढ़ेगा दायरा...
चर्चा है कि ईडी कोंटा, और सुकमा के राजीव भवन के निर्माण में हुए खर्चों की जांच का दायरा बढ़ा सकती है। ईडी को शक है कि आबकारी घोटाले की राशि का एक हिस्सा राजीव भवनों के निर्माण में भी खर्च हुए हैं। घोटाले में फंसे पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा और अन्य लोगों से मिले इनपुट के बाद ही ईडी ने राजीव भवनों के निर्माण के खर्चों की जांच कर रही है।
ईडी ने तो फिलहाल प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री मलकीत सिंह गैदू से पूछताछ की है। हालांकि गैदू का राजीव भवनों के निर्माण कार्यों से सीधे कोई लेना-देना नहीं रहा है। कांग्रेस ने प्रदेश में सरकार बनने के बाद सभी जिलों में राजीव भवन के निर्माण का फैसला लिया था। पार्टी स्तर पर इसके लिए समिति बनाई गई थी। इसके कर्ताधर्ता प्रदेश कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल रहे हैं। इसके अलावा भवन निर्माण समिति में पूर्व सीएम भूपेश बघेल के करीबी गिरीश देवांगन, और विनोद वर्मा भी थे।
कोल घोटाले में नाम आने के बाद कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल फरार हैं, और उनके दुबई में शिफ्ट होने की खबर आई है। सुनते हैं कि राजीव भवनों के ड्राईंग डिजाइन से लेकर निर्माण कार्य के ठेकों में रामगोपाल अग्रवाल की सीधे तौर पर भूमिका रही है। हालांकि मलकीत सिंह गैदू ने ईडी को कोंटा, और सुकमा के भवन निर्माण में हुए 85 लाख के खर्चों का ब्यौरा दिया है। यह भी कहा है कि भुगतान चेक से किए गए हैं, और भवन निर्माण के खर्चों की राशि की व्यवस्था पार्टी फंड से की गई है।
पार्टी के कई लोग मलकीत सिंह की सराहना भी कर रहे हैं जो कि यह कहकर बच सकते थे कि रामगोपाल अग्रवाल ही इसकी पूरी जानकारी रखते हैं। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया, और ईडी को फेस किया। कुछ लोगों का अंदाजा है कि ईडी न सिर्फ कोंटा-सुकमा बल्कि बाकी राजीव भवनों के निर्माण के खर्चों की जांच कर सकती है।
हालांकि पार्टी ने सीधे तौर पर ईडी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, और धरना-प्रदर्शन का ऐलान कर दिया है। बावजूद इसके मामला थमता नहीं दिख रहा है। कांग्रेस के कुछ पदाधिकारी पार्टी फंड में गड़बड़ी का आरोप पहले लगा चुके हैं, और हाईकमान से लिखित में शिकायत भी कर चुके हैं। ऐसे में चर्चा है कि ईडी की जांच का दायरा बढ़ सकता है। संभव है कि कई और लोग इसके लपेटे में आ सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
हर आफिस से एक ही जवाब साहब विधानसभा गए हैं
नए वर्ष के संकल्प (रेजुलुशन) के तहत पंचायत से सचिवालय तक राइट टाइम वर्किंग को लेकर बीते दो माह तक भाग दौड़ मची हुई थी। सचिव, कलेक्टर-कमिश्नर, एसपी सभी अपने अपने महकमे के लेट कमर्स की धरपकड़ में लगे हुए थे। कुछेक पकड़े भी गए। इनमें दूर जिलों के एक-दो कलेक्टर भी शामिल रहे । उसके बाद 36 दिन चुनाव में निकल गए। आचार संहिता हटी तो एक बार फिर से पूरा अमला खासकर राजधानी के साहब-बाबू उसी पुराने ढर्रे पर आ गए हैं। वह भी फाइनेंशियल ईयर के अंतिम महीने फरवरी मार्च में। और इसी महीने हर आफिस में आम व्यक्ति को वर्षांत वाले काम निपटाने होते हैं और जब वह आफिस पहुंच रहा है तो बड़े बाबू गायब। 