राजपथ - जनपथ
कथावाचक के जरिये सीएम से गुहार
अगस्त के पहले सप्ताह में राजनांदगांव में हुए प्रख्यात कथावाचक पं. प्रदीप मिश्रा के शिवपुराण कार्यक्रम के आयोजकों में से एक मेजबान ने राज्य सरकार की लालबत्ती की पहली सूची में जगह पाने के लिए प्रदीप मिश्रा के जरिये सरकार से गुहार लगाई है। पं. मिश्रा के सप्ताहभर के कार्यक्रम में लालबत्ती इच्छुक मेजबान को खास मौके की तलाश थी।
पंडितजी से मिलने आए सीएम विष्णुदेव साय तक अपनी फरियाद पहुंचाने मेजबान को एक शानदार अवसर मिल गया। पं. प्रदीप मिश्रा ने मेजबान की ख्वाहिश को एक पत्र के माध्यम से सीएम तक लगे हाथ पहुंचा भी दिया। पंडित मिश्रा से अच्छे रिश्ते का फायदा उठाने के लिए मेजबान व्यक्ति ने मौका देकर चौका लगा दिया।
सुनते हैं कि सीएम को चि_ी देने की भनक भाजपा के कई खाटी नेताओं को बाद में लगी। अब लालबत्ती की उम्मीद में बैठे भाजपा नेताओं के मन में इस बात की धुकधुकी भी हो रही है कि कहीं ग्रामीण परिवेश के मेजबान के हाथ लाटरी न लग जाए। बताते हैं कि सीएम ने मेजबान की गुहार को लेकर खास संकेत नहीं दिया, अलबत्ता प्रवचनकर्ता के हाथों अपनी नैया पार होने की मेजबान को पूरा भरोसा है।
भाजपा सदस्यता और बैस !!
भाजपा का सदस्यता अभियान शुरू हो रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी दिल्ली में पार्टी की सदस्यता का नवीनीकरण कराएंगे। इससे परे सभी प्रदेशों में पार्टी के नेता भी अपनी सदस्यता का नवीनीकरण कराएंगे। छत्तीसगढ़ में भी सीएम विष्णुदेव साय, और सरकार के मंत्री व प्रमुख नेता तीन सितंबर को पार्टी की सदस्यता लेंगे।
छत्तीसगढ़ में पूर्व राज्यपाल रमेश बैस पर नजर है। यह अभी साफ नहीं है कि बैस पार्टी की सदस्यता लेंगे अथवा नहीं। पिछले दिनों दिल्ली में बैस की पीएम मोदी, और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात हो चुकी है। हालांकि शाह पिछले दिनों रायपुर में तीन दिन रूके तो रमेश बैस से मुलाकात नहीं हो पाई।
बताते हैं कि शाह के स्वागत के लिए बैस का नाम सूची में था, लेकिन पास उन तक नहीं पहुंच पाया। इसलिए वो स्वागत के लिए नहीं जा पाए। सात बार के सांसद बैस की पार्टी क्या कुछ उपयोग करेगी, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
जिम्मा बृजमोहन पर ही होगा?
सांसद बृजमोहन अग्रवाल की विधानसभा सीट रायपुर दक्षिण पर कब्जा बरकरार रखने के लिए भाजपा एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। उपचुनाव के तारीख की घोषणा भले ही नहीं हुई है, लेकिन संगठन ने प्रभारी नियुक्त करना शुरू कर दिया है।
वैसे तो प्रदेश उपाध्यक्ष शिवरतन शर्मा, और स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल को चुनाव का प्रभारी बनाया है, लेकिन प्रदेश संगठन ने वार्ड स्तर पर प्रभारी नियुक्त करना शुरू कर दिया है। सभी पार्षदों को उनके वार्ड का प्रभारी बनाया गया है, और हारे हुए प्रत्याशियों को उनके अपने वार्ड में जिम्मेदारी दी जा रही है।
प्रचार की कमान खुद बृजमोहन अग्रवाल संभालेंगे, और टिकट के दावेदार भी उनके दरवाजे मत्थे टेक रहे हैं। संगठन के रणनीतिकारों ने संकेत दिए हैं कि बृजमोहन की पसंद को ही तवज्जो दिया जा सकता है। यही वजह है कि दावेदार अपने समर्थकों के साथ उनसे मिल रहे हैं। विधानसभा उपचुनाव की घोषणा अगले कुछ दिनों में हो सकती है। इसके बाद चुनावी हलचल तेज होने के आसार हैं।
टीकाकरण का विरोध
छत्तीसगढ़ के कोटा तहसील में मलेरिया से चार मौतें हाल ही में हुई। कहीं पर झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज से यह नौबत आई थी तो कहीं सरकारी अस्पतालों में समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण। इसके बाद बिलासपुर कलेक्टर ने अस्पतालों की कॉम्बिंग चेकिंग कराई गई तो ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों से दर्जनों स्टाफ और डॉक्टर गायब पाए गए। कुछ लोगों का नोटिस दी गई, कुछ का वेतन काटा गया। अब इसी क्षेत्र में आंगनबाड़ी में टीकाकरण के बाद दो नवजातों की मौत हो गई और पांच शिशुओं की तबीयत खराब हो गई। ये टीके भविष्य में होने वाली बीमारियों से रोकथाम के लिए होती हैं। इस घटना का एक बुरा असर यह हुआ है कि अब टीका लगाने के लिए गांव पहुंचने वाले कार्यकर्ताओं का विरोध हो रहा है। माताओं को टीके के लिए समझाना मुश्किल हो गया है। वे मना कर रही हैं। जो होगा बाद में देख लेंगे। अभी तो अपने बच्चों की जान को खतरे में नहीं डालेंगे।
कोटा से लगे तखतपुर ब्लॉक में कुछ साल पहले नसबंदी कराने के बाद 13 महिलाओं की जान चली गई थी। इसके बाद पूरे प्रदेश में महिला नसबंदी पर असर पड़ा था। पुरुष नसबंदी का प्रतिशत तो कम रहता ही है। उस घटना के बाद कैंप लगाने और नसबंदी का लक्ष्य देने के सिलसिले पर रोक लग गई थी। जनसंख्या नियंत्रण के राष्ट्रीय कार्यक्रम को इस घटना से बड़ा नुकसान हुआ। दो शिशुओं की मौत के बाद टीकाकरण का विरोध यहां हो रहा है, मगर स्वास्थ्य विभाग को शायद इसकी परवाह नहीं है।
मोबाइल कैमरे के जमाने में...
हर हाथ में मोबाइल फोन होने से हर कोई फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी कर सकता है, लेकिन इस तस्वीर में मौजूद लोग दिखाते हैं कि असली फोटोग्राफी एक गंभीर और श्रमसाध्य कला है, जो तकनीकी कौशल और रचनात्मकता की मांग करती है। इसके लिए, दृष्टि, धैर्य और सही समय की गहरी समझ की आवश्यकता होती है। हर क्लिक के पीछे एक कहानी, एक अनुभव छिपा होता है, जिसे एक अनुभवी फोटोग्राफर ही समझ सकता है। जंगल सफारी रायपुर की यह तस्वीर पुरुषोत्तम सिंह ठाकुर ने सोशल मीडिया पर पोस्ट की है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
देवेंद्र वर्मा का महत्व वहां समझा
छत्तीसगढ़ विधानसभा के प्रमुख सचिव रहे देवेन्द्र वर्मा को मध्यप्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी मिली है। उन्हें संसदीय सलाहकार बनाया गया है। देवेन्द्र वर्मा अपने अपार संपर्कों, और संसदीय ज्ञान के लिए जाने जाते हैं।
देवेन्द्र वर्मा के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय, और बृजमोहन अग्रवाल जैसे दिग्गजों से घनिष्ठता रही है। और जब गौरीशंकर अग्रवाल विधानसभा के अध्यक्ष बने, तो उन्हें प्रमुख सचिव पद पर फिर से एक्सटेंशन देने की बात आई, लेकिन गौरीशंकर अग्रवाल राजी नहीं हुए।
हालांकि देवेन्द्र वर्मा को अध्यक्ष का सलाहकार पद की पेशकश की गई थी। लेकिन देवेन्द्र वर्मा तैयार नहीं हुए। इसके बाद भोपाल शिफ्ट हो गए। मध्यप्रदेश में नरेन्द्र सिंह तोमर के विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद देवेन्द्र वर्मा को अहम जिम्मेदारी मिलने की चर्चा रही। देवेन्द्र वर्मा का मध्य प्रदेश सरकार के ताकतवर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से घरोबा है। साथ ही सीएम मोहन यादव से भी अच्छे रिश्ते हैं। तमाम समीकरण उनके अनुकूल थे। इस वजह से उन्हें संसदीय सलाहकार बनाने में कोई दिक्कत नहीं हुई।
यहां भी होंगे सलाहकार?
छत्तीसगढ़ में भी संसदीय सलाहकार की नियुक्ति की चर्चा है। रमन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल में मध्यप्रदेश विधानसभा के अफसर अशोक चतुर्वेदी को संसदीय सलाहकार बनाया गया था। इसके बाद वे लगातार पद पर बने रहे।
भूपेश सरकार ने अपने करीबी राजेश तिवारी को संसदीय सलाहकार बनाया था। साय सरकार ने अब तक किसी की नियुक्ति नहीं की, लेकिन कई नाम चर्चा में हैं। कुछ लोगों ने फिर चतुर्वेदी का नाम सुझाया है। इससे परे डॉ. सत्येन्द्र तिवारी के नाम की चर्चा है।
डॉ. तिवारी छत्तीसगढ़ विधानसभा के सचिव रहे हैं, और संसदीय विषयों पर उनकी गहरी पकड़ है। वर्तमान में प्रशासन अकादमी में उनका लेक्चर होता है। इसी तरह डॉ. चंद्रशेखर गंगराडे के नाम की भी चर्चा है। देखना है कि साय सरकार किसे संसदीय सलाहकार बनाती है।
अच्छी साख वाले दो बढ़ेंगे
सरकार में जल्द ही एक प्रशासनिक फेरबदल हो सकता है। आईएएस के वर्ष-2005 बैच के अफसर रजत कुमार संभवत: अगले हफ्ते मंत्रालय में जॉइनिंग दे देंगे। इसी तरह पीएमओ में संयुक्त सचिव रहे आईएएस के वर्ष-03 बैच के अफसर डॉ. रोहित यादव भी हफ्ते-दस दिन में यहां जॉइनिंग दे रहे हैं।
दोनों अफसरों की वजह से प्रशासनिक फेरबदल होने की चर्चा है। रजत कुमार, रमन सिंह सरकार में सीएम सचिवालय में रहे हैं। वे कई अहम पदों पर काम कर चुके हैं। इसी तरह डॉ. रोहित यादव भी रायपुर, राजनांदगांव जिले के कलेक्टर रहे हैं। दोनों अफसरों की साख अच्छी है। लिहाजा, उन्हें अहम जिम्मेदारी मिल सकती है।
राज्यपाल की सक्रियता
राज्यपाल रमेन डेका ने कल बिलासपुर में अफसरों की बैठक ली और उसी तरह से अधिकारियों को निर्देश दिया जैसा मुख्यमंत्री, मंत्री देते हैं। उन्होंने स्वास्थ्य, किसान, अपराध से जुड़े मुद्दों पर कई सवाल-जवाब किए। बिलासपुर से पहले वे दुर्ग और महासमुंद में भी बैठक ले चुके हैं। छत्तीसगढ़ में ऐसा माहौल नया है। राज्यपाल प्राय: अधिकारियों को सीधे निर्देश देने से बचते हैं। किसी विषय पर यदि उन्हें हस्तक्षेप जरूरी लगता है तो वे मुख्यमंत्री या मंत्रालय के अधिकारियों के माध्यम से अपनी बात रखते रहे हैं। जैसे पूर्व राज्यपाल अनुसूईया उइके ने सूपेबेड़ा का दौरा करके फैली किडनी की बीमारी को लेकर चिंता जताई थी। चूंकि राज्य में भाजपा की सरकार है और केंद्र की ओर से नियुक्त राज्यपाल से उनका कोई टकराव नहीं है, इसलिए उनकी सक्रियता को लेकर कोई सवाल नहीं उठ रहा है। पर, यदि केंद्र और राज्य में सरकार परस्पर विरोधी दलों की होती तो इसे दखलंदाजी करार दे दिया जाता और काफी हंगामा खड़ा हो जाता। अब तो इंतजार किया जाना चाहिए कि किस दिन वे मंत्रालय में ऐसी बैठक बुलाते हैं।
खूबसूरती सबका हक
इस तस्वीर में भैंस मानो अपनी बारी का इंतजार कर रही हो। शायद सोच रही है कि आज जरा मेकओवर करवा ही लिया जाए, आखिर खूबसूरती पर तो सबका हक है! अब देखना यह है कि इस पार्लर की खूबसूरती भैंस पर चढ़ती है या उसकी मासूमियत पार्लर पर भारी पड़ती है। (सोशल मीडिया से)
(rajpathjanpath@gmail.com)
पुराने बक्से खुले नहीं, नई खऱीदी!!
प्रदेश के कई सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर की कमी है। रायपुर के डीकेएस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल प्रबंधन ने पिछले दिनों एक उच्चस्तरीय बैठक में 50 वेंटिलेटर उपलब्ध कराने मांग की। इस पर बैठक में मौजूद स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल चौंक गए। उन्हें एक समीक्षा बैठक में बताया गया था कि कोरोना काल में तकरीबन सभी जिलों में बड़ी संख्या में वेंटिलेटर की खरीदी हुई है। हाल यह है कि कई वेंटिलेटर के बक्से खुल नहीं पाए हैं। ऐसे में फिर खरीदी प्रस्ताव पर सवाल खड़े किए। इसके बाद उन्होंने निर्देश दिए कि सभी जिलों में वेंटिलेटर का सत्यापन किया जाएगा, और जहां उपलब्ध नहीं है, वहां अतिशेष वेंटिलेटर भेजे जाएंगे।
राजधानी रायपुर के इस मकान मालिक के बोर्ड को देखकर वन्यप्राणी विभाग के लोग पहुंच सकते हैं कार्रवाई करने के लिए!
मेघालय से आ रहीं प्रभारी
एआईसीसी ने छत्तीसगढ़ के प्रभारी सचिव चंदन यादव और सप्तगिरी उल्का की जगह मेघालय की श्रीमती जारिता लैटफलांग और एस.ए.सम्पत कुमार की नियुक्ति की है। सम्पत कुमार तेलंगाना के पूर्व विधायक हैं, और वो छत्तीसगढ़ की सीमा के नजदीक महबूब नगर के रहवासी हैं।
संकेत साफ है कि सम्पत कुमार का उपयोग बस्तर में कांग्रेस संगठन को मजबूत बनाने के लिए किया जाएगा। वैसे भी बीजापुर और सुकमा जिले में तेलुगुभाषी वोटर बड़ी संख्या में हैं। इससे परे जारिता लैटफलांग पहले शशि थरूर की प्रोफेशनल कांग्रेस की पदाधिकारी रह चुकी हैं। यहां प्रदेश के कई नेताओं से उनका परिचय है। उनकी साख अच्छी है। कहा जा रहा है कि दोनों ही नेता संगठन को मजबूत करने में अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
जेल-कटघरे में रहते बिहार-प्रभारी
एआईसीसी ने कांग्रेस के सचिवों की सूची जारी की। प्रदेश से सिर्फ दो नेता राजेश तिवारी, और देवेन्द्र यादव को ही जगह मिल पाई। तिवारी उत्तरप्रदेश के प्रभारी सचिव हैं, और वे पद पर बने रहेंगे। देवेन्द्र यादव को बिहार कांग्रेस का प्रभारी सचिव बनाया गया है।
देवेन्द्र भिलाई के विधायक हैं लेकिन उनका परिवार उत्तरप्रदेश से तालुक रखता है। बिहार में यादव समाज के वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। चर्चा है कि यादव वोटरों को साधने के लिए देवेन्द्र यादव को बिहार का प्रभारी सचिव बनाया गया है। ये अलग बात है कि देवेन्द्र यादव बलौदाबाजार आगजनी प्रकरण के चलते जेल में हैं। इसके अलावा वो कोल स्कैम में भी फंसे हुए हैं। कोर्ट-कचहरी के बीच देवेन्द्र बिहार में कितना समय दे पाते हैं यह देखना है।
साइन बोर्ड ही अस्तित्व के लिए जूझ रहा
अरपा नदी के ही अस्तित्व पर नहीं बल्कि उसके उद्गम का भी नामोनिशान मिटाने पर लोग आमादा हैं। पेंड्रा के एक खेत के पास से यह नदी निकली है, जिसमें कुछ हिस्सा एक निजी जमीन का है। यहां एक बोर्ड लगा था, जिसे दूसरी बार किसी ने चुरा लिया। कांग्रेस भाजपा दोनों ने अपनी-अपनी सरकार रहने के दौरान अरपा को बचाने के बड़े-बड़े वादे किए लेकिन हकीकत यह है कि यह लगातार सूखती सिकुड़ती जा रही है। काफी हिस्सा रेत माफियाओं के हवाले है, जिन्होंने इतनी खाई खोदी है कि तैरने के लिए उतरे बच्चों की मौत भी हो जाती हैं। इसे टेम्स नदी की तरह बनाने का सपना दिखाया गया। 2400 करोड़ रुपये की भारी भरकम योजना लाई गई, जो भाजपा की सरकार जाते ही फाइलों में बंद हो गई। हाईकोर्ट में अरपा को बचाने, यहां के अवैध उत्खनन को रोकने के लिए कई याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। पर अफसर, अगली सुनवाई के कुछ दिन पहले कागज तैयार कर जवाब देने के लिए पहुंच जाते हैं। अभी जिस जगह से बोर्ड गायब है, उस जगह को अधिग्रहित करने की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हुई है, जबकि प्रशासन ने हाईकोर्ट में ऐसा करने की शपथ दे रखी है। जल-जीवन और पर्यावरण से जुड़े इस मुद्दे पर संवेदनहीन अफसरशाही हावी है।
अबूझमाड़ की तरक्की का रास्ता
देखिये, इस सडक़ को। यह अबूझमाड़ के ब्लॉक मुख्यालय ओरछा को जिला मुख्यालय नारायणपुर से जोडऩे वाली प्रमुख सडक़ है। इसमें इतने गड्ढे हैं, शायद गिन भी नही पाएंगे। यहां से प्रतिदिन डेढ़ सौ से अधिक वाहन और सैकड़ों लोग गुजरते हैं,लेकिन इस सडक़ की दशा सुधारने की दिशा में अब तक कोई पहल नहीं हुई है। ( पत्रकार मनीष गुप्ता की सोशल मीडिया ‘एक्स’ पोस्ट)
(rajpathjanpath@gmail.com)
कमिश्नर पद पर उठापटक
बिलासपुर कमिश्नर (संभागायुक्त) पद पर जनक प्रसाद पाठक की पोस्टिंग के दो-तीन घंटे बाद ही मंत्रालय से नया आदेश जारी कर उनकी जगह महादेव कावरे को पदस्थ कर दिया गया। वह तो ठीक, लेकिन सिर्फ तीन सप्ताह में नीलम नामदेव एक्का को क्यों हटा दिया गया?
