राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : सहानुभूति निचोडऩे का कारोबार
15-Jun-2025 6:42 PM
राजपथ-जनपथ :  सहानुभूति निचोडऩे का कारोबार

सहानुभूति निचोडऩे का कारोबार

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर में मारवाड़ी समाज के कुछ व्यापारियों ने एक नई किस्म की ठगी का खुलासा किया है। यह ठगी न साइबर थी, न ही किसी बैंक फ्रॉड से जुड़ी, बल्कि बेहद साधारण और भावनात्मक तरीके से लोगों को फंसाने की तरकीब थी। कुछ लोग उनसे फोन कर अंतिम संस्कार’ के लिए मदद मांग रहे थे। कोई 1000, कोई 2000 रुपये, लोग मानवता के नाम पर दे रहे थे। बाद में व्यापारियों को आपसी बातचीत से पता चला कि ये सब एक ही पैटर्न पर हो रहा है और किसी संगठित ठगी की चाल है। अब उन्होंने इस गिरोह को पकडऩे के लिए पुलिस में शिकायत कर दी है।

इस तरह की ठगी दरअसल कोई नई बात नहीं है, पर अब यह कहीं ज्यादा चतुराई और प्लानिंग के साथ की जा रही है। अब भीख मांगने या सहानुभूति के सहारे पैसे वसूलने के ढेरों तरीकों निकल गए हैं। हाल ही में केदारनाथ धाम की यात्रा से लौटे एक यात्री ने बताया कि साफ-सुथरे कपड़ों में स्त्री पुरुष सडक़ किनारे खड़े रहते हैं और पैदल यात्रियों को पर्स और बैग खो जाने की दुहाई देते हुए, मदद मांगते हैं। धार्मिक माहौल में डूबा यात्री 200-500 रुपये की मदद कर देता है। धार्मिक स्थलों पर भगवा वस्त्र पहनकर पुण्य का लालच देने वाले, ट्रेन-बसों में चोटिल दिखने का नाटक करने वाले, और पेट दर्द से तड़पते बच्चे को गोद में लिए दवा के लिए मदद मांगने वाले, ये सब अलग-अलग तरीकों से हमारी भावनाओं को निशाना बनाते हैं। दिल्ली में हाल ही में एक फर्जी साधु गिरोह का भंडाफोड़ हुआ, जिसमें यह सामने आया कि कुछ लोग दिन में भगवा पहनकर मंदिरों में भविष्यवाणी और रात को क्लबों, पब में महंगी पार्टियां करते थे। मुंबई में एक महिला गैंग पकड़ी गई, जो पेट पर तकिया बांधकर गर्भवती होने का नाटक करती थीं और लोगों से मदद मांगती थी। ये गिरोह समाज की उस भावना को हथियार बनाते हैं, जो मदद करने की नेक सोच रखती है। दान देना हमारी संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन ये लोग भरोसे को मार डालने पर तुले हैं।  बिलासपुर की घटना इसलिए भी खास है क्योंकि यहां ठगों ने व्यापारियों की ही मारवाड़ी बोली और व्यवहार को अपनाया। इनसे बचाव का तरीका वही पुराना है- सतर्क रहें, सवाल पूछें और जरूरत से ज्यादा भावुक न हों।

संजय जोशी से हलचल

भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) संजय जोशी के पिछले दिनों रायपुर दौरे को लेकर पार्टी में काफी हलचल रही। जोशी, पार्टी के किसी पद पर नहीं हैं। बावजूद इसके जोशी से मुलाकातियों का तांता लगा रहा। जोशी, सांसद बृजमोहन अग्रवाल के पिता के निधन पर श्रद्धांजलि देने उनके घर भी गए।

संजय जोशी, बलौदाबाजार में एक कार्यक्रम में शरीक हुए। यह कार्यक्रम पूर्व विधायक प्रमोद शर्मा ने आयोजित किया था। उसी दिन अहमदाबाद विमान हादसे की वजह से कार्यक्रम को छोटा कर दिया गया, और भाषणबाजी नहीं हुई। संजय जोशी ने बलौदाबाजार के छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं से मुलाकात की।

