राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : नक्सल मुक्ति के बाद पुलिस का चेहरा ऐसा होगा?
30-May-2025 6:13 PM
राजपथ-जनपथ : नक्सल मुक्ति के बाद पुलिस का चेहरा ऐसा होगा?

नक्सल मुक्ति के बाद पुलिस का चेहरा ऐसा होगा?

बीजापुर जैसे नक्सल प्रभावित इलाके में पुलिस से उम्मीद यह होनी चाहिए कि वह आम जनता का विश्वास जीते, ताकि लोग शासन-प्रशासन के प्रति भरोसा मजबूत करें। सोशल मीडिया पर अक्सर पुलिस अफसरों की ऐसी तस्वीरें या वीडियो सामने आते हैं, जिनमें वे यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे आम लोगों के साथ संवेदनशील और आत्मीय व्यवहार करते हैं।

अब जब सरकार और सुरक्षा बल यह दावा कर रहे हैं कि बस्तर बहुत जल्द नक्सल मुक्त हो जाएगा, तो यह एक बड़ा सवाल है कि उसके बाद पुलिस का आम लोगों से व्यवहार कैसा होगा? यह उम्मीद की जानी चाहिए कि माहौल बदलने के साथ पुलिस का रुख और अधिक मानवीय होगा।

मगर, एक बीजापुर जिले के कुटरू इलाके की यह घटना चिंता बढ़ाने वाली है। आरोप है कि एसडीओपी बृजकिशोर यादव ने एक पंचायत सचिव और उसके सहायक के साथ सडक़ पर खुलेआम मारपीट की। कथित रूप से उन्होंने दोनों को कॉलर पकडक़र गाड़ी से बाहर निकाला, बंदूक की नोक पर जमीन पर गिराया, छाती पर जूतों से मारा और बेल्ट निकालकर पीटा। फिर अपशब्द कहकर धमकी देते हुए छोड़ दिया। पंचायत सचिव की गलती सिर्फ इतनी थी कि वह अपनी कार से आगे चल रहा था और पीछे से आ रही एसडीओपी की गाड़ी को संकरी पुलिया आने की वजह से जल्दी साइड नहीं दे सका।

यह कोई साधारण पुलिसिया फटकार नहीं, बल्कि सत्ता के दंभ में डूबे हुए एक अफसर की असंवेदनशील और अपमानजनक हरकत है। आम लोगों के प्रति पुलिस का नजरिया क्या है, उसका एक प्रतिबिंब है। घटना से पंचायत विभाग के कर्मचारियों में भारी आक्रोश है। आम नागरिकों में भी रोष है। उन्होंने भैरमगढ़ थाने पहुंचकर विरोध जताया। भाजपा के लोग भी इस विरोध में शामिल हुए। लोगों की मांग थी कि एसडीओपी पर एफआईआर दर्ज की जाए, लेकिन थाने में कोई स्टाफ इतना साहस नहीं जुटा पाया कि वह अपने ही अफसर के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सके।

फिलहाल मामला शांत नहीं हुआ है। पंचायत कर्मियों ने चेतावनी दी है कि यदि एफआईआर दर्ज नहीं की गई, तो वे काम का बहिष्कार करेंगे।

यह घटना एक गंभीर सवाल उठाती है। यदि वाकई बस्तर नक्सल मुक्त हो गया और पुलिस को उन गांवों तक निर्बाध पहुंच मिल गई, जहां पहले उसे फोर्स के साथ जाना पड़ता था, तब वहां आम जनता के साथ उसका व्यवहार कैसा होगा? पुलिस अपने अधिकारों का उपयोग जनहित में करेगी या फिर पद के गुरूर में दमन का नया सिलसिला शुरू हो जाएगा? क्या नक्सल मुक्त बस्तर में एक जवाबदेह पुलिस व्यवस्था बनाई जाएगी?

रिहाई पर छाई धुँध

चर्चित कोयला घोटाला प्रकरण में निलंबित आईएएस रानू साहू, समीर विश्नोई के साथ ही सौम्या चौरसिया, और कारोबारी सूर्यकांत तिवारी को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी है। मगर उनकी रिहाई को लेकर संशय कायम है।  जमानत में यह भी शर्त है कि आरोपियों को छत्तीसगढ़ से बाहर रहना होगा। ये सभी आरोपी पिछले दो साल से अधिक समय से जेल में हैं।

प्रकरण की जांच से जुड़े एक अफसर ने इस संवाददाता से अनौपचारिक चर्चा में बताया कि कोर्ट ने कोयला घोटाले से जुड़े सभी प्रकरणों पर जमानत दी है। कोर्ट के आदेश का परीक्षण किया जा रहा है, और इसको लेकर कानूनी सलाह ली जा रही है।

एक सरकारी वकील ने आरोपियों की अंतरिम जमानत पर कहा कि आरोपियों ने जिला अदालत में अभी जमानत के लिए आवेदन नहीं लगाया है। अभी आरोपियों के खिलाफ ईओडब्ल्यू-एसीबी में नए कोई मामले दर्ज हैं या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है। यदि नए मामले दर्ज होते हैं, तो रिहाई मुश्किल है। कुल मिलाकर रिहाई के मसले पर एक-दो दिनों में स्थिति साफ होने की उम्मीद है।

नेताम के संघ में जाने के मतलब !!

हमर राज पार्टी के मुखिया, और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम की अचानक पूछ परख बढ़ गई है। नेताम को आरएसएस ने नागपुर के एक कार्यक्रम में प्रमुख अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का उद्बोधन होगा। नेताम के कार्यक्रम में आमंत्रण के मायने तलाशे जा रहे हैं।

दरअसल, बस्तर में आरएसएस काफी सक्रिय है, और मतांतरण आदि के मसले पर काफी मुखर भी है। नेताम पांच बार कांग्रेस के सांसद रहे। राज्य बनने से पहले उनकी गिनती कांग्रेस के ताकतवर नेताओं में होती रही है। मगर उनके नाम सबसे ज्यादा दल बदल का रिकॉर्ड भी है। नेताम कांग्रेस छोडक़र कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी में चले गए थे। उन्होंने कांकेर, और जांजगीर-चांपा सीट से चुनाव लड़ा था, और दोनों जगह उनकी जमानत जब्त हो गई। इसके बाद वो कांग्रेस में आ गए, और फिर पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में चले गए।

बाद में नेताम भाजपा में शामिल हो गए। डॉ. चरणदास महंत के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद नेताम फिर कांग्रेस में आ गए। वो दिवंगत पूर्व सांसद सोहन पोटाई के साथ मिलकर सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले काम करने लगे।

प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद बोधघाट परियोजना के मसले पर सीएम भूपेश बघेल से अनबन हुई, और नेताम ने फिर कांग्रेस छोड़ दी। उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले हमर राज पार्टी का गठन किया, और ज्यादातर सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए। ऐसी चर्चा है कि नेताम को नई पार्टी गठन के लिए भाजपा के रणनीतिकारों ने प्रेरित किया था। हालांकि नेताम की पार्टी का कोई भी उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा पाया, लेकिन कुछ जगहों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की हार सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई।

नेताम की भले ही जमीनी पकड़ पहले जैसी नहीं है, लेकिन उनकी पहचान  बुद्धिजीवी आदिवासी नेताओं में होती है। ऐसे में जब कांग्रेस, जल-जंगल और जमीन के मसले पर भाजपा से टकरा रही है, तो मतांतरण आदि के मसले पर आरएसएस के लिए नेताम उपयोगी हो सकते हैं। फिलहाल नेताम के अगले कदम पर राजनीतिक लोगों की निगाहें टिकी हुई है।

 


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