राजपथ - जनपथ
विस्तार टल गया?
सरकार ने आधी रात आदेश जारी कर संसदीय कार्य विभाग का प्रभार वन मंत्री केदार कश्यप को दे दिया है। विधानसभा सत्र की वजह से संसदीय कार्य विभाग किसी मंत्री को सौंपा जाना तय था। इस छोटे से बदलाव के बाद अटकलें लगाई जा रही है कि कैबिनेट विस्तार में समय लग सकता है।
साय कैबिनेट में दो स्थान रिक्त हैं। चर्चा है कि पार्टी के अंदरखाने में कैबिनेट विस्तार को लेकर काफी मंथन भी हुआ था। यह भी कहा जा रहा था कि पहली बार के विधायकों को कैबिनेट में जगह दी जा सकती है। मगर ऐसा नहीं हुआ।
दरअसल, रामविचार नेताम, दयालदास बघेल, और केदार कश्यप को छोडक़र सभी पहली बार के मंत्री हैं। कुछ नेताओं की राय थी कि सीनियर विधायकों को मंत्री बनाया जाना चाहिए ताकि उनके अनुभवों का लाभ मिल सके। इस क्रम में राजेश मूणत, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, और धरमलाल कौशिक का नाम प्रमुखता से चर्चा में रहा है। यही नहीं, पूर्व मंत्री लता उसेंडी, और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी भी स्थानीय समीकरण को देखते हुए मंत्री पद की दौड़ में रहे, लेकिन इन सब पर फिलहाल विराम लग गया है।
खट्टर का बस्तर कनेक्शन...
केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर यहां आए, तो बस्तर के नेताओं की पूछपरख की। बहुत कम लोगों को मालूम है कि खट्टर वर्ष-2002 से 03 तक करीब एक साल बस्तर में भाजपा संगठन का काम देखते रहे हैं। उस वक्त प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। उन्होंने मोटरसाइकिल में बैठकर बस्तर के दूर दराज इलाकों का दौरा किया था, और संगठन को मजबूत किया।
खट्टर ने प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में दिवंगत बलीराम कश्यप के साथ अपने संबंधों को याद किया। उन्होंने केदार कश्यप का भी हाल चाल जाना। और जब अपने उद्बोधन में खट्टर ने लता उसेंडी को मंत्री कह दिया, तो मंच पर किसी ने कहा कि वो मंत्री नहीं हैं। इस पर खट्टर ने तुरंत भूल सुधार किया, और कहा कि वो मंत्री नहीं है, लेकिन तालियों की गडगड़़ाहट बता रही हैं कि लता मंत्री बन जाएंगी।
खट्टर यहां भी नहीं रूके, और उन्होंने पूर्व मंत्री महेश गागड़ा को याद किया। महेश गागड़ा बाकी पदाधिकारियों के साथ छठवीं पंक्ति पर बैठे थे, और उन्होंने दोनों हाथ उठाकर कहा भाई साब मैं यहां हूं। कुल मिलाकर खट्टर ने विशेषकर बस्तर के नेताओं का दिल जीत लिया।
आशीर्वाद आगे काम आएगा?
केन्द्रीय वित्त आयोग की टीम, चेयरमैन डॉ. अरविंद पनगढिय़ा की अगुवाई में यहां पहुंची, तो सीएम और सरकार के मंत्रियों के साथ बैठक की। आयोग की टीम पंचायत, और नगरीय निकाय के पदाधिकारियों के साथ-साथ विपक्ष के नेताओं से भी मेल मुलाकात की। राज्य का जोर आयोग से अतिरिक्त अनुदान के लिए था।
बाद में वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने आयोग की टीम को अपने निवास में रात्रिभोज पर आमंत्रित किया। यहां चुनिंदा लोग ही थे। कुल मिलाकर आयोग को सरकार के लोगों ने अतिरिक्त वित्तीय मदद देने के लिए राजी करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। इन सबके बीच भाजपा प्रवक्ता उज्जवल दीपक भी चेयरमैन डॉ. अरविंद पनगढिय़ा से मिले। उज्जवल अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एमबीए किया है, उस वक्त डॉ. पनगढिय़ा अमरीका में उनके प्रोफेसर थे। उज्जवल ने डॉ. पनगढिय़ा का आशीर्वाद लिया। अब आयोग की नजरें कितनी इनायत होती है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
कांग्रेस संगठन, नए समीकरण
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज आज ही अपने कार्यकाल की पहली वर्षगांठ मना रहे हैं और राजीव भवन में स्थानीय निकायों जैसे जमीनी चुनाव से पहले बदलाव की चर्चाएं जोर पकड़े हुए है। सभी यह मान रहे हैं कि अगले एक सवा महीने में हाईकमान बदलाव कर सकता है । सो इच्छुक हर वरिष्ठ नेता हर प्रयास कर रहे हैं। खासकर ऐसे पूर्व मंत्री जो चुनाव हार चुके हैं। वे दिल्ली दरबार तक दखल रखने वाले प्रमुख नेताओं से घंटे से घंटों बैठकें कर रहे हैं। और उसके बाद दौरे पर निकल पड़ रहे हैं। पहले धनेंद्र साहू, नेता प्रतिपक्ष डॉ महंत, टीएस सिंहदेव से मिले, फिर मोहन मरकाम और अब मो अकबर भी। हालांकि सिंहदेव को भी समर्थक नया अध्यक्ष मानकर चल रहे हैं। उनसे डॉ. महंत को भी दिल के किसी कोने में एतराज नहीं।
दोनों ने रविंद्र चौबे के साथ बैठकर नया त्रिफला बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इन मुलाकातों के बाद मरकाम और अकबर को लेकर भी चर्चाएं गर्म हैं। मोहन मरकाम तो नांदगांव जाकर बघेल विरोधी नेताओं के साथ रानीसागर रेस्ट हाउस में बैठक कर आए। तो अकबर ने धरसींवा, भाटापारा से शुरुआत की। देखना यह है कि अकबर का दौरा जारी रहता है या थमता है।
सडक़ पर फिर मवेशियों का डेरा
नेशनल और स्टेट हाइवे पर इन दिनों फिर मवेशियों का डेरा बढ़ गया है। पशुओं को उनके मालिक खुला छोड़ रहे हैं और वे सडक़ों पर जमे रहते हैं। कांग्रेस थी तब इन्हीं दिनों में प्रदेश में रोका-छेका अभियान चला करता था। इस समस्या को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर हाईकोर्ट में कई बार सुनवाई हो चुकी है। ताजा मामले में कोर्ट ने अफसरों को निर्देश दिया है कि कोई ठोस प्लान बनाएं वरना जवाबदेही तय की जाएगी। हाईकोर्ट में कई याचिकाएं हैं। कुछ तो सात-आठ साल से दायर हैं। कुछ निर्देशों के बाद निराकृत भी कर दिये गए थे, पर हल नहीं निकला। इसी में एक आदेश पिछले साल का है। सितंबर 2023 में कोर्ट ने कहा था कि सभी जिलों में कलेक्टर या किसी शीर्ष अधिकारी के नियंत्रण में जिला स्तर पर समिति बनाई जाए। यही नहीं नगर पंचायतों और ग्राम पंचायतों में भी समिति बनाएं और मवेशियों को सडक़ से दूर रखें। आदेश के बाद कुछ दिनों तक कई जिलों में कलेक्टर्स ने सक्रियता दिखाई। उसके बाद उस समिति का कोई क्रियाकलाप दिखाई नहीं दे रहा है। मवेशी मालिकों पर जुर्माना लगाने की चेतावनी भी दी गई थी, पर वह भी कारगर नहीं रहा। पिछली छत्तीसगढ़ सरकार ने गौठान योजना पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए थे। पहले भी अधिकांश वीरान हो चुके थे, अब तो किसी गौठान में कोई भी गतिविधि नहीं हो रही है। वह रकम बर्बाद हो चुकी है। मौजूदा सरकार ने गौ अभयारण्य बनाने की घोषणा की है। दावा है कि यह गौठान योजना से भी अच्छी होगी। पर अभी वह जमीन पर नहीं दिखाई दे रहा है। केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले साल सोशल मीडिया पर घोषणा की थी कि मवेशियों के आने वाली जगहों को चिन्हित कर नेशनल हाईवे में 120 सेंटीमीटर ऊंची बाड़ लगाई जाएगी। इसकी शुरुआत राजमार्ग क्रमांक 30 से होने की बात भी बताई थी। पर, छत्तीसगढ़ के किसी हाईवे पर यह काम शुरू नहीं हुआ है। ऐसा करना उचित है भी या नहीं, यह भी नहीं बताया जा सकता।
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भ्रष्टाचार कम होगा?
सरकार ने हाल में दो बड़े फैसले लिए हैं। इन दोनों फैसलों से कारोबारियों में हलचल है। पहला फैसला शराब कारोबार से जुड़ा ह जिसमें एफएल-10 का लाइसेंस निरस्त कर शराब खरीदी का जिम्मा ब्रेवरेज कार्पोरेशन को दिया गया है।
इसी तरह सरकार ने सीएसआईडीसी के सारे रेट कांट्रैक्ट को निरस्त कर एक और बड़ा फैसला लिया है। खास बात ये है कि दोनों ही फैसलों की भनक पार्टी के कई ताकतवर लोगों को भी नहीं थी। इसको लेकर पार्टी के अंदरखाने में काफी कुछ कहा जा रहा है, लेकिन सीएम विष्णु देव साय ने बुधवार को पार्टी कार्यसमिति की बैठक में साफ किया कि शराब कारोबार में भ्रष्टाचार खत्म करने की नीयत से एफएल-10 का लाइसेंस निरस्त किया गया है।
दूसरी तरफ, सरकारी खरीदी में भ्रष्टाचार की शिकायतों को देखकर जेम पोर्टल से खरीदी का फैसला लिया गया है। भूपेश सरकार ने जेम पोर्टल से खरीदी पर रोक लगा दी थी। कांग्रेस ने सरकार के फैसले की कड़ी आलोचना की है, और कहा कि गुजराती कारोबारियों को फायदा पहुंचाने की नीयत से रेट कांट्रेक्ट व्यवस्था खत्म की गई है। हालांकि दोनों फैसलों से प्रभावित लोगों को रियायत भी दी गई है। यानी ब्रेवरेज कार्पोरेशन से खरीदी अक्टूबर से लागू होगी। तब तक एफएल-10 की व्यवस्था प्रभावशील रहेगी। इसी तरह रेट कांट्रैक्ट इस माह के अंत में खत्म होगा। तब तक पुरानी व्यवस्था से खरीदी हो सकती है। कुल मिलाकर प्रभावित कारोबारियों को थोड़ी-बहुत राहत मिल गई है। अब इस फैसले से शराब कारोबार-सरकारी खरीदी में पारदर्शिता आती है या नहीं, यह आने वाले समय में पता लगेगा।
मंत्री बनाओ तो कैबिनेट में जगह दो
केंद्र में सरकार बनने के बाद यह किसी केंद्रीय मंत्री का पहला छत्तीसगढ़ दौरा था, जिसमें मनोहर लाल खट्टर ने समीक्षा बैठक ली। उनके आने से कई बड़ी मांगों के पूरा होने का रास्ता खुला। केंद्रीय अंशदान के साथ 50 हजार ग्रामीण और 20 हजार शहरी आवासों की मंजूरी मिलने जा रही है। राज्य को पहले की तरह सरप्लस बिजली स्टेट बनाने के लिए मदद मिलेगी। ग्रेटर रायपुर का काम आगे बढऩे जा रहा है। खट्टर ने अफसरों से कहा कि आप जितनी तेजी से काम करेंगे, उतनी ही जल्दी राशि जारी होगी। यानि खट्टर का आना छत्तीसगढ़ के लिए फायदेमंद रहा।
यह संयोग ही है कि खट्टर उन्हीं विभागों के कैबिनेट मंत्री हैं, जिन विभागों के अपने छत्तीसगढ़ के तोखन साहू राज्य मंत्री हैं, विद्युत विभाग को छोडक़र। खट्टर ने दावे के साथ जो घोषणाएं कीं, वे तोखन साहू नहीं कर सकते- उनके हाथ बंधे हुए हैं। वे खुद समीक्षा बैठक ले सकते थे, लेकिन आए खट्टर।
जैसा स्मरण है, छत्तीसगढ़ में कई ताकतवर नेताओं को केंद्रीय मंत्रिमंडल के कैबिनेट में जगह मिल चुकी है- विद्याचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा, पुरुषोत्तम कौशिक और बृजलाल वर्मा। इन सबका जलवा ही अलग होता था, ताकत की तूती बोलती थी। वीसी (विद्याचरण) जब केंद्रीय मंत्री थे, तो पूरे देश में अफसर थर-थर कांपते थे। मगर इनके अलावा छत्तीसगढ़ के जो सांसद केंद्रीय मंत्रिमंडल मे लिए गए, वे राज्य मंत्री ही रहे। रमेश बैस, अरविंद नेताम, डॉ. चरण दास महंत, वर्तमान सीएम विष्णुदेव साय, रेणुका सिंह आदि। सबको केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलने पर छत्तीसगढ़ के लोगों को खुशी तो होती रही है, पर एक कड़वी सच्चाई है कि उनके पास अधिकार नहीं के बराबर रहे हैं। उतने ही होते हैं, जो कैबिनेट मंत्री तय कर दें। दूसरे राज्यों के ऐसे भी उदाहरण हैं जब किसी राज्य मंत्री ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि उनके पास कोई फाइल आती ही नहीं। रेणुका सिंह पूरे कार्यकाल में रेलवे की मनमानी पर रोक नहीं लगा पाई। तो अब कांग्रेस हो या भाजपा- मांग उठनी चाहिए कि केंद्र में किसी को मंत्री बनाना है तो कैबिनेट में जगह दो, राज्य मंत्री का झुनझुना मत पकड़ाओ। आखिर यह क्षेत्रफल के हिसाब से 9वां और जनसंख्या के हिसाब से 16वां बड़ा राज्य है। यहां से 11 सांसद चुने जाते हैं।
महिला की बारी आएगी?
रायपुर दक्षिण उपचुनाव की तिथि अभी घोषित नहीं हुई है लेकिन दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा ने तैयारी शुरू कर दी है। दोनों ही दलों के टिकट के दावेदार सक्रिय भी हो गए हैं।
कांग्रेस ने उपचुनाव की तैयारी के लिए बुधवार को एक मीटिंग भी की, इसमें खुद प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज भी शामिल हुए। खास बात यह है कि मीटिंग के पहले मेयर एजाज ढेबर के समर्थकों ने उन्हें प्रत्याशी बनाने की मांग को लेकर नारेबाजी भी की। ये अलग बात है कि विधानसभा आम चुनाव में हार के लिए मेयर एजाज ढेबर को जिम्मेदार ठहराया गया है। ढेबर रायपुर दक्षिण के चुनाव संचालक थे जहां कांग्रेस प्रत्याशी महंत रामसुंदर दास 67 हजार से अधिक वोटों से हार गए। ये प्रदेश में किसी सीट से अब तक की सबसे बड़ी हार है।
कांग्रेस हलकों में यह खबर छनकर आई है कि यदि भाजपा महिला प्रत्याशी उतारती है, तो कांग्रेस भी किसी महिला को टिकट दे सकती है। वैसे भी शहर की चारों सीटों से दोनों ही दल ने अब तक किसी महिला प्रत्याशी को नहीं उतारा है। भाजपा में इस पर गंभीरता से विचार चल रहा है। कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने दो-तीन महिला दावेदारों से चर्चा भी की है। देखना है कि दोनों दल किसी महिला को प्रत्याशी बनाते हैं, या नहीं।
बस्तर की संभावनाएँ
सरकार के रणनीतिकार बस्तर पर विशेष रूप से फोकस कर रहे हैं। नक्सलियों के खिलाफ व्यापक अभियान चल रहा है। साथ ही बस्तर में उद्योग, और पर्यटन की संभावना को लेकर विजन डॉक्यूमेंट भी तैयार किया जा रहा है।
चर्चा है कि विजन डॉक्यूमेंट तैयार करने में कुछ रिटायर्ड अफसर लगे हुए हैं, जो वहां लंबे समय तक काम कर चुके हैं। और वहां की बारीकियों से परिचित हैं। विजन डॉक्यूमेंट तैयार होने के बाद पार्टी के प्रमुख नेता इसको देखेंगे, इसके बाद सीएम के पास अवलोकन के लिए रखा जाएगा। कुल मिलाकर बस्तर में कुछ नया करने की सरकार की कोशिश है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
अरपा की लहरों में इठलाते बच्चे
अरपा नदी के किनारे बसे गांवों में इन दिनों त्यौहार जैसा माहौल है। बाकी महीनों में इसकी सूखी छाती पर रेत निकालने वाले ट्रैक्टर, हाईवा दिखते हैं। पानी आ जाने के कारण वे गायब हैं। आषाढ़ आने के बाद अरपा कल-कल बह रही है, लहरें उठ रही हैं। दो तीन महीने यही माहौल रहेगा। इसके रास्ते में एक भैंसाझार डायवर्सन प्रोजेक्ट है। अभी अधूरा है, मगर इसका अलग लाभ मिल रहा है। जब पानी ज्यादा आता है तो डायवर्सन में रोक दिया जाता है, फिर उसे धीरे-धीरे छोड़ दिया जाता है। इस नदी को जीवंत बनाए रखने के लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं। जीपीएम जिले के उद्गम स्थल से लेकर बिलासपुर तक। हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दायर हैं। उन पर सुनवाई हो रही है। अरपा में अचानकमार अभयारण्य से जो नाले आकर मिलते थे, वे तो खो गए हैं, पर किनारे बसी बस्तियों का गंदा पानी छोड़ा जा रहा है। वेग ने उस अपशिष्ट को भी बहा दिया है। यह तस्वीर प्रकृति प्रेमी प्राण चड्ढा ने भैंसाझार से ली है।
यह तस्वीर गुरूवार को कलेक्टोरेट तिराहे की है। जहां रेड सिग्नल क्रास कर पुलिस की गाड़ी फर्राटे से जा रही। हजारों रुपए का चालान भरने वाले आम लोग पूछ रहे हैं - पुलिस वालों के लिए कोई नियम नहीं? उन्हें कौन बताए नियम वे बनाते हैं और वे ही तोड़ते हैं..!(rajpathjanpath@gmail.com)
आखिरी गेंद तक बधाई नहीं...
सरकार चाहे कोई भी हो, कई बार अफसर-कर्मियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग सीनियर अफसरों को भी चौंका देती है। पिछले दिनों राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की ट्रांसफर लिस्ट निकली। आदेश जारी होने से पहले एक अफसर को एक संस्थान में पदस्थापना के लिए बधाई भी मिलनी शुरू हो गई। उन्हें नए संस्थान में बकायदा कार्य भी आबंटित कर दिया गया था। आदेश निकला, तो ठीक इसका उल्टा हुआ। अफसर की दूसरी जगह पोस्टिंग हो गई।
दूसरी तरफ, संस्थान में ऐसे अफसर की पोस्टिंग हो गई जिन्हें सरकार बदलने के बाद एक तरह से सजा के दौर पर बस्तर के एक नक्सल प्रभावित जिले में भेज दिया गया था। मगर 6 महीने के भीतर अफसर अच्छी पोस्टिंग पाने में सफल रहे। ट्रांसफर लिस्ट जब विभाग प्रमुख के पास पहुंची, तो वो भी फेरबदल देखकर चौंक गए। कुछ इसी तरह का तबादला उच्च शिक्षा विभाग में हुआ।
मंत्री जी ने चुनाव आचार संहिता से पहले एक विश्वविद्यालय के कुलसचिव के लिए नोटशीट चलाई थी। जिनके नाम की नोटशीट थी उन्हें बधाई मिलना शुरू हो गया। चुनाव निपटने के बाद कुलसचिव के रूप में किसी दूसरे की पोस्टिंग हो गई। खैर, किस अफसर की कितनी पहुंच है, यह अंदाजा लगाना कठिन होता है।
देखना है आगे क्या होता है
सरकार बदलने के बाद जांच एजेंसियां शराब और कोल मामले में ऐसे-ऐसे साक्ष्य जुटा पाने में सफल होती दिख रही है जिससे आरोपियों की मुश्किलें बढ़ सकती है। आईएएस रानू साहू, और जमीन कारोबारी दीपेश टांक को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है, लेकिन ईओडब्ल्यू ने उनके खिलाफ अलग प्रकरण दर्ज किया हुआ है। जिससे उनका फिलहाल छूटना मुश्किल दिख रहा है।
दूसरी तरफ, पीडीएस घोटाले की ईडी पड़ताल कर रही है। ईडी मिलरों का बयान ले रही है। जिससे भ्रष्टाचार के काफी कुछ जानकारी मिल रही है। चर्चा है कि इसके तार कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल से भी जुड़े हैं। रामगोपाल अग्रवाल पिछले सालभर से गायब है। ईडी उनसे पूछताछ नहीं कर पाई है। ये अलग बात है कि उनके सारे करीबी राइस मिलरों से ईडी पूछताछ कर चुकी है, और भ्रष्टाचार के काफी कुछ साक्ष्य जुटा चुकी है। देखना है आगे क्या होता है।
सडक़ बीच, महुआ बीज
महुआ के फलों से बीज निकालने का काम इन दिनों सडक़ के किनारे दिखाई दे रहा है। फलों को किसी ठोस जमीन पर रखकर तोडऩा पड़ता है और इसके लिए गांव से गुजरने वाली सडक़ सबसे ठीक जगह है। बस, जब पास से आप गुजरें तो ध्यान रखें, वाहन सावधानी से चलाएं और दुर्घटना से दूर रहें।
पुलिस की कार्रवाई पर सवाल
इसी महीने शुरू हो रहे विधानसभा के मॉनसून सत्र में दूसरे कई अहम मुद्दों के अलावा नक्सल समस्या पर कांग्रेस सरकार को घेर सकती है। बीजापुर जिले के पीडिया में 10 मई को हुए मुठभेड़ को लेकर आरोप है कि पुलिस ने जिन्हें नक्सली एनकाउंटर बताकर मार डाला उनमें 10 लोग स्थानीय तेंदूपत्ता मजदूर थे। वे सुरक्षा बलों से घबराकर पेड़ के ऊपर चढ़ गए या छिप गए थे। कांग्रेस के अलावा आदिवासी संगठनों ने भी इस गांव में अपना जांच दल भेजा। उनका भी दावा है कि जिन्हें नक्सली बताया गया वे निर्दोष ग्रामीण थे। इसके बाद नक्सलियों ने भी एक प्रेस नोट जारी कर यही बात कही कि मारे गए लोग हमारे लोग नहीं थे। हालांकि पुलिस ने दावा किया कि सभी नक्सली थे और इनमें से कुछ के ऊपर ईनाम घोषित था। अब एक मामला फिर बीजापुर जिले से ही सामने आया है। यहां के नेडपल्ली गांव को सुरक्षा बलों ने सुबह 4 बजे घेर लिया और 95 लोगों को पकडक़र उसूर थाने ले आई। इनमें छात्र, किसान और बीमार लोग शामिल थे। बाद में उनमें से कुछ को छोडक़र बाकी सभी छोड़ दिए गए। कांग्रेस का आरोप है कि उन्हें थाने लाकर प्रताडि़त किया गया। जिस महिला ने आईईडी ब्लास्ट में अपने दोनों पैर गंवाए, उसके बेटे को भी पुलिस ने पकड़ा था।
विधानसभा में सरकार नक्सली मोर्चे पर अपनी सफलता का दावा इस आधार पर कर सकती है कि पिछले महीनों में 150 से ज्यादा माओवादी मार गिराए गए। हाल ही में बस्तर के पुलिस अफसरों ने दावा किया है कि वह कई धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में घुसने में कामयाब रहे हैं, खासकर अबूझमाड़ में। मगर पीडिया और नेडपल्ली की घटनाओं से संकेत मिलता है कि स्थानीय आदिवासियों और सुरक्षा बलों के बीच विश्वास का रिश्ता कायम होने में काफी वक्त लगेगा।
कुछ गरीब और मेहनतकश लोगों की मजबूरी हो जाती है, दुपहिये को तिपहिये जैसा इस्तेमाल करना...
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साय की बात भूपेश की जुबानी
पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने सीएम विष्णुदेव साय से निजी चर्चा को मीडिया में लाकर भाजपा में हलचल पैदा कर दी है। दरअसल, भूपेश ने बृजमोहन अग्रवाल की जगह नए संसदीय कार्य मंत्री को लेकर साय ने चर्चा की थी। चर्चा में साय ने भूपेश से कहा था कि विधानसभा सत्र से पहले नया संसदीय कार्य मंत्री बन जाएगा।
बृजमोहन अग्रवाल के सांसद बनने के बाद संसदीय कार्य, और अन्य विभाग सीएम के पास हैं। पहले यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि कैबिनेट विस्तार नगरीय निकाय चुनाव के बाद होगा, लेकिन जैसे ही भूपेश ने सीएम से चर्चा का ब्यौरा दिया तो भाजपा में हलचल बढ़ गई है। हालांकि सीएम साय ने कैबिनेट विस्तार के मसले पर सिर्फ इतना ही कहा कि यह समय पर होगा।
दूसरी तरफ, मध्य प्रदेश में कैबिनेट विस्तार के बाद छत्तीसगढ़ में भी विस्तार की अटकलें लगाई जा रही है। छत्तीसगढ़ में विधानसभा का सत्र 22 जुलाई से शुरू हो रहा है। ऐसे में इससे पहले कैबिनेट विस्तार अथवा बृजमोहन अग्रवाल के विभागों को अन्य मंत्रियों को दिया जा सकता है। अगर कैबिनेट विस्तार नहीं हुआ, तो संसदीय कार्य विभाग रामविचार नेताम को दिया जा सकता है। नेताम मंत्रिमंडल में सबसे अनुभवी हैं। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
सदन में छाएगा बलौदाबाजार
विधानसभा के मानसून सत्र में विपक्षी सदस्य बलौदाबाजार आगजनी प्रकरण के मसले पर सरकार को घेरने की बना रहे हैं। विपक्ष पहले दिन ही कामरोको प्रस्ताव लाकर आगजनी मसले पर चर्चा के लिए जोर दे सकते हैं। इस पूरे मामले में कांग्रेस विधायक देवेन्द्र यादव भी जांच के घेरे में हैं, और उन्हें पुलिस ने तलब भी किया है। कांग्रेस के जिलाध्यक्ष की भी गिरफ्तारी हुई है। इन सबके चलते मामला राजनीतिक रंग ले चुका है।
बताते हैं कि बलौदाबाजार आगजनी मसले पर पुलिस और प्रशासन की गंभीर चूक सामने आई है। जबकि राज्य की खुफिया एजेंसी ने धरना प्रदर्शन के मसले पर स्थानीय पुलिस और प्रशासन को अलर्ट भी किया था। मगर जिले के अफसर नजरअंदाज करते रहे, और बड़ी घटना हो गई। सीएम विष्णुदेव साय की नाराजगी के बाद कलेक्टर और एसपी को निलंबित किया जा चुका है। बावजूद मामला शांत नहीं हो रहा, और सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई है। देखना है कि सदन में सरकार इसका सामना कैसे करती है।
पुलिया बही, पटरी बच गई
बिहार में बारिश के दौरान एक दर्जन से ज्यादा पुलों के बह जाने की खबर तो हमने सुन ही ली, अब यूपी से भी तस्वीर आई है। यहां पीलीभीत जिले में शारदा नदी पर हाल ही में बनाई गई नई रेल लाइन की पुलिया बह गई। पुलिया नदी के बहाव में कहां गायब हो गई, पता नहीं चला लेकिन ट्रैक नदी में झूल रहा है। रेलवे ने ट्रेन तो बंद कर दी लेकिन लोगों की हिम्मत देखिए। वे इसी ट्रैक से पैदल नदी को पार कर रहे हैं और एक गांव से दूसरे गांव की दूरी नाप रहे हैं। यह ट्रैक उनके लिए पुलिया का काम कर रहा है।
स्कूल खुले नहीं और ताले बंद
स्कूल खुलते ही राजधानी के आसपास के किसी स्कूल में ताला बंद करने का आंदोलन हो जाए तो समझा जा सकता है कि शिक्षा विभाग की नए सत्र की तैयारी कैसी रही है। तिल्दा ब्लॉक के अल्दा स्थित हायर सेकेंडरी स्कूल की शाला समिति, पंचायत और ग्रामीणों सबने मिलकर स्कूल में ताला जड़ दिया है। वे पिछले सत्र से अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को बताते आ रहे हैं कि यहां इतिहास, अर्थशास्त्र, भौतिकी, रसायन जैसे विषयों के लिए कोई शिक्षक ही नहीं है। जो तीन शिक्षक यहां के नाम पर नियुक्त किए गए हैं, उनको भी किसी दूसरे स्कूल में अटैच कर दिया गया है। नई किताबें, नई साइकिल और यूनिफॉर्म के साथ पहुंचे बच्चे स्कूल पहुंचकर पढ़ाई नहीं, गेट पर ताला लगाकर प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदेश में हजारों शिक्षकों के पद खाली हैं। बहुत से शिक्षक दूसरे विभागों में वर्षों से संलग्न हैं। शिक्षकों की कमी वाले स्कूलों में ऐसे विरोध प्रदर्शन की खबरें आगे और आएंगीं।
पुरी के लिए सिर्फ चार यात्री..
पुरी जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए कुछ स्पेशल ट्रेनों की घोषणा की गई है। हावड़ा मार्ग की ट्रेनों की तो काफी पहले से घोषणा कर दी गई थी लेकिन ईस्ट कोस्ट रेलवे ने इस बार तीन स्पेशल ट्रेन जगदलपुर से भी चलाने की घोषणा की। इस स्पेशल ट्रेन को आम लोगों के लिए किफायती बनाने के लिए किराया भी केवल 135 रुपये रखा। मगर 6 जुलाई को जब पहले दिन जगदलपुर से यह ट्रेन निकली तो सिर्फ चार यात्री यहां से सवार हुए। हालांकि आगे सभी छोटे-छोटे स्टेशनों में भी स्टापेज था, इसलिए और भी यात्री मिल गए। पर, जगदलपुर से सिर्फ चार यात्रियों के सवार होने की वजह यह सामने आई कि रेलवे की घोषणा का किसी को पता ही नहीं था। जबकि अकेले बस्तर से हजारों धार्मिक पर्यटक पुरी जगन्नाथ की रथयात्रा में शामिल होते हैं। मगर, रेलवे ने देर से घोषणा की और इसका ठीक प्रचार-प्रसार भी नहीं किया। खैर, अभी दो स्पेशल ट्रेन 14 और 18 जुलाई की सुबह फिर जगदलपुर ट्रेन रवाना होंगी। जो चूक गए उन्हें मौका मिल जाएगा।
रायपुर के एक अस्पताल में बैठे चार बच्चे, चार मोबाइल पर व्यस्त। तस्वीर ली है राजश्री श्रीवास्तव ने।
(rajpathjanpath@gmail.com)
क्या इस साल भी एक महीने फुरसत?
पटवारियों ने आज 8 जुलाई से बेमियादी हड़ताल का ऐलान किया है। ऐसे समय में यह घोषणा की गई है जब राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने पेंडिंग राजस्व आवेदनों को निपटाने के लिए एक पखवाड़े तक विशेष अभियान चलाने का निर्देश दिया है। वर्मा की घोषणा मुख्यमंत्री के दूसरे जनदर्शन के बाद हुई, जहां बेमेतरा की एक किसान की पटवारी के खिलाफ शिकायत पहुंची थी और उस पर कार्रवाई के लिए कलेक्टर को निर्देश दिया गया था। इस बीच एंटी करप्शन ब्यूरो की रेड में भी राजस्व विभाग के एक एसडीएम और कुछ पटवारी, नायब तहसीलदार और बाबू गिरफ्तार हुए हैं।
इस समय खेती-किसानी का काम चल रहा है। हाईस्कूल और कॉलेजों में प्रवेश के लिए बहुत से ऐसे दस्तावेजों की जरूरत है, जिन्हें पटवारी ही बनाते हैं। लगातार विधानसभा और लोकसभा चुनाव के कारण कई महीनों तक सारी फाइलें रुकी रहीं। राजस्व में भी पेंडिंग अर्जियों की भरमार है। ऐसे मौके पर की जा रही अनिश्चितकालीन हड़ताल लोगों की परेशानी का कारण बनेगी।
आपको याद होगा, पिछले साल करीब इन्हीं दिनों में पटवारियों ने एक महीने से अधिक लंबी हड़ताल की थी। राजस्व का पूरा कामकाज ठप पड़ गया था। सरकार और आंदोलनकारियों के बीच संवादहीनता की स्थिति बनी रही, फिर उन पर एस्मा लगा दिया गया। हालांकि, एस्सा के बाद भी किसी पटवारी पर कार्रवाई नहीं हुई। फिर एक दिन अचानक तत्कालीन राजस्व सचिव एक्का ने संघ के पदाधिकारियों को तब के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलवाया और हड़ताल समाप्त हो गई। पटवारियों का कहना है कि उनकी मांगों पर विचार कर शीघ्र निर्णय लेने का आश्वासन दिया गया था। वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति, मुख्यालय में रहने की बाध्यता खत्म करने, स्टेशनरी आदि का भत्ता देने, विभागीय जांच के बिना एफआईआर दर्ज नहीं करने जैसी मांगें थीं। साल भर बीत जाने के बाद भी उनकी शिकायतें दूर नहीं हुई हैं।
हर बार विभिन्न विभागों में कर्मचारी अपनी मांगों के लिए हड़ताल करते हैं। सरकार तब तक नहीं सुनती जब तक व्यवस्था बिगडऩे नहीं लगती। बहुत कम बार ऐसा हुआ है कि कर्मचारियों पर सख्ती बरती गई हो। आखिरकार उन्हें आश्वासन देकर ही काम पर लौटा लिया जाता है। इन हड़ताल के दिनों में आम लोगों को होने वाली परेशानी की कोई भरपाई नहीं होती। मगर, कर्मचारी लडक़र हड़ताल के दिनों का वेतन जरूर हासिल कर लेते हैं। सरकार के पास वक्त होता है कि वह कर्मचारियों को दिए गए आश्वासन को पूरा करे, पर इस ओर ध्यान तब जाता है, जब वे फिर उसी मांग को लेकर दोबारा हड़ताल करते हैं। क्या हमें फिर एक बार पटवारियों की एक माह लंबी हड़ताल देखने के लिए तैयार रहना चाहिए?
बीएसएनएल की याद आ रही
मोबाइल रिचार्ज टैरिफ जब से महंगा कर दिया गया है लोगों को निजी टेलीकॉम ऑपरेटरों के प्रति नाराजगी दिखाई दे रही है। पहले जियो ने दाम बढ़ाए, फिर एक के बाद एक एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया और दूसरी कंपनियों ने भी बढ़ा दिए। पहले-भीतर से नहीं लगता, कहकर मजाक उड़ाया जाता था। अब लोगों को वही बीएसएनएल फिर याद आने लगा है। याद दिला रहे हैं कि यह सरकारी कंपनी है, इसे बचाना चाहिए। लोग इस बात के लिए जागरूक करने सडक़ पर उतरने लगे हैं। मगर, यह संयोग ही है कि टैरिफ बढऩे के कुछ पहले ही पोर्टेबिलिटी के नियम कड़े कर दिए गए हैं। पहले आप सीधे दूसरे ऑपरेटर के पास जाकर पुराने नंबर पर नया सिम ले सकते थे। यह 72 घंटे में एक्टिव हो जाता था। पर अब एक सप्ताह का समय लगेगा, और कुछ दूसरी औपचारिकताएं भी पूरी करनी होगी। आपको जानकारी तो होगी ही कि भारत में सबसे बाद में आई जिओ का अब 40 प्रतिशत मोबाइल नेटवर्क पर कब्जा है। यानि पोर्टेबिलिटी के नियम तब आसान थे, जब आप जियो की ओर जाना चाहते थे। अब जियो रखा है तो वहां से निकलना मुश्किल है। एयरटेल के 37 फीसदी ग्राहक भी उसी के दायरे में रहेंगे। (rajpathjanpath@gmail.com)
मीडिया प्रभारियों का इतिहास
भाजपा हो या कांग्रेस, मीडिया प्रमुखों को सरकार में ‘लाल बत्ती’ मिली है। पार्टी की छवि बनाने में मीडिया प्रमुखों की अहम भूमिका रहती है। यही वजह है कि सरकार बनने पर उन्हें महत्व मिलता है। भूपेश सरकार में शैलेष नितिन त्रिवेदी, और सुशील आनंद शुक्ला को ‘लाल बत्ती’ मिली थी। यही नहीं, कांग्रेस ने अपने प्रवक्ताओं डॉ. किरणमयी नायक, सुरेन्द्र शर्मा को क्रमश: आयोग व बोर्ड में पद देकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था। किरणमयी तो अभी भी महिला आयोग का अध्यक्ष पद संभाल रही हैं।
भाजपा में भी मीडिया प्रकोष्ठ की जिम्मा संभालने वाले नेताओं को भी भाजपा सरकार में अहम दायित्व मिला है। मध्यप्रदेश में पार्टी का मीडिया संभालने वाले प्रभात झा तो राज्यसभा में गए, और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बने। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भाजपा के पहले मीडिया प्रभारी सुभाष राव 10 साल राज्य हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन रहे। इसके बाद रसिक परमार भी दुग्ध महासंघ के चेयरमैन बनाए गए।
परमार के बाद के मीडिया प्रभारी नलिनेश ठोकने को ‘लाल बत्ती’ नहीं मिल पाई। क्योंकि भाजपा की सरकार हट गई थी। हालांकि नलिनेश को प्रदेश संगठन में जिम्मा दिया गया। वर्तमान में मीडिया प्रभारी अमित चिमनानी, और सह प्रभारी अनुराग अग्रवाल का नाम स्वाभाविक रूप से ‘लाल बत्ती’ के दावेदारों के रूप में उभरा है।
चिमनानी रायपुर उत्तर के टिकट के दावेदार थे। लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल पाई। अनुराग अग्रवाल का नाम रायपुर दक्षिण सीट से टिकट के दावेदारों में प्रमुखता से लिया जा रहा है। कुछ लोग अंदाजा लगा रहे हैं कि निगम मंडलों के पदाधिकारियों की पहली लिस्ट में मीडिया विभाग के पदाधिकारियों का भी नाम हो सकता है। देखना है कि आगे क्या होता है।
केंद्र से बड़ी घर वापिसी
केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर गए कुछ सीनियर आईएएस अफसरों की छत्तीसगढ़ में वापसी हो सकती है। ज्यादातर अफसर पिछली सरकार में प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। वर्तमान में पीएमओ में पदस्थ वर्ष-2002 बैच के अफसर डॉ. रोहित यादव की प्रतिनियुक्ति खत्म हो गई है, और वे इस महीने के आखिरी तक छत्तीसगढ़ आ सकते हैं। इसके अलावा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सचिव नीरज बंसोड़ की भी वापसी की चर्चा है। केन्द्र सरकार में संयुक्त सचिव अमित कटारिया के भी अगले दो महीने में छत्तीसगढ़ वापस आने की चर्चा है। कटारिया पिछले सात साल से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। इसके अलावा प्रमुख सचिव स्तर के अफसर सुबोध सिंह के भी प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद अगले एक-दो महीने में वापस आ सकते हैं। इन अफसरों के आने से छत्तीसगढ़ सरकार में अनुभवी अफसरों का टोटा खत्म होगा।
वल्र्ड बिरयानी डे की एक तस्वीर..
दुनियाभर में खान-पान के शौकीन आज वल्र्ड बिरयानी डे मना रहे हैं। सैकड़ों किस्म के वेज-नॉनवेज बिरयानी की तस्वीर और वीडियो सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं और ललचा रहे हैं। प्रदेशभर में इन दिनों शाला प्रवेशोत्सव भी चल रहा है। बच्चों को खीर, पूड़ी, पनीर खिलाते नेताओं और अफसरों की तस्वीरें आ रही हैं। इन सबके बीच इस एक तस्वीर को भी देख लीजिए। यह बलरामपुर जिले के बीजाकुरा गांव की है। यहां के 43 स्कूली बच्चे मध्यान्ह भोजन में हल्दी, नमक मिला भात खा रहे हैं। साथ में और कुछ नहीं। स्कूल प्रबंधन का कहना है कि हफ्तेभर से सब्जी मिल नहीं रही है, तब से ऐसा ही चल रहा है।
पढ़ाई के बगैर परीक्षा नहीं
अब तक प्राइवेट परीक्षार्थी साल में एक बार कॉलेज चुनकर फॉर्म जमा कर देते थे और सीधे एग्जाम में बैठ जाते थे। अब उन्हें एक माह की कक्षा भी अटेंड करनी पड़ेगी। यह स्नातक और पीजी डिग्री हासिल करने का आसान तरीका रहा है। अब नई शिक्षा नीति में यह जरूरी कर दिया गया है कि छात्र कम से कम एक माह क्लास अटेंड करें और परफॉर्मेंस दिखाएं, इसके बाद ही प्राइवेट एग्जाम दे सकेंगे। इस व्यवस्था से जितनी चिंता प्राइवेट छात्र-छात्राओं को नहीं हो रही है, उससे अधिक कॉलेजों के प्रबंधकों को है। वे क्लास लेने के लिए जगह की कमी की बात उठा रहे हैं। निजी कॉलेजों को प्राइवेट परीक्षार्थियों से अच्छी खासी आमदनी हो जाती है। तय फीस के अलावा वे अलग-अलग मद में फीस काटते हैं, जो यूनिवर्सिटी नहीं भेजी जाती। चाहे परीक्षा देने के लिए जगह कम पड़े लेकिन कोई भी प्राइवेट दिलाना चाहे तो उनको वे निराश नहीं करते। अब नई व्यवस्था में क्लास लेना मजबूरी हो जाएगी। अब उच्च शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालय की निगरानी भी होगी कि जितने छात्रों से कोई कॉलेज प्राइवेट फॉर्म जमा करा रहे हैं उतने लोगों को पढ़ाने के लिए उसके पास शिक्षक और भवन है भी या नहीं। अब तक ऐसे किसी नियंत्रण की जरूरत नहीं थी।
यह गौर करने की बात है कि राज्य में एक मुक्त विश्वविद्यालय भी है, जो पं. सुंदरलाल शर्मा के नाम से सन् 2005 से स्थापित है। यहां की दर्ज संख्या 60 हजार के आसपास ही पहुंच पाई है, जबकि दक्षिण और पूर्वोत्तर के कई ऐसे राज्य जो छत्तीसगढ़ से छोटे भी हैं, वहां स्थापित मुक्त विश्वविद्यालयों की दर्ज संख्या डेढ़ लाख, दो लाख है। वजह यह है कि वहां प्राइवेट एग्जाम को हतोत्साहित किया जाता है। यदि कोई रेगुलर क्लास नहीं आ सकता तो उसे ओपन यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने के लिए कहा जाता है। ओपन यूनिवर्सिटी के अपने सिलेबस होते हैं, एडमिशन लेने वाले छात्रों को अपनी पुस्तकें देते हैं। प्रत्येक सेमेस्टर की सप्ताह भर या 15 दिन की क्लास लगाई जाती है। उन्हीं पुस्तकों से सवाल दिए जाते हैं, फिर परीक्षा ली जाती है और डिग्री दी जाती है।
नई शिक्षा नीति में की गई यह व्यवस्था प्राइवेट कॉलेजों को बाध्य करेगी कि वह प्राइवेट छात्रों से सिर्फ फीस लेकर मुक्त नहीं हो सकते। उन्हें पढ़ाने की जिम्मेदारी भी होगी। प्रदेश के एकमात्र मुक्त विश्वविद्यालय में हो सकता है दाखिला इस नई व्यवस्था से बढ़ जाए, मगर वहां भी फिलहाल संसाधन बहुत कम हैं। उच्च शिक्षा विभाग से यह लगभग उपेक्षित संस्थान है। (rajpathjanpath@gmail.com)
नितिन नबीन की अहमियत
भाजपा ने कई राज्यों के प्रभारियों को बदला है लेकिन छत्तीसगढ़ में नितिन नबीन को यथावत रहने दिया है। नबीन को औपचारिक आदेश जारी कर प्रभारी बना दिया है। ये अलग बात है कि विधानसभा चुनाव निपटने के बाद ओम माथुर की जगह नितिन नबीन प्रभारी की भूमिका में थे, और पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव प्रभारी का दायित्व सौंप दिया था।
पार्टी हलकों में चर्चा थी कि नितिन नबीन को संगठन के प्रभार से मुक्त किया जाएगा। इसकी वजह भी थी। नबीन बिहार सरकार में मंत्री हैं, और वहां साल भर बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। मगर ऐसा नहीं हुआ।
नबीन को डी.पुरन्देश्वरी के प्रभारी रहते सहप्रभारी बनाया गया था। बाद में पुरन्देश्वरी की जगह ओम माथुर प्रभारी बन गए थे। लेकिन नितिन नबीन सहप्रभारी रहे। नितिन नबीन ने सरगुजा और बिलासपुर संभाग में बेहतर काम किया है। तकरीबन हर मंडल तक गए, और विधानसभा चुनाव से पहले कार्यकर्ताओं को चार्ज किया। विधानसभा चुनाव में पार्टी को सरगुजा में अब तक सबसे बड़ी सफलता मिली है। सारी सीटें जीतने में कामयाब रही।
बिलासपुर संभाग में भी भाजपा का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में जीत का सेहरा कुछ हद तक नितिन नबीन के सिर पर भी सजा है। लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को अच्छी सफलता मिली है। इसको लेकर राष्ट्रीय स्तर पर नितिन नबीन की सराहना हुई है।
छत्तीसगढ़ में सरकार बनने के बाद काफी चुनौतियां भी हैं। नितिन नबीन के सभी नेताओं से बेहतर संबंध हैं। आने वाले दिनों में कैबिनेट विस्तार के अलावा निगम मंडलों में नियुक्तियों के अलावा निकाय व पंचायत चुनाव भी होंगे। इन सबको देखते हुए राष्ट्रीय नेतृत्व ने कोई नया प्रयोग करने से बचते हुए संगठन की मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी नितिन नबीन को दी है। नबीन, क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल और महामंत्री (संगठन) पवन साय के साथ सत्ता और संगठन में बेहतर तालमेल की कोशिश करेंगे। देखना है कि आगे पार्टी-सरकार किस दिशा में जाती है।
प्रदर्शन और वसूली
एनएसयूआई के मुखिया नीरज पांडेय ने फरमान जारी किया है कि बिना अनुमति के पार्टी कार्यकर्ता सरकारी अथवा निजी संस्थानों में प्रदर्शन न करें। इसका पालन नहीं करने पर कार्रवाई की चेतावनी दी है।
दरअसल, कई पदाधिकारियों के खिलाफ निजी संस्थानों से वसूली की शिकायत आ रही है। यही नहीं, कुछ पदाधिकारी तो 'अपनों’ के खिलाफ प्रदर्शन कर गए हैं। इस पर विवाद तो होना ही था। समझौते की भी कोशिश हुई, और अब बात नहीं बनी तो बकायदा आदेश जारी कर दिया गया है। अब कहां प्रदर्शन करना है यह प्रदेश संगठन ही तय करेगा।
अलग रंग का एल्बिनो सांप
सांपों की एक प्रजाति एल्बिनो है। इनमें से सफेद रंग की एल्बिनो बहुत कम दिखती हैं। नांदघाट थाना परिसर में इसे विचरण करते देखा गया। इसे सर्पमित्रों की मदद से पकड़ लिया गया, पर जंगल में छोडऩे के बजाय पुलिस अधीक्षक ने जंगल सफारी रायपुर के सुपुर्द करने का निर्णय लिया, क्योंकि यह दुर्लभ है। छत्तीसगढ़ में मिलने वाले करैत की ही यह एक प्रजाति है। इसकी लंबाई भी काफी अधिक होती है। वैसे शोधकर्ताओं का कहना है कि बहुत से जीव-जंतु यदि अलग रंग में दिखाई देते हैं तो इसके पीछे बीमारी भी होती है। एल्बिनो के बारे में भी कहा जाता है कि वे सांप जिनका पिगमेंटेशन का प्रवाह रुक जाता है, उसका रंग बदल जाता है और दुर्लभ श्रेणी में आ जाता है। सन् 2022 में कोरबा में भी यह सांप देखा गया था।
मनरेगा महिलाओं की मजबूरी
राष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय वर्ष 2023-24 में जुटाए गए एक आंकड़े के मुताबिक मनरेगा मजदूरी में महिलाओं की भागीदारी 59.24 प्रतिशत रही। यह भागीदारी बढ़ती ही जा रही है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में 57.47 प्रतिशत रही तो 2021-22 में 54.82 प्रतिशत रही। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले से एक रिपोर्ट में बताया गया है कि यहां इस साल के बीते 3 महीनों (अप्रैल, मई और जून) में महिलाओं की भागीदारी 58 प्रतिशत रही। जिन 1.97 लाख लोगों को काम मिला उनमें 1.24 लाख महिलाएं हैं। आंकड़े अच्छे इसलिये दिखाई दे रहे हैं क्योंकि पुरुष और महिला दोनों को मनरेगा में बराबर मजदूरी का भुगतान होता है। पुरुष इसलिये कम हैं क्योंकि प्राइवेट सेक्टर में, चाहे वह खेत हो या बिल्डिंग, रोड बनाने का, या फिर किसी फैक्ट्री में काम करने का काम, महिलाओं को पुरुषों के बराबर मजदूरी नहीं मिलती। महिला और पुरुष दोनों को मनरेगा में 243 रुपये मजदूरी का भुगतान होता है, जबकि यही महिलाएं यदि गांव के किसी दूसरे काम पर जाएंगे तो ज्यादा से ज्यादा 200 रुपये मिलेंगे। गांव से बाहर काम पकडऩे पर कुछ अधिक मिल सकता है, मगर आने-जाने में खर्च बढ़ जाएगा। वहीं पुरुषों को मनरेगा से ज्यादा तो गांव में ही मिल जाता है। यदि गांव में खेत, बिल्डिंग का काम है तो उसे 300 रुपये कम से कम मिलेंगे। आसपास के शहर कस्बे में उनकी अधिक मांग है और 400 रुपये तक मिल जाते हैं। मनरेगा में एक तरफ महिलाओं के श्रम का बराबरी से मूल्य तय है, वहीं कानून होने के बावजूद खेती और निजी उद्यम में उनको पुरुषों से कम भुगतान मिल रहा है।
जहरीली गैस का पता कैसे चले?
छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा और कोरबा जिले में कल एक के बाद एक दो हृदयविदारक घटनाएं हुईं, जिनमें कुओं में गिरने पर 9 लोगों की मौत हो गई। दोनों कुओं में सबसे पहले एक व्यक्ति सफाई के लिए उतरा, जब वह बाहर नहीं निकला तो बाकी लोग बचाने के उद्देश्य से नीचे गए। इनमें से शायद ही किसी ने उतरने से पहले विचार किया होगा कि जहरीली गैस के कारण उनकी भी मौत हो सकती है। बहुत दिनों तक इस्तेमाल में नहीं लाए गए कुएं, सूखे कुएं, जहरीली गैस से भरे हो सकते हैं। केंद्रीय जल बोर्ड ने बकायदा इस खतरे को लेकर आगाह करता है। यह जहरीली गैस कार्बन डाय ऑक्साइड होती है। किसी कुएं में उतरने से पहले यह पक्का कर लेना चाहिए कि कहीं उसमें गैस तो नहीं है। इसका एक आम सुलभ तरीका यह बताया गया है कि किसी रस्सी के सहारे जलते हुए दिये या लालटेन को कुएं के नीचे उतारा जाए। यदि कुएं में जहरीला गैस है तो वह बुझ जाएगा। ऐसे में कुएं में उतरने का जोखिम बिल्कुल न उठाएं। कुएं से जहरीली गैस बाहर निकालने का तरीका भी बताया गया है। उतरने से पहले लम्बा बांस डालकर कुएं के पानी में तेज हिलाएं। इसके अलावा पानी भरा बाल्टी नीचे डालकर भी हिलाया जा सकता है। यदि जहरीली गैस भरा कोई कुआं सूखा है तो उसमें कई गैलन पानी पहले डालिये, फिर हिलाएं। ये तरकीब पुराने जमाने में भी काम आती थी। अभी भी यही तरीका कामयाब है। प्राय: बारिश के पहले किसान कुओं की सफाई करता है। पर ऐसा करते समय सावधानी बरती जानी चाहिए। शायद इन दो बड़ी घटनाओं से प्रशासन भी सबक ले और कुओं की सफाई के दौरान ऐसी दुर्घटना फिर न हो इसके लिए लोगों को जागरूक करे। (rajpathjanpath@gmail.com)
देखना है क्या होगा?
छत्तीसगढ़ के भाजपा के बड़े नेता, और महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस का कार्यकाल 21 जुलाई को खत्म हो रहा है। बैस दो दिन रायपुर में थे, और उनके करीबी सेवा विस्तार की उम्मीद से हैं। मगर चर्चा है कि खुद बैस को बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। बैस के अलावा केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके समेत आधा दर्जन राज्यपालों का कार्यकाल खत्म हो रहा है।
सुनते हैं कि केंद्र में लोकसभा चुनाव के बाद परिस्थिति काफी बदल गई है। केंद्र में भाजपा को अकेले बहुमत नहीं है। सरकार एनडीए की है। ऐसे में चर्चा है कि राज्यपाल की नियुक्ति के लिए सहयोगी दलों से भी नाम लिए जाएंगे। ऐसी स्थिति में खालिस भाजपाइयों की संख्या कम हो सकती है। देखना है बैस जी का क्या होता है।
थाने और विधायक
पिछली सरकार से राज्य में गिरा पुलिसिंग का स्तर उठ ही नहीं पा रहा है। लोगों को उम्मीद थी कि बीते दिसंबर के बाद से पुराना सिस्टम बंद हो जाएगा। लेकिन इसके ठीक विपरीत सिस्टम एक कदम आगे चल रहा है। पुरानी सरकार में टीआई थाना के लिए बोली लगाते था। जिसकी जितनी बोली उस हिसाब से पोस्टिंग होती। बोली पूरी करने हर आपराधिक मामलों की धाराओं की कीमत तय थी।
इसमें नई व्यवस्था जुड़ गई है। चर्चा है कि अब टीआई के चयन में क्षेत्र के विधायकों का भी दखल बढ़ गया है। कहा जा रहा है कि थानों से विधायकों को डेढ़ लाख मंथली बंध गया है। इसमें और अन्य की भी हिस्सेदारी तय हो रही है। जो बोली में शामिल नहीं उसकी थानों में जरूरत नहीं। उसे हटा दिया जा रहा है। ज्यादातर नए नवेले जनप्रतिनिधि यही व्यवस्था चला रहे है। थाना में टीआई, भी नेता तय कर रहे हैं। नेता ही तय कर रहे है कि इलाके में कबाड़ा, डीजल चोरी, रेत खनन, अवैध परिवहन, सप्लाई, शराब और गांजा की तस्करी कौन करेगा।
खटाखट लिखने पर चालान?
लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में दिए गए राहुल गांधी के भाषण से प्रेरणा लेकर एक युवक ने अपनी कार में लिखवा लिया-खटाखट, खटाखट, खटाखट...पचासी सौ। जौनपुर पुलिस के ध्यान में यह बात तब आई, जब हर्षवर्धन त्रिपाठी नाम के एक पत्रकार ने एक्स पर इसकी फोटो के साथ पोस्ट डाली। त्रिपाठी अक्सर टीवी डिबेट में दिखते हैं। यूट्यूब पर उनके 5 लाख फॉलोअर्स भी हैं। उनकी पोस्ट के जवाब में जौनपुर पुलिस ने लिखा- मोटर व्हीकल एक्ट का उल्लंघन करने के कारण उक्त वाहन का चालान किया गया है। फिर खबर चली कि चालान भी 8500 रुपये का ही काटा गया है। खोजी पत्रकारों ने उस गाड़ी के मालिक को ढूंढ लिया। उनका नाम रोहित सिंह है। उन्होंने इसे कार ब्यूटी नाम के दुकान में लिखवा लिया था। लिखने का कारण बताया- जन जागरण। हालांकि कुछ रिपोर्ट्स में इलाके के टीआई के हवाले से यह भी दावा किया गया है कि कोई चालान नहीं काटा गया है। मगर, कार की तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है।
सरकार बदल गई, पटवारी तो वही है..
मुख्यमंत्री निवास पर गुरुवार को दूसरा जनदर्शन था। बड़ी संख्या में लोग आए, बहुत लोगों को तुरंत राहत मिली। एक शिकायत बेमेतरा जिले के नवागढ़ ब्लॉक के पौंसरी के किसान अशोक रजक की भी थी। वह किसी काम के लिए बार-बार पटवारी के चक्कर लगा रहा था लेकिन काम नहीं हो रहा। मुख्यमंत्री से उसने कहा कि पटवारी से हलकान हो गया हूं। मुख्यमंत्री ने आवेदन बेमेतरा कलेक्टर को फॉरवर्ड कर तत्काल समस्या दूर करने के लिए कहा है।
किसी कलेक्टर के लिए अच्छी बात नहीं है कि उनके जिले के एक पटवारी से परेशान किसान को सीधे मुख्यमंत्री के पास आना पड़े। वैसे तो पटवारी को निर्देश देने के लिए आरआई, तहसीलदार, एसडीएम ही काफी हैं। किसान वहां अपनी शिकायत कर सकता था। क्या किसान को ऐसा लगा कि तहसीलदार और एसडीएम मदद नहीं करेंगे। ऐसा संभव है क्योंकि हाल ही में एंटी करप्शन ब्यूरो ने रेड मारकर राजस्व विभाग के बाबुओं को ही नहीं बल्कि एसडीएम तक को गिरफ्तार किया है। एंटी करप्शन ब्यूरो ने हाल के दिनों में कुल 14 कार्रवाई की जिनमें करीब 21 लोग पकड़े गए। सबसे ज्यादा इसी राजस्व विभाग के हैं। ऐसा लगता है कि इक्के-दुक्के धरपकड़ के मामलों का कोई असर नहीं हो रहा है। जब कांग्रेस की सरकार थी तो भी शुरू-शुरू की भेंट मुलाकात में सबसे ज्यादा शिकायत पटवारी, आरआई और तहसीलदार की ही आ रही थी। बाद में अफसरों ने सीख लिया कि सीएम के सामने भीड़ में से किसे बोलने देना है, किसे नहीं। शिकायत आनी बंद हो गई। मगर, पौसरी के अशोक रजक का मामला बताता है कि सरकार बदली है, नीचे के स्तर पर बहुत कुछ बदला जाना बाकी है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
निशाने पर वे ही रहे
लोकसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेस में शिकवा शिकायतों का दौर चल रहा है। इन सबके बीच वीरप्पा मोइली कमेटी ने प्रत्याशियों से भी वन टू वन चर्चा कर हार के कारणों को जानने की कोशिश की है।
सुनते हैं कि एक महिला प्रत्याशी ने अपनी हार के लिए तमाम पूर्व विधायक, और जिले के पदाधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है। महिला प्रत्याशी ने कहा बताते हैं कि पार्टी के एक सीनियर नेता को छोडक़र किसी ने भी उनके लिए काम नहीं किया। एक तरह से पार्टी के नेता भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में थे, और इसी वजह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
महिला प्रत्याशी ने राहुल गांधी की टीम तक अपनी बात पहुंचा दी है। इससे परे राजनांदगांव के प्रमुख नेताओं ने मोइली के सहयोगी हरीश चौधरी से मिलकर विस्तार से अपनी बात रखी है। स्थानीय नेताओं का कहना था कि पार्टी के लिए इस बार अनुकूल माहौल था, लेकिन भूपेश बघेल को प्रत्याशी बनाकर बड़ी भूल कर दी। यही नहीं, पूर्व मंत्री ताम्रध्वज साहू ने वीरप्पा मोइली से अकेले में मिलकर हार के कारणों को विस्तार से बताया।
ताम्रध्वज दुर्ग सीट से लडऩा चाहते थे, लेकिन उन्हें महासमुंद शिफ्ट होना पड़ा। ताम्रध्वज दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं से मिलकर अपनी बात रखेंगे। कुल मिलाकर भूपेश बघेल ही असंतुष्टों के निशाने पर रहे हैं।
सर लूप लाइन में जाना चाहता हूं
सरकारी महकमे खासकर पुलिस में आईपीएस हो या सिपाही हर कोई लूप लाइन में जाने से बचना चाहता है। फ्रंट रनर बने रहना चाहती है । विभाग में जिले से लेकर पीएचक्यू तक कुछ पद ऐसे रहते हैं जिन्हें लूप लाइन पोस्ट कहा जाता हैं। जहां बतौर सजा, या नापसंदगी को आधार पर भेजा जाता है। और इससे बचने बड़ा खर्च करते रहे हैं। लेकिन इन दिनों कुछ उल्टा ही हो रहा है। पुलिस के टेलीकॉम जैसे लूप लाइन विभाग में जाने के लिए लग रही है बोली। पीएचक्यू में चर्चा है कि लूप लाइन जाने के लिए अफसर सेवा सत्कार के लिए भी तैयार हैं। रेडियो एसपी के पद के लिए भी होड़ लगी है। कांकेर, कोंडागांव, जगदलपुर में एएसपी पद के लिए लाखों देने तैयार हैं। कारण यह कि कोई भी नक्सल क्षेत्र में काम नहीं करना चाहता। और फिर नेताओं की बढ़ती बेगारी कौन सम्हाले। सो, लूप लाइन ही सही मैदानी क्षेत्र में रहकर नौकरी काटना चाहता है। इसके लिए मंडल अध्यक्ष से लेकर जिलाध्यक्ष तक हर स्तर में उनकी पैरवी हो रही है। इसकी पुलिस महकमे में जमकर चर्चा है।
ताक पर रखा आरोप पत्र
15 विधायकों के साथ विधानसभा चुनाव में उतरी भाजपा के लिए किसी ने नहीं सोचा था कि कांग्रेस की सरकार जाएगी। क्योंकि चुनाव आने तक राज्य में कोई मुद्दा नहीं था। लेकिन भ्रष्टाचार का मुद्दा ऐसा जोर पकड़ा कि लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया। 36 आरोप निकाल कर प्रभावशाली लोगों को फोटो सजा दी गई। वह भी अपना पराया देखते हुए। इस तरह से सजाए गए आरोप पत्र को इसे एक बड़े नेता के हाथों जारी करवा जनता को भरोसा दिलाया गया कि भ्रष्टाचार में शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। केंद्रीय नेतृत्व ने भी पुरजोर आश्वासन दिया था, लेकिन सरकार आते ही गंगा उल्टी बहने लगी है। जिन लोगों के नाम आरोप पत्र में लिए गए थे या जो आरोपों में घिरे हैं। उन्हें ही बगल में बैठाकर अधिकारी भ्रष्टाचार की जांच कर रहे हैं। और पार्टी नेता अपने केंद्रीय नेतृत्व के आदेश को किनारा करते हुए अब कहने लगे हैं कि किसी को बयान के आधार पर आरोपी नहीं बनाया जा सकता। जून-23 में जो आंखों की किरकिरी बने हुए थे, वो अब लख्ते जिगर हो गए हैं। और कार्यकर्ता पूछ रहे हैं कि अगर ऐसा है तो आरोप पत्र किसके बयान के आधार पर बनाया गया। क्या आरोप पत्र सिर्फ जनता को दिखाने के लिए था।
टेलीफोन अफसरों की बिदाई
भारतीय दूरसंचार सेवा 09 बैच (आईटीएस) के अफसर पोषण चंद्राकर की सेवाएं मूल विभाग को लौटा दी गई हैं। राजनांदगांव के मूल निवासी चंद्राकर 2017 में भाजपा शासन में प्रतिनियुक्ति पर राज्य शासन में आए थे। पिछले वर्ष उनकी सेवा बढ़ाई गई थी।
वापस मूल विभाग बीएसएनएल भेजे जाने के बाद पोषण का मन सरकारी नौकरी से उचट गया है। उनके नौकरी से इस्तीफा दे देने की चर्चा है। वे गृहनगर में अब भाजपा से राजनीति शुरू करने का फैसला किया है। वैसे इनका पाटन वाले दाऊ से भी गहरा रिश्ता रहा है। कई आईएएस दाऊ से रैपो बनाने को लिए इन्हें माध्यम बनाते रहे हैं। वैसे राजनीति इन्हें विरासत में मिली है। और मन में छत्तीसगढिय़ावाद कूट कूट कर है। इनके माता-पिता नांदगांव में पार्षद रह चुके हैं।
इसके साथ ही आईटीएस सेवा के चारों अफसर राज्य शासन से मुक्त हो गए हैं । इनमें एपी त्रिपाठी शराब घोटाले और मनोज सोनी कस्टम मिलिंग घोटाले में गिरफ्तारी के बाद निलंबित कर दिए गए हैं। वहीं विजय छबलानी अपने निर्विवाद कार्यकाल के बाद वापस मूल विभाग लौट गए।
अकेली मां ही जिम्मेदार?
मस्तूरी में आखिरकार 24 दिन की मासूम तारा की हत्या के आरोप में उसकी मां को गिरफ्तार किया गया है। तारा से पहले उसकी और दो बेटियां हैं। तारा तीसरी थी। आरोपी मां का बयान है कि तीन बार बेटी ही पैदा करने के कारण लोग ताना मारते, उसकी ससुराल में इज्जत घट जाती, इसलिये उसे खत्म कर दिया। इधर, कल ही तेलंगाना के महबूबाबाद नगर के अच्छे कमाने-खाने वाले परिवार से खबर आई कि सुहासिनी नाम की 8 माह की गर्भवती महिला की तब मौत हो गई, जब उसका गर्भपात किया जा रहा था। सुहासिनी का अवैध तरीके से भ्रूण परीक्षण किया गया था। आठ माह में गर्भ गिराना तो वैसे भी अवैध है। सुहासिनी जान पर खतरा जानते हुए भी इसलिये राजी हो गई क्योंकि उसके सास-ससुर ने चेतावनी दी थी कि यदि तीसरी बार भी लडक़ी पैदा हुई तो वे अपने बेटे की दूसरी शादी कर देंगे।
मस्तूरी का मामला ज्यादा अलग नहीं है। मां ने जब अपराध कबूल कर लिया तो पुलिस को ज्यादा खोजबीन की जरूरत ही नहीं पड़ी। उसका काम पूरा हो गया, कोई और इस जुर्म में भागीदार नहीं है। पर कुछ सवाल तो रह गए हैं कि क्या तीसरी बार लडक़ी पैदा होने के बाद उसके ससुराल, मायके, रिश्तेदारों, पड़ोसियों और गांव वालों का उसके साथ बर्ताव सामान्य था? मां को ऐसा क्यों लगा कि तीसरी बेटी होने के कारण उसका मान-सम्मान घट जाएगा? हो सकता है कि उसे किसी ने कुछ नहीं कहा हो, पर उसने अपने आसपास के समाज-बिरादरी से मिले अनुभव से ही धारणा बना ली हो? महबूबाबाद के मामले में तो डॉक्टर, कंपाउंडर और ससुराल वालों सहित 6 लोग गिरफ्तार कर लिए गए हैं। गर्भपात और मौत में उनकी संलिप्तता के साक्ष्य हैं। पर मस्तूरी के मामले में कानून की दृष्टि से केवल मां ही दोषी है और कोई नहीं।
उरला के डॉक्टर और माड़ की मितानिन
अबूझमाड़ में प्रसव पीड़ा से कराह रही महिला को 108 की टीम लेने गई। पता चला कि गांव तक एंबुलेंस पहुंच ही नहीं सकती। वाहन खड़ी कर स्ट्रेचर लेकर स्टाफ पैदल दो किलोमीटर दूर गांव पहुंच गया। वहां से महिला को स्ट्रेचर पर उठाकर वापस आ रहे थे। एंबुलेंस तक वे पहुंच पाते इसके पहले ही लेबर पेन होने लगा। रास्ते में स्टाफ रुका। मितानिन की सहायता से कपड़े का घेरा बनाया, वहीं प्रसव कराया गया। महिला ने स्वस्थ संतान को जन्म दिया। फिर उसे एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया गया, ताकि पोस्ट-डिलीवरी जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य पर निगरानी रखी जा सके। दूसरी ओर राजधानी रायपुर के उरला स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दो नवजातों की जान प्रसव के दौरान चली गई। खबरों के मुताबिक एक नवजात की मौत इसलिए हुई क्योंकि महिला डॉक्टर का नर्सों के साथ झगड़ा चल रहा था, मदद के लिए उन्हें बुलाया नहीं। बाहर निकलने से पहले ही शिशु का दम घुट गया। दूसरे की मौत इसलिए हुई क्योंकि वहां के प्रभारी चिकित्सक ने इलाज देर से शुरू किया। दोनों डॉक्टरों पर सीएमएचओ ने कार्रवाई की है।
एक तरफ राजधानी का मामला है, दूसरी तरफ राजधानी से कई सौ किलोमीटर दूर बीहड़ अबूझमाड़ का। इन दोनों घटनाओं से पता चलता है कि नीयत हो तो कम संसाधनों में सेवा की जा सकती है। लापरवाही बरती जा रही हो, तो बड़े संसाधन भी किसी काम के नहीं। अबूझमाड़ की मितानिन और उरला के इन डॉक्टरों के बीच कुछ ऐसा ही फर्क नजर आता है।
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एक अनार, सौ बीमार
चर्चा है कि भाजपा रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट से जल्द प्रत्याशी घोषित कर चौंका सकती है। विधानसभा आम चुनाव में भी 21 सीटों पर चुनाव तिथि की घोषणा से दो महीना पहले प्रत्याशी घोषित कर दिए थे। कुछ इसी तरह का प्रयोग पार्टी उपचुनाव में भी कर सकती है। कुछ लोगों का अंदाज है कि सबकुछ ठीक रहा, तो इस माह के आखिरी तक भाजपा प्रत्याशी की घोषणा हो जाएगी।
भाजपा में टिकट के कई नेताओं ने सांसद बृजमोहन अग्रवाल से मिलकर अपनी दावेदारी की है। दूसरे इलाकों के कई प्रमुख नेता का नाम भी टिकट की दौड़ में लिया जा रहा है, इनमें पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय, देवजी पटेल, और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल भी हैं। इससे परे रायपुर दक्षिण के संगठन के आधा दर्जन से अधिक नेताओं और पार्षदों ने भी दावेदारी की है।
खास बात यह है कि ये नेता खुद को टिकट नहीं मिलने की स्थिति में सांसद बृजमोहन अग्रवाल के निजी सचिव मनोज शुक्ला को टिकट देने की वकालत कर रहे हैं। इन सबके बीच चर्चा यह है कि दावेदारों की भीड़ को देखते हुए बृजमोहन कई नाम विकल्प के तौर पर दे सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
भूतपूर्व की मदद लेनी पड़ी
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की समीक्षा के लिए वीरप्पा मोइली कमेटी पहुंची, तो स्वागत सत्कार के लिए ऐसे लोगों की मदद लेनी पड़ी, जो पार्टी में नहीं है। मोइली, और हरीश चौधरी का बिलासपुर और कांकेर जाने का कार्यक्रम था। इसके लिए पार्टी के निष्कासित नेता की रेंज रोवर कार मंगवाई गई।
निष्कासित नेता की कार से मोइली और हरीश चौधरी बिलासपुर गए। मोइली का कांकेर जाने का भी कार्यक्रम था, लेकिन वो पारिवारिक कारणों से दौरा अधूरा छोड़ लौट गए। बाकी सीटों की समीक्षा हरीश चौधरी ने अकेले की। बताते हैं कि पार्टी के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल सालभर से गायब हैं। ऐसे में पार्टी के नेताओं को खर्चा जुटाने के लिए मेहनत करनी पड़ रही है। कुछ व्यवस्था तो जुगाड़ से हो रहा है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
अब मूणत की जिम्मेदारी...
