राजपथ - जनपथ
बैस की संभावनाएं
पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने फिर से भाजपा की सदस्यता ले ली है। वो सक्रिय सदस्य बन गए हैं। बैस सक्रिय राजनीति में लौटना भी चाहते हैं। पार्टी के कुछ नेताओं ने उन्हें सलाह भी दी है कि वो कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में नियमित रूप से बैठें, और कार्यकर्ताओं की समस्याओं का निराकरण भी करें।
चर्चा थी कि बैस को कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में कमरा अलाट होने वाला है। मगर यह अभी तक नहीं हुआ है। उनके पुराने जान पहचान के लोग ही मिल रहे हैं। पदाधिकारी, और जन प्रतिनिधि तो उनसे दूरी बनाए हुए हैं। सुनते हैं कि बैस रायपुर के एक विधायक को तीन बार फोन कर चुके हैं, और मिलने के लिए बुला चुके हैं। मगर विधायक अभी तक बैसजी से मिलने के लिए टाइम नहीं निकाल पाए हैं। ऐसी स्थिति में बैस जी पहले जैसे सक्रिय रहेंगे, इसकी संभावना कम दिखती है।
चार सीटों का मेयर या विधायक
भाजपा से रायपुर दक्षिण के लिए दावेदारी करते रहे मृत्युंजय दुबे, केदार गुप्ता, मीनल चौबे, सुभाष तिवारी, अंजय शुक्ला, रमेश ठाकुर और अन्यान्य से यही कहा जा सकता है- हार्ड लक, बेटर ट्राय नेक्स्ट टाइम। वैसे यह सभी त्रिकोण में फंसकर, असमंजस में ही दावेदारी कर रहे थे, कि दक्षिण या मेयर, या फिर निगम-मण्डल। और अब पार्टी को भी आसान हो जाएगा, नाम छांटने में कि कौन मेयर, सभापति और कौन निगम मंडल।
अब दरअसल, बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद से ये सभी प्रबल दावेदार रहे हैं, लेकिन तय नहीं कर पा रहे थे किसकी दावेदारी करें। इसमें एक पेंच और है। महापौर का पद आरक्षण से तय होगा। वर्तमान में महापौर का पद अनारक्षित है। ऐसे में संभव है कि यह पद पिछड़ा वर्ग या फिर महिला के लिए आरक्षित हो सकता है। इन सबके चलते भी कई की दावेदारी स्वाभाविक तौर पर खत्म हो जाएगी।
दूसरी तरफ, महापौर या विधायक के पद, कार्यक्षेत्र ये नजरिए से देखें तो महापौर ही बड़ा पद। फिर इस बार पार्षदों से नहीं सीधे जनता से चुना जाना है। बहुमत का टेंशन नहीं। 70 वार्डों में कहीं का गड्ढा कहीं पट जाएगा। उसके बाद तो व्हाइट हाउस की छत से शहर देखकर कहा जा सकता है -अगले पांच साल ये शहर मेरा है। और बजट देखे तो दो करोड़ की विधायक निधि, सांसद-सरकार और निगम पर निर्भर रहना होगा । महापौर मतलब चारों विधानसभा क्षेत्र, 70 वार्ड, 2 हजार करोड़ का बजट, बड़े-बड़े बिल्डर डेवलपर से वास्ता। इन दोनों चुनाव में जेब खर्च होने के बाद भी जीत की गारंटी 50-50। हींग लगे न फिटकरी वालों के लिए निगम मंडल ही बेहतर।
वंदेभारत का भविष्य वहां है...
यह तस्वीर आज सफर करने वाले यात्री ने भेजी है...
रायपुर वाइजैग वंदेभारत को आज एक माह पूरे हो गए। रेलवे के पैसेंजर बिजनेस के हिसाब से यह ट्रेन अब तक नुकसान में ही चल रही है। 16 कोच की ट्रेन में कुल 1128 सीटें हैं और यह ट्रेन इनमें से 37-40 प्रतिशत बुकिंग पर ही चल रही है। यानी आपरेशन कॉस्ट भी नहीं निकल रही। इसे देखते हुए इस ट्रेन के ओनर रायपुर रेल मंडल ने एक माह और आब्जरवेशन आपरेशन करने का फैसला किया है। उसके बाद ट्रेन को बंद तो नहीं करेगा, लेकिन इसके 16 कोच कम किए जा सकते हैं। यानी 8-10 कोच से चलाई जा सकती है। बाकी कोच से रायपुर जबलपुर व्हाया गोंदिया चलाने की चर्चा टीटियों के बीच जमकर है। ऐसा होने से अमरकंटक एक्सप्रेस के सारे यात्री डायवर्ट होंगे और रायपुर रेल मंडल को नया बिजनेस रूट मिलेगा या फिर बिलासपुर- नागपुर वंदेभारत को ही 8 से बढ़ाकर 16 कोच किया जा सकता है। मेन लाइन पर डिमांड बहुत है। इन टीटीई की माने तो दुर्ग वाइजैग तक रेल खंड पर वंदेभारत बिजनेस का अलग अलग है। दुर्ग, रायपुर महासमुंद से वाइजैग तक औसत सीट बुकिंग 180-200 के साथ किसी दिन 300 भी रही। उसके बाद कांटाभांजी टिटलागढ़ केसिंगा, रायगढ़ से वाइजैग अप डाउन दोनों में 250-300। इसके पीछे कारण ओडिशा के इन शहरों-कस्बों के लिए सुबह जाकर शाम 8 बजे वापसी के लिए बेहतर कनेक्टिविटी मिल रही है। इसलिए कहा जा रहा है कि वाइजैग वंदेभारत का भविष्य पश्चिम ओडिशा पर निर्भर रहेगा।
राइट टाइम आवाजाही से ट्रेन पसंद तो की जा रही है। रायपुर से छूटते ही महासमुंद में ब्रेकफास्ट, पार्वतीपुरम के आसपास लंच में रोटी, दो सब्जी, दाल, चावल,दही आचार के साथ क्वालिटी लंच पैक परोसा जाता है। विजयनगरम में आइसमक्रीम की ठंडक का मजा लीजिए। सब कुछ ठीक है मगर भाड़ा महंगा है।
एंटोफगास्ता में लुटने वाले..
एंटोफगास्ता नाम कुछ अजीब है। ऑनलाइन फ्रॉड करने वाले ऐसे ही अजीबो-गरीब नाम का इस्तेमाल करते हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ के सरगुजा, बलरामपुर और रायगढ़ जिले से खबर आई है कि दर्जनों गांवों के 2-3 हजार लोग इसमें निवेश करके करोड़ों रुपये गंवा बैठे हैं। जिनके रुपये डूबे उनमें से कई लोगों पर लाखों रुपये का कर्ज डूब गया है कई की अचल संपत्ति बिक गई है। कुछ ने महंगे ब्याज पर पैसे लिए, अब चुकाने की सोचकर सिर चकरा रहा है। यह ऐप छोटा-छोटा निवेश करने और जल्दी रिटर्न का झांसा देता था। जैसे 500 रुपये लगाएं, 7 दिन में 50 प्रतिशत रिटर्न पाएं, 14 दिन मं 100 प्रतिशत और एक माह में 200 प्रतिशत रिटर्न। सन् 2021 से चल रहे ऐप में लोगों को पैसे लौटाए भी जा रहे थे। यह धोखाधड़ी का एक तरीका था, जिससे लोगों का विश्वास जम जाए। पर अचानक यह ऐप बंद हो गया। छत्तीसगढ़ ही नहीं, नेट को खंगालने पर पता चलता है कि तमिलनाडु सहित दक्षिण के कई राज्यों में ऐसे निवेश के चक्कर में लोग करोड़ों रुपये डुबा बैठे हैं।
एंटोफगास्ता चिली गणराज्य का एक हिस्सा है। इस नाम से कॉपर की एक माइनिंग कंपनी भी है। कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर लिख रहा है कि हमारे नाम पर कोई निवेश करने के लिए ऑफर देता है तो कानूनी रूप से वे इसके लिए बाध्य नहीं होंगे। यानि यह फ्रॉड अंतरराष्ट्रीय स्तर का भी हो सकता है। यह ऐप पहले कभी गूगल प्ले पर उपलब्ध रहा या नहीं, पर आज मौजूद नहीं है। कुछ साल पहले बिडक्वाइन के नाम से मिलते जुलते वर्चुअल मनी निवेश करने का ऑफर देने वाले दर्जनों ऐप गूगल पर दिखने लगे थे। गूगल ने सबको अपने प्ले स्टोर से हटाया। इसके बावजूद लोग वाट्सएप या टेलीग्राम से मिले लिंक पर जाकर ऐप डाउनलोड करते हैं। दिक्कत यह है कि इस निवेश में फंसने वाले लोग मजदूर, छोटे दुकानदार व सीमित वेतन की प्राइवेट जॉब करने वाले लोग हैं। ज्यादातर लोगों की शिकायत पुलिस तक पहुंची भी नहीं है। इन दिनों पूरे प्रदेश में पुलिस साइबर फ्रॉड से बचने के लिए लोगों के बीच जागरूकता अभियान चला रही है, मगर शातिर ठग अपना काम जारी रखे हुए हैं। लोगों को यह समझना नहीं है कि यदि कोई आपको आपकी शारीरिक दक्षता और तकनीकी दक्षता का उपयोग किये बिना बड़ा और अविश्वसनीय रिटर्न देने की बात करता है तो वह धोखाधड़ी के अलावा कुछ नहीं हो सकता।
करवा चौथ पर मंगल कामना
प्रेम की अभिव्यक्ति के भिन्न भिन्न तरीके हो सकते हैं। बॉलीवुड में हजारों गाने प्रेम दर्शाने पर तैयार हो चुके हैं। पर हर बार कहने का अंदाज नया होता है, इसलिए चल रहे हैं। ऐसे ही अलग अंदाज में मेंहदी रचाकर एक विवाहिता ने अपने पति के लिए जाहिर की है। वैसे ऐसा लगता है कि पति घर जमाई है।
भाई की शिकायत नड्डा से
रायपुर की पूर्व विधायक श्रीमती रजनी ताई उपासने के परिवार का झगड़ा पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं तक पहुंच गया है। रजनी ताई के पुत्र वरिष्ठ पत्रकार जगदीश उपासने ने टिकरापारा स्थित अपने पैतृक निवास की तस्वीर एक्स पर साझा की है, और वहां लूटपाट का आरोप लगाया है। यह आरोप किसी और पर नहीं, बल्कि अपने छोटे भाई सच्चिदानंद उपासने पर लगाया है।
उपासने ने लिखा कि छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार आने के बाद स्थानीय नेताओं की बढ़ती गुंडागर्दी पार्टी को डुबो देगी। प्रदेश भाजपा के स्थानीय दलाल नेताओं की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि वे बूढ़ी, बीमार माताओं के घरों में दिन दहाड़े डकैती डालने लगे! कोई बेटा अपनी के घर का ताला तोडक़र उसके घर में दिन दहाड़े डकैती डाल सकता है? हां, जरूर अगर बेटा भाजपा का नेता हो, और उस राज्य में भाजपा की सरकार हो! छत्तीसगढ़ भाजपा के ऐसे ही जमीनों के दलाल और दुर्भाग्य से मेरे छोटे भाई सच्चिदानंद उपासने और उनके साथी आलोक श्रीवास्तव ने अपने साथियों संग हमारी माता, रायपुर की पूर्व विधायक 92 वर्षीय श्रीमती रजनी ताई उपासने के घर-ऑफिस के ताले तोडक़र उसमें रखा सामान लूट लिया।
भाजपा का इस नेता को तीन साल से अपनी बीमार मां से मिलने उसके घर आने की फुर्सत नहीं मिली। लेकिन मां के घर का ताला तोडऩे की फुर्सत मिल गई। नरेन्द्र मोदी की उपलब्धियों पर भाजपा के लोकल नेता किस तरह पानी फेरते हैं यह उसकी एक मिशाल है। छत्तीसगढ़ में अपराधों का ग्राफ ऐसे ही ऊपर नहीं जा रहा! उन्होंने जेपी नड्डा और सीएम विष्णुदेव साय को टैग करते हुए लिखा कि मुझे उम्मीद नहीं कि रायपुर पुलिस इसकी रिपोर्ट दर्ज करेगी। (rajpathjanpath@gmail.com)
संघ वाले, और बिना संघ वाले
रायपुर दक्षिण के दावेदारों में आरएसएस के सबसे निकट कौन है, इस पर भाजपा के अंदरखाने में चर्चा चल रही है। कुछ लोग प्रदेश कोषाध्यक्ष नंदन जैन को आरएसएस के सबसे ज्यादा करीब बता रहे हैं। नंदन के पिता दिवंगत कुंदन जैन आरएसएस के रायपुर महानगर के प्रमुख रहे हैं। नंदन के लिए रायपुर के राममंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने भी सिफारिश की है। मगर सुनील सोनी का बैकग्राउंड भी आरएसएस का रहा है।
पूर्व सांसद सुनील सोनी के पिता आजादी के पहले आरएसएस से जुड़ गए थे। सुनील सोनी को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उनके पिता की वजह से ही जानते थे। सुनील सोनी ने एबीवीपी से जुडक़र राजनीति की शुरूआत की। फिर दुर्गा कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष बने। बाद में पार्षद, दो बार मेयर, आरडीए चेयरमैन और फिर सांसद बने।
विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें प्रदेश चुनाव प्रबंध समिति का मुखिया बनाया था। सोनी विधानसभा चुनाव में चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया के साथ मिलकर काम किया। लोकसभा टिकट कटने के बाद भी वे डटे रहे। और यही वजह है कि सांसद बृजमोहन अग्रवाल और कई प्रमुख नेता उन्हें विधानसभा प्रत्याशी बनाने के पक्ष में हैं।
बाकी दावेदारों में संजय श्रीवास्तव, केदार गुप्ता, मीनल चौबे और मृत्युंजय दुबे का आरएसएस से सीधा वास्ता नहीं रहा लेकिन भाजपा संगठन में काफी सक्रिय रहे हैं। संजय ने विधानसभा चुनाव में सरगुजा संभाग के प्रभारी के तौर पर काम किया था। केदार चुनाव के दौरान मीडिया में पार्टी का चेहरा बने रहे। मीनल और मृत्युंजय की सक्रियता भी कम नहीं रही है। ऐसे में पार्टी किस पर मुहर लगाती है, यह एक दो दिनों में साफ हो जाएगा।
थैले में मोबाइल और छापे
मैडम ने पिछले दिनों आबकारी विभाग के सारे जयचंदों को बदल डाला। हालांकि इसके पीछे उन्हें कड़ी मेहनत मशक्कत करनी पड़ी। कुल 637 दुकानों में से मैडम ने कम से कम 400 दुकानों का औचक निरीक्षण और आनलाइन वेब कास्टिंग भी किया। इसके लिए वो बस्तर कह कर सरगुजा जाती। इसके पीछे भी इन 10 महीनों में ही मैडम का दिलचस्प अनुभव रहा है। होता यह था कि जब भी मैडम जिलों के औचक निरीक्षण पर जाती,वहां सब कुछ नीट एंड क्लीन बिजनेस मिलता। और लौटना पड़ता था। मगर मैडम का मन संतुष्ट नहीं रहता, लगता कुछ गड़बड़ी चल रही है। मालूम चला कि दौरे पर मैडम के साथ तीन अन्य गाडिय़ों में जाने वाले विभाग के ही लोग उस जिले के जिला आबकारी अधिकारियों (डीईओ) और अमले को अलर्ट कर देते। यह बहुत दिनों तक चलता रहा।
फिर मैडम ने तरीका बदला। सरगुजा जाना बताकर बस्तर की ओर निकल पड़ती। कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाने की तर्ज पर। मैडम एक थैली लेकर दौरे पर रवाना होने लगी। बीच रास्ते वह अपने पीछे की तीन गाडिय़ों के एक-एक व्यक्ति का मोबाइल फोन थैली में जमा करवा लेतीं। इससे उस जिले के डीईओ और अमले को मैडम की दबिश का पता नहीं चलता। और मैडम, ओवर रेटिंग, शराब में पानी मिलावट, कोचिया कारोबार, पड़ोसी राज्यों की शराब ढुलाई जैसी गड़बड़ी आन द स्पॉट और वेबकास्टिंग से पकड़तीं रही। ऐसी गड़बडिय़ों को राजधानी जिले से लेकर चांपा जांजगीर,कोरबा,रायगढ़ बिलासपुर, मुंगेली के डीईओ के साथ उडऩदस्ते के अमले ने भी खूब प्रश्रय दिया।
जब मैडम हिसाब करने बैठीं तो अप्रैल से सितंबर तक दो सौ करोड़ की राजस्व हानि निकली। फिर मैडम ने इन सारे जयचंदों को बदल डाला। हालांकि इनमें से रायपुर,बिलासपुर के डीईओ को बचाने कई दिग्गजों ने जोर लगाया। मगर इसमें सीएम साहब ने मैडम को पूरा फ्री हैंड दिया था। और फिर सीएम साहब ने भी किसी की एक न सुनी।
तूफान के पहले की शांति
राष्ट्रीय वन खेल उत्सव के चलते विभाग में सब कुछ फिलहाल ठीक ठाक चल रहा है। हर अफसर एक दूसरे की और हर कर्मचारी अफसर की बात सुन और काम कर रहा है। क्योंकि इतने बड़े आयोजन से अपनी और प्रदेश की छवि मानकर सक्रिय हैं। लेकिन यह तूफान के पहले की शांति जैसा है। कल रविवार को खेलों का समापन समारोह हो जाएगा। उसके बाद नौ हजार कर्मचारियों का विभागीय संगठन हड़ताल जैसा कदम उठाने की रणनीति बना रहा है। इस संगठन के हाल में चुनाव भी हुए हैं। सभी जोश से भरे हैं जल्द ही बैठकर डेट तय करेंगे। हड़ताल का असर हाल में विभाग देख चुका है। जब 5000 वह भी दैवेभो तूता में 48 दिनों तक डटे रहे तो विभाग पटरी से उतर गया था। फिर ये तो नियमित 9 हजार लोग हैं।
इनका कहना है कि विभाग के पास 10 वर्ष से हमें इंक्रीमेंट देने 5 करोड़ नहीं है। और खेलों के लिए राज्य के बजट से 7.5 करोड़ खर्च किए गए । और यह आयोजन पहली बार नहीं तीसरी बार हो रहे। और हमारी मांग तब से चली आ रही है। वृक्षारोपण के लिए फंड नहीं।
वन विभाग के गार्डन बंद होने कगार पर हैं।
चौकीदारों के वेतन भुगतान में मुश्किल हो रही। खर्च के चलते कृष्ण कुंज, औषधीय उद्यान, आक्सीजोन की देख रेख से विभाग ने हाथ खींच लिया है। और खेल कूद के नाम पर किटी पार्टी की तरह वार्षिक आयोजन के लिए करोड़ों रूपये को पानी की तरह बहाए जा रहे। खेलों से पहले खेल कोटे से विभाग में भर्ती भी कर ली गई। केवल इसलिए कि पदक तालिका में छत्तीसगढ़ सबसे आगे दिखे। सच्चाई यह है कि पिछले वर्षों में हुई भर्तियों के एक भी खिलाड़ी का व्यक्तिगत या टीम स्तर पर भी भारतीय टीम में चयन नहीं हुआ। जो एशियाड, ओलंपिक या अन्य राष्ट्रीय खेलों में गया हो। यही अफसर कहते भी हैं कि खेल कूद तो ठीक है इसके बहाने आईएफएस बैचमेट्स का एन्यूअल गेट टू गेदर हो जाता है। ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि छत्तीसगढ़ में कुल 54 विभाग हैं उन्हें खेलों की जरूरत नहीं है केवल वन विभाग के। इसके पीछे कारण तलाशने होंगे।
बस्तर से एक और संभावना
बस्तर की विषम सामाजिक, राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थितियों के बीच प्रतिभाओं का सामने उभर कर आना और राष्ट्रीय स्तर पर लोहा मनवाने का सिलसिला रुद्र प्रताप देहारी ने आगे बढ़ाया है। अत्यंत पिछड़े और धुर नक्सल प्रभावित कटे कल्याण से रुद्र ने अपनी मेहनत से क्रिकेट में जगह बनाई। वीनू मांकड़ ट्रॉफी के मैच में उन्हें मैन ऑफ द मैच का खिताब मिला, साथ ही नगद पुरस्कार भी।
धान खरीदी में हड़ताल की बाधा
धान उपार्जन केंद्रों के डाटा एंट्री ऑपरेटरों ने अपने को शासकीय सेवा में लेने की मांग पर 18 सितंबर से हड़ताल शुरू की थी, जो आज दो माह पूरे हो गए। इधर सरकार ने धान खरीदी की तिथि तय कर दी है। 31 अक्टूबर तक किसानों का पंजीयन होना चाहिए। पंजीयन का कार्य डाटा एंट्री ऑपरेटरों क जरिये ही होना है। इसके अलावा खाद-बीज के लिए ऋण वितरण की ऑनलाइन एंट्री भी इन ऑपरेटरों के जरिये ही होती है। यह एंट्री भी बंद ही है।
प्रदेश में 2700 से अधिक ऑपरेटर हैं और किसानों की संख्या 25 लाख से अधिक। यदि पंजीयन की तारीख नहीं बढ़ाई गई तो आपाधापी मचना तय है। डाटा एंट्री ऑपरेटर करीब 15-17 साल से काम कर रहे हैं। शायद यदि इनकी मांग न मानकर नई भर्ती पर विचार करेगी तब भी उसमें काफी समय लग सकता है। एक विकल्प यह भी है कि शासकीयकरण की मांग पर बाद में विचार करने का आश्वासन दिया जाए और वर्तमान में मिल रहे मानदेय में वृद्धि कर दी जाए। वैसे इन्हें सोमवार तक काम में लौटने का अल्टीमेटम दिया गया है। उसके बाद ही सरकार का रुख सामने आएगा। (rajpathjanpath@gmail.com)
विधायक या छाया विधायक
उपचुनाव की घोषणा के दिन सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने मीडिया से कहा इस बार दक्षिण के लोगों को दो विधायक मिलेंगे। पत्रकार चौंक गए, कि एक सीट पर दो विधायक कैसे। उन्होंने कहा एक जो नया निर्वाचित होगा और दूसरी मैं। मैं आठ बार से विधायक रहा हूं मैं भी विधायक की ही तरह क्षेत्र के विकास के लिए काम करूंगा। अब इस बयान में राजनीति देखने वाले विपक्ष, और भाजपा के ही लोग कई तरह की बातें कर रहे। वो कह रहे नए विधायक और निगम, आरडीए, जिला या पुलिस प्रशासन को उनके कहे अनुसार ही काम करना होगा। नए विधायक को हर काम से पहले उनसे पूछना पड़ेगा।
नई योजनाओं के प्रस्ताव उनसे बनवाने और अनुमति लेनी होगी। यानी वो छाया विधायक (निर्वाचित) की तरह होगा। बस विधायक कहलाएगा। भाजपा में अब इस मनस्थिति के नामों पर चर्चा हुई तो सबसे ऊपर नाम सुनील सोनी, मनोज शुक्ला ही निर्विवादित नाम रहे। ये दोनों उनसे अलग जा ही नहीं सकते। बाकी संजय श्रीवास्तव, मृत्युंजय दुबे, मीनल चौबे, सुभाष तिवारी, केदार गुप्ता, नंदन जैन इनके अपने-अपने इश्यू, और खेमे हैं। जब कांग्रेस के नाम गिने गए तो सभी दावेदार एजाज ढेबर, प्रमोद दुबे, कन्हैया अग्रवाल, बृजमोहन के अनुकूल नाम रहे। अब देखना होगा कि लॉटरी किसकी लगती है।
पुलिस, परिवहन को नहीं दिख रहे ?
राजधानी में 14 अक्टूबर से बिना रेजिस्ट्रेशन के 65 से अधिक यह गाडिय़ां दौड़ रहीं हैं। बिना नंबर की स्कूटी पर चालान काटने में न चूकने वाली ट्रैफिक पुलिस के एक हजार जवान और अधिकारी को चिढ़ाते हुए फर्राटे भर रही हैैं। ये सभी गाडिय़ां वन विभाग ने पिछले सप्ताह ही खरीदे और राष्ट्रीय खेल में आए खिलाडिय़ों-कोच मैनेजर को अलॉट किया है। इन गाडिय़ों को बिना रजिस्ट्रेशन नंबर के शो रूम से बाहर कैसे निकलने दिया परिवहन विभाग ने?
