राजपथ - जनपथ
धर्मांतरण से मुक्त होगा बस्तर?
बीते सप्ताह के एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम नागपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम में पहुंचे। उन्होंने संघ से मदद मांगी कि वह बस्तर से धर्मांतरण खत्म करने के लिए मदद मांगी। उन्होंने कहा कि यह बस्तर की सबसे बड़ी समस्या है। कांग्रेस और भाजपा से उन्हें इस मामले में निराशा ही हाथ लगी है, अब संघ ही आदिवासियों की मदद कर सकता है। कांग्रेस ने नेताम के इस बयान को लेकर आलोचना की है और कहा है कि वे खुद और उनके परिवार के लोगों ने कांग्रेस की तरफ से 50 साल तक बस्तर का प्रतिनिधित्व किया है, तब उन्होंने जबरिया अथवा प्रलोभन वाला धर्मांतरण रोकने के लिए कोई प्रयास क्यों नहीं किया। कांग्रेस का यह भी आरोप है कि वह अब संघ की मदद से अपना वनवास खत्म करना चाहते हैं। हालांकि नेताम ने इसी मौके पर अपने उद्बोधन में बस्तर में नक्सलवाद खत्म होने के बाद औद्योगिकीकरण के खतरे तथा आदिवासियों की बेदखली तेज होने की आशंका भी जताई है। मगर, औद्योगिकीकरण को लेकर कांग्रेस और भाजपा में उतना फर्क नहीं है, जितना धर्मांतरण को लेकर है। कांग्रेस भाजपा दोनों ही अलग-अलग खेमों में अपना वोट बैंक देखते रहे हैं।
जैसा कि सरकार दावा कर रही है कि बस्तर से माओवादी हिंसा का सफाया तय समय से पहले हो जायेगा। धर्मांतरण के मुद्दे पर शुरू हुई नई बहस से यह तो साफ है कि नक्सल मुक्त बस्तर में बहुत कुछ बदलने की प्रक्रिया शुरू होगी। केवल आदिवासियों को स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने तक का मामला नहीं है। अवसरों के कई नए रास्ते, राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ताओं, व्यापारियों, उद्योगपतियों, ठेकेदारों, अफसरों के लिए खुलने जा रहे हैं।
बोधघाट के दिन फिरेंगे?
सीएम विष्णुदेव साय शुक्रवार को दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी, और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। सीएम ने पीएम से जिस खास विषय पर चर्चा की, वो थी बोधघाट परियोजना। सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि नक्सल खात्मे के बाद बस्तर में विकास की रफ्तार बढ़ाना जरूरी है, और बोधघाट से ही विकास के रास्ते खुलेंगे।
भूपेश सरकार ने भी ठंडे बस्ते में जा चुकी बोधघाट सिंचाई परियोजना की फाइलों पर से धूल हटाने के लिए पहल की थी। सिंचाई मंत्री रविन्द्र चौबे ने नए सिरे से सर्वे एजेंसी तय कराकर परियोजना पर गंभीरता दिखाई थी। सर्वे पूरा होने से पहले ही विरोध शुरू हो गया। पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने सबसे पहले बोधघाट परियोजना का विरोध किया। नेताम को तो पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। मगर चुनाव आते-आते बस्तर के कांग्रेस विधायकों ने ही परियोजना की खिलाफत शुरू कर दी।
बताते हैं कि बस्तर इलाके के तत्कालीन मंत्री कवासी लखमा की अगुवाई में विधायकों ने तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल से मुलाकात की थी, और चुनाव में नुकसान की आशंका जताई। इसके बाद परियोजना पर आगे का काम रुक गया। वर्तमान में सीएम साय ने पीएम से चर्चा कर परियोजना पर केंद्र से सहयोग मांगा है। चुनाव में साढ़े 3 साल बाकी है। ऐसे में सरकार राजनीतिक विरोध भी झेलने की स्थिति में है। यही नहीं, नक्सलियों का खात्मा होने के करीब है। ऐसे में बोधघाट के लिए उपयुक्त माहौल दिख रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
वीडियो और निष्कासन
प्रदेश कांग्रेस ने डोंगरगांव, और सहसपुर-लोहारा के ब्लॉक अध्यक्षों को पार्टी से निष्कासित कर दिया। दोनों के निष्कासन की अलग-अलग वजह है। कहा जा रहा है कि डोंगरगांव ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष चेतनदास साहू, पिछले कुछ समय से पीसीसी के निर्देशों की अवहेलना कर रहे थे।
साहू, डोंगरगांव विधायक दलेश्वर साहू के करीबी माने जाते हैं। यही वजह है कि उन पर कार्रवाई करने में पार्टी हिचक रही थी। मगर जैसे ही चेतनदास साहू ने डोंगरगांव नगर पालिका नेता प्रतिपक्ष पद पर अपने ही स्तर पर नियुक्ति आदेश जारी किए, तो पार्टी ने उन्हें नोटिस थमा दिया।
ब्लॉक अध्यक्ष यहां भी नहीं रूके, उन्होंने दलेश्वर के विरोधी दो जिला पंचायत सदस्यों को पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद पीसीसी ने सीधे उन्हें ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। कवर्धा जिले के सहसपुर-लोहारा के ब्लॉक अध्यक्ष रामचरण पटेल तो रंगरेलियां मनाते पकड़े गए, और लोगों ने उनकी पिटाई कर दी। इसके बाद पिटाई का वीडियो फैला, तो पार्टी के पास उन्हें निष्कासित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। सो, उन्हें बिना नोटिस दिए निष्कासित कर दिया गया।
डीजीपी, कैट से राहत नहीं
प्रशासनिक न्यायाधिकरण बैंच (कैट) ने डीजीपी की चयन प्रक्रिया में तत्काल हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। याचिका सीनियर आईपीएस पवन देव ने लगाई थी। दरअसल, रेगुलर डीजीपी के लिए 13 मई को दिल्ली में बैठक हुई थी।
पवन देव की तरफ से यह तर्क दिया गया कि डीजीपी के लिए चयन पैनल में उनका नाम शामिल नहीं किया गया है। जबकि चयन प्रक्रिया योग्यता, और अनुभव पर आधारित होनी चाहिए। इसमें वो पूरी तरह खरे उतरते हैं। सरकार की तरफ से यह कहा गया कि याचिकाकर्ता की आशंका महज मीडिया रिपोर्टों पर आधारित जिसे न्यायिक आधार नहीं माना जा सकता। कैट ने अंतरित राहत देने से मना कर दिया। प्रकरण पर अगली सुनवाई 15 जुलाई को होगी। तब तक डीजीपी चयन प्रक्रिया बिना किसी रूकावट के जारी रहेगी।
हरियाली में नजरें मिलाते चीतल
(फोटो- शिरीष दामरे)
बारिश की पहली आहट के साथ ही छत्तीसगढ़ के जंगलों में हरियाली लौटने लगी है। अचानकमार अभयारण्य की इस तस्वीर में दो चीतल अपने पूरे सौंदर्य के साथ कैमरे की ओर देख रहे हैं। हरे पत्तों से ढकी शाखाओं के बीच इनका सहज खड़ा रहना दर्शाता है कि अब जंगल में जीवन की गति तेज हो रही है। चीतल, जिन्हें उनकी सफेद बिंदियों वाली चमकदार खाल के लिए जाना जाता है, प्रकृति की सजगता और संतुलन के प्रतीक हैं। पास के नाले और घनी छांव में अब इन्हें नया उत्साह मिल रहा है। यह दीदार आप छत्तीसगढ़ के जंगलों में 15 जून तक ही कर पाएंगे, उसके बाद फिर मौका मिलेगा बारिश के बाद अक्टूबर में।
शुभ महूरत बहुत ज़रूरी था
ब्रेवरेज कार्पोरेशन चेयरमैनशिप के लिए भाजपा विधायक, और प्रभावशाली नेताओं में होड़ मची थी। मगर बस्तर के नेता श्रीनिवास मद्दी सबको पीछे छोडक़र पद पाने में कामयाब रहे।
यह कार्पोरेशन मलाईदार जरूर है, लेकिन कुख्यात भी है। ब्रेवरेजस कार्पोरेशन से जुड़े पूर्व मंत्री, और अफसर जेल में हैं। आबकारी कारोबार की जांच रही है। यही वजह है कि नवनियुक्त चेयरमैन मद्दी पदभार संभालने में हड़बड़ी नहीं दिखाई, और शुभ मुहूर्त का इंतजार किया।
मद्दी ने पंडितों से सलाह मशविरा कर मुहूर्त निकलवाया। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक स्वाति नक्षत्र को शुभ कार्य के लिए उपयुक्त माना जाता है। उस पर निर्जला एकादशी का संयोग अलग। स्वाति नक्षत्र शनिवार सुबह 9.40 से शुरू होकर रविवार को दोपहर साढ़े बारह बजे तक रहेगा। जबकि एकादशी आज खत्म हो रही है। मद्दी ने शुभ मुहूर्त में ठीक साढ़े 10 बजे पदभार ग्रहण किया। उन्होंने अपना परंपरागत वस्त्र पहने और दक्षिण भारतीय पंडितों को भी मंत्रोच्चार के लिए आयोजन में बुलाया था। अब देखना है कि ब्रेवरेजस कार्पोरेशन मद्दी के लिए कितना शुभ रहता है।
शिविर से ऐसे निकला समाधान
छत्तीसगढ़ में हाल ही में सुशासन तिहार मनाया गया। सरकार का दावा है कि हर जिले, हर गांव में समाधान शिविरों के जरिए लोगों की परेशानियों का हल निकाला गया है। कांग्रेस ने कहा- सब दिखावा है, किसी को कोई फायदा नहीं हुआ। लेकिन हकीकत दोनों दावों के बीच की है।
खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले की एक मिसाल से इसे समझ सकते हैं। एक समाधान शिविर में किसी ग्रामीण ने शिकायत कर दी कि राशन कार्ड बनवाने या उसमें सुधार करवाने के नाम पर पंचायत सचिव पैसे मांगते हैं। शिकायत तो एक ही थी, पर प्रशासन ने मान लिया कि शायद ऐसी दिक्कत और भी लोगों को हो रही होगी। फिर क्या था, प्रशासन ने पूरे जिले के पंचायत सचिवों के आईडी और पासवर्ड सील कर दिए। यानी अब वे राशन कार्ड में कोई भी बदलाव नहीं कर सकते। अब ग्रामीणों को हर सुधार या नया राशन कार्ड बनवाने के लिए सीधे जिला मुख्यालय जाना होगा। पंचायत सचिवों के पास अब कुछ करने का हक ही नहीं है, तो घूस मांगने का सवाल ही नहीं उठता! कौन वाकई पैसा मांगता था और कौन नहीं, ये छानबीन करना थोड़ा पेचीदा काम था। इसलिए सबकी पहुंच पर ही ताला जड़ देना प्रशासन को ज्यादा आसान और सही उपाय लगा होगा।
लेकिन अब हाल ये है कि गांव वाले तो पुराने ढर्रे पर सचिवों के पास पहुंच रहे हैं, जिला मुख्यालय तक पहुंच पाना सबके बस की बात भी नहीं है। सचिव उनसे हाथ जोडक़र कह रहे हैं, हमारे हाथ में अब कुछ नहीं। कई सचिवों ने कलेक्टर से गुहार लगाई है कि सबको सजा मत दो, जिसने गलती की है उसी को सज़ा दो। ग्रामीण हमारे पास आकर भटक रहे हैं। अब बताइये प्रशासन ने समाधान निकाला है या नहीं?
जुलाई से छत्तीसगढ़ को अमृत भारत!
जब वंदे भारत एक्सप्रेस चली, तो लोगों ने उसकी रफ्तार की तारीफ की, लेकिन किराये को लेकर खूब आलोचना भी हुई। कहा गया कि इतना महंगा किराया तो सिर्फ अमीर ही चुका सकते हैं। आम आदमी के लिए ये ट्रेन नहीं है। सवाल उठा कि तेज और आरामदायक सफर का हक क्या आम यात्रियों को नहीं है?
इन्हीं आलोचनाओं के बीच रेलवे ने अमृत भारत ट्रेन योजना की घोषणा की। वंदे भारत की तुलना में ये ट्रेनें किफायती होंगी और लंबी दूरी के यात्रियों को बेहतर विकल्प देंगी। कुछ रूटों पर ये ट्रेनें शुरू भी हो चुकी हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ अभी तक इस सुविधा से वंचित है।
कहा जा रहा है कि जुलाई महीने में छत्तीसगढ़ को भी पहली अमृत भारत ट्रेन मिल रही है। इस ट्रेन का रूट होगा – हावड़ा, टाटानगर, बिलासपुर, रायपुर, नागपुर, भुसावल, और कल्याण, जिसके बाद यह छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई पहुंचेगी। ट्रेन हावड़ा से सुबह 8 बजे रवाना होकर अगले दिन सुबह 10 बजे मुंबई पहुंचेगी। यानी करीब 1960 किलोमीटर की दूरी महज 26 घंटे में तय होगी।
खास बात यह कि किराया वंदेभारत की तुलना में काफी सस्ता होगा। एक हजार रुपये से भी कम, फिलहाल ऐसी जानकारी सिर्फ सोशल मीडिया पर है।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या इस ट्रेन को समय पर चलाने के लिए मालगाडिय़ों को रोक दिया जाएगा, जैसा कि वंदे भारत के लिए होता है?
वायरल वीडियो ने दिलों को झकझोर दिया
पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस के दिन एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर लोगों ने इस क्लिप का वीडियो शेयर किया, जिसमें एक गुस्साए हाथी को जेसीबी मशीन पलटते हुए देखा जा सकता है।
लोगों को वीडियो देखकर यही लगा कि ये घटना शायद छत्तीसगढ़ की है, क्योंकि यहां भी हाथियों और इंसानों के बीच टकराव अब आम बात हो गई है। कई लोग तो वीडियो देखकर दुखी हो गए, और हाथी पर किए गए अत्याचार की आलोचना करने लगे।
दरअसल, यह वीडियो पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के मालबाजार इलाके का है और घटना 2 फरवरी 2025 की है। वहां पास के जंगल से एक जंगली हाथी मालबाजार इलाके में घुस आया था। उसी दौरान एक जेसीबी मशीन जमीन की खुदाई कर रही थी। हाथी को जेसीबी से भगाने की कोशिश की गई।
हाथी शुरू में शांत था, इसी बीच किसी ने उसकी पूंछ तक खींच दी, तो वो गुस्से में आ गया और फिर जेसीबी को पलट दिया, जेसीबी चालक व सवार जान बचाकर भागे। गुस्साये हाथी ने वॉच टावर पर भी हमला कर दिया।
घटना सामने आने के बाद हाथी को सुरक्षित जंगल में खदेड़ दिया गया है। जिस जेसीबी से उसे तंग किया गया, उसे जब्त कर लिया गया। जेसीबी चालक को गिरफ्तार भी किया गया। यह घटना बताती है कि वन्यजीवों की शांति में दखल देना, उन्हें उकसाना, छेडऩा आखिरकार नुकसानदायक है। छत्तीसगढ़ में इसके चलते कई मौतें हो चुकी हैं, कुछ घायल भी हो चुके हैं।
जान से खेलने की बेवकूफी!
कोरबा में जो हुआ, वो रोंगटे खड़े कर देने वाला था। एक 18 साल का युवक सिर्फ कुछ लाइक्स और व्यूज़ के लिए अपनी जि़ंदगी को दांव पर लगाकर चलती मालगाड़ी के सामने ट्रैक पर दौड़ गया। शुक्र है कि पायलट ने वक्त रहते इमरजेंसी ब्रेक लगा दी और उसकी जान बच गई। लेकिन सोचिए, अगर इमरजेंसी ब्रेक लगाने के चलते ट्रेन ही ट्रैक छोड़ जाती तो?
वीडियो में साफ दिख रहा है कि कैसे ये युवक हीरो बनने के चक्कर में जि़ंदगी से खेल गया। रेलवे ट्रैक कोई फि़ल्म का सेट नहीं है, जहां रीटेक का मौका मिले। ट्रैक से महज 50 मीटर की दूरी पर फाटक था, जहां खड़े लोगों ने वीडियो बना लिया। अब ये वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। आरपीएफ ने मामले को गंभीरता से लिया है और युवक की तलाश शुरू कर दी है।
कल और आज
कलेक्टर रह चुके आईएएस अफसरों को जेल से रिहा होते, और प्रदेश से निष्कासित होते देखकर ठंडे कलेजे वाले एक अफसर ने कहा- कल तक जो जिलाबदर करते थे, वो खुद आज प्रदेशबदर हो गए।
कुकर की सीटी के साथ अपील
बीबीसी पर अंग्रेजी के समाचार पॉडकास्ट के बीच भारत का हिन्दी का एक इश्तहार इतनी बार सुनाया जा रहा है कि उसका असर म्युनिसिपल की कचरा गाड़ी में बजने वाले संगीत जितना हो गया है, जो कि किसी को सुनाई नहीं देता। यह इश्तहार अंग्रेजी के पॉडकास्ट के बीच हिन्दी भाषा में अटपटा लगता है, लेकिन चूंकि यह म्युचुअल फंड में पूंजीनिवेश को बनाए रखने के लिए है, इसलिए बीबीसी पर भी सुनाया जा रहा है, और हिन्दीभाषी पूंजीनिवेशकों को समझाने के लिए भी। म्युचुअलफंडसहीहैडॉटकॉम नाम की एक वेबसाइट गिनाते हुए यह भारतीय बाजार के पूंजीनिवेशकों को सुझा रहा है कि वे हड़बड़ी में रकम न निकालें, वरना वह पहली सीटी पर कुकर बंद कर देने से कच्चे रह गए खाने सरीखा हो जाएगा। अब शेयर बाजार से अपना निवेश निकालने पर जब बड़े-बड़े फिरंगी-परदेसी लगे हुए हैं, तो देसी लोगों का भी हौसला कुछ तो पस्त होना ही था।
इस इश्तहार में कुकर की सीटी इतने बार सुनाई जा रही है, और एक ही इश्तहार को लगातार चार-चार बार सुनाया जा रहा है, उससे लगता है कि शेयर बाजार कुछ अधिक ही दहशत में है।
एक के बाद दूसरी एजेंसी
आबकारी घोटाला केस में पूर्व सीएम भूपेश बघेल के करीबी विजय भाटिया से पूछताछ चल रही है। शुक्रवार को रिमांड की अवधि खत्म होने के बाद भाटिया को जिला अदालत में पेश किया जाएगा, और ईओडब्ल्यू-एसीबी पूछताछ के लिए रिमांड की अवधि बढ़ाने की मांग कर सकती है। इससे परे भाटिया से ईडी भी पूछताछ करना चाहती है।
बताते हैं कि ईडी के अफसर, ईओडब्ल्यू-एसीबी के अफसरों के संपर्क में हैं। कहा जा रहा है कि ईओडब्ल्यू-एसीबी की रिमांड खत्म होने के बाद ईडी भाटिया को पूछताछ की अनुमति देने के लिए जिला अदालत में आवेदन कर सकती है। फिलहाल भाटिया से क्या कुछ निकला है, यह आने वाले दिनों में सामने आ सकता है।
ये तबादला भी कोई तबादला है !
सरकार ने तबादले पर से बैन हटा दिया है। भाजपा कार्यकर्ताओं को बैन हटने का इंतजार था, ताकि वो अपने करीबी-रिश्तेदार अधिकारी-कर्मचारियों के तबादला करा सके। मगर तबादला पॉलिसी ऐसी बनाई है कि पार्टी के कई विधायक, और पदाधिकारी संतुष्ट नहीं हैं। सरकार ने यह साफ कर दिया है कि शिक्षक, पुलिस, वन, खनिज, और परिवहन विभाग के तबादलों पर रोक जारी रहेगी। ऐसे में पार्टी के लोग ही तबादले पर से रोक हटाने के औचित्य पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।
पार्टी के नेता बताते हैं कि वर्ष-2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद चुन-चुनकर भाजपा पदाधिकारियों के करीबियों का तबादला किया गया था, और उन्हें दूर-दराज इलाकों में पदस्थ किया गया था। सरकार बदलने के बाद ये सभी वापसी के लिए प्रयासरत थे। विशेषकर शिक्षा विभाग के सैकड़ों की संख्या में तबादले के आवेदन आ चुके हैं। मगर स्कूलों के युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया चल रही है। यही वजह है कि शिक्षकों के तबादलों पर रोक लगा दी गई है।
इसी तरह परिवहन, खनिज, और वन विभाग के तबादलों को लेकर विधायक और पार्टी के पदाधिकारी उम्मीद से थे। मलाईदार पोस्टिंग के लिए अफसर भाजपा पदाधिकारियों के आगे-पीछे हो रहे थे, लेकिन रोक जारी रहने से पदाधिकारी-अफसर मायूस हैं। कुछ पदाधिकारियों ने पार्टी संगठन तक अपनी बात पहुंचाई है। देखना है आगे क्या होता है।
कोई भरोसा नहीं मिला
डीएड अभ्यर्थियों ने सहायक शिक्षकों के रिक्त पद के लिए काउंसलिंग फिर शुरू करने के लिए काफी दबाव बना रहे हैं। छठे दौर की काउंसलिंग रूकी है। अभ्यर्थियों के मेरिट लिस्ट की वैधता खत्म होने में कुछ ही दिन बाकी है। अभ्यर्थियों को पिछली कैबिनेट में इस पर फैसले की उम्मीद थी।
अभ्यर्थी कैबिनेट से पहले एक-एक कर मंत्रियों से मिले, और उन्हें श्रीफल(नारियल) भेंट कर अपनी मांगों पर चर्चा की। मंत्रियों ने गर्मजोशी से उन्हें आश्वस्त किया कि उनकी मांगों पर कैबिनेट में चर्चा जरूर की जाएगी। मगर कैबिनेट के बाद अभ्यर्थी मंत्रियों से मुलाकात की कोशिश की, तो ज्यादातर कन्नी काट गए। परेशान अभ्यार्थी कुशाभाऊ ठाकरे परिसर से लेकर आरएसएस दफ्तर तक चक्कर काट रहे हैं। मगर उनकी मांगों पर कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं मिला।
आप भी भाजपा में चले गए?
