राजनीति
जैस्मिन निहालानी
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 27 साल बाद जीत हासिल कर वापसी की है. पार्टी ने विधानसभा की 70 सीटों में से 48 पर जीत दर्ज की है.
बीजेपी ने लगातार चौथी बार दिल्ली की कुर्सी पर बैठने का आम आदमी पार्टी का सपना पूरा नहीं होने दिया. बाकी 22 सीटें आम आदमी पार्टी (आप) को मिलीं.
इससे पहले साल 2015 में 'आप' ने 67 और 2020 में 62 सीटें जीती थीं.
साल 1998 से 2013 तक यानी 15 साल तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस लगातार तीसरे विधानसभा चुनाव में भी कोई सीट नहीं जीत पाई.
दिल्ली में बीजेपी ने पिछले कुछ वर्षों से 34 से 38 फ़ीसदी का एक स्थिर वोट शेयर बनाए रखा था, लेकिन इस बार वो इसे बढ़ाकर 45.6 फ़ीसदी तक ले गई है.
जबकि आम आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 10 फ़ीसदी गिरकर 53.6 से 43.6 फ़ीसदी पर पहुंच गया है.
वहीं कांग्रेस का वोट शेयर 2020 के 4.3 फ़ीसदी से बढ़ कर 6.3 फ़ीसदी पर पहुंच गया है.
किस सीट पर किसका कैसा प्रदर्शन
लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़ों से तुलना करें तो इस बार आप को 65 सीटों पर वोट शेयर का नुक़सान हुआ. वहीं पार्टी को सिर्फ़ पांच सीटों पर वोट शेयर में बढ़ोतरी हासिल हो सकी.
दूसरी ओर बीजेपी 59 सीटों पर अपना वोट शेयर बढ़ाने में कामयाब रही. सिर्फ़ सात सीटों पर इसके वोट शेयर में गिरावट दर्ज की गई है.
'आप' के वोट शेयर में सबसे ज़्यादा गिरावट ओखला, संगम विहार और मुस्तफ़ाबाद सीटों पर दिखाई दी. पार्टी ने इन सभी तीन सीटों पर साल 2020 में 50 फ़ीसदी से अधिक वोट हासिल किए थे.
जिन सीटों पर इसका वोट शेयर बढ़ा उनमें बदरपुर, गांधीनगर और सीलमपुर शामिल हैं.
'आप' को साल 2020 में 48 सीटों पर 50 फ़ीसदी से अधिक वोट मिला था. इस चुनाव में उसे सिर्फ 12 सीटों पर ही 50 फ़ीसदी से अधिक वोट मिल सके हैं.
झुग्गी-झोपड़ियों की अधिकता वाली सीटों पर वोटिंग पैटर्न
दिल्ली विधानसभा की जिन सीटों पर सबसे ज़्यादा झुग्गी झोपड़ियां हैं वहां साल 2020 में आम आदमी पार्टी के सबसे ज़्यादा वोट मिले थे. लेकिन इस विधानसभा चुनाव में यह तस्वीर बदल गई.
दिल्ली में 675 स्लम कॉलोनियां हैं, जहां तीन लाख परिवार रहते हैं. ये स्लम कॉलोनियां 62 विधानसभा क्षेत्रों में फैली हुई हैं.
इन 62 में से दस विधानसभा सीटों पर इस आबादी का क़रीब 40 फ़ीसदी हिस्सा रहता है. इन सभी दस सीटों पर 2020 में आम आदमी पार्टी ने जीत हासिल की थी.
2025 में बीजेपी ने इनमें से सात सीटें जीत लीं. सबसे अधिक झुग्गी झोपड़ियों वाली जिन सीटों पर बीजेपी को जीत मिली हैं उनमें मोती नगर, वजीरपुर और मॉडल टाउन भी शामिल हैं.
इन सीटों पर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी का 'खेल' बिगाड़ा
कांग्रेस 67 सीटों पर अपनी ज़मानत गंवाने के बावजूद 14 सीटों पर 'आप' का खेल बिगाड़ने में कामयाब रही.
आसान शब्दों में कहें तो जिन 14 सीटों पर 'आप' दूसरे और कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही (एक सीट पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही और 'आप' तीसरे नंबर पर), वहां इसका वोट शेयर विजेता उम्मीदवारों की जीत के अंतर से ज़्यादा था.
इनमें तीन प्रमुख सीटें शामिल हैं. ये हैं- नई दिल्ली, जंगपुरा और ग्रेटर कैलाश. यहां आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेता बीजेपी उम्मीदवारों से हार गए.
नई दिल्ली सीट पर प्रवेश वर्मा ने पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को 6.6 परसेंटेज वोटों के अंतर से हराया. यहां कांग्रेस के संदीप दीक्षित का वोट शेयर 7.4 फ़ीसदी था.
जंगपुरा में मनीष सिसोदिया बीजेपी के उम्मीदवार से 0.8 परसेंटेज प्वाइंट वोट के अंतर से हार गए. यहां कांग्रेस का वोट शेयर 8.6 फ़ीसदी रहा.
ग्रेटर कैलाश में, सौरभ भारद्वाज बीजेपी की शिखा रॉय से तीन फ़ीसदी वोटों के अंतर से हार गए. यहां कांग्रेस का वोट 6.4 फ़ीसदी रहा.
मुस्लिमों की ख़ासी आबादी वाली सीट मुस्तफ़ाबाद में बीजेपी के मोहन सिंह बिष्ट ने 42 फ़ीसदी वोट शेयर हासिल किया.
यहां आम आदमी पार्टी के आदिल अहमद ख़ान दूसरे नंबर पर रहे और एआईएमआईएम के ताहिर हुसैन (आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद) ने 16.6 फ़ीसदी वोट हासिल किए. जबकि इस सीट पर जीत का अंतर 8.7 फ़ीसदी ही है. यानी ताहिर हुसैन ने इससे क़रीब दोगुना ज़्यादा वोट हासिल किया.
इंडिया गठबंधन के कुछ नेताओं ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार पर कहा है कि पार्टी को कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए था.
वहीं कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने एक्स पर पार्टी का बचाव करते हुए लिखा, "कथित लिबरल समुदाय के एक वर्ग का भावनाओं में बह जाना अनोखा है. उन्होंने विपक्षी एकता पर 'आप' को ये लेक्चर तब नहीं दिया था, जब वो चुनाव लड़ने और सांप्रदायिक विरोधी और धर्मनिरपेक्ष वोटों को कमज़ोर करने के लिए गोवा, गुजरात और हरियाणा पहुंच गई थी.
पवन खेड़ा ने दावा किया है कि बीजेपी का मुक़ाबला करने और उसे हराने के लिए कांग्रेस पार्टी ज़्यादा ताक़तवर होकर उभर सकती है. (bbc.com/hindi)
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित)