रौशन चंद्राकर की रौशनी
भूपेश सरकार में कस्टम मिलिंग घोटाले की ईडी पड़ताल कर रही है। ईडी ने करीब 5 सौ राइस मिलर्स को नोटिस दिया था, और बारी-बारी से बयान लिए। चर्चा है कि सभी राइस मिलर्स ने लिखित बयान में कहा है कि प्रोत्साहन राशि जारी करने के एवज में प्रति क्विंटल 20 रुपए उगाही की जाती थी।
जानकार बताते हैं कि ईडी के पास घोटाले से जुड़े तमाम साक्ष्य मौजूद हैं। ईडी ने जेल में बंद मार्कफेड के तत्कालीन एमडी मनोज सोनी, और मिलर्स एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष रौशन चंद्राकर के वाट्सएप चैट निकलवाए हैं। रौशन चंद्राकर अपने मोबाइल से मार्कफेड एमडी को मिलर्स का नाम मैसेज करते थे, और फिर अगले दिन मिलर्स के खाते में राशि जारी कर दी जाती थी।
बताते हैं कि चंद्राकर ने ऐसे करीब 5 सौ मिलर्स के नाम अलग-अलग समय में मार्कफेड एमडी को भेजे थे। कुल मिलाकर सवा सौ करोड़ से अधिक की उगाही मिलर्स से की गई। सर्वविदित है कि रौशन चंद्राकर, कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल का करीबी है। और वे रामगोपाल अग्रवाल अभी ईडी की गिरफ्त से बाहर है। अब आगे क्या होता है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
पड़ोस में कूद रहे हैं नेता !
रायपुर नगर निगम के पूर्व मेयर एजाज ढेबर ने सभापति प्रमोद दुबे के वार्ड में नववर्ष पर घर-घर मिठाइयों का पैकेट, और फस्ट एड दवाईयों की किट बटवाए, तो इसकी खूब चर्चा हो रही है। आम तौर पर दिवाली पर मिठाई-गिफ्ट का चलन रहा है, लेकिन पहली बार ढेबर की तरफ से नववर्ष पर मिठाई बंटवाई गई। दिलचस्प बात यह है कि ढेबर, और प्रमोद दुबे एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं। ऐसे में सभापति के भगवती चरण शुक्ल वार्ड में ढेबर की सक्रियता के मायने तलाशे जा रहे हैं।
चर्चा है कि ढेबर भगवती चरण शुक्ल वार्ड से चुनाव लडऩा चाहते हैं। उनका पैतृक घर भी इसी वार्ड में आता है। जबकि वार्ड पार्षद रहे प्रमोद दुबे यहां के लिए बाहरी रहे हैं। बावजूद इसके वार्ड चुनाव में रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की थी। अंदर की खबर यह है कि प्रमोद दुबे खुद वार्ड चुनाव लडऩे के बजाए अपनी पत्नी दीप्ति दुबे को मेयर प्रत्याशी बनवाना चाहते हैं। हल्ला यह भी है कि इसके लिए ढेबर, और प्रमोद दुबे के बीच समझौता भी हो गया है। ढेबर, प्रमोद दुबे की पत्नी की उम्मीदवारी का समर्थन कर सकते हैं। इन चर्चाओं में कितना दम है, यह तो पता नहीं, लेकिन वार्डवासी मिठाई-दवाई किट मिलने से काफी खुश हैं।
खतरे में बाघिन की जान
भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) ने वन्यजीव रहवास वाले क्षेत्रों में रेलवे लाइनों की योजना बनाने के लिए कड़े दिशानिर्देश जारी किए हैं। सबसे पहले यही कहा गया है कि ऐसे इलाकों से रेल लाइन गुजारने की योजना जहां तक संभव हो, न बनाएं। इसके बजाय वैकल्पिक मार्गों का चयन करें। यदि अत्यधिक आवश्यकता हो और रेल लाइन ऐसे इलाकों से गुजरनी ही हो, तो वन विभाग की मदद से गहन सर्वेक्षण किया जाए। बाघ, हाथी, तेंदुआ और बायसन जैसे वन्यजीवों के लिए ट्रैक के साथ अंडरपास या ओवरपास का निर्माण किया जाए। इसके साथ ही रेलवे के बुनियादी ढांचे में वन्यजीव-अनुकूल डिजाइन सुविधाओं को शामिल करके वन्यजीवों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
हाल ही में, कटनी मार्ग पर एक मालगाड़ी के लोको पायलट द्वारा शूट किया गया एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। वीडियो में एक बाघिन को बिलासपुर-कटनी मार्ग पर शहडोल के पास तीसरी लाइन को पार करते हुए देखा गया। बाघ-बाघिन का इस तरह दिनदहाड़े दिखना रोमांचक और अद्भुत लगता है। वीडियो बनाने वाले रेलवे कर्मचारी ने भी इसी तरह की भावनाएं व्यक्त कीं। लेकिन इस दृश्य के पीछे रेलवे की लापरवाही उजागर होती है, जिसके चलते बाघिन और अन्य वन्यजीवों को ट्रैक पार करने में जान का खतरा उठाना पड़ रहा है।
यह तीसरी रेलवे लाइन हाल ही में तैयार हुई है, जबकि डब्ल्यूआईआई के निर्देश पहले से मौजूद थे। सवाल उठता है कि निर्माण के दौरान क्या यह पहचान नहीं की गई कि इस क्षेत्र में संवेदनशील वन्यजीव गुजरते हैं? दिन के समय मालगाड़ी के ड्राइवर ने बाघिन को देखकर अपनी गति कम कर ली, लेकिन रात के अंधेरे में ऐसे वन्यजीवों के लिए यह खतरा और बढ़ जाता है। कुछ वर्ष पहले बेलगहना के पास एक तेंदुआ रात में रेलवे ट्रैक पर हादसे का शिकार हो गया था।
यह बाघिन हाल ही में कटनी मार्ग के ही भनवारटंक स्टेशन के आसपास देखी गई थी। इसे गर्भवती बताया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के विभिन्न इलाकों में घूमने के बाद यह मध्यप्रदेश के अमरकंटक की तराई से होते हुए शहडोल क्षेत्र तक पहुंच गई है। शायद इसे अपने प्रजनन के लिए कोई सुरक्षित ठौर नहीं मिल रहा है। यह बाघिन अपनी और अपने होने वाले शावकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित लगती है।
तीन डी का अवैध कारोबार
यूपी की सीमा से सटे सरगुजा के जिलों में तीन ‘डी’ यानी डीजल, दारू, और धान का जोर है। डीजल, यूपी में 10 रुपए सस्ता है। इस वजह से बड़े उपभोक्ता यूपी से डीजल मंगवाते रहे हैं। मगर इससे छत्तीसगढ़ सरकार को वैट के रूप में करीब साढ़े 3 सौ करोड़ का सालाना नुकसान हो रहा था। अब इसके रोकथाम के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल में बड़े उपभोक्ताओं के लिए वैट में कटौती की है।
इसी तरह यूपी से अवैध रूप से शराब की तस्करी हो रही है। इस पर प्रभावी नियंत्रण नहीं लग पाया है। इससे परे यूपी, और झारखंड से अवैध रूप से धान लाकर यहां बेचा जा रहा है। छत्तीसगढ़ में धान की सरकारी खरीदी चल रही है। यहां देश में सबसे ज्यादा कीमत पर धान खरीदा जा रहा है।
बताते हैं कि कुछ समय पहले बलरामपुर जिले में दो ट्रक धान पकड़ा भी गया था। नए नवेले अच्छी साख वाले तहसीलदार ने तुरंत कार्रवाई कर पुलिस को इसकी सूचना दी। मगर बाद में पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, और धान को छोड़ दिया था। मामला बढ़ा तो एसपी तक बात पहुंची। इसके बाद कार्रवाई की गई। कुल मिलाकर सीमावर्ती जिलों में प्राथमिक सोसायटियों में धान खपाया जा रहा है। प्रभावशाली लोगों की वजह से दारू, धान और डीजल के अवैध कारोबार पर प्रभावी नियंत्रण नहीं लग सका है। इससे राज्य को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
मैनपाट में भी फार्महाउस
पीएससी घोटाले की सीबीआई जांच कर रही है। पीएससी के पूर्व चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी के बेटे और भतीजे समेत आधा दर्जन से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। जांच में कई नए तथ्य सामने आए हैं। सुनते हैं कि सोनवानी का मैनपाट में भी फार्महाउस है, और यहां रहकर कई डील फाइनल की थी। सोनवानी सरगुजा कमिश्नर रह चुके हैं। उनके अधीनस्थ अधिकारियों के बच्चे भी पीएससी में सिलेक्ट हुए थे। सीबीआई इसकी पड़ताल कर रही है। फिलहाल तो तीन-चार अभ्यर्थी ही घेरे में आए हंै। आने वाले दिनों में कुछ और गिरफ्तारियां हो सकती है।
कुलपतियों की नियुक्ति फिर रुकेगी?
छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार के अधीन कुल 15 विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से तीन विश्वविद्यालय इस समय संभागायुक्तों के प्रभार में संचालित हो रहे हैं। इंदिरा गांधी संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ और महात्मा गांधी उद्यान एवं वानिकी विश्वविद्यालय, पाटन के कुलपतियों को हटाए जाने के बाद स्थायी नियुक्तियां नहीं हो सकी हैं। इन विश्वविद्यालयों का प्रभार क्रमश: दुर्ग और रायपुर संभाग के संभागायुक्तों को सौंपा गया है। हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग का कार्यभार भी संभागायुक्त के पास है।
रविशंकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सच्चिदानंद शुक्ल को स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है, जबकि वहां भी स्थायी कुलपति की नियुक्ति लंबित है। पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति डॉ. बंश गोपाल सिंह का कार्यकाल जल्द समाप्त होने वाला है। वहीं, अटल यूनिवर्सिटी बिलासपुर के कुलपति एडीएन वाजपेयी का कार्यकाल भी इसी साल खत्म हो जाएगा। नए कुलपतियों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। पहली बार, दावेदारों से उनकी काबिलियत के दस्तावेजों के साथ उपलब्धियों का स्लाइड शो के माध्यम से प्रेजेंटेशन लिया जा रहा है।
इस बीच यूजीसी ने कुलपतियों की नियुक्ति के मापदंड में बदलाव का प्रस्ताव रखा है। अब 10 वर्षों के अध्यापन अनुभव की अनिवार्यता को समाप्त करने की बात है। किसी भी क्षेत्र के अनुभवी और अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले व्यक्ति को पात्र माना जाएगा। वैसे बहुत पहले ऐसा होता रहा है। महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति पद पर आईपीएस विभूति नारायण राय और गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर के पहले कुलपति रहे आईएएस शरतचंद्र बेहार इसके उदाहरण रहे हैं।
प्रस्तावित मसौदे का भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे राज्यों ने विरोध किया है। उनका आरोप है कि इस बदलाव से संघ के लोगों को नियुक्त करने का रास्ता खोला जा रहा है। साथ ही कहा है कि शिक्षा राज्य का विषय है, केंद्र इसमें अनावश्यक हस्तक्षेप कर रही है।
नए मसौदे में राज्यपाल (कुलाधिपति) के अधिकार बढ़ाने की बात भी शामिल है। चयन प्रक्रिया में राज्यपाल का वर्चस्व होगा, जो पहले राज्य सरकार के साथ टकराव का कारण बनता रहा है। पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान भी ऐसा देखा गया था।
छत्तीसगढ़ में जब मापदंड विस्तारित हो चुके हैं और राज्यपाल को अधिक अधिकार मिलने जा रहे हैं, सवाल यह है कि क्या राज्यपाल वर्तमान चयन प्रक्रिया को रोकेंगे और नए मसौदे के लागू होने का इंतजार करेंगे?
अपराधी का महिमामंडन
प्रयागराज कुंभ सबके लिए है। बलात्कारियों के लिए भी। अदालत से दोषी ठहराए जाने के बाद सजा काट रहे आसाराम के अनुयायियों को फर्क नहीं पड़ता, वह उनके लिए अब भी संत है। प्रशासन और सरकार को भी लगता है कोई दिक्कत नहीं।
वैश्य समाज का दबदबा घटा
अविभाजित मध्यप्रदेश के जमाने से भाजपा को बनिया जैन पार्टी की संज्ञा दी जाती रही है। 90 के दशक में सुंदरलाल पटवा सीएम थे, तब प्रदेश अध्यक्ष पद पर लखीराम अग्रवाल काबिज थे। दोनों की वजह से भाजपा में वैश्य समुदाय का दबदबा कायम रहा।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद डॉ.रमन सिंह सीएम जरूर रहे लेकिन वैश्य समाज की हैसियत कम नहीं हुई। सरकार से लेकर संगठन में रूतबा कायम रहा। यह पहला मौका है जब छत्तीसगढ़ भाजपा के 35 संगठन जिलों में से 34 में चुनाव हो गए, और वैश्य समाज का एक भी अध्यक्ष नहीं बना।
रविवार को राजनांदगांव जिलाध्यक्ष का चुनाव हुआ, वहां सौरभ कोठारी के जिलाध्यक्ष बनने की उम्मीद थी। स्थानीय सांसद संतोष पांडेय ने उन्हें जिलाध्यक्ष बनाने के लिए दम भी लगाया था लेकिन उन्हें अध्यक्ष की जगह महामंत्री पद से संतोष करना पड़ा। यहां कोमल सिंह राजपूत को जिलाध्यक्ष बनाया गया जो कि पिछड़ा वर्ग से आते हैं।
भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग पर विशेष ध्यान दिया है, और आदिवासी व पिछड़ा वर्ग के नेताओं को आगे बढ़ा रही है। इन सबके बीच में ब्राम्हण और राजपूत नेताओं को जगह मिल गई है लेकिन वैश्य समुदाय हाशिए पर दिख रहे हैं। मंत्रियों में भी बृजमोहन अग्रवाल के जाने के बाद एक भी वैश्य समाज के मंत्री नहीं हैं। वैसे कैबिनेट विस्तार होना है, और इसमें वैश्य समाज को प्रतिनिधित्व मिलने की उम्मीद है। संगठन में भी नियुक्तियां होनी है जिसमें वैश्य समुदाय के नेताओं को जगह मिलना तय माना जा रहा है। लेकिन पार्टी के भीतर पहले जैसा रूतबा रहेगा, इसकी संभावना कम दिख रही है।
रिश्वतखोर बीईओ और वाट्सऐप चैट
एसीबी ईओडब्लू ने शुक्रवार को बीईओ, लिपिक और एक मध्यस्थ शिक्षक को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा। इसके बाद शिक्षक, कर्मचारी संगठनों के वाट्सएप ग्रुप में आक्रोश, विडंबनाएं और पोल खोलते पोस्ट कर रहे है। इन शिक्षकों का कहना है कि यह इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था के पतन के पीछे असली दोषी कौन हैं? यह घटना न केवल भ्रष्टाचार की गहराई को उजागर करती है? यह गिरफ्तारी उन ईमानदार शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए भी निराशाजनक हैं, जो व्यवस्था में सुधार और प्रगति की उम्मीद रखते हैं। यह समय है कि ऐसे भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर कदम उठाए जाएँ और दोषियों को सख्त सजा दी जाए।
दूसरे ने लिखा
जो शिक्षक अपने छात्रों को ईमानदारी कर्तव्य परायणता अन्याय के प्रति लडऩे की शिक्षा देता है।वही शिक्षक अपने ही सिस्टम से हार जाता है। शिक्षक ऐसा पद है जो पूरी जिंदगी एक चवन्नी रिश्वत मिलने की कोई गुंजाइश नहीं रहती। लेकिन अपना कार्य करवाने के लिए अपने ही उच्च अधिकारियों को अपने वेतन का पैसा देना पड़ता है। तबादले के लिए पैसा, रिलीव होने के लिए पैसा, एलपीसी जारी करने पैसा, जीपीए पासबुक संधारण करने पैसा, सर्विस बुक संधारण करने पैसा, उच्च परीक्षा में बैठने अनुमति हेतु पैसा, बिना रिश्वत के कोई काम नहीं होता द्य ऐसे में अब शिक्षक बच्चों को क्या ईमानदारी एवं कर्तव्य परायणता का शिक्षा दे पाएगा।
तीसरे ने कुछ पोल खोलते तथ्य रखा- लिखा राजधानी का एक संकुल प्रभारी की किसी आईएएस से कम इंकम नहीं है। दिवंगत पिता की जगह अनुंकपा नियुक्ति पाकर बीते 20 वर्ष से रायपुर में ही पदस्थ है। एक हाथ ला दूसरे हाथ आर्डर की नीति पर काम करते चार-चार गाड़ी, इतने ही मकानों का मालिकाना हक हासिल कर लिया है। और सालाना एसीआर में यह गरीब शिक्षक ही है। सखाराम दुबे स्कूल के आफिस का मानो यह आईएएस हो। पर है बीईओ से नीचे। आखिरी में लिखा यह अकेला विरला नहीं है प्रदेश में ऐसे दर्जनों होंगे ।
इसके जवाब में चौथे ने लिखा-
अयोग्य और अपात्र लोग चाटुकारिता, नेतागिरी और पैसे के दम पर अधिकारी के पद को पाकर केवल वसूली करते है और अपने राजनीतिक आकाओं को खुश रखने का काम करते है। मौका मिला है तो जितना हो सके लूट लो की मानसिकता शिक्षकों के शोषण का मुख्य कारण है।योग्य, पात्र और कर्मठ लोगों को अधिकारी बनाया जाए तो स्थिति अलग होगी।
पांचवे ने लिखा-ऐसे गोरखधंधे में कई कर्मचारी नेता भी संलिप्त रहते है। इसलिए कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान नहीं होता।
छठवें ने लिखा-
अभी वर्तमान में शिक्षा विभाग में 146 विकासखंड में केवल 45 नियमित विकासखंड शिक्षा अधिकारी है। बाकी जगह प्राचार्य और व्याख्याता लोग जुगाड से बैठे है। इसी प्रकार 33 जिलों में केवल 8 जिला शिक्षा अधिकारी नियमित पदस्थ है। 25 जिला शिक्षा अधिकारी प्रभारी है।इस स्थिति में ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठ और प्रशासनिक कसावट की बात बेमानी है।होना यह चाहिए कि विभाग को सभी पदों में योग्य और पात्र लोगों को नियुक्ति/पदोन्नति देकर प्रभार वाद से विभाग को मुक्त करना चाहिए।
सातवें ने पोस्ट किया-
सभी विभाग की यही कहानी है।
आठवें से जवाब मिला-स्वास्थ्य विभाग का इससे भी बुरा हाल है। प्रभारवाद अभी सबसे बड़ी समस्या है। हम भी इसका दंश झेल रहे हैं।
एक अन्य ने कहा- अरे हमारे विभाग में तो नीचे से ऊपर प्रभार वाद चल रहा हेड मास्टर, प्राचार्य, बीईओ, डीईओ, उपसंचालक,संयुक्त संचालक और न जाने क्या-क्या पद पूरे प्रभार में चल रहे है, और यही लोग लूट मचा रखे हैं । प्रभारवाद याने शासन हितैषी कर्मचारी विरोधी, नेता चरणपादुक, ब्यूरोक्रेट्स चाटुकार, भ्रष्टाचार के दीमक। इनके रहते प्रमोशन संभव नहीं है और न ही नियमित प्रशासनिक पद।
नेताओं की मजबूरी, छात्राओं में निराशा।
एक पत्र
आज शा .कन्या महाविद्यालय देवेंद्र नगर रायपुर में वार्षिकोत्सव एवं पुरस्कार वितरण कार्यक्रम आयोजित था,जिसके मुख्य अतिथि के रूप में माननीय सांसद श्री
बृजमोहन अग्रवालजी, विशिष्ट अतिथि के रूप में विधायक श्री पुरंदर मिश्रा जी,एवं पूर्व विधायक कुलदीप जुनेजा जी आमंत्रित थे।
कल रात में सांसद अग्रवाल जी के पी ए ने प्राध्यापकों को सूचित किया कि अग्रवालजी नहीं आ पाएंगे बाहर जा रहे हैं।
प्राध्यापकों को बहुत निराशा हुई, फिर सोचा चलो पुरंदर मिश्रा जी,और जुनेजा तो आ रहे हैं, ऐन वक्त पर पुरंदर मिश्राजी भी उपस्थित नहीं हुए पता चला उड़ीसा गए हैं।
आयोजकों के होश उड़ गए, बच्चे निराश हो गए।
इस बीच पूर्व विधायक कुलदीप जुनेजा जी ने आकर स्टाफ और छात्राओं का हौसला बढ़ाया।
इस तरह की घटना ने आज सबको सोचने पर मजबूर कर दिया।
कि छात्राओं का क्या दोष ? कितनी तैयारी, मेहनत और खर्च किया था, दूर दूर के गांव से छात्राएं आती हैं, उन्हें कितनी तकलीफ और निराशा हुई, इसकी कल्पना क्या हमारे नेता कर सकते हैं ?