इस बात की चर्चा तो हो ही रही है कि पाठक से क्यों जिम्मेदारी वापस ली गई। उनके खिलाफ एक महिला के यौन शोषण का अपराध दर्ज है। इस समय वे हाईकोर्ट से मिली जमानत के चलते जेल से बाहर हैं। केस होने के बाद से पाठक को कोई भी ऐसा फील्ड नहीं दिया गया जिसमें आम जनता से सीधे मेल-मुलाकात करनी पड़े। ऐसी यह पहली पोस्टिंग थी। शिकायत करने वाली महिला जांजगीर की है, जो बिलासपुर संभाग के ही अधीन आता है। फिर हाईकोर्ट भी बिलासपुर में ही है। पता चला है कि पाठक का आदेश जारी होने पर कुछ भाजपा नेताओं ने तत्काल ऊपर शिकायत कर दी और मंत्रालय ने भी आदेश बदलने में देरी नहीं की।
इधर तीन सप्ताह में ही एक्का को हटाने के पीछे की कहानी भी सामने आ रही है। बिलासपुर शहर के ह्रदयस्थल पर एक बेशकीमती जमीन है, जो मिशन अस्पताल कंपाउंड के नाम से जाना जाता है। सौ साल से ज्यादा पुरानी इसकी लीज 10 साल पहले खत्म हो चुकी है। अरबों में इस जमीन की कीमत है। अस्पताल ठीक से चल नहीं रहा लेकिन यहां की जमीन दूसरे लैब, अस्पताल, मेले, ठेले और स्ट्रीट फूड के लिए किराये में दे दिए गए हैं। लीजधारक डॉ. रमन जोगी को प्रशासन की नोटिस मिली। इसके खिलाफ वे हाईकोर्ट गए, वहां से जब राहत नहीं मिली तो तत्काल कलेक्टर ने खाली करने का अल्टीमेटम दिया। लीजधारक ने 4 दिन का समय मांगा। बड़े-बड़े उपकरण, सामान आदि हटाने के नाम पर। प्रशासन ने व्यवहारिक दिक्कत तो समझते हुए समय दे दिया। मगर मियाद खत्म होने से पहले ही कमिश्नर एक्का की कोर्ट से बेदखली पर दी गई कलेक्टर की नोटिस पर स्थगन मिल गया। इसके दो दिन बाद ही एक्का का ट्रांसफर हो गया।
राह तकते भाजपा समर्थक वकील
भाजपा से जुड़े वकील नाराज चल रहे हैं। इसकी वजह यह है कि साय सरकार को 8 महीने हो चुके हैं, लेकिन रायपुर छोडक़र बाकी जिलों में अब तक सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति नहीं हो पाई है। अभी भी भूपेश सरकार द्वारा नियुक्त सरकारी अधिवक्ता पद पर बने हुए हैं।
रायपुर में लोक अभियोजक और अन्य सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति दो दिन पहले ही की गई है। विधि विभाग का प्रभार डिप्टी सीएम अरुण साव के पास है। बताते हैं कि नियुक्तियों में पार्टी संगठन का हस्तक्षेप रहता है। यही वजह है कि अभी तक विचार मंथन का दौर चल ही रहा है। इस वजह से नियुक्तियां नहीं हो पा रही है। प्रदेश में सरकार बदलने के बाद भी अदालत में कांग्रेस समर्थक वकीलों के दबदबा देखकर भाजपा से जुड़े वकीलों की नाराजगी स्वाभाविक है।
टिकट के पहले मारपीट
राजधानी के कटोरा तालाब में भाजपा के दो युवा व्यापारी नेता आपस में भिड़ गए। जमकर मारपीट हुई, और मामला थाने पहुंच गया। पुलिस पर दोनों पक्षों की तरफ से एक-दूसरे के खिलाफ कार्रवाई के लिए दबाव बना। पुलिस ने तो अपनी तरफ से प्रकरण दर्ज कर लिया है। लेकिन अब दोनों ही युवा नेता तो अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
बताते हैं कि दोनों युवा नेता पार्षद टिकट के दावेदार हैं। एक तो चुनाव लड़ चुके हैं, और दूसरे के पिता पार्षद रह चुके हैं। दो महीने बाद निकाय चुनाव की बिगुल बजनी है। मगर घटना के चलते नई समस्या खड़ी हो गई है। दोनों व्यापारी नेताओं के बीच मारपीट के कई वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुए हैं। पार्टी के प्रमुख नेताओं तक प्रकरण संज्ञान में आ चुका है।
एक प्रमुख नेता ने दोनों दावेदारों से जुड़े लोगों को स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि मारपीट की वजह से पार्टी की काफी बदनामी हो गई है। दोनों में से किसी को टिकट देना जोखिम भरा होगा। क्योंकि इसके इतने वीडियो सोशल मीडिया में तैर रहे हैं कि आसपास के तीन-चार वार्डों में इसका असर पड़ सकता है। यानी मारपीट के बाद फिलहाल दोनों ही युवा टिकट की दौड़ से बाहर हो गए हैं। अब आगे क्या होता है, यह तो चुनाव नजदीक आने के बाद ही पता चलेगा।
सरकारी फैसला ऐसे वापस !!
आखिरकार स्कूल शिक्षा विभाग के स्कूलों, और शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण का फैसला कुछ समय के लिए टल गया है। विभाग ने सभी जिलों से कम दर्ज संख्या वाले स्कूलों की जानकारी बुलाई थी। ऐसे में करीब 4 हजार स्कूल बंद करने की स्थिति में थे। यही नहीं, करीब 10 हजार शिक्षक इधर-उधर हो सकते थे।
युक्तियुक्तकरण का फैसला सरकार के लिए जोखिम भरा हो सकता था। क्योंकि शिक्षकों ने युक्तियुक्तकरण के खिलाफ हड़ताल की तैयारी कर रखी थी। यह विभाग सीएम के पास है। नगरीय निकाय चुनाव नजदीक है, और हड़ताल की वजह से नुकसान का अंदेशा था। इस वजह से फिलहाल युक्तियुक्तकरण का फैसला टाल दिया गया है।
दूसरी तरफ, सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने बतौर स्कूल शिक्षा मंत्री करीब 3 हजार शिक्षकों, और अन्य स्टॉफ के तबादले का प्रस्ताव लोकसभा चुनाव आचार संहिता लगने से पहले भेजा था। इनमें ज्यादातर तबादले विधायकों और पार्टी नेताओं की अनुशंसा के अलावा मेडिकल ग्राउंड पर प्रस्तावित था। ये प्रस्ताव युक्तियुक्त करण की वजह से अटक गए थे। अब जब युक्तियुक्तकरण नहीं हो रहा है, तो तबादला प्रस्ताव का क्या होगा, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
सीनियर टीचर की बाइक
बहुत सी नौकरियों में सीनियर हो जाने के बाद भी प्रमोशन नहीं मिलता। एक ही पद पर खटते रहना पड़ता है। शिक्षा विभाग में शायद ऐसा ज्यादा होता है। इस शिक्षक को अपनी बाइक पर लिखकर बताना पड़ रहा है कि वह कितना वरिष्ठ है।
(सोशल मीडिया से)
(rajpathjanpath@gmail.com)
क्यों हुए फेरबदल?
भूपेश सरकार की तरह साय सरकार में भी आईएएस अफसरों के तेज रफ्तार से तबादले हो रहे हैं। बिलासपुर कमिश्नर नीलम नामदेव एक्का को 22 दिनों के भीतर बदल दिया गया। सचिव स्तर के अफसर एक्का की पोस्टिंग मंत्रालय में की गई है, लेकिन उन्हें कोई प्रभार नहीं दिया गया है। यही नहीं, एक्का की जगह उच्च शिक्षा आयुक्त जनक पाठक को बिलासपुर कमिश्नर बनाया गया था, लेकिन दो घंटे के भीतर उनका तबादला निरस्त कर दिया गया। पाठक यथावत उच्च शिक्षा आयुक्त के पद पर बने रहेंगे।
रायपुर कमिश्नर महादेव कांवरे को बिलासपुर कमिश्नर का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। नीलम एक्का से पहले रायपुर कमिश्नर संजय अलंग बिलासपुर कमिश्नर के अतिरिक्त प्रभार पर थे। चर्चा है कि पाठक बिलासपुर नहीं जाना चाहते थे। इसलिए उनका तबादला निरस्त किया गया। एक्का को क्यों हटाया गया, इसकी कोई ठोस वजह सामने नहीं आई है। प्रशासनिक फेरबदल का क्रम आगे भी जारी रहेगा।
अफसरों की कहानी अनंत?
आईएएस के 2020 बैच के अफसर आनंद मसीह दो दिन बाद रिटायर हो रहे हैं। मसीह के साथ-साथ बीजापुर कलेक्टर अनुराग पाण्डेय भी रिटायर होंगे। मसीह का मामला थोड़ा दिलचस्प है।
मसीह के खिलाफ फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी हासिल करने का आरोप है। वो 91 में डिप्टी कलेक्टर बने थे। इसके बाद उन पर फर्जी जाति प्रमाण पत्र लेने का आरोप लगा। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद जाति प्रमाण पत्र से जुड़ी शिकायतों की जांच के लिए गठित छानबीन समिति ने दो बार आनंद मसीह की जांच की थी।
दोनों बार समिति ने उनकी जाति प्रमाण पत्र को फर्जी करार दिया था। इसके बाद मसीह को हाईकोर्ट से स्थगन मिल गया। छानबीन समिति की अनुशंसा पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई, और मसीह को आईएएस अवार्ड भी हो गया। वो पूरी नौकरी करने के बाद रिटायर भी हो रहे हैं। दूसरी तरफ, बीजापुर कलेक्टर अनुराग पाण्डेय का तबादला तो महीने भर पहले ही हो गया था। मगर उनका तबादला निरस्त करने के बजाए मौखिक रूप से पद पर बने रहने के लिए कह दिया गया।
अनुराग की जगह संबित मिश्रा को बीजापुर कलेक्टर बनाया गया था। उन्हें जॉइनिंग से मना किया गया। मिश्रा संभवत: 1 सितंबर को बीजापुर कलेक्टर का चार्ज लेंगे। अनुराग पाण्डेय 6 महीने में अपने कामकाज को लेकर काफी सुर्खियों में रहे। बीजापुर में रेल लाइन के लिए उन्होंने प्रेजेंटेशन दिया था, और फिर भाजपा सांसद की पहल के बाद केन्द्र सरकार रेलवे लाइन के लिए सर्वे भी करा रही है।
यही नहीं, नक्सल धमकियों की वजह से पिछले दो दशक से बंद स्कूल भी खुले हैं। बीजापुर के युवाओं के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम भी काफी चर्चा में रहा है। ये अलग बात है कि विवादित भाजपा नेता अजय सिंह ने उन्हें पद से हटवाने की धमकी दी थी। और फिर ऑर्डर भी हो गया था। इसको लेकर काफी प्रतिक्रिया हुई थी। बाद में अजय सिंह को पार्टी से निकाला गया, और फिर उन्हें अपराधिक प्रकरणों की वजह से गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।
आखिर नियुक्ति हो गई
सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज इंदर सिंह उपवेजा को प्रमुख लोकायुक्त बनाया है। राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पाण्डेय ने नई नियुक्ति नहीं होने पर सवाल खड़े किए थे, और विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान सीएम विष्णुदेव साय से मिलकर ज्ञापन भी दिया था।
प्रमुख लोकायुक्त जस्टिस टीपी शर्मा का कार्यकाल साल भर पहले खत्म हो गया था। नई नियुक्ति नहीं होने पर जस्टिस टीपी शर्मा यथावत पद पर बने हुए थे। नए लोकायुक्त जस्टिस उपवेजा बसना के रहने वाले हैं। वे रमन सिंह सरकार में विधि सचिव भी रह चुके हैं। यही नहीं, भूपेश सरकार ने उन्हें हाईकोर्ट जज से रिटायर होने के बाद पुलिस प्राधिकार समिति का चेयरमैन नियुक्त किया था। समिति के चेयरमैन के रूप में कार्यकाल खत्म होने के बाद साय सरकार ने उन्हें नई जिम्मेदारी दी है।
अमेरिका की उड़ान में रुकावट
उप-मुख्यमंत्री अरुण साव जिनके पास लोक निर्माण विभाग का प्रभार भी है- उनका पहला विदेश प्रवास खटाई में पड़ गया है। यह मौजूदा भाजपा सरकार के किसी मंत्री का भी पहला विदेश प्रवास था। इस दौरे में उनको न्यूयार्क, कैलिफोर्निया, वर्जीनिया आदि शहरों की सडक़ परियोजनाओं का अध्ययन करना है। विभाग के सचिव कमलप्रीत सिंह डॉ. कमलप्रीत सिंह भी उनके साथ जाने वाले हैं। यह दौरा 20 से 30 अगस्त तक निर्धारित था, लेकिन वीजा मिलने में देर हो गई। शनिवार, रविवार और कृष्ण जन्माष्टमी की छुट्टी के बाद 27 अगस्त को वीजा जारी हो जाने की उम्मीद थी। डिप्टी सीएम और सचिव 26 को दिल्ली रवाना हो गए। मगर, वीजा किसी कारण से अब तक नहीं मिला। यह देरी वीजा का आवेदन करने में देरी के चलते हुई, प्रक्रिया या दस्तावेजों में कोई कमी रह गई है या तकनीकी कारण यह अभी साफ नहीं हुआ है। यदि एक या दो दिन में वीजा जारी भी हो गया तो पहले से निर्धारित शेड्यूल के अनुसार हो नहीं पाएगा। अब नए सिरे से दौरा कार्यक्रम बनाना होगा।
पुल के नीचे भी नदी, ऊपर भी
सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें हालिया बारिश के दौरान नासिक के गोदावरी नदी पर स्थित पंचवटी फ्लाईओवर पर बहते, नीचे गिरते पानी का नजारा है। पुल का निर्माण एलएंडटी और फुटपाथ का निर्माण अशोका बिल्डकॉन द्वारा किया गया है। हम अक्सर टैक्स में वृद्धि की शिकायत करते हैं, लेकिन यह मांग नहीं करते कि सरकार हमारे पैसे का सही इस्तेमाल करे। सोशल मीडिया पर इस तस्वीर को मनोरंजक लहजे में पेश किया जा रहा है, पर यह हाल में करोड़ों की लागत से हुए अनेक घटिया निर्माण कार्यों का एक और नमूना है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
रईसों से रियायत
यूं तो पुलिस की हर कार्रवाई पर उंगली और प्रश्न चिन्ह लगाए जाते रहते हैं। लेकिन कल राजधानी में रसूखदार जुआरियों पर हुई कार्रवाई पर सैकड़ों, हजारों उंगलियां उठ रही हैं। इतनी तो बीते 24 वर्ष में नहीं उठीं होंगी। इनमें से कुछ उंगलियां ऐसी हैं- बेबीलॉन में जुआरियों के जुटने की खबर पहले देर रात तक सक्रिय रहने वाले पत्रकारों को नहीं मिलती तो कुछ होता ही नहीं है। पुलिस, सैल्यूट मारकर ससम्मान छोड़ देती। मीडिया के लोग होटल नहीं पहुंचते तो एक अदद एफआईआर भी न होती।
रिपोर्टर बार बार टीआई, सीएसपी, एएसपी और अंतत: एसएसपी तक को कॉल न करते तो महज दो लाख रूपए की जब्ती भी नहीं होती। और आखिर में मंगलवार को दिनभर सोशल मीडिया में किरकिरी न होती तो देर शाम तक रसूखदार जुआरियों के नाम घोषित नहीं होते। यह भी चर्चा है कि एक एक जुआरी का नाम लिखने से पहले पुलिस ने सभी के पिता से अनुमति ली गई । इस बात पर सहमति बनी कि परंपरागत रूप से एफआईआर के बजाए बिना वल्दियत के नाम जारी किए जाएंगे। बात दांव पर लगी रकम को लेकर भी उठ रही है। कुछ कहते हैं कि मात्र 1.98 लाख ही मिले। पत्ते इसी के लिए फेटे जा रहे थे। तो चर्चा में कुछ 11 लाख, कुछ 20 लाख बता रहे। यह हो भी सकता है क्योंकि जीतने वाले को सारा पेमेंट तो पेटीएम,फोन-पे और योनो एप से भी किए गए थे। अब साइबर सेल का काम है पता लगा ले।
दारूबाज़ गुंडे को पकड़ा तो सजा पुलिस को !!
