राजपथ - जनपथ
घोड़ों को जहर देकर क्यों मारना पड़ा?
छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में दो घोड़ों को जहर देकर मारना पड़ा। इनमें एक तो गर्भवती भी थी। सुनने में भले ही यह क्रूर लगे, लेकिन ग्लैंडर्स नाम की खतरनाक और संक्रामक बीमारी ही ऐसी है। ये घटना हम सबके लिए एक चेतावनी है कि जानवरों के स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना कितना खतरनाक हो सकता है। बीमारियां सिर्फ इंसानों की नहीं चिंता हैं। हमारे आसपास रहने वाले जानवर भी उसी हवा में सांस लेते हैं, उसी पानी से प्यास बुझाते हैं और हमारे ही बगल से गुजरते हैं। गाय, बैल, भैंस, कुत्ते या घोड़े, इनके साथ हमारा रोज का वास्ता होता है। मगर, ये बीमार हों तो बीमारी हम तक भी पहुंच सकती है।
ग्लैंडर्स बीमारी संक्रामक है। यह घोड़ों, खच्चरों और गधों को सीधे चपेट में लेता है, लेकिन इंसानों तक भी पहुंच सकता है। अंबिकापुर में जब दो घोड़े इसके शिकार पाए गए तो प्रशासन को तत्काल उन्हें मारना पड़ा। क्योंकि ये बीमारी लाइलाज है और फैलती है तो रोकना मुश्किल हो जाता है। अंबिकापुर में करीब 28 घोड़े हैं। सबके स्वास्थ्य की जांच की जा रही है। डॉक्टरों का कहना है कि देर से पता चलने पर यह इंसानों में फैल सकता है, खासकर इन पशुओं के पालकों को खतरा अधिक होता है।
ग्लैंडर्स में जानवर को तेज बुखार, नाक से स्राव, फेफड़ों में सूजन और त्वचा पर घाव जैसे लक्षण होते हैं। वैसे बीमार पशु कुछ कह भी नहीं सकता, बस चुपचाप तकलीफ सहता रहता है। उसके हाव-भाव से जरूर आप अनुमान लगा सकते हैं। इसीलिए जरूरी है कि यदि हम खुद की सेहत पर ध्यान देते हैं तो अपने पालतू या आसपास रहने वाले जानवरों पर भी नजर रखें। यदि कोई गाय, कुत्ता या घोड़ा अचानक सुस्त दिखे, खाए नहीं, घाव हो जाए या अजीब व्यवहार करे, तो इसे हल्के में न लिया जाए ।
सरकार ने इस बीमारी को नोटिफायबल डिजीज घोषित किया है, यानी अगर किसी जानवर में इसके लक्षण दिखते हैं तो तुरंत प्रशासन को बताना जरूरी है। तो अगली बार जब आप अपने पालतू कुत्ते को चुपचाप बैठे देखें, या किसी गाय को गंदे घाव के साथ सडक़ किनारे खड़ा देखें तो नजरें न फेरिए। हो सकता है आपकी सजगता किसी बड़ी मुसीबत को टाल दे।
दारू दुकान का बवाल

रायपुर जिले में सात नई शराब की दुकानें खोलने का प्रस्ताव है। इनमें से पांच दूकान आरंग इलाके में खोली जा रही है। गांव भी चिन्हित कर लिए गए हैं, और देशी शराब दूकान (भ_ी) के लिए आबकारी विभाग ने जमीन किराए पर लेने के लिए आवेदन बुलाए हैं। जमीन मालिकों के आवेदनों पर 2 जुलाई को विचार होगा। यानी जो कम दर पर दूकान किराए पर देने के इच्छुक होगा। विभाग उनसे जमीन किराए लेने के लिए अनुबंध करेगा।
बताते हैं कि नई शराब दुकान खोलने के प्रस्ताव का विरोध भी हो रहा है। एक-दो गांवों में तो ग्रामीणों ने एक राय होकर जमीन नहीं देने के लिए आपस में सहमति बना ली है। ताकि विभाग को दुकान खोलने के लिए जगह ही न मिल सके। यही नहीं, खौली गांव में तो स्कूल के विद्यार्थी भी आंदोलन में शरीक हो गए हैं। उन्होंने एक दिन कक्षा का बहिष्कार भी किया। इससे परे कुछ जगहों पर तो जनप्रतिनिधि अपनी जमीन किराए पर देने के इच्छुक बताए जाते हैैं। क्योंकि विभाग अच्छा-खासा किराया राशि देने के लिए तैयार है। ऐसे ही इलाके में अपना प्रभाव रखने वाले एक नेता तो अपनी जमीन किराए पर चढ़ाकर अच्छी-खासी कमाई कर रहे हैं।
नेताजी पहले कांग्रेस में थे। सरकार बदली, तो वो भाजपा में शामिल हो गए। इससे उनकी किराए को लेकर कोई समस्या नहीं रह गई है। वो दूसरे गांवों में जाकर ग्रामीणों और विभाग के बीच पुल का काम कर रहे हैं, ताकि शराब दुकान खोलने में कोई दिक्कत न आए। कुछ इसी तरह रायपुर शहर में भी एक बड़े भाजपा नेता ने घर के एक हिस्से को किराए पर देकर शराब दूकान खुलवा ली थी। दो-तीन साल तक भारी-भरकम किराया भी लेते रहे। बाद में जब पार्टी के अंदरखाने में आलोचना हुई, तब कहीं जाकर दूकान को रिनीवल नही कराया।
भारतमाला की जाँचमाला

रायपुर-विशाखापट्टनम भारतमाला सडक़ परियोजना के मुआवजे घोटाले की ईओडब्ल्यू-एसीबी पड़ताल कर रही है। चार आरोपी गिरफ्तार भी हुए हैं। मगर घोटाले में संलिप्त राजस्व अधिकारी अभी भी ईओडब्ल्यू-एसीबी की गिरफ्त से बाहर हैं।
ईओडब्ल्यू-एसीबी जुलाई के पहले हफ्ते में प्रकरण को लेकर चालान पेश करने की तैयारी कर रही है। प्रकरण की एक और जांच चल रही है। यह जांच रायपुर कमिश्नर की मॉनिटरिंग में हो रही है। इसके लिए चार एडिशनल कलेक्टर की अध्यक्षता में टीम बनाई गई है। जो मुआवजा से जुड़ी शिकायतों का मौके पर जाकर पड़ताल कर रही है। कमिश्नर की रिपोर्ट आने के बाद ईओडब्ल्यू-एसीबी प्रकरण दर्ज करेगी, और बाद में पूरक चालान पेश किया जाएगा। यानी, घोटाले की जांच लंबी चलने की संभावना है।