एक छात्रा।
कन्या महाविद्यालय देवेन्द्रनगर।
तिल-गुड़ खाओ, मीठा बोलो
हिंदू पंचांग और अंग्रेजी कैलेंडर में 14 जनवरी (कभी-कभी 15 जनवरी) मकर संक्रांति की तिथि को लेकर कोई विवाद नहीं होता। यह वह एकमात्र त्यौहार है जो हर साल तय तारीख पर मनाया जाता है। बाकी हिंदू त्यौहारों के विपरीत, जो चंद्र कैलेंडर के अनुसार चलते हैं और हर साल तिथियों में बदलाव करते हैं, मकर संक्रांति सूर्य की मकर राशि में प्रवेश के सटीक समय के आधार पर तय होती है।
सौर वर्ष 365.25 दिनों का होता है, जबकि चंद्र वर्ष केवल 354 दिनों का। यही अंतर अन्य हिंदू पर्वों की तिथि में भ्रम का कारण बनता है। ज्योतिष और खगोलशास्त्र के जानकार अपनी-अपनी गणना के अनुसार त्यौहार की तिथियों की घोषणा करते हैं, जिससे बाकी पर्व अक्सर दो दिन तक मनाए जाते हैं।
मकर संक्रांति से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, यह वह दिन है जब सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव की मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इसे पिता-पुत्र के बीच सामंजस्य और स्नेह का प्रतीक माना जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार, इस दिन गंगा का भगीरथ के तप के फलस्वरूप पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। इसी वजह से इस पर्व पर पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में मकर संक्रांति के नाम और रीति-रिवाज भिन्न हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब में इसे खिचड़ी पर्व कहा जाता है। पंजाब में इस दिन लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। गुजरात में इसे उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल, पश्चिम बंगाल में पौष संक्रांति, कर्नाटक में सुग्गी हब्बा और तेलंगाना में पेद्दा पंडुगा के नाम से जाना जाता है।
इस त्यौहार की विशेषता है तिल-गुड़, लाई, मूंगफली, रेवड़ी, गजक और चूड़ा जैसे पारंपरिक व्यंजन। भले ही नाम अलग-अलग हों, लेकिन इन व्यंजनों के बिना मकर संक्रांति का उत्सव अधूरा लगता है। महाराष्ट्र में इस दिन कहा जाता है, "तिलगुड़ घ्या, गुड-गुड बोला। इसका अर्थ है- तिल-गुड़ खाओ और मीठा बोलो।
यह तस्वीर रायपुर के एक परिवार द्वारा सोशल मीडिया पर साझा की गई है, जिसमें त्यौहार से जुड़ी पारंपरिक मिठाइयां और व्यंजन दिखाई दे रहे हैं।
सचिवालय में बेहतर दिन लौटे
राज्य प्रशासन में वरिष्ठता के सम्मान के दिन वापस लौट आए हैं। प्रभारी मुख्य सचिव तय करने के लिए बकायदा तीन नामों का पैनल सीएम को भेजा गया। उसमें से सबसे वरिष्ठ पर मुहर लगवाई गई।
बीते पांच वर्ष में तो कई बार मुख्यमंत्री के एसीएस ही स्वयं प्रभार ले लेते और एक वर्ष से तो द्वितीय-तृतीय वरिष्ठ पर मुहर लगवाई जाती रही है। मैडम रेणु पिल्ले को मंत्रालय से बाहर की मानकर उनकी वरिष्ठता को दरकिनार किया जाता रहा। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया।
यह सब वही कर सकता है जो वरिष्ठों का सम्मान करता है। एलटीसी पर गए मुख्य सचिव की जगह रेणु पिल्ले को कार्यकारी सीएस बनाया गया।
जीएडी ने तीन नाम सरकार को भेजे थे और सम्मान हुआ वरिष्ठता का। इस बात की पूरे कैडर में चर्चा हो रही। हर अफसर सकारात्मक मान रहा। यह वही कर सकता है जो स्वयं भी इस दायरे का पालन करता हो। हमने कल ही इसी कॉलम में बताया था कि सुबोध सिंह ब्यूरोक्रेटिक व्यवस्था को पटरी पर लाने में जुटे हुए हैं।
सचिव और मंत्री
मंत्री अफसर के बीच शिष्टाचार की बातें होती हैं तो चर्चा नहीं होती, यदि यहीं बातें ऊंची आवाज में होती है तो कोई सुनने वाला आकाशवाणी बन जाता है, और फिर बातें वायरल होती हैं। सुनने वाले वायसकॉल हासिल करने तक के प्रयत्न करने लगते हैं। कल से यही चल रहा है। कल शाम पहली बार के मंत्री और एक अफसर में यही कुछ हुआ। साहब ने स्वयं कॉल कर नेताजी को जमकर खरी-खरी सुनाई। नेताजी अपने विभाग की खरीदियों को मंजूर करने बिल क्लियर करने विभाग की मैडमों पर जबरदस्त दबाव बनाए हुए थे। पुराने विवादित बिल, विधानसभा में उठ चुके इन खरीदियों जैसे अन्याय कारणों से ठिठकी हुई हैं।
विभाग की तीनों ही आईएएस मैडम विभाग के खरीदी विंग की प्रभारी भी हैं। जब नेताजी का दबाव असहनीय हुआ तो तीनों ने जाकर साहब के सामने दुखड़ा सुनाया। इसके बाद तो साहब, नेताजी पर भारी पड़ गए। साहब को सुनने वाले तो एक तरह से सिहर उठे तो दूसरी ओर खड़े लोग नेताजी के हावभाव देखकर सकते में रहे। इतने हॉट-टॉक की डेंसिटी तो पहले कभी नहीं रही। अब तक तो नेताजी बोलते रहे हैं और साहब लोग जी-जी करते सुने, देखे जाते रहे हैं। एक ही पुराना वाकया इसके बराबर का रहा है जब बीस वर्ष पहले अजयपाल सिंह ने एक दबंग मंत्री को ललकारा था।
मंत्रिमंडल, जितने मुँह, उतनी बातें
भाजपा में नगरीय निकाय, और पंचायत चुनाव की तैयारी चल रही है। बावजूद इसके कैबिनेट विस्तार का भी हल्ला है। कुछ लोग इसके लिए मकर संक्रांति की तिथि गिना रहे हैं। इन सबके बीच महाराष्ट्र फॉर्मूले की भी खूब चर्चा है।
हल्ला है कि कैबिनेट विस्तार के बीच मंत्रियों के विभागों को भी इधर से उधर किया जा सकता है। चर्चा यह है कि सीएम खुद गृह विभाग रख सकते हैं। महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडनवीस के पास जनसंपर्क के साथ-साथ गृह विभाग भी है। बाकी विभाग नए शामिल होने वाले मंत्रियों के बीच बंटवारा हो सकता है। फिलहाल तो अटकलें ही लगाई जा रही है। आगे क्या होगा यह तो दो-तीन दिन बाद साफ हो सकता है।
सडक़ सुधार की इतनी बड़ी कीमत
सरकारी निर्माण कार्य, विशेषकर सडक़ों के सुधार और मरम्मत में भ्रष्टाचार की खबरें आम हैं। हाईकोर्ट में सडक़ों की दुर्दशा को लेकर कई जनहित याचिकाएं दाखिल की गई हैं। अदालत ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कई मामलों में अधिकारियों को कटघरे में खड़ा किया है। परंतु, उनके पास हर सवाल का पहले से तैयार जवाब होता है। जिन सडक़ों पर अदालत का ध्यान जाता है, उनकी मरम्मत करके अफसर और ठेकेदार अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं।
विधानसभा से रायपुर-बिलासपुर हाईवे को जोडऩे वाली सडक़ की खराब हालत को लेकर हाईकोर्ट ने कई बार अधिकारियों को तलब किया। इसके बाद सडक़ की स्थिति में सुधार हुआ। लेकिन अफसरों और ठेकेदारों का गठजोड़ इतना मजबूत है कि कुछ फासले पर स्थित मोवा ओवरब्रिज की मरम्मत भी गुणवत्ताहीन ढंग से कर दी गई।
प्रदेशभर में घटिया सडक़ों की खबरें आए दिन मीडिया में छपती रहती हैं, लेकिन अफसरों पर इसका कोई असर नहीं होता। मोवा ओवरब्रिज के मामले में गड़बड़ी की खबर सामने आते ही पीडब्ल्यूडी के बड़े अफसर सक्रिय हो गए। इसकी वजह भ्रष्टाचार के प्रति उनकी रियायत नहीं थी, बल्कि लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि इस घटिया काम की आवाज उठाने पर पत्रकार मुकेश चंद्राकर जैसा हश्र हो सकता है।
बीजापुर की घटना का ही असर है कि अब मोवा ओवरब्रिज मामले में जांच के आदेश दिए गए हैं।
जब भी हम मोवा ओवरब्रिज से गुजरेंगे, पत्रकार मुकेश चंद्राकर की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की याद दिलाएगा।
भारी काम हल्के मन से
संगीत न केवल मन को हल्का करता है बल्कि एकरसता के साथ किसी काम करने के लिए जोश भी भर देता है। छत्तीसगढ़ से सैकड़ों मजदूर दूसरे राज्यों में ईंट बनाने के लिए प्रवास करते हैं। उनकी मजदूरी काम के घंटों से नहीं, बल्कि कितनी ईंटे बनाई, उस पर दी जाती है। संगीत से उन्हें मानसिक ऊर्जा मिलती होगी और शारीरिक थकान कम महसूस होती होगी, और ज्यादा ईंटें बना लेते होंगे। उत्तर प्रदेश के एक ईंट भ_े में लगा साऊंड सिस्टम।
अतिउत्साह से शिकायतें
रायपुर नगर निगम मेयर का पद महिला आरक्षित होने के बाद भाजपा, और कांग्रेस के अंदरखाने में शिकवा-शिकायतों का दौर शुरू हो गया है। भाजपा में विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई, जब मेयर पद महिला आरक्षित होते ही नेता प्रतिपक्ष मीनल चौबे के उत्साही समर्थकों ने पटाखे फोड़े, और उन्हें एक तरह से प्रत्याशी घोषित कर दिया। इस पर मीनल के विरोधियों ने पार्टी संगठन से शिकायत कर दी। चर्चा है कि पार्टी संगठन के नेताओं ने इसे गंभीरता से लिया है।
कुछ इसी तरह की गलती सभापति प्रमोद दुबे से जुड़े लोगों ने कर दी। प्रमोद दुबे के करीबियों ने उनकी पत्नी का बायोडाटा सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। इसके बाद कांग्रेस की कई महिला पदाधिकारियों ने प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज से मिलकर किसी भी नेता की पत्नी को प्रत्याशी बनाने पर चेता दिया है।
महिला कांग्रेस की पदाधिकारियों को मेयर एजाज ढेबर का भी समर्थन मिला। मेयर की पत्नी अर्जुमन ढेबर ने सोशल मीडिया पर कह दिया कि टिकट पर महिला कांग्रेस की पदाधिकारियों का पहला हक है। ये बात किसी से नहीं छिपी है कि मेयर और सभापति के रिश्ते मधुर नहीं रहे हैं।
यही नहीं, एक पूर्व विधायक कुलदीप जुनेजा ने प्रमोद दुबे की पत्नी का नाम सामने आते ही खुले तौर पर कह दिया है कि उनकी पत्नी भी टिकट की दावेदार हैं। यह साफ है कि नेता पत्नी को टिकट देने का कदम जोखिम भरा भी हो सकता है। देखना है कि दोनों दल आगे क्या निर्णय करती हैं।
सचिवालय विभाग से अधिक जरूरी
सीएम के प्रमुख सचिव सुबोध सिंह ने कार्यभार लेने के बाद अब तक कोई अलग से विभागों का प्रभार नहीं लिया है। यद्यपि सीएम के पास आधा दर्जन से अधिक विभाग हैं, और उनके आने के पहले काफी फाइलें पेंडिंग थी। यह सब देखते हुए सुबोध ने कोई नया विभाग लेने के बजाए सीएम सचिवालय को व्यवस्थित करने जुटे हैं।
इसका प्रतिफल यह रहा कि अब फैसले तेजी से हो रहे हैं। कुछ इसी तरह राज्य बनने के बाद तत्कालीन सीएम अजीत जोगी के पहले सेक्रेटरी सुनिल कुमार ने भी सिर्फ जनसंपर्क, और आईटी विभाग अपने पास रखा था। उस वक्त आईटी का नया विभाग बना था। सुनिल कुमार ने भारी भरकम विभाग अपने पास रखने के बजाए नए राज्य की समस्याओं को हल करने प्रशासनिक कसावट के लिए बड़ा काम किया था। और सरकार का पहला कार्यकाल पूरा होते-होते सीएम सचिवालय व्यवस्थित हो पाया। इससे मिलती-जुलती परिस्थितियां अभी बनी हुई है, और सुबोध को भी रिजल्ट ओरिएंटेड अफसर माना जाता है।
कोहरे में लिपटा अमरकंटक
पेंड्रारोड से अमरकंटक की ओर निकलें तो भालू के आकार की मूर्तियां स्वागत करती हैं। कोहरे की चादर में ढके घने वृक्षों के बीच का यह रास्ता इन दिनों प्रकृति प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग जैसा लग रहा है। नर्मदा और सोन नदियों का उद्गम स्थल इन दिनों जाड़े और कोहरे भरी सुबह के कारण और भी आकर्षक हो गया है। यहां का शांत वातावरण, साफ हवा और प्राकृतिक छटा सैलानियों को सुकून और आध्यात्मिकता का अनुभव कराती है। 9 जनवरी को यहां का न्यूनतम तापमान 6 डिग्री सेल्सियस था। हालांकि इसी दिन छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में तापमान इससे भी नीचे चला गया था। मैनपाट में 3.7 डिग्री चला गया था, जहां बर्फ की परतें भी जम रही हैं।
बाघिन लौटी, राहत की सांस ली
जिस अचानकमार अभयारण्य में पर्यटकों को साल में एकाध बार ही टाइगर का दर्शन हो पाता है। बाकी को बायसन और चीतल, बारहसिंगा से ही संतुष्ट होना पड़ता है। इस सीजन में तो किसी पर्यटक को अब तक एक भी बाघ-बाघिन का दर्शन नहीं हुआ है। ऐसे में एक टाइग्रेस कान्हा नेशनल पार्क से घूमते फिरते मरवाही, पेंड्रा और अचानकमार के जंगलों में विचरण करने लगी। इस टाइग्रेस की आने की सबसे पहले खबर मरवाही के ग्रामीणों को हुई। मरवाही मंडल के अधिकारी मुस्तैद हो गए। रात भर जाग-जागकर उसके लोकेशन पर निगरानी की जाती रही। फिर वह भनवारटंक की ओर पहुंच गई, जो बिलासपुर वन मंडल में है। अब यहां के वन अधिकारियों की नींद उड़ी। इधर एक बड़ा माता मंदिर भी है जहां नए साल पर हजारों लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं। दो दिन घूमने के बाद बाघिन फिर मरवाही वन मंडल में लौट गई। बिलासपुर के अफसरों ने राहत की सांस ली। फिर वह अचानकमार टाइगर रिजर्व में पहुंच गई। वहां एक दिन ठहरने के बाद वह केंवची रेंज से होते हुए अमरकंटक की तराई की ओर चली गई। इस तरह से छत्तीसगढ़ की सीमा से बाहर हो गई। यह सब बाघिन को लगाए गए कॉलर आईडी से पता चलता रहा। एक वनकर्मी का कहना है कि अफसर लोग चाहते तो हैं कि टाइगर के नाम पर फंड मिलता रहे, पर टाइगर की वजह से आराम में खलल पड़े यह उनको मंजूर नहीं। पहले के अफसर अपने इलाके में टाइगर देखकर खुश हो जाते थे, जंगल में कैंप करते थे। अब के अफसर तो शहर के बंगलों में रहने के आदी हो गए हैं। हाथी-बाघ की खबर मिलने पर जंगल जाने से घबराते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि इस बाघिन को अपने लिए नये रहवास की तलाश थी, पर छत्तीसगढ़ का जंगल उसे रास नहीं आया और वापस लौट गई।
साव का बढ़ा भाव
सीएम विष्णुदेव साय, और डिप्टी सीएम अरुण साव के बीच बेहतर तालमेल देखने को मिल रहा है। बालोद के एक कार्यक्रम में सीएम ने अरुण साव की तारीफों के पुल बांधे। उस वक्त मंच पर साव भी थे। कैबिनेट ब्रीफिंग हो, या फिर किसी और विषय पर सरकार के पक्ष रखने के लिए साव को ही अधिकृत किया गया है।
प्रदेश में नगरीय निकाय, और पंचायत के चुनाव होने हैं। नगरीय निकायों में अरुण साव की पहल पर सभी निकायों में प्रशासक बिठाकर राशि का आबंटन किया गया है, ताकि तेजी से काम हो सके। पार्टी को चुनाव में इसका फायदा मिल सके। प्रदेश के सभी निगमों में कांग्रेस का कब्जा रहा है, और कार्यकाल खत्म होने के बाद भाजपा नेताओं की सिफारिश पर तेजी से काम हो रहे हैं। अब चुनाव में इसका कितना फायदा होता है, यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा।
वित्त विभाग और निगम-मंडल
भाजपा प्रदेश प्रभारी के दौरे पर आते ही गलियारों में कैबिनेट फेरबदल और निगम मंडल आयोग में नियुक्तियों को लेकर हलचल है । कुछ नाम भी सामने लिए जाने लगे हैं। इस बार भी उनका दौरा निकाय चुनाव में जीत और संविधान हमारा स्वाभिमान अभियान पर प्रबोधन के साथ पूरा हुआ। वैसे यह भी सच्चाई है कि अब पार्टी नेताओं में ही निगम मंडल को लेकर उत्साह नहीं रह गया है। और ये लोग हाथ पर हाथ धरे बैठ गए हैं । यह भी कहते हैं कि उन्हीं चंद लोगों को ही नियुक्त किया जाएगा जो पहले भी रहे हैं।
इन सबके बीच एक खबर यह भी है कि वित्त विभाग के अफसर ही नहीं चाहते हैं कि निगम मंडलों में नियुक्तियां हो। उनका कहना है कि इन नियुक्तियों से स्थापना व्यय में एकाएक उछाल आता है। नए अध्यक्ष उपाध्यक्ष सदस्यों के वेतन भत्ते, मकान वाहन सुविधा का व्यय भार आता है। नान, खनिज निगम, हाउसिंग बोर्ड, लघु वनोपज भवन निर्माण कर्मकार मंडल जैसे कारोबारी निगम मंडलों के लिए यह सहनीय है, लेकिन विभागीय बजट पर निर्भर निगम मंडल दोहरी मार होते हैं । और यदि पिछली सरकार की तरह तीस से अधिक निगम मंडलों में नियुक्तियां की जाती हैं,तो खर्च बढ़ेगा।
वित्त अफसर बताते हैं कि तीन वर्ष में इन पर 250 करोड़ खर्च हुए थे। पिछले नेताओं के जलवे देख- सुनकर ही नियुक्तियों को लेकर संगठन सरकार पर दबाव भी उसी तरह का है। वहीं विभागीय मंत्री भी अपनी कमान ढीली नहीं करना चाहते। इन्हीं निगम मंडलों की ही वजह से अभी उनके लाव लश्कर चल रहे हैं। वे भी नियुक्तियों को मुल्तवी कराने में सफल रहे हैं। अब देखना है कि इस रस्साकशी में कब तक सफल बने रहते हैं। यह तो दिख रहा है कि निकाय चुनाव तक तो नियुक्तियां नहीं हो रहीं।
भाजपा वोटर का नोटा प्रेम
दिल्ली देश की राजधानी होने की वजह से वहां हो रहे विधानसभा चुनावों की खबरें मीडिया पर खूब तैर रही है। सोशल मीडिया पर भी आ रही है। ऐसा ही एक पोस्टर वहां के एक भाजपा विधायक ओ पी शर्मा से संबंधित फैला हुआ है। दिखाई यह देता है कि पोस्टर लगाने वाला खुद को तो भाजपा का कट्टर वोटर बता रहा है लेकिन विधायक से नाराज है। उसने शर्मा को वोट देने की जगह नोटा का विकल्प चुनने की बात कही है। इसे देखकर आप यह नहीं कह सकते कि भाजपा कार्यकर्ताओं, मतदाताओं में उनके खिलाफ सचमुच भारी नाराजगी होगी। हो सकता है कि पोस्टर चिपकाने वाला उसके विरोधी दल कांग्रेस या आम आदमी पार्टी का समर्थक हो। चुनाव प्रचार के दौरान इस तरह के कई पैंतरे आजमाए जाते हैं।
नौकरी नहीं नेटवर्क मार्केट मांगिये
आजकल हजारों युवा ग्रेजुएट, पीजी, बीएड और डीएड जैसे डिग्री कोर्स पूरे कर सरकारी शिक्षक बनने का सपना देख रहे हैं। लेकिन यह समस्या केवल शिक्षकों तक सीमित नहीं है; दूसरे विभागों में भी नौकरी के लिए युवाओं की लंबी कतारें हैं। हालात ऐसे हैं कि पीएचडी धारक भी क्लर्क या भृत्य की पोस्ट के लिए आवेदन करने को मजबूर हैं। दूसरी ओर सरकार की ओर से सलाह दी जा रही है कि युवा नौकरी मांगने की बजाय रोजगार देने वाले बनें।
नेताओं की बातों पर यकीन न भी हो, तो उन लोगों पर गौर करें जो सरकारी नौकरी छोड़ अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए व्यापार का रुख कर रहे हैं। रायगढ़ जिले के एक हिंदी व्याख्याता रघुराम पैकरा का मामला काफी चर्चा में है। वे लगातार स्कूल से गैरहाजिर रहते थे। कभी छुट्टी लेकर तो कभी बिना बताए। जब शिक्षा विभाग ने बर्खास्तगी का नोटिस जारी किया तो उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर बताया कि सरकारी नौकरी उनकी आर्थिक समस्याओं को हल नहीं कर रही। इसके चलते उन्होंने इस्तीफा देकर नेटवर्क मार्केटिंग के क्षेत्र में कदम रखा, जहां प्रोटीन पाउडर जैसे उत्पाद बेचकर मोटी कमाई कर रहे हैं।
बिलासपुर, जांजगीर और सरगुजा जिलों से भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं। रायगढ़ के ही शशि बैरागी ने भी हाल ही में इस्तीफा दिया है।
बिलासपुर के संयुक्त संचालक ने सभी अधीनस्थ अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि स्कूल से गायब शिक्षकों पर निगरानी रखें। जांच में पाया गया है कि ये शिक्षक नेटवर्क मार्केटिंग और अन्य निवेश से जुड़े व्यवसायों के कारण स्कूलों से दूर रहते हैं। नवंबर महीने में ऐसे दो दर्जन से अधिक शिक्षकों को नोटिस जारी की गई थी।
यह मान लेना गलत होगा कि सरकारी नौकरी छोडऩे वाले हर व्यक्ति को व्यापार में सफलता मिल रही है। अधिकांश मामलों में ये शिक्षक अपने स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के माता-पिता को पहले अपने ग्राहक बनाते हैं। धीरे-धीरे, उनका धंधा इतना बढ़ जाता है कि वे अपने स्कूल का रास्ता भूल जाते हैं।
अब तो सिंधी समाज को मौका मिले
नगरीय निकाय चुनाव की तिथि भले ही अभी घोषित नहीं हुई है, लेकिन मेयर और अध्यक्ष के पदों का आरक्षण होने के बाद राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। सिंधी, पंजाबी, और गुजराती व अन्य समाज के लोगों ने अपने-अपने समाज से मेयर प्रत्याशी तय करने के लिए जोर लगाना शुरू कर दिया है। भाजपा और कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में सिंधी और गुजराती समाज से एक भी प्रत्याशी नहीं दिया था, लिहाजा निकाय चुनाव में प्रतिनिधित्व देने की मांग कर रहे हैं।
सिंधी समाज के नेताओं की नजर रायपुर, धमतरी, और राजनांदगांव मेयर टिकट पर है। खास बात यह है कि रायपुर की सीट से सिंधी समाज से दिवंगत रमेश वल्र्यानी, और श्रीचंद सुंदरानी विधायक रहे हैं। मगर आम चुनाव में भाजपा और कांग्रेस, दोनों ने सिंधी समाज से किसी को प्रत्याशी नहीं बनाया। इसी तरह बड़े व्यापारिक गुजराती समाज से भी किसी को भी दोनों ही दल ने टिकट नहीं दी थी। जबकि गुजराती समाज के धरसींवा से देवजी पटेल, धमतरी में दिवंगत जया बेन, हर्षद मेहता, और भाटापारा से कलावती मेहता विधायक रही हैं। यही नहीं, मनेन्द्रगढ़ से गुजराती समाज के दीपक पटेल विधायक रहे हैं। रायपुर महिला अनारक्षित है, और बाकी सामान्य सीटों पर दोनों ही बड़े व्यापारिक समाज के नेताओं को टिकट की आस है।
सिंधी समाज की कई महिला नेत्रियों के बायोडाटा भाजपा व कांग्रेस नेताओं तक पहुंच रहे हैं। भाजपा से सिंधी काउंसिल की उपाध्यक्ष राशि बलवानी ने दावेदारी की है, तो कांग्रेस से पूर्व पार्षद कविता गुलवानी ने खुलकर चुनाव लडऩे की इच्छा जताई है। धमतरी से प्रदेश भाजपा महामंत्री रामू रोहरा का नाम प्रमुखता से उभरा है, तो कांग्रेस से पूर्व जिलाध्यक्ष मोहन लालवानी टिकट मांग रहे हैं। गुजराती समाज से कांग्रेस से सरिता दोषी का नाम चर्चा में है।
राजनांदगांव से भी दिवंगत पूर्व मंत्री लीलाराम भोजवानी के बेटे राजा भोजवानी ने टिकट के लिए दबाव बनाया है। चर्चा है कि सिंधी समाज से कम से कम एक मेयर टिकट देने की मुहिम को शदाणी दरबार के प्रमुख संत युधिष्ठिर लाल का भी समर्थन है। इससे परे पंजाबी, अग्रवाल, और अन्य समाज के लोगों ने भी मेयर टिकट के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में जात पात की राजनीति तेज होने के आसार हैं। अब पार्टी जाति देखकर प्रत्याशी तय करती है या नहीं, यह आने वाले दिनों में पता चलेगा।
रायपुर शहर में एक ऐसी रंगीली मोटर साइकिल देखने मिली जिसके इंच-इंच पर कोई न कोई रंगीन टेप लगा हुआ था, बहुत से रंगीन झंडे लगे हुए थे, और मोहब्बत से उसका नाम पापा की परी भी लिखा हुआ था। जाहिर है कि इसे चलाने वाला बुजुर्ग गले में एक बड़ा सा लाकेट पहना हुआ शौकीन आदमी था।
भाजपा की हॉटसीट कवर्धा पर...
भाजपा के 35 संगठन जिलों में से 33 में अध्यक्ष के चुनाव बिना किसी विवाद के निपट गए, लेकिन राजनांदगांव और कवर्धा के अध्यक्ष के चुनाव टाल दिए गए हैं। चर्चा है कि दोनों जिलों में पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, डिप्टी सीएम विजय शर्मा, और स्थानीय सांसद संतोष पाण्डेय के बीच किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई है।
बताते हैं कि डॉ. रमन सिंह खेमे ने कवर्धा जिलाध्यक्ष तय करने का मामला डिप्टी सीएम विजय शर्मा, और सांसद संतोष पाण्डेय पर छोड़ दिया है। मगर चर्चा है कि विजय शर्मा और सांसद की अपनी-अपनी अलग पसंद है, और वो उन्हें ही अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं। जबकि राजनांदगांव में डॉ. रमन सिंह से जुड़े लोगों की अपनी पसंद है, लेकिन वहां भी सांसद संतोष पाण्डेय की अलग पसंद है। यही वजह है कि दोनों ही जिलों में चुनाव रोक दिए गए हैं। यहां अब प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के बाद जिलाध्यक्ष के चुनाव कराए जाएंगे।
स्कूलों में यौन शिक्षा दें या नहीं?
