राजपथ - जनपथ
जेल से बाहर क्या निकलेगा?
शराब, कोयला और महादेव सट्टा एप में करोड़ों की रिश्वत, मनी लॉन्ड्रिंग और हवाला कारोबार पर एसीबी ने जांच आगे बढ़ा दी है। केंद्रीय जेल रायपुर में बंद आरोपियों से वह लगातार पूछताछ कर रही है। इस बीच अधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं बताया गया है कि पूछताछ में आरोपी क्या उगल रहे हैं। पर न्यूज पोर्टल और सोशल मीडिया पर एक से एक खुलासे रोजाना हो रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि किसी अधिकारी ने सब कुछ उगल दिया है। कुछ सरकारी गवाह बनना चाहते हैं। पोर्टल की खबरों के अनुसार कुछ जानकारी तो जांच अधिकारियों ने ऐसी भी जुटा ली है, जो अत्यंत निजी तथा संवेदनशील किस्म के हैं। ऐसा दावा करने वाली खबरों में यह भी नहीं बताया जा रहा है कि किसी अधिकारी ने या सूत्र ने उनको सूचना मुहैया कराई है। खबरें पुष्ट बिल्कुल नहीं है, मगर इन न्यूज पोर्टल्स की पहुंच वाट्स एप के जरिये लाखों लोगों तक है। इन खबरों में यह भी दावा किया गया है कि जैसे ईडी ने मतदान के एक दो दिन पहले एक सनसनीखेज विज्ञप्ति जारी की थी, इस बार भी वैसा कुछ हो सकता है।
महाराज की चिंता बढ़ी
चर्चा है कि सरगुजा में भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज को अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है। टिकट के दावेदार पूर्व सांसद कमलभान सिंह, विजयनाथ सिंह, और अन्य नेता पूरी तरह सक्रिय नहीं दिख रहे हैं।
सरगुजा की पूर्व सांसद रेणुका सिंह ज्यादा समय अपने विधानसभा क्षेत्र भरतपुर-सोनहत में दे रही हैं, जो कि कोरबा संसदीय क्षेत्र में आता है। रेणुका सिंह, दो बार प्रेमनगर से विधायक रही हैं। उनका प्रेम नगर और आसपास के इलाके में अच्छा प्रभाव है। मगर चिंतामणि महाराज के साथ अब तक उनकी रूबरू मुलाकात नहीं हो पाई है। हालांकि तमाम अंतर विरोधों के बावजूद चिंतामणि महाराज मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं। वजह यह है कि कांग्रेस प्रत्याशी शशि सिंह के लिए पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव अभी तक जुट नहीं पाए हैं।
सिंहदेव के 7 तारीख को अंबिकापुर पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। इसके बाद ही प्रचार की रणनीति बनेगी। जिले के एक और बड़े नेता पूर्व मंत्री अमरजीत भगत भी ज्यादा सक्रिय नहीं है। वो ईडी-आईटी की जांच के घेरे में हैं, और इस वजह से अपना दमखम नहीं दिखा पा रहे हैं।
किसानों को अब फायदा कैसे?
लोकसभा चुनाव के दरमियान भाजपा सरकार ने मतदाताओं को नाखुश करने की आशंका वाले दो साहसिक फैसले लिए हैं। एक तो शराब की कीमत 10 रुपये से लेकर 300 रुपये तक बढ़ा दी गई है, दूसरा जमीन के भाव में मिल रही 30 प्रतिशत की छूट समाप्त हो गई है। महंगी शराब पर दाम 100 बढ़े या 500 रुपये, खरीदने वालों पर इसका फर्क नहीं पड़ता। पर जो लोग ज्यादा खर्च नहीं कर पाते उन लोगों का देशी पौव्वा भी महंगा कर दिया गया है, उन पर असर पड़ेगा।
मगर, यहां दूसरा मुद्दा कलेक्टर गाइडलाइन की दरों में रजिस्ट्री के वक्त मिलने वाली 30 प्रतिशत को छूट को समाप्त करने का है। 31 मार्च तक जो छूट थी, उसमें जमीन की कीमत में कोई बदलाव नहीं था। छूट की गणना स्टाम्प खरीदते समय की जाती थी। यदि किसी किसान जमीन की कीमत कलेक्टर गाइडलाइन में 10 लाख रुपये थी तो कीमत तो वही दर्ज होती थी, 30 प्रतिशत की छूट स्टाम्प पेपर की खरीदी के दौरान मिल रही थी। यानि 30 प्रतिशत कम का खर्च रजिस्ट्री में आ रहा था। वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने छूट समाप्त करने के फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि किसानों को नुकसान हो रहा था। उन्हें जमीन का दाम अब ठीक मिलेगा।
इस बयान को समझने में दिक्कत हो सकती है, क्योंकि इस फैसले किसानों के जमीन की कीमत नहीं बढ़ रही है, बढ़ा है तो रजिस्ट्री का खर्च। 10 लाख की जमीन तो अब भी वही है, 13 लाख नहीं। यह जरूर है कि रियल एस्टेट सेक्टर वाले 30 प्रतिशत छूट का कुछ फायदा ग्राहकों को भी दे देते थे। अब गुंजाइश कम है। मकान, फ्लैट आदि खरीदने पर खर्च बढ़ जाएगा। वैसे इस बार जमीन की दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं कर सरकार ने राहत दी है। पहले की भाजपा सरकार के दौरान प्राय: हर साल नए दर घोषित हो जाते थे। इस बार भी बढऩे का अंदाजा लगा रहे लोगों की रजिस्ट्री ऑफिस में मार्च के आखिरी सप्ताह में भीड़ उमड़ी ही थी।
एटीआर की जर्जर सडक़
अचानकमार अभ्यारण की कोटा से केंवची को जोडऩे वाली सडक़ आम लोगों के लिए कई सालों से बंद है। पहले वन विभाग के बैरियर में कुछ शर्तों के साथ शुल्क देकर डेढ़ घंटे के भीतर जंगल को पार करने की छूट थी। इस सडक़ की मरम्मत यह नहीं कराई जाती थी, यह कहकर कि इससे लोगों का आना-जाना, शुल्क रखने के बावजूद बढ़ जाएगा। मगर पिछले दो साल से यह नियम भी समाप्त कर दिया गया है। शुल्क देकर भी लोग भीतर नहीं जा सकते। मगर, बुकिंग कर पहुंचने वाले पर्यटकों और भीतर बसे गांवों के आदिवासियों को इस सडक़ में सफर का बुरा अनुभव झेलना पड़ रहा है, जो छत्तीसगढ़ के शायद किसी दूसरे अभयारण्य में नहीं है। अच्छी सडक़ पर चलना वन विभाग की बदौलत उनकी किस्मत में भी नहीं है। ([email protected])
बृजमोहन के लिए मेहनत का राज
रायपुर लोकसभा से भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल ने अच्छी मार्जिन से जीत के लिए अलग ही रणनीति बनाई है। उन्होंने सबसे ज्यादा बढ़त दिलाने वाले मंडल, और बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं को पुरस्कृत करने का ऐलान किया है। उन्होंने ईनाम के लिए बेस्ट मंडल, और बेस्ट बूथ जैसी कैटेगरी बनाई है।
सुनते हैं कि बेस्ट मंडल, और बेस्ट बूथ के पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं को टूर पर भेजा जा सकता है। उन्हें टूर पर कहां भेजा जाएगा, यह साफ नहीं है, लेकिन बृजमोहन उदार नेता हैं। उनसे जुड़े लोग मानते हैं कि बेहतर काम करने वाले, और अच्छी मार्जिन के लिए मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं को विदेश प्रवास पर भी भेजा जा सकता है।
दूसरी तरफ, रायपुर दक्षिण में सबसे ज्यादा मेहनत हो रही है। यहां उपचुनाव की संभावनाओं को देखते हुए कई दावेदार अभी से सक्रिय हैं, और बृजमोहन को भारी बढ़त दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। मौजूदा सांसद सुनील सोनी भी रायपुर दक्षिण में ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं। इसके अलावा सुभाष तिवारी, मीनल चौबे, केदार गुप्ता, मोहन एंटी, मृत्युंजय दुबे, और पार्षद मनोज वर्मा सहित कई विधानसभा टिकट के दावेदार बृजमोहन के लिए पसीना बहाते दिख रहे हैं।
बस्तर पर खास मेहनत
बस्तर की दोनों सीटों पर भाजपा ने अपनी ताकत झोंक दी है। यहां संगठन के दो प्रमुख नेता अजय जामवाल, और पवन साय खुद ही प्रचार की रणनीति देख रहे हैं। बस्तर में नया प्रत्याशी होने की वजह से कई बड़े नेताओं का अपेक्षाकृत सहयोग नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि आरएसएस से जुड़े 32 संगठनों के पदाधिकारियों को प्रचार में झोंक दिया गया है।
इससे परे कांकेर में कांग्रेस से पिछले प्रत्याशी को रिपीट करने से इस बार मुकाबला कांटे का हो सकता है। इससे निपटने के लिए पार्टी के रणनीतिकारों ने विधानसभा वार रणनीति बनाई है। सीएम विष्णुदेव साय यहां कई सम्मेलनों में शिरकत कर चुके हैं। पार्टी का सभी 11 सीटों को जीतने का लक्ष्य है। राज्य बनने के बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन बहुत बढिय़ा रहा है। लेकिन अधिकतम 10 सीट ही जीत पाई है। वर्ष 2019 के चुनाव में 9 सीट ही जीत पाई थी। मगर इस बार पार्टी सभी सीट जीतने के लिए भरपूर दम खम लगा रही है। वाकई ऐसा होगा, यह तो चार जून को चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
सुरक्षा की मांग कौन पूरी करेगा?
लोगों के लाइसेंसी हथियार गन, बंदूक, रिवाल्वर आदि चुनाव के समय थानों में जमा करा लिए जाते हैं। इधर, मुख्यमंत्री निवास के करीब रहने वाले कांग्रेस नेता रामकुमार शुक्ला ने इस आधार पर अपनी रिवाल्वर वापस मांगी है कि उनके ऊपर हमला हो सकता है। हमला इसलिये, क्योंकि उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ बयान दिए थे। बघेल पर मंच से तीखा हमला करने वाले राजनांदगांव के कांग्रेस नेता ने सुरेंद्र वैष्णव ने इसी आधार पर पुलिस सुरक्षा मांगी है। वहीं बघेल के करीबी विनोद वर्मा व पार्टी कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल पर 5 करोड़ 90 लाख रुपये की गड़बड़ी का आरोप लगाने वाले एआईसीसी सदस्य अरुण सिसोदिया ने भी पुलिस सुरक्षा मांगी है। दो दिन पहले उन्होंने पीसीसी चीफ दीपक बैज को चि_ी लिखकर स्लीपर सेल वाले बयान पर बघेल के खिलाफ फिर कार्रवाई की मांग की है। यह देखना होगा कि चुनाव आचार संहिता लागू है तो पुलिस खुद रिवाल्वर लौटाने या किसी को सुरक्षा देने का फैसला क्या कर सकेगी। यह तो कम से कम जिला दंडाधिकारी या उसके ऊपर के अधिकारी कर सकते हैं। बयान देने वाले नेताओं को सचमुच सुरक्षा की जरूरत है या नहीं इसका आकलन भी निर्वाचन के अधिकारी ही करेंगे। मगर, पुलिस सुरक्षा की मांग कांग्रेस के भीतर व्याप्त भारी अंतर्कलह को उजागर कर रहा है, जिसमें जुबानी राजनीतिक हमले की प्रतिक्रिया में शारीरिक हमले की आशंका जताई जा रही है। भाजपा ने भी मौका नहीं छोड़ा। सीनियर विधायक अजय चंद्राकर तो यहां तक कह गए कि यदि बघेल के मुताबिक कांग्रेस के भीतर कुछ लोग स्लीपर सेल की तरह काम कर रहे हैं तो इसका मतलब तो यह हुआ कि यह आतंकी संगठन है। सुरक्षा मांगना जायज है।
साहब के तेवर !!
पीएम और रेल मंत्री,सुविधाएं बढ़ाकर रेलवे की छवि सुधारने में जुटे हुए हैं लेकिन उनके अपने अफसर उस पर बट्टा लगाने से पीछे नहीं हट रहे। टैक्स पेयर के पैसे से मिलने वाले वेतन और मुफ्त की सुविधाओं के भोगी ये अफसर उसी यात्री से दुर्व्यवहार करने लगे हैं । 15 लाख की आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले आधा दर्जन संगठनों के पदाधिकारियों ने पिछले दिनों बड़े साहब से मुलाकात की। वे लोग एक वंदे भारत ट्रेन की मांग करने गए थे। यह ट्रेन छत्तीसगढ़ को मिलने के बाद भुवनेश्वर को दे दी गई। ये जन प्रतिनिधियों न धरना दे रहे थे, न नारेबाजी कर रहे थे ।
केवल ज्ञापन देकर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरा करना चाहते थे। साहब ने पहले घंटों इंतजार कराया और मिले तो पेशानी पर गुस्से के बल थे। उस पर कहने लगे आप लोगों को कोई काम नहीं है क्या? क्यों आए हैं? अब क्या कहे, आप अपना काम नहीं कर पाए इसलिए तो याद दिलाने गए थे। रायपुर की ट्रेन छीन ली गई, और आपने अपना काम नहीं किया। रेलवे बोर्ड ने इंटरनल सूचना भेज वंदेभारत के लिए टीटीई,गार्ड ड्राइवर रिजर्व करने कह दिया था। टाइम टेबल भी जारी कर दिया गया। उसके बाद ट्रेन को भुवनेश्वर में हरी झंडी दिखाई गई। शायद अपनी इस ट्रेन को हासिल करना आपका काम था। आपने नहीं किया। क्योंकि आपके पास कोई काम न था। अब आपके काम को याद दिलाने इन संगठनों ने पीएमओ और एमओआर को पत्र मेल किया। कुछ हो न हो, पीएमओ तो जवाब मांगता है। जवाब देना तो आपका काम है न साहब।
संघ सदैव की तरह साथ !
आरएसएस खुद को गैर राजनीतिक एक सांस्कृतिक संगठन बताता है लेकिन भाजपा का सहयोग करती है। भाजपा की हर जीत में संघ की खास भूमिका होती है। भाजपा का जनसंपर्क दिखाई देता है, पर संघ का प्रचार आम तौर पर नहीं। संघ की खामोशी से कई बार चर्चा निकल जाती है कि भाजपा सरकार और उसके शीर्ष नेताओं से उसकी नाराजगी चल रही है, या उनमें दूरी बढ़ गई है। हाल ही में तो और गजब हो गया। महाराष्ट्र में जनार्दन मून नाम के किसी व्यक्ति ने कई जगहों पर प्रेस कांफ्रेंस लेकर बयान दिया कि आरएसएस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का समर्थन कर रहा है। सामान्य जानकारी है कि आरएसएस पंजीकृत संगठन नहीं है। इस व्यक्ति ने आरएसएस नाम की एक सोसाइटी का पंजीयन कराने की भी कोशिश कथित रूप से की थी, पर वे सफल नहीं हुए। अब नागपुर में आरएसएस ने मून के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है कि वे भ्रामक खबर फैला रहे हैं। निर्वाचन आयोग को भी पत्र लिखा गया है कि वह वैमनस्यता और भ्रम फैलाने वाले इस व्यक्ति पर कार्रवाई करे। मून की प्रेस कांफ्रेंस यू ट्यूब पर भी अपलोड है। निर्वाचन आयोग से उसे भी हटाने की मांग की गई है। तो ऐसे माहौल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत छत्तीसगढ़ के अल्प प्रवास पर आए। प्रचारकों और स्वयंसेवकों से अपने बिलासपुर कार्यालय में मिले। भाजपा के कुछ विधायक-नेता भी खबर मिलने पर वहां पहुंचे। हमेशा की तरह मीडिया से उनकी दूरी बनी रही। अधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं बताया गया है कि वे यहां क्या मंत्र अपनी टीम को देकर गए, पर यह साफ है कि संघ हमेशा की तरह भाजपा के साथ है।
बार में टाइगर..
बार नवापारा के सिरपुर की ओर वाली गेट के पास कुछ पर्यटकों को बीते 29 मार्च को टाइगर नजर आया। इस अभयारण्य में तेंदुआ व दूसरे वन्य जीव बड़ी संख्या में हैं, पर तीन दशकों में पहला मौका है, जब टाइगर दिखा। यह बाघ किसी दूसरे जंगल से भटककर आया होगा। वन विभाग इसके बारे में जानकारी जुटा रहा है। इसकी मौजूदगी से पार्क की रौनक और बढ़ गई है। आने वाले दिनों में यहां आने वाले सैलानियों की संख्या और बढ़ सकती है।
कांग्रेस में संयोग या प्रयोग
छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से चार में दुर्ग जिले के उम्मीदवार खड़े हैं। यह एक संयोग है। कांग्रेस के नेता इसे प्रयोग के रूप में भी देख रहे हैं। पूर्व सीएम भूपेश बघेल की उम्मीदवारी से राजनांदगांव में तो ताम्रध्वज साहू की उम्मीदवारी से महासमुंद में मुकाबला रोचक होने जा रहा है। बिलासपुर में भी देवेंद्र यादव के आने से भाजपा की मेहनत बढ़ जाएगी, क्योंकि स्थानीय नेता भले भीड़ बढ़ाने के काम आएं, लेकिन काम करने के लिए देवेंद्र ने अपनी टीम उतार दी है। वैसे, यह भी एक संयोग है कि कई नेताजी को इस बात से सुकून मिला है कि उन्हें चुनाव नहीं लडऩा पड़ा, इसलिए बाहर से प्रत्याशी उतारने पर भी कोई विरोध में आगे नहीं आ रहा।
मिशन नांदगांव
भाजपा की सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही आरएसएस में अंदरखाने थोड़ी नाराजगी है। आरएसएस की ओर से जो सिफारिशें की गईं, उनमें बड़ी संख्या में नहीं मानी गईं। ज्यादातर नियुक्तियों के संबंध में थी। आरएसएस ने बाद में खामोशी ओढ़ ली। अब लेकिन फिर से आरएसएस के लोग सक्रिय हो गए हैं। बताया जा रहा है कि राजनांदगांव को मिशन के तौर पर लिया जा रहा है। यहां संघ और संगठन के करीबी संतोष पांडेय के खिलाफ भूपेश बघेल कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। अपनी सरकार में भूपेश आरएसएस के खिलाफ बयानबाजी का कोई मौका नहीं छोड़ते थे, इसलिए आरएसएस ने भी कमर कस ली है।
ओएसडी ही भगवान
भाजपा की 15 साल की सरकार जब गई तब मंत्रियों के हार के कारणों में ओएसडी नामक शब्द काफी चर्चा में रहा। इनमें कई ओएसडी तो बाद में कांग्रेस की सरकार में भी हाई प्रोफाइल हो गए। अभी फिर से ओएसडी बन गए हैं। नियुक्तियों के समय ही आपत्ति आई, लेकिन मंत्रियों ने जैसे जैसे संगठन को मैनेज कर लिया, लेकिन कई ओएसडी के भगवान बनने की चर्चा फिर शुरू हो गई है। एक ओएसडी को तो मंत्री ने बाहर कर दिया है। बाकी मंत्री संभलकर रहें। नहीं तो पिछले परिणाम अच्छे नहीं रहे हैं।
राशन कटौती का जोखिम चुनाव में?
छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने सोशल मीडिया और बयानों में आरोप लगाया कि प्रदेश के 13 हजार 771 दुकानों में से 7985 दुकानों को भाजपा सरकार ने नॉन एक्टिव खाते में डाल दिया है। बिना भौतिक सत्यापन के ही ऐसा किया गया। जनवरी में राशन का आवंटन 37 प्रतिशत तथा फरवरी में 44 प्रतिशत कम कर दिया गया। प्रति यूनिट कांग्रेस सरकार ने 7 किलो राशन वितरित कर रही थी जिसे भाजपा सरकार ने घटाकर 5 किलो प्रति यूनिट कर दिया है। इसका जवाब देते हुए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने सोशल मीडिया पर ही आवंटन के डिटेल निकालकर पोस्ट डाली है, जिसमें उन्होंने कहा कि कुछ लोग दुष्प्रचार कर रहे हैं कि पीडीएस संबंधित पिछली सरकार की योजनाओं को सरकार ने बंद कर दिया है। पिछली सरकार ने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की जन हितैषी योजनाओं का नाम बदलकर ही आगे बढ़ाया था। पीडीएस से संबंधित सभी लाभ यथावत जारी है। भाजपा के मंत्रियों और अन्य नेताओं ने भी इस मामले में स्पष्टीकरण दिया है।
मालूम हो कि पिछली सरकार में राशन दुकानों में बिना स्टाक को अपडेट किए ही करोड़ों रुपये के अतिरिक्त चावल की आपूर्ति की इस समय जांच होनी है। स्टाक की जांच की प्रक्रिया हाल-फिलहाल की जानकारी के मुताबिक अब तक अपडेट नहीं है। इसलिए कांग्रेस का आरोप एकबारगी सही लग सकता था। पर चुनावी माहौल में भाजपा सरकार ने राशन में कटौती जैसा कोई जोखिम नहीं उठाया है। अनुमान यही है कि जिन राशन दुकानों पर गड़बड़ी का आरोप है और उसमें अधिकारियों की मिलीभगत मिली है, उनके खिलाफ चुनाव के बाद ही कार्रवाई होगी। यह जरूर हुआ है कि डोंगरगांव में भाजपा के कुछ उत्साही कार्यकर्ताओं ने थाने में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग को लेकर शिकायती पत्र सौंपा है। बघेल ने भी छत्तीसगढ़ कांग्रेस के ट्विटर हैंडल की पोस्ट को साझा किया था। इसमें उन्होंने बेरोजगारी भत्ता बंद कर देने और भविष्य में महतारी वंदन योजना में राशि की कटौती किए जाने की आशंका भी व्यक्त की है। थाने में दर्ज शिकायत में कहा गया है कि आचार संहिता के दौरान भ्रामक प्रचार करने को लेकर बघेल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए। हालांकि थानेदार ने कह दिया है कि शिकायत की जांच करेंगे, तब कोई कार्रवाई होगी। वैसे भी इस मामले में ज्यादा भूमिका निर्वाचन अधिकारियों की हो जाती है।
आपदा में अवसर...
