राजपथ - जनपथ
भारतमाला पर जांच एक्सप्रेस
रायपुर-विशाखापट्टनम भारतमाला प्रोजेक्ट में जमीन अधिग्रहण के नाम पर 43 करोड़ रुपये का घोटाले की जांच एक्सप्रेस वे की ही रफ्तार से हो रही है। एंटी करप्शन ब्यूरो और आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो की कार्रवाई ने रफ्तार पकड़ी है। पिछले दो दिनों में रायपुर और आसपास के 20 ठिकानों पर छापेमारी की गई। दो एसडीएम शशिकांत कुर्रे और निर्भय कुमार साहू निलंबित किए जा चुके हैं। छापा उनके ठिकानों पर भी पड़ा। छापेमारी में लाखों रुपये की नगदी, सोने-चांदी के जेवर, और बेशकीमती जमीनों के दस्तावेज जब्त किए गए। भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत अभनपुर क्षेत्र में 78 करोड़ रुपये का मुआवजा बांटा गया, जिसमें 43 करोड़ रुपये का घोटाला जमीन को छोटे टुकड़ों में बांटकर किया गया। सरकार ने पहले ही ज़मीन बंटवारे, नामांतरण, और खरीद-बिक्री पर रोक लगा रखी थी। फिर भी, राजस्व विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने दलालों, किसानों, और व्यापारियों के साथ मिलकर यह घपला किया।भारतमाला घोटाले की कार्रवाई को देखकर लोग पूछ रहे है क्या शशिकांत कुर्रे और निर्भय साहू और उनके नीचे के अफसर सचमुच नप जाएंगे या जांच लंबी खिंचकर भूल भुलैया में खो जाएगी। यह सवाल बेवजह नहीं है। दिसंबर 2024 में एनटीपीसी के लारा प्रोजेक्ट में 500 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच अचानक बंद कर दी गई थी। सन् 2014 में तत्कालीन रायगढ़ एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल पर गंभीर आरोप लगे, एफआईआर हुई, और सस्पेंशन भी हुआ। लेकिन दो साल बाद वे न केवल बहाल हुए, बल्कि प्रमोशन भी पा चुके हैं। नतीजा? कोई सजा नहीं, कोई जवाबदेही नहीं। जांच नस्ती कर देने की जानकारी तो मिली पर क्या कोई दोषी नहीं पाया गया? या फिर कोई घोटाला ही नहीं हुआ? ये सब मालूम नहीं हुआ। यदि 10 साल बात फाइल बिना किसी निष्कर्ष या निर्णय के बंद ही करनी थी तो तत्कालीन कलेक्टर रजत बंसल ने क्यों फालतू में ही 1300 पन्ने की रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी थी और एफआईआर दर्ज कराई थी?
वैसे सब पर ऐसी कृपा नहीं बरसती। पिछली सरकार में कथित रूप से शराब, कोयला लेवी आदि घोटाले में लिप्त कई बड़े अफसर जेल में हैं। भारतमाला प्रोजेक्ट की भी गड़बड़ी 2019-20 की है। लगभग उन्हीं दिनों की जब कथित तौर पर शराब और कोयला लेवी घोटाले शुरू हुए थे। लारा प्रोजेक्ट का 500 करोड़ रुपये का कथित घोटाला सन् 2014 का है। जांच आगे बढ़ेगी, कोई जेल जाएगा या नहीं जाएगा, सजा होगी या नहीं होगी, यह सब जानने-समझने के लिए यह जानकारी होना जरूरी है कि घोटाला किस साल में हुआ।
गर्मी की मूंगफली
रायपुर जाते समय महासमुंद नदी के किनारे यह दृश्य दिखा — ढेर सारी ताजी मूंगफली और तरबूज़! गाड़ी अपने आप रुक गई । यहां छोटे किसानों ने अस्थायी टेंट के नीचे अपनी दुकानें सजाई थीं। बातचीत में उन्होंने बताया कि शहर से दूर, उनकी आजीविका यात्रियों पर ही निर्भर है। वे इसी रास्ते पर अपना छोटा-सा संसार बसा लेते हैं। सडक़ से गुजरने वालों की भी अच्छी-खासी भीड़ यहां रुकती है।
वहीं पास में एक सिगड़ी पर ताजी गीली मूंगफली भूंजकर भी बेची जा रही थी। आगे की एक रेहड़ी पर दो छोटे बच्चे तरबूज़ बेचते हुए, खाली समय में चाकू और लकड़ी के टुकड़े से संगीत बजाकर ग्राहकों को आकर्षित कर रहे थे। उनका हुनर और मेहनत देखकर दिल खुश हो गया।
अगर आपकी सामर्थ्य हो तो इन छोटे किसानों से मोलभाव न करें, जैसे आप मॉल में खरीदारी करते समय नहीं करते। उनका हर छोटा प्रयास जीवन की जद्दोजहद का हिस्सा है। कुछ लोगों ने पूछा कि इस मौसम में ताजी मूंगफली कैसे मिली। जानकारी के अनुसार, कुछ क्षेत्रों में मूंगफली गेहूं की फसल के बाद भी बोई जाती है और अप्रैल के आसपास तैयार होती है। हर इलाके की कृषि पद्धति अलग होती है। (अंकिता जैन/फेसबुक)
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