कोरबा के सरकारी कन्या छात्रावास में एक नाबालिग छात्रा के गर्भधारण और प्रसव की घटना ने प्रशासन, सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की खामियों को उजागर कर दिया है। किसी गर्भवती के लिए नियमित चिकित्सा देखभाल अत्यंत आवश्यक होती है, परंतु इस छात्रा ने अपनी स्थिति को शिक्षकों, सहपाठियों और प्रशासन से छिपाकर बिना किसी चिकित्सकीय सहायता के बच्चे को जन्म दिया। प्रसव के बाद छात्रा ने शिशु को परिसर के बाहर फेंक दिया। आठ घंटे कडक़ड़ाती ठंड में खुले आसमान के नीचे रहने के बावजूद शिशु की जान बच गई और उसे कोरबा मेडिकल कॉलेज के एनआईसीयू में भर्ती कराया गया।
इस घटना ने कन्या छात्रावासों की सुरक्षा व्यवस्था पर कुछ गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बस्तर के झिलियामारी छात्रावास की घटना के बाद सुरक्षा के लिए नियम बनाए गए थे, जैसे महिला गार्ड की तैनाती, पुरुष स्टाफ का सीमित प्रवेश और अधीक्षिकाओं की सतर्कता। बावजूद इसके ये नियम जमीनी स्तर पर प्रभावी नहीं हो पाए। जशपुर जिले में भी पिछले वर्ष एक घटना सामने आई थी, जिसमें छात्रावास अधीक्षिका के परिवार के सदस्यों द्वारा यौन शोषण का मामला था।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा स्कूलों और छात्रावासों में स्वास्थ्य परीक्षण और किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रमों के बड़े-बड़े दावे किए गए थे। चिरायु योजना और आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रमों के तहत छात्रों के स्वास्थ्य और मानसिक कल्याण पर काम होना था। इस घटना ने इन दावों को खोखला साबित कर दिया। 11वीं कक्षा की छात्रा, जो छात्रावास परिसर के ही सरकारी स्कूल में पढ़ रही थी, इन स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रही। यह लापरवाही स्वास्थ्य विभाग और शिक्षा प्रणाली की बड़ी विफलता को दर्शाती है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण समिति ने स्कूलों में किशोरों के लिए यौन शिक्षा पाठ्यक्रम तैयार किया है, जो असुरक्षित यौन संबंधों और यौन स्वास्थ्य पर जानकारी देता है। झारखंड जैसे पड़ोसी राज्यों में इसे लागू किया गया है, लेकिन छत्तीसगढ़ सहित करीब 6 राज्यों ने इस पाठ्यक्रम को अपनाने से इनकार कर दिया। यदि इस पाठ्यक्रम को लागू किया गया होता, तो शायद इस तरह की घटनाएं रोकी जा सकती थीं।
नाबालिग छात्रा और उसके शिशु का भविष्य क्या होगा। दोनों को सामाजिक त्रासदी भोगना पड़ सकता है। छात्रावासों में तो इस तरह की घटना पहली बार सुनी गई है लेकिन हर रोज किसी न किसी थाने में नाबालिगों को अगवा कर लेने, रेप करने और उसके बाद उसे छोड़ देने की रिपोर्ट दर्ज हो रही है। पीडि़त बालिकाओं की रिपोर्ट पर 18-20 साल के लडक़े जेल जा रहे हैं। कानून कुछ ऐसा है कि बहुतों को 20-20 साल की कैद की सजा इस उम्र में शुरू हो जाती है। ये सब अशिक्षित नहीं हैं, ज्यादातर किसी न किसी स्कूल में पढऩे वाले लोग हैं। असुरक्षित यौन संबंधों और उनके दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करने के लिए यौन शिक्षा किस रूप में दिया जाए? विशेषज्ञों की मदद से सरकार को कोई फैसला लेना चाहिए।
अचानक ढाबा..
दिल्ली हरियाणा हाईवे पर स्थित इस ढाबे वाले ने ग्राहकों का ध्यान खींचने के लिए जरूर अपने होटल का नाम अजीब सा रख दिया है, पर जिस ग्राहक ने सोशल मीडिया पर यह तस्वीर डाली है, उनका कहना है कि जब वे यहां चाय पीने रुके तो यहां भयानक भीड़ जैसी कोई बात नहीं थी, बल्कि सभी टेबल कुर्सियां खाली थीं।
डीजीपी पैनल लंबा-चौड़ा हुआ
डीजीपी अशोक जुनेजा के एक्सटेंशन की अवधि फरवरी के पहले हफ्ते में खत्म हो रही है। सरकार ने नए डीजीपी के चयन के लिए पहले तीन नामों का पैनल केंद्र को भेजा था। मगर केन्द्र ने पैनल को लौटा दिया है। यह साफ किया है कि जिन एडीजी स्तर के अफसरों की सेवा अवधि 30 साल हो चुकी है, उन सभी के नाम भेजे जाए।
कहा जा रहा है कि पहले पवन देव, अरूणदेव गौतम, और हिमांशु गुप्ता के नाम का पैनल भेजा गया था। अब एसआरपी कल्लूरी, और जीपी सिंह का नाम भी जोड़ा गया है। इन दोनों अफसरों की कुल सेवा अवधि भी 30 साल से अधिक हो चुकी है।
जीपी सिंह को पहले जबरिया रिटायर किया गया था, अब उनकी सेवा में वापसी हो चुकी है। उनके खिलाफ दर्ज सारे अपराधिक प्रकरण निरस्त हो गए हैं। लिहाजा, वो भी अब कन्सिडरैशन जोन में आ गए हैं। केन्द्र सरकार अब आगे क्या करती है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
अब सब टूट पड़े हैं
बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के आरोपी ठेकेदार सुरेश चंद्राकर पर शिकंजा कस रहा है। पुलिस तो आरोपी को जल्द से जल्द सजा दिलाने के लिए साक्ष्य जुटाने की कोशिश कर रही है। बाकी विभागों ने भी सुरेश चंद्राकर के प्रतिष्ठान पर नजर जमाए हुए हैं। जीएसटी विभाग ने सुरेश चंद्राकर के प्रतिष्ठान में दबिश दी, और करीब 2 करोड़ से अधिक अपात्र इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा किया है। इसकी जांच चल रही है। यही नहीं, सुरेश चंद्राकर ने करीब 15 एकड़ वन भूमि पर कब्जा किया हुआ है। गृहमंत्री विजय शर्मा ने वन अफसरों को तत्काल इस पर कार्रवाई के लिए निर्देशित किया है। चंद्राकर के सडक़ निर्माण कार्यों की पहले ही जांच के आदेश दे दिए गए हैं। अब आरोपियों के खिलाफ जांच पूरी कर पुलिस कब तक चालान पेश करती है, यह देखना है।
धान खरीदी में व्यवधान
अपने वादे के अनुरूप सरकार 21 क्विंटल धान की खरीदी तो कर रही है लेकिन रफ्तार धीमी है। इस बार राइस मिलरों ने बकाया भुगतान व मिलिंग की राशि बढ़ाने की मांग पर उठाव में देरी की। इसके चलते प्रदेश के कई स्थानों में किसानों का धान जाम है। उन्हें मिलने वाला टोकन सीमित दिनों के लिए होता है, यदि उस अवधि में नहीं बेच पाए तो नया टोकन जारी किया जाता है। तब तक सोसाइटियों में किसानों को अपने धान की रखवाली करनी पड़ती है। छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों से आई खबरों को समेटे तो मालूम होता है कि राजनांदगांव जि़ले में 96 खरीदी केंद्रों में से 90 समितियों में धान खरीदी बंद कर दी गई थी। दुर्ग जि़ले में सहकारी समिति कर्मचारियों ने 23 दिसंबर से खरीदी बंद करने की चेतावनी दी थी। कवर्धा जि़ले में 108 समितियों में से 90 समितियों में धान खरीदी बंद कर दी गई थी। बेमेतरा जि़ले में सेवा सहकारी समिति बोरतरा में धान का उठाव नहीं होने से खरीदी बंद कर दी गई थी। ऐसे समाचार प्रदेश के कई जिलों से मिल रहे हैं। भानुप्रतापपुर के किसानों ने सोमवार को चक्काजाम ही कर दिया। उन्हें बार-बार टोकन दिया जाता है लेकिन धान का उठाव धीमा होने की वजह से समितियों में जगह नहीं बची है। कस्टम मिलिंग व परिवहन की गति धीमी है। अब यह देखना होगा कि निर्धारित 31 जनवरी तक सारे किसान अपना धान बेच पाते हैं या नहीं। कई स्थानों पर किसानों की ओर से 15 दिन आगे, 15 फरवरी तक खरीदी करने की मांग उठ चुकी है। दिलचस्प यह है कि प्रतिपक्ष कांग्रेस का इस मामले में मीडिया पर बयान तो आ रहा है लेकिन सडक़ पर उतरकर आंदोलन प्रभावित किसान ही कर रहे हैं।
चुनावी वायदों की चिंता
कई बार वोट हासिल करने के लिए चुनाव के दौरान जो वादे किए जाते हैं, उसके पूरा होने का इंतजार पांच साल अगले चुनाव के आने तक करना पड़ता है। मगर, एक जगह किया गया वादा, दूसरी प्रदेश में दोहराना पड़े तो यह इंतजार जरूरी नहीं कि लंबा हो। दिल्ली में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ी हुई है। आम आदमी पार्टी व कांग्रेस में एक साथ चुनाव लडऩे की सहमति नहीं बनी है। वहां कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना है। कांग्रेस किसानों को डायरेक्ट बेनिफिट देने का वादा कर सकती है। जब यह वादा किया जाएगा तो तेलंगाना मं किया गया वायदा याद दिलाया जाएगा। वहां कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के पहले किसानों को 15 हजार रुपये सालाना देने की घोषणा की थी लेकिन सालभर से अधिक हो गए, घोषणा लागू नहीं की गई। अब जब चुनाव का वक्त आ गया है, तेलंगाना के सीएम ने इस स्कीम को लागू करने का ऐलान कर दिया है। हो सकता है कि दिल्ली चुनाव के पहले, इसकी पहली किस्त भी जारी कर दिया जाए। इस पर तेलंगाना के सीएम पर कटाक्ष करते हुए कई पोस्टर एआईसीसी दफ्तर के सामने चिपकाए गए हैं, जिसमें कहा गया है कि उन्होंने यू टर्न ले लिया है। दिल्ली चुनाव को देखते हुए वे तेलंगाना में किए गए चुनावी वायदों को लागू करने जा रहे हैं।
लिफाफे उतरे आसमान से और...
भाजपा में इस बार जिलाध्यक्षों के चुनाव में दिग्गज नेताओं की पसंद को तवज्जो नहीं मिली है। पार्टी ने उन नेताओं को महत्व दिया है, जो संगठन में लगातार मेहनत करते रहे हैं, और विवादों से परे रहे हैं। रविवार को 35 में से 15 जिलों में चुनाव अधिकारी प्रदेश कार्यालय से लिफाफा लेकर गए थे, और वहां जिले के पदाधिकारियों की बैठक में लिफाफा खोला गया। और फिर उनसे नामांकन भराने की औपचारिकता पूरी कर निर्विरोध चुनाव किया गया।
रायपुर शहर में रमेश सिंह ठाकुर, और ग्रामीण में श्याम नारंग को अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है। ठाकुर जिले के महामंत्री थे। वो कई बार पार्षद रह चुके हैं। वो सांसद बृजमोहन अग्रवाल के करीबी रहे हैं। विधायक सुनील सोनी भी रमेश सिंह ठाकुर के लिए प्रयासरत थे। मगर पार्टी का एक बड़ा खेमा ओंकार बैस, अथवा सत्यम दुआ के नाम पर जोर दे रहा था।
विकल्प के रूप में सूर्यकांत राठौर का नाम सुझाया गया था। मगर ठाकुर अपनी वरिष्ठता, और संगठन में काम करने के अनुभव के चलते बाकी दावेदारों पर भारी पड़ गए। ग्रामीण का चुनाव पहले हो गया था। श्याम नारंग के अध्यक्ष बनने पर खूब आतिशबाजी हुई, लेकिन जैसे ही शहर अध्यक्ष के लिए रमेश सिंह ठाकुर के नाम का ऐलान हुआ विरोधी खेमे के नेता अपना पटाखा लेकर निकल गए।
इसी तरह ग्रामीण अध्यक्ष के लिए राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा, पूर्व स्पीकर गौरीशंकर अग्रवाल ने अनिल अग्रवाल का नाम आगे बढ़ाया था। लेकिन स्थानीय नेताओं की पसंद पर श्याम नारंग को दोबारा मौका दिया गया है। दुर्ग, और भिलाई अध्यक्ष के चयन में भी सांसद विजय बघेल, और पूर्व राज्यसभा सदस्य सरोज पाण्डेय के सुझाव को अनदेखा किया गया।
सरोज ने भिलाई में नटवर ताम्रकार, और विजय बघेल ने मौजूदा अध्यक्ष महेश वर्मा को रिपीट करने का सुझाव दिया था। मगर लिफाफा पुरुषोत्तम देवांगन के नाम खुला। इसी तरह दुर्ग जिला अध्यक्ष पद पर सुरेन्द्र कौशिक के नाम पर मुहर लगाई गई, जो कि वर्तमान में महामंत्री का दायित्व निभा रहे हैं। मानपुर-मोहला जिलाध्यक्ष पद पर पूर्व आईएएस नारायण सिंह की पुत्री नम्रता सिंह का चुनाव किया गया। नम्रता मानपुर-मोहला विधानसभा सीट से टिकट की दावेदार रहीं हैं। दूसरी तरफ, रायगढ़ और जशपुर जिलाध्यक्ष के चयन में सीएम विष्णुदेव साय की राय को तवज्जो मिली है।
साय चार बार रायगढ़ के सांसद रहे हैं। वो रायगढ़ और जशपुर के छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं से सीधे जुड़े रहे हैं। उनकी पसंद पर रायगढ़ में अरुण धर दीवान, और जशपुर में भरत सिंह को अध्यक्ष बनाया गया है। दोनों ही वर्तमान में जिला पदाधिकारियों के रूप में काम कर रहे थे।
परेशान रहे मंत्री समर्थक
सूरजपुर जिलाध्यक्ष के चुनाव को लेकर भी काफी कश्मकश रही। ऐसी चर्चा थी कि पार्टी एक ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष बना सकती है, जिसके खिलाफ विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम करने का आरोप लगा था। लिफाफा खुलने से पहले बैठक में महिला बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े ने संभावित नाम को लेकर अपनी नाराजगी का इजहार भी कर दिया था। मगर लिफाफा खुला, तो उम्मीद से परे नाम सामने आया। यद्यपि नए अध्यक्ष मुरली मनोहर सोनी, लक्ष्मी रजवाड़े विरोधी खेमे के माने जाते हैं, लेकिन उनकी साख अच्छी है।
महिला बाल विकास मंत्री के समर्थकों ने सोनी के चयन पर थोड़ी राहत की सांस ली है। इसी तरह बलरामपुर में कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने बलवंत सिंह का नाम आगे बढ़ाया था, लेकिन लिफाफा ओमप्रकाश जायसवाल के नाम पर खुला। जायसवाल, पुराने नेता हैं, और सबको साथ लेकर चलने की क्षमता भी है। कुल मिलाकर नए नामों को लेकर ज्यादा विरोध नहीं हुआ है।
सरनेम और जाति
बीजापुर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के आरोपी सुरेश चंद्राकर के सरनेम को लेकर सोशल मीडिया पर काफी कुछ लिखा गया। बाद में यह बात सामने आई कि सुरेश, अनुसूचित जाति वर्ग के हैं। कांग्रेस के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के पदाधिकारी रहे हैं। आर्थिक रूप से बेहद सक्षम सुरेश से कांग्रेस और भाजपा के कई नेताओं की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इससे परे कांकेर भाजपा के नवनियुक्त जिलाध्यक्ष महेश जैन को पार्टी के कई लोग जैन समाज का मानते हैं, लेकिन महेश वास्तव में कलार समाज से आते हैं, जो पिछड़ा वर्ग है। कांकेर जिले में कलार समाज की अच्छी खासी आबादी है, और कई लोग अपने सरनेम जैन लिखते हैं। ऐसे में सरनेम से जाति का अंदाजा लगाना मुश्किल है। ये अलग बात है स्थानीय लोग और पार्टी के नेता इससे परिचित होते हैं। और यह सब देखकर नियुक्ति की जाती है।
छत्तीसगढ़ से गुजरे एक गिद्ध की अद्भुत यात्रा
महाराष्ट्र के ताड़ोबा अंधारी टाइगर रिजर्व से तमिलनाडु तक की 4000 किलोमीटर लंबी यात्रा ने एक सफेद पूंछ वाले गिद्ध की अद्वितीय यात्रा की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। इस गिद्ध को अगस्त 2024 में सैटेलाइट टैग (एन-11) किया गया था, और तब से यह गिद्ध कई राज्यों से होते हुए तमिलनाडु पहुंच चुका है।
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के निदेशक किशोर रीठे के अनुसार इस गिद्ध ने महाराष्ट्र से छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक होते हुए तमिलनाडु तक का सफर तय किया। इस दौरान गिद्ध को कमजोरी और बीमारी का सामना करना पड़ा। इसलिए यात्रा के दौरान उसे दो बार पकड़ा गया और उसका उपचार किया गया।
इस यात्रा में खास क्या है? इसका महत्व केवल इस गिद्ध की उड़ान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की गिद्ध संरक्षण पहल की एक कहानी है। महाराष्ट्र के वन विभाग और बीएनएचएस ने मिलकर 10 लुप्तप्राय गिद्धों को जीपीएस टैग किया और उन्हें पेंच व ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व में प्री-रिलीज़ एवियरी में रखा। यह पहल 21 जनवरी 2024 को शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य गिद्धों की घटती आबादी को पुनर्जीवित करना है।
1990 से 2006 के बीच भारत में गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट आई। इसका मुख्य कारण मवेशियों के शवों में डाईक्लोफेनाक नामक दवा का उपयोग था। इसके बाद सरकार ने इस दवा पर प्रतिबंध लगा दिया अब प्रजनन कार्यक्रमों के माध्यम से गिद्धों की आबादी को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है।
ज्यादा संतानों को प्रोत्साहन-एक नया विमर्श
आज देश और दुनिया में बढ़ती जनसंख्या एक अहम मुद्दा बनी हुई है। इधर प्रदेश में माहेश्वरी समाज ने अपनी घटती आबादी पर चिंता व्यक्त की है। हाल ही में हुई उनकी बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अधिक बच्चे पैदा करने के लिए परिवारों को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके तहत,तीसरी संतान होने पर 51 हजार रुपये और चौथी संतान पर एक लाख रुपये दिए जाएंगे। प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया।
यह निर्णय अपने आप में अनोखा है, क्योंकि अक्सर ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील धार्मिक संगठनों, विशेष रूप से हिंदू संगठनों द्वारा की जाती है। उनका तर्क यह होता है कि आने वाले समय में हिंदू आबादी घट सकती है, जबकि मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या बढऩे की संभावना है। इधर, माहेश्वरी समाज की यह पहल धर्म आधारित न होकर अपने समुदाय की घटती जनसंख्या पर केंद्रित है।
जनसंख्या वृद्धि के संदर्भ में किए गए शोध बताते हैं कि यदि आबादी बढ़ती रही तो संसाधनों पर भारी दबाव पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि जनसंख्या को 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर पर स्थिर रहना चाहिए। इसका अर्थ है कि प्रत्येक 10 दंपतियों के बीच औसतन 21 संतानों का होना जरूरी है।
माहेश्वरी समाज की यह पहल एक बड़े प्रश्न को जन्म देती है—क्या किसी समुदाय द्वारा अपनी आबादी को बनाए रखने के लिए इस प्रकार की आर्थिक प्रोत्साहन योजनाएं हों ? यह कदम न केवल जनसंख्या स्थिरता की बहस को नई दिशा दे सकता है, बल्कि किसी समाज की घटती जनसंख्या के अन्य आयामों पर भी विचार करने का अवसर देता है।
दौर है बदलाव का
प्रदेश भाजपा संगठन में बदलाव का दौर चल रहा है। मंडल से लेकर जिलाध्यक्ष बदले जा रहे हैं। नए चेहरों को मौका दिया गया है। इन सबके बीच प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव के बदले जाने की चर्चा है। कहा जा रहा है कि किरणदेव को कैबिनेट में जगह दी जा सकती है।
जगदलपुर के विधायक किरणदेव, महापौर भी रहे हैं। उनकी साख अच्छी है, और बहुत कम समय में कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय बनाए रखने में सफल रहे हैं। पार्टी हाईकमान ने राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े को प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए चुनाव अधिकारी बनाया है। यद्यपि प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव में अभी वक्त है, लेकिन पार्टी के अंदरखाने में किरणदेव के उत्तराधिकारी के नाम पर मंथन चल रहा है। इनमें पूर्व स्पीकर धरमलाल कौशिक का नाम प्रमुखता से चर्चा में हैं।
कौशिक, पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की पसंद माने जाते हैं। वो पहले भी अध्यक्ष रह चुके हैं। लिहाजा, पार्टी उनके नाम पर विचार कर सकती है। इन सबके बीच में प्रदेश उपाध्यक्ष शिवरतन शर्मा का नाम भी उभरा है। शिवरतन, पार्टी के सभी गुटों के साथ समन्वय बनाए रखने में माहिर माने जाते हैं। कौशिक और शिवरतन से परे जिन दो नामों पर भी चर्चा हो रही है उनमें राजनांदगांव के पूर्व सांसद मधुसूदन यादव व दुर्ग के विधायक गजेन्द्र यादव हैं।
गजेन्द्र को लेकर यह कहा जा रहा है कि यदि उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिलती है, तो उन्हें प्रदेश संगठन की कमान सौंपी जा सकती है। पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा कि अहम पदों की नियुक्ति में जाति समीकरण को भी ध्यान में रखा जाएगा। कुल मिलाकर मकर संक्रांति से पहले शीर्ष पदों पर नियुक्ति के संकेत हैं। देखना है आगे क्या होता है।
कांग्रेस में घर वापिसी आसान नहीं
नगरीय निकाय, और पंचायत चुनाव से पहले कांग्रेस ने निलंबित-निष्कासित नेताओं की वापसी का प्लान तैयार किया था, उसे झटका लगता दिख रहा है। पार्टी ने सीनियर नेताओं की समिति भी बनाई थी। समिति में प्रमुख रूप से जनता कांग्रेस के विलय प्रस्ताव पर मुख्य रूप से चर्चा होनी थी। मगर औपचारिक रूप से समिति की बैठक नहीं हो पाई है।
बताते हैं कि जोगी परिवार के कांग्रेस में शामिल करने के प्रस्ताव का पार्टी के अंदर खाने में काफी विरोध हुआ है। कर्मा परिवार, और पूर्व मंत्री उमेश पटेल ने तो हाईकमान तक अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। यही नहीं, जोगी परिवार के खिलाफ पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और टीएस सिंहदेव भी एकजुट हो गए हैं। इसका नतीजा यह रहा कि समिति की बैठक ही टालनी पड़ी। इसी तरह बृहस्पति सिंह, पूर्व विधायक अनूप नाग की वापसी भी विरोध की वजह से नहीं हो पा रही है। कुल मिलाकर अगले कुछ दिनों में पार्टी निष्कासित नेताओं की पार्टी में वापसी के मसले पर अपना रुख साफ कर सकती है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
प्रवासी पक्षी कैलेंडर में उतरे
वर्ष 2025 के इस टेबल बुक-कम-कैलेंडर में वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और पत्रकार शिरीष डामरे की बेहतरीन तस्वीरें शामिल हैं। इसमें चार दुर्लभ पक्षियों की तस्वीरें हैं, जिन पर शोध के लिए टैग लगाए गए हैं, जो इनके प्रवास और दूरी से संबंधित जानकारी प्रदान करते हैं। इनमें एक लेसर सैंड प्लोवर है जिसे मुंबई में टैग लगाया गया। टैग की गई यह चिडिय़ा, प्रवास के दौरान अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है। दूसरी पक्षी बार-हेडेड गूज है जिसे मंगोलिया में टैग किया गया था। यह चिडिय़ा हिमालय की ऊंचाइयों को पार कर बिलासपुर पहुंची थी। एक यूरेशियन व्हिम्ब्रेल की तस्वीर है, जिसे मेडागास्कर के द्वीप में टैग की गई यह पक्षी सात समंदर पार कर बेमेतरा के इलाके में देखी गई थी। इसमें जीपीएस लगा हुआ था। साथ ही इंडियन स्कीमर की तस्वीर है, जिसे सवाई माधोपुर में खींची गई है। इसे चंबल में टैग किया गया था। इसके अलावा छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की कई दुर्लभ पक्षियों की अद्भुत तस्वीरें भी शामिल हैं।
स्टेडियम में दीपोत्सव नहीं
हिंदी पंचांग के मुताबिक 11 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा को एक साल पूरा होने जा रहा है। इस मौके पर देश-प्रदेश में कई स्थानों पर उत्सव मनाने की तैयारी हो रही है। राजनांदगांव में पांच लाख दीप प्रज्ज्वलित करने का निर्णय एक संगठन सनातन धर्म सेवा परिवार ने लिया है। इसकी तैयारी काफी दिनों से चल रही है। आयोजन के लिए राजा दिग्विजय सिंह स्टेडियम को जगह तय किया गया। पर तैयारी को तब झटका लगा जब क्रिकेट एसोसियेशन ने इसके लिए सहमति देने से मना कर दिया। इसके चलते जिला प्रशासन ने भी इंकार कर दिया। अब शायद नई जगह तलाशनी होगी, या फिर किसी तरह से एसोसिएशन को सहमत करना पड़ेगा। एक तर्क यह है कि स्टेडियम का इस्तेमाल खेल के लिए ही किया जाना चाहिए। दूसरा तर्क आयोजकों की ओर से है, जिनका कहना है कि यह स्टेडियम नगर की जनता की आर्थिक सहायता से बना है। इसका उपयोग केवल खेल के नहीं बल्कि अन्य बड़े सार्वजनिक आयोजनों के लिए किया जा सकता है। राम मंदिर का निर्माण भाजपा के संकल्पों में से एक था। राज्य में भाजपा की ही सरकार होने के बावजूद क्रिकेट एसोसिएशन ने स्टेडियम देने से मना किया है। इस पर थोड़ी हैरानी भी हो सकती है।
बस्तर में पत्रकार की पांचवी हत्या
बीजापुर के मुकेश चंद्राकर को मिलाकर हाल के वर्षों में बस्तर में पांच पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। साईं रेड्डी, विनोद बख्शी, मोहन राठौर और नेमीचंद जैन की इससे पहले जान ली जा चुकी है।
विगत कुछ वर्षों में भारत में पत्रकारों के अपहरण, हत्या और अन्य जुल्म की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, जो लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा है।
2021 में एक रिपोर्ट के अनुसार उस वर्ष भारत में 228 पत्रकारों पर 256 हमले हुए थे, जिसमें हत्या भी शामिल थी। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2015 में मात्र 45 दिनों के भीतर चार पत्रकारों की हत्या हुई थी।
बीते दो दशकों में 79 पत्रकार अपनी जान गंवा चुके हैं, जिनमें से कई हत्याएं भ्रष्टाचार और माफिया के खिलाफ रिपोर्टिंग के कारण हुई थीं।
मुकेश चंद्राकर की हत्या भी एक घटिया सडक़ निर्माण की रिपोर्टिंग के चलते की जाने की बात सामने आ रही है। अपहरण के तीन दिन पहले उन्होंने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के खिलाफ खबर चलाई थी। हाल ही में अहमदनगर में एक पत्रकार का अपहरण कर हत्या कर दी गई, जो कि स्थानीय माफिया के खिलाफ रिपोर्टिंग कर रहा था।
यूपी के जगेन्द्र और संदीप कोठारी की हत्या सत्ता और माफिया से टकराने का परिणाम थी। 5 सितंबर 2017 को बेंगलूरु में गौरी लंकेश को घर से बाहर गोली मारकर मार डाला गया था। उसकी हत्या दक्षिणपंथी कट्टरता के खिलाफ टकराने के कारण की गई थी। इस मामले में 25 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें से 18 जमानत पर बाहर हैं। बाहर आने पर कट्टर हिंदू संगठनों ने आरोपियों का स्वागत किया था।
पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर सरकार की उदासीनता ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है। कई मामलों में पुलिस और प्रशासनिक तंत्र भी माफियाओं के दबाव में काम करते हैं।
दूसरी जगहों की तरह बस्तर में भी सच लिखने और बोलने वालों का अकाल पड़ा हुआ है। मुकेश चंद्राकर और उनके साथियों ने बीहड़ इलाकों में जाकर सच उजागर किए थे। पता नहीं, इस हत्या का बस्तर और छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता पर कितना घातक असर होगा।
फील्ड में टोटा, मंत्रालय सेफ जोन
क्या मंत्रालय, संचालनालय में पोस्टिंग अफसरों खासकर राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों के लिए सेफ जोन हो गया है। फील्ड के दफ्तर सामान्य प्रशासन कानून व्यवस्था संभालने के लिए पीएससी से चुने गए डिप्टी, संयुक्त और एडिशनल कलेक्टर की कमी से जूझ रहे हैं। और मंत्रालय, संचालनालय में इस कैडर के अफसर बहुतायत हो गए हैं। इनकी पोस्टिंग पर नजर, हिसाब- किताब रखने वाले जीएडी का ही कहना है कि प्रतिनियुक्ति के निर्धारित पदों से दो गुने राप्रसे अफसर दोनों भवनों में पदस्थ हो गए हैं। यहां तक कि दूर दूर तक वास्ता न होने के बावजूद पीएचई, पीडब्ल्यूडी, वन, जल संसाधन, शिक्षा जैसे तकनीकी विभागों में भी डिप्टी कलेक्टर पदस्थ हो गए हैं। जबकि इनमें इन्हीं विभागों के तकनीकी अफसर उप सचिव पदस्थ किए जाने के नियम परंपरा भी रही है और होते भी रहे हैं।
इन्हें विभाग न मिले तो भी जीएडी पूल यानी रिजर्व में रहकर बिना काम के दिन काटना मंजूर है। महीनों से पूल में रहे ऐसे ही तीन अफसरों को कल ही पोस्टिंग मिली। फील्ड की किचकिच से दूर हींग लगे न फिटकरी की तरह, बंगला, कार नौकरों के साथ पूरा जलवा दबदबा और राजधानी में रहने का अवसर अलग। इस वजह से विभागों के वरिष्ठ अफसरों को अवसर नहीं मिल पा रहा साथ ही मंत्रालय, संचालनालय कैडर के लोग पदोन्नति से वंचित अलग हो रहे। इस पर मंत्रालय संघ किसी और से नहीं सीधे मुख्य सचिव से आपत्ति कर चुका है। सत्ताधीशों की निकटता का फायदा उठाकर मंत्रालय को सेफ जोन और नाराजगी के चलते लूप मानकर पदस्थ किए जाने वाले इन अफसरों के दोनों हाथों में लड्डू।
वहीं सेक्रेटेरिएट बिजनेस रूल के इतर मातहतों पर दबाव बना कर अफसरशाही चलाने वाले इन अफसरों के कारनामों से सरकार कई केस में कोर्ट में हार का सामना करती है। और तकनीकी ज्ञान न होने से योजनाएं धरातल पर नहीं होती, लेकिन इन्हें तो केवल अपने सेफ जोन से मतलब। सरकार ने इस वर्ष कामकाज में ढिलाई के बजाए कसावट पर जोर दिया है इसे खा ली पड़े फील्ड आफिसों के जरिए कैसे हासिल किया जाएगा यह देखने वाली बात होगी।
मेडिकल भुगतान के लिए कोशिश जारी
स्वास्थ्य विभाग में दवा सप्लाई करने वाली एक कंपनी के खिलाफ गड़बड़ी की शिकायत पर सरकार ने ईओडब्ल्यू-एसीबी से जांच कराने का ऐलान कर दिया है। स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने सदन में इसकी घोषणा की थी।
चर्चा हैं कि घोषणा से पहले ही कंपनी को काफी कुछ भुगतान भी हो चुका है। भाजपा के दो सीनियर विधायक, जिन्होंने इस पूरे मामले को प्रमुखता से उठाया था, उन पर कंपनी के लोगों ने डोरे डालना शुरू कर दिया है।
कंपनी के लोग दोनों विधायकों से यह अनुरोध कर रहे हैं कि आप सहयोग करें, ताकि बकाया भुगतान हो जाए। मगर विधायक अपनी जिद पर अड़े हुए हैं, और एक विधायक ने तो कंपनी के लोगों को बुरी तरह फटकार भी दिया। मगर कंपनी के लोगों ने आस नहीं छोड़ी है। और बकाया भुगतान के लिए मेहनत कर रहे हैं। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
है कोई आसपास?
