राजपथ - जनपथ

पर्देदारी से सच छिपने वाला नहीं..
नवगठित एमसीबी जिले में कल एक बस ड्राइवर की जान महज इसलिए नहीं बच सकी क्योंकि वक्त पर एंबुलेंस नहीं पहुंची। पेंड्रारोड से 40 सवारियों को लेकर चली बस जब खडग़वां पहुंची, तब ब्रेकर पार करते समय चालक को अचानक दिल का दौरा पड़ा। मौत की आहट को भांपते हुए भी उसने जिम्मेदारी निभाई। बस को धीरे करके किनारे लगाया और यात्रियों की जान बचा ली। दुर्भाग्यवश, अपनी जान न बचा सका।
यात्रियों ने बार-बार 108 पर कॉल किया, लेकिन एंबुलेंस नहीं आई। जब तक वैकल्पिक व्यवस्था की गई, बहुत देर हो चुकी थी। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (एमसीबी) जिले के लोगों को उम्मीद थी कि उनके इलाके की स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर होंगी, क्योंकि स्वास्थ्य विभाग की बागडोर उन्हीं के जनप्रतिनिधि के पास है। लेकिन यह घटना बताती है कि उन उम्मीदों पर पानी फिर रहा है।
मीडिया पर पाबंदी लगाकर अस्पतालों की दुर्दशा छुपाने की कोशिश की जा रही थी, लगभग उसी वक्त एंबुलेंस के अभाव में एक की जान चली गई। सरगुजा और बस्तर से रोजाना चीखते-चीरते हुए निकलने वाली खबरों को कितना दबाया जा सकेगा? स्टाफ की कमी की वजह से इसी एमसीबी जिले के एक अस्पताल में तृतीय श्रेणी कर्मचारी को प्रभारी बनाकर रखने की खबर कुछ समय पहले आई थी। डॉक्टर, नर्स के इंतजाम तो हैं नहीं, अस्पतालों में मीडिया प्रभारी रखने का फरमान निकाला गया है।
शिकायत के मंच बढ़ गए
सीएम, और अन्य विशिष्ट जनों से मुलाकात आसानी से नहीं हो पाती है। ऐसे में कई लोग सीएमओ के सोशल मीडिया मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी समस्याएं रख उन तक पहुंचा रहे हैं।
सीएमओ छत्तीसगढ़ के फेसबुक पेज पर बुधवार को कैबिनेट के फैसलों की जानकारी दी गई, तो कई लोगों ने कमेन्ट में अपनी समस्याएं भी रख दी। रायपुर के अवंति विहार कालोनी निवासी 72 वर्षीय बुजुर्ग बजरंग लाल गुप्ता ने लिखा कि उनकी जमीन भूमाफिया कब्जा कर निर्माण करा रहे हैं। वो जमीन के सीमांकन के लिए आवेदन दे चुके हैं। ताकि सच सामने आ सके। मगर भू-माफिया सीमांकन नहीं होने दे रहे हैं।
गुप्ता ने आगे लिखा कि सुशासन तिहार के दौरान भी इसको लेकर आवेदन दिया था लेकिन कुछ नहीं हुआ। उन्होंने लिखा कि मेरी मानसिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी है, और मुझे बीमारी की हालत में इधर से उधर घुमाया जा रहा है। इसका तुरंत संज्ञान लेकर कार्रवाई का आग्रह किया है।
सब कुछ अच्छे माहौल में
भाजपा के राष्ट्रीय सह महामंत्री (संगठन) शिव प्रकाश, और प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन मंगलवार को यहां पहुंचे, तो पार्टी के अंदरखाने में काफी प्रतिक्रिया रही। मंगलवार की रात सीएम हाउस में चुनिंदा नेताओं की बैठक रखी गई थी। मगर नबीन की फ्लाइट विलंब से पहुंची, इस वजह से वो बैठक में शामिल नहीं हो पाए।