बीते कुछ सालों के भीतर छत्तीसगढ़ के कई भूतपूर्व विधायक कांग्रेस छोडक़र भाजपा में चले गए। इनमें से कुछ लोगों के बारे में आम धारणा थी कि वे उसूलों के पक्के हैं और अवसर के लिए निष्ठा नहीं बदलेंगे। मगर, यह होता गया। बिलासपुर के पूर्व विधायक शैलेष पांडेय ने 2018 के विधानसभा चुनाव में अमर अग्रवाल का गढ़ हिला दिया। लेकिन 2023 के चुनाव में उन्हीं से बुरी तरह परास्त भी हो गए। इसके बावजूद उनकी कांग्रेस में सक्रियता पूरी ईमानदारी के साथ दिख रही है। एक ठीक-ठाक ओहदे की जरूरत उन्हें जरूर है। जिला कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नाम चल रहा था, पर बात नहीं बन पाई है। जिस तरह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को बदलने की गाहे-ब-गाहे चर्चा निकल पड़ती है, सालों से जमे जिला कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर भी बात उठती है। पर कांग्रेस में ऐसे फैसले आसानी से नहीं होते। कहा जा रहा है कि पांडेय अपना नाम आगे करने से बच भी रहे हैं क्योंकि उनको कुछ स्थानीय नेताओं ने पूरे पांच साल के विधायकी कार्यकाल में चैन से नहीं रहने दिया। राजकीय समारोह में झंडा नहीं फहराने दिया, एफआईआर करा दी। शायद, उनका विरोध अब भी उभर आए।
बहरहाल, पांडेय इस समय एक दूसरी वजह से चर्चा में हैं। कुछ दिन पहले उनके नाम और फोटो के साथ फेसबुक पर एक पेज डिस्पले हुआ। लोग चौंक गए। पांडेय इसमें खुद को भाजपा नेता बता रहे हैं। कुछ ही दिनों में यह पेज इतना पॉपुलर हो गया कि इसके 4.7 हजार फॉलोअर्स हो गए। इस पेज के क्रियेटर ने खुद 460 लोगों को फॉलो किया है। पांडेय ने अपने असली पेज पर इसका स्क्रीन शॉट शेयर किया है। लोगों को सावधान किया है और बताया है कि यह फर्जी है। लेकिन लोग इस पेज को देखकर क्या-क्या सोचने लगे थे, पांडेय की पोस्ट पर मिली प्रतिक्रियाओं से पता चलता है। जैसे एक ने लिखा- भैया, हमने तो सोच लिया था कि आपने बीजेपी ज्वाइन कर ली है। आपको फोन भी किया था, जब स्विच ऑफ मिला तब तो पक्का यकीन कर भी लिया कि आप भी चले गए। एक दूसरी प्रतिक्रिया है- भले ही आपका यह पेज फर्जी है, लेकिन आप बीजेपी के लिए ही बेहतर हैं। कुछ प्रतिक्रियाएं ऐसी हैं, जिनमें दावा किया गया है कि यह शरारत बीजेपी के लोगों ने की होगी। फेसबुक पर फर्जी पेज तैयार करना बड़ा आसान है। सारी निजी जानकारी, तस्वीरें कॉपी पेस्ट की जा सकती हैं। पांडेय के मामले में पैसे वसूली की शिकायत नहीं है, जबकि प्राय: दूसरे फर्जी पेज इसी मकसद से बनाए जाते हैं।
राज्य सेवा से आए, बेहतर काम
प्रदेश में अरसे बाद ऐसा मौका आया है जब बड़े शहरों में पुलिस की कमान राज्य पुलिस सेवा से भारतीय पुलिस सेवा में आए अफसर संभाल रहे हैं। इनमें रायपुर एसएसपी लाल उम्मेद सिंह भी हैं, जो कि रायपुर में एडिशनल एसपी रह चुके हैं।
कुछ इसी तरह का संयोग बिलासपुर, दुर्ग, कोरिया, और अंबिकापुर जैसे बड़े जिले में भी बना है। बिलासपुर एसएसपी रजनेश सिंह भी राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट हुए हैं। इसके अलावा दुर्ग एसपी विजय अग्रवाल भी राज्य पुलिस सेवा के अफसर रहे हैं। खास बात यह है कि रजनेश और विजय अग्रवाल, दोनों ही रायपुर साइंस कॉलेज से पढ़े हैं।
कोरिया एसपी रवि कुर्रे, और राजेश अग्रवाल भी प्रमोट होकर भारतीय पुलिस सेवा में आए हैं। राजेश अग्रवाल कुछ समय के लिए कवर्धा एसपी रह चुके हैं। इसी तरह सूरजपुर एसपी प्रशांत सिंह ठाकुर भी प्रमोट होकर भारतीय पुलिस सेवा में आए हैं। इससे परे सीधी भर्ती के भारतीय पुलिस सेवा के ज्यादातर अफसरों की पोस्टिंग आदिवासी इलाकों में की गई है। बस्तर के सभी सात जिलों में सीधी भर्ती के भापुसे के अफसर पदस्थ हैं, और नक्सलवाद के खात्मे में अहम रोल अदा कर रहे हैं।
सफाई का लीकेज
इस बार शहर में बारिश पूर्व इस विशेष सफाई अभियान के लिए हर जोन को 3-3 लाख अलग से दिए थे। उसके बाद कल निगम मुख्यालय से एक खबर निकली कि शहर के सवा दो सौ (224) नाले नालियों की सफाई को लेकर मेयर मैडम नाराज हैं। उसके बाद निगम से जुड़े पूर्व वर्तमान नेताओं के वाट्सएप ग्रुप में सभी एक दूसरे के कार्यकाल का हिसाब किताब लेकर बैठ गए।
एक ने कहा महापौर मैडम का नाराज होना जायज है लेकिन नाराज होने से किसी के कान में जूं नहीं रेंगने वाली क्योंकि इसमें सभी की सहभागिता है । विपक्ष में रहते मेयर मैडम को भी 3 बार का अनुभव है। और आजकल जब तक पार्षद 50-75 हजार से ले कर 1 लाख महीना सफाई ठेकेदार से वसूलेंगे तो वार्ड हो या नाले की सफाई नहीं हो सकती। इस पूर्व पार्षद ओर एमआईसी सदस्य ने कहा मैंने 10 साल पहले भरे सदन में रिकॉर्ड में ला कर कहा था कि सफाई में 50 लाख का लीकेज है । लेकिन हुआ क्या आज वो सभी 70 वार्डों में 1.5 करोड़ महीने का लीकेज हो गया है।
अगर सही में सही तरीके से इन 4000 सफाई कर्मचारियों का उपयोग करना है तो इंदौर और चंडीगढ़ पैटर्न पर सीधे खाते में उनकी दिहाड़ी का पैसा डलवाएं। तब ये 8 घंटे पूरा काम भी करेंगे और इनको 12 हजार रुपए महीने भी मिलेंगे। जो अभी 6-8 हजार सिर्फ मिलते हैं । इन पर कितना भी नाराज हो सब की मिलीभगत है तभी यह चल पाता है। 75 हजार 1 लाख जब पार्षद लेगा तो ठेकेदार और अधिकारी डेढ़ लाख तक नेगोशिएट करेंगे। उसके बाद भी सफाई ऐसी ही बदहाल रहेगी ।
अमिताभ के बाद कौन
आखिरकार सीएस अमिताभ जैन इस महीने की 30 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। जैन सीएस के पद पर सर्वाधिक समय तक रहने वाले अफसर हैं। प्रशासनिक हलकों में उनके उत्तराधिकारी को लेकर कयास लगाए जा हैं। वैसे तो वरिष्ठता क्रम में 91 बैच की अफसर रेणु पिल्ले अव्वल नंबर पर हैं। एसीएस रेणु माध्यमिक शिक्षा मंडल की चेयरमैन हैं। इसके बाद 92 बैच के अफसर एसीएस सुब्रत साहू का नंबर हैं, और वो सहकारिता विभाग का प्रभार संभाल रहे हैं।
चूंकि 93 बैच के अफसर अमित अग्रवाल केन्द्र सरकार में हैं, तो 94 बैच के अफसर एसीएस ऋचा शर्मा और गृह विभाग के एसीएस मनोज पिंगुआ भी मजबूती से सीएस की दौड़ में शामिल बताए जा रहे हैं। अब सीएम विष्णुदेव साय क्या फैसला लेते हैं, इसको लेकर भी अटकलें लगाई जा रही है। वैसे तो साय ने ट्रांसफर-पोस्टिंग के मसले पर यथा संभव उन्होंने मेरिट को ही तवज्जो दिया है। ऐसे में नया सीएस कौन होगा, इसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं।
सबसे वरिष्ठ अफसर रेणु पिल्ले की साख बहुत अच्छी है, लेकिन वर्क-टू-रूल की अपनी विशिष्ट कार्यशैली के चलते विभागों के मुखिया उनसे सहज नहीं रहे हैं। यही वजह है कि ज्यादातर मौकों पर उनकी पोस्टिंग मंत्रालय के बाहर माध्यमिक शिक्षा मंडल, प्रशासन अकादमी जैसे संस्थानों में होती रही है, जहां राजनीतिक हस्तक्षेप की गुंजाइश नहीं के बराबर रहती है। इससे परे सुब्रत साहू, तो पिछली सरकार में सीएम के एसीएस रहे हैं। साय के सीएम बनने के बाद भी वो कुछ समय तक वो सीएम सचिवालय का काम देखते रहे हैं। इसके बाद उन्हें प्रशासन अकादमी भेज दिया गया था, और कुछ समय पहले ही उन्हें सहकारिता जैसा अहम दायित्व मिला है।
सुब्रत के बाद 93 बैच के अमित अग्रवाल का नंबर आता है, जो कि केन्द्र सरकार में सचिव हैं। अमित के बाद 94 बैच के ऋचा शर्मा, और मनोज पिंगुआ के नाम पर भी काफी चर्चा हो रही है। ऋचा ने वन विभाग के मुखिया के रूप में अच्छा काम किया है। मगर उन्हीं के बैच के 94 बैच के ही अफसर मनोज पिंगुआ का नाम मजबूती से उभरा है। पिंगुआ, पिछली और वर्तमान दोनों सरकार की ही पसंद रहे हैं। पिंगुआ केन्द्र सरकार में भी काम कर चुके हैं। ऐसे में नया सीएस कौन होगा, इसको लेकर चर्चा चल रही है।
एक्सटेंशन का भी हल्ला
हालांकि अमिताभ जैन को सीएस के पद पर चार साल हो चुके हैं। बावजूद इसके उन्हें एक्सटेंशन दिए जाने की संभावना जताई जा रही है। ये अलग बात है कि अभी राज्य सरकार की तरफ से एक्सटेंशन को लेकर कोई प्रस्ताव नहीं भेजा गया है।
अगर राज्य सरकार प्रस्ताव भेजती है, तो कम से कम तीन या छह महीने का एक्सटेंशन मिल सकता है। केन्द्र सरकार ने मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, और झारखंड के सीएस को तीन से छह माह तक का एक्सटेंशन दिया है। यही नहीं, केन्द्र सरकार ने भाजपा शासित राज्य में केंद्र से अपनी पसंद का सीएस भेजकर पदस्थापना करवाई है। उत्तर प्रदेश में डीएस मिश्रा के सीएस पद पर नियुक्ति इसका उदाहरण है। वो केंद्र में सचिव थे, बाद में उन्हें उत्तर प्रदेश भेजा गया, और सीएस बनाया गया। बाद में एक्सटेंशन भी मिला। अगर ऐसा कुछ हुआ, तो अमित अग्रवाल के लिए भी संभावनाएं बन सकती है।
एक चर्चा यह भी
प्रशासनिक हलकों में एसीएस स्तर के अफसर के लिए केंद्र से सिफारिश की चर्चा है। इस पर राज्य सरकार क्या सोचती है, यह साफ नहीं है। फिलहाल जितनी मुंह, उतनी बातें। 30 तारीख तक अटकलों का बाजार गरम रहेगा।
शरण देने वालों पर पुलिस की चुप्पी
छत्तीसगढ़ में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई हाल के महीनों में सुर्खियों में रही है। कल दुर्ग से दो विदेशी नागरिकों को फिर से पकड़ा गया है। राज्य के गृह मंत्री विजय शर्मा के अनुसार, बस्तर से 500 और कवर्धा से 350 घुसपैठियों को देश से बाहर भेजा गया है, जबकि 46 लोगों को जेल की सलाखों के पीछे डाला गया है। ‘ऑपरेशन समाधान’ के तहत 2000 से अधिक कामगारों की जांच की गई, जिसमें 150 लोग वैध दस्तावेज दिखाने में नाकाम रहे।
अवैध प्रवासी देश की सुरक्षा, स्थानीय अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरा जरूर है, लेकिन इस पूरे परिदृश्य में एक जरूरी सवाल पर पुलिस चुप है। वह ये कि, इन घुसपैठियों को शरण देने वालों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
यह घुसपैठिए अचानक आसमान से नहीं टपके। उन्होंने जाली आधार कार्ड, वोटर आईडी और अन्य भारतीय पहचान-पत्र बनवाए जो जाहिर है, स्थानीय स्तर पर किसी की मदद से ही संभव हो रहा है। फिर वे सामान्य मजदूरों की तरह काम करने लगे, महिलाएं घरेलू काम या छोटे-मोटे अनौपचारिक क्षेत्र में घुलमिल गईं। जो लालच में या अनजाने में, इन्हें रहने की जगह, नकली दस्तावेज, और रोजगार मुहैया कराते हैं उन पर अब तक शायद ही कोई कार्रवाई हुई हो।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 111(5) और पुराने भारतीय दंड संहिता की धारा 212 के अनुसार, किसी अपराधी को शरण देना एक बड़ा अपराध है, जिसकी सजा 5 साल की जेल और जुर्माने तक हो सकती है। यदि मामला आतंकवाद से जुड़ा हो, तो सजा आजीवन कारावास तक बढ़ सकती है। अवैध घुसपैठियों को पकडऩा आधा समाधान है।
वैसे बात केवल बांग्लादेशी या विदेशी घुसपैठियों की ही नहीं है। देश के अन्य राज्यों से आकर छत्तीसगढ़ में किराये पर रहने वाले अनेक लोग अपराध में लिप्त हैं। पुलिस अक्सर एक औपचारिक घोषणा कर देती है कि मकान मालिक अपने किरायेदारों की जानकारी नजदीकी थाने में दें, लेकिन हकीकत यह है कि अधिकांश लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं। अनजाने में हो या जानबूझकर।
दो एसपी दिल्ली की ओर ?
मंत्रालय में प्रशासनिक के साथ-साथ पुलिस में भी फेरबदल की अटकलें लगाई जा रही है। चर्चा है कि दो एसपी व्यक्तिगत कारणों से केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते हैं। उन्होंने विभाग के शीर्ष अफसरों तक अपनी बात पहुंचा दी है। ऐसी स्थिति में आईपीएस अफसरों के तबादले की एक सूची जारी हो सकती है।
पहली बारिश में वन का श्रृंगार
प्रकृति जितनी सरल दिखती है, उतनी ही रहस्यमयी भी है। हर रंग, हर गंध, हर जीवन अपनी दास्तान कहता है। बस ठहरकर महसूस करने की जरूरत है। इन दिनों पहली फुहारें क्या गिरीं, जंगल जैसे जाग उठा। पत्तों पर बूंदें थिरकने लगी। मिट्टी से सौंधी खुशबू आने लगी। पेड़ों ने हरी चुनर सजा ली। हर शाख स्वर्णिम हो गया। शीतल हवा चलने लगी। जमीन को चीरते हुए कंद फूटने लगे और फूल मुस्कुराने लगे हैं। उस पर बैठी तितली जीवन रस ले रही है। पहली बारिश के बाद खींची गई यह तस्वीर प्रकृति प्रेमी प्राण चड्ढा ने अचानकमार अभयारण्य के समीप ली है।
चैम्बर में वोकल फॉर लोकल
भाजपा के रणनीतिकार व्यापारी संगठनों की राजनीति को लेकर चिंतित हैं। चैम्बर ऑफ कॉमर्स में तो पार्टी के करीबी सतीश थौरानी, और उनकी टीम निर्विरोध आ चुकी है, लेकिन पूर्व चैम्बर अध्यक्ष अमर पारवानी को संरक्षक मंडल में शामिल नहीं करने पर उनके करीबी व्यापारी नेता नाराज हैं।
पारवानी ने कैट के बैनर तले व्यापारियों के बीच अपनी ताकत दिखाने के लिए एक सम्मेलन करने जा रहे हैं। कार्यक्रम का नाम है संकल्प-वोकल फॉर लोकल। यानी देशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए अभियान शुरू किया जा रहा है। यह कार्यक्रम 6 तारीख को समता कॉलोनी में होगा। इसमें स्पीकर डॉ. रमन सिंह मुख्य अतिथि, और कार्यक्रम की अध्यक्षता विधायक सुनील सोनी करेंगे। पूर्व मंत्री राजेश मूणत व अमर पारवानी विशेष अतिथि के रूप में मौजूद रहेंगे।
राष्ट्रवाद से परिपूर्ण इस कार्यक्रम में प्रदेशभर के व्यापारियों को आमंत्रित किया जा रहा है। चूंकि वोकल फॉर लोकल, भाजपा का एजेंडा रहा है। ऐसे में भाजपा के लोग कार्यक्रम से जुड़ रहे हैं। कुछ लोग मान रहे हैं कि कैट की सक्रियता से व्यापारी संगठन बंट सकते हैं। इन सबको लेकर भाजपा के नेता परेशान हैं। देखना है कि दोनों संगठनों के बीच पार्टी किस तरह तालमेल बिठाती है।
मस्ती, शरारत और सेहत का साथी अब उपेक्षित
भारत दुनिया का वह देश है जहां सबसे ज़्यादा लोग साइकिल चलाते हैं। लेकिन हैरानी की बात ये है कि यहां साइकिल चालकों के लिए सुरक्षित ट्रैक या लेन कहीं नहीं मिलती। चाहे राजधानी रायपुर हो या कोई छोटा शहर, भारी ट्रैफिक के बीच साइकिल सवार अपनी जान जोखिम में डालकर सडक़ों पर उतरते हैं।
बीते कुछ सालों की तरह इस साल भी पुलिस और प्रशासन का साइकिल चलाओ, स्वस्थ रहो जैसा आयोजन हो रहा है। छत्तीसगढ़ में भी कई जगहों पर बच्चों की साइकिल रैलियां हो रही हैं, मंत्री झंडी दिखा रहे हैं, तस्वीरें छप रही हैं, मगर कोई ये नहीं पूछता कि रैली के बाद ये बच्चे या आम लोग रोज साइकिल चलाएं तो चलाएं कहां? रैली के लिए सडक़ें खाली करा दी जाती है, यातायात पुलिस तैनात रहती है- मगर आम दिनों में?
गौरव पथ जैसा चमचमाता रास्ता हो या भीड़-भाड़ वाला बाजार-साइकिल के लिए एक कोना भी सुरक्षित नहीं है। सरकारों से भी सवाल है। पर्यावरण संरक्षण के नाम पर जब ई-वाहनों और हाईवे के लिए करोड़ों की योजनाएं बन रही हैं, तो साइकिल चालकों के लिए भी कोई नीति क्यों नहीं बनती? क्यों नहीं तय किया जाता कि हर नई शहरी योजना में साइकिल ट्रैक अनिवार्य हों?