10बजे पहुंचों तो तीन बजे आएंगे और तीन बजे पहुंचों तो आज नहीं आए, का जवाब बाजू में बैठे लोग देते हैं। और बहुतायत के पास तो एक सबसे बड़ा और अहम अनएवायडेबल कारण होता है- विधानसभा गए हैं। चाहे मंत्रालय हो, संचालनालय हो या फिर तहसील और निगम का जोन आफिस। पहले दो तो समझ आता है बाद के दो आफिस के स्टाफ का विधानसभा से क्या काम? लेकिन सुबह आओ हाजिरी रजिस्टर में साइन करो और विधानसभा का बहाना लेकर निकल जाओ। यह सिलसिला अभी अगले पूरे 24 मार्च तक चलेगा। आफिसों में एक बार फिर कुर्सियां बैठने वालों का इंतजार करती रहेंगी। और लोग चक्कर पे चक्कर लगाते रहेंगे। ऐसे में इस वर्ष के काम 1अप्रैल के नए वर्ष में ही हो पाएंगे।
दो संभाग के कमिश्नर, दो विवि के कुलपति भी
रायपुर बिलासपुर संभाग के संयुक्त संभागायुक्त महादेव कावरे अब दो-दो विश्वविद्यालयों के प्रभारी कुलपति होंगे। बिलासपुर स्थित सुंदरलाल शर्मा राज्य मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति रहे वंश गोपाल सिंह का 2 मार्च को अंतिम कार्य दिवस है। इसे देखते हुए कावरे को नई नियुक्ति तक प्रभारी बनाया गया है। इसी तरह से उन्हें कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के भी कुलपति बनाए गए हैं। वर्तमान कुलपति बल्देव भाई शर्मा का कार्यकाल 4 मार्च को पूर्ण होने के बाद कावरे पदभार ग्रहण करेंगे। कावरे को अधिकतम छह माह की अवधि तक के लिए नियुक्त किया गया है । कावरे के नाम पर प्रभारी कुलपति के रूप में रिकॉर्ड भी जुड़ गया है। इससे पहले वे दुर्ग संभाग के कमिश्नर के रूप में भी कामधेनु विवि अंजोरा और हार्टीकल्चर विवि सांकरा के भी प्रभारी कुलपति रह चुके हैं।
देसी स्टाइल का ओपन चैलेंज
कोरबा जिले के उरगा थाना क्षेत्र के नवापारा गांव में हुए मर्डर ने अनोखा मोड़ ले लिया है। यहां रात में घर के बाहर सो रहे एक वृद्ध की हत्या से पूरा गांव सहमा हुआ था ही, लेकिन बात आगे बढ़ गई। हत्यारे ने गांव की दीवारों पर पांच और लोगों को मारने की धमकी लिखकर जबरदस्त खौफ पैदा कर दिया है।
आजकल हम देखते आए हैं कि अपराधी फोन कॉल, सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए धमकियां देते हैं। पुलिस आईपी एड्रेस ट्रेस, कॉल डिटेल एनालिसिस और डिजिटल फोरेंसिक से तुरंत अपराधी तक पहुंच जाती है। मगर, यहां पर अपराधी जरा अलग है। उसने तकनीक को पीछे छोडक़र पुराना हाथ से लिखने वाला तरीका अपनाया है। उसने पुलिस को 90 के दशक वाली जांच करने पर मजबूर कर दिया है।
पुलिस अब संदेहियों की हैंडराइटिंग के सैंपल इक_ा कर रही है और इसे जांच के लिए रायपुर भेजा जा रहा है। यानी, जहां देश के कोने-कोने में बैठे साइबर ठगों को पकडक़र लाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल हो रहा है, वहीं इस गांव में, या आसपास के गांव में बैठे अपराधी की उसकी लिखावट से ढूंढने की कोशिश हो रही है। छह दिन बीत गए सुराग मिला नहीं है।