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत नहीं मिली और कथित शराब घोटाले में अभी जेल में हैं। उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल कल सामने आईं और उन्होंने दो वाट्सएप नंबर जारी कर दिल्ली और देश की जनता से केजरीवाल के लिए शुभकामनाएं और दुआएं लिख भेजने की अपील की। मगर, केजरीवाल के खिलाफ डट कर मुहिम चला रही सोशल मीडिया टीम के लोग कहीं आगे निकल गए। वाट्सएप पर उन्हें शुभकामनाएं और आशीर्वाद हजारों लोगों ने दिए होंगे, पर उनके विरोधियों ने इसका खूब इस्तेमाल किया। ट्विटर पर वाट्सएप नंबर पर भेजे जाने वाले ऐसे संदेशों के स्क्रीन शॉट छा गए, जिनमें उनको तमाम अपशब्द कहे जा रहे हैं। जबकि सुनीता केजरीवाल का आटो रिप्लाई आ रहा है, जिसमें सभी का आभार व्यक्त किया जा रहा है। इनमें अनेक पोस्ट ऐसे हैं जिनमें नाम के साथ मोदी का परिवार भी लिखा हुआ है, यानि वे भाजपा कार्यकर्ता या फिर उसके समर्थक हैं। केजरीवाल सोशल मीडिया कैंपेन में कभी आगे रहे होंगे। उन्होंने वाट्सएप से ही सुझाव मांग कर पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में भगवंत मान को चुना था। पर आज इस मीडिया का भाजपा से बेहतर इस्तेमाल और कौन कर पा रहा है? शाम तक यह जानकारी दी गई कि जो दो वाट्सएप नंबर जारी किए गए थे, उन्हें बंद कर दिया गया। केजरीवाल से सहानुभूति रखने वालों की जगह इन नंबरों पर उनके विरोधियों ने कब्जा कर लिया था।
एक के बाद एक फूटता असंतोष
लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद कांग्रेस को चुनाव प्रचार में पूरी तरह जुट जाना था लेकिन एक के बाद कई सीटों से फूट रहे असंतोष ने उसकी लड़ाई और कठिन कर दी है। राजनांदगांव में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ मंच से बयानबाजी करने वाले सुरेंद्र दाऊ के मामले का पटाक्षेप उनको पार्टी से निष्कासित कर देने के बाद भी नहीं हुआ है, बल्कि उनके तेवर और तीखे हो गए हैं। बिलासपुर में बोदरी नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष जगदीश कौशिक तीन दिन से कांग्रेस भवन के सामने अनशन पर हैं। वरिष्ठ नेताओं के समझाने के बाद भी उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला है। वे देवेंद्र यादव को बिलासपुर से बाहर का बताते हुए खुद के लिए कांग्रेस टिकट मांग रहे हैं। यहां से हाल ही में जिला पंचायत अध्यक्ष अरुण चौहान कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हो चुके हैं। जगदलपुर की पार्षद शफीरा साहू का 5 पार्षदों के साथ कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल होना और उसके बाद उनका प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के खिलाफ आरोपों की बौछार करना भी पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर रहा है।
विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के कई बड़े नेता सदमे में थे। ऐसी हार की उम्मीद शायद उनको नहीं थी। इस दौरान उन्होंने यह ध्यान नहीं रखा कि विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। इसमें पार्टी को फिर एक बार मजबूत स्थिति में लेकर आने का मौका है। मगर, विधानसभा चुनाव के हार की वजह जानने के लिए नेताओं ने कार्यकर्ताओं के साथ कोई सम्मेलन शायद ही किसी जिले में किया हो। शायद ही कहीं उन्होंने समीक्षा की हो कि आखिर कौन सी नाराजगी उन्हें ले डूबी। विधानसभा चुनाव के बाद कार्यकर्ताओं के साथ खुला संवाद कर लिया गया होता तो शायद आज अप्रत्याशित रूप से पार्टी छोडऩे की घटनाओं को थोड़ा नियंत्रित किया जा सकता था।
ईडी की पूछताछ में तेजी
खबर है कि एसीबी के अधिकारी आज से अगले पांच दिन शराब और कोयला घोटाले में बंद आरोपियों के खिलाफ लगातार पूछताछ शुरू करने वाले हैं। इनमें कुछ आईएएस व कुछ राज्य सरकार के प्रशासनिक अधिकारी हैं तो कुछ कारोबारी। ठीक चुनाव अभियान के दौरान पूछताछ की आंच यदि कांग्रेस प्रत्याशियों तक भी पहुंची तो इसका राजनीतिक असर देखने को मिलेगा। कांग्रेस ने जिन 11 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है उनमें भूपेश बघेल, कवासी लखमा, देवेंद्र यादव कै खिलाफ पहले से एफआईआर दर्ज है। दिल्ली और झारखंड में मुख्यमंत्रियों की जिस तरह गिरफ्तारी की गई है, उससे साफ है कि चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद वह रुकने वाली है। यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा कि ईडी किसे-किसे हिरासत में लेना और पूछताछ करना चाहती है।
राहगीरों की आंखों को गर्मी में सुकून
यह बोगनवेलिया या पेपर फ्लावर है, जिसकी देखभाल की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती। फूल मनमोहक होते हैं। रतनपुर के पास नेशनल हाईवे पर यह पेड़ उद्यानिकी विभाग के आम के बगीचे के किनारे लगा हुआ है।
अपने मालिक से बात कराओ
दिसंबर से राजनेताओं में काम करने की होड़ है। उत्साह भी है। नए नवेले नेताजी अपनी जगह भी सुरक्षित रखना चाहते हैं और संगठन के सामने अपना काम भी साबित करना चाहते हैं। इसी उत्साह में एक नेताजी ने पहले एक बड़े उद्योग समूह के स्थानीय प्रतिनिधि को बुलाया, फिर कह दिया कि अपने मालिक से बात कराओ। स्थानीय प्रतिनिधि की इतनी हैसियत नहीं थी कि वह सीधे मालिक को फोन करता। उसने ऊपर संदेश पहुंचाया। यह संदेश फॉरवर्ड होकर दिल्ली तक पहुंच गया। बस फिर क्या था। नेताजी को बता दिया गया कि इतने ऊपर नहीं जाना है। जो बात छनकर आई है, उसमें नेताजी के ओएसडी को चाबी भरने वाला बताया जा रहा है।
ईडी का क्या होगा रुख
महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव) के एक प्रत्याशी के ऐलान के बाद ईडी की नोटिस का मामला तूल पकड़ा हुआ है। छत्तीसगढ़ में ईडी की राडार में कांग्रेस के दो प्रत्याशी हैं। बिलासपुर के कांग्रेस प्रत्याशी तो सीधे तौर पर आरोपी हैं। लोगों के बीच इस बात की चर्चा है कि क्या चुनाव के पूर्व ईडी कुछ कार्रवाई कर सकती है।
पत्रकारों की बारी
सरकारी संस्थानों में पद पाने के लिए दिग्गजों में होड़ मची है। इसमें मीडियाकर्मी भी पीछे नहीं है। करीब दर्जनभर से अधिक पत्रकारों ने सूचना आयुक्त के लिए आवेदन किए हैं। भूपेश सरकार ने मीडिया के दो लोगों को सूचना आयुक्त बनाया भी था। मगर साय सरकार ने फिलहाल दो अफसरों को सूचना आयुक्त बनाया है। बाकी खाली दो पद के लिए नियुक्ति आचार संहिता निपटने के बाद हो सकती है। ऐसे में दावेदार पत्रकार उम्मीद से हैं।
इसी तरह कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद सदस्य के लिए भी आधा दर्जन से अधिक पत्रकारों के आवेदन आए हैं। इनमें से तीन पत्रकार एक ही संस्थान से जुड़े रहे हैं। हालांकि कार्यपरिषद सदस्य को कोई सुविधाएं नहीं मिलती। हर तीन महीने में होने वाली कार्यपरिषद की बैठक के लिए 15 सौ रुपए भत्ता मिलता है। मगर कार्यपरिषद के सदस्य का पद प्रतिष्ठा पूर्ण माना जाता है। और व्यक्तिगत प्रोफाइल में जुड़ जाता है। यही वजह है कि कार्यपरिषद में जगह पाने के लिए दिग्गज मेहनत कर रहे हैं।
संगठन प्रभारी से राज्यपाल?
प्रदेश भाजपा संगठन की कमान अब पूरी तरह नितिन नबीन को सौंप दी गई है। पार्टी ने उन्हें चुनाव प्रभारी नियुक्त किया है। जबकि विधानसभा चुनाव में ओम माथुर को प्रभारी बनाया गया था। नितिन नबीन सह प्रभारी थे। हाल ही में बिहार सरकार में मंत्री पद का दायित्व मिलने के बाद भी नितिन नबीन को संगठन की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया गया, बल्कि उन्हें और मजबूत किया गया है। ओम माथुर एक तरह से छत्तीसगढ़ के दायित्व से मुक्त हो गए हैं। चर्चा है कि लोकसभा चुनाव के बाद उन्हें राज्यपाल बनाया जा
सकता है।
बीमारी से उबर जाना बेहतर
आयोग मतदान की जागरूकता के लिए कई उपाय करते रहा है लेकिन इस तकलीफ का कोई उपाय अब तक नहीं कर सका। इसलिए चुनाव ड्यूटी से बचने के लिए अधिकारी कर्मचारी, खासकर कर्मचारी क्या क्या यत्न नहीं करते। कई अलग अलग कारण बताकर ड्यूटी निरस्तीकरण का आवेदन देते हैं। वे इसलिए बचना चाहते हैं कि मतदान सामग्री वितरण और मतदान उपरांत जमा करने में लगने वाले समय और कष्ट असहनीय होता है। जो मतदान से ज्यादा कठिन होता है । इस बार भी अब तक 279 ने ड्यूटी निरस्त करने कलेक्टर को आवेदन दिया है। इनमें से 110 ने स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या और अन्य विभिन्न कारणों से छुट्टी मांगी है। स्वास्थ्य संबंधी कारणों के लिए कलेक्टोरेट में ही जिला मेडिकल बोर्ड बिठा दिया गया है। जहां तुरंत फैसला होगा। इसलिए ध्यान रखिए, समस्या फेक निकली तो कहीं आवेदन ही आत्मघाती न हो जाए। पांच वर्ष पूर्व दो व्याख्याता, एक प्रधान पाठक ने कई गंभीर कारण लिखकर चुनाव ड्यूटी करने में असमर्थता जताई थी। तत्कालीन कलेक्टर ने इतनी गंभीर बीमारियों से ग्रसित इन चारों को शासकीय सेवा यानी नौकरी करने में असमर्थ पाते हुए डीईओ को जीएडी के नियमानुसार अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे, अवगत कराने की सिफारिश कर दी। इस आदेश के पालन को लेकर हमने पड़ताल की लेकिन इन पांच छह वर्ष में कई डीईओ बदले गए, सो पता नही चला। लेकिन नि:संदेह इस पत्र के बाद तो सभी चंगे हो गए होंगे।
इसलिए चुनाव ड्यूटी कटवाने के लिए ऐसा कोई भी कारण लिखित में न दें जो आपकी सेवा के लिए आत्मघाती हो जाए ...यह आदेश पुराना है पर हर समय प्रभावी है।
भरोसा कायम नहीं रह पाया
अपनी दूसरी पारी के लिए भाजपा के एक नेताजी बड़े ही आश्वस्त थे। इसलिए पूरी बिंदासी से काम करते रहे। राजनीतिक पंडित पूछते तो यही कहते अपनी टिकट को कोई दिक्कत नहीं है। इसलिए टिकट घोषणा के दिन तक सरकारी बैठकें कर आगामी प्लानिंग करते रहे। बैठक खत्म होने के बाद उम्मीदें,दावे सब कुछ काफुर हो गए। वे यह भूल गए कि यह भाजपा है। 11 के 11 बदल देती है। फिर क्या इनकी भी कट गई। अब पूछने पर कहते हैं कि मेरे से विकल्प पूछा गया था। सो मेरे कारण ही मिली है। वैसे नेताजी ने, एक महामहिम की तरह, पांच वर्ष न काहू से दोस्ती ..न बैर की नीति पर कार्य किया । नहीं किया तो किसी का भी काम। हां एक ही काम किया वह कारोबारियों के लिए। इसके अलावा वे पांच साल तक संसदीय कार्य में व्यस्त रहे। संसद की समितियों की हर बैठक, दौरे में गए। पांच-पांच समिति में सदस्य जो रहे।
साहबों की छोड़ी गंदगी
गांव-शहर, प्रदेश की आबोहवा को शुद्ध रखने बाग बगीचे को साफ सुथरा रखने के लिए एक बड़ा अमला है। जिसमें सौ से अधिक अभा स्तर और राज्य कैडर के हजारों अधिकारी कर्मचारियों का लाव-लश्कर है। ये हर खासो आम को बगीचे,जंगल सरकारी रिजॉर्ट मोटल को साफ सुथरा रखने की ट्रेनिंग भी देते है। लोग गंदगी न फैलाएं इसलिए सरकारी स्मृति वन किसी निजी और सार्वजनिक कार्यक्रम के लिए नहीं दिए जाते। यहां तक कि लाफ्टर क्लब, मॉर्निंग वॉकर और भजन या स्मृति पूर्ण आयोजन के लिए भी इसके गेट नहीं खोले जाते। मगर कल होली मिलन के नाम पर साहबों ने जो गंदगी फैलाई वह देखते ही बनती है। सफाई प्रेमी अफसरों की इस पार्टी का वीडियो जमकर वायरल है। बिसलेरी से लेकर वाइन की बोतलें पूरे स्मृति वन में बिखरी पड़ी है। इसके अलावा स्नैक्स के टुकड़े प्लेट,टिशु पेपर आदि आदि। यह सब देखकर कुत्तों का भी जमावड़ा लगना स्वाभाविक है।
फ्लॉप हुई द नक्सल स्टोरी
लोकसभा चुनाव के पहले कई ऐसी फिल्में रिलीज हुई हैं, जिसका भाजपा के पक्ष में मतदाताओं पर प्रभाव पड़ता है। इनमें आर्टिकल 370, मैं अटल हूं, जेएनयू-जहांगीर नेशनल यूनिवर्सिटी, गोधरा-एक्सीडेंट या कंस्परेन्सी, साबरमती रिपोर्ट, जैसी फिल्में शामिल हैं। इमरजेंसी नाम की एक फिल्म जल्द रिलीज होने वाली है। छत्तीसगढ़ से संबंधित एक फिल्म बस्तर- द नक्सल स्टोरी भी देश भर में हाल ही में रिलीज हुई। फिल्म का जोर-शोर से प्रचार किया गया था। आकर्षण यह था कि इस फिल्म की हीरोइन अदा शर्मा की द केरला स्टोरी जबरदस्त हिट हुई थी। उस फिल्म ने करीब 200 करोड़ रुपए का बिजनेस किया था। मगर 15 मार्च को रिलीज हुई बस्तर-द नक्सली स्टोरी मल्टीप्लेक्स से बहुत जल्दी उतर गई। कोरबा, चांपा आदि शहरों में अभी यह चल रही है।
अनेक रिपोर्ट्स बता रहे हैं कि यह फिल्म लागत भी नहीं निकाल पा रही है। वीकेंड्स में भी यह दर्शक जुटाने में सफल नहीं रही। नक्सल हिंसा देश का बड़ा संकट है ही, छत्तीसगढ़ के लोगों का तो इस मानवीय त्रासदी से गहरा सरोकार है। फिल्म के गुण दोष पर जाना ठीक नहीं है। हालांकि द केरला स्टोरी के कथानक को लेकर बहुत विवाद हुआ था। बस्तर स्टोरी में भी एक जगह पर संवाद है कि जब 75 जवान मारे गए थे, तब जेएनयू दिल्ली में जश्न मनाया गया था। इस बात में कितना दम है, नहीं कहा जा सकता। मगर शायद यह फिल्म इसलिए फ्लॉप हुई है, क्योंकि एक ही तरह की स्टोरी के कई फिल्म लगातार देखकर दर्शक ऊब गए होंगे।
कांग्रेस का जातीय जागरण
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ऊंची जाति के 15 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिन में से 13 हार गए। राघवेंद्र सिंह और अटल श्रीवास्तव ही चुनाव जीतने में कामयाब रहे। दोनों के सामने भाजपा ने भी सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को उतारा था। दिग्गज टीएस सिंहदेव, रविंद्र चौबे, जय सिंह अग्रवाल, अमितेश शुक्ल और अरुण वोरा आदि अपनी सीट नहीं निकाल पाए। हालांकि हारने वालों में ओबीसी ताम्रध्वज साहू और अनुसूचित जाति के डॉक्टर शिवकुमार डहरिया भी शामिल थे, जो लोकसभा भी लड़ रहे हैं।
इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस बात का ध्यान रखा है कि उसके ओबीसी प्रेम में भाजपा के मुकाबले कोई कमी नजर नहीं आनी चाहिए। बिलासपुर लोकसभा सीट से जाति समीकरण की परवाह किए बगैर पिछली बार अटल श्रीवास्तव को टिकट दे दी गई थी। इसके पहले भाजपा के ओबीसी उम्मीदवार के सामने करुणा शुक्ला को उतारा गया था। दोनों बार कांग्रेस को करारी हार मिली। इस बार भाजपा ने लगातार तीसरी बार साहू उम्मीदवार दिया। लखन लाल साहू और अरुण साव के बाद तोखन साहू को। कांग्रेस ने शायद यह तय कर लिया था कि इस बार सामान्य वर्ग से प्रत्याशी खड़ा करना पराजय के सिलसिले को जारी रखना होगा। इसलिए उसने भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव को बिलासपुर से उतार दिया है। बस, लोग यह कह रहे हैं कि क्या बिलासपुर लोकसभा सीट से कोई स्थानीय ओबीसी कांग्रेस को नहीं मिला?
देवेंद्र का विरोध भी शुरू
कांग्रेस ने एक बार फिर रायपुर के बाद बिलासपुर सीट से अनपेक्षित नाम देकर सबको चौंका दिया है। पार्टी ने कोल स्कैम केस में आरोपी भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव को बिलासपुर से उम्मीदवार बना दिया है। देवेन्द्र की अग्रिम जमानत अर्जी हाईकोर्ट खारिज कर चुकी है। बावजूद इसके उन्हें टिकट देने से परहेज नहीं किया गया।
सुनते हैं कि पार्टी के भीतर यादव समाज से एक प्रत्याशी उतारने के लिए तकरीबन सहमति रही है। इसके लिए बिलासपुर सीट का चयन किया गया क्योंकि वहां यादव समाज के वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। पार्टी नेताओं ने सबसे पहले विष्णु यादव का नाम सुझाया था। वो पार्षद रह चुके हैं।
विष्णु यादव का नाम नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने सुझाया था, और बाद में बिहार रहवासी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव व छत्तीसगढ़ के सहप्रभारी चंदन यादव नया नाम लेकर आ गए। उन्होंने देवेन्द्र यादव का नाम आगे कर दिया। देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाने के पीछे तर्क दिया गया कि एनएसयूआई और युवक कांग्रेस के अहम पद पर रहते हुए प्रदेश भर में उनकी टीम है। फिर क्या था पूर्व सीएम भूपेश बघेल और अन्य नेताओं ने भी देवेंद्र के नाम पर रजामंदी दे दी।
हालांकि देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाने से कितना फायदा होगा, यह तो अभी साफ नहीं है। मगर यादव समाज के भीतर ही दबे स्वर में उनका विरोध हो रहा है। वजह यह है कि देवेन्द्र बिहार मूल के हैं। यही नहीं, बिलासपुर में वो कभी सक्रिय नहीं रहे, और न ही किसी सामाजिक कार्यक्रम में गए। यादव समाज से जुड़े लोग मानते हैं कि पूर्व विधानसभा प्रत्याशी भुनेश्वर यादव, या विष्णु यादव सहित कई ऐसे मजबूत नाम हैं, जो कि भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर सकते थे। देवेंद्र यादव किस तरह प्रचार करते हैं, और उन्हें अपनी बिरादरी का कितना समर्थन मिलता है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
क्वांटिफाइबल डाटा काम कर गया
पिछली सरकार की ओर से कराये गए सर्वे में ओबीसी यादव समाज का दूसरे नंबर पर स्थान था। यह रिपोर्ट तब सरकार ने सार्वजनिक नहीं की। तब के राज्यपाल ने मांगा तब भी नहीं दी। मगर खोजी पत्रकारों ने उसकी डिटेल निकाल ली। इसमें पता चला कि साहू समाज की संख्या सर्वाधिक है और यादव समाज की उसके बाद दूसरे नंबर पर। इस छिपाई गई रिपोर्ट में आए आंकड़े को कांग्रेस सरकार ने बड़ी गंभीरता से लिया है। शायद इसीलिए बिलासपुर से उसने भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव को टिकट दे दी है। देवेंद्र यादव का बिलासपुर से कभी दूर-दूर तक नाता नहीं रहा। बस सभा समारोहों में पहुंचते रहे। देवेंद्र यादव को टिकट देकर कांग्रेस ने यह संदेश भी दिया है कि सीबीआई, ईडी की छापेमारी से उनके कार्यकर्ता घबराने वाले नहीं हैं। भाजपा प्रत्याशी तोखन साहू उसी लोरमी इलाके से हैं, जहां से उपमुख्यमंत्री अरुण साव आते हैं। बिलासपुर में भाजपा को 28 हजार मतों की बढ़त थी। पर यहां से जीते हुए बहुत वरिष्ठ अमर अग्रवाल को मंत्री नहीं बनाया गया है। वे रमन सिंह के कार्यकाल में वर्षों तक स्वास्थ्य, वित्त और राजस्व जैसे महत्व के विभाग देख चुके हैं। उनके समर्थक तोखन साहू को लेकर बहुत अधिक उत्साहित नहीं हैं। भाजपा ने दूसरे नंबर की जाति होने के बावजूद 11 में से किसी भी सीट से यादव को टिकट नहीं दी है। ऐसा कांग्रेस ने कर दिया है। देवेंद्र यादव बिलासपुर निकालें या न निकालें मगर उनकी उम्मीदवारी प्रदेश की बाकी सीटों पर असर करने वाली है।
रिटायरमेंट की एज में कन्फर्मेशन
इसीलिए तो कहा गया है कि सरकारी काम है। प्रशासनिक ढिलाई (एडमिनिस्ट्रेटिव लैकिंग) का इससे बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता। खबर है कि छत्तीसगढ़ कैडर के 11 आईएफएस रिटायरमेंट की एज में जाकर सर्विस में कंफर्म हुए हैं। इसमें उनकी स्वयं की नजरअंदाजी भी रही है। वर्ष 92-94 बैच के 11आईएफएस अफसर अब जाकर कन्फर्म हुए हैं। इनमें 92 बैच से वी.आनंद बाबू,(कौशलेंद्र कुमार ,वी शेट्टीपनवार दोनों रिटायर) ,93 से आलोक कटियार,94 से अरुण पांडे, सुनील कुमार मिश्रा,प्रेम कुमार,अनूप विश्वास,95 ओपी यादव, 97 संचित गुप्ता और 98 के अमरनाथ शामिल हैं। सभी लोग भी भूल गए, यह सोचकर कि बन गए हैं साहब। रिटायरमेंट के नजदीक आते ही एहसास हुआ तो सक्रिय हुए। अरण्य भवन से दिल्ली एककर कन्फर्मेशन करा लिया। अब कम से कम पीसीसीएफ का नया स्केल और पेंशन बेनिफिट तो मिल जाएगी। भले ही प्रमोशन न मिले।
होली के दूसरे दिन की चर्चा
होली के दूसरे दिन सभी लोग दफ्तरों में खाली ठलहा बैठे थे। फिर क्या वही होना था, ट्रांसफर पोस्टिंग पर चर्चा कहा गया कि 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी, तब दो आईपीएस अफसरों के खिलाफ एफआईआर हुए थे और दो को बिना कोई जिम्मेदारी दिए पुलिस मुख्यालय में बैठा दिया गया था। इनमें एक का वनवास तो कुछ महीने का था, लेकिन दूसरे को साल भर से ज्यादा समय लगा। भाजपा शासन में पिछले दिनों आईपीएस की जो लिस्ट जारी की गई है, उसमें बड़ी संख्या में आईपीएस की जिम्मेदारी तय नहीं है। उन्हें पुलिस मुख्यालय अटैच किया गया है। अब ये डीजीपी की जिम्मेदारी है कि वे किससे क्या काम लें। लेकिन कुछ अफसरों को बिना कोई जिम्मेदारी दिए खाली बैठा दिया गया। और जब मिल बैठेंगे यार तो क्या होगा जल्द
स्पष्ट होगा।
गोंगपा के 10 उम्मीदवार
कांकेर छोडक़र छत्तीसगढ़ की अन्य सभी 10 सीटों पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार दिए हैं। इनमें कुछ प्रत्याशी आदिवासी समाज से भी नहीं हैं। जैसे रायपुर के लाल बहादुर यादव और महासमुंद के फरीद कुरैशी। प्राय: यह देखा गया है कि एक व्यक्ति की ओर से खड़ी की गई पार्टी संस्थापक के जाने के बाद दम तोडऩे लगती है। इसमें छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के ताराचंद साहू और अब जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के अजीत जोगी को याद किया जा सकता है। मगर, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को उनके बेटे तुलेश्वर सिंह मरकाम जिंदा रखने में कामयाब रहे हैं। वे पाली-तानाखार सीट से कांग्रेस प्रत्याशी को 500 मतों के मामूली अंतर से ही सही, पराजित करने में सफल रहे। हीरासिंह मरकाम के रहते रहते यह पार्टी टूट भी गई। उनके कई सबसे विश्वसनीय साथियों ने अलग होकर राष्ट्रीय गोंडवाना पार्टी बना ली। उर्मिला मार्को उनका सारा काम देखती थीं। जिनको वे अपनी बेटी मानते थे, उसने अलग रास्ता चुन लिया। टूटे हुए लोग आदिवासी वोटों का बंटवारा करने में सफल रहे और पाली-तानाखार सीट से गोंगपा दोबारा कभी जीत नहीं पाई। मगर इस बार वहीं से विधानसभा में इस दल की मौजूदगी है। यहां से कई बार के विधायक रहे भाजपा, कांग्रेस फिर भाजपा में जाने वाले रामदयाल उइके को तीसरे स्थान पर धकेल दिया। गोंगपा की यह सफलता कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों से बड़ी है। कहा जाता है कि ये कभी कार्पोरेट से वसूली नहीं करते। इनके खाते में इलेक्टोरल बांड भी नहीं आता। चुनाव लडऩे के लिए ये अपने समाज के लोगों से ही चंदा लेते हैं। कार्यकर्ताओं को रोजाना प्रचार के लिए हजार-पांच सौ का भुगतान भी नहीं करते। जहां रुकें, वहीं गांव के लोग चावल-सब्जी बनाकर खिलाते हैं। इनकी सारी लड़ाई जल-जंगल-जमीन और आदिवासी संस्कृति को बचाने के लिए है, जिसकी आज बहुत ज्यादा जरूरत है। आज कांग्रेस-भाजपा के अलावा कोई तीसरा दल विधानसभा में है तो वह एकमात्र गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ही है।
राजसी होली...
