राजपथ - जनपथ

नाराज़ विधायक
विधानसभा चुनाव में अभी पूरे तीन वर्ष शेष हैं। लेकिन कहा जाता है कि भाजपा हर समय चुनाव के लिए तैयार रहती है। और इसी उक्ति का पालन करते हुए पार्टी के एक विधायक, डेढ़ वर्ष बाद ही अभी से अपने क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं। पूछा जाए तो कहते हैं कि क्षेत्र में सक्रियता ही राजनीतिक जीवन का सार है। दक्षिण के जंगल इलाके के विधायक जी अब महीने में 15-17 दिन अपने इलाके में ही रहते हैं। यह ह्रदय परिवर्तन बीते दिसंबर के बाद से हुआ है। और वह ऐसे ही नहीं हुआ। दरअसल विधायक जी का नाम मंत्रिमंडल में रिक्त एक कुर्सी ये लिए प्रावीण्य सूची में सबसे उपर था। लेकिन एक पुराने मंत्री ने ऐसी प्लान रचा कि विधायकजी मन मसोस कर बैठ गए हैं। उस पर एक तुक्का कि निगम मंडल में एक कुर्सी उनके विरोधी को दे दी गई। उसके बाद से ही विधायक संगठन की बैठकों में भी नहीं आ रहे।
यहां तक कि कल पीएमओ के राज्य मंत्री के वक्फ वर्कशाप, और बुद्धिजीवी सम्मेलन से भी दूरी बनाए रखा। अब देखना है कि फूफा बने विधायक की नाराजगी को संगठन नेतृत्व कब भांपता है।
बोरे बासी
भूपेश सरकार मजदूर दिवस को बोरे-बासी दिवस के रूप में मनाती रही है। तब नेताओं, और अफसरों की बोरे-बासी खाते तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाई रहती थी।
सत्ता में हटने के बाद कांग्रेस ने बोरे-बासी दिवस मनाने का ऐलान तो किया, लेकिन रायपुर सहित ज्यादातर जिलों में कोई कार्यक्रम नहीं हुआ। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, और कई अन्य नेताओं ने घर में बासी खाते तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर कर औपचारिकता निभाई। इससे परे दुर्ग में नव नियुक्त जिला अध्यक्ष राकेश ठाकुर ने कांग्रेस भवन में बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया। इसमें पूर्व सीएम भूपेश बघेल सहित पांच लोगों ने एक साथ बैठक कर बोरे-बासी खाया।
दुर्ग के इस कार्यक्रम की गूंज अब चारों तरफ होने लगी है।
संभावना जताई जा रही है कि आने वाले समय में दुर्ग की तरह बाकी जिलों में ऐसा ही कार्यक्रम होगा। फिलहाल तो जिन जिलों में कार्यक्रम नहीं हुआ है, वहां के जिला अध्यक्षों से सवाल हो रहा है।
फेक पोस्ट शेयर करने की हड़बड़ी
सोशल मीडिया आज सबसे तेज और प्रभावशाली सूचना का माध्यम बन चुका है। लेकिन, जितनी तेजी से यह खबरें पहुंचाता है, उतनी ही तेजी से लोगों में चौंकाने वाली सूचनाओं को वायरल करने की हड़बड़ी भी देखी जा रही है। अक्सर बिना उनकी सच्चाई की पड़ताल किए। अफसोस की बात यह है कि कई बार पढ़े-लिखे और जिम्मेदार लोग भी इस जाल में फंस जाते हैं, जिससे न केवल उनकी खुद की साख को धक्का पहुंचता है, बल्कि समाज में अफवाहों और नफरत का जहर भी फैलता है।
हालिया उदाहरण रायपुर में क्रिश्चियन फोरम के नेता अरुण पन्नालाल का है, जिनके खिलाफ पहलगाम हमले में मृतकों की फर्जी सूची साझा करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई। यह सूची पहले ही सैकड़ों बार सोशल मीडिया पर घूम चुकी थी, लेकिन जब कोई जिम्मेदार व्यक्ति इसे शेयर करता है, तो उसका असर कई गुना बढ़ जाता है।
ऐसे पोस्ट से नफरत फैलाने वालों को मौका मिलता है। संदिग्ध पोस्ट को शेयर करने से पहले ठहरकर सोच लेना ही समझदारी है। पता किया जा सकता है कि यह जानकारी किस स्रोत से आई है? क्या फोटो या वीडियो असली संदर्भ में है? इसके लिए गूगल रिवर्स इमेज सर्च, इन विड जैसे टूल मौजूद हैं। विश्वास न्यूज, आल्ट न्यूज जैसे प्लेटफार्म भी फेक न्यूज को पकडऩे में लगातार काम करते हैं। आल्ट न्यूज ने तो आम लोगों को प्रस्ताव भी दे रखा है कि कोई भी पोस्ट यदि उन्हें संदिग्ध लगती है तो सच्चाई का पता हमसे पोस्ट को शेयर करके पता कर लें। वैसे, ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे खुले प्लेटफॉर्म पर तो फिर भी सार्वजनिक निगरानी रहती है, लेकिन व्हाट्सएप के निजी ग्रुप्स ज्यादा खतरनाक है। यहां समान विचारों वाले लोग एक-दूसरे को बिना रोक-टोक के पोस्ट्स भेजते रहते हैं। यह लाखों लोगों तक कुछ मिनटों पहुंच रही है। गलत सूचना की शिकायत तभी हो पाती है जब वह सूचना ग्रुप से बाहर निकलकर किसी असहमत व्यक्ति के हाथ में आ जाए।
पानी के लिए धक्का-मुक्की
छत्तीसगढ़ के सारंगढ़ जिले में स्थित गोमर्डा अभयारण्य से एक विडियो सामने आया है, जिसमें 28 हाथियों का झुंड भीषण गर्मी में प्यास बुझाने के लिए पानी की टंकी के पास जुटा हुआ नजर आ रहा है। बरमकेला रेंज में रिकॉर्ड हुए इस दृश्य में बड़े हाथी पहले पानी पीने की कोशिश करते दिखते हैं, जबकि छोटे-छोटे शावक पीछे खड़े रहते हैं। पानी तक जल्दी पहुंचने की होड़ में हाथी एक-दूसरे को सूंड से धकेलते देखे गए। अभयारण्य में पिछले दो सालों से 27 हाथियों का स्थायी दल मौजूद है, जो अब एक और शावक के जुडऩे से 28 का हो गया है। इनकी गतिविधियां खासकर बरमकेला व सारंगढ़ रेंज में देखी जाती हैं, लेकिन बीते कुछ समय से ये लगातार बरमकेला रेंज में ही टिके हुए हैं।
इस दल में 3 नर, 14 मादा और 11 शावक शामिल हैं। ये हाथी रोजाना शाम के वक्त पानी पीने टंकी तक पहुंचते हैं। वन्यजीवों को यदि इस भीषण गर्मी में पानी के स्त्रोत उपलब्ध हो जाएं तो मानव के साथ उनका संघर्ष कम होगा और उनके शिकार का भी खतरा कम होगा।
(rajpathjanpath@gmail.com)