कभी वक्त था जब स्कूल, कॉलेज जाने का सबसे बड़ा साथी साइकिल होती थी। उसके साथ मस्ती होती थी, शरारतें होती थीं, दोस्त बनते थे। मोहल्लों में साइकिल की घंटी बजती थी तो कई कहानियां चल पड़ती थीं। आज भी स्कूल-कॉलेज दूर हैं, लेकिन अगर मां-बाप से कह दो कि बच्चे को साइकिल से भेजिए, तो डर के मारे उनकी जान सूख जाए। क्योंकि सडक़ पर सबसे असुरक्षित कोई है तो वो पैदल चलने वाला या साइकिल सवार।
याद कीजिए कांशीराम को। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छत्तीसगढ़ की जांजगीर लोकसभा सीट से की थी। तब उनके पास कोई साधन नहीं था। बस एक साइकिल, एक बैग और एक अटूट संकल्प। 70-80 के दशक में वे बामसेफ संगठन को खड़ा करने के लिए साइकिल पर देशभर में घूमते रहे। उनकी यही यात्रा आगे चलकर बहुजन समाज पार्टी की नींव बनी। मेजर ध्यानचंद और मिल्खा सिंह जैसे दिग्गज खिलाड़ी भी अपनी सेहत का राज साइकिल को मानते थे। और कौन भूल सकता है उस डाकिए को जो चि_ियों का बैग लटकाए मोहल्लों में घूमता था? अब ये डाकिये भी बाइक पर आते हैं। शहर से बाहर निकल जाएं तो आपको साइकिलों की कतार मिल जाएगी। वे लोग जो रोज गांव से जान की बाजी लगाकर साइकिल पर शहर आते हैं, अमीरों के घर, दुकानों और फैक्ट्रियों में काम करने।
साइकिल खत्म नहीं हुई है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में तो ये आज भी जीवन का जरूरी हिस्सा है। दंतेवाड़ा, बस्तर, बलरामपुर और सरगुजा जैसे जिलों में स्कूल जाते बच्चे, किसान और वनकर्मी साइकिल पर ही चलते हैं। लेकिन सरकार का ध्यान बुलेट ट्रेन, इलेक्ट्रिक वाहनों और एक्सप्रेसवे पर है। पर्यावरण और सेहत बचाने वाली साइकिल पर नहीं। अब समय है कि साइकिल को फिर से उसका हक और सम्मान मिले। नीति में भी और सडक़ों पर भी। क्योंकि साइकिल सिर्फ पहिए नहीं घुमाती, विचार भी बदल सकती है। संलग्न तस्वीर बस्तर की है।
भाटिया से कांग्रेस में हलचल
आबकारी घोटाला केस में पूर्व सीएम भूपेश बघेल के करीबी विजय भाटिया को ईओडब्ल्यू-एसीबी ने दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया। भाटिया ईओडब्ल्यू-एसीबी की रिमांड पर हैं। सुनते हैं कि भाटिया को ईओडब्ल्यू-एसीबी ने 30 तारीख की शाम को ही अपनी हिरासत में ले लिया था।
दिल्ली में ही भाटिया से पूछताछ चल रही थी , और फिर उन्हें एक तारीख को फ्लाइट से नागपुर लाया गया। वहां से सडक़ मार्ग से रायपुर लाया, और फिर विधिवत गिरफ्तारी कर विशेष अदालत में पेश किया गया। भाटिया अभी ईओडब्ल्यू-एसीबी की रिमांड पर हैं। भाटिया, पूर्व सीएम के राजनीति के शुरुआती दिनों से जुड़े रहे हैं। लो-प्रोफाइल में रहने वाले विजय भाटिया, भूपेश बघेल के दिल्ली दौरे में साथ होते थे। और अब उनकी गिरफ्तारी हुई है, तो कांग्रेस में हलचल है। भाटिया का परिवार तो फर्नीचर के कारोबार से जुड़ा रहा है। उनका भिलाई-3 में फर्नीचर का शो-रूम है।
भाटिया से ईडी ने पहले भी पूछताछ की थी, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। यह कहा जा रहा है कि ईओडब्ल्यू-एसीबी आबकारी घोटाले में भाटिया की संलिप्तता के पुख्ता साक्ष्य मिले हैं। एक शराब फर्म में उनकी हिस्सेदारी का दावा भी हो रहा है। यह भी चर्चा है कि शराब घोटाले के तार दूर तक जुड़े हैं। अब इन दावों में कितना दम है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
छापेमारी के विरोध में बाजार बंद!
राष्ट्रीय स्तर पर कल जब यह खबर चल रही थी कि जीएसटी संग्रह लगातार दूसरे महीने 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक पहुंच गया है, लगभग उसी समय अंबिकापुर में बाजार बंद था और व्यापारी जीएसटी अफसरों के तौर-तरीकों के खिलाफ सडक़ पर उतरे थे। वहां दो प्रतिष्ठानों पर छापेमारी के बाद माहौल गरमा गया। रविवार के दिन अंबिकापुर में साप्ताहिक बाजार की बड़ी चहल-पहल होती है, लेकिन ऐसे छोटे कारोबारी भी दुकानें बंद कर प्रदर्शन में उतर गए, जो जीएसटी के दायरे में नहीं आते। व्यापारियों का कहना था कि जीएसटी अफसर बार-बार छापा मारते हैं। वह व्यापारियों को चोर समझते हैं। लक्ष्मी ट्रेडर्स पर तो छह माह के भीतर तीसरी बार छापेमारी की गई। हालांकि जीएसटी विभाग ने उन दोनों संस्थानों के बारे में शाम को दावा किया कि इन पर पहले कोई कार्रवाई नहीं की गई है। करोड़ों के टर्नओवर में जीएसटी भुगतान शून्य दिखाया गया। उन पर लगाई गई पेनाल्टी का भी ब्योरा अफसरों ने दिया।
जीएसटी की कार्रवाई के खिलाफ व्यवसायियों का सडक़ पर उतरना छत्तीसगढ़ में पहली बार हुआ है, पर दूसरे राज्यों में पहले भी ऐसा हो चुका है। यूपी, एमपी और उत्तराखंड में प्रदर्शन हो चुके हैं। सन् 2022 में तो यूपी स्टेट जीएसटी को 72 घंटे तक सर्वे और छापेमारी का काम रोकना पड़ा था। जीएसटी प्रणाली जब से लागू हुई है, इसकी जटिलताओं को लेकर सवाल उठते रहे हैं। छोटे शहरों के कई व्यापारी डिजिटल नियमों, आईटीसी क्रेडिट और टैक्स स्लैब की पेचीदगियों को अब तक ठीक से समझ नहीं पाए हैं। अंबिकापुर के मामले में भी व्यापारियों का कहना है कि अफसर किस तरह से पेनाल्टी और टैक्स का निर्धारण कर रहे हैं, वे यह उन्हें समझा नहीं पा रहे हैं।
कुछ दशक पहले सेल्स टैक्स इंस्पेक्टरों को छापेमारी के जो अधिकार मिले थे, उसे ‘इंस्पेक्टर राज’ के नाम से जाना जाता था। व्यापारियों का अंबिकापुर में हुआ प्रदर्शन बताता है कि वे उसी दौर की दहशत को फिर से महसूस कर रहे हैं।
दूसरी ओर, जीएसटी अफसरों की भी अपनी चिंता होगी। अप्रैल के आंकड़ों के मुताबिक, छत्तीसगढ़ देश के कर संग्रह वाले राज्यों में 15वें नंबर पर रहा। हालांकि सरकार ने इसे उपलब्धि के तौर पर माना है, लेकिन राज्यों के आकार और आबादी के अनुसार यह औसत से कम संग्रह है। जीएसटी अफसरों पर दबाव होगा कि वे जीएसटी चोरी के मामलों को रोकें और कलेक्शन बढ़ाएं। दूसरी ओर, इसी का फायदा यह है कि छापेमारी, सर्वे के दौरान व्यापारियों को बताया जाए कि जुर्माना 50 लाख रुपये की जगह 20 लाख रुपये कर देंगे, यदि 10 लाख रुपये अलग से उनकी जेब में डाल दें — यह आरोप अंबिकापुर के व्यापारियों ने प्रदर्शन के दौरान ही लगाया है।
आम आदमी का पक्ष इसमें भूल ही जाइए। रिजर्व बैंक से लेकर नीति आयोग तक चिंता जता रहे हैं कि आम लोगों की खर्च करने की क्षमता घटती जा रही है। जीएसटी संग्रह पर सरकारों को अपनी पीठ थपथपाने में आनंद आ रहा है, लेकिन आम लोग घर से बाहर निकलते ही हर सामान और प्रत्येक सेवा पर जीएसटी के बोझ को ढो रहे हैं।
हाईटेक ट्राइबल संग्रहालय
नवा रायपुर के पुरखौती मुक्तांगन के पास बना एक नयाआदिवासी संग्रहालय एवं अनुसंधान केंद्र खुला है। यहां छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति, जीवनशैली, परंपराएं, शिक्षा, भोजन, पहनावा, शिकार व्यवस्था और रोजगार तक को एक ही छत के नीचे शानदार ढंग से प्रदर्शित किया गया है। इस हाई-टेक संग्रहालय की खास बात यह है कि हर गैलरी में स्क्रीन लगे हैं, जिन पर आप मोबाइल की तरह स्क्रॉल करके जानकारी पढ़ सकते हैं। साथ ही, हर गैलरी में एक क्यूआर कोड भी दिया गया है, जिसे स्कैन करके विस्तृत जानकारी मोबाइल में पाई जा सकती है।
निकले और प्रदेश छोड़ चले गए
कोयला घोटाले के आरोपी आईएएस रानू साहू, समीर विश्नोई, और सौम्या चौरसिया, खनिज अफसर संदीप नायक, और ट्रांसपोर्टर वीरेंद्र जायसवाल व रजनीकांत तिवारी रिहाई के बाद प्रदेश छोडक़र चले गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को सशर्त जमानत दी है। उन्हें जमानत की अवधि में प्रदेश से बाहर रहना होगा। और एक हफ्ते में नए पते की सूचना जिला अदालत को देनी होगी।
बताते हैं कि सभी आरोपी शनिवार को कुछ घंटे अपने परिवार के साथ गुजारने के बाद अलग-अलग प्रदेशों में चले गए हैं। आरोपियों के वकील सोमवार को नए पते की सूचना कोर्ट को देंगे। समीर विश्नोई राजस्थान, और सौम्या कर्नाटक शिफ्ट होने की चर्चा है। कर्नाटक के बेंगलुरु में सौम्या के परिवार के सदस्य निवासरत हैं। बाकी आरोपियों का ठिकाना पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश होगा। इस प्रकरण में सूर्यकांत तिवारी भी आरोपी हैं, और वो जेल में बंद हैं। सूर्यकांत को पहली बार जांच एजेंसी ने बेंगलुरु से ही पकड़ा था।
कहा जा रहा है कि उनकी तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जमानत आवेदन विलंब से पेश किया गया है। इसलिए बाकी आरोपियों की याचिका के साथ सुनवाई नहीं हो पाई। प्रकरण पर सुनवाई संभवत: अगले महीने हो सकती है। तब तक उन्हें जेल में ही रहना होगा।
वेतन आयोग फिलहाल प्राथमिकता नहीं
केंद्र सरकार द्वारा जनवरी 2025 में आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी थी। उसके बाद से पांच माह बीत गए हैं और अध्यक्ष सदस्यों की नियुक्ति को लेकर सरकार की चुप्पी ने लाखों सरकारी कर्मचारियों के बीच चिंता बढ़ा दी है। सरकार की प्राथमिकता अभी आयोग नहीं ऑपरेशन सिंदूर और पीओके हो गई है।
16 जनवरी के बाद से कर्मचारी हल्कों में लगातार अटकलें लगाई जा रही हैं लेकिन कोई ठोस जानकारी सामने नहीं आई है। यह स्थिति कर्मचारियों की बेचैनी बढ़ाने का काम कर रही है। हालांकि आयोग के लिए प्रतिनियुक्ति के आधार पर लगभग 35 पदों को भरने सर्कुलर जारी किया था ताकि आयोग का कार्यकारी ढांचा तैयार किया जा सके। मार्च 2025 तक आयोग के टर्म्स ऑफ रेफरेंस की समीक्षा के लिए रक्षा, गृह और कार्मिक जैसे प्रमुख मंत्रालयों को संदर्भ भेजे गए थे।
इन सभी तैयारियों से यह स्पष्ट था कि सरकार आयोग के गठन को लेकर गंभीर है। लेकिन इन प्रारंभिक कदमों के बाद भी मुख्य नियुक्तियों में देरी हो रही है जो चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस देरी के पीछे कई जटिल प्रशासनिक और नीतिगत कारण हो सकते हैं। मई के अंत तक की स्थिति को देखते हुए 1 जनवरी 2026 की निर्धारित समयसीमा पूरी करना एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। वर्तमान में सातवें वेतन आयोग का कार्यकाल 31 दिसंबर 2025 को समाप्त हो रहा है और केवल सात महीने का समय बचा है।
पिछले वेतन आयोगों के अनुभव को देखते हुए आम तौर पर सिफारिशों को तैयार करने और लागू करने में 12 से 18 महीने का समय लगता है। यदि आयोग का गठन भी जून या जुलाई में हो जाता है तो भी समय सीमा पूरी करना कठिन लगता है। इस स्थिति में कर्मचारियों को धैर्य रखना होगा और वास्तविक अपेक्षाएं करनी होंगी। सरकार की प्राथमिकताओं और उपलब्ध संसाधनों को देखते हुए यह देरी अपरिहार्य लग रही है। वैसे भी अभी देश में कहीं कोई चुनाव नहीं है। बिहार के चुनाव आते आयोग भी काम शुरू कर देगा।
क्या अब गांव-गांव में कैमरे लगाएं?
रायपुर-बलौदाबाजार मार्ग पर 11 मई की रात हुए भीषण सडक़ हादसे में 13 लोगों की जान गई, 12 घायल हुए। अब कल छुईखदान में फिर एक हादसा हो गया। तेंदूपत्ता तोडऩे जा रहे मजदूरों से भरी माजदा पलट गई, तीन की मौत हो गई, आठ गंभीर रूप से घायल हैं। ठीक पिछले साल मई में भी कवर्धा जिले में पिकअप पलटने से 19 तेंदूपत्ता मजदूरों की मौत हो गई थी, जिनमें अधिकतर महिलाएं थीं। तब सरकार और पुलिस ने खूब सख्ती दिखाई थी। सवारी वाले मालवाहकों की जगह-जगह जांच, चालान, रोक-टोक। लेकिन जोश कुछ ही हफ्तों में ठंडा पड़ गया। इस बार भी- बलौदाबाजार हादसे के बाद कुछ दिनों की सतर्कता और फिर सब कुछ सामान्य हो गया। हल्के और मध्यम श्रेणी के मालवाहक वाहनों में मजदूरों को ढोना एक आम बात बन चुकी है। सरकार भी जानती है, पुलिस भी। प्राय: ऐसे वाहनों के ड्राइवर नशे में होते हैं, सवारियों की संख्या ओवरलोड होती हैं, और कई बार ड्राइविंग लाइसेंस तक नहीं होता।
इधर शहरों में और चुनिंदा हाईवे पर ट्रैफिक कैमरे हैं, छोटी गलती पर चालान कट जाता है। दुपहिया पर तीन सवारी हो, सीट बेल्ट न पहनी हो, रफ्तार तेज हो तो नोटिस घर आ जाता है। पर ग्रामीण इलाकों में जहां बड़े हादसे हो रहे हैं, वहां पुलिस की आंखें या तो बंद हैं, या मौजूद ही नहीं। कैमरा नहीं तो चालान नहीं, और चालान नहीं तो जिम्मेदारी भी नहीं। चलिये मजदूरों को इन वाहनों में ढोने से आप पूरी तरह नहीं रोक पा रहे हैं पर क्या हादसे होने से पहले कुछ और नहीं किया जा सकता? ट्रैफिक पुलिस यदि शहर के बाहर, कस्बों में दिख जाएं तो मान कर चलिये कि वे हादसे रोकने के लिए नहीं बल्कि वीआईपी मूवमेंट के कारण वहां खड़े होते हैं। आम दिनों में क्या ड्राइवरों की जांच हो रही है? क्या गाडिय़ों की फिटनेस देखी जा रही है? सवाल यह है कि क्या अब दुर्घटनाओं के रुकने की उम्मीद तभी की जाएगी, जब गांव-गांव की सडक़ों पर कैमरे निगरानी करने लगें? क्योंकि पुलिस की मौजूदा निगरानी व्यवस्था तो पूरी तरह फेल दिखाई देती है। इस तस्वीर को ही देख लीजिए, जो बिलासपुर-रायपुर हाईवे में सरगांव के पास की है।
शिक्षकों का बाहुबल
सरकारी कर्मचारियों में शिक्षक संगठन को पावरफुल माना जाता है। भले ही शिक्षकों के दर्जन भर से अधिक संगठन हैं लेकिन अहम मसले पर एकजुट हो जाते हैं। शिक्षकों की मांगों पर सरकार को कई बार झुकना भी पड़ा है।कुछ ऐसा ही युक्तियुक्तकरण मामले पर भी होता दिख रहा था।
सर्व शिक्षक संगठन के बैनर तले शिक्षक संगठनों ने युक्तियुक्तकरण का विरोध किया, तो कहा जा रहा था कि सरकार युक्तियुक्तकरण शायद ही कर पाएगी। मगर सरकार ने साफ कर दिया है कि ग्रामीण इलाके शिक्षक विहीन, और एकल शिक्षकीय स्कूलों युक्तियुक्तकरण कर अतिशेष शिक्षकों की पदस्थापना कर दी जाएगी। अभी तक शिक्षक संगठनों का विरोध कारगर नहीं दिख रहा है। काउंसलिंग के लिए जिस तरह शिक्षकों की भीड़ उमड़ी है, उससे शिक्षक संगठनों का विरोध बेअसर दिखाई दे रहा है। आगे क्या होता है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
नक्सल मुक्ति के बाद पुलिस का चेहरा ऐसा होगा?
बीजापुर जैसे नक्सल प्रभावित इलाके में पुलिस से उम्मीद यह होनी चाहिए कि वह आम जनता का विश्वास जीते, ताकि लोग शासन-प्रशासन के प्रति भरोसा मजबूत करें। सोशल मीडिया पर अक्सर पुलिस अफसरों की ऐसी तस्वीरें या वीडियो सामने आते हैं, जिनमें वे यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे आम लोगों के साथ संवेदनशील और आत्मीय व्यवहार करते हैं।
अब जब सरकार और सुरक्षा बल यह दावा कर रहे हैं कि बस्तर बहुत जल्द नक्सल मुक्त हो जाएगा, तो यह एक बड़ा सवाल है कि उसके बाद पुलिस का आम लोगों से व्यवहार कैसा होगा? यह उम्मीद की जानी चाहिए कि माहौल बदलने के साथ पुलिस का रुख और अधिक मानवीय होगा।
मगर, एक बीजापुर जिले के कुटरू इलाके की यह घटना चिंता बढ़ाने वाली है। आरोप है कि एसडीओपी बृजकिशोर यादव ने एक पंचायत सचिव और उसके सहायक के साथ सडक़ पर खुलेआम मारपीट की। कथित रूप से उन्होंने दोनों को कॉलर पकडक़र गाड़ी से बाहर निकाला, बंदूक की नोक पर जमीन पर गिराया, छाती पर जूतों से मारा और बेल्ट निकालकर पीटा। फिर अपशब्द कहकर धमकी देते हुए छोड़ दिया। पंचायत सचिव की गलती सिर्फ इतनी थी कि वह अपनी कार से आगे चल रहा था और पीछे से आ रही एसडीओपी की गाड़ी को संकरी पुलिया आने की वजह से जल्दी साइड नहीं दे सका।
यह कोई साधारण पुलिसिया फटकार नहीं, बल्कि सत्ता के दंभ में डूबे हुए एक अफसर की असंवेदनशील और अपमानजनक हरकत है। आम लोगों के प्रति पुलिस का नजरिया क्या है, उसका एक प्रतिबिंब है। घटना से पंचायत विभाग के कर्मचारियों में भारी आक्रोश है। आम नागरिकों में भी रोष है। उन्होंने भैरमगढ़ थाने पहुंचकर विरोध जताया। भाजपा के लोग भी इस विरोध में शामिल हुए। लोगों की मांग थी कि एसडीओपी पर एफआईआर दर्ज की जाए, लेकिन थाने में कोई स्टाफ इतना साहस नहीं जुटा पाया कि वह अपने ही अफसर के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सके।
फिलहाल मामला शांत नहीं हुआ है। पंचायत कर्मियों ने चेतावनी दी है कि यदि एफआईआर दर्ज नहीं की गई, तो वे काम का बहिष्कार करेंगे।
यह घटना एक गंभीर सवाल उठाती है। यदि वाकई बस्तर नक्सल मुक्त हो गया और पुलिस को उन गांवों तक निर्बाध पहुंच मिल गई, जहां पहले उसे फोर्स के साथ जाना पड़ता था, तब वहां आम जनता के साथ उसका व्यवहार कैसा होगा? पुलिस अपने अधिकारों का उपयोग जनहित में करेगी या फिर पद के गुरूर में दमन का नया सिलसिला शुरू हो जाएगा? क्या नक्सल मुक्त बस्तर में एक जवाबदेह पुलिस व्यवस्था बनाई जाएगी?