लव गुरु रहे बिहार पटना के मटुकनाथ को फिर से जीवनसाथी की तलाश है। उन्होंने फेसबुक पर प्रेमिका की तलाश का ऐलान किया है। वह 50 से 60 साल की पढ़ी-लिखी, समझदार महिला चाहते हैं, जो सादा जीवन, किताबें और यात्रा पसंद करती हो। बता दें कि पूर्व प्रेमिका जूली से अलगाव के बाद वह अकेले हैं। उन्हें महिला कैसी चाहिए इसके लिए उन्होंने बाकायदा शर्त भी रखी है। मटुकनाथ ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा- एक पढ़े लिखे समझदार 71 वर्षीय बूढ़े किसान को पढ़ी-लिखी समझदार 50-60 के बीच की वृद्धा चाहिए। बहुत पसंद आ जाने पर उम्र में ढील दी जाएगी, शर्त एक ही है कि वासना रहित प्यार के लेनदेन में सक्षम हो। प्यार, पुस्तक और यात्रा में दिलचस्पी हो, परनिंदा से दूर रहे, जब किसी की चर्चा करें तो उसके गुण की चर्चा हो, सादा और स्वादिष्ट भोजन में निपुण हो।
जितने मुँह उतनी बातें
सीएम विष्णुदेव साय गुरुवार को राज्यपाल रमेन डेका से मिलने गए, तो फिर कैबिनेट विस्तार का हल्ला उड़ा। बाद में सरकारी प्रेस नोट में वस्तु स्थिति की जानकारी दी गई, और बताया गया कि सीएम, राज्यपाल को नए साल की बधाई देने गए थे। साय के साथ प्रमुख सचिव सुबोध सिंह भी थे।
कैबिनेट विस्तार कब होगा, यह साफ नहीं है। मगर पार्टी के अंदरखाने में चर्चा है कि अगले कुछ दिनों में नए मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकती है। हल्ला है कि प्रदेश अध्यक्ष किरण देव को साय कैबिनेट में जगह मिल सकती है।
किरणदेव की जगह पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक को पार्टी की कमान सौंपी जा सकती है। साथ ही अमर अग्रवाल को कैबिनेट में जगह दी जा सकती है। पूर्व मंत्री राजेश मूणत को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है। यदि हरियाणा फार्मूला अपनाया गया, तो गजेन्द्र यादव भी मंत्री बनाए जा सकते हैं। फिलहाल तो जितने मुंह, उतनी बातें हो रही है।
विवाद ऊपर ले जाते हैं
भाजपा के अल्पसंख्यक नेता डॉ. सलीम राज ने जब से वक्फ बोर्ड चेयरमैन का दायित्व संभाला है, तब से वो मुस्लिम नेताओं के आंखों की किरकिरी बन गए हैं। भिलाई में उन्हें काले झंडे दिखाए गए, और फिर महासमुंद में तो उनके प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मुस्लिम समाज के दो गुटों में झगड़ा हो गया। इन सबके चलते डॉ. सलीम राज की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। डॉ. सलीम राज को वाय श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध कराई गई है। डॉ. राज भले ही अपने समाज के लोगों के बीच नाराजगी झेलनी पड़ रही है, लेकिन उनकी पार्टी के लोग खुश हैं। चर्चा है कि डॉ. राज को राष्ट्रीय स्तर पर कोई अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
स्वास्थ्य सेवाओं से खिलवाड़
सरकारी खरीदी में ईमानदारी ढूंढना ऐसा ही है जैसे आसमान में तारे गिनने की कोशिश करना। स्वास्थ्य विभाग भ्रष्टाचार के मामले में अन्य विभागों से कहीं आगे दिखाई देता है। यहां करोड़ों की मशीनें खरीदी जाती हैं, जिनकी वास्तविक कीमत पर सवाल उठाना तो दूर, उनकी गुणवत्ता पर चर्चा तक नहीं होती।
खरीदी गई मशीनें खराब होने पर मरम्मत की कोशिशें भी नहीं की जातीं। दवाओं की खरीदारी का हाल तो और भी चिंताजनक है। बिना मांग के दवाएं खरीदी जाती हैं और फिर उन्हें प्रदेश के 350 उप-स्वास्थ्य व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भेज दिया जाता है। पिछले जून में महालेखाकार ने दवा खरीदी में 660 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का खुलासा किया था। इनमें कई ऐसी दवाएं थीं, जिन्हें फ्रीजर में रखना आवश्यक था, लेकिन जिन स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों के लिए स्ट्रेचर तक नहीं है, वहां फ्रीजर की व्यवस्था कैसे हो सकती है?
महालेखाकार की रिपोर्ट के बाद एक हाई-लेवल बैठक हुई थी, लेकिन उसकी जांच और कार्रवाई का अब तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया। यह भी उल्लेखनीय है कि अंबेडकर अस्पताल, रायपुर में 18 करोड़ रुपये की पॉजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (पैट सीटी) मशीन खरीदी गई थी, जो एक भी मरीज की जांच किए बिना कबाड़ बन गई।
हाल ही में एक अखबार ने खुलासा किया कि राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज के लिए जो मशीन खरीदी गई, वह बाजार में काफी कम कीमत पर उपलब्ध है। इस पर स्वास्थ्य संचालक से सवाल किया गया तो उन्होंने मासूमियत से सफाई दी कि टेंडर में सिर्फ एक पार्टी ने हिस्सा लिया था, इसलिए वही कीमत स्वीकार करनी पड़ी।
प्रदेशभर में भ्रष्टाचार के ऐसे अनेक किस्से हैं। भाजपा शासनकाल में एक स्वास्थ्य मंत्री को 52 करोड़ के घपले का मामला सामने आया था। उनको तब के सीएम डॉ. रमन सिंह ने हटा दिया था। पर उन्हें हर बार टिकट दी जाती है। इस बार वे फिर हार गए थे।
एक तरफ करोड़ों की अफरा-तफरी हो रही है, दूसरी ओर मरीजों को खाट और पालकी पर मीलों लेकर अस्पताल पहुंचाना पड़ता है।
मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री के साथ दिक्कत यह है कि वह ऐसे सवालों से नाराज हो जाते हैं। पत्रकारों को ही धमकाते हैं। पिछले कुछ सालों में हुई दवाओं और मशीनों की खरीदी की ऑडिट कराएं तो जनता का भला होगा।
भरोसा..
कभी दोबारा बहुमत में आएं तो तुम ही फिर सीएम बनोगी। नए साल पर, शायद ऐसा ही कुछ लालू यादव, राबड़ी देवी से कह रहे हैं।
अफसर कौन, कहां, क्यों ?
नए साल में आईएएस अफसरों के प्रमोशन, और ट्रांसफर भी हुए। इनमें नारायणपुर कलेक्टर विपिन मांझी के सचिव पद पर प्रमोट होने के बाद लोक आयोग में सचिव बनाया गया। उनकी जगह सुश्री प्रतिष्ठा ममगाईं को नारायणपुर कलेक्टर बनाया गया है। खास बात ये है कि नारायणपुर जिला गठन के बाद पहली बार महिला कलेक्टर की पोस्टिंग हुई है।
हमने इसी कॉलम में लिखा था कि बस्तर संभाग के तीन जिले नारायणपुर, और सुकमा व बीजापुर में महिला कलेक्टर की पोस्टिंग नहीं हुई है। नारायणपुर में तो महिला कलेक्टर आ गई, लेकिन सुकमा व बीजापुर में महिला कलेक्टर की पोस्टिंग होना बाकी है। इससे परे बिलासपुर कलेक्टर अवनीश शरण भी सचिव के पद पर प्रमोट हो गए हैं, लेकिन उन्हें यथावत रखा गया है। चर्चा है कि निकाय, और पंचायत चुनाव निपटने के बाद उनका तबादला हो सकता है।
फेरबदल नीलम नामदेव एक्का को सूचना आयोग में सचिव के पद पर पदस्थ किया गया है। सचिव स्तर के अफसर एक्का पिछले तीन महीने से बिना विभाग के मंत्रालय में अटैच थे। अब जाकर नए साल में उन्हें काम दिया गया है।
खाली हाथों को कुछ तो काम
पीएचक्यू में आईपीएस अफसरों के प्रभार भी बदले गए हैं। कुछ अफसर 8-9 महीने से खाली थे, उन्हें कुछ काम दिया गया है। मसलन, चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव के दौरान राजनांदगांव एसपी अभिषेक मीणा को हटा दिया था। तब से वो पीएचक्यू में अटैच थे। अब जाकर पीएचक्यू में दूरसंचार का प्रभार दिया गया है।
इसी तरह केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटने के बाद अभिषेक शांडिल्य को पीएचक्यू में डीआईजी (कानून व्यवस्था) विशेष शाखा का प्रभार दिया गया है। इससे परे कवर्धा एसपी रहे राजेश अग्रवाल अवकाश पर चले गए थे। पहले उन्हें कवर्धा एसपी के दायित्व से मुक्त किया गया। और उन्हें सेनानी वीआईपी सुरक्षा वाहिनी की जिम्मेदारी दी गई है।
इसके अलावा कवर्धा में ही कानून व्यवस्था की स्थिति बिगडऩे के बाद हटाए गए एसपी अभिषेक पल्लव को अब जाकर एसपी राज्य पुलिस अकादमी चंदखुरी का दायित्व सौंपा गया है। कुल मिलाकर नए साल में खाली बैठे अफसरों को काम दिया गया है। देखना है ये आगे क्या कुछ कर पाते हैं।
युवाओं से अफसरों का खिलवाड़
कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में रुके दो फैसलों पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का आदेश भाजपा सरकार के लिए सिरदर्द बना। एक तो पुलिस सब इंस्पेक्टर की भर्ती का मामला और दूसरा बीएड अभ्यर्थियों को प्रायमरी शिक्षक पद में मौका देने का। वैसे पुलिस भर्ती का मामला पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के समय का है लेकिन उस समय चुनाव आ जाने के कारण प्रकिया पूरी नहीं हो पाई थी। कांग्रेस शासनकाल में पूरे पांच साल पात्र अभ्यर्थी अदालतों में संघर्ष करते रहे। फैसला आने पर भी सरकार टालमटोल करती रही, मगर जब हाईकोर्ट ने अल्टीमेटम दे दिया तो आखिरकार नियुक्ति पत्र जारी करना पड़ा। हालांकि इसके लिए उन्हें गृह मंत्री के बंगले को घेर कर बैठना भी पड़ा। उपरोक्त भर्तियों को रोकने की वजह यह बताई जा रही थी कि चयन में भारी लेन-देन हुआ था। पर सरकार के पास कोई सबूत नहीं था। इस तरह के मामलों में सबूत मिलते भी नहीं। हाईकोर्ट में इसीलिए सरकार की हार हुई।
इधर, प्रायमरी स्कूलों में डीएलएड के साथ बीएड अभ्यर्थियों को मौका देने का आदेश पूर्व की कांग्रेस सरकार था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट तक से आदेश आ चुका। दोबारा मानहानि का मुकदमा दायर होने पर सरकार ने आखिरकार बीएड अभ्यर्थियों को बाहर करने का आदेश निकाल दिया है। 11 माह नौकरी करके बीएड अभ्यर्थी बाहर होने जा रहे हैं। उन्होंने कल राजधानी में भाजपा मुख्यालय के सामने रो-रोकर प्रदर्शन किया। बीएड अभ्यर्थियों को उम्मीदवारी का मौका नहीं दिया जाता तो उनकी भर्ती ही नहीं होती। यह मुंह से निवाला छीन लेने जैसी बात हुई। सरकार को हाईकोर्ट में केस हारना नहीं पड़ता। पहले भी कभी बीएड अभ्यर्थियों को प्रायमरी स्कूलों में नहीं लिया गया है। अचानक कांग्रेस शासनकाल में नियम बदल दिए गए, किसे फायदा पहुंचाने की मंशा थी यह पता लगाना जरूरी है। नियम बदलने का आदेश जारी करने वाले अफसर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। कोई विभागीय जांच उसके खिलाफ होनी चाहिए या नहीं??
याद दिला दें कि ऊंचे स्तर पर ऐसे मनमाने फैसले की एक घटना और अभी हुई है। उसमें भी सरकार को मुंह की खानी पड़ी। यह था पुलिस की भर्ती में विभाग में कार्यरत जवानों, कर्मचारियों के बच्चों को विशेष छूट देना। हाईकोर्ट ने माना कि डीजीपी को भर्ती नियमों को शिथिल करने की छूट है, पर ऐसी मनमानी नहीं हो सकती कि परिवार के बच्चों को रियायत मिले। अब हाईकोर्ट के आदेश पर यह प्रावधान हटाकर पुलिस भर्ती की जा रही है। हालांकि पुलिस भर्ती दूसरे कारणों से चर्चा में हैं, जिसमें इंवेट कंपनियों से साठगांठ कर काबिल युवाओं को बाहर कर अयोग्य अभ्यर्थियों को मौका दिया जा रहा था। मुख्यमंत्री साय ने सीजीपीएससी की नई सूची पर खुशी जतात हुए एक पोस्ट की थी। उन्होंने कहा था कि जो भी सफल हुए, अपने परिश्रम से चुने गए। राजनांदगांव के मामले में भी सरकार ने तगड़ा एक्शन लिया है। इवेंट कंपनी के अलावा, पुलिस विभाग के भी लोग गिरफ्तार हुए हैं। सरकार कोशिश करती दिख रही है कि प्रतिभा के साथ अन्याय न हो।
बीएड के सफल 2900 उम्मीदवारों को अगर सरकार नौकरी पर रखना चाहती है तो उसे चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट में दायर पुनर्विचार याचिका के फैसले का इंतजार मत करे। शिक्षकों के 57 हजार पद प्रदेश में खाली हैं। इन्हें दोबारा किसी परीक्षा में बिठाए बिना खाली पदों पर नियुक्त कर देना चाहिए। उलूल जुलूल फैसला लेने वाले अफसरों की मनमानी पर कोई रोक लगेगी?
एक खुश करने वाली तस्वीर...
यह प्रसन्नता यह दर्शाती है कि खुशी का धन-दौलत से कोई सीधा संबंध नहीं है। सादगीपूर्ण जीवन में भी व्यक्ति संतुष्टि और सुख पा सकता है। यह मुस्कान दिखाती है कि सच्चा आनंद आत्मा की गहराइयों में बसता है, न कि भौतिक सुख-सुविधाओं में। अमीरी-गरीबी तो बाहरी परिभाषाएं हैं, लेकिन खुशी अपने भीतर तलाश करने की चीज है। साधारण जीवन और प्राकृतिक परिवेश में भी सच्ची प्रसन्नता का अनुभव किया जा सकता है। नए साल की यह तस्वीर हमें जीवन के छोटे-छोटे पलों का आनंद लेने की प्रेरणा देती है। यह तस्वीर अचानकमार टाइगर रिजर्व में स्थित एक गांव से जाने-माने वन्यजीव प्रेमी प्राण चड्ढा ने ली है।
अभी तो भृत्य है लेकिन...