ऐसे में शराब और नशे से समाज को कैसे निजात मिलेगी। एक तरफ पुलिस पर शराब जब्ती और दूसरी तरफ हंगामा करते नशेडिय़ों पर कार्रवाई का दबाव है। कार्रवाई करने पर नौकरी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का डंडा भी चल रहा है। कल अंबिकापुर में यही सब हुआ। पुलिस हवलदार देव नारायण नेताम, पब्लिक कंप्लेंट पर बस स्टैंड में हंगामा कर रहे राजू राजवाड़े को पकड़ लाया। उस पर कार्रवाई के लिए देवनारायण और थाना स्टाफ ने सारी प्रक्रिया पूरी की। लेकिन राजू राजवाड़े था कि पकड़े जाने के बाद से ही हंगामा बरपे हुए था। इस पर भी थाना स्टाफ ने एहतियात बरता और मोबाइल पर वीडियो रिकॉर्ड कर लिया । पर उन्हें क्या मालूम कि मंत्री का जेठ होना ही भारी पड़ सकता है उनके कर्तव्य पर। हालांकि मंत्री ने कहा था कि जेठ ही नहीं कोई भी कार्रवाई होगी।
लेकिन आकाओं को खुश करने एसपी साहब ने जेठ तो नहीं देव नारायण को अटैच कर दिया । और अब यह मामला वायरल वीडियो की तरह पब्लिक डोमेन में चला गया है। अंबिकापुर से जानकार बताते हैं कि देव नारायण एक हवलदार ही नहीं एक जनसेवक भी है। सभी के बीच उसका सम्मान है। कोरोना काल में अपनी जान की परवाह किए बिना उसने कइयों की जान बचाई थी। पर अब नेकी कर दरिया में डाल की स्थिति हो गई है। जन सामान्य में अटैचमेंट को लेकर जबरदस्त आक्रोश है। वाट्सएप पर कप्तान साहब की किरकिरी करने लगे हैं। सरगुजा के हर वर्ग के सोशल मीडिया में लाइन अटैच पर तीखी प्रतिक्रिया वायरल होती रही। साहब को जवाब देते नहीं बन रहा। पहले कहा जा रहा है कि अटैच रहेगा लेकिन लाइन में नहीं उसी थाने में काम भी करेगा। सुबह पुलिस ने एक मैसेज कर लाइन अटैच की खबरों का खंडन किया है।
राजस्व में मददगार कोचिये
प्रदेश की संस्कारधानी राजनांदगांव से एक रोचक खबर है कि यहां पर पिछले कुछ महीनों से शराब की बिक्री घट गई है। एक तरफ सरकार का समाज कल्याण, महिला बाल विकास जैसे विभाग और पुलिस के कई अधिकारी अपनी व्यक्तिगत रूचि से शराब के विरुद्ध अभियान चलाते हैं, पर कम बिक्री से सरकार का ही आबकारी विभाग चिंता में पड़ जाता है।
आबकारी विभाग नजर रखता है कि दुकान में सेल्समैन जल्दी सर्विस दे रहा है या नहीं। अभी-अभी एक नीति बनाई गई है, जिससे शराब के पॉपुलर ब्रांड दुकानों में आसानी से मिले, ताकि राजस्व बढ़े और पड़ोसी राज्यों से हो रही तस्करी रुके। आबकारी विभाग को शराब की बिक्री का लक्ष्य भी मिलता है। खबरों के मुताबिक राजनांदगांव में इस वित्तीय वर्ष के दौरान केवल मई माह ऐसा रहा, जब निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप शराब बिकी। मगर कुल बिक्री अब तक के लक्ष्य से 22 प्रतिशत कम हुई है। अफसरों ने इसकी वजह तलाशी तो पता चला कि कोचियों पर हो रही पुलिस कार्रवाई इसका बड़ा कारण है।
अवैध शराब जब्त करने का अधिकार आबकारी और पुलिस, दोनों के पास है। पर, उनके बीच तालमेल कभी नहीं बैठता। कोचियों को दोनों से रिश्ते रखने पड़ते हैं। संतुलन बिगड़ा तो जब्ती, गिरफ्तारी कर नकेल कसी जाती है। जब शराब बिक्री ठेकेदारों के हाथ थी, तो कोचिये उनके सेल्समैन की तरह काम करते थे। ऊपर से नीचे सेटिंग बनाए रखने का सिरदर्द ठेकेदार झेल लेते थे। सन् 2018 में सरकार बनाने वाली कांग्रेस शराबबंदी का वादा निभाने में विफल रही। उस समय जिस पैमाने पर अवैध शराब बिकी का जाल बुना गया, उसमें शामिल अफसर-कारोबारियों को कोचिये कहना भी सही नहीं होगा। जब पूर्ववर्ती रमन सरकार ने ठेकेदारों के हाथ से शराब बिक्री का काम छीना तो कहा कि कोचिये अब इस पृथ्वी पर नजर नहीं आएंगे। मगर, कोचियों का अस्तित्व कितना जरूरी है, यह आबकारी अफसरों को हो रही चिंता से पता चलता है।
एक साथ 6 की जान जोखिम में
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले की गंगालूर तहसील के कमकानार गांव में सोमवार की सुबह 10 बजे एक गर्भवती महिला प्रसव से तड़पने लगी। ग्रामीणों ने डायल 112 और एंबुलेंस को फोन किया। किसी स्वास्थ्य कर्मी को भेजने की मांग की। मगर बीच में चिंतावगु नदी के कारण कोई मदद नहीं मिल पाई। नदी के ऊपर कोई पुल नहीं, नाव की भी व्यवस्था नहीं। पांच ग्रामीण तैयार हुए, गर्भवती को खाट पर लिटाया और उसे दूसरी ओर पहुंचाया। बस्तर संभाग के दूरदराज के गांवों में इस तरह के दृश्य आये दिन दिखाई दे रहे हैं।
(rajpathjanpath@gmail.com)
प्रतियोगी परीक्षाओं में खाली सेंटर्स
छत्तीसगढ़ की पिछली कांग्रेस सरकार ने बेरोजगारों को राहत प्रदान करने के उद्देश्य से प्रतियोगी परीक्षाओं में आवेदन शुल्क समाप्त कर दिया था। इसका उद्देश्य यह था कि जो लोग नौकरी की तलाश में हैं, उन पर आर्थिक बोझ कम किया जाए। इसका परिणाम यह हुआ कि पीएससी, व्यापमं और अन्य भर्ती परीक्षाओं में आवेदनों की संख्या बढऩे लगी।
लेकिन, समस्या यह है कि जितने लोग आवेदन करते हैं, उनमें से एक अच्छा खासा हिस्सा ऐसे युवाओं का होता है, जो परीक्षा देने आते ही नहीं। हाल ही में, पिछले रविवार को व्यापमं ने प्रयोगशाला सहायक और तकनीकी सहायक के पदों के लिए परीक्षा आयोजित की। रायगढ़ से खबर आई कि 6,000 से अधिक लोगों ने प्रयोगशाला सहायक के लिए आवेदन किया था, लेकिन पहली पाली में 2,500 से अधिक लोग परीक्षा देने नहीं पहुंचे। शाम की पाली में तो 2,900 से अधिक उम्मीदवार अनुपस्थित रहे। बिलासपुर में 35 हजार प्रतिभागियों में से 20 हजार अनुपस्थित रहे। अन्य जिलों में भी ऐसी ही स्थिति देखने को मिली।
परीक्षा आयोजित करने वाली एजेंसी को आवेदनों की संख्या के अनुसार प्रश्नपत्रों की छपाई करानी पड़ती है। उसी के अनुसार परीक्षा केंद्रों और पर्यवेक्षकों की संख्या भी निर्धारित होती है। लेकिन जब परीक्षार्थी आवेदन करने के बाद परीक्षा में शामिल नहीं होते, तो यह पूरा खर्च व्यर्थ हो जाता है।
आवेदन करने के बाद परीक्षा से मुंह मोडऩे के पीछे क्या वजहें हो सकती हैं? एक कारण यह है कि जब शुल्क निशुल्क हो गया, तो ऐसे लोग भी आवेदन कर देते हैं जो परीक्षा की तैयारी में नहीं होते। लेकिन क्या केवल परीक्षा शुल्क में छूट देने से ही उनकी सारी समस्याओं का समाधान हो जाता है? एक-एक पद के लिए हजारों उम्मीदवार होते हैं और उन्हें प्रतियोगिता में सफल होने के लिए अच्छी कोचिंग, लाइब्रेरी, नोटबुक्स और किताबों की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा, परीक्षा केंद्र भी अक्सर जिला मुख्यालयों में होते हैं, जहां तक पहुंचने और वहां ठहरने का खर्च भी मामूली नहीं होता।
अभी हाल ही में लखनऊ से खबर आई है कि वहां सिपाही भर्ती परीक्षा में 2 लाख लोगों ने आवेदन किया था, लेकिन लिखित परीक्षा में केवल 63 हजार ही पहुंचे। ये वे प्रतिभागी हैं, जिन्होंने परीक्षा फीस भी दी। छत्तीसगढ़ में परीक्षा शुल्क माफ कर देने से सरकार पर बोझ बढ़ गया लेकिन इस छूट के बाद भी परीक्षा नहीं दिला पाने वाले बेरोजगारों के सिर पर कितना बोझ है, इसे समझा जा सकता है।
बड़े-बड़ों के कॉल
दीवाली के मौके पर जुआ खेलने का चलन है, और अब जन्माष्टमी पर भी जुआ खेला जाने लगा है। रायपुर के संपन्न परिवार के युवकों ने तो त्योहार के मौके पर शहर के एक बड़े होटल बेबीलॉन केपिटल को जुआ खेलने के लिए बुक कराया था। युुवकों को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस बड़े होटल में दबिश दे देगी। मगर पुलिस होटल में पहुंच गई, और जुआ खेलते युवकों को हिरासत में ले लिया।
फिर क्या था, युवकों को छुड़ाने के लिए बड़े नेताओं के फोन आने लगे। चूंकि रकम ज्यादा थी, और यह मीडिया की जानकारी में भी आ गया था। इसलिए पुलिस ने आरोपी युवकों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया। बड़े लोगों के फोन आने से इतना फर्क जरूर पड़ा कि पुलिस ने एक ही नाम को सार्वजनिक किया है। बाकी नाम को छिपा लिया। यही नहीं, जुआरियों की फोटो भी जारी नहीं की। बड़े लोगों के लिए आम तौर पर पुलिस ऐसा करती है।
मुनिया के सुर्ख लाल हो जाने का रहस्य
मुनिया पक्षी का नर जब सुर्ख लाल रंग का हो जाता है, जो इसे अन्य पक्षियों से विशिष्ट बनाता है। मात्र 10 सेंटीमीटर की यह छोटी चिडिय़ा, छोटे झुंडों में रहती है और समूह में लहरदार रफ्तार से उड़ान भरती है। इनमें से ‘लाल मुनिया’ अपनी विशिष्टता और आकर्षक रंगों के कारण सबसे अलग दिखाई देती है।
लाल मुनिया का मुख्य आहार घास के बीज और खेतों में गिरे अनाज होते हैं। ये छोटे तिनके एकत्र कर अपने घोंसले का निर्माण करती हैं। अंडे देने के बाद, यह मुनिया अपने समूह से अलग होकर घोंसले में समय बिताती है।
लाल मुनिया का नर और मादा सामान्य समय में एक जैसे रंग के होते हैं, लेकिन रोमांस की उत्तेजना में नर का रंग गहरा सुर्ख लाल हो जाता है, जिसमें सफेद छीटें दिखाई देती हैं। इस रंग परिवर्तन के कारण यह और भी आकर्षक लगती है, जैसा कि पहले से तीसरे क्रम की फोटो में देखा जा सकता है। बिलासपुर से लगभग 23 किलोमीटर दूर मोहनभाठा में प्राण चड्ढा ने यह तस्वीर ली।
(rajpathjanpath@gmail.com)
इलाके में मौत, विधायक दावत में
दिग्गज कांग्रेस नेता टीएस सिंहदेव को हराकर पहली बार विधायक बने राजेश अग्रवाल इन दिनों भाजपा के ही नेताओं के निशाने पर हैं। इसकी पर्याप्त वजह भी है।
दरअसल, अंबिकापुर के उदयपुर इलाके के आदिवासी बाहुल्य गांव चैनपुर में उल्टी-दस्त फैला हुआ है। यह इलाका राजेश अग्रवाल के विधानसभा क्षेत्र में ही आता है। उल्टी-दस्त से हफ्तेभर में चार ग्रामीणों की मौत हो चुकी है। बताते हैं कि राजेश अग्रवाल को भाजपा संगठन के पदाधिकारियों ने सलाह दी, कि तत्काल वो प्रभावित गांव में जाएं, और पीडि़त परिवार को ढांढस बंधाए। साथ ही वहां चिकित्सा व्यवस्था का जायजा भी लें।
कहा जा रहा है कि राजेश अग्रवाल ने स्थानीय नेताओं को यह कह दिया कि फिलहाल वो जरूरी काम से रायपुर जा रहे हैं, और लौटने के बाद वहां जाएंगे। इसके अगले दिन उनकी फेसबुक पर भाजपा विधायक भावना बोहरा को पंडरिया ने जन्मदिन की बधाई देते तस्वीर सामने आई। इस पर भाजपा नेता बिफर पड़े। सोशल मीडिया पर विधायक के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार भी कर रहे हैं।
अंबिकापुर के एक प्रमुख भाजपा नेता कैलाश मिश्रा ने फेसबुक पर लिखा कि एमएलए जी आपके क्षेत्र में उल्टी-दस्त से मौत हुई पर आप उस गांव में नहीं गए, और 4 सौ किमी दूर जन्मदिन मनाने चले गए। एक अन्य ने लिखा सरकार बदलने के बाद भी उसका कोई असर नहीं दिखा है। सब पुराने सिस्टम में चल रहा। किसी गांव में चार लोग साफ पानी नहीं मिलने से बीमार होकर मर जाएं, और जनप्रतिनिधि उस गांव में न जाए इससे ज्यादा क्या दुर्भाग्य होगा।
हालांकि स्थानीय सांसद चिंतामणि महाराज जरूर संवेदनशील निकले और वे तुरंत प्रभावित गांव में जाकर पीडि़त परिवारों से मिले, और लोगों को हरसंभव मदद का भरोसा दिलाया। मगर राजेश अग्रवाल से स्थानीय नेताओं की नाराजगी बरकरार है। जो देर सबेर उन्हें भारी पड़ सकती है।
कई परीक्षाओं में धांधली
पीएससी राज्यसेवा भर्ती परीक्षाओं से परे कई और परीक्षाओं में धांधली के सुबूत मिले हैं। इसी कड़ी में भूपेश सरकार में संस्कृति विभाग में द्वितीय श्रेणी के सात पदों में भर्ती में गड़बड़ी का खुलासा हुआ है। आरटीआई से मिली जानकारी में यह बात सामने आई है कि विभाग के अफसरों ने गलत तरीके से चयनित अभ्यार्थियों को अनुभव प्रमाण पत्र दिए हैं। मीडिया से चर्चा में संस्कृति संचालक ने माना, कि गड़बड़ी की शिकायतों की जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी गई है।
अंदर की खबर यह है कि पीएससी के जिम्मेदार लोगों के साथ मिलकर विभागीय अफसरों ने पूरी गड़बड़ी की है। कुछ अभ्यार्थियों ने पीएससी से आरटीआई के जरिए जानकारी मांगी, तो पीएससी ने किसी भी तरह की जानकारी देने से मना कर दिया। अब इसके खिलाफ एक अभ्यार्थी ने सूचना आयोग में अपील की है। कुछ लोगों का दावा है कि विभाग के शीर्ष लोग इस गड़बड़ी में संलिप्त हैं। इसकी वजह से प्रकरण की सीबीआई जांच से रोका जा रहा है।
यही नहीं, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से आगमन के दौरान कुछ अभ्यार्थियों ने ट्वीट कर इस फर्जीवाड़े से अवगत कराया है। खुद भाजपा प्रवक्ता उज्जवल दीपक कई बार ट्वीट कर सीबीआई जांच की मांग कर चुके हैं। मगर पिछली सरकार में हुए इस घोटाले की जांच से साय सरकार क्यों परहेज कर रही है, इसकी वजह भी देर सबेर सामने आ सकती है।
शिकायतें सुन लेंगे पर सुलझाएंगे कैसे
भाजपा ने कार्यकर्ताओं जन सामान्य की मांग, समस्याएं सुलझाने एक बार फिर प्रदेश कार्यालय में सहायता केंद्र खोला है। इसमें सरकार के मंत्री के साथ संगठन के किसी एक पदाधिकारी की ड्यूटी भी लगाई गई है। अब तक को महामंत्री ही बैठ रहे हैं। लेकिन शुरुआत से अब तक तीन महीनों में मंत्रियों की बैठक कभी होती है कभी टल जाती है।
वैसे अच्छी पहल है, इसका स्वागत भी होना चाहिए पर भाजपा के कुछ नेता रमन सरकार के समय हुई इस पहल को भी याद करते हैं। उस समय जब कार्यकर्ताओं की भीड़ ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए उमड़ी तो सहायता केंद्र में बैठे संयोजक असहाय हो गए। बाद में बंद करना पड़ा। इसके बाद के कार्यकाल में यह व्यवस्था बंद कर दी गई। कांग्रेस ने भी मंत्रियों के लिए ऐसी व्यवस्था लागू की थी पर सबको पता है कि कार्यकर्ता कितने खुश हुए।
वैसे एक पदाधिकारी की सलाह यह भी है कि सहायता केंद्र के साथ-साथ गाइडलाइन भी जारी कर देनी चाहिए कि किस तरह की समस्याओं, शिकायतों के लिए लोग वहां पहुंच सकते हैं, जिसमें हल होने की पूरी गारंटी होगी। जहां तक ट्रांसफर पोस्टिंग की मांग आवेदन पर मंत्री यह कहकर बच रहे हैं कि बैन खुलने पर कर देंगे। वे जानते सरकार ने बैन न खोलने का अघोषित निर्णय लिया है।
ओपीएस से किसे कितना नुकसान होगा?
केंद्र में अब से 21 साल पहले न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) लाया गया तब इसके पीछे तर्क दिया गया था कि शेयर बाजार में कर्मचारियों की राशि लगेगी तो उन्हें पुरानी पेंशन से भी अधिक रकम रिटायरमेंट पर मिलेगी। इस रकम का प्रबंधन सरकार खुद या उसके द्वारा नियुक्त फंड मैनेजर करते थे। इसका फायदा शेयर मार्केट और उद्योगपतियों को तो मिला लेकिन रिटायर्ड हो रहे कर्मचारियों को पता चल रहा है कि इसमें तो उन्हें बड़ा नुकसान हो गया। पेंशन की राशि बहुत कम बन रही थी। कुछ लोगों को तो 5-6 हजार रुपये ही पेंशन बन रहे थे। आने वाले साल एनपीएस में शामिल किए गए कर्मचारियों के रिटायर होने का होगा। सरकार ने जो रकम शेयर बाजार में लगा दी थी, उसका असर भी तेजी से दिखाई देगा। यह मौजूदा सरकार के प्रति कर्मचारियों में चाहे वे रिटायर बाद में होने वाले हों, असंतष को बढ़ाएगा। यूपीएस को इसी स्थिति को संभालने की कवायद बताई जा रही है।
केंद्र इस नई योजना यूपीएस का जोर-शोर से प्रचार कर रही है। रेलवे को भी इसके प्रचार की जिम्मेदारी दी गई है। मीडिया को यह बताने की तैयारी में लगे एक अधिकारी का कहना था कि जितना शोर हो रहा है, लगता नहीं उतना फायदा हो रहा है। यह नई योजना एनपीएस से कुछ बेहतर जरूर हो सकती है, पर ओपीएस की जगह नहीं ले सकती। ओपीएस में आखिरी सैलरी के आधार पर 50 प्रतिशत पेंशन तय होती थी, ओपीएस में बेसिक सैलरी के आधार पर होगा, जो वास्तव में ग्रास सैलरी का लगभग 45 प्रतिशत ही होता है। इसका 50 प्रतिशत तो ग्रास सैलरी के 25 फीसदी से ज्यादा होगा नहीं। इसके अलावा 25 साल की सेवा भी अनिवार्य कर दी गई है। आयु सीमा में छूट मिलने के कारण कई वर्ग जैसे, महिलाएं, अनुसूचित जाति, जनजाति, रिटायर्ड फौजी, दिव्यांग आदि को नौकरी देर से मिली और यदि वह 25 साल पूरा होने के पहले ही रिटायर हो गया तो उनको इसका फायदा मिलेगा नहीं। फिर भी इसे केंद्र का बड़ा फैसला बताया जा रहा है, तो मानना पड़ रहा है।
देशव्यापी शिक्षक भर्ती संकट
छत्तीसगढ़ के स्कूलों में 33 हजार शिक्षकों के पद रिक्त हैं। जाहिर है कि इनमें से अधिकांश खाली पद ग्रामीण क्षेत्रों के हैं। शहरों के स्कूलों और शिक्षकों को तो युक्तियुक्तकरण के दायरे में लिया जा रहा है, जिनें छात्रों की संख्या कम और शिक्षकों की ज्यादा हो गई है। सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर इन पदों पर भर्ती की राह देख रहे बेरोजगार युवकों ने अभियान चला रखा है। इनकी मांग आज दोपहर इंडिया के टॉप ट्रेंड टॉपिक में चल रही थी।
(rajpathjanpath@gmail.com)
बिना डरे सवाल पूछिएगा
कल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सल मोर्चे पर सात राज्यों के साथ रणनीतिक बैठक के बाद पत्रकारों से चर्चा की। निजी रिजार्ट का कांफ्रेंस हाल खचाखच भरा था। कुछ पत्रकार दिल्ली से भी बुलाए गए थे।
चर्चा करीब डेढ़ देर से शुरू हुई। देर से पहुंचने के लिए शाह ने माफी यह कहकर मांगी कि देर से आया हूं लेकिन जाने की जल्दी नहीं है, एक-एक का जबाव दूंगा, बिना डरे प्रश्न पूछिएगा। पत्रकारों ने डरते हुए एक-एक कर प्रश्न पूछे।
उनकी पसंद के सवाल भी पूछे गए। पत्रकारों में कश्मीर चुनाव, गठबंधन, धारा 370 के संबंध में पूछे, तो वामपंथी उग्रवाद के प्रश्न भी रखे, जिस पर उनके पास कामयाबी के कई आँकड़े थे।।
बाउंसर हैं या झांकी
बीते सात-आठ महीनों में अफसरों ने अपने अपने विभागीय मंत्रियों की कार्यप्रणाली, लहजे को भांप लिया है। उसी अनुरूप उनके नामकरण (निक नेम) भी कर दिया है। और अफसर इन्हीं नाम से एक दूसरे को मेसेज या सूचना देकर अलर्ट करते हैं। एक मंत्री को पटवारी, एक को कांट्रैक्टर, एक को मेट आदि आदि। इनमें से एक को दो-दो निक नेम दिए हैं। कुछ अफसर इन्हें बाउंसर तो कुछ झांकी कहते हैं। झांकी वो अफसर कहते हैं जिन्हें ऐसा कर देंगे वैसा कर देंगे कहने की मंत्री जी जैसी आदत है। लेकिन करेंगे कुछ नहीं। बाउंसर वो अफसर कहते हैं जिनकी कद काठी मंत्री की ही तरह 5.5 फीट के नीचे है और फैलकर चलने की आदत है।
अब तक चर्चा ही चर्चा
चर्चा है कि भाजपा के नेताओं-कार्यकर्ताओं में नाराजगी को दूर करने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं। इनमें निगम-मंडलों में नियुक्ति भी शामिल है। इन सबके बीच प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन की डिप्टी सीएम अरुण साव से अकेले में बातचीत भी हुई है।
चर्चा का ब्यौरा तो नहीं मिल पाया है, लेकिन साव से सदस्यता अभियान से लेकर रायपुर दक्षिण उपचुनाव, और निगम-मंडलों में नियुक्ति पर बातचीत का हल्ला है। अरुण साव प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, और पार्टी पदाधिकारियों की क्षमता से भी वाकिफ हैं।
कुछ लोगों का अंदाजा है कि संगठन या सरकार में जो कुछ भी बदलाव होना है, वह पखवाड़े भर के भीतर हो जाएगा। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो फिर नए साल का इंतजार करना होगा। देखना है आगे क्या होता है।
खाट सहित मरीज की यात्रा
इस तरह का दृश्य छत्तीसगढ़ में भी दूरदराज के इलाकों में देखा जा सकता है। जब सडक़ कीचड़ से भरे हों और कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो उसे अस्पताल इसी तरह पहुंचाना पड़ता है। यह तस्वीर मध्यप्रदेश के रीवा की है।
गैंगरेप में पुलिस साफ-सुथरी?
