राजपथ - जनपथ

लिख के मेरा पदनाम एक्स पे मिटा दिया !
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के एक ट्वीट से पार्टी में हलचल मची है। दरअसल, बैज को जन्मदिन पर भिलाई विधायक देवेंद्र यादव ने एक्स पर बधाई दी, तो उन्होंने ट्वीट कर देवेन्द्र को प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष लिख आभार माना। हालांकि थोड़ी देर बाद बैज ने ट्वीट को डिलीट भी कर दिया, लेकिन तब तक सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
भाजपा प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास को कटाक्ष करने का मौका मिल गया, और उन्होंने ट्वीट को डिलीट करने पर देवेन्द्र यादव का अपमान कऱार दिया। मगर कांग्रेस के कई नेता बैज के ट्वीट को गंभीरता से ले रहे हैं, और पार्टी संगठन में संभावित बदलाव से जोडक़र भी देख रहे हैं।
वैसे भी कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्ति की परंपरा रही है। दिवंगत मोतीलाल वोरा छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने, तब डॉ चरणदास महंत को कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई थी। और जब धनेन्द्र साहू प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने, तो डॉ महंत को अध्यक्ष पद से हटा कर कार्यकारी बना दिया गया। बाद में जब भूपेश बघेल ने प्रदेश कांग्रेस की कमान संभाली, तो डॉ शिव कुमार डहरिया, और रामदयाल उईके को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था।
अब बैज ने भले ही गलती से देवेन्द्र यादव को प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष लिख दिया, लेकिन पार्टी के कुछ लोग सही भी मान रहे हैं। बलौदा बाजार आगजनी प्रकरण के बाद से देवेन्द्र यादव का कद पार्टी के भीतर काफी बढ़ा है। जेल से छूटने के अगले दिन सीधे राहुल गांधी से मिलकर आ गए। उन्हें बिहार विधानसभा चुनाव में अहम जिम्मेदारी दी गई है। पिछले दिनों पार्टी के राष्ट्रीय प्रभारी महामंत्री केसी वेणुगोपाल यहां आए, उन्होंने देवेन्द्र से कुछ देर अलग से चर्चा की। यादव बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले देवेन्द्र सामाजिक समीकरण में फिट बैठते हैं। ऐसे में प्रदेश में उन्हें कोई अहम जिम्मेदारी मिल जाए, तो आश्चर्य नहीं होगा। मगर खुद बैज पद पर बने रहेंगे,इसको लेकर पार्टी के कुछ लोगों को शंका है। देखना है आगे प्रदेश कांग्रेस में क्या कुछ होता है।
शिक्षक भर्ती की चिंता घटकर आधी हुई
विधानसभा में पूछे गए सवाल और सरकार से मिले जवाब अक्सर उन दावों से बिल्कुल अलग होते हैं, जो राजनीतिक मंचों से, खासकर चुनाव अभियानों के दौरान किए जाते हैं।
मार्च 2025 के पिछले सत्र में विधायक राघवेंद्र सिंह ने सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पदों की जानकारी मांगी थी। तब सरकार ने बताया था कि 56,601 पद खाली हैं। अब 14 जुलाई से शुरू हुए सत्र में यही सवाल दोबारा पूछा गया, तो सरकार की ओर से जवाब मिला कि केवल 25,907 पद खाली हैं। यानी, सिर्फ चार महीने में 30,694 पदों की आवश्यकता कम रह गई है।
हाल ही में शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण और कम दर्ज संख्या वाले स्कूलों के विलय की प्रक्रिया पूरी की गई है। इस पर शिक्षक संगठनों और विपक्ष, कांग्रेस ने विरोध जताते हुए दावा किया था कि इससे 30 हजार से अधिक शिक्षकों के पद समाप्त हो जाएंगे। अब विधानसभा में दिए गए जवाब ने इस दावे को पुख्ता कर दिया है। मान लें कि वर्तमान में 25,907 (करीब 26 हजार) पद ही रिक्त हैं- तो भी यह सवाल अब भी बना हुआ है कि इन पदों पर भर्ती कब होगी? सरकार ने अब तक इस पर कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया है।
दूसरी ओर, शिक्षा विभाग में हाल ही में बड़े पैमाने पर तबादले किए गए हैं, जिनमें कई जिला शिक्षा अधिकारी भी शामिल हैं। इनमें से कुछ अधिकारियों पर युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया में पक्षपात और अनियमितता के आरोप हैं। कई प्रभावित शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की है।
युक्तियुक्तकरण का उद्देश्य संतुलित समायोजन बतलाया गया था, ताकि किसी भी स्कूल में शिक्षक की कमी न रहे। लेकिन सत्र की शुरुआत होते ही प्रदेश के कई स्कूलों में शिक्षक न होने के कारण छात्र और पालक सडक़ों पर उतर आए हैं।
युक्तियुक्तकरण के बाद बदली हुई तस्वीर यह है कि अब बेरोजगारों को 56 हजार रिक्त पदों पर भर्ती के लिए आंदोलन नहीं करना होगा, सिर्फ 26 हजार पदों के लिए करना है। सरकार के लिए भी मोदी की गारंटी पूरा करने का बोझ घटकर आधा रह गया है।
थाने की कुर्सी पर विधायक
जयपुर के हवामहल क्षेत्र के विधायक बालमुकुंद आचार्य की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है, जिसमें वे थानेदार की कुर्सी पर बैठकर सामने बैठे पुलिस स्टाफ को निर्देश देते नजर आ रहे हैं। बताया गया कि इलाके में कांवडिय़ों के साथ कुछ झड़प की स्थिति बन गई थी, जिसके बाद विधायक खुद थाने पहुंचे और पुलिस वालों को समझाने लगे कि कानून-व्यवस्था कैसे संभालनी है।
विधायक की इस भूमिका को लेकर बहस छिड़ गई है। विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने इस घटना को "बेहद शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण" बताया है, जबकि स्थानीय प्रशासन और पुलिस अधिकारियों की ओर से अब तक कोई आपत्ति नहीं जताई गई है। न ही थानेदार के खिलाफ किसी तरह की प्रशासनिक कार्रवाई की गई है।
कुछ राज्यों में जनप्रतिनिधियों का रौब-दाब अब भी सीमाओं से परे, पूरी तरह कायम है। अपने छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में में ऐसा नजारा कम ही देखने को मिला है। पिछली सरकार में तो कई मौकों पर खुद सत्तारूढ़ दल के विधायकों पर एफआईआर दर्ज हो जाती थी, और उन्हें बचाने कोई आगे भी नहीं आता था।