एक माह पहले ही हमने वर्ष 23 यूपीएससी बैच में सफल अभ्यर्थियों के जीवन संघर्ष की खबरें पढ़ीं। देशभर के इन आठ सौ युवाओं में कोई कुली, कोई डिलीवरी ब्वाय तो कोई भृत्य रहा है। इस वर्ष यानी वर्ष 24 के बैच में भी हमारे अपने छत्तीसगढ़ से भी एक ऐसा ही संघर्षशील युवा सफलता की चौखट पर खड़ा है।
हाल में यूपीएससी फाइनल के नतीजे घोषित कर दिए गए हैं। वह इन दिनों दिल्ली में है। अब इन सफल अभ्यर्थियों के इंटरव्यू होने हैं। सफल होते ही यह भी यूपीएससी पास आउट अफसर हो जाएगा। उसकी सफलता आईएएस, आईपीएस आईएफएस या अन्य किसी सेवा में होगी यह लिस्ट बताएगी। वैसे यह युवा सीजी पीएससी पास आउट भृत्यों के पहले बैच का
कर्मचारी है।
अपने लक्ष्य को हासिल करने उसने चपरासी की नौकरी करना स्वीकार किया। उसे जानने वाले साथी कर्मचारी बस सफलता की कामना कर रहे हैं। इसकी एक साथी महिला भृत्य ने भी सीजी पीएससी दी थी। बस कुछ दशमलव अंकों से पिछड़ गई। पर ससुर की इच्छा पूरी करने उसने भृत्य ही सही सरकारी नौकरी को ज्वाइन किया। लेकिन वह भी अपने लक्ष्य को हासिल करने में जुटी है। वैसे एक और गुदड़ी के लाल है यह भी पीएससी में ही चपरासी रहकर अब अफसर हो चुका है।
प्रशासक-युग की तैयारी
प्रदेश के दस नगर निगमों में इस हफ्ते के आखिरी में प्रशासक नियुक्त कर दिए जाएंगे। यानी निगम आयुक्त प्रशासक की भूमिका में होंगे। इसी तरह नगर पालिकाओं, और नगर पंचायतों में भी सीएमओ सक्षम प्राधिकारी होंगे। जिन 172 निकायों में चुनाव की तैयारी चल रही है, वहां मौजूदा निर्वाचित पदाधिकारियों का कार्यकाल छह जनवरी को खत्म हो रहा है। अब अगले एक महीने तेजी से विकास कार्य कराने की योजना बनाई गई है ताकि चुनाव में इसका फायदा मिल सके।
प्रदेश के सभी नगर निगमों, और ज्यादातर नगर पालिका व पंचायतों में कांग्रेस का कब्जा है। निर्वाचित पदाधिकारियों के पद मुक्त होने की स्थिति में स्थानीय भाजपा सांसद, और विधायकों का निकायों में दखल बढ़ेगा। डिप्टी सीएम अरुण साव ने सभी निकायों के अधिकारियों को वार्डों में जाकर जन समस्याओं का निराकरण करने के निर्देश दिए हैं। फरवरी में निकाय चुनाव के संकेत हैं। ऐसे में प्रशासक के जरिए अपने-अपने वार्डों में काम कराने के लिए भाजपा के नेता सक्रिय दिख रहे हैं। चुनाव में इसका कितना फायदा मिलता है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
धान खरीदी की इकोनॉमी
धान खरीदी के साथ जगह-जगह ‘अवैध धान’ भंडारण पर छापेमारी भी चल रही है। मंडी, खाद्य और राजस्व विभाग के अधिकारी कर्मचारी व्यापारियों और किसानों के घर से जब्ती केस बना रहे हैं। कोई धान अवैध कैसे हो जाता है? धान तो किसानों का उगाया ही है। दूसरे राज्यों से जुड़े जिलों की बात तो समझ में आती है, पर उन शहर गांवों से भी जब्त किए जा रहे हें जहां दूसरे राज्यों के धान नहीं आ सकते। आज की खबर को ही लें तो करीब 4 हजार बोरियां प्रदेश के विभिन्न कोचियों, गल्ला व्यापारियों और किसानों से जब्त की गई। सरकार समर्थन मूल्य के साथ बोनस मिलाकर करीब 3100 रुपये का भुगतान करती है। फिर उनका धान इन गल्ला व्यापारियों के पास कैसे पहुंच रहा है? वे तो 3100 रुपये नहीं देते होंगे। जरा इसकी वजह जान लें। व्यापारी 2200 रुपये से अधिक में धान नहीं खरीद रहे हैं, मगर भुगतान हाथों-हाथ कर रहे हैं। सोसायटी में धान बेचना हो तो दस तरह के लफड़े हैं। पंजीयन, आधार कार्ड, टोकन और इंतजार। भुगतान में समय भी लगेगा। छोटे किसान जिन्हें तत्काल नगदी चाहिए वे पंजीयन नहीं कराते। उनका धान बिचौलियों के पास जाता है। थोड़ा सा ही धान तो बेचना है, फिर क्यों इतनी प्रक्रियाओं से गुजरें, वे उनको बेच देते हैं जो घर आकर तौलकर पूरा पैसा हाथों-हाथ दे देते हैं। एक दूसरा विकास भी धान पर सरकारों के ध्यान के चलते हुआ है। लोग ज्यादा से ज्यादा धान उगा रहे हैं। सरकार ने अधिकतम 21 क्विंटल धान प्रति एकड़ खरीदने की मंजूरी दी है। पर बहुत से किसान 22-25 और यहां तक कि 30 क्विंटल धान प्रति एकड़ उगा रहे हैं। बचे हुए धान का वे क्या करेंगे? वे भी बिचौलियों को अपने खलिहान में बुला लेते हैं। सरकार दावा करती है किसान का एक-एक दाना खरीदेंगे, जरा किसानों से पूछें-वे क्या बोलते हैं। तकनीक के विकास ने उन्हें ज्यादा धान उगाने का रास्ता दे दिया है। मगर, खरीदी की लिमिट तय हो गई है। यही धान बिचौलियों और गल्ला व्यापारियों से जब्त किया जा रहा है। समस्या नीतिगत है।
ऐसा भी वैवाहिक निमंत्रण पत्र
आप असहमत हों तो कोई बात नहीं। मगर, शादी-ब्याह के निमंत्रण में दिए संदेशों पर जरूर गौर करें। प्रेषक ने अपनी सारी धारणाओं, विचारों की दिशा को इसके मुखड़े पर अंकित कर दिया है। कह रहे हैं- जय जवान, जय किसान, जय इंसान। पाखंड और प्रदूषण मुक्त शादी, बिना पुजारी, बिना यज्ञ-हवन। खेत हमारे मंदिर हैं, अन्न हमारा भगवान। किसान आंदोलन सदियों तक याद रखेंगे। साथ में भगत सिंह का एक कोट- दुनिया का सबसे बड़ा अंधविश्वास ईश्वर पर विश्वास रखना है। जैसा कि निमंत्रण पत्र से मालूम होता है, यह अनोखी शादी हरियाणा में हो रही है।
कुछ भूपेश के खिलाफ, कुछ साथ
पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के कार्यक्रम में डॉक्टरों की ड्यूटी लगाने पर सवाल खड़े किए हैं। भागवत पिछले तीन दिनों से रायपुर में हैं, और वे संघ के अनुषांगिक संगठनों की बैठक ले रहे हैं। भूपेश ने सरकार, और प्रशासन को आड़े हाथों लेते हुए डॉक्टरों की ड्यूटी ऑर्डर को निरस्त करने की मांग की है।
कई लोग भूपेश की मांग को राजनीति से प्रेरित करार दे रहे हैं। वजह यह है कि मोहन भागवत को पहले जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई थी, जिसे बढ़ाकर एडवांस सिक्योरिटी लाइजन (एएसएल) कर दिया है। खुफिया एजेंसी आईबी ने भागवत की सुरक्षा को लेकर अलर्ट किया हुआ है। ऐसे में प्रशासन ने डॉक्टरों की ड्यूटी लगाई है, तो यह कहीं से कोई गलत नहीं है।
पूर्व सीएम के फेसबुक पेज पर कई लोगों ने उन्हें जमकर उलाहना दी है। द्वारिका निषाद नामक एक यूजर ने नवीन विधानसभा भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का निमंत्रण पत्र साझा करते हुए पूछा कि श्रीमती सोनिया गांधी जी कौन से संवैधानिक पद पर थीं जिसे आपने नवीन विधानसभा भवन छत्तीसगढ़ का उद्घाटन करने का अवसर प्रदान किया? एक अन्य ने लिखा इसमें गलत क्या है जी, सरकार जिसे चाहे उसे राज्य अतिथि का दर्जा दे सकती है। हालांकि कई लोगों ने भूपेश का समर्थन भी किया है। कुल मिलाकर भागवत के दौरे को लेकर काफी हलचल है।
छंटेलों में दो नयों की चर्चा
वन विभाग में शीर्ष अफसरों की भ्रष्टाचार में संलिप्तता जगजाहिर है। जांच एजेंसियों में दर्ज प्रकरण इसकी गवाही भी दे रहे हैं। इन सबके बीच कुछ जूनियर अफसर विपरीत परिस्थितियों में बेहतर काम करते दिख रहे हैं, जिसकी काफी चर्चा भी हो रही है। इन्हीं में से दो आईएफएस अफसर वरुण जैन, और अंबिकापुर डीएफओ तेजस शेखर भी हैं।
आईएफएस के 2017 बैच के अफसर वरुण जैन ने ओडिशा से सटे उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व क्षेत्र में वन भूमि पर अतिक्रमण और शिकार को रोकने के लिए अब तक की सबसे प्रभावी कार्रवाई की है। उन्होंने पूरे इलाके का माहौल ऐसा बना दिया है कि वनग्राम के लोग खुद ब खुद अतिक्रमण करने वालों, और शिकारियों के बारे में सूचना वन अमले को दे रहे हैं। पिछले डेढ़ साल में डेढ़ सौ शिकारियों को हिरासत में लिया गया है।
इसी तरह अंबिकापुर डीएफओ तेजस शेखर भी अपनी ईमानदार कार्यशैली की वजह से स्थानीय लोगों के बीच चर्चा में बने हुए हैं। उन्होंने भी अवैध कटाई को रोकने के लिए ठोस कार्रवाई की है। चर्चा तो यह भी है कि लकड़ी के कारोबार से जुड़े कई लोग उन्हें उपकृत करना चाहते थे, वे पहले भी ऐसा करते आए हैं। मगर तेजस शेखर ने अपना सख्त रवैया दिखा दिया। ये अलग बात है कि स्थानीय कई जनप्रतिनिधि उनसे नाखुश हैं। इससे बेपरवाह तेजस जंगल के संरक्षण में जुटे हुए हैं। विभाग की बहुत सी अप्रिय चर्चाओं के बीच इन जूनियर अफसरों की कार्यशैली से उम्मीद की किरण भी नजर आ रही है।
शिक्षा में डिजिटल क्रांति आ पाएगी?
वन नेशन-वन इलेक्शन, वन नेशन- वन टैक्स की तर्ज पर नई शिक्षा नीति में अपार आईडी का प्रावधान किया गया है- जिसे वन स्टूडेंट-वन आईडी नाम दिया गया है। अपार का मतलब है- आटोमेटेड परमानेंट एकेडमिक एकाउंट रजिस्ट्री। यह नंबर भविष्य की सभी अंक सूचियों में दर्ज होंगे और छात्र इन्हें डिजी लॉकर में रखेंगे। इसी डिजिटल दस्तावेज के जरिये उन्हें अगली कक्षा में प्रवेश मिलेगा। बताया यह गया है कि इससे किसी भी बच्चे का प्रोफाइल एक क्लिक से देखा जा सकेगा। वह देश के किस स्कूल या कॉलेज में पढ़ रहा है- मालूम हो जाएगा। यह पता लग सकेगा कि वह किन विषयों में रुचि रखता है, उसे आगे किस तरह के करियर चुनना चाहिए। इसके अलावा ड्रॉप आउट बच्चों का पता लगाया जा सकता है। यदि उसने कहीं भी दाखिला नहीं लिया है तो उसे आगे पढऩे के लिए स्कूलों में लाया जा सकेगा।
लक्ष्य रखा गया है कि शैक्षणिक सत्र 2026-27 तक पूरे देश में सभी निजी व सरकारी स्कूल के छात्र-छात्रा 12 अंकों वाले यूनिक नंबर से पहचाने जाएंगे। पर इस वर्ष जिन राज्यों में इसे प्रायोगिक रूप से शुरू किया गया है, उनमें दिल्ली के अलावा छत्तीसगढ़ को शामिल किया गया है। छत्तीसगढ़ में इसी शैक्षणिक सत्र यानि 2024-25 में सभी छात्रों की अपार आईडी बनाने का लक्ष्य रखा गया है। मगर, यह काम बहुत धीमी गति से चल रहा है। हालत यह है कि प्रदेश में अब तक 40 फीसदी भी अपार आईडी नहीं बन पाए हैं। कुछ जिलों में तो प्रदर्शन बहुत कमजोर है। उदाहरण के लिए जांजगीर जिले में तीन माह के भीतर करीब 50 प्रतिशत छात्रों की आईडी बन पाई है। इस काम में लापरवाही के चलते 18 प्राचार्यों को हटाने का निर्देश कलेक्टर ने दे दिया। प्राइवेट स्कूलों के संचालक अलग समस्या खड़ी कर रहे हैं। इस जिले में 170 से ज्यादा ऐसे स्कूल हैं पर जब डीईओ ने अपार आईडी के लिए बैठक बुलाई तो उनमें से 20 भी नहीं पहुंचे। गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में 107 प्राचार्यों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। उनका वेतन रोकने का भी आदेश दिया गया है। इस जिले में तीन ब्लॉक शिक्षा अधिकारी हैं-तीनों को नोटिस जारी किया गया है। सरगुजा जिले में 42 प्रतिशत आईडी ही बन पाए हैं। यहां भी प्राचार्यों और ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों को नोटिस जारी की गई है। सारंगढ़ और सक्ती जिले में भी यही स्थिति है। बिलासपुर जिले में में कुछ अधिक ही ढिलाई बरती जा रही है। यहां के करीब 4 लाख बच्चों में से केवल 18 हजार के अपार आई डी बन पाए हैं, जो करीब 5 प्रतिशत भी नहीं पहुंचता। कलेक्टर के निर्देश पर सभी सरकारी व निजी स्कूलों- जिनकी संख्या 2500 से अधिक है- को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है। निजी स्कूल संचालकों को उनकी मान्यता रद्द करने की चेतावनी भी दी गई है।
अपार आईडी बनने और हर छात्र का यूनिक नंबर तैयार होने के अपने फायदे हैं, पर दिख यह रहा है कि शिक्षकों, प्राचार्यों को इसे तैयार करने में कई व्यवहारिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। एक कारण यह है कि आधार कार्ड और स्कूल के रिकॉर्ड में जन्मतिथि अलग-अलग दर्ज हैं। स्कूल में जन्मतिथि नहीं बदली जाएगी, आधार कार्ड में संशोधन करना है। आधार कार्ड में जो मोबाइल नंबर दर्ज हैं, बहुतों ने उस सिम को बंद कर दिया है, नए नंबर ले चुके हैं। इसलिए ओटीपी अपडेट नहीं हो रहे हैं। कई अभिभावक अपार को लेकर सशंकित हैं, वे अपनी सहमति नहीं दे रहे हैं, जिसके बिना आईडी बनने वाली नहीं है। फिर शिक्षकों पर इस समय कोर्स पूरा करने और एग्जाम की तैयारी करने का दबाव भी है। जिलों में कलेक्टर बैठकें ले रहे हैं, समीक्षा के दौरान खराब प्रदर्शन को देखकर शिक्षकों, प्राचार्यों पर कार्रवाई कर रहे हैं। मगर, इन दिक्कतों का समाधान कैसे निकले, इस पर विचार नहीं कर रहे हैं।
नया साल, दोस्ती की मिसाल
सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें दिख रहा है कि एक झील से मछली बाहर आती है, पपी उसके साथ खेलता है। जब सांस टूटने लगती है तो मछली पानी में गोते लगाने चली जाती है। थोड़ी देर में निकलकर फिर पपी के साथ खेलने लगती है। लोगों ने प्रतिक्रिया दी है, कि नया साल ऐसी ही दोस्ती और प्रेम का पैगाम सबके लिए लेकर आए।
नाम की गफलत में छापा
करीब डेढ़ साल की चुप्पी के बाद ईडी ने शराब घोटाला केस में बड़ी कार्रवाई की है। ईडी ने पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा, और उनके आधा दर्जन करीबियों के यहां छापेमारी की। जिन लोगों के यहां छापे डले हैं, उनमें प्रदेश कांग्रेस के प्रतिनिधि सुशील ओझा, और उनके पूर्व ओएसडी जयंत देवांगन भी हैं।
सुशील ओझा, पूर्व मंत्री के राजनीतिक प्रबंधन देखते रहे हैं। उनके यहां ईडी पहुंची, तो वो घर पर नहीं थे। उनसे जुड़े लोगों का दावा है कि सुशील का शराब कारोबार से सीधा कोई वास्ता नहीं रहा है। मगर कवासी जब भी प्रदेश से बाहर जाते थे, सुशील साथ होते थे।
सुशील को उनका राजदार माना जाता है। ऐसे में कवासी के साथ सुशील के यहां छापेमारी हुई, तो कई लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ। हालांकि सुशील ने छापेमारी पर कटाक्ष किया, और फेसबुक पर लिखा- गरीब ब्राह्मण के घर ईडी आई धन्यवाद मोदीजी।
इससे परे जयंत देवांगन के यहां छापेमारी से कई लोगों को आश्चर्य हुआ। वजह यह है कि जयंत, आबकारी मंत्री के ओएसडी रहते आबकारी की फाइलों से दूर-दूर तक वास्ता नहीं था। कवासी के यहां आबकारी की फाइल देवांगन उपनाम के एक अफसर कराते थे। ये अलग बात है कि जो अफसर कवासी लखमा से आबकारी की फाइल कराते रहे हैं, वो फिलहाल बचे हुए हैं।
खैर, ईडी की टीम ने जयंत से सामान्य पूछताछ के बाद उनके मोबाइल वगैरह को भी वापस कर दिया। दूसरी तरफ, ईडी की टीम कवासी, और उनके परिवार के सदस्यों के मोबाइल भी डिकोड करने में सफल रही है। अब मोबाइल क्या कुछ राज उगलती है, यह देखना है।
तारीफ हो रही, लेकिन...
राजधानी पुलिस की कल से बहुत तारीफ हो रही है। कारण है शहर के हृदय स्थल शास्त्री चौक को नो आटो जोन करना। जो काम 24 वर्ष में नहीं हो पाया उसे पुलिस ने बीते 24 घंटे में कर दिखाया। शास्त्री चौक पर फर्क दिखाई दे रहा है। सबसे व्यस्ततम चौर पर ट्रैफिक अब स्मूद और सुविधाजनक हो गया है। चौक के रेड सिग्नल पर खड़ा हर नागरिक तारीफ करने से नहीं चूक रहा है।
एक सरदार जी ने तो यहां तक कह दिया कि 26 जनवरी को सम्मानित करना चाहिए पुलिस को। शहर से एक तरह से राह चलते सडक़ की गुंडई खत्म हो गई है, इन आटो वालों की। बेतरतीब पार्किंग और ड्राइविंग से महंगी गाडिय़ों पर स्क्रेच करना, अचानक टर्न लेने से होने वाले हादसे, विरोध करने पर गुंडई, खासकर चाकूबाजी जेबकटिंग और इतने विशाल चौक पर जाम से मुक्ति मिल गई है। हर कोई चौक पर खड़े सिपाहियों को शाबासी देते नहीं थक रहा। सिपाहियों का कहना था कि पब्लिक सपोर्ट के बिना संभव नहीं था। सबसे अधिक समस्या ई रिक्शा वाले पैदा कर रहे थे। जो भी हो ढाई दशक की बड़ी समस्या दूर हो गई। और इसे राजधानी के सीएसपी, एएसपी से रूप में झेल चुके एसएसपी लाल उम्मेद सिंह ने अपने अनुभव का पूरा इस्तेमाल कर दूर करने में सफलता पाई है। और अब सबकी निगाहें स्टेशन चौक की ओर है। इसके बाद यह शहर ईज ऑफ ट्रैफिक को हासिल कर लेगा।
एक सवाल यह भी उठ रहा है कि अब शास्त्री चौक से गुजरने वाले ऑटो-मुसाफिरों को आधा किलोमीटर या उससे अधिक पैदल चलकर दूसरी तरफ ऑटो पकडऩा होगा, खर्च भी बढ़ेगा, और दो-दो बड़े-बड़े अस्पताल, कलेक्ट्रेट, कोर्ट, तहसील, रजिस्ट्री जाने वाले बुजुर्गों का क्या होगा? वे सब पैदल चलने को मजबूर होंगे? इस चार-छह जगहों पर ही रोज लाख-पचास हजार लोग ऑटो पर पहुंचते हैं।
एक जानकर का कहना यह भी है कि पुलिस ने शास्त्री चौक पर ऑटो वालों की भीड़, गुंडागर्दी, और अराजकता पर काबू किया नहीं, और अब जरूरत से कड़ा कदम उठाया है, जिससे गरीब जनता का जीना हराम हो जाएगा। आज सुबह का नजारा है की शास्त्री चौक की गुंडागर्दी मेकाहारा चौक शिफ्ट हो गई है।
धरनास्थल की पुराने शहर वापसी
जन आंदोलन करने वालों की मांग बहुत जल्द पूरी होने जा रही है । वह यह कि धरना स्थल एक बार फिर पुराने शहर में शिफ्ट होने वाला है । शासन प्रशासन ने अपने खिलाफ होने वाले विरोध प्रदर्शन को नया रायपुर के तूता से बाहर करने की तैयारी में है। इसके पीछे कई कारण है इनमें मंत्रालय, संचालनालय के बाद विधानसभा भवन शुरू होना। केंद्री से नवा रायपुर होकर मंदिर हसौद रेल लाइन, फिल्म सिटी का निर्माण, बिजनेस पार्क, फार्मास्यूटिकल पार्क।
ये सभी तूता धरना स्थल से दो ढाई किमी दूर ही है। और वहां धरना स्थल बनाए रखने से रेल रोको, विधानसभा घेराव, सीएम-मंत्री घेराव एक बड़ी समस्या खड़े कर सकता है। इससे निपटने का यही एक रास्ता है कि धरना स्थल रायपुर शिफ्ट कर दिया जाए। इसके लिए जल्द ही जिला, पुलिस निगम के अधिकारियों की बैठक कर स्थल चयन करने जा रहे हैं । अब बूढ़ापारा में वेंडिंग जोन बनाए दिए जाने से नई जगह ढूंढनी होगी। वैसे यह भी कहा जा रहा है कि तूता के बजाए नए शहर में ही किसी दूर सेक्टर में जंगल सफारी के आसपास चिन्हित किया जा सकता है। या मंदिर हसौद, माना में भी। लेकिन राजनीतिक माइलेज से लिए कर्मचारी संगठनों के नेता पुराने शहर को बेहतर विकल्प बता रहे।
पार्षदों को अब अपनी फिक्र हुई..
नगर निगमों का कार्यकाल खत्म होने को है। पांच सालों का लेखा-जोखा करने का समय आ गया है। शहर के विकास में पार्षदों और महापौर का योगदान क्या रहा, इसका आकलन जनता जरूर करेगी। पर फिलहाल, नगर निगमों में जो हलचल है, वह कुछ और कहानी बयां करती है। सभी नगर निगमों में एक आखिरी सामान्य सभा की बैठक बुलाने की जल्दबाजी है। बैठक में ऐसे प्रस्ताव लाने की कोशिश हो रही है, जो यह दिखा सके कि जनप्रतिनिधि जनता के हितों के प्रति संवेदनशील हैं। इधर, कोरबा नगर निगम में तो मामला और भी दिलचस्प हो गया है। यहां सामान्य सभा की प्रस्तावित बैठक में दो अहम प्रस्ताव पेश किए जा रहे हैं—पहला, प्रत्येक पार्षद के लिए 2000 वर्गफीट जमीन का आवंटन और दूसरा, पार्षदों और उनके परिवार के लिए किसी पर्यटन या तीर्थ स्थल का भ्रमण।
इन प्रस्तावों को एमआईसी ने पहले ही हरी झंडी दे दी है। अंतिम मुहर के लिए सामान्य सभा में पेश किया जाएगा। इन प्रस्तावों पर किसी प्रकार की बहस या विरोध की संभावना कम है। पक्ष-विपक्ष, दोनों इसे सहर्ष स्वीकार करने को तैयार दिख रहे हैं।
बात यह भी है कि पार्षदों को अपने और अपने परिवार के बारे में सोचने का विचार काफी देर से आया। अब जब आचार संहिता लागू होने की तैयारी है, तो राज्य सरकार से मंजूरी लेने का समय भी कम बचा है। जमीन के आवंटन के लिए सरकार से स्वीकृति अनिवार्य होगी। भ्रमण का खर्च नगर निगम के फंड से किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए भी सरकार की अनुमति जरूरी होगी।
जवाब ढूंढने की कोशिश...