देश में लोकतंत्र है, मगर राजसी विरासत की कई इलाकों में अब भी मान्यता है। इनमें से एक है बस्तर। राजपरिवार के कमल चंद्र भंजदेव होली पर इस तरह नगरभ्रमण के लिए निकले। यह एक परंपरा है, जिसे उन्होंने बरकरार रखा है। ([email protected])
सुरेंद्र दाऊ की नाराजगी का राज
राजनांदगांव में कांग्रेस के कार्यकर्ता सम्मेलन में पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुरेन्द्र दाऊ ने अपनी भड़ास निकाली, तो पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी सकते में आ गए। चर्चा है कि सुरेन्द्र दाऊ की नाराजगी स्थानीय नेता नवाज खान, और गिरीश देवांगन से रही है।
सुनते हैं कि दाऊ पीएचई के कॉन्ट्रेक्टर रहे हैं। कांग्रेस सरकार में उन्होंने काफी काम भी किया था। मगर उनका बिल अटक गया। चर्चा है कि बिल अटकाने में पूर्व सीएम के करीबी लोगों का हाथ रहा है। यही नहीं, सुरेन्द्र दाऊ सीएम से मिलने की कोशिश की, तो गिरीश देवांगन ने उन्हें मिलवाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। इससे उनका गुस्सा फट पड़ा।
बताते हैं कि सरकार बदलने के बाद ही उनका बिल पास हुआ है। इसमें कितनी सच्चाई है यह तो पता नहीं, लेकिन भूपेश बघेल उनसे काफी खफा हैं। उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। चर्चा है कि सुरेन्द्र दाऊ को जल्द ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।
नाराजगी, दोनों तरफ से
चर्चा है कि भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष रवि भगत नाराज चल रहे हैं। भगत पहले विधानसभा की टिकट चाह रहे थे, और टिकट नहीं मिलने के बाद उन्हें रायगढ़ से लोकसभा टिकट की आस थी। लेकिन पार्टी ने उनकी दावेदारी को नजर अंदाज कर दिया। इसके बाद से भगत पार्टी की कई महत्वपूर्ण बैठकों में नहीं गए।
कहा जा रहा है कि प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन पिछले चार दिन तक प्रदेश दौरे पर थे। एक अहम बैठक में रवि भगत को भी आना था, लेकिन वो नहीं पहुंच पाए। चर्चा है कि नितिन नबीन ने इस पर नाराजगी जताई है, और उन्हें सख्त हिदायत देने के लिए कह दिया है। नबीन की नाराजगी का क्या कुछ असर होता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
विधायक खिलाफ हो गए
कांग्रेस की चार टिकट की घोषणा अभी बाकी है। इनमें से कांकेर से पूर्व प्रत्याशी विरेश ठाकुर की टिकट पहले पक्की मानी जा रही थी, लेकिन पार्टी के विधायक किसी नए को टिकट देने पर जोर दे रहे हैं। विरेश पिछला लोकसभा चुनाव करीब साढ़े 6 हजार वोट से हारे थे। कम वोटों से हार की वजह से प्रदेश के प्रमुख नेताओं ने उनके नाम पर सहमति दे दी थी। मगर अब पेंच फंस गया है।
कांकेर लोकसभा में चार विधायक हैं। चर्चा है कि चार में से तीन विधायकों ने विरेश की जगह किसी नए को टिकट देने की मांग की है। इस कड़ी में पूर्व मंत्री अनिला भेडिय़ा का नाम भी शामिल हो गया है। अनिला ने पार्टी हाईकमान को बता दिया है कि पार्टी टिकट दे तो वो चुनाव लडऩे के लिए तैयार है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम भी दौड़ में शामिल हो गए हैं। ऐसे में विरेश की टिकट पचड़े में पड़ गई है।
दूसरी तरफ, सरगुजा से शशि सिंह का नाम तकरीबन तय माना जा रहा था। मगर अब अमरजीत भगत ने भी ताल ठोक दी है। पार्टी के रणनीतिकार भी मानते हैं कि अमरजीत भगत चुनाव लड़ते हैं, तो संसाधनों की कमी नहीं रहेगी। यही वजह है कि सरगुजा से अमरजीत के नाम पर पुनर्विचार हो रहा है।
होली पर जल संकट की खबरें..
होली रंगों का त्योहार। बाल्टियों और ड्रमों में रंग घोल कर सराबोर हो जाने का का मौका। मगर रुकिए..। बेंगलुरु वह शहर है जहां देशभर के प्रतिभावान युवा आईटी सेक्टर में काम करते हैं। छत्तीसगढ़ से भी हजारों युवा वहां मौजूद हैं। अपना परिवार भी बसा चुके हैं। वहां पर होली की मस्ती फीकी पड़ गई है। होली पर होने वाले रेन डांस और पूल पार्टी पर रोक लगा दी गई है। गाडिय़ां धोने पर जुर्माना लगेगा। शहर भीषण जल संकट से जूझ रहा है। 10 बरस पहले जिन इलाकों में 200 फीट नीचे पानी मिल जाता था आज 1800 की खुदाई के बाद भी नहीं मिल रहा है। दक्षिण भारत के कई शहरों में पीने के लिए बोतल बंद पानी का इस्तेमाल हो रहा है। राजस्थान के कई शहरों का भी यही हाल है। वहां पर राजधानी जयपुर सहित कई बड़े शहरों में 200-300 किलोमीटर दूर की किसी नदी से पेयजल पहुंचाया जाता है।
अपने छत्तीसगढ़ की ही बात कर लें। बिलासपुर के बीचों-बीच अरपा नदी बहती है। जिस शहर की नदी ही उसकी सबसे बड़ी पहचान हो, वहां तो कोई जल संकट तो होना ही नहीं चाहिए। मगर, विडंबना है कि अरपा सूखी हुई है। इस वजह से अमृत मिशन योजना के तहत 40 किलोमीटर दूर खूंटाघाट बांध से पानी लाया जाएगा। इस बांध को खेतों में पानी पहुंचाने के लिए बनाया गया था। जल संसाधन विभाग और किसान लगातार बांध के पानी का बिलासपुर को पेयजल देने के लिए इस्तेमाल करने के फैसले के खिलाफ रहे। मगर सरकार के आदेशों के बाद लंबी पाइप लाइन बिछाकर यह व्यवस्था की जा रही है। आज ही की खबर है कि गंगरेल सहित प्रदेश के अधिकांश बांधों में जल भंडारण बेहद कम है। अभी मई, जून बाकी है और निस्तारी के लिए गांवों में अभी से पानी की मांग हो रही है। पानी हमारी बुनियादी जरूरत है। केवल होली मनाने में हो सकता है पानी बहुत कम खर्च होता हो लेकिन यह जल संकट के प्रति गंभीर होने का मौका है।
ताकि धर्मांतरण मुद्दा न बने..?
बस्तर संभाग की दो लोकसभा सीटों में काफी कशमकश के बाद कांग्रेस ने कोंटा के विधायक और पूर्व मंत्री कवासी लखमा को बस्तर से उम्मीदवार घोषित कर दिया है। कांकेर पर फैसला अभी भी रुका हुआ है।
दीपक बैज ने सन 2019 में करीब 4 दशकों से चल रही भाजपा की जीत का सिलसिला तोड़ा था। इस हिसाब से उनका दावा मजबूत था। यह जरूर है कि विधानसभा चुनाव में लडक़र उन्होंने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। वरना लखमा की दावेदारी को मजबूती नहीं मिलती। बैज की टिकट कटने के कारण को लेकर कुछ और अनुमान भी लगाए जा रहे हैं।
भाजपा ने काफी पहले बस्तर की दोनों ही सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए। दोनों प्रत्याशी भोजराज नाग और महेश कश्यप हिंदुत्व की छवि वाले हैं और भाजपा के सहयोगी हिंदुत्व संगठनों से जुड़े रहे हैं।
विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने बस्तर में आदिवासियों के धर्मांतरण को एक बड़े मुद्दे के रूप में पेश किया था। नतीजे बताते हैं कि इसका उसे फायदा भी मिला। चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर कई भाजपा कार्यकर्ताओं के हैंडल पर दीपक बैज की ऐसी तस्वीर पोस्ट की गई जिसमें वे पादरी की वेशभूषा में दिख रहे थे। बैज की ओर से इसे तूल नहीं दिया गया। उन्होंने या कांग्रेस पार्टी ने कोई सफाई भी नहीं दी। कांग्रेस ने शायद यह सोचा हो कि भाजपा को फिर से धर्मांतरण को मुद्दा बनाने का मौका नहीं मिलना चाहिए।
महुआ बटोरने का मौसम..
महुआ वनों में बसे ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हर साल करीब 200 करोड़ का महुआ फल संग्रहित किया जाता है। फ्रांस, यूके सहित कई देशों में भी यहां से महुआ का निर्यात होता है। जिस तरह जमीन जायदाद का परिवार में बंटवारा होता है ,वन क्षेत्र में ग्रामीण महुआ के पेड़ों को भी बांटते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों में इसके फूलों का उपयोग होता है। कोई भी त्योहार या शुभ काम हो, महुआ के बिना अधूरा है। महुआ फूलों को चुनना सबसे कठिन काम है। रात में पेड़ों से महुआ फल या फूल झड़ते हैं और भोर से पहले पहुंचकर ग्रामीण इसे घंटों इक_ा करते हैं। मगर पिछले साल से एक तकनीक का इस्तेमाल भी कई जगहों पर होने लगा है। पेड़ के नीचे नेट बिछा दी जाती है। सुबह सारा महुआ एक साथ बटोर लिया जाता है। कुछ सरकारी योजनाओं के तहत नेट खरीदने के लिए अनुदान भी मिलता है। इसके बावजूद बहुत से परिवार पारंपरिक तरीके से ही महुआ बटोरना पसंद करते हैं।
गांधी के बाद की डायरियाँ
डायरी लेखन भी एक कला है,साहित्य लेखन की तरह। बेहतरीन डायरी लेखन के कई ख्याति प्राप्त उदाहरण है। कुछ डायरी तो जेल में भी लिखी गई। उसे देख, सुनकर कालांतर में कारोबारी, राजनेता भी डायरी मेंटेन करने लगे। लेकिन यह भी सच है कि नकल मारने भी अकल की जरूरत होती है। अकल न लगाया जाए तो डायरी के यही पन्ने जेल जाने का मार्ग प्रशस्त करते है। छत्तीसगढ़ के दो दर्जन से अधिक नेता, अफसर कारोबारी जेल जा चुके हैं और कई रास्ते में हैं। हम आज ऐसी दो डायरियों या उल्लेख कर रहे।
पहली कोल लेवी वसूली और मनी लॉन्ड्रिंग और दूसरी सरगुजा के पुनर्वास पट्टे की। दोनों ही डायरियों में करोड़ों के लेनदेन का हिसाब लिखा गया है। लेखकों ने इतना बिंदास और सुस्पष्ट हिज्जों के साथ लिखा गया कि अनपढ़ भी पढ़ लें। फिर आयकर, ईडी अफसरों की क्या बिसात। कोल लेवी डायरी में तो तालिका बनाकर हिसाब लिखा गया। पन्ने के बाईं ओर देनदार का तो दाईं ओर देनदार का। यानी किससे लिया, किसको दिया साफ साफ।
सूची में अफसर, नेता, विधायक, कार्यकर्ता, पत्रकार और समाज के अन्य वर्ग के प्रमुख लेनदारों के नाम। दूसरी डायरी सरगुजा पुनर्वास पट्टा घोटाले की। किस बंगाली शरणार्थी की जमीन, किसके नाम से लिया, हल्का-खसरा, नामांकरण, बटांकन सब साफ-साफ। यही नहीं, एक सरकारी विभाग में भर्तियों में जो लेनदेन हुआ है उसका भी डायरी में हिसाब-किताब है। ये अलग बात है कि जांच के भय से पोस्टिंग ऑर्डर जारी नहीं हो पाए हैं। यानी डायरी से सीबीआई को काफी कुछ मसाला मिल सकता है, जो कि पीएससी घोटाले की जांच कर रही है। डायरियां अब राज उगल कर मुसीबत बन गई हैं।
बाकी सब नूरा कुश्ती
गीता पर हाथ रख कर लोग सच नहीं बोल पाते ऐसे लोगों से शराब सब सच बुलवा देती है। चाहे वह एक ही दल के नेता हे या परस्पर धुर दलीय विरोधी। वैसे राजनीति के कारोबार में कोई दुश्मन नहीं होता। इनके बीच मतभेद होते हैं मन भेद नहीं। सरकार किसी की भी रहे,ताली दोनों ही बजाते हैं। परसों रात राजधानी में जो देखा सुना उसका भी सार यही है। बी नाम से शुरू होने वाले जिले के एक निर्वाचित नेता जी सच बोल रहे थे। तरे गले की हालत में भगत सिंह चौक पर ये बताते हुए गर्व महसूस कर रहे थे कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय में भी उनकी हाउस में पूरी दखल थी। और आज तो अपनी ही सरकार है। इसी पिछले दरवाजे से अंदर जाते और छोडक़र बाहर आ जाते। इसलिए एक बात पुख्ता हो गई कि ये कारोबारी नेता एक ही राजनैतिक कारोबार के लोग है बाकी सब नूरा कुश्ती है।
महतारी और नारी के बीच टक्कर
इसके पहले हुए लोकसभा चुनाव के दौरान 25 मार्च 2019 को कांग्रेस के अध्यक्ष रहते हुए राहुल गांधी ने घोषणा की थी कि देश के 20 फीसदी गरीब परिवारों के खाते में 72 हजार रुपये हर वर्ष डाले जाएंगे। उन्होंने कहा था कि जब मोदी अमीरों के जेब में रुपये डाल सकते हैं तो कांग्रेस पार्टी भी गरीबों के खाते में डाल सकते हैं। यह आश्वासन छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के बाद का था, जिसमें किसानों की कर्ज माफी का वादा पूरा किया गया था।
कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान में यह घोषणा शामिल किया गया था। मगर, परिणाम आया तो इतिहास मे सबसे कम सीटें कांग्रेस को मिली। इसके बाद यह जरूर हुआ कि किसानों और गरीबों के खाते में भाजपा ने सीधे रकम डालने की योजना बनाई, जिसका किसान जन-धन योजना से लेकर महतारी वंदन योजना तक विस्तार हुआ। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस तरह की योजनाओं से परहेज रहा। उन्होंने अपने भाषणों में कई बार- मुफ्त की रेवड़ी का जिक्र किया।
इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीपीएल परिवार की महिलाओं को एक-एक लाख रुपये सालाना देने का ऐलान किया है। इसे नारी न्याय योजना नाम दिया गया है। प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महासचिव सचिन पायलट ने अपने छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वे घर-घर जाकर महिलाओं से इस योजना का फॉर्म भरवाएं। यह कार्यक्रम ठीक वैसा ही है, जैसा भाजपा ने विधानसभा चुनाव के दौरान चलाया था। भाजपा ने अपनी गारंटी की विश्वसनीयता स्थापित करने के लिए घर-घर जाकर महतारी वंदन योजना के फॉर्म भरवाये। भाजपा ने महतारी वंदन का फॉर्म भरने का ऐलान नहीं किया था, पार्टी के निर्देश पर कार्यकर्ता खामोशी से काम कर रहे थे। उन्हें मालूम था कि यह प्रलोभन की श्रेणी में आता है। चुनाव आयोग में आपत्ति दर्ज कराई जा सकती है। ऐसा हुआ भी। कांग्रेस की शिकायतों के बाद कई जिलों में कार्रवाई हुई। फॉर्म भरने वाले कुछ भाजपा कार्यकर्ता गिरफ्तार भी किए गए।
कांग्रेस ने महतारी वंदन फॉर्म भरने की भाजपा की योजना को चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना था। मगर अब वह खुले तौर पर नारी न्याय योजना का फॉर्म भरे जाने का ऐलान कर रही है। क्या भाजपा उसे ऐसा करने देगी?
कुदरत की चित्रकारी
छत्तीसगढ़ में बहुतायत मिलने वाले पलाश फागुन के दिनों में खिल उठते हैं। मैकल पर्वत श्रेणियों के नीचे और अचानकमार अभयारण्य से लगे खोंगसरा की सडक़ से गुजरते हुए इसकी बादशाही देखी जा सकती है।
लोकसभा की कब कितनी थी सीटें..?
अतीत पर नजर डालें तो कुछ दिलचस्प आंकड़े हमारे सामने आ जाते हैं। सन् 1951 में छत्तीसगढ़ में कुल सात लोकसभा सीटें थीं। सरगुजा और रायगढ़ मिलाकर एक लोकसभा सीट होती थी। बिलासपुर अलग सीट थी, बिलासपुर के कुछ हिस्सों को दुर्ग और रायपुर से जोडक़र तीसरी लोकसभा सीट बनाई गई थी। चौथी सीट थी महासमुंद, पांचवी सीट दुर्ग, छठवीं सीट में दुर्ग का कुछ हिस्सा और बस्तर और सातवीं सीट केवल बस्तर।
इस तरह से 1951 में कुल सात लोकसभा सीटें थीं। 1957 में सीटें थीं, दुर्ग, बस्तर, रायपुर, बलौदाबाजार, सरगुजा, जांजगीर और बिलासपुर। यानि इस बार भी सीटें सात रहीं। 1962 में सरगुजा, रायगढ़, दुर्ग, बस्तर, रायपुर, जांजगीर, महासमुंद, कांकेर, बिलासपुर और राजनांदगांव लोकसभा सीटें थीं। यानि सीटों की संख्या बढक़र 10 हो गईं। 1977 में सारंगढ़ अलग सीट बना दी गई, जिसके बाद सीटों की संख्या बढक़र 11 हो गई। यह सिलसिला 2009 के पहले तक चला। सीटों की संख्या 11 ही रही लेकिन सारंगढ़ विलुप्त हो गई। सरगुजा, रायगढ़, दुर्ग, जांजगीर, बिलासपुर, कोरबा, रायपुर, राजनांदगांव, महासमुंद, बस्तर और कांकेर सीटें तब से अब तक हैं। लगे हाथ बता दें कि सन् 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में सेंट्रल प्रोविंस को मिलाकर छत्तीसगढ़ में कुल 184 सीटें थीं, जिसमें 232 विधायक चुने गए थे। विधायकों की संख्या सीटों से ज्यादा थी, क्योंकि कुछ पर दो-दो विधायकों का चुनाव हुआ था। नया परिसीमन 2026 में प्रस्तावित है, तब विधानसभा और लोकसभा सीटों में फेरबदल देखा जा सकता है।
महतारी के मुकाबले नारी
प्रदेश में कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव जीतने के लिए भाजपा के फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं। मसलन, विधानसभा चुनाव में जिस तरह भाजपा ने महतारी वंदन योजना का फार्म भरवाकर माहौल को अपने पक्ष में कर लिया था, कुछ इसी तरह का फार्मूला कांग्रेस भी अपना रही है। यानी नारी न्याय योजना का फार्म भरवाकर कांग्रेस चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है।
प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने सभी प्रत्याशियों को सलाह दी है कि अधिक से अधिक महिलाओं को नारी न्याय योजना का फार्म भरने के लिए प्रेरित किया जाए। सभी प्रत्याशियों ने फार्म छपवाना भी शुरू कर दिया है। इस योजना के माध्यम से महिलाओं को 8333 रूपए प्रतिमाह उनके खाते पर जमा होंगे। वैसे तो विधानसभा चुनाव में कर्ज माफी, और महतारी वंदन योजना से ज्यादा राशि देने का वादा किया गया था। तब भी सरकार नहीं बना पाई। अब नारी न्याय योजना से कितना फायदा मिल पाता है, यह देखना है।
भाजपा में शामिल होने के मानदंड...
इस समय प्रदेश के कई कांग्रेस नेताओं ने पार्टी छोड़ दी और भाजपा की सदस्यता ले ली। यह सिलसिला अभी थमा नहीं है। भाजपा ने चुनाव अभियान की शुरूआत में ही घोषित कर दिया था, जो आना चाहे उसका स्वागत किया जाएगा। दो दिन पहले नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत ने आरोप लगाया था कि प्रदेश भर में कांग्रेस नेताओं को डराया जा रहा है। उन पर भाजपा में शामिल होने के फोन करके दबाव बनाया जा रहा है। कोरबा के पूर्व विधायक जयसिंह अग्रवाल पर भी दबाव डाला जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज भी ऐसा ही आरोप लगा चुके हैं।
कोरबा में मंत्री लखन लाल देवांगन ने मीडिया से ‘डामर चोरी’ और अन्य आपराधिक मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि हम जयसिंह जैसे लोगों को क्यों पार्टी में लेना चाहेंगे?
पिछले दिसंबर में कोरबा सहित 70 विधानसभा सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ था। इन सीटों पर 958 उम्मीदवार थे, जिनमें से 10 प्रतिशत यानि करीब 100 के खिलाफ कोई न कोई आपराधिक प्रकरण दर्ज था। इनमें कांग्रेस के 13 और भाजपा के 12 उम्मीदवार शामिल थे। जेसीसी और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की संख्या कम थी, पर उनके प्रत्याशियों के भी आपराधिक मामले थे। कांग्रेस के भूपेश बघेल, विकास उपाध्याय, देवेंद्र यादव, जयसिंह अग्रवाल और अटल श्रीवास्तव तो भाजपा के राजेश मूणत, दयाल दास बघेल, सौरभ सिंह और ओपी चौधरी कुछ प्रमुख नाम हैं, जिन्होंने नामांकन में अपने अपने खिलाफ दर्ज मामलों का उल्लेख किया था। जयसिंह अग्रवाल के खिलाफ सन् 2023 की घोषणा के मुताबिक 12 मामले हैं। सभी में जमानत मिली हुई है, किसी में भी सुनवाई पूरी नहीं हुई है, यानि सजा भी नहीं हुई है। तीन साल पहले उनको हाईकोर्ट से एट्रोसिटी एक्ट में राहत मिली थी। अधिकांश मामले तब के हैं जब प्रदेश में भाजपा का शासन था।
दोनों दलों के एफआईआर कुछ राजनीतिक आंदोलनों के हैं तो कुछ उनके व्यवसाय से संबंधित। मगर किसी कार्यकर्ता का जनाधार है तो कोई भी पार्टी हो, उसे अपने साथ रखती है, टिकट भी देती है और मंत्री भी बनाती है। इसलिये यह मानना कि केवल आपराधिक मामलों के कारण किसी दूसरे दल के नेता को भाजपा नहीं लेना चाहती, ऐसा नही हैं। प्राय: इसके कुछ दूसरे राजनीतिक कारण होते हैं।
बेटियों को शिवराज की बधाई
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्विटर पर कल एक पोस्ट कर छत्तीसगढ़ की बेटियों से हुई मुलाकात का जिक्र किया है। वे छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में गंजबसौदा से भोपाल वपास हो रहे थे तब उनकी मुलाकात वेटलिफ्टर सोनाली यदु और एकता बंजारे से हुई। दोनों ने हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में आयोजित खेलो इंडिया वेटलिफ्टिंग लीग से भाग लेकर लौट रही हैं। उन्होंने कहा- सोनाली ने स्वर्ण पदक और एकता ने कांस्य पदक जीतकर देश-प्रदेश का नाम रोशन किया।
राजीव भवन तक !!
