राजपथ - जनपथ
छत्तीसगढ़ के सुझाव की तारीफ
सीएम विष्णुदेव साय की केन्द्रीय उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के साथ बैठक के कई सकारात्मक नतीजे निकले हैं। पीयूष काफी सख्त माने जाते हैं, और वे राज्यों में विभाग की गतिविधियों पर बारीक नजर रखते हैं। यही नहीं, कई बार अफसरों को डपट भी देते हैं। मगर इस बार गोयल के सामने उद्योग सचिव रजत कुमार ने राज्य के उद्योग से जुड़े विषयों को लेकर प्रेजेंटेशन दिया, तो उनके तेवर काफी बदले दिखे। पीयूष काफी खुश नजर आए, और बैठक में ही रजत की तारीफ कर दी।
रजत ने मौका पाकर केन्द्रीय मंत्री को सुझाव दिया कि अंतरराष्ट्रीय निवेशक सम्मेलन आम तौर पर दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में होते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य, जहां अपार संभावना है वहां इस तरह के सम्मेलन से न सिर्फ निवेशक को नए क्षेत्र में निवेश के अवसर मिलेंगे। इससे राज्य की भी पहचान बनेगी।
पीयूष ने रजत के सुझाव की सराहना की, और भरोसा दिलाया कि भविष्य में छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए यथा संभव पहल की जाएगी। ऐसा नहीं है कि डबल इंजन की सरकार होने की वजह से कोई फायदा मिल रहा है। रमन सिंह सरकार में पीयूष गोयल ने बैठक में राज्य के कई प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। मगर इस बार जिस तरह विभाग ने बैठक को लेकर बेहतर तैयारी कर रखी थी, उसका फायदा मिलता दिख रहा है।
इसकी जरूरत नहीं
एंग्लो इंडियन समुदाय से विधायक मनोनयन को लेकर संगठन सरकार स्तर पर कोई हलचल नहीं है। हालांकि अभी 9 माह ही हुए हैं। वोट बैंक की चिंता करने वाली कांग्रेस ने भी पिछले पांच वर्ष में मनोनयन नहीं किया था। हालांकि दो तीन बार हलचल हुई थी। लेकिन 69 के स्पष्ट बहुमत के चलते जरूरी नहीं समझा गया। इस बार भी स्थिति कुछ वैसी ही है। भाजपा के 54 विधायक हैं, तो कांग्रेस के 35। यह अंतर मत विभाजन की स्थिति में खतरे से कोसो दूर। इन मनोनीत विधायक को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव छोड़ कर सदन के भीतर बाहर,हर तरह के मतदान में भाग लेने का अधिकार है।
भाजपा नेताओं का कहना है कि प्रदेश में सरकार हर वर्ग के साथ एंग्लो इंडियन समुदाय के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ रही। और इस समुदाय की आबादी (करीब 900- 1 हजार) भी मेनेजेबल है। इन सभी के परिवार सक्षम भी हैं। इसलिए एक सदस्य की नियुक्ति से विधायक निधि, वेतन भत्ते सुविधाओं पर बड़े स्थापना व्यय से बचा जा सकता है। यही वजह है कि मनोनीत विधायक को लेकर कोई हलचल नहीं। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद से अब तक तीन ही विधायक मनोनीत किए गए हैं इनग्रिड मैक्लॉड, रोजलीन बैकमेन एक-एक, बर्नार्ड जोसेफ दो कार्यकाल। पूर्व सीएम स्व.अजीत जोगी ने,अपने बहुमत के संकट से निपटने (मैक्लॉड)मनोनयन किया था।
हालांकि बाद की राजनीति के दौर में में इन दंपत्ति ने जोगी पर कई आरोप लगाए। उसके बाद रमन सिंह ने अपने दो कार्यकाल में दो सदस्य नियुक्त किए थे। पांचवीं विधानसभा में सीट खाली रही। वैसे संसद से 3-1-20 को पारित संविधान के 126 संशोधन के मुताबिक एंग्लो इंडियन विधायक का मनोनयन पर चुप्पी है। इस संशोधन में एससी/एसटी सीट आरक्षण को 10 वर्ष बढ़ाया गया लेकिन एंग्लो इंडियन पर कोई जिक्र नहीं। यही तात्पर्य निकाला जा रहा कि अब मनोनयन नहीं किया जाएगा। समझा जा रहा है कि बघेल सरकार ने भी इसी वजह से नहीं किया।
कांग्रेस की छत्तीसगढ़ जैसी विफलता
हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणामों से कुछ मिलते-जुलते रहे। छत्तीसगढ़ में चुनाव अभियान के दौरान से लेकर मतदान के बाद तक एग्जिट पोल में यह दावा किया गया कि कांग्रेस फिर से सरकार बनाएगी। हालांकि, 2018 के मुकाबले कांग्रेस की सीटें घटने का अनुमान था और भाजपा को कुछ मजबूत बताया गया था, लेकिन किसी भी सर्वे एजेंसी ने यह नहीं कहा कि भाजपा की वापसी होगी।
परिणामों के बाद जब ईवीएम खुली, तो सबके अनुमान ध्वस्त हो गए। भाजपा ने राज्य के चुनावी इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे कमजोर रहा। हरियाणा के चुनाव को लेकर भी कुछ ऐसा ही हुआ। कोई भी एग्जिट पोल भाजपा की जीत का दावा नहीं कर रहा था, कुछ तो भाजपा को केवल 25-27 सीटों पर सीमित बता रहे थे। वहीं, कई सर्वेक्षण कांग्रेस को 60 से अधिक सीटें दे रहे थे।
सोशल मीडिया और चुनाव विश्लेषकों ने भी बड़े दावे किए थे। विश्लेषक देवेंद्र यादव का कहना था कि कांग्रेस की 'सुनामी' चल रही है। भाजपा ने इन अनुमानों को नकारते हुए अपनी रणनीति जारी रखी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस मध्य प्रदेश की तरह मुगालते में है। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने छत्तीसगढ़ की तरह बाजी पलटने की बात कही।
परिणाम आने के बाद, जो लोग भाजपा की हार की भविष्यवाणी कर रहे थे, वे कांग्रेस की गलतियों पर चर्चा करने लगे। भले ही हरियाणा और छत्तीसगढ़ के चुनाव अलग समय पर हुए और मुद्दे भी अलग थे, लेकिन कांग्रेस की एक रणनीति ने उन्हें नुकसान पहुंचाया। यह रणनीति थी कि किसी एक नेता के प्रभाव में टिकटों का बंटवारा किया गया, उनके विरोधी माहौल को नजरअंदाज कर दिया गया।
एग्जिट पोल के गलत साबित होने का मतलब यह भी है कि कई सर्वेक्षण केवल कागजों पर ही तैयार हो जाते हैं। इसके बावजूद, एग्जिट पोल का बाजार कभी बंद नहीं होगा, क्योंकि जब तक ईवीएम नहीं खुलती, दर्शकों को जो भी दिखाया जाता है, वह देखा जाता है।
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सूरजमुखी आयोजन समिति
डब्ल्यू आर एस के रावण भी बड़े अजीब हैं हर पांच वर्ष में नाम बदलते रहता है और अगले पांच वर्ष चलता है। इस रावण को आयोजन समिति के प्रमुखों के नाम से जाना जाता है। पहले स्व तरुण चटर्जी, फिर राजेश मूणत, और इसका बाद कांग्रेस सरकार में मेयर-विधायकों की टीम आयोजन समिति के कर्ताधर्ता रहे हैं, लेकिन इस बार पुरंदर मिश्रा को आयोजन समिति का मुखिया बनाया गया है।
यह सिलसिला चार दशक से चल रहा है। रेलवे का यह इलाका रायपुर ग्रामीण का हिस्सा रहा है। प्रदेश में सबसे ज्यादा भीड़ भी डब्ल्यूआरएस के दशहरा उत्सव में उमड़ती रही है। हर बार का दशहरा उत्सव पिछली के मुकाबले ज्यादा भव्य होता आया है। विधानसभा के परिसीमन के बाद स्थिति बदल गई, और डब्ल्यूआरएस का इलाका रायपुर उत्तर का हिस्सा बन गया। मगर राजेश मूणत पश्चिम के विधायक होने के बावजूद डब्ल्यूआरएस दशहरा उत्सव समिति के मुखिया बने रहे।
कांग्रेस की सरकार आई, तो मूणत को हराने वाले विकास उपाध्याय दशहरा उत्सव समिति का प्रमुख बनना चाह रहे थे। लेकिन रायपुर उत्तर के विधायक कुलदीप जुनेजा ने दावेदारी ठोक दी, और फिर मेयर एजाज ढेबर भी कूद पड़े। इसके बाद सामूहिक नेतृत्व में आयोजन होता रहा। मगर भाजपा की सरकार बनी, तो आयोजन समिति ने मूणत से संपर्क किया था लेकिन उन्होंने पारिवारिक कारणों से मना कर दिया।
उन्होंने समिति के लोगों से कहा बताते हैं कि पांच साल उन्हें दूर रखा गया अब मन नहीं है। फिर समिति के प्रमुखों ने पुरंदर को मना लिया, और वो तैयारी में जुट भी गए हैं। दरअसल, बड़ा खर्च देखकर आयोजन समिति विधायक और उनके जरिए सरकार निगम के संसाधनों की मदद ले लेते है। दपूमरे रेल प्रशासन मैदान दे देता, बाकी संसाधन समिति को खर्च कर जुटाने पड़ते, सो वे विधायकों को ही अध्यक्ष बनाकर आयोजन करने लगे। पुरंदर हर साल भव्य रथयात्रा तो निकालते ही हैं, और इस बार उन पर दशहरा उत्सव की जिम्मेदारी है। डब्ल्यूआरएस के दशहरा उत्सव पर इस बार लोगों की नजरें टिकी हुई है। सूरजमुखी का फूल, जिधर सूरज रहता है, उसी तरफ़ घूम जाता है।
सदस्यता की चुनौती
भाजपा के सदस्यता अभियान के चलते दिग्गजों की नींद उड़ गई है। हाल यह है कि रायपुर के चारों विधानसभा मिलाकर लक्ष्य से आधे सदस्य नहीं बन पाए हैं। रायपुर की सीमा से सटे विधानसभा के युवा विधायक का तो हाल काफी बुरा है। विधायक के खराब बर्ताव की वजह से कार्यकर्ता छिटक गए हैं। युवा विधायक टारगेट का आधा भी पूरा नहीं कर पाए हैं।
रायपुर के एक विधानसभा क्षेत्र में एक जमीन कारोबारी तो सदस्य बनाने में स्थानीय विधायक को पीछे छोडऩे का दावा कर रहे हैं। लेकिन वस्तु स्थिति तो सदस्यता अभियान खत्म होने के बाद ही सामने आ पाएगी। इन सबके बीच पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, और वैशाली नगर विधायक रिकेश सेन की काफी चर्चा हो रही है। अजय चंद्राकर ने सबसे ज्यादा 70 हजार सदस्य बनाए हैं। जबकि दूसरे नंबर पर रिकेश सेन हैं, जो कि 25 हजार से अधिक सदस्य बना चुके हैं। चर्चा है कि आधा दर्जन विधायक ही सदस्यता के लक्ष्य को पूरा कर पाए हैं। देखना है कि भाजपा की सदस्यता अभियान के आंकड़े कहां तक पहुंचते हैं।
फिर वही पीएससी इंटरव्यू
छत्तीसगढ़ पीएससी 2022 में हुई गड़बड़ी की जांच की जिम्मेदरी मिलने के बाद सीबीआई ने शुरूआती जांच की, कुछ जगहों पर छापामारी की लेकिन अब तक आरोपियों पर शिकंजा नहीं कसा है। इधर धीरे-धीरे पीएससी 2023 की मुख्य परीक्षा हो गई और उसकी मेरिट लिस्ट भी जारी हो गई। अब 15 अक्टूबर से इसमें साक्षात्कार की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। लोकसेवा आयोग में अध्यक्ष व चार सदस्यों का पद होता है। पर इनमें अभी दो पद रिक्त हैं। टोमन सिंह सोनवानी के बाद कार्यकारी अध्यक्ष का जिम्मा प्रवीण वर्मा संभाल रहे हैं। वहीं डॉ. सरिता उइके और संतकुमार नेताम सदस्य हैं। सभी पद संवैधानिक हैं इसलिये नियुक्ति कांग्रेस के समय की होने के बावजूद वे अपना कार्यकाल खत्म होने तक पद पर बने रहेंगे। उम्मीदवारों का साक्षात्कार ये ही लोग होंगे।
यह बात अलग है कि सन् 2023 की प्रारंभिक परीक्षाओं के खिलाफ दायर 40 याचिकाओं को हाल ही में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था लेकिन इसके पहले की कोई भी परीक्षा विवाद के बिना नहीं गुजरा। 2003 में हुई पहली परीक्षा में गलत टेबुलेशन से चयन में गड़बड़ी की बात हाईकोर्ट में खुद पीएससी ने मान ली थी, पर इस आधार पर चयन किए गए लोग सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत मिल जाने के कारण सेवा में हैं। इनमें से अनेक लोग आईएएस अवार्ड प्राप्त कर चुके हैं और कुछ साल में रिटायर्ड भी हो जाएंगे।
भाजपा ने वादा किया था कि सरकार बनने के बाद पीएससी के पैटर्न में बदलाव किया जाएगा। संघ लोक सेवा आयोग की तरह परीक्षा से लेकर चयन तक की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। मगर, स्थिति यह है कि सरकार के गठन के 10 माह बाद भी रिक्त दो पदों पर नियुक्ति नहीं हो पाई है। भाजपा से जुड़े कई दावेदार भी इसका इंतजार कर रहे थे। सोशल मीडिया पर इशारों में दावेदारी भी कर रहे हैं और अपनी सरकार का ध्यान खींच रहे हैं। मगर, इंटरव्यू की तारीख इतने करीब आ चुकी है कि अब रिक्त सदस्यों की नियुक्ति की जल्दी हो इसकी उम्मीद कम है। बस, इंटरव्यू दिलाने वाले परीक्षार्थियों की चिंता यह है कि चयन योग्यता के अनुसार हो, पिछली बार की तरह विवादित न हों।
टूथ पिक भी चाइनिज
चीन से आयातित दंतखुदनी (टूथपिक) का पैकेट 25 रुपये में मिल रहा है, जिसमें 300 स्टिक्स हैं। भारत में बने टूथ पिक की कीमत 140 रुपये है। इसमें 500 स्टिक्स हैं, फिर भी हिसाब में चीन का बना टूथपिक काफी सस्ता है। ऐसी वजह के चलते ही तमाम देशप्रेमियों के विरोध के बावजूद दीपावली पर चाइनिज झालर, पटाखे बाजार पर कब्जा कर ही लेते हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)
कौन बनेगा .... ?
पीडब्ल्यूडी में नए ईएनसी की खोज चल रही है। मौजूदा ईएनसी केके पिपरी जनवरी में रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में अभी से उनकी जगह नई नियुक्ति करने पर चर्चा चल रही है। कहा तो यह भी जा रहा है कि अभी नई नियुक्ति के मसले पर सरकार में एकमत नहीं है।
नए ईएनसी की नियुक्ति की चर्चा की वजह भी है। हाईकोर्ट ने हाल ही में सडक़ों की दुर्दशा पर सरकार को फटकार भी लगाई है। डिप्टी सीएम अरुण साव ने अफसरों को चेताया है कि यदि सडक़ों की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ, तो वो जिम्मेदार लोगों को वीआरएस थमा देंगे। साव ने नवम्बर तक सडक़ों को चकाचक करने की डेडलाइन तय कर दी है।
दूसरी तरफ, नए ईएनसी की नियुक्ति के मसले पर दो-तीन दौर की बातचीत हो चुकी है। नए ईएनसी के लिए जिन दो नामों की चर्चा चल रही है उनमें चीफ इंजीनियर ज्ञानेश्वर कश्यप, और एसएस कोरी हैं। कोरी, कश्यप से सीनियर हैं। एक चर्चा के मुताबिक कोरी ईएनसी बनने के इच्छुक नहीं है। ऐसे में ज्ञानेश्वर कश्यप का नाम मजबूती से उभरा है। भाजपा के कई प्रमुख नेता कश्यप को ईएनसी बनाने के पक्ष में हैं। जल्द ही नई नियुक्ति के मसले पर फैसला हो सकता है।
सेक्रेटेरिएट बिजनेस रूल के इतर
मंत्रालय में उप सचिव,अवर सचिव पद पर पदस्थ राप्रसे अफसर सचिवालयीन कार्यप्रणाली (सेक्रेटेरिएट बिजनेस रूल) का पालन नहीं कर रहे- यह आरोप लगाया है मंत्रालय कर्मचारी अधिकारी संघ ने।
इस आरोप पर संघ के एक-एक पदाधिकारी और विभागों में कार्य कर रहे कर्मचारियों के पास सबूत भी है। इन अफसरों की फाइलों में नोटिंग हैं। मैं कह रहा हूं न, फाइल में यह लिखो जैसी चेतावनियों से लिखवाए गए आदेश। और फिर उसके बाद हाईकोर्ट के चक्कर। और सरकार की कोर्ट में किरकिरी, फटकार के साथ अवमानना के मामले अलग। यदि कोई कर्मचारी न करें, तो उस पर काम न आने का आरोप लगा कर हटा देने की भी शिकायत है। इसके बाद ये राप्रसे अफसर अपने किसी जिला कार्यालय से कर्मचारी वह भी दैवेभो को पदस्थ कर मनमाने आदेश करवा रहे।
गृह, वित्त, राजस्व जैसे कई अहम विभागों में दैवेभो कई गंभीर फाइलें डील कर रहे। इनमें विभागीय जांच के मामले भी हैं। ये लोग, साहब की हर बात, नियमित होने की उम्मीद के साथ चल रही नौकरी भी चली न जाए के डर से करते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए। इसकी आड़ में पेटीएम, फोन-पे भीम एप से कमाई अलग। ऐसे दर्जनों मामलों के मंत्रालय कर्मचारी संघ ने सबूत जुटाए हैं।
दरअसल इनमें से कुछ अफसर कमाई वाले फील्ड से हटाए जाने के फ्रस्ट्रेशन में करते हैं तो कुछ मंत्री विधायकों से राजनीतिक पहुंच वाले स्वयं को किसी आईएएस से कम नहीं मानते। ऐसे ही अफसरों की वजह से उनके आका मंत्री विधायक भी फंस जाते हैं।
संघ का कहना है कि राप्रसे के अफसरों ने अपनी कार्यप्रणाली न सुधारी तो ऐसी नस्तियां मुख्य सचिव को सौंप देंगे।
मालवाहक में फिर गई मजदूर की जान
इसी साल मई महीने में एक बड़ी दुर्घटना हुई थी, जिसमें तेंदूपत्ता मजदूरों से भरी पिकअप 20 फीट गहरी खाई में गिर गई थी। हादसे में 19 लोगों की मौत हो गई थी। घटना के बाद पीएचक्यू से आदेश निकला, जिसके बाद सभी पुलिस थानों में चेकिंग अभियान चलाया गया। जो मालवाहक सवारी ले जाते दिख रहे थे उनकी धरपकड़ हो रही थी और चालकों पर जुर्माना किया गया। पर जैसे ही लोगों का ध्यान उस घटना से हटा, पुलिस ने भी चेकिंग बंद कर दी। उसके बाद दुर्घटनाओं का भी सिलसिला फिर से शुरू हो गया है। हताहतों की संख्या कम होने के कारण पूरे प्रदेश को ऐसी घटनाएं नहीं झकझोरती। कल ही अभनपुर के पास धनौद में फिर एक पिकअप पलट गई जिसमें एक मजदूर को जान गंवानी पड़ी और करीब एक दर्जन लोग घायल हो गए। घटना राजधानी के पास की ही है। इन मजदूरों को काम कराने के लिए नवा रायपुर लाया जा रहा था।
बारिश थमने के बाद निर्माण कार्यो में तेजी आने के चलते मजदूरों को गांव से शहर, कस्बों में लाने के लिए प्राय: मालवाहकों का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। इस समय नवरात्रि का पर्व भी चल रहा है। देवी दर्शन के लिए गांव के ज्यादा लोग एक साथ निकलते हैं तो किफायती किराये वाली पिकअप या मिनीट्रक का ही बंदोबस्त कर रहे हैं। प्राय: दुर्घटनाओं का कारण क्षमता से ज्यादा सवारी भरना, बिना ड्राइविंग सीखे ही स्टेयरिंग थाम लेना और नशे की हालत में गाड़ी चलाना होता है। थानों के सामने से गाडिय़ां निकल रही हैं, पर पुलिस इतना भी नहीं कर पा रही है कि इन दो चार चीजों की चेकिंग कर ले।
स्कूल में बाल मजदूर
पढऩे के लिए स्कूल गए बच्चों से झाड़ू लगवाने, ईंट उठाने, बर्तन धुलवाने के बाद अब भारी-भरकम बोझ उठाने का काम भी लिया जा रहा है। ये महज 8-9 साल के प्रायमरी स्कूल के बच्चे हैं, जिन्हें स्कूल की प्रधान पाठिका ने राशन दुकान से मध्यान्ह भोजन के लिए चावल ढोकर लाने का काम दिया है। दो बच्चे पूरी ताकत लगाकर आदेश का पालन करते हुए वायरल वीडियो में दिख रहे हैं। प्रधान पाठिका ने इनकार नहीं किया है कि यह घटना हुई है। बस, बचाव में यह कह रही हैं कि वीडियो पुराना है और बच्चों ने अपनी मर्जी से यह काम किया। यह दृश्य बिलासपुर जिले के मस्तूरी ब्लॉक के प्राथमिक शाला सोन का है।
एक आदेश से मचा बवाल
राज्य प्रशासन को अचानक एक और आईएएस सचिव मिल गए। ये सीधी भर्ती के नहीं, राप्रसे से प्रमोशन से बने हैं। राप्रसे के ये अफसर, आईएएस प्रमोट तो होंगे लेकिन अभी कुछ वर्ष शेष हैं। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि चार वर्ष से अटकी डीपीसी, इनके प्रमोशन के लिए, इतनी गोपनीय कब हो गई। बैठक में कौन कौन रहे । केंद्र ने कब मंजूरी दी, जैसे कई प्रश्न पूरे महानदी भवन में तैर रहे हैं। ये हैं राप्रसे के अफसर अन्वेष घृतलहरे। उनके सचिव बनने का खुलासा, दो दिन पहले 3 अक्टूबर को उनके ही द्वारा जारी एक आदेश में हुआ। इस आदेश में 2002 बैच के आईएएस रोहित यादव को सचिव ऊर्जा, और अध्यक्ष सीएसईबी नियुक्त किया गया है। आदेश के अधोहस्ताक्षरकर्ता वाले स्थान पर साहब का नाम, पदनाम और हस्ताक्षर सब कुछ है। और यह उपयुक्त सक्षम अधिकारी की अनुमति से नॉर्थ ब्लाक, राजभवन, महालेखाकार तक वायरल हो गया। तब तक किसी ने भी नहीं देखा। जीएडी के दो सचिवों मुकेश कुमार बंसल को और पी अंबलगन हैं।
