राजपथ - जनपथ
बड़ी देर की मेहरबां जाते-जाते!
भ्रष्टाचार के प्रकरणों पर ईओडब्ल्यू-एसीबी, और ईडी एक के बाद एक कार्रवाई कर रही है। इन सबके बीच रायपुर नगर निगम के एक तृतीय श्रेणी कर्मचारी जयचंद कोसले के यहां ईओडब्ल्यू-एसीबी ने दबिश दी, तो कांग्रेस के एक खेमे में हलचल मच गई।
कोसले, पूर्व सीएम भूपेश बघेल के ऑफिस स्टाफ में हैं। कई लोग उन्हें पिछली सरकार का ‘राजदार’ मानते हैं। वैसे कोसले के यहां क्या कुछ मिला है, यह अभी साफ नहीं हो पाया है।
बताते हैं कि कोसले को पूर्व सीएम की डिप्टी सेक्रेटरी रहीं सौम्या चौरसिया का करीबी माना जाता है। सौम्या, जब रायपुर नगर निगम में उपायुक्त थीं तब जयचंद उनके ऑफिस स्टॉफ में थे। इसके बाद सौम्या के सीएम सचिवालय में डिप्टी सेक्रेटरी बनने के बाद कोसले की भी वहां पोस्टिंग हो गई।
शराब-कोयला घोटाला प्रकरण की ईडी, और ईओडब्ल्यू-एसीबी लंबे समय से जांच कर रही है। मगर कोसले जांच के घेरे में नहीं आए हैं। अब उनके यहां ईओडब्ल्यू-एसीबी ने दबिश दी है, तो कई चौंकाने वाले खुलासे होने की अटकलें लगाई जा रही है। देखना है कि कोसले से पूछताछ में क्या कुछ निकलता है।
टेक्नोलॉजी पर भारी भूत-प्रेत
भिलाई स्मृति नगर चौकी इलाके में एक 20 वर्ष के युवक से 1 लाख 60 हजार रुपए की ठगी की गई। जो यह बताने के लिए काफी है कि टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना, पढ़ा लिखा युवा होना इस बात की गारंटी नहीं है कि वह लोग अंधविश्वास और अवैज्ञानिक दावों के जाल में नहीं फंस सकता। सोशल मीडिया पर मौजूद तथाकथित ‘गुरुमाता’ आईडी ने तंत्र-विद्या और पूजा-पाठ के नाम पर और भूत प्रेत का भय दिखाकर अलग-अलग तरीकों से रकम ऐंठी। वीडियो कॉल के जरिए नकली पूजा दिखाकर और सोने का चूड़ा देने का लालच देकर लगातार राशि की मांग की जाती रही। इन दिनों इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर तंत्र-मंत्र, वशीकरण और प्रेत बाधा दूर करने वाले विज्ञापनों की भरमार है। इन्हें देखकर पढ़े-लिखे और तकनीक से जुड़े युवा भी ठगी का शिकार हो जाते हैं। मोबाइल, इंटरनेट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे अत्याधुनिक उपकरण केवल तभी कारगर हैं, जब उनका इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति तार्किक सोच और विवेक से काम ले। तकनीक का उद्देश्य हमें आगे बढ़ाना है, अंधविश्वास से बाहर निकालना है, लेकिन यह तभी संभव है जब उपयोगकर्ता भी जिज्ञासु हो, प्रश्न करने की आदत विकसित करे।
बीती ताहि बिसार दे...
खेल विभाग में सामग्री की सप्लाई पर काफी विवाद चल रहा है। यह विवाद पहले टंकराम वर्मा के पास था, जो कि अब डिप्टी सीएम अरुण साव के पास आ गया है। बस्तर ओलंपिक से लेकर अलग-अलग कार्यक्रमों के लिए खेल सामग्री की खरीद को लेकर शिकवा-शिकायतें हुई हैं। पिछले दिनों युवक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने खेल अफसरों का घेराव भी किया था।
बताते हैं कि डिप्टी सीएम अरुण साव खेल विभाग से जुड़ी शिकायतों से अनभिज्ञ रहे हैं। और अब एक-एक कर उड़ती-उड़ती शिकायतें पहुंच रही हैं, तो उन्होंने विभाग के आला अफसरों को हिदायत दे दी है। साव ने कह दिया है कि पहले क्या चलता था, उन्हें इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन अब कोई भी शिकायतें आई, तो जांच कर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। अफसरों को खिलाडिय़ों के हित में काम करने की नसीहत दे रखी है। देखना है कि साव की चेतावनी का क्या असर होता है।
अपने से बड़े साहब को धमकी!
अब तक तो ठेकेदारों के कार्टेल बनाने, टेंडर में भाग न लेने या टेंडर वापस लेने को लेकर एक दूसरे को धमकी देने के मामले देखे सुनने में आते रहे हैं। लेकिन सरकारी विभागों में अफसरों के ऐसे कृत्यों के दृष्टांत बहुत कम ही सुनने में आए हैं। वह भी राज्य और केंद्र सरकार के विभागों के अधिकारियों में। हालांकि विभाग के अफसर इसे धमकी के बजाय आग्रह का नाम दे रहे हैं। प्रदेश में एक विभाग और उसके एक उपक्रम द्वारा बस्तर में भारत नेट के तहत ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क बिछाने का का काम किया जा रहा है। सैकड़ों करोड़ का यह काम अब तक देश की एक विश्वसनीय कंपनी कर रही थी।
पहले भाजपा फिर कांग्रेस और अब फिर भाजपा की राज्य सरकारों के उलझन में फंसकर, या फंसाकर कंपनी को बाहर करवा दिया गया। और सैकड़ों करोड़ की सुरक्षा निधि भी राजसात कर दी गई। इस योजना में हस्तक्षेप कर केंद्रीय संचार विभाग ने यह काम राज्य सरकार के उपक्रम से छीनकर-लेकर बीएसएनएल को दिया। इससे राजकीय उपक्रम के साहबों का कारोबार प्रभावित हो रहा है। इससे नाखुश साहबों ने बीएसएनएल के एक महाप्रबंधक को कॉल कर काम न करने का लिखित रिफ्यूजल देने कहा।
आईटीएस अफसर भला अपने से दशकों जूनियर की इस धमकी-आग्रह को भला कैसे मान लेते। उन्होंने कह दिया कि यहां से संभव नहीं दिल्ली संचार भवन से करवा लाने का सुझाव-जवाब दे दिया। बात यहीं खत्म नहीं हुई, राज्य के अफसर ने महाप्रबंधक को उनकी और अपने सेवाकाल को याद दिलाते हुए भविष्य में काम बिगाडऩे की धमकी दे दी। अब देखना होगा कि जूनियर साहब दिल्ली से रिफ्यूजल ला पाते हैं या नहीं।
सरहद पार से आया है स्वाद...
राजधानी रायपुर में दूसरे प्रदेशों से ट्रैक्टर-ट्रॉली में लादकर सेंधा नमक लाकर बेचा जा रहा है। अब सेंधा नमक, और काला नमक, बैनर तो दोनों का लगा है, और दोनों की बड़ी-बड़ी चट्टानें सरीखी ट्रैक्टर-ट्ऱॉली पर लदी हुई हैं, और उन्हीं के ऊपर मचान बनाकर रह रहा परिवार साथ-साथ चल रहा है। एक ही ट्रैक्टर घर, दुकान, और गोदाम सब खींचकर ले जा रहा है।
बदले हुए माहौल में अब ये मजदूर सरीखे कारोबारी यह चर्चा करना नहीं चाहते कि यह नमक आया कहां से है। फिलहाल जिन लोगों को न पता हो, वे जान लें कि पाकिस्तान से आए हुए सेंधा नमक के बिना हिंदुओ का उपवास का खाना नहीं होता। पाकिस्तान से यह स्वाद अगर न आए तो लोग हिंदु-उपवास का खाना गले नहीं उतार पाएंगे क्योंकि उसमें साधारण और सफेद नमक तो चलता नहीं है। कम से कम जिस एक दिन उपवास में यह नमक खाएं, उस एक दिन तो दुश्मनी की बात नहीं करना चाहिए।
रेत के कारोबार में एआई की एंट्री

छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के पामगढ़ विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक शेषराज हरबंश सिंह का एक कथित ऑडियो पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर तहलका मचा रहा है। इसमें विधायक को महानदी से अवैध रेत खनन करने वालों से कथित रूप से कमीशन मांगते हुए सुना जा सकता है। लाखों के लेनदेन का जिक्र हो रहा है। ऑडियो वायरल होते ही विधायक ने पत्रकार वार्ता कर इसे एआई जनरेटेड फेक ऑडियो करार दिया। उन्होंने कहा कि यह मेरी आवाज की नकल है, जो आधुनिक तकनीक से बनाई गई है। आजकल कुछ भी संभव है।
सवाल उठता है कि क्या यह दावा सही है? अगर हां, तो कैसे साबित होगा? आसानी से नहीं होगा। यह एक तकनीकी जांच का विषय है। लेकिन हम आप भी कुछ बुनियादी संकेतों से शक पैदा कर सकते हैं। आपके पास ऑडियो हो तो दो चार बार ध्यान से सुनें और अपनी राय बना सकते हैं। इसके कुछ सरल तरीके हैं। असली आवाज में उतार-चढ़ाव, हिचकिचाहट या भावनाएं होती हैं। एक ऑडियो में आवाज सपाट या रोबोटिक लग सकती है, जैसे कोई मशीन पढ़ रही हो। सुनकर देखें कि ऑडियो में विधायक की आवाज में सामान्य तनाव या स्थानीय छत्तीसगढ़ी लहजा गायब है, तो आपका शक जायज है। इसी तरह से जब इंसान बोलते समय सांस लेता है या ‘उम्म’ जैसे कुछ फिलर्स का इस्तेमाल करता है। एआई में ये नेचुरल ब्रेकिंग पैटर्न अक्सर गायब होते हैं। असली रिकॉर्डिंग में हल्का शोर हो सकता है। जैसे हवा या फोन की गूंज हो सकती है। एआई में ऑडियो में भी यह डाला जा सकता है पर वह बनावटी लगेगा। इंटरनेट पर कई फ्री टूल्स हैं, जैसे इलेवन लैब, एआई स्पीच क्लासिफियर, एआई वाइस डिटेक्टर। दावा है कि ये साइट्स ऑडियो की असलियत को 90 फीसदी तक परख सकते हैं।
जो एक्सपर्ट्स इस फील्ड में काम कर रहे हैं उनके पास उन्नत तरीके हैं, जो मशीन लर्निंग और फॉरेंसिक एनालिसिस पर आधारित होते हैं। वे ऑडियो को विजुअल वेवफॉर्म में बदलकर देखते हैं। ऑडियो में असमान फ्रीक्वेंसी या साउंड ब्लेंडिंग की खामियों को पहचान लेते हैं। अगर विधायक की असली आवाज के सैंपल से तुलना करें, तो एआई क्लोन में माइक्रो-पॉज या इमोशनल प्रवाह को गायब पाएंगे। विशेषज्ञ विधायक की पुरानी स्पीच के आधार पर वाइस प्रिंट तैयार करेंगे- जिसके लिए फिर कई लर्निंग मॉडल हैं। यदि एआई से तैयार है तो यह भी पता चल सकता है कि किस टूल का इस्तेमाल कर एआई ऑडियो तैयार किया गया।

जांजगीर पुलिस ने मामले को जांच में लिया है। विधायक की शिकायत के आधार पर आवाज की फोरेंसिक जांच कराई जाएगी। इसे हैदराबाद के सीडीएफडी लैब में भेजा जा सकता है। दिल्ली में भी फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में एक लैब है। यहां अब एआई वाइस और वीडियो डिटेक्शन की सुविधा मौजूद हैं। अपने रायपुर स्थित फोरेंसिक लैब में भी इस तरह की जांच एक सीमा तक हो सकती है।
बहरहाल, यदि यह साफ हो जाता है कि ऑडियो एआई जनरेटेड है तो यह छत्तीसगढ़ में पहला मामला होगा, जिसके जरिये किसी राजनीतिक हस्ती को फंसाने की कोशिश की गई। मगर, यदि जांच में पाया जाता है कि ऑडियो वास्तविक है, छेड़छाड़ नहीं है तो यह विधायक शेषराज हरबंश ही नहीं- कांग्रेस के लिए भी बड़ा झटका होगा।
नुमाइश की चाह सोलर से...
अब तक बड़े-बड़े सरकारी, या राजनीतिक ओहदों पर बैठे हुए लोग अपनी गाडिय़ों पर पदनाम की तख्ती लगाते घूमते थे, जिसका मकसद ट्रैफिक पुलिस को डराना रहता था। अब यह मामला नीचे उतरकर मंत्रालय के किसी निज सचिव तक आ गया है। यह भी साफ नहीं है कि निज सचिव किसी अफसर के हैं, या किसी मंत्री के। खैर, जो भी हो, लोगों का अपने ओहदों की नुमाइश का शौक पूरा ही नहीं होता है। जब उनका ओहदा गुजर भी जाता है, और वे भूत बन जाते हैं, तो भी इन्हीं तख्तियों के शुरुआत में इतने बारीक अक्षरों से भूपू लिखवा लेते हैं कि जिसे पढऩे के लिए जौहरी का लेंस लगे। ताकत के मीनाबाजार की चाह जाती ही नहीं है। इसे देखकर मारुति का एक पुराना इश्तेहार याद आता है जिसमें एक छोटा बच्चा खिलौने की अपनी छोटी कार को मोटे-तगड़े लेटे हुए बाप के बदन पर दौड़ाते रहता है, और बाप के डांटने पर कहता है कि पेट्रोल खतम ही नइ होंदा है।
ताकत की नुमाइश की चाह सोलर से चलती है, उसमें पेट्रोल भी नहीं डलाना पड़ता।
पश्चिम से मनोज कुमार जैसा परहेज!

छत्तीसगढ़ के व्यापारी संगठन चेंबर ऑफ कॉमर्स के महिला विंग की मीटिंग का एक न्यौता बवाल बन गया। इसकी अध्यक्ष प्रदेश की एक प्रमुख मानसिक परामर्शदाता डॉ. इला गुप्ता हैं। उन्होंने अपनी महिला सदस्यों को जो न्यौता भेजा, उसमें एक कार्यक्रम में आने के लिए लिखा कि उसका ड्रेस कोड पश्चिमी पोशाक रहेगा, और महिलाएं अच्छे ग्लैमरस मेकअप में आएं, और यह भी दिखा सकें कि वे कैसी स्मार्ट, इंटेलिजेंट, और सेक्सी हैं।
चेंबर का यह महिला विंग सिर्फ बालिग और कामकाजी महिलाओं का है। इला गुप्ता का इसी मीटिंग के बाद जन्मदिन समारोह भी था। उन्होंने विवाद खड़ा होने पर माफी मांगते हुए यह सफाई दी है कि जन्मदिन की पार्टी के हिसाब से उन्होंने मजाक में ये बातें लिखी थीं, जो कि सिर्फ महिला सदस्यों के लिए आपसी संदेश था।
हिंदुस्तान की यह एक बड़ी दिक्कत है कि मर्द गोवा चले जाएं, थाईलैंड जाकर आ जाएं, वह सब जायज है, लेकिन महिलाएं अगर अपनी आपसी पार्टी में भी अगर बन-ठनकर पहुंचें, तो इससे मर्दानगी के अहंकार को चोट लग जाती है। अब ऐसे में माफीनामे से कम में भला मरहम-पट्टी कैसे होगी।
लेकिन हैरानी यह है कि राज्य महिला आयोग भी इस आंतरिक और निजी न्यौते पर कोड़े बरसाने के लिए कूद पड़ा है, और तो और, महिला आयोग को पश्चिमी पोशाक पर भी आपत्ति हो गई है। अब तमाम पश्चिमी चीजों का बहिष्कार करने कहा जाएगा, तो सब लोगों को बड़ी दिक्कत और असुविधा हो जाएगी, इनकी लिस्ट गिनाना ठीक नहीं है, वरना अगला निशाना इस कॉलम पर लगेगा।
सीएस पर निशाना जारी

भूपेश सरकार के आबकारी घोटाले की परतें खुल रही हैं। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने गुरुवार को तत्कालीन आबकारी सचिव निरंजन दास को गिरफ्तार किया। दास की गिरफ्तारी पर भाजपा नेता, और अधिवक्ता नरेश चंद्र गुप्ता ने खुशी जताई है। गुप्ता घोटाले में संलिप्त लोगों की गिरफ्तारी को लेकर काफी मुखर रहे हैं, और इस सिलसिले में पीएमओ को भी पत्र लिखा था।
गुप्ता ने फेसबुक पर लिखा कि अब जांच कर छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कार्पोरेशन लिमिटेड की तत्कालीन वरिष्ठ अधिकारी को गिरफ्तार करने की बारी है। उन्होंने छत्तीसगढ़ मार्केटिंग कार्पोरेशन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला, और लिखा कि छत्तीसगढ़ राज्य विपणन लिमिटेड पीने योग्य शराब का प्रबंधन करता है। पीने योग्य शराब एक उपभोग वस्तु है जिसमें पीने योग्य अल्कोहल या अन्य रसायन होते हैं। कार्पोरेशन की भूमिका छत्तीसगढ़ में उपभोक्ताओं को सभी प्रकार की शराब, बीयर और वाइन की खुदरा बिक्री करना है। किसी भी वस्तु की अनुपलब्धता संबंधी निर्माता द्वारा छत्तीसगढ़ में उस वस्तु को न बेचने का निर्णय छत्तीसगढ़ में कोई वस्तु जिस कीमत पर उपलब्ध है ( किसी अन्य जगह की तुलना में) वह निर्माता और राज्य उत्पाद शुल्क कानूनों द्वारा मूल्य निर्धारण को नियंत्रित करने वाले कारकों के कारण हैं।
सीएसएमसीएल शराब की खरीद की भूमिका निभाती है, और शराब की गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने, और उन्हें उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त कदम उठाती है। कार्पोरेशन के माध्यम से लाई गई शराब में बोतल के ढक्कन पर होलोग्राफिक स्टीकर चिपकाए जाते हैं। कार्पोरेशन की गतिविधि पूरी तरह छत्तीसगढ़ उत्पाद शुल्क कानूनों और उसमें बनाए गए नियमों के अनुसार पीने का निर्णय लेते समय उपभोक्ता को अपनी स्वास्थ्य स्थिति जाननी होगी। शराब किसी भी अन्य उपभोग वस्तु की तरह स्वतंत्र रूप से विपणन योग्य वस्तु नहीं है बल्कि इसे केवल लाइसेंस के माध्यम से ही बेचा जा सकता है। इस दृष्टि से एक संदेश यह भी है कि उपभोक्ता को शराब पीते समय अपने स्वास्थ्य की भी जांच करनी होगी।
बिना शोरगुल शुरू हो गया एसआईआर
भारत निर्वाचन आयोग की घोषणा के मुताबिक बिहार के बाद अब छत्तीसगढ़ सहित देश के अन्य राज्यों में भी मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण का काम शुरू हो गया है। बिहार में वहां की विधानसभा चुनाव के कुछ माह पहले ही यह प्रक्रिया शुरू की गई। कम समय और दस्तावेजों की कमी को लेकर यह प्रक्रिया काफी विवादित हो गई, जबकि मतदाता सूची को अपडेट करना एक नियमित प्रक्रिया है। बिहार के मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद यह साफ हो गया है आधार कार्ड को भी एक पहचान पत्र के तौर पर वैध दस्तावेज के रूप में मान्य किया जाएगा, भले ही यह नागरिकता का आधार हो या नहीं। पिछले तीन चार दिनों से छत्तीसगढ़ में जिलों के कलेक्टर बैठके ले रहे हैं। कुछ जिलों में एसआईआर की प्रक्रिया समझाने के लिए राजनीतिक दलों के साथ चर्चा भी की जा चुकी है, जो धीरे-धीरे बाकी जिलों में भी होगी। एसडीएम मतदाता सूची में नाम जोडऩे, हटाने और सुधारने की प्रक्रिया पर नजर रखेंगे और तहसीलदार, मातहत बीएलओ के जरिये मतदाता सूची से नामों की छंटनी करेंगे। अभी दफ्तर में ही बैठकर सरसरी तौर पर मतदाता सूचियों के अध्ययन का काम चल रहा है। बाद में बीएलए ( यानि राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों) की मदद से सर्वे का काम शुरू किया जाएगा। ऐसे मतदाताओं के नाम हटाए जाएंगे जो स्थायी रूप से बाहर जा चुके हैं, जैसे वे महिलाएं जिनकी शादी हो चुकी और अब यहां नहीं रहते। जो जीवित नहीं हैं, उनके नाम भी कटेंगे। दो जगह नाम दर्ज हो तब भी कटेगा। पिछला एसआईआर सन् 2002 में हुआ था। इसलिये 2003 की मतदाता सूची में जिन लोगों का नाम है, यदि 2025 की सूची में भी है तो उन्हें कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी, मगर उस पुरानी सूची में नाम नहीं है और 2025 की सूची में शामिल है, तो उन्हें अपने माता-पिता के दस्तावेज देने होंगे। 1987 के बाद जन्म लेने वाले मतदाताओं को भी दस्तावेज देने होंगे। इनमें मतदाता परिचय पत्र, आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र आदि शामिल होंगे। मतदाता सूची में सुधार के लिए छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में काफी वक्त है। इस सूची के आधार पर तीन साल तक कोई चुनाव नहीं होने वाला है। बहरहाल, शहर से लेकर गांवों तक एसआईआर की हलचल शुरू हो गई है। राजस्व और शिक्षा विभाग के नियमित कामकाज पर असर भी दिखने लगा है। आम लोगों को दफ्तर पहुंचने पर बताया जा रहा है कि तहसीलदार, पटवारी एसआईआर के काम में व्यस्त हैं।
दिल के अरमां आसुओं में बह गए...
योगी के यूपी में वाराणसी से अभी एक ऐसा वीडियो सामने आया जिसमें अदालत परिसर में वकीलों की पिटाई से लहूलुहान पुलिस दारोगा को देखकर पुलिस कमिश्नर की आंखें भर आईं, और उन्होंने कहा कि सीसीटीवी से सबकी पहचान हो गई है, और किसी भी हमलावर को बख्शा नहीं जाएगा। ऐसा कहीं-कहीं पर होता है जब वकील एकमुश्त किसी पर टूट पड़ते हैं तो वे मुजरिम को भी पीट देते हैं, और पुलिस को भी। लेकिन पुलिस कमिश्नर के इस डबडबाए हुए वीडियो के नीचे लोगों ने जो टिप्पणियां लिखी हैं, वे देखने लायक हैं।
एक ने लिखा है कि आपको अंदाज नहीं है कि वकीलों ने जिस तरह पुलिस को पीटा है, उससे कितने गरीबों का दिल ठंडा हुआ होगा क्योंकि पुलिस लोगों का दिल दुखाती रहती है। एक दूसरे ने लिखा है आज आप आंसू बहा रहे हैं, लेकिन आपकी पुलिस ने विनय तिवारी को जेल में पीट-पीटकर मार डाला था तब आंसू नहीं निकले, कभी पुलिस आर्मी के जवानों को पीटती है, कभी वकीलों को, और कभी किसानों को।
सीआरपीएफ के एक जवान ने लिखा है कि उसे पुलिस चौकी में चौकी प्रभारी के सामने कुछ लोगों ने डराया-धमकाया और दारोगा जी मुस्कुरा रहे थे। सबसे ज्यादा भ्रष्ट पुलिस हो गई हो जो मनमानी करती है, दबंगों का साथ देती है, और कमजोर गरीबों को परेशान करती है।
एक अन्य ने लिखा है- पुलिस विद्यार्थियों को जब लहूलुहान करती है तब दिल नहीं पिघलता? अगले ने लिखा है- वकील कभी गलत नहीं करते, और वकीलों से ही पुलिस काबू में है वरना यूपी में जंगलराज कायम करने में पुलिस की भूमिका सबसे बड़ी है।
एक ने लिखा- तुम लोग सिर्फ आम जनता पर फर्जी मुकदमा दर्ज करने में अपनी वर्दी का इस्तेमाल करते हो। जब खुद जूता-लात खाते हो तो भावुक हो जाते हो। और जब दूसरों को प्रताडि़त करते हो तो मेडल पाते हो, तुमको सिर्फ वकील ही सही कर सकते हैं। नीचे पोस्ट की गई दर्जनों प्रतिक्रियाओं में शायद एक भी पुलिस के पक्ष में नहीं थी, और पूरी पोस्ट, जो कि पुलिस कमिश्नर के आंसुओं से भीगी हुई थी, वह बर्बाद हो गई।
एनटीपीसी में लगातार उजागर होते घोटाले

