राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : धर्मांतरण से मुक्त होगा बस्तर?
08-Jun-2025 6:28 PM
राजपथ-जनपथ : धर्मांतरण से मुक्त होगा बस्तर?

धर्मांतरण से मुक्त होगा बस्तर?

बीते सप्ताह के एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम नागपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम में पहुंचे। उन्होंने संघ से मदद मांगी कि वह बस्तर से धर्मांतरण खत्म करने के लिए मदद मांगी। उन्होंने कहा कि यह बस्तर की सबसे बड़ी समस्या है। कांग्रेस और भाजपा से उन्हें इस मामले में निराशा ही हाथ लगी है, अब संघ ही आदिवासियों की मदद कर सकता है। कांग्रेस ने नेताम के इस बयान को लेकर आलोचना की है और कहा है कि वे खुद और उनके परिवार के लोगों ने कांग्रेस की तरफ से 50 साल तक बस्तर का प्रतिनिधित्व किया है, तब उन्होंने जबरिया अथवा प्रलोभन वाला धर्मांतरण रोकने के लिए कोई प्रयास क्यों नहीं किया। कांग्रेस का यह भी आरोप है कि वह अब संघ की मदद से अपना वनवास खत्म करना चाहते हैं। हालांकि नेताम ने इसी मौके पर अपने उद्बोधन में बस्तर में नक्सलवाद खत्म होने के बाद औद्योगिकीकरण के खतरे तथा आदिवासियों की बेदखली तेज होने की आशंका भी जताई है। मगर, औद्योगिकीकरण को लेकर कांग्रेस और भाजपा में उतना फर्क नहीं है, जितना धर्मांतरण को लेकर है। कांग्रेस भाजपा दोनों ही अलग-अलग खेमों में अपना वोट बैंक देखते रहे हैं।

जैसा कि सरकार दावा कर रही है कि बस्तर से माओवादी हिंसा का सफाया तय समय से  पहले हो जायेगा। धर्मांतरण के मुद्दे पर शुरू हुई नई बहस से यह तो साफ है कि नक्सल मुक्त बस्तर में बहुत कुछ बदलने की प्रक्रिया शुरू होगी। केवल आदिवासियों को स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने तक का मामला नहीं है। अवसरों के कई नए रास्ते, राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ताओं, व्यापारियों, उद्योगपतियों, ठेकेदारों, अफसरों के लिए खुलने जा रहे हैं।

बोधघाट के दिन फिरेंगे?

सीएम विष्णुदेव साय शुक्रवार को दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी, और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। सीएम ने पीएम से जिस खास विषय पर चर्चा की, वो थी बोधघाट परियोजना। सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि नक्सल खात्मे के बाद बस्तर में विकास की रफ्तार बढ़ाना जरूरी है, और बोधघाट से ही विकास के रास्ते खुलेंगे।

भूपेश सरकार ने भी ठंडे बस्ते में जा चुकी बोधघाट सिंचाई परियोजना की फाइलों पर से धूल हटाने  के लिए पहल की थी। सिंचाई मंत्री रविन्द्र चौबे ने नए सिरे से सर्वे एजेंसी तय कराकर परियोजना पर गंभीरता दिखाई थी। सर्वे पूरा होने से पहले ही विरोध शुरू हो गया। पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने सबसे पहले बोधघाट परियोजना का विरोध किया। नेताम को तो पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। मगर चुनाव आते-आते बस्तर के कांग्रेस विधायकों ने ही परियोजना की खिलाफत शुरू कर दी।

बताते हैं कि बस्तर इलाके के तत्कालीन मंत्री कवासी लखमा की अगुवाई में विधायकों ने तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल से मुलाकात की थी, और चुनाव में नुकसान की आशंका जताई। इसके बाद परियोजना पर आगे का काम रुक गया। वर्तमान में सीएम साय ने पीएम से चर्चा कर परियोजना पर केंद्र से सहयोग मांगा है। चुनाव में साढ़े 3 साल बाकी है। ऐसे में सरकार राजनीतिक विरोध भी झेलने की स्थिति में है। यही नहीं, नक्सलियों का खात्मा होने के करीब है। ऐसे में बोधघाट के लिए उपयुक्त माहौल दिख रहा है। देखना है आगे क्या होता है।