विभाग ने तो परचेस होते ही नंबर प्लेट लगाकर डिलीवरी की अधिसूचित किया हुआ है। इस नियम पर किसी निजी गाड़ी को शो रूम के बाहर ही पकडऩे को मुस्तैद पुलिस के हाथ क्यों बंधे हैं? हम भी कहां आदर्श परिस्थिति की बात कर रहे। नियम होते ही हैं तोडऩे के लिए। फिर इन्हें बनाने वालों का काम ही है तोडऩा। बहरहाल इन खेलों में कुल 25 सौ फोर व्हीलर का उपयोग हो रहा है। इनमें पांच सौ से अधिक टैक्सियां हैं। इन्हें एक दिन में 40-40 लीटर डीजल दिया जा रहा है। और विभागीय नई गाडिय़ों को सीसीएफ ऑफिस से 50-50 लीटर पर्ची जारी हो रही। वह भी मोवा के एक ही पंप से भरवाना होगा। इसका ड्रायवर कोई हिसाब नहीं दे रहे हैं। हालांकि उन्हें कोटा से लेकर डूंडा, नवा रायपुर तक के 23 खेल परिसरों का चक्कर लगाना है। जलता ही होगा इतना डीजल।
कुलपति की दौड़ में
प्रदेश के चार राजकीय विश्वविद्यालयों में नए कुलपतियों की नियुक्ति होनी है। इच्छुक दावेदार शिक्षाविदों से आवेदन लेने की प्रक्रिया पूरी कर ली गई। कुलाधिपति कार्यालय ने अपनी वेबसाइट को क्लोज कर दिया है। चारों विश्वविद्यालयों के लिए 127 से अधिक आवेदन प्राप्त होने की खबर हैं। कुलाधिपति के गुवाहाटी से लौटने के बाद राजभवन जल्द ही चयन समिति का गठन करने जा रहा है। यह समिति इन सभी का इंटरव्यू कर अंतिम तीन तीन नामों का पैनल कुलाधिपति को देगा। वैसे यह प्रक्रिया दीपावली बाद ही गति पकड़ेगी।
आवेदकों में रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस अफसर भी शामिल हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ में प्रभारी कुलपति को छोड़ किसी भी एक्स ऑफिशियो की नियुक्ति नहीं हुई है। वैसे इन विश्वविद्यालयों की प्रशासनिक गतिविधियों पर नजर डाले तो एक बार यह प्रयोग किया जा सकता है। वैसे पिछली सरकार में उशिवि ने कुलसचिव पद पर आईएएस अफसरों की नियुक्ति का प्रस्ताव सरकार को भेजा था। जो अब तक अनिर्णीत है।
बहरहाल कुलपति के आवेदकों में एक विधायक की पत्नी के साथ साथ एक कॉलेज की महिला प्राचार्या भी दौड़ धूप कर रहीं हैं। जो पूर्व में उशिवि में संयुक्त संचालक रहीं हैं। और रिटायरमेंट के करीब यह मैडम अगले पांच वर्ष काम करना चाहती है। मैडम की दौड़ धूप की चर्चा कॉलेज में आम हैं। और मातहत प्रोफेसर ही मैडम की शैक्षणिक, प्रशासनिक दक्षता पर प्रश्न चिन्ह उठा रहे है? ये दिन के छह से आठ घंटे कॉलेज में गुजारते हैं। ओबीसी वर्ग से आने वाली मैडम की नजर दुर्ग विश्वविद्यालय पर है। जहां पहले भी एक महिला प्रोफेसर कुलपति रह चुकीं हैं। अब देखना यह है कि विधायक पत्नी सफल होती है या मैडम।
दक्षिणामुखी ब्राह्मण
राजधानी के ब्राह्मण इन दिनों दक्षिणामुखी हो गए हैं। पहली बार भाजपा-कांग्रेस के ब्राह्मण नेता एकजुट हो गए हैं। इन्होंने पहले सर्व ब्राह्मण समाज की बैठक की और फिर राजीव भवन, ठाकरे परिसर जाकर अपनी बात रख आए। अबकी बार टिकट नहीं तो समर्थन नहीं। उनकी बात कांग्रेस में पूरी होती दिख रही है। क्योंकि वहां कोई दूसरे नेता लडऩे आगे नहीं आए हैं। भाजपा में तो तय है या तो भैया की पसंद या संघ-संगठन की। और इसमें समाज करती दिख नहीं रहा। फिर भी राजीव भवन के खुले सत्र के बाद सैकड़ों ब्राह्मण नेता ठाकरे परिसर पहुंचे। इनमें दावेदार कहला रहे मृत्युंजय दुबे, मीनल चौबे,, सुभाष तिवारी, अंजय शुक्ला, विजय शंकर मिश्रा समेत बंगाली तेलुगू, मैथिल, राजस्थानी ब्राह्मण समाज के 500 लोग शामिल रहे। लेकिन कांग्रेस के एक भी दावेदार नहीं थे।
जय-जय परशुराम के जयघोष के साथ गए थे। और लौटती बारात की तरह बिना जय-जयकार के निकले। संगठन महामंत्री ने सारे ब्राह्मणो को प्रणाम किया और आने का सबब तो वो जानते ही थे। फिर भी कुछ नेताओं ने आने की भूमिका बांधी। उन्होंने कहा कि दक्षिण में 34 हजार ब्राह्मण वोटर हैं। टिकिट तो देना होगा। भीड़ में किसी ने कह दिया पहली बार ठाकरे परिसर आए हैं क्योंकि हम अधिकांश कांग्रेसी हैं। उनकी मन स्थिति को जान महामंत्री ने पूरी बात सुनी। मौका भी था दस्तूर भी। चाय बिस्किट का दौर भी।
महामंत्री ने भगवान परशुराम और ब्राह्मणों की महत्ता बताते हुए कहा पद-गद्दी सब कुछ ब्राह्मणों के लिए बेमानी है। इस पर उन्होंने एक कहानी सुनाई- भगवान विष्णु ने जब श्री परशुराम को इंद्र की गद्दी दे दी थी तो ब्राह्मण देवता ने हमें नहीं चाहिए कहकर ठुकरा दिया। उनमें कुर्सी की लालसा कभी नहीं रही। और आप लोग तो उनके वंशज हैं। हमारे जैसे लोग तो आपके चरणों में प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हैं। आप पूजनीय हैं, प्रणाम करता हूं। आपका मार्गदर्शन ही काफी है। आप लोग कहां गद्दी के चक्कर में पड़ गए। उन्होंने यह भी बताया कि फरसा उठाने के कारण परशुराम जी से तत्समय के ब्राह्मण उनसे दूर रहने लगे थे। इसके बाद तो सभी समझ गए कि महामंत्री क्या कहना चाह रहे हैं। और विदाई ले ली। लौटते समय नारे लगाना भी जरूरी नहीं समझा।
विधायक पुत्र की काउंटर रिपोर्ट
साजा विधायक ईश्वर साहू के बेटे कृष्णा साहू के खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट के तहत पुलिस ने अपराध दर्ज कर लिया था। इसके बाद अब शिकायतकर्ता मनीष मंडावी के खिलाफ भी कृष्णा साहू की शिकायत पर एक एफआईआर दर्ज कर ली गई है। मनीष मंडावी ने जो एफआईआर लिखाई है उसमें विधायक पुत्र पर जातिसूचक गालियां देने का आरोप है, वहीं कृष्णा साहू की एफआईआर में कहा गया है कि मंडावी और उसके साथियों ने मारपीट की और उसके 10 हजार रुपये लूट लिए। दोनों की शिकायतों की जांच अभी बाकी है, पर आम लोगों के मामले में पुलिस इस तरह की काउंटर रिपोर्ट दर्ज नहीं करती। मगर, मामला सत्तारूढ़ दल के विधायक का है। सुनने में यह भी आया है कि मंडावी की एफआईआर के बाद सुलह-समझौते की कोशिश की गई थी लेकिन बात नहीं बनी। उसके बाद दूसरी एफआईआर दर्ज कराई गई है। यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि क्या लूट जैसी वारदात होने के बावजूद पुलिस तक पहुंचने में विधायक पुत्र को 48 घंटे लग गए? आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने पुलिस पर दबाव बनाया था तब मंडावी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, अब कार्रवाई नहीं होने पर वे आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं। फिलहाल मुद्दा जल्द शांत होते नहीं दिख रहा है।
प्रतिमा की पड़ताल
एक बिल्डिंग के मंडप पर कुछ लंगूरों की प्रतिमाएं बना दी गई हैं। कुछ असली लंगूर उछलते कूदते हुए वहां पहुंचे। शांत और स्थिर अवस्था में लंगूरों को देखकर वे काफी देर तक निहारते हैं। चारों तरफ चक्कर लगाते हैं। छूकर देखते हैं फिर गले लगाते हैं। फिर भी जब वे नहीं हिलते तो उठाकर अपने साथ ले जाने की कोशिश करते हैं। प्रतिमा को हिला तो देते हैं, मगर उखाड़ नहीं पाते। बंदर हमेशा झुंड में रहते हैं और वे अपनी बिरादरी में एक दूसरे का खूब ख्याल भी रखते हैं। कोई दुर्घटनाग्रस्त हो जाए या बीमार पड़ जाए तो उसकी देखभाल भी करते हैं। शायद असली लंगूर को प्रतिमा के नहीं हिलने-डुलने की चिंता हो रही है। सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल हो रहा है।
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हत्यारे सिंहदेव-विरोधी
सूरजपुर में दोहरे हत्याकांड में एनएसयूआई पदाधिकारियों की संलिप्तता के खुलासे के बाद कांग्रेस के अंदरखाने में हलचल मची है। यह बात सामने आई है कि सरगुजा संभाग में अपराधियों का एनएसयूआई में बोलबाला रहा है। अपराधी प्रवृत्ति के युवाओं को एनएसयूआई ने पद दिए गए। खास बात यह है कि स्थानीय कांग्रेस संगठन के पदाधिकारी पिछले वर्षों में इस पर आपत्ति कर प्रदेश नेतृत्व को अवगत कराते रहे हैं। मगर प्रदेश संगठन ने कुछ नहीं किया।
एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष नीरज पाण्डेय, सरगुजा के ही रहने वाले हैं, और वे पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के विरोधी खेमे के माने जाते हैं। सूरजपुर में प्रधान आरक्षक की पत्नी और पुत्री की हत्या के मामले में जिन पांच युवकों को गिरफ्तार किया है, उनमें दो एनएसयूआई के पदाधिकारी जिलाध्यक्ष चंद्रकांत चौधरी, और कुलदीप साहू हैं। कुलदीप दोहरे हत्याकांड के मुख्य आरोपी हैं।
कुलदीप के हत्याकांड में शामिल होने की बात सामने आई, तो एनएसयूआई के पदाधिकारियों ने उनसे पल्ला झाड़ लिया था। और तो और जिलाध्यक्ष चंद्रकांत चौधरी ने बकायदा वीडियो जारी कर कुलदीप साहू का एनएसयूआई से कोई संबंध होने से इंकार किया। पुलिस जांच में यह बात साफ हुई कि हत्याकांड में कुलदीप के साथ-साथ चंद्रकांत चौधरी भी था। इसके बाद आरोपियों के कांग्रेस नेताओं के साथ तस्वीरें भी वायरल हुई।
भिलाई विधायक देवेंद्र यादव, एनएसयूआई के अध्यक्ष नीरज पाण्डेय के साथ कई तस्वीर वायरल हुई है, जो यह बताने के लिए काफी है कि आरोपियों के रिश्ते कांग्रेस के नेताओं से कैसे हैं। सूरजपुर जिला कांग्रेस की अध्यक्ष भगवती राजवाड़े ने दो साल पहले पत्र लिखकर चंद्रकांत चौधरी के आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने की जानकारी दी थी। उन्हें पद से हटाने की मांग की थी। यह पत्र सोनिया गांधी, और राहुल गांधी व प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन प्रभारी पीएल पुनिया को भेजा था। उन्होंने बताया था कि चंद्रकांत चौधरी कोयला चोरी से लेकर मारपीट, और नशाखोरी जैसी गतिविधियों में लिप्त है, और उसकी नियुक्ति से कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ता अपमानित महसूस कर रहे हैं। मगर किसी ने ध्यान नहीं दिया। अब पार्टी के नेताओं को जवाब देते नहीं बन रहा है।
उद्घाटन का पहला दिन फीका रहा
राष्ट्रीय वन खेल उत्सव का बुधवार शाम श्रीगणेश हो गया। कल केवल उद्घाटन , मार्च पास्ट सलामी, मशाल प्रज्जवलन, कबूतर उड़ाए गए। आज से मैदान में उतरने से पहले खिलाडिय़ों की मेल-मुलाकात देर रात डिनर तक चलती रहीं। जहां डिनर प्लेट के स्वाद को लेकर नाक भौं सिकुड़ते भी रहे। डिनर जमीन पर बिठाकर कराया गया।
केंद्रीय मंत्री देवेंद्र यादव आए ही नहीं। उद्घाटन समारोह के दौरान कुछ अतिथियों में नाराजगी सुनने को मिली। तीनों ही विधायक राजेश मूणत को उद्घाटन से कुछ देर पहले निमंत्रण, सांसद बृजमोहन अग्रवाल को देर रात अचानक निमंत्रित किए जाने की जानकारी मिली है। बताया तो यह भी गया है कि प्रिंटेड कार्ड में कोटा इलाके के विधायक का नाम ही नहीं था। आनन फानन में छपवा कर दिया गया। हालांकि इन सभी के नाम ई-कार्ड में प्रकाशित थे। ठाकरे परिसर में तो थोक के भाव में पांच सौ कार्ड बिना नाम लिखे छोड़ आए। यह कार्ड बांटने के लिए अधिकृत किए गए अधिकारियों ने ही बताया । और पीसीसीएफ स्वयं संबंधितों को आड़े हाथ ले चुके हैं। रायपुर वन मंडल को मैनेजमेंट से दूर रखा गया। डीएफओ, एसडीओ रेंजर फूफा बनकर तालियां बजाते रहे। ऐसे ही नाराज लोगों ने बताया कि छत्तीसगढ़ वन बल के 9000 वर्दीधारी कर्मी भी उपेक्षित ही। स्वाभाविक भी है कि ये कार्यक्रम को फीका ही बताएंगे। और इसे खारिज भी नहीं किया जा सकता है। भीड़ के हिसाब के 50 फीसदी ही थी। सूर्यकुमार यादव का भी आकर्षण भीड़ जुटा नहीं पाई। क्योंकि वह पुलिस सुरक्षा और बड़े बड़े वन अफसरों से घिरे रहे। देश के 50 आईएफएस को वीआईपी का दर्जा देकर वन कर्मियों को वालंटियर की भूमिका में इन अधिकारी की सेवा में कॉल बॉय की तरह रखा गया। इतना ही नहीं देश के कई दिग्गज आईएफएस नहीं आए। जो आए हैं उन्हें नॉर्मल ट्रैक-सूट के बजाए रेमेंड के सूट दिए गए। जो अगले चार दिन तीन हजार लोगों की भीड़ में उन्हें नौकरशाह साबित करता ड्रेस कोड होगा।
नई जनरेशन के अपराध
छत्तीसगढ़ में दो बड़े अपराध, रंगदारी वसूली और महादेव सट्टा ऐप, चर्चा व चिंता का विषय बने हुए हैं। शूटर गैंग के अमन साहू को हाल ही में रायपुर पुलिस द्वारा भारी सुरक्षा इंतजामों के साथ झारखंड से गिरफ्तार कर लाया गया है। उनके गुर्गों ने बीते दिनों एक बड़े बिल्डर पर गोलीबारी की और दूसरे बिल्डर को धमकी दी थी। करीब एक दर्जन अन्य कारोबारी उनकी हिट लिस्ट में बताये जा रहे हैं। यह गैंग सिर्फ छत्तीसगढ़ या देश तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका नेटवर्क मलेशिया, कनाडा, और पुर्तगाल जैसे देशों में भी फैला हुआ है। यहां तक कि जेल में बंद अपराधी भी उनके लिए काम कर रहे हैं।
दूसरी ओर, महादेव सट्टा ऐप का मामला है। दुर्ग से निकले सरगना सौरभ चंद्राकर ने दुबई में बैठकर दुनिया भर में साम्राज्य फैला लिया। गिरफ्तारी के बाद भारत प्रत्यर्पण की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन उसका नेटवर्क एक तरफ कई देशों में है तो छत्तीसगढ़ के दूरदराज के गांवों तक भी फैला हुआ है। जहां तक सडक़ भी ठीक से नहीं पहुंची, वहां से ऑनलाइन सट्टेबाजी ऑपरेट की जा रही है। इसमें स्थानीय मजदूरों, बेरोजगारों के बैंक खातों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे आसानी से पैसों का लेन-देन हो रहा है। रंगदारी की रकम भी कुछ ही सेकंड में प्लास्टिक-वर्चुअल मनी या हवाला के ज़रिए देश से बाहर भेजी जा रही है।
40-50 साल पहले सट्टेबाजी के तरीके अलग थे, जैसे रतन खत्री और कल्याण जी भाई के समय में नगद पैसे और पर्चियों का लेन-देन होता था। रंगदारी की रकम किसी अटैची में भरकर बताए गए ठिकाने पर छोडऩा होता था। आज तकनीक ने अपराधियों के काम को और आसान बना दिया है। 4जी और 5जी डेटा और ऑनलाइन ट्रांजेक्शन ने न सिर्फ आम जनता की जिंदगी को सरल बनाया है, बल्कि अपराधियों को भी अपने अवैध धंधे को बढ़ाने का भरपूर मौका दिया है।
हाल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऑनलाइन ठगी का वार्षिक कारोबार 15 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह सवाल उठता है कि अगर इंटरनेट की इतनी आसान पहुंच नहीं होती, तो क्या ये सब मुमकिन होता? अपराधी अब पहले से कहीं ज्यादा स्मार्ट और संगठित हो गए हैं, पर क्या जांच एजेंसियां, खासकर अपनी पुलिस उतनी ही तेजी से अपडेट हो रही है?
ऐसा बिहार में ही होता है..
