राजपथ - जनपथ
भाजपा, स्थानीय, और लीडरशिप
भाजपा में कभी-कभी ऐसा होता है कि नियुक्तियों में स्थानीय पसंद या नापसंद को नजरअंदाज कर दिया जाता है। कुछ ऐसा ही वाकया कोरबा जिला अध्यक्ष की नियुक्ति में भी हुआ। पार्टी ने चार महीने के भीतर मनोज शर्मा को जिला अध्यक्ष पद से हटाकर गोपाल मोदी को जिले की कमान सौंप दी।
बताते हैं कि मनोज शर्मा को हटाने के पीछे दो प्रमुख वजह रही है। इनमें से एक तो नगर निगम सभापति के चुनाव में बहुमत के बाद भी पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी हितानंद अग्रवाल को हार का मुख देखना पड़ा। यहां पार्टी के बागी नूतन सिंह ठाकुर चुनाव जीत गए।
मनोज पर आरोप लगा कि उन्होंने पार्षदों के बागी रूख की जानकारी प्रदेश नेतृत्व को विलंब से दी। एक आरोप यह भी था कि कोरबा के पाली में पिछले दिनों ट्रांसपोर्टर की हत्या प्रकरण में संलिप्त भाजपा नेताओं को बचाने के लिए पुलिस पर दबाव बना रहे थे।
मनोज शर्मा को जिला अध्यक्ष पद से हटाया गया, तो कई नामों पर चर्चा हुई। कोरबा के स्थानीय कई बड़े नेता चाहते थे कि पार्टी गोपाल मोदी को छोडक़र किसी को भी जिले की कमान सौंप दे। चर्चा है कि उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन भी मोदी के पक्ष में नहीं थे। मगर पार्टी नेतृत्व ने किसी की नहीं सुनी, और गोपाल मोदी को जिला अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी। चूंकि सभापति चुनाव में स्थानीय नेता अधिकृत प्रत्याशी को नहीं जिता पाए, इसलिए वो ज्यादा कुछ कहने की स्थिति में नहीं रह गए हैं।
जंगल में दंगल
कई गंभीर आरोपों के बाद भी हेड आफ फारेस्ट फ़ोर्स वी श्रीनिवास राव का बाल बांका नहीं हुआ। उनकी नियुक्ति के खिलाफ सीनियर अफसरों ने कैट से लेकर हाईकोर्ट तक में लड़ाई लड़ी, लेकिन हर बार नतीजा श्री निवासराव के पक्ष में ही आया।
हालांकि सीनियर अफसरों ने श्रीनिवास राव से हार नहीं मानी है, और उनकी नियुक्ति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। अब लड़ाई पद की नहीं रह गई है। क्योंकि राव के खिलाफ लड़ाई लड़ते लड़ते संजय ओझा और एक-दो अन्य अफसर रिटायर हो चुके हैं। राव के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका सीनियर मोस्ट पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल ने दायर कर रखी है,वो भी चार महीने बाद रिटायर हो जाएंगे। ऐसे में उनके लिए लड़ाई पद की नहीं बल्कि प्रतिष्ठा की हो गई है। देखना है कि आखिरी लड़ाई का अंजाम क्या होता है।
चंदवा बैगा
साथियों, हमारे छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले से जुड़ा एक प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ी लोग गीत है- चंदवा बैगा। यह गीत क्षेत्रीय संस्कृति, लोक-कथाओं और धार्मिक भावनाओं का परिचायक है। इसके गायक दिलीप षडंगी जी हैँ। आपने जरूर इस गीत को सूना होगा। गायक कहता है-
नीम के सांटी मार के बइगा भूत भगवाय गा
ए धूप देखावय निम्बू काटय चंदवा बैइगा गा.......
दे सड़ा सड...................