इसका खुलासा आदेश जारी होने के दो दिन बाद शनिवार को पूरे महकमे में चर्चा में आया। मालूम हुआ कि आदेश के बाद ऊपर से नीचे तक बवाल मचाा। और नि: संदेह आदेश में करेक्शन होना ही था। सो दूसरे दिन इस आशय का शुद्धि पत्र पत्र जारी किया गया। तब ज्ञात हुआ, यह कंप्यूटर में फाइल कॉपी कट पेस्ट का मामला है। इन साहब ने मुकेश बंसल का नाम हटाकर अपना लिखा और पदनाम का ही रखा। वैसे मंत्रालय संघ आरोप लगा ही रहा है कि कुछ राप्रसे अफसर सचिवालयीन कार्यप्रणाली (सेक्रेटेरिएट बिजनेस रूल) का पालन नहीं कर रहे।
बहरहाल उसके बाद से जीएडी आईएएस सेक्शन परेशान है, इतनी बड़ी चूक की गाज किस पर गिरेगी। कहीं चार वर्ष से बैठे इन साहब को ही नई पोस्टिंग न मिल जाए। जो होगा,अगले एक दो दिन में पता चल जाएगा। इस एक आदेश से यह भी स्पष्ट हो गया कि यह सरसरी नजर की चूक है या कमाल है ।
छात्रसंघ से आजादी ही भली
छात्र संघ को राजनीति की सीढ़ी का पहला पायदान कहा गया है। सही भी है, कुछेक को छोड़ दें तो आज के सारे दिग्गज नेता इसी पायदान से चढ़े हैं। लेकिन पिछले आठ वर्षों से प्रदेश में ये चुनाव लगभग बंद से हैं। नए नेता धरना प्रदर्शन घेराव से ही निकल रहे हैं। और सरकार, इन चुनावों को युवाओं में अपनी छवि,और पकड़ से जोडक़र देखने लगी है। इसमें भाजपा की छात्र इकाई एबीवीपी के मुकाबले कांग्रेस के एनएसयूआई के फॉलोअर्स कहीं अधिक हैं। और यही कारण है कि रमन को 3.0 के अंतिम वर्षों के बाद से चुनाव नहीं मनोनयन होने लगे। दरअसल कुलपतियों ने अपना यह अधिकार भी सरकार पर छोड़ दिया है। और उसके बाद यूपीए सरकार ने लिंगदोह (पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त) कमेटी बनाकर चुनाव के बजाए मनोनयन की सिफारिश को लागू कर दिया । तब से कुलपति निश्चिंत हो गए हैं। और अब मोदी 2.0 की एनईपी यही कहती है।
और इस बार भी सरकार के आगे के कार्यक्रम और कार्यों को देखते हुए इस वर्ष भी ये चुनाव होते नहीं दिख रहे। इसके पीछे सरकारी कारण भी है।अभी अभी तो प्रवेश खत्म हुआ है। फिर एनईपी के तहत कैरिकुलम लागू करना है, इसका पहला वर्ष भी है । कुलपति, प्राचार्यों पर नैक ग्रेडेशन का दबाव आदि आदि। वैसे एनएसयूआई ने मतदान प्रणाली से चुनाव कराने दबाव बनाना शुरू कर दिया है ,उसके कई जिलों से ग्यापन उच्च शिक्षा सचिव को मिलने लगे हैं। लेकिन एबीवीपी मौन है। वह जानती है मनोनयन में ही अपना भला हैं। सरकार में फिलहाल पृथक शिक्षा मंत्री नहीं है इसलिए सचिव भी चुप हैं। सरकार अभी ऑपरेशन माओवाद, धान खरीदी, निकाय चुनाव के कार्यक्रम लेकर बैठी है। इसलिए यह तय माना जा रहा है कि चुनाव नहीं मनोनयन होंगे।
याद आता है कि मतदान से पिछले चुनाव रमन सरकार के दूसरे कार्यकाल में हुए थे जब प्रेम प्रकाश पांडे को निगरानी की जिम्मेदारी दी गई थी। जिसमें एनएसयूआई ने एबीवीपी को पटखनी दी थी ।
मुकदमा जीतने के बावजूद निराश
सरकार के लिए आसान है मुकदमे लडऩा। उनकी वकालत करने ने महंगे से महंगा वकील खड़ा किया जा सकता है, क्योंकि फीस सरकारी खजाने से भरी जाती है। मगर, बेरोजगारों के लिए एक अदालत से दूसरी अदालत तक हक की लड़ाई लडऩा मुश्किल होता है। मगर, यदि अदालत उनके पक्ष में फैसला दे भी दे सरकार चाहे उस पर अमल करने में हीला-हवाला कर सकती है। छत्तीसगढ़ में इसके दो उदाहरण हमारे सामने हैं। कांग्रेस शासनकाल में शिक्षक भर्ती के नियम को बदल दिया गया था। इसके अंतर्गत बीएड डिग्रीधारकों को भी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाने का पात्र माना गया था। इसे डीएड और डीएलएड डिग्रीधारकों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। इस आधार पर, कि प्रायमरी स्कूल में पाठ्यक्रम और अध्यापन के विशिष्ट तरीकों का प्रशिक्षण बीएड में नहीं मिलता। इसके लिए डीएड और डीएलएड धारक ही पात्र हैं। उनके तर्कों को मानते हुए हाईकोर्ट ने करीब 6 माह पहले उनके पक्ष में फैसला दिया। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। वहां पर भी हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा गया। इस तरह से जिन बीएड धारकों को चुन लिया गया है, उनकी जगह पर डीएड-डीएलएड डिग्रीधारकों को अवसर मिलना चाहिए। मगर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है। शिक्षा संचालनालय से बात की जाती है तो बताया जाता है कि सरकार के पास आदेश की प्रति भेज दी गई है, निर्णय वहीं से होना है। शायद सरकार के समक्ष बीएड धारकों को नौकरी से निकालने को लेकर असमंजस हो। मगर, मिडिल और हाईस्कूलों में शिक्षक के हजारों पद खाली हैं। इनमें वेकेंसी निकालने की गारंटी भी चुनाव के समय दी गई थी। हाईकोर्ट में भी हाल की सुनवाई के दौरान सरकार को स्वीकार करना पड़ा कि स्कूलों में शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं। यही हाल पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर की भर्ती का है। इंटरव्यू का रिजल्ट जारी नहीं हो रहा है। इसमें भी हाईकोर्ट का अभ्यर्थियों के पक्ष में आदेश है। अदालती लड़ाई 6 साल लंबी चली थी। दोनों ही मामलों में सरकारी नौकरी पाने के काफी करीब पहुंचने के बाद युवाओं को आगे का रास्ता कठिन दिखाई दे रहा है। (rajpathjanpath@gmail.com)
राजधानी में कॉफी हाउस
रायपुर से राजधानी में बदले अपने शहर में आज से कुल दस कॉफी हाउस हो जाएंगे। इनमें से नौ तो राज्य बनने के बाद खुले हैं। रायपुर में पहला कब खुला इसकी डेट याद नहीं है। लेकिन त्रिशूर (केरल)में 8 मार्च 1958 में पहले आउटलेट से अब 66 वर्ष में 500 ब्रांच देशभर में खुल चुके हैं। अपने रायपुर में दस हैं। इससे शहर के विस्तार का भी अंदाजा लगाया जा सकता है।
पुराने नौ में जीई रोड का पहला जो अभी न्यू सर्किट हाउस में संचालित, मंत्रालय, विधानसभा, एनआईटी, भाठागांव, सीएसईबी डगनियां, अटल नगर के सर्किट हाउस, और एनटीपीसी, शास्त्री चौक, (जल्द ही मेकाहारा चौक ) पंडरी श्याम मार्केट और अब दसवां मोवा थाने के पास है। अमूल के बाद सहकारिता का दूसरा सफल संगठन माना जाता है। यहां का स्टाफ कभी मौर लगी सफेद टोपी पहनकर बैरा बन जाता है तो कभी मैनेजर बन कैश दराज भी सम्हालता। सीईओ, सीजीएम, जीएम, क्लर्क जैसे औहदों को लेकर कोई ऊंच नीच नहीं । यहां तक कि हर बैरा, वेटर- ब्वाय नहीं अन्ना कहलाता है। प्लेट में बिल में छोड़े गए टिप पर सबकी हिस्सेदारी। अपने व्यंजनों के स्वाद की मोनोपली और रेट देशभर में एक ही हालांकि मीनू समय काल के अनुसार बदलता रहा है। लेकिन नहीं बदला वही भिंडी, मुनगे-लौकी-गाजर के टुकड़ों से लैस खट्टा सांबर और नारियल की चटनी। अब लंच की थाली में रसम के साथ सूप, बझिए के साथ पनीर, बिरयानी भी मिलती है। आने वाले दिनों में मोमोज़ भी मिलने लगेंगे।
त्रिशूर से दिल्ली तक यह पीढिय़ों से साम्यवादी और समाजवादी आंदोलनों का केंद्र रहा हो, रायपुर नीलम होटल का कॉफी हाउस कांग्रेस की राजनीति का गढ़ रहा है। पास ही तहसील आफिस होने से यहां कई बड़े जमीनों के सौदे हुए तो आरडीए, नगर निगम के टेंडर भरे जाते रहे। फिल्मों की समीक्षा के साथ, गोष्ठियां, पांच से छह अखबार वाले पुराने शहर के पत्रकारों के साथ पीसी भी हो जाया करतीं।
एक कप कॉफी उसमें भी वन बाय टू, के साथ घंटों गुजारने के लिए कोने के कुछ टेबल कांग्रेस नेताओं के लिए रिजर्व रहते थे। यहां से निकले मैसेज हमारे अखबार के कॉलम- (कॉफी हाउस की दीवार से) पर भी प्रकाशित होते रहे।
2010 में जब नवा रायपुर के मंत्रालय में कैंटीन खोलने की बात हो रही थी तब कई बड़े होटेलियर सूटकेस लेकर अफसरों के पीछे दौड़ रहे थे। ऐसे में तत्कालीन सीएस सुनील कुमार ने, नो प्राफिट नो लॉस वाले कॉफी हाउस को रियायतों को साथ एक फ्लोर का बड़ा हिस्सा दिया था जो सफलता के साथ चल रहा है । वहीं विधानसभा में भी कई होटलों की कैंटीन खुलने के बाद वहां भी कॉफी हाउस ही पसंद किया गया।
नए लोगों की दिक्कत
कांग्रेस के दर्जनों नेता लोकसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा में शामिल हुए थे। इनमें से ज्यादातर ने भूपेश बघेल से नाराजगी जताकर कांग्रेस छोड़ी थी। कुछ तो विधायक भी रह चुके हैं, लेकिन भाजपा में आने के बाद वैसा सम्मान नहीं मिल पा रहा है जिसकी उन्हें चाहत रही है। कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं का हाल यह है कि उन्हें लालबत्ती मिलना तो दूर, सक्रिय सदस्य बनने के लिए मेहनत करनी पड़ रही है। भाजपा में सदस्यता अभियान चल रहा है। पार्टी का सक्रिय सदस्य बनने के लिए जरूरी है कि वो खुद अपने आईडी से 50 सदस्य बनाए। सक्रिय सदस्य बनने की स्थिति में ही पार्टी संगठन अथवा सरकार में कोई जिम्मेदारी मिल सकती है। अब हाल यह है कि इन सभी नवप्रवेशी भाजपाईयों को सदस्य बनाने के लिए मेहनत करनी पड़ रही है।
सीधी-सादी गाय के सींग
जब सीधी उंगली से घी नहीं निकलता तो टेढ़ी करनी होती है। पर कुछ सींगधारी ऐसे होते हैं, जिनको यह सब नहीं करना पड़ता। कुदरत उनको ऐसे खतरनाक सींग देती हैं कि देखने वाले को समझ आ जाता है और इससे भिड़े तो अंजाम बुरा होगा। गाय अमूमन सीधी होती हैं, लेकिन ऐसे टेढ़े सींग वाली गाय बिलासपुर के मोहनभाठा में दिखी, जिसे प्राण चड्ढा ने अपने कैमरे में कैद कर लिया।
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कहां बिठाए और कोई आए तो
बीत रहे मानसून में भले ही महानदी में बाढ़ न आई हो, लेकिन महानदी भवन में अफसरों की बाढ़ जैसी स्थिति है। अधीक्षण शाखा और रजिस्ट्रार के पास कमरों की समस्या आन पड़ी है। 24 वर्षों में पहली बार बेंच, फुल जैसी स्थिति है। रजिस्ट्रार परेशान हैं कि अब एक और अफसर आए तो उन्हें कहां बिठाए। सेक्रेटरी ब्लॉक, जैम पैक हो गया है। पिछली सरकार में तो कुछ अफसरों ने सीएम की निकटता के लिए मंत्री, और संसदीय सचिव ब्लॉक तक में कमरे ले रखे थे। और अब भी यह परंपरा बनी हुई है।
दरअसल, राज्य मंत्रालय में सचिवों की तादाद बढ़ गई है। इस समय 2002 से 2008 बैच के कुल 24-25 सचिव हो गए हैं। इनमें से कुछ स्वतंत्र प्रभार में हैं तो कुछ एसीएस, पीएस के मातहत पदस्थ हैं। मंत्रालय का सेटअप इसकी अनुमति देता है। लेकिन आईएएस लॉबी इससे संतुष्ट नहीं है। वह इसे प्रोटोकॉल के तहत नहीं मानती। उसका कहना है कि आईपीएस, आईएफएस को मंडी बोर्ड,पर्यटन मंडल, सीएसआईडीसी के एमडी जैसे 10 आईएएस के कैडर पदों पर बिठाए जाने से यह स्थिति बनी है।
हालांकि यह अभी नहीं 23-24 वर्षो से चली आ रही परंपरा बनी हुई है। अगले फेरबदल में सरकार को इस पर गौर कर कैडर पोस्ट आईएएस को लौटाने होंगे। इसे लेकर जल्द ही आईएएस एसोसिएशन सीएम से मिलने जा रहा है। ऐसी स्थिति डॉ. रमन सिंह के दूसरे कार्यकाल में भी आई थी, तब एसोसिएशन के सचिव रहे केडीपी राव सरकार के समक्ष अपनी बात रख आए थे।
मनोनयन के आगे-पीछे
दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव की पुत्र वधु प्रियम्वदा सिंह जूदेव को सरकार ने राज्य महिला आयोग का सदस्य बनाया है। प्रियम्वदा, दिलीप सिंह जूदेव के बड़े बेटे दिवंगत शत्रुंजय सिंह जूदेव की पत्नी हैं। प्रियम्वदा के साथ ही ओजस्वी मंडावी, और सरला कोसरिया, लक्ष्मी वर्मा, और दीपिका सोरी को भी सदस्य बनाया है।
ओजस्वी दंतेवाड़ा के दिवंगत विधायक भीमा मंडावी की पत्नी हैं। जूूदेव परिवार की बात करें, तो प्रियम्वदा जशपुर इलाके में पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करती रही हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जूदेव के परिवार के दो सदस्यों को चुनाव मैदान में उतारा था। उनके छोटे पुत्र दिवंगत पूर्व संसदीय सचिव युद्धवीर सिंह की पत्नी संयोगिता सिंह जूदेव, और मंझले पुत्र प्रबल प्रताप सिंह को प्रत्याशी बनाया था। मगर दोनों ही चुनाव नहीं जीत पाए।
यही नहीं, सरगुजा राज परिवार के एक और सदस्य पूर्व राज्यसभा सदस्य रणविजय सिंह जूदेव भी लालबत्ती की दौड़ में बताए जा रहे हैं। रणविजय सिंह ने रायपुर पश्चिम विधानसभा सीट से दावेदारी की थी। वे कुछ समय पहले केन्द्रीय मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात कर चुके हैं। देखना है कि जूदेव परिवार के सदस्यों को और क्या कुछ मिलता है।
जुर्माना क्या पालकों की जेब से कटेगा?
राज्य की बोर्ड परीक्षाओं के लिए छात्रों के आवेदन समय पर जमा नहीं करने वालों पर छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल ने 25-25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया है। यह पोर्टल 4 दिन के लिए खोला जाएगा, पर एक्सेस तभी मिलेगा, जब जुर्माने की रकम जमा कर दी जाएगी। बोर्ड परीक्षा के लिए आवेदन पत्रों को ऑनलाइन जमा करने के लिए स्कूलों को 30 अगस्त तक का समय दिया गया था, उसके बाद बोर्ड ने पोर्टल बंद कर दिया। हर साल यही होता था कि बाद में शालाओं के अनुरोध पर पोर्टल दोबारा खोला जाता था। पर उसके लिए कोई अर्थदंड नहीं लगाया जाता था। इस बार 1247 स्कूलों ने फिर से पोर्टल खोलने के लिए आवेदन दिए हैं। इस तरह से यह राशि करीब 3 करोड़ 11 लाख पहुंचती है। यह जरूर है कि कई स्कूल समय पर आवेदन जमा करने में रूचि नहीं लेते, जिसके कारण पोर्टल दोबारा खोलना पड़ता है, लेकिन कई बार छात्रों के दस्तावेज भी अधूरे होते हैं, जिससे देर हो जाती है। अब सवाल यह उठ रहा है कि इस रकम की भरपाई कौन करेगा। निजी स्कूल जुर्माने की रकम की भरपाई छात्रों से ही ऐन-केन प्रकारेण वसूल करके कर लेंगे, लेकिन सरकारी स्कूल के पास तो इस तरह का कोई फंड ही नहीं होता। वहां उन तबकों के बच्चे भी बड़ी संख्या में पढ़ते हैं, जो फीस भी जमा नहीं कर पाते। क्या ये स्कूल भी छात्र-छात्राओं पर बोझ डालेंगे? सरकार एक तरफ नि:शुल्क शिक्षा को बढ़ावा देती है, दूसरी ओर माशिमं ने नई समस्या खड़ी कर दी है। इतना तो निश्चित है कि अगले सत्र में जब परीक्षा फॉर्म का समय आएगा, स्कूलों को माशिमं का यह तेवर याद रहेगा और शायद अगली बार समय पर सब आवेदन जमा हो जाएंगे।
पानी की बर्बादी का तरीका
इस बंदे ने कपड़े धोने के लिए अपने सिर पर पानी का पाइप बांध लिया है। वायरल वीडियो में दिखाया गया है कि इसी तरह से उसने बर्तन भी धोये। कुछ लोगों को यह जुगाड़ अच्छा लग सकता है लेकिन सवाल पानी बर्बाद करने का भी है।
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कुर्सी और सिफारिश
पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की सीएम विष्णु देव साय को लिखी कथित चि_ी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इसमें पूर्व सीएम ने भिलाई के होटल कारोबारी डॉ. रमेश चंद्र श्रीवास्तव को पाठ्य-पुस्तक निगम का चेयरमैन बनाने की अनुशंसा की है। एक अन्य चि_ी में जनपद सदस्य संगीता शर्मा को किसी निगम, अथवा भाजपा महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाने की अनुशंसा की है।
चि_ी की सच्चाई का तो पता नहीं, लेकिन वायरल होने के बाद विशेष कर भाजपा के नेताओं में प्रतिक्रिया हो रही है। पार्टी के कई नेता चि_ी को असली मानकर सोशल मीडिया में अपनी भावनाओं का इजहार भी कर रहे हैं। रायपुर शहर जिला भाजपा के नेता, और पार्षद सुभाष तिवारी ने फेसबुक पर अपना दर्द जाहिर किया कि किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंजिल, कोई हमारी तरह उम्र भर सफर में रहा।
कुछ ने रमन सिंह के खिलाफ भी लिखा भी है। इससे रमन सिंह से जुड़े लोग परेशान हैं। एक-दो नेता तो अपने लिए सिफारिशी चि_ी लिखवाने गए, तो उन्हें रमन सिंह के निजी स्टाफ ने यह कहकर लौटा दिया कि यहां फर्जी काम नहीं होता है। कुल मिलाकर निगम-मंडलों की नियुक्ति को लेकर हलचल तेज है।
संजय जोशी को लेकर खलबली
प्रदेश भाजपा में पिछले दो-तीन दिनों से काफी हलचल है। यह कहा जा रहा है कि संजय जोशी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकते हैं। यह भी खबर उड़ी कि जोशी की सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं की दिलचस्पी की एक बड़ी वजह यह है कि संजय जोशी यहां के प्रभारी रह चुके हैं। प्रदेश में पहली बार भाजपा की सरकार लाने में उनकी अहम भूमिका रही है। यहां के तमाम छोटे-बड़े बड़े नेताओं से उनके संबंध है, और भाजपा की राजनीति में सालों से अलग थलग रहने के बावजूद पार्टी के नेताओं के सुख-दुख में शरीक होते रहे हैं।
पिछले दिनों पार्टी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडेय के पिता के निधन पर शोक प्रकट करने संजय जोशी यहां आए भी थे, और कई नेताओं ने उनसे मुलाकात भी की थी। भाजपा की राजनीति में संजय जोशी को पीएम नरेन्द्र मोदी, और अमित शाह का विरोधी माना जाता है। ऐसे में कई लोग मानते हैं कि संजय जोशी को पार्टी में कोई जिम्मेदारी मिलना मुश्किल है। नवम्बर माह में राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति होगी, तब तक हलचल बनी रहेगी।
कई घर जद में आएंगे
राहत इंदौरी का एक मशहूर शेर है- लगेगी आग तो आएंगे कई घर जद में, मोहल्ले में सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है...। पता नहीं यह अतिक्रमण की कार्रवाई योगी सरकार से प्रेरित वाली है या नगर-निगम की ओर से सडक़ों से अतिक्रमण हटाने वाली नियमित कार्रवाई। मध्यप्रेश कांग्रेस की सोशल मीडिया प्रभाग की स्टेट कोआर्डिनेटर हिमानी सिंह ने इसे अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर यह दर्शाने की कोशिश की है कि बेकसूरों पर बुलडोजर चलाई जा रही है।
सोशल मीडिया पर निगरानी
बलौदाबाजार जिला प्रशासन और पुलिस की इस बात के लिए पीठ थपथपाई जा सकती है कि वहां सोशल मीडिया निगरानी समिति लगातार संवेदनशील और आपत्तिजनक पोस्ट और प्रोफाइल को चेक कर रही है। साइबर सेल ने इंस्टाग्राम, गूगल, फेसबुक और व्हाट्सएप से संपर्क करके अब तक इंस्टाग्राम के 19 पेज बंद कराए हैं। इसके अलावा कई वीडियो विभिन्न प्लेटफॉर्म से डिलीट कराए गए हैं। इन गतिविधियों में लिप्त कई लोगों पर बीएनएस और आईटी एक्ट के तहत कार्रवाई की गई है तो कुछ को माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया है। कलेक्ट्रेट में पिछले दिनों हुई आगजनी के बाद यह जिला लगातार संवेदनशील बना हुआ है, ऐसे में यहां प्रशासन को अधिक सतर्क रहना जरूरी भी है। पर, अब भी साइबर सेल और निगरानी समिति को, तथा पुलिस महकमे को भी इसमें सही गलत की पहचान करने के लिए अधिक प्रशिक्षित होना तथा विशेषज्ञता हासिल करना जरूरी है। इसकी बानगी पिछले दिनों बिलासपुर में देखी गई थी, जिसमें पुलिस ने एक दूसरे देश के झंडे की तरह बनाए गए तोरण के मामले में कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया, मगर दूसरे पक्ष की ओर से इस घटना की प्रतिक्रिया में वायरल वीडियो पर चुप्पी साध ली थी।
