राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की 2021 के घोटाले की तथा गिरफ्तार आरोपियों को जमानत नहीं मिलने की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। पर 2003 में भी बड़ी अनियमितता हुई थी। तब परीक्षा में गलत टेबुलेशन और प्राप्तांकों की गणना से काबिल उम्मीदवारों को या तो नीचे के पदों पर चयन किया गया, या फिर रेस से बाहर ही कर दिया गया। उस समय भी भाई-भतीजावाद के गंभीर आरोप लगे। इस लड़ाई को लडऩे वालों में जो लोग सामने थे, उनमें वर्षा कुंजाम और संतोष कुंजाम भी थे। इन अनियमितताओं को उन्होंने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चुनौती दी। 2014 में उनके पक्ष में फैसला आया। राज्य सरकार ने भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को स्वीकार किया और कोर्ट ने इसे रद्द करने का आदेश दिया। फैसला तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच का था।
इधर चयनित उम्मीदवारों और राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की और स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया। इसके बाद से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, और याचिकाकर्ताओं को अंतिम सुनवाई की तारीख का इंतजार है। वर्षा कुंजाम ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिये अपनी व्यथा और नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में प्रक्रियात्मक देरी, जैसे कि रजिस्ट्रार कार्यालय से केस को उचित सर्विस के बाद ही सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का नियम, ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया है। उनके मामले में कोई कमी नहीं है, लेकिन अन्य क्लब्ड मामलों की खामियों के कारण सुनवाई रुकी हुई है। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के स्थगन के चलते ही विवादित चयनित अभ्यर्थियों को आईएएस अवार्ड हो चुका है।
पोस्ट में वर्षा कुंजाम और संतोष कुंजाम ने आरोप लगाया है कि यह मामला उस समय की बीजेपी सरकार के कार्यकाल से जुड़ा है, और याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि वर्तमान सरकार इस मामले को दबाने का प्रयास कर रही है। इसके विपरीत, 2021 के सीजीपीएससी भर्ती घोटाले में, जो कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हुआ, सीबीआई ने त्वरित कार्रवाई की। इस दोहरे मापदंड ने याचिकाकर्ताओं के बीच असंतोष को और बढ़ाया है। उन्होंने अपनी पोस्ट में यह भी आशंका जताई गई है कि सुप्रीम कोर्ट में जान-बूझकर रोकने की कोशिश की जा रही है। हालांकि कुंजाम दंपती का यह आरोप सत्यापित नहीं है, यह उस गहरी हताशा को दर्शाता है जो 20 वर्षों की प्रतीक्षा के बाद उत्पन्न हुई है। फरवरी 2025 में इस मामले को 20 वर्ष पूरे हो गए। 11 वर्ष हाईकोर्ट में और 9 वर्ष सुप्रीम कोर्ट में। इस दौरान, याचिकाकर्ताओं ने बार-बार अंतिम सुनवाई के लिए आवेदन दिए, लेकिन प्रक्रियात्मक जटिलताओं और क्लब्ड मामलों के कारण प्रगति नहीं हुई। याचिकाकर्ताओं ने भविष्य में अपने लिए भी खतरे की आशंका जताई है। उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण से संपर्क कर जल्दी सुनवाई का रास्ता निकालने की गुहार भी लगाई है।