गांव के लोग खौफ में जी रहे हैं। कोई नहीं जानता कि अगला निशाना कौन होगा। पुलिस के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गया है। देखना दिलचस्प होगा कि अपराधी की हाथ की लिखाई उसे जेल की सलाखों तक ले जाती है या फिर पुलिस को अभी और पसीना बहाना पड़ेगा। आपको यह घटना हॉरर कॉमेडी मूवी स्त्री और स्त्री-2 की याद दिला सकती है, जिसमें चुड़ैल से बचने के लिए लोगों ने अपने घर के बाहर दीवार पर लिखा था- ओ स्त्री कल आना।
यातायात सुरक्षा सलाह
यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल है। लोगो से लगता है कि इंडियन एयरफोर्स के इलाके की कोई सडक़ है। बोर्ड तो एक नेक सलाह दे रहा है, मगर इसकी आलोचना करने वाले कम नहीं हैं। जैसे एक ने लिखा है- घर में बीवी हो तो आदमी वैसे भी गाड़ी धीरे चलाता है। शादी-शुदा आदमी को यह बताने की जरूरत नहीं है। नसीहत तो उन लडक़ों को दो जो रफ ड्राइविंग और स्टंटबाजी से बाज नहीं आते।
(rajpathjanpath@gmail.com)
जिला पंचायतों में कब्जे के लिए जोड़-तोड़
भाजपा ने प्रदेश के सभी 33 जिला पंचायतों में अपना अध्यक्ष बनाने के लिए कोशिशें तेज कर दी हैं। सभी जिलों में 5 मार्च को जिला पंचायत अध्यक्ष, और उपाध्यक्ष के चुनाव होंगे। इसके एक दिन पहले यानी 4 तारीख को जनपद अध्यक्ष और उपाध्यक्षों के होंगे। भाजपा को भले ही सभी जिला पंचायतों में बहुमत नहीं मिला है, लेकिन निर्दलीयों के सहारे अपना अध्यक्ष, और उपाध्यक्ष बिठाने की जुगत में हैं।
हालांकि कुछ जिले ऐसे हैं, जहां स्थानीय बड़े नेताओं की महत्वाकांक्षा के चलते पार्टी के रणनीतिकार पशोपेश में है। मसलन, सूरजपुर जिले में भाजपा को अपना अध्यक्ष बनवाने के लिए पूर्व केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह की मदद लेनी पड़ सकती है। रेणुका सिंह की पुत्री मोनिका सिंह बागी होकर चुनाव लड़ी थीं, और जिला पंचायत सदस्य बनने में कामयाब रही। चर्चा है कि रेणुका सिंह अपनी पुत्री को अध्यक्ष बनवाना चाहती हैं। मगर स्थानीय नेता इसके लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में रेणुका सिंह के पास विकल्प है कि वो कांग्रेस का समर्थन लेकर अपनी पुत्री को अध्यक्ष बनवा सकती हैं। कांग्रेस नेता इसके लिए तैयार भी हैं। हालांकि रेणुका सिंह भाजपा संगठन के प्रमुख नेताओं से लगातार चर्चा कर रही हैं, और वो बेटी को अधिकृत प्रत्याशी घोषित कराने के लिए प्रयासरत हैं। इसी तरह बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में भाजपा को बहुमत मिला हुआ है। यहां के नेता पूर्व संसदीय सचिव सिद्धनाथ पैकरा को अध्यक्ष बनाना चाहते हैं, लेकिन कृषि मंत्री रामविचार नेताम, पैकरा के खिलाफ बताए जाते हैं।
स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल के गृह जिले मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी में भी भाजपा को मुश्किलें आ रही है। रायपुर में कांग्रेस और भाजपा के जिला पंचायत सदस्यों की संख्या बराबर है। मगर दो निर्दलियों के भाजपा के समर्थन में आने से यहां राह थोड़ी आसान हो गई है। भाजपा के रणनीतिकारों ने कुछ जिलों के नवनिर्वाचित सदस्यों को प्रदेश के बाहर भी भेज दिया गया है। भाजपा के पंचायत चुनाव के प्रमुख सौरभ सिंह सभी 33 जिला पंचायतों में अपना अध्यक्ष-उपाध्यक्ष बनाने का दावा कर रहे हैं, तो यह बेवजह नहीं है।
एक हाईवे यह भी है...