रायगढ़ में एनटीपीसी के डिप्टी जीएम विजय दुबे को एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम ने 4.5 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया। मामला जमीन अधिग्रहण और पुनर्वास मुआवजे से जुड़ा था। शिकायतकर्ता पिता और बेटों को अधिग्रहित जमीन का मुआवजा मिल चुका था, लेकिन पुनर्वास योजना के 30 लाख रिलीज करने के लिए घूस मांगी गई। इसका एक हिस्सा पहले ही दिया जा चुका था, शेष राशि लेते वक्त अफसर पकड़ा गया।
यह घटना एनटीपीसी लारा परियोजना में हुए बड़े घोटाले की याद ताजा करती है। परियोजना के लिए 9 गांवों से जमीन अधिग्रहित की गई थी। शुरू में खातेदारों की संख्या केवल 500 थी, लेकिन परियोजना शुरू होते ही यह संख्या बढक़र 2000 हो गई। राजस्व अफसरों ने छोटे-छोटे टुकड़ों में जमीन बांट दी, क्योंकि प्रत्येक खाते पर 5 लाख मुआवजा मिलना था। नतीजतन, एनटीपीसी को अरबों रुपये अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा।
मामले की तत्कालीन कमिश्नर और कलेक्टर ने जांच कराई तथा मोटी फाइल तैयार हुई। इस जांच में डिप्टी कलेक्टर तीर्थराज अग्रवाल पर सबसे अधिक संदेह था, लेकिन कुछ माह पहले उन्हें क्लीन चिट देकर फाइल बंद कर दी गई। सामान्य प्रशासन विभाग इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचा, यह आज तक स्पष्ट नहीं है। इधर, प्रभावित परिवार पुनर्वास नीति का लाभ पाने के लिए एनटीपीसी अफसरों को रिश्वत देने को मजबूर हैं।
एनटीपीसी रायगढ़ में दूसरे घोटाले भी हो रहे हैं। हाल ही में फ्लाई ऐश ट्रांसपोर्ट घोटाला सामने आया। यहां से निकली फ्लाई ऐश की गाडिय़ां भारतमाला परियोजना के लिए अभनपुर ले जाने के बजाय रायगढ़ के पास के खाली प्लॉट में डंप करती पाई गईं। जांच में खुलासा हुआ कि जीपीएस ट्रैकर हैक कर वाहनों को नजदीक ही डंप कराया जाता है और पूरा भाड़ा वसूला जाता है। यह सब एनटीपीसी अफसरों की जानकारी में होने का आरोप है।
इन सबने रायगढ़ की पहले से प्रदूषित हवा को और जहरीला बना दिया है। यहां के अधिवक्ताओं ने न केवल जिलाधीश बल्कि जिला जज से भी कार्रवाई की मांग की है। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जब सोशल मीडिया पर इस मामले को उठाया तो उन्हें फोन पर ट्रांसपोर्टरों से धमकी मिली। पुलिस ने इस पर एक कारोबारी के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की। केंद्रीय उपक्रम हर साल सतर्कता सप्ताह मनाते हैं। संकल्प लेते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस रखेंगे। लोगों की राय भी आम तौर पर यही है कि राज्य सरकार के दफ्तरों के मुकाबले केंद्रीय संस्थानों में भ्रष्टाचार के खिलाफ रुख कड़ा होता है, पर एनटीपीसी के भ्रष्टाचार से जुड़े मामले चर्चाओं में लगातार है।
बृजमोहन, और बाकी की भी अनदेखी
रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल के समर्थक, और नगर निगम में भाजपा के पार्षद खफा हैं। इसकी वजह यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस के मौके पर बुधवार को लोक कल्याण उत्सव आयोजित किया गया था। कार्यक्रम रायपुर के मेडिकल कॉलेज के सभागार में हुआ। कार्यक्रम में सीएम विष्णुदेव साय, डिप्टी सीएम अरुण साव, और रायपुर के चारों विधायक थे। मगर कार्यक्रम के होर्डिंग्स में सांसद, मेयर, और विधायकों की तस्वीर नहीं थी। इस पर पार्षदों ने आपत्ति जताई है।
कार्यक्रम में सीएम ने सभी को स्वच्छता की शपथ दिलाई। साथ ही डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन वाहनों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया। भाजपा के पार्षद इस बात से खफा थे कि सांसद बृजमोहन अग्रवाल, और मेयर तक की तस्वीर नहीं लगी है। एक-दो पार्षदों ने तो मेयर से पूछ लिया कि निगम के कार्यक्रम में आपकी तस्वीर क्यों नहीं है? एक जोन अध्यक्ष ने तो कई जगहों पर आपत्ति दर्ज कराई है।
जोन अध्यक्ष का तर्क था कि पिछली सरकार में रायपुर नगर निगम के कार्यक्रम में सांसद,और विधायकों की तस्वीर जरूर होती थी। तब निगम में कांग्रेस काबिज थी। बावजूद इसके भाजपा सांसद सुनील सोनी का प्रमुख कार्यक्रमों में आमंत्रण के साथ-साथ उनकी तस्वीर रहती थी। सरकार बदलते ही कई जगहों पर प्रोटोकॉल को अनदेखा करने की बात सामने आ रही है। इससे पहले भी राजभवन में शिक्षक दिवस के मौके पर सम्मान समारोह में सांसद, और विधायकों को एक तरह से नजर अंदाज कर दिया गया था। सांसद-विधायक कार्यक्रम में नहीं गए थे। अब फिर उसी तरह की चूक सामने आई है। इससे भाजपा के अंदरखाने में शिकवा शिकायतें चल रही हैं।
अफसर जोड़े आगे बढ़ते
सब कुछ सामान्य रहा तो इस माह या अक्टूबर में छत्तीसगढ़ के दो अफसर केंद्र में सचिव बनेंगे। डीओपीटी ने 1995 बैच से देश भर के 30 आईएएस अफसरों को इंपैनल कर लिया है। जो केंद्रीय विभागों के सचिव बनाए जाएंगे। हालांकि इनमें से 20 अफसर अभी भी सचिव के समकक्ष पदों पर कार्यरत हैं। इस बैच से छत्तीसगढ़ कैडर की श्रीमती डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी और गौरव द्विवेदी शामिल हैं। ये दोनों भी सचिव स्तर के पदों पर हैं।
गौरव प्रसार भारती में 2022 से सीईओ, और मनिंदर कौर जुलाई 23 से राष्ट्रीय बीज निगम (एनएससी) की वर्तमान अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक हैं। गौरव ने प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी ऑनलाइन नागरिक मंच, माय गव इंडिया शुरू किया था जो सफलता से चल रहा है। छत्तीसगढ़ की ऑनलाइन पीडीएस सिस्टम को भी गौरव ने डिजाइन किया था। वे दोनों कुल मिलाकर 15-17 वर्षों से केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत रहे हैं।
वैसे इनके अलावा छत्तीसगढ़ के दो और आईएएस अमित अग्रवाल आधार कार्ड बनाने वाले प्राधिकरण के सीईओ, और निधि छिब्बर नीति आयोग में डायरेक्टर हैं। उनके पति विकासशील भी एडीबी में ईडी पद पर कार्य करने के बाद हाल में वापसी के लिए रिलीव हो चुके हैं।
असली माल नहीं दिखता...
आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन पर बहुत से लोगों ने सडक़ों पर झाडू लगाते हुए अपने फोटो-वीडियो सोशल मीडिया पर डाले हैं। इन्हें देखकर कुछ लोगों ने आज ही सुबह इन्हीं शहरों में चारों तरफ बिखरीं गंदगी की खींची गईं तस्वीरें भेजीं, और लिखा कि सफाई करने की इतनी हसरत थी, तो सचमुच ही जहां गंदगी थी, वहां जाना था, और बिना कैमरे जाना था। सुबह से शाम हो जाती, तब भी गंदगी साफ नहीं हुई रहती, और झाडू से तो बिल्कुल ही नहीं हुई रहती। उसके लिए रांपा, घमेला, और ट्रक लगे होते। ऐसी जगहें हर शहर में दर्जनों हैं, लेकिन ‘वीडियो-सफाईकर्मियों’ को वे नहीं दिखतीं।
पुत्र में पिता की झलक
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प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट मंगलवार को ओडिशा होते रायगढ़ में वोट चोर, गद्दी छोड़ कार्यक्रम में शरीक होने पहुंचे, तो उनका जोरदार स्वागत किया गया। इस मौके पर मंच से ही पायलट ने पूर्व मंत्री उमेश पटेल की जमकर तारीफों के पुल बांधे।
उन्होंने कहा कि वो पिछले दो साल से उमेश पटेल के काम देख रहे हैं। उनमें मुझे दिवंगत नंदकुमार पटेल की झलक दिखाई दे रही है। सचिन पायलट की टिप्पणी पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उमेश पटेल जिंदाबाद के नारे लगाए। पायलट ने कार्यकर्ताओं को शांत रहने का इशारा करते हुए आगे कहा कि जब तक सोना तपता नहीं है तब तक खरा नहीं बनता है।
उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि आपने, और इलाके के लोगों ने उतार-चढ़ाव के बाद भी इस मुकाम पर लेकर आए हैं, जो इनको (उमेश) और बाकी नेताओं को ताकत देंगे कि सभी आगे बढ़ सकें। उमेश ने हाथ जोडक़र कार्यकर्ताओं का अभिवादन स्वीकार किया। इस मौके पर मंच पर नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, और प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज भी थे। सचिन पायलट की खुले मंच से उमेश पटेल की तारीफों को लेकर कांग्रेस में काफी हलचल है।
ऊँट पहाड़ के नीचे

रायपुर की कोतवाली थाने के समीप भाजपा के प्रदेश महामंत्री (संगठन) पवन साय की खड़ी इनोवा कार में किसी ने गमला फेंककर क्षतिग्रस्त कर दिया। पवन साय अपने दांत का इलाज कराने डेंटल क्लीनिक गए हुए थे। साय की गाड़ी को क्षतिग्रस्त होने की जानकारी मिलने पर पुलिस तुरंत हरकत में आई, और प्रकरण दर्ज कर लिया। इस मामले में एक पुलिसकर्मी सस्पेंड भी कर दिया गया है।
पुलिस महकमा कार में तोडफ़ोड़ की घटना की जांच में जुटी, तो कई चौकाने वाली जानकारी सामने आई। बताते हैं कि कार एक पुलिसकर्मी के घर के सामने खड़ी थी। पुलिस कर्मी, और उसके परिवार के लोगों को इस बात की आपत्ति रही है कि उनके घर के बाहर गाड़ी पार्क कर दी जाती है। इससे पहले भी कई गाड़ी पर पत्थर फेंका जा चुका है।
थाने में पहले भी शिकायत हुई थी, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। वजह यह है कि पुलिसकर्मी ही खुद घटना में शामिल रहा है। अब जब भाजपा के ताकतवर नेता की गाड़ी क्षतिग्रस्त हुई है, तो न सिर्फ पुलिसकर्मी पर कार्रवाई हो रही है बल्कि कुछ और अफसरों पर भी गाज गिर सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
राखी की मौत के बाद सफीर की इंसानियत

तिरुवनंतपुरम के एक पंचायत वार्ड सदस्य टी. सफीर ने मानवता की ऐसी मिसाल पेश की है, जो धर्म और जाति की सीमाओं को लांघकर इंसानियत की ताकत से पहचान कराती है। घटना का संबंध छत्तीसगढ़ से है।
44 साल की राखी नाम की एक महिला छत्तीसगढ़ की मूल निवासी थी। वह मानसिक रूप से बीमार थी। वहां एक चैरिटेबल अस्पताल में इलाज होने के बाद तिरुवनंतपुरम जिले के ही मीनामकुलम के बेनेडिक्ट मेनी नाम की एक संस्था द्वारा चलाए जाने वाले पुनर्वास केंद्र में रह रही थी। वहां पता चला कि उसे स्तन और यकृत का कैंसर है, वह चौथे स्टेज का। बीते 12 सितंबर को राखी की तबीयत बिगड़ गई और उसे पुथेनथोप नाम के गांव में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। डॉक्टरों ने कुछ ही देर बाद उसे मृत घोषित कर दिया।
मौत से पहले राखी ने अपनी अंतिम इच्छा जताई थी कि उसका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से किया जाए। पता नहीं, वह छत्तीसगढ़ से केरल इलाज के लिए कैसे पहुंची थी, वहां उसका कोई अपना नहीं था। पुनर्वास केंद्र में नियमित आने-जाने वाले गांव के पंच टी. सफीर को उसकी मौत और अंतिम इच्छा के बारे में पता चला। अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए सफीर ने न केवल उनके अंतिम संस्कार को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार पूरा कराया, बल्कि उनकी अस्थियों को वर्कला के पापनासम समुद्र तट पर ले जाकर विसर्जित किया। सफीर के लिए पहला मौका नहीं था; वे पहले भी तीन अन्य लोगों के अंतिम संस्कार हिंदू परंपराओं के अनुसार करा चुके हैं। सफीर स्वयं इस्लाम को मानते हैं। वे कहते हैं कि परित्यक्त और असहाय लोगों के लिए थोड़ा आगे बढक़र वे अपने बच्चों को दया और करुणा के मूल्यों से परिचित कराते हैं। वे चाहते हैं कि मानवता की शिक्षा अगली पीढ़ी तक पहुंचनी चाहिए।
कुछ दाग-धब्बे बने रहते हैं
प्रदेश के 13 आईएफएस अफसरों के तबादले किए गए। इनमें आईएफएस के 2003 बैच के अफसर राजेश चंदेले की फील्ड में पोस्टिंग की गई है। उन्हें कांकेर सीसीएफ बनाया गया है। चंदेले स्वीमिंग पूल विवाद पर जांच के घेरे में आए थे। हालांकि बाद में उन्हें क्लीन चिट मिल गई, और प्रमोट भी हो गए।
मामला दस साल पुराना है, तब चंदेले दंतेवाड़ा में डीएफओ थे। मीडिया में यह बात सामने आई थी कि डीएमएफ की राशि से डीएफओ बंगले में 70 लाख खर्च कर स्वीमिंग पूल का निर्माण किया गया। इसके बाद चंदेले को हटा दिया गया, और मामले की जांच के लिए वन विभाग ने कमेटी बनाई।
जांच में यह बात सामने आई कि स्वीमिंग पूल निर्माण स्थल, कलेक्टर-डीएफओ बंगलों का कॉमन लैंड है। वन विभाग की जांच में यह कहा गया कि स्वीमिंग पूल के निर्माण में विभागीय मद का उपयोग नहीं किया गया है, बल्कि डीएमएफ की राशि, और ठेकेदारों का सहयोग लेकर किया गया। डीएमएफ कमेटी के चेयरमैन कलेक्टर होते हैं, और कलेक्टर की अनुशंसा पर ही स्वीमिंग पूल के लिए राशि जारी की गई थी।
साफ था कि कलेक्टर, और अन्य अफसरों ने अपने लिए स्वीमिंग पूल का निर्माण कराया था। ये अलग बात है कि कलेक्टर जांच के घेरे में नहीं आए, और अहम पोस्टिंग पाते रहे। अब वो केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर चले गए हैं। मगर विभाग से क्लीन चिट मिलने के बाद चंदेले पर अब भी स्वीमिंग पूल का दाग निकल नहीं पाया है।
कॉलेज में स्ट्रेस रिलीज बोतलें

नशे की पार्टियां अब क्लब, होटल, बार-रेस्टोरेंट, फार्म हाउस की रंगीन रातों से बाहर निकल गई हैं। अब ये पार्टियां राजधानी के कालेजों में पहुंच गई हैं। वह भी कॉलेजों में। पांच से छह कालखंड की कथित पढ़ाई का स्ट्रेस दूर करने छात्र घर जाने से पहले क्लास रूम या कालेज की छत पर शराबखोरी कर रहे हैं। इसे स्ट्रेस रिलीज पार्टी का नाम देकर बोतलें खोली जा रही हैं। इसमें छात्रों के साथ छात्राएं भी हिस्सेदार हो रही हैं।
यह मामला कल तब खुला जब शहर के बीच के एक कॉलेज में नशे की हालत में छात्रों में जूतमपैजार हुई। होश वालों ने यह बात कालेज में तो पता नहीं चलने दिया लेकिन बात थाने तक पहुंच गई। यह बात हमें पुलिस वालों ने ही बताई यह कहते हुए कि आजकल बच्चों को क्या हो गया है? स्कूल कालेज में प्रिंसिपल, शिक्षकों से भी बेखौफ हो गए हैं।
सही भी है क्योंकि प्राचार्यों या अधिष्ठाता का पूरे परिसर में होने वाला चेकिंग राउंड का न होना, छुट्टी के बाद सूने क्लास रूम और छतों की जांच न करना, सब कुछ बंद हो गए हैं। छोटी सी किसी बात पर किसी छात्र-छात्रा को कुछ कह दिया तो एनएसयूआई, एबीवीपी की गुट राजनीतिक नारेबाजी पर उतर आते हैं। नैतिकता सिखाने से बेहतर है प्राचार्य, प्राध्यापक क्लास लेकर घर जाएं।
छात्राओं की आवाज अनसुनी क्यों?

स्कूलों और शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं, ऐसा दावा शिक्षा विभाग का है, मगर जिस तरह से फैसले लिए गए हैं- उससे पता चलता है कि विभाग ने स्कूलों की संख्या घटाने के लिए पहले से ही मन बना लिया था। इसका एक उदाहरण गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर के मामले से समझा जा सकता है। यहां के एक गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल को इस प्रक्रिया के चलते ब्वायज स्कूल में मर्ज कर दिया गया है। कहा तो यह जा रहा है कि जिन शालाओं में दाखिला कम है, उनमें युक्तियुक्तकरण किया जा रहा है लेकिन इस स्कूल में 425 छात्राएं पढ़ रही हैं। उनको अब उस स्कूल में जाने के लिए कहा जा रहा है जहां लडक़े पढ़ते हैं। वहां लडक़ों की संख्या 225 ही है। यानि लगभग दो गुनी दर्ज संख्या वाले स्कूल को बंद कर वहां की छात्राओं को छात्रों के साथ पढ़ाई करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। शिक्षा विभाग के अधिकारी सह-शिक्षा को बढ़ावा देने की बात कहकर इस फैसले को सही ठहरा रहे हैं लेकिन यहां छात्राओं की बात समझने की जरूरत है। वे कहते हैं कि हमें उनके साथ पढऩे में असुविधा होगी। हमें छात्रों के शरारतों, उपद्रवों का सामना करना पड़ेगा। कन्या शाला में हम काफी सहजता के साथ पढ़ाई कर लेते हैं, नई जगह पर, नए माहौल मे पढऩे के हमें क्यों बाध्य किया जा रहा है, जबकि छात्राओं की दर्ज संख्या पर्याप्त है। इस मुद्दे के विरोध में छात्राएं अपने अभिभावकों के साथ कलेक्टर से मिलने के लिए गरियाबंद पहुंच गईं। मगर, उन्हें निराशा हुई जब कलेक्टर उनसे मिले बिना ही दफ्तर से बाहर निकल गए। इससे नाराज छात्राओं ने फिंगेश्वर-महासमुंद मार्ग पर चक्काजाम भी कर दिया। यूनिफॉर्म में ही सडक़ पर बैठ गईं। मगर यह आंदोलन कितनी देर चल पाता, सब वापस लौट गए। पर नाराजगी अभी दूर नहीं हुई है। युक्तियुक्तकरण के फैसले के खिलाफ भी और कलेक्टर के रवैये को लेकर भी। शिक्षा विभाग जब दो स्कूलों को एक साथ मर्ज कर देता है तो दोनों के लिए अलग-अलग शिक्षकों की मांग नहीं रहेगी। शायद इसी मंशा से छात्राओं की दर्ज संख्या और उनकी भावनाओं और चिंता का ध्यान रखे बिना युक्तियुक्तकरण कर दिया गया। जब बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने की बात पर जोर दिया जाता है तो फिर ऐसे फैसले क्यों लिए जा रहे हैं?
प्लेन तो ले आए थे, मुसाफिर कहां से?