सरकार के मंत्री टंकराम वर्मा, और प्रदेश उपाध्यक्ष शिवरतन शर्मा ने भी संजय जोशी से भेंट की। इन सबके बीच एक जिले के प्रशासनिक मुखिया की संजय जोशी से मुलाकात की काफी चर्चा रही। रायपुर नगर निगम की एक महिला पार्षद के यहां दोपहर भोज रखा गया था। इसमें संजय जोशी, और कुछ अन्य नेता शामिल हुए।

भाजपा के कुछ नेता बताते हैं कि संजय जोशी भले ही किसी पद में नहीं हैं, लेकिन उनकी सिफारिशों को भाजपा, और केंद्र की सरकार में महत्व दिया जाता है। यही वजह है कि प्रदेश के कई नेता, जोशी के संपर्क में रहते हैं।

सरकार की बड़ी कामयाबी

प्रदेश में युक्तियुक्तकरण को लेकर काफी बातें हो रही है। शिक्षक संगठनों ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। बावजूद इसके स्कूल शिक्षा विभाग ने युक्तियुक्तकरण की अपनी योजना में सफल रहा है। यह पहला मौका है जब प्रदेश के 447 स्कूलों में शिक्षकों की पदस्थापना हो चुकी है। इन स्कूलों में बरसों से शिक्षक नहीं थे।

शिक्षक संगठनों ने युक्तियुक्तकरण को रोकने के लिए हर संभव कोशिशें की। हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया, लेकिन राहत नहीं मिली। पहले शिक्षक संगठनों को बाकी कर्मचारी संगठनों का भी समर्थन मिला था, लेकिन सरकार ने शिक्षक विहीन, और एकल शिक्षक वाले स्कूलों में अतिशेष शिक्षकों की पदस्थापना के लिए कदम उठाए, तो कर्मचारी संगठन भी सरकार से सहमत होते नजर आए। अब शिक्षक संगठनों ने स्कूल खुलने पर कक्षाओं का बहिष्कार का फैसला लेने जा रही है। यह युक्तियुक्तकरण के खिलाफ उनकी आखिरी लड़ाई मानी जा रही है। देखना है कि इसका क्या नतीजा निकलता है।

5 डे वर्किंग और अपने-अपने तर्क

चार वर्ष तक गवर्नमेंट वर्किंग 5 डे वीक के बाद एक बार फिर 6 डे वर्किंग करने की बात चल पड़ी है। इसकी वकालत करने वाले अफसरों के लिए कर्मचारियों का कहना है कि 6 डे वर्किंग, बंगलों और दफ्तरों में चार-चार, पांच- पांच भृत्यों वाले साहबों के लिए काम का हो सकता है लेकिन पूरे परिवार की निर्भरता वाले कर्मचारियों के लिए कठिनाई भरा होगा। बीते 5 वर्ष से 5 डे वर्किंग में बड़ी राहत महसूस कर रहे थे। सप्ताह में दो दिन के अवकाश के फायदे से सीएल, ईएल में भी कमी आई थी। और छत्तीसगढ़ शासन भी केंद्रीय सरकार और देश के अन्य राज्यों के साथ तालमेल बिठा चुका था। ऐसे समय में एक बार फिर वर्किंग पैटर्न में बदलाव तकलीफदेह होगा।