बिहार के भागलपुर में एक शख्स को सांप ने काटा तो उसने बिना वक्त गंवाए उसके गर्दन को दबोच लिया और उसे लेकर अस्पताल पहुंच गया। एक तरफ वह दर्द से कराह रहा था, दूसरी तरफ उसने सांप को जकड़ रखा था। अस्पताल के स्टाफ और डॉक्टर मरीज का इलाज कैसे करें, इस चिंता में डूब गए। वह सांप से बदला लेना चाहता था। बाद में लोगों ने समझाया कि पहले अपना इलाज कराओ। फिर उस सांप को ग्रामीण की चंगुल से छुड़ाकर जंगल में सुरक्षित छोड़ दिया गया। लोगों ने कहा कि इसमें सांप का क्या कसूर जो उससे बदला लोगे, उसने तो अपने स्वभाव के अनुसार ही काम किया है। तुम ही थोड़ी इंसानियत दिखाओ। अच्छी बात यह रही की सांप काटने के बाद यह व्यक्ति किसी झाड़ फूंक के चक्कर में नहीं पड़ा।
न स्कूल भवन बना न शिक्षक मिले
हाईकोर्ट में इन दिनों स्कूली बच्चों के आंदोलन पर सुनवाई चल रही है। रायपुर के प्रयास विद्यालय के छात्रों ने सडक़ पर उतरकर प्रदर्शन किया, राजनांदगांव के डीईओ ने टीचर्स की मांग करने वाली छात्राओं को फटकारा तो न्यायालय ने इसे स्वत: संज्ञान याचिका के रूप में दर्ज किया। हाईकोर्ट ने तल्ख लहजे में सरकार से पूछा कि बच्चों से पढ़ाई कराना चाहते हैं या नेतागिरी। अपने जवाब में शिक्षा विभाग ने स्वीकार किया कि शिक्षक के हजारों पद खाली है। अब अगली सुनवाई में हाईकोर्ट ने जवाब दाखिल करने के लिए कहा है कि सरकार किस तरह से इस कमी को दूर करने जा रही है, बताए। हाईकोर्ट में सरकार क्या जवाब देगी यह तो नहीं मालूम लेकिन शैक्षणिक सत्र के तीन माह से अधिक बीत चुके हैं, जगह-जगह सडक़ों पर छात्र-छात्राओं का उतरना जारी है। बालोद जिले के पीपरछेड़ी हायर सेकेंडरी स्कूल के छात्र-छात्राओं ने गेट पर ताला जड़ दिया। कलेक्टर को बुलाने की मांग कर रहे थे। एसडीएम पहुंची और उन्होंने किसी तरह से दो शिक्षकों की व्यवस्था करने की बात कही, लेकिन यहां 13 शिक्षकों की जरूरत है। मार्च 2023 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बालोद जिले के दौरे पर थे तो पीपरछेड़ी के छात्र-छात्राओं ने उनके काफिले को रोका था। मुख्यमंत्री के साथ उन्होंने सेल्फी खिंचवाई थी। उसे सोशल मीडिया पर खुद बघेल ने शेयर किया था और बताया था कि बच्चों की मांग पर उन्होंने नए हायर सेकेंडरी भवन के लिए 1.21 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी है। पर कांग्रेस सरकार के रहते उसका टेंडर जारी ही नहीं हुआ। नई सरकार बनने के बाद भी उसका कुछ पता नहीं है।
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मिल गया खर्च का हिसाब
बीते एक माह से चल रहा उहापोह खत्म हुआ। राष्ट्रीय वन खेल उत्सव के आयोजन के खर्च का हिसाब मिल गया। यह और किसी ने नहीं स्वयं मुख्य आयोजक पीसीसीएफ ने ही बताया है। उद्घाटन से पहले बुधवार को औपचारिक पत्रकार वार्ता हुई। इस पर पत्रकारों के ताबड़तोड़ प्रश्न हुए। यह पूछा गया कि चार दिन के इस आयोजन में कितने खर्च होंगे? पीसीसीएफ ने कहा- इसके लिए राज्य सरकार के पास 7.5 करोड़ का बजट है जबकि केंद्र सरकार हमें 1.5 करोड़ रुपए देगी।
खिलाडिय़ों को कितने रुपये दिये जाएँगे? खिलाडिय़ों पर, हर दिन 16 हजार 500 रुपये खर्च होंगे, ये अलग से देय होगा। फिर प्रश्न हुआ- सूर्यकुमार और मनु भाकर कितने रुपए ले रहे हैं? पीसीसीएफ ने कहा उन्हें हम नहीं स्पॉन्सर पैसे देंगे। कितना देे रहे ये हमें नहीं पता। अब विभाग के असंतुष्ट या आयोजन की मुख्य धारा या टीम से बाहर अधिकारी कर्मचारी यह खर्च मानने को तैयार नहीं। उनका भी तर्क सही है। महंगे रिजॉर्ट, थ्री से फाइव स्टार होटल में डाइन-वाइन की आवासीय व्यवस्था, प्लेन से आना जाना, होटल से मैदान तक एसी कारें, महंगे किट नए खेल उपकरण इतने कम बजट में कैसे हो जाएगा। वह भी महंगाई के इस दौर में। अफसरों का कहना है कि इसी बजट में पूरा करेंगे। नहीं तो कैम्पा फंड है ही।
खर्च दूसरों से करवाने के तरीके
वैसे कोई भी सरकारी आयोजन सभी विभागों के अधिकारी-कर्मचारियों और उनके संसाधनों की संयुक्त हिस्सेदारी से होते हैं। मुख्य आयोजक विभाग प्रमुख अन्य विभागों से मदद मांगते भी हैं। फिर न जाने क्यों मुख्य आयोजक विभाग के आयोजन में 50-100 करोड़ तक खर्च हो जाया करते हैं। जबकि होना उल्टा चाहिए,बड़ी रकम बचनी चाहिए । ऐसी कभी नहीं होता।
उल्टा तय बजट आबंटन से ड्योढ़ा ही खर्च हो जाते हैं । राष्ट्रीय वन खेल उत्सव के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है। स्टेडियम खेल विभाग से मिल गया। और यूटीडी, रेलवे का डब्लूआरएस मैदान, इंटरनेशनल स्टेडियम, छत्तीसगढ़ क्लब, वीआईपी क्लब, सप्रे शाला के साथ आरकेसी, केपीएस, कांगेर वैली जैसे बड़े निजी स्कूलों ने तो साहबों के कॉल करने पर ही अपने टेनिस, बैडमिंटन कोर्ट, मैदान स्वीमिंग पूल दे दिए हैं।
सरकारी आयोजन हैं किस स्कूल की हिम्मत होगी किराया मांगने की। और अब रायपुर डीएफओ ने निगम आयुक्त से पांच दिनों के लिए साइंस कॉलेज मैदान में पानी टैंकर, वेस्ट निकासी वाहन, सेंट्रल किचन क्षेत्र में रोजाना ब्लीचिंग और डी-फागिंग, मोबाइल टॉयलेट वैन की व्यवस्था करने कहा है। सीएमएचओ से एंबुलेंस, दवाइयों के साथ डॉक्टरों की टीम तैनात करने पत्र भेजा है। एक और पत्र जिला अग्निशमन अधिकारी से फायर ब्रिगेड की व्यवस्था करने लिखा है। इसमें आग्रह मिश्रित चेतावनी दी गई कि इन कार्यक्रमों में केंद्रीय मंत्री,सीएम और राज्य के सभी मंत्री रहेंगे इसलिए व्यवस्था अनिवार्य होगी। ताकि ढिलाई न बरती जाए। अब इन महकमे का अमला तो अपने दैनिक वेतन पर ही ड्यूटी समझ कर वहां तैनात होगा ही। ऐसे में इनकी कास्टिंग तो बच ही गई न। इसका अंतर विभागीय पेमेंट होने से रहा। और यह रकम फिर कहां जाएगी। और जब सेंट्रल किचन से खानपान परिवहन का पूरा कांट्रेक्ट एक्सिस कम्युनिकेशन नाम की दिल्ली की फर्म को दिया गया है तो वेस्ट निष्पादन, सफाई की व्यवस्था निगम से क्यों? इसी फर्म को फ्लेक्स, बैनर, आमंत्रण कॉर्ड प्रवेश पत्र, आई कार्ड बनाने का भी टेंडर दिया गया है।
विभाग के पास 200 से अधिक कारें होने, 65 नई खरीदने के बाद भी खिलाडिय़ों के लिए 4 सौ से अधिक वाहन किराए पर लिए गए हैं। इतना ही नहीं पांच दिनों की पूरी रसोई एनएमडीसी द्वारा प्रायोजित है। तो वन विभाग के खर्च में नहीं जुडऩा चाहिए, लेकिन बिल बनेगा और वह करोड़ों रुपए कहां जाएंगे हमें नहीं अफसरों को पता होगा।
आखिरी दिनों में मंत्रियों के चक्कर
झारखंड चुनाव में छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। दोनों डिप्टी सीएम अरूण साव, विजय शर्मा, और वित्त मंत्री ओपी चौधरी के साथ-साथ करीब 60 नेताओं को प्रचार की कमान सौंपी गई है। इनमें केन्द्रीय राज्यमंत्री तोखन साहू भी हैं। पिछले दिनों भाजपा के चुनाव प्रभारी केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रांची में बैठक बुलाई, तो छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री पिछले दिनों एक साथ फ्लाइट से वहां पहुंचे थे।
छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी नितिन नबीन चुनाव निपटने तक झारखंड में रहेंगे, और यहां के नेताओं से फीडबैक भी लेंगे। शिवराज सिंह चौहान ने अपनी बैठक में विधानसभावार क्षेत्र की स्थिति की समीक्षा की, और टिकट के लिए मजबूत दावेदारों के नाम भी लिए हैं। कुछ लोग बताते हैं कि झारखंड में इस बार भाजपा जितनी मेहनत कर रही है, उतनी पहले कभी नहीं हुई है। झारखंड से सटे सरगुजा के छोटे-बड़े नेताओं को स्थानीय कार्यकर्ताओं के सहयोग के लिए भेजा गया है। छत्तीसगढ़ में भी रायपुर दक्षिण सीट पर चुनाव हो रहे हैं, लेकिन यहां बृजमोहन अग्रवाल ही सबकुछ देखेंगे। आखिरी के दिनों में मंत्री जरूर वार्डों का चक्कर लगा सकते हैैं।
पकने को तैयार फसल
मॉनसून विदा ले चुका है। धान की बालियां बस पकने लगी हैं। कुछ दिन बाद फसल तैयार हो जाएगी। मवेशियों और बंदरों से बचाने के लिए इसकी हिफाजत करना जरूरी है, वरना मेहनत पर पानी फिर जाएगा। खेत पर तैयार झोपड़ी के साथ महिला और उनके बच्चों के साथ यह तस्वीर प्राण चड्डा के सोशल मीडिया पेज से है।
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यह बैग 20 हजार का
राष्ट्रीय वन खेल महोत्सव बुधवार से शुरू हो रहे हैं। इसके उद्घाटन की तैयारियां आज शाम लॉक कर दी जाएंगी। मंगलवार शाम वन मंत्री ने खेलों में आ रहे देशभर के खिलाडिय़ों, रेफरी अंपायर, कोच मैनेजर व अन्य हिस्सेदारों के लिए सेंट्रल किचन का फीता काटा। जो एनएमडीसी द्वारा प्रायोजित है।
इस मौके पर मंत्रीजी ने छत्तीसगढ़ की टीम के खिलाडिय़ों को किट वितरित किया। इनमें अकेले 213 आईएफएस खिलाड़ी हैं। जो कुल कैडर स्ट्रेंथ से अधिक हैं। और राज्य वन सेवा के साथ लिपिक वर्गीय खिलाड़ी अलग। इनके अलावा ऐसे भी सौ से अधिक लोगों को किट बैग दिए गए जिनका खेलों से दूर-दूर तक वास्ता नहीं। यह गिफ्ट स्वरूप दिए गए। एक एक किट बैग की कीमत 20-20 हजार है। जिसमे एक स्पोर्ट बेग, एडिडास के स्पोर्ट्स शूज-मोजे, नैपकिन, वॉटर बॉटल, ट्रेक सूट (लोअर टी शर्ट) आदि शामिल है। इनमें अधिकांश बड़े साहब के सुरक्षा जवान हैं।
विभागीय मंत्री को भी 15 बैग सौजन्य भेंट किए गए। सुनने में आया है कि रिटायर्ड चुनिंदा आईएफएस अधिकारियों को भी दिए जाएंगे। वहीं देश भर से आमंत्रित पीसीसीएफ, केंद्रीय वन मंत्रालय के 70 अधिकारियों के लिए नवा रायपुर सेक्टर 16 के 5 स्टार रिजॉर्ट में सात दिन की लॉजिंग बोर्डिंग 70 सुइट्स बुक हैं। जहां रूम के भीतर ही स्मॉल स्विमिंग पुल, गोल्फ और घुड़सवारी की भी सुविधा रहेगी। इसका एक दिन का किराया 40 हजार रुपए चेक आउट बिल में होगा।
पूरा जिला केवल आयोग का ही काम करेगा
आज दोपहर रायपुर दक्षिण उप चुनाव की घोषणा के साथ जिले का पूरा अमला केवल चुनाव कार्य करेगा। यानी आम जन एक बार फिर कम से कम महीने भर के लिए दफ्तर जाकर वापस लौट आएंगे। उनका कोई काम नहीं होगा। भूलवश दफ्तर गए तो चपरासी उल्टे पांव लौटा देगा कि साहब बाबू चुनाव में व्यस्त हैं। आदेश निकालना तो दूर की बात है। क्योंकि पूरे रायपुर जिले में आचार संहिता लागू हो जाएगी। और पूरा प्रशासन, निर्वाचन आयोग के अधीन हो जाएगा।
साहब लोग एक अदद प्रमाण पत्र, मेडिकल बिल, मंत्री विधायकों के स्वेच्छानुदान स्वास्थ्य अनुदान के चेक पर भी साइन भी नहीं करेंगे। मरीजों (परिजनों)को कह दिया जाएगा, चुनाव बाद आना। हालत ठीक रही तो ठीक वर्ना राम नाम सत्य है ही।
नए विकास कार्यों की घोषणा भूमिपूजन, लोकार्पण नहीं होंगे। इसके अलावा राजधानी में होने वाले राज्योत्सव पर भी संशय खड़ा हो गया है। हालांकि आयोजन स्थल रायपुर दक्षिण के दायरे से बाहर है, लेकिन रायपुर जिले में शामिल होने से इसके मंच से नई घोषणाएं नहीं की जा सकेंगी। राज्योत्सव नवा रायपुर के मेला ग्राउंड में होने पर भी यह पाबंदी लागू रहेगी।
वन स्टेट वन इलेक्शन
जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा था आईएएस ऋचा शर्मा की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ कराने की अनुशंसा सरकार से कर दी है। कमेटी की सिफारिश एक औपचारिकता ही थी क्योंकि राज्य सरकार ने अगस्त में ही घोषणा कर दी थी कि वह दोनों चुनाव एक साथ कराना चाहती है। बताया जा रहा है कि सिफारिश में यह कहा गया है कि मतदान की तिथियां तो अलग-अलग होंगी लेकिन मतगणना एक साथ होगी। पिछली बार नगरीय निकायों के चुनाव की अधिसूचना 25 नवंबर 2019 को जारी की गई थी और 24 दिसंबर को परिणाम आ गए थे। इसके कुछ दिन बाद 30 दिसंबर को त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की अधिसूचना जारी की गई। निर्वाचन की प्रक्रिया फरवरी में समाप्त हुई। इस तरह से पिछली बार भी आगे-पीछे ही चुनाव हुए थे, इस बार साथ-साथ होंगे। एक साथ चुनाव कराने का लाभ यह होगा कि चुनाव आचार संहिता की अवधि कुछ कम हो जाएगी। छत्तीसगढ़ में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव भी अलग-अलग होते हैं। लोकसभा का कार्यकाल मई में, जबकि विधानसभा का दिसंबर में समाप्त होता है। दोनों ही चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा के साथ-साथ आचार संहिता लग जाती है। यदि विधानसभा का कार्यकाल कुछ माह आगे बढ़ा देने का प्रावधान होता तो शायद दोनों चुनाव एक साथ होते और आचार संहिता की अवधि कुछ कम हो जाती। जानकारों का कहना है कि रामनाथ कोविंद कमेटी द्वारा वन नेशन, वन इलेक्शन के पक्ष में केंद्र सरकार की सिफारिश व्यवहारिक रूप से लागू करने में अभी भी कई तरह की अड़चन है। वह कब लागू होगी, कैसे होगी यह मसला केंद्र को सुलझाना है, लेकिन राज्य में पंचायत और नगरीय चुनावों को एक साथ कराने से समय और संसाधनों की बचत होने की उम्मीद की जा सकती है। सियासी फायदा किसे मिलेगा, यह दूसरा मसला है।
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वो दोनों महात्मा तो हैं नहीं
जब तक राष्ट्रीय वन खेल उत्सव चलेंगे तब तक हम खेलों के साथ उसमें हो रहे खेल को लेकर नई नई जानकारियां देंगे। खेलों का उद्घाटन बुधवार को राजधानी के कोटा स्टेडियम में होने जा रहा है। जहां तैयारियां राष्ट्रीय खेलों के स्तर की अंतिम चरण में है। इसमें भाग ले रहे राज्यों के खिलाडिय़ों का मार्च पास्ट होगा। इसमें छत्तीसगढ़ की टीम के खिलाडिय़ों का दल सबसे बड़ा होने की जानकारी मिली है। इन खिलाडिय़ों को आज शाम वन मंत्री किट और ट्रेक सूट वितरित करेंगे। और साइंस कॉलेज मैदान में सेंट्रल किचन का उद्घाटन भी करेंगे। इस किचन के चूल्हे नवरत्न कंपनी एनएमडीसी के सौजन्य और व्यय से 20 अक्टूबर तक जलेंगे। जहां करीब 4 हजार खिलाडिय़ों, आयोजन में जुटे स्टाफ के लिए नाश्ता, हाई टी, लंच- डिनर और वो सब कुछ मिलेगा। पूरे आयोजन में प्रवेश हाईटेक सिस्टम से मिलेगा। इसकी जिम्मेदारी भी इंट्री के बाहर की ही कम्पनी को दी गई हैं ।
बिना स्कैन के भीतर नहीं जा सकेंगे। यह स्कैनिंग और कोई नहीं बाउन्सर करेंगे। अब बात उद्घाटन समारोह में आमंत्रित विशिष्ट अतिथि सेलिब्रिटी को लेकर। विभाग के अफसर से लेकर बीट गार्ड तक पूछ रहे हैं कि- दो सेलेब्रेटी को उद्घाटन में आने के लिए कितना पेमेंट तय किया गया है। क्योंकि वो दोनों कोई महात्मा तो नहीं जो नि:शुल्क आ जाए। अब इसका जवाब अभी नहीं मिलेगा। विधानसभा के शीत सत्र में किसी विधायक के प्रश्न पर मिलेगा। कुछ लोगों का कहना है कि उसमें जो उत्तर मिलेगा उस पर भी विधायक कहेंगे विभाग के अफसर सदन को गुमराह कर गलत जानकारी दे रहे। और बात आई गई हो जाएगी।
कश्मीर का सीजी कनेक्शन
देश, और प्रदेश में कई नेता ऐसे हैं, जो कि राजनीतिक परिस्थितियों को पहले ही भांप जाते हैं। इन्हीं में से एक फारूख अब्दुल्ला भी हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता रवि ग्वालानी पिछले दिनों श्रीनगर में थे, और अपने पिता शिव ग्वालानी की किताब मास्टर ऑफ नथिंग के विमोचन के लिए पूर्व सीएम फारूख अब्दुल्ला से मिलने गए। उस वक्त वहां विधानसभा चुनाव को लेकर काफी हलचल थी। जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारूख अब्दुल्ला का ग्वालानी परिवार से पुराना परिचय है, और वो दो साल पहले फारूख ग्वालानी परिवार के विवाह समारोह में शिरकत करने रायपुर भी आए थे।
जम्मू कश्मीर के बुजुर्ग नेता फारूख अब्दुल्ला, ग्वालानी पिता-पुत्र से आत्मीयता से मिले। विधानसभा चुनाव की मतगणना से एक दिन पहले फारूख उनसे संभावित चुनाव नतीजों पर भी खुली चर्चा की। फ़ारूख़ अब्दुल्ला ने कह दिया था कि जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस, और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनेगी। यही नहीं, गठबंधन को 48 सीट मिलने का दावा भी किया था। चुनाव नतीजे ठीक वैसे ही आए, जैसा कि फारूख का अनुमान था। गठबंधन को 48 सीटें मिली। इसमें से 42 नेशनल कॉन्फ्रेंस, और 6 सीटें कांग्रेस को मिली है। यह आंकड़ा ग्वालानी पिता-पुत्र के लिए काफी चौंकाने वाला भी था।
कांग्रेस प्रवक्ता रवि ग्वालानी, उमर अब्दुल्ला के बेटे जफर से मिलकर काफी प्रभावित रहे। जफर भी धीरे-धीरे राजनीति में सक्रिय हो रहे हैं। उनके पिता उमर अब्दुल्ला जल्द ही मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं। रवि का मानना है कि नेहरू परिवार की तरह देश के कुछ परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी काबिल नेता निकल रहे हैं। उनमें से एक अब्दुल्ला परिवार भी है। कुल मिलाकर जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक स्थिति को नजदीक से जानने का मौका भी मिला।
ये एक क्यों छूटा?
बलौदाबाजार आगजनी की घटना के बाद भी पुलिस प्रशासन में वैसी चुस्ती नहीं दिख रही है, जिसकी उम्मीद लगाई जा रही थी। घटना के बाद कलेक्टर-एसपी से लेकर टीआई तक बदले गए हैं। मगर एक टीआई को छोड़ दिया गया है। हैरानी की बात यह है कि जिस टीआई के खिलाफ सबसे ज्यादा शिकायतें रही हैं, उसे नहीं बदला गया। खास बात यह है कि इस टीआई की पोस्टिंग ज्यादातर समय बलौदाबाजार जिले के अलग-अलग थानों में होती रही है। शिकायतों की वजह से इस टीआई को बदलने पर जोर दिया गया था। आदेश भी होने वाला था, लेकिन स्थानीय प्रभावशाली नेता के दबाव में तबादला रुक गया। अब विवादित लोगों को अहम जगहों पर बिठाया जाएगा, तो कानून व्यवस्था की स्थिति बिगडऩे से रोक पाना मुश्किल है। देखना है आगे क्या होता है।
हर कोई चमत्कार की तलाश में...
आरंग तहसील में एक बाबा ने दावा किया कि वे पानी में पैदल चल सकते हैं। बाबा पिछले कुछ महीनों से संयमित जीवन व्यतीत कर रहे थे, और जब उन्होंने चमत्कार दिखाने की बात कही तो गांववाले उत्साहित हो गए। उस दिन गांव ने कामकाज बंद रखा। मंदिर हसौद थाने के प्रभारी और तहसीलदार भी मौके पर पहुंच गए।
हालांकि, जैसे ही बाबा गांव के तालाब में उतरे, विज्ञान के नियमों ने अपना काम किया। पैदल चलना तो दूर, थोड़ी देर बाद बाबा ने तैरने की कोशिश की, परंतु डूबने लगे। पहले से मौजूद प्रशिक्षित तैराकों ने तुरंत छलांग लगाई और बाबा को सुरक्षित बाहर निकाला। यह घटना अस्सी के दशक की मशहूर फिल्म ‘शान’ के उस दृश्य की याद दिलाती है, जिसमें अमिताभ बच्चन ने पानी पर चलने का दावा कर भीड़ जुटाई थी। हालांकि आरंग के इस मामले में ठगी की कोई कोशिश नहीं की गई, फिर भी यह घटना बताती है कि अविश्वसनीय दावों से भीड़ आज भी आकर्षित हो जाती है। आश्चर्यजनक यह है कि सरकारी अधिकारी, जिनकी जिम्मेदारी ऐसे अंधविश्वास पर रोक लगानी है, वे भी इसका हिस्सा बन गए।
हाईवे पर द बर्निंग कार
सोशल मीडिया पर एक जलती हुई कार का खौफनाक वीडियो इस समय वायरल हो रहा है। चलती कार में अचानक आग लगी। ड्राइवर ने हैंडब्रेक लगाकर रोकने की कोशिश। नहीं रुकी तो कूद गया। अब खाली कार धूं-धूं जलती हुई सामने सीधी ढलान होने के चलते अपने आप लुढक़ने लगी। कई राहगीर, पूरा रास्ता घेर कार और बाइक खड़ी कर इस नजारे को देखने लगे। लोगों को मोबाइल पर वीडियो रिकॉर्ड करने का मौका मिल गया। मगर, कार के नहीं रुकने पर भीड़ में अफरा-तफरी मच गई। कुछ दर्शकों को अपनी बाइक, कार को छोडक़र भागना पड़ा। उन्हें चपेट में लेते हुए आखिरकार कार जाकर एक डिवाइडर से टकराती है। कोई जनहानि नहीं हुई, लेकिन एक सबक यहां लिया जा सकता है कि तमाशबीन बनने से बचें, खतरे की अवहलेना कर मोबाइल निकालकर रील्स वीडियो बनाने में तल्लीन न हो जाएं। वीडियो जयपुर का बताया गया है।
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बाबा सिद्दीकी और छत्तीसगढ़
एनसीपी नेता पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी की हत्या से न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं को झकझोर कर रख दिया है। बाबा सिद्दीकी को कांग्रेस ने रायपुर लोकसभा चुनाव का पर्यवेक्षक बनाया था। दरअसल, विधानसभा चुनाव से पहले ही छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के लिए संगठन की तैयारी शुरू हो गई थी, और बाबा सिद्दीकी उसमें अहम रोल निभा रहे थे।
बाबा सिद्दीकी इस बात से हैरान थे कि रायपुर लोकसभा की सीट कांग्रेस वर्ष-91 के बाद से जीत नहीं पाई है। जबकि विधानसभा चुनावों में रायपुर लोकसभा की विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर रहता है। बाबा सिद्दीकी विधानसभा चुनावों में प्रचार के लिए आए थे, और फूल चौक में एक कार्यक्रम में भी शिरकत की थी। इसके अलावा आरंग, और बलौदाबाजार सहित अन्य क्षेत्रों का दौरा किया था। और कार्यकर्ताओं की बैठक भी ली थी।
बाबा सिद्दीकी एक कदम आगे जाकर कार्यकर्ताओं को लोकसभा चुनाव के लिए तैयार कर रहे थे। ये अलग बात है कि उन्हें अपेक्षाकृत सहयोग नहीं मिल पा रहा था। वो आर्थिक रूप से काफी सक्षम नेता रहे हैं। इसलिए उन्हें यहां ज्यादा किसी की परवाह भी नहीं थी। बाद में महाराष्ट्र से जुड़े कुछ विषयों को लेकर अपनी असहमति के बाद कांग्रेस से अलग हो गए, और अजीत पवार की एनसीपी में शामिल हो गए। उनके निधन से छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेता भी सदमे में हैं।
खेलों में खेला
राष्ट्रीय वन खेल उत्सव इन दिनों राज्य के प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में हॉट टॉपिक बना हुआ है। खासकर इस हो खर्च को लेकर। अपुष्ट आंकड़े तो अविश्वसनीय हैं। लेकिन इस विभाग के नेता और अफसर तो अपने को सबसे गरीब विभाग बताने से नहीं चूकते। और खेल के लिए इतने खर्च पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
बताते हैं कि इसके खर्च को लेकर ही देश के कई अन्य राज्यों के वन विभागों ने हाथ खड़े कर दिए थे। उसके बाद छत्तीसगढ़ ने मेजबानी ली और तैयारी अंतिम चरण में है। दो अफसरों को जिम्मेदारी दी गई। इनमें एक आईपीएस अफसर के रिश्तेदार हैं। इन्हें इसलिए रखा गया है कि कहीं आरटीआई का मामला आए तो आईपीएस का भय काम आ सके। तो दूसरे विभाग में अच्छे चार्टर्ड एकाउंटेंट माने जाते हैं।
पिछली बार भी इन साहब ने हिसाब किताब कर बड़ी बचत की थी। इस बार भी करोड़ों का सारा खर्च इन्हीं की डायरी के जरिए सेंट्रलाइज्ड हो रहा है। इसमें जेम पोर्टल, क्रय भंडार नियम आदि आदि की कोई भूमिका नहीं है। सीधे दिल्ली के सप्लायर से रेट कांट्रेक्ट पर खरीदी हो रही है।
सप्लायर भी पार्टी के ही, इसलिए उधर से भी एनओसी क्लीयर है। खरीदी प्रिंट रेट पर हो रही है। इसमें डिस्काउंट, कमीशन जो कह लें सब कुछ प्री नेगोशिएटेड है। जो 30 फीसदी या अधिक पर। इसके बाद भी विभाग कह रहा। हमारा राज्य आर्थिक तंगी से गुजर रहा। यह पूरी जानकारी देने वाले कर्मचारियों का कहना है कि उनका वेतनमान बढ़ाने का प्रस्ताव 10 साल से लंबित है जिसका वित्तीय भार खेलों के कुल खर्च से कई गुना कम केवल सालाना 5 करोड़ आंकलित है।
आप ही ने बनाया है, आप ही संवारें
पिछले 5 वर्ष तक भाजपा लगातार आरोप लगाती थी कि उसके ड्रीम प्रोजेक्ट कमल विहार बिहार की ओर कांग्रेस सरकार ध्यान नहीं दे रही है। केवल कौशल्या विहार नाम बदलने के। अब तो वो सरकार चली गई भाजपा फिर सरकार में है। कह रही हमने बनाया हम ही संवारेंगे।
लेकिन यहां के निवासी त्राहि त्राहि हो रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि यह स्मार्ट सेटेलाइट सिटी नहीं रायपुर विकास प्राधिकरण ने दुनिया में अलग पहचान बनाने वाली नरक सिटी बना दी है।
त्योहार प्रारंभ हो चुके हैं यहां रात्रि में जाकर देखें पूरा कमल (कौशल्या) बिहार अंधेरे में डूबा रहता है यहां चोर-लुटेरे दिन रात सक्रिय हैं। तो यहां का सन्नाटा, वीरान तलाशने वाले प्रेमियों के माकूल जगह बनता जा रहा है। यहां के निवासियों का रहना मुश्किल हो गया है। क्या रायपुर विकास प्राधिकरण ने यहां के निवासियों को अपराधियों के भरोसे छोड़ दिया है कि वह खुलेआम रात्रि अंधेरे में कुछ भी अपराध करें?