कुछ महीने पहले अंबिकापुर से विमानसेवा शुरू होने पर स्थानीय कारोबारियों, और नेताओं ने खुशियां मनाई थी। केन्द्र सरकार की ‘उड़ान’ योजना के जरिए अंबिकापुर-बिलासपुर, और रायपुर के लिए पिछले साल दिसंबर में निजी कंपनी फ्लाई बिग ने विमान सेवा शुरू की थी। मगर चार महीने बाद भी विमानसेवा पर ब्रेक लग गया। हाल यह है कि पिछले दो महीने से विमानसेवा पूरी तरह बंद हो गया।
विमानसेवा बंद होने के पीछे विमानन कंपनी फ्लाई बिग प्रबंधन का तर्क है कि अंबिकापुर-बिलासपुर के लिए पैसेंजर पर्याप्त संख्या में नहीं मिल पा रहे थे। इस वजह से विमानसेवा बंद करनी पड़ी। स्थानीय लोगों की मांग रही है कि रायपुर-अंबिकापुर-बनारस के लिए विमानसेवा शुरू की जानी चाहिए।
वजह यह है कि अंबिकापुर से बनारस आने जाने वालों की संख्या काफी ज्यादा है। मगर बिलासपुर, और फिर रायपुर तक विमानसेवा शुरू की गई थी, जो कि फायदेमंद नहीं हो सकती थी। स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने रूट बदलने की मांग कर रहे हैं ताकि विमान सेवा शुरू हो सके। लेकिन फिलहाल इसके आसार कम दिख रहे हैं। इससे परे रायपुर-जगदलपुर, और हैदराबाद विमानसेवा सफलतापूर्वक चल रही है।
विधायक क्या चीज है?
रायपुर के बड़े जमीन कारोबारी बसंत अग्रवाल का एक वीडियो वायरल हो रहा है। जिसमें वो खुले तौर पर ये कह रहे हैं कि विधायक भी उनके आगे कही नहीं लगते हैं। बसंत भाजपा से जुड़े हैं, और रायपुर जिले में सबसे ज्यादा 15 हजार सदस्य बनवाए हैं।
वो धार्मिक आयोजनों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। उन्होंने गुढिय़ारी में पंडित प्रदीप मिश्रा के शिवमहापुराण कथा का आयोजन कराया था जिसमें लाखों की संख्या में जुटे थे। इसी तरह कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर दही हांडी प्रतियोगिता का आयोजन कराया था जिसमें सीएम, और अन्य विशिष्ट लोग मौजूद थे।
बसंत अग्रवाल, बागेश्वर धाम के महाराज धीरेन्द्र शास्त्री का कार्यक्रम कराने जा रहे हैं। इस मौके पर वो प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कह रहे हैं कि बिना भगवा चोला पहने बसंत अग्रवाल धर्म का वो काम कर रहे हैं, जो कोई और नहीं कर रहा है। विधायक भी उनके सामने कहीं नहीं लगते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि बसंत अग्रवाल की स्थानीय विधायक राजेश मूणत से छत्तीस का आंकड़ा है। वो धार्मिक आयोजनों के बहाने मूणत को चुनौती देते नजर आते हैं। बसंत अपने कारोबारी विवाद को लेकर चर्चा में रहे हैं। उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत भी हुई थी। उनके परिजनों की कंपनी के अवैध प्लाटिंग पर जिला प्रशासन ने सख्ती से कार्रवाई की थी। एक गिराई गई कॉलोनी का तो नाम ही बसंत विहार है। अब मूणत का नाम लिए बिना जिस अंदाज में चुनौती दी है उससे भाजपा और मूणत समर्थकों में नाराजगी देखी जा रही है। अब पार्टी क्या करती है यह देखना है।
एक चुनाव प्रचार जारी
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संसद से लेकर पंचायत तक के चुनावों की तडक़ भडक़ का असर जन संगठनों के चुनावों पर भी देखा जाता है। मतदाताओं को रिझाने और वोट के लिए बार होटलों में वीकेंड पार्टी आम हो चले हैं। ऐसे माहौल में मंत्रालय कर्मचारी संघ के चुनाव बिना किसी खर्च पानी के होने जा रहे हैं। पूछो तो कहते हैं चार वर्ष डीए का एरियर्स नहीं मिला, नए वेतन आयोग का पता नहीं, इंक्रीमेंट लगा नहीं..नहाएं क्या, निचोड़े क्या?
ऐसी हालत में महानदी भवन के गेट पर रोजाना सभी 27 प्रत्याशी हाथ जोड़े खड़े हो कर और वाट्सएप पर मैसेज कर वोट मांग रहे हैं। तो कुछ प्रत्याशी अपने चुनाव चिन्ह हाथों में लिए घूमते देखे जा सकते हैं। मंत्रालय की पुराने शहर के मीडिया से दूरी की वजह से भी चुनाव में वो हाइप नहीं बन पाया है और दो दिन बाद मतदान के साथ नतीजे भी घोषित कर दिए जाएंगे। बहरहाल इन त्रिवार्षिक चुनाव में घमासान प्रचार अभियान जारी है। सभी पदों पर बहुकोणीय मुकाबला है। कुछ प्रत्याशी अपनी उपलब्धियों का पांपलेट बांट रहे हैं तो नए लोग वादे कर रहे हैं।
इस चुनाव में तीन पैनल हमर संगवारी, नव जागृत और समाधान पैनल और एक स्वतंत्र पैनल से नए पुराने प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इस चुनाव के लिए 772 मतदाताओं में से 193 वोट 4 प्रत्याशी में से जिस किसी ने भी पाया वो अध्यक्ष होगा।
मध्यप्रदेश से फिर बाघ लाने की तैयारी मगर...

ताजा सर्वे के मुताबिक छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या 2022 में 17 थी, जो अप्रैल 2025 में बढक़र 35 तक पहुंच गई है। इनमें सबसे अधिक 18 बाघ अब बिलासपुर के अचानकमार टाइगर रिजर्व (एटीआर) में हैं। यानी बाघों के लिहाज से अचानकमार एकाएक समृद्ध हो गया है। हालांकि पर्यटक अक्सर निराश होते हैं कि भ्रमण के दौरान उन्हें बाघ दिखाई नहीं देते। कई लोग सवाल उठाते हैं कि क्या सचमुच यहां इतने बाघ मौजूद हैं? मगर मानक तकनीक से की गई गिनती पर संदेह नहीं किया जा सकता। प्रकृति प्रेमियों का दावा है कि यहां की गिनती में वे बाघ भी शामिल हो जाते हैं, जो मध्यप्रदेश के कान्हा या बांधवगढ़ से कुछ दिनों के लिए यहां आते हैं और फिर लौट जाते हैं। ऐसे दो-चार मामले बीते वर्षों में सामने भी आए हैं। आंकड़ों के अनुसार तमोर पिंगला में 7, इंद्रावती में 6, भोरमदेव में 3 और उदंती-सीतानदी में केवल 1 बाघ है।
अरसे बाद बाघों को लेकर आई इस अच्छी ख़बर के बाद वन अफसरों ने हाल ही में पत्राचार शुरू किया है कि बांधवगढ़ से 3 और कान्हा से 3 बाघ मिल जाएं। इन्हें उदंती-सीतानदी और गुरु घासीदास टाइगर रिज़र्व-तमोर पिंगला में शिफ्ट किया जाए। इसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने मध्यप्रदेश सरकार से पहल की है और साथ ही नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) से भी परामर्श लिया है। उद्देश्य यह है कि तीन सालों में दोगुनी हुई संख्या अब कम न हो और कम से कम स्थिर तो बनी रहे। लेकिन इसके लिए देहरादून स्थित वाइल्डलाइफ़ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया का मूल्यांकन आवश्यक है, जिसके बिना यह स्थानांतरण संभव नहीं होगा।
सवाल यह है कि जब दो जोड़ी बाघ लाने की तीन-चार साल से कोशिश हो रही है और अब तक धरातल पर नहीं उतरी, तो नए प्रस्ताव पर अमल कब होगा? अगर पीछे देखें तो राज्य वन्यजीव बोर्ड की योजना थी कि प्रोजेक्ट बघवा के तहत मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ को दो बाघ और दो बाघिन मिलें, जिनमें से एक जोड़े को अचानकमार अभयारण्य में छोड़ा जाना था। यह प्रस्ताव कांग्रेस सरकार के समय आया था, लेकिन अब तक लागू नहीं हुआ। हालांकि, अचानकमार में मध्यप्रदेश की सीमाओं से बाघों का स्वाभाविक आना जारी है।

एटीआर में वर्षों से यहां गाँवों के विस्थापन की प्रक्रिया अधूरी है क्योंकि बजट आवंटन नहीं हुआ। यहां बड़े पैमाने पर अवैध दैहान मौजूद हैं, जिन्हें हटाने की कार्रवाई नहीं हो रही। गांवों और दैहानों को हटाने का विरोध राजनीतिक स्तर पर भी है। घास के मैदानों की कमी के कारण शिकार योग्य जानवर कम हैं और यही वजह है कि बाघों के लिए भोजन की उपलब्धता चुनौती बनी हुई है।
पर्यावरण प्रेमियों का मानना है कि बाघों की संख्या बढऩे के बाद वन विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वे मौजूदा बाघों की वंशवृद्धि के लिए आवश्यक संसाधन बढ़ाएं। मध्यप्रदेश से नए बाघ लाने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मौजूदा बाघों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और संसाधन विकसित हों। हकीकत क्या है, इसे लेकर- बारनवापारा का उदाहरण दिया जाता है, जहां महीनों तक एक नर बाघ बाघिन की तलाश में भटकता रहा और बाद में कसडोल क्षेत्र में भटकता रहा।
सरहद के दोनों तरफ के रिश्ते

बस्तर के बाद जशपुर में भी होम स्टे की शुरुआत हुई है। पांच गांवों में देश विदेश के पर्यटक स्थानीय आदिवासी परंपराओं से रूबरू हो पाएंगे। जशपुर में सीएम विष्णुदेव साय ने होम स्टे की शुरुआत के मौके पर मंचासीन झारखंड के पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा की तारीफ की, और याद दिलाया कि किस तरह मुंडा जी ने केन्द्रीय मंत्री रहते कंवर आदिवासियों से जुड़ी समस्याओं को सुलझाया था।
साय ने बताया कि वो कंवर समाज से आते हैं। उनकी माता झारखंड की रहवासी हंै। छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे झारखंड के 18-20 गांवों में कंवर समाज के लोग रहते हैं। झारखंड में कंवर समाज को आदिवासी नहीं माना जाता था। जिसके कारण झारखंड के कंवर समाज के लोगों को आरक्षण और अन्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा था। साय ने बताया कि एनडीए की वाजपेयी सरकार में अर्जुन मुंडा जी आदिम जाति विकास मंत्री थे। मैंने उनके सामने झारखंड के कंवर आदिवासियों की दिक्कतों का जिक्र किया।
मुंडा ने चार महीने समय मांगा, और फिर समय सीमा के भीतर कंवर समाज को आदिवासी होने मान्यता दिलवाई। साय की बात सुनकर मंच पर अर्जुन मुंडा जी मंद-मंद मुस्कुराते दिखे।
मोदी के लिए धन्यवाद प्रस्ताव
जीएसटी में कमी से रोजमर्रा की वस्तुओं के दाम में कमी आने वाली है। नई दरें 22 सितंबर से प्रभावशील होंगी। भाजपा के रणनीतिकारों ने जीएसटी में सुधार का श्रेय पीएम नरेंद्र मोदी को देकर व्यापक प्रचार-प्रसार की रणनीति बनाई है। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री अरुण सिंह ने शुक्रवार की रात छत्तीसगढ़ के प्रमुख नेताओं से वीडियो कॉन्फ्रेंस पर चर्चा की।
अरुण सिंह ने कहा है कि आम उपभोक्ताओं तक जीएसटी में कमी के फायदे की जानकारी पहुंचनी चाहिए। अरूण सिंह ने एक माह के भीतर सभी नगरीय निकायों से जीएसटी में कमी, और उपभोक्ताओं को फायदा पहुंचाने के लिए पीएम के नाम धन्यवाद प्रस्ताव पारित कर जानकारी भेजने के लिए कहा है।
यही नहीं, एनडीए शासित राज्यों की विधानसभाओं में भी जीएसटी में सुधार के लिए पीएम के नाम धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया जाएगा। छत्तीसगढ़ में विधानसभा के शीतकालीन सत्र में प्रस्ताव पारित होने की उम्मीद है।
आईबी में छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ कैडर के 97 बैच के आईपीएस अफसर जयदीप सिंह आईबी में एडिशनल डायरेक्टर के पद पर प्रमोट हो गए हैं। जयदीप पिछले दो दशक से आईबी में हैं। वो छत्तीसगढ़ कैडर के उन चुनिंदा अफसरों में हैं, जो शीर्ष खुफिया एजेंसी में अहम दायित्व संभाल रहे हैं।
जयदीप सिंह से पहले विश्वरंजन, और स्वागत दास आईबी में स्पेशल डायरेक्टर के पद तक पहुंचे। विश्वरंजन बाद में छत्तीसगढ़ में डीजीपी भी रहे। इसके अलावा बीके सिंह भी स्पेशल डायरेक्टर के पद पर रहे, और रिटायरमेंट के करीब आते-आते वापस छत्तीसगढ़ आ गए। बीके सिंह ईओडब्ल्यू-एसीबी के डीजी रहे। यही नहीं, रायपुर आईजी अमरेश मिश्रा भी आईबी में असिस्टेंट डायरेक्टर के पद पर सेवाएं दे चुके हैं।
कुछ महीने पहले डीआईजी स्तर के अफसर डी श्रवण की भी पोस्टिंग आईबी में हुई है। श्रवण तीन जिलों के एसपी रह चुके हैं। वो वर्तमान में गुवाहाटी में सेवाएं दे रहे हैं। छत्तीसगढ़ कैडर के अफसर केन्द्रीय जांच एजेंसियों में अहम भूमिका निभाते आए हैं। रवि सिन्हा तो रॉ के डायरेक्टर रहे। एडीजी अमित कुमार सीबीआई में करीब 10 साल सेवाएं दे चुके हैं। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ के अफसर अपनी कार्यशैली के बूते पर केन्द्रीय एजेंसियों में अहमियत पाते रहे हैं।
रामगढ़ बचे न बचे, रिपोर्ट तो हाजिर है...

छत्तीसगढ़ का रामगढ़ पर्वत, सरगुजा जिले में बसा वह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक खजाना है, जहां प्राचीन गुफाएं, शिलालेख और रामायण काल की कथाएं आज भी जीवित हैं। लेकिन कोयला खनन की वजह से दरारें और कंपन की खबरें सामने आ रही हैं, और सरकार की जांच टीम ने कुछ घंटों में 'सब ठीक है' का कह दिया। यह सर्टिफिकेट दिया है, भाजपा विधायकों की जांच टीम ने। इनके साथ न कोई भूगर्भ विशेषज्ञ था, न पर्यावरणविद्। जैसे कोई झोलाछाप मरीज का उपचार कर देता हो। इस टीम के संयोजक शिवरतन शर्मा एमए, एलएलबी हैं। विधायक रेणुका सिंह 12वीं पास हैं। तीसरे अखिलेश सोनी एमए किए हुए हैं, लेकिन इनमें से किसी के अध्ययन का विषय भूगर्भ विज्ञान नहीं रहा है। पर्यटन मंत्री राजेश अग्रवाल टीम में नहीं थे, लेकिन साथ घूमते रहे। उनकी भी पढ़ाई रेणुका सिंह जितनी ही है। टीम ने मौके पर जाकर फोटो सेशन किया और घोषणा कर दी है कि कोई खतरा नहीं।
मगर क्या यह जांच रिपोर्ट विवाद को दफन कर देगा? सत्तारूढ़ दल हमेशा छत्तीसगढ़ के खनन उद्यमियों के साथ रहे हैं। हसदेव अरण्य में कांग्रेस के शासनकाल में पेड़ों की कटाई हुई, कई तरह की मंजूरी मिली और जब भाजपा की सरकार आई तो सरकार ने शपथ भी नहीं ली थी कि दोबारा पेड़ कटने लगे थे। हसदेव को लेकर ग्रीनपीस की रिपोर्ट बताती है कि कोयला खनन से बाघों के गलियारे और जैव विविधता को खतरा है, और स्थानीय निवासियों में श्वास रोग, टीबी जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं। वहीं, रामगढ़ जैसी जगह, जहां 250-300 मिलियन वर्ष पुरानी चट्टानें हैं, पर ब्लास्टिंग का असर दरारों और भूस्खलन के रूप में दिख रहा है। कई भू-वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि कोयले के लिए गहराई तक खुदाई से संरचना कमजोर हो सकती है।
इस जांच टीम में शामिल शिवरतन शर्मा ने 2022 में विधानसभा में केंटे एक्सटेंशन परियोजना के खिलाफ संकल्प पर हस्ताक्षर किए थे। अब सरकार आ गई है तो खदान की वकालत कर रहे हैं। पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव (कांग्रेस) ने सही सवाल उठाया है। मगर, उन्होंने अपने कार्यकाल में हसदेव की कटाई होते देखा। विरोध तो किया लेकिन विरोध स्वरूप कोई निर्णायक फैसला नहीं लिया। उनके ही कार्यकाल में सरगुजा कलेक्टर की रिपोर्ट आ चुकी थी कि रामगढ़ को कोई खतरा नहीं, जो पहले की रिपोर्ट से बिल्कुल विपरीत थी। कल शर्मा वनवास में आज सिंहदेव वनवास में हैं। जनता के सुर में सुर मिलाने के लिए राजनीतिक वनवास जरूरी हो जाता है। जब पर्यटन और संस्कृति मंत्री राजेश अग्रवाल को बनाया गया तो लोगों ने सोचा वे धर्मसंकट में पड़ जाएंगे। अपने ही इलाके के रामगढ़ को बचाने के लिए वे क्या करेंगे? मगर, यह संशय मिट चुका है। उन्होंने भाजपा की जांच टीम की हां में हां मिलाई है और घोषित कर दिया है कि रामगढ़ को कोई खतरा नहीं है।
दिग्गज आदिवासी नेता ननकी राम कंवर एक के बाद एक डीएमएफ, और अन्य मामले को लेकर सीधे पीएमओ को शिकायत भेज रहे हैं। एक-दो मामलों पर पीएमओ ने सरकार ने जांच प्रतिवेदन भी मांगा है। चर्चा है कि कंवर की शिकायतों से राज्य सरकार, और संगठन के नेता नाखुश हैं।
पिछले दिनों मध्य क्षेत्र विकास प्राधिकरण की बैठक कोरबा में थी। सीएम विष्णु देव साय और अन्य कई मंत्री व विधायक बैठक में थे। कई फैसले भी लिए गए। मगर पूर्व गृहमंत्री कंवर सौजन्य मुलाकात के लिए भी नहीं गए। इसको लेकर पार्टी के भीतर काफी चर्चा भी रही। कंवर की नाराजगी कोरबा कलेक्टर के खिलाफ भी है। वो कलेक्टर को बदलना चाहते हैं, लेकिन उन्हें शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि पार्टी में पूछपरख नहीं होने से कंवर भी कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। मगर नंदकुमार साय का हाल देखकर ऐसा कुछ करेंगे, इसको लेकर संदेह जताया जा रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
पितृ पक्ष, और फूले मुँह
सरकार के निगम-मंडलों, और भाजपा संगठन की दूसरी सूची पर फिलहाल ब्रेक लग गया है। सूची अब अक्टूबर-नवंबर में जारी हो सकती है।
नाम फाइनल होने के बाद भी सूची अटकने के पीछे कई वजहें सामने आई है। बताते हैं कि पितृपक्ष में पार्टी नई नियुक्तियों से परहेज़ करते आई है। इससे परे पार्टी हाईकमान ने 2 अक्टूबर तक कई कार्यक्रमों की सूची भेजी है। इन कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए प्रदेश और जिला कार्यालयों में बैठकें चल रही है।
पार्टी नेता मानते हैं कि सरकार और संगठन की सूची जारी होने असंतोष भी उभर कर सामने आ सकता है। वैसे भी पार्टी के पुराने नेता संगठन में जगह नहीं मिलने से मुंह फुलाए बैठे हैं। इन सब वजहों से पार्टी के कार्यक्रम प्रभावित होने का खतरा दिख रहा था। इस वजह से नियुक्तियों को फिलहाल रोक दिया गया है।
आंदोलन को जीवंत रखने के तरीके

