राजपथ - जनपथ

छापेमारी के विरोध में बाजार बंद!
राष्ट्रीय स्तर पर कल जब यह खबर चल रही थी कि जीएसटी संग्रह लगातार दूसरे महीने 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक पहुंच गया है, लगभग उसी समय अंबिकापुर में बाजार बंद था और व्यापारी जीएसटी अफसरों के तौर-तरीकों के खिलाफ सडक़ पर उतरे थे। वहां दो प्रतिष्ठानों पर छापेमारी के बाद माहौल गरमा गया। रविवार के दिन अंबिकापुर में साप्ताहिक बाजार की बड़ी चहल-पहल होती है, लेकिन ऐसे छोटे कारोबारी भी दुकानें बंद कर प्रदर्शन में उतर गए, जो जीएसटी के दायरे में नहीं आते। व्यापारियों का कहना था कि जीएसटी अफसर बार-बार छापा मारते हैं। वह व्यापारियों को चोर समझते हैं। लक्ष्मी ट्रेडर्स पर तो छह माह के भीतर तीसरी बार छापेमारी की गई। हालांकि जीएसटी विभाग ने उन दोनों संस्थानों के बारे में शाम को दावा किया कि इन पर पहले कोई कार्रवाई नहीं की गई है। करोड़ों के टर्नओवर में जीएसटी भुगतान शून्य दिखाया गया। उन पर लगाई गई पेनाल्टी का भी ब्योरा अफसरों ने दिया।
जीएसटी की कार्रवाई के खिलाफ व्यवसायियों का सडक़ पर उतरना छत्तीसगढ़ में पहली बार हुआ है, पर दूसरे राज्यों में पहले भी ऐसा हो चुका है। यूपी, एमपी और उत्तराखंड में प्रदर्शन हो चुके हैं। सन् 2022 में तो यूपी स्टेट जीएसटी को 72 घंटे तक सर्वे और छापेमारी का काम रोकना पड़ा था। जीएसटी प्रणाली जब से लागू हुई है, इसकी जटिलताओं को लेकर सवाल उठते रहे हैं। छोटे शहरों के कई व्यापारी डिजिटल नियमों, आईटीसी क्रेडिट और टैक्स स्लैब की पेचीदगियों को अब तक ठीक से समझ नहीं पाए हैं। अंबिकापुर के मामले में भी व्यापारियों का कहना है कि अफसर किस तरह से पेनाल्टी और टैक्स का निर्धारण कर रहे हैं, वे यह उन्हें समझा नहीं पा रहे हैं।
कुछ दशक पहले सेल्स टैक्स इंस्पेक्टरों को छापेमारी के जो अधिकार मिले थे, उसे ‘इंस्पेक्टर राज’ के नाम से जाना जाता था। व्यापारियों का अंबिकापुर में हुआ प्रदर्शन बताता है कि वे उसी दौर की दहशत को फिर से महसूस कर रहे हैं।
दूसरी ओर, जीएसटी अफसरों की भी अपनी चिंता होगी। अप्रैल के आंकड़ों के मुताबिक, छत्तीसगढ़ देश के कर संग्रह वाले राज्यों में 15वें नंबर पर रहा। हालांकि सरकार ने इसे उपलब्धि के तौर पर माना है, लेकिन राज्यों के आकार और आबादी के अनुसार यह औसत से कम संग्रह है। जीएसटी अफसरों पर दबाव होगा कि वे जीएसटी चोरी के मामलों को रोकें और कलेक्शन बढ़ाएं। दूसरी ओर, इसी का फायदा यह है कि छापेमारी, सर्वे के दौरान व्यापारियों को बताया जाए कि जुर्माना 50 लाख रुपये की जगह 20 लाख रुपये कर देंगे, यदि 10 लाख रुपये अलग से उनकी जेब में डाल दें — यह आरोप अंबिकापुर के व्यापारियों ने प्रदर्शन के दौरान ही लगाया है।
आम आदमी का पक्ष इसमें भूल ही जाइए। रिजर्व बैंक से लेकर नीति आयोग तक चिंता जता रहे हैं कि आम लोगों की खर्च करने की क्षमता घटती जा रही है। जीएसटी संग्रह पर सरकारों को अपनी पीठ थपथपाने में आनंद आ रहा है, लेकिन आम लोग घर से बाहर निकलते ही हर सामान और प्रत्येक सेवा पर जीएसटी के बोझ को ढो रहे हैं।
हाईटेक ट्राइबल संग्रहालय
नवा रायपुर के पुरखौती मुक्तांगन के पास बना एक नयाआदिवासी संग्रहालय एवं अनुसंधान केंद्र खुला है। यहां छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति, जीवनशैली, परंपराएं, शिक्षा, भोजन, पहनावा, शिकार व्यवस्था और रोजगार तक को एक ही छत के नीचे शानदार ढंग से प्रदर्शित किया गया है। इस हाई-टेक संग्रहालय की खास बात यह है कि हर गैलरी में स्क्रीन लगे हैं, जिन पर आप मोबाइल की तरह स्क्रॉल करके जानकारी पढ़ सकते हैं। साथ ही, हर गैलरी में एक क्यूआर कोड भी दिया गया है, जिसे स्कैन करके विस्तृत जानकारी मोबाइल में पाई जा सकती है।
युक्तियुक्तकरण बोतल से फिर निकला जिन्न
