राजपथ - जनपथ
वक्फ और दुकानदार
वक्फ कानून में संशोधन पर काफी विवाद हुआ था। देश में विपक्षी कांग्रेस, और मुस्लिम संगठन खिलाफ में रहे हैं। मगर इसका फायदा भी होता दिख रहा है। बोर्ड की छत्तीसगढ़ में संपत्तियों पर काबिज दुकानदार काफी कम किराया देते थे। बोर्ड ने नए सिरे से सरकारी गाइड लाइन दर पर एग्रीमेंट के लिए दबाव बनाया, तो बिलासपुर और धमतरी में दुकानदार तैयार हो गए। वक्फ बोर्ड को मिलने का कुल मासिक किराया दस गुना अधिक हो गया है।
रायपुर में दुकानदार नए सिरे से एग्रीमेंट के लिए तैयार नहीं है। वजह यह बताई जा रही है कि जिस दूकान का किराया दो सौ रुपए महीने देते आए हैं, वहां एक लाख रुपए से अधिक किराया देना पड़ेगा। एक विवाद यह भी है कि कुछ संपत्तियां बिक गई है। इस पर बोर्ड ने रजिस्ट्री शून्य करने के लिए कलेक्टर को लिख दिया है।
हालांकि कुछ दुकानदारों को दशकों पहले बोर्ड ने खुद होकर संपत्ति बेची थी। यहां दुकानदार बोर्ड को नोटिस का जवाब नहीं दे रहे हैं, और हाईकोर्ट जाने की तैयारी भी कर रहे हैं। इन विवादों से परे वक्फ बोर्ड की आय बढ़ी, तो समाज के भीतर सकारात्मक प्रतिक्रिया हो रही है। वक्फ बोर्ड पीपीपी मॉडल पर धमतरी में अस्पताल खोलने जा रहा है। यही नहीं, सभी जिलों में मुस्लिम लडक़ी-महिलाओं के लिए हॉस्टल खोलने की योजना है। काम अच्छा होगा, तो तारीफ होगी ही।
कांग्रेस की सभा, तैयारी, और मौसम
प्रदेश कांग्रेस सात जुलाई को प्रस्तावित किसान-जवान-संविधान जनसभा को लेकर जोर शोर से तैयारी कर रही है। सभा स्थल रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में डोम बनाने का विचार चल रहा है। ताकि बारिश के मौसम में सभा में खलल न पैदा हो। पार्टी के रणनीतिकारों की टेंशन भीड़ को लेकर ज्यादा है।
वजह यह है कि सभा को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे संबोधित करेंगे। खरगे के भाषण को लेकर यहां के लोगों में कोई ज्यादा उत्साह नहीं रहा है। रायपुर के जोरा में दो साल पहले पार्टी की सभा हुई थी, और जैसे ही प्रियंका गांधी के बाद खरगे भाषण देने आए, तो तीन चौथाई भीड़ जा चुकी थी। राजनांदगांव में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। इन सबको देखते हुए बारिश के मौसम में खरगे के लिए भीड़ जुटाना आसान नहीं है। तीनों प्रभारी सचिव जरिता लैतफलांग, सुरेश कुमार, और विजय जांगिड़ प्रदेश के दौरे पर निकल गए हैं, और जिलों में बैठक कर भीड़ जुटाने को लेकर टारगेट दे
रहे हैं।
खुद प्रभारी सचिन पायलट पार्टी के विधायक, और मोर्चा प्रकोष्ठ के अध्यक्षों की बैठक में भीड़ को लेकर टारगेट दिए हैं। बावजूद इसके कुछ नेताओं का अनुमान है कि जितना टारगेट दिया गया है उसका एक चौथाई भी आ जाती है, तो सभा भीड़ के लिहाज से काफी सफल मानी जाएगी। देखना है आगे क्या होता है।
रेडी टू ईट की गारंटी रेडी नहीं हो रही
नवंबर 2022 में पूरक पोषण आहार-रेडी टू ईट बनाने का काम महिला स्व-सहायता समूहों के हाथों से छीनकर राज्य बीज विकास निगम को दिया गया था। निगम ने यह काम निजी कंपनी को सौंप दिया। इससे करीब 3 लाख महिलाओं की आजीविका पर असर पड़ा। प्रभावित महिलाओं ने आंदोलन किया, हाईकोर्ट में लड़ाई लड़ी पर व्यवस्था नहीं बदली। सरकार ने आश्वस्त किया कि प्रोडक्शन का काम जरूर उनसे छीना गया है, लेकिन वितरण की जिम्मेदारी उन्हें ही दी जाएगी। पर महिला समूहों को समझ में आ गया कि इससे उन्हें कोई लाभ नहीं होगा। उनका असंतोष तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ गया और महिला समूहों की मांग को भाजपा ने मोदी की गारंटी में शामिल कर लिया। जिन अनेक कारणों ने बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय की पटकथा लिखी, उनमें समूह की इन महिलाओं की नाराजगी भी एक था।