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किसका नंबर आएगा
केंद्रीय गृह मंत्रालय इसी माह 2004 बैच के आईपीएस अफसरों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए इंपैनल करने जा रहा है। इस बैच के अफसर आईजी हो चुके हैं।
इस बैच में छत्तीसगढ़ से छह अफसर हैं, देखना यह है कि इंपैनलमेंट के साथ नियुक्ति को लेकर किसकी लॉटरी लगती है। इनमें अंकित गर्ग, अजय यादव, बीएन मीणा, नेहा चंपावत, अभिषेक पाठक, संजीव शुक्ला शामिल हैं। पाठक इस समय बीएसएफ में तैनात हैं तो गर्ग सरगुजा और शुक्ला बिलासपुर रेंज आईजी हैं। सरकार से तालमेल भी ठीक है। नेहा चंपावत सालभर के भीतर ही केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटी है। मीणा, छह सात वर्ष पूर्व केंद्र में रह चुके हैं। दोबारा नियुक्त न करने का कोई प्रावधान नहीं हैं।
अजय यादव एक बार भी नहीं गए। राजनीति और सरकार के समय काल की परिस्थिति को देखते हुए इनमें से कौन-कौन प्रयास करते हैं। यह देखने वाली बात होगी। और फिर केंद्रीय एजेंसियों में उतने पद खाली भी होने चाहिए, क्योंकि इंपैनलमेंट तो देशभर के अफसरों का होना है। चाहे आईएएस हो या आईपीएस, अपना सर्विस प्रोफाइल बढ़ाने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहता हैं। एक बार केंद्र में काम करने के अनुभव मात्र से, भविष्य में एडिशनल सेक्रेटरी या एडीजी,डीजी जैसे पदों पर नियुक्त के लिए सीआर मजबूत हो जाता है। इंपैनलमेंट और नियुक्ति के बीच कई कारण काम करते हैं। वैसे बस्तर रेंज के आईजी पी.सुंदरराज, एसपी डी. श्रवण बीते छ: माह से अपने आवेदन पर डेपुटेशन का इंतजार कर रहे हैं। केंद्र के नक्सल उन्मूलन योजना को देखते हुए उनके दिल्ली जाने का संभावना कम ही है।
न्याय यात्रा से बढ़ा उत्साह
कांग्रेस की न्याय यात्रा के समापन मौके पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आने की चर्चा थी, लेकिन वो स्वास्थ्यगत समस्या और फिर हरियाणा व जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव की व्यस्तता की वजह से नहीं आए। अलबत्ता, प्रभारी सचिन पायलट भी चुनाव प्रचार में व्यस्तता के बाद किसी तरह चार्टर प्लेन लेकर दोनों प्रभारी सचिवों सुरेश कुमार, और जरिता लेटफलांग व संयुक्त सचिव विजय जांगिड़ के साथ यहां पहुंचे। और फिर न्याय यात्रा में शिरकत की।
प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज की अगुवाई में न्याय यात्रा भीड़ भाड़ के मामले में काफी हद तक सफल रही है। पार्टी नेताओं ने एकजुटता भी दिखाई है। प्रदेश के प्रमुख नेता डॉ. चरणदास महंत, पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के अलावा पूर्व नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, और तकरीबन सभी विधायक यात्रा में शामिल हुए। निकाय चुनाव, और रायपुर दक्षिण के टिकट दावेदार भी सक्रिय थे। ऐसे में यात्रा की सफलता से दीपक बैज की टीम काफी उत्साहित रही।
प्रदेश के वरिष्ठ न्यूज-फोटोग्राफर गोकुल सोनी ने फेसबुक पर अपना एक तजा तजुर्बा पोस्ट किया है। उन्होंने लिखा-कल हम कुछ मित्र नगरी जाते-जाते मुरमसिल्ली बांध पहुंच कर तेंदुआ के डर से उल्टे पैर लौट आये थे। जब हम लोग वहां से लौट रहे थे तभी हमें पास के एक गांव में हारमोनियम तबला और ढोलक के साथ भक्तिमय संगीत सुनाई दिया। हम गांव पहुंचे तो वहां रामधुनी कार्यक्रम चल रहा था।
गांव के लोगों ने बताया कि पितृपक्ष में अपने पितरों के लिए हर साल गांव में रामधुनी सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। यह रामधुनी सम्मेलन अन्य रामधुनी कार्यक्रमों से अलग था। दरअसल विभिन्न मंडलियों के द्वारा यहां धार्मिक नृत्यनाटिका का मंचन किया जा रहा था। जिस समय हम लोग वहां पहुंचे तब जय बजरंग रामधुनी मंडली हाटकोगेरा कांकेर के द्वारा महिषासुर वध का मंचन किया जा रहा था। प्रस्तुति इतनी शानदार थी गांव के लोग इसे मंत्रमुग्ध होकर देख रहे थे। नृत्यनाटिका में जो महिषासुर राक्षस बना था वह लगातार अपने मुंह से आग का गुबार उगल रहा था। यह प्रस्तुति हमारे दो मित्रों को भी खूब पसंद आया। इन मित्रों ने बिना मांगे एक बड़ी रकम उस मंडली को दान में दे दी। आपको बता दूं , इन दो मित्रों में एक मित्र गैरहिन्दू है।
फेसबुक में इस पोस्ट को डालने का उद्श्य मेरा यह है कि आज टेलीविजन में मनोरंजन के अनगिनत चैनल, मोबाइल के यू-टूयूब में हजारों-हजार मनोरंजन के साधन होने के बाद भी कुछ गांव के लोग आज भी अपनी संस्कृति और परंपरा से जुड़े हुए हैं। और हां, मैं गांव का नाम बताना तो आपको भूल ही गया। छत्तीसगढ़ के उस गांव का नाम है ‘सायफनपारा’। शायद किसी गांव का ऐसा नाम आप पहली बार सुन रहे होंगे।
वेतन अटक जाने की चिंता
बिहार जैसे कुछ राज्यों से यह खबर कभी-कभी निकल आती है कि वहां सराकारी कर्मचारियों को किसी-किसी महीने समय पर वेतन नहीं मिल पाया। पर, छत्तीसगढ़ में इस तरह की नौबत नहीं आई है। कोविड काल में भी जब कुछ राज्यों ने सरकारी कर्मचारियों के वेतन में कुछ प्रतिशत कटौती कर दी थी, छत्तीसगढ़ में पूरा वेतन दिया गया। मगर, इस महीने कुछ गड़बड़ हो गई है। सरकार की ओर से अधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है, मगर सरकारी कर्मचारियों की मानें तो इस बार उनका वेतन अब तक जमा नहीं हुआ है। प्राय: वेतन उनके खातों में 29 या 30 तारीख तक आ जाता है, पर इस बार 2 अक्टूबर हो चुका है। अभी कर्मचारी शांत हैं, क्योंकि उन्हें लग रहा है शायद शनिवार, रविवार और उसके बाद आए 2 अक्टूबर के अवकाश के कारण कुछ बाधा आ गई हो। कई कर्मचारी- अधिकारी संगठनों के वाट्सएप ग्रुप में यह चर्चा का विषय बना हुआ है। वे आगामी त्यौहारों, बिल भुगतान और लोन के किश्त को लेकर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। वित्त मंत्री ओपी चौधरी का विपक्ष में रहते हुए बनाया गया पुराना वीडियो भी वायरल हो रहा है जिसमें वे केंद्र के बराबर वेतन, भत्तों को राज्य के कर्मचारियों का बेसिक राइट बता रहे हैं। कमेंट किया जा रहा है कि भत्तों की लड़ाई तो बाद में शुरू होगी, अभी उन्हें अपने वेतन की ही चिंता सता रही है।
बैटरी वाली साइकिल
बालोद जिले के अर्जुन्दा के स्वामी आत्मानंद स्कूल में पढऩे वाले इस बच्चे ने अपने स्कूल आने-जाने के लिए बैटरी वाली साइकिल बना ली है। बैटरी सीट और हैडिंल के बीच एक पेटी में रखी गई है। इस जुगाड़ को तैयार करने में उसके पिता ने मदद की, जो एक वेल्डिंग करने वाला श्रमिक है। अब यह बालक फर्राटे स्कूल और घर के बीच की दूरी तय कर लेता है। लोग इसके इनोनेशन की तारीफ कर रहे हैं।
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बैचमेट अब अगल-बगल मुखिया
मुख्य सचिव अमिताभ जैन के बैचमेट अनुराग जैन मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव नियुक्त हुए हैं। 89 बैच के अफसर अनुराग जैन का छत्तीसगढ़ से भी नाता रहा है। वो कांकेर के एडिशनल कलेक्टर रह चुके हैं। दोनों के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं।
आईएएस के 89 बैच के अफसर केन्द्र सरकार के कई विभागों में सचिव हैं, तो इस बैच के अफसर रिटायरमेंट के बाद पांच राज्यों में रेरा के चेयरमैन बन चुके हैं। अनुराग से परे अमिताभ जैन को मुख्य सचिव के पद पर तीन साल हो चुके हैं। अगले साल जून में उनका रिटायरमेंट है।
छत्तीसगढ़ के अब तक के सभी मुख्य सचिवों में आरपी बगई को छोडक़र बाकी सभी को कुछ न कुछ दायित्व मिला है। ऐसे में किसी तरह के विवादों से दूर रहने वाले अमिताभ जैन को भी रिटायरमेंट के बाद जिम्मेदारी मिलना तय माना जा रहा है। वैसे भी नीति आयोग के उपाध्यक्ष का अतिरिक्त दायित्व है ही।
पंजाब के विवाद का यहां से रिश्ता
छत्तीसगढ़ की रहने वाली पंजाब कैडर की आईएएस अनिंदिता मित्रा की पोस्टिंग को लेकर केंद्र, और पंजाब सरकार के बीच ठन गई है। अनिंदिता, छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस एसके राजू की पत्नी हैं। अनिंदिता के आईएएस बनने के बाद राजू ने भी अपना कैडर चेंज करा पंजाब चले गए थे।
केन्द्र ने अनिंदिता की पोस्टिंग चंडीगढ़ में निगम आयुक्त के पद पर की थी। उन्हें तीन माह का एक्सटेंशन भी दिया जा चुका था। एक्सटेंशन खत्म होने के बाद पंजाब सरकार ने उनकी एक विभाग में पोस्टिंग भी कर दी। इसके बाद फिर उन्हें एक्सटेंशन दिया गया है। चूंकि केन्द्र सरकार ने एक महीना देर से ऑर्डर जारी किया है। इसलिए पंजाब सरकार उन्हें रिलीव करने से मना कर दिया है। यह अपनी तरह का एक अलग मामला है, जिसकी अफसरों के बीच काफी चर्चा है।
हड़ताल के किस्से
शुक्रवार को पांच लाख कर्मचारियों की काम बंद कलम बंद हड़ताल सफल रही। जैसा कि 110 संगठनों वाले फेडरेशन में आशंका जताई जा रही कि शुक्रवार को सामूहिक अवकाश लेकर बहुतेरे तीन दिन के टूर पर निकल जाएंगे। उसके सच होने की खबरें आ रही हैं। हालांकि ऐसे लोगों पर नजर रखने फेडरेशन और अन्य कर्मचारी संगठन के नेताओं को जिम्मेदारी दी गई थी। बावजूद इसके राजधानी से लेकर सुदूर ब्लाक के कर्मचारी ने वही किया। कुछ तीन दिन के लिए निकल गए तो कुछ घंटे दो घंटे पंडाल में बिताकर लौट गए । यह तो बात हुई व्यक्तिगत हिस्सेदारी की। लेकिन यहां तो दो संगठनों के नदारद होने की चर्चाएं वाट्सएप ग्रुप में चल रही है । बताया गया है कि नियमित व्याख्याता संघ और वाहन चालक संघ का एक भी पदाधिकारी शामिल नहीं हुआ। यह गैरहाजिरी ,पूरे प्रदेश स्तर पर रही या किसी एक जिले में फेडरेशन इसकी पड़ताल कर रहा है। हालांकि दोनों ही संघों के मुखिया रिप्लाई में खारिज कर रहे हैं। सवाल जवाब के दौर चल रहे हैं। ऐसे में यह विवाद थमता नजर नहीं आ रहा।
अब भगवान का ही सहारा
थाने का शुद्धिकरण और अपराध नियंत्रण के लिए श्रीफल विच्छेदन के बाद से पुलिस को जवाब देते नहीं बन रहा। बड़े साहब भी नाराज हैं। लेकिन थाना स्टाफ कहता है, जिस पर गुजरती है न वही जानता है । सब कुछ ठीक चल रहा था, जब से नए थानेदार आए थे। करीब चार महीने तक मॉल की सैर, पीवीआर में सिनेमा, परिवार के साथ लंच डिनर हो रहा था। फिर अचानक पीआरए शूट आउट ने सारा रूटीन बदल दिया। और उस पर चोरियां, हिट एंड रन, हत्या के प्रयास और फिर 7 दिन में 2 हत्याकांड। बल को पेट्रोलिंग के बजाए श्रीमानों की ड्यूटी में लगाया जाए तो अपराधियों को मैदान खाली मिलेगा ही। पुलिस परेशान न हो तो क्या करे? भौतिक उपाय काम न आए तो पूजा पाठ, ज्योतिष का सहारा तो लेना ही होगा न। क्या गलत किया।
मवेशियों की मुसीबत
हाईवे पर मवेशियों के चलते हो रही लगातार दुर्घटनाएं हो रही हैं। मवेशी सडक़ों से हटने का नाम नहीं ले रहे हैं और हाईकोर्ट ने इन्हें हटाने के लिए अफसरों को कई बार डांट पिला दी है। यहां तक कि अदालत ने राजधानी से लेकर पंचायत तक की समितियां बनाने का निर्देश दिया है। जिलों में इन दिनों कलेक्टर्स ने तहसीलदार और एसडीएम को मवेशी खदेडऩे के काम में लगा दिया है। हाईवे पर अफसर मवेशियों को डेरा डाले देखते हैं तो उन्हें हटाते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। लौटते में देखते हैं कि मवेशी फिर वहीं पर, सडक़ पर आकर जम गए हैं। दरअसल, हो यह रहा है कि किसानों की फसल इन दिनों पकने के लिए तैयार है। मवेशी उनकी कमाई को चट न कर जाएं इसलिये उन्हें भीतर घुसने नहीं दिया जा रहा है। जो अनुपयोगी हो चुके मवेशियों को बेचना चाहते हैं, उन्हें खरीदार नहीं मिल रहे। गौरक्षकों का डर सताता है। इन रक्षकों को सडक़ में हो रही दुर्घटनाएं दिखाई नहीं दे रही है। थोड़ी ही संख्या ऐसे पशुपालकों की है, जो घर में मवेशियों को बांधकर रख रहे हैं। पिछली सरकार ने ढेरों की संख्या में गौठान बनाए थे। इनमें से बहुत से तो उसी समय उजड़ चुके थे, अब बचे हुए गौठान भी उजाड़ हो चुके हैं। मवेशी हटाने के काम में फंसे एक अफसर का कहना है कि अब हाईकोर्ट लाठी दिखाए या कलेक्टर, मवेशी तो फसल कटने के बाद ही सडक़ से हटेंगे।
बेकार भी नहीं स्काई वाक
राजधानी रायपुर के स्काई वॉक के विवादित ढांचे का मामला भले ही छह साल से अधर में लटका हुआ हो, लेकिन इसकी उपयोगिता बारिश होने पर समझ में आती है।
पार्टी सदस्यता और चुनौतियाँ
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भले ही सदस्यता अभियान को लेकर प्रदेश के नेताओं की पीठ थपथपा दी है, और सदस्यता का टारगेट बढ़ा दिया है। मगर पार्टी के अंदरखाने में सदस्यता पर नई उलझन पैदा हो गई है। चर्चा है कि जितना सदस्य बनना बताया गया था, उतने नहीं बने हैं।
नड्डा की समीक्षा बैठक में प्रदेश के नेताओं ने बताया था कि अब तक 27 लाख सदस्य बने हैं। लेकिन वस्तु स्थिति यह है कि अभी सिर्फ 17 लाख सदस्य को ही मान्यता मिली है।
ऐसा नहीं है कि सदस्यता अभियान में कोई फर्जीवाड़ा हुआ है। दरअसल, 17 लाख सदस्य ऑनलाइन बने हैं, और हरेक का रिकॉर्ड मौजूद है। बाकी 10 लाख सदस्य मैन्युअल बने हैं। हाईकमान का स्पष्ट निर्देश है कि केवल ऑनलाइन को ही सदस्य माना जाएगा।
मैन्युअल सदस्य दूर दराज के इलाके जहां मोबाइल नेटवर्क आदि की समस्या थी वहां के लिए अनुमति दी गई थी, लेकिन उनकी भी ऑनलाइन एंट्री करनी होगी तभी उन्हें सदस्य माना जाएगा। यानी उनकी ऑनलाइन एंट्री अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही है। इसके बाद सदस्यता के नए टारगेट को लेकर पार्टी नेताओं का पसीना छूट रहा है।
न्याय यात्रा का माहौल
कांग्रेस की न्याय यात्रा गिरौदपुरी धाम से निकलकर कसडोल, और बलौदाबाजार के गांवों से होकर रायपुर के नजदीक खरोरा पहुंच चुकी है। दो तारीख को रायपुर में समापन होगा। न्याय यात्रा की अगुवाई वैसे तो प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के बड़े नेता भी अलग-अलग जगहों पर यात्रा में शिरकत कर रहे हैं।
पहले दिन नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम साथ थे। जैसे-जैसे यात्रा बढ़ी, तेज धूप और उमस की वजह से यात्रियों का बुरा हाल रहा। बैज ने तो रविवार को दोपहर भोजन के बाद कुछ देर एसी चालू कर कार में आराम किया, और फिर घंटे भर बाद फिर पदयात्रा शुरू की।
पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी कल लाव लश्कर के साथ यात्रा में शामिल हुए। वो करीब 5 किमी बैज के साथ चले। इसके बाद वो दिल्ली के लिए निकल गए। उनका अंदाज कुछ हद तक दिवंगत पूर्व सीएम अजीत जोगी जैसा ही था। जोगी भी लाव लश्कर के साथ कार्यक्रम में आते थे, और फिर उनके जाते ही साथ आए लोग भी निकल जाते थे। भूपेश के साथ आए लोग भी निकल गए। फिर भी यात्रा उत्साह देखने को मिल रहा हैै। इससे दीपक बैज, और उनकी टीम काफी खुश भी हैं।
एंटी इनकंबेंसी से जूझ रहे पार्षद
सब कुछ समयानुकूल रहा तो निकाय चुनाव दिसंबर के तीसरे सप्ताह कराए जाएंगे। इसे देखते हुए विपक्ष में बैठे भाजपा के पार्षद, कांग्रेसी महापौर को और कांग्रेस के पार्षद-महापौर, सरकार को कोसने लगे हैं। यह सभी निगम, पालिका और नगर पंचायतों में हो रहा है। पांच वर्ष तक सबने मिलकर खीर खाई और चुनाव के समय खीर को कड़वा बताने में लग गए हैं। जनवरी-19 से 1825 दिन अपनी इनकम बढ़ाने में व्यस्त रहे दोनों ही दलों के पार्षद इस समय ज़बरदस्त एंटी इनकंबेंसी से गुजर रहे।
आउटर कहे जाने वाले वार्डों के पार्षद अधिक जूझ रहे। गांव से वार्ड बने इलाकों में लोगों में पार्षदों के लिए नाराजगी गले तक भरी हुई है।खासकर इन वार्डों के अंतिम छोर वाले इलाकों के लोग सबक सिखाने इंतजार कर रहे हैं। पार्षद कांग्रेस का हो या भाजपा का, इनको निपटाने की ठान चुके हैं। बिना स्ट्रीट लाइट की गलियां, मुख्य सडक़ें। एक-एक स्ट्रीट लाइट के लिए महीनों चक्कर लगवाया है इन पार्षदों ने। अब वोटर की बारी आ रही है। फिर भी इनका कहना है मैंने अपने वार्ड में विकास की गंगा बहाई। सडक़,सफाई बाग बगीचे बनवाए आदि आदि।
इंदौर, दिल्ली चंडीगढ़, बेंगलुरु मैसूर पिकनिक कर आए यह बोलकर कि अपने वार्ड को भी कनॉट प्लेस, लोधी रोड, पैलेस वार्ड, रेसीडेंसी बनाएंगे। लेकिन सच्चाई सबने देखा, हाल की बारिश में शहर, असम होकर रह गया। लोगों को स्कूलों में ठहरना पड़ा। सडक़ों पर बोट चलाना पड़ा। गलत नहीं हैं, नि:संदेह विकास तो हुआ है, इन पार्षदों के बैंक एकाउंट का, इनके स्वयं के मकानों का, स्कूटी, बाइक से अब एक्सयूवी,एसयूवी में चल रहे। जनता सब देख रही, बस आने वाला है उसका समय।
मेहनत का मोल नहीं
पंजाब के किसान, जो अनाज की भरपूर पैदावार के लिए जाने जाते हैं, आज अपनी मेहनत का सही मूल्य न मिलने पर धान को सडक़ों पर फेंककर विरोध कर रहे हैं। यह धान भी कोई साधारण किस्म नहीं, बल्कि सुगंधित बासमती है। किसानों का कहना है कि पिछले साल बासमती की कीमत 917 डॉलर प्रति टन थी, तब उन्हें 3500 रुपये प्रति क्विंटल मिले थे। अब जब इसकी अंतरराष्ट्रीय कीमत 1037 डॉलर प्रति टन हो गई है, तो उन्हें 2200 रुपये से ज्यादा नहीं मिल रहा है।
बासमती की खेती में लागत भी ज्यादा आती है, और बाजार में यह महंगा बिकता है। फिर भी किसानों को इसका फायदा नहीं मिल रहा। उनके अनुसार सारा मुनाफा बिचौलियों और आढ़तियों की जेब में जा रहा है। अगर छत्तीसगढ़ की बात करें, तो यहां ज्यादातर किसान सरकारी खरीद को ध्यान में रखते हुए मोटा धान उगाते हैं। खुले बाजार में बिकने वाले धान की यहां भी कोई खास कीमत नहीं मिलती, चाहे वह सुगंधित हो या मोटा।
इस कठिन परिस्थिति के बावजूद बाजार में चावल की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है। बासमती तो बस खास लोगों और खास मौकों के लिए शाही चावल बनकर रह गया है, जबकि मेहनत करने वाले किसानों को उनके पसीने की असली कीमत नहीं मिल रही।
अधूरे आवासों का भविष्य क्या होगा?