जम्मू-कश्मीर-लद्दाख हाईकोर्ट ने नेशनल हाईवे 44 की हालत खराब होने के चलते एनएचआईए को आदेश दिया है कि व टोल टैक्स में 80 प्रतिशत की कमी करे। कोर्ट ने कहा कि जब सडक़ ही दुरुस्त नहीं हो तो टोल टैक्स क्यों पूरा लिया जाए। अपने राज्य छत्तीसगढ़ में भी कुछ नेशनल हाईवे ऐसी स्थिति में हैं कि उन पर टैक्स लेना वाजिब नहीं लगता। यह अंबिकापुर से गढ़वा तक जाने वाली नेशनल हाईवे 343 के शंकर घाट की तस्वीर है, जिसमें कई-कई फीट गड्ढे हैं। राजपुर तक तो सडक़ इतनी खराब कि लोग रास्ता बदलकर जाते हैं, भले ही दूरी और समय अधिक लगे।
राजनीति के धुएं में अफवाहों की आंच
हाल ही में कांग्रेस नेता शशि थरूर के बयान और उनकी भाजपा नेताओं के साथ तस्वीरों ने ऐसा ही माहौल बना दिया, जैसा कभी छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव के साथ हुआ था।
विधानसभा चुनाव से पहले सिंहदेव ने रायगढ़ के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ कर दी- कहा कि हमने जो मांगा-आपसे मिला। ऐसा लगा कि वे कांग्रेस से बगावत करने जा रहे हैं। अटकलों का बाजार और गरम हुआ, जब उन्होंने स्वीकार कर लिया कि दिल्ली में भाजपा के नेताओं से उनकी मुलाकात हुई और ऑफर मिला। फिर तो ऐसा माहौल बन गया मानो बाबा जल्द ही भगवा धारण कर लेंगे। लेकिन कुछ ही दिनों में उन्होंने साफ कर दिया, मेरी विचारधारा उनसे कभी नहीं मिलने वाली।
अब वही स्क्रिप्ट थरूर के लिए रिपीट हुई। उन्होंने मोदी सरकार की कुछ नीतियों की सराहना की। वंदे भारत को लेकर खुशी जताई। इतना ही नहीं केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के साथ फोटो भी शेयर कर दी। फिर तो वे ट्विटर ट्रोल पर आ गए, टीवी डिबेट्स होने लगे। कांग्रेस के अंदर भी कानाफूसी होने लगी। केरल में जल्दी ही विधानसभा चुनाव हैं। भाजपा नेताओं के चेहरे पर मुस्कान दिखने लगी, मजे लेने लगे। मगर , थरूर ने भी सिंहदेव स्टाइल में साफ कर दिया कि वे भाजपा में नहीं जाने वाले।
राजनीतिक दलों में पढ़े-लिखे, बौद्धिक विचार वाले नेताओं का अकाल पड़ता जा रहा है। यह हाल कांग्रेस का भी है। सिंहदेव और थरूर जैसे नेताओं की उनकी पार्टी को भी जरूरत है। पर, जब इन्हें लगता है कि उनकी प्रतिभा और क्षमता का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है- खेमेबाजी, पैंतरेबाजी के शिकार हो रहे हैं तो इसी अंदाज में अपनी ओर ध्यान खींचते हैं।
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उपेक्षा की पराकाष्ठा, अनसुनी पुकार
रायगढ़ स्थित किरोड़ीमल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी (केआईटी) कभी क्षेत्र के तकनीकी शिक्षा के विकास का प्रतीक माना जाता था। आज वह इसलिये चर्चा में है क्योंकि वेतन नहीं मिलने से परेशान कर्मचारियों ने राष्ट्रपति के नाम प्रशासन को ज्ञापन सौंपा है और इच्छामृत्यु की मांग की है।
शासन ने इस संस्थान को समुचित अधोसंरचना, अत्याधुनिक प्रयोगशालाएं और पर्याप्त भूमि उपलब्ध कराई है, लेकिन शासकीय मान्यता नहीं दी। वेतन और संचालन की व्यवस्था स्वयं उठाने के लिए कहा। अब 25 साल बाद यह संस्थान आज अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। विडंबना यह है कि छात्र, शिक्षक और कर्मचारी लगातार आंदोलन ही करते आ रहे हैं।
