राजपथ - जनपथ
बृजमोहन ने खड़े किए सवाल
सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने सोमवार को पार्टी के विधायकों के संग जाकर स्पीकर डॉ. रमन सिंह को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा तो दे दिया है, लेकिन मंत्री पद नहीं छोडऩे से राजनीतिक हलकों में बहस छिड़ गई है। पूर्व महाधिवक्ता, और संविधान विशेषज्ञ कनक तिवारी ने फेसबुक पर लिखा कि इसमें कोई शक नहीं बृजमोहन अग्रवाल ने मंत्री पद से इस्तीफा को लेकर नई संवैधानिक चुनौती पेश की है। पार्टी मुख्यमंत्री और संविधान के लिए।
संसदीय मामलों के कुछ जानकारों का मानना है कि तकनीकी तौर पर बृजमोहन छह महीने तक मंत्री पद पर रह सकते हैं। इसमें कोई अड़चन नहीं है। भाजपा के अंदर खाने में भी इस मसले पर चर्चा हुई है। हल्ला है कि बृजमोहन को स्पीकर डॉ. रमन सिंह ने सुझाव दिया है कि जुलाई में होने वाले मानसून सत्र तक उन्हें मंत्री बने रहना चाहिए।
दूसरी तरफ, बृजमोहन के मसले पर कांग्रेस की राय बटी हुई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने बृजमोहन की बर्खास्तगी की मांग कर दी है। जबकि पूर्व मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया उन्हें कांग्रेस में शामिल होने तक न्योता दिया है। वो एक कदम आगे जाकर कह रहे हैं कि बृजमोहन कांग्रेस में जो चाहेंगे, मिलेगा। इन चर्चाओं के बीच कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि लोकसभा की सदस्यता लेने से पहले बृजमोहन मंत्री पद छोड़ सकते हैं। इससे परे कुछ लोग इस मसले पर पीआईएल भी दायर करने की सोच रहे हैं। चाहे कुछ भी हो, बृजमोहन ने एक बहस छेड़ दी है। और वो मंत्री बने रहने तक सुर्खियों में रहेंगे।
सीएम का बढ़ा रुतबा
लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद पार्टी के भीतर सीएम विष्णुदेव साय का कद बढ़ा है। और वो जिस कार्यक्रम में जा रहे हैं, वहां पार्टी के नेता, और कार्यकर्ता उत्साह से स्वागत भी कर रहे हैं। साय कार्यकर्ताओं को पूरा सम्मान भी दे रहे हैं। ऐसे ही पड़ोस के जिले में पार्टी के जिलाध्यक्ष ने सीएम के साथ हेलीकॉप्टर यात्रा करने की इच्छा जताई।
जिलाध्यक्ष ने इस सिलसिले में स्थानीय सांसद से बात की। सांसद ने जिलाध्यक्ष की भावनाओं को सीएम तक पहुंचाया। सीएम ने तुरंत उन्हें बुलवाया, और अपने साथ हेलीकॉप्टर से रायपुर ले आए। जिलाध्यक्ष की हेलीकॉप्टर में घूमने की इच्छा पूरी की। इसके बाद जिलाध्यक्ष खुशी-खुशी बस से वापस अपने घर पहुंचे। कुछ ऐसा ही अंदाज मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री रहे डीपी घृतलहरे का भी था।
दिग्विजय सिंह सरकार में घृतलहरे विमानन मंत्री थे। उस वक्त वो हेलीकॉप्टर लेकर अपने विधानसभा क्षेत्र मारो पहुंचे। और कुछ कार्यकर्ताओं की हेलीकॉप्टर से घूमने की इच्छा पूरी की। घृतलहरे काफी लोकप्रिय भी थे। और जब उन्हें टिकट नहीं मिली, तो वो 1998 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय मैदान में कूद गए। और कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत जब्त करवा दी। बाद में राज्य बनने के बाद जोगी सरकार में मंत्री भी रहे।
दिल्ली के लिए किसका रास्ता खुलेगा
मोदी 3.0 में तोखन साहू को जगह मिलने के साथ ही छत्तीसगढ़ का कोटा क्लोज हो चुका है। अब सबकी निगाह संगठन चुनाव की ओर है। जेपी नड्डा केंद्र में मंत्री बनाए गए हैं। 24 जून तक उनका कार्यकाल खत्म होना है। इससे पहले नए राष्ट्रीय अध्यक्ष और महामंत्री जैसे प्रमुख पदाधिकारियों की नियुक्ति हो सकती है । जाहिर है कि छत्तीसगढ़ से भी कुछ नेताओं को मौका मिल सकता है। संभवत: आठ बार के विधायक और रिकॉर्ड मतों से जीतने वाले बृजमोहन अग्रवाल को केंद्रीय संगठन में जगह मिल जाए। उन्हें चुनाव प्रबंधन में माहिर माना जाता है। वे राजनाथ सिंह के लिए पहले गाजियाबाद और फिर लखनऊ में कमान संभाल चुके हैं। प्रदेश में भी कई उपचुनाव जिताने में मुख्य रणनीतिकार रहे हैं। ऐसा होता है तो भी वे मोदी, शाह से निकटता हासिल कर सकेंगे। वहीं सरोज पांडेय को भी संगठन में मौका मिल सकता है। इसके अलावा संतोष पांडे, विजय बघेल को भी संगठन में एडजस्ट किया जा सकता है। और भी कुछ नाम हो सकते हैं, जिन्हें केंद्र या राज्य के मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। इनमें धरम लाल कौशिक, अजय चंद्राकर, अमर अग्रवाल हो सकते हैं।
कलेक्टर-एसपी के तबादले सत्र के पहले
विधानसभा के मानसून सत्र से पहले सरकार कुछ जिलों में कलेक्टर एसपी के तबादले कर सकती है। बलौदा बाजार की घटना के बाद सरकार ने कलेक्टर-एसपी को हटाने के साथ ही दूसरे जिलों में पड़ताल शुरू कर दी है। ऐसा माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में कमजोर प्रदर्शन वाले जिलों के कलेक्टर-एसपी बदले जा सकते हैं। कुछ जगहों पर कार्यकर्ताओं की भी अफसरों को लेकर शिकायतें हैं। तबादले में इन्हें भी ध्यान में रखा जाएगा। वैसे करीब तीन महीने बाद कैबिनेट की बैठक होने वाली है। इसमें से भी कुछ संकेत बाहर निकलेंगे।
पूर्व मंत्री जयसिंह अकेले नहीं..
लोकसभा चुनाव में कोरबा विधानसभा सीट से कांग्रेस पीछे रह गई। बाकी सीटों पर उसने लीड ली। भाजपा की विधानसभा में जीत वाली सीटों से भी अंतर पाट दिया। अब नतीजा आने के करीब 12-13 दिन बाद पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल का बयान आया है। उनका कहना है कि विधानसभा चुनाव के पहले उन्होंने कुछ बातें उठाई थी, यदि सुन ली गई होती तो हार नहीं होती। पर उन्हें इस बात की तसल्ली होनी चाहिए कि उस चुनाव में हारने वाले वे अकेले मंत्री नहीं थे। 9 मंत्री हार गए थे। डिप्टी सीएम भी और तत्कालीन मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले मंत्रीगण भी। इसलिये सुनने बताने का कोई फर्क पडऩे वाला नहीं था। बस, मुश्किल यही रही कि लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने गलतियां नहीं सुधारी और नतीजा विपरीत आया। कोरबा की ही तरह अधिकांश हारे हुए मंत्रियों के इलाके में लोकसभा चुनाव में भी हार का अंतर नहीं पाटा जा सका। जो लड़े वे हार गए।
नदी पार कराएगा रोपवे
बस्तर में दर्जनों गांव ऐसे हैं जिनका संपर्क बारिश के दिनों में स्कूल, अस्पताल और बाजार से कट जाता है। हर साल कई हादसे उफनती नदी-नालों को पार करने के दौरान होते हैं। इसी बस्तर में आईटीबीपी के सहयोग से सीआरपीएफ ने एक पहल की है। बीजापुर के चिंतावागु नदी पर उन्होंने एक 200 मीटर लंबा रोप वे बनाया है। इसे बनाने के लिए 22 इंजीनियरों ने करीब दो माह कड़ी मेहनत की। कुछ दिन पहले इसे शुरू कर दिया गया है। अब इस बारिश में आसपास के कई गांवों के ग्रामीण अपनी जरूरत में इसका इस्तेमाल कर सकेंगे। (rajpathjanpath@gmail.com)
कुछ मंत्रियों से काम जल्दी करवा लें
छत्तीसगढ़ में छह माह पुराने मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार, दोनों की ही चर्चा चल पड़ी है। इस बदलाव के साथ विभागों में भी उलटफेर होना है। इस खबर के मिलते ही सारे लोग अपने सारी कामकाज तेजी से कराने में जुट गए हैं। पता नहीं कौन कब तक रहे,तुरंत करवा लिया जाए। इतना ही नहीं मुंबई से भी एक नेता ने अपने लोगों से कहा है कि इन मंत्रियों से अपने लंबित, अटके काम करवा लें। नेताजी ने तो कुछ मंत्रियों के नाम भी गिनाए हैं और फेरबदल की संभावित डेट भी दे दी है। समर्थकों के मुताबिक यह फेरबदल पखवाड़े भर में होना है। कैबिनेट में इस समय एक पद खाली हैं, दूसरा भी खाली होने जा रहा है। कुल दो पद भरे जाने हैं। दो नए मंत्री शामिल होंगे और एक,दो बदले जाने की चर्चा महानदी भवन से ठाकरे परिसर तक फैली हुई है।
विधानसभा सत्र की गर्मी
विधानसभा का मानसून सत्र 22 जुलाई से शुरू हो सकता है। खबर है कि मानसून सत्र के मसले पर सीएम विष्णुदेव साय, और स्पीकर डॉ. रमन सिंह के बीच चर्चा हो चुकी है। मानसून सत्र में अधिकतम 7 बैठकें होंगी। इस सिलसिले में अधिसूचना जल्द जारी होगी।
बलौदाबाजार में आगजनी की घटना के बाद से सरकार बैकफुट पर आ गई है। विपक्ष हमलावर है, और इसको लेकर सदन में सरकार को घेरने में कोई कसर बाकी नहीं रखने वाली है। न सिर्फ बलौदाबाजार बल्कि नक्सल मुठभेड़ के मसले पर भी सरकार को घेरने की कोशिश हो
सकती है।
हालांकि नक्सल मोर्चे पर सरकार को काफी सफलता भी मिली है। छह महीने में धुर नक्सल इलाकों में विकास कार्यों की रफ्तार तेज हुई है। मगर एक-दो जगहों पर निर्दोष आदिवासियों की मौत का भी आरोप लग रहा है। कांग्रेस ने इसके लिए जांच कमेटी बनाई थी। कुल मिलाकर मानसून सत्र में कानून व्यवस्था का मुद्दा काफी गरम रहेगा।
कौन बनेंगे मंत्री?
मानसून सत्र से पहले साय कैबिनेट में फेरबदल की चर्चा है। संसदीय कार्य मंत्री बृजमोहन अग्रवाल सांसद बन चुके हैं, और आज-कल में विधानसभा की सदस्यता भी छोड़ देंगे। मगर मंत्री पद कुछ दिन और रख सकते हैं।
पार्टी नेताओं का मानना है कि रथयात्रा के पहले यानी 7 जुलाई के आसपास कैबिनेट में फेरबदल हो सकता है। कैबिनेट में एक पद पहले से ही खाली है, और अब बृजमोहन की जगह भी एक और विधायक को कैबिनेट में जगह मिल सकती है।
संसदीय कार्यमंत्री के लिए अजय चंद्राकर और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक के नाम की चर्चा है। अजय पहले भी करीब 10 साल संसदीय कार्य विभाग बेहतर ढंग से संभाल चुके हैं।
संसदीय कार्यमंत्री का रोल विधानसभा में अहम होता है। चंद्राकर से परे राजेश मूणत, और अमर अग्रवाल भी मंत्री पद के दावेदारों में प्रमुखता से लिया जा रहा है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि तोखन साहू की तरह बस्तर से एक नया नाम देकर चौंकाया जा सकता है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
ओडि़शा से रिश्ते बहुत गहरे
ओडिशा में भाजपा की सरकार बनने के बाद प्रदेश के कई नेताओं की वहां दखल रह सकती है। ओडिशा के सीएम मोहन मांझी को केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान का करीबी माना जाता है। धर्मेन्द्र लंबे समय तक छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे हैं। यही नहीं, रायपुर उत्तर के विधायक पुरंदर मिश्रा की भी वहां पूछ परख रहेगी।
पुरंदर ओडिशा चुनाव में पार्टी के लिए काफी काम किया। पुरंदर के करीबी पृथ्वीराज हरिचंदन, जो कि छत्तीसगढ़ के राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन के बेटे हैं, ओडिशा सरकार ने मंत्री बन गए हैं। पृथ्वीराज को आबकारी और विधि विधायी जैसा अहम विभाग दिया गया है। पुरंदर के ओडिशा सीएम, और कई मंत्रियों से अच्छे संबंध हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि पुरंदर का ओडिशा में भी महत्व रहेगा, छत्तीसगढ़ में तो बहुत बड़ी ओडिया आबादी की वजह से महत्व है ही। ।
खाता-बही की दिक्कतें
लोकसभा चुनाव लडऩे वाले दलीय और निर्दलीय प्रत्याशियों के खर्च का हिसाब जमा करने का समय नजदीक आ रहा है। 28 जून लास्ट डेट है। आयोग के नियमानुसार प्रत्याशी 95 लाख खर्च कर सकता है । निर्दलियों को तो दिक्कत नहीं। उनकी स्थिति नहाए क्या निचोड़े क्या जैसी रही। बात दलीय प्रत्याशियों की है। उन्होंने न केवल अपनी जेब का लगाया बल्कि पार्टी ने भी बोझ उठाया। अंतिम हिसाब से पहले खर्च के मिलान के लिए भाजपा के दिल्ली कार्यालय से आए एकाउंटेंट व सीए की टीम ने परसों खर्च का मिलान किया। इसके लिए प्रत्याशी या उनका खजाना देख रहे व्यक्ति को ठाकरे परिसर बुलाया गया था ।
भाजपा के 11 में से एक प्रत्याशी का हिसाब किताब बड़ा गड़बड़ निकला। हालांकि खर्च तो आयोग के दायरे में ही किया था। बल्कि उससे 20 लाख कम ही किया। लेकिन खर्च तो चेक पेमेंट का ही माना जाएगा और उसमें उन्होंने पांच लाख के ही चेक काटे, शेष 70 लाख कैश पेमेंट रहे। अब दिल्ली से आए एकाउंटेंट पसोपेश में हैं कि खर्च किस मद में दिखाए। नियम तो 10 हजार से अधिक के पेमेंट चेक से करने का था। प्रत्याशी के खजांची ने कहा सब उधारी में है। चुनाव बाद देने का वादा था। यह मानने वाले कम ही होंगे क्योंकि लोगों का चुनाव बाद पेमेंट के अनुभव ठीक नहीं रहे हैं ।
सो सभी तुरतदान महाकल्याण वाले हो गए हैं। और इसे आयोग मानने से रहा। उसे तो आन पेपर, गिव एंड टेक चाहिए?। ऐसे में अब एक ही विकल्प-या तो दोबारा चेक पेमेंट किया जाए, या छ वर्ष के लिए कोई चुनाव लडऩे के अयोग्य घोषित हुआ जाए। अब देखना होगा कि अगले दस दिनों में क्या रास्ता निकलता है?
बसपा का विकल्प भीम आर्मी?
यूपी के हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का कोई उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका। राज्य बनने के बाद यह पहला मौका है जब छत्तीसगढ़ विधानसभा में बसपा का कोई विधायक नहीं है। बसपा सुप्रीमो मायावती को लेकर अनेक राजनीतिक विश्लेषक राय दे चुके हैं कि वे भाजपा के खिलाफ सख्ती से नहीं लडऩा चाहतीं। इंडिया गठबंधन में भी उन्होंने शामिल होने से मना कर दिया था। ऐसी स्थिति में उनके जनाधार वाले क्षेत्रों में चंद्रशेखर आजाद को विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने यूपी की नगीना सीट भाजपा-सपा के उम्मीदवारों को हराकर जीत ली है। उनके संगठन का नाम भीम आर्मी है। छत्तीसगढ़ में इस संगठन की वाल पेंटिंग विधानसभा चुनाव के समय से दिखाई दे रही हैं। बलौदाबाजार में 10 जून को हुई आगजनी और हिंसा की घटनाओं में गिरफ्तार कुछ लोगों के बारे में पुलिस ने कहा है कि वे इसी भीम आर्मी के सदस्य हैं। अब चंद्रशेखर आजाद ने सोशल मीडिया एक्स पर बलौदाबाजार की घटना को लेकर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने ‘शांतिपूर्ण प्रदर्शन’ करने वाले अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के ‘बर्बरतापूर्वक दमन’ तथा जैतखाम को ध्वस्त करने की निंदा की है। आजाद ने कहा है कि वे जल्द पीडि़त परिवारों से मिलने के लिए रायपुर आएंगे। एक्स में उनकी पोस्ट के जवाब में बहुत से प्रतिक्रियाएं आई हैं। इससे अंदाजा लगता है कि अनुसूचित जाति वर्ग को अपने लिए छत्तीसगढ़ में एक नेता की जरूरत महसूस हो रही है। अनेक लोगों ने बताया है कि जो लोग वहां मौजूद नहीं थे, राज्य से बाहर थे, उनको भी जबरन मारपीट कर जेल में डाला जा रहा है। पूरा समाज डरा हुआ है। बच्चों और महिलाओं के मोबाइल फोन भी जबरदस्ती पुलिस वाले लेकर जा रहे हैं...। वह अपनी वर्दी का पूरा फायदा उठा रही है...। समाज के लोगों पर अन्याय हो रहा है। आपको आने की जरूरत है।
भीम आर्मी चीफ ने कलेक्टोरेट में हुई आगजनी और नुकसान पर प्रतिक्रिया नहीं दी है। जब तक पुलिस जांच चल रही है, यह कहना मुमकिन नहीं है कि उनके लोग सचमुच इस हिंसा में शामिल थे। पर अपने सदस्यों की गिरफ्तारी से संगठन चर्चा में जरूर आ गया है। अब चंद्रशेखर ने छत्तीसगढ़ आने का ऐलान भी कर दिया है। क्या बलौदाबाजार की घटना भीम आर्मी को बसपा का विकल्प बनने में मदद करेगी? गौर की बात है कि चंद्रशेखर बसपा सुप्रीमो मायावती का विरोध भी नहीं करते, बल्कि उन्हें अपना प्रेरणा स्त्रोत बताते हैं।
गांव के स्कूल में जापानी पाठ
नया सत्र शुरू होने वाला है तब स्कूलों से कई तरह की खबरें आ रही है। जर्जर भवनों की, शिक्षकों की कमी की, बड़ी संख्या में बच्चों के ड्रॉप आउट हो जाने की। ऐसे में एक अनोखी खबर बेमेतरा जिले से मिल रही है। यहां के बेरला ब्लॉक के कोंडरका मिडिल स्कूल के 20 बच्चे जापानी भाषा सीख रहे हैं। और इन्हें सिखा रही हैं, इसी स्कूल की शिक्षिका केंवरा सेन। उन्होंने पहले खुद सीखा, फिर बच्चों को सिखाना शुरू किया। हाल ही में उनकी एक किताब-किहोन तेकि ना निहोंगों, ( बेसिक जापानी व्याकरण) का विमोचन भी महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस ने लोनावाला में किया।
गांव के बच्चे जापानी सीख भी लेंगे तो क्या काम आएगा? जब इंटरनेट ने दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने की दूरियां समाप्त कर दी हों तो इस सवाल का अधिक महत्व नहीं है। पिछले साल नागपुर के रामटेक से खबर आई थी कि 10-12 साल के गोंड आदिवासी बच्चे जापानी सीखने में बड़ी दिलचस्पी ले रहे हैं। इनमें से कुछ लोग तो राजधानी दिल्ली या अन्य महानगरों में काम करना चाहते हैं। कुछ जापान जाना चाहते हैं, कुछ लोग पर्यटन के क्षेत्र में सेवा देने का अवसर चाहते हैं। कुछ लोग ऑनलाइन रोजगार का अवसर देख रहे हैं। नई शिक्षा नीति में भी इस बात पर जोर दिया गया है कि स्कूली शिक्षा के दौरान बच्चे दूसरी भाषाएं, जो उनके आसपास की भाषाओं से अलग हो उसे सीखने की कोशिश करें। (rajpathjanpath@gmail.com)
देखें आगे क्या होता है
सीधे सरल और लो-प्रोफाइल में रहने वाले तोखन साहू का नाम केन्द्रीय मंत्री बनने वालों की सूची में आया, तो प्रदेश भाजपा के तमाम छोटे-बड़े नेता चौंक गए थे। इसकी पर्याप्त वजह भी थी। पहली यह कि तोखन पहली बार सांसद बने हैं। जबकि मंत्री पद की दौड़ में सीनियर नेता और अनुभवी बृजमोहन अग्रवाल, विजय बघेल और संतोष पाण्डेय शामिल थे।
बृजमोहन के कुछ उत्साही समर्थकों ने तो आतिशबाजी की तैयारी कर रखी थी। बताते हैं कि छत्तीसगढ़ सदन, और छत्तीसगढ़ भवन में रूके तमाम सांसद एक-दूसरे के संपर्क में थे। और उनके करीबी लोग शपथ ग्रहण के एक दिन पहले तक पीएमओ से फोन आने का इंतजार कर रहे थे।
चर्चा है कि शपथ ग्रहण के दिन सुबह दो सांसद सीएम विष्णुदेव साय से मिलने पहुंचे। सीएम ने उनसे पूछ लिया कि क्या किसी के पास शपथ के लिए फोन आया है? उस समय तक किसी के पास फोन नहीं आया था। तब साय ने सांसदों से अनौपचारिक चर्चा में संभावना जता दी थी कि हाईकमान कोई नया नाम आगे लाकर चौंका सकती है। सीएम का कथन बाद में सही साबित भी हुआ।
एक चर्चा यह भी है कि हाईकमान ने पहले जांजगीर-चांपा की महिला सांसद कमलेश जांगड़े के नाम पर भी विचार किया गया था। मगर बाद में तोखन के नाम पर मुहर लग गई। बृजमोहन, संतोष और विजय बघेल को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने की एक और वजह सामने आई है, उसके मुताबिक सदन में अकेले भाजपा को बहुमत नहीं मिल पाया है। इस बार विपक्ष काफी ताकतवर है।
ऐसे में सदन के भीतर विपक्ष के हमले का जवाब देने के लिए तेज तर्रार सांसदों का होना जरूरी है। बृजमोहन, संतोष और विजय इसमें फिट बैठते हैं। पिछले कार्यकाल में झारखंड के सांसद निशिकांत दुबे लोकसभा में सत्ता पक्ष की तरफ से अकेले मोर्चा संभाले हुए थे। इस बार बृजमोहन और संतोष व विजय की आवाज भी सुनाई देगी। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
इनको कौन लेकर आया?
भाजपा के रणनीतिकार कुछ भूतपूर्व कांग्रेस नेताओं से परेशान हैं। विशेषकर बलौदाबाजार में आगजनी की घटना के बाद से परेशानी और बढ़ गई है। भाजपा में आने के बाद कुछ भूतपूर्व कांग्रेसियों के हौसले बुलंद हैं, और वो काफी पावरफुल भी हो चुके हैं। इनकी गतिविधियों को लेकर कई शिकायतें प्रदेश भाजपा के प्रमुख लोगों तक पहुंच चुकी है, लेकिन इस पर अंकुश नहीं लग पाया है।
अब भाजपा के अंदरखाने में यह पूछा जाने लगा है कि इन विवादित कांग्रेसियों को पार्टी में किसने शामिल कराया? एक मंत्री तो पार्टी के प्रमुख नेताओं से मिलकर दो-तीन भूतपूर्व कांग्रेसियों का नाम लेकर पूछताछ भी की। पदाधिकारियों ने विवादित नेताओं को भाजपा में शामिल कराने का ठीकरा पूर्व प्रभारी पर फोड़ दिया। चाहे कुछ भी हो, भूतपूर्व कांग्रेसियों की मौज हो गई है, और इस पर लगाम लगाने में पार्टी के रणनीतिकार फिलहाल असफल दिख रहे हैं।
सबसे मजबूत उम्मीदवार
यूं तो एक व्यक्ति के जीवन में भाग्य की अहम भूमिका मानी गई है। राजनीति में तो यह शत प्रतिशत फिट बैठती है। कब कौन कितने बड़े पद पर चुन लिया जाए, बिठा दिया जाए पता नहीं चलता। कर्मचारी से मंत्री तक बना दिए जाते हैं। हर बार की तरह ऐसा इस बार ऐसा हुआ और होने जा रहा है। प्रदेश के एक मंत्री कभी एक कर्मचारी के नाते पूर्व सांसद के निज सहायक रहे हैं। और अब चर्चा है कि एक और निज सहायक, मंत्री नहीं तो विधायक हो सकते हैं।
हालांकि राजधानी की इस सीट से 40 दावेदार हैं। इनमें मंत्री जी के सगे भाई भी शामिल हैं। लेकिन उन्हें बी फार्म नहीं मिलेगा यह भी तय ही है। बचे 38 में संघर्ष शुरू हो चुका है। मंत्री जी, जिसे चाहेंगे उसकी ही टिकट पक्की। अब तक की हलचल में निज सहायक प्रमुख दावेदार, पसंदीदा बनकर उभरे हैं। इलाके के 14 पार्षदों का समर्थन पत्र भी तैयार है। इतना ही नहीं कुछ दावेदार,उनके लिए बैठने को भी तैयार हैं। अब देखना यह है कि भाई साहब लोग क्या चाहेंगे।
दहशत का दूसरा दौर..