गंदगी फैलाना ज्यादा अच्छी बात होती हैं, या सफाई करना? गंदगी फैलाने वालों को ज्यादा सम्मान मिलना चाहिए, या सफाई करने वालों को? कूड़ा उठा रही यह श्रमिक शायद अंबेडकर की किताब हाथ में लेकर यह समझना चाहती है कि स्वच्छता के काम में लगे लोगों को इज्जत क्यों नहीं दी जाती। नागपुर के एक पुस्तक मेले की तस्वीर।
लास्ट ओवर की बैटिंग
साल के आखिरी दिन कई अफसर रिटायर भी हो रहे हैं। इन्हीं में से आदिवासी इलाके में पदस्थ एक अफसर रिटायरमेंट के आखिरी दिनों में ट्वेंटी-ट्वेंटी के अंदाज में बैटिंग कर रहे हैं। अगले दो दिनों में अफसर से अपने रुके काम करवाने के लिए होड़ मची हुई है।
अफसर के बंगले के बाहर गाडिय़ों का काफिला देखा जा सकता है। अफसर पहले भी इस इलाके में पदस्थ रहे हैं। लिहाजा, उनके संपर्क का दायरा काफी बड़ा है। यही वजह है कि अफसर तेजी से फाइल निपटा रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि सरकार के लोगों को अफसर के हरकत की जानकारी नहीं है। एक मंत्री तो को लेकर आपसी चर्चा में काफी कुछ कह चुके हैं। अब वो किस तरह, और कैसी फाइल निपटाते हैं, यह तो उनके जाने के बाद ही पता चलेगा।
न्यू ईयर सेलिब्रेशन ने फूंकी जान
ईयर एंडिंग और न्यू ईयर सेलिब्रेशन के इन दिनों ने दुर्ग विशाखापट्टनम वंदे भारत एक्सप्रेस में जान फूंक दी है। सितंबर मध्य में शुरू हुई ट्रेन अपने उद्घाटक सफर के दूसरे ही दिन से पैसेंजर रिस्पांस को लेकर साँसें गिन रही थी। इस ट्रेन की अब तक रिस्पांस के चलते स्लीपर वंदे भारत की संभावनाएं धूमिल हो गई हैं।
यह चेयर कार ट्रेन बीते इन महीनों में 30 फीसदी बुकिंग पर दौड़ रही थी। 18 डिब्बों की इस ट्रेन में 1128 सीटें हैं। कभी यह ट्रेन 250 तो किसी दिन 300 से अधिक यात्रियों के साथ चलती रही है। क्वालिटी ब्रेक फास्ट,लंच और डिनर पैक के साथ अच्छे सर्विस से बाद भी महंगे टिकट भाड़े की वजह से यात्री विमुख रहे। इससे इसका ऑपरेशन कॉस्ट भी नहीं निकल रहा था। इस वजह से ट्रेन के 16 कोच में कटौती कर 8 से ही चलाने की भी बात सामने आती रहीं हैं। लेकिन रेलवे नो प्रॉफिट नो लॉस के बिजनेस रूल के तहत ट्रेन चलाई जा रही है। लेकिन 20 दिसंबर के बाद से मानों वंदे भारत में जान आ गई है। और अब हर रोज 500 से अधिक सीट बुकिंग के आंकड़े मिले हैं।
25 दिसंबर को तो दुर्ग रायपुर से 1060 सीटों की बुकिंग रही। यह समुद्री पर्यटन शहर विशाखापट्टनम के आकर्षण के चलते देखने को मिला है। यह सिलसिला अभी 20 जनवरी तक बने रहने के संकेत हैं। 10 जनवरी के बाद छत्तीसगढ़ में मूल आंध्रवासियों की पोंगल के लिए गृह क्षेत्र के लिए आवाजाही रहेगी। उसके बाद परीक्षाओं के सीजन में फरवरी से अप्रैल तक ट्रेन के फिर से वेंटिलेटर पर जाना तय है।
जिसकी सरकार- उसी की रेत
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के दौरान अवैध रेत खनन जोरों पर था। एनजीटी द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद दिनदहाड़े पोकलैंड और चेन माउंटेन मशीनों से रेत निकाली जाती रही। रात में रेत की चोरी आम बात थी। इस दौरान विपक्ष में बैठी भाजपा ने कई बार विधानसभा में इस मुद्दे को उठाया। नदियों के साथ हुई इस निर्दयता के परिणामस्वरूप अवैध खदानों की गहराई में जाने से बच्चों की जान तक चली गई।
हाईकोर्ट में अवैध रेत खनन से जुड़ी जनहित याचिकाओं पर सुनवाई अभी भी जारी है। अब जबकि कांग्रेस विपक्ष में है, वह इस मुद्दे पर ज्यादा सवाल नहीं उठा रही। दूसरी ओर, रेत का वही पुराना खेल अब भी जारी है। रायपुर, दुर्ग और भिलाई जैसे शहरों के लिए रेत सप्लाई का मुख्य केंद्र कांकेर जिले का भिरौद इलाका बना हुआ है।
ताजा घटनाक्रम में, भिरौद इलाके में सत्तारूढ़ भाजपा के कार्यकर्ता रेत की रंगदारी को लेकर आपस में भिड़ गए। कहा जा रहा है कि यह विवाद इस बात को लेकर हुआ कि किस घाट की रेत पर किसका अधिकार होगा। भले ही क्षेत्र में केवल तीन अधिकृत खदानें हैं, लेकिन अवैध खुदाई 12 से अधिक स्थानों पर हो रही है।
खनिज विभाग, तहसीलदार और पुलिस इन अवैध खदानों से अनजान होने का दावा करती रही। लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हुए इस आधी रात के विवाद ने इन दावों की पोल खोल दी। विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों पक्ष शिकायत लेकर थाने पहुंच गए। पर वहां उनका समझौता हो गया। संभवत: उन्हें यह महसूस हुआ कि विवाद को तूल देने से उनके कारोबार को नुकसान हो सकता है।
झगड़े के बाद, खनिज विभाग ने अचानक कार्रवाई करते हुए सभी अवैध खदानों को बंद करा दिया। हालांकि, सवाल यह है कि यह पाबंदी कब तक टिकेगी?
दो राज्यों का स्टेशन
देश में कई रोचक स्थान हैं जिनके बारे में रेल के सफर के दौरान जानकारी मिलती है। बिलासपुर से हावड़ा की ओर जाते समय ईब स्टेशन पड़ता है, जिसे देश का सबसे छोटे नाम वाले स्टेशन के रूप में जाना जाता है। कई रेलवे स्टेशन ऐसे हैं जो दो राज्यों में बंटे हुए हैं। बिलासपुर-कटनी रूट पर पडऩे वाला वेंकटनगर स्टेशन भी ऐसा ही है। इसका आधा हिस्सा मध्यप्रदेश में तो आधा छत्तीसगढ़ में है। एक स्टेशन नवापुर है जो गुजरात और महाराष्ट्र में बंटा हुआ है। यह स्टेशन भुसावल रेलवे मंडल के अंतर्गत आता है। महोबा और हरपाल स्टेशन उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में बंटे हुए हैं। यहां भवानीमंडी रेलवे स्टेशन की तस्वीर है। दिल्ली-मुंबई रूट का यह स्टेशन राजस्थान और मध्यप्रदेश में विभाजित है। लोग टिकट लेने के लिए मध्यप्रदेश के टिकट काउंटर में पहुंचते हैं और ट्रेन पर चढऩे के लिए राजस्थान में बने प्लेटफॉर्म पर आते हैं। इस कस्बे में कई घर ऐसे हैं जिनका सामने का गेट एक राज्य में तो पीछे का गेट दूसरे राज्य में खुलता है।
पंचायत-म्युनिसिपल चुनावों की चुनौती
नगरीय निकायों, और पंचायतों के पदों के आरक्षण में देरी से कई दिक्कतें पैदा हो रही हैं। पहली यह कि निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची का पुनरीक्षण कराना पड़ रहा है। नई मतदाता सूची 15 जनवरी को आएगी। साफ है कि मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन से पहले चुनाव तारीखों की घोषणा नहीं की जा सकती है।
नगरीय निकायों के निर्वाचित पदाधिकारियों का कार्यकाल 6 जनवरी को खत्म हो जाएगा। सभी नगर निगमों में प्रशासक बैठेंगे। इसी तरह पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल 10 फरवरी को खत्म हो रहा है। यह भी तय है कि 10 फरवरी के पहले पंचायतों का चुनाव हो पाना मुश्किल है। वजह यह है कि अभी पंचायतों में अब तक पदों का आरक्षण तक नहीं हुआ है।
राज्य निर्वाचन आयोग ने दोनों चुनाव जनवरी-फरवरी में निपटाने की तैयारी की थी, लेकिन अब विशेषकर पंचायत चुनाव में देरी हो सकती है। पंचायत चुनाव फरवरी के आखिरी, और मार्च के पहले पखवाड़े तक चल सकते हैं। पंचायत चुनाव की प्रक्रिया लंबी है। प्रदेश में करीब डेढ़ लाख पंच, और साढ़े 11 हजार सरपंच के चुनाव होने हैं। इसके अलावा जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, और फिर आखिरी में जनपद व जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव होंगे। डिप्टी सीएम अरुण साव ने संकेत दिए हैं कि बोर्ड परीक्षाओं के पहले निकाय और पंचायत करा लिए जाएंगे। वाकई ऐसा हो पाएगा, यह देखना है।
सत्तारूढ़ पार्टी के पदों की चुनौती
भाजपा में जिलाध्यक्षों को लेकर खींचतान चल रही है। पार्टी के 35 संगठन जिले के अध्यक्ष के लिए तीन-तीन नामों का पैनल तैयार किया गया है। रायपुर सहित कई जिलों में अध्यक्ष के मसले पर स्थानीय नेता एकमत नहीं हो पा रहे हैं।
सुनते हैं कि रायपुर शहर, ग्रामीण और बलौदाबाजार के अध्यक्ष के नामों पर चर्चा के लिए क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल, सांसद बृजमोहन अग्रवाल के घर भी गए थे। पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने अपने भतीजे ओंकार बैस का नाम शहर जिलाध्यक्ष पद के लिए आगे बढ़ाया है।
ओंकार चार बार शहर जिला भाजपा के महामंत्री रह चुके हैं। बृजमोहन ने सूर्यकांत राठौर का नाम सुझाया है। ऐसे में किसी एक नाम पर सहमति बनाने की कोशिश चल रही है।
दुर्ग में तो पूर्व सांसद सरोज पाण्डेय, और सांसद विजय बघेल खेमा आमने-सामने है। इससे परे बलरामपुर में तो जिस नाम पर सहमति बनी है, उसके लिए दिग्गज नेता रामविचार नेताम सहमत नहीं हो रहे हैं। एक-दो दिनों में सूची जारी होगी, इससे साफ होगा कि किस नेता की राय को कितना महत्व दिया गया है।
बोर्ड परीक्षा-चुनावी परीक्षा
नगरीय निकायों और त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों की तारीख घोषित करने में हो रही देरी का कारण प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों ही नजर आ रहा है। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, 28 दिसंबर से पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण प्रक्रिया शुरू होकर 29 दिसंबर तक राज्य निर्वाचन आयोग को सूची सौंपनी है। इस सूची में ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत और जिला पंचायतों का आरक्षण शामिल है। इसके विपरीत, नगरीय निकायों में-जिसका कार्यकाल पंचायतों से पहले खत्म हो रहा है, आरक्षण की प्रक्रिया जनवरी के दूसरे सप्ताह तक पूरी होने की संभावना है। पहले यह कार्य 27 दिसंबर तक पूरा करने की योजना थी। सरकार ने आचार संहिता को अधिक लंबा न खींचने के लिए दोनों चुनाव एक साथ या आसपास कराने का निर्णय लिया था। हालांकि, आरक्षण प्रक्रिया में देरी के चलते अब आचार संहिता की घोषणा जनवरी के दूसरे सप्ताह के बाद ही होने की संभावना है। मतगणना और परिणाम मार्च के पहले सप्ताह तक खिंच सकते हैं।
इसी बीच, राजनीतिक घटनाक्रम में भी तेजी आई है। पिछले कुछ दिनों से मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा जोरों पर रही, जिसे भाजपा प्रभारी नितिन नबीन के छत्तीसगढ़ दौरे ने और बल दिया। हालांकि, राष्ट्रीय शोक की घोषणा के बाद यह चर्चा ठंडी पड़ गई। भाजपा के संगठन चुनावों में भी देरी हुई है। जिला अध्यक्षों की घोषणा अगले एक सप्ताह में होने की संभावना है।
कांग्रेस ने चुनाव घोषणा में देरी को मुद्दा बनाया है, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर सरकार और संगठन के स्तर पर भाजपा रोजाना सक्रिय दिखाई दे रही है। हाल ही में नगरीय निकायों के सीएमओ के खाली पद भरे गए हैं और कई वर्षों से जमे अधिकारियों का तबादला किया गया है।
दोनों चुनाव एक साथ कराने के निर्णय से बड़ी संख्या में संसाधन और मतदान कर्मियों की आवश्यकता होगी, जिसमें शिक्षा विभाग का सहयोग भी महत्वपूर्ण है। वर्तमान में शिक्षा विभाग वार्षिक और बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी में व्यस्त है। नगरीय प्रशासन मंत्री, उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने दावा किया है कि बोर्ड परीक्षाओं से पहले चुनाव कराए जाएंगे, लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए चुनाव और परीक्षाओं की तारीखों में टकराव की आशंका बनी हुई है।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि नगरीय निकाय और पंचायतों के कार्यकाल का विस्तार नहीं किया जाएगा। यदि बोर्ड परीक्षाओं में बाधा उत्पन्न होती है तो प्रशासक नियुक्त करना सरकार के पास एक विकल्प तो है ही। फिलहाल, सरकार ऐसी नौबत लाने से बचने की कोशिश में दिख रही है-क्योंकि ऐसा करने से उसे पर विपक्ष के हमलों का सामना करना पड़ेगा। स्थानीय चुनाव और बोर्ड परीक्षाओं के बीच संतुलन इस समय एक बड़ा सवाल है।
श्वानझुंड-अग्निकुंड
ठिठुरती सर्दी में मासूम जीवों को भी गर्माहट की तलाश है। आग के कुंड के पास जुटे इन कुत्तों की मासूमियत देखने लायक है। सोशल मीडिया पर वायरल एक तस्वीर।
मनमोहन और छत्तीसगढ़
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की कई यादें छत्तीसगढ़ से जुड़ी है। डॉ. सिंह अपने पहले कार्यकाल में रायपुर आए थे, और उन्होंने कवर्धा जिले के भोरमदेव में तालाबों-पुराने बांधों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय सरोवर-धरोहर योजना का भी शुभारंभ किया था। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के प्रवास के दौरान कांग्रेस नेताओं के बीच काफी खींचतान हुई थी। रंग मंदिर के कार्यक्रम में तो जमकर नारेबाजी भी हुई थी, लेकिन वो शांत भाव से सारा नजारा देखते रहे।
डॉ. सिंह प्रधानमंत्री रहते वर्ष-2005-06 में रायपुर आगमन हुआ था। भोरमदेव में उनका सरकारी कार्यक्रम था। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को लेकर विशेषकर कांग्रेस कार्यकर्ता काफी उत्साहित थे। मगर उनके आते ही एयरपोर्ट में तमाशा शुरू हो गया। उस समय प्रदेश के इकलौते लोकसभा सांसद अजीत जोगी इस बात से नाराज थे कि भोरमदेव के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के साथ हेलीकॉप्टर से जाने वालों में उनका नाम नहीं है। इस पर उन्होंने एयरपोर्ट पर ही अपना सारा गुस्सा पार्टी के सीनियर नेता मोतीलाल वोरा पर निकाला। वोरा सफाई देते दिखे, लेकिन जोगी इतने जोर-जोर से बोल रहे थे कि आवाज दूर तक सुनाई दे रही थी। वोराजी हेलीकॉप्टर से भोरमदेव के लिए निकल गए।
जोगी इस कार्यक्रम में शिरकत नहीं कर सके। इसके बाद रंग मंदिर में कांग्रेस के कार्यकर्ता सम्मेलन में उनके समर्थकों ने प्रधानमंत्री के सामने ही जोगी जिंदाबाद के नारे लगाए। मंच पर मौजूद मोहसिना किदवई, और कई नेता जोगी समर्थकों को शांत रहने की अपील करते नजर आए। इस दौरान प्रधानमंत्री डॉ. सिंह हल्की मुस्कान बिखेरते कांग्रेस कार्यकर्ताओं का तमाशा देखते रहे। बाद में उन्होंने कार्यकर्ताओं को संबोधित भी किया। कुल मिलाकर जोगी समर्थकों के हंगामे की वजह से डॉ. मनमोहन सिंह का पहला छत्तीसगढ़ प्रवास सुर्खियों में रहा।
कांग्रेस की शिकायत की राजनीति
कांग्रेस के दर्जनभर जिलाध्यक्षों को बदलने पर विचार चल रहा है। दो दिन दिल्ली में प्रदेश के प्रमुख नेताओं की बैठक भी हुई है। यह खबर सामने आ रही है कि रायपुर शहर जिलाध्यक्ष बदलने को लेकर काफी खींचतान भी हुई है।
शहर जिलाध्यक्ष गिरीश दुबे को तीन साल से अधिक हो चुके हैं। लिहाजा, उनकी जगह लेने के लिए पार्टी के एक युवा नेता काफी मेहनत कर रहे हैं। वो हफ्तेभर से दिल्ली में डटे हैं। चर्चा है कि युवा नेता को प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज का भी समर्थन है। युवा नेता अभी संगठन में महासचिव भी है। उनके दिल्ली में सक्रियता की खबर आई, तो उनके विरोधी एक प्रमुख पदाधिकारी भी वहां पहुंच गए।
उन्होंने युवा नेता के खिलाफ शिकायतों का पुलिंदा पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों को दिया है। युवा नेता पर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम करने का आरोप भी है। अब पार्टी युवा नेता के खिलाफ शिकायतों को कितनी गंभीरता से लेती है, यह तो जिलाध्यक्षों की सूची जारी होने के बाद ही पता चलेगा।
किस बात की जल्दी है
विदा होते दिसंबर और आते जनवरी में सरकारी विभागों में अधिकारी कर्मचारियों की पदोन्नति की होड़ ही नहीं आनन फानन भी रहती है।ऐसे ही जानवरों के एक विभाग में न जाने किस बात की जल्दबाजी है। मैडम ने कह दिया है कि उप संचालकों के 21 पदों पर अगले तीन दिनों में पदोन्नति दे देनी है। और हालत यह है कि दावेदारों के दस्तावेज अधूरे हैं। जो दावेदार नहीं है वो बताते हैं कि किसी का सीआर नहीं है तो किसी ने अचल संपत्ति विवरण नहीं दिया है तो कुछ की पुरानी जांच पूरी नहीं हुई है। ऐसा नहीं है कि यह कमी एक वर्ष की है,बल्कि कई वर्षों से अधूरी है। सुनने में आया है करीब 17-18 साल से। इस वजह से प्रमोशन की नोट शीट पहुंचते ही संचालक तक ने मार्गदर्शन मांगा है कि ऐसे में कैसे कर सकते हैं ।
फिर पता नहीं क्यों सचिव मैडम जल्दबाजी में है। वैसे मैडम नियम कानून सेक्रेटेरिएट बिजनेस रूल की पक्की हैं। इसके लिए उनकी कसमें खाई जाती हैं। इस जल्दबाजी के पीछे मैडम का मैलाफाइड इंटरेस्ट तो हो ही नहीं सकता। सोच भी नहीं सकते। बहुत खोजबीन के बाद पता चला कि कोई दावेदार मैडम के मातहत काम करता है। बस उसी ने ही सभी बैचमेट की ओर से यह जिम्मेदारी ली है। और लोग उसका इंटरेस्ट रेट तलाश रहे हैं। बस मैडम ने भी लंबित अवधि पर आश्चर्य जताते हुए 4 दिन का टाइम लिमिट तय कर दिया है। मैडम ने यहां तक कह दिया है कि वह विभाग के मुखिया से अनुमोदन ले लेंगी। अब प्रमोशन आर्डर का इंतजार है।
बाघों की देखभाल कर पाएगा छत्तीसगढ़?
मध्यप्रदेश ने छत्तीसगढ़ को बाघों का उपहार देने की घोषणा की है। छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या में वृद्धि अब तक निराशाजनक रही है। अभी कान्हा नेशनल पार्क से विचरण करने आए 6 बाघ पहुंचे हैं। इन्हें सरकार से किसी तरह की मंजूरी नहीं लेनी पड़ी, कॉरिडोर अनुकूल मिला और चले आए। प्रदेश के वन अधिकारी इस समय उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। यह स्पष्ट किया गया है कि उन्हें मध्यप्रदेश के वन क्षेत्र में खदेड़ा नहीं जाएगा, पर उनकी स्वतंत्र आवाजाही में कोई दिक्कत न हो इसका ध्यान दिया जाएगा। यह एक शानदार मौका है जब छत्तीसगढ़ में मध्यप्रदेश से आए बाघ विचरण कर रहे हैं और वहां की सरकार और बाघों का उपहार देने जा रही है। थोड़ी गंभीरता और सावधानी छत्तीसगढ़ को भी बाघों का स्टेट बना सकता है। बाघों को छत्तीसगढ़ में पनपने का मौका नहीं मिला, इसके कई कारण बताये जाते हैं। सबसे बड़ी बात तो यही है कि यहां पर वन विभाग के लिए अधिकृत पशु विशेषज्ञों की भारी कमी है। पशु चिकित्सकों से ही अधिकांश अभयारण्यों से रेस्क्यू किए जाने वाले जानवरों का इलाज होता है। आए दिन करंट लगाने जंगलों में हाथियों और दूसरे वन्यप्राणियों की मौत बताती है कि गश्ती दलों की बड़ी कमी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में बाघों के प्राकृतिक आवास की स्थिति में और सुधार की आवश्यकता है। वन क्षेत्रों में जल स्रोत बढ़ाना, शिकार के लिए पर्याप्त वन्यजीव होना और मानव हस्तक्षेप को न्यूनतम करना जरूरी है। बाघों को शिकारियों और अवैध शिकार से बचाने के लिए आधुनिक सुरक्षा उपाय अपनाने होंगे। कैमरा ट्रैप, ड्रोन निगरानी और वन रक्षकों की सतर्क उपस्थिति सुनिश्चित करनी होगी। बाघ संरक्षण को लेकर स्थानीय समुदायों को जागरूक करना बेहद महत्वपूर्ण है। ग्रामीणों और आदिवासी समुदायों को इस प्रक्रिया में भागीदार बनाना होगा। बाघों की संख्या बढऩे का मतलब बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र को सुदृढ़ करने का प्रयास होता है। इसके लिए घास के मैदानों का रखरखाव, खाद्य शृंखला का संतुलन और वन्यजीवों की विविधता पर ध्यान भी देना होगा। मध्यप्रदेश ने बाघ संरक्षण में असाधारण सफलता हासिल की है। उनके विशेषज्ञों और संरक्षण मॉडलों का उपयोग छत्तीसगढ़ में भी किया जा सकता है।
अपनों ने ही घेरा
सरकार के एक मंत्री अपने ही दल के लोगों के आरोपों से खफा हैं। दल के नेता ही मंत्री जी पर सोशल मीडिया के जरिए भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं। न सिर्फ सीनियर नेता बल्कि पार्टी के विधायक भी विधानसभा में उन्हें घेरने से पीछे नहीं रहे हैं।
मंत्री जी को अपने ही दल के लोगों के दबाव के चलते भ्रष्टाचार की शिकायतों पर एक्शन लेना पड़ा, और जांच की घोषणा भी की। बावजूद इसके पार्टी के लोग अलग-अलग स्तरों पर मंत्री जी के विभागों में भ्रष्टाचार पर उंगलियां उठा रहे हैं।
इन सबसे तंग आकर मंत्री जी ने अपने ही दल के कुछ लोगों को यह कहते सुने गए, कि घर से चावल मंगाकर खा रहा हूं, इसके बाद भी अपने लोग आरोप लगा रहे हैं। यह ठीक नहीं है। ये अलग बात है कि संगठन के प्रमुख पदाधिकारी मंत्री जी की कार्यशैली से संतुष्ट हैं। फिर भी ‘अपने’ आलोचना करेंगे, तो दिल दुखता ही है।
पुलिस ही नहीं, वन भर्ती में भी गडबडिय़ां
राजनांदगांव जिले में पुलिस आरक्षक भर्ती में गड़बड़ी उजागर होने पर भर्ती रोक दिए जाने के बाद वन विभाग में हुई वनरक्षकों की भर्ती भी संदेहों के घेरे में आ गई है। इस भर्ती को लेकर इस माह के शुरू में राजधानी समेत सभी पांच सीएफ रेंज में हुए फिजिकल टेस्ट के दौरान कई तरह की गड़बडिय़ां सामने आईं थी। इन्हें सबसे पहले छत्तीसगढ़ ने सिलसिले वार प्रकाशित किया था। कुछ रेंज में तो वन संरक्षक और डीएफओ ने अखबारनवीसों का परीक्षा स्थल पर प्रवेश पर ही रोक लगा दी थी। इसने शंका और बढ़ा दी। रायगढ़ में तो फिजिकल टेस्ट मशीनें खराब होने पर अभ्यर्थियों को दोबारा 9 दिसंबर को बुलाया गया। तो सैकड़ों अभ्यर्थी गृह जिले के टेस्ट में असफल होने के बाद दूसरे रेंज यहां तक की रायपुर में भी टेस्ट दिया।
वन रक्षक भर्ती के लिए वन विभाग ने हैदराबाद की टाइमिंग टेक्नोलॉजी कंपनी से अनुबंध किया था। इसी फर्म ने पहले वन और फिर पुलिस भर्ती के लिए डिजिटल उपकरण मुहैया कराए थे। हालांकि वन विभाग में भर्ती प्रक्रिया लगभग पूरी हो गई है, मगर जिस तरह की गड़बड़ी आरक्षक भर्ती में हुई है उसे देखते हुए वन विभाग में भी डाटा की जांच शुरू किए जाने की जानकारी सामने आ रही है। 1484 वनरक्षकों की भर्ती प्रक्रिया हुई और इसमें 4,32,841 उम्मीदवारों ने हिस्सा लिया। इनमें सर्वाधिक उम्मीदवार बिलासपुर सर्किल में हुई भर्ती प्रक्रिया में शामिल हुए। इन उपकरणों में तकनीकी खराबी के चलते अभ्यर्थियों को जूझना पड़ा था। कोरबा जिले के कटघोरा में लॉन्ग जंप के इवेंट में पहले अटेम्प्ट में ही सफल होने के बाद भी कई अभ्यर्थियों को दोबारा कूदने को कहा गया। महिला अभ्यर्थी जमुना सारथी ने बताया कि इस गड़बड़ी के कारण वह 9वें अटेम्प्ट में अपना टेस्ट कंप्लीट कर पाई। मेरा स्टैमिना पूरी तरह से डाउन हो गया था। थक चुकी थी, इसलिए मेरे अंक कम हो गए।
एक अन्य अभ्यर्थी गोमती ने बताया कि जब मैने गोला फेंका तो इसकी दूरी के आधार पर मशीन से 20 अंक मिले। बाद में जब मुझे रिजल्ट दिया गया, तब पता चला कि 15 ही अंक मिले हैं। मुझे बताया गया कि तकनीकी खामी की वजह से ऐसा हो रहा है। दोबारा फेंकने को भी कहा गया। इससे प्रदर्शन पर असर पड़ा है। आपत्ति करने पर मौजूद अधिकारियों ने कहा कि जब रिजल्ट निकलेगा, तब आपत्ति लगा देना। इससे पहले एग्जाम सिस्टम ही बार बार बदलने की शिकायत अभ्यर्थी करते रहे हैं।
पहले कहा गया कि फिजिकल टेस्ट के बाद व्यापमं लिखित परीक्षा लेगा। फिर कहा गया कि परीक्षा नहीं होगी। बार बार सिस्टम बदल कर विभाग के अफसरों ने पूरी भर्ती को विवादास्पद बना दिया। अब इन सभी तथ्यों को लेकर कुछ अभ्यर्थी कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं।
अभी सिर्फ समर्थन मूल्य...