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के हजारों कर्मचारी पिछले 25 दिनों से हड़ताल पर हैं। उनकी मुख्य मांग भाजपा सरकार से चुनाव पूर्व किए गए उस वायदे को पूरा करने की है, जिसमें नियमितिकरण और सरकारी सेवा में शामिल किए जाने की बात कही गई थी। संगठन पदाधिकारियों का दावा है कि विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपने घरों के बाहर बैनर लगाए थे, जिन पर लिखा था, कि यहां कांग्रेसियों का प्रवेश वर्जित है। कांग्रेस शासन से उन्हें धोखा मिला और अब भाजपा सरकार ने भी उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। लंबी हड़तालों में सबसे बड़ी चुनौती कर्मचारियों का उत्साह बनाए रखना होता है। रोज-रोज कर्मचारियों को धरना स्थल तक लाना और आंदोलन को जीवंत रखना आसान काम नहीं है। लेकिन एनएचएम कर्मियों ने इसके लिए पहले से पुख्ता तैयारी कर रखी है। जगदलपुर में कल आंदोलनकारियों ने पुराना कृषि उपज मंडी प्रांगण में लोकनृत्य किया। कुछ कर्मचारियों ने सरकार की वादाखिलाफी पर गीत तैयार किए, जिन्हें धुन में गाकर सुनाया गया। इससे पहले वे बारिश में बाइक रैली निकाल चुके हैं। धरना स्थल पर ढोल-मंजीरा संग भजन और पैरोडी गाए जा रहे हैं, जिनमें उनकी मांगों की फेहरिस्त होती है। कभी समूह में मंदिरों में देवी दर्शन, तो कभी चुनरी यात्रा निकालकर वे लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं।
वैसे हड़ताल का असर सरकारी अस्पतालों और ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों तक है। ग्रामीण क्षेत्रों में एएनएम भी हड़ताल पर हैं, जिनके भरोसे मिनी पीएचसी (आरोग्य मंदिर) चलते हैं। बड़े अस्पतालों में भी मरीजों को मरहम-पट्टी और दवाओं के लिए भटकना पड़ रहा है। जब भी उल्टी-दस्त और डायरिया जैसी बीमारियों का प्रकोप फैलता है, तो एनएचएम कर्मचारी ही फील्ड में सबसे ज्यादा सक्रिय रहते हैं। इस काम पर भी असर पड़ा है। महामारी नियंत्रण, जन्म-मृत्यु पंजीयन, महतारी प्रसव, ओपीडी सेवाओं समेत दर्जनों स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही हैं।
सरकार की ओर से आंदोलनकारियों की कुछ मांगों पर आश्वासन दिया गया है, लेकिन कर्मचारी केवल मौखिक भरोसे से संतुष्ट नहीं हैं। वे लिखित आश्वासन और समयबद्ध निराकरण की मांग पर कर रहे हैं।
राहुल के हाइड्रोजन बम का इंतजार
कांग्रेस लोकसभा, और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में वोट चोरी का आरोप लगा रही है, और सहयोगी दलों के साथ मिलकर देशभर में आंदोलन छेड़े हुए हैं। छत्तीसगढ़ में भी प्रदेश स्तरीय धरना-प्रदर्शन हुआ है। इन सबके बीच लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हाइड्रोजन बम का राग छेड़ दिया है। उन्होंने कहा है कि हाइड्रोजन बम जब आएगा, तो सब कुछ साफ हो जाएगा।
राहुल ने संकेत दिया कि वोट चोरी को लेकर विस्फोटक सुबूत सामने लाया जाएगा। स्वाभाविक है कि राहुल के बयान के बाद राजनीतिक दलों में हलचल है। प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट छत्तीसगढ़ दौरे पर आए, तो पार्टी नेताओं के बीच हाइड्रोजन बम पर आपस में चर्चा होती रही। पार्टी के अंदरखाने में चर्चा है कि राहुल का हाइड्रोजन बम बनारस से जुड़ा हुआ है। बनारस, पीएम नरेंद्र मोदी का लोकसभा क्षेत्र है।
हल्ला है कि बनारस में बड़े पैमाने पर फर्जी पोलिंग हुई थी। पीएम नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर घटकर 1 लाख 52 हजार रह गया था। कांग्रेस बनारस के लोकसभा चुनाव से जुड़े कुछ दस्तावेज सामने रख सकती है जिसे चुनाव में गड़बड़ी के सुबूत के तौर पर पेश किया जाएगा। हालांकि राहुल, या कांग्रेस ने हाईड्रोजन बम पर खुलासा नहीं किया है। वस्तु स्थिति तो बम के सामने आने पर ही पता चलेगा। और 'बम' फूटता भी है या नहीं, यह देखना है।
भालू का कोल्ड ड्रिंक पीता रील, हाथी खदेड़ते लोग

जनरेशन ज़ेड की सोच और सोशल मीडिया का क्रेज़ कभी-कभी खतरनाक भी हो सकता है। हम नेपाल की बात नहीं कर रहे हैं। कांकेर जिले के नारा गांव में ही इसका उदाहरण देखने को मिला। एक जंगली भालू भोजन की तलाश में गांव तक पहुंच गया। कुछ युवाओं ने उसके भटकाव को रील बनाने का साधन मान लिया। उन्होंने भालू के सामने कोल्ड ड्रिंक की बोतल रख दी और वीडियो शूट कर ली। भालू ने बोतल उठाई और गटागट पी भी डाली। यह वीडियो बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। पर सोचने वाली बात है कि अगर भालू ने अचानक हमला कर दिया होता तो? क्या कुछ सेकंड की रील इतनी कीमती है कि जान जोखिम में डाल दी जाए? यह मनोरंजन नहीं बल्कि लापरवाही का नमूना है। कुछ दिन पहले रायगढ़ का भी एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें एक हथिनी ने शावक को अभी-अभी जन्म दिया था और लोग उन्हें खदेडऩे लगे। मां अपने नवजात को छोडक़र कैसे भागती? सुरक्षा को लेकर चिंतित थी, वह बदहवास थी- लेकिन लोगों को इसकी फिक्र नहीं थी। ऐसे रील्स बनाकर तो दूसरों को भी उकसाया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में विचरण करने वाले वन्यजीवों के साथ छेडख़ानी कर उन्हें परेशान किया जाए।
पहले पुलिस कमिश्नर पर अटकलें

रायपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने के साथ ही पुलिस के प्रशासनिक ढांचे में बदलाव की तैयारी है। इससे परे भी कई आईपीएस अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है। इसको लेकर चर्चा चल रही है। कहा जा रहा है कि आधा दर्जन जिलों के एसपी बदले जा सकते हैं।
चर्चा है कि कांकेर, राजनांदगांव, कवर्धा, महासमुंद जिले के एसपी को बदला जा सकता है। कांकेर, और राजनांदगांव एसपी को दो साल होने जा रहे हैं। महासमुंद एसपी केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं। ऐसे में उनकी जगह नई पोस्टिंग तय है। रायपुर में तो लाल उम्मेद सिंह आखिरी एसएसपी होंगे। वजह यह है कि एक नवंबर से कमिश्नर की पोस्टिंग हो सकती है, जो कि एडीजी या आईजी रैंक के होंगे। इस बात की भी एक संभावना है कि मौजूदा आईजी अमरेश मिश्रा ही कमिश्नर होंगे। उनके पास ईओडब्ल्यू-एसीबी का भी प्रभार है। ऐसे में उन्हें दोनों में से एक प्रभार छोडऩा पड़ सकता है।
इसके अलावा दुर्ग आईजी रामगोपाल गर्ग, और बिलासपुर आईजी संजीव शुक्ला का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। गर्ग सीबीआई में पांच साल सेवाएं दे चुके हैं। संजीव शुक्ला तो रायपुर, दुर्ग और नांदगांव एसपी रह चुके हैं। यही वजह है कि इन नामों की चर्चा है। कुल मिलाकर पुलिस में फेरबदल पर नजरें टिकी हुई है।
बहुत महंगी खुशी...

इन दिनों महंगी कारों में छत खुलने वाला एक कांच लगे रहता है, और बच्चे खेल-खेल में उस सनरूफ को खोलकर वहां से बाहर निकले रहते हैं। अभी एक शहर का यह वीडियो सामने आया है जिसमें एक कार की सनरूफ से बाहर निकला हुआ यह बच्चा जाकर सडक़ के आर-पार लगे लोहे के गर्डर से टकराता है, उसके बाद के नतीजे का अंदाज लगाया जा सकता है। अपने बच्चों को इस तरह की खुशी देने के पहले एक सावधानी भी बरतना चाहिए कि किसी का फेंका हुआ कोई सामान भी उनको लग सकता है और किसी गेट या गर्डर से वे टकरा भी सकते हैं।
मूणत नाखुश हैं?
चर्चा है कि पूर्व मंत्री राजेश मूणत नाखुश चल रहे हैं। मूणत मंत्री बनने की दौड़ में थे। स्पीकर डॉ. रमन सिंह ने उन्हें कैबिनेट में जगह दिलाने के लिए काफी दम भी लगाया था। मगर पार्टी ने नए चेहरे को कैबिनेट में जगह देने का मन बना लिया था, और इन सब वजहों से मूणत, अमर, और अजय चंद्राकर मंत्री बनने से रह गए। मूणत ने नाराजगी का खुले तौर पर इजहार तो नहीं किया है, लेकिन वो सार्वजनिक कार्यक्रमों में पहले जैसी रुचि नहीं दिखा रहे हैं। पार्टी के कई लोग इसे उनकी नाराजगी से जोडक़र देख रहे हैं।
गणेश विसर्जन स्वागत के लिए मूणत का अलग से पंडाल लगता था। इस बार उनके खेमे की तरफ से मेयर मीनल चौबे ने जयस्तंभ चौक पर स्वागत पंडाल लगाया। खुद सीएम, और सरकार के दो-तीन मंत्री भी मेयर के पंडाल में शरीक हुए, और झांकियों का स्वागत किया। मगर मूणत नहीं आए। इसकी राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा रही। इस बार नागरिक आपूर्ति निगम के चेयरमैन संजय श्रीवास्तव ने भी स्वागत पंडाल लगाया था। इसमें भी पार्टी के कई प्रमुख नेताओं ने शिरकत की, लेकिन इस तरह के आयोजनों में अपनी पूरी ऊर्जा लगाने वाले राजेश मूणत नहीं दिखे, तो चर्चा का विषय बन गया।
नशे का धंधा, जितने मुँह, उतने नाम!
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रायपुर के कटोरा तालाब की नव्या मलिक, और विधि अग्रवाल की गिरफ्तारी के बाद ड्रग्स रैकेट का खुलासा हुआ है। उनके आधा दर्जन सहयोगियों को पुलिस अब तक गिरफ्तार कर चुकी है। ड्रग्स रैकेट में नव्या मलिक का किरदार काफी अहम है। इसके तार विदेशों तक जुडऩेे की खबर आ रही है। पुलिसिया पूछताछ में विशेषकर नव्या को लेकर कई चौंकाने वाली जानकारी सामने आ रही है। ड्रग्स रैकेट में राजनेताओं से लेकर बड़े कारोबारियों के बेटों के जुड़े होने की चर्चा है।
करीब 30 बरस की युवती नव्या पहले एक संस्थान में मैनेजर थीं, और इंटीरियर डिजाइन के काम से जुड़ी रहीं। फिर फैशन डिजाइन, और वर्तमान में इवेंट कंपनी संभाल रही थीं। इस दौरान उनकी नामी-गिरामी लोगों से जान पहचान हो गई। कुछ से नजदीकी संबंध भी बन गए। पार्टियों में ड्रग्स सप्लाई भी करने लगीं। और अब जब नव्या के कॉल डिटेल्स निकाले गए, तो आगे कार्रवाई करने में पुलिस के भी हाथ पांव फूल रहे हैं।
चर्चा है कि एक विधायक के बेटे के नाम तो लोगों की जुबान में है, कई बड़े नामों को लेकर कानाफुसी हो रही है। दुर्ग संभाग के एक बड़े नेता के पोते, और एक और विधायक के बेटे का नाम भी ग्राहकों की सूची में बताया जा रहा है। रायपुर के प्रभावशाली नेता के भतीजे, और एक बिल्डर के बेटे का नाम भी नव्या, और विधि अग्रवाल से जुड़ा होना बताया जा रहा है।
पुलिस कई लोगों से पूछताछ कर चुकी है, लेकिन सिर्फ वाट्सऐप चैट के आधार पर आगे कुछ कार्रवाई करने के पक्ष में नहीं है। भाजपा, और कांग्रेस के बड़े नेता ड्रग्स रैकेट के खुलासे के बाद एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। मगर ड्रग्स रैकेट के तार तो दलीय सीमा को पार करते दिख रहे हैं। देखना है कि सारे राज सामने आ पाते हैं, या नहीं।
सरगुजा से झांकती आंगनबाड़ी की सच्चाई

छत्तीसगढ़ में 52 हजार 474 आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जहां 6 वर्ष तक की आयु वाले 27 लाख से अधिक बच्चों के नाम दर्ज हैं। ये केंद्र केवल बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा और सेहत की देखभाल ही नहीं, बल्कि बीपीएल श्रेणी की महिलाओं की कार्यशक्ति में हिस्सेदारी बढ़ाने का भी माध्यम हैं। कामकाजी माताएं अपने बच्चों को आंगनबाड़ी में छोडक़र निश्चिंत होकर काम पर जा सकती हैं।
हाल ही में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है कि इन केंद्रों में आने वाले बच्चों की संख्या घट रही है। एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में सरगुजा के केंद्रों में आने वाले बच्चों की संख्या करीब 14 हजार कम हो चुकी है। सरगुजा से जमीनी रिपोर्टिंग करने वाले मीडियाकर्मियों ने अप्रैल 2025 में वीडियो और तस्वीरों के साथ दिखाया था कि केंद्रों में मुश्किल से चार-पांच बच्चे मौजूद थे, जबकि रजिस्टर में सब हाजिर हैं।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर अभिभावक बच्चों को आंगनबाड़ी भेजना क्यों कम कर रहे हैं। लाभार्थियों और स्टाफ से हुई चर्चा में यह सामने आया कि केंद्रों का जीर्ण-शीर्ण बुनियादी ढांचा इसकी सबसे बड़ी वजह है। अधिकांश भवन छोटे बजट में पंचायतों और आरईएस के जरिये बनाए जाते हैं, जिसमें हिस्सेदारी का बंटवारा होता है और चार-पांच साल में ही भवन जर्जर हो जाते हैं। भौतिक निरीक्षण कराया जाए तो सैकड़ों केंद्रों की छत टपकती हुई और प्लास्टर उखड़ा हुआ मिलेगा। कई जगह जर्जर भवन से बच्चों को हटाकर किराये के कमरों में शिफ्ट किया गया है, लेकिन 1200 रुपये स्वीकृत किराया होने के कारण वे जगहें भी दुरुस्त नहीं होतीं। कई केंद्र झोपडिय़ों में तो कई छोटे और अंधेरे कमरों में संचालित हो रहे हैं। लोग वहां अपने बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य दोनों को लेकर चिंतित हैं, जहां भेज कर उन्हें निश्चिंत हो जाना चाहिए।
हाल ही में एक रिपोर्ट और आई थी कि लखनपुर ब्लॉक के एक आंगनबाड़ी केंद्र को जिस किराये के छोटे कमरे में शिफ्ट किया गया, वहां अंधेरे की वजह से बच्चों को आंगन में बैठकर भोजन करना पड़ता है। उसी आंगन में एक खुला कुआं भी है। स्टाफ को लगातार नजर रखनी पड़ती है कि कहीं बच्चे खेलने के दौरान उसकी तरफ न चले जाएं। अगस्त 2025 की बिलासपुर की घटना तो अधिक सिहरन वाली थी। यहां सरकारी स्कूल के एक कमरे में, जो मध्यान्ह भोजन के लिए निर्धारित था, आंगनबाड़ी केंद्र चलाया जा रहा था। इसी केंद्र में अवैध रूप से रखा गया लोहे का पाइप बच्ची के ऊपर गिरा और उसकी मौत हो गई।
इन खतरनाक परिस्थितियों के बावजूद विभाग के अफसर, मंत्री और जिला कलेक्टर ज्यादातर बेपरवाह ही नजर आते हैं। एक तरफ आंगनबाड़ी केंद्रों की यह स्थिति है, दूसरी ओर जुलाई 2025 में महिला एवं बाल विकास विभाग की केंद्रीय राज्य मंत्री सावित्री देवी ने लोकसभा में जानकारी दी थी कि अब इन केंद्रों के साथ शिशुओं के लिए झूलाघर खोलने की योजना को मंजूरी दी गई है। इनमें सबसे अधिक 1500 केंद्र छत्तीसगढ़ के लिए हैं। मौजूदा आंगनबाड़ी केंद्र जब ठीक तरह से नहीं चल रहे हों तो झूलाघर में कितनी माताओं की दिलचस्पी होगी? छत्तीसगढ़ में, हाल ही में विभाग चर्चा में तब आया जब टेंडर और सप्लाई में करोड़ों रुपये के घोटाला उजागर हुआ। शायद, झूलाघर के बजट पर भी लोगों की नजर होगी।
बने, और जमे हुए हैं शैलेश पाठक

छत्तीसगढ़ कैडर के 88 बैच के पूर्व आईएएस अफसर शैलेश पाठक, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज मुंबई में वरिष्ठ सलाहकार नियुक्त किए गए हैं। पाठक छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद डायरेक्टर जनसंपर्क, कलेक्टर महासमुंद, और पीडब्ल्यूडी के विशेष सचिव व राजभवन में सचिव भी रहे। बाद में वो अवकाश लेकर निजी क्षेत्र में चले गए, और फिर उन्होंने आईएएस से त्यागपत्र दे दिया।पाठक ने आईएलएंडएफसी समूह के साथ निजी क्षेत्र में सेवाएं शुरू की। उन्होंने आईसीआईसीआई में निवेश बैंकिंग, एलएंडटी आईडीपीएल, चेन्नई के सीईओ और फिक्की, दिल्ली के जनरल सेकेटरी रहे। और अब उन्हें मुंबई स्थित नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का वरिष्ठ सलाहकार नियुक्त किया गया है। खास बात ये है कि छत्तीसगढ़ में पाठक के दो बैचमेट केडीपी राव, और बीएल अग्रवाल पहले ही रिटायर हो चुके हैं। बीएल अग्रवाल को तो जबरिया रिटायर किया गया था। केडीपी राव एसीएस होकर रिटायर हुए। पाठक आईएएस की नौकरी छोडऩे के बाद भी महत्वपूर्ण बने हुए हैं।
बृजमोहन को विसर्जन में आने नहीं मिला...
उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए प्रत्याशी सीपी राधाकृष्णन को बड़ी जीत हासिल हुई है। इसमें छत्तीसगढ़ भाजपा के दो सांसद बृजमोहन अग्रवाल, और संतोष पाण्डेय ने भी भागीदारी निभाई। दोनों ही सांसदों को पार्टी के सांसदों की शत प्रतिशत वोटिंग सुनिश्चित करने का जिम्मा दिया गया था।
बताते हैं कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने चुनाव की कमान संभाली थी। चर्चा है कि उन्होंने करीब चार सौ सांसदों से तो सीधे बातचीत की थी, और उम्मीद से अधिक वोटों से जीत हासिल हुई, तो बृजमोहन और संतोष पाण्डेय को भी बधाई मिली।
बृजमोहन का 8 तारीख को रायपुर आने का कार्यक्रम था, वो गणेश विसर्जन की झांकी में शामिल होने वाले थे। पिछले 40 साल से उनके समर्थकों द्वारा पंडाल लगाया जाता रहा है, लेकिन इस बार वो अपने पंडाल में बैठकर झांकी का स्वागत नहीं कर पाए। उन्हें रायपुर जाने से मना कर दिया गया था। और जैसे ही उपराष्ट्रपति के निर्वाचन की घोषणा हुई, तो बृजमोहन ने सीपी राधाकृष्णन से मिलकर उन्हें बड़ी जीत के लिए बधाई दी। राधाकृष्णन ने भी बृजमोहन का आभार माना है। पिछले कुछ सालों से पार्टी में हाशिए पर चल रहे बृजमोहन अग्रवाल को आगे क्या कुछ महत्व मिलता है यह देखना है।
चावल के खेतों में दिखेंगे ये पक्षी

ब्राउन क्रेक जिसे हिंदी में तपकीरी या फटाकडी भी कहते हैं, इन दिनों छत्तीसगढ़ के कई स्थानों में देखे जा रहे हैं। खासकर छत्तीसगढ़ के खेतों में इन्हें देखा जा सकता है। यह पक्षी भारत के कई हिस्सों में प्रवास करती है। शहर के सड्डू और नया रायपुर इलाके के खेतों में पक रही धान की बालियों के बीच यह इन दिनों नजर आ सकते हैं। चावल के खेतों की आर्द्रभूमि और झाडिय़ों में ये पाये जाते हैं। यह तस्वीर भी रायपुर की है जिसे छायाकार दिलीप वर्मा ने सोशल मीडिया पर साझा किया है।
ऐसे में कैसे विकसित होगा छत्तीसगढ़?