पार्टी के कुछ लोग अंदाजा लगा रहे थे कि कैबिनेट विस्तार को लेकर बात हो सकती है। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। बुधवार को विधायक दल की बैठक में पार्टी के कार्यक्रमों की लिस्ट थमा दी गई। विधायकों को शिव प्रकाश ने नसीहत दी कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा न करें। हालांकि विधायकों से यह भी कहा गया कि चाहे तो वो अपनी बात रख सकते हैं। मगर ज्यादातर विधायकों ने इससे परहेज किया। अलबत्ता, कुछ विधायकों ने जरूर शिवप्रकाश से अकेले में चर्चा की। कैबिनेट विस्तार होना है साथ ही संगठन में भी नियुक्तियां होनी है। ऐसे में इस बार असंतुष्ट नेता भी शिकवा-शिकायतों से परहेज किया, और बैठक अच्छे माहौल में निपट गई।
जनरल डिब्बे के एक मुसाफिर की आपबीती
हावड़ा से मुंबई तक लगभग 2,000 किलोमीटर जनरल डिब्बे में सफर करने के बाद एक यात्री ने सोशल?मीडिया पर अपना दर्द साझा किया है। स्लीपर में कन्फर्म टिकट न मिलने पर वे कई बार जनरल डिब्बे में यात्रा कर लेते हैं।
रेलवे की नई व्यवस्था ने उनके लिए सफर को और मुश्किल बना दिया है। अब वेटिंग-लिस्ट वाले यात्रियों को स्लीपर में घुसने नहीं दिया जाता, इसलिए जनरल कोच पहले से कहीं ज़्यादा भीड़भाड़ झेल रहे हैं।
यात्री ने बताया है कि पूरे रास्ते डिब्बे में, न दिन में रेलवे सुरक्षा बल दिखा न रात में। टिकट चेकिंग स्टाफ भी कोच में झांकने तक नहीं आता। नतीजा यह है कि यात्री भगवान भरोसे लड़-झगडक़र सफर पूरा करने को मजबूर होते हैं।
अक्सर कैटरिंग स्टाफ बेहद घटिया भोजन जबरन थमाता है और दोगुनी-तिगुनी कीमत वसूलता है। बिल मांगो तो गाली-गलौज और मारपीट पर उतर आता है। शिकायत करने पर जान का भी खतरा महसूस होता है, क्योंकि पूरे स्टाफ का आपस में गठजोड़ दिखता है।
यात्रा के दौरान कम से कम पचास अलग-अलग किन्नर समूह जनरल डिब्बे में चढ़ते हैं। मांगी गई रकम तुरंत न देने पर वे यात्री को पीटते हैं, जेब से पैसे छीन लेते हैं और बीच डिब्बे में नीचे का कपड़ा उठाकर बेइज्जत तक कर देते हैं। ये गिरोह आरपीएफ और स्थानीय रेलवे पुलिस को ‘हफ्ता’ देकर बेखौफ घूमते हैं।
पोस्ट में कहा गया है कि रेलवे प्रशासन, सुरक्षा बल और खुफिया विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह नाकाम रहे हैं।
यह अनुभव सिर्फ हावड़ा-मुंबई मार्ग तक सीमित नहीं है। हावड़ा से दिल्ली, बीकानेर, अजमेर, अमृतसर, भोपाल, उदयपुर, अहमदाबाद, कच्छ, जामनगर, पुणे, नागरकोइल, त्रिवेंद्रम, चेन्नई, भुवनेश्वर, गोवा, सिलीगुड़ी, गुवाहाटी, पटना, दरभंगा, गोरखपुर, वाराणसी, प्रयागराज और लखनऊ में भी, लगभग हर रूट पर हालात कमोबेश ऐसे ही हैं। जनरल क्लास के यात्री असुरक्षा और अपमान झेलते, ढोते सफर पूरा करते हैं।