रिहाई पर छाई धुँध
चर्चित कोयला घोटाला प्रकरण में निलंबित आईएएस रानू साहू, समीर विश्नोई के साथ ही सौम्या चौरसिया, और कारोबारी सूर्यकांत तिवारी को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी है। मगर उनकी रिहाई को लेकर संशय कायम है। जमानत में यह भी शर्त है कि आरोपियों को छत्तीसगढ़ से बाहर रहना होगा। ये सभी आरोपी पिछले दो साल से अधिक समय से जेल में हैं।
प्रकरण की जांच से जुड़े एक अफसर ने इस संवाददाता से अनौपचारिक चर्चा में बताया कि कोर्ट ने कोयला घोटाले से जुड़े सभी प्रकरणों पर जमानत दी है। कोर्ट के आदेश का परीक्षण किया जा रहा है, और इसको लेकर कानूनी सलाह ली जा रही है।
एक सरकारी वकील ने आरोपियों की अंतरिम जमानत पर कहा कि आरोपियों ने जिला अदालत में अभी जमानत के लिए आवेदन नहीं लगाया है। अभी आरोपियों के खिलाफ ईओडब्ल्यू-एसीबी में नए कोई मामले दर्ज हैं या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है। यदि नए मामले दर्ज होते हैं, तो रिहाई मुश्किल है। कुल मिलाकर रिहाई के मसले पर एक-दो दिनों में स्थिति साफ होने की उम्मीद है।
नेताम के संघ में जाने के मतलब !!
हमर राज पार्टी के मुखिया, और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम की अचानक पूछ परख बढ़ गई है। नेताम को आरएसएस ने नागपुर के एक कार्यक्रम में प्रमुख अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का उद्बोधन होगा। नेताम के कार्यक्रम में आमंत्रण के मायने तलाशे जा रहे हैं।
दरअसल, बस्तर में आरएसएस काफी सक्रिय है, और मतांतरण आदि के मसले पर काफी मुखर भी है। नेताम पांच बार कांग्रेस के सांसद रहे। राज्य बनने से पहले उनकी गिनती कांग्रेस के ताकतवर नेताओं में होती रही है। मगर उनके नाम सबसे ज्यादा दल बदल का रिकॉर्ड भी है। नेताम कांग्रेस छोडक़र कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी में चले गए थे। उन्होंने कांकेर, और जांजगीर-चांपा सीट से चुनाव लड़ा था, और दोनों जगह उनकी जमानत जब्त हो गई। इसके बाद वो कांग्रेस में आ गए, और फिर पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में चले गए।
बाद में नेताम भाजपा में शामिल हो गए। डॉ. चरणदास महंत के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद नेताम फिर कांग्रेस में आ गए। वो दिवंगत पूर्व सांसद सोहन पोटाई के साथ मिलकर सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले काम करने लगे।
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद बोधघाट परियोजना के मसले पर सीएम भूपेश बघेल से अनबन हुई, और नेताम ने फिर कांग्रेस छोड़ दी। उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले हमर राज पार्टी का गठन किया, और ज्यादातर सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए। ऐसी चर्चा है कि नेताम को नई पार्टी गठन के लिए भाजपा के रणनीतिकारों ने प्रेरित किया था। हालांकि नेताम की पार्टी का कोई भी उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा पाया, लेकिन कुछ जगहों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की हार सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई।
नेताम की भले ही जमीनी पकड़ पहले जैसी नहीं है, लेकिन उनकी पहचान बुद्धिजीवी आदिवासी नेताओं में होती है। ऐसे में जब कांग्रेस, जल-जंगल और जमीन के मसले पर भाजपा से टकरा रही है, तो मतांतरण आदि के मसले पर आरएसएस के लिए नेताम उपयोगी हो सकते हैं। फिलहाल नेताम के अगले कदम पर राजनीतिक लोगों की निगाहें टिकी हुई है।
दिग्गज ट्रेनिंग पर
रायपुर आईजी अमरेश मिश्रा एक हफ्ते की ट्रेनिंग में मसूरी गए हैं। उनकी जगह दुर्ग आईजी रामगोपाल गर्ग, रायपुर आईजी के प्रभार पर हैं। मिश्रा के साथ खैरागढ़ एसपी त्रिलोक बंसल भी मसूरी ट्रेनिंग में गए हैं। दोनों अफसर ट्रेनिंग पूरी कर अगले हफ्ते लौटेंगे।
हालांकि बंसल खैरागढ़ से तबादला हो चुका है। उनकी जगह आईपीएस के वर्ष-2016 बैच के अफसर लक्ष्य शर्मा को खैरागढ़ एसपी बनाया गया है। लक्ष्य शर्मा की पोस्टिंग महीने भर पहले हो चुकी थी, जब वो ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद पहुंच चुके थे, तब उन्हें पोस्टिंग ऑर्डर मिला। उन्हें डीजीपी ने ट्रेनिंग पूरी कर जाइनिंग की सलाह दी। लक्ष्य शर्मा ट्रेनिंग पूरी कर चुके हैं, और वो एक-दो दिन में खैरागढ़ एसपी के रूप में जॉइनिंग दे देंगे।
लक्ष्य शर्मा त्रिपुरा में पोस्टिंग थी। उनकी पत्नी आईएएस सुरूचि सिंह राजनांदगांव जिला पंचायत सीईओ हैं। लक्ष्य कैडर परिवर्तन के बाद छत्तीसगढ़ आए हैं, और खैरागढ़ एसपी के रूप में जिले में पहली पोस्टिंग हैं। इससे परे धमतरी एसपी सूरज सिंह परिहार को भी एक महीने के ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना था। मगर उन्हें बाद में ट्रेनिंग करने की सलाह दी गई है। आईएएस-आईपीएस अफसरों को यह सुविधा होती है कि वो ट्रेनिंग आगे-पीछे कर सकते हैं।
दिल्ली में पोस्टिंग
सुशासन तिहार निपटने के बाद मंत्रालय में छोटा सा फेरबदल हो सकता है। आईएएस के वर्ष-04 बैच के अफसर अलबंगन पी, और उनकी पत्नी श्रम सचिव अलरमेल मंगई डी केन्द्र सरकार में पोस्टिंग हो गई है। दोनों ही संयुक्त सचिव बने हैं।
अलबंगन के पास पर्यटन, और संस्कृति का प्रभार है। वो पिछले चार साल से यह दायित्व संभाल रहे थे। उनकी केन्द्रीय कृषि मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर पोस्टिंग हुई है। दोनों वर्तमान में अवकाश पर हैं। उनके दो जून को लौटने की संभावना है। इसके बाद उन्हें रिलीव किया जा सकता है। इसके बाद स्वाभाविक तौर पर प्रशासनिक फेरबदल होगा।
सुशासन तिहार में आए फीडबैक के आधार पर कुछ बदलाव होने के संकेत हैं। एक बात और चर्चा में आई है कि राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस में आए सचिव स्तर के एक भी अफसर को स्वतंत्र विभाग नहीं मिला है। सचिव स्तर के अफसर कमिश्नर बने हुए हैं। जबकि जोगी, और रमन सिंह व भूपेश बघेल सरकार में उन्हें अहम दायित्व मिला हुआ था। चर्चा है कि एक-दो सचिव स्तर के अफसर को मंत्रालय लाया जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
जोगी की प्रतिमा लग पाएगी भी ?
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पांचवीं पुण्यतिथि से पहले उनकी प्रतिमा को लेकर जो घटनाक्रम सामने आया, वह उनके करिश्माई लेकिन विवादित व्यक्तित्व की एक परछाई जैसा है। राज्य में उनके योगदान को स्मरण करने के लिए आज तक एक भी राजकीय स्तर पर उनकी प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है। जब उनके पुत्र अमित जोगी ने उनकी जन्मस्थली गौरेला में प्रतिमा लगाने की कोशिश की, तो पूरा मामला एक अप्रिय और अभूतपूर्व विवाद में उलझ गया।
नगरपालिका के सीएमओ ने प्रतिमा हटाने के लिए ठेकेदार को नोटिस जारी किया, परंतु ठेकेदार ने खुद प्रतिमा हटाने का साहस नहीं दिखाया। इसके बाद रात के अंधेरे में प्रतिमा को उखाडक़र क्रेन से उठाया गया और गौरेला बस स्टैंड के पास लावारिस हाल में फेंक दिया गया। जैसे ही यह खबर फैली, राजनीतिक हलकों में हडक़ंप मचा। सभी प्रमुख दलों ने इस बर्ताव की निंदा की। पुलिस ने एफआईआर दर्ज की, लेकिन नगरपालिका सीएमओ की वह मंशा पूरी हो चुकी थी, जिसमें उन्होंने प्रतिमा को हटाने का निर्देश दिया था।
मूर्ति हटाए जाने की घटना सीसीटीवी में कैद हुई, कुछ लोगों के चेहरे भी दिखे, लेकिन अब तक किसी का नाम पुलिस में नहीं आया है। इस घटना के विरोध में अमित जोगी ने अनशन किया। दबाव के चलते प्रतिमा को पुन: वहीं लाकर रखा गया, लेकिन प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया कि आगे की कार्रवाई राज्य सरकार द्वारा तय किए गए महापुरुषों की प्रतिमा स्थापना संबंधी प्रावधानों के तहत ही होगी। यह आगे की कार्रवाई फिलहाल अस्पष्ट बनी हुई है।
उधर, जैसे ही विवाद थोड़ा थमा, स्थानीय भाजपा नेताओं ने फिर यह मांग उठा दी कि उसी स्थान पर पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा लगाई जानी चाहिए, क्योंकि इस संबंध में नगरपालिका परिषद पहले ही प्रस्ताव पारित कर चुकी है। सीएमओ द्वारा प्रतिमा हटाने का आदेश भी इसी प्रस्ताव के आधार पर दिया गया था।
अजीत जोगी के जीवन में विवादों की कभी कमी नहीं रही, लेकिन यह भी ऐतिहासिक सत्य है कि वे छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री थे। यह एक बड़ी विडंबना है कि न केवल राज्य की राजधानी रायपुर में, बल्कि उनकी जन्मस्थली गौरेला में भी अब तक उनकी राजकीय स्तर पर कोई प्रतिमा नहीं लग पाई है। जिस जगह से प्रतिमा उखाड़ी गई है, वहीं पर दोबारा लगेगी या नहीं यह भी संदेह के दायरे में है।
सीआईसी के लिए नया नाम उभरा
राज्य में राजनीतिक नियुक्तियों का सिलसिला भले ही रुकी रहे, लेकिन मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) और दो सूचना आयुक्तों (आईसी) की नियुक्ति अब किसी भी सूरत में टलने वाली नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह है सुप्रीम कोर्ट की सख्त निगरानी, जिसके तहत आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों को यह जवाब होगा कि उन्होंने पारदर्शी प्रक्रिया के साथ सूचना आयुक्तों नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर ली है।
इसके पहले ए.के. विजयवर्गीय (2005-2010), सरजियस मिंज (2011-2016) और एम.के. राऊत (2017-2022), सभी की नियुक्तियां आपस के राय-मशविरे से, बिना साक्षात्कार हुईं। लेकिन इस बार परिदृश्य बदल गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, चयन प्रक्रिया को पारदर्शिता के दायरे में लाया गया। विज्ञापन जारी किए गए, आवेदन सार्वजनिक पोर्टल पर डाले गए, और इंटरव्यू भी लिया गया।
मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति पर मुहर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय चयन समिति लगाएगी। समिति में एक मंत्री और नेता प्रतिपक्ष भी शामिल हैं। माना जा रहा है कि इस बार भी अखिल भारतीय सेवा के किसी वरिष्ठ अधिकारी को सीआईसी की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। चर्चा में सबसे ऊपर नाम अमिताभ जैन का था, जो जून में सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, उनके नाम की केवल औपचारिक घोषणा बाकी थी, लेकिन अब राजनीतिक प्रशासनिक हलकों में अब यह चर्चा गर्म है कि जैन को कम-से-कम छह महीने का सेवा विस्तार मिल रहा है।
ऐसी स्थिति में अब जिस नाम की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, वह है पूर्व डीजीपी अशोक जुनेजा। साक्षात्कार में कुछ अन्य आईएएस, आईपीएस भी शामिल थे, पर कहा जा रहा है कि उनका इंटरव्यू (जैन के बाद) सबसे अच्छा गया। पर यह बदलाव तभी हो सकता है जब जैन के सेवा विस्तार की खबरें सही निकले।
आईपीएस के नाम फर्जी फेसबुक पेज
आईपीएस शलभ कुमार सिन्हा के नाम और फोटो का दुरुपयोग कर अज्ञात व्यक्तियों द्वारा फेसबुक पर एक नहीं दो-दो फर्जी प्रोफाइल बनाए गए हैं। सिन्हा ने खुद ही सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी देते हुए लोगों से अपील की है कि वे इस फर्जी अकाउंट से आने वाली फ्रेंड रिक्वेस्ट को स्वीकार न करें और इसकी तुरंत रिपोर्ट करें। पूर्व में भी छत्तीसगढ़ के कई आईपीएस और हाई-प्रोफाइल अधिकारियों के नाम पर फर्जी सोशल मीडिया पेज बनाए गए हैं। इन फर्जी अकाउंट्स का मुख्य मकसद ठगी और उगाही करना होता है, जहां लोगों को झूठे बहाने बनाकर पैसे मांगे जाते हैं। अब पुलिस के ही साइबर सेल की ही जिम्मेदारी है कि वे अपने अफसर के नाम पर ठगी करने वालों को ढूंढ निकाले।
डीएमएफ यानी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट फण्ड
डीएमएफ घोटाला केस में पखवाड़े भर पहले ईओडब्ल्यू-एसीबी ने कोरबा के तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर भरोसाराम ठाकुर, और तीन जनपद सीईओ को गिरफ्तार किया था तब केस की गंभीरता का अंदाजा नहीं लग पा रहा था। क्योंकि ईडी भी डीएमएफ केस की जांच कर चुकी है। इस केस में कोरबा की तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू, और कारोबारी सूर्यकांत तिवारी सहित अन्य आरोपी हैं। रानू साहू को ईडी के केस में जमानत मिल चुकी है। मगर ईओडब्ल्यू-एसीबी के केस में उन्हें जमानत नहीं मिली है। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने मंगलवार को रायपुर की विशेष अदालत में डीएमएफ केस को लेकर चालान पेश किया। इसमें कई नए खुलासे हुए हैं।
ईओडब्ल्यू-एसीबी के छह हजार पेज के चालान में 75 करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने बताया कि कोरबा की तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू ने डिप्टी कलेक्टर बीआर ठाकुर को डीएमएफ का नोडल अफसर बनाया था। नोडल अफसर ठाकुर कलेक्टर के निर्देश पर सप्लाई ऑर्डर देते थे। यह भी कहा गया कि डीएमएफ के कार्यों में सूर्यकांत तिवारी का दखल रहा है।
ईओडब्ल्यू-एसीबी की गिरफ्त में आए तीन जनपद सीईओ वीरेन्द्र राठौर, राधेश्याम मिर्घा, और भुवनेश्वर सिंह राज ने अपने बयान में इसकी पुष्टि की है। प्रकरण की जांच से जुड़े एक अफसर ने इस संवाददाता से अनौपचारिक चर्चा में कहा कि जांच में कई नए तथ्य सामने आए हैं, और घोटाले से जुड़े कुछ पुख्ता दस्तावेज मिले हैं। ऐसे में आरोपियों के खिलाफ केस काफी मजबूत है। देखना है आगे क्या होता है।
जाने के पहले पदोन्नति
उच्च शिक्षा में सहायक प्राध्यापक से प्राध्यापक पद पर पदोन्नति के लिए कसरत चल रही है। पदोन्नति सूची में एक ऐसे सहायक प्राध्यापक का नाम है, जिसे पीएससी 2005 के पीएससी घोटाले में संलिप्त पाया गया था। सहायक प्राध्यापक उस वक्त पीएससी में परीक्षा नियंत्रक थे। सरकार ने उनकी तीन वेतनवृद्धि भी रोक दी थी।
सहायक प्राध्यापक के खिलाफ कुछ और शिकायतें भी रही हैं, लेकिन कोई भी जांच के स्तर तक नहीं पहुंच पाया। अब सहायक प्राध्यापक सभी आरोपों से मुक्त हैं इसलिए उन्हें पदोन्नति देने में कोई तकनीकी अड़चन नहीं है। वैसे वो भाजपा के एक ताकतवर नेता के करीबी रिश्तेदार हैं। नेताजी भले ही किसी पद में नहीं हैं, लेकिन उनकी सिफारिशों को अनदेखा नहीं किया जाता है। सहायक प्राध्यापक अगले कुछ दिनों में रिटायर होने वाले हैं। नेताजी ने भी जोर लगाया है कि रिटायरमेंट के पहले उनकी पदोन्नति हो जाए। देखना है आगे क्या होता है।
नए शिक्षकों की भर्ती अब और टलेगी?
छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग का कहना है कि युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया सिर्फ अतिशेष शिक्षकों के समुचित समायोजन के लिए की जा रही है। विभाग का दावा है कि न तो किसी शिक्षक का पद समाप्त किया जा रहा है और न ही कोई स्कूल बंद किया जा रहा है। लेकिन शिक्षक संगठनों, विपक्ष और अभिभावकों के बीच यह सवाल लगातार उठ रहा है कि क्या यह प्रक्रिया दरअसल सैकड़ों स्कूलों को धीरे-धीरे बंद करने और शिक्षकों की संख्या घटाने की तैयारी है?