प्रदेशभर में इस समय धान खरीदी उत्सव जोर-शोर से चल रहा है। किसानों को उनके बेचे गए धान का भुगतान भी किया जा रहा है। सरकार ने सभी कलेक्टरों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि किसानों के खातों में जल्द से जल्द राशि पहुंचाने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। सहकारी बैंकों को भी इस दिशा में मुस्तैद रहने के लिए कहा गया है।
मगर, भुगतान प्रक्रिया में एक पेच अभी भी बरकरार है। किसानों को फिलहाल केवल समर्थन मूल्य, यानी 2300 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान हो रहा है। सरकार का वादा किसानों को कुल 3100 रुपये प्रति क्विंटल का लाभ एक किश्त में देने का था। सहकारी बैंकों के अनुसार शेष राशि मार्च के अंत तक, यानी इसी वित्तीय सत्र में, वितरित की जाएगी। अब तक की जानकारी के अनुसार, लगभग 13 लाख से अधिक किसानों को 14 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है। लगभग 65 लाख टन धान की खरीदी हो चुकी है, जबकि 160 लाख टन खरीदी का अनुमान है।
कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में धान बोनस का भुगतान चार किश्तों में किया जाता था। इसके चलते साल में चार बार समारोह आयोजित होते थे, जिससे सरकार को अपनी उपलब्धि प्रदर्शित करने का अवसर मिलता था। किसानों से चार बार वाहवाही मिलती थी। अब देखना यह है कि भाजपा सरकार बोनस का भुगतान खामोशी से निपटाएगी या इसके लिए प्रदेशभर में कांग्रेस सरकार की तरह ही समारोहों का आयोजन करेगी।
सांता क्लॉज की एआई तस्वीर
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक के बढ़ते प्रसार ने इंटरनेट पर अनगिनत कल्पनात्मक तस्वीरों को जन्म दिया है। अब नरेंद्र मोदी, डोनाल्ड ट्रंप और दुनिया की अन्य प्रसिद्ध हस्तियों की ऐसी तस्वीरें और वीडियो तैयार किए जा रहे हैं, जिनमें असली और नकली छवि का फर्क करना मुश्किल हो गया है।
हाल ही में क्रिसमस के अवसर पर सोशल मीडिया पर एक वायरल तस्वीर ने इसी प्रवृत्ति को दिखाया। एक यूजर ने दावा किया कि एक बच्चे ने मूंगफली से सांता क्लॉज बनाया है। इस पर कई लोगों ने तुरंत प्रतिक्रिया दी कि तस्वीर असली नहीं, बल्कि यह एआई की मदद से बनाई गई है।
शुक्र है, असली और एआई-निर्मित छवियों के बीच कुछ खास अंतर होते हैं, जिन्हें पहचानकर आप नकली तस्वीरों का पता लगा सकते हैं। एआई-निर्मित छवियों में अक्सर फिंगर, बालों की बनावट, या कपड़ों के पैटर्न जैसे छोटे विवरण गड़बड़ हो सकते हैं। वास्तविक तस्वीरों में प्रकाश और छाया का संतुलन प्राकृतिक होता है, जबकि एआई-निर्मित तस्वीरों में यह असामान्य लग सकता है। एआई छवियों में पृष्ठभूमि अक्सर असंगत या अधूरी दिखाई दे सकती है। रिवर्स इमेज सर्च और डीपफेक डिटेक्टर जैसे टूल्स वास्तविकता जांचने के लिए इंटरनेट पर मौजूद हैं। एआई की क्षमताएं अद्भुत हैं, लेकिन उनकी सीमाओं को समझना और वास्तविकता से कल्पना को अलग करना इंटरनेट यूजर्स के लिए एक जरूरी कौशल बन गया है।
राज्यपाल की सख्ती से सन्नाटा
राज्यपाल रामेन डेका उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर गंभीर हैं। पिछले दिनों निजी विश्वविद्यालयों की बैठक में उन्होंने तेवर भी दिखाए, और उन्होंने गड़बड़ी पर सख्त हिदायत दी है।
हुआ यूं कि बैठक में उच्च शिक्षा के साथ-साथ निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग के प्रमुख भी थे। बैठक में बारी-बारी से सभी निजी विश्वविद्यालयों को प्रजेन्टेशन देना था। मगर राज्यपाल ने एजेंडा ही बदल दिया, और आयोग से निजी विश्वविद्यालयों की गतिविधियों के बारे में जानकारी चाही।
आयोग की तरफ से हरेक विश्वविद्यालय की खामियां बताई गई। उच्च शिक्षा विभाग की भी कुछ इसी तरह की राय थी। फिर क्या था, राज्यपाल ने सभी विश्वविद्यालय प्रतिनिधियों को जमकर फटकार लगाई, और समय सीमा के भीतर खामियों को दूर करने की नसीहत दी। राज्यपाल के तेवर से निजी विश्वविद्यालय प्रबंधन हड़बड़ाए हुए हैं, सन्नाटा छा गया है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
मंडल अध्यक्ष चुनाव नहीं लड़ सकेंगे
भाजपा में मंडल अध्यक्ष चुनावों की खींचतान पूरे प्रदेश में चल रही है । पार्टी कार्यालयों में तालेबंदी, कुर्सियां तोडऩे और विधायकों का विरोध चरम पर है। विधायक अपने खास समर्थकों को बिठाना चाहते हैं और वे संगठन से इन नामों पर सहमति ले चुके हैं। दूसरी ओर कार्यकर्ता अपने बीच से अध्यक्ष चाहते हैं । इसी टसल में तनातनी उंगली उठाने तक बढ़ चली है? तो कई वर्तमान अध्यक्ष संगठन नेतृत्व के कहने के बाद भी दोबारा नहीं बनना चाहते। उन्हें अब चुनाव जीतकर कुछ कमाना चाहते है, कब तक दरियां बिछाते रहेंगे। उन्हें खबर लग गई है कि पार्टी ने इस बार पार्षद, जनपद अध्यक्ष या अन्य पदों के लिए टिकट वितरण क्राइटीरिया तय कर लिया है। इसके मुताबिक संगठन के पदाधिकारियों, मंडल अध्यक्ष तक को पार्षद चुनाव नहीं लड़ाएगी। पार्टी इन्हें अब तक देती रही है । इसके बाद तो कई वर्तमान मंडल अध्यक्षों के कदम ठिठक गए हैं। अब यह देखना होगा कि कितने नए अध्यक्ष, क्राइटीरिया से इतर जाकर टिकट हासिल करने में सफल हो पाते हैं।
विधायकों की अपनी रणनीति
निकाय और पंचायत चुनाव को लेकर भाजपा के भीतर एक अलग ही धार बह रही है । संगठन एक एक वार्ड-ग्राम पंचायत जीतने बिसात बिछा रहा है। तो बहुसंख्य विधायकों की अलग ही रणनीति है। वे अपने अपने विधानसभा क्षेत्र में आने वाले वार्डों में एक दो अपने और बाकी वार्डों में विपक्षी पार्षद चाहते हैं। ऐसा ही ग्रामीण क्षेत्र के विधायकों की भी है । वे जनपदों में विपक्षी अध्यक्ष चाहते हैं । यह सुखद है कि उन्हें महापौर तो अपनी ही पार्टी का ही चाहिए। सीधे चुनाव होने से महापौर की जीत में उन्हे कोई शंका भी नहीं है। महापौर अपने, पर पार्षद विपक्षी अधिक क्यों? इस पर चर्चा की तो खुलासा हुआ। दरअसल सभी विधायक वर्ष 28 के लिए अपनी राह आसान कर लेना चाहते हैं । उनका कहना है कि विपक्षी पार्षद अधिक रहेंगे तो ही उन पर ठीकरा फोडक़र वोट मांग सकेंगे कि कांग्रेस के पार्षद ने काम नहीं किया। भाजपा का चुनते तो पार्षद विधायक, महापौर और सरकार भाजपा के होने से वार्ड में विकास होता। इसके लिए विधायक, पार्षद टिकट वितरण में भी ज्यादा रूचि न ले तो कोई आश्चर्य नहीं है, संगठन जिसे दे उसका भला,जिसे न दे तो अपना भला। अब देखना यह है कि कितने विधायकों के क्षेत्र में कितने भाजपा के पार्षद चुनकर आते हैं। वैसे वर्तमान की बात करें तो राजधानी शहर के दक्षिण में 20 में से 8, पश्चिम के 20 में से 10, उत्तर में 6, ग्रामीण में 5 पार्षद भाजपा हैं । अगले नतीजे आने पर विधायकों की इस रणनीति का खुलासा हो जाएगा।
उद्घाटन का इंतजार..
कोई निर्माण कार्य सरकारी हो तो उसका उद्घाटन किसी मंत्री नेता से कराये बिना जनता को समर्पित नहीं किया जा सकता। चित्रकोट जल प्रपात में स्थापित सोलर लाइट का यही हाल है। निर्माण करीब दो साल पहले पूरा हो चुका है। चार करोड़ की लागत से बने इस विशाल संरचना के जरिये शाम के समय लेजर शो दिखाने की योजना है। पर अब तक इसका उद्घाटन नहीं हुआ है। इसके चलते पर्यटकों को इसका फायदा नहीं मिल रहा है। क्रेडा का यह निर्माण कार्य है, उद्घाटन के लिए उसे अतिथि क्यों नहीं मिल रहे यह भी एक सवाल है। बस्तर में ही कई नेता हैं, मंत्री हैं, किसी से भी कराया जा सकता है।
क्रिसमस का बाजार फीका
प्रदेश का ईसाई समुदाय बड़े दिन को बड़े उत्साह के साथ मना रहा है। क्रिसमस की असली धूम और सांस्कृतिक उल्लास का अनुभव करना हो तो कुनकुरी जरूर जाना चाहिए। यह स्थान न केवल एशिया के दूसरे सबसे बड़े चर्च 'महागिरजाघर' के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि जशपुर जिले में ईसाई धर्म की सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र भी है। हर साल, क्रिसमस से 10 दिन पहले यहां एक बड़ा मेला लगता है, जिसमें जशपुर, रायगढ़, रांची और अन्य जगहों से व्यापारी अपनी दुकानें सजाते हैं।
इस साल व्यापारियों को बाजार से निराशा हाथ लगी। पहले जहां लाखों की बिक्री आम बात थी, इस बार स्थिति बेहद खराब रही। व्यापारियों के अनुसार, खरीदारी इतनी कम हुई कि 23 और 24 दिसंबर जैसे व्यस्त दिनों में भी दुकानों पर भीड़ नहीं दिखी।
दूसरी तरफ, कुनकुरी और आसपास के क्षेत्रों में बीते डेढ़ महीने से ईसाई समुदाय के भीतर एक अलग तरह का असंतोष है। भाजपा विधायक रायमुनि भगत के एक कथित विवादास्पद बयान ने समुदाय की भावनाओं को आहत किया है। इस बयान के विरोध में ईसाई समुदाय ने विशाल मानव श्रृंखला और रैली का आयोजन किया, जिसमें लाखों लोग शामिल हुए। उनकी मांग है कि विधायक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए।
कुछ धर्मावलंबियों ने इस बार क्रिसमस पर नया सामान खरीदने से इनकार कर दिया। उन्होंने सादगी से त्योहार मनाने का निर्णय लिया। नए कपड़ों और अन्य सजावटी सामानों की खरीदारी भी नहीं की। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि इस फैसले का सीधा संबंध विधायक के बयान से है, लेकिन दोनों घटनाएं आपस में जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं।
अब सब चुनाव एक सरीखे
चिकित्सकों की एक प्रतिष्ठित संस्था के चुनाव को लेकर पिछले दिनों आम लोगों में भी काफी उत्सुकता देखी गई। वजह यह है कि संस्था के पदाधिकारी नामचीन चिकित्सक चुने जाते रहे हैं, और उनकी राय को सरकार भी अहमियत देती रही है। मगर इस बार चुनाव में ऐसा कुछ हुआ, जिसकी काफी चर्चा हो रही है।
संस्था में एक ऐसे चिकित्सक चुन लिए गए, जो कि कभी एक केस में तीन माह जेल की सलाखों के पीछे रहे हैं। उनके आदत-व्यवहार को लेकर भी शिकायतें होती रही हैं। खास बात यह है कि चुनाव में नवनिर्वाचित मुखिया ने जिसको हराया है, उसकी साख बहुत अच्छी है। और जब चुनाव नतीजे आए तो इस हार को लेकर जानकार लोग हैरान रह गए। एक बात तो साफ है कि अब प्रतिष्ठित संस्थाओं के चुनाव भी आम चुनावों की तरह हो गए हैं जहां दागियों को भी महत्व मिल जाता है।
विधायकों की राय
भाजपा के संगठन चुनाव में इस बार काफी कुछ बदलाव देखने को मिला है। पार्टी ने उन विधायकों की राय को नजरअंदाज किया है जिनके खिलाफ शिकायतें होती रही हैं। मसलन, सरगुजा जिले की तीन विधानसभा क्षेत्रों के मंडलों में दो विधायकों की राय को तवज्जो नहीं मिली।
अंबिकापुर के छह मंडल में स्थानीय विधायक एक ही मंडल में अपने समर्थक को अध्यक्ष बनाने में कामयाब हो पाए। बाकी मंडलों में स्थानीय अन्य प्रमुख नेताओं की राय को महत्व दिया गया। यही हाल, सीतापुर का भी रहा। वहां भी स्थानीय विधायक एक ही मंडल में अपनी पसंद का अध्यक्ष बनवा पाए। इससे परे लुण्ड्रा में स्थानीय विधायक प्रबोध मिंज की राय को भरपूर महत्व दिया गया। लुण्ड्रा इलाके के सभी मंडलों में प्रबोध मिंज के समर्थकों का दबदबा रहा। बाकी जगहों पर भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला है। संकेत साफ है कि निकाय और पंचायत चुनाव के प्रत्याशी चयन में पार्टी उन्हीं विधायकों की राय को महत्व देगी जिनकी साख अच्छी है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
घर वापिसी होगी या नहीं?
कांग्रेस में निलंबित-निष्कासित नेताओं की वापिसी पर विचार चल रहा है। इन सबके बीच रामानुजगंज के पूर्व विधायक बृहस्पति सिंह की कांग्रेस में वापिसी होगी या नहीं, इसको लेकर काफी उत्सुकता है। बृहस्पति सिंह ने सार्वजनिक तौर पर पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस.सिंहदेव से माफी मांग ली है।
बृहस्पति सिंह ने सिंहदेव और तत्कालीन कांग्रेस प्रभारी सैलजा के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। पार्टी के कई लोग मानते हैं कि माफी मांगने के बाद बृहस्पति सिंह की पार्टी में वापिसी हो सकती है, लेकिन जो लोग सिंहदेव को करीब से जानते हैं वो मानते हैं कि सिंहदेव किसी भी दशा में बृहस्पति सिंह की पार्टी में वापिसी के लिए सहमत नहींं होंगे। अब पार्टी उनकी राय को नजरअंदाज कर बृहस्पति सिंह को पार्टी में वापस लेती है तो बात अलग है। ऐसे में सिंहदेव की प्रतिक्रिया क्या होगी, यह देखना है।
कुल मिलाकर आने वाले दिनों में कांग्रेस में काफी उठापटक देखने को मिल सकती है।
बुनियादी शिक्षा का हाल सुधरेगा?
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने हाल ही में नो डिटेंशन पॉलिसी को समाप्त करने का निर्णय लिया है। छत्तीसगढ़ के संबंध में यह बड़ा महत्वपूर्ण फैसला है, जहां प्राथमिक शिक्षा का स्तर ‘असर’ के मुताबिक बहुत नीचे- 27वें स्थान पर है। प्राय: देखा गया है कि प्रशासनिक अधिकारी स्कूलों में दौरा करते हैं। क्लास लगाते हैं, बच्चों- शिक्षकों को फटकार लगाकर लौट जाते हैं। अब इस नीति के तहत अब कक्षा 5 और 8 की वार्षिक परीक्षा में विफल होने वाले छात्रों को सीधे उत्तीर्ण नहीं किया जाएगा, दोबारा परीक्षा देने का अवसर मिलेगा। यदि वे दूसरी बार भी असफल होते हैं, तो उन्हें अगली कक्षा में प्रमोट नहीं किया जाएगा। केंद्र संचालित शिक्षण संस्थान नवोदय, केंद्रीय विद्यालय में यह लागू कर दिया गया है, पर शिक्षा राज्य का विषय है, लाखों विद्यार्थियों वाले राज्य के स्कूलों पर फैसला राज्य सरकार को लेना होगा।
पुरानी नीति, जिसमें बच्चों को बिना परीक्षा उत्तीर्ण किए प्रमोट किया जाता था, शिक्षा में समानता लाने का प्रयास तो था, लेकिन इसके गंभीर और चिंताजनक परिणाम सामने आए। ‘असर’ को बच्चों में बुनियादी कौशल, जैसे गिनती, पहाड़े, पढऩे और लिखने की क्षमताओं की कमी देखने को मिली। यह पाया गया कि शिक्षक खुद भी इन बच्चों को पढ़ाने में दिलचस्पी नहीं लेते क्योंकि उन्हें पता है कि बच्चे तो उत्तीर्ण ही किए जाएंगे। शिक्षकों की यह मांग भी है कि उन्हें गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त किया जाए, तब बच्चों पर ध्यान दे पाएंगे।
बुनियादी शिक्षा बच्चों के मानसिक, शैक्षणिक और सामाजिक विकास का आधार है। यह उन्हें केवल अक्षर और अंक सिखाने तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें तर्कशक्ति, संवाद और समस्या-समाधान जैसे महत्वपूर्ण जीवन कौशल भी प्रदान करती है। गणित, भाषा और विज्ञान का प्रारंभिक ज्ञान ही बच्चों को आगे की शिक्षा और चुनौतियों के लिए तैयार करता है। जब बच्चे इन विषयों में दक्ष होते हैं, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता है, जो उनके भविष्य की नींव मजबूत करता है। अब देखना यह है कि केंद्र सरकार की पॉलिसी का अनुसरण करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार कोई फैसला लेती है या नहीं।
ब्रांडेड चिरपोटी पताल..
छत्तीसगढ़ की आम बाडिय़ों में वैसे हाइब्रिड टमाटर व्यवसाय के लिए वर्षों से उगाये जा रहे हैं। यह ज्यादा दिन टिकता है और इसकी ट्रांसपोर्टिंग भी हो जाती है। पर चिरपोटी पताल की महिमा अलग ही है। यह टमाटर आकार में छोटे होते हैं, मगर ज्यादा टिकाऊ नहीं होते। लोकल किसान शहरों में इसे बेचने आते हैं, पर ज्यादातर खुद के खाने के लिए लगाते हैं। मिर्च, लहसुन, अदरक के साथ इसकी जो चटनी बनती है, उसका कोई मुकाबला नहीं। अब यह चिरपोटी पताल महानगरों में चेरी टोमेटो के नाम से पैकिंग के साथ बिक रहा है। पता नहीं इसे कई दिनों तक सहेजकर रखने का उपाय क्या है, पर मुंबई में यह उपलब्ध है। 13 पीस के 50 रुपये।
महिला संसदीय सचिव?
चर्चा है कि भाजपा महिलाओं को हर स्तर पर उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए रणनीति बना रही है। निगम-मंडलों में तो पद दिए ही जा रहे हैं, और अब महिला विधायकों को संसदीय सचिव भी बनाया जाएगा। भाजपा के 54 विधायकों में से 8 महिला विधायक हैं। इनमें से एक लक्ष्मी राजवाड़े मंत्री बन चुकी हैं। लता उसेंडी, और गोमती साय को क्रमश: बस्तर और सरगुजा प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बनाया गया है। दोनों को ही कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है।
कहा जा रहा है कि बाकी पांच में से 4 महिला विधायकों को संसदीय सचिव बनाया जा सकता है। एक विधायक पूर्व केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह भी हैं, जो कि किसी निगम-मंडल में पद लेने की इच्छुक नहीं है। वो मंत्री पद ही चाहती हैं, जिसकी संभावना फिलहाल कम नजर आ रही है। चूंकि केन्द्रीय मंत्री के साथ-साथ रमन सरकार में मंत्री रह चुकी हैं, ऐसे में उन्हें संसदीय सचिव बनाया जाएगा या फिर वो खुद बनना चाहेंगी इसकी संभावना नहीं के बराबर है। सबकुछ ठीक रहा, तो निकाय चुनाव के बाद बाकी चारों महिला विधायकों को संसदीय सचिव बन सकती है।
फिलहाल की हसरत
बीते पांच आठ वर्ष में छत्तीसगढ़ की नौकरशाही की छवि को लेकर अफसर चिंतित हैं। यह चिंता वे लोग ही कर रहे हैं जो दाल में नमक बराबर हिस्सेदारी निभाते रहे हैं। छत्तीसगढ़ में कार्यरत अभा संवर्ग के तीनों सर्विसेस के पांच सौ अफसरों में कुछ ऐसे भी है जो स्वयं को गवर्नमेंट बिजनेस रूल से बांधकर डटे हुए हैं। इनकी संख्या उंगलियों में ही गिनी जा सकती है।
इसके एवज में उन्हें बार-बार तबादले लूप लाइन पोस्टिंग में स्वीकारना पड़ रहा है?। वहीं बदनाम लोगों में पुरूषों के साथ महिला अफसर भी बराबर का कदमताल कर रही हैं। एक-दो तो सीधे जेल में है और कुछ और पर भी कई छींटें हैं, बस बची हुई हैं। ऐसे कुछ अफसर एक कार्यक्रम में कुछ नेताओं के बीच थे। गपशप के दौर में उनकी मनोकामना सुन कर नई सरकार के नेता हतप्रभ से ठिठक गए। कहने लगे भाई साहब बस अब छवि सुधारनी है। बहुत सुन रहे हैं ये चोर वो चोर आदि-आदि। बस जहां हूं वहां काम करना हैं।
पूर्व के वर्षों में कलेक्टर, फेडरेशन, निगम में रहे इन साहबों की डंडी के बड़े चर्चे रहे हैं। और अब जिस विभाग में हैं, पिछले कुछ महीनों से काम भी कर रहे हैं रूल के मुताबिक। सच बात यह है कि साहब अभी जिस विभाग में हैं वहां गुंजाइश ही नहीं है। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी यही सोचकर साहब ने मनोकामना जता दी। और जब साहब को कोई नया विभाग मिलेगा तब देखना होगा मनोकामना का क्या हाल है।
चुनाव है या मनोनयन?
भाजपा का सदस्यता अभियान 30 नवंबर तक पूरा होना था, लेकिन निर्धारित 60 लाख सदस्यों का लक्ष्य हासिल न होने के कारण इसे आगे बढ़ा दिया गया। इसके बाद बूथ अध्यक्षों का चुनाव हुआ और 15 दिसंबर तक मंडल अध्यक्षों का चुनाव भी तय कार्यक्रम के अनुसार होना था। हालांकि, अब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है, जिसके चलते जिला अध्यक्षों के चुनाव भी आगे बढ़ गए हैं।
संगठन में अहम पद पाने की उम्मीद में कई दावेदारों ने सदस्यता अभियान में जोर-शोर से भाग लिया, लेकिन अधिकांश जिलों में चुनाव के बजाय मनोनयन की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। चुनाव के लिए बैठकों का आयोजन किया जा रहा है, लेकिन उनमें भी मनोनयन को प्राथमिकता दी जा रही है। प्रदेश में अब तक 80 प्रतिशत से अधिक मंडल अध्यक्षों का चयन हो चुका है, और इसे सर्वसम्मति का नाम दिया जा रहा है।
चुनाव अधिकारियों का कहना है कि चुनाव की नौबत ही नहीं आई क्योंकि सभी नाम सर्वसम्मति से तय हो गए। दरअसल, बताया यह जा रहा है कि आगामी नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों में कार्यकर्ताओं के बीच मनमुटाव और खींचतान से बचने के लिए यह रास्ता चुना गया। खुली प्रतिस्पर्धा से गुटबाजी और भितरघात की आशंका बढ़ सकती थी, जो पार्टी समर्थित प्रत्याशियों के लिए मुश्किलें खड़ी करती। अब सवाल यह है कि क्या जिला अध्यक्षों का चयन भी इसी तरह शांति से निपट जाएगा, या कहीं से विरोध के स्वर उठेंगे?
