राजपथ - जनपथ
पूर्ववर्तियों पर टिप्पणी उचित नहीं
कुछ अफसरों का अधिक काम करना भी उनके लिए नुकसानदेह हो जाता है, वे समझते हैं कि वे बरसों का बचा-खुचा काम कर रहे हैं, और मीडिया उसे इस तरह लेता है कि यह काम बरसों न करके अभी किया जा रहा है।
राजधानी रायपुर में कलेक्टर गौरव सिंह ने एक अभियान चलाया कि प्राकृतिक आपदाओं के शिकार लोगों को सरकार के पैमानों से जो राहत राशि मिलनी थी, उसके बकाया मामलों को तेजी से निपटाया जाए। अब इसमें पिछले दस-पन्द्रह बरस से फाइलों और आलमारियों में कैद मामलों के कंकाल निकलकर सामने आए, और कतार में लग गए। अब एक-एक करके इन सबको सरकारी मदद के चेक बंटने लगे, तो कुछ लोगों ने कलेक्टर से ही सवाल किया कि यह राहत राशि इतनी देर से क्यों मिल रही है? अब उन्होंने अपने पहले रहे कलेक्टरों के बारे में कुछ कहना ठीक नहीं समझा, और कहा कि कहीं कोई आवेदन दब गए होंगे तो उन्हें भी निकालकर लोगों की मदद की जा रही है।
राज्य सरकार अभी कई तरह के मामलों में काम करने की समय सीमा तय कर रही है, और हो सकता है कि इस पर ईमानदारी से अमल हो तो लोगों को राहत उसी पीढ़ी के रहते-रहते मिल भी जाए।
कश्मीर में छत्तीसगढ़
पहलगाम हमले के बाद वापस लौटे 65 सैलानी रायपुर रेलवे स्टेशन पर उतरे, तो उनका इन्टरव्यू लेने के मीडिया कर्मी टूट पड़े। ये अलग बात है कि श्रीनगर के होटल में ठहरे सैलानियों से ज्यादा यहां उनके परिजन चितिंत थे। यह चिंता स्वाभाविक भी थी कि जम्मू कश्मीर पिछले चार दशक से अशांत रहा है, और वहां माहौल बिगडऩे में देर नहीं लगती है।
सीएम विष्णु देव साय ने भी इस संवाददाता से, जो कि सैलानियों के दल में था,उससे बाकी सैलानियों का कुशलक्षेम पूछा। कई नेताओं, और प्रशासनिक अफसरों के फोन आते रहे, और यह साफ दिख रहा था कि छत्तीसगढ़ सरकार की सैलानियों की सुरक्षा पर पैनी नजर है।
श्रीनगर के अलग-अलग होटलों में छत्तीसगढ़ के सौ से अधिक सैलानी मौजूद थे। पहलगाम हमले के बाद ऐतियाहतन सैलानियों का तुरंत कश्मीर से निकलना आसान नहीं था। वजह यह थी कि श्रीनगर- जम्मू मार्ग रामबन के पास बादल फटने की वजह से टूट गया था और मरम्मत के लिए रास्ता बंद था। एक अन्य मार्ग को सुरक्षा की दृष्टि से काफी संवेदनशील माना जाता है। आतंकी हमले के विमानन कंपनियों ने हवाई किराया अचानक बढ़ा दिया, और दिल्ली तक टिकट 60 हजार तक पहुंच गई थी।
इसी बीच किसी ने खबर उड़ा दी,कि छत्तीसगढ़ सरकार सैलानियों को लाने के लिए विमान भेजने वाली है। इसके बाद श्रीनगर के दूसरे हिस्से में राजनांदगांव और अन्य जगहों के सैलानी, रायपुर के उन सैलानियों से संपर्क करना शुरू कर दिया। उन्हें अंदेशा था कि छत्तीसगढ़ सरकार 65 लोगों को ही विमान से ले जाएगी, बाकियों को लेकर सरकार के पास कोई जानकारी नहीं है। इसको लेकर वो काफी परेशान रहे। यह गलतफहमी पैदा करने में कुछ टीवी चैनलों, और न्यूज़ पोर्टल ने अहम भूमिका निभाई थी। जबकि सीएम से चर्चा में विशेष विमान भेजने कोई डिमांड रखी ही नहीं गई थी।
सैलानियों में चिंता सिर्फ इस बात को लेकर थी कि श्रीनगर-जम्मू मार्ग जल्द नहीं खुलेगा, तो वापसी के लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। घटना से पहले , और बाद में जहां तक श्रीनगर में सुरक्षा का सवाल था, तो स्थानीय लोग इसकी जिम्मेदारी खुद ले रहे थे जो कि सुकून देने वाला था। इस वजह से भय का माहौल नहीं था।मगर सडक़ मरम्मत हो गया और मार्ग खुल गया। तकऱीबन प्रदेश के सभी यात्री सकुशल वापस आ गए।
आपदा में अवसर
पहलगाम आतंकी हमले के बाद बाहर से आए सैलानियों में जल्द से जल्द कश्मीर छोडऩे की मची रही। इस दौरान विमान किराया श्रीनगर से दिल्ली तक 60 हजार रुपए पहुंच गया। बाद में केन्द्र सरकार की सख्ती, और अतिरिक्त विमान सेवा शुरू करने के बाद किराए में काफी गिरावट आई।?इससे परे पहलगाम में तो कई
होटल और रिसार्ट संचालकों ने खुद होकर न सिर्फ किराया कम बल्कि अपने खर्च पर सैलानियों के सुरक्षित श्रीनगर भेजने की व्यवस्था भी की। श्रीनगर में भी होटल संचालकों का रवैया दोस्ताना भरा रहा।
नई शिक्षा नीति केवल दिखावे की दौड़?
छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में नई शिक्षा नीति 2020 लागू करने की ऐसी होड़ मच गई है, मानो शिक्षा में क्रांति आ गई हो। लेकिन हकीकत कड़वी है। न शिक्षक प्रशिक्षित हैं, न किताबें समय पर उपलब्ध हैं, न ढांचा तैयार है। फिर भी कागजों में सबकुछ सफलता के रंग में रंगा जा रहा है।
कवर्धा जिले के कॉलेजों में बीए प्रथम सेमेस्टर का परिणाम इस विफलता का आईना है। यहां सिर्फ 37 प्रतिशत विद्यार्थी पास हुए, बाकी को दूसरे सेमेस्टर के साथ फेल विषयों की दोबारा परीक्षा देनी होगी। छात्रों से ऐसे पाठ्यक्रम पढ़वाए जा रहे हैं, जिनकी न तो उन्हें सही जानकारी है, न संसाधन उपलब्ध। जिन बच्चों ने 12वीं तक कला की पढ़ाई की, उन्हें भी
विज्ञान या वाणिज्य विषय लेना अनिवार्य कर दिया गया। यह घोर मनमानी है। 12वीं तक आर्ट्स पढऩे वाले छात्र-छात्राओं को कॉलेज का कॉमर्स और साइंस कैसे समझ में आएगा? बस आदेश जारी कर दिए गए और परीक्षा देने के लिए विवश किया गया।
विडंबना यह है कि शिक्षक खुद इस नई व्यवस्था को समझ नहीं पा रहे हैं। कॉलेजों में सेमेस्टर प्रणाली की तैयारी के नाम पर सभा समारोह खूब हुए, पर सिलेबस भी समय पर तैयार नहीं हुआ। बाजार में गाइड और संदर्भ वाली कुछ पुस्तकें परीक्षा के बाद आईं, पढ़ाई के दौरान नहीं। ऐसे माहौल में छात्रों से अच्छे परिणाम की अपेक्षा करना मजाक ही है।
अगर यही रफ्तार रही तो आने वाले वर्षों में विश्वविद्यालयों में फेल और ड्रॉपआउट का आंकड़ा और बढ़ेगा। शिक्षा नीति का उद्देश्य लचीली और समावेशी शिक्षा था, न कि छात्रों को दिशाहीन और निराश करने वाली व्यवस्था में फंसाना।
जब आपस में समझ पैदा हो..
प्रेम और समझदारी के आगे स्वाभाविक प्रवृत्तियां भी हार मान लेती हैं। सामान्यत: कुत्ते और बिल्ली के बीच झगड़े की कल्पना की जाती है, पर इस चित्र में दोनों एक साथ खेलते दिखाई दे रहे हैं। एक ओर काले रंग का नन्हा-सा कुत्ता है, जो उत्सुकता से बिल्ली की ओर देख रहा है, वहीं दूसरी ओर हल्के रंग की फुर्तीली बिल्ली है, जो सहज भाव से आगे बढ़ रही है। दोनों के बीच किसी संघर्ष का नहीं, बल्कि मित्रता का आभास होता है। छत्तीसगढ़ के एक कांग्रेस नेता ने अपने फेसबुक पेज पर यह तस्वीर लगाई है।
(rajpathjanpath@gmail.com)