बलौदाबाजार हिंसा-आगजनी में अब तक 130 से अधिक लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं, जिन्हें भीम आर्मी और उससे मिलते-जुलते संगठनों का बताया जा रहा है। कहा गया है कि मोबाइल फोन पर ली गई तस्वीरों, वीडियो व सीसीटीवी फुटेज के विश्लेषण से इनकी पहचान हुई। जब से मोबाइल और सीसीटीवी आए हैं, किसी भीड़ में शामिल लोगों की पहचान आसान हो गई है। कानून तोडऩे वालों को शिकंजे में लेना आसान हो गया है। कुछ दशक पीछे जाएं तो ऐसी घटनाओं के बाद पूरे इलाके में पुलिस की दहशत फैल जाती थी। लोग फंसाये जाने के डर से अपने ठिकाने से फरार हो जाते थे। जिन्हें फंसाया जाता था वे बच निकलने का रास्ता ढूंढते थे। ऐसा नहीं है कि वह दौर पूरी तरह खत्म हो गया। बलौदाबाजार हिंसा के जिम्मेदार लोगों पर सख्ती बरतने का सरकार से आदेश हो चुका है। 10 जून की सभा में पूरे प्रदेश से लोग आए थे। इसलिए तलाशी बलौदाबाजार के बाहर भी हो रही है। अब यह आरोप लग रहा है कि दोषियों को पकडऩे के नाम पर बेकसूर लोगों को प्रताडि़त किया जा रहा है। जिनका घटना से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं, उनको हिरासत में लिया जा रहा है। महासमुंद से इसके विरोध में आवाज उठी है। यहां की सतनामी महिला प्रकोष्ठ का कहना है कि पुलिस गांव-गांव घूमकर निर्दोष लोगों को पकड़ रही है। इससे समाज में भय का माहौल बना हुआ है, साथ ही समाज की छवि भी खराब हो रही है। महिला पदाधिकारियों ने निर्दोष लोगों की तुरंत रिहाई की मांग भी की है। लेकिन क्या यह इन महिलाओं की अकेली शिकायत है? बलौदाबाजार और प्रदेश के दूसरे जिलों में भी तो ऐसा नहीं हो रहा है?
करतब नहीं, विवशता है...
कांकेर के वन विभाग के ट्रैप कैमरे में एक तेंदुआ भागता हुआ कैद हुआ है, जिसने बाल्टी को मुंह में दबा रखा है। इस तेंदुए के बारे में कहा गया है कि कुछ दिन पहले उसने एक झोपड़ी का दरवाजा तोड़ दिया था और 75 साल की वृद्ध महिला को उठाकर ले गया था। अगले दिन महिला की क्षत-विक्षत लाश मिली थी। बीते मई महीने में एक पालतू कुत्ते का शिकार करने के लिए दौड़ते समय तेंदुआ एक कुंए में जा गिरा था। वन विभाग ने उसका रेस्क्यू किया। इसके करीब 3 माह पहले एक तेंदुआ खलिहान में सोती हुई महिला को उठाकर ले गया था। इन घटनाओं की वजह बताई जा रही है कि इन्हें जंगल में अपने लिए भोजन और पानी दोनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है और वे मानव बस्तियों की ओर रुख कर रहे हैं।
(rajpathjanpath@gmail.com)
राज्य कांग्रेस में फेरबदल की चर्चा
लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस संगठन में बदलाव की चर्चा है। इन चर्चाओं को उस वक्त बल मिला जब पिछले दिनों दिल्ली में प्रदेश के एक दिग्गज नेता पार्टी की प्रमुख आदिवासी महिला नेत्री के साथ राष्ट्रीय नेताओं से मुलाकात की। महिला नेत्री संगठन में कई अहम पदों पर काम कर चुकी हैं, और उन्हें पार्टी का एक खेमा प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने के लिए दबाव बनाए हुए हैं।
हालांकि ये बदलाव आसान नहीं है। जानकारों का मानना है कि हाईकमान किसी भी बदलाव से पहले नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरणदास महंत, और पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस.सिंहदेव की राय जरूर लेगा। डॉ.महंत पार्टी के अकेले नेता हैं जिन्होंने पहले विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में खुद को साबित किया है। चर्चा यह भी है कि प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट भी अभी फिलहाल किसी तरह के बदलाव के पक्ष में नहीं हैं। देखना है कि दिग्गज नेता की मुहिम क्या रंग लाती है।
क्या करेंगे बृजमोहन
सांसद बनने के बाद सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कितने दिनों तक मंत्री पद पर रहेंगे, इसको लेकर काफी चर्चा हो रही है। दो सदनों के सदस्य हो जाने के बाद किसी एक से 14 दिनों के भीतर इस्तीफा देना होता है। बृजमोहन संभवत: 23 या 24 जून को लोकसभा की सदस्यता लेंगे। साथ ही साथ विधानसभा से त्यागपत्र भी दे देंगे। मगर मंत्री पद को लेकर कोई बाध्यता नहीं है। वो 6 महीने तक मंत्री पद पर रह सकते हैं। ये बात वो खुद सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं। बृजमोहन ने यह भी साफ कर दिया है कि सीएम जब कहेंगे, वो मंत्री पद छोड़ देंगे।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह पाने से वंचित बृजमोहन के बयान की राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा है, और उनकी इस बयान को हाईकमान के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर करने की कोशिशों के रूप में देखा जा रहा है। इससे परे उत्तरप्रदेश की योगी सरकार के मंत्री जितिन प्रसाद ने सांसद बनने के बाद पद छोड़ दिया है। ये अलग बात है कि जितिन प्रसाद को मोदी सरकार में राज्यमंत्री बनाया गया है।
छत्तीसगढ़ में पूर्व सीएम डॉ.रमन सिंह जब सीएम बने थे, तब वो सांसद थे। सीएम पद के शपथ लेने के बाद उन्होंने लोकसभा की सदस्यता छोड़ दी थी। पहले सीएम अजीत जोगी जब सीएम बने, तब वो किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। बाद में जोगी, भाजपा विधायक रामदयाल उइके से मरवाही विधानसभा सीट खाली करवाकर उपचुनाव लड़े, और विधानसभा के सदस्य बने। सांसद निर्वाचित होने के बाद 6 महीने तक मंत्री के रूप में काम करने में तकनीकी तौर पर कोई अड़चन नहीं है। मगर ऐसा होता है तो इसे परंपरा के खिलाफ माना जाएगा। क्योंकि इतने लंबे समय तक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कोई भी सांसद मंत्री पद पर नहीं रहा। कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि बृजमोहन हफ्ते-दस दिन के भीतर मंत्री पद छोड़ देंगे। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
कानून व्यवस्था पर सवाल...
ऐसा कम ही होता है कि सरकार अपनी कमजोरी को स्वीकार कर ले, मगर डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने कल मीडिया से बात करते हुए मान लिया कि बलौदाबाजार की घटना के बाद प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है। उन्होंने कहा कि यह बात वे गृह मंत्री होने के बावजूद कह रहे हैं। पुलिस के लिए एसओपी ( स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर ) निर्धारित किया जाएगा, ताकि फिर ऐसी घटना न हो।
बात यह है कि मंत्री ने कानून व्यवस्था के सवाल को सिर्फ बलौदा बाजार से जोड़ा। कांग्रेस सरकार के दौरान कानून-व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं थी। भाजपा ने इसे मुद्दा बनाया था और कहा था कि सरकार आने पर प्रदेश में अपराधों पर लगाम लगाई जाएगी। मगर, आम लोगों के नजरिये से देखा जाए तो कांग्रेस और भाजपा सरकार के कार्यकाल में लोगों को कोई फर्क दिखाई नहीं दे रहा है। नक्सली हिंसा एक विशिष्ट विषय हो सकता है पर बाकी प्रदेश में भी लूटपाट, चाकूबाजी, अपरहण, गैंगरेप और हत्या की घटनाएं कम नहीं हो रही है। बीते दिनों खरोरा में दिन दहाड़े 27 लाख रुपये की लूट हो गई। दुर्ग में एक बच्ची के गले में ब्लेड मारकर हत्या कर दी गई। बलरामपुर में तो बजरंग दल के नेता और उसके साथ एक महिला की मौत के असली कातिल को पकडऩे की मांग पर खुद भाजपा से जुड़े लोग आंदोलन कर रहे हैं। खुद गृह मंत्री के इलाके में एक राह चलते व्यक्ति को मार डाला गया था। पिछले महीने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने बताया था कि सरकार के पांच महीने में हत्या की 36 वारदातें हो गईं। इन वारदातों में कुछ बच्चे भी शिकार हुए हैं। राजधानी रायपुर और दूसरे सबसे बड़े शहर बिलासपुर में चाकूबाजी की घटनाएं लगातार हो रही हैं। लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं कि वे जल्द से जल्द कांग्रेस सरकार से बेहतर कानून व्यवस्था महसूस करें।
भीड़ के मुकाबले पुलिस ज्यादा
शांतिपूर्वक धरना, रैली, प्रदर्शन की अनुमति विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक संगठन प्रशासन से मांगते रहते हैं और वह मिल जाती है। जब तक कोई विशेष परिस्थिति न हो, बहुत ज्यादा पुलिस बल भी ऐसे कार्यक्रमों में लगाने की जरूरत महसूस नहीं की जाती। मगर बलौदाबाजार की घटना ने प्रशासन को सतर्क कर दिया है। इसका उदाहरण मानपुर में देखा गया, जो अंबागढ़ चौकी-मोहला-मानपुर जिले का एक प्रमुख स्थान है। संभवत: बलौदाबाजार के बाद प्रदेश का पहला जमावड़ा यहीं हुआ। पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री अरविंद नेताम के नेतृत्व वाले सर्व आदिवासी समाज ने यहां एक प्रदर्शन आयोजित किया था। इसमें जेल भरो आंदोलन भी शामिल था। यह आंदोलन धार्मिक उन्माद फैलाने और नक्सलियों से संबंध होने के आरोप में आदिवासी नेताओं, विशेषकर सरजू नेताम को गिरफ्तार करने को लेकर था। आदिवासी बाहुल्य इलाका है, आदिवासी नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन है, फिर ताजा-ताजा बलौदाबाजार में हुई हिंसा। इन सबने पुलिस प्रशासन को चिंता में डाल रखा था। कार्यक्रम स्थल पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात था। हालांकि लोग जुटे थे पर इतने नहीं कि इनके लिए 1000 जवानों की तैनाती करनी पड़े। भीड़ कम पहुंचने की वजह यह बताई गई कि स्थानीय आदिवासी नेताओं के एक वर्ग ने इस प्रदर्शन का विरोध किया था। मोहला और पानाबरस के आदिवासी नेताओं ने आंदोलन में भाग नहीं लेने का निर्णय ले लिया था। सब कुछ शांति से निपट जाने पर पुलिस और प्रशासन ने राहत की सांस ली। (rajpathjanpath@gmail.com)
अब निकल सकती है नई वैकेंसी
चुनाव आचार संहिता हटने के बाद सरकार एक्शन में आ गई है। समीक्षा बैठकें शुरू हो गई हैं, जनदर्शन भी लगने लगा है। अलग-अलग कारणों से दो कलेक्टर और एक एसपी को हटाया जा चुका है। यानि सरकार फुल फॉर्म में काम कर रही है।
सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले किसानों और महिलाओं को किए गए कई वादे पूरे किए गए। अपने छह माह के कार्यकाल में युवाओं को उद्योग लगाने पर 50 प्रतिशत सब्सिडी की घोषणा की। नौकरियों में स्थानीय युवाओं को उम्र में 5 साल की छूट देने का ऐलान भी हो चुका है। पर भर्तियों का विज्ञापन अब तक नहीं निकला। चुनाव के पहले करीब 10 हजार शिक्षकों की भर्ती की तैयारी कर ली गई थी। लोक सेवा आयोग के जरिये 595 प्रोफेसरों की भर्ती की प्रक्रिया तो तीन साल से चल रही थी, जो अलग-अलग कारणों से चुनाव आचार संहिता लागू होने तक पूरी नहीं हो पाई। आदिवासी विकास विभाग में छात्रावास अधीक्षक के 500 रिक्त पदों पर भर्ती के लिए व्यापमं विज्ञापन निकाला था, जो बाद में निरस्त कर दिया गया था। आचार संहिता के कारण अगला विज्ञापन नहीं निकला। कई दूसरे विभागों में भर्तियां रुकी हुई हैं, जिनमें चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर द्वितीय श्रेणी राजपत्रित अधिकारी तक के पद हैं। ऐसे पदों की संख्या 25 हजार के आसपास बताई जा रही है। बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में नौकरियों के विज्ञापन निकलने लगेंगे।
भव्य भवन सुरक्षित कितने?
बलौदाबाजार में 10 जून को जब हिंसक भीड़ ने धावा बोला। वायरल वीडियो से पता चलता है कि आग बहुत तेजी से भडक़ी और देखते ही देखते संयुक्त जिला कार्यालय नीचे से ऊपर तक धूं-धूं कर जलने लगा। इस समय पूरे छत्तीसगढ़ में भीषण गर्मी है, जो आग तेजी से फैलने का एक कारण बना, लेकिन जानकारों का कहना है कि इसकी दूसरी वजह भवन की दीवारों पर लगाए गए एसीपी की परत है। एसीपी यानि एल्युनिमियम कंपोजिट पैनल किसी भी इमारत की खूबसूरती कई गुना बढ़ा देते हैं। पहले व्यावसायिक परिसरों में इसका चलन अधिक था लेकिन सरकारी भवनों में भी इसका इस्तेमाल होने लगा है। विभिन्न जिलों के कार्यालय, यहां तक कि मंत्रालय और सचिवालय के भवनों में भी बाहरी दीवारों पर इसकी साज-सज्जा दिखाई देती है। भवन निर्माण से जुड़े कुछ इंजीनियरों का कहना है कि भवनों की संरचना के मुताबिक एसीपी लगाने और उसकी क्वालिटी को मेंटेन करने के कुछ नियम हैं, जिनका पालन नहीं करने पर आगजनी के दौरान जोखिम बढ़ जाता है। जिन भवनों में एसीपी लगा होता है उसकी दीवारें गर्मी के दिनों में और अधिक गर्म होती हैं। आग के संपर्क में आने के बाद पैनल तेजी से पिघलने लगता है। इस वजह से ऐसा भी हो सकता है कि आग ऊपर की मंजिल में लगी हो और नीचे फैलने लगे। बलौदा बाजार में आग तेजी से फैलने की क्या यह भी वजह थी, शायद आगे जांच से साफ हो। (rajpathjanpath@gmail.com)
तबादले और कर्मचारी नेता
तबादलों को लेकर सरकार इस बार कोई रियायत बरतने के मूड में नहीं नजर आ रही है। उसके इस मूड को कर्मचारी संगठन के नेता भांप चुके हैं । सरकार ने मंत्रालय में किए तबादलों से इसका कड़ा संदेश दिया है। मंत्रालय के कई मठाधीशों की कुर्सी दशक, डेढ़ दशक बाद बदली गई है। सबसे अच्छी बात है यह है कि तबादलों की पहल उनके अपने ही नेता ने की थी। वे चाहते हैं कि कोई भी कुर्सी किसी का विशेषाधिकार न रहे। सबको को काम करने का अवसर मिले। बस उसी आधार पर सीएम के सचिवों ने आचार संहिता के दिनों में एक एक की पड़ताल कर सूची बनाई और जारी करना शुरू कर दिया है।
आने वाले दिनों में कुछ और तबादला सूचियाँ आएंगी। इसके बाद मैदानी अमले की बारी है। वहां भी सीएम सचिवालय एक-एक की स्क्रूटनी कर रहा है। इसे देखते हुए कर्मचारियों ने तबादलों से बचने जुगाड़ शुरू कर दिया। कर्मचारी नेता, संगठन के अपने पदों पर मिलने वाली रियायत के पन्ने, पुराने आदेश की तलाश में जुट गए हैं। ताकि उस बिना पर बच जाए लेकिन इस बार शायद न बचे।
सबको मालूम है पार्षद की हकीकत...
नगरीय निकाय यानी पार्षद चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है। इसके साथ ही दावेदार शुरू हो गए हैं। दलीय, निर्दलीय दोनों। दलीय से ज्यादा निर्दलीय सक्रिय हो रहे हैं। वे सभी वर्तमान पार्षद पर निष्क्रिय होने, वार्ड में न विकास होने न सडक़ नाली पानी, सफाई होने जैसे मुद्दों को लेकर बयानबाजी करने लगे हैं। साथ ही त्यौहारी बधाई के प्लैक्स,पोस्टर, होर्डिंग भी तनने लगे हैं। यह सक्रियता और तेज होगी। कलेक्टोरेट, थाने, निगम के जोन और मुख्यालय में धरने-प्रदर्शन भी बढ़ेंगे। स्वयं को सच्चा जनसेवक बताने के लिए।
दरअसल होता ऐसा नहीं है। सभी की नजर में पार्षद के रूप में वेतन, लाखों की पार्षद निधि, ठेके पर कमीशन या भाई साले को ठेकेदार बनाने, नल कनेक्शन, नक्शा पास कराने के नाम पर होने वाली आय पर रहती है। सबसे बड़ी आय, दलों को बहुमत न मिलने पर जो महापौर के दावेदार से समर्थन के एक वोट के बदले मिलने वाला खर्च ।और एमआईसी पद का मोलभाव। सबसे बड़ी बात सदा के लिए माली हालत सुधर जाती है। इसलिए आगे देखते जाइए हर मोहल्ले से नारे गुंजेंगे—हमारा पार्षद कैसा हो ....।।
एमपी में एयर टैक्सी, और यहां?