कबाड़ के धंधे में नवाचार
विनोद ओल्ड पेपर मार्ट-इस गाड़ी के बोर्ड पर लिखा यह नाम अपने आप में एक नई सोच और आत्मसम्मान की मिसाल है। रद्दी अखबार और पुराने कागज खरीदने वालों को अक्सर हेय दृष्टि से देखा जाता है, लेकिन यहां इसे एक ‘मार्ट’ की तरह पेश कर, इस व्यवसाय को सम्मान और व्यवस्थित रूप देने की कोशिश की गई है। जहां कई लोग इस काम को छोटा समझते हैं, वहीं यह व्यवसाय पर्यावरण संरक्षण और रिसाइक्लिंग में बड़ा योगदान देता है।
विनोद की झलकती सादगी संदेश देती है कि हर काम में सम्मान और नई सोच जोडऩे की गुंजाइश होती है। विनोद कहना चाहते हैं कि काम कोई भी हो, उसे गरिमा के साथ किया जा सकता है। भले ही इसके लिए हिंदी की जगह अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल क्यों न करना पड़े।
बिना विवाद आरक्षण
नगरीय निकायों के वार्डों का आरक्षण हो चुका है। अब महापौर, और अध्यक्षों के आरक्षण की तैयारी चल रही है। रायपुर नगर निगम के वार्डों के आरक्षण को लेकर सर्वाधिक उत्सुकता रही, क्योंकि विधानसभा टिकट से वंचित कई नेता वार्ड चुनाव लडऩे के इच्छुक रहे हैं। कुछ नेताओं को लॉटरी प्रक्रिया में गड़बड़ी का भी अंदेशा था। लिहाजा, वो इस पूरी प्रक्रिया पर नजर रखे हुए थे।
पिछले दिनों रायपुर नगर निगम के वार्डों का आरक्षण सबसे पहले हुआ। कलेक्टर डॉ. गौरव सिंह ने लॉटरी प्रक्रिया में किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया। जिस किसी ने भी शिकायत की, उसका निराकरण मौके पर ही कर दिया। एक घंटे में सभी 70 वार्डों का आरक्षण बिना किसी विवाद के निपट गया।
सारी प्रक्रिया होने के बाद मेयर एजाज ढेबर मंच पर चढ़े, और कलेक्टर को यह कहते हुए धन्यवाद दिया कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि इतने अच्छे से सबकुछ हो जाएगा। ये अलग बात है कि ढेबर का खुद का वार्ड महिला वर्ग के लिए आरक्षित हो गया है, और यदि वो चुनाव लडऩा चाहेंगे, तो उन्हें कोई दूसरा वार्ड तलाशना पड़ेगा। भाजपा नेता भी आरक्षण को लेकर पूरी तरह संतुष्ट नजर आए। दिलचस्प बात यह है कि पिछले चुनाव में आरक्षण की प्रक्रिया हुई थी, तब डॉ. गौरव सिंह जिला पंचायत के सीईओ थे। लिहाजा, उनका पुराना अनुभव काम आया। और सब कुछ बेहतर ढंग से निपटाने में सफल रहे।
समुद्र (सिंह)की फैलाई गंदगी साफ हो रही'
पिछले दो तीन दिनों से सचिव स्तरीय तबादलों की हलचल के बीच इस बार सेंटर ऑफ अट्रैक्शन आबकारी होने जा रहा है। यहां सचिव बदलने और बनने कई बल्लम लगे हुए हैं। लेकिन मैडम हैं कि बिना डिगे बस अपना काम करती जा रही हैं। बस एक ही लक्ष्य इस धंधे में समुद्र सिंह के जमाने से एपी त्रिपाठी, निरंजन दास तक फैली सरकारी गंदगी पर स्वच्छता अभियान जारी रहे।
बीते दस महीने में गोदाम से लेकर दुकान तक एक-एक पौवा, अध्दी-बॉटल सब कुछ आनलाइन, सीसीटीवी कैमरे की नजर में ला चुकीं हैं। हर प्लेसमेंट कर्मचारी की जेब तक खंगाली जाती है। और तो और होलोग्राम की डुप्लीकेसी खत्म करने नासिक के करेंसी प्रिंटिंग प्रेस से छपवा रही हैं। यहां भी शक की गुंजाइश खत्म करने मैडम खुद नासिक पहुंच गई और सप्ताह भर रहकर छपाई का पूरी प्रक्रिया देख आईं।
आखिर सालभर में लगने वाले 95 करोड़ नग होलोग्राम का सवाल है। यह सब देखकर विभाग के दो चार अफसर बातें कर रहे थे कि इन दस महीनों में लग रहा है कि हम विभाग के लिए काम कर रहे हैं। भले हमें कुछ नहीं मिल रहा लेकिन विभाग की दबंगई फील्ड में नजर आ रही है। जो बीते 10 वर्षों में साथ खत्म हो गई थी। यह भी दावा किया कि यह सफाई अभियान जारी रहा तो सबसे गंदा कहे जाने वाले इस कारोबार की स्वच्छता के लिए छत्तीसगढ़ जाना जाएगा। अब देखना होगा आने वाले दिनों में बदलाव क्या संदेश लाता है?
और संपन्न हो गया पहला ध्यान दिवस
कल बिना किसी हो हल्ले को विश्वभर में प्रथम अंतरराष्ट्रीय ध्यान योग दिवस मन गया। इसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने घोषित किया था। लेकिन इसके आयोजन को लेकर वो प्रचार और हो हल्ला नहीं हो पाया जो अंतरराष्ट्रीय योग दिवस या छत्तीसगढ़ के परिपेक्ष्य में 1 मई को बोरे बासी दिवस का होता रहा है।
उन आयोजनों में खबरें और तस्वीरें प्रकाशित करने में स्थानाभाव का सामना करना पड़ता रहा है। छपवाने के लिए मंत्री अफसर और नेताओं की होड़ लगती रही है। इससे ठीक विपरीत कल का दिन रहा। यह ध्यान योग दिवस, आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर की पहल पर घोषित किया गया है। वे कल न्यूयॉर्क में पहले आयोजन में शरीक भी हुए। रविशंकर जी की जनसामान्य के साथ-साथ देश की सत्ता के गलियारों में भी खासी पकड़ है। इसके बाद भी दिल्ली से लेकर देश और रायपुर में आयोजन को लेकर कोई बड़ी पहल माहौल नजर नहीं आया। और इक्का-दुक्का कार्यक्रम ही हो पाए।
हमारे प्रथम पेज के सहयोगी ने कल हमसे रायपुर में हुए आयोजन की तस्वीर और विस्तृत खबर मांगी थी लेकिन शाम तक रायपुर में किसी भी तरह के आयोजन की कोई खबर नहीं मिली तो हम न दे सके। फिर रात खबर मिली कि इसका एक कार्यक्रम केंद्रीय जेल में हुआ था। जिसे एक मात्र सरकारी आयोजन कहा जा सकता है। चूंकि इस आयोजन ले प्रधानमंत्री और अन्य सत्ताधीशों ने दूरी बना रखी थी इसलिए शासन-प्रशासन ने भी रुचि नहीं ली। लेकिन आर्ट ऑफ लिविंग के सदस्य अनुयायियों के लिए दिवस की घोषणा ही सबसे अहम है।
जुर्माने और हादसों के बीच खाई
चौक-चौराहों और हाईवे पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने के बाद नागरिकों में जवाबदेही का भाव बढ़ा है। पुलिस इसे अपनी बड़ी उपलब्धि मानती है। कोरबा पुलिस द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन के चलते अब तक 1 करोड़ 48 लाख रुपये का जुर्माना वसूला गया है। इनमें सडक़ पर की गई जांच भी शामिल है। इसी तरह, पूरे प्रदेश का आंकड़ा भी जबरदस्त है। वर्ष 2023 में भारी-भरकम, कुल 23 करोड़ 5 लाख 59 हजार रुपये वसूले गए। रायपुर जिले में सबसे अधिक 1 लाख 532 लोगों से 8 करोड़ 27 लाख 80 हजार रुपये का जुर्माना वसूला गया।
हालांकि, यह सोचना गलत होगा कि जुर्माने की इस सख्ती से सडक़ दुर्घटनाओं में कमी आई है। वास्तविकता यह है कि प्रदेश में सडक़ हादसों की संख्या भयावह रूप में लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2022 में प्रदेश में कुल 14 हजार सडक़ दुर्घटनाएं हुई थीं, जो 2023 में नवंबर तक ही 14 हजार 500 तक पहुंच गई थीं। वर्ष 2024 के पूरे आंकड़े अभी सामने नहीं आए हैं, लेकिन दुर्ग जिले में अब तक 1596 दुर्घटनाओं में 989 लोगों की मौत हो चुकी है। रायपुर जिले में 1967 दुर्घटनाओं में 520 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर भी स्थिति कम चिंताजनक नहीं है। केंद्रीय सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने पिछले दिसंबर तक के जारी आंकड़ों में बताया था कि देशभर में सडक़ दुर्घटनाओं में 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
सीसीटीवी कैमरों की वजह से कई स्थानों पर ट्रैफिक पुलिस की उपस्थिति कम हो गई है। उनका उपयोग वीवीआईपी प्रोटोकॉल और अन्य गैर-जरूरी कार्यों में किया जाने लगा है। लेकिन, जुर्माना वसूली के रिकॉर्ड के साथ-साथ अफसरों को यह भी बताना होगा कि ट्रैफिक सिग्नल तोडऩे, रॉन्ग साइड चलने और ओवरस्पीडिंग पर भारी जुर्माने के बावजूद सडक़ हादसे क्यों बढ़ रहे हैं।
कबीरधाम जिले में 20 मई 2024 को तेंदूपत्ता मजदूरों से भरी एक पिकअप खाई में पलट गई थी, जिसमें 19 लोगों की मौत हो गई। इस घटना के बाद पूरे प्रदेश में मालवाहक वाहनों से यात्रियों को ले जाने पर कार्रवाई शुरू हुई, लेकिन यह अभियान महज एक महीने बाद ठंडा पड़ गया।
अब कल शनिवार की शाम को जगदलपुर के दरभा थाना क्षेत्र के कोलेंग में हादसा हो गया। एक पिकअप में 35 मजदूरों को भरकर साप्ताहिक बाजार ले जाया जा रहा था। तेज रफ्तार गाड़ी पहाड़ी मोड़ पर बेकाबू होकर 10 फीट नीचे जा गिरी। इस हादसे में 5 लोगों की मौत हो गई और 30 घायल हो गए। इस दुर्घटना ने एक बार फिर सुरक्षित यात्रा और सार्वजनिक परिवहन की खस्ताहाल स्थिति को उजागर किया है। थोक में हो रही मौतें स्पष्ट करती है कि प्रदेश में सस्ती सार्वजनिक परिवहन सेवाओं का घोर अभाव है। गरीब मजदूरों को मालवाहक गाडिय़ों में जान जोखिम में डालकर सफर करना पड़ता है। ड्राइवर ज्यादा कमाने के लालच में उन्हें ठूंस-ठूंसकर भर लेते हैं। इस कमाई को वे शराब में उड़ाते हैं और इसी हाल में गाडिय़ां भी चलाते हैं। ऐसी दुर्घटनाओं में हो रही सामूहिक मौतों की जिम्मेदारी परिवहन विभाग और यातायात पुलिस को लेनी चाहिए, वह जुर्माने का आंकड़ा देकर नहीं बच सकती।
थाने में गुरु-शिष्य मिलन..
रायपुर पुलिस ने अपराधियों को सुधारने के लिए गंज थाने में ‘मॉडर्न स्कूल’ खोल दी। अपराधियों को मुर्गा बनवाया, उठक-बैठक करवाई, लकड़ी के पट्टे से हथेली और पिछवाड़े को पीटा। ये सब वे ही तरीके हैं, जो किसी समय बच्चों को सबक सिखाने के लिए क्लास में मास्टरजी अपनाया करते थे। (अब ऐसा करने पर शिक्षकों को शिकायत हो जाने का डर सताता है।) सवाल ये है कि हत्या के प्रयास, चाकूबाजी, लूटपाट जैसे गंभीर अपराधों में लिप्त शिष्यों ने गुरु की इस क्लास को मनोरंजन की तरह लिया या फिर सचमुच कोई सबक सीखा।
पुरानी कमाई का दम
सरकार के एक विभाग के चार सहायक आयुक्तों ने, अपने एक साहब को हटाने हटवाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया है । इनमें एक रायपुर, एक बिलासपुर एक राजनांगांव में पदस्थ रहे। और ये चारों तीन हजार करोड़ के एक घोटाले की चार्ज शीट में नामजद हैं। और इनके किंगपिन तो जेल में है। इन चारों ने इसमें, पिछली सरकार के समय हुए घोटाले से कमाई, पूरी जमा पूंजी भी झोंक दी हैं। और ऐसे लोग सालभर से इस गोरख धंधे में आई कसावट पर सेंध लगाने एड़ी चोटी लगा रहे हैं। क्योंकि 10-11 महीने से इन्हें घर केवल तनख्वाह से चलाना पड़ रहा है। लाखों की उपरी कमाई जो बंद है। क्या करें बेचारे उडऩदस्ते में भेज दिए गए थे। जिले की कमान से बाहर कर लूप लाइन में बिठा दिए गए हैं । पूरा कारोबार आनलाइन हो गया सो अलग। सरकारी इंकम के लीकेज के लिए कहीं भी लूप होल नहीं है। अब तो दबंग डिस्टलरीज पर भी जुर्माना होने लगा है। ऐसे में ये लोग अपने दिन बदलने, सरकार के दिन खराब करने जुट गए हैं।
कहा यह जा रहा कि चारों सफल हुए तो एक बार फिर नदियां बहेंगी। दुकानों में एक बार फिर से दो-दो सेल रजिस्टर रहेंगे। अंग्रेज़ी का अवैध कारोबार कराएंगे।
एक्सटेंशन या 92 को अवसर
राज्य सरकार ने डीजीपी के चयन के लिए तीन नामों का पैनल केन्द्र सरकार को भेजा है। इनमें 92 बैच के आईपीएस अफसर अरूण देव गौतम, पवन देव, और 94 बैच के अफसर हिमांशु गुप्ता के नाम हैं। यह भी संयोग है कि देश के पांच राज्य नागालैंड, मेघालय, पंजाब, तेलंगाना, और जम्मू-कश्मीर में भी 92 बैच के अफसर डीजीपी हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ में इस बैच के अफसर के डीजीपी बनने का अंदाजा लगाया जा रहा है।
हालांकि कुछ जानकार मौजूदा डीजीपी अशोक जुनेजा को एक्सटेंशन मिलने की संभावना भी जता रहे हैं। जुनेजा को रिटायरमेंट के बाद छह माह का एक्सटेंशन मिला हुआ है। नियमानुसार केन्द्र सरकार छह माह का एक्सटेंशन और दे सकती है। हाल ही में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह दो दिन छत्तीसगढ़ दौरे पर थे। छत्तीसगढ़ पुलिस को राष्ट्रपति कलर अवार्ड से सम्मानित किया है।
अमित शाह ने छत्तीसगढ़ पुलिस की खूब तारीफ की, और विशेषकर कोरोना के दौर में छत्तीसगढ़ पुलिस के सहायता अभियान का भी उल्लेख किया। इससे परे शाह ने 31 मार्च 2026 तक देश को नक्सल मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। इसको देखते हुए छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ अभियान भी चल रहा है। ऐसे में नए डीजीपी की चयन प्रक्रिया में विलंब हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इस पूरे मामले में तस्वीर नए साल में ही साफ होने की उम्मीद है।
किसकी चली सूची बताएगी
भाजपा में संगठन चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। कई जिलों में मंडल अध्यक्षों के नाम घोषित भी हो गए हैं। मगर रायपुर शहर जिले के 20 मंडलों के नाम घोषित करने में प्रदेश उपाध्यक्ष शिवरतन शर्मा को पसीना छूट रहा है।
शहर की चारों सीट पर पार्टी के ही विधायक हैं। विधायकों की अपनी पसंद स्पष्ट हैं। कई नेता, जो विधानसभा टिकट से वंचित रह गए थे, वो मंडलों में अपना अध्यक्ष बिठाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। कई दौर की बैठक हो चुकी हैं। फिर भी चार-पांच मंडल ऐसे हैं जहां विवाद ज्यादा है। संकेत है कि यहां प्रदेश संगठन को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है। किस नेता की कितनी चली है, यह तो सूची जारी होने के बाद ही पता चलेगा।
विभाग में वापसी
प्रदेश के आदिम जाति विभाग के स्कूली शिक्षकों को लेकर एक खबर सुनी जा रही है । और वह यह कि इन शिक्षकों का पूरा सेटअप एक बार फिर से वापस मूल विभाग को अंतरित किया जा रहा है। बता दें कि भाजपा सरकार के 2008-13 के कार्यकाल में तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने गहरी रूचि लेकर आदिम जाति विभाग का पूरा स्कूली सेटअप, स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन करवा लिया था। इसके पीछे आदिवासी विकास के लिए मिलने वाला बड़ा बजट नजर में था। और कामकाज में इन शिक्षकों को टीचर टी-ट्राइबल और टीचर ई-एजुकेशन का संवर्ग नाम दिया गया। तबादलों के लिए भी एरिया पूर्वानुसार ही रखा। यानी टीचर टी, आदिवासी क्षेत्रों में ही स्थानांतरित किए जाएंगे।
कांग्रेस सरकार ने बिना किसी अड़चन, दिक्कत के इस व्यवस्था को संचालित किया। लेकिन अब फिर से आदिम जाति कल्याण विभाग अपने शिक्षकों की वापसी के लिए जोर लगा रहा है। इस बदलाव के पीछे एक बार फिर बजट ही कारण बना है। अफसरों की इस चाह पर मंत्री जी ने भी सहमति दे दी है। इसके लिए विभाग ने कैबिनेट नोट भी तैयार कर लिया है। सब कुछ सामान्य रहा तो नए सत्र से एक बार फिर टीचर टी और ई अलग-अलग हो जाएंगे। वैसे हाल में विभाग ने एक और अप्रत्याशित फैसला किया है। अब विभाग के एकलव्य विद्यालय भवन, राज्य के निर्माण विभाग पीडब्लूडी के बजाए केंद्रीय उपक्रम एनबीसीसी से बनवाए जाएंगे। 450 करोड़ का वर्क आर्डर भी दे दिया गया है। वैसे पूर्व मंत्री ने इसी बजट में घोषणा की थी कि संयुक्त स्कूल शिक्षा विभाग (यानी टी-ई) के भवन बनाने विभाग में ही कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग विंग खोला जाएगा। जो मंत्री जी के सांसद बनने के बाद से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
सरकार से असंतुष्ट उनके विधायक
छत्तीसगढ़ विधानसभा का संक्षिप्त शीतकालीन सत्र समाप्त हो गया और कार्रवाई अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई। इस सत्र को इस बात के लिए याद रखा जाएगा कि मंत्रियों से सवाल करने के लिए विपक्ष से कहीं ज्यादा तैयारी सत्ता पक्ष के विधायकों ने की थी। सत्र के अंतिम दिन कानून व्यवस्था धान खरीदी, अस्पतालों की फायर ऑडिट और कुछ अन्य मुद्दों पर सदन में चर्चा कराने की मांग करते हुए कांग्रेस विधायक वेल में जरूर पहुंचे और निलंबित हो गए लेकिन पहली बार के विधायक, नये-नवेले मंत्रियों को ज्यादा परेशान तो उनके अपने ही वरिष्ठ विधायकों ने किया। दंतेवाड़ा के सडक़ निर्माण में हुए कथित भ्रष्टाचार को लेकर दिए गए उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा के जवाब से अजय चंद्राकर संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने आरोप तक लगा दिया कि भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया जा रहा है। राजेश मूणत ने स्मार्ट सिटी के कार्यों में हुए भ्रष्टाचार, 6 करोड़ की लागत से रायपुर में तैयार फाउंटेन के बंद होने का मुद्दा उठाते हुए नगरीय प्रशासन मंत्री व उपमुख्यमंत्री अरुण साव को घेरा। विधायक सुशांत शुक्ला और धर्मजीत सिंह ठाकुर ने राजस्व मंत्री के जवाब को सीधे-सीधे गलत ठहरा दिया। उन्होंने पूछा था कि शासकीय जमीन पर कितना कब्जा हुआ, कब्जा करने वाले और इसमें साठगांठ करने वाले अधिकारियों के ऊपर क्या कार्रवाई हुई, जानना चाहा। मंत्री ने करीब 500 अतिक्रमण की जानकारी जवाब में दी तो शुक्ला ने पूरी सूची उनके सामने रखकर बता दिया कि 13000 ऐसी शिकायतें हैं।
बार-बार चंद्राकर का पूरक प्रश्न आने पर आखिरकार डिप्टी सीएम विजय शर्मा को ठेकेदार को ब्लैक लिस्टेड करने और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की घोषणा करनी पड़ी। वर्मा को कहना पड़ा कि इसके लिए समिति बनाकर जांच कराएंगे, मगर शिकायत तथ्यों के साथ मिलनी चाहिए। डिप्टी सीएम साव से भी कांग्रेस शासन काल के दौरान स्मार्ट सिटी के हुए सभी कार्यों की जांच कराने की मांग की गई, पर ऐसी कोई ठोस घोषणा उनकी ओर से नहीं की गई।
दिखाई ऐसा जरूर दे रहा है कि भाजपा के विधायक अपने ही मंत्रियों से सवाल पर सवाल दाग कर सरकार पर ऊंगली उठा रहे हैं, पर उन्होंने जिन विषयों को उठाया उनमें से अधिकांश पूर्ववर्ती कांग्रेस शासन के दौरान हुई गड़बडिय़ों से जुड़ा हुआ है। मंत्रियों के जवाब से आभास हो रहा था कि वे तकनीकी उत्तर दे रहे हैं, जो अधिकारियों ने तैयार करके दिया है। यह बात धर्मजीत सिंह ने मंत्री वर्मा से कही भी। फिर भी इन भाजपा विधायकों ने धरसींवा से तीन बार विधायक रहे देवजी भाई पटेल की याद दिला दी, जो अपनी ही सरकार के खिलाफ विधानसभा के प्रत्येक सत्र में आक्रामक नजर आते थे।
गाय भारी पड़ी बाघिन पर..
रात के अंधेरे में वन विभाग के ट्रैप कैमरे से कैद की गई तस्वीर कुछ धुंधली सी है लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ अधिक स्पष्ट वीडियो फुटेज देखी जा सकती है। दिसंबर के पहले सप्ताह में अमरकंटक की ओर से मरवाही के जंगल में यह बाघिन भटकते हुए पहुंची और एक बछड़े का शिकार किया। फिर उसने कुछ दिनों के बाद एक गाय का शिकार करने की कोशिश की। घास चर रही गाय के पीछे-पीछे वह हौले-हौले चलकर नजदीक पहुंच जाती है। गाय उसे देखकर सिर झटकती है, मानो कह रही हो कि चारा खा रही हूं, व्यवधान पैदा मत करो। मगर भूखी बाघिन उछलकर उसे दबोचने की कोशिश करती है। गाय घबराती नहीं, वह अपना सिर घुमाती है और सींग से हमला करने के लिए उछल जाती है। बाघिन यह देखकर घबरा जाती है। दो कदम पीछे हटती है, फिर आगे बढक़र गाय पर चढ़ाई करने की कोशिश करती है। गाय बौखला गई, उसने भी अपनी लंबी टांगों को उठाकर बाघिन को दो-दो हाथ करने की चुनौती दी। बाघिन घबरा गई। वह दो कदम पीछे हटी। बाघिन को गाय ने फिर हडक़ाया, बाघिन और पीछे हटी। अब गाय भारी पड़ गई। बाघिन को अपनी ताकत का अंदाजा नहीं था, वह गाय से घबरा गई। गाय ने उसे दौड़ा दिया और आखिरकार वह उल्टे पांव भाग खड़ी हुई।
ऐसा क्यों हुआ होगा? वन विभाग के अफसरों का कहना है कि बाघिन गर्भवती है। उसे शिकार की जरूरत तो थी लेकिन शायद अपनी कोख की फिक्र थी। गाय सीधे-सीधे हाथ आ जाती तो मंजूर था, मगर गुत्थम-गुत्थी में गर्भस्थ शावकों को नुकसान पहुंच सकता था।