जनवरी 2002 में छात्रों ने पहली बार कॉलेज को सरकारी मान्यता दिलाने के लिए आंदोलन किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें पुलिस की लाठियां झेलनी पड़ीं और उनके विरुद्ध मामले दर्ज किए गए। 2003 में फिर आंदोलन हुआ, 2006 में धमकियों के बीच विरोध प्रदर्शन किया गया, 2009 में छात्रों ने भीख मांगकर अपनी आवाज बुलंद की, 2010 में प्राचार्य की गाड़ी में तोडफ़ोड़ तक हुई, लेकिन हर बार उन्हें अपने भविष्य की चिंता में दोबारा पढ़ाई की ओर लौटना पड़ा।
आज स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि 33 महीनों से केआईटी के प्रोफेसरों, कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है। यहां कार्यरत 12 कर्मचारियों और प्राध्यापकों ने सरकार की उपेक्षा से तंग आकर इच्छा मृत्यु की मांग कर डाली है। यह बेहद शर्मनाक स्थिति है।
यह स्थिति तब बनी हुई है जब पिछली सरकार में पांच वर्ष तक तकनीकी शिक्षा मंत्री रायगढ़ से थे और वर्तमान में भी वित्त मंत्री इसी जिले से हैं। बावजूद इसके, कॉलेज को सरकारी मदद से चलाने की पहल नहीं हुई। जबकि पश्चिम बंगाल, दिल्ली और केरल में इसी तर्ज पर खुले संस्थानों को शासकीय अनुदान देकर संरक्षित किया जा चुका है। केरल में सरकार ने कई स्वशासी कॉलेजों को शासकीय दर्जा देकर छात्रों और कर्मचारियों का भविष्य सुरक्षित कर दिया, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने केआईटी के साथ ऐसा कोई प्रयास नहीं किया।
दूसरी ओर औद्योगिकीकरण के केंद्र के रूप में विकसित रायगढ़ में बड़े उद्योगपतियों, कोल ब्लॉकों और एनटीपीसी जैसी संस्थाओं की भरमार है। गीदम में डीएवी पॉलिटेक्निक को एनएमडीसी सीएसआर फंड से संचालित कर सकता है, तो केआईटी को भी इस तरह का सहयोग क्यों नहीं मिल सकता? पर इसके लिए भी दबाव सरकार को ही बनाना पड़ेगा। आज यह संस्थान पूरी तरह से आर्थिक संकट में डूब चुका है।
केआईटी का पतन सरकार की बहुप्रचारित नई शिक्षा नीति का आईना है। यह प्रशासनिक अनदेखी का भी कड़वा सच उजागर करता है। शासन ने ठोस कदम नहीं उठाया तो यह संस्थान एक ऐतिहासिक भूल बनकर रह जाएगा।
मंत्रियों का हिंदी ज्ञान
बिहार के एक मंत्री ( शायद इस्तीफा दे चुके) डॉ. दिलीप कुमार जायसवाल का यह पत्र सोशल मीडिया पर खूब फैला हुआ है। चार लाइन के इस्तीफे में हिंदी व्याकरण की इतनी अशुद्धियां हैं, कि मजाक बन गया है। इसी हफ्ते उत्तरप्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह का एक वीडियो वायरल हो रहा था। हिंदी राज्य के शिक्षा मंत्री हैं, मगर विधानसभा में हिंदी का पर्चा पढऩे में बार-बार गलतियां कर रहे थे। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि दक्षिण भारत में यदि हिंदी का विरोध हो रहा है तो उसकी वजह यह भी है कि यहां के नेता-मंत्री ठीक से अपनी भाषा लिख-पढ़ नहीं सकते और हमें सिखा रहे हैं।
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