छत्तीसगढ़ के विभिन्न शहरों को आपस में और महानगरों से जोडऩे के लिए हवाई सेवा का विस्तार कछुआ चाल से हो रहा है। जगदलपुर और बिलासपुर ऐसे हवाई अड्डे हैं, जो कई दशकों से उड़ानों के लिए तैयार थे, लेकिन कई साल से गिनी-चुनी उड़ानें ही हैं। मार्च महीने में जारी शेड्यूल के बाद इन दोनों हवाई अड्डों से चार-पांच उड़ानें शुरू हुई हैं, जो अक्टूबर तक प्रभावी रहेगा। जगदलपुर से रायपुर, हैदराबाद, जबलपुर और दिल्ली से जोड़ा गया है। बिलासपुर जगदलपुर से सीधे जुड़ गया है। सप्ताह मे एक दिन प्रस्थान और दो दिन आगमन की सेवा दी जा रही है। इसके अलावा दिल्ली, जबलपुर, कोलकाता और प्रयागराज के लिए उड़ानें मिली हैं। इन दोनों ही हवाईअड्डों के पास इतनी जमीन है कि बड़े विमानों की सेवाएं भी शुरू हो सकती हैं। कुछ तकनीकी संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाकर। पर नाइट लैंडिंग जैसी सेवाएं भी नहीं मिल पाई हैं। बिलासपुर में सुविधाओं का मौजूदा विस्तार तो हाईकोर्ट की लगातार दखल और जन आंदोलनों के कारण ही हो पाया है। दूसरी ओर कोरबा और अंबिकापुर से भी लंबे समय से उड़ानें शुरू करने की मांग हो रही है। अंबिकापुर में तो छह महीने पहले लैंडिंग और टेक ऑफ का ट्रायल भी हो चुका है। अभी खबर आई है कि यहां के लिए तैयारी शुरू की जा रही है।
दूसरी ओर पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में आज एक साथ 8 शहरों के लिए एयर टैक्सी शुरू हो गई । भोपाल, जबलपुर, इंदौर, रीवा, सिंगरौली, उज्जैन, खजुराहो और ग्वालियर इसमें शामिल है। यह पीएमश्री पर्यटन वायुसेवा योजना के तहत है, जिसमें कुछ फ्लाइट्स का किराया तो वंदेभारत एक्सप्रेस के आसपास ही है। राज्य सरकार अपनी ओर से भी एक महीने के लिए 50 प्रतिशत रियायत टिकटों पर देने जा रही है।
छत्तीसगढ़ के एयरपोर्ट अभी उड़े देश का आम नागरिक (उड़ान) योजना की ही राह देख रहे हैं, दूसरी ओर मध्यप्रदेश कई कदम आगे बढ़ चुका है। बावजूद इसके कि बस्तर से लेकर सरगुजा तक पर्यटन में विस्तार की संभावना और भौगोलिक विषमता के कारण काम तेजी से होना चाहिए।
कांग्रेस प्रत्याशी का विश्वास
लोकसभा चुनाव में कांकेर सीट को कांग्रेस महज 1800 वोटों से हार गई। मतगणना के दिन शुरू के कई राउंड ऐसे थे जिसमें प्रत्याशी बीरेश ठाकुर आगे चल रहे थे। 16वें राउंड के बाद फाइट नैक टू नैक हो गई और फिर अंतिम परिणाम भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग के पक्ष में गया। बीरेश ठाकुर सन् 2019 में भी यहीं से प्रत्याशी थे। तब सिर्फ 6900 वोटों से भाजपा उम्मीदवार मोहन मंडावी से हार गए। लोग कह सकते हैं कि किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया लेकिन बीरेश मानते हैं कि इस बार गड़बड़ी से परिणाम बदला गया। वे यह बात गंभीरता से कर रहे थे। इसीलिये अब उन्होंने 4 ईवीएम मशीनों को खुलवाकर दोबारा गिनती कराने का आवेदन दिया है। और इसके लिए 1.60 लाख रुपये प्लस जीएसटी भी जमा की है। उनका यह भी कहना है कि आरओ के मोबाइल फोन की जांच कराई जाए कि गणना के अंतिम दौर में उनके पास किस-किस के फोन आए। ठाकुर का कहना है कि उन्होंने ईवीएम मशीनों के नंबर बदल जाने की शिकायत की थी, जिस पर सुनवाई नहीं हुई। अब ईवीएम के खुलने पर ही पता चलेगा कि क्या वाकई परिणाम में कोई हेराफेरी हुई। जो भी हो, भोजराज नाग के सितारे तो मजबूत हैं। सन् 2014 में परिस्थितियां ऐसी बनी कि अंतागढ़ सीट से वे निर्विरोध ही विधायक बन गए थे। वहीं इस बार के लोकसभा चुनाव में थोड़े से वोटों से सही, जीत गए।
(rajpathjanpath@gmail.com)
पास के लिए खूब लगवाए चक्कर
सच्चाई से हर खास ओ आम का सामना होता है । राजनीति में हो तो नजर आ ही जाता है ।
विधायक रहे दो चर्चित भाजपा नेताओं को एक अदद पास के लिए दिल्ली में चक्कर काटने पड़े। कभी उनके पीछे घूमने वाले,नए नवेले महामंत्री ने रायसीना हिल्स के शपथ समारोह के एंट्री पास के लिए दिन भर नई दिल्ली के चक्कर कटवाए। बेचारे सुबह 6.30 से कभी छत्तीसगढ़ भवन,तो कभी राष्ट्रीय मुख्यालय घुमाए जाते रहे। जब-जब महामंत्री ने बुलाया,जाना पड़ा ।
महामंत्री हर बार कहते पास नहीं आए हैं, जबकि उनकी जेब में थे। छत्तीसगढ़ के नाम 200 पास दिए गए थे। लेकिन वहां पहुंच थे 266 नेता । अब 66 अतिरिक्त में किसी न किसी की कुर्बानी देनी ही थी। महामंत्री ऐसे ही नेताओं को काटते चले गए। लेकिन उन्हें क्या पता था कि दोनों पूर्व विधायक हैं जुगाड़ तो कर ही लेंगे। हुआ ऐसा ही। दोनों को राष्ट्रपति भवन प्रांगण में देखते ही महामंत्री भौंचक रह गए। दरअसल दोनों ने हिमाचल भवन के रास्ते एंट्री पा ली। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह से संपर्क करते ही हो गई इनकी बल्ले-बल्ले।
वैसे किरण सिंह देव की टीम में महामंत्री बने इन नेताजी को कुछ ही महीने हुए हैं। पहले ये 77 किमी दूर पड़ोस के जिलाध्यक्ष हुआ करते थे। और तब से इनके कृतित्व की चर्चा चहुंओर है। वन विभाग ने कैंपा मद से इनके लिए स्कार्पियो गिफ्ट किया है। बहरहाल दोनों पूर्व विधायकों को पलटवार के मौक़े का इंतजार है। ऐसे ही नेताओं के लिए कहा गया है कि सब दिन होत न एक समान।
ब्राह्मण अब किंग मेकर बने
पिछले तीन चुनाव अंचल के ब्राह्मण नेताओं के अनुकूल नहीं रहे। ये कभी साहू,कभी कुर्मी नेताओं से हारते रहे हैं। यह देख 13,18,24 के नतीजों साथ एक स्वतंत्र लेखक, एक पराजित ब्राह्मण नेता से बतिया रहे थे । लेखक ने तपाक से कह दिया भैया अब आप लोगों को चुनाव नहीं लडऩा चाहिए। क्योंकि छत्तीसगढ़ अब अगड़ों खासकर ब्राह्मणों के लिए सुरक्षित नहीं रहा। बल्कि मैं तो कहता हूं दावेदारी भी नहीं करनी चाहिए। तीन नतीजे देखें आप स्वयं विधानसभा, लोकसभा हारे। आप से पहले बाद में सत्यनारायण शर्मा, फिर विकास उपाध्याय पंकज शर्मा।
दुर्ग और आसपास में सरोज पांडेय, प्रेम प्रकाश पांडे, शिवरतन शर्मा, रविंद्र चौबे, अमितेश शुक्ल, शैलेष नितिन त्रिवेदी और अन्य । जीते तो दो-तीन ही जो इनमें नहीं, और वह भी मोदी लहर में। इसलिए अब ब्राह्मणों को संगठन में काम करना चाहिए। आप लोग किंगमेकर बनें। छत्तीसगढ़ अब आदिवासी, और पिछड़ों का हो गया है। तोखन साहू के केंद्र में मंत्री बनने से मुहर लग गई। इतना सुनकर, लेखक के आगे के विश्लेषण को यह कहते हुए रोका कि रहने दो कुछ भी कहते हो। उसके बाद नि:संदेह, नेताजी विश्लेषण तो कर ही रहे होंगे।
एक और राज्य से आदिवासी सीएम
छत्तीसगढ़ से सटे ओडिशा में एक समान बात होने जा रही है। दिसंबर 2023 में विधानसभा चुनाव का नतीजा आने के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने आदिवासी वर्ग के विष्णुदेव साय को प्रदेश का नेतृत्व सौंपा। हालांकि कई वरिष्ठ नेता विधायक चुने गए थे और उन्होंने भी उम्मीद पाल रखी थी। अब ओडिशा में भी ऐसा ही हुआ। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान सहित ओडिशा के कई पुराने दिग्गजों के समर्थक सोचकर चल रहे थे कि उनके नेता को मौका मिलेगा। पर केंद्रीय पर्यवेक्षक राजनाथ सिंह ने मोहन मांझी को नेतृत्व सौंपने की घोषणा की। जिस तरह छत्तीसगढ़ में दो उप-मुख्यमंत्री ओबीसी और सामान्य वर्ग से लिए गए, उसी तरह ओडिशा में भी प्रवती परिदा और केवी सिंह देव को लिया गया है। क्षेत्रीय व जातीय समीकरण का छत्तीसगढ़ की तरह ओडिशा में भी ध्यान रखा गया।
छत्तीसगढ़ और ओडिशा दोनों ही माइनिंग स्टेट हैं। क्योंझर, जहां से मोहन मांझी विधायक हैं, वहां तो बॉक्साइट का विशाल भंडार है। एक तथ्य यह है कि खनिज उत्खनन से राज्य के राजस्व में वृद्धि होती है और विकास को गति मिलती है। दूसरी तरफ आदिवासी समुदाय अपनी जमीन छिन जाने, बेदखल हो जाने को लेकर चिंतित रहता है। यह माहौल छत्तीसगढ़ और ओडिशा में एक जैसा है। भाजपा जो इस समय तीसरी बार केंद्र में एनडीए गठबंधन के साथ लौटी है, उसका यह मानना हो सकता है कि आदिवासी मुख्यमंत्री खनन प्रभावित ग्रामीणों के साथ अच्छा तालमेल बिठा सकते हैं और उनकी जरूरतों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। पर्यावरण, विस्थापन और आजीविका की समस्या को समझ सकते हैं।
इसके राजनीतिक कारणों का अनुमान भी लगाया जा सकता है। झारखंड में इसी साल 2024 के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहां इस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन की सरकार है। यहां हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जेल जाना पड़ा। इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में दिल्ली की तरह फैसला भाजपा के पक्ष में नहीं आया, जहां केजरीवाल को कोर्ट ने प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी थी लेकिन भाजपा ने सभी 7 सीटों पर जीत हासिल कर ली। लोकसभा में भाजपा ने झारखंड में तीन सीटें गंवाई। पहले 11 थी, अब 8 रह गई। गंवाई हुई तीन सीटें झामुमो, कांग्रेस और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन में बंट गई। उसके सामने अब विधानसभा में बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती है।
जिस तरह जशपुर झारखंड से सटा हुआ है, ओडिशा में मुख्यमंत्री बन रहे मोहन मांझी का क्षेत्र क्योंझर भी झारखंड की सीमा में ही है। आदिवासी बाहुल्य झारखंड के बगल के दो राज्यों में आदिवासी मुख्यमंत्री देकर भाजपा अब विधानसभा चुनाव में शायद झामुमो-कांग्रेस को बेदखल कर दे। लोकसभा चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री साय ने झारखंड में कई चुनावी सभाएं ली थीं। ओडिशा में सीएम देने के बाद, झारखंड के मतदाताओं पर भाजपा की छवि एक आदिवासी हितैषी दल की बन सकती है। वहां के लिए अगले चुनाव में दो –दो आदिवासी सीएम स्टार प्रचारक होंगे।
वर्मी खाद में लुटने से बचे किसान
मानसून करीब आते ही सहकारी समिति के गोदामों में खाद पहुंच चुका है। किसान इसे अपनी जरूरत के हिसाब से उठाने लगे हैं। पिछले तीन-चार से किसान खाद की कीमत बढ़ जाने की वजह से परेशान थे। ऊपर से उनको वर्मी खाद खरीदने के लिए बाध्य किया जाता था। किसानों पर यह दोहरा बोझ था। रासायनिक खाद की कीमतों में जो बढ़ोतरी पिछले सालों में हुई वह यथावत है लेकिन इस बार वे वर्मी खाद खरीदने की बाध्यता से मुक्त हो चुके हैं। रासायनिक खाद खरीदने के दौरान जबरदस्ती वर्मी खाद का पैकेट थमाया जाता था। तत्कालीन सरकार की महत्वाकांक्षी योजना किसानों की जेब ढीली करके सफल बनाई जा रही थी, जो वैसे भी कृषि की लागत बढ़ जाने के कारण परेशान हैं। जब से भाजपा की सरकार आई, अधिकांश गौठानों में गोबर की खरीदी बंद हो गई। वर्मी खाद इसी से तैयार होता है। ऐसा नहीं है कि किसानों को जैविक खाद से कोई परहेज था। इसका वे सब्जी भाजी में उपयोग कर लेते, मगर ज्यादातर दुकानों में जो वर्मी खाद थमाई जाती थी, उसकी गुणवत्ता को लेकर शिकायत थी। कई किसानों ने पाया कि इसमें मिट्टी, कंकड़, गिट्टी के अलावा कुछ नहीं है। भाजपा सरकार ने गौठानों को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा की है। गौठानों से अलग गौ-अभयारण्य बनाने की घोषणा कर रखी है। देखना होगा, इसमें वर्मी खाद के निर्माण व बिक्री से संबंधित क्या योजना लाई जाती है।
सरई के फूल..
छत्तीसगढ़ के कई वन क्षेत्र सघन सरई या साल के पेड़ों से आच्छादित है। भीषण गर्मी में भी इसकी हरियाली खत्म नहीं होती। सौ साल टिके रहते हैं। मजबूत इतने कि जब तक धातु की रेल पांत नहीं बनी, इसी से पटरियां तैयार होती थी। मानसून के पहले इन साल वृक्षों पर फूलों की बहार है। ये सडक़ों पर भी बिछी हुई हैं। कबीरधाम जिले के पंडरिया की एक सडक़ पर बिखरे कुछ फूल।
(rajpathjanpath@gmail.com)
स्मार्ट सिटी की चमक बढ़ेगी?
गांव के पंच से राजनीति शुरू करने वाले सांसद तोखन साहू को शहरी मामलों का मंत्रालय मिला है। इनके विभाग में कई ऐसे कार्यक्रम और योजनाएं हैं जिनसे छत्तीसगढ़ की सूरत बदल सकती है। सबसे बड़ी योजना तो स्मार्ट सिटी ही है। प्रदेश के तीन शहर बिलासपुर, रायपुर और नवा रायपुर इसमें शामिल है। कुछ क्षेत्रों में सडक़ों, उद्यानों, भवनों का जीर्णोद्धार हुआ, पार्किंग स्पेस बने, यातायात दुरुस्त करने के लिए खर्च हुए लेकिन आम तौर पर दिखाई यही देता है कि इन शहरों को खर्च के अनुरूप व्यवस्थित सुविधाएं नहीं मिल पाई। पूरा फंड स्मार्ट सिटी लिमिटेड कंपनी के पास है। योजना और बजट बनाने में जन प्रतिनिधियों की कोई भूमिका नहीं है। इस पर बड़ा विवाद भी रहा है। हाईकोर्ट में इसे लेकर याचिका भी दायर की गई थी। हालांकि स्मार्ट सिटी लिमिटेड के तर्कों को ठीक मानते हुए याचिका खारिज कर दी गई थी। देखना होगा कि क्या तोखन साहू तीनों स्मार्ट सिटी की सूरत बदल पाएंगे। शहरी परिवहन, अमृत मिशन, राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन जैसी करीब दर्जन भर बड़े काम इस मंत्रालय की योजनाओं में शामिल हैं। साहू राज्य मंत्री हैं, जिनके ऊपर केबिनेट मंत्री मनोहर लाल खट्टर होंगे। अमूमन राज्य मंत्रियों को शिकायत रही है कि विभाग पर सारा नियंत्रण केबिनेट मंत्री ही करते हैं। राज्य मंत्रियों के पास तो फाइलें बिल्कुल नहीं आती, या कम महत्व की फाइलें आती हैं। ऐसे में तोखन साहू को अपने हाथों में कुछ अधिकार प्राप्त करने के लिए जूझना भी पड़ सकता है।
बूंद-बूंद पानी पर टिका जीवन
पानी सबकी जरूरत है। सार्वजनिक नलों में, हैंडपंपों में जो पानी की बूंदें रिसती रहती हैं, नन्हीं चिडिय़ा उनसे अपना प्यास बुझा लेती है। सोशल मीडिया पर डाली गई बस्तर की एक तस्वीर है यह।
स्टील की जगह शराब की फैक्ट्री
बस्तर में टाटा स्टील प्लांट नहीं लगा तो पिछली कांग्रेस सरकार ने वादा पूरा करते हुए उससे जमीन लेकर किसानों को वापस कर दी। पर इसमें से कुछ जमीन अब भी उद्योग विभाग के पास बची रह गई है। अब स्टील प्लांट की जगह यहां पर स्कूल अस्पताल नहीं बल्कि ऐसी पहली फैक्ट्री लगाई जा रही है, जहां शराब महुआ से बनाई जाएगी। धुरागांव, जहां यह फैक्ट्री लग रही है के ग्रामीणों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है, जबकि फैक्ट्री के प्रतिनिधि कहते हैं कि ग्राम सभा में फैक्ट्री के लिए मंजूरी मिल गई थी। ग्रामीणों का कहना है कि हमें सरकारी फैक्ट्री बताकर बरगलाया गया है। फैक्ट्री तो किसी प्राइवेट कंपनी के नाम पर खुल रही है। फैक्ट्री के मालिक का कहना है हम बस्तर के महुआ को देश-विदेश में प्रसिद्ध करने वाले हैं। देखना होगा कि ग्रामीणों का विरोध असर कहता है या उद्योगपति की पहुंच मायने रखती है।
रायपुर का बाजार सांप्रदायिकता से परे हैं। चावल के दो ब्रांड, ‘अब्बा हुज़ूर’ और ‘जय श्री राम’ चैन से अगल-बगल बैठे ग्राहक का इंतजार कर रहे हैं। (फोटो रुचिर गर्ग ने फेसबुक पर पोस्ट की है।)
(rajpathjanpath@gmail.com)
तबादले, नक्सल मोर्चा और मजबूत होगा
चुनाव निपटते ही कांकेर कलेक्टर को एक झटके में बदलकर सरकार ने सामान्य प्रशासन को लेकर अपने तेवर दिखा दिए हैं। और कानून व्यवस्था को लेकर भी यही नजरिया होगा। क्योंकि थानों की बोलियां लगने की खबरें आ रहीं हैं।
इसकी पृष्ठभूमि में पुलिस महकमे में बड़ी सर्जरी की तैयारी चल रही है। पीएचक्यू में आधा दर्जन एडीजी, आईजी, एसपी रैंक के अधिकारी खाली बैठे हुए हैं। उन्हें नई जिम्मेदारी दी जाएगी। उन्हें सीआईडी, प्रशासन, नक्सल ऑपरेशन, तकनीकी सेवा से लेकर अन्य शाखाओं में पदस्थ किया जाएगा।
पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन और एसएसबी में भी फेरबदल किया जाएगा। सरकार नक्सल मोर्चे पर बड़ी लड़ाई की तैयारी कर रही है। इसलिए नक्सल ऑपरेशन और उससे जुड़े विंग को मजबूत किया जाएगा बस्तर, दुर्ग , राजनांदगांव रेंज आईजी से लेकर जिलों में भी कई कप्तान को बदलने की तैयारी है। इसमें राजनांदगांव, कवर्धा से लेकर कोरबा, गरियाबंद, महासमुंद, बलरामपुर की चर्चा है। और पिछली सरकार में ब्लूआइड रहे अफसरों ने पांच महीने में अपनी स्थिति सुधार ली है। इन्हें भी फ्रंट रनर माना जा रहा है ।
अब नई प्लानिंग
राजनीति में यदि आपने संघर्ष के साथ शीर्ष हासिल करने बाद यदि उसे विनम्रता, गुटबाजी रहित और कार्यकर्ताओं को सम्मान देकर सहेज लिया तो ठीक वर्ना करियर में नेपथ्य तय है। इसी नेपथ्य से भाजपा के एक नेता जूझ रहे हैं। नेताजी कभी पार्टी के कुबेर माने जाते रहे हैं। इसी के बूते लोकतंत्र के एक स्तंभ के शीर्ष पर भी रहे। उसके बाद से परावर्तन का दौर शुरू हुआ। सरकार के साथ पार्टी के भी पदों से हटा दिए गए । अब वे भाई साहबों से संगठन का काम मांग रहे हैं। चुनाव में एक संसदीय क्षेत्र के क्लस्टर का काम मिला। मैडम के लिए जुट गए तन मन धन और पुत्र के साथ । आदिवासी वोटरों के लिए गांधीजी को साथ लेकर डटे रहे। इस उम्मीद और प्लानिंग से कि मैडम जीती तो, उनके जरिए रायपुर दक्षिण से सदन में प्रवेश कर लिया जाए। लेकिन उम्मीदें हर बार सफलीभूत नहीं होतीं। इसीलिए कहा गया है माया मिली न राम । अब नए सिरे नई प्लानिंग करनी होगी ।
नीट के नतीजे और लॉबी
नीट के नतीजों ने एक बेदाग अफसर के कामकाज पर उंगली उठाने का अवसर दे दिया है । सफाई देनी पड़ी है। एनटीए के डीजी छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस सुबोध सिंह ने गड़बड़ी के सारे लूप होल्स बंद करने की योजना बनाई थी, अमल भी किया। इसमें सबसे बड़ा अहम था पेपर लीक। यह तो नहीं हो पाया।दिल्ली में सक्रिय कोचिंग सेंटर्स गिरोह चारों खाने चित्त रहा। लेकिन क्वेश्चन पेपर की सेंटर्स तक डिलीवरी लेट करवा कर बदला ले लिया गया। इस गिरोह में कोचिंग वालों के साथ निजी मेडिकल कॉलेज संचालक, केंद्रीय उच्च शिक्षा विभाग के अफसरों का रिंग शामिल है।
दरअसल मेडिकल के एनआरआई, मैनेजमेंट, पूर्व सैनिक,स्वतंत्रता सेनानी कोटे की सीटें इसी गिरोह के हाथों में है। लीक करने से चुके गिरोह ने योजना बनाई कुछ सेंटर्स में पेपर बंडल लेट भेजा जाए। ताकि बच्चों का साल्विंग टाइम कम हो और ये बच्चे पिछड़ जाएं। हुआ भी ऐसा ही । देरी की वजह से एनटीए को ग्रेस नंबर देने पड़े। ऊपर से एसआईटी जांच बिठानी पड़ी । दरअसल ये पूरा खेल दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, चंडीगढ़, पंजाब और कर्नाटक के आईएएस लॉबी की बताई गई है। एनटीए डीजी (सुबोध सिंह, छत्तीसगढ़ कैडर के, केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर )से लेकर उच्च शिक्षा सचिव (संजय के मूर्ति) में शीर्ष पदों पर इन कैडर के लोग नहीं हैं। कोचिंग लॉबी की दाल नहीं गल रही थी। सो बच्चों के भविष्य के साथ यह षड्यंत्र रचा गया ।
गोद लेने के खतरे भी जान लीजिए...
कबीरधाम जिले के कुरदुर के पास बाहपानी में एक भीषण सडक़ हादसे में 19 आदिवासियों की पिछले महीने मौत हो गई थी। इसके साथ ही मृतकों पर आश्रित 24 बच्चों के सामने अंधेरा छा गया। विधायक भावना बोहरा पीडि़त परिवारों से मिलने गईं और वहां घोषणा की कि वे इन बच्चों की आगे की पढ़ाई, रोजगार और विवाह पर आने वाला खर्च अपने सामाजिक संस्था के माध्यम से वहन करेंगी, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। इसका मतलब कुल मिलाकर यह था कि वे इन बच्चों को गोद लेंगीं। अब पूर्व मंत्री व इलाके के पूर्व विधायक मोहम्मद अकबर ने गोद से संबंधित कानूनी पक्ष की याद दिलाई है। उनका बयान आया है कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम-1959 के तहत बच्चों को गोद लेने वाले की संपत्ति पर अधिकार मिलता है। 15 साल से अधिक उम्र के बच्चों को गोद नहीं ले सकते। गोद लेने वाले और बच्चे की उम्र में कम से कम 21 साल का फर्क हो, आदि।
विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति की घोषणा की थी, जिससे पता चला कि बोहरा सबसे अमीर उम्मीदवार हैं। क्या इसलिये उनको गोद लेने के खतरे के बारे में याद दिलाया जा रहा है? हो सकता है कि बोहरा के इस फैसले के पीछे राजनीति हो, पर इससे बच्चों का भला ही होगा। जिस कानून की मो. अकबर याद दिला रहे हैं वह तब लागू होगा, जब गोद लेने के लिए लंबी प्रशासनिक और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाए। इसमें इश्तहार छपवाना भी शामिल है, जिसमें गोद लेने पर आपत्ति की जा सकती है। यह सब तो हुआ है नहीं। विधायक बोहरा की नैतिक जिम्मेदारी जरूर है कि सार्वजनिक घोषणा कर देने के बाद बच्चों के साथ उन्होंने जो वादा किया है, पूरा करें। अकबर चुनाव में तो बुरी तरह निपट गए, एक मानवीय मामले में भावना वोहरा की भावना को कुचलने के लिए वे क़ानून की अपनी सतही जानकारी का इस्तेमाल कर रहे हैं। जब प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति किसी आदिवासी जाति को, या सांसद किसी गाँव को गोद लेते हैं, तो उसका मतलब क़ानूनी दत्तक संतान बनाना नहीं होता। जिस इलाक़े ने अकबर को 2018 के चुनाव में प्रदेश में सबसे अधिक लीड से जिताया था, वहाँ इतनी मौतों पर अकबर ने अपनी एक दिन की कमाई भी भेजी? झांकने गए?
लगे हाथ उन गांवों की दशा भी देख लेनी चाहिए, जो सिर्फ प्रचार के लिए कभी प्रधानमंत्री, कभी मुख्यमंत्री तो कभी सांसद-विधायक के नाम पर गोद ले लिए जाते हैं। इसमें जनप्रतिनिधियों को अपनी जेब भी ढीली नहीं करनी पड़ती, सरकारी फंड का सही इस्तेमाल ही करना होता है। फिर भी गोद लिए गांव विकास के लिए तरसते हैं।
बस जांच ही चलती रहेगी..?