पुसौर इलाके में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना कोलकाता में हुए रेप मर्डर से कम सिहरन पैदा करने वाली नहीं है। पुलिस ने इस मामले में एक नाबालिग सहित 7 लोगों को अब तक गिरफ्तार किया है, जबकि आरोपियों की संख्या 11 बताई गई। अब यह चर्चा हो रही है कि वास्तविक संख्या इससे भी ज्यादा थी। दूसरी बात यह निकलकर आई है कि सभी आरोपी वारदात के समय नशे में धुत थे। गांव में जगह-जगह अवैध शराब की बिक्री होने की बात भी बात सामने आ रही है। गांव के बाहर शराब की अवैध भ_ी भी है। गांव ओडिशा बॉर्डर से लगा हुआ है, जहां से शराब-गांजा की तस्करी भी होती है। ऐसा नहीं है कि आरोपियों ने नशा नहीं किया होता तो जुर्म नहीं करते, जब अवैध शराब की बिक्री, तस्करी और भ_ी पर पुलिस रोक नहीं लगाए और इसे ऊपरी कमाई का जरिया बना ले तो फिर इन जघन्य वारदातों की जिम्मेदारी से वह नहीं बच सकती।
फोटो दिखाकर, समझदारी सिखाना
सोशल मीडिया के एक सबसे लोकप्रिय प्लेटफॉर्म फेसबुक का हाल यह है कि उस पर समझदारी की कुछ बातें लिखने और उन्हें पढ़वाने के लिए उनके ठीक नीचे किसी सुंदर युवती की अर्धनग्न तस्वीरें लगा दी जाती हैं। अब अगर कोई लिखे कि कौन सी किताबें पढऩा चाहिए, और जिंदगी में क्या पढऩे का क्या फायदा होगा, तो उस पर शायद ही लोगों का ध्यान जाए। दूसरी तरफ जब नीचे ऐसी तस्वीर लगी रहती है, तो लोग तुरंत ही देखने लगते हैं कि शायद उसी तस्वीर के बारे में कुछ लिखा गया है, और फिर वहां पर लोग कारोबारी बातें भी लिख सकते हैं, और पढऩे-लिखने के फायदों जैसे गंभीर लेख भी लिख सकते हैं। इनमें से किसी बात का नीचे की तस्वीर से लेना-देना नहीं रहता है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
धर्मजीत बने दिलजीत
भाजपा विधायक धर्मजीत सिंह पिछले दिनों अंबिकापुर पहुंचे, तो उनका सरकार के किसी मंत्री की तरह स्वागत हुआ। स्वागत की वजह भी थी कि उन्होंने सरगुजा में रेल सुविधाओं के विस्तार के लिए विधानसभा के हाल के सत्र में अशासकीय संकल्प लाया, और यह सर्वसम्मति से पारित भी हुआ।
धर्मजीत सिंह ने अंबिकापुर-रेनुकूट रेल लाईन की मांग विधानसभा में जोरदार तरीके से रखी। रेल सुविधाओं में विस्तार के लिए सरगुजा के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बकायदा संघर्ष समिति बनाई हुई है। समिति के सदस्यों ने धर्मजीत सिंह के प्रयासों की न सिर्फ तारीफ की, बल्कि उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव अंबिकापुर सीट से लडऩे का अभी से न्योता भी दे दिया।
धर्मजीत सिंह ने मुस्कुराकर अंबिकापुर से चुनाव लडऩे से मना किया लेकिन उन्होंने भरोसा दिलाया कि वे सरगुजा में रेल सुविधाओं के विस्तार की मांग जारी रखेंगे, और कहा कि वे केन्द्रीय मंत्री तोखन साहू के साथ दिल्ली में केन्द्रीय रेलमंत्री से भी मिलेंगे। इससे अंबिकापुर के लोग काफी खुश हुए। धर्मजीत ने अपनी सक्रियता दिखाकर लोरमी-तखतपुर और फिर अंबिकापुर तक अपनी जमीन तैयार कर ली है। जुझारू नेताओं का जनता के बीच सम्मान होता है। उनकी हमेशा पूछपरख रहती है।
वार्ड आरक्षण दक्षिण चुनाव बाद ?
नगरीय निकाय चुनाव की हलचल शुरू हो गई है। चुनाव लडऩे के इच्छुक नेताओं की नजर वार्डों के आरक्षण पर टिकी हुई है। भाजपा ने औपचारिक रूप महापौर, और नगर पालिकाओं-नगरपंचायतों के अध्यक्षों के डायरेक्ट इलेक्शन की बात कही है, लेकिन सरकारी स्तर इस दिशा में कोई कार्रवाई शुरू नहीं हुई है।
सरकार देर-सवेर चुनाव प्रक्रिया में संशोधन के लिए अध्यादेश ला सकती है। अंदर की खबर यह है कि वार्डों के आरक्षण के लिए लाटरी रायपुर दक्षिण के उपचुनाव के बाद में निकलेगी। भाजपा के रणनीतिकारों को संदेह है कि वार्डों का आरक्षण पहले हो जाने पर दावेदार निष्क्रिय हो सकते हैं, और इसका सीधा असर चुनाव पर पड़ सकता है। यही वजह है कि निकाय चुनाव की प्रक्रिया रायपुर दक्षिण उपचुनाव के बाद ही शुरू हो सकती है।
कमल/कौशल्या विहार के लोग कहाँ जाएँ?
आरडीए की कमल विहार के रहवासियों की समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। जब यह योजना लांच हुई थी, तब इसे मध्य भारत की पहली सेटेलाईट टाउनशिप बताया गया था। उस स्तर का काम भी हुआ। अंडरग्राउंड बिजली, टेलीफोन, नल, और ड्रेनेज सिस्टम बनाया गया। सडक़ें भी बेहतरीन हैं, लेकिन इस योजना के चलते आरडीए तकरीबन दिवालिया होने की कगार पर आ गया। आरडीए को अपने कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए जमीन बेचनी पड़ रही है।
रख-रखाव नहीं होने की वजह से पूरा सिस्टम चौपट हो गया है। घंटों बिजली गुल रहती है। गंदगी का अंबार लगा हुआ है। रोजाना चोरी की घटनाएं हो रही हैं। ये अलग बात है कि यहां हाईप्रोफाइल लोग रहते हैं लेकिन वो भी समस्याओं का निराकरण करा पाने में विफल दिख रहे हैं। पिछले दिनों यहां के रहवासियों ने पहले सीएम विष्णु देव साय और फिर आवास पर्यावरण मंत्री ओपी चौधरी से मिलकर समस्याएं बताई।
चूंकि चौधरी रायपुर कलेक्टर और निगम आयुक्त रह चुके हैं इसलिए उन्हें समस्याओं की जानकारी भी है। उन्होंने तुरंत अफसरों को निर्देश भी दिए, और यह भी कहा कि आरडीए के कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लाले पड़ गए हैं। चौधरी से मिलकर कमल विहार के लोग गदगद होकर लौटे। मगर हफ्ते भर बाद फिर वही समस्या सामने आ गई। अब लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं कि इसके निराकरण के लिए कहां जाएं? ये लोग इतने ऊंचे हैं कि अपनी दिक्कतों को लेकर धरना-प्रदर्शन में भी शरमा रहे हैं। देखना है कि आगे क्या होता है।
हर रोज एक वेरायटी का चावल
छत्तीसगढ़ धान का कटोरा है। यहां धान के करीब 16000 हजार से अधिक जर्मप्लाज्म हैं। यानी इतने किस्म के चावल की वेरायटियां है। लेकिन इनमें से पैदावार कुछ ही वेरायटियों की होती है । इनकी संख्या को लेकर दावे प्रतिदावे हैं। कोई कहता है सौ, तो कोई 160 से अधिक। अब प्रश्न इस बात का है कि इतनी वेरायटियों का चावल खाते कितने हैं। क्योंकि चावल मतलब मधुमेह का कारक कहा गया है। डॉक्टर्स तो नो राइस कहते हैं । इसे देखते हुए विश्वविद्यालय ने शुगर लेस राइस भी तैयार कर उत्पादन शुरू कर दिया है । हमारे प्रदेश में एक मैडम अफसर हैं जो हर रोज एक वेरायटी का चांवल खाती हैं। घर के स्टाफ से मंत्रालय पहुंची चर्चा से मुताबिक मैडम साहब 30 वेरायटी का चावल खाती हैं। यानी हर रोज एक वेरायटी। अब इनके नाम, स्वाद और पोषक तत्वों के बारे में तो मैडम ही बता पाएंगी। लेकिन स्टाफ के लिए तो चटखारे का विषय बन गए हैं ये वेरायटी।
(rajpathjanpath@gmail.com)
दोनों पार्टी दारू में डूबी हुई !!
आम आदमी पार्टी की रायपुर दक्षिण, और स्थानीय निकायों के चुनाव पर नजर है। दक्षिण में पार्टी की रणनीति राज्यसभा सदस्य संदीप पाठक तैयार कर रहे हैं। पार्टी प्रदेश में आम चुनाव में ज्यादा कुछ नहीं कर पाई, लेकिन उपचुनाव और निकाय-पंचायत चुनाव में ताकत दिखाकर आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार कर रही है।
सुनते हैं कि उपचुनाव में दिल्ली सरकार के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया भी प्रचार के लिए आ सकते हैं। सिसोदिया आबकारी घोटाले में फंसे हैं, और हाल ही में जेल से छूटे हैं। आप, केन्द्र सरकार पर विरोधी दल के नेताओं को फंसाने का आरोप लगा रही है।
दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ में भी आबकारी घोटाला हुआ है। यहां भी कांग्रेस के कई नेताओं के खिलाफ आबकारी केस में प्रकरण दर्ज है। कई अफसर-कारोबारी जेल में हैं। इन सबके बीच उपचुनाव में आम आदमी पार्टी, आबकारी घोटाला को भी जोर शोर से उठाने की तैयारी कर रही है। अब यह देखना है कि छत्तीसगढ़ के आबकारी घोटाले पर आप नेता किस पर प्रहार करते हैं।
कलेक्टर कौन..!
बस्तर संभाग के एक जिले के कलेक्टर के खिलाफ स्थानीय भाजपा नेता काफी शिकायतें कर रहे हैं। कलेक्टर ने अपना ज्यादातर काम एडिशनल कलेक्टर को दे रखा है, और एडिशनल कलेक्टर को लेकर शिकायत यह है कि वो बिना लेन देन के कोई काम नहीं करते हैं।
बताते हैं कि भाजपा नेताओं ने मंत्री जी से पहले शिकायत भी की थी। मगर कुछ नहीं हुआ। एडिशनल कलेक्टर के खिलाफ पुराने प्रकरणों की फेहरिस्त तैयार की है, और मंत्री जी के दौरे पर उन्हें सौंपने की तैयारी चल रही है। भाजपा नेताओं का आरोप है कि कलेक्टर जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं। ताकि उनके दामन पर दाग न लगे, और फ़ायदा भी हो जाए। अब निकायों-पंचायतों के चुनाव नजदीक है इसलिए मंत्री जी भी कार्यकर्ताओं को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा पा रहे हैं। देखना है कि शिकायतों का क्या तोड़ निकालते हैं।
अभयदान और परफार्मेंस
फिलहाल के लिए अभयदान मिलने के बाद मंत्रियों में काम करने की होड़ है। उत्साह भी है। जिन नए नवेले मंत्रियों पर खतरा था वे अब अपनी जगह भी सुरक्षित रखना चाहते हैं और संगठन के सामने अपना काम भी साबित करना चाहते हैं। इसलिए जिलों के दौरे, अपने विभागीय दफ्तरों में बिना बताए दबिश देने लगे हैं। इसी उत्साह में एक मंत्री जी ने पहले एक बड़े उद्योग समूह के स्थानीय प्रतिनिधि को बुलाया, फिर कह दिया कि अपने मालिक से बात कराओ। स्थानीय प्रतिनिधि की इतनी हैसियत नहीं थी कि वह सीधे मालिक को फोन करता। उसने ऊपर संदेश पहुंचाया। उन्हें क्या पता कि वाट्स एप में यह संदेश फॉरवर्ड होकर दिल्ली तक पहुंच जाएगा। बस फिर क्या था। मंत्री जी को बता दिया गया कि इतने ऊपर नहीं जाना है। जो बात छनकर आई है, उसमें मंत्री के ओएसडी ने ही चाबी भरा था।
पुराने स्वनामधन्य ओएसडी
भाजपा की 15 साल की सरकार जब गई तब मंत्रियों के हार के कारणों में ओएसडी नामक शब्द काफी चर्चा में रहा। कुछ स्वनामधन्य किस्म के अफसर अभी फिर से ओएसडी बन गए हैं। कुछ छाती ताने सामने हैं तो कुछ पर्दे के पीछे बंगलों में तैनात है। और हिसाब-किताब का काम इन्हें ही दिया गया।
कभी शिक्षा विभाग सम्हाल चुके ये साहब अब पानी का घनमीटर नाप रहे हैं। इनकी नियुक्तियों के समय ही आपत्ति आई, लेकिन मंत्रियों ने जैसे जैसे संगठन को मैनेज कर लिया, लेकिन कई ओएसडी के भगवान बनने की चर्चा फिर शुरू हो गई है। ऐसे ही एक एक ओएसडी को तो मंत्री ने बाहर कर दिया है। बाकी मंत्री संभलकर रहें, नहीं तो पिछले परिणाम अच्छे नहीं रहे हैं।
(rajpathjanpath@gmail.com)
प्रमोशन के खेल
पीडब्ल्यूडी में प्रमोशन पर विवाद छिड़ा है। सरकार ने एसई से सीई के पद पर पदोन्नति के लिए नियमों में संशोधन कर दिया है। इसमें एसई के पद पर न्यूनतम पांच वर्ष के कार्य अनुभव को घटाकर चार साल कर दिया है।
बताते हैं कि वर्तमान में सभी जगहों पर एसई, सीई के प्रभार पर हैं, और नियमों में संशोधन के बाद सभी सीई के पद पर प्रमोट हो रहे हैं। इसके लिए डीपीसी भी हो चुकी है।
कहा जा रहा है कि राज्य बनने के बाद पहली बार पीडब्ल्यूडी में प्रमोशन के लिए नियमों में संशोधन किया गया है। इससे जूनियर अफसर नाखुश हैं। क्योंकि कई वंचित भी हो जा रहे हैं। खास बात यह है कि पीडब्ल्यूडी के नियम बाकी निर्माण विभाग में भी लागू होते हैं। इससे निर्माण विभागों में हलचल मची है। कई अफसर कोर्ट जाने की तैयारी भी कर रहे हैं।
दूसरी तरफ, निर्माण विभाग से परे राजस्व विभाग में भी कई बार संशोधन हो चुका है। तहसीलदार के पद पर पदोन्नति के लिए नायब तहसीलदारों ने पिछली सरकार में एक साथ ताकत लगाई थी, और इसका नतीजा यह रहा कि विभाग से लेकर पीएससी तक फाइल इतनी तेजी से चली कि एक साथ सवा सौ अफसर प्रमोट हो गए। ये अलग बात है कि इसके लिए सबको काफी कुछ न्योछावर भी करना पड़ा। लेकिन प्रमोशन के लिए सब खुशी खुशी तैयार थे। वैसी एकजुटता निर्माण विभागों में नहीं दिख रही है। देखना है आगे क्या होता है।
निगम में प्रदर्शन घेराव अब रोज
एक वर्ष के भीतर प्रदेश के तीसरे चुनाव दिसंबर में होने हैं। इन्हें शहर या नगर सरकार के चुनाव कहा जाता है। इन चुनावों को राजनीति की पहली सीढ़ी भी कहते हैं । इसलिए यह सीढ़ी चढऩे वार्ड मोहल्लों के युवा, नामचीन लोग सक्रिय हो गए हैं। वे मोहल्ले की समस्याओं को लेकर रोजाना निगम मुख्यालय, जोन कार्यालय और वर्तमान पार्षद कार्यालयों में प्रदर्शन घेराव करने लगे हैं। यह प्रदर्शन राजधानी से लेकर दूरस्थ निकायों में जारी हैं। निगम के आयुक्त, सीएमओ , जोन कमिश्नर सभी परेशान हैं।
सरकार के हालिया जनसमस्या निवारण शिविर में सभी समस्याओं का गली गली निवारण के बाद भी समस्याएं खामियां तो बनी रहेंगी। ये ही इनके विरोध प्रदर्शन का हथियार होतीं हैं। बार बार बिजली गुल होना,स्ट्रीट लाइट न जलना, कुत्तों का आतंक, गंदगी आदि आदि । जो जितना ज्यादा प्रदर्शन करेगा उसकी पूछपरख मोहल्ले में होगी और टिकट का दावेदार भी। टिकट पाकर जीत गया तो एमआईसी सदस्य ,जोन अध्यक्ष बनना तो तय है। और यदि बहुमत के आधार पर महापौर चुना जाना होगा तो अपने समर्थन के बदले नगदी और अन्यान्य फायदे अलग। इसलिए साल के आखिरी तक शहर ये सब प्रपंच देखेगा।
गुजरात के कानून की यहां भी जरूरत
छत्तीसगढ़ में हाल ही में एक व्यक्ति ने अपनी मां की मौत के लिए पड़ोस की महिला को जिम्मेदार ठहराते हुए उसकी हत्या कर दी, क्योंकि उसे विश्वास था कि महिला ने जादू टोने से उसकी मां की जान ली। इस तरह के अंधविश्वास से प्रेरित अपराध छत्तीसगढ़ में बेहद आम हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश में 20 हत्याएं जादू टोने के चलते हुई हैं, जो पूरे देश में सबसे ज्यादा हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ में टोनही प्रथा अधिनियम 2005 लागू है, लेकिन इसका प्रभाव सीमित है और अंधविश्वास का प्रभाव समाज पर गहरा असर डालता है।
बुधवार को गुजरात विधानसभा द्वारा पारित किया गया कानून छत्तीसगढ़ के लिए एक उदाहरण बन सकता है। इस नए कानून में मानव बलि, काला जादू, और अन्य क्रूर व अमानवीय प्रथाओं को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। अगर कोई व्यक्ति किसी को रस्सी या जंजीर से बांधकर, मारपीट कर, मिर्च का धुआं करके, या किसी अन्य अमानवीय तरीके से ‘भूत-प्रेत’ निकालने का दावा करता है, तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा, अगर कोई तांत्रिक या बाबा अलौकिक शक्तियों का दिखावा कर किसी महिला या पुरुष के साथ शारीरिक शोषण करता है, तो यह भी कानूनन अपराध होगा।
गुजरात के इस कानून में यहां तक शामिल किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति तंत्र-मंत्र के जरिए इलाज का दावा करता है, जैसे कि धागे, ताबीज, या झाड़-फूंक से इलाज करना, तो उसे भी सजा मिलेगी। ये प्रावधान न केवल अंधविश्वास से प्रेरित अपराधों को रोकने में मदद करेंगे, बल्कि समाज को इस तरह के गलत और हानिकारक विश्वासों से भी बचाएंगे।
यदि छत्तीसगढ़ में भी ऐसा कानून लागू हो जाए, तो यहां अंधविश्वास के आधार पर होने वाले अपराधों और शोषण पर प्रभावी रोक लगाई जा सकेगी। तब शायद अंगूठी बांटकर, पर्ची खोलकर और चंगाई सभाएं लगाकर मुसीबत में फंसे लोगों को झांसे में लेना बंद हो जाए।
कानून बहाली का तरीका
बिहार में भारत बंद का असर जोरदार था। पुलिसवालों का उत्साह भी सातवें आसमान पर था। पटना की सडक़ों पर पुलिस पूरी मुस्तैदी से तैनात थी, और वहां तैनात एसडीएम साहब भी जोश में। उन्होंने लाठीचार्ज का आदेश दिया, और फिर क्या था, सिपाही लोग एक्शन मोड में आ गए। एक सिपाही साहब को तो यह याद ही नहीं रहा कि सामने कौन खड़े हैं। नतीजा यह हुआ कि जिसने लाठीचार्ज का आदेश दिया था, वही खुद सिपाही के निशाने पर आ गया! सिपाही ने एसडीएम साहब पर ऐसी जोरदार लाठियां बरसाईं कि बेचारे एसडीएम साहब भी सोच में पड़ गए कि कानून व्यवस्था बहाल करने का यह कौन सा तरीका है! अब सिपाही को यह कैसे पता चलता कि सामने वाला उसका बॉस है, जब खुद साहब ‘सिविलियन’ लुक में थे। शायद अगली बार से एसडीएम साहब अपनी पहचान वाली जैकेट जरूर पहनेंगे, ताकि उत्साही सिपाही उन्हें भीड़ का हिस्सा न समझ बैठे!