इसे लेकर कर्मचारी संगठन नेता अपने अपने तर्क भी रख रहे हैं। उनके वाट्सएप पोस्ट इन तर्कों से भरे पड़े हैं। इनका कहना है कि अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से चले आ रहे द्वितीय और तृतीय शनिवार अवकाश के साथ रविवार अवकाश का लाभ लंबे अरसे से कर्मचारियों को दिया जा रहा था और वो जायज भी था, फिर  छत्तीसगढ़ की पूर्व कांग्रेस सरकार ने बिना मांग के कर्मचारियों को केंद्र के जैसे समान वेतनमान एवं सुविधा के तहत पांच दिन का कार्य एवं प्रत्येक शनिवार रविवार को अवकाश घोषित कर  कार्यावधि भी  प्रात: 10 से संध्या 5:30 बजे तक किया । शायद इसके प्रति उनकी मंशा यही होगी कि 5 दिन मंत्रालय, सचिवालय में कार्य करने के उपरांत सांसद, मंत्री, विधायक 2 शेष दिन अपने अपने क्षेत्र में जनता से रूबरू होकर उनकी जन समस्या का निवारण कर सके और दूरस्थ गांव की जनता को नवा रायपुर राजधानी ना आना पड़े तथा वे आर्थिक एवं शारीरिक कष्ट से बच सके।

 छत्तीसगढ़ की आधी से ज्यादा जनसंख्या आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में निवासरत हैं, और शासकीय कार्यालय भी परियोजना क्षेत्र में लगती हैं और प्राय: शहर से लगे कई दूरस्थ जिलों/ एवं शहर से दूर गांवों में भी संपूर्ण सुविधा का अभाव हैं। जहां साप्ताहिक हाट लगने के कारण कर्मचारी जीविकोपार्जन का आवश्यक सामान सप्ताह भर की इक_ा  सब्जी और राशन पानी ले आते हैं । वहीं कुछ महिला एवं पुरुष कर्मचारी अपने बूढ़े मां बाप, बच्चों का देखरेख कर आते हैं उनका चिकित्सा उपचार/ इलाज कर पाते हैं एवं शहर स्थित बच्चों की स्कूल-कॉलेज में बच्चों से भी मिलना हो जाता हैं। फलस्वरूप कर्मचारियों में एक रहता है एवं कार्यालय में भी उनके कार्य क्षमता में वृद्धि

होती हैं।

इसलिए मुख्यमंत्री महोदय से निवेदन हैं कि वे आदिवासी क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों एवं जनता की सुख सुविधा का ध्यान रखते हुए  कार्यालयों में पांच दिवसीय कार्य पूर्वानुसार जारी रखे। अगर प्रदेश में कार्य की अधिकता लग रही हो या कार्य में गति लाना हैं तो समस्त विभागों में कार्यरत अनियमित कर्मचारियों का सांख्येतर पदों में नियमित कर एवं रोजगार के अवसर बढ़ाकर युवाओं में बेरोजगारी दूर कर प्रदेश को बेरोजगार मुक्त बनावे। इससे जनता एवं कर्मचारी आपकी कार्यशैली की प्रशंसा करेंगे और प्रसन्न रहेंगे।

स्मार्ट सिटी या टेरेफिक सिटी?

देश के जिन 100 शहरों में स्मार्ट सिटी परियोजना लागू की गई, उनमें छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर भी शामिल थी। दावा किया गया था कि ट्रैफिक सिग्नल सिस्टम से लेकर रियल टाइम मॉनिटरिंग, अर्बन मोबिलिटी और रोड इंफ्रास्ट्रक्चर को हाईटेक बनाया जाएगा। लेकिन हकीकत? घर या दफ्तर से निकलिये- पहली ही रेड लाइट पर सब ठप मिलेगा।

यह तस्वीर है पचपेड़ी नाका की, जहां ट्रैफिक अब ‘टेरेफिक’हो चुका है। जाम में फंसे लोग, बीच सडक़ पर अड़े वाहन- और सिग्नल का कोई मतलब नहीं बचा। अगर आप सोचते हैं कि सर्विस रोड या बाईपास से निकलकर आप बच निकलेंगे, तो सोचिए फिर से। तेलीबांधा, मरीन ड्राइव, शंकर नगर, गीतांजलि नगर, अवंति विहार-हर मोड़ पर जाम ही जाम। सडक़ किनारे के अवैध कब्जे, ट्रैफिक पुलिस की गैरमौजूदगी और जिम्मेदारी से दूर शासन-प्रशासन। कहने को तो रायपुर की गिनती देश के उभरते शहरों में होती है, लेकिन ट्रैफिक के हालात देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता।


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