राजपथ - जनपथ
तबादलों पर मानवीय रुख
तबादलों पर अभी राज्य में प्रतिबंध है। नई सरकार आने के बाद से नई तबादला नीति भी जारी नहीं की गई है । पहले लोकसभा फिर निकाय चुनाव के चलते तबादला नीति जारी नहीं की जा सकी है। और अब सुशासन तिहार के बाद जून जुलाई में जारी होने के संकेत हैं। तब तक के लिए पिछले एक डेढ़ वर्ष से द्वितीय और तृतीय वर्ग के सभी आवश्यक तबादले विभागीय मंत्री की सिफारिश पर सीएम की अध्यक्षता वाले समन्वय समिति के अनुमोदन पर ही हो रहे हैं । और इसे लेकर सीएम सचिवालय पूरी गंभीरता, सहानुभूति बरतते हुए मंजूरी दे रहा है । कि किसी को भी यह लगे कि परेशान करने या मंत्री- सचिव की नाराजगी से बतौर सजा दूरस्थ इलाकों में भेजा जा रहा है।
एक एक नाम की पूरी जानकारी लेकर किए जा रहे हैं। एक भी नाम पर ऐसा फीड बैक मिलते ही समन्वय समिति नाम काट देती है। यह प्रैक्टिस पिछले तीन महीने से सफलता से चल रही है। कल भी दो विभागों में हुए तबादलों के बाद इसका खुलासा हुई। वन मंत्रालय ने 35 डीएफओ और स्वास्थ्य मंत्रालय मे 22 ड्रग कंट्रोलर के तबादलों का प्रस्ताव भेजा था। सूची जारी हुई तो डीएफओ की सूची में बड़ा बदलाव देखने को मिला। एप्रूव सूची में मंत्रियों के भेजे कई नाम नहीं थे। तो पांच ड्रग कंट्रोलर के नाम ही नहीं थे।
इसके बाद तो दोनों ही जगह हडक़ंप मच गया। यहां तक की मंत्रियों ने ही पूछताछ शुरू कर दी। तो उन्हें बताया कि पूरी छानबीन होने लगी है। अब जब चाहे तब तबादलों पर अनुमोदन नहीं लिया जा सकेगा। इससे सरकार की छवि भी तबादला उद्योग वाली से परे बनी हुई है। लेकिन इस प्रक्रिया से वे लोग परेशान हो गए हैं जो तबादलों में अपना फायदा देखते और उठाते रहे हैं। देखना होगा कि जुलाई में जारी होने वाली तबादला नीति कितनी मजबूत होती है
बिजली गुल कर जलसंकट से निजात
निगम प्रशासन ने जल संकट को देखते हुए राजधानी के टेल एंड तक पानी पहुंचाने एक नई युक्ति ढूंढी है। वह यह कि बीच रास्ते के मोहल्लों में पंप के जरिए पानी चोरी रोकने सुबह शाम एक एक घंटे बिजली गुल कराए। इसके लिए राजधानी ये बिजली अफसरों को आदेश दे दिया गया है। पहले कभी भी न हुए इस नवाचार को लेकर सोशल मीडिया में जबरदस्त प्रतिक्रिया देखने सुनने पढऩे मिल रही है। इनमें कुछ तो ऐसे भी जो निगम में ही सभापति,महापौर, एमआईसी मेंबर रहे हैं। यह अलग बात है कि वे कांग्रेस के रहे। लेकिन सभी ने अपने अनुभव साझा किए हैं। एक ने लिखा-नगर निगम की भाजपा परिषद का जबरदस्त फैसला 135 से ज्यादा स्थानों में सुचारू रूप से जल प्रदान करने सुबह और शाम दोनो टाइम लाइट बन्द करने से पानी की होगी आपूर्ति ।
गज़ब आइडिया है अब मई और जून तक सुबह 6 बजे उठने की आदत डालने आयुक्त ने आदेश जारी किया। कम मेहनत में ज्यादा आउटपुट। दूसरे ने रि पोस्ट किया- केवल राममंदिर तरफ , ऑफिसर कॉलोनी,मंत्री बंगला, तरफ लाइट गोल नहीं होगा।