मध्यप्रदेश में ट्रांसपोर्टरों को बड़ी राहत मिली है। वहां राज्य की सीमाओं से सारे आरटीओ बैरियर हटा दिए गए हैं। आरटीओ के फ्लाइंग स्क्वाड की अवैध वसूली पर अब रोक लगने की उम्मीद मध्यप्रदेश के ट्रांसपोर्टरों और दूसरे राज्यों से आना-जाना करने वाले ट्रक चालकों को है। सरकार मध्यप्रदेश की तरह छत्तीसगढ़ में भी भाजपा की ही है। ऐसे में यह चर्चा चल रही है कि छत्तीसगढ़ की सीमाओं पर बने बैरियर बंद क्यों नहीं किये जा रहे हैं। थोड़ा पीछे चलकर याद दिला दें कि सन् 2017 में प्रदेश के परिवहन मंत्री राजेश मूणत ने विधानसभा में बजट सत्र की चर्चा के दौरान सभी 16 सीमावर्ती बैरियर खत्म करने की घोषणा कर दी थी। कहा कि, सिर्फ जिलों में टीम कलेक्टर की निगरानी पर ओवरलोड और दूसरी तरह की अनियमितताओं की जांच करेगी। इसके बाद भाजपा की सरकार चली गई। दिसंबर 2018 में कांग्रेस की सरकार ने ये सभी बैरियर फिर चालू कर दिए। मूणत रायपुर पश्चिम इलाके से 2023 में चुनाव जीतकर फिर विधायक बन गए। सरकार भी बन गई। यहां के टाटीबंध इलाके में रहने वाले सैकड़ों परिवार ट्रक के व्यवसाय से जुड़े हैं। उनके बीच अक्टूबर में चुनाव प्रचार अभियान के लिए यहां पहुंचे मूणत ने घोषणा की, प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही-चाहे जो हो जाए, सबसे पहले वसूली के इन अड्डों को बंद कराऊंगा। मगर, 6 माह से ज्यादा हो गए प्रदेश में भाजपा की सरकार बन चुकी है। बैरियर चालू हैं। वादा करते समय मूणत ने सिर्फ सरकार भाजपा की बनने की कंडीशन रखी थी, अपने मंत्री बनने, नहीं बनने की शर्त नहीं जोड़ी थी। इसलिए मूणत अपनी जवाबदारी से बच नहीं सकते। उन्हें अपनी सरकार पर दबाव डालकर चुनावी आश्वासन पूरा कराना चाहिए।
छत्तीसगढ़ के संत समागम
विधानसभा चुनाव के एक साल पहले से बीमारियों को चमत्कारिक तरीके से ठीक कर देने और ईश्वर के नजदीक ले जाने का दावा करने वाले प्रवचनकारों का छत्तीसगढ़ में सिलसिला शुरू हो गया था। चुनाव खत्म हो जाने के बाद भी यह चल ही रहा है। एक बार कोई कथावाचक चर्चा में आ गया तो एक के बाद दूसरे शहरों में उन्हें बुलाया जाता है। इनमें लाखों लोग पहुंचते हैं। हाथरस में इसी तरह के एक समागम में जो त्रासदी हुई है वह इतिहास में दर्ज हो गया है। राजनेताओं का संरक्षण होने के कारण प्रशासन ऐसे आयोजनों की सुरक्षा व्यवस्था की गहराई से पड़ताल किए बिना मंजूरी दे देते हैं। छत्तीसगढ़ इससे कुछ अलग नहीं है। बस, हाल के वर्षों में यहां कोई बड़ी अनहोनी नहीं हुई है। मगर, समागम तो हो रहे हैं। बंद नहीं हुआ है। खबरों से पता चलता है कि अभी बारिश के मौसम में भी होने जा रहे हैं। प्रशासन और आयोजकों को चाहिए कि कम से कम प्रवचनकारों से ताबीज लेने, उनका कथित रूप से पवित्र किया पानी पीने, उनका आशीर्वाद पाने के लिए, लोग एक दूसरे के ऊपर टूट न पड़ें। बाकी, यह सलाह कौन मानेगा कि इस तरह के कार्यक्रमों से दूर ही रहना चाहिए।
बारिश में दिखे बटेर..
जब किसी मूर्ख व्यक्ति के पास कोई कीमती वस्तु हाथ लग जाती है तो कहते हैं- अंधे के हाथ बटेर लग गया। इसका मतलब यह है कि मुहावरे जब रचे गए होंगे तब से बटेर को कद्र रही है। पर, पक्षियों की ढेर सारी प्रजातियों की तरह यह भी अब कम दिखाई देती हैं। मैदानी इलाकों में जहां खूब पानी मिलता हो, ये दिखते हैं। छत्तीसगढ़ में मॉनसून आने के बाद ये कई जगह नजर आने लगे हैं। यह तस्वीर अचानकमार अभयारण्य जाने के रास्ते में मोहनभाठा से प्राण चड्ढा ने खींची है।
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एक जुलाई को इतनी पैदाइश !
वैसे तो एक जुलाई को डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है पर व्हाट्सएप समूहों, फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निगाह डालने से आपको मालूम हुआ होगा कि इस दिन आपके अनेक दोस्तों, परिचितों और वर्चुअल मित्रों का जन्मदिन था। और विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि इन सब की उम्र 50-55 साल और उससे अधिक है। क्या वाकई 1 जुलाई ऐसा खास दिन है, जब ज्यादा लोग जन्म ले लेते हैं। एक 80 बरस के बुजुर्ग को जब जन्मदिन की बधाई दी गई तो उन्होंने बधाई को स्वीकार तो किया, फिर बताया कि स्कूल में दाखिले के लिए पिताजी लेकर गए थे। मास्टरजी ने जो जन्मदिन लिख दिया, वही रिकॉर्ड में आ गया। असल जन्मदिन तो मालूम नहीं, पर साल में एक दिन तो मनाना है, मना लेते हैं। आप किसी अपने को पूछकर देखें कि क्या वाकई उन्हें ठीक से पता है कि उनका जन्म एक जुलाई को हुआ? पता चलेगा कि कुछ तो सचमुच इस दिन पैदा हुए, बहुत लोग का जन्मदिन स्कूल में दाखिले के दिन से जुड़ा है। कोई बुरी बात नहीं, जिस दिन से लोग शिक्षा ग्रहण करना शुरू करते हैं, उसी दिन वास्तव में उनका जन्म होता है।
जिला पंचायतों में ऑडिट कब?
ग्राम पंचायतों में होने वाले खर्च की सोशल ऑडिट ग्राम सभा बुलाकर कराई जाती है लेकिन जनपद और जिला पंचायत की ऑडिट राज्य सरकार का लेखा एवं अंकेक्षण विभाग करता है। हाल ही में नगरीय निकायों के लिए डिप्टी सीएम ने ऑडिट अनिवार्य किया है। पर जिला व जनपद पंचायतों के खर्च को लेकर उस विभाग के मंत्री का कोई बयान नहीं है। एक बानगी देखिये- दंतेवाड़ा जिला पंचायत में दो साल बाद एक गड़बड़ी सामने अब आई है, जिसमें 78 लाख रुपये का भुगतान फर्जी तरीके से स्वच्छ भारत मिशन के फंड से कर दिया गया। दो साल तक ऑडिट नहीं हुई, इसलिये अब गड़बड़ी सामने आई। इसके चेक में जिला पंचायत से तत्कालीन सीईओ आईएएस आकाश छिकारा के हस्ताक्षर हैं। छिकारा ने हस्ताक्षर फर्जी बताया है। उस समय के एकाउंटेंट का भी कहना है कि उन्होंने किसी चेक पर दस्तखत नहीं किए। रुपये निकल गए, किसी का ध्यान नहीं गया। दो साल बाद अब जाकर एफआईआर हुई है। पुलिस कितना रूचि लेगी, असली आरोपी पकड़े जाएंगे भी या नहीं, कुछ नहीं कह सकते। पर यह तय है कि जिला पंचायतों में भी ऑडिट कराना उतना ही जरूरी है, जितना नगरीय निकायों में।
कानून बदलने से क्या बदलेगा?
कानून नया हो या पुराना। इसका फायदा तभी है जब इसे अमल में लाने की ईमानदारी से कोशिश की जाए। सोशल मीडिया पर यह नसीहत देते हुए एक पोस्ट इस तस्वीर के साथ डाली गई है। (rajpathjanpath@gmail.com)
विस्तार कब?
साय कैबिनेट के विस्तार की चर्चा है, लेकिन कब होगा यह तय नहीं है। सीएम विष्णुदेव साय कह चुके हैं कि उपयुक्त समय पर कैबिनेट का विस्तार होगा। इन चर्चाओं के बीच संगठन के दो प्रमुख नेता अजय जामवाल, और पवन साय तीन दिन दिल्ली में थे। प्रदेश अध्यक्ष किरण देव भी प्रदेश की सांसदों की बैठक के सिलसिले में दिल्ली गए थे।
कुछ नए और पुराने विधायक भी कैबिनेट में जगह मिलने की आस में दिल्ली में डेरा डाले रहे। हालांकि दिल्ली में राष्ट्रीय नेता संसद सत्र के चलते व्यस्त हैं। ये विधायक, सांसदों के ही आगे-पीछे होते रहे। मगर कैबिनेट विस्तार के मसले पर किसी को कोई आश्वासन नहीं मिला है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि कैबिनेट विस्तार में समय लग सकता है।
ऑडिट रिपोर्ट के बाद क्या?
छत्तीसगढ़ में सरकार बनने के बाद 2019 में सीएजी की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें पाया गया था कि ई प्रोक्योरमेंट के नाम पर रमन सरकार के कार्यकाल में कम्प्यूटर के जरिये टेंडर भरने में भारी गड़बड़ी की गई थी। एक ही कम्प्यूटर से अलग-अलग टेंडर भरे गए थे, जिनमें से तो कुछ अफसरों के घर के कम्प्यूटर थे। इसके जरिये सीएजी ने 17 विभागों में करीब 4100 करोड़ के टेंडर देने में घोटाला पाया था। नई-नई सरकार में आई कांग्रेस के मंत्रियों ने इसे बड़ा भ्रष्टाचार बताते हुए दोषियों पर कार्रवाई की बात कही थी। सरकार को सीएजी ने स्वतंत्र जांच का सुझाव दिया था। उस मामले में क्या हुआ यह आज तक पता नहीं चला है। अब डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के कार्यकाल के दौरान 660 करोड़ रुपये की खरीदी पर सीएजी ने सवाल उठाया है। यह जानकारी खुद मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने दी है। दूसरी ओर डिप्टी सीएम अरुण साव ने न केवल नगरीय निकायों में प्री-ऑडिट का आदेश दिया है, बल्कि इन निकायों में पिछले 4 साल के दौरान हुए खर्च की भी ऑडिट करने का निर्देश दिया है। सरकारों के बदलने पर रिपोर्ट और बयान तो सुर्खियों में आती है, कुछ दिनों तक उनकी चर्चा होती है, पर कार्रवाई क्या हुई यह पता नहीं चलता।
महंगी सब्जियों में सबसे महंगी
मानसून के साथ ही छत्तीसगढ़ के जंगलों से निकला उत्पाद पुटू या मशरूम बाजार पहुंचने लगा है। शुरुआत में आ रहा पुटू 800 से 1000 रुपये तक किलो बिक रहा है, पर बाद में इसकी कीमत 400 से 500 रुपये किलो तक हो जाएगी। इस समय आ रहा पुटू नरम और अधिक स्वादिष्ट होने के चलते महंगा है। बाद में निकलने वाले पुटू की परत कुछ कठोर हो जाती है। यह छत्तीसगढ़ की सबसे महंगी सब्जियों में एक है, जो केवल एक- दो माह ही मिल पाती है। एक जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ के जंगलों में पुटू की 150 से अधिक प्रजातियां हैं, लेकिन इनमें से 50 प्रजातियां ही खाने लायक होती हैं। पीले रंग के पुटू को तो बिल्कुल नहीं खाना चाहिए।
पुटू विशुद्ध वेज है, पर कई लोग नॉनवेज की फीलिंग के लिए भी इसे खाना पसंद करते हैं। इसे पकाने के लिए नॉनवेज के मसालों का उपयोग करते हैं। कुछ शोध बताते हैं कि यह एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल है, जो मौसम के संक्रमण से हमें बचाता है। पर अधिक खाने से पाचन में दिक्कत भी आ सकती है। (rajpathjanpath@gmail.com)
पड़ोसी से लेनदारी का झगड़ा
पड़ोसी राज्य तेलंगाना में इन दिनों छत्तीसगढ़ से बिजली खरीदी को लेकर बीआरएस (टीआरएस) और कांग्रेस के बीच खूब जूतमपैजार मचा हुआ है । रेवंत सरकार ने पिछली केसीआर सरकार के पीपीए(पॉवर परचेज एग्रीमेंट) पर न केवल श्वेत पत्र जारी कर दिया है। बल्कि जस्टिस नरसिंहलु की अध्यक्षता में आयोग का गठन कर दिया है। आयोग ने केसीआर, उनके तत्कालीन उर्जा मंत्री, बिजली कंपनियों के अध्यक्ष एमडी समेत 21-22 लोगों को नोटिस भी जारी कर रखा है। इस नोटिस को केसीआर ने हाईकोर्ट में चुनौती दे रखा है। हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है, संभवत: कल सोमवार को फैसला आ भी जाए।
तेलंगाना के पूर्व ऊर्जा मंत्री का कहना है कि इस पीपीए में केसीआर अकेले ही दोषी कैसे हो सकते हैं। आयोग बिजली बेचने वाले छत्तीसगढ़ के तत्कालीन सीएम व ऊर्जा मंत्री को भी नोटिस देकर तलब करे। नोटिस जारी होने पर छत्तीसगढ़ में भी राजनीति गर्माएगी। क्योंकि छत्तीसगढ़ को बिजली का पैसा लेने में पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। 36 सौ करोड़ का बकाया बिल था जिसे 21 सौ करोड़ देने के लिए सेटलमेंट हुआ है। तेलंगाना ने बकाया बिल 40-40 करोड़ के किश्तों में देने की मंजूरी दी है। अब कोर्ट के फैसले पर निगाहें टिकी है।
कका अभी जिंदा हे !!
लोकसभा चुनाव में हार की समीक्षा करने आई वीरप्पा मोइली कमेटी के दौरे के ठीक पहले पूर्व सीएम भूपेश बघेल के सिविल लाइन स्थित सरकारी निवास के बाहर लगाए गए होर्डिंग्स की काफी चर्चा है। होर्डिंग्स में लिखा है-कोन बात के चिंता हे। जब कका अभी जिंदा हे। यह होर्डिंग्स भूपेश के दो करीबी नेता गिरीश देवांगन, और सन्नी अग्रवाल द्वारा लगवाया गया है। इसमें भूपेश के साथ-साथ दोनों की तस्वीर भी है।
भूपेश के विरोधी इस होर्डिंग्स को लेकर काफी चटकारे ले रहे हैं। यह कहा जा रहा है कि भूपेश के सीएम रहते कांग्रेस विधानसभा चुनाव में राज्य बनने के बाद सबसे बुरी हार हुई है। लोकसभा चुनाव में भी प्रदर्शन निचले स्तर में रहा। पार्टी की खराब दशा के लिए भूपेश ही दोषी हैं। भाजपा के लोग दोनों हार के बाद कांग्रेस को लूजर पार्टी के उपनाम से भी पुकार रहे हैं। ऐसे में इतनी बड़ी हार के बाद भी पार्टी के लोग चिंतित न हो, ऐसे कैसे हो सकता है। ये अलग बात है कि भूपेश के करीबी लोग भविष्य को लेकर आश्वस्त जरूर कर रहे हैं।
एआईसीसी को रिपोर्ट मिलने के बाद
लोकसभा चुनाव में हार के कारणों की तलाश करने पहुंची फैक्ट फाइंडिंग कमेटी दो संभाग रायपुर और बिलासपुर में हार के कारणों की पड़ताल कर चुकी, अब दुर्ग और बस्तर की बारी है। बिलासपुर में कमेटी के प्रवास के दौरान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज की सक्रियता को लेकर लोगों में चर्चा हो रही थी। वे बिलासपुर के अलावा जांजगीर, कोरबा, रायगढ़ और सरगुजा से पहुंचे जिला और ब्लॉक स्तर के पदाधिकारियों से वे छत्तीसगढ़ भवन के बाहर बारी-बारी बात करने और मुलाकात करने में लगे हुए थे। भवन के भीतर कमेटी से मिलकर निकलने वाले पदाधिकारियों से भी वे मिल रहे थे। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना था कि दरअसल, बैज टोह ले रहे थे कि कमेटी के सामने उनकी भूमिका के बारे में क्या कहा जा रहा है। कोई गंभीर शिकायत तो नहीं की गई है? किसी ने तारीफ की हो तो उसका भी पता चल जाए। ये कार्यकर्ता यह भी कह रहे थे कि इसी तरह का मेल-मिलाप वे अध्यक्ष पद संभालने के बाद दिखाते तो तस्वीर कुछ दूसरी होती। जैसा कि कमेटी के सदस्यों ने बताया है कि वे प्रत्याशियों, पदाधिकारियों और दूसरे नेताओं की बातचीत से जो निकला है, उसका सार कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को दे देंगे। उसके बाद वे जरूरी कदम उठाएंगे। कुछ कार्यकर्ता कह रहे थे कि बैज की चिंता इसी बात को लेकर थी कि वे इस कमेटी की रिपोर्ट के बाद अपनी कुर्सी पर बने रहेंगे या छीन लिया जाएगा।
जीत का कोरबा मॉडल
कांग्रेस की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के चेयरमैन वीरप्पा मोइली और अन्य सदस्य बिलासपुर में प्रदेश के प्रतिनिधियों से चर्चा कर रहे थे तो उनके सामने एक बात यह भी कही गई कि कोरबा सीट में मिली जीत को लेकर भी उनको रिपोर्ट बनानी चाहिए। कोरबा में न केवल ज्योत्सना महंत की लगातार दो बार जीत हुई है, बल्कि लीड भी बढ़ी है। मोइली ने बाद में पत्रकारों से बातचीत के दौरान स्वीकार किया कि कोरबा में जीत के लिए क्या रणनीति बनाई गई थी, इसकी जानकारी उन्होंने एकत्र की है। इस सफलता का भी उनकी रिपोर्ट में अलग से जिक्र होगा, जिसे हाईकमान के सामने रखा जाएगा। (rajpathjanpath@gmail.com)
मंतूराम ने याद दिलाया- मैं हूँ न
अंतागढ़ टेपकांड से सुर्खियों में रहे पूर्व विधायक मंतूराम पवार ने फेसबुक पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, और ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन मांझी की बीस साल पुरानी तस्वीर साझा की है। उस वक्त द्रौपदी मुर्मू और मोहन मांझी विधायक थे, और दोनों ही आदिवासी समाज से हैं।
मंतूराम पवार ने लिखा कि पार्टी के प्रति ऐसी सतत निष्ठा सिर्फ बीजेपी कार्यकर्ताओं में देखने को मिलती है। मंतूराम पवार लोकसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा में आए थे, और कांकेर सीट जीताने में उनकी भी भूमिका रही है।
पवार को उम्मीद है कि पार्टी टेपकांड को भुलाकर उन्हें कुछ दायित्व सौंप सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
यह क्या कह दिया राजेश तिवारी ने!!
वैसे तो कांग्रेस की वीरप्पा मोइली कमेटी लोकसभा चुनाव में हार की समीक्षा के लिए आई थी। लेकिन बैठक में बात विधानसभा चुनाव में हार पर भी हो गई। हालांकि प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट ने बैठक के पहले ही हिदायत दे रखी थी कि कोई नकारात्मक बातें नहीं होगी। कमेटी सुझाव लेने के लिए आई है, और इस पर बात होनी चाहिए।
राजीव भवन में हुई शुक्रवार को बैठक में पार्टी के चुनिंदा सीनियर लीडरों को बुलाया गया था। इनमें से कुछ हारे हुए प्रत्याशी भी थे। चर्चा के दौरान कवासी लखमा, और अन्य कुछ नेताओं की नाराजगी सामने आ गई। मगर सबसे सटीक बात भूपेश बघेल के सीएम रहते उनके संसदीय सलाहकार रहे राजेश तिवारी ने कही।
राजेश तिवारी एआईसीसी के सचिव हैं, और यूपी कांग्रेस के भी प्रभारी सचिव हैं। उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि कांग्रेस सरकार के पांच साल में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हुई है। इसका नतीजा यह रहा कि कार्यकर्ता दूर हो गए, और विधानसभा व लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। तिवारी ने खुद को इसके लिए जिम्मेदार मान लिया।
राजेश तिवारी ने आगे यह भी कहा कि प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव की जरूरत नहीं है, बल्कि मौजूदा संगठन को मजबूत बनाने की है। ये सब कह रहे थे तब पूर्व सीएम भूपेश बघेल मंच पर ही थे। राजेश तिवारी, भूपेश बघेल के करीबी माने जाते हैं। और उनकी इस कथन की पार्टी हलकों में खूब चर्चा रही। जाहिर है कि तिवारी की टिप्पणी भूपेश बघेल को पसंद नहीं आई होगी।
एआई और एचआई
इंटरनेट के इस जमाने में मोबाइल फोन और कम्प्यूटर पर टाईप की गई चीजों में उनकी अपनी डिक्शनरी कई शब्दों को या तो बदल ही देती है, या फिर उनके दूसरे विकल्प सुझाती है। अब कल ही एक लेख में हिज्जों की जांच करते हुए गूगल के जीमेल पर लड़ाईयां की जगह लड़कियां सुझाया जा रहा था, चालाकी की जगह चालू सुझाया जा रहा था, खोखली की जगह खुजली सुझाया जा रहा था। इसी तरह बहुत सारे ऑटोकरेक्ट तो ऐसी भयानक गलतियां करते हैं कि लोग टाईप करने के बाद ऑटोकरेक्ट के करेक्शन परखे बिना अगर संदेश आगे बढ़ा दें, तो हो सकता है कि रिश्ते ही खराब हो जाएं। अभी वॉट्सऐप के एक संदेश में साइकिलिंग टाईप करने पर बदलकर उससे मिलता-जुलता एक ऐसा शब्द वहां कर दिया गया जो कि अंग्रेजी में एक गंदा और अश्लील शब्द माना जाता है। इसलिए कम्प्यूटर या मोबाइल के किसी भी एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर पर ऑटोकरेक्ट पर भरोसा न करें, उसका इस्तेमाल करके अपनी चूक को देख जरूर लें, लेकिन यह याद रखें कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का नेचुरल ह्यूमन इंटेलीजेंस से कोई मुकाबला नहीं है।
प्रदीप चौबे ने याद दिलाया
आपातकाल के मसले पर संसद से लेकर देश भर में भाजपा ने कांग्रेस को आड़े हाथों लिया। इन सबके बीच पूर्व मंत्री रविन्द्र चौबे के बड़े भाई प्रदीप चौबे की एक पोस्ट की काफी चर्चा रही। हालांकि कांग्रेस ने इसको लेकर कोई बात नहीं की है।
प्रदीप चौबे ने एक्स पर लिखा कि 25 जून को लोकसभा में जब अध्यक्ष ओम बिरला आपातकाल लगाने के काले अध्याय का प्रस्ताव पढ़ रहे थे, तब क्या किसी भी कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य को यह याद नहीं रहा कि तत्कालीन संघ के प्रमुख बाला साहब देवरस ने आपातकाल का लिखित समर्थन किया था।
यह अलग बात है कि आपातकाल के मसले पर कांग्रेस के नेता बैकफुट पर आ जाते हैं, और कड़ी प्रतिक्रिया देने से बचते हैं।
धंधा ज़मीनों का
नवा रायपुर में प्रस्तावित बिजनेस कॉरीडोर के मसले पर सरकार में एक राय नहीं बन पा रही है। यह योजना तो काफी अच्छी है, और चेम्बर अध्यक्ष अमर पारवानी ने कॉरीडोर की मंजूरी के लिए पूरा दम लगा दिया है। हालांकि व्यापारियों का एक धड़ा इससे सहमत नहीं हैं।
दूसरी तरफ, सरकार में भी इस मसले पर एक राय नहीं बन पा रही है। चर्चा है कि सरकार के एक मंत्री इस योजना के खिलाफ बताए जा रहे हैं। वजह यह है कि पिछली सरकार में प्रभावशाली रहे कुछ लोगों ने आसपास काफी जमीनें खरीदी है। आवास एवं पर्यावरण मंत्री ओ.पी.चौधरी इस योजना का अध्ययन कर रहे हैं। कैबिनेट में प्रस्ताव आने पर सब कुछ साफ होने की उम्मीद है।
नैनो यूरिया पर भरोसा नहीं हो रहा
खरीफ की बोनी का सीजन शुरू होते ही खाद-बीज के उठाव के लिए सहकारी समितियों में किसान पहुंचने लगे हैं। अभी शुरुआत है, इसलिये यूरिया और डीएपी की मांग और भंडारण के अंतर का तत्काल पता नहीं चल रहा है लेकिन संकट हर साल की बात है। इसके विकल्प के रूप में अब सोसायटियों में नैनो यूरिया और नैनो डीएपी आने लगा है। मगर, इसे लेने में किसान दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। सन् 2021 में जब इसे लांच किया तो इफको ने इसका खूब प्रचार किया था लेकिन किसानों का भरोसा इस पर जम ही नहीं पा रहा है। कुछ किसान कह रहे हैं कि इसके छिडक़ाव में दिक्कत है। इसे ड्रोन के जरिये ही सुरक्षित तरीके से छिडक़ा जा सकता है, जो उनके पास उपलब्ध नहीं है। कुछ किसानों का कहना है कि जो असर बैग की खाद का फसलों पर होता है वह इस लिक्विड नैनो यूरिया और डीएपी के छिडक़ाव से नहीं होता। पिछले साल कई सोसायटियों में खाद की किल्लत हुई, उसके बावजूद किसानों ने नैनो लिक्विड का इस्तेमाल नहीं किया। किसान खेती के अपने पारंपरिक तरीके को बहुत सोच-विचार करके बदलता है। पिछली सरकार के दौरान उनको गोबर खाद उपयोग में लाने की सलाह दी गई, कई सोसायटियों में खाद के बैग के साथ इसे जोर-जबरदस्ती कर थमाया भी गया। इसके बावजूद यह चलन में नहीं आ सका। अब तो सरकार बदलने के बाद उसका उत्पादन भी ठप हो गया है। राहत की बात यह है कि नैनो यूरिया खरीदने के लिए किसानों पर यहां दबाव नहीं है, जबकि कुछ दूसरे राज्यों से ऐसी शिकायतें आई हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)
लीड कम, जवाबदेही अधिक
भाजपा विधायक संपत अग्रवाल को लोकसभा चुनाव में अपनी सीट बसना से बढ़त को लेकर बढ़ चढक़र दावा करना भारी पड़ रहा है। सुनते हैं कि बसना विधायक संपत अग्रवाल ने पार्टी के रणनीतिकारों को भरोसा दिलाया था कि बसना से भाजपा प्रत्याशी रूपकुमारी चौधरी को 50 हजार वोटों की बढ़त मिलेगी। संपत अग्रवाल यह भी कह गए थे कि यदि बढ़त कम हुई, तो पार्टी दफ्तर नहीं आएंगे।
अग्रवाल गलत साबित हुए, और बसना विधानसभा सीट से सबसे कम 18 सौ वोटों की बढ़त मिल पाई। खास बात यह है कि खुद संपत अग्रवाल करीब 38 हजार वोटों से चुनाव जीते थे। संपत की तरह कई और विधायकों ने अपने क्षेत्र से बढ़त को लेकर काफी दावे किए थे, लेकिन वैसा परफार्मेंस नहीं दिखा पाए।
संपत अग्रवाल के लिए संतोष जनक बात यह है कि रूपकुमारी चौधरी खुद बसना की रहने वाली है, और विधायक भी रही हैं। ऐसे में कम लीड के लिए रूपकुमारी को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। ये अलग बात है कि रूपकुमारी अब तक महासमुंद सीट से सबसे ज्यादा वोटों से जीत हासिल की है। फिर भी बसना में कम लीड के लिए जवाब देना पड़ रहा है।
निशाने पर अफसर
मुख्य सचिव कार्यालय के सूत्रों की मानें तो पीएमओ केंद्रीय विभागों और राज्यों में कार्यरत अखिल भारतीय सेवा के अफसरों पर निकट से कड़ी निगाह रखे हुए है। मोदी 3.0 में ऐसे अफसरों पर गाज गिर सकती है जिन पर भ्रष्टाचार के पुख्ता सबूत आन पेपर है। पीएमओ ने डीओपीटी के जरिए आईएएस, आईपीएस, आईएफएस,आईआरएस आईटीएस और अन्य सेवा के अफसरों के पेपर्स बुलवाए हैं जिनके मामले कैट, चीफ विजिलेंस कमिश्नर और राज्यों के लोकायोग में अंतिम निर्णय की स्थिति में है।
पीएमओ, मनमोहन सरकार की प्रशासनिक सुधार प्रक्रिया को तेजी देना चाहती है। इसमें भ्रष्टाचार में लिप्त अफसर जिनकी आयु 50 वर्ष और सेवावधि 20 वर्ष हो चुकी है उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। इसके तहत छत्तीसगढ़ में भी पूर्व के वर्षों में एकाधिक आईएएस,आईपीएस (देवांगन) अफसर बर्खास्त किए जा चुके हैं। इस क्राइटीरिया में पिछले दो वर्ष में निलंबित किए गए समीर विश्नोई, रानू साहू, एपी त्रिपाठी, मनोज सोनी भी आ रहे हैं। मनोज सोनी दूर संचार सेवा के अफसर हैं, और उन्हें रिलीव भी किया जा चुका है। सूत्रों का कहना है कि इन सभी की फाइलें भी मंगाई गई हैं। साथ ही महादेव सट्टे के लाभार्थी आईएएस और आईपीएस भी पीएमओ की स्कैनिंग में टॉप पर हैं। संसद का प्रथम सत्र निपटते ही आगे की कार्रवाई हो सकती है।
वापिसी की हसरत और अड़ंगा
नगरीय निकाय चुनाव को देखते हुए कांग्रेस के कई बागी नेता वापसी की कोशिश में लगे हैं। इन्हीं में से रायपुर की एक विधानसभा सीट से बगावत कर चुनाव लडऩे वाले नेता ने अपना निष्कासन खत्म करने के लिए आवेदन दिया है। कांग्रेस रायपुर की चारों सीट हार गई। अब बागी नेता की पार्टी में वापसी पर पराजित प्रत्याशी ने फिलहाल ब्रेक लगा दिया है। फिर भी बागी नेता, प्रदेश प्रभारी, और प्रदेश अध्यक्ष से मिलकर वापसी की कोशिश में लगे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
जशपुर में रेल अब दौड़ेगी?
जशपुर में रेल लाइन की लंबे समय से मांग हो रही है। दो साल पहले ईस्ट कॉरिडोर परियोजना में इसे शामिल करते हुए धर्मजयगढ़ से लोहरदगा के लिए सर्वे का टेंडर जारी कर दिया गया था, जो अब पूरा हो चुका है। इस परियोजना के मूर्त रूप लेने पर पत्थलगांव, कुनकुरी, जशपुर नगर आदि बड़े कस्बे रेल मार्ग से जुड़ जाएंगे।
पूर्व के दशकों में यहां रेल लाइन का इसलिये विरोध हो रहा था क्योंकि स्थानीय लोग यहां के खनिज संपदा और पर्यावरण के दोहन को लेकर चिंतित थे। मगर अब लोग खुद आंदोलन कर रहे हैं। रेल नहीं होना उन्हें जशपुर के पिछड़ेपन का एक कारण लगता है। सांसद रहते गोमती साय, जो अब विधायक हैं-ने दो तीन बार इस मुद्दे को लोकसभा में उठाया था और रेल मंत्री से मुलाकात की थी। अब संसद सत्र शुरू होने के बाद वर्तमान सांसद राधेश्याम राठिया ने भी रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात कर सर्वे के मुताबिक शीघ्र बजट स्वीकृत कर काम शुरू करने की मांग की है। इस बार प्रयास रंग ला सकता है और आने वाले वर्षों में यहां रेल की पटरियों को बिछते हुए देखा जा सकता है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के इसी इलाके से आने के कारण जिले की स्थिति विशिष्ट हो चुकी है। केंद्रीय रेल मंत्रालय आगामी बजट में इसके लिए प्रस्ताव रख सकता है।
इधर सरगुजा सांसद चिंतामणि महाराज भी रेल मंत्री से मिले। उन्होंने अंबिकापुर से बरवाडीह और रेणुकूट के लिए प्रस्तावित नई रेल लाइन को मंजूरी देने की मांग की है।
छत्तीसगढिय़ा ईरानी
कभी, 4-6 पीढिय़ों या उससे भी पहले घोड़े के कुछ बड़े सौदागर ईरान से चले थे। उनके साथ साथ उनके सेवक या सहयोगी भी थे।
आज उन लोगों की बस्तियां हैं यहां छत्तीसगढ़ के कुछ स्थानों में। बिलासपुर में भी अरपा नदी के उस किनारे पर पूरे का पूरा एक ईरानी मोहल्ला है। बेतरतीब बसाहट वाला मोहल्ला। इनके रोजगार धंधे भी ऐसे ही बे तरतीब से। कभी चश्मा बेचते हुए तो कभी रंगीन पत्थरों और कांच के मनका माला बेचते हुए। इतनी पीढिय़ों से यहां बसे हुए इनके नाक नक्श तक अब छत्तीसगढ़ के हो गए। इनकी दप-दप चमकती गुलाबी गोरी रंगत भी अब धूमिल पडऩे लगी। बस इनका पहनावा-ओढऩा और इनके घर बोली जाने वाली इनकी मातृभाषा ही इनके पास सुरक्षित बची है।
इतनी पीढिय़ों की बसाहट के बाद भी इनके ठौर ठिकाने खानाबदोशी से अलग नहीं हो पाए।
इन दिनों नगर-निगम 1000 से अधिक मकानों पर बुलडोजर चलाने के अभियान में लगा है। इन ईरानियों पर एक नया कहर बरप रहा है। (सतीश जायसवाल की फेसबुक पोस्ट) (rajpathjanpath@gmail.com)
20 साल बाद खुला स्कूल
पीएससी परीक्षा का सेंटर बनाए जाने की वजह से रायपुर सहित कई शहरों के स्कूल बंद रहे, और प्रवेशोत्सव नहीं मना। रायपुर के तीन स्कूलों को पीएससी परीक्षा का सेंटर बनाया गया था। मगर धुर नक्सल जिला बीजापुर के दूर-दूर के कई स्कूल खुल गए। ये स्कूल करीब 20-22 साल बाद खुले हैं, और वहां बकायदा प्रवेशोत्सव भी मना।
बीजापुर कलेक्टर अनुराग पाण्डेय, और पुलिस अमला मुख्यालय से करीब 33 किमी दूर उसरनार गांव के स्कूल पहुंचे। यह स्कूल एक तरह से टेंट में संचालित हो रहा है। प्रधान पाठक के अलावा यहां अस्थाई शिक्षक ही हैं। लेकिन बच्चों की संख्या भी अच्छी खासी रही। बच्चों का मिठाई खिलाकर स्वागत किया गया। उनकी खुशी देखने लायक थी। वहां सेल्फी जोन बनाया गया था, जिसमें बच्चों की सेल्फी ली गई।
उसरनार सहित दूर दराज के कई गांव हैं जहां भले ही स्कूल की छत नहीं है। टेंट में स्कूल शुरू हो गए हैं। इन स्कूलों के निर्माण के लिए प्रशासन ने पहल की है। मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई है। कुल मिलाकर धुर नक्सल इलाके में शिक्षा का सूरज दिखाई दे रहा है।
लता की वाहवाही
ओडिशा में पहली बार भाजपा की सरकार बनने पर भाजपा के रणनीतिकार खुश हैं। पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, और ओडिशा की प्रभारी पूर्व मंत्री लता उसेंडी को वाहवाही मिल रही है। यह देखने में आया है कि सीमावर्ती इलाकों के नेता अपने पड़ोस के राज्यों की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति से वाकिफ होने की वजह से सफलता दिलाने में कामयाब रहे हैं।
छत्तीसगढ़ का बस्तर इलाका ओडिशा से सटा हुआ है। यही वजह है कि कोंडागांव की विधायक लता उसेंडी को ओडिशा में संगठन की जिम्मेदारी दी गई थी, और उन्होंने बेहतर ढंग से निभाया भी। इससे परे कांग्रेस में भी 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद ओडिशा के नेता भक्तचरण दास को कांग्रेस ने प्रदेश संगठन का प्रभारी सचिव बनाया था। दास ज्यादातर समय बस्तर में काम करते रहे। भक्तचरण दास की सिफारिश पर कांग्रेस ने बस्तर की सीटों पर प्रत्याशी तय किए थे। और 2013 में कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली। ये अलग बात है कि मैदानी इलाकों में पिछडऩे की वजह से कांग्रेस, प्रदेश में उस वक्त सरकार बनाने से रह गई। बस्तर के प्रदर्शन को कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में भी दोहराया। कांग्रेस ने दंतेवाड़ा को छोडक़र सभी सीटों पर कब्जा जमाया। और सरकार बनाने में कामयाब रही।
दूसरी तरफ, भाजपा ने छत्तीसगढ़ के 67 नेताओं को वहां प्रचार के लिए भेजा था। लता प्रभारी थीं इसलिए सबकी ड्यूटी व्यवस्थित तरीके से स्थानीय समीकरण को ध्यान में रखकर लगाई गई। इसका फायदा भी मिला। चूंकि ओडिशा में भाजपा का बेहतर प्रदर्शन रहा है ऐसे में स्वाभाविक तौर पर लता की पूछ परख बढ़ गई है।
लाल बत्ती जल्द संभव
लोकसभा चुनाव के बाद सबसे ज्यादा चर्चा मंत्रिमंडल के दो सदस्यों की नियुक्ति को लेकर है, लेकिन नेता-कार्यकर्ताओं की इसमें रुचि कम है। उनकी रुचि निगम, मंडल और आयोगों में होने वाली नियुक्तियों पर है। बीच बीच में ऐसा हवा उड़ जाती है कि निगम मंडल में नियुक्तियां होने वाली हैं, लेकिन पुराने नेता जानते हैं कि ज्यादातर नियुक्तियां नगर निगम और पंचायत चुनाव के बाद ही होती हैं। इस साल के अंत तक निगम चुनाव होंगे। इसके बाद 6 महीने में पंचायत के चुनाव होंगे। तब जाकर नियुक्तियां शुरू होंगी। इससे पहले चर्चाओं में ही लॉलीपॉप थमाया जाएगा। वैसे यह भी पुख्ता खबर है कि सरकार और संगठन ने मिलकर पहली सूची तैयार कर ली है। देखना है कि यह कब जारी होती है ।
कांग्रेस संगठन कोरबा सरगुजा से चलेगा
कांग्रेस संगठन में भी आने वाले समय में बदलाव होना है। पिछले कार्यकाल में जिस गुट को ज्यादा भाव मिला था, इस बार उनके बजाय कुछ नए चेहरे जुड़ सकते हैं। कुछ स्थानीय नेताओं को राष्ट्रीय टीम में भी जिम्मेदारी मिल सकती है। काफी कुछ बदलाव की चर्चा है। इसके लिए पुराने कुछ साथियों के एक होने की बात सामने आ रही है, जो सरकार होने के बाद भी खुद को कमजोर और ठगा सा महसूस कर रहे थे। इस बार कोरबा और सरगुजा के दिग्गजों की तूती बोलने वाली है। लोकसभा चुनाव परिणाम का भी असर बदलाव में दिखाई दे सकता है।
बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला
जो अपनी आलोचना खुद करे, उससे बड़ा साहसी कोई हो नहीं सकता । ट्रकों के पीछे हमें कई दार्शनिक संदेश लिखे मिल जाते हैं। इस दिलेर ट्रक ड्राइवर ने लिखकर बताया है कि ट्रक चलाने वालों से शादी क्यों नहीं करनी चाहिए। हालांकि कोई-कोई ही ट्रक चालक होगा, जो उसकी बात से सहमत होगा। ट्रक चालकों का परिवार भी खुशहाल ही होगा। पर इसने आगाह कर दिया है। कुछ बुरा अनुभव रहा होगा उसका। लगे हाथ कुछ और स्लोगन याद दिला दें- बुरी नजर वाले, तेरा मुंह काला और देखे मगर प्यार से, तो सदाबहार और सुपरहिट हैं। 30 का फूल 80 की माला, बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला। जलो मत, बराबरी करो। और ये देखिये- नीयत तेरी अच्छी है तो किस्मत तेरी दासी है। कर्म तेरे अच्छे हैं तो घर में मथुरा काशी है। यह भी बढिय़ा है- फानूस बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे, वो शमां क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे। मार्मिक संदेश भी मिलेंगे- रात होगी, अंधेरा होगा और नदी का किनारा होगा, हाथ में स्टेयरिंग होगा, बस मां का सहारा होगा। यह भी मार्मिक है- हमें जमाने से क्या लेना-देना, हमारी गाड़ी ही हमारा वतन होगा- दम तोड़ देंगे स्टेयरिंग पर, तिरपाल ही हमारा कफन होगा।
सुनने में बुरा लगे तो लगे लेकिन बात व्यावहारिक है- दोस्ती पक्की, खर्चा अपना-अपना। और, मांगना है तो खुदा से मांग बंदे से नहीं- दोस्ती हमसे करो, धंधे से नहीं। और यह भी- नेकी कर जूते खा, मैंने खाए तू भी खा। मतलब की है दुनिया, कहां किसी से प्यार होता है- धोखा वही देते हैं, जिन पर ऐतबार होता है।
गाड़ी चलाने वालों को हिदायत भी दी जाती है- पीकर जो चलाएगा-परलोक चला जाएगा। चलाएगा होश में तो जिंदगी भर साथ दूंगी-पीकर चलाएगा तो परलोक पहुंचा दूंगी। बच्चे इंतजार में हैं, पापा वापस जरूर आना- दूर के मुसाफिर, नशे में गाड़ी मत चलाना। सूची लंबी है, पर फिर कभी।
कांग्रेस नेताओं को फैक्ट पता नहीं?