प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रभारी महामंत्री अरुण सिसोदिया की उस चि_ी से पार्टी में खलबली मची हुई है, जिसमें उन्होंने कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल पर प्रदेश अध्यक्ष की अनुमति के बिना विनोद वर्मा के बेटे की कंपनी को 5 करोड़ 89 लाख भुगतान करने का आरोप लगाया है। उन्होंने इसे गबन करार दिया है।
सिसोदिया के आरोप से कांग्रेस के दिग्गज चिंतित भी हैं। वजह यह है कि विनोद वर्मा पर महादेव ऑनलाईन सट्टा केस में संलिप्तता के आरोप हैं, और उन्हें सटोरियों से कथित तौर पर 5 करोड़ मिलने की बात भी ईडी की जांच में आई है। पार्टी संगठन के नेता इस बात से सशंकित हैं कि विनोद वर्मा के बहाने कहीं ईडी राजीव भवन में दाखिल न हो जाए।
वजह यह है कि रामगोपाल अग्रवाल मनी लॉन्ड्रिंग केस में फंसे हुए हैं, और वो फरार हैं। ईडी धमतरी स्थित उनके निवास पर दस्तक भी दे चुके हैं। विनोद वर्मा के बेटे की कंपनी से जुड़े करार भी सार्वजनिक हो चुके हैं। एक विज्ञापन एजेंसी पर भी ईडी का छापा पड़ चुका है, और कांग्रेस के विज्ञापन विनोद वर्मा से ही जुड़े हुए थे। ऐसे में अंदेशा जताया जा रहा है कि जांच एजेंसियां कुछ कांग्रेस नेताओं को पूछताछ के लिए बुला सकती है। क्या वाकई ऐसा होगा, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
भाजपा में भी भडक़े कार्यकर्ता
नांदगांव में मंच पर भूपेश को खरी खरी के ताप से कांग्रेस झुलसी हुई है। और भाजपा में भी पूर्व विधायक को भी सुननी पड़ी। नेताजी जनसंपर्क की कड़ी में हाल ही में मस्तूरी गए थे। वहां एक जनपद सदस्य ने सबके सामने भड़ास निकाली। सदस्य का कहना था कि चुनाव के दौरान प्रत्याशी मदद मांगने आते हैं। पार्टी के सिपाही हैं, इसलिए काम भी करते हैं। इसके बाद कोई झांकने भी नहीं आता। जनपद सदस्य का इशारा पूर्व सांसद की ओर था। दरअसल, बिलासपुर क्षेत्र के दावेदारों ने इस बार पूरी कोशिश की कि टिकट उन्हें मिले, लेकिन फिर से मुंगेली को ही महत्व दिया गया। इधर भाजपा ने चौथी बार मुंगेली क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रत्याशी तय किया है।
मदद करने वालों के सम्मान में..
सडक़ दुर्घटना में घायल लोगों को बचाने की हर किसी को कोशिश करनी चाहिए। इससे पीडि़तों की कीमती जान बचाई जा सकती है। मगर ज्यादातर लोग भीड़ का हिस्सा होते हैं, या अनदेखी कर आगे बढ़ जाते हैं। पहले मददगार सामने इसलिये नहीं आते थे क्योंकि उन्हें बयान और गवाही के लिए पुलिस चक्कर लगवाएगी। मगर, अब यह प्रावधान यह है कि कोई व्यक्ति किसी घायल को अस्पताल पहुंचाता है तो उसे कोई परेशान नहीं करेगा। पुलिस अब ऐसे लोगों को सम्मानित भी कर रही है। रायपुर पुलिस ने एक कदम आगे और बढ़ाते हुए नया प्रयोग किया है। बिलबोर्ड और होर्डिंग में इन मददगारों की फोटो लगाकर सम्मान दिया गया है ताकि दूसरे लोग प्रेरित हों।
त्यौहार के बाद प्रचार
पहले चरण में छत्तीसगढ़ की एकमात्र सीट बस्तर के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई है। पर पहले दिन किसी ने नामांकन पत्र नहीं खरीदा है। इस बीच होली आ रही है। इस बीच होली आ रही है। इसके पहले कुछ नामांकन पत्र जरूर खरीद लिए जाएं लेकिन दाखिला त्यौहार के बाद ही होने की उम्मीद है। पहले चरण में नामांकन 27 मार्च तक भरा जाना है और 30 मार्च तक नाम वापस लिए जा सकते हैं। मतदान 19 अप्रैल को होगा। इसलिये प्रचार के लिए काफी वक्त मिलेगा। बस्तर, कांकेर दोनों सीटों पर पिछली बार कांटे का मुकाबला था, जिसमें से एक कांग्रेस के पास और दूसरी भाजपा के पास आई थी। इसलिये दोनों ही दलों के स्टार प्रचारक यहीं से छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार अभियान शुरू कर सकते हैं। उम्मीद की जा रही है मतदान के कुछ पहले यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा की ओर से और राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी कांग्रेस की ओर से प्रचार के लिए आ सकते हैं।
बहरहाल लोकसभा चुनाव का असर त्योहार पर दिखाई दे ही रहा है। बाजार में मोदी, राहुल गांधी, योगी आदित्यनाथ आदि के मुखौटे और तरह-तरह की पिचकारियां दिखने लगी हैं।
पहले प्रवेश, फिर इस्तीफा
चुनाव के बीच दलबदल का खेल भी चल रहा है। कांग्रेस के सरगुजा संभाग के वार रूम प्रभारी अमर गिदवानी, बृजमोहन अग्रवाल से किसी काम से मिलने गए, तो उन्हें गमछा पहनाकर भाजपा प्रवेश करा दिया। फिर गिदवानी ने भाजपा के चुनाव दफ्तर में बैठकर कांग्रेस से अपना इस्तीफा टाइप करवाया।
गिदवानी व्यापारी नेता हैं, और कैट के चेयरमैन भी हैं। यही वजह है कि उन्हें आसानी से भाजपा में प्रवेश मिल गया। मगर कई ऐसे नेता भी हैं जो भाजपा में आना चाहते हैं, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं मिल पा रहा है। इन्हीं में से झीरम घाटी नक्सल हमले में घायल एक नेता पिछले कुछ समय से भाजपा में आने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं मिल पा रहा है।
चर्चा है कि उक्त कांग्रेस नेता को भाजपा में शामिल करने के प्रस्ताव पर पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने आपत्ति की है। खास बात यह है कि चंद्राकर को दूसरे दलों से आने के इच्छुक नेताओं की छानबीन के लिए बनी कमेटी के चेयरमैन हैं। यानी अजय चंद्राकर समिति की अनुशंसा पर ही किसी को भाजपा में शामिल किया जा सकता है।
उक्त कांग्रेस नेता को लेकर अजय चंद्राकर की आपत्ति इस बात पर है कि वो कई बार दलबदल चुके हैं। ऐसे में उन्हें भाजपा में शामिल नहीं करना चाहिए। साफ है कि अब पार्टी के प्रति निष्ठा दिखने पर ही प्रवेश दिया जा सकता है।
बृहस्पति सिंह का क्या होगा
आखिरकार निलंबित पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल, और बिलासपुर मेयर रामशरण यादव की कांग्रेस में वापसी हो गई है, लेकिन बृहस्पति सिंह को पार्टी में प्रवेश देने का मामला पचड़े में पड़ गया है। बृहस्पति सिंह ने टीएस सिंहदेव, और सुश्री सैलजा पर गंभीर आरोप लगा दिए थे। वो सुलह सफाई के लिए तैयार हैं, और कांग्रेस वापसी चाहते हैं। मगर सिंहदेव इसके लिए तैयार नहीं है।
चर्चा है कि सिंहदेव ने तो साफ तौर पर कह दिया है कि बृहस्पति सिंह की वापसी की दशा में वो अन्य विकल्प तलाश सकते हैं। सिंहदेव, बृहस्पति सिंह को माफ करने के लिए तैयार नहीं है। यही वजह है कि बृहस्पति सिंह की वापसी रूक गई है। हालांकि कई और प्रमुख नेता, बृहस्पति सिंह के लिए कोशिशें कर रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
अभी लंबा इंतजार
विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह था। बड़ी संख्या में ऐसे जुनूनी कार्यकर्ता थे, जो उम्मीद लगाए बैठे थे कि लोकसभा से पहले उन्हें कोई न कोई निगम मंडल मिल ही जाएगा।
लेकिन संगठन ने तो कुछ और ही सोच के रखा था। सब कार्यकर्ता-पदाधिकारियों को लोकसभा में लगा दिया। ठाकरे परिसर की एक बैठकी में कुछ नए कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा चल रही थी कि लोकसभा चुनाव के बाद निगम-मंडल का बंटवारा होगा। पास ही बैठे एक सियान नेता ने अपना अनुभव बताकर सबको मायूस कर दिया। नेता ने बताया कि लोकसभा के बाद नगरीय निकाय और पंचायतों के चुनाव होंगे। इसके बाद ही कुछ हो सकता है। यानी अभी लंबा इंतजार करना होगा।
चुनाव के बाद फिर लौटेंगे
पुलिस अधिकारियों के तबादले में संशोधन को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आ रही है। जिस पैमाने पर तबादले हुए हैं, उससे उन अधिकारियों की हिम्मत बंधी है, जो सुकमा, दंतेवाड़ा भेजे गए थे। इनमें कुछ के तबादले रद्द हो गए हैं, लेकिन कुछ के रद्द नहीं हुए हैं। तबादलों में संशोधन के बाद जो संदेश गया है, वह यह है कि चुनाव के बाद संशोधन की गुंजाइश बनी हुई है।
बघेल पर अपनों के हमले
लोकसभा चुनाव में राजनांदगांव के प्रत्याशी बनाए गए भूपेश बघेल के खिलाफ पिछले दो दिनों के भीतर पार्टी के भीतर ही दो बड़े हमले हो गए। रायपुर में पूर्व प्रभारी महामंत्री अरुण सिसोदिया ने बघेल के सलाहकार विनोद वर्मा पर कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल के साथ मिलीभगत कर पार्टी फंड के करोड़ों रुपए की गड़बड़ी का आरोप लगाया। दूसरी तरफ राजनांदगांव में प्रचार के लिए पहुंचे बघेल के सामने ही मंच से जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुरेंद्र वैष्णव ने पिछली कांग्रेस सरकार और सीधे बघेल पर ही मंच से हमला बोल दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि कार्यकर्ताओं का सीएम से मिलना मुश्किल था। उनका छोटा मोटा काम भी नहीं होता था।
ये दोनों हमले बीजेपी और जांच एजेंसियों की ओर से खड़ी की जा रही मुसीबतों से अलग है। कहा नहीं जा सकता कि यदि बघेल लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी नहीं होते तो क्या परिस्थितियां अलग होती। उनके लिए राहत की बात यह ज़रूर है कि संगठन और नेतृत्व उनके साथ खड़ा दिख रहा है। पर जिन कार्यकर्ताओं की बदौलत चुनाव जीता जाता हैए उनकी मन:स्थिति को टटोलना मुश्किल है।
कोरबा महापौर पर संकट
प्रदेश में सत्ता बदलने के बाद कांग्रेस को नई.नई मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। ठीक लोकसभा चुनाव के पहले कोरबा के महापौर राजकिशोर प्रसाद का अन्य पिछड़ा वर्ग जाति प्रमाण पत्र जिला स्तरीय जाति छानबीन समिति ने निलंबित कर दिया है। उनके प्रमाण पत्र को लेकर शिकायत कांग्रेस के शासन काल में की गई थीए मगर जांच रुकी हुई थी। अभी भी प्रमाण पत्र निरस्त नहीं किया गया है बल्कि निलंबित है। ओबीसी कोटे से किसी तरह का लाभ लेने से उन्हें मना कर दिया गया है। अब भाजपा पार्षद उनके निर्वाचन निरस्त करने की मांग उठा रहे हैं। महापौर पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल के करीबी माने जाते हैं।
हाल के दिनों में जिला और प्रदेश स्तर के कई कांग्रेस नेता भाजपा का दामन थाम चुके हैं। ठीक लोकसभा चुनाव के दिनों में जाति छानबीन समिति का यह आदेश बहुत कुछ इशारे करता है।
साफग़ोई और खरी-खरी की तारीफ़
राजनांदगांव में पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष सुरेन्द्र दास वैष्णव के बेबाकी की राजनीतिक हल्कों में खूब चर्चा हो रही है। सुरेन्द्र दास ने पूर्व सीएम भूपेश बघेल की मौजूदगी में एक तरह से विधानसभा चुनावों में हार के कारणों को भी गिना दिया।
उन्होंने गिरीश देवांगन का नाम लिए बिना राजनांदगांव विधानसभा से बाहरी को टिकट देने के फैसले पर कटाक्ष करते हुए कह गए, कि पार्टी चाहे तो रायपुर और दुर्ग के नेताओं को पंचायत चुनाव लडऩे के लिए यहां (राजनांदगांव) भेज सकती है। हम इसका स्वागत करेंगे।
गिरीश देवांगन, पूर्व सीएम डॉ.रमन सिंह के खिलाफ बुरी तरह हारे थे। हार के कारणों का कोई स्पष्ट कारण नजर नहीं आ रहा था। जबकि भूपेश बघेल ने गिरीश के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, और सारे संसाधन लगा दिए थे। अब जाकर सुरेन्द्र दास की टिप्पणी से सब कुछ साफ हुआ है। यानी बाहर से आए नेताओं को प्रत्याशी बनाने को कार्यकर्ताओं ने स्वीकार नहीं किया, और इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा।
महासमुंद में बिरनपुर की गूंज
महासमुंद में कांग्रेस ने पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को सिर्फ इसलिए प्रत्याशी बनाया है कि वहां साहू समाज के मतदाता निर्णायक हैं। मगर ताम्रध्वज को समाज का पूरा-पूरा साथ मिलता नहीं दिख रहा है। वजह यह है कि बिरनपुर कांड की गूंज अब महासमुंद में भी सुनाई देने लगी है।
भाजपा ने महासमुंद में बिरनपुर के भुवनेश्वर साहू हत्याकांड के मसले पर कांग्रेस की घेराबंदी शुरू कर दी है। ताम्रध्वज को जवाब देना इसलिए भी मुश्किल हो रहा है कि वो गृहमंत्री रहते भुवनेश्वर साहू की हत्या के बाद कभी बिरनपुर गए ही नहीं। न ही उनके परिजनों से मुलाकात की थी। साहू समाज में इसको लेकर ताम्रध्वज के खिलाफ नाराजगी अभी तक बरकरार है। जबकि विधानसभा चुनाव में इसका नतीजा ताम्रध्वज भुगत चुके हैं। अब लोकसभा चुनाव में क्या होता है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
संसदीय सचिव बनाएंगे या नहीं?
करीब बीस वर्ष पहले भाजपा सरकार ने ही संसदीय सचिवों की नियुक्ति की शुरूआत की थी। इसके जरिए जातीय, क्षेत्रीय, दलीय संतुलन बनाया जाता रहा है। यह भी सच है कि इनमें से कई संसदीय सचिव अगला चुनाव हारते रहे या टिकट नहीं मिलती। संसदीय सचिवों की नियुक्ति को कांग्रेस नेता मोहम्मद अकबर ने चुनौती दी थी। हालांकि कांग्रेस सरकार में 13 संसदीय सचिव बनाए गए थे। बाद में विधानसभा में यह व्यवस्था भी आई कि संसदीय सचिव ना तो विधायक की तरह सवाल कर पाएंगे, ना ही मंत्री की तरह जवाब दे पाएंगे। भाजपा सरकार में जो संसदीय सचिव थे, उन्हें कभी-कभी जवाब देने का मौका मिलता था। बाद में हाई कोर्ट के आदेश पर यह छिन गया था। विधायकों के मन में एक बड़ा सवाल यह भी है कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति की जाएगी, या नहीं। यदि नियुक्ति की जाएगी तो 12 से अधिक फिर बनाए जाएंगे या सिर्फ 11 । इस हिसाब से विधायकों के मन में गाड़ी-बंगला मिलने की उम्मीद बंधी रहेगी।
सहानुभूति या नुकसान?
छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित महादेव सट्टा ऐप मामले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ ईडी के प्रतिवेदन पर एसीबी, ईओडब्ल्यू ने एफआईआर दर्ज कर ली है। पूर्व सीएम के खिलाफ अनेक धाराओं में मामला दर्ज होने की एक कॉपी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है लेकिन अब तक आधिकारिक बयान नहीं आया है। एसीबी की ओर से कोई खंडन नहीं आया है, इसलिए इसे लोग असली मान कर चल रहे हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान ईडी ने ऐसा ही एक प्रेस नोट जारी किया जिसमें सिर्फ बघेल सरनेम का जिक्र था। सबने मान लिया कि बात भूपेश बघेल की हो रही है।
राजनांदगांव से उम्मीदवार बनने के बाद जाहिर हुई इस ताजा रिपोर्ट ने बघेल को और आक्रामक बना दिया है। इसे राजनीतिक साजिश बताते हुए उन्होंने ऐलान किया है कि वे अग्रिम जमानत की अर्जी नहीं लगाएंगे। दूसरी तरफ तमाम भाजपा नेताओं के सोशल मीडिया पेज बघेल पर हमलावर टिप्पणियों से भरे पड़े हैं।
विधानसभा चुनाव बघेल अपनी सीट से जीत गए थे लेकिन कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ। सरकार दोबारा नहीं बन पाई। देखना दिलचस्प होगा की राजनांदगांव से उनकी लड़ाई इस खुलासे के बाद किस मुकाम पर पहुंचेगी। बघेल की छवि को नुकसान होगा या उन्हें सहानुभूति मिलेगी?
रुक गई ट्रांसफर लिस्ट
बीते एक महीने से स्कूल शिक्षा विभाग में यह जमकर चर्चा हो रही थी कि तबादले की जम्बो लिस्ट तैयार हो रही है। बताते हैं कि यह सूची धीरे-धीरे घटती बढ़ती रही। इसके चलते समय पर तैयार नहीं हो सकी। बंगले से रवाना हुई फाइल महानदी में अज्ञात कारणों से दो दिन तक रुकी रही। और इधर चुनाव आचार संहिता लागू हो गई। अब सारा मामला कम से कम जून महीने तक लटक गया है। लोकसभा चुनाव के बाद यह विभाग किसके पास रहेगा, कुछ भरोसा नहीं।
एक खूबसूरत शाम
पानी पर ढलते सूरज की रोशनी और नौकायन। यकीन नहीं होगा मगर यह तस्वीर हाल ही में शिवरीनारायण में महानदी के तट से ली गई है।
इंसानों के रेवड़ का क्या करें?
हिन्दुस्तान के अधिकतर हिस्से में चाहे सुबह की सैर हो, चाहे शाम को किसी तालाब किनारे या फुटपाथ पर लोग गप्प मारने जुटे हों, जब तक वे भीड़ की अराजकता नहीं दिखा पाते, उन्हें चैन नहीं पड़ता। हिन्दुस्तान में जब तक कोई अकेले हैं, तभी तक उनमें थोड़ी इंसानियत रह सकती है। एक से दो -चार हुए तो वे गुंडों के गिरोह जैसे हो जाते हैं। सुबह घूमने भी निकलते हैं तो सडक़ की पूरी चौड़ाई को घेरकर चलते हैं, इतनी जोरों से चीखते हुए निकलते हैं कि आसपास के घरों में लोगों की नींद खुल जाए। किसी बगीचे में पहुंचते हैं तो कसरत की मशीनों पर बैठकर तम्बाकू-गुटखा खाना शुरू कर देते हैं, और उसे बाग-बगीचे की बेंच मानकर उन पर कब्जा करके बैठ जाते हैं, फिर कोई और उनका इस्तेमाल न कर ले। कुल मिलाकर हिन्दुस्तानी सोच सार्वजनिक सम्पत्ति को अधिक से अधिक अपना साबित करने की रहती है, और लोग इसका प्रदर्शन करके सुकून पाते हैं।
सडक़ों पर जब हिन्दुस्तानियों की टोलियां चलती है, तो आसपास के मवेशी अपने बच्चों को यह नजारा दिखाकर सिखाते हैं कि कभी भी इस तरह पूरी सडक़ घेरकर नहीं चलना चाहिए। और ऐसी हरकत करने के लिए किसी का कम उम्र नौजवान होना जरूरी नहीं है, बुजुर्ग होने पर भी लोगों की हरकतें ऐसी ही रहती हैं। दिक्कत यह है कि जानवरों को तो एक लाठी लेकर हांका जा सकता है, इंसानों के रेवड़ों को कैसे खदेड़ा जाए? जैसे-जैसे हिन्दुस्तानी संख्या में बढऩे लगते हैं, वैसे-वैसे वे भीड़ की मानसिकता में आ जाते हैं, जिसमें सिर बहुत होते हैं, दिमाग एक भी नहीं होता।
राशन कार्ड नहीं बदल पाए...
भाजपा ने प्रदेश में सरकार बनने से लेकर लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने के बीच काम करने के लिए मिले करीब तीन महीनों का इस्तेमाल मोदी की गारंटी को ज्यादा से ज्यादा पूरा करने की कोशिश की। पिछली भाजपा सरकार के दौरान रुका किसानों का बकाया बोनस देने से शुरूआत हुई जो महतारी वंदन योजना की पहली किश्त और किसानों को धान का बकाया भुगतान करने तक जाकर खत्म हुई। एक काम सरकार ने और तेजी से करना चाहा, जो गारंटी में शामिल नहीं था लेकिन उससे कम जरूरी भी नहीं था। वह था प्रदेश के करीब 77 लाख हितग्राहियों के बीच नया राशन कार्ड पहुंचाना। यह अभियान 25 जनवरी से शुरू कर दिया गया था। काम में तेजी लाने के लिए ऑनलाइन फॉर्म भरने की सुविधा भी दे दी गई थी। पहले इसकी मियाद फरवरी के आखिरी तक तय की गई थी फिर 15 मार्च तक बढ़ाई गई। अब ऑनलाइन अपडेट करने का काम तो चलता रहेगा लेकिन आचार संहिता लग जाने के कारण नया कार्ड वितरित करने का काम रोकना पड़ा है। वैसे खाद्य विभाग ने स्पष्ट किया है कि पुराने कार्डधारकों को राशन मिलने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। बस होगा यह कि उनके पास जो कार्ड हैं उनमें अभी भी पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व खाद्य मंत्री की तस्वीर है।
17 तरह के बैंगन
बैंगन बहुतों को नापसंद है, पर सबसे ज्यादा बिकने वाली सब्जियों में यह शुमार भी है। अब यह हर कहीं, हर मौसम में मिल जाता है। अब तो तरह-तरह के रंगों और आकार में भी। इंदौर की इस सब्जी विक्रेता महिला का कहना है कि वह 17 प्रकार के बैंगन बेच चुकी हैं। फिलहाल इस दुकान में 7 तरह के बैंगन तो दिख ही रहे हैं।
बस हटाने में एकजुटता दिखी...
कोरबा जिले के छुरी नगर पंचायत की कांग्रेस अध्यक्ष नीलम देवांगन को बीते महीने अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद पद गंवाना पड़ गया। वैसे तो कांग्रेस समर्थित पार्षदों की संख्या यहां 10 है, पर सरकार बदलने के बाद कई नगरीय निकायों में बहुमत के बावजूद कांग्रेस को सीट गंवानी पड़ी है। देवांगन को कुर्सी बचाए रखने के लिए केवल 6 वोट की जरूरत थी लेकिन उन्हें 5 ही मिल पाए। कांग्रेस और भाजपा के ज्यादातर पार्षद उन्हें हटाने के नाम पर एकजुट हो गए थे। दो साल से यह कोशिश हो रही थी पर वे सफल सरकार बदलने के बाद हुए। यहां तक तो सब निपट गया लेकिन जब नया अध्यक्ष चुनने की बारी आई तो एक राय नहीं बन सकी। पार्षद किसी एक नाम पर सहमत नहीं हो सके। इसी खींचतान के बीच अब आचार संहिता लग गई है। नया चुनाव कम से कम जून महीने तक के लिए टल गया है। काम प्रशासक संभालेंगे।
अंग्रेजी का शब्द यहीं से निकला है!