छत्तीसगढ़ के पिछले विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री आवास योजना के ठप पडऩे को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाया था। इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा। अब नई भाजपा सरकार ने इस योजना को पुन: गति देने के लिए राशि जारी करनी शुरू कर दी है। हाल ही में केंद्र सरकार ने 2400 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की है, जो प्रस्तावित 5 लाख 11 हजार आवासों की पहली किश्त है। मुख्यमंत्री साय ने कलेक्टरों को निर्देश दिया है कि किसी भी प्रकार की लेन-देन या भ्रष्टाचार की शिकायत मिलने पर सख्त कार्रवाई की जाए।
हालांकि, प्रधानमंत्री आवास योजना में भ्रष्टाचार की शुरुआत लाभार्थियों की सूची में नाम दर्ज होने के समय से ही हो जाती है। बंदरबांट तो किश्त जारी होने के बाद भी कम नहीं। ठेकेदार काम की जिम्मेदारी तो लेते हैं, पर अक्सर उसे अधूरा छोड़ देते हैं। पहली किश्त मिलने के बाद दूसरी किश्त तब जारी होती है जब निर्माण छत की ऊंचाई तक पहुंचता है, और तीसरी किश्त काम के और आगे बढऩे पर। चौथी और अंतिम किश्त तब मिलती है जब मकान पूरी तरह तैयार हो जाता है। फिलहाल, लाभार्थियों के खातों में पहली किश्त जमा कर दी गई है, लेकिन वह राशि अभी फ्रीज है, यानी उसे निकाला नहीं जा सकता। काम की प्रगति के साथ ही पहली किश्त जारी की जाएंगी। पिछले अनुभव बताते हैं कि शुरुआत में निगरानी तो होती है, परंतु बाद में निरीक्षण करने अधिकारी और कर्मचारी खुद ठेकेदारों से मिल जाते हैं। पूरे प्रदेश में ऐसे हजारों मकान हैं, जिनका निर्माण अधूरा पड़ा है क्योंकि अगली किश्त काम अधूरा होने के कारण रुक गई है। ठेकेदार और दलाल पहली किश्त हड़प कर गायब हो चुके हैं। वर्ष 2021 के बाद राज्य सरकार की ओर से हिस्सेदारी न मिलने और कोविड-19 के कारण केंद्र द्वारा धनराशि न भेजे जाने से योजना ठप हो गई। नतीजा यह हुआ कि अब इन लाभार्थियों के पास अपने अधूरे मकानों को पूरा करने के लिए धन नहीं है। प्रदेश में ऐसे ठेकेदारों से शायद ही कभी वसूली की गई हो, जिन्होंने लाभार्थियों की रकम हड़प ली। इस समस्या का हल क्या होगा?
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दक्षिण में सामाजिक दबाव
रायपुर दक्षिण सीट उपचुनाव को लेकर हलचल तेज हो गई है। सामाजिक बैठकों का दौर भी चल रहा है। सबसे पहले अग्रवाल समाज ने कांग्रेस, और भाजपा से टिकट के लिए दबाव बनाया है। यहां से बृजमोहन अग्रवाल विधायक रहे हैं। ऐसे में अग्रवाल समाज के नेता विशेषकर भाजपा की टिकट पर स्वाभाविक हक मान रहे हैं।
भाजपा से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, प्रदेश कोषाध्यक्ष नंदन जैन (अग्रवाल), प्रदेश प्रवक्ता अनुराग अग्रवाल, बृजमोहन अग्रवाल के छोटे भाई विजय अग्रवाल के अलावा भी कई व्यापारी नेता दावेदारी कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस से कन्हैया अग्रवाल, और सन्नी अग्रवाल की दावेदारी है। इससे परे ब्राम्हण समाज भी पीछे नहीं है।
सर्व ब्राम्हण समाज के बैनर तले ब्राम्हण नेताओं की एक बैठक हो चुकी है। रायपुर दक्षिण में करीब 35 हजार ब्राम्हण वोटर हैं। इन सबको देखते हुए सामाजिक रूप से एकजुट कर दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों से टिकट के लिए दबाव बनाने की रणनीति पर काम हो रहा है। कांग्रेस से सभापति प्रमोद दुबे, ज्ञानेश शर्मा सहित कई नाम चर्चा में हैं, तो भाजपा से मीनल चौबे, सुभाष तिवारी, मृत्युंजय दुबे और मनोज शुक्ला के नाम चर्चा में हैं।
दूसरी तरफ, पिछड़ा वर्ग, और अल्पसंख्यक नेता दोनों ही पार्टियों में सक्रिय हैं, और वो टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। सामाजिक दबाव का राजनीतिक दलों पर कितना असर होता है, यह तो प्रत्याशी की घोषणा के बाद ही पता चल पाएगा।
सत्ता और संघ
छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के सीएम विष्णुदेव साय निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिए गए। यहां ओलंपिक संघ का तो कोई काम नहीं है, क्योंकि अलग-अलग खेलों के संघ के मार्फत टूर्नामेंट होते रहते हैं। मगर सीएम के अध्यक्ष बनने से पद जरूर प्रतिष्ठापूर्ण रहा है। खास बात यह है कि राज्य बनने के बाद से ओलंपिक संघ के अध्यक्ष सीएम ही बनते आए हैं। बाकी राज्यों में ऐसा नहीं है।
ओलंपिक संघ अध्यक्ष पद पर सीएम के बनने के पीछे खेल संघों की अपनी राजनीति है। राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के अध्यक्ष के पद पर अजीत जोगी निर्वाचित हुए। मगर उन्हें अध्यक्ष बनने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी, और अंत तक उनका निर्वाचन विवादों से घिरे रहा।
विवाद की शुरुआत तत्कालीन मंत्री विधान मिश्रा के महासचिव बनाने के प्रस्ताव पर हुई। तब ओलंपिक संघ के अध्यक्ष पद पर खेल संघ के शंकर सोढ़ी, और महासचिव विधान मिश्रा बनने वाले थे, तब खेल संघ के कुछ पदाधिकारियों ने सीधे अजीत जोगी से संपर्क साधकर उन्हें अध्यक्ष बनाने के लिए तैयार कर लिया।
जोगी अध्यक्ष तो बन गए, लेकिन भारतीय ओलंपिक संघ से मान्यता नहीं मिली। क्योंकि उस वक्त दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल भारतीय ओलंपिक संघ के आजीवन अध्यक्ष थे। शुक्ल ने जोगी को रोकने के लिए अपने करीबी पूर्व महापौर बलवीर जुनेजा को अध्यक्ष, और सलाम रिजवी को महासचिव बनवा दिया। भारतीय ओलंपिक संघ ने शुक्ल समर्थक संघ के पदाधिकारियों को मान्यता दे दी। बाद में यह लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक गई। सरकार बदलने के बाद डॉ. रमन सिंह ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बने। उन्हें अध्यक्ष बनवाने में डॉ. अनिल वर्मा ने भूमिका निभाई।
कांग्रेस सरकार आने के बाद भूपेश बघेल ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बन गए। कुछ समय के लिए गुरुचरण सिंह होरा महासचिव बने, बाद में उनकी जगह देवेन्द्र यादव महासचिव बनाए गए। कांग्रेस सरकार के जाते ही भूपेश बघेल को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया, और उनकी जगह सीएम विष्णुदेव साय अध्यक्ष बने। महासचिव पद पर विक्रम सिसोदिया का निर्वाचन हुआ, जो कि इस चुनाव के केन्द्र में रहे हैं। यानी सरकार बदलने के साथ-साथ ओलंपिक संघ के पदाधिकारी भी बदलते रहे हैं।
आस्था पर ज्यादा खर्च होगा...
तीन अक्टूबर से शुरू हो रहे नवरात्रि पर्व पर तिरुपति लड्डू प्रकरण की छाया दिखाई दे रही है। राज्य सरकार की ओर से घी के मामले में तो यह कहा गया है कि देवभोग ब्रांड, जो सरकार का ही एक सहकारी उत्पाद है उसका घी जलाने में काम लिया जाए, मगर तेल का क्या होगा? उनमें भी मिलावट की शिकायत है। अप्रैल महीने में आने वाले चैत्र नवरात्रि के दौरान अंबिकापुर में खाद्य विभाग ने करीब 8 हजार लीटर नकली तेल जब्त किया था। अन्य अखाद्य तत्वों के अलावा इसमें खतरनाक एसिड मिला होने की भी आशंका थी। जब्ती के बाद लैब रिपोर्ट क्या आई, इसकी जानकारी नहीं है। पर, इन्हें मंदिरों में खपाने से पहले जब्त कर लिया गया था। यहां पर नकली घी का भी भंडार मिला था। महंगाई के इस दौर में लोगों का ध्यान आस्था की अभिव्यक्ति के दौरान भी बजट की ओर ध्यान रहता है। प्राय: सभी मंदिर समितियां नौ दिन जलने वाले घी व तेल के ज्योति कलश के लिए शुल्क का निर्धारण करते समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि इनका शुल्क कम ही रखा जाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालु ज्योत प्रज्ज्वलित करा सकें। जब तक तिरुपति का मामला सामने नहीं आया था मंदिर समितियां रेट सूची मंगाकर सप्लायर या निर्माताओं को सीधे ऑर्डर कर देती थीं। पर इस बार भक्तों की आस्था डगमगा गई है। वे पूछताछ कर रहे हैं कि किस ब्रांड के तेल या घी से ज्योति जलने वाली है।
चैत्र व क्वांर नवरात्रि पर घी और तेल का कारोबार करोड़ों में है। रतनपुर स्थित महामाया मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां देश में सबसे ज्यादा ज्योति कलश प्रज्ज्वलित होती है। पिछली चैत्र नवरात्रि में 500 टिन घी और 3 हजार टिन तेल की खरीदी की गई थी। पहले आपूर्ति करने वाली कंपनियों की जगह इस बार देवभोग घी का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया है। तेल भी इस बार केवल ब्रांडेड कंपनियों का होगा। इसी तरह की खबर दूसरे जगहों से भी है। बालोद जिले के गंगा मईया मंदिर में घी और तेल का पहले लैब टेस्ट कराया जाएगा, फिर इस्तेमाल किया जाएगा।
ज्योति कलश के लिए खरीदे जाने वाले घी, तेल की गुणवत्ता पर पहली बार इतनी सावधानी बरती जा रही है। इसके पहले श्रद्धालुओं को विभिन्न मंदिरों में जो प्रतिस्पर्धी शुल्क दिखाई देते थे, आने वाले दिनों में हो सकता है उन्हें ज्यादा खर्च करना पड़े। शुद्धता की कीमत तो चुकानी होगी।
एक माह में इतनी उछाल !
राशन, सब्जी, सीमेंट. छड़ की महंगाई पर रोजाना चर्चा हो जाती है पर दवाओं की कीमत अचानक बढ़ जाती है और कुछ खबर भी नहीं लगती। यह दवा सितंबर में 195 रुपये में मिलती थी। अगले महीने अक्टूबर में इसका दाम हो गया 350 रुपये। क्यों, क्या इस एक महीने में कच्चा माल महंगा हो गया। सरकार ने टैक्स बढ़ा दिया? लोग सवाल नहीं कर पाते। जवाब देने वाला कोई होता भी नहीं। एक बात जरूर ध्यान में आती है कि दवा कंपनियों ने जमकर इलेक्टोरल बांड खरीदे थे। (rajpathjanpath@gmail.com)
किचकिच के बाद एयरपोर्ट का जिम्मा
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा गुरुवार को रायपुर आए, तो एयरपोर्ट में अंदर प्रवेश के लिए पार्टी नेताओं में काफी किचकिच हुई। यह मामला उस वक्त और बढ़ गया जब प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन को छोडऩ़े के लिए एयरपोर्ट पहुंचे महामंत्री (संगठन) पवन साय को बाहर रोक दिया गया। चर्चा है कि इन घटनाक्रमों से नितिन नबीन काफी खफा हैं, और उनके हस्तक्षेप के बाद एयरपोर्ट में स्वागत-सत्कार प्रबंधन की जिम्मेदारी प्रीतेश गांधी को दे दी गई है।
पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के रायपुर आगमन पर एयरपोर्ट में स्वागत-सत्कार आदि की व्यवस्था अब तक प्रदेश कार्यालय मंत्री देखते रहे हैं। प्रदेश कार्यालय मंत्री की शिकायत रही है कि पार्टी दफ्तर से नाम भेजे जाने के बावजूद एयरपोर्ट प्रबंधन अपनी तरफ से कई नाम काट देता है। जिससे वो अंदर प्रवेश करने से वंचित रह जाते हैं। इस मसले पर एयरपोर्ट अधिकारियों के अपने तर्क हैं। उनका कहना है कि नियमों को ताक पर रखकर अधिक संख्या में नेताओं को अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
विवाद के बाद प्रदेश भाजपा के नेता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि स्वागत-सत्कार के लिए एयरपोर्ट के अफसरों के साथ तालमेल बिठाकर काम करने की जरूरत है। इसके लिए प्रीतेश गांधी को उपयुक्त पाया गया। प्रीतेश एयरपोर्ट सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे हैं। न सिर्फ रायपुर बल्कि इंदौर एयरपोर्ट के भी सदस्य रहे हैं। उनके एयरपोर्ट अफसरों से अच्छे संबंध बताए जाते हैं। चर्चा है कि अब एयरपोर्ट में अंदर प्रवेश के लिए पार्टी की तरफ से सूची प्रीतेश ही फायनल करेंगे। देखना है कि नई व्यवस्था के बाद स्वागत-सत्कार को लेकर विवाद खत्म होता है या नहीं।
नड्डा से दोस्ती तो ठीक है, लेकिन आगे?
बीजापुर के पूर्व कलेक्टर अनुराग पांडेय गुरुवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा से मिले, तो नड्डा ने उनके साथ अपने पुराने रिश्तों को अन्य नेताओं से साझा किया।
नड्डा 90 के दशक में जेएनयू में एबीवीपी के प्रमुख थे। उस वक्त अनुराग भी वहां अध्ययनरत थे। तब से अनुराग के नड्डा से परिचित हैं। यही नहीं, नड्डा ने उनसे बीजापुर का हाल जाना। इस दौरान वहां मौजूद प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव ने अनुराग पांडेय की तारीफ करते हुए कहा कि बहुत कम समय में अंदरूनी इलाकों में अच्छा काम हुआ है। कुछ और नेताओं ने भी किरणदेव के सुर में सुर मिलाया।
ये अलग बात है कि रिटायर होने के बाद अनुराग को कोई जिम्मेदारी नहीं मिली है। सरकार उन्हें कोई दायित्व सौंपती है या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
7 दिन में 3 दिन की कमाई ..!
दुर्ग- विशाखा वंदेभारत एक्सप्रेस को शुरू हुए एक सप्ताह पूरा हो गया । इस दौरान इस द्रुतगामी ट्रेन में सप्ताह भर ड्यूटी करने वाले टिकिट कलेक्टर्स के मुताबिक इन 7 दिनों में तीन दिन का भी आपरेशनल कास्ट नहीं मिला रेलवे को।वैसे इस ट्रेन को अच्छे प्रतिसाद दिलाने वाट्सएप चैटिंग में कुछ का कहना है कि इसका रूट दुर्ग के बजाए कोरबा से चलाने का सुझाव दे रहे हैं। और टाइमिंग भी बता रहे सुबह 5 बजे कोरबा से स्टार्ट किया जाए तो दो बजे विशाखा पहुंचा जा सकता है। इससे कोरबा से विशाखापट्टनम के लिए एक और ट्रेन उपलब्ध रहेगी। दुर्ग से तो विशाखा के लिए समता,भगत की कोठी,साईंनगर एक्सप्रेस और रायपुर आकर रात लिंक एक्स्प्रेस की कनेक्टिविटी है ही।
बताया गया है कि इसके साथ 16 और 20 सितंबर से शुरू हुए नौ अन्य ट्रेनों का भी यही हाल बताया गया है। दिल्ली के एक राष्ट्रीय दैनिक ने दो दिन पहले ही इन ट्रेनों का पैसेंजर रिस्पांस प्रकाशित किया था। सिकंदराबाद- नागपुर जैसे महानगरों को जोडऩे वाली वंदेभारत भी अपनी कुल सीट क्षमता के मुकाबले सिर्फ 20 फीसदी यात्रियों के साथ दौड़ी।यानी यह ट्रेन 80 फीसदी से ज्यादा खाली सीटों के साथ चल रही है। इस पर रेल कर्मियों का कहना है कि शुरू के दो तीन महीने सभी का यही हाल रहता है। आने वाले दिन त्यौहारी, शीतकालीन अवकाश, न्यू ईयर ट्रिप के हैं, भीड़ बढ़ेगी बुकिंग बढ़ेगी।
साइबर ठगी का नया तरीका
साइबर अपराध की एक चाल को लोग समझने की कोशिश करते हैं, तभी दूसरी और तीसरी चालबाजियां सामने आ जाती हैं। हाल ही में इसका एक उदाहरण फर्जी ई-चालान के मेसेज के रूप में देखा जा रहा है। छत्तीसगढ़ के कई शहरों में चौक-चौराहों पर लगे सीसीटीवी कैमरों से सिग्नल तोडऩे पर कंट्रोल रूम में रिकॉर्ड दर्ज होता है, और तुरंत वाहन के पंजीकृत मोबाइल नंबर पर ई-चालान का मेसेज भेज दिया जाता है। इस प्रक्रिया में ऑनलाइन जुर्माना भरने की सुविधा भी दी गई है।
लेकिन अब इस प्रक्रिया को भी ठगी का जरिया बना लिया गया है। आपके मोबाइल पर चालान का मेसेज आएगा। आपको लगेगा कि आपने अनजाने में कोई ट्रैफिक नियम तोड़ा है। जैसे ही आप लिंक पर क्लिक करेंगे, आप ठगी के जाल में फंस सकते हैं। जालसाजों ने मिलते-जुलते नाम से फर्जी वेबसाइटें भी बना रखी हैं। गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (जीपीएम) जिले की पुलिस ने लोगों को इस बारे में सतर्क किया है, लेकिन संभव है कि छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों में भी ऐसा हो रहा हो। सभी के लिए यह जानकारी बेहद जरूरी है।
अभिभावकों की चिंता
छत्तीसगढ़ ही नहीं देशभर के स्कूलों से ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं जिसने अभिभावकों को अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता पैदा कर दी है। मध्यप्रदेश सरकार ने हाल ही में एक आदेश जारी कर सभी निजी और सरकारी स्कूल के टीचिंग, नॉन टीचिंग स्टाफ यहां तक कि अस्थायी रूप से रखे जाने वाले कर्मचारियों का पुलिस वेरिफिकेशन अनिवार्य कर दिया है। अब ऐसी ही मांग कोरबा से उठी है। बीते दिनों शिक्षा मंत्री टंकराम वर्मा से पैरेंट्स एसोसियेशन ने ऐसा ही प्रावधान छत्तीसगढ़ में भी लागू करने की मांग की। उनका कहना है कि वे विशेषकर छात्राओं को लेकर चिंतित हैं। यदि यह पहल की गई तो यौन शोषण व दुर्व्यवहार की घटनाओं में नियंत्रण रखा जा सकेगा। यह जरूर है कि पुलिस वेरिफिकेशन स्कूलों का माहौल सुधारने के लिए पूरी तरह कारगर नहीं होगा। अनेक शिक्षक तो नशे की हालत में स्कूल पहुंचकर बच्चों का भविष्य खराब कर रहे हैं। उन पर कैसे निगरानी होगी? इसके बावजूद अभिभावकों की मांग गौर करने लायक है। (rajpathjanpath@gmail.com)
हड़ताल और आदतन गैरहाजिर
आज कलम बंद काम बंद हड़ताल की सफलता पर व कहीं कोई संदेह नहीं रह गया है। सुबह से राजधानी समेत प्रदेश के सभी स्कूलों में तालाबंदी हैं। मठपुरैना स्कूल में तो सांड, बैल घूमते रहे। तहसील, कलेक्टोरेट, निगम के जोन-मुख्यालय सब खुले तो थे लेकिन कुर्सियां खाली पड़ी रही। अब ये सोमवार को ही भरेंगी। अगले दो दिन साप्ताहिक अवकाश है ही। हड़ताल को यह स्वरूप देने, फेडरेशन के नेताओं को कई यत्न करने पड़े, और आज सुबह तक भी। सामूहिक अवकाश का आवेदन देकर कहीं कोई कर्मचारी तीन दिन की टूर पर न निकल जाए। इस पर विशेष नजर रखी गई। वाट्सएप ग्रुप में बड़े नेता यही मेसेज वायरल करते रहे। ऐसे लोगों के लिए निगरानी भी बिठाई गई। हालांकि जो नहीं आया उस पर कार्रवाई तो कर नहीं सकते। और किया गया तो एक व्यक्ति भी पूरा संघ संगठन को नुकसान पहुंचा सकता है। अब ऐसे आदतन तो मेरे अकेले के न जाने से क्या होगा सोचकर, गए तीन दिन के लिए। क्योंकि इनका मानना है कि डीए मिलेगा ही, कुछ देर से ही सही। बाकी आठ माँगें, जब पूरी होंगी तब मुझे भी मिल जाएगा फायदा। आज जिला, तहसील, ब्लाक के धरना स्थलों पर कर्मचारी नेता ऐसे लोगों की लिखित न सही जेहन में अवश्य सूची बनाते रहे। ताकि भविष्य में इनके व्यक्तिगत काम पडऩे पर आज की गैरहाजिरी याद दिलाई जा सके।
नड्डा और पुराने परिचित
राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा यहां आए, तो पार्टी के प्रमुख नेताओं के साथ अलग-अलग बैठक की। उन्होंने सीएम विष्णुदेव साय, प्रभारी नितिन नबीन, प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव और पवन साय के साथ करीब 15 मिनट तक अलग से चर्चा की। कहा जा रहा है कि इस बैठक में संगठन की गतिविधियों पर मंत्रणा हुई है।
नड्डा जैसे ही कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में उतरे, उन्होंने स्वागत के लिए मौजूद सांसद बृजमोहन अग्रवाल के कान में कुछ कहा। बाद में दोनों की अलग से चर्चा भी हुई। नड्डा पार्टी, और सरकार के कामकाज के साथ-साथ उपचुनाव की तैयारियों पर भी मंत्रणा की है।
नड्डा प्रदेश भाजपा के प्रभारी भी रह चुके हैं। लिहाजा, वो छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं से व्यक्तिगत तौर पर परिचित भी हैं। यही वजह है कि एयरपोर्ट से लेकर पार्टी दफ्तर में उनसे मिलने के लिए होड़ मची रही। कई नेताओं को स्वागत के लिए एयरपोर्ट में प्रवेश नहीं मिला, इस पर कुछ नेताओं ने संगठन के नेताओं से शिकायत भी की।
सही-गलत अलग है, लेकिन....
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा यहां आए, तो उन्होंने सदस्यता अभियान की समीक्षा की। वे नालंदा परिसर भी गए, जहां यूपीएससी-पीएससी, और अन्य प्रतियोगी परीक्षा की तैयारियों में जुटे युवाओं से भी मुलाकात की। कई युवाओं ने तो भाजपा की सदस्यता भी ली।
नालंदा परिसर में भाजपा के सदस्यता अभियान की आलोचना भी हो रही है। नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ये तो (नालंदा परिसर) लाइब्रेरी का दुरुपयोग हो रहा है। वह पढऩे की जगह है, न कि राजनीतिक सदस्यता दिलाने की। हर जगह इस प्रकार का आयोजन होना अच्छा संदेश नहीं है। कांग्रेस नेता चाहे कुछ भी कहे, लेकिन नौकरी के लिए पढ़ाई कर रहे युवाओं का राजनीतिक दल का सदस्य बनना चौंका भी रहा है।
दंड देने का यह कौन सा तरीका?