छत्तीसगढ़ में विधानसभा और उसके बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार का कारण तलाशने के लिए वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में एक टीम पूरे पांच दिन दौरा कर संभागीय मुख्यालयों में कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करने जा रही है। पहली बार ऐसा हुआ है कि इसे फैक्ट फाइंडिंग टीम बताया गया है। लोकसभा चुनाव में संसद में विपक्ष के रूप में कांग्रेस मजबूत होकर पहुंची, लेकिन छत्तीसगढ़ में उसे केवल एक सीट कोरबा की मिल पाई। कांकेर सीट जीतने के कगार पर थी, पर किस्मत ने साथ नहीं दिया। कांग्रेस यदि पिछले कुछ महीनों की मीडिया रिपोर्ट्स की ही छानबीन कर ले तो बहुत से कारण सामने आ जाएंगे। कैसे विधानसभा में जीतने के बाद भाजपा ने महतारी वंदन और धान बोनस को जमीन पर लागू किया। राम मंदिर बाहर से आने वाले प्रत्येक स्टार प्रचारक के भाषण के केंद्र में रहा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने जिलों का दौरा करना जरूरी नहीं समझा और खुद चुनाव लडक़र एक बड़ी महत्वाकांक्षा पूरी करने के फेर में पड़ गए। राजनांदगांव में मंच पर अपने सीएम और अफसरों पर गुस्सा उतारने वाले कार्यकर्ता को पार्टी से बाहर कर दिया गया। बिरनपुर मसले पर उनके मंत्रियों का कैसा शुतुरमुर्ग जैसा रवैया रहा। सीएम की कुर्सी पकडऩे और खिसकाने की ढाई साल तक कसरत होती रही। ऐसी ही दर्जनों और बातें मीडिया पर आती रही है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस की जो टीम आ रही है, उसे पता तो सब होगा पर उन्हें लगता है कि बात करने से कार्यकर्ताओं का गुबार बाहर निकलेगा। कुछ उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले नगरीय चुनावों में साख बचाने में इससे मदद मिल जाएगी। (rajpathjanpath@gmail.com)
बलौदाबाजार के बाद दलित राजनीति की दिशा
बलौदाबाजार हिंसा को लेकर बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती का बयान घटना के 15 दिन बीत जाने के बाद आया है। बलौदाबाजार और उससे आगे जाने पर मिलने वाले कसडोल, चंद्रपुर, पामगढ़, जैजैपुर, अकलतरा, जांजगीर, वे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां बहुजन समाज पार्टी का खासा असर है। ये ही वे इलाके हैं, जिनमें से उनके विधायक चुनकर आते हैं। इस बार जरूर कोई जीत नहीं सका लेकिन कांग्रेस या भाजपा प्रत्याशियों की हार-जीत में उनके उम्मीदवारों की मौजूदगी एक कारक रही।
इसके विपरीत घटना के एक सप्ताह बाद भीम आर्मी के प्रमुख, सांसद चंद्रशेखर आजाद का बयान आ गया था, जो यूपी में मायावती के प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर रहे हैं। छत्तीसगढ़ पर उनका बयान इस लिहाज से भी जरूरी था क्योंकि पुलिस ने बलौदाबाजार हिंसा में उनके संगठन से जुड़े कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है।
यह गौर करने की बात है कि मायावती की प्रतिक्रिया बहुत संयमित है, जबकि आजाद ने अपने समर्थकों की गिरफ्तारी पर रोष अधिक दिखाया था। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि लोग मानकर चलते हैं कि भाजपा के प्रति मायावती उदार रहती हैं। मायावती ने बलौदाबाजार की कंपोजिट बिल्डिंग में हुई हिंसा की निंदा करते हुए जिम्मेदार असामाजिक तत्वों पर कार्रवाई की बात भी कही है। भीम आर्मी प्रमुख आजाद ने इसकी चर्चा भी अपने बयान में नहीं की। मायावती और आजाद दोनों ने ही बेकसूर लोगों को प्रताडि़त करने का सवाल उठाया है।
मायावती ने अपना जनाधार बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ में केवल अनुसूचित जाति पर व्यूह केंद्रित नहीं किया। ओबीसी को भी उन्होंने टिकट दी। इस बार चंद्रपुर सीट से हार गए पूर्व विधायक केशव चंद्रा ओबीसी से आते हैं। मगर, आजाद ने अपनी राजनीतिक गतिविधि सिर्फ अनुसूचित जाति पर केंद्रित रखी है। बसपा ने भी पहले ऐसा ही किया था, वह बाद में उदार हुई।
यह कहा जा रहा है कि भाजपा की ओर रुझान के चलते छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जाति के पारंपरिक मतदाता बसपा से विमुख हुए हैं। इसका असर 2023 के विधानसभा चुनाव में दिखा, जब उसे एक भी सीट नहीं मिली। बसपा ओबीसी मतदाताओं में पैठ रखने के बावजूद अपने प्रभाव वाली सीटों पर नाकाम रही। दूसरी ओर भीम आर्मी की, बलौदाबाजार घटना के बहाने दस्तक हो गई है, जिसका फोकस सिर्फ अनुसूचित जाति के मतदाताओं पर है। आने वाले दिनों में अनुसूचित जाति पर राजनीति करने वाले दलों की भूमिका बदलनी तय दिखाई दे रही है। यह अधिक बिखराब के रूप में भी हो सकता है और एकजुटता के रूप में भी।
पूर्व सीएस अजय सिंह चर्चा में आए
मुंगेली जिले के एक छोटे से गांव पथरिया, जो अब नगर पंचायत है, के धोती-कुर्ता धारी एक वकील फतेह सिंह चंदेल ने तय किया कि वे अपना सारा परिश्रम बच्चों को ऊंचे मुकाम पर पहुंचाने में लगाएंगे। वे परिवार सहित बिलासपुर शिफ्ट हो गए। यहीं वकालत करने लग गए और बच्चों को अच्छी शिक्षा दी। उनके बेटे अजय सिंह पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के दौर में मुख्य सचिव हुआ करते थे। छत्तीसगढिय़ावाद को बहुत आगे बढ़ाने का दावा करने वाले भूपेश बघेल को ये छत्तीसढिय़ा जमे नहीं। दिसंबर 2018 में कांग्रेस सरकार बनने के 15 दिन बाद वे प्रमुख सचिव पद से हटा दिए गए। खैर, हर सीएम को अधिकार है कि वे अपनी पसंद का सीएस रखें। इस बीच अजय सिंह राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे, फिर 2020 में रिटायर हो गए। इसके बाद वे क्या कर रहे थे, इसकी कोई चर्चा नहीं हुई। सरकार के ताजा आदेश के मुताबिक अब वे राज्य निर्वाचन आयुक्त की जिम्मेदारी संभालेंगे। इनका पहला काम नगरीय निकायों का चुनाव कराना होगा, जो इस साल के नवंबर में होने जा रहा है। उसके बाद पंचायतों की बारी भी आएगी।
अजय सिंह की पत्नी आभा एक काबिल चिकित्सक हैं। उनके एक भाई भी डॉक्टर हैं और एक भाई अरविंद सिंह चंदेल हाईकोर्ट में जज हैं।
मंत्री-विधायकों के परफॉर्मेंस की जांच
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने भले ही 10 सीटें जीती हैं, लेकिन सभी मंत्री-विधायकों के परफॉर्मेंस से भाजपा खुश नहीं है। पिछले दिनों हुई एक वर्चुअल बैठक में प्रदेश संगठन महामंत्री पवन साय ने विधानसभावार खराब परफॉर्मेंस की रिपोर्ट बनाने के लिए कहा है। इसमें यह देखा जाएगा कि जहां-जहां भाजपा के विधायक हैं, उन सीटों पर लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी को कितने वोट मिले हैं। यदि कम मिले हैं तो क्या कारण हैं?
दरअसल, 10 सीटें जीतकर भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा भले ही वापस पा ली, लेकिन परफॉर्मेंस के हिसाब से देखें तो कुछ महीने पहले जीती हुई 11 विधानसभा सीटों पर लोकसभा चुनाव में भाजपा पीछे रही। कोरबा सीट भाजपा के हाथ से निकल गई, जबकि यहां संगठन ने पूरी ताकत लगाई थी। स्थानीय स्तर पर कुछ नेताओं द्वारा भितरघात करने की बातें आ रही हैं। पूरी रिपोर्ट बनने के बाद संभवत: जिम्मेदारों से जवाब-तलब किया जा सकता है। आने वाली नियुक्तियों में भी इसका असर पड़ सकता है।
पुराने मंत्रियों के साथ क्या होगा?
मंत्रिमंडल की दो खाली सीट पर किसे नियुक्ति दी जाएगी, किसे नहीं, इससे ज्यादा चिंता इस बात को लेकर है कि जो पुराने नेता हैं, उनका क्या होगा? दरअसल, पिछले बजट सत्र में सब लोगों ने देखा कि धरमलाल कौशिक और अजय चंद्राकर समेत कई पुराने नेताओं ने किस तरह विधानसभा में अपनी ही सरकार के सामने असहज स्थिति पैदा कर दी थी।
सवाल तो पुरानी सरकार के कामकाज पर पूछे गए थे, लेकिन नए नवेले मंत्रियों के लिए जवाब देना आसान नहीं था। कुल मिलाकर संदेश यह गया कि विधायकों ने अपनी ही सरकार को घेरा। मंत्रिमंडल के दो पदों पर इतने सारे पुराने नेताओं को तो एडजस्ट नहीं किया जा सकता। यदि ये नेता विधानसभा में सवाल पूछने लगे तो भी सरकार के लिए असहज होने की स्थिति बनती रहेगी। (rajpathjanpath@gmail.com)
मंत्रालय में ऐसा दूसरी बार
छत्तीसगढ़ में बदलती सरकारों के साथ प्रशासन में भी बदलाव होते रहे हैं । यह सरकार नहीं करती, सरकार के करीबी रहे अफसर ही करवाते रहे। सीएस के समकक्ष को राजस्व मंडल, प्रशासन अकादमी भेजना तो परंपरा बन चुकी है। वहीं एमडी मार्कफेड, एमडी शराब निगम जैसे आईएएस के कैडर पदों पर आईपीएस या राप्रसे तो दूर अन्य कैडर के अफसरों को बिठाने की व्यवस्था छत्तीसगढ़ में ही शुरू हुई। इसे लेकर कई बार आईएएस एसोसिएशन सरकार से मिलकर असहमति जता चुका है। इस बार तो एक नई परंपरा शुरू की गई है।
वह यह कि अवर सचिव का पद ज्वाइंट कलेक्टर के समकक्ष है, और यहां आईएएस वासु जैन पदस्थ किए गए । ऐसा 24 वर्ष में दूसरी बार हुआ, जब आईएएस की पोस्टिंग हुई है। इससे पहले स्कूल शिक्षा विभाग में अपर सचिव के पद पर रणवीर शर्मा की पोस्टिंग हुई थी। वैसे अब तक अधिकतम राप्रसे अफसर बनाए जाते रहे हैं।
तीन दिन पहले वासु जैन के जारी इस आदेश पर महानदी भवन में चर्चाएँ चल पड़ी है। आईएएस कह रहे अक्षम्य नाराजगी जैसी बात है तो बिना विभाग के मंत्रालय में अटैच रख देते।यह परंपरा भी तो यहीं स्थापित हुई है। इस बार की पोस्टिंग ऑर्डर से लॉबी खुश नहीं है, जल्द ही सीएम के साथ डिनर होने वाला है। उसमें एसोसिएशन क्या करता है देखने वाली बात होगी। सदस्यों को बचाने की जिम्मेदारी उसकी ही है।
जल्द हो सकती है पारी खत्म
राज्य की पुलिसिंग में बड़े बदलाव के संकेत हैं। एक झटके में बलौदाबाजार एसपी को निलंबित कर सरकार ने तेवर दिखा दिए हैं। बड़े जिलों में भी बदलाव की तैयारी चल रही है। इसमें सबसे बड़ी वजह लॉ एंड आर्डर है। यह चुनाव में भी मुख्य मुद्दा था, जिसके दम पर भाजपा, कांग्रेस से सत्ता छीनने में कामयाब हो गए।
कानून व्यवस्था जहां ठीक है, वहां विधायक, स्थानीय नेता कप्तान से नाराज है कि उनकी बात नहीं सुनते। सरकार और संगठन से उनकी सुनने वाले कप्तान की पोस्टिंग की मांग हो रही है। एक आईजी के डेपुटेशन पर जाने को देखते कुछ रेंज के आईजी बदल सकते है। रायपुर में पूर्णकालीन आईजी की पोस्टिंग हो सकती है। क्योंकि रायपुर में मॉब लीचिंग, बलौदाबाजार हिंसा और थानों में ब्लेड चलना, सिपाहियों पर हमले जैसी बड़ी चूक मानी जा रही है। इसलिए नई पोस्टिंग हो सकती है। सरगुजा और दुर्ग आईजी भी बदल सकते हैं।
संस्कृत से लेकर बृजमोहन तक
छत्तीसगढ़ के नवनिर्वाचित सांसदों ने सोमवार को शपथ ली। सरगुजा के सांसद चिंतामणि महाराज को छोडक़र बाकियों ने हिन्दी में शपथ ली। चिंतामणि महाराज, उन तीन सांसदों में थे जिन्होंने संस्कृत में शपथ ली। चिंतामणि महाराज की तरह दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुषमा स्वराज की बेटी दिल्ली की सांसद बांसुरी ने भी संस्कृत में शपथ ली।
पहली बार के सांसद चिंतामणि महाराज के संस्कृत में शपथ लेने पर नवनिर्वाचित सांसदों ने सबसे ज्यादा मेज थपथपाकर स्वागत किया। चिंतामणि महाराज के बादं बृजमोहन अग्रवाल के शपथ लेने पर सांसदों ने स्वागत किया। शपथ लेने के बाद केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव ने बृजमोहन को संसद भवन स्थित अपने कक्ष में नाश्ते पर आमंत्रित किया।
बृजमोहन ने ओडिशा के चार लोकसभा संबलपुर, सुंदरगढ़, बरगढ़, और भुवनेश्वर के प्रभारी थे। यहां पार्टी को जीत मिली है। भूपेन्द्र यादव ओडिशा के चुनाव प्रभारी थे। तब भी उस समय बृजमोहन की भूमिका की सराहना की थी। और अब जब बृजमोहन सांसद बनकर पहुंचे हैं, तो उनकी काफी पूछ परख होती दिख रही है।
जल जीवन मिशन के पाक-साफ अफसर
जल जीवन मिशन के काम को लेकर पिछली सरकार के कार्यकाल में बेतहाशा शिकायतें मिली थी। कई ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट किया गया, वसूली का आदेश निकला और अधिकारी सस्पेंड भी किए गए। इस गर्मी में प्रदेश के अनेक शहरों और गांवों से रिपोर्ट आती रही कि किस तरह पाइपलाइन आधी अधूरी बिछाई गई हैं। पानी टंकी तैयार है लेकिन सप्लाई नहीं हो रही है। जो काम हो रहे हैं उनमें गुणवत्ता का भारी अभाव है। कल ही भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अनुराग सिंहदेव ने डिप्टी सीएम अरुण साव को ज्ञापन सौंप कर कहा कि सरगुजा, बलरामपुर और सूरजपुर जिले में जल जीवन मिशन के काम में भारी भ्रष्टाचार हुआ है, जांच कराएं।
मगर राजनांदगांव जिले में शिकायतों की जांच के बाद अफसरों को ठेकेदारों से ईमानदारी का सर्टिफिकेट मिल गया है। बीते अप्रैल में राजनांदगांव कांट्रेक्टर्स एसोसिएशन के लेटर हेड पर मिशन संचालक को शिकायत मिली थी कि वह अफसर की कमीशन खोरी से त्रस्त हैं। चंदे के नाम पर 10 प्रतिशत कमीशन मांगा जा रहा है और भुगतान नहीं करने पर बिलों में दस्तखत नहीं किए जा रहे हैं। शिकायत संगठन की तरफ से थी, इसलिए तुरंत दुर्ग के एक अधिकारी को जांच के लिए भेजा गया। जब अधिकारी पहुंचे तो कोई बयान देने के लिए पहुंचा ही नहीं। जब जांच अधिकारी के सामने कोई आया नहीं, तब उन्होंने मान लिया कि शिकायत फर्जी है। शिकायत करने वाले किसी अज्ञात कारण से पीछे हट गए। अब जांच अधिकारी ने मान लिया है कि शिकायत फर्जी है। सब ठीक चल रहा है। यह रिपोर्ट तैयार हो गई, पेश कर दी गई। अब जिनकी शिकायत हुई वे डंके की चोट पर कह सकते हैं कि हम कमीशन नहीं खाते।
अतिरिक्त समय ही दे देना था...
यूजी-नीट की परीक्षा में ग्रेस मार्क पाने वाले 1563 छात्रों को दोबारा टेस्ट देने का मौका मिला, जिनमें से सिर्फ 813 शामिल हुए। चंडीगढ़ के दो छात्रों को मौका था, पर दोनों शामिल नहीं हुए। इसके बाद छत्तीसगढ़ में मौजूदगी सबसे कम रही, यहां के बालोद केंद्र में 185 पात्र परीक्षार्थियों में से 115 ने भाग लिया और दंतेवाड़ा केंद्र में तो 417 में से 176 ने ही लिया। भाग नहीं लेने वाले परीक्षार्थियों का कहना है कि जून के पहले सप्ताह में रिजल्ट आने के बाद से इस पर देशभर में जो विवाद चल रहा है, उसके चलते वे तनाव में हैं। वे दोबारा खुद को परीक्षा देने के लिए तैयार नहीं कर पाए। हमने ग्रेस मार्क के लिए नहीं कहा था। हमें गलत पेपर बांट दिया गया था। सही पेपर देर से मिला। अतिरिक्त समय की मांग हमने उसी समय की थी।
शायद स्थानीय अफसर इस मांग पर फैसला इसलिये नहीं ले पाए क्योंकि उन्हें कोई अधिकार ही नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने नहीं दिया था। अब एजेंसी को विचार करना चाहिए कि देशभर में एग्जाम एक साथ होते हैं तो अलग-अलग अनचाही परिस्थितियां खड़ी हो सकती हैं। स्थानीय अधिकारियों को ऐसे में जरूरत के अनुसार फैसले लेने की छूट मिलनी चाहिए।
नांदघाट का फल बाजार..
रायपुर-बिलासपुर हाईवे के बीच शिवनाथ नदी के पुल पर फलों का बाजार लगता है। बड़ी भीड़ होती है। यात्री यहां रुकते हैं और कुछ खरीद कर आगे बढ़ते हैं। छत्तीसगढ़ के दूसरे हाट-बाजारों की तरह यहां भी मौसमी फल मीठे जामुन बिकने के लिए आए हैं। सामरी की विधायक सिद्धेश्वरी पैकरा रायपुर से अंबिकापुर जाते हुए रुकीं और उन्होंने भी अपने लिए खरीद लिए। (rajpathjanpath@gmail.com)
संविदा नियुक्ति की चर्चा से हलचल
मंडी बोर्ड के प्रभारी एमडी महेन्द्र सिंह सवन्नी रिटायर हो रहे हैं। मंडी इंस्पेक्टर से प्रभारी एमडी तक सफर तय करने वाले सवन्नी को संविदा नियुक्ति मिलने की चर्चा मात्र से बोर्ड काफी हलचल है। कई अफसरों ने सवन्नी के खिलाफ पीएमओ तक शिकायत की है, और किसी भी दशा में उन्हें संविदा नियुक्ति नहीं देने की गुजारिश भी की है।
शिकायत में मंडी बोर्ड के कई घपले-घोटाले का भी जिक्र है, और इसमें सवन्नी की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं। सरकार चाहे कोई भी हो, सवन्नी का मंडी बोर्ड में दबदबा रहा है। जोगी सरकार में तत्कालीन कृषि मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम और राज्य मंत्री विधान मिश्रा के करीबी रहे हैं। भाजपा सरकार में उन्हें कोई दिक्कत थी ही नहीं, उनके सगे भाई भूपेन्द्र सिंह सवन्नी प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष हैं, और रमन सरकार में हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन रहे हैं।
कांग्रेस सरकार के आने के बाद महेन्द्र सिंह सवन्नी का रुतबा कम नहीं हुआ, और वो कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे के करीबी हो गए। अब जब संविदा नियुक्ति की फाइल चली है, तो मंडी बोर्ड में सवन्नी विरोधी खेमे में नाराजगी देखी जा रही है। देखना है आगे क्या होता है।
तारीफ तो बनती है...
राज्य बनने के बाद दो लोकसभा सीट महासमुंद, और कांकेर में दो हजार से कम वोटों पर जीत हार का फैसला हुआ है। दोनों बार भाजपा को फतह हासिल हुई है। खास बात यह है कि दोनों सीटों पर भाजपा के चुनाव प्रभारी पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर थे।
कांकेर में भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग को मात्र 1884 वोटों से जीत हासिल हुई है। यह मुकाबला कांटे का था। भाजपा तो इस सीट को काफी कठिन मानकर चल रही थी। मगर अजय चंद्राकर अकेले थे, जो पार्टी के हर फोरम में कांकेर से जीत का दावा कर रहे थे।
कुछ इसी तरह का मुकाबला वर्ष-2014 में महासमुंद सीट पर हुआ। उस वक्त कांग्रेस से दिग्गज पूर्व सीएम अजीत जोगी मुकाबले में थे। भाजपा प्रत्याशी चंदूलाल साहू ने करीब 12 सौ वोटों से अजीत जोगी को मात दी थी। तब भी भाजपा के रणनीतिकारों में अकेले अजय चंद्राकर को छोडक़र कोई भी चंदूलाल साहू की जीत का भरोसा नहीं कर पा रहा था।
कांकेर में इस बार कड़े मुकाबले में भाजपा की जीत के लिए अजय चंद्राकर की भूमिका को सराहा जा रहा है। अजय बस्तर, कांकेर और महासमुंद क्लस्टर के प्रभारी थे। तीनों सीट पर भाजपा जीत हासिल की है।
राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में ट्रेनिंग के लिए गए बड़े पुलिस अफसरों में से बहुत से वहाँ टाई पहनने के नियम को अनदेखा करते हैं। इसलिए चेतावनी दी गई है कि जो लोग टाई नहीं पहने होंगे, उन्हें चाय के साथ समोसा नहीं दिया जाएगा।
दो आईपीएस की दिल्ली की राह
बस्तर आईजी सुंदरराज पी और पीएचक्यू में डीआईजी डी श्रवण, केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं। सुंदरराज की पोस्टिंग हैदराबाद पुलिस अकादमी में हो सकती है। सुंदरराज करीब 7 साल से अधिक समय से बस्तर इलाके में पोस्टेड हैं। इससे पहले वो कांकेर में डीआईजी, और फिर बस्तर में आईजी बनाए गए।
सुंदरराज बस्तर में सबसे ज्यादा समय तक काम करने वाले अफसर हैं। उनके प्रयासों से बस्तर में नक्सल गतिविधियों में भारी कमी आई है। राज्य पुलिस और केन्द्रीय सुरक्षाबलों के बीच तालमेल बेहतर हुआ। उनकी काबिलियत को देखकर ही चुनाव आयोग ने उन्हें वहां बनाए रखने पर सहमति दी थी। जबकि एक ही जगह पर 3 साल से अधिक समय से जमे अफसरों को हटाने का आदेश दिया गया था।
इसी तरह पीएचक्यू में पोस्टेड डीआईजी डी श्रवण की प्रतिनियुक्ति को राज्य सरकार ने मंजूर कर लिया है। आईपीएस के 2008 बैच के अफसर श्रवण की पोस्टिंग आईबी में हो सकती है। इन सब वजहों से आईजी और एसपी स्तर के कुछ अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है।
24 वर्ष में पांच अवर सचिव
छत्तीसगढ़ राज्य को बने 24 वर्ष हो गए। इस दौरान पांच मुख्य मंत्री, पांच गृह मंत्री, आधा दर्जन से अधिक मुख्य सचिव, एक दर्जन से अधिक एसीएस, पीएस गृह सचिव हुए, आधा दर्जन से अधिक डीजीपी बने। ये हम इसलिए गिना रहे कि सभी बड़े पदों पर बदलाव होता रहा। लेकिन नहीं बदले तो गृह विभाग में अवर सचिव। इन 24 वर्ष में मात्र पांच ही अवर सचिव हुए हैं। जो भी रहे अधिकांश रिटायर होकर ही निकले। यह कुर्सी का महत्तम है या बैठने वाले की सेटिंग। एक बार बैठ गए तो उठे नहीं। इनमें एक रिटायर होने के कुछ पहले ही हटाये गए। तो दूसरे का तबादला किया गया लेकिन जिन हाथों से हुआ उन्ही ने निरस्त भी किया। इन अवर सचिव ने बने रहने एड़ी चोटी लगा दी। सफल रहे और अब कम से कम बारह वर्ष बाद 30 जून को रिटायर होने जा रहे हैं। ग्रेड वन से एसओ और अवर सचिव तक गृह विभाग में ही जमे रहे।अब इस कुर्सी के लिए नए दावेदार जोर लगा रहे। इसके विपरीत जीएडी के आईएएस सेक्शन में अवर सचिव बदलते ही रहे।
नॉर्थ ब्लॉक की लॉबी और छोटे राज्य
सेंट्रल डेपुटेशन में नार्थ, साउथ ब्लाक, शास्त्री भवन में टिके रहना छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य के अफसरों के लिए आसान नहीं। जो टिक गया वो दशक डेढ़ दशक रह जाता और नहीं तो वापसी की तैयारी करने लगता है। उत्तर और दक्षिण भारत के अफसरों की लॉबी, छोटे राज्यों के अफसरों की बड़ी पोस्टिंग पसंद नहीं करते। वे अड़ंगे लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। उन्हें तो, अपने मातहत, संयुक्त सचिव, डायरेक्टर जैसे पदों पर असिस्टेंट चाहिए होते हैं । इसी सोच की वजह से नीट का मामला उजागर हुआ। एनटीए के डीजी सुबोध सिंह की वापसी नहीं तो, वहां से कल देर रात हटा दिए गए।
उनकी सेवाएं डीओपीटी को लौटा दी गई है। इससे पहले निधि छिब्बर के साथ भी लॉबी ने किया। वार्षिक परीक्षाओं से ठीक पहले मैडम को सीबीएसई के चेयरमैन नीति आयोग में शिफ्ट कर दी गई। छिब्बर , पहले रक्षा विभाग फिर सीबीएसई चेयरमेन नियुक्त हुईं। चेयरमैन के पद पर तो सबसे कम अवधि रहीं।
जेसीसी में जान कौन फूंकेगा?