जगदलपुर के पीजी कॉलेज में विकसित छत्तीसगढ़ 2047 का आयोजन था। मंच से भारत को 2047 तक विकसित बनाने की बातें हो रही थीं, लेकिन उसी वक्त कॉलेज हॉल की छत का हिस्सा टूटकर गिर पड़ा और एक छात्रा गंभीर रूप से घायल हो गई। सवाल यह है कि जब शैक्षणिक संस्थान सुरक्षित ही नहीं रहेंगे तो विकास की बातें खाली वाणी विलास बनकर रह जाएगी। अब तक प्राइमरी स्कूलों की जर्जर दशा पर खबरें आती थीं, मगर यह घटना बता रही है कि कॉलेज के भवनों का भी भौतिक परीक्षण करने की जरूरत है। हैरानी की बात यह है कि भवन के जिस हिस्से में यह हादसा हुआ, उसकी मरम्मत दो माह पहले ही कराई गई थी। निर्माण की गुणवत्ता का अंदाजा इस दुर्घटना से लगाया जा सकता है। घटना में एक छात्रा घायल हो गई है। उसे अस्पताल दाखिल कराना पड़ा है। 2047 तक विकसित भारत को देखने के लिए पता नहीं आज के कितने लोग बचेंगे, पर आज 2025 में कॉलेज की छतें गिर रही हों, अस्पतालों में मशीनें और स्टाफ नहीं हों, सडक़ें गड्ढों से भरी हों तो उस पर बात करने का क्या मतलब?
व्याव. शिक्षकों की भर्ती, चैट पोल खोल रहे
स्कूल शिक्षा मंत्री गजेन्द्र यादव ने काम संभालते ही व्यावसायिक शिक्षकों की भर्ती में गड़बड़ी मामले की जांच के आदेश दिए हैं। स्कूल शिक्षा विभाग का प्रभार सीएम के पास था। सीएम ने ही व्यावसायिक शिक्षकों की भर्ती में गड़बड़ी की शिकायत की जांच कराई थी, और प्रारंभिक जांच में गड़बड़ी की पुष्टि हुई। प्रकरण ईओडब्ल्यू-एसीबी को सौंपा जा रहा है।
व्यावसायिक शिक्षकों की नियुक्ति 11 महीने के लिए होती रही है। पिछले साल भर्ती नहीं हो पाई थी। बावजूद इसके परीक्षा हो गई, और विद्यार्थियों को उत्तीर्ण कर दिया गया। इस बार आधा दर्जन कंपनियों को शिक्षकों की भर्ती का जिम्मा दिया गया था। कंपनियों ने एक हफ्ते में ही सारी प्रक्रिया पूरी कर विभाग को चयनित अभ्यार्थियों की सूची सौंप दी, और 15 सौ अभ्यार्थियों को नियुक्ति दे दी गई।
चर्चा है कि कंपनियों ने विभाग के अफसरों की मिलीभगत से गड़बड़ी की, और शिक्षकों की भर्ती के एवज में लेनदेन की भी चर्चा है। इसके वाट्सऐप चैट भी सामने आए हैं। विभाग के दो अफसरों की भूमिका संदेहास्पद बताई जा रही है। इनमें से एक डिप्टी डायरेक्टर स्तर के अफसर हैं, जिनका साल भर पहले तबादला हुआ था। मगर उन्हें रिलीव नहीं किया गया। एक अन्य अफसर को भूपेश सरकार के शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह का करीबी माना जाता है। सीएम भर्ती मामले में गड़बड़ी को लेकर काफी खफा रहे हैं, और कहा जा रहा है कि दोषी अफसरों पर गाज गिर सकती है। देखना है कि आगे क्या होता है।
उपराष्ट्रपति चुनाव में छत्तीसगढ़

उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मंगलवार को मतदान हुआ। इसमें छत्तीसगढ़ के 11 लोकसभा, और पांच राज्यसभा सांसदों ने भी मतदान किया। चुनाव में एनडीए प्रत्याशी सीपी राधाकृष्णन को जीताने के लिए भाजपा हाईकमान ने पुख्ता रणनीति की, और केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, और अन्य चार केन्द्रीय मंत्रियों को पार्टी के सांसदों का शत प्रतिशत वोटिंग सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदारी दी थी। शिवराज सिंह चौहान के साथ रायपुर के सांसद बृजमोहन अग्रवाल को लगाया गया। बृजमोहन के साथ-साथ प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता संतोष पाण्डेय का भी रोल अहम रहा है। संतोष पाण्डेय, भाजपा संसदीय दल के सचेतक हैं। वो भी सांसदों को जल्द से जल्द वोट डालने के लिए प्रेरित करते नजर आए। उनकी एक तस्वीर भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिसमें वो सांसदों के साथ वोट डालने के लिए लाइन में खड़े हैं। बृजमोहन अग्रवाल तो आज सुबह 6 बजे ही शिवराज सिंह चौहान के निवास पहुंच गए थे, और फिर नाश्ते के बाद सांसदों को वोट डालने के लिए संसद भवन लेकर निकले। इन सबके बीच पूर्व सांसद प्रदीप गांधी की सक्रियता चर्चा में रही है। चुनाव में उनका सीधा कोई रोल नहीं है। क्योंकि सिर्फ लोकसभा, और राज्यसभा सदस्यों को ही उपराष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने का अधिकार है। मगर गांधी हाल ही में कांस्टीट्यूशन क्लब के चुनाव में सर्वाधिक वोट पाकर कार्यकारिणी के सदस्य निर्वाचित हुए हैं। ऐसे में उनकी भी उपयोगिता पार्टी ने समझी है। हल्ला है कि प्रदीप गांधी को एनडीए से परे इंडी गठबंधन के सांसदों को साधने की जिम्मेदारी दी गई है। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ के नेता उपराष्ट्रपति चुनाव में अहम रोल निभाते नजर आए हैं। देखना है कि पार्टी आगे इन सबका क्या कुछ उपयोग करती है।
घटना जिससे मृत्युभोज पर रोक लग गई
बौद्ध समाज प्रगतिशील माना जाता है, लेकिन कई पुरानी प्रथाएं आज भी इसमें देखने को मिलती हैं। ऐसे में, हाल ही में अंबागढ़ चौकी के हालमकोडो गांव में एक परिवार पर मृत्यु भोज का खर्च उठाने का संकट आया। परिवार ने निर्णय लिया कि मृत्यु भोज नहीं कराया जाएगा, बल्कि आने वाले लोगों को केवल स्वल्पाहार दिया जाएगा।
आमतौर पर छत्तीसगढ़ में ऐसे मामलों में परिवारों को सामाजिक उलाहने या बहिष्कार तक का सामना करना पड़ता है, लेकिन यहां स्थिति अलग रही। इस घटना के बाद डोंगरगांव इलाके के बौद्ध समाज ने बैठक बुलाई और सकारात्मक निर्णय लिया कि अब समाज में मृत्युभोज पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। परिजनों को यह स्वतंत्रता होगी कि वे चाहें तो स्वल्पाहार दें या बिल्कुल न दें।
वैसे छत्तीसगढ़ में कई जातीय और सामाजिक संगठनों ने मृत्यु भोज को नियंत्रित करने के लिए अलग-अलग नियम बनाए हैं। कहीं संख्या सीमित कर दी गई है, तो कहीं केवल सादा भोजन की परंपरा रखी गई है, किसी भी तरह का पकवान प्रतिबंधित है। यह अलग बात है कि कुछ शिक्षित और संभ्रांत परिवारों में अब भी मृत्यु भोज को बड़े भव्य आयोजन की तरह मनाया जाता है, ताकि मेहमान उनके रुतबे से परिचित हो सकें।
चिंतामणि महराज गदगद
उप राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कल दिल्ली में भाजपा के देश भर के सांसदों की कार्यशाला हुई। इसमें हुए एक घटनाक्रम को लेकर सरगुजा सांसद चिंतामणि महाराज के निकटवर्ती समर्थक गदगद हैं। और फेसबुक पर तस्वीर देखकर एक से बढक़र एक कमेंट भी होने लगे हैं। हुआ यूं कि इस कार्यशाला में प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल हुए। वे परंपरा से हटकर इस बार सांसदों की पिछली पंक्ति में सांसद चिंतामणि महराज के बाजू की कुर्सी पर जा बैठे।
यह कार्यशाला वैसे तो तीन सत्रों में शाम तक चली। लेकिन मोदी, अपने संबोधन तक रहे। और उनका नाम पुकारे जाने तक मोदी महाराज के बाजू ही बैठे रहे। इतने निकट बैठे प्रधानमंत्री, चिंतामणि महाराज से बात किए बगैर चुप तो नहीं बैठे होंगे। बात हुई होगी तो प्रदेश की राजनीति हवा की जानकारी ली होगी। बस कुछ ऐसे ही संकेत महाराज की ओर से सरगुजा तक परकुलेट होते ही समर्थक गदगद हैं।
उनका कहना है कि आने वाले दिनों में केंद्रीय कैबिनेट का भी विस्तार होना है। और मोदी शाह की पहल पर ही महाराज कांग्रेस से भाजपा में आए थे। और चुपचाप अपना काम कर रहे हैं। और फिर महाराज संत गहिरा गुरू के पुत्र भी हैं। फेसबुक पर कमेंट करने वाले अंबिकापुर, रेणुकूट रेल लाइन की मंजूरी की उम्मीद जता रहे हैं। देखें इस सान्निध्य का क्या फायदा होगा।
हड़ताल, और सरकार

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अधिकारी-कर्मचारी हड़ताल पर हैं। सरकार ने 25 कर्मियों को नौकरी से निकाला, लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा। हड़ताली कर्मचारियों ने उल्टे सामूहिक इस्तीफा भेजना शुरू कर दिया है। चर्चा है कि ज्यादातर मांगों पर सहमति बन गई है, लेकिन हड़ताली कर्मचारी नियमितीकरण के लिए अड़े हैं। सरकार की दिक्कत यह है कि नियमितीकरण के मसले पर कोई आश्वासन देने की स्थिति में नहीं है।
चूंकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन केन्द्र सरकार का प्रोजेक्ट है, और 60 फीसदी राशि केन्द्र सरकार उपलब्ध कराती है। ऐसे में 16 हजार अधिकारी-कर्मचारियों के नियमितीकरण का फैसला आसान नहीं है। राज्य सरकार ने नियमितीकरण पर विचार के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया है। इस पर कर्मचारी नेताओं के बीच मंथन चल रहा है। बताते हैं कि नियमितीकरण की कमेटी के प्रस्ताव पर कर्मचारी नेताओं के बीच एकमत नहीं है। पिछली सरकार में भी संविदा, और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए सचिवों की एक कमेटी बनी थी। भूपेश सरकार के पांच साल में कमेटी की कई बैठक हुई, लेकिन कमेटी यह भी पता नहीं लगा पाई कि प्रदेश में कुल कितने संविदा, और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी हैं। कुल मिलाकर कमेटी के गठन प्रस्ताव पर कर्मचारी भरोसा नहीं जता पा रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
फर्जी ई-चालान से साइबर ठगी का नया जाल
छत्तीसगढ़ में परिवहन विभाग ने ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर नजऱ रखने के लिए तकनीक का सहारा लिया है। जगह-जगह चौक-चौराहों पर कैमरे लगाए गए हैं, जो बिना पुलिस की मौजूदगी के भी नियम तोडऩे वालों को पकड़ लेते हैं और ऑनलाइन चालान भेज देते हैं। देखने में यह व्यवस्था आधुनिक और पारदर्शी लगती है, क्योंकि ओवरस्पीडिंग, रेड सिग्नल क्रॉसिंग या ओवरटेकिंग जैसी घटनाएं सीधे कैमरे की नजऱ में आ जाती हैं। चालान भी सीधे वाहन मालिक के मोबाइल पर पहुंच जाता है।
लेकिन इस व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसका भी फायदा अब साइबर ठग उठा रहे हैं। नकली ई-चालान और फर्जी लिंक भेजकर लोगों से ठगी की जा रही है। दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर में कई मामले हाल ही में सामने आए हैं। मगर, कम पढ़े-लिखे मजदूर, दिहाड़ीदार और पढ़े-लिखे मगर, डिजिटल तकनीक से अनजान लोग इन जालसाजों का आसान शिकार बन रहे हैं। चालान न भरने पर कार्रवाई का डर दिखाकर क्यू आर कोड या फर्जी लिंक के जरिए उनसे पैसे ऐंठे जा रहे हैं।
परिवहन विभागर और यातायात पुलिस की ओर से तो सलाह दे दी गई है कि आधिकारिक पोर्टल पर जाकर ही ई-चालान की जांच करें और भुगतान करें। असली चालान की जानकारी लेने के लिए वेबसाइट पर ‘पे ऑनलाइन’ पर क्लिक कर वाहन नंबर या चालान नंबर डालना होता है। इसके बाद ओटीपी वेरिफिकेशन से सही जानकारी मिल जाती है। सवाल है कि क्या सिर्फ अपील करना काफी है? जब सरकार ने चालान वसूली को पूरी तरह तकनीकी बना दिया है तो सुरक्षित और भरोसेमंद सिस्टम देना भी उसकी जिम्मेदारी है। समस्या का हल केवल लोगों को सतर्क रहने की सलाह देकर नहीं निकलेगा। यातायात पुलिस का जो चालान आता है वह किसी ऐसे यूनिक फॉर्मेट में नहीं है कि लोग आसानी से पहचान सकें। लाखों की संख्या में वाहन का इस्तेमाल करने वाले लोग हैं। दुर्घटनाओं से बचने के लिए इनके बीच जागरूकता अभियान तो चलाया जाता है लेकिन सही ई चालान को लोग पहचानें इसके लिए कोई मुहिम नहीं चल रही है। ट्रैफिक पुलिस का कोई हेल्पलाइन भी नहीं है कि ई चालान मिलने पर लोग विभाग में फोन लगाकर पूछ सकें कि क्या वह वास्तविक है? गाड़ी नंबर फर्जी लगाकर घूमने वालों पर भी यातायात पुलिस की तकनीक विफल है। गोरखपुर के एक वकील की गाड़ी कभी बिलासपुर आई थी नहीं, उसके नाम पर हाल ही में चालान भेज दिया गया था। आखिर उन्होंने कोर्ट जाने की चेतावनी दी तो चालान रद्द किया गया। ई-चालान व्यवस्था ने ट्रैफिक प्रबंधन को तो आसान बना दिया है, लेकिन फर्जीवाड़ा रोकने के उपाय नहीं किए गए तो यह सुविधा लोगों के लिए मुसीबत ही बनती जाएगी।
सौ बार उठक-बैठक की सजा
सरगुजा जिले के प्रतापगढ़ स्थित डीएवी स्कूल की घटना ने फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि छोटे बच्चों के साथ शिक्षक-शिक्षिकाओं का व्यवहार कैसा होना चाहिए। दूसरी कक्षा की एक बच्ची टॉयलेट जाने के लिए निकली तो नाराज शिक्षिका ने उसे डंडे से पीटा और क्लास रूम में सौ बार उठक-बैठक लगाने की सजा दे दी। मासूम बच्ची का शरीर यह यातना सह नहीं पाया और उसकी तबीयत बिगड़ गई। वह अपने पैरों पर खड़ी तक नहीं हो पा रही है। वह मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती है।
जानकारी के मुताबिक, घटना से पहले शिक्षिका क्लासरूम से बाहर निकलकर मोबाइल फोन चला रही थी। संभवत: अनुशासन बनाए रखने का उनका तरीका यह था कि एक बच्ची को कठोर दंड देकर बाकी बच्चों को भयभीत कर दिया जाए और मोबाइल देखने में व्यवधान न हो। मगर, इस घटना ने न केवल सजा पाने वाली बच्ची में बल्कि क्लास रूम में मौजूद दूसरे बच्चों के मन में स्कूल और टीचर्स को लेकर गहरी नकारात्मक छवि बन गई होगी।
छोटे बच्चों के साथ व्यवहार करने की कला और संवेदनशीलता के लिए विशेष प्रशिक्षण जरूरी है। सरकारी स्कूलों में शिक्षक-शिक्षिकाओं की नियुक्ति को लेकर लंबे समय तक विवाद रहा, जब पिछली सरकार के दौरान बी.एड. डिग्रीधारकों को प्राथमिक कक्षाओं में नियुक्त कर दिया गया। इसके खिलाफ डीएलएड अभ्यर्थियों ने अदालत का रुख किया। अदालत ने डीएलएड अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला दिया। यह तो सरकारी स्कूलों की बात है, पर निजी नामचीन स्कूलों में नियुक्ति के मापदंड ऐसे नहीं होते। अक्सर देखा जाता है कि ये पब्लिक स्कूल शिक्षक-शिक्षिकाओं की भर्ती में उनकी शैक्षणिक योग्यता और प्रशिक्षण से समझौता कर लेते हैं ताकि उन्हें कम वेतन पर काम कराया जा सके। शिक्षक परीक्षा परिणाम को लेकर बच्चों से कहीं अधिक दबाव में रहते हैं। उन्हें नौकरी की स्थिरता को लेकर चिंता होती है। वे बच्चों पर कड़ा नियंत्रण करने को अच्छे परिणाम का तरीका समझते हैं।
शायद ही किसी निजी स्कूल में शिक्षकों को बाल संरक्षण कानून या बच्चों के अधिकारों की जानकारी दी जाती हो। उन्हें यह तक मालूम नहीं होगा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत शारीरिक दंड पूरी तरह प्रतिबंधित है। इस घटना ने साबित कर दिया है कि छोटे बच्चों का टीचर बनना, बड़े बच्चों का टीचर बनने से कहीं अधिक जिम्मेदारी भरा काम है।
मंत्रालय चुनाव और मुद्दा

मंत्रालय कर्मचारी संघ के त्रिवार्षिक चुनाव की हलचल शुरू हो गई है। मंगल योग के साथ 9 तारीख से दावेदार नामांकन पत्र दाखिल करने लगेंगे। अध्यक्ष समेत 7 पदों पर चुनाव होंगे। मंत्रालय संवर्ग के 778 कर्मचारी मतदाता हैं।
अब रही बात चुनावी टसल की। वर्तमान अध्यक्ष, वर्तमान सचिव के साथ पूर्व अध्यक्ष ने भी दावेदारी ठोंक दी है। एक ही खेमे के माने जाने वाले तीनों ने एक दूसरे को सूचित कर दिया। और वोट बंटवारा रोकने एक दूसरे को लडऩे से मना भी कर चुके हैं। अब भला लोकतंत्र में कैसे कोई रोक और मना कर सकता है। तीनों तैयार नहीं हैं। एक ने कहा आप भी लड़ लें,मगर दुष्प्रचार न करें। वैसे संघ के वर्तमान नेतृत्व के खिलाफ ऐसा कोई एंटी इंकम्बेंसी नहीं है कि दोबारा चुने जाने में दिक्कत हो। पुराने दावेदार 8 माह बाद रिटायर होने वाले हैं।यानी पुन: अध्यक्ष चुनने की नौबत आएगी। सात सौ से अधिक मतदाता बार बार चुनाव नहीं चाहते।
अब बात चुनावी वादे मुद्दों की। तरो ताजा मामला उपसचिव पदों की वृद्धि, महीनों से लंबित इसके आदेश और फिर डीपीसी है। भारसाधक मंत्री (सीएम)ने अनुमोदन भी कर दिया है। इसके मुताबिक 40 प्रतिशत पद सचिवालय सेवा से भरे जाएंगे।
इसे लेकर संघ के वाट्सएप ग्रुप में भी हलचल है। एक ने कहा अत्यंत दुखद, मुख्यमंत्री के अनुमोदन के उपरान्त भी आदेश अभी तक नहीं जारी किया गया, जो सरासर कर्मचारी हितों के विरूद्ध कार्य को दर्शाता है, मंत्रालय के समस्त कर्मचारियों को ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन हैं एवं इसका उपचार क्या है, इस संबंध मे तत्काल मंथन-चर्चा कर आगामी कार्यवाही करना चाहिए...अन्यथा मंत्रालय मे ऐसे ही अत्याचार-तानाशाही सहने के लिए तैयार रहिये। दूसरे ने कहा 17 तारीख (मतदान तिथि)से पहले जो करवाएगा वही अध्यक्ष बनेगा, 100 बातों की एक बात। तीसरे ने कहा -एकदम सही बात भाई। साथ ही डीपीसी भी होनी चाहिए।
फिर जवाब आया -भाई साहब, 17 तारीख के पहले पहले तक तो यह मुमकिन नहीं दिख रहा है किंतु जो अध्यक्ष और सचिव पद के लिए उम्मीदवार हो अगर वह वादा करें कि रुका हुआ आदेश जल्द जारी करवाएंगे साथ ही पदोन्नति हो, तो ऐसे उम्मीदवार को सबको सहयोग करना चाहिए आगामी चुनाव में। कर्मचारी हित सर्वोपरि होना चाहिए, संगठन को मजबूत-सार्थक बनाने में सभी कर्मचारी सहयोग करें, आगामी चुनाव मे बेस्ट को चुने, कर्मचारी एकता जिंदाबाद। 17 तारीख बहुत समय है,एक दिन में ही अनुमोदन और आदेश निकलते देखा हैं। अब देखना है आगे क्या होता है।
मुहर क्यों नहीं?

आईपीएस के वर्ष-92 बैच के अफसर अरुण देव गौतम अब तक कार्यवाहक डीजीपी बने हुए हैं। यद्यपि यूपीएससी ने तो जुलाई के पहले पखवाड़े में ही डीजीपी के लिए दो नाम का पैनल राज्य को भेज दिया था। इनमें से किसी के एक नाम पर मुहर लगनी थी, और विधिवत पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश जारी होना था। मगर दो महीने बाद भी पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश जारी नहीं हो पाया है।
सरकार के भीतर अरुण देव गौतम के नाम पर सहमति है। वजह यह है कि गौतम सीनियर हैं, और उनकी साख अच्छी है। बावजूद इसके पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश जारी नहीं होने को लेकर पुलिस महकमे में कई तरह की चर्चा है। एक चर्चा यह भी है कि डीजीपी पद के बाकी दावेदार भी सत्ता, और संगठन में पकड़ रखते हैं। उनके दबाव की वजह से आदेश जारी नहीं हो पा रहा है।
दूसरी तरफ, यूपी में तो कार्यवाहक डीजीपी चार साल तक रहे। ऐसे में कार्यवाहक डीजीपी के रूप में अरुण देव गौतम कार्य करते रहेंगे या फिर पूर्णकालिक का आदेश निकलेगा, यह देखना है। वैसे तो गौतम के रिटायरमेंट में अभी दो साल बाकी है।
वाट्सएप चैट..