शिक्षा विभाग के अनुसार राज्य में 5,370 शिक्षक (3,608 प्राथमिक और 1,762 पूर्व माध्यमिक शिक्षक) अतिशेष हैं। इन्हें उन स्कूलों में स्थानांतरित किया जा रहा है, जहां शिक्षकों की कमी है। विभाग यह भी कहता है कि किसी स्वीकृत पद को खत्म नहीं किया जा रहा है और भविष्य में छात्र संख्या बढऩे पर सभी पद फिर से सक्रिय रहेंगे। क्लस्टर स्कूल की अवधारणा को संसाधनों के बेहतर उपयोग से जोड़ा जा रहा है।
हालांकि, सवाल यह है कि अगर एक ही परिसर में कई स्कूलों को समायोजित किया जा रहा है और कुछ स्कूलों से शिक्षक हटाए जा रहे हैं, तो क्या यह वास्तव में स्कूलों को अप्रत्यक्ष रूप से बंद करने जैसा नहीं है? वर्तमान में राज्य की 212 प्राथमिक शालाएं पूरी तरह शिक्षकविहीन हैं और 6,872 शालाएं केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रही हैं। शिक्षकों की भर्ती को लेकर सबसे ज्यादा चिंता उन बेरोजगार युवाओं में है, जिन्हें दिसंबर 2023 में भाजपा सरकार ने आश्वासन दिया था कि एक साल के भीतर 54,000 शिक्षकों की भर्ती की जाएगी। लेकिन अब जब युक्तियुक्तकरण के जरिए अतिशेष शिक्षकों को दूसरी जगह समायोजित किया जा रहा है, तो यह आशंका बढ़ गई है कि सरकार नए पदों का सृजन शायद टाल सकती है।
अगर सरकार केवल समायोजन पर ही ध्यान देती रही और नई भर्ती की कोई स्पष्ट समयसीमा घोषित नहीं करती, तो हजारों प्रशिक्षित युवा, जिन्होंने बीएड और डीएड जैसी डिग्रियां इन्हीं वादों के भरोसे हासिल की हैं, खुद को ठगा हुआ महसूस कर सकते हैं।
दूसरी तरफ राज्य के दो दर्जन से अधिक शिक्षक संगठन एकजुट हो चुके हैं। उनका कहना है कि यह समायोजन शिक्षकों के साथ अन्याय है, खासकर तब, जब नई भर्ती और पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है। इन संगठनों ने 28 मई को मंत्रालय घेराव का ऐलान किया है। अब देखना यह होगा कि इस विरोध प्रदर्शन का राज्य सरकार और शिक्षा विभाग पर क्या असर होता है।
एक समाजवादी हस्तक्षेप
राजनीति के इस पूंजीवादी दौर में डॉ. राममनोहर लोहिया जैसे समाजवाद के प्रखर समर्थक अब हमारी स्मृतियों से ओझल होते जा रहे हैं। गोवा मुक्ति आंदोलन के इस निर्भीक नायक, जिन्होंने संसद में भी सत्ता की चूलें हिला दी थीं, उन्हें आज की पीढ़ी कितनी जानती है? लोहिया कहते थे कि अगर कोई झूठ को सच बना दे, तो वह राजनीति नहीं, धोखा है...। शायद इस दौर में उनकी कही बातें और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गई हैं।
धमतरी जिले के नगरी कस्बे से गुजरते वक्त अब एक चौक पर उनकी प्रतिमा दिखाई देती है। यह केवल धातु की आकृति नहीं, बल्कि एक विचार की मौजूदगी है। समाजवादी नेता रघु ठाकुर के प्रयासों से यह प्रतिमा हाल ही में स्थापित की गई है। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने इसका अनावरण किया।
चैम्बर और चुनौती
चैम्बर ऑफ कॉमर्स में सतीश थौरानी के निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाने के बाद व्यापारियों नेताओं में एका की उम्मीद जताई जा रही थी। वजह यह थी कि थौरानी का चैम्बर के बड़े नेता अमर पारवानी, और श्रीचंद सुंदरानी समेत अन्य से घनिष्ठता रही है, लेकिन सोमवार को उन्होंने कार्यकारिणी घोषित की, तो एकता को लेकर संदेह जताया जा रहा है।
पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी, पूरनलाल अग्रवाल जैसे दिग्गजों को संरक्षक बनाया गया है। मगर पारवानी का नाम सूची से गायब है। पारवानी व्यापारियों के बीच अपनी पकड़ साबित कर चुके हैं। उन्होंने पिछले चुनाव में अलग पैनल बनाकर पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी के एकता पैनल को मात दी थी। सतीश को निर्विरोध अध्यक्ष बनाने में पारवानी की भी भूमिका रही है। हालांकि पारवानी को संरक्षक भले ही नहीं बनाया गया, लेकिन उनके करीबी विक्रम सिंहदेव, विनय बजाज सहित कई नेताओं को अहम पद दिए गए हैं।
बताते हैं कि पूर्व अध्यक्ष पारवानी को चैम्बर की सूची में जगह नहीं मिलने के पीछे उनका कैट से जुड़ा होना बताया जा रहा है। पारवानी कैट के कर्ता-धर्ता हैं। चैम्बर में यह तय किया गया कि जो कैट का पदाधिकारी होगा, उन्हें चैम्बर का पदाधिकारी नहीं बनाया जाएगा। ऐसे में अब व्यापारी संगठन में एकता को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। हालांकि खूबचंद पारख, बलदेव सिंह भाटिया, छगनलाल मूंदड़ा, और लाभचंद बाफना सहित कई प्रभावशाली नेता थौरानी की कार्यकारिणी में हैं। बावजूद इसके सबको साथ लेकर चलना थौरानी के लिए चुनौती भी है। देखना है आगे क्या होता है।
बसवा राजू के शव को लेकर हिचक
छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ में हुई मुठभेड़ में मारे गए 27 नक्सलियों में से एक था बसवा राजू, जो माओवादी संगठन का शीर्ष सैन्य कमांडर था। उसकी मौत के बाद आंध्र प्रदेश में रहने वाले परिजनों ने छत्तीसगढ़ पुलिस से शव सौंपने का अनुरोध किया है, ताकि वे अपने गांव में अंतिम संस्कार कर सकें। लेकिन छत्तीसगढ़ पुलिस ने अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
उग्रवाद और आतंकवाद से जुड़े मामलों में शवों का प्रबंधन हमेशा बेहद संवेदनशील रहा है। 2001 के संसद हमले के दोषी अफजल गुरु और 2008 के मुंबई हमले के आतंकवादी अजमल कसाब को फांसी दिए जाने के बाद उनके शव परिजनों को नहीं सौंपे गए थे। दोनों का अंतिम संस्कार गोपनीय रूप से जेल परिसर में ही किया गया था, ताकि कोई उकसावे की स्थिति न बने। छत्तीसगढ़ में बहुत से शवों का कोई दावेदार नहीं होता, पुलिस ही उनका अंतिम संस्कार करा देती है।
बसवा राजू माओवादी संगठन के लिए इस समय का सबसे बड़ा चेहरा था। उसके समर्थक आज भी कई इलाकों में सक्रिय हैं। ऐसे में अगर उसका शव परिजनों को सौंपा गया, तो यह अंतिम संस्कार एक भावनात्मक प्रदर्शन में बदल सकता है। भीड़ जुटने और उकसावे की स्थिति बनने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता।
संभवत: छत्तीसगढ़ पुलिस और प्रशासन इस बात से भली-भांति परिचित हैं, इसलिए फिलहाल उन्होंने कोई फैसला नहीं लिया है। संकेत यही मिल रहे हैं कि शव परिजनों को सौंपा नहीं जाएगा। बस्तर के कई क्षेत्रों में पहले भी नक्सली नेताओं के स्मारक बनाए गए हैं, जिन्हें सुरक्षा बलों ने चिन्हित कर ध्वस्त किया है। बसवा राजू की मौत भले ही एक व्यक्ति के रूप में हुई हो, लेकिन अगर उसका शव सौंपा गया, तो उसकी विचारधारा, नेतृत्व और संगठन कौशल को नक्सली ‘गौरव का प्रतीक’ बनाकर पेश कर सकते हैं।
कुदाल उठाई तब पहुंचा सुशासन
दुर्गम आदिवासी इलाकों में सडक़ों की कमी जनजीवन के लिए कितनी बड़ी चुनौती है, इसका उदाहरण हाल ही में तब देखने को मिला, जब कुल्हाड़ी घाट के पास एक गांव में सांप के काटे व्यक्ति को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए कांवड़ में उठाकर ग्रामीणों को 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा।
अब सडक़ के लिए जूझते ग्रामीणों का एकऔर मामला बीजापुर जिले के भैरमगढ़ जनपद पंचायत के केशकुतुल ग्राम पंचायत से आया है। यहां के ग्रामीण सालों से भैरमगढ़ तक सडक़ निर्माण की मांग कर रहे थे। प्रशासन से कोई जवाब न मिलने पर गांववालों ने मशीन और निर्माण सामग्री के लिए चंदा इक_ा किया, और श्रमदान से खुद सडक़ बनाना शुरू कर दिया।
इन दिनों छत्तीसगढ़ में सुशासन तिहार मनाया जा रहा है। जब यह खबर प्रशासन तक पहुंची, तो शायद उन्हें भी सोच-विचार करना पड़ा। एसडीएम और जनपद पंचायत के सीईओ गांव पहुंचे। वहां पहुंचने में आई कठिनाइयों ने ही उन्हें यह अहसास करा दिया होगा कि यह सडक़ कितनी जरूरी है।
अधिकारियों ने ग्रामीणों से कहा कि अब यह सडक़ वे नहीं बनाएंगे, बल्कि प्रशासन इसे मनरेगा योजना के तहत तुरंत स्वीकृत करेगा। ग्रामीणों ने इस निर्माण के लिए लगभग 50 हजार रुपये चंदा इक_ा किया था। अधिकारियों ने भरोसा दिया कि यह राशि उन्हें लौटा दी जाएगी, जिसे अब तक हुए निर्माण कार्य के मूल्यांकन में जोड़ दिया जाएगा। अफसरों को अपने बीच पाकर ग्रामीणों ने भी मौका नहीं गंवाया और दो-तीन छोटी पुलियों की मांग रखी, यह भी मंजूर हो गई।
प्रतिनियुक्ति के दरवाजे बंद होने वाले हैं
लगता है कि अब राज्यों के आईपीएस अफसरों के लिए केंद्रीय सशस्त्र बलों में प्रतिनियुक्ति के दरवाजे बंद होने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देशों से यही लगता है। कोर्ट ने लोक कार्मिक प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) से कहा है कि वह, कैडर रिव्यू को लेकर गृह विभाग की सिफारिश पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेकर एक्शन टेकन रिपोर्ट पेश करें। इसमें डीओपीटी को इन केंद्रीय बलों के भर्ती नियम भी बदलने होंगे। ताकि आईपीएस अफसरों की प्रतिनियुक्ति खत्म भी हो। इसके अलावा राज्यों में बलों की तैनाती पर राज्यों से समन्वय के साथ राज्य पुलिस से तालमेल के सुझाव भी देने कहा है ।
आईटीबीपी, बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और एसएसबी समेत सभी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) का कैडर रिव्यू 2021 से टलता आ रहा है। इसके पीछे मुख्य कारण प्रतिनियुक्ति से, इन बलों में रिक्त पदों की पूर्ति को माना गया है। कोर्ट का यह निर्देश गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन, कैडर समीक्षा और आईपीएस प्रतिनियुक्ति को समाप्त करने के लिए भर्ती नियमों के पुनर्गठन और संशोधन की मांग करने वाली याचिकाओं पर आया।
कोर्ट ने कहा कि केंद्र का मानना है कि प्रत्येक सीएपीएफ में आईपीएस अधिकारियों की मौजूदगी उनमें से प्रत्येक के चरित्र को एक अद्वितीय केंद्रीय सशस्त्र बल के रूप में बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
भाजपा की हार के पीछे
हज कमेटी के चुनाव को लेकर चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। बताते हैं कि सरकार ने 11 सदस्यीय कमेटी में 6 सदस्य मनोनीत कर दिए थे। ताकि कमेटी अध्यक्ष पद पर भाजपा समर्थित सदस्य की जीत सुनिश्चित हो सके।
चर्चा है कि विभागीय मंत्रीजी ने पार्टी के एक अल्पसंख्यक नेता की पसंद पर सदस्य मनोनीत कर दिए। बाद में अध्यक्ष के चुनाव का समय आया, तो पार्टी नेताओं ने अल्पसंख्यक नेता की राय को महत्व नहीं दिया। फिर क्या था, मनोनीत सदस्य वोट देने के बजाए पिकनिक चले गए, और भाजपा समर्थित प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद अब मंत्रीजी को सफाई देना पड़ रहा है। अब आगे क्या होता है, यह देखना है।
इस बार कोरोना से निपटना आसान?
छत्तीसगढ़ के लिए यह थोड़ी चिंता की बात है कि लंबे समय बाद राज्य में फिर से कोरोना वायरस का मामला सामने आया है। रायपुर के एक 41 वर्षीय व्यक्ति में कोविड-19 की पुष्टि हुई है, जो सर्दी-खांसी की शिकायत के साथ अस्पताल पहुंचा था। अभी तक पूरे राज्य में यही एक सक्रिय मामला है, लेकिन इससे यह साफ हो गया है कि कोरोना पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है – वह अब भी आसपास मौजूद है।
बीते तीन वर्षों में छत्तीसगढ़ ने कोरोना की तीन बड़ी लहरों का सामना किया है, जिनमें लगभग 14,000 लोगों की जान गई। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने भी इसे हल्के में न लेते हुए तुरंत मेकाहारा में कोविड-19 के लिए एक विशेष ओपीडी शुरू कर दी है। कोविड के मामले नहीं आने के कारण इसके लिए तैयार किए गए अस्पतालों में अब स्वास्थ्य संबंधी दूसरे काम किए जा रहे हैं, पर अब हम पहले से कहीं ज्यादा सतर्क और सक्षम हैं।
इस समय 260 से ज्यादा मामले देश में आ चुके हैं। सबसे अधिक मरीज केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हैं। महाराष्ट्र के मुंबई में दो मौतें भी दर्ज की गई हैं, लेकिन इस बार लक्षण हल्के हैं और ज्यादातर मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ी है।
रायपुर में जो मामला सामने आया है, वह जेएन.1 वेरिएंट से जुड़ा हो सकता है – जो ओमिक्रॉन का ही एक नया रूप है। यह वेरिएंट तेजी से फैल सकता है और इम्यून सिस्टम को थोड़ा चकमा दे सकता है, लेकिन अब तक की जानकारी के अनुसार यह गंभीर बीमारी का कारण नहीं बन रहा है। इसके लक्षण सामान्य सर्दी-जुकाम जैसे हैं – जैसे गले में खराश, सिरदर्द, खांसी, और हल्का बुखार।
यह ठीक है कि घबराने की जरूरत नहीं, लेकिन लापरवाह होने का समय भी नहीं है। हमें वही सावधानियां फिर से याद करनी होंगी। जैसे खांसी-जुकाम होने पर मास्क लगाना, हाथों की सफाई का ध्यान रखना, और भीड़भाड़ वाली जगहों से बचना। हालांकि इस संबंध में अभी निर्देश प्रशासन की ओर से भी जारी होना है।
गबन का सदुपयोग!
हाल के वर्षों में डाक विभाग में गबन के मामले जहां बढ़े हैं वहीं इनके आरोपी अधिकारी कर्मचारियों को बचाने के भी यत्न कम नहीं हुए। आश्चर्य है कि बचने- बचाने के इस खेल में भी गबन की ही राशि का अफसरों ने सदुपयोग किया । विभाग में चर्चा है कि एक जगदलपुर के एक पोस्टमास्टर ने अपने पिछले पोस्टिंग वेन्यू में 25 लाख रुपए सरकारी खजाना से निकाल कर शेयर बाजार में लगाया दोष सिद्धी के समय वरिष्ठ अफसरों ने अपना जाल बिछाया। इसमें राजनांदगांव से लेकर रायपुर के अफसरों ने गबनकर्ता की सजा कम कराने के लिए लाखों रूपए झोंके। ताकि दोष सिद्ध होने पर बर्खास्तगी से बचाया जा सके। नतीजतन, सरकारी धन को शेयर बाजार में लगाने वाले इस पोस्ट मास्टर को एक साहब ने कम दण्ड देकर नौकरी बचा दी। और उसे मात्र ,हटा कर बस्तर भेज दिया गया।है न गबन के सदुपयोग का उदाहरण। इसी दौरान साहब के अचल संपत्ति में निवेश की भी चर्चा रही। भाठागांव में इस संपत्ति की पहली किश्त एक जूनियर साहब ने जमा किया तो दूसरा किस्त एक अन्य ने। इन दोनों ही जूनियर साहबों का काम पूरे परिमंडल में ट्रांसफर्स का काम देखते हैं। जो इस गिव एंड टेक की महात्मय है। अब देखना होगा कि आगे क्या होता है ।
अब बड़े निजी अस्पतालों का दौर
यह तस्वीर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मैनपुर ब्लॉक के भालुडिग्गी गांव की है, जो कुल्हाड़ीघाट के पास दुर्गम पहाड़ी इलाके में स्थित है। यहां एक ग्रामीण को सांप ने डस लिया, जिससे वह बेहोश हो गया।
इलाके में न सडक़ है, न एम्बुलेंस की सुविधा। ऐसे में गांव के लोगों ने लकड़ी और कपड़े की मदद से कांवडऩुमा स्ट्रेचर बनाया और मरीज को करीब 10 किलोमीटर लंबा, पथरीला पहाड़ी रास्ता पैदल तय करके कुल्हाड़ीघाट के स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाया। यह दर्शाता है कि अब आदिवासी समाज में बदलाव की बयार है। वे अब अवैज्ञानिक झाड़-फूंक की बजाय डॉक्टरों पर भरोसा कर रहे हैं। इस भरोसे ने सर्पदंश पीडि़त जान भी बचाई, क्योंकि अस्पताल पहुंचने पर समय पर एंटी वेनम इंजेक्शन लग गया।
लेकिन इस तस्वीर के पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपी है। देश को आजाद हुए 76 साल हो चुके हैं, अलग छत्तीसगढ़ राज्य बने 25 साल बीत चुके, फिर भी भालुडिग्गी जैसे गांव आज भी सडक़ के लिए तरस रहे हैं। सवाल है कि क्या आदिवासियों का यह जागरूकता भरा प्रयास अकेले काफी है? जब वे अस्पताल तक पहुंचने को तैयार हैं, तो सरकार उनके लिए सडक़ क्यों नहीं बना पा रही?
कान घुमाकर पकड़ो तो कानूनी...
सुप्रीम कोर्ट में कल एक याचिका पर सुनवाई हुई जिसमें ऑनलाइन सट्टेबाजी, खासतौर पर गेमिंग ऐप्स के खिलाफ कानून बनाने की मांग की गई है। छत्तीसगढ़ के लिए यह बहस इसलिए खास है क्योंकि यहीं से जन्मा महादेव सट्टा ऐप अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित और विवादित हो चुका है। छत्तीसगढ़ से शुरू हुए इस ऐप का संचालन अब दुबई से हो रहा है। इसके प्रमोटर रवि उप्पल और सौरभ चंद्राकर के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी हो चुका है, लेकिन वे अब तक गिरफ्त से बाहर हैं। छत्तीसगढ़ सहित देशभर में इससे जुड़े सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जिनमें राजनीतिक लोग और कारोबारी भी शामिल हैं।
पूरे परिदृश्य में सबसे दिलचस्प यह है कि एक ओर महादेव ऐप जैसे प्लेटफॉर्म को अवैध माना जाता है, वहीं दूसरी ओर ड्रीम 11, रमी सर्किल, गैम्सक्राफ्ट, एमपीएल, जूबी जैसे ऐप्स को कानूनी मान्यता है। बड़े सेलिब्रिटी इनका प्रचार कर रहे हैं, टीवी-अखबारों में इनके बड़े-बड़े विज्ञापन चल रहे हैं और सरकार इनसे 28 प्रतिशत जीएसटी भी वसूल रही है।
दोनों में फर्क की वजह है, कानून में बताया गया तकनीकी अंतर। गेम ऑफ चांस बनाम गेम ऑफ स्किल। महादेव जैसे प्लेटफॉर्म केवल दांव लगाने पर आधारित हैं—यानी ‘चांस’। पैसा लगाएं, किस्मत साथ रहेगी तो जीतेंगे। वहीं, ड्रीम 11 जैसे ऐप्स में कहा जाता है कि खिलाड़ी अपने कौशल से टीम बनाते हैं, इसलिए वे स्किल के जरिये हारते या जीत पाते हैं। इस फर्क ने एक को अपराध और दूसरे को व्यापार बना दिया है। सवाल यह है कि आउटडोर स्टेडियम में खेले जाने वाले क्रिकेट, फुटबॉल को और इनडोर में खेले जाने वाले कैरम को मोबाइल फोन पर उंगलियां फिरा कर कैसे खेला जा सकता है? कोई तुलना हो नहीं सकती है, मगर मान लिया गया है कि यह खेल है।
एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक ऑनलाइन गेमिंग का उद्योग भारत में 21,500 करोड़ रुपये सालाना का हो गया है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका के मुताबिक 30 करोड़ युवा इसकी गिरफ्त में हैं, जबकि कुछ आंकड़ों के अनुसार यह संख्या 58 करोड़ को पार कर चुकी है और इस साल के अंत तक 70 करोड़ तक पहुंचने की आशंका है।
अगर कोई व्यक्ति बिना खेल खेले सिर्फ पैसे लगाकर किस्मत आजमाता है, तो वह जुर्म करता है। लेकिन अगर वह मोबाइल ऐप पर खेल जीतने की कोशिश करता है, तो वह कौशल है। चाहे वह ‘चांस’ हो या ‘स्किल’, अंतत: जोखिम, व्यसन और आर्थिक हानि दोनों ही प्रकार के प्लेटफॉर्म में है। फर्क बस इतना है कि एक से सरकार को राजस्व मिलता है, दूसरे में गिरफ्तारियां और अफसरों-नेताओं को हिस्सा। जैसी कमाई महादेव की है, वैसी ही दूसरे कानूनी गेम्स प्लेटफॉर्म की।
दोनों ही तरह के गेम्स में होने वाली बर्बादी पर देशभर के मामले गिनें तो बहुत सूची बहुत लंबी हो जाएगी, छत्तीसगढ़ के ही कुछ मामलों को देखें। पिछले 15 मई को मनेंद्रगढ़ के आमखेरवा गांव में 12 साल से आकाश लकड़ा ने आत्महत्या कर ली। पुलिस जांच में पता चला कि वह ऑनलाइन गेम्स में घंटों बिताता था। चचेरे भाई ने उसका फोन छीन लिया था। वह अपने परिवार का इकलौता बेटा था। इधर, रायपुर में पिछले साल 15 साल के बच्चे ने मां के अकाउंट को गेम्स में दांव लगाकर खाली कर दिया। जब पता चला तो उसे डांट पड़ी। वह घर से भाग गया। पुलिस ने ढूंढा तो वह एक साइबर कैफे में गेम खेलते मिला था। दुर्ग मे पिता के बैंक खाते से 17 साल के एक छात्र ने 1.5 लाख खर्च कर दिए। पिता ने मोबाइल छीनने की कोशिश की तो उसने आत्महत्या का प्रयास किया, परिवार वालों ने समय रहते उसे बचा लिया। बिलासपुर में तो बीते साल 14 साल के एक किशोर ने अपने माता-पिता के क्रेडिट कार्ड से ही हजारों रुपये निकालकर गेम्स में डाल दिया। वह एक फर्जी गेमिंग ऐप्स के जाल में फंस गया था। बच्चे की काउंसलिंग कराई गई। फिलहाल, ‘गेम ऑफ चांस’ और ‘गेम ऑफ स्किल’ पर बहस जारी रखिये।
सरगुझिया की बात
दक्षिण-पूर्व रेलवे बिलासपुर मंडल के अधीन क्षेत्र के सांसदों की बैठक में शुक्रवार को रेल सुविधाओं पर काफी बातें हुईं। सरगुजा के सांसद चिंतामणि महाराज ने अपना उद्बोधन सरगुजिया बोली में दिया, जो कि ज्यादातर रेल अफसरों के पल्ले नहीं पड़ा।
हालांकि बाद में केन्द्रीय मंत्री तोखन साहू ने चिंतामणि महाराज के उद्बबोधन का हिन्दी में ट्रांसलेशन किया। ये अलग बात है कि चिंतामणि महाराज हिंदी और संस्कृत भाषा पर अच्छी पकड़ है, और वो संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। दरअसल, वो सरगुजिया बोली को बढ़ावा देने के लिए अभियान चला रहे हैं, और सरकारी बैठकों में भी सरगुजिया में ही अपना उद्बोधन देते हैं।
खैर, चर्चा के दौरान रेल अफसर ज्यादातर मांगों को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर होने की बात कहकर टालते रहे, इस पर चिंतामणि महाराज नाराज हो गए। उन्होंने रेलवे अफसरों से कहा बताते हैं कि आप लोग बता दीजिए कि आपके अधिकार क्षेत्र में क्या है? उन्हीं से जुड़ी बातें बैठक में रखी जाएगी। सांसद ज्योत्सना महंत सहित अन्य सांसदों ने चिंतामणि महाराज का समर्थन किया। दरअसल, रेलवे के अफसर सांसदों की ज्यादातर मांगों को रेलवे बोर्ड का विषय बताकर खारिज करते रहे हैं। इससे सांसद नाराज हो गए थे। बाद में केन्द्रीय मंत्री तोखन साहू ने स्थिति को संभाला, और बात आगे बढ़ी।
देशभक्ति की ऐसी लहर...
