राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : अगली बार क्या उठक-बैठक लगवाएंगे ?
04-Jul-2025 6:34 PM
राजपथ-जनपथ : अगली बार क्या उठक-बैठक लगवाएंगे ?

अगली बार क्या उठक-बैठक लगवाएंगे ?

सरकारी दफ्तरों में देर से पहुंचना पुरानी बीमारी है। कर्मचारी समय पर नहीं आते, काम लटकाते हैं और जनता लाइन में खड़ी रह जाती है। अफसर तो दौरे के नाम पर गायब हो जाते हैं, पर अक्सर सुबह समय पर आकर बैठ जाते हैं ताकि देर से आने वाले कर्मचारियों की क्लास ली जा सके।

इधर कबीरधाम कलेक्टर ने तो सचमुच क्लास ही ले ली। ठीक 10 बजे गेट पर खड़े हो गए। ऐसे 42 कर्मचारी थे, जो देर से आए। उनसे कान पकडक़र माफी मंगवाई। बोनस में कारण बताओ नोटिस भी ! एक गलती की दो-दो सजा! पहली सेवा नियमों है ही नहीं, शायद इसलिये नोटिस की कार्रवाई जरूरी थी। 

सोमवार को जब कवर्धा कलेक्ट्रेट खुलेगा, तब असर का पता चलेगा। मगर, इस कान पकडऩे की सजा के बाद भी देर से आना जारी रहा तो क्या करेंगे? सिविल सेवा नियमों के मुताबिक गलतियों को दोहराने के साथ-साथ सजा भी गंभीर होती जाती है, वेतन काट दिया जाता है, सीआर खराब हो जाती है, सस्पेंड हो जाते हैं। क्या कान पकडऩे के बाद भी नहीं ‘सुधरने’ वालों से उठक-बैठक लगवाई जाएगी? फिर भी सुधार नहीं हुआ तो क्या उल्टा लटका देंगे?

कहां हम डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहे हैं। छोटे-छोटे उपक्रम भी अब बायोमैट्रिक से उपस्थिति दर्ज कराते हैं। और इधर अपने छत्तीसगढ़ में एक आईएएस अफसर को गेट पर खड़े होकर रजिस्टर और आमद चेक करनी पड़ रही है। सजा के लिए पुराने जमाने के हेडमास्टर के तौर तरीके को अपनाना पड़ रहा है। अब तो स्कूलों में भी इस तरह की सजा को बच्चों को नहीं दी जाती। यह बाल अधिकारों के खिलाफ माना जाता है। कलेक्ट्रेट के गेट पर कान पकडक़र खड़ा करवाना और फोटो-वीडियो बनाने से नहीं रोकना, प्रचार पाने की मंशा से भी हो सकती है। इससे अफसर को वाहवाही मिल सकती है- कितने ईमानदार और समय के पाबंद अधिकारी हैं...। पर यह सजा इंसानी गरिमा के खिलाफ तो है।

गडकरी का तुरंत चुकारा

छत्तीसगढ़ की विशेषकर सरगुजा संभाग की खराब सडक़ों पर पड़ोसी राज्य झारखंड के भाजपा सांसद वीडी राम, और गढ़वा के विधायक सत्येंद्र तिवारी ने भी चिंता जताई है। उन्होंने गुरुवार को केन्द्रीय सडक़-परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के सामने बात रखी, तो गडकरी ने फौरन झारखंड को छत्तीसगढ़ से जोडऩे वाली दो प्रमुख सडक़ को फोरलेन करने की घोषणा कर दी। गडकरी की घोषणा से झारखंड के साथ-साथ छत्तीसगढ़ की सडक़ों का कायाकल्प होगा।

दरअसल, विशेषकर सरगुजा के लोगों का झारखंड आना-जाना रहता है। मगर झारखंड को जोडऩे वाली सडक़ें खराब हालत में हैं। गडकरी झारखंड पहुंचे, तो वहां के सांसद-विधायक ने सडक़ निर्माण की मांग प्रमुखता से रख दी। इनमें अंबिकापुर से गढ़वा, और जशपुर से गुमला (झारखंड) सडक़ निर्माण की भी मांग थी। अंबिकापुर से झारखंड के गढ़वा तक दूरी 150 किमी है। इसी तरह जशपुर से गुमला (झारखंड) की दूरी 25 किमी है। गडकरी ने मंच से ही उक्त दोनों सडक़ के निर्माण की मांग को मंजूरी दे दी।

