संपादकीय

देश की राजधानी से लगे हरियाणा के गुरूग्राम में दूसरे बच्चों को टेनिस सिखाने वाली एक होनहार खिलाड़ी राधिका यादव के अकादमी चलाने, और रील बनाने से खफा उसके पिता ने उसे गोलियों से भून डाला। खबरों में कहा गया है कि अड़ोसी-पड़ोसी इस बाप को ताने कसते थे कि बेटी की कमाई उससे अधिक हो गई है। वह राज्य स्तर की टेनिस खिलाड़ी थी, और कई मुकाबले जीत चुकी थी। एक बहुत ही प्यारे चेहरे वाली, हँसमुख दिखती 25 बरस की इस युवती का यह अंत अपने पिता के हाथों हुआ। उसकी तस्वीर ही हैरान करती है कि भला कौन सा पिता ऐसी होनहार और हँसमुख बच्ची को मार सकता है। आज जब इस उम्र की बहुत सी लड़कियां तरह-तरह की अश्लील फिल्में बनाकर रोजाना पोस्ट करती हैं, उससे अपनी कमाई करती हैं, तब यह लडक़ी दूसरे खिलाडिय़ों को सिखाकर अपना काम कर रही थी, और बाप को उस पर सिर्फ फख्र होना था। लेकिन उस इलाके की संस्कृति शायद ऐसी थी कि पड़ोसी बाप को बेटी की कामयाबी पर ताने देते थे।
यह तो इस किस्म की कातिल घटना हो गई, इसलिए इस पर चर्चा भी हो रही है। लेकिन भारत के आम परिवारों में करोड़ों लड़कियां अपने बाप-भाई की मर्दाना दादागिरी को रोज ही झेलती हैं। उसकी कोई भी बात नापसंद होने पर परिवार के मर्द उसकी बेइज्जती करने से लेकर उस पर हाथ उठाने तक, उसे घर में कैद कर लेने तक कई किस्म से उसे प्रताडि़त करते हैं। यही उत्तर भारत का इलाका है जहां हर हफ्ते-पखवाड़े खबरें आती हैं कि बेटी मर्जी से शादी करना चाहती थी तो बाप-भाई ने मिलकर कहीं उसके प्रेमी को मार डाला, तो कहीं उसे मार डाला, तो कहीं शादी हो जाने पर नए जोड़े को मार डाला। ऐसे कत्ल में परिवार के चाचा-ताऊ भी खुशी-खुशी शामिल हो जाते हैं, जबकि ऐसे हर कत्ल के बाद जेल जाने का एक असल खतरा हर किसी को मालूम है। ऐसे खतरे को देखते हुए भी लोग परिवार की तथाकथित इज्जत को बचाने के लिए कत्ल भी कर देते हैं ताकि समाज को कह सकें कि लडक़ी ने परिवार का ‘मुँह काला’ कर दिया था, तो उन्होंने उसे मार ही डाला। ऐसी ऑनरकिलिंग भारत के बाहर भी ब्रिटेन जैसी जगह पर भारत और पाकिस्तान के परिवार करते हैं। आज सुनीता विलियम्स के महीनों अंतरिक्ष में रहकर आ जाने के बाद भी उत्तर भारत के अनगिनत परिवारों की इज्जत कन्या का दान करने की सोच से जुड़ी हुई है। हिन्दू शादियों में कन्या का दान करना एक रस्म है, और यह रस्म पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह सोच मजबूत करते चलती है कि कन्या किसी सामान, या पशु की तरह है जिसे कि दान किया जा सकता है, दान किया जाना चाहिए। जिस तरह पशु को मालिक जिस खूंटे से बांधे, वहीं बंधे रहना उसका नसीब होता है, परिवार अपनी लड़कियों को वैसा ही देखना चाहते हैं। पुरूष प्रधान भारतीय समाज को कन्या भ्रूण हत्या से लेकर ऑनरकिलिंग, दहेज-हत्या, बलात्कार, जबरिया गर्भपात, विधवा-जीवन या सतीप्रथा जैसी तमाम बातें सुहाती हैं। अब यह तो इस देश का घटिया कानून है जो कि मर्दों को इनमें से कई बातें करने नहीं देता है, और उन्हें जुर्म करार देता है।