प्रदेश के शिक्षक संगठनों ने युक्तियुक्तकरण के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। ज्यादातर जिलों में शिक्षक, काउंसलिंग में भी शामिल नहीं हो रहे हैं। इन सबके बीच कांग्रेस शिक्षकों के समर्थन में आगे आ गई है। कांग्रेस ने युक्तियुक्तकरण के फैसले का विरोध किया है। दिलचस्प बात यह है कि युक्तियुक्तकरण की रूपरेखा कांग्रेस सरकार में ही बनी थी।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पिछली कांग्रेस सरकार में स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर कुख्यात रहे हैं, और उन्हें मंत्री छोडऩा पड़ा था। उनकी जगह स्कूल शिक्षा विभाग का प्रभार संभालने वाले मंत्री रविन्द्र चौबे ने ट्रांसफर-पोस्टिंग का रैकेट चलाने वाले शिक्षा अफसरों पर कार्रवाई की थी, और फिर शिक्षक विहीन स्कूलों में शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के युक्तियुक्तकरण के लिए पहल की। चौबे के कार्यकाल में ही अतिशेष शिक्षकों को शिक्षकों की कमी वाले स्कूलों में पदस्थापना का प्रस्ताव तैयार कर लिया गया था। चूंकि विधानसभा चुनाव नजदीक आ गए, इसलिए सीएम भूपेश बघेल और अन्य मंत्रियों से चर्चा के बाद युक्तियुक्तकरण का प्रस्ताव रोक दिया गया। क्योंकि चुनाव में शिक्षकों की नाराजगी के चलते नुकसान का अंदेशा था।
यह तय किया गया कि दोबारा सरकार बनने पर सबसे पहले युक्तियुक्तकरण किया जाएगा। मगर कांग्रेस सरकार की वापसी नहीं हो पाई, और चौबे जी भी खुद चुनाव हार गए। भाजपा की सरकार आई, तो नए स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने फिर युक्तियुक्तकरण की दिशा में पहल की। बाद में वो भी हट गए। बृजमोहन के सांसद बनने के बाद से स्कूल शिक्षा का प्रभार सीएम विष्णु देव साय खुद संभाल रहे हैं।
उन्होंने पिछले साल ग्रामीण इलाकों में शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए युक्तियुक्तकरण के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी थी। मगर नगरीय, और पंचायत चुनाव के चलते प्रक्रिया रोक दी गई। अब सारे चुनाव निपट चुके हैं, और शिक्षकों की नाराजगी का कोई भय नहीं रह गया है। विधानसभा चुनाव में तीन साल से अधिक समय बाकी है। यही वजह है कि शिक्षकों के धरना-प्रदर्शन के बाद भी युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया रफ्तार से चल रही है।
बृजमोहन को पारिवारिक काम से जुड़ा जिम्मा
केन्द्र सरकार ने सांसद बृजमोहन अग्रवाल को एफसीआई की राज्य परामर्शदात्री समिति का चेयरमैन नियुक्त किया है। बृजमोहन की नियुक्ति से प्रदेश के राईस मिलर्स खुश हैं। साथ ही राज्य सरकार को भी एफसीआई से जुड़ी समस्याओं के तुरंत निराकरण की उम्मीद बंधी है।
राज्य सरकार समर्थन मूल्य पर धान खरीदी करती है, और एफसीआई मिलिंग के चावल लेती है। हर साल सरकार को एफसीआई के आगे ज्यादा से ज्यादा लेने के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता है। इससे परे मिलिंग के बाद चावल जमा करने में भी मिलर्स को दिक्कतें आती है। पिछली सरकार में मिलर्स ने एफसीआई अफसरों पर रिश्वतखोरी तक के आरोप लगाए थे इसके बाद यहां के एफसीआई अफसरों का तबादला भी हो गया था।
बृजमोहन अग्रवाल धान-चावल कारोबार से जुड़ी समस्याओं की बारीकियों से अवगत हैं। उनका पुश्तैनी अनाज के कारोबार है। ये अलग बात है कि रमन सरकार में उन्होंने खाद्य मंत्रालय लेने से सिर्फ इसलिए मना कर दिया था कि उनका परिवार अनाज कारोबार से जुड़ा है। बाद में मंत्री मेघाराम साहू को खाद्य विभाग दिया गया। बृजमोहन अब तक राज्य से जुड़े विषयों को दिल्ली में बृजमोहन प्रमुखता से उठाते रहे हैं, और समस्याओं को हल कराने में भी सफल रहे हैं। ऐसे में एफसीआई परामर्श दात्री का चेयरमैन बनने के बाद स्वाभाविक तौर पर उनसे काफी उम्मीदें हैं। देखना है आगे क्या कुछ करते हैं।