यहां के निवासियों का कहना है कि आक्रोशित लोगों की धैर्य की परीक्षा लेना बंद करें। उससे पहले निर्वाचित पार्षद विधायक सांसद मंत्री इसे संज्ञान में ले। क्योंकि जिला प्रशासन और प्राधिकरण का प्रशासन लगभग निरंकुश हो चुका हैं।
जनरल पैसेंजर को चिढ़ाती वंदेभारत
बीते 20 सितंबर को छत्तीसगढ़ को दूसरी वंदेभारत ट्रेन मिली। दुर्ग से विशाखापट्टनम की यह तेज गति ट्रेन गिनती के स्टेशनों में रुकती है और अन्य ट्रेनों के मुकाबले तीन घंटे कम समय में अपने गंतव्य तक पहुंच जाती है। जबसे यह ट्रेन शुरू हुई है कि इस रूट पर चलने वाली दूसरी ट्रेनों को उसी तरह बीच रास्ते में रोक दिया जाता है, जैसे नागपुर-बिलासपुर के बीच चलने वाली ट्रेन के लिए किया जाता है। रायपुर से विशाखापट्टनम के लिए सुबह छूटने वाली स्पेशल पैंसेजर ट्रेन यहां से समय पर तो छूटती है पर आगे चलकर किसी भी छोटे स्टेशन पर 40 से 50 मिनट के लिए रोक दिया जाता है, क्योंकि पीछे से वंदेभारत एक्सप्रेस आती है। प्राय: स्पेशल पैंसेजर ट्रेन को बालासोंड स्टेशन पर रोका जा रहा है जहां न तो शेड है और न ही पीने के लिए पानी का इंतजाम। दूसरी ओर पता नहीं रेलवे ने वंदेभारत ट्रेन की जरूरत महसूस की तो उसने इस रूट पर कितने यात्री मिलेंगे, यह सर्वे कराया या नहीं। अब जबकि ट्रेन को चलते तीन सप्ताह चुके हैं, इसे सवारियों का टोटा बना हुआ है। 1128 सीटों वाली इस ट्रेन में हर दिन औसत 160 से 200 के बीच ही सवारी चढ़ रहे हैं। यही हाल कई महीनों तक बिलासपुर-नागपुर ट्रेन का था। तब इसके कोच की संख्या घटाकर 14 से सीधे 7 कर दी गई। यदि यही हाल रहा तो दुर्ग-विशाखापट्टनम से भी कई कोच हटाने पड़ेंगे। कई लोगों का सुझाव है कि इन ट्रेनों में प्रीमियम शुल्क लेकर नॉन एसी कोच भी लगा दिए जाएं। मगर, शायद रेलवे को लगता है कि जो ज्यादा खर्च कर सकें, वे ही तेज रफ्तार वाली ट्रेनों के हकदार हैं।
उत्पातियों से सुरक्षित दूरी
डेली नीड्स की यह दुकान कोटा विकासखंड के एक ग्राम की है, जिसमें सामने जाली लगा दी गई है। यदि किसी ग्राहक को कोई सामान चाहिए तो वह उस पर हाथ नहीं लगा सकता। एक छोटी सी खिडक़ी बनाई गई है, उसी से लेन-देन होता है। इसे महिलाएं चलाती हैं। शाम होने के बाद कुछ बेवड़े भी दुकान में टपक पड़ते हैं। इसलिए यह घेराबंदी बहुत काम आती है। दिन में बंदर भी धमक पड़ते हैं। वे झपटकर कोई भी सामान उठा लेते थे। उनसे भी बचाव हो जाता है। (rajpathjanpath@gmail.com)
रायपुर दक्षिण, एक अनार-सौ बीमार
रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव की घोषणा किसी भी दिन हो सकती है। दोनों ही मुख्य दल भाजपा, और कांग्रेस के अंदरखाने में प्रत्याशी चयन पर मंत्रणा चल रही है। कांग्रेस में कुछ बड़े नेता किसी नए चेहरे को आगे लाने की वकालत कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ भाजपा में नए समीकरण बनते दिख रहे हैं।
सांसद बृजमोहन अग्रवाल रायपुर दक्षिण का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। ऐसे में मोटे तौर पर माना जा रहा है कि बृजमोहन अग्रवाल की पसंद को ही महत्व दिया जाएगा। मगर हरियाणा चुनाव नतीजे के बाद भाजपा के भीतर अलग तरह की चर्चा चल रही है। कहा जा रहा है कि हाईकमान महिला, अथवा किसी नए चेहरे पर विचार कर सकती है। इसमें प्रदेश भाजपा प्रभारी नितिन नबीन की राय अहम होगी।
खुद महामंत्री (संगठन) पवन साय गैर राजनीतिक लोगों से भी सलाह मशविरा कर रहे हैं। कुछ लोगों का अंदाजा है कि पार्टी उप चुनाव के प्रत्याशी को लेकर चौंका सकती है। देखना है आगे क्या हो सकता है।
वन विभाग के फण्ड के किस्से
मंगलवार से राजधानी में वन विभाग के राष्ट्रीय खेल होने वाले हैं। चार दिनों की इस स्पर्धा में देश भर के वन विभाग के बड़े-बड़े खिलाड़ी भाग लेने आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में यह खेल 2004, 2018, के बाद इस बार तीसरी बार हो रहे हैं। आयोजन की तैयारियां चरम पर हैं। एक बीट गार्ड से पीसीसीएफ तक काम पर लगाए हैं। आने वाले खिलाडिय़ों को रत्ती भर की तकलीफ न हो इसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है । शहर के सभी होटल, टैक्सी बुक हैं। कम न पड़े इसलिए 65 नए महिंद्रा वाहन खरीदे गए हैं। 35 और आने हैं। आयोजन के चारों दिन खिलाडिय़ों को रिलेक्स महसूस कराने रात सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे। कई निजी गायक, डांस ग्रुप बुक किए गए हैं। इनमें वो वाले हैं या नहीं अभी पुष्टि नहीं हुई है। हर पदक विजेता को पदकों के साथ महंगे गिफ्ट भी दिए जाएंगे। उद्घाटन के लिए पेरिस ओलंपिक की रजत पदक विजेता मनु भाकर आमंत्रित हैं। और सेलिब्रिटी आने की हामी कैसे भरते हैं सभी जानते हैं।
ये बात हुई आयोजन की। अब बात छत्तीसगढ़ की इन खेलों में प्रदर्शन की। वैसे छत्तीसगढ़ की टीम पूर्व में अन्य राज्यों में हुए इन खेलों में ओवरऑल चैंपियन रही है। चूंकि इस बार मेजबान भी हैं तो परफार्मेंस में कमी न रहे, इसलिए टीम मजबूत बनाने के नाम पर आनन फानन में खेल कोटे से पिछले हफ्ते 50 पदों पर वन रक्षकों की भर्ती की गई। और दशकों से काम कर रहे दैवेभो नाराज किए गए हैं । कहीं 16-20 तक ये लोग कोई खेल न कर दे। आयोजन खर्च को लेकर भी चर्चा हो रही है। इस पर करीब 50 करोड़ व्यय होने की जानकारी दी गई है। इसमें वनीकरण के कैम्पा फंड, और अन्य विभागीय मद अंतरित किया जा रहा है । बाकी टिंबर, तेंदूपत्ता के ठेकेदार, वनोपज के सप्लायर, और विभाग के भवन, सडक़ ठेकेदारों की हिस्सेदारी रहेगी। वह भी भविष्य के टेंडर की बिनाह पर। कुल मिलाकर इस आयोजन को लेकर काफी चर्चा हो रही है।
वन विभाग का किस्सा नंबर दो
कल शाम वन विभाग ने बैक टू बैक दो फैसले लिए। पहला दैवेभो कर्मियों को श्रम सम्मान राशि जारी करने और दूसरा राजीव स्मृति वन में मार्निंग वॉक पर हर रोज 20 रूपए शुल्क वसूली स्थगित करने का फैसला लिया। ये फैसले यूं ही नहीं लिए गए। क्योंकि अफसरों के हर फैसले स्वार्थ परक होते हैं यह कहना है विभाग के ही कर्मचारियों का। वर्ना जो आदेश आठ महीने में नहीं हो रहे थे वो आधे घंटे में धड़ाधड़ हो गए।
श्रम सम्मान राशि लेने दैवेभो कर्मचारियों ने छ माह से मंत्री-नेताओं से गुहार, धरना प्रदर्शन घेराव और अंत में 48 दिनों की बे मुद्दत हड़ताल भी किया। वह भी मोदी की गारंटी में से एक था। लेकिन कल 12 करोड़ एक झटके में जारी हो गए। वह इसलिए कि 16 अक्टूबर से राष्ट्रीय वन खेल होने जा रहे हैं। और इस पूरे आयोजन को सफल करने इन्हीं कर्मियों से काम जो लेना है। क्योंकि वन बल प्रमुख, बेमुद्दत हड़ताल का असर देख चुके थे। और यह भी डर था कि कहीं ये कर्मी इन्ही खेलों के समय कोई अनहोनी न कर दे।
राजीव स्मृति वन की एंट्री फीस की वसूली स्थगित करना भी उसी भय का नतीजा बताया जा रहा है। बुधवार रात वसूली आदेश वायरल होते ही राजधानी के हर वर्ग में बवाल मच गया। और आज सुबह तो कांग्रेस नेताओं ने इस मुद्दे को हथिया लिया। पूर्व विधायक विकास उपाध्याय ने तो आंदोलन करने की चेतावनी दे दी। कहीं ये विरोध खेलों के उद्घाटन दिवस पर न हो यह जान, समझकर साहब ने वसूली स्थगित करने का आदेश दिया। वैसे बता दें कि वसूली स्थगित हुई है रद्द नहीं। यानी खेलों के बाद किसी भी दिन लागू होने के आसार बने हुए हैं।
डीएमएफ रुकने की फिक्र नहीं
छत्तीसगढ़ जैसे खनिज संपदा से संपन्न राज्य में जिला खनिज न्यास निधि (डीएमएफ) का महत्वपूर्ण स्थान है। कोयला, बॉक्साइट और अन्य खनिजों से प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और विकास के लिए इस निधि का उपयोग किया जाता है। हर साल 2300-2400 करोड़ रुपये की बड़ी राशि के सही इस्तेमाल से इन क्षेत्रों में बड़ा बदलाव लाया जा सकता था, लेकिन यह फंड भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा जरिया बन गया है।
पहले डीएमएफ ट्रस्ट के अध्यक्ष जिले के प्रभारी मंत्री होते थे। प्रदेश के कांग्रेस शासन के दौरान केंद्र सरकार ने यह अधिकार छीनकर कलेक्टरों को सौंप दिया। अब मंत्री और विधायक केवल सिफारिश करने तक सीमित रह गए हैं। फंड का नियंत्रण आईएएस अधिकारियों के हाथ में आने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ, बल्कि कमीशनखोरी एक स्थान से दूसरे स्थान पर शिफ्ट हो गई। ठेकेदार और सप्लायर पहले की तरह अपने काम में लगे रहे।
कोरबा में तत्कालीन मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने डीएमएफ फंड में करोड़ों की गड़बड़ी का आरोप लगाया था, जिसके सबूत भी प्रस्तुत किए। अब वहां की तत्कालीन कलेक्टर दूसरे आरोपों में जेल में हैं। हाल ही में दंतेवाड़ा में भी इसी तरह के घोटाले की परतें खुल रही हैं। सबसे बड़ा फंड इसी जिले का होता है। एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने जिले के सभी विभागों से पिछले पांच सालों में डीएमएफ फंड से किए गए कार्यों की जानकारी मांगी है। साथ ही, यह भी पूछा है कि किस अधिकारी या मंत्री ने फंड की स्वीकृति दी। एसीबी अब इन कार्यों का भौतिक सत्यापन भी करेगी।
कुछ महीने पहले केंद्र ने डीएमएफ के नियमों में फिर बदलाव किया। अब डीएमएफ की राशि दूसरे जिलों में ट्रांसफर नहीं की जा सकेगी। फंड ट्रांसफर के जरिये सबको बराबरी से उपकृत किया जाता था। हालांकि नाम यह दिया गया कि प्रदेश का इससे संतुलित विकास होगा। अब इस पर भी रोक लगा दी गई है।
चिंताजनक बात यह है कि इस वित्तीय वर्ष में अधिकांश जिलों में डीएमएफ फंड की राशि अभी तक नहीं आई है। जनप्रतिनिधि इस पर कोई आवाज नहीं उठा रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि फंड के उपयोग का अधिकार उनके पास नहीं है। दूसरी ओर, कलेक्टर भी फंड रिलीज की मांग करने में संकोच कर रहे हैं। शायद उन्हें लगता है कि फंड मांगने भर से उन्हें संदेह की नजर से देखा जाएगा।
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चार घंटे की सांस के 20 रुपए
राजीव स्मृति वन जिसे विभाग ने हाल ही में वन शहीद पार्क का नाम दिया है वहां अब मॉर्निंग वॉक के लिए भी शुल्क लगा दिया है। नौ सौ करोड़ से अधिक के बजट वाले विभाग को क्या इन दिनों आय की कमी हो गई है। कि 10-20 मॉर्निंग वॉकर से महीना 500 रूपए लेकर बजट की पूर्ति करनी पड़ेगी। शुल्क वसूली का यह आदेश कल से लागू हो गया है। और अब इस पार्क में सुबह के चार घंटे सांस लेने से पहले 20 रुपए रोज के देने होंगे। अरण्य भवन में चर्चा है कि यह शुल्क, विभाग के मामलों में कोर्ट कचहरी से परेशान अफसरों की सोच है। उन्हे परेशान करने वाले एक वन्य प्राणी पर्यावरण संरक्षक को रोकने के लिए लगाया है। लेकिन इससे, पार्क जाने वाले और दर्जन भर लोग परेशान किए जा रहे हैं। वैसे भी वन अफसर समय-समय पर अधिकारी विचित्र विचित्र नियम आम लोगों के लिये लागू करते रहे हैं।
आम जन को पर्यावरण की दुहाई देने वाले अधिकारी पूरे पार्क का वातावरण खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ते सरकारी अधिकारियों और उनके परिचित समय समय पर यहां पार्क के अंदर रात्रिकालीन पार्टियां करते हैं लेकिन रायपुर के डीएफओ, सीसीएफ को मॉर्निंग वॉकर्स से पार्क खराब होने की चिंता हैं। उन्हें शायद याद नहीं हो कि कुछ महीने पहले एक होली मिलन की विभागीय पार्टी में नाच गाने के साथ साथ रातभर जमकर शराबखोरी हुई थी।
आम लोगों के लिए जगह जगह बोर्ड लगाकर लिख गया है कि, मोबाइल की आवाज कम रखे क्योंकि पार्क में चहचहाने वाले पक्षियों को तकलीफ़ होती है। एक तरफ सरकार के ही दूसरे विभाग शहर के पार्को में बुजुर्गों के बापू की कुटिया बनवाकर उनके लिए गीत संगीत, योग क्लास, इंडोर खेल की व्यवस्था कर रहा है। नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए व्यायाम के उपकरण लगवा रहा है वही नया पदस्थ अधिकारी पार्क में आता है दो चार नये मनमाने नियम आम जनता के लिये मौखिक रूप से बना कर अधीनस्थ कर्मचारियों को अमल करने के निर्देश देकर चले जाते। और छोटे कर्मचारी इसे लागू करने की मजबूरी में जनता उलझते रहते हैं। मॉर्निंग वाकर्स का कहना है कि अफसरशाही नहीं चाहती कि आम नागरिक बच्चे स्वस्थ और प्रसन्न रहे ।
भर्तियों का मुद्दा जारी है
हरियाणा विधानसभा चुनाव नतीजों की खूब चर्चा हो रही है। छत्तीसगढ़ के भी कई नेता हरियाणा चुनाव प्रचार में गए थे। वहां भाजपा की जीत के जो कारण गिनाए जा रहे हैं, उनमें भर्ती परीक्षाओं में पारदर्शिता ने युवाओं को काफी प्रभावित किया है।
शिक्षक भर्ती घोटाले में हरियाणा के तत्कालीन सीएम ओमप्रकाश चौटाला को कैद भी हुई थी। कांग्रेस सरकार में भी भर्तियों में लेनदेन की बात सामने आते रही है। हरियाणा में बेरोजगारी दर देश के बाकी राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है। ऐसे में बेरोजगारों को रोजगार देने का मुद्दा हावी रहा।
छत्तीसगढ़ में भी पीएससी भर्ती घोटाले की वजह से भूपेश सरकार की साख खराब हुई थी, और सरकार की वापसी नहीं हो पाई। इससे परे हरियाणा भाजपा ने पिछले 10 साल में बिना पर्ची, और बिना खर्ची के नौकरी देने को अपनी उपलब्धि के रूप में जोर-शोर से प्रचारित किया था। और युवाओं ने इस पर मुहर भी लगाई।
दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय सरकार के बनने के बाद अलग-अलग विभागों में भर्ती घोटाले की जांच चल रही है, लेकिन गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार लोगों पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। संस्कृति विभाग में भर्ती में लेनदेन से जुड़े ऑडियो सोशल मीडिया में चल रहे हैं, लेकिन जांच एजेंसियों ने अब तक सुध नहीं ली है। और तो और जिन अफसरों पर गड़बड़ी का आरोप है, वो पहले से ज्यादा ताकतवर हो गए हैं।
राज्य की भूपेश सरकार ने दो बड़ी गलती की थी। पहला मनरेगा घोटाला के बड़े आरोपी दागी टामन सिंह सोनवानी को पीएससी चेयरमैन बना दिया था। यही नहीं, नान घोटाले के आरोपी डॉ. आलोक शुक्ला, जो अब भी जमानत पर हैं, उन्हें व्यापमं का चेयरमैन बनाकर भर्ती कराने का दायित्व सौंप दिया था। इसके चलते भर्तियों में गड़बड़ी उजागर हुई, तो भूपेश सरकार बचाव नहीं कर पाई। साय सरकार, भूपेश सरकार की गलतियों से सबक लेती है या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
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छत्तीसगढ़ के सुझाव की तारीफ
सीएम विष्णुदेव साय की केन्द्रीय उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के साथ बैठक के कई सकारात्मक नतीजे निकले हैं। पीयूष काफी सख्त माने जाते हैं, और वे राज्यों में विभाग की गतिविधियों पर बारीक नजर रखते हैं। यही नहीं, कई बार अफसरों को डपट भी देते हैं। मगर इस बार गोयल के सामने उद्योग सचिव रजत कुमार ने राज्य के उद्योग से जुड़े विषयों को लेकर प्रेजेंटेशन दिया, तो उनके तेवर काफी बदले दिखे। पीयूष काफी खुश नजर आए, और बैठक में ही रजत की तारीफ कर दी।
रजत ने मौका पाकर केन्द्रीय मंत्री को सुझाव दिया कि अंतरराष्ट्रीय निवेशक सम्मेलन आम तौर पर दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में होते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य, जहां अपार संभावना है वहां इस तरह के सम्मेलन से न सिर्फ निवेशक को नए क्षेत्र में निवेश के अवसर मिलेंगे। इससे राज्य की भी पहचान बनेगी।
पीयूष ने रजत के सुझाव की सराहना की, और भरोसा दिलाया कि भविष्य में छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए यथा संभव पहल की जाएगी। ऐसा नहीं है कि डबल इंजन की सरकार होने की वजह से कोई फायदा मिल रहा है। रमन सिंह सरकार में पीयूष गोयल ने बैठक में राज्य के कई प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। मगर इस बार जिस तरह विभाग ने बैठक को लेकर बेहतर तैयारी कर रखी थी, उसका फायदा मिलता दिख रहा है।
इसकी जरूरत नहीं
एंग्लो इंडियन समुदाय से विधायक मनोनयन को लेकर संगठन सरकार स्तर पर कोई हलचल नहीं है। हालांकि अभी 9 माह ही हुए हैं। वोट बैंक की चिंता करने वाली कांग्रेस ने भी पिछले पांच वर्ष में मनोनयन नहीं किया था। हालांकि दो तीन बार हलचल हुई थी। लेकिन 69 के स्पष्ट बहुमत के चलते जरूरी नहीं समझा गया। इस बार भी स्थिति कुछ वैसी ही है। भाजपा के 54 विधायक हैं, तो कांग्रेस के 35। यह अंतर मत विभाजन की स्थिति में खतरे से कोसो दूर। इन मनोनीत विधायक को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव छोड़ कर सदन के भीतर बाहर,हर तरह के मतदान में भाग लेने का अधिकार है।
भाजपा नेताओं का कहना है कि प्रदेश में सरकार हर वर्ग के साथ एंग्लो इंडियन समुदाय के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ रही। और इस समुदाय की आबादी (करीब 900- 1 हजार) भी मेनेजेबल है। इन सभी के परिवार सक्षम भी हैं। इसलिए एक सदस्य की नियुक्ति से विधायक निधि, वेतन भत्ते सुविधाओं पर बड़े स्थापना व्यय से बचा जा सकता है। यही वजह है कि मनोनीत विधायक को लेकर कोई हलचल नहीं। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद से अब तक तीन ही विधायक मनोनीत किए गए हैं इनग्रिड मैक्लॉड, रोजलीन बैकमेन एक-एक, बर्नार्ड जोसेफ दो कार्यकाल। पूर्व सीएम स्व.अजीत जोगी ने,अपने बहुमत के संकट से निपटने (मैक्लॉड)मनोनयन किया था।
हालांकि बाद की राजनीति के दौर में में इन दंपत्ति ने जोगी पर कई आरोप लगाए। उसके बाद रमन सिंह ने अपने दो कार्यकाल में दो सदस्य नियुक्त किए थे। पांचवीं विधानसभा में सीट खाली रही। वैसे संसद से 3-1-20 को पारित संविधान के 126 संशोधन के मुताबिक एंग्लो इंडियन विधायक का मनोनयन पर चुप्पी है। इस संशोधन में एससी/एसटी सीट आरक्षण को 10 वर्ष बढ़ाया गया लेकिन एंग्लो इंडियन पर कोई जिक्र नहीं। यही तात्पर्य निकाला जा रहा कि अब मनोनयन नहीं किया जाएगा। समझा जा रहा है कि बघेल सरकार ने भी इसी वजह से नहीं किया।
कांग्रेस की छत्तीसगढ़ जैसी विफलता
हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणामों से कुछ मिलते-जुलते रहे। छत्तीसगढ़ में चुनाव अभियान के दौरान से लेकर मतदान के बाद तक एग्जिट पोल में यह दावा किया गया कि कांग्रेस फिर से सरकार बनाएगी। हालांकि, 2018 के मुकाबले कांग्रेस की सीटें घटने का अनुमान था और भाजपा को कुछ मजबूत बताया गया था, लेकिन किसी भी सर्वे एजेंसी ने यह नहीं कहा कि भाजपा की वापसी होगी।
परिणामों के बाद जब ईवीएम खुली, तो सबके अनुमान ध्वस्त हो गए। भाजपा ने राज्य के चुनावी इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे कमजोर रहा। हरियाणा के चुनाव को लेकर भी कुछ ऐसा ही हुआ। कोई भी एग्जिट पोल भाजपा की जीत का दावा नहीं कर रहा था, कुछ तो भाजपा को केवल 25-27 सीटों पर सीमित बता रहे थे। वहीं, कई सर्वेक्षण कांग्रेस को 60 से अधिक सीटें दे रहे थे।
सोशल मीडिया और चुनाव विश्लेषकों ने भी बड़े दावे किए थे। विश्लेषक देवेंद्र यादव का कहना था कि कांग्रेस की 'सुनामी' चल रही है। भाजपा ने इन अनुमानों को नकारते हुए अपनी रणनीति जारी रखी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस मध्य प्रदेश की तरह मुगालते में है। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने छत्तीसगढ़ की तरह बाजी पलटने की बात कही।
परिणाम आने के बाद, जो लोग भाजपा की हार की भविष्यवाणी कर रहे थे, वे कांग्रेस की गलतियों पर चर्चा करने लगे। भले ही हरियाणा और छत्तीसगढ़ के चुनाव अलग समय पर हुए और मुद्दे भी अलग थे, लेकिन कांग्रेस की एक रणनीति ने उन्हें नुकसान पहुंचाया। यह रणनीति थी कि किसी एक नेता के प्रभाव में टिकटों का बंटवारा किया गया, उनके विरोधी माहौल को नजरअंदाज कर दिया गया।
एग्जिट पोल के गलत साबित होने का मतलब यह भी है कि कई सर्वेक्षण केवल कागजों पर ही तैयार हो जाते हैं। इसके बावजूद, एग्जिट पोल का बाजार कभी बंद नहीं होगा, क्योंकि जब तक ईवीएम नहीं खुलती, दर्शकों को जो भी दिखाया जाता है, वह देखा जाता है।
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सूरजमुखी आयोजन समिति
डब्ल्यू आर एस के रावण भी बड़े अजीब हैं हर पांच वर्ष में नाम बदलते रहता है और अगले पांच वर्ष चलता है। इस रावण को आयोजन समिति के प्रमुखों के नाम से जाना जाता है। पहले स्व तरुण चटर्जी, फिर राजेश मूणत, और इसका बाद कांग्रेस सरकार में मेयर-विधायकों की टीम आयोजन समिति के कर्ताधर्ता रहे हैं, लेकिन इस बार पुरंदर मिश्रा को आयोजन समिति का मुखिया बनाया गया है।
यह सिलसिला चार दशक से चल रहा है। रेलवे का यह इलाका रायपुर ग्रामीण का हिस्सा रहा है। प्रदेश में सबसे ज्यादा भीड़ भी डब्ल्यूआरएस के दशहरा उत्सव में उमड़ती रही है। हर बार का दशहरा उत्सव पिछली के मुकाबले ज्यादा भव्य होता आया है। विधानसभा के परिसीमन के बाद स्थिति बदल गई, और डब्ल्यूआरएस का इलाका रायपुर उत्तर का हिस्सा बन गया। मगर राजेश मूणत पश्चिम के विधायक होने के बावजूद डब्ल्यूआरएस दशहरा उत्सव समिति के मुखिया बने रहे।
कांग्रेस की सरकार आई, तो मूणत को हराने वाले विकास उपाध्याय दशहरा उत्सव समिति का प्रमुख बनना चाह रहे थे। लेकिन रायपुर उत्तर के विधायक कुलदीप जुनेजा ने दावेदारी ठोक दी, और फिर मेयर एजाज ढेबर भी कूद पड़े। इसके बाद सामूहिक नेतृत्व में आयोजन होता रहा। मगर भाजपा की सरकार बनी, तो आयोजन समिति ने मूणत से संपर्क किया था लेकिन उन्होंने पारिवारिक कारणों से मना कर दिया।
उन्होंने समिति के लोगों से कहा बताते हैं कि पांच साल उन्हें दूर रखा गया अब मन नहीं है। फिर समिति के प्रमुखों ने पुरंदर को मना लिया, और वो तैयारी में जुट भी गए हैं। दरअसल, बड़ा खर्च देखकर आयोजन समिति विधायक और उनके जरिए सरकार निगम के संसाधनों की मदद ले लेते है। दपूमरे रेल प्रशासन मैदान दे देता, बाकी संसाधन समिति को खर्च कर जुटाने पड़ते, सो वे विधायकों को ही अध्यक्ष बनाकर आयोजन करने लगे। पुरंदर हर साल भव्य रथयात्रा तो निकालते ही हैं, और इस बार उन पर दशहरा उत्सव की जिम्मेदारी है। डब्ल्यूआरएस के दशहरा उत्सव पर इस बार लोगों की नजरें टिकी हुई है। सूरजमुखी का फूल, जिधर सूरज रहता है, उसी तरफ़ घूम जाता है।
सदस्यता की चुनौती