बाकी तरफ लाइट गोल रहेगा। तीसरे ने लिखा- पानी देने में विफल निगम की एक और करतूत । चौथे ने कहा- इसको कहते है नाच ना आए आँगन टेढ़ा , अरे भाई जहाँ जिस टंकी से सप्लाई में दिक्कत है, वहाँ बहुत जरूरी हो तो लाइट गोल करना था । ये तो पूरे शहर को गांव बना देंगे एक घंटे के लिए । पिछले कई साल ये स्थिति नहीं थी ।
नाजुक मोड़ पर बस्तर के हालात
बस्तर में इस समय चल रहा ‘ऑपरेशन कगार’ नक्सलवाद के खिलाफ देश का अब तक का सबसे बड़ा और निर्णायक अभियान माना जा रहा है। बीजापुर और तेलंगाना सीमा पर स्थित कर्रेगट्टा की पहाडिय़ों में यह ऑपरेशन पिछले कई दिनों से जारी है, जिसमें हजारों सुरक्षाबलों को तैनात किया गया है। अत्याधुनिक ड्रोन और सैटेलाइट तकनीक की मदद से माओवादी नेटवर्क को चारों ओर से घेर लिया गया है। इस ऑपरेशन की तीव्रता ने नक्सलियों पर ऐसा दबाव बनाया है, जैसा पहले कभी नहीं देखा गया।
अनुमान लगाया जा रहा है कि इसी के चलते माओवादी संगठन अब लगातार शांति वार्ता की पेशकश कर रहे हैं। कर्रेगट्टा में नक्सलियों के कई ठिकानों को ध्वस्त किया गया है और कुछ के मारे जाने की पुष्टि भी हुई है। कहा जा रहा है कि माओवादी कमांडर हिड़मा, देवा और विकास भी सुरक्षा घेरे में हैं। इन परिस्थितियों में माओवादियों द्वारा जारी प्रेस नोट, जिसमें ऑपरेशन को रोकने और एक महीने के युद्धविराम की मांग की गई है, यह दर्शाता है कि वे भारी दबाव में हैं।
इधर, 28 अप्रैल की शाम आंध्रप्रदेश के नेल्लोर में एक निकाली गई। रैली का उद्देश्य ऑपरेशन ‘कगार’ को रोकना और शांति वार्ता शुरू करने की मांग को सामने लाना था। यह एक तरह से छत्तीसगढ़ व केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए ही था। तेलंगाना के सीएम ने भी वार्ता के पक्ष में दलील दी है।
इधर राज्य सरकार सावधानी से कदम उठाना चाहती, दिख रही है। उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री विजय शर्मा ने कहा है कि वार्ता की पेशकश केवल तभी स्वीकार की जाएगी, जब माओवादी बिना किसी शर्त के हथियार छोडऩे को तैयार हों। उन्होंने यह भी जोड़ा कि सरकार माओवादियों की इस पहल की गंभीरता और सच्चाई की जांच करेगी। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि माओवादी पूर्व में भी कई बार ऐसे समय पर वार्ता की बात करते रहे हैं, जब उन पर सैन्य दबाव चरम पर होता है। लेकिन जैसे ही उन्हें मौका मिलता है, वे फिर से हिंसा की राह पकड़ लेते हैं। ऐसे में मौजूदा शांति प्रस्ताव को भी कई लोग एक रणनीतिक चाल मान रहे हैं, जिससे माओवादी सुरक्षाबलों की कार्रवाई से राहत पा सकें और अपनी पकड़ को दोबारा मजबूत कर सकें। कुल मिलाकर, इस समय बस्तर की स्थिति बेहद नाजुक मोड़ पर है। एक ओर सुरक्षा बल बढ़त पर हैं, वहीं दूसरी ओर माओवादी शांति वार्ता के लिए बेहद उत्सुक लग रहे हैं। आने वाले दिन बस्तर की शांति के लिए बेहद महत्वपूर्ण होने वाले हैं।
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