पूर्ववर्ती सरकार में स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेम साय सिंह टेकाम को हटाने से पहले एक बड़ा भ्रष्टाचार हुआ था। प्रदेशभर के शिक्षकों की पदोन्नति के बाद पोस्टिंग में मनमाना संशोधन किया गया था। 2000 से अधिक शिक्षकों को मनचाही जगह देने के एक-एक केस में लाखों रुपयों का वारा-न्यारा होने की शिकायत आई थी। हाईकोर्ट में दूर भेज दिये जाने से प्रभावित शिक्षकों की याचिका लगी थी। तब सरकार ने माना था पोस्टिंग के नियमों का पालन नहीं हुआ। तत्कालीन संयुक्त संचालक, जिला शिक्षा अधिकारी से लेकर बाबू तक इसमें लिप्त पाये गए थे। कई का निलंबन किया गया। टेकाम के बाद स्कूल शिक्षा विभाग संभालने वाले मंत्री रविंद्र चौबे ने दोषी अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दे दिया था। पर यह चर्चा में ही रह गई। कोई आदेश नहीं हुआ, उसके बाद चुनाव आ गया। अब आचार संहिता हटने बाद शिक्षा विभाग के एक अतिरिक्त संचालक को फिर जांच अधिकारी बना दिया गया है। शिक्षा विभाग में जांच के लिए नोटिस जारी करना, जवाब मांगना एक बड़ा खेल है। प्राचार्य कोई खरीदी करते हों तब, शिक्षक गायब रहते हों तब, शिकायत होती है और जांच होती है। कार्रवाई क्या होगी, यह जांच अधिकारी पर निर्भर होता है। क्लीन चिट भी दी जा सकती है। पिछली सरकार इस बात से संतुष्ट थी कि एफआईआर होनी चाहिए। पर, नई सरकार नए सिरे से जांच करा रही है। (rajpathjanpath@gmail.com)
10-1 की एक ही वजह
लोकसभा चुनावों में छत्तीसगढ़ में भाजपा एक बार फिर 11-0 का स्कोर खड़ा ही नहीं कर पाई। अटलजी के इतने बड़े वादे के वक्त भी छत्तीसगढ़ कृतार्थ नहीं हुआ था। उसके बाद से पांच चुनाव हो चुके हैं और नतीजे 9-2,10-1 के ही आते रहे। 10-1 दो बार। दोनों ही बार एक ही वजह- सरोज पांडे । पहले दुर्ग से हारीं, और अब कोरबा से। दुर्ग में साहू समाज को नाराज किया और कोरबा में बाहरी कहलाईं। हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस के चार और बाहरी रहे। लेकिन कोरबा में कहावत चल गई कि मायावी महंत के आगे नहीं चलने वाली। हुआ यही। उन्होंने भाजपा के भी वोट बैंक में सेंधमारी की ।
हमने प्रचार अभियान के दौरान पहले ही कहा था कि न केवल प्रत्याशी बल्कि कार्यकर्ता भी महाराष्ट्र, हरियाणा दुर्ग के गए थे कोरबा। उपर से मैडम ने स्थानीय कार्यकर्ताओं की भूमिका पर नजर रखने अपनी बैक अप टीम छोड़ रखी थी। बस फिर लोकल ने अपना काम कर दिया। वैसे भी कोरबा के भाजपा नेता यह नहीं चाहते थे कि उनकी राजनीति दुर्ग से चले। और भाजपा का प्रदेश नेतृत्व भी नहीं चाहता था कि छत्तीसगढ़ सरोज के इशारे पर चले।
मारपीट की रिपोर्ट के भी पैसे लगेंगे
पिछली सरकार में पुलिसिंग का जो स्तर गिरा है। वह उठ नहीं पाया है। अब भी वही परंपराएं चल रही हैं। इलाके में जुआ, सट्टा, कबाड़ की खुली छूट है। मारपीट की रिपोर्ट करने वालों से भी पैसा लेना है। हर मामलों की भी कीमत तय हैं। दरअसल जिलों में हर थाने की बोली होने लगी है। हर थाने की कीमत तय कर दी है। हर माह उतना देना ही है। उस आधार पर टीआई की पोस्टिंग हो रही है। टीआई भी दुकानदार हो गए हैं, कितना जिले के गुल्लक में डालना है, कितना घर ले जाना है यह फिक्स कर दिया है। सुबह अगरबत्ती जलाकर थाना की कार्रवाई शुरू करते हैं। जैसे दुकानदार। चर्चा है कि छोटे-छोटे जिलों में भी बड़ी बोली लगने लगी है। एक छोटे जिले में शहरी थाने का 3 लाख फिक्स कर रखा है। जो उतना देगा वह थाना प्रभारी बनेगा। इसी तरह अन्य थाना का 50 हजार से लेकर डेढ़ लाख रुपए फिक्स किया हुआ है।
वीकली ऑफ भर्ती के बाद
सरकार बनने के बाद डिप्टी सीएम ने बैठक में बोल दिया कि पुलिसकर्मियों को वीकली ऑफ दिया जाए। अब अफसर परेशान हैं कि वीकली ऑफ कैसे शुरू करें। देने की स्थिति रहती तो पिछली सरकार में ही दे देते। तब कांग्रेस की सरकार की प्राथमिकता में वीकली ऑफ देना भी था। कांग्रेस सरकार का फोकस भी ऐसी कोशिशों में था जिसमें पैसे खर्च न हों। पर जब थानों के स्टाफ को हर हफ्ते एक दिन छुट्टी देने की बात आई, तब यह संभव नहीं हुआ, क्योंकि इतने पुलिस वाले ही नहीं हैं कि वीकली ऑफ दिया जा सके। अब नए सिरे से मंथन शुरू हो चुका है कि किस तरह इसे पूरा किया जा सके। वैसे पिछले दिनों गृहमंत्री कह चुके हैं कि वीकली ऑफ के लिए सभी उपाय कर रहे हैं। इसमें स्टाफ की कमी दूर करने 4 हजार सिपाही की भर्ती करने जा रहे हैं। यानी इनकी भर्ती तक इंतजार करना होगा। कहीं ऐसा न हो फिर से यह वादा अगली सरकार के पाले न चला जाए ।
नई गुलेल का अविष्कार
बस्तर में रथयात्रा या गोंचा पर्व उमंगों से मनाया जाता है। आषाढ़ में जिस दिन गोंचा पर्व प्रारंभ होता है उस दिनसे लेकर अंतिम दिन तक पूजा अर्चना होती है। इस बार यह पर्व 7 जुलाई से 17 जुलाई के मनाया जाएगा। इस मौके पर युवा अपनी तरह-तरह की कलाकारी का प्रदर्शन करते हैं। इसी मौके के लिए तैयार किया गया है- पेंग या तुपकी का नया अवतार। सोशल मीडिया पर इसके वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे लकड़ी की छोटी-छोटी गोलियां एक साथ लोड की जा सकती है, जो लक्ष्य को भेद सकती है। यह कुछ-कुछ गुलेल के बड़े रूप की तरह है। वैसे बस्तर के कई इलाकों में आदिवासी तीर-कमान का त्याग कर चुके हैं। शिकार प्रतिबंधित है ही। इसलिए इस तरह के उपकरण मनोरंजन और प्रतिभा के प्रदर्शन के लिए तैयार किए जाते हैं।
दिल्ली में कैद प्रदेश के बच्चे..
बचपन बचाओ आंदोलन संगठन की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने दिल्ली की दो प्लेसमेंट एजेंसियों के ठिकानों पर पुलिस की मदद से छापा मारकर पॉश कॉलोनियों में काम पर लगाए गए 21 किशोरों को मुक्त कराया है। इनमें 14 लड़कियां हैं। जिन राज्यों के बच्चे यहां कैद मिले, उनमें छत्तीसगढ़ से हैं। झारखंड और उससे लगे जशपुर जिले में मानव तस्करी की समस्या लंबे समय से है। यहां कई प्लेसमेंट एजेंसियों के एजेंट घूमते हैं और गरीब परिवारों को बेहतर वेतन और अच्छी रहन-सहन की सुविधा देने का लालच देते हैं। फिर बच्चों को अमीर घरों में लगभग कैद करके रख लिया जाता है। उनका हर तरह से शोषण होता है। जबरिया विवाह कर दिया जाता है, छोड़ दिए जाते हैं। कई लापता हो चुकी हैं। संदिग्ध परिस्थितियों में मौत भी हो जाती है। गरीबी और महानगरों में काम करने का आकर्षण यह है कि कई रिश्तेदार ही बच्चों की खरीदी बिक्री में शामिल पाए गए हैं। बीते अप्रैल महीने में एक महिला ने अपने रिश्तेदार के तीन अनाथ बच्चों को दिल्ली ले जाने की कोशिश की। पुलिस का दबाव पडऩे पर उन्हें अंबिकापुर वापस लाकर छोड़ा गया। एक अन्य रिश्तेदार 16 साल की उम्र में एक लडक़ी को बहला-फुसलाकर दिल्ली ले गई। वर्षों वहां वह कैद रही। 24 साल की उम्र में वह किसी तरह बचकर हाल ही में वापस लौट पाई। यहां के नारायणपुर थाने में उसकी गुमशुदगी की एफआईआर दर्ज थी। बहुत से लोग दिल्ली ही नहीं, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश भी ले जाए गए हैं। फरवरी माह से अब तक 4 महीनों में जशपुर पुलिस ऐसे 120 नाबालिगों को कैद से छुड़ा कर ला चुकी है। बहुत बार यह पाया गया है कि पुनर्वास ठीक नहीं होने के कारण छुड़ाकर लाए गए बच्चे फिर वापस लौट जाते हैं। कानून व्यवस्था के अलावा यह समस्या सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों से भी जुड़ी है।
हसदेव पर मंत्री का जवाब
हसदेव में पेड़ों की कटाई रोकने और कोल ब्लॉक आवंटन निरस्त करने के लिए राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन को नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत ने पत्र लिखा है। इस पर सरकार के एक मंत्री टंकराम वर्मा का बयान आया है कि कांग्रेस के समय पेड़ों को काटने की मंजूरी दी जा चुकी थी, अब विरोध क्यों किया जा रहा है। यह बात सही है कि कांग्रेस सरकार के दौरान पेड़ों को काटने की शुरुआत हो गई थी। पर कांग्रेस के कई नेता इसके खिलाफ हो गए। उनके ही दबाव में विधानसभा में संकल्प भी पारित किया गया कि अब हसदेव में कोई नया कोल ब्लॉक नहीं, पेड़ों की कोई कटाई नहीं होगी। मगर, हुआ यह कि प्रदेश में सरकार बदलते ही बिना नए मंत्रिमंडल के गठन हुए ही पेड़ों को काटना फिर शुरू कर दिया था। हसदेव अरण्य के हरिहरपुर इलाके में आंदोलन जारी है। इधर अडानी की कंपनी शायद इंतजार कर रही थी कि आचार संहिता खत्म होने के बाद सरकार से मंजूरी हासिल कर ले, लेकिन इसी बीच डॉ. महंत के पत्र से स्पीड ब्रेकर लग गया है।
चुनाव रिज़ल्ट और मंत्री पद
लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस-भाजपा में समीक्षा का दौर चल रहा है। प्रदेश में भाजपा को 10 सीटें लाने के लिए सीएम विष्णुदेव साय को बधाईयां मिल रही है। इससे परे दो पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, और राजेश मूणत का भी पार्टी के भीतर कद बढ़ा है।
मूणत ने राजनांदगांव सीट में एक तरह से चुनाव प्रबंधन संभाला हुआ था और वो पूरे चुनाव राजनांदगांव में ही डटे रहे। यहां कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व सीएम भूपेश बघेल से उनकी व्यक्तिगत नाराजगी भी रही है। इस वजह से उन्होंने यहां खूब मेहनत की, और पार्टी प्रत्याशी संतोष पाण्डेय को जिताने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। ऐसे में बड़ी जीत पर संतोष के साथ मूणत की भी सराहना हो रही है।
दूसरी तरफ, अजय चंद्राकर ने कांकेर में विशेष ध्यान दिया था। यहां कांटे की टक्कर में भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग सीट निकालने में कामयाब रहे। अब देर सबेर मंत्रिमंडल का विस्तार होना है ऐसे में ये दोनों नेता अपने काम के बूते पर स्वाभाविक दावेदार नजर आ रहे हैं।
छत्तीसगढ़ से दो, एक, या एक भी नहीं ?
मोदी 3.0 सरकार के गठन को लेकर दिल्ली से रायपुर तक भाजपा खेमे में हलचल बढ़ गई है। प्रदेश के सभी सांसद दिल्ली पहुंच चुके हैं। कल सभी संसदीय दल के नेता नरेंद्र मोदी से लेकर सभी बड़े नेताओं को जयश्री राम बोल चुके हैं । कारण सभी जानते हैं, कैबिनेट में कुर्सी। हाईकमान के, मंत्री चयन का फार्मूला तय करने की खबर है। इसके मुताबिक छत्तीसगढ़ से दो को लाल बत्ती मिल सकती है। पार्टी ने 4 सांसदों पर एक मंत्री बनाने का फैसला किया है। यानी छत्तीसगढ़ को 10 मेें दो मंत्री बनाए जा सकते हैं। लेकिन पिछली सरकारों के नजरिए से एक भी हो सकते हैं । फिर पार्टी की प्राथमिकता गठबंधन दलों को खुश करने की भी है। इसलिए अपनों को नाराज करने से परहेज नहीं किया जाएगा। छत्तीसगढ़ से किसे लिया जाए, इस यक्ष प्रश्न को लेकर कई पैमाने गिनाए जा रहे हैं। पहला जाति समीकरण, दूसरा अनुभव, और तीसरा संगठन का रूख। बड़ी लीड और रिकार्ड सबसे आखिरी में। पहले तीन मापदंड पर तो दो ही नजर आ रहे हैं। इसमें से किसकी लॉटरी लगती है कल शाम ही पता चलेगा। वैसे सब कुछ वर्किंग स्टाइल ऑफ़ मोदी पर निर्भर है ।
शैलजा तो फिर भी जीत गई...
भाजपा में शामिल हुए पूर्व कांग्रेस के संगठन मंत्री चंद्रशेखर शुक्ला, पूर्व विधायक शिशुपाल शोरी, पूर्व विधायक प्रमोद शर्मा, पूर्व महापौर वाणी राव, महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रही अनीता रावटे, पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष तुलसी साहू, उषा पटेल, पूर्व प्रदेश ओबीसी कांग्रेस अध्यक्ष चौलेश्वर चंद्राकर, आलोक पांडे, अजय बंसल और बिलासपुर के जिला पंचायत अध्यक्ष अरुण सिंह चौहान ने सिरसा, हरियाणा जाकर कांग्रेस प्रत्याशी कुमारी शैलजा के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस ली। इसमें आरोप लगाया गया कि विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण में प्रदेश की प्रभारी महासचिव रहते हुए उन्होंने भाई-भतीजावाद अपनाया, पैसों के लिए योग्यता को किनारे किया तथा शराब और कोयला घोटाले को संरक्षण दिया। छत्तीसगढ़ से इन नेताओं को सिरसा भेजने की रणनीति काम नहीं आई और कुमारी शैलजा को 2 लाख 68 हजार 497 मतों के भारी अंतर से मतदाताओं ने जिता दिया। न केवल उनकी सीट बल्कि कुल 5 सीट भाजपा से कांग्रेस ने छीन ली। वह पिछली बार शून्य पर थी।
प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाए जाने के बाद शैलजा ने अपने वकील के जरिये इन नेताओं को नोटिस भेजी और कहा कि दो दिन के भीतर वे सार्वजनिक रूप से माफी मांगे वरना लीगल एक्शन के लिए तैयार रहें। माफी किसी नेता ने नहीं मांगी, बल्कि भाजपा ने पूछा कि भूपेश बघेल ने अरुण सिसोदिया को भी ऐसी ही नोटिस दी थी, उसका क्या हुआ? माफीनामा नहीं मिलने के बाद कुमारी शैलजा ने इस मामले को आगे बढ़ाया या नहीं, इसकी कोई खबर फिलहाल नहीं है। मगर, दशकों तक कांग्रेस की सेवा करने के बाद भाजपा में जाते ही इन्होंने अनुशासित सिपाही की तरह सिरसा जाकर भाजपा के पक्ष में काम किया। अब लोग इंतजार कर रहे हैं कि कब संगठन और सत्ता में इन्हें कोई वजनदार ओहदा मिलेगा।
हार का श्रेय भी लिया जा सकता है...
राजनीति में दो और दो हमेशा चार नहीं होते। एक राय हो सकती है कि इस लोकसभा चुनाव में राजनांदगांव की सीट कांग्रेस के लिए बहुत मुश्किल नहीं थी। पांच साल तक भारी बहुमत से राज्य की सरकार चला चुके पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मैदान में थे और आठ में से 5 विधानसभा सीटों पर दिसंबर 23 के चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। मगर एक दूसरा आंकड़ा भी है। कांग्रेस की जीती हुई पांच सीटों पर कांग्रेस की भाजपा पर कुल बढ़त 80 हजार 457 थी। जबकि शेष तीन सीटों पर ही भाजपा की लीड 1 लाख 11 हजार 754 रही। इनमें राजनांदगांव से मिली 45 हजार से अधिक और कवर्धा से मिली 39 हजार से अधिक की लीड शामिल है। इस तरह से विधानसभा में सीटों की संख्या तो कांग्रेस के पास अधिक थी, मगर भाजपा की कुल बढ़त 30 हजार वोटों से अधिक थी। मोहला मानपुर की 31 हजार 900 की लीड लोकसभा में बढक़र 39 हजार से अधिक चली गई। मगर खुज्जी जैसी सीट पर 26 हजार की विधानसभा में जो लीड थी वह घटकर 15 हजार रह गई। राजनांदगांव में विधानसभा के मुकाबले बढ़त 45 हजार से बढक़र 52 हजार हो गई। पंडरिया विधानसभा सीट भाजपा के खाते में गई लेकिन यहां कांग्रेस को करीब 3400 की लीड मिल गई। डिप्टी सीएम विजय शर्मा की कवर्धा सीट पर भी विधानसभा के मुकाबले भाजपा की लीड 39 हजार से घट कर 10 हजार से कुछ अधिक रह गई। खुज्जी, पंडरिया और मोहला-मानपुर में मिली कांग्रेस को लीड मिली। पर राजनांदगांव और कुछ हद तक कवर्धा की लीड ने भाजपा की जीत निश्चित कर दी।
भाजपा के पक्ष में राजनांदगांव में बड़ी लीड से जीतने वाले डॉ. रमन सिंह और विजय शर्मा तो थे ही, मोदी को फिर से लाने का माहौल और साय सरकार की महतारी वंदन जैसी योजना का असर भी था। बघेल के खिलाफ कई बातें थीं। एक तो पिछली सरकार के प्रति नाराजगी का बना रहना, बाहरी होना, कवर्धा जैसे इलाकों में एजाज ढेबर और मोहम्मद अकबर की मतदाताओं को याद दिलाना।
इधर बघेल की हार से सबसे ज्यादा खुशी वहां के पूर्व कांग्रेस नेता सुरेंद्र दाऊ को हुई । ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, वे पोस्टर लगाकर खुद ही बता रहे हैं। उन्होंने राजनांदगांव में चुनाव प्रचार के लिए पहुंचने पर बघेल को मंच से ही कई बातें सुना दी थी, जिसके बाद उन्हें कांग्रेस ने पार्टी से निकाल दिया था, फिर वे बघेल के प्रचार में खुलकर आ गए थे। जब उन्होंने धमकी मिलने की बात कही थी तो भाजपा सरकार ने उनकी सुरक्षा भी बढ़ा दी थी। (rajpathjanpath@gmail.com)
कोरबा ने क्लीन स्वीप से बचाया
छत्तीसगढ़ के दिसंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भाजपा ने अप्रत्याशित रूप से करारी शिकस्त दी थी। उस चुनाव में भूपेश मंत्रिमंडल के अधिकांश सदस्य चुनाव हार गए। तब के स्पीकर डॉ. चरण दास महंत ने न केवल अपनी सक्ती की सीट बचाई बल्कि आसपास की सारी सीटें भी कांग्रेस के पास आ गईं। लोकसभा चुनाव 2019 में भी ऐसा ही हुआ था। जब देश में मोदी लहर चरम पर थी, बस्तर के अलावा कोरबा सीट ही ऐसी सीट थी जहां कांग्रेस को जीत मिल पाई। इस बार 2024 में भाजपा ने 400 पार का नारा दिया तो लहर कुछ कम-ज्यादा 2019 की तरह ही उसके पक्ष में, कम से कम छत्तीसगढ़ में दिखाई दे रहा था। यहां भाजपा की कोशिश सभी 11 सीटें जीतने की थी। कोरबा में मतदान तीसरे चरण में हुआ। वोटिंग के कुछ दिन पहले ही महतारी वंदन योजना की दूसरी किश्त महिलाओं के खाते में पहुंच गई थी। 2019 में सांसद महंत पहली बार चुनी गईं, लेकिन इस बार तो मतदाता उनके परफार्मेंस को भी तौलने जा रहे थे। लोकसभा के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक था। कोरबा शहर से ही कद्दावर जयसिंह अग्रवाल की हार हो गई। मरवाही में राज्य बनने के बाद पहली बार भाजपा को जीत मिली। तानाखार गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के पास है। कांग्रेस के कई पुराने कार्यकर्ता भाजपा में चले गए। इस तरह की तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच महंत दंपत्ति मैदान में उतरे। कई लोगों का कहना है कि कुछ लोगों का कांग्रेस छोडक़र जाना ठीक रहा, इसके चलते कई समर्पित कार्यकर्ताओं को आगे आने का मौका मिला। तानाखार और मरवाही के विधानसभा में फिसले वोट दोबारा कांग्रेस के पास आ गए। इधर भाजपा में स्थानीय स्तर टिकट वितरण को लेकर असंतोष था। भाजपा के प्रचार अभियान में यह दिखाई दे रहा था। इन सब ने नतीजा दिया और मध्यप्रदेश जैसी नौबत नहीं आई, जहां कांग्रेस 29 में से एक सीट के लिए तरस गई।
पत्नी की जीत से चरणदास महंत का भी राजनीतिक वजन बढ़ा है, और अब वे छत्तीसगढ़-एमपी में सबसे कामयाब कांग्रेस नेता हो गए हैं। ज्योत्सना महंत अविभाजित एमपी की 40 सीटों पर अकेली कांग्रेस सांसद हैं।
जाने-पहचाने पड़ोसी
पड़ोसी राज्य ओडिशा में कई ऐसे प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है, जिनका छत्तीसगढ़ से नाता रहा है। मसलन, प्रदेश भाजपा के प्रभारी रहे धर्मेन्द्र प्रधान संबलपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। प्रदेश के कई नेताओं ने प्रधान के प्रचार के लिए संबलपुर में डेरा डाले हुए थे। इसी तरह राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन के बेटे भाजपा नेता पृथ्वीराज हरिचंदन ने चिलिका विधानसभा सीट से बड़ी जीत दर्ज की है। पृथ्वीराज के प्रचार के लिए रायपुर उत्तर के विधायक पुरंदर मिश्रा लंबे समय तक चिलिका विधानसभा क्षेत्र में डटे रहे।
यही नहीं, छत्तीसगढ़ सरकार के हेलीकॉप्टर पायलट रहे कैप्टन डीएस मिश्रा ने ओडिशा की जूनागढ़ सीट से बीजू जनता दल की टिकट पर तीसरी बार जीत हासिल की है। मिश्रा नवीन-पटनायक सरकार में गृह और ऊर्जा मंत्री रह चुके हैं। इससे परे, छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिव रहे भक्त चरणदास खुद तो विधानसभा चुनाव हार गए, लेकिन उनके बेटे सागर चरणदास भवानी पटना सीट से चुनाव जीत गए। भक्त चरणदास ने अपने कार्यकाल में बस्तर इलाके में कांग्रेस को मजबूत किया था।
यहाँ की एक और प्रभारी
छत्तीसगढ़ भाजपा की प्रभारी डी पुरंदेश्वरी आंध्रप्रदेश की राजमहेन्द्री लोकसभा सीट से चुनाव जीत गई। डी पुरंदेश्वरी की जीत से यहां प्रदेश भाजपा में खुशी का माहौल है, और कई नेताओं ने उन्हें फोन कर जीत की बधाई दी।
डी पुरंदेश्वरी ने विधानसभा चुनाव में हार के बाद से प्रदेश भाजपा संगठन को संवारा, और उनकी कार्यशैली की प्रदेश भाजपा के नेता तारीफ करते नहीं थकते हैं। यही नहीं, वो ओडिशा भाजपा की प्रभारी भी थीं। जहां पार्टी सरकार बनाने में कामयाब रही है। डी पुरंदेश्वरी, आंध्र प्रदेश के बड़े नेता दिवंगत एनटी रामाराव की पुत्री हैं, और तेलगुदेशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू उनके जीजा हैं। डी पुरंदेश्वरी का केन्द्र में मंत्री बनना तय माना जा रहा है।
मैं फलाना के साला बोलथ हववं
चुनाव निपट गए, आचार संहिता हट गई। अब सरकारी कामकाज रफ्तार पकड़ेगा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है तबादले। पहले आईएएस, आईपीएस, आईएफएस फिर राप्रसे, रापुसे रावसे के अधिकारियों की बारी आएगी। और फिर सरकार निगम चुनाव से पहले अन्य संवर्ग के तबादलों पर लगी रोक भी हटा सकती है। इसे देखते हुए लोग अपने बचाव का जुगाड़ करने लगे हैं। खासकर राजधानी और आसपास पोस्टेड लोग। ऐसे अधिकारी, कर्मचारी, प्रोफेसर अभी से नेताओं की रिश्तेदारी बताने लगे हैं। एक ऐसे ही प्रोफेसर और संचालनालय में पदस्थ को यदि आपने कॉल किया तो वे स्वयं प्रोफेसर कहना पसंद नहीं करते। वे कहते हैं कि हेलो मैं फलाने ... का सग साला बोल रहा हूं। और अपना नाम बाद बताते हैं । यह इसलिए कि विभाग के साहब लोग समझ जाए। सूची बनाते समय उनका नाम याद रखें। यही वजह है कि डेढ़ दशक पहले हुए एक बड़े घोटाले में आरोपित होने के बाद भी वे आज तक राजधानी में ही पदस्थ हैं। इसलिए कहा गया है कि सारी खुदाई......।
छत्तीसगढ़ को मंत्री मिलेंगे?