भाजपा के सदस्यता अभियान के चलते दिग्गजों की नींद उड़ गई है। हाल यह है कि रायपुर के चारों विधानसभा मिलाकर लक्ष्य से आधे सदस्य नहीं बन पाए हैं। रायपुर की सीमा से सटे विधानसभा के युवा विधायक का तो हाल काफी बुरा है। विधायक के खराब बर्ताव की वजह से कार्यकर्ता छिटक गए हैं। युवा विधायक टारगेट का आधा भी पूरा नहीं कर पाए हैं।
रायपुर के एक विधानसभा क्षेत्र में एक जमीन कारोबारी तो सदस्य बनाने में स्थानीय विधायक को पीछे छोडऩे का दावा कर रहे हैं। लेकिन वस्तु स्थिति तो सदस्यता अभियान खत्म होने के बाद ही सामने आ पाएगी। इन सबके बीच पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, और वैशाली नगर विधायक रिकेश सेन की काफी चर्चा हो रही है। अजय चंद्राकर ने सबसे ज्यादा 70 हजार सदस्य बनाए हैं। जबकि दूसरे नंबर पर रिकेश सेन हैं, जो कि 25 हजार से अधिक सदस्य बना चुके हैं। चर्चा है कि आधा दर्जन विधायक ही सदस्यता के लक्ष्य को पूरा कर पाए हैं। देखना है कि भाजपा की सदस्यता अभियान के आंकड़े कहां तक पहुंचते हैं।
फिर वही पीएससी इंटरव्यू
छत्तीसगढ़ पीएससी 2022 में हुई गड़बड़ी की जांच की जिम्मेदरी मिलने के बाद सीबीआई ने शुरूआती जांच की, कुछ जगहों पर छापामारी की लेकिन अब तक आरोपियों पर शिकंजा नहीं कसा है। इधर धीरे-धीरे पीएससी 2023 की मुख्य परीक्षा हो गई और उसकी मेरिट लिस्ट भी जारी हो गई। अब 15 अक्टूबर से इसमें साक्षात्कार की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। लोकसेवा आयोग में अध्यक्ष व चार सदस्यों का पद होता है। पर इनमें अभी दो पद रिक्त हैं। टोमन सिंह सोनवानी के बाद कार्यकारी अध्यक्ष का जिम्मा प्रवीण वर्मा संभाल रहे हैं। वहीं डॉ. सरिता उइके और संतकुमार नेताम सदस्य हैं। सभी पद संवैधानिक हैं इसलिये नियुक्ति कांग्रेस के समय की होने के बावजूद वे अपना कार्यकाल खत्म होने तक पद पर बने रहेंगे। उम्मीदवारों का साक्षात्कार ये ही लोग होंगे।
यह बात अलग है कि सन् 2023 की प्रारंभिक परीक्षाओं के खिलाफ दायर 40 याचिकाओं को हाल ही में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था लेकिन इसके पहले की कोई भी परीक्षा विवाद के बिना नहीं गुजरा। 2003 में हुई पहली परीक्षा में गलत टेबुलेशन से चयन में गड़बड़ी की बात हाईकोर्ट में खुद पीएससी ने मान ली थी, पर इस आधार पर चयन किए गए लोग सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत मिल जाने के कारण सेवा में हैं। इनमें से अनेक लोग आईएएस अवार्ड प्राप्त कर चुके हैं और कुछ साल में रिटायर्ड भी हो जाएंगे।
भाजपा ने वादा किया था कि सरकार बनने के बाद पीएससी के पैटर्न में बदलाव किया जाएगा। संघ लोक सेवा आयोग की तरह परीक्षा से लेकर चयन तक की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। मगर, स्थिति यह है कि सरकार के गठन के 10 माह बाद भी रिक्त दो पदों पर नियुक्ति नहीं हो पाई है। भाजपा से जुड़े कई दावेदार भी इसका इंतजार कर रहे थे। सोशल मीडिया पर इशारों में दावेदारी भी कर रहे हैं और अपनी सरकार का ध्यान खींच रहे हैं। मगर, इंटरव्यू की तारीख इतने करीब आ चुकी है कि अब रिक्त सदस्यों की नियुक्ति की जल्दी हो इसकी उम्मीद कम है। बस, इंटरव्यू दिलाने वाले परीक्षार्थियों की चिंता यह है कि चयन योग्यता के अनुसार हो, पिछली बार की तरह विवादित न हों।
टूथ पिक भी चाइनिज
चीन से आयातित दंतखुदनी (टूथपिक) का पैकेट 25 रुपये में मिल रहा है, जिसमें 300 स्टिक्स हैं। भारत में बने टूथ पिक की कीमत 140 रुपये है। इसमें 500 स्टिक्स हैं, फिर भी हिसाब में चीन का बना टूथपिक काफी सस्ता है। ऐसी वजह के चलते ही तमाम देशप्रेमियों के विरोध के बावजूद दीपावली पर चाइनिज झालर, पटाखे बाजार पर कब्जा कर ही लेते हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)
कौन बनेगा .... ?
पीडब्ल्यूडी में नए ईएनसी की खोज चल रही है। मौजूदा ईएनसी केके पिपरी जनवरी में रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में अभी से उनकी जगह नई नियुक्ति करने पर चर्चा चल रही है। कहा तो यह भी जा रहा है कि अभी नई नियुक्ति के मसले पर सरकार में एकमत नहीं है।
नए ईएनसी की नियुक्ति की चर्चा की वजह भी है। हाईकोर्ट ने हाल ही में सडक़ों की दुर्दशा पर सरकार को फटकार भी लगाई है। डिप्टी सीएम अरुण साव ने अफसरों को चेताया है कि यदि सडक़ों की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ, तो वो जिम्मेदार लोगों को वीआरएस थमा देंगे। साव ने नवम्बर तक सडक़ों को चकाचक करने की डेडलाइन तय कर दी है।
दूसरी तरफ, नए ईएनसी की नियुक्ति के मसले पर दो-तीन दौर की बातचीत हो चुकी है। नए ईएनसी के लिए जिन दो नामों की चर्चा चल रही है उनमें चीफ इंजीनियर ज्ञानेश्वर कश्यप, और एसएस कोरी हैं। कोरी, कश्यप से सीनियर हैं। एक चर्चा के मुताबिक कोरी ईएनसी बनने के इच्छुक नहीं है। ऐसे में ज्ञानेश्वर कश्यप का नाम मजबूती से उभरा है। भाजपा के कई प्रमुख नेता कश्यप को ईएनसी बनाने के पक्ष में हैं। जल्द ही नई नियुक्ति के मसले पर फैसला हो सकता है।
सेक्रेटेरिएट बिजनेस रूल के इतर
मंत्रालय में उप सचिव,अवर सचिव पद पर पदस्थ राप्रसे अफसर सचिवालयीन कार्यप्रणाली (सेक्रेटेरिएट बिजनेस रूल) का पालन नहीं कर रहे- यह आरोप लगाया है मंत्रालय कर्मचारी अधिकारी संघ ने।
इस आरोप पर संघ के एक-एक पदाधिकारी और विभागों में कार्य कर रहे कर्मचारियों के पास सबूत भी है। इन अफसरों की फाइलों में नोटिंग हैं। मैं कह रहा हूं न, फाइल में यह लिखो जैसी चेतावनियों से लिखवाए गए आदेश। और फिर उसके बाद हाईकोर्ट के चक्कर। और सरकार की कोर्ट में किरकिरी, फटकार के साथ अवमानना के मामले अलग। यदि कोई कर्मचारी न करें, तो उस पर काम न आने का आरोप लगा कर हटा देने की भी शिकायत है। इसके बाद ये राप्रसे अफसर अपने किसी जिला कार्यालय से कर्मचारी वह भी दैवेभो को पदस्थ कर मनमाने आदेश करवा रहे।
गृह, वित्त, राजस्व जैसे कई अहम विभागों में दैवेभो कई गंभीर फाइलें डील कर रहे। इनमें विभागीय जांच के मामले भी हैं। ये लोग, साहब की हर बात, नियमित होने की उम्मीद के साथ चल रही नौकरी भी चली न जाए के डर से करते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए। इसकी आड़ में पेटीएम, फोन-पे भीम एप से कमाई अलग। ऐसे दर्जनों मामलों के मंत्रालय कर्मचारी संघ ने सबूत जुटाए हैं।
दरअसल इनमें से कुछ अफसर कमाई वाले फील्ड से हटाए जाने के फ्रस्ट्रेशन में करते हैं तो कुछ मंत्री विधायकों से राजनीतिक पहुंच वाले स्वयं को किसी आईएएस से कम नहीं मानते। ऐसे ही अफसरों की वजह से उनके आका मंत्री विधायक भी फंस जाते हैं।
संघ का कहना है कि राप्रसे के अफसरों ने अपनी कार्यप्रणाली न सुधारी तो ऐसी नस्तियां मुख्य सचिव को सौंप देंगे।
मालवाहक में फिर गई मजदूर की जान
इसी साल मई महीने में एक बड़ी दुर्घटना हुई थी, जिसमें तेंदूपत्ता मजदूरों से भरी पिकअप 20 फीट गहरी खाई में गिर गई थी। हादसे में 19 लोगों की मौत हो गई थी। घटना के बाद पीएचक्यू से आदेश निकला, जिसके बाद सभी पुलिस थानों में चेकिंग अभियान चलाया गया। जो मालवाहक सवारी ले जाते दिख रहे थे उनकी धरपकड़ हो रही थी और चालकों पर जुर्माना किया गया। पर जैसे ही लोगों का ध्यान उस घटना से हटा, पुलिस ने भी चेकिंग बंद कर दी। उसके बाद दुर्घटनाओं का भी सिलसिला फिर से शुरू हो गया है। हताहतों की संख्या कम होने के कारण पूरे प्रदेश को ऐसी घटनाएं नहीं झकझोरती। कल ही अभनपुर के पास धनौद में फिर एक पिकअप पलट गई जिसमें एक मजदूर को जान गंवानी पड़ी और करीब एक दर्जन लोग घायल हो गए। घटना राजधानी के पास की ही है। इन मजदूरों को काम कराने के लिए नवा रायपुर लाया जा रहा था।
बारिश थमने के बाद निर्माण कार्यो में तेजी आने के चलते मजदूरों को गांव से शहर, कस्बों में लाने के लिए प्राय: मालवाहकों का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। इस समय नवरात्रि का पर्व भी चल रहा है। देवी दर्शन के लिए गांव के ज्यादा लोग एक साथ निकलते हैं तो किफायती किराये वाली पिकअप या मिनीट्रक का ही बंदोबस्त कर रहे हैं। प्राय: दुर्घटनाओं का कारण क्षमता से ज्यादा सवारी भरना, बिना ड्राइविंग सीखे ही स्टेयरिंग थाम लेना और नशे की हालत में गाड़ी चलाना होता है। थानों के सामने से गाडिय़ां निकल रही हैं, पर पुलिस इतना भी नहीं कर पा रही है कि इन दो चार चीजों की चेकिंग कर ले।
स्कूल में बाल मजदूर
पढऩे के लिए स्कूल गए बच्चों से झाड़ू लगवाने, ईंट उठाने, बर्तन धुलवाने के बाद अब भारी-भरकम बोझ उठाने का काम भी लिया जा रहा है। ये महज 8-9 साल के प्रायमरी स्कूल के बच्चे हैं, जिन्हें स्कूल की प्रधान पाठिका ने राशन दुकान से मध्यान्ह भोजन के लिए चावल ढोकर लाने का काम दिया है। दो बच्चे पूरी ताकत लगाकर आदेश का पालन करते हुए वायरल वीडियो में दिख रहे हैं। प्रधान पाठिका ने इनकार नहीं किया है कि यह घटना हुई है। बस, बचाव में यह कह रही हैं कि वीडियो पुराना है और बच्चों ने अपनी मर्जी से यह काम किया। यह दृश्य बिलासपुर जिले के मस्तूरी ब्लॉक के प्राथमिक शाला सोन का है।
एक आदेश से मचा बवाल
राज्य प्रशासन को अचानक एक और आईएएस सचिव मिल गए। ये सीधी भर्ती के नहीं, राप्रसे से प्रमोशन से बने हैं। राप्रसे के ये अफसर, आईएएस प्रमोट तो होंगे लेकिन अभी कुछ वर्ष शेष हैं। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि चार वर्ष से अटकी डीपीसी, इनके प्रमोशन के लिए, इतनी गोपनीय कब हो गई। बैठक में कौन कौन रहे । केंद्र ने कब मंजूरी दी, जैसे कई प्रश्न पूरे महानदी भवन में तैर रहे हैं। ये हैं राप्रसे के अफसर अन्वेष घृतलहरे। उनके सचिव बनने का खुलासा, दो दिन पहले 3 अक्टूबर को उनके ही द्वारा जारी एक आदेश में हुआ। इस आदेश में 2002 बैच के आईएएस रोहित यादव को सचिव ऊर्जा, और अध्यक्ष सीएसईबी नियुक्त किया गया है। आदेश के अधोहस्ताक्षरकर्ता वाले स्थान पर साहब का नाम, पदनाम और हस्ताक्षर सब कुछ है। और यह उपयुक्त सक्षम अधिकारी की अनुमति से नॉर्थ ब्लाक, राजभवन, महालेखाकार तक वायरल हो गया। तब तक किसी ने भी नहीं देखा। जीएडी के दो सचिवों मुकेश कुमार बंसल को और पी अंबलगन हैं।
इसका खुलासा आदेश जारी होने के दो दिन बाद शनिवार को पूरे महकमे में चर्चा में आया। मालूम हुआ कि आदेश के बाद ऊपर से नीचे तक बवाल मचाा। और नि: संदेह आदेश में करेक्शन होना ही था। सो दूसरे दिन इस आशय का शुद्धि पत्र पत्र जारी किया गया। तब ज्ञात हुआ, यह कंप्यूटर में फाइल कॉपी कट पेस्ट का मामला है। इन साहब ने मुकेश बंसल का नाम हटाकर अपना लिखा और पदनाम का ही रखा। वैसे मंत्रालय संघ आरोप लगा ही रहा है कि कुछ राप्रसे अफसर सचिवालयीन कार्यप्रणाली (सेक्रेटेरिएट बिजनेस रूल) का पालन नहीं कर रहे।
बहरहाल उसके बाद से जीएडी आईएएस सेक्शन परेशान है, इतनी बड़ी चूक की गाज किस पर गिरेगी। कहीं चार वर्ष से बैठे इन साहब को ही नई पोस्टिंग न मिल जाए। जो होगा,अगले एक दो दिन में पता चल जाएगा। इस एक आदेश से यह भी स्पष्ट हो गया कि यह सरसरी नजर की चूक है या कमाल है ।
छात्रसंघ से आजादी ही भली
छात्र संघ को राजनीति की सीढ़ी का पहला पायदान कहा गया है। सही भी है, कुछेक को छोड़ दें तो आज के सारे दिग्गज नेता इसी पायदान से चढ़े हैं। लेकिन पिछले आठ वर्षों से प्रदेश में ये चुनाव लगभग बंद से हैं। नए नेता धरना प्रदर्शन घेराव से ही निकल रहे हैं। और सरकार, इन चुनावों को युवाओं में अपनी छवि,और पकड़ से जोडक़र देखने लगी है। इसमें भाजपा की छात्र इकाई एबीवीपी के मुकाबले कांग्रेस के एनएसयूआई के फॉलोअर्स कहीं अधिक हैं। और यही कारण है कि रमन को 3.0 के अंतिम वर्षों के बाद से चुनाव नहीं मनोनयन होने लगे। दरअसल कुलपतियों ने अपना यह अधिकार भी सरकार पर छोड़ दिया है। और उसके बाद यूपीए सरकार ने लिंगदोह (पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त) कमेटी बनाकर चुनाव के बजाए मनोनयन की सिफारिश को लागू कर दिया । तब से कुलपति निश्चिंत हो गए हैं। और अब मोदी 2.0 की एनईपी यही कहती है।
और इस बार भी सरकार के आगे के कार्यक्रम और कार्यों को देखते हुए इस वर्ष भी ये चुनाव होते नहीं दिख रहे। इसके पीछे सरकारी कारण भी है।अभी अभी तो प्रवेश खत्म हुआ है। फिर एनईपी के तहत कैरिकुलम लागू करना है, इसका पहला वर्ष भी है । कुलपति, प्राचार्यों पर नैक ग्रेडेशन का दबाव आदि आदि। वैसे एनएसयूआई ने मतदान प्रणाली से चुनाव कराने दबाव बनाना शुरू कर दिया है ,उसके कई जिलों से ग्यापन उच्च शिक्षा सचिव को मिलने लगे हैं। लेकिन एबीवीपी मौन है। वह जानती है मनोनयन में ही अपना भला हैं। सरकार में फिलहाल पृथक शिक्षा मंत्री नहीं है इसलिए सचिव भी चुप हैं। सरकार अभी ऑपरेशन माओवाद, धान खरीदी, निकाय चुनाव के कार्यक्रम लेकर बैठी है। इसलिए यह तय माना जा रहा है कि चुनाव नहीं मनोनयन होंगे।
याद आता है कि मतदान से पिछले चुनाव रमन सरकार के दूसरे कार्यकाल में हुए थे जब प्रेम प्रकाश पांडे को निगरानी की जिम्मेदारी दी गई थी। जिसमें एनएसयूआई ने एबीवीपी को पटखनी दी थी ।
मुकदमा जीतने के बावजूद निराश
सरकार के लिए आसान है मुकदमे लडऩा। उनकी वकालत करने ने महंगे से महंगा वकील खड़ा किया जा सकता है, क्योंकि फीस सरकारी खजाने से भरी जाती है। मगर, बेरोजगारों के लिए एक अदालत से दूसरी अदालत तक हक की लड़ाई लडऩा मुश्किल होता है। मगर, यदि अदालत उनके पक्ष में फैसला दे भी दे सरकार चाहे उस पर अमल करने में हीला-हवाला कर सकती है। छत्तीसगढ़ में इसके दो उदाहरण हमारे सामने हैं। कांग्रेस शासनकाल में शिक्षक भर्ती के नियम को बदल दिया गया था। इसके अंतर्गत बीएड डिग्रीधारकों को भी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाने का पात्र माना गया था। इसे डीएड और डीएलएड डिग्रीधारकों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। इस आधार पर, कि प्रायमरी स्कूल में पाठ्यक्रम और अध्यापन के विशिष्ट तरीकों का प्रशिक्षण बीएड में नहीं मिलता। इसके लिए डीएड और डीएलएड धारक ही पात्र हैं। उनके तर्कों को मानते हुए हाईकोर्ट ने करीब 6 माह पहले उनके पक्ष में फैसला दिया। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। वहां पर भी हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा गया। इस तरह से जिन बीएड धारकों को चुन लिया गया है, उनकी जगह पर डीएड-डीएलएड डिग्रीधारकों को अवसर मिलना चाहिए। मगर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है। शिक्षा संचालनालय से बात की जाती है तो बताया जाता है कि सरकार के पास आदेश की प्रति भेज दी गई है, निर्णय वहीं से होना है। शायद सरकार के समक्ष बीएड धारकों को नौकरी से निकालने को लेकर असमंजस हो। मगर, मिडिल और हाईस्कूलों में शिक्षक के हजारों पद खाली हैं। इनमें वेकेंसी निकालने की गारंटी भी चुनाव के समय दी गई थी। हाईकोर्ट में भी हाल की सुनवाई के दौरान सरकार को स्वीकार करना पड़ा कि स्कूलों में शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं। यही हाल पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर की भर्ती का है। इंटरव्यू का रिजल्ट जारी नहीं हो रहा है। इसमें भी हाईकोर्ट का अभ्यर्थियों के पक्ष में आदेश है। अदालती लड़ाई 6 साल लंबी चली थी। दोनों ही मामलों में सरकारी नौकरी पाने के काफी करीब पहुंचने के बाद युवाओं को आगे का रास्ता कठिन दिखाई दे रहा है। (rajpathjanpath@gmail.com)
राजधानी में कॉफी हाउस
रायपुर से राजधानी में बदले अपने शहर में आज से कुल दस कॉफी हाउस हो जाएंगे। इनमें से नौ तो राज्य बनने के बाद खुले हैं। रायपुर में पहला कब खुला इसकी डेट याद नहीं है। लेकिन त्रिशूर (केरल)में 8 मार्च 1958 में पहले आउटलेट से अब 66 वर्ष में 500 ब्रांच देशभर में खुल चुके हैं। अपने रायपुर में दस हैं। इससे शहर के विस्तार का भी अंदाजा लगाया जा सकता है।
पुराने नौ में जीई रोड का पहला जो अभी न्यू सर्किट हाउस में संचालित, मंत्रालय, विधानसभा, एनआईटी, भाठागांव, सीएसईबी डगनियां, अटल नगर के सर्किट हाउस, और एनटीपीसी, शास्त्री चौक, (जल्द ही मेकाहारा चौक ) पंडरी श्याम मार्केट और अब दसवां मोवा थाने के पास है। अमूल के बाद सहकारिता का दूसरा सफल संगठन माना जाता है। यहां का स्टाफ कभी मौर लगी सफेद टोपी पहनकर बैरा बन जाता है तो कभी मैनेजर बन कैश दराज भी सम्हालता। सीईओ, सीजीएम, जीएम, क्लर्क जैसे औहदों को लेकर कोई ऊंच नीच नहीं । यहां तक कि हर बैरा, वेटर- ब्वाय नहीं अन्ना कहलाता है। प्लेट में बिल में छोड़े गए टिप पर सबकी हिस्सेदारी। अपने व्यंजनों के स्वाद की मोनोपली और रेट देशभर में एक ही हालांकि मीनू समय काल के अनुसार बदलता रहा है। लेकिन नहीं बदला वही भिंडी, मुनगे-लौकी-गाजर के टुकड़ों से लैस खट्टा सांबर और नारियल की चटनी। अब लंच की थाली में रसम के साथ सूप, बझिए के साथ पनीर, बिरयानी भी मिलती है। आने वाले दिनों में मोमोज़ भी मिलने लगेंगे।
त्रिशूर से दिल्ली तक यह पीढिय़ों से साम्यवादी और समाजवादी आंदोलनों का केंद्र रहा हो, रायपुर नीलम होटल का कॉफी हाउस कांग्रेस की राजनीति का गढ़ रहा है। पास ही तहसील आफिस होने से यहां कई बड़े जमीनों के सौदे हुए तो आरडीए, नगर निगम के टेंडर भरे जाते रहे। फिल्मों की समीक्षा के साथ, गोष्ठियां, पांच से छह अखबार वाले पुराने शहर के पत्रकारों के साथ पीसी भी हो जाया करतीं।
एक कप कॉफी उसमें भी वन बाय टू, के साथ घंटों गुजारने के लिए कोने के कुछ टेबल कांग्रेस नेताओं के लिए रिजर्व रहते थे। यहां से निकले मैसेज हमारे अखबार के कॉलम- (कॉफी हाउस की दीवार से) पर भी प्रकाशित होते रहे।
2010 में जब नवा रायपुर के मंत्रालय में कैंटीन खोलने की बात हो रही थी तब कई बड़े होटेलियर सूटकेस लेकर अफसरों के पीछे दौड़ रहे थे। ऐसे में तत्कालीन सीएस सुनील कुमार ने, नो प्राफिट नो लॉस वाले कॉफी हाउस को रियायतों को साथ एक फ्लोर का बड़ा हिस्सा दिया था जो सफलता के साथ चल रहा है । वहीं विधानसभा में भी कई होटलों की कैंटीन खुलने के बाद वहां भी कॉफी हाउस ही पसंद किया गया।
नए लोगों की दिक्कत
कांग्रेस के दर्जनों नेता लोकसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा में शामिल हुए थे। इनमें से ज्यादातर ने भूपेश बघेल से नाराजगी जताकर कांग्रेस छोड़ी थी। कुछ तो विधायक भी रह चुके हैं, लेकिन भाजपा में आने के बाद वैसा सम्मान नहीं मिल पा रहा है जिसकी उन्हें चाहत रही है। कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं का हाल यह है कि उन्हें लालबत्ती मिलना तो दूर, सक्रिय सदस्य बनने के लिए मेहनत करनी पड़ रही है। भाजपा में सदस्यता अभियान चल रहा है। पार्टी का सक्रिय सदस्य बनने के लिए जरूरी है कि वो खुद अपने आईडी से 50 सदस्य बनाए। सक्रिय सदस्य बनने की स्थिति में ही पार्टी संगठन अथवा सरकार में कोई जिम्मेदारी मिल सकती है। अब हाल यह है कि इन सभी नवप्रवेशी भाजपाईयों को सदस्य बनाने के लिए मेहनत करनी पड़ रही है।
सीधी-सादी गाय के सींग
जब सीधी उंगली से घी नहीं निकलता तो टेढ़ी करनी होती है। पर कुछ सींगधारी ऐसे होते हैं, जिनको यह सब नहीं करना पड़ता। कुदरत उनको ऐसे खतरनाक सींग देती हैं कि देखने वाले को समझ आ जाता है और इससे भिड़े तो अंजाम बुरा होगा। गाय अमूमन सीधी होती हैं, लेकिन ऐसे टेढ़े सींग वाली गाय बिलासपुर के मोहनभाठा में दिखी, जिसे प्राण चड्ढा ने अपने कैमरे में कैद कर लिया।
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कहां बिठाए और कोई आए तो
बीत रहे मानसून में भले ही महानदी में बाढ़ न आई हो, लेकिन महानदी भवन में अफसरों की बाढ़ जैसी स्थिति है। अधीक्षण शाखा और रजिस्ट्रार के पास कमरों की समस्या आन पड़ी है। 24 वर्षों में पहली बार बेंच, फुल जैसी स्थिति है। रजिस्ट्रार परेशान हैं कि अब एक और अफसर आए तो उन्हें कहां बिठाए। सेक्रेटरी ब्लॉक, जैम पैक हो गया है। पिछली सरकार में तो कुछ अफसरों ने सीएम की निकटता के लिए मंत्री, और संसदीय सचिव ब्लॉक तक में कमरे ले रखे थे। और अब भी यह परंपरा बनी हुई है।
दरअसल, राज्य मंत्रालय में सचिवों की तादाद बढ़ गई है। इस समय 2002 से 2008 बैच के कुल 24-25 सचिव हो गए हैं। इनमें से कुछ स्वतंत्र प्रभार में हैं तो कुछ एसीएस, पीएस के मातहत पदस्थ हैं। मंत्रालय का सेटअप इसकी अनुमति देता है। लेकिन आईएएस लॉबी इससे संतुष्ट नहीं है। वह इसे प्रोटोकॉल के तहत नहीं मानती। उसका कहना है कि आईपीएस, आईएफएस को मंडी बोर्ड,पर्यटन मंडल, सीएसआईडीसी के एमडी जैसे 10 आईएएस के कैडर पदों पर बिठाए जाने से यह स्थिति बनी है।
हालांकि यह अभी नहीं 23-24 वर्षो से चली आ रही परंपरा बनी हुई है। अगले फेरबदल में सरकार को इस पर गौर कर कैडर पोस्ट आईएएस को लौटाने होंगे। इसे लेकर जल्द ही आईएएस एसोसिएशन सीएम से मिलने जा रहा है। ऐसी स्थिति डॉ. रमन सिंह के दूसरे कार्यकाल में भी आई थी, तब एसोसिएशन के सचिव रहे केडीपी राव सरकार के समक्ष अपनी बात रख आए थे।
मनोनयन के आगे-पीछे
दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव की पुत्र वधु प्रियम्वदा सिंह जूदेव को सरकार ने राज्य महिला आयोग का सदस्य बनाया है। प्रियम्वदा, दिलीप सिंह जूदेव के बड़े बेटे दिवंगत शत्रुंजय सिंह जूदेव की पत्नी हैं। प्रियम्वदा के साथ ही ओजस्वी मंडावी, और सरला कोसरिया, लक्ष्मी वर्मा, और दीपिका सोरी को भी सदस्य बनाया है।
ओजस्वी दंतेवाड़ा के दिवंगत विधायक भीमा मंडावी की पत्नी हैं। जूूदेव परिवार की बात करें, तो प्रियम्वदा जशपुर इलाके में पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करती रही हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जूदेव के परिवार के दो सदस्यों को चुनाव मैदान में उतारा था। उनके छोटे पुत्र दिवंगत पूर्व संसदीय सचिव युद्धवीर सिंह की पत्नी संयोगिता सिंह जूदेव, और मंझले पुत्र प्रबल प्रताप सिंह को प्रत्याशी बनाया था। मगर दोनों ही चुनाव नहीं जीत पाए।
यही नहीं, सरगुजा राज परिवार के एक और सदस्य पूर्व राज्यसभा सदस्य रणविजय सिंह जूदेव भी लालबत्ती की दौड़ में बताए जा रहे हैं। रणविजय सिंह ने रायपुर पश्चिम विधानसभा सीट से दावेदारी की थी। वे कुछ समय पहले केन्द्रीय मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात कर चुके हैं। देखना है कि जूदेव परिवार के सदस्यों को और क्या कुछ मिलता है।
जुर्माना क्या पालकों की जेब से कटेगा?