गांवों में जो बैगा होते हैं उनकी अलग पहचान होती है। कोई बैगा बड़ा -बड़ा बाल रखता है, किसी के बालों का लट निकला होता है तो कोई बिना बाल का चंदवा रहता है। इस गीत के जो पात्र हैं बैगा, वे चंदवा रहे होंगे। इसी लिये वे चंदवा नाम से प्रसिद्ध हो गये। गीत को बड़ी संख्या में लोग सुने हैँ और पसंद भी करते हैं लेकिन जानते नहीं आखिर ये बैगा कहां है। तो लीजिये आपके लिये मैं जांजगीर जाकर चंदवा बैगा के मंदिर की फोटो ले आया हूं।
(यह फोटो प्रदेश के वरिष्ठ छायाकार गोकुल सोनी ने शेयर किया है। )
बैंक भी अब ताना मारने लगे
ऑनलाइन ठगी का जाल अब इतना फैला चुका है कि लोग भयभीत हैं। इसलिये कुछ लोग मोबाइल फोन पर बार-बार अपने अकाउंट का बैलेंस चेक कर लेते हैं। दूसरी ओर अगर किसी ने गलती से डाल ही दिए हों, तो निकालने में देरी क्यों हो? ऑनलाइन सट्टेबाजी गिरोहों ने आम लोगों के खातों को 'एटीएम' की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।रकम डालते हैं, निकालते हैं। इस समय एक पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। जेके बैंक की ओर से ग्राहक को मैसेज आया। आप अपना बैलेंस हर आधे घंटे में चेक कर रहे हैं। यदि हम पर भरोसा नहीं है तो आप अपने 11 रुपये निकाल सकते हैं। यह मैसेज असली है या किसी सोशल मीडिया यूजर की शरारत, कहना मुश्किल है। शरारत हो तब भी रचनात्मकता की दाद तो दी जानी चाहिए।
छत्तीसगढ़ को चाहिए दिल्ली जैसा कानून
सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में शिक्षा को एक चैरिटेबल गतिविधि माना गया है और फीस निर्धारण में पारदर्शिता को अनिवार्य बताया गया है। लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है। छत्तीसगढ़ के निजी स्कूलों में फीस वृद्धि का कोई पारदर्शी सिस्टम नहीं दिखता। मौजूद शिक्षा सत्र में भी मनमानी तरीके से फीस बढ़ाई जा रही है, जिससे मध्यमवर्गीय परिवारों की चिंता बढ़ती जा रही है।
पिछले साल बाल संरक्षण आयोग और राज्य सरकार ने निजी स्कूलों के लिए कई निर्देश जारी किए थे- जैसे स्कूलों को चार बाई आठ फीट के बोर्ड पर फीस की जानकारी प्रदर्शित करनी होगी, स्कूल समिति से अनुमोदन लेना होगा और आरटीई एक्ट के तहत फीस बढ़ानी होगी। लेकिन रायपुर, बिलासपुर और कवर्धा जैसे शहरों से लगातार यह खबरें आ रही हैं कि न तो स्कूल इन निर्देशों का पालन कर रहे हैं और न ही शासन उन्हें रोक पा रहा है।
इधर अपने सामने दिल्ली कैबिनेट का 30 अप्रैल को लिया गया फैसला है। वहां 'दिल्ली स्कूल शिक्षा (फीस निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता) अधिनियम' को मंजूरी दी गई है। इस कानून के तहत फीस बढ़ाने से पहले स्कूलों को तीन स्तरों, स्कूल समिति, जिला समिति और राज्य समिति से अनुमति लेनी होगी। तय समय-सीमा में प्रक्रिया पूरी करनी होगी। यदि कोई स्कूल नियमों का उल्लंघन करता है, तो उस पर एक से 10 लाख रुपये