(rajpathjanpath@gmail.com)
पार्टी देवेंद्र के साथ
बलौदाबाजार आगजनी प्रकरण पर भिलाई के कांग्रेस विधायक देवेंद्र यादव की गिरफ्तारी के बाद से राजनीतिक माहौल गरम है। कहा जा रहा है कि पुलिस ने पुख्ता सुबूतों के आधार पर ही गिरफ्तारी की है। सीएम विष्णु देव साय ने तो कड़े तेवर दिखाते हुए कांग्रेस नेताओं पर राजनीति नहीं करने की नसीहत दी है, और कहा है कि देवेन्द्र की बेगुनाही के सुबूत हों, तो कोर्ट जाएं।
दावा किया जा रहा है कि पुलिस ने आगजनी प्रकरण में देवेन्द्र की भूमिका होने पर गिरफ्तारी की है। चर्चा है कि देवेन्द्र घटना के आरोपियों के लगातार संपर्क में रहे हैं। घटना के एक दिन पहले, और बाद में देवेंद्र ने वीडियो कॉलिंग कर आरोपियों से बातचीत भी की थी।
हल्ला तो यह भी है कि देवेन्द्र यादव ने कार्यक्रम के आरोपियों को करीब 10 लाख रुपए मदद भी की थी। इसके सुबूत पुलिस को मिल गए हैं। अभी तो सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप, और चर्चाओं का दौर चल रहा है। इस पूरे मामले में आरोप पत्र दाखिल होने के बाद ही वस्तुस्थिति सामने आने की उम्मीद है।
दूसरी तरफ, देवेन्द्र यादव की गिरफ्तारी पर कांग्रेस हाईकमान की नजर है, और पूरी तरह उनके साथ है। यही वजह है कि गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदेश भर में प्रदर्शन की रूपरेखा तैयार की गई है। साफ है कि आने वाले दिनों में मामला और गरमा सकता है।
नजरें अमित शाह पे
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दौरे से पहले भाजपा में कैबिनेट विस्तार को लेकर आपसी चर्चा हो रही है। अमित शाह 23 तारीख को प्रदेश दौरे पर आ रहे हैं, और 25 तारीख को राज्य सरकार के कामकाज की समीक्षा करेंगे।
कुछ नेताओं का अंदाजा है कि शाह की प्रदेश के नेताओं के साथ बैठक में कैबिनेट विस्तार पर बातचीत हो सकती है। हालांकि इसकी संभावना कम नजर आ रही है। कहा जा रहा है कि पार्टी हाईकमान ने पहले ही कैबिनेट विस्तार की अनुमति दे दी थी। मगर प्रदेश संगठन के रणनीतिकारों ने चुनाव के बाद विस्तार करने की इच्छा जताई है, जिसे हाईकमान ने मान लिया।
चर्चा है कि जिन दो चेहरे को कैबिनेट में जगह मिलने की उम्मीद थी, वो दोनों नए थे। पार्टी के रणनीतिकारों को लगता था कि नए चेहरों को जगह मिलने पर सीनियर विधायकों में नाराजगी फैल सकती है। इसका चुनाव में असर पड़ सकता है। यही वजह है कि कैबिनेट विस्तार टल गया। अब अमित शाह क्या कुछ करते हैं, इस पर सबकी नजरें टिकी हुई है।
पहले हटाया, अब तैनात किया !!
चुनाव आयोग ने राज्य के तीन आईपीएस प्रशांत अग्रवाल, अभिषेक मीणा और उदय किरण की हरियाणा, और जम्मू कश्मीर में चुनाव ड्यूटी लगाई है। खास बात यह है कि आयोग ने ही विधानसभा चुनाव के ठीक पहले राजनांदगांव एसपी अभिषेक मीणा, और कोरबा एसपी से उदय किरण को हटा दिया था। सरकार बदलने के बाद से दोनों लूप लाइन में हैं। प्रशांत अग्रवाल की भी रायपुर एसएसपी रहते चुनाव आयोग से काफी शिकायतें हुई थी। मगर अब चुनाव आयोग ने इन तीनों को पर्यवेक्षक बनाया है। ये अलग बात है कि छह महीने के भीतर ही चुनाव आयोग ने तीनों अफसरों को निष्पक्ष मान लिया है। इसकी पुलिस और प्रशासनिक हलकों में काफी चर्चा है।
साजिश रचने में दिमाग किसका ?
बस्तर के चार पत्रकारों को गांजा रखने के आरोप में आंध्रप्रदेश की पुलिस से गिरफ्तार कराने के मामले में कोंटा के टीआई को पहले सस्पेंड किया गया, फिर उसकी गिरफ्तारी भी हो गई और जेल भी भेज दिया गया। डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने प्रकरण सामने आते ही कहा था, कि जांच के बाद कार्रवाई होगी और हुई भी। मगर, मामले में कई मोड़ आ रहे हैं। पहले तो गिरफ्तारी से पहले टीआई अजय सोनकर ने कथित रूप से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली- नेता जी को बता देना...। इस पोस्ट का यह मतलब निकाला जा रहा है कि किसी नेता के कहने पर टीआई ने पत्रकारों के खिलाफ साजिश रची, मगर वह नेता उन्हें नहीं बचा पाए। बस्तर के दो बड़े कांग्रेस नेता कवासी लखमा और दीपक बैज ने मामले को हाथों हाथ लेते हुए प्रेस कांफ्रेंस में बता भी दिया कि किस भाजपा नेता का हाथ है। अब तक कि पुलिस ने अपनी जांच में सिर्फ इतना कहा है कि दो संदिग्ध लोग पत्रकारों की कार का लॉक तोडऩे की कोशिश करते दिखे, पर ये कौन लोग हैं, यह अभी पता नहीं चला है। पत्रकार शायद टीआई की गिरफ्तारी से संतुष्ट जाते, मगर कांग्रेस ने अब भाजपा नेता पर रेत तस्करी और पत्रकारों को फंसाने का आरोप लगा दिया है। टीआई के सोशल मीडिया पोस्ट से ही यह पता चलता है कि किसी नेता का इससे संबंध जरूर है। पता नहीं, उसने अपने बयान में भी कुछ उगला है या नहीं। पर सवाल यही है कि क्या अकेले टीआई में इतना हौसला था कि वह अकेले पत्रकारों को फर्जी मामले में फंसाते?
भाई सामने नहीं, तो पुतला सही
सहज उपलब्ध नेता की मेहनत और किस्मत कभी उसे इतनी ऊंचाई पर पहुंचा देती है कि वे अपने प्रशंसकों तक प्रत्यक्ष पहुंच नहीं पाते। ऐसा मुमकिन नहीं हो तो लोग उनके पुतले से भी काम चला सकते हैं। महाराष्ट्र की यह तस्वीर यही बयान कर रही है। रक्षाबंधन के मौके पर शिंदे भाई के हाथों में इन महिलाओं ने राखी पहनाना चाहा। उन्होंने उनका एक आदमकद पुतला बनवाया और ससमारोह उसी पुतले की कलाई में राखी बांधी। सोशल मीडिया पर यह तस्वीर वायरल है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
अच्छी साख से बड़ी उम्मीदें
हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स की नियुक्ति के खिलाफ दायर याचिकाओं पर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। यह याचिका सीनियर पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल, और अन्य ने दायर की है। दरअसल, पिछली सरकार ने चार पीसीसीएफ की सीनियरटी को नजरअंदाज कर जूनियर पीसीसीएफ वी श्रीनिवास राव को हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बना दिया था।
राव सालभर से हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बने हुए हैं। सरकार बदलने के बाद भी उनकी हैसियत में कमी नहीं आई है। सीनियर अफसरों ने पहले कैट में उनकी नियुक्ति को चुनौती दी थी। मगर कैट से श्रीनिवास राव के पक्ष में फैसला दिया। सुनवाई के दौरान चर्चा में यह बात आई है कि कैट के दो सदस्य, जिनमें एक प्रशासनिक सदस्य होते हैं, उन्होंने राव के पक्ष में फैसला दिया है।
खैर, हाईकोर्ट में सरकार की तरफ से जवाब दाखिल किया जाना है। वन विभाग की एसीएस रिचा शर्मा के आने के बाद विभाग का माहौल कुछ बदला है। रिचा की साख बहुत अच्छी है, और सख्त अफसर मानी जाती है। सीनियर आईएफएस को उनसे काफी उम्मीदें हैं। देखना है आगे क्या होता है।
एक बार फिर चर्चा
खबर है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था बेहतर करने के लिए सरकार उत्तर प्रदेश, और महाराष्ट्र की तर्ज पर पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने पर विचार कर रही है। चर्चा है कि रायपुर एडीजी स्तर के अफसर को पुलिस कमिश्नर बनाया जा सकता है। एक चर्चा यह भी है कि राज्य में सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति की जा सकती है।
पुलिस कमिश्नर प्रणाली, और सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति के मसले पर पार्टी फोरम में चर्चा हुई है। इससे पहले भूपेश सरकार ने भी राज्य में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने पर विचार किया था। तब गृह और पुलिस विभाग के अफसरों की एक टीम कमिश्नर प्रणाली का अध्ययन करने पुणे भी गई थी। महाराष्ट्र की पुलिस कमिश्नर प्रणाली व्यवस्था सबसे पुरानी है।
बताया गया कि भूपेश सरकार ने आगे इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। अब रायपुर महानगर का रूप ले रहा है, और अपराध भी तेजी से बढ़ रहे हैं। इन सबको देखते पुलिस प्रशासन में नियंत्रण की दृष्टि से पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की जरूरत पर जोर दिया जा रहा है। यह चर्चा दशकों से चली आ रही है, और किसी किनारे नहीं पहुँची।
यही नहीं, एडीजी लॉ एंड ऑर्डर का पद बनाने पर विचार चल रहा है। पुलिस कमिश्नर एडीजी/आईजी स्तर के अफसर होंगे, और ज्वाइंट और असिस्टेंट कमिश्नर के पद पर सीनियर आईपीएस अफसरों को पदस्थ किया जा सकता है। जानकारों का कहना है कि फिलहाल रायपुर को ही पुलिस कमिश्नर प्रणाली के लायक माना जा रहा है। बाकी शहरों में इसकी जरूरत नहीं है। मध्यप्रदेश के भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हो चुकी है। ऐसे में रायपुर में भी पुलिस कमिश्नर को लेकर चर्चा चल रही है।
दूसरी तरफ, राज्य में सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति पहले भी हो चुकी है। रमन सरकार के पहले कार्यकाल में पंजाब के पूर्व डीजीपी केपीएस गिल को सुरक्षा सलाहकार बनाकर यहां लाया गया था। गिल यहां के लिए उपयोगी साबित नहीं हुए। ऐसे में सुरक्षा सलाहकार की उपयोगिता को लेकर भी चर्चा चल रही है। जानकारों का कहना है कि प्रदेश की नक्सल समस्या की केन्द्र सरकार सीधे मॉनिटरिंग कर रही है। बाकी मामलों पर भी नजर है। ऐसे में गृह और पुलिस विभाग में क्या कुछ बदलाव होता है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
अपने सांसद की भी नहीं सुनी रेल मंत्री ने
कोविड-19 के बाद से यात्री ट्रेनों और यात्रियों के साथ शुरू हुआ मुसीबतों का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। एक साथ दर्जनों ट्रेनों को अचानक रद्द करने की घोषणा कर दी है, जिससे महीनों पहले योजना बना चुके लोगों को या तो अपनी यात्रा रद्द करनी पड़ती है, या फिर फ्लाइट या टैक्सी का महंगा विकल्प चुनना पड़ता है। छत्तीसगढ़ में अधिकांश सांसद भाजपा से हैं और केंद्र में सरकार भी लगातार उसी की है, इसके बावजूद व्यवस्था बेहाल है। इसके पहले जब भी भाजपा सांसदों से ट्रेनों के रद्द होने, ट्रेनों के अत्यधिक विलंब होने और छोटे स्टेशनों पर स्टापेज खत्म करने को लेकर पूछा जाता तो वे बताते थे कि यह जायज है। नई रेल लाइनें बन रही हैं, बिजली संयंत्रों को कोयला पहुंचाना पड़ रहा है। पहली बार लोकसभा पहुंचे सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने जरूर इस मुद्दे पर मुखर होकर बात रखी। उन्होंने सदन में 200 से अधिक ट्रेनों के रद्द होने और विलंब से चलने के मुद्दे पर रेल मंत्री को घेरा। मगर, मंत्री ने वही जवाब दोहराया कि नई रेल लाइनों का काम तेजी से चल रहा है इसलिये यह समस्या हो रही है। एक साल में व्यवस्था ठीक हो जाएगी। कम से कम ट्रेन रद्द हों, इसकी कोशिश की जा रही है। यही जवाब रेल मंत्री ने बजट में रेलवे के लिए की गई घोषणाओं का ब्यौरा देते समय दिया था। उन्होंने कैंसिलेशन कम रखने की बात जरूर कही। पर ऐसा लगता है कि रेलवे के अफसरों को उन्होंने कोई निर्देश नहीं दिया। सदन में हुए सवाल जवाब के एक सप्ताह के भीतर ही बिलासपुर जोन से छूटने या चलने वाली 80 ट्रेनों को रद्द कर दिया या भी उनका मार्ग बदल दिया गया। इस दौरान रक्षाबंधन के चलते यात्रियों को भारी परेशानी हुई। लोगों ने स्टेशन पर घंटों इंतजार किया, जो ट्रेन मिलीं, उनमें खचाखच भीड़ रही। इसका दबाव यात्री बसों पर भी पड़ा। वहां भी यात्री ठूंसकर ले जाए गए। इसके बाद फिर दो ट्रेनों को रद्द करने की अभी दो दिन पहले घोषणा कर दी गई है। इसके अलावा दर्जन भर ट्रेनों का मार्ग बदल दिया गया है। इन ट्रेनों में बीच के स्टेशनों की टिकट बेकार चली जाएगी। लोगों को यह जरूर हैरान करता है कि मरम्मत और नए कार्यों के चलते सिर्फ यात्री ट्रेनों पर ही क्यों गाज गिरती है। माल परिवहन में हर तिमाही-छमाही में रेलवे रिकॉर्ड बना रहा है। कोरबा, जहां से कई राज्यों में कोयला जाता है, और रेलवे की आमदनी का बहुत बड़ा स्त्रोत है, वहां से खबर है कि इन दिनों वहां से रिकॉर्ड कोयले का परिवहन हो रहा है। मगर, ट्रेन वहां से सिर्फ एक चल रही है। यहां की सांसद ज्योत्सना महंत ने कई बार सदन में कोरबा, गेवरा से बंद कर दी गई ट्रेनों को दोबारा चलाने की मांग उठाई है, मगर सबसे ज्यादा आय देने वाले इलाके के मुसाफिरों के प्रति भी रेलवे उदारता नहीं दिखा रही है। फिलहाल तो रेल मंत्री भविष्य में बेहतर सेवा देने का वादा कर रहे हैं, आज कष्ट उठाने के अलावा कोई चारा नहीं है।
रोहिंग्या क्या रहस्य बने रहेंगे
छत्तीसगढ़ में रोहिंग्या मुसलमानों की मौजूदगी प्रशासनिक अमले की जांच में में साबित नहीं हो रही, लेकिन इस पर सियासत जरूर गरमाता रहा है।
जगदलपुर में पिछले कई महीनों से रोहिंग्या मुसलमानों की मौजूदगी का मुद्दा फ्रंट पर है। कुछ सामाजिक व हिंदुत्ववादी संगठनों ने दावा किया कि यहां समूह में रोहिंग्या पहुंचे हैं और किराये का मकान लेकर रह रहे हैं। आदिवासी संगठनों ने भी इस मुद्दे को लेकर अपना गुस्सा जाहिर किया था। मामला अधिक तूल पकड़ता इसके पहले ही पुलिस ने इसकी जांच करा ली। जिन लोगों के बारे में शक किया गया था कि वे रोहिंग्या हैं, यूपी के मुस्लिम पाये गए। आधार कार्ड की जांच और संबंधित थानों में पूछताछ से इसकी पुष्टि हुई। हालांकि जांच के बाद वे अपना ठिकाना छोडक़र कहीं और चले गए हैं।
पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान भाजपा के एक पार्षद और अन्य लोगों ने अंबिकापुर की महामाया पहाड़ी में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाये जाने का आरोप लगाया और आंदोलन किया। तत्कालीन मंत्री टीएस सिंहदेव के निर्देश पर जब पुलिस-प्रशासन ने जांच की तो वहां भी एक भी रोहिंग्या मुसलमान नहीं मिला था। बीते विधानसभा चुनाव के दौरान यह मुद्दा गरमाया रहा। कवर्धा के कांग्रेस प्रत्याशी मो. अकबर किसी रणनीति के तहत चुनाव के दौरान इस मुद्दे पर बोलने से बचते रहे लेकिन परिणाम आने के करीब 15 दिन बाद उन्होंने भाजपा को चुनौती दी कि वे कवर्धा, बस्तर या सरगुजा में एक भी रोहिंग्या मौजूद हो तो उसे सामने लाए। सरगुजा के मामले में भी वहां की कांग्रेस इकाई ने भाजपा पार्षद से इस्तीफा मांगा था।
इसमें कोई शक नहीं कि कोई भी विदेशी अवैध रूप से छत्तीसगढ़ में मौजूद है तो उस पर कानून के मुताबिक सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। मगर, प्रशासन की जांच रिपोर्ट से तो यही लग रहा है कि यह सिर्फ सियासी मुद्दा बन गया है। कानून किसी को भी एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर काम धंधा करने की मंजूरी देता है। पर यह हक सिर्फ देश के नागरिकों को है, अवैध रूप से भारत में घुसे विदेशियों को नहीं। बहरहाल, खबर यह भी है कि जगदलपुर में पुलिस जांच पड़ताल के बाद वहां पहुंचे लोग अपना ठिकाना बदलकर किसी दूसरी जगह जा चुके हैं।
स्वतंत्रता दिवस का जोश
छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में एक सरकारी स्कूल के बच्चों ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पूरे उत्साह से देशभक्ति नारे लगाते हुए जुलूस निकाला। कीचड़ भरे रास्ते को मत देखिये। कई स्कूलों तक ऐसे ही पार कर जाना पड़ता है, नदी नाले भी पार करने का जोखिम भी उठाना पड़ता है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
सबको मालूम है लिस्ट की हकीकत
सरकार के निगम-मंडलों की कथित प्रस्तावित सूची सोशल मीडिया पर वायरल हुई। सूची की सच्चाई सिर्फ इतना है कि जिन भाजपा नेताओं के नाम हैं, वो सभी निगम-मंडल में पद की इच्छा रखते हैं और इसके लिए प्रयासरत भी हैं। कई तो बाकायदा अपना बायोडाटा पार्टी दफ्तर में जमा कर चुके हैं। भूपेश सरकार ने दर्जनभर नए निगम-मंडल का गठन किया था। ये अलग बात है कि इनमें निगमों के कुछ पदाधिकारी तो सरकार के जाने से पहले तक गाड़ी और अन्य सुविधाओं के लिए जोर लगाते रहे। साय सरकार इन निगमों में नियुक्तियां करेंगी या नहीं, यह साफ नहीं है।
सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या पार्टी ने निगम-मंडलों के लिए कोई सूची तैयार की है? इस पर एक-दो प्रमुख नेताओं ने संकेत दिए हैं कि लालबत्ती के लिए पहले करीब 14 नेताओं के नाम तय किए गए थे लेकिन अलग-अलग कारणों से सूची जारी नहीं हो पाई।
हाल में पार्टी कोर ग्रुप की बैठक में यह तय किया गया कि लालबत्ती के लिए जिले की कोर कमेटी की अनुशंसा जरूरी होगी। कुछ का अंदाजा है कि रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव को देखते हुए एक छोटी सूची जारी हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
वीरू जय दोनों संगठन में
एआईसीसी पदाधिकारियों की एक सूची जल्द जारी हो सकती है। इस सूची में महासचिव, और राज्यों के प्रभारी व चुनाव प्रभारी के नाम हो सकते हैं। चर्चा है कि छत्तीसगढ़ के कई नेताओं को एआईसीसी में जिम्मेदारी दी जाएगी।
हल्ला है कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल का राष्ट्रीय महासचिव बनना तय हो गया है। साथ ही उन्हें दक्षिण के किसी राज्य का प्रभारी भी बनाया जा सकता है। भूपेश बघेल हाल ही में कर्नाटक, और तेलंगाना दौरे पर गए थे, और उनकी दोनों राज्यों के सीएम से मुलाकात भी हुई थी। भूपेश की मुलाकात को संगठन में दायित्व से जोडक़र भी देखा जा रहा है।
पूर्व सीएम भूपेश बघेल की तरह पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव को भी हाईकमान जिम्मेदारी दे सकती है। चर्चा है कि सिंहदेव को झारखंड अथवा हरियाणा का चुनाव प्रभारी बनाया जा सकता है। सिंहदेव का इलाका सरगुजा झारखंड से सटा हुआ है, और वो पहले भी वहां चुनाव में जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।
हरियाणा में उनकी बहन आशा कुमारी प्रभारी रह चुकी हैं। टीएस सिंहदेव हरियाणा के तमाम छोटे-बड़े नेताओं से परिचित हैं। ऐसे में उन्हें हरियाणा में कोई दायित्व मिल जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इससे परे पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को भी एआईसीसी कोई जिम्मेदारी दे सकती है। ताम्रध्वज की राहुल गांधी से मुलाकात भी हो चुकी है। इसके अलावा राज्य की इकलौती सांसद ज्योत्सना महंत को भी किसी फोरम में एडजस्ट किया जा सकता है।
सुनते हैं कि एआईसीसी सचिवों की एक बड़ी सूची जारी होने वाली थी, लेकिन अलग-अलग कारणों से रूक गई। राहुल गांधी राज्यों के प्रमुख नेताओं से मिल रहे हैं। पूर्व मंत्री अमरजीत भगत, कवासी लखमा और मोहम्मद अकबर को भी एआईसीसी में पद मिल सकता है। एआईसीसी सचिवों की सूची अगले महीने जारी हो सकती है। कुल मिलाकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हारे हुए नेताओं को संगठन के काम में लगाया जा रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
मां की ममता...