एक दोस्त ने बड़े प्यार से फ्रेंड को फरेंड लिख दिया और दूसरे ने सोचा कि उसका मजाक उड़ाया जा रहा है। दोस्तों की नाराजगी से डरता कौन है, मान जाएगा, इसलिए उसने आपत्ति के बावजूद अगला शब्द जेंटलमैन भी गलत लिख दिया। चैट का स्क्रीनशॉट इतना ही है। आगे शनिवार की पार्टी हुई या नहीं पता नहीं चल रहा है।
जंगल पर नजरें
आखिरकार पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल के रिटायरमेंट के बाद वाइल्ड लाइफ का प्रभार 94 बैच के आईएफएस अरुण पाण्डेय को दे दिया गया है। पांडेय पीसीसीएफ (वर्किंग प्लान) भी हैं। हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स के बाद वन विभाग में वाइल्ड लाइफ के पद को काफी अहम माना जाता है।पिछले कुछ दिनों से सरकार में वन मुख्यालय में फेरबदल पर चर्चा हो रही है। दो पीसीसीएफ स्तर के अफसर सुधीर अग्रवाल, और आलोक कटियार रिटायर हो गए हैं। इसी महीने एक और पीसीसीएफ, वन विकास निगम के एमडी मॉरिस नंदी रिटायर हो रहे हैं। बावजूद इसके सरकार थोड़ा रूक कर फेरबदल करना चाह रही है। इसकी बड़ी वजह यह है कि 12 सितंबर को हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स की नियुक्ति के खिलाफ सुधीर अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई होनी है।हालांकि सुधीर रिटायर हो चुके हैं। मगर वन विभाग से जुड़े लोगों का मानना है कि याचिका पर कोई भी फैसला फेरबदल को प्रभावित कर सकता है। यही वजह है कि पाण्डेय को वाइल्ड लाइफ अतिरिक्त प्रभार के रूप में दिया गया है। इस पद के लिए 89 बैच के अफसर तपेश झा, और 94 बैच के अफसर प्रेम कुमार भी दौड़ में रहे हैं। बहरहाल, वन मुख्यालय में फेरबदल पर नजरें टिकी हुई हैं।
पुलिस मुख्यालय की कथा
आईजी स्तर पर दो अफसरों को दी गई संविदा नियुक्ति से पीएचक्यू में हलचल बढ़ गई है। कोई पक्ष में हैं कोई असहमत। लेकिन यह भी सच है कि ऐसी संविदा नियुक्तियां संबंधों पर ही दी या हासिल की जाती है। इन नियुक्तियों से असहमत अफसरों का कहना है कि पीएचक्यू में जो एडीजी,आईजी हैं उनके पास ही काम नहीं हैं। और कुछ के पास चार से छह विंग की जिम्मेदारी है।
जो सहमत हैं उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ पीएचक्यू में टॉप लेवल पर अफसरों की कमी है और आने वाले 4-5 वर्ष बनी रहेगी, क्योंकि काडर छोटा है। और अगले दो बरस कोई रिटायरमेंट भी नहीं। उत्तरवर्ती राज्य मप्रपु के काडर से तुलना कर बताया गया है कि वहां सीआईडी, आजाक, एनसीआरबी, बाल अपराध, तकनीकी सेवाएं, प्लानिंग के लिए अलग अलग एडीजी हैं। और यहां प्रदीप गुप्ता अकेले मोर्चा सम्हाले हुए हैं। छत्तीसगढ़ कैडर में 93 बैच खाली, 94 में दो, 95, 96, 97, 98 में 1-1 अफसर उपलब्ध हैं। 99, 2000 में एक भी नहीं, 01-1, 02 में एक भी आईपीएस नहीं। 03 के आईजी मुख्यालय से बाहर, एक गृह सचिव के रूप में बाहर। तो पांच रेंज आईजी। यहां की कमी की इसी वजह से राज्य सरकार अब किसी को सेंट्रल डेपुटेशन मंजूर नहीं करना चाहती और जो गए हैं वो अन्यान्य कारणों से आना नहीं चाहते।
शिक्षकों का मान, या अपमान?
शिक्षक दिवस के मौके पर राजभवन में शिक्षक सम्मान समारोह को लेकर काफी बातें हो रही है। पहली बार ऐसा हुआ है जब शिक्षकों को कार्यक्रम से पहले स्मृति चिन्ह, और प्रमाण पत्र दे दिए गए। उनके साथ सिर्फ फोटोग्राफी ही हुई। शिक्षक सम्मान कार्यक्रम पर कांग्रेस को सरकार पर निशाना साधने का मौका मिल गया, और शिक्षकों के अपमान का भी आरोप लगाया। भाजपा के अंदर खाने में भी इस कार्यक्रम को लेकर प्रतिक्रिया सुनने को मिल रही है। बताते हैं कि रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल, विधायक राजेश मूणत, मोतीलाल साहू का आमंत्रण पत्र में नाम नहीं था। लिहाजा, वो कार्यक्रम में नहीं आए। रायपुर के अकेले उत्तर विधायक पुरंदर मिश्रा ही मौजूद थे। पुरंदर का राज्यपाल से व्यक्तिगत संबंध भी है। लिहाजा, राजभवन के ज्यादातर कार्यक्रमों में उनकी मौजूदगी रहती है। स्मृति चिन्ह कार्यक्रम से पहले दिए जाने से शिक्षक, और शिक्षा विभाग के अधिकारी नाखुश रहे। कुल मिलाकर इस तरह सम्मान की अपेक्षा शिक्षकों को नहीं थी।
रेल सेवा से वंचित बस्तर की एक कहानी
एक धार्मिक सभा में शामिल होने के लिए जगदलपुर के करीब 80 लोगों को नागपुर जाना था। इसके लिए उन्हें पहले रायपुर पहुंचना जरूरी था। जगदलपुर से रायपुर की दूरी करीब 300 किलोमीटर है। मगर उन्होंने जगदलपुर से विशाखापट्टनम चलने वाली ट्रेन पकड़ी। जनरल बोगी में बैठे और वहां से फिर जनरल डिब्बे में बैठकर रायपुर पहुंचे। उन्हें रायपुर पहुंचने में दो दिन लगे और करीब 850 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी। यह लंबा सफर था, लेकिन उन्होंने बताया कि ऐसा वे अक्सर करते हैं। वजह, बस का किराया 600 रुपये है। और उन्होंने जनरल डिब्बे में बैठकर करीब 200 रुपये में यह यात्रा पूरी कर ली। जब सत्संग से लौटेंगे, तब भी ट्रेन से ही पहले विशाखापट्टनम जाएंगे, फिर वहां से जगदलपुर। इस तरह से हर यात्री के करीब आठ सौ रुपये बच जाएंगे। 80 यात्री कितना बचा लेंगे, हिसाब लग जाएगा।
छोड़ा नहीं, लोग भले छोड़ गए
रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने एक कार्यक्रम में अपनी सफलता के राज खोले, साथ ही पुराने साथियों के अलग होने का भी दर्द बयां किया। उन्होंने कहा कि मैंने 40-45 साल के राजनीतिक जीवन किसी को नहीं छोड़ा। भले ही लोग मुझे छोडक़र चले गए। मैं मंत्री नहीं बना, तो छोडक़र चले गए। विपक्ष का विधायक बना, तो लोग छोडक़र चले गए।
उन्होंने आगे कहा कि संबंध सबसे बड़ी चीज है जो संबंधों को निभाना सीख लेगा, उसकी दुश्मनी कभी नहीं होगी।
बृजमोहन की चुनावी राजनीति में सफलता का राज यह है कि उन्होंने संबंधों को निभाया है। उनके विपक्ष के तमाम प्रमुख नेताओं से निजी संबंध हैं। पूर्व मंत्री रविन्द्र चौबे, और मोहम्मद अकबर उनके कॉलेज के दिनों के साथी रहे हैं। विरोधी दल में रहने के बावजूद उनसे बृजमोहन के संबंध मधुर बने हुए हैं। जहां तक अपने करीबी नेताओं के साथ छोडऩे का सवाल है, तो रायपुर शहर के कई नेता जो उनके करीबी थे, धीरे-धीरे उनसे अलग हो गए, और निगम-मंडल व संगठन में अहम पद पर हैं। इसको लेकर बृजमोहन का दर्द जुबां पर आ ही गया।
आई कार्ड में आत्मा नहीं

राज्य प्रशासन में मंत्रालय से कलेक्टोरेट तक ई आफिस पोर्टल पर आनलाइन कामकाज लागू होने के बाद अब महानदी भवन के अधिकारी कर्मचारियों की उपस्थिति भी एक क्लिक में दर्ज होगी। इसके लिए साप्रवि इन दिनों आईएएस अफसरों से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों तक के नए आईकार्ड बनवाने में व्यस्त है। इसके तहत हाल में 75 अधिकारी कर्मचारियों के नए कार्ड जारी किए जा चुके हैं। तकनीक की तडक़ भडक़ में नोडल विभाग ने मंत्रालय की आत्मा को ही दरकिनार कर दिया है। यानी कार्ड में मंत्रालय भवन का नाम ही नहीं है। 13 वर्ष पहले जब नवा रायपुर में मंत्रालय शिफ्ट किया गया था तब इस भवन का नाम मंत्रालय महानदी भवन और संचालनालय भवन का नाम इंद्रावती के नाम पर राजपत्र में भी अधिसूचित किया गया था जो प्रचलित और कामकाज का हिस्सा बन चुका है। नए कार्ड में की इस चूक को कर्मचारियों ने अपने संघ के नेताओं के जरिए उजागर किया है।
संघ के अध्यक्ष ने सचिव जीएडी को पत्र लिखकर सुधार, संशोधन की मांग की है। संघ के अध्यक्ष महेन्द्र सिंह राजपूत ने कहा कि वर्तमान में जारी किये जा रहे नवीन स्थायी परिचय पत्र में कहीं भी छत्तीसगढ़ मंत्रालय, महानदी भवन, नवा रायपुर अटल नगर अंकित नहीं है, जिससे प्रतीत होता है कि उक्त परिचय पत्र से उसकी आत्मा हटा दी गई है। हम सब सचिवालय सेवा के अधिकारी/कर्मचारियों को अपनी पहचान खोने जैसा महसूस हो रहा है। अधिसूचित नाम को परिचय पत्र से हटाना उचित नहीं है। अनुरोध है कि मंत्रालय के अधिकारियों/कर्मचारियों हेतु जारी किये जा रहे नवीन स्थायी परिचय पत्र में सबसे ऊपर छत्तीसगढ़ मंत्रालय, महानदी भवन, नवा रायपुर अटल नगर एवं पार्श्व में आपातकालीन नंबर अंकित किया जाए।
बड़े जरूरी छोटे बांध उपेक्षित
सरगुजा संभाग के बलरामपुर जिले में लूती बांध के टूटने से मलबा और पानी 4-5 किलोमीटर तक बह गया। सात लोग बह गए, जिनमें से 4 के शव मिले हैं। अब तक जिस तरह से बात हो रही है, वह इसे भारी बारिश के कारण हुई दुर्घटना के रूप में पेश किया जा रहा है। चूंकि बांध बने 4 दशक हो चुके थे, इसलिए लोग मानकर चल रहे हैं कि यह प्राकृतिक आपदा ही है लेकिन ऐसा नहीं है। छत्तीसगढ़ में तांदुला, मुर्रम सिल्ली, खुडिय़ा, खूंटाघाट जैसे बांध ब्रिटिश काल से पहले के बने हैं। हसदेव बांगो, गंगरेल, दुधावा बांध आजादी के बाद बने। ऐसे करीब 12 बांध है, जिनका कैचमेंट एरिया और क्षमता बहुत अधिक है और लाखों हेक्टेयर में सिंचाई होती है। सिंचाई के अलावा पेयजल और बिजली उत्पादन में भी इनका योगदान है। छत्तीसगढ़ में मध्यम क्षमता वाले करीब 34 बांध भी हैं। पर लूती जैसे बांधों की संख्या सैकड़ों में है। लूती 400 एकड़ में ही सिंचाई के काम आता था। यह आसपास के दर्जनों गावों में भू जल स्तर को भी अच्छा बनाए रखता था। अब बांध के टूट जाने से तत्काल प्रभाव तो कई परिवारों को उजडऩे के रूप में देखा जा रहा है पर भविष्य में किसानों की खेती पर तथा पेयजल तथा निस्तारी पर संकट देखने को मिलेगा। सिंचाई विभाग के अफसरों का कहना है कि बड़े और मध्यम आकार के बांधों के रखरखाव ध्यान दिया जाता है। बारिश शुरू होने से पहले और बारिश के दौरान और उसके बाद भी। मगर छोटे बांधों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। इन सैकड़ों बांधों में कौन-कौन अपनी उम्र पूरी कर चुके, किन्हें रखरखाव और मरम्मत की जरूरत है, इसकी ओर विभाग का ध्यान नहीं है। बलरामपुर के मामले में पूर्व विधायक बृहस्पत सिंह का बयान आया है। उन्होंने कहा कि लूती बांध से दो तीन सालों से रिसाव हो रहा था। अधिकारियों को इसकी जानकारी थी। समय रहते मरम्मत हो जाती तो यह हादसा नहीं होता। शायद लूती की घटना के बाद सरकार और जल संसाधन विभाग प्रदेश के छोटे बांधों की सुरक्षा और उनकी उपयोगिता पर अधिक ध्यान दें, जो छोटी-छोटी इकाइयों में राज्य की खेती, पेयजल और निस्तार में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
रिश्वत में फंसे संत-महात्मा!!
निजी मेडिकल कॉलेज मान्यता घोटाले की परतें खुलने लगी हैं। सीबीआई ने रायपुर के विशेष कोर्ट में प्रस्तुत चार्जशीट में कई खुलासे किए हैं। चार्जशीट में मेडिकल कॉलेज संचालक, और मान्यता के निरीक्षण दलों के सदस्यों को मैनेज करने रिश्वत देने के सुबूत भी हैं। यही नहीं, वॉट्सएप चैट भी पेश किए गए हैं।
सीबीआई ने निजी मेडिकल कॉलेजों के संचालकों, निरीक्षण दलों के सदस्यों और बिचौलियों के फोनकॉल्स इंटरसेप्ट किए हैं। इसमें मान्यता को लेकर फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। चार्जशीट के मुताबिक रायपुर के रावतपुरा सरकार निजी मेडिकल कॉलेज के प्रमुख रविशंकर महाराज को रिश्वत देकर मान्यता हासिल करने का सुझाव एक अन्य आध्यात्मिक गुरु स्वामी भक्तवत्सलदास ने दिया था।
दरअसल, रावतपुरा संस्थान के डायरेक्टर अतुल तिवारी ने स्वामी भक्तवत्सलदास से संपर्क किया, और स्वामीजी ने उन्हें गुजरात के मयूर रावल का नंबर दिया, जो कि मान्यता दल के सदस्यों से परिचित था।
स्वामी भक्तवत्सलदास खुद अपने संस्थान की सीट बढ़ाने के लिए 50 किलो यानी 50 लाख घूस दिए थे। घूस की रकम के लिए 'किलो’ कोडवर्ड था। एक किलो का आशय एक लाख था।
सीबीआई ने रविशंकर महाराज और अतुल तिवारी के फोनकॉल इंटरसेप्ट किए हैं। यह बताया गया कि बिचौलिया ने प्रति सीट 2 लाख रुपए मान्यता के लिए डिमांड की गई है। यानी सौ सीट के 2 करोड़ रुपए की डिमांड की गई है। बाद में 55 लाख रुपए में सौदा तय हुआ, और हवाला के जरिए रकम पहुंची। इंटरसेप्ट फोनकॉल्स में कई जगह रेरा चेयरमैन संजय शुक्ला, और रायपुर मेडिकल कॉलेज के एसोसिएशन प्रोफेसर डॉ अतिन कुंडू का भी जिक्र है। यह कहा गया कि दोनों की जानकारी में सब कुछ हो रहा था। चार्जशीट पेश बाद रावतपुरा महाराज और संजय शुक्ला व डॉ. अतिन कुंडू की मुश्किलें बढ़ गई है। चर्चा है कि ये सभी अग्रिम जमानत के अदालत की रूख कर रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
डिप्टी कलेक्टरों से तौबा

मंत्रियों के निजी स्थापना में पदस्थ निज सचिव, निज सहायक और अन्य बंगला आफिस स्टॉफ को हटाने का सिलसिला जारी है। वैसे इसकी शुरुआत सरकार बनने की पहली छमाही से ही मंत्रियों ने कर दी थी। एक डिप्टी सीएम ने दो निज सचिव बदले, तो दो वरिष्ठ मंत्रियों ने भी निज सहायक बदले हैं। एक मंत्री ने तो राप्रसे के अफसर को ही बंगले से बाहर फील्ड का रास्ता दिखा दिया था। एक मंत्री ने अपने ओएसडी, विशेष सहायक को रवाना किया। एक मंत्री ने ऐसे निज सहायक को बदला जो जेल में बंद पूर्व मंत्री के पास काम कर चुके थे। मंत्री ऐसे ही किसी को नहीं हटाते, किसी खास और गंभीर शिकायत पर पूरी जांच के बाद करते हैं। हाल में बिलासपुर संभाग के एक मंत्री ने दो दिन पहले ही अपने आफिस स्टाफ के डाटा एंट्री आपरेटर को वापस जिला कार्यालय भेज दिया। इसकी रवानगी के लिए मंत्री ने सचिव को साफ लिखा कि इसकी आवश्यकता ही नहीं है आफिस में। राजनांदगांव जिला कार्यालय का यह कर्मी एक वर्ष से पदस्थ था। ऐसी खबरों और हरकतों के प्रकाश में तीनों नए मंत्रियों ने राप्रसे के अफसरों को पर्सनल स्टाफ में न लेने का फैसला किया है। इनका कहना है कि डिप्टी कलेक्टर, कलेक्टरों से खौफ खाते हैं इसलिए मानिटरिंग सही नहीं कर पाते। इनकी जगह मंत्री स्वयं, निज सहायक मात्र से काम करने तैयार हैं। संगठन ने भी इससे सहमति जताई है।
जब पीडि़त ही अपराधी लगने लगे
तुम एक धर्म से दूसरे धर्म में जा रही हो, इस पर पुलिस की कार्रवाई सही है। यह कहना है महिला आयोग की एक सदस्य का, जिन्होंने नारायणपुर की उन आदिवासी लड़कियों की शिकायत पर कल सुनवाई की। एक सदस्य ने पूछा- नारायणपुर में भी तो नौकरी मिल सकती थी, तुम्हें बाहर जाने की क्या जरूरत थी? एक और सवाल था कि क्या तुमने पुलिस को लिखित में सूचित किया था कि एक शहर से तुम दूसरे शहर जा रही हो?
आयोग में नारायणपुर की तीन आदिवासी युवतियों- कमलेश्वरी प्रधान, ललिता उसेंडी, और सुमति मंडावी की शिकायत पर सुनवाई हुई। इन युवतियों ने केरल की दो ननों के साथ आगरा जाना तय किया था। भिलाई स्टेशन पर उन्हें रोक लिया गया था। बजरंग दल की कार्यकर्ता ज्योति शर्मा और उनके कुछ साथियों पर शारीरिक और मानसिक उत्पीडऩ के गंभीर आरोप लगाए थे। लेकिन सुनवाई के दौरान आयोग के कुछ सदस्यों ने ऐसी टिप्पणियां और सवाल किए, जो पीडि़तों के लिए अपमानजनक थे। इस मामले ने महिला आयोग की कार्यप्रणाली और महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इन युवतियों ने सबसे पहले दुर्ग के पुलिस अधीक्षक के पास शिकायत दर्ज करने की कोशिश की, लेकिन उनकी एफआईआर दर्ज नहीं हुई। निराश होकर उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग का दरवाजा खटखटाया, इस उम्मीद से कि उन्हें न्याय मिलेगा। आयोग ने दो बार उन लोगों को बुलाया, जिन पर उत्पीडऩ का आरोप है, पर दोनों बार वे नहीं पहुंचे। न ही रेलवे ने भिलाई स्टेशन पर हुई घटना के सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराए। पीडि़त युवतियों से ही बयान लिया गया, लेकिन सदस्यों ने उत्पीडऩ के बारे में जानकारी लेने के बजाय उनसे धर्मांतरण और बाहर जाने को लेकर सवाल किए। एक अन्य सदस्य ने तो आवेदन देखकर कहा कि लगता है कि किसी और से लिखवाया है, तुमने इसे खुद नहीं लिखा। एक और सदस्य ने सलाह दी कि यदि तुम मंदिर और चर्च जाती हो तो मस्जिद भी जाओ।
जब बड़ी-बड़ी अदालतों में सुनवाई के दौरान और फैसलों में भी अजीबोगरीब टिप्पणियां सुनने को मिलती रहती हों, तब आयोग की सदस्यों से बहुत अच्छे बर्ताव की उम्मीद करना ठीक नहीं है। बात इतनी जरूर है कि यह आयोग महिलाओं के उत्पीडऩ को रोकने का काम करती है लेकिन वहां जो सुनवाई में हुआ, वह तो इसके बिल्कुल विपरीत था। आयोग के पास व्यापक न्यायिक शक्तियां नहीं है। इसीलिये जिन पर आरोप हैं वे आयोग की नोटिस की परवाह नहीं कर रहे हैं। मगर, आयोग पीडि़त युवतियों की बात सहानुभूति तो प्रदर्शित कर रही सकता था। सुनवाई के बाद बाहर निकले एक परिजन ने कहा- हमारी बेटियों को ज्योति शर्मा और उनके साथियों ने पीटा, गैंगरेप की धमकी दी। हमने इसके खिलाफ शिकायत दी, लेकिन आयोग इसे धर्मांतरण के मुद्दे की ओर मोड़ रहा है। हमें नहीं लगता कि हमें यहां से न्याय मिलेगा।
एक कॉलोनी, हर छापे के निशाने पर
सुबह ईडी की छापेमारी से मची हलचल के बाद खबर की सच्चाई खोजने में हम जब जुटे तो कुछ पुरानी दबिश के रोचक तथ्य सुनने को मिले। वह यह कि धनाढ्य लोगों की एक ही कालोनी ला विस्टा में यह पांचवीं छापेमारी मारी है। पहले इस्पात इंडस्ट्रीज के मालिक, फिर शराब घोटाले में शामिल फिर भारत माला सडक़ घोटाले के जमीन दलाल को घेरा जा चुका था।
इस्पात इंडस्ट्रियलिस्ट के यहां आयकर की दबिश में एक रोचक तथ्य अब मालूम चला। हुआ यूं कि जैसे ही आईटी अफसरों ने सुबह सुबह काल बेल बजाया।तो दरवाजा खोलने वाले परिजन ने जोर से आवाज देकर परिजनों को अलर्ट किया। यह सुनकर मुखिया ने अपने कमरे में रखे कैश, आलमारी में रखे हीरे जेवरात एक बोरी में डालकर पड़ोसी की छत पर फैंक दिया। पड़ोसी ने फेंकते देखा, लेकिन उठाने का जोखिम भला कैसे करते। पड़ोस में टीम जो थी। नेकी के चक्कर में कौन मुसीबत ले। ठीक ही किया क्योंकि आईटी अफसर तो चप्पा-चप्पा छानते हैं, दीवारों तक को तोड़ते हैं। एक अफसर छत पर जाकर छानबीन कर रहे थे तो पड़ोसी के साफ-सुथरे छत पर बोरी दिखी। अफसर ने वहां जाकर बोरी खोला तो आंखें चौंधिया गई। सारा माल असबाब जब्त हुआ। टीम लौटने के बाद जब पड़ोसी मिले तो पूरा वाकया खुला। रायगढ़ के यह उद्योगपति, पड़ोसी से अब तक अफसोस जता रहे कि मुसीबत में घिरे पड़ोसी की मदद करनी चाहिए थी।
बेमन से बिहार की ओर