तक जुर्माना और किसी छात्र को फीस न भरने पर क्लास से बाहर करने पर 50,000 रुपये का दंड तय किया गया है। यह कानून एक अप्रैल 2025 से लागू माना जाएगा। वहां यह छत्तीसगढ़ की तरह सरकारी आदेश नहीं है बल्कि कानून बनाया जा रहा है। दिल्ली में भाजपा की सरकार को निम्न मध्यमवर्ग का व्यापक समर्थन मिला है। छत्तीसगढ़ में भी यही वर्ग भाजपा का प्रमुख वोटबैंक रहा है। नया शिक्षा सत्र शुरू होने वाला है। इस लिहाज से यहां भी अभिभावकों का हक बनता है कि वे मनमानी फीस से राहत पाएं।
जेब्रा का सौदा, जोखिम और जिम्मेदारी
रायपुर के जंगल सफारी में अफ्रीकी मूल के जेब्रा की आमद भले ही रोमांचक खबर लगे, पर इसके पीछे की अदला-बदली की कहानी और उससे जुड़े सवाल ध्यान खींचते हैं। क्या छत्तीसगढ़ को ज्यादा जरूरत थी जेब्रा की, या फिर जामनगर (गुजरात) के रिलायंस जू को दुर्लभ सफेद हिमालयन भालू की? इस बार जो वन्यजीवों का सौदा हुआ, उसमें छत्तीसगढ़ को जेब्रा, मीर कैट और माउस डियर (बार्किंग डियर) का जोड़ा मिला, जबकि गुजरात को दुर्लभ सफेद भालू।
दरअसल, ये दोनों सफेद भालू शावक मरवाही और चिरमिरी के जंगलों में बीमार हालत में मिले थे। रायपुर जंगल सफारी में महीनों इलाज और देखभाल के बाद वे स्वस्थ हुए और अब जामनगर भेजे गए हैं। सफारी प्रबंधन करीब एक दशक से जेब्रा लाने की कोशिश कर रहा था। तीन साल पहले तो वन विभाग के अफसर तत्कालीन मंत्री के साथ दक्षिण अफ्रीका गए थे, लेकिन पता चला कि वहां से जेब्रा लाने का खर्च करीब 15 करोड़ रुपये आता, इसलिए योजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई।
अब जब जामनगर के रिलायंस जू से अदला-बदली का मौका मिला, तो सफारी प्रबंधन ने तुरंत हाथ बढ़ाया। हालांकि, सवाल यह भी है कि क्या रायपुर के लिए जेब्रा वाकई इतनी जरूरी प्रजाति थी? सफारी में पहले से ही चीतल, सांभर, ब्लैकबक जैसे शाकाहारी जीव मौजूद हैं। जेब्रा की देखभाल के लिए विशेष इंतजाम की जरूरत होगी। जैसे छायादार स्थान, ठंडे पानी की व्यवस्था, स्प्रिंकलर सिस्टम, क्योंकि रायपुर का गर्म और उमस भरा मौसम (गर्मियों में 46 डिग्री सेल्सियस) अफ्रीकी सवाना से बिल्कुल भिन्न है।
अभी ये जेब्रा जोड़ा 21 दिन के क्वारंटाइन में है, जिसके बाद ये सफारी के खुले क्षेत्र में छोड़े जाएंगे। इस बार अच्छी बात यह रही कि इनका सफर सुरक्षित रहा, वरना हाल ही में नागालैंड से लाते समय हिमालयन भालू में से एक की रास्ते में ही मौत हो गई थी, और केवल एक ही रायपुर पहुंच पाया था।
अतीत में चौसिंगा जैसी प्रजातियों की रहस्यमयी मौतें जंगल सफारी के रिकॉर्ड में दर्ज हैं, जिनकी वजह आज तक स्पष्ट नहीं हो सकी है। ऐसे में यह और जरूरी हो जाता है कि जेब्रा जैसे विदेशी वन्यजीव की देखभाल में कोई लापरवाही न हो। अंतत: यह सौदा एक ऐसा मौका है, जब रायपुर जंगल सफारी अपने प्रबंधन की साख को मजबूत कर सकता है।
(rajpathjanpath@gmail.com)