रायपुर के जगन्नाथ मंदिर में इन दिनों एक गाड़ी पर लदा हुआ एक पहिया लोगों की दिलचस्पी का केन्द्र बना हुआ है। टाईम्स ऑफ इंडिया की पत्रकार रश्मि ड्रोलिया ने अपने फेसबुक पेज पर इसकी तस्वीर के साथ लिखा है कि यह ओडिशा के जगन्नाथपुरी के रथ का एक पहिया है जो कि कुछ समय भक्तों के दर्शन के लिए रायपुर के जगन्नाथ मंदिर को दिया गया है, और यह पुरी वापिस चला जाएगा। उन्होंने लिखा है कि यह पुरी के रथ के 16 चक्कों में से एक है, और इसे बनाने में सिर्फ लकड़ी का इस्तेमाल हुआ है, किसी भी तरह लोहे की कोई कीलें इसमें नहीं लगाई गई हैं। उनके मुताबिक इस पहिए के लकड़ी के हिस्से एक-दूसरे में इस तरह फंसाए गए हैं कि वे आपस में मजबूती से जुड़ जाते हैं, जिस तरह कि किसी पहेली के हिस्से। यह चक्का जगन्नाथपुरी लौटकर वहां इसकी लकड़ी मंदिर में प्रसाद पकाने के चूल्हे में काम आएगी। वहां हर बरस एक नया रथ बनता है, और पुराने रथ के हिस्से इसी तरह इस्तेमाल कर लिए जाते हैं।
रश्मि ने एक दिलचस्प जानकारी लिखी है कि अंग्रेजी भाषा में बहुत बड़ी-बड़ी गाडिय़ों या वाहनों के लिए जगरनॉट शब्द का इस्तेमाल होता है। अंग्रेजी के इस शब्द की बुनियाद जगन्नाथ के रथ से है, जो कि दुनिया में किसी भी धर्म का सबसे बड़ा रथ रहता है। इसके विशालकाय आकार के मुताबिक विशाल वाहनों के लिए जगरनॉट शब्द प्रचलन में बहुत समय से आ चुका है।
बृहस्पत ने क्या बिगाड़ा था...
विधानसभा चुनाव के तीन माह बाद लोकसभा चुनाव आ जाने के चलते कांग्रेस के कई निलंबित पदाधिकारियों का निलंबन ज्यादा टिका नहीं। पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल, बिलासपुर महापौर रामशरण यादव और प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष प्रेमचंद जायसी को पार्टी में वापस ले लिया गया है। यादव और जायसी निलंबित थे, जायसवाल निष्कासित। मगर एक और पूर्व विधायक बृहस्पत सिंह का निष्कासन समाप्त नहीं किया गया है।डॉ. जायसवाल ने पार्टी के प्रदेश प्रभारी सचिव चंदन यादव पर सात लाख रुपये टिकट के लिए लेने का आरोप लगाया था। महापौर यादव का एक ऑडियो जारी हुआ था, जिसमें वे कथित रूप से पूर्व विधायक अरुण तिवारी को फोन पर बता रहे हैं कि उनकी टिकट इसलिये कट गई क्योंकि वे करोड़ों रुपये प्रदेश प्रभारी कु. सैलजा को नहीं दे सके। जिन्होंने दी उनको मिल गई। जायसी मस्तूरी सीट से टिकट चाहते थे। वहां से कांग्रेस ने पूर्व विधायक दिलीप लहरिया को फिर से मैदान में उतारा। सन् 2018 में वे हार गए थे, इस बार फिर जीत गए। आरोप है कि जायसी ने कांग्रेस के खिलाफ काम किया था। इन तीनों की बहाली के बीच एक महत्वपूर्ण नाम पूर्व विधायक बृहस्पत सिंह का रह गया। टिकट कटने की खबर मिलने पर उन्होंने टीएस सिंहदेव और कुमारी सैलजा के खिलाफ बयान दिए थे। प्रदेश में हार के लिए दोनों को जिम्मेदार बताया था। सिंहदेव के खिलाफ उनका पहले भी कई विवादित बयान थे। शायद संगठन को लगा होगा कि बृहस्पत सिंह का मामला ज्यादा गंभीर है। अब यह देखना है कि चुनाव प्रचार के दौरान उन पर कोई नरमी बरती जाती है या नहीं। यदि इस दौरान वापसी नहीं हुई तो उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।
भारी पड़ गई सिफारिश
पिछली सरकार को हमेशा हमेशा के लिए स्थाई मानकर तत्समय के विपक्ष के बड़े बड़े नेताओं को परेशान करने वाले पुलिस अफसर तीन महीनों से परेशान हैं। एक ने तत्समय के पूर्व विधायक को तो हिरासत में लेकर पूरी शाम पेट्रोलिंग वैन में गश्त कराया था। सरकार आने के बाद ऐसे अफसरों को नक्सल मोर्चे पर भेजा गया । पर एक एएसपी का ऐसा उदयन हुआ कि साहब आचार संहिता के फेर में आनन फानन में तर गए। कैसे नहीं तरते, सिफारिश भी कमल विहार से आई थी। इस बात की भनक जब विधायक जी को लगी तो उन्होंने पड़ताल की। तो यह सच्चाई सामने आए। सबसे दुखद यह हो गया कि सिफारिश कर्ता ही मध्य क्षेत्र खेत दिए गए ।
दीवाली भी गई अब होली भी
इसलिए मांग और प्रक्रिया चल रही है एक देश एक चुनाव की। हर छमाह में आचार संहिता लगने पर त्यौहारी बेनिफिट का नुकसान उठाना पड़ रहा है। अब अपने यहां ही देख ले विधानसभा चुनाव की आचार संहिता में धनतेरस,दीवाली गई। और अब आम चुनाव के चलते होली पर खरमास लग गया। साथ ही साथ ईदी भी जाती रही। उसी दौरान अपने यहां चुनाव चरम पर होगा। इफ्तारी की दावत के सार्वजनिक आयोजन भी आचार संहिता में फंस जाएंगे।सारे त्यौहार तो चल जाते हैं लेकिन होली पर बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। अध्दी पौव्वा बोतल देने और लेने वाले अभी से सोचने लगे हैं। कैसे होगा। 19-19 एजेंसियां फ्रीबीज़ पर गिध्द नजर बिठा चुकीं हैं।डिस्टलरीज़ से लेकर दुकान तक सीसीटीवी, जीपीएस के साथ साथ,हर गाड़ी के पीछे एक गुप्तचर अलग दौड़ रहा है।इसे देखते हुए कहने लगे हैं कि यदि शौकीनों के बीच जनमत संग्रह या वोटिंग करा ले तो वन नेश न वन इलेक्शन बहुमत से जीत जाएगा।
बिना उम्मीदवार प्रचार
दस दिन पहले लोकसभा के 6 प्रत्याशियों की घोषणा के बाद छत्तीसगढ़ की बची 5 सीटों पर कांग्रेस नामों का ऐलान नहीं कर पाई है। कुछ राज्यों की दूसरी सूची भी जारी हुई, मगर उसमें छत्तीसगढ़ के नाम नहीं थे। अब कहा जा रहा है कि बाकी ऐलान 18-19 मार्च को होगा। भाजपा कटाक्ष कर रही है कि उसे उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं। यह स्थिति भाजपा के साथ होती तो अलग बात थी। वहां तो मोदी के चेहरे और गारंटी पर लड़ा जाना है, पर कांग्रेस में उम्मीदवार का नाम भी तय करेगा कि जीत-हार का फासला कितना होगा। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने बची हुई सीटों पर भी चुनाव प्रचार शुरू करने का निर्देश दिया है। पदाधिकारी-कार्यकर्ता बाहर निकल रहे हैं तो लोग एक ही सवाल कर रहे हैं, किसे खड़ा किया है? कार्यकर्ता कह रहे हैं, यह जल्दी बता देंगे।
साहबों की खातिरदारी
बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के भेलवाडीह में स्वच्छ भारत मिशन के अधिकारी शौचालयों के निरीक्षण दौरे पर पहुंचे। पंचायत ने उनकी खूब खातिरदारी की। बिल बना 34 हजार 500 रुपये का। यह भी साफ-साफ लिखा कि बकरा और मुर्गा खिलाया गया। पंचायत की रकम कैसे फूंकी जाती है, यह उसका एक नमूना है। बिल कुछ पुराना है, पर कलेक्टर से शिकायत हाल ही में की गई है।
अफ़सरों का रतजगा
भूपेश सरकार की कई परंपराओं को साय सरकार नहीं बदल सकी है। अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को ही लीजिए, भूपेश सरकार ने सबसे पहले आधी रात डीजीपी ए.एन.उपाध्याय को बदलकर डी.एम.अवस्थी को प्रभारी डीजीपी बना दिया था। फिर रातों-रात सीएस अजय सिंह की कुर्सी सुनील कुजूर को सौंप दी थी।
भूपेश सरकार ने एक साथ 50 से अधिक आईएएस अफसरों के तबादले किए थे। तबादले की सूची आधी रात जारी की गई थी। इसके बाद से देर रात आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों के तबादले का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह अब तक जारी है।
साय सरकार ने सबसे पहले 83 आईएएस अफसरों के तबादलों की सूची जारी की थी जो कि अब तक की सबसे बड़ी सूची है। यद्यपि इसमें सिर्फ डेढ़ दर्जन कलेक्टर ही बदले गए थे। जबकि भूपेश सरकार ने एक साथ 22 कलेक्टरों को बदल दिया था जबकि उस समय जिलों की संख्या कम थी। और कोरोना का भी माहौल था।
हाल यह है कि अब अफसरों को तबादले के इंतजार में देर रात तक जागना पड़ रहा है। आधी रात सूची निकालने की परंपरा क्यों शुरू की गई, इसकी कोई ठोस वजह नहीं है। ये बात अलग है कि इससे जीएडी के स्टॉफ परेशान जरूर हो जाते हैं।
एक पंडाल, तीन बिल
छह दिन पहले हमने इसी कॉलम में एक पंडाल तीन सम्मेलन के आयोजन का उल्लेख कर सरकार की मितव्ययिता की तारीफ की थी। और यह भी आशंका जताई थी कि इस एक पंडाल का बिल, क्या एक ही बनेगा या अफसर अपने अपने विभाग के लिए अलग अलग बनाएंगे। साइंस कॉलेज मैदान में सजाए गए इस पंडाल में पिछले सप्ताह लगातार तीन दिन महिला, किसान और पंचायत सम्मेलन हुए।
हर रोज केवल विभाग के होर्डिंग,फ्लैक्स और ड्रापआउट (मंच के पीछे की दीवार पर लगने वाला विशाल पोस्टर) बदल कर सफल आयोजन हुआ। तीनों के समापन के बाद किराया भंडार वालों अफसरों के साथ सेटिंग कर तीन पंडाल लगाना बताकर बिल पेश किया। मंत्री जी के पास पहुंचे तो करीबियों ने तीन का बिल नामंजूर करने जोर दिया । मंत्री ने किया भी ऐसा। ना नुकुर के बाद अंतत: इस बात पर सहमति बनी कि तीनों ही विभाग वन-थर्ड, वन-थर्ड के अनुपात में बिल पे करेंगे।
दिन में रौशन सडक़
दुर्ग का जेल तिराहा। स्ट्रीट लाइट दिन में भी जल रही है। छत्तीसगढ़ के कई शहरों का यही हाल है। अधिकांश नगर-निगमों की बकाया बिल भुगतान के लिए बिजली विभाग से ठनी रहती है। छत्तीसगढ़ बिजली उत्पादन में सरप्लस रहता है, इसका मतलब यह नहीं कि यह मुफ्त मिलती है।
युवा हाथों में प्रशासन
छत्तीसगढ़ में आईएएस लॉबी में समय के साथ परिवर्तन होता रहा है। पहले ओडिशा लॉबी पॉवरफुल थी। इसके बाद साउथ के अफसर शासन चलाते थे। फिर छत्तीसगढिय़ा अफसरों की बारी आई। अब यंग अफसरों की बारी है। 2005 और 2006 बैच के अफसर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में हैं। आईएएस ही नहीं, आईपीएस लॉबी में भी यही बैच पॉवरफुल है।
पारदर्शी कलेक्ट्रेट
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की कार्रवाई का सीधा प्रसारण शुरू हो जाने से लोगों को अदालती कार्रवाई समझने में मदद मिल रही है। अब छत्तीसगढ़ के एक जिले में कलेक्ट्रेट की कार्रवाई की लाइव स्ट्रीमिंग हो रही है। सरगुजा कलेक्टर विलास भोस्कर जिला दंडाधिकारी के रूप में गुरुवार के दिन जब अपनी कोर्ट में बैठते हैं, तो उसका यू ट्यूब पर लाइव प्रसारण किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में यह पहला प्रयोग है। राजस्व के बहुत से मामलों में पक्षकारों को हाजिर होने की जरूरत नहीं पड़ती, उनके वकील ही बहस करते हैं। अब वे घर बैठे कार्रवाई देख सकते हैं। ([email protected])
गाड़ी-मालिक नाम से हडक़म्प
अवैध रेत खुदाई की खबरें बंद होने का नाम नहीं ले रही हैं। अभी छत्तीसगढ़ के एक सत्तारूढ़ विधायक, और बड़े चर्चित परिवार के अगले चिराग की ओर से जिला प्रशासन को अवैध रेत खुदाई की शिकायत की गई, और कहा गया कि उनके विधानसभा क्षेत्र में लगातार नियम-कानून तोड़े जा रहे हैं। विधायक ताकतवर हैं, इसलिए अफसरों ने आनन-फानन जांच की, और एक बड़ा सा डम्पर भी जब्त किया। इसके बाद अफसरों पर दबाव आना शुरू हुआ कि इस गाड़ी को छोड़ दिया जाए। लेकिन गाड़ी तो जब्त हो चुकी थी। जब उसके नंबर की जांच की गई, तो दिलचस्प जानकारी मिली कि विधायक ही इस डम्पर के मालिक हैं। उनकी तरफ से शिकायत इसलिए की जा रही थी कि कोई दूसरे लोग अवैध खुदाई कर रहे हैं वह बंद हो जाए, और अकेले विधायक का एकाधिकार चले। अब सत्तारूढ़ विधायक की जब्त गाड़ी अफसरों के गले की हड्डी बन गई है कि उसे उजागर करते ही सत्ता की ही बदनामी हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि एक सत्तारूढ़ विधायक धरमजीत सिंह ने विधानसभा में कहा था कि छत्तीसगढ़ की अलग-अलग नदियों में दो सौ अवैध पोकलैंड मशीनें रेत खुदाई कर रही हैं, और अगर मशीनें इससे कम निकलीं, तो वे विधानसभा से इस्तीफा दे देंगे। अब जब सत्तारूढ़ विधायक ही इसमें लगे हुए हैं, तो यह धंधा रूकेगा कैसे?
रामगोपाल को ढूँढना मुश्किल ही नहीं...
हल्ला है कि मनी लॉंड्रिंग केस में फंसे प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल सरेंडर कर सकते हैं। कोल केस में रामगोपाल पर 52 करोड़ की मनी लॉंड्रिंग का आरोप है।
ईडी ने रामगोपाल के खिलाफ वारंट जारी करने के लिए विशेष अदालत में आवेदन लगाया था लेकिन अदालत ने यह कहा कि आरोपी की गिरफ्तारी के लिए अलग से वारंट जारी करने की जरूरत नहीं है। इसके बाद से ईडी रामगोपाल की तलाश कर रही है।
रामगोपाल अग्रवाल करीब साल भर से गायब हैं, और विधानसभा चुनाव के दौरान भी गिरफ्तारी के डर से नदारद रहे। उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन भी लगाया था लेकिन हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। चर्चा यह है कि रामगोपाल खुद होकर सरेंडर कर सकते हैं। क्या वाकई ऐसा होगा यह तो कुछ दिनों बाद पता चलेगा।
खऱाब प्रभारी मंत्री अब प्रत्याशी
विधानसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेसजन पस्त पड़े हुए हैं। लोकसभा चुनाव के लिए कुछ जगहों पर तो सक्रियता बिल्कुल भी नहीं दिख रही है। महासमुंद सीट से पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू चुनाव मैदान में हैं।
ताम्रध्वज पर बाहरी का आरोप तो लग ही रहा है लेकिन मंत्री रहते उनकी खुद की कार्यप्रणाली को लेकर कार्यकर्ताओं में नाराजगी ज्यादा है। ताम्रध्वज के खिलाफ शिकायत यह है कि वो प्रभारी मंत्री रहते कार्यकर्ताओं की पूछ-परख नहीं की, और उनकी सिफारिशों को नजरअंदाज किया।
बताते हैं कि ताम्रध्वज के बेटे जितेन्द्र साहू, जो कि प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी भी हैं, उन्हें भी काफी कुछ सुनना पड़ रहा है। मगर ताम्रध्वज विनम्र हैं इसलिए उनसे जुड़े लोगों का दावा है कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। आगे क्या होगा यह देखना है।
चिटफंड जैसी ही ठगी
छत्तीसगढ़ में चिटफंड कंपनियों ने मोटे रिटर्न का झांसा देकर हजारों करोड़ रुपये की ठगी की। अधिकांश गिरोह अंतर्राज्यीय थे। वसूली के लिए स्थानीय बेरोजगार युवकों को एजेंट बनाते थे। अनेक कंपनियों के डायरेक्टर गिरफ्तार भी हुए। उनकी प्रॉपर्टी नीलाम कर थोड़ी-बहुत राशि लौटाने की कोशिश भी की गई। हजारों लोगों की जिंदगी भर की कमाई डूब गई। जिलों में प्रशासन और पुलिस की प्राथमिकता में भी आगे कार्रवाई करने की नहीं दिखती। उनकी उम्मीद टूट चुकी है।
इधर, सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले की सरसीवां पुलिस ने हाल ही में ऐसे गिरोह के कुछ लोगों ने पकड़ा है जिन्होंने पहले तो प्राइवेट बैंकों से सरकारी कर्मचारी, प्रॉपर्टी डीलर्स या किसानों को बैंकों से लाखों रुपये के लोन दिलाए, फिर उस रकम को बड़े मुनाफे का लालच देकर निवेश करने कहा। शुरुआत में उन्होंने भरोसा बढ़ाने के लिए बैक की किश्त भी चुकाई। दूसरे लोग भी ऐसा होते देख झांसे में आ गए। कुछ महीने बाद उन्होंने किस्त पटाना बंद कर दिया, दोगुना-तीन गुना राशि भी डूब गई।
पूर्व में चिटफंड कंपनियों के संचालकों ने राजनीति और प्रशासन से जुड़े लोगों से योजनाबद्ध तरीके से संपर्क बना लिया था, अपने आयोजनों में उन्हें बुलाते थे। इसके चलते पुलिस इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने से कतराती रही। पिछली सरकार के दौरान इन पर शिकंजा कसा गया। कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार बदलने के बाद निवेश के नाम पर ठगी करने वाले भी अपने लिए नया अवसर देखने लगे हैं? पुलिस और प्रशासन को सतर्क होने की जरूरत है।
मतदान का कोई विकल्प है?
सन् 1985 में कानून बनने के बाद त्रिस्तरीय पंचायत में नियमित चुनाव होने लगे। ग्रामीण जनप्रतिनिधियों की अब बड़ी भूमिका है। गांवों के शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास आदि सभी मामलों में। इसी के जरिये कई नेतृत्व उभरे जो विधानसभा और लोकसभा तक पहुंचे। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने खुद गांव के पंच से राजनीति की शुरुआत की थी। इधर उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा जिनके पास पंचायत मंत्रालय भी है, ने एक गंभीर विषय की तरफ ध्यान दिलाया है। उन्होंने कहा है कि प्रत्यक्ष मतदान के कारण गांवों में लोगों के बीच कटुता बढ़ी है। आपसी विवाद और तनाव की स्थिति रहती है। इसका कोई विकल्प ढूंढेंगे। निर्वाचन की कोई ऐसी प्रणाली हो कि ऐसी अप्रिय स्थिति निर्मित न हो। उन्होंने इसके लिए लोगों से सुझाव लेने की बात कही है। पंचायती राज देश की संसद से पारित कानून है, इसलिये निर्वाचन के तरीके को बदला नहीं जा सकता। इसीलिये उन्होंने कहा कि उनकी सरकार सुझावों को विचार के लिए केंद्र सरकार के पास भेजेगी।
बीते 15-20 साल से पंचायतों को आवंटित किया जाने वाला फंड कई गुना बढ़ा है। उनका वित्तीय अधिकार भी बढ़ा। सरपंच जैसा पद हथियाने के लिए अब इतनी बड़ी रकम फूंक दी जाती है, जितने में कोई विधानसभा चुनाव लड़ ले। इस खर्च की भरपाई पंचायतों को मिलने वाले राजस्व या अनुदान से ही की जाती है। पंचायत चुनावों में आई विकृति, विधानसभा और लोकसभा के खर्चीले चुनाव से भी प्रेरित है। लोकतंत्र में गुप्त मतदान का तो विकल्प कुछ नजर नहीं आता। मतदान साफ सुथरा हो, यह जरूरी है। पर, शुरुआत कहां से हो?
एसपी की जी हुजूरी का नतीजा...