22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के बाद जयपुर की कुछ मिठाई दुकानों ने मैसूर पाक, मोती पाक, आम पाक जैसे लोकप्रिय व्यंजनों से ‘पाक’ शब्द हटाकर उन्हें ‘श्री’ नाम दे दिया। अब इनका नाम मैसूर श्री, मोती श्री आदि हो गया है। इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। इस पर लोगों की प्रतिक्रियाएं भी कम दिलचस्प नहीं।
एक भाषा शोधार्थी अभिषेक अवतांस ने सोशल मीडिया पर ही लिखा है कि 'पाक' शब्द का पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है। यह शब्द संस्कृत के 'पक्व' से आया है, जिसका अर्थ है- पका हुआ। कन्नड़ भाषा में पाका का मतलब होता है -मीठा मसाला। यानी यह शब्द पाक-कला से जुड़ा है, न कि किसी राष्ट्र या राजनीतिक विचारधारा से।
कुछ लोगों ने लिखा है कि हमें अपनी परंपरा, भाषा और व्यंजनों से शर्मिंदा क्यों होना चाहिए? पाक शब्द पर पाकिस्तान का कोई कॉपीराइट नहीं है। पाक शब्द हमारी समृद्ध और विशाल भारतीय भाषाओं से उपजा है।
गिद्धों से दोस्ती का असर दिख रहा..
गिद्धों को लेकर आम धारणा नकारात्मक है। उन्हें अशुभ या डरावना समझा जाता है। लेकिन सच्चाई ये है कि अगर हमें स्वस्थ पर्यावरण चाहिए, तो हमें गिद्धों से दोस्ती करनी होगी। ये पक्षी प्रकृति के ऐसे सफाईकर्मी हैं, जो बिना वेतन लिए दिन-रात हमारी सेवा में लगे रहते हैं। वे मरे हुए जानवरों को खाकर बीमारियों को फैलने से रोकते हैं। उनकी अनुपस्थिति में यही शव सड़ते हैं, बीमारी फैलती है, और आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ती है,जो रेबीज जैसे जानलेवा रोग फैला सकते हैं।
गिद्धों की घटती संख्या का सबसे बड़ा कारण है डाईक्लोफेनाक नामक दर्द निवारक दवा, जो पशुओं के इलाज में उपयोग होती है। जब गिद्ध उन मरे हुए जानवरों को खाते हैं, जिनमें डाईक्लोफेनाक का अंश होता है, तो उनकी किडनी फेल हो जाती है। इसी के चलते भारत में गिद्धों की आबादी में 99 फीसदी तक की गिरावट आ गई। हालांकि इस दवा पर अब बैन लग चुका है।
इधर, इंद्रावती टाइगर रिजर्व में वन विभाग और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी ने मिलकर दो गिद्धों पर जीपीएस ट्रैकर लगाए। इन ट्रैकर्स के जरिए यह पता लगाया जा रहा है कि वे कहां जा रहे हैं, क्या खा रहे हैं, कहां रह रहे हैं। टाइगर रिजर्व के आसपास गांवों में ‘गिद्ध मित्र’ बनाए गए हैं। ये स्थानीय लोग ही गिद्धों की गतिविधियों पर नजर रखते हैं और दूसरों को जागरूक करते हैं कि गिद्ध क्यों जरूरी हैं। इन गिद्धों के लिए कुछ खान-पान के ठिकाने बनाए हैं। इन्हें गिद्ध रेस्टोरेंट का नाम दिया है। यहां मरे हुए जानवरों को छोड़ दिया जाता है। पता यह चल रहा है कि ये गिद्ध 100 किलोमीटर के ही दायरे में ही घूम रहे हैं। उनके लिए राज्यों की सीमा कोई मायने नहीं रखती। कभी वे महाराष्ट्र, तो कभी तेलंगाना तक सैर करके लौट रहे हैं।
समाधान शिविर में अनोखी मांग
जन समस्याओं को सीधे सुनकर जितना संभव हो उतना तुरंत निपटाने के लिस् प्रदेश भर में इन दिनों सुशासन तिहार चल रहा है। सडक़, पानी, बिजली जैसे बुनियादी मसलों पर लोग शिविरों में आवेदन दे रहे हैं, लेकिन कहीं-कहीं कुछ अजब-गजब दरख्वास्त भी देखने को मिल रही हैं। ऐसी ही एक दिलचस्प अर्जी कांकेर जिले के चारामा समाधान शिविर में आई।
वार्ड क्रमांक 15 के एक नागरिक ने आवेदन देकर मांग की कि भाजपा मंडल अध्यक्ष ओमप्रकाश साहू को पद से बर्खास्त कर पार्टी से निकाला जाए, क्योंकि उन्होंने आदिवासी समाज से बदसलूकी की। दलील दी गई कि साहू हटेंगे तो सुशासन आएगा। चारामा नगरपालिका के सीएमओ ने पुष्टि की कि यह आवेदन औपचारिक रूप से रजिस्टर में दर्ज हो चुका है।
अब बड़ा सवाल यह है कि राजनीतिक शिकायत सरकारी अफसरों के पास क्यों? भाजपा नेताओं के यहां क्यों नहीं? सवाल बड़ा है, लेकिन जवाब शायद सरल है। जिलों के समाधान शिविरों में आवेदनों का अंबार है, फिर भी अधिकांश स्थानों पर 99 से 100 प्रतिशत हल होने की रफ्तार देखी जा रही है।
उम्मीद से भरे लोग जितनी बड़ी तादाद में अर्जियां लगा रहे हैं, मुस्तैद अफसर उतनी ही फुर्ती दिखा रहे हैं। इसी लिए संभव है कि आवेदक ने दल-पदाधिकारियों के बजाय अफसरशाही पर भरोसा करना ज्यादा मुनासिब समझा हो।
उद्घाटन में दो लोग नहीं थे, जेल में...
पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को छत्तीसगढ़ पांच अमृत स्टेशनों अंबिकापुर, उरकुरा, भिलाई, भानुप्रतापपुर, और डोंगरगढ़ का वर्चुअल उद्घाटन किया। इन रेलवे स्टेशनों में यात्रियों के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। अंबिकापुर में तो उद्घाटन मौके पर सीएम विष्णुदेव साय, और सरकार के मंत्री ओपी चौधरी, रामविचार नेताम, और लक्ष्मी राजवाड़े भी रही। मगर रेलवे स्टेशन के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले दो लोगों की गैरमौजूदगी की चर्चा भी रही।
बताते हैं कि अंबिकापुर रेलवे स्टेशन के निर्माण में बिलासपुर के चीफ इंजीनियर विशाल आनंद की अहम भूमिका रही है, लेकिन वो कुछ समय पहले रिश्वतखोरी के मामले में सीबीआई के हत्थे चढ़ गए। स्टेशन का पूरा निर्माण कार्य विशाल आनंद की निगरानी में हुआ था। इसी तरह रेलवे स्टेशन के निर्माण कार्य करने वाली कंपनी के ठेकेदार भी जेल की सलाखों के पीछे हैं। प्रमुख अफसर, और निर्माण कंपनी के ठेकेदार कार्यक्रम में नहीं रहेंगे, तो बात तो होगी ही।
बस्तर से कतराना भी अब बंद होगा...
छत्तीसगढ़ के बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर, और सुकमा में चल रहे नक्सल ऑपरेशन की काफी चर्चा हो रही है। अबूझमाड़ नक्सल ऑपरेशन को अब तक का सबसे कामयाब माना जा रहा है। ऑपरेशन में शीर्ष नक्सल नेता बसव राजू की मौत हो गई। सीएम विष्णुदेव साय ने अभियान की सफलता पर खुशी जताते हुए कहा कि सेनापति के मारे जाने के बाद सेना का क्या हाल होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्हें भरोसा है कि प्रदेश में जल्द ही नक्सलियों का खात्मा हो जाएगा।
प्रदेश में 31 मार्च 2026 से पहले नक्सलियों का खात्मा होने की बात कही गई है। केंद्र, और राज्य के इस दावे में कोई शक की गुंजाइश नजर नहीं आ रही है, लेकिन लंबे समय तक नक्सल प्रभावित रहने के कारण छत्तीसगढ़ की पहचान एक समस्याग्रस्त राज्य के रूप में हो गई है। बाहर राज्य के कई लोग यहां आने से अब भी कतराते हैं। कुछ महीने पहले कॉलेजों की गुणवत्ता परखने के लिए नैक की टीम आई थी। टीम में एक महिला प्रोफेसर भी थीं।
बताते हैं कि महिला प्रोफेसर के परिजन उन्हें छत्तीसगढ़ नहीं जाने की सलाह दे रहे थे। परिजनों की धारणा थी कि छत्तीसगढ़ बुरी तरह नक्सल प्रभावित है, और रोज कुछ न कुछ घटनाएं होती हैं। मगर महिला प्रोफेसर के पति आर्मी ऑफिसर रहे हैं। उन्होंने अपनी पत्नी, और परिजनों की शंकाओं को दूर किया। बाद में महिला प्रोफेसर यहां आई, तो नवा रायपुर व आसपास के इलाकों को देखकर खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने कॉलेज के निरीक्षण के दौरान ये सारी बातें साझा की। कुछ लोगों का मानना है कि नक्सलियों का खात्मा तो हो जाएगा, लेकिन विचारधारा से उबरने में समय लग सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
राजधानी में भाजपा की हार
भाजपा ने भले ही निकाय, और पंचायत चुनाव में बड़ी जीत हासिल की है, लेकिन मुस्लिम समुदाय की हज कमेटी के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। दिलचस्प बात यह है कि कमेटी में भाजपा समर्थित सदस्य अधिक हैं। बावजूद इसके कांग्रेस समर्थित मोहम्मद इमरान अध्यक्ष चुन लिए गए। हज कमेटी के अध्यक्ष को राज्यमंत्री का दर्जा होता है।
बताते हैं कि हज कमेटी के कुल 11 सदस्यों में से 6 सदस्य भाजपा समर्थित हैं। कमेटी के अध्यक्ष पद के लिए भाजपा अल्पसंख्यक नेता मिर्जा एजाज बेग का नाम प्रमुखता से चर्चा में था। नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन पार्टी की तरफ से बेग को नामांकन भरने के लिए कोई संदेश नहीं पहुंचा।
दूसरी तरफ, कांग्रेस समर्थित सदस्यों ने मोहम्मद इमरान को अध्यक्ष प्रत्याशी घोषित कर दिया। भाजपा समर्थित सदस्यों में बेग के नाम पर सहमति नहीं बन रही थी। बेग निर्विरोध अध्यक्ष बनना चाह रहे थे। इसी बीच भाजपा समर्थित एक अन्य मकबूल खान ने नामांकन भर दिया। भाजपा के नेताओं ने चुनाव में दावेदारों के बीच सहमति बनाने की कोशिश नहीं की। इसका असर यह हुआ कि मकबूल के नामांकन भरने के बाद बेग समर्थित सदस्यों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
भाजपा नेताओं के बीच फूट का सीधा फायदा कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी इमरान को मिला, और वो चुनाव जीतने में कामयाब हो गए। भाजपा ने हज कमेटी के चुनाव में हार को गंभीरता से लिया है। पार्टी संगठन के नेता, इस पर अल्पसंख्यक मोर्चा के पदाधिकारियों से चर्चा कर रहे हैं। पार्टी के कुछ लोग चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर रहे हैं, और निर्वाचन शून्य घोषित कराने के लिए कानूनी सलाह भी ले रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
सीएम कल से दिल्ली में, काफी कुछ होगा
भाजपा संगठन में एक बड़े बदलाव को लेकर हलचल है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव पर काफी कुछ निर्भर है। ऑपरेशन सिंदूर की वजह से राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव टल गया था, और अब जल्द ही इसकी प्रक्रिया शुरू हो सकती है। राष्ट्रीयअध्यक्ष के चुनाव के बाद जिले, और प्रदेश की कार्यकारिणी का गठन होगा।
पार्टी के कुछ सूत्रों का कहना है कि जिले, और प्रदेश कार्यकारिणी का खाका तैयार कर लिया गया है। हाईकमान के निर्देशों का इंतजार हो रहा है। दूसरी तरफ, सीएम विष्णुदेव साय 23 से 25 तारीख तक दिल्ली में रहेंगे। इस दौरान प्रदेश भाजपा संगठन के प्रमुख नेता भी वहां रहेंगे।
चर्चा है कि सीएम, और अन्य नेताओं की पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के साथ बैठक हो सकती है। इसमें संगठन से लेकर कैबिनेट विस्तार पर भी बात हो सकती है। वैसे तो सीएम, नीति आयोग की बैठक में शिरकत करने जा रहे हैं। 25 तारीख को एनडीए शासित मुख्यमंत्रियों की बैठक में रहेंगे। कुल मिलाकर सीएम के दिल्ली दौरे पर काफी कुछ होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
स्टेशन सजे, पर डबल इंजन कहां है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘अमृत भारत स्टेशन योजना’ के तहत देशभर के 103 स्टेशनों का वर्चुअल लोकार्पण किया है। इनमें छत्तीसगढ़ के भी पांच स्टेशन शामिल है- अंबिकापुर, भिलाई, भानुप्रतापपुर, डोंगरगढ़ और उरकुरा। इन स्टेशनों की जो तस्वीरें सामने आई हैं, उनसे साफ है कि इनका कायाकल्प करने में अच्छा-खासा खर्च हुआ है। जब बजट बड़ा होता है तो अफसरों और ठेकेदारों की भी मौज हो जाती है। रेलवे के कई अफसर और ठेकेदार सीबीआई की जांच के घेरे में आ चुके हैं और पिछले महीने कुछ की गिरफ्तारी भी हुई।
बहरहाल, इन पांच स्टेशनों का रूप-सौंदर्य अब बिल्कुल नया नजर आ रहा है। लेकिन यह ध्यान देने वाली बात है कि छत्तीसगढ़ के लोगों की रेलवे से प्राथमिक मांग स्टेशनों का सौंदर्यीकरण नहीं, बल्कि वर्षों से लंबित रेल परियोजनाओं को पूरा करने की रही है। लोग स्टेशन पर बेहतर सुविधाएं तो चाहते हैं, लेकिन उनसे भी ज्यादा जरूरी राजधानी और महानगरों से कनेक्टिविटी है। उदाहरण के तौर पर, बस्तर की रावघाट रेल परियोजना अब तक अधूरी है, जबकि वहां के भानुप्रतापपुर स्टेशन को चमका दिया गया है।
इसी तरह डोंगरगढ़ स्टेशन, जो मुंबई-हावड़ा रूट का हिस्सा है, को भी नया रूप दे दिया गया है। इसे जोडऩे वाली प्रस्तावित नई रेल लाइन डोंगरगढ़ से कटघोरा तक जाएगी। इसकी मूल योजना ब्रिटिश काल में बनी थी, जिसमें बिलासपुर से राजनांदगांव तक रेल मार्ग प्रस्तावित था। उस समय अकाल पडऩे पर भूमि अधिग्रहण कर लिया गया था और रेलवे लाइन बिछाने के लिए मिट्टी भी डाल दी गई थी। आज भी बिलासपुर, मुंगेली, पंडरिया से होते हुए राजनांदगांव तक की जमीन तकनीकी रूप से उपलब्ध है, लेकिन अब उस ज़मीन पर निजी निर्माण, सडक़ें और सरकारी इमारतें बन चुकी हैं। ऐसे में पुराना ट्रैक खाली कराना लगभग असंभव है।
इधर, अब इस परियोजना का स्वरूप बदला जा चुका है। नई लाइन कटघोरा, मुंगेली होते हुए डोंगरगढ़ तक जाएगी। इस मार्ग में खैरागढ़, तखतपुर, रतनपुर, बेलतरा जैसे करीब 27 स्टेशन होंगे, जहां पहली बार रेल सेवा पहुंचेगी। यह मार्ग कई संसदीय क्षेत्रों से होकर गुजरेगा। बीते छह दशकों में कोरबा, बिलासपुर और राजनांदगांव के शायद ही कोई सांसद रहे हों जिन्होंने संसद में इस रेल लाइन को लेकर आवाज न उठाई हो।
हाल ही में सांसद संतोष पांडेय ने रेल मंत्री के समक्ष इस परियोजना की प्रगति का मुद्दा उठाया। पूर्व सांसद डॉ. चरण दास महंत, अरुण साव, लखन लाल साहू और अब केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू, ज्योत्सना महंत भी इस संबंध में संसद में सवाल पूछ चुके हैं और पत्राचार कर चुके हैं। रेल मंत्री से मुलाकात करके भी तोखन साहू ने यह मांग बजट से ठीक पहले रखी थी। पूर्व सांसद लखन लाल साहू ने तो अपने कार्यकाल में दावा किया था कि यह योजना तीन वर्षों में पूरी हो जाएगी। लेकिन हकीकत यह है कि परियोजना बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रही है।
करीब 10 वर्ष पहले, बिलासपुर के तत्कालीन रेल महाप्रबंधक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस योजना को केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने की घोषणा की थी। इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए छत्तीसगढ़ रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सीआरसीएल) नाम से एक कंपनी बनाई गई है, जिसमें ज्यादातर खर्च राज्य सरकार वहन कर रही है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की अध्यक्षता में गत वर्ष खनिज न्यास निधि की बैठक में इस परियोजना के लिए 300 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। यह राशि मुख्यत: मुआवजे में खर्च होगी। सरकार ने कहा है कि आगे आवश्यकता अनुसार और राशि जारी की जाएगी।
हालांकि ताजा स्थिति यह है कि सीआरसीएल में शामिल कुछ निजी कंपनियां, जिनके हित कोयला खदानों से जुड़े हैं।अब इस परियोजना में राशि लगाने से पीछे हट गई हैं। अब तो रेलवे भी कह रही है कि परियोजना में हमें कुछ भी खर्च नहीं करना है। एक नवीनतम जानकारी यह है कि मुआवजे की राशि को लेकर किसानों में असंतोष दिख रहा है। खैरागढ़ के किसान जमीन के कीमत का 4 गुना मुआवजा देने की मांग पर सरकारी दफ्तरों का घेराव कर चुके हैं।
इस बीच, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने अमृत भारत स्टेशनों के उद्घाटन कार्यक्रम के लिए छत्तीसगढ़ के सभी सांसदों को निमंत्रण पत्र भेजा। उन्होंने इस पत्र में जोर देकर बताया गया कि इस बार छत्तीसगढ़ को रेलवे के इतिहास में अब तक का सर्वाधिक फंड (करीब 5970 करोड़ रुपये) मिला है। मगर, उन्होंने पत्र में न तो लंबित रेल परियोजनाओं की स्थिति पर कुछ कहा, न ही केंद्रीय बजट के समय आयोजित प्रेस वार्ता में इनका जिक्र किया।
कान्स में छा गई दुर्ग की जूही
दुर्ग, छत्तीसगढ़ की रहने वाली जूही व्यास ने 2025 के कान्स फिल्म फेस्टिवल में अपनी खास मौजूदगी से न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे देश को गौरवान्वित किया। इस अंतरराष्ट्रीय मंच पर उन्होंने ग्लैमर की चकाचौंध से परे जाकर जलवायु न्याय और महासागर संरक्षण की आवाज उठाई। आइये उनके बारे में थोड़ा जानते हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर रह चुकीं दुर्ग की जूही व्यास ने 13 साल की उम्र में अपने पिता के निधन के बाद जीवन की चुनौतियों का सामना करना शुरू किया। उनकी मां ने कठिन परिस्थितियों में परिवार को संभाला, और जूही ने भी मेहनत की मिसाल पेश की। पहले मिसेज इंडिया इंक 2022 की फर्स्ट रनर-अप बनीं, फिर 2023 में कैलिफोर्निया में मिसेज ग्लोब पीपल्स चॉइस टाइटल जीता। 2024 में वे मिसेज ग्लोब, चाइना की पहली भारतीय जूरी सदस्य भी बनीं। जूही ने कान्स से पहले 2025 में पेरिस फैशन वीक में 6 अंतरराष्ट्रीय डिजाइनर्स के लिए वॉक किया था। लेकिन कान्स में उनकी उपस्थिति एक उद्देश्यपूर्ण मिशन के तहत रही। जूही ने कान्स रेड कार्पेट पर जो लाल रंग की ड्रेस पहनी, वह आग का प्रतीक थी। एक ऐसी आग जो जलवायु परिवर्तन, हीटवेव और बढ़ते तापमान के खतरों को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि वह एक मां हैं और भविष्य की पीढिय़ों के लिए एक सुरक्षित धरती की जिम्मेदारी महसूस करती हैं। उनके साथ थीं मोहिनी शर्मा, जो मिसेज इंडिया इंक की नेशनल डायरेक्टर हैं। दोनों ने ग्रीनपीस साउथ एशिया के साथ मिलकर इस आयोजन को पर्यावरण जागरूकता के संदेशवाहक में बदल दिया।
विधायकों की शिकायत, उनकी शिकायत भी !