गाय चरने के लिए जंगल में थी और उसी दौरान उसने बछड़े को जन्म दे दिया। अब गाय और बछड़े दोनों को गरुवाखोली में वापस लाना है। किसान ने बछड़े को उठाया, बाइक पर बिठाया और चल पड़ा। पीछे-पीछे मां भी दौड़ रही है, कहीं बच्चे को कोई नुकसान न हो जाए। घर से चरागाह दो किलोमीटर की दूरी को उसने बिना थके हारे तय कर लिया। तस्वीर प्राण चड्ढा के सोशल मीडिया पोस्ट से।
(rajpathjanpath@gmail.com)
संघर्ष और संतोष का इनाम
निगम-मंडलों में नियुक्तियों का इंतजार कर रहे कार्यकर्ताओं के लिए एक अच्छी खबर यह है कि पार्टी ने तय किया है कि पांच साल तक संघर्ष करने वाले और टिकट पाने से चूकने के बावजूद धैर्य और संतोष के साथ पार्टी का काम करने वालों को इनाम मिलेगा। नए चेहरों की संख्या ज्यादा होगी। हालांकि यह तय नहीं है कि रमन सरकार में हर बार मौका पाने वाले नेताओं का क्या होगा। उन्हें लालबत्ती मिलेगी या नहीं।
हाई कोर्ट का खौफ
सरकारी मशीनरी में हाई कोर्ट का जबरदस्त खौफ है। अखबारों के जरिए कहीं भी सिस्टम की कमजोरी उजागर होती है, चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा उस पर संज्ञान लेते हैं और शासन से जवाब मांगते हैं, ताकि जो कमियां हैं, उसे दूर कर सकें। छत्तीसगढ़ के चीफ जस्टिस के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद दो दर्जन से ज्यादा मामलों पर संज्ञान ले चुके हैं। स्वास्थ्य व्यवस्था, मवेशी, घरौंदा की स्थिति जैसे मुद्दों पर तो सरकार को जवाब देते नहीं बना। हाई कोर्ट की सक्रियता का ही असर है कि डर ही सही लेकिन सिस्टम में थोड़ी कसावट तो आएगी।
सही जगह निवेश करना जरूरी
राजनांदगांव जिले की एक महिला कांग्रेस नेत्री ने पार्टी के ही एक पार्षद पर ठगी का आरोप लगाते हुए पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई है। उनका कहना है कि पार्षद ने टिकट दिलाने के नाम पर 30 लाख रुपये ठग लिए और बाद में टिकट का कहीं अता-पता नहीं रहा।
पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के टिकट वितरण पर पार्टी के भीतर ही कई सवाल उठे थे। वो वायरल ऑडियो याद ही होगा, जिसमें दावा किया गया था कि एक खास सीट की टिकट पाने के लिए करोड़ों रुपये का लेन-देन हुआ। ये ऑडियो इतना फैला कि बिलासपुर के महापौर को निलंबित तक कर दिया गया, हालांकि बाद में वे फिर से लौट आए। कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हुए नेताओं ने भी आरोप लगाए कि कांग्रेस में टिकट बेची जाती हैं। अब इस महिला नेत्री का दावा कितना सही है, ये तो पुलिस जांच में पता चलेगा। लेकिन एक बात तो तय है, इस घटना ने फिर से लोगों के मन में सवाल उठा दिए हैं कि कांग्रेस की टिकट बांटने में खेल या धांधली हुई?
वैसे, भाजपा का अपना तरीका है टिकट बांटने का। वहां आंतरिक सर्वे के आधार पर फैसला लिया जाता है। जबकि कांग्रेस में हर कोई आसानी से आवेदन कर सकता है। पर, फाइनल सूची में नाम लाना इतना आसान नहीं है। और अगर नाम आ भी गया, तो टिकट मिलना पक्का नहीं है। दिल्ली से भेजे गए पदाधिकारी एक कड़ी होते हैं जो किस्मत तय करने में मदद कर सकते हैं। अब अगर इस महिला नेत्री का आरोप सही हो, तो कहा जा सकता है कि उन्होंने गलत जगह निवेश कर दिया। सही जगह करतीं, तो शायद आज तस्वीर कुछ और होती!
अदम्य जिजीविषा
बस्तर के आदिवासी जब दिन भर जंगलों में कठिन परिश्रम करके वापस लौटते हैं तो उनके चेहरों पर थकान नहीं होती, निश्छल मुस्कान होती है और मन प्रफुल्लित। यह तस्वीर कोलेंग गांव की है, जिसे अविनाश प्रसाद ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
डबल इंजन का फ़ायदा, पटरी...
रेल मंत्रालय ने बीजापुर, और दंतेवाड़ा को रेल लाईन से जोडऩे के प्रस्ताव पर काम शुरू कर दिया है। मंत्रालय इसके लिए सर्वे को मंजूरी दे दी है। दरअसल, बस्तर सांसद महेश कश्यप ने गत 22 जुलाई को लोकसभा में बस्तर को रेल से जोडऩे की मांग पुरजोर तरीके से रखी थी। केन्द्र ने भी पखवाड़े भर के भीतर इस दिशा में काम शुरू कर दिया है।
कश्यप से पहले बीजापुर कलेक्टर अनुराग पांडेय ने गीदम से भोपालपट्टनम और भोपालपट्टनम से तेलंगाना के सिंरोंचा तक रेल लाईन बिछाने के लिए बकायदा प्रेजेंटेशन दिया था। कुल 236 किलोमीटर प्रस्तावित रेल कॉरीडोर के चेन्नई-नागपुर, दिल्ली मेन ट्रंक लाईन में बीजापुर की कनेक्टिविटी हो जाएगी। रेलवे मंत्रालय ने इन प्रस्तावों को संशोधित रूप से मान लिया है।
मंत्रालय ने एक कदम आगे जाकर गढ़चिरौली से बीजापुर होते हुए बचेली तक रेल लाईन के निर्माण के लिए फाइनल सर्वे और डीपीआर बनाने के लिए पौने 17 करोड़ रूपए मंजूर भी किए हैं। इसमें कोरबा से अंबिकापुर प्रस्तावित रेल लाईन भी शामिल है। खास बात यह है कि रमन सरकार ने बरसों पहले अधोसंरचना विकास के लिए पूर्व सीएस एस.के.मिश्रा की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी।
कमेटी ने कोरबा, कटघोरा, और अंबिकापुर तक रेल लाईन की अनुशंसा की थी। प्रस्ताव केन्द्र को भेजा भी गया था, लेकिन बाद में रमन सरकार चली गई, और फिर प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया। अब जाकर दोनों ही प्रस्ताव पर काम शुरू हुआ है। डबल इंजन की सरकार होने का कुछ तो फायदा होता ही है।
इतने पेड़ कहाँ गए?
प्रदेश में वृक्षारोपण अभियान चल रहा है। इस अभियान को इमोशनल टच दिया गया है, और अभियान का नामकरण एक पेड़ मां के नाम किया गया है। इससे पहले भी बड़े पैमाने पर जून के आखिरी हफ्ते से वृक्षारोपण अभियान चलते रहे हैं। एक जानकारी के मुताबिक राजधानी और आसपास में कागजों पर राज्य बनने के बाद से अब तक सौ करोड़ पेड़ लग चुके हैं। इसमें से कितने जीवित हैं, यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं है।
वृक्षारोपण के लिए सार्थक अभियान राज्य बनने से पहले तत्कालीन कमिश्नर शेखर दत्त के कार्यकाल में चला था। उस समय के पेड़ अब तक जीवित हैं। इसी तरह बाद में कमिश्नर जे.एल.बोस ने भी अभियान चलाया था।
जे.एल.बोस की बहुत अधिक दिलचस्पी के चलते लोग उनका नाम ही झाड़ लगाओ बोस कहने लगे थे।
दोनों के कार्यकाल में बलौदाबाजार रोड और वीआईपी रोड में वृक्षारोपण अभियान चला था। उस समय के पेड़ अब तक लहरा रहे हैं। रायपुर स्मार्टसिटी क्षेत्र में अब तक पांच करोड़ पौधे का रोपण दिखाया गया है। स्मार्टसिटी क्षेत्र में शहर का ही इलाका आता है जहां वृक्षारोपण की सीमित गुंजाइश है। स्मार्टसिटी के अस्तित्व में आने के बाद ये वृक्ष कहां लगे हैं इसका कोई भौतिक सत्यापन नहीं हुआ है। कई पार्षद मानते हैं कि वृक्षारोपण के नाम पर सिर्फ भ्रष्टाचार हुआ है। और अब मां के नाम पर पेड़ का क्या होता है यह देखना है।
पुनर्मिलन में छड़ी का आशीर्वाद
तमिलनाडु के एक स्कूल के 40 वर्ष पुराने छात्रों का पुनर्मिलन हुआ। इस खास मौके पर कलेक्टर, पुलिस अधिकारी, डॉक्टर, वकील, प्रधानाचार्य, शिक्षक, व्यापारी, और स्कूलों के मालिक सभी पहुंचे थे। लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह थी कि इन सबकी एक ही इच्छा थी – प्रधानाचार्य की वही पुरानी छड़ी से पिटाई खाने की!
इन सफल शख्सियतों का मानना है कि वे अपने जीवन में जिन ऊंचाइयों तक पहुंचे हैं, वह प्रधानाचार्य के छड़ी आशीर्वाद का परिणाम है। उनकी सफलता का राज छिपा था उन 'स्नेह भरी पिटाईयों' में, जो उन्हें स्कूल के दिनों में मिला करती थीं। अब, इतने वर्षों बाद, वे फिर से उसी छड़ी का स्पर्श चाहते थे – शायद यह सुनिश्चित करने के लिए कि गुरु- शिष्य के बीच संबंधों की जड़ें अभी भी मजबूत हैं!
कहां से बनेगा कांग्रेस अध्यक्ष?
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार और उसकी समीक्षा के बाद, प्रदेश कांग्रेस में अब महारथी, यानि प्रदेश अध्यक्ष की तलाश हो रही है। ऐसा, जो कुर्सी तक पार्टी को फिर से पहुंचा सके। विधानसभा चुनाव में हार का सदमा कांग्रेस अब तक झेल रही थी कि लोकसभा चुनाव ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। 11 में से सिर्फ एक सीट जीतने के बाद पार्टी का डगमगाया आत्मविश्वास कई बार आंदोलनों के जरिये सडक़ पर उतर जाने के बाद भी लौटा नहीं है।
बस्तर से लगातार दो अध्यक्ष बनाए गए लेकिन उसका फायदा कांग्रेस को नहीं मिला। अब जब नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत ने कह दिया है कि वे इस पद की दौड़ में नहीं हैं तो पार्टी के भीतर नई हलचल मच गई है। मैदानी छत्तीसगढ़ में दो कद्दावर नेता हैं, भूपेश बघेल और डॉ. महंत। हार का ठीकरा बघेल और उनकी कार्यप्रणाली पर फोड़ा जा चुका है। कुछ लोग इस बात को लेकर बगावत कर पार्टी छोड़ चुके, कुछ लोग पार्टी में रहकर यही बात कर रहे हैं। उनके किसी करीबी को अध्यक्ष बनाने का मतलब होगा, गलतियों से सबक नहीं लेना, अब बच जाते हैं, डॉ. महंत, जिन्होंने रेस से खुद को अलग करने का ऐलान कर दिया है। फिर बच जाता है सरगुजा। वहां से एक ही नाम है- टीएस सिंहदेव का। उन्होंने अब तक न तो इच्छा जताई है और न ही अनिच्छा। शायद कोई उनका नाम उछाले, तब वे प्रतिक्रिया दें। सिंहदेव यह समझ ही रहे होंगे कि प्रदेश अध्यक्ष का पद कांग्रेस में मुख्यमंत्री बनने का रास्ता भी खोलता है। दिग्विजय सिंह से लेकर भूपेश बघेल तक इसका लाभ उठा चुके हैं। सिंहदेव यदि हां करते हैं और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना पाएं, तो अगली बार उनकी अधूरी रह गई इच्छा पूरी भी हो सकती है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
दक्षिण के रास्ते लालबत्ती
रायपुर दक्षिण से भाजपा में दो दर्जन से अधिक नाम चल रहे हैं। मगर प्रत्याशी चयन में सांसद बृजमोहन अग्रवाल की राय अहम होगी। इससे परे पार्टी ने कुछ प्रमुख दावेदारों को संतुष्ट करने की योजना भी बनाई है।
चर्चा है कि रायपुर दक्षिण से टिकट के दावेदारों में से 4-5 को ‘लालबत्ती’ मिलेगी। हालांकि ‘लालबत्ती’ के लिए उन्हें इंतजार करना होगा। पार्टी ने तय किया है कि निगम-मंडलों में नियुक्ति नगरीय निकाय चुनाव के बाद की जाएगी। देखना है कि टिकट से वंचित दावेदार ‘लालबत्ती’ से संतुष्ट होते हैं या नहीं।
टीआई की धमकी और सोशल मीडिया
गांजा तस्करी के आरोप लगाने की धमकी ही नहीं टीआई की कार्रवाई की सोशल मीडिया में जमकर प्रतिक्रिया देखने, पढऩे को मिल रही है। सुकमा से लेकर राजधानी तक इस पूरे षडय़ंत्र की परतें खुल रही हैं। पत्रकारों को दशकों से जानने वाले इसे उनकी निष्पक्षता पर हमला कह रहे तो टीआई को जानने वाले पूरे षडय़ंत्र का खुलासा कर रहे । अब तक की जानकारी में इसके पीछे एक नेता की भी भूमिका भी बताई जा रही है।
अफसर, पत्रकार और नेताओं के एक वाट्सअप ग्रुप में चर्चा के प्रमुख बिंदु- क्या हुआ सुकमा टी आई को निलंबित कर एफआईआर कर जेल भेजने के बाद भी तो चारों पत्रकारों को तो जेल जाना ही पड़ा न.... इसमें बेगुनाह पत्रकारों का क्या फायदा हुआ?
पूछता है प्रदेश....
संघर्ष के बाद सफलता का मज़ा ही अलग है ..अब यार सब छूट के जब आएंगे तो इनका कद पत्रकारिता में कितना बड़ा होगा .. इन सबका आने वाला भविष्य उज्जवल है।
जैसे एक पत्रकार विनोद वर्मा थे ..जेल गए देखो पिछले 5 साल कितना अच्छा भविष्य रहा। इसीलिए आपसे भी कह रहा हूँ कि यार चवन्नी-अठन्नी वाले पर ध्यान मत दो अब योजना बनाओ जेल कैसे जाया जाए। भविष्य निर्माण की जननी या कोख़ जेल ही है भाई।
कच्चा आम खाने से दांत खट्टे हो जाते है....
आम के पेड़ पर पकने के बाद खाने का अपना अलग ही आनंद है....
....90 दिन के अंदर सोनकर का चालान पेश हो जाएगा....उसके बाद उसकी जमानत हो जाएगी....उसके 3 महीने बाद सोनकर पीएचक्यू आकर किसी अधिकारी को पकडक़र नौकरी में बहाल हो जाएगा, और तो और उसके बाद वो बस्तर से हटकर किसी मैदानी जिले में ठाठ से नौकरी करेगा। वही ये चारों पत्रकार कब बाहर आयेंगे हर बार पेशी पर जाना होगा। अगर सजा हो गई तो समझो लाइफ खत्म। अगर प्रदेश के नेता बेगुनाह मानते है तो इसमें उन चारों का कुछ फायदा हुआ दिखता न....जेल गए न।
....मेरी नजर में सोनकर को सस्पेंड कर जेल भेजना प्रदेश के नेताओं का डैमेज कंट्रोल है इसी से ही प्रदेश के पत्रकार खुश भी हो गए। लेकिन जिस पर पड़ती है वही झेलता है...? अपने नेताओं के प्रकरणों की तरह सरकार के इन सभी पत्रकारों के भी केस वापस लेने चाहिए इस पर रायपुर से ही मांग उठानी होगी।
छापे और मैसेज
इस सप्ताह के शुरू में खाद्य औषधि विभाग की टीम ने कुछ मिठाई दुकानों पर मिलावट, गुणवत्ता परखने छापे मारे। यह कहते हुए कि राखी में बहन,भाइयों को शुद्ध मिठाई से मुंह मीठा करा सकेंगी। बताते हैं कि यह कार्रवाई प्रदेश के कई अन्य शहरों में भी डाले गए। राजधानी में दो बड़े मिठाई वालों नैवेद्य और राजघराना को घेरा। इन दबिश के जरिए यह मैसेज दिया कि बड़े-बड़े मिठाई वालों को नहीं छोड़ा तो इन शहरों के अन्य इलाकों के और गांव, कस्बे के अन्य नामचीन मिठाई वालों की क्या बखत? नहीं छोड़ेंगे। लेकिन हो ऐसा कुछ नहीं रहा। अब तो छुट्टी ही छुट्टी है अगले चार दिन। और फिर त्यौहार निपट ही जाएगा। यह कार्रवाई इसलिए भी की गई कि विभागीय अमले को रेड बुक (छापा पुस्तिका) भरना होता है । ताकि विधानसभा में प्रश्न उठने पर जवाब दिया जा सके। यह भी चर्चा है कि छापे से पहले टीम ने नैवेद्य और राजघराना प्रबंधन को खबर लीक करवा दिया था। ताकि सांप भी मर जाए, लाठी भी न टूटे। और हुआ भी वैसा ही।
साइबर ठगी का नया तरीका
भारतीय डाक सेवा, जिसे हम सभी ‘इंडिया पोस्ट’ के नाम से जानते हैं, अपनी सरकारी संस्था होने के कारण भरोसेमंद मानी जाती है। इसी भरोसे का फायदा उठाकर साइबर ठग अब इंडिया पोस्ट के नाम पर फर्जी संदेश भेजकर लोगों को ठग रहे हैं। देशभर में सैकड़ों लोग लाखों रुपये गंवा चुके हैं। इन ठगों के एसएमएस ऐसे बनाए गए हैं कि वे असली प्रतीत होते हैं। संदेश में दावा किया जाता है कि आपका पार्सल डिलीवरी के लिए तैयार है, लेकिन पता अपडेट न होने के कारण वह पहुंच नहीं पाएगा। इसके लिए दिए गए लिंक पर क्लिक कर पता अपडेट करने को कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में भी कई लोग इस जाल में फंस चुके हैं। दुर्ग पुलिस ने इस खतरे को भांपते हुए सोशल मीडिया पर लोगों को जागरूक करने का अभियान शुरू किया है।
नफरती कहेंगे, यह एआई है
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) के मालिक एलन मस्क हमेशा अपनी विचित्र हरकतों के कारण सुर्खियों में रहते हैं। हाल ही में उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ नाचते हुए एक वीडियो पोस्ट किया, जो तेजी से वायरल हो रहा है। वीडियो के साथ मस्क ने लिखा, नफरत करने वाले कहेंगे, यह एआई का कमाल है। इस पोस्ट के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या मस्क फेक वीडियो को बढ़ावा दे रहे हैं या लोगों को चेतावनी दे रहे हैं? एक यूजर ने मस्क पर लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया, जबकि दूसरे ने लिखा, यह वीडियो फेक नहीं, बल्कि सच्चा है। मैं उस समय वहीं था।
(rajpathjanpath@gmail.com)
सोशल मीडिया का असर
किसी भी निजी या सरकारी संस्थान की सफलता, प्रगति के लिए सबसे आवश्यक होता है वर्क कल्चर कामकाज का वातावरण, माहौल। जो तनाव रहित, दोस्ताना हो। वर्ना सब मटियामेट, टालमटोल, ढिलाई का बोलबाला रहना तय है। और इस दौर में देखे तो इन गुणों के साथ यूट्यूब, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट भी सबसे दुर्गुण साबित हो रहे हैं। हम सब इसलिए कह रहे हैं कि राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग के कामकाजी माहौल की पूरे मंत्रालय परिसर में चर्चा है। जहां के स्टाफ ने आपसी सहयोग से एक छोटा सा साउंड सिस्टम लगाया है। और उसे मोबाइल से कनेक्ट कर मनपसंद गाने धीमे स्वर में सुनते हैं और साथ में नस्तियों दस्तावेजी पन्ने पलटते रहते हैं। साहबों की डांट मो रफी के गीत के बोल की तरह धुएं में उड़ाते चलते हैं। वैसे यह प्रयोग पूर्व संस्कृति संचालक राजीव श्रीवास्तव कर चुके हैं। जिसे उन्होंने म्यूजिक थेरेपी का नाम दिया था। वहीं दूसरे विभागों के कर्मी और कुछ छोटे अधिकारी डेस्कटॉप, मोबाइल पर फिल्में, यूट्यूब के वायरल क्लिपिंग के साथ ऑनलाइन गेमिंग खेलते देखे जा सकते हैं।
कांग्रेस में क्या बदलाव?