स्कूलों में बच्चों के साथ अमानवीय बर्ताव की घटनाएं रुक नहीं रही है। दंड देने के नए-नए तरीके आजमाए जा रहे हैं। जशपुर जिले के बगीचा स्थित एक पब्लिक स्कूल में चौथी कक्षा की बच्ची को होम वर्क पूरा करके नहीं लाने पर शिक्षिका 200 बार ऊठक-बैठक लगाने के लिए कहा। डरी-सहमी नन्हीं सी जान ने दंड भुगतना शुरू किया। जैसे तैसे व 70 दंड बैठक ही लगा पाई। उसके बाद उसकी ताकत जवाब दे गई और गिर पड़ी। बच्ची को घर भेज दिया गया। अब बच्ची का पैर सूज गया है और चल नहीं पा रही है। परिजन उसका अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। मगर उस शिक्षिका पर कोई कार्रवाई अब तक नहीं हुई है। इस तरह के बढ़ते मामलों पर हाईकोर्ट को संज्ञान लेने की जरूरत पड़ रही है। नई शिक्षा नीति में छोटे बच्चों को होम वर्क नहीं देने और मनोरंजक वातावरण में पढ़ाने का सुझाव दिया गया है। इसके बावजूद जशपुर जैसी घटनाएं हो रही हैं।
विधायक पुराने दिनों में लौटी..
सरायपाली की विधायक चातुरी नंद राजनीति में कदम रखने से पहले शिक्षिका थी। वह अपने क्षेत्र के एक स्कूल पहुंची। बच्चों से उन्होंने प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के बारे में सवाल पूछा। फिर चाक लेकर ब्लैक बोर्ड पर खुद ही पढ़ाने लगीं। इसका एक वीडियो सामने आया है।
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कमरे की दीवारें हैरान
लोगों की जिंदगी में कुछ घटनाएं बड़ा संयोग लेकर आती हैं। अब छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल के एक सबसे नौजवान मंत्री ओ.पी.चौधरी राजनीति में आने के पहले आईएएस अफसर थे, और राजधानी रायपुर के कलेक्टर थे। फिर उन्होंने रमन सिंह सरकार के रहते हुए ही राजनीति में आना तय किया, और नौकरी से इस्तीफा दिया। उस वक्त मुख्य सचिव के बंगले पर जाकर उन्होंने बंगला-दफ्तर कहे जाने वाले कमरे में सीएस की टेबिल पर सामने बैठकर इस्तीफा लिखा था, और उन्हें दे दिया था। इसके मंजूर होते ही वे राजनीति में आए, पहला चुनाव हारा, और दूसरा चुनाव जीतकर वे मंत्री बने।
अब जिस बंगले के जिस कमरे में बैठकर उन्होंने मुख्य सचिव के सामने इस्तीफा लिखा था, आज वे उसी बंगले में मंत्री की हैसियत से रहते हैं, और बंगले का वही कमरा उनका आज का बंगला-दफ्तर है। मेज बदल गई है, लेकिन कमरा वही है, और उस कमरे में पहला दस्तखत उन्होंने अपने इस्तीफे पर किया था, और अब वे रोजाना वहां दर्जनों दस्तखत करते हैं। कमरे की दीवारें भी कुछ हैरान होती होंगी।
नई लीडरशिप?
साय सरकार ने युवा आयोग के अध्यक्ष पद पर अंबिकापुर के पार्षद विश्व विजय सिंह तोमर की नियुक्ति कर स्थानीय बड़े नेताओं को चौंका दिया है। तोमर अंबिकापुर के युवा मोर्चा के शहर अध्यक्ष हैं। चर्चा है कि उनकी नियुक्ति में प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन की अहम भूमिका रही है। यही नहीं, महामंत्री (संगठन) पवन साय, और डिप्टी सीएम विजय शर्मा की सहमति रही है।
तोमर, डिप्टी सीएम विजय शर्मा जब युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष थे, तब उनकी कार्यसमिति में भी थे। नितिन नबीन जब प्रदेश भाजपा के सहप्रभारी के तौर पर काम कर रहे थे, तब से तोमर उनसे जुड़े थे। ये अलग बात है कि ‘लाल बत्ती’ के दावेदारों में सरगुजा के जिन नेताओं के नाम की चर्चा रही है उनमें ज्यादातर नेता रायपुर में देखे जा सकते हैं। ऐसे में वहां तोमर को ‘लाल बत्ती’ देकर एक नई लाइन तैयार करने की कोशिश की गई है। देखना है कि तोमर बतौर युवा आयोग के अध्यक्ष कितने सफल रहते हैं।
हाईकमान जल्दबाजी में नहीं
राजीव भवन से मिल रही खबरों पर भरोसा करें तो पीसीसी में कोई बदलाव नहीं होना है। दीपक बैज और उनकी कार्यकारिणी को कम से कम छ माह का अभयदान मिल गया है। चर्चा है कि अध्यक्ष के लिए जो नाम चल रहे हैं वो भी अभी नहीं बनना चाहते। इसका पहला कारण -अभी बने तो अगले चार वर्ष संगठन को चलाने खर्च अपनी जेब से करना होगा।( क्योंकि पार्टी कोष में विधायकों के अंशदान की हिस्सेदारी का हाल सब जानते)।
दूसरा कारण- सामने निगम पंचायत चुनाव में सत्ताधारी दल के मुकाबले हार जीत के आरोप से बचा जा सकेगा। ये चुनाव दिसंबर से फरवरी मार्च तक होंगे।
तीसरा कारण- नए प्रभारी सचिवों के प्रदेश व्यापी दौरे भी होने हैं। उसके बाद ही उनका मशविरा भी होगा। इन्हें देखते हुए अध्यक्ष की नई नियुक्ति मार्च के बाद ही हो पाएगी। तब तक दीपक बैज को अभयदान मिल गया है, यह भी स्पष्ट है कि संगठन में रिक्त पद भी वे भर नहीं पाएंगे। वैसे दिल्ली से जुड़े सूत्र बताते हैं कि हाईकमान भी महाराष्ट्र, झारखंड विधानसभा चुनाव तक छत्तीसगढ़ जैसे छोटे और हारे हुए राज्य को लेकर नई नियुक्तियों को लेकर जल्दबाजी में नहीं है।
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तबादले का मौसम आया भी नहीं, और चले गया
सामान्य प्रशासन विभाग ने तबादले पर से बैन हटाने का प्रस्ताव तो तैयार किया था लेकिन कैबिनेट में नहीं रखा जा सकता है। प्रस्ताव में एक सितंबर से दस सितंबर तक तबादले के लिए आवेदन लिया जाना था और माह के आखिरी में तबादला सूची जारी होनी थी। जिले के भीतर के तबादले के अधिकार प्रभारी मंत्री को देने का प्रस्ताव था मगर इसको अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका।
तबादले की प्रस्तावित समय-सीमा निकल चुकी है। तबादला पर से बैन नहीं खुलने से न सिर्फ भाजपा कार्यकर्ता बल्कि वे अफसर और कर्मचारी निराश हैं जो अपने तबादले के लिए प्रयासरत थे। हालांकि समन्वय के अनुमोदन से कुछ विभागों की सूची जारी भी हुई है। स्कूल शिक्षा विभाग के करीब 3 हजार शिक्षक-कर्मचारियों के तबादले के प्रस्ताव पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। अब शिक्षा सत्र आगे बढ़ चुका है। इसलिए अब शिक्षकों के तबादले पर संशय बना हुआ है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
नए आए लोगों की क्या जगह होगी?
विधानसभा, लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा प्रवेश करने वाले नेता कार्यकर्ता गुमनामी में चल रहे हैं। भाजपा का दावा था कि करीब 23 हजार लोगों ने प्रवेश किया था। इनमें पूर्व सांसद-विधायक, महापौर, पालिका-जिला पंचायत अध्यक्ष समेत अन्यान्य पदाधिकारी भी रहे। दोनों ही चुनावों में इनका छत्तीसगढ़ से हरियाणा राजस्थान तक में इस्तेमाल किया गया और अब असली निकाय चुनाव सामने आ रहे हैं, जो इनके ग्राउंड कनेक्ट को साबित करेगा। लेकिन उससे पहले ही सभी सुषुप्तावस्था में नजर आ रहे है।
सदस्यता अभियान में भी कहीं नाम, काम नजर नहीं आ रहा। सभी नेपथ्य में नजर आ रहे हैं। जबकि निकाय चुनाव में टिकट का सबसे बड़ा क्राइटेरिया, किसने कितने अधिक सदस्य बनाए, होने जा रहा है। इसमें कितने सफल होंगे यह तो जल्द बताएगा। लेकिन भाजपा प्रवेश के समय इनके पुराने कांग्रेसी साथी कहते रहे कि विभागों में अटके बिल पास करवाने के लिए भगवा दुपट्टा पहना है। और कांग्रेस में रुमाल छोड़ गए हैं। वैसे किरण देव इन बातों को खारिज कर कह चुके हैं सबकी योग्यता और विशेष योग्यता अनुसार संगठन काम ले रहा है और आगे भी लेगा। अब कांग्रेसी यह देख रहे हैं कि इनमें कितनों को भाजपा पार्षद का टिकट देती है।
हसदेव की गोद में हाथी
हसदेव अरण्य के घने पेड़ों के बीच की यह तस्वीर एक वनरक्षक अशोक श्रीवास ने खींची है। बड़े इत्मीनान से अपने ठिकाने पर हाथियों का झुंड आराम फरमा रहा है। मगर, जिस तेजी से कोयला खदानों के लिए वहां जंगल काटे जा रहे हैं और भविष्य में काटे जाने की आशंका है, इन्हें इस तरह का आराम मिल पाएगा भी या नहीं, यह सोचना पड़ेगा।
हरियाणा में छत्तीसगढ़ जैसा होगा?
दिसंबर 2023 में जब तक छत्तीसगढ़ का विधानसभा चुनाव परिणाम नहीं आ गया, किसी को नहीं लग रहा था कि कांग्रेस सत्ता बचा नहीं पाएगी। तमाम राजनीतिक विश्लेषक और एग्जिट पोल 50 प्लस सीट तो दे ही रहे थे। मगर, जब नतीजा आया तो कांग्रेस को अब तक की सबसे कम सीटें मिलीं। इस समय हरियाणा को लेकर बड़ी चर्चा है कि कांग्रेस वहां 10 साल बाद सत्ता में वापसी कर सकती है। इसके तमाम कारण गिनाये जा रहे हैं, जैसा सन् 2018 के चुनाव में भाजपा को लेकर छत्तीसगढ़ में कहा गया, एंटी इंकमबेसी। इसके अलावा अग्निवीर योजना से नौजवानों में रोष, किसान आंदोलन में केंद्र के रुख के चलते किसानों में गुस्सा और महिला पहलवानों से ज्यादती। तमाम टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर विश्लेषक कह रहे हैं कि कांग्रेस सत्ता में वापसी कर रही है।
मगर, कुछ गहराई से नजर रखने वाले कह रहे हैं कि कुमारी सैलजा के साथ जो हुआ, वह कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी भी फेर सकता है। कांग्रेस हाईकमान पर भूपेंद्र हुड्डा की चली। उनकी मर्जी से 70-75 टिकट तय हो गए। सैलजा समर्थकों के टिकट काट दिए गए, उनके हिस्से में 15-16 टिकट ही आए। यह भी कहा जा रहा है कि सैलजा खुद भी चुनाव लडऩा चाहती थी लेकिन उनको ऑफर नहीं किया गया। भाजपा ने उन्हें अपनी पार्टी में आने का न्यौता दे दिया।
वहां दलित वोटों का करीब 20 फीसदी हिस्सेदारी है, जो करीब 17 सीटों में निर्णायक हैं। बसपा और इनेलो के बीच वहां साझेदारी हो गई है जो कांग्रेस का खेल पहले ही बिगाड़ रही थी, अब सैलजा कुमारी मामला और असर डाल रहा है।
याद करें, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस एक तरह से जीती हुई बाजी कैसे हार गई थी। टिकट बांटने और काटने का कैसा खेल हुआ था। कुछ ने तो खुला आरोप लगाया कि टिकटें बेटी गईं। फिर, किस-किस समाज, समुदाय के वोट कांग्रेस से छिटककर एक झटके में भाजपा के साथ चले गए थे। विधानसभा चुनाव तक चूंकि कुमारी सैलजा छत्तीसगढ़ की प्रभारी महासचिव थी, यहां कांग्रेस के लोग उनकी हरियाणा में भूमिका को बड़ी दिलचस्पी से देख रहे हैं।
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अफसरों का अफसरों के लिए
कोई भी आयोग, निगम मंडल, प्राधिकरण, ट्रिब्यूनल, अथारिटी का गठन का प्रारूप बनाने वाले अफसर अपने और अपने साथियों के आफ्टर रिटायरमेंट पुनर्वास को देखते हुए ही, इनके गठन की सिफारिश करते हैं। इनमें से कई में सेवारत तो अधिकांश में रिटायर्ड ही बिठाए जाते हैं। बस फर्क इतना रहता है कि सेवारत रहते हुए मिला अंतिम वेतन या पेंशन के बराबर ही मानदेय मिलेगा। वैसे भी अफसरों को भी वेतन राशि से नहीं रिटायर होने के बाद भी बंगला, कार-पेट्रोल, नौकर और सरकारी जलवा बने रहना चाहिए। हम यह इसलिए कह रहे हैं कि रिटायर हो चुके या होने वाले अफसरों के लिए एक और सरकारी पद अधिसूचित कर दिया गया है।
वाणिज्यिक कर विभाग ने राज्य जीएसटी अपीलेट ट्रिब्यूनल में सदस्य तकनीकी ये पद के लिए आज से 15 अक्टूबर तक इच्छुक अफसर, जीएसटी कानून को जानने वाले कर सलाहकारों से आवेदन आमंत्रित किया है। वैसे बता दें कि अघोषित रूप से सरकार और उसके अफसरों ने नाम भी तय कर रखा होगा। यह केवल औपचारिकता ही होगी। आवेदक एक्स आफिशियो हो तो वह कम से कम अतिरिक्त आयुक्त वैट या जीएसटी के पद से रिटायर हुआ हो।
नियुक्ति के बाद के लाभ, आवेदन पत्र में पढक़र तो हर कोई जोड़ तोड़ में लग जाएंगे। इन्हें, 2.25 लाख वेतन, 30 दिनों का ईएल, 8 दिन का सीएल, कर प्रणाली के अध्ययन के लिए विदेश दौरे की सुविधा आदि आदि। चूंकि सरकारी करा रोपण के खिलाफ अपील होगी, तो पार्टी से आउट आफ ट्रिब्यूनल नेगोसिएशन भी। इसके लिए आयु सीमा 50-67 वर्ष, और पहले 4 वर्ष के नियमित कार्यकाल (अनहोनी न होने पर) और सरकार चाहे तो, 2 वर्ष और बढ़ा सकती है। अब देखना होगा कि लॉटरी किसकी लगती है।
ओलंपिक संघ और दिग्गज
छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के चुनाव को लेकर हलचल मची हुई है। चर्चा है कि ओलंपिक संघ के मसले पर सीएम विष्णुदेव साय की पिछले दिनों सांसद बृजमोहन अग्रवाल से बातचीत भी हुई है। साय प्रदेश तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष हैं, तो बृजमोहन तैराकी संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं। अब ओलंपिक संघ के अध्यक्ष, और महासचिव का 29 तारीख को चुनाव होना है। पदाधिकारियों का निर्वाचन निर्विरोध कराने के लिए बैठकों का दौर चल रहा है।
सीएम साय का निर्विरोध ओलंपिक संघ अध्यक्ष बनना तय है। मगर सारा दांवपेंच महासचिव को लेकर है। इसके लिए बैडमिंटन संघ के अध्यक्ष विक्रम सिसोदिया की मजबूत दावेदारी है। सिसोदिया भी सीएम के साथ-साथ बृजमोहन अग्रवाल से मिल चुके हैं। हालांकि कई लोग ऐसे भी हैं जो चाहते हैं कि बृजमोहन अग्रवाल को महासचिव बनाया जाए। ऐसे कई पदाधिकारी बृजमोहन के साथ बैठक भी कर चुके हैं।
हालांकि बृजमोहन ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन चर्चा है कि वो सिसोदिया के नाम पर सहमत होते हैं, तो उन्हें (बृजमोहन) को भारतीय ओलंपिक संघ के प्रतिनिधि के रूप में नामांकित किया जा सकता है। कुल मिलाकर बृजमोहन की ओलंपिक संघ में दखल रहेगी। अब आगे क्या कुछ होता है यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा।
ईमानदार चेतावनी
इस घी निर्माता को अंतर्यामी भगवान का डर हो या न हो, लेकिन आपकी सेहत की चिंता अवश्य है। वह अपने डिब्बे पर साफ-साफ नहीं बताता कि यह घी मिलावटी है। अगर यह घी शुद्ध होता, तो क्यों लिखता कि इसे खाने या दवाई के रूप में इस्तेमाल न करें? साथ ही, यह भी साफ लिखा है कि यह खाद्य पदार्थ नहीं है और केवल पूजा के लिए है।फूड वाला इस पर किस आधार पर रेड मारेगा?
बेचने वाले को अंदाजा है कि वह क्या बेच रहा है, खरीदने वाले को भी पता है कि वह सस्ते में कौन सा घी खरीद रहा है।
इस ईमानदारी की सराहना की जानी चाहिए। उसने चुनावी चंदा दिया या नहीं पता नहीं, पर यदि परवाह न होती तो डिब्बे पर ‘सर्वश्रेष्ठ खाने योग्य’ लिखा होता। तिरुपति मामले के बाद यूपी से कई खबरें आ रही हैं, जिनमें बताया जा रहा है कि पशुओं के चमड़े से घी बनाने के वहां कई ठिकाने हैं। ऐसी घी बहुत सस्ते में मिल भी रहे हैं।
दामिनी ऐप का कम उपयोग
छत्तीसगढ़ में कल आकाशीय बिजली गिरने से 10 लोगों की मौत हो गई। राजनांदगांव में आठ और बिलासपुर में दो लोगों की जान गई। इसके अलावा, एक दिन पहले जांजगीर-चांपा में भी बिजली गिरने से एक मौत हुई और आठ लोग घायल हो गए। इन मौतों में पांच बच्चे और एक गर्भवती महिला शामिल हैं। शहरों में ऊंचे मकान, इलेक्ट्रिक पोल और टावर तडि़त चालक का काम करते हैं, जिससे नुकसान कम होता है। गांवों में यह जनहानि का एक ऐसा सिलसिला है, जिसे रोकने पर कभी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया।
हालांकि, भारत सरकार के मौसम विज्ञान विभाग ने कुछ कदम उठाए हैं। इनमें से एक प्रमुख प्रयास है ‘दामिनी ऐप’, जो 2020 से कार्यरत है। यह ऐप बिजली गिरने से 30-40 मिनट पहले अलर्ट जारी करता है, लेकिन ज्यादातर लोग इसका उपयोग नहीं करते।
आंकड़ों के मुताबिक, हर साल भारत में आकाशीय बिजली गिरने से लगभग 2000 लोगों की मौत हो जाती है। छत्तीसगढ़ के लिए कोई स्पष्ट आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन हर वर्ष 20-25 घटनाओं की खबरें आती ही हैं।
सरकारी प्रयासों की बात करें, तो जागरूकता केवल रेडियो पर मिलने वाली सूचनाओं तक सीमित है। ‘दामिनी ऐप’ का प्रचार-प्रसार करना बेहद आसान है, खासकर जब हर किसी के पास स्मार्टफोन है। हादसे कम करने में इससे मदद मिल सकती है।
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नए चुनाव की तैयारी
ऐसी प्रचलित परंपरा है कि किसी भी इवेंट का काउंटडाउन 90 दिन पहले शुरू हो जाता है। सो निकाय चुनावों की भी उल्टी गिनती शुरू हो गई है। उसी सिलसिले में 2019 में गठित वर्तमान सामान्य सभा की अंतिम विदाई बैठकें भी होने लगीं हैं। रायपुर की बैठक तीन अक्टूबर को होनी है। उसमें टाटा, बाय बाय होगा। ऐसी बैठकें प्रदेश के अन्य निगमों, पालिकाओं में भी होंगी। और उधर नगरीय निकाय विभाग, राज्य निर्वाचन आयोग ने नए चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी है। पहले वोटर लिस्ट बनेगी। अंतिम प्रकाशन 29 नवंबर के बाद, वार्ड परिसीमन, महापौर, अध्यक्ष पार्षद पदों का आरक्षण। और फिर चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होगी। वार्ड आरक्षण के लिए ओबीसी वर्गो की आबादी का सर्वे चल रहा है। जो 25 सितंबर को पूरा हो जाएगा।
नेताओं की शंकाओं के बीच दोनों आयोग प्रमुखों का कहना है सब कुछ समय पर होगा,चुनाव भी समय पर ही कराए जाएंगे। अभी यह उधेड़बुन चल रही है कि चुनावों का समय क्या होगा? वहीं पिछले 2019 के टाइम टेबल से दो तीन या 7 दिन आगे पीछे। पिछले चुनाव की घोषणा 30 नवंबर को हुई थी। पूरे प्रदेश भर के निकायों के चुनाव एक ही चरण में हुए थे। 6 दिसंबर 19 तक नामांकन, 21 दिसंबर को मतदान और 24 दिसंबर को मतगणना हुई थी। अब देखना है कि इस बार का टाइम टेबल क्या होगा। वैसे, 6 जनवरी से पहले सभी निकायों कि नई सामान्य सभा का गठन
करना होगा।
युवक कांग्रेस में अब कौन से पद मिलेंगे?