औरतों पर मर्द अपनी मर्जी कितनी चलाना चाहते हैं, यह जगह-जगह निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों के मामले में देखने मिलता है, जहां कहीं पर उनके पति पद की शपथ लेते हैं, कहीं वे ही सरकारी मीटिंग लेते हैं, और कहीं वे खुद रिश्वत लेकर निर्वाचित पत्नी से अंगूठा लगवाते हैं, या दस्तखत करवाते हैं। इस बात को वे खुद का हक भी मानते हैं, और छत्तीसगढ़ में हमने कई मामले देखे जिनमें पंचायत अधिकारियों ने पतियों को ही पत्नी की जगह पद की शपथ दिलवाई, उन्हीं से बैठक में दस्तखत ले लिए, और निर्वाचित महिलाओं की मौजूदगी के बिना बैठक हो भी गई। समाज में जो बहुत पढ़ा-लिखा तबका भी माना जाता है, उसमें भी महिला को किस तरह पुरूष के नियंत्रण में ही रहना है, यह सोच बार-बार दिखती है। अब भारत में तरह-तरह के नामों से सेक्स-टॉय बिकने लगे हैं। फेसबुक जैसा सोशल मीडिया इस तरह के इश्तहारों से भी भरा हुआ है। शुरू में तो अधिकतर महिलाओं के काम के ऐसे मसाजर जैसे खिलौने उन्हीं के आनंद और उनकी संतुष्टि की विज्ञापन-फिल्मों वाले आते थे। अब कुछ समय से ऐसे इश्तहार आने लगे हैं जिनमें कोई महिला बैठे-बैठे, या चलते-चलते अचानक ही कामसुख से झनझनाने लगती है, और फिर दिखता है कि किस तरह उसका कोई पुरूष साथी अपने मोबाइल फोन से उस महिला के कपड़ों के भीतर रखा गया कोई सेक्स-टॉय नियंत्रित कर रहा है। अधिकतर लोगों को तो यह इश्तहार वयस्क लेकिन साधारण लगेगा। लेकिन इसके पीछे की सोच देखने की जरूरत है कि अगर कोई लडक़ी या महिला किसी सेक्स-टॉय से कामसुख पाना चाह रही है, तो उसका नियंत्रण भी उसके पुरूष साथी के हाथ में रहेगा, और वही उसकी रफ्तार, उसकी कंपकंपाहट, और उसके दूसरे फीचर-फंक्शन तय करेगा। यह सोच एक मर्दाना मानसिकता पर टिकी हुई कल्पनाशीलता से उपजी है, और इसे मासूम नहीं मानना चाहिए। पूरी दुनिया में जिन इश्तहारों पर रोक सकती है, उनमें महिला की देह को लेकर तरह-तरह के अपमान रहते हैं, उसकी बेइज्जती रहती है। ऐसे मामलों में हिन्दुस्तान विकसित, और पश्चिमी देशों के मुकाबले खासा आगे है, और यहां पर सेनेटरी पैड जैसी महिला जरूरत की एक अनिवार्य चीज को भी सेक्स से जोडक़र देखा जाता है, और अभी कुछ बरस पहले तक स्कूल-कॉलेज में इसका नाम तक नहीं लिया जाता था।
महिला के खिलाफ हिंसक सोच पर बहुत से कानून है, सुप्रीम कोर्ट तक के बहुत से फैसले हैं, लेकिन घर-घर होने वाली बेइंसाफी बात-बात में तो अदालत तक पहुंच नहीं सकती। अब घर में लडक़ों के कपड़े अधिक आएं, वह बेहतर स्कूल जाए, उसका इलाज बेहतर हो, और लडक़ी की बारी उसके बाद ही किसी तरह खींचतान कर आए, तो ऐसे मामलों में अदालत क्या कर सकती है? कहने के लिए कानून के हाथ लंबे रहते हैं, लेकिन कानून के हाथ घरेलू भेदभाव की जड़ तक पहुंचने जितने लंबे भी नहीं रहते। अब एक इतनी होनहार बेटी को इस तरह मार डालकर एक बाप पूरी उम्र जेल काटने को अपना सम्मान मान रहा है, तो उसकी ऐसी सोच, और ऐसी सामाजिक संस्कृति को धिक्कार है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)