चर्चा है कि कांग्रेस संगठन में बड़े बदलाव पर मंथन हो चुका है। कहा जा रहा है कि करीब आधा दर्जन राज्यों के प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष, और एआईसीसी के सचिवों की लिस्ट आने वाली थी। छत्तीसगढ़ में तो प्रभारी सचिव चंदन यादव को 6 साल से अधिक हो चुके हैं। इससे परे प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट छत्तीसगढ़ में काम करने की अनिच्छा जता चुके हैं। वीरप्पा मोइली कमेटी की रिपोर्ट के बाद सूची जारी होने की अटकलें लगाई जा रही थी। मगर बदलाव के आसार फिलहाल कम दिखाई दे रहे हैं। पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि नगरीय निकाय चुनाव के बाद ही जारी हो सकती है। हालांकि कई नेताओं का अंदाजा है कि 15 अगस्त के बाद कम से कम प्रभारी और एआईसीसी सचिवों की सूची जारी हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
‘आप’ और अगले चुनाव
नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस, और भाजपा से परे आम आदमी पार्टी व अन्य कुछ दल दमखम चुनाव मैदान में उतरेंगे। इनमें से आम आदमी पार्टी की तैयारी कुछ बेहतर है, और पार्टी के प्रमुख नेताओं ने जिलेवार बैठक लेना भी शुरू कर दिया है।
एक संभावना है कि नगरीय निकाय के साथ-साथ पंचायत के चुनाव भी होंगे। इन सबको देखते हुए अन्य दलों ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी। अन्य दलों के नेताओं को उम्मीद है कि नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव लडऩेे से आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार होगी। देखना है कि आम आदमी पार्टी और अन्य दल कैसे निकाय और पंचायत का चुनाव लड़ते हैं।
(rajpathjanpath@gmail.com)
आनंददायक शैक्षणिक भ्रमण
रायपुर नगर निगम के पार्षदों ने हाल ही में साउथ इंडिया का एक अद्भुत ‘एजुकेशन टूर’ किया। मेयर, कांग्रेस और भाजपा के पार्षदों ने आपसी मतभेदों को ताक पर रखकर इस टूर में जमकर इंजॉय किया। आखिर, जब सीखने की बात हो तो राजनीति कहां आड़े आती है!
मैसूर और अन्य नगर निगमों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, और पेयजल आपूर्ति जैसे गंभीर विषयों पर ज्ञानवर्धन करने का दावा किया गया है। लेकिन, जैसे ही टूर का दूसरे चेहरा सोशल मीडिया पर चर्चा में अधिक है। पार्षदों के नृत्य संगीत के प्रेमी होने का पता चलता है। वे नाचते-गाते और मस्ती करते हुए दिख रहे हैं।
अब, जब नगर निगम का कार्यकाल खत्म होने वाला है और आचार संहिता का साया सिर पर मंडरा रहा है, तो क्या इस ‘शैक्षणिक’ अनुभव का कोई लाभ होगा? शायद नहीं। हाँ, एक बात जरूर रहेगी - पार्षद रहते हुए जनता के टैक्स के पैसों से एक यादगार यात्रा हो गई!
प्रदेश के अधिकांश नगर निगमों में कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पा रहा है, करोड़ों-अरबों का बिजली बिल बाकी है, और वित्तीय प्रबंधन की हालत पतली है। मगर इससे क्या फर्क पड़ता है !
जांच चलती ही जा रही है
लोकसभा, और विधानसभा चुनाव में हार के कारणों की रिपोर्ट सौंपने से पहले कांग्रेस के सीनियर नेता वीरप्पा मोइली, और हरीश चौधरी ने प्रदेश के चुनिंदा नेताओं के साथ अलग-अलग बैठक की। जिन नेताओं को चर्चा के लिए बुलाया गया था उनमें नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व सीएम भूपेश बघेल, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, टीएस सिंहदेव, मोहन मरकाम, ताम्रध्वज साहू, और धनेंद्र साहू थे।
डॉ. महंत को छोडक़र बाकी नेताओं से मोइली, और चौधरी ने अलग-अलग चर्चा की। डॉ. महंत अमेरिका में थे इसलिए मोइली कमेटी की उनसे चर्चा नहीं हो पाई। हल्ला है कि हार के लिए बाकी नेताओं ने भूपेश बघेल को अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया है। चर्चा है कि भूपेश बघेल से कहा बताते हैं कि सरकार की लाभकारी योजनाओं के बारे में लोगों को ठीक से समझा नहीं पाए, और भाजपा सांप्रदायिक-जाति ध्रुवीकरण कर चुनाव जीतने में कामयाब हो गई। विधानसभा चुनाव में हार से कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव में उबर नहीं पाए, और इसकी वजह से लोकसभा में भी हार का सामना करना पड़ा।
मोइली कमेटी से चर्चा के बाद भूपेश बघेल ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी से भी मुलाकात की। छत्तीसगढ़ में हार पर मोइली कमेटी क्या सोचती है, इसका खुलासा आने वाले समय में पता चलेगा।
तिरंगा पकडऩा तो सिखा दो...
तिरंगा थामने का अधिकार तो हमें सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया था, मगर लगता है कि इसका राजनीतिक आंदोलनों, समारोहों में इस्तेमाल करते, कराते हैं वे भूल जाते हैं कि अधिकार देते समय कहा गया है कि इसके सम्मान में चूक नहीं होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर हर घर तिरंगा अभियान जोरों पर है। लोगों को तिरंगा पकडऩे का मौका मिल रहा है और वे इसे गर्व से फहरा भी रहे हैं। लेकिन महासमुंद की इस तस्वीर में, आगे चल रही महिला ने तिरंगे को उल्टा पकडक़र यह साबित कर दिया कि झंडा पकडऩे से पहले दिशा का ज्ञान होना भी जरूरी है। गौर करने वाली बात यह है कि पीछे चल रही दर्जनों महिलाओं में से किसी ने भी उल्टे तिरंगे पर ध्यान नहीं दिया। यह गलती नजऱअंदाज हो जाती, यदि यूथ कांग्रेस ने कलेक्टर को शिकायत नहीं किया होता। कार्रवाई होगी या नहीं पर अभी 15 अगस्त तक इस तरह के कई और किस्से सुनने को मिलने की पूरी आशंका है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
सबको मौका
स्वतंत्रता दिवस समारोह में पहली बार पूर्व मंत्री अलग-अलग जिलों में परेड की सलामी लेंगे। मसलन, पुन्नूलाल मोहिले अपने गृह जिले मुंगेली के स्वतंत्रता दिवस समारोह के मुख्य अतिथि होंगे। इसी तरह धरमलाल कौशिक जीपीएम, अमर अग्रवाल कबीरधाम, अजय चंद्राकर धमतरी, रेणुका सिंह कोरिया, भैयालाल राजवाड़े सूरजपुर, लता उसेंडी कोंडागांव, विक्रम उसेंडी बीजापुर, और मानपुर मोहला के मुख्य अतिथि राजेश मूणत बनाए गए हैं। पहली बार के विधायक, और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरण देव सुकमा के स्वतंत्रता दिवस समारोह के अतिथि होंगे।
दरअसल, प्रदेश में 33 जिले हैं। और कुल 9 ही मंत्री हैं। ऐसे में सभी सांसदों और पूर्व मंत्रियों को सरकारी कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाया गया है। पिछली सरकार ने दर्जनभर संसदीय सचिव नियुक्त किए थे। संसदीय सचिवों को सिर्फ स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि बनाया जाता रहा। साय सरकार में भी संसदीय सचिव नियुक्त करने की चर्चा चल रही थी। लेकिन किन्हीं कारणों से नियुक्ति टल गई। इस वजह से मंत्री बनने से वंचित पूर्व मंत्रियों को जिलों में स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनाए गए।
छापामार आईटी विंग में
आयकर विभाग ने तीन दिन पहले पांच दर्जन प्रधान आयुक्त, डीजी इन्वेस्टिगेशन और मुख्य आयुक्तों के प्रमोशन को साथ पोस्टिंग की है।इन सबमें सबसे उल्लेखनीय रायपुर कमिश्नरी यानी सीजी सर्किल के लिए नियुक्त मानी जा रही है। डबल चार्ज में होने के बाद भी यह पोस्टिंग चर्चा में है। प्रसन्न जीत सिंह, प्रभारी डीजी इन्वेस्टिगेशन होंगे। वे दिल्ली के साथ दोहरे प्रभार में रहेंगे। और छत्तीसगढ़ में पडऩे वाले छापों की दिल्ली से ही निगरानी करेंगे।
विभाग में चर्चा है कि यह दोहरे प्रभार की नियुक्ति यूं ही नहीं की गई है। वह भी दिल्ली सर्किल के साथ क्लब करते हुए। बताया जा रहा है कि हाल के वर्षों में छत्तीसगढ़ के उद्योगपतियों और नेताओं का दिल्ली और आसपास निवेश बढ़ा है। उनमें नेताओं का निवेश सरकारों में हुए घोटाले की कमाई से। इसके कई तथ्य आयकर से पास हैं। इसलिए यह किया गया है । जहां तक डीजी सिंह की बात है तो वे मोदी 2.0 में प्रतिनियुक्ति पर लोकसभा सचिवालय में संयुक्त सचिव रहे हैं। सो मोदी, शाह, निर्मला से निकटता भी रही है। अब देखना है कि यह चतुर्भुज आगे क्या करता है।
सिनेमा और समाज के बीच धुंधली लकीर
सहसपुर-लौहारा पुलिस ने एक महिला की हत्या के मामले को 20 दिन बाद सुलझा लिया। महिला ने पहले अपने पति को छोड़ दिया और फिर एक अन्य युवक से संबंध बढ़ा लिए। लेकिन वक्त के साथ, पति और प्रेमी दोनों ही उस महिला से परेशान हो गए। अंतत: उन्होंने मिलकर उसकी हत्या कर दी। पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद दोनों ने कबूल किया कि उन्होंने अजय देवगन की सुपरहिट फिल्म ‘दृश्यम’ को पांच बार देखा था, और हत्या की योजना बनाने से लेकर सबूत मिटाने तक की प्रेरणा उसी फिल्म से ली।
यह पहली बार नहीं है जब किसी ने ‘दृश्यम’ से प्रेरणा लेकर अपराध को अंजाम दिया हो। इसी साल मई में महासमुंद की एक शिक्षिका ने भी प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति की हत्या की, और पुलिस को बताया कि उन्होंने भी कई बार ‘दृश्यम’ फिल्म देखकर हत्या की योजना बनाई थी। अप्रैल में कोंडागांव जिले के धनोरा थाना क्षेत्र में एक बैगा की हत्या के बाद शव को दफना दिया गया था। आरोपियों ने इसमें भी ‘दृश्यम’ से प्रेरणा लेने की बात कही थी।
छत्तीसगढ़ ही नहीं, देशभर में ऐसे दर्जनों मामले सामने आ चुके हैं, जहां अपराधियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने ‘दृश्यम’ फिल्म से सबूत छिपाने के तरीके सीखे। महाराष्ट्र के पालघर में दो बहनों की हत्या करने वाले वन विभाग के एक क्लर्क ने भी यही दावा किया था। इसी तरह, मेरठ में कुछ साल पहले बसपा नेता मुनव्वर हसन और उनके परिवार के 6 सदस्यों की हत्या के मामले में भी आरोपी, उसके बेहद करीबी दोस्त आरोपी ने कबूल किया था कि ‘दृश्यम’ फिल्म से उसे अपराध को अंजाम देने की प्रेरणा मिली।
यह कोई नई बात नहीं है। 80 के दशक में ‘एक दूजे के लिए’ फिल्म के बाद प्रेमी जोड़ों के बीच आत्महत्याओं के मामले बढ़ गए थे। उससे पहले ‘बॉबी’ फिल्म आई, तो लडक़े-लड़कियों के भागने की घटनाएं बढ़ गईं।
फिल्मों को सेंसर बोर्ड से पास होना पड़ता है, जहां हिंसा, सांप्रदायिकता और अश्लीलता जैसे कई मानकों पर उन्हें परखा जाता है। लेकिन कोई फिल्म समाज पर कैसे असर डाल सकती है, इसका अंदाजा शायद बोर्ड के विशेषज्ञ नहीं लगा पाते। रियल और रील लाइफ में बड़ा फर्क है, पर ‘दृश्यम’ से प्रेरित हत्याओं के अपराधी फिल्म के नायक की तरह कानून से बच नहीं पाए। आखिरकार, कानून अपना काम करता ही है।
बीएच सीरीज और झारखंड की गाडिय़ां
बीएच सीरीज, जिसे ‘भारत सीरीज’ भी कहा जाता है, खासतौर पर उन लोगों के लिए बनाई गई है, जिनकी नौकरी के कारण उन्हें बार-बार अलग-अलग राज्यों में जाना पड़ता है। इस सीरीज का बड़ा फायदा यह है कि इस नंबर प्लेट वाली गाड़ी को किसी भी राज्य में बिना किसी रोक-टोक के चलाया जा सकता है।
बीएच सीरीज का नंबर पाने के लिए आवेदन करना होता है, जो वे लोग कर सकते हैं जिनका जॉब ट्रांसफर अक्सर होता रहता है। जब आप नई गाड़ी खरीदते हैं, तो आपको आधार कार्ड, पहचान पत्र, और विभाग द्वारा दिया गया फॉर्म 60 (वर्किंग सर्टिफिकेट) जमा करना होता है। आधार कार्ड पर जो जिला दर्ज है, उसी जिले से आपको गाड़ी खरीदनी होगी।
बीएच सीरीज प्लेट पर पहले दो अंक गाड़ी की खरीदी का वर्ष दर्शाते हैं, इसके बाद ‘बीएच’ लिखा होता है, जो भारत सीरीज को इंगित करता है। इसके बाद गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर आता है, जो कि सामान्य नंबर प्लेटों की तरह ही होता है।
इस सीरीज को 2021 में शुरू किया गया था ताकि लोग बार-बार नए राज्य में रजिस्ट्रेशन की झंझट से बच सकें। भारत में नियमों के अनुसार, किसी भी दूसरे राज्य की गाड़ी को सिर्फ एक साल के लिए चलाया जा सकता है, लेकिन बीएच सीरीज इस समस्या का समाधान है।
हालांकि, अपने राज्य में रहने वाले इस नियम का पालन नहीं करते। झारखंड में पंजीकृत ( जेएच सीरीज) गाडिय़ां छत्तीसगढ़ की सडक़ों पर सालों से बिना किसी दिक्कत के दौड़ती हैं। इसका कारण यह है कि झारखंड में रोड टैक्स और अन्य टैक्स कम हैं, जिससे हजारों रुपये की बचत हो जाती है। खासकर, रायगढ़, जशपुर, और अंबिकापुर के लोग वहां से गाडिय़ां खरीदकर लाते हैं। बीएच नहीं तो सीजी सीरिज तो उन्हें लेना ही चाहिए, पर सब चल रहा है। (rajpathjanpath@gmail.com)
वीरेन्द्र पांडेय के सवाल
आईपीएस के 89 बैच के अफसर अशोक जुनेजा को छह माह का सेवा विस्तार दिए जाने के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में काफी चर्चा हो रही है। जुनेजा 4 अगस्त को डीजीपी के पद से रिटायर होने वाले थे। उनकी सेवावृद्धि पर राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पांडेय ने सवाल खड़े किए हैं, और फेसबुक पर लिखा भी है।
उन्होंने लिखा कि भाजपा सरकार ने डीजीपी अशोक जुनेजा ने छह महीने का कार्यकाल सेवानिवृत्ति के बाद और दे दिया। ये वही व्यक्ति हैं जिन्हें भूपेश बघेल ने रमन सिंह की सरकार द्वारा नियुक्त डीजीपी अवस्थी को कार्यकाल पूरा करने के पहले हटाकर इन्हें बनाया था। एक ओर भूपेश बघेल ने भाजपा द्वारा नियुक्त पुलिस प्रमुख को हटाकर अपनी पसंद और अपने अनुकूल व्यक्ति को पुलिस विभाग के सर्वोच्च पद पर बिठाया जबकि दूसरी ओर साय ने भूपेश की पसंद के व्यक्ति को रिटायरमेंट के बाद सेवा विस्तार दे दिया।
वीरेन्द्र पांडेय ने आगे लिखा कि अशोक जुनेजा न तो ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं, न ही बेहतर पुलिस अफसर के रूप में उनकी पहचान है। मेरी जानकारी में संगठन और सरकार में यह सहमति बन चुकी थी कि जुनेजा को सेवा विस्तार नहीं देना है। फिर क्यों ऐसा किया गया? क्या विष्णु देव की बजाय कोई और कहीं और से निर्णय ले रहा है? यदि ऐसा है तो इस सरकार का भगवान ही मालिक है।
छात्रों से अधिक शिक्षक!!