आखिरकार युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर जम्मू कश्मीर के उदयभानु चिब को नियुक्त कर दिया गया। इस पद की दौड़ में छत्तीसगढ़ से शशि सिंह, मोहम्मद शाहिद, और कोको पाढ़ी भी थे।
तीनों का इंटरव्यू भी हुआ था। अब जब अध्यक्ष की नियुक्ति हो गई है, तो प्रदेश के तीनों नेताओं को राष्ट्रीय पदाधिकारी बनाया जा सकता है। कोको पाढ़ी, छत्तीसगढ़ प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। जबकि शशि सिंह राष्ट्रीय सचिव रही हैं। मोहम्मद शाहिद प्रदेश संगठन में दायित्व संभाल रहे थे। खास बात यह है कि प्रदेश के इन तीनों युवा नेताओं से पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी व्यक्तिगत तौर पर परिचित भी हैं। इन तीनों को अलग-अलग राज्यों का प्रभारी बनाया जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
भाई साहब के साथ हाई टी
रायपुर दक्षिण के उपचुनाव की घोषणा 5, 6 अक्टूबर को हो सकती है। इसके साथ ही कांग्रेस, भाजपा की ओर से टिकट के दावेदार एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं। सर्वाधिक दावेदार भाजपा में नजर आ रहे हैं। एक अनार सौ बीमार। सरकार में होने का फायदा जो दिख रहा है, खर्च लिमिट ये 40 लाख में काम हो जाएगा। वहीं कांग्रेस में भी दावेदार कम नहीं हैं। पकड़ कर देने की स्थिति नहीं है।
भाजपा ने अब तक दौड़ में चल रहे 45 नामों में से अब आधा दर्जन ही शार्ट लिस्ट किए गए हैं। दो नए नहीं पुराने जुड़ते नजर आ रहे हैं। इनमें से दोनों ही पूर्व में संवैधानिक पद पर भी रहे हैं। एक, सांसद के बेहद करीबी दोस्त, दूसरे समाज के दिग्गज। कल इन्होंने संगठन खेमे के माने जाने वाले अपने साथियों के साथ हाई टी की। जो चंडीगढ़ वाले भाई साहब के साथ हुई। कभी ये सभी मिलकर सरकार संगठन चलाते रहे हैं। बस उन्हीं दिनों की यादें, सद्कर्म की बिना पर टिकट हासिल करने की जोड़ तोड़ है। देखें आगे क्या होता है।
गजब सर का कोचिंग सेंटर
यह पोस्टर वाकई अजब-गजब है। दिल्ली के राजेंद्र नगर और मुखर्जी नगर जैसे इलाकों में भारतीय प्रशासनिक सेवा की कोचिंग के लिए ऐसे विज्ञापन आम हैं। इस पोस्टर पर दावा किया गया है कि 2500 से अधिक छात्र चयनित हुए हैं। यानी, हाल के कुछ वर्षों में जितने भी आईएएस और आईपीएस बने हैं, लगभग सभी यहीं से निकले होंगे! यह कोचिंग सेंटर ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों मोड में पढ़ाई करवाता है, और हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में।
दिल्ली ही नहीं, छत्तीसगढ़ जैसे अन्य राज्यों में भी ऐसे कई कोचिंग संस्थान मिल जाएंगे जो इसी तरह के बड़े-बड़े दावे करते हैं। जैसे ही प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम घोषित होते हैं, ये संस्थान चयनित छात्रों को अपना बताते हुए विज्ञापन निकालते हैं। छात्र सलेक्ट हो गया तो कोचिंग सेंटर की काबिल पढ़ाने वालों की वजह से, नहीं हुए तो वह तो उसकी कमजोरी थी।
इस स्थिति के बावजूद कई कोचिंग संस्थानों में एडमिशन की मारामारी है। उसमें भी प्रवेश के लिए टेस्ट, एग्जाम से गुजरना होता है।
बात दोषियों पर नरमी की भी है
लोहारीडीह में प्रशांत साहू की पुलिस की कथित पिटाई से हुई मौत ने पहले से सुलग रही स्थिति में आग में घी का काम किया है। प्रशिक्षु आईपीएस को निलंबित करने के बावजूद लोहारीडीह के ग्रामीण और साहू समाज संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे हैं। प्रदेशभर में साहू समाज ने राजनीतिक झुकाव से परे जाकर विरोध प्रदर्शन किया है।
लोहारीडीह में दोनों उपमुख्यमंत्रियों के सामने कई प्रमुख मांगें रखी गई हैं, जिनमें प्रशांत साहू के बच्चे को कैबिनेट प्रस्ताव लाकर नौकरी देने, एक करोड़ रुपये मुआवजा देने और कचरू साहू के पांच बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी सरकार को सौंपने की मांग शामिल है। लेकिन सबसे अहम मांग यह है कि हटाए गए एसपी अभिषेक पल्लव को बर्खास्त किया जाए और पिटाई के दोषी पुलिसकर्मियों पर हत्या का मामला दर्ज हो।
लोहारीडीह की घटना ने इतना तूल पकड़ लिया है कि टोनही और अंधविश्वास से जुड़ी दो बड़ी घटनाओं पर कोई चर्चा तक नहीं हो रही है। परंपरागत रूप से भाजपा का समर्थन करने वाला साहू समाज इस घटना से बेहद आक्रोशित है। कांग्रेस के नेताओं ने बिरनपुर की पिछली घटना के बाद वहां पीडि़तों से मिलने की जरूरत तक नहीं समझी थी, लेकिन यह सरकार लगातार पीडि़तों और प्रभावित ग्रामीणों के साथ संवाद कर रही है।
कार्यशैली में इस बदलाव का ही था कि 10 लाख रुपये का मुआवजा और निष्पक्ष कार्रवाई के आश्वासन हाथों हाथ दिया गया। लोगों का गुस्सा कम नहीं हुआ है। खासकर पुलिस पर कथित हत्या और बेकसूरों से मारपीट के मामले में की गई कार्रवाई को ग्रामीण नाकाफी मान रहे हैं। आगजनी के बाद यदि स्थिति को बेहतर ढंग से संभाल लिया जाता, तो शायद लोहारीडीह में शांति जल्द लौट आती। लेकिन पुलिस की ज्यादती करके निपटाना चाहा। अब ठोस कार्रवाई के बिना ग्रामीणों का गुस्सा ठंडा होगा ऐसा लग नहीं रहा।
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वंदे भारत में गुलाब से स्वागत
विशाखा वंदेभारत का रिस्पांस चेक और यात्रियों की प्रतिक्रिया मिलना जारी है। आज इस ट्रेन से वाइजैग जा रहे यात्री ने ‘छत्तीसगढ़’ को सफर के दौरान वीडियो कॉल कर रियलिटी दिखाई। सब कुछ सुकून देने वाला रहा लेकिन लोचा यात्रियों की कमी। ट्रेन के एग्जीक्यूटिव कार में सवार होते ही गुलाब से स्वागत। रिक्लाइनिंग( घुमावदार) चेयर। टिकिट कैटरिंग युक्त होने से रास्ते भर खाने पीने के लिए कुछ न कुछ परोसा जाता रहा। इस बैंक अधिकारी ने बताया वे, कई राजधानी, जनशताब्दी जैसी प्रीमियम ट्रेनों में सफर करते रहें हैं लेकिन विशाखा वंदे भारत जैसा कॉफी, चाय, स्नैक्स कभी नहीं खाया। क्वालिटी बेहतरीन रही। इसके लिए रेलवे को बधाई। ट्रेन की रफ्तार कहीं धीमी,कहीं औसत और कहीं फुल स्पीड के साथ राइट टाइम पहुंची। बस कमी रही तो यात्रियों की। आज दुर्ग रायपुर से करीब 200 सवार थे। (तो शनिवार को मात्र 72) महासमुंद से एक भी नहीं। हालांकि बीच रास्ते टिटलागढ़ केसिंगा से बड़ी संख्या में सवार हुए। आन बोर्ड टीटीई से चर्चा की, तो कहा कि बस पैसेंजर रिस्पांस मिलता नहीं दिख रहा, यह भी सच है कि आने वाले दिनों में बढ़ेगा। अन्यथा कि स्थिति में कोच कम करके ही सही चलते रहनी चाहिए। टीटीई ने यह भी सुझाया 16 कोच में से 8-8 करके एक दूसरी वंदे भारत रायपुर जबलपुर व्हाया गोंदिया बालाघाट चलाई जानी चाहिए। जो प्रस्तावित और प्रचारित भी है। या फिर रायपुर,सिकंदराबाद से बीच। जो सुबह 5 बजे रवाना होने पर दोपहर 2 बजे सिकंदराबाद पहुंच सकती है। अभी ऐसी चर्चाएं यात्री और टीटीई के बीच आगे भी चलती रहेंगी। वैसे ये भी एक सच्चाई जिन रूट पर पहले से ही 2-3 सुपरफ़ास्ट ट्रेन है वहां वंदे भारत सफल नहीं है।
यहां नहीं चलता पेटीएम, फोन-पे
पितृपक्ष शुरू हो गया है। मोक्ष गया की ओर जाने वाले सभी ट्रेनें फुल चल रही हैं। और गया में भी सभी धर्मशालाएं, होटल, घाट और पंडित सभी एडवांस बुकिंग पर भी ओव्हर लोड चल रहे हैं। एक घंटे की तर्पण पूजा 35-45 मिनट में निपटा रहे हैं। यह पूजा भी एकल नहीं पंगत में बिठाकर। गया में श्राद्ध कर्म में पंडितों का नहीं वैश्यों का दबदबा है। हमारे एक परिचित कल ही गया से लौटे हैं, ऐसा ही एक किस्सा सुना रहे थे। गुप्ता जी, यह श्राद्ध कर्म किसी कार्पोरेट कारोबार से कम नहीं चला रहे । इनके अंडर में वो सब कुछ है जो तर्प पूजा के लिए जरूरी। बस आपको जाना होगा। गुप्ता जी 4000 पंडितों का पूरा सेटअप है। गंगा घाट भी फिक्स। एक एक महाराज, सौ-सौ जजमान की पंगत बिठाकर 45-मिनट में पितरों को खुश करवा देंगे। पर बैठने से दक्षिणा रूपी फीस पहले देनी होगी, तभी आसन देंगे। वह भी नगद। सरकारें भले डिजिटल ट्रांजेक्शन के रिकार्ड दर्ज कर रहीं हो। लेकिन यहां कैश पेमेंट होगा, नो फोन-पे, यूपीआई या पेटीएम। हमारे परिचित ने अपनी पूजा के बाद पूरे घाट किनारे घूमे। हर जगह पंडितों का यही हाल रहा।
वैसे यह गया में नहीं होता। चर्चित तिरुपति में केशदान (मुंडन) भी बहुमंजिले भवन के हर फ्लोर पर पंगत में ही होता है। विश्व में भगवान सत्यनारायण के एक मात्र मंदिर अन्नावरम में भी पांच अध्याय की कथा रोजाना सामूहिक पंगत में ही होती है ।
दक्षिण के दंगल की घोषणा 6 को ?
रायपुर दक्षिण का उपचुनाव की घोषणा 5-6 अक्टूबर को होने के प्रबल संकेत हैं। 5 को जम्मू कश्मीर और हरियाणा के नतीजे घोषित होने जा रहे हैं, और अगले ही दिन आयोग महाराष्ट्र विधानसभा के साथ रायपुर दक्षिण और देश के अन्य उप चुनावों की भी तिथि घोषित करने जा रहा है। राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय के सूत्रों की माने तो 6 अक्टूबर को घोषणा हो रही है। यह सीट, सांसद चुने जाने के बाद 17 जून को बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे से रिक्त हुई है। और चुनाव 6 माह 17 के भीतर कराए जाने है। वैसे 17 दिसंबर तक समय है। आयोग शीत सत्र से पहले रिक्तता पूरी कर लेना चाहता है । इन्हीं संकेतों के बीच भाजपा,कांग्रेस दोनों ने तैयारी तेज कर दी है। भाजपा ने जहां प्रभारी नियुक्ति के बाद प्रत्याशी चयन के लिए सर्वे करा लिया है। वहीं कांग्रेस ने आधा दर्जन वरिष्ठ नेताओं की संचालन समिति बना दी है। उसमें से एक ने समिति में ही रहने की अनिच्छा भी जाहिर कर दी है। तो इस सीट के 19 वार्डों के लिए नियुक्त एक दो प्रभारियों को छोड़ बाकी बे मन से काम कर रहे । इन्हें पीसीसी चीफ ने चेतावनी देकर दोबारा मैदान में उतारा है। डेट घोषित होते ही हलचल और बढ़ेगी।
दो लाख में आईपीएस बन जाएं
इन दिनों ऐसा लग रहा है, मानों ठगी देश का सबसे बड़ा कारोबार बन चुका है। महज 18 साल का यह युवक आईपीएस की वर्दी में किसी को ठगने के लिए नहीं निकला है, बल्कि खुद ही ठगी का शिकार हो गया है। जमुई, बिहार में यह आईपीएस की वर्दी पहनकर और नकली पिस्ल खोंसकर चल रहा था। पुलिस की नजर पड़ी तो उसने तुरंत भांप लिया कि मामला गड़बड़ है। थाने में बुलाकर पूछताछ की गई। पता चला कि किसी मनोज सिंह नाम के व्यक्ति ने उसे बिना एग्जाम डायरेक्ट आईपीएस बनाने का झांसा दिया। इस युवक ने दो लाख रुपये दिए। बदले में एक वर्दी, टोपी और नकली पिस्टल थमा दिया। बस, उसे पहकर युवक सडक़ पर घूमने लगा। हैरानी की कोई बात नहीं, हाल ही में बिहार में ही नीट एग्जाम का पेपर लीक कराने का गैंग पाया गया था। पर, यह अपने तरह की अनोखी ठगी है, जिसमें बिना यूपीएससी क्लियर किए किसी को आईपीएस बनाने का दावा किया जाता है और लोग उसकी बात पर यकीन भी कर लेते हैं।
फिर कोर्ट नहीं जाएंगे...
सन् 2008 में सब इंस्पेक्टर के लिए निकाले गए विज्ञापन की भर्ती प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो सकी है। भाजपा ने विधानसभा चुनाव के दौरान 10 दिन में इनका भर्ती आदेश निकालने का आश्वासन दिया था, पर सरकार को नौ माह हो चुके हैं। अभ्यर्थियों ने सरकार का ध्यान खींचने के लिए नया रायपुर में लगातार धरना दे रखा है। गृह मंत्री के बंगले में दूसरी बार वे धरना देकर बैठ गए। एक बार फिर आश्वासन मिला है, लेकिन अभी भी अभ्यर्थी सशंकित हैं। उनके पास अपने पक्ष में हाईकोर्ट के दो-दो आदेश हैं। कोर्ट ने सरकार को 90 दिन के भीतर भर्ती प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया था, जो 9 सितंबर को खत्म हो चुकी है। इस तरह से सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया है। मामला अवमानना है लेकिन अभ्यर्थियों को पता है कि यदि वे फिर हाईकोर्ट जाते हैं तो सरकार को एक बार फिर वक्त मिल जाएगा और अभ्यर्थी युवाओं के हाथ में सिर्फ इंतजार आएगा। गौर करने की बात यह है कि अभी 875 पदों की भर्ती के लिए 6 साल इंतजार हो रहा है। इनको नियुक्ति पत्र सरकार थमा नहीं रही है, दूसरी तरफ एसआई के 341 पदों के लिए फिर से विज्ञापन निकाल दिया गया है।
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चुनाव से गणेश भक्ति बढ़ी
रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव, और म्युनिसिपल चुनाव के चलते इस बार गणेश विसर्जन के स्वागत पंडालों में विशेष रौनक देखने को मिली है। सबसे ज्यादा माहौल कोतवाली चौक के पास भाजपा नेताओं के पंडाल में था। यहां सांसद बृजमोहन अग्रवाल विशेष रूप से मौजूद थे।
बृजमोहन हर साल कोतवाली चौक के पास गणेश विसर्जन झांकियों का स्वागत करते हैं। इस बार उन्होंने अपने साथ पूर्व सांसद सुनील सोनी को भी बिठा लिया। बाजे-गाजे के बीच सुनील सोनी ऊंघते हुए दिखे। उनकी जम्हाई लेते फोटो भी वायरल हुआ था। सुनते हैं कि सुनील सोनी सोने के लिए घर जाना चाहते थे लेकिन बृजमोहन ने उन्हें डपटकर बगल में बिठाए रखा। वो सूर्योदय के बाद ही घर जा सके।
दूसरी तरफ, बृजमोहन अग्रवाल के छोटे भाई विजय अग्रवाल भी काफी सक्रिय दिखे। वो पहली बार झांकियों का स्वागत करते हुए सार्वजनिक तौर पर नजर आए हैं। विजय, बृजमोहन का चुनाव प्रबंधन संभालते आए हैं, और चर्चा है कि वो खुद चुनाव लडऩे के इच्छुक हैं। अभी तक तो बृजमोहन का रुझान सुनील सोनी की तरफ दिख रहा है। आगे क्या होता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
लता समर्थकों में नाराजगी
सीनियर विधायक सुश्री लता उसेंडी को बस्तर विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बनाया गया है। लता, रमन सिंह सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। वो नागरिक आपूर्ति निगम की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। यही नहीं, वो केन्द्र सरकार के उपक्रम में भी पदाधिकारी रह चुकी हैं। विष्णु देव साय के सीएम बनने के बाद उनके मंत्री बनने की अटकलें लगाई जा रही थी लेकिन उन्हें प्राधिकरण का दायित्व सौंप दिया गया है। चर्चा है कि प्राधिकरण उपाध्यक्ष पद से लता खुश नहीं हैं, और उनके समर्थकों में भी मायूसी देखने को मिली है।
लता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, और ओडिशा भाजपा की सहप्रभारी भी हैं। उन्होंने ओडिशा के विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण से लेकर प्रचार में अहम भूमिका निभाई थी। और जब ओडिशा में पार्टी की सरकार बनी, तो लता को भी पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं ने बधाई दी थी। लता की पार्टी के भीतर कद को देखते हुए उन्हें मंत्री बनाए जाने की चर्चा थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लता, पार्टी की अनुशासित कार्यकर्ता मानी जाती है। ऐसे में वो पार्टी फोरम में भी कोई प्रतिक्रिया देंगी, इसकी संभावना कम है। मगर उनसे जुड़े लोग निराश और हैरान हैं।
पीएचक्यू बन गया स्टूडियो
कल आधी रात के पहले ही छत्तीसगढ़ के पुलिस मुख्यालय में कई वीडियो टीमें पहुँच कर लाइट, कैमरा, एक्शन की तैयारी शुरू कर चुकी थीं। विश्व में सबसे अधिक वीडियो के नायक अफसर छत्तीसगढ़ के आईपीएस अभिषेक पल्लव को कवर्धा जिले से हटाकर पुलिस मुख्यालय भेजा गया है। कवर्धा से उनका आखिरी ऐतिहासिक वीडियो ख़ुद खड़े रहकर महिला पुलिस से एक निहत्थी नाबालिग लडक़ी को पिटवाने का रहा जो सुपर डुपर हिट गया। अब वीडियो टीमें और यूट्यूबर पुलिस मुख्यालय से सीधे प्रसारण करेंगे। कल रात तबादला आदेश आते ही कवर्धा से प्रोडक्शन टीमें नया रायपुर पहुँच गईं।
पैसेंजर रिस्पांस ठीक नहीं
दुर्ग- विशाखा वंदे भारत एक्सप्रेस ने शुक्रवार से रोज चलने लगी है। दुर्ग-विशाखापट्टनम एक्सप्रेस में किसी सिनेमा हॉल की तरह सीटें तो बुकिंग का इंतजार कर रही हैं, लेकिन दर्शक नदारद हैं। कल पहले दिन रायपुर रेल मंडल ने अपने सहायक वाणिज्य प्रबंधक को पैसेंजर रिस्पांस चेकिंग ट्रिप पर भेजा था। साहब की रिपोर्ट पर मंडल उत्साहित कम, मायूस अधिक है। बताया गया है कि कुल 1128 सीटों वाली ट्रेन में विशाखा जाने दुर्ग-रायपुर से 256 और वापसी में इन्हीं शहरों के लिए सौ यात्री रहे। आज दूसरे दिन भी बड़ी संख्या में सीटें खाली हैं। मात्र 90 सीट बुक होने की खबर है।
इसके चलते रेल स्टाफ ही ट्रेन के भविष्य को लेकर कयास लगा रहे हैं। उनके वाट्सएप ग्रुप की चर्चा में चिंता झलकती है। इनके सवाल जवाब पढ़ें:-एक ने बताया- रिटर्न जर्नी में करीब सौ यात्री रहे। दूसरे ने कहा-16 कोच में 100 यात्री, मतलब एक कोच में 10 भी नहीं। यह पूछा-क्या इन सौ में रेलवे स्टाफ भी शामिल है। जवाब मिला-अभी नई नई सुविधा है, कुछ दिनों में भीड़ बढ़ जाएगी। छुट्टियों के सीजन में फुल जाया करेगी। तीसरे ने कहा-100 भी बहुत होते हैं । फिर जवाब मिला-मेरे हिसाब से तो एक सप्ताह के लिए लिंक एक्सप्रेस (कोरबा-विशाखा) को कैंसल कर देना चाहिए। आटोमेटिक वंदे भारत में पैसेंजर आ जाएंगे। इससे मना करते हुए कहा गया कि लिंक की अच्छी सुविधा जनक टाइमिंग है क्यों कैंसिल करें। एक अन्य ने कहा अपने आंध्र वासियों की इज्जत का प्रश्न है नहीं तो रेलवे वंदेभारत ही कैंसल कर देगा। अभी दशहरा की छुट्टियां हैं तब फुल पैक चलेगी। ऐसा ही एक और सुझाव आया-इतना लड़ झगड़ कर लिए हैं गाड़ी, सब लोगों को इसी में जाना चाहिए । एक ने कहा-वंदे भारत की टाइमिंग ठीक नहीं है। कोरबा लिंक ही बेस्ट है। इसे कैंसल करेंगे तो बहुत परेशानी होगी। वंदे भारत को कैंसिल करेंगे तो उतना फक़ऱ् नहीं पड़ेगा, आदि आदि...!