सुशासन तिहार चल रहा है, और समाधान शिविरों में जन समस्याओं का निराकरण हो रहा है। सीएम विष्णुदेव साय खुद जिलों का दौरा कर रहे हैं, और सरकारी योजनाओं का फीडबैक भी ले रहे हैं। इन सबके बीच रायपुर जिले में तो दो-तीन विधायक भी खुले मंच से अपनी समस्या बता दे रहे हैं।
रायपुर के ग्रामीण इलाके में एक शिविर में विधायक ने अपनी व्यथा सुना दी, कि टीआई भी उनकी बात नहीं सुन रहा है। विधायक की शिकायत राजस्व कर्मचारियों को लेकर भी थी। उनका कहना था कि राजस्व कर्मचारियों से ग्रामीण परेशान हो रहे हैं। सीमांकन-बटांकन, जैसे काम आसानी से नहीं हो पा रहे हैं। एक अन्य विधायक ने मंच से ही अवैध शराब की बिक्री को लेकर शिकायत की।
जानकार लोग मानते हैं कि विधायकों की नाराजगी की अपनी वजह भी है। एक विधायक तो जमीन के कारोबार से जुड़े रहे हैं। लिहाजा, वो चाहते हैं कि अपने इलाके में राजस्व कर्मचारी उनके हिसाब से काम करें, जो कि संभव नहीं हो पा रहा है। एक अन्य विधायक को रेत के अवैध खनन से जोडक़र देखा जा रहा है। विधायकों के खिलाफ शिकायत पार्टी संगठन तक पहुंच चुकी है। इन वजहों से विधायकों की शिकायतों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।
संशोधन अधिक वजनदार
आखिरकार निगम-आयोगों में पूर्व में प्रस्तावित नियुक्तियों में कुछ संशोधन किया है। मसलन, शालिनी राजपूत को छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया है। शालिनी राजपूत की नियुक्ति पहले समाज कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद पर की गई थी। मगर केन्द्र सरकार ने वर्ष-2021-22 में बोर्ड को ही खत्म कर दिया था। चूंकि यहां बोर्ड भंग हो चुका है, इसलिए उनकी नियुक्ति आदेश जारी नहीं हो पा रही थी।
इसी तरह केदारनाथ गुप्ता को अपैक्स बैंक का चेयरमैन बनाया गया है। केदार को पहले दुग्ध महासंघ का अध्यक्ष बनाया गया था। महासंघ को एक तरह से एनडीडीबी के सुपुर्द कर दिया गया है। इसके लिए बकायदा केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में एमओयू भी हो चुका है। अब केदार को अपेक्स बैंक का दायित्व सौंपा गया है, जो कि महासंघ के मुकाबले ज्यादा प्रतिष्ठापूर्ण माना जाता है। इससे परे श्रीनिवास मद्दी को ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन का चेयरमैन बनाया गया है। मद्दी को कॉर्पोरेशन का चेयरमैन बनवाने में प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव की भी अहम भूमिका रही है। मद्दी को पहले वित्त आयोग का चेयरमैन बनाया गया था। कुल मिलाकर संशोधित आदेश को वजनदार माना जा रहा है।
जांच के पहले ही बचने-बचाने का खेल
छत्तीसगढ़ में जब कोई मंत्री किसी घोटाले की खबरों पर संज्ञान लेता है और जीरो टॉलरेंस की बात करते हुए जांच का आदेश देता है, तो लगता है अब तो कुछ अफसरों पर शामत आने ही वाली है। मंत्री के बयान की मीडिया में सुर्खियां बनती हैं। पर हकीकत कुछ और ही होती है।
प्रदेश के छह जिलों, जशपुर, सरगुजा, जांजगीर-चांपा, बिलासपुर, दुर्ग और रायपुर के आंगनबाड़ी केंद्रों में करीब 48 करोड़ की सामग्री भेजी गई। सामने आया कि बड़ी मात्रा में सामान घटिया किस्म का है। वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, अखबारों में खबरें आईं, तब जाकर महिला बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े ने 7 मई को जांच का आदेश दिया। उन्हें मालूम ही था कि उनके विभाग में पहले की तरह अब भी घटिया सामान खपाने का खेल जारी है। उन्होंने तो तत्परता दिखाई, मगर 7 मई को आदेश देने के बाद भी बीते 15 दिनों में कोई जांच शुरू नहीं हुई। अब मंत्री ने दोबारा स्मरण पत्र भेजा है और जांच समिति भी बना दी गई है। लेकिन जांच में हुई इस देरी का फायदा कैसे उठाया गया, इसके लिए दुर्ग जिले का उदाहरण सामने है। आंगनबाड़ी केंद्रों में जो घटिया सामान आए, उनमें शामिल हैं- जंग लगे नाखून कटर, चूहों के कुतरे साबुन, खराब वाशिंग पाउडर, वेइंग मशीन और टिन की अनाज कोठियां। पता चला है कि उन्हें चुपचाप हटाकर नए सामान रखवा दिए गए। कुछ केंद्रों की कार्यकर्ता और सहायिकाओं से यह लिखवा भी लिया गया कि जो सामान मिला, वह अच्छा था। दुर्ग की तरह बाकी जिलों में भी ऐसा ही हुआ हो, तो कोई हैरानी नहीं। जब मंत्री को खुद ही स्मरण पत्र भेजना पड़े, तो यह साफ है कि उनके जीरो टॉलरेंस की मंशा को विभागीय अफसर गंभीरता से नहीं लेते।
अब एक नई जांच समिति बनी है, जिसे 15 दिन में रिपोर्ट देनी है। मगर समिति में इतने अधिक लोग हैं कि वे 15 दिन में एक बार साथ दौरा पाएंगे या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। हो भी तो, वे किन-किन आंगनबाड़ी केंद्रों की जांच करेंगे, यह तय करना भी कम मुश्किल नहीं होगा। समिति में ज्यादातर वही अधिकारी हैं जो पहले से ही सप्लाई की गुणवत्ता देखने-परखने के लिए जिम्मेदार हैं।
छत्तीसगढ़ में महिला बाल विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और आईसीडीएस जैसे विभागों में सामग्री सप्लाई का हमेशा विवादों से भरा रहा है। सरकार चाहे किसी की भी रही हो, अफसरों और सप्लायरों की मजबूत सांठगांठ बनी रहती है, कभी नहीं टूटी।
याद करें, पिछली सरकार के वक्त बालोद जिले में डीएमएफ के तहत 64 करोड़ की खरीदी में भ्रष्टाचार का आरोप भाजपा नेता देवलाल ठाकुर ने दस्तावेजों के साथ लगाया था। वह क्षेत्र तत्कालीन मंत्री अनिला भेडिय़ा का था। वहीं बेमेतरा के कांग्रेस विधायक ने अपनी ही सरकार के इस विभाग पर विधानसभा में घटिया ट्राइसिकल बांटने का आरोप लगाया था। ऐसे मामलों में जांच के आदेश जरूर दिए जाते हैं, लेकिन कार्रवाई क्या हुई, यह कभी सामने नहीं आता। समय बीतता है, लोग पुराने घोटाले भूल जाते हैं, क्योंकि नए घोटालों की खबरें आ जाती हैं।
रेल टिकट पर ऑपरेशन सिंदूर
एक वक्त था जब सिनेमा हॉल में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान होता था और फिल्म्स डिवीजन के छोटे-छोटे वृत्तचित्र देशभक्ति की भावना जगाने का काम करते थे। इस बार यह जिम्मेदारी रेलवे ने अपने कंधों पर ले ली है। इस बार जब आप रेलवे टिकट प्रिंट कराएंगे, तो उसमें प्रधानमंत्री ऑपरेशन सिंदूर के लोगो के साथ सेल्यूट करते हुए नजर आएंगे। यह कुछ वैसा ही है जैसा कोविड वैक्सीनेशन के दौरान हर गली-चौराहे पर मोदी जी की तस्वीरों और ‘थैंक यू मोदी जी’ वाले होर्डिंग्स पोस्टरों में दिखता था।
ऐसा पहली बार हुआ है...
प्रदेश में पहली बार ऐसा हो रहा है, जब बोर्ड परीक्षाओं में खराब रिजल्ट पर जिम्मेदारी तय की जा रही है। और जिला शिक्षा अधिकारियों पर गाज गिर रही है। पहले महासमुंद के जिला शिक्षा अधिकारी को हटाया गया था, और सोमवार को सीएम विष्णुदेव साय ने जीपीएम के जिला शिक्षा अधिकारी को हटाने के आदेश दिए। दसवीं बोर्ड परीक्षा में जीपीएम जिले का रिजल्ट प्रदेश में सबसे खराब रहा है।
स्कूल शिक्षा विभाग का प्रभार खुद सीएम के पास है। ऐसे में प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए विशेष प्रयास हो रहे हैं। जिलों में पदस्थ ऐसे अफसर, जिनकी कार्यप्रणाली अच्छी नहीं रही है उन्हें एक-एक कर बदला जा रहा है। चर्चा है कि आने वाले दिनों में रायपुर, राजनांदगांव, खैरागढ़-छुईखदान के जिला शिक्षा अधिकारियों पर भी गाज गिर सकती है। इन जिलों का रिजल्ट भी खराब रहा है। रायपुर जिला दसवीं बोर्ड परीक्षा में 32वें रैंक पर रहा है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
आवश्यकता और आविष्कार
घर के पार्किंग स्पेस पर कमरा, बरामदा या कुछ और बना लेने से कार गेट के सामने गली में ही खड़ी करनी पड़ती है। वैसे ऐसे दृश्य शहर के हर मोहल्ले सोसायटी में देखे जा सकते हैं। गली से आवाजाही में बाधक ऐसी कारें, मोहल्ले वालों की नाराजगी का भी शिकार होती है । नाराज लोग कभी कार में स्क्रैच कर जाते तो कभी कवर पर ब्लेड कैंची चला देते हैं। यह गुस्सा मनुष्य ही नहीं जानवर भी निकालते हैं।
ऐसे ही नाराज जानवर से परेशान इन शख्स ने नए तरकीब के कवर से अपनी कार के सुरक्षित रहने की उम्मीद जताई है। कुशालपुर के संतोषी चौक निवासी इन सज्जन का कहना है कि गली के कुत्ते यदा कदा कार पर चढक़र गंदगी करने के साथ अपने नाखूनों से स्क्रैच भी करते हैं। और हर माह डेंटिंग पेंटिंग पर हजारों खर्च करना पड़ता था। अब इस कवर ने समस्या से निजात दिलाई है।
सामान्य से दिखने वाले कवर में जगह जगह कील नुमा प्लास्टिक के कांटे लगे हुए हैं। जानवरों के चढ़ते ही ये कील गड़ते ही वापस कूद कर भाग जाते हैं। वैसे जब से यह कवर इस्तेमाल कर रहे हैं, कुत्ते कार तक फटक नहीं रहे।
जब मासूम जिंदगी चट्टानों के बीच फंसी
छत्तीसगढ़ के धरमजयगढ़ वन मंडल में अलग-अलग कारणों से अब तक चार हाथी शावकों की मौत हो चुकी है। ग्रामीणों और वन्यजीवों के बीच रस्साकशी लगातार जारी है। हाथियों के हमलों से ग्रामीणों के खेत-खलिहान और घर उजड़ रहे हैं। लेकिन जब बात मानवीय संवेदनाओं की हो, तो संयम और समझदारी से काम लेना जरूरी हो जाता है। हाथी जैसे विशालकाय वन्यजीव के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन चलाना आसान नहीं होता, यह कार्य विशेष दक्षता की मांग करता है।
इसी घने जंगल में एक शावक अचानक फिसलकर दो बड़ी चट्टानों के बीच फंस गया। वह बार-बार चट्टान पर चढऩे की कोशिश करता, लेकिन हर बार फिसलकर नीचे गिर जाता था। जब वन विभाग के मैदानी अमले को इसकी जानकारी मिली, तो बचाव के लिए एक टीम तुरंत रवाना की गई।
चट्टान को कुदाल से खोद-खोदकर नीचे तक एक खुरदुरा रास्ता तैयार किया गया। फिर वहां एक जाल बिछा दिया गया, ताकि शावक ऊपर आए तो फिसले नहीं। और यही हुआ। थके हुए कदमों से वह शावक धीरे-धीरे ऊपर चढ़ गया। ऊपर उसकी मां उसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी। शावक उसे देखते ही दौड़ पड़ा। बचाव दल के लिए उसकी आंखों में कृतज्ञता झलक रही थी।
इन कर्मचारियों के लिए यह बेहद सुखद क्षण था। उन्होंने एक मासूम जान को नया जीवन दिया। रेस्क्यू ऑपरेशन की पूरी प्रक्रिया वन विभाग ने ड्रोन कैमरे में कैद की और उसका वीडियो भी जारी किया है।
तीन माह का चावल पकड़ो
छत्तीसगढ़ में धान की बंपर खरीदी के चलते एक विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गई है। धान-चावल को खपाने की समस्या इतनी विकराल हो चुकी है कि पहली बार सरकार को पीडीएस दुकानों में एकमुश्त तीन माह का चावल भेजना पड़ रहा है। राशन दुकानदार भी हितग्राहियों से कह रहे हैं, पूरा 105 किलो चावल उठाओ।
वैसे, एक माह का भी चावल कई घरों से सीधे बाजार पहुंच जाता है। कई बार तो वह घरों तक नहीं पहुंचता। राशन दुकानदार अंगूठा लगवाकर मालवाहकों में भरकर चावल सीधे व्यापारियों के लिए रवाना कर देते हैं। अब तो मोटे धान को पतला करने की मशीन भी आ चुकी है। बड़ी सफाई से इसे पतले चावल के रूप में 30-35 रुपये किलो में बेच दिया जाता है।
प्रदेश की अधिकांश राशन दुकानों में भंडारण की समुचित व्यवस्था नहीं है। शायद ही किसी दुकान के पास तीन माह का चावल एक साथ रखने की क्षमता हो। खुले गोदामों में हजारों टन चावल पहले से ही रखे हुए हैं, जिन्हें भारी घाटे में खुले बाजार में बेचने के बावजूद सरकार के पास सुरक्षित गोदाम नहीं हैं। अब इस बोझ को पीडीएस दुकानों पर डाल दिया गया है।
पता नहीं यह निर्णय राशन दुकान संचालकों के लिए एक आपदा है या फिर ऊपरी कमाई का एक नया अवसर!