बलौदाबाजार में साइबर सेल के प्रभारी रहे इंस्पेक्टर परिवेश तिवारी और दो सिपाहियों के खिलाफ हाईकोर्ट ने एफआईआर का आदेश दिया है। आरोप है कि एक व्यवसायी को वे घर से जबरन थाना उठाकर ले गए। उसके साथ मारपीट की गई। उसके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी बल्कि ऐसा करने का मकसद यह था कि वह पुलिस अधीक्षक के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर की गई अवमानना याचिका को वापस ले ले। यह पुलिस का दुस्साहस ही है। उसने यह नहीं सोचा कि जो व्यक्ति हाईकोर्ट जाकर एसपी के खिलाफ अवमानना केस लगाने की हिम्मत जुटा सकता है, वह जबरिया मारपीट को कैसे बर्दाश्त करेगा। यह यकीन करना मुश्किल है कि जिस आईपीएस के खिलाफ याचिका लगाई गई है, उसकी सहमति के बगैर पुलिस निरीक्षक ने मारपीट की होगी। कुछ अधिकारी, अपने उच्चाधिकारी और स्थानीय सत्तारूढ़ दल के नेताओं का विश्वासपात्र बनने के लिए कानून-कायदों की सारी सीमाएं तोडऩे के लिए तैयार रहते हैं। उन्हें यह पता नहीं होता कि बड़े अफसर और नेता तो बच जाएंगे, सजा उनको भुगतनी पड़ेगी। लगे हाथ याद दिला दें कि कोविड काल में बिलासपुर में पदस्थ रहने के दौरान तत्कालीन विधायक शैलेष पांडेय के खिलाफ भी इसी अधिकारी ने एफआईआर दर्ज की थी। कांग्रेस के ही ताकतवर गुट को खुश करने के लिए। अभी जो बड़े-बड़े अफसर जेल में बंद हैं, वे अच्छे उदाहरण हैं कि सत्तारूढ़ नेताओं की भक्ति में पद को दांव पर लगाने का क्या नतीजा होता है। कुछ दिन पहले ही हाईकोर्ट ने रायगढ़ में एक पुलिस प्रताडि़त दंपती की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रदेश के सभी थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने और उन्हें चौबीसों घंटे चालू रखने का निर्देश दिया था। बलौदाबाजार में पीडि़त व्यवसायी ने न्याय पाने के लिए थाने में लगाए गए सीसीटीवी कैमरे को ही सबूत के रूप में पेश किया था। इससे पता चलता है कि हाईकोर्ट का आदेश कितना जरूरी था। पर हाईकोर्ट को आदेश देने की जरूरत क्यों पडऩी चाहिए। यह काम तो सरकार का है कि वह पुलिस की छवि को बेहतर बनाए।
इंस्पेक्टर का पंडवानी प्रेम
पुलिस की नौकरी के बीच अपनी कला को बचाये रखना थोड़ा मुश्किल काम है। बचपन से पंडवानी गायन में रुचि रखने वाली तरुणा साहू आरपीएफ में इंस्पेक्टर हैं। पिछले साल मार्च महीने में ही उनकी चर्चा तब हुई थी, जब उन्होंने राजनांदगांव से फरार हत्या के आरोपी व्यवसायी प्रकाश गोलछा को पकडऩे में अपने पति एमन साहू की मदद की थी, जो कोतवाली में टीआई के पद पर थे। इस समय तरुणा साहू की चर्चा इसलिये हो रही है क्योंकि वह अयोध्या जा रही हैं। वहां हो रहे महोत्सव में 16 मार्च को वह पंडवानी की प्रस्तुति देंगीं। ([email protected])
शिक्षकों का नैतिक पतन
तिल्दा-नेवरा के केसदा गांव में एक शिक्षक पैन सिंह चंदेल को पुलिस ने गिरफ्तार किया जिसे कोर्ट ने जेल भेज दिया है। नारायणपुर में तीन शिक्षकों धर्मेंद्र देवांगन, नारायण देवांगन और नरेंद्र ठाकुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। इसके बाद तीनों शिक्षक फरार हैं। बिल्हा में एक शिक्षक कमलेश साहू को गिरफ्तार किया गया है। मल्हार मस्तूरी में भी एक शिक्षक संजय साहू को गिरफ्तार कर लिया गया है। कुनकुरी में हाईस्कूल के व्याख्याता संजय साहू को गिरफ्तार किया गया। छत्तीसगढ़ के अलग-अलग कोने के इन सभी शिक्षकों पर अपने स्कूल में पढऩे वाली छात्राओं के साथ छेडख़ानी, अश्लील मेसैज भेजने जैसे आरोप हैं। हर एक मामले में क्षोभ की बात यह रही है कि शाला के प्राचार्य, प्रधान पाठकों ने बच्चियों की शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया। कहीं पर छात्रों और ग्रामीणों को स्कूल प्रबंधन का घेराव करना पड़ा तो कहीं पीडि़त परिवार को खुद जाकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी पड़ी, तब जाकर कार्रवाई हुई। कानून सख्त होने के कारण पुलिस ऐसी शिकायतों को टाल नहीं पाती, अगर शिकायतकर्ता जागरूकता दिखाए। मगर, शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने शिक्षकों के निलंबन आदि की कार्रवाई भी तब की जब रिपोर्ट दर्ज हो गई, या फिर गिरफ्तारी हो गई।
ये सब घटनाएं बीते 15-20 दिन के भीतर हुई हैं। इस बीच हमने महिला अंतरराष्ट्रीय दिवस भी मना लिया। पीडि़त छात्राओं की सराहना करनी होगी कि उन्होंने फेल करने, निष्कासित करने की धमकी मिलने के बावजूद शिकायत लेकर सामने आईं। मगर, प्रदेश के दूसरे स्कूलों में और भी पीडि़त छात्राएं हो सकती हैं, वे सकता हैं वे सहमी हों, सहन कर रही हों।
छत्तीसगढ़ में स्कूलों का शैक्षणिक स्तर पूरे देश में 27वें नंबर पर है, यानि बेहद बुरी स्थिति में। अब ऐसे शिक्षक अपनी करतूतों से साबित करने में लगे हैं, कि वे स्कूलों का शैक्षणिक स्तर ही नहीं गिराएंगे बल्कि गुरुजनों की नैतिकता नापने का कोई पैमाना हो तो उसमें भी वे सबसे नीचे तक ले आएंगे। ऐसे शिक्षक जो अपने अधिकारियों के संरक्षण में शिकायत को दबाने और गिरफ्तारी तथा निलंबन की कार्रवाई को रोकने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे थे। पॉक्सो एक्ट में कड़ी सजा का प्रावधान होने के बावजूद वे जमानत पाने और अदालत से बरी होने के लिए भी अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर सकते हैं। पर बच्चियों के लिए इससे बुरा कुछ नहीं होगा कि ये शिक्षक दोबारा स्कूल में पढ़ाने के लिए आ जाएं।
चार कॉलेजों के एक प्राचार्य
जशपुर जिले के कांसाबेल स्थित सरकारी कॉलेज से बागबहार की दूरी 17 किलोमीटर, बगीचा की दूरी 46 किलोमीटर और सन्ना की दूरी 75 किलोमीटर है। इन तीनों स्थानों में भी सरकारी कॉलेज हैं। खास बात यह है कि इन चारों कॉलेजों में किसी में भी स्थायी प्राचार्य की नियुक्ति नहीं की गई है। कांसाबेल में इतिहास विषय की पढ़ाई कराने वाले सहायक प्राध्यापक को प्रभारी प्राचार्य बनाकर रखा गया है। पर उनको इसी एक कॉलेज की जिम्मेदारी नहीं उठानी है, बल्कि जिन बाकी तीन कॉलेजों की बात की जा रही है, वहां का प्रभार भी उनको ही दे दिया गया है। यानि एक साथ, एक छोर से दूसरे छोर वाले चार कॉलेजों के प्रभारी। उच्च शिक्षा विभाग कॉलेजों की व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए कितना गंभीर है, इससे समझा जा सकता है।
आत्मनिर्भर किसान
मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य इस बार 2019 रुपये प्रति क्विंटल रखा गया था। एक किसान से 10 क्विंटल अधिकतम खरीदी करना था और यह खरीदी 28 फरवरी तक ही की जानी थी। धमतरी जिले में करीब 500 हेक्टेयर में इस बार मक्के की खेती की गई। एक अनुमान के अनुसार करीब 26 हजार क्विंटल उत्पादन हुआ। पर किसी भी किसान ने सोसायटी में जाकर मक्का नहीं बेचा। वजह, बाजार में उन्हें समर्थन मूल्य से कहीं ज्यादा कीमत मिली।
छत्तीसगढ़ में धान की खूब पैदावार ली जाती है। धान के सरकारी प्रोत्साहन में हजारों करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। धान में बहुत पानी भी लगता है। मक्के में जरूरत कम पड़ती है। सरकार मिलेट्स को बढ़ावा देने की बात करती है। तब उसे ऐसे आत्मनिर्भर किसानों की सुध जरूर लेनी चाहिए।
नेता बच्चों के ट्यूटर
स्कूल शिक्षा विभाग में जिला शिक्षाधिकारियों की तबादला सूची को लेकर काफी हलचल रही। सूची में जयनारायण पांडेय स्कूल के प्राचार्य मोहन सावंत और दानी स्कूल के प्राचार्य विजय खंडेलवाल का भी नाम है। दोनों को प्रभारी जिला शिक्षाधिकारी बनाकर क्रमश: महासमुंद और रायपुर में पदस्थ किया गया है।
बताते हैं कि दोनों ही अफसर पिछले डेढ़ दशक से एक ही स्कूल में पदस्थ थे। उन्हें हटाने की खूब कोशिश भी हुई लेकिन दोनों अपने अपार संपर्कों की वजह से पद पर बने रहे। दोनों ही अच्छे शिक्षक भी माने जाते हैं, और स्थानीय बड़े नेताओं के बच्चों के ट्यूटर भी रहे हैं।
यही वजह है कि जब-जब तबादला सूची में उनका नाम जोड़ा जाता था, बड़े नेता नाम हटवा देते थे। अब जब दोनों को मनचाही पोस्टिंग मिली है, तो उनकी जगह लेने के लिए शिक्षकों में होड़ मच गई है। देखना है आगे क्या होता है।
पीडि़तों की मुख्य धारा
कांग्रेस शासनकाल में पीडि़त रहे अधिकारी कर्मचारियों ने बड़ी अच्छी उक्ति लगाई है। इनके तबादले पोस्टिंग के लिए एक टैग लाइन, पंच लाइन चल पड़ी है। पीडि़तों को मुख्य धारा में लाना है। भाईसाहबों के हाथ लिखी ये लाइन देखते ही पीडि़त मुख्य धारा में लौटने लगे हैं। दो दिन पहले ही रानु कुनबे के ऐसे ही दागी दो खनिज अधिकारी, माइनिंग डिस्ट्रिक्ट कहे जाने वाले फील्ड में पदस्थ कर दिए गए। जबकि इनके यहां ईडी विजिट कर चुकी थी। वैसे विभाग में चर्चा है कि इन दोनों ने काफी कुछ इनपुट दिया था। सो इनाम मिलना ही था। इसी तरह से स्कूल शिक्षा विभाग ने निलंबित व्याख्याता को न केवल बहाल किया बल्कि प्रभारी डीईओ बना दिया। यह कहकर की नक्सल जिलों में कोई जाना नहीं चाहता। इन्हें पिछले ही माह सदन में निलंबित किया गया था। ये पीडि़त भी मुख्य धारा में लौट आए।
बस्तर के बर्तन...
बस्तर संभाग के, बस्तर जिले के, बस्तर ब्लॉक के, बस्तर पंचायत के, बस्तर गांव का सोमवार बाजार। गर्मी में मांग बढ़ जाती है, पर बहुत से स्थानीय आदिवासी परिवार हैं जो हर मौसम में मिट्टी के घड़ों से ही काम चलाते हैं। वैसे मौसम विभाग का आंकड़ा बताता रहता है कि घने जंगलों वाले बस्तर और घनी बिल्डिंग वाली राजधानी रायपुर के तापमान में अब ज्यादा अंतर नहीं रह गया है। आज की ही बात करें तो बस्तर में अधिकतम तापमान 35 डिग्री है, जबकि रायपुर में 36 डिग्री सेल्सियस।
कडक़ कलेक्टर
अंबिकापुर कलेक्टर विलास भोसकर संदीपन इन दिनों चर्चा में हैं। संदीपन ने करोड़ों की सरकारी जमीन बिक्री प्रकरण पर सख्त कार्रवाई का हौसला दिखाया, और घोटाले में संलिप्त डिप्टी कलेक्टर समेत 4 अफसर-कर्मियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई भी करा दी।
पिछले कुछ सालों में अंबिकापुर में जमीन के अफरा-तफरी के सबसे ज्यादा मामले आए थे। पिछली सरकार में तो एक तत्कालीन मंत्री के निज सहायक के खिलाफ भी अपराधिक प्रकरण दर्ज हुआ था। मगर ताजातरीन घोटाला प्रकरण में लीपापोती की भी कोशिश हुई।
शिकायतकर्ता तो भाजपा के नेता हैं लेकिन जिन पर घोटाले में संलिप्तता का आरोप लग रहा है वो एक जनप्रतिनिधि के नजदीकी रिश्तेदार हैं। ऐसे में कलेक्टर ने किसी के प्रभाव में आए बिना कार्रवाई की।
थोक में चूक, अब कोर्ट
सरकार में तहसीलदार, नायब तहसीलदार, भू-अभिलेख अफसर और जनपद सीईओ के थोक में तबादले हुए तो कई गंभीर चूक सामने आई है। चर्चा है कि सीएम के अनुमोदन के बिना ही विभागीय सचिव ने तबादला आदेश जारी कर दिए थे।
सचिव तो बदल दिए गए लेकिन तबादले के बाद जो विवाद खड़ा हुआ उससे बचने के लिए सरकार अब पूरे तबादलों को ही निरस्त करने जा रही है। बताते हैं कि निरस्तीकरण के लिए 33 याचिकाएं हाईकोर्ट में लगी है।
चर्चा है कि करीब आधा दर्जन से अधिक ऐसे नायब तहसीलदारों का तबादला कर दिया गया था जिनकी नियुक्ति को ही छह माह हुए थे, और परिवीक्षा अवधि में हैं।
सरकार ने भी हाईकोर्ट में कहा है कि तबादलों को निरस्त किया जा रहा है। कुल मिलाकर गलतियों को दुरस्त करने का फैसला लेकर सरकार ने विवाद को बढऩे से रोक दिया है।
दो बंगलों में भीड़ बढ़ रही
मंत्रिमंडल में अभी एक जगह खाली है। मई के बाद एक और जगह खाली होगी। इस प्रत्याशा में कुछ माननीयों की चाल-ढाल बदल गई है। कार्यकर्ता भी भैया के मंत्री बनने की प्रत्याशा में फिर सक्रिय हो गए हैं। दो पूर्व मंत्री को जब कैबिनेट में जगह नहीं मिली तो वे थोड़े निराश नजर आ रहे थे। उनके समर्थक भी दूसरे बंगले की ओर रुख करने लगे थे। जैसे ही बृजमोहन अग्रवाल को लोकसभा का प्रत्याशी घोषित किया गया। दो पूर्व मंत्रियों के बंगले में फिर चहल-पहल बढ़ गई है। नेताजी जानकार हैं। सामाजिक समीकरण में संभव है कि उन्हें मौका मिल जाए, इसलिए कार्यकर्ता भी कोई कसर नहीं छोडऩा चाहते। और नगरीय प्रशासन, पीडब्लूडी, आवास पर्यावरण, वित्त विभाग के अफसर भी इनकी सुनने लगे हैं।
भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस
सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस पर काम कर रही है। सौ दिनों के कार्यकाल के दौरान सीएम और ठाकरे परिसर ने ऐसे अफसर, कर्मचारियों पर नजर रखा। इनमें मंत्री, विधायकों के निजी स्टाफ भी शामिल है। क्योंकि पिछली भाजपा सरकार की बदनामी की बड़ी वजह ये ही लोग रहे हैं। इन सबके बीच एक बड़े विभाग के मंत्री के पीए को नियुक्ति के दूसरे महीने ही हटा दिया गया। जानकारी मिली थी कि पीए ने हाथ साफ करने की कोशिश की थी। इसके बाद तो सभी सकते में हैं,
मंत्री और पीए भी। एक जानकारी यह भी है कि पिछली कांग्रेस सरकार में मंत्री स्टाफ रहे लोग विधायकों के यहां सेट हो रहे हैं। ऐसे लोगों की भी सूची तैयार कर ली गई है।
समय मिलते ही शायद इन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।
बेरोजगारी पर सीएम हाउस घेराव
रोजगार देने में छत्तीसगढ़ अव्वल है। प्रदेश में बेरोजगारी दर महज 0.1 प्रतिशत है, जबकि देश में 8.2 फीसदी। राज्य की नीतियों की वजह से यह बड़ी उपलब्धि हासिल हुई....। कांग्रेस शासनकाल के दौरान यह बात बड़े बड़े बिलबोर्ड, होर्डिंग, पोस्टर में प्रदर्शित की जा रही थी। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले तक। यह दावा सीएमआईई के आंकड़ों के आधार पर किया जाता था, जिसके आकलन के तरीके पर अनेक बार अर्थशास्त्री सवाल उठा चुके हैं। खुद सरकार ने इन आंकड़ों के समर्थन में गांवों में गोधन न्याय योजना का जिक्र किया, जिसमें गोबर से होने वाली को शामिल किया गया था। कांग्रेस सरकार ने युवाओं का बेरोजगारी भत्ता शुरू किया, तब कतारें लगीं। लाखों युवा रोजगार कार्यालयों में पंजीयन नहीं कराते। पर पंजीयन कराने वाले युवाओं को ही आधार मानें तो उनकी संख्या 17 लाख से अधिक है। मगर शर्तों की वजह से इनमें से कई लाख युवाओं को भत्ते का पात्र नहीं माना गया। अक्टूबर 2023 में उच्च शिक्षा विभाग ने भृत्य, चौकीदार और स्वीपर के 880 पदों के लिए विज्ञापन निकाला था। इसमें शैक्षणिक योग्यता 5वीं से लेकर 12वीं तक रखी गई। मगर आवेदन करने वालों में ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट भी शामिल थे। आवेदन करने वालों की संख्या 7 लाख से अधिक है। पांच माह हो गए, भर्ती की प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो पाई है। जिम्मेदारी व्यापमं को दी गई है जिसे शायद समझ नहीं आ रहा है कि इतने सारे लोगों की एक साथ परीक्षा कैसे ली जाए। सीएमआईई के दावों के विपरीत केंद्र सरकार की नेशनल सेंपल सर्वे की रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी का प्रतिशत 26.4 है। इस सर्वे के अनुसार बेरोजगारी में अपना राज्य देश में पांचवे स्थान पर है। मगर, सरकार ने अपनी सुविधा के लिए सीएमआईई के आंकड़ों को प्रचारित किया।
राजधानी में युवक कांग्रेस ने सोमवार सीएम हाउस का घेराव किया। महंगाई के अलावा बेरोजगारी के मुद्दे पर यह आंदोलन था। भाजपा ने छत्तीसगढ़ सरकार का यह कहते हुए बचाव किया कि अभी अभी तो सरकार बनी है। केंद्र के आंकड़ों को सामने रखा जिसमें रोजगार सृजन की योजनाओं से करोड़ों युवाओं के लाभान्वित होने का दावा है। भाजपा विपक्ष में रहते हुए बेरोजगारी को गंभीर मसला मानती थी। प्रवक्ताओं ने कांग्रेस सरकार के दावों को सफेद झूठ और युवाओं से मजाक बताया। युवक कांग्रेस को भी भाजपा की सरकार के बनने के बाद ही बेरोजगारी की हकीकत दिखी। वरना अपनी सरकार के 0.1 प्रतिशत बेरोजगारी के दावे पर वह खुश थी।
नैतिकता का नुकसान
राजनीति दांव पेंच का खेल है। इसमें नैतिकता और अंतरात्मा के आधार पर फैसले लिए जाएं तो नुकसान उठाना पड़ जाता है। विधानसभा चुनाव के बाद कवर्धा शहर में कांग्रेस की हार हुई। नगर पालिका अध्यक्ष ऋषि शर्मा ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। बीते 3 माह से कांग्रेस के पार्षद इंतजार कर रहे थे कि नया अध्यक्ष चुनने के लिए जिला प्रशासन आमसभा बुलाए। मगर, ऐसा नहीं हुआ। राज्य सरकार ने कल यहां भाजपा के पार्षद मनहरण कौशिक को अध्यक्ष मनोनित कर दिया। जाहिर है प्रदेश में जब भाजपा सत्तारूढ़ है तो वह अपनी ही पार्टी से किसी को अध्यक्ष बनाना चाहेगी। अब दो तिहाई बहुमत के बावजूद नगरपालिका कांग्रेस के हाथ में नहीं है। दिलचस्प यह है कि यह नियुक्ति ठीक ऐसे मौके पर की गई है, जब लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने वाली है। मतलब, मनोनित अध्यक्ष को अपना बहुमत साबित करने की फिलहाल चिंता नहीं है। न कोई सम्मेलन होगा, न कोई चुनाव। मई में लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद ही कुछ हो सकता है। ([email protected])
अफसर सुनते नहीं
तीन महीने ही हुए हैं और भाजपा के कार्यकर्ता कांग्रेस शासन को याद करने लगे हैं। आईएएस और आईपीएस से लेकर निचले स्तर के अधिकारी-कर्मचारी अजीब से दबाव में थे। सत्ता बदली तो अफसर रिलैक्स हो गए। इतने रिलैक्स हो गए कि भाजपा कार्यकर्ताओं की ही नहीं सुन रहे। बिलासपुर क्षेत्र में तो एक टीआई ने भाजपा की बैठक के दौरान कार्यकर्ताओं की गाडिय़ों पर कार्रवाई शुरू कर दी और विधायक को हस्तक्षेप करना पड़ा। इसके बाद एसपी ने टीआई को लाइन अटैच कर दिया। मीडिया में जब यह खबर आई तो विधायक को पर्सनली एप्रोच करना पड़ा कि ऐसी खबरें छापने से उनकी छवि खराब होगी।
हाई रेटिंग वाले नेता
मंत्रिमंडल की दो सीटों पर किसे मौका मिल सकता है... यह सवाल तो सबके मन में है, लेकिन संभावित दावेदारों में हाई रेटिंग वाले नेता कौन हैं, यह जानना है तो नेताओं की सक्रियता और उनके आसपास की भी? से अंदाजा लगा सकते हैं। ठाकरे परिसर के एक कमरे में कुछ पदाधिकारियों के बीच ऐसी चर्चा चल रही थी। दरअसल, दो सीटों के दावेदार दर्जनभर हैं। यह भी कयास लगाए जाने लगे हैं कि देर-सबेर परफॉर्मेंस के आधार पर वर्तमान टीम से एक-दो को हटाकर कुछ नए चेहरों को भी लाया जा सकता है।
भोजन-पानी की तलाश में...