वैसे बता दें कि चाहे सरकारी बसें हो या, ट्रेनें ये लोकसेवा सुविधाएं कहलाती हैं। और नो प्रॉफिट नो लॉस पर संचालित होतीं हैं। ये इतनी आसानी से बंद नहीं की जा सकतीं, भले ही फेरे या कोच कम कर दिए जा सकते हैं।
खाली सीटों पर आप सो सकते हैं, डांस कर सकते हैं, मगर अफसोस ऐसा करने के लिए आपको कम वक्त मिलेगा। दूसरी ट्रेनों को 11 घंटे लगते हैं, यह सिर्फ 8 घंटे में पहुंचा देगी। विशाखापट्टनम जाने वाले अन्य ट्रेनों की जनरल सीटों की ओर भी नजर डालें। वे बमुश्किल सीट पाते हैं बहुतों को घंटों एक ही मुद्रा में खड़ा रहना पड़ता है। संडास गंदा होता है, अगर वहां पहुंच सकें। मानवाधिकार का हनन होता है और महिलाओं की गरिमा को क्षति पहुंचती है। इसी साल अप्रैल महीने में मध्यप्रदेश के एक आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने रेलवे से पूछा था कि वंदेभारत से कितना मुनाफा हो रहा है। दो साल में कितनी आमदनी हुई। रेलवे ने कहा कि-इसका हिसाब अभी लगाया नहीं है, लगाया जा रहा है।
कांवडिय़ों की आरती नहीं बचा पाई
किसे ऐतराज हो सकता है कि कोई पुलिस कप्तान अपराधियों को नकेल कसे और उसका वीडियो सोशल मीडिया पर समाज को जागरूक करने के लिए जारी करे। यह हर रोज होना चाहिए, और आईपीएस अभिषेक पल्लव इसे बखूबी समझते हैं। वे लगातार जुआ, सट्टा, चोरी, लूटमारी के आरोपियों से बात करते हैं, उन्हें नसीहत देते हैं और इन सबकी रिकॉर्डिंग को सोशल मीडिया पर पोस्ट करते रहते हैं।
लेकिन, असली चुनौती तब आती है जब जमीन पर हालात गंभीर हो जाएं। कबीरधाम की घटना इसका उदाहरण है, जहां दोहरी और तिहरी जान गई। रेंगाखार थानेदार को पहले ही पता चल चुका था कि कोई व्यक्ति फांसी पर लटका है, जिससे गांव में अशांति फैल रही है, मगर वर्चुअल मीडिया में सक्रिय कप्तान को जमीनी हालात की सही जानकारी ही नहीं थी। इतना ही नहीं, उनके नीचे काम कर रहे ट्रेनी आईपीएस जिला मुख्यालय में किसी को बुरी तरह पीटते हुए पाए गए। खुद भी एक नाबालिग लडक़ी को अपने हुक्म से पिटवाते वीडियो पर रिकॉर्ड हो गए थे।
पिछली सरकार में आराम से काम कर रहे अफसरों को नई सरकार के कड़े रवैये को समझने में देर नहीं लगनी चाहिए। सस्पेंशन की कार्रवाई उनके बाएं हाथ का खेल है। पिछली सरकार की तरह, ऐसा नहीं हो सकता कि मंत्री और विधायक अफसरों की शिकायत करते रहें और मुखिया कान में रुई डालकर बैठे रहें। पूरा थाना बुलाकर कांवडिय़ों पर फूल बरसाने और आरती उतारने से आप मंत्री जी को खुश नहीं कर सकते, अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते।
हटाए गए कलेक्टर जन्मेजय महोबे तो मासूम हैं। उन्हें अपने जिला दंडाधिकारी होने का आभास ही नहीं था और जिले में क्या हो रहा है, इसका पता ही नहीं था।
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कुलपतियों की दौड़
छत्तीसगढ़ निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के चेयरमैन के लिए जोड़तोड़ चल रही है। मौजूदा चेयरमैन डॉ.उमेश मिश्रा का कार्यकाल खत्म हो गया है। चर्चा है कि नए चेयरमैन के लिए तीन पूर्व कुलपति दौड़ में हैं। इनमें से एक तो वर्तमान में प्रदेश के बाहर के एक निजी विवि में कुलपति हैं।
नियमत: निजी विवि के अफसर को आयोग में नहीं रखा जा सकता है। मगर यहां एक सदस्य की नियुक्ति हो चुकी है, जो कि पहले निजी विवि में कार्यरत रही हैं। जिन दो पूर्व कुलपतियों के नाम की चर्चा है उनका कार्यकाल कुछ समय पहले ही खत्म हुआ है। पिछली सरकार की अनुशंसा पर दोनों को कुलपति बनाया गया था। ऐसे में उन्हें यहां आयोग में रखा जाएगा या नहीं, इस पर चर्चा चल रही है।
दूसरी तरफ, आरएसएस से जुड़े कई शिक्षाविद भी आयोग में नियुक्ति चाह रहे हैं। कहा जा रहा है कि पहले विभाग ने चार नाम का पैनल बनाया था लेकिन अब खींचतान के चलते फाइल आगे नहीं बढ़ पाई है। ऐसे में नियुक्ति में कुछ समय लग सकता है।
मंत्री-विधायक नाखुशी
चर्चा है कि सीतापुर के विधायक रामकुमार टोप्पो इन दिनों डिप्टी सीएम विजय शर्मा से नाखुश चल रहे हैं। वजह यह है कि सीतापुर में पिछले दिनों एक आदिवासी युवक की हत्या मामले पर सख्त कार्रवाई चाह रहे थे। आरोपी के घर बुलडोजर चलवाने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन हाईकोर्ट की रोक की वजह से ऐसा नहीं हो सका।
सुनते हैं कि पिछले दिनों डिप्टी सीएम विजय शर्मा अम्बिकापुर पहुंचे, तो रामकुमार टोप्पो ने उनसे मुलाकात की। वो तुरंत डिप्टी सीएम के साथ बैठक करना चाह रहे थे लेकिन पूर्व निर्धारित कार्यक्रम निपटने के बाद उन्हें मिलने के लिए कहा, इससे रामकुमार टोप्पो खफा हो गए। और बाद में जब विजय शर्मा ने उनसे संपर्क किया तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया। इसके बाद विजय शर्मा ने लुण्ड्रा विधायक प्रबोध मिंज के मोबाइल से चर्चा की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।
बाद में अगले दिन कुछ स्थानीय नेताओं की समझाईश पर रामकुमार टोप्पो, विजय शर्मा से मिलने पहुंचे। दोनों के बीच काफी देर चर्चा हुई। डिप्टी सीएम से चर्चा के बाद भी रामकुमार टोप्पो संतुष्ट नहीं थे। इन दिनों वहां कुछ घटनाओं को लेकर रामकुमार टोप्पो के खिलाफ मुहिम चल रही है। इन सबकी वजह से उन पर दबाव भी है। वे अपने इलाके में लोगों को कार्रवाई आदि को लेकर कोई संदेश देना चाह रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं हो पाने से मायूस बताए जा रहे हैं।
क्या अंग्रेजी से फिर हिंदी में लौटें?
स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में 10वीं कक्षा के बाद पढऩा जारी रखना हो तो कॉमर्स और आर्ट्स का मोह छोडऩा पड़ेगा। अंग्रेजी माध्यम में आगे की पढ़ाई करनी हो तो निजी स्कूलों की महंगी फीस के लिए तैयार रहना होगा। यदि फीस की चिंता हो तो फिर से अंग्रेजी माध्यम से हिंदी माध्यम में वापस लौटना होगा। स्वामी आत्मानंद स्कूल खोलने का उद्देश्य यह बताया गया था कि जो बच्चे पढ़ाई में होशियार हैं, पर निजी स्कूलों की महंगी फीस देने में असमर्थ हैं, उन्हें सरकार उत्कृष्ट शिक्षा देने का प्रबंध कर रही है। पर स्कूल के खुलने के बाद से ही अवरोध बना हुआ है। प्रदेश में 400 से कुछ अधिक अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट विद्यालयों में कला और वाणिज्य संकाय की पढ़ाई 10वीं के बाद नहीं हो पा रही है। इसका सेटअप ही मंजूर नहीं किया गया है। स्कूली शिक्षा 12वीं बोर्ड तक चलती है। अब क्या छात्र 10वीं के बाद फिर हिंदी माध्यम में चले जाएं? अंग्रेजी में पढक़र वे हिंदी की ओर लौटें, यह तो इस योजना के उद्देश्य पर ही सवाल खड़ा करता है। अधिकांश छात्र-छात्रा गरीब या निम्न मध्यम परिवारों से हैं। उनके अभिभावक निजी स्कूलों में पढ़ाने में सक्षम होते तो यहां प्रवेश की मारामारी क्यों होती? वैसे बोर्ड परीक्षाओं में स्वामी आत्मानंद स्कूलों का प्रदर्शन अच्छा रहता है। कई बच्चे टॉपर सूची में शामिल होते हैं। उन्हें 12वीं कक्षा तक सभी विषयों का विकल्प मिलना चाहिए, वरना इन्हें उत्कृष्ट विद्यालय कैसे कहा जा सकता है?
स्टेशन परिसर पर स्पाइडरमैन
बिलासपुर में रेलवे स्टेशन परिसर पर एक युवक स्पाइडरमैन के परिधान में घूम रहा था। आरपीएफ को पता लगा तो वहां पहुंच गई। शहर के ही मध्यनगरी इलाके के इस युवक को यहां सोशल मीडिया के लिए अलग-अलग स्वांग में रील्स बनाने का शौक है। पर रेलवे स्टेशन परिसर संवेदनशील जगह है। प्लेटफॉर्म और ट्रेनों में इस तरह की शूटिंग पर प्रतिबंध है। आरपीएफ ने उसे माफी मांगने पर छोड़ दिया। युवक जब वहां मौजूद था तो वहां भीड़ लग गई थी, जिनमें बहुत से बच्चे भी थे। स्टेशन परिसर पर बिना अनुमति रील्स बनाने की कोशिश कर वह जुर्म तो कर रहा था लेकिन दूसरा पक्ष उसके क्रियेटिविटी का भी है। ट्रैफिक सेंस, नशे के खिलाफ, वूमेन सेफ्टी आदि मुद्दों पर जन-जागरूकता लाने के लिए पुलिस ऐसे आकर्षित करने वाले किरदारों का इस्तेमाल तो करती ही है। शायद इस युवक ने भी सीधे स्टेशन पहुंचकर अफसरों से बात की होती और बताता कि मैं यात्रियों की सेफ्टी के लिए कुछ संदेश देना चाहता हूं, तो शायद बात बन जाती।
ताकि खर्च न बढ़े
पितृपक्ष के दूसरे दिन सरकारी उपक्रमों में नियुक्तियां शुरू कर दी गईं है। फिलहाल पांच नियुक्तियां की गई हैं, और सभी विधायक ही हैं। लेकिन कहा जा रहा है कि शुरूआत हो गई है। आने वाले दिनों में यह सिलसिला जारी रह सकता है। सबकी निगाहें अगली सूची पर लगी हैं। इस पहली सूची ने मंत्रिमंडल में रिक्त दो कुर्सियों की उम्मीद लगाए बैठी बस्तर क्षेत्र की विधायक को नाउम्मीद कर दिया है । इनके लिए पितृपक्ष दुखी कर गया है। तो दुर्ग से एक दावेदार पहली बार के विधायक की बांछें खिल गईं हैं। जो जातिगत समीकरण और संघ के बैकग्राउंड से भी आते हैं। इन छह नियुक्तियों पर नजर डालें तो सभी पैमाने पूरे हो गए हैं, आदिवासी, सतनामी,ओबीसी को संतुलित कर लिया है। पहली सूची के निहितार्थ बताते हुए पार्टी के एक नेता ने कहा कि आने वाले दिनों में विधायकों को ही एडजस्ट किया जाएगा। ताकि निगम मंडलों के स्थापना व्यय पर बोझ न पड़े। ग़ैर विधायक नेताओं की नियुक्त से खर्च अधिक होता है ।
(rajpathjanpath@gmail.com)
पिटाई का वीडियो और निलंबन!
कवर्धा में बड़ी हिंसा में, और उसके बाद दो अलग-अलग मौतें हुई। पहली मौत तो एक जिंदा आदमी को घर में जलाने की थी, और दूसरी मौत पुलिस पिटाई के बाद गिरफ्तारी, और जेल पहुंचने के बाद हुई। अब यह दूसरी मौत पिटाई से हुई, या किसी और वजह से, यह तो साफ नहीं है, लेकिन ग्रामीणों की शिकायत पर स्थानीय विधायक, उपमुख्यमंत्री, और गृहमंत्री विजय शर्मा ने एक आईपीएस, एडिशनल एसपी को निलंबित करने की घोषणा की है। इस बीच कवर्धा के इसी गांव का एक वीडियो आया है जिसमें वहां के एसपी अभिषेक पल्लव खड़े होकर महिला पुलिसकर्मियों की लाठियों से एक निहत्थी युवती को पिटवा रहे हैं। कई लोगों का कहना है कि पिटाई जब एसपी खड़े रहकर करवा रहे थे, तब एडिशनल एसपी का निलंबन कुछ हैरान करता है। लेकिन सरकारी कामों में ऐसा होता है कि किस सिर की बलि दी जाए, इसे तय करने की कई वजहें रहती हैं।
दो भूतपूर्व मुकाबले में
पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और स्पीकर डॉ. रमन सिंह एक बार फिर आमने-सामने हैं। भूपेश ने पिछले दिनों बालोद जिले के एक गांव के कार्यक्रम में भाजपा पर अंधविश्वास फैलाने का आरोप मढ़ दिया। उन्होंने कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा का जिक्र किए बिना कटाक्ष किया कि एक लोटा जल चढ़ा दो, और जीवन में कुछ काम मत करो, बच्चों को मत पढ़ाओ, खेत में काम मत करो, बस एक लोटा जल चढ़ा दो तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। इस तरह की धारणा लोगों में बन गई है।
भूपेश ने आगे कहा कि हम इसे आस्था नहीं कह सकते, बल्कि भाजपा द्वारा फैलाया गया अंधविश्वास है। दरअसल, पंडित प्रदीप मिश्रा प्रदेश के कई जिलों में शिव महापुराण का वाचन कर चुके हैं। इसी महीने धमतरी में भी उनका एक बड़ा कार्यक्रम है। पंडित मिश्रा के कार्यक्रमों में भारी भीड़ जुटती हैं। इन कार्यक्रमों में सीएम, स्पीकर और सरकार के मंत्रियों के अलावा खुद पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी शिरकत कर चुके हैं।
पंडित मिश्रा एक लोटा जल के अर्पण पर जोर देते हैं। भाजपा के कई नेता पंडित प्रदीप मिश्रा के कार्यक्रम के आयोजन में भागीदारी निभा रहे हैं, तो इस पर उंगलियां भी उठ रही हैं। हाथरस हादसे के बाद बड़े धार्मिक आयोजनों पर प्रशासन सख्ती बरत रहा है। यहां भी मुंगेली में पंडित मिश्रा के कार्यक्रम को पहले प्रशासन ने अनुमति नहीं दी थी। अब जब भूपेश बघेल ने पंडित प्रदीप मिश्रा का नाम लिए बिना प्रतिक्रिया दी, तो स्पीकर डॉ. रमन सिंह ने पलटवार किया है। उन्होंने कहा कि पांच साल बहुत कर्म किए हैं, उसी को भोग रहे हैं।
विसर्जन पर मासूम के आंसू
गरियाबंद की यह एक हृदयस्पर्शी तस्वीर है। भावनाओं की ऐसी गहराई केवल बच्चों में ही देखने को मिलती है। इस नन्ही बच्ची ने कुछ ही दिनों में भगवान गणेश से गहरी मित्रता कर ली थी, विसर्जन के लिए पापा जब लेकर जाने लगे तो वह मूर्ति से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी। उसने गणपति को रोकने की खूब कोशिश की। उसका बड़ा भाई, जो स्वयं भी बच्चा ही है, उसने समझाया- छोड़ दो, उसे उसकी मम्मी लेने आई है। अगर तुम ऐसा करोगी, तो वो अगले साल फिर से नहीं आएंगे। भाई के समझाने पर मुश्किल से सही, मान गई।
वंदेभारत और पाई पाई का हिसाब
वंदे भारत एक्सप्रेस की सफलता, असफलता को लेकर वाट्सएप ग्रुप में बड़े मजेदार चर्चाएं हो रहीं है। पाई पाई जोडऩे को तवज्जो देने वाले मध्यमवर्गीय यात्री, वंदेभारत में सफर को समता एक्सप्रेस से महंगा ही बता रहे हैं। इसलिए शायद कल पहले दिन के सफर के लिए अब तक 60 यात्रियों ने ही टिकिट बुक किया है। यानी 16 में से एक कोच भी नहीं भरा।
समता एक्सप्रेस से तीन घंटे पहले पहुंचने की सुविधा बताने वालों को इनका जवाब है कि ट्रैक अभी जापान-चाइना जैसा है नहीं। 567 किमी में सिग्नलिंग, कॉशन आर्डर, प्लेटफार्म खाली न होने से आउटर में वेटिंग जैसी कई तरह की बाधाएं बनी रहेंगी, लेट होगी और समता एक्सप्रेस के थोड़ा पहले ही विशाखापट्टनम पहुंच पाएगी। ऐसे में महंगी टिकट पर क्यों सफर किया जाए।
इन्हीं सवाल जवाब के बीच एक यात्री ने दोनों ट्रेनों के किराया भाड़े का पाई पाई का अंतर निकाल वायरल किया। इसके मुताबिक वंदेभारत के चेयर कार में बिना कैटरिंग का भाड़ा 1131 और समता के थर्ड एसी में 905, सेकंड एसी में 1265 रूपए। और कैटरिंग के साथ 1495 रूपए। यानी 136 रूपए अधिक। कैटरिंग ले तो कुल 500 रूपए अधिक पड़ रहा। और ट्रेन के लंच, डिनर की क्वालिटी सभी जानते हैं। ये होटल ताज, हयात से बनकर तो आते नहीं। और फिर जब लोग इंडिगो की फ्लाइट में लंच, डिनर ले जाते हैं तो यह तो ट्रेन हैं। ट्रेन में घर से खाना ले जाना आदत में शुमार है। ऐसे तर्क तो ट्रेन के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर रहे हैं । मीडिया में यह भी खबर आई है कि देश में एक जगह वंदे भारत 16 से घटाकर 8 कोच से चल रही है। कारण महंगी टिकट ही हो सकती है।
यूपीआई पेमेंट भी अब सेफ नहीं
यूपीआई पेमेंट हर प्रकार के लेन-देन में आम हो गया है। क्यूआर कोड स्कैन करना, राशि दर्ज कर नोटिफिकेशन की ध्वनि सुनकर भुगतान को सत्यापित करना इसकी एक सामान्य प्रक्रिया है। मगर, रायपुर में एक अनपेक्षित घटना सामने आई है। सिविल लाइन थाना क्षेत्र के दो व्यापारियों ने 7-7 हजार रुपये की ठगी का शिकार होने के बाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। दोनों व्यापारियों के पास दो ग्राहक आए, जिन्होंने कपड़े खरीदे। पेमेंट के लिए क्यूआर कोड स्कैन किया और मोबाइल पर पेमेंट की सूचना दिखा दी। व्यापारियों ने नोटिफिकेशन और स्क्रीन देखकर संतुष्टि जताई, लेकिन बाद में पता चला कि उनके खाते में कोई राशि आई ही नहीं।
शिकायत जल्दी कर दी गई थी। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई कर आरोपियों को पकड़ लिया। परंतु, यह ठगी हुई कैसे?
वास्तव में, गूगल पे, फोन पे और पेटीएम जैसे ऐप्स के फेक वर्जन भी अब बाजार में आ चुके हैं, जो देखने में बिल्कुल असली जैसे होते हैं। पिछले दिनों से दिल्ली से एक खबर आई थी कि इन नकली यूपीआई ऐप्स का उपयोग छोटे व्यापारियों, दुकानदारों और मजदूरों को धोखा देने के लिए किया जा रहा है। ठग इन फर्जी ऐप्स से क्यूआर कोड स्कैन कर नकली पेमेंट दिखाते हैं, स्क्रीनशॉट और साउंड से ऐसा प्रतीत होता है मानो भुगतान सफल हो गया हो, जबकि हकीकत में पेमेंट होता नहीं।
जानकारी के अनुसार, टेलीग्राम पर इन फेक यूपीआई ऐप्स के लिंक साझा किए जा रहे हैं, जिनसे लोग धोखा देने के लिए ये ऐप्स डाउनलोड कर रहे हैं और फिर फर्जी भुगतान कर देते हैं। ऐसे में अब सिर्फ पेमेंट करने वाले की स्क्रीन देखकर संतुष्ट होना काफी नहीं है, बल्कि अपना अकाउंट चेक करना भी जरूरी है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
चैन का पखवाड़ा
पितृपक्ष शुरू हो गया है। हिन्दू मान्यताओं में पितृपक्ष शुरू होने पर पखवाड़े भर शुभ काम नहीं किए जाते हैं। कुछ राजनीतिक दल भी बड़े फैसले लेने से पहले इसका ध्यान रखते हैं। भाजपा में निगम-मंडलों की नियुक्ति पर काफी दिनों से चर्चा चल रही है। यह हल्ला उड़ा कि पितृपक्ष शुरू होने से पहले मंगलवार की रात तक निगम-मंडलों की एक सूची जारी हो सकती है।
भाजपा के राष्ट्रीय सह महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश भी देर शाम यहां पहुंचे थे। एयरपोर्ट पर स्वागत के लिए डिप्टी सीएम विजय शर्मा के अलावा पार्टी के कई प्रमुख नेता थे। पार्टी के एक-दो नेता, वहां निगम-मंडलों की नियुक्ति को लेकर पूछताछ करते रहे। संगठन के एक प्रमुख पदाधिकारी पार्टी नेताओं की जिज्ञासा शांत करते हुए हल्के फुल्के अंदाज में कह गए कि अभी कुछ नहीं होगा।
संकेत साफ थे कि जो कुछ होगा वह पितृपक्ष के बाद ही होगा। यानी पखवाड़ेभर के लिए निगम-मंडलों में नियुक्तियों की अटकलों पर विराम लग गया है।
मार्केटिंग रणनीति
यात्री सुविधाओं से जुड़ी दो नई पहल ने रेलवे और एविएशन मार्केट में बड़ी रणनीति का संकेत दिया है। दोनों ही का सीधा संबंध रेलवे को होने वाले बड़े तो नहीं कुछ नुकसान से है। और यह भी स्पष्ट करता है कि रेल महकमे में ही पैसेंजर इंकम को लेकर जबरदस्त प्रतिस्पर्धा चल रही है। दपूमरे ने दुर्ग-विशाखापट्टम वंदेभारत एक्सप्रेस शुरू की। जो 20 तारीख से सप्ताह के छह दिन नियमित चलेगी। 16 कोच की ट्रेन में इंजिन, गार्ड वैन को छोड़ दें, तो 14 कोच हर कोच टू बाई टू, या थ्री बाई थ्री की सीटों के साथ। यानी एक ट्रिप में करीब दो हजार से अधिक यात्री सफर कर सकेंगे। वह भी वर्तमान में चल रही ट्रेनों से तीन घंटे कम समय में। सुबह के समय में इस समय विशाखापट्टनम के लिए सुबह एक मात्र समता एक्सप्रेस और रात कोरबा लिंक एक्सप्रेस उपलब्ध है। जो करीब 11 घंटे का समय लेती है। उसमें भी कम सीट होने से रिजर्वेशन की मारामारी अलग।
अब बात इन ट्रेनों के यात्रियों को कैप्चर करने की करें तो समता और, कोरबा एक्सप्रेस रेलवे के ईस्ट कोस्ट रेल मंडल भुवनेश्वर जोन और विशाखापट्टनम मंडल की है। इसमें सफर करने वाले अधिकांश छत्तीसगढ़ निवासी अप्रवासी आंध्र मूल के। तो छत्तीसगढ़ में रिश्तेदारी रखने वाले सिंधी, मारवाड़ी जैसे कारोबारी समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या में विशाखापट्टनम के आसपास बसे हैं। इन ट्रेनों का रिजर्वेशन चार्ट देखकर समझा जा सकता है इनकी तादाद को।
समुद्री शहर होने से पर्यटकों की भी बड़ी आवाजाही रहती है। यानी पूरी इंकम भुवनेश्वर जोन को जा रहा। इस इनकम ग्रुप को अपने कब्जे में करने बिलासपुर जोन,रायपुर मंडल ने वंदेभारत के लिए जोर लगाया और सफल हुआ। यह ट्रेन विशुध्द रूप से रायपुर डिवीजन की प्रापर्टी है। अब देखना यह है कि इसे कितना रिस्पांस मिलता है । वैसे आबादी इतनी है कि यह भी कम पड़ जाए।
गुजराती फ्लाइट
इधर छत्तीसगढ़ के एविएशन मार्केट में भी बड़े बदलाव से,रेलवे को कुछ तो नुकसान होगा। दरअसल लो कॉस्ट विमानन कंपनी ने रायपुर से अहमदाबाद के लिए अपनी तीन दिन की उड़ान को अब रोजाना कर दिया है। बड़ा जहाज होने से रोज कम से कम ढाई सौ यात्री आ-जा सकेंगे। यानी 7 दिन में 1750, और एक माह में कम से कम 52500 पैसेंजर। इंकम, सीट अवेलेबल की स्थिति में वेरिएबल। जो निसंदेह अधिक ही होगा। समय की बचत के लिए लोग अधिक खर्च करने तैयार हैं हीं। खासकर गुजराती समाज संपन्न वर्ग में गिना ही जाता है।
अब रेलवे को नुकसान की चर्चा करे तो छत्तीसगढ़ से अभी अहमदाबाद के लिए हावड़ा, पुरी से चलने वाली ट्रेनें हैं जिसमें एक एक बर्थ की मारामारी। एसी में तीन हजार तक देकर भी वेटिंग टिकट। अहमदाबाद के लिए सप्ताह भर बाद का प्री प्लान टूर हो तो प्लेन में 5500-7000 में सीट उपलब्ध हो जाती है। और ट्रेन के 20 घंटे के सफर के मुकाबले पांच घंटे में लैंडिंग भी। हालांकि यह भी सच्चाई है कि ट्रेन में जाने वाले ट्रेन से ही जाएँगे ।
हाईकोर्ट ने भी तो लगाई है रोक
अदालत में चालान पेश होने और फैसला आने के पहले बुलडोजर से किसी आरोपी के घर या प्रॉपर्टी पर बुलडोजर चलाने का सिलसिला उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ। ऐसी कार्रवाई को लोगों ने सही नहीं माना। कई लोगों का मानना था कि यह एक समुदाय विशेष के खिलाफ ही इस्तेमाल हो रहा है। दूसरे, कई बार जहां वारदात हुई, वहीं बुलडोजर चला दिया गया और सबूत नष्ट कर दिए गए। पर इसके बावजूद इस ‘न्याय’ को समर्थन भी खूब मिला। अदालतों में मुकदमों की लंबी प्रक्रिया से बरसों तक फैसला नहीं हो पाने के चलते लोगों को लगा कि सजा देने का यह दूसरा तरीका सही है।
मगर, इसमें गलतियां भी हुई हैं। मध्यप्रदेश में एक जुलूस में कथित रूप से थूकने पर आरोपी के घर बुलडोजर चला दिया गया और आरोपी सबूत नहीं मिलने पर बरी हो गया। यूपी में जिस एक घर को गिरा दिया गया वह आरोपी का था ही नहीं, मकान मालिक का वह किरायेदार था।
अब सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की पीठ ने देशभर में अपराध दर्ज होने की वजह से किसी निर्माण को गिराने की कार्रवाई पर कुछ दिनों के लिए रोक लगा दी है। कोर्ट ने कुछ नियम तय करने की बात कही है, उसके बाद कोई कार्रवाई होगी।
अभी छत्तीसगढ़ में भी एक मामला आया था, जिसमें हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की तरह ही रुख अपनाया था। मैनपाट में एक राजमिस्त्री का हत्या कर उसे दफना दिया गया और उसके ऊपर पानी टंकी बना दी गई थी। मुख्य आरोपी अभिषेक पांडेय के मकान को ढहाने के लिए प्रशासन ने नोटिस चस्पा कर दी। इसके खिलाफ परिवार ने याचिका दायर की। प्रशासन की कार्रवाई पर रोक लगाते हुए याचिकाकर्ताओं को दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए 15 दिन का समय दिया गया।
याद होगा कि विधानसभा चुनाव के दौरान यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभा होने वाली थी तब बिलासपुर में बुलडोजर रैली निकाली गई थी। भाजपा के कई नेताओं ने चुनाव अभियान के दौरान ऐलान किया था कि उनकी सरकार आएगी तो अपराधियों के ठिकानों पर बुलडोजर चलाया जाएगा।
अक्सर प्रशासन की दलील होती है कि यह कार्रवाई अपराध की सजा नहीं है, बल्कि निर्माण ही अवैध है, इसलिये ऐसा किया जा रहा है। मगर, ऐसे अनेक मामले हैं, जिनमें प्रशासन ने हाईकोर्ट ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने करीब पांच साल पहले एक याचिका पर सुनवाई के बाद मुंगेली जिले के लिए आदेश दिया था कि सार्वजनिक भूमि, गोचर भूमि, स्कूल, सडक़ आदि के एक-एक अतिक्रमण को हटाया जाए। अवैध कब्जों की संख्या सैकड़ों में निकली। प्रशासन कुछ दिन तो हरकत में रहा, बाद में पसीने छूट गए। कुछ कब्जे हटे, आज तक उस आदेश का पालन ही नहीं हो पाया।
रिक्शे वालों को चैलेंज
घटक (जिसे घातक भी पढ़ सकते हैं), कोचिंग इंस्टीट्यूट का दावा है कि वह रिक्शावालों को भी फिजिक्स सिखा सकता है। इस विज्ञापन को देखकर रिक्शा चलाने वाले नाराज हो सकते हैं।
कह सकते हैं- क्या सिर्फ अनपढ़ लोग रिक्शा चलाते हैं? हम ही आपको फिजिक्स क्या, मैथेमेटिक्स, केमिस्ट्री सब सिखा देंगे। हम लोगों में से भी बहुत लोग बड़ी-बड़ी डिग्री लेकर बैठे हैं। तस्वीर रांची (झारखंड) की है, जो सोशल मीडिया पर वायरल है।
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खेल, राजनीति, और सरकार
छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के चुनाव को लेकर गहमागहमी चल रही है। इन सबके बीच सीएम विष्णुदेव साय तीरंदाजी संघ के निर्विरोध अध्यक्ष चुने जा चुके हैं। ओलंपिक संघ के संभवत: 29 तारीख को सामान्य सभा में साय अध्यक्ष चुने जा सकते हैं। मगर महासचिव पद को लेकर पेंच फंसा हुआ है।
महासचिव पद के लिए स्पीकर के सचिव विक्रम सिसोदिया का नाम प्रमुखता से उभरा है। विक्रम पिछले 20 साल से ओलंपिक संघ से जुड़े हैं, और वे वर्तमान में बैडमिंटन संघ के अध्यक्ष हैं। मगर सांसद बृजमोहन अग्रवाल भी खेलकूद संघ में आ गए हैं। वे तैराकी संघ के अध्यक्ष चुने जा चुके हैं।
बृजमोहन के अध्यक्ष बनने के बाद उनके ओलंपिक संघ के महासचिव बनने की भी अटकलें लगाई जा रही है। अगर ऐसा हुआ, तो विक्रम को उपाध्यक्ष या फिर किसी अन्य पद के लिए संतोष करना पड़ सकता है। इन सबकी वजह से काफी खींचतान चल रही है, और ओलंपिक संघ की बैठक पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। देखना है आगे क्या होता है।
अधिक सदस्यता का राज
भाजपा में सदस्यता अभियान चल रहा है। और टारगेट पूरी नहीं होने से कई दिग्गज नेता परेशान हैं। सदस्यता की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन हैं, और इसमें फर्जीवाड़े की गुंजाइश नहीं के बराबर है। इन सबमें पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने बाजी मार ली है। वे अब तक 14 हजार सदस्य बना चुके हैं। जबकि हर विधायक को अपने क्षेत्र में 10 हजार सदस्य बनाने हैं। अब हर कोई नेता चंद्राकर से यह जानने की कोशिश में लगा है कि उन्होंने इतनी जल्दी इतने सदस्य कैसे बना लिए?