वीडियो और निष्कासन 

प्रदेश कांग्रेस ने डोंगरगांव, और सहसपुर-लोहारा के ब्लॉक अध्यक्षों को  पार्टी से निष्कासित कर दिया। दोनों के निष्कासन की अलग-अलग वजह है। कहा जा रहा है कि डोंगरगांव ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष चेतनदास साहू, पिछले कुछ समय से पीसीसी के निर्देशों की अवहेलना कर रहे थे।

साहू, डोंगरगांव विधायक दलेश्वर साहू के करीबी माने जाते हैं। यही वजह है कि उन पर कार्रवाई करने में पार्टी हिचक रही थी। मगर जैसे ही चेतनदास साहू ने डोंगरगांव नगर पालिका नेता प्रतिपक्ष पद पर अपने ही स्तर पर नियुक्ति आदेश जारी किए, तो पार्टी ने उन्हें नोटिस थमा दिया।

ब्लॉक अध्यक्ष यहां भी नहीं रूके, उन्होंने दलेश्वर के विरोधी दो जिला पंचायत सदस्यों को पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद पीसीसी ने सीधे उन्हें ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। कवर्धा जिले के सहसपुर-लोहारा के ब्लॉक अध्यक्ष रामचरण पटेल तो रंगरेलियां मनाते पकड़े गए, और लोगों ने उनकी पिटाई कर दी। इसके बाद पिटाई का वीडियो फैला, तो पार्टी के पास उन्हें निष्कासित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। सो, उन्हें बिना नोटिस दिए निष्कासित कर दिया गया।

डीजीपी, कैट से राहत नहीं

प्रशासनिक न्यायाधिकरण बैंच (कैट) ने डीजीपी की चयन प्रक्रिया में तत्काल हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। याचिका सीनियर आईपीएस पवन देव ने लगाई थी। दरअसल, रेगुलर डीजीपी के लिए 13 मई को दिल्ली में बैठक हुई थी।

पवन देव की तरफ से यह तर्क दिया गया कि डीजीपी के लिए चयन पैनल में उनका नाम शामिल नहीं किया गया है। जबकि चयन प्रक्रिया योग्यता, और अनुभव पर आधारित होनी चाहिए। इसमें वो पूरी तरह खरे उतरते हैं। सरकार की तरफ से यह कहा गया कि याचिकाकर्ता की आशंका महज मीडिया रिपोर्टों पर आधारित जिसे न्यायिक आधार नहीं माना जा सकता। कैट ने अंतरित राहत देने से मना कर दिया। प्रकरण पर अगली सुनवाई 15 जुलाई को होगी। तब तक डीजीपी चयन प्रक्रिया बिना किसी रूकावट के जारी रहेगी।

हरियाली में नजरें मिलाते चीतल

(फोटो- शिरीष दामरे)

बारिश की पहली आहट के साथ ही छत्तीसगढ़ के जंगलों में हरियाली लौटने लगी है। अचानकमार अभयारण्य की इस तस्वीर में दो चीतल अपने पूरे सौंदर्य के साथ कैमरे की ओर देख रहे हैं। हरे पत्तों से ढकी शाखाओं के बीच इनका सहज खड़ा रहना दर्शाता है कि अब जंगल में जीवन की गति तेज हो रही है। चीतल, जिन्हें उनकी सफेद बिंदियों वाली चमकदार खाल के लिए जाना जाता है, प्रकृति की सजगता और संतुलन के प्रतीक हैं। पास के नाले और घनी छांव में अब इन्हें नया उत्साह मिल रहा है। यह दीदार आप छत्तीसगढ़ के जंगलों में 15 जून तक ही कर पाएंगे, उसके बाद फिर मौका मिलेगा बारिश के बाद अक्टूबर में।

 


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