मगर, ये महिला स्व सहायता समूह नई सरकार के डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी इंतजार कर रही हैं कि उन्हें काम वापस मिल जाए। हालांकि, पिछले जनवरी माह में सरकार की ओर से घोषणा की गई थी कि एक अप्रैल से छह जिलों बस्तर, दंतेवाड़ा, सूरजपुर, कोरबा, रायगढ़ और बलौदबाजार की महिला स्व-सहायता समूह जिम्मेदारी संभाल लेंगे। इसके बाद चरणबद्ध तरीके से दूसरे जिलों में भी महिला स्व-सहायता समूहों को काम बांट दिया जाएगा।
दरअसल, जब पिछली सरकार ने व्यवस्था बदली थी तो इसे कुपोषण के खिलाफ बड़ा कदम बताया था। गुणवत्ता से समझौता नहीं करने के लिए व्यवस्था को केंद्रीकृत करने की बात की गई । यह नहीं बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते ऐसा करना पड़ रहा है। कई दूसरे राज्यों की तरह।
अब छत्तीसगढ़ सरकार मोदी की गारंटी को लागू करने के लिए पुरानी व्यवस्था पर लौट तो सकती है लेकिन सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन जरूरी है। यह सुनिश्चित करना होगा कि रेडी टू ईट फूड का निर्माण मानव के स्पर्श के बिना, स्वचालित मशीनों से हो। हाईजेनिक फूड का इस्तेमाल हो जिसमें फोर्टिफाइड और फाइन का मिश्रण होना चाहिए। आहार में कैलोरी, प्रोटीन, फोलिक एसिड, राइबोफ्लेविन, कैल्शियम, आयरन, विटामिन ए, बी-12, सी और डी जैसे पोषक तत्व तय अनुपात में हों। इन मानकों के अनुसार निर्माण हो रहा है या नहीं इसकी मॉनिटरिंग के लिए जिला और ब्लॉक स्तर पर टीम बनाने का निर्देश भी है। जिला व ब्लॉक स्तर पर टीमें अभी बनी नहीं हैं। अधिकांश समूहों के पास स्व-चालित मशीनें नहीं हैं।
इसी महीने, जून 2025 में महिला बाल विकास विभाग के अफसरों ने पाया कि पोषण आहार में चीनी की मात्रा अधिक है। इसके अलावा, शिशुवती माताओं, शिशुओं व आंगनबाड़ी के बच्चों के लिए अलग-अलग रंग के पैकेट तो बनाए जा रहे हैं, पर उनमें पोषक तत्व एक जैसे ही हैं, जबकि सभी श्रेणियों के लिए अलग-अलग होने चाहिए। यानि केंद्रीकृत व्यवस्था में भी गड़बड़ी को महिला बाल विकास विभाग रोक नहीं पा रहा है। महिला समूहों को व्यवस्था सौंपने के बाद उसकी मॉनिटरिंग का ही सेटअप बहुत बड़ा रखना होगा। यह एक बड़ी वजह है कि 18 महीने बीत जाने के बाद महिला समूहों को अपनी मांग पूरी होने का इंतजार करना पड़ रहा है। उनका असंतोष बढ़ रहा है। महिला समूहों के प्रतिनिधि विभाग की मंत्री से मिल चुके हैं। आश्वासन मिल रहा है, पर ठोस नहीं है। इस बार भी इन नाराज महिलाओं के साथ विपक्ष है। कांग्रेस ने उनकी मांग हाल में उठाई है। आंदोलन में साथ देने की बात की है। पर, कांग्रेस को इससे कोई चुनावी फायदा तत्काल तो मिलने वाला है नहीं।
बारिश आई नहीं, सडक़ बैठ गई
बारिश का जितना इंतजार सूखे खेतों को नहीं होता, लगता है कि पीडब्ल्यूडी की बनाई सडक़ों को ज्यादा होता है। पहली रिमझिम से इन सडक़ों की आत्मा भीग जाती है!
यह ताजी तस्वीर कबीरधाम जिले के मुख्यालय के बाईपास रोड की है, जो प्रदेश के ताकतवर युवा उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा का क्षेत्र भी है।
बारिश अभी शुरू ही हुई है, लेकिन सडक़ के हालात देखकर लग रहा मानो आषाढ़, सावन, भादो तक यह सडक़ खुद का अस्तित्व पूरी तरह समाप्त करने के लिए बेताब हो।
पानी भरे गड्ढे, मिट्टी में लथपथ रास्ता और दोनों ओर कीचड़। इस रास्ते से गुजरने वाले वाहन चालक किसी योद्धा से कम नहीं। राज्य की बदहाल सडक़ों पर हाईकोर्ट भी कितनी बार फटकार लगाए, करना तो विभाग के अफसरों को ही है।