अभी ठीक तरह से गर्मी आई नहीं है। पूरा अप्रैल, मई और जून बचा है। पर वन्यजीवों को जंगलों में भोजन-पानी की कमी महसूस होने लगी है। यह तस्वीर डोंगरगढ़ के पास पलादूर ग्राम की है। गांव में विचरण करते भालू को देख ग्रामीण दहशत में आ गए। पर भालू ने कुछ घंटे बिताए, पानी पिया, कुछ भोजन किया, लौट गया।
बैज की टिकट पर लखमा की नजर
सांसद दीपक बैज ने छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पिछले साल जुलाई माह में तब संभाली थी, जब कांग्रेस की सत्ता में दोबारा वापसी की भरपूर संभावना दिखाई दे रही थी। इसी अनुमान के चलते चित्रकोट के तत्कालीन विधायक राजमन बेंजाम की टिकट काटी गई और बैज ने खुद वहां से चुनाव लड़ा। मगर, यह सीट कांग्रेस बचा नहीं पाई। यदि प्रदेश में कांग्रेस की जीत होती तो बैज अपने लिए संभावना देख रहे थे। आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में वे अपने नाम पर जोर डाल सकते थे। पर कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं होने के चलते यह हो नहीं सका। इधर भाजपा ने आदिवासी मुख्यमंत्री को शपथ दिला दी। कहते हैं कि इसी वजह से कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश और बस्तर में खराब प्रदर्शन के बावजूद बैज को प्रदेश अध्यक्ष पद से नहीं हटाने का निर्णय लिया।
विधानसभा में हार के बाद अब तुरंत लोकसभा चुनाव सामने आ गया है। प्रदेश अध्यक्ष बनने तक बस्तर से बाहर बैज की कार्यकर्ताओं से कोई मेल मुलाकात नहीं थी। उस समय उन्होंने प्रदेश के सभी जिलों का दौरा कर कार्यकर्ताओं से मिलने की योजना बनाई थी, पर ऐसा नहीं हो पाया। शायद चुनावी तैयारियों में जुटने की वजह से ऐसा हुआ। पर यह काम अब भी नहीं हो पाया है। 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले दो साल तक पूरे प्रदेश का धुआंधार दौरा कर भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव ने जिस तरह कार्यकर्ताओं से जीवंत संपर्क बनाया था, वह बैज अभी नहीं बना पाए हैं। एक के बाद एक कांग्रेस नेता, जिनमें कई पूर्व विधायक, प्रदेश-जिला कांग्रेस, जिला पंचायत और स्थानीय निकायों के पदाधिकारी हैं- भाजपा में शामिल हो रहे हैं। इनमें से कुछ लोगों ने बैज पर उपेक्षा का आरोप भी लगाया।
बेंजाम की जब टिकट काटी गई तो उनके समर्थकों की भारी भीड़ जुट गई थी, जो उनको निर्दलीय लड़ाने पर आमादा था। उनकी नाराजगी बैज को ही लेकर थी। हालांकि चित्रकोट से सन् 2018 में बैज ही विधायक बने थे, पर 2019 में सांसद बन जाने के बाद बेंजाम को उप चुनाव में मौका मिला था। प्रदेश में कांग्रेस की हार के बाद बैज के सामने चुनौती संगठन को फिर से मजबूत कर लौकसभा चुनाव की तैयारी करना और उपयुक्त उम्मीदवारों का नाम सुझाना था। पर अब उनकी खुद की टिकट पर खतरा है। कोंटा विधायक कवासी लखमा ने कुछ पूर्व विधायकों व बस्तर के अन्य नेताओं के साथ बस्तर से हरीश लखमा के लिए टिकट मांगी है। बस्तर में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन होने और विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद भी बैज अपनी टिकट बचा लें तो बड़ी बात होगी। कांग्रेस से जुड़े लोगों का कहना है कि उम्मीदवार तय करते समय यह भी देखा जा रहा है कि वह चुनाव का कितना खर्च खुद उठा सकता है। इस पैमाने पर तो हरीश लखमा शायद बैज पर भारी पड़ें। वैसे अमरजीत भगत के साथ कवासी लखमा को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य बना दिया गया है। ऐसा करके बस्तर में लखमा की ताकत पर हाईकमान ने मुहर लगाई है। क्या यह ताकत टिकट मांगने के काम आएगी? या फिर एआईसीसी में लेकर उन्हें टिकट नहीं मांगने के लिए मनाया गया है? आज कल में तस्वीर साफ होगी।
बिना लीडर की कांग्रेस
कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होने के बाद से पार्टी में भगदड़ मची है। कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं, और कई छोडऩे की तैयारी कर रहे हैं। खास बात यह है कि बड़े नेता असंतुष्टों की मान-मनौव्वल के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।
बताते हैं कि पार्टी छोडऩे वालों को रोकने की कोशिश तक नहीं हुई। और जो जाने की तैयारी कर रहे हैं उनसे भी कोई बात नहीं हो रही है। प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट अपने गृहराज्य राजस्थान में ही व्यस्त हैं। प्रभारी सचिव चंदन यादव ने विधानसभा टिकट के लिए रिश्वतखोरी के आरोप के बाद से छत्तीसगढ़ आना ही बंद कर दिया है। एक अन्य प्रभारी सचिव सप्तगिरी उल्का खुद चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं, लिहाजा वो अपने क्षेत्र में व्यस्त हैं।
रही बात प्रदेश के नेताओं की, तो पूर्व सीएम भूपेश बघेल अपना सारा ध्यान राजनांदगांव में केन्द्रित कर रखा है। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज खुद की टिकट के लिए मेहनत कर रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरणदास महंत भी अपनी ऊर्जा कोरबा और जांजगीर-चाम्पा में लगाते दिख रहे हैं। ऐसे में असंतुष्टों की सुध लेने वाला कोई नहीं रह गया है। स्वाभाविक है कि पार्टी में भगदड़ तो मचेगी ही।
बनी-बनाई बिगाडऩे की तैयारी
कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि कांकेर लोकसभा सीट पर पार्टी की जीत की संभावना सबसे ज्यादा है। मगर यहां टिकट को लेकर जिस तरह किचकिच चल रही है, उससे दिनोंदिन सीट मुश्किल में दिख रही है।
कांकेर में वीरेश ठाकुर की स्वाभाविक दावेदारी है। वो पिछले लोकसभा चुनाव में मात्र 6 हजार से कम वोटों से हारे थे। बावजूद इसके वो काफी सक्रिय रहे हैं। लेकिन कई नेताओं ने अनिला भेंडिय़ा को आगे कर दिया है।
कुछ नेताओं ने पूर्व संसदीय सचिव शिशुपाल सोरी और पूर्व विधायक डॉ. लक्ष्मी ध्रुव को दावेदारी करने की सलाह दे दी है। रही-सही कसर छत्तीसगढ़ के पूर्व प्रभारी, जो कि कर्नाटक के रहने वाले हैं उन्होंने नरेश ठाकुर को दावेदारी करने के लिए कह दिया है। अब हाल यह है कि जिन्हें टिकट नहीं मिलेगी वो अब बागी तेवर दिखा सकते हैं। ऐसे में कांकेर की भी लड़ाई कठिन हो गई है।
मैनेजमेंट कौन करेगा
कांग्रेस ने पूर्व सीएम भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू, ज्योत्सना महंत, शिव डहरिया जैसे नेताओं को लोकसभा में उतार दिया है। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज भी बस्तर सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। टीएस सिंहदेव पारिवारिक कारणों से अभी सक्रिय नहीं हैं। ऐसे में बड़ा सवाल उठ रहा है कि चुनाव का मैनेजमेंट कौन संभालेगा। झीरम घाटी कांड के बाद जो शून्यता आई थी, उसमें बघेल ने जोश भरा था। 2018 के चुनाव में भूपेश-टीएस की जोड़ी ने ऐतिहासिक 68 सीटों पर जीत दिलाई। इस बार चुनाव में भले ही कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई, लेकिन पार्टी में स्वीकार्यता इन नेताओं की है। ये ही चुनाव में व्यस्त रहेंगे तो बाकी मैनेजमेंट में दिक्कत हो सकती है। वैसे लोग कहने लगे हैं कि दाऊजी ने चुनाव लडऩे का फैसला कर दो सीटें कांग्रेस के लिए फंसा दी हैं ।
कहीं आप तो नहीं जा रहे
कांग्रेस में अजीब दुविधा है। चुनाव में हारने के बाद ज्यादातर नेता निष्क्रिय हो गए हैं। पार्टी की बैठकों-कार्यक्रमों से दूर रहने लगे हैं। इस बीच पूर्व विधायकों और विधानसभा प्रत्याशियों के भाजपा प्रवेश की खबरों के बाद ऐसे नेताओं की परेशानी और बढ़ गई है। कार्यक्रम में जाना नहीं चाहते और गैर मौजूदगी में तरह-तरह की बातें होने लगती है। एक नेताजी से मीडिया ने सवाल कर दिया... आजकल दिखते नहीं, आप तो भाजपा में नहीं जा रहे। यह सुनकर नेताजी को सफाई देनी पड़ गई।
वन विभाग नहीं मानता आयोग के निर्देश
एक पद पर तीन वर्ष या अधिक समय से पदस्थ अफसरों के चुनाव पूर्व तबादलों के आयोग का निर्देश शायद वन विभाग में लागू नहीं होता। यही वजह है कि तीन ही नहीं वर्ष से पदस्थ भावसे,रावसे के अधिकारी न विधानसभा चुनाव के वक्त न लोकसभा से पहले टस से मस हुए हैं। प्रदेश मे 33 वन मंडल और 300 से अधिक रेंज कार्यालय है और यहां के 50 डीएफओ 70 एसडीओ 100 से ऊपर रेंजर हैं जो रायपुर से लेकर बीजापुर, सूरजपुर तक विगत 4 से 5 वर्षो से एक वन मंडल में जमे हैं । इनमें से कई पंजा छाप अफसर हैं। कुछ तो सरकार बदलने के बाद भी बदले। इन्हें विधानसभा चुनाव में आयोग के डंडे से बचाया गया। अब लोकसभा चुनाव की आचार संहिता बस लगने ही वाली है, और हर अधिकारी फिर से अपने को बचाने जंगल में मंगल करने की जुगत मे लग गया है। कोई मंत्री को अपना भैया बता रहा है तो कोई विधायकों ,पीसीसीफ और भाई साहबों को सेट करने मे लगा है। हालांकि बिग बॉस भी कैट में उलझे हुए हैं। उनका ही भविष्य तय नहीं है। अब देखना है कि अपनी कुर्सी बचाते हैं या मातहतों को ।
‘आप’ के इरादे क्या हैं?
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के एक डेढ़ साल पहले आम आदमी पार्टी ने अपने संगठन का बड़ी तेजी से विस्तार किया। दावा किया गया कि प्रदेश के सभी विधानसभा के सभी बूथों में उन्होंने कार्यकर्ताओं की टीम बना ली है। पर, चुनाव आते-आते उसने इरादा बदल लिया और करीब आधे सीटों पर ही चुनाव लड़ी। अब जब लोकसभा चुनाव को लेकर छत्तीसगढ़ में बाकी दल अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर रहे हैं, आम आदमी पार्टी के भीतर कोई हलचल दिखाई नहीं दे रही है। आप ने दिल्ली, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, चंडीगढ़ और गोवा में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया है, पर यूपी में उसने कोई सीट नहीं मांगी। छत्तीसगढ़ में भी किसी लोकसभा सीट पर लडऩे के लिए उसने विशेष तैयारी नहीं की। कहा जा रहा है कि मोदी सरकार ने उसे शराब घोटाले और ईडी की नोटिस, गिरफ्तारियों में इतना उलझा दिया है कि वे नये राज्यों में पैर फैलाने से बच रही है। छत्तीसगढ़ प्रदेश इकाई के अध्यक्ष कोमल हुपेंडी को इस्तीफा दिए हुए दो माह हो चुके हैं, लेकिन उनकी जगह अब तक कोई नया अध्यक्ष भी नियुक्त नहीं किया गया है। आप को खड़ा करने के लिए जी तोड़ मेहनत करने के लिए हजारों कार्यकर्ताओं ने मेहनत की। यदि लोकसभा चुनाव के लिए इन्हें कोई टास्क नहीं दिया गया तो छत्तीसगढ़ में पार्टी का जो कुछ बचा है, उसके बिखर जाने का खतरा है। ([email protected])
आवारा कुत्तों के हमले
जशपुर जिले में महाशिवरात्रि पर्व के दौरान एकत्र लोगों पर एक आवारा कुत्ते ने हमला कर दिया, जिससे छह बच्चों सहित 11 लोग घायल हो गए। उनके आंख मुंह में चोटें आईं। राजधानी रायपुर के पुरानी बस्ती इलाके में पिछले 2 महीने के भीतर एक दर्जन से ज्यादा लोग कुत्तों के हमले से घायल हो चुके हैं। फरवरी के अंतिम सप्ताह में कोरबा जिले की गेवरा कॉलोनी में 24 घंटे के भीतर ही एक दर्जन लोगों को कुत्तों ने काटा। कोरबा नगर निगम इलाके में रोजाना 30 से 35 लोग रेबीज का टीका लगवाने विभिन्न अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। बस्तर के महारानी और दूसरे सरकारी अस्पतालों को मिलाकर रोजाना 20 से 25 लोग कुत्तों के हमले से घायल होकर पहुंच रहे हैं। यहां एंटी रैबीज इंजेक्शन के अतिरिक्त स्टाक की मांग की गई है। भिलाई, दुर्ग और दूसरे शहरों से भी रोजाना इसी तरह की खबरें आ रही हैं।
कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले की एक दहला देने वाली घटना सामने आई थी, जिसमें 2 साल के बच्चे को कुत्तों ने नोच-नोच कर मार डाला था। हैदराबाद में एक 4 साल के मासूम के साथ भी कुछ दिन पहले ऐसा ही हुआ। रायपुर के गुलमोहर पार्क में करीब 4 महीने पहले एक ढाई साल की बच्ची को कुत्तों ने घसीटते हुए नोच डाला था, 15 जगह जख्म के निशान मिले। यह बच्ची सही सलामत है।
जशपुर की घटना में उत्तेजित भीड़ ने कुत्ते को घेर कर मार डाला। अक्टूबर 2019 में बिलासपुर के रामा वैली में आवारा कुत्तों को तार से बांधकर बेरहमी से लाठियों से पीट-पीटकर ट्रैक्टर में लादा गया और दूर ले जाकर छोड़ा गया। कई कुत्तों की मौत भी हो गई। इस घटना की व्यापक प्रतिक्रिया हुई। थाने में शिकायत हुई थी, लोगों ने कैंडल मार्च निकाला।
संविधान का अनुच्छेद 51 ए (जी) सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया रखने का निर्देश देता है। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों के फैसलों के मुताबिक कुत्तों को उनकी गली से हटाया नहीं जा सकता। उनका टीकाकरण और नसबंदी ही बचाव का उपाय है। इस पर एक्ट 1960 से है। 2001 में भी अधिनियम संशोधित हुआ। केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालतों के फैसलों के सिलसिले में अप्रैल 2023 में एक अधिसूचना जारी कर कुत्तों के टीकाकरण और नसबंदी की पूरी जिम्मेदारी नगरीय निकायों और पंचायत पर डाली है। सन् 2022 की एक गणना के अनुसार छत्तीसगढ़ में आवारा कुत्तों की संख्या 40 हजार थी, अब और बढ़ चुकी होगी। बीते वर्षों में रायपुर, कोरबा, भिलाई बिलासपुर जैसे शहरों में पंजीकृत संगठनों के माध्यम से कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के कुछ दिन तक कार्यक्रम अलग-अलग चलाए गए। मुंबई जैसे महानगर में यह काम सफलतापूर्वक किया जा चुका है। वहां आवारा कुत्तों की संख्या बेहद कम है। इसी तरह से देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में भी काफी काम हुआ है। पर छत्तीसगढ़ में लगातार जिस तरह से मामले आ रहे हैं उससे स्पष्ट है कि ज्यादातर शहरों में स्थानीय प्रशासन गंभीर नहीं है।
यहां गाय-बैलों से क्रूरता
कांकेर जिले के मुसुरपट्टा गांव में छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा पशु बाजार लगता है। यहां छत्तीसगढ़ के धमतरी, कोंडागांव, बस्तर जिलों के अलावा ओडिशा से भी गाय बैल बिक्री के लिए लाए जाते हैं। पंचायत की अकेले इस बाजार की नीलामी से होने वाली आमदनी 45 लाख रुपये के आसपास है। मगर, यहां पशुओं के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार की शिकायत है। बाजार हर बुधवार को लगता है। पशु दो दिन पहले से आने लगते हैं। इन्हें भूखा-प्यासा रखा जाता है। कई पशुओं की बाजार में ही या फिर लाने ले जाने के दौरान मौत हो जाती है। यह सिलसिला कई सालों से चल रहा है। मीडिया ने लगातार इसे कवर किया है, मगर पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारी और पंचायत के प्रतिनिधि इस कृत्य को रोकने की कोशिश नहीं करते।
कितने हैं सरकार के खिलाफ कोर्ट...
छत्तीसगढ़ पुलिस में 23 वर्षों में जो नहीं हुआ वो इस बार हुआ। एक साथ 76 एएसपी बदल दिए गए। जो सरकार की आंखों में किरकिरी बने हुए थे उन्हें दो सौ से चार सौ किमी दूर भेजा गया। उसके बाद से ट्रांसफऱ ऑर्डर को लेकर डर देखा जा रहा । दरअसल इस बार बिना पेटी, खोखे के तबादले हुए हैं, इसलिए। और अब तो पीएचक्यू ने सूची पर अदालत में कैवियेट लगाया है। स्टे लेने जाने वालों की आशंका के चलते कैवियेट दायर किया गया है।
अब इस पर चर्चा भी होने लगी है कि जिले को सम्हालने वाले एएसपी होते हैं उन्हें जिले की बजाय एक कैम्प का इंचार्ज बनाया गया तो क्यों नहीं जाएँगे कोर्ट ? इतना ही नहीं यह सुझाव भी दे रहे हैं कि एडीजी नक्सल आपरेशन का हेड क्वार्टर भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सुकमा या दंतेवाड़ा में हो वो ज़्यादा मुफ़ीद होगा बज़ाय एएसएपी को कैम्प इंचार्ज बनाने के। क्या पहले वालों ने ऐसा नही किया था किस गाइड लाइन के खिलाफ हुआ ये बताने का कष्ट करें। अब देखना यह है कि 76 में कितने 56 इंच वाले हैं जो सरकार को चुनौती दे, और कोर्ट कचहरी में लाखों खर्च करे।
एक पंडाल तीन सम्मेलन
वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने अपने बजट संबोधन में कहा था कि राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने फिजूलखर्ची रोकने के उपाए करेंगे । इसकी शुरूआत कर दी गई है। जैसा कहावत है कि एक टिकिट में दो सिनेमा। ऐसा ही कुछ राज्य शासन के तीन विभाग इन दिनों कर दिखाया है। साइंस कॉलेज मैदान में एक ही पंडाल में तीन सम्मेलन आयोजित कर बड़े खर्च से विभागीय मद को बचाया गया है। पहले शनिवार को किसान सम्मेलन, फिर आज महतारी वंदन और कल सोमवार को पंचायत सम्मेलन । साइंस कॉलेज मैदान में पूरा सेटअप वही केवल विभाग और सम्मेलन के फ्लेक्स, झंडें ही बदले गए और जाएंगे । यानी कुछ लाख रूपए में काम हो जाना चाहिए। अपने मंत्रियों के इस बेहतर तालमेल से वित्त मंत्री अवश्य खुश होंगे, कि साथी मंत्रियों की सोच भी मितव्ययिता की होने लगी है। लेकिन क्या विभाग के अधिकारी ऐसा सोच और कर रहे हैं। यह तो आरटीआई में पता चलेगा। कि तीन मैं से किस सम्मेलन में कम खर्च हुआ।
चर्चा 2005 की
रमन सरकार में पावरफुल रहे 2005 बैच फिर चर्चा है। उस सरकार में भी इस बैच के अधिकारी रमन सरकार के करीबी माने जाते थे, अब नई सरकार में भी। इस बैच के एक आईपीएस के लिए सरकार ने पूरी ट्रांसफर लिस्ट रोक दी थी। उनके आते ही आदेश जारी कर दिया। अभी इस अधिकारी की एसीबी ईओडब्ल्यू चीफ बनने की चर्चा है। वहां जाने के पहले ही अपने करीबियों को भेजकर अपनी टीम बना ली है। इसी तरह दिल्ली से लौट रहे अन्य अधिकारियों के लिए भी पावरफुल पद छोडक़र रखा गया है। उनके आते ही ताजपोशी हो रही है। सरकार में यह बैच धीरे धीरे मजबूत हो रहा है। इनसे जुड़े लोग भी पिछली सरकार में पावरफुल होने के बाद भी इस सरकार में अच्छी पोस्टिंग पर है।
बसपा की अलग राह का असर
सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में जांजगीर सीट पर बहुजन समाज पार्टी तीसरे स्थान पर थी। प्रत्याशी दाऊराम रत्नाकर ने एक लाख 31 हजार वोट हासिल किए। यहां कांग्रेस प्रत्याशी रवि भारद्वाज को भाजपा के गुहाराम अजगले ने 83 हजार मतों से हराया। बसपा ने तब सभी 11 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस भाजपा के बीच सीधा मुकाबला था, लेकिन यदि बसपा और कांग्रेस के बीच समझौता होता तो कुछ सीटों पर परिणाम अलग होते। पिछले कुछ दिनों से चर्चा चल रही थी कि इंडिया गठबंधन में मायावती को शामिल करने के लिए सोनिया गांधी प्रयास कर रही हैं। इसके लिए उन्हें प्रधानमंत्री पद का ऑफर भी दिया जा सकता है। मगर, अब मायावती ने स्पष्ट कर दिया है कि वे लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेंगीं। इसका मतलब यह है कि छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद से ही लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन कर रही कांग्रेस के लिए लड़ाई पहले की तरह इस बार भी कठिन है।
नक्सल ऑपरेशन का नया क्षेत्र
कांग्रेस शासन काल में अच्छी जगह पर पदस्थ रहे कई पुलिस अफसरों को नक्सली इलाकों में भेजा गया है। इनमें पंकज शुक्ला, संजय ध्रुव, अभिषेक माहेश्वरी, संजय कुमार महादेवा आदि शामिल हैं। इनकी जहां पोस्टिंग हुई है वे पहले से ही नक्सल प्रभावित इलाकों के रूप में जाने जाते रहे हैं। जैसे मोहला मानपुर अंबागढ़ चौकी, सुकमा, नारायणपुर, राजनांदगांव आदि। मगर यह पहला मौका है जब मुंगेली जिले में विवेक शुक्ला की नक्सल ऑपरेशन पोस्टिंग दी गई है। जिले के लोरमी इलाके में बीते एक दशक से नक्सल मूवमेंट की खबरें आती रही हैं। पिछली भाजपा सरकार के समय सन 2015 में एक खुफिया रिपोर्ट आई थी जिसमें बताया गया था कि माओवादी संगठन राजनांदगांव, कबीरधाम होते हुए मुंगेली के वन क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ाना चाहते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय से मिले पत्र के आधार पर पीएचक्यू ने जुलाई 2021 में एक आदेश जारी कर मुंगेली को नक्सल प्रभावित जिलों में शामिल कर लिया था। नक्सल प्रभावित जिलों में सुरक्षा संबंधी व्यय का अलग से प्रावधान होता है। अब 3 साल बाद यहां पर पुलिस अधिकारी की अलग से पोस्टिंग दी गई है।
बस्तर के नक्सल प्रभावित जिलों में लगातार सुरक्षा बलों के नए कैंप खोले जा रहे हैं। ऐसे में नक्सली के नए ठिकानों में सक्रिय होने की कोशिश कर सकते हैं। पहली बार तीन साल बाद मुंगेली में की गई अलग पोस्टिंग इसी का संकेत माना जा रहा है।
जंगल से मिली एक सब्जी
छत्तीसगढ़ के जंगल भांति भांति के फलों सब्जियों से आबाद है। सोनहत के साप्ताहिक बाजार में यह जो सब्जी बिकने के लिए आई है, वह आमतौर पर दिखाई नहीं देता। इसका नाम पखरी है। पीपल जैसा पेड़ होता है और उसे पर यह फली लगती है। उबालकर इसकी सब्जी बनाई जाती है।
टिकट कटने की नाराजगी
सन 2019 के लोकसभा चुनाव में कांकेर सीट से भाजपा प्रत्याशी मोहन मंडावी ने कांग्रेस के बीरेश ठाकुर को 6914 मतों से हराया था। लोकसभा के लिहाज से यह बहुत अधिक अंतर नहीं है। इस बार मंडावी की टिकट कट गई। टिकट कटने से हुई नाराजगी वे छिपा नहीं रहे हैं। बल्कि उन्होंने बयान दिया कि इसके पीछे कोई गड़बड़ी हुई है, इसकी जांच होनी चाहिए। गोंड समाज से आने वाले मंडावी ने इस बात का भी ध्यान दिलाया है कि उनके समाज से पार्टी ने किसी को प्रदेश में टिकट नहीं दी। भोजराज नाग के बारे में भी उन्होंने राय दी है कि वह कैसे प्रत्याशी हैं, यह परीक्षण कर लोग बताएंगे। मंडावी का यह भी कहना है कि उन्होंने लोकसभा में अच्छा प्रदर्शन किया, सवाल भी अच्छे किए। हालांकि यह भी कहना है कि वे पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता है और प्रचार करेंगे। मगर यह तय है कि उन्होंने पार्टी के निर्णय को उतनी सहजता से स्वीकार नहीं किया है जितना महासमुंद से टिकट कटने के बाद चुन्नीलाल साहू ने कर लिया। भाजपा प्रदेश की 11 में से पूरे 11 सीट जीतने के लिए काम कर रही है। सन 2019 की मोदी लहर में कांटे की टक्कर थी। नतीजा आने पर पता चलेगा कि इस बार की लहर तेज है या कम।
अब कहां के कद्दावर रह गए...