भाजपा के नवनियुक्त निगम मंडल के पदाधिकारी मायूस हैं। वजह यह है कि पार्टी उन्हें बिहार चुनाव में ड्यूटी लगा रही है। यहां के पार्टी नेताओं को बिहार की 40 विधानसभा सीटों में प्रचार का जिम्मा दिया जा रहा है।
निगम मंडल के पदाधिकारियों के साथ-साथ संगठन के पदाधिकारी भी बिहार जाएंगे। ये सभी चुनाव प्रचार खत्म होने तक वहां रहेंगे। इस सिलसिले में बिहार सरकार के मंत्री, और छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी नितिन नबीन की प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव व महामंत्री (संगठन) पवन साय से चर्चा हो चुकी है।
बताते हैं कि प्रदेश के नेता बिहार जाने के इच्छुक नहीं हैं। बिहार में हमेशा से कानून व्यवस्था पर सवाल उठते रहे हैं। यही नहीं, महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों की तरह वहां रूकने-ठहरने तक की कोई अच्छी व्यवस्था नहीं है। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता वहां जाने से कतरा रहे हैं। चूंकि प्रदेश प्रभारी, व्यक्तिगत तौर पर यहां के नेताओं से सीधे परिचित हैं। इसलिए मना करते भी उन्हें बन नहीं रहा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ भाजपा नेता प्रचार के लिए जा रहे हैं। कांग्रेस विधायक देवेन्द्र यादव बिहार कांग्रेस के प्रभारी सचिव हैं, और वो पिछले कुछ महीने से वहां सक्रिय हैं। चूंकि देवेन्द्र यूपी-बिहार मूल के हैं। ऐसे मेें वो बिहार के माहौल से परिचित हैं। मगर छत्तीसगढ़ भाजपा के ज्यादातर नेताओं के लिए बिहार को लेकर कोई ज्यादा अनुभव नहीं है। देखना है आधे-अधूरे मन से प्रचार के लिए जा रहे भाजपा नेता वहां क्या कुछ करते हैं। कौन किस पर भारी पड़ता है।
आदि वाणी में फिलहाल छत्तीसगढ़ी नहीं
नई दिल्ली से आई यह खबर छत्तीसगढ़ के लिए खास मायने रखती है। जनजातीय कार्य मंत्रालय ने एक सितंबर को आदि वाणी नामक एक एआई आधारित अनुवाद टूल का बीटा संस्करण लॉन्च किया है। यह ऐप हिंदी और अंग्रेजी से आदिवासी भाषाओं में अनुवाद करेगा और इसके उलट भी। इसका मुख्य उद्देश्य इन भाषाओं को डिजिटल रूप से संरक्षित करना और बड़े भाषा मॉडलों की नींव रखना है। आईआईटी दिल्ली के नेतृत्व में बिट्स पिलानी, आईआईआईटी नया रायपुर और झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा मेघालय के जनजातीय शोध संस्थानों के सहयोग से विकसित यह ऐप शुक्रवार से गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध होगा। शुरू में यह भीली, गोंडी, संताली और मुंडारी भाषाओं के लिए काम करेगा, बाद में कुई और गारो को जोड़ा जाएगा।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 10.45 करोड़ अनुसूचित जनजाति जनसंख्या है, जहां 461 जनजातीय भाषाएं हैं, जिनमें 71 मातृभाषाएं। इनमें से 82 कमजोर हैं और 42 गंभीर रूप से संकटग्रस्त। बस्तर, जो गोंडी जैसी समृद्ध बोलियों का गढ़ है, अब इन बोलियों को डिजिटली संरक्षण मिलेगा। हिंदी और छत्तीसगढ़ी में बात करने वालों के लिए गोंडी बोली अभी भी अबूझ है, जबकि वह मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के एक बड़े हिस्से में बोली जाती है। इन बोलियों के शब्दकोश, वाक्य और सांस्कृतिक संदर्भ डिजिटल रूप में अब सुरक्षित हो जाएंगे।
आदि वाणी में फिलहाल छत्तीसगढ़ी शामिल नहीं है। तकनीकी विशेषज्ञ बता सकते हैं कि यदि गोंडी शामिल हो सकता है तो छत्तीसगढ़ी क्यों नहीं? भविष्य में कोई योजना छत्तीसगढ़ी को शामिल करने की है भी या नहीं, इस पर जवाब मिलना बाकी है, क्योंकि आदि वाणी में मोटे तौर पर आदिवासी अंचलों की बोलियों को शामिल किया गया है।
लंबे समय से छत्तीसगढ़ी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग छत्तीसगढ़ से हो रही है लेकिन यदि आदि वाणी जैसे डिजिटल टूल पर छत्तीसगढ़ी को शामिल कर लिया जाए तो वह भी कोई छोटी उपलब्धि नहीं होगी। इस पर गंभीरता से विचार इसलिये भी होना चाहिए क्योंकि छत्तीसगढ़ का इस नवाचार में अहम योगदान है। आईआईआईटी नया रायपुर के छात्रों और शिक्षकों ने इस परियोजना में सक्रिय भूमिका निभाई है। छत्तीसगढ़ के जनजातीय शोध संस्थान ने भी सहयोग किया है।यह योगदान दिखाता है कि छत्तीसगढ़ न केवल प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, बल्कि तकनीकी नवाचार में भी आगे है। यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर दो हफ्ते में एक भाषा लुप्त हो रही है। आधुनिक शिक्षा और शहरीकरण के कारण नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा भूल रही है। लेकिन उम्मीद है कि आदि वाणी ऐप विस्तार लेगा और छत्तीसगढ़ी के साथ ऐसा नहीं होगा कि वह आने वाले समय में लुप्त हो जाए।
तीन सितंबर : हेलीकॉप्टर हादसे में मारे गए आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रेड्डी का शव मिला
नयी दिल्ली, 3 सितंबर। आंध्र प्रदेश में वाईएसआर के नाम से प्रसिद्ध तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. येदुगुड़ी संदिंती राजशेखर रेड्डी का शव 2009 में तीन सितंबर के दिन ही मिला था। उन्हें लेकर जा रहा हेलीकॉप्टर दो सितंबर को नल्लामल्ला के जंगलों में लापता हो गया था और अगले दिन तीन सितंबर को कुर्नूल से कुछ दूरी पर स्थित रूद्रकोंडा की पहाड़ी पर उनका क्षत-विक्षत शव मिला।
हेलीकॉप्टर में रेड्डी के साथ जा रहे चार अन्य लोगों की भी इस हादसे में मौत हो गई थी। लगभग 24 घंटे के अभियान के बाद वायुसेना के एमआई-8 हेलीकॉप्टर ने दुर्घटनाग्रस्त हेलीकॉप्टर के मलबे का पता लगाया। इसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने हेलीकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने तथा इसमें सवार रेड्डी सहित सभी पांच लोगों की मृत्यु हो जाने की पुष्टि की।
तीन सितंबर 2023 को भारतीय खिलाड़ी निदा अंजुम चेलट फ्रांस के कैस्टेलसग्राट में जूनियर और युवा घुड़सवारों के लिए कठिन घुड़सवारी विश्व एंड्योरेंस चैम्पियनशिप को पूरा करने वाली पहली भारतीय बनीं। निदा ने ‘एप्सिलॉन सलू’ पर सवार होकर कुल 120 किमी की चार लूप सात घंटे और 29 मिनट में पूरी की। इस चैंपियनशिप का लक्ष्य घोड़े को कोई नुकसान पहुंचाए बिना दूरी को पूरा करना होता है।
देश-दुनिया के इतिहास में तीन सितंबर की तारीख पर दर्ज अन्य प्रमुख घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:-
- 1767 : कर्नल स्मिथ की सेना ने चंगमा की लड़ाई में निजाम और हैदर अली की संयुक्त सेना को हराया।
- 1833 : अमेरिका में बेंजामिन एचडे ने पहला अखबार ‘न्यूयार्क सन’ शुरू किया।
- 1943 : दूसरे विश्व युद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों ने इटली पर हमला किया।
- 1950 : एमीलियो नीनो फरिना पहले एफ1 वर्ल्ड चैपिंयन बने।
- 1971 : कतर स्वतंत्र राष्ट्र बना।
- 1984 : दक्षिण फिलीपीन में भयानक तूफान में लगभग 1300 लोगों की मौत, सैकड़ों घायल।
- 1998 : नेल्सन मंडेला ने गुट निरपेक्ष आंदोलन शिखर सम्मेलन में कश्मीर का मुद्दा उठाया, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कड़ी आपत्ति जताई।
- 2003 : पाकिस्तान सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो पर राजद्रोह का मुकदमा चलाने का फैसला किया।
- 2006 : भारतीय मूल के भरत जगदेव ने गुयाना के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।
- 2007 : बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया और उनके पुत्र अराफ़ात रहमान भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ़्तार।
- 2007 : चीन के झिंगजियांग प्रान्त में चीनी और जर्मन विशेषज्ञों ने लगभग 16 करोड़ साल पुराने एक जीव के 17 दांत खोजने का दावा किया।
- 2008 : राजेन्द्र कुमार पचौरी संयुक्त राष्ट्र की संस्था जलवायु परिवर्तन के अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के दोबारा प्रमुख चुने गए।
- 2014 : भारत और पाकिस्तान में एक साथ आई बाढ़ में दो सौ से ज्यादा लोगों की मौत।
- 2020 : भारतीय ग्रैंडमास्टर पी इनियन ने विश्व ओपन आनलाइन शतरंज टूर्नामेंट जीता।
- 2021 : भारतीय निशानेबाज अवनि लेखरा ने तोक्यो में पैरालंपिक खेलों की 50 मीटर राइफल थ्री पॉजिशन एसएच1 स्पर्धा का कांस्य पदक हासिल किया जिसके बाद वह दो पैरालंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गयीं।
- 2022 : भारत ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना।
- 2024 : कांगो की राजधानी किंशासा में एक मुख्य जेल को तोड़कर भागने की कोशिश के दौरान 129 कैदियों की मौत। (भाषा)
पत्नी-पद पर काबिज पति
इसे पत्नी के पद को इंजाय करना कहेंगे या पत्नी के सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप। देश भर में ऐसे कई दृष्टांत पर सुप्रीम कोर्ट भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि पत्नी के कामकाज में पतियों के हस्तक्षेप पर फटकार लगा चुकी है। इतना ही नहीं प्रदेश में भी पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के समय महिला बाल विकास मंत्री रही रमशिला साहू के पति को संगठन ने ताकीद किया था। दयाराम साहू ने धमतरी में एक विभागीय बैठक लेकर अधूरी योजनाओं को लेकर अफसरों को फटकार लगाई थी। पत्नियों के सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप का यह सिलसिला अभी भी जारी है। खासकर निगमों में पार्षद-जोन अध्यक्ष, पंच-सरपंच जनपद-जिला पंचायतों में। पति अभी भी बैठकें कर अफसरों को निर्देश दे रहे हैं। राजधानी के दो जोन में पति ही अध्यक्ष हैं । तो पांच पति एमआईसी सदस्य। लेकिन यहां चर्चा एक जोन अध्यक्ष के बोर्ड की कर रहे हैं। घर का पता बताने वाला यह बोर्ड पति को ही जोन अध्यक्ष साबित कर रहा है। पति पिछले कार्यकाल में पार्षद रहें। इस बार पत्नी। और काफी जोड़ तोड़ के बाद वह जोन अध्यक्ष बनीं। वैसे यह अकेले नहीं हैं कुछ और भी पति पार्षद की भूमिका में हैं। इससे निगम का अमला काफी परेशान है।
जेल का हल्ला सुविधाओं के लिए?

रायपुर सेंट्रल जेल के एक कैदी के फरार होने का प्रकरण राजनीतिक रंग ले रहा है। कैदी, जेल के बाहर कवर्धा सदन के निर्माण कार्य में लगा था। दरअसल, पुराने डीजी जेल के दफ्तर को कवर्धा सदन का रूप दिया गया है। कवर्धा, गृहमंत्री विजय शर्मा का विधानसभा क्षेत्र क्षेत्र है। वहां से आने वाले लोगों के लिए कुनकुरी सदन की तर्ज पर कवर्धा सदन बनाया जा रहा है, और अब जब कैदी फरार हुआ,तो? कांग्रेस ने गृहमंत्री विजय शर्मा को निशाने पर लिया है।
पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने एक कदम आगे जाकर प्रकरण की न्यायिक जांच की मांग की है। बघेल के कवर्धा सदन के निर्माण पर भी सवाल खड़े किए हैं। जेल प्रशासन ने कैदी होने के प्रकरण पर स्पष्टीकरण दिया है, और अब तक की कार्रवाई का ब्यौरा दिया है। बावजूद इसके मामला शांत होता नहीं दिख रहा है।
रायपुर सेंट्रल जेल में पूर्व सीएम भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल, पूर्व मंत्री कवासी लखमा सहित कई प्रभावशाली लोग बंद है। बताते हैं कि प्रभावशाली विचाराधीन बंदियों, और जेल प्रशासन के बीच ठनी हुई है। बंदियों ने प्रशासन पर प्रताडऩा का आरोप लगाया है। चैतन्य की याचिका पर तो हाईकोर्ट ने चिकित्सा सुविधा, और जेल मैन्युअल के मुताबिक सुविधाएं देने के आदेश दिए हैं।
इस पूरे मामले पर भाजपा आगे आई है, और यह कहा जेल प्रशासन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। यह कहा जा रहा है नामचीन कैदियों की तरफ से मोबाइल फोन, अलग बैरक, घर का खाना- मिनरल वाटर जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने पर जोर दिया जा रहा है। बड़े लोग हैं, तो सुविधाओं की बात तो होगी ही।
दोस्ती का धुआँ और गद्दारी की राख

इसी अपने देश में अमेरिकी राष्ट्रपति के नाम पर घी के दीपक जलाए गए, उनकी जीत की कामना के लिए हवन हुए। संदेश यह दिया गया कि वाशिंगटन से लेकर वाराणसी तक ट्रंप की दोस्ती का नया नाम है। मगर, अब हालत बदल गए हैं। ट्रंप ने भारतीय माल पर मनमाना टैरिफ की तलवार लहरा रखी है। लाखों लोग बेरोजगार हो रहे हैं, सैकड़ों उद्योग धंधे ठप होने जा रहे हैं। ऐसे में यदि किसी सडक़ पर यदि ट्रंप का प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार कर दिया जाए तो आश्चर्य क्यों होना चाहिए? जैसा कि पोस्टर से ही स्पष्ट है, यह तस्वीर भोपाल की है।
छत्तीसगढ़ में हाल ही में बिजली बिल पर दी जाने वाली रियायत घटा दी गई है। इसकी जगह पर पीएम सूर्य घर योजना को प्रोत्साहित किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि बिजली बिल हाफ पर क्यों जा रहे हैं, पूरी बिजली ही फ्री में लीजिए। अपने घर में छतों पर सोलर पैनल लगाइये, केंद्र की तरफ से अनुदान तो है ही, राज्य सरकार ने भी इसमें अपनी सहायता जोड़ दी है। बाकी रकम की व्यवस्था ऋण से करें जिसकी किश्त बिजली बिल के बराबर या उससे कम हो सकती है। अतिरिक्त बिजली बेच सकते हैं। कोयले और पानी पर निर्भर परंपरागत बिजली की जगह सूर्य से ऊर्जा एकत्र करना एक अच्छा कदम है। कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की वैश्विक प्रतिबद्धता के साथ भारत भी जुड़ा हुआ है। इसलिए भी इस योजना का प्रचार किया जा रहा है। पर बिहार, जहां चुनाव है- वहां हो रही अनेक घोषणाओं में से एक यह भी है कि 125 यूनिट बिजली फ्री दी जाएगी। सूर्य बिजली घर को लेकर कोई चुनावी वायदा नहीं है। जब पारंपरिक बिजली को हतोत्साहित किया जाना है, लोगों को अक्षय ऊर्जा अपनाने के लिए प्रोत्साहन देना है तो फिर बिजली बिल का छोटा सा हिस्सा ही सही, फ्री करने की बात क्यों हो रही है? छत्तीसगढ़ में सरकार भाजपा की है और बिहार में भी वह सरकार में शामिल है। छत्तीसगढ़ के दिसंबर 2023 के चुनाव में महतारी वंदन योजना हिट रही। महिलाओं के हाथ में सीधे कैश देने की लुभावनी स्कीम ने परिणाम ही बदल दिया। अब बिहार में नीतीश कुमार मंत्रिमंडल ने फैसला लिया है कि एक परिवार से एक महिला के खाते में इसी सितंबर माह के दौरान 10-10 हजार रुपये डाले जाएंगे। कहा यह जा रहा है कि वे इस राशि से जैसी मर्जी वैसा कारोबार शुरू कर लें। अब, 10 हजार रुपये में कौन सा व्यापार किया जा सकता है? हां, जिनके खाते में चुनाव के पहले ठीक पैसे आ जाएंगे वे वोट देते समय सरकार की इस दरियादिली को कैसे भूलेंगे? छत्तीसगढ़ में अगला विधानसभा चुनाव सन् 2028 में है। मगर, पश्चिम बंगाल और केरल जैसी जगहों में इसी तरह की घोषणाएं देखने को मिल सकती हैं।
शांडिल्य, अच्छी साख, देखा-भाला काम
आईएएस की वर्ष-2003 बैच की रिटायर्ड अफसर सुश्री रीता शांडिल्य को सरकार ने पीएससी की कमान सौंपी है। पूर्व राजस्व सचिव रीता को पहले कार्यकारी अध्यक्ष, और अब पूर्णकालिक अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। दरअसल, टामन सिंह सोनवानी का कार्यकाल खत्म होने के बाद से पीएससी अध्यक्ष का पद खाली था, और कार्यकारी के भरोसे चल रहा था।
राज्य बनने के कुछ समय बाद ही पीएससी भर्तियों में गड़बड़ी को लेकर सुर्खियों में रहा है। दिवंगत खेलन राम जांगड़े, और अमोल सिंह सलाम सहित कुछ पीएससी के सदस्यों पर भर्तियों में गड़बड़ी को लेकर आरोप लगे थे। वर्ष-2005 की भर्ती में तो गड़बड़ी साबित भी हुई, लेकिन अभ्यार्थियों को नौकरी से नहीं निकाला जा सका। इस प्रकरण पर अभ्यार्थियों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली हुई है।
बाद में पीएससी की भर्तियों में गड़बड़ी को रोकने की दिशा में थोड़ी बहुत कोशिश भी हुई। मगर पिछली सरकार में टामन सिंह सोनवानी के अध्यक्ष बनने के बाद, तो सारी कोशिशों पर पानी फिर गया। ये अलग बात है कि वर्ष-2023 की भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी मामले पर सोनवानी खुद जेल में हैं। अब रीता शांडिल्य पर पीएससी भर्ती परीक्षाओं में पारदर्शिता लाने का दारोमदार है।
पूर्व आईएएस रीता शांडिल्य की साख अच्छी रही है। वो पीएससी की कार्यप्रणाली से वाकिफ रही हैं। रीता करीब 5 साल पीएससी की सचिव पद पर काम कर चुकी हैं। बताते हैं कि पिछली सरकार में भी टामन सिंह सोनवानी की जगह रीता को चेयरमैन बनाने की चर्चा चली थी। मगर बाद में सदस्य डॉ. प्रवीण वर्मा को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया। अब भी पीएससी से भर्तियों को लेकर थोड़े बहुत विवाद चल रहे हैं। देखना है कि रीता, पीएससी को लेकर भरोसा कायम रखने में कितनी सफल रहती हैं।
मुक्तिबोध और विनोदजी दूर ही रहें...
छत्तीसगढ़ में सरकार किसी भी पार्टी की रहे, कविताओं के नाम पर मंच की तुकबंदी वाले कुछ कवियों को बार-बार बुलाया जाता है, और हाल के बरसों में इसमें सबसे अधिक भुगतान पाने वालों में कुमार विश्वास का नाम सबसे ऊपर है। राज्य का संस्कृति विभाग स्थानीय कवियों, और कलाकारों को तय किया हुआ पारिश्रमिक देने से भी मना करता है, लेकिन कुमार विश्वास को कभी कविता के नाम पर, तो कभी रामकथा पढऩे के नाम पर बहुत मोटी रकम दी जाती है।
अभी रायगढ़ में चक्रधर समारोह में भी कुमार विश्वास को बुलाया गया, और स्थानीय कलाकारों को पहले से तय किया गया पारिश्रमिक भी नहीं दिया गया, क्योंकि मोटी रकम कभी फिल्म इंडस्ट्री के बड़े सितारों के लिए रहती है, तो कभी तुकबंदी करने वाले कवियों के लिए। यह सब तो रूपए-पैसे की बात है इससे हमारा कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन इस बार प्रदेश के सबसे प्रतिष्ठित चक्रधर समारोह में कुमार विश्वास का जो परिचय छपा है, उसके बाद इस प्रदेश के बड़े साहित्यकारों को सरकार से दूरी बना लेनी चाहिए। मुक्तिबोध और विनोद कुमार शुक्ल के इस प्रदेश की सरकार एक तुकबंदिए को युग कवि लिख रही है। मुक्तिबोध तो अब रहे भी नहीं, लेकिन विनोद कुमार शुक्ल तो हैं। और जिस प्रदेश के इस युग में कुमार विश्वास युग कवि हैं, उस प्रदेश के इस युग में विनोद कुमार शुक्ल को सरकार से कोसों दूर ही रहना चाहिए।
महानदी जल विवाद सुलझाने की एक और पहल