पूर्व विधायक अमित जोगी और उनकी पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की एक बार फिर चर्चा निकल पड़ी है। एक सोशल मीडिया पोस्ट में अमित जोगी ने कहा है कि लोग यह भ्रम न पालें कि जोगी परिवार भाजपा सरकार का कृपा पात्र होगा। रायपुर का सागौन बंगला और बिलासपुर का मरवाही सदन दोनों ही खाली कर दिए गए हैं।
जोगी के निधन के बाद हुए मरवाही उप चुनाव में परिस्थितियां ऐसी बनीं कि जेसीसी ने भाजपा प्रत्याशी को समर्थन दे दिया। वे नहीं जीत पाए लेकिन उसके बाद 2023 के विधानसभा चुनाव में मरवाही में पार्टी की मौजूदगी का असर ऐसा रहा कि राज्य बनने के बाद पहली बार वहां से भाजपा के हाथ में सीट आ गई। लोकसभा चुनाव से पहले जब अमित जोगी केंद्रीय गृह मंत्री से ‘सौजन्य मुलाकात’ करके लौटे तब चर्चा थी कि भाजपा उनके जनाधार का कुछ फायदा उठाएगी, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस पोस्ट के बाद अब भाजपा से दूरी अधिक स्पष्ट हो गई है।
पोस्ट में कांग्रेस के प्रति थोड़ा झुकाव भी दिख रहा है। उन्होंने अपनी लड़ाई को कांग्रेस नहीं, इसे ‘प्राइवेट फर्म बनाने वाले नेता’ के खिलाफ बताया है। कहा है कि सांप्रदायिकता और खनिज संसाधनों को बेचने के विरोध में वे दोनों राष्ट्रीय दलों के खिलाफ 5 साल तक लड़ेंगे।
पार्टी के अधिकांश संस्थापक, सदस्य विधायक और पूर्व विधायक, स्व. जोगी के बाद एक-एक करके पार्टी छोड़ चुके हैं। इनमें से कुछ लोगों ने अमित जोगी के व्यवहार को पार्टी छोडऩे का कारण बताया। विधानसभा चुनाव से पहले एक चर्चा यह थी कांग्रेस और जोगी कांग्रेस के बीच कुछ मध्यस्थता कराई जा रही है। मगर, बात तब नहीं बनी, जब अमित जोगी को लेने पर कई लोगों ने ऐतराज जताया। बीते विधानसभा चुनाव में यह तय हो गया कि पार्टी का जनाधार तेजी से घट चुका है। पाटन सीट से अमित जोगी ने प्रत्याशी बदल दिया और खुद मैदान में उतरे। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को हराने के लिए, लेकिन अमित जोगी उम्मीद से काफी कम वोट ले पाए। सन् 2018 में बेहद कम मार्जिन से हारने वालीं ऋचा जोगी को भी 2023 में निराशा हाथ लगी।
ऐसी स्थिति में अमित जोगी ने घोषणा कर दी है कि वे पार्टी अध्यक्ष नहीं रहेंगे। जोगी परिवार से बाहर का कोई अध्यक्ष बनेगा। कई लोग इस कदम को जिम्मेदारी से बच निकलने का एक सुविधाजनक रास्ता मान सकते हैं, पर हो सकता है कि पार्टी फिर खड़ी हो जाए। तब उन्हें कांग्रेस और बीजेपी वाले एक दूसरे की ‘बी’ टीम बताना बंद कर देंगे।
फसल और मौसम का अनुमान
धान बोने की शुरुआत हो रही है। ऐसे में आप किसी-किसी आंगन में ऐसी तैयारी देख सकते हैं। किसान अच्छी फसल और मौसम का अनुमान लगाने के लिए तीन दिनों के लिए गोबर से पांच गोल कटोरे की आकृतियां बनाते हैं, जिसे ढाबा कहते हैं। इनमें से तीन को पानी और दो को बीज से भरा जाता है। पानी से भरे कटोरे आषाढ़, सावन, भादों के प्रतीक होते हैं। ताकि आने वाले तीन माह खेतों मे वर्षा अधिक हो और फसलों को पानी मिल सके। अगर इन तीनों कटोरे मे से किसी भी एक कटोरे मे इन तीन दिनों में पानी कम होता है तो यह माना जाता है के उस माह में पानी कम गिरेगा। बाकी दो कटोरे बीज से भरे होते हैं, जिन्हें कोठी का प्रतीक माना जाता है। कहीं-कहीं मिट्टी के नए घड़े में पानी भरकर उसे मिट्टी के ढेले पर भी रख दिया जाता है। (rajpathjanpath@gmail.com)
कांग्रेस अब तक उबरी नहीं
विधानसभा, और लोकसभा चुनाव में बुरी हार से कांग्रेस अब तक उबर नहीं पाई है। कई नेता तो लोकसभा चुनाव से पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं। कुछ बड़े नेताओं ने पार्टी की गतिविधियों में हिस्सा लेना बंद कर दिया है। इसका नतीजा यह हुआ कि शुक्रवार को नीट परीक्षा में धांधली के विरोध में प्रदेश स्तरीय धरना-प्रदर्शन में कुल सवा सौ लोग ही जुट पाए।
इन सबके बीच चर्चा यह है कि चुनाव के बीच में ही कांग्रेस के एक बड़े नेता ने पार्टी छोडऩे का मन बना लिया था। कहा जा रहा है कि वो भाजपा सरकार के मुखिया के संपर्क में भी थे। मगर भाजपा के रणनीतिकारों ने नफा-नुकसान का आंकलन कर आगे बात नहीं बढ़ाई और नेताजी का भाजपा प्रवेश रह गया। कुछ इसी तरह विधानसभा लड़ चुके एक व्यक्ति को भी भाजपा में लाने की तैयारी थी लेकिन भाजपा के अंदर खाने में इस पर सहमति नहीं बन पाई। हालांकि कुछ लोगों का अंदाज है कि नगरीय निकाय चुनाव के पहले कांग्रेस में तोडफ़ोड़ हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
दो कि़स्म के त्रिकोण
भाजपा के तीन नेताओं की दोस्ती और तीन अन्य के बीच मनमुटाव की चर्चाएं पार्टी हलकों में चटखारे के साथ होने लगी हैं। हैं भी मजेदार । पहले बात दोस्ती की कर लें।इन तीन में से एक नेता दक्षिणी छोर,दूसरे मध्य क्षेत्र और तीसरे मध्य उत्तर-इलाके से आते हैं। तीनों नेता जब राजधानी में होते हैं तो रोजाना रात, किसी न किसी के घर जुटते हैं। किसी के घर के लॉन में साफ्ट बॉल से तीनों क्रिकेट खेलते हैं। अगले दिन दूसरे के घर जाने पर हल्के से म्यूजिक के साथ सिर पर प्याला रख बैलेंसिंग डांस कॉम्पिटिशन करते हैं ।
अब बात मनमुटाव वाले नेताओं की । ये लोग एक दूसरे पर शक करते हुए एक दूसरे की पोल खोलने में लगे रहते हैं। इनमें एक राजधानी के, दो पड़ोसी जिले के रहवासी हैं। एक ने दूसरे के स्कार्पियो पर उंगली उठाई तो ये, पहले वाले के रेत से तेल निकालने के कारोबार को प्रचारित करने कोई कसर नहीं छोड़ रहे। छ माह के भीतर ही हो रहे ऐसे किस्सों से भाई साहब लोग हतप्रभ और परेशान हैं। देखना है कि क्या रास्ता निकालते हैं।
एसडीएम तक पहुंची एसीबी
एंटी करप्शन ब्यूरो ने सरगुजा जिले के उदयपुर में जिन चार लोगों को घूस लेने के आरोप में गिरफ्तार किया है, उनमें एसडीएम भागीरथी खांडे भी शामिल हैं। खांडे ने रिश्वत अपने हाथ में नहीं ली थी, एक को लेने कहा, जब उसने ले लिया तो दूसरे को रख लेने के लिए कहा। इस घटना ने 9 साल पुरानी एक घटना की याद दिला दी है। आईएएस रणबीर शर्मा को नौकरी में आए महज तीन साल हुए थे। उन्हें भानुप्रतापपुर में एसडीएम का पद सौंपा गया था। वहां उनके लिए स्टाफ ने 40 हजार रुपये रिश्वत ली। तब एसडीएम को सिर्फ तबादले की सजा मिली। एसीबी उनको कानूनी घेरे से बचा ले गई थी। वैसे ये अफसर तब भी बचा ले गए थे जब एसडीएम ही रहते मरवाही में भालू पर गोली चलवा दी थी और कोविड महामारी के दौरान सूरजपुर में कलेक्टर रहते एक बच्चे की बीच सडक़ में पिटाई कर दी थी।
बहरहाल, राजस्व, पुलिस और दूसरे विभागों में जो भी रिश्वत ली जाती है, उसमें लेने वाले बताते हैं कि अफसरों का भी इसमें हिस्सा जुड़ा हुआ है। पर, उन अधिकारियों तक एसीबी के हाथ नहीं पहुंचते। राजस्व विभाग में सिर्फ नीचे के कर्मचारियों पर कार्रवाई होने के कारण कार्यालय प्रमुख पाक-साफ नजर आते हैं। वे अपने हाथ में घूस की रकम सीधे नहीं लेते। एसीबी ने एसडीएम पर कार्रवाई कर बता दिया है कि हाथ रंगे न हों, मगर इस बात का सबूत मिलेगा कि उनका हिस्सा है तो अफसर के गिरेबान को भी पकड़ा जा सकता है। दो चार ऐसी और कार्रवाई रेवन्यू में फैले बेतहाशा भ्रष्टाचार को कम कर सकती है।
एक एसडीएम ने रेत बेच दी?
राजनांदगांव जिले में डोंगरगढ़ के एसडीएम भी दो दिन से चर्चा में हैं। इन पर जब्त रेत बेच देने का आरोप है। दरअसल, डोंगरगढ़ के मुड़पार इलाके में रेत का अवैध भंडार पकड़ा गया। करीब 800 हाईवा रेत एसडीएम उमेश पटेल ने जब्त कर ली। अब वह जब्त रेत गायब हो गई है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने सोशल मीडिया पर पोस्ट डाली है। वे कह रहे हैं कि भाजपा के दो तीन ठेकेदारों को एसडीएम ने रेत बेच दी और रातों-रात रेत गायब हो गई। खनिज विभाग को पता ही नहीं रेत कहां चली गई। बहरहाल, कलेक्टर ने एक एडीएम को जांच की जिम्मेदारी दी है। शायद सच सामने आ जाए। पर, इस घटना से पता चल रहा है कि बारिश से पहले रेत की कितनी मारामारी हो रही है। जो लोग अपना मकान बना रहे हैं, उनकी क्या हालत हो रही होगी।
हर दिन मदर्स डे
पिछले महीने मई में मदर्स डे मनाया गया, फिर जून में फादर्स डे आया। इस बात का पता इस तस्वीर में दिखाई गई मां को पता होगा, न उसके बच्चे को। छोटा सा बालक अपनी मां को लगेज सहित घर से दूसरे गांव ले जाते हुए। साइकिल की सीट ऊंची है, इसलिये वह कैंची चला रहा है। जितनी खुशी बच्चे को हो रही है, उससे ज्यादा खुश मां दिखाई दे रही है। यह तस्वीर बस्तर जिले के कल्चा गांव की है। (rajpathjanpath@gmail.com)
रमेश बैस के जिम्मे अब क्या?
क्या महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस छत्तीसगढ़ की राजनीति में सक्रिय होंगे, यह सवाल राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय है। दरअसल, बैस का राज्यपाल के रूप में कार्यकाल अगले महीने खत्म हो रहा है। ऐसे में उनके राजनीति में लौटने की अटकलें लगाई जा रही है।
बैस सात बार रायपुर के सांसद और एक बार मंदिर हसौद से विधायक रहे हैं। वो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे। साथ ही भाजपा के कोर ग्रुप के सदस्य भी रहे हैं। इन सबके बीच बीते गुरुवार को बैस की केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई है। महाराष्ट्र में अगले 3 महीने में विधानसभा के चुनाव भी होने वाले हैं। ऐसे में बैस की शाह से चर्चा अहम रही होगी। कार्यकाल खत्म होने के बाद नई नियुक्ति होने तक बैस पद पर बने रह सकते हैं।
जानकारों का मानना है कि बैस को एक और कार्यकाल दिया जा सकता है। वैसे भी यहां भाजपा की राजनीति में कुर्मी समाज से कई प्रभावशाली नेता हैं। इनमें विजय बघेल, अजय चंद्राकर, और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक हैं। ऐसे में फिलहाल पार्टी को बैस के जरूरत छत्तीसगढ़ की राजनीति में महसूस नहीं हो रही होगी। देखना है पार्टी बैस के मसले पर क्या कुछ फैसला लेती है।
पोस्टिंग का लंबा इंतजार
छत्तीसगढ़ के शुरूआती दौर में एक वक्त ऐसा भी था कि विभाग अधिक, अफसर कम। मप्र से बंटवारे में मिले कई अफ़सर आना ही नहीं चाहते थे। कमी पूरी करने केरल, तमिलनाडु, हिमाचल, महाराष्ट्र, बंगाल जैसे राज्यों से डेपुटेशन पर बुलाए जाते रहे। और अब अफसर पूरे हैं तो उन्हें पोस्टिंग के लिए 15 से 25 दिनों तक वेटिंग में रहना पड़ता है। मानो विभाग नहीं हैं। जबकि बहुत से अफसर दो या अधिक विभाग के बोझ लेकर चल रहे हैं।
यह बात हम इसलिए कह रहे हैं कि बैच की अफसर रितु सेन पहले केंद्रीय प्रतिनियुक्ति और फिर एक वर्ष के अध्ययन अवकाश से लौट आई हैं। 1 जून को महानदी भवन में जॉइनिंग भी दे दी है। लेकिन पोस्टिंग के लिए वेटिंग लिस्ट में है। उम्मीद थी कि कैबिनेट के बाद हो जाएगा, लेकिन नहीं। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। पहले भी सोनमणि बोरा, रिचा शर्मा को भी इंतजार करना पड़ा था। हालांकि इस दौरान कुछ हाई प्रोफाइल अफसर अच्छे विभाग को लेकर मंत्रियों से पुराने संबंध के आधार पर प्रयास करते हैं। उधर आईपीएस में यह दिक्कत नहीं रहती,उन्हें आने से पहले या आते ही पोस्टिंग आर्डर हाथ में दे दिया जा रहा है। सार यह कि इस मामले में आईएएस पर आईपीएस लॉबी भारी पड़ रही है।
शैलेश पाठक अब फिक्की में
छत्तीसगढ़ कैडर के पूर्व आईएएस शैलेष पाठक देश के सबसे बड़े उद्योग-व्यापार संगठन (फिक्की) के जनरल सेकेट्री बनाए गए हैं। आईएएस के 88 बैच के अफसर शैलेष पाठक महासमुंद कलेक्टर रहे हैं। इसके अलावा राज्यपाल के सचिव, आयुक्त जनसंपर्क और पीडब्ल्यूडी सचिव के रूप में काम कर चुके हैं। वे 2007 में अवकाश लेकर निजी क्षेत्र में चले गए थे। बाद में उन्होंने सेवा से त्याग पत्र दे दिया।
शैलेष पाठक आईएलएफएस, एलएनटी, आईडीपीएल सहित कई प्रमुख संस्थानों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। पाठक फिक्की में अधोसंरचना, शहरी विकास, वैश्विक पेंशन फंड के निवेश आदि का काम देखेंगे।
योग दिवस के अतिथि गण
किसी सरकारी आयोजन में मंत्री, सांसद, विधायक का नाम निमंत्रण पत्र में या शिलालेख में है या नहीं यह बहुत मायने रखता है। रायपुर में योगा के मुख्य समारोह के लिए जारी निमंत्रण पत्र पर हंगामा मचा ही है। इसमें जिले के सभी विधायकों के नाम हैं लेकिन नवनिर्वाचित सांसद बृजमोहन अग्रवाल का नाम छोड़ दिया गया है। यह इसलिये भी गंभीर मसला हो गया क्योंकि उनके समर्थक केंद्रीय मंत्रिमंडल में नाम नहीं आने से मायूस चल रहे हैं, फिर राज्य मंत्रिमंडल से भी तुरत-फुरत इस्तीफा हो गया, इसके बावजूद कि वे इस पद पर 6 माह तक बने रहने की इच्छा जता चुके थे।
इधर बिलासपुर में भी लोग असमंजस में पड़ गए कि यहां योग दिवस के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि कौन हैं? राज्य सरकार की ओर से 20 जून को बताया गया कि मुख्य अतिथि डिप्टी सीएम अरुण साव होंगे, लेकिन बिलासपुर जिला प्रशासन ने केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू को मुख्य अतिथि बनाया। डिप्टी सीएम का नाम विशिष्ट अतिथि की सूची में रखा गया। हालांकि मामले ने तूल इसलिये नहीं पकड़ा क्योंकि दोनों अभी राज्य और केंद्र सरकार के गुड बुक में हैं और तोखन साहू का तो साव से अलग कोई खेमा भी नहीं है। उनके समर्थक आपस में घुले-मिले हैं।
अब परीक्षा मंत्री की दरकार
नीट में राज्य के भी हजारों बच्चों ने अपने भविष्य को बेहतर बनाने की उम्मीद से परीक्षा दी थी। बालोद जिले में एक गड़बड़ी परीक्षा के दौरान देखने को मिली थी, जब उन्हें गलत प्रश्न पत्र बांट दिया गया और इसकी भरपाई के लिए अतिरिक्त समय नहीं दिया गया। इसके बावजूद बड़ी संख्या में ऐसे प्रतिभागी हैं जिन्हें न तो ग्रेस मार्क का लाभ मिला है और न ही पेपर लीक का फायदा, फिर भी अच्छा स्कोर लेकर आए हैं। उन्हें मेडिकल में दाखिले की उम्मीद है। पर पेंच सुप्रीम कोर्ट और अलग-अलग हाईकोर्ट में दायर मामलों के चलते काउंसलिंग की प्रक्रिया रुक गई है। परीक्षा कैंसिल हो जाने का डर भी सता रहा है। नीट क्लियर करने के लिए उन्होंने दिन-रात पढ़ाई की। परीक्षा रद्द होने की दशा में दोबारा उतना ही जोश कैसे लाएंगे, यह सोच कर चिंता से घिर गए हैं।
यह विवाद चल ही रहा है कि नेट-यूजीसी पात्रता परीक्षा भी रद्द कर दी गई। इसमें भी छत्तीसगढ़ के हजारों युवाओं ने भाग लिया है। वे भी सदमे में हैं। यह परीक्षा कॉलेजों में सहायक प्राध्यापकों की भर्ती के लिए पात्र बनाती है। परीक्षा लिए जाने के एक दिन बाद तक कोई शोरगुल नहीं था कि इसमें कहीं गड़बड़ी हुई है। पर, अचानक रद्द कर दी गई और सीबीआई जांच की घोषणा कर दी गई। उनकी मेहनत का कोई मुआवजा नहीं, फिर परीक्षा देने के लिए हौसला जुटाना है। ऐसे में खिन्न अभिभावकों की ओर से राय आ रही है कि देश को इस समय शिक्षा मंत्री की जरूरत नहीं है, परीक्षा मंत्री की है। जो कम से कम पूरा ध्यान परीक्षाओं के ठीक-ठीक आयोजित कराने में लगाए।
वन्यजीवों का योग
मनुष्यों ने जीवन शैली बदलकर आरामतलबी अपना ली तो उन्हें स्वस्थ रहने के लिये योग जरूरी लगने लगा। पर, वन्यप्राणियों को अपने आहार की व्यवस्था करने के लिए दिन-रात भाग दौड़, उछलकूद करनी पड़ती है। कभी-कभी जान बचाने के लिए पूरी ताकत से भागना भी पड़ता है। इसमें जो मानसिक और शारीरिक श्रम लगाना पड़ता है, उसके सामने योग के आसान कहीं नहीं लगते। (फोटो-प्राण चड्ढा) (rajpathjanpath@gmail.com)
मानसून सत्र की उहापोह
विधानसभा के मानसून सत्र की घोषणा हुए करीब सप्ताह भर हो गया है। सत्र की घोषणा स्वयं स्पीकर ने की थी। ऐसे में समझा जाता है कि सरकार ने सत्रावधि को अंतिम रूप देकर सहमति दी है। इस समझ के पीछे कारण भी कि स्पीकर ने सीएम हाउस में हुई बैठक के बाद यह घोषणा की। लेकिन अब तक अधिसूचना जारी नहीं की जा सकी है। इसे लेकर विधानसभा सचिवालय में बड़ी बेचैनी है। वैसे स्पीकर द्वारा घोषणा भी पहली बार हुई है। यह भी कहा जा रहा है कि क्या घोषित सत्रावधि सरकार के अनुकूल नहीं है। यदि नहीं तो क्या सरकार बदलाव करना चाह रही है। ऐसा करना भी विशेषाधिकार का मामला बन सकता है। उम्मीद की जा रही है कि कल कैबिनेट की बैठक में तिथियों को अंतिम रूप देकर अधिसूचना संबंधी फाइल विधानसभा भेज दी गई होगी, लेकिन नहीं। फाइल आने के बाद ,अधिसूचना जारी करने तक कई औपचारिकताएं करनी होती है। इसमें पूरा एक दिन लगता है। सरकार का संसदीय कार्य विभाग प्रस्ताव भेजता है, और उसे विधानसभा सचिवालय, राजभवन को। राज्यपाल की अनुमति के बाद अधिसूचना जारी की जाती है। वैसे विधानसभा सचिवालय ने प्रस्ताव आने की स्थिति में एक घंटे में अधिसूचना जारी करने की तैयारी कर रखी है, भले फाइल आधी रात को आए।
मोइली क्या निकालेंगे?
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई है। यह पहला मौका है जब हारे हुए नेताओं ने किसी पर दोषारोपण नहीं किया। और खामोशी से हार को स्वीकार कर लिया। अलबत्ता, पखवाड़े भर बाद ताम्रध्वज साहू ने चुप्पी तोड़ी, और उन्हें कोई नहीं मिला, तो हार के लिए ईवीएम पर दोषारोपण कर दिया। अब एआईसीसी ने छत्तीसगढ़ में पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए कर्नाटक के पूर्व सीएम वीरप्पा मोइली, और राजस्थान के नेता हरीश चौधरी को जांच कर रिपोर्ट देने के लिए कहा है। एआईसीसी से जुड़े लोगों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में कोई लहर नहीं थी। अलबत्ता, संविधान बचाओ-आरक्षण बचाओ की मुहिम के चलते कांग्रेस के पक्ष में अनुकूल माहौल था। और कम से कम चार सीटों पर जीत की उम्मीद थी। मगर ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस सिर्फ कोरबा सीट जीतने में कामयाब रही। यानी पिछले लोकसभा चुनाव से भी खराब प्रदर्शन रहा। जबकि यहां के बड़े नेता जीत को लेकर बढ़ चढक़र दावे कर रहे थे। स्थानीय कुछ नेताओं का दावा है कि साधन संपन्न नेताओं को उतारने की पार्टी रणनीति भारी पड़ गई। भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू, देवेन्द्र यादव, और डॉ. शिवकुमार डहरिया के खिलाफ बाहरी का मुद्दा भारी पड़ गया। स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ही अपनी पार्टी प्रत्याशियों का साथ नहीं दिया। लिहाजा, ये सभी बुरी तरह हार गए। देखना है कि मोइली कमेटी क्या कुछ करती है।
निगम-मण्डल ?