वाणिज्य, उद्योग व श्रम मंत्री, कोरबा विधायक लखन लाल देवांगन से सवाल करते हुए किसी मीडियाकर्मी ने पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल के नाम के सामने कद्दावर शब्द जोड़ दिया। देवांगन ने पलटकर कहा-अब कहां के कद्दावर नेता हैं। कोरबा में अब उनको कोई नहीं जानता। पैसे के बल पर तीन बार से चुनाव जीत रहे थे। इस बार प्रत्याशी मिल गया तो 12 के भाव चल दिए....। यानि मंत्रीजी का यह मानना है कि इस बार जयसिंह को हराने के लिए तगड़ा प्रत्याशी मिल गया। इसके पहले के प्रत्याशी उनकी पार्टी ने कमजोर दिए। लोकसभा चुनाव पास है, इसलिए ऐसे तीखे बयान कांग्रेस-भाजपा दोनों तरफ से आ सकते हैं। सत्ता में हों तो तेवर और भी तल्ख हो जाते हैं। याद करिये, पिछली सरकार के मंत्रियों के जुबान से भी भाजपा नेताओं के बारे में क्या क्या फूटते थे।
प्रशासन पर दबाव
भाजपा के एक-दो नए नवेले विधायकों की स्थानीय प्रशासन से पटरी नहीं बैठ पा रही है। विधायक कोई गैर जरूरी काम लेकर जाते हैं, तो आला प्रशासनिक अफसर तवज्जो नहीं दे रहे हैं। सरगुजा संभाग के एक जिले में तो विधायक के करीबियों ने अपने विधानसभा क्षेत्र के 40 पंचायत सचिवों की लिस्ट देकर कलेक्टर पर तबादले के लिए दबाव बनाया।
कलेक्टर ने लिस्ट देखी, और फिर साफ तौर पर कह दिया कि तीन-चार से अधिक तबादले नहीं हो सकते हैं। ऐसे ही जमीन से जुड़े विवाद पर कार्रवाई न हो, इसके लिए कलेक्टर पर दबाव बनाने की कोशिश की गई। मगर कलेक्टर ने कार्रवाई रोकने से मना कर दिया। कुछ इसी तरह की शिकायतें भी अलग-अलग जगहों पर आई है। कुछ विधायकों की शिकायत पार्टी संगठन तक पहुंची है। संकेत है कि आने वाले दिनों में अतिसक्रिय जनप्रतिनिधियों पर लगाम लगाने के लिए हिदायत दी जा सकती है।
हाईकोर्ट की फटकार
बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान डिप्टी कलेक्टरों की आरटीओ के पद पर पोस्टिंग नाराजगी जताई। कोर्ट ने सरकार से पूछ लिया कि आरटीओ के पद पर डिप्टी कलेक्टरों की पोस्टिंग क्यों की जा रही है? परिवहन विभाग के लोग क्या करेंगे? उन्होंने इस मामले में एजी को तलब किया है।
जस्टिस एनके व्यास की एकल पीठ ने पूछ लिया कि हर जगह डिप्टी कलेक्टर, या आईएएस की पोस्टिंग क्यों की जाती है। मूल कैडर के अफसर क्या करेंगे? कोर्ट की तलखी के बाद सरकार ने आनन-फानन में परिवहन में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ आधा दर्जन से अधिक डिप्टी कलेक्टरों को मुक्त कर उनकी सेवाएं सामान्य प्रशासन विभाग को लौटा दी गई है।
हालांकि ये सारी पोस्टिंग पिछली सरकार में हुई थी, और प्रशासनिक अफसरों की मलाईदार परिवहन विभाग में पोस्टिंग की परम्परा लंबे समय से चली आ रही है। मगर अब कोर्ट के संज्ञान में प्रकरण आने के बाद अब शायद ही विशेषकर राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की पोस्टिंग परिवहन में हो पाए।
नक्सल मोर्चे पर तैनाती
बस्तर आईजी सुंदरराज पी. को बस्तर इलाके में सेवाएं देते 8 साल से अधिक हो चुके हैं। धुर नक्सल प्रभावित इलाके में सबसे ज्यादा समय तक काम करने वाले दूसरे अफसर हैं। इससे पहले एडीजी टीजे लॉगकुमेर भी करीब 5 साल से अधिक समय बस्तर में पदस्थ रहे।
बाद में लॉगकुमेर अपने गृह राज्य नागालैंड चले गए, और वहां डीजीपी भी बने। इससे परे सुंदरराज नारायणपुर एसपी रहे। इसके बाद दंतेवाड़ा डीआईजी बने, और फिर बस्तर के प्रभारी आईजी और प्रमोशन के बाद पूर्णकालिक आईजी के पद पर काम कर रहे हैं।
आईपीएस के 2003 बैच के अफसर सुंदरराज की साख अच्छी है। और यही वजह है कि चुनाव आयोग ने भी नियमों को शिथिल कर बस्तर में बने रहने दिया। सुंदरराज के रहते नक्सल गतिविधियों में काफी हद तक कमी आई है। सुंदरराज बस्तर में सबसे ज्यादा समय तक पदस्थ रहने वाले अफसर बन गए हैं। फिलहाल तो सरकार का उन्हें हटाने का इरादा भी नहीं दिख रहा है।
साइकिल गुम गई तो भूल जाइये...
बीते साल प्रकाश झा की एक फिल्म ओटीटी पर आई थी, मट्टो की साइकिल। इसमें प्रकाश झा खुद गांव के एक दिहाड़ी मजदूर के किरदार में हैं। काम पर शहर जाने के लिए उसके पास दो दशक पुरानी टूटी-फूटी साइकिल है। बार-बार नई खरीद लेने की सोचता है पर दो छोटी बेटियों और बीमार पत्नी के कारण बचत ही नहीं हो पाती और कर्ज में डूबा रहता है। साइकिल दुकान वाला भी बार-बार रिपेयरिंग करवाने का मजाक उड़ाकर नई साइकिल खरीदने की सलाह देता रहता है। एक दिन उस टूटी-फूटी साइकिल पर एक ट्रैक्टर चढ़ गया। साइकिल पूरी तरह बर्बाद। कई दिन तक पैदल शहर जाकर काम ढूंढता है, पर ऐसा करना बहुत थका देता है। आखिरकार वह ऊंचे ब्याज पर एक और कर्ज लेकर नई साइकिल खरीद लेता है। अब वह नई साइकिल लेकर फर्राटे से काम पर आना जाना करने लगा। मगर, दो चार दिन बाद शाम के वक्त लौटते समय कुछ लुटेरे उसकी साइकिल छीनकर भाग जाते हैं। मजदूर की पीड़ा का कोई ठिकाना नहीं। वह थाने और ग्राम प्रधान के चक्कर लगाता है। कोई उसकी साइकिल ढूंढने में मदद नहीं करता, न एफआईआर दर्ज की जाती। उसकी कीमत 3500 रुपये की थी। शायद प्रकाश झा जुलाई में लागू हो रहे कानून के बाद इस फिल्म को बनाते तो उन्हें स्टोरी को कोई दूसरा मोड़ देना पड़ता।
इस कहानी का जिक्र इसलिए क्योंकि, रिटायर्ड आईपीएस आर के विज ने सोशल मीडिया पर साइकिल के साथ एक पोस्ट डालकर बताया है कि एक जुलाई से देश में जो नया कानून लागू होने वाला है, उसमें 5 हजार से कम की चोरी असंज्ञेय अपराध है। इससे पुलिस को यह फायदा है कि छोटी चोरियों के लिए अपराध तो वह पंजीबद्ध कर लेगी लेकिन विवेचना की जिम्मेदारी खत्म हो जाएगी। नुकसान यह है कि जिस गरीब की एफआईआर नहीं लिखी जाती, उसके पास वकील को देने के लिए पैसे नहीं होंगे और उसे न्याय मिलना मुश्किल हो जाएगा। दूसरा नुकसान यह भी है कि इस कीमत तक की संपत्ति चुराने वाला पुलिस की निगाह में अपराधी ही नहीं माना जाएगा।
शादी के लिए अतिथि का इंतजार
विवाह का मुहूर्त एक बार तय होने के बाद जोड़े और उनके परिवार के लोगों को उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है। मगर ऐन वक्त पर यह निरस्त हो जाए तो? मगर, मामला निर्धन परिवारों का हो और आयोजन सरकारी हो, तो सब मुमकिन है। कोरबा में महिला बाल विकास विभाग की ओर से महिला दिवस के मौके पर आज सामूहिक विवाह का कार्यक्रम रखा गया था। इसमें करीब 250 जोड़े विवाह सूत्र में बंधने वाले थे। मगर एक दिन पहले कल बताया गया कि समारोह स्थगित कर दिया गया है। अगली तारीख जल्दी बताएंगे। दूसरी बार यह कार्यक्रम टाला गया। इसके पहले फरवरी महीने में भी विवाह की एक तिथि घोषित की गई थी। उसे भी एक दिन पहले ही स्थगित कर दिया गया। एक माह बाद की तारीख तय हुई, वह भी रद्द। यह जरूर है कि समारोह की ज्यादातर तैयारियां सरकारी महकमा ही करता है लेकिन जिन जोड़ों की शादी हो रही हों और जिनके परिवार में हो रही हैं, उनके घर में भी रौनक छाई रहती है। घर को सजाते-संवारते हैं, रिश्तेदारों तक न्यौता भेज चुके होते हैं।
बताया जा रहा है कि विभाग को एक अदद मुख्य अतिथि तय करना है, जिनसे समय नहीं मिल पा रहा है।
ईडी की ईमानदारी पर भी सोचें...
सरगुजा लोकसभा सीट के लिए बतौर भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज का नाम विधानसभा चुनाव के समय से तय हो गया था। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में उनकी टिकट काट दी थी। तब वे इसी आश्वासन पर भाजपा में वापस लौटे थे कि उन्हें लोकसभा लड़ाया जाएगा। भाजपा को चिंतामणि का साथ ऐसा रहा कि सरगुजा में नतीजा 180 डिग्री घूम गया। कांग्रेस एक भी सीट निकाल नहीं पाई। भाजपा ने उन्हें टिकट देकर अपना वादा निभा दिया है।
इधर पिछले 3 साल से कोयला लेवी घोटाले की जांच कर रही प्रवर्तन निदेशालय की टीम ने पाया कि कई राजनीतिक लोगों को इसकी रकम मिली। बीते जनवरी में ऐसे 35 लोगों की सूची एसीबी को उसने भेजी। नाम के साथ यह भी बताया गया कि किसे कितने रुपये मिले। चिंतामणि महाराज के नाम के आगे 5 लाख रुपये लिखा था। सूची मिलने पर एसीबी ने सभी के खिलाफ धारा 420, 120बी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज कर लिया, बस इनमें से एक चिंतामणि महाराज का नाम छोड़ दिया। अब कांग्रेस ने इसे मुद्दा बना लिया है। कह रहे हैं भाजपा की वाशिंग मशीन में चिंतामणि महाराज धुल गए। वे जरूर एसीबी के इस कदम का इस्तेमाल चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भी करेंगे।
गौर करें तो ईडी ने सूची तब भेजी, जब छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बन चुकी थी। फिर भी उसने इस बात की परवाह नहीं की कि चिंतामणि महाराज का नाम नहीं होना चाहिए। भले ही तब उनकी लोकसभा टिकट फाइनल नहीं हुई थी लेकिन भाजपा में तो शामिल हो ही चुके थे। लगा होगा एसीबी को, कि टिकट मिलने के बाद चिंतामणि महाराज का नाम लिस्ट में नहीं होना चाहिए। उसने विशेष टीम बनाकर 10-12 दिन में जांच भी कर ली होगी और चिंतामणि बेकसूर मिले होंगे। अब जब अदालत में मामला पहुंचेगा तब देखा जाएगा कि यह तरीका कानूनी तौर टिकेगा या नहीं। बाकी कांग्रेसी एसीबी के तौर तरीके पर सवाल करते हैं तो करते रहें। चुनाव निपटने के बाद किसी का क्या बिगड़ेगा। आखिर ईडी ने जिस ईमानदारी से एसीबी को सूची भेजी, वह भी तो गौर करने लायक है ! यह अलग बात है कि कुछ लोग इसे ईडी की चूक कह
सकते हैं।
दसवें भाजपा नेता की हत्या
बस्तर में भाजपा नेताओं की नक्सल हत्या का सिलसिला विधानसभा चुनाव के करीब एक साल पहले से चल रहा है। बीजापुर के कैलाश नाग, जो वन विभाग के लिए काम भी करते थे, उनकी अपहरण के बाद गोली मार कर हत्या कर दी गई। इसके सिर्फ 6 दिन पहले बीजापुर में ही भाजपा के जनपद सदस्य तिरुपति कटला की धारदार हथियार से हत्या कर दी, जब वे एक शादी समारोह से अपने परिवार के साथ लौट रहे थे। दिसंबर के दूसरे सप्ताह में नारायणपुर जिले में बीजेपी नेता कोमल मांझी की गला रेतकर हत्या कर दी गई थी। इन तीनों के अलावा नीलकंठ ककेम, सागर साहू, रामधर अलामी, रामजी डोडी, अर्जुन काका, बिरझू तारम और रतन दुबे। ये सब फरवरी 2023 से लेकर अब तक मारे गए भाजपा नेता हैं।
एक के बाद 10 नेताओं की साल भर के भीतर हुई अपने पार्टी कार्यकर्ताओं की हत्या को यदि भाजपा टारगेट किलिंग कह रही है तो इसमें कुछ गलत नहीं। नक्सलियों के निशाने पर सुरक्षा बल और बेकसूर ग्रामीण तो हैं हीं। झीरम घाटी हमले में कांग्रेस ने अपनी एक पूरी पीढ़ी खो दी थी।
कुछ लोगों ने यह अनुमान लगाया है कि बड़ी संख्या में नए कैंप शुरू करने के फैसले के खिलाफ नक्सली आक्रामक हुए हैं। लेकिन हत्याओं का सिलसिला नई तैनाती के पहले से चल रहा है। राज्य की नई सरकार ने वर्चुअल बातचीत का प्रस्ताव रखा जिसमें नक्सलियों को हथियार डालने की जरूरत नहीं। इसके जवाब में नक्सलियों ने 6 माह तक कैंप बंद करने, पुलिस बल को थाने तक सीमित रहने जैसी शर्तें रखीं। ये शर्तें इतनी कठिन है कि बातचीत की दिशा में आगे कदम बढेंगे इसकी उम्मीद कम है। ये शर्ते बातचीत से पहले ही एकतरफा मांगें मानने के लिए बाध्य करने जैसा है। हर हमले के बाद सरकार की ओर से बयान आ रहा है कि वे नक्सलियों से सख्ती से निपटेंगे। पर इसका उन पर कोई असर न पहले दिखता था, न आगे दिखने की उम्मीद कर सकते हैं। सरकार को शायद फिर मध्यस्थों की जरूरत पड़े। पूर्व में ब्रह्मदेव शर्मा, स्वामी अग्निवेश, अरविंद नेताम, मनीष कुंजाम जैसे सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता इसके लिए सामने आ चुके हैं। इनमें ब्रह्मदेव शर्मा और स्वामी अग्निवेश अब हमारे बीच नहीं हैं।
बधाइयाँ शुरू
लोकसभा प्रत्याशी चयन के लिए दिल्ली में कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक चल रही है। इन सबके बीच प्रदेश में संभावित प्रत्याशियों को लेकर कांग्रेसजनों के बीच चर्चा चल रही है। खुज्जी की पूर्व विधायक छन्नी साहू ने तो एक कदम आगे जाकर पूर्व सीएम भूपेश बघेल को राजनांदगांव सीट से प्रत्याशी बनने की अग्रिम बधाई दे दी। उनके बधाई संदेश कांग्रेस नेताओं के वॉट्सऐप ग्रुप में तैर रहे हैं। कुछ दिन पहले तक बड़े नेता चुनाव लडऩे से मना कर रहे थे लेकिन अब धीरे-धीरे चुनाव लडऩे के लिए तैयार हो रहे हैं। पूर्व मंत्री कवासी लखमा तो दिल्ली में बस्तर के प्रमुख कांग्रेस नेताओं के साथ डेरा डाले हुए हैं। वो बस्तर से बेटे हरीश लखमा को प्रत्याशी बनाना चाहते हैं। न सिर्फ बस्तर बल्कि कई और जगहों से टिकट के दावेदार दिल्ली में जमे हुए हैं। कांग्रेस टिकटों की घोषणा आज-कल में हो सकती है।
सबसे प्रिय होने का राज
प्रदेश भाजपा में वैसे तो तीन महामंत्री हैं लेकिन सबसे ज्यादा पूछ-परख धमतरी के रामू रोहरा की हो रही है। रामू पार्टी दफ्तर में सबसे ज्यादा समय देते हैं, और इस वजह से उन्हें रायपुर संभाग का प्रभारी भी बनाया गया है। खुद सीएम विष्णु देव साय ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में रामू की तारीफ करते हुए यहां तक कह दिया कि वो मंत्रियों से भी बड़े हैं, यानी महामंत्री हैं। कुछ नेताओं का कहना है कि विधानसभा चुनाव के वक्त सिंधी समाज के वोटरों को भाजपा के पक्ष में करने के लिए काफी मेहनत की थी। दरअसल, समाज से एक भी प्रत्याशी नहीं होने पर काफी नाराजगी थी। जिसे रामू ने शांत करने में अहम भूमिका निभाई थी। यही वजह है कि वो पार्टी के बड़े नेताओं के प्रियपात्र हो गए हैं।
नई और पुरानी संसद
प्रदेश के चार भाजपा सांसद सुनील सोनी, मोहन मंडावी, गुहा राम अजगल्ले, और चुन्नीलाल साहू की भले ही टिकट कट गई, लेकिन वो कई मामलों में भाग्यशाली भी रहे। मसलन, न सिर्फ चारों सांसद बल्कि प्रदेश के बाकी सांसद भी नए और पुराने, दोनों ही संसद भवन में बैठकर सदन की कार्रवाई में हिस्सा लिया। पुराना संसद भवन अब म्यूजियम और संसद सचिवालय के रूप में उपयोग में आ रहा है। यह भवन ऐतिहासिक पलों का साक्षी रहा है, जहां पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल और बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर जैसी नामी गिरामी हस्तियां यहां कार्रवाई में हिस्सा ले चुके हैं। यह भवन अब सदन की कार्रवाई के लिए हमेशा के बंद हो चुका है।
सदन के नए भवन में शुरू हो चुकी है। लोकसभा और राज्यसभा की कार्रवाई नए भवन में संचालित हुई। सुनील सोनी समेत बाकी सांसदों की टिकट कट गई, लेकिन उन्हें नए भवन में सदन की कार्रवाई में हिस्सा लेने का अवसर मिला। नए भवन में प्रवेश के लिए कुछ नियम भी बदले गए हैं। पूर्व सांसदों का स्थाई पास बना होता था, जिससे वो सेंट्रल हॉल तक जाकर मंत्रियों, सांसदों से मिल सकते थे। प्रदीप गांधी जैसे पूर्व सांसद अक्सर सेंट्रल हॉल में देखे जा सकते थे। लेकिन नए भवन में प्रवेश के लिए पूर्व सांसदों को आम लोगों की तरह पास बनाना पड़ रहा है, जो कि सिर्फ एक दिन के लिए रहता है। इससे प्रदीप गांधी जैसे कई पुराने सांसद खिन्न नजर आए।
कांग्रेस में एक और लिस्ट
कांग्रेस की लोकसभा प्रत्याशियों की सूची जल्द जारी हो सकती है। चर्चा है कि कई नामों पर सहमति तो बन गई है, लेकिन पार्टी के एक प्रमुख नेता ने अलग से सूची हाईकमान को दी है। वो प्रदेश के बाकी नेताओं के साथ स्क्रीनिंग कमेटी में अपना सुझाव नहीं देना चाहते थे, क्योंकि इससे उन्हें विवाद का अंदेशा था। देखना है कि पार्टी नई सूची पर गौर करती है अथवा नहीं।
भाजपा में जिम्मेदारी
भाजपा में चुनाव प्रबंध समिति ने एक बैठक कर सदस्यों को अलग-अलग जिम्मेदारी दी है। मसलन, फिल्म कलाकार और विधायक अनुज शर्मा को प्रदेशभर में चुनाव के दौरान प्रचार के लिए कलाकारों को तैयार करने, और उनका कार्यक्रम कराने की जिम्मेदारी दी गई है। अब तक प्रदेश कार्यालय का काम नरेश गुप्ता और रजनीश शुक्ला ही संभालते थे। लेकिन अब उनके साथ अवधेश जैन को भी लगाया गया है। एयरपोर्ट पर वीआईपी विजिट के दौरान स्वागत की जिम्मेदारी प्रितेश गांधी, और आकाश विग को दी गई है। प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य संजू नारायण सिंह को प्रचार रथ के देखरेख की जिम्मेदारी दी गई है। नए प्रभारी किस तरह काम करते हैं, यह देखना है।
मोदी की गारंटी, आयोग पर भरोसा
हाल के विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में मोदी की गारंटी के कुछ बड़े बिंदुओं पर भाजपा सरकारों को तेजी से काम करना पड़ रहा है। छत्तीसगढ़ के मतदाताओं का दो बड़ी घोषणाओं पर इंतजार खत्म होता दिखाई दे रहा है। 7 मार्च को महतारी वंदन योजना के तहत करीब 71 लाख महिलाओं के खाते में रकम पहुंचने वाली है। प्रधानमंत्री इस कार्यक्रम में वर्चुअली शामिल होंगे। दूसरा, किसानों से 3100 रुपये प्रति क्विंटल धान खरीदने का वादा पूरा हो रहा है। किसानों के खाते में 12 मार्च को अंतर की रकम करीब 13 हजार करोड़ रुपये डाली जाएगी।
छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में जब बीते साल 17 नवंबर को विधानसभा के लिए मतदान होने वाले थे, उसके ठीक दो दिन पहले 15 नवंबर को प्रधानमंत्री ने किसान सम्मान निधि की रकम जारी की। कांग्रेस के जयराम रमेश ने तब सवाल उठाया था कि मतदान के दो दिन पहले क्या जानबूझकर ऐसा किया गया? यह रकम तो अक्टूबर में ही मिल जानी थी। निश्चित ही मतदान के ठीक पहले लाखों मतदाता जब वोट डालने निकले तो उन्हें एहसास रहा होगा कि उनके खाते में केंद्र सरकार ने पैसे डाले हैं।
अभी 28 फरवरी को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यवतमाल से किसान सम्मान निधि की 16वीं किश्त जारी की है। इस बार कांग्रेस ने विरोध नहीं किया। कांग्रेस या किसी भी विपक्ष के लिए ऐसे भुगतान के विरोध में बहुत आगे बढऩा मुश्किल है क्योंकि इससे वोटर नाराज होकर बोल सकते हैं- हमें फायदा मिल रहा है, इससे आपको तकलीफ हो रही है।
बीते लोकसभा चुनाव का हाल जानें तो 10 मार्च 2019 को चुनाव आयोग ने लोकसभा के लिए कार्यक्रम घोषित किया था। इसी दिन से आचार संहिता भी लग गई थी। जरूरी नहीं कि इस बार भी 10 मार्च को ही चुनाव कार्यक्रम आए, वह एक दो दिन आगे भी हो सकता है, पर, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
गृह मंत्री के इलाके में अपराधों का सिलसिला
हाल ही में गृह मंत्री विजय शर्मा के इलाके में जो वारदातें हुई हैं, उस पर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं। सडक़ पर उतरकर दो-तीन प्रदर्शन कर चुके हैं। कल उनका पुतला भी फूंका गया। विधानसभा में भी सरकार को घेरा गया। कुछ दिन पहले शिक्षक कॉलोनी में घर के अंदर मां बेटी की तीन चार दिन पुरानी लाश मिली थी। उसके कातिल का पुलिस ने पता लगा लिया। कुकुदर में तीन बैगाओं की हत्या कर दी गई। पुलिस पहले उसे दुर्घटना बताती रही, बाद में 14 लोगों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया। कवर्धा शहर से लगे लालपुर कला में चरवाहे साधराम यादव की हत्या की गूंज तो पूरे प्रदेश में हुई है। अब उसकी जांच एनआईए से कराने की घोषणा की गई है। कांग्रेस ने पीडि़त के परिजनों को एक करोड़ रुपये मुआवजा देने की मांग की है।
याद करें, करीब चार साल पहले पाटन इलाके में पांच लोगों के एक साथ शव मिले थे। अमलेश्वर में एक युवा ज्वेलर्स की लूट के लिए हत्या हुई थी। अंडा थाना इलाके में एक 11 साल के बालक की भी हत्या कर लाश बोरे में बंद कर फेंक दी गई थी। अमलेश्वर थाने के ही एक सोनकर परिवार के चार लोगों की हत्या कर दी गई थी। ये सभी मामले तब एक साथ दो चार माह के भीतर हुए थे। तत्कालीन गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू के खिलाफ सदन से सडक़ तक भाजपा ने मोर्चा खोला था।
गृह मंत्री पर पूरे प्रदेश की कानून व्यवस्था को नियंत्रण में रखने और आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है। पर उनके जिले के लोग अपने यहां शांति व्यवस्था की ज्यादा उम्मीद रखते हैं। नहीं भी रखते होंगे तो विपक्ष इसकी याद जरूर दिलाता है। तब भाजपा आंदोलन कर रही थी, आज कांग्रेस कर रही है।
सतर्कता संदेश छत्तीसगढ़ी में
शासन की अधिकतर योजनाओं की राशि अब डिजिटली ट्रांसफर हो रही है। गांवों से किसान, महिलाएं अपनी रकम निकालने बैंकों में आ रही हैं। कई लोग उठाईगिरी या ठगी के शिकार भी हो रहे हैं। कोरबा पुलिस ने ग्राहकों को सतर्क करने के लिए उनकी अपनी छत्तीसगढ़ी बोली में प्रचार सामग्री तैयार कराई है। इसे बैंकों और सार्वजनिक स्थानों पर बांटा, चिपकाया जा रहा है।