अगले दो-तीन दिन के भीतर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार केंद्र सरकार बनने जा रही है। सन् 2014 और 2019 में छत्तीसगढ़ में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था। तब उसने कांग्रेस को क्रमश: एक और दो सीट पर सिमटने के लिए मजबूर कर दिया। इस बार फिर 2014 की स्थिति बन गई है और 11 में 10 सीटों पर भाजपा है। दोनों ही बार छत्तीसगढ़ को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व मिला। सन् 2014 में विष्णुदेव साय को तो सन् 2019 में रेणुका सिंह के जरिये। पर इस बार परिस्थिति अलग है। भाजपा इस बार अकेले पूर्ण बहुमत में नहीं है। एनडीए के सहयोगी दल खासकर नीतिश कुमार और एन. चंद्राबाबू नायडू ज्यादा से ज्यादा मंत्री पद और महत्वपूर्ण विभाग हासिल करने की कोशिश में हैं। फिर एक दो सीट वाले सांसद हैं। जीतनराम मांझी अकेले चुने गए हैं, वे भी मंत्री पद मांग रहे हैं।
दूसरी तरफ भाजपा को आने वाले चुनावों में अपना प्रदर्शन सुधारना है। महाराष्ट्र में तो इसी साल विधानसभा चुनाव है, जहां भाजपा का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा। जनवरी 2025 में झारखंड में चुनाव है। यहां उसने लोकसभा 2019 में मिली 11 में से तीन सीट गंवा डाली है। अगले साल फरवरी में दिल्ली में चुनाव होना है, जहां सभी 7 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की। आम आदमी पार्टी का दिल्ली में खराब प्रदर्शन रहा। भाजपा अब दिल्ली विधानसभा में बहुमत तक पहुंचने की कोशिश करेगी। जनवरी 2026 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव है। लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने यहां भाजपा को तगड़ा झटका दिया। वह 18 से 12 पर आ गई। पार्टी की स्थिति को मजबूत करने के लिए जरूरी होगा कि इन राज्यों से केंद्रीय मंत्रिमंडल में ठीक-ठाक प्रतिनिधित्व मिले। छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश और अब ओडिशा ही ऐसे राज्य हैं, जहां 2027 या उसके बाद विधानसभा चुनाव होंगे। मगर, 21 सीटों वाली ओडिशा में पहली बार भाजपा को 20 सीटें मिली है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान व माधवराव सिंधिया जैसे नेताओं को उपेक्षित नहीं किया जा सकता। वहां छिंदवाड़ा सहित सभी 29 सीटें भाजपा की झोली में आ गई हैं। छत्तीसगढ़ में भी विशाल अंतर से जीतने वाले बृजमोहन अग्रवाल और लगातार दूसरी बार सांसद बने विजय बघेल और संतोष पांडेय दावेदारी रखते हैं। छत्तीसगढ़ को पहले भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में, चाहे व कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की, कम ही प्रतिनिधित्व मिला है। मोदी-शाह ने तो फॉर्मूला यह बनाया है कि चार सांसदों पर एक मंत्री पद दिया जाएगा। ऐसे में तो छत्तीसगढ़ से 2 या 3 मंत्री बनने चाहिए। मगर, ऐसा होगा?
यात्रियों पर कोयले की धूल
स्वच्छता पर जोर देने की बात करने वाली रेलवे ने इस ओर से आंखें मूंद रखी है कि प्लेटफॉर्म के नजदीक बनाई गई साइडिंग से कितना प्रदूषण होता है। बिलासपुर-रायपुर मार्ग के दाधापारा रेलवे स्टेशन में जिस पटरी पर लोकल गाडिय़ां रोकी जाती है, साइडिंग वहां से लगी हुई है। प्लेटफॉर्म कोयले से पटा हुआ है। लोकल गाडिय़ां कई बार एक्सप्रेस ट्रेनों और मालगाडिय़ों को रास्ता देने के लिए यहां देर-देर तक रोकी जाती है। साइडिंग की धूल लोडिंग-अनलोडिंग के दौरान यात्रियों तक भी पहुंचता है। एक यात्री ने इस तस्वीर के साथ रायपुर रेल मंडल के डीआरएम और अन्य अधिकारियों से की है। (rajpathjanpath@gmail.com)
वे ही नहीं चाहते थे
परसों ठाकरे परिसर में संगठन के बड़े नेता और भाई साहब लोग नतीजों पर नजर रखने बैठे थे। पल पल फ्लैश होते ब्रेकिंग खबरों से कभी उत्साहित तो कभी हल्की मायूसी। खासकर यूपी के आंकड़े परेशान कर रहे थे। हर ब्रेकिंग पर टिप्पणियों का भी होती रहीं। शाम 4 बजते ही जब पिक्चर क्लीयर हुई तो यूपी की विफलता के कारण बाहर आए। भाई साहबों ने कहा यूपी में 18 फीसदी ब्राह्मणों ने पार्टी का तिरस्कार किया। इनमें अखाड़े, मठ और शंकराचार्यों के समर्पित भक्त शामिल हैं।
एक भाई साहब ने कहा कि पहली नाराजगी तो अपूर्ण मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा और उद्घाटन को इन ब्राह्मणों ने अनुचित माना। पूजन के समय पहुंची एक ब्राह्मण दंपत्ति को शो पीस बनाकर रखना। यूपी की सभाओं में अजा, ओबीसी का पैर पूजना, पार्टी की ब्राह्मणों से दूरी। बिष्ठ ठाकुर से योगी बने आदित्यनाथ का ठाकुर प्रेम। यह सब देख 2014,19, से 24 तक 16 से 18 फीसदी हुए ब्राह्मणों ने हाथ उठा दिया। और रामलला की जन्मभूमि में भी 550 वर्ष के इंतजार का फायदा नहीं मिला। और इतना ही नहीं ठाकरे परिसर में एक भाई साहब ने कहा योगी जी ही नहीं चाहते थे।
नाराजगी नहीं नाखुशी का मामला..
कल भंग की गई लोकसभा के मंत्रिपरिषद् की आखिरी बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि लोगों में सरकार नहीं, उम्मीदवार विशेष को लेकर नाराजगी थी। 1 लाख 64 हजार मतों के विशाल अंतर से जीतने वाले बिलासपुर संसदीय सीट के उम्मीदवार तोखन साहू के संदर्भ में मोदी की बात तौली जा सकती है। तोखन साहू लोरमी के रहने वाले हैं और यहीं से उपमुख्यमंत्री अरुण साव भी विधानसभा में प्रतिनिधित्व करते हैं। यह वह जगह थी जहां से सबसे ज्यादा बढ़त भाजपा को मिल सकती थी। पर सिर्फ 464 मतों से तोखन साहू को बढ़त हासिल हुई, जो अन्य किसी भी विधानसभा में कांग्रेस भाजपा के बीच वोटों का सबसे कम अंतर है। अरुण साव कह सकते हैं कि डिप्टी सीएम होने के चलते वे अकेले लोरमी नहीं, पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर प्रचार करते रहे। मगर, तोखन साहू तो लोरमी के लिए जाने-पहचाने चेहरे हैं। वे 2013 में विधानसभा जीतकर संसदीय सचिव बने थे, 2018 में धर्मजीत सिंह ठाकुर से हार गए थे। लोरमी की जनता के पास एक उपमुख्यमंत्री पहले से था, फिर एक सांसद भी मिलने वाला था, फिर वोट तोखन साहू के पक्ष में खटाखट क्यों नहीं गिरे? इलाके में इसके दो तीन कारण बताए जा रहे हैं। एक पक्ष कह रहा है कि तोखन को लेकर कोई नाराजगी नहीं थी, बल्कि उनका और भाजपा का लोरमी के लिए बेफिक्र हो जाना बड़ा कारण था। फिर एक दूसरी बात यह थी कि ओबीसी यादव समाज के मतदाता बड़ी संख्या में लोरमी में हैं। उन्हें देवेंद्र यादव का साथ मिला। वे साहू-साहू वर्चस्व को लेकर आशंकित तथा नाखुश थे। तीसरी यह वजह आई कि तोखन साहू लोरमी के लिए नया चेहरा नहीं थे। बाकी विधानसभा सीटों के लिए वे नए थे। मोदी मैजिक और महतारी वंदन ने बाकी सीटों पर तो काम किया पर लोरमी में उनकी विधायकी के परफार्मेंस पर लोगों ने ध्यान दिया। शायद इसीलिये 2018 में हराया भी था। इन सबके बावजूद तोखन साहू की जीत 2019 में बिलासपुर सीट से मिली जीत से बड़ी है।
सीएम व उनकी टीम हुई मजबूत
भाजपा की प्रदेश की सत्ता में वापसी के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ विधायक मंत्रिपरिषद् में जगह पाने से वंचित रह गए। विष्णु देव साय मंत्रिमंडल के कई सहयोगी बिल्कुल नए हैं, पर कुछ अनुभवी भी हैं। मंत्रिपरिषद् में बृजमोहन अग्रवाल, केदार कश्यप, रामविचार नेताम और दयाल दास बघेल को पहले से मंत्री पद पर काम करने का मौका मिल चुका था। लखन लाल देवांगन संसदीय सचिव रह चुके थे। जबकि दोनों डिप्टी सीएम अरुण साव और विजय शर्मा पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। मंत्री ओपी चौधरी, लक्ष्मी राजवाड़े और टंकराम वर्मा भी पहली बार विधानसभा पहुंचे और मंत्री बनाए गए। टिकट बंटवारे में जब वरिष्ठ दावेदारों को मौका तो दिया गया था लेकिन मंत्रिमंडल में उन्हें नहीं लिया गया। इनमें अजय चंद्राकर, अमर अग्रवाल, धरम लाल कौशिक, रेणुका सिंह, राजेश मूणत आदि शामिल हैं। जब बृजमोहन अग्रवाल को लोकसभा की टिकट दे दी गई, तब यह लगभग यह तय हो गया कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व नई टीम के जरिये पार्टी को आगे ले जाना चाहती थी। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने 400 पार के नारे के साथ प्रदेश की सभी 11 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा और नारा दिया। इनमें से 10 सीटें आ ही गईं। यह 2019 से अच्छी स्थिति है जब केंद्र में भाजपा ने 2014 से बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन छत्तीसगढ़ से दो सीटें कांग्रेस के पास चली गई थी। इस बार जब केंद्र में भाजपा के लिए एक-एक सीट कीमती है तब 10 सीटों पर जीत काफी महत्व रखता है। नतीजों के बाद महाराष्ट्र में उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस ने अपने इस्तीफे की पेशकश की है। राजस्थान में भी भाजपा ने सीटें गंवाई। वहां पहली बार के विधायक मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा का भविष्य दांव पर लगा है। एक मंत्री ने वहां भी इस्तीफे की पेशकश कर दी है। सबसे अप्रत्याशित नतीजा उत्तरप्रदेश का रहा, जहां योगी आदित्यनाथ की कुर्सी पर संकट मंडरा रहा है। फडऩवीस की पेशकश ने उन पर दबाव बढ़ा दिया है। ऐसी चर्चा है कि सीएम योगी भी इस्तीफे की पेशकश कर सकते हैं। मगर, छत्तीसगढ़ में परिणाम अपेक्षा के अनुरूप आने के कारण मुख्यमंत्री और उनका मंत्रिमंडल नई टीम के साथ मजबूत दिखाई दे रहा है। उनके सिर्फ एक मंत्री लखन लाल देवांगन के क्षेत्र में कांग्रेस की हार हुई।
बारिश से पहले घोंसले की तैयारी
मानसून आने के पहले ये कैटल इग्रेट आपको पेड़ों पर घोंसला बनाते हुए दिखाई दे सकते हैं। यह बगुला परिवार का पक्षी है, जो कॉलोनियों में खुली जगह देखकर अपना बसेरा बनाते हैं। बगुले की दूसरी प्रजातियों से अलग ये सूखी जगहों पर रहना ज्यादा पसंद करते हैं। यह तस्वीर बिलासपुर के वन्यजीव प्रेमी प्राण चड्ढा ने ली है। (rajpathjanpath@gmail.com)
दहशत में सत्ता
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के छह महीने बाद लोकसभा के चुनाव होते हैं, और उसके छह महीने बाद पंचायत और म्युनिसिपलों के। नतीजा यह होता है कि विधानसभा चुनाव के पहले जिसकी सरकार रहती है वे आखिरी छह महीने जनता पर किसी भी तरह की जनकल्याण की कड़ाई बरतना भी बंद कर देते हैं। शहरी अराजकता पर कोई कार्रवाई नहीं होती क्योंकि अवैध कब्जा, अवैध निर्माण करने वाले वोटर नाराज न हो जाएं। सरकारें एक किस्म से लकवाग्रस्त सी हो जाती हैं। यह राज्य उन राज्यों में से है जहां ये तीनों चुनाव छह-छह महीने के फासले पर होते हैं, नतीजा यह होता है कि पहले चुनाव के छह महीने पहले से आखिरी चुनाव के छह महीने बाद तक राजनीतिक दल दिल कड़ा नहीं कर पाते, और लोग इस पूरे दौर में मनमानी कर लेते हैं।
दरअसल शहरी जिंदगी में जब कोई व्यक्ति सडक़ किनारे अवैध कब्जा करने से लेकर कोई अवैध निर्माण करने तक, जो भी गलत काम करते हैं, उससे बाकी नियम-पसंद जनता के हक भी कुचले जाते हैं। और अवैध कब्जों, अवैध निर्माणों की नीयत संक्रामक रोग की तरह एक से दूसरे में फैलती है, और लोगों को गलत काम न करने पर अपना हक कुचला जाना महसूस होता है।
डरे-सहमे राजनीतिक दलों को यह समझ नहीं पड़ता कि 90 फीसदी जनता तो इतनी कमजोर रहती हैं कि वह अपने दायरे तक सीमित रहती है, और अपनी चादर से बाहर पैर नहीं निकालती। जो 10 फीसदी जनता अराजकता करती है, उस पर अगर कड़ी कार्रवाई हो, तो उसका सत्तारूढ़ पार्टी को फायदे के सिवाय कुछ नहीं होता। लेकिन ऐसी सहज बुद्धि भी सत्तारूढ़ लोगों से दूर चली जाती है। कड़ाई से किसी शहर को सुधारकर वहां के मतदाताओं के सबसे बड़े तबकों का समर्थन कितना पाया जा सकता है, इसका अंदाज भी सत्तारूढ़ लोगों को नहीं रह जाता। नतीजा यह है कि ट्रैफिक के चालान होने पर भी सत्ता हड़बड़ाकर अपने अफसरों पर लगाम कसने लगती हैं।
जीत यूपी बिहार में, जश्न रायपुर में
है न मजेदार। हालांकि पार्टियां देश भर में जीत का जश्न मनाती ही हैं। लेकिन कोई व्यक्तिगत जीत पर पटाखे फोड़े, मिठाई बांटे तो बात मजेदार ही होगी। बिहार के पूर्णिया से निर्दलीय पप्पू यादव चुनाव जीत गए। वे निर्दलीय लड़े और कांग्रेस ने उनके समर्थन में अपना प्रत्याशी नहीं उतार था। उसके लिए पूर्णिया फ्रेंडली कंटेस्ट की सीट रही। और सफलता भी मिली। दरअसल पप्पू, छत्तीसगढ़ से राज्य सभा सांसद रंजीत रंजन के पति हैं। तो पूर्णिया वाले बहनोई की जीत छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों के लिए खास होनी ही थी। तो सालों ने दीदी को बधाई के साथ साथ आतिशबाजी, मिठाई वितरण के फोटो सेंड करने के साथ वीडियो कॉल भी दिखाए।
इसी तरह दोनों पूर्व प्रभारियों के लिए भी नतीजे उल्लास वाले रहे। सिरसा से कु.सैलजा पौन लाख के अंतर से जीतीं। उनके लिए आरोपों के कांटे बिछाने छत्तीसगढ़ से पूर्व कांग्रेसी भेजे थे भाजपा ने। वो जीत गईं और अब इन्हें मानहानि का केस झेलना पड़ेगा। और बाराबंकी से अंतत: पीएल पुनिया के पुत्र तनुज पुनिया लोकसभा पहुंचने में सफल रहे। तनुज ने हार के तीन स्वाद चखे थे लेकिन डटे रहे। पहले विस उप चुनाव,फिर विस आम चुनाव, फिर 19 लोकसभा और अब जाकर जीत मिली। इनके हर चुनाव में छत्तीसगढ़ के कांग्रेसयों ने तन और धन से काम किया था। पिता प्रभारी जो रहे।
नतीजों से क्या-क्या निकला?
इस लोकसभा चुनाव में कई नतीजे दिलचस्प रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बार करीब एक लाख 52 हजार मतों से जीत मिली। अपने आप में यह जीत छोटी नहीं है, मगर 2019 में जीत का अंतर 4 लाख 79505 वोटों का था और उसके पहले 2014 में 3 लाथ 71 हजार 784 वोटों से जीत मिली थी। दोनों बार उनकी जीत को भाजपा ने रिकॉर्ड बताया था। इस बार मोदी से अधिक अंतर की जीत वाले छत्तीसगढ़ में ही कई प्रत्याशी हैं। इस लोकसभा सीट से मोदी के खिलाफ लडऩे की मंशा रखने वाले 33 लोगों के नामांकन निरस्त कर दिए गए थे। कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी को छोड़ जो दूसरे उम्मीदवार थे, उनको नोटा से भी कम वोट मिले। नोटा पर 8478 लोगों ने मतदान किया।
राम मंदिर निर्माण के जिस मुद्दे को भाजपा ने पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान भुनाया, वहां की लोकसभा सीट फैजाबाद से समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद को जीत मिली।
इंदौर में कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने अपना पर्चा वापस ले लिया। इसके बाद भाजपा उम्मीदवार शंकर लालवानी के लिए वाक ओवर की स्थिति थी। ऐसा हुआ भी। उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को 11 लाख 75 हजार 92 मतों से हराया। मगर दिलचस्प यह है कि नोटा को यहां से 2 लाख 18 हजार 674 वोट मिले, जबकि निकटतम प्रतिद्वंदी बसपा उम्मीदवार को 51हजार 659 मत ही मिले। कांग्रेस ने यहां नोटा के लिए प्रचार किया था जिसकी शिकायत चुनाव आयोग से भी भाजपा ने की थी।
छत्तीसगढ़ की कोरबा सीट और उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट में एक बात समान है। दोनों राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धुआंधार प्रचार किया। पर इन दोनों सीटों पर नहीं गए। कोरबा के करीब उन्होंने जांजगीर में सभा ली थी। दोनों ही जगह पर भाजपा के प्रत्याशियों को पराजय का सामना करना पड़ा।
रायपुर से बृजमोहन अग्रवाल की टिकट फाइनल होते ही यह चर्चा नहीं थी कि वे जीतेंगे या हारेंगे। चर्चा यह थी कि उनकी लीड कितनी होगी। 5 लाख 75 हजार 285 वोटों के अंतर से जीतकर उन्होंने इतिहास रच दिया। सन् 2019 में सुनील सोनी ने 3 लाख 48 हजार 238 मतों से जीत हासिल की थी। दिसंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में भी अग्रवाल ने जीत का रिकॉर्ड बनाया था। तब वे 67 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीते। कांग्रेस प्रत्याशी महंत रामसुंदर दास को इस पर पराजय ने इतना दुखी किया कि उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने की ही घोषणा कर दी। विकास उपाध्याय युवा हैं, निश्चित ही वे इस भारी पराजय को बर्दाश्त कर लेंगे और अपनी राजनीतिक लड़ाई जारी रखेंगे।
बाहरी को नकारा मतदाताओं ने
इस लोकसभा चुनाव में चार उम्मीदवारों पर बाहरी होने का तमगा लगा। भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू, सरोज पांडे और देवेंद्र यादव। संयोगवश सभी दुर्ग जिले से ही बाहर जाकर चुनाव लड़े। इनमें से किसी को जीत नहीं मिली। पहले से ही यह चर्चा थी कि अगर कोई एक सीट कांग्रेस के पास आएगी तो वह कोरबा ही होगी। इसके बावजूद कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने दमदारी से चुनाव लड़ा और उसे 48 हजार से अधिक वोट मिले। कांग्रेस की ज्योत्सना महंत ने पिछली बार से अधिक मतों से जीत दर्ज की।
वहां गैंडे बढ़ रहे, यहां घट रहे तेंदुए
असम के अभयारण्यों को गैंडों से अलग पहचान मिलती है। विशाल काया किंतु सौम्य इस वन्य जीव का एक दशक के भीतर इतना अवैध शिकार हुआ कि इनकी संख्या दहाई में आ गई थी। मगर पिछले तीन सालों से वन विभाग ने पुलिस और सशस्त्र बलों की मदद लेकर शिकार को शून्य कर दिया है। हाल ही में गिनती की गई तो उनकी संख्या 2 हजार 885 पाई गई। सबसे अधिक गैंडे करीब 26 सौ काजीरंगा नेशनल पार्क में हैं। छत्तीसगढ़ में टाइगर की संख्या जरूर कम है लेकिन बड़ी संख्या में तेंदुए मौजूद हैं। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और भारतीय वन्य जीव संस्थान की एक रिपोर्ट पिछले फरवरी महीने में आई थी। इसमें बताया गया था कि छत्तीसगढ़ में तेंदुओं की संख्या 722 है जबकि 2018 में 852 थी। इस रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि तेंदुओं की संख्या में गिरावट का प्रमुख कारण इनका अवैध शिकार होना है। रिपोर्ट आने के बाद वन विभाग में तेंदुओं को शिकारियों से बचाने के लिए क्या कदम उठाए, इसकी कोई जानकारी नहीं है। शिकार के मामले जरूर लगातार आ रहे हैं। ((rajpathjanpath@gmail.com))
राहुल पर बदले विचार
बात विधानसभा चुनाव की है। यूपी के एक ब्राम्हण नेता छत्तीसगढ़ में कांग्रेस संगठन को सहयोग करने आए थे। नेताजी यहां अपने कुछ करीबियों से चर्चा में राहुल गांधी की कार्यशैली की आलोचना करते नहीं थक रहे थे। वो यह तक कह गए, कि राहुल के रहते उनका कांग्रेस में लंबे समय तक रह पाना संभव नहीं है।
हालांकि पार्टी ब्राम्हण नेता को काफी महत्व देती रही है। उन्हें और उनके परिवार के सदस्य को क्रमश: संसद और विधानसभा में भी पहुंचाया। मगर लोकसभा चुनाव नतीजों में जैसे ही कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर होता दिखा, ब्राम्हण नेता के सुर बदल गए। वो सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी की तारीफ करते नहीं थक रहे थे। एआईसीसी मुख्यालय के बाहर टीवी बाइट मेंं वे कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन के लिए राहुल की मेहनत को काफी सराह रहे थे। इस पर टीवी पर नजर गड़ाए छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेता, ब्राम्हण नेता के बदले सुर पर मुस्कुराए बिना नहीं रह पाए।
नतीजे और रेलवे
मंगलवार को नतीजों के राउंड जैसे जैसे आगे बढ़ते रहे,वैसे वैसे प्रशासन खासकर केंद्रीय विभाग भी ट्रेडं बदलते रहे। स्थानीय स्तर पर एक ही दिन पहले लिए गए कुछ फैसलों को लेकर बैक फुट पर आने लगे। जैसे चक्रधरपुर रेल मंडल ने 4-5 जून को कांसबहाल राजगंगपुर सेक्शन में गर्डर लांचिंग के लिए ब्लॉक लेकर कुछ ट्रेनों को रद्द किया था।
और आज चार राउंड के बाद सभी ट्रेने बहाल कर दी गई। रेलवे ने ब्लॉक कार्य को ही रद्द कर दिया गया। इस कार्य के कारण रद्द की गई और प्रभावित होने वाली सभी गाडिय़ों को रिस्टोर कर दिया गया है। सभी गाडिय़ां अपने निर्धारित समय-सारिणी के अनुसार चलेगी। यहां आपको बता दें कि चक्रधरपुर रेल मंडल बंगाल का हिस्सा है। जहां टीएमसी, ममता दीदी को भारी फायदा मिल रहा है।
जहां बाजार, वहां सेवाएं...