कल हुई कैबिनेट से पहले एक खबर आई कि निगम मंडलों में अध्यक्ष नियुक्ति की पहली सूची जारी हो सकती है । और इस पहली सूची में 13-14 नाम होने की भी चर्चा आम हुई। उम्मीद से बैठे भाजपा नेताओं में हलचल बढ़ गई। सभी टीवी न्यूज चैनल, पोर्टल के स्क्रीन पर नजरें लगाए बैठे रहे। इस दौरान कुछेक नाम भी सामने आए। एक पूर्व सांसद, एक पूर्व विधायक आदि आदि।
कहते हैं कि पूर्व सांसद ने मना कर दिया। पूर्व विधायक उत्कृष्ट रह चुके हैं लेकिन उनकी विधानसभा में भाटापारा वाले युवा पंडित की घुसपैठ से इस बार टिकट नहीं मिली। शुरुआती नाराजगी के बाद पहले विस, फिर लोस में जमकर मेहनत की। और अब लालबत्ती की दहलीज पर हैं। इसी तरह से पहले 2018 फिर 23 में टिकट खो चुके एक और नेता भी निगम अध्यक्ष बनने जुटे हुए हैं। कभी चार स्तंभ में से एक के मुखिया रहे हैं। इस पर हाई और लो प्रोफाइल का प्रश्न उठाने वालों को बता दे कि भाजपा में मुख्यमंत्री, बाद में मंत्री (स्व. बाबूलाल गौर) भी रह चुका है। वैसे ये नेता उसी निगम का अध्यक्ष बनना चाहते हैं जिसके वो पूर्व में एक बार रह चुके हैं। देखना यह है कि सूची से किसकी लॉटरी निकलती है।
निगम-मंडलों में नियुक्ति अभी दूर
लोकसभा चुनाव के बाद हुई पहली कैबिनेट बैठक में प्रदेश के जिन पांच प्राधिकरणों का स्वरूप तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल में बदल दिया गया था, उसे फिर से उसी ढांचे में लाने का निर्णय लिया गया, जैसे पहले की भाजपा सरकार के समय थी। इन प्राधिकरणों का जो कार्यक्षेत्र हैं, वहां के कुछ विधायकों को प्राधिकरण में उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालने का मौका मिलेगा। पर बाकी निगम- मंडलों में नियुक्तियों का कोई प्रस्ताव नहीं आया, न ही इस पर चर्चा हुई। विधानसभा चुनाव को 6 माह बीत चुके, इस दौरान लोकसभा चुनाव पार हो गया। दोनों ही चुनावों में भाजपा को बड़ी जीत मिली। अब कार्यकर्ताओं को इंतजार है सत्ता के साथ जुडऩे के मौके का। मगर, ऐसा लगता है कि कुछ इंतजार और करना पड़ सकता है। नगरीय निकायों के चुनाव हो जाने तक भी खिंच सकता है। आयोग, निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्तियां होने से सरकार का खर्च बढ़ेगा। एक यह तर्क भी दिया जा रहा है कि विधानसभा चुनावों में की गई घोषणाओं के चलते सरकार वित्तीय दबाव में है। इसे पहले ठीक किया जाएगा, फिर सोचा जाएगा, कब लें, किस मापदंड से लें। जीते-हारे विधायकों को लेना है या नहीं, भाजपा में हाल के चुनावों के समय कांग्रेस या दूसरे दलों से आए लोगों को लेना है या नहीं, जैसे कई सवाल हैं। पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में तो नियुक्तियों का सिलसिला तो दो साल बाद ही शुरू हो सका था और आखिरी पांचवे साल तक चलता रहा। इसलिये अभी समय धैर्य रखने का है।
शिक्षकों के बिना प्रवेशोत्सव
विधानसभा में इस साल मार्च महीने में लोक शिक्षण संचालनालय की ओर से दिए गए आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के स्कूलों में 33 हजार से अधिक शिक्षकों की कमी है। स्थिति यह है कि लगभग 5500 स्कूल केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं वहीं 600 से अधिक स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है। एक शिक्षक वाले स्कूल बस्तर और कोंडागांव जिले में अधिक हैं। दूसरी ओर रायपुर और महासमुंद जैसे जिले हैं, जहां 800-800 शिक्षक स्वीकृत पद से अधिक संख्या में तैनात हैं। सरकार ने 33 हजार शिक्षकों की नियुक्तियों के लिए सहमति तो दे दी है, पर अब तक आवश्यक वित्तीय स्वीकृति नहीं मिल सकी है। बुधवार को शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने मंत्री के रूप में जो अंतिम समीक्षा बैठक ली उसमें भी यह बात साफ हुई। विज्ञापन वित्त विभाग की स्वीकृति के बाद ही जारी हो सकेंगे। उसके बाद कई चरणों में नियुक्ति की प्रक्रिया चलेगी। प्रक्रिया बिना व्यवधान के आगे बढ़ भी गया तो शिक्षकों की ज्वाइनिंग जब तक होगी, सत्र आधा बीत चुका होगा। फिलहाल, 26 जून को स्कूल खुलते ही प्रवेशोत्सव मनाने की तैयारी चल रही है।
मंदिर में भालू का आना-जाना
वन्य जीवों और मनुष्यों के बीच अच्छी समझ बन जाती है तो वे एक दूसरे का ख्याल रखने लगते हैं, हमले का डर खत्म हो जाता है। एमसीबी जिले के भरतपुर ब्लॉक के भगवानपुर स्थित एक मंदिर में एक भालू नियमित रूप से पहुंचता है। उसे जो भोग प्रसाद मिल जाए, खा लेता है और कुछ देर घूमने के बाद वापस भी लौट जाता है। मंदिर में आने-जाने का वह इतना अभ्यस्त हो गया है कि वह मौजूद लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता। लोग भी उसका ख्याल रखते हैं कि जंगल से मंदिर तक आने जाने के दौरान कोई उसे तंग न करे। भालू की इस मौजूदगी ने इस मंदिर को चर्चा में ला दिया है। और मंदिर प्रबंधन सहित गांव के लोग खयाल रखते हैं कि जंगल से मंदिर के बीच उसे कोई तकलीफ न हो। (rajpathjanpath@gmail.com)
जानी-पहचानी अपनी पुरंदेश्वरी
लोकसभा स्पीकर के लिए जिन नामों की प्रमुखता से चर्चा चल रही है, उनमें प्रदेश भाजपा की पूर्व प्रभारी डी पुरंदेश्वरी शामिल हैं। डी पुरंदेश्वरी राजमुंदरी सीट से सांसद बनी है। पुरंदेश्वरी को सीनियर होने के बाद भी मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिली, लेकिन उन्हें अहम जिम्मेदारी मिलने की चर्चा है।
पुरंदेश्वरी भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। इससे परे लोकसभा स्पीकर के लिए आम सहमति बनाने की कोशिश हो रही है। इसमें पुरंदेश्वरी को फिट माना जा रहा है। वजह यह है कि पुरंदेश्वरी पहले कांग्रेस में थी, और डॉ.मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रही हैं। कांग्रेस नेताओं से उनके अच्छे रिश्ते हैं। यही नहीं, एनडीए के घटक दल टीडीपी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू उनके बहनोई हैं। ऐसे में कई लोगों का मानना है कि पुरंदेश्वरी के लिए सहमति बनाने में ज्यादा कोई दिक्कत नहीं आएगी।
पुरंदेश्वरी का नाम की चर्चा से छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता काफी खुश हैं। पुरंदेश्वरी करीब दो साल के कार्यकाल में निचले स्तर के कार्यकर्ताओं तक अपनी पहुंच बना ली थी। प्रदेश के कई नेता अब भी उनके संपर्क में रहते हैं। ऐसे में पुरंदेश्वरी स्पीकर बनती हैं, तो संसद भवन में आना जाना आसान हो जाएगा। देखना है आगे क्या होता है।
दोनों का विभाग एक !
केन्द्रीय मंत्रिमंडल में तोखन साहू को जगह मिलने से राज्य को काफी उम्मीदें हैं। वैसे केंद्र में राज्यमंत्री के पास ज्यादा फाइलें नहीं आती है, और ज्यादा प्रभावशाली नहीं रह पाते। आम तौर पर कई कैबिनेट मंत्री विभाग अपने पास रखते हैं, और कार्य विभाजन नहीं करते हैं। इसके कारण कई राज्य मंत्रियों के लिए यह पद एक तरह से झुनझुना रह जाता है। मगर तोखन साहू का मामला अलग है।
तोखन के पास आवास एवं शहरी मामलों का मंत्रालय है। हरियाणा के पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर उनके कैबिनेट मंत्री हैं। खट्टर बहुत अच्छे व्यक्ति माने जाते हैं। वो संगठन के काम से कई बार यहां आ चुके हैं। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि मंत्री के रूप में तोखन साहू को पूरे अधिकार मिलेंगे, और राज्य के लिए काफी कुछ प्रोजेक्ट ला सकते हैं।
इससे परे लोकसभा चुनाव के दौरान अरूण साव पूरे प्रदेश के दौरे पर रहे पर बिलासपुर सीट पर उनकी सक्रियता कम रही। इसे लेकर संगठन के स्तर पर कई नेताओं ने शिकायती लहजे में उठाया भी था। यह भी एक वजह मानी जा रही है।
तोखन साहू को केंद्रीय राज्यमंत्री बनाकर भाजपा संगठन ने नया समीकरण बना दिया है। लोरमी सीट से जीतकर अरुण साव डिप्टी सीएम बने। उसी लोरमी के रहने वाले तोखन केंद्र में राज्य मंत्री बनाए गए हैं। दोनों के विभाग के एक ही हैं। अब राज्य के नगरीय विकास के प्रोजेक्ट लेकर अरुण साव दिल्ली जाएँगे, तो पहले तोखन साहू के साथ बैठेंगे, फिर दोनों कैबिनेट मंत्री मनोहरलाल के पास जाएँगे।
रायपुर से एक मंत्री पक्का
बृजमोहन अग्रवाल का विधानसभा की सदस्यता से दिया इस्तीफा मंजूर हो गया है। आज-कल में मंत्री पद भी छोड़ देंगे। कैबिनेट में एक सीट खाली होगी तो रायपुर से एक सीट मिलनी तय है। दूसरी सीट दुर्ग जाएगी। रायपुर में जो चर्चा है, उसके मुताबिक ओडिय़ा समाज के पुरंदर मिश्रा का नाम राजभवन से लेकर राष्ट्रपति भवन तक है। दरअसल, यह नाम इसलिए भी चर्चा में है, क्योंकि डिप्टी सीएम और केंद्रीय राज्यमंत्री का पद साहू समाज को मिल चुका है। ऐसी स्थिति में मोतीलाल साहू का समीकरण कमजोर हुआ है। संगठन ने वर्तमान में जो क्राइटेरिया तय किया है, उसमें राजेश मूणत को लेकर ऊहापोह चल रहा है । एक और खाली सीट आरएसएस और ओबीसी के कोटे से दुर्ग संभाग में जाने के संकेत है। वहीं कुर्मी समाज के कोटे को लेकर मंथन खत्म नहीं हो रहा। इस कोटे से अजय चंद्राकर और धरमलाल कौशिक दावेदारी है।
पुलिस की भाषा कैसी हो?
उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री विजय शर्मा ने अफसरों को पत्र लिखकर कहा है कि राज्य पुलिस ऐसे शब्दों को अपने डिक्शनरी से हटाए जो आम लोगों की समझ से नहीं आता। इनकी जगह पर हिंदी के सरल शब्द प्रयोग में लाए जाएं। सन् 1861 में जब अंग्रेजों का कानून लागू हुआ था, तब कोर्ट-कचहरी और पुलिस के दस्तावेजों में उर्दू और फारसी शब्द बहुतायत से शामिल किए गए। आम बोलचाल में बहुत से शब्द शुद्ध हिंदी से कहीं अधिक प्रभावी हैं। जैसे- न्यायालय को कोर्ट या कचहरी कहना ज्यादा आसान लगता है। अधिवक्ता को तो हर कोई वकील ही कहता है। निरीक्षक, थानेदार और प्रधान आरक्षक, हवलदार कहे जाते हैं। अपराधी को मुजरिम कहा जाता है। व्यक्तिगत बंध पत्र को मुचलका, आधिपत्य को कब्जा, बिना मंशा के, को गैर इरादतन। हत्यारे को कातिल, अभिरक्षा को हिरासत, प्रत्यक्षदर्शी को चश्मदीद , दैनिक डायरी को रोजनामचा और प्रथम सूचना रिपोर्ट को एफआईआर।
मगर बहुत से शब्द ऐसे भी हैं जो आम लोगों की समझ से बाहर हैं या फिर समझने में जोर लगाना पड़ता है- जैसे इस्तगासा, मसरूका, नकबजनी। और इसी तरह के अनेक।
मंत्री ने हिंदी का इस्तेमाल करने कहा है तो उम्मीद करनी चाहिए कि बदलाव करने वाले अफसर उनकी मंशा को समझेंगे। ऐसा नहीं हो कि हिंदी में ऐसे शब्दों का चयन किया जाए जो चलन में न हो। शासकीय कार्यालयों, खासकर केंद्रीय कार्यालयों की हिंदी में ऐसा देखा गया है।
लोगों का यह भी मानना है कि लिखने की भाषा से ज्यादा जरूरी है, पुलिस को बोलने की भाषा में सुधार लाने के लिए कहा जाए।
वैसे भी एक जुलाई से नई न्याय संहिता लागू होने जा रही है। लिखा-पढ़ी के बहुत से बदलाव इसके आने के बाद अपने आप ही आ जाएंगे।
पानी सहेजने पहाड़ काटे
प्रदेश के दूसरे कई जिलों की तरह राजनांदगांव भी पेयजल संकट से जूझ रहा है। यहां के गांवों में व्याप्त पेयजल और निस्तारी की समस्या पर तो हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर कर दी गई है। पर, राजनांदगांव में जल स्तर दुरुस्त करने के लिए एक बड़ी पहल भी इस गर्मी में की गई। यहां के 42 पंचायतों ने बारिश का पानी जमा करने के लिए 2.25 लाख छोटे-छोटे गड्ढे बनाए हैं। जिले की 111 पहाडिय़ों पर यह काम हुआ है, जिसमें 11 लाख श्रम दिवस मजदूरों की जरूरत पड़ी। जिला पंचायत ने मनरेगा के तहत जल रक्षा अभियान चलाया है। पहाडिय़ों का पानी ठहरता नहीं, नदी-नालों के रास्ते से बह जाता है। कोशिश यह की गई है कि इन गड्ढों के बन जाने से पानी रुकेगा, मिट्टी रिचार्ज होगी और भू जल स्तर सुधारने में मदद मिलेगी। यह प्रयोग सफल है या नहीं इस बार बारिश में पता चलेगा। (rajpathjanpath@gmail.com)
बृजमोहन ने खड़े किए सवाल
सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने सोमवार को पार्टी के विधायकों के संग जाकर स्पीकर डॉ. रमन सिंह को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा तो दे दिया है, लेकिन मंत्री पद नहीं छोडऩे से राजनीतिक हलकों में बहस छिड़ गई है। पूर्व महाधिवक्ता, और संविधान विशेषज्ञ कनक तिवारी ने फेसबुक पर लिखा कि इसमें कोई शक नहीं बृजमोहन अग्रवाल ने मंत्री पद से इस्तीफा को लेकर नई संवैधानिक चुनौती पेश की है। पार्टी मुख्यमंत्री और संविधान के लिए।
संसदीय मामलों के कुछ जानकारों का मानना है कि तकनीकी तौर पर बृजमोहन छह महीने तक मंत्री पद पर रह सकते हैं। इसमें कोई अड़चन नहीं है। भाजपा के अंदर खाने में भी इस मसले पर चर्चा हुई है। हल्ला है कि बृजमोहन को स्पीकर डॉ. रमन सिंह ने सुझाव दिया है कि जुलाई में होने वाले मानसून सत्र तक उन्हें मंत्री बने रहना चाहिए।
दूसरी तरफ, बृजमोहन के मसले पर कांग्रेस की राय बटी हुई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने बृजमोहन की बर्खास्तगी की मांग कर दी है। जबकि पूर्व मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया उन्हें कांग्रेस में शामिल होने तक न्योता दिया है। वो एक कदम आगे जाकर कह रहे हैं कि बृजमोहन कांग्रेस में जो चाहेंगे, मिलेगा। इन चर्चाओं के बीच कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि लोकसभा की सदस्यता लेने से पहले बृजमोहन मंत्री पद छोड़ सकते हैं। इससे परे कुछ लोग इस मसले पर पीआईएल भी दायर करने की सोच रहे हैं। चाहे कुछ भी हो, बृजमोहन ने एक बहस छेड़ दी है। और वो मंत्री बने रहने तक सुर्खियों में रहेंगे।
सीएम का बढ़ा रुतबा
लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद पार्टी के भीतर सीएम विष्णुदेव साय का कद बढ़ा है। और वो जिस कार्यक्रम में जा रहे हैं, वहां पार्टी के नेता, और कार्यकर्ता उत्साह से स्वागत भी कर रहे हैं। साय कार्यकर्ताओं को पूरा सम्मान भी दे रहे हैं। ऐसे ही पड़ोस के जिले में पार्टी के जिलाध्यक्ष ने सीएम के साथ हेलीकॉप्टर यात्रा करने की इच्छा जताई।
जिलाध्यक्ष ने इस सिलसिले में स्थानीय सांसद से बात की। सांसद ने जिलाध्यक्ष की भावनाओं को सीएम तक पहुंचाया। सीएम ने तुरंत उन्हें बुलवाया, और अपने साथ हेलीकॉप्टर से रायपुर ले आए। जिलाध्यक्ष की हेलीकॉप्टर में घूमने की इच्छा पूरी की। इसके बाद जिलाध्यक्ष खुशी-खुशी बस से वापस अपने घर पहुंचे। कुछ ऐसा ही अंदाज मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री रहे डीपी घृतलहरे का भी था।
दिग्विजय सिंह सरकार में घृतलहरे विमानन मंत्री थे। उस वक्त वो हेलीकॉप्टर लेकर अपने विधानसभा क्षेत्र मारो पहुंचे। और कुछ कार्यकर्ताओं की हेलीकॉप्टर से घूमने की इच्छा पूरी की। घृतलहरे काफी लोकप्रिय भी थे। और जब उन्हें टिकट नहीं मिली, तो वो 1998 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय मैदान में कूद गए। और कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत जब्त करवा दी। बाद में राज्य बनने के बाद जोगी सरकार में मंत्री भी रहे।
दिल्ली के लिए किसका रास्ता खुलेगा
मोदी 3.0 में तोखन साहू को जगह मिलने के साथ ही छत्तीसगढ़ का कोटा क्लोज हो चुका है। अब सबकी निगाह संगठन चुनाव की ओर है। जेपी नड्डा केंद्र में मंत्री बनाए गए हैं। 24 जून तक उनका कार्यकाल खत्म होना है। इससे पहले नए राष्ट्रीय अध्यक्ष और महामंत्री जैसे प्रमुख पदाधिकारियों की नियुक्ति हो सकती है । जाहिर है कि छत्तीसगढ़ से भी कुछ नेताओं को मौका मिल सकता है। संभवत: आठ बार के विधायक और रिकॉर्ड मतों से जीतने वाले बृजमोहन अग्रवाल को केंद्रीय संगठन में जगह मिल जाए। उन्हें चुनाव प्रबंधन में माहिर माना जाता है। वे राजनाथ सिंह के लिए पहले गाजियाबाद और फिर लखनऊ में कमान संभाल चुके हैं। प्रदेश में भी कई उपचुनाव जिताने में मुख्य रणनीतिकार रहे हैं। ऐसा होता है तो भी वे मोदी, शाह से निकटता हासिल कर सकेंगे। वहीं सरोज पांडेय को भी संगठन में मौका मिल सकता है। इसके अलावा संतोष पांडे, विजय बघेल को भी संगठन में एडजस्ट किया जा सकता है। और भी कुछ नाम हो सकते हैं, जिन्हें केंद्र या राज्य के मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। इनमें धरम लाल कौशिक, अजय चंद्राकर, अमर अग्रवाल हो सकते हैं।
कलेक्टर-एसपी के तबादले सत्र के पहले
विधानसभा के मानसून सत्र से पहले सरकार कुछ जिलों में कलेक्टर एसपी के तबादले कर सकती है। बलौदा बाजार की घटना के बाद सरकार ने कलेक्टर-एसपी को हटाने के साथ ही दूसरे जिलों में पड़ताल शुरू कर दी है। ऐसा माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में कमजोर प्रदर्शन वाले जिलों के कलेक्टर-एसपी बदले जा सकते हैं। कुछ जगहों पर कार्यकर्ताओं की भी अफसरों को लेकर शिकायतें हैं। तबादले में इन्हें भी ध्यान में रखा जाएगा। वैसे करीब तीन महीने बाद कैबिनेट की बैठक होने वाली है। इसमें से भी कुछ संकेत बाहर निकलेंगे।
पूर्व मंत्री जयसिंह अकेले नहीं..
लोकसभा चुनाव में कोरबा विधानसभा सीट से कांग्रेस पीछे रह गई। बाकी सीटों पर उसने लीड ली। भाजपा की विधानसभा में जीत वाली सीटों से भी अंतर पाट दिया। अब नतीजा आने के करीब 12-13 दिन बाद पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल का बयान आया है। उनका कहना है कि विधानसभा चुनाव के पहले उन्होंने कुछ बातें उठाई थी, यदि सुन ली गई होती तो हार नहीं होती। पर उन्हें इस बात की तसल्ली होनी चाहिए कि उस चुनाव में हारने वाले वे अकेले मंत्री नहीं थे। 9 मंत्री हार गए थे। डिप्टी सीएम भी और तत्कालीन मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले मंत्रीगण भी। इसलिये सुनने बताने का कोई फर्क पडऩे वाला नहीं था। बस, मुश्किल यही रही कि लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने गलतियां नहीं सुधारी और नतीजा विपरीत आया। कोरबा की ही तरह अधिकांश हारे हुए मंत्रियों के इलाके में लोकसभा चुनाव में भी हार का अंतर नहीं पाटा जा सका। जो लड़े वे हार गए।
नदी पार कराएगा रोपवे
बस्तर में दर्जनों गांव ऐसे हैं जिनका संपर्क बारिश के दिनों में स्कूल, अस्पताल और बाजार से कट जाता है। हर साल कई हादसे उफनती नदी-नालों को पार करने के दौरान होते हैं। इसी बस्तर में आईटीबीपी के सहयोग से सीआरपीएफ ने एक पहल की है। बीजापुर के चिंतावागु नदी पर उन्होंने एक 200 मीटर लंबा रोप वे बनाया है। इसे बनाने के लिए 22 इंजीनियरों ने करीब दो माह कड़ी मेहनत की। कुछ दिन पहले इसे शुरू कर दिया गया है। अब इस बारिश में आसपास के कई गांवों के ग्रामीण अपनी जरूरत में इसका इस्तेमाल कर सकेंगे। (rajpathjanpath@gmail.com)