राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : इस बार कोरोना से निपटना आसान?
25-May-2025 6:56 PM
राजपथ-जनपथ : इस बार कोरोना से निपटना आसान?

इस बार कोरोना से निपटना आसान?

छत्तीसगढ़ के लिए यह थोड़ी चिंता की बात है कि लंबे समय बाद राज्य में फिर से कोरोना वायरस का मामला सामने आया है। रायपुर के एक 41 वर्षीय व्यक्ति में कोविड-19 की पुष्टि हुई है, जो सर्दी-खांसी की शिकायत के साथ अस्पताल पहुंचा था। अभी तक पूरे राज्य में यही एक सक्रिय मामला है, लेकिन इससे यह साफ हो गया है कि कोरोना पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है – वह अब भी आसपास मौजूद है।

बीते तीन वर्षों में छत्तीसगढ़ ने कोरोना की तीन बड़ी लहरों का सामना किया है, जिनमें लगभग 14,000 लोगों की जान गई। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने भी इसे हल्के में न लेते हुए तुरंत मेकाहारा में कोविड-19 के लिए एक विशेष ओपीडी शुरू कर दी है। कोविड के मामले नहीं आने के कारण इसके लिए तैयार किए गए अस्पतालों में अब स्वास्थ्य संबंधी दूसरे काम किए जा रहे हैं, पर अब हम पहले से कहीं ज्यादा सतर्क और सक्षम हैं।

इस समय 260 से ज्यादा मामले देश में आ चुके हैं। सबसे अधिक मरीज केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हैं। महाराष्ट्र के मुंबई में दो मौतें भी दर्ज की गई हैं, लेकिन इस बार लक्षण हल्के हैं और ज्यादातर मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ी है।

रायपुर में जो मामला सामने आया है, वह जेएन.1 वेरिएंट से जुड़ा हो सकता है – जो ओमिक्रॉन का ही एक नया रूप है। यह वेरिएंट तेजी से फैल सकता है और इम्यून सिस्टम को थोड़ा चकमा दे सकता है, लेकिन अब तक की जानकारी के अनुसार यह गंभीर बीमारी का कारण नहीं बन रहा है। इसके लक्षण सामान्य सर्दी-जुकाम जैसे हैं – जैसे गले में खराश, सिरदर्द, खांसी, और हल्का बुखार।

यह ठीक है कि घबराने की जरूरत नहीं, लेकिन लापरवाह होने का समय भी नहीं है। हमें वही सावधानियां फिर से याद करनी होंगी। जैसे खांसी-जुकाम होने पर मास्क लगाना, हाथों की सफाई का ध्यान रखना, और भीड़भाड़ वाली जगहों से बचना। हालांकि इस संबंध में अभी निर्देश प्रशासन की ओर से भी जारी होना है।

गबन का सदुपयोग!

हाल के वर्षों में डाक विभाग में गबन के मामले जहां बढ़े हैं वहीं इनके आरोपी अधिकारी कर्मचारियों को बचाने के भी यत्न कम नहीं हुए। आश्चर्य है कि बचने- बचाने के इस खेल में भी गबन की ही राशि का अफसरों ने सदुपयोग किया  । विभाग में चर्चा है कि एक जगदलपुर के एक  पोस्टमास्टर ने अपने पिछले पोस्टिंग वेन्यू में 25 लाख रुपए सरकारी खजाना से निकाल कर शेयर बाजार में लगाया दोष सिद्धी के समय वरिष्ठ अफसरों  ने अपना जाल बिछाया। इसमें राजनांदगांव से लेकर रायपुर के अफसरों ने  गबनकर्ता की सजा कम कराने के लिए लाखों रूपए झोंके। ताकि दोष सिद्ध होने पर बर्खास्तगी से बचाया जा सके। नतीजतन, सरकारी धन को शेयर बाजार में लगाने वाले इस पोस्ट मास्टर  को एक  साहब ने कम दण्ड देकर नौकरी बचा दी। और उसे  मात्र ,हटा कर बस्तर भेज दिया गया।है न गबन के सदुपयोग का उदाहरण। इसी दौरान साहब के अचल संपत्ति में निवेश की भी चर्चा रही। भाठागांव में इस संपत्ति  की  पहली  किश्त एक जूनियर  साहब ने जमा किया तो दूसरा किस्त एक अन्य ने।  इन दोनों ही जूनियर साहबों का काम पूरे परिमंडल में  ट्रांसफर्स का काम देखते हैं। जो इस गिव एंड टेक की महात्मय है। अब देखना होगा कि आगे क्या होता है ।

अब बड़े निजी अस्पतालों का दौर

यह तस्वीर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मैनपुर ब्लॉक के भालुडिग्गी गांव की है, जो कुल्हाड़ीघाट के पास दुर्गम पहाड़ी इलाके में स्थित है। यहां एक ग्रामीण को सांप ने डस लिया, जिससे वह बेहोश हो गया।

इलाके में न सडक़ है, न एम्बुलेंस की सुविधा। ऐसे में गांव के लोगों ने लकड़ी और कपड़े की मदद से कांवडऩुमा स्ट्रेचर बनाया और मरीज को करीब 10 किलोमीटर लंबा, पथरीला पहाड़ी रास्ता पैदल तय करके कुल्हाड़ीघाट के स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाया। यह दर्शाता है कि अब आदिवासी समाज में बदलाव की बयार है। वे अब अवैज्ञानिक झाड़-फूंक की बजाय डॉक्टरों पर भरोसा कर रहे हैं। इस भरोसे ने सर्पदंश पीडि़त जान भी बचाई, क्योंकि अस्पताल पहुंचने पर समय पर एंटी वेनम इंजेक्शन लग गया।

लेकिन इस तस्वीर के पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपी है। देश को आजाद हुए 76 साल हो चुके हैं, अलग छत्तीसगढ़ राज्य बने 25 साल बीत चुके, फिर भी भालुडिग्गी जैसे गांव आज भी सडक़ के लिए तरस रहे हैं। सवाल है कि क्या आदिवासियों का यह जागरूकता भरा प्रयास अकेले काफी है? जब वे अस्पताल तक पहुंचने को तैयार हैं, तो सरकार उनके लिए सडक़ क्यों नहीं बना पा रही? 


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