दिलचस्प बात यह है कि भाजपा के ज्यादातर विधायक अब तक अपने क्षेत्र से हजार सदस्य नहीं बना पाए हैं। पिछले दिनों रायपुर के एक विधायक, अजय चंद्राकर से मिलने गए भी थे। और उन्होंने अजय से जल्द सदस्य बनाने के तरीके पूछे। अजय ने उन्हें यह कह कर टरका दिया कि ज्यादा सदस्य बनाने के लिए अपने क्षेत्र में सक्रिय रहना पड़ता है।
इन सबके बीच कई नेता अन्य विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं। दुर्ग संभाग के एक पूर्व संसदीय सचिव ने कई लोगों को चंडीगढ़ की एक कंपनी का एड्रेस दिया है। यह कंपनी 35 रूपए प्रति सदस्य के हिसाब से संबंधित क्षेत्र में सदस्य बना सकती है। अब कुछ लोग कंपनियों की भी सेवाएं लेने की सोच रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
एक साथ दोहरी जिम्मेदारी
छत्तीसगढ़ की सडक़ों पर आजकल बड़ी संख्या में ई-रिक्शा दौड़ती नजर आती हैं। कुछ साल पहले पिंक ऑटो रिक्शा को केंद्रीय योजनाओं के तहत महिलाओं के लिए शुरू किया गया था, लेकिन अब महिलाएं अपनी मर्जी से इस व्यवसाय को अपना रही हैं। रायपुर, बिलासपुर, कोरबा, और दुर्ग-भिलाई जैसे शहरों में बड़ी संख्या में महिलाएं ई-रिक्शा चला रही हैं। पेट्रोल या डीजल से चलने वाले ऑटो रिक्शा की तुलना में इन्हें चलाना ज्यादा आसान और किफायती होता है। महिला ऑटो चालक न केवल अपनी जिम्मेदारी निभा रही है, बल्कि अपने छोटे बच्चे की भी देखभाल कर रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार सतीश जायसवाल ने ऐसी एक महिला की तस्वीर साझा की है, जो इस सेक्टर में जिम्मेदार महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को दर्शाती है।
कुमारस्वामी का आश्वासन
2020-21 में केंद्र सरकार ने विनिवेश प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया। इसकी एक सूची बनी थी, जिसमें नगरनार स्टील प्लांट का नाम भी शामिल था। यह मुद्दा विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अहम रहा, जहां कांग्रेस ने केंद्र पर प्लांट को बेचने का आरोप लगाया। छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रस्ताव दिया कि यदि इसे बेचा ही जाना है, तो राज्य सरकार इसे खरीदने को तैयार है। बढ़ते विवाद को देखते हुए गृह मंत्री अमित शाह और अन्य नेताओं ने बार-बार स्पष्ट किया कि नगरनार को बेचने का कोई इरादा नहीं है।
हालांकि, स्थानीय लोग और मजदूर संगठन अब भी चिंतित थे। केंद्रीय इस्पात मंत्री एच डी कुमारस्वामी ने कल नगरनार संयंत्र का निरीक्षण किया और स्पष्ट किया कि इसका निजीकरण नहीं किया जाएगा, लेकिन मजदूर संगठनों का कहना है कि केंद्र की संभावित विनिवेश सूची में से नगरनार का नाम अब तक नहीं हटाया गया है। उनका कहना है कि इस सूची से संयंत्र का नाम हटाना चाहिए, क्योंकि स्थानीय निवासियों और किसानों ने अपनी जमीनें इसी उम्मीद में दी थीं कि यह सरकार से संचालित होगा।
कुमारस्वामी के आश्वासन के बाद कुछ राहत जरूर मिली है, लेकिन मजदूर संगठन अभी भी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हुए हैं।
छू भर दो...
टेक्नॉलॉजी में अभी तक के्रडिट और डेबिट कार्ड को पेमेंट मशीन पर छुआ भर देने से भुगतान शुरू करवा दिया था, अब वह एक कदम और आगे बढ़ गई है। भारत में एक निजी बैंक ने अब ऐसी अंगूठी निकाल दी है जिसे किसी भी स्वाईप मशीन से छुआ दिया जाए तो उस पर पहले से दर्ज किया गया भुगतान हो जाता है। अभी इसकी सीमा एक बार में 3 हजार रुपये तक रखी गई है ताकि कोई मुजरिम किसी का हाथ पकडक़र जबर्दस्ती अधिक भुगतान न करवा दे। (rajpathjanpath@gmail.com)
लूट से नींद हराम
पिछले दिनों रामानुजगंज के ज्वेलरी शॉप में दिनदहाड़े लूट के प्रकरण पर पुलिस के हाथ अब तक खाली हैं। वैसे तो करीब 6 करोड़ के आभूषणों की लूट हुई थी लेकिन बिल सिर्फ 2 करोड़ 95 लाख के ही मिल पाए। यही वजह है कि पुलिस ने उतने ही आभूषणों की लूट का प्रकरण दर्ज किया है।
यह इलाका झारखंड से सटा हुआ है, और लुटेरे झारखंड की ओर भाग गए। बताते हैं कि लुटेरों में से एक को पकडऩे का सुनहरा मौका था लेकिन पुलिस उसकी घेराबंदी नहीं कर पाई। अब ताजा जानकारी यह है कि पुलिस ने लूट के आरोपियों का पता लगा लिया है। ये सभी झारखंड के डाल्टनगंज के पास के रहने वाले हैं। इनमें से दो मोस्टवांटेड हैं जिन पर रांची पुलिस ने पहले ही ईनाम घोषित कर रखा है।
दूसरी तरफ, लूट की घटना को लेकर प्रदेश के ज्वेलरी कारोबारियों में गुस्सा है। यह सब बीच बाजार में हुआ, और आसपास सैकड़ों लोग मौजूद थे। इससे कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े हुए हैं। पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस.सिंहदेव ने इस मामले पर राज्य सरकार को घेरा है। यह सरकार के ताकतवर मंत्री रामविचार नेताम का विधानसभा क्षेत्र है, लिहाजा नेताम घटना को लेकर रोजाना अपडेट ले रहे हैं। मगर जब तक लुटेरे, और आभूषण बरामद नहीं हो जाते, तब तक पुलिस की नींद हराम रहेगी।
संगठन का महत्व
सरकार के नए मंत्रियों पर भले ही उंगलियां उठ रही हैं, लेकिन संगठन से उन्हें कोई शिकायत नहीं है। पहले तीन मंत्री टंकराम वर्मा, श्याम बिहारी जायसवाल, और लक्ष्मी राजवाड़े को लेकर काफी कुछ कहा गया। इन सबके हटने-हटाने की चर्चा चलती रही, लेकिन फिलहाल इसकी संभावना नहीं है।
सुनते हैं कि तीनों मंत्री संगठन की सिफारिशों को प्राथमिकता से करने की कोशिश करते हैं। यही वजह है कि संगठन के प्रमुख पदाधिकारी उनसे संतुष्ट हैं। दोनों डिप्टी सीएम को छोडक़र श्याम बिहारी जायसवाल को रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव का प्रभारी बनाया गया है। ये अलग बात है कि जायसवाल का रायपुर दक्षिण इलाके से सीधे कोई नाता नहीं रहा है। मगर उनको लेकर यह कहा जाता है कि वो संगठन को लेकर गंभीर रहते हैं। जायसवाल, रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल को पूरे विश्वास में लेकर काम कर रहे हैं। जिससे संगठन के नेता भी संतुष्ट हैं। इसी तरह लक्ष्मी राजवाड़े को लेकर कहा जाता है कि उनसे किसी को शिकायत नहीं है, बल्कि उनके आसपास के लोगों से ही नाराजगी है।
कुछ इसी तरह टंकराम वर्मा पर भले ही ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर आरोप लग रहे हैं, लेकिन संगठन से आए नामों को उन्होंने पूरा महत्व दिया है। टंकराम वर्मा पर छत्तीसगढ़ी कार्यक्रमों की जिम्मेदारी है जिसे वे बेहतर ढंग से निभा रहे हैं। पार्टी के रणनीतिकार संतुष्ट हैं, तो किसी और की नाराजगी का क्या फर्क पड़ता है।
उद्दंडता रोकने पर निलंबन
दीपका थाना क्षेत्र के दो सहायक पुलिस निरीक्षकों को लगा होगा कि उन्होंने शायद कानून की किताब ज्यादा पढ़ ली। उतना ही हिस्सा पढऩा चाहिए जितना राजनैतिक, प्रशासनिक रसूख इजाजत देती है। हाल ही में दोनों को सस्पेंड कर दिया गया। दरअसल, दो युवक गणेश पंडाल के भीतर अपनी मोडिफाइड बाइक लेकर घुस गया और स्टंट दिखाने लगा। भीड़भाड़ इलाके में इस हरकत से लोग परेशान हुए। एएसआई खगेश राठौर, जितेश सिंह उन्हें पकडक़र थाने ले गए। मोटर व्हीकल एक्ट के तहत कार्रवाई करते हुए उस पर 5 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया। नागरिकों तो लगा कि इन उद्दण्ड युवाओं को सजा देकर पुलिस ने सही किया, परन्तु राजनीतिक दबाव ऐसा आया कि बेचारे पुलिसवाले ही सजा भुगत बैठे। हाल ही में मुख्यमंत्री ने कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में पुलिस को आदेश दिया था कि आम जनता के साथ अच्छा व्यवहार करें। मगर, उद्दंडता करने वालों को फूलों का हार पहनाने तो कहा नहीं गया है। अपराधों पर सख्ती से लगाम लगाने की बात भी कही गई है, मगर उसका पालन कितना हो रहा है, आजकल दिख ही रहा है।
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रिश्वत की रिकॉर्डिंग
बीजापुर के आश्रम-छात्रावासों के अधीक्षकों से वसूली का मामला चर्चा में है। इसका एक आडियो भी फैला हुआ जिसमें मंडल संयोजक, अधीक्षकों से पैसे की डिमांड करते सुने जा सकते हैं।
पिछले दिनों इसी तरह के एक प्रकरण में कलेक्टर ने तीन सदस्यीय जांच समिति बनाई है। बताते हैं कि मंडल संयोजक ने छात्रावास अधीक्षकों से फोन पे पर रिश्वत लिए थे। अधीक्षकों ने सप्रमाण इसकी शिकायत कलेक्टर से की थी।
फोन-पे पर लेन देन की पड़ताल शुरू हुई, तो अधीक्षकों पर बयान बदलने के दबाव बना है। मंडल संयोजक, स्थानीय बड़े नेता के करीबी हैं। ऐसे में दबाव पडऩे पर एक-दो अधीक्षकों ने आपसी लेन देन का मामला बता दिया।
बावजूद रिश्वतखोरी के आरोप को खारिज आसान नहीं है। क्योंकि रिश्वतखोरी के आरोप एक-दो नहीं बल्कि 25 अधीक्षक और अन्य कर्मचारियों ने लगाए हैं। चपरासी तक से फ़ोन पे पर रिश्वत लिए गए हैं। बारी बारी से सबके बयान लिए जा रहे हैं लेकिन कार्रवाई अभी तक नहीं हुई है। अब आगे क्या होता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
शिकायत ऐसी-ऐसी
कुशाभाऊ ठाकरे परिसर के सहयोग केंद्र में मंत्रियों की ड्यूटी लगाई गई है। सरकार के मंत्री अलग-अलग दिन कार्यकर्ताओं की समस्याएं सुन रहे हैं। हालांकि मंत्रियों तक समस्या पहुंचाने की प्रक्रिया आसान नहीं है। इसके लिए कार्यकर्ताओं को पहले रजिस्टे्रशन कराना होता है। कई बार आवेदन अनुपयुक्त पाए जाने पर लौटा भी दिए जाते हैं।
सहयोग केंद्र में ज्यादा आवेदन ट्रांसफर को लेकर मिल रहे हैं। जिस पर फिलहाल रोक लगी हुई है। इससे परे कुछ ऐसे भी आवेदन आ रहे हैं जिसे पढक़र पदाधिकारी भी असमंजस में पड़ जाते हैं। ऐसे ही एक दवा व्यापारी अपना आवेदन लेकर सहयोग केंद्र पहुंचे।
व्यापारी की शिकायत थी कि पहले रायपुर से बिलासपुर तक दवा ले जाने के एवज में पुलिस को दो जगह दो-दो सौ रुपए देने पड़ते थे। कुल मिलाकर 4 सौ रुपए में काम हो जाता था। अब 5-5 सौ रुपए देना पड़ रहा है। यानी 6 सौ रुपए अतिरिक्त देना पड़ रहा है।
व्यापारी का कहना था कि पुरानी व्यवस्था को रहने दिया जाए। मगर सहयोग केंद्र के पदाधिकारियों ने आवेदन पढक़र मंत्री तक पहुंचने से पहले ही व्यापारी को समझाकर लौटा दिया। कुछ इसी तरह की शिकायतें पदाधिकारियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
ट्रांसफर, पोस्टिंग पर बवाल
ट्रांसफर और पोस्टिंग हरेक सरकार में बड़ा कारोबार रहा है। कांग्रेस सरकार के जाते-जाते स्कूल शिक्षा विभाग में बड़े पैमाने पर प्रमोशन हुआ, जब पोस्टिंग की बात आई तो लाखों रुपये में मनचाही जगह खरीद ली गई। उसी समय स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय टेकाम से इस्तीफा लिया गया। उसके बाद संयुक्त संचालक स्तर के 5 अधिकारी सस्पेंड किए गए। निचले स्तर पर भी कई बाबू नप गए। पर समय के साथ-साथ रास्ता निकल ही आता है। करीब साल भर पुराने इस मामले की जांच हो रही है। शिक्षकों से पूछा जा रहा है कि उन्होंने क्या रिश्वत दी? किसे दी और कितनी दी। जब लिखकर देने की बात आ रही है तो शिक्षक पीछे हट रहे हैं। समझदार लोग लिखा-पढ़ी करके घूस नहीं लेते। फिर कानून तो घूस देने वाले को भी अपराधी मानता है। कहां तो, इस मामले में कांग्रेस सरकार ने एफआईआर दर्ज कराने की बात कही थी, लेकिन अब जो स्थिति है- उन सारे अधिकारी बाबू के साफ बच निकलने की जमीन जांच के दौरान तैयार हो रही है। जांच पूरी होते ही पूरी संभावना है कि सब के सब बहाल हो जाएंगे और दाग धुल जाएंगे।
इधर ताजा मामला राजस्व विभाग में हुए बड़ी संख्या में तबादले का है। कनिष्ठ प्रशासनिक सेवा संघ के प्रदेश अध्यक्ष नीलमणि दुबे ने कैमरे के सामने कहा कि कोई क्राइटेरिया नहीं है। किसी को साल में चार-चार बार स्थानांतरित कर दिया गया तो कई एक ही जगह पर सालों से जमे है। उन्होंने सीधे मंत्री पर ही घूस लेने का आरोप लगा दिया। आरोप प्रदेश अध्यक्ष की ओर से लगाया गया था, हडक़ंप तो मचना ही था। मंत्री या सरकार की ओर से कोई सफाई नहीं आई, बल्कि दुबे के ही संगठन के पदाधिकारियों ने लेटर हेड पर उनके आरोपों का खंडन कर दिया है। मामला, तहसीलदार, नायब तहसीलदारों का है। मंत्री को नाराज करके वे कैसे चैन से रहेंगे?
98 लाख का बस स्टॉप
यह संरचना किसी मंदिर या गुरुद्वारे का भ्रम होता है। मगर यह है एक बस स्टाप। ऊपर तीन गुंबद हैं, जिनमें सोने की पॉलिश की गई है। फ्लोर और दीवार ग्रेनाइट की है। इस बस प्रतीक्षालय को बनाने में 98 लाख की लागत आई है। कर्नाटक की समृद्ध विरासत और संस्कृति को दर्शाने के लिए सुरेश कुमार नाम के व्यवसायी ने इसे तैयार किया। इसे डॉ. राजकुमार और दो अन्य प्रतिष्ठित सिने कलाकारों के नाम पर समर्पित किया गया है। बेंगलूरु जाने वालों के लिए यह भी एक दर्शनीय स्थल है। मगर सोशल मीडिया पेज पर एक हैंडल में लिखा गया है कि अफसोस इसकी भी आजकल दुर्दशा हो रही है। यहां मवेशी बैठे रहते हैं। ठेले खोमचे वालों ने कब्जा कर रखा है।
खिलाडिय़ों के खिलाड़ी
बीते 24 वर्षों में सरकारों के साथ अपनी निष्ठा बदलने वाले खिलाडिय़ों के खिलाड़ी इन दिनों बहुत परेशान हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि वे सरकारी पिच पर पैर नहीं जमा पा रहे और कॉक की तरह हवा में गुलाटियां मार रहे। दरअसल पिछली सरकार के दौरान पाला बदलकर भगवा दुपट्टे वालों को निपटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वैसे उन्हें उम्मीद नहीं थी कि सरकार बदल जाएगी। और जब बदली तब से भगवा ब्रिगेड में शामिल होने हर जतन कर रहे। दलीय तौर पर विफलता देख वह फिर से संघ का रैकेट पकडक़र उतरने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन वहां से भी खो कर दिए गए । एक पुराने ठाकुर साहब ने रिप्लेस कर दिया। और अब तो यह कहा जा रहा है कि खेलों के जरिए पुनर्वास असंभव है।
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