उड़ान- उड़े देश का आम नागरिक। इस योजना में छत्तीसगढ़ को शामिल कर लेने के बावजूद हवाई सुविधाओं का विस्तार तब किया गया जब नागरिकों ने आंदोलन किया। मगर, जगदलपुर से रायपुर, हैदराबाद और विशाखापट्टनम की सेवाएं अनियमित रूप से चल रही हैं। बिलासपुर से दिल्ली, प्रयागराज, जबलपुर और कोलकाता के लिए उड़ानें शुरू की गई हैं, पर वह भी रेगुलर नहीं है। दूसरे बड़े शहरों के लिए भी मांग लगातार की जा रही है, पूरी नहीं हो रही है। अंबिकापुर में करीब 6 माह पहले से हवाईअड्डे का उड़ानों के लिए परीक्षण हो चुका है, पर यहां से कोई भी फ्लाइट अब तक शुरू नहीं हो पाई है। बिलासपुर का छोटे रनवे की लंबाई बढ़ाने तथा नाइट लैंडिंग की सुविधाएं शुरू करने के लिए तीन साल से अधिक समय से नागरिकों का धरना चल रहा है।
हाईकोर्ट में भी लगी जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। दूसरी ओर बड़े शहरों के बीच एयरटैक्सी सुविधा देने पर केंद्र का उड्डयन मंत्रालय काम कर रहा है। कहा जा रहा है कि 2026 तक दिल्ली-गुडग़ांव के बीच ये सेवा शुरू कर दी जाएगी। बाद में बेंगलूरु, चेन्नई, हैदराबाद आदि शहरों को भी इसमें शामिल किया जाएगा। सफर सिर्फ 7 से 12 मिनट में पूरा हो जाएगा और किराया ओला, उबर टैक्सियों से डेढ़ या दोगुना होगा। यह कुछ-कुछ वंदेभारत ट्रेनों जैसा है। आम यात्रियों के लिए उनके बजट के भीतर जो ट्रेन और फ्लाइट मिल रही है उनके रेगुलर होने और समय पर पहुंचाने की गारंटी नहीं है। पर यदि आप यदि खर्च ज्यादा करने की स्थिति में हैं तो सुविधाएं मौजूद हैं।
शिक्षा विभाग में हलचल तेज
अब जबकि प्रदेश के शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का विधानसभा से इस्तीफा देकर लोकसभा जाना निश्चित हो चुका है, शिक्षा विभाग में हलचल तेज हो गई है। पिछली सरकार के समय पोस्टिंग, ट्रांसफर और अनुकंपा नियुक्ति में बड़ी-बड़ी गड़बडिय़ां हुई थीं। कांग्रेस को जब मंत्रिमंडल में बदलाव की जरूरत महसूस हुई तो स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय टेकाम की ही कुर्सी सरकाई गई थी। उनका विभाग संभालने वाले मंत्री रविंद्र चौबे ने पोस्टिंग घोटाले में शामिल अफसरों को सस्पेंड तो किया लेकिन ज्यादातर लोग अपनी जगह पर वापस लौट चुके हैं। इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का ऐलान भी चौबे ने किया था लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों की लॉबी ज्यादा ताकतवर निकली और एफआईआर नहीं हो पाई।
शिक्षा विभाग खाली हो जाने के बाद उसका प्रभार किसी मंत्री को दिया जाएगा या फिर कतार में लगे किसी भाजपा विधायक को मौका मिलेगा, अभी यह तय नहीं है। इसका इंतजार जितनी बेसब्री से मंत्री पद से वंचित रह गए दावेदारों को तो होगा, पर ट्रांसफर पोस्टिंग का कारोबार चलाने वाली लॉबी को भी कम इंतजार नहीं है। जून का महीना वैसे भी शिक्षा विभाग में फेरबदल का ही होता है। (rajpathjanpath@gmail.com)
मुन्नी बदनाम होगी
आम चुनाव के नतीजों से पहले ही सोशल मीडिया पर काफी कुछ कहा जा रहा है। बिलासपुर के कांग्रेस प्रत्याशी देवेन्द्र यादव ने तो मतगणना से पहले ही ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगा दिया है। हालांकि चुनाव आयोग ने देवेन्द्र के आरोपों को सिरे से खारिज किया है।
इन सबके बीच सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के निज सचिव मनोज शुक्ला के फेसबुक पोस्ट की खूब चर्चा हो रही है। मनोज ने ईवीएम की तस्वीर साझा करते हुए लिखा कि मुन्नी बदनाम होगी 4 जून को दोपहर से। बदनामी सहने के लिए तैयार हो जा पगली, सारा इल्जाम तुझ पर ही आने वाला है।
रिटायर्ड का नफा-नुकसान
चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा-कांग्रेस के पांच सांसद भूतपूूर्व हो जाएंगे। इनमें सुनील सोनी, चुन्नीलाल साहू, गुहाराम अजगल्ले, मोहन मंडावी, और कांग्रेस सांसद दीपक बैज हैं। इनमें गुहाराम को छोडक़र बाकी सब पहली बार सांसद बने थे। जबकि गुहाराम दूसरी बार के सांसद हैं।
दिलचस्प बात यह है कि भूतपूर्व सांसदों का पेंशन, पूर्व विधायकों की तुलना में काफी कम है। पूर्व सांसदों को 25 हजार रूपए मासिक पेंशन और सुविधाओं के नाम पर यात्रा भत्ता भी मिलता है। जबकि छत्तीसगढ़ के पहली बार के पूर्व विधायकों को करीब 94 हजार रूपए पेंशन के साथ-साथ यात्रा भत्ता मिलता है। भूतपूर्व विधायकों को सीनियरटी के हिसाब से पेंशन बढ़ता है। इन सब मामले में दीपक बैज थोड़े फायदे में रहेंगे। उन्हें विधायक के साथ-साथ पूर्व सांसद का भी पेंशन मिलेगा।
जनता का राजा..
हम जिन्हें लोकसभा विधानसभा में चुनकर भेजते हैं वे हमारे सेवक कहे जाते हैं। पर व्यवहार में ऐसा नहीं होता। कई बार विधायक,सांसद और जनता के बीच रिश्ता राजा और प्रजा जैसा लगता है। राजस्थान के मंत्री किरोड़ी लाल मीणा टेबल पर पैर ताने हुए अपने क्षेत्र के लोगों से अपने दरबार में मिल रहे हैं। जनता जमीन पर बैठी है। एक जो नहीं खड़ा है, वह किसी बात पर हाथ जोड़ गिड़गिड़ा रहा है।
बस्तर से फिर पलायन..
बस्तर में नक्सल उन्मूलन की कार्रवाई तेज होने के बाद एक दूसरी खबर यह भी निकल रही है कि यहां के आदिवासियों का कुछ महीनों के भीतर यहाँ से छोडक़र बाहर जाना हो रहा है। जनवरी से यह सिलसिला चल रहा है। अब तक कोई ठीक आंकड़ा नहीं लेकिन कहा जा रहा है कि इनकी संख्या 4 हजार या उससे अधिक हो सकती है। जनवरी में जो गए वे रोजगार की तलाश में थे। बस्तर में मनरेगा के तहत काम तो मिल रहे हैं, मगर भुगतान समय पर नहीं हो रहा है। नगद भी नहीं मिलता। पर अब जो जा रहे हैं, उसके पीछे नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच टकराव से उपजा भय कहा जा रहा है। वैसे, सलवा जुड़ूम के बाद से ही बस्तर से जाने का सिलसिला कम, ज्यादा चल रहा है। अकेले तेलंगाना में ही एक अनुमान के मुताबिक 50 हजार लोगों ने अपना नया बसेरा बना लिया है। तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश भी लोग जा रहे हैं। पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान तत्कालीन विधायक लखेश्वर बघेल ने विधानसभा में यह मामला उठाया था, तब गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने सदन में बताया था कि उनके पास इसका कोई आंकड़ा नहीं है। इस जवाब पर बघेल ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर ऐतराज भी जताया था। अभी भी जा रहे लोगों पर श्रम विभाग कोई आंकड़ा तैयार कर रहा होगा, ऐसा नहीं लगता।
आकाशीय बिजली से बचिये..
नवतपा गुजर चुका। छत्तीसगढ़ में लू लगने से 10 से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। ज्यादातर लोग श्रमिक थे, जिन्हें हर मौसम में काम के लिए निकलना पड़ता है। नवतपा के आखिरी दिन कहीं-कहीं बारिश भी हुई और ओले भी गिरे। तापमान में थोड़ा उतार दिखाई दे रहा है। केरल में मानसून प्रवेश कर चुका है, जिसके छत्तीसगढ़ आने में आठ दस दिन लग सकते हैं। बारिश के दिनों में भी वज्रपात से मौतें होती हैं, मवेशी भी मारे जाते हैं। इस स्थिति से बचाव में दामिनी ऐप मददगार है। पिछले साल यह ऐप लांच हो चुका है। उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान से जुड़े पुणे के वैज्ञानिकों ने मिलकर इसे बनाया है। यह ऐप समय रहते आपको मैसेज भेजकर बता देगा कि 40 किलोमीटर के दायरे में आज क्या कहीं बिजली गिरने वाली है। पंचायत, थाना, स्कूल और आम लोगों के मोबाइल फोन पर यदि यह ऐप हो तो आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने में मदद मिल सकती है। (rajpathjanpath@gmail.com)
कथावाचक का खुद का हाल
कथावाचक पं. प्रदीप मिश्रा ने हिन्दुओं को चार बच्चे पैदा करने अजीबोगरीब सलाह दे दी। उन्होंने मीडिया से चर्चा में कहा कि दो बच्चे खुद के लिए, और एक सनातन धर्म की ऊर्जा बढ़ाने के लिए रखिए। एक बच्चा देश की रक्षा के लिए होना चाहिए। पं. मिश्रा के बयान की सोशल मीडिया में तीखी प्रतिक्रिया हो रही है।
नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे ने लिखा, महाराज जी के तो केवल दो बच्चे हैं। एक लडक़ा, एक लडक़ी। पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा के करीबी डॉ. सुरेश शुक्ला ने लिखा कि महाराजजी शिव भक्त हैं। अपने आराध्य देव भगवान शिव से प्रेरणा लें। जिनके दो ही पुत्र भगवान कार्तिकेय और भगवान गणेशजी हैं।
उन्होंने आगे लिखा कि सीएम योगी आदित्यनाथ भी बोल रहे हैं कि दो बच्चों को सरकारी योजना का लाभ मिलेगा। तीसरे, चौथे, और पांचवें को नहीं। तो फिर धर्म प्रचारकों को इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए।
एग्जिट पोल का अपना रिकॉर्ड
एग्जिट पोल के नतीजे आने से भाजपा में खुशी का माहौल है। सट्टा बाजार ने भाजपा को वर्ष-2019 से ज्यादा मिलने का अनुमान लगाया है। फलौदी सट्टा बाजार के मुताबिक भाजपा को अकेले 312 सीटें मिलेंगी। एग्जिट पोल के नतीजे आने से पहले सट्टा बाजार भाजपा को 306 सीट पर मिलने का अनुमान लगा रहा था।
कांग्रेस का भी प्रदर्शन सुधरा है। सट्टा बाजार ने कांग्रेस को अकेले के दम पर 62 सीट मिलने का अनुमान लगाया है। जबकि 2019 में कांग्रेस को 52 सीटें मिली थी। एग्जिट पोल में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को अधिकतम 1 सीट मिलने का अनुमान लगा रहे हैं। इस पर पूर्व सीएम भूपेश बघेल का बयान चर्चा में हैं। उन्होंने कहा कि सारा खेल टीआरपी का है। चार तारीख को दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। क्योंकि बहुत सारे सर्वे हम लोगों ने देखे हैं। जो बताते थे कि जीत रहे हैं तो पता चला कि रिजल्ट निगेटिव आया है, और जब कहते हैं निगेटिव है, तो रिजल्ट पॉजिटिव आया।
पूर्व सीएम का कथन एकदम सही है। 6 महीना पहले विधानसभा चुनाव में तकरीबन सभी एग्जिट पोल में भूपेश सरकार की वापसी की बात कही थी, लेकिन नतीजे ठीक इसके उलट रहे। उस समय एग्जिट पोल के नतीजे देखकर भूपेश बघेल गदगद थे। अब पूर्व सीएम एग्जिट पोल पर संदेह जाहिर कर रहे हैं, तो वो कहीं से गलत नहीं है।
एग्जिट पोल के बाद की चर्चा
एग्जिट पोल के आंकड़ों ने भाजपा को खुश कर दिया है। ज्यादातर रिपोर्ट बता रही है कि सभी 11 सीटों पर वह जीत रही है। किसी-किसी ने कांग्रेस को एक दो सीट दे दी है। कांग्रेस दावा कर रही थी कि वह भाजपा से अधिक सीटें जीतेगी, उसने एग्जिट पोल पर भरोसा नहीं होने की बात कही है। वैसे तो मतदान के हर चरण के दौरान चौक-चौराहों और बैठकी में चुनाव नतीजों पर तरह-तरह के दावे और अनुमान लगाए जा रहे थे लेकिन एग्जिट पोल के बाद चर्चा का विषय बदल गया है। लोग मोटे तौर पर मान चुके हैं कि मोदी सरकार फिर बनेगी, पर क्या 400 के करीब पहुंचेगी? कांग्रेस क्या सौ का आंकड़ा छू पाएगी? क्या छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिल पाएगी? भाजपा को सबसे अधिक लीड किस सीट से मिलने जा रही है? कांग्रेस ने तगड़ी टक्कर किस सीट पर दी...? बहस खत्म इस बात पर होती है कि इतने दिन इंतजार कर लिया, दो दिन और कर लो।
मंत्रियों का अपना स्टाफ
महानदी भवन में पदस्थ ओएसडी मंत्रालयीन कामकाज (बिजनेस रूल) में बड़ी बाधा,समस्या बनकर उभरे हैं। फील्ड में काम करने वाले इंजीनियर, डिप्टी कलेक्टर, तहसीलदार, प्रोफेसर मंत्रियों से निकटता का फायदा उठा कर ओएसडी नियुक्त हो जाते हैं। राजधानी में बंगला,नौकर, कार की सरकारी सुविधा के साथ बड़े बड़े अफसरों से मेल मुलाकात संबंध बनाने का अवसर पुरोनी में अलग। मंत्री एक काम बताए तो उसकी आड़ में अपने दो काम और हो जाते हैं।
मंत्रालयीन सेक्शन स्टाफ, इनकी वर्किंग से परेशान है। मंत्रालय और फील्ड सी वर्किंग दोनों के ही अलग तरीके हैं, प्रक्रिया है। लेकिन ये लोग मंत्री के मुंह से निकली बात और हाथ से निकली फाइल के मूवमेंट को मिसाइल की गति से करने दबाव बनाते हैं। सेक्शन स्टाफ को नस्ती पढऩे ही नहीं देते। वह बिजनेस रूल के तहत है या नहीं यह भी देखने नहीं देते। इनके हाथ की हर फाइल, मंत्री की सर्वोच्च प्राथमिकता वाली होती है। पेमेंट के बिलों की बात तो छोड़ ही दें।
इन्हें कोई एसओ,एएसओ, अवर सचिव, उप सचिव नियम बता दे तो, नियम तुम लोग समझो का जवाब। और जब यही फाइल, आईएएस सचिव तक जाती है तो लतियाये ये ही जाते हैं। दो तरफा परेशानी से त्रस्त है। मंत्रालय कैडर। कल जीएडी ने हाऊ टू डील आफिसर्स एंड पब्लिक को लेकर निज सचिवों को ट्रेनिंग दी। उन्हें, इन ओएसडी के लिए भी गवर्नमेंट बिजनेस रूल की ट्रेनिंग देनी चाहिए।
विचरण करते मिले वाइपर
प्रकृति में हजारों किस्म के जीव-जंतु हैं जो हमारी जैविक विविधता को समृद्ध बनाने में मदद करते हैं। सांपों की दो प्रजातियों को मैनपाट से एक सोशल मीडिया यूजर ने अपने कैमरे में कैद की है। गूगल से मिली जानकारी के मुताबिक ये वाइपर या पिट वाइपर हैं। सांपों का यह परिवार अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया और कुछ अन्य द्वीपों को छोडक़र दुनिया के अधिकांश हिस्सों में पाया जाता है। ये विषैले होते हैं और उनके पास लंबे दात होते हैं, जो इनके जहर को गहराई तक पहुंचा देते हैं।
ट्रेनों में भीड़, बसें खाली वापस
ट्रेनों में टिकट कंफर्म नहीं होती, बस में किराया ज्यादा लगता है पर तुरंत सीट भी मिल जाती है। इसलिये बसों की जगह ट्रेन कभी ले सकती। बात जब बस्तर की हो तो यहां तो प्रमुख शहरों के लिए यात्री ट्रेनों की सुविधा भी नहीं है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के बस्तर और ओडिशा के ट्रांसपोर्टरों के बीच एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। पिछले 10-12 दिनों से छत्तीसगढ़ से ओडिशा जाने वाली बसों को यात्रियों को तो उतारने दिया जा रहा है पर बस खाली ही वापस लौटाई जा रही है। वहां की बस यूनियन ओडिशा से यात्रियों को ले जाने नहीं दे रहा। बस्तर के बस मालिकों के संगठन ने इस विवाद की वजह बताई है कि छत्तीसगढ़ की बसों का किराया कम है, सुविधाएं अधिक। ओडिशा की बसों में लोग इसीलिये बैठना नहीं चाहते। परिवहन विभाग के अफसरों से शिकायत हो चुकी है पर कोई समाधान नहीं निकला है। बस्तर के बस मालिकों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार पहल करके कोई रास्ता नहीं निकालती है तो 11 जून से ओडिशा की बसों को हम भी खाली लौटाएंगे, सवारी नहीं भरने देंगे। यदि ऐसी नौबत आती है तो अभी जो यात्री किसी तरह ओडिशा की बसों में आना-जाना कर रहे हैं वह भी बंद हो जाएगा। इस तरह का विवाद करीब 23 साल बाद देखने को मिला है। जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तो तत्कालीन अजीत जोगी सरकार ने राज्य परिवहन निगम को भंग कर दिया और निजी ऑपरेटरों को बस चलाने की अनुमति दी। इन्होंने प्रतियोगिता में कम किराया रखा और सुविधाएं दीं। मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ के लिए वहां के राज्य परिवहन निगम की जर्जर बसें ही चल रही थीं। विवाद करीब 6 माह तक चला तब जाकर मध्यप्रदेश ने निजी बसों को अपने यहां घुसने की परमिट दी थी।
बस्तर के बस यातायात मालिक संघ ने 11 जून तक का समय दिया है। यानि अभी दोनों राज्यों के बीच बातचीत कर सुलह की पूरी गुंजाइश है। (rajpathjanpath@gmail.com)
रिटायर्ड के लिए एक मौक़ा
राज्य निर्वाचन आयुक्त ठाकुर रामसिंह का कार्यकाल खत्म होने के बाद से पद खाली है। चुनाव आचार संहिता खत्म होने के बाद सरकार निर्वाचन आयुक्त के पद पर नियुक्ति कर सकती है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि नवंबर-दिसंबर में निकाय चुनाव, और ठीक इसके बाद पंचायत के चुनाव होंगे।
निर्वाचन आयुक्त के लिए नियमों में साफ है कि सरकार के विभाग में सचिव के पद पर काम कर चुके अफसर ही पात्रता रखते हैं। आयुक्त का कार्यकाल 6 साल का होता है, या फिर 66 वर्ष की उम्र तक रह सकते हैं। नई नियुक्ति नहीं होने पर निर्वाचन आयुक्त 6 महीने और पद पर रह सकते हैं। इस पद के लिए कई रिटायर अफसरों के नाम चल रहे हैं। कुछ अफसर, जो कि पिछले सरकार में हाशिए पर रहे हैं, उनके नाम पर विचार हो सकता है। इनमें पूर्व एसीएस सी.के.खेतान, डी.डी. सिंह, अमृत खलखो सहित कई नाम हैं।
कुछ अफसर जो कि इस साल रिटायर हो रहे हैं, उन्हें भी दौड़ में माना जा रहा है। इनमें रीता शांडिल्य, गोविंद राम सुरेन्द्र, डॉ.संजय कुमार अलंग, और शारदा वर्मा भी हैं। चर्चा है कि जून माह के आखिरी तक निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति कर दी जाएगी।
मेल कराती मधुशाला...
राजधानी के खमतराई इलाके की शराब दुकान में रात 10:00 बजे के बाद बोतल देने से मना करने पर सेल्समैन की पिटाई कर दी गई। जो खबर निकल कर आई है उसके मुताबिक पिटाई करने वाले दोनों बिरगांव के पार्षद हैं। कांग्रेस के डिगेश्वर सिन्हा और भाजपा के खेमलाल साहू।
शराब को लेकर ऊपर के लेवल पर कांग्रेस और भाजपा के बीच तलवारें खिंची रहती है। कहा जाता है कि कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में दोबारा नहीं लौट पाई तो इसकी एक वजह शराब के कारोबार में कथित घपलेबाजी भी थी। अभी भी कई अफसर, सप्लायर, ठेकेदार कानून के शिकंजे में हैं। मौजूदा सरकार भी चखना दुकानों की नीलामी को लेकर विपक्ष के हमले झेल रही है। कांग्रेस कह रही है कि इससे दो नंबर की दारू बेचने का रास्ता खुलेगा।
पॉलिटिक्स के लिए शराब एक अच्छा जरिया है मगर उसे बंद करने के लिए कोई तैयार नहीं है। जब दोनों ही दलों के जमीनी कार्यकर्ता शराब नहीं मिलने पर एक राय होकर ठुकाई-पिटाई पर उतर आते हों तो किसी को ऐसी उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए।
मरीज बढ़ रहे, दवाइयां खत्म
सन् 2020 के बाद से दुनियाभर में तपेदिक के रोगियों की संख्या बढऩे लगी है। यही नहीं इससे होने वाली मौतों का अनुपात भी बढ़ रहा है। डब्ल्यूएचओ ने इसकी एक वजह कोविड-19 को बताया है। इसकी वजह यह भी रही कि जिन दवाओं की नियमित आपूर्ति महामारी के दौरान नहीं की जा सकी, उनमें टीबी मरीजों को दी जाने वाली दवाएं भी हैं। रिकवरी भी कोविड महामारी के पहले जितनी हो जाती थी नहीं हो पा रही है। छत्तीसगढ़ भी इस समस्या से जूझ रहा है। बीते साल पूरे 12 महीनों में टीबी के करीब 38 हजार मरीज थे इस साल पांच महीनों में करीब 15 हजार नए मरीज मिल चुके हैं। उस पर विडंबना यह है कि बीते कई महीनों से प्रदेश भर के अस्पतालों में टीबी की दवाएं खत्म हो चुकी हैं। इसकी सप्लाई केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के टीबी डिवीजन की तरफ से होती है, जो नहीं हो रही है। टीबी के मरीजों को दवाओं की नियमित खुराक देनी होती है, वरना बीमारी बढऩे लगती है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने मार्च में राज्यों को भेजे गए पत्र में कहा था कि कुछ अप्रत्याशित और बाहरी कारणों से दवाओं की आपूर्ति में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है।
दूसरी ओर कई रिपोर्ट इस बीच प्रकाशित हुई है जिनमें बताया गया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय के ‘घोर कुप्रबंधन’ के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। याद होगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सन् 2020 में लक्ष्य रखा था कि सन् 2025 तक भारत से टीबी का उन्मूलन कर लिया जाएगा। मगर, आज स्थिति उलट है, टीबी मरीज बढ़ रहे हैं, दवाएं गायब।
घर से निकलते ही...
