राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : कांग्रेस पीछा छोडऩे के मूड में नहीं!
18-Jun-2025 6:31 PM
राजपथ-जनपथ : कांग्रेस पीछा छोडऩे के मूड में नहीं!

कांग्रेस पीछा छोडऩे के मूड में नहीं!

सियासत में लोग अक्सर दल बदलते हैं, लेकिन ऐसा कम ही होता है जब कोई राजनीतिक दल अपनी नाराजगी को लेकर कोर्ट  पहुंच जाए। जगदलपुर की पूर्व महापौर सफीरा साहू का मामला कुछ ऐसा ही दिलचस्प है।

महापौर रहते हुए सफीरा ने कांग्रेस छोडक़र भाजपा का दामन थाम लिया। उस वक्त भाजपा ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। राज्य में कांग्रेस सरकार थी, तब उन्हीं आरोपों पर पार्टी उनका बचाव करती रही। लेकिन जैसे ही उन्होंने पाला बदला, कांग्रेस ने भाजपा के आरोपों को खुद ही उधेड़ डाला। महापौर निधि में करोड़ों का गबन, नाला निर्माण में गड़बड़ी, सामुदायिक भवन के भुगतान में दस्तावेजों की अनियमितता जैसे कई आरोप।

अक्सर ऐसे आरोप थोड़ी चर्चा के बाद धुंधले पड़ जाते हैं। सत्ता साथ हो तो जांच एजेंसियां भी आंखें मूंद लेती हैं। मगर इस बार कांग्रेस ने खुद जांच एजेंसी बनने की ठान ली। पार्टी ने आरटीआई के जरिए दस्तावेज जुटाए और अब वह दावा कर रही है कि उसके पास भ्रष्टाचार के ठोस सबूत हैं।

अब सफीरा साहू को 20 जून को स्थानीय अदालत में पेश होकर इन आरोपों का जवाब देना है। कोर्ट को यदि आरोपों में दम नजर आया तो प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।

गौरतलब है कि भाजपा में शामिल होने के वक्त सफीरा ने कांग्रेस पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि पार्टी में उन्हें मानसिक उत्पीडऩ भी झेलना पड़ा। हालांकि ये आरोप केवल राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित रहे। संभवत: न तो पुलिस में कोई शिकायत हुई, न ही किसी अदालत में कोई मामला दायर किया गया। कांग्रेस ने जवाबी हमला करते हुए कहा था कि सफीरा ने भ्रष्टाचार की जांच से बचने के लिए भाजपा की शरण ली है।

राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप, सफाई और छवि बचाने की कवायद आम है, लेकिन जगदलपुर में यह मामला एक अनोखा मोड़ ले चुका है। 

कड़े फैसलों वाला रुख

रायपुर के पंडरी कपड़ा मार्केट में पिछले कुछ दिनों से व्यापारियों और निगम प्रशासन के बीच विवाद चल रहा है। निगम प्रशासन ने डेढ़ दर्जन दुकानों को सील कर दिया है। दुकानदार नियमों को ताक पर रखकर दोनों तरफ से शटर खोले हुए थे, और इसकी वजह से यातायात बाधित हो रहा था। यही नहीं, कुछ अतिक्रमण भी हुआ था। हालांकि व्यापारियों का कहना है कि सरकार के नियमों के मुताबिक नियमितीकरण हो चुका है। प्रभावित व्यापारी, रायपुर उत्तर विधायक पुरन्दर मिश्रा, और मेयर मीनल चौबे से लगातार मिल रहे हैं। मगर अब तक उन्हें कोई राहत नहीं मिली है।

व्यापारियों ने चैम्बर के पदाधिकारियों के साथ मिलकर सरकार के ताकतवर मंत्री से मिलने भी गए, और उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई। मंत्रीजी ने उनकी समस्याओं के समाधान के जल्द समाधान का भरोसा दिलाकर रवाना किया।

बताते हैं कि व्यापारियों के जाते ही मंत्रीजी का रूख एकदम बदल गया। उन्होंने निगम की कार्रवाई को उचित ठहरा दिया। मंत्रीजी ने अफसरों को कह दिया है कि शहर को सुधारना है, तो पंडरी की तरह कड़े फैसले लेने होंगे। संकेत साफ है कि आने वाले दिनों में अतिक्रमण, और यातायात बाधित करने वाले निर्माण कार्यों पर कार्रवाई तेज की जाएगी।

बंदरिया और ब्यूटी का तालमेल

भारत के बाजारों में सिर्फ सामान या सेवा नहीं बिकते, नाम भी बिकता है। ऐसा नाम जो पहली नजर में ही लोगों की उत्सुकता पैदा करे। कानपुर में एक ऐसा ही सैलून है-बंदरिया ब्यूटी सैलून। इसका बोर्ड कहता है- अनकंडिशनल केयर, मोस्ट एफोर्डेबल। बजट के भीतर नि:शर्त देखभाल।

खुद की या सामने वाले की खिल्ली उड़ाने में जो आनंद हम भारतीयों को आता है, वह शायद ही किसी और देश में मिले। कानपुर में ही ठग्गू के लड्डू, सालों से लोकप्रिय हैं। दुकान के बाहर बेझिझक, बे-लिहाज लिखा है-ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे हमने ठगा नहीं। फिर भी वहां ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है।

बदनाम कुल्फी- भी उसी श्रृंखला का प्रतिष्ठान है, और आज यह नाम इतने शहरों में फैल चुका है कि अब बदनामी ही ब्रांड बन चुकी है।

देश के कई शहरों में अब आपको बेवफा चाय वाला,  मिल जाएंगे। जिनका दिल टूटा है, वे चाय की प्याली में गम डुबाने यहीं आते हैं। वहीं मुजफ्फरपुर में एक चाय दुकान है-कैदी चाय वाला। यहां ग्राहक चाहे तो उनको जेल की थीम में हथकड़ी पहनाकर चाय परोसी जाती है।

दिल्ली में बी.टेक पराठे वाला इंजीनियरिंग के छात्रों को बताता है कि डिग्री से ज्यादा जरूरी हुनर है। मोटा भाई फास्ट फूड, नाम से दुकान मालिक खुद की काया का मजाक उड़ाते हुए ग्राहकों को खींचता है।

हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे स्थानों पर चोटीवाला होटल, एक ब्रांड बन चुका है। लोकप्रियता इतनी कि कई होटलों ने यही नाम अपना लिया। पहचान बनाए रखने के लिए कुछ प्रतिष्ठानों ने तो बाहर एक ऊंची कुर्सी पर सजीव चोटी वाले पंडित को बैठाना शुरू कर दिया। इस होटल ब्रांड की शुरुआत 1958 में अग्रवाल बंधुओं ने की थी और आज यह एक पहचान बन चुका है।

छत्तीसगढ़ में भी गढ़ कलेवा नाम से देसीपन झलकता है। पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की यह थाली बाहर से आए लोगों को खास आकर्षित करती है। यहां स्वाद भी है और संस्कृति की झलक भी।

कुल मिलाकर दुकान चलानी है तो केवल उत्पाद की गुणवत्ता नहीं, नाम भी यूएसपी होता है।


अन्य पोस्ट