सरकार ने शिक्षकों-शालाओं के युक्तियुक्तकरण का फैसला लिया है। युक्तियुक्तकरण के चलते विवाद खड़े होने की आशंका है, और ट्रांसफर-पोस्टिंग और अन्य तरह के मामले अदालत पहुंच सकते हैं। इससे पूरी प्रक्रिया बाधित न हो, इसके लिए सरकार ने पहले ही कैवियट दायर कर कर रखा है।
जानकार बताते हैं कि शिक्षकों और शालाओं का युक्तियुक्तकरण सबसे पहले दिग्विजय सिंह सरकार में हुआ था। तब ज्यादा सरकारी स्कूल नहीं थे। इसलिए ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर ज्यादा विवाद नहीं हुआ, और सब कुछ आसानी से हो गया। क्योंकि फैसला भोपाल से होना था। राज्य बनने के बाद स्थिति बदल गई है। रमन सरकार में भी 2016-17 में युक्तियुक्तकरण हुआ था, लेकिन तब स्कूलों का ही युक्तियुक्तकरण हुआ था। अब स्कूलों की संख्या कई गुना बढ़ गई है। उस अनुपात में शिक्षक भी बड़े पैमाने पर नियुक्त हुए हैं। शिक्षकविहीन शालाओं में शिक्षक उपलब्ध हो सके, इसलिए युक्तियुक्तकरण किया जा रहा है।
प्रदेश में साढ़े तीन सौ स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी शिक्षक नहीं है। इसी तरह साढ़े पांच हजार स्कूलों में अतिशेष शिक्षक हैं। हाल यह है कि जिस महाराणा प्रताप स्कूल में पूर्व स्कूल शिक्षामंत्री और वर्तमान सांसद बृजमोहन अग्रवाल पढ़े थे वहां मात्र सात ही विद्यार्थी हैं। जबकि वहां उससे अधिक शिक्षक हैं। न सिर्फ रायपुर, बल्कि बिलासपुर, कोरबा, रायगढ़, और दुर्ग-भिलाई के सरकारी स्कूलों में अतिशेष शिक्षकों की संख्या सबसे ज्यादा है। ये शिक्षक प्रभावशाली परिवारों से आते हैं। ऐसे में उनका तबादला आसान नहीं होगा। अब आगे क्या होता है यह तो युक्तियुक्तकरण के बाद पता चलेगा।
राजनीति में दूरदृष्टि रखना जरूरी
प्रदेश के नगर-निगमों के पांच साल का कार्यकाल तीन महीने में खत्म हो रहा है। अगले चुनाव के लिए प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर तैयारी भी शुरू हो चुकी है। ऐसे में भिलाई में कांग्रेस के तीन पार्षदों ने इस्तीफा दे दिया है। ये पार्षद तथा कांग्रेस के कुछ और पार्षद पहले ही सामान्य सभा और एमआईसी में वार्ड में विकास कार्यों को लेकर, टेंडर खासकर सफाई ठेके में मनमानी को लेकर विरोध बुलंद करते रहे हैं। अब इस्तीफे के बाद कांग्रेस की स्थिति कमजोर हो गई है। मगर इतनी आसानी से सत्ता परिवर्तन होगा, इसकी संभावना कम है। नगर-निगम भिलाई में भाजपा पार्षद 24 हैं, कांग्रेस को 37 सीटों पर जीत मिली थी, निर्दलीय पार्षदों की संख्या के चलते जब महापौर का चुनाव हुआ तो उसकी ताकत 46 पार्षदों की हो गई थी। इसके बाद कांग्रेस के दो पार्षदों को अयोग्य ठहरा दिया गया था। फिर एमआईसी की एक बैठक के बाद चार पार्षद कांग्रेस से नाराज चल रहे हैं। वे भाजपा को पहले से समर्थन दे रहे हैं। अब तीन पार्षदों का इस्तीफा और हो गया है। इनका रुख अभी साफ नहीं हुआ है। पर ये भी भाजपा के साथ चले गए तो कांग्रेस की संख्या घटकर 37 रह जाएगी और भाजपा को 31 पार्षदों का समर्थन हासिल हो जाएगा। अभी भाजपा के पास सामान्य बहुमत नहीं है। अविश्वास प्रस्ताव लाने और पारित कराने के लिए बहुत से पार्षदों को साथ लेना पड़ेगा। नए महापौर का कार्यकाल अत्यंत संक्षिप्त होगा। पर यह कांग्रेस के लिए अगले चुनाव के लिहाज से बड़ा झटका है। कांग्रेस के अनेक पार्षदों को महसूस हो रहा है कि प्रदेश में जिसकी सरकार है, स्थानीय निकायों में उसकी पार्टी की जीत की संभावना है। इसलिए समय से पहले समझदारी भरा कदम उठा लेना चाहिए।
किस राज्य के युवा किस ओर. .
राज्यों के हिसाब से युवाओं के भविष्य का भी आकलन किया जा सकता है। इस सूची में कुछ राज्य और वहां के युवाओं की दिशा क्या हो सकती है, इस बारे में एक अनुमान लगाया गया है। छत्तीसगढ़ का इसमें जिक्र नहीं है। (सोशल मीडिया से) (rajpathjanpath@gmail.com)
पीएससी गिरफ्तारियों की बारी
पीएससी भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी की सीबीआई जांच चल रही है। सीबीआई एक के बाद एक कई पूर्व अफसरों, चयनित अभ्यार्थियों के यहां छापे डाल रही है। छापेमारी में कई सुबूत हाथ लगने की चर्चा भी है।
न सिर्फ राज्यसेवा बल्कि पीएससी के जरिए अलग-अलग विभागों की भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ी की जानकारी भी मिली है। कुछ भर्ती में लेनदेन के ऑडियो रिकॉर्डिंग भी उपलब्ध है। एक-दो विभागों में भर्ती में गड़बड़ी की जांच के लिए हाईकोर्ट में याचिका भी लगी है।
हल्ला यह भी है कि राज्यसेवा भर्ती परीक्षा में चयनित कई अभ्यार्थियों को जानबूझकर इंटरव्यू में कम नंबर दिए गए, ताकि शक न हो और फिर उन्हें पेपर लीक किए गए। सीबीआई को इससे जुड़ी कई जानकारियां हाथ लगी है।
दूसरी तरफ, पीएससी के तत्कालीन चेयरमैन के कई रिश्तेदार तो जांच के घेरे में हैं ही। उनके साथ काम कर चुके राजस्व कर्मी, जिनके बेटे भी पीएससी भर्ती परीक्षा में चयनित हुए हैं। वो सभी जांच के दायरे में आ गए हैं। इस पूरे गड़बड़ी मामले में जल्द ही गिरफ्तारियां हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
जिलों के प्रभार के बाद क्या बचा?
मंत्रिमंडल से बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद उनके सभी उत्तरदायित्व वितरित कर दिए गए हैं। उनके बाकी विभाग मुख्यमंत्री के पास हैं। विधानसभा सत्र से पहले एक संसदीय कार्य मंत्री की अलग से जरूरत पड़ी। यह प्रभार मंत्री केदार कश्यप को सौंप दिया गया। इसके बाद उन जिलों में प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति रह गई थी, जो अग्रवाल के पास थे। इनमें बस्तर संभाग के कुछ जिले थे। एक-एक जिले के अतिरिक्त प्रभार चार मंत्रियों को सौंप दिया गया है। इस फैसले के बाद उन अटकलों पर विराम लग गया है जिनमें मंत्रिमंडल का विस्तार जल्द होने की बात कही जा रही थी। इधर जिस तरह से नगरीय निकाय चुनावों की तैयारी सरकार ने प्रशासनिक स्तर पर और पार्टी ने राजनीतिक स्तर पर शुरू कर दी है, उससे यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि निगम, मंडलों की नियुक्तियां भी चुनाव के पहले नहीं होगी।
प्रकृति के सफाईकर्मी
बरसात के मौसम में बीमारियां फैलने का खतरा हमेशा बना रहता है। अब सोचिए, अगर गांव के आसपास ब्लैक काइट, कौवे, सफेद गिद्ध, और आवारा कुत्ते मृत मवेशियों को साफ नहीं करते, तो क्या होता? बरसात में बीमारियों से बचाने वाले इन नायकों से घृणा न करें, बल्कि इन्हें प्रकृति के सफाईकर्मी के रूप में देखें। ये जीव हमें बीमारियों से बचाने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाके की एक तस्वीर।
(rajpathjanpath@gmail.com)
शिकायतें और तबादले
नगरीय निकाय चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। वार्डों के परिसीमन की प्रक्रिया भी पूरी हो गई है। ये अलग बात है कि परिसीमन के खिलाफ कई याचिकाओं पर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। इन सबके बीच भाजपा अलग-अलग कार्यक्रमों के जरिए वार्डों में लोगों से संपर्क बनाने के लिए अभियान भी चला रही है। यही नहीं, निकायों में पसंदीदा अफसरों को बिठाने के लिए स्थानीय भाजपा विधायक और संगठन के प्रमुख नेता प्रयासरत भी हैं।
बताते हैं कि दो-तीन निगम आयुक्त के खिलाफ शिकायत सीएम तक पहुंची है। शिकायत करने वाले नेताओं का कहना है कि इन अफसरों की कार्यप्रणाली से लोग खुश नहीं हैं। सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पा रहा है। निगम आयुक्तों के खिलाफ शिकायतों का परीक्षण चल रहा है। चर्चा है कि 15 अगस्त के बाद निकायों अफसरों के तबादले की सूची जारी हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
जायसवाल !!
भाजपा ने रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी ने भाटापारा के पूर्व विधायक शिवरतन शर्मा, और सरकार के मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल को प्रभारी भी बनाया है। शिवरतन तो बृजमोहन अग्रवाल के बहुत करीबी माने जाते हैं। ऐसे में उनके प्रभारी बनने पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। अलबत्ता, जायसवाल के प्रभारी बनने पर पार्टी के अंदरखाने में कानाफूसी जरूर हो रही है।
जायसवाल मनेन्द्रगढ़ से विधायक हैं, और वो पहली बार सरकार में मंत्री बने हैं। श्याम बिहारी जायसवाल सरकार के अकेले मंत्री हैं, जिनके विधानसभा क्षेत्र मनेन्द्रगढ़ से लोकसभा चुनाव में भाजपा पिछड़ गई। यही नहीं, विधानसभा में जायसवाल ‘अपनों’ से ही घिरे रहे। स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार के प्रकरणों को लेकर पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, अमर अग्रवाल, और धरमलाल कौशिक ने जायसवाल के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थी।
इतना ही नहीं, बैकुंठपुर के विधायक भैयालाल राजवाड़े, जिन्हें जायसवाल अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। वे भी स्वास्थ्य विभाग की गतिविधियों से नाखुश दिखे। अब जब जायसवाल को प्रभारी बनाया गया है, तो पार्टी के कई लोग सशंकित भी हैं। ऐसे में जायसवाल को सबको साथ लेकर चुनाव संचालन करना एक चुनौती भी रहेगी। देखना है आगे क्या होता है।
नशे में चूर राष्ट्र निर्माता
नये शिक्षा सत्र की शुरुआत होते ही स्कूलों से फिर शर्मसार करने वाली घटनाएं सामने आ रही हैं। जशपुर जिले के फरसाबहार ब्लॉक के खबसकानी ग्राम में शराब के नशे में धुत प्रधान पाठक लुंगी-बनियान पहने स्कूल पहुंच गया। उसने जमकर हंगामा किया। स्कूल के ही एक सहायक शिक्षक ने इसका वीडियो बनाकर वायरल कर दिया।
इस साल जनवरी में जशपुर जिले के ही बगीचा ब्लॉक के बिमड़ा स्कूल में नशे में धुत एक टीचर और उसके भाई ने बच्चों को पिटाई कर दी।
पिछले साल दुलदुला ब्लॉक के कस्तूरा ग्राम में शराब पीकर पहुंचे स्कूल ने क्रिकेट की बैट से छात्र-छात्राओं को पीटा था।
फरसाबहार ब्लॉक के छिरोटोली ग्राम में पिछले साल स्कूल के सभी बच्चों ने अपने टीसी के लिए आवेदन लगा दिया। वजह थी कि यहां दो शिक्षक थे और दोनों शराब पीकर आते थे और बच्चों से गाली गलौच करते थे। हाथियों के विचरण के बावजूद ये बच्चे दो किलोमीटर दूर दूसरे स्कूल तक पैदल नापने के लिए तैयार थे। आखिर यहां उनकी जगह एक महिला शिक्षिका की पोस्टिंग कर बच्चों को रोका गया।
मगर कुछ महिला शिक्षकों की भी शिकायत आई। बगीचा विकासखंड के लोरो की प्रधान पाठक अक्सर शराब पीकर आती रही। यहां तक कि राष्ट्रीय पर्व पर झंडा फहराने के लिए भी। ग्राम सभा में उसकी पेशी हुई थी। एक अन्य शिक्षिका की तस्वीर कुर्सी पर लुढक़े हुए वायरल हुआ ही था। अकेले जशपुर जिले में पिछले शैक्षणिक सत्र में एक दर्जन से अधिक शराबी शिक्षक निलंबित किए गए थे।
जशपुर से खबरें अधिक जरूर आ रही हैं, लेकिन प्रदेश के अन्य जिलों में भी यही हो रहा है। बलौदाबाजार के गिंदोला स्थित हाईस्कूल का प्राचार्य इसी जून में शराब के नशे में पहुंचा और गेट के सामने लुढक़कर गिर गया था। वह वहीं चादर ओढक़र सो गया। इसका भी वीडियो वायरल हुआ था। मस्तूरी के मचहा में पिछले सत्र में एक टीचर तो स्टाफ रूम में शराब की बोतल खोलकर बैठ गया। वीडियो में वह कलेक्टर को चुनौती देते दिखा। पहले निलंबित किया गया फिर, कुछ दिन बाद उसे बर्खास्त कर दिया गया।
केंद्र ने 2021 में तीसरी, पांचवीं, आठवीं और 10वीं के बच्चों के बीच सर्वे करवाया था। इसमें भाषा, गणित, अंग्रेजी और पर्यावरण में राज्य के अंक राष्ट्रीय औसत से कम थे और छत्तीसगढ़ का स्थान देश में 34वां था। रिपोर्ट में यह बात भी आई थी कि तीसरी तक के 40 प्रतिशत बच्चे पढऩा लिखना नहीं जानते।
इस बार पहली बार शालाओं में पीटीएम कराया गया। पढ़ाई को रोचक बनाने के लिए एक मोबाइल ऐप तैयार किया गया है। नई शिक्षा नीति के तहत बालवाडिय़ों से ही दो-दो घंटे की पढ़ाई का कार्यक्रम बनाया गया है। लक्ष्य रखा गया है कि सन् 2027 तक शत-प्रतिशत बच्चे अपने क्लास के सिलेबस के मुताबिक पढऩा और लिखना जान सकें। मगर, स्कूलों में तो न्यूनतम शैक्षणिक वातावरण भी नहीं है। ब्लैक बोर्ड में बड़े-बड़े अक्षरों में चाणक्य की यह उक्ति लिखी होती है कि शिक्षक राष्ट्र का निर्माता है, पर ये राष्ट्र निर्माता न तो समर्पित हैं, न कुशल हैं, ऊपर से अपने आचरण से बच्चों के भविष्य को अंधकार में धकेल रहे हैं।
ट्रेन तब घुसी थी खेत में
खेत में जा घुसी एक ट्रेन की तस्वीर और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इसमें तंज कसा जा रहा है कि रेल मंत्री फिर इस हादसे का मुआयना करने पहुंचेंगे, और वहां रील बनाएंगे। ये पोस्ट कार्टूनिस्ट मंजुल और यू ट्यूबर-जर्नलिस्ट प्रज्ञा मिश्रा जैसे लाखों फॉलोअर्स वाले अकाउंट पर भी हैं। पोस्ट आभास देती है कि यह हाल की ही कोई घटना हो। तस्वीर सही है, देश की ही है मगर दो साल पुरानी है। यह साफ किसी ने नहीं किया है कि सितंबर 2022 में सोलापुर से पुणे जा रही सीमेंट लदी मालगाड़ी पटरी से उतरकर खेत में घुस गई थी- तब की फोटो है। तब भी रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ही थे। सोशल मीडिया पर मौजूद किसी भी पुराने पोस्ट को नया बताना अब आम चलन में आ चुका है, जिसके शिकार सेलिब्रिटी भी हो रहे हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)
मंत्रालय कर्मियों में हलचल
कल मंत्रालय संवर्ग के 70 सहायक अनुभाग अधिकारी और लिपिकों के तबादले किए गए। यानी एक ही भवन में विभागों में तब्दीली हुई। दरअसल इस बार सामान्य प्रशासन विभाग के सचिवों ने पूरे संवर्ग के ओवरहालिंग की ठानी है। इसकी मांग भी और किसी ने नहीं मंत्रालय कर्मचारी संघ ने ही की थी। उनका कहना था कि मठाधीश बनकर किसी को एक ही जगह बने रहने या रखने का एकाधिकार नहीं होना चाहिए। हुए भी वैसा ही।
तबादलों का विरोध करने वाले संघ से ही जब मांग आई तो अफसर भला कहां चूकते। बीते तीन महीने में करीब पांच सौ अधिकारी कर्मचारियों की कुर्सियां बदल दी। इन तबादलों में पांच वर्ष से 18 वर्ष तक एक ही विभाग में रहकर तीन तीन बार पदोन्नत लोग बदले गए। यहां तक की संघ की सचिव का भी विभाग बदल दिया गया। एक कर्मी का तो 07 में अपनी नियुक्ति के बाद पहली बार स्थानांतरण हुआ है। वैसे पूर्व में कांग्रेस के पूर्व वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा, शायद ही ऐसा कोई सत्र रहा हो जिसमें मंत्रालय में तबादलों की मांग न करते रहे हों। यहां तक कि अपनी ही पिछली सरकार से पूछ लिया था। अब ये सूचियां देखकर उन्हें संतोष हो रहा होगा । अभी सिलसिला थमा नहीं है क्योंकि अभी तीन सौ और हैं।
हिट एंड रन वहां सख्ती, यहां ढिलाई
हिट एंड रन केस में हाल के दिनों में मुंबई, पुणे, हैदराबाद और चेन्नई से कई घटनाओं पर पुलिस ने सख्ती बरती। कुछ मामलों में नाबालिग थे जो नशे में राहगीरों को रौंद कर भाग गए। एक जुलाई से लागू भारतीय न्याय संहिता में धारा 106 (1) और 106 (2) में इसे लेकर कड़े प्रावधान किए गए हैं। पहले में पांच साल की सजा है, दूसरे में दस साल की। 106 (1) में आधी राहत उस स्थिति में है, जब कोई दुर्घटना का आरोपी घायल को अस्पताल पहुंचाने में मदद करे और नजदीकी थाने को घटना की सूचना दे। टक्कर मार कर भाग जाने के बाद 106 (2) का नियम लागू होता है, जिसमें 10 साल की सजा है।
हाल ही में रायपुर में नीट में सलेक्शन के बाद एमबीबीएस काउंसलिंग की तैयारी कर रही छात्रा श्रेष्ठा को एक गाड़ी ने कुचल दिया जब वह पिता आभास सतपथी के लिए दवा लेने निकली थी। पुलिस कार्रवाई का आलम यह था कि आरोपी महिला को आधे-एक घंटे की कार्रवाई के बाद छोड़ दिया गया। महाराष्ट्र, तेलंगाना और तमिलनाडु की घटनाओं में पुलिस ने प्रोफेशनल तरीके से काम किया और नए कानून के तहत कड़ी कार्रवाई की। मगर, छत्तीसगढ़ में सब ठीक है, कोई खौफ नहीं।
सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर बड़ी आलोचना हो रही है। कहा जा रहा है कि कार्रवाई में ढिलाई इसलिए बरती गई क्योंकि दुर्घटना जिसकी वजह से हुई वह एक राज्य प्रशासनिक अधिकारी की पत्नी हैं।
सावन में लबालब बांध
बीते एक पखवाड़े से रुक-रुक कर हो रही बारिश ने प्रदेश के हर छोटे-बड़े बांधों में रौनक ला दी है। अनजाने से जलाशय भी निखर गए हैं। इन दिनों रतनपुर के पास स्थित चांपी जलाशय एक अद्भुत दिखाई दे रहा है। बेलगहना जाने के रास्ते में चपोरा मुडऩे की जगह से एक संकरी सडक़ इस जलाशय तक जाती है। इस जलाशय की खूबसूरती इन दिनों किसी हिल स्टेशन से कम नहीं है। पूरा बांध लबालब भर गया है। क्षमता से अधिक जल वेस्टवियर से कल-कल प्रवाहित हो रहा है। वेस्टवियर से बहते जल की सुमधुर ध्वनि यहां के शांत वातावरण में दूर तक सुनाई देती है, जो मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करती है। (rajpathjanpath@gmail.com)