राजपथ - जनपथ

क्या अब गांव-गांव में कैमरे लगाएं?
रायपुर-बलौदाबाजार मार्ग पर 11 मई की रात हुए भीषण सडक़ हादसे में 13 लोगों की जान गई, 12 घायल हुए। अब कल छुईखदान में फिर एक हादसा हो गया। तेंदूपत्ता तोडऩे जा रहे मजदूरों से भरी माजदा पलट गई, तीन की मौत हो गई, आठ गंभीर रूप से घायल हैं। ठीक पिछले साल मई में भी कवर्धा जिले में पिकअप पलटने से 19 तेंदूपत्ता मजदूरों की मौत हो गई थी, जिनमें अधिकतर महिलाएं थीं। तब सरकार और पुलिस ने खूब सख्ती दिखाई थी। सवारी वाले मालवाहकों की जगह-जगह जांच, चालान, रोक-टोक। लेकिन जोश कुछ ही हफ्तों में ठंडा पड़ गया। इस बार भी- बलौदाबाजार हादसे के बाद कुछ दिनों की सतर्कता और फिर सब कुछ सामान्य हो गया। हल्के और मध्यम श्रेणी के मालवाहक वाहनों में मजदूरों को ढोना एक आम बात बन चुकी है। सरकार भी जानती है, पुलिस भी। प्राय: ऐसे वाहनों के ड्राइवर नशे में होते हैं, सवारियों की संख्या ओवरलोड होती हैं, और कई बार ड्राइविंग लाइसेंस तक नहीं होता।
इधर शहरों में और चुनिंदा हाईवे पर ट्रैफिक कैमरे हैं, छोटी गलती पर चालान कट जाता है। दुपहिया पर तीन सवारी हो, सीट बेल्ट न पहनी हो, रफ्तार तेज हो तो नोटिस घर आ जाता है। पर ग्रामीण इलाकों में जहां बड़े हादसे हो रहे हैं, वहां पुलिस की आंखें या तो बंद हैं, या मौजूद ही नहीं। कैमरा नहीं तो चालान नहीं, और चालान नहीं तो जिम्मेदारी भी नहीं। चलिये मजदूरों को इन वाहनों में ढोने से आप पूरी तरह नहीं रोक पा रहे हैं पर क्या हादसे होने से पहले कुछ और नहीं किया जा सकता? ट्रैफिक पुलिस यदि शहर के बाहर, कस्बों में दिख जाएं तो मान कर चलिये कि वे हादसे रोकने के लिए नहीं बल्कि वीआईपी मूवमेंट के कारण वहां खड़े होते हैं। आम दिनों में क्या ड्राइवरों की जांच हो रही है? क्या गाडिय़ों की फिटनेस देखी जा रही है? सवाल यह है कि क्या अब दुर्घटनाओं के रुकने की उम्मीद तभी की जाएगी, जब गांव-गांव की सडक़ों पर कैमरे निगरानी करने लगें? क्योंकि पुलिस की मौजूदा निगरानी व्यवस्था तो पूरी तरह फेल दिखाई देती है। इस तस्वीर को ही देख लीजिए, जो बिलासपुर-रायपुर हाईवे में सरगांव के पास की है।
शिक्षकों का बाहुबल
सरकारी कर्मचारियों में शिक्षक संगठन को पावरफुल माना जाता है। भले ही शिक्षकों के दर्जन भर से अधिक संगठन हैं लेकिन अहम मसले पर एकजुट हो जाते हैं। शिक्षकों की मांगों पर सरकार को कई बार झुकना भी पड़ा है।कुछ ऐसा ही युक्तियुक्तकरण मामले पर भी होता दिख रहा था।
सर्व शिक्षक संगठन के बैनर तले शिक्षक संगठनों ने युक्तियुक्तकरण का विरोध किया, तो कहा जा रहा था कि सरकार युक्तियुक्तकरण शायद ही कर पाएगी। मगर सरकार ने साफ कर दिया है कि ग्रामीण इलाके शिक्षक विहीन, और एकल शिक्षकीय स्कूलों युक्तियुक्तकरण कर अतिशेष शिक्षकों की पदस्थापना कर दी जाएगी। अभी तक शिक्षक संगठनों का विरोध कारगर नहीं दिख रहा है। काउंसलिंग के लिए जिस तरह शिक्षकों की भीड़ उमड़ी है, उससे शिक्षक संगठनों का विरोध बेअसर दिखाई दे रहा है। आगे क्या होता है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।