राज्य की बोर्ड परीक्षाओं के लिए छात्रों के आवेदन समय पर जमा नहीं करने वालों पर छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल ने 25-25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया है। यह पोर्टल 4 दिन के लिए खोला जाएगा, पर एक्सेस तभी मिलेगा, जब जुर्माने की रकम जमा कर दी जाएगी। बोर्ड परीक्षा के लिए आवेदन पत्रों को ऑनलाइन जमा करने के लिए स्कूलों को 30 अगस्त तक का समय दिया गया था, उसके बाद बोर्ड ने पोर्टल बंद कर दिया। हर साल यही होता था कि बाद में शालाओं के अनुरोध पर पोर्टल दोबारा खोला जाता था। पर उसके लिए कोई अर्थदंड नहीं लगाया जाता था। इस बार 1247 स्कूलों ने फिर से पोर्टल खोलने के लिए आवेदन दिए हैं। इस तरह से यह राशि करीब 3 करोड़ 11 लाख पहुंचती है। यह जरूर है कि कई स्कूल समय पर आवेदन जमा करने में रूचि नहीं लेते, जिसके कारण पोर्टल दोबारा खोलना पड़ता है, लेकिन कई बार छात्रों के दस्तावेज भी अधूरे होते हैं, जिससे देर हो जाती है। अब सवाल यह उठ रहा है कि इस रकम की भरपाई कौन करेगा। निजी स्कूल जुर्माने की रकम की भरपाई छात्रों से ही ऐन-केन प्रकारेण वसूल करके कर लेंगे, लेकिन सरकारी स्कूल के पास तो इस तरह का कोई फंड ही नहीं होता। वहां उन तबकों के बच्चे भी बड़ी संख्या में पढ़ते हैं, जो फीस भी जमा नहीं कर पाते। क्या ये स्कूल भी छात्र-छात्राओं पर बोझ डालेंगे? सरकार एक तरफ नि:शुल्क शिक्षा को बढ़ावा देती है, दूसरी ओर माशिमं ने नई समस्या खड़ी कर दी है। इतना तो निश्चित है कि अगले सत्र में जब परीक्षा फॉर्म का समय आएगा, स्कूलों को माशिमं का यह तेवर याद रहेगा और शायद अगली बार समय पर सब आवेदन जमा हो जाएंगे।
पानी की बर्बादी का तरीका
इस बंदे ने कपड़े धोने के लिए अपने सिर पर पानी का पाइप बांध लिया है। वायरल वीडियो में दिखाया गया है कि इसी तरह से उसने बर्तन भी धोये। कुछ लोगों को यह जुगाड़ अच्छा लग सकता है लेकिन सवाल पानी बर्बाद करने का भी है।
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कुर्सी और सिफारिश
पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की सीएम विष्णु देव साय को लिखी कथित चि_ी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इसमें पूर्व सीएम ने भिलाई के होटल कारोबारी डॉ. रमेश चंद्र श्रीवास्तव को पाठ्य-पुस्तक निगम का चेयरमैन बनाने की अनुशंसा की है। एक अन्य चि_ी में जनपद सदस्य संगीता शर्मा को किसी निगम, अथवा भाजपा महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाने की अनुशंसा की है।
चि_ी की सच्चाई का तो पता नहीं, लेकिन वायरल होने के बाद विशेष कर भाजपा के नेताओं में प्रतिक्रिया हो रही है। पार्टी के कई नेता चि_ी को असली मानकर सोशल मीडिया में अपनी भावनाओं का इजहार भी कर रहे हैं। रायपुर शहर जिला भाजपा के नेता, और पार्षद सुभाष तिवारी ने फेसबुक पर अपना दर्द जाहिर किया कि किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंजिल, कोई हमारी तरह उम्र भर सफर में रहा।
कुछ ने रमन सिंह के खिलाफ भी लिखा भी है। इससे रमन सिंह से जुड़े लोग परेशान हैं। एक-दो नेता तो अपने लिए सिफारिशी चि_ी लिखवाने गए, तो उन्हें रमन सिंह के निजी स्टाफ ने यह कहकर लौटा दिया कि यहां फर्जी काम नहीं होता है। कुल मिलाकर निगम-मंडलों की नियुक्ति को लेकर हलचल तेज है।
संजय जोशी को लेकर खलबली
प्रदेश भाजपा में पिछले दो-तीन दिनों से काफी हलचल है। यह कहा जा रहा है कि संजय जोशी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकते हैं। यह भी खबर उड़ी कि जोशी की सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं की दिलचस्पी की एक बड़ी वजह यह है कि संजय जोशी यहां के प्रभारी रह चुके हैं। प्रदेश में पहली बार भाजपा की सरकार लाने में उनकी अहम भूमिका रही है। यहां के तमाम छोटे-बड़े बड़े नेताओं से उनके संबंध है, और भाजपा की राजनीति में सालों से अलग थलग रहने के बावजूद पार्टी के नेताओं के सुख-दुख में शरीक होते रहे हैं।
पिछले दिनों पार्टी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडेय के पिता के निधन पर शोक प्रकट करने संजय जोशी यहां आए भी थे, और कई नेताओं ने उनसे मुलाकात भी की थी। भाजपा की राजनीति में संजय जोशी को पीएम नरेन्द्र मोदी, और अमित शाह का विरोधी माना जाता है। ऐसे में कई लोग मानते हैं कि संजय जोशी को पार्टी में कोई जिम्मेदारी मिलना मुश्किल है। नवम्बर माह में राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति होगी, तब तक हलचल बनी रहेगी।
कई घर जद में आएंगे
राहत इंदौरी का एक मशहूर शेर है- लगेगी आग तो आएंगे कई घर जद में, मोहल्ले में सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है...। पता नहीं यह अतिक्रमण की कार्रवाई योगी सरकार से प्रेरित वाली है या नगर-निगम की ओर से सडक़ों से अतिक्रमण हटाने वाली नियमित कार्रवाई। मध्यप्रेश कांग्रेस की सोशल मीडिया प्रभाग की स्टेट कोआर्डिनेटर हिमानी सिंह ने इसे अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर यह दर्शाने की कोशिश की है कि बेकसूरों पर बुलडोजर चलाई जा रही है।
सोशल मीडिया पर निगरानी
बलौदाबाजार जिला प्रशासन और पुलिस की इस बात के लिए पीठ थपथपाई जा सकती है कि वहां सोशल मीडिया निगरानी समिति लगातार संवेदनशील और आपत्तिजनक पोस्ट और प्रोफाइल को चेक कर रही है। साइबर सेल ने इंस्टाग्राम, गूगल, फेसबुक और व्हाट्सएप से संपर्क करके अब तक इंस्टाग्राम के 19 पेज बंद कराए हैं। इसके अलावा कई वीडियो विभिन्न प्लेटफॉर्म से डिलीट कराए गए हैं। इन गतिविधियों में लिप्त कई लोगों पर बीएनएस और आईटी एक्ट के तहत कार्रवाई की गई है तो कुछ को माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया है। कलेक्ट्रेट में पिछले दिनों हुई आगजनी के बाद यह जिला लगातार संवेदनशील बना हुआ है, ऐसे में यहां प्रशासन को अधिक सतर्क रहना जरूरी भी है। पर, अब भी साइबर सेल और निगरानी समिति को, तथा पुलिस महकमे को भी इसमें सही गलत की पहचान करने के लिए अधिक प्रशिक्षित होना तथा विशेषज्ञता हासिल करना जरूरी है। इसकी बानगी पिछले दिनों बिलासपुर में देखी गई थी, जिसमें पुलिस ने एक दूसरे देश के झंडे की तरह बनाए गए तोरण के मामले में कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया, मगर दूसरे पक्ष की ओर से इस घटना की प्रतिक्रिया में वायरल वीडियो पर चुप्पी साध ली थी।
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किसका नंबर आएगा
केंद्रीय गृह मंत्रालय इसी माह 2004 बैच के आईपीएस अफसरों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए इंपैनल करने जा रहा है। इस बैच के अफसर आईजी हो चुके हैं।
इस बैच में छत्तीसगढ़ से छह अफसर हैं, देखना यह है कि इंपैनलमेंट के साथ नियुक्ति को लेकर किसकी लॉटरी लगती है। इनमें अंकित गर्ग, अजय यादव, बीएन मीणा, नेहा चंपावत, अभिषेक पाठक, संजीव शुक्ला शामिल हैं। पाठक इस समय बीएसएफ में तैनात हैं तो गर्ग सरगुजा और शुक्ला बिलासपुर रेंज आईजी हैं। सरकार से तालमेल भी ठीक है। नेहा चंपावत सालभर के भीतर ही केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटी है। मीणा, छह सात वर्ष पूर्व केंद्र में रह चुके हैं। दोबारा नियुक्त न करने का कोई प्रावधान नहीं हैं।
अजय यादव एक बार भी नहीं गए। राजनीति और सरकार के समय काल की परिस्थिति को देखते हुए इनमें से कौन-कौन प्रयास करते हैं। यह देखने वाली बात होगी। और फिर केंद्रीय एजेंसियों में उतने पद खाली भी होने चाहिए, क्योंकि इंपैनलमेंट तो देशभर के अफसरों का होना है। चाहे आईएएस हो या आईपीएस, अपना सर्विस प्रोफाइल बढ़ाने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहता हैं। एक बार केंद्र में काम करने के अनुभव मात्र से, भविष्य में एडिशनल सेक्रेटरी या एडीजी,डीजी जैसे पदों पर नियुक्त के लिए सीआर मजबूत हो जाता है। इंपैनलमेंट और नियुक्ति के बीच कई कारण काम करते हैं। वैसे बस्तर रेंज के आईजी पी.सुंदरराज, एसपी डी. श्रवण बीते छ: माह से अपने आवेदन पर डेपुटेशन का इंतजार कर रहे हैं। केंद्र के नक्सल उन्मूलन योजना को देखते हुए उनके दिल्ली जाने का संभावना कम ही है।
न्याय यात्रा से बढ़ा उत्साह
कांग्रेस की न्याय यात्रा के समापन मौके पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आने की चर्चा थी, लेकिन वो स्वास्थ्यगत समस्या और फिर हरियाणा व जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव की व्यस्तता की वजह से नहीं आए। अलबत्ता, प्रभारी सचिन पायलट भी चुनाव प्रचार में व्यस्तता के बाद किसी तरह चार्टर प्लेन लेकर दोनों प्रभारी सचिवों सुरेश कुमार, और जरिता लेटफलांग व संयुक्त सचिव विजय जांगिड़ के साथ यहां पहुंचे। और फिर न्याय यात्रा में शिरकत की।
प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज की अगुवाई में न्याय यात्रा भीड़ भाड़ के मामले में काफी हद तक सफल रही है। पार्टी नेताओं ने एकजुटता भी दिखाई है। प्रदेश के प्रमुख नेता डॉ. चरणदास महंत, पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के अलावा पूर्व नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, और तकरीबन सभी विधायक यात्रा में शामिल हुए। निकाय चुनाव, और रायपुर दक्षिण के टिकट दावेदार भी सक्रिय थे। ऐसे में यात्रा की सफलता से दीपक बैज की टीम काफी उत्साहित रही।
प्रदेश के वरिष्ठ न्यूज-फोटोग्राफर गोकुल सोनी ने फेसबुक पर अपना एक तजा तजुर्बा पोस्ट किया है। उन्होंने लिखा-कल हम कुछ मित्र नगरी जाते-जाते मुरमसिल्ली बांध पहुंच कर तेंदुआ के डर से उल्टे पैर लौट आये थे। जब हम लोग वहां से लौट रहे थे तभी हमें पास के एक गांव में हारमोनियम तबला और ढोलक के साथ भक्तिमय संगीत सुनाई दिया। हम गांव पहुंचे तो वहां रामधुनी कार्यक्रम चल रहा था।
गांव के लोगों ने बताया कि पितृपक्ष में अपने पितरों के लिए हर साल गांव में रामधुनी सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। यह रामधुनी सम्मेलन अन्य रामधुनी कार्यक्रमों से अलग था। दरअसल विभिन्न मंडलियों के द्वारा यहां धार्मिक नृत्यनाटिका का मंचन किया जा रहा था। जिस समय हम लोग वहां पहुंचे तब जय बजरंग रामधुनी मंडली हाटकोगेरा कांकेर के द्वारा महिषासुर वध का मंचन किया जा रहा था। प्रस्तुति इतनी शानदार थी गांव के लोग इसे मंत्रमुग्ध होकर देख रहे थे। नृत्यनाटिका में जो महिषासुर राक्षस बना था वह लगातार अपने मुंह से आग का गुबार उगल रहा था। यह प्रस्तुति हमारे दो मित्रों को भी खूब पसंद आया। इन मित्रों ने बिना मांगे एक बड़ी रकम उस मंडली को दान में दे दी। आपको बता दूं , इन दो मित्रों में एक मित्र गैरहिन्दू है।
फेसबुक में इस पोस्ट को डालने का उद्श्य मेरा यह है कि आज टेलीविजन में मनोरंजन के अनगिनत चैनल, मोबाइल के यू-टूयूब में हजारों-हजार मनोरंजन के साधन होने के बाद भी कुछ गांव के लोग आज भी अपनी संस्कृति और परंपरा से जुड़े हुए हैं। और हां, मैं गांव का नाम बताना तो आपको भूल ही गया। छत्तीसगढ़ के उस गांव का नाम है ‘सायफनपारा’। शायद किसी गांव का ऐसा नाम आप पहली बार सुन रहे होंगे।
वेतन अटक जाने की चिंता
बिहार जैसे कुछ राज्यों से यह खबर कभी-कभी निकल आती है कि वहां सराकारी कर्मचारियों को किसी-किसी महीने समय पर वेतन नहीं मिल पाया। पर, छत्तीसगढ़ में इस तरह की नौबत नहीं आई है। कोविड काल में भी जब कुछ राज्यों ने सरकारी कर्मचारियों के वेतन में कुछ प्रतिशत कटौती कर दी थी, छत्तीसगढ़ में पूरा वेतन दिया गया। मगर, इस महीने कुछ गड़बड़ हो गई है। सरकार की ओर से अधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है, मगर सरकारी कर्मचारियों की मानें तो इस बार उनका वेतन अब तक जमा नहीं हुआ है। प्राय: वेतन उनके खातों में 29 या 30 तारीख तक आ जाता है, पर इस बार 2 अक्टूबर हो चुका है। अभी कर्मचारी शांत हैं, क्योंकि उन्हें लग रहा है शायद शनिवार, रविवार और उसके बाद आए 2 अक्टूबर के अवकाश के कारण कुछ बाधा आ गई हो। कई कर्मचारी- अधिकारी संगठनों के वाट्सएप ग्रुप में यह चर्चा का विषय बना हुआ है। वे आगामी त्यौहारों, बिल भुगतान और लोन के किश्त को लेकर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। वित्त मंत्री ओपी चौधरी का विपक्ष में रहते हुए बनाया गया पुराना वीडियो भी वायरल हो रहा है जिसमें वे केंद्र के बराबर वेतन, भत्तों को राज्य के कर्मचारियों का बेसिक राइट बता रहे हैं। कमेंट किया जा रहा है कि भत्तों की लड़ाई तो बाद में शुरू होगी, अभी उन्हें अपने वेतन की ही चिंता सता रही है।
बैटरी वाली साइकिल
बालोद जिले के अर्जुन्दा के स्वामी आत्मानंद स्कूल में पढऩे वाले इस बच्चे ने अपने स्कूल आने-जाने के लिए बैटरी वाली साइकिल बना ली है। बैटरी सीट और हैडिंल के बीच एक पेटी में रखी गई है। इस जुगाड़ को तैयार करने में उसके पिता ने मदद की, जो एक वेल्डिंग करने वाला श्रमिक है। अब यह बालक फर्राटे स्कूल और घर के बीच की दूरी तय कर लेता है। लोग इसके इनोनेशन की तारीफ कर रहे हैं।
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बैचमेट अब अगल-बगल मुखिया
मुख्य सचिव अमिताभ जैन के बैचमेट अनुराग जैन मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव नियुक्त हुए हैं। 89 बैच के अफसर अनुराग जैन का छत्तीसगढ़ से भी नाता रहा है। वो कांकेर के एडिशनल कलेक्टर रह चुके हैं। दोनों के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं।
आईएएस के 89 बैच के अफसर केन्द्र सरकार के कई विभागों में सचिव हैं, तो इस बैच के अफसर रिटायरमेंट के बाद पांच राज्यों में रेरा के चेयरमैन बन चुके हैं। अनुराग से परे अमिताभ जैन को मुख्य सचिव के पद पर तीन साल हो चुके हैं। अगले साल जून में उनका रिटायरमेंट है।
छत्तीसगढ़ के अब तक के सभी मुख्य सचिवों में आरपी बगई को छोडक़र बाकी सभी को कुछ न कुछ दायित्व मिला है। ऐसे में किसी तरह के विवादों से दूर रहने वाले अमिताभ जैन को भी रिटायरमेंट के बाद जिम्मेदारी मिलना तय माना जा रहा है। वैसे भी नीति आयोग के उपाध्यक्ष का अतिरिक्त दायित्व है ही।
पंजाब के विवाद का यहां से रिश्ता
छत्तीसगढ़ की रहने वाली पंजाब कैडर की आईएएस अनिंदिता मित्रा की पोस्टिंग को लेकर केंद्र, और पंजाब सरकार के बीच ठन गई है। अनिंदिता, छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस एसके राजू की पत्नी हैं। अनिंदिता के आईएएस बनने के बाद राजू ने भी अपना कैडर चेंज करा पंजाब चले गए थे।
केन्द्र ने अनिंदिता की पोस्टिंग चंडीगढ़ में निगम आयुक्त के पद पर की थी। उन्हें तीन माह का एक्सटेंशन भी दिया जा चुका था। एक्सटेंशन खत्म होने के बाद पंजाब सरकार ने उनकी एक विभाग में पोस्टिंग भी कर दी। इसके बाद फिर उन्हें एक्सटेंशन दिया गया है। चूंकि केन्द्र सरकार ने एक महीना देर से ऑर्डर जारी किया है। इसलिए पंजाब सरकार उन्हें रिलीव करने से मना कर दिया है। यह अपनी तरह का एक अलग मामला है, जिसकी अफसरों के बीच काफी चर्चा है।
हड़ताल के किस्से
शुक्रवार को पांच लाख कर्मचारियों की काम बंद कलम बंद हड़ताल सफल रही। जैसा कि 110 संगठनों वाले फेडरेशन में आशंका जताई जा रही कि शुक्रवार को सामूहिक अवकाश लेकर बहुतेरे तीन दिन के टूर पर निकल जाएंगे। उसके सच होने की खबरें आ रही हैं। हालांकि ऐसे लोगों पर नजर रखने फेडरेशन और अन्य कर्मचारी संगठन के नेताओं को जिम्मेदारी दी गई थी। बावजूद इसके राजधानी से लेकर सुदूर ब्लाक के कर्मचारी ने वही किया। कुछ तीन दिन के लिए निकल गए तो कुछ घंटे दो घंटे पंडाल में बिताकर लौट गए । यह तो बात हुई व्यक्तिगत हिस्सेदारी की। लेकिन यहां तो दो संगठनों के नदारद होने की चर्चाएं वाट्सएप ग्रुप में चल रही है । बताया गया है कि नियमित व्याख्याता संघ और वाहन चालक संघ का एक भी पदाधिकारी शामिल नहीं हुआ। यह गैरहाजिरी ,पूरे प्रदेश स्तर पर रही या किसी एक जिले में फेडरेशन इसकी पड़ताल कर रहा है। हालांकि दोनों ही संघों के मुखिया रिप्लाई में खारिज कर रहे हैं। सवाल जवाब के दौर चल रहे हैं। ऐसे में यह विवाद थमता नजर नहीं आ रहा।
अब भगवान का ही सहारा