गडकरी ने एक्स पर लिखा कि ये सडक़ रायपुर-धनबाद इकोनॉमिक कॉरिडोर का अहम हिस्सा है। इससे सडक़ सुरक्षा में सुधार होगा। साथ ही वाणिज्य, व्यापार, और पर्यटन को नई रफ्तार मिलेगी, और क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को भी लाभ मिलेगा। खास बात ये है कि अंबिकापुर-रामानुजगंज सडक़ खस्ता हाल में हैं। यहां निर्माण धीमी रफ्तार से चल रहा है। लोगों को आने जाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मगर झारखंड के जनप्रतिनिधियों की पहल के बाद आने वाले दिनों में विशेषकर सरगुजा के मुख्य मार्गों की हालत में सुधार होगा।

सनसनी के बाद झाग बैठ गया

राजनांदगांव के डोंगरगढ़ में पिछले दिनों पुलिस ने एक आश्रम में छापेमारी की, और वहां मादक पदार्थ मिलने पर आश्रम के प्रमुख को गिरफ्तार कर लिया। आश्रम के मुखिया को कांतिबाबा के नाम से जाना जाता है, और उनकी पहचान योग गुरु के रूप में है।

बाबा के विदेशों में शिष्य हैं, और उन्हें ऑनलाइन योग सिखाते थे। करीब 40 एकड़ में फैले आश्रम में छापेमारी हुई, तो इसकी काफी चर्चा हो रही है। मगर पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठ रहे हैं, और चर्चा है कि शीर्ष स्तर पर प्रकरण की जानकारी ली गई है। यह बात उभरकर सामने आई है कि पुलिस ने गांजा की बरामदगी तो दिखा दी है, लेकिन मात्रा इतनी अधिक नहीं है कि प्रकरण दर्ज किया जाए। यानी बाबा अपने उपयोग के लिए उतना गांजा रख सकता था।

आश्रम में सेक्स टॉयज की बरामदगी की बात कही गई है, और पुलिस ने इसको आपत्तिजनक बताया है। मगर इसमें आपत्तिजनक क्या है, यह नहीं बताया है। ऐसे में अब पुलिस की कार्रवाई को संदेह की नजर से देखा जा रहा है। साथ ही छापे के पीछे की कहानी का पता लगाया जा रहा है। इस पूरे मामले में पुलिस घिर सकती है। देखना है आगे क्या होता है।

आषाढ़ में झूमते हाथी... लेकिन कब तक?

छत्तीसगढ़ में इस समय वन महोत्सव मनाया जा रहा है। आषाढ़ की बरसात किसी इलाके में झमाझम बरस रही है, तो कहीं मूसलाधार गिर कर थम चुकी है। ये बरसात जंगलों में नई जान फूंकती है। देश के हरे-भरे राज्यों में गिने जाने वाला अपना प्रदेश हरियाली की चादर में लिपटा नजर आ रहा है। 

इसी हरियाली का जश्न इन दिनों हाथियों का एक दल भी मनाते दिखा है। कोरबा जिले के लेमरू वन परिक्षेत्र का एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। घने जंगल के बीच खुला हरा मैदान। मैदान में दौड़ते, चिंघाड़ते, मस्ती में झूमते हाथियों का समूह। ये दृश्य किसी भी प्रकृति प्रेमी को रोमांचित कर देगा।

जिस क्षेत्र में ये हाथी मस्ती कर रहे हैं, वह उसी इलाके के पास है जहां कोयला खनन परियोजनाओं के चलते हजारों-लाखों पेड़ पहले ही काटे जा चुके हैं, और आने वाले समय में और भी जंगल उजडऩे की आशंका है।  लेमरू एलिफेंट रिजर्व, जिसे हाथियों के संरक्षण के लिए विकसित किया जाना था, अब कोयला खनन के लिए निगला जा रहा है। न सिर्फ हाथी, बल्कि आश्रित सैकड़ों वन्य जीव, आदिवासी समुदाय और जैव विविधता का संतुलन भी खतरे में है। आज ये हाथी जंगल में आनंदित होकर दौड़ रहे हैं।

कल शायद इन्हें कोई दूसरा ठिकाना ढूंढने के लिए भटकना पड़े। आज की यह मोहक तस्वीर, कल की टकराव और विस्थापन की त्रासदी की आहट है।


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