राजपथ - जनपथ

नए शिक्षकों की भर्ती अब और टलेगी?
छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग का कहना है कि युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया सिर्फ अतिशेष शिक्षकों के समुचित समायोजन के लिए की जा रही है। विभाग का दावा है कि न तो किसी शिक्षक का पद समाप्त किया जा रहा है और न ही कोई स्कूल बंद किया जा रहा है। लेकिन शिक्षक संगठनों, विपक्ष और अभिभावकों के बीच यह सवाल लगातार उठ रहा है कि क्या यह प्रक्रिया दरअसल सैकड़ों स्कूलों को धीरे-धीरे बंद करने और शिक्षकों की संख्या घटाने की तैयारी है?
शिक्षा विभाग के अनुसार राज्य में 5,370 शिक्षक (3,608 प्राथमिक और 1,762 पूर्व माध्यमिक शिक्षक) अतिशेष हैं। इन्हें उन स्कूलों में स्थानांतरित किया जा रहा है, जहां शिक्षकों की कमी है। विभाग यह भी कहता है कि किसी स्वीकृत पद को खत्म नहीं किया जा रहा है और भविष्य में छात्र संख्या बढऩे पर सभी पद फिर से सक्रिय रहेंगे। क्लस्टर स्कूल की अवधारणा को संसाधनों के बेहतर उपयोग से जोड़ा जा रहा है।
हालांकि, सवाल यह है कि अगर एक ही परिसर में कई स्कूलों को समायोजित किया जा रहा है और कुछ स्कूलों से शिक्षक हटाए जा रहे हैं, तो क्या यह वास्तव में स्कूलों को अप्रत्यक्ष रूप से बंद करने जैसा नहीं है? वर्तमान में राज्य की 212 प्राथमिक शालाएं पूरी तरह शिक्षकविहीन हैं और 6,872 शालाएं केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रही हैं। शिक्षकों की भर्ती को लेकर सबसे ज्यादा चिंता उन बेरोजगार युवाओं में है, जिन्हें दिसंबर 2023 में भाजपा सरकार ने आश्वासन दिया था कि एक साल के भीतर 54,000 शिक्षकों की भर्ती की जाएगी। लेकिन अब जब युक्तियुक्तकरण के जरिए अतिशेष शिक्षकों को दूसरी जगह समायोजित किया जा रहा है, तो यह आशंका बढ़ गई है कि सरकार नए पदों का सृजन शायद टाल सकती है।
अगर सरकार केवल समायोजन पर ही ध्यान देती रही और नई भर्ती की कोई स्पष्ट समयसीमा घोषित नहीं करती, तो हजारों प्रशिक्षित युवा, जिन्होंने बीएड और डीएड जैसी डिग्रियां इन्हीं वादों के भरोसे हासिल की हैं, खुद को ठगा हुआ महसूस कर सकते हैं।
दूसरी तरफ राज्य के दो दर्जन से अधिक शिक्षक संगठन एकजुट हो चुके हैं। उनका कहना है कि यह समायोजन शिक्षकों के साथ अन्याय है, खासकर तब, जब नई भर्ती और पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है। इन संगठनों ने 28 मई को मंत्रालय घेराव का ऐलान किया है। अब देखना यह होगा कि इस विरोध प्रदर्शन का राज्य सरकार और शिक्षा विभाग पर क्या असर होता है।
एक समाजवादी हस्तक्षेप
राजनीति के इस पूंजीवादी दौर में डॉ. राममनोहर लोहिया जैसे समाजवाद के प्रखर समर्थक अब हमारी स्मृतियों से ओझल होते जा रहे हैं। गोवा मुक्ति आंदोलन के इस निर्भीक नायक, जिन्होंने संसद में भी सत्ता की चूलें हिला दी थीं, उन्हें आज की पीढ़ी कितनी जानती है? लोहिया कहते थे कि अगर कोई झूठ को सच बना दे, तो वह राजनीति नहीं, धोखा है...। शायद इस दौर में उनकी कही बातें और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गई हैं।
धमतरी जिले के नगरी कस्बे से गुजरते वक्त अब एक चौक पर उनकी प्रतिमा दिखाई देती है। यह केवल धातु की आकृति नहीं, बल्कि एक विचार की मौजूदगी है। समाजवादी नेता रघु ठाकुर के प्रयासों से यह प्रतिमा हाल ही में स्थापित की गई है। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने इसका अनावरण किया।
चैम्बर और चुनौती
चैम्बर ऑफ कॉमर्स में सतीश थौरानी के निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाने के बाद व्यापारियों नेताओं में एका की उम्मीद जताई जा रही थी। वजह यह थी कि थौरानी का चैम्बर के बड़े नेता अमर पारवानी, और श्रीचंद सुंदरानी समेत अन्य से घनिष्ठता रही है, लेकिन सोमवार को उन्होंने कार्यकारिणी घोषित की, तो एकता को लेकर संदेह जताया जा रहा है।
पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी, पूरनलाल अग्रवाल जैसे दिग्गजों को संरक्षक बनाया गया है। मगर पारवानी का नाम सूची से गायब है। पारवानी व्यापारियों के बीच अपनी पकड़ साबित कर चुके हैं। उन्होंने पिछले चुनाव में अलग पैनल बनाकर पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी के एकता पैनल को मात दी थी। सतीश को निर्विरोध अध्यक्ष बनाने में पारवानी की भी भूमिका रही है। हालांकि पारवानी को संरक्षक भले ही नहीं बनाया गया, लेकिन उनके करीबी विक्रम सिंहदेव, विनय बजाज सहित कई नेताओं को अहम पद दिए गए हैं।
बताते हैं कि पूर्व अध्यक्ष पारवानी को चैम्बर की सूची में जगह नहीं मिलने के पीछे उनका कैट से जुड़ा होना बताया जा रहा है। पारवानी कैट के कर्ता-धर्ता हैं। चैम्बर में यह तय किया गया कि जो कैट का पदाधिकारी होगा, उन्हें चैम्बर का पदाधिकारी नहीं बनाया जाएगा। ऐसे में अब व्यापारी संगठन में एकता को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। हालांकि खूबचंद पारख, बलदेव सिंह भाटिया, छगनलाल मूंदड़ा, और लाभचंद बाफना सहित कई प्रभावशाली नेता थौरानी की कार्यकारिणी में हैं। बावजूद इसके सबको साथ लेकर चलना थौरानी के लिए चुनौती भी है। देखना है आगे क्या होता है।