महानदी जल विवाद, बीते कई वर्षों से ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बीच तनाव का कारण बना हुआ है। इसे इसे एक नए सिरे से सुलझाने की फिर कोशिश हो रही है। दोनों राज्यों ने हाल ही में महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण (एमडब्ल्यूडीटी) को सूचित किया है कि वे इस मसले का सौहार्दपूर्ण समाधान चाहते हैं। इसी सिलसिले में 6 सितंबर 2025 को एक और बैठक होने वाली है।
महानदी, धमतरी जिले के सिहावा से निकलकर 851 किलोमीटर की यात्रा करती है, जिसमें से 494 किलोमीटर ओडिशा में है। यह नदी लाखों लोगों की आजीविका को सहारा देती है। पारिस्थितिक तंत्र और खेती के लिए भी महत्वपूर्ण है। ओडिशा का आरोप है कि छत्तीसगढ़ द्वारा नदी के ऊपरी हिस्से में 500 से अधिक एनीकट और 30 बैराज के निर्माण ने उसके प्रदेश में पानी के प्रवाह को काफी धीमा कर दिया है। दोनों राज्यों के बीच कोई औपचारिक जल-बंटवारा समझौता न होने से यह विवाद और जटिल बना हुआ है।
ओडिशा के मुख्यमंत्री कार्यालय ने 30 अगस्त को घोषणा की कि दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों और वरिष्ठ जल संसाधन अधिकारियों ने इस मुद्दे पर गहन विचार-विमर्श किया है। दोनों पक्ष बातचीत और सहयोग के माध्यम से पारस्परिक रूप से लाभकारी समाधान की दिशा में काम करने को तैयार हैं। इसके लिए सितंबर में दोनों राज्यों के मुख्य अभियंताओं की अध्यक्षता में तकनीकी समितियों की साप्ताहिक बैठकें होंगी, जो विवाद की पहचान और समाधान पर ध्यान देंगी।
इसके बाद अक्टूबर में मुख्य सचिव स्तर की एक और बैठक होगी, और दिसंबर तक दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की मुलाकात हो सकती है। ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने पहले ही 25 जुलाई को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को पत्र लिखकर केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय और केंद्रीय जल आयोग के मार्गदर्शन में एक संयुक्त समिति के गठन का प्रस्ताव दिया था।
दोनों राज्यों के बीच सहयोग की यह भावना इसलिये भी दिखाई दे रही है क्योंकि दोनों ही जगह एक ही दल की सरकार है। इसके पहले इस मसले पर बीजू जनता दल और छत्तीसगढ़ की भाजपा तथा कांग्रेस सरकारों के बीच खूब तनातनी रही। यदि ताजा प्रयास सफल होता है, तो महानदी जल विवाद का दीर्घकालिक समाधान हो सकता है। यह अन्य अंतर-राज्यीय जल विवादों के लिए भी मिसाल बन सकता है। हालांकि 6 सितंबर को होने वाली बैठक में ठोस नतीजा निकलने पर ही इसके संकेत मिल सकेंगे।
सुधीर की जगह कौन?
वन मुख्यालय में एक बड़ी सर्जरी की तैयारी चल रही है। हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स के बाद दूसरे नंबर के अहम पद पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) की नियुक्ति पर मंत्रणा चल रही है। पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) सुधीर अग्रवाल रिटायर हो गए हैं। पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) के लिए तीन पीसीसीएफ होड़ में हैं।
आईएफएस के 89 बैच के अफसर तपेश झा की दावेदारी शीर्ष पर है। झा के अलावा 94 बैच के अरुण पाण्डेय, और प्रेम कुमार की भी दावेदारी है। प्रेम कुमार को वाइल्ड लाइफ में काम करने का अनुभव भी है। सीएम विष्णुदेव साय लौट आए हैं, और सीनियर आईएफएस अफसरों को नए सिरे से पदस्थापना प्रस्ताव पर मुहर लग सकती है।
कांग्रेस भी हाईकोर्ट में
विष्णुदेव साय कैबिनेट में 14वें मंत्री के खिलाफ कांग्रेस हाईकोर्ट में याचिका दायर करने जा रही है। वैसे तो इस विषय पर एक याचिका पहले दायर हो चुकी है, जिस पर मंगलवार को सुनवाई होगी।
बताते हैं कि पार्टी के अंदरखाने में 14वें मंत्री के खिलाफ याचिका दायर करने पर सहमति है। मगर पार्टी के बड़े नेताओं के बीच समन्वय नहीं दिख रहा है। पहले शैलेन्द्र नगर रहवासी वासु चक्रवर्ती ने 14वें मंत्री के खिलाफ जो याचिका दायर की है, उसके पीछे भी कांग्रेस के ही प्रमुख नेताओं का समर्थन होना बताया जा रहा है। ये अलग बात है कि वासु चक्रवर्ती कांग्रेस से निष्कासित है ।
इधर, कांग्रेस की तरफ से सोमवार को एक अलग से याचिका दायर की जाएगी। यह याचिका पार्टी के एक पदाधिकारी की तरफ से दायर की जा रही है। कहा जा रहा है कि पार्टी के एक प्रमुख नेता ने याचिका को लेकर एक पूर्व डिप्टी एडवोकेट जनरल से राय ली थी। पूर्व डिप्टी एजी ने पार्टी के किसी विधायक के मार्फत याचिका लगाने का सुझाव दिया था। मगर इस मसले पर पार्टी के भीतर कोई सहमति नहीं बनी। यह तर्क दिया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा की 90 सीटों के हिसाब से यह संख्या अधिकतम 13.50 यानी 13 मंत्री होनी चाहिए। मगर 20 अगस्त को 3 नए मंत्री बनाए जाने के बाद कैबिनेट में अब 14 सदस्य हो गए हैं, जो इस सीमा से अधिक है। इसे संविधान के अनुच्छेद 164 (1 क) का उल्लंघन बताया जा रहा है।
दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ में हरियाणा का उदाहरण देकर कैबिनेट में सीएम समेत 14 मंत्री बना दिए गए हैं। हरियाणा में भी इसके खिलाफ याचिका दायर की गई है। इस पर सुनवाई चल रही है। कुल मिलाकर संसदीय सचिव की तरह 14वें मंत्री को लेकर कानूनी लड़ाई लंबी चलने के आसार दिख रहे हैं।

इस देश में लोगों ने ट्रम्प के लिए हवन कर-करके देख लिया है। अब छत्तीसगढ़ के एक पत्रकार ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के फोटो को अपना व्हाट्सएप प्रोफाइल फोटो बना लिया है। है न दिलचस्प बात!
शोध संस्थानों का अलग हिसाब
8वें वेतन आयोग के गठन की घोषणा के बाद 43 लाख से अधिक केंद्रीय कर्मचारी अपने नए वेतन भत्तों का इंतजार कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर लेकिन देश के कई शोध संस्थानों के कर्मचारी अब भी 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों का इंतजार कर रहे हैं। फिलहाल इनकी स्थिति न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी जैसी है।
संसद के हालिया मानसून सत्र के दौरान शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुकांता मजूमदार ने राज्यसभा में इसका खुलासा किया। उन्होंने बताया कि भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) से संबद्ध देशभर में 24 शोध संस्थान और उनके क्षेत्रीय केंद्र ऐसे हैं, जहां 7 वें आयोग के वेतन भत्ते अब तक लागू नहीं है। इनका एक संस्था रायपुर में भी है। मीडिया रिपोर्ट अनुसार इन संस्थानों को आईसीएसएसआर द्वारा ग्रांट-इन-एड नियमों के तहत आर्थिक सहायता दी जाती है। हालांकि, 1971 से चले आ रहे इन नियमों में समय-समय पर संशोधन किए गए हैं, लेकिन वेतन आयोग की सिफारिशें अब तक यहां लागू नहीं हो पाई हैं। जबकि संसदीय स्थायी समिति (शिक्षा) ने अपनी 364वीं रिपोर्ट में स्पष्ट सिफारिश की है कि इन सभी संस्थानों और क्षेत्रीय केंद्रों में 7वें वेतन आयोग को लागू किया जाना चाहिए।समिति ने यह भी सुझाव दिया कि ये संस्थान आईसीएसएसआर से परियोजना-आधारित फंडिंग लेकर और स्वयं कमाई के विकल्प तलाश कर अपने वित्तीय बोझ को कम करें, ताकि सरकार की मदद से वास्तविक शोध और परिणाम सामने आ सकें। इस दिशा में ठोस निर्णय के लिए एक समिति का गठन किया गया है। यह समिति आईसीएसएसआर से संबद्ध संस्थानों में 7वें वेतन आयोग को लागू करने की संभावनाओं की समीक्षा कर रही है। हालांकि, इस प्रक्रिया में कितना समय लगेगा, यह साफ नहीं है। इनके लिए आठवां वेतनमान मिल भी गया तो स्थिति-आई तो रोजी नहीं तो रोजा जैसा होगा।
बाकी नियुक्तियों की बारी
सीएम विष्णुदेव साय 10 दिन के जापान, और कोरिया दौरे से लौट आए हैं। साय के आने के साथ ही सरकार, और संगठन में हलचल शुरू हो गई है। दरअसल, सरकार और संगठन में नियुक्तियां होनी है। इस सिलसिले में प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन, और पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश के साथ साय की बैठक भी होगी। प्रदेश भाजपा के रणनीतिकार अजय जामवाल, और पवन साय भी प्रदेश से बाहर थे। साय, दुर्ग ग्रामीण के विधायक ललित चंद्राकर के साथ तिरुपति मंदिर दर्शन के लिए गए थे। जामवाल भी असम, और दिल्ली में रहे। अब सारे नेता लौट आए हैं, तो नियुक्तियों पर कसरत चल रही है। प्रदेश भाजपा संगठन की एक और सूची जारी होने वाली है। इसमें कुछ पुराने नेताओं को जगह दी जा सकती है।
सरकार के निगम-मंडलों में भी नियुक्तियां की जाएंगी। वित्त आयोग, सिंधी अकादमी, और आरडीए-पर्यटन बोर्ड में उपाध्यक्ष व संचालकों के नाम भी तय किए जा रहे हैं। चर्चा है कि कुछ विधायकों से भी राय ली गई है। सांसदों ने भी अपनी तरफ से नाम दिए हैं। कुल मिलाकर अगले चार-पांच दिनों के भीतर सारी नियुक्तियां हो जाएंगी। देखना है कि किसको क्या कुछ मिलता है।
गौरक्षा कानून के खिलाफ बीजेपी से आवाज
छत्तीसगढ़ सहित देश के कई राज्यों में गौवंश, जिनमें गाय, बैल और सांड आते हैं, के वध और उसके मांस के उपभोग पर पाबंदी है। कानून में भैंसों की बिक्री और वध पर प्रतिबंध नहीं है। इधर भाजपा के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र में एक अलग मामला उभर गया है। वहां के शेतकारी संगठन के नेता और भारतीय जनता पार्टी के एमएलसी सदाभाऊ खोत अपनी ही पार्टी के लोगों के निशाने पर हैं। वे यहां चलाए जा रहे गौरक्षा आंदोलन का विरोध कर रहे हैं। वे कहते हैं कि उनकी गुंडागर्दी के कारण किसान नई नस्ल की गायों को आयात नहीं कर पा रहे हैं और ऐसे गौवंश जिनसे कोई आमदनी नहीं हो रही है, उनकी देखभाल करने में किसानों की आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही है।इसी तरह, महाराष्ट्र में अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को वहां की एक मजबूत कारोबारी लॉबी कुरैशी समुदाय का समर्थन मिलता रहा है। यह समुदाय मांस के ही धंधों से जुड़ा है। इनका कहना है कि हम कानून का पालन करते हुए भैंसों के बीफ बेचने निकलते हैं और हमें गौ रक्षक घेर कर मारपीट करने लगते हैं। अजित पवार अपने समर्थक वर्ग को नाराज नहीं करना चाहते थे, उन्होंने डीजीपी को लिखा है कि गौरक्षकों पर लगाम कसें, उन्हें बीफ लेकर जा रही गाडिय़ों को जबरन रोकने से मना करें। यदि गैरकानूनी परिवहन हो रहा हो तो पुलिस ही कार्रवाई करे, कोई और नहीं।
कुरैशी समुदाय और बीफ डीलर्स एसोसिएशन मुंबई तो केवल इसलिए विरोध कर रहा है कि उन्हें गौरक्षकों के कारण भैंसों के मांस का भी परिवहन करने में दिक्कत जा रही है, मगर बीजेपी एमएलसी खोत तो 2015 में बनाए गए कानून के खिलाफ ही उतर गए हैं। उन्हें अपनी पार्टी के ही नेताओं की आलोचना झेलनी पड़ रही है, मगर वे अपनी बात पर कायम है। वैसे भाजपा नेता पवार ने जो चि_ी पुलिस को लिखी है, उसकी भी आलोचना हो रही है।अपने छत्तीसगढ़ में तो सरकार गौशाला, गौ-अभयारण्य, गौ-धाम जैसी योजनाएं चला रही है। सडक़ों पर मारे जा रहे गायों की समस्या जल्द खत्म हो सकती है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि सब ठीक हो जाएगा। यहां कोई खोत जैसा नेता सामने नहीं आएगा, जो किसानों के नाम पर अपनी ही पार्टी की रीति-नीति के खिलाफ बात करे।
अनुराग को एक्सटेंशन, अमिताभ का क्या?
छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश, दोनों ही पड़ोसी राज्यों के सीएस एक्सटेंशन पर हैं। छत्तीसगढ़ के सीएस अमिताभ जैन को तीन माह का एक्सटेंशन मिला हुआ है। अब उन्हीं के बैचमेट मध्यप्रदेश के सीएस अनुराग जैन को एक साल का एक्सटेंशन मिल गया है।
आईएएस के 89 बैच के अफसर अनुराग जैन, अविभाजित मध्यप्रदेश में कांकेर के एडिशनल कलेक्टर रह चुके हैं। अनुराग जैन, तीन जिलों के कलेक्टर और पीएमओ में भी ज्वाइंट सेक्रेटरी के पद पर काम कर चुके हैं। अमिताभ जैन और अनुराग, दोनों के बीच निजी संबंध काफी अच्छे हैं। इधर, अमिताभ जैन के एक्सटेंशन की अवधि 30 सितंबर को खत्म हो रही है। ऐसे में उनके एक्सटेंशन की अवधि बढ़ाई जाएगी या नहीं, इसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं।
खास बात ये है कि अमिताभ जैन के रिटायरमेंट के दिन राज्यपाल ने उन्हें स्मृति चिन्ह देकर बिदाई भी दे दी थी। कैबिनेट में उन्हें बिदाई दी जा रही थी, तभी दिल्ली से उन्हें तीन माह का एक्सटेंशन मिलने की सूचना आई। इसके बाद आनन-फानन में विधिवत प्रस्ताव केन्द्र को भेजा गया, और फिर शाम तक एक्सटेंशन ऑर्डर निकला।
अमिताभ जैन प्रदेश में सबसे लंबे समय तक सीएस के पद पर रहने वाले अफसर हैं। चर्चा है कि वो खुद भी एक्सटेंशन के लिए प्रयासरत नहीं थे, बल्कि सीआईएस (मुख्य सूचना आयुक्त) पद पर काम करने के इच्छुक थे। उन्होंने इसके लिए इंटरव्यू भी दिया था। चूंकि उन्हें एक्सटेंशन मिल गया, इसलिए सीआईएस के पद पर नियुक्ति का मामला टल गया। अब आगे क्या होगा, यह तो अगले कुछ दिनों में पता चलेगा।
ताकतवर होंगे जिलाध्यक्ष

कांग्रेस में जिलाध्यक्षों को ताकत दी जा रही है। यानी पार्टी के कार्यक्रमों से लेकर प्रत्याशी चयन में जिलाध्यक्षों की राय को अहमियत दी जाएगी। कुल मिलाकर जिलाध्यक्ष पहले की तुलना में ज्यादा पॉवरफुल होंगे। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने साफ कर दिया है कि जिले का कितना भी बड़ा नेता हो, उसे जिलाध्यक्ष की बात माननी होगी।
हालांकि पार्टी ने जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया भी निर्धारित की है जिसमें दावेदारों को इंटरव्यू देना होगा। छत्तीसगढ़ में अगले महीने से जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू होगी। करीब डेढ़ दर्जन जिलों में अध्यक्षों का चयन होना है। इसके लिए अभी से दावेदार सक्रिय हैं। देखना है किसको मौका मिलता है।
बीवीआर को बड़ी भूमिका ?

बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम को जल्द ही एक हाई प्रोफाइल और बड़े पूंजीगत खर्च वाली सरकारी परियोजना सौंपी जा सकती है, जिसका उद्देश्य अनुसंधान और विकास (रिसर्च एंड डेवलपमेंट) में सुधार लाना है। इसे भारत के नीति परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है।
यह देखना है कि क्या यह जि़म्मेदारी उनकी मौजूदा भूमिका के अतिरिक्त होगी। सुब्रमण्यम इस समय नीति आयोग के सीईओ हैं। बीवीआर, मोदी सरकार के विश्वस्त अफसरों में गिने जाते हैं। रमन 3.0 में एसीएस गृह रहे बीवीआर को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर लेकर पहले जम्मू-कश्मीर का मुख्य सचिव नियुक्त किया गया। उसके बाद केंद्रीय उद्योग व्यापार विभाग में सचिव फिर रिटायरमेंट के बाद नीति आयोग में पदस्थ किए गए।
हालाँकि, इस घटनाक्रम को लेकर यहां जो चर्चा हो रही है, वह उनके सफल प्रशासनिक ट्रैक रिकॉर्ड पर सरकार के भरोसे को दर्शाती है। छत्तीसगढ़ कैडर के 1987 बैच के आईएएस अधिकारी, सुब्रह्मण्यम को लंबे समय से भारत के विकास एजेंडे के प्रमुख निर्माताओं में से एक माना जाता रहा है। वे छत्तीसगढ़ गठन के शुरूआती दौर में प्रतिनियुक्ति पर विश्व बैंक में भी पदस्थ रहे हैं।
सोशल मीडिया में तस्वीरों का खेल

सोशल मीडिया पर तैरती तस्वीरों का सच अक्सर वैसा नहीं होता जैसा दिखता है। कई एडिटेड और फर्जी होती हैं। कई असली भी, लेकिन साथ लिखी गई कहानी अलग। कभी पूरी तरह भ्रामक, तो कभी आधा-अधूरा सच।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की हाल की पुण्यतिथि के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए एक तस्वीर वायरल हुई। इसमें केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और कुछ अन्य नेत्रियां दिखाई दे रही हैं। तस्वीर के साथ तरह-तरह के कमेंट किए गए, जैसे, अपनी इस दुनिया में सबको इतना खुश देख अटलजी से भी नहीं रहा गया, वे भी खिलखिलाने लगे। जांच करने पर पता चल रहा है कि यह कोई ताजा तस्वीर नहीं थी। सर्च इंजन का पीछा करने पर यह पोस्ट कांग्रेस नेता और मध्यप्रदेश प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के 25 अगस्त 2018 के ट्विटर (अब एक्स) अकाउंट से मिली। उनकी पोस्ट में सिर्फ यही नहीं, बल्कि ऐसी तीन और तस्वीरें भी थीं। पहली तस्वीर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अस्पताल के भीतर मेडिकल स्टाफ से हंसते हुए बात कर रहे हैं। पटवारी ने दावा किया था कि यह अटलजी की मृत्यु के दिन की तस्वीर है। दूसरी तस्वीर वही है, जिसमें चौहान और भाजपा नेत्रियां दिख रही हैं। पटवारी ने लिखा कि यह अटल जी की मौत के सातवें दिन की तस्वीर है। तीसरी, अटलजी के चित्र के सामने दीप जलाने की है, जिसमें दोनों ओर खड़े कुछ नेता ठहाके लगाते नजर आ रहे हैं। पटवारी का दावा था कि ये भाजपा के सांसद-विधायक हैं। चौथी तस्वीर में छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता बृजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर दिखाई देते हैं। उस समय दोनों छत्तीसगढ़ मंत्रिपरिषद के सदस्य थे। इस पर पटवारी ने टिप्पणी की है-अस्थिकलश के साथ ठहाके लगाते मंत्री। पटवारी ने इसके बाद और भी बातें लिखीं, जिन्हें यहां दोहराना जरूरी नहीं।
उस वक्त भाजपा की ओर से तत्काल प्रतिक्रिया आई थी। भाजपा ने कहा कि चौहान की जो तस्वीर अटलजी की मौत के सातवें दिन की जा रही है, वह असल में कमल शक्ति संवाद कार्यक्रम की है, जहां दीप प्रज्ज्वलन हुआ था। इसी तरह पहली तस्वीर, जिसमें प्रधानमंत्री अस्पताल में दिखाई दे रहे हैं, उसे भी भाजपा नेताओं ने कहा कि यह अटलजी के निधन से संबंधित नहीं, बल्कि किसी अन्य मौके की है। कहा- कांग्रेस का मकसद केवल बदनाम करना है।
दरअसल, सोशल मीडिया को भाजपा की आईटी सेल ने 2014 चुनाव के पहले से संगठित और आक्रामक ढंग से इस्तेमाल किया, जिसने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया। मगर, अब कांग्रेस भी उसी खेल में उतर चुकी है। नतीजा यह कि दोनों तरफ से तस्वीरों और पोस्ट के गोला-बारूद चल रहे हैं। इन दिनों छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री पर बने कार्टून और वायरल पोस्ट इसी खेल की ताजा झलक हैं। सोशल मीडिया अब केवल संवाद का जरिया नहीं, बल्कि राजनीति का हर समय व्यस्त अखाड़ा है।