थाने का शुद्धिकरण और अपराध नियंत्रण के लिए श्रीफल विच्छेदन के बाद से पुलिस को जवाब देते नहीं बन रहा। बड़े साहब भी नाराज हैं। लेकिन थाना स्टाफ कहता है, जिस पर गुजरती है न वही जानता है । सब कुछ ठीक चल रहा था, जब से नए थानेदार आए थे। करीब चार महीने तक मॉल की सैर, पीवीआर में सिनेमा, परिवार के साथ लंच डिनर हो रहा था। फिर अचानक पीआरए शूट आउट ने सारा रूटीन बदल दिया। और उस पर चोरियां, हिट एंड रन, हत्या के प्रयास और फिर 7 दिन में 2 हत्याकांड। बल को पेट्रोलिंग के बजाए श्रीमानों की ड्यूटी में लगाया जाए तो अपराधियों को मैदान खाली मिलेगा ही। पुलिस परेशान न हो तो क्या करे? भौतिक उपाय काम न आए तो पूजा पाठ, ज्योतिष का सहारा तो लेना ही होगा न। क्या गलत किया।
मवेशियों की मुसीबत
हाईवे पर मवेशियों के चलते हो रही लगातार दुर्घटनाएं हो रही हैं। मवेशी सडक़ों से हटने का नाम नहीं ले रहे हैं और हाईकोर्ट ने इन्हें हटाने के लिए अफसरों को कई बार डांट पिला दी है। यहां तक कि अदालत ने राजधानी से लेकर पंचायत तक की समितियां बनाने का निर्देश दिया है। जिलों में इन दिनों कलेक्टर्स ने तहसीलदार और एसडीएम को मवेशी खदेडऩे के काम में लगा दिया है। हाईवे पर अफसर मवेशियों को डेरा डाले देखते हैं तो उन्हें हटाते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। लौटते में देखते हैं कि मवेशी फिर वहीं पर, सडक़ पर आकर जम गए हैं। दरअसल, हो यह रहा है कि किसानों की फसल इन दिनों पकने के लिए तैयार है। मवेशी उनकी कमाई को चट न कर जाएं इसलिये उन्हें भीतर घुसने नहीं दिया जा रहा है। जो अनुपयोगी हो चुके मवेशियों को बेचना चाहते हैं, उन्हें खरीदार नहीं मिल रहे। गौरक्षकों का डर सताता है। इन रक्षकों को सडक़ में हो रही दुर्घटनाएं दिखाई नहीं दे रही है। थोड़ी ही संख्या ऐसे पशुपालकों की है, जो घर में मवेशियों को बांधकर रख रहे हैं। पिछली सरकार ने ढेरों की संख्या में गौठान बनाए थे। इनमें से बहुत से तो उसी समय उजड़ चुके थे, अब बचे हुए गौठान भी उजाड़ हो चुके हैं। मवेशी हटाने के काम में फंसे एक अफसर का कहना है कि अब हाईकोर्ट लाठी दिखाए या कलेक्टर, मवेशी तो फसल कटने के बाद ही सडक़ से हटेंगे।
बेकार भी नहीं स्काई वाक
राजधानी रायपुर के स्काई वॉक के विवादित ढांचे का मामला भले ही छह साल से अधर में लटका हुआ हो, लेकिन इसकी उपयोगिता बारिश होने पर समझ में आती है।
पार्टी सदस्यता और चुनौतियाँ
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भले ही सदस्यता अभियान को लेकर प्रदेश के नेताओं की पीठ थपथपा दी है, और सदस्यता का टारगेट बढ़ा दिया है। मगर पार्टी के अंदरखाने में सदस्यता पर नई उलझन पैदा हो गई है। चर्चा है कि जितना सदस्य बनना बताया गया था, उतने नहीं बने हैं।
नड्डा की समीक्षा बैठक में प्रदेश के नेताओं ने बताया था कि अब तक 27 लाख सदस्य बने हैं। लेकिन वस्तु स्थिति यह है कि अभी सिर्फ 17 लाख सदस्य को ही मान्यता मिली है।
ऐसा नहीं है कि सदस्यता अभियान में कोई फर्जीवाड़ा हुआ है। दरअसल, 17 लाख सदस्य ऑनलाइन बने हैं, और हरेक का रिकॉर्ड मौजूद है। बाकी 10 लाख सदस्य मैन्युअल बने हैं। हाईकमान का स्पष्ट निर्देश है कि केवल ऑनलाइन को ही सदस्य माना जाएगा।
मैन्युअल सदस्य दूर दराज के इलाके जहां मोबाइल नेटवर्क आदि की समस्या थी वहां के लिए अनुमति दी गई थी, लेकिन उनकी भी ऑनलाइन एंट्री करनी होगी तभी उन्हें सदस्य माना जाएगा। यानी उनकी ऑनलाइन एंट्री अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही है। इसके बाद सदस्यता के नए टारगेट को लेकर पार्टी नेताओं का पसीना छूट रहा है।
न्याय यात्रा का माहौल
कांग्रेस की न्याय यात्रा गिरौदपुरी धाम से निकलकर कसडोल, और बलौदाबाजार के गांवों से होकर रायपुर के नजदीक खरोरा पहुंच चुकी है। दो तारीख को रायपुर में समापन होगा। न्याय यात्रा की अगुवाई वैसे तो प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के बड़े नेता भी अलग-अलग जगहों पर यात्रा में शिरकत कर रहे हैं।
पहले दिन नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम साथ थे। जैसे-जैसे यात्रा बढ़ी, तेज धूप और उमस की वजह से यात्रियों का बुरा हाल रहा। बैज ने तो रविवार को दोपहर भोजन के बाद कुछ देर एसी चालू कर कार में आराम किया, और फिर घंटे भर बाद फिर पदयात्रा शुरू की।
पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी कल लाव लश्कर के साथ यात्रा में शामिल हुए। वो करीब 5 किमी बैज के साथ चले। इसके बाद वो दिल्ली के लिए निकल गए। उनका अंदाज कुछ हद तक दिवंगत पूर्व सीएम अजीत जोगी जैसा ही था। जोगी भी लाव लश्कर के साथ कार्यक्रम में आते थे, और फिर उनके जाते ही साथ आए लोग भी निकल जाते थे। भूपेश के साथ आए लोग भी निकल गए। फिर भी यात्रा उत्साह देखने को मिल रहा हैै। इससे दीपक बैज, और उनकी टीम काफी खुश भी हैं।
एंटी इनकंबेंसी से जूझ रहे पार्षद
सब कुछ समयानुकूल रहा तो निकाय चुनाव दिसंबर के तीसरे सप्ताह कराए जाएंगे। इसे देखते हुए विपक्ष में बैठे भाजपा के पार्षद, कांग्रेसी महापौर को और कांग्रेस के पार्षद-महापौर, सरकार को कोसने लगे हैं। यह सभी निगम, पालिका और नगर पंचायतों में हो रहा है। पांच वर्ष तक सबने मिलकर खीर खाई और चुनाव के समय खीर को कड़वा बताने में लग गए हैं। जनवरी-19 से 1825 दिन अपनी इनकम बढ़ाने में व्यस्त रहे दोनों ही दलों के पार्षद इस समय ज़बरदस्त एंटी इनकंबेंसी से गुजर रहे।
आउटर कहे जाने वाले वार्डों के पार्षद अधिक जूझ रहे। गांव से वार्ड बने इलाकों में लोगों में पार्षदों के लिए नाराजगी गले तक भरी हुई है।खासकर इन वार्डों के अंतिम छोर वाले इलाकों के लोग सबक सिखाने इंतजार कर रहे हैं। पार्षद कांग्रेस का हो या भाजपा का, इनको निपटाने की ठान चुके हैं। बिना स्ट्रीट लाइट की गलियां, मुख्य सडक़ें। एक-एक स्ट्रीट लाइट के लिए महीनों चक्कर लगवाया है इन पार्षदों ने। अब वोटर की बारी आ रही है। फिर भी इनका कहना है मैंने अपने वार्ड में विकास की गंगा बहाई। सडक़,सफाई बाग बगीचे बनवाए आदि आदि।
इंदौर, दिल्ली चंडीगढ़, बेंगलुरु मैसूर पिकनिक कर आए यह बोलकर कि अपने वार्ड को भी कनॉट प्लेस, लोधी रोड, पैलेस वार्ड, रेसीडेंसी बनाएंगे। लेकिन सच्चाई सबने देखा, हाल की बारिश में शहर, असम होकर रह गया। लोगों को स्कूलों में ठहरना पड़ा। सडक़ों पर बोट चलाना पड़ा। गलत नहीं हैं, नि:संदेह विकास तो हुआ है, इन पार्षदों के बैंक एकाउंट का, इनके स्वयं के मकानों का, स्कूटी, बाइक से अब एक्सयूवी,एसयूवी में चल रहे। जनता सब देख रही, बस आने वाला है उसका समय।
मेहनत का मोल नहीं
पंजाब के किसान, जो अनाज की भरपूर पैदावार के लिए जाने जाते हैं, आज अपनी मेहनत का सही मूल्य न मिलने पर धान को सडक़ों पर फेंककर विरोध कर रहे हैं। यह धान भी कोई साधारण किस्म नहीं, बल्कि सुगंधित बासमती है। किसानों का कहना है कि पिछले साल बासमती की कीमत 917 डॉलर प्रति टन थी, तब उन्हें 3500 रुपये प्रति क्विंटल मिले थे। अब जब इसकी अंतरराष्ट्रीय कीमत 1037 डॉलर प्रति टन हो गई है, तो उन्हें 2200 रुपये से ज्यादा नहीं मिल रहा है।
बासमती की खेती में लागत भी ज्यादा आती है, और बाजार में यह महंगा बिकता है। फिर भी किसानों को इसका फायदा नहीं मिल रहा। उनके अनुसार सारा मुनाफा बिचौलियों और आढ़तियों की जेब में जा रहा है। अगर छत्तीसगढ़ की बात करें, तो यहां ज्यादातर किसान सरकारी खरीद को ध्यान में रखते हुए मोटा धान उगाते हैं। खुले बाजार में बिकने वाले धान की यहां भी कोई खास कीमत नहीं मिलती, चाहे वह सुगंधित हो या मोटा।
इस कठिन परिस्थिति के बावजूद बाजार में चावल की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है। बासमती तो बस खास लोगों और खास मौकों के लिए शाही चावल बनकर रह गया है, जबकि मेहनत करने वाले किसानों को उनके पसीने की असली कीमत नहीं मिल रही।
अधूरे आवासों का भविष्य क्या होगा?
छत्तीसगढ़ के पिछले विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री आवास योजना के ठप पडऩे को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाया था। इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा। अब नई भाजपा सरकार ने इस योजना को पुन: गति देने के लिए राशि जारी करनी शुरू कर दी है। हाल ही में केंद्र सरकार ने 2400 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की है, जो प्रस्तावित 5 लाख 11 हजार आवासों की पहली किश्त है। मुख्यमंत्री साय ने कलेक्टरों को निर्देश दिया है कि किसी भी प्रकार की लेन-देन या भ्रष्टाचार की शिकायत मिलने पर सख्त कार्रवाई की जाए।
हालांकि, प्रधानमंत्री आवास योजना में भ्रष्टाचार की शुरुआत लाभार्थियों की सूची में नाम दर्ज होने के समय से ही हो जाती है। बंदरबांट तो किश्त जारी होने के बाद भी कम नहीं। ठेकेदार काम की जिम्मेदारी तो लेते हैं, पर अक्सर उसे अधूरा छोड़ देते हैं। पहली किश्त मिलने के बाद दूसरी किश्त तब जारी होती है जब निर्माण छत की ऊंचाई तक पहुंचता है, और तीसरी किश्त काम के और आगे बढऩे पर। चौथी और अंतिम किश्त तब मिलती है जब मकान पूरी तरह तैयार हो जाता है। फिलहाल, लाभार्थियों के खातों में पहली किश्त जमा कर दी गई है, लेकिन वह राशि अभी फ्रीज है, यानी उसे निकाला नहीं जा सकता। काम की प्रगति के साथ ही पहली किश्त जारी की जाएंगी। पिछले अनुभव बताते हैं कि शुरुआत में निगरानी तो होती है, परंतु बाद में निरीक्षण करने अधिकारी और कर्मचारी खुद ठेकेदारों से मिल जाते हैं। पूरे प्रदेश में ऐसे हजारों मकान हैं, जिनका निर्माण अधूरा पड़ा है क्योंकि अगली किश्त काम अधूरा होने के कारण रुक गई है। ठेकेदार और दलाल पहली किश्त हड़प कर गायब हो चुके हैं। वर्ष 2021 के बाद राज्य सरकार की ओर से हिस्सेदारी न मिलने और कोविड-19 के कारण केंद्र द्वारा धनराशि न भेजे जाने से योजना ठप हो गई। नतीजा यह हुआ कि अब इन लाभार्थियों के पास अपने अधूरे मकानों को पूरा करने के लिए धन नहीं है। प्रदेश में ऐसे ठेकेदारों से शायद ही कभी वसूली की गई हो, जिन्होंने लाभार्थियों की रकम हड़प ली। इस समस्या का हल क्या होगा?
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दक्षिण में सामाजिक दबाव
रायपुर दक्षिण सीट उपचुनाव को लेकर हलचल तेज हो गई है। सामाजिक बैठकों का दौर भी चल रहा है। सबसे पहले अग्रवाल समाज ने कांग्रेस, और भाजपा से टिकट के लिए दबाव बनाया है। यहां से बृजमोहन अग्रवाल विधायक रहे हैं। ऐसे में अग्रवाल समाज के नेता विशेषकर भाजपा की टिकट पर स्वाभाविक हक मान रहे हैं।
भाजपा से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, प्रदेश कोषाध्यक्ष नंदन जैन (अग्रवाल), प्रदेश प्रवक्ता अनुराग अग्रवाल, बृजमोहन अग्रवाल के छोटे भाई विजय अग्रवाल के अलावा भी कई व्यापारी नेता दावेदारी कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस से कन्हैया अग्रवाल, और सन्नी अग्रवाल की दावेदारी है। इससे परे ब्राम्हण समाज भी पीछे नहीं है।
सर्व ब्राम्हण समाज के बैनर तले ब्राम्हण नेताओं की एक बैठक हो चुकी है। रायपुर दक्षिण में करीब 35 हजार ब्राम्हण वोटर हैं। इन सबको देखते हुए सामाजिक रूप से एकजुट कर दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों से टिकट के लिए दबाव बनाने की रणनीति पर काम हो रहा है। कांग्रेस से सभापति प्रमोद दुबे, ज्ञानेश शर्मा सहित कई नाम चर्चा में हैं, तो भाजपा से मीनल चौबे, सुभाष तिवारी, मृत्युंजय दुबे और मनोज शुक्ला के नाम चर्चा में हैं।
दूसरी तरफ, पिछड़ा वर्ग, और अल्पसंख्यक नेता दोनों ही पार्टियों में सक्रिय हैं, और वो टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। सामाजिक दबाव का राजनीतिक दलों पर कितना असर होता है, यह तो प्रत्याशी की घोषणा के बाद ही पता चल पाएगा।
सत्ता और संघ
छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के सीएम विष्णुदेव साय निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिए गए। यहां ओलंपिक संघ का तो कोई काम नहीं है, क्योंकि अलग-अलग खेलों के संघ के मार्फत टूर्नामेंट होते रहते हैं। मगर सीएम के अध्यक्ष बनने से पद जरूर प्रतिष्ठापूर्ण रहा है। खास बात यह है कि राज्य बनने के बाद से ओलंपिक संघ के अध्यक्ष सीएम ही बनते आए हैं। बाकी राज्यों में ऐसा नहीं है।
ओलंपिक संघ अध्यक्ष पद पर सीएम के बनने के पीछे खेल संघों की अपनी राजनीति है। राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के अध्यक्ष के पद पर अजीत जोगी निर्वाचित हुए। मगर उन्हें अध्यक्ष बनने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी, और अंत तक उनका निर्वाचन विवादों से घिरे रहा।
विवाद की शुरुआत तत्कालीन मंत्री विधान मिश्रा के महासचिव बनाने के प्रस्ताव पर हुई। तब ओलंपिक संघ के अध्यक्ष पद पर खेल संघ के शंकर सोढ़ी, और महासचिव विधान मिश्रा बनने वाले थे, तब खेल संघ के कुछ पदाधिकारियों ने सीधे अजीत जोगी से संपर्क साधकर उन्हें अध्यक्ष बनाने के लिए तैयार कर लिया।
जोगी अध्यक्ष तो बन गए, लेकिन भारतीय ओलंपिक संघ से मान्यता नहीं मिली। क्योंकि उस वक्त दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल भारतीय ओलंपिक संघ के आजीवन अध्यक्ष थे। शुक्ल ने जोगी को रोकने के लिए अपने करीबी पूर्व महापौर बलवीर जुनेजा को अध्यक्ष, और सलाम रिजवी को महासचिव बनवा दिया। भारतीय ओलंपिक संघ ने शुक्ल समर्थक संघ के पदाधिकारियों को मान्यता दे दी। बाद में यह लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक गई। सरकार बदलने के बाद डॉ. रमन सिंह ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बने। उन्हें अध्यक्ष बनवाने में डॉ. अनिल वर्मा ने भूमिका निभाई।
कांग्रेस सरकार आने के बाद भूपेश बघेल ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बन गए। कुछ समय के लिए गुरुचरण सिंह होरा महासचिव बने, बाद में उनकी जगह देवेन्द्र यादव महासचिव बनाए गए। कांग्रेस सरकार के जाते ही भूपेश बघेल को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया, और उनकी जगह सीएम विष्णुदेव साय अध्यक्ष बने। महासचिव पद पर विक्रम सिसोदिया का निर्वाचन हुआ, जो कि इस चुनाव के केन्द्र में रहे हैं। यानी सरकार बदलने के साथ-साथ ओलंपिक संघ के पदाधिकारी भी बदलते रहे हैं।
आस्था पर ज्यादा खर्च होगा...
तीन अक्टूबर से शुरू हो रहे नवरात्रि पर्व पर तिरुपति लड्डू प्रकरण की छाया दिखाई दे रही है। राज्य सरकार की ओर से घी के मामले में तो यह कहा गया है कि देवभोग ब्रांड, जो सरकार का ही एक सहकारी उत्पाद है उसका घी जलाने में काम लिया जाए, मगर तेल का क्या होगा? उनमें भी मिलावट की शिकायत है। अप्रैल महीने में आने वाले चैत्र नवरात्रि के दौरान अंबिकापुर में खाद्य विभाग ने करीब 8 हजार लीटर नकली तेल जब्त किया था। अन्य अखाद्य तत्वों के अलावा इसमें खतरनाक एसिड मिला होने की भी आशंका थी। जब्ती के बाद लैब रिपोर्ट क्या आई, इसकी जानकारी नहीं है। पर, इन्हें मंदिरों में खपाने से पहले जब्त कर लिया गया था। यहां पर नकली घी का भी भंडार मिला था। महंगाई के इस दौर में लोगों का ध्यान आस्था की अभिव्यक्ति के दौरान भी बजट की ओर ध्यान रहता है। प्राय: सभी मंदिर समितियां नौ दिन जलने वाले घी व तेल के ज्योति कलश के लिए शुल्क का निर्धारण करते समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि इनका शुल्क कम ही रखा जाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालु ज्योत प्रज्ज्वलित करा सकें। जब तक तिरुपति का मामला सामने नहीं आया था मंदिर समितियां रेट सूची मंगाकर सप्लायर या निर्माताओं को सीधे ऑर्डर कर देती थीं। पर इस बार भक्तों की आस्था डगमगा गई है। वे पूछताछ कर रहे हैं कि किस ब्रांड के तेल या घी से ज्योति जलने वाली है।
चैत्र व क्वांर नवरात्रि पर घी और तेल का कारोबार करोड़ों में है। रतनपुर स्थित महामाया मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां देश में सबसे ज्यादा ज्योति कलश प्रज्ज्वलित होती है। पिछली चैत्र नवरात्रि में 500 टिन घी और 3 हजार टिन तेल की खरीदी की गई थी। पहले आपूर्ति करने वाली कंपनियों की जगह इस बार देवभोग घी का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया है। तेल भी इस बार केवल ब्रांडेड कंपनियों का होगा। इसी तरह की खबर दूसरे जगहों से भी है। बालोद जिले के गंगा मईया मंदिर में घी और तेल का पहले लैब टेस्ट कराया जाएगा, फिर इस्तेमाल किया जाएगा।
ज्योति कलश के लिए खरीदे जाने वाले घी, तेल की गुणवत्ता पर पहली बार इतनी सावधानी बरती जा रही है। इसके पहले श्रद्धालुओं को विभिन्न मंदिरों में जो प्रतिस्पर्धी शुल्क दिखाई देते थे, आने वाले दिनों में हो सकता है उन्हें ज्यादा खर्च करना पड़े। शुद्धता की कीमत तो चुकानी होगी।
एक माह में इतनी उछाल !