भीषण गर्मी की उबासी को दूर करने के लिए सोशल मीडिया पर मीम चल पड़े हैं। ऐसे में एक ने इस तस्वीर में दिखाया है कि घर से निकलते ही, कुछ देर चलते ही क्या हो रहा है। एक यूजर ने इसमें जोड़ दिया- भ_ी में है उसका घर...।
हत्या पर अनसुलझे सवाल
बलरामपुर रामानुजगंज जिले में बजरंग दल के सह संयोजक सुजी स्वर्णकार और एक युवती का शव हाईवे के समीप मिला था। पुलिस ने इस मामले में अब तक जो जांच की है, उसमें यह बात सामने आई है कि जंगली जानवरों को मारने के लिए करंट की तार बिछाई गई थी, जिसकी चपेट में दोनों आ गए। दूसरी ओर यहां सक्रिय विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें इस कहानी पर भरोसा नहीं है। उन्होंने बताया है कि मृतक सुजीत 6 माह से गौ तस्करी के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन में शामिल थे। उनको कुछ समय पहले गौ तस्करों की ओर से फोन पर धमकी मिली थी। एसपी को भी इसकी जानकारी दी गई थी। उसकी हत्या हो सकता है इसी वजह से की गई होगी। इन मौतों को लेकर बलरामपुर में बड़ा रोष देखा गया है। चक्काजाम और नगर बंद किया जा चुका है। आगे भी आंदोलन की चेतावनी दी गई है। जिन लोगों ने सुजीत हत्या मामले में आवाज उठाई है वे भाजपा को साथ देने वाले संगठन ही हैं। पुलिस जांच में इसे दुर्घटना जैसा बता दिया गया है। प्रदेश की भाजपा सरकार के लिए यह असहज करने वाली स्थिति है। (rajpathjanpath@gmail.com)
कमरों का टोटा
छत्तीसगढ़ गठन के बाद एक और दौर था कि डीकेएस भवन में अफसर कम कमरे अधिक। कमी पूरी करने बंगाल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र केरल आदि से अफसर बुलाने पड़े। और अब महानदी भवन में यह स्थिति है कि अफसर अधिक हो गए हैं अब कमरे कम पडऩे लगे हैं। जबकि एक भी बाहर से डेपुटेशन पर बुलाए गए हों। सीजी कैडर के ही अफसर हैं। हमे हर वर्ष चार पांच नए अफसर यूपीएससी से मिल रहे हैं। और जो दिल्ली में थे वे लौट रहे।
महानदी भवन के सेक्रेटरी ब्लाक में साहबों के लिए कमरे कम पड़े तो कुछ को मिनिस्टीरियल ब्लाक में व्यवस्था की। इसमें सीनियर, जूनियर भी देखने का भी अवसर नहीं रहा। मंत्रिस्तरीय बड़े बड़े कमरे साहब लोगों को मिल गए। यहां तक तो ठीक है। असली दिक्कत, संघर्ष शुरू होगा जब संसदीय सचिव नियुक्त होंगे। एक दो हो तो ठीक है, लेकिन नियुक्त होते हैं 10-12। बिना अधिकार वाले संसदीय सचिव कुछ नहीं सही, बैठना तो मिनिस्टीरियल ब्लाक में ही चाहेंगे। ताकि क्षेत्र में जलवा रहे। इनके लिए किस आईएएस से कमरा खाली कराया जाए।
अधीक्षण शाखा साहब लोगों को बोल नहीं पाएगा। और नेता उनपर ही दबाव बनाएगा। ऐसे में बात किसी न किसी मातहत के सस्पेंड या तबादले तक जाएगी। लब्बोलुआब यह है कि पांच मंजिला, दर्जनों कमरे वाला महानदी भवन भी छोटा पड़ रहा है।
सामाजिक बहिष्कार पर नक्सल फरमान
बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा तहसील के कस्तूर्पल गांव में नक्सलियों ने एक बैनर लगाकर नया फरमान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि ईसाई धर्म अपना चुके आदिवासियों को प्रताडि़त ना किया जाए। वहां के सरपंच को खास तौर पर आगाह किया गया है कि वह उन लोगों से माफी मांगे जिनको अपनी ही जमीन पर शव दफनाने से रोका गया। उनकी संपत्ति हड़पी गई, फसलों को जब्त किया गया।
बस्तर में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण या मतांतरण हुए हैं। भाजपा आरोप लगाती है कि यह सब प्रलोभन से हो रहा है जिसे कांग्रेस संरक्षण देती है। कांग्रेस कहती है कि सबसे ज्यादा गिरजाघर पुरानी भाजपा सरकार के कार्यकाल में बने। बीते विधानसभा और उसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा बना था। यह कितना गंभीर मसला बन चुका है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में ईसाई धर्म अपना चुके व्यक्ति को अपने पिता का शव दफन करने के लिए हाईकोर्ट से आदेश लाने की जरूरत पड़ी।
नक्सली अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए स्थानीय मुद्दों पर ऐसी चेतावनी जारी करते रहे हैं। कई बार फरमान न मानने वालों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। बस्तर में धर्मांतरण के मुद्दे पर नक्सलियों का रुख पहली बार साफ-साफ सामने आया है। यह दखल बस्तर में शांति लाने की ताजा कोशिशों में मदद करेगी, ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। प्रशासन पर प्रलोभन से होने वाले धर्मांतरण को रोकना तो जरूरी है ही, पर यह भी आवश्यक है कि सामाजिक बहिष्कार के विरोध के नाम पर नक्सलियों को नई जगहों पर पैर जमाने का मौका न मिले।
पेड़ों की कीमत पर चौड़ी सडक़
बढ़ते तापमान के चलते हो रही बेचैनी से कुछ राहत पाने की उम्मीद में यदि आप प्रदेश के सबसे ठंडी जगह मे से एक मैनपाट जाना चाहते हों तो पूरे रास्ते आपको यह दृश्य दिखेगा। घुमावदार पहाड़ी सडक़ के साथ-साथ चलने वाली पेड़ों की कतार आगे शायद दिखाई न दे। दरिमा एयरपोर्ट तैयार हो जाने के बाद मैनपाट जाने वाले 22 किलोमीटर इस लंबे मार्ग पर तेजी से काम चल रहा है। रास्ते भर ट्रैक्टर, पोकलैंड, एक्सवेटर, साथ ही काटे गए पेड़ों और चट्टानों के अवशेष दिखाई दे रहे हैं। वैसे यह जगह भी देशभर में चल रही हीट वेव से अछूता नहीं है। यहां का अधिकतम तापमान आज 38 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। (rajpathjanpath@gmail.com)
पारा तो एकाएक यहां भी चढ़ा था...
दिल्ली के मंगेशपुर वेदर रिकॉर्ड सेंटर में बुधवार को दोपहर जब तापमान 52.9 यानि करीब 53 डिग्री पहुंच गया तो देशभर में यह चर्चा का विषय बन गया। मौसम विभाग के अधिकारियों ने तत्काल कहा कि हो सकता है कि सेंसर में गड़बड़ी हो, क्योंकि एक दिन पहले यहां का तापमान 48 डिग्री से कुछ ऊपर था। दिल्ली के दूसरे स्टेशनों में भी कल उसी समय 48 से 49 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान पहुंच गया था। अब यह खुलासा हो गया है कि तापमान गलत दर्ज हो गया था। इसके बावजूद कि बीते 79 वर्षों में दिल्ली और एनसीआर का तापमान उच्चतम स्तर पर है। इस वाकये ने छत्तीसगढ़ में हुई इसी तरह की घटना की याद दिला दी है। 23 मई 2017 को दोपहर 3 बजे बिलासपुर स्थित तापमापी केंद्र ने 49.3 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया। मौसम के ये आंकड़े अब स्वचालित उपकरणों से दर्ज होते हैं। इसलिये गलतियों की गुंजाइश कम होती है। दिल्ली के मामले में बता दिया गया कि सेंसर में गड़बड़ी के चलते गलत डेटा दर्ज हो गया, पर बिलासपुर के तापमान में उस दिन आए उछाल को मौसम विभाग ने सही बताया था। भले ही अब 49 डिग्री के पार पारा न पहुंच रहा हो पर औसत तापमान तो बीते सालों में बढ़ा है ही। पिछले तीन दिनों के भीतर मुंगेली और रायगढ़ का तापमान 47 डिग्री से ऊपर जा चुका है। आज बिलासपुर, दुर्ग, रायपुर जैसे शहरों में तापमान 45 से ऊपर था।
आला अफसरों का इंतजार
पीएचक्यू में जून महीने में बड़ा बदलाव होगा। इस दिशा में चर्चा भी शुरू हो गई है। डीजीपी अशोक जुनेजा का भी कार्यकाल खत्म हो रहा है। उन्हें एक्सटेंशन मिलेगा अथवा नहीं, इस पर भी फैसला हो सकता है। यही नहीं, पीएचक्यू में कुछ सीनियर अफसरों को अब तक प्रभार नहीं मिला है। उन्हें कामकाज आवंटित किया जा सकता है।
डीआईजी स्तर के अफसर अभिषेक मीणा, केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे आईजी ध्रुव गुप्ता, और एडीजी दीपांशु काबरा के पास कोई विशेष जिम्मेदारी नहीं है। इन सभी को नए सिरे से प्रभार दिया जा सकता है।
बस्तर आईजी सुंदरराज पी. के नेतृत्व में नक्सल ऑपरेशन बहुत बेहतर ढंग से चला है, और यह जारी है। उन्हें चार साल से अधिक हो चुके हैं। चुनाव आयोग ने भी उन्हें बनाए रखने के लिए अनुमति दी थी। मगर अब उन्हें पीएचक्यू लाने पर विचार चल रहा है। उन्हें कोई अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है।
प्रदेश के बाहर सक्रिय
दूसरे राज्यों में प्रचार के लिए गए तकरीबन सभी भाजपा नेता लौट रहे हैं। इनमें से कुछ नेताओं को प्रवासी प्रभारी बनाकर लोकसभा वार जिम्मेदारी दी गई थी। कई नेताओं का काम बेहतर रहा है। इसकी पार्टी के अंदरखाने में काफी चर्चा हो रही है। सीएम विष्णुदेव साय ने इन सभी प्रवासी प्रभारियों को 2 जून को अपने निवास पर आमंत्रित किया है।
सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, और विधायक पुरंदर मिश्रा व राजेश मूणत की अगुवाई में दो दर्जन से अधिक नेता ओडिशा में प्रचार में जुटे हुए थे। इसी तरह सरगुजा संभाग के प्रमुख नेताओं रामविचार नेताम, रेणुका सिंह, मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल व लक्ष्मी राजवाड़े भी झारखंड के अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों में डटे हुए थे। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक भी जमशेदपुर में डेरा डाले रहे।
प्रदेश अध्यक्ष किरण देव की भी झारखंड में ड्यूटी थी। सीएम विष्णुदेव साय झारखंड, और ओडिशा में पार्टी के स्टार प्रचारक रहे हैं। दोनों राज्यों में सीएम ने दर्जनभर से अधिक सभाओं को संबोधित किया है। केन्द्रीय नेतृत्व ने छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं को सराहा है। यदि चुनाव नतीजे उम्मीद के मुताबिक आते हैं, तो इन सभी का पार्टी के भीतर कद बढ़ेगा।
सप्ली, सप्ली क्या होता है?
दसवीं-12वीं बोर्ड के नतीजों की जिलों में समीक्षा चल रही है। कलेक्टर खुद बैठकें ले रहे हैं। जगदलपुर में ऐसी ही बैठक हुई, जिसमें कलेक्टर ने खराब रिजल्ट लाने वाले शिक्षकों को बारी-बारी खड़ा कराया और खराब रिजल्ट की वजह पूछी। वे एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालते रहे। जब पूरक परीक्षा का जिक्र आया तो सारे शिक्षक इसे सप्ली, सप्ली बोलते रहे। सप्लीमेंट्री के इस शार्ट फॉर्म का ईजाद किसने किया पता नहीं, पर छत्तीसगढ़ में चलन में है। झल्लाकर कलेक्टर ने पूछ लिया सप्ली क्या होता है? शिक्षकों ने तब बताया सप्लीमेंट्री या पूरक। कलेक्टर ने फिर अंग्रेजी के एक लेक्चरर को खड़ा किया और उनसे सप्लीमेंट्री की स्पैलिंग पूछी। लेक्चरर ने गलत बताया। दूसरे तीसरे से भी यही सवाल किया गया, बाद में एक दूसरे शिक्षक जो अंग्रेजी नहीं पढ़ाते उन्होंने सही स्पैलिंग बताई। इसी तरह से फिजियोलॉजी की स्पैलिंग भी कलेक्टर के पूछने पर शिक्षक नहीं बता पाए। शायद उनके अपने पद लेक्चरर की स्पैलिंग पूछी जाती तब भी ये नहीं बता पाते। तो ऐसे टीचर सर्टिफिकेट, डिग्री लेकर शिक्षक तो बन चुके हैं पर बच्चों का रिजल्ट अच्छा लाने का भारी-भरकम बोझ कैसे वे संभालते होंगे?
साथ साथ बुझाई प्यास
भीषण गर्मी से क्या इंसान और क्या जंगल, क्या शहर और क्या गांव- सब हलकान हैं। यह जिम कार्बेट की तस्वीर है, जहां टाइगर अपने पूरे कुनबे के साथ प्यास बुझाने के लिए टैंक तक पहुंचा है। वन विभाग की ओर से लगाए गए ट्रैप कैमरे में ये वन्यप्राणी कैद हुए हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)
मंडल तक, कमंडल उठाया
विधानसभा चुनाव में मेहनत कर पार्टी की सरकार बनाई। और उसके बाद छ: महीने कमर कसकर लोकसभा चुनाव में जुटे। भाजपा ने इन्हें देव तुल्य कार्यकर्ता कहा। इन्हें इन छ महीनों में उम्मीद थी कि छोटे छोटे काम होंगे। ठेके मिलेंगे। लेकिन नहीं। निगम मंडल में नियुक्तियां भी जनवरी तक टल ही गईं हैं। अब कार्यकर्ता संगठन प्रमुखों का इंतजार कर रहे हैं। 4 जून के बाद कार्यकर्ता भाई साहबों के सामने पहले अपनी बात रखेंगे। मंत्री, विधायकों को अवसर देंगे। उसके बाद भी सुधार नहीं आया तो निगम चुनाव में दिखा देंगे। यह स्थिति प्रदेश भर में है।
रायपुर जिले के कार्यकर्ता तो भरे पड़े हैं गुस्से से। खासकर आरंग, अभनपुर, राजिम, रायपुर ग्रामीण, बलौदाबाजार के। पांच साल जिन अवैध कामों के विरोध में मंडल स्तर तक कमंडल उठाया, लाठी खाया, वो काम विधायकों के पुराने दलीय समर्थक आज भी कर रहे हैं। क्योंकि विधायकों के साथ ये सभी दलबदल कर आए हैं। वे उन्हें नाराज नहीं करना चाहते और भले ही नई पार्टी के कार्यकर्ता नाराज रहें।
ऐसा पहला थानेदार
पुलिस को लेकर लोगों का अपना अपना नजरिए जैसे प्रभु मूरत देखी तिन जैसी। पुलिस ने मदद की तो अच्छी, न की तो उलाहना के ढेरों शब्द। अमूमन आम आदमी पुलिस के नाम पर धूमिल छवि रखता है। चाहे वह सिपाही हो, थानेदार हो या और भी बड़े-बड़े। शहर में एक ऐसे भी थानेदार हैं जो अपराध घटित होने के बाद पीडि़त पक्ष को रिपोर्ट दर्ज कराने अनुनय विनय करते हैं। क्योंकि प्रार्थी क्या होगा, कुछ नहीं मिलेगा का पूर्वानुमान लगा रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते। मगर पुलिस को तो अपना रोजनामचा भरना है। एक महीने पहले हुई चोरी को लेकर एक पीडि़त कि रूख कुछ वैसा ही है। 19 अप्रैल को चोरी के बाद से थानेदार 21 अप्रैल से लगातार कॉल कर प्रार्थी को रिपोर्ट दर्ज करवाने बुला रहे हैं। थाने से हवलदार, विवेचक सभी परेशान। जब कॉल करो एक बात पूछता आरोपी पकड़ाया क्या? लेकिन रिपोर्ट नहीं कराता। अंतत: पुलिस कल उससे रिपोर्ट कराने में सफल रही।
इससे पहले आशियाना अपार्टमेंट में हुई चोरी में भी प्रार्थी ने काफी मिन्नतों के बाद रिपोर्ट कराया। थानेदार कहते हैं बिलासपुर में भुगत चुका हूं, इसलिए पकड़-पकडकऱ रिपोर्ट करा लेता हूं।
कौन ख़ुद को ईमानदार नहीं कहेंगे ?
ई-वे बिल पर व्यापारियों का एक तबका उबल रहा है। वैसे तो ज्यादातर राज्यों में ई-वे बिल की व्यवस्था है, लेकिन छत्तीसगढ़ में एक जून से प्रभावशील होगा। इसमें 50 हजार से अधिक का माल भेजने पर व्यापारियों को ई-वे बिल जनरेट करना होगा। व्यापारी संगठन यह कहकर विरोध कर रहे हैं कि इसमें छोटे व्यापारियों को नुकसान होगा।
सरकार से जुड़े लोगों का मानना है कि बोगस बिलिंग बंद होगी, और व्यापार में पारदर्शिता आएगी। चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष अमर पारवानी ई-वे बिल के मसले पर वित्तमंत्री ओ.पी.चौधरी से मिले। चौधरी ने उन्हें साफ-साफ बता दिया कि तकरीबन सभी राज्यों में यह व्यवस्था है, इसलिए छत्तीसगढ़ में इसे रोक पाना संभव नहीं है। उन्होंने यह भी कह दिया यह सब ईमानदार व्यापारियों के लिए हो रहा है। इस पर पारवानी के लिए ज्यादा कुछ कहने के लिए रह नहीं गया था, क्योंकि हर कोई ईमानदार व्यवस्था चाहता है।
बिजली सेवा खराब, पर दाम पूरा
बिजली उत्पादन में सरप्लस कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में इन दिनों आपूर्ति बिगड़ गई है। राजधानी होने के कारण रायपुर और नया रायपुर के कुछ वीआईपी इलाकों में जरूर निर्बाध बिजली आपूर्ति हो रही है, पर बाकी राज्य अघोषित कटौती, बार-बार गुल हो जाने, ट्रिपिंग और लो वोल्टेज की समस्या से जूझ रहे हैं। क्या यह वाजिब है कि जहां निर्बाध और फुल वोल्टेज से बिजली दी जा रही हो उस पर भी वही बिजली दर लागू हो जो खराब आपूर्ति के कारण परेशान हैं? छत्तीसगढ़ के उद्योगपतियों ने यह सवाल विद्युत नियामक आयोग के सामने रखा है। हाल ही में उद्योगपतियों के संगठन ने आयोग को भेजे गए पत्र में कहा है कि बाजार में मिलने वाले किसी भी सामान की कीमत उसकी क्वालिटी के आधार पर होती है।
जब पूरी क्षमता से निर्बाध बिजली आपूर्ति हो तब तो उनसे 100 प्रतिशत दर लागू किया जाए लेकिन जब बिजली रुक-रुक कर आ रही हो, घंटों बंद रहती हो, फेज़ उड़ जाता हो, तो बिल में रियायत मिले। बिजली विभाग के पास रिकॉर्ड तो होता है कि उसने कब-कब उपभोक्ताओं को खराब सेवा दी। आखिर वह एक कंपनी है, व्यवसाय कर रही है। गुणवत्ता के अनुसार भुगतान करना उपभोक्ता का हक है। बिजली कंपनियों ने उपभोक्ताओं को स्मार्ट मीटर लगाने की शुरुआत कर दी है।
अब उसे बिल वसूलने के लिए भी संसाधन नहीं लगाना पड़ेगा। लोग एडवांस रिचार्ज कराएंगे, फिर बिजली का इस्तेमाल करेंगे। अप्रैल माह में छत्तीसगढ़ की पॉवर कंपनी को 84.45 प्रतिशत पॉवर लोड फैक्टर (पीएलएफ) हासिल हुआ था, जो पूरे देश में सबसे अच्छा प्रदर्शन था।
दूसरी ओर, यह सवाल भी है कि गुजरात जैसे राज्यों में लाइन लॉस 3 फीसदी है, फिर छत्तीसगढ़ में यह 15 फीसदी क्यों है?
बहरहाल, उद्योगपतियों के सुझाव पर निर्णय लेना नियामक आयोग का काम है। वह यह भी कह सकता है कि 400 यूनिट तक बिजली में आधी रकम की छूट इन्हीं सब कमियों की वजह से तो दी जा रही है।
नगरीय निकायों में फिर उठापटक
लोकसभा चुनाव के परिणाम के दो दिन बाद आचार संहिता हट जाएगी। इसे देखते हुए उन निकायों में भाजपा सक्रिय हो गई है, जहां पर अब भी कांग्रेस के अध्यक्ष उपाध्यक्ष नहीं हटाए जा सके हैं। डोंगरगढ़ नगर पालिका में कांग्रेस का कब्जा है। चुनाव के समय कांग्रेस भाजपा दोनो को बराबर मत मिले थे लेकिन टॉस से यह सीट कांग्रेस के हाथ आ गई। उपाध्यक्ष पद पर भाजपा का कब्जा हो गया। भाजपा पार्षदों ने अभी से अध्यक्ष सुदेश मेश्राम के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव दे दिया है ताकि लोकसभा की मतगणना खत्म होते ही तुरंत सम्मेलन बुलाया जा सके। यहां भाजपा के 14 और कांग्रेस के 10 पार्षद चुने गए थे। एक कांग्रेस पार्षद की मौत के बाद अब संख्या 9 रह गई है। मौजूदा अध्यक्ष को हटाने के लिए दो तिहाई बहुमत चाहिए। इसका भी इंतजाम हो गया है।
दो निर्दलीय पार्षदों ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान सीएम की सभा में भाजपा की सदस्यता ले ली थी।अब भाजपा की ताकत बढक़र 16 हो गई है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बाकी कई नगरीय निकायों की तरह यहां भी कांग्रेस के पार्षदों को भाजपा तोडऩे में सफल रहेगी। फिलहाल तो कांग्रेस एकजुट दिख रही है। भाजपा ने अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव बुलाने का आवेदन दिया है तो कांग्रेस ने भाजपा पार्षदों को टटोलने के लिए उपाध्यक्ष के खिलाफ प्रस्ताव दे दिया है।
वैसे नगर निकायों का कार्यकाल इसी साल के आखिरी में खत्म होने वाला है।
यदि कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्षों को हटाया जाता है तब भी नए अध्यक्ष को काम करने के लिए चार-पांच माह ही मौका मिलेगा।
गर्मी से बचने फाटक पर टेंट...
देश के अधिकांश हिस्से लू और भीषण गर्मी की चपेट में हैं। काम पर घरों से निकलने वाले बाइक सवार झुलस रहे हैं। कई शहरों में दोपहर के वक्त चौराहे के सिग्नल बंद कर दिये जा रहे हैं क्योंकि ग्रीन सिग्नल की प्रतीक्षा के लिए रुकना भी कड़ा इम्तेहान है। मगर, जब रेलवे फाटक बंद हो तो क्या किया जाए? राजस्थान के बीकानेर में, जहां आज तापमान 46 डिग्री सेल्सियस है, नगर-निगम प्रशासन ने एक नया प्रयास किया है। उसने फाटक के दोनों ओर टेंट लगवा दिए हैं। यहां बाइक सवार फाटक खुलने तक इंतजार करते हैं, फिर आगे बढ़ रहे हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)
बृजमोहन के बाद क्या?
नया शिक्षा सत्र शुरू हो रहा है। स्कूल शिक्षा विभाग में तबादले को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। वजह यह है कि विभागीय मंत्री बृजमोहन अग्रवाल 4 जून के बाद सांसद बन सकते हैं। उन्हें मंत्री पद छोडऩा पड़ सकता है। ऐसे में लंबित तबादले के प्रस्तावों का क्या होगा, यह चर्चा का विषय बना हुआ है।
सुनते हैं कि विभाग ने बीईओ और शिक्षकों के तबादले की फाइल समन्वय समिति को भेजी थी। चुनाव आचार संहिता की वजह से सारे प्रस्ताव अटक गए। मौजूदा प्रस्तावों को मंजूरी मिलेगी या फिर नए सिरे से प्रस्ताव तैयार किए जाएंगे, इसको लेकर अलग-अलग तरह की चर्चा है।
कहा जा रहा है कि चुनाव जीतने की स्थिति में विधानसभा की सदस्यता छोडऩे के लिए चौदह दिन का समय होता है। हल्ला तो यह भी है कि केंद्र में एनडीए की सरकार बनती है, और बृजमोहन को मौका मिलता है, तो उन्हें नतीजे आने के हफ्तेभर के भीतर मंत्री पद छोडऩा पड़ेगा। चर्चा यह है कि एनडीए सरकार का मंत्रिमंडल 10 तारीख के पहले गठित हो सकता है। चाहे कुछ भी हो फिलहाल तबादले को लेकर असमंजस बरकरार है। और इस बीच, उनके विभागों की पूरी तैयारी है कि आचार संहिता ख़त्म होते ही, मंत्रीजी की बिदाई के पहले अधिक से अधिक काम करवा लिया जाए। शायद पहली बार कुछ विभागों में इतनी रफ्तार से काम होगा।
कोई कितना रोक लेंगे?