अब तक काम नहीं सम्हाल पाए
सरकार ने 36 निगम-मंडल, और आयोगों में अध्यक्ष की नियुक्ति तो कर दी है, लेकिन कुछ में कानूनी विवाद के चलते अध्यक्ष पदभार नहीं संभाल पा रहे हैं। नवनियुक्त अध्यक्ष खुद होकर विवादों के निपटारे में लगे हैं। ताकि वो जल्द से जल्द पदभार संभाल सके। इनमें सफलता भी मिल रही है। मसलन, राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष अमरजीत सिंह छाबड़ा की नियुक्ति का विवाद सुलझ गया है, और वो 22 तारीख को पदभार भी संभालने वाले हैं।
बताते हैं कि पिछली सरकार ने महेन्द्र छाबड़ा को अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाया था। सरकार बदलने के बाद भी वो पद पर बने हुए थे। हाईकोर्ट से उन्हें स्थगन मिला था। नए अध्यक्ष अमरजीत सिंह छाबड़ा ने पहल की, और फिर महेन्द्र छाबड़ा ने हाईकोर्ट से केस वापस ले लिया। इसके बाद महेन्द्र छाबड़ा ने विधिवत आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। महेन्द्र छाबड़ा के इस्तीफे के बाद अमरजीत सिंह छाबड़ा की नियुक्ति के आदेश जारी हुए हैं, और वो सीएम-डिप्टी सीएम की मौजूदगी में पदभार संभालेंगे।
इसी तरह संदीप शर्मा को खाद्य आयोग के अध्यक्ष बनाया गया है, लेकिन इस पद पर पहले से ही अंबिकापुर की गुरप्रीत सिंह बाबरा काबिज हैं। उन्हें पिछली सरकार ने नियुक्त किया था। उन्होंने पद नहीं छोड़ा है। उनका कार्यकाल जुलाई में खत्म होगा। तब तक संदीप शर्मा को इंतजार करना होगा।
दुग्ध महासंघ के नवनियुक्त अध्यक्ष केदार गुप्ता भी अब तक पदभार नहीं संभाल पाए हैं। दरअसल, महासंघ का एनडीडीबी के साथ एमओयू हुआ था, और एनडीडीबी का महासंघ के प्रशासनिक कार्यों में दखल है। अब केदार के लिए नियमों में संशोधन कर रास्ता निकाला जा रहा है। तब तक उन्हें इंतजार करना होगा। इसी तरह शालिनी राजपूत को समाज कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष तो बना दिया गया है, लेकिन वो भी कानूनी विवाद की वजह से पदभार नहीं संभाल पा रही हैं।
राज्यपाल के बस 3 जिले बचे
राज्यपाल रामेन डेका बस्तर के तीन जिले बीजापुर, सुकमा, और दंतेवाड़ा को छोडक़र पूरे प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। वो संभागीय मुख्यालयों में बैठक भी ले चुके हैं। राज्यपाल ने सरकार की कुछ योजनाओं पर विशेष रूप से फोकस किया है। रायपुर में उन्होंने यातायात, जल संरक्षण, और वृक्षारोपण अभियान की समीक्षा की थी। बाकी जिलों में भी इन तीनों पर विशेष जोर रहा। खास बात यह है कि वो पहले राज्यपाल हैं, जिन्होंने जिलेवार सरकार की योजनाओं की समीक्षा की है। चर्चा है कि उन्होंने सीएम को अपनी तरफ से फीडबैक दिया। गौर करने लायक बात ये है कि विपक्ष ने राज्यपाल की बैठकों को लेकर सवाल भी खड़े किए थे।
मंत्री-सांसद आमने-सामने
सरकार के एक मंत्री, और सांसद के बीच पटरी नहीं बैठ रही है। वैसे तो दोनों ही स्वभाव से सरल है, लेकिन एक मामले पर दोनों आमने-सामने आ गए हैं।
सुनते हैं कि मंत्री ने अपने विधानसभा क्षेत्र के एक गांव में सामुदायिक भवन के स्थल चयन किया है। यह जमीन सांसद महोदय के नजदीकी रिश्तेदार के आधिपत्य में है। भवन के लिए स्थल चिन्हित किया गया, तो विवाद शुरू हो गया। सांसद के रिश्तेदार भी भाजपा के पदाधिकारी रहे हैं।
बात सांसद तक पहुंची, तो उन्होंने सीधे मंत्रिजी को मोबाइल कर सामुदायिक भवन के लिए जगह बदलने का सुझाव दिया। मगर मंत्रिजी इसके लिए तैयार नहीं हैं। दरअसल, मंत्रिजी के सांसद के रिश्तेदार से अच्छे संबंध नहीं रहे हैं। इसलिए वो स्थल बदलने के लिए सहमत नहीं है। अभी बीच का रास्ता नहीं निकल पाया है। पार्टी के कुछ लोगों का अंदाजा है कि भूमिपूजन कार्यक्रम के पहले विवाद का निपटारा नहीं हुआ, तो यह मामला बढ़ सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
दारू, और नेताओं का रुख
सरकार ने एक अप्रैल से 67 नई शराब दुकानें खोलने का फैसला लिया था, लेकिन डेढ़ माह बाद अब तक एक भी नई दुकानें खुल नहीं पाई है। दरअसल, जहां शराब दुकानें प्रस्तावित की गई थी, वहां काफी विरोध हो रहा है। कुछ जगहों पर प्रशासन ने पंचायत से सहमति भी ले ली थी। बावजूद इसके ग्रामीणों के आक्रोश की वजह से दुकानें नहीं खुल पाई हैं।
ऐसा नहीं है कि शराबबंदी जैसी कोई मांग है। ज्यादातर जगहों पर तो जनप्रतिनिधि ही विरोध कर रहे हैं। सुशासन तिहार चल रहा है, और जन समस्याओं के निराकरण के लिए सभी जिला, और ब्लॉक में समाधान शिविर लगाए गए हैं। इनमें से एक-दो जगहों पर शराब दुकान खोलने की मांग भी हुई है।
सीनियर विधायक धर्मजीत सिंह अपने विधानसभा क्षेत्र तखतपुर के गांव जरौदा पहुंचे, तो ग्रामीणों ने एक सुर में उनसे गांव में शराब दुकान खोलने की मांग रख दी। इसी तरह रायपुर के बोरियाकला इलाके में शिविर में ग्रामीणों ने शराब दुकान में शुगर फ्री शराब उपलब्ध कराने की मांग की है। गौर करने लायक बात यह है कि दो-तीन दिन पहले ही सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने समाधान शिविर में अवैध शराब की बिक्री की शिकायत पर आबकारी अफसरों को जमकर फटकार भी लगाई थी। मगर अब शुगर फ्री शराब की डिमांड से आबकारी अफसर चकित हैं।
दोराहे पर कांग्रेस नेतृत्व
एक सशक्त विपक्ष लोकतंत्र के लिए सदैव अच्छा होता है। प्रदेश में इस समय भाजपा की सरकार है, लेकिन अफसोस, विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस दिशाहीन और ऊर्जा विहीन दिखाई दे रही है। कांग्रेस हाईकमान ‘संविधान बचाओ’ रैली के जरिए कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश कर रहा है, लेकिन जमीनी तस्वीर इससे उलट है। एक हालिया बैठक की तस्वीर में अधिकांश नेताओं के चेहरे थके और तनावग्रस्त नजर आ रहे हैं। मंच पर बैठे लोगों में से केवल एक विधायक हैं-दिलीप लहरिया, बाकी सब चुनाव हारे हुए या संगठन के पदाधिकारी हैं, जिन्हें पार्टी चलाने का खर्च खुद ढोना है। यही हाल सामने बैठे कार्यकर्ताओं का है। अधिकतर के चेहरे झुके हुए हैं, पर ये लालची लालसी नहीं, विचारधारा से जुड़े लोग हैं। इनकी ही मदद से चुनाव जीते जाते हैं।
यह तीसरी बार है जब ‘संविधान बचाओ’ रैली की तैयारी हो रही है। पहले दुर्ग में तय हुई, जो स्थगित कर दी गई। फिर बिलासपुर में घोषित हुई, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के चलते उसे टालना पड़ा। अब जांजगीर तय हुआ है। उम्मीद करनी चाहिए कि इसे भी रद्द कर आगे रायगढ़, कोरबा, सरगुजा के कार्यकर्ताओं की परीक्षा नहीं ली जाए।
बीते 25 वर्षों पर नजर डालें, तो कांग्रेस दो बार सत्ता में आई। पहली बार राज्य गठन के बाद, बिना चुनाव के, जब स्व. अजीत जोगी पहले मुख्यमंत्री बने। उन्होंने प्रशासनिक स्तर पर ठोस काम जरूर किए, लेकिन कार्यकर्ताओं को जोडऩे की बजाय पार्टी में गहरी खाई पैदा कर दी, जिसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा ने सत्ता हथिया ली और लगातार तीन बार सरकार बनाई। उन पंद्रह सालों के आखिरी वर्षों में भाजपा की अफसरशाही, भ्रष्टाचार और नेताओं के अहंकार से जनता त्रस्त हो गई। धान बोनस और चावल की योजना भी भाजपा को चौथी बार जिताने में सफल नहीं हो सकी। 2018 में कांग्रेस को जनता ने जबरदस्त जनादेश दिया। वह जनादेश परिवर्तन का था, उम्मीदों का था।
लेकिन दुर्भाग्यवश कांग्रेस ने उस जनादेश को आत्ममंथन का नहीं, बल्कि आपसी खींचतान का साधन बना लिया। सत्ता में आते ही मुख्यमंत्री और विधायकों-मंत्रियों के बीच टकराव होने लगा। ढाई-ढाई साल की लड़ाई ने सरकार की स्थिरता और संगठन की ताकत को संदेह के घेरे में ला दिया। बिलासपुर जैसे महत्वपूर्ण जिले के विधायक को न मंत्री पद मिला, न कभी आजादी के पर्वों में झंडा फहराने का अवसर। दूसरी ओर, शराब, रेत और कोयले की अवैध वसूली पर पार्टी के भीतर ही आवाजें उठीं, लेकिन नेतृत्व मौन रहा। भाजपा ने इन मुद्दों को हथियार बनाकर जनता के बीच ले जाना शुरू कर दिया और उसकी अपनी केंद्र सरकार ने अपनी एजेंसियों के जरिए कांग्रेस नेतृत्व की नैतिक स्थिति और कमजोर कर दी।
नतीजा, 2023 में कांग्रेस की करारी हार हुई। यह नेतृत्व, रणनीति और जमीनी पकड़ की विफलता थी। इसके बावजूद जिन नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्रों में पार्टी को डुबोया, वे आज भी संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर हैं। जिलों के स्तर पर भी और प्रदेश के भी। ऐतिहासिक हार के बावजूद प्रदेश नेतृत्व में कोई परिवर्तन नहीं करना, केंद्रीय नेतृत्व के ढुलमुल रवैये को दर्शाता है। नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी को लेकर रायपुर और बिलासपुर के नेताओं के बीच जो रस्साकशी चली, वह अब सार्वजनिक हो चुकी है, जगहंसाई हो रही है। यह जरूर है कि पूर्व मुख्यमंत्री को महासचिव बनाकर पंजाब भेज दिया गया, लेकिन छत्तीसगढ़ मे जिस तरह से वे समय दे रहे हैं, उससे अंदाजा लग सकता है कि उनको पंजाब में दोबारा पार्टी की पकड़ मजबूत करने में कोई रुचि नहीं है।
क्या पार्टी नेतृत्व यह समझने को तैयार है कि संगठन केवल हाईकमान से नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं के विश्वास और भागीदारी से चलती है? मौजूदा स्थिति में न तो उत्साह है, न एकता, न ऊर्जा और न ही दिशा। यदि यही स्थिति रही, तो कांग्रेस के लिए 2028 केवल एक और चुनाव नहीं, अस्तित्व की लड़ाई बन सकता है।
दखल दोगे तो छोड़ूंगा नहीं..
अचानकमार टाइगर रिजर्व के सरईपानी क्षेत्र में स्थित वॉच टावर के पास लगे सौर पैनल को जंगली हाथियों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। हाथी जैसे समझदार और भावनात्मक जीव अपने प्राकृतिक इलाके में किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप को सहजता से नहीं स्वीकारते। अपने इलाके में किसी भी मानव निर्मित ढांचे को बेजा दखल मानते हैं और अकसर उसे नुकसान पहुंचाते हैं।
यह क्षेत्र चार जंगली हाथियों के नियमित विचरण का इलाका है। यदि सौर पैनल लगाने से पहले उसकी सुरक्षा के लिए कोई उचित परिधि बनाई जाती, जैसे कि गहरी खाई या अन्य प्रकृति-संगत अवरोध, तो शायद यह नुकसान टाला जा सकता था। हाथी भारी शरीर के कारण कूदते नहीं। वे ऐसे खतरों से आमतौर पर दूरी बनाकर चलते हैं। यह तोड़ो-फोड़ो वन विभाग के लिए सबक है। संरचनाएं बनाते समय स्थानीय वन्यजीवों की आदतों, व्यवहार और रहवास की सीमाओं का वे ध्यान नहीं रखते।
मंत्रीजी को घर में दिखा संकट!
प्रदेश के 26 ब्लॉक में भूजल का स्तर क्रिटिकल है। इस मसले पर सीएम विष्णुदेव साय भी चिंता जता चुके हैं, और पिछले दिनों उन्होंने जल संसाधन विभाग की बैठक में दीर्घकालीन कार्ययोजना बनाने के लिए भी कहा। इससे परे सरकार के एक मंत्री भी भूजल स्तर में गिरावट से चिंतित हैं। उनकी यह चिंता व्यक्तिगत भी है।
बताते हैं कि मंत्रीजी का राजधानी रायपुर के बाहरी इलाके में एक बंगला बन रहा है। यह इलाका ग्रामीण है, लेकिन बोरवेल के लिए खुदाई हुई, तो छह सौ फीट पर पानी निकला। मंत्रीजी चकित रह गए, और ग्रामीण इलाके में भूजल स्तर में गिरावट का अंदाजा उन्हें पहली बार हुआ। इससे परे उसी इलाके में कांग्रेस की एक राज्यसभा सदस्य का भी बंगला बनने जा रहा है।
राज्यसभा सदस्य का प्लॉट, मंत्रीजी के बंगले से थोड़ी दूर पर ही है। राज्यसभा सदस्य ने पूजा-पाठ, और टेस्टिंग आदि कराकर बोरवेल खुदाई कराई, तो 50 फीट पर ही पानी मिल गया। इस इलाके में कई और दिग्गज नेताओं के बंगले बन रहे हैं। इन सबके बीच अब भूजल स्तर में आ रही गिरावट पर बात हो रही है।
राहुल की चि_ी का मतलब?
कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के हटने-हटाने की चर्चाओं के बीच राहुल गांधी के एक पत्र की काफी प्रतिक्रिया हो रही है। राहुल ने प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने प्रदेश कांग्रेस की गतिविधियों की सराहना की है।
यह पत्र प्रदेश कांग्रेस दफ्तर पहुंचा, तो दीपक बैज के समर्थक खिल उठे। पूर्व सीएम भूपेश बघेल का भी बयान आ गया। उन्होंने कहा कि राहुलजी ने सिर्फ बैज की ही नहीं, सभी कार्यकर्ताओं की तारीफ की है। राहुल के पत्र के बाद बैज समर्थक आत्मविश्वास से भर गए हैं, और वो मानकर चल रहे हैं कि बैज पद पर बने रहेंगे।
दूसरी तरफ, प्रदेश कांग्रेस के एक प्रमुख पदाधिकारी ने अनौपचारिक चर्चा में राहुल के पत्र की व्याख्या अलग ढंग से की है। पदाधिकारी का मानना है कि प्रदेश कांग्रेस की गतिविधियों को लेकर रिपोर्ट हाईकमान को भेजी जाती है। इस पर बधाई की प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक है। जैसे कि किसी विशिष्ट व्यक्ति को शादी के लिए आमंत्रण भेजा जाता है, यदि वो किसी वजह से कार्यक्रम में नहीं आ पाते तो शिष्टाचार के नाते शुभकामनाएं संदेश भेज देते हैं। राहुल का पत्र भी शुभकामना संदेश से ज्यादा कुछ नहीं है। चाहे कुछ भी हो, दीपक बैज राहुल के पत्र से टॉनिक मिल गई है। अब हटेंगे या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
छात्रा बनी टीचर
सुकमा के दंतेशपुरम की यह शाला छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था की एक तस्वीर दिखा रही है। अनुशासित बच्चे जमीन पर कतारबद्ध बैठे हैं। बच्चे सब पहुंच गए हैं, पर टीचर गायब है, इसलिए एक छात्रा ने ही पढ़ाने की जिम्मेदारी उठा ली है। एक जवान ने ये वीडियो रिकॉर्ड किया जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
छत्तीसगढ़ 11 वां राज्य ना हो जाए?
छत्तीसगढ़ में पूर्णकालिक डीजीपी की नियुक्ति की कवायद चल रही है। तीन माह पहले सरकार ने 92 बैच के अरुण देव गौतम को प्रभारी डीजीपी नियुक्त किया था। बीते तीन महीनों में उनका परफॉर्मेंस बेहतर, और विवादहीन रहा है। वे काम से काम रखने वाले वर्क ओरिएंटेड अफसरों में गिने जाते हैं। इस दौरान एसपी आईजी के तबादले भी हो गए। तीन दिन पहले छत्तीसगढ़ के लिए पूर्णकालिक डीजीपी, या यूं कहें कि गौतम को रेगूलर करने दिल्ली में यूपीएससी ने सलेक्शन कमेटी की बैठक कर ली।
मुख्य सचिव अमिताभ जैन भी शामिल हुए। कमेटी ने डीजीपी के लिए चार आईपीएस अधिकारियों का नाम यूपीएससी को भेजा गया है, इनमें पवनदेव, अरुणदेव गौतम, जीपी सिंह और हिमांशु गुप्ता का नाम शामिल है। गौतम के दूसरे क्रम में होने की वजह से यह बैठक, पैनल की औपचारिकता पूरी करनी पड़ रही है। पीएचक्यू से महानदी भवन के गलियारों में यह भी चर्चा है कि गौतम के रेगुलर होने में कोई अड़चन नहीं है।
डीजीपी चयन का मामला पिछले छह महीने से यूपीएससी में लटका हुआ था। इससे पहले एक बार डीपीसी हुई भी मगर जीपी सिंह की इंट्री के बाद यूपीएससी राज्य सरकार से कई क्वेरियां कर रहता है। इसके बाद ही अंतिम डीपीसी हुई। इसके बाद भी पीएचक्यू के ही अफसर कह रहे हैं कि देश के 10 अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ में भी प्रभारी डीजीपी ही बनाए रखा जा सकता है। इन राज्यों में भाजपा शासित उत्तर प्रदेश भी शामिल हैं। वहां भी डीजीपी प्रशांत कुमार, प्रभारी ही हैं। तो उधर एक मात्र वामपंथ शासित केरल में भी पूर्णकालिक की तलाश जारी है। और विजयन सरकार केंद्र से यूपीएससी के चुने गए पैनल के तीन नामों से असंतुष्ट है ।
संभव है वह इनमें से किसी की नियुक्ति ही न करें। अपनी पसंद के डीजीपी नियुक्त करने पहले तीन अफसरों के रिटायर होने का इंतजार कर रही है । तब तक प्रभारी से काम चलाने तैयार है। छत्तीसगढ़ पुलिस के अफसर बताते हैं कि राज्यों में डीजीपी या मुख्य सचिवों को लेकर यह कवायद, मोदी 2.0 के अंतिम दो तीन वर्षों से देखने में आई है। इसमें दिल्ली की सीधी दखल होने लगी है। ऐसे में भाजपा शासित सरकारों के लिए शीर्षासन आवश्यक है। देखें आगे क्या होता है?
मजबूरी नहीं, शौक है चेतक!
इस तस्वीर में जो ‘चेतक’ खड़ा है, वो एक जमाने की शान होती थी। 80 और 90 के दशक में जब किसी घर के बाहर चेतक खड़ा होता था, तो उस परिवार की हैसियत ऊंची मानी जाती थी।
आज बाजार में सुपरबाइक्स और इलेक्ट्रिक स्कूटर्स की भरमार है, लेकिन कई लोगों का पुरानी गाडिय़ों से मोह नहीं छूटता। सहारा इंडिया के सुब्रत रॉय लोगों का धन लूटने के लिए बदनाम हुए, पर वे पुरानी बजाज स्कूटर को अपने घर कोने पर सजा कर रखते थे। इसी स्कूटर पर पत्नी के साथ घूम-घूम कर उन्होंने बिजनेस बढ़ाया था।
मजबूरी नहीं, शौक है- पीछे लिखा गया है। शायद मालिक सफाई दे रहा है कि पुरानी स्कूटर को देखकर उनकी हैसियत कम करके न आंकी जाए।
सैनिक, या अर्धसैनिक?
नए नवेले कई विधायकों के खिलाफ धीरे-धीरे मोर्चा खुल रहा है। विधायकों पर आरोप लग रहा है कि वो जनसमस्याओं के निराकरण में रूचि नहीं लेते हैं। लेन -देन की भी शिकायतें हैं। एक ने तो बकायदा आरटीआई लगाकर विधायक से जुड़ी जानकारी भी निकलवा ली है, जो कि देर-सवेर विधायक के खिलाफ मुद्दा बन सकता है।
बताते हैं कि विधायक को क्षेत्र के लोग पूर्व सैनिक के रूप में जानते हैं। एक वकील ने सैनिक कल्याण बोर्ड से पूर्व सैनिक विधायक के बारे में जानकारी चाही, तो लिखित में जवाब मिला कि उनका (विधायक) पूर्व सैनिक का कोई रिकॉर्ड नहीं है। बात विधायक के करीबियों तक पहुंची, तो उन्होंने कह दिया कि वो (विधायक) सैनिक नहीं, बल्कि सीआरपीएफ में थे। अब सवाल उठ रहा है कि अर्धसैनिक बल में थे, तो सैनिक लिखना कहां तक उचित है? विधायक के खिलाफ धीरे-धीरे नाराजगी बढ़ रही है। ऐसे में उन्हें देर सवेर अपने विषय में स्थिति स्पष्ट करनी पड़ सकती है।
पकौड़े बेचना बहुत बुरा भी नहीं
महादेव ऑनलाइन सट्टा ऐप के बाद पिछले कुछ समय से गजानन एप सुर्खियों में रहा है। महादेव ऑनलाइन सट्टा ऐप के संचालक तो पुलिस की पहुंच से बाहर हैं, लेकिन गजानन के संचालक तिल्दा रहवासी नंदलाल लालवानी, और उनके पुत्र निर्दलीय पार्षद बबला लालवानी पुलिस के मंगलवार की रात हत्थे चढ़ गए। पकोड़े बेचकर जीवन यापन करने, और फिर ऑनलाइन सट्टा कारोबार चलाकर करोड़पति बनने की कहानी दिलचस्प है।
बताते हैं कि लालवानी पिता-पुत्र दो-तीन साल पहले तक तिल्दा में पकोड़े बेचते थे। धीरे-धीरे वो महादेव ऑनलाइन सट्टा खिलाने वालों से जुड़े, और फिर महादेव एप पर पुलिसिया की कार्रवाई के बाद खुद गजानन एप बनाकर ऑनलाइन सट्टा खिलाने लगे। देखते ही देखते लालवानी पिता-पुत्र करोड़पति बन गए। तिल्दा के निकट उनका शानदार फार्म हाउस चर्चा में रहा है।
सट्टेबाज बबला लालवानी ने राजनीति में भी कदम रखा। भाजपा नेताओं को साधकर पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली, और बबला लालवानी के भाजपा प्रवेश के कार्यक्रम में पार्टी के कई बड़े नेता मौजूद थे। इसके बाद नगर पालिका चुनाव में बबला लालवानी ने पार्षद टिकट के लिए दावेदारी की, लेकिन तब तक पार्टी के शीर्ष नेताओं तक उनके ऑनलाइन सट्टा खिलाने की शिकायत पहुंच चुकी थी।
टिकट नहीं मिलने पर बबला लालवानी ने निर्दलीय पार्षद चुनाव लड़ा, और अच्छे वोटों से जीत हासिल की। इसके बाद नगर पालिका उपाध्यक्ष का भी चुनाव लड़ा। कांग्रेस, और भाजपा के कुछ पार्षदों को भी अपने पाले में करने की कोशिश की। मगर एक वोट से चुनाव हार गए। इसके बाद से लालवानी पिता-पुत्र के खिलाफ कार्रवाई के लिए मुहिम चल रही थी। और अब जाकर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया है। पुलिस से जुड़े सूत्र बताते हैं कि आरोपियों के तार दुबई तक जुड़े हैं। फिलहाल तो पूछताछ चल रही है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
बीबीसी तक गूंजी थी मुनगा गांव की गाथा
15 मई 1975। यह तारीख छत्तीसगढ़ के इतिहास में दर्ज है। महासमुंद जिले (तत्कालीन मध्यप्रदेश) के बागबाहरा विकासखंड के छोटे से गांव मुनगा ने देश को एक नई सामाजिक पहल दिखाई।
यहां 27 जोड़ों की शादी एक साथ कराई गई। दावा है कि यह भारत का पहला सामूहिक आदर्श विवाह था।
इस आयोजन की खासियत यह थी कि इसका प्रसारण ऑल इंडिया रेडियो और बीबीसी लंदन तक हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस अद्वितीय पहल पर बधाई दी थी। विवाह में शामिल हुए सभी जोड़े आज भी वैवाहिक जीवन में साथ हैं—एक भी तलाक नहीं हुआ। दो दिन तक गांव में हजारों लोग रुके, आसपास के गांवों और अन्य राज्यों से भी लोग विवाह देखने पहुंचे। गांववालों ने खुद अपने हाथों से मिट्टी के गिलास और बर्तन बनाए, जिनमें खाना परोसा गया। अब 50 साल बाद, आज इस गौरवपूर्ण सामाजिक परंपरा की स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है। 15 मई 2025 को गांव मुनगा में गोल्डन जुबली समारोह का आयोजन हो रहा है, जिसमें उस ऐतिहासिक विवाह के 20 से अधिक जोड़े अब भी जीवित हैं और फिर से शामिल हो रहे हैं।
निमंत्रण में कहा गया है कि- मां की गोद में मौसी की शादी देखी थी, आज उसी विवाह का हो रहा है स्वर्ण जयंती उत्सव!