राजपथ - जनपथ
म्युनिसिपलों में टकराव
प्रदेश के दस म्युनिसिपल में भाजपा का कब्जा है। कोरबा छोडक़र बाकी जगहों पर सभापति भी भाजपा के ही चुनकर आए हैं। एक-दो जगहों पर मेयर और सभापति के बीच खींचतान की शुरुआत भी हो गई है।
वैसे तो सभापति की भूमिका सिर्फ सामान्य सभा के संचालन तक ही सीमित रहती है। एक जोन के पदेन अध्यक्ष भी होते हैं, लेकिन एक पार्षद से परे कोई और अधिकार नहीं रहता है। जिन कुछ जगहों मेयर सीधे और सरल हैं वहाँ तेजतर्रार सभापति अपनी अलग पहचान बनाने में जुटे हैं।
ऐसे ही एक म्युनिसिपल में सभापति ने पार्टी के कार्यक्रम के लिए अफसरों, और ठेकेदारों को सहयोग करने के लिए कहा। चर्चा है कि कुछ ने आर्थिक सहयोग भी कर दिया। बात मेयर तक पहुंचीं, उन्होंने अफसरों को बुलाकर साफ तौर पर कह दिया कि किसी को किसी तरह का सहयोग करने की जरूरत नहीं है। सरल स्वभाव की महिला मेयर का रूख देखकर अफसर भी चौंक गए, और उनकी तारीफ करते नहीं थक रहे हैं।
वक्फ को लेकर सनसनी जारी
वक्फ कानून मसले पर राजनीति गरमाई हुई है। भाजपा वक्फ संशोधन अधिनियम को उचित ठहराने के लिए अभियान चला रही है। जिला स्तर पर कार्यशाला आयोजित किए जा रहे हैं। मगर कांग्रेस ने इस मसले पर खामोशी ओढ़ रखी है।
भाजपा के संशोधन कानून का फायदा गिनाने के लिए पीएमओ के राज्यमंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह यहां आए थे। साथ ही भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राधामोहन अग्रवाल ने भी यहां प्रेस वार्ता को संबोधित किया था।
दूसरी तरफ, कांग्रेस का हाल यह है कि प्रदेश स्तर पर किसी भी मुस्लिम नेता ने वक्फ संशोधन अधिनियम के मसले पर खुलकर राय नहीं रखी है। पार्टी के नेता सिर्फ विरोध के लिए ही विरोध करते दिख रहे हैं।
कांग्रेस नेताओं की चुप्पी की एक बड़ी वजह राज्य वक्फ बोर्ड के चेयरमैन डॉ. सलीम राज की कार्रवाई भी मानी जा रही है। डॉ. राज ने वक्फ संपत्तियों की बिक्री की फाईल खोल दी है, और यह बात सामने आई कि रायपुर, बिलासपुर समेत कई जिलों में अरबों की संपत्ति गलत तरीके से बेच दी है। वक्फ बोर्ड ने इस पर संपत्ति क्रेताओं को नोटिस भी भेजा है। जाहिर है यह यह सब कुछ कांग्रेस शासन काल में हुआ है। यही वजह है कि जो विरोध सीएए, और एन आरसी के समय हो रहा था, उस तरह की प्रतिक्रिया अब तक मुस्लिम समाज की तरफ से नहीं आई है। इन सब वजहों से कांग्रेस वक्फ कानून के मसले पर बैकफुट में दिख रही है।
साहब का शौक, खरगोश
बड़े ओहदेदार साहबों के भी अलग-अलग शौक होते हैं। और इसकी चर्चा मातहत करते हैं। और यही शौक जब समस्या बन जाती है तो यही लोग शिकायत और प्रचार भी करते हैं। ऐसे ही एक साहब से डाक अमला परेशान है। साहब प्रदेश में जहां भी आधिकारिक दौरे पर जाते हैं। तो खाने-पीने और वापसी पर रिटर्न गिफ्ट का पूरा इंतजाम करना पड़ता है। डाक परिमंडल कार्यालय के इन साहब के ऐसे ही हिंसात्मक शौक की मातहत चर्चा और शिकायत करने से नहीं चूक रहे।