राशन, सब्जी, सीमेंट. छड़ की महंगाई पर रोजाना चर्चा हो जाती है पर दवाओं की कीमत अचानक बढ़ जाती है और कुछ खबर भी नहीं लगती। यह दवा सितंबर में 195 रुपये में मिलती थी। अगले महीने अक्टूबर में इसका दाम हो गया 350 रुपये। क्यों, क्या इस एक महीने में कच्चा माल महंगा हो गया। सरकार ने टैक्स बढ़ा दिया? लोग सवाल नहीं कर पाते। जवाब देने वाला कोई होता भी नहीं। एक बात जरूर ध्यान में आती है कि दवा कंपनियों ने जमकर इलेक्टोरल बांड खरीदे थे। (rajpathjanpath@gmail.com)
किचकिच के बाद एयरपोर्ट का जिम्मा
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा गुरुवार को रायपुर आए, तो एयरपोर्ट में अंदर प्रवेश के लिए पार्टी नेताओं में काफी किचकिच हुई। यह मामला उस वक्त और बढ़ गया जब प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन को छोडऩ़े के लिए एयरपोर्ट पहुंचे महामंत्री (संगठन) पवन साय को बाहर रोक दिया गया। चर्चा है कि इन घटनाक्रमों से नितिन नबीन काफी खफा हैं, और उनके हस्तक्षेप के बाद एयरपोर्ट में स्वागत-सत्कार प्रबंधन की जिम्मेदारी प्रीतेश गांधी को दे दी गई है।
पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के रायपुर आगमन पर एयरपोर्ट में स्वागत-सत्कार आदि की व्यवस्था अब तक प्रदेश कार्यालय मंत्री देखते रहे हैं। प्रदेश कार्यालय मंत्री की शिकायत रही है कि पार्टी दफ्तर से नाम भेजे जाने के बावजूद एयरपोर्ट प्रबंधन अपनी तरफ से कई नाम काट देता है। जिससे वो अंदर प्रवेश करने से वंचित रह जाते हैं। इस मसले पर एयरपोर्ट अधिकारियों के अपने तर्क हैं। उनका कहना है कि नियमों को ताक पर रखकर अधिक संख्या में नेताओं को अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
विवाद के बाद प्रदेश भाजपा के नेता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि स्वागत-सत्कार के लिए एयरपोर्ट के अफसरों के साथ तालमेल बिठाकर काम करने की जरूरत है। इसके लिए प्रीतेश गांधी को उपयुक्त पाया गया। प्रीतेश एयरपोर्ट सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे हैं। न सिर्फ रायपुर बल्कि इंदौर एयरपोर्ट के भी सदस्य रहे हैं। उनके एयरपोर्ट अफसरों से अच्छे संबंध बताए जाते हैं। चर्चा है कि अब एयरपोर्ट में अंदर प्रवेश के लिए पार्टी की तरफ से सूची प्रीतेश ही फायनल करेंगे। देखना है कि नई व्यवस्था के बाद स्वागत-सत्कार को लेकर विवाद खत्म होता है या नहीं।
नड्डा से दोस्ती तो ठीक है, लेकिन आगे?
बीजापुर के पूर्व कलेक्टर अनुराग पांडेय गुरुवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा से मिले, तो नड्डा ने उनके साथ अपने पुराने रिश्तों को अन्य नेताओं से साझा किया।
नड्डा 90 के दशक में जेएनयू में एबीवीपी के प्रमुख थे। उस वक्त अनुराग भी वहां अध्ययनरत थे। तब से अनुराग के नड्डा से परिचित हैं। यही नहीं, नड्डा ने उनसे बीजापुर का हाल जाना। इस दौरान वहां मौजूद प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव ने अनुराग पांडेय की तारीफ करते हुए कहा कि बहुत कम समय में अंदरूनी इलाकों में अच्छा काम हुआ है। कुछ और नेताओं ने भी किरणदेव के सुर में सुर मिलाया।
ये अलग बात है कि रिटायर होने के बाद अनुराग को कोई जिम्मेदारी नहीं मिली है। सरकार उन्हें कोई दायित्व सौंपती है या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
7 दिन में 3 दिन की कमाई ..!
दुर्ग- विशाखा वंदेभारत एक्सप्रेस को शुरू हुए एक सप्ताह पूरा हो गया । इस दौरान इस द्रुतगामी ट्रेन में सप्ताह भर ड्यूटी करने वाले टिकिट कलेक्टर्स के मुताबिक इन 7 दिनों में तीन दिन का भी आपरेशनल कास्ट नहीं मिला रेलवे को।वैसे इस ट्रेन को अच्छे प्रतिसाद दिलाने वाट्सएप चैटिंग में कुछ का कहना है कि इसका रूट दुर्ग के बजाए कोरबा से चलाने का सुझाव दे रहे हैं। और टाइमिंग भी बता रहे सुबह 5 बजे कोरबा से स्टार्ट किया जाए तो दो बजे विशाखा पहुंचा जा सकता है। इससे कोरबा से विशाखापट्टनम के लिए एक और ट्रेन उपलब्ध रहेगी। दुर्ग से तो विशाखा के लिए समता,भगत की कोठी,साईंनगर एक्सप्रेस और रायपुर आकर रात लिंक एक्स्प्रेस की कनेक्टिविटी है ही।
बताया गया है कि इसके साथ 16 और 20 सितंबर से शुरू हुए नौ अन्य ट्रेनों का भी यही हाल बताया गया है। दिल्ली के एक राष्ट्रीय दैनिक ने दो दिन पहले ही इन ट्रेनों का पैसेंजर रिस्पांस प्रकाशित किया था। सिकंदराबाद- नागपुर जैसे महानगरों को जोडऩे वाली वंदेभारत भी अपनी कुल सीट क्षमता के मुकाबले सिर्फ 20 फीसदी यात्रियों के साथ दौड़ी।यानी यह ट्रेन 80 फीसदी से ज्यादा खाली सीटों के साथ चल रही है। इस पर रेल कर्मियों का कहना है कि शुरू के दो तीन महीने सभी का यही हाल रहता है। आने वाले दिन त्यौहारी, शीतकालीन अवकाश, न्यू ईयर ट्रिप के हैं, भीड़ बढ़ेगी बुकिंग बढ़ेगी।
साइबर ठगी का नया तरीका
साइबर अपराध की एक चाल को लोग समझने की कोशिश करते हैं, तभी दूसरी और तीसरी चालबाजियां सामने आ जाती हैं। हाल ही में इसका एक उदाहरण फर्जी ई-चालान के मेसेज के रूप में देखा जा रहा है। छत्तीसगढ़ के कई शहरों में चौक-चौराहों पर लगे सीसीटीवी कैमरों से सिग्नल तोडऩे पर कंट्रोल रूम में रिकॉर्ड दर्ज होता है, और तुरंत वाहन के पंजीकृत मोबाइल नंबर पर ई-चालान का मेसेज भेज दिया जाता है। इस प्रक्रिया में ऑनलाइन जुर्माना भरने की सुविधा भी दी गई है।
लेकिन अब इस प्रक्रिया को भी ठगी का जरिया बना लिया गया है। आपके मोबाइल पर चालान का मेसेज आएगा। आपको लगेगा कि आपने अनजाने में कोई ट्रैफिक नियम तोड़ा है। जैसे ही आप लिंक पर क्लिक करेंगे, आप ठगी के जाल में फंस सकते हैं। जालसाजों ने मिलते-जुलते नाम से फर्जी वेबसाइटें भी बना रखी हैं। गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (जीपीएम) जिले की पुलिस ने लोगों को इस बारे में सतर्क किया है, लेकिन संभव है कि छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों में भी ऐसा हो रहा हो। सभी के लिए यह जानकारी बेहद जरूरी है।
अभिभावकों की चिंता
छत्तीसगढ़ ही नहीं देशभर के स्कूलों से ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं जिसने अभिभावकों को अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता पैदा कर दी है। मध्यप्रदेश सरकार ने हाल ही में एक आदेश जारी कर सभी निजी और सरकारी स्कूल के टीचिंग, नॉन टीचिंग स्टाफ यहां तक कि अस्थायी रूप से रखे जाने वाले कर्मचारियों का पुलिस वेरिफिकेशन अनिवार्य कर दिया है। अब ऐसी ही मांग कोरबा से उठी है। बीते दिनों शिक्षा मंत्री टंकराम वर्मा से पैरेंट्स एसोसियेशन ने ऐसा ही प्रावधान छत्तीसगढ़ में भी लागू करने की मांग की। उनका कहना है कि वे विशेषकर छात्राओं को लेकर चिंतित हैं। यदि यह पहल की गई तो यौन शोषण व दुर्व्यवहार की घटनाओं में नियंत्रण रखा जा सकेगा। यह जरूर है कि पुलिस वेरिफिकेशन स्कूलों का माहौल सुधारने के लिए पूरी तरह कारगर नहीं होगा। अनेक शिक्षक तो नशे की हालत में स्कूल पहुंचकर बच्चों का भविष्य खराब कर रहे हैं। उन पर कैसे निगरानी होगी? इसके बावजूद अभिभावकों की मांग गौर करने लायक है। (rajpathjanpath@gmail.com)
हड़ताल और आदतन गैरहाजिर
आज कलम बंद काम बंद हड़ताल की सफलता पर व कहीं कोई संदेह नहीं रह गया है। सुबह से राजधानी समेत प्रदेश के सभी स्कूलों में तालाबंदी हैं। मठपुरैना स्कूल में तो सांड, बैल घूमते रहे। तहसील, कलेक्टोरेट, निगम के जोन-मुख्यालय सब खुले तो थे लेकिन कुर्सियां खाली पड़ी रही। अब ये सोमवार को ही भरेंगी। अगले दो दिन साप्ताहिक अवकाश है ही। हड़ताल को यह स्वरूप देने, फेडरेशन के नेताओं को कई यत्न करने पड़े, और आज सुबह तक भी। सामूहिक अवकाश का आवेदन देकर कहीं कोई कर्मचारी तीन दिन की टूर पर न निकल जाए। इस पर विशेष नजर रखी गई। वाट्सएप ग्रुप में बड़े नेता यही मेसेज वायरल करते रहे। ऐसे लोगों के लिए निगरानी भी बिठाई गई। हालांकि जो नहीं आया उस पर कार्रवाई तो कर नहीं सकते। और किया गया तो एक व्यक्ति भी पूरा संघ संगठन को नुकसान पहुंचा सकता है। अब ऐसे आदतन तो मेरे अकेले के न जाने से क्या होगा सोचकर, गए तीन दिन के लिए। क्योंकि इनका मानना है कि डीए मिलेगा ही, कुछ देर से ही सही। बाकी आठ माँगें, जब पूरी होंगी तब मुझे भी मिल जाएगा फायदा। आज जिला, तहसील, ब्लाक के धरना स्थलों पर कर्मचारी नेता ऐसे लोगों की लिखित न सही जेहन में अवश्य सूची बनाते रहे। ताकि भविष्य में इनके व्यक्तिगत काम पडऩे पर आज की गैरहाजिरी याद दिलाई जा सके।
नड्डा और पुराने परिचित
राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा यहां आए, तो पार्टी के प्रमुख नेताओं के साथ अलग-अलग बैठक की। उन्होंने सीएम विष्णुदेव साय, प्रभारी नितिन नबीन, प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव और पवन साय के साथ करीब 15 मिनट तक अलग से चर्चा की। कहा जा रहा है कि इस बैठक में संगठन की गतिविधियों पर मंत्रणा हुई है।
नड्डा जैसे ही कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में उतरे, उन्होंने स्वागत के लिए मौजूद सांसद बृजमोहन अग्रवाल के कान में कुछ कहा। बाद में दोनों की अलग से चर्चा भी हुई। नड्डा पार्टी, और सरकार के कामकाज के साथ-साथ उपचुनाव की तैयारियों पर भी मंत्रणा की है।
नड्डा प्रदेश भाजपा के प्रभारी भी रह चुके हैं। लिहाजा, वो छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं से व्यक्तिगत तौर पर परिचित भी हैं। यही वजह है कि एयरपोर्ट से लेकर पार्टी दफ्तर में उनसे मिलने के लिए होड़ मची रही। कई नेताओं को स्वागत के लिए एयरपोर्ट में प्रवेश नहीं मिला, इस पर कुछ नेताओं ने संगठन के नेताओं से शिकायत भी की।
सही-गलत अलग है, लेकिन....
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा यहां आए, तो उन्होंने सदस्यता अभियान की समीक्षा की। वे नालंदा परिसर भी गए, जहां यूपीएससी-पीएससी, और अन्य प्रतियोगी परीक्षा की तैयारियों में जुटे युवाओं से भी मुलाकात की। कई युवाओं ने तो भाजपा की सदस्यता भी ली।
नालंदा परिसर में भाजपा के सदस्यता अभियान की आलोचना भी हो रही है। नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ये तो (नालंदा परिसर) लाइब्रेरी का दुरुपयोग हो रहा है। वह पढऩे की जगह है, न कि राजनीतिक सदस्यता दिलाने की। हर जगह इस प्रकार का आयोजन होना अच्छा संदेश नहीं है। कांग्रेस नेता चाहे कुछ भी कहे, लेकिन नौकरी के लिए पढ़ाई कर रहे युवाओं का राजनीतिक दल का सदस्य बनना चौंका भी रहा है।
दंड देने का यह कौन सा तरीका?
स्कूलों में बच्चों के साथ अमानवीय बर्ताव की घटनाएं रुक नहीं रही है। दंड देने के नए-नए तरीके आजमाए जा रहे हैं। जशपुर जिले के बगीचा स्थित एक पब्लिक स्कूल में चौथी कक्षा की बच्ची को होम वर्क पूरा करके नहीं लाने पर शिक्षिका 200 बार ऊठक-बैठक लगाने के लिए कहा। डरी-सहमी नन्हीं सी जान ने दंड भुगतना शुरू किया। जैसे तैसे व 70 दंड बैठक ही लगा पाई। उसके बाद उसकी ताकत जवाब दे गई और गिर पड़ी। बच्ची को घर भेज दिया गया। अब बच्ची का पैर सूज गया है और चल नहीं पा रही है। परिजन उसका अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। मगर उस शिक्षिका पर कोई कार्रवाई अब तक नहीं हुई है। इस तरह के बढ़ते मामलों पर हाईकोर्ट को संज्ञान लेने की जरूरत पड़ रही है। नई शिक्षा नीति में छोटे बच्चों को होम वर्क नहीं देने और मनोरंजक वातावरण में पढ़ाने का सुझाव दिया गया है। इसके बावजूद जशपुर जैसी घटनाएं हो रही हैं।
विधायक पुराने दिनों में लौटी..
सरायपाली की विधायक चातुरी नंद राजनीति में कदम रखने से पहले शिक्षिका थी। वह अपने क्षेत्र के एक स्कूल पहुंची। बच्चों से उन्होंने प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के बारे में सवाल पूछा। फिर चाक लेकर ब्लैक बोर्ड पर खुद ही पढ़ाने लगीं। इसका एक वीडियो सामने आया है।
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कमरे की दीवारें हैरान
लोगों की जिंदगी में कुछ घटनाएं बड़ा संयोग लेकर आती हैं। अब छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल के एक सबसे नौजवान मंत्री ओ.पी.चौधरी राजनीति में आने के पहले आईएएस अफसर थे, और राजधानी रायपुर के कलेक्टर थे। फिर उन्होंने रमन सिंह सरकार के रहते हुए ही राजनीति में आना तय किया, और नौकरी से इस्तीफा दिया। उस वक्त मुख्य सचिव के बंगले पर जाकर उन्होंने बंगला-दफ्तर कहे जाने वाले कमरे में सीएस की टेबिल पर सामने बैठकर इस्तीफा लिखा था, और उन्हें दे दिया था। इसके मंजूर होते ही वे राजनीति में आए, पहला चुनाव हारा, और दूसरा चुनाव जीतकर वे मंत्री बने।
अब जिस बंगले के जिस कमरे में बैठकर उन्होंने मुख्य सचिव के सामने इस्तीफा लिखा था, आज वे उसी बंगले में मंत्री की हैसियत से रहते हैं, और बंगले का वही कमरा उनका आज का बंगला-दफ्तर है। मेज बदल गई है, लेकिन कमरा वही है, और उस कमरे में पहला दस्तखत उन्होंने अपने इस्तीफे पर किया था, और अब वे रोजाना वहां दर्जनों दस्तखत करते हैं। कमरे की दीवारें भी कुछ हैरान होती होंगी।
नई लीडरशिप?
साय सरकार ने युवा आयोग के अध्यक्ष पद पर अंबिकापुर के पार्षद विश्व विजय सिंह तोमर की नियुक्ति कर स्थानीय बड़े नेताओं को चौंका दिया है। तोमर अंबिकापुर के युवा मोर्चा के शहर अध्यक्ष हैं। चर्चा है कि उनकी नियुक्ति में प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन की अहम भूमिका रही है। यही नहीं, महामंत्री (संगठन) पवन साय, और डिप्टी सीएम विजय शर्मा की सहमति रही है।
तोमर, डिप्टी सीएम विजय शर्मा जब युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष थे, तब उनकी कार्यसमिति में भी थे। नितिन नबीन जब प्रदेश भाजपा के सहप्रभारी के तौर पर काम कर रहे थे, तब से तोमर उनसे जुड़े थे। ये अलग बात है कि ‘लाल बत्ती’ के दावेदारों में सरगुजा के जिन नेताओं के नाम की चर्चा रही है उनमें ज्यादातर नेता रायपुर में देखे जा सकते हैं। ऐसे में वहां तोमर को ‘लाल बत्ती’ देकर एक नई लाइन तैयार करने की कोशिश की गई है। देखना है कि तोमर बतौर युवा आयोग के अध्यक्ष कितने सफल रहते हैं।
हाईकमान जल्दबाजी में नहीं
राजीव भवन से मिल रही खबरों पर भरोसा करें तो पीसीसी में कोई बदलाव नहीं होना है। दीपक बैज और उनकी कार्यकारिणी को कम से कम छ माह का अभयदान मिल गया है। चर्चा है कि अध्यक्ष के लिए जो नाम चल रहे हैं वो भी अभी नहीं बनना चाहते। इसका पहला कारण -अभी बने तो अगले चार वर्ष संगठन को चलाने खर्च अपनी जेब से करना होगा।( क्योंकि पार्टी कोष में विधायकों के अंशदान की हिस्सेदारी का हाल सब जानते)।
दूसरा कारण- सामने निगम पंचायत चुनाव में सत्ताधारी दल के मुकाबले हार जीत के आरोप से बचा जा सकेगा। ये चुनाव दिसंबर से फरवरी मार्च तक होंगे।
तीसरा कारण- नए प्रभारी सचिवों के प्रदेश व्यापी दौरे भी होने हैं। उसके बाद ही उनका मशविरा भी होगा। इन्हें देखते हुए अध्यक्ष की नई नियुक्ति मार्च के बाद ही हो पाएगी। तब तक दीपक बैज को अभयदान मिल गया है, यह भी स्पष्ट है कि संगठन में रिक्त पद भी वे भर नहीं पाएंगे। वैसे दिल्ली से जुड़े सूत्र बताते हैं कि हाईकमान भी महाराष्ट्र, झारखंड विधानसभा चुनाव तक छत्तीसगढ़ जैसे छोटे और हारे हुए राज्य को लेकर नई नियुक्तियों को लेकर जल्दबाजी में नहीं है।
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तबादले का मौसम आया भी नहीं, और चले गया
सामान्य प्रशासन विभाग ने तबादले पर से बैन हटाने का प्रस्ताव तो तैयार किया था लेकिन कैबिनेट में नहीं रखा जा सकता है। प्रस्ताव में एक सितंबर से दस सितंबर तक तबादले के लिए आवेदन लिया जाना था और माह के आखिरी में तबादला सूची जारी होनी थी। जिले के भीतर के तबादले के अधिकार प्रभारी मंत्री को देने का प्रस्ताव था मगर इसको अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका।
तबादले की प्रस्तावित समय-सीमा निकल चुकी है। तबादला पर से बैन नहीं खुलने से न सिर्फ भाजपा कार्यकर्ता बल्कि वे अफसर और कर्मचारी निराश हैं जो अपने तबादले के लिए प्रयासरत थे। हालांकि समन्वय के अनुमोदन से कुछ विभागों की सूची जारी भी हुई है। स्कूल शिक्षा विभाग के करीब 3 हजार शिक्षक-कर्मचारियों के तबादले के प्रस्ताव पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। अब शिक्षा सत्र आगे बढ़ चुका है। इसलिए अब शिक्षकों के तबादले पर संशय बना हुआ है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
नए आए लोगों की क्या जगह होगी?
विधानसभा, लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा प्रवेश करने वाले नेता कार्यकर्ता गुमनामी में चल रहे हैं। भाजपा का दावा था कि करीब 23 हजार लोगों ने प्रवेश किया था। इनमें पूर्व सांसद-विधायक, महापौर, पालिका-जिला पंचायत अध्यक्ष समेत अन्यान्य पदाधिकारी भी रहे। दोनों ही चुनावों में इनका छत्तीसगढ़ से हरियाणा राजस्थान तक में इस्तेमाल किया गया और अब असली निकाय चुनाव सामने आ रहे हैं, जो इनके ग्राउंड कनेक्ट को साबित करेगा। लेकिन उससे पहले ही सभी सुषुप्तावस्था में नजर आ रहे है।
सदस्यता अभियान में भी कहीं नाम, काम नजर नहीं आ रहा। सभी नेपथ्य में नजर आ रहे हैं। जबकि निकाय चुनाव में टिकट का सबसे बड़ा क्राइटेरिया, किसने कितने अधिक सदस्य बनाए, होने जा रहा है। इसमें कितने सफल होंगे यह तो जल्द बताएगा। लेकिन भाजपा प्रवेश के समय इनके पुराने कांग्रेसी साथी कहते रहे कि विभागों में अटके बिल पास करवाने के लिए भगवा दुपट्टा पहना है। और कांग्रेस में रुमाल छोड़ गए हैं। वैसे किरण देव इन बातों को खारिज कर कह चुके हैं सबकी योग्यता और विशेष योग्यता अनुसार संगठन काम ले रहा है और आगे भी लेगा। अब कांग्रेसी यह देख रहे हैं कि इनमें कितनों को भाजपा पार्षद का टिकट देती है।
हसदेव की गोद में हाथी
हसदेव अरण्य के घने पेड़ों के बीच की यह तस्वीर एक वनरक्षक अशोक श्रीवास ने खींची है। बड़े इत्मीनान से अपने ठिकाने पर हाथियों का झुंड आराम फरमा रहा है। मगर, जिस तेजी से कोयला खदानों के लिए वहां जंगल काटे जा रहे हैं और भविष्य में काटे जाने की आशंका है, इन्हें इस तरह का आराम मिल पाएगा भी या नहीं, यह सोचना पड़ेगा।
हरियाणा में छत्तीसगढ़ जैसा होगा?
दिसंबर 2023 में जब तक छत्तीसगढ़ का विधानसभा चुनाव परिणाम नहीं आ गया, किसी को नहीं लग रहा था कि कांग्रेस सत्ता बचा नहीं पाएगी। तमाम राजनीतिक विश्लेषक और एग्जिट पोल 50 प्लस सीट तो दे ही रहे थे। मगर, जब नतीजा आया तो कांग्रेस को अब तक की सबसे कम सीटें मिलीं। इस समय हरियाणा को लेकर बड़ी चर्चा है कि कांग्रेस वहां 10 साल बाद सत्ता में वापसी कर सकती है। इसके तमाम कारण गिनाये जा रहे हैं, जैसा सन् 2018 के चुनाव में भाजपा को लेकर छत्तीसगढ़ में कहा गया, एंटी इंकमबेसी। इसके अलावा अग्निवीर योजना से नौजवानों में रोष, किसान आंदोलन में केंद्र के रुख के चलते किसानों में गुस्सा और महिला पहलवानों से ज्यादती। तमाम टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर विश्लेषक कह रहे हैं कि कांग्रेस सत्ता में वापसी कर रही है।
मगर, कुछ गहराई से नजर रखने वाले कह रहे हैं कि कुमारी सैलजा के साथ जो हुआ, वह कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी भी फेर सकता है। कांग्रेस हाईकमान पर भूपेंद्र हुड्डा की चली। उनकी मर्जी से 70-75 टिकट तय हो गए। सैलजा समर्थकों के टिकट काट दिए गए, उनके हिस्से में 15-16 टिकट ही आए। यह भी कहा जा रहा है कि सैलजा खुद भी चुनाव लडऩा चाहती थी लेकिन उनको ऑफर नहीं किया गया। भाजपा ने उन्हें अपनी पार्टी में आने का न्यौता दे दिया।
वहां दलित वोटों का करीब 20 फीसदी हिस्सेदारी है, जो करीब 17 सीटों में निर्णायक हैं। बसपा और इनेलो के बीच वहां साझेदारी हो गई है जो कांग्रेस का खेल पहले ही बिगाड़ रही थी, अब सैलजा कुमारी मामला और असर डाल रहा है।
याद करें, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस एक तरह से जीती हुई बाजी कैसे हार गई थी। टिकट बांटने और काटने का कैसा खेल हुआ था। कुछ ने तो खुला आरोप लगाया कि टिकटें बेटी गईं। फिर, किस-किस समाज, समुदाय के वोट कांग्रेस से छिटककर एक झटके में भाजपा के साथ चले गए थे। विधानसभा चुनाव तक चूंकि कुमारी सैलजा छत्तीसगढ़ की प्रभारी महासचिव थी, यहां कांग्रेस के लोग उनकी हरियाणा में भूमिका को बड़ी दिलचस्पी से देख रहे हैं।
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