प्रदेश में अधिकारियों और कर्मचारियों का नया टीए-डीए तय हो गया है। वाहनों की सुविधा को लेकर भी नई गाइडलाइन जारी हो गई है। लेकिन उनका ध्यान इस ओर नहीं लाया गया कि जब विधानसभा का सत्र चल रहा हो या विशेष अवसरों पर अवर सचिव स्तर के अधिकारियों को फाइलों पर जरूरी दस्तावेजों को लेकर मंत्रियों के बंगलों और विधानसभा तक दौड़ लगानी पड़ती है तब वे किस वाहन का इस्तेमाल करें।
पूल में रखे वाहनों में इस काम के लिए कोई दिशा-दिशा निर्देश नहीं जारी किए हैं। इस वजह से भविष्य में इस तरह के जरूरी कामों को लेकर वाहन न मिलने पर काम में विलंब और परेशानियां हो सकती हैं। वैसे यह भी सच है कि नियम बनते ही हैं तोडऩे के लिए। तभी तो साहबों के बंगलों में एक नहीं चार-चार गाडिय़ां खड़ी रहतीं हैं। अब आदेश निकालने वाले साहब, हर बंगले-बंगले जाकर तो रोक नहीं लगा सकते।
बेटे और बैगा की हत्या
सरगुजा संभाग के शंकरगढ़ इलाके में एक सप्ताह के भीतर हत्या की दो घटनाएं हो गईं। पांच दिन पहले एक व्यक्ति ने झाड़-फूंक के नाम पर 70 साल के बैगा को रात में अपने घर बुलाया और मार डाला। इसी इलाके में शनिवार की रात एक व्यक्ति ने अपने चार साल के बेटे को मार डाला। पहले मामले में हत्या के आरोपी का कहना है कि बैगा से वह अपनी बीमारी का इलाज कराया था लेकिन ठीक होने के बजाय दूसरी समस्याओं से घिर गया। यह सब बैगा की वजह से हो रहा था, इसलिए मार डाला। दूसरे मामले में आरोपी ने पहले अपनी मां को मारने के लिए घसीटकर ले जाने की कोशिश की लेकिन वह बच गई। रात में मौका पाकर अपने मासूम बच्चे को मार डाला। यह कहने लगा कि उसने उसे बलि दी है। दोनों मामलों में थोड़ा फर्क है और थोड़ी समानता भी। फर्क यह है कि बैगा की हत्या करने वाले के मानसिक रूप से बीमार होने की बात सामने नहीं आई है। उसे दूसरी बीमारियां रही होंगी। जबकि बेटे को मार डालने वाला व्यक्ति कई महीनों से मानसिक रूप से बीमार चल रहा था और झाड़-फूंक करा रहा था। मेडिकल टर्म में दोनों ही बीमार हैं और उनका इलाज भी हो सकता है। पर उन्होंने झाड़-फूंक का सहारा लिया। हो सकता है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उनकी पहुंच में न हों, पर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की तैनाती तो हर एक गांव के लिए की गई है। अमूमन दूर दराज के इलाकों में वे भी ड्यूटी करने से कतराते हैं। मगर, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि झाड़ फूंक और बैगा गुनिया पर उनका भरोसा आधुनिक चिकित्सा पद्धति से बढक़र है। प्रदेश के गांवों में कितनी ही घटनाएं हर साल होती हैं, जिनमें सर्पदंश का जहर उतारने के लिए बैगा पर भरोसा कर लिया जाता है। यहां तक कि मृत्यु के बाद भी उनके वापस उठ खड़े होने की उम्मीद पाल ली जाती है। एक तरफ प्रदेश में एम्स, नए मेडिकल कॉलेज, सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल तैयार हो रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य के नाम पर राज्य का एक बड़ा हिस्सा सुविधाओं और जागरूकता दोनों से ही कोसों दूर है।
रेप के लिए एआई की मदद
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक जहां ज्ञान के नए दरवाजे खोल रही है वहीं इसके दुरुपयोग से लोगों की निजता, गरिमा, शील, संपत्ति सब खतरे में पड़ती जा रही है। छत्तीसगढ़ से सटे मध्यप्रदेश के सीधी जिले में स्कूल-कॉलेज की कई लड़कियों के साथ रेप हुआ है। आरोपियों ने उन्हें जाल में फंसाने के लिए एआई तकनीक से लैस ऐप की मदद ली। एक पीडि़ता ने बताया कि उसे फोन आया, अर्चना मैडम का। उसने कहा, मैं इस समय स्कूल में नहीं हूं। तुम्हारी छात्रवृत्ति आ गई है लेने के लिए बताई गई जगह पर पहुंचो। आज आखिरी दिन है, तुम्हारा हस्ताक्षर होना है। पीडि़त छात्रा कई माह से छात्रवृत्ति रुके होने से परेशान थी। वह 20 किलोमीटर दूर अर्चना मैडम से मिलने चली गई। पर वहां मैडम नहीं मिलीं। सूनसान जगह पर आरोपी युवक मिले। इन युवकों ने बताया कि उन्होंने ऐप का इस्तेमाल कर महिला की आवाज में खुद ही बात की थी। ऐसा ही करके उन्होंने दुष्कर्म पीडि़त अन्य लड़कियों को भी बुलाया था।
इंटरनेट पर तलाशें तो एआई से लैस सैकड़ों ऐप डाउनलोड कर फ्री में इस्तेमाल करने के लिए मौजूद दिखाई देते हैं। ये दावा करते हैं कि एक आवाज को वे 300 तरह से बदल सकते हैं, किसी भी भाषा में। पुरुष की आवाज में स्त्री और स्त्री की आवाज में पुरुष को बात करते हुए रीयल टाइम सुना जा सकता है। लोगों की जिंदगी एआई जितना आसान बना रहा है, उतने ही नए-नए खतरे दिखाई सामने आ रहे हैं।
निजी स्कूलों पर कार्रवाई की चर्चा
मध्यप्रदेश के जबलपुर में जिला प्रशासन ने निजी स्कूलों की मनमानी पर जिस कड़ाई से रोक लगाई है, उसकी दूसरे राज्यों में भी चर्चा हो रही है। यहां स्कूलों में 55 दिनों तक लंबी जांच चली। पाया गया कि उन्हें 80 फीसदी ऐसी किताबें निजी प्रकाशकों से खरीदने के लिए मजबूर किया गया, जो कोर्स में जरूरी ही नहीं थे। 21 हजार विद्यार्थियों से 81 करोड़ रुपये से अधिक की अतिरिक्त राशि फीस के रूप में वसूल की गई। 51 लोगों के खिलाफ धारा 420 और अन्य धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज करा दी गई, जिनमें स्कूलों के संचालक और किताबों के प्रकाशक शामिल हैं। इनमें से 20 लोग गिरफ्तार भी कर लिए गए। बाकी की तलाश हो रही है। इन्हें छात्रों से ली गई अतिरिक्त राशि जो करोड़ों में है, 30 दिन के भीतर वापस करने का निर्देश भी दिया गया है।
छत्तीसगढ़ में कोविड काल के समय ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान मनमानी फीस वसूली का मामला हाईकोर्ट भी चला गया था। इसके बाद राज्य सरकार ने अशासकीय विद्यालय फीस विनियम 2020 लागू किया था। इसमें तय किया गया कि निजी स्कूलों की फीस व पालकों से अन्य खर्चों के लिए ली जाने वाली राशि की निगरानी कलेक्टर करेंगे। जिला शिक्षा अधिकारी बैठक लेंगे और फीस वृद्धि को मंजूरी देंगे। फीस में तो 8 फीसदी ही वृद्धि अधिकतम की जा सकती है, पर दूसरे मदों के खर्च का कोई हिसाब नहीं होता। फीस के अलावा ट्यूशन फीस, बस किराया, निजी प्रकाशकों की निश्चित दुकानों से खरीदी जाने वाली किताबें, कम्प्यूटर क्लास, आनंद मेला और तमाम तरह के मद में निजी स्कूल पालकों की क्षमता से अधिक फीस वसूल करते हैं। स्कूलों में नया सत्र शुरू होने वाला है। मगर, अपने यहां सख्ती तो दूर, जिलों में गठित निगरानी समितियों की बैठकें भी नहीं ली जा रही हैं।
नक्सलियों का जवाबी वार
हाल के दिनों में मुठभेड़ में 100 से ऊपर नक्सलियों को मार गिराने का दावा सुरक्षा बलों ने किया है। एक आवाज फर्जी मुठभेड़ की भी उठ रही है। खासकर पीडिया में बेकसूर तेंदूपत्ता मजदूरों पर गोलियां बरसाने और उनको मार डालने का आरोप लगा है। इसे लेकर आज बस्तर बंद का आह्वान भी किया गया है।
दूसरी ओर नक्सली गुरिल्ला वार करते हैं। इसके लिए आमने-सामने की लड़ाई जरूरी नहीं। रविवार को उन्होंने अबूझमाड़ में दो मोबाइल टावर उड़ा दिए। जला हुआ टावर और उसके मलबे में दबा वह बैनर, जिसमें पद्मश्री हेमचंद मांझी को उड़ा देने की धमकी दी गई है। (rajpathjanpath@gmail.com)
ऐसी अफसर !!
भ्रष्टाचार के बोलबाले वाले इस राजनीतिक और प्रशासनिक दौर में ऐसी ईमानदारी संभव नहीं हो सकती। वह भी उस विभाग में जो पहले से ही तीन हजार करोड़ की उगाही की जांच झेल रहा हो, जिसके कई पुराने अफसर सीखचों के पीछे हों। लेकिन इस विभाग के एक अफसर की ईमानदारी की चर्चा उन्हीं गलियारों में हो रही है।
पहले तो सिस्टम के लीकेज को बंद किया। इसके लिए दागी जिला अधिकारियों को हटाया। फिर एनआईसी में बैठे बैठे मार्केटिंग का ऑनलाइन मॉनिटरिंग सिस्टम बनाया। और अब एक एक रूपया सरकारी खजाने में जमा कराने की तैयारी। इसमें इन अफसर को चाहिए भी कुछ नहीं। क्योंकि अपेक्षा से अधिक अर्जन की इच्छा नहीं। सरकार का दिया वेतन सुविधाएं ही भरपूर है।
चादर से ज्यादा पैर न फैलाने की फितरत की वजह से यह अफसर, सालभर की मासूम बेटी और सास को यहां छोड़ पति, बेटे से मिलने अकेले अमेरिका गईं। कारण तीनों के अमेरिका अप डाउन के 12 लाख का खर्च नहीं उठा सकती थीं। यह हमें मालूम चला तो यह कहते हुए आश्चर्य जताया कि भ्रष्टाचार के खारून (गंगा नहीं कहना चाहते ) वाले आवास पर्यावरण,और आबकारी विभाग में ऐसे भी अफसर हैं।
पुलिस का बदलेगा चेहरा
चार जून को ऊंट के करवट के मुताबिक राज्य में बड़े फेरबदल की तैयारी चल रही है। खासकर पुलिस मुख्यालय में। जहां आधा दर्जन से ज्यादा सीनियर अधिकारी खाली बैठे हुए। दिसंबर में हुए फेरबदल के बाद फील्ड में भी जूनियर अधिकारियों को बड़ी जिम्मेदारी दी गई। इसलिए चुनाव परिणाम के बाद बदलाव होगा। इसमें चुनाव परिणाम को भी ध्यान रखा जाएगा। कई जिले के कप्तान बदले जाएंगे।
इसमें कोरबा, रायगढ़, महासमुंद, बलौदाबाजार, कवर्धा, राजनांदगांव समेत अन्य जिले शामिल हैं। एएसपी, डीएसपी से लेकर इंस्पेक्टर की लंबी सूची बनाई जा रही है। पुलिस मुख्यालय में एडीजी, आईजी और एसपी रैंक के अधिकारियों की जिम्मेदारी बदली जायेगी। चर्चा तो बड़े श्रीमान (पुलिस में हर बड़े अफसर को मातहत ऐसे ही पुकारते हैं )को बदलने को लेकर चल रही है। हालांकि उनका कार्यकाल 5 अगस्त है। चर्चा इस बात की अधिक है कि सरकार अपनी पसंद के अधिकारी को बैठाएगी। इस हलचल के बीच कुछ अधिकारी दिल्ली, राजस्थान, बिहार और यूपी के जरिए से जोर आजमाइश कर रहे हैं।
नारियल से घोंसला
नारियल का पानी देश में हर जगह पिया जाता है। हमारी समाजसेवी संस्थाएं या व्यक्तिगत रूप से हम भी यदि नारियल पानी पीकर इस तरह के घोंसले बनाकर अपने घर, ऑफिस, कॉम्प्लेक्स में टांग दें। तो बिना किसी लागत के हम यह परोपकारी कार्य कर सकते हैं । हमने पेड़ों को बचाया नहीं। हमारा यह प्रयास आम के आम गुठलियों के दाम भी हो। हम पानी सिप करने के बाद नारियल का कच्चा गूदा जिसे मक्खन भी कहते हैं, निकालने के लिए बेचने वाले से कहते ही हैं।
बस उसे इस आकार में काटने कहना भर है?। इस तरह बनाकर देने के वह 2-4 रूपए लेता भी है यह बेशकीमती घोंसला तैयार हो सकता है । आने वाला मौसम मानसून का है। बचे खुचे पेड़ों में जो घोंसले पक्षियों ने बना रखे होंगे वे आँधी में उड़ जाने हैं। ऐसे में हम उन्हें आसरा दे सकते हैं, जैसे गर्मी में सकोरे में जल से जीवन। उल्टे हमें ही पुण्य, सवाब ही मिलेगा। (rajpathjanpath@gmail.com)
दावा और अफसोस
रायपुर की राजनीति में दो दोस्त। दोनों ने एक दूसरे के लिए खूब मेहनत की। राजनीतिक ओहदे के रूप में लगभग बराबर ही रहे। एक विधायक तो दूसरा संयुक्त चार विधानसभाओं का एक नेता। फिर दूसरा आठ विधानसभाओं का नेता बना। अब उलट हुआ। दूसरे नेता के बजाए पहले को अवसर मिला। दूसरे नेता ने दोस्त के लिए खूब मेहनत की। प्रचार के दौरान भी,और उससे पहले पांच साल भी।
क्षेत्र के विकास के लिए तीन हजार करोड़ की योजनाएं या तो शुरू की या मंजूर करा लाए। जो सात बार के पूर्व नेता से कहीं अधिक। और जीई रोड पर सोडियम वैपर लैंप से भी कहीं अधिक, जो नेताजी की जीत के पैमाने में भी अहम होगा। दावा करते हैं कि 4 जून को मेरा रिकार्ड भी टूटेगा। मगर दूसरे नेता को अफसोस कि विकास के लिए क्षेत्र में सक्रियता, दोबारा टिकट का पैमाना नहीं बन सका। इसका पैमाना दल के भीतर गुटीय राजनीति। वो पूछते भी हैं कि आखिर मेरा कुसूर क्या था? खैर अब दोस्त के जरिए राजधानी की राजनीति करने की उम्मीद है।
मान्यता रद्द वाले स्कूल को भी !!
स्कूल शिक्षा विभाग में आईटीई के तहत गरीब परिवारों के बच्चों के निजी स्कूलों में दाखिले को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। उन स्कूलों में भी बच्चों को एडमिशन देने की अनुशंसा की गई है, जिनकी मान्यता सीबीएसई बोर्ड ने खत्म कर दी थी। मसलन, द्रोणाचार्य स्कूल में भी 6 सीट गरीब बच्चों के लिए आवंटित किया गया है। द्रोणाचार्य स्कूल की मान्यता दो महीना पहले सीबीएसई बोर्ड ने निरस्त कर दी है।
कहा जा रहा है कि स्कूल शिक्षा सचिव ने निचले स्तर के अफसरों को फटकार लगाई है। अब इस गड़बड़ी के लिए डीईओ को नोटिस थमाने की तैयारी भी है। चर्चा है कि राजनीतिक दबाव के चलते गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में एडमिशन की अनुशंसा कर दी गई। आने वाले दिनों में विवाद और बढ़ सकता है।
मुफ्त की पढ़ाई पसंद नहीं?
शिक्षा विभाग में तबादले, पोस्टिंग, अनुकंपा नियुक्ति में हुए घोटालों के बाद अब आरटीई के तहत पढऩे वाले बच्चों का दाखिले से जुड़ी गंभीर अनियमितता सामने आई है। गरीब बच्चों को पब्लिक स्कूलों में मुफ्त शिक्षा देने की इस योजना पर केंद्र व राज्य सरकार मिलकर हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है। बच्चों की पढ़ाई के खर्च का पूरा भुगतान निजी स्कूलों को किया जाता है। अब यह बात निकलकर आ रही है कि बीते वर्षों में इनमें से सैकड़ों बच्चों ने चुपचाप पढ़ाई छोड़ दी।
उन्होंने स्कूल आना बंद कर दिया। इन ड्रॉप आउट बच्चों ने दूसरे स्कूलों में दाखिला लिया या पढ़ाई ही छोड़ दी इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं। पर निजी स्कूलों ने इन बच्चों का नाम अपने स्कूल से नहीं काटा। उन पर आरोप लग रहा है कि बच्चों की पढ़ाई जारी रहने का झूठा आंकड़ा देकर उन्होंने शासन से अनुदान लेना जारी रखा। यह कांग्रेस सरकार के समय से हुआ या पहले से होता आ रहा है, यह जांच पड़ताल से मालूम होगा। फिलहाल तो पांच साल का आंकड़ा प्राचार्यों और शिक्षा अधिकारियों से मांगा गया है। इस मामले में एक सवाल तो निजी स्कूलों पर पढ़ाई छोड़ चुके बच्चों के नाम पर अनुदान लेकर शासन को चूना लगाना है।
मगर, दूसरा पक्ष इससे भी ज्यादा गंभीर है। यदि किसी गरीब बच्चे को अच्छे स्कूल में मुफ्त में पढ़ाई का मौका मिल रहा है तो वह भला इसे वह क्यों ठुकरा रहा है? क्या इन बच्चों को इस नाम से प्रताडि़त किया जाता है कि वे फ्री एजुकेशन ले रहे हैं? निजी स्कूल ट्यूशन और एग्जाम फीस के अलावा अलग-अलग कारण बताकर वसूलते हैं। कहीं इन बच्चों और उनके पालकों पर अतिरिक्त राशि देने का दबाव डाला जाता है?
आला दर्जे का तेंदूपत्ता
आदिवासियों की आमदनी में तेंदूपत्ता का विशेष स्थान है। पूरे प्रदेश में इस समय पत्ते तोडऩे का काम चल रहा है। 50 पत्तों की एक गड्डी बनती है। ऊपर और नीचे वाले एक-एक पत्ते को इस तरह से लपेट दिया जाता है कि इसमें दीमक न ले। राजनांदगांव जिले के मानपुर इलाके का तेंदूपत्ता छत्तीसगढ़ में सबसे अच्छी क्वालिटी का माना जाता है। इसकी कीमत सरकारी दर से भी ज्यादा होता है। तेंदूपत्ता व्यापारी तोडऩे से पहले ही इसकी बोली लगा लेते हैं और आदिवासियों को हाथों-हाथ भुगतान हो जाता है। कई बार एडवांस में भी।
(rajpathjanpath@gmail.com)
एक बार फिर उम्मीद से है डॉक्टर
विधानसभा से लोकसभा चुनाव तक भगवा दुपट्टा पहनने दलबदलुओं की कतार लगी रही। ये हर चुनाव से पहले होता है । ऐसे नए नवेले करीब 23 हजार नेता कार्यकर्ता भाजपाई बने। अभी कुछ हजार और वेटिंग लिस्ट में हैं। जो निगम चुनाव के पहले कमल थाम लेंगे। लेकिन कांग्रेस के एक डॉक्टर नेता का राजीव भवन से निकलकर ठाकरे परिसर में प्रवेश कुछ मुश्किल लग रहा है । संभवत: नहीं भी होगा। हालांकि इनके प्रवेश के लिए उनके सीनियर डॉक्टर नेता और वरिष्ठतम विधायक ने भी सिफारिश की थी। मगर प्रवेश से पहले जांच और अनुमति देने वाली समिति के मुखिया साफ मना कर चुके हैं । उनका तो यह भी कहना है कि मेरे समिति अध्यक्ष रहते तो प्रवेश नहीं मिलेगा । दरअसल वे इन डॉक्टर नेता के हर पांच वर्ष में निष्ठा बदलते रहने से नाराज हैं। झीरम के बाद भाजपा प्रवेश के लिए कांग्रेस को लानत भेजा, और फिर 2018 में घर वापसी के लिए भाजपा को कोसा।और अब उनकी नजर में फिर कांग्रेस अनैतिक पार्टी हो गई है। इसे ही कहते जिधर दम उधर है ।
नेता की हाँ में हाँ
माना एयरपोर्ट पर यह आकर्षक कलाकृति बच्चों युवाओं के लिए सेल्फी प्वाइंट बन गया है। इसे एक रेल कर्मी ने स्क्रैप मटेरियल से बनाया है। उनकी बनाई ऐसी ही अन्य प्रतिमाएं देश के कुछ और शहरों के रेलवे स्टेशनों में प्रदर्शित हैं। वैसे माना एयरपोर्ट में एक घोड़े की भी कलाकृति स्थापित है। पिछले दिनों इस नई कलाकृति के लगने के बाद पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी इसे देखने से स्वयं को रोक नहीं पाए। और फिर कहा यह अधूरा है। इसमें कुछ अंग नहीं हैं। बड़े नेता के लिए जैसा होता है, वैसा वहां मौजूद लोगों ने नेताजी की शिल्प कला को लेकर रूचि, बारीकी की तारीफ करने लगे। दरअसल बघेल ने राजनीतिक रूप से इसमें मीन मेख निकाला था ।
वार्ता का नक्सली प्रस्ताव
केंद्रीय गृह मंत्री, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री के बातचीत के प्रस्ताव पर नक्सलियों की ओर से फिर जवाब आया है। मीडिया को भेजे गए पत्र में नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी के प्रवक्ता प्रताप ने सरकार की ओर से रखी गई शर्तों का जिक्र किया है। पत्र में यह स्पष्ट है कि बातचीत के लिए वे हथियार सरेंडर नहीं करेंगे, क्योंकि वे ‘क्रांतिकारी’ हैं। बस्तर में चल रहे सडक़ आदि के निर्माण कार्यों का समर्थन नहीं करेंगे, क्योंकि वे मानते हैं कि इसे जंगल के दोहन व आदिवासियों के शोषण के लिए बनाया जा रहा है। सुरक्षाबलों ने नक्सलियों को मार गिराने का जो अभियान छेड़ा है, उसे रोकने की मांग भी है क्योंकि वे हिंसा के माहौल में बात नहीं कर सकते। बातचीत के लिए शांतिपूर्ण माहौल चाहते हैं। इन सब के बावजूद नक्सलियों का कहना है कि हमारी ओर से बातचीत के लिए कोई शर्त नहीं है, शर्त सरकार की ओर से ही रखी गई है।
नक्सलियों की ओर से बातचीत की सरकार की पेशकश का जवाब देने की वजह एक यह भी हो सकती है कि सुरक्षा बल कुछ दिनों से भारी पड़े हैं और उनके कई लीडर्स बीते तीन महीनों के मुठभेड़ में मारे गए हैं। अभी स्थिति यह है कि सरकार और नक्सली दोनों ही अपनी बातें एक दूसरे तक मीडिया के जरिये ही पहुंचा रहे हैं। उनके बीच कोई ऐसा मध्यस्थ नहीं है जो बातचीत की बात को आगे बढ़ाने में मदद करे। इसके चलते दोनों ओर के ही बयानों का कोई नतीजा आने की उम्मीद फिलहाल कम दिखाई देती है।
बेरोजगारी में फिर ऊपर
केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के सर्वे के मुताबिक छत्तीसगढ़ उन पांच राज्यों में शामिल हैं, जिनमें सर्वाधिक बेरोजगारी है। छत्तीसगढ़ में 19.6 प्रतिशत युवा काम मांग रहे हैं। छत्तीसगढ़ से अधिक खराब स्थिति ओडिशा, राजस्थान, बिहार व केरल की ही रह गई जहां बेरोजगारी दर 20 से 24 प्रतिशत के आसपास है। ये आंकड़ा बीते तीन महीनों का है। चूंकि रिपोर्ट केंद्र सरकार के ही एक मंत्रालय की ओर से तैयार की गई है, इसलिये इस पर भरोसा किया जा सकता है। तत्कालीन छत्तीसगढ़ सरकार सीएमआईई के आंकड़ों के आधार पर कह रही थी कि राज्य में बेरोजगारी सिर्फ 0.1 प्रतिशत रह गई है। हालांकि इसके बावजूद इसी दौरान भृत्य जैसे पदों पर भी हजारों आवेदन आए और बेरोजगारी भत्ते के लिए लाखों लोगों ने आवेदन किया था। ताजा आंकड़ों से स्पष्ट है कि बेरोजगारी को झुठलाना संभव नहीं है बल्कि सरकार को इसमें कमी लाने की कोशिश करनी होगी।
दो सौ फीट गहरा वाटर फाल
जशपुर जिले के मैनपाट में खूबसूरत घाटी, पहाड़ और झरने पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इनमें से ही यह एक जगह है जिसे मछली प्वाइंट कहा जाता है। नीचे 200 फीट खाई है। इन गर्मियों में भी झरना देखते बनता है। मगर, यहां जिला प्रशासन या पर्यटन विभाग ने सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं किया है। रेलिंग भी नहीं है। लोग नीचे तक चले जाते हैं, जिससे कभी भी हादसा हो सकता है।
(rajpathjanpath@gmail.com)