बताते हैं कि साहब हर माह किसी न किसी संभाग का दौरा करते हैं। और अपने समयानुकूल डिनर या लंच प्लेट में खरगोश के मटन का शौक फरमाते हैं। यह सिलसिला कई महीनों से जारी है।
खरगोश (रेबिट) इतना प्यारा पालतू जानवर होता है कि उसे देखते ही दिल दिमाग प्यार गुदगुदी से भर जाए। ऐसे में इस बेजुबान को चोट पहुंचाना सोचा भी नहीं जाता। लेकिन इसे पूरा करने में वे इस मासूम की जान लेने से भी नहीं चूकते। और मातहत इसके इंतजाम करने को लेकर परेशान रहते हैं।
वैसे तो साहब के कई और शौक चर्चा में हैं। इनमें गिफ्ट लेने का भी शौक है। इसमें सबसे छोटे गिफ्ट के रूप में तीन-तीन हजार कीमत के पैन के साथ मातहतों की हैसियत अनुसार बड़े और महंगे गिफ्ट ले लेते हैं। हाल में एक डाक सहायक से डेढ़ लाख का कैमरा, 18 हजार का बैडमिंटन रैकेट भी ले चुके हैं। साहब के ऐसे शौक से कर्मचारी बेहद परेशान है। जिसके कदम ठिठके उसके खिलाफ जांच, तबादले का डंडा इस्तेमाल होता है। यह प्रति माह व्यक्तिगत ही नहीं और संभाग स्तरीय समारोह में भी देना होता है। बताया गया है कि ऐसे शौकिया साहब की शिकायत केंद्र सरकार के मंत्रालय तक पहुंच गई है देखना है आगे क्या होता है?
बारनवापारा को लेपर्ड सेंचुरी क्यों न बना दें?
आज वर्ल्ड लेपर्ड डे है। और यह तस्वीर छत्तीसगढ़ के बारनवापारा की है। यह वन्यजीव अभयारण्य एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत इलाका है, जो अपनी हरियाली, शांत वातावरण और समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है। अब यहां लेपर्ड (तेंदुआ) की बढ़ती संख्या और लगातार हो रही साइटिंग (दर्शनीय उपस्थिति) के चलते इसे ‘लेपर्ड सेंचुरी’ घोषित करने की मांग उठने लगी है।
बारनवापारा में टाइगर नहीं पाए जाते, लेकिन लेपर्ड की अनुमानित संख्या 60 से 80 के बीच बताई जा रही है। सफारी कराने वाले जिप्सी ड्राइवर ठाकुर नेपाल सिंह कहते हैं कि पर्यटकों की दिलचस्पी खासतौर पर लेपर्ड को देखने में बढ़ गई है। गाइड चैन सिंह बताते हैं कि वे अब लेपर्ड की ‘अलार्म कॉल’ पहचानने और पर्यटकों को लेपर्ड तक ले जाने की तकनीक सीखते जा रहे हैं।
देशभर में राजस्थान की झालना और जयपुर की लेपर्ड सेंचुरी बेहद लोकप्रिय हैं, जहां देश-विदेश से लेपर्ड प्रेमी आते हैं। बारनवापारा का वाटर मैनेजमेंट अच्छा माना जाता है, जिससे यहां के वन्यजीवों को पर्याप्त जल स्रोत मिलते हैं। यह पहलू भी महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि किसी भी सेंचुरी की घोषणा से पहले वन विभाग को यह सुनिश्चित करना होता है कि वन्यजीवों के लिए पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं। देश के अन्य राज्यों से लेपर्ड प्रेमी, फोटोग्राफर और प्रकृति प्रेमी यहां आएंगे, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे। सरकार और वन विभाग के लिए यह एक अवसर होगा कि वे राज्य की वन्यजीव संपदा को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उभार सकें।
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